commit 2481f82960a54e0053267f2f5e18c1981357c0e9 Author: Gourab <19bcs118@iiitdwd.ac.in> Date: Fri Jun 18 17:28:52 2021 +0530 Added small hindi corpus for testing diff --git a/.DS_Store b/.DS_Store index f9f8af9..8c40e80 100644 Binary files a/.DS_Store and b/.DS_Store differ diff --git a/apertium-hin.hin.dix b/apertium-hin.hin.dix index 7423892..76d732d 100644 --- a/apertium-hin.hin.dix +++ b/apertium-hin.hin.dix @@ -1357,7 +1357,7 @@ - +

@@ -1369,7 +1369,6 @@

-

@@ -1386,6 +1385,10 @@

+ +

+
+

@@ -1751,6 +1754,7 @@ दि कई + हमारा एवम् diff --git a/texts/.DS_Store b/texts/.DS_Store new file mode 100644 index 0000000..2bf219e Binary files /dev/null and b/texts/.DS_Store differ diff --git a/texts/hin_small.txt b/texts/hin_small.txt new file mode 100644 index 0000000..d1885d2 --- /dev/null +++ b/texts/hin_small.txt @@ -0,0 +1,32094 @@ +1. यह भूगोल विषय का प्रारंभिक परिचय कराने वाली पुस्तक है। + +2. 2- वाद्य : भांति-भांतिके बाजे बजाना + +3. 7- चावल और पुष्पादिसे पूजा के उपहार की रचना करना + +4. 12- जलको बांध देना + +5. 17- फूलों के आभूषणों से श्रृंगार करना + +6. 22- हाथ की फुतीकें काम + +7. 27- पहली + +8. 32- समस्यापूर्ति करना + +9. 37- सोने, चांदी आदि धातु तथा हीरे-पन्ने आदि रत्नों की परीक्षा + +10. 42- भेड़ा, मुर्गा, बटेर आदि को लड़ाने की रीति + +11. 47- म्लेच्छ-काव्यों का समझ लेना + +12. 52- सांकेतिक भाषा बनाना + +13. 57- समस्त छन्दों का ज्ञान + +14. 62- मन्त्रविद्या + +15. अगर आप किसी सन्ख्या को ९ से गुना करना चाहते हैं + +16. 9×11=99=18 + +17. प्रश्नोत्तर रूप में सन् १८५७ का स्वातंत्र्य समर: + +18. आयोजित करना तथा दूसरा विद्यालयीन एवं महाविद्यालयीन विद्यार्थियों को इस विषय पर पुस्तक + +19. जी अपने मध्य नहीं हैं परन्तु उनकी प्रेरणादायी स्मृति हमें सदैव स्फुरित करेगी, ऐसा विश्वास है। + +20. का एक स्वर्णिम पृष्ठ सामने हो तथा वे इसे आज़ादी के दीवानों के अतुलनीय प्रयास की गाथा + +21. साधुवाद देते हैं। + +22. सुधी पाठकों के हाथों में '1857 का स्वातंत्र्य समर: प्रश्नोत्तर रूप में' पुस्तक देते हुए + +23. सार वाक्. + +24. लगभग तीन लाख सैनिकों व नागरिकों ने बलिदान दिया, भयंकर नरसंहार लोमहर्षक + +25. राष्ट्र ने पुन: अपना तेजोमय स्वरूप विश्व के सामने प्रकट किया। 'यत्र द्रुमोनास्ति तत्रऽरंडो + +26. अनेक प्रकार से साहित्यिक-ऐतिहासिक वामाचार किया गया। 1857 के उस महासमर की 150 वीं वर्षगाँठ ने हमें उक्त भ्रम एवं विसंगतियों के + +27. शब्दावली, दृष्टिकोण में कृत्रिम परिवर्तन आया। परन्तु इसका सकारात्मक पक्ष भी था - + +28. थे। 1857 में पहली बार भारत की राष्ट्रीयता के अखिल भारतीय सांस्कृतिक आधार + +29. तोड़ो गुलामी की जंजीरें, बरसाओ अंगारा॥" + +30. तथा उल्लंघन करने वाले को मृत्युदंड या हाथ-पैर काटने की सजा का प्रावधान + +31. स्वाभाविक केन्द्र था इसलिए बहादुर शाह को दिल्ली सम्राट के नाते नेतृत्व दिया + +32. बहादुर शाह जफर ने अपने हाथों से ही राजपुताने के राजाओं को पत्रों में लिखा - + +33. समर्पित कर दूँगा और ऐसा करने में मुझे आनन्द भी प्राप्त होगा।" (मेटकाफ कृत + +34. क्रान्ति केवल उत्तर भारत तक सीमित नहीं थी। गौमुख में उत्स पर जो गंगा की + +35. 800 लोगों में से 250 से अधिक दक्षिण भारत के थे। बंगाल, मुम्बई तथा मद्रास में कोर्ट + +36. दौरान 386 क्रान्तिकारियों को फाँसी दी गई, 2000 लोग मारे गए व अनेक बंदी बनाए गए। + +37. दिया। जगदीशपुर के कुँवर सिंह, रूइया गढ़ी के नरपत सिंह, आउवा के ठाकुर कुशाल सिंह + +38. स्वातंत्र्य युद्घ का वास्तविक कारण क्या था? वीर सावरकर के शब्दों में "राम- + +39. यदि कहीं तुमने इस मर्मस्थल को छेड़ दिया, तो सावधान! तुम सर्वनाश को निमंत्रण दे + +40. छावनियों में उ“ा पद व वेतन पर पादरी रखे हुए थे। बैरकपुर छावनी के कर्नल ह्वीलर जैसे + +41. 'हे हिन्दभूमि के सपूतों, यदि हम संकल्प कर लेंगे तो शत्रु को क्षण भर में नष्ट कर + +42. क्रान्ति युद्घ में भी अभिव्यक्त हुआ था। समर्थ गुरू रामदास ने मराठों को यही आह्वान दिया + +43. साँस तक इसी प्रकार युद्घ करो और स्वरा…य की स्थापना करो) + +44. बारुद के ढेर पर बैठा हुआ था तथा 1857 भारत का स्वाधीनता संग्राम था। वीर सावरकर ने + +45. को नहीं मिला। मृत्यु भय या प्रलोभन से एक भी क्रान्ति सैनिक नहीं टूटा। + +46. रीति-नीति व कुटिलता का सहज अध्ययन हो गया। इसी में से यह विचार पुष्ट हुआ कि + +47. भारत आने के बाद आधुनिक चाणक्य रंगो बापू जी गुप्ते ने चन्द्रगुप्त की तलाश + +48. बातें क्या हैं? - + +49. बैंक में जमा अपने पाँच लाख पौंड दो वर्ष की अवधि में धीरे-धीरे + +50. तीर्थाटन, रक्त-कमल और रोटी, साधुओं-फकीरों का प्रवास, विशेष गूढ़ार्थ वाले + +51. हुई थी। + +52. जैसी अनेकों रियासतों के शासकों का असहयोग, उत्कृष्ट शस्त्रास्त्रों की कमी, कमजोर व वृद्घ + +53. छावनी से अंग्रेज अधिकारियों को सकुशल जाने ही नहीं दिया बल्कि कई जगह तो पहुँचाने + +54. चालीस-चालीस, पचास-पचास आदमी छिपे हुए थे। ये लोग विद्रोही न थे बल्कि नगर + +55. (ञ्जद्धद्ग ष्टद्धड्डश्चद्यड्डद्बठ्ठ'ह्य ठ्ठड्डह्म्ह्म्ड्डह्लद्ब1द्ग शद्घ ह्लद्धद्ग स्द्बद्गद्दद्ग शद्घ ष्ठद्गद्यद्धद्ब, + +56. गवर्नर जनरल वायसरॉय हो गया। 1861 की पील कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार सेना में + +57. व छोटे रा…यों के कारण अखिल भारतीय भाव का लोप हो रहा था। इस समर के कारण नाना + +58. क्रान्तिकारियों के लिए क्रान्ति-गीता बन गई। चाहे संत रामसिंह कूका हो या वासुदेव + +59. की ललक पैदा हुई थी। कई देशों के शासक मजबूरी में, कठोर ब्रिटिश अंकुश के कारण, + +60. आन्दोलन चला रखा था। अफगान कबीले अंग्रेजों के विरुद्घ वहाबियों की मदद कर रहे थे। + +61. दुर्भाग्य से स्वतंत्रता के बाद राजनीतिक स्तर पर दुष्चक्र रचकर पाठ्यपुस्तकों व समाचार + +62. सन् 1857 के बाद तुष्टिकरण का जो खेल अंग्रेजों ने प्रारम्भ किया था, यहाँ के + +63. हंटर कमीशन बनाया गया, जिसने मुसलमानों की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक + +64. निष्कर्ष, दार्शनिक आधार और मान्यताएँ वही हैं जो हंटर कमीशन की थीं। अत: स्वातंत्र्य + +65. चुकाई है। दुर्भाग्य से, प्रेरणा के अभाव में, आज की युवा पीढ़ी भँड-नचैया और डाँड- + +66. वर्ष में दृष्टिपात करते समय उपरोक्त सभी बिन्दुओं को हमें याद रखना चाहिए। इस महासमर + +67. उत्पाद। अभिकारक इस पुस्तक के अध्येता हैं, पुस्तक सकारात्मक समांगी उत्प्रेरक है और + +68. वस्तुनिष्ठ है और सामान्य व्यवहार के विपरीत प्रश्न उससे कई गुना बड़ा है। किन्तु यह + +69. "काल रात्रि व्यतीत हुई अब + +70. प्रश्नोत्तरी १ से १००. + +71.
उ. स्वातंत्र्य वीर सावरकर। + +72.
उ. प्रकाशन पूर्व ही जब्ती के आदेश। + +73.
उ. मराठी। + +74.
उ. लंदन। + +75. 10. 'तलवार' नामक पत्र का प्रकाशन किस संगठन द्वारा होता था? + +76.
उ. ग्रन्थ लेखन का उद्देश्य बताना। + +77. सर्वप्रथम कहाँ से प्रकाशित हुआ? + +78. 16. प्रतिबंध काल में गुप्त रूप से '1857 का भारतीय स्वातंत्र्य समर' पुस्तकों + +79. बैंक ऑफ पेरिस' में किसने सुरक्षित रखी? + +80. 19. '1857 का भारतीय स्वातंत्र्य समर' पुस्तक से विधिवत प्रतिबंध किस सन् + +81.
उ. सरदार भगतसिंह ने। + +82. की क्या विशेषता थी? + +83. 24. '1857 का भारतीय स्वातंत्र्य समर' ग्रन्थ का प्रारम्भ जिन सन्त के पद्य से + +84.
उ. मैजिनी। + +85. 27. वस्तुत: 1857 के स्वातंत्र्य संग्राम को प्रदीप्त करने वाले दिव्य तत्व क्या थे? + +86.
उ. फिक्शन एक्सपोज्…ड। + +87. 30. 'जिस दिन अंग्रेजों ने इस हिन्दू भूमि पर अपनी दासता का पाश लादने के + +88. 31. अंग्रेज इतिहासकारों ने 'साम्रा…य निर्माता' की संज्ञा किसे दी है? + +89. 33. महाराजा रणजीत सिंह के नाबालिग पुत्र का नाम बताइये जिसे अंग्रेजों ने + +90. अंग्रेज दरबारी के रूप में हुआ।' अंग्रेजों की इस कुटिल नीति को उजागर + +91. रा…य को हड़प लिया? + +92. 37. 1826 में 'सतत् मैत्री' की संधि ईस्ट इंडिया कम्पनीऔर नागपुर के जिस + +93.
उ. सन् 1853 ई. में। + +94. 41. नाना साहब पेशवा के पिता का नाम बताइये। + +95. को ग्रहण किया? + +96.
उ. मोरोपन्त तांबे। + +97. 48. लक्ष्मी बाई का माता-पिता ने क्या नाम रखा था? + +98.
उ. महाराजा गंगाधर से। + +99. 52. नाना साहब ने कम्पनी सरकार के विरुद्घ लंदन में अपना पक्ष रखने के + +100. 54. नाना साहब को प्रतिदिन अंग्रेजी समाचार पत्र पढ़कर सुनाने वाले अंग्रेज + +101.
उ. दामोदर राव को। + +102. अंग्रेजों ने अवध के नवाब का कौनसा क्षेत्र बलात् हड़प लिया? + +103.
उ. अपनी माँ को। + +104. था? + +105.
उ. बंगाली सेना के कमांडर का। + +106. 64. कारतूसों में किन जानवरों की चर्बी का मिश्रण था? + +107. 66. कारतूसों पर चर्बी के उल्लेख के सरकारी प्रतिवेदन की तिथि बताइये। + +108. 68. भारत में चर्बी लगे कारतूस का निर्माण कारखाना कहाँ लगाया गया? + +109. लौटते हुए अजीमुल्ला खाँ किन दो देशों में गए थे? + +110. 72. काली नदी पर हुए युद्घ में पकड़े गए एक भारतीय सैनिक से पूछा - + +111. शाह जफर ने कौनसा पंथ स्वीकार करने की घोषणा की थी? + +112. 75. 'राजमहलों के द्वारों के समीप बैठकर मुगल तथा अन्य लोग स्वातंत्र्य युद्घ + +113. स्थानों को चुना? + +114. 78. गूढ़ संदेश प्रसारण तथा शौर्य जगाने के लिए गायकों ने सार्वजनिक स्थानों + +115. की थीं? + +116. चिपकाने की तिथि बताइये। + +117.
उ. अवध की 48 वीं रेजीमेंट को। + +118.
उ. रक्त कमल और रोटी। + +119. स्वातंत्र्य समर' की क्या विलक्षणता है? + +120.
उ. मंगल पांडे। + +121.
उ. एक भी सैनिक आगे नहीं आया। + +122.
उ. लैफ्टिनेन्ट बॉब्ह। + +123.
उ. स्वयं को गोली मार ली। + +124. 95. 1857 की क्रान्ति का प्रथम विस्फोट करने वाले क्रान्तिकारी का नाम + +125. 97. मंगल पांडे से अंग्रेज इतने भयभीत थे कि स्वतंत्रता समर के प्रत्येक + +126. तरीका सर्वप्रथम किस छावनी में अपनाया गया? + +127.
उ. अंग्रेजों के प्रधान सेनापति एन्सन ने। + +128. 101. 3 मई 1857 को चार सिपाही अंग्रेज अधिकारी के तम्बू में घुसे और बोले- + +129. 102. 6 मई 1857 को मेरठ छावनी की घुड़सवार टुकड़ी के 90 सैनिकों में से + +130. 104. जिन सैनिकों ने कारतूस छूने से मना किया, तोपखाने के पहरे में उनके + +131. 105. 'तुम्हारे भाई कारागारों में हैं और तुम यहाँ मक्िखयाँ मारते घूम रहे हो। + +132.
उ. 10 मई को। + +133. 109. मेरठ छावनी के क्रान्तिकारी सिपाहियों ने सबसे पहला काम क्या किया? + +134. 111. मेरठ से दिल्ली की ओर प्रस्थान करते हुए क्रान्ति सैनिकों का नारा क्या + +135.
उ. मेरठ से दिल्ली। + +136. प्रवेश किया था? + +137. 116. दिल्ली के शस्त्रागार का अधिकारी कौन था जिसने क्रान्तिकारियों के हाथ + +138. जाँच-समिति की यह स्वीकारोक्ति भारतीय संस्कृति की किस विशेषता को + +139. बताइये। + +140. 120. अंग्रेजों के सौभाग्य से किस देश से उनका युद्घ समाप्त होने के कारण वहाँ + +141. लिए प्रस्थान कर रही सेना को भारत में ही रोक लिया? + +142.
उ. लॉर्ड कैनिंग ने। + +143. बताइये जिनके आचरण से क्रान्ति की सफलता या असफलता तय होने + +144.
उ. इनके सहयोग बिना दिल्ली पर आक्रमणकारी अंग्रेज सेना का पृष्ठ भाग + +145. 127. अंग्रेजों के आग्रह पर पानीपत की रक्षा का भार किस देशी रा…य ने लिया? + +146.
उ. सैनिक न्यायालय। + +147. 130. पाँच तोपें अंग्रेजों के हाथ पडऩे से बचाने के लिए ग्यारहवीं पलटन के एक + +148. पलटन ने की थी? + +149. 133. दिल्ली के समीप अंग्रेज सेना व क्रान्तिकारियों के बीच प्रथम युद्घ किस + +150.
उ. कर्नल चेस्टर। + +151. 136. 'लोग शान्ति के युग को सदा ही Ÿोयस्कर मानते हैं। उनके कृषि कार्य में + +152. 137. 'साहब वे सब फिसाद की भावनाओं से भरे हुए हैं।' अंग्रेजों के एक + +153.
उ. सेना का निरस्त्रीकरण। + +154. 140. 21 अक्टूबर 1857 ई. को किस अंग्रेज अधिकारी ने अपने पत्र में यह + +155. अंग्रेजों ने क्या अफवाह उड़ाई? + +156. 143. सैनिकों के हथियार रखवाने से क्षुब्ध अफसरों ने उनके पक्ष में अपने + +157.
उ. कर्नल स्पाटिस्वुड। + +158. मरना पसन्द किया, 55 वीं पलटन के उन सैनिकों की संख्या बताइये। + +159. शंखनाद किया? + +160. 150. 'अजनाला हत्याकांड' का हत्यारा कौन था? + +161. में कदापि सहयोग नहीं देगी।' किस पलटन के सम्बन्ध में अंग्रेजों की यह + +162. की आग सुलगा दी; यह पलटल कौनसी थी? + +163. महिला का वेश बनाकर भाग गया। + +164. 157. रुहेलखंड की तात्कालिक राजधानी बरेली में किस तिथि को क्रान्ति + +165. 159. 'भाग्य की विडम्बना देखिए कि वारेन हैस्टिंग्ज ने जिस चेतसिंह पर अपने + +166. 160. 4 जून 1857 को किस स्थान पर क्रान्ति हुई? + +167. उल्लेख है? + +168. ... दंिडत अपराधी को उसके गले में फन्दा डालकर एक गाड़ी पर + +169. 164. सम्पूर्ण हिन्दुस्थान में जितने अंग्रेजों की हत्या हुई उनसे अधिक संख्या में + +170. तक उन शवों को एकत्र करने के लिए चक्कर लगाती थीं, जो राजमार्गों और + +171. करेगा।' अपनी क्रूरता को इंग्लैंड हित में क्षम्य बताने वाले इस अंग्रेज + +172. 168. तात्या टोपे का बचपन का नाम बताइये। + +173.
उ. श्री पांडुरंग। + +174.
उ. अजीजन बाई। + +175.
उ. 4 जून 1857 रात्रि को। + +176. दिन तक घ्ोराबन्दी के साथ युद्घ चला? + +177. गया था, उनके नाम बताइये। + +178. 179. क्रान्ति के समय लूटपाट व अराजकता पर नियंत्रण के लिए नाना साहब ने + +179. 181. कानपुर की गढ़ी के समर्पण करने वाले अंग्रेजों को सकुशल प्रयाग भेजने + +180.
उ. सती चौरा घाट। + +181. 184. कानपुर में 7 जून को एक हजार अंग्रेज थे। 30 जून तक उनमें से कितने + +182.
उ. 1 जुलाई 1857 को। + +183. घटना की तिथि बताइये। + +184. 189. लखनऊ स्थित अंग्रेजों की सुरक्षा के लिए सर हेनरी लारेन्स ने किन दो + +185. 191. फैजाबाद के सिपाहियों ने दलीपसिंह के नेतृत्व में कारागृह पर आक्रमण + +186. की अनुमति दी थी? + +187. 194. अवध के जिन नरेशों ने अपनी शरण में आने वाले गोरों की प्राणरक्षा मात्र + +188. सिद्घ हो जायेंगे।' गोरों को शरण देने वालों से यह आग्रह किसने किया? + +189. 197. हेनरी लारेन्स के नेतृत्व में लखनऊ से चली सेना पर क्रांतिकारियों के + +190. समय आ जाए तो तुम्हारे विरोध को सहन करके भी हम अपने इस पावन + +191. यह बात कही? + +192.
उ. 14 अगस्त 1857 को। + +193.
उ. हत्याकांडों की ये घटनाऐं इतनी कम क्यों हुई। + +194. बताइये। + +195. 204. 1857 में किसी को गाली देनी होती तो क्या कहते थे? + +196.
उ. बहादुरशाह जफर। + +197. 207. दिल्ली की क्रांतिकारी सेना का प्रधान सेनापति किसे नियुक्त किया गया? + +198. 209. जब अंग्रेजों ने फतेहपुर में आग लगा दी तो उसके प्रतिशोध में किस + +199. 211. कानपुर पर आक्रमणकारी अंग्रेज सेना का प्रमुख कौन था? + +200. पूर्व उनकी सभी धार्मिक भावनाओं को पददलित करने के लिए ऐसा कर + +201. चतुर फिरंगी ने कानपुर में 'छूत-अछूत' का नया विवाद खड़ा कर दिया। + +202.
उ. अछूत सेना। + +203. पुस्तक में लिखा है, उसका नाम बताइये। + +204. यह बात किसने कही? + +205. विद्यमान था। इस त‰य को सिद्घ करने वाले अंग्रेज का नाम बताइये। + +206.
उ. गुरूद्वारा पटना साहिब। + +207.
उ. 3 जुलाई 1857 को। + +208. दंड के समय यह साहसिक घोषणा करने वाले वीर का नाम बताइये। + +209.
उ. 80 वर्ष। + +210.
उ. बहादुर शाह जफर। + +211. होगा।' दिल्ली सम्राट द्वारा विभिन्न रा…यों को लिखे पत्रों का उद्घरण 'टू + +212. साथ न लड़ सके और हम केन्द्रीय मोर्चा हार गए। यह केन्द्रीय मोर्चा कौनसा + +213. 232. अंग्रेजी सेना सर्वप्रथम किस मार्ग से दिल्ली में प्रविष्ट हुई? + +214. को बलिदान का बकरा बनाकर चढ़ा देने की अपेक्षा तो पराजय और + +215.
उ. 66 अधिकारी और 1104 सैनिक। + +216. जाएँगे तो अन्तिम विजय हमारी ही होगी।' बहादुर शाह जफर को यह राय + +217. छुप गया। यह मकबरा किसका था? + +218. 239. 'शाहजादे तो अभी भी मकबरे में छुपे बैठे हैं।' यह सूचना देने वाले कौन + +219. 241. बहादुर शाह जफर के पुत्रों को गोली मारने वाले अंग्रेज का नाम बताइये। + +220.
उ. लाइफ ऑफ लॉरेन्स। + +221.
उ. 5-6 हजार। + +222.
उ. बर्जिस कादर। + +223. सम्पूर्ण भार उसकी माँ पर था। उसका नाम बताइये। + +224. 250. अचूक निशानेबाज लखनऊ के हब्शी हिंजड़े से आतंकित अंग्रेजों ने + +225.
उ. अंगद। + +226. 253. 'उस दिन हेवलॉक की सेना की जब गिनती हुई तो उसे विदित हुआ कि + +227. स्वातंत्र्य संग्राम के रूप में ही मान्यता देनी पड़ेगी।' यह लिखने वाले + +228.
उ. आउट्रम को। + +229. सितम्बर को यह घोषणा किस स्थान पर की थी? + +230. 258. लखनऊ की रेजीडेंसी पर कितने दिन अहर्निश संग्राम चला? + +231. रेजीडेंसी को पुन: घ्ोर लिया। इस घटना की तिथि बताइये। + +232. 262. 13 अगस्त 1857 को अंग्रेजों का नया सेनापति कलकत्ता पहुँचा। उसका + +233. बताइये। + +234. 265. लखनऊ रेजीडेंसी में आत्मरक्षा की क्या व्यवस्था है, यह जानने के लिए + +235.
उ. 14 नवम्बर 1857 + +236. पड़ा? + +237. 270. ग्वालियर के सैनिकों को साथ लेकर तात्या टोपे कालपी किस तिथि को + +238. ब्रिटिश युद्घ सिद्घान्त के अनुसार एक अंग्रेज सेनापति ने तात्या टोपे पर + +239. कानपुर में यह घटना किस तिथि को घटित हुई? + +240. 274. पूरा नगर खाली था किन्तु एक भवन से होती गोलीबारी ने पूरी अंग्रेज सेना + +241. सुरंग से उड़ाने वाले इंजीनियर्स के नाम क्या थे? + +242. 277. घाघरा नदी के पार उस स्थान का नाम बताइये जहाँ केवल 34 क्रान्तिकारियों + +243. किया जो चंदा, वैंजा और गोंड के राजाओं ने ऐसा क्यों किया? यह कथन + +244. बैठे हैं, अब तो मुझे सर्वत्र ढिलाई ही प्रतीत हो रही है, फिर भी कर्त्तव्यपालन + +245.
उ. विदेही हनुमान। + +246. अंगेजों ने विद्रोही किसे माना? + +247.
उ. अंग्रेज स्त्रियों की। + +248. 285. 'प्रतीत होता है कि यह सैनिकों का साधारण सा विद्रोह नहीं, यह विŒलव + +249. 286. 'ऐसा कहीं भी हमें अनुभव नहीं हो पाता कि हम शत्रुओं का समूलो‘छेद + +250.
उ. वृक युद्घ पद्घति (छापामार) + +251. के लिए कुँवर सिंह ने एक टुकड़ी किस नदी के पुल पर मोर्चेबंदी के लिए + +252. इस योजना की मॅलेसन ने क्या कहकर प्रशंसा की है? + +253.
उ. जगदीशपुर के जंगल में। + +254. होने की योजना क्रियान्िवत की? + +255.
उ. डगलस। + +256. किया? + +257. 298. 23 अप्रेल 1858 को चार सौ गोरे सैनिक व दो तोपें लेकर लेग्रांद ने + +258. कागजातों के आधार पर लोगों के वंश, वारिसदारी के अधिकार तथा लोगों + +259. तिथि कौनसी है? + +260. भेदकर सेना सहित निकल गया। उस वीर का नाम बताइये। + +261.
उ. 150 ललनाओं ने। + +262. के इर्द-गिर्द मंडराते रहो, फिरंगी को चैन मत लेने दो।' रूहेलखंड के + +263. 304. लखनऊ के निकट रूइया के जमींदार का नाम बताइये जिसने वॉलपोल + +264. अंग्रेजी राष्ट्र को इतना धक्का लगा कि जो सैंकड़ों सैनिकों के मारे जाने से भी + +265.
उ. पोवेन राजा जगन्नाथ का भाई। + +266. काला पानी की सजा हुई? + +267. 310. 'साउथ इंडिया इन 1857 : वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस' के लेखक का नाम + +268.
उ. 1954, 1213 तथा 1044 अभियोग। + +269. सतारा में विŒलव के उठने की आवाज मराठा सरदार से नहीं उठी बल्कि + +270. की सेना लाने की योजना की, उसका नाम क्या है? + +271.
उ. मानसिंह परदेशी। + +272. इंग्लैंड गए थे? + +273. 319. रंगो बापू जी गुप्ते ने अपने दो भतीजों के नेतृत्व में 500 मावलों की एक + +274.
उ. 11 जून 1857 को। + +275. फिर कभी पकड़े नहीं जा सके। उनके जेल से पलायन की तिथि बताइये। + +276. 324. वह तिथि बताइये जब हैदराबाद की जनता ने स्वस्फूर्त ब्रिटिश प्रतिनिधि + +277.
उ. नारखेड़ के रत्नाकर पागे और हैदराबाद के सोनाजी पंत। + +278. किया था। इस पत्र के लेखक का नाम क्या था? + +279. लोगों ने 1845-1848 तक अंग्रेजों के विरुद्घ युद्घ किया? + +280. 331. जुलाई 1857 में विजयनगरम्, अलीपुर, बंगलौर आदि के बाजारों में विद्रोह + +281.
उ. गोलकुंडा। + +282. जो अठारहवीं सदी के अन्त तक अंग्रेजों से लड़ता रहा। + +283.
उ. 16 अक्टूबर 1799 को। + +284.
उ. तिरुनेवल्ली। + +285.
उ. अन्ना गिरि और कृष्णा गिरि। + +286. 341. 26 जनवरी 1852 को दीपू जी रांो के नेतृत्व में स्वतंत्रता आन्दोलन कहाँ + +287. के निर्देश का क्रियान्वयन वापस लिया गया। यह संधि किस तिथि को हुई? + +288. 344. दीपू जी रांो की गिरफ्तारी के बाद नवम्बर 1858 में उन्हें कहाँ निष्कासित + +289. 346. पुंो में 1857 के किस माह में अंग्रेजों के विरुद्घ एक विŒलव का प्रयत्न + +290.
उ. सार्वजनिक वाचनालय। + +291. आयेंगे और दशहरा के दिन पेशवा सरकार की गद्दी सम्भालेंगे।' अगस्त + +292.
उ. ज्ञान प्रकाश पुंो के अंक में। + +293. बात क्या थी? + +294.
उ. नग्गा रामचन्द्र मारवाही। + +295. उसका नाम क्या था? + +296. 357. 4 नवम्बर 1857 को बीजापुर के जिस व्यक्ति के घर से सत्तरह मन बारुद + +297.
उ. शेख अली। + +298. विद्रोह भड़काने के आरोप में पकड़ा गया था? + +299.
उ. दिसम्बर 1857 की। + +300. नरसिम्हादास, दामोदरदास तथा निर्गुणदास मूलत: कहाँ के रहने वाले थे? + +301. 365. 1 अगस्त 1857 को एक विशाल भीड़ अय्यम प्रमलाचारी की घोषणा पर + +302. एक मठम् के स्वामी ब्रिटिश विरोधी संगठन के लिए उपदेश देते थे। + +303. 368. सितम्बर 1857 में ब्रिटिश सरकार के विरुद्घ भड़काने के आरोप में तेलीचरी + +304.
उ. मालाबार से। + +305. 371. राजामुन्दरी जिले के करतूर निवासी उस व्यक्ति का नाम क्या था जो + +306. कर दो।' यह घटना किस स्थान की है? + +307.
उ. मद्रास नेटिव एसोसिएशन। + +308. निकट लगभग 600 क्रान्तिकारी एकत्रित हुए। उस तालाब का नाम क्या था? + +309. 377. 2 फरवरी 1858 की रात्रि को फोंद सावन्त के पुत्र राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में + +310. का नेतृत्व कर रहे थे। तीनों के नाम बताइये। + +311. 380. कोल्हापुर की 27 वीं पलटन में 31 जुलाई 1857 से सम्बन्िधत कितने + +312. दिया और धैर्य के साथ मृत्यु का सामना किया'? + +313.
उ. रत्नागिरि के मजिस्टे्रट ने। + +314.
उ. रामाचार्य पुराणिक का। + +315. 385. नाना साहब पेशवा पुन: शीघ्र आयेंगे, 1857 में इस विश्वास को बनाए + +316. जन क्रान्ति के प्रमुख प्रेरक कौन थे? + +317.
उ. 15 मई 1869 को। + +318. हैं, इसे आप हृदयस्थ कर लें।' नाना साहब की प्रेरणा से 13 सितम्बर 1857 + +319. नाम क्या था? + +320. 393. 'ऐसा आभास होता है कि तीन महीनों से भी अधिक समय से पलटन के + +321. देशी व्यक्ित मुम्बई के किसी अज्ञात भाग में, सेना निवास के निकट विद्रोही + +322. बैठकें होती थीं, उसका नाम क्या था? + +323. 397. मुम्बई में अक्टूबर में तय क्रान्ति योजना का सुराग अंग्रेजों को लग गया। + +324. ऐसŒलेनेड मैदान में तोप से उड़ाया था। इस मैदान का वर्तमान नाम क्या है? + +325. नाम बताइये। + +326. 401. कर्नाटक में ब्रिटिश सरकार के निशस्त्रीकरण कानून का सशस्त्र विरोध + +327.
उ. बाबाजी निम्बालकर। + +328. वाला वीर भीमंणा किस सुरक्षा चौकी पर तैनात था? + +329.
उ. मंडगै भीमंणा। + +330. अपने पत्र में यह बात लिखने वाले जिला मजिस्टे्रट का नाम क्या था? + +331. क्या था? + +332. 411. महाराष्ट्र का कौनसा वर्तमान जिला खानदेश कहलाता था? + +333. नेतृत्वकर्ता का नाम क्या था? + +334. 415. नासिक के निकट किस जगह स्थित ब्रिटिश कचहरी और खजाने पर 5 + +335.
उ. वासुदेव भगवन्त जोगलेकर। + +336. स्थित है? + +337.
उ. शोरापुर के। + +338. - क्या राजा होकर मैं ऐसा करूँगा? जब वे मुझे तोप से बाँध देंगे तो भी मैं + +339.
उ. मीडोल टेलर। + +340. 423. धारवाड़ जिले के नरगुन्द रा…य के प्रमुख का नाम बताइये। + +341. 425. नरगुन्द के शासक ने स्वतंत्रता संग्राम में सहयोग के लिए किस रा…य के + +342. छिप गया? + +343. 428. नरगुन्द के शासक को दक्षिणी मराठा शासकों में सबसे बुद्घिमान समझा + +344.
उ. 1-2 जून 1858 के आक्रमण में। + +345. 431. भीमराव मुंडर्गी ने 1857 में उत्तरी कर्नाटक की किन दो नदियों के बीच + +346. गया? + +347. 434. भीमराव मुंडर्गी ने ब्रिटिश रक्षा दल पर आक्रमण कर जब्त युद्घ सामग्री + +348. 436. भीमराव मुंडर्गी द्वारा जीता गया कोŒपल का किला वर्तमान में कहाँ स्थित + +349. कार्यक्रम के बाद टहलते हुए प्रतिनिधि पर एक पठान ने कारबाइन से + +350.
उ. बालाजी गोसावी। + +351. आए नाना साहब पेशवा के भतीजे का क्या नाम था? + +352.
उ. बेगम बाजार कांड। + +353. भारत के लिए 1858 में जारी घोषणा पत्र की कितनी प्रतियाँ मिली? + +354. 445. 'विश्वसनीय सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि पुंो के समीप तीन संस्थानों की + +355. 446. '... मुन्नी बाई ने नित्य प्रति की पूजा के लिए धूप बत्ती जलाकर देवी और + +356. जीवित व्यक्ति का नाम बताइये जिसे 1907 में मुक्त किया गया था। + +357. 449. 1857 पर सबसे पहली पुस्तक जॉन केयी ने लिखी। उसका नाम क्या है? + +358. 451. जॉन केयी के ही कार्य को आगे बढ़ाने वाले जॉर्ज मालेसन ने पुस्तक के + +359.
उ. कार्ल माक्र्स ने। + +360. यह कथन जिस लंदनवासी प्रसिद्घ लेखक का है, उनका नाम लिखिये। + +361. 456. '1857 के स्वाधीनता संग्राम का हिन्दी साहित्य पर प्रभाव' इस शोध ग्रन्थ + +362.
उ. 1813 ई. में। + +363. अधिकार नहीं होगा। पर इसके लागू न होने का क्या प्रावधान था? + +364.
उ. 84 प्रतिशत। + +365. थे। उनका नाम क्या है? + +366. 465. 1857 के स्वातंत्र्य समर के समय अवध प्रान्त के अमीर अली और बाबा + +367.
उ. 18 मार्च 1858 के दिन। + +368. चित्रकार उनसे जेल में मिले और उनका चित्र बनाया था। उस चित्रकार का + +369.
उ. पयामे आजादी। + +370. निधन होने से सहायता नहीं मिली। रूस के उस जार का नाम क्या है? + +371. कर रहे थे।' इस गीत के लेखक कौन थे? + +372. 474. जानिमी कावा किसे कहते हैं? + +373. करते रहे? + +374. 478. मानसिंह की चतुराई से अंग्रेजों ने किसे तात्या टोपे समझकर बन्दी बना + +375. बताइये। + +376. 481. महारानी लक्ष्मीबाई की सेना की महिला तोपची का नाम बताइये। + +377.
उ. स्वर्ण रेखा नाला। + +378.
उ. मुंदर। + +379. 487. महारानी लक्ष्मीबाई की बलिदान के समय आयु कितने वर्ष थी? + +380. 489. उस व्यक्ति का नाम बताइये जिसे वीर सावरकर ने स्वातंत्र्य समर के समय + +381.
उ. खान बहादुर खान। + +382. 493. बहादुर शाह जफर की मृत्यु कब हुई? + +383.
उ. मेजर हडसन। + +384. को खैर नामक स्थान पर परास्त किया। + +385. में प्रवेश नहीं करने दिया उस वीर माता का नाम बताइये। + +386.
उ. 28 मई 1857 को। + +387.
उ. 15 वीं नेटिव इन्फेन्ट्री। + +388.
उ. 3 जून 1857 को। + +389.
उ. शाहपुरा। + +390. अंग्रेज मेजर को घ्ोरकर मार दिया, उसका नाम बताइये। + +391. 510. 17 सितम्बर 1860 को कोटा एजेंसी के बंगले के पास उसी स्थान पर दो + +392.
उ. सवा लाख रुपया। + +393. सेना ने क्रान्तिकारियों के विरुद्घ लडऩे से मना कर दिया। इस सेना के प्रमुख + +394.
उ. हवलदार गोजन सिंह। + +395.
उ. आबू पर्वत (माउंट आबू) + +396.
उ. मेहराब सिंह को। + +397. 520. अंग्रेजों के विरुद्घ आउवा में एकत्रित फौजों में लगभग कितने ठिकानों की + +398. प्रमुख का नाम क्या था? + +399. 523. 8 सितम्बर 1857 को स्वरा…य के सैनिकों ने जोधपुर की सेना पर आक्रमण + +400.
उ. अनाड़ सिंह मारा गया, हीथकोट भाग गया। + +401. भी था। क्रान्तिकारियों ने उसका सिर काटकर शव आउवा किले के दरवाजे + +402. रवाना कर दिया। इस फौज की कमान किसे सौंपी गई? + +403. 529. आउवा की पराजय के बाद कर्नल होम्स किले की एक प्रसिद्घ देवी + +404. 531. मासिक 'चाँद' का नवम्बर 1928 के अंक का नाम बताइये जिसे प्रकाशन + +405.
उ. सन् 57 के कुछ संस्मरण। + +406.
उ. मोंटगोमरी मार्टिन। + +407. 535. गढ़ मंडला के पिता-पुत्र कवियों को क्रान्तिकारी रचनाओं के कारण तोप + +408.
उ. डासना (गाजियाबाद)। + +409. ने अपनी क्रूरता दिखाते हुए सेठजी को एक गड्ढे में कमर तक गाड़कर + +410.
उ. बीकानेर (राजस्थान)। + +411. किस अंग्रेज अधिकारी से कही - 'तुम हमारे देश के दुश्मन हो और दुश्मन + +412.
उ. असम। + +413. की ओर से लड़ा। + +414. 546. स्वामी दयानन्द सरस्वती ने अपने स्वरचित जीवन चरित्र में 1857-1859 + +415. दयानन्द सरस्वती ने 'सत्यार्थ प्रकाश' के किस समुल्लास में किया है? + +416. हरिद्वार में स्वामी दयानन्द सरस्वती से यह बात किसने कही? + +417.
उ. सार्वदेशिक। + +418. का स्मरण कराया तो यह किसने कहा - 'अंग्रेजों ने स्वयं ने अपनी शपथ का + +419. मेवाड़ के डूँगला गाँव के एक किसान ने शरण प्रदान की। उस किसान का + +420. लेखक का नाम बताइये। + +421. 555. मोहम्मद मुजीब के उस नाटक का नाम बताइये जिसमें 1857 की क्रान्ति + +422. गोले। + +423. 559. 'ठाकुर कुशाल सिंह के सहयोगी समरथ सिंह द्वारा मारवाड़ व मेवाड़ के + +424. सामन्तों को अंग्रेजों के विरुद्घ संगठित करने का प्रयत्न हो रहा था।' कार्तिक + +425. आश्रय देने से मना करने वाले ठाकुर कौन थे? + +426. 563. 1857 में अजमेर के खजाने की सुरक्षा के लिए जोधपुर से भेजी गई सेना + +427.
उ. सैनिकों ने भूतपूर्व ए.जी.जी. सदरलैंड की प्रतिमा पर पत्थर फैंके थे। + +428. 566. मरवाड़ की सेना की क्रान्तिकारियों से सहानुभूति थी अत: युद्घ में उनके + +429.
उ. 1861 ई. तक। + +430. 569. जोधपुर के बारुद भंडार में विस्फोट किस तिथि को हुआ था? + +431. होता है कि विस्फोट के बाद चारमन का पत्थर कितनी दूर पहुँचा। + +432.
उ. सूर सागर। + +433. संदर्भ ग्रंथ. + +434. समिति, आगरा। + +435. 5. आधुनिक राजस्थान का वृहत इतिहास : भाग-2। + +436. नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया, संस्करण 2006। + +437. 11. अट्ठारह सौ सत्तावन और स्वामी दयानन्द : वासुदेव शर्मा, प्रथम + +438. परिचय. + +439. नैषधं हेमकूटात् तु हरिवर्षं तदुच्यते। हरिवर्षात् परञ्चैव मेरोश्च तदिलावृतम्॥
+ +440. (३) हेमकूट के बाद नैषध है, जिसे हरिवर्ष कहते हैं, + +441. इस प्रकार जम्बूद्वीप के अन्तर्गत वायुपुराण के अनुसार सात देश हुये। सातों देशों में सबसे उत्तर कुरु देश हुआ। यह ’कुरु’ कहाँ है सो ब्रह्माण्डपुराण के निम्न-लिखित श्लोक से स्पष्ट हो जाता है- + +442. न तु तत्र सूर्यगतिः न जीर्य्यन्ति च मानवाः। चन्द्रमाश्च सनक्षत्रो ज्योतिर्भूत इवावृतः॥

+ +443. अर्जुन की विजय-यात्रा और कुरु या उत्तरकुरु. + +444. (४) इससे उत्तर जाने पर उन्हें हरिवर्ष मिला। यहाँ महाकाय, महावीर्य द्वारपालों ने इनकी गति अनुनय-विनय करके रोक दी। उन लोगों ने कहा कि यहाँ मनुष्यों की गति नहीं, यहाँ उत्तर-कुरु के लोग रहते हैं; यहाँ कुछ जीतने योग्य चीज़ भी नहीं। यहाँ प्रवेश करने पर भी, हे पार्थ, तुम्हें कुछ भी नज़र नहीं आयेगा और न मनुष्य तन से यहाँ कुछ दर्शनीय ही है। उन लोगों ने पुनः पार्थ की मनोवाञ्छा की जांच की। पार्थ ने कहा कि मैं केवल धर्मराज युधिष्ठिर के पार्थिवत्व का स्वीकार चाहता हूँ। इसलिये युधिष्ठिर के लिये कर-पण्य की आवश्यकता है। यह सुनकर उन लोगों ने दिव्य-दिव्य वस्त्र, क्षौमाजिन तथा दिव्य आभरण दिये।

+ +445. तत्र तित्तिरकिल्मिषान् मण्डूकाख्यान् हयोत्तमान्। लेभे स करमत्यन्तं गन्धर्वनगरात्तदा॥
+ +446. प्रविष्टोऽपि हि कौन्तेय नेह द्रक्ष्यसि किञ्चन । नहि मानुषदेहेन शक्यमत्राभिवीक्षितुम्॥
+ +447. कालिदास के बतलाये हुये मेघ की राह में मिलने वाले प्रायः सभी नद-नदी, गिरि और नगर का पता आज चल गया है। कनखल यानी हरिद्वार तक या कैलाश तक तो हम मान जाते हैं, परन्तु इसके उत्तर गन्धर्वों की नगरी अलकापुरी को हम कोरी कल्पना समझते हैं। कम-से-कम हम इतना मानने को तैयार नहीं होते कि यह भी भौगोलिक सत्य है। अर्जुन श्वेत-पर्वत यानी हिमालय पार कर उत्तर की ओर बढ़े; परन्तु इसे हम कवि-कल्पना से बढ़कर और कुछ मानने के लिये अभी तैयार नहीं। यह मेघ की राह तो और भी कल्पना है। परन्तु इसके पूर्व हम यह दिखलाना चाहेंगे कि बौद्ध लोग किस प्रकार हिमालय के उत्तर-प्रदेशों से अपना सम्बन्ध रखते हैं। बिहार-नेशनल-कालेज के प्रिन्सिपल श्रीयुत् देवेन्द्रनाथ सेन् एम्.ए., आई.ई.एस्. ने अपने Trans-Himalayan-Reminiscences in Pali-literature नामक निबन्ध में यह बहुत ही अच्छी तरह से दिखलाया है कि बौद्धों का प्रभाव हिमालयोत्तर-प्रदेश में ही इतना अधिक क्यों पड़ा तथा बौद्ध लोग मानसरोवर के निकटवर्ती प्रदेशों के ही इतने प्रेमी क्यों हुये । उन्होंने बौद्ध जातकों के आधार पर यह सिद्ध किया है कि भारतीय आर्यों का प्रेम हिमालयोत्तर-प्रदेश से कुछ नैसर्गिक-सा था। हम उनके निकाले हुये निष्कर्ष को अस्वीकार नहीं कर सकते। + +448. महाभारत के बाद बौद्धकालीन इतिहास का अदर्शन. + +449. इसके अनन्तर फिर भी हम निम्न-लिखित वाक्य मिलता है-

+ +450. मानसरोवर या अनोतत्तमहासर. + +451. स्पष्ट है कि उत्तर-कुरु हिमालय के उत्तर में है और ऐतरेय ब्राह्मण के समय में यह एक ऐतिहासिक प्रदेश रहा है, जहाँ से और कुरुपाञ्चाल से प्रत्यक्ष सम्बन्ध था। सम्भवतः कुरुपाञ्चाल-निवासी उत्तर-कुरु के ही वंशधर और शाखा हैं। इस उत्तर-कुरु का भौगोलिक विकास हमारे इतिहास के लिये परम आश्चर्यजनक और महत्त्व की चीज़ है। इससे आर्यों का क्रमशः उत्तरीय ध्रुव के प्रदेशों से आते-आते सिन्धु-नदी के तटवर्त्ती प्रदेश की राह से भारतवर्ष अर्थात् जम्बूद्वीप में आना सिद्ध होता है। आर्यों के हिमालय की तराई से आने के लिये कई मार्ग हो सकते हैं। यह काश्मीर से तिब्बत (त्रिविष्टप) तक विस्तीर्ण है। इस संकटापन्न मार्ग का संकेत हमें ऋग्वेद के सूत्रों से भलीभाँति मिल जाता है। इरानी आर्य कहाँ से भारतीय आर्यों से विलग हुये, यह आगे बतलाया जायगा। हमारा साहित्य हिमालयोत्तर प्रदेश की पुण्य-स्मृतियों से ओतप्रोत है। कभी किसी का ध्यान काबुल की ओर नहीं गया। क्यों ? यह हम उपसंहार भाग में दिखलाएँगे। स्वर्ग के अस्तित्व की धारणा हमारे मन से अभी तक नहीं गयी है। यह हमारी विकट भूल होगी, यदि हम इस प्रत्यक्ष ऐतिहासिक तथ्य को खुले दिल से स्वीकार न करें। + +452. दिति और अदिति की कथा तथा आर्यों का परस्पर संघर्ष. + +453. ये दोनों शाखायें कब और कहाँ अलग हुईं, इसका ठीक-ठीक अंदाज़ा करना कठिन है; परन्तु इतना अनुमान किया जा सकता है कि आक्सस के दक्षिण और थियानशान या मेरु-पर्वत-माला के निकटवर्ती प्रदेशों में कहीं इनके दो दल हुए। इन्द्र भारतीय शाखा के प्रमुख जान पड़ते हैं। अहुरमज़्द के नेतृत्व में दूसरा दल रहा होगा। एक का दूसरे को विधर्मी समझना तथा एक का दूसरे के इष्टदेव को दैत्य बनाना धार्मिक असहिष्णुता की पराकाष्ठा है। अस्तु, ज़ेन्दा अवेस्ता ’आर्यानां व्रजः’ से मर्व, बल्ख, ईरान, काबुल और सप्तसिन्धु का निर्देश देता है। इससे यही निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि ईरानी शाखा यानी पारसी, आर्यों से विलग हो, ईरान की अधित्यका को तय करते हुए काबुल की राह से सप्तसिन्धु तक फैल गये। भारतीय शाखा भी काबुल की राह से आयी, यह अत्यन्त ही सन्देहास्पद सिद्धान्त है। जब हम देखते हैं कि ज़ेन्दावेस्ता अपने भूगोल का मानचित्र इस प्रकार खींचता है तथा वैदिक साहित्य का काबुल से ही अपना बयान प्रारम्भ कर पूर्व की ओर बढ़ता है, तब हम दो ही निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं- एक तो यह कि आर्य लोगों के सप्तसिन्धु से ही दो दल हो गये और ईरानी शाखा सप्तसिन्धु से पश्चिमोत्तर-प्रदेश की ओर बढ़ चली। और, दूसरे यह कि भारतीय शाखा उत्तर की ओर से सीधे सिन्धु-नदी की राह से आयी तथा सप्तसिन्धु में फैलकर पूर्व की ओर बढ़ने लगी। इसी बीच में, जब कि पामीर, काराकोरम और सिन्धु के मार्ग से काबुल तक फैल गयी, ईरानी शाखा भी पूर्व निर्दिष्ट मार्ग से काबुल तक फैल गयी। सम्भवतः यहाँ फिर उनकी ईरानियों से मुठभेड़ हो गयी। दोनों शाखाओं का लक्ष्य सप्तसिन्धु की ओर ही था, यह एक सन्देह की बात हो सकती है; परन्तु हम ज़रा अधिक विचार करके देखते हैं, तो साफ़ प्रकट हो जाता है कि दोनों दल के विस्तार के लिये दूसरा कोई क्षेत्र नहीं था। थियानशान के पूर्व थोड़ी ही दूर पर गोबी की मरुभूमि दीख पड़ती है। उस समय इस मरुभूमि का क्या रूप था, सो तो ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता; परन्तु या तो यह समुद्र था या जैसा कुछ भूतत्त्वविशारदों का कथन है, या यह पहाड़ी-धूसरित चट्टानों की राशि थी। भूतत्त्ववेत्ताओं का कथन है कि साइबेरिया जिस अवस्था में आज है, उसी अवस्था में कभी मध्य-एशिया का यह भाग रहा होगा। साइबेरिया में प्राचीन कालीन वन के चिह्न मिलते हैं और ऐसा अनुमान किया जाता है कि किसी समय इसकी आबोहवा ऐसी थी कि मनुष्य यहाँ रह सकते थे। तात्पर्य यह कि भारतीय शाखा को सिवा मानसरोवर से जाकर तिब्बत तक फैलने के दूसरा कोई चारा नहीं था। सम्भवतः वे भारतवर्ष में एक ही बार नहीं आये, अपितु समय समय पर अपनी सुविधानुसार आते रहे। + +454. यह ऋचा उस समय बनी होगी, जब आर्य लोग उत्तर-ध्रुव के प्रदेशों से हटकर बहुत इधर आ गये होंगे। तिलक महोदय ने ऋचाओं के बल पर यह दिखलाया है कि वे जहाँ रहते थे, वहाँ एक ही तारा (उत्तर-ध्रुव) बराबर प्रकाशित था, जहाँ दिन कम और रात बहुत बड़ी होती थी। यह उत्तरीय प्रदेशों का चित्र है। उपर्युक्त ऋचा वहीं बनी , जहाँ दिन-रात क्रम से होते रहे होंगे, और चन्द्रमा का भी उदय होता होगा। + +455. अर्थात् पणि द्वाराछिपायी गायों की भाँति जल वृत्रा द्वारा जो उनके पति और स्वामी हैं, रोक दिया गया। इन्द्र ने वृत्रा का वध किया और मार्ग स्वच्छ कर दिया, जिससे पानी बह गया, जो वृत्रा द्वारा रोक दिया गया था। + +456. अर्थात् इन्द्र ने अपनी महत्ता से सिन्धु-नदी को उत्तर की ओर बहा दिया तथा उषा के रथ को अपनी प्रबल तीव्र सेना से निर्बल कर दिया। इन्द्र यह तब करते हैं, जब वह सोम मद से मत्त हो जाते हैं। सिन्धु-नदी अपने उद्गम-स्थान मानसरोवर से काश्मीर तक उत्तर-मुँह होकर बहती है; काश्मीर के बाद दक्षिण-पश्चिम-मुखी होकर बहती है। सम्भवतः इन्द्र ने पहाड़ी दुर्गम मार्ग को काटकर, सिन्धु-नदी के संकीर्ण मार्ग को विस्तीर्ण कर उत्तर की ओर नदी की धारा स्वच्छन्द कर दी हो। इससे आर्यों का मार्ग बहुत सुगम हो गया होगा। यह मत निम्नलिखित ऋचा से और भी दृढ़ हो जाता है-

+ +457. नदं न भिन्नममुया शयानं मनो रुहाणा अतियन्ति आपः।
+ +458. अवेस्ता और ऋग्वेद में आर्यों के आदि-निवास की झलक. + +459. शृङवान्-पर्वत का पता लगाना कुछ टेढ़ा अवश्य मालूम होता है; परन्तु इसके अर्थ पर ध्यान देने से विदित होता है कि किसी पर्वत को, जिसके शिखर (शृङ्ग) हो, शृङ्गवान् कहा जा सकता है। पद्मपुराण उत्तर-समुद्र के बाद ऐरावत का होना मानता है; और शृङ्ग इसके दक्षिण है, अतएव उत्तर-समुद्र और शृङ्ग (Mammoth Country) के बीच ऐरावत का होना निश्चित हुआ। इस ऐरावत-वर्ष में भी सूर्य की गति नहीं है। ऐरावत शब्द ’इर्’ धातु से बना हुआ है। ’इर्’ और ’इल्’ धातु जाने के अर्थ में प्रयुक्त हैं। अतएव ’इरा’ का अर्थ पृथ्वी भी होता है। जल और सरस्वती के अर्थ में भी इसका प्रयोग हुआ है। इरावत का अर्थ समुद्र और इसी प्रकार इराधर और इलाधर का अर्थ पहाड़ होता है। इरेश का प्रयोग हम वरुण के अर्थ में करते हैं। ऋग्वेद में वरुण की महिमा बहुत गायी गयी है। इन्द्र के समान वरुण भी धीरे-धीरे आर्यों के प्रधान देवता बन गये हैं। इरावत का अर्थ समुद्र होने से, ऐरावत (स्वार्थे अण्) का अर्थ समुद्र-तट का वासी हो सकता है। उत्तरीय ध्रुव के प्रदेशों में सूर्य की गति नहीं है। ऐरावत में भी सूर्य का प्रकाश दुर्बल माना गया है। चूँकि यह ऐरावत-शृङ्ग के उत्तर है, अतएव यूराल-पर्वतश्रेणी के उत्तर-स्थित प्रदेशों को ऐसा मान लेने में कोई अड़चन नहीं जान पड़ती। देखकर आश्चर्य होता है कि उत्तर-ध्रुव से आरम्भ कर मध्य-एशिया के प्रदेश से लेकर फ़ारस या अफ़गानिस्थान और भारतवर्ष की अर्वली-पर्वत-श्रेणी तक ऐसे तत्सम शब्दों का ताँता लगा हुआ है। यही यूराल-पर्वतश्रेणी आर्यों का दूसरा अड्डा हो सकता है। यहीं के आस-पास के स्थान ऐरावत देश के द्योतक हैं। यूराल-पर्वत से ’यूराल’ नाम की एक नदी भी निकलती है। यह नदी कैस्पियन-सागर में गिरती है। ’इरा’ का अर्थ जल होने से इरालय का अर्थ नदी हो जाता है। आर्यों की योरपीय शाखा सम्भवतः यूराल-पर्वत-श्रेणी के आसपास के प्रदेशों से ही अलग हुई। + +460. रम्यकवर्ष और श्वेतपर्वत. + +461. ईरानी शाखा के विलग होने पर आर्यों का गतिक्रम. + +462. हम ऊपर दिति और अदिति का ज़िक्र कर चुके हैं। ये दैत्य असुर कहलाये और ’आर्यानां व्रजः’ से, जो कश्यप-सागर (Caspian Sea) से पूर्व-उत्तर और दक्षिण की ओर फैला हुआ है, दोनों अलग-अलग हो गये। अस्तु, हमें यह देखना है कि आर्यों को सोमरस इतना प्रिय क्यों हुआ ? सोमरस से आविष्ट हो इन्द्र दैत्यों और असुरों को परास्त करते हैं। हिमालयोत्तर-प्रदेश में, जो स्वभावतः ठण्ढा रहा होगा और है, सोमरस का पीना अस्वाभाविक नहीं। सोमरस के पत्थरों से पीसे जाने का वर्णन ऋग्वेद में बहुलता से मिलता है। सोमलता हिमालय की तराई या हिमालयोत्तर-प्रदेश-- ख़ासकर काराकोरम के आसपास अब भी पायी जाती है। यह सोम भारतीय आर्यों की अपनी सम्पत्ति है। अहुरों (असुरों) का इससे कोई सम्बन्ध नहीं। अवश्य ही सुर-दल को पहाड़ी प्रदेशों में आने के कारण कठिनाइयां झेलनी पड़ी हैं; परन्तु सोम उनके प्राणों का आधार है। यह पदार्थ, यह रस हिमालयोत्तर प्रदेश का ही स्मरण कराता है। + +463. अर्जुन की विजय-यात्रा को सत्य मानने तथा पुराण में दिये हुए भौगोलिक नामों की आधुनिक नामों से तुलना करने पर यह कहना पड़ता है कि महाभारत के समय में अर्थात् आज से ५,००० वर्ष पूर्व भारतीय आर्यों को हरिवर्ष तक अर्थात् थियानशान (Celestial Mountain) पर्वत के आसन्नवर्त्ती हिमालयोत्तर-प्रदेशों तक का पूर्ण ज्ञान था। इसी हरिवर्ष को उस समय आर्य लोग उत्तर-कुरु कहते थे तथा आर्यावर्त के ’कुरु’ को उसी उत्तर-कुरु की स्मृति-रक्षा के लिय बसाया। मध्य-एशिया के ’आर्यानां व्रजः’ का अर्थ आर्यावर्त से मिलता है। कोरासागर से (उत्तर-सागर) जो Arctic Circle में है आरंभ कर आर्य लोग सीधे उत्तर की ओर पुराण निर्दिष्ट मार्ग से आये, इसमें सन्देह नहीं है। यूराल-नदी और ऐरल-सागर से ’इर्’ धातु का निर्विवाद और घनिष्ट सम्बन्ध है। ’इर्’ से ही ऐरावत बना है। इसका सम्यक् विवेचन एक-एक कर पहले किया जा चुका है। ऐरल-सागर के पश्चिम की ओर एलबर्ज़ (इलावृत) है। इरास्य, इलास्पद या इरास्पद की मैंने योरप से तुलना की है। ऐरल-सागर से (उक्ष) नदी निकलती है। इसी नदी के दोनों तरफ़ आर्य लोग कुछ काल तक रहे और यहीं से (इलावृत और उक्ष के मध्यवर्ती देश से) आर्य और ईरानी अलग हुए। ईरानियों का मार्ग तभी से बदल गया और भारतीय आर्यों का थियानशान, पामीर, मानसरोवर, तारीम (भद्राश्व) आदि से होकर काश्मीर या हिन्दुकुश के मार्ग से आना हुआ। सिन्ध में आ जाने पर ईरानी शाखा से सीमाप्रान्त पर भेंट हुई; क्योंकि वे भी अब तक काबुल पहुँच गये थे। भारतीय आर्यों का उत्तर-ध्रुव से लेकर आर्यावर्त तक का सीधा वर्णन यही बतलाता है। मानसरोवर और हिमालय ही उनका एकमात्र आदर्श है। काबुल के मार्ग से वे अभी नहीं आये, बल्कि भारत में पदार्पण के बाद वे काबुल की ओर भी फैले। किस समय वे भारत में आये, इसका निर्णय करना नितान्त दुष्कर है। कम-से-कम ५,००० वर्ष पूर्व तो महाभारत का समय है, जिस समय आर्य बहुत पुराने पड़ गये थे। ऋग्वेद की ऋचायें सिन्धु और सरस्वती के किनारे भी रची गयीं। लोकमान्य के सिद्धान्त की पुष्टि पौराणिक भूगोल से पूर्णतः होती है। यह धारणा कि आर्य आदि से भारत में रहे--सत्य या असत्य है यह अभी नहीं कहा जा सकता। परन्तु इतना तो निश्चित है कि भारतीय ऋषियों का जो समय-निरूपण अब-तक माना जा रहा है, वह सत्य सिद्ध होगा। और, ऐसा होने पर महाभारत से हज़ारों वर्ष पूर्व आर्यावर्त में आर्यों का बसना सिद्ध होगा। कम-से-कम इस समय यह सिद्ध करने का पर्याप्त प्रमाण नहीं मिलता कि भारत से ही आर्य लोग अन्यत्र फैले। देवताओं के एक दिन-रात (जो मनुष्यों के एक वर्ष के तुल्य है) के प्रमाण से उत्तर-ध्रुव में उनका रहना स्पष्ट है। अतएव यदि आर्यों का आधिपत्य उत्तर-ध्रुव से आर्यावर्त तक यानी प्राचीन आर्यावर्त से अर्वाचीन आर्यावर्त तक माना जाय, तो कोई दुःख की बात नहीं, प्रत्युत हर्ष की बात है। फिर यदि आर्य ही पहले-पहल भारतवर्ष में आये तब तो उनका आधिपत्य स्वाभाविक और न्याय-सिद्ध है। ईश्वर करे, हमारा इतिहास हमारे सामने आ जाय। + +464. + +465. ईसा पूर्व पहली शताब्दी से ईसवी ३री शताब्दी तक उत्तरी भारत का बहुत सा भाग शकों के हाथ में था। पंजाब पांचवीं शताब्दी तक शकों के हाथ में रहा जिसे ’श्वेत हूण’ के नाम से कहा गया था। + +466. फ़ारसी संस्कृत की सगी बहन-भतीजी + +467. शक तथा आर्यों के स्थान. + +468. शकों और आर्यों के संघर्ष के कारण आर्यों को अपना मूल स्थान छोड़ना पड़ा था। एक भाग कास्पियन से पश्चिम काकेशस पर्वत-माला से होते हुए क्षुद्र एशिया (तुर्की) और उत्तरी ईरान के तरफ बढ़ते असीरिया क्रेसन्थ देश की सीमा पर पहुंचा और दूसरा भाग कास्पियन से पूरब की तरफ अराल समुद्र के किनारे होते हुए ख्वारेज़्म की भूमि में पहुंचा। ईसा पूर्व द्वितीय सहस्राब्दी में वोगज कुई (अंकारा के पास) में मितन्नी आर्यों के अभिलेख में यह मिलता है। इसी सहस्राब्दी में हिन्दी युरोपीय ग्रीक ग्रीस देस में गये। + +469. अराल समुद्र के पास मगेसगेत् नामकी एक जाति कावर्णन हेरोदेत ने किया है। ई.पू. २०६ में जबकि ग्रीक बाह्लीक राजा युथिदेमो ने सिरदर्या पर चढ़ाई की थी, उस काल भी वहां शकों का ही निवास था। कितने ही पश्चिमी विद्वानों का मत है कि महाशकद्वीप में रहने वाली शक जाति वस्तुतः भिन्न-भिन्न भाषाएं बोलनेवाली अनेक जातियां थीं। परन्तु ये भाषायें भिन्न-भिन्न बोलियां ही उच्चारण भेद के साथ हो सकती थीं। शकों का यह आधिपत्य ई.पू. १७२ तक था। + +470. हूण माउ दुन् के नेतृत्वमें शकों को भगाते गये और सीस्तान (शकस्थान) और बिलोचिस्तान होते हुए ११० ई.पू. में सिन्ध पहुँचे और ई.पू. ८० में तक्षशिला और गान्धार के स्वामी बन गये और एक शताब्दी से जड़ जमाये यवन राज्य का उच्छेद कर दिया।’यू ची’ सरदार (शक) ’मोग’ भारत का प्रथम शक राजा था। ११०-८० ई.पू. तक गुजरात भी शकों के हाथ में चला गया। ६० ई.पू. तक मथुरा में भी शकों की छत्रपी कायम हो गयी। मोग की मृत्यु ५८ ई.पू. में हुई जिसके बाद शकों के भिन्न-भिन्न कबीलों में झगड़ा हो गया और शकों के कुषाण कबीले के यवमू (सरदार) कजुल कदफिस्-१ की शक्ति बढ़ी। उसने बख्तर और तुषार पर भी अधिकार कर लिया। कजुल के पुत्र वीम कदफिस् द्वितीय (७५-७८ ई.) ने सारे उत्तर भारत को जीता। इसी का पुत्र ’वसीले उस् वसीले उन् कनेर् कोस’ (राजाधिराज कनिष्क) हुआ जिसने शक संवत् चलाया और ७८-१०३ ई. तक राज्य किया। इसके सिक्के अराल समुद्र से बिहार तक मिलते हैं। वह बौद्ध पहले ही से था क्योंकि ईसा पूर्व २य शताब्दी में ही बौद्ध धर्म यू ची शकों की मूल भूमि तरिम उपत्यका में पहुँच चुका था। + +471. हिन्दुस्तान जिंदाबाद पाकिस्तान मादरचोद + +472. मिहिरकुल ने मगध पर आक्रमण किया था परन्तु मगध राजा बालादित्य ने उसे बुरी तरह हराया। मालवा के विजयी राजा यशोधर्मा विक्रमादित्य ने मिहिरकुल को हराकर उसे कश्मीर की ओर खदेड़ दिया। हूण नाम से प्रसिद्ध किन्तु वस्तुतः शक मिहिरकुल अन्तिम शक राजा था। हेफ़तालों की राजधानी बुखारा के पास वरख्शमें थी जहाँ हाल की खुदाई में भारतीय शैली पर बने कितने ही भित्तिचित्र मिले हैं। + +473. हूणों ने शकों को शक द्वीप से हटा दिया था। उनके ही वंशज तुर्क, उइगुर, और मंगोल थे। ५५७ ई. के लगभग तुर्की से मध्यएशिया तक न शकों का नाम रहा न आर्यवंशीय लोगों (थोड़े से ताजिकों को छोड़कर) का। + +474. स्लाव और श्रव. + +475. १०१४ में व्लादिमीर के मरने के बाद किएफ़ रूस राज्य छिन्न-भिन्न हो गया। १३वीं सदी के मध्य में छङ् गिस् खान के मंगोल उसके पुत्र बानू खान के नेतृत्व में पहुँचे और प्रायः १५० वर्षों तक सिर उठाने का मौका नहीं मिला। तैमूर ने दिल्ली लूटने (१३९८ ई.) से तीन साल पहले जब १३९५ में मास्को के पास तक का धावा किया। + +476. हिन्दी और यूरोपीय भाषाओं के ’शतम्’ और ’केन्तम्’ दोनों भाषाओं के समुदायों में हैं। स्लाव भाषाएं संस्कृत और ईरानी के साथ शतम् वंश की हैं। लिथुआनी की समीपता ’केन्तम्’ से है। + +477. -होमोजिनियस + +478. डिस्ट्रिब्यूटेड डाटाबेस के लाभ + +479. 5.फास्टर रिस्पॉन्स + +480. 1.डाटा रिप्लीकेशन + +481. 2.यह निशचित करना कि किस लोकेशन से रिक्वेस्टेट डाटा को रिट्रीव करना हैऔर डिस्ट्रिब्यूटेड क्वैरी के हर भाग को किस लोकेशन पर प्रोसेस करना है। + +482. 2.रिप्लीकेशन ट्रान्सपेरेन्सी + +483. कविता से मनुष्य-भाव की रक्षा होती है। सृष्टि के पदार्थ या व्यापार-विशेष को कविता इस तरह व्यक्त करती है, मानो वे पदार्थ या व्यापार-विशेष नेत्रों के सामने नाचने लगते हैं। वे मूर्तिमान दिखाई देने लगते हैं। उनकी उत्तमता या अनुत् से बहने लगते हैं। तात्पर्य यह है कि कविता मनोवेगों को उत्तेजित करने का एक उत्तम साधन है। यदि क्रोध, करुणा, दया, प्रेम आदि मनोभाव मनुष्य के अन्तःकरण से निकल जाएँ, तो वह कुछ भी नहीं कर सकता। कविता हमारे मनोभावों को उच्छ्वासित करके हमारे जीवन में एक नया जीव डाल देती है। हम सृष्टि के सौन्दर्य को देखकर मोहित होने लगते हैं। कोई अनुचित या निष्ठुर काम हमें असह्य होने लगता है। हमें जान पड़ता है कि हमारा जीवन कई गुना अधिक होकर समस्त संसार में व्याप्त हो गया है। + +484. मनोरंजन और स्वभाव-संशोधन. + +485. उच्च आदर्श. + +486. कविता सृष्टि-सौन्दर्य का अनुभव कराती है और मनुष्य को सुन्दर वस्तुओं में अनुरक्त करती है। जो कविता रमणी के रूप माधुर्य से हमें आह्लादित करती है, वही उसके अन्तःकरण की सुन्दरता और कोमलता आदि की मनोहारिणी छाया दिखा कर मुग्ध भी करती है। जिस बंकिम की लेखनी ने गढ़ के ऊपर बैठी हुई राजकुमारी तिलोत्तमा के अंग प्रत्यंग की शोभा को अंकित किया है, उसी ने आयशा के अन्तःकरण की अपूर्व सात्विकी ज्योति दिखा कर पाठकों को चमत्कृत किया है। भौतिक सौन्दर्य के अवलोकन से हमारी आत्मा को जिस प्रकार सन्तोष होता है उसी प्रकार मानसिक सौन्दर्य से भी। जिस प्रकार वन, पर्वत, नदी, झरना आदि से हम प्रफुल्लित होते हैं, उसी प्रकार मानवी अन्तःकरण में प्रेम, दया, करुणा, भक्ति आदि मनोवेगों के अनुभव से हम आनंदित होते हैं और यदि इन दोनों पार्थिव और अपार्थिव सौन्दर्यों का कहीं संयोग देख पड़े तो फिर क्या कहना है। यदि किसी अत्यन्त सुन्दर पुरुष या अत्यन्त रूपवती स्त्री के रूप मात्र का वर्णन करके हम छोड़ दें तो चित्र अपूर्ण होगा, किन्तु यदि हम साथ ही उसके हृदय की दृढ़ता और सत्यप्रियता अथवा कोमलता और स्नेह-शीलता आदि की भी झलक दिखावें तो उस वर्णन में सजीवता आ जाएगी। महाकवियों ने प्रायः इन दोनों सौन्दर्यों का मेल कराया है जो किसी किसी को अस्वाभाविक प्रतीत होता है। किन्तु संसार में प्रायः देखा जाता है कि रूपवान् जन सुशील और कोमल होते हैं और रूपहीन जन क्रूर और दुःशील। इसके सिवा मनुष्य के आंतरिक भावों का प्रतिबिम्ब भी चेहरे पर पड़कर उसे रुचिर या अरुचिर बना देता है। पार्थिव सौन्दर्य का अनुभव करके हम मानसिक अर्थात् अपार्थिव सौन्दर्य की ओर आकर्षित होते हैं। अतएव पार्थिव सौन्दर्य को दिखलाना कवि का प्रधान कर्म है। + +487. कविता में कही गई बात हृत्पटल पर अधिक स्थायी होती है। अतः कविता में प्रत्यक्ष और स्वभावसिद्ध व्यापार-सूचक शब्दों की संख्या अधिक रहती है। समय बीता जाता है, कहने की अपेक्षा, समय भागा जाता है, कहना अधिक काव्य सम्मत है। किसी काम से हाथ खींचना, किसी का रुपया खा जाना, कोई बात पी जाना, दिन ढलना, मन मारना, मन छूना, शोभा बरसना आदि ऐसे ही कवि-समय-सिद्ध वाक्य हैं, जो बोल-चाल में आ गए हैं। नीचे कुछ पद्य उदाहरण-स्वरूप दिए जाते हैं -
+ +488. (ङ) रंग रंग रागन पै, संग ही परागन पै, वृन्दावन बागन पै बसंत बरसो परै।
+ +489. प्रदीप्ते रागाग्रौ सुदृढ़तरमाश्ल्ष्यिति वधूं
+ +490. “भविष्यत् में क्या होने वाला है, इस बात की अनभिज्ञता इसलिए दी गई है, जिसमें सब लोग, आने वाले अनिष्ट की शंका से, उस अनिष्ट घटना के पूर्ववर्ती दिनों के सुख को भी न खो बैठें.” + +491. And licks the hand just raised to shed his blood.
+ +492. श्रुति सुखदता. + +493. कई वर्ष हुए ‘अलंकारप्रकाश’ नामक पुस्तक के कर्ता का एक लेख ‘सरस्वती’ में निकला था। उसका नाम था- ‘कवि और काव्य’। उसमें उन्होंने अलंकारों की प्रधानता स्थापित करते हुए और उन्हें काव्य का सर्वस्व मानते हुए लिखा था कि ‘आजकल के बहुत से विद्वानों का मत विदेशी भाषा के प्रभाव से काव्य विषय में कुछ परिवर्तित देख पड़ता है। वे महाशय सर्वलोकमान्य साहित्य-ग्रन्थों में विवेचन किए हुए व्यंग्य-अलंकार-युक्त काव्य को उत्कृष्ट न समझ केवल सृष्टि-वैचित्र्य वर्णन में काव्यत्व समझते हैं। यदि ऐसा हो तो इसमें आश्चर्य ही क्या?’ रस और भाव ही कविता के प्राण हैं। पुराने विद्वान् रसात्मक कविता ही को कविता कहते थे। अलंकारों को वे आवश्यकतानुसार वर्णित विषय को विशेषतया हृदयंगम करने के लिए ही लाते थे। यह नहीं समझा जाता था कि अलंकार के बिना कविता हो ही नहीं सकती। स्वयं काव्य-प्रकाश के कर्ता मम्मटाचार्य ने बिना अलंकार के काव्य का होना माना है और उदाहरण भी दिया है- “तददौषौ शब्दार्थौ सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि.” किन्तु पीछे से इन अलंकारों ही में काव्यत्व मान लेने से कविता अभ्यासगम्य और सुगम प्रतीत होने लगी। इसी से लोग उनकी ओर अधिक पड़े। धीरे-धीरे इन अलंकारों के लिए आग्रह होने लगा। यहाँ तक कि चन्द्रालोककार ने कह डाला कि-
+ +494. इससे स्वभावोक्ति को अलंकार मानना ठीक नहीं। उसे अलंकारों में गिनने वालों ने बहुत सिर खपाया है, पर उसका निर्दोष लक्षण नहीं कर सके। काव्य-प्रकाश के कारिकाकार ने उसका लक्षण लिखा है-
+ +495. आचार्य दण्डी ने अवस्था की योजना करके यह लक्षण लिखा है-
+ +496. अलंकार है क्या वस्तु? विद्वानों ने काव्यों के सुन्दर-सुन्दर स्थलों को पहले चुना। फिर उनकी वर्णन शैली से सौन्दर्य का कारण ढूंढा। तब वर्णन-वैचित्र्य के अनुसार भिन्न-भिन्न लक्षण बनाए। जैसे ‘विकल्प’ अलंकार को पहले पहल राजानक रुय्यक ने ही निकाला है। अब कौन कह सकता है कि काव्यों के जितने सुन्दर-सुन्दर स्थल थे सब ढूंढ डाले गए, अथवा जो सुन्दर समझे गए - जिन्हें लक्ष्य करने लक्षण बने- उनकी सुन्दरता का कारण कही हुई वर्णन प्रणाली ही थी। अलंकारों के लक्षण बनने तक काव्यों का बनना नहीं रुका रहा। आदि-कवि महर्षि वाल्मीकि ने - “मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः” का उच्चारण किसी अलंकार को ध्यान में रखकर नहीं किया। अलंकार लक्षणों के बनने से बहुत पहले कविता होती थी और अच्छी होती थी। अथवा यों कहना चाहिए की जब से इन अलंकारों को हठात् लाने का उद्योग होने लगा तबसे कविता कुछ बिगड़ चली। (जय हिन्द वन्देमातरम) + +497. भारत एक उप महाद्वीप है। इसके विस्तृत क्षेत्रफल और जनसंख्या के कारण विविध समस्याएँ उत्पन्न होती हैं जिनमें से भाषा की समस्या एक है। + +498. हिन्दी में अर्थ और विकास संबन्धी लेख: + +499. + +500. ई-गवर्नेंस परियोजना. + +501. वर्तमान में, लगभग 28.18 लाख निर्वाचित पंचायत प्रतिनिधियों में से 36.87 प्रतिशत महिलायें हैं। प्रस्तावित संविधान संशोधन के बाद निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों की संख्या 14 लाख से भी अधिक हो जाने की आशा है। + +502. न्याय पंचायत विधेयक, 2010. + +503. ग्रामीण व्यापार केन्द्र (आरबीएच) योजना. + +504. वैश्वीकरण एवं भारतीय बाजार को विदेशी कंपनियों के लिए खोले जाने के कारण आज भारतीय उपभोक्ताओं की कई ब्रांडों तक पहुंच कायम हो गयी है। हर उद्योग में, चाहे वह त्वरित इस्तेमाल होने वाली उपभोक्ता वस्तु (एफएमसीजी) हो या अधिक दिनों तक चलने वाले सामान हों या फिर सेवा क्षेत्र हो, उपभोक्ताओं की जरूरतों को पूरा करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर 20 से अधिक ब्रांड हैं। पर्याप्त उपलब्धता की यह स्थिति उपभोक्ता को विविध प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं में से कोई एक चुनने का अवसर प्रदान करती है। लेकिन सवाल यह है कि क्या उपभोक्ता को उसकी धनराशि की कीमत मिल रही है? आज के परिदृश्य में उपभोक्ता संरक्षण क्यों जरूरी हो गया है? क्या खरीददार को जागरूक बनाएं की अवधारणा अब भी कायम है या फिर हम उपभोक्ता संप्रुभता की ओर आगे बढ रहे हैं। + +505. संक्षिप्त इतिहास. + +506. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986. + +507. + +508. वन पर्यावरण, लोगों और जंतुओं को कई प्रकार के लाभ पहुंचाते हैं। वन कई प्रकार के उत्पाद प्रदान करते हैं जैसे फर्नीचर, घरों, रेलवे स्लीपर, प्लाईवुड, ईंधन या फिर चारकोल एव कागज के लिए लकड़ी, सेलोफेन, प्लास्टिक, रेयान और नायलॉन आदि के लिए प्रस्संकृत उत्पाद, रबर के पेड़ से रबर आदि। फल, सुपारी और मसाले भी वनों से एकत्र किए जाते हैं। कर्पूर, सिनचोना जैसे कई औषधीय पौधे भी वनों में ही पाये जाते हैं। + +509. पिछले वर्षों में शहतीर लगाना वनों के लिए महत्त्वपूर्ण कामकाज माना जाता था। हालांकि हाल के वर्षों में यह अवधारणा ज्यादा बहुप्रयोजन एवं संतुलित दृष्टकोण की ओर बदली है। अन्य वन्य प्रयोजनों और सेवाओं जैसे वनविहार, स्वास्थ्य, कुशलता, जैवविविधता, पारिस्थतिकी तंत्र सेवाओं का प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन का उपशमन अब वनों की महत्ता के अंग समझे जाने लगे हैं। इसे लगातार जटिल एवं अनोखे तत्व के रूप में मान्यता मिलती जा रही है। + +510. एनपीआर के बारे में जानने के लिए, पहले जनगणना के बारे में कुछ जान लेना आवश्यक है। अब, भारत के लिए जनगणना कोई नई चीज़ नहीं है। यह अंग्रेजाें के राज से ही की जाती रही है। भारत में पहली जनगणना 1872 में हुई थी। वर्ष 1881 से, जनगणना बिना किसी रूकावट के हर दस साल में की जाती रही है। जनगणना एक प्रशासनिक अभ्यास है जो भारत सरकार करवाती है। इसमें जनांकिकी, सामाजिक -सांस्कृतिक और आर्थिक विशेषताओं जैसे अनेक कारकों के संबंध में पूरी आबादी के बारे में सूचना एकत्र की जाती है। + +511. एनपीआर में व्यक्ति का नाम, पिता का नाम, मां का नाम, पति#पत्नी का नाम, लिंग, जन्म तिथि, वर्तमान वैवाहिक स्थिति, शिक्षा, राष्ट्रीयता (घोषित), व्यवसाय, साधारण निवास के वर्तमान पते और स्थायी निवास के पते जैसी सूचना की मद शामिल होंगी। इस डाटाबेस में 15 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों के फोटो और फिंगर बायोमेट्री (उंगलियों के निशान) भी शामिल होंगे। साधारण निवासियों के प्रमाणीकरण के लिए मसौदा डाटाबेस को ग्राम सभा या स्थानीय निकायों के समक्ष रखा जाएगा। + +512. भारत में, मतदाता पहचान पत्र, ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट, पैन कार्ड जैसे विभिन्न डाटाबेस हैं लेकिन इन सबकी सीमित पहुंच है। ऐसा कोई मानक डाटाबेस नहीं है जिसमें पूरी आबादी शामिल हो। एनपीआर मानक डाटाबेस उपलब्ध कराएगा तथा प्रत्येक व्यक्ति को अनन्य पहचान संख्या का आवंटन सुगम कराएगा। यह संख्या व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक स्थायी पहचान प्रदान करने जैसी ही होगी। + +513. + +514. प्लास्टिक एक प्रकार का पॉलीमर यानी मोनोमर नाम की दोहराई जाने वाली इकाइयों से युक्त बड़ा अणु है। प्लास्टिक थैलों के मामले में दोहराई जाने वाली इकाइयां एथिलीन की होती हैं। जब एथिलीन के अणु को पॉली एथिलीन बनाने के लिए ‘पॉलीमराइज’ किया जाता है, वे कार्बन अणुओं की एक लम्बी शृंखला बनाती हैं, जिसमें प्रत्येक कार्बन को हाइड्रोजन के दो परमाणुओं से संयोजित किया जाता है। + +515. कैडमियम और जस्ता जैसी विषैली धातुओं का इस्तेमाल जब प्लास्टिक थैलों के निर्माण में किया जाता है, वे निथार कर खाद्य पदार्थों को विषाक्त बना देती हैं। थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कैडमियम के इस्तेमाल से उल्टियां हो सकती हैं और हृदय का आकार बढ सक़ता है। लम्बे समय तक जस्ता के इस्तेमाल से मस्तिष्क के ऊतकों का क्षरण होकर नुकसान पहुंचता है। + +516. प्लास्टिक की थैलियों, पानी की बोतलों और पाउचों को कचरे के तौर पर फैलाना नगरपालिकाओं की कचरा प्रबंधन प्रणाली के लिये एक चुनौती बनी हुई है। अनेक पर्वतीय राज्यों (जम्मू एवं कश्मीर, सिक्किम, पश्चिम बंगाल) ने पर्यटन केन्द्रों पर प्लास्टिक थैलियोंबोतलों के उपयोग को प्रतिबंधित कर दिया है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने एक कानून के तहत समूचे राज्य में 15.08.2009 से प्लास्टिक के उपयोग पर पाबंदी लगा दी है। + +517. vsuediv vgkyhwk + +518. इस अधिनियम में सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण और अनिवार्य शिक्षा प्रदान का प्रावधान है, जिससे ज्ञान, कौशल और मूल्यों से लैस करके उन्हें भारत का प्रबुध्द नागरिक बनाया जा सके। यदि विचार किया जाए तो आज देशभर में स्कूलों से वंचित लगभग एक करोड़ बच्चों को शिक्षा प्रदान करना सचमुच हमारे लिए एक दुष्कर कार्य है। इसलिए इस लक्ष्य को साकार करने के लिए सभी हितधारकों — माता-पिता, शिक्षक, स्कूलों, गैर-सरकारी संगठनों और कुल मिलाकर समाज, राज्य सरकारों और केन्द्र सरकार की ओर से एकजुट प्रयास का आह्वान किया गया है। जैसा कि राष्ट्र को अपने संबोधन में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा कि सबको साथ मिलकर काम करना होगा और राष्ट्रीय अभियान के रूप में चुनौती को पूरा करना होगा। + +519. इस अधिनियम के क्रियान्वयन में प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी एक प्रमुख बाधा है। इन रिक्तियों को भरने के उद्देश्य से अगले छ: वर्षों में लगभग पांच लाख शिक्षकों को भर्ती करने की योजना है। + +520. शहरी भारत के स्वास्थ्य संबंधी खतरे: + +521. असंक्रामक रोगों के क्षेत्र में अनेक पहल की गई हैं अर्थात राष्ट्र्र्रीय बधिरता नियंत्रण कार्यक्रम, राष्ट्रीय वयोवृध्द स्वास्थ्य देखरेख कार्यक्रम, राष्ट्रीय मौखिक स्वास्थ्य कार्यक्रम। अनुमान है कि हमारी सड़कों पर रोजाना 275 व्यक्ति मरते हैं तथा 4,100 घायल होते हैं। इस तथ्य के मद्देनज़र, स्वास्थ्य मंत्रालय ने राष्ट्रीय राजमार्ग सुश्रुत देखरेख परियोजना शुरू की जो अपनी तरह की महत्त्वाकांक्षी परियोजना है तथा इसके तहत सम्पूर्ण स्वर्णिम चतुर्भुज तथा उत्तर-दक्षिण-पूर्व-पश्चिम गलियारों को शामिल करने का इरादा है तथा इन्हें 200 अस्पताल, अस्पताल-पूर्व देखरेख इकाई तथा एकीकृत संचार प्रणाली के साथ उन्नत किया जा रहा है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना बड़े पैमाने पर अछूती आबादी को स्वास्थ्य सेवाओं के दायरे में लाने की एक अन्य पहल है। + +522. नदियों में प्रदूषण: + +523. नदी संरक्षण कार्यक्रम के क्रियान्वयन पर भूमि अधिग्रहण की समस्या, सृजित परिसंपत्तियों के सही प्रबंधन नहीं हो पाने, अनियमित बिजली आपूर्ति, सीवरेज शोधन संयंत्रों के कम इस्तेमाल आदि का प्रतिकूल असर पड़ता है। + +524. प्रदूषित खंड वह क्षेत्र है जहां पानी की गुणवत्ता का वांछित स्तर बीओडी के अनुकूल नहीं होता। फिलहाल , जिन जलाशयों का बीओडी 6 मिलीग्राम1 से ज्यादा होता है उन्हें प्रदूषित जलाशय कहा जाता है। नदी के किसी भी हिस्से में पानी की उच्च गुणवत्ता संबंधी मांग को उसका निर्धारित सर्वश्रेष्ठ उपयोग समझा जाता है। हर निर्धारित सर्वश्रेष्ठ उपयोग के लिए गुणवत्ता संबंधी शर्त सीपीसीबी द्वारा तय किया गया है। + +525. एनआरसीपी एवं इसका कवरेज. + +526. नदी स्वच्छता कार्यक्रम के लिए धन जुटाने की व्यवस्था में पिछले कई वर्षों के दौरान कई बदलाव हुए हैं। गंगा कार्य योजना (जीएपी), जो 1985 में शुरू हुई थी, शत प्रतिशत केंद्र पोषित योजना थी। जीएपी के दूसरे चरण में 1993 में आधी राशि केद्र सरकार और आधी राशि संबंधित राज्य सरकारों द्वारा जुटाए जाने की व्यवस्था की गई। एक अप्रैल, 1997 में यह व्यवस्था फिर बदल दी गयी और शत प्रतिशत धन केंद्र की मुहैया कराने लगा। एक अप्रैल, 2001 से केंद्र द्वारा 70 प्रतिशत राशि और राज्य द्वारा 30 प्रतिशत राशि जुटाने की व्यवस्था लागू हो गयी। इस 30 प्रतिशत राशि का एक तिहाई पब्लिक या स्थानीय निकाय के शेयर से जुटाया जाना था। + +527. एसटीपी के माध्यम से नब्दिन्यों के प्रदूषण रोकने की सीमित पहल की गयी है। राज्य सरकारें अपनी क्रियान्वयन एजेंसियों के माध्यम से प्रदूषण निम्नीकरण कार्य करती है। लेकिन इस कार्य को उचित प्राथमिकता नहीं दी जाती है। परिसंपत्तियों के प्रबंधन एवं रखरखाव पक्ष की अक्सर उपेक्षा होती है। दूसरा कारण यह है कि कई एसटीपी में बीओडी और एसएस के अलावा कॉलीफार्म के नियंत्रण के लिए सीवरेज प्रबंधन नहीं किया जाता है। सिंचाई, पीने के लिए, तथा बिजली के लिए भी राज्यों द्वारा पानी का दोहन नियंत्रित ढंग से नहीं किया जाता है। पानी के दोहन जैसे मुद्दों पर अंतर-मंत्रालीय समन्वय का भी अभाव है। अबतक नदियों का संरक्षण कार्य घरेलू तरल अपशिष्ट की वजह से होने वाले प्रदूषण के रोकथाम तक ही सीमित है। जलीय जीवन की देखभाल, मृदा अपरदन के रोकथाम आदि के माध्यम से नदियों की पारिस्थितिकी में सुधार आदि कार्यों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया।अयिए आज हम साब यह प्रन ले कि हम नदियोन को प्रदुशित होने से बचाएन्गे। + +528. मौसम , जलवायु और सामाजिक हितों से जुड़ी सेवाओं के लिए जोखिमों के पूर्वानुमान के महत्‍व को स्‍वीकारते हुए पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालय ने पृथ्‍वी प्रणाली (वायुमंडल, हाइड्रोस्फेयर, क्रायोस्‍फेयर, जियोस्‍फेयर और बायोस्‍फेयर) के प्रति समझ में सुधार की दिशा में एक समन्‍वित तरीके से अपनी गतिविधियों पर जोर दिया है। विभिन्‍न घटकों के अध्‍ययन का उद्देश्‍य उनके बीच अंतक्रियाओं को बेहतर ढंग से समझना है, जो प्राकृतिक प्रक्रियाओं और मानवोत्‍पत्‍ति संबंधी गतिविधियों द्वारा प्रभावित हो और जिनसे पूर्वानुमान सेवाओं में सुधार हो। पृथ्‍वी प्रणाली विज्ञान संगठन एक मिशन के रूप में काम करता है , जहां पिछले एक वर्ष के दौरान महत्‍वपूर्ण उपलब्‍धियां प्राप्‍त हुई हैं + +529. विमानन सेवाएं धुंध पूर्वानुमान. + +530. सांख्‍यिक प्रारूपों के इस्‍तेमाल से हिन्‍द महासागर के लिए यथासमय पूर्वानुमान तैयार करने का प्रयास प्रारंभिक चरण में है। फरवरी 2010 में शुरू की गई हिन्‍द महासागर पूर्वानुमान प्रणाली (इंडोफोस) में महासागरीय लहरों की ऊँचाई, लहर की दिशा, समुद्री सतह का तापमान, सतह की धारायें, मिश्रित तल की गहराई और 20 डिग्री सेल्‍सियस समताप की गहराई के बारे में अगले पाँच दिनों के लिए छ: घंटे के अंतराल पर पूर्वानुमान जारी करना शामिल है। इंडोफेस के लाभार्थियों में पारंपरिक और प्रणालीबद्ध मछुआरे, समुद्री बोर्ड, भारतीय नौसेना, तटरक्षक नौवहन कंपनियां और पेट्रोलियम उद्योग, ऊर्जा उद्योग तथा शैक्षिक संस्‍थान शामिल हैं। गुजरात, महाराष्‍ट्र, कर्नाटक और पुडुचेरी के लिए लहरों के पूर्वानुमान हेतु स्‍थान विशेष पर आधारित प्रारूप स्‍थापित किए गए हैं और बंदरगाह प्राधिकरणों द्वारा इनका व्‍यापक इस्‍तेमाल किया जाता है। + +531. जलवायु में बदलाव और परिवर्तन + +532. प्रौद्योगिकी तथा स्वरोजगार: + +533. २-विदेशी कंपनियों का भारत में आयात शुन्य करके इनके उत्पादों की खरीद का बहिष्कार करके भारत की कंपनियों का उत्पादन बहुत तेजी से बढ़ाना होगा और उन्हें निर्यात की तरफ ले जाकर विदेशी मुद्रा कमाना होगा। + +534. ७-ऐसे कर प्रणाली बनाई जाये की लोग कर बचाने केलिए कालाधन पैदा ही ना करे. + +535. १२-शिक्षा प्रणाली में देश भक्ति और राष्ट्र प्रेम के पाठ कक्षा १ से १२ तक अनिवार्य कर दिए जाये और हमारे आदर्श के रूप में उनको पेश किया जाये जो की चरित्र + +536. १६-खेती में जहर का प्रयोग बंदकरके सबको अच्छा स्वास्थ्य मुहैया कराया जाये. और आयुर्वेदिक, यूनानी और अन्य पुराणी सस्ती स्वस्थ्य पद्धतियों को फिर से जोरदार धन से फैलाया जाये. + +537. + +538. अर्थात धैर्य, दूसरो को क्षमा करना, अपने मन पर, विचारो पर, नियंत्रण होना, चोरी की भावना का न होना, शारीरिक और मानसिक पवित्रता, इंद्रियों पर पूर्ण नियंत्रण, अच्छी बुद्धि, सद्विद्या का ग्रहण करना, सत्य के मार्ग पर चलना और क्रोध न करना – यही मनुष्यता के दस लक्षण हैं। इन गुणों को अपनाकर हम सच्चे अर्थों में मनुष्य बनते हैं। यही वेद का आदेश है। मनुर्भव – मनुष्य बनो। + +539. 1. हमें चाहिए कि हम बच्चो को सभी संभावनाओं से पूर्ण मानें। हम समझें कि सभी बालक-बालिकाओं में कुछ बनने की योग्यता है। कोई न कोई विशेष गुण है। वह अपनी इन योग्यताओं का विकास चाहते हैं। हम उन्हे विकसित होने का पूर्ण वातावरण प्रदान करें और उनके गुणों की प्रशंसा करें। + +540. 4. प्रेरक बनें - अध्यापक का कार्य बच्चों को किसी विषय से संबंधित सूचनाओं का ख़ज़ाना नहीं बनाना है। हमें तो उसका व्यक्तित्व उभारना है। जैसे हम कहते हैं कि सूर्य हमारा प्रेरक है। एक बीज में वृक्ष बनने की योग्यता है, कलि में फूल बनने की योग्यता है, सूर्य अपनी किरणों से उन्हें विकसित होने की प्रेरणा देता है। इसीलिए सूर्य का नाम सविता है। हम अध्यापक भी इन बच्चो को खिलने का अवसर प्रदान करें। ये ऐमेटी के फूल भी हैं, माता-पिता के फूल भी हैं और भारत माता की बगिया के फूल भी हैं। उनकी योग्यता का विस्तार हो सके इसके लिए उन्हें उपयुक्त वातावरण प्रदान करें। उन्हें मानवीय गुणों को अपनाने के लिए भी प्रेरित करें। केवल विषय से संबंधित सूचनाओं का पिटारा न बना दें। अन्यथा ज्ञान प्राप्त करके वे स्वार्थी भी बन सकते हैं। उन्हें सर्वभूत हिते रता: की भावना से काम करने की प्रेरणा दें। + +541. 9. अपने व्यवहार को आदर्श बनाएं – बच्चे अपने बढ़ो का अनुकरण आरंभ से ही करने लगते हैं। बहुत सी शिक्षा इस अनुकरण प्रणाली से ही हम उन्हें दे सकते हैं। हम स्वयं सत्य का पालन करें – सब बच्चों को समान दृष्टि से देखें, निश्छल व्यवहार करें व समय का पालन करें – तो यह गुण बच्चों में स्वत: आ जाएंगे। वे भी समय पर अपना कार्य पूर्ण कर के दिखाएंगे व सबके साथ मित्रवत व्यवहार करेंगे। + +542. बच्चो को चित्रकला बहुत पसंद आती है | वह पेन्सिल हाथ में पकड़ते हो कुछ न कुछ बनना शुरू कर देते हैं | इसी आधार पर कुछ बच्चो के समूह को एक बड़ा कागज और उस पर चित्र बनाने को कहा गया ..कुछ बच्चो ने तो पूरा कागज ही भर दिया ..कुछ ने आधे पर चित्र बनाये और कुछ सिर्फ थोडी सी जगह पर चित्र बना कर बैठ गए | इसी आधार पर यह निष्कर्ष निकला कि जो बच्चे पूरा कागज भर देते हैं वह अक्सर बहिर्मुखी होते हैं |ऐसे बच्चे उत्साही और दूसरे लोगों से बहुत जल्दी घुल मिल जाते हैं .इस तरह के बच्चे स्वयम को अच्छे से अभिव्यक्त कर पाते हैं और अक्सर मनमौजी स्वभाव के और कम भावुक होते हैं | + +543. बच्चे का लिखने के ढंग से भी आप उसके स्वभाव को परख सकते हैं | जैसे लिखते वक़्त बच्चे ने चित्र में उन स्थानों पर तीखे कोनों का इस्तेमाल किया है जहाँ हल्की गोलाई होनी चाहिए थी तो यह उस बच्चे की आक्रामकता की सूचक है| यदि यह आक्रमकता उसके ताजे चित्रों में दिख रही तो उसके पुराने बनाए चित्र और शैली देखे इस से आप जान सकेंगे कि घर में ऐसा क्या घटित हुआ है जो आपके बच्चे के मनोभाव यूँ बदले हैं | अक्सर इस तरह से बदलाव दूसरे बच्चे के आने पर पहले बच्चे में दिखाई देते हैं उसको अपने प्यार में कमी महसूस होती है और वह यूँ आकर्मक हो उठता है | + +544. काला रंग या गहरा बेंगनी रंग इस्तेमाल करने वाले बच्चे को आपकी सहायता चाहिए |यह रंग बच्चे में दुःख और निराशा का प्रतीक है | + +545. बाल विकास (या बच्चे का विकास). + +546. + +547. भारतीय दण्ड संहिता, अध्याय 1: + +548. 1. संहिता का नाम और उसके प्रवर्तन का विस्तार--यह अधिनियम भारतीय दण्ड संहिता कहलाएगा, और इसका 34[जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय सम्पूर्ण भारत पर होगा ]। + +549. संथाल परगना एयवस्थापन विनियम (1872 का 3) की धारा 3 द्वारा संथाल परगनों पर ; + +550. संयुक्त प्रान्त तराई जिले--देखिए भारत का राजपत्र (अंग्रेजी), 1876, भाग 1, पॄ0 505, हजारीबाग, लोहारदग्गा के जिले [(जो अब रांची जिले के नाम से ज्ञात हैं,--देखिए कलकत्ता राजपत्र (अंग्रेजी), 1899, भाग 1, पॄ0 44 और मानभूम और परगना]। दालभूम तथा ासिंहभूम जिलों में कोलाहल—देखिए भारत का राजपत्र (अंग्रेजी), 1881, भाग 1, पॄ0 504। + +551. 4 1951 के अधिनियम सं0 3 को धारा 3 और अनुसूची द्वारा “भाग ख राज्यों को छोड़कर” के स्थान पर प्रतिस्थापित। + +552. 9 1898 का अधिनियम सं0 4 की धारा 2 द्वारा मूल धारा के स्थान पर प्रतिस्थापित। + +553. 4।।। क. 56[भारत का नागरिक है] उगांडा में हत्या करता है। वह 5[भारत] के किसी स्थान में, जहां वह पाया जाए, हत्या के लिए विचारित और दोषसिद्द किया जा सकता है। + +554. खगोलीय गति. + +555. कैलेन्डर से जुडे कुछ रोचक तथ्य. + +556. + +557. विज्ञान और कला के बगैर आधुनिक जीवन की कल्पना करना असंभव है। परन्तु विभिन्न कलाओ में विज्ञान के योगदान को हम कितना याद रखते हैं ? शायद बिल्कुल भी नहीं। वास्तव में विज्ञान एकत्रित ज्ञान है जबकि कला समस्त उपलब्ध संसाधनों के आधार पर मनुष्य के मनोभावों का निरूपण। अर्थात कोई वैज्ञानिक कार्य चाहे कितना ही महान क्यों न हो समय के साथ उसके वैज्ञानिक ज्ञान का समकालीन ज्ञान में समावेश हो जाता है। + +558. विज्ञान की सार्वंभौमिकता. + +559. कला के क्षेत्र में प्रत्येक महारथी की अपनी विधा और अपना अलग मार्ग होता है जबकि विज्ञान के क्षेत्र में आपको पूर्व से स्थापित मार्ग पर ही चलकर आगंे बढना होता है। चित्रकला की ही बात करें तो प्रागैतिहासिक मानव द्वारा बनाये गये गुफाा चित्रों में आदि मानव का समूह में शिकार करने का दृष्य हो अथवा ब्रम्हांड के बारे में मिश्र की प्राचीन धारणाओं पर निर्मित तत्कालीन चित्र इनमें मानव मन में बसी भावनाओं का ही निरूपण प्रतीत होता है। आज इनकी व्याख्या वर्तमान परिपेक्ष में करने पर आश्चर्यजनक तथ्य प्रकाश में आते हैं। पहले चित्र में शिकार के लिये भटकते मनुष्यों का संघर्ष और शिकार की मनोदशा न्यूनतम रेखाओं के माध्यम से प्रदर्शित होती है। आज भी कला के पारखी अपने मनोभावों को न्यूनतम रेखाओं के माध्यम से प्रदर्शित करने वाली कृति को ही को ही श्रेष्ठ कलाकृति के रूप में परिभाषित करतें हैं तथा कला विद्यालयों में न्यूनतम रेखाओं के आधार पर विषय का भाव पकडने का अभ्यास कराया जाता है। + +560. भारत की भीषण भाषा समस्या और उसके सम्भावित समाधान + +561. परिभाषा. + +562. भूगोल एक प्रगतिशील विज्ञान है। प्रत्येक देश में विशेषज्ञ अपने अपने क्षेत्रों का विकास कर रहे हैं। फलत: इसकी निम्नलिखित अनेक शाखाएँ तथा उपशाखाएँ हो गई है : + +563. राजनीतिक भूगोल -- इसके अंग भूराजनीतिक शास्त्र, अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय, औपनिवेशिक भूगोल, शीत युद्ध का भूगोल, सामरिक एवं सैनिक भूगोल हैं। + +564. हिन्दी साहित्य का इतिहास: + +565. श्री गुरु परमानंद तिनको दंडवत है। हैं कैसे परमानंद, आनंदस्वरूप है सरीर जिन्हि को, जिन्हि के नित्य गाए तें शरीर चेतन्नि अरु आनंदमय होतु है। मैं जु हौं गोरिष सो मछंदरनाथ को दंडवत करत हौं। हैं कैसे वे मछंदरनाथ! आत्मजोति निश्चल हैं अंत:करन जिनके अरु मूलद्वार तैं छह चक्र जिनि नीकी तरह जानैं। + +566. यह गद्य अपरिमार्जित और अव्यवस्थित है। पर इसके पीछे दो और सांप्रदायिक ग्रंथ लिखे गए जो बड़े भी हैं और जिनकी भाषा भी व्यवस्थित और चलती है। बल्लभसंप्रदाय में इनका अच्छा प्रसार है। इनके नाम हैं , 'चौरासी वैष्णवों की वार्ता' तथा 'दो सौ बावन वैष्णवों की वार्ता'। इनमें से प्रथम आचार्य श्री बल्लभाचार्य जी के पौत्र गोसाईं विट्ठलनाथ जी के पुत्र गोसाईं गोकुलनाथजी की लिखी कही जाती है, पर गोकुलनाथजी के किसी शिष्य की लिखी जान पड़ती है, क्योंकि इसमें गोकुलनाथजी का कई जगह बड़े भक्तिभाव से उल्लेख है। इसमें वैष्णव भक्तों और आचार्य जी की महिमा प्रकट करनेवाली कथाएँ लिखी गई हैं। इसका रचनाकाल विक्रम की सत्रहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध्द माना जा सकता है। 'दो सौ बावन वैष्णवों की वार्ता' तो और भी पीछे औरंगजेब के समय के लगभग लिखी प्रतीत होती है। इन वार्ताओं की कथाएँ बोलचाल की ब्रजभाषा में लिखी गई हैं जिसमें कहीं कहीं बहुत प्रचलित अरबी और फारसी शब्द भी निस्संकोच रखे गए हैं। साहित्यिक निपुणता या चमत्कार की दृष्टि से ये कथाएँ नहीं लिखी गई हैं। उदाहरण के लिए यह उध्दृत अंश पर्याप्त होगा , + +567. सब देवतन की कृपा ते बैकुंठमनि सुकुल श्री महारानी चंद्रावती के धरम पढ़िबे के अरथ यह जसरूप ग्रंथ वैसाख महातम भाषा करत भए। एक समय नारद जू ब्रह्मा की सभा से उठिकै सुमेर पर्वत को गए। + +568. अब शेख अबुलफजल ग्रंथ को करता प्रभु को निमस्कार करि कै अकबर बादशाह की तारीफ लिखने को कसद करै है अरु कहै है , याकी बड़ाई और चेष्टा अरु चिमत्कार कहाँ तक लिखूँ। कही जात नाहीं। तातें याकें पराक्रम अरु भाँति भाँति के दसतूर वा मनसूबा दुनिया में प्रगट भए ताको संखेप लिखत हौं। + +569. अंगना जु है स्त्री सु। प्रेम के अति आवेश करि। जु कार्य करन चाहति है ता कार्य विषै। ब्रह्माऊ। प्रत्यूहं आधातुं। अंतराउ कीबै कहँ। कातर। काइरु है। काइरु कहावै असमर्थ। जु कछु स्त्री करयो चाहैं सु अवस्य करहिं। ताको अंतराउ ब्रह्मा पहँ न करयो जाई और की कितीक बात। + +570. इसी ढंग की सारी टीकाओं की भाषा समझिए। सरदार कवि अभी हाल में हुए हैं। कविप्रिया, रसिकप्रिया, सतसई आदि की उनकी टीकाओं की भाषा और भी अनगढ़ और असंबद्ध है। सारांश यह है कि जिस समय गद्य के लिए खड़ी बोली उठ खड़ी हुई उस समय तक गद्य का विकास नहीं हुआ था, उसका कोई साहित्य नहीं खड़ा हुआ था, इसी से खड़ी बोली के ग्रहण में कोई संकोच नहीं हुआ। + +571. भोज के समय से लेकर हम्मीरदेव के समय तक अपभ्रंश काव्यों की जो परंपरा चलती रही उसके भीतर खड़ी बोली के प्राचीन रूप की भी झलक अनेक पद्यों में मिलती है। जैसे , + +572. कबीर मन निर्मल भया जैसा गंगानीर। + +573. अकबर के समय में गंग कवि ने 'चंद छंद बरनन की महिमा' नामक एक गद्य पुस्तक खड़ी बोली में लिखी थी। उसकी भाषा का नमूना देखिए , + +574. (क) प्रथम परब्रह्म परमात्मा का नमस्कार है जिससे सब भासते हैं और जिसमें सब लीन और स्थित होते हैं, × × × जिस आनंद के समुद्र के कण से संपूर्ण विश्वआनंदमय है, जिस आनंद से सब जीव जीते हैं। अगस्तजी के शिष्य सुतीक्षण के मन में एक संदेह पैदा हुआ तब वह उसके दूर करने का कारण अगस्त मुनि के आश्रम को जा विधिसहित प्रणाम करके बैठे और बिनती कर प्रश्न किया कि हे भगवान! आप सब तत्वों शास्त्रों के जाननहारे हो, मेरे एक संदेह को दूर करो। मोक्ष का कारण कर्म है किज्ञान है अथवा दोनों हैं, समझाय के कहो। इतना सुन अगस्त मुनि बोले कि हे ब्रह्मण्य! केवल कर्म से मोक्ष नहीं होता और न केवल ज्ञान से मोक्ष होता है, मोक्ष दोनों से प्राप्त होता है। कर्म से अंत:करण शुद्ध होता है, मोक्ष नहीं होता और अंत:करण की शुद्धि बिना केवल ज्ञान से मुक्ति नहीं होती। + +575. आगे चलकर संवत् 1830 और 1840 के बीच राजस्थान के किसी लेखक ने 'मंडोवर का वर्णन' लिखा जिसकी भाषा साहित्य की नहीं, साधारण बोलचाल की है, जैसे , + +576. अंगरेज यद्यपि विदेशी थे पर उन्हें यह स्पष्ट लक्षित हो गया कि जिसे उर्दू कहते हैं वह न तो देश की स्वाभाविक भाषा है, न उसका साहित्य देश का साहित्य है, जिसमें जनता के भाव और विचार रक्षित हों। इसीलिए जब उन्हें देश की भाषा सीखने की आवश्यकता हुई और वे गद्य की खोज में पड़े तब दोनों प्रकार की पुस्तकों की आवश्यकता हुई , उर्दू की भी और हिन्दी (शुद्ध खड़ी बोली) की भी। पर उस समय गद्य की पुस्तकें वास्तव में न उर्दू में थीं न हिन्दी में। जिस समय फोर्ट विलियम कॉलेज की ओर से उर्दू और हिन्दी गद्य की पुस्तकें लिखने की व्यवस्था हुई उसके पहले हिन्दी खड़ी बोली में गद्य की कई पुस्तकें लिखी जा चुकी थीं। + +577. मुंशीजी ने यह गद्य न तो किसी अंगरेज अधिकारी की प्रेरणा से और न किसी दिए हुए नमूने पर लिखा। वे एक भगवद्भक्त थे। अपने समय में उन्होंने हिंदुओं की बोलचाल की जो शिष्ट भाषा चारों ओर , पूरबी प्रांतों में भी , प्रचलित पाई उसी में रचना की। स्थान स्थान पर शुद्ध तत्सम संस्कृत शब्दों का प्रयोग करके उन्होंने उसके भावी साहित्यिक रूप का पूर्ण आभास दिया। यद्यपि वे खास दिल्ली के रहने वाले अह्लेजबान थे पर उन्होंने अपने हिन्दी गद्य में कथावाचकों, पंडितों और साधु संतों के बीच दूर दूर तक प्रचलित खड़ी बोली का रूप रखा, जिसमें संस्कृत शब्दों का पुट भी बराबर रहता था। इसी संस्कृतमिश्रित हिन्दी को उर्दूवाले 'भाषा' कहते थे जिसका चलन उर्दू के कारण कम होते देख मुंशी सदासुख ने इस प्रकार खेद प्रकट किया था , + +578. 2. इंशाअल्ला खाँ उर्दू के बहुत प्रसिद्ध शायर थे जो दिल्ली के उजड़ने पर लखनऊ चले आए थे। इनके पिता मीर माशाअल्ला खाँ कश्मीर से दिल्ली आए थे जहाँ वे शाही हकीम हो गए थे। मोगल सम्राट की अवस्था बहुत गिर जाने पर हकीम साहब मुर्शिदाबाद के नवाब के यहाँ चले गए थे। मुर्शिदाबाद ही में इंशा का जन्म हुआ। जब बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला मारे गए और बंगाल में अंधेर मचा तब इंशा, जो पढ़ लिखकर अच्छे विद्वान और प्रतिभाशाली कवि हो चुके थे, दिल्ली चले आए और शाहआलम दूसरे के दरबार में रहने लगे। वहाँ जब तक रहे अपनी अद्भुत प्रतिभा के बल से अपने विरोधी, बड़े बड़े नामी शायरों को ये बराबर नीचा दिखाते रहे। जब गुलामकादिर बादशाह को अंधा करके शाही खजाना लूटकर चल दिया तब इंशा का निर्वाह दिल्ली में कठिन हो गया और वे लखनऊ चले आए। जब संवत् 1855 में नवाब सआदतअली खाँ गद्दी पर बैठे तब ये उनके दरबार में आने जाने लगे। बहुत दिनों तक इनकी बड़ी प्रतिष्ठा रही पर अंत में एक दिल्लगी की बात पर इनका वेतन आदि सब बंद हो गया था और इनके जीवन का अंतिम भाग बड़े कष्ट में बीता। संवत् 1875 में इनकी मृत्यु हुई। + +579. इस बिलगाव से, आशा है, ऊपर लिखी बात स्पष्ट हो गई होगी। इंशा ने 'भाखापन' और 'मुअल्लापन' दोनों को दूर रखने का प्रयत्न किया, पर दूसरी बला किसी न किसी सूरत में कुछ लगी रह गई। फारसी के ढंग का वाक्यविन्यास कहींकहीं, विशेषत: बड़े वाक्यों में आ ही गया है; पर बहुत कम। जैसे , + +580. जब दोनों महाराजों में लड़ाई होने लगी, रानी केतकी सावन भादों के रूप रोने लगी और दोनों के जी में यह आ गई , यह कैसी चाहत जिनमें लहू बरसने लगा और अच्छी बातों को जी तरसने लगा। + +581. इस बात पर पानी डाल दो नहीं तो पछताओगी और अपना किया पाओगी। मुझसे कुछ न हो सकेगा। तुम्हारी जो कुछ अच्छी बात होती तो मेरे मुँह से जीतेजी न निकलती, पर यह बात मेरे पेट नहीं पच सकती। तुम अभी अल्हड़ हो, तुमने अभी कुछ देखा नहीं। जो ऐसी बात पर सचमुच ढलाव देखूँगी तो तुम्हारे बाप से कहकर वह भभूत जो वह मुआ निगोड़ा भूत, मुछंदर का पूत अवधूत दे गया है, हाथ मुरकवाकर छिनवा लूँगी। + +582. श्रीशुकदेव मुनि बोले , महाराज! ग्रीष्म की अति अनीति देख, नृप पावस प्रचंड पशु पक्षी, जीव जंतुओं की दशा विचार चारों ओर से दल बादल साथ ले लड़ने को चढ़ आया। तिस समय घन जो गरजता था सोई तौ धौंसा बजता था और वर्ण वर्ण की घटा जो घिर आई थी सोई शूर वीर रावत थे, तिनके बीच बिजली की दमक शस्त्रा की सी चमकती थी, बगपाँत ठौर ठौर धवज-सी फहराय रही थी, दादुर, मोर, कड़खैतों की सी भाँति यश + +583. 4. सदल मिश्र ये बिहार के रहनेवाले थे। फोर्टविलियम कॉलेज में काम करते थे। जिस प्रकार उक्त कॉलेज के अधिकारियों की प्रेरणा से लल्लूलाल ने खड़ी बोली गद्य की पुस्तक तैयार की उसी प्रकार इन्होंने भी। इनका 'नासिकेतोपाख्यान' भी उसी समय लिखा गया जिस समय 'प्रेमसागर'। पर दोनों की भाषा में बहुत अंतर है। लल्लूलाल के समान इनकी भाषा में न तो ब्रजभाषा के रूपों की वैसी भरमार है और न परंपरागत काव्य भाषा की पदावली का स्थान स्थान पर समावेश। इन्होंने व्यवहारोपयोगी भाषा लिखने का प्रयत्न किया है और जहाँ तक हो सकता है खड़ी बोली का ही व्यवहार किया है। पर इनकी भाषा भी साफ सुथरी नहीं। ब्रजभाषा के भी कुछ रूप हैं और पूरबी बोली के शब्द तो स्थान स्थान पर मिलते हैं। 'फूलन्ह के बिछौने', 'चहुँदिस', 'सुनि', 'सोनन्ह के थंभ' आदि प्रयोग ब्रजभाषा के हैं, 'इहाँ', 'मतारी', 'बरते थे', 'जुड़ाई', 'बाजने', 'लगा', 'जौन' आदि पूरबी शब्द हैं। भाषा के नमूने के लिए 'नासिकेतोपाख्यान' से थोड़ा सा अवतरण नीचे दिया जाता है , + +584. उस गाँव के लोग भोहोत सुखी हैं। घर घर में आनंद होता है, कोई घर में फकीर दीखता नहीं। + +585. इसके आगे ईसाइयों की पुस्तकें और पंफलेट बराबर निकलते रहे। उक्त 'सिरामपुर प्रेस' से संवत् 1893 में 'दाऊद के गीतें' नाम की पुस्तक छपी जिसकी भाषा में कुछ फारसी अरबी के बहुत चलते शब्द भी रखे मिलते हैं। पर इसके पीछे अनेक नगरों से बालकों की शिक्षा के लिए ईसाइयों के छोटे मोटे स्कूल खुलने लगे और शिक्षा संबंधी पुस्तकें भी निकलने लगीं। इन पुस्तकों की हिन्दी भी वैसी ही सरल और विशुद्ध होती थी जैसी 'बाइबिल' के अनुवाद की थी। आगरा, मिर्जापुर, मुंगेर आदि जिले उस समय ईसाइयों के प्रचार के मुख्य केंद्र थे। + +586. कहने की आवश्यकता नहीं कि ईसाइयों के प्रचारकार्य का प्रभाव हिंदुओं की जनसंख्या पर ही पड़ रहा था। अत: हिंदुओं के शिक्षित वर्ग के बीच स्वधर्म रक्षा की आकुलता दिखाई पड़ने लगी। ईसाई उपदेशक हिंदू धर्म की स्थूल और बाहरी बातों को लेकर ही अपना खंडन-मंडन चलाते आ रहे थे। यह देखकर बंगाल में राजा राममोहन राय उपनिषद् और वेदांत का ब्रह्मज्ञान लेकर उसका प्रचार करने खड़े हुए। नूतन शिक्षा के प्रभाव से पढ़े लिखे लोगों में से बहुतों के मन में मूर्तिपूजा, तीर्थाटन, जातिपाँति, छुआछूत आदि के प्रति अश्रध्दा हो रही थी। अत: राममोहन राय ने इन बातों को अलग करके शुद्ध ब्रह्मोपासना का प्रवर्तन करने के लिए 'ब्रह्मसमाज' की नींव डाली। संवत् 1872 में उन्होंने वेदांत सूत्रों के भाष्य का हिन्दी अनुवाद करके प्रकाशित कराया था। संवत् 1886 में उन्होंने 'बंगदूत' नाम का एक संवाद पत्र भी हिन्दी में निकाला। राजा साहब की भाषा में एकआधा जगह कुछ बँग्लापन जरूर मिलता है, पर उसका रूप अधिकांश में वही है जो शास्त्रज्ञ विद्वानों के व्यवहार में आता था। नमूना देखिए , + +587. 1. एक यशी वकील वकालत का काम करते करते बुङ्ढा होकर अपने दामाद को यह काम सौंप के आप सुचित हुआ। दामाद कई दिन काम करके एक दिन आया ओ प्रसन्न होकर बोला , हे महाराज! आपने जो फलाने का पुराना वो संगीन मोकद्दमा हमें सौंपा था सो आज फैसला हुआ। यह सुनकर वकील पछता करके बोला , तुमने सत्यानाश किया। उस मोकद्दमे से हमारे बाप बड़े थे तिस पीछे हमारे बाप मरती समय हमें हाथ उठाकर के दे गए ओ हमने भी उसको बना रखा ओ अब तक भलीभाँति अपना दिन कटा ओ वही मोकद्दमा तुमको सौंप कर समझा था कि तुम भी अपने बेटे पोते परोतों तक पलोगे पर तुम थोड़े से दिनों में उसे खो बैठे। + +588. किसी को इस बात का उजूर नहीं होए कि ऊपर के दफे का लीखा हुकुम सभसे वाकीफ नहीं है, हरी एक जिले के कलीकटर साहेब को लाजीम है कि इस आईन के पावने पर एक केता इसतहारनामा निचे के तरह से फारसी व नागरी भाखा के अच्छर में लिखाय कै...कचहरी में लटकावही। अदालत के जजसाहिब लोग के कचहरी में भी तमामी आदमी के बुझने के वास्ते लटकावही (अंग्रेजी सन् 1803 साल, 31 आईन 20 दफा)। + +589. सरकार की कृपा से खड़ी बोली का अरबी फारसीमय रूप लिखने पढ़ने की अदालती भाषा होकर सबके सामने आ गया। जीविका और मान मर्यादा की दृष्टि से उर्दू सीखना आवश्यक हो गया। देश भाषा के नाम पर लड़कों को उर्दू ही सिखाई जाने लगी। उर्दू पढ़े लिखे लोग ही शिक्षित कहलाने लगे। हिन्दी की काव्यपरंपरा यद्यपि राजदरबारों के आश्रय में चली चलती थी पर उसके पढ़नेवालों की संख्या भी घटती जा रही थी। नवशिक्षित लोगों का लगाव उसके साथ कम होता जा रहा था। ऐसे प्रतिकूल समय में साधारण जनता के साथ उर्दू पढ़े लिखे लोगों की जो भी थोड़ी बहुत दृष्टि अपने पुराने साहित्य की बनी हुई थी, वह धर्मभाव से। तुलसीकृत रामायण्ा की चौपाइयाँ और सूरदास जी के भजन आदि ही उर्दूग्रस्त लोगों का कुछ लगाव 'भाखा' से भी बनाए हुए थे। अन्यथा अपने परंपरागत साहित्य के नवशिक्षित लोगों का मन अधिकांश कालचक्र के प्रभाव से विमुख हो रहा था। श्रृंगाररस की भाषा कविता का अनुशीलन भी गाने बजाने आदि के शौक की तरह इधर उधर बना हुआ था। इस स्थिति का वर्णन करते हुए स्वर्गीय बाबू बालमुकुंद गुप्त लिखते हैं, + +590. कलकत्ते के समाचार + +591. ऐसी भाषा का जानना सब विद्यार्थियों के लिए आवश्यक ठहराना जो मुल्क की सरकारी और दफ्तरी जबान नहीं है, हमारी राय में ठीक नहीं है। इसके सिवाय मुसलमान विद्यार्थी, जिनकी संख्या देहली कॉलेज में बड़ी है, इसे अच्छी नजर से नहीं देखेंगे। + +592. जिस गार्सां द तासी ने संवत् 1909 के आसपास हिन्दी और उर्दू दोनों का रहना आवश्यक समझा था और कभी कहा था कि , + +593. हिन्दी में हिंदू धर्म का आभास है , वह हिंदू धर्म जिसके मूल में बुतपरस्ती और उसके आनुषंगिक विधान हैं। इसके विपरीत उर्दू में इसलामी संस्कृति और आचार व्यवहार का संचय है। इस्लाम भी 'सामी' मत है और एकेश्वरवाद उसका मूल सिध्दांत है; इसीलिए इसलामी तहजीब में ईसाई या मसीही तहजीब की विशेषताएँ पाई जाती हैं। + +594. 1. अपनी कहानी का आरंभ ही उन्होंने इस ढंग से किया है , जैसे लखनऊ के भाँड़ घोड़ा कुदाते हुए महिफल में आते हैं। + +595. 1. पुष्पवाटिका (गुलिस्ताँ के एक अंग का अनुवाद, संवत् 1909) + +596. बिहारीलाल ने गुलिस्ताँ के आठवें अध्याय का हिन्दी अनुवाद संवत् 1919 में किया। + +597. मनुस्मृति हिंदुओं का मुख्य धर्मशास्त्र है। उसको कोई भी हिंदू अप्रामाणिक नहीं कह सकता। वेद में लिखा है कि मनु जी ने जो कुछ कहा है उसे जीव के लिए औषधिा समझना; और बृहस्पति लिखते हैं कि धर्म शास्त्राचार्यों में मनु जी सबसे प्रधान और अति मान्य हैं क्योंकि उन्होंने अपने धर्मशास्त्र में संपूर्ण वेदों का तात्पर्य लिखा है।...खेद की बात है कि हमारे देशवासी हिंदू कहलाके अपने मानवधर्मशास्त्र को न जानें और सारे कार्य्य उसके विरुद्ध करें। + +598. हम लोगों को जहाँ तक बन पड़े चुनने में उन शब्दों को लेना चाहिए कि जो आम फहम और खासपसंद हों अर्थात् जिनको जियादा आदमी समझ सकते हैं और जो यहाँ के पढ़े लिखे, आलिमफाजिल, पंडित, विद्वान की बोलचाल में छोड़े नहीं गए हैं और जहाँ तक बन पड़े हम लोगों को हरगिज गैरमुल्क के शब्द काम में न लाने चाहिए और न संस्कृत की टकसाल कायम करके नए नए ऊपरी शब्दों के सिक्के जारी करने चाहिए; जब तक कि हम लोगों को उसके जारी करने की जरूरत न साबित हो जाय अर्थात् यह कि उस अर्थ का कोई शब्द हमारी जबान में नहीं है, या जो है अच्छा नहीं है, या कविताई की जरूरत या इल्मी जरूरत या कोई और खास जरूरत साबित हो जाय। + +599. अब भारत की देशभाषाओं के अध्ययन की ओर इंगलैंड के लोगों का भी ध्यान अच्छी तरह जा चुका था। उनमें जो अध्ययनशील और विवेकी थे, जो अखंड भारतीय साहित्य परंपरा और भाषा परंपरा से अभिज्ञ हो गए थे, उन पर अच्छी तरह प्रकट हो गया था कि उत्तरीय भारत की असली स्वाभाविक भाषा का स्वरूप क्या है। इन अंगरेज विद्वानों में फ्रेडरिक पिंकाट का स्मरण हिन्दी प्रेमियों को सदा बनाए रखना चाहिए। इनका जन्म संवत् 1893 में इंगलैंड में हुआ। उन्होंने प्रेस के कामों का बहुत अच्छा अनुभव प्राप्त किया और अंत में लंदन की प्रसिद्ध ऐलन ऐंड कंपनी (ॅण् भ्ण्। ससमद ंदक ब्वण् 13 ँजमतसवव चसंबमए च्ंसस डंससए ैण् ॅण्) के विशालछापेखाने के मैनेजर हुए। वहीं वे अपने जीवन के अंतिम दिनों के कुछ पहले तक शांतिपूर्वक रहकर भारतीय साहित्य और भारतीय जनहित के लिए बराबर उद्योग करते रहे। + +600. फारसी मिश्रित हिन्दी (अर्थात् उर्दू या हिंदुस्तानी) के अदालती भाषा बनाए जाने के कारण उसकी बड़ी उन्नति हुई। इससे साहित्य की एक नई भाषा ही खड़ी हो गई। पश्चिमोत्तार प्रदेश के निवासी, जिनकी यह भाषा कही जाती है, इसे एक विदेशी भाषा की तरह स्कूलों में सीखने के लिए विवश किये जाते हैं। + +601. उर्दू के प्रचलित होने से देशवासियों को कोई लाभ न होगा क्योंकि वह भाषा खास मुसलमानों की है। उसमें मुसलमानों ने व्यर्थ बहुत से अरबी फारसी के शब्द भर दिए हैं। पद्य या छंदोबद्ध रचना के भी उर्दू उपयुक्त नहीं। हिंदुओं का यहर् कत्ताव्य है कि ये अपनी परंपरागत भाषा की उन्नति करते चलें। उर्दू में आशिकी कविता के अतिरिक्त किसी गंभीर विषय को व्यक्त करने की शक्ति ही नहीं है। + +602. उसी काल में इंडियन डेली न्यूज के एक लेख में हिन्दी प्रचलित किए जाने की आवश्यकता दिखाई गई थी। उसका भी जवाब देने तासी साहब खड़े हुए थे। 'अवध अखबार' में जब एक बार हिन्दी के पक्ष में लेख छपा था तब भी उन्होंने उसके संपादक की राय का जिक्र करते हुए हिन्दी को एक 'भद्दी बोली' कहा था जिसके अक्षर भी देखने में सुडौल नहीं लगते। + +603. राजा शिवप्रसाद 'आमफहम' और 'खासपसंद' भाषा का उपदेश ही देते रहे, उधर हिन्दी अपना रूप आप स्थिर कर चली। इस बात में धार्मिक और सामाजिक आंदोलनों ने भी बहुत कुछ सहायता पहुँचाई। हिन्दी गद्य की भाषा किस दिशा की ओर स्वभावत: जाना चाहती है, इसकी सूचना तो काल अच्छी तरह दे रहा था। सारी भारतीय भाषाओं का साहित्य चिरकाल से संस्कृत की परिचित और भावपूर्ण पदावली का आश्रय लेता चला आ रहा था। अत: गद्य के नवीन विकास में उस पदावली का त्याग और किसी विदेशी पदावली का सहसा ग्रहण कैसे हो सकता था? जब कि बँग्ला, मराठी आदि अन्य देशी भाषाओं का गद्य परंपरागत संस्कृत पदावली का आश्रय लेता हुआ चल पड़ा था तब हिन्दी गद्य उर्दू के झमेले में पड़कर कब तक रुका रहता? सामान्य संबंधसूत्र को त्यागकर दूसरी देशी भाषाओं से अपना नाता हिन्दी कैसे तोड़ सकती थी? उनकी सगी बहन होकर एक अजनबी के रूप में उनके साथ वह कैसे चल सकती थी जबकि यूनानी और लैटिन के शब्द यूरोप के भिन्न भिन्न मूलों से निकली हुई देशी भाषाओं के बीच एक प्रकार का साहित्यिक संबंध बनाए हुए हैं तब एक ही मूल से निकली हुई आर्य भाषाओं के बीच उस मूल भाषा के साहित्यिक शब्दों की परंपरा यदि संबंधसूत्र के रूप में चली आ रही है तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है? + +604. सामान्य परिचय + +605. द्विवेदीजी के प्रभाव से हिन्दी काव्य ने जो स्वरूप प्राप्त किया उसके अतिरिक्त और अनेक रूपों में भी भिन्न भिन्न कवियों की काव्यधारा चलती रही। कई एक बहुत अच्छे कवि अपने अपने ढंग पर सरस और प्रभावपूर्ण कविता करते रहे जिनमें मुख्य राय देवी प्रसाद 'पूर्ण', पं. नाथूरामशंकर शर्मा, पं. गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही', पं. सत्यनारायण कविरत्न, लाला भगवानदीन, पं. रामनरेश त्रिपाठी, पं. रूपनारायण पांडेयहैं। + +606. कविता को पूरन कलानिधि कितै गयो। (रतनेश) + +607. तजि बिछौनन को अब भागिए। भरत खंड प्रजागण जागिए + +608. इसी कारण निदाघ प्रतिकूल, दहन में तेरे रहा अशक्त + +609. आकर के इस कुसुमाकर में, करते हैं नंदन रुचि त्याग + +610. पवन देवता गगन पंथ से सुघन घटों में लाकरनीर। + +611. हंस भृंग हिंसा के भय से छाते नहीं बंद अरविंद + +612. सरकारी कानून का रखकर पूरा ध्यान। + +613. हो सकती है दूर, नहीं बाधा सरकारी + +614. दोनों ध्रुव छोरन लौं पल में पिघल कर + +615. जो पै वा वियोगिनी की आह कढ़ जाएगी + +616. पर मैं पिंड छुड़ाय जवनिका में जा दबकी + +617. डूब डूब 'शंकर' सरोज सड़ जायँगे + +618. पं. गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'. + +619. तू है मनोहर गीत तो मैं एक उसकी तान हूँ + +620. 'स्वप्न' नामक खंड काव्य तृतीय उत्थान काल के भीतर लिखा गया है जबकि 'छायावाद' नाम की शाखा चल चुकी थी, इससे उस शाखा का भी रंग कहीं कहीं इसके भीतर झलक मारता है, जैसे , + +621. इसी तरह की अमित कल्पना के प्रवाह में मैं निशिवासर, + +622. उसकी प्रिया सुमना उसे दिन रात इस प्रकार भावनाओं में ही मग्न और अव्यवस्थित देखकर कर्म मार्ग पर स्थिर हो जाने का उपदेश देती है , + +623. अर्ध्द निशा में तारागण से प्रतिबिंबित अति निर्मल जलमय। + +624. डाल दिए थे उसने गिरि पर, नदियों के तट पर, वनपथ पर + +625. चारु चंद्रिका से आलोकित विमलोदक सरसी के तट पर, + +626. 'हमें किसी की छाँह चाहिए' कहते चुनते हुए अन्नकण, + +627. तड़ित्प्रभा या घनगर्जन से भय या प्रेमोद्रेक प्राप्त कर, + +628. मेरा हर्ष चला जाता है एक आह के साथ निकल कर + +629. सिंधुविहंग तरंग पंख को फड़का कर प्रतिक्षण में। + +630. मैं देखता तुझे था माशूक के वदन में + +631. उनकी कविताओं के दोनों तरह के नमूने नीचे देखिए , + +632. 'दीन' भनै ताहि लखि जात पतिलोक, + +633. वह व्यर्थ सुकवि होने का अभिमान जनाता + +634. इनकी फुटकल कविताओं का संग्रह 'नवीन बीन' या 'नदीमें दीन' में है। + +635. परदुखसुख तू ने, हा! न देखा न भाला। + +636. कहने का प्रयोजन है इतना, उनके सुख की रही सीमा नहीं + +637. जो मों सों हँसि मिलै होत मैं तासु निरंतर चेरो। + +638. कोरो सत्य ग्राम को वासी कहा 'तकल्लुफ' जानै + +639. अलबेली कहु बेलि द्रुमन सों लिपटि सुहाई। + +640. लखि वह सुषमा जाल लाल निज बिन नंदरानी। + +641. कौने भेजौं दूत, पूत सों बिथा सुनावै। + +642. नित नव परत अकाल, काल को चलत चक्र चहुँ। + +643. जे तजि मातृभूमि सों ममता होत प्रवासी। + +644. विद्याबल लहि मति परम अबला सबला होइ + +645. खींचति आप सों आप उतहि यह, ऐसी प्रकृति अभागी + +646. + +647. इसमें तो कोई संदेह नहीं कि संस्कृत के वर्णवृत्तों का माधुर्य अन्यत्रा दुर्लभ है, पर उनमें भाषा इतनी जकड़ जाती है कि वह भावधारा के मेल में पूरी तरह से स्वच्छंद होकर नहीं चल सकती। इसी से संस्कृत के लंबे समासों का बहुत कुछ सहारा लेना पड़ता है। पर संस्कृत पदावली के अधिक समावेश से खड़ी बोली की स्वाभाविक गति के प्रसार के लिए अवकाश कम रहता है। अत: वर्णवृत्तों का थोड़ा बहुत उपयोग किसी बड़े प्रबंध के भीतर बीच में ही उपयुक्त हो सकता है। तात्पर्य यह कि संस्कृत पदावली का अधिक आश्रय लेने से खड़ी बोली के मँजने की संभावना दूर ही रहेगी। + +648. नए नए छंदों की योजना के संबंध में हमें कुछ नहीं कहना है। यह बहुत अच्छी बात है। 'तुक' भी कोई ऐसी अनिवार्य वस्तु नहीं। चरणों के भिन्न भिन्न प्रकार के मेल चाहे जितने किए जायँ, ठीक हैं। पर इधर कुछ दिनों से बिना छंद (मीटर) के पद्य भी , बिना तुकांत के होना तो बहुत ध्यान देने की बात नहीं , निरालाजी ऐसे नई रंगत के कवियों में देखने में आते हैं। यह अमेरिका के एक कवि वाल्ट ह्निटमैन ;ँसज ॅीपजउंदद्ध की नकल है, जो पहले बँग्ला में थोड़ी बहुत हुई। बिना किसी प्रकार की छंदोव्यवस्था की अपनी पहली रचना 'लीव्स ऑफ ग्रास' उसने सन् 1855 ई. में प्रकाशित की। उसके उपरांत और भी बहुत सी रचनाएँ इसी प्रकार की मुक्त या स्वच्छंद पंक्तियों में निकलीं, जिनके संबंध में एक समालोचक ने लिखाहै , + +649. प्रथम उत्थान के भीतर हम देख चुके हैं कि किस प्रकार काव्य को भी देश की बदलती हुई स्थिति और मनोवृत्ति के मेल में लाने के लिए भारतेंदु मंडल ने कुछ प्रयत्न किया पर यह प्रयत्न केवल सामाजिक और राजनीतिक स्थिति की ओर हृदय को थोड़ा प्रवृत्त करके रह गया। राजनीतिक और सामाजिक भावनाओं को व्यक्त करनेवाली वाणी भी दबी सी रही। उसमें न तो संकल्प की दृढ़ता और न्याय के आग्रह का जोश था, न उलटफेर की प्रबल कामना का वेग। स्वदेश प्रेम व्यंजित करनेवाला यह स्वर अवसाद और खिन्नता का स्वर था, आवेश और उत्साह का नहीं। उसमें अतीत के गौरव का स्मरण और वर्तमान Ðास का वेदनापूर्ण अनुभव ही स्पष्ट था। अभिप्राय यह कि यह प्रेम जगाया तो गया, पर कुछ नया नया सा होने के कारण उस समय काव्यभूमि पर पूर्ण रूप से प्रतिष्ठित न हो सका। + +650. द्वितीय उत्थान के भीतर हम दिखा आए हैं कि किस प्रकार काव्यक्षेत्र का विस्तार बढ़ा, बहुत से नए नए विषय लिए गए और बहुत से कवि कवित्त, सवैये लिखने से बाज आकर संस्कृत के अनेक वृत्तों में रचना करने लगे। रचनाएँ चाहे अधिकतर साधारण गद्यनिबंधों के रूप में ही हुई हों, पर प्रवृत्ति अनेक विषयों की ओर रही, इसमें संदेह नहीं। उसी द्वितीय उत्थान में स्वतंत्र वर्णन के लिए मनुष्येतर प्रकृति को कवि लोग लेने लगे पर अधिकतर उसके ऊपरी प्रभाव तक ही रहे। उसके रूप, व्यापार कैसे सुखद, सजीले और सुहावने लगते हैं, अधिकतर यही देख दिखाकर उन्होंने संतोष किया। चिर साहचर्य से उत्पन्न उनके प्रति हमारा राग व्यंजित न हुआ। उनके बीच मनुष्य जीवन को रखकर उसके प्रकृत स्वरूप पर व्यापक दृष्टि नहीं डाली गई। रहस्यमयी सत्ता के अक्षरप्रसार के भीतर व्यंजित भावों और मार्मिक तथ्यों के साक्षात्कार तथा प्रत्यक्षीकरण की ओर झुकाव न देखने में आया। इसी प्रकार विश्व के अत्यंत सूक्ष्म और अत्यंत महान् विधानों के बीच जहाँ तक हमारा ज्ञान पहुँचा है वहाँ तक हृदय को भी पहुँचाने का कुछ प्रयास होना चाहिए था, पर न हुआ। द्वितीय उत्थानकाल का अधिकांश भाग खड़ी बोली को भिन्न भिन्न प्रकार के पद्यों में ढालने में ही लगा। + +651. यह तो हुई काल के प्रभाव की बात। थोड़ा यह भी देखना चाहिए कि चली आती हुई काव्यपरंपरा की शैली से अतृप्ति या असंतोष के कारण परिवर्तन की कामना कहाँ तक जगी और उसकी अभिव्यक्ति किन किन रूपों में हुई। भक्तिकाल और रीतिकाल की चली आती हुई परंपरा के अंत में किस प्रकार भारतेंदुमंडल के प्रभाव से देशप्रेम और जातिगौरव की भावना को लेकर एक नूतन परंपरा की प्रतिष्ठा हुई, इसका उल्लेख हो चुका है। द्वितीय उत्थान में काव्य की नूतन परंपरा का अनेक विषयस्पर्शी प्रसार अवश्य हुआ पर द्विवेदीजी के प्रभाव से एक ओर उसमें भाषा की सफाई आई, दूसरी ओर उसका स्वरूप गद्यवत, रूखा, इतिवृत्तात्मक और अधिकतर बाह्यार्थ निरूपक हो गया। अत: इस तृतीय उत्थान में जो प्रतिवर्तन हुआ और पीछे 'छायावाद' कहलाया वह उसी द्वितीय उत्थान की कविता के विरुद्ध कहा जा सकता है। उसका प्रधान लक्ष्य काव्यशैली की ओर था, वस्तुविधान की ओर नहीं। अर्थभूमि या वस्तुभूमि का तो उसके भीतर बहुत संकोच हो गया। समन्वित विशाल भावनाओं को लेकर चलने की ओर ध्यान न रहा। + +652. (क) मेरे ऑंगन का एक फूल। + +653. (ख) तेरे घर के द्वार बहुत हैं किससे होकर आऊँ मैं? + +654. चातक खड़ा चोंच खोले है, सम्पुट खोले सीप खड़ी, + +655. किंतु उसी बुझते प्रकाश में डूब उठा मैं और बहा। + +656. मिला मुझे तू तत्क्षण जग में, + +657. (ख) मेरे जीवन की लघु तरणी, + +658. तप्त श्वेत बूँदों में ढर जा + +659. पं. बदरीनाथ भट्ट. + +660. बख्शीजी के भी इस ढंग के कुछ गीत सन् 1915-16 के आसपास मिलेंगे। + +661. काव्यभूमि के भीतर चले हुए मार्ग नहीं। भारतीय परंपरा का कोई कवि मणिपूर, अनाहत आदि के चक्रों को लेकर तरह तरह के रंगमहल बनाने में प्रवृत्त नहीं हुआ। + +662. कलावाद और अभिव्यंजनावाद का पहला प्रभाव यह दिखाई पड़ा कि काव्य में भावानुभूति के स्थान पर कल्पना का विधान ही प्रधान समझा जाने लगा और कल्पना अधिकतर अप्रस्तुतों की योजना करने तथा लाक्षणिक मूर्तिमत्ता और विचित्रता लाने में ही प्रवृत्त हुई। प्रकृति के नाना रूप और व्यापार इसी अप्रस्तुत योजना के काम में लाए गए। सीधे उनके मर्म की ओर हृदय प्रवृत्त न दिखाई पड़ा। पंतजी अलबत्ता प्रकृति के कमनीय रूपों की ओर कुछ रुककर हृदय रमाते पाए गए। + +663. छायावाद जहाँ तक आध्यात्मिक प्रेम लेकर चला है वहाँ तक तो रहस्यवाद के ही अंतर्गत रहा है। उसके आगे प्रतीकवाद या चित्रभाषावाद (सिंबालिज्म) नाम की काव्यशैली के रूप में गृहीत होकर भी वह अधिकतर प्रेमगान ही करता रहा है। हर्ष की बात है कि अब कई कवि उस संकीर्ण क्षेत्र से बाहर निकलकर जगत् और जीवन के और और मार्मिक पक्षों की ओर भी बढ़ते दिखाई दे रहे हैं। इसी के साथ काव्यशैली में प्रतिक्रिया के प्रदर्शन व नएपन की नुमाइश का शौक भी घट रहा है। अब अपनी शाखा की विशिष्टता को विभिन्नता की हद पर ले जाकर दिखाने की प्रवृत्ति का वेग क्रमश: कम तथा रचनाओं को सुव्यवस्थित और अर्थगर्भित रूप देने की रुचि क्रमश: अधिक होती दिखाई पड़ती है। + +664. उपर्युक्त परिवर्तनवाद और छायावाद को लेकर चलनेवाली कविताओं के साथ साथ दूसरी धाराओं की कविताएँ भी विकसित होती हुई चल रही हैं। द्विवेदीकाल में प्रवर्तित विविधा, वस्तुभूमियों पर प्रसन्न प्रवाह के साथ चलनेवाली काव्यधारा सर्वश्री मैथिलीशरण गुप्त, ठाकुर गोपालशरण सिंह, अनूप शर्मा, श्यामनारायण पांडेय, पुरोहित प्रतापनारायण, तुलसीराम शर्मा 'दिनेश' इत्यादि अनेक कवियों की वाणी के प्रसाद से विविधा प्रसंग, आख्यान और विषय लेकर निखरती तथा प्रौढ़ और प्रगल्भ होती चली आ रही है। उसकी अभिव्यंजना प्रणाली में अब अच्छी सरसता और सजीवता तथा अपेक्षित वक्रता का भी विकास होता चल रहा है। + +665. हम नहीं चाहते, और शायद कोई भी नहीं चाहेगा, कि ब्रजभाषा काव्य की धारा लुप्त हो जाए। उसे यदि इस काल में भी चलना है तो वर्तमान भावों को ग्रहण करने के साथ ही साथ भाषा का भी कुछ परिष्कार करना पड़ेगा। उसे चलती ब्रजभाषा के अधिक मेल में लाना होगा। अप्रचलित संस्कृत शब्दों को भी अब बिगड़े रूपों में रखने की आवश्यकता नहीं। 'बुद्ध चरित' काव्य में भाषा के संबंध में हमने इसी पद्ध ति का अनुसरण किया था और कोई बाधा नहीं दिखाई पड़ी थी। + +666. हिन्दूओं का मानना है कि हिंदू धम॔ विश्व के सबसे पुराने धर्मो मे से एक हे। यह धम॔ पुन॔जनम में यकीन करता हे। यह धम॔ अहिन्सा,दया, जातीय शुद्धता का संस्कार सिखाता हे। हिन्दू धर्म को सनातन, वैदिक या आर्य धर्म भी कहते हैं। हिन्दू एक अप्रभंश शब्द है। प्राचीनकाल में कोई धर्म विशेष प्रचलित नहीं था |था। एक हजार वर्ष पूर्व न तो हिंदू और न ही सनातन शब्द धर्म के नाम से प्रचलन में था। 12वीं शती ई0 सन के आसपास नागवंश की लिपि + +667. हिन्दू इतिहास की भूमिका : जब हम इतिहास की बात करते हैं तो वेदों की रचना किसी एक काल में नहीं हुई। विद्वानों ने वेदों के रचनाकाल की शुरुआत 4500 ई.पू. से मानी है। अर्थात यह धीरे-धीरे रचे गए और अंतत: काल्पनिक रूप से कृष्ण के समय (अनिश्चित) में वेद व्यास द्वारा पूरी तरह से वेद को चार भाग में विभाजित कर दिया। इस मान से लिखित रूप में आज से 6508 वर्ष पूर्व पुराने हैं वेद। यह भी तथ्‍य नहीं नकारा जा सकता कि कृष्ण के आज से 5500 वर्ष पूर्व होने के तथ्‍य ढूँढ लिए गए। + +668. जे एल पी टी नी५ काञ्जी: + +669. + +670. हिस्टेरेक्टॉमी एक शल्यक्रिया है, जिसके माध्यम से किसी महिला के गर्भाशय को निकाला जाता है। गर्भाशय महिलाओं की प्रजनन प्रणाली का एक अंग है तथा यह मनुष्य की बंद मुट्ठी के आकार का होता है। आपका गर्भाशय निकाले जाने के बाद आप संतान पैदा नहीं कर सकती, तथा इसके बाद आपको मासिक धर्म भी नहीं होगा। यदि आपके अंडाशय (ओवरी) नहीं निकाले गए हैं, तो आप मादा हार्मोन पैदा करती रहेंगी। यदि आपके अंडाशय (ओवरी) निकाले गए हैं, तो मासिक धर्म रुक जाएगा। + +671. तैयारी के लिए. + +672. • जब आप अस्पताल से लौटती हैं, उस समय आपके परिवार का कोई वयस्क सदस्य अथवा मित्र/सहेली आपको घर लेकर जाएं। आपके लिए गाड़ी चलाना अथवा अकेले जाना, सुरक्षित नहीं है। + +673. • आपके अंतः शिरा (आई वी) में दवा डाली जाएगी, जिससे आप निद्राग्रस्त तथा दर्दमुक्त रहें। + +674. • काटे गए भागों को टांकों, स्टेपल्स अथवा विशेष प्रकार की टेप, जिन्हें ‘स्टेरी-स्ट्रिप’ कहा जाता है, द्वारा बंद किया जाता हैं। + +675. • आपके श्वसन, रक्तचाप तथा नाड़ी की बार-बार जांच की जाती है। + +676. • आपका दर्द नियंत्रित करने के लिए, आपको दवाएं दी जाएंगी। यदि आपको दर्द होता है तो अपनी नर्स को बताएं। + +677. • आपकी सुरक्षा की दृष्टि से, जब आप अस्पताल छोड़ती हैं तब आपके साथ कोई वयस्क संबंधी अथवा मित्र, आपको घर ले जाने के लिए साथ होना/होनी चाहिए। घर में आपके कम से कम पहले 24 घंटों के दौरान कोई आपके साथ रहना चाहिए। + +678. • शल्य क्रिया के बाद, योनि से 2 से 4 सप्ताह तक थोड़ी मात्रा में स्राव सामान्य है। प्रत्येक कुछ घंटों बाद पैड बदलती रहें। योनि क्षेत्र को साबुन और पानी से साफ करें तथा थपकी देकर सुखा लें। + +679. • आप हल्के घरेलू कार्य जैसे बर्तन साफ करना, खाना बनाना आदि कर सकती हैं। + +680. अन्य मामले. + +681. यदि आपको निम्नलिखित में से कुछ हो तो तुरंत अपने चिकित्सक को फोन करें- + +682. • योनि से अधिक रक्तस्राव, एक घंटे में 2 से 3 पैड भर जाना + +683. • मनः स्थिति में तेजी से बदलाव अथवा नैराश्य का भाव + +684. आपात स्थिति कोई तूफान, घर में लगी आग, बाढ़ अथवा बम विस्फोट हो सकती है । स्वयं की तथा + +685. स्वयं के लिए तथा अपने परिवार के लिए एक आपातकालीन योजना तैयार करें । इस योजना के संबंध में, + +686. से प्रभावित हो सकता है अथवा संभव है कि स्थानीय फोन सेवाएँ कार्यशील न हों । परिवार के लिए मिलने + +687. • कार्यस्थल - अपने नियोजक से कार्य संबंधी नीतियों तथा आपातकालीन योजनाओं पर चर्चा करें यदि आपको कार्य पर जाना होगा तो अपने परिवार के संबंध में योजना तैयार करें । + +688. यदि कोई आपात स्थिति आती है तो संभव है कि आपको कई दिनों अथवा सप्ताहों तक भोजन अथवा पानी + +689. प्राथमिक सहायता किट. + +690. स्थानीय तथा राज्य के अधिकारियों की जनता के बचाव हेतु योजनाएँ होती हैं । शांत रहें तथा टेलीविजन, + +691. शिशु को स्तनपान कराने हेतु तैयारी: + +692. आपका शरीर प्रारंभ में जो दुग्ध निर्मित करता है, वह कोलोस्ट्रम कहलाता है। कोलोस्ट्रम ऐसे + +693. शिशुओं को अतिरिक्त जल की आवश्यकता नहीं होती। उन्हें केवल दूध की ही आवश्यकता + +694. सामान्य बात है। + +695. शिशु को स्तनपान कराने हेतु, गोदी में लेना. + +696. 'फुटबाल' तथा ‘क्रास क्रैडल’ मुद्राओं में पकड़ने से, नवजात शिशु के सिर को सर्वश्रेष्ठ तरीके से + +697. 3. अपने शिशु को अपनी बांह के नीचे लपेटकर रखें। अपनी हथेली, शिशु की पीठ के ऊपरी भाग में कंधों के बीच रखें। अपने शिशु के सिर को गर्दन पर तथा कानों के नीचे नियंत्रित रखें। + +698. 1. शिशु को अपनी गोदी में तकिए पर लिटाएं, जिससे वह आपके स्तन के सामने रहे। + +699. बहुत सी महिलाओं को प्रारंभ में यह पकड़ कठिन महसूस होती है। जैसे-जैसे आपका शिशु कुछ बड़ा होता है, तथा पालन प्राप्त करने में कुशल हो जाता है, यह पकड़ आसान होती जाती है। + +700. पकड़ने का यह तरीका भी प्रारंभ में कठिन होता है, जब तक आपको सहायता न प्राप्त हो। + +701. चिपकना (लैंचिग ऑन). + +702. • जब आपका शिशु अपना मुंह चौड़ा करके खोलता/खोलती है, जैसे जमुहाई लेते हैं, तब शिशु को अपनी ओर खींच लें। इससे आपको ऐरेओला का अधिकाधिक भाग शिशु के मुंह के भीतर ले जाने में सहायता मिलेगी। + +703. जागे। दिन में कम बार स्तनपान कराने का अर्थ है कि आपके शिशु को रात के समय, और + +704. शिशु के जन्म होने के बाद मुझे कितनी देर बाद स्तनपान कराना चाहिए? + +705. मैं अपने शिशु को कितनी देर तक स्तनपान कराऊं ? + +706. कुछ सहायक उपाय. + +707. मैं अपने शिशु को स्तन से कैसे हटाऊं? + +708. मैं यह कैसे जानूं कि मेरे शिशु को पर्याप्त आहार मिल रहा है ? + +709. पिलाने की दो अवधियों के बीच ये पुनः भर जाएंगे। आपके शिशु केः + +710. यदि आपको लगता है कि आपके शिशु को पर्याप्त आहार नहीं मिल रहा है, तो अपने शिशु के चिकित्सक, क्लीनिक अथवा दुग्धपान विशेषज्ञ से संपर्क करें। + +711. बड़ी तेजी से चल सकती हैं। इस कारण, बालों के बीच इन्हें खोजना कठिन हो जाता है। ये + +712. चिपका देती हैं। इन अंडों को आप गर्दन के पीछे तथा कानों के पीछे देख सकते हैं। ये अंडे + +713. उपचार. + +714. खरीद सकते हैं। ये विशेष कंघी अंडों (लीख) को खोजने एवं निकालने में सहायक हो सकती + +715. 1. सामान्य शैम्पू से बाल साफ करें। कंडीशनर का प्रयोग न करें। इसके कारण जुओं की दवा का प्रभाव समाप्त हो सकता है। गर्म पानी से बाल धोकर उन्हें तौलिये से सुखा लें। इस तौलिये का दुबारा प्रयोग तब तक न करें, जब तक यह धो न लिया जाए। + +716. 6. बालों को महीन कंघी से साफ करें, जिससे ये अंडे निकल आएं। बालों को इधर-उधर करके कंघी करना उपयोगी हो सकता है। सभी अंडों का हटाया जाना आवश्यक है। इसमे 2 अथवा 3 घंटे या अधिक लग सकते हैं, तथा यदि कंघी काम नहीं करती है तो आपको हाथों सं अंडे चुनने पड़ सकते हैं। + +717. यदि आपके मन में कोई प्रश्न अथवा चिंताएं हैं, तो अपने बच्चे के चिकित्सक अथवा स्थानीय स्वास्थ्य विभाग से बात करें। + +718. 1.संयुक्त राष्ट्रीय संघ के सदस्य देशों की कुल संख्या है- + +719. -5 वर्ष + +720. भारत की कला एवं संस्कृति. + +721. 3. मोहीनीअटटयम की राज्य का शास्त्रीय नृत्य हैं? + +722. - संतूर + +723. 8.भारत में टेलीविज़न की शुरुआत कब की गई? + +724. - 1982 ई. + +725. आर्थिक भुगोल. + +726. 3.कैमूर वन्य जीव अभयारण्य कहा स्थित है + +727. नर्मदा + +728. 8.भारत की सबसे लम्बी नहर है + +729. जुट + +730. 13.राजगीर अभयारण्य स्थित है + +731. झारखंड + +732. 1.इंडियन नेशनल कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष थे – + +733. सूरत 1907 + +734. 6.मुज्जफरपुर बम कांड में किस कान्तिकारी को फांसी दी गई + +735. गोपालकृष्ण गोखले + +736. 11.स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल कौन थे? + +737. विजयलक्ष्मी पंडित + +738. 16.भारतीय वायुसेना की प्रथम महिला पायलट? + +739. मीरा कुमार + +740. 21.भारत के पहले गृह मंत्री कौन थे? + +741. आर.के. षंमुखम चेट्टी + +742. 1885 ई. + +743. 4.कांग्रेस का बंटवारा + +744. दिसंबर 1916 ई. + +745. 9.जालियांवाला बाग हत्याकांड + +746. 18 मई 1920 ई. + +747. 14.चौरी-चौरा कांड + +748. अक्टूबर 1924 ई. + +749. 19.नेहरू रिपोर्ट + +750. 8 अप्रैल 1929 ई. + +751. 24.नमक सत्याग्रह + +752. 12 नवंबर 1930 ई. + +753. 29.कम्युनल अवार्ड (साम्प्रदायिक पंचाट) + +754. 17 नवंबर 1932 ई. + +755. 34.मुक्ति दिवस + +756. 8 अगस्त 1940 ई. + +757. 39.शिमला सम्मेलन + +758. 15 मार्च 1946 ई. + +759. 44.अंतरिम सरकार की स्थापना + +760. 15 अगस्त 1947 ई. + +761. एक जंगल में एक छोटा खरगोश रहता था उसका नाम निक्कू था ! + +762. काफी देर अकेला बैठा रहा अब अँधेरा बढ़ रहा था + +763. उसने देखा की उसके दोस्त रिंकू के घर दिया लग रहा था + +764. तब रिंकू घर तक छोड़ने आया और + +765. ये सर्जरी के बाद आपकी देखभाल के लिए सामान्य निर्देश हैं। आपकी जरूरतों के आधार पर, आपका डॉक्टर आपको अन्य निर्देश दे सकता है। आपके नर्स या डॉक्टर द्वारा आपको दिए गए निर्देशों का पालन करें। + +766. अगर आप अपने डॉक्टर से संपर्क नहीं कर पा रहे हैं, या अगर आपके लक्षण गंभीर हैं, तो 108 पर फोन करें। + +767. अपनी दवाइयाँ लिखने के लिए इसके बाद वाले पन्ने पर दिये हुए फार्म का उपयोग करें और उसे अपने बटुए में रखें ताकि आपको जब उसकी जरूरत हो तब वह आपके पास हो। + +768. जितनी ताकत से इसे करना चाहिए। रक्त का प्रवाह धीमा हो जाता है और आपके फेफड़ों + +769. आपकी देखभाल. + +770. हैं। हृदय कैथ , पम्प (रक्त पम्प करना) के दौरान हृदय की रक्त धमनियों को और हृदय + +771. रक्त धमनियों के संकरा होने को कारण सीने में दर्द या हृदय आघात हो सकता है। यदि + +772. रखने के लिए एक स्टेंट लगाया जा सकता है, यह एक छोटा, तार की नली नुमा उपकारण + +773. घर पर. + +774. शल्य चिकित्सा के बाद आप रिकवरी रूम में आंखें खोलेंगे। नर्स प्रायः आपकी जांच करेगी और दर्द की दवाइयां देगी। होश में आने पर जरूरत होगी तो आपको आपके कमरे में ले जाया जायेगा। + +775. देखभाल हेतु निम्नलिखित मार्गनिर्देशों का पालन करें, क्योंकि आपके नये जोड़ (जॉइंट) को ठीक होने में अगले 6 से 8 सप्ताह का समय लगेगा। अधिक गतिविधि करने अथवा स्वयं को सहन योग्य दर्द की सीमाओं से आगे ले जाने प्रयास न करें। + +776. अपने घायल अथवा कमजोर पाँवों के लिए, यहाँ लगाये गये निशान के मुताबिक उल्लिखित निर्देशों का पालन करें। + +777. ‰आंशिक भार संवहन. + +778. + +779. आपके इन में से कुछ या सभी लक्षण हो सकते हैं: + +780. + +781. • हल्के से गिऱने, चोट लगने या आकस्मिक गति जिससे पेशियां कमर की किसी हड्डी को नोच कर अलग कर देती हैं। अगर आपके साथ कोई दुर्घटना हो गयी थी या किसी और तरह से चोट लग गयी थी तो यह पता लगाने के लिए आपकी जांच की जायेगी कि कहीं आपकी दूसरी हड्डियों या अंगों में चोट तो नहीं लगी है। + +782. • खड़े होने पर परेशानी या दर्द + +783. • अपनी कमर का घाव भरने में सहूलियत के लिए पलस्तर चढ़ाने, बैसाखी या वॉकर का उपयोग करना + +784. • 38°C (101°F) से ज्यादा बुखार हो जाये। + +785. अव्यय. + +786. भू (लट्लकार मतलब वर्तमान काल) + +787. तो एक संख्या के लिये भवति (प्रथम पुरुष), भवसि (मध्यम पुरुष) और भवामि (उत्तम पुरुष) प्रयोग होगा । + +788. अहम् वदामि । (मैं बोल रहा हूँ) + +789. युवाम वदथः (तुम दोनो बताते हो ) + +790. उसी प्रकार और भी कई लकार हैं । + +791. भवतु भवताम् भवन्तु + +792. जो विद्या के लिये प्रयत्न नहीं करते, न तप करते हैं, न दान देते हैं, न ज्ञान के लिये यत्न करते हैं, न शील हैं और न ही जिनमें और कोई गुण हैं, न धर्म है (सही आचरण है), ऍसे लोग मृत्युलोक में इस धरती पर बोझ ही हैं, मनुष्य रुप में वे वास्तव में जानवर ही हैं । + +793. अस्मद् (मम): + +794. + +795. यह पुस्तक क्यों? + +796. भोपाल गैस त्रासदी में ही पीड़ित लोगों को अभी तक 2200 करोड़ रुपया मिला है जो कि काफी कम माना जा रहा है। ऐसे में 1500 करोड़ रुपये तो कुछ भी नहीं होता। एक परमाणु हादसा न जाने कितने भोपाल के बराबर होगा? इसी बिल में आगे लिखा है कि उस कंपनी के खि़लाफ कोई आपराधिक मामला भी दर्ज नहीं किया जाएगा और कोई मुकदमा नहीं चलाया जाएगा। कोई पुलिस केस भी नहीं होगा। बस 1500 करोड़ रुपये लेकर उस कंपनी को छोड़ दिया जाएगा। + +797. अभी कुछ दिन पहले ख़बर छपी थी कि रिलायंस के मुकेश अंबानी महाराष्ट्र में कोई प्राइवेट यूनिवर्सिटी शुरू करना चाहते हैं। वो महाराष्ट्र के शिक्षा मंत्री राजेश टोपे से मिले और उनकी ये इच्छा पूरी करने के लिए राजेश टोपे ने विधान सभा में प्राइवेट यूनिवर्सिटी बिल लाना मंज़ूर कर दिया। औद्योगिक घरानों की इच्छा पूरी करने के लिए हमारी विधान सभाएं तुरंत क़ानून पारित करने को राज़ी हो जाती हैं। + +798. हम अपने संगठन 'परिवर्तनज् के ज़रिये पिछले दस सालों में विभिन्न मुद्दों पर काम करते रहे। कभी राशन व्यवस्था परए कभी पानी के निजीकरण परए कभी विकास कार्यों में भ्रष्टाचार को लेकर इत्यादि। आंशिक सफलता भी मिली। लेकिन जल्द ही यह आभास होने लगा कि यह सफलता क्षणिक और भ्रामक है। किसी मुद्दे पर सफलता मिलती। जब तक हम उस क्षेत्र में उस मुद्दे पर काम कर रहे होतेए ऐसा लगता कि कुछ सुधार हुआ है। जैसे ही हम किसी दूसरे मुद्दे को पकड़तेए पिछला मुद्दा पहले से भी बुरे हाल में हो जाता। धीरे धीरे लगने लगा कि देश भर में कितने मुद्दों पर काम करेंगेए कहां कहां काम करेंगे। धीरे धीरे यह भी समझ में आने लगा कि इन सभी समस्याओं की जड़ राजनीति में है। क्योंकि इन सब मुद्दों पर पार्टियां और नेता भ्रष्ट और आपराधिक तत्वों के साथ हैं। और जनता का किसी प्रकार का कोई नियंत्रण नहीं है। मसलन राशन की व्यवस्था को ही लीजिए। राशन चोरी करने वालों को पार्टियों और नेताओं का पूरा-पूरा संरक्षण है। यदि कोई राशन वाला चोरी करता है तो हम खाद्य कर्मचारी या खाद्य आयुक्त या खाद्य मंत्री से शिकायत करते हैं। पर ये सब तो उस चोरी में सीधे रूप से शामिल हैं। उस चोरी का एक बड़ा हिस्सा इन सब तक पहुंचता है। तो उन्हीं को शिकायत करके क्या हम न्याय की उम्मीद कर सकते हैं? यदि किसी जगह मीडिया का या जनता का बहुत दबाव बनता है तो दिखावे मात्र के लिए कुछ राशन वालों की दुकानें निरस्त कर दी जाती हैं। जब जनता का दबाव कम हो जाता है तो रिश्वत खाकर फिर से वो दुकानें बहाल कर दी जाती हैं। + +799. इन्हीं सब प्रश्नों के उत्तर की खोज में हम बहुत घूमेए बहुत लोगों से मिले और कुछ पढ़ा भी। जो कुछ समझ में आयाए उसे इस पुस्तक के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। इसे पढ़ने के बाद यदि आपके मन में कोई शंका हो तो हमसे ज़रूर संपर्क कीजिए। और यदि आप हमारी बातों से सहमत हों तो अपने तनए मनए धन से इस आंदोलन में शामिल हों। समय बहुत कम है। देश की सत्ता और देश के साधन बहुत तेज़ी से देशी-विदेशी कंपनियों और विदेशी सरकारों के हाथों में जा रहे हैं। जल्द कुछ नहीं किया गया तो बहुत देर हो चुकी होगी। + +800. आपके सरकारी अस्पताल मेंए मान लीजिएए डॉक्टर ठीक से इलाज नहीं करताए दवाईयाँ नहीं देताए समय पर नहीं आता या आता ही नहीं है। कुछ कर सकते हैं आप उसका? आप उसका कुछ नहीं कर सकते। आप शिकायत करेंगे तो शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। + +801. कहा जा रहा है कि देश में 70 प्रतिशत आबादी 20 रुपया प्रति व्यक्ति प्रतिदिन से भी कम में गुज़ारा करती है। तो यदि एक परिवार में 5 लोग होते हैं तो इस परिवार का मासिक खर्च हुआ 3000 रुपया। यदि सभी किस्म के कर जोड़ लिये जायें तो बाज़ार से कुछ भी खरीदने पर औसतन 10 प्रतिशत कर तो लगता ही है। इस हिसाब से एक गरीब परिवार भी मासिक 300 रुपया और सालाना 3600 रुपया का कर देता है। यदि आपके गांव में 1000 परिवार हैं तो वे सभी मिलकर औसतन 36 लाख रुपये सालाना कर सरकार को देते हैं। तो पिछले दस वर्षों में आपके गांव ने लगभग साढ़े तीन करोड़ रुपये का कर सरकार को दिया। + +802. दूसरी तरफ दिल्ली नगर निगम में सफाई कर्मचारियों को तीन-तीन महीने से तनख्वाह नहीं मिली है। ठेकेदारों को पांच-पांच साल से भुगतान नहीं हुए हैं। लेकिन दिल्ली नगर निगम की छत के ऊपर हैलीपैड बनाया जा रहा है। ताकि नेताओं के हैलीकॉप्टर वहां उतर सकें। + +803. तो हमारी ज़रूरत कुछ और है। जैसे हो सकता है कि हमए हमारे गांव मेंए सिंचाई पर पैसा खर्च करना चाहते हैं। या हम कुछ डॉक्टर और लगाना चाहते हैं। लेकिन सारा का सारा पैसा दिल्ली में तय होकर आता है कि कितना पैसा किसके ऊपर खर्च किया जायेगा। + +804. एक और बात। ये जितनी भी सरकारी योजनाएं बनती हैंए इन सारी सरकारी योजनाओं ने लोगों को भिखारी बनाके रख दिया है। इनमें से ढेरों योजनाएं ग़रीबी उन्मूलन के नाम परए ग़रीबों के नाम पर बनती हैं। बीपीएल के नाम पर बनती हैं। इस बीपीएल की राजनीति को हमें समझना पड़ेगा। + +805. तो पहली बात तो हमें ये समझ में आई कि हमारा सरकारी कर्मचारियों पर कोई नियंत्रण नहीं है। दूसरी बात ये समझ में आई कि हमारा सरकारी फ़ंड के इस्तेमाल पर भी कोई नियंत्रण नहीं है। + +806. तो तीसरी बात ये निकलकर आती है कि हमारे देश के क़ानूनों के बनने परए हमारे देश की संसद परए हमारे देश की विधान सभाओं पर जनता का किसी तरह का कोई नियंत्रण नहीं है। + +807. (ख) कुछ का कहना है कि हमें ज़मीन के बेहतर दाम चाहिए। जिन दामों पर किसानों से ज़मीनें छीनी जाती हैंए वे बहुत कम हैं। लगभग हर आंदोलन में लोगों का दाम को लेकर सरकार से झगड़ा चल रहा है। बिना लोगों से सलाह मशविरा किएए लोगों से ज़मीन छीन ली जाती है और दाम भी तय कर दिये जाते हैं। ऊपर से यह पैसा भी लोगों को कई कई दशकों तक नहीं मिलता। + +808. स्पेशल इकॉनॉमिक ज़ोन (सेज़) के नाम पर इस देश में न जाने कितने लोगों की ज़मीनें छीनी गईं। क्या आपको पता है कि केंद्र सरकार में एक घंटे की मीटिंग में सेज़ के 30-30 प्रोजेक्ट पास किये जाते थे? एक सेज़ प्रोजेक्ट इतना बड़ा होता है। उसे आप मात्र दो मिनट की चर्चा में कैसे पास कर सकते हो? तो पास करना तो महज़ दिखावा था। पास करने के नाम पर पैसे खाते हैं। जिस जिस कंपनी की रिश्वत का पैसा आ गयाए उसका प्रोजेक्ट दो मिनट में पास। जिनकी रिश्वत नहीं आईए उनका प्रोजेक्ट लटका दिया जाता है। + +809. ज़ाहिर है कि देश के ख़निजए केंद्र और राज्यों की सरकारों में बैठे नेताओं और अफ़सरों के हाथों में बिल्कुल सुरक्षित नहीं है। ये पार्टियांए ये नेता पूरे देश को उठाकर बेच डालेंगे। + +810. रिहा होने के बाद अगले कुछ वर्षों में मरकम को कम से कम 20 बार कोर्ट जाना पड़ा। कोर्ट उसके गांव से लगभग 30 किमी दूर है। हर कोर्ट की पेशी ने उसकी और कमर तोड़ दी। अंततः सभी खर्चे और जुर्माना चुकाने के लिए उसे अपने बैल बेचने पड़े। + +811. (क) हर वर्ष सरकार वनों से तेंदू पत्ते निकालने के लिए ठेके देती है। एक ठेकेदार को 1500 से 5000 तक बोरे निकालने का ठेका मिलता है। ठेका तो इतने का मिलता है पर वन विभाग के अधिकारियों को रिश्वत देकर असली में वो कितना निकालता हैए ये किसी को नहीं पता चलता। एक छोटे से छोटा ठेकेदार भी साल में 15 लाख से ज़्यादा कमा लेता है। पर वो आदिवासियों को जंगल से तेंदू पत्ता निकालने का 30 पैसा प्रति बंडल से भी कम देता थाए जो बाद में नक्सलियों के दबाव में एक रुपया प्रति बंडल किया गया। + +812. देश की लगभग सभी नदियों पर बांध बनाए जा रहें है। गंगा पर इतने बांध बनाए जा रहें है कि बताते हैं कि गंगा का अस्तित्व ही नहीं बचेगा। गंगा महज़ बांधों के बीच में बहने वाली एक धारा मात्र रह जाएगी। हम सहमत हैं देश को बिजली की ज़रूरत है। पर क्या हम इस बात को नकार सकते हैं कि देश को नदियों की भी ज़रूरत है? कई देशों में राष्ट्रीय नदियों को अपनी अविरल धारा में बहते रहने के लिए क़ानूनी संरक्षण है। हमारे देश में ऐसा नहीं है। पिछले कुछ सालों में जिस तेज़ी से हर नदी पर बांध बनाने के ठेके कंपनियों को दिए गए हैंए उससे लगता है कि सरकार में बैठे नेताओं और अफ़सरों को बिजली उत्पादन की कम और ठेकों में मिलने वाली रिश्वत कमाने की ज़्यादा तत्परता है। इस रफ़्तार से कुछ ही वर्षों में सभी नदियां गंदे नालों में बदल जाएंगी। + +813. क्या इसी को हम जनतंत्र कहेगें कि पांच साल में एक बार वोट डालो और उसके बाद अपनी ज़िंदगी इन नेताओं और अफ़सरों के हाथ में गिरवी रख दो। + +814. इस देश में सदियों से जनता निर्णय लेती आयी है। ये बड़े दुर्भाग्य की बात है कि हम अपने देश की संस्कृति भूल गये। भारत ने जनतंत्र कहां से सीखा? बहुत लोगों का मानना है कि हमने जनतंत्र अमरीका से सीखा। कोई कहता कि हमने जनतंत्र इंग्लैंड से सीखा। सच बात ये है कि जनतंत्र भारत में बुद्ध के ज़माने से चला आ रहा है। बुद्ध के ज़माने का जनतंत्र आज के जनतंत्र से कहीं ज़्यादा सशक्त था। वैशाली दुनिया का सबसे पहला गणतंत्र था। उन दिनों में राजा का बेटा राजा तो बनता थाए राजा के चुनाव नहीं होते थेए लेकिन राजा की चलती नहीं थी। सारे निर्णय पूरे गांव की ग्राम सभा में लिए जाते थे। जो ग्राम सभा कहती थीए जो गांव के लोग कहते थेए राजा को वही निर्णय मानने पड़ते थे। आज हम पांच साल में अपने राजा को चुनते तो हैं लेकिन हमारी उस राजा पर चलती नहीं हैं। उन दिनों में राजा को चुनते तो नहीं थे लेकिन राजा पर जनता की चलती थी। + +815. तो पहले ऐसी व्यवस्था थी कि सीधे सीधे जनता निर्णय लेती थी और राजा उसका पालन करते थे। इस किस्म की बात हमारे देश में 1860 तक चलती रही। गांव की व्यवस्था पर सीधे सीधे गांव के लोगों का नियंत्रण था। हमारे गांव की सिंचाई व्यवस्था कैसी होगीए गांव के लोग तय करते थे। हमारे गांव की शिक्षा व्यवस्था कैसी होगीए स्कूल कैसे चलेंगेए गांव के लोग तय करते थे। स्वास्थ्य व्यवस्था कैसी होगीए गांव के लोग तय करते थे। हमारे देश पर कई लोगों ने आक्रमण कियाए लेकिन उन्होंने केवल केन्द्र सरकार पर कब्ज़ा किया। उन्होंने गांव की व्यवस्था को नहीं छेड़ा। केन्द्र सरकार में बैठकर वो केवल गांव से वसूलने वाला टैक्स कम या ज़्यादा करते रहते थे। लेकिन गांव की व्यवस्था को उन्होने नहीं छेड़ा। + +816. स्वशासन की प्रभावी संस्था होने के बजाय दुर्भाग्यवश पंचायतें केन्द्र एवं राज्य सरकारों की विभिन्न योजनाओं एवं निर्देशों को लागू करने की एजेंसी बन कर रह गयी हैं। अधिकतर योजनाएं दिल्ली या प्रांतीय राजधानियों में बनायी जाती हैं। पंचायतों को केवल उन्हें लागू करने का निर्देश दिया जाता है। ग्राम सभाओं यानी पूरे गांव की खुली बैठक का आयोजन कभी-कभार ही होता हैए क्योंकि उन्हें बुलाने में किसी की रुचि नहीं होती है। जब कभी ग्राम सभाओं की बैठक बुलायी जाती हैए तब भी लोग इनमें भाग लेने के लिए बामुश्किल ही आते हैंए क्योंकि ग्राम सभाओं में रखी गयी उनकी मांगों पर शायद ही कभी कोई कार्रवाई होती है। + +817. (घ) सरपंच के भ्रष्टए निकम्मे या गै़र ज़िम्मेदाराना व्यवहार के ख़िलाफ कार्रवाई करने का अधिकार कलक्टर को दिया गया है। कलक्टर किसी भी सरपंच के ख़िलाफ कभी भी कोई भी कार्रवाई शुरू कर सकता है। उन्हें निलंबित कर सकता है। इसीलिए अधिकतर सरपंच कलक्टर और बीण्डीण्ओण् से डरे रहते हैं। किसी भी ज़िले में कलक्टर एक तरह से राज्य सरकार के नुमाइंदे के रूप में काम करता है। जैसे राज्य सरकार में गवर्नर केन्द्र सरकार का नुमाइंदा होता हैए वैसे ही ज़िले में कलक्टर राज्य सरकार का नुमाइंदा होता है। सौभाग्य से गवर्नर के पास राज्य सरकार में हस्तक्षेप करने के बहुत कम अधिकार हैंए पर दुर्भाग्यवश कलक्टर के पास किसी भी पंचायत में हस्तक्षेप करने के असीम अधिकार हैं। राज्य सरकारें कलक्टर के ज़रिये पंचायतों में मनमाने ढंग से हस्तक्षेप कर रही हैं। आइये देखते हैं मौजूदा पंचायती राज व्यवस्था की विसंगतियों के कुछ उदाहरण। + +818. कुटुम्बाकम में शहर का कूड़ा. + +819. आज सारा का सारा पैसा ऊपर से नीचे चलता है। वो पैसा नीचे पहुंचने ही नहीं दिया जाता। हर अधिकारी उस पैसे को अपने स्तर पर ही खर्च करने पर तुला हुआ है। जैसेए नरेगा के क़ानून के मुताबिकए 4 प्रतिशत पैसा कंटिनजैंसी का होता है। मतलब कि इस पैसे से नरेगा के प्रोजैक्ट के ऊपर काम करने वाली महिलाओं के बच्चों के लिए सुविधा केन्द्र बनाया जायए वहां पर मज़दूरों की पानी की व्यवस्था की जायए उनके लिए सुविधाओं की व्यवस्था की जाए। तो इन सब चीजों के लिए और प्रशासनिक खर्चों के लिए या वहां के मज़दूरों के भले के लिए 4 प्रतिशत कंटिनजैंसी का पैसा दिया जाता है। + +820. उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार ने एक ठेकेदार को पूरे राज्य के सारे गांवों को सफाई का सामान मुहैया कराने को कह दिया। ठेलीए फावड़ाए नाली साफ करने का तसला इत्यादि। और उस ठेकेदार को कह दिया कि हर सरपंच को ये दे आओ। अब वो ठेकेदार जा रहा है और हर सरपंच के घर के बाहर वो सामान फेंक देता है। बी डी ओ के यहां से सरपंच को फोन चला जाता है कि इसका भुगतान करा दीजिए। सरपंचों को भुगतान कराना पड़ता हैए नहीं तो उनके ख़िलाफ कोई झूठी कार्रवाई शुरू कर दी जाएगी। + +821. बैकवर्ड रीजन ग्रांट फ़ंड’ का किस्सा. + +822. सिरसा ज़िले के कुछ लड़कों ने 18 गांवों में प्रयास करके असली में ग्राम सभाएं कराईं और प्रस्ताव बना कर ऊपर भेजे। इस योजना में लिखा है कि ग्राम सभाएं प्रस्ताव बनाएंगी और कलक्टर को भेजेगी। कलक्टर उन योजनाओं को मंज़ूर करके फ़ंड आबंटन करेगा। इसके बावजूद सिरसा ज़िले के कलक्टर ने एक साल से ज़्यादा बीत जाने के बाद भी आज तक इन 18 गांवों की ग्राम सभाओं द्वारा पारित किए गए प्रस्तावों को मंज़ूर ही नहीं किया है। + +823. अमरीका - वॉलमार्ट हार गया. + +824. ब्राज़ील का उदाहरण लेते हैं। ब्राज़ील का एक शहर है पोर्तो एलेग्रे। उस शहर की 30-40 प्रतिशत आबादी झुग्गियों में रहती है। 1990 में पोर्तो एलेग्रे में वर्कस पार्टी की सरकार आयी। उन दिनों झुग्गी बस्तियों में न सड़कें थींए न पीने का पानी थाए न सीवर कनेक्शन थेए और काफ़ी लोग अनपढ़ थे। उस पार्टी ने आकर निर्णय लिया कि अब पोर्तो एलेग्रे का बजट नगर निगम के हॉल में नहीं बनेगाए कांउसिल में नहीं बनेगा - ये गलीए मोहल्लों में बनेगा। उन्होंने पूरे पोर्तो एलेग्रे को छोटे छोटे मोहल्लों में बांट दिया। अब हर साल के शुरू में लोग अपने अपने मोहल्लों में मिलते हैं और हर आदमी अपनी मांग लेकर आता है। कोई कहता है हमारी सड़क खराब है सड़क बनवा दीजिएए कोई कहता है पीने का पानी नहीं है पाइप लाइन लगवा दीजिएए कोई कहता है टंकी लगवा दीजिएए कोई कहता है सीवर ठीक करवा दीजिएए कोई कहता है अध्यापकों की और नियुक्ति होनी चाहिए। हर आदमी अपनी अपनी मांग रखता है। पूरे शहर के लोगों की मांगों को इकट्ठा कर लिया जाता है और वो बजट बन जाता है। और बजट क्या होता है? बजट कोई बंद हॉल में या असेंबली में बैठ कर क्यों बने? बजट तो गली गली मोहल्ले मोहल्ले में बनना चाहिए। बजट बनाने का मतलब ही है कि सरकारी पैसा लोगों की ज़रूरत के हिसाब से कैसे इस्तेमाल किया जाये। + +825. तो हमने देखा कि कुछ अन्य देशों में किस तरह से जनता का व्यवस्था के ऊपर सीधा नियंत्रण है। लेकिन हमारे देश में हम लोग गिड़गिड़ाते रहते हैं और हमारा व्यवस्था के ऊपर किसी तरह का कोई नियंत्रण नहीं है। + +826. सरकारी कर्मचारियों पर नियंत्रण हो. + +827. सूचना अधिकार से पता चला है कि झारखंड के दसवीं कक्षा तक के अनेकों स्कूलों में एक भी अध्यापक नहीं है। जैसे वमनी उच्च विद्यालय केनुगाए सरायकेलाए खरसावा में 310 बच्चें हैं पर एक भी अध्यापक नहीं है। सिरूम के विद्यालय में 435 बच्चों की दस कक्षाओं में केवल एक बंगला टीचर है। यह राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वो अध्यापकों की नियुक्ति करे। लोगों ने राज्य सरकार को कई बार लिखा पर कोई जवाब नहीं आया। तो क्या हमारे बच्चे राज्य सरकार की दया दृष्टि का इंतज़ार करते रहें? क्या हमारे लाखों करोड़ों बच्चों की ज़िंदगी के साथ खिलवाड़ नहीं हो रहा? + +828. तो ब्लॉक व ज़िला सतर के अधिकारियों को सीधे आदेश देनेए तलब करने और अगर वो आदेश न मानें तो उन्हें दंडित करने का अधिकार ग्राम सभाओं को हो। ब्लॉक व ज़िला स्तर के कर्मचारियों की नियुक्ति व बर्खास्तगी में भी ब्लॉक पंचायत व ज़िला पंचायत के माध्यम से ग्राम सभाएं हस्तक्षेप कर सकेंगी। + +829. उसी तरह से गांव की जनता ही तय करेगी कि हमारे गांव में किसे बीण् पीण् एलण् माना जायेगा। उसका पैमाना क्या होगा? हांगकांग में जिस व्यक्ति के पास एंयरकंडीशनर नहीं होताए उसको बीपीएल माना जाता है। दिल्ली में एक रिक्शा वाला भी 5000 रुपये महीने से ज़्यादा कमाता है। लेकिन इतना कमाने के बावजूद भी दो जून की रोटी ठीक से नहीं खा पाता। झुग्गी में कीड़े मकोड़ों की तरह रहता है। पर 5000 रुपये महीना गांव के किसी परिवार के लिए बहुत होता है। + +830. तीसरी चीजए जब फसल निकलती है तो कई बार किसानों के पास फसल रखने के लिए जगह नहीं होती है। फसल निकलने वाली होती है और बारिश आ जाती है और सारी फसल बर्बाद हो जाती है। अगर गांव के लोग फसलों के रखने के लिए गोदाम बनाना चाहें तो वो ग्राम सभा के मुक्त फ़ंड से बना सकेंगे। + +831. क्या ग्राम सभाओं को ताकत देने से भ्रष्टाचार बढ़ेगा? + +832. हमारे देश के संविधान के मुताबिक विधायक और सांसद ब्लॉक स्तर और ज़िला स्तर की पंचायतों के पदेन सदस्य होते हैं। लेकिन संविधान या क़ानून में यहाँ उनको कोई ज़िम्मेदारी नहीं दी गयी है। हमारे हिसाब से उनकी ये ड्यूटी होनी चाहिए कि अगर हमारी संसद में या हमारी विधान सभा में कोई भी क़ानून प्रस्तुत किया जाता हैए तो वो उस क़ानून की एक प्रति लेकर ब्लॉक स्तर पर और ज़िला स्तर पर आयेंगे। और उस क्षेत्र की सारी ग्राम सभाओं में उस क़ानून की प्रतियां बांटी जाएंगी और वहां की ग्राम सभाओं से वो पूछेंगे कि 'आपको इस क़ानून के बारे में क्या कहना हैघ्ज् जनता उसके बारे में चर्चा करेगी। और जो विचार सभी ग्राम सभाएं मिलकर प्रस्तुत करेंगीए वही बात उस सांसद या विधायक को संसद या विधान सभा में रखनी पड़ेगी। उसे कहना पड़ेगा कि ये मेरे क्षेत्र के लोगों की राय हैए वही राय उसे वहां रखनी होगी। + +833. जल, जंगल, ज़मीन, ख़निज और अन्य प्राकृतिक संसाधन - इनके ऊपर सीधे-सीधे नियंत्रण जनता का होना चाहिए। + +834. तो सीधे-सीधे गांव की ज़मीन पर ग्राम सभाओं का नियंत्रण होना चाहिए। + +835. गांव की सीमा में पड़ने वाले सभी जल स्त्रेतों पर वहां की ग्राम सभा की मिल्कियत हो। जल के बड़े स्त्रेत जैसे नदी आदि के बारे में निर्णय उससे प्रभावित सभी ग्राम सभाओं की मंज़ूरी के बिना न लिये जायें। + +836. स्वराज की व्यवस्था में निर्णय कैसे लिये जायेंगे? + +837. जिस दिन इस देश के सारे गांवों में ग्राम सभाएं होने लग गयीं तो इससे देश की संसद पर भी सीधे-सीधे ग्राम सभाओं का नियंत्रण होगा। तो एक तरह से इस देश की राजनीति के ऊपर सीधे-सीधे लोगों का नियंत्रण होगा। इस देश की राजनीति के ऊपर भ्रष्ट पार्टियों काए भ्रष्ट नेताओं काए अपराधियों का जो आज पूरी तरह से नियंत्रण बन गया हैए वो कमज़ोर होगा। और सीधे-सीधे इस देश की राजनीति के ऊपरए इस देश की सत्ता के ऊपर लोगों का नियंत्रण बनेगा। ताकि विकास हो सकेए ग़रीबी दूर हो सकेए बेरोज़गारी दूर हो सके। + +838. प्राचीन भारत में जनता शासकीय निर्णय लेती थी। आधुनिक समय में भी ऐसा ही कई देशों में हो रहा हैए ये बातें अधिकतर लोग जानते हैं। क्या वर्तमान समय में भारत में भी इसके कोई उदाहरण हैंए इस बारे में लोगों की जानकारी बहुत कम है। सबको लगता है कि यह सब अपने देश में संभव नहीं। लेकिन यह धारणा गलत है। देश के विभिन्न इलाकों में स्थानीय नेतृत्व के प्रयास से प्रत्यक्ष लोकतंत्र के कई सफल प्रयोग हुए हैं। इन प्रयोगों से स्थानीय शासन में कैसे गुणात्मक सुधार आयाए आइए उसकी कुछ बानगी देखते हैंरू + +839. इसके नतीजे चमत्कारिक हुए। 1989 में उस गांव में प्रति व्यक्ति औसत सालाना आय 840 रुपये थी। आज प्रति व्यक्ति सालाना आय 28000 रुपये है। 28000 रुपये का मतलब है कि अगर किसी परिवार में पांच लोग हों तो उस परिवार की सालाना आय लगभग डेढ़ लाख रुपये हो गई। बहुत होती है इतनी आय गांव के लोगों के लिए। + +840. पोपट राव बताते हैं कि जब उन्होने ग्राम सभाएं शुरू की तो उस गांव में इतनी गुटबाजी थी कि लोग ग्राम सभा में आते ही नहीं थे। गुट थेए बहुत ज़्यादा लड़ाई झगड़े थे। लेकिन एक साल में धीरे धीरे लोगों ने देखा कि सरपंच तो हमारे भले का काम कर रहा है। हमारे बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल खोला है। तो लोगों ने ग्राम सभा में आना चालू किया। + +841. तो अच्छा सरपंच वो हुआ जो लोगों के साथ मिलकर ग्राम सभाओं में निर्णय ले। सारे निर्णय जनता ले और वो उन निर्णयों का केवल पालन करे। ऐसा सरपंच ही अच्छा सरपंच है। + +842. उत्तरी केरल के एक गांव का उदाहरण. + +843. हम छिंदवाड़ा ज़िले के अमरवाड़ा ब्लॉक के कुछ गांवों में गये। उन गांवों में पहले स्कूल में अध्यापक नहीं आया करते थे। वो आखिरी दिन आते थे और अपनी तनख्वाह लेकर चले जाते थे। जब ये क़ानून आया तो उस गांव के लोगों नेए पूरी ग्राम सभा में बैठकर उन अध्यापकों की तनख्वाह रोक ली। दो महीने तक तनख्वाह रोकीए और तीसरे महीने से उन सब अध्यापकों ने आना चालू कर दिया। कितना सीधा सा समाधान है। अगर आप सीधे-सीधे जनता को सत्ता देते हैं तो लोग अपना विकास खुद कर लेंगे। + +844. जब जनता निर्णय लेगी. + +845. उसी तरह सरकारी स्कूलों में अध्यापकों की कमी है। एक अध्यापक 200-300 बच्चों को पढ़ा रहा है। 3-4 कक्षाओं के बच्चों को एक साथ एक ही अध्यापक पढ़ाता है। ऐसे पढ़ाई नहीं हो सकती। पढ़ाई के नाम पर तमाशा हो रहा है। अगर सीधे-सीधे लोगों को ताकत दी जाएगी तो ग्राम सभाओं में बैठकर लोग आपस में निर्णय लेंगे कि हमारे यहां अध्यापकों की इतनी कमी है। इतने और अध्यापकों की ज़रूरत है। फिर उन्हें राज्य सरकारों को लिखने की ज़रूरत नहीं है कि इतने और पद बनाओए इतनी रिक्तियां करोए इस पर भर्ती करो। वो अपनी ग्राम सभा में बैठेंगेए कितने और अध्यापकों की ज़रूरत है ये तय करेंगेए और खुद ही भर्ती करेंगे। + +846. ग्राम सभाओं को ताकत देने से नक्सलवाद पर बहुत बड़ा असर पडेगा। इसे एक उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं। छत्तीसगढ़ में लोहांडीगुड़ा में टाटा एक स्टील प्लांट लगाना चाहता था। उसे 10 गांवों की ज़मीन की ज़रूरत थी। ये 10 गांव अनुसूचित क्षेत्र हैं। यहां पर पेसा क़ानून लागू होता है। पेसा क़ानून कहता है कि अगर सरकार वहां की ज़मीन अधिग्रहण करना चाहती है तो उसे वहां की ग्राम सभाओं से विचार विमर्श करना पड़ेगा। सरकार ने यहां की ग्राम सभाओं को लिखा। ग्राम सभाएं हुईं। लोगों ने ज़मीन देने से मना कर दिया। सरकार ने दोबारा इनसे निवेदन किया। दोबारा ग्राम सभाएं हुईं। और उसमें उन्होंने सरकार के सामने 15 शर्तें रखीं और कहा कि अगर आप हमारी ये 15 शर्तें मान लें तो हम ज़मीन देने के लिए तैयार हैं। वो शर्तें बहुत वाज़िब थीं। जैसे उनमें एक शर्त थी कि हमें इतना मुआवज़ा चाहिएए एक शर्त थी कि इतने पेड़ कटेंगे तो इतने पेड़ लगने चाहिए। हर घर से एक व्यक्ति को रोज़गार मिलना चाहिए इत्यादि। सारी वाज़िब मांगें थी। सरकार के पास ये मांगे गयी तो सरकार ने ये मांगें नहीं मानी और ज़ोर ज़बरदस्ती से पुलिस भेज कर ज़मीनें अधिग्रहण कर लीं। इसके बाद इन गांवों के लोगों ने वहां की दीवारों पर लिख दिया ‘नक्सली आओए हमें बचाओ’। सुनने में आया कि बाद में ये दसों गांव जाकर नक्सलियों के साथ मिल गये। + +847. अगर सीधे लोगों को ताकत दी जाती है तो इसका सबसे बड़ा असर बेरोज़गारी और ग़रीबी पर पड़ेगा। जैसा कि पहले भी हम इस पुस्तक में लिख चुके हैं कि अगर गांव में मुक्त फ़ंड आएगा तो लोग ग्राम सभा में बैठकर ये तय करेगें कि अपने गांव में सबसे ग़रीब कौन हैं? उनकी हमें मदद करनी है। इन्हें राशन देना है। ये भूखे हैं। किसी को भूखे नहीं रहने देना है। हर व्यक्ति के सर पर छत होनी चाहिए। हर बच्चा स्कूल जाये। + +848. निर्मूल आशंकाएं और भ्रांतियाँ. + +849. तो ऐसी नई व्यवस्था में दलितों को लड़ने के लिए तीन और नये मौके मिलेंगे। दलितों की व्यवस्था में तुरंत सुधार होगाण्ऐसा नहीं है। हमारा प्रश्न है कि आज जब सारी की सारी राजनैतिक सत्ता सरपंच के अंदर केंद्रित हैए ऐसी व्यवस्था में राजनैतिक सत्ता के दुरुपयोग के ज़्यादा अवसर हैं या तब जब कि ये सारी सत्ता सरपंच से छीनकर ग्राम सभा को दे दी जायए उसमें ज़्यादा शोषण के आसार हैं? हमें लगता है कि ग्राम सभा में शोषण होने के अवसर कम होंगे। जब सारी सत्ता सरपंच के अंदर निहित हैए तब शोषण के ज़्यादा अवसर हैं। + +850. ग्राम सभाओं को ताकत देने से सामाजिक कुरीतियां बढेंगी या घटेंगी? + +851. कई लोगों का ये मानना है कि गांव के लोग निर्णय नहीं ले सकतेए गांव के लोग अनपढ़ होते हैं। अगर ग्राम सभा होगी तो ग्राम सभा में लोग लड़ेंगे। कुछ लोग तर्क देते हैं कि जब सरपंच चुना जाता है तो सरपंच को मान लीजिए 60 प्रतिशत वोट मिले। तो 40 प्रतिशत लोग तो उसके ख़िलाफ हुए। इन लोगों का कहना है कि ऐसे विरोधी लोग ग्राम सभाएं नहीं होने देंगे। दुनिया भर के अभी तक के अनुभव यही बताते हैं कि यह डर बेबुनियाद है। + +852. ‘पेसा’ क़ानून का क्या हुआ? + +853. अच्छे लोगों के सत्ता में आने से सुधार होगा? + +854. सांसद और विधायक का काम है कि वो संसद और विधान सभा में अच्छे क़ानून बनायें। लेकिन दुर्भाग्यवश इसमें भी उनके हाथ बंधे हुए हैं क्योंकि जब भी कोई क़ानून विधान सभा या संसद में प्रस्तुत किया जाता है तो हर पार्टी अपने-अपने सारे सांसदों को या अपने सारे विधायकों को निर्देश जारी करती है कि इस क़ानून के पक्ष में वोट देना है कि विपक्ष में। और सांसद या विधायक को अपनी पार्टी की बात माननी पड़ती है। सांसद या विधायक की इतनी भी नहीं चलती कि वो अपनी मर्ज़ी से किसी क़ानून के पक्ष या विपक्ष में वोट डाल सकें। + +855. आज व्यवस्था इतनी दूषित हो गई है कि अच्छा अधिकारी या अच्छा मंत्री भी कुछ नहीं कर पाता। उसके ऊपरए नीचे और साथ में काम करने वाले लोग उसे काम नहीं करने देते। अक्सर कई बहुत अच्छे और ईमानदार अफ़सरों को कहते सुना है - 'भई हम आपकी बात से पूरी तरह से सहमत हैं। आपका मुद्दा बिल्कुल ठीक है। लेकिन हमारे ऊपर इतना दबाव है कि हम आपकी कुछ मदद नहीं कर पायेंगे।ज् + +856. कुछ लोगों का मानना है कि हमें व्यक्ति निर्माण पर ज़्यादा ज़ोर देना चाहिए। अगर लोग सुधर गये तोए व्यवस्था अपने आप सुधर जाएगी। + +857. अभी हम देखते हैं कि अधिकतर नेताए अफ़सर और व्यवसायी चोरी करते हैं। इनमें अधिकतर मजबूरी में ग़लत काम करते हैं। यदि उन्हें सही व्यवस्था दी जाये तो क्या इनमें से कई लोग ठीक नहीं हो जायेंगे? तो व्यक्ति निर्माण और व्यवस्था निर्माण दोनों कार्य ही अत्याधिक आवश्यक हैं। + +858. जब सरपंच कुछ ग़लत काम करता हैए या भ्रष्टाचार करता है तो उसे सही करने का अधिकार क़ानून में लोगों को नहीं दिया गया है। ज़िलाधिकारी को उसके ख़िलाफ कार्रवाई करने का अधिकार है। एक ज़िलाधिकारी के नीचे 1000 से भी अधिक पंचायतें होती हैं। ज़िलाधिकारी गांवों से बहुत दूर ज़िला मुख्यालय में बैठता हैए भला उसके लिए यह जानना कैसे संभव है कि कोई सरपंच अच्छा है या बुरा। जब लोग सरपंच के ख़िलाफ ज़िलाधिकारी से शिकायत करते हैंए तो अधिकतर मामलों में तो उनकी शिकायत पर कोई कार्रवाई ही नहीं की जातीए क्योंकि ज़िलाधिकारी के पास समय ही नहीं होता। यदि सरपंच सत्ताधारी पार्टी का होए या किसी स्थानीय विधायकए सांसद या अन्य किसी राजनीतिज्ञ से उसकी मित्रता हो तो प्रायः ज़िलाधिकारी दबाव में आकर वैसे ही कोई जांच नहीं करते। और इस प्रकार दोषी सरपंचों के ख़िलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती। + +859. (ग) जब तक ग्राम सभा की ओर से विशेष रूप से आग्रह न किया जाए तब तक ज़िलाधिकारी या अन्य किसी अधिकारी को सरपंच के ख़िलाफ किसी प्रकार की कोई कार्रवाई करने का अधिकार नहीं होना चाहिए। + +860. समस्या : आज इस बात को ले कर घोर भ्रम की स्थिति है कि कौन से कार्यए संसाधन और संस्थान किसके अधिकार क्षेत्र में आते हैं? + +861. (ख) सभी स्तरों पर पंचायतों को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आवश्यक संख्या में नए कर्मचारियों की भर्ती करने का भी अधिकार होना चाहिए। इन कर्मचारियों को राज्य सरकार का कर्मचारी नहीं माना जाना चाहिए। वे पंचायत के कर्मचारी हों। + +862. समस्या : केन्द्र एवं राज्य सरकारें प्रायः ऐसी हवाई योजनाएं बनाकर जनता पर थोप देती हैं जिनका जनता की प्राथमिकताओं से कोई लेना-देना नहीं होता। किस तरह से ये योजनाएं भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रही हैंए जनता की ज़रूरतों से परे हैं और जनता में भिखमंगन की आदत डाल रही हैं - इस पर विस्तृत रूप से इस पुस्तक में पहले ही चर्चा की जा चुकी है। + +863. ब्लॉक एवं ज़िला पंचायतों पर नियंत्रण. + +864. (ग) सरपंच केवल ग्राम सभा और ब्लॉक पंचायत के बीच पुल का काम करेगा। ब्लॉक पंचायत में कोई वायदा करने से पहले सरपंच को अपनी ग्राम सभा से परामर्श करना पड़ेगा और मंज़ूरी लेनी होगी। इसी प्रकार एक ब्लॉक अध्यक्ष को ज़िला स्तरीय पंचायत में कोई वायदा करने से पहले अपनी ब्लॉक पंचायत से परामर्श करके मंज़ूरी लेनी होगी। ग्राम सभा चाहे तो सरपंच को एक हद तक मंज़ूरी न लेने की छूट दे सकती है। लेकिन यह छूट बड़ी सीमित होगी। + +865. यदि पांच प्रतिशत से अधिक ग्राम सभाएं किसी क़ानून या नीति को बनाने का प्रस्ताव दें तो राज्य सरकार उस प्रस्ताव की एक प्रति शेष सभी ग्राम सभाओं को भेजे। यदि 50 प्रतिशत से अधिक ग्राम सभाएं उस प्रस्ताव को पारित कर दें तब राज्य सरकार को वह क़ानून बनाना पड़ेगा या उस नीति को लागू करना पड़ेगा। इसी प्रकार ग्राम सभाओं को यह अधिकार होना चाहिए कि वे किसी क़ानून को पूर्णतः या आंशिक रूप से रद्द करवा सकें। या किसी सरकारी नीति अथवा परियोजना को संशोधित या निरस्त करवा सकें। + +866. समस्या : राज्य सरकार द्वारा लिये जाने वाले ऐसे कई फैसलों की जनता को कोई जानकारी नहीं हो पाती जिनका उनके जीवन पर सीधा असर होता है। + +867. पंचायतों में भ्रष्टाचार का मामला. + +868. (क) जब तक ग्राम सभा संतुष्टि प्रमाण-पत्र न देए तब तक गांव में किसी सरकारी काम का भुगतान नहीं किया जाना चाहिए। यदि ग्राम सभा को लगे कि काम संतोषजनक नहीं हैए तो वह भुगतान रोकने के साथ साथए जांच करके घटिया काम के कारणों की पड़ताल भी कर सके। दोषियों को चिन्ह्ति करके उन सभी कमियों को दूर करने के आदेश भी दे सके। यदि दोषी कर्मचारी पंचायत के किसी स्तर से संबंधित हैं तो ग्राम सभा के पास उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का भी अधिकार होना चाहिए। + +869. उद्योग एवं खनन के लिए लाइसेंस. + +870. इसके अलावा जब भूमि अधिग्रहित की जाती है तो ज़मीन वालों को तो मुआवज़ा मिल जाता है। लेकिन उन भूमिहीनों कोए जो उस ज़मीन पर मज़दूरी करते थेए उन्हें कुछ नहीं मिलता। वो बिल्कुल बेरोज़गार हो जाते हैं। + +871. (ग) पंचायतें अपने अपने गांवों में इन कागज़ों के आधार पर जनजागरण अभियान चलाएं। यदि कोई गांव का व्यक्ति इन कागज़ों की फोटो कॉपी लेना चाहेए तो उसे फोटो कॉपी शुल्क लेकर यह उपलब्ध करायी जाये। + +872. (ज) ग्राम सभा का यह निर्णय अंतिम होगा। इसे कोई सरकार न तो रद्द कर सकेगी और न ही उसमें किसी प्रकार का बदलाव कर सकेगी। + +873. सुझाव : भूमि से संबंधित सभी दस्तावेजों की देख-रेख व उन पर कार्य ग्राम सभा की देख रेख में पंचायत कार्यालय द्वारा किये जाने चाहिए। हर महीनेए होने वाले हस्तांतरण की सूची ग्राम सभा की ओर से प्रकाशित होनी चाहिए। + +874. एस डी एम कार्यालय में भ्रष्टाचार. + +875. सुझाव : अनुभव यह बताता है कि अगर कर उगाही में लोगों को प्रत्यक्ष रूप से शामिल किया जाए और लोगों को अपने द्वारा दिए गए करों से होने वाले सीधे-सीधे फायदे समझ आ जाएं तो करों की उगाही बहुत बेहतर हो जाती है। + +876. (ग) वे कर जिन्हें निर्दिष्ट उच्च स्तरीय पंचायत द्वारा लगाया जाएगा लेकिन उन्हें इकट्ठा करने की ज़िम्मेदारी पंचायत के निर्दिष्ट निचले स्तर की होगी। + +877. सुझाव : प्रत्येक गांव कोए भले ही वह छोटा ही क्यों न होए एक अलग पंचायत घोषित किया जाना चाहिए। यदि आस-पड़ोस के दो या उससे अधिक गांवों की ग्राम सभाएं आपस में मिलकर एक पंचायतध ग्राम सभा होने का फैसला करें तभी उन्हें मिलाकर एक पंचायत का दर्जा दिया जाना चाहिए। आदिवासी इलाकों में पेसा क़ानून के तहत ऐसा ही प्रावधान है। अतः गैर आदिवासी क्षेत्रें में भी ऐसा प्रावधान किया जाना चाहिए। + +878. समस्या : सूचना के अधिकार के बावजूद सभी स्तरों की पंचायतों की कार्यप्रणाली एवं उनके फैसलों के बारे में जानकारी हासिल करना मुश्किल होता है। कई इलाकों में जिन लोगों ने पंचायतों के काम-काज के संबंध में सरपंचों और अधिकारियों से जानकारी मांगी हैए उन्हें प्रताड़ित करने के तमाम मामले सामने आ रहे हैं। पुलिस और मुखिया की मिलीभगत से उन्हें झूठे मामलों में फंसा देना आम बात हो गयी है। कई जगह तो उन पर जानलेवा हमला भी किया गया है। + +879. सुझाव : इसलिए हमारा प्रस्ताव है कि इस प्रकार की शिकायतों को सुनने और उन पर समयबद्ध कार्रवाई करने के लिए लोकपाल का गठन किया जाना चाहिए। केरल में ऐसी संस्था अस्तित्व में भी हैए जिसके अच्छे परिणाम निकले हैं। + +880. समस्या : वर्तमान पंचायती राज क़ानूनों के अंतर्गत राज्य सरकारें समय-समय पर पंचायतों को कोई भी दिशा निर्देश दे सकती हैं। इसके चलते पंचायतें राज्य सरकार के एक निकम्मे विभाग के रूप में तब्दील हो गयी हैं। लोगों से परामर्श करने या उनका दुख-सुख सुनने की बजाए सरपंच या ग्राम प्रधान राज्य सरकार के निर्देशों का पालन करने में ही व्यस्त रहते हैं। ग्राम सभाएं किस-किस तारीख को होंगीए उनका एजेंडा क्या होगाए विभिन्न समितियों का गठन कब होगा तथा उनकी संरचना और काम-काज की प्रक्रिया क्या होगीए ऐसे तमाम फैसले गांव में नहीं बल्कि राज्य सरकार के सचिवालय में लिए जाते हैं। राज्य की कोशिश होती है कि लोगों के जीवन से जुड़े छोटे से छोटे फैसले भी वह खुद ही करे। इसका परिणाम यह हुआ कि लोग अपना उद्यम भूल गए और साथ ही पंचायतों एवं ग्राम सभाओं की आज़ादी भी खत्म हो गयी। + +881. नगर स्वराज भी ज़रूरी. + +882. त्रिलोकपुरी और सुंदरनगरी के पार्षदों ने घोषणा कर दी है कि उनके क्षेत्र में हुए किसी काम के लिए ठेकेदार को तभी भुगतान किया जाएगाए जब मोहल्ला सभा किए गए काम को लेकर अपनी संतुष्टि ज़ाहिर कर दे। इस निर्णय से इलाके में होने वाले कामों की गुणवत्ता में बहुत सुधार हुआ है। + +883. केन्द्र सरकार द्वारा भेजे गए वर्तमान नगर राज विधेयक के प्रारूप से अपनी असहमति प्रकट करते हुए देश के कुछ गणमान्य नागरिक जैसे उच्चतम न्यायालय के वकील प्रशांत भूषणए सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजा़रेए मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव एसण्सीण् बहर आदि ने मिलकर नगर राज विधेयक का एक नया प्रारूप तैयार किया है। आइए जानते हैंए नगर राज बिल के उन मुख्य प्रावधानों को जिन्हें देश के प्रमुख नागरिक क़ानून का रूप दिए जाने की मांग कर रहे हैं। + +884. (घ) मोहल्ले से जुड़े सभी मामलों का प्रबंधन मोहल्ला सभा द्वारा किया जाए। सभी मोहल्ला सभाओं से संवाद और सहमति के माध्यम से वार्ड कमेटी वार्ड से जुड़े सभी मामलों का प्रबंधन करे। + +885. (ग) किसी मोहल्ले में कौन सा कार्य और किस जगह किया जाना हैए इसका निर्णय संबंधित मोहल्ला सभा द्वारा किया जाना चाहिए। + +886. (घ) यदि स्थानीय सरकारी कर्मचारी जैसे अध्यापकए मालीए सफाईकर्मीए स्वास्थ्यकर्मीए कनिष्ठ अभियंता आदि मोहल्ला सभा के निर्देशों का पालन नहीं करते या अपने काम में लापरवाही बरतते हैंए तो ऐसी स्थिति में मोहल्ला सभा के पास दोषी कर्मचारियों का वेतन रोकने या उन पर जुर्माना लगाने का अधिकार होना चाहिए। कर्मचारियों को दंडित करने के लिए किसी अन्य एजेंसी से पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। + +887. (घ) दिल्ली जैसे महानगरों में स्थित गांवों को उनकी अपनी ज़मीन पर पूरा अधिकार मिलना चाहिए। + +888. यदि आपके गांव का सरपंच हर महीने ग्राम सभाएं बुलाने को तैयार होता है तो अच्छी बात है। अगर वह नहीं बुलाता है तो कोई बात नहीं। आप खुद अपनी ओर से हर महीने एक निश्चित स्थान पर पूरे गांव की सभा बुलानी आरंभ कीजिए। पहले कुछ लोग ही आएंगे। प्रयास करके गांव के दलित परिवारों को ज़रूर बुलाएं। यही ग्राम सभा है। इसमें हर व्यक्ति अपनी हर समस्या रखने को स्वतंत्र हो। समस्याओं के समाधान पर भी चर्चा हो। आपस में मिलकर लोग समाधान ढूंढने की कोशिश करेंगे। लोगों को अपनी समस्याएं रखने का मौका मिलेगा और इनमें से कुछ समस्याओं का भी यदि निवारण होगा- इसी से महीना दर महीना लोगों की संख्या इन सभाओं में बढे़गी। + +889. "ए-119, प्रथम तल, कौशाम्बी, गाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश : 201 010" + +890. क्रिय-विशेषन् + +891. + +892. 3. आप शौचालय में एक स्थान पर साफ कागज का तौलिया या कपड़ा रखें, जो आपकी पहुँच में हो। + +893. 8. अपने शिश्न के अंतिम सिरे को पोंछे से साफ करें। पोंछा फेंक दें। + +894. 13. कप के ढक्कन को कसकर बंद कर दें। इस बात का ध्यान रखें कि कप या ढक्कन का अंदरूनी भाग स्पर्श न हो जाएँ। + +895. + +896. 3. आप शौचालय में जाकर एक स्थान पर साफ कागज का तौलिया या कपड़ा रखें, जो आपकी पहुँच में हो। + +897. 8. अपने दूसरे हाथ से अपनी लेबिया को साफ करने के लिये पोंछे का उपयोग करें। + +898. 13. अगर आप अस्पताल में हैं तो नमूने को कर्मचारी को सौंपें। अगर आप घर में हैं तो कप को प्लास्टिक की थैली में रखें। थैली को रेफ्रिजेरेटर में रख दें। निर्देशानुसार इसे परीक्षणशाला या डॉक्टर के कार्यालय में ले जाएँ। + +899. मूत्र मार्ग संक्रमण, जिसे UTI भी कहा जाता है, मूत्राशय या गुर्दों का संक्रमण है। + +900. + +901. सामान्य लक्षणों में ये शामिल हैं: + +902. परीक्षण. + +903. आपकी देखभाल के हिस्से के रूप में: + +904. परीक्षण के दौरान. + +905. + +906. हिमालय की हिमाच्छादित चोटियों से लेकर दक्षिण के ऊष्णकटिबंधीय सघन वनों तक, पूर्व में + +907. वाले देशों में इसका छठा स्थान है। विश्व के इस सातवें विशालतम् देश को पर्वत तथा समुद्र शेष एशिया + +908. 6807” और 97025” पूर्वी देशांतर के बीच फैली हुई है। इसका विस्तार उत्तर से दक्षिण तक 3,214 + +909. भारत के सीमावर्ती देशों में उत्तर-पश्चिम में पाकिस्तान और अफगानिस्तान हैं। उत्तर में चीन, नेपाल और + +910. हिमालय की तीन शृंखलाएं हैं, जो लगभग समानांतर फैली हुई हैं। इसके बीच बड़े-बड़े पठार + +911. के उत्तर-पूर्व में सतलुज घाटी में शिपकी-ला दर्रा। पर्वतीय दीवार लगभग 2,400 कि.मी. की दूरी तक + +912. सिंधु और गंगा के मैदान लगभग 2,400 कि.मी. लंबे और 240 से 320 कि.मी. तक चौड़े हैं। ये तीन + +913. विशाल रेगिस्तान कच्छ के रण के पास से उत्तर की ओर लूनी नदी तक फैला है। राजस्थान-सिंध की पूरी + +914. द्वारा सिंधु और गंगा के मैदानों से पृथक हो जाता है। इसमें प्रमुख हैं- अरावली, विंध्य, सतपुड़ा, मैकाल + +915. पहाडि़यों से बना है, जहां पूर्वी और पश्चिमी घाट मिलते हैं। इसके पार फैली कार्डामम पहाडि़यां + +916. उत्तर में हिमालय पर्वत का क्षेत्र और पूर्व में नगा-लुशाई पहाड़, पर्वत निर्माण प्रक्रिया के क्षेत्र हैं। + +917. उत्तर में हिमालय को दक्षिण के प्रायद्वीप से अलग करते हैं। + +918. नदियाँ. + +919. महीनों में हिमालय पर भारी वर्षा होती है, जिससे नदियों में पानी बढ़ जाने के कारण अक्सर बाढ़ आ जाती + +920. सिंधु और गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना नदियों से हिमालय की मुख्य नदी प्रणालियां बनती हैं। सिंधु नदी + +921. अलकनंदा जिसकी उप-नदी घाटियां हैं इनके देवप्रयाग में आपस में मिल जाने से गंगा उत्पन्न होती है। + +922. में मिलती हैं। पद्मा और ब्रह्मपुत्र बंगलादेश के अंदर मिलती हैं और पद्मा या गंगा के रूप में बहती + +923. भारत में ब्रह्मपुत्र की प्रमुख सहायक नदियों में सुबानसिरी, जिया भरेली, धनश्री, पुथीमारी, + +924. नदी में इसका विलय नहीं हो जाता। दक्कन क्षेत्र में प्रमुख नदी प्रणालियां बंगाल की खाड़ी में जाकर + +925. बड़ा थाला महानदी का है। दक्षिण की ऊपरी भूमि में नर्मदा अरब सागर की ओर बहती है और + +926. राजस्थान में कई नदियां समुद्र में नहीं मिलतीं। वे नमक की झीलों में मिलकर रेत में समा जाती + +927. (जनवरी-फरवरी), 2. ग्रीष्म ऋतु (मार्च-मई), 3. वर्षा ऋतु या “दक्षिण-पश्चिमी मानसून का मौसम” + +928. सागर और बंगाल की खाड़ी को पार करके आती हैं। देश में अधिकांश वर्षा दक्षिण-पश्चिमी मानसून से + +929. बांटा जा सकता है- पश्चिमी हिमालय, पूर्वी हिमालय, असम, सिंधु का मैदान, गंगा का मैदान, दक्कन, + +930. शीतोष्ण क्षेत्र की ऊपरी सीमा से 4,750 मीटर या इससे अधिक ऊंचाई तक फैला हुआ है। इस क्षेत्र में + +931. हैं और बीच-बीच में घने बांसों तथा लंबी घासों के झुरमुट हैं। सिंधु के मैदानी क्षेत्र में पंजाब, पश्चिमी + +932. जंगली झाडि़यों के वन हैं। मालाबार क्षेत्र के अधीन प्रायद्वीप तट के साथ-साथ लगने वाली पहाड़ी तथा + +933. और दक्षिण प्रायद्वीप में क्षेत्रीय पर्वतीय श्रेणियों में ऐसे देशी पेड़-पौधों की अधिकता है, जो दुनिया में + +934. है। वाहिनी वनस्पति के अंतर्गत 15 हजार प्रजातियां हैं। देश के पेड़-पौधों का विस्तृत अध्ययन भारतीय + +935. के विभिन्न जनजातीय क्षेत्रों में कई विस्तृत नृजाति सर्वेक्षण किए जा चुके हैं। वनस्पति नृजाति विज्ञान की + +936. 60 से 100 वर्षों के दौरान दिखाई नहीं पड़ी हैं। संभावना है कि ये प्रजातियां लुप्त हो चुकी हैं। भारतीय + +937. जलवायु और प्राकृतिक वातावरण की व्यापक भिन्नता के कारण भारत में 89 हजार से अधिक किस्म + +938. स्तनपायी जीवों में हिमालय की बड़े आकार वाली जंगली भेड़ें, दलदली मृग, हाथी, गौर या + +939. में से एक हैं। अनेक किस्म के पक्षी, जैसे बत्तख, मैना, कबूतर, धनेश, तोते, तीतर, मुर्गियां और सुनहरे + +940. विशाल हिमालय शृंखला में कई अत्यंत आकर्षक जीव-जंतु पाए जाते हैं, जिनमें जंगली भेड़ और + +941. तू$फान आदि के प्रकोप से भी पेड़-पौधों को काफी क्षति पहुंचती है। 39 से अधिक प्रजातियों के + +942. भारत में जनगणना 2001 का कार्य अपने आप में एक युगांतरकारी एवं ऐतिहासिक घटना है क्याेंकि यह + +943. पश्चात् एक से 5 मार्च, 2001 तक इसका संशोधनात्मक दौर चला। आबादी की गिनती के कार्य को + +944. एक मार्च, 2001 को भारत की जनसंख्या एक अरब 2 करोड़ 80 लाख (532.1 करोड़ पुरूष और + +945. शताब्दी में एक अरब 2 करोड़ 80 लाख तक पहुंच गई। भारत की जनसंख्या की गणना 1901 के पश्चात् हर + +946. में सबसे अधिक 64.53 प्रतिशत जनसंख्या वृद्धि दर्ज की गई। दिल्ली में अत्यधिक 47.02 प्रतिशत, + +947. जनगणना दशक की तुलना में जनसंख्या वृद्धि दर कम दर्ज की गई। जिन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों + +948. जाता है कि प्रति वर्ग कि.मी. क्षेत्र में लोगों की संख्या कितनी है। 2001 में देश में आबादी का घनत्व + +949. में दिखाई गई है। + +950. शताब्दी के आरंभ में यह अनुपात 972 था और उसके बाद 1941 तक इसमें निरंतर कमी का रूख रहा। + +951. केवल पढ़ सकता है परंतु लिख नहीं सकता। वर्ष 1991 से पूर्व हुई जनगणनाओं में + +952. साक्षरता की दृष्टि से केरल सबसे ऊपर है जहां साक्षरता दर 90.86 प्रतिशत है। उसके बाद मिजोरम + +953. 33.12 प्रतिशत महिलाएं साक्षर हैं। देश के विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में पुरूषों और स्त्रियों की + +954. राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे में समान अनुपात में तीन क्षैतिज पट्टियां हैं— गहरा केसरिया रंग सबसे + +955. सरकार द्वारा समय-समय पर जारी गैर-सांविधिक निर्देशों के अलावा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन पर + +956. 26 जनवरी, 2002 से “ध्वज संहिता-भारत” का स्थान, भारतीय ध्वज संहिता, 2002 ने ले लिया है। + +957. राजचिह्न. + +958. सिंह स्तंभ के ऊपर “धर्मचक्र” रखा हुआ है। + +959. है- “सत्य की ही विजय होती है”। + +960. राष्ट्रगान का पूरा पाठ है, जो इस प्रकार है — + +961. विंध्य-हिमाचल-यमुना-गंगा + +962. जन-गण-मंगलदायक जय हे + +963. गाया जाता है, जिसमें इसकी प्रथम और अंतिम पंक्तियां (गाने का समय लगभग 20 सेकेंड) होती हैं। + +964. वंदे मातरम्! + +965. सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम् + +966. के लिए अपनाया गया — (1) भारत का राजपत्र, (2) आकाशवाणी के समाचार प्रसारण, (3) भारत सरकार + +967. राष्ट्रीय पशु “बाघ” (पैंथरा टाइग्रिस-लिन्नायस), पीले रंगों और धारीदार लोमचर्म वाला एक पशु है। अपनी + +968. को थामने के लिए अप्रैल 1973 में “बाघ परियोजना” शुरू की गई। बाघ परियोजना के अंतर्गत देश में अब + +969. मयूर अधिक सुंदर होता है। उसकी चमचमाती नीली गर्दन, वक्ष और कांस्य हरे रंग की लगभग 200 + +970. भारत का राष्ट्रीय पुष्प कमल (नेलंबो न्यूसिपेरा गार्टन) है। यह एक पवित्र पुष्प है तथा प्राचीन भारतीय + +971. शाखाएं दूर-दूर कई एकड़ तक फैली तथा जड़ें गहरी होती हैं। इतनी गहरी जड़ें किसी और वृक्ष की नहीं + +972. ए, सी और डी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। हमारे यहां आम की सैंकड़ों किस्में हैं। ये आकार और रंगों + +973. शिकार का पता लगाती है। + +974. होता है जो 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा द्वारा स्वीकृत किया गया और 26 जनवरी, 1950 को लागू + +975. नेतृत्व में एक मंत्रिपरिषद् होगी तथा राष्ट्रपति उसके परामर्श से ही कार्य करेंगे। इस प्रकार कार्यपालिका + +976. संविधान में विधायी शक्तियां संसद एवं राज्य विधानसभाओं में विभाजित की गई हैं तथा शेष शक्तियां + +977. भारत में 29 राज्य और सात केंद्रशासित प्रदेश हैं। ये राज्य हैं-आंध्र प्रदेश, तेलंगाना,असम, अरूणाचल प्रदेश, बिहार, + +978. नागरिकता. + +979. समाप्त करने के संबंध में प्रावधान दिए गए हैं। + +980. भाग, अनुच्छेद 12 से 35 तक, में मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया गया है। ये मूल अधिकार हैं- + +981. या व्यवसाय करने का अधिकार (इनमें से कुछ अधिकार देश की सुरक्षा, विदेशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, + +982. प्रचार करने की स्वतंत्रता का अधिकार; + +983. मूल कर्त्तव्य. + +984. जाएं। धर्म, भाषा और क्षेत्रीय तथा वर्ग संबंधी भिन्नताओं को भुलाकर सद्भाव और भाईचारे की भावनाओं + +985. इन सिद्धांतों का पालन करे। उनमें कहा गया है-सरकार ऐसी प्रभावी सामाजिक व्यवस्था कायम करके + +986. बेरोजगारी, बुढ़ापे, बीमारी और अपंगता या अन्य प्रकार की अक्षमता की स्थिति में सबको वित्तीय सहायता + +987. के कल्याण के लिए उपयोगी सिद्ध हो और यह सुनिश्चित हो कि आर्थिक व्यवस्था को लागू करने के + +988. करना; अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति और समाज के अन्य कमजोर वर्गों के शिक्षा संबंधी और + +989. संघ. + +990. राष्ट्रपति का निर्वाचन एक निर्वाचन मंडल के सदस्य आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर एकल + +991. कार्यकाल पांच वर्ष का होता है। वह इस पद के लिए पुन— भी चुना जा सकता है। संविधान के अनुच्छेद + +992. के पास होती है। राष्ट्रपति को संसद का अधिवेशन बुलाने, उसे स्थगित करने, उसमें भाषण देने और + +993. व्यवस्था के विफल हो जाने पर राष्ट्रपति उस सरकार के संपूर्ण या कोई भी अधिकार अपने हाथ में + +994. उपराष्ट्रपति. + +995. के अनुच्छेद 67 (ख) में निहित कार्यविधि द्वारा उसे पद से हटाया जा सकता है। + +996. कर सकते। + +997. है। प्रधानमंत्री का कर्त्तव्य है कि वह भारत संघ के कार्यों के प्रशासन के संबंध में मंत्रिपरिषद् के निर्णयों, + +998. संघ की विधायिका को “संसद” कहा जाता है। इसमें राष्ट्रपति, लोकसभा तथा राज्यसभा शामिल हैं। संसद + +999. 12 सदस्य साहित्य, विज्ञान, कला, समाज सेवा आदि क्षेत्रों में विशेष ज्ञान या अनुभव रखने वाले व्यक्ति + +1000. निर्धारित कानून के अंतर्गत किया जाता है। राज्यसभा कभी भी भंग नहीं होती और उसके एक-तिहाई सदस्य + +1001. लोकसभा. + +1002. मिला। + +1003. जो आंग्ल-भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं। 84वें संविधान संशोधन विधेयक-2001 के तहत + +1004. सकती है। परंतु यह वृद्धि एक समय पर एक वर्ष से अधिक नहीं हो सकती और आपातस्थिति समाप्त + +1005. सारणी 3.2 में उपलब्ध है। 14वीं लोकसभा के सदस्यों के नाम, उनकी पार्टी और चुनाव क्षेत्र का विवरण + +1006. अन्य संसदीय लोकतंत्रों की भांति भारत की संसद को भी कानून बनाने, प्रशासन की देखरेख, बजट + +1007. अधिकार भी प्राप्त कर सकती है, जो अन्यथा राज्यों के लिए सुरक्षित हैं। संसद को राष्ट्रपति पर महाभियोग + +1008. के मामले में लोकसभा की इच्छा सर्वोपरि है। संसद प्रदत्त कानूनों की समीक्षा करती है तथा उन पर + +1009. समय बहुत सीमित होता है, इसलिए उसके समक्ष प्रस्तुत सभी विधायी या अन्य मामलों पर गहन विचार + +1010. होती है। + +1011. स्थायी समितियां — लोकसभा की स्थायी समितियों में तीन वित्तीय समितियों, यानी लोक लेखा समिति, + +1012. है तथा संगठन, कार्यकुशलता और प्रशासन में क्या-क्या सुधार किए जा सकते हैं। यह इस बात की भी जांच + +1013. निरर्थक व्यय के मामलों की ओर ध्यान दिलाती है। सरकारी उपक्रम समिति नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक + +1014. 17 स्थायी समितियां गठित करने की सिफारिश की थी। इसके अनुसार 8 अप्रैल, 1993 को इन 17 समितियों + +1015. उसके बारे में सदन को सूचित करना; + +1016. करना; और + +1017. (1) जांच समितियां-(क) याचिका समिति — विधेयकों और जनहित संबंधी मामलों पर प्रस्तुत + +1018. अधीनस्थ विधि निर्माण समिति — इस बात की जांच करती है कि क्या संविधान द्वारा प्रदत्त विनियमों, + +1019. करते हुए उनकी व्यवस्थाओं का पालन हुआ है या नहीं; (3) सदन के दैनिक कार्य से संबंधित + +1020. है और लोकसभा में निजी सदस्यों द्वारा पेश किए जाने से पूर्व संविधान संशोधन विधेयकों की जांच + +1021. सदस्यों संबंधी लोकसभा की समिति — सदन के सदस्यों की बैठकों से अनुपस्थिति या छुट्टी के आवेदनों + +1022. इस बात पर नजर रखती है कि उन्हें जो संवैधानिक संरक्षण दिए गए हैं, वे ठीक से कार्यान्वित हो रहे + +1023. और भत्तों संबंधी संयुक्त समिति — यह संसद सदस्यों के वेतन, भत्ते एवं पेंशन अधिनियम, 1954 के + +1024. करती है कि कौन-कौन से पद ऐसे हों, जो संसद के किसी भी सदन की सदस्यता के लिए किसी व्यक्ति + +1025. समानता प्रदान करना है। (10) 4 मार्च, 1997 को राज्यसभा की आचार संहिता समिति गठित की गई। + +1026. अभिभाषण पर, कुछ सदस्यों के आचरण पर, पंचवर्षीय योजनाओं के मसौदे पर, रेलवे कनवेंशन समिति, + +1027. सवाल है, ये समितियां अन्य तदर्थ समितियों से भिन्न हैं और इनके द्वारा पालन की जाने वाली प्रक्रिया + +1028. वेतन तथा कुछ अन्य उपयुक्त सुविधाएं दी जाती हैं। + +1029. नेताओं तथा मुख्य सचेतकों से लगातार संपर्क बनाए रखते हैं। 1 अगस्त, 2008 से 30 जून, 2009 की अवधि + +1030. कार्य को करने के लिए संसदीय मामलों का मंत्रालय इन समितियों का गठन करता है और उनकी बैठकें + +1031. सलाहकार समिति की न्यूनतम सदस्यता 10 और अधिकतम सदस्यता 30 है। प्रत्येक लोकसभा + +1032. समितियों की बैठकें सत्र अवधि में ही आयोजित की जाती हैं। 1 अगस्त, 2008 से 18 मई 2009 + +1033. के लिए संसद सदस्यों की वरीयता को आमंत्रित किया गया है। संसद सदस्यों की वरीयता प्राप्त होने के + +1034. जो संविधान या कानून का निर्माण करते हैं, वहां संसद सदस्यों की नियुक्ति के लिए नामजदगी संबंधित + +1035. विश्वविद्यालय स्तर पर युवा संसद प्रतियोगिता का आयोजन करता है। युवा संसद प्रतियोगिता आयोजित + +1036. विश्वविद्यालयों/कॉलेज के लिए। + +1037. अन्य संसदीय विषय. + +1038. बनाने के लिए उच्च मानक बनाने पर विचार किया जाता है। 1952 से अब तक 14वां अखिल भारतीय + +1039. के और राज्यसभा में विशेष उल्लेख के अंतर्गत उठाए गए विषयों पर अनुवर्ती कार्रवाई करता है। संसद + +1040. संसदीय कार्य मंत्रालय संसद के दोनों सदनों की दैनिक कार्यवाहियों में से मंत्रियों द्वारा दिए गए आश्वासनों/ + +1041. भारत के राष्ट्रपति के भारत सरकार के कार्यों का आवंटन करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 77 के + +1042. पर राष्ट्रपति मंत्रियों के बीच काम का बंटवारा करते हैं। प्रत्येक विभाग आमतौर पर एक सचिव के अधीन + +1043. कैबिनेट सचिव का कार्य निम्न होता है — (क) मंत्रिमंडल समितियों को सचिवालय सहयोग और + +1044. के बीच समन्वय स्थापित करते हुए और मंत्रालयों के बीच मतभेदों को दूर करते हुए यह सचिवालय + +1045. देश में किसी बड़े संकट के समय उसका प्रबंधन करना तथा ऐसी परिस्थितियों में विभिन्न मंत्रालयों की + +1046. है। कार्य नियमों के संचालन के लिए भी यह आवश्यक है कि समय-समय पर विभिन्न गतिविधियों + +1047. निर्धारित दायित्वों को पूरा करना था जिस पर शुरू में 130 देशों ने 14 जनवरी, 1993 को संपन्न हुए + +1048. इसीलिए कैबिनेट सचिवालय के प्रशासनिक नियंत्रण में राष्ट्रीय प्राधिकरण, रासायनिक हथियार कन्वेंशन + +1049. में, सीडब्ल्यूसी अधिनियम लागू कराने, सीडब्ल्यूसी तथा अन्य सरकारी पक्षों से तालमेल रखने, दायित्व + +1050. सरकार के मंत्रालय/विभाग. + +1051. 1. कृषि मंत्रालय + +1052. (ख) उर्वरक विभाग + +1053. 53. युवा मामले विभाग + +1054. प्रमुख स्वतंत्र कार्यालय. + +1055. भारतीय पुलिस सेवा भी थी। देश के आजाद होने के बाद यह महसूस किया गया कि भले ही इंडियन सिविल + +1056. 312 के संदर्भ में संसद द्वारा गठित की गई मानी जाती हैं। संविधान लागू होने के बाद 1966 में भारतीय + +1057. प्रदान करता है। + +1058. राज्यों के कैडर में भेज दिया जाता है। + +1059. सचिव के ग्रेड केंद्रीकृत हैं। केंद्रीय सचिवालय सेवा के अनुभाग अधिकारी ग्रेड और सहायक ग्रेड, इसी सेवा + +1060. आवश्यकताओं का पता लगाता और मूल्यांकन करता है और सीधी भर्ती एवं विभागीय परीक्षा कोटा की + +1061. आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। इनका कार्यकाल छह वर्ष का या + +1062. अपने पदों से नहीं हटाया जा सकता। + +1063. अधिकतम वेतनमान 6500-10,500 रूपये हो, और (2) भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों/विभागों तथा + +1064. का मुख्यालय और उसके उत्तरी क्षेत्र का कार्यालय नई दिल्ली में है। इसके मध्य, पश्चिम, पूर्व, पूर्वोत्तर, + +1065. संघ सरकार की राजभाषा नीति के संबंध में संवैधानिक तथा विधिक प्रावधानों, राजभाषा अधिनियम, 1963 + +1066. निरीक्षण करना, तिमाही रिपोर्ट के माध्यम से संघ के कामकाज में राजभाषा हिंदी की प्रगति पर निगरानी + +1067. करता है। कार्यालयों में प्रयोग में आने वाले विभिन्न यांत्रिक तथा इलैक्ट्रानिक उपकरणों में देवनागरी लिपि + +1068. मंत्रा, श्रुतलेखन आदि) का विकास भी कराता रहा है। + +1069. अधिनियम तथा राजभाषा नियम के उपबंधों का समुचित रूप से अनुपालन हो रहा है तथा इस प्रयोजन के + +1070. राजभाषा हिंदी के प्रचार-प्रसार, प्रोत्साहन व कार्यान्वयन के वार्षिक लक्ष्य निर्धारित किए हुए हैं तथा उनको + +1071. (क) संसदीय राजभाषा समिति-राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा 4(1) के अंतर्गत वर्ष 1976 + +1072. (ख) केंद्रीय हिंदी समिति-इस समिति का गठन प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में भारत सरकार के मंत्रालयों/ + +1073. हैं। वर्तमान समिति की संरचना में कुल 41 सदस्य हैं। गृह मंत्री इस समिति के उपाध्यक्ष तथा सचिव, + +1074. (घ) केंद्रीय राजभाषा कार्यान्वयन समिति-केंद्र सरकार के मंत्रालयों, विभागों में राजभाषा अधिनियम + +1075. गठित है। + +1076. पदों को एकीकृत संवर्ग में लाने तथा उनके पदाधिकारियों को समान सेवा शर्त, वेतनमान और पदोन्नति के + +1077. राजभाषा-संवैधानिक/वैधानिक प्रावधान + +1078. रख सकती है। तदनुसार राजभाषा अधिनियम, 1963 (1967 में संशोधित) की धारा 3 (2) में यह व्यवस्था + +1079. राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा 3(4) के अंतर्गत सन् 1976 में राजभाषा नियम बनाए गए। + +1080. और दिल्ली) के बीच पत्र-व्यवहार की भाषा हिंदी होगी; (3) केंद्र सरकार के कार्यालयों से क्षेत्र “ख” + +1081. कार्यालयों से राज्य/केंद्रशासित प्रदेश के सरकारी कार्यालयों तथा व्यक्तियों आदि के बीच पत्र-व्यवहार उस + +1082. वाले का यह दायित्व होगा कि वह देखे कि ये दस्तावेज हिंदी और अंग्रेजी दोनों में जारी हों; (8) केंद्र + +1083. राजभाषा के संकल्प, 1968 का पालन करते हुए राजभाषा विभाग हर वर्ष एक वार्षिक कार्यक्रम तैयार करता + +1084. संसद के दोनों सदनों में रखी जाती है और इसकी प्रतियां राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के मंत्रालयों/ + +1085. राजभाषा अधिनियम 1963 धारा 4 के निहित राजभाषा संसदीय समिति का गठन 1976 में किया गया। + +1086. चल रहा है। + +1087. सलाहकार समितियां गठित की गई हैं। ये अपने-अपने मंत्रालयों/विभागों और कार्यालयों/प्रतिष्ठानों में हिंदी + +1088. कामकाज में हिंदी के उपयोग की समीक्षा करती है, कर्मचारियों को हिंदी का प्रशिक्षण देने, राजभाषा विभाग + +1089. राजभाषा कार्यान्वयन समितियों का गठन किया जा चुका है। + +1090. की जाती है। केंद्र सरकार, बैंकों, वित्तीय संस्थानों, विश्वविद्यालयों, प्रशिक्षण संस्थानों तथा केंद्र सरकार + +1091. था, इसे अब “हिंदी में मौलिक पुस्तक लेखन के लिए राजीव गांधी राष्ट्रीय पुरस्कार योजना” कर दिया गया + +1092. प्रशिक्षण. + +1093. उत्तर-मध्य, दक्षिण तथा पूर्वोत्तर क्षेत्रों में शैक्षणिक और प्रशासनिक सहायता के लिए कोलकाता, मुंबई, + +1094. देने के लिए 31 अगस्त, 1985 को केंद्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना की गई। 1988 में मुंबई, + +1095. साहित्य, मैन्युअल/कोड्स, फॉर्म आदि का अनुवाद करने का कार्य। ब्यूरो को अधिकारियों/कर्मचारियों को + +1096. तकनीकी. + +1097. का एक पैकेज विकसित किया गया है। अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद के लिए एक सहायक उपकरण “मंत्र + +1098. प्रकाशन. + +1099. विभिन्न मंत्रालयों, विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में हिंदी के कामकाज की समीक्षा संबंधित वार्षिक + +1100. नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं। उसको पद से हटाने के लिए वही आधार + +1101. के पास भेजते हैं, जो संसद और राज्य विधानसभाओं में प्रस्तुत की जाती हैं। + +1102. में समन्वय और उनका क्रियान्वयन बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। नीतियों में परस्पर समन्वय और उनके + +1103. आईएससी एक अनुशंसात्मक इकाई है और उसे एेसे विषयों की जांच और चर्चा के अधिकार दिए + +1104. विधानसभा हो) के मुख्यमंत्री, केंद्र शासित प्रदेशों (जहां विधान सभा न हो) के प्रशासक, राष्ट्रपति शासन + +1105. से तय किए जाते हैं। इस पर अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होता है। संविधान के अनुच्छेद 263 के खंड (क) + +1106. अध्यक्ष और पांच कैबिनेट मंत्रियों एवं नौ मुख्यमंत्रियों को इसका सदस्य बनाया गया। इसके बाद समिति + +1107. मंत्रालयों/संबंधित विभागों ने नामंजूर कर दिया है और केवल 3 सिफारिशें क्रियान्वयन के विभिन्न चरणों + +1108. (ग) आपदा प्रबंधन- आपदाओं से निपटने के लिए राज्यों की तैयारी + +1109. परिषद सचिवालय ने सार्वजनिक नीति और प्रशासनिक मुद्दों पर अनेक प्रकार के अध्ययनों को + +1110. (ग) कृषिगत उत्पादों और वस्तुओं पर समान भारतीय बाजार का सृजन + +1111. है। यह समझौता अगले तीन वर्षों 2008-2011 के लिए पुनर्नवीनीकृत किया गया है। + +1112. इश्यूज इन फेडरलिज्म- इंटरनेशनल पर्सपेक्टिव्स”। + +1113. आईएससीएस केंद्र राज्य संबंध आयोग को सचिवालयी सहयोग प्रदान करता है। इस आयोग को + +1114. के पूर्व मुख्य न्यायाधीश को अध्यक्ष नियुक्त किया गया और श्री धीरेंद्र सिंह, पूर्व सचिव- भारत सरकार, + +1115. प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायतें. + +1116. सुधारों से संबद्ध सरकार के महत्वपूर्ण कार्यकलापों के बारे में सूचनाओं का प्रचार करता है। यह विभाग + +1117. अधिकार-पत्र संगठन की प्रतिबद्धता, सेवा उपलब्ध कराने के अपेक्षित मानदंडों, समय -सुबोध, शिकायत + +1118. और कार्यविधियां तैयार करना और पुराने हो चुके कानूनों में सुधार करना था। विभिन्न मंत्रालयों/विभागों + +1119. अब तक सरकार को निम्नलिखित 15 रिपोर्टें सौंप दी हैं — + +1120. करने के वास्ते विभाग ने 2005 में “लोक प्रशासन में उल्लेखनीय योगदान के लिए प्रधानमंत्री पुरस्कार” का + +1121. केंद्र और राज्य सरकार के सभी अधिकारियों को व्यक्तिगत अथवा समूह के तौर पर या संस्थान के रूप + +1122. उद्देश्य नागरिकों को ध्यान में रखते हुए सेवाएं सुलभ कराने की गुणवत्ता में सुधार लाना है तथा इसे नागरिक + +1123. का प्रलेखन, संचयन और प्रचारण शामिल है। इसकी पूर्ति और देश में उत्तम प्रशासन प्रणालियों को बढ़ावा + +1124. पुस्तकें “आइडियाज दैट हैव वर्क्ड” और “लर्न फ्राम दैम” का प्रकाशन भी किया है। इन पुस्तकों में नूतन + +1125. प्रशासनिक ट्रिब्यूनल. + +1126. में नियुक्त व्यक्तियों की भर्ती और सेवा-शर्तों आदि से संबंधित शिकायतों और विवादों पर निर्णय दे + +1127. प्रशासनिक ट्रिब्यूनल केवल अपने अधिकार-क्षेत्र और कार्य विधि में आने वाले कर्मचारियों के सेवा + +1128. अधिनियम में केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल (सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल-सीएटी) और राज्य + +1129. न्यायिक और प्रशासनिक-दोनों क्षेत्रों से लिए जाते हैं, ताकि ट्रिब्यूनल को कानूनी और प्रशासनिक-दोनों + +1130. राज्यपाल. + +1131. मुख्यमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिपरिषद् राज्यपाल को उनके कार्यों में सहायता-सलाह देती है-सिवाय + +1132. इसी प्रकार अरूणाचल प्रदेश के मामले में संविधान के अनुच्छेद 371 “एच” के अधीन कानून- + +1133. निर्देश दे सकते हैं। + +1134. लगाने और जिला परिषदों द्वारा गैर-जनजातीय समुदाय के उधार धन देने वालों के मामलों को छोड़कर) + +1135. अथवा राज्य में संवैधानिक तंत्र की असफलता की रिपोर्ट को भेजते समय अथवा राज्य विधानमंडल द्वारा + +1136. की नियुक्ति की जाती है। मंत्रिपरिषद् सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति उत्तरदायी + +1137. विधानपरिषद् और विधानसभा कहते हैं। शेष राज्यों में विधानमंडल का केवल एक ही सदन है, जिसे + +1138. प्रत्येक राज्य की विधानपरिषद् के सदस्यों की कुल संख्या राज्य के विधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या + +1139. निकायों के सदस्यों के निर्वाचक-मंडल करते हैं। कुल सदस्य संख्या के 12वें भाग के बराबर सदस्यों का + +1140. सेवा के क्षेत्र में प्रतिष्ठा प्राप्त की हो। विधान परिषदें भंग नहीं होती हैं। उनके एक-तिहाई सदस्य प्रत्येक + +1141. के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष मतदान द्वारा किया जाता है। प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन + +1142. सूची-III में दिए गए विषयों पर केंद्र के साथ मिले-जुले अधिकार प्राप्त हैं। विधानमंडल की वित्तीय शक्तियों + +1143. विधानमंडल द्वारा पारित किसी विधेयक को राज्यपाल, भारत के राष्ट्रपति को विचारार्थ भेजने से रोक सकता + +1144. राज्य विधानमंडल वित्त पर सामान्य नियंत्रण रखने के अतिरिक्त, कार्यपालिका के दिन-प्रति-दिन के कार्यों + +1145. केंद्रशासित प्रदेशों का शासन राष्ट्रपति द्वारा चलाया जाता है और वह इस बारे में जहां तक उचित समझें, + +1146. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और केंद्रशासित प्रदेश पांडिचेरी की अपनी-अपनी विधानसभाएं और + +1147. स्वीकृति लेना भी अनिवार्य है। केंद्रशासित प्रदेश पांडिचेरी और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधान + +1148. स्थापना 1688 में की गई। उसके बाद 1726 में इसी तरह के नगर निगम मुंबई और कोलकाता (तत्कालीन + +1149. स्थानीय स्वशासन की जिम्मेदारी राज्य सरकार को सौंपी गई है। + +1150. ने अधिसूचना जारी करके 1 जून, 1993 से इस अधिनियम को लागू कर दिया। संविधान में नगरपालिकाओं + +1151. और महानगर तथा जिला योजना समितियों का गठन। सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने अपने निर्वाचन + +1152. स्वायत्तशासी सरकार की इकाई के रूप में काम कर सकें। + +1153. सदस्यों आैर पंचायत-अध्यक्षों के पदों के लिए जनसंख्या के अनुपात में अनुसूचित जाति और अनुसूचित + +1154. भारत के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव कराने तथा संसद और विधानसभाओं का चुनाव कराने के लिए + +1155. निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति की। लेकिन एक जनवरी, 1990 को जब इन दोनों निर्वाचन आयुक्तों के पद + +1156. और वे सभी सुविधाएं मिलेंगी, जो भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को मिलती हैं। इस अधिनियम + +1157. गया है। लेकिन उच्चतम न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने याचिका खारिज कर दी और + +1158. न्यायालय के न्यायाधीश हटाए जा सकते हैं तथा उसकी नियुक्ति के पश्चात् मुख्य निर्वाचन आयुक्त की + +1159. संशोधन. + +1160. निर्वाचन क्षेत्र के मतदान अधिकारी को भेज सकते हैं। + +1161. आयकर कानून 1961 के तहत आयकर से रियायत दी जाएगी। मुख्य कानून के भाग-ए (धारा 78ए और + +1162. वह उसे अपने चुनाव के खर्च में शामिल करता है। + +1163. राज्यों की विधानसभा परिषदों के चुनाव के लिए खुली मतदान की प्रणाली लागू करने का प्रावधान किया + +1164. दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर 1998 की याचिका संख्या 4912 - (कुशरा भरत बनाम भारत सरकार और + +1165. 2003 के द्वारा मतदाताओं के सूचना के अधिकार को ध्यान में रखते हुए उम्मीदवार की पृष्ठभूमि संबंधी + +1166. लोकसभा गठन के पश्चात भंग होने की अध्यक्ष1 का नाम से तक की प्रथम बैठक तिथि + +1167. चौथी लोकसभा 16 मार्च, 1967 27 दिसंबर, 19706 नीलम संजीव रेड्डी 17 मार्च, 1967 19 जुलाई, 19697 + +1168. के.एस. हेगड़े 21 जुलाई, 1977 21 जनवरी, 1980 + +1169. ग्यारहवीं लोकसभा 22 मई, 1996 4 दिसंबर, 199715 पी.ए. संगमा 23 मई, 1996 23 मार्च, 1998 (पूर्वाह्न) + +1170. पंद्रहवीं लोकसभा 1 जून, 2009 - श्रीमती मीरा कुमार 1 जून, 2009 अब तक + +1171. रहा। हालांकि कृषि उत्पादन मानसून पर भी निर्भर करता है, क्योंकि लगभग 55.7 प्रतिशत कृषि-क्षेत्र + +1172. उत्पादन 8 करोड़ 5 लाख टन होने की उम्मीद है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 20 लाख टन अधिक है। + +1173. 170 किलोग्राम) जो वर्ष 2007-08 की तुलना में 27.28 लाख गांठें अधिक है। 2008-09 के दौरान जूट + +1174. गया है जो पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 14.37 लाख हेक्टेयर अधिक है। गेहूं का फसल क्षेत्र वर्ष + +1175. (गेहूं) से लेकर 52.6 प्रतिशत (रागी) तक हुई। साधारण धान के मामले बढ़ोतरी 31.8 प्रतिशत, दालोमें 8.1 प्रतिशत (चना) और उड़द तथा मूंग में 42.8 प्रतिशत रही। + +1176. निर्भर करती है। भारत की जनसंख्या विश्व की 18' और पशुओं की 15' है, जिसके लिए भौगोलिक + +1177. 2035 तक गिरकर 0.08 हेक्टेयर हो जाने की संभावना है। प्रतिव्यक्ति भूमि की उपलब्धता जनसंख्या + +1178. करता है। इसलिए अधिकतम उत्पादन प्रति इकाई भूमि और प्रति इकाई जल से सुधार की जरूरत है। + +1179. अंकन में अलग तरीके अपनाने से इन एजेंसियों के अनुमानों में व्यापक अंतर है जो 6.39 करोड़ हेक्टेयर + +1180. अनुमान स्थानीय सर्वेक्षणों और अध्ययनों पर आधारित हैं। वर्ष 2005 में आईसीएआर के नागपुर स्थित + +1181. भूमि विकास के लिए जलसंभरण कार्यक्रम. + +1182. कार्यान्वयन हो रहा है। + +1183. रहा है। योजनावार कार्यक्रम/योजनाओं की विशिष्ट बातें हैं — + +1184. (अ) त्वरित गहन सर्वेक्षण (आरआरएएन)- 156.00 लाख हेक्टेयर + +1185. आवंटित किए गए है। + +1186. आवंटित किए गए हैं। + +1187. केंद्र प्रायोजित कार्यक्रम (योजना-एमएमए के तहत शामिल) आरवीपी और पीपीआर — नदी घाटी + +1188. किया जा रहा है। शुरू से दसवीं योजना तक 0.59 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य बनाया गया। 2009-10 में + +1189. (अ) वर्षा सिंचित क्षेत्रों के लिए राष्ट्रीय जलसंभरण विकास परियोजना-(एनडब्लूडीपीआरए) वर्ष + +1190. है। 2009-10 में 300 करोड़ रूपए की अनुमानित लागत से 2.80 हेक्टेयर का लक्ष्य रखा गया है। + +1191. परियोजनाएं तैयार करता है। इसका अधिकतर क्षेत्र केवल जल संरक्षण ही नहीं, बल्कि उचित + +1192. उचित नेतृत्व और समन्वय का कार्य करता है। केंद्रीय कृषि मंत्री इसके अध्यक्ष और केंद्रीय ग्रामीण + +1193. नियुक्ति की प्रक्रिया जारी है। + +1194. क्रियान्वयन के लिए ग्यारहवीं योजना में 3500 करोड़ रूपए की लागत से लागू करने की + +1195. हेक्टेयर वर्षा सिंचित क्षेत्र शामिल किए जाने की उम्मीद है। + +1196. जलसंभरण विकास कार्यक्रम के लिए भी दिशा-निर्देश राज्य सरकारों को भेजे जा चुके हैं। + +1197. और उत्पादकता में वृद्धि की जा सके और किसानों के जीवन में समृद्धि लाई जा सके। + +1198. और कृषि विकास के लिए राज्य सरकारों को पर्याप्त छूट दी गई है। फलस्वरूप राज्यों ने अपनी + +1199. कृषि उत्पादन और उत्पादकता की बढ़ोतरी की दिशा में राज्यों की कार्यक्षमता में सुधार हेतु + +1200. को बदलकर इसकी जगह सकल क्षेत्र तथा लघु एवं सीमांत जोतों पर आधारित आबंटन मानदंड अपनाया + +1201. (क) तिलहन, दलहन, पाम आयल तथा मक्का एकीकृत योजना के तहत आने वाले क्षेत्रों के लिए दाल + +1202. भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए जिसमें जिला/उपजिला स्तर पर योजना की समीक्षा, निगरानी और + +1203. अन्य मशीनें और सीमा शुल्क सेवा, मानव संसाधन विकास के लिए सहयोगी सेवाएं तथा परीक्षण, + +1204. सरकार द्वारा प्रायोजित विभिन्न योजनाओं, जैसे-खेती के लिए जल-व्यवस्था पर वृहद् कृषि + +1205. खेती की मशीनों से संबंधित प्रशिक्षण और परीक्षण संस्थानों (एफएमटी ऐंड टीआई) की स्थापना मध्य + +1206. प्रशिक्षित किया जा चुका है और 31 मार्च, 2009 तक 2,584 मशीनों का परीक्षण हो चुका है। इन + +1207. योजना प्रशिक्षण, परीक्षण और प्रदर्शन के जरिए कृषि यंत्रीकरण को प्रोत्साहन एवं सुदृढ़ीकरण का एक + +1208. सहायता के लिए प्राप्त प्रस्तावों के आधार पर (आईसीएआर एवं एसपीसीआई) दो संगठनों को राशि + +1209. मशीनरी का उन्नयन और सुदृढ़ीकरण” के अंतर्गत स्वीकृत घटक है। इसके अंतर्गत बड़ी संख्या में + +1210. फसलोपरांत प्रौद्योगिकी और प्रबंधन. + +1211. और फलों और फसल उप-उत्पाद के प्रारंभिक प्रसंस्करण मूल्य संवर्धन और कम लागत वाली वैज्ञानिक + +1212. केंद्र सरकार और संबद्ध राज्य सरकारों द्वारा संयुक्त क्षेत्र की कंपनियों के रूप में 17 राज्य कृषि उद्योग + +1213. महाराष्ट्र, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में इनकी स्थापना हुई। + +1214. खतरनाक मशीन (नियमन) अधिनियम, (1983) 14 सितंबर, 1983 से प्रभावी हुआ। इस अधिनियम में + +1215. को इस अधिनियम की परिधि में लाया गया है। केंद्रीय सरकार ने खतरनाक मशीन (नियमन) अधिनियम, + +1216. महत्वपूर्ण घटकों में समन्वित कीट प्रबंधन को प्रोत्साहन, फसल पैदावार को कीटों और बीमारियों के + +1217. ध्यान दिया जाता है। + +1218. पर केंद्र द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम इस वर्ष के दौरान जारी रहा। इस योजना को जम्मू और कश्मीर, + +1219. शामिल है। + +1220. करना शामिल है। लघु मिशन-III में राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड द्वारा फसल के बाद के प्रबंधन विपणन और + +1221. राज्यों को फंड उपलब्ध कराए जाते हैं जो संबंधित राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय + +1222. पौधे 8640 हेक्टेयर, कंद मूल 1540 हेक्टेयर, फूल 24042 हेक्टेयर शामिल हैं। इसके अलावा 47 थोक + +1223. का प्रशिक्षण, 67329 महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया। परंपरागत फसलों में बेहतर उत्पादन + +1224. फसलें 2125, औषधीय और सुगंधित पौधे-3760 हेक्टेयर आदि)। फसलों का उत्पादन और उत्पादकता + +1225. गया (फल 104064, सब्जी 20333, मसाले 12, पौध फसलें 1902, औषधीय और सुगंधित पौधे 3429 + +1226. वित्तीय स्थिति + +1227. पूर्वोत्तर और हिमालय क्षेत्र के राज्यों की आवश्यकता पूरी करने के लिए इसको 2500 करोड़ रूपए की + +1228. और वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना। मिशन के तहत बागवानी के विभिन्न पहलुओं में 2007-08 में + +1229. योजना के लिए 8.35 करोड़ रूपए रखे गए हैं। संस्थान की स्थापना मेजिफेमा में 43.50 हेक्टेयर क्षेत्र में + +1230. 568.23 करोड़ रूपए आवंटित किए गए हैं। + +1231. में सहयोग बढ़ाना। + +1232. एवं विकास के लिए 359.80 लाख रूपए सहित 11439.62 लाख रूपए दिए गए। वित्तीय वर्ष 2008-09 + +1233. वन और गैर-वन क्षेत्रों का 1,00,456 हेक्टेयर बांसबागान के तहत लाया गया है। वर्तमान बांसबागान के + +1234. स्तरीय कार्यशालाओं का आयोजन किया गया। बांस और बांस उत्पादनों की बिक्री को बढ़ावा देने के + +1235. प्रणाली अपनाता है। इस प्रणाली में बीज की तीन पीढ़ियों-प्रजनक, आधार और प्रमाणित बीजों को + +1236. (आईसीएआर), राज्य कृषि विश्वविद्यालय (एसएयू) प्रणाली, सार्वजनिक क्षेत्र, सहकारी क्षेत्र और निजी + +1237. वितरण में निजी क्षेत्र महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने लगा है, किंतु संगठित बीज क्षेत्र में खास कर खाद्य + +1238. प्रमुख एजेंसियां हैं, जो इसके प्रशासन संबंधी सभी मामलों और बीजों की गुणवत्ता पर नियंत्रण के लिए + +1239. की नई आयात-निर्यात नीति के अंतर्गत इन्हें प्रतिबंधित सूची में रखा गया है। + +1240. प्रबंध, पूर्वोत्तर और अन्य पर्वतीय क्षेत्रों में बीजों की ढुलाई के लिए परिवहन सब्सिडी, बीज बैंक की स्थापना + +1241. के अनुच्छेद 27 (3) बी के अंतर्गत बाध्यताओं को पूरा करने के लिए कृषि एवं सहयोग विभाग ने पौध + +1242. पौध किस्मों के संरक्षण तथा किसान अधिकार प्राधिकरण (पीपीवीएंडएफआर) द्वारा लागू की गई है। + +1243. 11वीं योजना में इसमें 12 घटक होंगे और पीपीवी एवं एफआर अधिनियम को लागू करने के + +1244. अगस्त 2004 में केंद्र सरकार ने प्रो. ए. वैद्यनाथन की अध्यक्षता में एक कार्यदल बनाया था। इस कार्यदल + +1245. ऑडिट का आयोजन और कार्यान्वयन लागत शामिल है। + +1246. सुझाने को कहा गया है। इस संबंध में कार्यदल की रिपोर्ट तैयार होने के बाद ही सरकार दीर्घावधि + +1247. इसमें आ गए हैं। दस राज्यों के 37,821 पीएसीएस के पुनर्पूंजीकरण के लिए नाबार्ड ने भारत सरकार के + +1248. सहकारिता सुधार. + +1249. अपने अस्तित्व को लेकर ऊहापोह में हैं। इन संस्थाओं को आमतौर पर संसाधनों की कमी, लचर + +1250. का उद्देश्य देश में सहकारी संगठनों के चहुंमुखी विकास को बढ़ावा देना है। यह नीति सरकार द्वारा + +1251. बहुराज्यीय सहकारी समितियां (एमएससीएस) अधिनियम, 2002 — केंद्र सरकार ने बहुराज्यीय + +1252. समितियों पर लागू होता है, फिर भी यह उम्मीद की जाती है कि यह राज्य सहकारी नियमों में सुधारों के + +1253. संशोधन करके उनके अंतर्गत खाद्य और अखाद्य तिलहनों, मवेशी आहार, बागवानी और पशुपालन + +1254. शामिल होंगे। एनसीडीसी स्वयं की संतुष्टि के लिए प्रतिभूति भरने पर राज्य/केंद्र सरकार की गारंटी के + +1255. राज्य सहकारी समिति अधिनियमों में संशोधन किए जाने के बावजूद राज्यों द्वारा सहकारी कानूनों में + +1256. संस्थाओं के स्वैच्छिक गठन, स्वायत्त कार्यप्रणाली, लोकतांत्रिक नियंत्रण और व्यावसायिक प्रबंधन के + +1257. चुनौतियों की समीक्षा करने और उनका सामना करने के तौर-तरीके सुझाने तथा आंदोलन को नई दिशा + +1258. के लिए सहकारिता कानून में अपेक्षित संशोधनों और तत्संबंधी समुचित नीति तथा विधायी फ्रेमवर्क + +1259. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन का केंद्र प्रायोजित योजना देश में 11वीं योजना के अंत तक चावल, गेहूं और + +1260. में 93.35 मिलियन टन था। इस प्रकार इसमें 3.34 मिलियन टन की वृद्धि हुई। तदनुसार 2008-09 + +1261. तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार गेहूं का उत्पादन 77.63 मिलियन रहा, जो 2006-07 से 1.63 + +1262. समन्वित पोषक तत्त्व प्रबंधन. + +1263. बनाने तथा उर्वरकों की गुणवत्ता सुनिश्चित करते हुए इस बात पर जोर देना है कि जैविक और + +1264. आत्मनिर्भरता 90 प्रतिशत है। पूरे देश में उर्वरकों की खपत 96.4 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, हालांकि + +1265. रखते हुए सरकार इसके संतुलित और समन्वित प्रयोग को विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से प्रोत्साहन दे + +1266. आपूर्ति जारी रखने के लिए केंद्र सरकार की ओर से सब्सिडी दी जाती है। देश में यूरिया की खपत सबसे + +1267. मिश्रित ग्रेड उर्वरकों की कीमतें पोषण आधारित सरकारी उर्वरक की कीमतों की तरह 14 जून, 2008 से + +1268. मिश्रित 5121-8185 + +1269. डीएपी और एमओपी की सीमित मात्रा के बफर स्टॉक की एक योजना बनाई गई है जिससे इसकी + +1270. सरकार आवश्यक उपभोक्ता वस्तु अधिनियम के अंतर्गत जारी उर्वरक नियंत्रण आदेश (एफसीओ) के + +1271. उर्वरक गुणवत्ता नियंत्रण और प्रशिक्षण संस्थान फरीदाबाद में स्थित है और इसके तीन क्षेत्रीय केंद्र नवी + +1272. उर्वरक-नियंत्रण आदेश में हाल ही में संशोधन किया गया, ताकि इसे उपभोक्ताओं के अधिक + +1273. आलेपित यूरिया के वाणिज्यिक ट्रायलों के लिए विनिर्माण की अनुमति दी गई है। इसी प्रकार मेसर्ज + +1274. इस समय देश में 67 प्रयोगशालाएं हैं। इनमें केंद्र सरकार की 4 प्रयोगशालाएं शामिल हैं। इन + +1275. परियोजना नामक नई योजना प्रारंभ की गई। योजना 11वीं योजना में भी जारी है, जिसके लिए 115 + +1276. लिए वित्तीय और तकनीकी सहायता (iii) प्रशिक्षण और प्रदर्शन से मानव संसाधन विकास (i1) + +1277. योजना के तहत 708 टन कृषि कचरे को कंपोस्ट, 5606 मी.ट. जैव उर्वरक और 17000 टन कृमि + +1278. एकीकृत पोषक प्रबंधन का संवर्धन (आईएनएम) — सरकार भूमि परीक्षण आधारित रसायन उर्वरकों, + +1279. केंद्र प्रायोजित उर्वरकों का संतुलित और एकीकृत उपयोग और (ii) केंद्रीय उर्वरक एवं गुणवत्ता नियंत्रण + +1280. लिए 20 नई प्रयोगशालाओं की स्थापना, वर्तमान 63 प्रयोगशालाओं को 11वीं योजना में मजबूत करना + +1281. 82 भारत-2010 + +1282. सूचना प्रौद्योगिकी. + +1283. की सहायता से कृषि में राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना तैयार कर रही है। यह दो-दो चरणों में लागू होगी। + +1284. ई-गवर्नेंस पहल की सफलता के लिए हर स्तर पर उपकरण साफ्टवेयर और प्रशिक्षण के माध्यम + +1285. अपने बजट से अपना खर्च पूरा करेंगे। लेकिन नेटवर्किंग, साफ्टवेयर विकास और क्षेत्र कार्यालयों/ + +1286. हरियाणा के रोहतक और गुजरात के बनासकांठा में काम जारी है। ग्यारहवीं योजना में स्कीम के डैकनेट + +1287. जनसंचार विकास के पोर्टल विकास के विभिन्न चरणों में हैं। कृषि के विभिन्न विषयों के पोर्टलों का + +1288. डिजाइनिंग के लिए जनशक्ति की जरूरत होगी। इन कार्यों को बाहर से कराने का प्रस्ताव है। + +1289. गवर्नेंस के प्रयोग के लिए राशि जारी की गई है। देश भर के किसानों को उन्नत सूचनाएं प्रदान करने के + +1290. मुक्त नंबर 1880-180-1551 से ऑन लाइन सूचनाएं प्रदान करना है। इस सुविधा का प्रचार दूरदर्शन + +1291. प्राप्त करने के उद्देश्य से 1986 में तिलहन प्रौद्योगिकी मिशन शुरू किया था। इसके बाद दलहन, आयल + +1292. की निम्नलिखित योजनाएं लागू की गई हैं — + +1293. तिलहन, दलहन और मक्का के लिए समन्वित योजना. + +1294. कार्यक्रम” कहा जाता है। यह कार्यक्रम दसवीं पंचवर्षीय योजना में एक अप्रैल, 2004 से कार्यान्वित + +1295. धन खर्च करने के मामले में राज्यों के प्रति लचीलापन; (ii) वार्षिक कार्ययोजना राज्य सरकारों द्वारा तैयार + +1296. प्रतिशत धनराशि के अंतर-घटक विचलन की छूट; तथा (1i) कृषि और सहकारिता विभाग की पूर्व + +1297. 2008-09 में 146.62 (IV अग्रिम अनुमान) लाख टन हो गया। आयल पाम की खेती का क्षेत्र 1992- + +1298. विस्तार. + +1299. जिला और उसके निचले स्तर पर कार्यरत किसानों/किसान समूहों, एनजीओ, केवीके, पंचायती राज + +1300. उठा चुके हैं और योजना की शुरूआत से अब तक 42.060 “किसान हित समूह” (एफआईजी) सक्रिय + +1301. तहत क्षेत्रीय केंद्रों द्वारा सप्ताह में पांच दिन 30 मिनट के कृषि कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं। राष्ट्रीय + +1302. मिशन (एनएफएसएम) का प्रचार अभियान भी किया गया। मास मीडिया पहल के तहत अन्य भाग के + +1303. जवाब दे रहे हैं। देशभर में सातों दिन सुबह 6 बजे से रात के 10 बजे तक एक ही टोल फ्री नंबर 1551 + +1304. स्थानों पर केसीसी सुविधा का विस्तार किया जा रहा है। कृषि और सहयोग विभाग ने किसान ज्ञान + +1305. देशभर में कृषि जिन्सों के व्यवस्थित विपणन को प्रोत्साहित करने के लिए बाजार को नियंत्रित किया गया + +1306. और खासकर आदिवासी बाजार इस व्यवस्था का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। + +1307. जाती है जिसके लिए उचित कानून और नीतियां बनाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही खेतों से या + +1308. निवेश को प्रोत्साहन मिल सके। + +1309. स्थापित करना है। इस कानून के अंतर्गत ही कृषि उत्पादों की गुणवत्ता प्रमाणीकरण और मानकीकरण + +1310. आधारित ड्राफ्ट मॉडल रूल तैयार कर संबंधित राज्यों/केंशाप्र को भेजे हैं। 7 राज्यों ने अपने एपीएमसी + +1311. इन कार्यक्रमों और योजनाओं को कार्यान्वित किया है। + +1312. मूल योजना के अंतर्गत परियोजना की पूंजी लागत के 25 प्रतिशत तक बैंक एडिड सब्सिडी + +1313. पर चलने वाली निजी कंपनियों और सहकारी कंपनियों की अन्य सभी श्रेणियों में आने वाली कंपनियों + +1314. अप्रैल, 2001 से क्रियान्वित योजना में 30 जून, 2009 तक 240.87 लाख भंडारण क्षमता वाली भंडारण + +1315. तथा विपणन निदेशालय एवं निरीक्षण कार्यालयों को इस नेटवर्क से जोड़ा गया है, जाहां 300 वस्तुओं + +1316. (iii) “कृषि विपणन ढांचे का विकास/सुदृढ़ीकरण ग्रेडिंग और मानकीकरण” नाम की एक और + +1317. सरकारों/राज्य स्तरीय एजेंसियों की मूलभूत परियोजनाओं के लिए योजना के अंतर्गत ऊपरी परिसीमन + +1318. आंध्र प्रदेश, अरूणाचल प्रदेश, उड़ीसा, महाराष्ट्र, बिहार, असम, त्रिपुरा, गुजरात, कर्नाटक, गोवा और + +1319. सरकारी सहायता से सहकारिता क्षेत्र में विकसित किया गया है। इस निदेशालय ने राज्य की एजेंसियों की + +1320. विपणन के लिए आधुनिक टर्मिनल वाले बाजारों को प्रोत्साहित करने के लिए विभाग ने कई कदम उठाए + +1321. उनके उत्पाद या फसल को बेचने के लिए उनकी पहुंच के अंदर रहता है। उपर्युक्त योजना के तहत + +1322. 26' इक्विटी के साथ प्रावधान किया गया है। तदनुसार प्रचालन दिशा-निर्देशों में सुधार कर जारी किया + +1323. 88 भारत-2010 + +1324. निदेशालय के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं — राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को कृषि उत्पादों के विकास + +1325. ग्रेडिंग और मानकीकरण. + +1326. संगठन द्वारा तैयार अंतर्राष्ट्रीय मानक पर भी ध्यान दिया जाता है ताकि भारतीय उत्पाद अंतर्राष्ट्रीय बाजार + +1327. एगमार्क के तहत यूरोपीय यूनियन के देशों को अंगूर, प्याज और अंतर का प्रमाणीकरण किया जा रहा है। + +1328. गजट में प्रकाशन के लिए भेजी जा चुकी है। + +1329. सब्जियों के मानकों सहित, जिसे अरोडा की स्थायी समिति ने स्वीकृति प्रदान की है) विधि और न्याय + +1330. भारतीय स्टेट बैंक, आईडीबीआई, एक्सिम बैंक, ओरिएंटल बैंक ऑफ कामर्स, नाबार्ड, केनरा बैंक, + +1331. ग्रामीण क्षेत्रों में आय और रोजगार अवसर बढ़ाने के लिए नए सुझावों को लागू करना है। एसएएफसी ने + +1332. करने वाले किसानों/उत्पादकों के समूहों को सहायता देने वाले व्यावसायिक बैंकों के साथ मिलकर लागू + +1333. परियोजना विकास सुविधाओं के माध्यम से मूल्य कड़ी में भागीदारी बढ़ाने के लिए कृषि स्नातकों को + +1334. प्रतिशत, 75 लाख रूपये। + +1335. राष्ट्रीय कृषि विपणन संस्थान 8 अगस्त, 1988 से जयपुर (राजस्थान) में कार्य कर रहा है। यह कृषि + +1336. विभाग के सचिव की अध्यक्षता में एक कार्यकारी समिति करती है। प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्देश्य वर्तमान + +1337. आयोजन करेगा। + +1338. संस्थान ने कई राज्यों कृषि विपणन विकास के लिए योजनाएं बनाई हैं। यह टर्मिनल बाजारों और + +1339. स्पर्धी परियोजना के विपणन घटकों के बारे में रिपोर्ट दी है। इनके अलावा संस्थान ने भारत के कृषि + +1340. व्यावहारिक अनुसंधान करवाता है। संस्थान एआईसीटीई द्वारा स्वीकृत दो वर्षीय स्नातकोत्तर डिप्लोमा + +1341. भूमिहीन और छोटे तथा सीमांत किसान पशुपालन को आय के पूरक स्रोत के रूप में अपनाते हैं। इस + +1342. क्षेत्र के और 4, 2178 करोड़ रूपये मछली पालन क्षेत्र के थे), जो कि कृषि, पशु पालन और मछली क्षेत्र + +1343. तथा 9.8 करोड़ भैंसें हैं। + +1344. ग्राम है। किंतु बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए बढ़ते बच्चों और शिशुओं को दूध पिलाने वाली माताओं + +1345. 10 करोड़ 49 लाख टन से अधिक दूध उत्पादन करने के साथ ही भारत दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में दुनिया + +1346. अन्य पशु उत्पाद — पशुपालन क्षेत्र दूध, अंडे, मांस आदि के जरिए न केवल अनिवार्य प्रोटीन और पौष्टिक + +1347. पशु बीमा — गोवा को छोड़कर देश के सभी राज्यों में लागू की जानेवाली पशुबीमा योजना के दो प्रमुख + +1348. जिलों में नियमित आधार पर लागू की जा रही है। + +1349. योजना में प्रारंभिक स्तर पर गाय और भैंसों की उच्च नस्लों के अधिकतम वर्तमान मूल्यों के आधार + +1350. व्यय हुए। 18 जून, 09 तक 40,891 दावों में से 33,306 का भुगतान किया गया। + +1351. के मामले में छठवें स्थान पर है। इनसे कृषि मजदूरों, लघु एवं सीमांत किसानों, ग्रामीण महिलाओं, कृषि + +1352. भी यह गणना हुई। 18वीं गणना 15 अक्टूबर, 2007 की संदर्भतिथि के साथ पूरी हो गई है। 18वीं पशु + +1353. और बिहार को छोड़कर सभी राज्यों/केंशाप्र से आंकड़े प्राप्त हो गए हैं। दोनों राज्यों में डाटा इंट्री का कार्य + +1354. पशुगणना के लिए 203.67 करोड़ रूपए जारी किए गए। योजना के लिए बीई के तहत 2009-10 में + +1355. केंद्रीय और केंद्र प्रायोजित कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इस बात के भी प्रयत्न किए जा रहे हैं कि जिन + +1356. गाय, बैल और भैंस प्रजनन की राष्ट्रीय परियोजना के अंतर्गत कार्यक्रम को लागू करने वाली + +1357. मवेशियों और भैंसों के श्रेष्ठ जनन द्रव्य (जर्म प्लाज्म) की पहचान और उसका पता लगाने, + +1358. कंकरेज, हरियाणा एवं ओंगोल तथा भैंसों की प्रजातियों (जैसे-जस्फराबादी, मेहसाणी, मुर्रा और सुरती) + +1359. प्रदेश) में स्थित हैं, जो गाय, बैल और भैंस प्रजनन की राष्ट्रीय परियोजना के अंतर्गत गायों, बैलों तथा + +1360. फार्म प्रशिक्षण प्रेक्टिस और वैज्ञानिक प्रजनन प्रदर्शन में 3711 व्यक्तियों को प्रशिक्षित किया गया। डेयरी + +1361. में प्रशिक्षण प्रदान करने के अलावा देश में तैयार हिमशीतित वीर्य और कृत्रिम गर्भाधान के उपकरणों + +1362. मुर्गीपालन में उत्तरोत्तर प्रगति हुई है। + +1363. किग्रा हो गई है। मुर्गीपालन तथा उत्पादों में भारत का विश्व में एक छोटा हिस्सा है फिर भी पिछले दशक + +1364. आमदनी पशुधन विशेषकर मुर्गीपालन से अर्जित करते हैं। + +1365. सीपीपीटीसी) को लेयर और ब्रोइलर प्रजातियों के निष्पादन परीक्षण का काम सौंपा गया है। यह केंद्र एक + +1366. बैकयार्ड पॉल्ट्री डेवलपमेंट” भाग किसानों को वैज्ञानिक तरीके से संगठित गतिविधियां चलाने में समर्थ + +1367. की रेखा के नीचे के अधिक से अधिक जरूरतमंदों को लाया जाएगा ताकि उन्हें पूरक अन्य और पोषण + +1368. 2003 की मवेशी गणना के अनुसार देश में लगभग 6.147 करोड़ भेड़ और 12.436 करोड़ बकरियां हैं। + +1369. किसानों को ऊन की कटाई और 633 किसानों को भेंड़ प्रबंधन का प्रशिक्षण दिया गया। + +1370. ऐसे विलुप्तप्राय नस्लों के संरक्षण के लिए दसवीं पंचवर्षीय योजना में केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित + +1371. 27 नस्लों के लिए संरक्षण परियोजना शुरू की गई है। वर्ष 2007-08 के दौरान संकटग्रस्त नस्लों के + +1372. 16 करोड़ रूपए से बढ़ाकर 2008-09 में 45 करोड़ रूपए कर दिया गया है। 11वीं योजना में उन मुर्गियों + +1373. संरक्षण के लिए (27.25 लाख रूपए) और अंगामैली सूअरों के लिए (9.20 लाख रूपए), जम्मू और + +1374. अप्रैल के आखिरी पखवाड़े में 2009 में 11वीं योजना के पूरक के रूप में केंद्रीय क्षेत्र की एक नई योजना + +1375. कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण के तहत निर्मातोन्मुख एकीकृत आधुनिक + +1376. निर्यात किया गया। निर्यात में रूपए के संदर्भ में 31.9190 की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई। + +1377. नस्लों के सूअर रखे जाते हैं। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान वृहद प्रबंधन योजना के तहत एकीकृत + +1378. विकास करना अत्यंत आवश्यक है। चारे के उत्पादन की वैज्ञानिक प्रौद्योगिकी उपलब्ध कराने के उद्देश्य + +1379. बीज का उत्पादन किया गया, 6249 क्षेत्रीय प्रदर्शन आयोजित किये गये, 110 प्रशिक्षण कार्यक्रम और + +1380. मेले आयोजित किये। राज्यों के पशुपालन निदेशालयों के माध्यम से बड़े पैमाने पर चारे की नई किस्मों + +1381. उत्पादन और जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान परियोजनाएं भी शामिल हैं। वर्ष 2008-09 में राज्यों को 924.91 + +1382. गए। + +1383. परिचायक है। 2008-09 में डेयरी विकास के लिए सरकार ने चार योजनाएं विकसित की हैं। + +1384. प्रदेशों में 489.84 करोड़ रूपये के आबंटन के साथ ही 86 परियोजनाओं को स्वीकृति दी गई है। 31 + +1385. वर्ष 2003 अक्टूबर, के दौरान प्रायोजित एक नई केंद्रीय योजना प्रारंभ की गई जिसका मुख्य उद्देश्य देश में ग्राम स्तर पर + +1386. करने के लिए 75 प्रतिशत वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई गई है। इस योजना के अंतर्गत 31 मार्च, + +1387. विपणन और उसकी गुणवत्ता बनाए रखने के लिए 21.05 लाख लीटर के दुग्ध प्रशिक्षण कूलर स्थापित + +1388. यूनियनों, राज्य सरकारों से विचार-विमर्श कर कार्यक्रम तैयार करती है। परियोजना को कार्यान्वित करती + +1389. के 32 पुनर्वास पुनरूत्थान प्रस्ताव मंजूर किये गये। यह राज्य हैं मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, उत्तर + +1390. डेयरी उद्यम पूंजी कोष. + +1391. शामिल हैं। इसके लिए दसवीं योजना में एक नई योजना डेयरी/पोल्ट्री उद्यम पूंजी कोष नामक केंद्रीय + +1392. राशि के ब्याज में भी सरकार 50' सहायता देती है, लेकिन भुगतान नियमित समय से हो। + +1393. प्रावधान है जिसमें से 31 जुलाई 2009 तक 10 करोड़ रूपये जारी किए जा चुके हैं। + +1394. राष्ट्रीय डेयरी योजना. + +1395. नए संस्थागत ढांचों के माध्यम से दूध उत्पादन, प्रसंस्करण और बाजार में पहुंचाना चाहती है। योजना में + +1396. भारत में पशुओं के स्वास्थ्य में कई तरह से सुधार हुआ है और पशुपालन के स्तर में भी कई बदलाव + +1397. की मदद से एक प्रमुख स्वास्थ्य योजना शुरू की गई है। + +1398. 27,562 पोली क्लीनिक, अस्पताल और डिसपेंसरियां और 25,195 पशु सहायता केंद्र खोले गए हैं। + +1399. आयात भी किया जा सकता है। + +1400. हैदराबाद और बेंगलुरू में दो अतिरिक्त पशु संगरोधन केंद्र की स्थापना तथा दिल्ली, मुंबई, + +1401. जमीन का अधिग्रहण कर लिया गया है। मुर्गीपालन के सामान, पालतू जीव, प्रयोगशाला के लिए जीव + +1402. देने की सिफारिश। + +1403. पशु रोग अनुसंधान एवं रोग निदान केंद्र, इज्जतनगर केंद्रीय प्रयोगशाला के रूप में काम कर रहा है। यह + +1404. सीडीडीएल/आरडीडीएल के मुख्य उद्देश्य हैं — + +1405. बुखार, घोड़ों में ग्लैंडरर्न, इक्वीन राइनोन्यूमोनिटिस कुत्तों में कैनी पार्वोवायरस, पक्षी इन्फ्लुएंजा, + +1406. अध्ययन। + +1407. पशु रोग नियंत्रण के लिए राज्यों को सहायता — इस कदम के अंतर्गत राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों + +1408. जा रहा है, लेकिन प्रशिक्षण और संगोष्ठियों/कार्यशालाओं के केंद्र 100' सहायता देता है। इसके अलावा + +1409. सूचना प्रणाली को ओआईई के दिशा-निर्देशों के अनुसार समस्वरित किया गया है। + +1410. 26 मई, 2007 को मुक्त घोषित कर दिया। इसीलिए व्यापार और निर्यात के लिए आवश्यक है कि इन दो + +1411. (ii) मुंह पका-खुर पका रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एफएमडी-सीसी) — मुंह पका-खुर पका रोग को + +1412. (iii) पेशेवर क्षमता विकास (पीईडी) — इस योजना का उद्देश्य वेटनरी प्रैक्टिस को नियमित करना और + +1413. स्थापना की बात है। वर्तमान में यह जम्मू और कश्मीर को छोड़कर देश के सभी राज्यों में लागू है। + +1414. फैला। देश में चौथी बार एवियन इन्फ्लूएंजा का प्रकोप पश्चिम बंगाल के बीरभूम और दक्षिण दिनाजपुर + +1415. पक्षियों को मार दिया गया; लगभग 15.60 लाख अंडे और 89,823 किलोग्राम मांस नष्ट कर दिया गया। + +1416. 4 नवंबर, 2008 को भारत एवियन इन्फ्लूएंजा से मुक्त घोषित किया गया। + +1417. पिछले पांच वर्षों का मछली-उत्पादन का ब्योरा नीचे सारणी में दर्शाया गया है- + +1418. 1992-93 25.76 17.89 43.65 + +1419. 1997-98 29.50 24.38 53.88 + +1420. 2003-04 29.41 34.58 63.99 + +1421. मात्स्यिकी क्षेत्र निर्यात के जरिए विदेशी मुद्रा को अर्जित करने वाला एक प्रमुख क्षेत्र है। मछली + +1422. ताजा पानी के मछली-पालन विकास की मौजूदा योजना और समन्वित तटवर्ती मछली-पालन को + +1423. ताजा पानी के मछली-पालन का विकास. + +1424. वालों को उन्नत पद्धतियों का प्रशिक्षण दिया। + +1425. विकास एजेंसियां (बीएफडीए) इस काम में लगी हुई हैं। इन एजेंसियों ने 2007-08 तक 31,624 + +1426. लिए सब्सिडी देती है। इन नौकाओं से वे अधिक बार तथा अधिक समुद्री क्षेत्र में जाकर ज्यादा मात्रा में + +1427. के मालिकों की परिचालन लागत में कमी लाई जा सके। + +1428. रायचौक, पाराद्वीप और सीजन डॉक में 62 छोटे बंदरगाहों और 190 मछली अवतरण केंद्रों का निर्माण + +1429. बचत व राहत योजना। मछुआरों को अवधि में वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। बचत व राहत योजना + +1430. में परिचालक और तटवर्ती प्रतिष्ठानों हेतु तकनीशियन उपलब्ध कराना है। समन्वित मत्स्य परियोजना, + +1431. लिए नोडल एजेंसी के रूप में भी कार्य करता है। + +1432. देकर 35 लाख लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार उपलब्ध कराया जा सके। यह मत्स्य क्षेत्र में सार्वजनिक-निजी + +1433. गया। कार्यालय की स्थापना हैदराबाद में की गई। बोर्ड के विभिन्न कार्यक्रमों को 6 वर्ष में 2006-12 में + +1434. से संबंधित गतिविधियों के बीच समन्वय। + +1435. 6. मछली उद्योग के लिए आधुनिक मूलभूत ढांचा उपलब्ध कराना और उसका अधिकतम उपयोग तथा + +1436. 1. तालाबों और टैंकों में व्यापक मछली पालन। + +1437. 6. समुद्री जीव फार्म। + +1438. 11. अन्य गतिविधियां। + +1439. तीन वर्ष में विभिन्न मत्स्य विकास गतिविधियों के लिए जारी किए गए। पिछले तीन वर्ष में व्यय किए + +1440. तथा इनसे संबंधित क्षेत्रों में काम कर रही राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के विभिन्न विभागों और + +1441. के क्षेत्र में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करना और उनके बारे में शिक्षित करना है। + +1442. जाता है। + +1443. कि इसके चार विश्वविद्यालयों से अलग है। + +1444. विविध फसलों के 25,456 किस्में विभिन्न देशों से लाए गए और आईसीआरआईएएएडी जर्म प्लाज्म + +1445. विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों के लिए जारी किए गए। + +1446. 38 (एएजेड) को देर से बुआई के उपयुक्त पाया गया। अधिक उपज देनेवाली दो किस्में मसूर, अंगूरी + +1447. केएनओसीके डब्लूपी से व्यवसायीकरण के लिए पंजीकृत किया गया। डीआरएसएच-1 (42-44') + +1448. जारी की गई। सोयाबीन की तीन उन्नत किस्में पीएस 134 और पीआरएस-1 (उत्तरांचल) और जेएस + +1449. एकीकृत कीट प्रबंधन (आईपीएम) की रणनीति देश भर के कपास उत्पादक नौ राज्यों के 2360 + +1450. कृषि 107 + +1451. लार्जिडेइ, पिरोकोरिडेइ और खरकोपीडेइ के जीनस और प्रजातियों के लिए टैक्सोनामिक आधार + +1452. भारतीय फली (एएचडीबी-6) गोल लौकी, एएचएलएस-11 एएचएलएस-24 और एएचपी 13 गुच्छा + +1453. और कोकोआ में उत्पादन तंत्र का इस्तेमाल। काजू जर्म प्लाज्म आरएपीडी। आरगेजाइम माकरिर्स जर्म + +1454. गुणों के लिए आरआईएल का विकास, सीआरवाई। एसी, डीआईवी, जेडएटी-12 टी-आरईपीजीन के + +1455. खुम्ब की उत्पादकता और उत्पादन और खपत बढ़ाने और उसके उत्पादों पर काम जारी है। कंद + +1456. सौंफ, अजवाइन का अधिक उत्पादन के लिहाज से मूल्यांकन प्रगति पर है। लंबी काली मिर्च में एक नई + +1457. गुलदाउदी की छह नई किस्मों का बहु स्थानीय परीक्षण चल रहा है। + +1458. महत्वपूर्ण उपलब्धियों में भूमि सरण के मूल्यांकन और मानचित्रीकरण के लिए बहुआयामी दूर + +1459. ड्रमस्टिक + हरा चना -सौंफ के लिए पानी की कम जरूरत होती है और वसाड, गुजरात में यह + +1460. साबित हुई। + +1461. 50' खुराक एनपीके उर्वरक प्रति पौधा, बनाया गया। + +1462. मैनेजमेंट राष्ट्रीय संस्थान की स्थापना की है ताकि कृषि में विभिन्न प्रकार की समस्याओं (सूखा, शीत + +1463. कृषि उत्पादन में क्षमता बढ़ाने के लिए कई नई मशीनों और उपकरणों का विकास किया गया है। ट्रैक्टरों + +1464. निकालने वाली मशीन विकसित की गई है। + +1465. 500 फार्म महिलाओं ने हिस्सा लिया। बड़ी इलायची को सुखाने के लिए यंत्र विकसित किया गया है + +1466. बांटकर बीज के काम लायक बनाने वाला उपकरण विकसित कर परीक्षण भी किया गया। पहाड़ी मिर्च + +1467. बनाए गए। जूट से गोंद के स्थानापन विकसित किए गए। जम्मू और राजस्थान से दो रंगीनी लाख + +1468. हाल्ट और नॉक लाख के कीड़ों की रक्षा के लिए प्रभावी पाए गए। लाख के कीड़ों के नौ रंगों की + +1469. निर्धारित प्रक्रिया से मोम तथा चिपचिपाहट को दूर किया गया तथा हाई स्पीड डीजल के साथ ट्रैक्टर + +1470. पिजन मटर की अच्छी पैदावार की जा सकती है। इनमें 20 से 40' बढ़ोत्तरी हो सकती है। + +1471. किए गए। + +1472. है। एलपीबीई एवं इएलआईएसए 2000 नमूनों का राष्ट्रीय पीएमडी नियंत्रण कार्यक्रम में मूल्यांकन किया + +1473. खनिज मिश्रिण का व्यवसायीकरण किया गया। चारा के नए संसाधनों की पहचान और परीक्षण कर + +1474. देने वाले पक्षियों और ब्रोइलर की किस्मों में और सुधार किया गया। विभिन्न अंडा देने वाले पक्षियों और + +1475. गहन चयन से चोकला और मारवाड़ी नस्लों की दैनिक वजन वृद्धि 60 ग्रा. से बढ़ाकर 120 ग्राम + +1476. किया गया। बरबरी और जमुना पारी बकरियों की 12वीं पीढ़ी का उत्पादन गहन चयन से कर फार्म और + +1477. 10,000 खुराक सुरक्षित किए गए। वीर्य की गुणवत्ता परखने और उसकी प्रजनन क्षमता के सूचक + +1478. है। इस प्रौद्योगिकी से मनपसंद जानवरों को पैदा किया जा सकेगा। पशमीना बकरियों की क्लोनिंग का + +1479. नस्ल पशुओं और मुर्जियों का दस्तावेजीकरण और नंबर प्रदान किए गए। भैंस जिनोमिक्स परियोजना + +1480. कुल्फी और चीनी रहित कुल्फी बनाकर ऊंट के दूध का मूल्यवर्धन कर प्रौद्योगिकी का व्यवसायीकरण + +1481. सार्डीन, माकेरेल, टुना, सीयर, ऐंकोवीज, कैसनगिड्स, बांबे डक रिबन मछली की प्रजातियों और + +1482. लक्षण हैं। कारवाड़ मैंगलोर, कोच्चि, विजिंजाम और तूतीकोरन में लुजैनिडे परिवार की मछलियों की + +1483. उत्पाद के विकास से अम्ल और अगार निकाले गया। कृत्रिम परिस्थितियों में सीबॉस का प्रजनन पूरे साल + +1484. आई। 40' मछली के चारे को पौध प्रोटीन शामिल कर शंखमीन चारा बनाकर पी.मोनोडोन को तालाबों + +1485. जलाशयों में भंडारण के लिए विकसित उपायों का मध्य प्रदेश में परीक्षण किया गया जिससे मछली + +1486. ट्राउट के 15000 बीज पैदा किए गए और उनको पालने का कार्य प्रगति पर है। महसीर हैचरी में + +1487. कार्यक्रम चलाए गए जिसमें 400 लोगों को विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी दी गई। तटीय स्व + +1488. सजावटी मछलियों के बारे में आंकड़े आन लाइन हैं। 60 प्रजातियों के 250 नमूने मन्नार की खाड़ी से + +1489. अनुसंधान में उत्कृष्टता के लिए आईसीएएम ने विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों में 29 उत्कृष्टता क्षेत्र में + +1490. विवरण 2008-09 में पहली बार संशोधित कर आवश्यकता आधारित बनाया गया। कृषि विश्वविद्यालयों + +1491. सहायता का परिणाम अध्यापकों और छात्रों में ज्ञान और कौशल अर्जन/अद्यतन के रूप में निकला है और + +1492. समुद्रपारीय फेलोशिप की शुरूआत की गई, जिससे भारतीयों को विश्व की सर्वश्रेष्ठ प्रयोगशालाओं + +1493. खेती की विभिन्न प्रणालियों में किया जा सके। विभिन्न फसलों के संकर किस्मों सहित 74,732 प्रदर्शन + +1494. विज्ञान केंद्रों ने किसानों को उपलब्ध कराने के लिए 2.02 लाख कि्ंवटल बीज और 133.20 लाख + +1495. परीक्षण, विभिन्न प्रौद्योगिकियों की स्थलीय उपयोगिता का पता लगाने के अलावा किसानों के खेतों में + +1496. द्यuष्k. ष्शद्व), वार्षिक समीक्षाओं (222.ड्डnद्वeड्डद्यह्म1ie2ह्य. शह्म्द्द), और सीएनआईआरओ (222. + +1497. प्रौद्योगिकी प्रबंधन और व्यापार नियोजन और विकास इकाइयों की स्थापना। कृषि विज्ञान के 26 क्षेत्रों में + +1498. फाक्सटेल और छोटा बाजरा कपास के बहु प्रयोगों की खोज (डंठल, अच्छे धागे और कपड़े के लिए + +1499. है। इसमें लगभग 83,000 किसानों/खेतिहर मजदूरों का लक्ष्य है। एक तिहाई भागीदार एनजीओ और शेष + +1500. राष्ट्रीय संस्थान, अंतर्राष्ट्रीय केंद्र आदि भागीदारी में विविधता के प्रतीक हैं। 61 स्वीकृत परियोजनाओं से + +1501. छह भारतीय पेटेन्ट्स आईसीएआर को दिए गए जिसमें पशु पोषण (क्षेत्र-विशिष्ट खनिज मिश्रण) + +1502. कराया गया। + +1503. अपकोडिंग शुरू कर दी है। + +1504. बदलाव किया गया है। विश्वविद्यालय 7 स्नातक और 20 स्नातकोत्तर डिग्री कार्यक्रम चलाते हैं। स्नातक + +1505. जलवायु क्षेत्रों के विभिन्न फसलों की 11 किस्में/हाइब्रिड जारी की गईं। जारी की गई 47 किस्मों के कुल + +1506. विकास के लिए उत्तरपूर्व हिमालय क्षेत्र में स्थित संस्थान में अनुसंधान कार्य किया गया। झूम खेती के + +1507. इस्तेमाल कर रबी फसल (सरसों) के लिए एक कम लागत वाली तकनीक “इन-सिटु” नमी संरक्षण + +1508. कंपोजीशन विकसित किया गया। + +1509. (49 से 66 प्रतिशत) है। एक औसत रूप में विभिन्न संसाधन स्थितियों के तहत आईएफएस से शुद्ध + +1510. की दो किस्में (स्थानीय अंडमान तथा टैरेसा) पहली बार फिनोटिपिकली पहचानी गईं। + +1511. संस्कृति मंत्रालय कला और संस्कृति के संरक्षण तथा विकास में अहम भूमिका निभाता है। इस + +1512. प्रमुख एजेंसी भी है। + +1513. लखनऊ, कोलकाता, चेन्नई, नई दिल्ली और भुवनेश्वर में क्षेत्रीय केंद्र हैं जिन्हें राष्ट्रीय कला केंद्र के नाम + +1514. अकादमी समकालीन कला पर नई दिल्ली में त्रैवार्षिक अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी (त्रिनाले इंडिया) आयोजित + +1515. आयोजित करती है। देश के कलाकारों का अन्य देशों के कलाकारों के साथ मेलमिलाप और तालमेल + +1516. कलाकारों को छात्रवृत्ति भी प्रदान करती है। अपने प्रकाशन कार्यक्रम के तहत अकादमी समकालीन + +1517. समय-समय पर समकालीन पेंटिंग्स और ग्राफिक्स के बहुरंगी विशाल आकार के प्रतिफलक भी + +1518. संगीत. + +1519. भारत में नृत्य परंपरा 2000 वर्षों से भी यादा वर्षों से निरंतर चली आ रही है। नृत्य की विषयवस्तु + +1520. भारतीय स्वरूप ले चुका है। “कथकलि” केरल की नृत्यशैली है। “कत्थक” भारतीय संस्कृति पर मुगल + +1521. शास्त्रीय और लोकनृत्य दोनों को लोकप्रिय बनाने का श्रेय संगीत नाटक अकादमी, तथा अन्य प्रशिक्षण + +1522. भारत में रंगमंच उतना ही पुराना है जितना संगीत और नृत्य। शास्त्रीय रंगमंच तो अब कहीं-कहीं जीवित + +1523. भाषाओं और अंग्रेजी में नाटकों का मंचन करते हैं। + +1524. हुए इन्हें लोकतांत्रिक व्यवस्था में इस प्रकार समाहित हो जाना चाहिए कि सामान्य व्यक्ति को इन्हें + +1525. बनाया जाए जिसमें तीन अकादमियां-नृत्य, नाटक एवं संगीत अकादमी, साहित्य अकादमी और कला + +1526. स्थापित करने की सि$फारिश की गई। इनमें से एक अकादमी नृत्य, नाटक और संगीत के लिए, एक + +1527. अकादमी का विधिवत उद्घाटन किया। + +1528. सितंबर, 1961 को इसके समिति के रूप में पंजीकरण के समय पारित की गई थी। + +1529. कला-विधाओं के महान कलाकारों को अकादमी का फेलो चुनकर सम्मानित किया गया है। प्रतिवर्ष + +1530. भी आर्थिक सहायता दी जाती है। + +1531. अकादमी की संगीत वाद्ययंत्रों की वीथि में 600 से अधिक वाद्ययंत्र रखे हैं और इन वर्षों में बड़ी + +1532. रचनाएं भी प्रकाशित की जाती हैं। + +1533. संस्थान दिल्ली में हैं। अकादमी द्वारा चलाई जा रही राष्ट्रीय महत्व की परियोजनाओं में केरल का + +1534. मंचन कलाओं की शीर्षस्थ संस्था होने के कारण अकादमी भारत सरकार को इन क्षेत्रों में नीतियां + +1535. वल्लाडोलिड, काहिरा और ताशकंद तथा स्पेन में प्रदर्शनियां तथा गोष्ठियां आयोजित की हैं। अकादमी ने + +1536. राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय. + +1537. प्रकाश व्यवस्था और रूप-सज्जा सहित रंगमंच के सभी पहलुओं का प्रशिक्षण देना है। इस विद्यालय में + +1538. उपाधि के लिए पंजीकरण करा सकते हैं। + +1539. यह बच्चों के लिए नाटक तैयार करने, दिल्ली के स्कूलों में गर्मी की छुट्टियों में कार्यशालाएं आयोजित + +1540. आयोजन किया गया था। इस प्रथम “भारत रंग महोत्सव” की सफलता को देखते हुए इसे हर वर्ष मनाने + +1541. किया गया था। इस कार्यक्रम के तहत विद्यालय स्थानीय थिएटर ग्रुपों/कलाकारों के सहयोग से + +1542. भी स्थापित किया है। + +1543. अनुवाद, गोष्ठियां, कार्यशालाएं आयोजित करके भारतीय साहित्य के विकास को बढ़ावा देना है। इसके + +1544. संबद्ध भाषा के कामकाज और प्रकाशन के बारे में सलाह देता है। अकादमी के चार क्षेत्रीय बोर्ड हैं जो + +1545. में भारतीय साहित्य का अभिलेखागार है। नई दिल्ली में ही अकादमी का अनूठा बहुभाषीय पुस्तकालय + +1546. लेखकों को दिया जा चुका है। अकादमी 850 लेखकों और 283 अनुवादकों को साहित्य तथा अनुवाद के + +1547. साहित्य का इतिहास, अनुवाद में महान भारतीय और विदेशी रचनाएं, उपन्यास, कविता और गद्य, + +1548. संस्कृत छमाही पत्रिका “संस्कृत प्रतिभा”। अकादमी हर वर्ष औसतन 250 से 300 पुस्तकें प्रकाशित करती + +1549. क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों का आयोजन करती है। साथ ही, नियमित रूप से अनुवाद + +1550. नई शृंखला भी आरंभ की। + +1551. युवा कलाकारों को भारतीय शास्त्रीय नृत्य, भारतीय शास्त्रीय संगीत, रंगमंच, दृश्यकला तथा लोक एवं + +1552. मंचन, साहित्य तथा दृश्य कलाओं के क्षेत्र में चुने हुए श्रेष्ठ कलाकारों के लिए फेलोशिप. + +1553. फेलोशिप के लिए 41 वर्ष या इससे ऊपर के कलाकार तथा जूनियर फेलोशिप के लिए 25 से 40 वर्ष की + +1554. तहत शैक्षिक अनुसंधान तथा निष्पादन आधारित अनुसंधान दोनों को बढ़ावा दिया जाता है और आवेदक + +1555. भारत विद्या, पुरालेख शास्त्र, सांस्कृतिक समाजशास्त्र, सांस्कृतिक अर्थशास्त्र, स्मारकों की संरचना और + +1556. अधिक आयु के लोग सीनियर फेलोशिप के लिए आवेदन कर सकते हैं जबकि जूनियर फेलोशिप के + +1557. जाती हैं। इसका उद्देश्य कला और संस्कृति से जुड़े क्षेत्रों के समसामयिक मुद्दों और समस्याओं के + +1558. इस योजना के अंतर्गत ऐसे स्वैच्छिक संगठन लाभान्वित होते हैं जो सांस्कृतिक गतिविधियों में लगे हैं + +1559. कराने के लिए; + +1560. वर्ष 2004-05 में विशेषज्ञ समिति ने स्वैच्छिक संगठनों को अनुसंधान समर्थन के लिए आर्थिक + +1561. के संदेश के प्रसार के लिए स्वामी विवेकानंद द्वारा स्थापित रामकृष्ण मिशन के शाखा केंद्र के रूप में 29 + +1562. समृद्ध मूल्यों से अवगत कराने तथा उन्हें यह समझाने के लिए सालोंसाल अथक प्रयास किए हैं कि + +1563. के लिए उन्हें एकजुट करना। + +1564. क्षेत्रों में मानव विज्ञान संबंधी अनुसंधान में प्रयासरत रहा है। इनके अलावा सर्वेक्षण कई अन्य समयसंगत + +1565. मदद से निरंतर अनुसंधान करते हुए गांव स्तर से जानकारियां एकत्र की हैं। + +1566. अंतर्गत संस्कृति विभाग के संलग्न कार्यालय के रूप में कार्य करता है। इस विभाग के प्रमुख महानिदेशक + +1567. सर्वेक्षण ने देश में 3656 स्मारकों/स्थलों को राष्ट्रीय महत्व का घोषित किया है जिनमें 21 संपत्तियां + +1568. रेलवे स्टेशन और गंगाकोंडाचोलापुरम का बृहदेश्वर तथा दारासुरम का ऐरावतेश्वरैया मंदिर (जो तंजावूर + +1569. (ii) असम में ब्रह्मपुत्र नदी की मध्यधारा में स्थित माजुली द्वीपसमूह; + +1570. देश के भीतर या सीमावर्ती सागर क्षेत्र में पानी के नीचे मौजूद सांस्कृतिक धरोहर की खोज, अध्ययन और + +1571. शाखा स्मारकों, प्राचीन सामग्रियों, पांडुलिपियों, पेंटिंग्स, आदि के रासायनिक संरक्षण का दायित्व + +1572. त्वरित सख्त होने वाले पलस्तर सीमेंट के विभिन्न अनुपातों में उसकी भौतिक विशेषताओं का आकलन। + +1573. पौधे उपलब्ध कराती है। + +1574. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने विदेश मंत्रालय के अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन आदान-प्रदान कार्यक्रम (आईटीईसी) + +1575. परियोजना दस वर्ष की है और इसे पांच चरणों में पूरा किया जाएगा। + +1576. कोलकाता में स्थापित किया गया था परंतु अब यह अभिलेखागार के रूप में नई दिल्ली में काम कर रहा + +1577. (1) विभिन्न सरकारी एजेंसियों और शोधकर्ताओं को रिकार्ड उपलब्ध कराना, + +1578. (6) पेशेवर और उप-पेशेवर स्तर पर पांडुलिपियों, पुस्तकों और अभिलेखों के संरक्षण, प्रबंधन और प्रकाशन के क्षेत्र में प्रशिक्षण देना, और + +1579. राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन. + +1580. उपलब्ध कराने, जागरूकता बढ़ाने और बढ़ावा देने पर भी जोर दिया जाता है। राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन + +1581. लाख साठ हजार से ज्यादा वस्तुएं संग्रहीत हैं। वर्ष 2004-05 के दौरान कुल 1,95,083 लोग इस + +1582. कला, संरक्षण व संग्रहालय विज्ञान के इतिहास का राष्ट्रीय संग्रहालय संस्थान. + +1583. (मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन) के अनुसार राष्ट्रीय संग्रहालय के महानिदेशक इस विश्वविद्यालय के + +1584. है-भारत कला व साहित्य, कला मूल्यांकन और भारतीय कलानिधि (हिंदी माध्यम)। + +1585. 1948 पारित करके की गई थी। इस पुस्तकालय को राष्ट्रीय महत्व के संस्थान का दर्जा प्राप्त है। इसकी + +1586. (iii) सामान्य एवं विशिष्ट दोनों प्रकार की सामयिक व पुरानी सामग्री के संदर्भ में गं्रथ सूची और + +1587. (v) पुस्तकों के अंतर्राष्ट्रीय आदान-प्रदान तथा देश के भीतर पुस्तकें देने वाले केंद्र की भूमिका + +1588. से अधिक दस्तावेज़ों का संग्रह है जो मुख्य रूप से समाजशास्त्र और मानवशास्त्र के विषयों पर हैं। यहां + +1589. संग्रह है। + +1590. का संग्रह एकत्र करना भी इसका दायित्व है। यह पुस्तकालय केंद्र सरकार के अधिकारियों और + +1591. पुस्तकालय की दो शाखाएं हैं। पहली है नई दिल्ली के बहावलपुर हाउस में स्थित क्षेत्रीय + +1592. पुस्तकालय ने हाल ही में “इंडिया इन्फार्मेशन गेटवे” पोर्टल शुरू किया है। 21 मार्च, 2005 को + +1593. और अब यह भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में काम कर रहा है। इसका + +1594. को सभी विकास कार्यक्रमों में संस्कृति के महत्व से अवगत कराने पर है। केंद्र के प्रमुख कार्यों में देश के + +1595. दिया जाता है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी, आवास, कृषि, खेल, आदि के क्षेत्रों में संस्कृति की भूमिका पर + +1596. सांस्कृतिक संसाधन व प्रशिक्षण केंद्र विशेष अनुरोध पर विदेशी शिक्षकों तथा विद्यार्थियों के लिए + +1597. शिक्षण पाठ्यक्रमों के लिए लाभकारी ढंग से प्रयोग किया जा सके। + +1598. स्थानीय तौर पर उपलब्ध कम लागत वाली सामग्री की मदद से हस्तकलाएं सिखाने के लिए शिविर; + +1599. रूप में संसाधन एकत्र करता रहा है। ग्रामीण भारत की कलाओं और हस्तशिल्पों को पुनर्जीवित करने और + +1600. संस्कृति विभाग ने 1982 में शुरू किया था। इस योजना के तहत 10 से 14 वर्ष की आयु के उन होनहार बच्चों + +1601. सांस्कृतिक संसाधन व प्रशिक्षण केंद्र ने सीसीआरटी शिक्षक पुरस्कार आरंभ किया है जो हर वर्ष + +1602. भ्रातृत्व की भावना को उभारने का उद्देश्य था। असल उद्देश्य तो स्थानीय संस्कृतियों के प्रति गहन + +1603. संबद्ध क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान कर रहे हैं। इस योजना के अंतर्गत 1985-86 में पटियाला, + +1604. और संबद्ध राज्य सरकारें अंशदान करती हैं और इस कोष में जमा राशि पर मिलने वाले ब्याज से इन + +1605. लोककलाकारों को भेजते हैं। भारत के राष्ट्रपति 24/25 जनवरी को तालकटोरा इनडोर स्टेडियम में इस + +1606. विभिन्न भागों के हस्तशिल्पियों और कारीगरों को अपने उत्पाद ग्राहकों के समक्ष प्रदर्शित करने और + +1607. विभिन्न भागों में जनजातीय/लोक कला-विधाओं के प्रति जागरूकता बढ़ाने में बहुत ज्यादा मदद मिली है + +1608. गुरूओं की पहचान करके शिष्य उनके सुपुर्द कर दिए जाएंगे। इस उद्देश्य के लिए उन्हें छात्रवृत्ति भी दी + +1609. राष्ट्रीय आधुनिक कला वीथि. + +1610. शामिल हैं। यहां के महत्वपूर्ण संग्रहों में पेंटिंग्स, मूर्तियां, लिपिविज्ञान की कृतियां, रेखाचित्र तथा चित्र + +1611. किया गया था और एक नई कला वीथि बंगलुरू में बनाई जा रही है। + +1612. बहुआयामी गतिविधियों में अनुसंधान, प्रकाशन, प्रशिक्षण, प्रलेखन, वितरण और नेटवर्किंग शामिल हैं। + +1613. विश्व के अन्य भागों में परस्पर आदान-प्रदान तथा आपसी सूझबूझ बढ़ाता है। + +1614. अपना रही है। मोटे तौर पर इस प्रयोगशाला की प्रमुख गतिविधियों को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता + +1615. रूप में मान्यता प्राप्त है। इस प्रयोगशाला का उद्देश्य और लक्ष्य है देश में सांस्कृतिक संपदा का संरक्षण + +1616. सेवाएं मुहैया कराती है। इस राष्ट्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला का मुख्यालय लखनऊ में है तथा दक्षिण राज्यों + +1617. रक्षा: + +1618. वर्ष 2008 के विकासों ने, विशेषकर वैश्विक आर्थिक प्रणाली की चुनौतियों ने वैश्विक पर्यावरण + +1619. चीन के सुदूर जल में अभियानों के संचालन के लिए समुद्री बेड़े और सामरिक मिसाइल तथा + +1620. कश्मीर राज्य के अवैध पाकिस्तानी कब्जे वाले भू-भाग के जरिये पाकिस्तान से संपर्क बढ़ाए जाने की + +1621. रूप से आणविक परीक्षण के एकपक्षीय विलंबन/स्थगन की स्थिति भी बनाए रखता है। + +1622. ने हिंद महासागर के कुछ हिस्सों में समुद्री लूट-पाट के नियंत्रण में अहम भूमिका निभाई है। मुंबई के आतंकी + +1623. संगठनों तक कार्यान्वयन के लिए उन्हें पहुंचाना। सरकार के नीति-निर्देशों को प्रभावी ढंग से तथा + +1624. के साथ रक्षा सहयोग तथा समस्त क्रियाकलापों का समन्वय इसी विभाग के दायित्व हैं। + +1625. है। इसका काम सैनिक साजो-सामान के वैज्ञानिक पक्ष, संचालन तथा सेना द्वारा इस्तेमाल में लाए जाने वाले + +1626. करगिल समिति की रिपोर्ट के आधार पर मंत्रियों के समूह द्वारा लिए गए निर्णय के अनुसार 1 अक्टूबर, + +1627. तीनों सेनाओं के मुख्यालय-यानी थल सेना मुख्यालय, नौसेना मुख्यालय और वायु सेना मुख्यालय + +1628. रक्षामंत्री को रक्षा संबंधी गतिविधियों में मदद देने के लिए अनेक समितियां होती हैं। स्टाफ समिति + +1629. का रक्षा सलाहकार इसका प्रमुख होता है तथा यह रक्षा मंत्रालय से पूर्णत— संबद्ध होता है और सलाहकार + +1630. उच्च तकनीक आधारित सटीक हथियारों को शामिल किए जाने से आगामी युद्धों की मारक क्षमता + +1631. लंबी अवधि के परिप्रेक्ष्य में थलसेना का आकार, आकृति एवं भूमिका का व्यावहारिक दृष्टिकोण + +1632. भारतीय सेना बहुबल के अर्थ में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी थल सेना है। थल सेना का प्रमुख + +1633. भारतीय थल सेना विश्व की उत्कृष्ट थल सेनाओं में से एक है। वर्तमान तथा भविष्य की चुनौतियों + +1634. (iii) रात्रि युद्ध की क्षमता + +1635. खरीद करना है। रात्रि निगरानी उपकरणों तथा अतिरिक्त मानवरहित विमानों की खरीद से आर्टिलरी की + +1636. और राकेट प्रणाली, थर्मल इमेजिंग उपकरण, बुलेट तथा माइन प्रूफ गाडि़यां तथा सुरक्षित रेडियो संचार + +1637. सहयोग कायम किया है। हमारे पड़ोस के छोटे मुल्क तथा वे देश जो अपने व्यापार और ऊर्जा आपूर्ति के + +1638. मिसाइल का सफल परीक्षण किया गया है। 6 यूएच 3 एच हेलीकाप्टर शामिल किए गए हैं। इसके लिए + +1639. किया गया। इसने भारतीय नौसेना में एक नया आयाम जोड़ा है। यह जहाज भारतीय नौसेना में पहला लैंडिग + +1640. चीन सागर तथा उत्तरी-पश्चिमी प्रशांत महासागर में की गई जहाजों की तैनाती शामिल है। + +1641. जैसी अवैध गतिविधियों को रोका जा सके। इसके अतिरिक्त तटरक्षक बल के कार्यों में खोज और बचाव + +1642. तटरक्षक बल अधिनियम के अनुसार इसके बुनियादी कार्य इस प्रकार हैं-(क) कृत्रिम द्वीपो ंऔर + +1643. की सहायता करना। + +1644. देश और देश से बाहर बहुत से अंतर्राष्ट्रीय अभ्यासों और मिशन दोनों में सर्वोच्य प्रदर्शनों से अपनी पेशेवर + +1645. के लिए हवाई चेतावनी और नियंत्रण प्रणाली (अवाक्स) प्राप्त की जा रही है। इसके शामिल होन से सामने + +1646. 228 एयरक्राफ्ट को आधुनिक तकनीक से लैस रखने के लिए सभी मौजूदा एयरक्राफ्टों को इलेक्ट्रॉनिक + +1647. इलेक्ट्रॉनिक निगरानी क्षमता बढ़ाने के लिए बढ़ी संख्या में ग्राउंड आधारित रडार शामिल किए जा + +1648. कमीशंड रैंक. + +1649. विशेष भर्ती स्कीम, एनसीसी विशेष भर्ती स्कीम, सेवा भर्तियों के लिए चयन भारतीय वायु सेना मुख्यालय + +1650. भर्ती की जाती है। + +1651. फ्लाइंग, एयरो नॉटिकल इंजीनियरिंग (इलेक्ट्रॉनिक्स, मेकेनिकल) शिक्षा, + +1652. चयन बोर्डों के माध्यम से नियमित कमीशन अधिकारियों के रूप शामिल किए जाते हैं। + +1653. संघ लोकसेवा आयोग के अतिरिक्त सेना में निम्नलिखित तरीकों से भी कमीशंड अधिकारियों की भर्ती की + +1654. में स्थायी कमीशन के लिए आवेदन करने के पात्र हैं। सेना मुख्यालय द्वारा नियुक्त एक स्क्रीनिंग + +1655. विद्यार्थी इसके माध्यम से स्थाई कमीशन के लिए आवेदन के पात्र हैं। एसएसबी और मेडिकल बोर्ड + +1656. स्नातकोत्तर विद्यार्थी शार्ट सर्विस कमीशन (तकनीकी) प्रवेश के जरिए तकनीकी शाखा में शार्ट + +1657. जिन्होंने भौतिकी, रसायन तथा गणित विषयों में कुल मिलाकर 70 प्रतिशत अंक प्राप्त किए हों, इस + +1658. गुप्तचर दलों, जज एडवोकेट जनरल ब्रांच तथा सेना वायु रक्षा में कमीशंड किया जाता है। + +1659. आयोजित लिखित परीक्षा से छूट मिलती है तथा इनका चुनाव सीधे एसएसबी बोर्ड के साक्षात्कार + +1660. हों। योग्य उम्मीदवारों को सीधे साक्षात्कार के लिए बुलाया जाता है। उसके बाद चिकित्सा + +1661. रैलियों द्वारा होती है। रैली स्थल पर उम्मीदवारों की प्राथमिक स्क्रीनिंग के बाद उनके दस्तावेजों की जांच + +1662. भर्ती कार्यालय अपने संबंधित क्षेत्रों में आयोजित रैलियों के जरिए भर्ती करते हैं। + +1663. हाइड्रो कॉडर के लिए शार्ट सर्विस कमीशन तथा विधि/एनएआई कॉडरों के लिए स्थाई कमीशन। + +1664. में भर्ती। 10+2 (तकनीकी) योजना के जरिए स्थाई कमीशन। + +1665. उन्हें आईएनएस शिवाजी/वालसुरा पर चार वर्षीय इंजीनियरिंग कोर्स करना पड़ता है। + +1666. लॉजिस्टिक कैडरों) में शॉर्ट सर्विस कमीशन अधिकारियों के रूप में शामिल हो रही हैं। + +1667. “सी” प्रमाणपत्रधारी स्नातक विद्यार्थी नौसेना में नियमित कमीशंड अधिकारी के लिए आवेदन के पात्र + +1668. जाते हैं। नौसेना का एक दल यहां कैंपस साक्षात्कारों के जरिए अभ्यार्थियों का चयन करता है। समीप + +1669. प्रकार हैं- + +1670. (v) सीधी भर्ती पैटी अधिकारी-उत्कृष्ट खिलाड़ी + +1671. विभिन्न वायुसेना स्टेशनों पर महिला तथा पुरूष इंजीनियरिंग स्नातकों के लिए इंजीनियरिंग नॉलेज + +1672. गैर-तकनीकी शाखाओं में भर्ती के लिए स्नातक तथा स्नातकोत्तर महिला और पुरूष उम्मीदवारों के + +1673. भर्ती के लिए योग्य उम्मीदवारों का चयन करता है। + +1674. वे अच्छे नेता और उपयोगी नागरिक बन सकें तथा राष्ट्र की सेवा में उचित भूमिका निबाह सकें। एनसीसी + +1675. सलाहकार समिति है। एनसीसी में सेवाकर्मी, पूर्णकालिक महिला अधिकारी, शिक्षक, प्रोफेसर और नागरिक + +1676. काम करती है कि युद्ध के समय तैनाती के लिए इनका उपयोग हो सकेगा और शांति काल में कम- + +1677. के लिए वे प्रत्येक वर्ष दो महीनों के लिए अपनी-अपनी इकाइयों में जाते हैं। + +1678. तैनात किया गया है। इसके अलावा रेलवे, तेल आपूर्ति, आपातकाल के दौरान चिकित्सा, चिकित्सा सुविधा + +1679. के पैरा में दिया गया है। + +1680. सैनिक स्कूलों के उद्देश्यों में आम आदमी तक ऊंची पब्लिक स्कूल शिक्षा की पहुंच बनाना, बच्चे + +1681. देश में पांच मिलिट्री स्कूल अजमेर, बंगलुरू, बेलगांव, चायल और धौलपुर में हैं, जो सीबीएससी से + +1682. राष्ट्रीय इंडियन मिलिट्री कॉलेज. + +1683. रक्षा अकादमी, खडगवासला, पुणे के एक सहयोगी संस्थान के रूप में काम कर रहा है। + +1684. या वायुसेना अकादमी। + +1685. को आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान करता है। + +1686. इंजिनियर्स, सिग्नल आदि में नियुक्ति दी जाती है। + +1687. रक्षा प्रबंधन कॉलेज. + +1688. कॉलेज ऑफ मिलिट्री इंजीनियरिंग. + +1689. नेशनल डिफेंस कॉलेज. + +1690. रक्षा उत्पादन विभाग निजी तथा सार्वजनिक क्षेत्र दोनों में रक्षा उपकरणों के स्वदेशीकरण, विकास तथा + +1691. उत्पादन क्षेत्र सतत विकसित हुआ है। + +1692. आयुध कारखाने पुरानी तथा आधुनिक तकनीकों से सिîात कारखानों का बेहतरीन संगम + +1693. बुनियादी तथा इंटरमीडिएट सामग्री उत्पादन क्षमता थी। आजादी बाद सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के + +1694. रक्षा उपक्रम. + +1695. उत्पादन, उनकी सहायक सामग्रियां, लाइफसाइकल ग्राहक सेवा, एयरोस्पेस उत्पादों की मरम्मत तथा ढांचे + +1696. बेल रडार तथा सोनार, संचार उपकरण, ऑप्टो-इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर, टेंक इलेक्ट्रॉनिक्स तथा + +1697. यह कंपनी खनन और निर्माण उपकरणों, रक्षा उत्पादों, रेलवे तथा मेट्रो उत्पादों की डिजाइन, निर्माण, + +1698. एयरक्राफ्ट टोइंग ट्रेक्टरों, एयरक्राफ्ट वीपन लोडिंग ट्रॉली, बीएमपी कंबेट वाहनों के लिए ट्रांसमीशन + +1699. एमडीएल देश का प्रमुख शिप निर्माता है। जिसकी 6800 टन तक स्थांतरण क्षमता के युद्धपोत तथा 27000 + +1700. गोवा शिपयार्ड (जीएसएल). + +1701. गृह मंत्रालय के आदेशों के अनुपालन में कंपनी ने बिल्डिंग ग्लास री-इनफोर्सड प्लास्टिक + +1702. एक अग्रणी शिप निर्माण यार्ड तथा उच्च मूल्य, उच्च प्रौद्योगिकी, जटिल इंजीनीयरिंग आइटमों के निर्माता + +1703. निर्धारित लक्ष्यभेदी मिसाइलों के निमार्ण के लिए इसकी स्थापना 1970 में हुई। यह सार्वजनिक क्षेत्र के + +1704. के प्रतिरूप (ए 1, ए 2 तथा ए 3) जैसी मिसाइलों के परिक्षण के लिए डीआरडीओ को मिसाइल उप- + +1705. रणनीतिक महत्व के कामों में इस्तेमाल के लिए विशेष प्रकार के इस्पात के उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त + +1706. रक्षा अनुसंधान तथा विकास संगठन रक्षा मंत्रालय की आर एंड डी विंग है जिसका विजन रक्षा + +1707. तकनीकी विकास और उत्पादन निदेशालय का विलय कर स्थापित किया गया। डीआरडीओ का प्रमुख + +1708. बिल्डिंग में है। + +1709. नई परियोजनाओं के अनुमोदन, ढांचागत सुधार, नई सुविधाएं जुटाने, जारी परियोजनाओं की निगरानी + +1710. हैं। व्यवसाय, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, प्रौद्योगिकी अर्जन, सार्वजनिक कार्य तथा संपदा सेवाओं सहित + +1711. संपदा अधिकार, मानव संसाधन विकास, प्रबंधन सेवाएं, सामग्री प्रबंधन, कार्मिक, योजना और समन्वय, + +1712. डीआरडीओ के कार्यक्रमों/नीतियों/निष्पादनों से संबंधित सूचना प्रदान करने जैसी इमेज निर्माण गतिविधियों + +1713. और सहयोगी उपकरण (स्ट्रेटेजिक उपकरण, टेक्टिकल प्रणालियां, ड्यूअल यूज टेक्नोलॉजी) + +1714. रूप में भी कार्य करता है। तीनों सेवाओं द्वारा निर्धारित आवश्यकताओं के अनुरूप इसने विश्वस्तरीय + +1715. निम्नलिखित तथ्य डीआरडीओ के ढांचे तथा आयाम की झलक देते हैं— + +1716. प्रौद्योगिकी देने से मना करने के युग में किसी अन्य देश के साथ न तो मांगी जा सकती हैं। और ना ही + +1717. की सैनिक शक्ति को लंबी छलांग लगाने में सहायता की है। इससे प्रभावी रोधक पैदा करने और निर्णायक + +1718. सुविधाएं स्थापित + +1719. लिए एलसीए का निर्माण। अन्य सफलता की कहानियां ढांचा खड़ा किया गया है। + +1720. तथा उड्डयन अपग्रेडेशन, मिसाइल अप्रोच चेतावनी अनुकरण के लिए हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर + +1721. रहे हैं। + +1722. (भारतीय लघु शस्त्र प्रणाली) राष्ट्रफल उपलब्ध नहीं हुई + +1723. युद्ध प्रथम आर्मोरेड रेजीमेंट (45 टैंक) के लिए 45 सहित इंजन परीक्षण सुविधा, पारेषण परीक्षण सुविधा, + +1724. यरिंग इंटीग्रेटड फायर डिटेक्शन एंड सुप्रेशन प्रणाली (आई- सस्पेंशन परीक्षण सुविधा, हाइड्रोलिक परीक्षण + +1725. घंटो में अर्जुन टैंक से बीएलटी में परिवर्तित होने की इमर्शन चैंबर, डस्ट चैंबर, साल्ट स्प्रे चैंबर, + +1726. इंटीग्रेटड फील्ड शेल्टर, रिमोट चालित वाहन (दक्ष), ड्राइहीट चैंबर तथा डेंप हीट। रेपिड प्रोटोटाइपिंग + +1727. व्हील्स, विभिन्न देसी स्ट्रेटेजिक एंड टेक्टिकल मिसाइलों ऑटोमोटिव परीक्षण केंद्र तैयार किया है जो + +1728. निक और भारतीय डॉप्लर रडार इंद्र-I और II, मल्टीफंक्शन फेज्ड शक्ति जैमिंग, वॉयस रिकग्नीशन और वॉयस + +1729. इलैक्ट्रॉनिक वारफेयर प्रणालियां समुक्ता और संग्रह सेना प्रौद्योगिकी जीएएस क्रिस्टल ग्रोथ सुविधा, + +1730. कंपेक्ट कम्युनिकेशन इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर स्यूट-सुजव, फेब्रिकेशन के लिए फेब लाइन, यूएचवी. + +1731. कपल्ड-केविटी टीडब्ल्यु टी। + +1732. फाल प्रणाली, जल विष खोजी किट, पोर्टेबल विज्ञान और कार्मिक चयन, मेन-मशीन + +1733. उत्पादन, ठंड बर्दाशत करने वाली सब्जियां, हाइपर + +1734. अपव्यय के परिशोधन के लिए बायो-डाइजेस्टर जिसे + +1735. सामग्रियां नौसेना अनुप्रयोग के लिए एबी श्रेणी का इस्पात, कंपोजिट आर्मर संबंधी प्रौद्योगिकी, नौसेना + +1736. ब्रेकपैड, भारीधातु पेनिट्रेटर रॉड, जैकाल आर्मर, कंचन प्रणालियां और रेडिएशन इंस्ट्रमेंटेशन। + +1737. (3000 किमी) तथा पृथ्वी शृंखला। सेना और नौसेना उत्पादन, रिंग लेजर गाइरो, एक्सीलटो-मीटर, + +1738. बैलेस्टिक मिसाइल का मुकाबला करने वाली एयर फ्रेग्मेंटड और सबम्युनीशन वार हेड, कमांड + +1739. सेना के लिए कंप्यूटरीकृत बार गेम। ब्रांड रडार सीकर परीक्षण सुविधा, इलेक्ट्रो- + +1740. प्रणालियां सब मेरीन-सोनार 3 शूस, टॉरपीडो एडवांस्ड लाइट अंडरवाटर अकॉस्टिक्स अनुसंधान सुविधा, + +1741. लिए कल्स्टर कंप्यूटिंग सुविधा। प्रोटोटाइप + +1742. के मानव संसाधन का सृजन भी शामिल है। आज डीआरडीओ के पास कोर क्षमताओं का विशाल फलक + +1743. परिसंपत्ति हैं और इसमें एकीकृत यांत्रिक फ्लाइट परीक्षण रेंज, एयरक्राफ्टों के लिए संरचनात्मक डायनामिक्स + +1744. सुनिश्चितता, बदलते अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में स्पेयर्स तथा आत्मनिर्भरता वाले रक्षा और आर एंड डी बेस + +1745. संस्थान (मानद विश्वविद्यालय) पुणे में विकासशील देशों के वैज्ञानिकों/इंजीनियरिंग कार्मिकों को विशेष + +1746. पहचान के लिए एस एंड टी रोड मेप्स और तीनों सेवाएं अध्ययन कराती हैं। प्रौद्योगिकियों को “खरीदो”, + +1747. भागीदार हैं-रूस, सूएसए, फ्रांस, इजराइल, जर्मनी, यूके, सिंगापुर कजाकिस्तान। डीआरडीओ के अपने + +1748. गतिविधियों तथा इनके लिए ढांचागत सुविधाएं तैयार करने पर था। चालू वित्त वर्ष (2009-10) के लिए + +1749. को पैदा और उनकी रक्षा कर रहा है। डीआरडीओ ने अब तक 416 से अधिक भारतीय तथा 45 विदेशी + +1750. स्वायत्तता, वित्तीय तथा प्रबंधकीय जिम्मेदारियां, उच्च प्रशिक्षण और कैरियर के मामलों में पर्याप्त + +1751. जाते हैं। वैज्ञानिकों से अपनी परियोजना जिम्मेदारियों के रूप में सघन वायु और समुद्री सेवाओं संबंधी ट्रायल + +1752. के तहत हाल ही में पीएचडी पूरी करने वाले उम्मीदवारों का बतौर वैज्ञानिक चयन, एनआरआई के लिए + +1753. पूर्व सैनिकों का पुनर्वास. + +1754. करते हैं और कल्याण कोष के प्रशासन की दिशा भी तय करते हैं। पुनर्वास महानिदेशालय सरकार की + +1755. भूतपूर्व सैनिकों का पुनर्वास राज्य और केंद्र का संयुक्त दायित्व है। + +1756. वर्ष होती है। इन्हें राष्ट्रीय निर्माण के कार्य में लगाने की जरूरत है। पूर्व सैनिकों को फिर से काम धंधे + +1757. सहायता। + +1758. जूनियर कमीशंड अधिकारी। अन्य रैंक तथा इनके समकक्ष अन्य सेवाओं के लिए पूरे देश में फैले सरकारी, + +1759. गई थी जो सेवाकाल के दौरान पुनर्वास प्रशिक्षण सुविधा का लाभ नहीं उठा पाते। + +1760. के आधार पर रोजगार में प्राथमिकता दी जाती है। + +1761. के दस प्रतिशत पद भी भूतपूर्व कर्मियों के लिए आरक्षित हैं। सुरक्षा कोर में शतप्रतिशत पद भूतपूर्व सैनिकों + +1762. उपलब्ध कराने के लिए सुरक्षा एजेंसियों को निबंधित करती है। इस योजना के तहत अवकाश प्राप्त + +1763. स्व-रोजगार योजनाएं. + +1764. कोयला परिवहन योजना - यह योजना पिछले 27 वर्षों से चल रही है। वर्ष 2007 में कोल इंडिया + +1765. 25-30 प्रतिशत तक की सब्सिडी उपलब्ध है। भूतपूर्व सैनिक ऋण के लिए संबद्ध जिला सैनिक बोर्ड के + +1766. से अब तक 7580 भूतपूर्व सैनिकों को 5706 लाख रूपये का ऋण इस योजना के तहत उपलब्ध कराया + +1767. तक का ऋण तथा 30 प्रतिशत तक सब्सिडी उपलब्ध कराई जाती है। + +1768. तेल उत्पादन एजेंसी का आबंटन. + +1769. ईएसएमपी बीओआर के लिए यह एक जांचा-परखा अच्छी आमदनी वाला स्वरोजगार है। मदर डेयरी से + +1770. सन् 1976से पूर्व शिक्षा पूर्ण रूप से राज्यों का उत्तरदायित्व था। संविधान द्वारा 1976 में + +1771. गुरूतर भार भी स्वीकारा। इसके अंतर्गत सभी स्तरों पर शिक्षकों की योग्यता एवं स्तर को बनाए रखने एवं + +1772. एक ऐसी राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली तैयार करने का प्रावधान है जिसके अंतर्गत शिक्षा में एकरूपता लाने, प्रौढ़शिक्षा + +1773. अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद को सुदृढ़ करने तथा खेलकूद, शारीरिक शिक्षा, योग को बढ़ावा + +1774. एनपीई द्वारा निर्धारित राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली एक ऐसे राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढांचे पर आधारित है, + +1775. भी जोर देती है। + +1776. एवं सांस्कृतिक विषयों पर व्यापक विचार-विमर्श एवं परीक्षण हेतु इसने एक मंच उपलब्ध कराया है, + +1777. में निर्णय लेने की ऐसी सहभागी प्रक्रिया (प्रणाली) तैयार करें, जिससे संघीय ढांचे की हमारी नीति को + +1778. के माध्यम से अपना कार्य करेगा। तदनुसार ही सरकार ने जुलाई, 2004 में सीएबीई का पुनर्गठन किया और + +1779. विशेष विचार-विमर्श करने की आवश्यकता महसूस की गई। तदनुसार निम्नलिखित विषयों के लिए + +1780. लिए पाठ्य पुस्तकों एवं समानांतर पाठ्य पुस्तकों के लिए नियामक व्यवस्था तथा उच्च एवं तकनीकी + +1781. करने के लिए कार्य-योजना तैयार करने के आवश्यक उपाय किए जा रहे हैं। इसके साथ ही सीएबीई की + +1782. (iii) बच्चे की शिक्षा, बाल विकास, पोषण एवं स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न योजनाओं को ध्यान में + +1783. उस पर कार्यवाही करने और अन्य मामलों में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से इनकी कार्यप्रणाली में सुधार + +1784. पंजीयन अधिनियम, 1860 के अंतर्गत एक पंजीकृत सोसायटी के तौर पर “भारत सहायता कोष” का गठन + +1785. व्यय. + +1786. 0.64 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2003-04 (बजट अनुमानों के अनुसार) में 3.74 प्रतिशत हो गया। + +1787. 12,531.76 करोड़ रूपये तथा माध्यमिक शिक्षा विभाग के लिए योजना परिव्यय 2712.00 करोड़ रूपये + +1788. की जा रही है। एसएसए का उद्देश्य 2010 तक 6 से 14 वर्ष के आयु वर्ग वाले सभी बच्चों को उपयोगी + +1789. (iii) 2010 तक सभी के लिए शिक्षा। जीवन हेतु शिक्षा पर विशेष ध्यान देते हुए संतोषप्रद गुणवत्ता की प्राथमिक शिक्षा पर जोर। + +1790. कराएगा। + +1791. नए स्कूल खोलना और उनमें सुधार लाना शामिल है। सर्वशिक्षा अभियान की शुरूआत से दिसंबर 2006 + +1792. सर्वशिक्षा अभियान के तहत स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में भारी कमी लाने में सफलता + +1793. परिवारों के साथ दूसरी जगहों से आए बच्चे और शहरी वंचित बच्चों को शिक्षा मुहैया कराते हैं। एसएसए + +1794. शिक्षा गारंटी योजना तथा वैकल्पिक एवं अनूठी शिक्षा. + +1795. ईजीएस में ऐसे दुर्गम आबादी-क्षेत्रों पर ध्यान दिया जाता है, जहां एक किलोमीटर के घेरे में कोई + +1796. जीवनयापन करने वाले बच्चे, प्रवासी बच्चे, कठिन परिस्थिति में रहने वाले बच्चे और 9 वर्ष से अधिक + +1797. सामंजस्य नहीं बिठा पाते। ऐसे बच्चों को स्कूल में वापस लाने हेतु स्कूल वापसी शिविरों का आयोजन + +1798. दृष्टिकोण के साथ प्राथमिक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पोषण सहयोग कार्यक्रम 15 अगस्त, 1995 से शुरू + +1799. इसके अंतर्गत शामिल कर लिया गया। इस योजना के अंतर्गत शामिल है — प्रत्येक स्कूल दिवस प्रति + +1800. संशोधित योजना के तहत दी जाने वाली केंद्रीय सहायता इस प्रकार है — + +1801. सूखा प्रभावित क्षेत्रों में गर्मियों की छुट्टी के दौरान मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराने का प्रावधान। जुलाई, + +1802. केंद्रशासित प्रदेश मुहैया कराएंगे। + +1803. (ii) सुविधाहीन वर्ग के गरीब बच्चों को कक्षाओं में नियमित उपस्थित रहने तथा कक्षाओं की + +1804. उपर्युक्त उद्देश्यों को हासिल करने के लिए सारणी के कॉलम 3 में दर्शाई गई मात्रा में पोषक तत्वों से + +1805. कैलोरी 300 450 + +1806. संशोधित योजना निम्नलिखित भागों को मुहैया कराती है — + +1807. कुंतल। ये राज्य हैं — अरूणाचल प्रदेश, असम, मेघालय, मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड, त्रिपुरा, + +1808. के लिए की सहायता 20 पैसे प्रति बालक। + +1809. सहायता उपलब्ध कराना आवश्यक है। + +1810. एमडीएमएस के अंतर्गत आवंटन पर्याप्त नहीं लगता। अत— इस उद्देश्य के लिए अन्य विकास कार्यों + +1811. वस्तुओं पर खर्च में लचीलापन राज्य/कें.शा.प्र. रख सकते हैं। + +1812. सहायता का प्रावधान। उपर्युक्त राशि का अन्य 0.2 प्रतिशत प्रबंधन, निगरानी और मूल्यांकन के + +1813. ग्राम पंचायत ग्राम सभा प्रतिनिधि वीईसी, पीटीए, एस डी एमसी के साथ-साथ मदर्स समिति के सदस्य + +1814. पारदर्शिता और जवाबदेही को सुनिश्चित करने के लिए उन सभी स्कूलों और केंद्रों से, जहां यह कार्यक्रम + +1815. (iii) अन्य खरीदे गए, उपयोग में लाए गए अंश + +1816. संबंधित क्षेत्रों के राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों के अधिकारियों से जिन स्कूलों में कार्यक्रम लागू किया जा रहा + +1817. महीने/तिमाही के लिए एक महीने पहले ही खाद्यान्न उठाने की अनुमति है ताकि खाद्यान्नों की आपूर्ति + +1818. के लिए एफसीआई प्रत्येक राज्य में एक नोडल अधिकारी नियुक्त करता है। जिलाअधिकारी/जिला + +1819. संस्थानों के कवरेज, (ii) खाना पकाने की लागत, परिवहन, किचन शैड का निर्माण और किचन के + +1820. राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को कहा गया है कि जन शिकायतों के निवारण के लिए एक समुचित + +1821. मुकाबले 37 प्रतिशत अधिक है। + +1822. कार्यक्रम मानदंडों के अनुसार 5-7 वर्ष की अवधि के लिए प्रति जिला निवेश सीमा 40 करोड़ + +1823. हिस्सा विदेशों से प्राप्त सहायता के माध्यम से आता है। वर्तमान में विदेशी सहायता लगभग 6938 करोड़ + +1824. मात्र 123 जिलों में लागू है। + +1825. अंतर्गत तैयार किया गया स्कूली ढांचा उल्लेखनीय है। 52,758 स्कूली भवनों; 58,604 अतिरिक्त + +1826. जीईआर 100 प्रतिशत से भी अधिक आता है। जो जिले डीपीईपी के अंतर्गत आते हैं और जहां + +1827. विभिन्न चरणों में यह वृद्धि 46 से 47 प्रतिशत है। (1) वर्तमान में नामांकन किए हुए कुल विभिन्न + +1828. संबंधी सहायता और शिक्षण प्रशिक्षण सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए प्रखंड (ब्लॉक) स्तर पर + +1829. के अनुरूप लक्ष्य हासिल करने के लिए एक ठोस कार्यक्रम के रूप में इसकी शुरूआत हुई। समानता + +1830. के माध्यम से बदलाव ला दिया है जिसका प्रभाव अब घर, परिवार में, सामुदायिक तथा ब्लॉक और + +1831. महिला समाख्या योजना वर्तमान में नौ राज्यों के 83 जिलों में 21,000 गांवों में चलाई जा रही है। + +1832. केंद्र द्वारा प्रायोजित अध्यापक शिक्षा योजना निम्नलिखित उद्देश्यों के साथ 1987-88 में शुरू की गई + +1833. (2) चयनित द्वितीयक अध्यापक शिक्षण संस्थानों (एसटीईआई) का में स्तर बढ़ाना— + +1834. पंचवर्षीय योजना के दौरान मंजूर की गई थीं लेकिन समय से पूरी नहीं हो सकीं। + +1835. (4) डीआईईटी के सेवाकालीन और सेवा पूर्ण प्रशिक्षण जैसे कार्यक्रमों की गुणवत्ता में सुधार करना + +1836. से सरकारी ईटीईआई है तो इसे डीआईईटी ग्रेड तक बढ़ाया जाएगा। यदि कोई ईटीईआई मौजूदा नहीं तो + +1837. 3. यदि किसी जिले में 2500 से अधिक अध्यापक हैं तो राज्य सरकार डीआईईटी की अपेक्षा + +1838. प्रस्ताव है। + +1839. 4. एनजीओ को सहयोग + +1840. प्रावधान किया गया है। इनमें से 50 करोड़ रूपये उत्तर पूर्व क्षेत्र के लिए निर्धारित किए गए हैं। + +1841. तथा 10 बाल केंद्र हैं। संबद्ध बाल भवनों और बाल केंद्रों के माध्यम से बाल भवन की स्कूल छोड़ने + +1842. राष्ट्रीय बाल भवन बच्चों को उनके लिंग, जाति, धर्म, रंग आदि भेदभाव के बिना तनावमुक्त + +1843. ट्रेन, मिनीज़ू, फिश कॉर्नर, साइंस पार्क, फनी मिरर, कल्चर क्राफ्ट विलेज। राष्ट्रीय बाल भवन में राष्ट्रीय + +1844. के लिए अध्यापन और सीखने को एक सुखद अनुभव बनाना भी है। + +1845. प्रदर्शन, सृजनात्मक वैज्ञानिक खोज, सृजनात्मक लेखन में 9-16 वर्ष के आयु वर्ग की रचनात्मकता वाले + +1846. कार्यशालाएं, ट्रेकिंग कार्यक्रम, टाक शो, केंप, आयोजित करता है। इसके अलावा पृथ्वी दिवस, + +1847. बच्चे उप-महाद्वीप की सामाजिक सांस्कृतिक विशिष्टता के युवा राजदूत के रूप में कार्य करते हैं। इसके + +1848. राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् (एनसीटीई) की स्थापना अगस्त, 1995 में इस लक्ष्य के साथ की गई थी + +1849. दिशा-निर्देश तैयार करना, सर्वेक्षण और अध्ययन करना, अनुसंधान एवं नवीन तरीके अपनाना तथा शिक्षा + +1850. के प्रावधानों के अंतर्गत इन्हें अध्यापक शिक्षण पाठ्यक्रम चलाने के लिए ऐसी संस्थाओं को अनुमति देने + +1851. नए नियम और मानक जारी किए हैं। नए नियम अध्यापक कार्यक्रमों की गुणवत्ता सुधारने और अध्यापक + +1852. अधिकार बनाने की बात करता है। संविधान की धारा 21ए कहती है — + +1853. प्रारंभिक शिक्षा कोश. + +1854. 14.11.2005 को जारी किया। + +1855. पीएसके में 189 करोड़ रूपये अतिरिक्त स्थानांतरित किए गए। पीएसके के तहत उपलब्ध फंड का + +1856. राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की स्थापना मई 1988 में की गई थी। इसका उद्देश्य 2007 तक 15 से 35 वर्ष + +1857. नहीं है बल्कि उपरिलिखित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अधिगमोन्मुख समाज के निर्माण का एक कारगर + +1858. समितियां (जिला स्तर की साक्षरता समिति) स्वतंत्र और स्वायत्तशासी संस्था के रूप में क्रियान्वित करती + +1859. ने प्राथमिक शिक्षा की मांग भी पैदा की है। जिन लाखों निरक्षर लोगों ने व्यावहारिक शिक्षा की दक्षता + +1860. पहुंचने के लिए निरंतरता, दक्षता और अभिमुखता सुनिश्चित करने में एक समन्वित परियोजना के रूप में + +1861. सतत शिक्षा योजना देश में संपूर्ण साक्षरता और साक्षरता पश्चात कार्यक्रमों के लक्ष्य हासिल करने + +1862. उपलब्ध कराते हैं। इस योजना के अंतर्गत अनेक महत्वपूर्ण कार्यक्रम चलाए जाते हैं जैसे-प्रतिभागियों में + +1863. शारीरिक, सांस्कृतिक और कलात्मक अभिरूचियों के अनुसार अवसर हासिल कर सकता है। + +1864. संगठनों की अपार क्षमताओं को मान्यता देता है। इसने स्वयंसेवी संगठनों के साथ साझेदारी मजबूत बनाने के + +1865. अनुसंधान अध्ययन और मूल्यांकन सामग्री के रूप में अकादमिक और तकनीकी संसाधन सहयोग उपलब्ध + +1866. साक्षरता दर में सुधार का लक्ष्य निर्धारित किया गया। इनमें से अधिकांश जिले उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा + +1867. तहत त्वरित महिला साक्षरता कार्यक्रम में शामिल किया गया है। इस कार्यक्रम के तहत 15 से 35 वर्ष + +1868. महिलाओं को इस कार्यक्रम में शामिल किया गया। यह कार्यक्रम भी लगभग पूरा हो चुका है केवल दो + +1869. में सफलता के बावजूद अभी भी कुछ इलाकों में नीची महिला साक्षरता दर और अवशेष निरक्षरता मौजूद + +1870. के आठ जिलों में 29 लाख 54 हजार, उत्तर प्रदेश के 18 जिलों में 36.11 लाख और मिजोरम के चार + +1871. सामुदायिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए विशेष रूप से अल्पसंख्यक समूह, अनुसूचित जाति/ + +1872. उड़ीसा (8), पंजाब (1), उत्तर प्रदेश (27) और पश्चिम बंगाल के (4) जिले शामिल हैं। + +1873. जनशिक्षण संस्थान. + +1874. दस्तकारी, कला, चित्रकला, बिजली के सामानें की मरम्मत, मोटर वाइंडिंग, रेडियो और टीवी मरम्मत, + +1875. प्रशिक्षण दिया गया। + +1876. और साक्षरता से जुड़ा व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया और उसके बाद उत्पादक + +1877. केंद्रीय प्रौढ़ शिक्षा निदेशालय राष्ट्रीय साक्षरता मिशन में शैक्षिक और तकनीकी संसाधन का सहयोग देता + +1878. नई दिल्ली में विज्ञान भवन में 8 सितंबर, 2006 को आयोजित + +1879. सतत शिक्षा और एक्स्टेंशन विभाग, एस.वी. विश्वविद्यालय, तिरूपति। + +1880. यूनेस्को का साक्षरता के लिए दिया जाने वाला कन्फ्यूशियस पुरस्कार राजस्थान सरकार के साक्षरता + +1881. राजस्थ्ाान ने विशेष पहल की है जिसके तहत निरक्षर महिलाओं को आईपीसीएफ वर्णमाला की पुस्तक + +1882. प्रकाशन. + +1883. शिक्षाविदों और समाज विज्ञान शोधकर्ताओं के लिए; अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस तथा राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय + +1884. 8 सितंबर, 2006 अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस के अवसर पर भारत के उप राष्ट्रपति ने एक विशेष + +1885. मूल्यांकन संस्थाओं द्वारा मूल्यांकन किया गया। अनवरत शिक्षा कार्यक्रम के सात जिलों-मंडी (हिमाचल + +1886. मुंबई और मीडिया अनुसंधान समूह, नई दिल्ली शामिल हैं। + +1887. में 64.13 प्रतिशत से बढ़कर 75.26 प्रतिशत हो गई। + +1888. 47.53 प्रतिशत है। + +1889. अनुच्छेद 330, 332, 335, 338 से 342 तथा संविधान के पांचवीं और छठवीं अनुसूची अनुच्छेद 46 में + +1890. के अनुपालन में अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए प्राथमिक शिक्षा, साक्षरता एवं माध्यमिक और + +1891. वस्तुत— अधिकतर राज्यों ने अनुसूचित जाति/जनजातियों के छात्रों के लिए माध्यमिक स्तर तक + +1892. सर्वशिक्षा अभियान (एसएसए). + +1893. प्रकार हैं- + +1894. लिए सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाना, + +1895. इस योजना का प्रमुख जोर बालिकाओं, अनुसूचित जाति/जनजाति कामकाजी बच्चों, शहरी वंचित बच्चों, + +1896. महिला समाख्या (एमएस). + +1897. संघर्ष कर सकें। + +1898. राष्ट्रीय औसत से कम है और लैंगिक भेदभाव राष्ट्रीय औसत से अधिक है। साथ ही यह कार्यक्रम ऐसे + +1899. एसकेपी का लक्ष्य बालिका शिक्षा पर प्रमुख रूप से ध्यान देने के अतिरिक्त राजस्थान के दूर-दराज के + +1900. कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय योजना के अंतर्गत मुख्य रूप से प्राथमिक स्तर पर अनुसूचित जाति/ + +1901. ऐसे विकास खंडों में कम महिला साक्षरता वाले तथा/अथवा स्कूल न जाने वाली अधिकतर बालिकाओं + +1902. लाना है। इस कार्यक्रम का लक्ष्य सामाजिक आर्थिक-रूप से पिछड़े तथा शहरी/ग्रामीण क्षेत्रों के + +1903. सामाजिक न्याय और समानता के कारणों को मजबूती प्रदान की है। इससे भारत की महान मिली जुली + +1904. बच्चों में पोषण तत्वों की उपयुkta मात्रा निश्चित करना है। + +1905. केंद्रीय विद्यालय (केवी). + +1906. अनुसूचित जाति और जनजाति के छात्रों के पक्ष में आरक्षण संबंधित जिलों में उनकी आबादी के हिसाब + +1907. राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय संस्थान (एनआईओएस). + +1908. करने, उन्हें प्रोत्साहन देने और उनकी सहायता करने के विचार से 1992 में सामाजिक न्याय और + +1909. को विशेष पुरस्कार दिया जाता है। जब भी समाज कल्याण और न्याय मंत्रालय इस योजना के तहत नाम + +1910. है। इनमें शैक्षणिक रूप से पिछड़े जिलों को प्राथमिकता दी जाती है। विशेष रूप से वहां, जहां अनुसूचित + +1911. एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तकों, अभ्यास पुस्तिकाओं, अध्यापक निर्देशिकाओं, सहायक पठन सामग्री के + +1912. योजना का संचालन करती है। कुल 1000 छात्रवृत्तियों में से 150 छात्रवृत्तियां अनुसूचित जाति एवं 75 + +1913. है। यह अनुसूचित जाति और जनजाति के छात्रों के शैक्षिक विकास और उनसे संबद्ध शैक्षिक संस्थाओं + +1914. के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराता है। अभी इस आयोग ने केंद्रीय विश्वविद्यालयों समेत 113 + +1915. सभी शिक्षण एवं गैर शिक्षण पदों में भर्ती, प्रवेश, छात्रावास इत्यादि में अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए + +1916. यह सुनिश्चित करने के लिए कि सभी स्नातकों, जिनमें अजा/अजजा स्नातक शामिल हैं, के पास सामान्य + +1917. विस्तार (प्रसार) गतिविधियों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है। योजना के अंतर्गत अनुसूचित जाति/ + +1918. बढ़ाना, ताकि उच्च शिक्षा के लिए एक सुदृढ़ आधार मिल सके, (iii) ऐसे छात्रों के ज्ञान, निपुणता एवं रूझान + +1919. नाम भी प्रस्तावित करता है तथा केंद्रीय विश्वविद्यालयों में आरक्षण नीति के कार्यान्वयन की समीक्षा करने + +1920. ग्रामीण/सामुदायिक विकास गतिविधियां चलाई जाती हैं। इसके अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्र के लोगों/स्थानीय + +1921. 1978-79 से लागू है। इसमें निपुणता-उन्मुख अनौपचारिक प्रशिक्षण, तकनीकी हस्तांतरण तथा प्रौद्योगिक + +1922. आरक्षण दिया जाता है। आरक्षण के अलावा इनमें अजा/अजजा छात्रों के लिए न्यूनतम अर्हता अंकों में भी + +1923. 16.20 प्रतिशत तथा 8 प्रतिशत अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के लिए विशेष घटक योजना + +1924. के योजना परिव्यय में से एससीपी और टीएसपी के लिए क्रमश— 900 करोड़ रूपये एवं 450 करोड़ + +1925. स्वयंसेवी अध्यापकों तथा पंचायतीराज कर्मियों के माध्यम से केंद्रीकृत प्रयास के रूप में विशेष योजनाएं + +1926. आंकड़ों, अर्थात 37.41 प्रतिशत एवं 29.41 प्रतिशत की तुलना में उल्लेखनीय हैं। इसके अलावा + +1927. मिलीजुली योजना शुरू करने का निर्णय लिया गया, जिसमें निम्नलिखित घटकों को भी शामिल किया + +1928. (iv) स्कूलों में योग शिक्षा को बढ़ावा देना, + +1929. में इसके लिए 7 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया जिसमें चार भाग एनसीईआरटी को स्थानांतरित + +1930. की गई। 2002 तक यह पूरी तरह संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या फंड (यूएनएफपीए) से एक बाहरी सहायता + +1931. इससे अधिक, यूएनएफपीए ने 2004 से किशोर प्रजनन और सेक्सुअल हेल्थ (एआरएसएच) पर + +1932. स्कूली शिक्षा को पर्यावरणोन्मुखी बनाना. + +1933. को पर्यावरण-संख्या से संबंद्ध मूलभूत अवधारणाओं के प्रति जागरूक बनाना एवं उन्हें उनका सम्मान + +1934. सहायता देने का प्रावधान है। वर्ष 2006-07 के दौरान पर्यावरण शिक्षा के क्षेत्र में प्रायोगिक एवं + +1935. सोच को बढ़ावा देने के उद्देश्य से केंद्र द्वारा प्रायोजित एक योजना “स्कूलों में विज्ञान शिक्षा का सुधार” वर्ष + +1936. की स्थापना/वर्तमान प्रयोगशालाओं का उच्चीकरण करने, माध्यमिक/उच्च माध्यमिक विद्यालयों में + +1937. ओलंपियाड (1998 से), अंतर्राष्ट्रीय रासायनिकी ओलंपियाड (1999 से) तथा अंतर्राष्ट्रीय जीवविज्ञान + +1938. के लिए वित्तीय सहायता, पुस्तकालयों को अद्यतन बनाने और योग शिक्षकों के लिए छात्रावासों का + +1939. गई। प्रशिक्षण और पुस्तकालय संबंधी गतिविधियों को संचालित करने के लिए एजेंसी को गैर-योजना के + +1940. ओलंपियाड और अंतर्राष्ट्रीय जीव विज्ञान ओलंपियाड का आयोजन किया जाता है। भारत इन ओलंपियाड + +1941. की टीम अंतर्राष्ट्रीय इंफार्मेटिक्स ओलंपियाड में भी भाग ले रही है। + +1942. एनबीएचएम/होमी भाभा विज्ञान केंद्र (एचबीसीएसई/विज्ञान शिक्षा संघ बंगलौर) बीएएसई/भारतीय + +1943. 2005 में ताइवान के ताइपेई में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय रसायन ओलंपियाड (आईसीएच.ओ-2005) + +1944. रजत, एक कांस्य पदक प्राप्त हुआ था तथा तीन में उन्हें उल्लेखनीय सम्मान मिले। भारत ने अगस्त, + +1945. जवाहर नवोदय विद्यालय) खोलने का निर्णय लिया गया। + +1946. प्रतिवर्ष 30,000 से अधिक छात्र इन विद्यालयों में प्रवेश लेते हैं। इन विद्यालयों में मुख्यत— ग्रामीण क्षेत्रों + +1947. छात्रों का एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाकर शिक्षा लेना (शैक्षिक प्रवास) नवोदय विद्यालयों की एक + +1948. के माध्यम से राष्ट्रीय अखंडता (एकता) को बढ़ावा देना है। + +1949. निकाय का गठन किया गया, जिसका उद्देश्य था रक्षाकर्मियों एवं अर्ध सैनिक बलों के कर्मचारियों सहित + +1950. विकलांग बच्चों के लिए समेकित शिक्षा. + +1951. बना सकें। + +1952. मिला। दसवीं पंचवर्षीय योजना में इसके लिए कुल 200 करोड़ का बजट रखा गया है तथा 2005-06 में + +1953. तैयार करने के कार्य को विशेष स्थान दिया गया है। एनसीईआरटी से यह अपेक्षा रहती है कि वह शिक्षा + +1954. मानदंडों एवं परिवर्तनकारी लक्षणों को पूरा करने वाली राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली तैयार करने के साधन के + +1955. था। समिति के 35 सदस्यों में विभिन्न विषयों के विद्वान, प्रधानाचार्य एवं अध्यापक, जाने माने गैर + +1956. अजमेर, भोपाल, भुवनेश्वर, मैसूर तथा शिलांग के क्षेत्रीय शिक्षा संस्थानों में क्षेत्रीय सेमिनार आयोजित + +1957. के संवर्धन और विकास पर पर्याप्त ध्यान दिया गया है। + +1958. शिक्षण कक्षाएं चलाने के लिए वित्तीय सहायता दी जाती है। अहिंदीभाषी छात्रों को हिंदी पढ़ाने के + +1959. वितरण के लिए पुस्तकों की खरीद एवं प्रकाशन संबंधी कार्यक्रम चलाए जाते हैं। यह हिंदी के विकास + +1960. आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास करने के लिए भाषाई, साक्षरता, वैचारिक, सामाजिक, नृशास्त्रीय + +1961. निकाय के रूप में 1996 से उर्दू एवं अरबी तथा फारसी भाषा के संवर्धन के लिए कार्य कर रही है। + +1962. सरकार सभी भारतीय भाषाओं के अध्ययन हेतु भी वित्तीय सहायता प्रदान करती है। इस हेतु + +1963. लिए प्रशिक्षण भी देते हैं। + +1964. कार्यक्रम चलाए जाते हैं। यह अंग्रेजी शिक्षण में स्नातकोत्तर एवं डिप्लोमा जैसे कई पाठ्यक्रम और दूरवर्ती + +1965. सेंटर्स फार इंगलिश) को भी लागू करता है और इसके लिए सीआईईएफएल द्वारा राज्य सरकारों को + +1966. करके मूल्य-आधारित शिक्षा पर पर्याप्त जोर दिया गया है। + +1967. शत प्रतिशत अनुदान सहायता दी जाती है और इस सहायता की सीमा 10 लाख रूपये हैं। + +1968. उच्च/उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में संस्कृत शिक्षण हेतु सुविधा प्रदान करने, (घ) उच्च/उच्चतर + +1969. संस्कृत, पाली, अरबी तथा फारसी भाषा के लब्धप्रतिष्ठत विद्वानों को इन भाषाओं के संवर्धन करने + +1970. बादरायण व्यास सम्मान भी प्रारंभ किया गया है। + +1971. तथा अन्य लाभकारी परिस्थितियों के निर्माण को बढ़ावा देता है। + +1972. राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ (तिरूपति) में इंटरमीडिएट से लेकर विद्यावारिधी (पीएच.डी.) तक + +1973. पाठ्यक्रमों में डिप्लोमा पाठ्यक्रम प्रारंभ किया है। ये उपाधियां-विद्यावारिधी (पीएच.डी.) तथा मानद + +1974. के प्रतिभावान छात्रों को शत-प्रतिशत वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। इसके साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों के + +1975. भारत सरकार विभिन्न सांस्कृतिक/शैक्षिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों के अंतर्गत विदेशी सरकारों से + +1976. पूर्वोत्तर क्षेत्र में उच्च साक्षरता दर वाले समृद्ध जातीय सांस्कृतिक विरासत और भाषाई विभिन्नता वाले + +1977. अपनी स्थापना के बाद से पूर्वोत्तर क्षेत्र में शैक्षिक आधारभूत ढांचे के विकास हेतु 480.68 करोड़ रूपये + +1978. प्रशासनिक भवनों के निर्माण तथा प्रयोगशालाओं हेतु उपकरणों और पुस्तकों की खरीद इत्यादि से + +1979. दौरान अपने बजट से एनएलसीपीआर के अंतर्गत दिए गए आश्वासनों को पूरा करने के मद के अधीन + +1980. जनवरी 2006 तक माध्यमिक और उच्च शिक्षा विभाग तथा प्राथमिक शिक्षा और साक्षरता विभाग की + +1981. नवोदय विद्यालय खोलने के अपने लक्ष्य को पाने का प्रयास कर रही है। पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए 76 जनवि + +1982. विश्वविद्यालय एवं उच्च शिक्षा. + +1983. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग. + +1984. पर इन सरकारों और संस्थाओं की परामर्शदात्री संस्था के रूप में भी कार्य करता है। + +1985. आयोग अपने कोष से महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों को रखरखाव एवं विकास हेतु अनुदान आवंटन + +1986. इसके कार्यकारी अध्यक्ष होते हैं। + +1987. आधारित उद्यमों को बढ़ावा देना, बौद्धिक संपदा अधिकारों का संरक्षण, भारतीय उच्च शिक्षा का संवर्द्धन, + +1988. समीक्षा करती है और इतिहास के वैज्ञानिक लेखन को बढ़ावा देती है। नई दिल्ली स्थित यह परिषद शोध + +1989. की प्रगति की समीक्षा, उनका प्रायोजन और उनमें सहायता करने के साथ ही दर्शनशास्त्र और इससे + +1990. वैचारिक विकास और उसके अंतरविषयी दृष्टिकोण पर दृष्टि रखते हैं। + +1991. संस्थाओं और व्यक्तियों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है। + +1992. बढ़ावा देना है। + +1993. का प्रमुख उद्देश्य जनसंख्या के एक बड़े भाग तक उच्च शिक्षा की पहुंच का विस्तार करना, + +1994. इग्नू तृतीयक शिक्षा और प्रशिक्षण हेतु एक परीक्षणात्मक प्रणाली चलाता है। वह प्रणाली शिक्षा के + +1995. के नेटवर्क के आमने सामने के परामर्श के माध्यम से होती है। यह समयबद्ध निरंतर मूल्यांकन के साथ- + +1996. अध्ययन कार्यक्रमों में किया गया। + +1997. थी, जो अब 24 घंटे का चैनल है तथा छह लगातार प्रसारण करने की इसकी क्षमता है। इग्नू ने नवंबर, + +1998. करेगा और जनाकांक्षाएं पूरी करेगा। वर्ष 2005 में विश्वविद्यालय ने देशभर में स्थित अपने क्षेत्रीय + +1999. राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 (1992 में संशोधित) में समानता और सामाजिक न्याय के हित में शैक्षिक रूप + +2000. समय के साथ यह अनुभव किया गया कि इन सभी योजनाओं को एकीकृत रूप में क्रियान्वित + +2001. गया और जिसके तहत अल्पसंख्यक संस्थाएं अनुसूचित विश्वविद्यालय से स्वयं को संबद्ध कर सकती + +2002. प्रबंधन, वस्तु विज्ञान (आर्किटेक्चर), फार्मेसी इत्यादि आते हैं। मानव संसाधन विकास मंत्रालय स्नातक- + +2003. भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) बंगलौर, (च) भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी एवं प्रबंधन संस्थान + +2004. देश में भौतिक विज्ञान की शिक्षा और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए नए कदम उठाए गए हैं। + +2005. भौतिक विज्ञान की शिक्षा दी जाएगी। + +2006. के लिए कदम उठाया है। + +2007. इसमें से सबसे बड़ा हिस्सा 900 करोड़ रूपये विश्व बैंक सहायता प्राप्त-तकनीकी शिक्षा गुणवत्ता + +2008. भारत 1946 से संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) का सदस्य रहा है। + +2009. देना एवं यूनेस्को के कार्यों, विशेषकर कार्यक्रमों की तैयारी और इनमें क्रियान्वयन में भूमिका निभाना है। + +2010. संयोजक और संपर्क एजेंसी के रूप में कार्य करता है। यह क्षेत्र के राष्ट्रीय आयोगों और यूनेस्को के + +2011. जिसकी स्थापना 1957 में हुई थी। इसका कार्य (i) प्रकाशन, (ii) पुस्तक और पुस्तक पठन को प्रोत्साहन + +2012. नवंबर तक “राष्ट्रीय पुस्तक सप्ताह” भी मनाता है। + +2013. कॉपीराइट. + +2014. सरकार द्वारा कॉपीराइट समितियों का गठन भी किया जाता है। प्रौद्योगिकीय बदलावों को ध्यान में रखते + +2015. अर्द्ध न्यायिक निकाय है, जिसमें एक अध्यक्ष के अतिरिक्त कम से कम दो एवं अधिकतम 14 सदस्य + +2016. भारत में कॉपीराइट प्रवर्तन. + +2017. कदम उठाए हैं। इन कदमों में कॉपीराइट प्रवर्तन सलाहकार परिषद (सीईएसी) का गठन भी शामिल + +2018. कराने वाली एजेंसियों के बीच समन्वय को बढ़ावा देने के लिए राज्यों में नोडल अधिकारियों की + +2019. गया है। + +2020. 1961 में किये गये संशोधन के अनुसार इस संगठन को वाणिíय और उद्योग के औद्योगिक नीति और + +2021. पहली जनवरी 1995 को अस्तित्व में आया। उससे पहले सेवाओं पर किसी तरह का बहुपक्षीय + +2022. व्यापार पर आम समझौता (जीएटीएस) के तहत समझौता किया जाना है। समझौता वार्ता के उद्देश्य + +2023. जो राष्ट्रीय सीमाओं के पार जा सके, (ख) विदेशों में खपत सेवा में मुख्यत— विदेश जाने वाले छात्र + +2024. देशों की यात्रा करने में समर्थ हैं। + +2025. होंगी। + +2026. पहली पुस्तक ː जीवन को याद किया. + +2027. चढ़ना"' -- to go up, to climb, to rise, to mount -- -- Verb—मुझे ऊँचाइयों पर चढ़ना पसंद है। + +2028. + +2029. + +2030. ’भावप्रकाश’ के टीकाकार भी ’आयुर्वेद’ शब्द का इस प्रकार विशदीकरण करते हैं: + +2031. "इस आयुर्वेद का प्रयोजन स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना और रोगी व्यक्ति के रोग को दूर करना है।" + +2032. अर्थात् यह आयुर्वेद अनादि होने से, अपने लक्षण के स्वभावत: सिद्ध होने से, और भावों के स्वभाव के नित्य होने से शाश्वत यानी अनादि अनन्त है। + +2033. रोग का कारण :. + +2034. वैद्य के गुण :. + +2035. An individual/person who is in a state of equilibrium of body’s; + +2036. (स्वस्थ) शरीर के तीन स्तम्भ :. + +2037. रोगोत्पत्ति में शरीर और मन के पारस्परिक सम्बन्ध को स्थापित करते हुए कहा है कि जैसा मन होगा वैसा शरीर तथा जैसा शरीर होगा वैसा मन। + +2038. आयुर्वेद में यह भी कहा गया है- + +2039. चरक संहिता के कर्ता महर्षि अग्निवेश के सहाध्यायी महर्षि भेड़ ने कहा हैः- + +2040. मधुमेग रोग के बारे में सदियों पहले भी लोगों को जानकारी थी। आयुर्वेद में इसका विवरण ‘मधुमेह’ या ‘मीठा पेशाब’ के नाम से मिलता है। आयुर्वेदिक चिकित्सकों को इसका ज्ञान 3000 वर्ष पहले से ही था। भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सकों-सुश्रुत एवं चरक- ने इस रोग के बारे में एवं इसके प्रकारों के बारे में लिखा है- + +2041. मंद गति से सौ कदम चलें शतपावली के संदर्भ में शास्त्र कहता है - + +2042. पित्त, कफ, देह की अन्य धातुएँ तथा मल-ये सब पंगु हैं, अर्थात् ये सभी शरीर में एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्वयं नहीं जा सकते। इन्हें वायु ही जहाँ-तहाँ ले जाता है, जैसे आकाश में वायु बादलों को इधर-उधर ले जाता है। अतएव इन तीनों दोषों-वात, पित्त एवं कफ में वात (वायु) ही बलवान् है; क्योंकि वह सब धातु, मल आदि का विभाग करनेवाला और रजोगुण से युक्त सूक्ष्म, अर्थात् समस्त शरीर के सूक्ष्म छिद्रों में प्रवेश करनेवाला, शीतवीर्य, रूखा, हल्का और चंचल है। + +2043. शोध का निष्कर्ष यह है कि जिस मात्रा में पाठक सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से संबंधित पाठ्य सामग्री और विषयवस्तु को पढ़ना चाहते हैं, पत्र-पत्रिकाओं में अपेक्षात्या काफी कम संख्या में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से संबंधित समाचार, विश्लेषण, लेख, चित्र संपादकीय व संपादक के नाम पत्र प्रकाशित होते हैं। यह असंतुलन इस शोध में बार-बार उभर कर सामने आया है। पत्रकारिता और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद में एक अन्योन्याश्रित संबंध है। ऊपर किए गए विश्लेषण से भी यह साफ हो जाता है कि राष्ट्रवाद वास्तव में सांस्कृतिक ही होता है। राष्ट्र का आधार संस्कृति ही होती है और पत्रकारिता का उद्देश्य ही राष्ट्र के विभिन्न घटकों के बीच संवाद स्थापित करना होता है। देश में चले स्वाधीनता संग्राम के दौरान ही भारतीय पत्रकारिता का सही स्वरूप विकसित हुआ था और हम देख सकते हैं कि व्यावसायिक पत्रकारिता की तुलना में राष्ट्रवादी पत्रकारिता ही उस समय मुख्यधारा की पत्रकारिता थी। स्वाधीनता के बाद धीरे-धीरे इसमें विकृति आनी शुरू हो गई। पत्रकारिता का व्यवसायीकरण बढ़ने लगा। देश के राजनीतिक और सामाजिक ढांचे में भी काफी बदलाव आ रहा था। स्वाभाविक ही था कि पत्रकारिता उससे अछूती नहीं रह सकती थी। फिर देश में संचार क्रांति आई और पहले दूरदर्शन और फिर बाद में इलेक्ट्रानिक चैनलों पदार्पण हुआ। इसने जहां पत्रकारिता जगत को नई ऊंचाइयां दीं, वहीं दूसरी ओर उसे उसके मूल उद्देश्य से भी भटका दिया। धीरे-धीरे विचारों के स्थान पर समाचारों को प्रमुखता दी जाने लगी, फिर समाचारों में सनसनी हावी होने लगी और आज समाचार के नाम पर केवल और केवल सनसनी ही बच गई है। भाषा और तथ्यों की बजाय बाजार और समीकरणों पर जोर बढ़ गया है। ऐसे में यदि पत्रकारिता में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की उपेक्षा हो रही है तो यह कोई हैरानी का विषय नहीं है। + +2044. सुशासन और भारतीय चिन्तन: + +2045. जब हमारे देश में अंग्रेजों का शासन था तो सभी क्रान्तिकारियों का मानना था कि भारत की गरीबी, भुखमरी और बेकारी तभी ख़त्म होगी जब अंग्रेज यहाँ से जायेंगे और हम अपनी व्यवस्था लायेंगे। उनका संकल्प था कि उन सब तंत्रों को उखाड़ फेकेंगे जिससे गरीबी, बेकारी, भुखमरी पैदा हो रही है। लेकिन हुआ क्या? हमारे देश में आज भी वही व्यवस्था चल रही है जो अंग्रेजों ने गरीबी, बेकारी और भुखमरी पैदा करने के लिए चलाया था। + +2046. वैसे तो पाश्चात्य चिंतन में भी राज्य व्यवस्था की शुरूआत की अनेक कल्पनाएं की जाती हैं, परंतु अपने देश में महाभारत में इसका बड़ा ही स्पष्ट वर्णन आता है। महाभारत के शांतिपर्व का एक अत्यंत ही प्रसिद्ध श्लोक है : + +2047. जब पुथु ने इन सब बातों को स्वीकार किया तो इसका राज्याभिषेक कर दिया गया। पृथु ने बहुत वर्ष तक राज्य किया। + +2048. राजा को निरंकुश होने से रोकने के लिए भारतीय चिंतन में धर्मसभा की व्यवस्था थी। धर्मसभा का काम था समाज के लिए उचित धर्म की व्याख्या करना जिसे हम आज की भाषा में कानून बनाना कह सकते हैं। राजा का काम केवल उसे लागू करना और उसका उल्लंघन करने वालों को दंडित करना मात्र था। इससे राजा के ऊपर धर्मसभा का अंकुश हुआ करता था। इसके अतिरिक्त भारतीय चिंतन और व्यवस्था में विद्वानों की महत्ता सदैव राजा से अधिक मानी गई। इसलिए राजा को ब्राह्मणों यानी कि विद्वानों का संरक्षक घोषित किया गया। अथर्व वेद में तीन प्रकार की सभा और उनके द्वारा शासन के संचालन का वर्णन आता है। ये तीनों सभाएं एक दूसरे के नियमन का कार्य करें, वहां ऐसी अपेक्षा की गई है और तीनों सभाओं पर प्रजा की निगरानी हो, यह भी कहा गया है। मनु राजा के लिए कठोरतम दंड की व्यवस्था करते हैं। मनु कहते हैं कि समान अपराध के लिए राजपुरूष को साधारण मनुष्य की तुलना में हजार गुणा अधिक दंड होना चाहिए। राजपुरूष से मनु का अभिप्राय राजा और उसके सहयोगियों समेत सभी राज कर्मचारियों से है। भीष्म, याज्ञवल्क्य, आचार्य चाणक्य जैसे अन्य भारतीय राजनीतिक विचारकों ने भी अधर्माचरण करने पर राजा व राजपुरूषों के लिए कठोर दंड की व्यवस्था दी है। + +2049. + +2050. विश्वव्यापक है महासिद्धन के लक्ष्य है तिन प्रति हमारे आदेश
+ +2051. स्वमुख सौं उपनिषद् प्रगट अरै है। गो कहियै इन्द्रिय तिनकी
+ +2052. महापंचभूत अरु तिनही पञ्चभूतनमय ईश्वर अरु जीवादि को/ई
+ +2053. कोई अनिर्वचनीय पदार्थ था॥ सो कर्त्ता सो कर्त्ता सो कर्त्ता कौन
+ +2054. आवे है। साकार करता होय तौ साकार को व्यापकता नहीं है
+ +2055. स्वत्ः भयो॥ इह प्रकार अहं कर्त्ता सिद्ध तूं जान ञ्छह करता
+ +2056. सन्तोषनाथ विचित्र विश्व के गुन तिन सों असंग रहत भयौ, यातैं
+ +2057. लाये माया कौ लावण्य तांसौ असंग जोगधर्म \\-\\- द्रष्टा रमण
+ +2058. कारन कहतु हैं। दोय मार्ग विश्व मै प्रगट कियो है कुल अरु अकुल।
+ +2059. भयौ तामै ही मो एक तैं मैं विशेष व्यवहार के हेतु नव
+ +2060. श्री आदिनाथ स्वरूप। अनन्तर मत्स्येन्द्र नाथ। ता पाछ तत् पुत्र
+ +2061. दण्डनाथ भयौ॥
+ +2062. खेचरी मुद्रा बाह्यवेषरी कर्ण मुद्रा मुद्राशक्ति की निशक्ति
+ +2063. अध्यात्म वासं वानप्रस्थं स सर्वेच्छा विन्यासं संन्यासं आदि
+ +2064. करियौ मै आवतु है अरु समस्त वासना रहित भए है अन्तह्करण
+ +2065. संतान दोय प्रकार कौ नाद रूप विन्दु, विन्दु नाद रूप। शिष्य
+ +2066. सो अवधूत जोग जोग मत सौं साधन अष्टाश्ण्ग जोग। आदि ब्राह्मणा
+ +2067. रूप अत्याश्रमी गुरु अवधूत जोग साधन मुमुक्षु अधिकारी बन्ध
+ +2068. वस्तुएं जिन्हें हम अपने दैनिक जीवन में प्रयोग करते हैं। भले ही वे आवश्यक हों जैसे भोजन, कपड़े, फर्नीचर, बिजली का सामान या दवाइया अथवा आराम और मनोरंजन की वस्तुएँ आदि। इनमें से कई भूमंडलीय आकार के नेटवर्क से हम तक पहुचती हैं। कच्चा माल किसी एक देश से निकाला गया हो सकता है। इस कच्चे माल पर प्रक्रिया करने का ज्ञान किसी दूसरे देश के पास हो सकता है और इस पर वास्तविक प्रक्रिया किसी अन्य स्थान पर हो सकती है, और हो सकता है कि उत्पादन के लिए पैसा एक बिल्कुल अलग देश से आया हो, ध्यान दीजिए कि विश्व के विभिन्न भागों में बसे लोग किस प्रकार एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। उनकी परस्पर निर्भरता केवल वस्तुओं के उत्पादन और वितरण तक ही सीमित नहीं है। वे एक दूसरे से शिक्षा, कला और साहित्य के क्षेत्र में भी प्रभावित होते हैं। देशों और लोगों के बीच व्यापार, निवेश, यात्रा, लोक संस्कॄति और अन्य प्रकार के नियमों से अंतर्क्रिया भूमंडलीकरण की दिशा में एक कदम है। + +2069. भूमंडलीकरण दो क्षेत्रों पर बल देता है — उदारीकरण और निजीकरण। उदारीकरण का अर्थ है औद्योगिक और सेवा क्षेत्र की विभिन्न गतिविधयों से संबंधत नियमों में ढील देना और विदेशी कंपनियों को घरेलू क्षेत्र में व्यापारिक और उत्पादन इकाइया लगाने हेतु प्रोत्साहित करना। निजीकरण के माध्यम से निजी क्षेत्र की कंपनियों को उन वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन की अनुमति प्रदान की जाती है, जिनकी पहले अनुमति नहीं थी। इसमें सरकारी क्षेत्र की कंपनियों की संपत्ति को निजी क्षेत्र के हाथों बेचना भी सम्मिलित है। भूमंडलीकरण के आधुनिक रूपों का प्रारंभ दूसरे विश्व युद्ध से हुआ है परंतु इसकी ओर अधिक ध्यान गत 20 वषों में गया है। आधुनिक भूमंडलीकरण मुख्यत: विकसित देशों के इर्द-गिर्द केंद्रित है। ये देश विश्व के प्राकॄतिक संसाधनों का मुख्य भाग खर्च करते हैं। इन देशों के लोग विश्व जनसंख्या का 20 प्रतिशत हैं परंतु वे पृथ्वी के प्राकॄतिक संसाधनों के 80 प्रतिशत से अधिक भाग का उपभोग करते हैं। उनका नवीनतम प्रौद्योगिकी पर नियंत्रण है। विकासशील देश प्रौद्योगिकी, पूजी, कौशल और हथियारों के लिए इन देशों पर निर्भर हैं। + +2070. राजनीतिक प्रभाव : भूमंडलीकरण सभी प्रकार की गतिविधयों को नियमित करने की शक्ति सरकार के स्थान पर अंतर्राष्टरीय संस्थानों को देता है, जो अप्रत्यक्ष रूप से बहुराष्टरीय कंपनियों द्वारा नियंत्रित होते हैं। उदाहरण के लिए, जब एक देश किसी अन्य देश की व्यापारिक गतिविधयों के साथ जुड़ा होता है तो उस देश की सरकार उन देशों के साथ अलग-अलग समझौते करती है। यह समझौते अलग-अलग देशों के साथ अलग-अलग होते हैं। अब अंतर्राष्टरीय संगठन जैसे विश्व व्यापार संगठन सभी देशों के लिए नियमावली बनाता है और सभी सरकारों को ये नियम अपने-अपने देश में लागू करने होते हैं। इसके साथ ही भूमंडलीकरण कई सरकारों को निजी क्षेत्र की सुविधा प्रदान करने हेतु कई विधायी कानूनों और संविधान बदलने के लिए विवश करता है। प्राय: सरकारें कामगारों के अधिकारों की सुरक्षा करने वाले और पर्यावरण संबंधी कुछ नियमों को हटाने पर विवश हो जाती हैं। + +2071. अत: भूमंडलीकरण एक अनुत्क्रिमणीय प्रक्रिया है। इसका प्रभाव विश्व में सर्वत्र देखा जा सकता है। विश्व के एक भाग के लोग अन्य भाग के लोगों के साथ अंतर्क्रिया कर रहे हैं। नि:संदेह इस प्रकार के व्यवहार की अपनी समस्याए होती हैं। लेकिन हमें इसके उज्ज्वल पक्ष की ओर देखना चाहिए और हमें अपने लोगों के हित में काम करना चाहिए। + +2072. भारतीय इतिहास के औपनिवेशिक संस्करण की प्रक्रिया को कम्युनिस्टों और वामपंथियों ने जारी रखा, मुगल काल की महिमा वर्णित की और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक चयनात्मक तस्वीर पेश की। + +2073. ऋग्वेद के अनुसार, आर्य शब्द को एक अच्छे योग्य व्यक्ति के रूप में वर्णित किया गया है जो अपने देश की परंपराओं का सम्मान करता है, जो सामाजिक और व्यावहारिक तौर पर श्रेस्ठ है और विधिवत यज्ञ का संस्कार करता है । एक धार्मिक व्यक्ति  है। + +2074. कांग्रेस शासन के दौरान साम्यवादी और वामपंथी इतिहासकार औपनिवेशिक इतिहास के साथ जारी रहे: + +2075. सिख साम्राज्य: + +2076. हमारे बच्चों को भ्रमित किया जा रहा है कि क्रूर मुगल शासक हिंदुओं के लिए उदार थे और लाखों हिंदुओं की नरसंहार और उत्पीड़न को छिपा दिया है ।  यह दुनिया की सबसे बड़ा विध्वंसकारी त्रासदी  है जो कभी हुआ था। और हमारे कम्युनिस्ट और हिंदूविरोधी इतिहासकारों ने बहुत सुन्दरता से इसे छिपा दिया है। और इस तरह के भयानक शासकों की महिमा वर्णित करते रहे – जो वास्तव में मानवता पर एक धब्बा हैं । + +2077. प्रक्रियाएं चालू हो गई थीं। इनमें से भारतवासियों के लिए कुछ यदि लाभकर रहीं, तो काफी कुछ हानिकर भी। फिर भी वे चलाई गईं और उन्हें मान्यता भी मिली क्योंकि वारेन हेस्टिंग्स के समय तक सत्ता की बागडोर अंग्रेजों के हाथों में पूरी तरह से पहुँच चुकी थी और देश में सभी कार्य उनकी ही इच्छाओं और + +2078. इतिहास-लेखन के लिए अंग्रेजों के प्रयास. + +2079. विलियम जोन्स द्वारा निर्धारित मानदण्ड. + +2080. इतिहास-लेखन में धींगामुस्ती. + +2081. लौटें, भारतीय इतिहास का विकृतीकरण + +2082. कम्पनी सरकार ने अपने उद्देश्य की प्राप्ति के निमित्त एक बहुमुखी योजना बनाई। इस योजना के अन्तर्गत पाश्चात्य चिन्तकों और वैज्ञानिकों ने, इतिहासकारों और शिक्षा-शास्त्रियों ने, लेखकों और अनुवादकों ने, अंग्रेज प्रशासकों और ईसाई धर्म प्रचारकों ने भारत की प्राचीनता, व्यापकता, अविच्छिन्नता और एकात्मता को ही नहीं, समाज में ब्राह्मणों यानीविद्वानों के महत्त्व और प्रतिष्ठा को नष्ट करने के उद्देश्य से एक सम्मिलित अभियान चलाया। इस अभियान के अन्तर्गत ही यह प्रचारित किया गया कि भारतीय सभ्यता इतनी प्राचीन नहीं है जितनी कि वह बताईजाती है, रामायण और महाभारत की घटनाएँ कपोल-कल्पित हैं - वे कभी घटी ही नहीं, आदि-आदि। सत्ता में रहने के कारण उन्हें इस प्रचार का उचित लाभ भी मिला। अंग्रेजी सत्ता से प्रभावित अनेक भारतीय, जिनमें वेतनभोगी तथा धन और प्रतिष्ठा के लोलुप संस्कृत के कतिपय विद्वान भी सम्मिलित थे, ‘हिज मास्टर्स वॉयस‘ के अनुरूप जमूरों की तरह नाचने लगे। अंग्रेजों के शासनकाल में सत्ता से व्यक्तिगत स्तर पर पद-प्रतिष्ठा, मान-सम्मान, धन-सम्पदा आदि की दृष्टि से लाभ उठाने के लिए भारत के एक विशिष्ट वर्ग द्वारा उनकी चाटुकारिता के लिए किए गए प्रयासों की तो बात ही क्या स्वाधीनता के बाद भी भारत में गुलामी की मानसिकता वाले लोगों की कमी नहीं रही, न तो प्रशासनिक स्तर पर, न शिक्षा के स्तर पर, न लेखन के स्तर पर और न ही चिन्तन या दर्शन के स्तर पर। देशभर में बड़े पैमाने पर व्याप्त इस मानसिकता को अनुचित मानते हुए भारत के पूर्व राष्ट्रपति एवं आधुनिक भारत के प्रसिद्ध दार्शनिक डॉ. राधाकृष्णन ने पराधीनता की मानसिकता को धिक्कारते हुए एक स्थान पर लिखा है - + +2083. तभी पता चला। इस संदर्भ में इंग्लैण्ड के लॉर्ड मैकालेतथा मोनियर विलियम्स और जर्मन विद्वान मैक्समूलर के निम्नलिखित विचार उल्लेखनीय हैं- + +2084. encircled, undermined and finally stormed by the soldiers of the cross, the victory of christiannity must be signal and complete. + +2085. भारत सचिव (डयूक ऑफ आर्गाइल) को : ‘भारत का प्राचीन धर्म नष्टप्राय है और यदि ईसाई धर्म उसका स्थान नहीं लेता तो यह किसका दोष होगा ?‘ + +2086. अंग्रेजी सत्ता भारत में ईसाइयत फैलाने के लिए कितनीउत्सुक थी, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण निम्नलिखित उद्धरणों से प्राप्त होता है - + +2087. विकृतीकरण की स्वीकारोक्ति. + +2088. लौटें, भारतीय इतिहास का विकृतीकरण + +2089. में बदलाव लाया गया। शिक्षा में लाए गए बदलाव के फलस्वरूप संस्कृत भाषा के विकास में रुकावटें आती गईं। फलतः उसमें साहित्य-निर्माण और विविध प्रकार के वैज्ञानिक आदि विषयों में लेखन की अविच्छिन्न धारा अवरुद्ध होती गई। परिणामस्वरूप भारत की शिक्षा, साहित्य, इतिहास, ज्ञान-विज्ञान आदि के लेखन + +2090. संस्कृत साहित्य और भारतीय संस्कृति के प्रचार से ईसाई पादरियों में बौखलाहट. + +2091. उक्त लेखकों के अलावा भी प्रिंसेप, जेम्स लीगे, डॉ.यूले, लॉसन, मैकालिफ आदि अन्य अनेक लेखक भी आगे आए, जिन्होंने अपनी-अपनी रचनाओं केमाध्यम से भारत के इतिहास और साहित्य के क्षेत्रों में घुसपैठ करके उसे अधिक से अधिक भ्रष्ट करके अप्रामाणिक, अविश्वसनीय और अतिरंजित की कोटि में डालने का प्रयास किया। + +2092. भारत के इतिहास में विकृतियाँ की गईं, कहाँ?: + +2093. सामने खड़े वहशियों की भीड़ अपनी वासनामयी आँखों से उनके अंगों की नाप-जोख कर रही थी.. ! कुछ मनबढ़ आंखों के स्थान पर हाथों का प्रयोग भी कर रहे थे.. सूनी आँखों से अजनबी शहर और अनजान लोगों की भीड़ को निहारती उन स्त्रियों के समक्ष हाथ में चाबुक लिए क्रूर चेहरे वाला घिनौने व्यक्तित्व का एक गंजा व्यक्ति खड़ा था.. मूंछ सफाचट.. बेतरतीब दाढ़ी उसकी प्रकृतिजन्य कुटिलता को चार चाँद लगा रही थी.. ! + +2094. रणवीर एक राजपू"तिरछे अक्षरtext" + +2095. (क) अक्षर परिवर्तन + +2096. (ख) शब्द परिवर्तन + +2097. (ग) अर्थ परिवर्तन + +2098. (ङ) प्रक्षिप्त अंश जोड़ना + +2099. -- (‘पं. कोटावेंकटचलम कृत क्रोनोलोजी ऑफ कश्मीर हिस्ट्री रिकन्सट्रक्टेड‘, पृ. 203-208) + +2100. मुख्य कारण ‘येनकेन प्रकारेण‘ भारतीय इतिहास की प्राचीनता को कम करके आंकने का रहा। + +2101. प्रद्योत 5 5 138 138 + +2102. कण्व 4 4 345 85 + +2103. मौर्य 137 (316) + +2104. �राम साठे कृत, ‘डेट्स ऑफ बुद्धा‘, पृ. 69 के आधार पर। + +2105. प्राचीन सम्वतों में. + +2106. यहाँ यह उल्लेखनीय है कि सम्वतों में की गई इन गड़बड़ियों के कारण भारतीय कालगणना में बहुत बड़ी मात्रा में बिगाड़ तो आया ही साथ ही इनके कारण अनेक ऐतिहासिक भ्रान्तियाँ भी पैदा हो गईं। + +2107. प्राचीन इतिहास को जानने का एक प्रमुख आधार किसी भी स्थान विशेष से उत्खनन में प्राप्त पुरातात्त्विक सामग्री, यथा- ताम्रपत्र तथा अन्य प्रकार के अभिलेख, सिक्के, मोहरें तथा प्राचीन नगरों, किलों, मकानों, मृद्भाण्डों, मन्दिरों, मूर्तियों, स्तम्भों आदि के अवशेषों, को माना जाता है। ऐतिहासिक महत्त्व के क्रम + +2108. (1). कई प्रामाणिक अभिलेखों को जबरदस्ती अप्रामाणिकसिद्ध करने का प्रयास किया गया। इसके लिए 3 मार्ग अपनाए गए- + +2109. भारत के इतिहास को आधुनिक रूप में लिखने की प्रक्रिया में पाश्चात्य विद्वानों ने इतिहास को इतना बदल या बिगाड़ दिया कि वह अपने मूल रूप को ही खो बैठा। इसके लिए जहाँ कम्पनी सरकार का राजनीतिक स्वार्थ बहुत अंशों तक उत्तरदायी रहा, वहीं भारत के इतिहास को आधुनिक रूप में लिखने के प्रारम्भिक दौर के पाश्चात्य लेखकों की शिक्षा-दीक्षा,रहन-सहन, खान-पान आदि का भारतीय परिवेश से एकदम भिन्न होना भी एक प्रमुख कारण रहा। उनके मन और मस्तिष्क पर अपने-अपने देश की मान्यताओं, धर्म की आस्थाओं और समाज की भावनाओं का प्रभाव पूरी तरह से छाया हुआ था। उनकी सोच एक निश्चित दिशा लिए हुए थी, जो कि भारतीय जीवन की मान्यताओं, भावनाओं, आस्थाओं और विश्वासों से एकदम अलग थी। व्यक्ति का लेखन-कार्य उसकेविचारों का मूर्तरूप होता है। अतः भारतीय इतिहास का लेखन करते समय पाश्चात्य इतिहास लेखकों/विद्वानों की मान्यताएँ, भावनाएँ और आस्थाएँ उनके लेखन में पूर्णतः प्रतिबिम्बित हुई हैं। + +2110. ज्ञान से अनभिज्ञमानकर भारत के प्राचीन विद्वानों को कालगणना-ज्ञान से अनभिज्ञमानकर भारत के प्राचीन विद्वानों को कालगणना-ज्ञान से अनभिज्ञमानकर पाश्चात्य इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास की प्राचीन तिथियों का निर्धारण करते समय यह बात बार-बार दुहराई है कि प्राचीन काल में भारतीय विद्वानों के पास तिथिक्रम निर्धारित करने की कोई समुचित व्यवस्था नहीं थी। कई पाश्चात्य विद्वानों ने तो यहाँ तक कह दिया है कि प्राचीन काल में भारतीयों का इतिहास-ज्ञान ही ‘शून्य‘ था। उन्हें तिथिक्रम का व्यवस्थित हिसाब रखना आता ही नहीं था। इसीलिए उन्हें सिकन्दर के भारत पर आक्रमण से पूर्व की विभिन्न घटनाओं के लिए भारतीय स्रोतों के आधार पर बनने वाली तिथियों को नकारना पड़ा किन्तु उनका यह कहना ठीक नहीं है। कारण ऐसा तो उन्होंने जानबूझकर किया था क्योंकि, उन्हें अपनी काल्पनिक काल-गणना को मान्यता जो दिलानी थी। + +2111. विभिन्न पुराण- पौराणिक कालगणना काल की भाँति अनन्त है। यह बहुत ही व्यापक है। इसके अनुसार कालगणना को दिन, रात, मास, वर्ष, युग, चतुर्युग, मन्वन्तर, कल्प, सृष्टिकर्ता ब्रह्मा की आयु आदि में विभाजित किया गया है। यही नहीं, इसमें मानव के दिन, मास आदि देवताओं के दिन, मास आदि तथा ब्रह्मा के दिन, मास आदि से भिन्न बताए गए हैं। एक कल्प में एक हजार चतुर्युगी होती हैं। एक हजार चतुर्युगियों में 14 मन्वन्तर, यथा- (1) स्वायंभुव, (2) स्वारोचिष, (3) उत्तम (4) तामस (5) रैवत (6) चाक्षुष (7) वैवस्वत (8) सार्वणिक (9) दक्षसावर्णिक (10) ब्रह्मसावर्णिक (11) धर्मसावर्णिक (12) रुद्रसावर्णिक (13) देवसावर्णिक (14) इन्द्रसावर्णिक होते हैं। हर मन्वन्तर में 71 चतुर्युगी होती हैं। एक चतुर्युगी (सत्युग, त्रेता, द्वापर और कलियुग) में 12 हजार दिव्य या देव वर्ष होते हैं। दिव्य वर्षों के सम्बन्ध में श्रीमद्भागवत के 3.11.18 में ‘दिव्यैर्द्वादशभिर्वर्षैः‘, मनुस्मृति के 1.71में ‘एतद् द्वादशसाहस्रं देवानां युगम्‘, सूर्य सिद्धान्त के 1.13 में ‘मनुष्यों का वर्ष देवताओं का दिन-रात होता है‘ उल्लेखनीय हैं। कई भारतीय विद्वान भी दिव्य या देव वर्ष की गणना को उचित नहीं ठहराते। वे युगों के वर्षों की गणना को सामान्य वर्ष गणना के रूप में लेते हैं किन्तु यह ठीक नहीं जान पड़ता क्योंकि यदि ऐसा होता तो आज कलि सम्वत 5109 कैसे हो सकता था ? क्योंकि कलि की आयु तो 1200 वर्ष की ही बताई गईहै। निश्चित ही यह (1200) दिव्य या देव वर्ष हैं। + +2112. आज के विद्वान प्राचीन काल की उन बातों को, जिनकी पुष्टि के लिए उन्हें पुरातात्त्विक आदि प्रमाण नहीं मिलते, मात्र ‘माइथोलॉजी‘ कहकर शान्त हो जाते हैं। वे उस बात की वास्तविकता को समझने के लिए उसकी गहराई में जाने का कष्ट नहीं करते। अंग्रेजी का ‘माइथोलॉजी‘ शब्द ‘मिथ‘ से बना है। मिथ का अर्थ है - जो घटना वास्तविक न हो अर्थात कल्पित या मनगढ़ंत ऐसा कथानक जिसमें लोकोत्तर व्यक्तियों, घटनाओं और कर्मों का सम्मिश्रण हो। + +2113. पाश्चात्य इतिहासकारों ने भारत के इतिहास को आधुनिक रूप में लिखते समय यूनान, चीन, अरब आदि देशों के साहित्यिक ग्रन्थों, यात्रा-विवरणों, जनश्रुतियों आदि का पर्याप्त सहयोग लिया है, इनमें से यहाँ यूनान देश के साहित्य आदि पर ही विचार किया जा रहा है, कारण सर विलियम जोन्स ने भारतीय इतिहास-लेखन की प्रेरणा देते समय जिन तीन मानदण्डों का निर्धारण किया था, वे मुख्यतः यूनानी साहित्य पर आधारित थे। + +2114. लम्बाई - मेगस्थनीज-16 हजार स्टेडिया, प्लिनी-22,800 स्टेडिया, डायोडोरस-28 हजार स्टेडिया, + +2115. (ग) भारत के तत्कालीन निवासियों के ब्योरे - यहाँ के मनुष्य अपने कानों में सोते हैं, मनुष्यों के मुख नहीं होते, मनुष्यों की नाक नहीं होती, मनुष्यों की एक ही आँख होती है, मनुष्यों के बड़े लम्बे पैर होते हैं, मनुष्यों के अंगूठे पीछे की ओर फिरेरहते हैं आदि। + +2116. �* डायोडोरस का कहना है कि घायल पुरु सिकन्दर के कब्जे में आ गया था और उसने उपचार के लिए उसे भारतीयों को लौटा दिया था। + +2117. पुरु के साथ हुए सिकन्दर के युद्ध के यूनानी लेखकों ने जिस प्रकार के वर्णन किए हैं, उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि यूनानी लेखक अपने गुण गाने में ज्यादा विश्वास रखते थे और उसमें माहिर भी ज्यादा थे। + +2118. -- (‘एनशिएन्ट ज्योग्रेफी ऑफ इण्डिया‘ (1924) पृ. 371 - पं. कोटावेंकटचलम कृत ‘क्रोनोलोजी ऑफ नेपाल हिस्ट्री रिकन्सट्रक्टेड‘ पृ. 20 पर उद्धत) + +2119. चीनी यात्री + +2120. इत्सिंग - इत्सिंग ने नालन्दा में 675 से 685 ई. तक रहकर लगभग दस वर्ष तक अध्ययन किया था। इस अवधि में उसने 400 ग्रन्थों का संकलन भी किया था। 685 ई. में उसने अपनी वापसी यात्रा शुरू की। मार्ग में रुकता हुआ वह 689 ई. के सातवें मास मेंकंग-फूं पहुँचा। इत्सिंग ने अपने यात्रा विवरण पर एक ग्रन्थ लिखा था, जिसे 692 ई. में ‘श्रीभोज‘ (सुमात्रा में पलम्बंग) से एक भिक्षुक के हाथ चीन भेज दिया था। जबकि वह स्वयं 695 ई. के ग्रीष्म काल में ही चीन वापस पहुँचा था। + +2121. यूनानी भाषा -इसके संदर्भ में पूर्व पृष्ठों में विचार किया जा चुका है। + +2122. 'चीनी यात्री फाह्यान का यात्रा-विवरण' के अनुवाद में श्रीजगन्मोहन वर्मा ने पुस्तक की भूमिका के पृष्ठ 3 पर लिखा है कि ‘‘इस अनुवाद में अंग्रेजी अनुवाद से बहुत अन्तर देख पड़ेगा, क्योंकि मैंने अनुवाद को चीनी भाषा के मूल के अनुसार ही, जहाँ तकहो सका है, करने की चेष्टा की है‘‘ अर्थात इन्हें अंग्रेजी का जो अनुवाद हुआ है, वह ठीक नहीं लगा। यदिउसमें गड़बड़ी नहीं होती तो वर्मा जी को ऐसा लिखने की आवश्यकता ही नहीं थी। उन्होंने पुस्तक के अन्दर एक दो नहीं, कई स्थानों पर शब्दों के अनुवाद का अन्तर तो बताया ही है, एक दो स्थानों पर ऐसे उल्लेख भी बताए हैं जो मूल लेख में थे ही नहीं और अनुवादक ने डाल दिए थे। + +2123. आधुनिक वैज्ञानिकों का मत है कि सृष्टि के आरम्भ मेंसभी प्राणी और वस्तुएँ अपनी प्रारम्भिक स्थिति में थीं। धीरे-धीरे ही उनका विकास हुआ है।यह बात सुनने में बड़ी सही, स्वाभाविक और वास्तविक लगती है लेकिन जब यह सिद्धान्त मानव के विकास पर लागू करके यह कहा जाता है कि मानव का पूर्वज वनमानुष था और उसका पूर्वज बन्दर था और इस प्रकार से जब आगे और आगे बढ़कर कीड़े-मकौड़े ही नहीं ‘लिजलिजी‘ झिल्ली तक पहुँचा जाता है तो यह कल्पनाबड़ी अटपटी सी लगती है। चार्ल्स डार्विन ने 1871 ई. में अपने ‘दि डिसैण्ड ऑफ मैन‘ नामक ग्रन्थ में ‘अमीबा‘ नाम से अति सूक्ष्म सजीव प्राणी से मनुष्य तक की योनियों के शरीर की समानता को देखकर एक जाति से दूसरी जाति के उद्भव की कल्पना कर डाली। जबकि ध्यान से देखने पर यह बात सही नहीं लगती क्योंकि भारतीय दृष्टि से सृष्टि चार प्रकार की होती है - अण्डज, पिण्डज (जरायुज), उद्भिज और स्वेदज- तथा हर प्रकार की सृष्टि का निर्माण और विकास उसके अपने-अपने जातीय बीजों में विभिन्न अणुओं के क्रम और उनके स्वतः स्वभाव के अनुसार होता है। एक प्रकार की सृष्टि का दूसरे प्रकार की सृष्टिमें कोई दखल नहीं होता। इसे इस प्रकार से भी समझा जा सकता है कि एक गौ से दूसरी गौ और एक अश्व से दूसरा अश्व तो हो सकता है किन्तु गौ और अश्व के मेल से सन्तति उत्पन्न नहीं हो सकती। हाँ, अश्व और गधे अथवा अश्व और जेबरा, जो कि एक जातीय तत्त्व के हैं, के मेल से सन्तति हो सकती है, अर्थात कीट से कीट, पतंगे से पतंगे, पक्षी से पक्षी, पशु से पशु और मानव से मानव की ही उत्पत्ति होती है। कीट, वानर या वनमानुष से मनुष्य की उत्पत्ति नहीं हो सकती क्योंकि इनके परस्पर जातीय तत्त्व अथवा बीजों के अणुओं के क्रम अलग-अलग हैं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि एक जाति केबीजों में विभिन्न अणुओं का एक निश्चित क्रम रहता है। यह क्रम बीज के स्वतः स्वभाव से अन्यत्त्व को प्राप्त नहीं होता। + +2124. प्राचीन इतिहास को जानने का एक प्रमुख आधार किसी भी स्थान विशेष से उत्खनन में प्राप्त पुरातात्त्विक सामग्री, यथा- ताम्रपत्र तथा अन्य प्रकार के अभिलेख, सिक्के, मोहरें और प्राचीन नगरों, किलों, मकानों, मृदभाण्डों, मन्दिरों, स्तम्भों आदि के अवशेष भी हैं। + +2125. हड़प्पा-पूर्व सभ्यता की खोज- इस दृष्टि से पाकिस्तान स्थित क्वेटाघाटी के किलीगुज मुहम्मद, रानी घुंडई, आम्री वस्ती, कोट दीजी और भारत में गंगा की घाटी में आलमगीरपुर, गुजरात में लोथल, रंगपुर, मोतीपीपली आदि, राजस्थान में कालीवंगन, पंजाब-हरियाणा में रोपड़ तथा मध्यप्रदेश में क ई स्थानों की खुदाइयों में मिली सामग्री हड़प्पा पूर्व की ओर ले जा रही है। धोलावीरा की खुदाई में तोएक पूरा विकसित नगर मिला है, जिसमें पानी की उपलब्धी के लिए बांध आदि की तथा जल-निकासी के लिए नालियों की सुन्दर व्यवस्था के साथ भवन आदि बहुत हीपरिष्कृत रूप में वैज्ञानिक ढंग से बने हुए मिले हैं। एक अभिलेख भी मिला है जो पढ़ा नहीं जा सका है। यही नहीं, वहाँ ऐसे चिह्न भी मिले हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि वहाँ का व्यापार उन्नत स्तर का रहा है। + +2126. डॉ. रिचर्ड एडोंगेन्फेल्टोव ने 1963 ई. में रिवाइविल ऑफ ज्योफिजिक्स (जरनल) वाल्यूम-1, पृ. 51 पर डॉ. लिब्बी के इस प्रणाली से सम्बन्धित विचारोंको बड़ा त्रुटिपूर्ण बताया है। + +2127. प्रो. लाल ने भी अयोध्या में किए गए पूर्व उत्खननसे प्राप्त सामग्री का इसी विधि से परीक्षण करके श्रीराम को श्रीकृष्ण के बाद में हुआ बताया था किन्तु 2003 में किए गए उत्खनन में मिली सामग्री के विश्लेषणों ने पूर्व निर्धारित तथ्यों को बदल दिया है। अब श्रीराम को श्रीकृष्ण से पूर्व हुआ माना गया है। + +2128. मैक्समूलर. + +2129. कर्नल टॉड. + +2130. लौटें, भारतीय इतिहास का विकृतीकरण + +2131. अंग्रेजों ने भारत में विदेश से आकर की गई अपनी सत्ता की स्थापना को सही ठहराने के उद्देश्य से ही आर्यों के सम्बन्ध में, जो कि यहाँ केमूल निवासी थे, यह प्रचारित कराना शुरू कर दिया कि वे लोग भारत में बाहर से आए थे और उन्होंने भी बाहर से ही आकर यहाँ अपनी राज्यसत्ता स्थापित की थी। फिर उन्होंने आर्यों को ही नहीं, उनसे पूर्वआई नीग्रीटो, प्रोटो आस्ट्रोलायड, मंगोलाभ, द्रविड़ आदि विभिन्न जातियों को भी भारत के बाहर से आने वालीबताया। + +2132. इस दृष्टि से विदेशी विद्वानों में से यूनान के मेगस्थनीज, फ्राँस के लुई जैकालियट, इंग्लैण्ड के कर्जन, मुरो, एल्फिन्सटन आदि तथा देशी विद्वानों में से स्वामी विवेकानन्द, डॉ. भीमराव अम्बेडकर, डॉ. सम्पूर्णानन्द, डॉ. राधा कुमुद मुखर्जी आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। इन्होंने बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा हैकि आर्य भारत में विदेशी नहीं थे। दूसरी ओर मैक्समूलर, पोकॉक, जोन्स, कुक टेलर, नारायण पावगी, भजनसिंह आदि अनेक विदेशी और देशी विद्वानों का तो यह मानना रहा है कि आर्य विदेशों से भारत में नहीं आए वरन भारत से ही विदेशों में गए हैं। + +2133. आर्यों द्वारा बाहर से आकर स्थानीय जातियों को जीतने के प्रश्न पर भारत के प्रसिद्ध विधिवेत्ता डॉ. अम्बेडकर ने लिखा है कि ऋग्वेद में ‘दास‘ और ‘दस्यु‘ को आर्यों का शत्रु अवश्य बताया गया है और उसमें ऐसे मंत्र भी आए हैं, जिसमें वैदिक ऋषियों ने अपने देवताओं से उनको मारने और नष्ट करने की प्रार्थनाएँ भी की हैं किन्तु इससे भारत में आर्यों के आक्रमण के पक्ष में निर्णय नहीं किया जा सकता। उन्होंने ऋग्वेद के आधार पर इस सम्बन्ध में तीन तर्क प्रस्तुत किए हैं- + +2134. कर्महीन, मननहीन, विरुद्धव्रती और मनुष्यता से हीन व्यक्तिको दस्यु बताकर उसके वध की आज्ञा देता है और ‘दास‘ तथा ‘दस्यु‘ को अभिन्नार्थी बताता है। यदि दस्यु का अर्थ आज की भाँति दास या सेवक होता तो ऐसी आज्ञा कभी नहीं दी जाती। + +2135. ‘संस्कृति के चार अध्याय‘ ग्रन्थ के पृष्ठ 25 पर रामधारीसिंह ‘दिनकर‘ का कहना है कि जाति या रेस (race) का सिद्धान्त भारत में अंग्रेजों के आने के बाद ही प्रचलित हुआ, इससे पूर्व इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिलता कि द्रविड़ और आर्य जाति के लोग एक दूसरे को विजातीय समझते थे। वस्तुतः द्रविड़ आर्यों के ही वंशज हैं। मैथिल, गौड़, कान्यकुब्ज आदि की तरह द्रविड़ शब्द भी यहाँ भौगोलिक अर्थ देने वाला है। उल्लेखनीय बात तो यह है कि आर्यों के बाहरसे आने वाली बात को प्रचारित करने वालों में मि. म्यूर, जो सबके अगुआ थे, को भी अन्त में निराश होकर यह स्वीकार करना पड़ा है कि - ‘‘किसी भी प्राचीन पुस्तक या प्राचीन गाथा से यह बात सिद्ध नहीं की जा सकती कि आर्य किसी अन्य देश से यहाँ आए।‘‘ (‘म्यूर संस्कृत टेक्स्ट बुक‘ भाग-2, पृष्ठ 523) + +2136. दासों या दस्युओं को आर्यों ने अनार्य बनाकर शूद्रकी कोटि में डाला. + +2137. चारों वर्णों को समाज रूपी शरीर के चार प्रमुख अंग माना गया था, यथा- ब्राह्मण-सिर, क्षत्रिय-बाहु, वैश्य-उदर और शूद्र-चरण। चारों वर्णों की समान रूप से अपनी-अपनी उपयोगिता होते हुए भी शूद्र की उपयोगिता समाज के लिए सर्वाधिक रही है।समाज रूपी शरीर को चलाने, उसे गतिशील बनाने और सभी कार्य व्यवहार सम्पन्न कराने का सम्पूर्ण भार वहन करने का कार्य पैरों का होता है। भारतीय समाज में शूद्रों के साथ छुआछूत या भेदभाव का व्यवहार, जैसा कि आजकल प्रचारित किया जाता है, प्राचीन काल में नहीं था। वैदिक साहित्य से तो यहभी प्रमाणित होता है कि ‘शूद्र‘ मंत्रद्रष्टा ऋषि भी बन सकते थे। ‘कवष ऐलुषु‘ दासीपुत्र अर्थात शूद्र थे किन्तु उनकी विद्वत्ता को परख कर ऋषियों ने उन्हें अपने में समा लिया था। वे ऋग्वेद की कई ऋचाओं के द्रष्टा थे। सत्यकाम जाबालि शूद्र होते हुए भी यजुर्वेद की एक शाखा के प्रवर्तक थे। (छान्दोगय 4.4) इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि ‘‘शूद्रो को वेद पढ़ने का अधिकार नहीं है‘‘, ऐसा कहने वाले झूठे हैं। कारण शूद्रों द्वारा वेद-पाठ की तो बात ही क्या वे तो वेद के मंत्र द्रष्टा भी थे। सामाजिक दृष्टि से यह भेदभाव तो मुख्यतः मुसलमानों और अंग्रेजों द्वारा अपने-अपने राज्यकालों में इस देश के समाज को तोड़ने के लिए पैदा किया गया था। + +2138. अंग्रेजी सत्ता के उद्देश्य की पूर्ति में लगे न केवल अंग्रेज विद्वान ही वरन उनसे प्रभावित और उनकी योजना में सहयोगी बने अन्य पाश्चात्य विद्वान, यथा- मैक्समूलर, वेबर, विंटर्निट्ज आदि भी शुरू-शुरू में भारत के इतिहास और साहित्य तथा सभ्यता और संस्कृति की प्राचीनता, महानता और श्रेष्ठता को नकारते ही रहे तथा भारत के प्रति बड़ी अनादर और तिरस्कार की भावना भी दिखाते रहे किन्तु जब उन्होंने देखा कि यूरोप के ही काउन्ट जार्नस्टर्जना, जैकालियट, हम्बोल्ट आदि विद्वानों ने भारतीय साहित्य, सभ्यता और संस्कृति की प्रभावी रूप में सराहना करनी शुरू कर दी है तो इन लेखकों ने इस डर से कि कहीं उनको दुराग्रही न मान लिया जाए, भारत की सराहनाकरनी शुरू कर दी। इन्होंने यह भी सोचा कि यदि हम यूँ ही भारतीय ज्ञान-भण्डार का निरादर करते रहेतो विश्व समाज में हमें अज्ञानी माना जाने लगेगा अतः इन्होंने भी भारत के गौरव, ज्ञान और गरिमा का बखान करना शुरू कर दिया। कारण यह रहा हो या अन्य कुछ, विचार परिवर्तन की दृष्टि से पाश्चात्य विद्वानों के लेखन में क्रमशः आने वाला अन्तर एकदम स्पष्ट रूप से दिखाई देता है - + +2139. तीसरी स्थिति: गुणग्राहकता + +2140. कर्जन तो स्पष्ट रूप से कहता है कि- ‘‘गोरी जाति वालों का उद्गम स्थान भारत ही है।‘‘ (जनरल ऑफ रॉयल एशियाटिक सोसाइटी‘, खण्ड 16, पृ.172-200) + +2141. भारत के पुराण तथा अन्य पुरातन साहित्य में स्थान-स्थान पर ऐसे उल्लेख मिलते हैं जिनसे ज्ञात होता है कि भारत में मानव सभ्यता का जन्म सृष्टि-निर्माण के लगभग साथ-साथ ही हो चुका था और धीरे-धीरे उसका विस्तार विश्व के अन्य क्षेत्रों में भीहोता रहा अर्थात भारतीय सभ्यता विश्व में सर्वाधिक प्राचीन तो है ही वह विश्वव्यापिनी भी रही है किन्तु आज का इतिहासकार इस तथ्य से सहमत नहीं है। वह तो इसे 2500 से 3000 वर्ष ई. पू. के बीच की मानता रहा है। साथ ही वह भारतीयों को घर घुस्सु और ज्ञान-विज्ञान से विहीन भी मानता रहा है किन्तु भारत मेंऔर उसकी वर्तमान सीमाओं के बाहर विभिन्न स्थानों पर हो रहे उत्खननों में मिली सामग्री के पुरातात्त्विक विज्ञान के आधार पर निकाले गए निष्कर्ष उसे प्राचीन से प्राचीनतर बनाते जा रहे हैं। हड़प्पा और मोहनजोदड़ों की खोजों से वह 4000 ई. पू. तक पहुँ च ही चुकी थी। मोतीहारी (मध्यप्रदेश) लोथल और रंगपुर (गुजरात) बहादुराबाद और आलमगीरपुर (उत्तरप्रदेश) आदि में हुए उत्खननों में मिली सामग्रीउसे 5000 ई. पू. से पुरानी घोषित कर रही है। तिथ्यांकन की कार्बन और दूसरी प्रणालियाँ इस काल सीमाको आगे से आगे ले जा रही हैं। इस संदर्भ में बिलोचिस्तान के मेहरगढ़ तथा भारत के धौलावीरा आदि की खुराइयाँ भी उल्लेखनीय हैं, जो भारतीय सभ्यता को 10000 ई. पूर्व की सिद्ध कर रही है। गुजरात के पास खम्भात की खाड़ी में पानी के नीचे मिले नगर के अवशेष इसे 10000 ई. पू. से भी प्राचीन बताने जा रहे हैं। + +2142. वस्तुतः उक्त निष्कर्ष को निकालते समय पाश्चात्य इतिहासकारों के समक्ष यूरोप के विभिन्न देशों के प्रारम्भिक मानवों के जीवन का चित्र था। जबकि मानव सृष्टि का प्रारम्भ इस क्षेत्र में हुआ ही नहीं था। आज विश्व के बड़े-बड़े विद्वान इस बात पर सहमत हो चुकेहैं कि आदि काल में मानव का सर्वप्रथम प्रादुर्भाव भारत में ही हुआ था। इस संदर्भ में फ्राँस के क्रूजर और जैकालिट, अमेरिका के डॉ. डान, इंग्लैण्ड के सर वाल्टर रेले के साथ-साथ इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड, भू-वैज्ञानिक, मेडलीकट, ब्लम्फर्ड आदि के कथन भी उल्लेखनीय हैं। + +2143. यजुर्वेद - इस वेद में पशु हत्या का निषेध करते हुए उनके पालन पर जोर दिया गया है। जब उनकी हत्या ही वर्जित है तो उनको खाने के लिए कैसे स्वीकारा जा सकता है ? + +2144. प्राचीन विदेशी वाङ्मय. + +2145. वेदों का संरचना काल 1500 से 1200 ईसापूर्व तक. + +2146. @ नवीनतम शोधों के अनुसार 3500 ई. पू. से आगे की मानी जा रही है + +2147. भारतीय इतिहास का आधुनिक रूप में लेखन करने वाले पाश्चात्य विद्वानों ने इतिहास लिखते समय भारतीय वाङ्मय के स्थान पर भारत के सम्बन्ध में विदेशियों द्वारा लिखे गए ग्रन्थों को मुख्य रूप में आधार बनाया है। ऐसा करके उन्होंने अपने लेखन के क्षेत्र के आधार को सीमित करके उसे एकांगी बना लिया। भारतीय ग्रन्थों को उन्होंने या तो पढ़ा ही नहीं, यदि पढ़ा भी तो उन्हें गम्भीरता से नहीं लिया और गहराई में जाए बिना ही उन्हें अप्रामाणिकता की कोटि में डाल दिया। इसी कारण भारत की ऐतिहासिक घटनाओं की तिथियों में तरह-तरह की भ्रान्तियाँ पैदा हो गईं। उन भ्रान्तियों के निराकरण के लिए अर्थात अपने असत्य को सत्य सिद्ध करने के लिए उन लोगों को जबरन नई-नई और विचित्र कल्पनाएँ करनी पड़ीं, जो स्थिति का सही तौर पर निदान प्रस्तुत करने के स्थान पर उसे और अधिक उलझाने में ही सहायक हुईं। + +2148. भारत में ऐतिहासिक सामग्री का अभाव. + +2149. संस्कृत वाङ्मय में से वैदिक और ललित साहित्य के कुछ ऐसे ग्रन्थों के नामों के साथ ज्योतिष, आयुर्वेद तथा व्याकरण के कुछ ग्रन्थों का यहाँ उल्लेख किया जा रहा है, जिनमें महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक उल्लेख सुलभ हैं। + +2150. व्याकरण ग्रन्थ - ये ग्रन्थ केवल भाषा निर्माण के सिद्धान्तों तक ही सीमित नहीं रहे हैं, उनमें तत्कालीन ही नहीं, उससे पूर्व के समय के भी धर्म, दर्शन, राजनीति शास्त्र, राजनीतिक संस्थाओं आदि के ऐतिहासिक विकास पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है, जिससेवे इतिहास विषय पर लेखन करने वालों के लिए परम उपयोगी बन गए हैं। पाणिनी की ‘अष्टाध्यायी‘, पतंजलि का महाभाष्य इस दृष्टि से सर्वोत्कृष्ट ग्रन्थ हैं। उत्तरवर्ती वैयाकरणों में ‘चान्द्रव्याकरण‘ और पं. युधिष्ठिर मीमांसक का ‘संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास‘, भी इस दृष्टि से उल्लेखनीयहै। + +2151. (आ) नेपाल राजवंशावली- नेपाल की राजवंशावली में वहाँ के राजाओं का लगभग 5 हजार वर्षों का ब्योरा सुलभ है। पं. कोटावेंकटचलम ने इसवंशावली पर काफी कार्य किया है और उन्होंने मगध, कश्मीर तथा नेपाल राज्यों के विभिन्न राजवंशों के क्रमानुसार राजाओं का पूरा ब्योरा ‘क्रोनोलोजी ऑफ नेपाल हिस्ट्री रिकन्सट्रक्टेड‘ के परिशिष्ट - 1 (पृ. 89 से 100) में दिया है। इसमें नेपाल के 104 राजाओं के 4957 वर्षों के राज्यकाल की जो सूची दी गई है, उसमें कलियुग के 3899वर्षों के साथ-साथ द्वापर के अन्तिम 1058 वर्षों का ब्योरा भी दिया गया है। इस वंशावली से भारतीय इतिहास के भी कई अस्पष्ट पन्नों, यथा- आद्य जगद्गुरु शंकराचार्य जी के जन्म और विक्रम सम्वत के प्रवर्तक उज्जैन के महाराजा विक्रमादित्य के ऐतिहासिक व्यक्तित्व होने जैसे विषयों, को स्पष्ट करने में सहयोग मिल जाता है। + +2152. अन्य क्षेत्रीय ग्रन्थ. + +2153. भारत में अंग्रेजों के आगमन से पूर्व सभी भारतीयों को अपने प्राचीन साहित्य में, चाहे वह रामायण हो या महाभारत, पुराण हो या अन्य ग्रन्थ, पूर्ण निष्ठा थी। इसके संदर्भ में ‘मिथ‘ की मिथ्या धारणा अंग्रेज इतिहासकारों द्वारा ही फैलाई गई क्योंकि अपने उद्देश्य की प्राप्ति की दृष्टि से उनके लिए ऐसा करना एक अनिवार्यता थी। बिना ऐसा किए इन ग्रन्थों में उल्लिखित ऐतिहासिक तथ्यों की सच्चाई से बच पाना उनके लिए कठिन था। जबकि भारतीय ग्रन्थ यथा- रामायण, महाभारत, पुराण आदि भारत के सच्चे इतिहास के दर्पण हैं। इनके तथ्यों को यदि मान लिया जाता तो अंग्रेज लोग भारत के इतिहास-लेखन में मनमानी कर ही नहीं सकते थे। अपनी मनमानी करने के लिएही उन लोगों ने भारत के प्राचीन ग्रन्थों के लिए ‘मिथ‘, ‘अप्रामाणिक‘, ‘अतिरंजित‘, ‘अविश्वसनीय‘ जैसे शब्दों का न केवल प्रयोग ही किया वरन अपने अनर्गल वर्णनों को हर स्तर पर मान्यता भी दी और दिलवाई। फलतः आज भारत के ही अनेक विद्वान उक्त ग्रन्थों के लिए ऐसी ही भावना रखने लगे जबकि ये सभी ग्रन्थ ऐतिहासिक तथ्यों से परिपूर्ण हैं। + +2154. यह महर्षि वेदव्यास की महाभारत युद्ध के तुरन्त बाद ही लिखी गई एक कालजयी कृति है। इसे उनकी ही आज्ञा से सर्पसत्र के समय उनके शिष्य वैषम्पायन ने राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय को सुनाया था, जिसका राज्यकाल कलि की प्रथम शताब्दी में रहा था अर्थात इसकी रचना को 5000 साल बीत गए हैं। यद्यपि इसकी कथा में एक परिवार के परस्पर संघर्ष का उल्लेख किया गया है परन्तु उसकी चपेट में सम्पूर्ण भारत ही नहीं अन्य अनेक देश भी आए हैं। फिर भी सारी कथा श्रीकृष्ण के चारों ओर ही घूमती रही है। यह ठीक है कि आज अनेकलेखक श्रीकृष्ण के भू-अवतरण को काल्पनिक मान रहे हैं किन्तु वे भारत के एक ऐतिहासिक पुरुष हैं, इसका प्रमाण भारत का साहित्य ही नहीं आधुनिक विज्ञान भी प्रस्तुत कर रहा है। + +2155. महाभारत युद्ध के 200-250 वर्ष के पश्चात ही भारत की केन्द्रीय सत्ता हस्तिनापुर से निकल कर मगध राज्य में चली गई और मगध की गद्दी पर एक के पश्चात दूसरे वंश का अधिकार होता चला गया। इन सभी वंशों के राजाओं की सूचियाँ ‘वायु‘, ‘ब्रह्माण्ड‘, ‘मत्स्य‘, ‘विष्णु‘, ‘श्रीमद्भागवत्‘ आदि पुराणों में मिलती हैं। साथ ही ‘कलियुग राज वृत्तान्त‘ और ‘अवन्तिसुन्दरीकथा‘ में भी इन राजवंशावलियों का उल्लेख किया गया है। इन सभी ग्रन्थों में वर्णित राजाओं के नामों तथा उनकी आयु और राज्यकालों में कहीं-कहीं परस्पर अन्तर मिलता है किन्तु यह अन्तर ऐसा नहीं है जिसेठीक न किया जा सके। जबकि जोन्स आदि ने उनके सम्बन्ध में पूर्ण विवेचन किए बिना ही निम्नलिखित कारणों से उन्हें अतिरंजित, अविश्वसनीय और अवास्तविक कहकर नकार दिया- + +2156. राजाओं की आयु और राजवंशों की राज्यावधि बहुत अधिक दिखाई गई है. + +2157. पाश्चात्य इतिहासकारों की इस कल्पना की पुष्टि न तो पुराणों सहित भारतीय साहित्य या अन्य स्रोतों से ही होती है और न ही यूनानी साहित्य कोछोड़कर भारत से इतर देशों के साहित्य या अन्य स्रोतों से होती है। स्वयं यूनानी साहित्य में भी ऐसे अनेक समसामयिक उल्लेखों का, जो कि होने ही चाहिए थे, अभाव है, जिनसे आक्रमण की पुष्टि हो सकती थी। यूनानी विवरणों के अनुसार ईसा की चौथी शताब्दी में यूनान का राजा सिकन्दर विश्व-विजय की आकांक्षा से एक बड़ी फौज लेकर यूनान से निकला और ईरान आदि को जीतता हुआ वह भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र केपास आ पहुँचा। यहाँ उसने छोटी-छोटी जातियों और राज्यों पर विजय पाई। इन विजयों से प्रोत्साहित होकर वह भारत की ओर बढ़ा, जहाँ उसकी पहली मुठभेड़ झेलम और चिनाव के बीच के छोटे से प्रदेश के शासक पुरु से हुई। उसमें यद्यपि वह जीत गया किन्तु विजय पाने के लिए उसे जो कुछ करना पड़ा, उससे तथा अपने सैनिकों के विद्रोह के कारण उसका साहस टूट गया और उसे विश्व-विजय के अपने स्वप्न को छोड़कर स्वदेश वापस लौट जाना पड़ा। + +2158. साहित्यिक- भारत की तत्कालीन साहित्यिक रचनाएँ, यथा- वररुचि की कविताएँ, ययाति की कथाएँ, यवकृति पियंगु, सुमनोत्तरा, वासवदत्ता आदि, इस विषय पर मौन हैं। अतः इस प्रश्न पर वे भी प्रकाश डालने में असमर्थ हैं। यही नहीं, पुरु नाम के किसी राजा का भारतीय साहित्य की किसी भी प्राचीन रचना में कोई भी उल्लेख कहीं भी नहीं मिलता और मेगस्थनीज का तो दूर-दूर तक पता नहीं है। हाँ, हिन्दी तथा कुछ अन्य भारतीय भाषाओं के कतिपय अर्वाचीन नाटकों में अवश्य ही इस घटना का चित्रण मिलता है। + +2159. यूनानी साहित्य - विभिन्न यूनानी ग्रन्थों में उपलब्ध मेगस्थनीज के कथनों के अंशों में तथा टाल्मी, प्लिनी, प्लूटार्क, एरियन आदि विभिन्न यूनानी लेखकों की रचनाओं में सिकन्दर के आक्रमण के बारे में विविध उल्लेख मिलते हैं। इन्हीं में सेंड्रोकोट्टस का वर्णन भी मिलता है किन्तु वह चन्द्रगुप्त मौर्य है, इस सम्बन्ध में किसी भी ग्रन्थ में कोई उल्लेख नहीं हुआ है। यह तो भारतीय इतिहास के अंग्रेज लेखकों की कल्पना है। यदि वास्तव में ही सेंड्रोकोट्टस चन्द्रगुप्त मौर्य होता और उसके समय में ही यूनानी साहित्य लिखा गया होता तो उसमें अन्य अनेक समसामयिक तथ्य भीहोने चाहिए थे, जो कि उसमें नहीं हैं। इससे चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में आक्रमण हुआ था, इस पर प्रश्नचिन्ह् लग जाता है। इस दृष्टि से निम्नलिखित तथ्य विचारणीय हैं- + +2160. इस प्रश्न पर कि क्या सेंड्रोकोट्टस ही चन्द्रगुप्त मौर्य है, विचार करने के लिए यह जान लेना उचित होगा कि सेंड्रोकोट्टस के सम्बन्ध में प्राचीन यूनानी साहित्य में जो कुछ लिखा मिलता है, क्या वह सब चन्द्रगुप्त मौर्य पर घटता है ? यूनानी साहित्य में सेंड्रोकोट्टस के संदर्भ में मुख्य रूप से निम्नलिखित बातें लिखी हुई मिलती हैं- + +2161. ऐतिहासिक दृष्टि से विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि उक्त बातों का मौर्य वंश के पश्चात मगध साम्राज्य पर आने वाले चौथे राजवंश ‘गुप्त वंश‘ के राजाओं के साथ कुछ-कुछ मेल हो जाता है। जैसे, जहाँ तक बड़ी सेना लेकर भारत-विजय करने और विदेशी राजा की पुत्री से विवाह करने की बात है, तो यह दोनों बातें गुप्त राजवंश के दूसरे राजासमुद्रगुप्त से मेल खाती हैं। समुद्रगुप्त ने विशाल सेना के बल पर भारत विजय करके अश्वमेध यज्ञ किया था। उसके सम्बन्ध में हरिषेण द्वारा इलाहाबाद में स्थापित स्तम्भ पर खुदवाए विवरण से उसकी विजय आदि के अलावा यह भी ज्ञात होता है कि पश्चिमोत्तर क्षेत्र में युद्ध-विजय के पश्चात उसे किसी विदेशी राजा नेअपनी कन्या उपहार में दी थी। + +2162. 2. समुद्रगुप्त -- अशोकादित्य + +2163. पालीबोथ्रा ही पाटलिपुत्र. + +2164. यूनानी इतिहासकार भले ही पाटलिपुत्र को मौर्य साम्राज्य की राजधानी मानते रहे हों किन्तु भारतीय पुराणों के अनुसार वह कभी भी मौर्यों की राजधानी नहीं रहा। पुराणों के अनुसार जब से मगध राज्य की स्थापना हुई थी तभी से अर्थात जरासन्ध के पिता बृहद्रथ के समय के पूर्व से ही मगध साम्राज्य की राजधानी गिरिब्रज (वर्तमान राजगृह) रही है। महाभारत युद्ध के पश्चात मगध साम्राज्य से सम्बंधित बार्हद्रथ, प्रद्योत, शिशुनाग, नन्द, मौर्य, शुंग, कण्व, आन्ध्र-आठों वंशों के समय में इसकी राजधानीगिरिब्रज ही रही है। पाटलिपुत्र की स्थापना तो शिशुनाग वंश के अजातशत्रु ने कराई थी और वह भीमात्र सैनिक दृष्टि से सुरक्षा के लिए। + +2165. ग्रहगतियों के आधार पर भारतीय ग्रन्थों में नौ प्रकार के कालमानों का निरूपण किया गया है। इनके नाम हैं- ब्राह्म, दिव्य, पित्र्य, प्राजापत्य, बार्हस्पत्य, सौर, सावन, चान्द्र और नाक्षत्र। इन नवों कालमानों में नाक्षत्रमान सबसे छोटा है। पृथ्वी जितने समय में अपनी धुरी का एक चक्र पूरा करती है, उतने समय को एक नाक्षत्र दिन कहा जाता है। यही दिन या वार ही पक्षों में, पक्ष ही मासों में, मास ही वर्षों में, वर्ष ही युगों में, युग ही महायुगों में, महायुग ही मन्वन्तरों और मन्वन्तर ही कल्पों में बदलते जाते हैं। + +2166. ऐतिहासिक - ज्योतिष के आधार पर पुष्ट हो जाने पर भी भारतीय कालगणना की करोड़ों-करोड़ों वर्षों की संख्या पर फ्लीट सरीखे कई पाश्चात्य विद्वान ही नहीं अनेक भारतीय विद्वान भी यह कहकर प्रश्नचिन्ह लगा देते हैं कि कालगणना का यह प्रकार आर्य भट्ट से पूर्व था ही नहीं। इस संदर्भ में दो बातें उल्लेखनीय हैं, एक तो यह कि इस कालगणना को भारत में ही माना जाता रहा है, ऐसा नहीं है, इसे बेबिलोनिया, ईरान, स्कैण्डेनेविया आदि देशों में भी मान्यता प्राप्त रही है। ऐतिहासिक दृष्टि से बेबिलोनिया की सभ्यता ई. पू. तीसरी सहस्राब्दी में फूली-फली थी और उस समय तक आर्य भट्ट अवतरित नहीं हुए थे। दूसरे ये संख्याएँ वेदों और ब्राह्मण ग्रन्थोंमें आए ब्योरों से भी पुष्ट होती हैं, जो निश्चितही आर्य भट्ट से पूर्व के ही है। + +2167. कहने का भाव है कि नक्षत्रों की गति पर आधारित भारतीय कालगणना के कालमानों की पुष्टि ईरान, बेबिलोनिया, स्कैण्डेविया आदि देशों के प्राचीन ग्रन्थों में आए उल्लेखों से ही नहीं भारत के वेद, ब्राह्मण, उपनिषद, पुराण आदि ग्रन्थों में वर्णित कालमान के ब्योरों से भी होती है, अतः उसकी मान्यतापर प्रश्नचिन्ह् लगाना न्यायसंगत नहीं है। यह भ्रान्ति भी जानबूझ कर अंग्रेजी सत्ता द्वारा फैलाई गई थी। + +2168. भारतीय दृष्टि से काल की कोई सीमा नहीं है, वह अनन्तहै। जिस भारतवर्ष में सृष्टि के प्रलय और निर्माण के सम्बन्ध में इतनी सूक्षमता, गहनता औरगम्भीरता से विचार किया गया हो और जहाँ इस सृष्टि के निर्माण काल से ही नहीं पिछली सृष्टि का विवरण भी रखा गया हो, वहाँ के इतिहास में प्रागैतिहासिकता की अवधारणा करने का प्रश्न ही नहीं उठता। + +2169. जहाँ तक महाभारत युद्ध का काल जानने के लिए उसे हजारों-हजारों वर्ष बाद पैदा हुए मुसलमान बादशाहों के औसत राज्यकाल को आधार बनाने का प्रश्न है तो इसका उत्तर तो श्री लाल ही जानें किन्तु यहाँ यह प्रश्न उठता ही है कि उनके मस्तिष्क में यह बात क्यों नहीं आई कि प्राचीन काल में दीर्घ जीवन भारत की एक विशिष्टता रही है। उस काल का औसत भारतीय राजा काफी समय बाद के औसत मुसलमानी बादशाह से काफी अधिक काल तक जीवित रहा होगा। भारत के लोगों के दीर्घ जीवन के बारे में मेगस्थनीज आदि यूनानी विद्वानों के निम्नलिखित विचार उल्लेखनीय हैं- + +2170. पाश्चात्य विद्वानों द्वारा भारतीय इतिहास के लिए निर्धारित तिथिक्रम के आधार पर किसी भी ऐतिहासिक महापुरुष की जन्मतिथि और महान सम्राट के राज्यारोहण की तिथि पर विचार किया जाता है तो वह असंगत लगती है। इस खण्ड में कतिपय ऐसे ही ऐतिहासिक महापुरुषों कीजन्मतिथियों और सम्राटों के राज्यारोहण की तिथियों के विषय में विचार किया जा रहा है - + +2171. भारतीय पुराणों से मिली विभिन्न राजवंशों के राजाओं के राज्यारोहण की तिथियों के आधार पर जो जानकारी मिलती है, उसके हिसाब से गौतम बुद्ध का जन्म 1886-87 ई. पू. में बैठता है। वे महाभारत युद्ध के पश्चात मगध की गद्दी पर बैठने वाले तीसरे राजवंश-शिशुनाग वंश के चौथे, पाँचवें और छठे राजाओं के राज्यकाल में, यथा- 1892 से 1787 ई. पू.के बीच में हुए थे। + +2172. (ग) अशोक ने 265 ई.पू. में शासन संभाला- सम्राट अशोक को भारत के इतिहास में ही नहीं विश्व के इतिहास में जो महत्वपूर्ण स्थान मिला हुआ है, वह सर्वविदित है। आज अशोक का नाम संसार केमहानतम व्यक्तियों में गिना जाता है। इसकी प्रसिद्धि का मुख्य कारण उसके द्वारा चट्टानों और प्रस्तरस्तम्भों पर लिखवाए गए वे अजर-अमर शिलालेख हैं, जो सम्पूर्ण राज्य में इतस्ततः विद्यमान रहे हैं किन्तु उनसे उसके व्यक्तिगत जीवन अर्थात जन्म, मरण, माता-पिता के नाम, शासनकाल आदि के सम्बन्ध में कोई विशेष जानकारी सुलभ नहीं हो पाती। यह भी उल्लेखनीय है कि उन शिलालेखों में सेअशोक का नाम केवल एक ही छोटे शिलालेख में मिलता है। शेष पर तो ‘देवानांप्रिय‘ शब्द ही आया है। अतः इससे यह पता नहीं चल पाता कि यह नाम वास्तव में कौन से अशोक का है क्योंकि भारत में भिन्न-भिन्न कालों में अशोक नाम के चार राजा हुए हैं, यथा- + +2173. (घ) कनिष्क का राज्यारोहण 78 ई. में हुआ - कनिष्क के राज्यारोहण के सम्बन्ध में भी पाश्चात्य औरभारतीय आधारों पर निकाले गए कालखण्डों में गौतम बुद्ध आदि की तरह लगभग 1300 वर्ष का ही अन्तर आता है। पाश्चात्य इतिहासकारों द्वारा कनिष्क के राज्यारोहण की तिथि 78 ई. निश्चित कीगई है जबकि पं. कोटावेंकटचलम द्वारा ‘क्रोनोलोजी ऑफ कश्मीर हिस्ट्री रिकन्सट्रक्टेड‘ में दिएगए ‘राजतरंगिणी‘ के ब्योरों के अनुसार कनिष्क ने कश्मीर में 1254 ई. पू. के आसपास राज्य किया था। + +2174. उज्जैनी के महाराजा विक्रमादित्य के ऐतिहासिक व्यक्तित्व को नकारने से पूर्व निम्नलिखित तथ्यों पर विचार कर लिया जाना अपेक्षित था, यथा- + +2175. यह कविता मूल रूप में सुलतान सलीम के काल (1742 ई.) में तैयार ‘सैरउलओकुन‘ नाम के अरबी काव्य संग्रह से ली गई है। + +2176. ऐसी स्थिति में यह मान लिया जाना कि सरस्वती नदी का कोई अस्तित्त्व नहीं है उचित नहीं है। निश्चित ही यह भी एक भ्रान्ति ही है, जो भारत के इतिहास को ‘विकृत‘ करने की दृष्टि से जान बूझकर फैलाई गई है। + +2177. महाभारत के भीष्म पर्व के अध्याय 9 में भारत भूमि के महत्त्व का प्रतिपादन करते हुए उसे एक राष्ट्र के रूप में ही चित्रित किया गया है। तमिल काव्य संग्रह ‘पाडिट्रूप्पट्ट‘ में दी गई विभिन्न कविताएँ भी इस दृष्टि से उल्लेखनीय हैं जिनमें देश का वर्णन कन्याकुमारी से हिमालय तक कहकर किया गया है। + +2178. विकृतीकरण का निष्कर्ष: + +2179. अंग्रेजों की दृष्टि में भारतवासियों का मूल्यांकन. + +2180. भारत का वास्तविक इतिहास तो मानव जाति का इतिहास. + +2181. इतिहास घटित होता है निर्देशित नहीं, जबकि भारत के मामले में इतिहास निर्देशित है। इसलिए आधुनिक ढंग से लिखा हुआ भारत का इतिहास, इतिहास की उस शास्त्रीय परिभाषा के अनुसार, जो भारतीय ऋषियों ने दी थी, इतिहास है ही नहीं। अतः आज आधुनिक रूप में लिखित भारत के इतिहास पर गम्भीरता से विचार करने की आवश्यकता है और वह भी भारतीय साक्ष्यों के आधार पर क्योंकि वर्तमान में सुलभ इतिहास निश्चित ही भारत का और उस भारत का, जो एक समय विश्वगुरु था, जो सोने की चिड़िया कहलाता था और जिसकी संस्कृति विश्व-व्यापिनी थी, हरगिज नहीं है। + +2182. राइट इश्यु/राइट शेयर किसे कहते है? + +2183. कंपनी अपने वार्षिक लाभ को सम्पूर्ण रूप से लाभांश के रूप में वितरित नहीं करती है। इसका कुछ हिस्सा वह संचय खाते में जमा करती जाती है जो कुछ वर्षो में एक बड़ी राशि बन जाती है। कंपनी अपनी भावी विकास योजना या अन्य योजनाओं के लिए इस राशि को पूंजी खाते में हस्तांतरित करने के लिए इतनी ही राशि के शेयर बतौर बोनस अपने मौजूदा अंशधारकों को अनुपातिक आधार पर दे देती है। इन शेयरों का शेयरधारकों से कोई मूल्य नहीं लिया जाता। + +2184. क्युम्युलेटिव कन्वर्टिबल प्रेफरेंस शेयर किसे कहते हैं? + +2185. कोई कंपनी जब अपनी परियोजनाओं के वित्त पोषण के लिए सार्वजनिक निर्गम जारी करती है तो इस निर्गम के माध्यम से आवेदन करके शेयर पाने तथा कंपनी द्वारा शेयर आबंटित करके उनको सूचीबद्ध कराने तक की सम्पूर्ण प्रक्रिया/व्यवहार `प्राइमरी मार्केट' के कार्यक्षेत्र में आता है। + +2186. प्राइमरी मार्केट में प्रारंभ में, निवेशकों को सिक्युरिटीज आफर की जाती है और स्टॉक एक्सचेंज में उसे सूचीबद्ध कराने के बाद उसकी ट्रेडिंग सेकंडरी मार्केट में होती है। सेकंडरी मार्केट के दो भाग हैः इक्विटी और डेब्ट मार्केट। सामान्य निवेशकों के लिए सेकंडरी मार्केट सिक्युरिटीज की ट्रेडिंग के लिए प्रभावशाली मंच देता है। + +2187. शेयर बाजार में सौदा करने के लिए किससे संपर्क करना चाहिए? + +2188. सेबी में दर्ज हो और मान्यता प्राप्त एक्सचेंज के सदस्य के साथ संलग्न व्यक्ति को सब-ब्रोकर कहा जाता है। + +2189. यूनिक क्लायंट कोड का आशय क्या है? + +2190. स्टॉक एक्सचेंज प्रत्येक सौदे को यूनिक आर्डर कोड नंबर देता है, जिसकी जानकारी ब्रोकर द्वारा ग्राहक को दी जाती है कि सौदा किया गया है। आर्डर कोड नंबर कांट्रेक्ट नोट में छपा रहता है। ब्रोकर आर्डर देता है तो उसका समय भी दर्ज होता है। + +2191. रोलिंग सेटलमेंट का क्या मतलब है? + +2192. मेरे खाते में तुरंत शेयर्स की डिलीवरी आ जाए ऐसा कोई रास्ता है क्या? + +2193. सेबी का कार्य बाजार में विभिन जोखिमों को दूर करने पर केन्द्रित है। इसके लिए शेयर बाजार सेबी के साथ तालमेल रखकर उसकी नीतियों की पुनर्समीक्षा और रिस्क मैनेजमेंट नीतियां बनाता रहता है। इसे रिस्क मैनेजमेंट कहा जाता है। इन नीतियों के तहत भिन भिन मार्जिन और नियंत्रण अस्तित्व में है, जिसमें से मुख्य इस प्रकार हैंः प्रवाहिता और भाव के घटबढ़ की मात्रानुसार स्क्रिप्स का वर्गीकरण और तद्नुसार मार्जिन, वैल्यू एट रिस्क (वीएआर) मार्जिन, मार्क टू मार्केट मार्जिन और अन्य विभिन प्रकार की मार्जिन तय करने और वसूलने, मार्जिन के भुगतान की समय सीमा निर्धारित करने, मार्जिन वसूलना आदि। + +2194. डेरिवेटिव्स मार्केट. + +2195. इसमें शेयर बाजार द्वारा तय किए गए और रखे गए शेयरों का पूर्व निर्धारित लाट में शेयर का एक, दो या तीन माह का कांट्रेक्ट जारी किया जाता है। यह कांट्रेक्ट इस्यूकर्ता के रूप में शेयर बाजार द्वारा नियुक्त किए गए कुछ दलाल होते हैं, जिसे कांट्रेक्ट राइटर कहा जाता है, जो बाजार में कांट्रेक्ट की मांग के आधार पर कांट्रेक्ट का भाव और प्रीमियम आफर करते हैं। + +2196. आप्शन कांट्रेक्ट किसे कहा जाता है? + +2197. बीएसई में सेंसेक्स प्युचर्स में 50 सेंसेक्स का लाट होता है। यह कांट्रेक्ट एक से तीन महिने का होता है। उसकी टीक साइज 0.01 पाइंट रखी जाती है। सेंसेक्स का भाव सेंसेक्स का ही वैल्यू होता है। कांट्रेक्ट का अंतिम दिन महिने का अंतिम गुरूवार (यदि उस दिन छुट्टी हो तो अगले कामकाज के दिन) होता है एवं इस अंतिम दिन ही निपटान होता है। + +2198. सेंसेक्स आप्शन किसे कहा जाता है? + +2199. स्टाक आप्शन्स में बाजार घटकों द्वारा तय शुद्ध प्रीमियम पर अंडरलाइंग स्टाक पर कॉल या पुट आप्शन्स की खरीदी या बिक्री करने का अधिकार मिलता है। इसमें अंडरलाइंग स्टाक एक्सचेंज द्वारा तय किए शेयर होते हैं। उसका लाट भी एक्सचेंज या मार्केट रेग्युलेटर द्वारा निर्दिष्ट न्यूनतम कांट्रेक्ट अनुसार प्रत्येक शेयर का अलग अलग होता है। यह कांट्रेक्ट एक, दो या तीन महिने का भी हो सकता है। इसमें प्रति शेयर रूपए में ही प्रीमियम बोला जाता है। इसमें भी टीकसाइज 0.01 का ही होता है। सेटलमेंट वैल्यू बीएसई के कैश सेगमेंट से संबंधित शेयरों के बन्द भाव के मुताबिक होती है। इसमें कांट्रेक्ट पूर्ण होने के अंतिम दिन महिने के अंतिम गुरूवार (यदि उस दिन छुट्टी हो तो उसके अगले कामकाज का दिन होता हैं) के ही उसका निपटान होता हैं। इसमें कांट्रेक्ट पूरा होने की तारीख को या उसके अमल की तारीख को उस दिन के कैश मार्केट के बंद भाव और कांट्रेक्ट वैल्यू के बीच के फर्क का निपटान करना होता है। + +2200. टीक साइज क्या है? + +2201. यदि कोई पार्टी डिफाल्टर हो जाए तो ऐसे अवसरों के लिए जोखिम की मात्रा कम करने के लिए मार्जिन मनी ली जाती है। खड़े सौदों का अगले दिन निपटान करने के लिए, भाव में होने वाली घट-बढ़ की जोखिम को मर्यादित करने के लिए मार्जिन राशि का भुगतान, सुरक्षा प्रदान करता है। मार्जिन मनी भविष्य में होने वाली हानि अथवा सिक्युरिटीज डिपाजिट के रूप में बीमा की भूमिका निभाती है। + +2202. सिक्युरिटीज में निवेश करने से पूर्व आप स्वयं से पूछिए. + +2203. म्युच्युअल फंड ऐसा तंत्र है जिसमे म्युच्युअल फंड कंपनियां निवेशकों को यूनिट जारी करके धन जुटाती हैं और फिर उस धन का आफर डाक्युमेंट में उल्लेखित नियमों के अनुसार विभिन सिक्युरिटीज में निवेश किया जाता हैं। विविध उद्योगों की सिक्युरिटीज में निवेश होने से जोखिम घटता है। म्युच्युअल फंड में निवेशकर्ताओं को यूनिट होल्डर कहा जाता है। + +2204. म्युच्युअल फंड योजनाएं कितने प्रकार की होती हैं? + +2205. इन्कम फंड का उद्देश्य निवेशकों को नियमित और स्थिर आय उपलब्ध कराना है। यह स्कीम सामान्यतः बांड्स, कंपनी के डीबेंचर्स और सरकारी प्रतिभूति जैसी स्थिर आय दिलाने वाली सिक्युरिटीज में निवेश करती है। इसमें इक्विटी स्कीम की तुलना में जोखिम कम होती है परन्तु लाभ भी सीमित रहता है। + +2206. गिल्ट फंड. + +2207. टैक्स सेविंग स्कीम में निवेशकों को आयकर अधिनियम 1961 के प्रावधानों के तहत कर लाभ मिलता है। उदाहरणार्थ इक्विटी लिन्क सेविंग स्कीम और म्युच्युअल फंड द्वारा खुली पैंशन स्कीम। इस योजना का उद्देश्य एनएवी बढ़ाना है और मुख्यतः इक्विटी में निवेश करते हैं। + +2208. ऑफर डाक्युमेंट में निवेशकों को क्या देखना चाहिए? + +2209. हां, लेकिन इसके लिए युनिट होल्डर को लिखित जानकारी देनी जरूरी है और यदि युनिट होल्डर को बदलाव पसंद न हो तो उसे एक्जिट लोड चुकाए बिना योजना से हट जाने का अधिकार है। + +2210. यदि एक ही प्रकार की दो फंड योजनाएं हो तो इसमें से कम एनएवी वाली स्कीम में निवेश करना चाहिए? + +2211. ऐसा कतई नहीं है। + +2212. करन्सी प्युचर्स. + +2213. बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज लि. के करन्सी प्यूचर ट्रेडिंग सिस्टम को बीएसई - सीडीएक्स (बीएसई करन्सी डेरिवेटिव एक्सचेंज) कहा जाता है। + +2214. बीएसई- सीडीएक्स पर ट्रेड किये जाने वाले दूसरे करन्सी डेरिवेटिव क्या हैं? + +2215. विदेशी मुद्रा बाजार का नियमन विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) द्वारा किया जाता है। भारतीय विदेशी मुद्रा बाजार की नियामक संस्था रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) है। एक्सचेंज द्वारा ट्रेड किये जाने वाले करन्सी प्यूचर्स मार्केट का नियमन सेबी द्वारा, मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेजों के माध्यम से किया जाता है। + +2216. इसका अर्थ है अब हमें 100 अमेरिकी डॉलर खरीदने के लिए 4300 रू. की जगह 4400 रू. चुकाने होते हैं, इस तरह हमें अधिक भुगतान करना होता है। + +2217. ट्रेडिंग कौन कर सकता है? + +2218. वर्तमान में करन्सी प्यूचर्स की ट्रेडिंग सोमवार से शुक्रवार तक सवेरे 9 बजे से सांय 5 बजे के बीच की जा सकती है। + +2219. बीएसई - सीडीएक्स में यूएडी / आईएनआर के भाव का निर्धारण तथा ट्रेडिंग कैसे होगी? + +2220. बीएसई-सीडीएक्स प्यूचर्स की ट्रेडिंग कैसे की जाती है? + +2221. क्या सभी प्यूचर्स कांट्रेक्टों में डिलीवरी की जाती है? + +2222. करन्सी प्यूचर्स कांट्रेक्ट (शनिवार तथा एफईडीएआई अवकाशों को छोड़कर) हर माह के आखि]री कार्य दिवस को एक्सपायर (समाप्त) होगा। + +2223. करन्सी प्यूचर ट्रेडिंग के पहले दिन इनीशियल मार्जिन की दर 1.75 प्रतिशत होगी, उसके बाद यह 1 प्रतिशत की दर से लगेगी। + +2224. मार्क - टू - मार्केट मार्जिन क्या है? + +2225. ग्राहक - सभी कांट्रेक्टों में ग्राहक की ग्रॉस ओपने पोजीशन कुल ओपेन इंटररेस्ट का 6 प्रतिशत अथवा 5 मिलियन डॉलर (इनमें से जो अधिक हो) से अधिक नहीं होनी चाहिए। ग्राहक के ग्रॉस ओपने पोजीशन के कुल ओपेन इंटरेस्ट के 3 प्रतिशत से अधिक होने पर एक्सचेंज पिछले दिन की ट्रेडिंग के समाप्ति में चेतावनी जारी करेगी। + +2226. डेब्ट मार्केट ऐसा बाजार है कि जिसमें स्थिर आयवाली विभिन प्रकार की सिक्युरिटीज का क्रय-विक्रय होता है। यह सिक्युरिटीज अधिकांशत: केन्द्र और राज्य सरकारें, महानगर पालिकाएं, सरकारी संस्थाएं, व्यापारी संस्थाएं जैसे कि वित्त संस्थाएं, बैंकें, सार्वजनिक इकाईयां पब्लिक लि. कंपनियां जारी करती हैं । + +2227. गवर्नमेंट सिक्युरिटीज (जी-सेक) में निवेश करने का क्या लाभ है? + +2228. केन्द्र सरकार द्वारा जारी की जाने वाली सिक्युरिटीज में जीरो कूपन बांड्स, कूपन वाला बांड्स, ट्रेजरी बिल्स और सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों द्वारा जारी बांड्स, डीबेंचर्स, राज्य सरकारों द्वारा जारी किया जाने वाला कूपन बियरिंग बांड्स, निजी क्षेत्र की कंपनियों द्वारा जारी किया जाने वाला डीबेंचर्स, कमर्शियल पेपर्स, प्लोटिंग रेट बांड्स, जीरो कूपन बांड्स, इंटर कार्पोरेट डिपजिट सर्टिफिकेट्स, डिबेंचर्स, बैंकों द्वारा जारी सर्टिफिकेट्स आफ डिपाजिट, डिबेंचर्स, बांड्स और वित्तीय संस्थाओं द्वारा जारी किया जाने वाला बांड्स और डिबेंचर्स का समावेश है। + +2229. खिलाæडियों के लिए विविधता विकसित होती है । विश्वसनीय यील्ड कर्व का और ब्याज दर के ढांचे का विकास होता है । + +2230. डिपाजिटरी के विषय में निवेशकों को जो सर्वसामान्य प्रश्न है उसकी सूची एवं उत्तर यहां प्रस्तुत है। + +2231. डीमटीरियलाइजेशन यह ऐसी प्रक्रिया है, जिससे फिजिकल शेयर सर्टिफिकेट्स इलेक्ट्रोनिक रूप में रूपान्तर किया जाता है । + +2232. इस्यूअर अर्थात क्या ? + +2233. नहीं, एक ही इस्यूअर द्वारा विभिन प्रकार की सिक्युरिटीज इस्यू की जाती हो तो भी उसका आईएसआईएन अलग अलग होता है । + +2234. 500 शेयरों तक के शेयरों का निपटान फिजिकल रूप में हो सकता है फिर भी हस्ताक्षर नहीं मिलने, गलत हस्ताक्षर करने या जाली सार्र्टिफिकेट आदि कारणों से उत्पन होने वाली बैड डीलिवरी की दहशत से फिजिकल रूप में सौदे का निपटान लगभग नहीं होता । + +2235. विभिन कंपनियों को अलग अलग सूचना देने की अपेक्षा डीपी को सिर्फ एक सूचना देकर पते में हेरफेर, पावर आफ एटार्नी की पंजीकरण और मृतक का नाम रद्द करना आदि हो सकता है । + +2236. डीपी के माध्यम से डीमेट खाता खुलवाना काफी सरल और आसान है । यह प्रक्रिया बौंक एकाउंट खोलने जैसा ही है । इसके अलावा निवेशक को अपनी पहचान और पता का प्रमाण जैसे कि पेन (पर्मानेंट एकान्ट नंबर) कार्ड, पासपोर्ट, राशनकार्ड आदी डीपी के समक्ष पेश करना पड़ता है । + +2237. निवेशक मार्गदर्शन. + +2238. 2. कंपनी की तरफ से कंपनी में होल्डिंग का ट्रांसफर , विभाजन और एकत्रीकरण जैसी जानकारी प्राप्त करना। + +2239. 7. शेयर दलाल के साथ विवाद के मामले में एक्सचेंज की आर्बिट्रेशन सुविधा प्राप्त करना। + +2240. पूर्णरूपेण विश्वास प्राप्त कर और नियमों का पालन करने के बाद सिर्फ सेबी के साथ रजिस्टर्ड दलाल/उपदलाल के साथ काम करें। एक्सचेंज की वेबसाइट पर और एक्सचेंज द्वारा प्रकाशित की गई सदस्यों की सूची में से शेयर दलाल का चयन किया जा सकता है। + +2241. कांट्रैक्ट नोट-फार्म-ए + +2242. जब एक दलाल सब-ब्रोकर के रूप में उसके ग्राहक /इन्स्टिट्îाूट के लिए काम करता हो तब सब-ब्रोकर द्वारा यह कांट्रैक्ट जारी किया जाता है। + +2243. डीमेट खाता खुलवा कर रखें। + +2244. क्या करें - क्या न करें. + +2245. 2. अपने ब्रोकर/एजेंट/डिपॉजीटरी पार्टिसिपेंट को स्पष्ट और सटीक निर्देश दें। + +2246. 7. किसी भी मध्यस्थी का ग्राहक बनने से पूर्व पूरी सावधानी बरतें।इसके अलावा निवेशकों से अनुरोध किया जाता है कि वह 'रिस्क डिस्क्लोजर डाक्यूमेंट' यानी जोखिम का खुलासा करने वाला दस्तावेज ध्यान से पढ़ें, जो शेयर बाजार में ब्रोकर के जरिये कारोबार करने वाले निवेशकों की आधारभूत आवश्यकताओं का एक हिस्सा है। + +2247. 2. `अफवाहों', जिन्हें आम तौर पर 'टिप्स' कहा जाता है, के आधार पर कारोबार न करें। + +2248. 7. कार्पोरेट गतिविधियों पर मीडिया की खबरों पर आंखें मूंदकर विश्वास न करें, क्योंकि वह गुमराह करने वाली भी हो सकती हैं। + +2249. केन्द्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा जारी किए गए दिशानिर्देश के अनुसार बीएसई ने डिफाल्टर सदस्यों के विरूद्ध निवेशकों के दावों का भुगतान करने के लिए इन्वेस्टर्स प्रोटेक्शन फंड का गठन 10 जुलाई, 1987 को किया था। + +2250. निवेशकों के दावों का भुगतान. + +2251. बीएसई के सर्वेलन्स विभाग को अपने कार्य में तत्परता एवं सक्रियता के कारण अंतर्राष्ट्रीय प्रमाणपत्र मिला है। आज बाजार की कार्य पद्धति और सुरक्षा व्यवस्था काफी सुदृढ़ है जो निवेशकों एवं बाजार के सदस्यों में विश्वास प्रगाढ़ करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। + +2252. बीएसई की वेबसाईट शेयर बाजार संबंधी सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध कराती है। बीएसई ने चेनई, राजकोट, जयपुर और बैंग्लोर में प्रादेशिक टेक्नोलॉजी हब्स भी शुरू किये हैं। + +2253. सर्वेलंस विभाग नियमित रूप से सदस्यों की सीमा पर और शेयरों के भाव एवं वाल्यूम पर भी नजर रखता है। बीएसई ने एक सक्षम सर्किट फिल्टर की सीमा की व्यवस्था तैयार की है। जिससे इस बात की निगरानी की जाती हैं कि शेयरों के भाव प्रतिदिन तय सीमा से अधिक न बढ़े अथवा न घटे । शेयरों के भाव में असाधारण घटबढ़ और वाल्यूम पर लगातार नजर रखी जाती है। यदि ऐसी कोई प्रवृत्ति दिखाई दे तो एक्सचेंज द्वारा सर्किट फिल्टर के माध्यम से भाव पर नियंत्रण लगाया जाता है। भाव में कृत्रिम वृद्धि करने की आशंका होने पर वैसे मामले में शेयरों पर एक्सचेंज द्वारा विशेष मार्जिन लादी जाती है, फिर भी ऐसी प्रवृत्ति जारी रही तो स्क्रिप को ट्रेड़-टू-ट्रेड़ सेगमेंट में ट्रांसफर कर दिया जाता है। जिसमें इस शेयर में नेटिंग या स्क्वेयर आफ की सुविधा सुलभ नहीं होती और आवश्यक रूप से उसी दिन डीलिवरी देनी पड़ती है। इसके बाद भी यदि असाधारण घटबढ़ जारी रही तो एक्सचेंज द्वारा उस शेयर को सस्पेंड़ (स्थगित) करने का भी कदम उठाया जाता है। ऐसी प्रवृत्ति करनेवालों के विरूद्ध जांच भी शुरू की जाती है और दोषियों के विरूद्ध अनुशासन भंग करने की कारवाई की जाती है। + +2254. इसमें एक ग्रुप में फिक्स्ड इनकम सिक्युरिटी का समावेश है। टी ग्रुप में सर्वेलंस के कदम के रूप में ट्रेड-टू-ट्रेड के आधार पर जिसका निपटान करना हो उस स्क्रिप्स का समावेश होता है। एस ग्रुप बीएसई-इन्डोनेक्स्ट सेगमेंट का एक हिस्सा है, इसमें भी ट्रेड-टू-ट्रेड के आधार पर ही निपटान होता है। + +2255. एक्सचेंज के साथ लिस्टिंग करार (अनुबंध) करनेवाली और जिनके शेयर बीएसई पर लिस्टेड हों उसे लिस्टेड सिक्युरिटीज कहा जाता है। + +2256. रोलिंग सेटलमेंट + +2257. सदस्य, दोनो डीपाजिटरी में से किसी भी डीपाजिटरी के माध्यम से क्लियरिंग हाउस में डीमेट सिक्युरिटीज का पे-इन कर सकता है। सदस्य डीपाजिटरी के माध्यम से अपने ग्राहक के बेनिफिसियरी खातों में से भी सीधे पे-इन कर सकते हैं। + +2258. नीलाम + +2259. बास्केट ट्रेडिंग सिस्टम + +2260. सर्वेलंस (निगरानी) का मुख्य उद्देश्य बाजार की अखंडिता को बरकरार रखना है। यह कार्य दो तरह से किया जाता है। एक, भाव और कामकाज की मात्रा (वाल्यूम) की घट-बढ़ पर नजर रखकर एवं दूसरा भुगतान संकट को दूर करने के लिए समयानुकूल आवश्यक कदम उठा कर। कैश और डेरिवेटिव्स बाजार में किसी सार्थक जानकारी के अभाव में स्क्रिप/सिरीज का भाव/वाल्यूम की विसंगतियों को प्रारंभिक चरण में ही ढ़ूंढ़ कर बाजार के खिलाडि़यों की भाव पर असर ड़ालने की क्षमता में कमी लाने का कदम उठाया जाता हैं। कैश और प्युचर-आप्शन्स बाजार के इक्विटी संबंधी सभी इंस्ट¦मेंट की ट्रेडि़ंग सर्वेलंस के तहत आती है। + +2261. अनेकों बार शेयरों के भाव को प्रभावित करने वाली अफवाहें जंगल की आग की तरह फैलती रहती हैं। तब सर्वेलंस विभाग संबंधित कंपनी से संपर्क कर उसकी सही हकीकत की जानकारी हासिल करता है और निर्वेशकों को उसकी जानकारी देता है। जो कंपनी तत्काल जवाब नहीं देती उन्हें शो-काज (कारण बताओ) नोटिस भेजी जाती है। + +2262. चालू खाते को छोड़कर अन्य खातों में बैंक ब्याजमुक्त जमाराशियां स्वीकार नहीं कर सकते + +2263. बैंकों को जमाराशिकी विनिर्दिष्ट अवधि समाप्त होने की तारीख तथा अगले कार्य-दिवस में जमाराशियों की आगाम राशियों की अदयगी की तारीख के बीच आने वाले छुट्टी के दिनों/रविवार/गैर-कारोबारी कार्य-दिवसों के लिए जमाराशि पर मूलतः संविदा की गयी दर पर ब्याज अदा करना चाहिए + +2264. अनुबंध में उल्लिखित सरकारी संगठनों/एजेंसियों की जमाराशियों को छोड़कर सरकारी विभागों/सरकारी योजनाओं के नाम में बचत बैंक खाते नहीं खोले जा सकते + +2265. नहीं बैंक विदेशी मुद्रा अनिवासी (बी) योजना के अंतर्गत आवर्ती जमाराशियां स्वीकार नहीं कर सकते + +2266. बैंक, अपने विवेक पर, अतिदेय अनिवासी विदेशी/विदेश मुद्रा अनिवासी (बी) जमाराशि या उसके एक अंश का नवीकरण कर सकता है, बशर्ते परिपक्वता की तारीख से नवकिरण की तारीख तक (दोनों दिन शामिल अतिदेय अवधि 14 दिनों से अधिक न हो और इस प्रकार नवीकृत जमाराशि पर देय ब्याज की दर अवधिपूर्णता की तारीख को अथवा जमाकर्ता द्वारा जब नवीकरण की मांग की जाती हो उस तारीख को, जो भी कम हो, नवीकरण की अवधि के लिए लागू उपयुक्त ब्याज दर होगी यदि अतिदेय जमाराशियों के मामले में अतिदेय अवधि 14 दिनों से अधिक की हो तो जमाराशि का नवीकरण उस दिन लागू ब्याज दर पर किया जा सकता है, जिस दिन नवीकरण की मांग की गयी हो यदि जमाकर्ता समग्र अतिदेय जमाराशि अथवा उसका एक भाग नये अनिवासी विदेशी/विदेशी मुद्रा अनिवासी (बी) जमाराशि के रूप में रखता हो, तो बैंक नयी मीयादी जमाराशि के रूप में इस प्रकार रखी गयी राशि पर अतिदेय अवधि के लिए अपनी ब्याज दरें निर्धारित कर सकते हैं नवीकरण के बाद योजना के अंतर्गत न्यूनतम निर्धारित अवधि पूरी हो के पूर्व जमाराशि निकाले जाने पर बैंक अतिदेय अवधि के लिए इस प्रकार दिये गये ब्याज की वसूली के लिए स्वतंत्र हैं + +2267. नहीं ब्याज अर्जित करने के लिए जमाराशि न्यूनतम निर्धारित अवधि तक रखी जानी चाहिए, जो वर्तमान में विदेशी मुद्रा अनिवासी (बी) के लिए एक वर्ष और अनिवासी विदेशी जमाराशियों के लिए छः माह है + +2268. @ प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के तहत `कमजोर वर्ग' में निम्नलिखित शामिल हैं + +2269. (ग) गैर-प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अन्य व्यक्तिगत ऋण + +2270. "परन्तु यह कि ऋणकर्ता द्वारा देय ब्याज समय-समय पर रिज़र्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में किये गये परिवर्तनों के अधीन होगा" + +2271. जहां तक निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम की गारंटी फीस का संबंध है, बैंकों को यह विवेकाधिकार है कि वे कमजट्रोर वर्गो को दिये गये अग्रिमों का छोड़कर 25,000 रूपये तक के अग्रिमों और कमज़ोर वर्गो को दिये गये सभी अग्रिमों के संदर्भ में निक्षेप बिमा और प्रत्यय गारंटी निगम की गारंटी फीस वहन करनी चाहिए + +2272. नहीं + +2273. गैर बैंकिंग गैर वित्तीय कंपनियों में उनकी सार्वजनिक जमा योजना में अपनी निधियां लगाने पर बैंकों पर कोई पाबंदी नहीं है परंतु सार्वजनिक जमा योजना में किये गये बैंकों द्वारा ऐसे निवेशों को अपने तुलन पत्रों, बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 के अंतर्गत विवरणियों में और अनुसूचित वाणिज्य बैंकों द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के अंतर्गत पाक्षिक विवरणियों में ऋणों/अग्रिमों के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए + +2274. हां, एक वर्ष से अनधिक अवधि के लिए अपेक्षित ईक्विटी प्रवाह/निर्गमों की जमानत पर तथा अपनिवर्तनीय डिबेंचरो की अपेक्षित आगम राशियों, बाह् य वाणिज्यिक उधारों, सार्वभौमिक जमा रसीदों और/या विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के स्वरूप की निधियों की जमानत पर, बशर्ते बैंक इस बात से संतुष्ट हो कि ऋण लेनेवाली कंपनी ने उक्त संसाधन/निधियां जुटाने के लिए ठोस व्यवस्थाएं की हैं ऐसे ऋण पिछले वर्ष की वृध्दिशील जमाराशियों की 5 पेतिशत की उच्चतम सीमा के भीतर रखना अपेक्षित है + +2275. हां, हानि उठानेवाले बैंक किसी वित्तीय वर्ष में कुल 5 लाख रूपये दान दे सकते हैं + +2276. अक्सर पूछे जानेवाले प्रश्नों को निम्नलिखित कोटियों में बाँटा गया है + +2277. बैंकिंग लोकपाल अद्र्ध न्यायिक प्राधिकारी है विचार-विमर्श के माध्यम से शिकायतों के समाधान को सुविधाजनक बनाने के लिए इसे दोनों पक्षों-बैंक और ग्राहक को बुलाने का अधिकार है + +2278. बैंकिंग लोकपाल बैंकिंग सेवाओं में निम्नलिखित कमियों के संबंध में किसी भी शिकायत को प्राप्त कर सकता है और विचार कर सकता है + +2279. नहीं उसी विषय वस्तु पर शिकायत नहीं की जा सकती जिसका निपटान किन्हीं पूर्ववर्ती कार्यवाहियों में बैंकिंग लोकपाल के कार्यालय द्वारा किया गया हो + +2280. शिकायत में शिकायतकर्ता के नाम और पते, उस बैंक की शाखा अथवा कार्यालय का नाम और पता जिसके विरूद्ध शिकायत की गई है, शिकायत के कारण के लिए तथ्य और उसके समर्थन में दस्तावेज़, यदि कोई हो, शिकायतकर्ता को हुई हानि का स्वरूप और सीमा, बैंकिंग लोकपाल से माँगी गई राहत और उन शर्तो के अनुपाल के बारे में एक धोषणा जो शिकायतकर्ता द्वारा अनुपालन के लिए अपेक्षित है + +2281. कोई अधिनिर्णय पारित करने के लिए बैंकिंग लोकपाल पक्षों द्वारा उसके समक्ष प्रस्तुत किए गए दस्तावेज़ी साक्ष्य, बैंकिंग विधि और व्यवहार के सिद्धांत, दिशानिर्देशों, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किए गए अनुदेशों और मार्गदर्शी सिद्धांतों तथा ऐसे अन्य कारकों द्वारा निर्देशित होता है जो उसकी राय में न्याय के हित में आवश्यक है + +2282. यदि बैंकिंग लोकपाल शिकायतकर्ता द्वारा समय-विस्तार (अधिनिर्णय की स्वीकार्यता का अपना पत्र भेजने हेतु) के अपने अनुरोधपत्र में बताए गए कारणों से संतुष्ट है तो वह ऐसे अनुपालन के लिए पंद्रह दिनों तक के और समय-विस्तार की स्वीकृति दे सकता है + +2283. अधिनिर्णय के विरूद्ध अपील. + +2284. अन्य. + +2285. + +2286. भारत में सरकारी प्रतिभूति बाजार में पिछले दशक में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं इलैक्ट्रॉनिक क्रीन आधारित कारोबार प्रणाली लागू करना, अमूर्त धारिता, सीधा प्रसंस्करण, तयशुदा समायोजन के लिए केद्रीय प्रतिरूप (सीसीपी) के रूप में भारतीय समाशोधन निगम लिमि. (सीसीआइएल) की स्थापना, नई लिखतों तथा कानूनी परिवेश में परिवर्तन कुछ ऐसी महत्वपूर्ण गतिविधियाँ हैं जिन्होने इस बाजार को तेजी से विकसित होने में सहयोग दिया है + +2287. 1.1. सरकारी प्रतिभूति एक व्यापारयोग्य लिखत है जो केद्र सरकार अथवा राज्य सरकारों द्वारा जारी किए जाते हैं ये सरकार का ऋण दायित्व दर्शाते हैं यह प्रतिभूतियाँ अल्पावधि (सामान्यतः इन्हें खजाना बिल कहा जाता है, जिनकी मूल परिपक्वता 1 वर्ष से कम होती है) अथवा दीर्धावधि (सामान्यतः इन्हें सरकारी बॉण्ड अथवा दिनांकित प्रतिभूतियाँ कहा जाता है, जिनकी मूल परिपक्वता एक वर्ष अथवा अधिक होती है) होती हैं भारत में केद्र सरकार, खजाना बिल तथा बॉण्ड अथवा दिनांकित प्रतिभूतियाँ जारी करती है जबकि राज्य सरकारें केवल बॉण्ड अथवा दिनांकित प्रतिभूतियाँ जारी करती हैं जिन्हें राज्य विकास ऋण (एसडीएल) कहा जाता है सरकारी प्रतिभूतियों में, व्यावहारिक रूप से, चूक का कोई जोखिम नहीं होता है, तथा इस प्रकार इन्हें जोखिम मुक्त अथवा श्रेष्ठ प्रतिभूतियाँ कहा जाता है भारत सरकार बचत लिखत (बचत बॉण्ड, राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र (एनएससी), इत्यादि) अथवा विशेष प्रतिभूतियाँ (तेल बॉण्ड, भारतीय खाद्य निगम बॉण्ड, उर्वरक बॉण्ड, ऊर्जा बॉण्ड इत्यादि) भी जारी करती है ये पूर्णतया व्यापार योग्य नहीं होते हैं, अतः सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) प्रतिभूतियों के लिए पात्र नहीं होते हैं + +2288. प्रतीकात्मक दिनांकित नियत कूपन सरकारी प्रतिभूतियों की नाम पद्धति में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं - कूपन, जारीकर्ता का नाम, परिपक्वता और अंकित मूल्य उदाहरणार्थ : 7.49% जीएस 2017 का अर्थ होगा :- + +2289. जारी करने की तारीख 16 अप्रैल 2007 + +2290. यदि कूपन भुगतान की तारीख रविवार अथवा छुट्टी के दिन है, तो कूपन भुगतान अगले कार्य दिवस को किया जाता है तथापि, यदि परिपक्वता की तारीख रविवार अथवा छुट्टी के दिन होती है तो शोधन की आय का भुगतान पिछले कार्य दिवस को किया जाता है + +2291. उदाहरण - 8.24 प्रतिशत जीएस 2018 दस वर्ष के अवधि के लिए 22 अप्रैल 2008 को जारी किया गया जिसकी परिपक्वता 22 अप्रैल 2018 को है इस प्रतिभूति पर कूपन प्रत्येक वर्ष छःमाही आधार पर 4.12 प्रतिशत की दर से अंकित मूल्य पर 22 अक्तूबर और 22 अप्रैल को अदा किया जाएगा + +2292. (v) मांग/विक्रय विकल्प वाले बाँण्ड - विकल्प की विशेषताओं वाले बॉण्ड भी जारी किये जा सकते हैं जहाँ जारीकर्ता के पास बाय बैक (मांग/विकल्प) का विकल्प होगा अथवा निवेशक के पास यह विकल्प होगा कि वह बॉण्ड की अवधि के दौरान जारीकर्ता को बॉण्ड बेच (विक्रय विकल्प) सकते हैं 6.72% जीएस 2012, 18 जुलाई 2002 को जारी किए गए थे जिनकी परिपक्वता अवधि दस वर्ष की है तथा परिपक्वता की तारीख 18 जुलाई 2012 है बॉण्ड पर विकल्प का प्रयोग उसके बाद आने वाली किसी कूपन तारीख को जारी करने की तारीख से 5 वर्ष की अवधि पूरा होने के बाद किया जा सकता है सरकार को सममूल्य पर (अंकित मूल्य के बराबर) बॉण्ड बाय बैक (मांग/विकल्प) करने का अधिकार है जब कि निवेशक को 18 जुलाई 2007 से आरंभ होने वाली किसी भी छमाही कूपन तारीखों में सममूल्य पर सरकार को बेचने का अधिकार होगा + +2293. 2.1. बैंक द्वारा अपनी दैनिक आवश्यकताओं से अधिक नकदी रखने से उसे कुछ लाभ नहीं होता सोने में निवेश से बहुत सी समस्याएँ होती हैं जैसे उसकी शुद्धता, मूल्यांकन, सुरक्षित अभिरक्षा इत्यादि सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश के निम्नलिखित लाभ हैं :- + +2294. (ग) गैर अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों को, जिनकी मांग और मीयादी देयताएँ 25 करोड़ रू. से कम हैं, अपनी एसएलआर अपेक्षाओं का 10% सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में धारण करना चाहिए + +2295. 2.6 वर्तमान में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को अपनी एसएलआर प्रतिभूतियों के संबंध में उनके दैनिक बाजार cetu³e से छूट प्रदान की गई है तदनुसार, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को "परिपक्वता तक धारित" के अंतर्गत अपने पूरे निवेश संविभाग को वर्गीकृत करने तथा उन्हें उनके बही मूल्य पर मूल्यांकित करने की छूट दे दी गई है + +2296. नीलामियों के निर्गम जारी करने के तरीके के रूप में लागू करने से पहले सरकार द्वारा ब्याज दरें प्रशासनिक रूप से निर्धारित किए जाते थे नीलामी शुरू करने के साथ ब्याज दरें (कूपन दरें) बाजार आधारित मूल्य निर्धारण प्रक्रिया के माध्यम से निर्धारित किए जाते हैं + +2297. + +2298. नीलामी निपटान की तारीख : 8 सितंबर 2008* + +2299. बोली की राशि (रू.करोड़) + +2300. 300 + +2301. 200 + +2302. 250 + +2303. 150 + +2304. 100 + +2305. 100 + +2306. 150 + +2307. 100 + +2308. वर्तमान प्रतिभूति 8.24% जीएस 2018 की मूल्य आधारित नीलामी + +2309. नीलामी निपटान की तारीख : 8 सितंबर 2008* + +2310. बोली की राशि (रू.करोड़) + +2311. 300 + +2312. 200 + +2313. 250 + +2314. 150 + +2315. 100 + +2316. 100 + +2317. 150 + +2318. 100 + +2319. 4.3. कोई निवेशक नीलामी में निम्नलिखित में से किसी भी श्रेणी में बोली लगा सकता है :- + +2320. 5. खुले बाजार परिचालन (ओएमओ) क्या हैं ? + +2321. (ख) डीमैट रूप में : सरकारी प्रतिभूतियों को डीमैट रूप में अथवा क्रिप रहित रूप में रखना सबसे अधिक सुरक्षित और सुविधाजनक विकल्प है क्योंकि इससे सुरक्षित रूप से रखने की समस्याएँ यथा प्रतिभूति का गुम होना इत्यादि समाप्त हो जाती हैं साथ ही, इलैक्ट्रॉनिक रूप में अंतरण और सर्विसिंग परेशानी रहित होती है धारक अपनी प्रतिभूतियों को डीमैट रूप में दो प्रकार से रख सकता है : + +2322. (i) काउंटर पर (ओटीसी)/टेलीफोन बाजार + +2323. 8.5. गिल्ट खाता धारकों को अपने अभिरक्षक संस्थान के माध्यम से एनडीएस तक अप्रत्यक्ष पहुँच प्रदान की गई है कोई सदस्य (जिसकी सीधी पहुँच है) एनडीएस पर सरकारी प्रतिभूतियों में गिल्ट खाताधारक के लेन-देन रिपोर्ट कर सकता है इसी प्रकार, गिल्ट खाताधारकों को एनडीएस-ओएम तक अप्रत्यक्ष रूप से पहुँच उनके अभिरक्षकों के माध्यम से दी गई है तथापि, एक ही अभिरक्षक के दो गिल्ट खाताधारकों को आपस में रिपो लेन-देन की अनुमति नहीं हैं + +2324. करने योग्य अथवा न करने योग्य महत्वूपर्ण बातें नीचे बाक्स 1 में प्रस्तुत हैं + +2325. 11.2. यदि कोई डील ब्रोकर के माध्यम से होती है, ब्रोकर द्वारा काउंटर पार्टी का स्थानापन्न नहीं होना चाहिए इसी प्रकार, किसी भी स्थिति में किसी डील में बेची/खरीदी गई प्रतिभूति को किसी अन्य प्रतिभूति से बदलना नहीं चाहिए किसी व्यक्ति द्वारा अपराध रोकने के लिए एक "मेकर-चैकर" ढाँचा लागू किया जाना चाहिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि प्रणाली में मेकर (जो डेटा निविष्टियाँ करता है) और चैकर (जो सत्यापित करके आँकड़े प्राधिकृत करता है) का काम एक ही व्यक्ति न करे + +2326. (iii) सही मूल्यन कैसे सुनिश्चित किया जाए - चूंकि शहरी सहकारी बैंक जैसे छोटे निवेशकों की अपेक्षाएँ कम होती हैं, उन्हें वह मूल्य मिल सकता है जो मानक बाजार माँग से खराब हो मूल्य की सुनिश्चितता देखते हुए खरीदने के लिए केवल तरल प्रतिभूतियों का चयन किया जाए कम अपेक्षा वाले निवेशकों के लिए सुरक्षित विकल्प गैर स्पर्धी मार्ग के माध्यम से भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा आयोजित प्राथमिक नीलामी में खरीदना होगा चूंकि बॉण्ड नीलामी प्रत्येक माह में दो बार होती है, खरीद को नीलामी के साथ जोड़ा जा सकता है कृपया सरकारी प्रतिभूतियों के मूल्य सुनिश्चित करने पर ब्योरे के लिए प्रश्न सं.14 देखें + +2327. एनडीएस-ओएम बाजार + +2328. प्राथमिक बाजार + +2329. "कामबंदी अवधि" का तात्पर्य उस अवधि से है जब प्रतिभूतियों की सुपुर्दगी नहीं होती इस अवधि के दौरान उन प्रतिभूतियों के समायोजन/सुपुर्दगी की अनुमति नहीं होगी जो "कामबंदी" में है कामबंदी अवधि का मुख्य प्रयोजन प्रतिभूतियों की सर्विसिंग करना है जैसे कूपन के भुगतान और शोधन आय को अंतिम रूप देना तथा इस प्रक्रिया के दौरान प्रतिभूतियों के स्वामित्व में किसी परिवर्तन को रोकना है वर्तमान में एसजीएल में धारित प्रतिभूतियों के लिए कामबंदी अवधि एक दिन है उदाहरणार्थ प्रतिभूति 6.49% जीएस 2015 के लिए कूपन भुगतान की तारीख प्रत्येक वर्ष 8 जून और 8 दिसंबर है इस प्रतिभूति के संबंध में कामबंदी अवधि 7 जून और 7 दिसंबर होगी तथा इस प्रतिभूति के संबंध में समायोजन के लिए कारोबार की इन दो तारीखों को अनुमति नहीं होगी + +2330. सकल प्रणाली में तरलता अपेक्षा निवल प्रणाली से अधिक होती है क्योंकि निवल प्रणाली में देय और प्राप्य राशि एक दूसरे के साथ समायोजित हो जाती है + +2331. 2. स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक (022) 622303/22652875/22683695 + +2332. 7. केनरा बैंक (022) 22800101-105/22661348 + +2333. (ख) स्वतंत्र पीडी + +2334. 5. एसटीसीआइपीडी लिमि. (022) 66202261/2200 + +2335. प्ूूज्://ैैै.ींi.दीु.iह/म्दस्स्दहस्aह/हिंुत्iेप्/एम्ीiज्ूे/झीiस्aीब्अaतीे.aेज्x पर प्राथमिक व्यापारियें की अद्यतनसूची उपलब्ध है + +2336. कार्य + +2337. रेट - प्रत्येक अवधि की ब्याज दर है + +2338. टाइप का अर्थ + +2339. अवधि के आरंभ में + +2340. इस फंक्शन का प्रयोग दी गई ब्याज दर पर किए गए निवेशों की श्रृंखला के भविष्य में मूल्य की गणना के लिए किया जाता है + +2341. टाइप - 0 अथवा 1 संख्या है और ये निर्दिष्ट करते हैं कि भुगतान कब देय है यदि टाइप हटा दिया जाए तो यह 0 माना जाए + +2342. यह फंक्शन कूपन अवधि के शुरू से अंत तक दिनों की संख्या की गणना के लिए प्रयोग किया जाता है, जिसमें समायोजन तारीख होती है + +2343. आधार + +2344. यूएस (एनएएसडी) 30/360 + +2345. 4 + +2346. परिपपक्वता 2/2/2019; समायोजन-25/5/2009/आवधिकता-2 (छमाही कूपन) और आधार 4 (दिन गिनने की परंपरा 30/360) + +2347. आरंभ - तारीख वह तारीख हे जो आरंभ की तारीख बताती है + +2348. परिणाम 9.68 वर्ष होगा + +2349. परिपक्वता प्रतिभूति की परिपक्वता की तारीख है परिपक्वता तारीख वह तारीख है जब प्रतिभूति की अवधि समाप्त होती है + +2350. आधार प्रयोग के आधार पर दिन गिनने का स्वरूप है + +2351. प्रतिप्ल (समायोजन, परिपक्वता, दर, पीआर, शोधन, आवधिकता, आधार) + +2352. पीआर - प्रति 100 रू. के अंकित मूल्य का प्रतिभूति मूल्य + +2353. 7. अवधि + +2354. कूपन - प्रतिभूति की वार्षिक कूपन दर है + +2355. परिणाम 7.25 वर्ष होगा + +2356. परिपक्वता - प्रतिभूति की परिपक्वता की तारीख है परिपक्वता तारीख वह तारीख है जब प्रतिभूति की अवधि समाप्त होती है + +2357. ऊपर दिए अनुसार वही उदाहरण लेते हुए एक्सेल फंक्शन में उक्त अवधि और मूल्य देते हुए फार्मूले का परिणाम 7.01 होगा + +2358. बोली मूल्य/प्रतिप्ल + +2359. नीलामी में बोलीकर्ता द्वारा लगाए गए मूल्य को स्पर्धी बोली कहा जाता है + +2360. बट्टा + +2361. प्रतिभूति की परिपक्वता की तारीख को किसी निवेशक को अदा किया जाने वाला अंकित मूल्य कहलाता है ऋण प्रतिभूतियाँ अलग-अलग अंकित मूल्य पर जारी की जाती है; तथापि भारत में, इन का अंकित मूल्य विशिष्ट रूप से 100 रू. होता है अंकित मूल्य को चुकौती राशि भी कहा जाता है इस राशि का शोधन मूल्य, मूल मूल्य (अथवा मूलधन), परिपक्वता मूल्य अथवा सम मूल्य भी कहा जाता है + +2362. मार्केट लॉट + +2363. गैर स्पर्धी बोली का अर्थ है कि बोलीकर्ता, मूल्य की बोली लगाए बिन, दिनांकित सरकारी प्रतिभूतियों की बोली में भाग ले सकता है गैर स्पर्धी धटक का आबंटन उस भारित औसत दर पर होगा जो स्पर्धी बोली के आधार पर नीलामी में आएगा यह एक आबंटन सुविधा है जिसमें कुल प्रतिभूतियों का एक भाग सफल स्पर्धी बोली के भारित औसत मूल्य पर बोलीकर्ताओ को आबंटित किया जता है (कृपया प्रश्न सं.4 के अंतर्गत पैराग्राफ 4.3 भी देखें) + +2364. अधिमूल्य (प्रीमियम) + +2365. सरकारी उधार की आवश्यकताओं को यथासंभव सस्ते और सक्षम रूप से पूरा करने के उद्देश्य से विशेषकृत वित्तीय फर्मो/बैंकों के एक समूह को सरकारी प्रतिभूति बाजार और जारीकर्ता के बीच विशेषीकृत मध्यस्थ की भूमिका निभाने के लिए नियुक्त किया जाता है इन संस्थाओं को सामान्यतया प्राथमिक व्यापारी अथवा मार्केट मेकर कहा जाता है लगातार बोली लगाने तथा विपणन योग्य बाजार प्रतिभूतियों में मूल्य लगाने अथवा नीलामी में बोली लगाने जैसे कार्यो के बदले में इन फर्मो को प्राथमिक/द्वितीयक बाजार में कुछ लाभ मिलते हैं + +2366. रिपो/रिवर्स रिपो + +2367. द्वितीयक बाजार + +2368. सरकार की उधार देयताएँ जिनकी अवधि समाप्ति 1 वर्ष अथवा कम होती है सामान्यतया खजाना बिल अथवा टी बिल कहलाते हैं खजाना बिल, खजाने/सरकार की अल्पावधि देयताएँ होती हैं ये अंकित मूल्य पर बट्टे पर जारी लिखत हैं और मुद्रा बाजार का महत्वपूर्ण भाग हैं + +2369. प्रतिप्ल + +2370. विभिन्न परिपक्वता अवधि तथा उसी ऋण गुणवत्ता के बॉण्डों के बीच प्रतिप्ल और परिपक्वता के बीच संबंध दर्शाने वाला ग्राफिक संबंध यह रेखा ब्याज दरों का अवधि ढाँचा दर्शाती है इससे निवेशक ऋण प्रतिभूतियों का विभिन्न परिपक्वता तथा कूपन से तुलना कर सकता है + +2371. मुद्रा का समय मूल्य + +2372. वर्तमान मूल्य (पीवी) फाम्र्यूला के चार परिवर्ती होते हैं जिनमें से एक-एक को निम्नानुसार हल किया जा सकता है + +2373. भावी नकदी प्रवाहों के संचयी वर्तमान मूल्य की गणना एफवी के अंशदान अर्थात् समय पर नकदी प्रवाह का मूल्य `टी' को जोड़कर की जा सकती है + +2374. 2 + +2375. 100 + +2376. राशि + +2377. 0.9091 + +2378. 82.64 + +2379. संचयी वर्तमान मूल्य = 90.91+82.64+75.13=रू.248.69 + +2380. 22. किसी बांड के मूल्य का हिसाब किस प्रकार लगाया जाता है? किसी लेनदेन का कुल प्रतिफल क्या होगा और उपचित ब्याज क्या होता है? + +2381. यहां लगाए गए मूल्य को `क्लीन मूल्य' कहा जाता है, क्योंकि उसमें उपचित ब्याज जुड़ा नहीं होता है + +2382. कुल प्रतिफल राशि = लेनदेन का अंकित मूल्य डर्टी मूल्य + +2383. ● यदि बॉण्ड का बाजार मूल्य अंकित मूल्य से अधिक है अर्थात् बांड प्रीमियम पर बिकता है, तो कूपन आय > चालू आय > वाइटीएम + +2384. ● बॉण्ड बेचे जाने पर मिलनेवाला किसी प्रकार का पूंजीगत लाभ (या पूंजी हानि); और + +2385. कूपन आय = कूपन भुगतान/अंकित मूल्य + +2386. कूपन आय : 8.24/100 = 8.24% + +2387. प्रति रू.100 के सम मूल्य पर रू.103.00 के लिए बेचे जानेवाले 10 वर्षीय 8.24% कूपन बांड के लिए चालू आय का हिसाब नीचे दिया गया है + +2388. बॉक्स III + +2389. एक 8% के कूपनवाली प्रति रू.100 के अंकित मूल्य के रू.102 के मूल्य वाली दो वर्षीय प्रतिभूति ली जाए; नीचे `आर' के लिए हल करते हुए वाइटीएम की गणना की जा सकती है विशिष्टतया, इस में `आर' के लिए एक मूल्य मान लिया गया है तथा इस समीकरण का हल निकालने में परख एवं भूल शामिल है, इसी में यह भी मान लिया गया है कि यदि दायी और की राशि 102 से अधिक हो तो `आर' के लिए एक उच्चस्तर का मूल्य दिया जाए तथा पुनः हल निकाला जाए लीनीयर इंटरपोलेशन तकनीक का भी एक बार `आर' के लिए `दो' मूल्य लेने पर सही `आर' का पता लगाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, ताकि एक के लिए मूल्य कीमत 102 से अधिक और दूसरे मूल्य कीमत के लिए 102 से कम रहे + +2390. जिसमें कि + +2391. प्रतिदेय - प्रति रू.100 के अंकित मूल्य के लिए प्रतिभूति का प्रतिदेय मूल्य है + +2392. उदाहरण के लिए - भारतीय बाजारों में अपनायी जाने वाली परिपाटी निम्नानुसार है : + +2393. उल्लेखनीय है कि खज़ाना बिल की शेष परिपक्वता समयावधि 50 दिन की है (91-41) + +2394. सर्वप्रथम - प्रत्येक समयावधि के लिए भविष्य के प्रत्येक नकद प्रवाह को इसकी तत्संबंधी वर्तमान कीमत से धटाना होगा चूंकि कूपन प्रत्येक छह माह की समयावधि में दिए जाते हैं अतः एक चक्र छह माह के बराबर होगा और दो वर्ष की परिपक्वता वाले बाण्ड में 4 चक्र होंगे + +2395. समय समयावधि (वर्ष में) + +2396. जोड़ + +2397. 105 + +2398. 88.05 + +2399. 13.14 + +2400. औपचारिक रूप में, समयावधि का तात्पर्य है - + +2401. समयावधि, ब्याज दर परिचालनों (अर्थात् प्रतिप्ल) के प्रति बाण्ड की बाजार कीमत की संवेदनशीलता नापने के रूप में प्राथमिक रूप से उपयोगी होती है यह प्रतिप्ल में आए किसी परिवर्तन हेतु कीमत में आए प्रतिशत परिवर्तन के लगभग समतुल्य होती है उदाहरण के लिए ब्याज दरों में हुए छोटे परिवर्तनों के लिए समयावधि लगभग वह प्रतिशत है जिससे बाण्ड की कीमत बाजार ब्याज दर में 1 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि के लिए गिर जाएगी अतः ब्याज दरों में 1% वार्षिक की वृद्धि होने पर 7 वर्ष की समयवावधि वाले 15 वर्षीय बाण्ड की कीमत लगभग 7% गिर जाएगी दूसरे अर्थो में ब्याज दरों के संबंध में समयावधि बाण्ड की कीमत का लचीलापन है + +2402. बॉक्स IV में दिए गए उदाहरण में, संशोधित समयावधि = 1.86/(1+0.09/2)=1.78 + +2403. अतः पीवी 01=1.81/100=0.018 रू. होगी जो 1.8 पैसे है इस प्रकार 1.78 वर्षो की संशोधित समयावधि वाले किसी बाण्ड का प्रतिप्ल 9% से 9.05% (5 आधार बिंदुओं) में परिवर्तित होता है तो बाण्ड की कीमत 102 रू. से 101.91 रू. में परिवर्तित होती है (9 पैसे की गिरावट अर्थात् 5 X 1.8 पैसे) + +2404. 28.3 राज्य सरकार और अन्य प्रतिभूतियों का मूल्यांन केंद्रीय सरकार की प्रतिभूति की तदनुरूपी शेष परिपक्वता समयावधि के प्रतिप्ल पर कीमत-लागत अंतर को जोड़कर करना चाहिए इस समय राज्य सरकार की प्रतिभूतियों का मूल्यांकन करते समय 25 आधार अंकों (0.25%) का कीमत-लागत अंतर जोड़ा जाता है जबकि विशेष प्रतिभूतियों (तेल बाण्ड, उर्वरक बाण्ड, एसबीआई बाण्डों आदि) के कार्पोरेट बाण्डों के लिए प्मिडा द्वारा दिया गया कीमत-लागत अंतर जोड़ा जाता है राज्य सरकार के एक बाण्ड को ध्यान में रखते हुए मूल्यांकन का एक उदाहरण नीचे बॉक्स V में दिया गया है + +2405. जारी करने की तारीख - 10 दिसंबर 2004 + +2406. उक्त बाण्ड के मूल्यांकन में निम्नलिखित स्तर शामिल हैं - + +2407. स्तर - 1 + +2408. यहा हम 0.69 वर्षो के लिए प्रतिप्ल के अंतर का पता लगाकर और उसे 6 वर्षो के लिए लागू प्रतिप्ल में जोडते हैं ताकि 6.69 वर्षो के लिए प्रतिप्ल का पता लगाया जा सकें यह भी नोट करना हैं कि प्रतिप्ल का उपयोग दशमलव रूप में करना है (उदाहरण के लिए 7.73 प्रतिशत, 7.73/100 के बराबर है जिसका अर्थ है 0.0773) + +2409. यदि बैंक अपने पोर्टप्ाटलियों में 10 करोड रूपये की इस प्रकार की प्रतिभूति भारीत करता है तो कुल कीमत 10*(96.47/100)=9.647 करोड रूपये होगी + +2410. सामान्य रूप से सरकारी प्रतिभूतियों को जोखिम रहित लिखतें माना जाता है क्योंकि सरकार से अपने भुगतान में चूक अपेक्षित नहीं हैं तथापि, जैसा कि किसी भी वित्तीय लिखत के मामले में होता है वैसा ही जोखिम सरकारी प्रतिभूतियों के साथ भी होता है अतः इस प्रकार के जोखिमों की पहचान करना और उन्हें समझाना और उनको दूर करने के लिए उचित उपाय करना आवश्यक है सरकारी प्रतिभूतियों की धारिता के साथ निम्नलिखित प्रमुख जोखिम जुड़े होते हैं - + +2411. उन्नत जोखिम प्रबंधन तकनीकों में ब्याज दर स्वॉप (आइआरएस) जैसे व्युत्पन्नियों का प्रयोग शामिल है जहाँ नकदी प्रवाह की प्रकृति में बदलाव किया जा सकता है हालांकि, ये जटिल साधन हैं जिसे समझाने के लिए उच्च स्तर की विशेषज्ञता की आवश्यकता पड़ती है अतः व्युत्पन्नी लेन-देन के वक्त पर्याप्त सावधानी बरतनी चाहिए और ऐसे लेन-देन इससे संबंधित जोखिमों और जटिलताओं की पूरी जानकारी के बाद ही किया जाना चाहिए + +2412. विभिन्न मुद्रा बाज़ार लिखत कौन-कौन से हैं ? + +2413. 30.4. रेपो, निधियों की प्राप्ति के लिए प्रतिभूतियों को इस करार के साथ बेचने के लिए एक प्रकार का लिखत है, जिसमें उक्त प्रतिभूतियों को आपस में सहमत तारीख और मूल्य पर पुनर्खरीद करनी पड़ती है जिसमें उधार ली गई निधियों पर ब्याज शामिल है + +2414. संपाश्र्वीकृत उधार और ऋणदायी बाध्यता (सीबीएलओ) + +2415. 30.12. वाणिज्यिक पत्र (सीपी) एक प्रतिभूति-रहित मुद्रा बाज़ार की लिखत है जिसे प्रामिसरी नोट के रूप में जारी किया जाता है भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित अंब्रेला सीमा के अंतर्गत अल्पावधिक संसाधनों को जुटाने हेतु अनुमति प्राप्त कार्पोरेट, प्राथमिक व्यापार (पीडी) तथा अखिल भारतीय वित्तीय संस्थाएं (एफआई) वाणिज्यिक पत्र जारी करने की पात्रता रखती हैं वाणिज्यिक पत्रों को उसकी निर्गम-तारीख से न्यूनतम 7 दिनों से अधिकतम एक वर्ष तक की अवधि के लिए जारी किया जा सकता है + +2416. 31.2. प्मिडा बाज़ार के सहभागियों का प्रतिनिधित्व करता है तथा बांड, मुद्रा और डेरिवेटिव बाज़ारों के विकासार्थ सहायता प्रदान करता है यह इन बाज़ारों के कार्य-संचालन को प्रभावित करने वाले विभिन्न मुद्दों के संबंध में विनियामकों के साथ विचारों का आदान-प्रदान कराके एक सेतु का कार्य करता है विकास की दिशा में भी यह कई कार्य करता है, जैसे बेंचमार्क दरों और नई डेरिवेटिव लिखतों आदि की पहल करना प्मिडा मूल्यांकन की दृष्टि से बाज़ार के सहभागियों द्वारा प्रयुक्त विभिन्न सरकारी प्रतिभूतियों की दरें जारी करता है प्मिडा अपने सदस्यों के लिए सर्वोत्तम बाज़ार प्रथा के विकास में भी एक सकारात्मक भूमिका अदा करता है ताकि बाज़ार का संचालन पूर्णतः पारदर्शी रूप से हो, साथ ही साथ प्रभावशाली हो + +2417. इस साइट में सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद-फरोख्त का मूल्य और साथ ही निर्दिष्ट मूल्य के संबंध में तात्कालिक जानकारी उपलब्ध कराई जाती है इसके अलावा, यदा जारी (डब्ल्यूआई) (जब भी सौदा होता हो) वाला खंड भी मुहैया कराया जाता है + +2418. 32.4. प्मिडा - http://www.fimmda.org/ + +2419. गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी उस कंपनी को कहते हैं जो ए) कंपनी अधिनियम, 1956 के अंतर्गत पंजीकृत हो, बी) इसका मुख्य कारोबार उधार देना, विभिन्न प्रकार के शेयरों/स्टॉक/ बांड्स/ डिबेंचरों/प्रतिभूतियों, पट्टा कारोबार, किराया-खरीद(हायर-पर्चेज), बीमा कारोबार, चिट संबंधी कारोबार में निवेश करना, तथा सी) इसका मुख्य कारोबार किसी योजना अथवा व्यवस्था के अंतर्गत एकमुश्त रूप से अथवा किस्तों में जमाराशियां प्राप्त करना है। किंतु, किसी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी में ऐसी कोई संस्था शामिल नहीं है जिसका मुख्य कारोबार कृषि, औद्योगिक, व्यापार संबंधी गतिविधियां हैं अथवा अचल संपत्ति का विक्रय/क्रय/निर्माण करना है। ड भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 आइ(सी) ] एक महत्वपूर्ण पहलू जो ध्यान में रखा जाना है, यह है कि धारा 45 आइ(सी) में किए गए उल्लेख के अनुसार ऋण/अग्रिमों से संबंधित गतिविधियां स्वयं की गतिविधि से इतर की गतिविधियां हों। यदि यह प्रावधान न होता तो समस्त कंपनियां गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां होतीं। + +2420. भारतीय रिज़र्व बैंक को भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के अंतर्गत ऐसी कंपनियों के बारे में जो मुख्य कारोबार के 50-50 मानदंडों को पूरा करती हैं, को पंजीकृत करने, नीति-निर्धारण करने, निर्देश देने, निरीक्षण करने, विनियमित करने, पर्यवेक्षण करने तथा उन पर निगरानी रखने की शक्तियां प्रदान की गई हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को रिज़र्व बैंक अधिनियम के प्रावधानों, एवं अधिनियम के अंतर्गत जारी निदेशों अथवा आदेशों का उल्लंघन करने पर दंडित कर सकता है। दंड के रूप में भारतीय रिज़र्व बैंक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी को जारी पंजीकरण प्रमाणपत्र निरस्त कर सकता है, उसे जमाराशियां लेने से मना कर सकता है तथा उनकी आस्तियों के स्वत्वाधिकार का अंतरण कर सकता है अथवा उसे बंद करने के लिए याचिका दायर कर सकता है। + +2421. रिज़र्व बैंक उन कंपनियों का विनियमन व पर्यवेक्षण करता है जो अपने मुख्य व्यवसाय के रूप में वित्तीय गतिविधियों से जुड़ी हैं। अत: वैसी कंपनियाँ जो प्रमुख व्यवसाय के रूप में कृषि प्रचालन, औद्योगिक गतिविधि, माल की खरीद और बिक्री, सेवाएँ प्रदान करने या अचल सम्पत्तियों की बिक्री या निर्माण से जुड़ी हैं और छोटे स्तर पर कोई वित्तीय व्यवसाय कर रही हैं तो वे रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित नहीं की जाएंगी। + +2422. अवशिष्ट गैर-बैंकिंग कंपनी एनबीएफसी की एक श्रेणी है जिसका 'प्रमुख व्यवसाय ' किसी भी योजना, व्यवस्था या किसी अन्य तरीके से जमा राशियाँ प्राप्त करना है। ये कंपनियाँ निवेश , आस्ति वित्तपोषण या ऋण देने का कार्य नहीं करती। जमाराशियों के संग्रहण की पद्धति और जमाकर्ताओं की निधियों के विनियोजन के मामले में इन कंपनियों की कार्य प्रणाली एनबीएफसी से भिन्न है। इन कंपनियों को , हालांकि रिज़र्व बैंक द्वारा अब निर्देश दिया गया है कि कोई जमाराशि स्वीकार न करें और आरएनबीसी के रूप में अपना व्यवसाय बंद कर दें। + +2423. किसी भी तरह से जमा किया गया पैसा जमा राशि होता है सिवाय शेयर पूंजी, भागीदारी कंपनी के शेयरों के लिए भागीदार से लिया गया अंशदान, प्रतिभूति जमा, बयाना जमा, माल की खरीद, सेवाएं या निर्माण हेतु अग्रिम, बैंको, वित्तीय संस्थाओ और साहूकारों से लिया गया ऋण, चिट फंडो के लिए दिया अभिदान। उपर्युक्त तरीकों को छोड़कर किसी तरह से जमा किए गए पैसे को जमाराशि कह सकते है। + +2424. भारतीय रिजर्व बैंक अपनी वेब साइट ैैै.ींi.दीु.iह → साइट मैप → एनबीएफसी की सूची → जमा राशियां स्वीकार करने के लिए प्रधिकृत एनबीएफसी, पर उन एनबीएफसीज़् के नामों की सूची प्रकाशित करता है जिनके पास जमाराशियां स्वीकार करने का वैध पंजीकरण प्रमाणपत्र है। कभी- कभी कुछ कंपनियों को अस्थायी तौर पर जनता से जमाराशियाँ स्वीकार करने हेतु प्रतिबंधित कर दिया जाता है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जमाराशियाँ स्वीकार करने हेतु अस्थायी तौर पर प्रतिबन्धित की गई ऐसी एनबीएफसीज़् की सूची अपनी वेबसाइट पर प्रदर्शित की जाती है। भारतीय रिजर्व बैंक इन दोनों सूचियों को अद्यतन रखता है। आम जनता को सूचित किया जाता है कि वे एनबीएफसीज़् के पास जमाराशियां रखने के पहले वे इन सूचियों की जांच कर लें। + +2425. नहीं। प्रोप्राइटरशिप/भागीदारी कंपनियाँ अनिगमित निकाय हैं। अतएव उन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के तहत जनता से जमाराशियां स्वीकार करने से प्रतिबंधित किया है। + +2426. भारतीय रिज़र्व बैंक से विनियमित होने का झूठा/गलत दावा कर किसी वित्तीय संस्था या अनिगमित निकाय द्वारा जनता को गुमराह करके जमाराशि स्वीकार करना गैर कानूनी है तथा भारतीय दण्ड संहिता के तहत उन पर दण्डात्मक कार्रवाई की जा सकती है। इस संबंध में सूचना भारतीय रिज़र्व बैंक के निकटतम कार्यालय तथा पुलिस को दी जा सकती है। + +2427. अधिक ब्याजदर की पेशकश वाली योजनाओं में निवेश करने के पहले निवेशक यह जाँच लें कि ऐसे रिटर्न की पेशकश करने वाली कंपनी वित्तीय क्षेत्र के किसी नियामक के पास पंजीकृत हो और जमाराशि या अन्य रूप में धन स्वीकार करने के लिए अधिकृत हो। यदि निवेश पर पेश की जाने वाली ब्याजदर/रिटर्न की दर अधिक हो तो निवेशकों को प्राय: इस मामले में चौकस हो जाना चाहिए। जब तक धन ग्रहण करने वाली कंपनी वादा किए गए रिटर्न से अधिक कमा पाने में सक्षम नहीं होगी, वह निवेशक को वादा किया गया रिटर्न नहीं दे सकेगी। अधिक रिटर्न पाने के लिए कंपनी को अपने निवेश पर अधिक जोखिम उठाना होगा। यदि जोखिम अधिक होगा तो निवेश पर प्रत्याशित रिटर्न अटकलों पर आधारित होगा और ऐसे में कंपनी के लिए वादा किया गया रिटर्न चुका पाना संभव नहीं होगा। अतएव, जनता पहले से ही सतर्क रहे कि अधिक ब्याजदर की पेशकश वाली योजनाओं में पैसा डूबने की संभावना अधिक होती है। + +2428. महत्वपूर्ण बात यह है कि रिज़र्व बैंक को मार्केट इंटेलीजेंस रिपोर्ट्स, शिकायतों, कंपनी के सांविधिक लेखापरीक्षकों की अपवादात्मक रिपोर्टों, एसएलसीसी की बैठकों आदि के जरिए जैसे ही यह खबर लगती है कि कंपनी रिज़र्व बैंक के अनुदेशों/मानकों का उल्लंघन कर रही है, तो वह जुर्माना लगाने और कानूनी कार्रवाई जैसे कई त्वरित कदम उठाता है। इसके अतिरिक्त रिज़र्व बैंक राज्य स्तरीय समन्वय समिति की बैठकों में ऐसी जानकारी को वित्तीय क्षेत्र के सभी नियामकों एवं प्रवर्तन एजेंसियों के मध्य बांटता है। + +2429. रिज़र्व बैंक विभिन्न क्षेत्रीय कार्यालयों में अपने मार्केट इंटेलीजेंस व्यवस्था को मजबूत बना रहा है और उन कंपनियों की वित्तीय सूचनाओं की निरंतर जांच कर रहा है जिनके बारे में मार्केट इंटेलीजेंस या शिकायतों के जरिए जानकारी/संदर्भ प्राप्त हुए हैं। इस संदर्भ में, जनता सतर्क रहकर महान योगदान दे सकती और यदि उन्हें य़ह पता चलता है कि कोई वित्तीय संस्था भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम का उल्लंघन कर रही है तो वह तुरंत शिकायत दर्ज कराकर महान योगदान दे सकती है। उदाहरण के लिए, यदि वे अनधिकृत रूप से जमाराशि स्वीकार कर रहे हैं और / भारतीय रिज़र्व बैंक से अनुमति लिए बगैर एनबीएफसी गतिविधियां चला रहे हैं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि जनता बुद्धिमानी से निवेश करे तो ये संस्थाएं चल ही नहीं पाएंगी। जनता को यह भी जानना चाहिए कि निवेश पर ऊँचे रिटर्न में जोखिम भी काफी अधिक रहता है। और अटकल आधारित गतिविधियों में कोई निश्चित रिटर्न नहीं होता। निवेश करने से पहले आम आदमी के लिए यह अनिवार्य है कि वह यह सुनिश्चित करे कि जिस संस्था में वह निवेश कर रहा है वह वित्तीय क्षेत्र के नियामकों में से किसी भी नियामक द्वारा विनियमित संस्था हो। + +2430. चिट फंड कंपनियों को चिट फंड अधिनियम 1982 के तहत विनियमित किया जाता है जो एक केंद्रीय अधिनियम है तथा इसका क्रियान्वयन राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने 2009 में चिट फंड कंपनियों को जनता से जमाराशियाँ ग्रहण करने पर पाबंदी लगा दी है। यदि कोई चिट फंड जनता से जमाराशियाँ ग्रहण करता है तो भारतीय रिज़र्व बैंक ऐसे चिट फंडों पर अभियोग चला सकता है। + +2431. मनी सर्कुलेशन/बहु स्तरीय विपणन/पिरामिड आकार की योजनाएं, प्राइज चिट और मनी सर्कुलेशन(प्रतिबंधित) अधिनियम 1978 के तहत अपराध हैं। यह अधिनियम किसी व्यक्ति या निकाय को किसी प्राइज़ चिट या मनी सर्कुलेशन स्कीम को प्रवर्तित करने अथवा इन योजनाओं में किसी को सदस्य के रूप में नामित करने या ऐसी चिट या योजना के अनुसरण में धन प्राप्ति/प्रेषण के द्वारा किसी को सहभागी बनाने से रोकता है। इस अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन पर निगरानी और आवश्यक कार्रवाई राज्य सरकारों द्वारा की जाती है। + +2432. भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम 1934 की धारा 45एस में अनिगमित निकायों जैसे व्यक्तियों, फर्म और व्यक्तियों के अनिगमित संगठन को, यदि वे वित्तीय गतिविधियाँ करते हैं अथवा उनके मूल कारोबार के लिए जमाराशियां ग्रहण करते है, तो उन्हें सार्वजनिक जमाराशियां स्वीकार करने के लिए विशेष रूप से निषेध किया गया है। + +2433. परिचय. + +2434. आपके माता पिता सही कहते हैं रुपये और पैसे पेड पर नहीं उगते, बल्कि वास्तव में पैसे से पैसा बनता है। पैसे में एक अनोखी क्षमता है और वह है और पैसा बनाने की। अच्छी बात यह है कि इसके लिए बहुत पैसे की जरूरत नहीं होती। + +2435. टालमटोल की कीमत क्या आप जानते हैं कि अधिक पैसा कमाने के लिए अधिक समय निवेश करना होता है। लेकिन इसका दूसरा पहलू भी सही है। निवेश के लिए इंतजार कर आप अवसर लागत का भुगतान कर रहे हैं। यह कहना आसान है कि बचत शुरू करने और अभी निवेश के लिए आपके पास पर्याप्त धन नहीं है। जब तक मेरे पास और पैसा नहीं आ जाता, मैं इंतजार करना पसंद करूंगा। लेकिन यह निर्णय आप पर उससे अधिक भारी पडता है जितना आप सोचते हैं क्योंकि कार्यों को संयोजित करने की ताकत दोनों तरह से काम करती है। यह इसलिए भी आप पर भारी पडती है क्योंकि इंतजार करने का मतलब है महज एक छोटी मात्रा में धन पर चक्रवृद्धि ब्याज कमाने का अवसर गंवाना। + +2436. पहला कदम - अपनी आय की गणना करें : पे-चेक और किसी निवेश से ब्याज सहित इसमें सभी स्रोतों से आय को शामिल किया जाना चाहिए। + +2437. निवेश पर महंगाई का असर. + +2438. जोखिम और रिटर्न. + +2439. चक्रवृद्धि की शक्ति. + +2440. संतोश और सुनील दोस्त हैं सालाना 10 प्रतिशत ब्याज दर पर एक लाख रुपये निवेश करना चाहते हैं। लेकिन संतोश को 10 प्रतिशत की दर से चक्रवृद्धि ब्याज मिलेगा, जबकि सुनील को उसके निवेश पर 10 प्रतिशत की दर से साधारण ब्याज मिलेगा। अब चक्रवृद्धि की ताकत कमाल देखे- + +2441. 72 का नियम + +2442. अब आप देख सकते हैं कि ब्याज दर में एक छोटा अंतर धन में कितनी तेजी के साथ बढोतरी कर सकता है आपको आने वाले समय में अधिक धन दिलाता है। + +2443. तरलता. + +2444. निवेश से हुई आमदनी एक ऐसा कारक है जिस पर विचार किया जाता है। सुरक्षित निवेश स्थिर या नियमित रिटर्न की पेशकश करता है लेकिन यह रिटर्न कम होता है, जबकि जोखिम भरा निवेश अधिक रिटर्न की पेशकश करता है या इस पर बिल्कुल भी रिटर्न नहीं मिलता। बाजार में छोटी अवधि और लंबी अवधि के कई वित्तीय निवेश विकल्प मौजूद हैं जिनमें से कुछ आगे बताए जा रहे हैं। + +2445. हालांकि यह महज एक व्यवहारिक नियम है और एक निवेश अपनी क्षमता के बेहतर ढंग से आंक सकता है। + +2446. संपत्तियों की पहचान करना. + +2447. भावी आय का अनुमान लगाते समय आपको कुछ धारणा बनाने की जरूरत पडती है। कुछ धारणाएं निम्नलिखित हो सकती हैं। + +2448. योजना बनाना. + +2449. दूसरा कदम - आज शिक्षा पर आ रहे खर्च का निर्धारण करें। इसकी गणना में आमतौर पर एक प्रोफेशनल कोर्स के लिए मौजूदा खर्च को मुद्रास्फीति की अनुमानित वार्षिक दर से गुणा कर शामिल कर सकते हैं। + +2450. बैंक. + +2451. आवर्ती जमा खाता + +2452. इनके अलावा, म्यूचुअल फंडों द्वारा पेश इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ईएलएसएस) और वित्तीय संस्थानों एवं बैंकों द्वारा जारी ढांचागत बांड भी कर लाभ की पेशकश करते हैं। + +2453. ढांचागत बांड या इंफ्रास्ट्रक्चर बांड + +2454. कर बचाने वाले बांड + +2455. डिबेंचर. + +2456. म्यूचुअल फंड. + +2457. सभी म्यूचुअल फंड इन तीन संपत्ति वर्गों के रूपांतरण हैं। उदहारण के तौर पर जहां तेजी से बढ रही कंपनियों में निवेश करने वाले इक्विटी फंड ग्रोथ फंड के तौर पर जाने जाते हैं, एक ही क्षेत्र की कंपनियों में निवेश करने वाले इक्विटी फंड स्पेशियलिटी फंड के तौर पर जाने जाते हैं। + +2458. बांड/इनकम फंड + +2459. इनका लक्ष्य अर्थव्यवस्था के विशेष क्षेत्र पर होता है मसलन वित्तीय, प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य आदि। + +2460. वित्तीय नियोजन का पिरामिड. + +2461. पोंजी स्कीम के तहत प्रायः ऐसे रिटर्न की पेशकश की जाती है जिसकी गारंटी अन्य निवेश स्कीमें नहीं दे सकतीं। कम समय में असामान्य रूप से अधिक या लगातार रिटर्न मिलने की गारंटी देकर नए निवेशकों को लुभाया जाता है। अन्य शब्दों में यह इतना अच्छा लगता है कि इस पर विश्वास नहीं होता। + +2462. हालांकि, छोटे निवेशकों (न्यूनतम 500 शेयर रखने वाले, चाहे उनका मूल्य जो भी हो) को भौतिक रूप में शेयरों की ट्रेडिंग की सुविधा के लिए स्टॉक एक्सचेंज एक अतिरिक्त ट्रेडिंग विंडों उपलब्ध कराते हैं। ये ट्रेडिंग विंडों छोटे निवेशकों को भौतिक रूप में शेयर बेचने के लिए एक बार सुविधा देते हैं जिसका डीमैट लिस्ट में होना अनिवार्य है। इन शेयरों को खरीदने वाले व्यक्ति को उन्हें आगे बेचने के लिए ऐसे शेयरों को डीमैट रूप में तब्दील कराना होता है। + +2463. बीमा पालिसियां. + +2464. एंडोमेंट पॉलिसियां + +2465. स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियां विभिन्न बीमारियों से आपको कवर प्रदान करती हैं और जब भी आपको इलाज की जरूरत पडे वित्तीय रूप से सुरक्षित बने रहने की गारंटी देती हैं। ये आपकी मानसिक शांति की रक्षा करती हैं और इलाज खर्च के बारे में आपकी सभी चिंताएं दूर करती हैं जिससे आप अन्य महत्वपूर्ण चीजों पर अपना ध्यान केंद्रित करें। भारत में कई स्वास्थ्य बीमा या मेडिकल बीमा योजनाएं मौजूद हैं जिन्हें जोखिम कवर के आधार पर निम्नलिखित वर्गों में बांटा जा सकता है। + +2466. उधारी से जुडे उत्पाद. + +2467. प्रमुख विशेशताएँ + +2468. रिवर्स मॉर्गेज का संपूर्ण विचार रेगुलर मॉर्गेज प्रक्रिया के बिल्कुल उलट है जहां एक व्यक्ति गिरवी रखी संपत्ति छुडाने के लिए बैंक को ऋण का पुनर्भुगतान करता है। यह अवधारणा खासकर पश्चिमी देशों में लोकप्रिय है। + +2469. कृपया प्रत्येक ऋण के लिए नवीनतम दिशानिर्देश/प्रावधान देखें। + +2470. ऋण की सीमा तय करें + +2471. अपने बिलों के स्वतः भुगतान वाली प्रणाली अपनाएँ + +2472. + +2473. सो हरि की माया करै, सब जग को कल्यान।। + +2474. नेपथ्य में, अरे शैलूषाधम! तू मेरी लीला क्या करैगा। चल भाग जा, नहीं तो तुझे भी खा जायेंगे। + +2475. नेपथ्य में, बढ़े जाइयो! कोटिन लवा बटेर के नाशक, वेद धर्म प्रकाशक, मंत्र से शुद्ध करके बकरा खाने वाले, दूसरे के माँस से अपना माँस बढ़ाने वाले, सहित सकल समाज श्री गृध्रराज महाराजाधिराज! + +2476. राजा : क्या तुम ब्राह्मण होकर ऐसा कहते हो? ऐं तुम साक्षात् ऋषि के वंश में होकर ऐसा कहते हो! + +2477. ”लोके व्यवायामिषमद्यसेवा नित्यास्ति जन्तोर्नहि तत्र चोदना।“ + +2478. ‘न मांस भक्षणे दोषो न मद्ये न च मैथुने’ + +2479. इससे जो खाली मांस भक्षण करते हैं उनको दोष है। महाभारत में लिखा है कि ब्राह्मण गोमाँस खा गये पर पितरों को समर्पित था इससे उन्हें कुछ भी पाप न हुआ। + +2480. पुरोहित : उठकर के नाचने लगा, अहा-हा! बड़ा आनंद भया, कल खूब पेट भरैगा। + +2481. स्वर्ग को वास यह लोक में है तिन्हैं नित्य एहि रीति दिन जे बिताते।। + +2482. जिन न खायो मच्छ जिन नहिं कियो मदिरा पान। + +2483. जानिए निहचै ते पशु हैं तिन कछू नहिं कीन।। + +2484. मांस एव परो योगी मांस एव परं तपः ।।“ + +2485. उभाभ्यां षण्डरण्डाभ्यान्न दोषो मनुरब्रबीत।। + +2486. राजा दण्डवत् करके बैठता है, + +2487. अस्त्री को विधवां, गच्छेन्न दोषो मनुरब्रवीत् ।।“ + +2488. पुरोहित : कितने साधारण धर्म ऐसे हैं कि जिनके न करने से कुछ पाप नहीं होता, जैसा-”मध्याद्दे भोजनं कुर्यात्“ तो इसमें न करने से कुछ पाप नहीं है, वरन व्रत करने से पुण्य होता है। इसी तरह पुनर्विवाह भी है इसके करने से कुछ पाप नहीं होता और जो न करै तो पुण्य होता है। इसमें प्रमाण श्रीपाराशरीय स्मृति में- + +2489. ‘स्त्रियस्समस्ताः सकला जगत्सु’। ‘व्यभिचारादृतौ शुद्धिः’। + +2490. इति प्रथमांक + +2491. विदूषक आया, + +2492. राजा : चल मुझ उद्दंड को कौन दंड देने वाला है। + +2493. विदूषक : क्यों वेदांती जी, आप माँस खाते हैं कि नहीं? + +2494. बंगाली : हम तो बंगालियों में वैष्णव हैं। नित्यानंद महाप्रभु के संप्रदाय में हैं और मांसभक्षण कदापि नहीं करते और मच्छ तो कुछ माँसभक्षण में नहीं। + +2495. बंगाली : हम नित्यानंद महाप्रभु श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के संप्रदाय में हैं और श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु श्रीकृष्ण ही हैं, इसमें प्रमाण श्रीभागवत में- + +2496. राजा : जाने दो, इस कोरी बकवाद का क्या फल है? + +2497. राजा : चोबदार, जा करके अन्दर से ले आओ। ख्चोबदार बाहर गया, वैष्णव और शैव को लेकर फिर आया, + +2498. चंदन भस्म को लेप किए हरि ईश, हरैं सब दुःख तुम्हारे।। + +2499. इस युग का शास्त्र तंत्र है। + +2500. बंगाली : भवव्रतधारा ये च ये च तान्समनुव्रताः। + +2501. विशन्तु शिवदीक्षायां यत्र दैवं सुरासवम् ।।’ + +2502. ख्नेपथ्य में, नारायण + +2503. गंडकीदास : ख्धीरे से पुरोहित से, अजी, इस सभा में हमारी प्रतिष्ठा मत बिगाड़ो। वह तो एकांत की बात है। + +2504. राजा : क्यों? + +2505. शैव, वैष्णव और वेदांती: अब हम लोग आज्ञा लेते हैं। इस सभा में रहने का हमारा धर्म नहीं। + +2506. जवनिका गिरती है, + +2507. अहा! वैसी ही कुमारियों की पूजा- + +2508. जोर किया जोर किया जोर किया रे, आज तो मैंने नशा जोरे किया रे। + +2509. रामरस पीओ रे भाई + +2510. एक पड़ा भुइँया में लोटै दूसर कहै चोखी दे माई।। + +2511. मीन काट जल धोइए खाए अधिक पियास। + +2512. रामरस पीओ रे भाई + +2513. कलिए की जगह पकने लगी रामतरोई रे।। + +2514. अरे एकादशी के मछली खाई। + +2515. रामरस पीओ रे भाई + +2516. घर के जाने मर गए आप नशे के बीच।। + +2517. मंत्री : महाराज, पुरोहित जी आनंद में हैं। ऐसे ही लोगों को मोक्ष मिलता है। + +2518. ‘मकाराः पझ् दुल्र्लभाः।’ + +2519. राजा : यज्ञो वै विष्णुः, यज्ञेन यज्ञमयजंति देवाः, ज्ञाद्भवति पज्र्जन्यः, इत्यादि श्रुतिस्मृति में यज्ञ की कैसी स्तुति की है और ”जीवो जीवस्य जीवन“ जीव इसी के हेतु हैं क्योंकि-”माँस भात को छोड़िकै का नर खैहैं घास?“ + +2520. नैनं छिदंति शस्त्रणि नैनं दहति पावकः।। + +2521. मंत्री : और फिर इस संसार में माँस और मद्य से बढ़कर कोई वस्तु है भी तो नहीं। + +2522. तासों ब्राह्मो धर्म में, यामें दोस न नेक।। + +2523. तिष्ठ तिष्ठ क्षण मद्य हम पियैं न जब लौं नीच। + +2524. शांपिन शिव, गौड़ी गिरिश, ब्रांडी ब्रह्म विचारि।। + +2525. गौतम पियत अनंद सों पियत अग्र के नंद।। + +2526. होटल में मदिरा पियैं, चोट लगे नहिं लाज। + +2527. मंत्री : महाराज, मेरा सिर घूमता है और ऐसी इच्छा होती है कि कुछ नाचूं और गाऊं, + +2528. निनि धध पप मम गग गिरि सासा भरले सुर अपने बस का रे। + +2529. पीले अवधू के.। + +2530. मोहि दिखाव मद की झलक छलक पियालो साथ।। + +2531. कि साकी हाथ में मै का लिए पैमाना आता है।। + +2532. तब फिर कहाँ से- + +2533. जवनिका गिरती है। + +2534. २ दूत : पुरोहित को घसीटकर, चलिए पुरोहित जी, दक्षिणा लीजिये, वहाँ आपने चक्र-पूजन किया था, यहाँ चक्र में आप मे चलिए, देखिए बलिदान का कैसा बदला लिया जाता है। + +2535. वै. और शै. : जो आज्ञा। यमराज के पास बैठ जाते हैं, + +2536. यम. : अच्छा! तो बड़ा ही नीच है, क्या हुआ मैं तो उपस्थित ही हूँ। + +2537. नानारूपधराः कौला विचरन्ति महीतले।। + +2538. चित्र. : महाराज ये गुरु लोग हैं, इनके चरित्र कुछ न पूछिये, केवल दंभार्थ इनका तिलक मुद्रा और केवल ठगने के अर्थ इनकी पूजा, कभी भक्ति से मूर्ति को दंडवत् न किया होगा पर मंदिर में जो स्त्रियाँ आईं उनको सर्वदा तकते रहे; महाराज, इन्होंने अनेकों को कृतार्थ किया है और समय तो मैं श्रीरामचंद्रजी का श्रीकृष्ण का दास हूँ पर जब स्त्री सामने आवे तो उससे कहेंगे मैं राम तुम जानकी, मैं कृष्ण तुम गोपी और स्त्रियाँ भी ऐसी मूर्ख कि फिर इन लोगों के पास जाती हैं, हा! महाराज, ऐसे पापी धर्मवंचकों को आप किस नरक में भेजियेगा। + +2539. १ दूत : जो आज्ञा। ख्बाहर जाकर फिर आता है, + +2540. राजा : हाथ से बचा-बचाकर, हाय-हाय, दुहाई-दुहाई, सुन लीजिए- + +2541. यह वाक्य लोग श्राद्ध के पहिले श्राद्ध शुद्ध होने को पढ़ते हैं फिर मैंने क्या पाप किया। अब देखिए, अंगरेजों के राज्य में इतनी गोहिंसा होती है सब हिंदू बीफ खाते हैं उन्हें आप नहीं दंड देते और हाय हमसे धार्मिक की यह दशा, दुहाई वेदों की दुहाई धर्म शास्त्र की, दुहाई व्यासजी की, हाय रे, मैं इनके भरोसे मारा गया। + +2542. यम. : लगें कोड़े, दुष्ट वेद-पुराण का नाम लेता है। + +2543. यम. : मंत्री से, बोल बे, तू अपने अपराधों का क्या उत्तर देता है? + +2544. चित्र : क्रोध से, अरे दुष्ट, यह भी क्या मृत्युलोक की कचहरी है कि तू हमें घूस देता है और क्या हम लोग वहाँ के न्यायकत्र्ताओं की भांति जंगल से पकड़ कर आए हैं कि तुम दुष्टों के व्यवहार नहीं जानते। जहाँ तू आया है और जो गति तेरी है वही घूस लेने वालों की भी होगी। + +2545. ईश्वरः सर्व भूतानां हृदेशेऽर्जुन तिष्ठति। + +2546. गंडकी : हाय-हाय दुहाई, अरे कंठी-टीका कुछ काम न आया। अरे कोई नहीं है जो इस समय बचावै। + +2547. अरे बाप रे ”सौत्रमण्यां सुरां पिबेत्।“ + +2548. निज स्वारथ को धरम-दूर या जग सों होई। + +2549. यह कवि बानी बुध-बदन में रवि ससि लौं प्रगटित रहै।। + +2550. + +2551. उन्नीसवीं शताब्दी में भारत में भावनात्मक संदर्भ की क्रांति शुरू हुई। उस समय देश की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति अत्यन्त दयनीय हो चुकी थी। देश में होने वाले आन्दोलनों से जन-जीवन प्रभावित हो रहा था। भारत की राष्ट्रीयता और राष्ट्रीय आन्दोलन के लिए एक भाषा की आवश्यकता सामने आई। इस आवश्यकता के संदर्भ में डॉ॰ अम्बा शंकर नागर का मन्तव्य उद्धरणीय है-facebook.com पर अधिक जानकारी जाने Kanchan Ghode is inviting you to a scheduled for the first time in the Hindi subject on facebook.com💝💝 + +2552. लोकमान्य तिलक देवनागरी को ‘राष्ट्रलिपि’ और हिंदी को ‘राष्ट्रभाषा’ मानते थे। उन्होंने नागरी प्रचारिणी सभा, काशी के दिसम्बर, 1905 के अधिवेशन में कहा था- + +2553. लाला लाजपतराय विशेष उग्र और क्रान्तिकारी नेता थे। उनके द्वारा हिन्दी में भाषण देने से जनसामान्य विशेष रूप से आन्दोलित होते थे। वे हिन्दी भाषा के माध्यम से भारत को एक सू़त्र में बाँधना चाहते थे। निश्चय ही लाला लातपतराय महान हिन्दी-प्रेमी और हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के प्रबल समर्थक थे। + +2554. महात्मा गाँधी. + +2555. गाँधी जी हिन्दी और भारतीय भाषाओं के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने हिन्दी प्रचार-प्रसार को गति देने के लिए विभिन्न संस्थाओं का विशेष सहयोग लिया था। गाँधी सेवा संघ, चर्खा संघ, हरिजन सेवक संघर्ष आदि का सारा कामकाज हिन्दी में होता रहा है। निश्चय ही हिन्दी-प्रसार के प्रयत्न में गाँधी जी की भूमिका अग्रगण्य रही है। + +2556. डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद पर महात्मा गाँधी का विशेष प्रभाव पड़ा है। हिन्दी के प्रचार-प्रसार में इनकी भूमिका विशेष उल्लेखनीय रही है। उन्होंने भारतीय भाषाओं को महत्त्व देते हुए कहा है- + +2557. हिंदी के प्रसार के साथ इसे राजभाषा के प्रतिष्ठित पद पर सुशोभित करवाने में सेठ गोविन्ददास की अविस्मरणीय भूमिका रही है। ये उच्चकोटि के साहित्यकार हैं। आपकी नाट्यकृतियों से हिंदी साहित्य मोहक रूप में समृद्ध हुआ है। उन्होंने जबलपुर से शारदा, लोकमत तथा जयहिन्द पत्रों की शुरूआत कर जन-मन में हिंदी के प्रति प्रेम जगाने और साहित्यिक परिवेश बनाने का अनुप्रेरक प्रयास किया है। + +2558. हिंदी-प्रसार आंदोलन में धर्मगुरुओं, महात्माओं, राजनेताओं और हिंदी-प्रेमियों के साथ अनेक संस्थाओं की भी सराहनीय भूमिका रही हैं भारत धर्मप्रधान देश है। इसलिए हिंदी-प्रसार आन्दोलन में साहित्यिक संस्थाओं के साथ धार्मिक-सामाजिक संस्थाओं का विशेष योगदान रहा है। + +2559. देश में राष्ट्रीय, सामाजिक और धार्मिक चेतना जगाने में ब्रह्म समाज की अनूठी भूमिका रही है। ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राममोहन राय ने युगीन संदर्भ में आधुनिक विचार-चिन्तन को स्वीकार किया। उनके व्यक्तित्त्व में पूर्व और पश्चिम का अनुपम समन्वय था। वे अंग्रेजी को एक महत्त्वपूर्ण भाषा के रूप में सम्मान देते थे, किन्तु राष्ट्रीय संदर्भ में हिंदी के सबल समर्थक थे। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि भारतवर्ष में राष्ट्रीयता के भाव से सम्पन्न अखिल भारतीय भाषा बनने की क्षमता मात्र हिंदी में है। उनकी विद्वता और राष्ट्रीयता का स्पष्ट बोध इससे होता है कि उन्होंने ‘बंगदूत’ नामक पत्र कलकत्ता से प्रकाशित किया। इसके पत्र में हिंदी, बंगला, अंग्रेजी और फारसी के पृष्ठ हुआ करते थे। वे स्वयं हिंदी में लिखते तथा हिंदी में लिखने के लिए दूसरों को भी प्रोत्साहित करते रहते थे। अहिंदी भाषा क्षेत्र बंगाल में ‘ब्रह्म समाज’ की भूमिका विशेष सराहनीय रही है। समाज-सुधार और हिंदी-प्रचार में अनेक विद्वान नेता-तन-मन से लग गए थे। इस संदर्भ में महर्षि देवेन्द्र नाथ, केशव चन्द्र सेन, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर और नवीन चन्द्र राय के नाम श्रद्धा से लेते हैं। इस समाज द्वारा अधिकांश पुस्तक हिंदी में प्रकाशित की गई। इस संस्था के सभी सदस्यों से िंहंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाने का आह्नान किया गया। नवीन चन्द्र राय ने पंजाब पहुँचकर 1867 में ‘ज्ञानप्रदायिनी’ पत्रिका निकाल कर हिंदी-आन्दोलन को गति दी। भूदेव मुखर्जी ने बिहार की शिक्षा में हिंदी को प्रतिष्ठित किया और वहाँ के न्यायालयों में हिंदी और नागरी लिपि के प्रयोग का मार्ग खोला। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘आचार-प्रबन्ध’ में हिंदी को सर्व उपयोगी गुणसम्पन्न देश की संपर्क भाषा के रूप में अपनाने का आह्नान किया। + +2560. गुजराती भाषा-भाषा स्वामी जी के हिंदी-प्रेम से उनके अनुयायियों में अनुकरणीय हिंदी प्रेम जगा। श्री राम गोपाल के शब्दों में, ‘‘उनके अनुयायियों के धर्म-प्रचार से जो अधिक उत्तम चीज राष्ट्रीय जीवन को प्राप्त हुई, वह थी राष्ट्रभाषा का प्रचार।’’ आर्य समाज के माध्यम से हिंदी का प्रचार भारत से बाहर मॉरिशस, फिजी, गयाना, सूरीनाम, ट्रिनीडाड-टुबैगो, युगांडा और लंदन में हुआ। + +2561. गोस्वामी गणेश दत्त के साथ हिंदी-प्रसार में योगदान देने वालों में श्रद्धाराम फिल्लौरी का नाम विशेष आदर से लिया जाता है। सनातन धर्म सभा के सतत प्रयास से भारत में मुख्यतः उत्तर भारत में हिंदी जन-मानस की भाषा बनी। + +2562. इस सोसाइटी की स्थापना भारतीय दर्शन और संस्कृति के प्रभाव से ‘विश्व-बन्धुत्व’ भाव जगाने हेतु सन् 1875 में अमेरिका में हुई। इसके संस्थापक मदाम ब्लावत्स्की और कर्नल आलकोट थे। सन् 1897 में इसका मुख्य कार्यालय मुम्बई में स्थापित किया गया। इस संस्था पर आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द का विशेष प्रभाव पड़ा। इस संस्था ने स्वामी जी को अध्यात्म गुरु भी माना है। इसके उद्देश्य ब्रह्म समाज और आर्य समाज से बहुत कुछ मेल खाते हैं। सन् 1893 में श्रीमति एनी बेसेंट ने इस संस्था का नेतृत्व अपने हाथों में लिया। उन्होंने सन् 1898 में काशी में सेंट्रल हिंदू कॉलेज और हिंदू कन्या विद्यालय की स्थापना की। इसके साथ ही देश के विभिन्न प्रांतों में शिक्षण संस्थाएँ खोलीं। इन विद्यालयों और महाविद्यालयों में भारतीय संस्कृति की शिक्षा हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में दी जाती थी। इस सोसाइटी पर अंग्रेजी का भी प्रभाव दिखाई देता है, किन्तु इनकी जो भी प्रचारादि सामग्री छपती, वह अंग्रेजी के साथ हिन्दी में भी होती थी। इस प्रकार हिन्दी-प्रसार को सुअवसर मिला। स्वाधीनता संग्राम के प्रति विशेष लगाव होने के कारण सन् 1918 से सन् 1921 तक इन्होंने दक्षिणी भारत में घूम-घूमकर हिन्दी का प्रचार किया था। उन्होंने हिन्दी का महत्त्व अपनी पुस्तक ‘नेशन बिल्डिंग’ में लिखा है- + +2563. भारतेन्दु मण्डल. + +2564. कामता प्रसाद गुरु रचित ‘हिन्दी व्याकरण’ पं. किशोरी वाजपेयी कृत ‘हिन्दी शब्दानुशासन’ के अतिरिक्त ‘हिन्दी शब्दसागर’, ‘हिन्दी साहित्य का बृहत् इतिहास’ आदि के दुर्लभ और महत्वपूर्ण प्रकाशन से इस संस्था को हिन्दी-विकास में विशेष महत्व मिला है। ‘नागरी प्रचारिणी’ शोध-पत्रिका का लगभग सौ वर्षों का गरिमामय इतिहास इस संस्था की गौरव गाथा का स्वरूप है। + +2565. सम्मेलन द्वारा उक्त उद्देश्यों की पूर्ति हेतु सतत् प्रयत्न किया जाता रहा है। सम्मेलन के चतुर्थ अधिवेशन अर्थात् सन् 1913 से हिन्दी के व्यापक प्रचार हेतु प्रथमा, मध्यमा और उत्तमा आदि परीक्षाओं का आयोजन शुरू हुआ। + +2566. सभा के द्वारा दक्षिण के प्रांतों में हिन्दी का प्रेरक प्रचार किया गया। हिन्दी भाषा के प्रचारार्थ प्रवेशिका विशारद्, पूर्वार्द्ध, विशारद् उत्तरार्द्ध, प्रवीण तथा हिन्दी प्रचारक आदि परीक्षाओं का संचालन किया जाता है। सभा की प्रवेशिका, विशारद् और प्रवणी परीक्षाओं को केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा मान्यता मिली है। यहाँ से मासिक ‘हिन्दी प्रचार समाचार’ और ‘दक्षिणी भारत’ द्विमासिक पत्रिका का प्रकाशन होता है। केन्द्र सरकार ने सभा को श्रेष्ठ हिन्दी प्रचारक मानकर राष्ट्रीय महत्व प्रदान किया है। + +2567. + +2568. राजभाषा का उत्तरदायित्त्व ग्रहण करते ही हिन्दी भाषा साहित्य से इतर, न्याय, विज्ञान, वाणिज्य, प्रशासन, जनसंचार, विज्ञापन, अनुवाद एवं रोजगार की भाषा बन गई। कार्यालयीन, कामकाजी और व्यावहारिक भाषा के रूप में हिन्दी की नयी पहचान बनी। इसे हिन्दी का प्रयोजनीय पक्ष कहा गया। तब से आज तक हिन्दी की प्रयोजनीयता पर कार्य हो रहे हैं। अथक प्रयासों से हिन्दी अपने सभी पक्षों, सभी क्षेत्रों में सफल हो रही है। सबसे पहले तो उसे ऐसी शब्दावली विकसित करनी पडी जो न्याय, जनसंचार, पत्रकारिता, मीडिया, विज्ञान और विज्ञापन की आवश्यकता को पूर्ण कर सके। यही शब्दावली पारिभाषिक शब्दावली कही जाती है। + +2569. पारिभाषिक शब्दावली का निर्माण. + +2570. अरबी, फारसी शब्दों को भी प्रचलन, संप्रेषण और प्रयोग की सुविधा के आधार पर स्वीकार किया गया। फरार, गालीगलौज, हिसाब, हवाई-सर्वेक्षण करारनामा, हमलावर, मकान-किराया, वकालत, गैर जमानती वारंट जैसे शब्द प्रशासनिक शब्दावली में स्वीकृत हुए। पारिभाषिक शब्दावली में निर्माण के साथ-साथ ‘ग्रहण’ की प्रक्रिया को भी पूरा महत्त्व दिया गया। ‘ग्रहण’ करते समय अंग्रेजी का प्रत्येक शब्द स्वीकार नहीं किया गया। कम्प्यूटर शब्द यथावत ले लिया गया। किन्तु कम्प्यूटराइजेशन नहीं। इसके लिए कम्प्यूटरीकरण शब्द गढ़ा गया। इस तरह हिन्दी और भारतीय भाषाओं की पारिभाषिक शब्दावली को दो स्रोतों से शब्द ग्रहण करने पडे़ है। विज्ञान-तकनीकी क्षेत्र में अंग्रेजी से लेकिन कानून, प्रशासन, राजनीति से संबंधित कई शब्द अब हिन्दी के ही बन गए हैं।10 + +2571. शब्द-संग्रह. + +2572. कृत्रिम निर्माण, अनुकूलन, एकरूपता स्पष्ट अर्थवत्ता तथा स्वीकरण के द्वारा ज्ञान-विज्ञान की शाखाओं के लिए लगभग 08 लाख शब्द गढ़े गए हैं। विधि शब्दावली, मीडियाशब्दावली, प्रशासनिक शब्दावली, अन्तरिक्ष शब्दावली, मानविकी एवं समाज विज्ञान की पारिभाषिक, शब्दावली प्रकाशित एवं प्रचलित हो चुकी हैं। आयोग द्वारा कृषि, पशु-चिकित्सा कम्प्यूटर-विज्ञान, धातु-कर्म, नृ-विज्ञान, ऊर्जा, खनन, इंजीनियरी, मुद्रण-इंजीनियरी, रसायन इंजीनियरी, इलेक्ट्रानिकी, वानिकी, लोक-प्रशासन, अर्थ-शास्त्र, डाक-तार, रेलवे, गृह-विज्ञान आदि विषयों के शब्द भी बनाए हैं। निरन्तर प्रयोग से इनकी अर्थवत्ता सिद्ध हो चुकी है। पारिभाषिक शब्दावली हिन्दी के प्रयोजनीय पक्ष के लिए महत्वपूर्ण उपलब्धि है। + +2573. 4. प्रशासन शब्दकोष : म.प्र. का प्रकाशन 1986 पृष्ठ भूमिका से उद्धृत + +2574. 9. हिन्दी शब्द-रचना : माईदयाल जैन पृष्ठ-216 + +2575. + +2576. समाचार-पत्रों एवं पत्रिकाओं का मूल उद्देश्य सदैव जनता की जागृति और जनता तक विचारों का सही संप्रेषण करना रहा है। महात्मा गांधी की पंक्तियाँ हैं : समाचार पत्र का पहला उद्देश्य जनता की इच्छाओं, विचारों को समझना और उन्हें व्यक्त करना है। दूसरा उद्देश्य जनता में वांछनीय भावनाओं को जागृत करना है। तीसरा उद्देश्य सार्वजनिक दोषों को निर्भयतापूर्वक प्रकट करना है। + +2577. भारतेंदु ने अपने युग धर्म को पहचाना और युग को दिशा प्रदान की। भारतेंदु ने पत्र-पत्रिकाओं को पूर्णतया जागरण और स्वाधीनता की चेतना से जोड़ते हुए 1867 में ‘कवि वचन सुधा’ का प्रकाशन किया जिसका मूल वाक्य था : 'अपधर्म छूटै, सत्व निज भारत गहै' भारत द्वारा सत्व ग्रहण करने के उद्देश्य को लेकर भारतेंदु ने हिंदी पत्रकारिता का विकास किया और आने वालेपत्रकारों के लिए दिशा-निर्माण किया। भारतेंदु ने कवि वचन सुधा,हरिश्चंद्र मैगशीन, बाला बोधिनी नामक पत्र निकाले। ‘कवि वचन सुधा’ को 1875 में साप्ताहिक किया गया जबकि अनेकानेक समस्याओं के कारण 1885 ई॰ में इसे बंद कर दिया गया। 1873 में भारतेंदु ने ‘हरिश्चंद्र मैगजीन’ का प्रकाशन किया जिसका नाम 1874 में बदलकर ‘हरिश्चंद्र चन्द्रिका’ कर दिया गया। देश के प्रति सजगता, समाज सुधार, राष्ट्रीय चेतना, मानवीयता, स्वाधीन होने की चाह इनके पत्रों की मूल विषयवस्तु थी। स्त्रियों को गृहस्थ धर्म और जीवन को सुचारु रूप से चलाने के लिए भारतेंदु ने ‘बाला बोधिनी’ पत्रिका निकाली जिसका उद्देश्य महिलाओं के हित की बात करना था। + +2578. 1881 में पं॰ बद्रीनारायण उपाध्याय ने ‘आनन्द कादम्बिनी’ नामक पत्र निकाला और पं॰ प्रतापनारायण मिश्र ने कानपुर से ‘ब्राह्मण’ का प्रकाशन किया। ‘आनन्द- कादम्बिनी’ ने जहाँ साहित्यिक पत्रकारिता में योगदान दिया वहीं ‘ब्राह्मण’ ने अत्यंत धनाभाव में भी सर्वसाधारण तक जानकारी पहुँचाने का कार्य पूर्ण किया। ‘ब्राह्मण’ का योगदान साधारण व सरल गद्य के संदर्भ में भी महत्त्वपूर्ण है। + +2579. इस युग की पत्रकारिता के उद्देश्य बहुआयामी थे। एक ओर राष्ट्रीयता की चेतना के साथ-साथ राजनीति की कलई खोलना तो दूसरी ओरसामाजिक चेतना को जागृत करना, सामाजिक कुरीतियों और दुष्प्रभावों का परिणाम दर्शाना, स्त्रियों की दीन-हीन दशा में सुधार और स्त्री-शिक्षा को बढ़ावा देनाऋ पत्रकारों के प्रमुख उद्देश्य थे। भारतेंदु इस कार्य के लिए युग द्रष्टा और युग स्रष्टा के रूप में आए। उनके योगदान के लिए ही आचार्य रामचंद्र शुक्ल उन्हें विशेष स्थान प्रदान करते हैं। हिंदी साहित्य का दिशा-निर्देश करने वाली पत्रिका ‘सरस्वती’ का प्रकाशन जनवरी 1900 को हुआ जिसके संपादक मण्डल में जगन्नाथदास रत्नाकर, राधाकृष्णदास, श्यामसुंदर दास जैसे सुप्रसिद्ध विद्वज्जन थे। 1903 में महावीर प्रसाद द्विवेदी ने इसका कार्यभार संभाला। एक ओर भाषा के स्तर पर और दूसरी ओर प्रेरक बनकर मार्गदर्शन का कार्य संभालकर द्विवेदी जी ने साहित्यिकऔर राष्ट्रीय चेतना को स्वर प्रदान किया। द्विवेदी जी ने भाषा की समृद्धि करके नवीन साहित्यकारों को राह दिखाई। उनका वक्तव्य है : हमारी भाषा हिंदी है। उसके प्रचार के लिए गवर्नमेंट जो कुछ कर रही है, सो तो कर ही रही है, हमें चाहिए कि हम अपने घरों का अज्ञान तिमिर दूर करने और अपना ज्ञानबल बढ़ाने के लिए इस पुण्यकार्य में लग जाएं। महावीरप्रसाद द्विवेदी ने ‘सरस्वती’ पत्रिका के माध्यम से ज्ञानवर्धन करने के साथ-साथ नए रचनाकारों को भाषा का महत्त्व समझाया व गद्य और पद्य के लिए राह निर्मित की। महावीर प्रसाद द्विवेदी की यह पत्रिका मूलतः साहित्यिक थी और हरिऔध, मैथिलीशरण गुप्त से लेकर कहीं-न-कहीं निराला के निर्माण में इसी पत्रिका का योगदान था परंतु साहित्य के निर्माण के साथ राष्ट्रीयता का प्रसार करना भी इनका उद्देश्य था। भाषा का निर्माण करना साथ ही गद्य-पद्य के लिए खड़ी बोली को ही प्रोत्साहन देना इनका सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य था। + +2580. इन पत्रों का मूल उद्देश्य राष्ट्रीय चेतना एवं भाषा नीति का प्रसार करना था। उग्र एवं क्रांतिकारी विचारधारा के पोषण पत्र स्वाधीनता के प्रसार के लिए प्रयास कर ही रहे थे, साथ ही साथ साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं ने अनेक लेख लिखकर जनता की सुप्त भावनाओं का दिशा-निर्देशन किया। + +2581. पै नव रस साहित्य की यह माधुरी अनन्य। + +2582. पीते हैं जो साधक उनका + +2583. एक ओर इन पत्रिकाओं के माध्यम से स्वच्छंदतावाद की स्थापना हुई वहीं सामाजिक, राजनीतिक घटनाओं को स्वर मिला। अनेक सुंदर कविताओं का प्रकाशन इस युग की पत्रिकाओं में हुआ। ‘जूही की कली’, ‘सरोज स्मृति’ , ‘बादल राग’ जैसी निराला की उत्कृष्ट कविताएँ ‘मतवाला’ में प्रकाशित हुईं। ‘जूही की कली’ को मुक्त छंद के प्रवर्तन का श्रेय दिया जाता है। + +2584. 1. राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार + +2585. देशवासियो आओ, आज हम अपने छोटे-छोटे मतभेदों को भुलाकर वृहतर राष्ट्र की रक्षा के लिए पूर्णरूप से संगठित हो जाएँ और अपनी एकता की दहाड़ से शत्रु का कलेजा दहला दें... + +2586. 2. राजनीतिक सूचनाओं में अभिवृद्धि + +2587. अनेक पत्रिकाएँ तो किसी विशेष विधा को केंद्र में रखकर ही कार्य कर रही हैं। इससे उस विधा विशेष का तो विकास होता ही है साथ ही पाठकों को भी रुचि के अनुरूप चयन की सुविधा मिल जाती है यथा : + +2588. 2. अधिकांश समाचारों के अनुवाद की समस्या का भी हिंदी पत्रों को सामना करना पड़ता है। इसके बावजूद पत्र-पत्रिकाएँ निरंतर प्रगति कर रही हैं और इसे देखते हुए पत्रकारिता के बेहतर भविष्य की उम्मीद की जा सकती है। + +2589. ‘नन्दन’ का प्रकाशन 1964 से हुआ और इसके संपादक थे - राजेन्द्र अवस्थी। ‘तेनालीराम’ की सूझ-बूझ का प्रदर्शन ज्ञान पहेली, वर्ग पहेली इसके मुख्य आकर्षण थे। बालकों के ज्ञान में वृद्धि और स्वस्थ मनोरंजन को प्रोत्साहन देना इसका लक्ष्य रहा। ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’ का प्रकाशन 1950 सेहुआ। इस पत्र ने हिंदी भाषा की स्थापना के लिए चल रहे प्रयासों को अत्यंत उत्कृष्टता से स्वर प्रदान किया साथ ही युद्ध के समय जनता को बलिदान के लिए प्रेरित भी किया। + +2590. ‘वीर अर्जुन’ का प्रकाशन 1954 से आरंभहुआ। राष्ट्रीयता, कर्त्तव्य परायणता व ओजस्विता को आधार बनाकर चलने वाले इसपत्र में गंभीर साहित्यिक पत्रकारिता के भी दर्शन होते हैं। इस पत्र का प्रकाशन नई दिल्ली से किया जाता है। सहारा ग्रुप द्वारा प्रकाशित सप्ताह में एक बार आने वाला पत्र ‘सहारा समय’ विविध विषयों से पूर्ण है। साहित्यिक, राजनीतिक, पिफल्मी मनोरंजन, व्यापार आदि अनेकानेक विषयों पर प्रचुर सामग्री प्रस्तुत करने के साथ-साथ बेहतर स्तर के विषय व शिल्प की विविधता इस पत्र की प्रमुख विशेषता है। यह पत्र सप्ताह में एक बार आकर भी पूरे सप्ताह के लिए सामग्रीप्रस्तुत करने में सक्षम है। + +2591. पहले ज्ञानोदय के नाम से निकलने वाली प्रसिद्ध पत्रिका अब ‘नया ज्ञानोदय’ के नाम से प्रभाकर श्रोत्रिय के संपादन में प्रकाशित होती है। विविध कथाओं के अनुवाद करने और भाषाओं को समानांतर स्तर पर लाने के संदर्भ में इस पत्रिका का विशिष्ट योगदान है। इसके स्थायी स्तंभों में हस्तक्षेप, कहानी, भाषांतर, कविता, साक्षात्कार, यात्रा वृत्तांत, पुस्तक समीक्षा हैं। नई पुस्तकों से परिचित कराने व भाषाओं को जोड़ने में इनका विशेष योगदान है। + +2592. दैनिक भास्कर समूह द्वाराप्रकाशित पत्रिका ‘अहा! जिन्दगी’ साहित्य के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों के विशिष्ट व्यक्तियों के जीवन को जानने का प्रयास करती है। भविष्य की दुनिया के कयास लगाती इस पत्रिका के संपादक यशवंतव्यास हैं। भाषा व विषय के स्तर पर यह पत्रिका अत्यंत सरल पर उत्कृष्ट है। + +2593. राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986: + +2594. साथ ही समय की चुनौतियों का सामना करने के लिए अपनी विशिष्ट शिक्षा प्रणाली विकसित करता + +2595. प्रयास करें। शिक्षा उस लक्ष्य तक पहुंचने का प्रमुख साधनहै। + +2596. 1968 की शिक्षा नीति और उसके बाद. + +2597. मूल्यों को विकसित करने पर तथा शिक्षा और जीवन में गहरा रिश्ता कायम करने पर भी ध्यान दिया + +2598. 1.6 पूरे देश में शिक्षा की समान संरचना और लगभग सभी राज्यों द्वारा 10+2+3 की प्रणाली + +2599. शिक्षा तथा शोध के लिए उच्च अध्ययन के केन्द्र स्थापितकिए गए। हम देश की आवश्यकता के + +2600. हो सकी। नतीजा यह है कि विभिन्न वर्गों तक शिक्षा को पहुँचाने, उसका स्तर सुधारने और विस्तार + +2601. 1.10 भारतीय विचारधारा के अनुसार मनुष्य स्वयं एक बेशकीमती संपदा है, अमूल्य संसाधन + +2602. अमल करने की आवश्यकता है। + +2603. तैयार नहीं हैं। इसलिए गांव और शहर के पफ़र्क को कम करने और ग्रामीण क्षेत्रो में रोजगार के विविध + +2604. 1.14 अगले दशक नए तनावों और समस्याओं के साथ अभूतपूर्व अवसर भी प्रदान करेंगे। उन + +2605. 1.15 अतएव इन नई चुनौतियों और सामाजिक आवश्यकताओं का तकाजा है कि सरकार एक + +2606. की बुनियादी आवश्यकता है। + +2607. 2.3 शिक्षा के द्वारा ही आर्थिक व्यवस्था के विभिन्न स्तरों के लिए जरूरत के अनुसार + +2608. भाग 3. + +2609. बिना किसी जात-पात, धर्म स्थान या लिंग भेद के, लगभगएक जैसी अच्छी शिक्षा उपलब्ध हो। इस + +2610. शैक्षिक संरचना हो। 10+2+3 के ढांचे को पूरे देश में स्वीकार कर लिया गया है। इस ढांचे के पहले + +2611. रहेगा, जिन्हें स्थानीय पर्यावरण तथा परिवेश के अनुसार ढाला जा सकेगा। ‘‘सामान्य केन्द्रिक’’ में + +2612. धर्मनिरपेक्षता, स्त्री-पुरूषों के बीच समानता, पर्यावरणका संरक्षण, सामाजिक समता, सीमित परिवार का + +2613. यह होगा कि नई पीढ़ी में विश्वव्यापी दृष्टिकोण सुदृढ़ हो तथा अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग और शांतिपूर्ण + +2614. करवाई जाएगी। वास्तव में राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था का उद्देश्य है कि सामाजिक माहौल और जन्म के + +2615. और बहुभाषी शब्द-कोशों और शब्दावलियों के प्रकाशन के लिये भी कार्यक्रम चलाये जायेंगे। युवा वर्ग + +2616. अध्ययन करने की सुविधा दी जायेगी। विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा की अन्य संस्थाओं के + +2617. 3.10 शिक्षा के पुनर्निर्माण के लिए, शिक्षा में असमानताओं को कम करने के लिए, प्राथमिक + +2618. सुविधा के अनुसार अपनी शिक्षा जारी रखने के अवसर मुहÕया करवाए जायेंगे। भविष्य में खुली शिक्षा + +2619. एक समेकित योजना के द्वारा जोड़ा जाएगा ताकि इनमें आपस में कार्यात्मक संबंध स्थापित हो तथा + +2620. 3.13 वर्ष 1976 का संविधान संशोधन जिसके द्वारा शिक्षा को समवर्ती सूची में शामिल किया + +2621. राष्ट्रीय तथा समाकलनात्मक ;इंटेग्रेटिवद्ध रूप को बल देना, गुणवत्ता एवं स्तर बनाए रखना ;जिसमें + +2622. निरन्तर प्रयास। समवर्तिता एक ऐसी भागीदारी है जो स्वयं में सार्थक व चुनौतीपूर्ण है, और राष्ट्रीय शिक्षा + +2623. 4.1 नई शिक्षा नीति विषमताओं को दूर करने पर विशेष बल देगी और अब तक वंचित रहे + +2624. शिक्षा-व्यवस्था का स्पष्ट झुकाव महिलाओं के पक्ष में होगा। राष्ट्रीय शिक्षा-व्यवस्था ऐसे प्रभावी दखल + +2625. पुनर्रचना का अभिन्न अंग मानते हुए इसे पूर्णकृत संकल्प होकर किया जायेगा और शिक्षा संस्थाओं को + +2626. निगाह रखी जायेगी। विभिन्न स्तरों पर तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी पर + +2627. प्रौद्योगिकी में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई जायेगी। + +2628. 4.5 इस मकसद के तहत नई नीति में ये उपाय सोचे गए हैं- + +2629. जाएंगे। + +2630. पाठ्यचर्या की व्यवस्था करना। + +2631. तरीकों की खोज जारी रखना। + +2632. ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम, ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारंटी कार्यक्रम, जनजातीय + +2633. आदिवासी भाषाओं का उपयोग किया जाये, तथा ऐसा इन्तजाम किया जाये कि + +2634. शिक्षा प्राप्ति में आने वाली बाधाएं दूर हों। उच्च शिक्षा के लिए दी जाने वाली + +2635. इलाकों में प्राथमिकता के आधार पर खोल जाएंगे। + +2636. पर्याप्त संख्या में शिक्षा संस्थाएं खोली जाएंगी। + +2637. अधिकार दिये गए हैं, वे भी इनमें शामिल हैं। साथ ही पाठ्यपुस्तकें तैयार करने में और सभी स्कूलों + +2638. कि वे समाज के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल सकें, उनकी सामान्य तरीके से प्रगति हो और वे पूरे + +2639. भी नया रूप दिया जायेगा ताकि वे विकलांग बच्चों की कठिनाइयों को ठीक + +2640. और दमन से मुक्ति दिलाती है। शिक्षा की इस परिकल्पना के तहत हर व्यक्ति को लिखना-पढ़ना तो + +2641. विकास के कार्यक्रमों में उन लोगों की भागीदारी बहुतजरूरी है जिनको उनका लाभ मिलना है। प्रौढ़ + +2642. 4.12 समूचे देश को निरक्षरता उन्मूलन के लिए निष्ठापूर्वक प्रतिबद्ध होना है, खासकर 15-35 + +2643. शैक्षिक पहलुओं में सुधार लाने के ठोस प्रयास किए जाएंगे। साक्षरता के अलावा, कार्यात्मक ज्ञान और + +2644. प्रोत्साहन। + +2645. 5.1 बच्चों से संबंधित राष्ट्रीय नीति इस बात पर विशेष बल देती है कि बच्चों के विकास + +2646. विकास को समेकित रूप में ही देखना होगा। इस दृष्टि से शिशुओं की देखभाल और शिक्षा पर विशेष + +2647. 5.3 शिशुओं की देखभाल और शिक्षा के केन्द्र पूरी तरह बाल-केन्द्रित होंगे। उनकी + +2648. से सहायता मिल सके। इसके साथ ही स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम को और सुदृढ़ किया जायेगा। + +2649. बाल-केन्द्रित दृष्टिकोण + +2650. और उनके लिए पूरक और उपचारात्मक शिक्षा की भी व्यवस्था होनी चाहिए। ज्यों-ज्यों बच्चे बड़े होंगे + +2651. हुये किया जायेगा। + +2652. यथासंभव जल्दी ही प्रत्येक कक्षा के लिए एक-एक शिक्षक की व्यवस्था की जाएगी। पूरे देश में + +2653. अनौपचारिक शिक्षा + +2654. टैक्नालाजी के उपकरणों की सहायता ली जाएगी। इन केन्द्रों में अनुदेशक के तौर पर काम करने के + +2655. 5.10 ‘‘राष्ट्रीय केन्द्रिक शिक्षाक्रम’’ की तरह का एक शिक्षाक्रम अनौपचारिक शिक्षा पद्धति + +2656. व्यवस्था की जाएगी। + +2657. प्राथमिकता दी जाएगी। बच्चों को बीच में स्कूल छोड़ने से रोकने के लिए स्थानीय परिस्थितियों के + +2658. अवश्य मिल जाए। इसी प्रकार 1995 तक 14 वर्ष की अवस्था आने वाले सभी बच्चों को निःशुल्क और + +2659. परिप्रेक्ष्य सही ढंग से दिया जा सकता है। साथ ही इस अवस्था पर अपने संवैधानिक दायित्व और + +2660. तक इसे पहुंचाकर अधिक सुलभ बनाया जाएगा। दूसरे क्षेत्रों में दृढ़ीकरण पर बल रहेगा। + +2661. 5.15 इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये देश के विभिन्न भागों में एक निर्धारित ढांचे पर + +2662. रहकर पढ़ेंगे जिससे उनमें राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास होगा। इन विद्यालयों में बच्चों को + +2663. कार्यक्रम को दृढ़ता से क्रियान्वित करना बहुत ही जरूरी है।इससे व्यक्तियों के रोजगार पाने की क्षमता + +2664. के चुने हुए काम-धंधों के लिये विद्यार्थियों को तैयार करना होगा। ये कोर्स आम तौर पर सेकंडरी शिक्षा + +2665. प्रशिक्षण से जोड़ा जाना चाहिए। इसके लिये स्वास्थ्य संबंधी व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की आवश्यकता + +2666. रहेगा जिनसे उद्यमीपन और स्वरोजगार की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिले। + +2667. 5.20 व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के स्नातकों को ऐसे अवसरदिये जायेंगे जिन के पफलस्वरूप वे + +2668. पर आधारित शिक्षा के कार्यक्रम चलाए जायेंगे। इस संबंध में महिलाओं पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। + +2669. कि व्यावसायिक शिक्षा पाकर निकले हुए विद्यार्थियों मेंसे अधिकतर को या तो नौकरी मिले या वे + +2670. 5.24 उच्च शिक्षा से लोगों को इस बात का अवसर मिलता है कि वे मानव जाति की + +2671. 5.25 आजकल ज्ञान का जो अभूतपूर्व विस्पफोट हो रहा हैउसे देखते हुए उच्च शिक्षा को + +2672. 5.27 उच्च शिक्षा-व्यवस्था को गिरावट से बचाने के लिए सभी संभव उपाय किये जाएंगे। + +2673. विश्वविद्यालयों के कुछ चुने हुये विभागों को भी स्वायत्तता देने को प्रोत्साहित किया जाएगा। स्वायत्तता + +2674. 5.30 राज्य स्तर पर उच्च शिक्षा का नियोजन और उच्च शिक्षा संस्थाओं में समन्वय संपन्न + +2675. दृश्य-श्रव्य साधनों और इलेक्ट्रानिक उपकरणों का प्रयोगप्रारम्भ होगा। विज्ञान भी टैक्नॉलाजी के + +2676. 5.32 विश्वविद्यालयों में अनुसंधान के लिये अधिक सहायतादी जाएगी और उसकी उच्च + +2677. के प्रयास किये जाएंगे और इन संस्थाओं में स्वायत्त प्रबंध की समुचित व्यवस्था की जाएगी। + +2678. विकास करना जरूरी होगा। + +2679. 5.35 उच्च शिक्षा के लिये अधिक अवसर देने और शिक्षा को जनतांत्रिक बनाने की दृष्टि से + +2680. 5.38 कुछ चुने हुये क्षेत्रों में डिग्री को नौकरी सेअलग करने के लिये कदम उठाये जाएंगे। + +2681. विश्वविद्यालय की डिग्री आवश्यक नहीं होनी चाहिए। इस योजना को लागू करने से विशेष कार्यों, + +2682. 5.41 नौकरियों को डिग्री से अलग करने के साथ-साथ क्रमिक रूप में एक राष्ट्रीय परीक्षण + +2683. शिक्षा संबंधी क्रांतिकारी विचारों के अनुरूप विकसित किया जाएगा। इसका उद्देश्य होगा कि ग्रामीण क्षेत्र + +2684. 6.1 यद्यपि तकनीकी शिक्षा और प्रबंध शिक्षा अलग Ggjjdjjcgधाराओं के रूप में चल रही है। तथापि + +2685. प्रौद्योगिकी में होने वाली प्रगति को इस संदर्भ में देखना होगा। + +2686. तकनीकी जनशक्ति सूचना प्रणाली को आगे विकसित तथा सुदृढ़ किया जायेगा। + +2687. आयोजित किए जाएंगे। + +2688. विभिन्न स्तरों पर प्रवेश की सुविधा होगी। इसके लियेपर्याप्त मार्गदर्शन और परामर्श सेवा भी उपलब्ध + +2689. भंडार तैयार किया जायेगा। + +2690. होगी। इस मांग को पूरा करने के लिये कार्यक्रम शुरू किए जायेंगे। + +2691. द्वारा नई प्रौद्योगिकियों और विषयों को शुरू करना होगा तथा पुराने और अर्थहीन होते विषयों को + +2692. प्रणाली का मूल्यांकन किया जायेगा और उसे समुचित रूप से मजबूत बनाया जायेगा ताकि इसकी + +2693. कराना, जो शोध और विकास में उपयोगी साबित हो सके। विकास के लिये शोध कार्य, मौजूदा + +2694. प्रणालियों के बीच सहयोग, सहकार्य और आदान-प्रदान के रिश्ते कायम करने के अवसरों का पूरा + +2695. और उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिये निम्नलिखित मुख्य उपाय किये जायंगे- + +2696. रचनात्मक कार्य और सांस्कृतिक गतिविधियों के लिये सुविधाएँ बढ़ाई जायेंगी। + +2697. किये जायेंगे। स्टापफ विकास कार्यक्रम राज्य स्तर पर समेकित, तथा क्षेत्रीय और राष्ट्रीय + +2698. प्रशिक्षण-सुविधाओं और संसाधनों में, अनुसंधान और कन्सलटेन्सी ;सलाहकारीद्ध में, + +2699. दी जायेगी, लेकिन साथ ही जिम्मेदारी के समुचित निर्वाहके लिये जवाबदेही की + +2700. 6.16 प्रबन्ध पद्धतियों में संभावित परिवर्तनों की, और इन परिवर्तनों के साथ कदम मिलाकर + +2701. अनुरक्षण, प्रत्यापन, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्रों के लिये वित्तीय व्यवस्था, अनुश्रवण और मूल्यांकन, प्रमाणन + +2702. तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा के व्यापारीकरण को रोका जायेगा। इसके विकल्प के रूप में स्वीकृत + +2703. 7.1 यह स्पष्ट है कि शिक्षा से संबंधित ये तथा अन्य बहुत से नये कार्य अव्यवस्था की दिशा + +2704. ही करना होगा। + +2705. के मूल्यांकन की पद्धति का सृजन। + +2706. परंपराओं के बीच एक खाई है, जिसे पाटना आवश्यक है। आधुनिक टेक्नॉलाजी की धुन में यह नहीं + +2707. 8.2 शिक्षा की पाठ्यचर्या और प्रक्रियाओं को सांस्कृतिक विषयवस्तु के समावेश द्वारा अधिक + +2708. परंपरा को कायम रखने और आगे बढ़ाने के लिए परम्परागत तरीकों से पढ़ाने वाले गुरुओं और उस्तादों + +2709. की जाएगी ताकि उनके लिए आवश्यक विशेष योग्यता प्राप्तव्यक्तियों की कमी को पूरा किया जाता + +2710. की जरूरत है जिससे सामाजिक और नैतिक मूल्यों के विकास में शिक्षा एक सशक्त साधन बन सके। + +2711. 8.6 इस संघर्षात्मक भूमिका के साथ-साथ मूल्य-शिक्षा का एक गंभीर सकारात्मक पहलू भी + +2712. गया था। उस नीति की मूल सिपफारिशों में सुधार की संभावना शायद ही हो और वे जितनी प्रासंगिक + +2713. के सभी वर्गों को आसानी से पुस्तकें उपलब्ध कराने केप्रयास किए जाएंगे। साथ ही पुस्तकों की + +2714. 8.9 पुस्तकों के विकास के साथ-साथ मौजूदा पुस्तकालयों के सुधार के लिए और नए + +2715. की जिन अवस्थाओं और क्रमों से गुजरना पड़ता था उनमें से अधिकांश को लांघकर आगे बढ़ा जाए। + +2716. पुनःप्रशिक्षण के लिए, शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने के लिए, और कला और संस्कृति के प्रति + +2717. 8.12 शैक्षिक टेक्नॉलोजी के द्वारा मुख्य रूप से ऐसे कार्यक्रमों का निर्माण होगा जो प्रासंगिक + +2718. होते हैं और उनका प्रभाव हानिकारक है। रेडियो और दूरदर्शन के ऐसे कार्यक्रमों को बंद किया जाएगा + +2719. 8.14 कार्यानुभव को, सभी स्तरों पर दी जाने वाली शिक्षा का एक आवश्यक अंग होना + +2720. वृद्धि होती जाएगी। इसके द्वारा प्राप्त किया गया अनुभव आगे चलकर रोजगार पाने मेंं बहुत सहायक + +2721. से लेकर समाज के सभी आयुवर्गों और क्षेत्रों में पफैलनी चाहिए। पर्यावरण के प्रति जागरूकता विद्यालयों + +2722. विषय होने के अतिरिक्त गणित को ऐसे किसी भी विषय का सहवर्ती माना जाना चाहिए जिसमें + +2723. टेक्नॉलाजी के उपकरणों के साथ जुड़ सके। + +2724. 8.19 विज्ञान शिक्षा के कार्यक्रमों को इस प्रकार बनाया जाएगा कि उनसे विद्यार्थियों में + +2725. खेल और शारीरिक शिक्षा + +2726. शारीरिक शिक्षा के अध्यापकों की नियुक्ति होगी। शहरों में उपलब्ध खुले क्षेत्र खेलों के मैदान के लिए + +2727. समेकित विकास के साधन के रूप में योग शिक्षा पर विशेष बल दिया जाएगा। सभी विद्यालयों में योग + +2728. विकास के कार्य में सम्मिलित होने के अवसर दिए जाएंगे।इस समय राष्ट्रीय सेवा योजना, राष्ट्रीय कैडेट + +2729. 8.23 विद्यार्थियों के कार्य का मूल्यांकन सीखने और सिखाने की प्रक्रिया का अभिन्न अंग है। + +2730. में काम कर सके। क्रियात्मक रूप में इसका अर्थ होगा। + +2731. को कम किया जाएगा। + +2732. समाज को ऐसी परिस्थितियाँ बनानी चाहिए जिनसे अध्यापकों को निर्माण और सृजन ओर बढ़ने की + +2733. चयन उनकी योग्यता के आधार पर व्यक्ति-निरपेक्ष रूप से और उनके कार्य की अपेक्षाओं के अनुरूप + +2734. लिए निर्देशक सिद्धान्त बनाए जाएंगे। उनके मूल्यांकन की एक पद्धति तय की जाएगी जो प्रकट होगी, + +2735. 9.3 व्यावसायिक प्रामाणिकता की हिमायत करने, शिक्षक कीप्रतिष्ठा को बढ़ाने और + +2736. 9.4 अध्यापकों की शिक्षा एक सतत् प्रक्रिया है और इसकेसेवापूर्व और सेवाकालीन अंशों + +2737. 9.6 ‘जिला शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थान’ स्थापित किए जाएंगे जिनमें प्राथमिक विद्यालयों के + +2738. को सामर्थ्य और साधन दिए जाएंगे जिससे यह परिषद् अध्यापक-शिक्षा की संस्थाओं को मान्यता देने के + +2739. शिक्षा का प्रबंध + +2740. राष्ट्रीय स्तर + +2741. तथा राज्यों के शिक्षा विभागों को सुदृढ़ बनाने के लिए इनमें व्यावसायिक दक्षता रखने वाले व्यक्तियों + +2742. किया जाये। इस सेवा से सम्बन्धित बुनियादी सिद्धान्तों, कर्त्तव्यो, तथा नियोजन की विधि की बाबत + +2743. लिए कारगर उपाय किए जाने चाहिए। + +2744. स्थापना की जाएगी तथा राज्य सरकारें यथाशीघ्र इस संबंध में कार्रवाई करेंगी। शैक्षिक विकास के + +2745. माध्यम बनें, तथा शिक्षकों की व्यावसायिक दक्षता बढ़ाने और उनके द्वारा कर्त्तव्यनिष्ठा के मानदण्डों के + +2746. 10.8 उपयुक्त निकायों के माध्यम से स्थानीय लोग विद्यालय सुधार कार्यक्रमों में महत्त्वपूर्ण + +2747. व्यवस्था ठीक हो। इसके साथ ही ऐसी संस्थाओं को रोका जाएगा जो शिक्षा को व्यापारिक रूप दे रही + +2748. सभी लोगों ने इस बात पर बल दिया है कि हमारे समतावादी उद्देश्यों और व्यावहारिक तथा + +2749. मदद लेना, उच्च शिक्षा स्तर पर पफीस बढ़ाना तथा उपलब्ध साधनों का बेहतर उपयोग करना। वे संस्थाएँ + +2750. पैदा करने के लिए भी कारगर होंगे। तथापि, साधनों की समूची वित्तीय आवश्यकता के मुकाबले में इन + +2751. ज्ञान तथा वैज्ञानिक क्षेत्रों में स्वयं-स्पफूर्त आर्थिक विकास के लिए प्रौद्योगिकी का विकास, राष्ट्रीय + +2752. हमारे देश की अर्थव्यवस्था को अपरिहार्य क्षति होगी। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रयोग को सुचारू + +2753. लिये पूँजी लगाने का एक अत्यंत आवश्यक क्षेत्र माना जाएगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 में यह + +2754. विभिन्न कार्यक्रमों की प्रगति के जायजे के आधार पर वास्तविक आवश्यकताओं का अनुमान लगाया + +2755. 11.5 नई शिक्षा नीति के विभिन्न पहलुओं के कार्यान्वयन की समीक्षा प्रत्येक पांच वर्षों में + +2756. सबके लिए सुन्दर आवाजें: + +2757. + +2758. भारतेन्दु काल के मौलिक कथा-ग्रन्थों और उपन्यासों में महत्वपूर्ण हैं : ठाकुर जगमोहन सिंह का ‘श्याम स्वप्न’ (काव्यात्मक गद्य-कथा), पं. बालकृष्ण भट्ट रचित ‘नूतन ब्रह्मचारी’ तथा ‘सौ अजान और एक सुजान’ किशोरी लाल गोस्वामी का ‘स्वर्गीय कुसुम’, राधाचरण गोस्वामी का ‘विधवा-विपत्ति’, राधाकृष्ण दास का ‘निस्सहाय हिन्दू’, अयोध्यासिंह उपा + +2759. द्विवेदी युग में भी अधिकतर साधारण जनता के मनोरंजन और मनोविनोद के लिए घटना प्रधान उपन्यास ही लिखे गये। उनमें कथा का रस तो है, किन्तु चरित्र-चित्रण का सौन्दर्य, समाज का सही अंकन और उपन्यास का परिपक्व शिल्प नहीं। इस समय के उपन्यासकारों को न तो मानव-जीवन का और न मानव-स्वभाव का सूक्ष्म एवं व्यापक ज्ञान था और न उपन्यास की कला से ही उनका अच्छा परिचय था। इस काल में अधि कतर प्रेमप्रधान, साहसिक तथा विस्मयकारक (तिलस्मी-जासूसी) उपन्यास ही लिखे गये। ऐतिहासिक, शिक्षात्मक और काव्यात्मक उपन्यास भी लिखे गये, परन्तु कम। पात्र अधिकतर सौंदर्य के प्रति आकर्षित होने वाले विलासी प्रेमी-प्रेमिका और राजकुमार-राजकुमारी हैं या पिफर ऐयार तथा जासूस। इस काल के उपन्यास भारतेन्दु काल के उपन्यासों की अपेक्षा रोचक और मनोरंजक अधिक हैं। शिक्षा देने की प्रवृत्ति भी कम है। प्रतापनारायण मिश्र, गोपालराम गहमरी, ईश्वरीप्रसाद शर्मा, हरिऔध, कार्तिकप्रसाद खत्री, रूपनारायण पाण्डेय, रामकृष्ण वर्मा आदि साहित्यकारों ने बंगला, अंग्रेजी और उर्दू आदि भाषाओं के उपन्यासों का अनुवाद किया। आचार्य शुक्ल का कथन है कि हिन्दी के मौलिक उपन्यास-सृजन पर इन अनुवाद कार्यों का अच्छा प्रभाव पड़ा और इसके कारण हिन्दी उपन्यास का आदर्श काफी ऊँचा हुआ। + +2760. प्रेमचन्द की उपन्यास-कला की मुख्य विशेषताएं हैं : व्यापक सहानुभूति-विशेषकर शोषित किसान, मजदूर और नारी का सहानुभूतिपूर्ण चित्रण, यथार्थवाद अर्थात् उपन्यास में जीवन का यथार्थ चित्रण, मानव-जीवन और मानव-स्वभाव की अच्छी जानकारी होने से सजीव पात्रों और सजीव वातावरण का निर्माणऋ चरित्र-चित्रण में नाट्कीय कथोपकथनात्मक तथा घटनापरक पद्धतियों का उपयोग, समाज के विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधि पात्रों की सृष्टि, अपने व्यक्तित्व को पात्रों से पृथक रखकर उन्हें प्रायः अपनी सहज-स्वच्छन्द गति से चलने देना, अनेकानेक सामाजिक तथा राजनीतिक समस्याओं का चित्रण, समाज के साथ पारिवारिक जीवन की सुन्दर अभिव्यक्ति, मानव-कल्याण की ओर संकेत करने वाले नैतिक आदर्शों की प्रतिष्ठा और सरल व्यावहारिक भाषा का संग्रह। प्रेमचन्द युग के अन्य उल्लेखनीय उपन्यासकार हैं। विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक, प्रसाद, निराला, सुदर्शन, चतुरसेन शास्त्री, वृन्दावन लाल वर्मा, प्रतापनारायण श्रीवास्तव, सियारामशरण गुप्त, पांडेय बेचन शर्मा ‘उर्ग्र’, भगवती प्रसाद वाजपेयी, गोविन्दवल्लभ पंत, राहुल सांकृत्यायन और जैनेन्द्र। कोशिक जी के उपन्यास ‘मां’ और भिखारिणी नारी-हृदय का मनोवैज्ञानिक चित्र प्रस्तुत करते हैं। आचार्य चतुरसेन ने नारी की समस्या पर ‘हृदय की परख’, ‘हृदय की प्यास’, ‘अमर अभिलाषा’ आदि उपन्यास प्रारम्भ में लिखे थे। बाद में उनके बहुत से सामाजिक ऐतिहासिक और वैज्ञानिक उपन्यास प्रकाशित हुए। उनके कुछ उल्लेखनीय उपन्यास हैं : ‘गोली’, ‘वैशाली की नगर वधू’ ‘वयं’ रक्षामः’ ‘सोमनाथ’ ‘महालय’, ‘सोना और खून’ तथा ‘खग्रास’। वृन्दावनलाल वर्मा ने इतिहास के तथ्यों की पूर्णतः रक्षा करते हुए कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक उपन्यासों की रचना की है। उन्होंने ‘विराटा की पद्मिनी’, ‘झाँसी की रानी’, ‘कचनार’, ‘मृगनयनी’, ‘माधवजी सिंधिया’ आदि उच्चकोटि के ऐतिहासिक उपन्यास लिखे। हिन्दी के कुछ अन्य उल्लेखनीय ऐतिहासिक उपन्यास हैं। जयशंकर प्रसाद का ‘इरावती’ (अधूरा), हजारी प्रसाद द्विवेदी के ‘वाणभट्ट की आत्मकथा’ और ‘चारु चन्द्रलेख’, चतुरसेन का ‘वैशाली की नगरवधू’, ‘राजसिंह’, ‘सोमनाथ’, ‘सह्याद्रि की चट्टानें’, सेठ गोविन्ददास का ‘इन्दुमती’, राहुल सांकृत्यायन के ‘सिंह सेनापति’, ‘जय यौधेय’, सत्यकेतु दिद्यालंकार का ‘आचार्य चाणक्य’, रांगेय राघव का ‘अंधा रास्ता’, उमाशंकर का ‘नाना फड़नवीस’ तथा ‘पेशवा की कंचना’। + +2761. इस काल में जो उपन्यास लिखे गए, उन्हें चार वर्गों में विभिक्त किया जा सकता है : यथार्थवादी सामाजिक उपन्यास ऐतिहासिक उपन्यास, स्वच्छन्दतापरकउपन्यास और मनोवैज्ञानिकउपन्यास। उपन्यास-लेखन की बहुत-सी शैलियों (ऐतिहासिक, आत्मकथात्मक, पत्रात्मक आदि) का प्रयोग हुआ है। इस काल में यूरोप की अनेक समृद्ध भाषाओं (रूसी, अंग्रेजी, प्रफांसीसी आदि) से उपन्यासों का अनुवाद भी हुआ। + +2762. रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ यशपाल की परम्परा में आते हैं। चढ़ती धूप, नई इमारत, उल्का और मरुप्रदीप उनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं। पर इनमें द्वन्द्वात्मक चेतना पूरे तौर पर नहीं उभरती। भगवतीचरण वर्मा प्रेमचन्दीय परम्परा के उपन्यासकार हैं। सन् ‘50 तक यह परम्परा चलती रही प्रेम चन्द ने अपने साहित्य में समसामयिक समस्याओं को चित्रित किया और वर्मा जी परिवर्तमान ऐतिहासिक धारा को मध्यमवर्ग के माध्यम से अंकित करते रहे हैं : मुख्यतः ‘40 के बाद लिखे गये उपन्यासों में। इनमें टेढ़े-मेढ़े रास्ते’, ‘आखिरी दाव’ ‘भूले-बिसरे-चित्र’, ‘सामर्थ्य और सीमा’, ‘सबहिं नचावत राम गुसाईं’, मुख्य हैं। उपेन्द्रनाथ अश्कको प्रेमचन्द-परम्परा का उपन्यासकार कहा जाता है। पर वे समग्र रूप से प्रेमचन्दीय परम्परा से नहीं जुड़ पाते। जहाँ तक मध्यवर्गीय परिवारों और व्यक्तियों की परिस्थितियों, समस्याओं और परिवेश का सम्बन्ध है, वहाँ तक वे प्रेमचन्दीय परम्परा के उपन्यासकार हैं प्रेमचन्द की अपेक्षा अधिक यथार्थवादी, इसलिए प्रामाणिक भी। प्रेमचन्द के वैविध्य और जीवन-चेतना का इनमें अभाव है। ‘सितारों के खेल’ के बाद इनके कई उपन्यास प्रकाशित हुए हैं : गिरती दीवारें, ‘गर्म राख’ ‘बड़ी-बड़ी आँखे’, पत्थर अल पत्थर’, ‘शहर में घूमता आइना’ और ‘एक नन्हीं किन्दील’। ‘गिरती दीवारें’ इनका सर्वोत्तम उपन्यास है। गर्म राख, बड़ी-बड़ी आँखे, पत्थर अल पत्थर सुगठित उपन्यासों की श्रेणी में रखे जायेंगे। अन्तिम दोनों उपन्यास ‘गिरती दीवारें’ का विस्तार हैं। + +2763. फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यासों को ही सर्वप्रथम आंचलिक उपन्यास की संज्ञा दी गयी क्योंकि स्वयं रेणु ने ही ‘मैला आंचल’ को आंचलिक उपन्यास कहा। ‘मैला आंचल’ के प्रकाशन के बाद ‘परती परिकथा’ प्रकाशित हुआ। + +2764. ‘प्रेत बोलते हैं’, ‘सारा आकाश’, ‘उखड़े हुए लोग’ और ‘एक इंच मुस्कान’ राजेन्द्र यादव के उपन्यास हैं। ‘एक इंच मुस्कान’ यादव और मन्नू भंडारी का सहयोगी लेखन है। इसमें खंडित व्यक्तित्व वाले आधुनिक व्यक्तियों की प्रेम-त्रासदी (ट्रेजिडी) है। आधुनिक जीवन की इस त्रासदी को अंकित करने के कारण यह उपन्यास यादव के अन्य उपन्यासों की अपेक्षा कहीं अधिक समकालीन और महत्वपूर्ण है। + +2765. हिन्दी निबन्ध का इतिहास: + +2766. इनके निबन्धों की भाषा स्वच्छ और श्लेषपूर्ण है। कहीं-कहीं तो उर्दू की बढ़िया शैली भी आपने उपस्थित की। भाव और विचार की दृष्टि से युग की वे सभी विशेषताएं इनमें भी हैं जो भट्ट जी या प्रतापनारायण मिश्र में हैं। + +2767. द्विवेदी युग. + +2768. अध्यापक पूर्णसिंह इस युग के सबसे प्रमुख, भावुक और विचारक निबन्धकार हैं। इससे अधिक गौरव की बात और क्या होगी कि इन्होंने केवल छः निबन्ध लिखे और पिफर भी अपने समय के श्रेष्ठ लेखक माने गए। उनमें से प्रमुख हैं ‘मजदूरी और प्रेम’, ‘आचरण की सभ्यता’, और ‘सच्ची वीरता’। अध्यापक जी के निबन्धों में प्रेरणा देने वाले नए-नए विचार हैं। इनकी भाषा बड़ी ही शक्तिशाली है। उसमें एक खास बाँकपन है जिससे भाव का प्रकाशन भी निराले ढंग से होता है। विषय भी ऐसे नए कि अब तक किसी को सूझे ही नहीं। साथ, ही इनमें भावुकता का माधुर्य भरा है। वीरता, आचरण, शारीरिक परिश्रम का जो महत्व उन्होंने समझाया, उसको ठीक समझा जाए तो आज धर्म का नया रूप सामने आ जाए। समाज में क्रांति हो जाए, मनुष्य और सारा देश उन्नति के शिखर पर पहुंच जाए। ‘‘जब तक जीवन के अरण्य में पादरी, मौलवी, पंडित और साधु-संन्यासी, हल कुदाल और खुरपा लेकर मजदूरी न करेंगे तब तक उनका आलस्य जाने का नहीं।’’ ‘मजदूरी और प्रेम’ का यह उद्धरण कितना महान् संदेश देता है। भाषा की लाक्षणिकता इनकी विशेषता है। + +2769. गुलाबराय जी के सामने द्विवेदी-युग का सारा साहित्य-भण्डार था। इनके साहित्य का बहुत कुछ रंग द्विवेदी-युग का रहा। यह निबन्धकार पहले हैं, आलोचक बाद में। ‘पिफर निराशा क्यों? ‘मेरी असफलताएं’, ‘अंधेरी कोठरी’ इनके निबन्ध संग्रह हैं। ‘मेरी असफलताएं’ आत्मपरक या वैयक्तिक व्यंग्यात्मक निबन्धों का संग्रह है। शेषदोनों संग्रहों में विचारात्मक निबन्ध हैं। अन्तिम संग्रह मनोवैज्ञानिक निबन्धों का है। आपकी भाषा बड़ी सरल और सुबोध होती है। विचारात्मक और मनोवैज्ञानिक निबन्धों तक में भाषा या भाव की उलझन नहीं मिलेगी। + +2770. डॉ. रघुवीर सिंह, माखनलाल चतुर्वेदी, रायकृष्ण दास, वियोगी हरि आदि ने भावात्मक निबन्ध लिखे। रघुवीर सिंह और माखनलाल जी के निबन्ध काफी बड़े हैं, शेष दोनों के बहुत छोटे-छोटे एक डेढ़ पृष्ठ के। इनके निबन्धों की शैली अन्य निबन्धकारों की शैली से भिन्न हैं : छोटे-छोटे वाक्य, कहीं खण्डित, कहीं अपूर्ण। आश्चर्य, शोक, करुणा, प्रेम का आवेश इसमें उमड़ता सा दिखता है, ऐसी रचनाओं को हिन्दी गद्यकाव्य का नाम दिया गया है। हम इन्हें निबन्ध मानते हैं। गद्य-काव्य के भीतर तो कहानी, नाटक, उपन्यास, शब्दचित्र, निबन्ध, आलोचना, सभी कुछ सम्मिलित हैं। + +2771. प्रसादोत्तर या प्रगतियुग में निबन्ध-साहित्य ने सबसे अधिक विकास किया। विषयों की संख्या और विविधता की दृष्टि से तो इस युग का मुकाबला ही नहीं। यह युग उथल-पुथल का युग है। दूसरा विश्वयुद्ध हुआ, समाजवादी विचारों का आगमन हुआ। भारत स्वतंत्र होकर विभाजित हुआ। प्राचीन साहित्य, संस्कृति और कला की ओर हमारा ध्यान गया। अनेक आर्थिक एवं सामाजिक समस्याएं भी पैदा हुईं। इन सब बातों की छाया निबन्धों में भी मिलती है। इस युगके चार निबन्धकार विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। : आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, जैनेन्द्र कुमार भवन्त आनन्द कौशल्यायन तथा यशपाल। + +2772. राहुल जी जैसी मस्ती और जैनेन्द्र कुमार जैसी शैली की झलक कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ के निबन्धों में मिलती है। इनके निबन्धों के 6 संग्रह हैं : ‘जिन्दगी मुस्कराई’, ‘आकाश के तारे’, ‘धरती के फूल’, ‘दीप जले’ ‘शंख बजे’, ‘माटी हो गयी सोना’, ‘महके आंगन, चहके द्वार’ तथा ‘बूँद-बूँद सागर लहराया’। + +2773. हिन्दी नाटक का इतिहास: + +2774. अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से हिन्दी-नाट्यकला के विकास को चार कालों में बाँटा जा सकता है : + +2775. भारतेन्दु-युग में अंग्रेजों ने बहुत से राजाओं से उनका शासन छीन कर उनका राज्य अपने अधीन कर लिया था। अंग्रेजों की इस नीति की प्रशंसा पर गुलामी के भय के द्वन्द्व की परिकल्पना ‘विषस्य विषमौषध म्’ प्रहसन में साकार हो उठी है। देशोद्धार की भावना का संघर्ष भारतेन्दु जी के ‘भारत जननी’ और ‘भारत दुर्दशा’ में घोर निराशा के भाव के साथ प्रस्तुत होता है। ‘भारत दुर्दशा’ में भारत के प्राचीन उत्कर्ष और वर्तमान अधःपतन का वर्णन निम्नलिखित पंक्तियों में मिलता है : + +2776. नाट्य-शास्त्र के गम्भीर अध्ययन के उपरान्त भारतेन्दु ने ‘नाटक’ निबन्ध लिख कर नाटक का सैद्धान्तिक विवेचन भी किया है। सामाजिक एवं राष्ट्रीय समस्याओं को लेकर-अनेक पौराणिक, ऐतिहासिक एवं मौलिक नाटकों की रचना ही नहीं की, अपितु उन्हें रंगमंच पर खेलकर भी दिखाया है। उनके नाटकों में जीवन और कला, सुन्दर और शिव, मनोरंजन और लोक-सेवा का सुन्दर समन्वय मिलता है। उनकी शैली सरलता, रोचकता एवं स्वभाविकता के गुणों से परिपूर्ण है। भारतेन्दु अद्वितीय प्रतिभा के धनी थे। सबसे बड़ी बात यह है कि वे अद्भुत नेतृत्व-शक्ति से युक्त थे। वे साहित्य के क्षेत्र में प्रेरणा के स्रोत थे। फलतः अपने युग के साहित्यकारों और नाटक तथा रंगमंच की गतिविधियों को प्रभावित करने में सफल रहे। इसके परिणामस्वरूप प्रतापनारायण मिश्र, राधाकृष्ण दास, लाला श्रीनिवास, देवकी नन्दन खत्री आदि बहुसंख्यक नाटककारों ने उनके प्रभाव में नाट्य रचना की। यह भी विचारणीय है कि भारतेन्दु मण्डल के नाटककारों ने पौराणिक, ऐतिहासिक, सामाजिक, चरित्रप्रधान राजनैतिक आदि सभी कोटियों के नाटक लिखे। इस युग में लिखे गये नाटक परिमाण और वैविध्य की दृष्टि से विपुल हैं। यहाँ मुख्य धाराओं का परिचय प्रस्तुत हैः + +2777. भवभूतिः + +2778. भट्टनारायण + +2779. मनमोहन वसुः सती : उदित नारायण लाल (1880)। + +2780. (३) एज यू लाइक इट (मनभावन) : पुरोहित गोपीनाथ (1896)। + +2781. द्विवेदीयुगीन नाटक. + +2782. हृदय की वृत्तियों की सत्त्व की ओर उन्मुख करने का प्रयास भारतेन्दु-युग के नाटकों में बहुत पहले से होता आ रहा था। द्विवेदी-युग से इन वृत्तियों के उत्कर्ष के लिए पौराणिक आख्यानों का निःसंकोच ग्रहण किया गया। आलोच्य युग में पौराणिक नाटकों के तीन वर्ग देखने को मिलते हैं : कृष्णचरित-सम्बन्धी, रामचरित सम्बन्धी तथा अन्य पौराणिक पात्रों एवं घटनाओं से सम्बन्धित। कृष्ण चरित सम्बन्धी नाटकों में राधाचरण गोस्वामी कृत ‘श्रीदामा’ (1904), ब्रज नन्दन सहाय-कृत ‘उद्धव’ (1909), नारायण मिश्र-कृत ‘कंसवध’ (1910), शिव नन्दन सहाय-कृत ‘सुदामा।’ (1907) और बनवारी लाल-कृत ‘कृष्ण तथा कंसवध’ (1910) को विशेष ख्याति प्राप्त है। रामचरित-सम्बन्धी नाटकों में रामनारायण मिश्र-कृत ‘जनक बड़ा’ (1906) गिरधर लाल-कृत ‘रामवन यात्रा’ (1910) और गंगाप्रसाद-कृत ‘रामाभिषेक’ (1910), नारायण सहाय-कृत ‘रामलीला’ (1911), और राम गुलाम लाल-कृत ‘धनुषयज्ञ लीला (1912), उल्लेखनीय हैं। अन्य पौराणिक घटनाओं से सम्बन्धित नाटकों में महावीर सिंह का ‘नल दमयन्ती’ (1905), सुदर्शनाचार्य का ‘अनार्थ नल चरित’ (1906), बांके बिहारी लाल का ‘सावित्री नाटिका’ (1908), बालकृष्ण भट्ट का ‘बेणुसंहार’ (1909), लक्ष्मी प्रसाद का ‘उर्वशी’ (1907) और हनुमंतसिंह का ‘सती चरित’ (1910), शिवनन्दन मिश्र का ‘शकुन्तला’ (1911), जयशंकर प्रसाद का ‘करुणालय (1912) बद्रीनाथ भट्ट का ‘कुरुवन दहन’ (1915), माधव शुक्ल का ‘महाभारत-पूर्वाद्धर्’ (1916), हरिदास माणिक का ‘पाण्डव-प्रताप’ (1917) तथा माखन लाल चतुर्वेदी का ‘कृष्णार्जुन-युद्ध (1918) महत्वपूर्ण हैं। + +2783. द्विवेदी-युग में भारतेन्दु-युग की सामाजिक-राजनीतिक और समस्यापरक नाटकों की प्रवृत्ति का अनुसरण भी होता रहा है। इस धारा के नाटकों में प्रताप नारायण मिश्र-कृत ‘भारत दुर्दशा’ (1903) भगवती प्रसाद-कृत ‘वृद्ध विवाह’ (1905), जीवानन्द शर्मा-कृत ‘भारत विजय’ (1906), रुद्रदत शर्मा-कृत ‘कंठी जनेऊ का विवाह’ (1906), कृष्णानन्द जोशी-कृत ‘उन्नति कहां से होगी’ (1915), मिश्र बन्धुओं का ‘नेत्रोन्मीलन' (1915) आदि + +2784. इस काल में अनेकानेक स्वतंत्र प्रहसन भी लिखे गये। अधिकांश प्रहसन लेखकों पर पारसी रंगमंच का प्रभाव है, इसलिए वे अमर्यादित एवं उच्द्दष्ंखल हैं। प्रहसनकारों में बदरीनाथ भट्ट एवं जी. पी. श्रीवास्तव के नाम सर्वाधिक उल्लेखनीय हैं। भट्ट जी के ‘मिस अमेरिका’, ‘चुंगी की उम्मीदवारी’, ‘विवाह विज्ञापन’, ‘लबड़ध ोंधों’ आदि शिष्ट-हास्यपूर्ण प्रहसन हैं। जी.पी. श्रीवास्तव ने छोटे-बड़े अनेक प्रहसन लिखे हैं। इन प्रहसनों में सौष्ठव और मर्यादा का अभाव है। + +2785. इसी प्रकार भारतेन्दु-युग तथा प्रसाद-युग को जोड़ने वाले बीच के लगभग 25-30 वर्षों में कोई उल्लेखनीय नाटक नहीं मिलता। भले ही प्रसाद-युगीन नाटककारों की आरम्भिक नाट्य कृतियाँ द्विवेदी-युग की सीमा में आती हैं परन्तु आगे चलकर उनकी नाट्य कृतियों में जो वैशिष्ट्य आता है, वह उन्हें द्विवेदी-युग के लेखकों से पृथक्क् कर देता है। द्विवेदी-युग में हिन्दी रंगमंच विशेष सक्रिय नहीं रहा। इस युग में बद्रीनाथ भट्ट ही अपवादस्वरूप एक ऐसे नाटककार थे, जिन्होंने नाटकीय क्षमता का परिचय दिया है किन्तु इनके नाटक भी पारसी कम्पनियों के प्रभाव से अछूते नहीं हैं। उनमें उत्कृष्ट साहित्यिक तत्त्व का अभाव है। + +2786. स्पष्ट है कि प्रसाद जी ने हिन्दी नाटक की प्रवहमान् धारा को एक नए मोड़ पर लाकर खड़ा किया। वे एक सक्षम साहित्यकार थे। उनके हृदय में भारतीय संस्कृति के प्रति अगाध ममता थी। उन्हें विश्वास था कि भारतीय संस्कृति ही मानवता का पथ प्रशस्त कर सकती है। इसी कारण अपने नाटकों द्वारा प्रसाद जी ने भारतीय संस्कृति के भव्य रूप की झांकी दिखाकर राष्ट्रीय आन्दोलन के साथ-साथ अपने देश के अधुनातन निर्माण की पीठिका भी प्रस्तुत की है। भारतेन्दु ने अपने नाटकों में जिस प्राचीन भारतीय संस्कृति की स्मृति को भारत की सोई हुई जनता के हृदय में जगाया था, प्रसाद ने नाटकों में उसी संस्कृति के उदात्त और मानवीय रूप पर अपनी भावी संस्कृति के निर्माण की चेतना प्रदान की। पर यह समझना भी भूल होगी कि उन्होंने केवल भारतीय संस्कृति के गौरव-गान के लिए ही नाटकों की रचना की। वस्तुतः उनका नाट्य साहित्य ऐतिहासिक होते हुए भी सम-सामयिक जीवन के प्रति उदासीन नहीं है, वह प्रत्यक्ष को लेकर मुखर है और उनमें लोक-संग्रह का प्रयत्न है, राष्ट्र के उद्बोधन की आकांक्षा है। + +2787. इस युग में पौराणिक और ऐतिहासिक नाटकों की परम्परा का महत्त्वपूर्ण स्थान तो रहा ही है, इसके अतिरिक्त सामाजिक नाटकोंकी रचना भी बहुतायत से हुई है। सामाजिक नाटकों में विश्वम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ कृत ‘अत्याचार का परिणाम’ (1921) और ‘हिन्द विधवा नाटक’ (1935), ‘प्रेमचन्द-कृत ‘संग्राम’ (1922) ईश्वरी प्रसाद शर्मा-कृत दुर्दशा (1922), सुदर्शन-कृत ‘अंजना’ (1923), ‘आनरेरी मैजिस्ट्रेट’ (1929), और ‘भयानक’ (1937), गोविन्दवल्लभ पन्त-कृत ‘कंजूस की खोपड़ी’ (1923) और ‘अंगूर की बेटी’ (1929), बैजनाथ चावला-कृत ‘भारत का आधुनिक समाज’ (1929), नर्मदेश्वरी प्रसाद ‘राम’-कृत ‘अछूतोद्वार’ (1926), छविनाथ पांडेय-कृत ‘समाज’ (1929), केदारनाथ बजाज-कृत ‘बिलखती ‘विधवा’ (1930), जमनादास मेहरा-कृत ‘हिन्दू कन्या’ (1932), महादेव प्रसाद शर्मा-कृत ‘समय का फेर’, बलदेव प्रसाद मिश्र-कृत ‘विचित्र विवाह’ (1932) और ‘समाज सेवक’ (1933) रघुनाथ चौधरी-कृत ‘अछूत की लड़की या समाज की चिनगारी’ (1934), महावीर बेनुवंश-कृत ‘परदा’ (1936), बेचन शर्मा ‘उग्र’-कृत ‘चुम्बन’ (1937) और डिक्टेटर’ (1937), रघुवीर स्वरूप भटनागर-कृत ‘समाज की पुकार’ (1937), अमर विशारद-कृत ‘त्यागी युवक’ (1937) चन्द्रिका प्रसाद सिंह-कृत ‘कन्या विक्रय या लोभी पिता’ (1937) आदि उल्लेखनीय हैं। इन नाटकों में सामाजिक विकृतियों : बाल विवाह, विधवा-विवाह का विरोध, नारी स्वतंत्रता आदि का चित्रण करते हुए उनके उन्मूलन का प्रयास दृष्टिगोचर होता है। इन नाटकों में समुन्नत समाज की स्थापना का प्रयास किया गया है, भले ही नाट्यकला की दृष्टि से ये नाटक उच्चकोटि के नहीं हैं। + +2788. लक्ष्मीनारायण मिश्र ने अपने नाटक का लेखन प्रसाद-युग में ही प्रारम्भ किया था। उनके अशोक (1927), संन्यासी (1829), ‘मुक्ति का रहस्य’ (1932), राक्षस का मन्दिर (1932), ‘राजयोग’ (1934), सिन्दूर की होली (1934), ‘आधी रात’ (1934) आदि नाटक इसी काल के हैं। किन्तु मिश्र जी के इन नाटकों में भारतेन्दु और प्रसाद की नाट्यधारा से भिन्न प्रवृत्तियां दृष्टिगोचर होती हैं। जैसा कि पहले संकेत किया जा चुका है कि भारतेन्दु और प्रसाद-युग के नाटकों का दृष्टिकोण मूलतः राष्ट्रीय और सांस्कृतिक था। यद्यपि इस युग के नाटकों में आधुनिक यथार्थवादी धारा का प्रादुर्भाव हो चुका था। तथापि प्राचीन सांस्कृतिक आदर्शों के द्वारा राष्ट्रीयता का उद्घोष इस युग के नाटककारों का प्रमुख लक्ष्य था। अतः उसे हम सांस्कृतिक पुनरुत्थान की दृष्टि कह सकते हैं, जिनमें प्राचीन सांस्कृतिक मूल्यों और नयी यथार्थवादी चेतना में समन्वय और सन्तुलन परिलक्षित होता है। मिश्र जी नयी चेतना के प्रयोग के अग्रदूत माने जाते हैं। डॉ. विजय बापट के मतानुसार नयी बौद्धक चेतना का विनियोग सर्वप्रथम उन्हीं के तथाकथित समस्या नाटकों में मिलता है। इस बौद्धक चेतना और वैज्ञानिक दृष्टि का प्रादुर्भाव बीसवीं शताब्दी में पश्चिमी चिन्तकों के प्रभाव से हुआ था। डारविन द्वारा प्रतिपादित विकासवादी सिद्धान्त, प्रफायड के मनोविश्लेषण सिद्धान्त और मार्क्स के द्वन्द्वात्मक भौतिकतावादी सिद्धान्तों ने यूरोप को ही नहीं, भारतीय जीवन पद्धति को भी प्रभावित किया जिसके फलस्वरूप जीवन में आस्था और श्रद्धा की बजाय तर्क को प्रोत्साहन मिला। पश्चिम में इस प्रकार की बौद्धक चेतना ने समस्या नाटक को जन्म दिया। उन्हीं की प्रेरणा से मिश्र जी ने भी हिन्दी नाटकों में भावुकता, रसात्मकता और आनन्द के स्थान पर तर्क और बौद्धकता का समावेश किया। साथ ही द्रष्टव्य है कि बुद्धवादी दृष्टिकोण अपनाते हुए भी वे परम्परा-मोह से मुक्त नहीं हो पाए। युगीन मूल्यगत अन्तर्विरोधी चेतना समान रूप से उनके प्रत्येक नाटकों में देखी जा सकती है। इनके नाटकों का केन्द्रीय विषय स्त्री-पुरुष सम्बन्ध एवं सेक्स है। राष्ट्रोद्धार, विश्व-प्रेम आदि के मूल में भी मिश्र जी ने काम भावना को ही रखा है, जो परितृप्ति के अभाव में अपनी दमित वृत्ति को देश सेवा आदि के रूप में अभिव्यक्त करती है और प्रायः इस प्रकार परितष्प्ति’ के साधन जुटा लेती है। + +2789. युगीन परिवेश के ऐतिहासिक संदर्भों में पाँचवें दशक तक जीवन के समस्या संकुल होने पर भी आम जनता की स्थिति में सुधार और परिवर्तन आने की अभी धुँधली सी आशा दिखाई दे रही थी परन्तु छठे दशक के बाद से मीठे मोहक सपने वालू की भीत की भांति ढह गए, परिवेश का दबाव बढ़ा, मोहासक्ति भंग हुई और आज परिवेशगत यथार्थ अधिक नंगा होकर सामने आ रहा है। यथार्थ बोध का सही अभिप्राय मोहभंग की इस प्रक्रिया से ही जोड़ा जा सकता है। जगदीश चन्द्र माथुर, लक्ष्मी नारायण लाल आदि नाटककारों ने अपनी ऐतिहासिक एवं सामाजिक रचनाओं द्वारा कुछ सीमाओं के साथ यथार्थ दृष्टि का परिचय दिया। ‘जगदीशचन्द्र माथुर’ के चार नाटक प्रकाशित हुए हैं : ‘कोणार्क’ (1954), ‘पहला राजा’ (1969), शारदीया तथा ‘दशरथनन्दन’। इन नाटकों में क्रमशः मार्क्स एवं प्रफायड के प्रभावसूत्रों को आत्मसात करते हुए छायावादी रोमानी कथास्थितियों की सृष्टि करने में माथुर की दृष्टि यथार्थवादी एवं आदर्शवादी, कल्पना तथा स्वच्छन्दतावादी भावुकता को एक साथ ग्रहण करती है। परिणामतः उनके नाटकों में अन्तर्निहित समस्याएं जीवन के यथार्थ को व्याख्यायित करते हुए भी यथार्थवादी कलाशिल्प में प्रस्तुत नहीं हुई हैं। समस्याओं का विश्लेषण एवं विकास बौद्धक एवं तार्किक क्रिया द्वारा प्रेरित नहीं है। कोणार्क में कलाकार एवं सत्ता के संघर्ष की समस्या धर्मपद के तार्किक उपकथनों के माध्यम से विश्लेषित हुई हैं। परन्तु ‘शारदीया’ एवं ‘पहला-राजा’ की समस्याएं प्रगतिशील एवं ”ासशील मूल्यों के संघर्ष की भूमि पर अवतरित होते हुए भी बौद्धक एवं तार्किक प्रक्रिया के अभाव में यथार्थवादी कला की दृष्टि से हमारी चिन्तन शक्ति को उद्बुद्ध नहीं करती क्योंकि माथुर का विशेष बल आन्तरिक अनुभूतियों एवं मानवीय संवेदना को जगाने पर है। फलस्वरूप उन्होंने काव्यात्मकता एवं रसोत्कर्ष के साधनों का सहारा लिया है। अपनी विचारधारा के अनुरूप ही जगदीश चंद्र माथुर ने नाटकीय कला को संस्कृत एवं लोकनाट्य तथा यथार्थवादी मंच की विशेषताओं से अभिमंडित किया है। काव्य-तत्त्व, अलंकरण एवं रस परिपाक से सम्बन्धि त तत्त्व उन्होंने संस्कृत नाटकों से ग्रहण किए हैं। संघर्ष, अन्तर्द्वन्द्व का तत्त्व पाश्चात्य यथार्थवादी नाटक शिल्प का प्रभाव है। संक्षेप में, एक ऐसे मंच की परिकल्पना पर उनका ध्यान केन्द्रित रहा है जो बहुमुखी हो, एक ही शैली में सीमित नहीं हो, भिन्न-भिन्न सामाजिक आवश्यकताओं और चेतनाओं का परिचायक हो। + +2790. व्यवस्था के संदर्भ में समाज एवं व्यक्ति के बाह्य एवं आंतरिक यथार्थ का चित्रण करना नये नाटककारों के नाटकों का केन्द्रीय कथ्य लगता है। ब्रजमोहन शाह के ‘त्रिशंकु’, ज्ञानदेव अग्निहोत्री के ‘शुतुरमुर्ग’, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के ‘बकरी’ आदि नाटकों में सत्ता के छद्म और पाखंडो का ही पर्दाफाश किया है। अधुनातन नाटककार मुद्राराक्षस, लक्ष्मीकांत वर्मा, मणि मधुकर, शंकर शेष और भीष्म साहनी भी क्रमशः अपने नाटकों ‘योअर्स-फेथ-फुल्ली’, ‘तेंदुआ’, ‘मरजीवा’, ‘रोशनी एक नयी है’, ‘रसगन्धर्व’, ‘एक और द्रोणाचार्य’ तथा ‘हानूश’ के माध्यम से इन्हीं प्रश्नों से जूझ रहे हैं। इन्होंने जहाँ एक ओर वर्ग-वैषम्यो की चेतना को जाग्रत करके व्यवस्था के ह्रासशील रूपों का यथार्थ चित्रण किया है वहीं सत्ता के दबाव में पिस रहे आम आदमी की करुण नियति और उससे उत्पन्न संत्रास का भी रुपायन किया है। इस तरह नाटक सीधे जिन्दगी की शर्तों से जुड़े और उनकी विषमताओं के साथ जूझते व्यक्ति की यंत्रणा उसके भीतर यथार्थ को रंग-माध्यम से प्रस्तुत करने का बीड़ा उठाते हैं। बदलाव की चेतना और आकुलता को उजागर करने के सशक्त कथ्य से ही हिन्दी के रचनात्मक नाट्य के लिए शुभारम्भ की स्थिति मानी जा सकती है। नये नाटककार सत्यदेव ‘दूबे, रमेश उपाध्याय, रामेश्वर प्रेम, शरद जोशी, गिरिराज, सुशील कुमार सिंह, बलराज पंडित, मृदुला गर्ग, सुदर्शन चोपड़ा नये नाटक लिखकर आंतरिक यथार्थ बोध की संपुष्टि में योग दे रहे हैं। अभी हाल ही में कुछ नाटक प्रकाशित हुए हैं : + +2791. प्रारम्भिक युग. + +2792. प्रेमचन्द का आधुनिक काल के यथार्थवादी जीवन पर अधिक आग्रह था। वे यथार्थवादी हैं। प्रेमचन्द ने लगभग तीन सौ कहानियाँ लिखी हैं। उनकी कहानियाँ ‘मानसरोवर’ (6 भाग) तथा ‘गुप्त धन’ (2 भाग) में संगृहीत हैं। ‘प्रेम-पचीसी’, ‘प्रेम-प्रसून’, ‘प्रतिमा’, ‘सप्तसुमन’ आदि नामों से भी उनकी कहानियों के संग्रह छपे हैं। प्रेमचन्द की प्रारम्भ की कहानियों में घटना की प्रधानता और वर्णन की प्रवृत्ति है। चरित्र-चित्रण और मनोविज्ञान की ओर उचित ध्यान नहीं दिया गया। भाषा अपरिपक्व तथा व्याकरण : सम्बन्धी दोषों से युक्त है। वस्तुतः प्रेमचन्द प्रारम्भ में उर्दू के लेखक थे और वहाँ से हिन्दी में आए थे। उनकी प्रारम्भिक राष्ट्रीय कहानियाँ ‘सोजे वतन’ संग्रह में प्रकाशित हुई थी। आगे चलकर प्रेमचन्द ने चरित्र-प्रधान, मनोविज्ञान-मूलक, वातावरण-प्रध ान, ऐतिहासिक आदि कई प्रकार की कहानियाँ लिखीं और वास्तविक-जीवन तथा मानव-स्वभाव के मार्मिक चित्र प्र्रस्तुत किए। प्रेमचन्द की भाषा सरल, व्यावहारिक है और उनके संवाद स्वाभाविक तथा सजीव हैं। साधारण घटनाओं और बातों को मार्मिक बनाने में वे कुशल हैं। प्रेमचन्द नवीन जीवन-रुचि रखने वाले मानवतावादी लेखक थे। प्रारम्भ में प्रेमचन्द गांधी और ताल्स्ताय से प्रभावित रहे। बाद में वे मार्क्स और लेनिन की विचारधारा की ओर झुक गए थे। + +2793. वर्तमान समय में हिन्दी में कई पीढ़ियाँ एक साथ कहानी लिखने में लगी रही हैं। प्रेमचन्द काल के उत्तरार्ध में इस क्षेत्र में आने वाले कुछ कहानीकार हैं : जैनेन्द्र (‘फांसी’ ‘स्पर्धा’, ‘वातायन’, ‘पाजेब’, ‘जयसंधि’, ‘एकरात’, ‘दो चिड़ियां’ आदि), यशपाल (‘वो दुनिया’, ‘ज्ञान दान’, ‘अभिशप्त’, ‘पिंजड़े की उड़ान’, ‘तर्क का तूफान’, ‘चित्र का शीर्षक’, ‘यशपाल : श्रेष्ठ कहानी’) इलाचन्द जोशी (‘रोमांटिक छाया’, ‘आहुति’, ‘दिवाली और होली’, ‘कंटीले फूल लजीले कांटे’), अज्ञेय (‘त्रिपथगा’, ‘कोठरी की बात’, ‘परम्परा’, ‘जयदोल’ आदि) भगवतीचरण वर्मा (‘दो बाँके’, ‘इन्स्टालमेंट आदि), चन्द्रगुप्त विद्यालंकार (‘चन्द्रकला’, ‘वापसी’, ‘अमावस’, ‘तीन दिन’)। ये कथाकार जो उस समय नयी पीढ़ी के कहानीकार माने जाते थे अब पुराने हो चुके हैं। इनके बाद कहानीकारों की दो और पीढ़ियां विकसित हो चुकी हैं। इन तीनों पीढ़ियों के कहानीकारों ने हिन्दी कहानी का विषय-वस्तु तथा शिल्प दोनों दृष्टियों से पर्याप्त विकास किया है। + +2794. आज के प्रयोगवादी युग में हिन्दी कहानी सभी रूपों में बढ़ रही है। कुछ कहानीकार कथानक-रहित कहानी लिखने का यत्न कर रहे हैं। कहानी बहुत अमूर्त्त (ऐबस्ट्रैक्ट) होती जा रही है। आज कहानी में प्रायः एक मनःस्थिति, क्षण-विशेष की अनुभूति, व्यंग्यचित्र या चिन्तन की झलक प्रस्तुत की जाती है। कहानी में विषय-वस्तु क्षीण, पात्र बहुत थोड़े (एक दो ही) और अस्पष्ट होते जा रहे हैं और पुराने ढंग की सरलता समाप्त होती जा रही है। नयी कविता की तरह नयी कहानी भी कहानीपन छोड़कर निबन्ध के निकट (कथात्मक निबन्ध के निकट) पहुंच रही है। भारतेन्दुकाल में जो कहानी घटना-प्रधान थी, प्रेमचन्द युग में जो चरित्र-प्रधान तथा मनोवैज्ञानिक हुई, जैनेन्द्र-अज्ञेय के उत्कर्ष-काल में जो कहानी घटना-प्रधान थी, प्रेमचन्द युग में जो चरित्र- प्रधान तथा मनोवैज्ञानिक हुई, जैनेन्द्र-अज्ञेय के उत्कर्ष-काल में जो मनोविश्लेषणमय तथा चिन्तनपरक बनी, वही अब कथानकपरक तो है ही नहीं, चरित्र-चित्रणपरक भी नहीं रही। विषय-वस्तु और शिल्प दोनों में वह काफी आगे बढ़ गई है। काशीनाथ सिंह, ज्ञान रंजन, सुरेश सेठ, गोविन्द मिश्र, मृदुला गर्ग, नरेन्द्र मोहन, मृणाल पाण्डेय, उदय प्रकाश, ओम प्रकाश वाल्मीकि, चित्र प्रभा मुदगल, प्रभा खेतान, नासिरा शर्मा आदि अनेक कथाकार हैं जिन्होंने बदलते मनुष्य, समाज, परिस्थितियों, समस्याओं को अपनी रचनाओं के माध्यम से अभिव्यक्ति प्रदान की है। + +2795. इस प्रकार, समयाभाव के अतिरिक्त एकांकी की लोकप्रियता के अन्य भी कई कारण हैं यथा देश में सिनेमा के बढ़ते हुए प्रभाव के विरुद्ध हिन्दी रंगमंच के उद्धार द्वारा जीवन और साहित्य में सुरुचि का समावेश करना, रेडियो से हिन्दी एकांकियों की मांग, केन्द्रीय सरकार के शिक्षा-विभाग की ओर से आयोजित ‘यूथ फेस्टीवल’ में एकांकी नाटक का भी प्रतियोगिता का एक विषय होना, विश्वविद्यालयों में विशेष अवसरों पर एकांकी नाटकों का अभिनय आदि। इन सब कारणों के परिणामस्वरूप एकांकी नाटक आज एक प्रमुख साहित्यिक विधा बन गया है। + +2796. जिस प्रकार भारतेन्दु हिन्दी में अनेकांकी नाटकों के लिखने वालों में प्रथम नाटककार माने जाते हैं उसी प्रकार हिन्दी में सबसे पहला एकांकी भी उन्होंने ही लिखा। यद्यपि इस सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद अवश्य है। पिफर भी भारतेन्दु-प्रणीत ‘प्रेमयोगिनी’ (1875 ई.) से हिन्दी एकांकी का प्रारम्भ माना जा सकता है। आलोच्य युग में विषयगत दृष्टिकोण को सामने रखकर सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिकएवं सांस्कृतिक प्रवृत्तियाँउभरीं। समाज में प्रचलित प्राचीन परम्पराओं, कुप्रथाओं एवं स्वस्थ सामाजिक विकास में बाधक रीति-रिवाजों को दूर करने का प्रयास उन सामाजिक समस्या-प्रधान रचनाओंके माध्यम से किया गया। इन एकांकीकारों ने जहाँ सामाजिक कुरीतियों पर हास्य एवं व्यंग्यपूर्ण प्रहार किये वहीं सामाजिक नवनिर्माण के लिए भी समाज को प्रेरित एवं जाग्रत किया। इन रचनाओं के पात्र भारतीय जन-जीवन के जीवित एवं सजीव पात्र हैं जिनके संवादों द्वारा भारतीय भद्र जीवन में प्रविष्ट पाखण्ड एवं व्यभिचार का भण्डाफोड़ होता है। इस दृष्टि से भारतेन्दु-रचित ‘भारत-दुर्दशा’, प्रतापनारायण मिश्र रचित ‘कलि कौतुक रूपक’, श्री शरण-रचित ‘बाल-विवाह’, किशोरीलाल गोस्वामी-रचित ‘चौपट चपेट’, राधाचरण गोस्वामी-रचित ‘भारत में यवन लोक’, ‘बूढ़े मुंह मुहासे’ आदि महत्त्वपूर्ण रचनाएँ हैं जिनमें धार्मिक पाखण्ड, सामाजिक रूढ़ियों एवं कुरीतियों पर तीखे व्यंग्य किये गये हैं। देवकीनन्दन रचित ‘कलियुगी उनेऊ’, ‘कलियुग विवाह’, राधाकृष्णदास रचित ‘दुखिनी बाला’, काशीनाथ खत्री रचित ‘बाल विधवा’ आदि रचनाएं भारतीय नारी के त्रस्त विवाहित जीवन का यथार्थ चित्रण हैं। सामाजिक भ्रष्टाचार का चित्रण कातिक प्रसाद खत्री-रचित ‘रेल का विकट खेल’ में मिलता है जिसमें रेलवे विभाग में रिश्वत लेने वालों का भण्डा-फोड़ किया गया है। समाज सुधार की परम्परा के पोषक इन एकांकीकारों के प्रयास के फलस्वरूप भारतीय समाज का यथार्थ चित्रण समाज के समक्ष उपस्थित हुआ तथा इन्हीं के द्वारा जन सामान्य को नवीन एवं प्रगतिशील विचारों को ग्रहण करने की प्रेरणा भी मिली। इन्हीं के प्रयासों का परिणाम था कि भारतीय जनता समाज में प्रचलित रूढ़ियों एवं परम्पराओं के प्रति घृणाभाव से भर उठी तथा उनके उन्मूलन के लिए कृत संकल्प हो गयी। + +2797. प्रसाद-युग. + +2798. तत्कालीन समाज की नग्न विकृतियों का चित्रणकरने वाले अनेक एकांकियों की रचना इस युग में हुई। जीवानन्द शर्मा कृत ‘बाला का विवाह’ सुधारवादी दृष्टिकोण को प्रकट करता है। हरिकृष्ण शर्मा कृत ‘बुढ़ऊ का ब्याह’ वृद्ध अनमेल विवाह एवं दहेज समस्या पर कुठाराघात है। जी. पी. श्रीवास्तव रचित ‘गड़बड़झाला’ में वृद्धों की अनियंत्रित काम वासना एवं समाज के लोगों का भ्रष्टाचार चित्रित किया गया है। रामसिंह वर्मा कृत ‘रेशमी रूमाल’ में पतिव्रत धर्म की प्रतिष्ठा, शैक्षिक वृत्तियों एवं रोमांस की त्रुटियों का चित्रण है। प्रेमचन्द कृत ‘प्रेम की देवी में’ लेखक ने अन्तर्जातीय विवाह का समर्थन प्रबल रूप में किया है। श्री बदरीनाथ भट्ट कृत ‘विवाह विज्ञापन’ में आधुनिक शिक्षित वर्ग की रोमांस वृत्ति पर व्यंग्यात्मक प्रहार है। डॉ. सत्येन्द्र कृत ‘बलिदान’ में दहेज समस्या का चित्रण है। जी. पी. श्रीवास्तव-कृत ‘भूलचूक’ से विधवा विवाह समर्थन, ‘अच्छा उपर्फ अक्ल की मरम्मत’ में शिक्षित पति एवं अशिक्षित पत्नी के मध्य उत्पन्न कटुता, ‘लकड़बग्घा’ में )ण समस्या आदि पर व्यंग्य किया गया है। इनके अतिरिक्त ‘बंटाधार’, ‘दुमदार आदमी’, ‘कुर्सीमैन’, ‘पत्र पत्रिका सम्मेलन’, ‘न घर का न घाट का’, ‘चोर के घर मोर’ आदि रचनाओं में श्रीवास्तव जी का दृष्टिकोण सुध ारवादी रहा है। श्रीवास्तव जी का ‘अछूतोद्वार’ एकांकी अछूत समस्या पर लिखा गया है। श्री चण्डीप्रसाद हृदयेश कृत ‘विनाश लीला’ में भारतीय नारी के जन्म से अन्त तक के सामाजिक कष्टों का चित्रण है। पं. हरिशंकर शर्मा कृत ‘बिरादरी विभ्राट’, ‘पाखण्ड प्रदर्शन’, तथा ‘स्वर्ग की सीधी सड़क’ सामाजिक छुआछूत तथा वर्ग वैषम्य की हानियों को चित्रित करते हैं। श्री सुदर्शन कृत ‘जब आँखें खुलती हैं’ में वेश्या का हृदय-परिवर्तन स्वाध ीनता संग्राम के वातावरण में चित्रित किया गया है। आलोच्य युग में श्री रामनरेश त्रिपाठी कृत ‘समानाधिकार’, ‘सीजन डल है’, ‘स्त्रियों की काउन्सिल’, पांडेय बेचन शर्मा उग्र-कृत ‘चार बेचारे’, बेचारा सम्पादक’, बेचारा सुधारक’, श्री रामदास-कृत ‘नाक में दम’, ‘जोरू का गुलाम’, ‘करेन्सी नोट’, ‘लबड़ धौं धौं’ आदि एकांकियों को भी विशेष ख्याति प्राप्त हुई है। + +2799. भारतेन्दु-युग में जिस हास्य-व्यंग्य-प्रधान धाराको सामाजिक सुधार-हेतु माध्यम के रूप में स्वीकार किया गया था उसका निर्वाह प्रसाद-युग में भी दृष्टिगोचर होता है। इन एकांकीकारों ने समाज में प्रचलित अनेक जीर्ण-शीर्ण रूढ़ियों, कुप्रथाओं एवं परम्पराओं पर व्यंग्य किये हैं। उनका लक्ष्य सामाजिक, धार्मिक एवं राजनीतिक सुधार ही अधिक रहा है। श्री बद्रीनाथ भट्ट रचित ‘चुंगी की उम्मेदवारी’ में चुनाव की प्रणाली पर व्यंग्य किया गया है। श्री जी. पी. श्रीवास्तव रचित ‘दुमदार आदमी’, ‘पत्र-पत्रिका सम्मेलन’, ‘अच्छा उपर्फ अक्ल की मरम्मत’, ‘न घर का न घाट का’, ‘गड़बड़झाला’, ‘लकड़बग्घा’, ‘घर का मनेजर’ आदि हास्य व्यंग्य प्रधान एकांकी हैं जिनमें विभिन्न धार्मिक एवं सामाजिक कुरीतियों व रूढ़ियों पर व्यंग्यात्मक प्रहार किये गये हैं। इन रचनाओं में लेखक ने दहेज समस्या, विवाह समस्या तथा सामाजिक विरूपताओं एवं मिथ्या प्रदर्शन की भावना पर सुन्दर व्यंग्य किया है। इसी सन्दर्भ में द्वारिकाप्रसाद गुप्त रचित ‘बशर्ते कि’ बद्रीनाथ रचित ‘लबड़ धौं-धौं’, ‘पुराने हकीम का नया नौकर’, ‘मिस अमेरिकन’, ‘रेगड़ समाचार के एडीटर की धूल दच्छना’ आदि हास्य व्यंग्य प्रध ान रचनाएं हैं जिनमें मध्यम तथा अल्प शिक्षित वर्ग की समस्याओं का चित्रण किया गया है। भट्ट जी का यह हास्य शिष्ट एवं सुरुचिपूर्ण बन पड़ा है। श्री रामचन्द्र रघुनाथ रचित ‘पाठशाला का एक दृष्य’, ‘सभी हा ः हा :’, ‘मदद मदद’, ‘यमराज का क्रोध’, रूप नारायण पांडेय रचित ‘समालोचना रहस्य’, गरीबदास कृत ‘मियाँ की जूती मियां के सिर’, मुकन्दीलाल श्रीवास्तव कृत ‘घर का सुख कहीं नहीं है’, श्री गोविन्द वल्लभ पंत रचित ‘140 डिग्री.’, ‘काला जादू’, पांडेय बेचन शर्मा उग्र कृत ‘चार बेचारे’, ‘बेचारा अध्यापक’, ‘बेचारा सुध ारक’, सेठ गोविन्ददास कृत ‘हंगर स्ट्राइक’, ‘उठाओ खाओ खाना अथवा बफेडिनर’, ‘वह मेरा क्यों?’ आदि रचनाएं इसी श्रेणी के अन्तर्गत आती हैं। + +2800. प्रसादोत्तर युग में यद्यपि एकांकी की अनेक प्रवृत्तियों को प्रश्रय मिला है तथापि सामाजिक एकांकी की प्रवृत्ति पर लगभग सभी युगीन एकांकीकारों ने अपनी लेखनी चलाई। प्रस्तुत युग के प्रमुख एकांकीकार डा.रामकुमार वर्मा ने तो अनेक सामाजिक समस्या प्रधान एकांकियों की रचना करके हिन्दी एकांकी साहित्य को बहुमूल्य धरोहर प्रदान की है। इन्होंने जीवन की वास्तविकताको अपने एकांकियों का आधार बनाया। इस दृष्टि से इनके ‘एक तोले अफीम की कीमत’, ‘अठारह जुलाई की शाम’, ‘दस मिनट’, ‘स्वर्ग का कमरा’, ‘जवानी की डिब्बी’, ‘आंखों का आकाश’, ‘रंगीन स्वप्न’, आदि एकांकी सामाजिक एकांकी की प्रवृत्ति का प्रतिनिधि त्व करते हैं। वर्मा जी के समान उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’का ध्यान भी विविध वैयक्तिक, पारिवारिक एवं सामाजिक समस्याओं की ओर गया। इनकी एकांकी रचनाओं में : ‘चरवाहे’, ‘चिलमन’, ‘लक्ष्मी का स्वागत’, ‘पहेली’, ‘सूखी डाली’, ‘अन्धी गली’, ‘तूफान से पहले’, आदि सामाजिक दृष्टि से विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इनमें लेखक ने युगीन सामाजिक रूढ़ियों, परम्पराओं, विरूपताओं विकृतियों, एवं अज्ञानताओं का बड़ा ही प्रभावोत्पादक किन्तु व्यंग्यात्मक चित्र उपस्थित किया है। युगीन एकांकीकार भुवनेश्वर-रचित ‘श्यामा एक वैवाहिक विडम्बना’, ‘स्ट्राइक’, ‘एक साम्यहीन साम्यवादी’ तथा ‘प्रतिमा का विवाह’ आदि प्रसिद्ध हैं। इसमें सामाजिक बाह्याडम्बर, स्त्री-पुरुष सम्बन्ध, यौन विषयक समस्याओं एवं प्राचीन अप्रगतिशील मान्यताओं का चित्रण किया गया है जो मानव जीवन के विकास पथ को अवरुद्ध किए हैं। श्री जगदीश चंद्र माथुरका दृष्टिकोण भी सामाजिक जीवन की समस्याओं के प्रति स्वस्थ एवं उदार रहा है। वे उन एकांकियों को सफल नहीं मानते जो समाज से निरपेक्ष होकर मात्र साहित्यिक विधा बनकर रह जाते हैं। उन्होंने ‘ओ मेरे सपने’ के पूर्व निवेदन में लिखा है कि ‘कौन ऐसा लेखक होगा कि जिसकी कलम पर सामाजिक समस्याएँ सवार न होती हों अनजाने ही या डंके की चोट के साथ ?’ इस विचार के अनुसार उनके ‘मेरी बाँसुरी’, ‘खिड़की की राह’, ‘कबूतर खाना’, ‘भोर का तारा’, ‘खंडहर’, आदि एकांकी उल्लेखनीय हैं। इनमें सामाजिक बन्धनों के प्रति तीव्र विद्रोही भावना व्यक्त हुई है। श्री शम्भुदयाल सक्सेनारचित ‘कन्यादान’, ‘नेहरू के बाद’, ‘मुर्दो का व्यापार’, ‘नया समाज’, ‘नया हल नया खेत’, ‘सगाई’, ‘मृत्युदान’ आदि एकांकी सामाजिक समस्याओं को प्रस्तुत करते हैं। सक्सेना जी पर गाँधीवादी जीवन का प्रत्यक्ष प्रभाव परिलक्षित होता है। यही कारण है कि इनकी रचनाओं में सादा जीवन का महत्त्व, मानवतावादी दृष्टिकोण की प्रतिष्ठा, नैतिक उन्नयन के प्रति आग्रह, बाह्याडम्बर के प्रति घृणा एवं कर्त्तव्य के प्रति जागरूकता के दर्शन होते हैं। हरिकृष्ण प्रेमी ने ‘बादलों के पार’, ‘वाणी मन्दिर’, ‘सेवा मन्दिर’, ‘घर या होटल’, ‘निष्ठुर न्याय’ आदि एकांकी रचनाओं में विविध सामाजिक समस्याओं का अंकन किया है जिनमें विधवा समस्या, ‘नारी की आध ुनिकता’, वर्ग वैषम्य, जातीय बन्धन की संकीर्णता, प्राचीन परम्पराओं एवं मान्यताओं की अर्थहीनता, पुरुष की वासना लोलुपता एवं दुश्चरित्रता आदि का चित्रण प्रमुख रूप के किया है। भगवतीचरण वर्माकृत ‘मैं और केवल मैं’, ‘चौपाल में’ तथा ‘बुझता दीपक’, में पीड़ित मानव की अन्तर्वेंदना का करुण स्वर उभर कर सामने आया है। श्री रामवृक्ष बेनीपुरीरचित ‘नया समाज’, ‘अमर ज्योति’, तथा ‘गाँव का देवता’ आदि रचनाएं सामाजिक समस्या प्रधान हैं। श्री सद्गुरुशरण अवस्थी ने भारतीय संस्कृति के आदर्शों को उपयुक्त एवं उचित तर्को की कसौटी पर कसकर उनको समाज के लिए उपयोगी सिद्ध किया जिनमें बुद्ध, तर्क एवं विवेक का प्राधान्य है। इस दृष्टि से ‘हाँ में नहीं का रहस्य’, ‘खद्दर’, ‘वे दोनों’ आदि विशेष महत्वपूर्ण रचनाएं हैं। इनके अतिरिक्त चन्द्रगुप्त विद्यालंकाररचित ‘प्यास’ तथा ‘दीनू’, श्री यज्ञदत्त शर्माकृत ‘छोटी-बात’, ‘साथ’, ‘दुविधा’, एस.सी. खत्री रचित,‘बन्दर की खोपड़ी’, ‘प्यारे सपने’, श्री सज्जाद जहीररचित ‘बीमार’ आदि रचनाओं में सामाजिक जीवन के सत्य को उभारते हुए और उनका सर्वपक्षीय चित्रण किया गया है। + +2801. प्रो. सद्गुरुशरण अवस्थीरचित ‘कैकेयी’, ‘सुदामा’, ‘प्रींद’, ‘शम्बूक’, ‘त्रिशंकु’ आदि एकांकियों में प्राचीन पौराणिक एवं धार्मिक पात्रों को मौलिक ढंग से नवीन तर्क, विचार, आदर्श एवं नैतिक तत्वों सहित प्रस्तुत किया है। तथा इन पात्रों के माध्यम से प्राचीन भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का गौरव गुणगान किया है। अवस्थी जी ने अतीत की व्याख्या आधुनिक तथा नवीन दृष्टिकोण से की है। + +2802. हिन्दी एकांकी के विकास की चौथी अवस्था स्वतंत्रता के पश्चात् प्रारम्भ होती है, जिसे स्वातंत्रयोत्तर युग के नाम से जाना जाता है। इस अवस्था में हिन्दी एकांकियों पर रेडियो का प्रभाव बड़ी गहराई से पड़ा है। रेडियो नाटकों के रूप में नाटकों का नवीन रूप हमारे समक्ष आया। रेडियो माध्यम होने के कारण श्रोतागण इसमें रुचि लेने लगे। इसलिए रेडियो एकांकियों की मांग इस युग में अधिक रही। डॉ. दशरथ ओझाने लिखा है कि ‘हिन्दी के जितने-नाटक आज रेडियो स्टेशनों पर अभिनीत होते हैं उतने सिनेमा की प्रयोगशालाओं में भी नहीं होते होंगे। अतः नाट्यकला का भविष्य रेडियो-रूपक के रचयिताओं के हाथ में है।’ + +2803. स्वातन्त्रयोत्तर युगीन एकांकीकारों ने अपनी रचनाओं में प्राचीन सांस्कृतिक, पौराणिक, धार्मिक तथा नैतिक प्रसंगों की अभिव्यक्ति अपनी एकांकी रचनाओं में नवीन विचारों तथा तर्क की कसौटी पर नवीन ढंग से की है। प्रो. कैलासदेव बृहस्पति ने अतीत भारत की सांस्कृतिक परम्परा का पुनरुत्थान तथा उसके आदर्शमय अतीत गौरव का चित्रांकन अपने पौराणिक तथा ऐतिहासिक रूपकों में किया है। इसके ‘सागर मंथन’, ‘विश्वामित्र’, ‘स्वर्ग में क्रान्ति’, आदि महत्वपूर्ण रेडियो रूपक हैं जिनमें भारतीय सांस्कृतिक गौरव का कलात्मक चित्रण किया गया है। कणाद ऋषि भटनागरने ‘आज का ताजा अखबार’, में भारतीय संस्कृति की महत्ता चित्रित की है। ओंकारनाथ दिनकररचित गणतंत्र की गंगा, अभिसारिका, सीताराम दीक्षित रचित‘रक्षाबन्धन’, देवीलाल सामर रचित ‘आत्मा की खोज’, ‘ईश्वर की खोज’ आदि में पौराणिक एवं धार्मिक कथानकों के आधार पर प्राचीन भारतीय राजनैतिक, सांस्कृतिक मानवतावादी एवं दार्शनिक आदर्शों की प्रतिष्ठा की है। इनमें से कतिपय एकांकियों में गांधीवादी विचारधारा की अभिव्यक्ति हुई है। + +2804. हिन्दी गद्य साहित्य का इतिहास: + +2805. आरंभिक-युग. + +2806. हिंदी के आत्मकथात्मक साहित्य के विकास में ‘हंस’ के आत्मकथांक का विशिष्ट योगदान है। सन् 1932 में प्रकाशित इस अंक में जयशंकर प्रसाद, वैद्य हरिदास, विनोदशंकर व्यास, विश्वंभरनाथ शर्मा कौशिक, दयाराम निगम, मौलवी महेशप्रसाद, गोपालराम गहमरी, सुदर्शन, शिवपूजन सहाय, रायकृष्णदास, श्रीराम शर्मा आदि साहित्यकारों और गैर-साहित्यकारों के जीवन के कुछ अंशों को प्रेमचंद ने स्थान दिया है। + +2807. सन् 1948 में वियोगी हरि की आत्मकथा ‘मेरा जीवन प्रवाह’ प्रकाशित हुई। इस आत्मकथा के समाज सेवा से संबंधित अंश में समाज के निम्न वर्ग का लेखक ने बहुत मार्मिक वर्णन किया है। यशपाल कृत ‘सिंहावलोकन’ का प्रथम भाग सन् 1951 में प्रकाशित हुआ। इसका दूसरा भाग सन् 1952 और तीसरा सन् 1955 में आया। यशपाल की आत्मकथा की विशेषता उसकी रोचक और मर्मस्पर्शी शैली है। सन् 1952 में शांतिप्रिय द्विवेदी की आत्मकथा ‘परिव्राजक की प्रजा’ प्रकाशित हुई। इसमें लेखक ने अपने जीवन के प्रारंभिक इकतालीस वर्षों की करुण कथा का वर्णन किया है। सन् 1953 में यायावर प्रवृत्ति के लेखक देवेंद्र सत्यार्थी की आत्मकथा ’चाँद-सूरज के बीरन’ प्रकाशित हुई। इसमें लेखक ने अपने जीवन की आरंभिक घटनाओं का चित्रण किया है। + +2808. + +2809. बाबू शिवप्रसाद गुप्त द्वारा लिखे गए यात्रा-वृतांत ‘पृथ्वी प्रदक्षिणा’ (सन् 1924) को हम आरंभिक यात्रा-साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान दे सकते हैं। इसकी सबसे बड़ी विशेषता चित्रात्मकता है। इसमें संसार भर के अनेक स्थानों का रोचक वर्णन है। लगभग इसी समय स्वामी सत्यदेव परिव्राजक कृत ‘मेरी कैलाश यात्रा’ (सन् 1915) तथा ‘मेरी जर्मन यात्रा’ (सन् 1926) महत्वपूर्ण हैं। इन्होंने सन् 1936 में ‘यात्रा मित्र’ नामक पुस्तक लिखी, जो यात्रा-साहित्य के महत्व को स्थापित करने का काम करती है। विदेशी यात्रा-विवरणों में कन्हैयालाल मिश्र कृत ‘हमारी जापान यात्रा’ (सन् 1931), रामनारायण मिश्र कृत ‘यूरोप यात्रा के छः मास’ और मौलवी महेशप्रसाद कृत ‘मेरी ईरान यात्रा’ (सन् 1930) यात्रा-साहित्य के अच्छे उदाहरण हैं। + +2810. आज़ादी के बाद हिंदी साहित्य में बहुतायत से यात्रा-साहित्य का सृजन हुआ। अनेक प्रगतिशील लेखकों ने इस विधा को समृिद्ध प्रदान की। रामवृक्ष बेनीपुरी कृत ‘पैरों में पंख बाँधकर’ (सन् 1952) तथा ‘उड़ते चलो उड़ते चलो’, यश्पाल कृत ‘लोहे की दीवार के दोनों ओर’ (सन् 1953), भगवतशरण उपाध्याय कृत ‘कलकत्ता से पेकिंग तक’ (सन् 1953) तथा ‘सागर की लहरों पर’ (सन् 1959), प्रभाकर माचवे कृत ‘गोरी नज़रों में हम’ (सन् 1964) उल्लेखनीय हैं। + +2811. ‘रिपोर्ताज’ का अर्थ एवं उद्देश्य : जीवन की सूचनाओं की कलात्मक अभिव्यक्ति के लिए रिपोर्ताज का जन्म हुआ। रिपोर्ताज पत्रकारिता के क्षेत्र की विधा है। इस शब्द का उद्भव प्रफांसीसी भाषा से माना जाता है। इस विधा को हम गद्य विधाओं में सबसे नया कह सकते हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय यूरोप के रचनाकारों ने युद्ध के मोर्चे से साहित्यिक रिपोर्ट तैयार की। इन रिपोर्टों को ही बाद में रिपोर्ताज कहा गया। वस्तुतः यथार्थ घटनाओं को संवेदनशील साहित्यिक शैली में प्रस्तुत कर देने को ही रिपोर्ताज कहा जाता है। + +2812. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के रिपोर्ताज लेखन का हिंदी में चलन बढ़ा। इस समय के लेखकों ने अभिव्यक्ति की विविध शैलियों को आधार बनाकर नए प्रयोग करने आरंभ कर दिए थे। रामनारायण उपाध्याय कृत ‘अमीर और गरीब’ रिपोर्ताज संग्रह में व्यंग्यात्मक शैली को आधार बनाकर समाज के शाश्वत विभाजन को चित्रित किया गया है। फणीश्वरनाथ रेणु के रिपोर्ताजों ने इस विधा को नई ताजगी दी। ‘)ण जल धन जल’ रिपोर्ताज संग्रह में बिहार के अकाल को अभिव्यक्ति मिली है और ‘नेपाली क्रांतिकथा’ में नेपाल के लोकतांत्रिक आंदोलन को कथ्य बनाया गया है। + +2813. रेखाचित्र का अर्थ : ‘रेखाचित्र’ शब्द अंग्रेजी के 'स्कैच' शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। जैसे ‘स्कैच’ में रेखाओं के माध्यम से किसी व्यक्ति या वस्तु का चित्र प्रस्तुत किया जाता है, ठीक वैसे ही शब्द रेखाओं के माध्यम से किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को उसके समग्र रूप में पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है। ये व्यक्तित्व प्रायः वे होते हैं जिनसे लेखक किसी न किसी रूप में प्रभावित रहा हो या जिनसे लेखक की घनिष्ठता अथवा समीपता हो। + +2814. रामवृक्ष बेनीपुरी निर्विवाद रूप से हिंदी के सर्वश्रेष्ठ रेखाचित्रकार माने जाते हैं। इनके रेखाचित्रों में हम सरल भाषा शैली में सिद्धहस्त कलाकारी को देख सकते हैं। परिमाण की दृष्टि से इन्होंने अनेक रेखाचित्रों की रचना की है। ‘माटी की मूरतें’ (सन् 1946) संग्रह से इन्हें विशेष ख्याति मिली। इस संग्रह में इन्होंने समाज के उपेक्षित पात्रों को गढ़कर नायक का दर्जा दे दिया। उदाहरणस्वरूप ‘रजिया’ नामक रेखाचित्र के माध्यम से निम्नवर्ग की एक बालिका को जीवंत कर दिया गया है। इस संग्रह के अन्य रेखाचित्रों में बलदेव सिंह, मंगर, बालगोबिन भगत, बुधिया, सरजू भैया प्रमुख हैं। इन रेखाचित्रों की श्रेष्ठता का अनुमान मैथिलीशरण गुप्त के इस कथन से लगाया जा सकता है, ‘‘लोग माटी की मूरतें बनाकर सोने के भाव बेचते हैं पर बेनीपुरी सोने की मूरतें बनाकर माटी के मोल बेच रहे हैं।’’ सन् 1950 में रामवृक्ष बेनीपुरी का दूसरा रेखाचित्रसंग्र्रह ‘गेहूँ और गुलाब’ प्रकाशित हुआ। इसमें इनके 25 रेखाचित्र संकलित हैं। कलेवर की दृष्टि से लेखक ने इन्हें अपने पुराने रेखाचित्रों की अपेक्षा छोटा रखा है। रामवृक्ष बेनीपुरी के रेखाचित्रों की भाषा भावना प्रधान है। कुछ आलोचक तो उनकी भाषा को गद्य काव्य की संज्ञा भी दे चुके हैं। बेनीपुरी के रेखाचित्रों के बारे में संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि इन्हें जीवन में जो भी पात्र मिले इन्होंने अपनी कुशल लेखनी से उन्हें जीवंत कर दिया। विषय की विविधता और शैली की सरसता का इनके यहाँ अपूर्व संयोजन मिलता है। + +2815. रेखाचित्र का अर्थ : ‘रेखाचित्र’ शब्द अंग्रेजी के 'स्कैच' शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। जैसे ‘स्कैच’ में रेखाओं के माध्यम से किसी व्यक्ति या वस्तु का चित्र प्रस्तुत किया जाता है, ठीक वैसे ही शब्द रेखाओं के माध्यम से किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को उसके समग्र रूप में पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है। ये व्यक्तित्व प्रायः वे होते हैं जिनसे लेखक किसी न किसी रूप में प्रभावित रहा हो या जिनसे लेखक की घनिष्ठता अथवा समीपता हो। + +2816. आदि अनेक उद्धरण कबीर की व्यंग्य-क्षमता के प्रमाण हैं। लेकिन उत्तर-मध्यकालीन सामंती समाज कबीर आदि संतों के समाज-बोध को समझ पाने में असफल रहा और पूरे रीतिकाल में व्यंग्य रचनाओं की उपस्थिति नगण्य रही। कबीर के बाद भारतेंदु ने सामाजिक विषमताओं के प्रति व्यंग्य को हथियार बनाया। अंग्रेज़ों के खिलाफ लिखते हुए वे कहते हैं, ‘‘होय मनुष्य क्यों भये, हम गुलाम वे भूप।’’ इस पंक्ति में औपनिवेशिक भारत की मूल समस्या हमें दिखाई देती है। पराधीन भारत की समस्याएँ वर्तमान भारत से अलग थीं। ‘अंधेर नगरी’ और ‘मुकरियों’ में गुलाम भारत की विडंबनापूर्ण परिस्थितियों, अंग्रेजी साम्राज्यवाद और उनकी शोषक दृष्टि के प्रति आक्रोश को देखा जा सकता है। भारतेंदु-युग के अन्य महत्वपूर्ण व्यंग्यकार बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ और प्रतापनारायण मिश्र हैं। किंतु प्रेमघन की कृति ‘हास्यबिंदु’ और प्रतापनारायण मिश्र के निबंधों में व्यंग्य सहायक प्रवृत्ति के रूप में मौजूद है। व्यंग्य इनकी रचनाओं में केंद्रीय भूमिका का निर्वहन नहीं करता है। व्यंग्य का पूर्ण उन्मेष इनके बाद के व्यंग्य रचनाकार बालमुकुंद गुप्त की रचनाओं में दिखाई देता है। ‘शिवशंभु के चिट्ठे’ नामक अपनी प्रसिद्ध व्यंग्य लेखमाला में इन्होंने समसामयिक परिस्थितियों पर तीव्र व्यंग्य किए। राजनीति और तत्कालीन शासन-व्यवस्था से टकराव इनकी व्यंग्य रचनाओं की आधार सामग्री का काम करते हैं। + +2817. परसाई की रचनाएं ‘आजाद भारत का सृजनात्मक इतिहास’ कही जा सकती हैं। इन रचनाओं का वर्तमान भारत की यथार्थ स्थितियों के संदर्भ में ही आकलन किया जा सकता है। सामान्य सामाजिक स्थितियों को परसाई ने वैचारिक चिन्तन से पुष्ट करके प्रस्तुत किया है। स्वतंत्र भारत के सकारात्मक-नकारात्मक सभी पहलुओं की परसाई ने बखूबी पड़ताल की है। परसाई की रचनाओं में उस पीड़ित भारत की छटपटाहट को महसूस किया जा सकता है जो शोषकों के तिलिस्म में कैद है। शोषक इस तिलिस्म को बनाए रखने के लिए तरह-तरह के छद्म करते हैं। इन छद्मों का खुलासा परसाई करते हैं। अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता और सतर्क वैज्ञानिक दृष्टि के कारण परसाई छद्म के उन सभी रूपों को आसानी से पहचान लेते हैं जिन तक सामान्यतः रूढ़िवादी दृष्टि नहीं पहुँच पाती। परसाई का रचना संसार बहुत व्यापक है। निजी अनुभूतियों की निर्वैयक्तिक अभिव्यक्ति उनके व्यंग्य लेखन की विशिष्टता है। परसाई की सृजनशील दृष्टि निम्नवर्गीय सामान्य आदमी से प्रारम्भ होकर बहुराष्ट्रीय समस्याओं तक को अपने भीतर समेटती है। परसाई व्यंग्य के माध्यम से सृजन और संहार दोनों एक साथ करते हैं। परसाई का व्यंग्य जब शोषक वर्ग के प्रति होता है तो वह उस वर्ग के प्रति घृणा और आक्रोश उत्पन्न करता है लेकिन जब वही व्यंग्य अभावग्रस्त व्यक्ति पर होता है तो करुणा पैदा करता है। + +2818. सामाजिक मूल्यों के विघटन को केंद्र में रखकर समकालीन साहित्यिक परिदृष्य में व्यंग्य का लगातार सृजन हो रहा है। समकालीन व्यंग्य में सुरेश कांत, ज्ञान चतुर्वेदी,सुशील सिद्धार्थ,नरेन्द्र कोहली,शंकर पुणतांबेकर,जवाहर चौधरी का नाम लिया जा सकता है। सुरेश कांत ने व्यंग्य-जगत को एक दर्जन से अधिक व्यंग्य-संकलनों के साथ-साथ दो अद्भुत व्यंग्य-उपन्यास दिए हैं--'ब से बैंक' और 'जॉब बची सो'। नरेन्द्र कोहली ने अपने व्यंग्यों में नए प्रयोगों पर विशेष ध्यान दिया है।सुशील सिद्धार्थ के पास कमाल की भाषा है जो समृद्ध भी है और बेहद पठनीय भी।’नारद की चिंता’ इनका प्रमुख संग्रह है।अब वे हमारे बीच नहीं रहे पर उनके व्यंग्य समकालीन साहित्य को समृद्ध करते हैं। व्यंग्य को सामाजिक सतर्कता के हथियार के रूप में देखा जाता है।अन्य व्यंग्यकारों में डॉ.रमेश चन्द्र खरे, केपी सक्सैना,माणिक वर्मा,यशवंत व्यास,सुभाष चंदर,अरविंद तिवारी,अनूप मणि त्रिपाठी,पिलकेंद्र अरोरा, डॉ. सुरेश कुमार मिश्र, संतोष त्रिवेदी,सुरजीत सिंह ,निर्मल गुप्त,मलय जैन,शशिकांत सिंह शशि प्रमुख हैं। + +2819. संस्मरण और रेखाचित्र में बहुत सूक्ष्म अंतर है। कुछ विद्वानों ने तो इन दोनों विधाओं को एक-दूसरे की पूरक विधा भी कहा है। संस्मरण का सामान्य अर्थ होता है सम्यक् स्मरण। सामान्यतः इसमें चारित्रिक गुणों से युक्त किसी महान व्यक्ति को याद करते हुए उसके परिवेश के साथ उसका प्रभावशाली वर्णन किया जाता है। इसमें लेखक स्वानुभूत विषय का यथावत अंकन न करके उसका पुनर्सृजन करता है। रेखाचित्र की तरह यह वर्ण्य विषय के प्रति तटस्थ नहीं होता। आत्मकथात्मक विधा होते हुए भी संस्मरण आत्मकथा से पर्याप्त भिन्नता रखता है। + +2820. छायावादोत्तर युग. + +2821. स्वातंत्रयोत्तर युग. + +2822. + +2823. ...स्वभाषा की उपेक्षा का अर्थ है आत्मघात की ओर बढ़ना। जैसे जड़ कटा वृक्ष पुष्पित, फलित होना तो दूर, शीघ्र ही अपनी हरियाली खोकर सूख जाता है, उसी प्रकार अपनी भाषा से कटा राष्ट्र भी शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। इसी कारण प्रत्येक चतुर राष्ट्र सब से पहले विजित देश की भाषा को दबाकर उस पर अपनी भाषा थोपता है। यहाँ विश्वविख्यात भारतीय विद्वान डॉ. रघुबीर के जीवन की युगांतरकारी घटना का उल्लेख, जो उन्होंने स्वयं मुझे सुनाई थी। इस प्रकार है : + +2824. गृह-स्वामिनी ने कहा- ‘‘डॉ. रघुबीर, इस घटना से आप समझ सकते हैं कि मैं किस माँ की बेटी हूँ। हम फ्रैंच लोग संसार में सबसे अधिक गौरव अपनी भाषा को देते हैं, क्योंकि हमारे लिए राष्ट्र-प्रेम और भाषा-प्रेम में कोई अन्तर नहीं।’’ + +2825. + +2826. शब्दकोश + +2827. पढ़ाई की सामग्री + +2828. वास्तुशास्त्र. + +2829. इसकी तीन टीकाएँ प्रसिद्ध हैं- + +2830. + +2831. ADDRESS - SHREE GANESH GAS AGENCY KE PASS NAI BASTI PICHHORE + +2832. सामान्य ज्ञान भास्कर + +2833. सामान्य ज्ञान भास्कर पर चलें + +2834. + +2835. + +2836. विश्व इतिहास की जानकारी + +2837. दाब - किसी सतह के एकांक क्षेत्रफल पर लगने वाले बल को दाब कहते हैं।" दाब का मात्रक एम. के. एस. पद्धति में न्यूटन प्रति वर्ग मीटर होता है। जिस वस्तु का क्षेत्रफल जितना कम होता है, वह किसी सतह पर उतना ही अधिक दाब डालती है। ) + +2838. ओईजकमैन --- बेरी बेरी की चिकित्सा + +2839. कार्ल लैंडस्टीनर --- रुधिर समूह + +2840. युजोक्स होल्कट --- विटामिन ‘सी’ + +2841. हर गोविन्द खुराना --- जेनेटिक कोड + +2842. पॉल एरिक --- सिफिलिस की चिकित्सा + +2843. लुई पाश्चर(१८८२) --- हाईड्रोफोबिया की चिकित्सा + +2844. क्रिश्चियंस बर्नार्ड --- हृदय प्रत्यारोपण + +2845. किस मेवाड शासक ने ठाट और पाट की प्रथा शुरू की थी? + +2846. विश्व की सबसे लम्बी बस कहा है ? + +2847. विश्व मे उस देश का नाम बताइए जहॉ सिर्फ पुरुष है तथा उसकी जनस्ंख्या क्या है ? + +2848. विश्व की सबसे ऊची चोटी ? + +2849. विश्व की सबसे बडा सेना कौन सी है ? + +2850. विश्व मे सोने का सर्वाधिक उत्पादन बाल देश कौन सा है ? + +2851. विश्व का वह कौनसा देश है जो कपडे पर अखबार निकालता है ? + +2852. पिटा चिडिया (आस्ट्रेलिया मे ) + +2853. सामान्य ज्ञान भास्कर पर चलें + +2854. ज्वार - महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्यप्रदेश और आंध्रप्रदेश + +2855. मुंगफली - गुजरात, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश + +2856. कपास - महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, पंजाब, कर्नाटक, हरियाणा, राजस्थान, तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश + +2857. काजू - केरल, महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश + +2858. 2. राजकीय फल संरक्षण एवं डिब्बाबन्दी संस्थान- लखनऊ + +2859. 7. सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय- उत्तराखण्ड के गठन के बाद पन्तनगर स्थित कृषि विश्वविद्यालय उत्तराखण्ड में चला गया है। इसके + +2860. 1. प्रदेश की सबसे बड़ी जनजाति '"थारू + +2861. 6. न्यूनतम अनुसूचित जनजाति जनसंख्या प्रतिशत वाला जिला "'बागपत + +2862. 11. खरवार जनजाति का नृत्य- "'करमा + +2863. 4. राज्य सरकार द्वारा शिक्षा मित्र योजना का शुभारम्भ- वर्ष 2000-2001 + +2864. 5. शिक्षा मित्र योजना '" 2000-2001 में + +2865. 10. विद्या वाहिनी परियोजना "' 2003 में प्रारम्भ, कम्प्यूटर के माध्यम से शिक्षा को बढ़ावा देना + +2866. 5. एमिटी विश्वविद्यालय- गौतम बुद्ध नगर + +2867. 10. उत्तर प्रदेश में उर्दू को द्वितीय राजभाषा घोषित किया गया- वर्ष 1989 + +2868. 5. उत्तर प्रदेश में विद्युत नियामक आयोग का गठन- वर्ष 1998 + +2869. 3. विद्युत उत्पादन की दृष्टि से उत्तर प्रदेश का सम्पूर्ण देश में कौन-सा स्थान है- + +2870. 7. गोविन्द बल्लभ पन्त सागर परियोजना निम्नलिखित में से कहा स्थित है- + +2871. 12. उत्तर प्रदेश में विद्युत नियामक आयोग का गठन कब किया गया- + +2872. 17. वैकल्पिक ऊर्जा से सम्बन्धित एक शोध एवं प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना की गई है- + +2873. दक्षिण पठार से निकलने वाली नदियाँ - चम्बल, बेतवा ,केन, सोन, रिहंद, टोंस ,कन्हार + +2874. गंगा नदी मैदानी भाग में प्रवेश करती है - हरिद्वार में + +2875. यमुना + हिंडन = नोएडा के निकट + +2876. नोट - कन्नौज इत्र के लिए जाना जाता है + +2877. पर्वतीय प्रदेश में यह करनाली नदी के नाम से और मैदानी भाग में यह घाघरा के नाम से जानी जाती है + +2878. धसान नदी बेतवा की सहायक नदी है + +2879. सोन -यह नर्मदा के उद्गम स्थल के समीप शेषकुंड नामक स्थान से निकलती है + +2880. नोट - बिहार जलप्रपात इसी नदी पर है। + +2881. बलहपारा --"'कानपुर + +2882. बडाताल --'"शाहजहांपुर + +2883. ऊपरी गंगा नहर --"'हरिद्वार से + +2884. शारदा नहर --'"यह राज्य कि सर्वाधिक प्राचीन नहर है + +2885. ख़ातिमा शक्ति केंद्र स्थापित है --"'शारदा नहर पे + +2886. मूसा कहद बाँध --'"कर्मनाशा नदी ; वाराणसी + +2887. एक से अधिक बार बोया गया क्षेत्र --"'459.08 लाख हेक्टेयर + +2888. उत्तर प्रदेश का भारत के राज्यों में क्षेत्रफल में स्थान - चौथा + +2889. उत्तर प्रदेश का कुल क्षेत्रफल देश के क्षेत्रफल का है -7.33% + +2890. जनसँख्या के आधार पर उत्तर प्रदेश का स्थान - पहला + +2891. क्वाटरली समूह - तराई व भाभर का निर्माण + +2892. यह दलदली क्षेत्र होता है क्योंकि यही पे भाभर से विलुप्त नदियाँ यही पे निकलती है + +2893. उत्तर से दक्षिण का क्रम + +2894. प्रदेश में वर्षा का प्रारम्भ जून के अंतिम सप्ताह से होता है + +2895. उत्तर प्रदेश की सबसे ऊँची चोटी - सोनाकर + +2896. प्रश्नसमुच्चय--१७: + +2897. श्रुतिसमभिन्नार्थक शब्द. + +2898. + +2899. हिन्दी विश्व की प्रमुख भाषा है,यह 50 करोड़ लोगों की भाषा हैं। हिन्दी भाषा, भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। हिन्दी के अधिकतम शब्द संस्कृत , अरबी और फारसी भाषा के शब्दों से लिए गए हैं। हिन्दी को देवनागरी लिपि में लिखा जाता है। + +2900. हिन्दी/आधारभूत हिन्दी: + +2901. उदाहरण : + +2902. गहरे रंग में दिया गया शब्द संज्ञा है। इसके स्थान पर यदि वह यह वहाँ आदि आने पर उसे संज्ञा नहीं सर्वनाम कहेंगे। + +2903. समूहवाचक संज्ञा. + +2904. हिन्दी व्याकरण/सर्वनाम: + +2905. ध्यान रहे, हिन्दी में पहले वाक्य में संज्ञा होना चाहिए। उसके बाद ही सर्वनाम का उपयोग होता है। + +2906. यदि कोई वाक्य किसी कार्य के बारे में बताता है, तो उसे क्रिया कहते हैं। + +2907. विशेषण, जो संज्ञा व सर्वनाम शब्दों की विशेषता प्रकट करते हैं, उन्हें "विशेष्य" कहते हैं अर्थात संज्ञा व सर्वनाम शब्दों को "विशेष्य" के नाम से जाना जाता है। + +2908. हिन्दी व्याकरण/काल: + +2909. वर्तमान काल. + +2910. + +2911. उदाहरण– + +2912. भौतिकी अध्ययन मार्गदर्शक/उद्देश्य: + +2913. भौतिकी के नियम. + +2914. इसमें किसी भी वस्तु के साथ होने वाले क्रिया को देख कर उसे परखा जाता है। उसमें लगने वाला समय और परिवर्तन को लिखा जाता है। इसके बाद उससे होने वाले प्रभाव को भी लिखा जाता है। + +2915. गतिज ऊर्जा वेग के आधे द्रव्यमान के बराबर होता है। + +2916. प्रत्यय (suffix) उन शब्दों को कहते हैं जो किसी अन्य शब्द के अन्त में लगाये जाते हैं। इनके लगाने से शब्द के अर्थ में भिन्नता या वैशिष्ट्य आ जाता है। + +2917. ई + +2918. हिन्दी व्याकरण/समास: + +2919. सामाजिक जालस्थल: + +2920. हानि. + +2921. जीमेल/परिचय: + +2922. यह एक प्रकार के एचटीएमएल से बना जालस्थल होता है, जिसमें जीमेल का सामान्य रूप होता है। जो किसी धीमी गति से इंटरनेट चलाने वालों के लिए बना होता है। इससे ईमेल जल्दी खुल जाते हैं और अधिक डाटा नष्ट भी नहीं होता है। + +2923. + +2924. हिन्दी व्याकरण/प्रत्यय/अक: + +2925. हिन्दी व्याकरण/प्रत्यय/अन: + +2926. हिन्दी व्याकरण/प्रत्यय/अना: + +2927. माननीय, रमणीय, दर्शनीय, पूजनीय, श्रवणीय + +2928. सूखा, भूला, जागा, पूजा, इच्छा, भिक्षा + +2929. लड़ाई, सिलाई, पढ़ाई, चढ़ाई + +2930. उड़ान, मिलान, दौड़ान + +2931. हरि, गिरि, दाशरथि, माली + +2932. छलिया, जड़िया, बढ़िया, घटिया + +2933. पठित, व्यथित, फलित, पुष्पित + +2934. चरित्र, पवित्र, खनित्र + +2935. अड़, मर, सड़ + +2936. हँस, बोल, त्यज्, रेत + +2937. इच्छ्, भिक्ष् + +2938. कर्तव्य, वक्तव्य + +2939. आता, जाता, बहता, मरता, गाता + +2940. अति, प्रीति, शक्ति, भक्ति + +2941. जाते, खाते + +2942. अन्यत्र, सर्वत्र, अस्त्र + +2943. क्रंदन, वंदन, मंदन, खिन्न, बेलन, लेन + +2944. पढ़ना, लिखना, बेलना, गाना + +2945. दाम, धाम + +2946. गद्य, पद्य, कृत्य, पाण्डित्य, पाश्चात्य, दंत्य, ओष्ठ्य + +2947. मृगया, विद्या + +2948. देनेवाला, आनेवाला, पढ़नेवाला + +2949. होनहार, रखनहार, खेवनहार + +2950. गूगल मेल: + +2951. गूगल जालशिक्षक. + +2952. गूगल छवि: + +2953. गूगल अनुप्रयोग. + +2954. + +2955. कुल मिलाकर आप यदि क्रोम का उपयोग करते हो तो आप गूगल के जालस्थल पर हर दिन आते ही रहेंगे। चाहे आप चाहो या न चाहो। + +2956. गूगल पुस्तक गूगल का पुस्तक खोजने का एक औज़ार है। यह साथ ही अनेक पुस्तकालय के पुस्तक की जानकारी और उसके पाठ्य का अक्षरों के रूप में संचित रखती है। जिससे कोई भी इसके पाठ्य को गूगल खोज के माध्यम से आसानी से खोज सके। इसके अलावा यह उसे ईपुस्तक के रूप में कम्प्युटर में डालने की विशेषता भी देती है। लेकिन यह सुविधा कुछ ही पुस्तकों के लिए होता है। + +2957. कुछ लोग जो पैसे स्वयं कमाना चाहते हैं, उनके लिए गूगल ने विज्ञापन की सुविधा दी है। जिसमें कोई भी अपने जालस्थल में विज्ञापन दिखाता है। गूगल के कमाई से उसे 69% पैसे मिल जाते हैं। इससे गूगल को बिना कुछ कार्य के 31% पैसे मिल जाते हैं। इसका उपयोग वह कुछ भाग अपने कर्मचारी को देने के लिए और कुछ निःशुल्क सेवाएँ प्रदान करने के लिए करता है। बाकी बचे रकम का उपयोग अपने लाभ हेतु या अन्य परियोजना में करता है। + +2958. यह ठीक ठीक रूप से अनुवाद नहीं करता है। कई शब्द जैसे के तैसे ही डाल देता है। इसके अलावा इसमें कोई व्याकरण संबंधी जानकारी अंग्रेज़ी के अलावा अन्य भाषाओं के लिए उपलब्ध नहीं है। अर्थात यदि आप इसका उपयोग करते है तो आपको अंग्रेज़ी का ज्ञान होना चाहिए या आप अर्थ का कोई और अर्थ मान लेंगे। + +2959. यह गूगल का एक सामाजिक जालस्थल है। जिससे कोई भी एक दूसरे से बातचीत कर सकता है। यह मुख्यतः अपने बहुत बड़े आकार के कारण तेज गति वाले इंटरनेट उपयोग करने वालों की पसंद है। यह इसकी प्रचार हेतु अपने अन्य सेवा में गूगल के इस सेवा का अत्यधिक विज्ञापन और प्रचार करता है। + +2960. इससे गूगल का मुख्य उद्देश्य लोगों को गूगल में खोजने हेतु आकर्षित करना ही है। जिससे अधिक लोग गूगल के खोज का उपयोग करें। यह इसके साथ ही ऐसे लोगों को देखता है जो अधिक खोजने वाली जानकारी का उपयोग करना चाहते हैं। इसके द्वारा वह लोग ऐसे परिणाम देखते हैं और उस परिणाम के अनुसार अपने कार्य करते हैं। लेकिन इस के साथ ही वे लोग गूगल के सेवा से भी जुड़ जाते हैं और गूगल को नई प्रयोक्ता भी मिलते रहते हैं। + +2961. गूगल का मुख्य वीडियो खोज प्रणाली में यूट्यूब है। लेकिन इस खोज माध्यम के द्वारा वह अन्य सभी जालस्थल के वीडियो को तो दिखाता है, लेकिन अपने यूट्यूब के वीडियो को भी उसमें दिखाता है। चूंकि यूट्यूब का पूरा अधिकार गूगल के पास ही है तो वह जितना हो सके गूगल के वीडियो खोज में यूट्यूब के ही वीडियो का मुख्य रूप से परिणाम दिखाता है। जिससे कोई भी गूगल से गूगल के ही सेवा में रहे। + +2962. गूगल टंकण औज़ार. + +2963. + +2964. यह मुख्य रूप से सही चित्र नहीं दिखाता है। इसके अलावा इसके चित्र की गुणवत्ता भी काफी कम होती है। इसके उपयोग के साथ ही इसमें कई बुराई भी है। + +2965. जानकारी का उपयोग. + +2966. गूगल आपके द्वारा दी जाने वाली सभी जानकारी को अपने पास रखता है और उसका व्यावसायिक रूप से भी उपयोग करता है। किसी भी कंपनी के पास जितनी अधिक आपके और आपकी कंपनी की जानकारी होगी, वह कंपनी उतनी अच्छी तरह से आपके व्यवसाय को समझ सकेगी और उसके अनुरूप बाद में अपनी कोई सेवा शुरू कर देगी। इसके कई उदाहरण भी हैं, जिसमें गूगल ने बाजार के और उसके मांग को देख कर अपनी कोई नई सेवा को शुरू किया। + +2967. + +2968. वैज्ञानिक विधि. + +2969. इसे मूल रूप से तीन अनुभाग में तैयार किया गया है। जिसमें पहले अनुभाग में इतिहास और उससे जुड़े कुछ जानकारी है और दूसरे अनुभाग में सामान्य प्रश्नो से जुड़े कुछ तथ्य और जानकारी है। वहीं तीसरे अनुभाग में कुछ प्रयोग आदि की जानकारी है। + +2970. विधि का स्तर. + +2971. प्राथमिक चिकित्सा/प्रस्तावना: + +2972. + +2973. विकसित हो गयीं जैसे- राजयोग, अष्टाँग योग, हठ योग, सँयम योग, कर्म योग, ग्यान योग, सहज योग, सहज राज योग, भक्ति योग, उपासना योग, तन्त्र योग, आदि| सभी शाखाओं का उद्देश्य या तो परमात्मा, ईश्वर, भगवान, अल्लाह, खुदा, प्रभु, GOD आदि नामों से जाने-पहचाने जाने वाली उस, अग्यात शक्ति को जानकर, उससे सम्बन्ध बनवाना है या अपने-अपने मानसिक-शारीरिक-सामाजिक स्वास्थ को ठीक करके, निरोगी काया व निरोगी समाज का निर्माण करना है| + +2974. + +2975. तैयारियाँ– + +2976. तरीका. + +2977. सामान्य योग उसे कहते हैं, जिसे कोई भी किसी भी समय कर सकता है। लेकिन किसी भी योग को करने से उसका लाभ उसी समय से दिखना शुरू हो जाता है, लेकिन अच्छी तरह से जब तक उसका अभ्यास न किया जाये तब तक उसका लाभ नहीं मिल पाता है। सामान्य या दैनिक रूप से किसी के भी द्वारा किए जा सकने वाले योग से कोई भी प्रतिदिन योग कर सकता है। कुछ योग को करने हेतु स्वास्थ्य ठीक होना आवश्यक होता है और किसी भी योग को धीरे धीरे ही और करना चाहिए। जिससे शरीर उसके अनुरूप कार्य करने लगे। + +2978. + +2979. पायथन 3 के लिए गैर-प्रोग्रामर जानकारी: + +2980. किसी भी भाषा हो या कोई कार्यक्रम सभी में पहली या कुछ और बार त्रुटि होती ही है। कई बार कुछ समझ में भी नहीं आता है। इस कारण लोग इसे छोड़ कुछ और करने के पीछे पड़ जाते हैं। लेकिन यदि आप शुरू से किसी कार्य को करते हो तो वह बहुत आसानी से आ जाती है। जैसे की हम अपनी हिन्दी भाषा को आसानी से समझ सकते हैं और लिख भी सकते हैं। उसी प्रकार कोई भी इस कार्यक्रम निर्माण की भाषा को भी समझ कर लिख सकता है। लेकिन यदि आपको इसमें और अच्छा बनना है तो आपको और मेहनत करनी होगी। लेकिन इसकी शुरुआती ज्ञान बहुत ही सरल है, जिसे कोई भी सीख सकता है। इस पुस्तक में भी इस तरह से ही सरल उदाहरण द्वारा यह दिखाया गया है। + +2981. यदि आपके पास यह स्थापित नहीं है तो आप इसे http://www.python.org/download से डाउनलोड कर अपने कम्प्यूटर पर स्थापित कर सकते हो। + +2982. यदि आपको कोई लेख या शब्द दिखाना है तो आप यह लिख सकते हैं। + +2983. इसके बाद आपके आदेशानुसार यह कम्प्यूटर दिखा देता है। + +2984. शिक्षा का अधिकार: + +2985. 2002 में, संविधान (अस्सी छठे संशोधन) अधिनियम शिक्षा के अधिकार के माध्यम से एक मौलिक अधिकार के रूप में पहचाना जाने लगा। लेख 21A इसलिए सम्मिलित होना जिसमें कहा गया है आया, "राज्य राज्य के रूप में इस तरीके से, विधि द्वारा, निर्धारित कर सकते में छह से चौदह वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगा। we should punish those teachers who just sitv in the classes not teaching the students यह अंततः उन्नी कृष्णन जेपी वी. राज्य आंध्र प्रदेश की कि शिक्षा को एक मौलिक अधिकार में लाया जा रहा में दिया निर्णय किया गया था। इस के बाद भी, यह शामिल संघर्ष की एक बहुत अनुच्छेद 21A के बारे में लाने के लिए और बाद में, शिक्षा का अधिकार अधिनियम. इसलिए, RTE अधिनियम के लिए एक कच्चा मसौदा विधेयक 2005 में प्रस्ताव किया गया। + +2986. 1 मुख्य प्रावधान + +2987. 6 से 14 साल के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा उपलब्ध कराई जाएगी. + +2988. प्रवेश के समय कई स्कूल केपिटेशन फ़ीस की मांग करते हैं और बच्चों और माता-पिता को इंटरव्यू की प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है। एडमिशन की इस प्रक्रिया को बदलने का वादा भी इस विधेयक में किया गया है। बच्चों की स्क्रीनिंग और अभिभावकों की परीक्षा लेने पर 25 हजार का जुर्माना। दोहराने पर जुर्माना 50 हजार। + +2989. मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के तहत सिर्फ 25 फीसदी सीटों पर ही समाज के कमजोर वर्ग के छात्रों को दाखिला मिलेगा। यानि शिक्षा के जरिये समाज में गैर-बराबरी पाटने का जो महान सपना देखा जाता वह अब भी पूरा नहीं होगा। + +2990. + +2991. + +2992. विंडोज से सामान्य अभिकलन अर्थात उसे स्थापित कर उसका उपयोग करना है। + +2993. यह भाग कठोर होता है इस कारण इसे "हार्ड" कहते हैं और "वेयर" शब्द जोड़ देते हैं। इस भाग के द्वारा ही आप इसे कोई संदेश या कोई जानकारी दे सकते हो। यह आप कुंजीपटल और माउस के द्वारा कर सकते हो। + +2994. सॉफ्टवेयर - एक प्रकार का कार्यक्रम होता है जो हार्डवेयर को किस तरह कार्य करना है। उसके निर्देश देता है। + +2995. व्यवस्था विंडोज में मूल रूप से control panel नियंत्रण स्थल में होती है। जहाँ आप अपने अनुसार किसी भी तरह का बदलाव कर व्यवस्थित रख सकते हो। + +2996. पढ़ना. + +2997. उपयोग. + +2998. सहेजना. + +2999. + +3000. आप इसके द्वारा किसी के द्वारा कोई मेल आने को रोक सकते हो। उदाहरण के लिए यदि आपको कोई अनेक व्यापारिक मेल कर रहा है या किसी अनावश्यक वस्तु का प्रचार कर रहा है तो आप उस मेल पते को भी इससे छन्नी द्वारा हटा सकते हो। या फिर किसी शब्द को भी आप इस इसे छन्नी के द्वारा हर मेल में उस शब्द को देख कर मेल को इनबॉक्स तक नहीं आने देगा। + +3001. मित्र को बुलाएँ या आमंत्रित करें एक विकल्प है, जिससे आप कोई ऐसे व्यक्ति को जीमेल में ला सकते हो जो जीमेल का उपयोग नहीं कर रहा है। इसका लाभ मुख्य रूप से गूगल को मिलता है। क्योंकि उसके सदस्य और भी अधिक हो जाते हैं और उपयोग करने वाले लोग भी और सक्रिय रहेंगे। जिससे लाभ में गूगल को और अधिक बढ़ोतरी मिलेगी। + +3002. अक्षय ऊर्जा: + +3003. अक्षय ऊर्जा उस ऊर्जा को कहते हैं, जिसका एक बार उपयोग करने के बाद भी हम उसे दोबारा भी उपयोग कर सकते हैं। उदाहरण के लिए पवन ऊर्जा ।यह ऊर्जा स्वतः ही पवन के चलने पर हमें मिलती है। जिसे हम पवन चक्की की सहायता से कभी भी उस ऊर्जा का उपयोग कर सकते हैं। यह पवन ऊर्जा धरती में अलग अलग स्थानों में हुए दाब के परिवर्तन के कारण बनते हैं। यह कभी क्षय नहीं हो सकते हैं। इस कारण इस ऊर्जा को अक्षय ऊर्जा कहते हैं। + +3004. इसका उपयोग रसोई गैस के रूप में या विद्युत उत्पन्न करने आदि के लिए किया जा सकता है। + +3005. + +3006. सौर ऊर्जा का उपयोग पानी उबालने में किया जाता है। सामान्यतः पानी को गर्म होने में काफी समय लग जाता है। इसके अलावा ईंधन भी काफी नष्ट हो जाता है। जबकि सौर ऊर्जा निःशुल्क मिलने के कारण दिन में कोई भी आसानी से पानी गर्म कर सकता है। + +3007. हानि. + +3008. इस ऊर्जा का उपयोग हम कुआँ से पानी निकालने या विद्युत ऊर्जा का निर्माण करने के लिए करते हैं। + +3009. अक्षय ऊर्जा/ज्वारीय ऊर्जा: + +3010. इसमें से एक उपकरण में मोटर और पंखा होता है। नीचे और ऊपर वायु के आने जाने के लिए मार्ग भी होता है। जब लहर में हलचल होता है तो वह पंखा वायु के ऊपर नीचे होने के कारण घूमने लगता है और मोटर के विद्युत ऊर्जा उत्पन्न होने लगती है। + +3011. यदि इस ऊर्जा का निर्माण भी करना चाहें तो भी इसके लिए अनेक पेड़-पौधे जीव-जन्तु की आवश्यकता होगी। यदि यह संख्या कम होती है तो इसका कोई लाभ ही नहीं होगा और अधिक भी होने से इस पूरे क्रिया में उससे अधिक पैसे लग जाएँगे। इससे अच्छा और सस्ता मार्ग अक्षय ऊर्जा पर निर्भर होना है और उसके लगातार उपयोग करने के लिए हमें ऊर्जा संग्रहण करना चाहिए। जिससे इस तरह के ऊर्जा का बाद में भी उपयोग कर सकें और क्षय ऊर्जा पर हमारी निर्भरता हट सके। + +3012. आव्यूह: + +3013. प्रदूषण: + +3014. + +3015. ध्वनि प्रदूषण मुख्यतः यातायात में उपयोग किए जाने वाले वाहनों द्वारा उत्पन्न होती है। इसके अलावा कई तरह के मरम्मत के कार्य हेतु कई तरह के औज़ार का उपयोग किया जाता है। इस कार्य को करते समय भी ध्वनि प्रदूषण होता रहता है। यह समस्या मुख्यतः शहरी क्षेत्रों में होता है, जहाँ पहले ही विकास हो चुका होता है और फिर से कोई नया कार्य करने हेतु कोई पुराने कार्यों को हटाना होता है। + +3016. प्रश्नसमुच्चय--१५: + +3017. ग्वालियर किले का निर्माण राजपूत राजा सूरज सेन ने किसकी स्मृति में कराया था ? -- ऋषि गालब की स्मृति में + +3018. मध्यप्रदेश में सर्वाधिक प्रसार वाला अखबार है ? -- नई दुनिया + +3019. कौन सी नदी पर जोवट परियोजना बनाई गई है ? -- हथनी + +3020. मध्य प्रदेश में स्थित राजघाट बांध किस नदी पर बना हुआ है? -- बेतवा + +3021. मध्य प्रदेश का सोमनाथ कहा जाता है? -- भोजपुर को + +3022. कौन सा महीना मालवा पठारी क्षेत्र का सबसे गर्म महीना है ? -- मई + +3023. राज्य में शुष्क बंदरगाह कहाँ स्थापित किया गया है ? -- पीथमपुर + +3024. + +3025. अंग्रेज़ों के समय. + +3026. अंग्रेज़ी को सह-राजभाषा बनाने का विरोध भी हुआ था। लेकिन समय के साथ वह विरोध धीमा हो गया। हिन्दी को अपना स्थान दिलाने के लिए हिन्दी दिवस मनाने की योजना बनाई गई। इसका उद्देश्य हिन्दी भाषा जानने वालों को अपने भाषा के प्रति सचेत होने और उसके विकास के बारे में सोचें आदि है। क्योंकि राजभाषा के नाम पर हिन्दी केवल नाम मात्र के लिए यह स्थान मिला है। जबकि अंग्रेज़ी को पहले वैकल्पिक रूप से सह-राजभाषा के रूप में स्थान दिया गया और बाद में उसे अनिवार्य कर दिया गया व हिन्दी का कोई जिक्र भी नहीं किया गया। तब से अब तक हिन्दी केवल नाम मात्र के लिए भारत की राजभाषा है। + +3027. हिन्दी दिवस/पुरस्कार: + +3028. कोई भी भारतीय लेखक, जिसने हिन्दी भाषा में विज्ञान या तकनीकी के विषय में 100 या उससे अधिक पृष्ठ में कोई पुस्तक लिखा हो वह इस पुरस्कार हेतु अपनी पुस्तक की जानकारी सरकार को भेज सकता है। जिसमें से श्रेष्ठ 13 लोगों के पुस्तक को इस पुरस्कार के लिए चुना जाएगा। + +3029. हिन्दी दिवस का विरोध मुख्यतः इस कारण से किया जाता है, क्योंकि सरकार केवल एक दिन हिन्दी दिवस के रूप में कुछ कार्यक्रम आयोजित कर हिन्दी को भूल जाती है। पूरे साल हिन्दी भाषा के लिए कुछ काम नहीं होता और न ही हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा मिला। सरकारी कार्यालयों में भी केवल हिन्दी नाम मात्र के लिए होता है। सभी सरकारी कार्यक्रम में भी हिन्दी का उपयोग नहीं होता, और हिन्दी दिवस या हिन्दी के किसी कार्यक्रम में भी कई बार हिन्दी भाषा का उपयोग नहीं किया जाता है। + +3030. हिन्दी दिवस/इतिहास: + +3031. मुख्य कारण. + +3032. देवनागरी लिपि मुख्यतः भारत और नेपाल के भाषाओं को लिखने के लिए उपयोग की जाती है। इसमें हिन्दी, नेपाली, मराठी, संस्कृत, पालि, भोजपुरी, नेवाड़ी, कोंकणी, मैथिली, कश्मीरी आदि का समावेश हैं। यह ध्वनि या उच्चारण पर आधारित है, इस कारण इसमें जो भी हम बोल सकते हैं, उसे आसानी से लिखा जा सकता है। महावीर प्रसाद द्विवेदी ने इस लिपि के लिए कहा था कि देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता स्वयंसिद्ध है। अर्थात इसकी वैज्ञानिक विशेषताओं को सिद्ध करने की कोई आवश्यकता नहीं है। इसे देखते साथ कोई भी जान सकता है कि यह अन्य लिपियों से काफी अलग और उपयोगी है। + +3033. देवनागरी/व्यंजन: + +3034. देवनागरी/इतिहास: + +3035. + +3036. 2.वर्ण के प्रकार -- + +3037. ङ.म-मन,म्यान,छद्म,ब्रह्म + +3038. 6.द्विज का उच्चारण दु+वि+ज होता है!लिखने और पढ़ने दोनों में दुविधा होती है! + +3039. ख.निर्देश लिखे वर्ण का क्रम देखें तो नि+दे+र्+श उच्चारण के अनुसार ' दे ' के पहले ' र ' ध्वनि संकेत लिखा होना चाहिए ! लेकिन ऐसा नहीं है-दे के बाद र का संकेत लगता है! + +3040. www.hindikinailipi.com + +3041. साधन के प्रचार की कमी. + +3042. www.hindikinailipi.com रवीन्द्र नाथ सुलंकी www.hindikinailipi.com + +3043. उच्चारण और विभिन्न तरीकों में यह लिपि पहले ही विकसित है। लेकिन "कम्प्युटर" व इंटरनेट के अधिक उपयोग के साथ इसे भी इनमें अपना स्थान बनाना होगा। लेकिन इसके लिए इसके साधन और समर्थन की आवश्यकता है। देवनागरी लिपि की 10 खामियाँ ! + +3044. ग. क-कर , वक्त , क्वाथ , + +3045. 4.शुद्ध में द पूरा अक्षर लिखा है,लेकिन उच्चारण आधा होता है!ध आधा लिखा होता है,लेकिन उच्चारण पूरा होता है !इसी तरह वृद्ध,श्रद्धा आदि! + +3046. ख.शुरू में ओकार नहीं लगा है,लेकिन उच्चारित होता है! जैसे-द्वार दो+वा+ र,द्वंद्व,ज्वर,त्वरित आदि! + +3047. देवनागरी लिपि से विकसित होडो़ सेंणा लिपि में उपर्युक्त सभी कमियों का समाधान है!इस लिपि से मात्र 45 ध्वनि संकेत चिह्नों से शुद्ध वर्तनी लिखी जा सकती है!सिर्फ हिंदी और मुंडा भाषाएँ ही नहीं,अनेक भारतीय भाषाएँ भी शुद्ध वर्तनी के साथ लिखी जा सकती हैं ! + +3048. वैसे तो धारावाहिक में कई बार नाम देवनागरी लिपि में ही होता है। लेकिन कुछ लोग "फॉन्ट" की कमी या अन्य कारण से इस लिपि के स्थान पर अन्य लिपि का उपयोग कर रहे हैं। धारावाहिक देखने वाला व्यक्ति हर दिन इसे देखता है। यदि इसमें देवनागरी लिपि नहीं होने से उससे उसके पढ़ने में भी देवनागरी लिपि कमजोर होती जाएगी। इससे लोगों को धीरे धीरे देवनागरी लिपि पढ़ने में कठिन लगने लगेगा। इस कारण यदि देवनागरी लिपि का विकास करना है तो हर धारावाहिक के नाम को भी देवनागरी में ही होना चाहिए और हर विज्ञापन जो दिखाया जाता है उसे भी देवनागरी लिपि में ही होना चाहिए। + +3049. तेजी. + +3050. यदि आपको शीघ्र लेखन कला आती है तो भी आप समान गुणवत्ता में देवनागरी लिपि में अपनी बात लिख सकते हो। या ये भी बोल सकते हैं कि देवनागरी लिपि को लिखने के लिए आपको शीघ्र लेखन कला आना चाहिए या आप इस लिपि में लिख कर यह कला सीख सकते हो। + +3051. + +3052. + +3053. 15 वर्षो के बाद. + +3054. विषय-सूची. + +3055. + +3056. 2) इसका विस्तार जम्मू और कश्मीर राज्य के सिवाय संपूर्ण भारत पर है और यह भारत के बाहर भारत के सब नागरिकों