commit 2481f82960a54e0053267f2f5e18c1981357c0e9 Author: Gourab <19bcs118@iiitdwd.ac.in> Date: Fri Jun 18 17:28:52 2021 +0530 Added small hindi corpus for testing diff --git a/.DS_Store b/.DS_Store index f9f8af9..8c40e80 100644 Binary files a/.DS_Store and b/.DS_Store differ diff --git a/apertium-hin.hin.dix b/apertium-hin.hin.dix index 7423892..76d732d 100644 --- a/apertium-hin.hin.dix +++ b/apertium-hin.hin.dix @@ -1357,7 +1357,7 @@ - +

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@@ -1751,6 +1754,7 @@ दि कई + हमारा एवम् diff --git a/texts/.DS_Store b/texts/.DS_Store new file mode 100644 index 0000000..2bf219e Binary files /dev/null and b/texts/.DS_Store differ diff --git a/texts/hin_small.txt b/texts/hin_small.txt new file mode 100644 index 0000000..d1885d2 --- /dev/null +++ b/texts/hin_small.txt @@ -0,0 +1,32094 @@ +1. यह भूगोल विषय का प्रारंभिक परिचय कराने वाली पुस्तक है। + +2. 2- वाद्य : भांति-भांतिके बाजे बजाना + +3. 7- चावल और पुष्पादिसे पूजा के उपहार की रचना करना + +4. 12- जलको बांध देना + +5. 17- फूलों के आभूषणों से श्रृंगार करना + +6. 22- हाथ की फुतीकें काम + +7. 27- पहली + +8. 32- समस्यापूर्ति करना + +9. 37- सोने, चांदी आदि धातु तथा हीरे-पन्ने आदि रत्नों की परीक्षा + +10. 42- भेड़ा, मुर्गा, बटेर आदि को लड़ाने की रीति + +11. 47- म्लेच्छ-काव्यों का समझ लेना + +12. 52- सांकेतिक भाषा बनाना + +13. 57- समस्त छन्दों का ज्ञान + +14. 62- मन्त्रविद्या + +15. अगर आप किसी सन्ख्या को ९ से गुना करना चाहते हैं + +16. 9×11=99=18 + +17. प्रश्नोत्तर रूप में सन् १८५७ का स्वातंत्र्य समर: + +18. आयोजित करना तथा दूसरा विद्यालयीन एवं महाविद्यालयीन विद्यार्थियों को इस विषय पर पुस्तक + +19. जी अपने मध्य नहीं हैं परन्तु उनकी प्रेरणादायी स्मृति हमें सदैव स्फुरित करेगी, ऐसा विश्वास है। + +20. का एक स्वर्णिम पृष्ठ सामने हो तथा वे इसे आज़ादी के दीवानों के अतुलनीय प्रयास की गाथा + +21. साधुवाद देते हैं। + +22. सुधी पाठकों के हाथों में '1857 का स्वातंत्र्य समर: प्रश्नोत्तर रूप में' पुस्तक देते हुए + +23. सार वाक्. + +24. लगभग तीन लाख सैनिकों व नागरिकों ने बलिदान दिया, भयंकर नरसंहार लोमहर्षक + +25. राष्ट्र ने पुन: अपना तेजोमय स्वरूप विश्व के सामने प्रकट किया। 'यत्र द्रुमोनास्ति तत्रऽरंडो + +26. अनेक प्रकार से साहित्यिक-ऐतिहासिक वामाचार किया गया। 1857 के उस महासमर की 150 वीं वर्षगाँठ ने हमें उक्त भ्रम एवं विसंगतियों के + +27. शब्दावली, दृष्टिकोण में कृत्रिम परिवर्तन आया। परन्तु इसका सकारात्मक पक्ष भी था - + +28. थे। 1857 में पहली बार भारत की राष्ट्रीयता के अखिल भारतीय सांस्कृतिक आधार + +29. तोड़ो गुलामी की जंजीरें, बरसाओ अंगारा॥" + +30. तथा उल्लंघन करने वाले को मृत्युदंड या हाथ-पैर काटने की सजा का प्रावधान + +31. स्वाभाविक केन्द्र था इसलिए बहादुर शाह को दिल्ली सम्राट के नाते नेतृत्व दिया + +32. बहादुर शाह जफर ने अपने हाथों से ही राजपुताने के राजाओं को पत्रों में लिखा - + +33. समर्पित कर दूँगा और ऐसा करने में मुझे आनन्द भी प्राप्त होगा।" (मेटकाफ कृत + +34. क्रान्ति केवल उत्तर भारत तक सीमित नहीं थी। गौमुख में उत्स पर जो गंगा की + +35. 800 लोगों में से 250 से अधिक दक्षिण भारत के थे। बंगाल, मुम्बई तथा मद्रास में कोर्ट + +36. दौरान 386 क्रान्तिकारियों को फाँसी दी गई, 2000 लोग मारे गए व अनेक बंदी बनाए गए। + +37. दिया। जगदीशपुर के कुँवर सिंह, रूइया गढ़ी के नरपत सिंह, आउवा के ठाकुर कुशाल सिंह + +38. स्वातंत्र्य युद्घ का वास्तविक कारण क्या था? वीर सावरकर के शब्दों में "राम- + +39. यदि कहीं तुमने इस मर्मस्थल को छेड़ दिया, तो सावधान! तुम सर्वनाश को निमंत्रण दे + +40. छावनियों में उ“ा पद व वेतन पर पादरी रखे हुए थे। बैरकपुर छावनी के कर्नल ह्वीलर जैसे + +41. 'हे हिन्दभूमि के सपूतों, यदि हम संकल्प कर लेंगे तो शत्रु को क्षण भर में नष्ट कर + +42. क्रान्ति युद्घ में भी अभिव्यक्त हुआ था। समर्थ गुरू रामदास ने मराठों को यही आह्वान दिया + +43. साँस तक इसी प्रकार युद्घ करो और स्वरा…य की स्थापना करो) + +44. बारुद के ढेर पर बैठा हुआ था तथा 1857 भारत का स्वाधीनता संग्राम था। वीर सावरकर ने + +45. को नहीं मिला। मृत्यु भय या प्रलोभन से एक भी क्रान्ति सैनिक नहीं टूटा। + +46. रीति-नीति व कुटिलता का सहज अध्ययन हो गया। इसी में से यह विचार पुष्ट हुआ कि + +47. भारत आने के बाद आधुनिक चाणक्य रंगो बापू जी गुप्ते ने चन्द्रगुप्त की तलाश + +48. बातें क्या हैं? - + +49. बैंक में जमा अपने पाँच लाख पौंड दो वर्ष की अवधि में धीरे-धीरे + +50. तीर्थाटन, रक्त-कमल और रोटी, साधुओं-फकीरों का प्रवास, विशेष गूढ़ार्थ वाले + +51. हुई थी। + +52. जैसी अनेकों रियासतों के शासकों का असहयोग, उत्कृष्ट शस्त्रास्त्रों की कमी, कमजोर व वृद्घ + +53. छावनी से अंग्रेज अधिकारियों को सकुशल जाने ही नहीं दिया बल्कि कई जगह तो पहुँचाने + +54. चालीस-चालीस, पचास-पचास आदमी छिपे हुए थे। ये लोग विद्रोही न थे बल्कि नगर + +55. (ञ्जद्धद्ग ष्टद्धड्डश्चद्यड्डद्बठ्ठ'ह्य ठ्ठड्डह्म्ह्म्ड्डह्लद्ब1द्ग शद्घ ह्लद्धद्ग स्द्बद्गद्दद्ग शद्घ ष्ठद्गद्यद्धद्ब, + +56. गवर्नर जनरल वायसरॉय हो गया। 1861 की पील कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार सेना में + +57. व छोटे रा…यों के कारण अखिल भारतीय भाव का लोप हो रहा था। इस समर के कारण नाना + +58. क्रान्तिकारियों के लिए क्रान्ति-गीता बन गई। चाहे संत रामसिंह कूका हो या वासुदेव + +59. की ललक पैदा हुई थी। कई देशों के शासक मजबूरी में, कठोर ब्रिटिश अंकुश के कारण, + +60. आन्दोलन चला रखा था। अफगान कबीले अंग्रेजों के विरुद्घ वहाबियों की मदद कर रहे थे। + +61. दुर्भाग्य से स्वतंत्रता के बाद राजनीतिक स्तर पर दुष्चक्र रचकर पाठ्यपुस्तकों व समाचार + +62. सन् 1857 के बाद तुष्टिकरण का जो खेल अंग्रेजों ने प्रारम्भ किया था, यहाँ के + +63. हंटर कमीशन बनाया गया, जिसने मुसलमानों की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक + +64. निष्कर्ष, दार्शनिक आधार और मान्यताएँ वही हैं जो हंटर कमीशन की थीं। अत: स्वातंत्र्य + +65. चुकाई है। दुर्भाग्य से, प्रेरणा के अभाव में, आज की युवा पीढ़ी भँड-नचैया और डाँड- + +66. वर्ष में दृष्टिपात करते समय उपरोक्त सभी बिन्दुओं को हमें याद रखना चाहिए। इस महासमर + +67. उत्पाद। अभिकारक इस पुस्तक के अध्येता हैं, पुस्तक सकारात्मक समांगी उत्प्रेरक है और + +68. वस्तुनिष्ठ है और सामान्य व्यवहार के विपरीत प्रश्न उससे कई गुना बड़ा है। किन्तु यह + +69. "काल रात्रि व्यतीत हुई अब + +70. प्रश्नोत्तरी १ से १००. + +71.
उ. स्वातंत्र्य वीर सावरकर। + +72.
उ. प्रकाशन पूर्व ही जब्ती के आदेश। + +73.
उ. मराठी। + +74.
उ. लंदन। + +75. 10. 'तलवार' नामक पत्र का प्रकाशन किस संगठन द्वारा होता था? + +76.
उ. ग्रन्थ लेखन का उद्देश्य बताना। + +77. सर्वप्रथम कहाँ से प्रकाशित हुआ? + +78. 16. प्रतिबंध काल में गुप्त रूप से '1857 का भारतीय स्वातंत्र्य समर' पुस्तकों + +79. बैंक ऑफ पेरिस' में किसने सुरक्षित रखी? + +80. 19. '1857 का भारतीय स्वातंत्र्य समर' पुस्तक से विधिवत प्रतिबंध किस सन् + +81.
उ. सरदार भगतसिंह ने। + +82. की क्या विशेषता थी? + +83. 24. '1857 का भारतीय स्वातंत्र्य समर' ग्रन्थ का प्रारम्भ जिन सन्त के पद्य से + +84.
उ. मैजिनी। + +85. 27. वस्तुत: 1857 के स्वातंत्र्य संग्राम को प्रदीप्त करने वाले दिव्य तत्व क्या थे? + +86.
उ. फिक्शन एक्सपोज्…ड। + +87. 30. 'जिस दिन अंग्रेजों ने इस हिन्दू भूमि पर अपनी दासता का पाश लादने के + +88. 31. अंग्रेज इतिहासकारों ने 'साम्रा…य निर्माता' की संज्ञा किसे दी है? + +89. 33. महाराजा रणजीत सिंह के नाबालिग पुत्र का नाम बताइये जिसे अंग्रेजों ने + +90. अंग्रेज दरबारी के रूप में हुआ।' अंग्रेजों की इस कुटिल नीति को उजागर + +91. रा…य को हड़प लिया? + +92. 37. 1826 में 'सतत् मैत्री' की संधि ईस्ट इंडिया कम्पनीऔर नागपुर के जिस + +93.
उ. सन् 1853 ई. में। + +94. 41. नाना साहब पेशवा के पिता का नाम बताइये। + +95. को ग्रहण किया? + +96.
उ. मोरोपन्त तांबे। + +97. 48. लक्ष्मी बाई का माता-पिता ने क्या नाम रखा था? + +98.
उ. महाराजा गंगाधर से। + +99. 52. नाना साहब ने कम्पनी सरकार के विरुद्घ लंदन में अपना पक्ष रखने के + +100. 54. नाना साहब को प्रतिदिन अंग्रेजी समाचार पत्र पढ़कर सुनाने वाले अंग्रेज + +101.
उ. दामोदर राव को। + +102. अंग्रेजों ने अवध के नवाब का कौनसा क्षेत्र बलात् हड़प लिया? + +103.
उ. अपनी माँ को। + +104. था? + +105.
उ. बंगाली सेना के कमांडर का। + +106. 64. कारतूसों में किन जानवरों की चर्बी का मिश्रण था? + +107. 66. कारतूसों पर चर्बी के उल्लेख के सरकारी प्रतिवेदन की तिथि बताइये। + +108. 68. भारत में चर्बी लगे कारतूस का निर्माण कारखाना कहाँ लगाया गया? + +109. लौटते हुए अजीमुल्ला खाँ किन दो देशों में गए थे? + +110. 72. काली नदी पर हुए युद्घ में पकड़े गए एक भारतीय सैनिक से पूछा - + +111. शाह जफर ने कौनसा पंथ स्वीकार करने की घोषणा की थी? + +112. 75. 'राजमहलों के द्वारों के समीप बैठकर मुगल तथा अन्य लोग स्वातंत्र्य युद्घ + +113. स्थानों को चुना? + +114. 78. गूढ़ संदेश प्रसारण तथा शौर्य जगाने के लिए गायकों ने सार्वजनिक स्थानों + +115. की थीं? + +116. चिपकाने की तिथि बताइये। + +117.
उ. अवध की 48 वीं रेजीमेंट को। + +118.
उ. रक्त कमल और रोटी। + +119. स्वातंत्र्य समर' की क्या विलक्षणता है? + +120.
उ. मंगल पांडे। + +121.
उ. एक भी सैनिक आगे नहीं आया। + +122.
उ. लैफ्टिनेन्ट बॉब्ह। + +123.
उ. स्वयं को गोली मार ली। + +124. 95. 1857 की क्रान्ति का प्रथम विस्फोट करने वाले क्रान्तिकारी का नाम + +125. 97. मंगल पांडे से अंग्रेज इतने भयभीत थे कि स्वतंत्रता समर के प्रत्येक + +126. तरीका सर्वप्रथम किस छावनी में अपनाया गया? + +127.
उ. अंग्रेजों के प्रधान सेनापति एन्सन ने। + +128. 101. 3 मई 1857 को चार सिपाही अंग्रेज अधिकारी के तम्बू में घुसे और बोले- + +129. 102. 6 मई 1857 को मेरठ छावनी की घुड़सवार टुकड़ी के 90 सैनिकों में से + +130. 104. जिन सैनिकों ने कारतूस छूने से मना किया, तोपखाने के पहरे में उनके + +131. 105. 'तुम्हारे भाई कारागारों में हैं और तुम यहाँ मक्िखयाँ मारते घूम रहे हो। + +132.
उ. 10 मई को। + +133. 109. मेरठ छावनी के क्रान्तिकारी सिपाहियों ने सबसे पहला काम क्या किया? + +134. 111. मेरठ से दिल्ली की ओर प्रस्थान करते हुए क्रान्ति सैनिकों का नारा क्या + +135.
उ. मेरठ से दिल्ली। + +136. प्रवेश किया था? + +137. 116. दिल्ली के शस्त्रागार का अधिकारी कौन था जिसने क्रान्तिकारियों के हाथ + +138. जाँच-समिति की यह स्वीकारोक्ति भारतीय संस्कृति की किस विशेषता को + +139. बताइये। + +140. 120. अंग्रेजों के सौभाग्य से किस देश से उनका युद्घ समाप्त होने के कारण वहाँ + +141. लिए प्रस्थान कर रही सेना को भारत में ही रोक लिया? + +142.
उ. लॉर्ड कैनिंग ने। + +143. बताइये जिनके आचरण से क्रान्ति की सफलता या असफलता तय होने + +144.
उ. इनके सहयोग बिना दिल्ली पर आक्रमणकारी अंग्रेज सेना का पृष्ठ भाग + +145. 127. अंग्रेजों के आग्रह पर पानीपत की रक्षा का भार किस देशी रा…य ने लिया? + +146.
उ. सैनिक न्यायालय। + +147. 130. पाँच तोपें अंग्रेजों के हाथ पडऩे से बचाने के लिए ग्यारहवीं पलटन के एक + +148. पलटन ने की थी? + +149. 133. दिल्ली के समीप अंग्रेज सेना व क्रान्तिकारियों के बीच प्रथम युद्घ किस + +150.
उ. कर्नल चेस्टर। + +151. 136. 'लोग शान्ति के युग को सदा ही Ÿोयस्कर मानते हैं। उनके कृषि कार्य में + +152. 137. 'साहब वे सब फिसाद की भावनाओं से भरे हुए हैं।' अंग्रेजों के एक + +153.
उ. सेना का निरस्त्रीकरण। + +154. 140. 21 अक्टूबर 1857 ई. को किस अंग्रेज अधिकारी ने अपने पत्र में यह + +155. अंग्रेजों ने क्या अफवाह उड़ाई? + +156. 143. सैनिकों के हथियार रखवाने से क्षुब्ध अफसरों ने उनके पक्ष में अपने + +157.
उ. कर्नल स्पाटिस्वुड। + +158. मरना पसन्द किया, 55 वीं पलटन के उन सैनिकों की संख्या बताइये। + +159. शंखनाद किया? + +160. 150. 'अजनाला हत्याकांड' का हत्यारा कौन था? + +161. में कदापि सहयोग नहीं देगी।' किस पलटन के सम्बन्ध में अंग्रेजों की यह + +162. की आग सुलगा दी; यह पलटल कौनसी थी? + +163. महिला का वेश बनाकर भाग गया। + +164. 157. रुहेलखंड की तात्कालिक राजधानी बरेली में किस तिथि को क्रान्ति + +165. 159. 'भाग्य की विडम्बना देखिए कि वारेन हैस्टिंग्ज ने जिस चेतसिंह पर अपने + +166. 160. 4 जून 1857 को किस स्थान पर क्रान्ति हुई? + +167. उल्लेख है? + +168. ... दंिडत अपराधी को उसके गले में फन्दा डालकर एक गाड़ी पर + +169. 164. सम्पूर्ण हिन्दुस्थान में जितने अंग्रेजों की हत्या हुई उनसे अधिक संख्या में + +170. तक उन शवों को एकत्र करने के लिए चक्कर लगाती थीं, जो राजमार्गों और + +171. करेगा।' अपनी क्रूरता को इंग्लैंड हित में क्षम्य बताने वाले इस अंग्रेज + +172. 168. तात्या टोपे का बचपन का नाम बताइये। + +173.
उ. श्री पांडुरंग। + +174.
उ. अजीजन बाई। + +175.
उ. 4 जून 1857 रात्रि को। + +176. दिन तक घ्ोराबन्दी के साथ युद्घ चला? + +177. गया था, उनके नाम बताइये। + +178. 179. क्रान्ति के समय लूटपाट व अराजकता पर नियंत्रण के लिए नाना साहब ने + +179. 181. कानपुर की गढ़ी के समर्पण करने वाले अंग्रेजों को सकुशल प्रयाग भेजने + +180.
उ. सती चौरा घाट। + +181. 184. कानपुर में 7 जून को एक हजार अंग्रेज थे। 30 जून तक उनमें से कितने + +182.
उ. 1 जुलाई 1857 को। + +183. घटना की तिथि बताइये। + +184. 189. लखनऊ स्थित अंग्रेजों की सुरक्षा के लिए सर हेनरी लारेन्स ने किन दो + +185. 191. फैजाबाद के सिपाहियों ने दलीपसिंह के नेतृत्व में कारागृह पर आक्रमण + +186. की अनुमति दी थी? + +187. 194. अवध के जिन नरेशों ने अपनी शरण में आने वाले गोरों की प्राणरक्षा मात्र + +188. सिद्घ हो जायेंगे।' गोरों को शरण देने वालों से यह आग्रह किसने किया? + +189. 197. हेनरी लारेन्स के नेतृत्व में लखनऊ से चली सेना पर क्रांतिकारियों के + +190. समय आ जाए तो तुम्हारे विरोध को सहन करके भी हम अपने इस पावन + +191. यह बात कही? + +192.
उ. 14 अगस्त 1857 को। + +193.
उ. हत्याकांडों की ये घटनाऐं इतनी कम क्यों हुई। + +194. बताइये। + +195. 204. 1857 में किसी को गाली देनी होती तो क्या कहते थे? + +196.
उ. बहादुरशाह जफर। + +197. 207. दिल्ली की क्रांतिकारी सेना का प्रधान सेनापति किसे नियुक्त किया गया? + +198. 209. जब अंग्रेजों ने फतेहपुर में आग लगा दी तो उसके प्रतिशोध में किस + +199. 211. कानपुर पर आक्रमणकारी अंग्रेज सेना का प्रमुख कौन था? + +200. पूर्व उनकी सभी धार्मिक भावनाओं को पददलित करने के लिए ऐसा कर + +201. चतुर फिरंगी ने कानपुर में 'छूत-अछूत' का नया विवाद खड़ा कर दिया। + +202.
उ. अछूत सेना। + +203. पुस्तक में लिखा है, उसका नाम बताइये। + +204. यह बात किसने कही? + +205. विद्यमान था। इस त‰य को सिद्घ करने वाले अंग्रेज का नाम बताइये। + +206.
उ. गुरूद्वारा पटना साहिब। + +207.
उ. 3 जुलाई 1857 को। + +208. दंड के समय यह साहसिक घोषणा करने वाले वीर का नाम बताइये। + +209.
उ. 80 वर्ष। + +210.
उ. बहादुर शाह जफर। + +211. होगा।' दिल्ली सम्राट द्वारा विभिन्न रा…यों को लिखे पत्रों का उद्घरण 'टू + +212. साथ न लड़ सके और हम केन्द्रीय मोर्चा हार गए। यह केन्द्रीय मोर्चा कौनसा + +213. 232. अंग्रेजी सेना सर्वप्रथम किस मार्ग से दिल्ली में प्रविष्ट हुई? + +214. को बलिदान का बकरा बनाकर चढ़ा देने की अपेक्षा तो पराजय और + +215.
उ. 66 अधिकारी और 1104 सैनिक। + +216. जाएँगे तो अन्तिम विजय हमारी ही होगी।' बहादुर शाह जफर को यह राय + +217. छुप गया। यह मकबरा किसका था? + +218. 239. 'शाहजादे तो अभी भी मकबरे में छुपे बैठे हैं।' यह सूचना देने वाले कौन + +219. 241. बहादुर शाह जफर के पुत्रों को गोली मारने वाले अंग्रेज का नाम बताइये। + +220.
उ. लाइफ ऑफ लॉरेन्स। + +221.
उ. 5-6 हजार। + +222.
उ. बर्जिस कादर। + +223. सम्पूर्ण भार उसकी माँ पर था। उसका नाम बताइये। + +224. 250. अचूक निशानेबाज लखनऊ के हब्शी हिंजड़े से आतंकित अंग्रेजों ने + +225.
उ. अंगद। + +226. 253. 'उस दिन हेवलॉक की सेना की जब गिनती हुई तो उसे विदित हुआ कि + +227. स्वातंत्र्य संग्राम के रूप में ही मान्यता देनी पड़ेगी।' यह लिखने वाले + +228.
उ. आउट्रम को। + +229. सितम्बर को यह घोषणा किस स्थान पर की थी? + +230. 258. लखनऊ की रेजीडेंसी पर कितने दिन अहर्निश संग्राम चला? + +231. रेजीडेंसी को पुन: घ्ोर लिया। इस घटना की तिथि बताइये। + +232. 262. 13 अगस्त 1857 को अंग्रेजों का नया सेनापति कलकत्ता पहुँचा। उसका + +233. बताइये। + +234. 265. लखनऊ रेजीडेंसी में आत्मरक्षा की क्या व्यवस्था है, यह जानने के लिए + +235.
उ. 14 नवम्बर 1857 + +236. पड़ा? + +237. 270. ग्वालियर के सैनिकों को साथ लेकर तात्या टोपे कालपी किस तिथि को + +238. ब्रिटिश युद्घ सिद्घान्त के अनुसार एक अंग्रेज सेनापति ने तात्या टोपे पर + +239. कानपुर में यह घटना किस तिथि को घटित हुई? + +240. 274. पूरा नगर खाली था किन्तु एक भवन से होती गोलीबारी ने पूरी अंग्रेज सेना + +241. सुरंग से उड़ाने वाले इंजीनियर्स के नाम क्या थे? + +242. 277. घाघरा नदी के पार उस स्थान का नाम बताइये जहाँ केवल 34 क्रान्तिकारियों + +243. किया जो चंदा, वैंजा और गोंड के राजाओं ने ऐसा क्यों किया? यह कथन + +244. बैठे हैं, अब तो मुझे सर्वत्र ढिलाई ही प्रतीत हो रही है, फिर भी कर्त्तव्यपालन + +245.
उ. विदेही हनुमान। + +246. अंगेजों ने विद्रोही किसे माना? + +247.
उ. अंग्रेज स्त्रियों की। + +248. 285. 'प्रतीत होता है कि यह सैनिकों का साधारण सा विद्रोह नहीं, यह विŒलव + +249. 286. 'ऐसा कहीं भी हमें अनुभव नहीं हो पाता कि हम शत्रुओं का समूलो‘छेद + +250.
उ. वृक युद्घ पद्घति (छापामार) + +251. के लिए कुँवर सिंह ने एक टुकड़ी किस नदी के पुल पर मोर्चेबंदी के लिए + +252. इस योजना की मॅलेसन ने क्या कहकर प्रशंसा की है? + +253.
उ. जगदीशपुर के जंगल में। + +254. होने की योजना क्रियान्िवत की? + +255.
उ. डगलस। + +256. किया? + +257. 298. 23 अप्रेल 1858 को चार सौ गोरे सैनिक व दो तोपें लेकर लेग्रांद ने + +258. कागजातों के आधार पर लोगों के वंश, वारिसदारी के अधिकार तथा लोगों + +259. तिथि कौनसी है? + +260. भेदकर सेना सहित निकल गया। उस वीर का नाम बताइये। + +261.
उ. 150 ललनाओं ने। + +262. के इर्द-गिर्द मंडराते रहो, फिरंगी को चैन मत लेने दो।' रूहेलखंड के + +263. 304. लखनऊ के निकट रूइया के जमींदार का नाम बताइये जिसने वॉलपोल + +264. अंग्रेजी राष्ट्र को इतना धक्का लगा कि जो सैंकड़ों सैनिकों के मारे जाने से भी + +265.
उ. पोवेन राजा जगन्नाथ का भाई। + +266. काला पानी की सजा हुई? + +267. 310. 'साउथ इंडिया इन 1857 : वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस' के लेखक का नाम + +268.
उ. 1954, 1213 तथा 1044 अभियोग। + +269. सतारा में विŒलव के उठने की आवाज मराठा सरदार से नहीं उठी बल्कि + +270. की सेना लाने की योजना की, उसका नाम क्या है? + +271.
उ. मानसिंह परदेशी। + +272. इंग्लैंड गए थे? + +273. 319. रंगो बापू जी गुप्ते ने अपने दो भतीजों के नेतृत्व में 500 मावलों की एक + +274.
उ. 11 जून 1857 को। + +275. फिर कभी पकड़े नहीं जा सके। उनके जेल से पलायन की तिथि बताइये। + +276. 324. वह तिथि बताइये जब हैदराबाद की जनता ने स्वस्फूर्त ब्रिटिश प्रतिनिधि + +277.
उ. नारखेड़ के रत्नाकर पागे और हैदराबाद के सोनाजी पंत। + +278. किया था। इस पत्र के लेखक का नाम क्या था? + +279. लोगों ने 1845-1848 तक अंग्रेजों के विरुद्घ युद्घ किया? + +280. 331. जुलाई 1857 में विजयनगरम्, अलीपुर, बंगलौर आदि के बाजारों में विद्रोह + +281.
उ. गोलकुंडा। + +282. जो अठारहवीं सदी के अन्त तक अंग्रेजों से लड़ता रहा। + +283.
उ. 16 अक्टूबर 1799 को। + +284.
उ. तिरुनेवल्ली। + +285.
उ. अन्ना गिरि और कृष्णा गिरि। + +286. 341. 26 जनवरी 1852 को दीपू जी रांो के नेतृत्व में स्वतंत्रता आन्दोलन कहाँ + +287. के निर्देश का क्रियान्वयन वापस लिया गया। यह संधि किस तिथि को हुई? + +288. 344. दीपू जी रांो की गिरफ्तारी के बाद नवम्बर 1858 में उन्हें कहाँ निष्कासित + +289. 346. पुंो में 1857 के किस माह में अंग्रेजों के विरुद्घ एक विŒलव का प्रयत्न + +290.
उ. सार्वजनिक वाचनालय। + +291. आयेंगे और दशहरा के दिन पेशवा सरकार की गद्दी सम्भालेंगे।' अगस्त + +292.
उ. ज्ञान प्रकाश पुंो के अंक में। + +293. बात क्या थी? + +294.
उ. नग्गा रामचन्द्र मारवाही। + +295. उसका नाम क्या था? + +296. 357. 4 नवम्बर 1857 को बीजापुर के जिस व्यक्ति के घर से सत्तरह मन बारुद + +297.
उ. शेख अली। + +298. विद्रोह भड़काने के आरोप में पकड़ा गया था? + +299.
उ. दिसम्बर 1857 की। + +300. नरसिम्हादास, दामोदरदास तथा निर्गुणदास मूलत: कहाँ के रहने वाले थे? + +301. 365. 1 अगस्त 1857 को एक विशाल भीड़ अय्यम प्रमलाचारी की घोषणा पर + +302. एक मठम् के स्वामी ब्रिटिश विरोधी संगठन के लिए उपदेश देते थे। + +303. 368. सितम्बर 1857 में ब्रिटिश सरकार के विरुद्घ भड़काने के आरोप में तेलीचरी + +304.
उ. मालाबार से। + +305. 371. राजामुन्दरी जिले के करतूर निवासी उस व्यक्ति का नाम क्या था जो + +306. कर दो।' यह घटना किस स्थान की है? + +307.
उ. मद्रास नेटिव एसोसिएशन। + +308. निकट लगभग 600 क्रान्तिकारी एकत्रित हुए। उस तालाब का नाम क्या था? + +309. 377. 2 फरवरी 1858 की रात्रि को फोंद सावन्त के पुत्र राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में + +310. का नेतृत्व कर रहे थे। तीनों के नाम बताइये। + +311. 380. कोल्हापुर की 27 वीं पलटन में 31 जुलाई 1857 से सम्बन्िधत कितने + +312. दिया और धैर्य के साथ मृत्यु का सामना किया'? + +313.
उ. रत्नागिरि के मजिस्टे्रट ने। + +314.
उ. रामाचार्य पुराणिक का। + +315. 385. नाना साहब पेशवा पुन: शीघ्र आयेंगे, 1857 में इस विश्वास को बनाए + +316. जन क्रान्ति के प्रमुख प्रेरक कौन थे? + +317.
उ. 15 मई 1869 को। + +318. हैं, इसे आप हृदयस्थ कर लें।' नाना साहब की प्रेरणा से 13 सितम्बर 1857 + +319. नाम क्या था? + +320. 393. 'ऐसा आभास होता है कि तीन महीनों से भी अधिक समय से पलटन के + +321. देशी व्यक्ित मुम्बई के किसी अज्ञात भाग में, सेना निवास के निकट विद्रोही + +322. बैठकें होती थीं, उसका नाम क्या था? + +323. 397. मुम्बई में अक्टूबर में तय क्रान्ति योजना का सुराग अंग्रेजों को लग गया। + +324. ऐसŒलेनेड मैदान में तोप से उड़ाया था। इस मैदान का वर्तमान नाम क्या है? + +325. नाम बताइये। + +326. 401. कर्नाटक में ब्रिटिश सरकार के निशस्त्रीकरण कानून का सशस्त्र विरोध + +327.
उ. बाबाजी निम्बालकर। + +328. वाला वीर भीमंणा किस सुरक्षा चौकी पर तैनात था? + +329.
उ. मंडगै भीमंणा। + +330. अपने पत्र में यह बात लिखने वाले जिला मजिस्टे्रट का नाम क्या था? + +331. क्या था? + +332. 411. महाराष्ट्र का कौनसा वर्तमान जिला खानदेश कहलाता था? + +333. नेतृत्वकर्ता का नाम क्या था? + +334. 415. नासिक के निकट किस जगह स्थित ब्रिटिश कचहरी और खजाने पर 5 + +335.
उ. वासुदेव भगवन्त जोगलेकर। + +336. स्थित है? + +337.
उ. शोरापुर के। + +338. - क्या राजा होकर मैं ऐसा करूँगा? जब वे मुझे तोप से बाँध देंगे तो भी मैं + +339.
उ. मीडोल टेलर। + +340. 423. धारवाड़ जिले के नरगुन्द रा…य के प्रमुख का नाम बताइये। + +341. 425. नरगुन्द के शासक ने स्वतंत्रता संग्राम में सहयोग के लिए किस रा…य के + +342. छिप गया? + +343. 428. नरगुन्द के शासक को दक्षिणी मराठा शासकों में सबसे बुद्घिमान समझा + +344.
उ. 1-2 जून 1858 के आक्रमण में। + +345. 431. भीमराव मुंडर्गी ने 1857 में उत्तरी कर्नाटक की किन दो नदियों के बीच + +346. गया? + +347. 434. भीमराव मुंडर्गी ने ब्रिटिश रक्षा दल पर आक्रमण कर जब्त युद्घ सामग्री + +348. 436. भीमराव मुंडर्गी द्वारा जीता गया कोŒपल का किला वर्तमान में कहाँ स्थित + +349. कार्यक्रम के बाद टहलते हुए प्रतिनिधि पर एक पठान ने कारबाइन से + +350.
उ. बालाजी गोसावी। + +351. आए नाना साहब पेशवा के भतीजे का क्या नाम था? + +352.
उ. बेगम बाजार कांड। + +353. भारत के लिए 1858 में जारी घोषणा पत्र की कितनी प्रतियाँ मिली? + +354. 445. 'विश्वसनीय सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि पुंो के समीप तीन संस्थानों की + +355. 446. '... मुन्नी बाई ने नित्य प्रति की पूजा के लिए धूप बत्ती जलाकर देवी और + +356. जीवित व्यक्ति का नाम बताइये जिसे 1907 में मुक्त किया गया था। + +357. 449. 1857 पर सबसे पहली पुस्तक जॉन केयी ने लिखी। उसका नाम क्या है? + +358. 451. जॉन केयी के ही कार्य को आगे बढ़ाने वाले जॉर्ज मालेसन ने पुस्तक के + +359.
उ. कार्ल माक्र्स ने। + +360. यह कथन जिस लंदनवासी प्रसिद्घ लेखक का है, उनका नाम लिखिये। + +361. 456. '1857 के स्वाधीनता संग्राम का हिन्दी साहित्य पर प्रभाव' इस शोध ग्रन्थ + +362.
उ. 1813 ई. में। + +363. अधिकार नहीं होगा। पर इसके लागू न होने का क्या प्रावधान था? + +364.
उ. 84 प्रतिशत। + +365. थे। उनका नाम क्या है? + +366. 465. 1857 के स्वातंत्र्य समर के समय अवध प्रान्त के अमीर अली और बाबा + +367.
उ. 18 मार्च 1858 के दिन। + +368. चित्रकार उनसे जेल में मिले और उनका चित्र बनाया था। उस चित्रकार का + +369.
उ. पयामे आजादी। + +370. निधन होने से सहायता नहीं मिली। रूस के उस जार का नाम क्या है? + +371. कर रहे थे।' इस गीत के लेखक कौन थे? + +372. 474. जानिमी कावा किसे कहते हैं? + +373. करते रहे? + +374. 478. मानसिंह की चतुराई से अंग्रेजों ने किसे तात्या टोपे समझकर बन्दी बना + +375. बताइये। + +376. 481. महारानी लक्ष्मीबाई की सेना की महिला तोपची का नाम बताइये। + +377.
उ. स्वर्ण रेखा नाला। + +378.
उ. मुंदर। + +379. 487. महारानी लक्ष्मीबाई की बलिदान के समय आयु कितने वर्ष थी? + +380. 489. उस व्यक्ति का नाम बताइये जिसे वीर सावरकर ने स्वातंत्र्य समर के समय + +381.
उ. खान बहादुर खान। + +382. 493. बहादुर शाह जफर की मृत्यु कब हुई? + +383.
उ. मेजर हडसन। + +384. को खैर नामक स्थान पर परास्त किया। + +385. में प्रवेश नहीं करने दिया उस वीर माता का नाम बताइये। + +386.
उ. 28 मई 1857 को। + +387.
उ. 15 वीं नेटिव इन्फेन्ट्री। + +388.
उ. 3 जून 1857 को। + +389.
उ. शाहपुरा। + +390. अंग्रेज मेजर को घ्ोरकर मार दिया, उसका नाम बताइये। + +391. 510. 17 सितम्बर 1860 को कोटा एजेंसी के बंगले के पास उसी स्थान पर दो + +392.
उ. सवा लाख रुपया। + +393. सेना ने क्रान्तिकारियों के विरुद्घ लडऩे से मना कर दिया। इस सेना के प्रमुख + +394.
उ. हवलदार गोजन सिंह। + +395.
उ. आबू पर्वत (माउंट आबू) + +396.
उ. मेहराब सिंह को। + +397. 520. अंग्रेजों के विरुद्घ आउवा में एकत्रित फौजों में लगभग कितने ठिकानों की + +398. प्रमुख का नाम क्या था? + +399. 523. 8 सितम्बर 1857 को स्वरा…य के सैनिकों ने जोधपुर की सेना पर आक्रमण + +400.
उ. अनाड़ सिंह मारा गया, हीथकोट भाग गया। + +401. भी था। क्रान्तिकारियों ने उसका सिर काटकर शव आउवा किले के दरवाजे + +402. रवाना कर दिया। इस फौज की कमान किसे सौंपी गई? + +403. 529. आउवा की पराजय के बाद कर्नल होम्स किले की एक प्रसिद्घ देवी + +404. 531. मासिक 'चाँद' का नवम्बर 1928 के अंक का नाम बताइये जिसे प्रकाशन + +405.
उ. सन् 57 के कुछ संस्मरण। + +406.
उ. मोंटगोमरी मार्टिन। + +407. 535. गढ़ मंडला के पिता-पुत्र कवियों को क्रान्तिकारी रचनाओं के कारण तोप + +408.
उ. डासना (गाजियाबाद)। + +409. ने अपनी क्रूरता दिखाते हुए सेठजी को एक गड्ढे में कमर तक गाड़कर + +410.
उ. बीकानेर (राजस्थान)। + +411. किस अंग्रेज अधिकारी से कही - 'तुम हमारे देश के दुश्मन हो और दुश्मन + +412.
उ. असम। + +413. की ओर से लड़ा। + +414. 546. स्वामी दयानन्द सरस्वती ने अपने स्वरचित जीवन चरित्र में 1857-1859 + +415. दयानन्द सरस्वती ने 'सत्यार्थ प्रकाश' के किस समुल्लास में किया है? + +416. हरिद्वार में स्वामी दयानन्द सरस्वती से यह बात किसने कही? + +417.
उ. सार्वदेशिक। + +418. का स्मरण कराया तो यह किसने कहा - 'अंग्रेजों ने स्वयं ने अपनी शपथ का + +419. मेवाड़ के डूँगला गाँव के एक किसान ने शरण प्रदान की। उस किसान का + +420. लेखक का नाम बताइये। + +421. 555. मोहम्मद मुजीब के उस नाटक का नाम बताइये जिसमें 1857 की क्रान्ति + +422. गोले। + +423. 559. 'ठाकुर कुशाल सिंह के सहयोगी समरथ सिंह द्वारा मारवाड़ व मेवाड़ के + +424. सामन्तों को अंग्रेजों के विरुद्घ संगठित करने का प्रयत्न हो रहा था।' कार्तिक + +425. आश्रय देने से मना करने वाले ठाकुर कौन थे? + +426. 563. 1857 में अजमेर के खजाने की सुरक्षा के लिए जोधपुर से भेजी गई सेना + +427.
उ. सैनिकों ने भूतपूर्व ए.जी.जी. सदरलैंड की प्रतिमा पर पत्थर फैंके थे। + +428. 566. मरवाड़ की सेना की क्रान्तिकारियों से सहानुभूति थी अत: युद्घ में उनके + +429.
उ. 1861 ई. तक। + +430. 569. जोधपुर के बारुद भंडार में विस्फोट किस तिथि को हुआ था? + +431. होता है कि विस्फोट के बाद चारमन का पत्थर कितनी दूर पहुँचा। + +432.
उ. सूर सागर। + +433. संदर्भ ग्रंथ. + +434. समिति, आगरा। + +435. 5. आधुनिक राजस्थान का वृहत इतिहास : भाग-2। + +436. नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया, संस्करण 2006। + +437. 11. अट्ठारह सौ सत्तावन और स्वामी दयानन्द : वासुदेव शर्मा, प्रथम + +438. परिचय. + +439. नैषधं हेमकूटात् तु हरिवर्षं तदुच्यते। हरिवर्षात् परञ्चैव मेरोश्च तदिलावृतम्॥
+ +440. (३) हेमकूट के बाद नैषध है, जिसे हरिवर्ष कहते हैं, + +441. इस प्रकार जम्बूद्वीप के अन्तर्गत वायुपुराण के अनुसार सात देश हुये। सातों देशों में सबसे उत्तर कुरु देश हुआ। यह ’कुरु’ कहाँ है सो ब्रह्माण्डपुराण के निम्न-लिखित श्लोक से स्पष्ट हो जाता है- + +442. न तु तत्र सूर्यगतिः न जीर्य्यन्ति च मानवाः। चन्द्रमाश्च सनक्षत्रो ज्योतिर्भूत इवावृतः॥

+ +443. अर्जुन की विजय-यात्रा और कुरु या उत्तरकुरु. + +444. (४) इससे उत्तर जाने पर उन्हें हरिवर्ष मिला। यहाँ महाकाय, महावीर्य द्वारपालों ने इनकी गति अनुनय-विनय करके रोक दी। उन लोगों ने कहा कि यहाँ मनुष्यों की गति नहीं, यहाँ उत्तर-कुरु के लोग रहते हैं; यहाँ कुछ जीतने योग्य चीज़ भी नहीं। यहाँ प्रवेश करने पर भी, हे पार्थ, तुम्हें कुछ भी नज़र नहीं आयेगा और न मनुष्य तन से यहाँ कुछ दर्शनीय ही है। उन लोगों ने पुनः पार्थ की मनोवाञ्छा की जांच की। पार्थ ने कहा कि मैं केवल धर्मराज युधिष्ठिर के पार्थिवत्व का स्वीकार चाहता हूँ। इसलिये युधिष्ठिर के लिये कर-पण्य की आवश्यकता है। यह सुनकर उन लोगों ने दिव्य-दिव्य वस्त्र, क्षौमाजिन तथा दिव्य आभरण दिये।

+ +445. तत्र तित्तिरकिल्मिषान् मण्डूकाख्यान् हयोत्तमान्। लेभे स करमत्यन्तं गन्धर्वनगरात्तदा॥
+ +446. प्रविष्टोऽपि हि कौन्तेय नेह द्रक्ष्यसि किञ्चन । नहि मानुषदेहेन शक्यमत्राभिवीक्षितुम्॥
+ +447. कालिदास के बतलाये हुये मेघ की राह में मिलने वाले प्रायः सभी नद-नदी, गिरि और नगर का पता आज चल गया है। कनखल यानी हरिद्वार तक या कैलाश तक तो हम मान जाते हैं, परन्तु इसके उत्तर गन्धर्वों की नगरी अलकापुरी को हम कोरी कल्पना समझते हैं। कम-से-कम हम इतना मानने को तैयार नहीं होते कि यह भी भौगोलिक सत्य है। अर्जुन श्वेत-पर्वत यानी हिमालय पार कर उत्तर की ओर बढ़े; परन्तु इसे हम कवि-कल्पना से बढ़कर और कुछ मानने के लिये अभी तैयार नहीं। यह मेघ की राह तो और भी कल्पना है। परन्तु इसके पूर्व हम यह दिखलाना चाहेंगे कि बौद्ध लोग किस प्रकार हिमालय के उत्तर-प्रदेशों से अपना सम्बन्ध रखते हैं। बिहार-नेशनल-कालेज के प्रिन्सिपल श्रीयुत् देवेन्द्रनाथ सेन् एम्.ए., आई.ई.एस्. ने अपने Trans-Himalayan-Reminiscences in Pali-literature नामक निबन्ध में यह बहुत ही अच्छी तरह से दिखलाया है कि बौद्धों का प्रभाव हिमालयोत्तर-प्रदेश में ही इतना अधिक क्यों पड़ा तथा बौद्ध लोग मानसरोवर के निकटवर्ती प्रदेशों के ही इतने प्रेमी क्यों हुये । उन्होंने बौद्ध जातकों के आधार पर यह सिद्ध किया है कि भारतीय आर्यों का प्रेम हिमालयोत्तर-प्रदेश से कुछ नैसर्गिक-सा था। हम उनके निकाले हुये निष्कर्ष को अस्वीकार नहीं कर सकते। + +448. महाभारत के बाद बौद्धकालीन इतिहास का अदर्शन. + +449. इसके अनन्तर फिर भी हम निम्न-लिखित वाक्य मिलता है-

+ +450. मानसरोवर या अनोतत्तमहासर. + +451. स्पष्ट है कि उत्तर-कुरु हिमालय के उत्तर में है और ऐतरेय ब्राह्मण के समय में यह एक ऐतिहासिक प्रदेश रहा है, जहाँ से और कुरुपाञ्चाल से प्रत्यक्ष सम्बन्ध था। सम्भवतः कुरुपाञ्चाल-निवासी उत्तर-कुरु के ही वंशधर और शाखा हैं। इस उत्तर-कुरु का भौगोलिक विकास हमारे इतिहास के लिये परम आश्चर्यजनक और महत्त्व की चीज़ है। इससे आर्यों का क्रमशः उत्तरीय ध्रुव के प्रदेशों से आते-आते सिन्धु-नदी के तटवर्त्ती प्रदेश की राह से भारतवर्ष अर्थात् जम्बूद्वीप में आना सिद्ध होता है। आर्यों के हिमालय की तराई से आने के लिये कई मार्ग हो सकते हैं। यह काश्मीर से तिब्बत (त्रिविष्टप) तक विस्तीर्ण है। इस संकटापन्न मार्ग का संकेत हमें ऋग्वेद के सूत्रों से भलीभाँति मिल जाता है। इरानी आर्य कहाँ से भारतीय आर्यों से विलग हुये, यह आगे बतलाया जायगा। हमारा साहित्य हिमालयोत्तर प्रदेश की पुण्य-स्मृतियों से ओतप्रोत है। कभी किसी का ध्यान काबुल की ओर नहीं गया। क्यों ? यह हम उपसंहार भाग में दिखलाएँगे। स्वर्ग के अस्तित्व की धारणा हमारे मन से अभी तक नहीं गयी है। यह हमारी विकट भूल होगी, यदि हम इस प्रत्यक्ष ऐतिहासिक तथ्य को खुले दिल से स्वीकार न करें। + +452. दिति और अदिति की कथा तथा आर्यों का परस्पर संघर्ष. + +453. ये दोनों शाखायें कब और कहाँ अलग हुईं, इसका ठीक-ठीक अंदाज़ा करना कठिन है; परन्तु इतना अनुमान किया जा सकता है कि आक्सस के दक्षिण और थियानशान या मेरु-पर्वत-माला के निकटवर्ती प्रदेशों में कहीं इनके दो दल हुए। इन्द्र भारतीय शाखा के प्रमुख जान पड़ते हैं। अहुरमज़्द के नेतृत्व में दूसरा दल रहा होगा। एक का दूसरे को विधर्मी समझना तथा एक का दूसरे के इष्टदेव को दैत्य बनाना धार्मिक असहिष्णुता की पराकाष्ठा है। अस्तु, ज़ेन्दा अवेस्ता ’आर्यानां व्रजः’ से मर्व, बल्ख, ईरान, काबुल और सप्तसिन्धु का निर्देश देता है। इससे यही निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि ईरानी शाखा यानी पारसी, आर्यों से विलग हो, ईरान की अधित्यका को तय करते हुए काबुल की राह से सप्तसिन्धु तक फैल गये। भारतीय शाखा भी काबुल की राह से आयी, यह अत्यन्त ही सन्देहास्पद सिद्धान्त है। जब हम देखते हैं कि ज़ेन्दावेस्ता अपने भूगोल का मानचित्र इस प्रकार खींचता है तथा वैदिक साहित्य का काबुल से ही अपना बयान प्रारम्भ कर पूर्व की ओर बढ़ता है, तब हम दो ही निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं- एक तो यह कि आर्य लोगों के सप्तसिन्धु से ही दो दल हो गये और ईरानी शाखा सप्तसिन्धु से पश्चिमोत्तर-प्रदेश की ओर बढ़ चली। और, दूसरे यह कि भारतीय शाखा उत्तर की ओर से सीधे सिन्धु-नदी की राह से आयी तथा सप्तसिन्धु में फैलकर पूर्व की ओर बढ़ने लगी। इसी बीच में, जब कि पामीर, काराकोरम और सिन्धु के मार्ग से काबुल तक फैल गयी, ईरानी शाखा भी पूर्व निर्दिष्ट मार्ग से काबुल तक फैल गयी। सम्भवतः यहाँ फिर उनकी ईरानियों से मुठभेड़ हो गयी। दोनों शाखाओं का लक्ष्य सप्तसिन्धु की ओर ही था, यह एक सन्देह की बात हो सकती है; परन्तु हम ज़रा अधिक विचार करके देखते हैं, तो साफ़ प्रकट हो जाता है कि दोनों दल के विस्तार के लिये दूसरा कोई क्षेत्र नहीं था। थियानशान के पूर्व थोड़ी ही दूर पर गोबी की मरुभूमि दीख पड़ती है। उस समय इस मरुभूमि का क्या रूप था, सो तो ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता; परन्तु या तो यह समुद्र था या जैसा कुछ भूतत्त्वविशारदों का कथन है, या यह पहाड़ी-धूसरित चट्टानों की राशि थी। भूतत्त्ववेत्ताओं का कथन है कि साइबेरिया जिस अवस्था में आज है, उसी अवस्था में कभी मध्य-एशिया का यह भाग रहा होगा। साइबेरिया में प्राचीन कालीन वन के चिह्न मिलते हैं और ऐसा अनुमान किया जाता है कि किसी समय इसकी आबोहवा ऐसी थी कि मनुष्य यहाँ रह सकते थे। तात्पर्य यह कि भारतीय शाखा को सिवा मानसरोवर से जाकर तिब्बत तक फैलने के दूसरा कोई चारा नहीं था। सम्भवतः वे भारतवर्ष में एक ही बार नहीं आये, अपितु समय समय पर अपनी सुविधानुसार आते रहे। + +454. यह ऋचा उस समय बनी होगी, जब आर्य लोग उत्तर-ध्रुव के प्रदेशों से हटकर बहुत इधर आ गये होंगे। तिलक महोदय ने ऋचाओं के बल पर यह दिखलाया है कि वे जहाँ रहते थे, वहाँ एक ही तारा (उत्तर-ध्रुव) बराबर प्रकाशित था, जहाँ दिन कम और रात बहुत बड़ी होती थी। यह उत्तरीय प्रदेशों का चित्र है। उपर्युक्त ऋचा वहीं बनी , जहाँ दिन-रात क्रम से होते रहे होंगे, और चन्द्रमा का भी उदय होता होगा। + +455. अर्थात् पणि द्वाराछिपायी गायों की भाँति जल वृत्रा द्वारा जो उनके पति और स्वामी हैं, रोक दिया गया। इन्द्र ने वृत्रा का वध किया और मार्ग स्वच्छ कर दिया, जिससे पानी बह गया, जो वृत्रा द्वारा रोक दिया गया था। + +456. अर्थात् इन्द्र ने अपनी महत्ता से सिन्धु-नदी को उत्तर की ओर बहा दिया तथा उषा के रथ को अपनी प्रबल तीव्र सेना से निर्बल कर दिया। इन्द्र यह तब करते हैं, जब वह सोम मद से मत्त हो जाते हैं। सिन्धु-नदी अपने उद्गम-स्थान मानसरोवर से काश्मीर तक उत्तर-मुँह होकर बहती है; काश्मीर के बाद दक्षिण-पश्चिम-मुखी होकर बहती है। सम्भवतः इन्द्र ने पहाड़ी दुर्गम मार्ग को काटकर, सिन्धु-नदी के संकीर्ण मार्ग को विस्तीर्ण कर उत्तर की ओर नदी की धारा स्वच्छन्द कर दी हो। इससे आर्यों का मार्ग बहुत सुगम हो गया होगा। यह मत निम्नलिखित ऋचा से और भी दृढ़ हो जाता है-

+ +457. नदं न भिन्नममुया शयानं मनो रुहाणा अतियन्ति आपः।
+ +458. अवेस्ता और ऋग्वेद में आर्यों के आदि-निवास की झलक. + +459. शृङवान्-पर्वत का पता लगाना कुछ टेढ़ा अवश्य मालूम होता है; परन्तु इसके अर्थ पर ध्यान देने से विदित होता है कि किसी पर्वत को, जिसके शिखर (शृङ्ग) हो, शृङ्गवान् कहा जा सकता है। पद्मपुराण उत्तर-समुद्र के बाद ऐरावत का होना मानता है; और शृङ्ग इसके दक्षिण है, अतएव उत्तर-समुद्र और शृङ्ग (Mammoth Country) के बीच ऐरावत का होना निश्चित हुआ। इस ऐरावत-वर्ष में भी सूर्य की गति नहीं है। ऐरावत शब्द ’इर्’ धातु से बना हुआ है। ’इर्’ और ’इल्’ धातु जाने के अर्थ में प्रयुक्त हैं। अतएव ’इरा’ का अर्थ पृथ्वी भी होता है। जल और सरस्वती के अर्थ में भी इसका प्रयोग हुआ है। इरावत का अर्थ समुद्र और इसी प्रकार इराधर और इलाधर का अर्थ पहाड़ होता है। इरेश का प्रयोग हम वरुण के अर्थ में करते हैं। ऋग्वेद में वरुण की महिमा बहुत गायी गयी है। इन्द्र के समान वरुण भी धीरे-धीरे आर्यों के प्रधान देवता बन गये हैं। इरावत का अर्थ समुद्र होने से, ऐरावत (स्वार्थे अण्) का अर्थ समुद्र-तट का वासी हो सकता है। उत्तरीय ध्रुव के प्रदेशों में सूर्य की गति नहीं है। ऐरावत में भी सूर्य का प्रकाश दुर्बल माना गया है। चूँकि यह ऐरावत-शृङ्ग के उत्तर है, अतएव यूराल-पर्वतश्रेणी के उत्तर-स्थित प्रदेशों को ऐसा मान लेने में कोई अड़चन नहीं जान पड़ती। देखकर आश्चर्य होता है कि उत्तर-ध्रुव से आरम्भ कर मध्य-एशिया के प्रदेश से लेकर फ़ारस या अफ़गानिस्थान और भारतवर्ष की अर्वली-पर्वत-श्रेणी तक ऐसे तत्सम शब्दों का ताँता लगा हुआ है। यही यूराल-पर्वतश्रेणी आर्यों का दूसरा अड्डा हो सकता है। यहीं के आस-पास के स्थान ऐरावत देश के द्योतक हैं। यूराल-पर्वत से ’यूराल’ नाम की एक नदी भी निकलती है। यह नदी कैस्पियन-सागर में गिरती है। ’इरा’ का अर्थ जल होने से इरालय का अर्थ नदी हो जाता है। आर्यों की योरपीय शाखा सम्भवतः यूराल-पर्वत-श्रेणी के आसपास के प्रदेशों से ही अलग हुई। + +460. रम्यकवर्ष और श्वेतपर्वत. + +461. ईरानी शाखा के विलग होने पर आर्यों का गतिक्रम. + +462. हम ऊपर दिति और अदिति का ज़िक्र कर चुके हैं। ये दैत्य असुर कहलाये और ’आर्यानां व्रजः’ से, जो कश्यप-सागर (Caspian Sea) से पूर्व-उत्तर और दक्षिण की ओर फैला हुआ है, दोनों अलग-अलग हो गये। अस्तु, हमें यह देखना है कि आर्यों को सोमरस इतना प्रिय क्यों हुआ ? सोमरस से आविष्ट हो इन्द्र दैत्यों और असुरों को परास्त करते हैं। हिमालयोत्तर-प्रदेश में, जो स्वभावतः ठण्ढा रहा होगा और है, सोमरस का पीना अस्वाभाविक नहीं। सोमरस के पत्थरों से पीसे जाने का वर्णन ऋग्वेद में बहुलता से मिलता है। सोमलता हिमालय की तराई या हिमालयोत्तर-प्रदेश-- ख़ासकर काराकोरम के आसपास अब भी पायी जाती है। यह सोम भारतीय आर्यों की अपनी सम्पत्ति है। अहुरों (असुरों) का इससे कोई सम्बन्ध नहीं। अवश्य ही सुर-दल को पहाड़ी प्रदेशों में आने के कारण कठिनाइयां झेलनी पड़ी हैं; परन्तु सोम उनके प्राणों का आधार है। यह पदार्थ, यह रस हिमालयोत्तर प्रदेश का ही स्मरण कराता है। + +463. अर्जुन की विजय-यात्रा को सत्य मानने तथा पुराण में दिये हुए भौगोलिक नामों की आधुनिक नामों से तुलना करने पर यह कहना पड़ता है कि महाभारत के समय में अर्थात् आज से ५,००० वर्ष पूर्व भारतीय आर्यों को हरिवर्ष तक अर्थात् थियानशान (Celestial Mountain) पर्वत के आसन्नवर्त्ती हिमालयोत्तर-प्रदेशों तक का पूर्ण ज्ञान था। इसी हरिवर्ष को उस समय आर्य लोग उत्तर-कुरु कहते थे तथा आर्यावर्त के ’कुरु’ को उसी उत्तर-कुरु की स्मृति-रक्षा के लिय बसाया। मध्य-एशिया के ’आर्यानां व्रजः’ का अर्थ आर्यावर्त से मिलता है। कोरासागर से (उत्तर-सागर) जो Arctic Circle में है आरंभ कर आर्य लोग सीधे उत्तर की ओर पुराण निर्दिष्ट मार्ग से आये, इसमें सन्देह नहीं है। यूराल-नदी और ऐरल-सागर से ’इर्’ धातु का निर्विवाद और घनिष्ट सम्बन्ध है। ’इर्’ से ही ऐरावत बना है। इसका सम्यक् विवेचन एक-एक कर पहले किया जा चुका है। ऐरल-सागर के पश्चिम की ओर एलबर्ज़ (इलावृत) है। इरास्य, इलास्पद या इरास्पद की मैंने योरप से तुलना की है। ऐरल-सागर से (उक्ष) नदी निकलती है। इसी नदी के दोनों तरफ़ आर्य लोग कुछ काल तक रहे और यहीं से (इलावृत और उक्ष के मध्यवर्ती देश से) आर्य और ईरानी अलग हुए। ईरानियों का मार्ग तभी से बदल गया और भारतीय आर्यों का थियानशान, पामीर, मानसरोवर, तारीम (भद्राश्व) आदि से होकर काश्मीर या हिन्दुकुश के मार्ग से आना हुआ। सिन्ध में आ जाने पर ईरानी शाखा से सीमाप्रान्त पर भेंट हुई; क्योंकि वे भी अब तक काबुल पहुँच गये थे। भारतीय आर्यों का उत्तर-ध्रुव से लेकर आर्यावर्त तक का सीधा वर्णन यही बतलाता है। मानसरोवर और हिमालय ही उनका एकमात्र आदर्श है। काबुल के मार्ग से वे अभी नहीं आये, बल्कि भारत में पदार्पण के बाद वे काबुल की ओर भी फैले। किस समय वे भारत में आये, इसका निर्णय करना नितान्त दुष्कर है। कम-से-कम ५,००० वर्ष पूर्व तो महाभारत का समय है, जिस समय आर्य बहुत पुराने पड़ गये थे। ऋग्वेद की ऋचायें सिन्धु और सरस्वती के किनारे भी रची गयीं। लोकमान्य के सिद्धान्त की पुष्टि पौराणिक भूगोल से पूर्णतः होती है। यह धारणा कि आर्य आदि से भारत में रहे--सत्य या असत्य है यह अभी नहीं कहा जा सकता। परन्तु इतना तो निश्चित है कि भारतीय ऋषियों का जो समय-निरूपण अब-तक माना जा रहा है, वह सत्य सिद्ध होगा। और, ऐसा होने पर महाभारत से हज़ारों वर्ष पूर्व आर्यावर्त में आर्यों का बसना सिद्ध होगा। कम-से-कम इस समय यह सिद्ध करने का पर्याप्त प्रमाण नहीं मिलता कि भारत से ही आर्य लोग अन्यत्र फैले। देवताओं के एक दिन-रात (जो मनुष्यों के एक वर्ष के तुल्य है) के प्रमाण से उत्तर-ध्रुव में उनका रहना स्पष्ट है। अतएव यदि आर्यों का आधिपत्य उत्तर-ध्रुव से आर्यावर्त तक यानी प्राचीन आर्यावर्त से अर्वाचीन आर्यावर्त तक माना जाय, तो कोई दुःख की बात नहीं, प्रत्युत हर्ष की बात है। फिर यदि आर्य ही पहले-पहल भारतवर्ष में आये तब तो उनका आधिपत्य स्वाभाविक और न्याय-सिद्ध है। ईश्वर करे, हमारा इतिहास हमारे सामने आ जाय। + +464. + +465. ईसा पूर्व पहली शताब्दी से ईसवी ३री शताब्दी तक उत्तरी भारत का बहुत सा भाग शकों के हाथ में था। पंजाब पांचवीं शताब्दी तक शकों के हाथ में रहा जिसे ’श्वेत हूण’ के नाम से कहा गया था। + +466. फ़ारसी संस्कृत की सगी बहन-भतीजी + +467. शक तथा आर्यों के स्थान. + +468. शकों और आर्यों के संघर्ष के कारण आर्यों को अपना मूल स्थान छोड़ना पड़ा था। एक भाग कास्पियन से पश्चिम काकेशस पर्वत-माला से होते हुए क्षुद्र एशिया (तुर्की) और उत्तरी ईरान के तरफ बढ़ते असीरिया क्रेसन्थ देश की सीमा पर पहुंचा और दूसरा भाग कास्पियन से पूरब की तरफ अराल समुद्र के किनारे होते हुए ख्वारेज़्म की भूमि में पहुंचा। ईसा पूर्व द्वितीय सहस्राब्दी में वोगज कुई (अंकारा के पास) में मितन्नी आर्यों के अभिलेख में यह मिलता है। इसी सहस्राब्दी में हिन्दी युरोपीय ग्रीक ग्रीस देस में गये। + +469. अराल समुद्र के पास मगेसगेत् नामकी एक जाति कावर्णन हेरोदेत ने किया है। ई.पू. २०६ में जबकि ग्रीक बाह्लीक राजा युथिदेमो ने सिरदर्या पर चढ़ाई की थी, उस काल भी वहां शकों का ही निवास था। कितने ही पश्चिमी विद्वानों का मत है कि महाशकद्वीप में रहने वाली शक जाति वस्तुतः भिन्न-भिन्न भाषाएं बोलनेवाली अनेक जातियां थीं। परन्तु ये भाषायें भिन्न-भिन्न बोलियां ही उच्चारण भेद के साथ हो सकती थीं। शकों का यह आधिपत्य ई.पू. १७२ तक था। + +470. हूण माउ दुन् के नेतृत्वमें शकों को भगाते गये और सीस्तान (शकस्थान) और बिलोचिस्तान होते हुए ११० ई.पू. में सिन्ध पहुँचे और ई.पू. ८० में तक्षशिला और गान्धार के स्वामी बन गये और एक शताब्दी से जड़ जमाये यवन राज्य का उच्छेद कर दिया।’यू ची’ सरदार (शक) ’मोग’ भारत का प्रथम शक राजा था। ११०-८० ई.पू. तक गुजरात भी शकों के हाथ में चला गया। ६० ई.पू. तक मथुरा में भी शकों की छत्रपी कायम हो गयी। मोग की मृत्यु ५८ ई.पू. में हुई जिसके बाद शकों के भिन्न-भिन्न कबीलों में झगड़ा हो गया और शकों के कुषाण कबीले के यवमू (सरदार) कजुल कदफिस्-१ की शक्ति बढ़ी। उसने बख्तर और तुषार पर भी अधिकार कर लिया। कजुल के पुत्र वीम कदफिस् द्वितीय (७५-७८ ई.) ने सारे उत्तर भारत को जीता। इसी का पुत्र ’वसीले उस् वसीले उन् कनेर् कोस’ (राजाधिराज कनिष्क) हुआ जिसने शक संवत् चलाया और ७८-१०३ ई. तक राज्य किया। इसके सिक्के अराल समुद्र से बिहार तक मिलते हैं। वह बौद्ध पहले ही से था क्योंकि ईसा पूर्व २य शताब्दी में ही बौद्ध धर्म यू ची शकों की मूल भूमि तरिम उपत्यका में पहुँच चुका था। + +471. हिन्दुस्तान जिंदाबाद पाकिस्तान मादरचोद + +472. मिहिरकुल ने मगध पर आक्रमण किया था परन्तु मगध राजा बालादित्य ने उसे बुरी तरह हराया। मालवा के विजयी राजा यशोधर्मा विक्रमादित्य ने मिहिरकुल को हराकर उसे कश्मीर की ओर खदेड़ दिया। हूण नाम से प्रसिद्ध किन्तु वस्तुतः शक मिहिरकुल अन्तिम शक राजा था। हेफ़तालों की राजधानी बुखारा के पास वरख्शमें थी जहाँ हाल की खुदाई में भारतीय शैली पर बने कितने ही भित्तिचित्र मिले हैं। + +473. हूणों ने शकों को शक द्वीप से हटा दिया था। उनके ही वंशज तुर्क, उइगुर, और मंगोल थे। ५५७ ई. के लगभग तुर्की से मध्यएशिया तक न शकों का नाम रहा न आर्यवंशीय लोगों (थोड़े से ताजिकों को छोड़कर) का। + +474. स्लाव और श्रव. + +475. १०१४ में व्लादिमीर के मरने के बाद किएफ़ रूस राज्य छिन्न-भिन्न हो गया। १३वीं सदी के मध्य में छङ् गिस् खान के मंगोल उसके पुत्र बानू खान के नेतृत्व में पहुँचे और प्रायः १५० वर्षों तक सिर उठाने का मौका नहीं मिला। तैमूर ने दिल्ली लूटने (१३९८ ई.) से तीन साल पहले जब १३९५ में मास्को के पास तक का धावा किया। + +476. हिन्दी और यूरोपीय भाषाओं के ’शतम्’ और ’केन्तम्’ दोनों भाषाओं के समुदायों में हैं। स्लाव भाषाएं संस्कृत और ईरानी के साथ शतम् वंश की हैं। लिथुआनी की समीपता ’केन्तम्’ से है। + +477. -होमोजिनियस + +478. डिस्ट्रिब्यूटेड डाटाबेस के लाभ + +479. 5.फास्टर रिस्पॉन्स + +480. 1.डाटा रिप्लीकेशन + +481. 2.यह निशचित करना कि किस लोकेशन से रिक्वेस्टेट डाटा को रिट्रीव करना हैऔर डिस्ट्रिब्यूटेड क्वैरी के हर भाग को किस लोकेशन पर प्रोसेस करना है। + +482. 2.रिप्लीकेशन ट्रान्सपेरेन्सी + +483. कविता से मनुष्य-भाव की रक्षा होती है। सृष्टि के पदार्थ या व्यापार-विशेष को कविता इस तरह व्यक्त करती है, मानो वे पदार्थ या व्यापार-विशेष नेत्रों के सामने नाचने लगते हैं। वे मूर्तिमान दिखाई देने लगते हैं। उनकी उत्तमता या अनुत् से बहने लगते हैं। तात्पर्य यह है कि कविता मनोवेगों को उत्तेजित करने का एक उत्तम साधन है। यदि क्रोध, करुणा, दया, प्रेम आदि मनोभाव मनुष्य के अन्तःकरण से निकल जाएँ, तो वह कुछ भी नहीं कर सकता। कविता हमारे मनोभावों को उच्छ्वासित करके हमारे जीवन में एक नया जीव डाल देती है। हम सृष्टि के सौन्दर्य को देखकर मोहित होने लगते हैं। कोई अनुचित या निष्ठुर काम हमें असह्य होने लगता है। हमें जान पड़ता है कि हमारा जीवन कई गुना अधिक होकर समस्त संसार में व्याप्त हो गया है। + +484. मनोरंजन और स्वभाव-संशोधन. + +485. उच्च आदर्श. + +486. कविता सृष्टि-सौन्दर्य का अनुभव कराती है और मनुष्य को सुन्दर वस्तुओं में अनुरक्त करती है। जो कविता रमणी के रूप माधुर्य से हमें आह्लादित करती है, वही उसके अन्तःकरण की सुन्दरता और कोमलता आदि की मनोहारिणी छाया दिखा कर मुग्ध भी करती है। जिस बंकिम की लेखनी ने गढ़ के ऊपर बैठी हुई राजकुमारी तिलोत्तमा के अंग प्रत्यंग की शोभा को अंकित किया है, उसी ने आयशा के अन्तःकरण की अपूर्व सात्विकी ज्योति दिखा कर पाठकों को चमत्कृत किया है। भौतिक सौन्दर्य के अवलोकन से हमारी आत्मा को जिस प्रकार सन्तोष होता है उसी प्रकार मानसिक सौन्दर्य से भी। जिस प्रकार वन, पर्वत, नदी, झरना आदि से हम प्रफुल्लित होते हैं, उसी प्रकार मानवी अन्तःकरण में प्रेम, दया, करुणा, भक्ति आदि मनोवेगों के अनुभव से हम आनंदित होते हैं और यदि इन दोनों पार्थिव और अपार्थिव सौन्दर्यों का कहीं संयोग देख पड़े तो फिर क्या कहना है। यदि किसी अत्यन्त सुन्दर पुरुष या अत्यन्त रूपवती स्त्री के रूप मात्र का वर्णन करके हम छोड़ दें तो चित्र अपूर्ण होगा, किन्तु यदि हम साथ ही उसके हृदय की दृढ़ता और सत्यप्रियता अथवा कोमलता और स्नेह-शीलता आदि की भी झलक दिखावें तो उस वर्णन में सजीवता आ जाएगी। महाकवियों ने प्रायः इन दोनों सौन्दर्यों का मेल कराया है जो किसी किसी को अस्वाभाविक प्रतीत होता है। किन्तु संसार में प्रायः देखा जाता है कि रूपवान् जन सुशील और कोमल होते हैं और रूपहीन जन क्रूर और दुःशील। इसके सिवा मनुष्य के आंतरिक भावों का प्रतिबिम्ब भी चेहरे पर पड़कर उसे रुचिर या अरुचिर बना देता है। पार्थिव सौन्दर्य का अनुभव करके हम मानसिक अर्थात् अपार्थिव सौन्दर्य की ओर आकर्षित होते हैं। अतएव पार्थिव सौन्दर्य को दिखलाना कवि का प्रधान कर्म है। + +487. कविता में कही गई बात हृत्पटल पर अधिक स्थायी होती है। अतः कविता में प्रत्यक्ष और स्वभावसिद्ध व्यापार-सूचक शब्दों की संख्या अधिक रहती है। समय बीता जाता है, कहने की अपेक्षा, समय भागा जाता है, कहना अधिक काव्य सम्मत है। किसी काम से हाथ खींचना, किसी का रुपया खा जाना, कोई बात पी जाना, दिन ढलना, मन मारना, मन छूना, शोभा बरसना आदि ऐसे ही कवि-समय-सिद्ध वाक्य हैं, जो बोल-चाल में आ गए हैं। नीचे कुछ पद्य उदाहरण-स्वरूप दिए जाते हैं -
+ +488. (ङ) रंग रंग रागन पै, संग ही परागन पै, वृन्दावन बागन पै बसंत बरसो परै।
+ +489. प्रदीप्ते रागाग्रौ सुदृढ़तरमाश्ल्ष्यिति वधूं
+ +490. “भविष्यत् में क्या होने वाला है, इस बात की अनभिज्ञता इसलिए दी गई है, जिसमें सब लोग, आने वाले अनिष्ट की शंका से, उस अनिष्ट घटना के पूर्ववर्ती दिनों के सुख को भी न खो बैठें.” + +491. And licks the hand just raised to shed his blood.
+ +492. श्रुति सुखदता. + +493. कई वर्ष हुए ‘अलंकारप्रकाश’ नामक पुस्तक के कर्ता का एक लेख ‘सरस्वती’ में निकला था। उसका नाम था- ‘कवि और काव्य’। उसमें उन्होंने अलंकारों की प्रधानता स्थापित करते हुए और उन्हें काव्य का सर्वस्व मानते हुए लिखा था कि ‘आजकल के बहुत से विद्वानों का मत विदेशी भाषा के प्रभाव से काव्य विषय में कुछ परिवर्तित देख पड़ता है। वे महाशय सर्वलोकमान्य साहित्य-ग्रन्थों में विवेचन किए हुए व्यंग्य-अलंकार-युक्त काव्य को उत्कृष्ट न समझ केवल सृष्टि-वैचित्र्य वर्णन में काव्यत्व समझते हैं। यदि ऐसा हो तो इसमें आश्चर्य ही क्या?’ रस और भाव ही कविता के प्राण हैं। पुराने विद्वान् रसात्मक कविता ही को कविता कहते थे। अलंकारों को वे आवश्यकतानुसार वर्णित विषय को विशेषतया हृदयंगम करने के लिए ही लाते थे। यह नहीं समझा जाता था कि अलंकार के बिना कविता हो ही नहीं सकती। स्वयं काव्य-प्रकाश के कर्ता मम्मटाचार्य ने बिना अलंकार के काव्य का होना माना है और उदाहरण भी दिया है- “तददौषौ शब्दार्थौ सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि.” किन्तु पीछे से इन अलंकारों ही में काव्यत्व मान लेने से कविता अभ्यासगम्य और सुगम प्रतीत होने लगी। इसी से लोग उनकी ओर अधिक पड़े। धीरे-धीरे इन अलंकारों के लिए आग्रह होने लगा। यहाँ तक कि चन्द्रालोककार ने कह डाला कि-
+ +494. इससे स्वभावोक्ति को अलंकार मानना ठीक नहीं। उसे अलंकारों में गिनने वालों ने बहुत सिर खपाया है, पर उसका निर्दोष लक्षण नहीं कर सके। काव्य-प्रकाश के कारिकाकार ने उसका लक्षण लिखा है-
+ +495. आचार्य दण्डी ने अवस्था की योजना करके यह लक्षण लिखा है-
+ +496. अलंकार है क्या वस्तु? विद्वानों ने काव्यों के सुन्दर-सुन्दर स्थलों को पहले चुना। फिर उनकी वर्णन शैली से सौन्दर्य का कारण ढूंढा। तब वर्णन-वैचित्र्य के अनुसार भिन्न-भिन्न लक्षण बनाए। जैसे ‘विकल्प’ अलंकार को पहले पहल राजानक रुय्यक ने ही निकाला है। अब कौन कह सकता है कि काव्यों के जितने सुन्दर-सुन्दर स्थल थे सब ढूंढ डाले गए, अथवा जो सुन्दर समझे गए - जिन्हें लक्ष्य करने लक्षण बने- उनकी सुन्दरता का कारण कही हुई वर्णन प्रणाली ही थी। अलंकारों के लक्षण बनने तक काव्यों का बनना नहीं रुका रहा। आदि-कवि महर्षि वाल्मीकि ने - “मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः” का उच्चारण किसी अलंकार को ध्यान में रखकर नहीं किया। अलंकार लक्षणों के बनने से बहुत पहले कविता होती थी और अच्छी होती थी। अथवा यों कहना चाहिए की जब से इन अलंकारों को हठात् लाने का उद्योग होने लगा तबसे कविता कुछ बिगड़ चली। (जय हिन्द वन्देमातरम) + +497. भारत एक उप महाद्वीप है। इसके विस्तृत क्षेत्रफल और जनसंख्या के कारण विविध समस्याएँ उत्पन्न होती हैं जिनमें से भाषा की समस्या एक है। + +498. हिन्दी में अर्थ और विकास संबन्धी लेख: + +499. + +500. ई-गवर्नेंस परियोजना. + +501. वर्तमान में, लगभग 28.18 लाख निर्वाचित पंचायत प्रतिनिधियों में से 36.87 प्रतिशत महिलायें हैं। प्रस्तावित संविधान संशोधन के बाद निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों की संख्या 14 लाख से भी अधिक हो जाने की आशा है। + +502. न्याय पंचायत विधेयक, 2010. + +503. ग्रामीण व्यापार केन्द्र (आरबीएच) योजना. + +504. वैश्वीकरण एवं भारतीय बाजार को विदेशी कंपनियों के लिए खोले जाने के कारण आज भारतीय उपभोक्ताओं की कई ब्रांडों तक पहुंच कायम हो गयी है। हर उद्योग में, चाहे वह त्वरित इस्तेमाल होने वाली उपभोक्ता वस्तु (एफएमसीजी) हो या अधिक दिनों तक चलने वाले सामान हों या फिर सेवा क्षेत्र हो, उपभोक्ताओं की जरूरतों को पूरा करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर 20 से अधिक ब्रांड हैं। पर्याप्त उपलब्धता की यह स्थिति उपभोक्ता को विविध प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं में से कोई एक चुनने का अवसर प्रदान करती है। लेकिन सवाल यह है कि क्या उपभोक्ता को उसकी धनराशि की कीमत मिल रही है? आज के परिदृश्य में उपभोक्ता संरक्षण क्यों जरूरी हो गया है? क्या खरीददार को जागरूक बनाएं की अवधारणा अब भी कायम है या फिर हम उपभोक्ता संप्रुभता की ओर आगे बढ रहे हैं। + +505. संक्षिप्त इतिहास. + +506. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986. + +507. + +508. वन पर्यावरण, लोगों और जंतुओं को कई प्रकार के लाभ पहुंचाते हैं। वन कई प्रकार के उत्पाद प्रदान करते हैं जैसे फर्नीचर, घरों, रेलवे स्लीपर, प्लाईवुड, ईंधन या फिर चारकोल एव कागज के लिए लकड़ी, सेलोफेन, प्लास्टिक, रेयान और नायलॉन आदि के लिए प्रस्संकृत उत्पाद, रबर के पेड़ से रबर आदि। फल, सुपारी और मसाले भी वनों से एकत्र किए जाते हैं। कर्पूर, सिनचोना जैसे कई औषधीय पौधे भी वनों में ही पाये जाते हैं। + +509. पिछले वर्षों में शहतीर लगाना वनों के लिए महत्त्वपूर्ण कामकाज माना जाता था। हालांकि हाल के वर्षों में यह अवधारणा ज्यादा बहुप्रयोजन एवं संतुलित दृष्टकोण की ओर बदली है। अन्य वन्य प्रयोजनों और सेवाओं जैसे वनविहार, स्वास्थ्य, कुशलता, जैवविविधता, पारिस्थतिकी तंत्र सेवाओं का प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन का उपशमन अब वनों की महत्ता के अंग समझे जाने लगे हैं। इसे लगातार जटिल एवं अनोखे तत्व के रूप में मान्यता मिलती जा रही है। + +510. एनपीआर के बारे में जानने के लिए, पहले जनगणना के बारे में कुछ जान लेना आवश्यक है। अब, भारत के लिए जनगणना कोई नई चीज़ नहीं है। यह अंग्रेजाें के राज से ही की जाती रही है। भारत में पहली जनगणना 1872 में हुई थी। वर्ष 1881 से, जनगणना बिना किसी रूकावट के हर दस साल में की जाती रही है। जनगणना एक प्रशासनिक अभ्यास है जो भारत सरकार करवाती है। इसमें जनांकिकी, सामाजिक -सांस्कृतिक और आर्थिक विशेषताओं जैसे अनेक कारकों के संबंध में पूरी आबादी के बारे में सूचना एकत्र की जाती है। + +511. एनपीआर में व्यक्ति का नाम, पिता का नाम, मां का नाम, पति#पत्नी का नाम, लिंग, जन्म तिथि, वर्तमान वैवाहिक स्थिति, शिक्षा, राष्ट्रीयता (घोषित), व्यवसाय, साधारण निवास के वर्तमान पते और स्थायी निवास के पते जैसी सूचना की मद शामिल होंगी। इस डाटाबेस में 15 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों के फोटो और फिंगर बायोमेट्री (उंगलियों के निशान) भी शामिल होंगे। साधारण निवासियों के प्रमाणीकरण के लिए मसौदा डाटाबेस को ग्राम सभा या स्थानीय निकायों के समक्ष रखा जाएगा। + +512. भारत में, मतदाता पहचान पत्र, ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट, पैन कार्ड जैसे विभिन्न डाटाबेस हैं लेकिन इन सबकी सीमित पहुंच है। ऐसा कोई मानक डाटाबेस नहीं है जिसमें पूरी आबादी शामिल हो। एनपीआर मानक डाटाबेस उपलब्ध कराएगा तथा प्रत्येक व्यक्ति को अनन्य पहचान संख्या का आवंटन सुगम कराएगा। यह संख्या व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक स्थायी पहचान प्रदान करने जैसी ही होगी। + +513. + +514. प्लास्टिक एक प्रकार का पॉलीमर यानी मोनोमर नाम की दोहराई जाने वाली इकाइयों से युक्त बड़ा अणु है। प्लास्टिक थैलों के मामले में दोहराई जाने वाली इकाइयां एथिलीन की होती हैं। जब एथिलीन के अणु को पॉली एथिलीन बनाने के लिए ‘पॉलीमराइज’ किया जाता है, वे कार्बन अणुओं की एक लम्बी शृंखला बनाती हैं, जिसमें प्रत्येक कार्बन को हाइड्रोजन के दो परमाणुओं से संयोजित किया जाता है। + +515. कैडमियम और जस्ता जैसी विषैली धातुओं का इस्तेमाल जब प्लास्टिक थैलों के निर्माण में किया जाता है, वे निथार कर खाद्य पदार्थों को विषाक्त बना देती हैं। थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कैडमियम के इस्तेमाल से उल्टियां हो सकती हैं और हृदय का आकार बढ सक़ता है। लम्बे समय तक जस्ता के इस्तेमाल से मस्तिष्क के ऊतकों का क्षरण होकर नुकसान पहुंचता है। + +516. प्लास्टिक की थैलियों, पानी की बोतलों और पाउचों को कचरे के तौर पर फैलाना नगरपालिकाओं की कचरा प्रबंधन प्रणाली के लिये एक चुनौती बनी हुई है। अनेक पर्वतीय राज्यों (जम्मू एवं कश्मीर, सिक्किम, पश्चिम बंगाल) ने पर्यटन केन्द्रों पर प्लास्टिक थैलियोंबोतलों के उपयोग को प्रतिबंधित कर दिया है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने एक कानून के तहत समूचे राज्य में 15.08.2009 से प्लास्टिक के उपयोग पर पाबंदी लगा दी है। + +517. vsuediv vgkyhwk + +518. इस अधिनियम में सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण और अनिवार्य शिक्षा प्रदान का प्रावधान है, जिससे ज्ञान, कौशल और मूल्यों से लैस करके उन्हें भारत का प्रबुध्द नागरिक बनाया जा सके। यदि विचार किया जाए तो आज देशभर में स्कूलों से वंचित लगभग एक करोड़ बच्चों को शिक्षा प्रदान करना सचमुच हमारे लिए एक दुष्कर कार्य है। इसलिए इस लक्ष्य को साकार करने के लिए सभी हितधारकों — माता-पिता, शिक्षक, स्कूलों, गैर-सरकारी संगठनों और कुल मिलाकर समाज, राज्य सरकारों और केन्द्र सरकार की ओर से एकजुट प्रयास का आह्वान किया गया है। जैसा कि राष्ट्र को अपने संबोधन में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा कि सबको साथ मिलकर काम करना होगा और राष्ट्रीय अभियान के रूप में चुनौती को पूरा करना होगा। + +519. इस अधिनियम के क्रियान्वयन में प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी एक प्रमुख बाधा है। इन रिक्तियों को भरने के उद्देश्य से अगले छ: वर्षों में लगभग पांच लाख शिक्षकों को भर्ती करने की योजना है। + +520. शहरी भारत के स्वास्थ्य संबंधी खतरे: + +521. असंक्रामक रोगों के क्षेत्र में अनेक पहल की गई हैं अर्थात राष्ट्र्र्रीय बधिरता नियंत्रण कार्यक्रम, राष्ट्रीय वयोवृध्द स्वास्थ्य देखरेख कार्यक्रम, राष्ट्रीय मौखिक स्वास्थ्य कार्यक्रम। अनुमान है कि हमारी सड़कों पर रोजाना 275 व्यक्ति मरते हैं तथा 4,100 घायल होते हैं। इस तथ्य के मद्देनज़र, स्वास्थ्य मंत्रालय ने राष्ट्रीय राजमार्ग सुश्रुत देखरेख परियोजना शुरू की जो अपनी तरह की महत्त्वाकांक्षी परियोजना है तथा इसके तहत सम्पूर्ण स्वर्णिम चतुर्भुज तथा उत्तर-दक्षिण-पूर्व-पश्चिम गलियारों को शामिल करने का इरादा है तथा इन्हें 200 अस्पताल, अस्पताल-पूर्व देखरेख इकाई तथा एकीकृत संचार प्रणाली के साथ उन्नत किया जा रहा है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना बड़े पैमाने पर अछूती आबादी को स्वास्थ्य सेवाओं के दायरे में लाने की एक अन्य पहल है। + +522. नदियों में प्रदूषण: + +523. नदी संरक्षण कार्यक्रम के क्रियान्वयन पर भूमि अधिग्रहण की समस्या, सृजित परिसंपत्तियों के सही प्रबंधन नहीं हो पाने, अनियमित बिजली आपूर्ति, सीवरेज शोधन संयंत्रों के कम इस्तेमाल आदि का प्रतिकूल असर पड़ता है। + +524. प्रदूषित खंड वह क्षेत्र है जहां पानी की गुणवत्ता का वांछित स्तर बीओडी के अनुकूल नहीं होता। फिलहाल , जिन जलाशयों का बीओडी 6 मिलीग्राम1 से ज्यादा होता है उन्हें प्रदूषित जलाशय कहा जाता है। नदी के किसी भी हिस्से में पानी की उच्च गुणवत्ता संबंधी मांग को उसका निर्धारित सर्वश्रेष्ठ उपयोग समझा जाता है। हर निर्धारित सर्वश्रेष्ठ उपयोग के लिए गुणवत्ता संबंधी शर्त सीपीसीबी द्वारा तय किया गया है। + +525. एनआरसीपी एवं इसका कवरेज. + +526. नदी स्वच्छता कार्यक्रम के लिए धन जुटाने की व्यवस्था में पिछले कई वर्षों के दौरान कई बदलाव हुए हैं। गंगा कार्य योजना (जीएपी), जो 1985 में शुरू हुई थी, शत प्रतिशत केंद्र पोषित योजना थी। जीएपी के दूसरे चरण में 1993 में आधी राशि केद्र सरकार और आधी राशि संबंधित राज्य सरकारों द्वारा जुटाए जाने की व्यवस्था की गई। एक अप्रैल, 1997 में यह व्यवस्था फिर बदल दी गयी और शत प्रतिशत धन केंद्र की मुहैया कराने लगा। एक अप्रैल, 2001 से केंद्र द्वारा 70 प्रतिशत राशि और राज्य द्वारा 30 प्रतिशत राशि जुटाने की व्यवस्था लागू हो गयी। इस 30 प्रतिशत राशि का एक तिहाई पब्लिक या स्थानीय निकाय के शेयर से जुटाया जाना था। + +527. एसटीपी के माध्यम से नब्दिन्यों के प्रदूषण रोकने की सीमित पहल की गयी है। राज्य सरकारें अपनी क्रियान्वयन एजेंसियों के माध्यम से प्रदूषण निम्नीकरण कार्य करती है। लेकिन इस कार्य को उचित प्राथमिकता नहीं दी जाती है। परिसंपत्तियों के प्रबंधन एवं रखरखाव पक्ष की अक्सर उपेक्षा होती है। दूसरा कारण यह है कि कई एसटीपी में बीओडी और एसएस के अलावा कॉलीफार्म के नियंत्रण के लिए सीवरेज प्रबंधन नहीं किया जाता है। सिंचाई, पीने के लिए, तथा बिजली के लिए भी राज्यों द्वारा पानी का दोहन नियंत्रित ढंग से नहीं किया जाता है। पानी के दोहन जैसे मुद्दों पर अंतर-मंत्रालीय समन्वय का भी अभाव है। अबतक नदियों का संरक्षण कार्य घरेलू तरल अपशिष्ट की वजह से होने वाले प्रदूषण के रोकथाम तक ही सीमित है। जलीय जीवन की देखभाल, मृदा अपरदन के रोकथाम आदि के माध्यम से नदियों की पारिस्थितिकी में सुधार आदि कार्यों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया।अयिए आज हम साब यह प्रन ले कि हम नदियोन को प्रदुशित होने से बचाएन्गे। + +528. मौसम , जलवायु और सामाजिक हितों से जुड़ी सेवाओं के लिए जोखिमों के पूर्वानुमान के महत्‍व को स्‍वीकारते हुए पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालय ने पृथ्‍वी प्रणाली (वायुमंडल, हाइड्रोस्फेयर, क्रायोस्‍फेयर, जियोस्‍फेयर और बायोस्‍फेयर) के प्रति समझ में सुधार की दिशा में एक समन्‍वित तरीके से अपनी गतिविधियों पर जोर दिया है। विभिन्‍न घटकों के अध्‍ययन का उद्देश्‍य उनके बीच अंतक्रियाओं को बेहतर ढंग से समझना है, जो प्राकृतिक प्रक्रियाओं और मानवोत्‍पत्‍ति संबंधी गतिविधियों द्वारा प्रभावित हो और जिनसे पूर्वानुमान सेवाओं में सुधार हो। पृथ्‍वी प्रणाली विज्ञान संगठन एक मिशन के रूप में काम करता है , जहां पिछले एक वर्ष के दौरान महत्‍वपूर्ण उपलब्‍धियां प्राप्‍त हुई हैं + +529. विमानन सेवाएं धुंध पूर्वानुमान. + +530. सांख्‍यिक प्रारूपों के इस्‍तेमाल से हिन्‍द महासागर के लिए यथासमय पूर्वानुमान तैयार करने का प्रयास प्रारंभिक चरण में है। फरवरी 2010 में शुरू की गई हिन्‍द महासागर पूर्वानुमान प्रणाली (इंडोफोस) में महासागरीय लहरों की ऊँचाई, लहर की दिशा, समुद्री सतह का तापमान, सतह की धारायें, मिश्रित तल की गहराई और 20 डिग्री सेल्‍सियस समताप की गहराई के बारे में अगले पाँच दिनों के लिए छ: घंटे के अंतराल पर पूर्वानुमान जारी करना शामिल है। इंडोफेस के लाभार्थियों में पारंपरिक और प्रणालीबद्ध मछुआरे, समुद्री बोर्ड, भारतीय नौसेना, तटरक्षक नौवहन कंपनियां और पेट्रोलियम उद्योग, ऊर्जा उद्योग तथा शैक्षिक संस्‍थान शामिल हैं। गुजरात, महाराष्‍ट्र, कर्नाटक और पुडुचेरी के लिए लहरों के पूर्वानुमान हेतु स्‍थान विशेष पर आधारित प्रारूप स्‍थापित किए गए हैं और बंदरगाह प्राधिकरणों द्वारा इनका व्‍यापक इस्‍तेमाल किया जाता है। + +531. जलवायु में बदलाव और परिवर्तन + +532. प्रौद्योगिकी तथा स्वरोजगार: + +533. २-विदेशी कंपनियों का भारत में आयात शुन्य करके इनके उत्पादों की खरीद का बहिष्कार करके भारत की कंपनियों का उत्पादन बहुत तेजी से बढ़ाना होगा और उन्हें निर्यात की तरफ ले जाकर विदेशी मुद्रा कमाना होगा। + +534. ७-ऐसे कर प्रणाली बनाई जाये की लोग कर बचाने केलिए कालाधन पैदा ही ना करे. + +535. १२-शिक्षा प्रणाली में देश भक्ति और राष्ट्र प्रेम के पाठ कक्षा १ से १२ तक अनिवार्य कर दिए जाये और हमारे आदर्श के रूप में उनको पेश किया जाये जो की चरित्र + +536. १६-खेती में जहर का प्रयोग बंदकरके सबको अच्छा स्वास्थ्य मुहैया कराया जाये. और आयुर्वेदिक, यूनानी और अन्य पुराणी सस्ती स्वस्थ्य पद्धतियों को फिर से जोरदार धन से फैलाया जाये. + +537. + +538. अर्थात धैर्य, दूसरो को क्षमा करना, अपने मन पर, विचारो पर, नियंत्रण होना, चोरी की भावना का न होना, शारीरिक और मानसिक पवित्रता, इंद्रियों पर पूर्ण नियंत्रण, अच्छी बुद्धि, सद्विद्या का ग्रहण करना, सत्य के मार्ग पर चलना और क्रोध न करना – यही मनुष्यता के दस लक्षण हैं। इन गुणों को अपनाकर हम सच्चे अर्थों में मनुष्य बनते हैं। यही वेद का आदेश है। मनुर्भव – मनुष्य बनो। + +539. 1. हमें चाहिए कि हम बच्चो को सभी संभावनाओं से पूर्ण मानें। हम समझें कि सभी बालक-बालिकाओं में कुछ बनने की योग्यता है। कोई न कोई विशेष गुण है। वह अपनी इन योग्यताओं का विकास चाहते हैं। हम उन्हे विकसित होने का पूर्ण वातावरण प्रदान करें और उनके गुणों की प्रशंसा करें। + +540. 4. प्रेरक बनें - अध्यापक का कार्य बच्चों को किसी विषय से संबंधित सूचनाओं का ख़ज़ाना नहीं बनाना है। हमें तो उसका व्यक्तित्व उभारना है। जैसे हम कहते हैं कि सूर्य हमारा प्रेरक है। एक बीज में वृक्ष बनने की योग्यता है, कलि में फूल बनने की योग्यता है, सूर्य अपनी किरणों से उन्हें विकसित होने की प्रेरणा देता है। इसीलिए सूर्य का नाम सविता है। हम अध्यापक भी इन बच्चो को खिलने का अवसर प्रदान करें। ये ऐमेटी के फूल भी हैं, माता-पिता के फूल भी हैं और भारत माता की बगिया के फूल भी हैं। उनकी योग्यता का विस्तार हो सके इसके लिए उन्हें उपयुक्त वातावरण प्रदान करें। उन्हें मानवीय गुणों को अपनाने के लिए भी प्रेरित करें। केवल विषय से संबंधित सूचनाओं का पिटारा न बना दें। अन्यथा ज्ञान प्राप्त करके वे स्वार्थी भी बन सकते हैं। उन्हें सर्वभूत हिते रता: की भावना से काम करने की प्रेरणा दें। + +541. 9. अपने व्यवहार को आदर्श बनाएं – बच्चे अपने बढ़ो का अनुकरण आरंभ से ही करने लगते हैं। बहुत सी शिक्षा इस अनुकरण प्रणाली से ही हम उन्हें दे सकते हैं। हम स्वयं सत्य का पालन करें – सब बच्चों को समान दृष्टि से देखें, निश्छल व्यवहार करें व समय का पालन करें – तो यह गुण बच्चों में स्वत: आ जाएंगे। वे भी समय पर अपना कार्य पूर्ण कर के दिखाएंगे व सबके साथ मित्रवत व्यवहार करेंगे। + +542. बच्चो को चित्रकला बहुत पसंद आती है | वह पेन्सिल हाथ में पकड़ते हो कुछ न कुछ बनना शुरू कर देते हैं | इसी आधार पर कुछ बच्चो के समूह को एक बड़ा कागज और उस पर चित्र बनाने को कहा गया ..कुछ बच्चो ने तो पूरा कागज ही भर दिया ..कुछ ने आधे पर चित्र बनाये और कुछ सिर्फ थोडी सी जगह पर चित्र बना कर बैठ गए | इसी आधार पर यह निष्कर्ष निकला कि जो बच्चे पूरा कागज भर देते हैं वह अक्सर बहिर्मुखी होते हैं |ऐसे बच्चे उत्साही और दूसरे लोगों से बहुत जल्दी घुल मिल जाते हैं .इस तरह के बच्चे स्वयम को अच्छे से अभिव्यक्त कर पाते हैं और अक्सर मनमौजी स्वभाव के और कम भावुक होते हैं | + +543. बच्चे का लिखने के ढंग से भी आप उसके स्वभाव को परख सकते हैं | जैसे लिखते वक़्त बच्चे ने चित्र में उन स्थानों पर तीखे कोनों का इस्तेमाल किया है जहाँ हल्की गोलाई होनी चाहिए थी तो यह उस बच्चे की आक्रामकता की सूचक है| यदि यह आक्रमकता उसके ताजे चित्रों में दिख रही तो उसके पुराने बनाए चित्र और शैली देखे इस से आप जान सकेंगे कि घर में ऐसा क्या घटित हुआ है जो आपके बच्चे के मनोभाव यूँ बदले हैं | अक्सर इस तरह से बदलाव दूसरे बच्चे के आने पर पहले बच्चे में दिखाई देते हैं उसको अपने प्यार में कमी महसूस होती है और वह यूँ आकर्मक हो उठता है | + +544. काला रंग या गहरा बेंगनी रंग इस्तेमाल करने वाले बच्चे को आपकी सहायता चाहिए |यह रंग बच्चे में दुःख और निराशा का प्रतीक है | + +545. बाल विकास (या बच्चे का विकास). + +546. + +547. भारतीय दण्ड संहिता, अध्याय 1: + +548. 1. संहिता का नाम और उसके प्रवर्तन का विस्तार--यह अधिनियम भारतीय दण्ड संहिता कहलाएगा, और इसका 34[जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय सम्पूर्ण भारत पर होगा ]। + +549. संथाल परगना एयवस्थापन विनियम (1872 का 3) की धारा 3 द्वारा संथाल परगनों पर ; + +550. संयुक्त प्रान्त तराई जिले--देखिए भारत का राजपत्र (अंग्रेजी), 1876, भाग 1, पॄ0 505, हजारीबाग, लोहारदग्गा के जिले [(जो अब रांची जिले के नाम से ज्ञात हैं,--देखिए कलकत्ता राजपत्र (अंग्रेजी), 1899, भाग 1, पॄ0 44 और मानभूम और परगना]। दालभूम तथा ासिंहभूम जिलों में कोलाहल—देखिए भारत का राजपत्र (अंग्रेजी), 1881, भाग 1, पॄ0 504। + +551. 4 1951 के अधिनियम सं0 3 को धारा 3 और अनुसूची द्वारा “भाग ख राज्यों को छोड़कर” के स्थान पर प्रतिस्थापित। + +552. 9 1898 का अधिनियम सं0 4 की धारा 2 द्वारा मूल धारा के स्थान पर प्रतिस्थापित। + +553. 4।।। क. 56[भारत का नागरिक है] उगांडा में हत्या करता है। वह 5[भारत] के किसी स्थान में, जहां वह पाया जाए, हत्या के लिए विचारित और दोषसिद्द किया जा सकता है। + +554. खगोलीय गति. + +555. कैलेन्डर से जुडे कुछ रोचक तथ्य. + +556. + +557. विज्ञान और कला के बगैर आधुनिक जीवन की कल्पना करना असंभव है। परन्तु विभिन्न कलाओ में विज्ञान के योगदान को हम कितना याद रखते हैं ? शायद बिल्कुल भी नहीं। वास्तव में विज्ञान एकत्रित ज्ञान है जबकि कला समस्त उपलब्ध संसाधनों के आधार पर मनुष्य के मनोभावों का निरूपण। अर्थात कोई वैज्ञानिक कार्य चाहे कितना ही महान क्यों न हो समय के साथ उसके वैज्ञानिक ज्ञान का समकालीन ज्ञान में समावेश हो जाता है। + +558. विज्ञान की सार्वंभौमिकता. + +559. कला के क्षेत्र में प्रत्येक महारथी की अपनी विधा और अपना अलग मार्ग होता है जबकि विज्ञान के क्षेत्र में आपको पूर्व से स्थापित मार्ग पर ही चलकर आगंे बढना होता है। चित्रकला की ही बात करें तो प्रागैतिहासिक मानव द्वारा बनाये गये गुफाा चित्रों में आदि मानव का समूह में शिकार करने का दृष्य हो अथवा ब्रम्हांड के बारे में मिश्र की प्राचीन धारणाओं पर निर्मित तत्कालीन चित्र इनमें मानव मन में बसी भावनाओं का ही निरूपण प्रतीत होता है। आज इनकी व्याख्या वर्तमान परिपेक्ष में करने पर आश्चर्यजनक तथ्य प्रकाश में आते हैं। पहले चित्र में शिकार के लिये भटकते मनुष्यों का संघर्ष और शिकार की मनोदशा न्यूनतम रेखाओं के माध्यम से प्रदर्शित होती है। आज भी कला के पारखी अपने मनोभावों को न्यूनतम रेखाओं के माध्यम से प्रदर्शित करने वाली कृति को ही को ही श्रेष्ठ कलाकृति के रूप में परिभाषित करतें हैं तथा कला विद्यालयों में न्यूनतम रेखाओं के आधार पर विषय का भाव पकडने का अभ्यास कराया जाता है। + +560. भारत की भीषण भाषा समस्या और उसके सम्भावित समाधान + +561. परिभाषा. + +562. भूगोल एक प्रगतिशील विज्ञान है। प्रत्येक देश में विशेषज्ञ अपने अपने क्षेत्रों का विकास कर रहे हैं। फलत: इसकी निम्नलिखित अनेक शाखाएँ तथा उपशाखाएँ हो गई है : + +563. राजनीतिक भूगोल -- इसके अंग भूराजनीतिक शास्त्र, अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय, औपनिवेशिक भूगोल, शीत युद्ध का भूगोल, सामरिक एवं सैनिक भूगोल हैं। + +564. हिन्दी साहित्य का इतिहास: + +565. श्री गुरु परमानंद तिनको दंडवत है। हैं कैसे परमानंद, आनंदस्वरूप है सरीर जिन्हि को, जिन्हि के नित्य गाए तें शरीर चेतन्नि अरु आनंदमय होतु है। मैं जु हौं गोरिष सो मछंदरनाथ को दंडवत करत हौं। हैं कैसे वे मछंदरनाथ! आत्मजोति निश्चल हैं अंत:करन जिनके अरु मूलद्वार तैं छह चक्र जिनि नीकी तरह जानैं। + +566. यह गद्य अपरिमार्जित और अव्यवस्थित है। पर इसके पीछे दो और सांप्रदायिक ग्रंथ लिखे गए जो बड़े भी हैं और जिनकी भाषा भी व्यवस्थित और चलती है। बल्लभसंप्रदाय में इनका अच्छा प्रसार है। इनके नाम हैं , 'चौरासी वैष्णवों की वार्ता' तथा 'दो सौ बावन वैष्णवों की वार्ता'। इनमें से प्रथम आचार्य श्री बल्लभाचार्य जी के पौत्र गोसाईं विट्ठलनाथ जी के पुत्र गोसाईं गोकुलनाथजी की लिखी कही जाती है, पर गोकुलनाथजी के किसी शिष्य की लिखी जान पड़ती है, क्योंकि इसमें गोकुलनाथजी का कई जगह बड़े भक्तिभाव से उल्लेख है। इसमें वैष्णव भक्तों और आचार्य जी की महिमा प्रकट करनेवाली कथाएँ लिखी गई हैं। इसका रचनाकाल विक्रम की सत्रहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध्द माना जा सकता है। 'दो सौ बावन वैष्णवों की वार्ता' तो और भी पीछे औरंगजेब के समय के लगभग लिखी प्रतीत होती है। इन वार्ताओं की कथाएँ बोलचाल की ब्रजभाषा में लिखी गई हैं जिसमें कहीं कहीं बहुत प्रचलित अरबी और फारसी शब्द भी निस्संकोच रखे गए हैं। साहित्यिक निपुणता या चमत्कार की दृष्टि से ये कथाएँ नहीं लिखी गई हैं। उदाहरण के लिए यह उध्दृत अंश पर्याप्त होगा , + +567. सब देवतन की कृपा ते बैकुंठमनि सुकुल श्री महारानी चंद्रावती के धरम पढ़िबे के अरथ यह जसरूप ग्रंथ वैसाख महातम भाषा करत भए। एक समय नारद जू ब्रह्मा की सभा से उठिकै सुमेर पर्वत को गए। + +568. अब शेख अबुलफजल ग्रंथ को करता प्रभु को निमस्कार करि कै अकबर बादशाह की तारीफ लिखने को कसद करै है अरु कहै है , याकी बड़ाई और चेष्टा अरु चिमत्कार कहाँ तक लिखूँ। कही जात नाहीं। तातें याकें पराक्रम अरु भाँति भाँति के दसतूर वा मनसूबा दुनिया में प्रगट भए ताको संखेप लिखत हौं। + +569. अंगना जु है स्त्री सु। प्रेम के अति आवेश करि। जु कार्य करन चाहति है ता कार्य विषै। ब्रह्माऊ। प्रत्यूहं आधातुं। अंतराउ कीबै कहँ। कातर। काइरु है। काइरु कहावै असमर्थ। जु कछु स्त्री करयो चाहैं सु अवस्य करहिं। ताको अंतराउ ब्रह्मा पहँ न करयो जाई और की कितीक बात। + +570. इसी ढंग की सारी टीकाओं की भाषा समझिए। सरदार कवि अभी हाल में हुए हैं। कविप्रिया, रसिकप्रिया, सतसई आदि की उनकी टीकाओं की भाषा और भी अनगढ़ और असंबद्ध है। सारांश यह है कि जिस समय गद्य के लिए खड़ी बोली उठ खड़ी हुई उस समय तक गद्य का विकास नहीं हुआ था, उसका कोई साहित्य नहीं खड़ा हुआ था, इसी से खड़ी बोली के ग्रहण में कोई संकोच नहीं हुआ। + +571. भोज के समय से लेकर हम्मीरदेव के समय तक अपभ्रंश काव्यों की जो परंपरा चलती रही उसके भीतर खड़ी बोली के प्राचीन रूप की भी झलक अनेक पद्यों में मिलती है। जैसे , + +572. कबीर मन निर्मल भया जैसा गंगानीर। + +573. अकबर के समय में गंग कवि ने 'चंद छंद बरनन की महिमा' नामक एक गद्य पुस्तक खड़ी बोली में लिखी थी। उसकी भाषा का नमूना देखिए , + +574. (क) प्रथम परब्रह्म परमात्मा का नमस्कार है जिससे सब भासते हैं और जिसमें सब लीन और स्थित होते हैं, × × × जिस आनंद के समुद्र के कण से संपूर्ण विश्वआनंदमय है, जिस आनंद से सब जीव जीते हैं। अगस्तजी के शिष्य सुतीक्षण के मन में एक संदेह पैदा हुआ तब वह उसके दूर करने का कारण अगस्त मुनि के आश्रम को जा विधिसहित प्रणाम करके बैठे और बिनती कर प्रश्न किया कि हे भगवान! आप सब तत्वों शास्त्रों के जाननहारे हो, मेरे एक संदेह को दूर करो। मोक्ष का कारण कर्म है किज्ञान है अथवा दोनों हैं, समझाय के कहो। इतना सुन अगस्त मुनि बोले कि हे ब्रह्मण्य! केवल कर्म से मोक्ष नहीं होता और न केवल ज्ञान से मोक्ष होता है, मोक्ष दोनों से प्राप्त होता है। कर्म से अंत:करण शुद्ध होता है, मोक्ष नहीं होता और अंत:करण की शुद्धि बिना केवल ज्ञान से मुक्ति नहीं होती। + +575. आगे चलकर संवत् 1830 और 1840 के बीच राजस्थान के किसी लेखक ने 'मंडोवर का वर्णन' लिखा जिसकी भाषा साहित्य की नहीं, साधारण बोलचाल की है, जैसे , + +576. अंगरेज यद्यपि विदेशी थे पर उन्हें यह स्पष्ट लक्षित हो गया कि जिसे उर्दू कहते हैं वह न तो देश की स्वाभाविक भाषा है, न उसका साहित्य देश का साहित्य है, जिसमें जनता के भाव और विचार रक्षित हों। इसीलिए जब उन्हें देश की भाषा सीखने की आवश्यकता हुई और वे गद्य की खोज में पड़े तब दोनों प्रकार की पुस्तकों की आवश्यकता हुई , उर्दू की भी और हिन्दी (शुद्ध खड़ी बोली) की भी। पर उस समय गद्य की पुस्तकें वास्तव में न उर्दू में थीं न हिन्दी में। जिस समय फोर्ट विलियम कॉलेज की ओर से उर्दू और हिन्दी गद्य की पुस्तकें लिखने की व्यवस्था हुई उसके पहले हिन्दी खड़ी बोली में गद्य की कई पुस्तकें लिखी जा चुकी थीं। + +577. मुंशीजी ने यह गद्य न तो किसी अंगरेज अधिकारी की प्रेरणा से और न किसी दिए हुए नमूने पर लिखा। वे एक भगवद्भक्त थे। अपने समय में उन्होंने हिंदुओं की बोलचाल की जो शिष्ट भाषा चारों ओर , पूरबी प्रांतों में भी , प्रचलित पाई उसी में रचना की। स्थान स्थान पर शुद्ध तत्सम संस्कृत शब्दों का प्रयोग करके उन्होंने उसके भावी साहित्यिक रूप का पूर्ण आभास दिया। यद्यपि वे खास दिल्ली के रहने वाले अह्लेजबान थे पर उन्होंने अपने हिन्दी गद्य में कथावाचकों, पंडितों और साधु संतों के बीच दूर दूर तक प्रचलित खड़ी बोली का रूप रखा, जिसमें संस्कृत शब्दों का पुट भी बराबर रहता था। इसी संस्कृतमिश्रित हिन्दी को उर्दूवाले 'भाषा' कहते थे जिसका चलन उर्दू के कारण कम होते देख मुंशी सदासुख ने इस प्रकार खेद प्रकट किया था , + +578. 2. इंशाअल्ला खाँ उर्दू के बहुत प्रसिद्ध शायर थे जो दिल्ली के उजड़ने पर लखनऊ चले आए थे। इनके पिता मीर माशाअल्ला खाँ कश्मीर से दिल्ली आए थे जहाँ वे शाही हकीम हो गए थे। मोगल सम्राट की अवस्था बहुत गिर जाने पर हकीम साहब मुर्शिदाबाद के नवाब के यहाँ चले गए थे। मुर्शिदाबाद ही में इंशा का जन्म हुआ। जब बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला मारे गए और बंगाल में अंधेर मचा तब इंशा, जो पढ़ लिखकर अच्छे विद्वान और प्रतिभाशाली कवि हो चुके थे, दिल्ली चले आए और शाहआलम दूसरे के दरबार में रहने लगे। वहाँ जब तक रहे अपनी अद्भुत प्रतिभा के बल से अपने विरोधी, बड़े बड़े नामी शायरों को ये बराबर नीचा दिखाते रहे। जब गुलामकादिर बादशाह को अंधा करके शाही खजाना लूटकर चल दिया तब इंशा का निर्वाह दिल्ली में कठिन हो गया और वे लखनऊ चले आए। जब संवत् 1855 में नवाब सआदतअली खाँ गद्दी पर बैठे तब ये उनके दरबार में आने जाने लगे। बहुत दिनों तक इनकी बड़ी प्रतिष्ठा रही पर अंत में एक दिल्लगी की बात पर इनका वेतन आदि सब बंद हो गया था और इनके जीवन का अंतिम भाग बड़े कष्ट में बीता। संवत् 1875 में इनकी मृत्यु हुई। + +579. इस बिलगाव से, आशा है, ऊपर लिखी बात स्पष्ट हो गई होगी। इंशा ने 'भाखापन' और 'मुअल्लापन' दोनों को दूर रखने का प्रयत्न किया, पर दूसरी बला किसी न किसी सूरत में कुछ लगी रह गई। फारसी के ढंग का वाक्यविन्यास कहींकहीं, विशेषत: बड़े वाक्यों में आ ही गया है; पर बहुत कम। जैसे , + +580. जब दोनों महाराजों में लड़ाई होने लगी, रानी केतकी सावन भादों के रूप रोने लगी और दोनों के जी में यह आ गई , यह कैसी चाहत जिनमें लहू बरसने लगा और अच्छी बातों को जी तरसने लगा। + +581. इस बात पर पानी डाल दो नहीं तो पछताओगी और अपना किया पाओगी। मुझसे कुछ न हो सकेगा। तुम्हारी जो कुछ अच्छी बात होती तो मेरे मुँह से जीतेजी न निकलती, पर यह बात मेरे पेट नहीं पच सकती। तुम अभी अल्हड़ हो, तुमने अभी कुछ देखा नहीं। जो ऐसी बात पर सचमुच ढलाव देखूँगी तो तुम्हारे बाप से कहकर वह भभूत जो वह मुआ निगोड़ा भूत, मुछंदर का पूत अवधूत दे गया है, हाथ मुरकवाकर छिनवा लूँगी। + +582. श्रीशुकदेव मुनि बोले , महाराज! ग्रीष्म की अति अनीति देख, नृप पावस प्रचंड पशु पक्षी, जीव जंतुओं की दशा विचार चारों ओर से दल बादल साथ ले लड़ने को चढ़ आया। तिस समय घन जो गरजता था सोई तौ धौंसा बजता था और वर्ण वर्ण की घटा जो घिर आई थी सोई शूर वीर रावत थे, तिनके बीच बिजली की दमक शस्त्रा की सी चमकती थी, बगपाँत ठौर ठौर धवज-सी फहराय रही थी, दादुर, मोर, कड़खैतों की सी भाँति यश + +583. 4. सदल मिश्र ये बिहार के रहनेवाले थे। फोर्टविलियम कॉलेज में काम करते थे। जिस प्रकार उक्त कॉलेज के अधिकारियों की प्रेरणा से लल्लूलाल ने खड़ी बोली गद्य की पुस्तक तैयार की उसी प्रकार इन्होंने भी। इनका 'नासिकेतोपाख्यान' भी उसी समय लिखा गया जिस समय 'प्रेमसागर'। पर दोनों की भाषा में बहुत अंतर है। लल्लूलाल के समान इनकी भाषा में न तो ब्रजभाषा के रूपों की वैसी भरमार है और न परंपरागत काव्य भाषा की पदावली का स्थान स्थान पर समावेश। इन्होंने व्यवहारोपयोगी भाषा लिखने का प्रयत्न किया है और जहाँ तक हो सकता है खड़ी बोली का ही व्यवहार किया है। पर इनकी भाषा भी साफ सुथरी नहीं। ब्रजभाषा के भी कुछ रूप हैं और पूरबी बोली के शब्द तो स्थान स्थान पर मिलते हैं। 'फूलन्ह के बिछौने', 'चहुँदिस', 'सुनि', 'सोनन्ह के थंभ' आदि प्रयोग ब्रजभाषा के हैं, 'इहाँ', 'मतारी', 'बरते थे', 'जुड़ाई', 'बाजने', 'लगा', 'जौन' आदि पूरबी शब्द हैं। भाषा के नमूने के लिए 'नासिकेतोपाख्यान' से थोड़ा सा अवतरण नीचे दिया जाता है , + +584. उस गाँव के लोग भोहोत सुखी हैं। घर घर में आनंद होता है, कोई घर में फकीर दीखता नहीं। + +585. इसके आगे ईसाइयों की पुस्तकें और पंफलेट बराबर निकलते रहे। उक्त 'सिरामपुर प्रेस' से संवत् 1893 में 'दाऊद के गीतें' नाम की पुस्तक छपी जिसकी भाषा में कुछ फारसी अरबी के बहुत चलते शब्द भी रखे मिलते हैं। पर इसके पीछे अनेक नगरों से बालकों की शिक्षा के लिए ईसाइयों के छोटे मोटे स्कूल खुलने लगे और शिक्षा संबंधी पुस्तकें भी निकलने लगीं। इन पुस्तकों की हिन्दी भी वैसी ही सरल और विशुद्ध होती थी जैसी 'बाइबिल' के अनुवाद की थी। आगरा, मिर्जापुर, मुंगेर आदि जिले उस समय ईसाइयों के प्रचार के मुख्य केंद्र थे। + +586. कहने की आवश्यकता नहीं कि ईसाइयों के प्रचारकार्य का प्रभाव हिंदुओं की जनसंख्या पर ही पड़ रहा था। अत: हिंदुओं के शिक्षित वर्ग के बीच स्वधर्म रक्षा की आकुलता दिखाई पड़ने लगी। ईसाई उपदेशक हिंदू धर्म की स्थूल और बाहरी बातों को लेकर ही अपना खंडन-मंडन चलाते आ रहे थे। यह देखकर बंगाल में राजा राममोहन राय उपनिषद् और वेदांत का ब्रह्मज्ञान लेकर उसका प्रचार करने खड़े हुए। नूतन शिक्षा के प्रभाव से पढ़े लिखे लोगों में से बहुतों के मन में मूर्तिपूजा, तीर्थाटन, जातिपाँति, छुआछूत आदि के प्रति अश्रध्दा हो रही थी। अत: राममोहन राय ने इन बातों को अलग करके शुद्ध ब्रह्मोपासना का प्रवर्तन करने के लिए 'ब्रह्मसमाज' की नींव डाली। संवत् 1872 में उन्होंने वेदांत सूत्रों के भाष्य का हिन्दी अनुवाद करके प्रकाशित कराया था। संवत् 1886 में उन्होंने 'बंगदूत' नाम का एक संवाद पत्र भी हिन्दी में निकाला। राजा साहब की भाषा में एकआधा जगह कुछ बँग्लापन जरूर मिलता है, पर उसका रूप अधिकांश में वही है जो शास्त्रज्ञ विद्वानों के व्यवहार में आता था। नमूना देखिए , + +587. 1. एक यशी वकील वकालत का काम करते करते बुङ्ढा होकर अपने दामाद को यह काम सौंप के आप सुचित हुआ। दामाद कई दिन काम करके एक दिन आया ओ प्रसन्न होकर बोला , हे महाराज! आपने जो फलाने का पुराना वो संगीन मोकद्दमा हमें सौंपा था सो आज फैसला हुआ। यह सुनकर वकील पछता करके बोला , तुमने सत्यानाश किया। उस मोकद्दमे से हमारे बाप बड़े थे तिस पीछे हमारे बाप मरती समय हमें हाथ उठाकर के दे गए ओ हमने भी उसको बना रखा ओ अब तक भलीभाँति अपना दिन कटा ओ वही मोकद्दमा तुमको सौंप कर समझा था कि तुम भी अपने बेटे पोते परोतों तक पलोगे पर तुम थोड़े से दिनों में उसे खो बैठे। + +588. किसी को इस बात का उजूर नहीं होए कि ऊपर के दफे का लीखा हुकुम सभसे वाकीफ नहीं है, हरी एक जिले के कलीकटर साहेब को लाजीम है कि इस आईन के पावने पर एक केता इसतहारनामा निचे के तरह से फारसी व नागरी भाखा के अच्छर में लिखाय कै...कचहरी में लटकावही। अदालत के जजसाहिब लोग के कचहरी में भी तमामी आदमी के बुझने के वास्ते लटकावही (अंग्रेजी सन् 1803 साल, 31 आईन 20 दफा)। + +589. सरकार की कृपा से खड़ी बोली का अरबी फारसीमय रूप लिखने पढ़ने की अदालती भाषा होकर सबके सामने आ गया। जीविका और मान मर्यादा की दृष्टि से उर्दू सीखना आवश्यक हो गया। देश भाषा के नाम पर लड़कों को उर्दू ही सिखाई जाने लगी। उर्दू पढ़े लिखे लोग ही शिक्षित कहलाने लगे। हिन्दी की काव्यपरंपरा यद्यपि राजदरबारों के आश्रय में चली चलती थी पर उसके पढ़नेवालों की संख्या भी घटती जा रही थी। नवशिक्षित लोगों का लगाव उसके साथ कम होता जा रहा था। ऐसे प्रतिकूल समय में साधारण जनता के साथ उर्दू पढ़े लिखे लोगों की जो भी थोड़ी बहुत दृष्टि अपने पुराने साहित्य की बनी हुई थी, वह धर्मभाव से। तुलसीकृत रामायण्ा की चौपाइयाँ और सूरदास जी के भजन आदि ही उर्दूग्रस्त लोगों का कुछ लगाव 'भाखा' से भी बनाए हुए थे। अन्यथा अपने परंपरागत साहित्य के नवशिक्षित लोगों का मन अधिकांश कालचक्र के प्रभाव से विमुख हो रहा था। श्रृंगाररस की भाषा कविता का अनुशीलन भी गाने बजाने आदि के शौक की तरह इधर उधर बना हुआ था। इस स्थिति का वर्णन करते हुए स्वर्गीय बाबू बालमुकुंद गुप्त लिखते हैं, + +590. कलकत्ते के समाचार + +591. ऐसी भाषा का जानना सब विद्यार्थियों के लिए आवश्यक ठहराना जो मुल्क की सरकारी और दफ्तरी जबान नहीं है, हमारी राय में ठीक नहीं है। इसके सिवाय मुसलमान विद्यार्थी, जिनकी संख्या देहली कॉलेज में बड़ी है, इसे अच्छी नजर से नहीं देखेंगे। + +592. जिस गार्सां द तासी ने संवत् 1909 के आसपास हिन्दी और उर्दू दोनों का रहना आवश्यक समझा था और कभी कहा था कि , + +593. हिन्दी में हिंदू धर्म का आभास है , वह हिंदू धर्म जिसके मूल में बुतपरस्ती और उसके आनुषंगिक विधान हैं। इसके विपरीत उर्दू में इसलामी संस्कृति और आचार व्यवहार का संचय है। इस्लाम भी 'सामी' मत है और एकेश्वरवाद उसका मूल सिध्दांत है; इसीलिए इसलामी तहजीब में ईसाई या मसीही तहजीब की विशेषताएँ पाई जाती हैं। + +594. 1. अपनी कहानी का आरंभ ही उन्होंने इस ढंग से किया है , जैसे लखनऊ के भाँड़ घोड़ा कुदाते हुए महिफल में आते हैं। + +595. 1. पुष्पवाटिका (गुलिस्ताँ के एक अंग का अनुवाद, संवत् 1909) + +596. बिहारीलाल ने गुलिस्ताँ के आठवें अध्याय का हिन्दी अनुवाद संवत् 1919 में किया। + +597. मनुस्मृति हिंदुओं का मुख्य धर्मशास्त्र है। उसको कोई भी हिंदू अप्रामाणिक नहीं कह सकता। वेद में लिखा है कि मनु जी ने जो कुछ कहा है उसे जीव के लिए औषधिा समझना; और बृहस्पति लिखते हैं कि धर्म शास्त्राचार्यों में मनु जी सबसे प्रधान और अति मान्य हैं क्योंकि उन्होंने अपने धर्मशास्त्र में संपूर्ण वेदों का तात्पर्य लिखा है।...खेद की बात है कि हमारे देशवासी हिंदू कहलाके अपने मानवधर्मशास्त्र को न जानें और सारे कार्य्य उसके विरुद्ध करें। + +598. हम लोगों को जहाँ तक बन पड़े चुनने में उन शब्दों को लेना चाहिए कि जो आम फहम और खासपसंद हों अर्थात् जिनको जियादा आदमी समझ सकते हैं और जो यहाँ के पढ़े लिखे, आलिमफाजिल, पंडित, विद्वान की बोलचाल में छोड़े नहीं गए हैं और जहाँ तक बन पड़े हम लोगों को हरगिज गैरमुल्क के शब्द काम में न लाने चाहिए और न संस्कृत की टकसाल कायम करके नए नए ऊपरी शब्दों के सिक्के जारी करने चाहिए; जब तक कि हम लोगों को उसके जारी करने की जरूरत न साबित हो जाय अर्थात् यह कि उस अर्थ का कोई शब्द हमारी जबान में नहीं है, या जो है अच्छा नहीं है, या कविताई की जरूरत या इल्मी जरूरत या कोई और खास जरूरत साबित हो जाय। + +599. अब भारत की देशभाषाओं के अध्ययन की ओर इंगलैंड के लोगों का भी ध्यान अच्छी तरह जा चुका था। उनमें जो अध्ययनशील और विवेकी थे, जो अखंड भारतीय साहित्य परंपरा और भाषा परंपरा से अभिज्ञ हो गए थे, उन पर अच्छी तरह प्रकट हो गया था कि उत्तरीय भारत की असली स्वाभाविक भाषा का स्वरूप क्या है। इन अंगरेज विद्वानों में फ्रेडरिक पिंकाट का स्मरण हिन्दी प्रेमियों को सदा बनाए रखना चाहिए। इनका जन्म संवत् 1893 में इंगलैंड में हुआ। उन्होंने प्रेस के कामों का बहुत अच्छा अनुभव प्राप्त किया और अंत में लंदन की प्रसिद्ध ऐलन ऐंड कंपनी (ॅण् भ्ण्। ससमद ंदक ब्वण् 13 ँजमतसवव चसंबमए च्ंसस डंससए ैण् ॅण्) के विशालछापेखाने के मैनेजर हुए। वहीं वे अपने जीवन के अंतिम दिनों के कुछ पहले तक शांतिपूर्वक रहकर भारतीय साहित्य और भारतीय जनहित के लिए बराबर उद्योग करते रहे। + +600. फारसी मिश्रित हिन्दी (अर्थात् उर्दू या हिंदुस्तानी) के अदालती भाषा बनाए जाने के कारण उसकी बड़ी उन्नति हुई। इससे साहित्य की एक नई भाषा ही खड़ी हो गई। पश्चिमोत्तार प्रदेश के निवासी, जिनकी यह भाषा कही जाती है, इसे एक विदेशी भाषा की तरह स्कूलों में सीखने के लिए विवश किये जाते हैं। + +601. उर्दू के प्रचलित होने से देशवासियों को कोई लाभ न होगा क्योंकि वह भाषा खास मुसलमानों की है। उसमें मुसलमानों ने व्यर्थ बहुत से अरबी फारसी के शब्द भर दिए हैं। पद्य या छंदोबद्ध रचना के भी उर्दू उपयुक्त नहीं। हिंदुओं का यहर् कत्ताव्य है कि ये अपनी परंपरागत भाषा की उन्नति करते चलें। उर्दू में आशिकी कविता के अतिरिक्त किसी गंभीर विषय को व्यक्त करने की शक्ति ही नहीं है। + +602. उसी काल में इंडियन डेली न्यूज के एक लेख में हिन्दी प्रचलित किए जाने की आवश्यकता दिखाई गई थी। उसका भी जवाब देने तासी साहब खड़े हुए थे। 'अवध अखबार' में जब एक बार हिन्दी के पक्ष में लेख छपा था तब भी उन्होंने उसके संपादक की राय का जिक्र करते हुए हिन्दी को एक 'भद्दी बोली' कहा था जिसके अक्षर भी देखने में सुडौल नहीं लगते। + +603. राजा शिवप्रसाद 'आमफहम' और 'खासपसंद' भाषा का उपदेश ही देते रहे, उधर हिन्दी अपना रूप आप स्थिर कर चली। इस बात में धार्मिक और सामाजिक आंदोलनों ने भी बहुत कुछ सहायता पहुँचाई। हिन्दी गद्य की भाषा किस दिशा की ओर स्वभावत: जाना चाहती है, इसकी सूचना तो काल अच्छी तरह दे रहा था। सारी भारतीय भाषाओं का साहित्य चिरकाल से संस्कृत की परिचित और भावपूर्ण पदावली का आश्रय लेता चला आ रहा था। अत: गद्य के नवीन विकास में उस पदावली का त्याग और किसी विदेशी पदावली का सहसा ग्रहण कैसे हो सकता था? जब कि बँग्ला, मराठी आदि अन्य देशी भाषाओं का गद्य परंपरागत संस्कृत पदावली का आश्रय लेता हुआ चल पड़ा था तब हिन्दी गद्य उर्दू के झमेले में पड़कर कब तक रुका रहता? सामान्य संबंधसूत्र को त्यागकर दूसरी देशी भाषाओं से अपना नाता हिन्दी कैसे तोड़ सकती थी? उनकी सगी बहन होकर एक अजनबी के रूप में उनके साथ वह कैसे चल सकती थी जबकि यूनानी और लैटिन के शब्द यूरोप के भिन्न भिन्न मूलों से निकली हुई देशी भाषाओं के बीच एक प्रकार का साहित्यिक संबंध बनाए हुए हैं तब एक ही मूल से निकली हुई आर्य भाषाओं के बीच उस मूल भाषा के साहित्यिक शब्दों की परंपरा यदि संबंधसूत्र के रूप में चली आ रही है तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है? + +604. सामान्य परिचय + +605. द्विवेदीजी के प्रभाव से हिन्दी काव्य ने जो स्वरूप प्राप्त किया उसके अतिरिक्त और अनेक रूपों में भी भिन्न भिन्न कवियों की काव्यधारा चलती रही। कई एक बहुत अच्छे कवि अपने अपने ढंग पर सरस और प्रभावपूर्ण कविता करते रहे जिनमें मुख्य राय देवी प्रसाद 'पूर्ण', पं. नाथूरामशंकर शर्मा, पं. गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही', पं. सत्यनारायण कविरत्न, लाला भगवानदीन, पं. रामनरेश त्रिपाठी, पं. रूपनारायण पांडेयहैं। + +606. कविता को पूरन कलानिधि कितै गयो। (रतनेश) + +607. तजि बिछौनन को अब भागिए। भरत खंड प्रजागण जागिए + +608. इसी कारण निदाघ प्रतिकूल, दहन में तेरे रहा अशक्त + +609. आकर के इस कुसुमाकर में, करते हैं नंदन रुचि त्याग + +610. पवन देवता गगन पंथ से सुघन घटों में लाकरनीर। + +611. हंस भृंग हिंसा के भय से छाते नहीं बंद अरविंद + +612. सरकारी कानून का रखकर पूरा ध्यान। + +613. हो सकती है दूर, नहीं बाधा सरकारी + +614. दोनों ध्रुव छोरन लौं पल में पिघल कर + +615. जो पै वा वियोगिनी की आह कढ़ जाएगी + +616. पर मैं पिंड छुड़ाय जवनिका में जा दबकी + +617. डूब डूब 'शंकर' सरोज सड़ जायँगे + +618. पं. गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'. + +619. तू है मनोहर गीत तो मैं एक उसकी तान हूँ + +620. 'स्वप्न' नामक खंड काव्य तृतीय उत्थान काल के भीतर लिखा गया है जबकि 'छायावाद' नाम की शाखा चल चुकी थी, इससे उस शाखा का भी रंग कहीं कहीं इसके भीतर झलक मारता है, जैसे , + +621. इसी तरह की अमित कल्पना के प्रवाह में मैं निशिवासर, + +622. उसकी प्रिया सुमना उसे दिन रात इस प्रकार भावनाओं में ही मग्न और अव्यवस्थित देखकर कर्म मार्ग पर स्थिर हो जाने का उपदेश देती है , + +623. अर्ध्द निशा में तारागण से प्रतिबिंबित अति निर्मल जलमय। + +624. डाल दिए थे उसने गिरि पर, नदियों के तट पर, वनपथ पर + +625. चारु चंद्रिका से आलोकित विमलोदक सरसी के तट पर, + +626. 'हमें किसी की छाँह चाहिए' कहते चुनते हुए अन्नकण, + +627. तड़ित्प्रभा या घनगर्जन से भय या प्रेमोद्रेक प्राप्त कर, + +628. मेरा हर्ष चला जाता है एक आह के साथ निकल कर + +629. सिंधुविहंग तरंग पंख को फड़का कर प्रतिक्षण में। + +630. मैं देखता तुझे था माशूक के वदन में + +631. उनकी कविताओं के दोनों तरह के नमूने नीचे देखिए , + +632. 'दीन' भनै ताहि लखि जात पतिलोक, + +633. वह व्यर्थ सुकवि होने का अभिमान जनाता + +634. इनकी फुटकल कविताओं का संग्रह 'नवीन बीन' या 'नदीमें दीन' में है। + +635. परदुखसुख तू ने, हा! न देखा न भाला। + +636. कहने का प्रयोजन है इतना, उनके सुख की रही सीमा नहीं + +637. जो मों सों हँसि मिलै होत मैं तासु निरंतर चेरो। + +638. कोरो सत्य ग्राम को वासी कहा 'तकल्लुफ' जानै + +639. अलबेली कहु बेलि द्रुमन सों लिपटि सुहाई। + +640. लखि वह सुषमा जाल लाल निज बिन नंदरानी। + +641. कौने भेजौं दूत, पूत सों बिथा सुनावै। + +642. नित नव परत अकाल, काल को चलत चक्र चहुँ। + +643. जे तजि मातृभूमि सों ममता होत प्रवासी। + +644. विद्याबल लहि मति परम अबला सबला होइ + +645. खींचति आप सों आप उतहि यह, ऐसी प्रकृति अभागी + +646. + +647. इसमें तो कोई संदेह नहीं कि संस्कृत के वर्णवृत्तों का माधुर्य अन्यत्रा दुर्लभ है, पर उनमें भाषा इतनी जकड़ जाती है कि वह भावधारा के मेल में पूरी तरह से स्वच्छंद होकर नहीं चल सकती। इसी से संस्कृत के लंबे समासों का बहुत कुछ सहारा लेना पड़ता है। पर संस्कृत पदावली के अधिक समावेश से खड़ी बोली की स्वाभाविक गति के प्रसार के लिए अवकाश कम रहता है। अत: वर्णवृत्तों का थोड़ा बहुत उपयोग किसी बड़े प्रबंध के भीतर बीच में ही उपयुक्त हो सकता है। तात्पर्य यह कि संस्कृत पदावली का अधिक आश्रय लेने से खड़ी बोली के मँजने की संभावना दूर ही रहेगी। + +648. नए नए छंदों की योजना के संबंध में हमें कुछ नहीं कहना है। यह बहुत अच्छी बात है। 'तुक' भी कोई ऐसी अनिवार्य वस्तु नहीं। चरणों के भिन्न भिन्न प्रकार के मेल चाहे जितने किए जायँ, ठीक हैं। पर इधर कुछ दिनों से बिना छंद (मीटर) के पद्य भी , बिना तुकांत के होना तो बहुत ध्यान देने की बात नहीं , निरालाजी ऐसे नई रंगत के कवियों में देखने में आते हैं। यह अमेरिका के एक कवि वाल्ट ह्निटमैन ;ँसज ॅीपजउंदद्ध की नकल है, जो पहले बँग्ला में थोड़ी बहुत हुई। बिना किसी प्रकार की छंदोव्यवस्था की अपनी पहली रचना 'लीव्स ऑफ ग्रास' उसने सन् 1855 ई. में प्रकाशित की। उसके उपरांत और भी बहुत सी रचनाएँ इसी प्रकार की मुक्त या स्वच्छंद पंक्तियों में निकलीं, जिनके संबंध में एक समालोचक ने लिखाहै , + +649. प्रथम उत्थान के भीतर हम देख चुके हैं कि किस प्रकार काव्य को भी देश की बदलती हुई स्थिति और मनोवृत्ति के मेल में लाने के लिए भारतेंदु मंडल ने कुछ प्रयत्न किया पर यह प्रयत्न केवल सामाजिक और राजनीतिक स्थिति की ओर हृदय को थोड़ा प्रवृत्त करके रह गया। राजनीतिक और सामाजिक भावनाओं को व्यक्त करनेवाली वाणी भी दबी सी रही। उसमें न तो संकल्प की दृढ़ता और न्याय के आग्रह का जोश था, न उलटफेर की प्रबल कामना का वेग। स्वदेश प्रेम व्यंजित करनेवाला यह स्वर अवसाद और खिन्नता का स्वर था, आवेश और उत्साह का नहीं। उसमें अतीत के गौरव का स्मरण और वर्तमान Ðास का वेदनापूर्ण अनुभव ही स्पष्ट था। अभिप्राय यह कि यह प्रेम जगाया तो गया, पर कुछ नया नया सा होने के कारण उस समय काव्यभूमि पर पूर्ण रूप से प्रतिष्ठित न हो सका। + +650. द्वितीय उत्थान के भीतर हम दिखा आए हैं कि किस प्रकार काव्यक्षेत्र का विस्तार बढ़ा, बहुत से नए नए विषय लिए गए और बहुत से कवि कवित्त, सवैये लिखने से बाज आकर संस्कृत के अनेक वृत्तों में रचना करने लगे। रचनाएँ चाहे अधिकतर साधारण गद्यनिबंधों के रूप में ही हुई हों, पर प्रवृत्ति अनेक विषयों की ओर रही, इसमें संदेह नहीं। उसी द्वितीय उत्थान में स्वतंत्र वर्णन के लिए मनुष्येतर प्रकृति को कवि लोग लेने लगे पर अधिकतर उसके ऊपरी प्रभाव तक ही रहे। उसके रूप, व्यापार कैसे सुखद, सजीले और सुहावने लगते हैं, अधिकतर यही देख दिखाकर उन्होंने संतोष किया। चिर साहचर्य से उत्पन्न उनके प्रति हमारा राग व्यंजित न हुआ। उनके बीच मनुष्य जीवन को रखकर उसके प्रकृत स्वरूप पर व्यापक दृष्टि नहीं डाली गई। रहस्यमयी सत्ता के अक्षरप्रसार के भीतर व्यंजित भावों और मार्मिक तथ्यों के साक्षात्कार तथा प्रत्यक्षीकरण की ओर झुकाव न देखने में आया। इसी प्रकार विश्व के अत्यंत सूक्ष्म और अत्यंत महान् विधानों के बीच जहाँ तक हमारा ज्ञान पहुँचा है वहाँ तक हृदय को भी पहुँचाने का कुछ प्रयास होना चाहिए था, पर न हुआ। द्वितीय उत्थानकाल का अधिकांश भाग खड़ी बोली को भिन्न भिन्न प्रकार के पद्यों में ढालने में ही लगा। + +651. यह तो हुई काल के प्रभाव की बात। थोड़ा यह भी देखना चाहिए कि चली आती हुई काव्यपरंपरा की शैली से अतृप्ति या असंतोष के कारण परिवर्तन की कामना कहाँ तक जगी और उसकी अभिव्यक्ति किन किन रूपों में हुई। भक्तिकाल और रीतिकाल की चली आती हुई परंपरा के अंत में किस प्रकार भारतेंदुमंडल के प्रभाव से देशप्रेम और जातिगौरव की भावना को लेकर एक नूतन परंपरा की प्रतिष्ठा हुई, इसका उल्लेख हो चुका है। द्वितीय उत्थान में काव्य की नूतन परंपरा का अनेक विषयस्पर्शी प्रसार अवश्य हुआ पर द्विवेदीजी के प्रभाव से एक ओर उसमें भाषा की सफाई आई, दूसरी ओर उसका स्वरूप गद्यवत, रूखा, इतिवृत्तात्मक और अधिकतर बाह्यार्थ निरूपक हो गया। अत: इस तृतीय उत्थान में जो प्रतिवर्तन हुआ और पीछे 'छायावाद' कहलाया वह उसी द्वितीय उत्थान की कविता के विरुद्ध कहा जा सकता है। उसका प्रधान लक्ष्य काव्यशैली की ओर था, वस्तुविधान की ओर नहीं। अर्थभूमि या वस्तुभूमि का तो उसके भीतर बहुत संकोच हो गया। समन्वित विशाल भावनाओं को लेकर चलने की ओर ध्यान न रहा। + +652. (क) मेरे ऑंगन का एक फूल। + +653. (ख) तेरे घर के द्वार बहुत हैं किससे होकर आऊँ मैं? + +654. चातक खड़ा चोंच खोले है, सम्पुट खोले सीप खड़ी, + +655. किंतु उसी बुझते प्रकाश में डूब उठा मैं और बहा। + +656. मिला मुझे तू तत्क्षण जग में, + +657. (ख) मेरे जीवन की लघु तरणी, + +658. तप्त श्वेत बूँदों में ढर जा + +659. पं. बदरीनाथ भट्ट. + +660. बख्शीजी के भी इस ढंग के कुछ गीत सन् 1915-16 के आसपास मिलेंगे। + +661. काव्यभूमि के भीतर चले हुए मार्ग नहीं। भारतीय परंपरा का कोई कवि मणिपूर, अनाहत आदि के चक्रों को लेकर तरह तरह के रंगमहल बनाने में प्रवृत्त नहीं हुआ। + +662. कलावाद और अभिव्यंजनावाद का पहला प्रभाव यह दिखाई पड़ा कि काव्य में भावानुभूति के स्थान पर कल्पना का विधान ही प्रधान समझा जाने लगा और कल्पना अधिकतर अप्रस्तुतों की योजना करने तथा लाक्षणिक मूर्तिमत्ता और विचित्रता लाने में ही प्रवृत्त हुई। प्रकृति के नाना रूप और व्यापार इसी अप्रस्तुत योजना के काम में लाए गए। सीधे उनके मर्म की ओर हृदय प्रवृत्त न दिखाई पड़ा। पंतजी अलबत्ता प्रकृति के कमनीय रूपों की ओर कुछ रुककर हृदय रमाते पाए गए। + +663. छायावाद जहाँ तक आध्यात्मिक प्रेम लेकर चला है वहाँ तक तो रहस्यवाद के ही अंतर्गत रहा है। उसके आगे प्रतीकवाद या चित्रभाषावाद (सिंबालिज्म) नाम की काव्यशैली के रूप में गृहीत होकर भी वह अधिकतर प्रेमगान ही करता रहा है। हर्ष की बात है कि अब कई कवि उस संकीर्ण क्षेत्र से बाहर निकलकर जगत् और जीवन के और और मार्मिक पक्षों की ओर भी बढ़ते दिखाई दे रहे हैं। इसी के साथ काव्यशैली में प्रतिक्रिया के प्रदर्शन व नएपन की नुमाइश का शौक भी घट रहा है। अब अपनी शाखा की विशिष्टता को विभिन्नता की हद पर ले जाकर दिखाने की प्रवृत्ति का वेग क्रमश: कम तथा रचनाओं को सुव्यवस्थित और अर्थगर्भित रूप देने की रुचि क्रमश: अधिक होती दिखाई पड़ती है। + +664. उपर्युक्त परिवर्तनवाद और छायावाद को लेकर चलनेवाली कविताओं के साथ साथ दूसरी धाराओं की कविताएँ भी विकसित होती हुई चल रही हैं। द्विवेदीकाल में प्रवर्तित विविधा, वस्तुभूमियों पर प्रसन्न प्रवाह के साथ चलनेवाली काव्यधारा सर्वश्री मैथिलीशरण गुप्त, ठाकुर गोपालशरण सिंह, अनूप शर्मा, श्यामनारायण पांडेय, पुरोहित प्रतापनारायण, तुलसीराम शर्मा 'दिनेश' इत्यादि अनेक कवियों की वाणी के प्रसाद से विविधा प्रसंग, आख्यान और विषय लेकर निखरती तथा प्रौढ़ और प्रगल्भ होती चली आ रही है। उसकी अभिव्यंजना प्रणाली में अब अच्छी सरसता और सजीवता तथा अपेक्षित वक्रता का भी विकास होता चल रहा है। + +665. हम नहीं चाहते, और शायद कोई भी नहीं चाहेगा, कि ब्रजभाषा काव्य की धारा लुप्त हो जाए। उसे यदि इस काल में भी चलना है तो वर्तमान भावों को ग्रहण करने के साथ ही साथ भाषा का भी कुछ परिष्कार करना पड़ेगा। उसे चलती ब्रजभाषा के अधिक मेल में लाना होगा। अप्रचलित संस्कृत शब्दों को भी अब बिगड़े रूपों में रखने की आवश्यकता नहीं। 'बुद्ध चरित' काव्य में भाषा के संबंध में हमने इसी पद्ध ति का अनुसरण किया था और कोई बाधा नहीं दिखाई पड़ी थी। + +666. हिन्दूओं का मानना है कि हिंदू धम॔ विश्व के सबसे पुराने धर्मो मे से एक हे। यह धम॔ पुन॔जनम में यकीन करता हे। यह धम॔ अहिन्सा,दया, जातीय शुद्धता का संस्कार सिखाता हे। हिन्दू धर्म को सनातन, वैदिक या आर्य धर्म भी कहते हैं। हिन्दू एक अप्रभंश शब्द है। प्राचीनकाल में कोई धर्म विशेष प्रचलित नहीं था |था। एक हजार वर्ष पूर्व न तो हिंदू और न ही सनातन शब्द धर्म के नाम से प्रचलन में था। 12वीं शती ई0 सन के आसपास नागवंश की लिपि + +667. हिन्दू इतिहास की भूमिका : जब हम इतिहास की बात करते हैं तो वेदों की रचना किसी एक काल में नहीं हुई। विद्वानों ने वेदों के रचनाकाल की शुरुआत 4500 ई.पू. से मानी है। अर्थात यह धीरे-धीरे रचे गए और अंतत: काल्पनिक रूप से कृष्ण के समय (अनिश्चित) में वेद व्यास द्वारा पूरी तरह से वेद को चार भाग में विभाजित कर दिया। इस मान से लिखित रूप में आज से 6508 वर्ष पूर्व पुराने हैं वेद। यह भी तथ्‍य नहीं नकारा जा सकता कि कृष्ण के आज से 5500 वर्ष पूर्व होने के तथ्‍य ढूँढ लिए गए। + +668. जे एल पी टी नी५ काञ्जी: + +669. + +670. हिस्टेरेक्टॉमी एक शल्यक्रिया है, जिसके माध्यम से किसी महिला के गर्भाशय को निकाला जाता है। गर्भाशय महिलाओं की प्रजनन प्रणाली का एक अंग है तथा यह मनुष्य की बंद मुट्ठी के आकार का होता है। आपका गर्भाशय निकाले जाने के बाद आप संतान पैदा नहीं कर सकती, तथा इसके बाद आपको मासिक धर्म भी नहीं होगा। यदि आपके अंडाशय (ओवरी) नहीं निकाले गए हैं, तो आप मादा हार्मोन पैदा करती रहेंगी। यदि आपके अंडाशय (ओवरी) निकाले गए हैं, तो मासिक धर्म रुक जाएगा। + +671. तैयारी के लिए. + +672. • जब आप अस्पताल से लौटती हैं, उस समय आपके परिवार का कोई वयस्क सदस्य अथवा मित्र/सहेली आपको घर लेकर जाएं। आपके लिए गाड़ी चलाना अथवा अकेले जाना, सुरक्षित नहीं है। + +673. • आपके अंतः शिरा (आई वी) में दवा डाली जाएगी, जिससे आप निद्राग्रस्त तथा दर्दमुक्त रहें। + +674. • काटे गए भागों को टांकों, स्टेपल्स अथवा विशेष प्रकार की टेप, जिन्हें ‘स्टेरी-स्ट्रिप’ कहा जाता है, द्वारा बंद किया जाता हैं। + +675. • आपके श्वसन, रक्तचाप तथा नाड़ी की बार-बार जांच की जाती है। + +676. • आपका दर्द नियंत्रित करने के लिए, आपको दवाएं दी जाएंगी। यदि आपको दर्द होता है तो अपनी नर्स को बताएं। + +677. • आपकी सुरक्षा की दृष्टि से, जब आप अस्पताल छोड़ती हैं तब आपके साथ कोई वयस्क संबंधी अथवा मित्र, आपको घर ले जाने के लिए साथ होना/होनी चाहिए। घर में आपके कम से कम पहले 24 घंटों के दौरान कोई आपके साथ रहना चाहिए। + +678. • शल्य क्रिया के बाद, योनि से 2 से 4 सप्ताह तक थोड़ी मात्रा में स्राव सामान्य है। प्रत्येक कुछ घंटों बाद पैड बदलती रहें। योनि क्षेत्र को साबुन और पानी से साफ करें तथा थपकी देकर सुखा लें। + +679. • आप हल्के घरेलू कार्य जैसे बर्तन साफ करना, खाना बनाना आदि कर सकती हैं। + +680. अन्य मामले. + +681. यदि आपको निम्नलिखित में से कुछ हो तो तुरंत अपने चिकित्सक को फोन करें- + +682. • योनि से अधिक रक्तस्राव, एक घंटे में 2 से 3 पैड भर जाना + +683. • मनः स्थिति में तेजी से बदलाव अथवा नैराश्य का भाव + +684. आपात स्थिति कोई तूफान, घर में लगी आग, बाढ़ अथवा बम विस्फोट हो सकती है । स्वयं की तथा + +685. स्वयं के लिए तथा अपने परिवार के लिए एक आपातकालीन योजना तैयार करें । इस योजना के संबंध में, + +686. से प्रभावित हो सकता है अथवा संभव है कि स्थानीय फोन सेवाएँ कार्यशील न हों । परिवार के लिए मिलने + +687. • कार्यस्थल - अपने नियोजक से कार्य संबंधी नीतियों तथा आपातकालीन योजनाओं पर चर्चा करें यदि आपको कार्य पर जाना होगा तो अपने परिवार के संबंध में योजना तैयार करें । + +688. यदि कोई आपात स्थिति आती है तो संभव है कि आपको कई दिनों अथवा सप्ताहों तक भोजन अथवा पानी + +689. प्राथमिक सहायता किट. + +690. स्थानीय तथा राज्य के अधिकारियों की जनता के बचाव हेतु योजनाएँ होती हैं । शांत रहें तथा टेलीविजन, + +691. शिशु को स्तनपान कराने हेतु तैयारी: + +692. आपका शरीर प्रारंभ में जो दुग्ध निर्मित करता है, वह कोलोस्ट्रम कहलाता है। कोलोस्ट्रम ऐसे + +693. शिशुओं को अतिरिक्त जल की आवश्यकता नहीं होती। उन्हें केवल दूध की ही आवश्यकता + +694. सामान्य बात है। + +695. शिशु को स्तनपान कराने हेतु, गोदी में लेना. + +696. 'फुटबाल' तथा ‘क्रास क्रैडल’ मुद्राओं में पकड़ने से, नवजात शिशु के सिर को सर्वश्रेष्ठ तरीके से + +697. 3. अपने शिशु को अपनी बांह के नीचे लपेटकर रखें। अपनी हथेली, शिशु की पीठ के ऊपरी भाग में कंधों के बीच रखें। अपने शिशु के सिर को गर्दन पर तथा कानों के नीचे नियंत्रित रखें। + +698. 1. शिशु को अपनी गोदी में तकिए पर लिटाएं, जिससे वह आपके स्तन के सामने रहे। + +699. बहुत सी महिलाओं को प्रारंभ में यह पकड़ कठिन महसूस होती है। जैसे-जैसे आपका शिशु कुछ बड़ा होता है, तथा पालन प्राप्त करने में कुशल हो जाता है, यह पकड़ आसान होती जाती है। + +700. पकड़ने का यह तरीका भी प्रारंभ में कठिन होता है, जब तक आपको सहायता न प्राप्त हो। + +701. चिपकना (लैंचिग ऑन). + +702. • जब आपका शिशु अपना मुंह चौड़ा करके खोलता/खोलती है, जैसे जमुहाई लेते हैं, तब शिशु को अपनी ओर खींच लें। इससे आपको ऐरेओला का अधिकाधिक भाग शिशु के मुंह के भीतर ले जाने में सहायता मिलेगी। + +703. जागे। दिन में कम बार स्तनपान कराने का अर्थ है कि आपके शिशु को रात के समय, और + +704. शिशु के जन्म होने के बाद मुझे कितनी देर बाद स्तनपान कराना चाहिए? + +705. मैं अपने शिशु को कितनी देर तक स्तनपान कराऊं ? + +706. कुछ सहायक उपाय. + +707. मैं अपने शिशु को स्तन से कैसे हटाऊं? + +708. मैं यह कैसे जानूं कि मेरे शिशु को पर्याप्त आहार मिल रहा है ? + +709. पिलाने की दो अवधियों के बीच ये पुनः भर जाएंगे। आपके शिशु केः + +710. यदि आपको लगता है कि आपके शिशु को पर्याप्त आहार नहीं मिल रहा है, तो अपने शिशु के चिकित्सक, क्लीनिक अथवा दुग्धपान विशेषज्ञ से संपर्क करें। + +711. बड़ी तेजी से चल सकती हैं। इस कारण, बालों के बीच इन्हें खोजना कठिन हो जाता है। ये + +712. चिपका देती हैं। इन अंडों को आप गर्दन के पीछे तथा कानों के पीछे देख सकते हैं। ये अंडे + +713. उपचार. + +714. खरीद सकते हैं। ये विशेष कंघी अंडों (लीख) को खोजने एवं निकालने में सहायक हो सकती + +715. 1. सामान्य शैम्पू से बाल साफ करें। कंडीशनर का प्रयोग न करें। इसके कारण जुओं की दवा का प्रभाव समाप्त हो सकता है। गर्म पानी से बाल धोकर उन्हें तौलिये से सुखा लें। इस तौलिये का दुबारा प्रयोग तब तक न करें, जब तक यह धो न लिया जाए। + +716. 6. बालों को महीन कंघी से साफ करें, जिससे ये अंडे निकल आएं। बालों को इधर-उधर करके कंघी करना उपयोगी हो सकता है। सभी अंडों का हटाया जाना आवश्यक है। इसमे 2 अथवा 3 घंटे या अधिक लग सकते हैं, तथा यदि कंघी काम नहीं करती है तो आपको हाथों सं अंडे चुनने पड़ सकते हैं। + +717. यदि आपके मन में कोई प्रश्न अथवा चिंताएं हैं, तो अपने बच्चे के चिकित्सक अथवा स्थानीय स्वास्थ्य विभाग से बात करें। + +718. 1.संयुक्त राष्ट्रीय संघ के सदस्य देशों की कुल संख्या है- + +719. -5 वर्ष + +720. भारत की कला एवं संस्कृति. + +721. 3. मोहीनीअटटयम की राज्य का शास्त्रीय नृत्य हैं? + +722. - संतूर + +723. 8.भारत में टेलीविज़न की शुरुआत कब की गई? + +724. - 1982 ई. + +725. आर्थिक भुगोल. + +726. 3.कैमूर वन्य जीव अभयारण्य कहा स्थित है + +727. नर्मदा + +728. 8.भारत की सबसे लम्बी नहर है + +729. जुट + +730. 13.राजगीर अभयारण्य स्थित है + +731. झारखंड + +732. 1.इंडियन नेशनल कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष थे – + +733. सूरत 1907 + +734. 6.मुज्जफरपुर बम कांड में किस कान्तिकारी को फांसी दी गई + +735. गोपालकृष्ण गोखले + +736. 11.स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल कौन थे? + +737. विजयलक्ष्मी पंडित + +738. 16.भारतीय वायुसेना की प्रथम महिला पायलट? + +739. मीरा कुमार + +740. 21.भारत के पहले गृह मंत्री कौन थे? + +741. आर.के. षंमुखम चेट्टी + +742. 1885 ई. + +743. 4.कांग्रेस का बंटवारा + +744. दिसंबर 1916 ई. + +745. 9.जालियांवाला बाग हत्याकांड + +746. 18 मई 1920 ई. + +747. 14.चौरी-चौरा कांड + +748. अक्टूबर 1924 ई. + +749. 19.नेहरू रिपोर्ट + +750. 8 अप्रैल 1929 ई. + +751. 24.नमक सत्याग्रह + +752. 12 नवंबर 1930 ई. + +753. 29.कम्युनल अवार्ड (साम्प्रदायिक पंचाट) + +754. 17 नवंबर 1932 ई. + +755. 34.मुक्ति दिवस + +756. 8 अगस्त 1940 ई. + +757. 39.शिमला सम्मेलन + +758. 15 मार्च 1946 ई. + +759. 44.अंतरिम सरकार की स्थापना + +760. 15 अगस्त 1947 ई. + +761. एक जंगल में एक छोटा खरगोश रहता था उसका नाम निक्कू था ! + +762. काफी देर अकेला बैठा रहा अब अँधेरा बढ़ रहा था + +763. उसने देखा की उसके दोस्त रिंकू के घर दिया लग रहा था + +764. तब रिंकू घर तक छोड़ने आया और + +765. ये सर्जरी के बाद आपकी देखभाल के लिए सामान्य निर्देश हैं। आपकी जरूरतों के आधार पर, आपका डॉक्टर आपको अन्य निर्देश दे सकता है। आपके नर्स या डॉक्टर द्वारा आपको दिए गए निर्देशों का पालन करें। + +766. अगर आप अपने डॉक्टर से संपर्क नहीं कर पा रहे हैं, या अगर आपके लक्षण गंभीर हैं, तो 108 पर फोन करें। + +767. अपनी दवाइयाँ लिखने के लिए इसके बाद वाले पन्ने पर दिये हुए फार्म का उपयोग करें और उसे अपने बटुए में रखें ताकि आपको जब उसकी जरूरत हो तब वह आपके पास हो। + +768. जितनी ताकत से इसे करना चाहिए। रक्त का प्रवाह धीमा हो जाता है और आपके फेफड़ों + +769. आपकी देखभाल. + +770. हैं। हृदय कैथ , पम्प (रक्त पम्प करना) के दौरान हृदय की रक्त धमनियों को और हृदय + +771. रक्त धमनियों के संकरा होने को कारण सीने में दर्द या हृदय आघात हो सकता है। यदि + +772. रखने के लिए एक स्टेंट लगाया जा सकता है, यह एक छोटा, तार की नली नुमा उपकारण + +773. घर पर. + +774. शल्य चिकित्सा के बाद आप रिकवरी रूम में आंखें खोलेंगे। नर्स प्रायः आपकी जांच करेगी और दर्द की दवाइयां देगी। होश में आने पर जरूरत होगी तो आपको आपके कमरे में ले जाया जायेगा। + +775. देखभाल हेतु निम्नलिखित मार्गनिर्देशों का पालन करें, क्योंकि आपके नये जोड़ (जॉइंट) को ठीक होने में अगले 6 से 8 सप्ताह का समय लगेगा। अधिक गतिविधि करने अथवा स्वयं को सहन योग्य दर्द की सीमाओं से आगे ले जाने प्रयास न करें। + +776. अपने घायल अथवा कमजोर पाँवों के लिए, यहाँ लगाये गये निशान के मुताबिक उल्लिखित निर्देशों का पालन करें। + +777. ‰आंशिक भार संवहन. + +778. + +779. आपके इन में से कुछ या सभी लक्षण हो सकते हैं: + +780. + +781. • हल्के से गिऱने, चोट लगने या आकस्मिक गति जिससे पेशियां कमर की किसी हड्डी को नोच कर अलग कर देती हैं। अगर आपके साथ कोई दुर्घटना हो गयी थी या किसी और तरह से चोट लग गयी थी तो यह पता लगाने के लिए आपकी जांच की जायेगी कि कहीं आपकी दूसरी हड्डियों या अंगों में चोट तो नहीं लगी है। + +782. • खड़े होने पर परेशानी या दर्द + +783. • अपनी कमर का घाव भरने में सहूलियत के लिए पलस्तर चढ़ाने, बैसाखी या वॉकर का उपयोग करना + +784. • 38°C (101°F) से ज्यादा बुखार हो जाये। + +785. अव्यय. + +786. भू (लट्लकार मतलब वर्तमान काल) + +787. तो एक संख्या के लिये भवति (प्रथम पुरुष), भवसि (मध्यम पुरुष) और भवामि (उत्तम पुरुष) प्रयोग होगा । + +788. अहम् वदामि । (मैं बोल रहा हूँ) + +789. युवाम वदथः (तुम दोनो बताते हो ) + +790. उसी प्रकार और भी कई लकार हैं । + +791. भवतु भवताम् भवन्तु + +792. जो विद्या के लिये प्रयत्न नहीं करते, न तप करते हैं, न दान देते हैं, न ज्ञान के लिये यत्न करते हैं, न शील हैं और न ही जिनमें और कोई गुण हैं, न धर्म है (सही आचरण है), ऍसे लोग मृत्युलोक में इस धरती पर बोझ ही हैं, मनुष्य रुप में वे वास्तव में जानवर ही हैं । + +793. अस्मद् (मम): + +794. + +795. यह पुस्तक क्यों? + +796. भोपाल गैस त्रासदी में ही पीड़ित लोगों को अभी तक 2200 करोड़ रुपया मिला है जो कि काफी कम माना जा रहा है। ऐसे में 1500 करोड़ रुपये तो कुछ भी नहीं होता। एक परमाणु हादसा न जाने कितने भोपाल के बराबर होगा? इसी बिल में आगे लिखा है कि उस कंपनी के खि़लाफ कोई आपराधिक मामला भी दर्ज नहीं किया जाएगा और कोई मुकदमा नहीं चलाया जाएगा। कोई पुलिस केस भी नहीं होगा। बस 1500 करोड़ रुपये लेकर उस कंपनी को छोड़ दिया जाएगा। + +797. अभी कुछ दिन पहले ख़बर छपी थी कि रिलायंस के मुकेश अंबानी महाराष्ट्र में कोई प्राइवेट यूनिवर्सिटी शुरू करना चाहते हैं। वो महाराष्ट्र के शिक्षा मंत्री राजेश टोपे से मिले और उनकी ये इच्छा पूरी करने के लिए राजेश टोपे ने विधान सभा में प्राइवेट यूनिवर्सिटी बिल लाना मंज़ूर कर दिया। औद्योगिक घरानों की इच्छा पूरी करने के लिए हमारी विधान सभाएं तुरंत क़ानून पारित करने को राज़ी हो जाती हैं। + +798. हम अपने संगठन 'परिवर्तनज् के ज़रिये पिछले दस सालों में विभिन्न मुद्दों पर काम करते रहे। कभी राशन व्यवस्था परए कभी पानी के निजीकरण परए कभी विकास कार्यों में भ्रष्टाचार को लेकर इत्यादि। आंशिक सफलता भी मिली। लेकिन जल्द ही यह आभास होने लगा कि यह सफलता क्षणिक और भ्रामक है। किसी मुद्दे पर सफलता मिलती। जब तक हम उस क्षेत्र में उस मुद्दे पर काम कर रहे होतेए ऐसा लगता कि कुछ सुधार हुआ है। जैसे ही हम किसी दूसरे मुद्दे को पकड़तेए पिछला मुद्दा पहले से भी बुरे हाल में हो जाता। धीरे धीरे लगने लगा कि देश भर में कितने मुद्दों पर काम करेंगेए कहां कहां काम करेंगे। धीरे धीरे यह भी समझ में आने लगा कि इन सभी समस्याओं की जड़ राजनीति में है। क्योंकि इन सब मुद्दों पर पार्टियां और नेता भ्रष्ट और आपराधिक तत्वों के साथ हैं। और जनता का किसी प्रकार का कोई नियंत्रण नहीं है। मसलन राशन की व्यवस्था को ही लीजिए। राशन चोरी करने वालों को पार्टियों और नेताओं का पूरा-पूरा संरक्षण है। यदि कोई राशन वाला चोरी करता है तो हम खाद्य कर्मचारी या खाद्य आयुक्त या खाद्य मंत्री से शिकायत करते हैं। पर ये सब तो उस चोरी में सीधे रूप से शामिल हैं। उस चोरी का एक बड़ा हिस्सा इन सब तक पहुंचता है। तो उन्हीं को शिकायत करके क्या हम न्याय की उम्मीद कर सकते हैं? यदि किसी जगह मीडिया का या जनता का बहुत दबाव बनता है तो दिखावे मात्र के लिए कुछ राशन वालों की दुकानें निरस्त कर दी जाती हैं। जब जनता का दबाव कम हो जाता है तो रिश्वत खाकर फिर से वो दुकानें बहाल कर दी जाती हैं। + +799. इन्हीं सब प्रश्नों के उत्तर की खोज में हम बहुत घूमेए बहुत लोगों से मिले और कुछ पढ़ा भी। जो कुछ समझ में आयाए उसे इस पुस्तक के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। इसे पढ़ने के बाद यदि आपके मन में कोई शंका हो तो हमसे ज़रूर संपर्क कीजिए। और यदि आप हमारी बातों से सहमत हों तो अपने तनए मनए धन से इस आंदोलन में शामिल हों। समय बहुत कम है। देश की सत्ता और देश के साधन बहुत तेज़ी से देशी-विदेशी कंपनियों और विदेशी सरकारों के हाथों में जा रहे हैं। जल्द कुछ नहीं किया गया तो बहुत देर हो चुकी होगी। + +800. आपके सरकारी अस्पताल मेंए मान लीजिएए डॉक्टर ठीक से इलाज नहीं करताए दवाईयाँ नहीं देताए समय पर नहीं आता या आता ही नहीं है। कुछ कर सकते हैं आप उसका? आप उसका कुछ नहीं कर सकते। आप शिकायत करेंगे तो शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। + +801. कहा जा रहा है कि देश में 70 प्रतिशत आबादी 20 रुपया प्रति व्यक्ति प्रतिदिन से भी कम में गुज़ारा करती है। तो यदि एक परिवार में 5 लोग होते हैं तो इस परिवार का मासिक खर्च हुआ 3000 रुपया। यदि सभी किस्म के कर जोड़ लिये जायें तो बाज़ार से कुछ भी खरीदने पर औसतन 10 प्रतिशत कर तो लगता ही है। इस हिसाब से एक गरीब परिवार भी मासिक 300 रुपया और सालाना 3600 रुपया का कर देता है। यदि आपके गांव में 1000 परिवार हैं तो वे सभी मिलकर औसतन 36 लाख रुपये सालाना कर सरकार को देते हैं। तो पिछले दस वर्षों में आपके गांव ने लगभग साढ़े तीन करोड़ रुपये का कर सरकार को दिया। + +802. दूसरी तरफ दिल्ली नगर निगम में सफाई कर्मचारियों को तीन-तीन महीने से तनख्वाह नहीं मिली है। ठेकेदारों को पांच-पांच साल से भुगतान नहीं हुए हैं। लेकिन दिल्ली नगर निगम की छत के ऊपर हैलीपैड बनाया जा रहा है। ताकि नेताओं के हैलीकॉप्टर वहां उतर सकें। + +803. तो हमारी ज़रूरत कुछ और है। जैसे हो सकता है कि हमए हमारे गांव मेंए सिंचाई पर पैसा खर्च करना चाहते हैं। या हम कुछ डॉक्टर और लगाना चाहते हैं। लेकिन सारा का सारा पैसा दिल्ली में तय होकर आता है कि कितना पैसा किसके ऊपर खर्च किया जायेगा। + +804. एक और बात। ये जितनी भी सरकारी योजनाएं बनती हैंए इन सारी सरकारी योजनाओं ने लोगों को भिखारी बनाके रख दिया है। इनमें से ढेरों योजनाएं ग़रीबी उन्मूलन के नाम परए ग़रीबों के नाम पर बनती हैं। बीपीएल के नाम पर बनती हैं। इस बीपीएल की राजनीति को हमें समझना पड़ेगा। + +805. तो पहली बात तो हमें ये समझ में आई कि हमारा सरकारी कर्मचारियों पर कोई नियंत्रण नहीं है। दूसरी बात ये समझ में आई कि हमारा सरकारी फ़ंड के इस्तेमाल पर भी कोई नियंत्रण नहीं है। + +806. तो तीसरी बात ये निकलकर आती है कि हमारे देश के क़ानूनों के बनने परए हमारे देश की संसद परए हमारे देश की विधान सभाओं पर जनता का किसी तरह का कोई नियंत्रण नहीं है। + +807. (ख) कुछ का कहना है कि हमें ज़मीन के बेहतर दाम चाहिए। जिन दामों पर किसानों से ज़मीनें छीनी जाती हैंए वे बहुत कम हैं। लगभग हर आंदोलन में लोगों का दाम को लेकर सरकार से झगड़ा चल रहा है। बिना लोगों से सलाह मशविरा किएए लोगों से ज़मीन छीन ली जाती है और दाम भी तय कर दिये जाते हैं। ऊपर से यह पैसा भी लोगों को कई कई दशकों तक नहीं मिलता। + +808. स्पेशल इकॉनॉमिक ज़ोन (सेज़) के नाम पर इस देश में न जाने कितने लोगों की ज़मीनें छीनी गईं। क्या आपको पता है कि केंद्र सरकार में एक घंटे की मीटिंग में सेज़ के 30-30 प्रोजेक्ट पास किये जाते थे? एक सेज़ प्रोजेक्ट इतना बड़ा होता है। उसे आप मात्र दो मिनट की चर्चा में कैसे पास कर सकते हो? तो पास करना तो महज़ दिखावा था। पास करने के नाम पर पैसे खाते हैं। जिस जिस कंपनी की रिश्वत का पैसा आ गयाए उसका प्रोजेक्ट दो मिनट में पास। जिनकी रिश्वत नहीं आईए उनका प्रोजेक्ट लटका दिया जाता है। + +809. ज़ाहिर है कि देश के ख़निजए केंद्र और राज्यों की सरकारों में बैठे नेताओं और अफ़सरों के हाथों में बिल्कुल सुरक्षित नहीं है। ये पार्टियांए ये नेता पूरे देश को उठाकर बेच डालेंगे। + +810. रिहा होने के बाद अगले कुछ वर्षों में मरकम को कम से कम 20 बार कोर्ट जाना पड़ा। कोर्ट उसके गांव से लगभग 30 किमी दूर है। हर कोर्ट की पेशी ने उसकी और कमर तोड़ दी। अंततः सभी खर्चे और जुर्माना चुकाने के लिए उसे अपने बैल बेचने पड़े। + +811. (क) हर वर्ष सरकार वनों से तेंदू पत्ते निकालने के लिए ठेके देती है। एक ठेकेदार को 1500 से 5000 तक बोरे निकालने का ठेका मिलता है। ठेका तो इतने का मिलता है पर वन विभाग के अधिकारियों को रिश्वत देकर असली में वो कितना निकालता हैए ये किसी को नहीं पता चलता। एक छोटे से छोटा ठेकेदार भी साल में 15 लाख से ज़्यादा कमा लेता है। पर वो आदिवासियों को जंगल से तेंदू पत्ता निकालने का 30 पैसा प्रति बंडल से भी कम देता थाए जो बाद में नक्सलियों के दबाव में एक रुपया प्रति बंडल किया गया। + +812. देश की लगभग सभी नदियों पर बांध बनाए जा रहें है। गंगा पर इतने बांध बनाए जा रहें है कि बताते हैं कि गंगा का अस्तित्व ही नहीं बचेगा। गंगा महज़ बांधों के बीच में बहने वाली एक धारा मात्र रह जाएगी। हम सहमत हैं देश को बिजली की ज़रूरत है। पर क्या हम इस बात को नकार सकते हैं कि देश को नदियों की भी ज़रूरत है? कई देशों में राष्ट्रीय नदियों को अपनी अविरल धारा में बहते रहने के लिए क़ानूनी संरक्षण है। हमारे देश में ऐसा नहीं है। पिछले कुछ सालों में जिस तेज़ी से हर नदी पर बांध बनाने के ठेके कंपनियों को दिए गए हैंए उससे लगता है कि सरकार में बैठे नेताओं और अफ़सरों को बिजली उत्पादन की कम और ठेकों में मिलने वाली रिश्वत कमाने की ज़्यादा तत्परता है। इस रफ़्तार से कुछ ही वर्षों में सभी नदियां गंदे नालों में बदल जाएंगी। + +813. क्या इसी को हम जनतंत्र कहेगें कि पांच साल में एक बार वोट डालो और उसके बाद अपनी ज़िंदगी इन नेताओं और अफ़सरों के हाथ में गिरवी रख दो। + +814. इस देश में सदियों से जनता निर्णय लेती आयी है। ये बड़े दुर्भाग्य की बात है कि हम अपने देश की संस्कृति भूल गये। भारत ने जनतंत्र कहां से सीखा? बहुत लोगों का मानना है कि हमने जनतंत्र अमरीका से सीखा। कोई कहता कि हमने जनतंत्र इंग्लैंड से सीखा। सच बात ये है कि जनतंत्र भारत में बुद्ध के ज़माने से चला आ रहा है। बुद्ध के ज़माने का जनतंत्र आज के जनतंत्र से कहीं ज़्यादा सशक्त था। वैशाली दुनिया का सबसे पहला गणतंत्र था। उन दिनों में राजा का बेटा राजा तो बनता थाए राजा के चुनाव नहीं होते थेए लेकिन राजा की चलती नहीं थी। सारे निर्णय पूरे गांव की ग्राम सभा में लिए जाते थे। जो ग्राम सभा कहती थीए जो गांव के लोग कहते थेए राजा को वही निर्णय मानने पड़ते थे। आज हम पांच साल में अपने राजा को चुनते तो हैं लेकिन हमारी उस राजा पर चलती नहीं हैं। उन दिनों में राजा को चुनते तो नहीं थे लेकिन राजा पर जनता की चलती थी। + +815. तो पहले ऐसी व्यवस्था थी कि सीधे सीधे जनता निर्णय लेती थी और राजा उसका पालन करते थे। इस किस्म की बात हमारे देश में 1860 तक चलती रही। गांव की व्यवस्था पर सीधे सीधे गांव के लोगों का नियंत्रण था। हमारे गांव की सिंचाई व्यवस्था कैसी होगीए गांव के लोग तय करते थे। हमारे गांव की शिक्षा व्यवस्था कैसी होगीए स्कूल कैसे चलेंगेए गांव के लोग तय करते थे। स्वास्थ्य व्यवस्था कैसी होगीए गांव के लोग तय करते थे। हमारे देश पर कई लोगों ने आक्रमण कियाए लेकिन उन्होंने केवल केन्द्र सरकार पर कब्ज़ा किया। उन्होंने गांव की व्यवस्था को नहीं छेड़ा। केन्द्र सरकार में बैठकर वो केवल गांव से वसूलने वाला टैक्स कम या ज़्यादा करते रहते थे। लेकिन गांव की व्यवस्था को उन्होने नहीं छेड़ा। + +816. स्वशासन की प्रभावी संस्था होने के बजाय दुर्भाग्यवश पंचायतें केन्द्र एवं राज्य सरकारों की विभिन्न योजनाओं एवं निर्देशों को लागू करने की एजेंसी बन कर रह गयी हैं। अधिकतर योजनाएं दिल्ली या प्रांतीय राजधानियों में बनायी जाती हैं। पंचायतों को केवल उन्हें लागू करने का निर्देश दिया जाता है। ग्राम सभाओं यानी पूरे गांव की खुली बैठक का आयोजन कभी-कभार ही होता हैए क्योंकि उन्हें बुलाने में किसी की रुचि नहीं होती है। जब कभी ग्राम सभाओं की बैठक बुलायी जाती हैए तब भी लोग इनमें भाग लेने के लिए बामुश्किल ही आते हैंए क्योंकि ग्राम सभाओं में रखी गयी उनकी मांगों पर शायद ही कभी कोई कार्रवाई होती है। + +817. (घ) सरपंच के भ्रष्टए निकम्मे या गै़र ज़िम्मेदाराना व्यवहार के ख़िलाफ कार्रवाई करने का अधिकार कलक्टर को दिया गया है। कलक्टर किसी भी सरपंच के ख़िलाफ कभी भी कोई भी कार्रवाई शुरू कर सकता है। उन्हें निलंबित कर सकता है। इसीलिए अधिकतर सरपंच कलक्टर और बीण्डीण्ओण् से डरे रहते हैं। किसी भी ज़िले में कलक्टर एक तरह से राज्य सरकार के नुमाइंदे के रूप में काम करता है। जैसे राज्य सरकार में गवर्नर केन्द्र सरकार का नुमाइंदा होता हैए वैसे ही ज़िले में कलक्टर राज्य सरकार का नुमाइंदा होता है। सौभाग्य से गवर्नर के पास राज्य सरकार में हस्तक्षेप करने के बहुत कम अधिकार हैंए पर दुर्भाग्यवश कलक्टर के पास किसी भी पंचायत में हस्तक्षेप करने के असीम अधिकार हैं। राज्य सरकारें कलक्टर के ज़रिये पंचायतों में मनमाने ढंग से हस्तक्षेप कर रही हैं। आइये देखते हैं मौजूदा पंचायती राज व्यवस्था की विसंगतियों के कुछ उदाहरण। + +818. कुटुम्बाकम में शहर का कूड़ा. + +819. आज सारा का सारा पैसा ऊपर से नीचे चलता है। वो पैसा नीचे पहुंचने ही नहीं दिया जाता। हर अधिकारी उस पैसे को अपने स्तर पर ही खर्च करने पर तुला हुआ है। जैसेए नरेगा के क़ानून के मुताबिकए 4 प्रतिशत पैसा कंटिनजैंसी का होता है। मतलब कि इस पैसे से नरेगा के प्रोजैक्ट के ऊपर काम करने वाली महिलाओं के बच्चों के लिए सुविधा केन्द्र बनाया जायए वहां पर मज़दूरों की पानी की व्यवस्था की जायए उनके लिए सुविधाओं की व्यवस्था की जाए। तो इन सब चीजों के लिए और प्रशासनिक खर्चों के लिए या वहां के मज़दूरों के भले के लिए 4 प्रतिशत कंटिनजैंसी का पैसा दिया जाता है। + +820. उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार ने एक ठेकेदार को पूरे राज्य के सारे गांवों को सफाई का सामान मुहैया कराने को कह दिया। ठेलीए फावड़ाए नाली साफ करने का तसला इत्यादि। और उस ठेकेदार को कह दिया कि हर सरपंच को ये दे आओ। अब वो ठेकेदार जा रहा है और हर सरपंच के घर के बाहर वो सामान फेंक देता है। बी डी ओ के यहां से सरपंच को फोन चला जाता है कि इसका भुगतान करा दीजिए। सरपंचों को भुगतान कराना पड़ता हैए नहीं तो उनके ख़िलाफ कोई झूठी कार्रवाई शुरू कर दी जाएगी। + +821. बैकवर्ड रीजन ग्रांट फ़ंड’ का किस्सा. + +822. सिरसा ज़िले के कुछ लड़कों ने 18 गांवों में प्रयास करके असली में ग्राम सभाएं कराईं और प्रस्ताव बना कर ऊपर भेजे। इस योजना में लिखा है कि ग्राम सभाएं प्रस्ताव बनाएंगी और कलक्टर को भेजेगी। कलक्टर उन योजनाओं को मंज़ूर करके फ़ंड आबंटन करेगा। इसके बावजूद सिरसा ज़िले के कलक्टर ने एक साल से ज़्यादा बीत जाने के बाद भी आज तक इन 18 गांवों की ग्राम सभाओं द्वारा पारित किए गए प्रस्तावों को मंज़ूर ही नहीं किया है। + +823. अमरीका - वॉलमार्ट हार गया. + +824. ब्राज़ील का उदाहरण लेते हैं। ब्राज़ील का एक शहर है पोर्तो एलेग्रे। उस शहर की 30-40 प्रतिशत आबादी झुग्गियों में रहती है। 1990 में पोर्तो एलेग्रे में वर्कस पार्टी की सरकार आयी। उन दिनों झुग्गी बस्तियों में न सड़कें थींए न पीने का पानी थाए न सीवर कनेक्शन थेए और काफ़ी लोग अनपढ़ थे। उस पार्टी ने आकर निर्णय लिया कि अब पोर्तो एलेग्रे का बजट नगर निगम के हॉल में नहीं बनेगाए कांउसिल में नहीं बनेगा - ये गलीए मोहल्लों में बनेगा। उन्होंने पूरे पोर्तो एलेग्रे को छोटे छोटे मोहल्लों में बांट दिया। अब हर साल के शुरू में लोग अपने अपने मोहल्लों में मिलते हैं और हर आदमी अपनी मांग लेकर आता है। कोई कहता है हमारी सड़क खराब है सड़क बनवा दीजिएए कोई कहता है पीने का पानी नहीं है पाइप लाइन लगवा दीजिएए कोई कहता है टंकी लगवा दीजिएए कोई कहता है सीवर ठीक करवा दीजिएए कोई कहता है अध्यापकों की और नियुक्ति होनी चाहिए। हर आदमी अपनी अपनी मांग रखता है। पूरे शहर के लोगों की मांगों को इकट्ठा कर लिया जाता है और वो बजट बन जाता है। और बजट क्या होता है? बजट कोई बंद हॉल में या असेंबली में बैठ कर क्यों बने? बजट तो गली गली मोहल्ले मोहल्ले में बनना चाहिए। बजट बनाने का मतलब ही है कि सरकारी पैसा लोगों की ज़रूरत के हिसाब से कैसे इस्तेमाल किया जाये। + +825. तो हमने देखा कि कुछ अन्य देशों में किस तरह से जनता का व्यवस्था के ऊपर सीधा नियंत्रण है। लेकिन हमारे देश में हम लोग गिड़गिड़ाते रहते हैं और हमारा व्यवस्था के ऊपर किसी तरह का कोई नियंत्रण नहीं है। + +826. सरकारी कर्मचारियों पर नियंत्रण हो. + +827. सूचना अधिकार से पता चला है कि झारखंड के दसवीं कक्षा तक के अनेकों स्कूलों में एक भी अध्यापक नहीं है। जैसे वमनी उच्च विद्यालय केनुगाए सरायकेलाए खरसावा में 310 बच्चें हैं पर एक भी अध्यापक नहीं है। सिरूम के विद्यालय में 435 बच्चों की दस कक्षाओं में केवल एक बंगला टीचर है। यह राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वो अध्यापकों की नियुक्ति करे। लोगों ने राज्य सरकार को कई बार लिखा पर कोई जवाब नहीं आया। तो क्या हमारे बच्चे राज्य सरकार की दया दृष्टि का इंतज़ार करते रहें? क्या हमारे लाखों करोड़ों बच्चों की ज़िंदगी के साथ खिलवाड़ नहीं हो रहा? + +828. तो ब्लॉक व ज़िला सतर के अधिकारियों को सीधे आदेश देनेए तलब करने और अगर वो आदेश न मानें तो उन्हें दंडित करने का अधिकार ग्राम सभाओं को हो। ब्लॉक व ज़िला स्तर के कर्मचारियों की नियुक्ति व बर्खास्तगी में भी ब्लॉक पंचायत व ज़िला पंचायत के माध्यम से ग्राम सभाएं हस्तक्षेप कर सकेंगी। + +829. उसी तरह से गांव की जनता ही तय करेगी कि हमारे गांव में किसे बीण् पीण् एलण् माना जायेगा। उसका पैमाना क्या होगा? हांगकांग में जिस व्यक्ति के पास एंयरकंडीशनर नहीं होताए उसको बीपीएल माना जाता है। दिल्ली में एक रिक्शा वाला भी 5000 रुपये महीने से ज़्यादा कमाता है। लेकिन इतना कमाने के बावजूद भी दो जून की रोटी ठीक से नहीं खा पाता। झुग्गी में कीड़े मकोड़ों की तरह रहता है। पर 5000 रुपये महीना गांव के किसी परिवार के लिए बहुत होता है। + +830. तीसरी चीजए जब फसल निकलती है तो कई बार किसानों के पास फसल रखने के लिए जगह नहीं होती है। फसल निकलने वाली होती है और बारिश आ जाती है और सारी फसल बर्बाद हो जाती है। अगर गांव के लोग फसलों के रखने के लिए गोदाम बनाना चाहें तो वो ग्राम सभा के मुक्त फ़ंड से बना सकेंगे। + +831. क्या ग्राम सभाओं को ताकत देने से भ्रष्टाचार बढ़ेगा? + +832. हमारे देश के संविधान के मुताबिक विधायक और सांसद ब्लॉक स्तर और ज़िला स्तर की पंचायतों के पदेन सदस्य होते हैं। लेकिन संविधान या क़ानून में यहाँ उनको कोई ज़िम्मेदारी नहीं दी गयी है। हमारे हिसाब से उनकी ये ड्यूटी होनी चाहिए कि अगर हमारी संसद में या हमारी विधान सभा में कोई भी क़ानून प्रस्तुत किया जाता हैए तो वो उस क़ानून की एक प्रति लेकर ब्लॉक स्तर पर और ज़िला स्तर पर आयेंगे। और उस क्षेत्र की सारी ग्राम सभाओं में उस क़ानून की प्रतियां बांटी जाएंगी और वहां की ग्राम सभाओं से वो पूछेंगे कि 'आपको इस क़ानून के बारे में क्या कहना हैघ्ज् जनता उसके बारे में चर्चा करेगी। और जो विचार सभी ग्राम सभाएं मिलकर प्रस्तुत करेंगीए वही बात उस सांसद या विधायक को संसद या विधान सभा में रखनी पड़ेगी। उसे कहना पड़ेगा कि ये मेरे क्षेत्र के लोगों की राय हैए वही राय उसे वहां रखनी होगी। + +833. जल, जंगल, ज़मीन, ख़निज और अन्य प्राकृतिक संसाधन - इनके ऊपर सीधे-सीधे नियंत्रण जनता का होना चाहिए। + +834. तो सीधे-सीधे गांव की ज़मीन पर ग्राम सभाओं का नियंत्रण होना चाहिए। + +835. गांव की सीमा में पड़ने वाले सभी जल स्त्रेतों पर वहां की ग्राम सभा की मिल्कियत हो। जल के बड़े स्त्रेत जैसे नदी आदि के बारे में निर्णय उससे प्रभावित सभी ग्राम सभाओं की मंज़ूरी के बिना न लिये जायें। + +836. स्वराज की व्यवस्था में निर्णय कैसे लिये जायेंगे? + +837. जिस दिन इस देश के सारे गांवों में ग्राम सभाएं होने लग गयीं तो इससे देश की संसद पर भी सीधे-सीधे ग्राम सभाओं का नियंत्रण होगा। तो एक तरह से इस देश की राजनीति के ऊपर सीधे-सीधे लोगों का नियंत्रण होगा। इस देश की राजनीति के ऊपर भ्रष्ट पार्टियों काए भ्रष्ट नेताओं काए अपराधियों का जो आज पूरी तरह से नियंत्रण बन गया हैए वो कमज़ोर होगा। और सीधे-सीधे इस देश की राजनीति के ऊपरए इस देश की सत्ता के ऊपर लोगों का नियंत्रण बनेगा। ताकि विकास हो सकेए ग़रीबी दूर हो सकेए बेरोज़गारी दूर हो सके। + +838. प्राचीन भारत में जनता शासकीय निर्णय लेती थी। आधुनिक समय में भी ऐसा ही कई देशों में हो रहा हैए ये बातें अधिकतर लोग जानते हैं। क्या वर्तमान समय में भारत में भी इसके कोई उदाहरण हैंए इस बारे में लोगों की जानकारी बहुत कम है। सबको लगता है कि यह सब अपने देश में संभव नहीं। लेकिन यह धारणा गलत है। देश के विभिन्न इलाकों में स्थानीय नेतृत्व के प्रयास से प्रत्यक्ष लोकतंत्र के कई सफल प्रयोग हुए हैं। इन प्रयोगों से स्थानीय शासन में कैसे गुणात्मक सुधार आयाए आइए उसकी कुछ बानगी देखते हैंरू + +839. इसके नतीजे चमत्कारिक हुए। 1989 में उस गांव में प्रति व्यक्ति औसत सालाना आय 840 रुपये थी। आज प्रति व्यक्ति सालाना आय 28000 रुपये है। 28000 रुपये का मतलब है कि अगर किसी परिवार में पांच लोग हों तो उस परिवार की सालाना आय लगभग डेढ़ लाख रुपये हो गई। बहुत होती है इतनी आय गांव के लोगों के लिए। + +840. पोपट राव बताते हैं कि जब उन्होने ग्राम सभाएं शुरू की तो उस गांव में इतनी गुटबाजी थी कि लोग ग्राम सभा में आते ही नहीं थे। गुट थेए बहुत ज़्यादा लड़ाई झगड़े थे। लेकिन एक साल में धीरे धीरे लोगों ने देखा कि सरपंच तो हमारे भले का काम कर रहा है। हमारे बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल खोला है। तो लोगों ने ग्राम सभा में आना चालू किया। + +841. तो अच्छा सरपंच वो हुआ जो लोगों के साथ मिलकर ग्राम सभाओं में निर्णय ले। सारे निर्णय जनता ले और वो उन निर्णयों का केवल पालन करे। ऐसा सरपंच ही अच्छा सरपंच है। + +842. उत्तरी केरल के एक गांव का उदाहरण. + +843. हम छिंदवाड़ा ज़िले के अमरवाड़ा ब्लॉक के कुछ गांवों में गये। उन गांवों में पहले स्कूल में अध्यापक नहीं आया करते थे। वो आखिरी दिन आते थे और अपनी तनख्वाह लेकर चले जाते थे। जब ये क़ानून आया तो उस गांव के लोगों नेए पूरी ग्राम सभा में बैठकर उन अध्यापकों की तनख्वाह रोक ली। दो महीने तक तनख्वाह रोकीए और तीसरे महीने से उन सब अध्यापकों ने आना चालू कर दिया। कितना सीधा सा समाधान है। अगर आप सीधे-सीधे जनता को सत्ता देते हैं तो लोग अपना विकास खुद कर लेंगे। + +844. जब जनता निर्णय लेगी. + +845. उसी तरह सरकारी स्कूलों में अध्यापकों की कमी है। एक अध्यापक 200-300 बच्चों को पढ़ा रहा है। 3-4 कक्षाओं के बच्चों को एक साथ एक ही अध्यापक पढ़ाता है। ऐसे पढ़ाई नहीं हो सकती। पढ़ाई के नाम पर तमाशा हो रहा है। अगर सीधे-सीधे लोगों को ताकत दी जाएगी तो ग्राम सभाओं में बैठकर लोग आपस में निर्णय लेंगे कि हमारे यहां अध्यापकों की इतनी कमी है। इतने और अध्यापकों की ज़रूरत है। फिर उन्हें राज्य सरकारों को लिखने की ज़रूरत नहीं है कि इतने और पद बनाओए इतनी रिक्तियां करोए इस पर भर्ती करो। वो अपनी ग्राम सभा में बैठेंगेए कितने और अध्यापकों की ज़रूरत है ये तय करेंगेए और खुद ही भर्ती करेंगे। + +846. ग्राम सभाओं को ताकत देने से नक्सलवाद पर बहुत बड़ा असर पडेगा। इसे एक उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं। छत्तीसगढ़ में लोहांडीगुड़ा में टाटा एक स्टील प्लांट लगाना चाहता था। उसे 10 गांवों की ज़मीन की ज़रूरत थी। ये 10 गांव अनुसूचित क्षेत्र हैं। यहां पर पेसा क़ानून लागू होता है। पेसा क़ानून कहता है कि अगर सरकार वहां की ज़मीन अधिग्रहण करना चाहती है तो उसे वहां की ग्राम सभाओं से विचार विमर्श करना पड़ेगा। सरकार ने यहां की ग्राम सभाओं को लिखा। ग्राम सभाएं हुईं। लोगों ने ज़मीन देने से मना कर दिया। सरकार ने दोबारा इनसे निवेदन किया। दोबारा ग्राम सभाएं हुईं। और उसमें उन्होंने सरकार के सामने 15 शर्तें रखीं और कहा कि अगर आप हमारी ये 15 शर्तें मान लें तो हम ज़मीन देने के लिए तैयार हैं। वो शर्तें बहुत वाज़िब थीं। जैसे उनमें एक शर्त थी कि हमें इतना मुआवज़ा चाहिएए एक शर्त थी कि इतने पेड़ कटेंगे तो इतने पेड़ लगने चाहिए। हर घर से एक व्यक्ति को रोज़गार मिलना चाहिए इत्यादि। सारी वाज़िब मांगें थी। सरकार के पास ये मांगे गयी तो सरकार ने ये मांगें नहीं मानी और ज़ोर ज़बरदस्ती से पुलिस भेज कर ज़मीनें अधिग्रहण कर लीं। इसके बाद इन गांवों के लोगों ने वहां की दीवारों पर लिख दिया ‘नक्सली आओए हमें बचाओ’। सुनने में आया कि बाद में ये दसों गांव जाकर नक्सलियों के साथ मिल गये। + +847. अगर सीधे लोगों को ताकत दी जाती है तो इसका सबसे बड़ा असर बेरोज़गारी और ग़रीबी पर पड़ेगा। जैसा कि पहले भी हम इस पुस्तक में लिख चुके हैं कि अगर गांव में मुक्त फ़ंड आएगा तो लोग ग्राम सभा में बैठकर ये तय करेगें कि अपने गांव में सबसे ग़रीब कौन हैं? उनकी हमें मदद करनी है। इन्हें राशन देना है। ये भूखे हैं। किसी को भूखे नहीं रहने देना है। हर व्यक्ति के सर पर छत होनी चाहिए। हर बच्चा स्कूल जाये। + +848. निर्मूल आशंकाएं और भ्रांतियाँ. + +849. तो ऐसी नई व्यवस्था में दलितों को लड़ने के लिए तीन और नये मौके मिलेंगे। दलितों की व्यवस्था में तुरंत सुधार होगाण्ऐसा नहीं है। हमारा प्रश्न है कि आज जब सारी की सारी राजनैतिक सत्ता सरपंच के अंदर केंद्रित हैए ऐसी व्यवस्था में राजनैतिक सत्ता के दुरुपयोग के ज़्यादा अवसर हैं या तब जब कि ये सारी सत्ता सरपंच से छीनकर ग्राम सभा को दे दी जायए उसमें ज़्यादा शोषण के आसार हैं? हमें लगता है कि ग्राम सभा में शोषण होने के अवसर कम होंगे। जब सारी सत्ता सरपंच के अंदर निहित हैए तब शोषण के ज़्यादा अवसर हैं। + +850. ग्राम सभाओं को ताकत देने से सामाजिक कुरीतियां बढेंगी या घटेंगी? + +851. कई लोगों का ये मानना है कि गांव के लोग निर्णय नहीं ले सकतेए गांव के लोग अनपढ़ होते हैं। अगर ग्राम सभा होगी तो ग्राम सभा में लोग लड़ेंगे। कुछ लोग तर्क देते हैं कि जब सरपंच चुना जाता है तो सरपंच को मान लीजिए 60 प्रतिशत वोट मिले। तो 40 प्रतिशत लोग तो उसके ख़िलाफ हुए। इन लोगों का कहना है कि ऐसे विरोधी लोग ग्राम सभाएं नहीं होने देंगे। दुनिया भर के अभी तक के अनुभव यही बताते हैं कि यह डर बेबुनियाद है। + +852. ‘पेसा’ क़ानून का क्या हुआ? + +853. अच्छे लोगों के सत्ता में आने से सुधार होगा? + +854. सांसद और विधायक का काम है कि वो संसद और विधान सभा में अच्छे क़ानून बनायें। लेकिन दुर्भाग्यवश इसमें भी उनके हाथ बंधे हुए हैं क्योंकि जब भी कोई क़ानून विधान सभा या संसद में प्रस्तुत किया जाता है तो हर पार्टी अपने-अपने सारे सांसदों को या अपने सारे विधायकों को निर्देश जारी करती है कि इस क़ानून के पक्ष में वोट देना है कि विपक्ष में। और सांसद या विधायक को अपनी पार्टी की बात माननी पड़ती है। सांसद या विधायक की इतनी भी नहीं चलती कि वो अपनी मर्ज़ी से किसी क़ानून के पक्ष या विपक्ष में वोट डाल सकें। + +855. आज व्यवस्था इतनी दूषित हो गई है कि अच्छा अधिकारी या अच्छा मंत्री भी कुछ नहीं कर पाता। उसके ऊपरए नीचे और साथ में काम करने वाले लोग उसे काम नहीं करने देते। अक्सर कई बहुत अच्छे और ईमानदार अफ़सरों को कहते सुना है - 'भई हम आपकी बात से पूरी तरह से सहमत हैं। आपका मुद्दा बिल्कुल ठीक है। लेकिन हमारे ऊपर इतना दबाव है कि हम आपकी कुछ मदद नहीं कर पायेंगे।ज् + +856. कुछ लोगों का मानना है कि हमें व्यक्ति निर्माण पर ज़्यादा ज़ोर देना चाहिए। अगर लोग सुधर गये तोए व्यवस्था अपने आप सुधर जाएगी। + +857. अभी हम देखते हैं कि अधिकतर नेताए अफ़सर और व्यवसायी चोरी करते हैं। इनमें अधिकतर मजबूरी में ग़लत काम करते हैं। यदि उन्हें सही व्यवस्था दी जाये तो क्या इनमें से कई लोग ठीक नहीं हो जायेंगे? तो व्यक्ति निर्माण और व्यवस्था निर्माण दोनों कार्य ही अत्याधिक आवश्यक हैं। + +858. जब सरपंच कुछ ग़लत काम करता हैए या भ्रष्टाचार करता है तो उसे सही करने का अधिकार क़ानून में लोगों को नहीं दिया गया है। ज़िलाधिकारी को उसके ख़िलाफ कार्रवाई करने का अधिकार है। एक ज़िलाधिकारी के नीचे 1000 से भी अधिक पंचायतें होती हैं। ज़िलाधिकारी गांवों से बहुत दूर ज़िला मुख्यालय में बैठता हैए भला उसके लिए यह जानना कैसे संभव है कि कोई सरपंच अच्छा है या बुरा। जब लोग सरपंच के ख़िलाफ ज़िलाधिकारी से शिकायत करते हैंए तो अधिकतर मामलों में तो उनकी शिकायत पर कोई कार्रवाई ही नहीं की जातीए क्योंकि ज़िलाधिकारी के पास समय ही नहीं होता। यदि सरपंच सत्ताधारी पार्टी का होए या किसी स्थानीय विधायकए सांसद या अन्य किसी राजनीतिज्ञ से उसकी मित्रता हो तो प्रायः ज़िलाधिकारी दबाव में आकर वैसे ही कोई जांच नहीं करते। और इस प्रकार दोषी सरपंचों के ख़िलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती। + +859. (ग) जब तक ग्राम सभा की ओर से विशेष रूप से आग्रह न किया जाए तब तक ज़िलाधिकारी या अन्य किसी अधिकारी को सरपंच के ख़िलाफ किसी प्रकार की कोई कार्रवाई करने का अधिकार नहीं होना चाहिए। + +860. समस्या : आज इस बात को ले कर घोर भ्रम की स्थिति है कि कौन से कार्यए संसाधन और संस्थान किसके अधिकार क्षेत्र में आते हैं? + +861. (ख) सभी स्तरों पर पंचायतों को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आवश्यक संख्या में नए कर्मचारियों की भर्ती करने का भी अधिकार होना चाहिए। इन कर्मचारियों को राज्य सरकार का कर्मचारी नहीं माना जाना चाहिए। वे पंचायत के कर्मचारी हों। + +862. समस्या : केन्द्र एवं राज्य सरकारें प्रायः ऐसी हवाई योजनाएं बनाकर जनता पर थोप देती हैं जिनका जनता की प्राथमिकताओं से कोई लेना-देना नहीं होता। किस तरह से ये योजनाएं भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रही हैंए जनता की ज़रूरतों से परे हैं और जनता में भिखमंगन की आदत डाल रही हैं - इस पर विस्तृत रूप से इस पुस्तक में पहले ही चर्चा की जा चुकी है। + +863. ब्लॉक एवं ज़िला पंचायतों पर नियंत्रण. + +864. (ग) सरपंच केवल ग्राम सभा और ब्लॉक पंचायत के बीच पुल का काम करेगा। ब्लॉक पंचायत में कोई वायदा करने से पहले सरपंच को अपनी ग्राम सभा से परामर्श करना पड़ेगा और मंज़ूरी लेनी होगी। इसी प्रकार एक ब्लॉक अध्यक्ष को ज़िला स्तरीय पंचायत में कोई वायदा करने से पहले अपनी ब्लॉक पंचायत से परामर्श करके मंज़ूरी लेनी होगी। ग्राम सभा चाहे तो सरपंच को एक हद तक मंज़ूरी न लेने की छूट दे सकती है। लेकिन यह छूट बड़ी सीमित होगी। + +865. यदि पांच प्रतिशत से अधिक ग्राम सभाएं किसी क़ानून या नीति को बनाने का प्रस्ताव दें तो राज्य सरकार उस प्रस्ताव की एक प्रति शेष सभी ग्राम सभाओं को भेजे। यदि 50 प्रतिशत से अधिक ग्राम सभाएं उस प्रस्ताव को पारित कर दें तब राज्य सरकार को वह क़ानून बनाना पड़ेगा या उस नीति को लागू करना पड़ेगा। इसी प्रकार ग्राम सभाओं को यह अधिकार होना चाहिए कि वे किसी क़ानून को पूर्णतः या आंशिक रूप से रद्द करवा सकें। या किसी सरकारी नीति अथवा परियोजना को संशोधित या निरस्त करवा सकें। + +866. समस्या : राज्य सरकार द्वारा लिये जाने वाले ऐसे कई फैसलों की जनता को कोई जानकारी नहीं हो पाती जिनका उनके जीवन पर सीधा असर होता है। + +867. पंचायतों में भ्रष्टाचार का मामला. + +868. (क) जब तक ग्राम सभा संतुष्टि प्रमाण-पत्र न देए तब तक गांव में किसी सरकारी काम का भुगतान नहीं किया जाना चाहिए। यदि ग्राम सभा को लगे कि काम संतोषजनक नहीं हैए तो वह भुगतान रोकने के साथ साथए जांच करके घटिया काम के कारणों की पड़ताल भी कर सके। दोषियों को चिन्ह्ति करके उन सभी कमियों को दूर करने के आदेश भी दे सके। यदि दोषी कर्मचारी पंचायत के किसी स्तर से संबंधित हैं तो ग्राम सभा के पास उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का भी अधिकार होना चाहिए। + +869. उद्योग एवं खनन के लिए लाइसेंस. + +870. इसके अलावा जब भूमि अधिग्रहित की जाती है तो ज़मीन वालों को तो मुआवज़ा मिल जाता है। लेकिन उन भूमिहीनों कोए जो उस ज़मीन पर मज़दूरी करते थेए उन्हें कुछ नहीं मिलता। वो बिल्कुल बेरोज़गार हो जाते हैं। + +871. (ग) पंचायतें अपने अपने गांवों में इन कागज़ों के आधार पर जनजागरण अभियान चलाएं। यदि कोई गांव का व्यक्ति इन कागज़ों की फोटो कॉपी लेना चाहेए तो उसे फोटो कॉपी शुल्क लेकर यह उपलब्ध करायी जाये। + +872. (ज) ग्राम सभा का यह निर्णय अंतिम होगा। इसे कोई सरकार न तो रद्द कर सकेगी और न ही उसमें किसी प्रकार का बदलाव कर सकेगी। + +873. सुझाव : भूमि से संबंधित सभी दस्तावेजों की देख-रेख व उन पर कार्य ग्राम सभा की देख रेख में पंचायत कार्यालय द्वारा किये जाने चाहिए। हर महीनेए होने वाले हस्तांतरण की सूची ग्राम सभा की ओर से प्रकाशित होनी चाहिए। + +874. एस डी एम कार्यालय में भ्रष्टाचार. + +875. सुझाव : अनुभव यह बताता है कि अगर कर उगाही में लोगों को प्रत्यक्ष रूप से शामिल किया जाए और लोगों को अपने द्वारा दिए गए करों से होने वाले सीधे-सीधे फायदे समझ आ जाएं तो करों की उगाही बहुत बेहतर हो जाती है। + +876. (ग) वे कर जिन्हें निर्दिष्ट उच्च स्तरीय पंचायत द्वारा लगाया जाएगा लेकिन उन्हें इकट्ठा करने की ज़िम्मेदारी पंचायत के निर्दिष्ट निचले स्तर की होगी। + +877. सुझाव : प्रत्येक गांव कोए भले ही वह छोटा ही क्यों न होए एक अलग पंचायत घोषित किया जाना चाहिए। यदि आस-पड़ोस के दो या उससे अधिक गांवों की ग्राम सभाएं आपस में मिलकर एक पंचायतध ग्राम सभा होने का फैसला करें तभी उन्हें मिलाकर एक पंचायत का दर्जा दिया जाना चाहिए। आदिवासी इलाकों में पेसा क़ानून के तहत ऐसा ही प्रावधान है। अतः गैर आदिवासी क्षेत्रें में भी ऐसा प्रावधान किया जाना चाहिए। + +878. समस्या : सूचना के अधिकार के बावजूद सभी स्तरों की पंचायतों की कार्यप्रणाली एवं उनके फैसलों के बारे में जानकारी हासिल करना मुश्किल होता है। कई इलाकों में जिन लोगों ने पंचायतों के काम-काज के संबंध में सरपंचों और अधिकारियों से जानकारी मांगी हैए उन्हें प्रताड़ित करने के तमाम मामले सामने आ रहे हैं। पुलिस और मुखिया की मिलीभगत से उन्हें झूठे मामलों में फंसा देना आम बात हो गयी है। कई जगह तो उन पर जानलेवा हमला भी किया गया है। + +879. सुझाव : इसलिए हमारा प्रस्ताव है कि इस प्रकार की शिकायतों को सुनने और उन पर समयबद्ध कार्रवाई करने के लिए लोकपाल का गठन किया जाना चाहिए। केरल में ऐसी संस्था अस्तित्व में भी हैए जिसके अच्छे परिणाम निकले हैं। + +880. समस्या : वर्तमान पंचायती राज क़ानूनों के अंतर्गत राज्य सरकारें समय-समय पर पंचायतों को कोई भी दिशा निर्देश दे सकती हैं। इसके चलते पंचायतें राज्य सरकार के एक निकम्मे विभाग के रूप में तब्दील हो गयी हैं। लोगों से परामर्श करने या उनका दुख-सुख सुनने की बजाए सरपंच या ग्राम प्रधान राज्य सरकार के निर्देशों का पालन करने में ही व्यस्त रहते हैं। ग्राम सभाएं किस-किस तारीख को होंगीए उनका एजेंडा क्या होगाए विभिन्न समितियों का गठन कब होगा तथा उनकी संरचना और काम-काज की प्रक्रिया क्या होगीए ऐसे तमाम फैसले गांव में नहीं बल्कि राज्य सरकार के सचिवालय में लिए जाते हैं। राज्य की कोशिश होती है कि लोगों के जीवन से जुड़े छोटे से छोटे फैसले भी वह खुद ही करे। इसका परिणाम यह हुआ कि लोग अपना उद्यम भूल गए और साथ ही पंचायतों एवं ग्राम सभाओं की आज़ादी भी खत्म हो गयी। + +881. नगर स्वराज भी ज़रूरी. + +882. त्रिलोकपुरी और सुंदरनगरी के पार्षदों ने घोषणा कर दी है कि उनके क्षेत्र में हुए किसी काम के लिए ठेकेदार को तभी भुगतान किया जाएगाए जब मोहल्ला सभा किए गए काम को लेकर अपनी संतुष्टि ज़ाहिर कर दे। इस निर्णय से इलाके में होने वाले कामों की गुणवत्ता में बहुत सुधार हुआ है। + +883. केन्द्र सरकार द्वारा भेजे गए वर्तमान नगर राज विधेयक के प्रारूप से अपनी असहमति प्रकट करते हुए देश के कुछ गणमान्य नागरिक जैसे उच्चतम न्यायालय के वकील प्रशांत भूषणए सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजा़रेए मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव एसण्सीण् बहर आदि ने मिलकर नगर राज विधेयक का एक नया प्रारूप तैयार किया है। आइए जानते हैंए नगर राज बिल के उन मुख्य प्रावधानों को जिन्हें देश के प्रमुख नागरिक क़ानून का रूप दिए जाने की मांग कर रहे हैं। + +884. (घ) मोहल्ले से जुड़े सभी मामलों का प्रबंधन मोहल्ला सभा द्वारा किया जाए। सभी मोहल्ला सभाओं से संवाद और सहमति के माध्यम से वार्ड कमेटी वार्ड से जुड़े सभी मामलों का प्रबंधन करे। + +885. (ग) किसी मोहल्ले में कौन सा कार्य और किस जगह किया जाना हैए इसका निर्णय संबंधित मोहल्ला सभा द्वारा किया जाना चाहिए। + +886. (घ) यदि स्थानीय सरकारी कर्मचारी जैसे अध्यापकए मालीए सफाईकर्मीए स्वास्थ्यकर्मीए कनिष्ठ अभियंता आदि मोहल्ला सभा के निर्देशों का पालन नहीं करते या अपने काम में लापरवाही बरतते हैंए तो ऐसी स्थिति में मोहल्ला सभा के पास दोषी कर्मचारियों का वेतन रोकने या उन पर जुर्माना लगाने का अधिकार होना चाहिए। कर्मचारियों को दंडित करने के लिए किसी अन्य एजेंसी से पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। + +887. (घ) दिल्ली जैसे महानगरों में स्थित गांवों को उनकी अपनी ज़मीन पर पूरा अधिकार मिलना चाहिए। + +888. यदि आपके गांव का सरपंच हर महीने ग्राम सभाएं बुलाने को तैयार होता है तो अच्छी बात है। अगर वह नहीं बुलाता है तो कोई बात नहीं। आप खुद अपनी ओर से हर महीने एक निश्चित स्थान पर पूरे गांव की सभा बुलानी आरंभ कीजिए। पहले कुछ लोग ही आएंगे। प्रयास करके गांव के दलित परिवारों को ज़रूर बुलाएं। यही ग्राम सभा है। इसमें हर व्यक्ति अपनी हर समस्या रखने को स्वतंत्र हो। समस्याओं के समाधान पर भी चर्चा हो। आपस में मिलकर लोग समाधान ढूंढने की कोशिश करेंगे। लोगों को अपनी समस्याएं रखने का मौका मिलेगा और इनमें से कुछ समस्याओं का भी यदि निवारण होगा- इसी से महीना दर महीना लोगों की संख्या इन सभाओं में बढे़गी। + +889. "ए-119, प्रथम तल, कौशाम्बी, गाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश : 201 010" + +890. क्रिय-विशेषन् + +891. + +892. 3. आप शौचालय में एक स्थान पर साफ कागज का तौलिया या कपड़ा रखें, जो आपकी पहुँच में हो। + +893. 8. अपने शिश्न के अंतिम सिरे को पोंछे से साफ करें। पोंछा फेंक दें। + +894. 13. कप के ढक्कन को कसकर बंद कर दें। इस बात का ध्यान रखें कि कप या ढक्कन का अंदरूनी भाग स्पर्श न हो जाएँ। + +895. + +896. 3. आप शौचालय में जाकर एक स्थान पर साफ कागज का तौलिया या कपड़ा रखें, जो आपकी पहुँच में हो। + +897. 8. अपने दूसरे हाथ से अपनी लेबिया को साफ करने के लिये पोंछे का उपयोग करें। + +898. 13. अगर आप अस्पताल में हैं तो नमूने को कर्मचारी को सौंपें। अगर आप घर में हैं तो कप को प्लास्टिक की थैली में रखें। थैली को रेफ्रिजेरेटर में रख दें। निर्देशानुसार इसे परीक्षणशाला या डॉक्टर के कार्यालय में ले जाएँ। + +899. मूत्र मार्ग संक्रमण, जिसे UTI भी कहा जाता है, मूत्राशय या गुर्दों का संक्रमण है। + +900. + +901. सामान्य लक्षणों में ये शामिल हैं: + +902. परीक्षण. + +903. आपकी देखभाल के हिस्से के रूप में: + +904. परीक्षण के दौरान. + +905. + +906. हिमालय की हिमाच्छादित चोटियों से लेकर दक्षिण के ऊष्णकटिबंधीय सघन वनों तक, पूर्व में + +907. वाले देशों में इसका छठा स्थान है। विश्व के इस सातवें विशालतम् देश को पर्वत तथा समुद्र शेष एशिया + +908. 6807” और 97025” पूर्वी देशांतर के बीच फैली हुई है। इसका विस्तार उत्तर से दक्षिण तक 3,214 + +909. भारत के सीमावर्ती देशों में उत्तर-पश्चिम में पाकिस्तान और अफगानिस्तान हैं। उत्तर में चीन, नेपाल और + +910. हिमालय की तीन शृंखलाएं हैं, जो लगभग समानांतर फैली हुई हैं। इसके बीच बड़े-बड़े पठार + +911. के उत्तर-पूर्व में सतलुज घाटी में शिपकी-ला दर्रा। पर्वतीय दीवार लगभग 2,400 कि.मी. की दूरी तक + +912. सिंधु और गंगा के मैदान लगभग 2,400 कि.मी. लंबे और 240 से 320 कि.मी. तक चौड़े हैं। ये तीन + +913. विशाल रेगिस्तान कच्छ के रण के पास से उत्तर की ओर लूनी नदी तक फैला है। राजस्थान-सिंध की पूरी + +914. द्वारा सिंधु और गंगा के मैदानों से पृथक हो जाता है। इसमें प्रमुख हैं- अरावली, विंध्य, सतपुड़ा, मैकाल + +915. पहाडि़यों से बना है, जहां पूर्वी और पश्चिमी घाट मिलते हैं। इसके पार फैली कार्डामम पहाडि़यां + +916. उत्तर में हिमालय पर्वत का क्षेत्र और पूर्व में नगा-लुशाई पहाड़, पर्वत निर्माण प्रक्रिया के क्षेत्र हैं। + +917. उत्तर में हिमालय को दक्षिण के प्रायद्वीप से अलग करते हैं। + +918. नदियाँ. + +919. महीनों में हिमालय पर भारी वर्षा होती है, जिससे नदियों में पानी बढ़ जाने के कारण अक्सर बाढ़ आ जाती + +920. सिंधु और गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना नदियों से हिमालय की मुख्य नदी प्रणालियां बनती हैं। सिंधु नदी + +921. अलकनंदा जिसकी उप-नदी घाटियां हैं इनके देवप्रयाग में आपस में मिल जाने से गंगा उत्पन्न होती है। + +922. में मिलती हैं। पद्मा और ब्रह्मपुत्र बंगलादेश के अंदर मिलती हैं और पद्मा या गंगा के रूप में बहती + +923. भारत में ब्रह्मपुत्र की प्रमुख सहायक नदियों में सुबानसिरी, जिया भरेली, धनश्री, पुथीमारी, + +924. नदी में इसका विलय नहीं हो जाता। दक्कन क्षेत्र में प्रमुख नदी प्रणालियां बंगाल की खाड़ी में जाकर + +925. बड़ा थाला महानदी का है। दक्षिण की ऊपरी भूमि में नर्मदा अरब सागर की ओर बहती है और + +926. राजस्थान में कई नदियां समुद्र में नहीं मिलतीं। वे नमक की झीलों में मिलकर रेत में समा जाती + +927. (जनवरी-फरवरी), 2. ग्रीष्म ऋतु (मार्च-मई), 3. वर्षा ऋतु या “दक्षिण-पश्चिमी मानसून का मौसम” + +928. सागर और बंगाल की खाड़ी को पार करके आती हैं। देश में अधिकांश वर्षा दक्षिण-पश्चिमी मानसून से + +929. बांटा जा सकता है- पश्चिमी हिमालय, पूर्वी हिमालय, असम, सिंधु का मैदान, गंगा का मैदान, दक्कन, + +930. शीतोष्ण क्षेत्र की ऊपरी सीमा से 4,750 मीटर या इससे अधिक ऊंचाई तक फैला हुआ है। इस क्षेत्र में + +931. हैं और बीच-बीच में घने बांसों तथा लंबी घासों के झुरमुट हैं। सिंधु के मैदानी क्षेत्र में पंजाब, पश्चिमी + +932. जंगली झाडि़यों के वन हैं। मालाबार क्षेत्र के अधीन प्रायद्वीप तट के साथ-साथ लगने वाली पहाड़ी तथा + +933. और दक्षिण प्रायद्वीप में क्षेत्रीय पर्वतीय श्रेणियों में ऐसे देशी पेड़-पौधों की अधिकता है, जो दुनिया में + +934. है। वाहिनी वनस्पति के अंतर्गत 15 हजार प्रजातियां हैं। देश के पेड़-पौधों का विस्तृत अध्ययन भारतीय + +935. के विभिन्न जनजातीय क्षेत्रों में कई विस्तृत नृजाति सर्वेक्षण किए जा चुके हैं। वनस्पति नृजाति विज्ञान की + +936. 60 से 100 वर्षों के दौरान दिखाई नहीं पड़ी हैं। संभावना है कि ये प्रजातियां लुप्त हो चुकी हैं। भारतीय + +937. जलवायु और प्राकृतिक वातावरण की व्यापक भिन्नता के कारण भारत में 89 हजार से अधिक किस्म + +938. स्तनपायी जीवों में हिमालय की बड़े आकार वाली जंगली भेड़ें, दलदली मृग, हाथी, गौर या + +939. में से एक हैं। अनेक किस्म के पक्षी, जैसे बत्तख, मैना, कबूतर, धनेश, तोते, तीतर, मुर्गियां और सुनहरे + +940. विशाल हिमालय शृंखला में कई अत्यंत आकर्षक जीव-जंतु पाए जाते हैं, जिनमें जंगली भेड़ और + +941. तू$फान आदि के प्रकोप से भी पेड़-पौधों को काफी क्षति पहुंचती है। 39 से अधिक प्रजातियों के + +942. भारत में जनगणना 2001 का कार्य अपने आप में एक युगांतरकारी एवं ऐतिहासिक घटना है क्याेंकि यह + +943. पश्चात् एक से 5 मार्च, 2001 तक इसका संशोधनात्मक दौर चला। आबादी की गिनती के कार्य को + +944. एक मार्च, 2001 को भारत की जनसंख्या एक अरब 2 करोड़ 80 लाख (532.1 करोड़ पुरूष और + +945. शताब्दी में एक अरब 2 करोड़ 80 लाख तक पहुंच गई। भारत की जनसंख्या की गणना 1901 के पश्चात् हर + +946. में सबसे अधिक 64.53 प्रतिशत जनसंख्या वृद्धि दर्ज की गई। दिल्ली में अत्यधिक 47.02 प्रतिशत, + +947. जनगणना दशक की तुलना में जनसंख्या वृद्धि दर कम दर्ज की गई। जिन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों + +948. जाता है कि प्रति वर्ग कि.मी. क्षेत्र में लोगों की संख्या कितनी है। 2001 में देश में आबादी का घनत्व + +949. में दिखाई गई है। + +950. शताब्दी के आरंभ में यह अनुपात 972 था और उसके बाद 1941 तक इसमें निरंतर कमी का रूख रहा। + +951. केवल पढ़ सकता है परंतु लिख नहीं सकता। वर्ष 1991 से पूर्व हुई जनगणनाओं में + +952. साक्षरता की दृष्टि से केरल सबसे ऊपर है जहां साक्षरता दर 90.86 प्रतिशत है। उसके बाद मिजोरम + +953. 33.12 प्रतिशत महिलाएं साक्षर हैं। देश के विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में पुरूषों और स्त्रियों की + +954. राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे में समान अनुपात में तीन क्षैतिज पट्टियां हैं— गहरा केसरिया रंग सबसे + +955. सरकार द्वारा समय-समय पर जारी गैर-सांविधिक निर्देशों के अलावा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन पर + +956. 26 जनवरी, 2002 से “ध्वज संहिता-भारत” का स्थान, भारतीय ध्वज संहिता, 2002 ने ले लिया है। + +957. राजचिह्न. + +958. सिंह स्तंभ के ऊपर “धर्मचक्र” रखा हुआ है। + +959. है- “सत्य की ही विजय होती है”। + +960. राष्ट्रगान का पूरा पाठ है, जो इस प्रकार है — + +961. विंध्य-हिमाचल-यमुना-गंगा + +962. जन-गण-मंगलदायक जय हे + +963. गाया जाता है, जिसमें इसकी प्रथम और अंतिम पंक्तियां (गाने का समय लगभग 20 सेकेंड) होती हैं। + +964. वंदे मातरम्! + +965. सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम् + +966. के लिए अपनाया गया — (1) भारत का राजपत्र, (2) आकाशवाणी के समाचार प्रसारण, (3) भारत सरकार + +967. राष्ट्रीय पशु “बाघ” (पैंथरा टाइग्रिस-लिन्नायस), पीले रंगों और धारीदार लोमचर्म वाला एक पशु है। अपनी + +968. को थामने के लिए अप्रैल 1973 में “बाघ परियोजना” शुरू की गई। बाघ परियोजना के अंतर्गत देश में अब + +969. मयूर अधिक सुंदर होता है। उसकी चमचमाती नीली गर्दन, वक्ष और कांस्य हरे रंग की लगभग 200 + +970. भारत का राष्ट्रीय पुष्प कमल (नेलंबो न्यूसिपेरा गार्टन) है। यह एक पवित्र पुष्प है तथा प्राचीन भारतीय + +971. शाखाएं दूर-दूर कई एकड़ तक फैली तथा जड़ें गहरी होती हैं। इतनी गहरी जड़ें किसी और वृक्ष की नहीं + +972. ए, सी और डी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। हमारे यहां आम की सैंकड़ों किस्में हैं। ये आकार और रंगों + +973. शिकार का पता लगाती है। + +974. होता है जो 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा द्वारा स्वीकृत किया गया और 26 जनवरी, 1950 को लागू + +975. नेतृत्व में एक मंत्रिपरिषद् होगी तथा राष्ट्रपति उसके परामर्श से ही कार्य करेंगे। इस प्रकार कार्यपालिका + +976. संविधान में विधायी शक्तियां संसद एवं राज्य विधानसभाओं में विभाजित की गई हैं तथा शेष शक्तियां + +977. भारत में 29 राज्य और सात केंद्रशासित प्रदेश हैं। ये राज्य हैं-आंध्र प्रदेश, तेलंगाना,असम, अरूणाचल प्रदेश, बिहार, + +978. नागरिकता. + +979. समाप्त करने के संबंध में प्रावधान दिए गए हैं। + +980. भाग, अनुच्छेद 12 से 35 तक, में मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया गया है। ये मूल अधिकार हैं- + +981. या व्यवसाय करने का अधिकार (इनमें से कुछ अधिकार देश की सुरक्षा, विदेशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, + +982. प्रचार करने की स्वतंत्रता का अधिकार; + +983. मूल कर्त्तव्य. + +984. जाएं। धर्म, भाषा और क्षेत्रीय तथा वर्ग संबंधी भिन्नताओं को भुलाकर सद्भाव और भाईचारे की भावनाओं + +985. इन सिद्धांतों का पालन करे। उनमें कहा गया है-सरकार ऐसी प्रभावी सामाजिक व्यवस्था कायम करके + +986. बेरोजगारी, बुढ़ापे, बीमारी और अपंगता या अन्य प्रकार की अक्षमता की स्थिति में सबको वित्तीय सहायता + +987. के कल्याण के लिए उपयोगी सिद्ध हो और यह सुनिश्चित हो कि आर्थिक व्यवस्था को लागू करने के + +988. करना; अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति और समाज के अन्य कमजोर वर्गों के शिक्षा संबंधी और + +989. संघ. + +990. राष्ट्रपति का निर्वाचन एक निर्वाचन मंडल के सदस्य आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर एकल + +991. कार्यकाल पांच वर्ष का होता है। वह इस पद के लिए पुन— भी चुना जा सकता है। संविधान के अनुच्छेद + +992. के पास होती है। राष्ट्रपति को संसद का अधिवेशन बुलाने, उसे स्थगित करने, उसमें भाषण देने और + +993. व्यवस्था के विफल हो जाने पर राष्ट्रपति उस सरकार के संपूर्ण या कोई भी अधिकार अपने हाथ में + +994. उपराष्ट्रपति. + +995. के अनुच्छेद 67 (ख) में निहित कार्यविधि द्वारा उसे पद से हटाया जा सकता है। + +996. कर सकते। + +997. है। प्रधानमंत्री का कर्त्तव्य है कि वह भारत संघ के कार्यों के प्रशासन के संबंध में मंत्रिपरिषद् के निर्णयों, + +998. संघ की विधायिका को “संसद” कहा जाता है। इसमें राष्ट्रपति, लोकसभा तथा राज्यसभा शामिल हैं। संसद + +999. 12 सदस्य साहित्य, विज्ञान, कला, समाज सेवा आदि क्षेत्रों में विशेष ज्ञान या अनुभव रखने वाले व्यक्ति + +1000. निर्धारित कानून के अंतर्गत किया जाता है। राज्यसभा कभी भी भंग नहीं होती और उसके एक-तिहाई सदस्य + +1001. लोकसभा. + +1002. मिला। + +1003. जो आंग्ल-भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं। 84वें संविधान संशोधन विधेयक-2001 के तहत + +1004. सकती है। परंतु यह वृद्धि एक समय पर एक वर्ष से अधिक नहीं हो सकती और आपातस्थिति समाप्त + +1005. सारणी 3.2 में उपलब्ध है। 14वीं लोकसभा के सदस्यों के नाम, उनकी पार्टी और चुनाव क्षेत्र का विवरण + +1006. अन्य संसदीय लोकतंत्रों की भांति भारत की संसद को भी कानून बनाने, प्रशासन की देखरेख, बजट + +1007. अधिकार भी प्राप्त कर सकती है, जो अन्यथा राज्यों के लिए सुरक्षित हैं। संसद को राष्ट्रपति पर महाभियोग + +1008. के मामले में लोकसभा की इच्छा सर्वोपरि है। संसद प्रदत्त कानूनों की समीक्षा करती है तथा उन पर + +1009. समय बहुत सीमित होता है, इसलिए उसके समक्ष प्रस्तुत सभी विधायी या अन्य मामलों पर गहन विचार + +1010. होती है। + +1011. स्थायी समितियां — लोकसभा की स्थायी समितियों में तीन वित्तीय समितियों, यानी लोक लेखा समिति, + +1012. है तथा संगठन, कार्यकुशलता और प्रशासन में क्या-क्या सुधार किए जा सकते हैं। यह इस बात की भी जांच + +1013. निरर्थक व्यय के मामलों की ओर ध्यान दिलाती है। सरकारी उपक्रम समिति नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक + +1014. 17 स्थायी समितियां गठित करने की सिफारिश की थी। इसके अनुसार 8 अप्रैल, 1993 को इन 17 समितियों + +1015. उसके बारे में सदन को सूचित करना; + +1016. करना; और + +1017. (1) जांच समितियां-(क) याचिका समिति — विधेयकों और जनहित संबंधी मामलों पर प्रस्तुत + +1018. अधीनस्थ विधि निर्माण समिति — इस बात की जांच करती है कि क्या संविधान द्वारा प्रदत्त विनियमों, + +1019. करते हुए उनकी व्यवस्थाओं का पालन हुआ है या नहीं; (3) सदन के दैनिक कार्य से संबंधित + +1020. है और लोकसभा में निजी सदस्यों द्वारा पेश किए जाने से पूर्व संविधान संशोधन विधेयकों की जांच + +1021. सदस्यों संबंधी लोकसभा की समिति — सदन के सदस्यों की बैठकों से अनुपस्थिति या छुट्टी के आवेदनों + +1022. इस बात पर नजर रखती है कि उन्हें जो संवैधानिक संरक्षण दिए गए हैं, वे ठीक से कार्यान्वित हो रहे + +1023. और भत्तों संबंधी संयुक्त समिति — यह संसद सदस्यों के वेतन, भत्ते एवं पेंशन अधिनियम, 1954 के + +1024. करती है कि कौन-कौन से पद ऐसे हों, जो संसद के किसी भी सदन की सदस्यता के लिए किसी व्यक्ति + +1025. समानता प्रदान करना है। (10) 4 मार्च, 1997 को राज्यसभा की आचार संहिता समिति गठित की गई। + +1026. अभिभाषण पर, कुछ सदस्यों के आचरण पर, पंचवर्षीय योजनाओं के मसौदे पर, रेलवे कनवेंशन समिति, + +1027. सवाल है, ये समितियां अन्य तदर्थ समितियों से भिन्न हैं और इनके द्वारा पालन की जाने वाली प्रक्रिया + +1028. वेतन तथा कुछ अन्य उपयुक्त सुविधाएं दी जाती हैं। + +1029. नेताओं तथा मुख्य सचेतकों से लगातार संपर्क बनाए रखते हैं। 1 अगस्त, 2008 से 30 जून, 2009 की अवधि + +1030. कार्य को करने के लिए संसदीय मामलों का मंत्रालय इन समितियों का गठन करता है और उनकी बैठकें + +1031. सलाहकार समिति की न्यूनतम सदस्यता 10 और अधिकतम सदस्यता 30 है। प्रत्येक लोकसभा + +1032. समितियों की बैठकें सत्र अवधि में ही आयोजित की जाती हैं। 1 अगस्त, 2008 से 18 मई 2009 + +1033. के लिए संसद सदस्यों की वरीयता को आमंत्रित किया गया है। संसद सदस्यों की वरीयता प्राप्त होने के + +1034. जो संविधान या कानून का निर्माण करते हैं, वहां संसद सदस्यों की नियुक्ति के लिए नामजदगी संबंधित + +1035. विश्वविद्यालय स्तर पर युवा संसद प्रतियोगिता का आयोजन करता है। युवा संसद प्रतियोगिता आयोजित + +1036. विश्वविद्यालयों/कॉलेज के लिए। + +1037. अन्य संसदीय विषय. + +1038. बनाने के लिए उच्च मानक बनाने पर विचार किया जाता है। 1952 से अब तक 14वां अखिल भारतीय + +1039. के और राज्यसभा में विशेष उल्लेख के अंतर्गत उठाए गए विषयों पर अनुवर्ती कार्रवाई करता है। संसद + +1040. संसदीय कार्य मंत्रालय संसद के दोनों सदनों की दैनिक कार्यवाहियों में से मंत्रियों द्वारा दिए गए आश्वासनों/ + +1041. भारत के राष्ट्रपति के भारत सरकार के कार्यों का आवंटन करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 77 के + +1042. पर राष्ट्रपति मंत्रियों के बीच काम का बंटवारा करते हैं। प्रत्येक विभाग आमतौर पर एक सचिव के अधीन + +1043. कैबिनेट सचिव का कार्य निम्न होता है — (क) मंत्रिमंडल समितियों को सचिवालय सहयोग और + +1044. के बीच समन्वय स्थापित करते हुए और मंत्रालयों के बीच मतभेदों को दूर करते हुए यह सचिवालय + +1045. देश में किसी बड़े संकट के समय उसका प्रबंधन करना तथा ऐसी परिस्थितियों में विभिन्न मंत्रालयों की + +1046. है। कार्य नियमों के संचालन के लिए भी यह आवश्यक है कि समय-समय पर विभिन्न गतिविधियों + +1047. निर्धारित दायित्वों को पूरा करना था जिस पर शुरू में 130 देशों ने 14 जनवरी, 1993 को संपन्न हुए + +1048. इसीलिए कैबिनेट सचिवालय के प्रशासनिक नियंत्रण में राष्ट्रीय प्राधिकरण, रासायनिक हथियार कन्वेंशन + +1049. में, सीडब्ल्यूसी अधिनियम लागू कराने, सीडब्ल्यूसी तथा अन्य सरकारी पक्षों से तालमेल रखने, दायित्व + +1050. सरकार के मंत्रालय/विभाग. + +1051. 1. कृषि मंत्रालय + +1052. (ख) उर्वरक विभाग + +1053. 53. युवा मामले विभाग + +1054. प्रमुख स्वतंत्र कार्यालय. + +1055. भारतीय पुलिस सेवा भी थी। देश के आजाद होने के बाद यह महसूस किया गया कि भले ही इंडियन सिविल + +1056. 312 के संदर्भ में संसद द्वारा गठित की गई मानी जाती हैं। संविधान लागू होने के बाद 1966 में भारतीय + +1057. प्रदान करता है। + +1058. राज्यों के कैडर में भेज दिया जाता है। + +1059. सचिव के ग्रेड केंद्रीकृत हैं। केंद्रीय सचिवालय सेवा के अनुभाग अधिकारी ग्रेड और सहायक ग्रेड, इसी सेवा + +1060. आवश्यकताओं का पता लगाता और मूल्यांकन करता है और सीधी भर्ती एवं विभागीय परीक्षा कोटा की + +1061. आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। इनका कार्यकाल छह वर्ष का या + +1062. अपने पदों से नहीं हटाया जा सकता। + +1063. अधिकतम वेतनमान 6500-10,500 रूपये हो, और (2) भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों/विभागों तथा + +1064. का मुख्यालय और उसके उत्तरी क्षेत्र का कार्यालय नई दिल्ली में है। इसके मध्य, पश्चिम, पूर्व, पूर्वोत्तर, + +1065. संघ सरकार की राजभाषा नीति के संबंध में संवैधानिक तथा विधिक प्रावधानों, राजभाषा अधिनियम, 1963 + +1066. निरीक्षण करना, तिमाही रिपोर्ट के माध्यम से संघ के कामकाज में राजभाषा हिंदी की प्रगति पर निगरानी + +1067. करता है। कार्यालयों में प्रयोग में आने वाले विभिन्न यांत्रिक तथा इलैक्ट्रानिक उपकरणों में देवनागरी लिपि + +1068. मंत्रा, श्रुतलेखन आदि) का विकास भी कराता रहा है। + +1069. अधिनियम तथा राजभाषा नियम के उपबंधों का समुचित रूप से अनुपालन हो रहा है तथा इस प्रयोजन के + +1070. राजभाषा हिंदी के प्रचार-प्रसार, प्रोत्साहन व कार्यान्वयन के वार्षिक लक्ष्य निर्धारित किए हुए हैं तथा उनको + +1071. (क) संसदीय राजभाषा समिति-राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा 4(1) के अंतर्गत वर्ष 1976 + +1072. (ख) केंद्रीय हिंदी समिति-इस समिति का गठन प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में भारत सरकार के मंत्रालयों/ + +1073. हैं। वर्तमान समिति की संरचना में कुल 41 सदस्य हैं। गृह मंत्री इस समिति के उपाध्यक्ष तथा सचिव, + +1074. (घ) केंद्रीय राजभाषा कार्यान्वयन समिति-केंद्र सरकार के मंत्रालयों, विभागों में राजभाषा अधिनियम + +1075. गठित है। + +1076. पदों को एकीकृत संवर्ग में लाने तथा उनके पदाधिकारियों को समान सेवा शर्त, वेतनमान और पदोन्नति के + +1077. राजभाषा-संवैधानिक/वैधानिक प्रावधान + +1078. रख सकती है। तदनुसार राजभाषा अधिनियम, 1963 (1967 में संशोधित) की धारा 3 (2) में यह व्यवस्था + +1079. राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा 3(4) के अंतर्गत सन् 1976 में राजभाषा नियम बनाए गए। + +1080. और दिल्ली) के बीच पत्र-व्यवहार की भाषा हिंदी होगी; (3) केंद्र सरकार के कार्यालयों से क्षेत्र “ख” + +1081. कार्यालयों से राज्य/केंद्रशासित प्रदेश के सरकारी कार्यालयों तथा व्यक्तियों आदि के बीच पत्र-व्यवहार उस + +1082. वाले का यह दायित्व होगा कि वह देखे कि ये दस्तावेज हिंदी और अंग्रेजी दोनों में जारी हों; (8) केंद्र + +1083. राजभाषा के संकल्प, 1968 का पालन करते हुए राजभाषा विभाग हर वर्ष एक वार्षिक कार्यक्रम तैयार करता + +1084. संसद के दोनों सदनों में रखी जाती है और इसकी प्रतियां राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के मंत्रालयों/ + +1085. राजभाषा अधिनियम 1963 धारा 4 के निहित राजभाषा संसदीय समिति का गठन 1976 में किया गया। + +1086. चल रहा है। + +1087. सलाहकार समितियां गठित की गई हैं। ये अपने-अपने मंत्रालयों/विभागों और कार्यालयों/प्रतिष्ठानों में हिंदी + +1088. कामकाज में हिंदी के उपयोग की समीक्षा करती है, कर्मचारियों को हिंदी का प्रशिक्षण देने, राजभाषा विभाग + +1089. राजभाषा कार्यान्वयन समितियों का गठन किया जा चुका है। + +1090. की जाती है। केंद्र सरकार, बैंकों, वित्तीय संस्थानों, विश्वविद्यालयों, प्रशिक्षण संस्थानों तथा केंद्र सरकार + +1091. था, इसे अब “हिंदी में मौलिक पुस्तक लेखन के लिए राजीव गांधी राष्ट्रीय पुरस्कार योजना” कर दिया गया + +1092. प्रशिक्षण. + +1093. उत्तर-मध्य, दक्षिण तथा पूर्वोत्तर क्षेत्रों में शैक्षणिक और प्रशासनिक सहायता के लिए कोलकाता, मुंबई, + +1094. देने के लिए 31 अगस्त, 1985 को केंद्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना की गई। 1988 में मुंबई, + +1095. साहित्य, मैन्युअल/कोड्स, फॉर्म आदि का अनुवाद करने का कार्य। ब्यूरो को अधिकारियों/कर्मचारियों को + +1096. तकनीकी. + +1097. का एक पैकेज विकसित किया गया है। अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद के लिए एक सहायक उपकरण “मंत्र + +1098. प्रकाशन. + +1099. विभिन्न मंत्रालयों, विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में हिंदी के कामकाज की समीक्षा संबंधित वार्षिक + +1100. नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं। उसको पद से हटाने के लिए वही आधार + +1101. के पास भेजते हैं, जो संसद और राज्य विधानसभाओं में प्रस्तुत की जाती हैं। + +1102. में समन्वय और उनका क्रियान्वयन बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। नीतियों में परस्पर समन्वय और उनके + +1103. आईएससी एक अनुशंसात्मक इकाई है और उसे एेसे विषयों की जांच और चर्चा के अधिकार दिए + +1104. विधानसभा हो) के मुख्यमंत्री, केंद्र शासित प्रदेशों (जहां विधान सभा न हो) के प्रशासक, राष्ट्रपति शासन + +1105. से तय किए जाते हैं। इस पर अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होता है। संविधान के अनुच्छेद 263 के खंड (क) + +1106. अध्यक्ष और पांच कैबिनेट मंत्रियों एवं नौ मुख्यमंत्रियों को इसका सदस्य बनाया गया। इसके बाद समिति + +1107. मंत्रालयों/संबंधित विभागों ने नामंजूर कर दिया है और केवल 3 सिफारिशें क्रियान्वयन के विभिन्न चरणों + +1108. (ग) आपदा प्रबंधन- आपदाओं से निपटने के लिए राज्यों की तैयारी + +1109. परिषद सचिवालय ने सार्वजनिक नीति और प्रशासनिक मुद्दों पर अनेक प्रकार के अध्ययनों को + +1110. (ग) कृषिगत उत्पादों और वस्तुओं पर समान भारतीय बाजार का सृजन + +1111. है। यह समझौता अगले तीन वर्षों 2008-2011 के लिए पुनर्नवीनीकृत किया गया है। + +1112. इश्यूज इन फेडरलिज्म- इंटरनेशनल पर्सपेक्टिव्स”। + +1113. आईएससीएस केंद्र राज्य संबंध आयोग को सचिवालयी सहयोग प्रदान करता है। इस आयोग को + +1114. के पूर्व मुख्य न्यायाधीश को अध्यक्ष नियुक्त किया गया और श्री धीरेंद्र सिंह, पूर्व सचिव- भारत सरकार, + +1115. प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायतें. + +1116. सुधारों से संबद्ध सरकार के महत्वपूर्ण कार्यकलापों के बारे में सूचनाओं का प्रचार करता है। यह विभाग + +1117. अधिकार-पत्र संगठन की प्रतिबद्धता, सेवा उपलब्ध कराने के अपेक्षित मानदंडों, समय -सुबोध, शिकायत + +1118. और कार्यविधियां तैयार करना और पुराने हो चुके कानूनों में सुधार करना था। विभिन्न मंत्रालयों/विभागों + +1119. अब तक सरकार को निम्नलिखित 15 रिपोर्टें सौंप दी हैं — + +1120. करने के वास्ते विभाग ने 2005 में “लोक प्रशासन में उल्लेखनीय योगदान के लिए प्रधानमंत्री पुरस्कार” का + +1121. केंद्र और राज्य सरकार के सभी अधिकारियों को व्यक्तिगत अथवा समूह के तौर पर या संस्थान के रूप + +1122. उद्देश्य नागरिकों को ध्यान में रखते हुए सेवाएं सुलभ कराने की गुणवत्ता में सुधार लाना है तथा इसे नागरिक + +1123. का प्रलेखन, संचयन और प्रचारण शामिल है। इसकी पूर्ति और देश में उत्तम प्रशासन प्रणालियों को बढ़ावा + +1124. पुस्तकें “आइडियाज दैट हैव वर्क्ड” और “लर्न फ्राम दैम” का प्रकाशन भी किया है। इन पुस्तकों में नूतन + +1125. प्रशासनिक ट्रिब्यूनल. + +1126. में नियुक्त व्यक्तियों की भर्ती और सेवा-शर्तों आदि से संबंधित शिकायतों और विवादों पर निर्णय दे + +1127. प्रशासनिक ट्रिब्यूनल केवल अपने अधिकार-क्षेत्र और कार्य विधि में आने वाले कर्मचारियों के सेवा + +1128. अधिनियम में केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल (सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल-सीएटी) और राज्य + +1129. न्यायिक और प्रशासनिक-दोनों क्षेत्रों से लिए जाते हैं, ताकि ट्रिब्यूनल को कानूनी और प्रशासनिक-दोनों + +1130. राज्यपाल. + +1131. मुख्यमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिपरिषद् राज्यपाल को उनके कार्यों में सहायता-सलाह देती है-सिवाय + +1132. इसी प्रकार अरूणाचल प्रदेश के मामले में संविधान के अनुच्छेद 371 “एच” के अधीन कानून- + +1133. निर्देश दे सकते हैं। + +1134. लगाने और जिला परिषदों द्वारा गैर-जनजातीय समुदाय के उधार धन देने वालों के मामलों को छोड़कर) + +1135. अथवा राज्य में संवैधानिक तंत्र की असफलता की रिपोर्ट को भेजते समय अथवा राज्य विधानमंडल द्वारा + +1136. की नियुक्ति की जाती है। मंत्रिपरिषद् सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति उत्तरदायी + +1137. विधानपरिषद् और विधानसभा कहते हैं। शेष राज्यों में विधानमंडल का केवल एक ही सदन है, जिसे + +1138. प्रत्येक राज्य की विधानपरिषद् के सदस्यों की कुल संख्या राज्य के विधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या + +1139. निकायों के सदस्यों के निर्वाचक-मंडल करते हैं। कुल सदस्य संख्या के 12वें भाग के बराबर सदस्यों का + +1140. सेवा के क्षेत्र में प्रतिष्ठा प्राप्त की हो। विधान परिषदें भंग नहीं होती हैं। उनके एक-तिहाई सदस्य प्रत्येक + +1141. के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष मतदान द्वारा किया जाता है। प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन + +1142. सूची-III में दिए गए विषयों पर केंद्र के साथ मिले-जुले अधिकार प्राप्त हैं। विधानमंडल की वित्तीय शक्तियों + +1143. विधानमंडल द्वारा पारित किसी विधेयक को राज्यपाल, भारत के राष्ट्रपति को विचारार्थ भेजने से रोक सकता + +1144. राज्य विधानमंडल वित्त पर सामान्य नियंत्रण रखने के अतिरिक्त, कार्यपालिका के दिन-प्रति-दिन के कार्यों + +1145. केंद्रशासित प्रदेशों का शासन राष्ट्रपति द्वारा चलाया जाता है और वह इस बारे में जहां तक उचित समझें, + +1146. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और केंद्रशासित प्रदेश पांडिचेरी की अपनी-अपनी विधानसभाएं और + +1147. स्वीकृति लेना भी अनिवार्य है। केंद्रशासित प्रदेश पांडिचेरी और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधान + +1148. स्थापना 1688 में की गई। उसके बाद 1726 में इसी तरह के नगर निगम मुंबई और कोलकाता (तत्कालीन + +1149. स्थानीय स्वशासन की जिम्मेदारी राज्य सरकार को सौंपी गई है। + +1150. ने अधिसूचना जारी करके 1 जून, 1993 से इस अधिनियम को लागू कर दिया। संविधान में नगरपालिकाओं + +1151. और महानगर तथा जिला योजना समितियों का गठन। सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने अपने निर्वाचन + +1152. स्वायत्तशासी सरकार की इकाई के रूप में काम कर सकें। + +1153. सदस्यों आैर पंचायत-अध्यक्षों के पदों के लिए जनसंख्या के अनुपात में अनुसूचित जाति और अनुसूचित + +1154. भारत के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव कराने तथा संसद और विधानसभाओं का चुनाव कराने के लिए + +1155. निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति की। लेकिन एक जनवरी, 1990 को जब इन दोनों निर्वाचन आयुक्तों के पद + +1156. और वे सभी सुविधाएं मिलेंगी, जो भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को मिलती हैं। इस अधिनियम + +1157. गया है। लेकिन उच्चतम न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने याचिका खारिज कर दी और + +1158. न्यायालय के न्यायाधीश हटाए जा सकते हैं तथा उसकी नियुक्ति के पश्चात् मुख्य निर्वाचन आयुक्त की + +1159. संशोधन. + +1160. निर्वाचन क्षेत्र के मतदान अधिकारी को भेज सकते हैं। + +1161. आयकर कानून 1961 के तहत आयकर से रियायत दी जाएगी। मुख्य कानून के भाग-ए (धारा 78ए और + +1162. वह उसे अपने चुनाव के खर्च में शामिल करता है। + +1163. राज्यों की विधानसभा परिषदों के चुनाव के लिए खुली मतदान की प्रणाली लागू करने का प्रावधान किया + +1164. दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर 1998 की याचिका संख्या 4912 - (कुशरा भरत बनाम भारत सरकार और + +1165. 2003 के द्वारा मतदाताओं के सूचना के अधिकार को ध्यान में रखते हुए उम्मीदवार की पृष्ठभूमि संबंधी + +1166. लोकसभा गठन के पश्चात भंग होने की अध्यक्ष1 का नाम से तक की प्रथम बैठक तिथि + +1167. चौथी लोकसभा 16 मार्च, 1967 27 दिसंबर, 19706 नीलम संजीव रेड्डी 17 मार्च, 1967 19 जुलाई, 19697 + +1168. के.एस. हेगड़े 21 जुलाई, 1977 21 जनवरी, 1980 + +1169. ग्यारहवीं लोकसभा 22 मई, 1996 4 दिसंबर, 199715 पी.ए. संगमा 23 मई, 1996 23 मार्च, 1998 (पूर्वाह्न) + +1170. पंद्रहवीं लोकसभा 1 जून, 2009 - श्रीमती मीरा कुमार 1 जून, 2009 अब तक + +1171. रहा। हालांकि कृषि उत्पादन मानसून पर भी निर्भर करता है, क्योंकि लगभग 55.7 प्रतिशत कृषि-क्षेत्र + +1172. उत्पादन 8 करोड़ 5 लाख टन होने की उम्मीद है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 20 लाख टन अधिक है। + +1173. 170 किलोग्राम) जो वर्ष 2007-08 की तुलना में 27.28 लाख गांठें अधिक है। 2008-09 के दौरान जूट + +1174. गया है जो पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 14.37 लाख हेक्टेयर अधिक है। गेहूं का फसल क्षेत्र वर्ष + +1175. (गेहूं) से लेकर 52.6 प्रतिशत (रागी) तक हुई। साधारण धान के मामले बढ़ोतरी 31.8 प्रतिशत, दालोमें 8.1 प्रतिशत (चना) और उड़द तथा मूंग में 42.8 प्रतिशत रही। + +1176. निर्भर करती है। भारत की जनसंख्या विश्व की 18' और पशुओं की 15' है, जिसके लिए भौगोलिक + +1177. 2035 तक गिरकर 0.08 हेक्टेयर हो जाने की संभावना है। प्रतिव्यक्ति भूमि की उपलब्धता जनसंख्या + +1178. करता है। इसलिए अधिकतम उत्पादन प्रति इकाई भूमि और प्रति इकाई जल से सुधार की जरूरत है। + +1179. अंकन में अलग तरीके अपनाने से इन एजेंसियों के अनुमानों में व्यापक अंतर है जो 6.39 करोड़ हेक्टेयर + +1180. अनुमान स्थानीय सर्वेक्षणों और अध्ययनों पर आधारित हैं। वर्ष 2005 में आईसीएआर के नागपुर स्थित + +1181. भूमि विकास के लिए जलसंभरण कार्यक्रम. + +1182. कार्यान्वयन हो रहा है। + +1183. रहा है। योजनावार कार्यक्रम/योजनाओं की विशिष्ट बातें हैं — + +1184. (अ) त्वरित गहन सर्वेक्षण (आरआरएएन)- 156.00 लाख हेक्टेयर + +1185. आवंटित किए गए है। + +1186. आवंटित किए गए हैं। + +1187. केंद्र प्रायोजित कार्यक्रम (योजना-एमएमए के तहत शामिल) आरवीपी और पीपीआर — नदी घाटी + +1188. किया जा रहा है। शुरू से दसवीं योजना तक 0.59 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य बनाया गया। 2009-10 में + +1189. (अ) वर्षा सिंचित क्षेत्रों के लिए राष्ट्रीय जलसंभरण विकास परियोजना-(एनडब्लूडीपीआरए) वर्ष + +1190. है। 2009-10 में 300 करोड़ रूपए की अनुमानित लागत से 2.80 हेक्टेयर का लक्ष्य रखा गया है। + +1191. परियोजनाएं तैयार करता है। इसका अधिकतर क्षेत्र केवल जल संरक्षण ही नहीं, बल्कि उचित + +1192. उचित नेतृत्व और समन्वय का कार्य करता है। केंद्रीय कृषि मंत्री इसके अध्यक्ष और केंद्रीय ग्रामीण + +1193. नियुक्ति की प्रक्रिया जारी है। + +1194. क्रियान्वयन के लिए ग्यारहवीं योजना में 3500 करोड़ रूपए की लागत से लागू करने की + +1195. हेक्टेयर वर्षा सिंचित क्षेत्र शामिल किए जाने की उम्मीद है। + +1196. जलसंभरण विकास कार्यक्रम के लिए भी दिशा-निर्देश राज्य सरकारों को भेजे जा चुके हैं। + +1197. और उत्पादकता में वृद्धि की जा सके और किसानों के जीवन में समृद्धि लाई जा सके। + +1198. और कृषि विकास के लिए राज्य सरकारों को पर्याप्त छूट दी गई है। फलस्वरूप राज्यों ने अपनी + +1199. कृषि उत्पादन और उत्पादकता की बढ़ोतरी की दिशा में राज्यों की कार्यक्षमता में सुधार हेतु + +1200. को बदलकर इसकी जगह सकल क्षेत्र तथा लघु एवं सीमांत जोतों पर आधारित आबंटन मानदंड अपनाया + +1201. (क) तिलहन, दलहन, पाम आयल तथा मक्का एकीकृत योजना के तहत आने वाले क्षेत्रों के लिए दाल + +1202. भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए जिसमें जिला/उपजिला स्तर पर योजना की समीक्षा, निगरानी और + +1203. अन्य मशीनें और सीमा शुल्क सेवा, मानव संसाधन विकास के लिए सहयोगी सेवाएं तथा परीक्षण, + +1204. सरकार द्वारा प्रायोजित विभिन्न योजनाओं, जैसे-खेती के लिए जल-व्यवस्था पर वृहद् कृषि + +1205. खेती की मशीनों से संबंधित प्रशिक्षण और परीक्षण संस्थानों (एफएमटी ऐंड टीआई) की स्थापना मध्य + +1206. प्रशिक्षित किया जा चुका है और 31 मार्च, 2009 तक 2,584 मशीनों का परीक्षण हो चुका है। इन + +1207. योजना प्रशिक्षण, परीक्षण और प्रदर्शन के जरिए कृषि यंत्रीकरण को प्रोत्साहन एवं सुदृढ़ीकरण का एक + +1208. सहायता के लिए प्राप्त प्रस्तावों के आधार पर (आईसीएआर एवं एसपीसीआई) दो संगठनों को राशि + +1209. मशीनरी का उन्नयन और सुदृढ़ीकरण” के अंतर्गत स्वीकृत घटक है। इसके अंतर्गत बड़ी संख्या में + +1210. फसलोपरांत प्रौद्योगिकी और प्रबंधन. + +1211. और फलों और फसल उप-उत्पाद के प्रारंभिक प्रसंस्करण मूल्य संवर्धन और कम लागत वाली वैज्ञानिक + +1212. केंद्र सरकार और संबद्ध राज्य सरकारों द्वारा संयुक्त क्षेत्र की कंपनियों के रूप में 17 राज्य कृषि उद्योग + +1213. महाराष्ट्र, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में इनकी स्थापना हुई। + +1214. खतरनाक मशीन (नियमन) अधिनियम, (1983) 14 सितंबर, 1983 से प्रभावी हुआ। इस अधिनियम में + +1215. को इस अधिनियम की परिधि में लाया गया है। केंद्रीय सरकार ने खतरनाक मशीन (नियमन) अधिनियम, + +1216. महत्वपूर्ण घटकों में समन्वित कीट प्रबंधन को प्रोत्साहन, फसल पैदावार को कीटों और बीमारियों के + +1217. ध्यान दिया जाता है। + +1218. पर केंद्र द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम इस वर्ष के दौरान जारी रहा। इस योजना को जम्मू और कश्मीर, + +1219. शामिल है। + +1220. करना शामिल है। लघु मिशन-III में राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड द्वारा फसल के बाद के प्रबंधन विपणन और + +1221. राज्यों को फंड उपलब्ध कराए जाते हैं जो संबंधित राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय + +1222. पौधे 8640 हेक्टेयर, कंद मूल 1540 हेक्टेयर, फूल 24042 हेक्टेयर शामिल हैं। इसके अलावा 47 थोक + +1223. का प्रशिक्षण, 67329 महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया। परंपरागत फसलों में बेहतर उत्पादन + +1224. फसलें 2125, औषधीय और सुगंधित पौधे-3760 हेक्टेयर आदि)। फसलों का उत्पादन और उत्पादकता + +1225. गया (फल 104064, सब्जी 20333, मसाले 12, पौध फसलें 1902, औषधीय और सुगंधित पौधे 3429 + +1226. वित्तीय स्थिति + +1227. पूर्वोत्तर और हिमालय क्षेत्र के राज्यों की आवश्यकता पूरी करने के लिए इसको 2500 करोड़ रूपए की + +1228. और वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना। मिशन के तहत बागवानी के विभिन्न पहलुओं में 2007-08 में + +1229. योजना के लिए 8.35 करोड़ रूपए रखे गए हैं। संस्थान की स्थापना मेजिफेमा में 43.50 हेक्टेयर क्षेत्र में + +1230. 568.23 करोड़ रूपए आवंटित किए गए हैं। + +1231. में सहयोग बढ़ाना। + +1232. एवं विकास के लिए 359.80 लाख रूपए सहित 11439.62 लाख रूपए दिए गए। वित्तीय वर्ष 2008-09 + +1233. वन और गैर-वन क्षेत्रों का 1,00,456 हेक्टेयर बांसबागान के तहत लाया गया है। वर्तमान बांसबागान के + +1234. स्तरीय कार्यशालाओं का आयोजन किया गया। बांस और बांस उत्पादनों की बिक्री को बढ़ावा देने के + +1235. प्रणाली अपनाता है। इस प्रणाली में बीज की तीन पीढ़ियों-प्रजनक, आधार और प्रमाणित बीजों को + +1236. (आईसीएआर), राज्य कृषि विश्वविद्यालय (एसएयू) प्रणाली, सार्वजनिक क्षेत्र, सहकारी क्षेत्र और निजी + +1237. वितरण में निजी क्षेत्र महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने लगा है, किंतु संगठित बीज क्षेत्र में खास कर खाद्य + +1238. प्रमुख एजेंसियां हैं, जो इसके प्रशासन संबंधी सभी मामलों और बीजों की गुणवत्ता पर नियंत्रण के लिए + +1239. की नई आयात-निर्यात नीति के अंतर्गत इन्हें प्रतिबंधित सूची में रखा गया है। + +1240. प्रबंध, पूर्वोत्तर और अन्य पर्वतीय क्षेत्रों में बीजों की ढुलाई के लिए परिवहन सब्सिडी, बीज बैंक की स्थापना + +1241. के अनुच्छेद 27 (3) बी के अंतर्गत बाध्यताओं को पूरा करने के लिए कृषि एवं सहयोग विभाग ने पौध + +1242. पौध किस्मों के संरक्षण तथा किसान अधिकार प्राधिकरण (पीपीवीएंडएफआर) द्वारा लागू की गई है। + +1243. 11वीं योजना में इसमें 12 घटक होंगे और पीपीवी एवं एफआर अधिनियम को लागू करने के + +1244. अगस्त 2004 में केंद्र सरकार ने प्रो. ए. वैद्यनाथन की अध्यक्षता में एक कार्यदल बनाया था। इस कार्यदल + +1245. ऑडिट का आयोजन और कार्यान्वयन लागत शामिल है। + +1246. सुझाने को कहा गया है। इस संबंध में कार्यदल की रिपोर्ट तैयार होने के बाद ही सरकार दीर्घावधि + +1247. इसमें आ गए हैं। दस राज्यों के 37,821 पीएसीएस के पुनर्पूंजीकरण के लिए नाबार्ड ने भारत सरकार के + +1248. सहकारिता सुधार. + +1249. अपने अस्तित्व को लेकर ऊहापोह में हैं। इन संस्थाओं को आमतौर पर संसाधनों की कमी, लचर + +1250. का उद्देश्य देश में सहकारी संगठनों के चहुंमुखी विकास को बढ़ावा देना है। यह नीति सरकार द्वारा + +1251. बहुराज्यीय सहकारी समितियां (एमएससीएस) अधिनियम, 2002 — केंद्र सरकार ने बहुराज्यीय + +1252. समितियों पर लागू होता है, फिर भी यह उम्मीद की जाती है कि यह राज्य सहकारी नियमों में सुधारों के + +1253. संशोधन करके उनके अंतर्गत खाद्य और अखाद्य तिलहनों, मवेशी आहार, बागवानी और पशुपालन + +1254. शामिल होंगे। एनसीडीसी स्वयं की संतुष्टि के लिए प्रतिभूति भरने पर राज्य/केंद्र सरकार की गारंटी के + +1255. राज्य सहकारी समिति अधिनियमों में संशोधन किए जाने के बावजूद राज्यों द्वारा सहकारी कानूनों में + +1256. संस्थाओं के स्वैच्छिक गठन, स्वायत्त कार्यप्रणाली, लोकतांत्रिक नियंत्रण और व्यावसायिक प्रबंधन के + +1257. चुनौतियों की समीक्षा करने और उनका सामना करने के तौर-तरीके सुझाने तथा आंदोलन को नई दिशा + +1258. के लिए सहकारिता कानून में अपेक्षित संशोधनों और तत्संबंधी समुचित नीति तथा विधायी फ्रेमवर्क + +1259. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन का केंद्र प्रायोजित योजना देश में 11वीं योजना के अंत तक चावल, गेहूं और + +1260. में 93.35 मिलियन टन था। इस प्रकार इसमें 3.34 मिलियन टन की वृद्धि हुई। तदनुसार 2008-09 + +1261. तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार गेहूं का उत्पादन 77.63 मिलियन रहा, जो 2006-07 से 1.63 + +1262. समन्वित पोषक तत्त्व प्रबंधन. + +1263. बनाने तथा उर्वरकों की गुणवत्ता सुनिश्चित करते हुए इस बात पर जोर देना है कि जैविक और + +1264. आत्मनिर्भरता 90 प्रतिशत है। पूरे देश में उर्वरकों की खपत 96.4 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, हालांकि + +1265. रखते हुए सरकार इसके संतुलित और समन्वित प्रयोग को विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से प्रोत्साहन दे + +1266. आपूर्ति जारी रखने के लिए केंद्र सरकार की ओर से सब्सिडी दी जाती है। देश में यूरिया की खपत सबसे + +1267. मिश्रित ग्रेड उर्वरकों की कीमतें पोषण आधारित सरकारी उर्वरक की कीमतों की तरह 14 जून, 2008 से + +1268. मिश्रित 5121-8185 + +1269. डीएपी और एमओपी की सीमित मात्रा के बफर स्टॉक की एक योजना बनाई गई है जिससे इसकी + +1270. सरकार आवश्यक उपभोक्ता वस्तु अधिनियम के अंतर्गत जारी उर्वरक नियंत्रण आदेश (एफसीओ) के + +1271. उर्वरक गुणवत्ता नियंत्रण और प्रशिक्षण संस्थान फरीदाबाद में स्थित है और इसके तीन क्षेत्रीय केंद्र नवी + +1272. उर्वरक-नियंत्रण आदेश में हाल ही में संशोधन किया गया, ताकि इसे उपभोक्ताओं के अधिक + +1273. आलेपित यूरिया के वाणिज्यिक ट्रायलों के लिए विनिर्माण की अनुमति दी गई है। इसी प्रकार मेसर्ज + +1274. इस समय देश में 67 प्रयोगशालाएं हैं। इनमें केंद्र सरकार की 4 प्रयोगशालाएं शामिल हैं। इन + +1275. परियोजना नामक नई योजना प्रारंभ की गई। योजना 11वीं योजना में भी जारी है, जिसके लिए 115 + +1276. लिए वित्तीय और तकनीकी सहायता (iii) प्रशिक्षण और प्रदर्शन से मानव संसाधन विकास (i1) + +1277. योजना के तहत 708 टन कृषि कचरे को कंपोस्ट, 5606 मी.ट. जैव उर्वरक और 17000 टन कृमि + +1278. एकीकृत पोषक प्रबंधन का संवर्धन (आईएनएम) — सरकार भूमि परीक्षण आधारित रसायन उर्वरकों, + +1279. केंद्र प्रायोजित उर्वरकों का संतुलित और एकीकृत उपयोग और (ii) केंद्रीय उर्वरक एवं गुणवत्ता नियंत्रण + +1280. लिए 20 नई प्रयोगशालाओं की स्थापना, वर्तमान 63 प्रयोगशालाओं को 11वीं योजना में मजबूत करना + +1281. 82 भारत-2010 + +1282. सूचना प्रौद्योगिकी. + +1283. की सहायता से कृषि में राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना तैयार कर रही है। यह दो-दो चरणों में लागू होगी। + +1284. ई-गवर्नेंस पहल की सफलता के लिए हर स्तर पर उपकरण साफ्टवेयर और प्रशिक्षण के माध्यम + +1285. अपने बजट से अपना खर्च पूरा करेंगे। लेकिन नेटवर्किंग, साफ्टवेयर विकास और क्षेत्र कार्यालयों/ + +1286. हरियाणा के रोहतक और गुजरात के बनासकांठा में काम जारी है। ग्यारहवीं योजना में स्कीम के डैकनेट + +1287. जनसंचार विकास के पोर्टल विकास के विभिन्न चरणों में हैं। कृषि के विभिन्न विषयों के पोर्टलों का + +1288. डिजाइनिंग के लिए जनशक्ति की जरूरत होगी। इन कार्यों को बाहर से कराने का प्रस्ताव है। + +1289. गवर्नेंस के प्रयोग के लिए राशि जारी की गई है। देश भर के किसानों को उन्नत सूचनाएं प्रदान करने के + +1290. मुक्त नंबर 1880-180-1551 से ऑन लाइन सूचनाएं प्रदान करना है। इस सुविधा का प्रचार दूरदर्शन + +1291. प्राप्त करने के उद्देश्य से 1986 में तिलहन प्रौद्योगिकी मिशन शुरू किया था। इसके बाद दलहन, आयल + +1292. की निम्नलिखित योजनाएं लागू की गई हैं — + +1293. तिलहन, दलहन और मक्का के लिए समन्वित योजना. + +1294. कार्यक्रम” कहा जाता है। यह कार्यक्रम दसवीं पंचवर्षीय योजना में एक अप्रैल, 2004 से कार्यान्वित + +1295. धन खर्च करने के मामले में राज्यों के प्रति लचीलापन; (ii) वार्षिक कार्ययोजना राज्य सरकारों द्वारा तैयार + +1296. प्रतिशत धनराशि के अंतर-घटक विचलन की छूट; तथा (1i) कृषि और सहकारिता विभाग की पूर्व + +1297. 2008-09 में 146.62 (IV अग्रिम अनुमान) लाख टन हो गया। आयल पाम की खेती का क्षेत्र 1992- + +1298. विस्तार. + +1299. जिला और उसके निचले स्तर पर कार्यरत किसानों/किसान समूहों, एनजीओ, केवीके, पंचायती राज + +1300. उठा चुके हैं और योजना की शुरूआत से अब तक 42.060 “किसान हित समूह” (एफआईजी) सक्रिय + +1301. तहत क्षेत्रीय केंद्रों द्वारा सप्ताह में पांच दिन 30 मिनट के कृषि कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं। राष्ट्रीय + +1302. मिशन (एनएफएसएम) का प्रचार अभियान भी किया गया। मास मीडिया पहल के तहत अन्य भाग के + +1303. जवाब दे रहे हैं। देशभर में सातों दिन सुबह 6 बजे से रात के 10 बजे तक एक ही टोल फ्री नंबर 1551 + +1304. स्थानों पर केसीसी सुविधा का विस्तार किया जा रहा है। कृषि और सहयोग विभाग ने किसान ज्ञान + +1305. देशभर में कृषि जिन्सों के व्यवस्थित विपणन को प्रोत्साहित करने के लिए बाजार को नियंत्रित किया गया + +1306. और खासकर आदिवासी बाजार इस व्यवस्था का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। + +1307. जाती है जिसके लिए उचित कानून और नीतियां बनाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही खेतों से या + +1308. निवेश को प्रोत्साहन मिल सके। + +1309. स्थापित करना है। इस कानून के अंतर्गत ही कृषि उत्पादों की गुणवत्ता प्रमाणीकरण और मानकीकरण + +1310. आधारित ड्राफ्ट मॉडल रूल तैयार कर संबंधित राज्यों/केंशाप्र को भेजे हैं। 7 राज्यों ने अपने एपीएमसी + +1311. इन कार्यक्रमों और योजनाओं को कार्यान्वित किया है। + +1312. मूल योजना के अंतर्गत परियोजना की पूंजी लागत के 25 प्रतिशत तक बैंक एडिड सब्सिडी + +1313. पर चलने वाली निजी कंपनियों और सहकारी कंपनियों की अन्य सभी श्रेणियों में आने वाली कंपनियों + +1314. अप्रैल, 2001 से क्रियान्वित योजना में 30 जून, 2009 तक 240.87 लाख भंडारण क्षमता वाली भंडारण + +1315. तथा विपणन निदेशालय एवं निरीक्षण कार्यालयों को इस नेटवर्क से जोड़ा गया है, जाहां 300 वस्तुओं + +1316. (iii) “कृषि विपणन ढांचे का विकास/सुदृढ़ीकरण ग्रेडिंग और मानकीकरण” नाम की एक और + +1317. सरकारों/राज्य स्तरीय एजेंसियों की मूलभूत परियोजनाओं के लिए योजना के अंतर्गत ऊपरी परिसीमन + +1318. आंध्र प्रदेश, अरूणाचल प्रदेश, उड़ीसा, महाराष्ट्र, बिहार, असम, त्रिपुरा, गुजरात, कर्नाटक, गोवा और + +1319. सरकारी सहायता से सहकारिता क्षेत्र में विकसित किया गया है। इस निदेशालय ने राज्य की एजेंसियों की + +1320. विपणन के लिए आधुनिक टर्मिनल वाले बाजारों को प्रोत्साहित करने के लिए विभाग ने कई कदम उठाए + +1321. उनके उत्पाद या फसल को बेचने के लिए उनकी पहुंच के अंदर रहता है। उपर्युक्त योजना के तहत + +1322. 26' इक्विटी के साथ प्रावधान किया गया है। तदनुसार प्रचालन दिशा-निर्देशों में सुधार कर जारी किया + +1323. 88 भारत-2010 + +1324. निदेशालय के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं — राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को कृषि उत्पादों के विकास + +1325. ग्रेडिंग और मानकीकरण. + +1326. संगठन द्वारा तैयार अंतर्राष्ट्रीय मानक पर भी ध्यान दिया जाता है ताकि भारतीय उत्पाद अंतर्राष्ट्रीय बाजार + +1327. एगमार्क के तहत यूरोपीय यूनियन के देशों को अंगूर, प्याज और अंतर का प्रमाणीकरण किया जा रहा है। + +1328. गजट में प्रकाशन के लिए भेजी जा चुकी है। + +1329. सब्जियों के मानकों सहित, जिसे अरोडा की स्थायी समिति ने स्वीकृति प्रदान की है) विधि और न्याय + +1330. भारतीय स्टेट बैंक, आईडीबीआई, एक्सिम बैंक, ओरिएंटल बैंक ऑफ कामर्स, नाबार्ड, केनरा बैंक, + +1331. ग्रामीण क्षेत्रों में आय और रोजगार अवसर बढ़ाने के लिए नए सुझावों को लागू करना है। एसएएफसी ने + +1332. करने वाले किसानों/उत्पादकों के समूहों को सहायता देने वाले व्यावसायिक बैंकों के साथ मिलकर लागू + +1333. परियोजना विकास सुविधाओं के माध्यम से मूल्य कड़ी में भागीदारी बढ़ाने के लिए कृषि स्नातकों को + +1334. प्रतिशत, 75 लाख रूपये। + +1335. राष्ट्रीय कृषि विपणन संस्थान 8 अगस्त, 1988 से जयपुर (राजस्थान) में कार्य कर रहा है। यह कृषि + +1336. विभाग के सचिव की अध्यक्षता में एक कार्यकारी समिति करती है। प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्देश्य वर्तमान + +1337. आयोजन करेगा। + +1338. संस्थान ने कई राज्यों कृषि विपणन विकास के लिए योजनाएं बनाई हैं। यह टर्मिनल बाजारों और + +1339. स्पर्धी परियोजना के विपणन घटकों के बारे में रिपोर्ट दी है। इनके अलावा संस्थान ने भारत के कृषि + +1340. व्यावहारिक अनुसंधान करवाता है। संस्थान एआईसीटीई द्वारा स्वीकृत दो वर्षीय स्नातकोत्तर डिप्लोमा + +1341. भूमिहीन और छोटे तथा सीमांत किसान पशुपालन को आय के पूरक स्रोत के रूप में अपनाते हैं। इस + +1342. क्षेत्र के और 4, 2178 करोड़ रूपये मछली पालन क्षेत्र के थे), जो कि कृषि, पशु पालन और मछली क्षेत्र + +1343. तथा 9.8 करोड़ भैंसें हैं। + +1344. ग्राम है। किंतु बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए बढ़ते बच्चों और शिशुओं को दूध पिलाने वाली माताओं + +1345. 10 करोड़ 49 लाख टन से अधिक दूध उत्पादन करने के साथ ही भारत दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में दुनिया + +1346. अन्य पशु उत्पाद — पशुपालन क्षेत्र दूध, अंडे, मांस आदि के जरिए न केवल अनिवार्य प्रोटीन और पौष्टिक + +1347. पशु बीमा — गोवा को छोड़कर देश के सभी राज्यों में लागू की जानेवाली पशुबीमा योजना के दो प्रमुख + +1348. जिलों में नियमित आधार पर लागू की जा रही है। + +1349. योजना में प्रारंभिक स्तर पर गाय और भैंसों की उच्च नस्लों के अधिकतम वर्तमान मूल्यों के आधार + +1350. व्यय हुए। 18 जून, 09 तक 40,891 दावों में से 33,306 का भुगतान किया गया। + +1351. के मामले में छठवें स्थान पर है। इनसे कृषि मजदूरों, लघु एवं सीमांत किसानों, ग्रामीण महिलाओं, कृषि + +1352. भी यह गणना हुई। 18वीं गणना 15 अक्टूबर, 2007 की संदर्भतिथि के साथ पूरी हो गई है। 18वीं पशु + +1353. और बिहार को छोड़कर सभी राज्यों/केंशाप्र से आंकड़े प्राप्त हो गए हैं। दोनों राज्यों में डाटा इंट्री का कार्य + +1354. पशुगणना के लिए 203.67 करोड़ रूपए जारी किए गए। योजना के लिए बीई के तहत 2009-10 में + +1355. केंद्रीय और केंद्र प्रायोजित कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इस बात के भी प्रयत्न किए जा रहे हैं कि जिन + +1356. गाय, बैल और भैंस प्रजनन की राष्ट्रीय परियोजना के अंतर्गत कार्यक्रम को लागू करने वाली + +1357. मवेशियों और भैंसों के श्रेष्ठ जनन द्रव्य (जर्म प्लाज्म) की पहचान और उसका पता लगाने, + +1358. कंकरेज, हरियाणा एवं ओंगोल तथा भैंसों की प्रजातियों (जैसे-जस्फराबादी, मेहसाणी, मुर्रा और सुरती) + +1359. प्रदेश) में स्थित हैं, जो गाय, बैल और भैंस प्रजनन की राष्ट्रीय परियोजना के अंतर्गत गायों, बैलों तथा + +1360. फार्म प्रशिक्षण प्रेक्टिस और वैज्ञानिक प्रजनन प्रदर्शन में 3711 व्यक्तियों को प्रशिक्षित किया गया। डेयरी + +1361. में प्रशिक्षण प्रदान करने के अलावा देश में तैयार हिमशीतित वीर्य और कृत्रिम गर्भाधान के उपकरणों + +1362. मुर्गीपालन में उत्तरोत्तर प्रगति हुई है। + +1363. किग्रा हो गई है। मुर्गीपालन तथा उत्पादों में भारत का विश्व में एक छोटा हिस्सा है फिर भी पिछले दशक + +1364. आमदनी पशुधन विशेषकर मुर्गीपालन से अर्जित करते हैं। + +1365. सीपीपीटीसी) को लेयर और ब्रोइलर प्रजातियों के निष्पादन परीक्षण का काम सौंपा गया है। यह केंद्र एक + +1366. बैकयार्ड पॉल्ट्री डेवलपमेंट” भाग किसानों को वैज्ञानिक तरीके से संगठित गतिविधियां चलाने में समर्थ + +1367. की रेखा के नीचे के अधिक से अधिक जरूरतमंदों को लाया जाएगा ताकि उन्हें पूरक अन्य और पोषण + +1368. 2003 की मवेशी गणना के अनुसार देश में लगभग 6.147 करोड़ भेड़ और 12.436 करोड़ बकरियां हैं। + +1369. किसानों को ऊन की कटाई और 633 किसानों को भेंड़ प्रबंधन का प्रशिक्षण दिया गया। + +1370. ऐसे विलुप्तप्राय नस्लों के संरक्षण के लिए दसवीं पंचवर्षीय योजना में केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित + +1371. 27 नस्लों के लिए संरक्षण परियोजना शुरू की गई है। वर्ष 2007-08 के दौरान संकटग्रस्त नस्लों के + +1372. 16 करोड़ रूपए से बढ़ाकर 2008-09 में 45 करोड़ रूपए कर दिया गया है। 11वीं योजना में उन मुर्गियों + +1373. संरक्षण के लिए (27.25 लाख रूपए) और अंगामैली सूअरों के लिए (9.20 लाख रूपए), जम्मू और + +1374. अप्रैल के आखिरी पखवाड़े में 2009 में 11वीं योजना के पूरक के रूप में केंद्रीय क्षेत्र की एक नई योजना + +1375. कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण के तहत निर्मातोन्मुख एकीकृत आधुनिक + +1376. निर्यात किया गया। निर्यात में रूपए के संदर्भ में 31.9190 की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई। + +1377. नस्लों के सूअर रखे जाते हैं। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान वृहद प्रबंधन योजना के तहत एकीकृत + +1378. विकास करना अत्यंत आवश्यक है। चारे के उत्पादन की वैज्ञानिक प्रौद्योगिकी उपलब्ध कराने के उद्देश्य + +1379. बीज का उत्पादन किया गया, 6249 क्षेत्रीय प्रदर्शन आयोजित किये गये, 110 प्रशिक्षण कार्यक्रम और + +1380. मेले आयोजित किये। राज्यों के पशुपालन निदेशालयों के माध्यम से बड़े पैमाने पर चारे की नई किस्मों + +1381. उत्पादन और जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान परियोजनाएं भी शामिल हैं। वर्ष 2008-09 में राज्यों को 924.91 + +1382. गए। + +1383. परिचायक है। 2008-09 में डेयरी विकास के लिए सरकार ने चार योजनाएं विकसित की हैं। + +1384. प्रदेशों में 489.84 करोड़ रूपये के आबंटन के साथ ही 86 परियोजनाओं को स्वीकृति दी गई है। 31 + +1385. वर्ष 2003 अक्टूबर, के दौरान प्रायोजित एक नई केंद्रीय योजना प्रारंभ की गई जिसका मुख्य उद्देश्य देश में ग्राम स्तर पर + +1386. करने के लिए 75 प्रतिशत वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई गई है। इस योजना के अंतर्गत 31 मार्च, + +1387. विपणन और उसकी गुणवत्ता बनाए रखने के लिए 21.05 लाख लीटर के दुग्ध प्रशिक्षण कूलर स्थापित + +1388. यूनियनों, राज्य सरकारों से विचार-विमर्श कर कार्यक्रम तैयार करती है। परियोजना को कार्यान्वित करती + +1389. के 32 पुनर्वास पुनरूत्थान प्रस्ताव मंजूर किये गये। यह राज्य हैं मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, उत्तर + +1390. डेयरी उद्यम पूंजी कोष. + +1391. शामिल हैं। इसके लिए दसवीं योजना में एक नई योजना डेयरी/पोल्ट्री उद्यम पूंजी कोष नामक केंद्रीय + +1392. राशि के ब्याज में भी सरकार 50' सहायता देती है, लेकिन भुगतान नियमित समय से हो। + +1393. प्रावधान है जिसमें से 31 जुलाई 2009 तक 10 करोड़ रूपये जारी किए जा चुके हैं। + +1394. राष्ट्रीय डेयरी योजना. + +1395. नए संस्थागत ढांचों के माध्यम से दूध उत्पादन, प्रसंस्करण और बाजार में पहुंचाना चाहती है। योजना में + +1396. भारत में पशुओं के स्वास्थ्य में कई तरह से सुधार हुआ है और पशुपालन के स्तर में भी कई बदलाव + +1397. की मदद से एक प्रमुख स्वास्थ्य योजना शुरू की गई है। + +1398. 27,562 पोली क्लीनिक, अस्पताल और डिसपेंसरियां और 25,195 पशु सहायता केंद्र खोले गए हैं। + +1399. आयात भी किया जा सकता है। + +1400. हैदराबाद और बेंगलुरू में दो अतिरिक्त पशु संगरोधन केंद्र की स्थापना तथा दिल्ली, मुंबई, + +1401. जमीन का अधिग्रहण कर लिया गया है। मुर्गीपालन के सामान, पालतू जीव, प्रयोगशाला के लिए जीव + +1402. देने की सिफारिश। + +1403. पशु रोग अनुसंधान एवं रोग निदान केंद्र, इज्जतनगर केंद्रीय प्रयोगशाला के रूप में काम कर रहा है। यह + +1404. सीडीडीएल/आरडीडीएल के मुख्य उद्देश्य हैं — + +1405. बुखार, घोड़ों में ग्लैंडरर्न, इक्वीन राइनोन्यूमोनिटिस कुत्तों में कैनी पार्वोवायरस, पक्षी इन्फ्लुएंजा, + +1406. अध्ययन। + +1407. पशु रोग नियंत्रण के लिए राज्यों को सहायता — इस कदम के अंतर्गत राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों + +1408. जा रहा है, लेकिन प्रशिक्षण और संगोष्ठियों/कार्यशालाओं के केंद्र 100' सहायता देता है। इसके अलावा + +1409. सूचना प्रणाली को ओआईई के दिशा-निर्देशों के अनुसार समस्वरित किया गया है। + +1410. 26 मई, 2007 को मुक्त घोषित कर दिया। इसीलिए व्यापार और निर्यात के लिए आवश्यक है कि इन दो + +1411. (ii) मुंह पका-खुर पका रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एफएमडी-सीसी) — मुंह पका-खुर पका रोग को + +1412. (iii) पेशेवर क्षमता विकास (पीईडी) — इस योजना का उद्देश्य वेटनरी प्रैक्टिस को नियमित करना और + +1413. स्थापना की बात है। वर्तमान में यह जम्मू और कश्मीर को छोड़कर देश के सभी राज्यों में लागू है। + +1414. फैला। देश में चौथी बार एवियन इन्फ्लूएंजा का प्रकोप पश्चिम बंगाल के बीरभूम और दक्षिण दिनाजपुर + +1415. पक्षियों को मार दिया गया; लगभग 15.60 लाख अंडे और 89,823 किलोग्राम मांस नष्ट कर दिया गया। + +1416. 4 नवंबर, 2008 को भारत एवियन इन्फ्लूएंजा से मुक्त घोषित किया गया। + +1417. पिछले पांच वर्षों का मछली-उत्पादन का ब्योरा नीचे सारणी में दर्शाया गया है- + +1418. 1992-93 25.76 17.89 43.65 + +1419. 1997-98 29.50 24.38 53.88 + +1420. 2003-04 29.41 34.58 63.99 + +1421. मात्स्यिकी क्षेत्र निर्यात के जरिए विदेशी मुद्रा को अर्जित करने वाला एक प्रमुख क्षेत्र है। मछली + +1422. ताजा पानी के मछली-पालन विकास की मौजूदा योजना और समन्वित तटवर्ती मछली-पालन को + +1423. ताजा पानी के मछली-पालन का विकास. + +1424. वालों को उन्नत पद्धतियों का प्रशिक्षण दिया। + +1425. विकास एजेंसियां (बीएफडीए) इस काम में लगी हुई हैं। इन एजेंसियों ने 2007-08 तक 31,624 + +1426. लिए सब्सिडी देती है। इन नौकाओं से वे अधिक बार तथा अधिक समुद्री क्षेत्र में जाकर ज्यादा मात्रा में + +1427. के मालिकों की परिचालन लागत में कमी लाई जा सके। + +1428. रायचौक, पाराद्वीप और सीजन डॉक में 62 छोटे बंदरगाहों और 190 मछली अवतरण केंद्रों का निर्माण + +1429. बचत व राहत योजना। मछुआरों को अवधि में वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। बचत व राहत योजना + +1430. में परिचालक और तटवर्ती प्रतिष्ठानों हेतु तकनीशियन उपलब्ध कराना है। समन्वित मत्स्य परियोजना, + +1431. लिए नोडल एजेंसी के रूप में भी कार्य करता है। + +1432. देकर 35 लाख लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार उपलब्ध कराया जा सके। यह मत्स्य क्षेत्र में सार्वजनिक-निजी + +1433. गया। कार्यालय की स्थापना हैदराबाद में की गई। बोर्ड के विभिन्न कार्यक्रमों को 6 वर्ष में 2006-12 में + +1434. से संबंधित गतिविधियों के बीच समन्वय। + +1435. 6. मछली उद्योग के लिए आधुनिक मूलभूत ढांचा उपलब्ध कराना और उसका अधिकतम उपयोग तथा + +1436. 1. तालाबों और टैंकों में व्यापक मछली पालन। + +1437. 6. समुद्री जीव फार्म। + +1438. 11. अन्य गतिविधियां। + +1439. तीन वर्ष में विभिन्न मत्स्य विकास गतिविधियों के लिए जारी किए गए। पिछले तीन वर्ष में व्यय किए + +1440. तथा इनसे संबंधित क्षेत्रों में काम कर रही राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के विभिन्न विभागों और + +1441. के क्षेत्र में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करना और उनके बारे में शिक्षित करना है। + +1442. जाता है। + +1443. कि इसके चार विश्वविद्यालयों से अलग है। + +1444. विविध फसलों के 25,456 किस्में विभिन्न देशों से लाए गए और आईसीआरआईएएएडी जर्म प्लाज्म + +1445. विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों के लिए जारी किए गए। + +1446. 38 (एएजेड) को देर से बुआई के उपयुक्त पाया गया। अधिक उपज देनेवाली दो किस्में मसूर, अंगूरी + +1447. केएनओसीके डब्लूपी से व्यवसायीकरण के लिए पंजीकृत किया गया। डीआरएसएच-1 (42-44') + +1448. जारी की गई। सोयाबीन की तीन उन्नत किस्में पीएस 134 और पीआरएस-1 (उत्तरांचल) और जेएस + +1449. एकीकृत कीट प्रबंधन (आईपीएम) की रणनीति देश भर के कपास उत्पादक नौ राज्यों के 2360 + +1450. कृषि 107 + +1451. लार्जिडेइ, पिरोकोरिडेइ और खरकोपीडेइ के जीनस और प्रजातियों के लिए टैक्सोनामिक आधार + +1452. भारतीय फली (एएचडीबी-6) गोल लौकी, एएचएलएस-11 एएचएलएस-24 और एएचपी 13 गुच्छा + +1453. और कोकोआ में उत्पादन तंत्र का इस्तेमाल। काजू जर्म प्लाज्म आरएपीडी। आरगेजाइम माकरिर्स जर्म + +1454. गुणों के लिए आरआईएल का विकास, सीआरवाई। एसी, डीआईवी, जेडएटी-12 टी-आरईपीजीन के + +1455. खुम्ब की उत्पादकता और उत्पादन और खपत बढ़ाने और उसके उत्पादों पर काम जारी है। कंद + +1456. सौंफ, अजवाइन का अधिक उत्पादन के लिहाज से मूल्यांकन प्रगति पर है। लंबी काली मिर्च में एक नई + +1457. गुलदाउदी की छह नई किस्मों का बहु स्थानीय परीक्षण चल रहा है। + +1458. महत्वपूर्ण उपलब्धियों में भूमि सरण के मूल्यांकन और मानचित्रीकरण के लिए बहुआयामी दूर + +1459. ड्रमस्टिक + हरा चना -सौंफ के लिए पानी की कम जरूरत होती है और वसाड, गुजरात में यह + +1460. साबित हुई। + +1461. 50' खुराक एनपीके उर्वरक प्रति पौधा, बनाया गया। + +1462. मैनेजमेंट राष्ट्रीय संस्थान की स्थापना की है ताकि कृषि में विभिन्न प्रकार की समस्याओं (सूखा, शीत + +1463. कृषि उत्पादन में क्षमता बढ़ाने के लिए कई नई मशीनों और उपकरणों का विकास किया गया है। ट्रैक्टरों + +1464. निकालने वाली मशीन विकसित की गई है। + +1465. 500 फार्म महिलाओं ने हिस्सा लिया। बड़ी इलायची को सुखाने के लिए यंत्र विकसित किया गया है + +1466. बांटकर बीज के काम लायक बनाने वाला उपकरण विकसित कर परीक्षण भी किया गया। पहाड़ी मिर्च + +1467. बनाए गए। जूट से गोंद के स्थानापन विकसित किए गए। जम्मू और राजस्थान से दो रंगीनी लाख + +1468. हाल्ट और नॉक लाख के कीड़ों की रक्षा के लिए प्रभावी पाए गए। लाख के कीड़ों के नौ रंगों की + +1469. निर्धारित प्रक्रिया से मोम तथा चिपचिपाहट को दूर किया गया तथा हाई स्पीड डीजल के साथ ट्रैक्टर + +1470. पिजन मटर की अच्छी पैदावार की जा सकती है। इनमें 20 से 40' बढ़ोत्तरी हो सकती है। + +1471. किए गए। + +1472. है। एलपीबीई एवं इएलआईएसए 2000 नमूनों का राष्ट्रीय पीएमडी नियंत्रण कार्यक्रम में मूल्यांकन किया + +1473. खनिज मिश्रिण का व्यवसायीकरण किया गया। चारा के नए संसाधनों की पहचान और परीक्षण कर + +1474. देने वाले पक्षियों और ब्रोइलर की किस्मों में और सुधार किया गया। विभिन्न अंडा देने वाले पक्षियों और + +1475. गहन चयन से चोकला और मारवाड़ी नस्लों की दैनिक वजन वृद्धि 60 ग्रा. से बढ़ाकर 120 ग्राम + +1476. किया गया। बरबरी और जमुना पारी बकरियों की 12वीं पीढ़ी का उत्पादन गहन चयन से कर फार्म और + +1477. 10,000 खुराक सुरक्षित किए गए। वीर्य की गुणवत्ता परखने और उसकी प्रजनन क्षमता के सूचक + +1478. है। इस प्रौद्योगिकी से मनपसंद जानवरों को पैदा किया जा सकेगा। पशमीना बकरियों की क्लोनिंग का + +1479. नस्ल पशुओं और मुर्जियों का दस्तावेजीकरण और नंबर प्रदान किए गए। भैंस जिनोमिक्स परियोजना + +1480. कुल्फी और चीनी रहित कुल्फी बनाकर ऊंट के दूध का मूल्यवर्धन कर प्रौद्योगिकी का व्यवसायीकरण + +1481. सार्डीन, माकेरेल, टुना, सीयर, ऐंकोवीज, कैसनगिड्स, बांबे डक रिबन मछली की प्रजातियों और + +1482. लक्षण हैं। कारवाड़ मैंगलोर, कोच्चि, विजिंजाम और तूतीकोरन में लुजैनिडे परिवार की मछलियों की + +1483. उत्पाद के विकास से अम्ल और अगार निकाले गया। कृत्रिम परिस्थितियों में सीबॉस का प्रजनन पूरे साल + +1484. आई। 40' मछली के चारे को पौध प्रोटीन शामिल कर शंखमीन चारा बनाकर पी.मोनोडोन को तालाबों + +1485. जलाशयों में भंडारण के लिए विकसित उपायों का मध्य प्रदेश में परीक्षण किया गया जिससे मछली + +1486. ट्राउट के 15000 बीज पैदा किए गए और उनको पालने का कार्य प्रगति पर है। महसीर हैचरी में + +1487. कार्यक्रम चलाए गए जिसमें 400 लोगों को विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी दी गई। तटीय स्व + +1488. सजावटी मछलियों के बारे में आंकड़े आन लाइन हैं। 60 प्रजातियों के 250 नमूने मन्नार की खाड़ी से + +1489. अनुसंधान में उत्कृष्टता के लिए आईसीएएम ने विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों में 29 उत्कृष्टता क्षेत्र में + +1490. विवरण 2008-09 में पहली बार संशोधित कर आवश्यकता आधारित बनाया गया। कृषि विश्वविद्यालयों + +1491. सहायता का परिणाम अध्यापकों और छात्रों में ज्ञान और कौशल अर्जन/अद्यतन के रूप में निकला है और + +1492. समुद्रपारीय फेलोशिप की शुरूआत की गई, जिससे भारतीयों को विश्व की सर्वश्रेष्ठ प्रयोगशालाओं + +1493. खेती की विभिन्न प्रणालियों में किया जा सके। विभिन्न फसलों के संकर किस्मों सहित 74,732 प्रदर्शन + +1494. विज्ञान केंद्रों ने किसानों को उपलब्ध कराने के लिए 2.02 लाख कि्ंवटल बीज और 133.20 लाख + +1495. परीक्षण, विभिन्न प्रौद्योगिकियों की स्थलीय उपयोगिता का पता लगाने के अलावा किसानों के खेतों में + +1496. द्यuष्k. ष्शद्व), वार्षिक समीक्षाओं (222.ड्डnद्वeड्डद्यह्म1ie2ह्य. शह्म्द्द), और सीएनआईआरओ (222. + +1497. प्रौद्योगिकी प्रबंधन और व्यापार नियोजन और विकास इकाइयों की स्थापना। कृषि विज्ञान के 26 क्षेत्रों में + +1498. फाक्सटेल और छोटा बाजरा कपास के बहु प्रयोगों की खोज (डंठल, अच्छे धागे और कपड़े के लिए + +1499. है। इसमें लगभग 83,000 किसानों/खेतिहर मजदूरों का लक्ष्य है। एक तिहाई भागीदार एनजीओ और शेष + +1500. राष्ट्रीय संस्थान, अंतर्राष्ट्रीय केंद्र आदि भागीदारी में विविधता के प्रतीक हैं। 61 स्वीकृत परियोजनाओं से + +1501. छह भारतीय पेटेन्ट्स आईसीएआर को दिए गए जिसमें पशु पोषण (क्षेत्र-विशिष्ट खनिज मिश्रण) + +1502. कराया गया। + +1503. अपकोडिंग शुरू कर दी है। + +1504. बदलाव किया गया है। विश्वविद्यालय 7 स्नातक और 20 स्नातकोत्तर डिग्री कार्यक्रम चलाते हैं। स्नातक + +1505. जलवायु क्षेत्रों के विभिन्न फसलों की 11 किस्में/हाइब्रिड जारी की गईं। जारी की गई 47 किस्मों के कुल + +1506. विकास के लिए उत्तरपूर्व हिमालय क्षेत्र में स्थित संस्थान में अनुसंधान कार्य किया गया। झूम खेती के + +1507. इस्तेमाल कर रबी फसल (सरसों) के लिए एक कम लागत वाली तकनीक “इन-सिटु” नमी संरक्षण + +1508. कंपोजीशन विकसित किया गया। + +1509. (49 से 66 प्रतिशत) है। एक औसत रूप में विभिन्न संसाधन स्थितियों के तहत आईएफएस से शुद्ध + +1510. की दो किस्में (स्थानीय अंडमान तथा टैरेसा) पहली बार फिनोटिपिकली पहचानी गईं। + +1511. संस्कृति मंत्रालय कला और संस्कृति के संरक्षण तथा विकास में अहम भूमिका निभाता है। इस + +1512. प्रमुख एजेंसी भी है। + +1513. लखनऊ, कोलकाता, चेन्नई, नई दिल्ली और भुवनेश्वर में क्षेत्रीय केंद्र हैं जिन्हें राष्ट्रीय कला केंद्र के नाम + +1514. अकादमी समकालीन कला पर नई दिल्ली में त्रैवार्षिक अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी (त्रिनाले इंडिया) आयोजित + +1515. आयोजित करती है। देश के कलाकारों का अन्य देशों के कलाकारों के साथ मेलमिलाप और तालमेल + +1516. कलाकारों को छात्रवृत्ति भी प्रदान करती है। अपने प्रकाशन कार्यक्रम के तहत अकादमी समकालीन + +1517. समय-समय पर समकालीन पेंटिंग्स और ग्राफिक्स के बहुरंगी विशाल आकार के प्रतिफलक भी + +1518. संगीत. + +1519. भारत में नृत्य परंपरा 2000 वर्षों से भी यादा वर्षों से निरंतर चली आ रही है। नृत्य की विषयवस्तु + +1520. भारतीय स्वरूप ले चुका है। “कथकलि” केरल की नृत्यशैली है। “कत्थक” भारतीय संस्कृति पर मुगल + +1521. शास्त्रीय और लोकनृत्य दोनों को लोकप्रिय बनाने का श्रेय संगीत नाटक अकादमी, तथा अन्य प्रशिक्षण + +1522. भारत में रंगमंच उतना ही पुराना है जितना संगीत और नृत्य। शास्त्रीय रंगमंच तो अब कहीं-कहीं जीवित + +1523. भाषाओं और अंग्रेजी में नाटकों का मंचन करते हैं। + +1524. हुए इन्हें लोकतांत्रिक व्यवस्था में इस प्रकार समाहित हो जाना चाहिए कि सामान्य व्यक्ति को इन्हें + +1525. बनाया जाए जिसमें तीन अकादमियां-नृत्य, नाटक एवं संगीत अकादमी, साहित्य अकादमी और कला + +1526. स्थापित करने की सि$फारिश की गई। इनमें से एक अकादमी नृत्य, नाटक और संगीत के लिए, एक + +1527. अकादमी का विधिवत उद्घाटन किया। + +1528. सितंबर, 1961 को इसके समिति के रूप में पंजीकरण के समय पारित की गई थी। + +1529. कला-विधाओं के महान कलाकारों को अकादमी का फेलो चुनकर सम्मानित किया गया है। प्रतिवर्ष + +1530. भी आर्थिक सहायता दी जाती है। + +1531. अकादमी की संगीत वाद्ययंत्रों की वीथि में 600 से अधिक वाद्ययंत्र रखे हैं और इन वर्षों में बड़ी + +1532. रचनाएं भी प्रकाशित की जाती हैं। + +1533. संस्थान दिल्ली में हैं। अकादमी द्वारा चलाई जा रही राष्ट्रीय महत्व की परियोजनाओं में केरल का + +1534. मंचन कलाओं की शीर्षस्थ संस्था होने के कारण अकादमी भारत सरकार को इन क्षेत्रों में नीतियां + +1535. वल्लाडोलिड, काहिरा और ताशकंद तथा स्पेन में प्रदर्शनियां तथा गोष्ठियां आयोजित की हैं। अकादमी ने + +1536. राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय. + +1537. प्रकाश व्यवस्था और रूप-सज्जा सहित रंगमंच के सभी पहलुओं का प्रशिक्षण देना है। इस विद्यालय में + +1538. उपाधि के लिए पंजीकरण करा सकते हैं। + +1539. यह बच्चों के लिए नाटक तैयार करने, दिल्ली के स्कूलों में गर्मी की छुट्टियों में कार्यशालाएं आयोजित + +1540. आयोजन किया गया था। इस प्रथम “भारत रंग महोत्सव” की सफलता को देखते हुए इसे हर वर्ष मनाने + +1541. किया गया था। इस कार्यक्रम के तहत विद्यालय स्थानीय थिएटर ग्रुपों/कलाकारों के सहयोग से + +1542. भी स्थापित किया है। + +1543. अनुवाद, गोष्ठियां, कार्यशालाएं आयोजित करके भारतीय साहित्य के विकास को बढ़ावा देना है। इसके + +1544. संबद्ध भाषा के कामकाज और प्रकाशन के बारे में सलाह देता है। अकादमी के चार क्षेत्रीय बोर्ड हैं जो + +1545. में भारतीय साहित्य का अभिलेखागार है। नई दिल्ली में ही अकादमी का अनूठा बहुभाषीय पुस्तकालय + +1546. लेखकों को दिया जा चुका है। अकादमी 850 लेखकों और 283 अनुवादकों को साहित्य तथा अनुवाद के + +1547. साहित्य का इतिहास, अनुवाद में महान भारतीय और विदेशी रचनाएं, उपन्यास, कविता और गद्य, + +1548. संस्कृत छमाही पत्रिका “संस्कृत प्रतिभा”। अकादमी हर वर्ष औसतन 250 से 300 पुस्तकें प्रकाशित करती + +1549. क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों का आयोजन करती है। साथ ही, नियमित रूप से अनुवाद + +1550. नई शृंखला भी आरंभ की। + +1551. युवा कलाकारों को भारतीय शास्त्रीय नृत्य, भारतीय शास्त्रीय संगीत, रंगमंच, दृश्यकला तथा लोक एवं + +1552. मंचन, साहित्य तथा दृश्य कलाओं के क्षेत्र में चुने हुए श्रेष्ठ कलाकारों के लिए फेलोशिप. + +1553. फेलोशिप के लिए 41 वर्ष या इससे ऊपर के कलाकार तथा जूनियर फेलोशिप के लिए 25 से 40 वर्ष की + +1554. तहत शैक्षिक अनुसंधान तथा निष्पादन आधारित अनुसंधान दोनों को बढ़ावा दिया जाता है और आवेदक + +1555. भारत विद्या, पुरालेख शास्त्र, सांस्कृतिक समाजशास्त्र, सांस्कृतिक अर्थशास्त्र, स्मारकों की संरचना और + +1556. अधिक आयु के लोग सीनियर फेलोशिप के लिए आवेदन कर सकते हैं जबकि जूनियर फेलोशिप के + +1557. जाती हैं। इसका उद्देश्य कला और संस्कृति से जुड़े क्षेत्रों के समसामयिक मुद्दों और समस्याओं के + +1558. इस योजना के अंतर्गत ऐसे स्वैच्छिक संगठन लाभान्वित होते हैं जो सांस्कृतिक गतिविधियों में लगे हैं + +1559. कराने के लिए; + +1560. वर्ष 2004-05 में विशेषज्ञ समिति ने स्वैच्छिक संगठनों को अनुसंधान समर्थन के लिए आर्थिक + +1561. के संदेश के प्रसार के लिए स्वामी विवेकानंद द्वारा स्थापित रामकृष्ण मिशन के शाखा केंद्र के रूप में 29 + +1562. समृद्ध मूल्यों से अवगत कराने तथा उन्हें यह समझाने के लिए सालोंसाल अथक प्रयास किए हैं कि + +1563. के लिए उन्हें एकजुट करना। + +1564. क्षेत्रों में मानव विज्ञान संबंधी अनुसंधान में प्रयासरत रहा है। इनके अलावा सर्वेक्षण कई अन्य समयसंगत + +1565. मदद से निरंतर अनुसंधान करते हुए गांव स्तर से जानकारियां एकत्र की हैं। + +1566. अंतर्गत संस्कृति विभाग के संलग्न कार्यालय के रूप में कार्य करता है। इस विभाग के प्रमुख महानिदेशक + +1567. सर्वेक्षण ने देश में 3656 स्मारकों/स्थलों को राष्ट्रीय महत्व का घोषित किया है जिनमें 21 संपत्तियां + +1568. रेलवे स्टेशन और गंगाकोंडाचोलापुरम का बृहदेश्वर तथा दारासुरम का ऐरावतेश्वरैया मंदिर (जो तंजावूर + +1569. (ii) असम में ब्रह्मपुत्र नदी की मध्यधारा में स्थित माजुली द्वीपसमूह; + +1570. देश के भीतर या सीमावर्ती सागर क्षेत्र में पानी के नीचे मौजूद सांस्कृतिक धरोहर की खोज, अध्ययन और + +1571. शाखा स्मारकों, प्राचीन सामग्रियों, पांडुलिपियों, पेंटिंग्स, आदि के रासायनिक संरक्षण का दायित्व + +1572. त्वरित सख्त होने वाले पलस्तर सीमेंट के विभिन्न अनुपातों में उसकी भौतिक विशेषताओं का आकलन। + +1573. पौधे उपलब्ध कराती है। + +1574. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने विदेश मंत्रालय के अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन आदान-प्रदान कार्यक्रम (आईटीईसी) + +1575. परियोजना दस वर्ष की है और इसे पांच चरणों में पूरा किया जाएगा। + +1576. कोलकाता में स्थापित किया गया था परंतु अब यह अभिलेखागार के रूप में नई दिल्ली में काम कर रहा + +1577. (1) विभिन्न सरकारी एजेंसियों और शोधकर्ताओं को रिकार्ड उपलब्ध कराना, + +1578. (6) पेशेवर और उप-पेशेवर स्तर पर पांडुलिपियों, पुस्तकों और अभिलेखों के संरक्षण, प्रबंधन और प्रकाशन के क्षेत्र में प्रशिक्षण देना, और + +1579. राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन. + +1580. उपलब्ध कराने, जागरूकता बढ़ाने और बढ़ावा देने पर भी जोर दिया जाता है। राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन + +1581. लाख साठ हजार से ज्यादा वस्तुएं संग्रहीत हैं। वर्ष 2004-05 के दौरान कुल 1,95,083 लोग इस + +1582. कला, संरक्षण व संग्रहालय विज्ञान के इतिहास का राष्ट्रीय संग्रहालय संस्थान. + +1583. (मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन) के अनुसार राष्ट्रीय संग्रहालय के महानिदेशक इस विश्वविद्यालय के + +1584. है-भारत कला व साहित्य, कला मूल्यांकन और भारतीय कलानिधि (हिंदी माध्यम)। + +1585. 1948 पारित करके की गई थी। इस पुस्तकालय को राष्ट्रीय महत्व के संस्थान का दर्जा प्राप्त है। इसकी + +1586. (iii) सामान्य एवं विशिष्ट दोनों प्रकार की सामयिक व पुरानी सामग्री के संदर्भ में गं्रथ सूची और + +1587. (v) पुस्तकों के अंतर्राष्ट्रीय आदान-प्रदान तथा देश के भीतर पुस्तकें देने वाले केंद्र की भूमिका + +1588. से अधिक दस्तावेज़ों का संग्रह है जो मुख्य रूप से समाजशास्त्र और मानवशास्त्र के विषयों पर हैं। यहां + +1589. संग्रह है। + +1590. का संग्रह एकत्र करना भी इसका दायित्व है। यह पुस्तकालय केंद्र सरकार के अधिकारियों और + +1591. पुस्तकालय की दो शाखाएं हैं। पहली है नई दिल्ली के बहावलपुर हाउस में स्थित क्षेत्रीय + +1592. पुस्तकालय ने हाल ही में “इंडिया इन्फार्मेशन गेटवे” पोर्टल शुरू किया है। 21 मार्च, 2005 को + +1593. और अब यह भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में काम कर रहा है। इसका + +1594. को सभी विकास कार्यक्रमों में संस्कृति के महत्व से अवगत कराने पर है। केंद्र के प्रमुख कार्यों में देश के + +1595. दिया जाता है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी, आवास, कृषि, खेल, आदि के क्षेत्रों में संस्कृति की भूमिका पर + +1596. सांस्कृतिक संसाधन व प्रशिक्षण केंद्र विशेष अनुरोध पर विदेशी शिक्षकों तथा विद्यार्थियों के लिए + +1597. शिक्षण पाठ्यक्रमों के लिए लाभकारी ढंग से प्रयोग किया जा सके। + +1598. स्थानीय तौर पर उपलब्ध कम लागत वाली सामग्री की मदद से हस्तकलाएं सिखाने के लिए शिविर; + +1599. रूप में संसाधन एकत्र करता रहा है। ग्रामीण भारत की कलाओं और हस्तशिल्पों को पुनर्जीवित करने और + +1600. संस्कृति विभाग ने 1982 में शुरू किया था। इस योजना के तहत 10 से 14 वर्ष की आयु के उन होनहार बच्चों + +1601. सांस्कृतिक संसाधन व प्रशिक्षण केंद्र ने सीसीआरटी शिक्षक पुरस्कार आरंभ किया है जो हर वर्ष + +1602. भ्रातृत्व की भावना को उभारने का उद्देश्य था। असल उद्देश्य तो स्थानीय संस्कृतियों के प्रति गहन + +1603. संबद्ध क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान कर रहे हैं। इस योजना के अंतर्गत 1985-86 में पटियाला, + +1604. और संबद्ध राज्य सरकारें अंशदान करती हैं और इस कोष में जमा राशि पर मिलने वाले ब्याज से इन + +1605. लोककलाकारों को भेजते हैं। भारत के राष्ट्रपति 24/25 जनवरी को तालकटोरा इनडोर स्टेडियम में इस + +1606. विभिन्न भागों के हस्तशिल्पियों और कारीगरों को अपने उत्पाद ग्राहकों के समक्ष प्रदर्शित करने और + +1607. विभिन्न भागों में जनजातीय/लोक कला-विधाओं के प्रति जागरूकता बढ़ाने में बहुत ज्यादा मदद मिली है + +1608. गुरूओं की पहचान करके शिष्य उनके सुपुर्द कर दिए जाएंगे। इस उद्देश्य के लिए उन्हें छात्रवृत्ति भी दी + +1609. राष्ट्रीय आधुनिक कला वीथि. + +1610. शामिल हैं। यहां के महत्वपूर्ण संग्रहों में पेंटिंग्स, मूर्तियां, लिपिविज्ञान की कृतियां, रेखाचित्र तथा चित्र + +1611. किया गया था और एक नई कला वीथि बंगलुरू में बनाई जा रही है। + +1612. बहुआयामी गतिविधियों में अनुसंधान, प्रकाशन, प्रशिक्षण, प्रलेखन, वितरण और नेटवर्किंग शामिल हैं। + +1613. विश्व के अन्य भागों में परस्पर आदान-प्रदान तथा आपसी सूझबूझ बढ़ाता है। + +1614. अपना रही है। मोटे तौर पर इस प्रयोगशाला की प्रमुख गतिविधियों को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता + +1615. रूप में मान्यता प्राप्त है। इस प्रयोगशाला का उद्देश्य और लक्ष्य है देश में सांस्कृतिक संपदा का संरक्षण + +1616. सेवाएं मुहैया कराती है। इस राष्ट्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला का मुख्यालय लखनऊ में है तथा दक्षिण राज्यों + +1617. रक्षा: + +1618. वर्ष 2008 के विकासों ने, विशेषकर वैश्विक आर्थिक प्रणाली की चुनौतियों ने वैश्विक पर्यावरण + +1619. चीन के सुदूर जल में अभियानों के संचालन के लिए समुद्री बेड़े और सामरिक मिसाइल तथा + +1620. कश्मीर राज्य के अवैध पाकिस्तानी कब्जे वाले भू-भाग के जरिये पाकिस्तान से संपर्क बढ़ाए जाने की + +1621. रूप से आणविक परीक्षण के एकपक्षीय विलंबन/स्थगन की स्थिति भी बनाए रखता है। + +1622. ने हिंद महासागर के कुछ हिस्सों में समुद्री लूट-पाट के नियंत्रण में अहम भूमिका निभाई है। मुंबई के आतंकी + +1623. संगठनों तक कार्यान्वयन के लिए उन्हें पहुंचाना। सरकार के नीति-निर्देशों को प्रभावी ढंग से तथा + +1624. के साथ रक्षा सहयोग तथा समस्त क्रियाकलापों का समन्वय इसी विभाग के दायित्व हैं। + +1625. है। इसका काम सैनिक साजो-सामान के वैज्ञानिक पक्ष, संचालन तथा सेना द्वारा इस्तेमाल में लाए जाने वाले + +1626. करगिल समिति की रिपोर्ट के आधार पर मंत्रियों के समूह द्वारा लिए गए निर्णय के अनुसार 1 अक्टूबर, + +1627. तीनों सेनाओं के मुख्यालय-यानी थल सेना मुख्यालय, नौसेना मुख्यालय और वायु सेना मुख्यालय + +1628. रक्षामंत्री को रक्षा संबंधी गतिविधियों में मदद देने के लिए अनेक समितियां होती हैं। स्टाफ समिति + +1629. का रक्षा सलाहकार इसका प्रमुख होता है तथा यह रक्षा मंत्रालय से पूर्णत— संबद्ध होता है और सलाहकार + +1630. उच्च तकनीक आधारित सटीक हथियारों को शामिल किए जाने से आगामी युद्धों की मारक क्षमता + +1631. लंबी अवधि के परिप्रेक्ष्य में थलसेना का आकार, आकृति एवं भूमिका का व्यावहारिक दृष्टिकोण + +1632. भारतीय सेना बहुबल के अर्थ में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी थल सेना है। थल सेना का प्रमुख + +1633. भारतीय थल सेना विश्व की उत्कृष्ट थल सेनाओं में से एक है। वर्तमान तथा भविष्य की चुनौतियों + +1634. (iii) रात्रि युद्ध की क्षमता + +1635. खरीद करना है। रात्रि निगरानी उपकरणों तथा अतिरिक्त मानवरहित विमानों की खरीद से आर्टिलरी की + +1636. और राकेट प्रणाली, थर्मल इमेजिंग उपकरण, बुलेट तथा माइन प्रूफ गाडि़यां तथा सुरक्षित रेडियो संचार + +1637. सहयोग कायम किया है। हमारे पड़ोस के छोटे मुल्क तथा वे देश जो अपने व्यापार और ऊर्जा आपूर्ति के + +1638. मिसाइल का सफल परीक्षण किया गया है। 6 यूएच 3 एच हेलीकाप्टर शामिल किए गए हैं। इसके लिए + +1639. किया गया। इसने भारतीय नौसेना में एक नया आयाम जोड़ा है। यह जहाज भारतीय नौसेना में पहला लैंडिग + +1640. चीन सागर तथा उत्तरी-पश्चिमी प्रशांत महासागर में की गई जहाजों की तैनाती शामिल है। + +1641. जैसी अवैध गतिविधियों को रोका जा सके। इसके अतिरिक्त तटरक्षक बल के कार्यों में खोज और बचाव + +1642. तटरक्षक बल अधिनियम के अनुसार इसके बुनियादी कार्य इस प्रकार हैं-(क) कृत्रिम द्वीपो ंऔर + +1643. की सहायता करना। + +1644. देश और देश से बाहर बहुत से अंतर्राष्ट्रीय अभ्यासों और मिशन दोनों में सर्वोच्य प्रदर्शनों से अपनी पेशेवर + +1645. के लिए हवाई चेतावनी और नियंत्रण प्रणाली (अवाक्स) प्राप्त की जा रही है। इसके शामिल होन से सामने + +1646. 228 एयरक्राफ्ट को आधुनिक तकनीक से लैस रखने के लिए सभी मौजूदा एयरक्राफ्टों को इलेक्ट्रॉनिक + +1647. इलेक्ट्रॉनिक निगरानी क्षमता बढ़ाने के लिए बढ़ी संख्या में ग्राउंड आधारित रडार शामिल किए जा + +1648. कमीशंड रैंक. + +1649. विशेष भर्ती स्कीम, एनसीसी विशेष भर्ती स्कीम, सेवा भर्तियों के लिए चयन भारतीय वायु सेना मुख्यालय + +1650. भर्ती की जाती है। + +1651. फ्लाइंग, एयरो नॉटिकल इंजीनियरिंग (इलेक्ट्रॉनिक्स, मेकेनिकल) शिक्षा, + +1652. चयन बोर्डों के माध्यम से नियमित कमीशन अधिकारियों के रूप शामिल किए जाते हैं। + +1653. संघ लोकसेवा आयोग के अतिरिक्त सेना में निम्नलिखित तरीकों से भी कमीशंड अधिकारियों की भर्ती की + +1654. में स्थायी कमीशन के लिए आवेदन करने के पात्र हैं। सेना मुख्यालय द्वारा नियुक्त एक स्क्रीनिंग + +1655. विद्यार्थी इसके माध्यम से स्थाई कमीशन के लिए आवेदन के पात्र हैं। एसएसबी और मेडिकल बोर्ड + +1656. स्नातकोत्तर विद्यार्थी शार्ट सर्विस कमीशन (तकनीकी) प्रवेश के जरिए तकनीकी शाखा में शार्ट + +1657. जिन्होंने भौतिकी, रसायन तथा गणित विषयों में कुल मिलाकर 70 प्रतिशत अंक प्राप्त किए हों, इस + +1658. गुप्तचर दलों, जज एडवोकेट जनरल ब्रांच तथा सेना वायु रक्षा में कमीशंड किया जाता है। + +1659. आयोजित लिखित परीक्षा से छूट मिलती है तथा इनका चुनाव सीधे एसएसबी बोर्ड के साक्षात्कार + +1660. हों। योग्य उम्मीदवारों को सीधे साक्षात्कार के लिए बुलाया जाता है। उसके बाद चिकित्सा + +1661. रैलियों द्वारा होती है। रैली स्थल पर उम्मीदवारों की प्राथमिक स्क्रीनिंग के बाद उनके दस्तावेजों की जांच + +1662. भर्ती कार्यालय अपने संबंधित क्षेत्रों में आयोजित रैलियों के जरिए भर्ती करते हैं। + +1663. हाइड्रो कॉडर के लिए शार्ट सर्विस कमीशन तथा विधि/एनएआई कॉडरों के लिए स्थाई कमीशन। + +1664. में भर्ती। 10+2 (तकनीकी) योजना के जरिए स्थाई कमीशन। + +1665. उन्हें आईएनएस शिवाजी/वालसुरा पर चार वर्षीय इंजीनियरिंग कोर्स करना पड़ता है। + +1666. लॉजिस्टिक कैडरों) में शॉर्ट सर्विस कमीशन अधिकारियों के रूप में शामिल हो रही हैं। + +1667. “सी” प्रमाणपत्रधारी स्नातक विद्यार्थी नौसेना में नियमित कमीशंड अधिकारी के लिए आवेदन के पात्र + +1668. जाते हैं। नौसेना का एक दल यहां कैंपस साक्षात्कारों के जरिए अभ्यार्थियों का चयन करता है। समीप + +1669. प्रकार हैं- + +1670. (v) सीधी भर्ती पैटी अधिकारी-उत्कृष्ट खिलाड़ी + +1671. विभिन्न वायुसेना स्टेशनों पर महिला तथा पुरूष इंजीनियरिंग स्नातकों के लिए इंजीनियरिंग नॉलेज + +1672. गैर-तकनीकी शाखाओं में भर्ती के लिए स्नातक तथा स्नातकोत्तर महिला और पुरूष उम्मीदवारों के + +1673. भर्ती के लिए योग्य उम्मीदवारों का चयन करता है। + +1674. वे अच्छे नेता और उपयोगी नागरिक बन सकें तथा राष्ट्र की सेवा में उचित भूमिका निबाह सकें। एनसीसी + +1675. सलाहकार समिति है। एनसीसी में सेवाकर्मी, पूर्णकालिक महिला अधिकारी, शिक्षक, प्रोफेसर और नागरिक + +1676. काम करती है कि युद्ध के समय तैनाती के लिए इनका उपयोग हो सकेगा और शांति काल में कम- + +1677. के लिए वे प्रत्येक वर्ष दो महीनों के लिए अपनी-अपनी इकाइयों में जाते हैं। + +1678. तैनात किया गया है। इसके अलावा रेलवे, तेल आपूर्ति, आपातकाल के दौरान चिकित्सा, चिकित्सा सुविधा + +1679. के पैरा में दिया गया है। + +1680. सैनिक स्कूलों के उद्देश्यों में आम आदमी तक ऊंची पब्लिक स्कूल शिक्षा की पहुंच बनाना, बच्चे + +1681. देश में पांच मिलिट्री स्कूल अजमेर, बंगलुरू, बेलगांव, चायल और धौलपुर में हैं, जो सीबीएससी से + +1682. राष्ट्रीय इंडियन मिलिट्री कॉलेज. + +1683. रक्षा अकादमी, खडगवासला, पुणे के एक सहयोगी संस्थान के रूप में काम कर रहा है। + +1684. या वायुसेना अकादमी। + +1685. को आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान करता है। + +1686. इंजिनियर्स, सिग्नल आदि में नियुक्ति दी जाती है। + +1687. रक्षा प्रबंधन कॉलेज. + +1688. कॉलेज ऑफ मिलिट्री इंजीनियरिंग. + +1689. नेशनल डिफेंस कॉलेज. + +1690. रक्षा उत्पादन विभाग निजी तथा सार्वजनिक क्षेत्र दोनों में रक्षा उपकरणों के स्वदेशीकरण, विकास तथा + +1691. उत्पादन क्षेत्र सतत विकसित हुआ है। + +1692. आयुध कारखाने पुरानी तथा आधुनिक तकनीकों से सिîात कारखानों का बेहतरीन संगम + +1693. बुनियादी तथा इंटरमीडिएट सामग्री उत्पादन क्षमता थी। आजादी बाद सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के + +1694. रक्षा उपक्रम. + +1695. उत्पादन, उनकी सहायक सामग्रियां, लाइफसाइकल ग्राहक सेवा, एयरोस्पेस उत्पादों की मरम्मत तथा ढांचे + +1696. बेल रडार तथा सोनार, संचार उपकरण, ऑप्टो-इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर, टेंक इलेक्ट्रॉनिक्स तथा + +1697. यह कंपनी खनन और निर्माण उपकरणों, रक्षा उत्पादों, रेलवे तथा मेट्रो उत्पादों की डिजाइन, निर्माण, + +1698. एयरक्राफ्ट टोइंग ट्रेक्टरों, एयरक्राफ्ट वीपन लोडिंग ट्रॉली, बीएमपी कंबेट वाहनों के लिए ट्रांसमीशन + +1699. एमडीएल देश का प्रमुख शिप निर्माता है। जिसकी 6800 टन तक स्थांतरण क्षमता के युद्धपोत तथा 27000 + +1700. गोवा शिपयार्ड (जीएसएल). + +1701. गृह मंत्रालय के आदेशों के अनुपालन में कंपनी ने बिल्डिंग ग्लास री-इनफोर्सड प्लास्टिक + +1702. एक अग्रणी शिप निर्माण यार्ड तथा उच्च मूल्य, उच्च प्रौद्योगिकी, जटिल इंजीनीयरिंग आइटमों के निर्माता + +1703. निर्धारित लक्ष्यभेदी मिसाइलों के निमार्ण के लिए इसकी स्थापना 1970 में हुई। यह सार्वजनिक क्षेत्र के + +1704. के प्रतिरूप (ए 1, ए 2 तथा ए 3) जैसी मिसाइलों के परिक्षण के लिए डीआरडीओ को मिसाइल उप- + +1705. रणनीतिक महत्व के कामों में इस्तेमाल के लिए विशेष प्रकार के इस्पात के उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त + +1706. रक्षा अनुसंधान तथा विकास संगठन रक्षा मंत्रालय की आर एंड डी विंग है जिसका विजन रक्षा + +1707. तकनीकी विकास और उत्पादन निदेशालय का विलय कर स्थापित किया गया। डीआरडीओ का प्रमुख + +1708. बिल्डिंग में है। + +1709. नई परियोजनाओं के अनुमोदन, ढांचागत सुधार, नई सुविधाएं जुटाने, जारी परियोजनाओं की निगरानी + +1710. हैं। व्यवसाय, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, प्रौद्योगिकी अर्जन, सार्वजनिक कार्य तथा संपदा सेवाओं सहित + +1711. संपदा अधिकार, मानव संसाधन विकास, प्रबंधन सेवाएं, सामग्री प्रबंधन, कार्मिक, योजना और समन्वय, + +1712. डीआरडीओ के कार्यक्रमों/नीतियों/निष्पादनों से संबंधित सूचना प्रदान करने जैसी इमेज निर्माण गतिविधियों + +1713. और सहयोगी उपकरण (स्ट्रेटेजिक उपकरण, टेक्टिकल प्रणालियां, ड्यूअल यूज टेक्नोलॉजी) + +1714. रूप में भी कार्य करता है। तीनों सेवाओं द्वारा निर्धारित आवश्यकताओं के अनुरूप इसने विश्वस्तरीय + +1715. निम्नलिखित तथ्य डीआरडीओ के ढांचे तथा आयाम की झलक देते हैं— + +1716. प्रौद्योगिकी देने से मना करने के युग में किसी अन्य देश के साथ न तो मांगी जा सकती हैं। और ना ही + +1717. की सैनिक शक्ति को लंबी छलांग लगाने में सहायता की है। इससे प्रभावी रोधक पैदा करने और निर्णायक + +1718. सुविधाएं स्थापित + +1719. लिए एलसीए का निर्माण। अन्य सफलता की कहानियां ढांचा खड़ा किया गया है। + +1720. तथा उड्डयन अपग्रेडेशन, मिसाइल अप्रोच चेतावनी अनुकरण के लिए हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर + +1721. रहे हैं। + +1722. (भारतीय लघु शस्त्र प्रणाली) राष्ट्रफल उपलब्ध नहीं हुई + +1723. युद्ध प्रथम आर्मोरेड रेजीमेंट (45 टैंक) के लिए 45 सहित इंजन परीक्षण सुविधा, पारेषण परीक्षण सुविधा, + +1724. यरिंग इंटीग्रेटड फायर डिटेक्शन एंड सुप्रेशन प्रणाली (आई- सस्पेंशन परीक्षण सुविधा, हाइड्रोलिक परीक्षण + +1725. घंटो में अर्जुन टैंक से बीएलटी में परिवर्तित होने की इमर्शन चैंबर, डस्ट चैंबर, साल्ट स्प्रे चैंबर, + +1726. इंटीग्रेटड फील्ड शेल्टर, रिमोट चालित वाहन (दक्ष), ड्राइहीट चैंबर तथा डेंप हीट। रेपिड प्रोटोटाइपिंग + +1727. व्हील्स, विभिन्न देसी स्ट्रेटेजिक एंड टेक्टिकल मिसाइलों ऑटोमोटिव परीक्षण केंद्र तैयार किया है जो + +1728. निक और भारतीय डॉप्लर रडार इंद्र-I और II, मल्टीफंक्शन फेज्ड शक्ति जैमिंग, वॉयस रिकग्नीशन और वॉयस + +1729. इलैक्ट्रॉनिक वारफेयर प्रणालियां समुक्ता और संग्रह सेना प्रौद्योगिकी जीएएस क्रिस्टल ग्रोथ सुविधा, + +1730. कंपेक्ट कम्युनिकेशन इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर स्यूट-सुजव, फेब्रिकेशन के लिए फेब लाइन, यूएचवी. + +1731. कपल्ड-केविटी टीडब्ल्यु टी। + +1732. फाल प्रणाली, जल विष खोजी किट, पोर्टेबल विज्ञान और कार्मिक चयन, मेन-मशीन + +1733. उत्पादन, ठंड बर्दाशत करने वाली सब्जियां, हाइपर + +1734. अपव्यय के परिशोधन के लिए बायो-डाइजेस्टर जिसे + +1735. सामग्रियां नौसेना अनुप्रयोग के लिए एबी श्रेणी का इस्पात, कंपोजिट आर्मर संबंधी प्रौद्योगिकी, नौसेना + +1736. ब्रेकपैड, भारीधातु पेनिट्रेटर रॉड, जैकाल आर्मर, कंचन प्रणालियां और रेडिएशन इंस्ट्रमेंटेशन। + +1737. (3000 किमी) तथा पृथ्वी शृंखला। सेना और नौसेना उत्पादन, रिंग लेजर गाइरो, एक्सीलटो-मीटर, + +1738. बैलेस्टिक मिसाइल का मुकाबला करने वाली एयर फ्रेग्मेंटड और सबम्युनीशन वार हेड, कमांड + +1739. सेना के लिए कंप्यूटरीकृत बार गेम। ब्रांड रडार सीकर परीक्षण सुविधा, इलेक्ट्रो- + +1740. प्रणालियां सब मेरीन-सोनार 3 शूस, टॉरपीडो एडवांस्ड लाइट अंडरवाटर अकॉस्टिक्स अनुसंधान सुविधा, + +1741. लिए कल्स्टर कंप्यूटिंग सुविधा। प्रोटोटाइप + +1742. के मानव संसाधन का सृजन भी शामिल है। आज डीआरडीओ के पास कोर क्षमताओं का विशाल फलक + +1743. परिसंपत्ति हैं और इसमें एकीकृत यांत्रिक फ्लाइट परीक्षण रेंज, एयरक्राफ्टों के लिए संरचनात्मक डायनामिक्स + +1744. सुनिश्चितता, बदलते अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में स्पेयर्स तथा आत्मनिर्भरता वाले रक्षा और आर एंड डी बेस + +1745. संस्थान (मानद विश्वविद्यालय) पुणे में विकासशील देशों के वैज्ञानिकों/इंजीनियरिंग कार्मिकों को विशेष + +1746. पहचान के लिए एस एंड टी रोड मेप्स और तीनों सेवाएं अध्ययन कराती हैं। प्रौद्योगिकियों को “खरीदो”, + +1747. भागीदार हैं-रूस, सूएसए, फ्रांस, इजराइल, जर्मनी, यूके, सिंगापुर कजाकिस्तान। डीआरडीओ के अपने + +1748. गतिविधियों तथा इनके लिए ढांचागत सुविधाएं तैयार करने पर था। चालू वित्त वर्ष (2009-10) के लिए + +1749. को पैदा और उनकी रक्षा कर रहा है। डीआरडीओ ने अब तक 416 से अधिक भारतीय तथा 45 विदेशी + +1750. स्वायत्तता, वित्तीय तथा प्रबंधकीय जिम्मेदारियां, उच्च प्रशिक्षण और कैरियर के मामलों में पर्याप्त + +1751. जाते हैं। वैज्ञानिकों से अपनी परियोजना जिम्मेदारियों के रूप में सघन वायु और समुद्री सेवाओं संबंधी ट्रायल + +1752. के तहत हाल ही में पीएचडी पूरी करने वाले उम्मीदवारों का बतौर वैज्ञानिक चयन, एनआरआई के लिए + +1753. पूर्व सैनिकों का पुनर्वास. + +1754. करते हैं और कल्याण कोष के प्रशासन की दिशा भी तय करते हैं। पुनर्वास महानिदेशालय सरकार की + +1755. भूतपूर्व सैनिकों का पुनर्वास राज्य और केंद्र का संयुक्त दायित्व है। + +1756. वर्ष होती है। इन्हें राष्ट्रीय निर्माण के कार्य में लगाने की जरूरत है। पूर्व सैनिकों को फिर से काम धंधे + +1757. सहायता। + +1758. जूनियर कमीशंड अधिकारी। अन्य रैंक तथा इनके समकक्ष अन्य सेवाओं के लिए पूरे देश में फैले सरकारी, + +1759. गई थी जो सेवाकाल के दौरान पुनर्वास प्रशिक्षण सुविधा का लाभ नहीं उठा पाते। + +1760. के आधार पर रोजगार में प्राथमिकता दी जाती है। + +1761. के दस प्रतिशत पद भी भूतपूर्व कर्मियों के लिए आरक्षित हैं। सुरक्षा कोर में शतप्रतिशत पद भूतपूर्व सैनिकों + +1762. उपलब्ध कराने के लिए सुरक्षा एजेंसियों को निबंधित करती है। इस योजना के तहत अवकाश प्राप्त + +1763. स्व-रोजगार योजनाएं. + +1764. कोयला परिवहन योजना - यह योजना पिछले 27 वर्षों से चल रही है। वर्ष 2007 में कोल इंडिया + +1765. 25-30 प्रतिशत तक की सब्सिडी उपलब्ध है। भूतपूर्व सैनिक ऋण के लिए संबद्ध जिला सैनिक बोर्ड के + +1766. से अब तक 7580 भूतपूर्व सैनिकों को 5706 लाख रूपये का ऋण इस योजना के तहत उपलब्ध कराया + +1767. तक का ऋण तथा 30 प्रतिशत तक सब्सिडी उपलब्ध कराई जाती है। + +1768. तेल उत्पादन एजेंसी का आबंटन. + +1769. ईएसएमपी बीओआर के लिए यह एक जांचा-परखा अच्छी आमदनी वाला स्वरोजगार है। मदर डेयरी से + +1770. सन् 1976से पूर्व शिक्षा पूर्ण रूप से राज्यों का उत्तरदायित्व था। संविधान द्वारा 1976 में + +1771. गुरूतर भार भी स्वीकारा। इसके अंतर्गत सभी स्तरों पर शिक्षकों की योग्यता एवं स्तर को बनाए रखने एवं + +1772. एक ऐसी राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली तैयार करने का प्रावधान है जिसके अंतर्गत शिक्षा में एकरूपता लाने, प्रौढ़शिक्षा + +1773. अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद को सुदृढ़ करने तथा खेलकूद, शारीरिक शिक्षा, योग को बढ़ावा + +1774. एनपीई द्वारा निर्धारित राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली एक ऐसे राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढांचे पर आधारित है, + +1775. भी जोर देती है। + +1776. एवं सांस्कृतिक विषयों पर व्यापक विचार-विमर्श एवं परीक्षण हेतु इसने एक मंच उपलब्ध कराया है, + +1777. में निर्णय लेने की ऐसी सहभागी प्रक्रिया (प्रणाली) तैयार करें, जिससे संघीय ढांचे की हमारी नीति को + +1778. के माध्यम से अपना कार्य करेगा। तदनुसार ही सरकार ने जुलाई, 2004 में सीएबीई का पुनर्गठन किया और + +1779. विशेष विचार-विमर्श करने की आवश्यकता महसूस की गई। तदनुसार निम्नलिखित विषयों के लिए + +1780. लिए पाठ्य पुस्तकों एवं समानांतर पाठ्य पुस्तकों के लिए नियामक व्यवस्था तथा उच्च एवं तकनीकी + +1781. करने के लिए कार्य-योजना तैयार करने के आवश्यक उपाय किए जा रहे हैं। इसके साथ ही सीएबीई की + +1782. (iii) बच्चे की शिक्षा, बाल विकास, पोषण एवं स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न योजनाओं को ध्यान में + +1783. उस पर कार्यवाही करने और अन्य मामलों में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से इनकी कार्यप्रणाली में सुधार + +1784. पंजीयन अधिनियम, 1860 के अंतर्गत एक पंजीकृत सोसायटी के तौर पर “भारत सहायता कोष” का गठन + +1785. व्यय. + +1786. 0.64 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2003-04 (बजट अनुमानों के अनुसार) में 3.74 प्रतिशत हो गया। + +1787. 12,531.76 करोड़ रूपये तथा माध्यमिक शिक्षा विभाग के लिए योजना परिव्यय 2712.00 करोड़ रूपये + +1788. की जा रही है। एसएसए का उद्देश्य 2010 तक 6 से 14 वर्ष के आयु वर्ग वाले सभी बच्चों को उपयोगी + +1789. (iii) 2010 तक सभी के लिए शिक्षा। जीवन हेतु शिक्षा पर विशेष ध्यान देते हुए संतोषप्रद गुणवत्ता की प्राथमिक शिक्षा पर जोर। + +1790. कराएगा। + +1791. नए स्कूल खोलना और उनमें सुधार लाना शामिल है। सर्वशिक्षा अभियान की शुरूआत से दिसंबर 2006 + +1792. सर्वशिक्षा अभियान के तहत स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में भारी कमी लाने में सफलता + +1793. परिवारों के साथ दूसरी जगहों से आए बच्चे और शहरी वंचित बच्चों को शिक्षा मुहैया कराते हैं। एसएसए + +1794. शिक्षा गारंटी योजना तथा वैकल्पिक एवं अनूठी शिक्षा. + +1795. ईजीएस में ऐसे दुर्गम आबादी-क्षेत्रों पर ध्यान दिया जाता है, जहां एक किलोमीटर के घेरे में कोई + +1796. जीवनयापन करने वाले बच्चे, प्रवासी बच्चे, कठिन परिस्थिति में रहने वाले बच्चे और 9 वर्ष से अधिक + +1797. सामंजस्य नहीं बिठा पाते। ऐसे बच्चों को स्कूल में वापस लाने हेतु स्कूल वापसी शिविरों का आयोजन + +1798. दृष्टिकोण के साथ प्राथमिक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पोषण सहयोग कार्यक्रम 15 अगस्त, 1995 से शुरू + +1799. इसके अंतर्गत शामिल कर लिया गया। इस योजना के अंतर्गत शामिल है — प्रत्येक स्कूल दिवस प्रति + +1800. संशोधित योजना के तहत दी जाने वाली केंद्रीय सहायता इस प्रकार है — + +1801. सूखा प्रभावित क्षेत्रों में गर्मियों की छुट्टी के दौरान मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराने का प्रावधान। जुलाई, + +1802. केंद्रशासित प्रदेश मुहैया कराएंगे। + +1803. (ii) सुविधाहीन वर्ग के गरीब बच्चों को कक्षाओं में नियमित उपस्थित रहने तथा कक्षाओं की + +1804. उपर्युक्त उद्देश्यों को हासिल करने के लिए सारणी के कॉलम 3 में दर्शाई गई मात्रा में पोषक तत्वों से + +1805. कैलोरी 300 450 + +1806. संशोधित योजना निम्नलिखित भागों को मुहैया कराती है — + +1807. कुंतल। ये राज्य हैं — अरूणाचल प्रदेश, असम, मेघालय, मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड, त्रिपुरा, + +1808. के लिए की सहायता 20 पैसे प्रति बालक। + +1809. सहायता उपलब्ध कराना आवश्यक है। + +1810. एमडीएमएस के अंतर्गत आवंटन पर्याप्त नहीं लगता। अत— इस उद्देश्य के लिए अन्य विकास कार्यों + +1811. वस्तुओं पर खर्च में लचीलापन राज्य/कें.शा.प्र. रख सकते हैं। + +1812. सहायता का प्रावधान। उपर्युक्त राशि का अन्य 0.2 प्रतिशत प्रबंधन, निगरानी और मूल्यांकन के + +1813. ग्राम पंचायत ग्राम सभा प्रतिनिधि वीईसी, पीटीए, एस डी एमसी के साथ-साथ मदर्स समिति के सदस्य + +1814. पारदर्शिता और जवाबदेही को सुनिश्चित करने के लिए उन सभी स्कूलों और केंद्रों से, जहां यह कार्यक्रम + +1815. (iii) अन्य खरीदे गए, उपयोग में लाए गए अंश + +1816. संबंधित क्षेत्रों के राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों के अधिकारियों से जिन स्कूलों में कार्यक्रम लागू किया जा रहा + +1817. महीने/तिमाही के लिए एक महीने पहले ही खाद्यान्न उठाने की अनुमति है ताकि खाद्यान्नों की आपूर्ति + +1818. के लिए एफसीआई प्रत्येक राज्य में एक नोडल अधिकारी नियुक्त करता है। जिलाअधिकारी/जिला + +1819. संस्थानों के कवरेज, (ii) खाना पकाने की लागत, परिवहन, किचन शैड का निर्माण और किचन के + +1820. राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को कहा गया है कि जन शिकायतों के निवारण के लिए एक समुचित + +1821. मुकाबले 37 प्रतिशत अधिक है। + +1822. कार्यक्रम मानदंडों के अनुसार 5-7 वर्ष की अवधि के लिए प्रति जिला निवेश सीमा 40 करोड़ + +1823. हिस्सा विदेशों से प्राप्त सहायता के माध्यम से आता है। वर्तमान में विदेशी सहायता लगभग 6938 करोड़ + +1824. मात्र 123 जिलों में लागू है। + +1825. अंतर्गत तैयार किया गया स्कूली ढांचा उल्लेखनीय है। 52,758 स्कूली भवनों; 58,604 अतिरिक्त + +1826. जीईआर 100 प्रतिशत से भी अधिक आता है। जो जिले डीपीईपी के अंतर्गत आते हैं और जहां + +1827. विभिन्न चरणों में यह वृद्धि 46 से 47 प्रतिशत है। (1) वर्तमान में नामांकन किए हुए कुल विभिन्न + +1828. संबंधी सहायता और शिक्षण प्रशिक्षण सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए प्रखंड (ब्लॉक) स्तर पर + +1829. के अनुरूप लक्ष्य हासिल करने के लिए एक ठोस कार्यक्रम के रूप में इसकी शुरूआत हुई। समानता + +1830. के माध्यम से बदलाव ला दिया है जिसका प्रभाव अब घर, परिवार में, सामुदायिक तथा ब्लॉक और + +1831. महिला समाख्या योजना वर्तमान में नौ राज्यों के 83 जिलों में 21,000 गांवों में चलाई जा रही है। + +1832. केंद्र द्वारा प्रायोजित अध्यापक शिक्षा योजना निम्नलिखित उद्देश्यों के साथ 1987-88 में शुरू की गई + +1833. (2) चयनित द्वितीयक अध्यापक शिक्षण संस्थानों (एसटीईआई) का में स्तर बढ़ाना— + +1834. पंचवर्षीय योजना के दौरान मंजूर की गई थीं लेकिन समय से पूरी नहीं हो सकीं। + +1835. (4) डीआईईटी के सेवाकालीन और सेवा पूर्ण प्रशिक्षण जैसे कार्यक्रमों की गुणवत्ता में सुधार करना + +1836. से सरकारी ईटीईआई है तो इसे डीआईईटी ग्रेड तक बढ़ाया जाएगा। यदि कोई ईटीईआई मौजूदा नहीं तो + +1837. 3. यदि किसी जिले में 2500 से अधिक अध्यापक हैं तो राज्य सरकार डीआईईटी की अपेक्षा + +1838. प्रस्ताव है। + +1839. 4. एनजीओ को सहयोग + +1840. प्रावधान किया गया है। इनमें से 50 करोड़ रूपये उत्तर पूर्व क्षेत्र के लिए निर्धारित किए गए हैं। + +1841. तथा 10 बाल केंद्र हैं। संबद्ध बाल भवनों और बाल केंद्रों के माध्यम से बाल भवन की स्कूल छोड़ने + +1842. राष्ट्रीय बाल भवन बच्चों को उनके लिंग, जाति, धर्म, रंग आदि भेदभाव के बिना तनावमुक्त + +1843. ट्रेन, मिनीज़ू, फिश कॉर्नर, साइंस पार्क, फनी मिरर, कल्चर क्राफ्ट विलेज। राष्ट्रीय बाल भवन में राष्ट्रीय + +1844. के लिए अध्यापन और सीखने को एक सुखद अनुभव बनाना भी है। + +1845. प्रदर्शन, सृजनात्मक वैज्ञानिक खोज, सृजनात्मक लेखन में 9-16 वर्ष के आयु वर्ग की रचनात्मकता वाले + +1846. कार्यशालाएं, ट्रेकिंग कार्यक्रम, टाक शो, केंप, आयोजित करता है। इसके अलावा पृथ्वी दिवस, + +1847. बच्चे उप-महाद्वीप की सामाजिक सांस्कृतिक विशिष्टता के युवा राजदूत के रूप में कार्य करते हैं। इसके + +1848. राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् (एनसीटीई) की स्थापना अगस्त, 1995 में इस लक्ष्य के साथ की गई थी + +1849. दिशा-निर्देश तैयार करना, सर्वेक्षण और अध्ययन करना, अनुसंधान एवं नवीन तरीके अपनाना तथा शिक्षा + +1850. के प्रावधानों के अंतर्गत इन्हें अध्यापक शिक्षण पाठ्यक्रम चलाने के लिए ऐसी संस्थाओं को अनुमति देने + +1851. नए नियम और मानक जारी किए हैं। नए नियम अध्यापक कार्यक्रमों की गुणवत्ता सुधारने और अध्यापक + +1852. अधिकार बनाने की बात करता है। संविधान की धारा 21ए कहती है — + +1853. प्रारंभिक शिक्षा कोश. + +1854. 14.11.2005 को जारी किया। + +1855. पीएसके में 189 करोड़ रूपये अतिरिक्त स्थानांतरित किए गए। पीएसके के तहत उपलब्ध फंड का + +1856. राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की स्थापना मई 1988 में की गई थी। इसका उद्देश्य 2007 तक 15 से 35 वर्ष + +1857. नहीं है बल्कि उपरिलिखित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अधिगमोन्मुख समाज के निर्माण का एक कारगर + +1858. समितियां (जिला स्तर की साक्षरता समिति) स्वतंत्र और स्वायत्तशासी संस्था के रूप में क्रियान्वित करती + +1859. ने प्राथमिक शिक्षा की मांग भी पैदा की है। जिन लाखों निरक्षर लोगों ने व्यावहारिक शिक्षा की दक्षता + +1860. पहुंचने के लिए निरंतरता, दक्षता और अभिमुखता सुनिश्चित करने में एक समन्वित परियोजना के रूप में + +1861. सतत शिक्षा योजना देश में संपूर्ण साक्षरता और साक्षरता पश्चात कार्यक्रमों के लक्ष्य हासिल करने + +1862. उपलब्ध कराते हैं। इस योजना के अंतर्गत अनेक महत्वपूर्ण कार्यक्रम चलाए जाते हैं जैसे-प्रतिभागियों में + +1863. शारीरिक, सांस्कृतिक और कलात्मक अभिरूचियों के अनुसार अवसर हासिल कर सकता है। + +1864. संगठनों की अपार क्षमताओं को मान्यता देता है। इसने स्वयंसेवी संगठनों के साथ साझेदारी मजबूत बनाने के + +1865. अनुसंधान अध्ययन और मूल्यांकन सामग्री के रूप में अकादमिक और तकनीकी संसाधन सहयोग उपलब्ध + +1866. साक्षरता दर में सुधार का लक्ष्य निर्धारित किया गया। इनमें से अधिकांश जिले उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा + +1867. तहत त्वरित महिला साक्षरता कार्यक्रम में शामिल किया गया है। इस कार्यक्रम के तहत 15 से 35 वर्ष + +1868. महिलाओं को इस कार्यक्रम में शामिल किया गया। यह कार्यक्रम भी लगभग पूरा हो चुका है केवल दो + +1869. में सफलता के बावजूद अभी भी कुछ इलाकों में नीची महिला साक्षरता दर और अवशेष निरक्षरता मौजूद + +1870. के आठ जिलों में 29 लाख 54 हजार, उत्तर प्रदेश के 18 जिलों में 36.11 लाख और मिजोरम के चार + +1871. सामुदायिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए विशेष रूप से अल्पसंख्यक समूह, अनुसूचित जाति/ + +1872. उड़ीसा (8), पंजाब (1), उत्तर प्रदेश (27) और पश्चिम बंगाल के (4) जिले शामिल हैं। + +1873. जनशिक्षण संस्थान. + +1874. दस्तकारी, कला, चित्रकला, बिजली के सामानें की मरम्मत, मोटर वाइंडिंग, रेडियो और टीवी मरम्मत, + +1875. प्रशिक्षण दिया गया। + +1876. और साक्षरता से जुड़ा व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया और उसके बाद उत्पादक + +1877. केंद्रीय प्रौढ़ शिक्षा निदेशालय राष्ट्रीय साक्षरता मिशन में शैक्षिक और तकनीकी संसाधन का सहयोग देता + +1878. नई दिल्ली में विज्ञान भवन में 8 सितंबर, 2006 को आयोजित + +1879. सतत शिक्षा और एक्स्टेंशन विभाग, एस.वी. विश्वविद्यालय, तिरूपति। + +1880. यूनेस्को का साक्षरता के लिए दिया जाने वाला कन्फ्यूशियस पुरस्कार राजस्थान सरकार के साक्षरता + +1881. राजस्थ्ाान ने विशेष पहल की है जिसके तहत निरक्षर महिलाओं को आईपीसीएफ वर्णमाला की पुस्तक + +1882. प्रकाशन. + +1883. शिक्षाविदों और समाज विज्ञान शोधकर्ताओं के लिए; अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस तथा राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय + +1884. 8 सितंबर, 2006 अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस के अवसर पर भारत के उप राष्ट्रपति ने एक विशेष + +1885. मूल्यांकन संस्थाओं द्वारा मूल्यांकन किया गया। अनवरत शिक्षा कार्यक्रम के सात जिलों-मंडी (हिमाचल + +1886. मुंबई और मीडिया अनुसंधान समूह, नई दिल्ली शामिल हैं। + +1887. में 64.13 प्रतिशत से बढ़कर 75.26 प्रतिशत हो गई। + +1888. 47.53 प्रतिशत है। + +1889. अनुच्छेद 330, 332, 335, 338 से 342 तथा संविधान के पांचवीं और छठवीं अनुसूची अनुच्छेद 46 में + +1890. के अनुपालन में अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए प्राथमिक शिक्षा, साक्षरता एवं माध्यमिक और + +1891. वस्तुत— अधिकतर राज्यों ने अनुसूचित जाति/जनजातियों के छात्रों के लिए माध्यमिक स्तर तक + +1892. सर्वशिक्षा अभियान (एसएसए). + +1893. प्रकार हैं- + +1894. लिए सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाना, + +1895. इस योजना का प्रमुख जोर बालिकाओं, अनुसूचित जाति/जनजाति कामकाजी बच्चों, शहरी वंचित बच्चों, + +1896. महिला समाख्या (एमएस). + +1897. संघर्ष कर सकें। + +1898. राष्ट्रीय औसत से कम है और लैंगिक भेदभाव राष्ट्रीय औसत से अधिक है। साथ ही यह कार्यक्रम ऐसे + +1899. एसकेपी का लक्ष्य बालिका शिक्षा पर प्रमुख रूप से ध्यान देने के अतिरिक्त राजस्थान के दूर-दराज के + +1900. कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय योजना के अंतर्गत मुख्य रूप से प्राथमिक स्तर पर अनुसूचित जाति/ + +1901. ऐसे विकास खंडों में कम महिला साक्षरता वाले तथा/अथवा स्कूल न जाने वाली अधिकतर बालिकाओं + +1902. लाना है। इस कार्यक्रम का लक्ष्य सामाजिक आर्थिक-रूप से पिछड़े तथा शहरी/ग्रामीण क्षेत्रों के + +1903. सामाजिक न्याय और समानता के कारणों को मजबूती प्रदान की है। इससे भारत की महान मिली जुली + +1904. बच्चों में पोषण तत्वों की उपयुkta मात्रा निश्चित करना है। + +1905. केंद्रीय विद्यालय (केवी). + +1906. अनुसूचित जाति और जनजाति के छात्रों के पक्ष में आरक्षण संबंधित जिलों में उनकी आबादी के हिसाब + +1907. राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय संस्थान (एनआईओएस). + +1908. करने, उन्हें प्रोत्साहन देने और उनकी सहायता करने के विचार से 1992 में सामाजिक न्याय और + +1909. को विशेष पुरस्कार दिया जाता है। जब भी समाज कल्याण और न्याय मंत्रालय इस योजना के तहत नाम + +1910. है। इनमें शैक्षणिक रूप से पिछड़े जिलों को प्राथमिकता दी जाती है। विशेष रूप से वहां, जहां अनुसूचित + +1911. एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तकों, अभ्यास पुस्तिकाओं, अध्यापक निर्देशिकाओं, सहायक पठन सामग्री के + +1912. योजना का संचालन करती है। कुल 1000 छात्रवृत्तियों में से 150 छात्रवृत्तियां अनुसूचित जाति एवं 75 + +1913. है। यह अनुसूचित जाति और जनजाति के छात्रों के शैक्षिक विकास और उनसे संबद्ध शैक्षिक संस्थाओं + +1914. के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराता है। अभी इस आयोग ने केंद्रीय विश्वविद्यालयों समेत 113 + +1915. सभी शिक्षण एवं गैर शिक्षण पदों में भर्ती, प्रवेश, छात्रावास इत्यादि में अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए + +1916. यह सुनिश्चित करने के लिए कि सभी स्नातकों, जिनमें अजा/अजजा स्नातक शामिल हैं, के पास सामान्य + +1917. विस्तार (प्रसार) गतिविधियों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है। योजना के अंतर्गत अनुसूचित जाति/ + +1918. बढ़ाना, ताकि उच्च शिक्षा के लिए एक सुदृढ़ आधार मिल सके, (iii) ऐसे छात्रों के ज्ञान, निपुणता एवं रूझान + +1919. नाम भी प्रस्तावित करता है तथा केंद्रीय विश्वविद्यालयों में आरक्षण नीति के कार्यान्वयन की समीक्षा करने + +1920. ग्रामीण/सामुदायिक विकास गतिविधियां चलाई जाती हैं। इसके अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्र के लोगों/स्थानीय + +1921. 1978-79 से लागू है। इसमें निपुणता-उन्मुख अनौपचारिक प्रशिक्षण, तकनीकी हस्तांतरण तथा प्रौद्योगिक + +1922. आरक्षण दिया जाता है। आरक्षण के अलावा इनमें अजा/अजजा छात्रों के लिए न्यूनतम अर्हता अंकों में भी + +1923. 16.20 प्रतिशत तथा 8 प्रतिशत अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के लिए विशेष घटक योजना + +1924. के योजना परिव्यय में से एससीपी और टीएसपी के लिए क्रमश— 900 करोड़ रूपये एवं 450 करोड़ + +1925. स्वयंसेवी अध्यापकों तथा पंचायतीराज कर्मियों के माध्यम से केंद्रीकृत प्रयास के रूप में विशेष योजनाएं + +1926. आंकड़ों, अर्थात 37.41 प्रतिशत एवं 29.41 प्रतिशत की तुलना में उल्लेखनीय हैं। इसके अलावा + +1927. मिलीजुली योजना शुरू करने का निर्णय लिया गया, जिसमें निम्नलिखित घटकों को भी शामिल किया + +1928. (iv) स्कूलों में योग शिक्षा को बढ़ावा देना, + +1929. में इसके लिए 7 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया जिसमें चार भाग एनसीईआरटी को स्थानांतरित + +1930. की गई। 2002 तक यह पूरी तरह संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या फंड (यूएनएफपीए) से एक बाहरी सहायता + +1931. इससे अधिक, यूएनएफपीए ने 2004 से किशोर प्रजनन और सेक्सुअल हेल्थ (एआरएसएच) पर + +1932. स्कूली शिक्षा को पर्यावरणोन्मुखी बनाना. + +1933. को पर्यावरण-संख्या से संबंद्ध मूलभूत अवधारणाओं के प्रति जागरूक बनाना एवं उन्हें उनका सम्मान + +1934. सहायता देने का प्रावधान है। वर्ष 2006-07 के दौरान पर्यावरण शिक्षा के क्षेत्र में प्रायोगिक एवं + +1935. सोच को बढ़ावा देने के उद्देश्य से केंद्र द्वारा प्रायोजित एक योजना “स्कूलों में विज्ञान शिक्षा का सुधार” वर्ष + +1936. की स्थापना/वर्तमान प्रयोगशालाओं का उच्चीकरण करने, माध्यमिक/उच्च माध्यमिक विद्यालयों में + +1937. ओलंपियाड (1998 से), अंतर्राष्ट्रीय रासायनिकी ओलंपियाड (1999 से) तथा अंतर्राष्ट्रीय जीवविज्ञान + +1938. के लिए वित्तीय सहायता, पुस्तकालयों को अद्यतन बनाने और योग शिक्षकों के लिए छात्रावासों का + +1939. गई। प्रशिक्षण और पुस्तकालय संबंधी गतिविधियों को संचालित करने के लिए एजेंसी को गैर-योजना के + +1940. ओलंपियाड और अंतर्राष्ट्रीय जीव विज्ञान ओलंपियाड का आयोजन किया जाता है। भारत इन ओलंपियाड + +1941. की टीम अंतर्राष्ट्रीय इंफार्मेटिक्स ओलंपियाड में भी भाग ले रही है। + +1942. एनबीएचएम/होमी भाभा विज्ञान केंद्र (एचबीसीएसई/विज्ञान शिक्षा संघ बंगलौर) बीएएसई/भारतीय + +1943. 2005 में ताइवान के ताइपेई में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय रसायन ओलंपियाड (आईसीएच.ओ-2005) + +1944. रजत, एक कांस्य पदक प्राप्त हुआ था तथा तीन में उन्हें उल्लेखनीय सम्मान मिले। भारत ने अगस्त, + +1945. जवाहर नवोदय विद्यालय) खोलने का निर्णय लिया गया। + +1946. प्रतिवर्ष 30,000 से अधिक छात्र इन विद्यालयों में प्रवेश लेते हैं। इन विद्यालयों में मुख्यत— ग्रामीण क्षेत्रों + +1947. छात्रों का एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाकर शिक्षा लेना (शैक्षिक प्रवास) नवोदय विद्यालयों की एक + +1948. के माध्यम से राष्ट्रीय अखंडता (एकता) को बढ़ावा देना है। + +1949. निकाय का गठन किया गया, जिसका उद्देश्य था रक्षाकर्मियों एवं अर्ध सैनिक बलों के कर्मचारियों सहित + +1950. विकलांग बच्चों के लिए समेकित शिक्षा. + +1951. बना सकें। + +1952. मिला। दसवीं पंचवर्षीय योजना में इसके लिए कुल 200 करोड़ का बजट रखा गया है तथा 2005-06 में + +1953. तैयार करने के कार्य को विशेष स्थान दिया गया है। एनसीईआरटी से यह अपेक्षा रहती है कि वह शिक्षा + +1954. मानदंडों एवं परिवर्तनकारी लक्षणों को पूरा करने वाली राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली तैयार करने के साधन के + +1955. था। समिति के 35 सदस्यों में विभिन्न विषयों के विद्वान, प्रधानाचार्य एवं अध्यापक, जाने माने गैर + +1956. अजमेर, भोपाल, भुवनेश्वर, मैसूर तथा शिलांग के क्षेत्रीय शिक्षा संस्थानों में क्षेत्रीय सेमिनार आयोजित + +1957. के संवर्धन और विकास पर पर्याप्त ध्यान दिया गया है। + +1958. शिक्षण कक्षाएं चलाने के लिए वित्तीय सहायता दी जाती है। अहिंदीभाषी छात्रों को हिंदी पढ़ाने के + +1959. वितरण के लिए पुस्तकों की खरीद एवं प्रकाशन संबंधी कार्यक्रम चलाए जाते हैं। यह हिंदी के विकास + +1960. आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास करने के लिए भाषाई, साक्षरता, वैचारिक, सामाजिक, नृशास्त्रीय + +1961. निकाय के रूप में 1996 से उर्दू एवं अरबी तथा फारसी भाषा के संवर्धन के लिए कार्य कर रही है। + +1962. सरकार सभी भारतीय भाषाओं के अध्ययन हेतु भी वित्तीय सहायता प्रदान करती है। इस हेतु + +1963. लिए प्रशिक्षण भी देते हैं। + +1964. कार्यक्रम चलाए जाते हैं। यह अंग्रेजी शिक्षण में स्नातकोत्तर एवं डिप्लोमा जैसे कई पाठ्यक्रम और दूरवर्ती + +1965. सेंटर्स फार इंगलिश) को भी लागू करता है और इसके लिए सीआईईएफएल द्वारा राज्य सरकारों को + +1966. करके मूल्य-आधारित शिक्षा पर पर्याप्त जोर दिया गया है। + +1967. शत प्रतिशत अनुदान सहायता दी जाती है और इस सहायता की सीमा 10 लाख रूपये हैं। + +1968. उच्च/उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में संस्कृत शिक्षण हेतु सुविधा प्रदान करने, (घ) उच्च/उच्चतर + +1969. संस्कृत, पाली, अरबी तथा फारसी भाषा के लब्धप्रतिष्ठत विद्वानों को इन भाषाओं के संवर्धन करने + +1970. बादरायण व्यास सम्मान भी प्रारंभ किया गया है। + +1971. तथा अन्य लाभकारी परिस्थितियों के निर्माण को बढ़ावा देता है। + +1972. राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ (तिरूपति) में इंटरमीडिएट से लेकर विद्यावारिधी (पीएच.डी.) तक + +1973. पाठ्यक्रमों में डिप्लोमा पाठ्यक्रम प्रारंभ किया है। ये उपाधियां-विद्यावारिधी (पीएच.डी.) तथा मानद + +1974. के प्रतिभावान छात्रों को शत-प्रतिशत वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। इसके साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों के + +1975. भारत सरकार विभिन्न सांस्कृतिक/शैक्षिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों के अंतर्गत विदेशी सरकारों से + +1976. पूर्वोत्तर क्षेत्र में उच्च साक्षरता दर वाले समृद्ध जातीय सांस्कृतिक विरासत और भाषाई विभिन्नता वाले + +1977. अपनी स्थापना के बाद से पूर्वोत्तर क्षेत्र में शैक्षिक आधारभूत ढांचे के विकास हेतु 480.68 करोड़ रूपये + +1978. प्रशासनिक भवनों के निर्माण तथा प्रयोगशालाओं हेतु उपकरणों और पुस्तकों की खरीद इत्यादि से + +1979. दौरान अपने बजट से एनएलसीपीआर के अंतर्गत दिए गए आश्वासनों को पूरा करने के मद के अधीन + +1980. जनवरी 2006 तक माध्यमिक और उच्च शिक्षा विभाग तथा प्राथमिक शिक्षा और साक्षरता विभाग की + +1981. नवोदय विद्यालय खोलने के अपने लक्ष्य को पाने का प्रयास कर रही है। पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए 76 जनवि + +1982. विश्वविद्यालय एवं उच्च शिक्षा. + +1983. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग. + +1984. पर इन सरकारों और संस्थाओं की परामर्शदात्री संस्था के रूप में भी कार्य करता है। + +1985. आयोग अपने कोष से महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों को रखरखाव एवं विकास हेतु अनुदान आवंटन + +1986. इसके कार्यकारी अध्यक्ष होते हैं। + +1987. आधारित उद्यमों को बढ़ावा देना, बौद्धिक संपदा अधिकारों का संरक्षण, भारतीय उच्च शिक्षा का संवर्द्धन, + +1988. समीक्षा करती है और इतिहास के वैज्ञानिक लेखन को बढ़ावा देती है। नई दिल्ली स्थित यह परिषद शोध + +1989. की प्रगति की समीक्षा, उनका प्रायोजन और उनमें सहायता करने के साथ ही दर्शनशास्त्र और इससे + +1990. वैचारिक विकास और उसके अंतरविषयी दृष्टिकोण पर दृष्टि रखते हैं। + +1991. संस्थाओं और व्यक्तियों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है। + +1992. बढ़ावा देना है। + +1993. का प्रमुख उद्देश्य जनसंख्या के एक बड़े भाग तक उच्च शिक्षा की पहुंच का विस्तार करना, + +1994. इग्नू तृतीयक शिक्षा और प्रशिक्षण हेतु एक परीक्षणात्मक प्रणाली चलाता है। वह प्रणाली शिक्षा के + +1995. के नेटवर्क के आमने सामने के परामर्श के माध्यम से होती है। यह समयबद्ध निरंतर मूल्यांकन के साथ- + +1996. अध्ययन कार्यक्रमों में किया गया। + +1997. थी, जो अब 24 घंटे का चैनल है तथा छह लगातार प्रसारण करने की इसकी क्षमता है। इग्नू ने नवंबर, + +1998. करेगा और जनाकांक्षाएं पूरी करेगा। वर्ष 2005 में विश्वविद्यालय ने देशभर में स्थित अपने क्षेत्रीय + +1999. राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 (1992 में संशोधित) में समानता और सामाजिक न्याय के हित में शैक्षिक रूप + +2000. समय के साथ यह अनुभव किया गया कि इन सभी योजनाओं को एकीकृत रूप में क्रियान्वित + +2001. गया और जिसके तहत अल्पसंख्यक संस्थाएं अनुसूचित विश्वविद्यालय से स्वयं को संबद्ध कर सकती + +2002. प्रबंधन, वस्तु विज्ञान (आर्किटेक्चर), फार्मेसी इत्यादि आते हैं। मानव संसाधन विकास मंत्रालय स्नातक- + +2003. भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) बंगलौर, (च) भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी एवं प्रबंधन संस्थान + +2004. देश में भौतिक विज्ञान की शिक्षा और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए नए कदम उठाए गए हैं। + +2005. भौतिक विज्ञान की शिक्षा दी जाएगी। + +2006. के लिए कदम उठाया है। + +2007. इसमें से सबसे बड़ा हिस्सा 900 करोड़ रूपये विश्व बैंक सहायता प्राप्त-तकनीकी शिक्षा गुणवत्ता + +2008. भारत 1946 से संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) का सदस्य रहा है। + +2009. देना एवं यूनेस्को के कार्यों, विशेषकर कार्यक्रमों की तैयारी और इनमें क्रियान्वयन में भूमिका निभाना है। + +2010. संयोजक और संपर्क एजेंसी के रूप में कार्य करता है। यह क्षेत्र के राष्ट्रीय आयोगों और यूनेस्को के + +2011. जिसकी स्थापना 1957 में हुई थी। इसका कार्य (i) प्रकाशन, (ii) पुस्तक और पुस्तक पठन को प्रोत्साहन + +2012. नवंबर तक “राष्ट्रीय पुस्तक सप्ताह” भी मनाता है। + +2013. कॉपीराइट. + +2014. सरकार द्वारा कॉपीराइट समितियों का गठन भी किया जाता है। प्रौद्योगिकीय बदलावों को ध्यान में रखते + +2015. अर्द्ध न्यायिक निकाय है, जिसमें एक अध्यक्ष के अतिरिक्त कम से कम दो एवं अधिकतम 14 सदस्य + +2016. भारत में कॉपीराइट प्रवर्तन. + +2017. कदम उठाए हैं। इन कदमों में कॉपीराइट प्रवर्तन सलाहकार परिषद (सीईएसी) का गठन भी शामिल + +2018. कराने वाली एजेंसियों के बीच समन्वय को बढ़ावा देने के लिए राज्यों में नोडल अधिकारियों की + +2019. गया है। + +2020. 1961 में किये गये संशोधन के अनुसार इस संगठन को वाणिíय और उद्योग के औद्योगिक नीति और + +2021. पहली जनवरी 1995 को अस्तित्व में आया। उससे पहले सेवाओं पर किसी तरह का बहुपक्षीय + +2022. व्यापार पर आम समझौता (जीएटीएस) के तहत समझौता किया जाना है। समझौता वार्ता के उद्देश्य + +2023. जो राष्ट्रीय सीमाओं के पार जा सके, (ख) विदेशों में खपत सेवा में मुख्यत— विदेश जाने वाले छात्र + +2024. देशों की यात्रा करने में समर्थ हैं। + +2025. होंगी। + +2026. पहली पुस्तक ː जीवन को याद किया. + +2027. चढ़ना"' -- to go up, to climb, to rise, to mount -- -- Verb—मुझे ऊँचाइयों पर चढ़ना पसंद है। + +2028. + +2029. + +2030. ’भावप्रकाश’ के टीकाकार भी ’आयुर्वेद’ शब्द का इस प्रकार विशदीकरण करते हैं: + +2031. "इस आयुर्वेद का प्रयोजन स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना और रोगी व्यक्ति के रोग को दूर करना है।" + +2032. अर्थात् यह आयुर्वेद अनादि होने से, अपने लक्षण के स्वभावत: सिद्ध होने से, और भावों के स्वभाव के नित्य होने से शाश्वत यानी अनादि अनन्त है। + +2033. रोग का कारण :. + +2034. वैद्य के गुण :. + +2035. An individual/person who is in a state of equilibrium of body’s; + +2036. (स्वस्थ) शरीर के तीन स्तम्भ :. + +2037. रोगोत्पत्ति में शरीर और मन के पारस्परिक सम्बन्ध को स्थापित करते हुए कहा है कि जैसा मन होगा वैसा शरीर तथा जैसा शरीर होगा वैसा मन। + +2038. आयुर्वेद में यह भी कहा गया है- + +2039. चरक संहिता के कर्ता महर्षि अग्निवेश के सहाध्यायी महर्षि भेड़ ने कहा हैः- + +2040. मधुमेग रोग के बारे में सदियों पहले भी लोगों को जानकारी थी। आयुर्वेद में इसका विवरण ‘मधुमेह’ या ‘मीठा पेशाब’ के नाम से मिलता है। आयुर्वेदिक चिकित्सकों को इसका ज्ञान 3000 वर्ष पहले से ही था। भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सकों-सुश्रुत एवं चरक- ने इस रोग के बारे में एवं इसके प्रकारों के बारे में लिखा है- + +2041. मंद गति से सौ कदम चलें शतपावली के संदर्भ में शास्त्र कहता है - + +2042. पित्त, कफ, देह की अन्य धातुएँ तथा मल-ये सब पंगु हैं, अर्थात् ये सभी शरीर में एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्वयं नहीं जा सकते। इन्हें वायु ही जहाँ-तहाँ ले जाता है, जैसे आकाश में वायु बादलों को इधर-उधर ले जाता है। अतएव इन तीनों दोषों-वात, पित्त एवं कफ में वात (वायु) ही बलवान् है; क्योंकि वह सब धातु, मल आदि का विभाग करनेवाला और रजोगुण से युक्त सूक्ष्म, अर्थात् समस्त शरीर के सूक्ष्म छिद्रों में प्रवेश करनेवाला, शीतवीर्य, रूखा, हल्का और चंचल है। + +2043. शोध का निष्कर्ष यह है कि जिस मात्रा में पाठक सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से संबंधित पाठ्य सामग्री और विषयवस्तु को पढ़ना चाहते हैं, पत्र-पत्रिकाओं में अपेक्षात्या काफी कम संख्या में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से संबंधित समाचार, विश्लेषण, लेख, चित्र संपादकीय व संपादक के नाम पत्र प्रकाशित होते हैं। यह असंतुलन इस शोध में बार-बार उभर कर सामने आया है। पत्रकारिता और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद में एक अन्योन्याश्रित संबंध है। ऊपर किए गए विश्लेषण से भी यह साफ हो जाता है कि राष्ट्रवाद वास्तव में सांस्कृतिक ही होता है। राष्ट्र का आधार संस्कृति ही होती है और पत्रकारिता का उद्देश्य ही राष्ट्र के विभिन्न घटकों के बीच संवाद स्थापित करना होता है। देश में चले स्वाधीनता संग्राम के दौरान ही भारतीय पत्रकारिता का सही स्वरूप विकसित हुआ था और हम देख सकते हैं कि व्यावसायिक पत्रकारिता की तुलना में राष्ट्रवादी पत्रकारिता ही उस समय मुख्यधारा की पत्रकारिता थी। स्वाधीनता के बाद धीरे-धीरे इसमें विकृति आनी शुरू हो गई। पत्रकारिता का व्यवसायीकरण बढ़ने लगा। देश के राजनीतिक और सामाजिक ढांचे में भी काफी बदलाव आ रहा था। स्वाभाविक ही था कि पत्रकारिता उससे अछूती नहीं रह सकती थी। फिर देश में संचार क्रांति आई और पहले दूरदर्शन और फिर बाद में इलेक्ट्रानिक चैनलों पदार्पण हुआ। इसने जहां पत्रकारिता जगत को नई ऊंचाइयां दीं, वहीं दूसरी ओर उसे उसके मूल उद्देश्य से भी भटका दिया। धीरे-धीरे विचारों के स्थान पर समाचारों को प्रमुखता दी जाने लगी, फिर समाचारों में सनसनी हावी होने लगी और आज समाचार के नाम पर केवल और केवल सनसनी ही बच गई है। भाषा और तथ्यों की बजाय बाजार और समीकरणों पर जोर बढ़ गया है। ऐसे में यदि पत्रकारिता में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की उपेक्षा हो रही है तो यह कोई हैरानी का विषय नहीं है। + +2044. सुशासन और भारतीय चिन्तन: + +2045. जब हमारे देश में अंग्रेजों का शासन था तो सभी क्रान्तिकारियों का मानना था कि भारत की गरीबी, भुखमरी और बेकारी तभी ख़त्म होगी जब अंग्रेज यहाँ से जायेंगे और हम अपनी व्यवस्था लायेंगे। उनका संकल्प था कि उन सब तंत्रों को उखाड़ फेकेंगे जिससे गरीबी, बेकारी, भुखमरी पैदा हो रही है। लेकिन हुआ क्या? हमारे देश में आज भी वही व्यवस्था चल रही है जो अंग्रेजों ने गरीबी, बेकारी और भुखमरी पैदा करने के लिए चलाया था। + +2046. वैसे तो पाश्चात्य चिंतन में भी राज्य व्यवस्था की शुरूआत की अनेक कल्पनाएं की जाती हैं, परंतु अपने देश में महाभारत में इसका बड़ा ही स्पष्ट वर्णन आता है। महाभारत के शांतिपर्व का एक अत्यंत ही प्रसिद्ध श्लोक है : + +2047. जब पुथु ने इन सब बातों को स्वीकार किया तो इसका राज्याभिषेक कर दिया गया। पृथु ने बहुत वर्ष तक राज्य किया। + +2048. राजा को निरंकुश होने से रोकने के लिए भारतीय चिंतन में धर्मसभा की व्यवस्था थी। धर्मसभा का काम था समाज के लिए उचित धर्म की व्याख्या करना जिसे हम आज की भाषा में कानून बनाना कह सकते हैं। राजा का काम केवल उसे लागू करना और उसका उल्लंघन करने वालों को दंडित करना मात्र था। इससे राजा के ऊपर धर्मसभा का अंकुश हुआ करता था। इसके अतिरिक्त भारतीय चिंतन और व्यवस्था में विद्वानों की महत्ता सदैव राजा से अधिक मानी गई। इसलिए राजा को ब्राह्मणों यानी कि विद्वानों का संरक्षक घोषित किया गया। अथर्व वेद में तीन प्रकार की सभा और उनके द्वारा शासन के संचालन का वर्णन आता है। ये तीनों सभाएं एक दूसरे के नियमन का कार्य करें, वहां ऐसी अपेक्षा की गई है और तीनों सभाओं पर प्रजा की निगरानी हो, यह भी कहा गया है। मनु राजा के लिए कठोरतम दंड की व्यवस्था करते हैं। मनु कहते हैं कि समान अपराध के लिए राजपुरूष को साधारण मनुष्य की तुलना में हजार गुणा अधिक दंड होना चाहिए। राजपुरूष से मनु का अभिप्राय राजा और उसके सहयोगियों समेत सभी राज कर्मचारियों से है। भीष्म, याज्ञवल्क्य, आचार्य चाणक्य जैसे अन्य भारतीय राजनीतिक विचारकों ने भी अधर्माचरण करने पर राजा व राजपुरूषों के लिए कठोर दंड की व्यवस्था दी है। + +2049. + +2050. विश्वव्यापक है महासिद्धन के लक्ष्य है तिन प्रति हमारे आदेश
+ +2051. स्वमुख सौं उपनिषद् प्रगट अरै है। गो कहियै इन्द्रिय तिनकी
+ +2052. महापंचभूत अरु तिनही पञ्चभूतनमय ईश्वर अरु जीवादि को/ई
+ +2053. कोई अनिर्वचनीय पदार्थ था॥ सो कर्त्ता सो कर्त्ता सो कर्त्ता कौन
+ +2054. आवे है। साकार करता होय तौ साकार को व्यापकता नहीं है
+ +2055. स्वत्ः भयो॥ इह प्रकार अहं कर्त्ता सिद्ध तूं जान ञ्छह करता
+ +2056. सन्तोषनाथ विचित्र विश्व के गुन तिन सों असंग रहत भयौ, यातैं
+ +2057. लाये माया कौ लावण्य तांसौ असंग जोगधर्म \\-\\- द्रष्टा रमण
+ +2058. कारन कहतु हैं। दोय मार्ग विश्व मै प्रगट कियो है कुल अरु अकुल।
+ +2059. भयौ तामै ही मो एक तैं मैं विशेष व्यवहार के हेतु नव
+ +2060. श्री आदिनाथ स्वरूप। अनन्तर मत्स्येन्द्र नाथ। ता पाछ तत् पुत्र
+ +2061. दण्डनाथ भयौ॥
+ +2062. खेचरी मुद्रा बाह्यवेषरी कर्ण मुद्रा मुद्राशक्ति की निशक्ति
+ +2063. अध्यात्म वासं वानप्रस्थं स सर्वेच्छा विन्यासं संन्यासं आदि
+ +2064. करियौ मै आवतु है अरु समस्त वासना रहित भए है अन्तह्करण
+ +2065. संतान दोय प्रकार कौ नाद रूप विन्दु, विन्दु नाद रूप। शिष्य
+ +2066. सो अवधूत जोग जोग मत सौं साधन अष्टाश्ण्ग जोग। आदि ब्राह्मणा
+ +2067. रूप अत्याश्रमी गुरु अवधूत जोग साधन मुमुक्षु अधिकारी बन्ध
+ +2068. वस्तुएं जिन्हें हम अपने दैनिक जीवन में प्रयोग करते हैं। भले ही वे आवश्यक हों जैसे भोजन, कपड़े, फर्नीचर, बिजली का सामान या दवाइया अथवा आराम और मनोरंजन की वस्तुएँ आदि। इनमें से कई भूमंडलीय आकार के नेटवर्क से हम तक पहुचती हैं। कच्चा माल किसी एक देश से निकाला गया हो सकता है। इस कच्चे माल पर प्रक्रिया करने का ज्ञान किसी दूसरे देश के पास हो सकता है और इस पर वास्तविक प्रक्रिया किसी अन्य स्थान पर हो सकती है, और हो सकता है कि उत्पादन के लिए पैसा एक बिल्कुल अलग देश से आया हो, ध्यान दीजिए कि विश्व के विभिन्न भागों में बसे लोग किस प्रकार एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। उनकी परस्पर निर्भरता केवल वस्तुओं के उत्पादन और वितरण तक ही सीमित नहीं है। वे एक दूसरे से शिक्षा, कला और साहित्य के क्षेत्र में भी प्रभावित होते हैं। देशों और लोगों के बीच व्यापार, निवेश, यात्रा, लोक संस्कॄति और अन्य प्रकार के नियमों से अंतर्क्रिया भूमंडलीकरण की दिशा में एक कदम है। + +2069. भूमंडलीकरण दो क्षेत्रों पर बल देता है — उदारीकरण और निजीकरण। उदारीकरण का अर्थ है औद्योगिक और सेवा क्षेत्र की विभिन्न गतिविधयों से संबंधत नियमों में ढील देना और विदेशी कंपनियों को घरेलू क्षेत्र में व्यापारिक और उत्पादन इकाइया लगाने हेतु प्रोत्साहित करना। निजीकरण के माध्यम से निजी क्षेत्र की कंपनियों को उन वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन की अनुमति प्रदान की जाती है, जिनकी पहले अनुमति नहीं थी। इसमें सरकारी क्षेत्र की कंपनियों की संपत्ति को निजी क्षेत्र के हाथों बेचना भी सम्मिलित है। भूमंडलीकरण के आधुनिक रूपों का प्रारंभ दूसरे विश्व युद्ध से हुआ है परंतु इसकी ओर अधिक ध्यान गत 20 वषों में गया है। आधुनिक भूमंडलीकरण मुख्यत: विकसित देशों के इर्द-गिर्द केंद्रित है। ये देश विश्व के प्राकॄतिक संसाधनों का मुख्य भाग खर्च करते हैं। इन देशों के लोग विश्व जनसंख्या का 20 प्रतिशत हैं परंतु वे पृथ्वी के प्राकॄतिक संसाधनों के 80 प्रतिशत से अधिक भाग का उपभोग करते हैं। उनका नवीनतम प्रौद्योगिकी पर नियंत्रण है। विकासशील देश प्रौद्योगिकी, पूजी, कौशल और हथियारों के लिए इन देशों पर निर्भर हैं। + +2070. राजनीतिक प्रभाव : भूमंडलीकरण सभी प्रकार की गतिविधयों को नियमित करने की शक्ति सरकार के स्थान पर अंतर्राष्टरीय संस्थानों को देता है, जो अप्रत्यक्ष रूप से बहुराष्टरीय कंपनियों द्वारा नियंत्रित होते हैं। उदाहरण के लिए, जब एक देश किसी अन्य देश की व्यापारिक गतिविधयों के साथ जुड़ा होता है तो उस देश की सरकार उन देशों के साथ अलग-अलग समझौते करती है। यह समझौते अलग-अलग देशों के साथ अलग-अलग होते हैं। अब अंतर्राष्टरीय संगठन जैसे विश्व व्यापार संगठन सभी देशों के लिए नियमावली बनाता है और सभी सरकारों को ये नियम अपने-अपने देश में लागू करने होते हैं। इसके साथ ही भूमंडलीकरण कई सरकारों को निजी क्षेत्र की सुविधा प्रदान करने हेतु कई विधायी कानूनों और संविधान बदलने के लिए विवश करता है। प्राय: सरकारें कामगारों के अधिकारों की सुरक्षा करने वाले और पर्यावरण संबंधी कुछ नियमों को हटाने पर विवश हो जाती हैं। + +2071. अत: भूमंडलीकरण एक अनुत्क्रिमणीय प्रक्रिया है। इसका प्रभाव विश्व में सर्वत्र देखा जा सकता है। विश्व के एक भाग के लोग अन्य भाग के लोगों के साथ अंतर्क्रिया कर रहे हैं। नि:संदेह इस प्रकार के व्यवहार की अपनी समस्याए होती हैं। लेकिन हमें इसके उज्ज्वल पक्ष की ओर देखना चाहिए और हमें अपने लोगों के हित में काम करना चाहिए। + +2072. भारतीय इतिहास के औपनिवेशिक संस्करण की प्रक्रिया को कम्युनिस्टों और वामपंथियों ने जारी रखा, मुगल काल की महिमा वर्णित की और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक चयनात्मक तस्वीर पेश की। + +2073. ऋग्वेद के अनुसार, आर्य शब्द को एक अच्छे योग्य व्यक्ति के रूप में वर्णित किया गया है जो अपने देश की परंपराओं का सम्मान करता है, जो सामाजिक और व्यावहारिक तौर पर श्रेस्ठ है और विधिवत यज्ञ का संस्कार करता है । एक धार्मिक व्यक्ति  है। + +2074. कांग्रेस शासन के दौरान साम्यवादी और वामपंथी इतिहासकार औपनिवेशिक इतिहास के साथ जारी रहे: + +2075. सिख साम्राज्य: + +2076. हमारे बच्चों को भ्रमित किया जा रहा है कि क्रूर मुगल शासक हिंदुओं के लिए उदार थे और लाखों हिंदुओं की नरसंहार और उत्पीड़न को छिपा दिया है ।  यह दुनिया की सबसे बड़ा विध्वंसकारी त्रासदी  है जो कभी हुआ था। और हमारे कम्युनिस्ट और हिंदूविरोधी इतिहासकारों ने बहुत सुन्दरता से इसे छिपा दिया है। और इस तरह के भयानक शासकों की महिमा वर्णित करते रहे – जो वास्तव में मानवता पर एक धब्बा हैं । + +2077. प्रक्रियाएं चालू हो गई थीं। इनमें से भारतवासियों के लिए कुछ यदि लाभकर रहीं, तो काफी कुछ हानिकर भी। फिर भी वे चलाई गईं और उन्हें मान्यता भी मिली क्योंकि वारेन हेस्टिंग्स के समय तक सत्ता की बागडोर अंग्रेजों के हाथों में पूरी तरह से पहुँच चुकी थी और देश में सभी कार्य उनकी ही इच्छाओं और + +2078. इतिहास-लेखन के लिए अंग्रेजों के प्रयास. + +2079. विलियम जोन्स द्वारा निर्धारित मानदण्ड. + +2080. इतिहास-लेखन में धींगामुस्ती. + +2081. लौटें, भारतीय इतिहास का विकृतीकरण + +2082. कम्पनी सरकार ने अपने उद्देश्य की प्राप्ति के निमित्त एक बहुमुखी योजना बनाई। इस योजना के अन्तर्गत पाश्चात्य चिन्तकों और वैज्ञानिकों ने, इतिहासकारों और शिक्षा-शास्त्रियों ने, लेखकों और अनुवादकों ने, अंग्रेज प्रशासकों और ईसाई धर्म प्रचारकों ने भारत की प्राचीनता, व्यापकता, अविच्छिन्नता और एकात्मता को ही नहीं, समाज में ब्राह्मणों यानीविद्वानों के महत्त्व और प्रतिष्ठा को नष्ट करने के उद्देश्य से एक सम्मिलित अभियान चलाया। इस अभियान के अन्तर्गत ही यह प्रचारित किया गया कि भारतीय सभ्यता इतनी प्राचीन नहीं है जितनी कि वह बताईजाती है, रामायण और महाभारत की घटनाएँ कपोल-कल्पित हैं - वे कभी घटी ही नहीं, आदि-आदि। सत्ता में रहने के कारण उन्हें इस प्रचार का उचित लाभ भी मिला। अंग्रेजी सत्ता से प्रभावित अनेक भारतीय, जिनमें वेतनभोगी तथा धन और प्रतिष्ठा के लोलुप संस्कृत के कतिपय विद्वान भी सम्मिलित थे, ‘हिज मास्टर्स वॉयस‘ के अनुरूप जमूरों की तरह नाचने लगे। अंग्रेजों के शासनकाल में सत्ता से व्यक्तिगत स्तर पर पद-प्रतिष्ठा, मान-सम्मान, धन-सम्पदा आदि की दृष्टि से लाभ उठाने के लिए भारत के एक विशिष्ट वर्ग द्वारा उनकी चाटुकारिता के लिए किए गए प्रयासों की तो बात ही क्या स्वाधीनता के बाद भी भारत में गुलामी की मानसिकता वाले लोगों की कमी नहीं रही, न तो प्रशासनिक स्तर पर, न शिक्षा के स्तर पर, न लेखन के स्तर पर और न ही चिन्तन या दर्शन के स्तर पर। देशभर में बड़े पैमाने पर व्याप्त इस मानसिकता को अनुचित मानते हुए भारत के पूर्व राष्ट्रपति एवं आधुनिक भारत के प्रसिद्ध दार्शनिक डॉ. राधाकृष्णन ने पराधीनता की मानसिकता को धिक्कारते हुए एक स्थान पर लिखा है - + +2083. तभी पता चला। इस संदर्भ में इंग्लैण्ड के लॉर्ड मैकालेतथा मोनियर विलियम्स और जर्मन विद्वान मैक्समूलर के निम्नलिखित विचार उल्लेखनीय हैं- + +2084. encircled, undermined and finally stormed by the soldiers of the cross, the victory of christiannity must be signal and complete. + +2085. भारत सचिव (डयूक ऑफ आर्गाइल) को : ‘भारत का प्राचीन धर्म नष्टप्राय है और यदि ईसाई धर्म उसका स्थान नहीं लेता तो यह किसका दोष होगा ?‘ + +2086. अंग्रेजी सत्ता भारत में ईसाइयत फैलाने के लिए कितनीउत्सुक थी, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण निम्नलिखित उद्धरणों से प्राप्त होता है - + +2087. विकृतीकरण की स्वीकारोक्ति. + +2088. लौटें, भारतीय इतिहास का विकृतीकरण + +2089. में बदलाव लाया गया। शिक्षा में लाए गए बदलाव के फलस्वरूप संस्कृत भाषा के विकास में रुकावटें आती गईं। फलतः उसमें साहित्य-निर्माण और विविध प्रकार के वैज्ञानिक आदि विषयों में लेखन की अविच्छिन्न धारा अवरुद्ध होती गई। परिणामस्वरूप भारत की शिक्षा, साहित्य, इतिहास, ज्ञान-विज्ञान आदि के लेखन + +2090. संस्कृत साहित्य और भारतीय संस्कृति के प्रचार से ईसाई पादरियों में बौखलाहट. + +2091. उक्त लेखकों के अलावा भी प्रिंसेप, जेम्स लीगे, डॉ.यूले, लॉसन, मैकालिफ आदि अन्य अनेक लेखक भी आगे आए, जिन्होंने अपनी-अपनी रचनाओं केमाध्यम से भारत के इतिहास और साहित्य के क्षेत्रों में घुसपैठ करके उसे अधिक से अधिक भ्रष्ट करके अप्रामाणिक, अविश्वसनीय और अतिरंजित की कोटि में डालने का प्रयास किया। + +2092. भारत के इतिहास में विकृतियाँ की गईं, कहाँ?: + +2093. सामने खड़े वहशियों की भीड़ अपनी वासनामयी आँखों से उनके अंगों की नाप-जोख कर रही थी.. ! कुछ मनबढ़ आंखों के स्थान पर हाथों का प्रयोग भी कर रहे थे.. सूनी आँखों से अजनबी शहर और अनजान लोगों की भीड़ को निहारती उन स्त्रियों के समक्ष हाथ में चाबुक लिए क्रूर चेहरे वाला घिनौने व्यक्तित्व का एक गंजा व्यक्ति खड़ा था.. मूंछ सफाचट.. बेतरतीब दाढ़ी उसकी प्रकृतिजन्य कुटिलता को चार चाँद लगा रही थी.. ! + +2094. रणवीर एक राजपू"तिरछे अक्षरtext" + +2095. (क) अक्षर परिवर्तन + +2096. (ख) शब्द परिवर्तन + +2097. (ग) अर्थ परिवर्तन + +2098. (ङ) प्रक्षिप्त अंश जोड़ना + +2099. -- (‘पं. कोटावेंकटचलम कृत क्रोनोलोजी ऑफ कश्मीर हिस्ट्री रिकन्सट्रक्टेड‘, पृ. 203-208) + +2100. मुख्य कारण ‘येनकेन प्रकारेण‘ भारतीय इतिहास की प्राचीनता को कम करके आंकने का रहा। + +2101. प्रद्योत 5 5 138 138 + +2102. कण्व 4 4 345 85 + +2103. मौर्य 137 (316) + +2104. �राम साठे कृत, ‘डेट्स ऑफ बुद्धा‘, पृ. 69 के आधार पर। + +2105. प्राचीन सम्वतों में. + +2106. यहाँ यह उल्लेखनीय है कि सम्वतों में की गई इन गड़बड़ियों के कारण भारतीय कालगणना में बहुत बड़ी मात्रा में बिगाड़ तो आया ही साथ ही इनके कारण अनेक ऐतिहासिक भ्रान्तियाँ भी पैदा हो गईं। + +2107. प्राचीन इतिहास को जानने का एक प्रमुख आधार किसी भी स्थान विशेष से उत्खनन में प्राप्त पुरातात्त्विक सामग्री, यथा- ताम्रपत्र तथा अन्य प्रकार के अभिलेख, सिक्के, मोहरें तथा प्राचीन नगरों, किलों, मकानों, मृद्भाण्डों, मन्दिरों, मूर्तियों, स्तम्भों आदि के अवशेषों, को माना जाता है। ऐतिहासिक महत्त्व के क्रम + +2108. (1). कई प्रामाणिक अभिलेखों को जबरदस्ती अप्रामाणिकसिद्ध करने का प्रयास किया गया। इसके लिए 3 मार्ग अपनाए गए- + +2109. भारत के इतिहास को आधुनिक रूप में लिखने की प्रक्रिया में पाश्चात्य विद्वानों ने इतिहास को इतना बदल या बिगाड़ दिया कि वह अपने मूल रूप को ही खो बैठा। इसके लिए जहाँ कम्पनी सरकार का राजनीतिक स्वार्थ बहुत अंशों तक उत्तरदायी रहा, वहीं भारत के इतिहास को आधुनिक रूप में लिखने के प्रारम्भिक दौर के पाश्चात्य लेखकों की शिक्षा-दीक्षा,रहन-सहन, खान-पान आदि का भारतीय परिवेश से एकदम भिन्न होना भी एक प्रमुख कारण रहा। उनके मन और मस्तिष्क पर अपने-अपने देश की मान्यताओं, धर्म की आस्थाओं और समाज की भावनाओं का प्रभाव पूरी तरह से छाया हुआ था। उनकी सोच एक निश्चित दिशा लिए हुए थी, जो कि भारतीय जीवन की मान्यताओं, भावनाओं, आस्थाओं और विश्वासों से एकदम अलग थी। व्यक्ति का लेखन-कार्य उसकेविचारों का मूर्तरूप होता है। अतः भारतीय इतिहास का लेखन करते समय पाश्चात्य इतिहास लेखकों/विद्वानों की मान्यताएँ, भावनाएँ और आस्थाएँ उनके लेखन में पूर्णतः प्रतिबिम्बित हुई हैं। + +2110. ज्ञान से अनभिज्ञमानकर भारत के प्राचीन विद्वानों को कालगणना-ज्ञान से अनभिज्ञमानकर भारत के प्राचीन विद्वानों को कालगणना-ज्ञान से अनभिज्ञमानकर पाश्चात्य इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास की प्राचीन तिथियों का निर्धारण करते समय यह बात बार-बार दुहराई है कि प्राचीन काल में भारतीय विद्वानों के पास तिथिक्रम निर्धारित करने की कोई समुचित व्यवस्था नहीं थी। कई पाश्चात्य विद्वानों ने तो यहाँ तक कह दिया है कि प्राचीन काल में भारतीयों का इतिहास-ज्ञान ही ‘शून्य‘ था। उन्हें तिथिक्रम का व्यवस्थित हिसाब रखना आता ही नहीं था। इसीलिए उन्हें सिकन्दर के भारत पर आक्रमण से पूर्व की विभिन्न घटनाओं के लिए भारतीय स्रोतों के आधार पर बनने वाली तिथियों को नकारना पड़ा किन्तु उनका यह कहना ठीक नहीं है। कारण ऐसा तो उन्होंने जानबूझकर किया था क्योंकि, उन्हें अपनी काल्पनिक काल-गणना को मान्यता जो दिलानी थी। + +2111. विभिन्न पुराण- पौराणिक कालगणना काल की भाँति अनन्त है। यह बहुत ही व्यापक है। इसके अनुसार कालगणना को दिन, रात, मास, वर्ष, युग, चतुर्युग, मन्वन्तर, कल्प, सृष्टिकर्ता ब्रह्मा की आयु आदि में विभाजित किया गया है। यही नहीं, इसमें मानव के दिन, मास आदि देवताओं के दिन, मास आदि तथा ब्रह्मा के दिन, मास आदि से भिन्न बताए गए हैं। एक कल्प में एक हजार चतुर्युगी होती हैं। एक हजार चतुर्युगियों में 14 मन्वन्तर, यथा- (1) स्वायंभुव, (2) स्वारोचिष, (3) उत्तम (4) तामस (5) रैवत (6) चाक्षुष (7) वैवस्वत (8) सार्वणिक (9) दक्षसावर्णिक (10) ब्रह्मसावर्णिक (11) धर्मसावर्णिक (12) रुद्रसावर्णिक (13) देवसावर्णिक (14) इन्द्रसावर्णिक होते हैं। हर मन्वन्तर में 71 चतुर्युगी होती हैं। एक चतुर्युगी (सत्युग, त्रेता, द्वापर और कलियुग) में 12 हजार दिव्य या देव वर्ष होते हैं। दिव्य वर्षों के सम्बन्ध में श्रीमद्भागवत के 3.11.18 में ‘दिव्यैर्द्वादशभिर्वर्षैः‘, मनुस्मृति के 1.71में ‘एतद् द्वादशसाहस्रं देवानां युगम्‘, सूर्य सिद्धान्त के 1.13 में ‘मनुष्यों का वर्ष देवताओं का दिन-रात होता है‘ उल्लेखनीय हैं। कई भारतीय विद्वान भी दिव्य या देव वर्ष की गणना को उचित नहीं ठहराते। वे युगों के वर्षों की गणना को सामान्य वर्ष गणना के रूप में लेते हैं किन्तु यह ठीक नहीं जान पड़ता क्योंकि यदि ऐसा होता तो आज कलि सम्वत 5109 कैसे हो सकता था ? क्योंकि कलि की आयु तो 1200 वर्ष की ही बताई गईहै। निश्चित ही यह (1200) दिव्य या देव वर्ष हैं। + +2112. आज के विद्वान प्राचीन काल की उन बातों को, जिनकी पुष्टि के लिए उन्हें पुरातात्त्विक आदि प्रमाण नहीं मिलते, मात्र ‘माइथोलॉजी‘ कहकर शान्त हो जाते हैं। वे उस बात की वास्तविकता को समझने के लिए उसकी गहराई में जाने का कष्ट नहीं करते। अंग्रेजी का ‘माइथोलॉजी‘ शब्द ‘मिथ‘ से बना है। मिथ का अर्थ है - जो घटना वास्तविक न हो अर्थात कल्पित या मनगढ़ंत ऐसा कथानक जिसमें लोकोत्तर व्यक्तियों, घटनाओं और कर्मों का सम्मिश्रण हो। + +2113. पाश्चात्य इतिहासकारों ने भारत के इतिहास को आधुनिक रूप में लिखते समय यूनान, चीन, अरब आदि देशों के साहित्यिक ग्रन्थों, यात्रा-विवरणों, जनश्रुतियों आदि का पर्याप्त सहयोग लिया है, इनमें से यहाँ यूनान देश के साहित्य आदि पर ही विचार किया जा रहा है, कारण सर विलियम जोन्स ने भारतीय इतिहास-लेखन की प्रेरणा देते समय जिन तीन मानदण्डों का निर्धारण किया था, वे मुख्यतः यूनानी साहित्य पर आधारित थे। + +2114. लम्बाई - मेगस्थनीज-16 हजार स्टेडिया, प्लिनी-22,800 स्टेडिया, डायोडोरस-28 हजार स्टेडिया, + +2115. (ग) भारत के तत्कालीन निवासियों के ब्योरे - यहाँ के मनुष्य अपने कानों में सोते हैं, मनुष्यों के मुख नहीं होते, मनुष्यों की नाक नहीं होती, मनुष्यों की एक ही आँख होती है, मनुष्यों के बड़े लम्बे पैर होते हैं, मनुष्यों के अंगूठे पीछे की ओर फिरेरहते हैं आदि। + +2116. �* डायोडोरस का कहना है कि घायल पुरु सिकन्दर के कब्जे में आ गया था और उसने उपचार के लिए उसे भारतीयों को लौटा दिया था। + +2117. पुरु के साथ हुए सिकन्दर के युद्ध के यूनानी लेखकों ने जिस प्रकार के वर्णन किए हैं, उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि यूनानी लेखक अपने गुण गाने में ज्यादा विश्वास रखते थे और उसमें माहिर भी ज्यादा थे। + +2118. -- (‘एनशिएन्ट ज्योग्रेफी ऑफ इण्डिया‘ (1924) पृ. 371 - पं. कोटावेंकटचलम कृत ‘क्रोनोलोजी ऑफ नेपाल हिस्ट्री रिकन्सट्रक्टेड‘ पृ. 20 पर उद्धत) + +2119. चीनी यात्री + +2120. इत्सिंग - इत्सिंग ने नालन्दा में 675 से 685 ई. तक रहकर लगभग दस वर्ष तक अध्ययन किया था। इस अवधि में उसने 400 ग्रन्थों का संकलन भी किया था। 685 ई. में उसने अपनी वापसी यात्रा शुरू की। मार्ग में रुकता हुआ वह 689 ई. के सातवें मास मेंकंग-फूं पहुँचा। इत्सिंग ने अपने यात्रा विवरण पर एक ग्रन्थ लिखा था, जिसे 692 ई. में ‘श्रीभोज‘ (सुमात्रा में पलम्बंग) से एक भिक्षुक के हाथ चीन भेज दिया था। जबकि वह स्वयं 695 ई. के ग्रीष्म काल में ही चीन वापस पहुँचा था। + +2121. यूनानी भाषा -इसके संदर्भ में पूर्व पृष्ठों में विचार किया जा चुका है। + +2122. 'चीनी यात्री फाह्यान का यात्रा-विवरण' के अनुवाद में श्रीजगन्मोहन वर्मा ने पुस्तक की भूमिका के पृष्ठ 3 पर लिखा है कि ‘‘इस अनुवाद में अंग्रेजी अनुवाद से बहुत अन्तर देख पड़ेगा, क्योंकि मैंने अनुवाद को चीनी भाषा के मूल के अनुसार ही, जहाँ तकहो सका है, करने की चेष्टा की है‘‘ अर्थात इन्हें अंग्रेजी का जो अनुवाद हुआ है, वह ठीक नहीं लगा। यदिउसमें गड़बड़ी नहीं होती तो वर्मा जी को ऐसा लिखने की आवश्यकता ही नहीं थी। उन्होंने पुस्तक के अन्दर एक दो नहीं, कई स्थानों पर शब्दों के अनुवाद का अन्तर तो बताया ही है, एक दो स्थानों पर ऐसे उल्लेख भी बताए हैं जो मूल लेख में थे ही नहीं और अनुवादक ने डाल दिए थे। + +2123. आधुनिक वैज्ञानिकों का मत है कि सृष्टि के आरम्भ मेंसभी प्राणी और वस्तुएँ अपनी प्रारम्भिक स्थिति में थीं। धीरे-धीरे ही उनका विकास हुआ है।यह बात सुनने में बड़ी सही, स्वाभाविक और वास्तविक लगती है लेकिन जब यह सिद्धान्त मानव के विकास पर लागू करके यह कहा जाता है कि मानव का पूर्वज वनमानुष था और उसका पूर्वज बन्दर था और इस प्रकार से जब आगे और आगे बढ़कर कीड़े-मकौड़े ही नहीं ‘लिजलिजी‘ झिल्ली तक पहुँचा जाता है तो यह कल्पनाबड़ी अटपटी सी लगती है। चार्ल्स डार्विन ने 1871 ई. में अपने ‘दि डिसैण्ड ऑफ मैन‘ नामक ग्रन्थ में ‘अमीबा‘ नाम से अति सूक्ष्म सजीव प्राणी से मनुष्य तक की योनियों के शरीर की समानता को देखकर एक जाति से दूसरी जाति के उद्भव की कल्पना कर डाली। जबकि ध्यान से देखने पर यह बात सही नहीं लगती क्योंकि भारतीय दृष्टि से सृष्टि चार प्रकार की होती है - अण्डज, पिण्डज (जरायुज), उद्भिज और स्वेदज- तथा हर प्रकार की सृष्टि का निर्माण और विकास उसके अपने-अपने जातीय बीजों में विभिन्न अणुओं के क्रम और उनके स्वतः स्वभाव के अनुसार होता है। एक प्रकार की सृष्टि का दूसरे प्रकार की सृष्टिमें कोई दखल नहीं होता। इसे इस प्रकार से भी समझा जा सकता है कि एक गौ से दूसरी गौ और एक अश्व से दूसरा अश्व तो हो सकता है किन्तु गौ और अश्व के मेल से सन्तति उत्पन्न नहीं हो सकती। हाँ, अश्व और गधे अथवा अश्व और जेबरा, जो कि एक जातीय तत्त्व के हैं, के मेल से सन्तति हो सकती है, अर्थात कीट से कीट, पतंगे से पतंगे, पक्षी से पक्षी, पशु से पशु और मानव से मानव की ही उत्पत्ति होती है। कीट, वानर या वनमानुष से मनुष्य की उत्पत्ति नहीं हो सकती क्योंकि इनके परस्पर जातीय तत्त्व अथवा बीजों के अणुओं के क्रम अलग-अलग हैं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि एक जाति केबीजों में विभिन्न अणुओं का एक निश्चित क्रम रहता है। यह क्रम बीज के स्वतः स्वभाव से अन्यत्त्व को प्राप्त नहीं होता। + +2124. प्राचीन इतिहास को जानने का एक प्रमुख आधार किसी भी स्थान विशेष से उत्खनन में प्राप्त पुरातात्त्विक सामग्री, यथा- ताम्रपत्र तथा अन्य प्रकार के अभिलेख, सिक्के, मोहरें और प्राचीन नगरों, किलों, मकानों, मृदभाण्डों, मन्दिरों, स्तम्भों आदि के अवशेष भी हैं। + +2125. हड़प्पा-पूर्व सभ्यता की खोज- इस दृष्टि से पाकिस्तान स्थित क्वेटाघाटी के किलीगुज मुहम्मद, रानी घुंडई, आम्री वस्ती, कोट दीजी और भारत में गंगा की घाटी में आलमगीरपुर, गुजरात में लोथल, रंगपुर, मोतीपीपली आदि, राजस्थान में कालीवंगन, पंजाब-हरियाणा में रोपड़ तथा मध्यप्रदेश में क ई स्थानों की खुदाइयों में मिली सामग्री हड़प्पा पूर्व की ओर ले जा रही है। धोलावीरा की खुदाई में तोएक पूरा विकसित नगर मिला है, जिसमें पानी की उपलब्धी के लिए बांध आदि की तथा जल-निकासी के लिए नालियों की सुन्दर व्यवस्था के साथ भवन आदि बहुत हीपरिष्कृत रूप में वैज्ञानिक ढंग से बने हुए मिले हैं। एक अभिलेख भी मिला है जो पढ़ा नहीं जा सका है। यही नहीं, वहाँ ऐसे चिह्न भी मिले हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि वहाँ का व्यापार उन्नत स्तर का रहा है। + +2126. डॉ. रिचर्ड एडोंगेन्फेल्टोव ने 1963 ई. में रिवाइविल ऑफ ज्योफिजिक्स (जरनल) वाल्यूम-1, पृ. 51 पर डॉ. लिब्बी के इस प्रणाली से सम्बन्धित विचारोंको बड़ा त्रुटिपूर्ण बताया है। + +2127. प्रो. लाल ने भी अयोध्या में किए गए पूर्व उत्खननसे प्राप्त सामग्री का इसी विधि से परीक्षण करके श्रीराम को श्रीकृष्ण के बाद में हुआ बताया था किन्तु 2003 में किए गए उत्खनन में मिली सामग्री के विश्लेषणों ने पूर्व निर्धारित तथ्यों को बदल दिया है। अब श्रीराम को श्रीकृष्ण से पूर्व हुआ माना गया है। + +2128. मैक्समूलर. + +2129. कर्नल टॉड. + +2130. लौटें, भारतीय इतिहास का विकृतीकरण + +2131. अंग्रेजों ने भारत में विदेश से आकर की गई अपनी सत्ता की स्थापना को सही ठहराने के उद्देश्य से ही आर्यों के सम्बन्ध में, जो कि यहाँ केमूल निवासी थे, यह प्रचारित कराना शुरू कर दिया कि वे लोग भारत में बाहर से आए थे और उन्होंने भी बाहर से ही आकर यहाँ अपनी राज्यसत्ता स्थापित की थी। फिर उन्होंने आर्यों को ही नहीं, उनसे पूर्वआई नीग्रीटो, प्रोटो आस्ट्रोलायड, मंगोलाभ, द्रविड़ आदि विभिन्न जातियों को भी भारत के बाहर से आने वालीबताया। + +2132. इस दृष्टि से विदेशी विद्वानों में से यूनान के मेगस्थनीज, फ्राँस के लुई जैकालियट, इंग्लैण्ड के कर्जन, मुरो, एल्फिन्सटन आदि तथा देशी विद्वानों में से स्वामी विवेकानन्द, डॉ. भीमराव अम्बेडकर, डॉ. सम्पूर्णानन्द, डॉ. राधा कुमुद मुखर्जी आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। इन्होंने बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा हैकि आर्य भारत में विदेशी नहीं थे। दूसरी ओर मैक्समूलर, पोकॉक, जोन्स, कुक टेलर, नारायण पावगी, भजनसिंह आदि अनेक विदेशी और देशी विद्वानों का तो यह मानना रहा है कि आर्य विदेशों से भारत में नहीं आए वरन भारत से ही विदेशों में गए हैं। + +2133. आर्यों द्वारा बाहर से आकर स्थानीय जातियों को जीतने के प्रश्न पर भारत के प्रसिद्ध विधिवेत्ता डॉ. अम्बेडकर ने लिखा है कि ऋग्वेद में ‘दास‘ और ‘दस्यु‘ को आर्यों का शत्रु अवश्य बताया गया है और उसमें ऐसे मंत्र भी आए हैं, जिसमें वैदिक ऋषियों ने अपने देवताओं से उनको मारने और नष्ट करने की प्रार्थनाएँ भी की हैं किन्तु इससे भारत में आर्यों के आक्रमण के पक्ष में निर्णय नहीं किया जा सकता। उन्होंने ऋग्वेद के आधार पर इस सम्बन्ध में तीन तर्क प्रस्तुत किए हैं- + +2134. कर्महीन, मननहीन, विरुद्धव्रती और मनुष्यता से हीन व्यक्तिको दस्यु बताकर उसके वध की आज्ञा देता है और ‘दास‘ तथा ‘दस्यु‘ को अभिन्नार्थी बताता है। यदि दस्यु का अर्थ आज की भाँति दास या सेवक होता तो ऐसी आज्ञा कभी नहीं दी जाती। + +2135. ‘संस्कृति के चार अध्याय‘ ग्रन्थ के पृष्ठ 25 पर रामधारीसिंह ‘दिनकर‘ का कहना है कि जाति या रेस (race) का सिद्धान्त भारत में अंग्रेजों के आने के बाद ही प्रचलित हुआ, इससे पूर्व इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिलता कि द्रविड़ और आर्य जाति के लोग एक दूसरे को विजातीय समझते थे। वस्तुतः द्रविड़ आर्यों के ही वंशज हैं। मैथिल, गौड़, कान्यकुब्ज आदि की तरह द्रविड़ शब्द भी यहाँ भौगोलिक अर्थ देने वाला है। उल्लेखनीय बात तो यह है कि आर्यों के बाहरसे आने वाली बात को प्रचारित करने वालों में मि. म्यूर, जो सबके अगुआ थे, को भी अन्त में निराश होकर यह स्वीकार करना पड़ा है कि - ‘‘किसी भी प्राचीन पुस्तक या प्राचीन गाथा से यह बात सिद्ध नहीं की जा सकती कि आर्य किसी अन्य देश से यहाँ आए।‘‘ (‘म्यूर संस्कृत टेक्स्ट बुक‘ भाग-2, पृष्ठ 523) + +2136. दासों या दस्युओं को आर्यों ने अनार्य बनाकर शूद्रकी कोटि में डाला. + +2137. चारों वर्णों को समाज रूपी शरीर के चार प्रमुख अंग माना गया था, यथा- ब्राह्मण-सिर, क्षत्रिय-बाहु, वैश्य-उदर और शूद्र-चरण। चारों वर्णों की समान रूप से अपनी-अपनी उपयोगिता होते हुए भी शूद्र की उपयोगिता समाज के लिए सर्वाधिक रही है।समाज रूपी शरीर को चलाने, उसे गतिशील बनाने और सभी कार्य व्यवहार सम्पन्न कराने का सम्पूर्ण भार वहन करने का कार्य पैरों का होता है। भारतीय समाज में शूद्रों के साथ छुआछूत या भेदभाव का व्यवहार, जैसा कि आजकल प्रचारित किया जाता है, प्राचीन काल में नहीं था। वैदिक साहित्य से तो यहभी प्रमाणित होता है कि ‘शूद्र‘ मंत्रद्रष्टा ऋषि भी बन सकते थे। ‘कवष ऐलुषु‘ दासीपुत्र अर्थात शूद्र थे किन्तु उनकी विद्वत्ता को परख कर ऋषियों ने उन्हें अपने में समा लिया था। वे ऋग्वेद की कई ऋचाओं के द्रष्टा थे। सत्यकाम जाबालि शूद्र होते हुए भी यजुर्वेद की एक शाखा के प्रवर्तक थे। (छान्दोगय 4.4) इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि ‘‘शूद्रो को वेद पढ़ने का अधिकार नहीं है‘‘, ऐसा कहने वाले झूठे हैं। कारण शूद्रों द्वारा वेद-पाठ की तो बात ही क्या वे तो वेद के मंत्र द्रष्टा भी थे। सामाजिक दृष्टि से यह भेदभाव तो मुख्यतः मुसलमानों और अंग्रेजों द्वारा अपने-अपने राज्यकालों में इस देश के समाज को तोड़ने के लिए पैदा किया गया था। + +2138. अंग्रेजी सत्ता के उद्देश्य की पूर्ति में लगे न केवल अंग्रेज विद्वान ही वरन उनसे प्रभावित और उनकी योजना में सहयोगी बने अन्य पाश्चात्य विद्वान, यथा- मैक्समूलर, वेबर, विंटर्निट्ज आदि भी शुरू-शुरू में भारत के इतिहास और साहित्य तथा सभ्यता और संस्कृति की प्राचीनता, महानता और श्रेष्ठता को नकारते ही रहे तथा भारत के प्रति बड़ी अनादर और तिरस्कार की भावना भी दिखाते रहे किन्तु जब उन्होंने देखा कि यूरोप के ही काउन्ट जार्नस्टर्जना, जैकालियट, हम्बोल्ट आदि विद्वानों ने भारतीय साहित्य, सभ्यता और संस्कृति की प्रभावी रूप में सराहना करनी शुरू कर दी है तो इन लेखकों ने इस डर से कि कहीं उनको दुराग्रही न मान लिया जाए, भारत की सराहनाकरनी शुरू कर दी। इन्होंने यह भी सोचा कि यदि हम यूँ ही भारतीय ज्ञान-भण्डार का निरादर करते रहेतो विश्व समाज में हमें अज्ञानी माना जाने लगेगा अतः इन्होंने भी भारत के गौरव, ज्ञान और गरिमा का बखान करना शुरू कर दिया। कारण यह रहा हो या अन्य कुछ, विचार परिवर्तन की दृष्टि से पाश्चात्य विद्वानों के लेखन में क्रमशः आने वाला अन्तर एकदम स्पष्ट रूप से दिखाई देता है - + +2139. तीसरी स्थिति: गुणग्राहकता + +2140. कर्जन तो स्पष्ट रूप से कहता है कि- ‘‘गोरी जाति वालों का उद्गम स्थान भारत ही है।‘‘ (जनरल ऑफ रॉयल एशियाटिक सोसाइटी‘, खण्ड 16, पृ.172-200) + +2141. भारत के पुराण तथा अन्य पुरातन साहित्य में स्थान-स्थान पर ऐसे उल्लेख मिलते हैं जिनसे ज्ञात होता है कि भारत में मानव सभ्यता का जन्म सृष्टि-निर्माण के लगभग साथ-साथ ही हो चुका था और धीरे-धीरे उसका विस्तार विश्व के अन्य क्षेत्रों में भीहोता रहा अर्थात भारतीय सभ्यता विश्व में सर्वाधिक प्राचीन तो है ही वह विश्वव्यापिनी भी रही है किन्तु आज का इतिहासकार इस तथ्य से सहमत नहीं है। वह तो इसे 2500 से 3000 वर्ष ई. पू. के बीच की मानता रहा है। साथ ही वह भारतीयों को घर घुस्सु और ज्ञान-विज्ञान से विहीन भी मानता रहा है किन्तु भारत मेंऔर उसकी वर्तमान सीमाओं के बाहर विभिन्न स्थानों पर हो रहे उत्खननों में मिली सामग्री के पुरातात्त्विक विज्ञान के आधार पर निकाले गए निष्कर्ष उसे प्राचीन से प्राचीनतर बनाते जा रहे हैं। हड़प्पा और मोहनजोदड़ों की खोजों से वह 4000 ई. पू. तक पहुँ च ही चुकी थी। मोतीहारी (मध्यप्रदेश) लोथल और रंगपुर (गुजरात) बहादुराबाद और आलमगीरपुर (उत्तरप्रदेश) आदि में हुए उत्खननों में मिली सामग्रीउसे 5000 ई. पू. से पुरानी घोषित कर रही है। तिथ्यांकन की कार्बन और दूसरी प्रणालियाँ इस काल सीमाको आगे से आगे ले जा रही हैं। इस संदर्भ में बिलोचिस्तान के मेहरगढ़ तथा भारत के धौलावीरा आदि की खुराइयाँ भी उल्लेखनीय हैं, जो भारतीय सभ्यता को 10000 ई. पूर्व की सिद्ध कर रही है। गुजरात के पास खम्भात की खाड़ी में पानी के नीचे मिले नगर के अवशेष इसे 10000 ई. पू. से भी प्राचीन बताने जा रहे हैं। + +2142. वस्तुतः उक्त निष्कर्ष को निकालते समय पाश्चात्य इतिहासकारों के समक्ष यूरोप के विभिन्न देशों के प्रारम्भिक मानवों के जीवन का चित्र था। जबकि मानव सृष्टि का प्रारम्भ इस क्षेत्र में हुआ ही नहीं था। आज विश्व के बड़े-बड़े विद्वान इस बात पर सहमत हो चुकेहैं कि आदि काल में मानव का सर्वप्रथम प्रादुर्भाव भारत में ही हुआ था। इस संदर्भ में फ्राँस के क्रूजर और जैकालिट, अमेरिका के डॉ. डान, इंग्लैण्ड के सर वाल्टर रेले के साथ-साथ इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड, भू-वैज्ञानिक, मेडलीकट, ब्लम्फर्ड आदि के कथन भी उल्लेखनीय हैं। + +2143. यजुर्वेद - इस वेद में पशु हत्या का निषेध करते हुए उनके पालन पर जोर दिया गया है। जब उनकी हत्या ही वर्जित है तो उनको खाने के लिए कैसे स्वीकारा जा सकता है ? + +2144. प्राचीन विदेशी वाङ्मय. + +2145. वेदों का संरचना काल 1500 से 1200 ईसापूर्व तक. + +2146. @ नवीनतम शोधों के अनुसार 3500 ई. पू. से आगे की मानी जा रही है + +2147. भारतीय इतिहास का आधुनिक रूप में लेखन करने वाले पाश्चात्य विद्वानों ने इतिहास लिखते समय भारतीय वाङ्मय के स्थान पर भारत के सम्बन्ध में विदेशियों द्वारा लिखे गए ग्रन्थों को मुख्य रूप में आधार बनाया है। ऐसा करके उन्होंने अपने लेखन के क्षेत्र के आधार को सीमित करके उसे एकांगी बना लिया। भारतीय ग्रन्थों को उन्होंने या तो पढ़ा ही नहीं, यदि पढ़ा भी तो उन्हें गम्भीरता से नहीं लिया और गहराई में जाए बिना ही उन्हें अप्रामाणिकता की कोटि में डाल दिया। इसी कारण भारत की ऐतिहासिक घटनाओं की तिथियों में तरह-तरह की भ्रान्तियाँ पैदा हो गईं। उन भ्रान्तियों के निराकरण के लिए अर्थात अपने असत्य को सत्य सिद्ध करने के लिए उन लोगों को जबरन नई-नई और विचित्र कल्पनाएँ करनी पड़ीं, जो स्थिति का सही तौर पर निदान प्रस्तुत करने के स्थान पर उसे और अधिक उलझाने में ही सहायक हुईं। + +2148. भारत में ऐतिहासिक सामग्री का अभाव. + +2149. संस्कृत वाङ्मय में से वैदिक और ललित साहित्य के कुछ ऐसे ग्रन्थों के नामों के साथ ज्योतिष, आयुर्वेद तथा व्याकरण के कुछ ग्रन्थों का यहाँ उल्लेख किया जा रहा है, जिनमें महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक उल्लेख सुलभ हैं। + +2150. व्याकरण ग्रन्थ - ये ग्रन्थ केवल भाषा निर्माण के सिद्धान्तों तक ही सीमित नहीं रहे हैं, उनमें तत्कालीन ही नहीं, उससे पूर्व के समय के भी धर्म, दर्शन, राजनीति शास्त्र, राजनीतिक संस्थाओं आदि के ऐतिहासिक विकास पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है, जिससेवे इतिहास विषय पर लेखन करने वालों के लिए परम उपयोगी बन गए हैं। पाणिनी की ‘अष्टाध्यायी‘, पतंजलि का महाभाष्य इस दृष्टि से सर्वोत्कृष्ट ग्रन्थ हैं। उत्तरवर्ती वैयाकरणों में ‘चान्द्रव्याकरण‘ और पं. युधिष्ठिर मीमांसक का ‘संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास‘, भी इस दृष्टि से उल्लेखनीयहै। + +2151. (आ) नेपाल राजवंशावली- नेपाल की राजवंशावली में वहाँ के राजाओं का लगभग 5 हजार वर्षों का ब्योरा सुलभ है। पं. कोटावेंकटचलम ने इसवंशावली पर काफी कार्य किया है और उन्होंने मगध, कश्मीर तथा नेपाल राज्यों के विभिन्न राजवंशों के क्रमानुसार राजाओं का पूरा ब्योरा ‘क्रोनोलोजी ऑफ नेपाल हिस्ट्री रिकन्सट्रक्टेड‘ के परिशिष्ट - 1 (पृ. 89 से 100) में दिया है। इसमें नेपाल के 104 राजाओं के 4957 वर्षों के राज्यकाल की जो सूची दी गई है, उसमें कलियुग के 3899वर्षों के साथ-साथ द्वापर के अन्तिम 1058 वर्षों का ब्योरा भी दिया गया है। इस वंशावली से भारतीय इतिहास के भी कई अस्पष्ट पन्नों, यथा- आद्य जगद्गुरु शंकराचार्य जी के जन्म और विक्रम सम्वत के प्रवर्तक उज्जैन के महाराजा विक्रमादित्य के ऐतिहासिक व्यक्तित्व होने जैसे विषयों, को स्पष्ट करने में सहयोग मिल जाता है। + +2152. अन्य क्षेत्रीय ग्रन्थ. + +2153. भारत में अंग्रेजों के आगमन से पूर्व सभी भारतीयों को अपने प्राचीन साहित्य में, चाहे वह रामायण हो या महाभारत, पुराण हो या अन्य ग्रन्थ, पूर्ण निष्ठा थी। इसके संदर्भ में ‘मिथ‘ की मिथ्या धारणा अंग्रेज इतिहासकारों द्वारा ही फैलाई गई क्योंकि अपने उद्देश्य की प्राप्ति की दृष्टि से उनके लिए ऐसा करना एक अनिवार्यता थी। बिना ऐसा किए इन ग्रन्थों में उल्लिखित ऐतिहासिक तथ्यों की सच्चाई से बच पाना उनके लिए कठिन था। जबकि भारतीय ग्रन्थ यथा- रामायण, महाभारत, पुराण आदि भारत के सच्चे इतिहास के दर्पण हैं। इनके तथ्यों को यदि मान लिया जाता तो अंग्रेज लोग भारत के इतिहास-लेखन में मनमानी कर ही नहीं सकते थे। अपनी मनमानी करने के लिएही उन लोगों ने भारत के प्राचीन ग्रन्थों के लिए ‘मिथ‘, ‘अप्रामाणिक‘, ‘अतिरंजित‘, ‘अविश्वसनीय‘ जैसे शब्दों का न केवल प्रयोग ही किया वरन अपने अनर्गल वर्णनों को हर स्तर पर मान्यता भी दी और दिलवाई। फलतः आज भारत के ही अनेक विद्वान उक्त ग्रन्थों के लिए ऐसी ही भावना रखने लगे जबकि ये सभी ग्रन्थ ऐतिहासिक तथ्यों से परिपूर्ण हैं। + +2154. यह महर्षि वेदव्यास की महाभारत युद्ध के तुरन्त बाद ही लिखी गई एक कालजयी कृति है। इसे उनकी ही आज्ञा से सर्पसत्र के समय उनके शिष्य वैषम्पायन ने राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय को सुनाया था, जिसका राज्यकाल कलि की प्रथम शताब्दी में रहा था अर्थात इसकी रचना को 5000 साल बीत गए हैं। यद्यपि इसकी कथा में एक परिवार के परस्पर संघर्ष का उल्लेख किया गया है परन्तु उसकी चपेट में सम्पूर्ण भारत ही नहीं अन्य अनेक देश भी आए हैं। फिर भी सारी कथा श्रीकृष्ण के चारों ओर ही घूमती रही है। यह ठीक है कि आज अनेकलेखक श्रीकृष्ण के भू-अवतरण को काल्पनिक मान रहे हैं किन्तु वे भारत के एक ऐतिहासिक पुरुष हैं, इसका प्रमाण भारत का साहित्य ही नहीं आधुनिक विज्ञान भी प्रस्तुत कर रहा है। + +2155. महाभारत युद्ध के 200-250 वर्ष के पश्चात ही भारत की केन्द्रीय सत्ता हस्तिनापुर से निकल कर मगध राज्य में चली गई और मगध की गद्दी पर एक के पश्चात दूसरे वंश का अधिकार होता चला गया। इन सभी वंशों के राजाओं की सूचियाँ ‘वायु‘, ‘ब्रह्माण्ड‘, ‘मत्स्य‘, ‘विष्णु‘, ‘श्रीमद्भागवत्‘ आदि पुराणों में मिलती हैं। साथ ही ‘कलियुग राज वृत्तान्त‘ और ‘अवन्तिसुन्दरीकथा‘ में भी इन राजवंशावलियों का उल्लेख किया गया है। इन सभी ग्रन्थों में वर्णित राजाओं के नामों तथा उनकी आयु और राज्यकालों में कहीं-कहीं परस्पर अन्तर मिलता है किन्तु यह अन्तर ऐसा नहीं है जिसेठीक न किया जा सके। जबकि जोन्स आदि ने उनके सम्बन्ध में पूर्ण विवेचन किए बिना ही निम्नलिखित कारणों से उन्हें अतिरंजित, अविश्वसनीय और अवास्तविक कहकर नकार दिया- + +2156. राजाओं की आयु और राजवंशों की राज्यावधि बहुत अधिक दिखाई गई है. + +2157. पाश्चात्य इतिहासकारों की इस कल्पना की पुष्टि न तो पुराणों सहित भारतीय साहित्य या अन्य स्रोतों से ही होती है और न ही यूनानी साहित्य कोछोड़कर भारत से इतर देशों के साहित्य या अन्य स्रोतों से होती है। स्वयं यूनानी साहित्य में भी ऐसे अनेक समसामयिक उल्लेखों का, जो कि होने ही चाहिए थे, अभाव है, जिनसे आक्रमण की पुष्टि हो सकती थी। यूनानी विवरणों के अनुसार ईसा की चौथी शताब्दी में यूनान का राजा सिकन्दर विश्व-विजय की आकांक्षा से एक बड़ी फौज लेकर यूनान से निकला और ईरान आदि को जीतता हुआ वह भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र केपास आ पहुँचा। यहाँ उसने छोटी-छोटी जातियों और राज्यों पर विजय पाई। इन विजयों से प्रोत्साहित होकर वह भारत की ओर बढ़ा, जहाँ उसकी पहली मुठभेड़ झेलम और चिनाव के बीच के छोटे से प्रदेश के शासक पुरु से हुई। उसमें यद्यपि वह जीत गया किन्तु विजय पाने के लिए उसे जो कुछ करना पड़ा, उससे तथा अपने सैनिकों के विद्रोह के कारण उसका साहस टूट गया और उसे विश्व-विजय के अपने स्वप्न को छोड़कर स्वदेश वापस लौट जाना पड़ा। + +2158. साहित्यिक- भारत की तत्कालीन साहित्यिक रचनाएँ, यथा- वररुचि की कविताएँ, ययाति की कथाएँ, यवकृति पियंगु, सुमनोत्तरा, वासवदत्ता आदि, इस विषय पर मौन हैं। अतः इस प्रश्न पर वे भी प्रकाश डालने में असमर्थ हैं। यही नहीं, पुरु नाम के किसी राजा का भारतीय साहित्य की किसी भी प्राचीन रचना में कोई भी उल्लेख कहीं भी नहीं मिलता और मेगस्थनीज का तो दूर-दूर तक पता नहीं है। हाँ, हिन्दी तथा कुछ अन्य भारतीय भाषाओं के कतिपय अर्वाचीन नाटकों में अवश्य ही इस घटना का चित्रण मिलता है। + +2159. यूनानी साहित्य - विभिन्न यूनानी ग्रन्थों में उपलब्ध मेगस्थनीज के कथनों के अंशों में तथा टाल्मी, प्लिनी, प्लूटार्क, एरियन आदि विभिन्न यूनानी लेखकों की रचनाओं में सिकन्दर के आक्रमण के बारे में विविध उल्लेख मिलते हैं। इन्हीं में सेंड्रोकोट्टस का वर्णन भी मिलता है किन्तु वह चन्द्रगुप्त मौर्य है, इस सम्बन्ध में किसी भी ग्रन्थ में कोई उल्लेख नहीं हुआ है। यह तो भारतीय इतिहास के अंग्रेज लेखकों की कल्पना है। यदि वास्तव में ही सेंड्रोकोट्टस चन्द्रगुप्त मौर्य होता और उसके समय में ही यूनानी साहित्य लिखा गया होता तो उसमें अन्य अनेक समसामयिक तथ्य भीहोने चाहिए थे, जो कि उसमें नहीं हैं। इससे चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में आक्रमण हुआ था, इस पर प्रश्नचिन्ह् लग जाता है। इस दृष्टि से निम्नलिखित तथ्य विचारणीय हैं- + +2160. इस प्रश्न पर कि क्या सेंड्रोकोट्टस ही चन्द्रगुप्त मौर्य है, विचार करने के लिए यह जान लेना उचित होगा कि सेंड्रोकोट्टस के सम्बन्ध में प्राचीन यूनानी साहित्य में जो कुछ लिखा मिलता है, क्या वह सब चन्द्रगुप्त मौर्य पर घटता है ? यूनानी साहित्य में सेंड्रोकोट्टस के संदर्भ में मुख्य रूप से निम्नलिखित बातें लिखी हुई मिलती हैं- + +2161. ऐतिहासिक दृष्टि से विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि उक्त बातों का मौर्य वंश के पश्चात मगध साम्राज्य पर आने वाले चौथे राजवंश ‘गुप्त वंश‘ के राजाओं के साथ कुछ-कुछ मेल हो जाता है। जैसे, जहाँ तक बड़ी सेना लेकर भारत-विजय करने और विदेशी राजा की पुत्री से विवाह करने की बात है, तो यह दोनों बातें गुप्त राजवंश के दूसरे राजासमुद्रगुप्त से मेल खाती हैं। समुद्रगुप्त ने विशाल सेना के बल पर भारत विजय करके अश्वमेध यज्ञ किया था। उसके सम्बन्ध में हरिषेण द्वारा इलाहाबाद में स्थापित स्तम्भ पर खुदवाए विवरण से उसकी विजय आदि के अलावा यह भी ज्ञात होता है कि पश्चिमोत्तर क्षेत्र में युद्ध-विजय के पश्चात उसे किसी विदेशी राजा नेअपनी कन्या उपहार में दी थी। + +2162. 2. समुद्रगुप्त -- अशोकादित्य + +2163. पालीबोथ्रा ही पाटलिपुत्र. + +2164. यूनानी इतिहासकार भले ही पाटलिपुत्र को मौर्य साम्राज्य की राजधानी मानते रहे हों किन्तु भारतीय पुराणों के अनुसार वह कभी भी मौर्यों की राजधानी नहीं रहा। पुराणों के अनुसार जब से मगध राज्य की स्थापना हुई थी तभी से अर्थात जरासन्ध के पिता बृहद्रथ के समय के पूर्व से ही मगध साम्राज्य की राजधानी गिरिब्रज (वर्तमान राजगृह) रही है। महाभारत युद्ध के पश्चात मगध साम्राज्य से सम्बंधित बार्हद्रथ, प्रद्योत, शिशुनाग, नन्द, मौर्य, शुंग, कण्व, आन्ध्र-आठों वंशों के समय में इसकी राजधानीगिरिब्रज ही रही है। पाटलिपुत्र की स्थापना तो शिशुनाग वंश के अजातशत्रु ने कराई थी और वह भीमात्र सैनिक दृष्टि से सुरक्षा के लिए। + +2165. ग्रहगतियों के आधार पर भारतीय ग्रन्थों में नौ प्रकार के कालमानों का निरूपण किया गया है। इनके नाम हैं- ब्राह्म, दिव्य, पित्र्य, प्राजापत्य, बार्हस्पत्य, सौर, सावन, चान्द्र और नाक्षत्र। इन नवों कालमानों में नाक्षत्रमान सबसे छोटा है। पृथ्वी जितने समय में अपनी धुरी का एक चक्र पूरा करती है, उतने समय को एक नाक्षत्र दिन कहा जाता है। यही दिन या वार ही पक्षों में, पक्ष ही मासों में, मास ही वर्षों में, वर्ष ही युगों में, युग ही महायुगों में, महायुग ही मन्वन्तरों और मन्वन्तर ही कल्पों में बदलते जाते हैं। + +2166. ऐतिहासिक - ज्योतिष के आधार पर पुष्ट हो जाने पर भी भारतीय कालगणना की करोड़ों-करोड़ों वर्षों की संख्या पर फ्लीट सरीखे कई पाश्चात्य विद्वान ही नहीं अनेक भारतीय विद्वान भी यह कहकर प्रश्नचिन्ह लगा देते हैं कि कालगणना का यह प्रकार आर्य भट्ट से पूर्व था ही नहीं। इस संदर्भ में दो बातें उल्लेखनीय हैं, एक तो यह कि इस कालगणना को भारत में ही माना जाता रहा है, ऐसा नहीं है, इसे बेबिलोनिया, ईरान, स्कैण्डेनेविया आदि देशों में भी मान्यता प्राप्त रही है। ऐतिहासिक दृष्टि से बेबिलोनिया की सभ्यता ई. पू. तीसरी सहस्राब्दी में फूली-फली थी और उस समय तक आर्य भट्ट अवतरित नहीं हुए थे। दूसरे ये संख्याएँ वेदों और ब्राह्मण ग्रन्थोंमें आए ब्योरों से भी पुष्ट होती हैं, जो निश्चितही आर्य भट्ट से पूर्व के ही है। + +2167. कहने का भाव है कि नक्षत्रों की गति पर आधारित भारतीय कालगणना के कालमानों की पुष्टि ईरान, बेबिलोनिया, स्कैण्डेविया आदि देशों के प्राचीन ग्रन्थों में आए उल्लेखों से ही नहीं भारत के वेद, ब्राह्मण, उपनिषद, पुराण आदि ग्रन्थों में वर्णित कालमान के ब्योरों से भी होती है, अतः उसकी मान्यतापर प्रश्नचिन्ह् लगाना न्यायसंगत नहीं है। यह भ्रान्ति भी जानबूझ कर अंग्रेजी सत्ता द्वारा फैलाई गई थी। + +2168. भारतीय दृष्टि से काल की कोई सीमा नहीं है, वह अनन्तहै। जिस भारतवर्ष में सृष्टि के प्रलय और निर्माण के सम्बन्ध में इतनी सूक्षमता, गहनता औरगम्भीरता से विचार किया गया हो और जहाँ इस सृष्टि के निर्माण काल से ही नहीं पिछली सृष्टि का विवरण भी रखा गया हो, वहाँ के इतिहास में प्रागैतिहासिकता की अवधारणा करने का प्रश्न ही नहीं उठता। + +2169. जहाँ तक महाभारत युद्ध का काल जानने के लिए उसे हजारों-हजारों वर्ष बाद पैदा हुए मुसलमान बादशाहों के औसत राज्यकाल को आधार बनाने का प्रश्न है तो इसका उत्तर तो श्री लाल ही जानें किन्तु यहाँ यह प्रश्न उठता ही है कि उनके मस्तिष्क में यह बात क्यों नहीं आई कि प्राचीन काल में दीर्घ जीवन भारत की एक विशिष्टता रही है। उस काल का औसत भारतीय राजा काफी समय बाद के औसत मुसलमानी बादशाह से काफी अधिक काल तक जीवित रहा होगा। भारत के लोगों के दीर्घ जीवन के बारे में मेगस्थनीज आदि यूनानी विद्वानों के निम्नलिखित विचार उल्लेखनीय हैं- + +2170. पाश्चात्य विद्वानों द्वारा भारतीय इतिहास के लिए निर्धारित तिथिक्रम के आधार पर किसी भी ऐतिहासिक महापुरुष की जन्मतिथि और महान सम्राट के राज्यारोहण की तिथि पर विचार किया जाता है तो वह असंगत लगती है। इस खण्ड में कतिपय ऐसे ही ऐतिहासिक महापुरुषों कीजन्मतिथियों और सम्राटों के राज्यारोहण की तिथियों के विषय में विचार किया जा रहा है - + +2171. भारतीय पुराणों से मिली विभिन्न राजवंशों के राजाओं के राज्यारोहण की तिथियों के आधार पर जो जानकारी मिलती है, उसके हिसाब से गौतम बुद्ध का जन्म 1886-87 ई. पू. में बैठता है। वे महाभारत युद्ध के पश्चात मगध की गद्दी पर बैठने वाले तीसरे राजवंश-शिशुनाग वंश के चौथे, पाँचवें और छठे राजाओं के राज्यकाल में, यथा- 1892 से 1787 ई. पू.के बीच में हुए थे। + +2172. (ग) अशोक ने 265 ई.पू. में शासन संभाला- सम्राट अशोक को भारत के इतिहास में ही नहीं विश्व के इतिहास में जो महत्वपूर्ण स्थान मिला हुआ है, वह सर्वविदित है। आज अशोक का नाम संसार केमहानतम व्यक्तियों में गिना जाता है। इसकी प्रसिद्धि का मुख्य कारण उसके द्वारा चट्टानों और प्रस्तरस्तम्भों पर लिखवाए गए वे अजर-अमर शिलालेख हैं, जो सम्पूर्ण राज्य में इतस्ततः विद्यमान रहे हैं किन्तु उनसे उसके व्यक्तिगत जीवन अर्थात जन्म, मरण, माता-पिता के नाम, शासनकाल आदि के सम्बन्ध में कोई विशेष जानकारी सुलभ नहीं हो पाती। यह भी उल्लेखनीय है कि उन शिलालेखों में सेअशोक का नाम केवल एक ही छोटे शिलालेख में मिलता है। शेष पर तो ‘देवानांप्रिय‘ शब्द ही आया है। अतः इससे यह पता नहीं चल पाता कि यह नाम वास्तव में कौन से अशोक का है क्योंकि भारत में भिन्न-भिन्न कालों में अशोक नाम के चार राजा हुए हैं, यथा- + +2173. (घ) कनिष्क का राज्यारोहण 78 ई. में हुआ - कनिष्क के राज्यारोहण के सम्बन्ध में भी पाश्चात्य औरभारतीय आधारों पर निकाले गए कालखण्डों में गौतम बुद्ध आदि की तरह लगभग 1300 वर्ष का ही अन्तर आता है। पाश्चात्य इतिहासकारों द्वारा कनिष्क के राज्यारोहण की तिथि 78 ई. निश्चित कीगई है जबकि पं. कोटावेंकटचलम द्वारा ‘क्रोनोलोजी ऑफ कश्मीर हिस्ट्री रिकन्सट्रक्टेड‘ में दिएगए ‘राजतरंगिणी‘ के ब्योरों के अनुसार कनिष्क ने कश्मीर में 1254 ई. पू. के आसपास राज्य किया था। + +2174. उज्जैनी के महाराजा विक्रमादित्य के ऐतिहासिक व्यक्तित्व को नकारने से पूर्व निम्नलिखित तथ्यों पर विचार कर लिया जाना अपेक्षित था, यथा- + +2175. यह कविता मूल रूप में सुलतान सलीम के काल (1742 ई.) में तैयार ‘सैरउलओकुन‘ नाम के अरबी काव्य संग्रह से ली गई है। + +2176. ऐसी स्थिति में यह मान लिया जाना कि सरस्वती नदी का कोई अस्तित्त्व नहीं है उचित नहीं है। निश्चित ही यह भी एक भ्रान्ति ही है, जो भारत के इतिहास को ‘विकृत‘ करने की दृष्टि से जान बूझकर फैलाई गई है। + +2177. महाभारत के भीष्म पर्व के अध्याय 9 में भारत भूमि के महत्त्व का प्रतिपादन करते हुए उसे एक राष्ट्र के रूप में ही चित्रित किया गया है। तमिल काव्य संग्रह ‘पाडिट्रूप्पट्ट‘ में दी गई विभिन्न कविताएँ भी इस दृष्टि से उल्लेखनीय हैं जिनमें देश का वर्णन कन्याकुमारी से हिमालय तक कहकर किया गया है। + +2178. विकृतीकरण का निष्कर्ष: + +2179. अंग्रेजों की दृष्टि में भारतवासियों का मूल्यांकन. + +2180. भारत का वास्तविक इतिहास तो मानव जाति का इतिहास. + +2181. इतिहास घटित होता है निर्देशित नहीं, जबकि भारत के मामले में इतिहास निर्देशित है। इसलिए आधुनिक ढंग से लिखा हुआ भारत का इतिहास, इतिहास की उस शास्त्रीय परिभाषा के अनुसार, जो भारतीय ऋषियों ने दी थी, इतिहास है ही नहीं। अतः आज आधुनिक रूप में लिखित भारत के इतिहास पर गम्भीरता से विचार करने की आवश्यकता है और वह भी भारतीय साक्ष्यों के आधार पर क्योंकि वर्तमान में सुलभ इतिहास निश्चित ही भारत का और उस भारत का, जो एक समय विश्वगुरु था, जो सोने की चिड़िया कहलाता था और जिसकी संस्कृति विश्व-व्यापिनी थी, हरगिज नहीं है। + +2182. राइट इश्यु/राइट शेयर किसे कहते है? + +2183. कंपनी अपने वार्षिक लाभ को सम्पूर्ण रूप से लाभांश के रूप में वितरित नहीं करती है। इसका कुछ हिस्सा वह संचय खाते में जमा करती जाती है जो कुछ वर्षो में एक बड़ी राशि बन जाती है। कंपनी अपनी भावी विकास योजना या अन्य योजनाओं के लिए इस राशि को पूंजी खाते में हस्तांतरित करने के लिए इतनी ही राशि के शेयर बतौर बोनस अपने मौजूदा अंशधारकों को अनुपातिक आधार पर दे देती है। इन शेयरों का शेयरधारकों से कोई मूल्य नहीं लिया जाता। + +2184. क्युम्युलेटिव कन्वर्टिबल प्रेफरेंस शेयर किसे कहते हैं? + +2185. कोई कंपनी जब अपनी परियोजनाओं के वित्त पोषण के लिए सार्वजनिक निर्गम जारी करती है तो इस निर्गम के माध्यम से आवेदन करके शेयर पाने तथा कंपनी द्वारा शेयर आबंटित करके उनको सूचीबद्ध कराने तक की सम्पूर्ण प्रक्रिया/व्यवहार `प्राइमरी मार्केट' के कार्यक्षेत्र में आता है। + +2186. प्राइमरी मार्केट में प्रारंभ में, निवेशकों को सिक्युरिटीज आफर की जाती है और स्टॉक एक्सचेंज में उसे सूचीबद्ध कराने के बाद उसकी ट्रेडिंग सेकंडरी मार्केट में होती है। सेकंडरी मार्केट के दो भाग हैः इक्विटी और डेब्ट मार्केट। सामान्य निवेशकों के लिए सेकंडरी मार्केट सिक्युरिटीज की ट्रेडिंग के लिए प्रभावशाली मंच देता है। + +2187. शेयर बाजार में सौदा करने के लिए किससे संपर्क करना चाहिए? + +2188. सेबी में दर्ज हो और मान्यता प्राप्त एक्सचेंज के सदस्य के साथ संलग्न व्यक्ति को सब-ब्रोकर कहा जाता है। + +2189. यूनिक क्लायंट कोड का आशय क्या है? + +2190. स्टॉक एक्सचेंज प्रत्येक सौदे को यूनिक आर्डर कोड नंबर देता है, जिसकी जानकारी ब्रोकर द्वारा ग्राहक को दी जाती है कि सौदा किया गया है। आर्डर कोड नंबर कांट्रेक्ट नोट में छपा रहता है। ब्रोकर आर्डर देता है तो उसका समय भी दर्ज होता है। + +2191. रोलिंग सेटलमेंट का क्या मतलब है? + +2192. मेरे खाते में तुरंत शेयर्स की डिलीवरी आ जाए ऐसा कोई रास्ता है क्या? + +2193. सेबी का कार्य बाजार में विभिन जोखिमों को दूर करने पर केन्द्रित है। इसके लिए शेयर बाजार सेबी के साथ तालमेल रखकर उसकी नीतियों की पुनर्समीक्षा और रिस्क मैनेजमेंट नीतियां बनाता रहता है। इसे रिस्क मैनेजमेंट कहा जाता है। इन नीतियों के तहत भिन भिन मार्जिन और नियंत्रण अस्तित्व में है, जिसमें से मुख्य इस प्रकार हैंः प्रवाहिता और भाव के घटबढ़ की मात्रानुसार स्क्रिप्स का वर्गीकरण और तद्नुसार मार्जिन, वैल्यू एट रिस्क (वीएआर) मार्जिन, मार्क टू मार्केट मार्जिन और अन्य विभिन प्रकार की मार्जिन तय करने और वसूलने, मार्जिन के भुगतान की समय सीमा निर्धारित करने, मार्जिन वसूलना आदि। + +2194. डेरिवेटिव्स मार्केट. + +2195. इसमें शेयर बाजार द्वारा तय किए गए और रखे गए शेयरों का पूर्व निर्धारित लाट में शेयर का एक, दो या तीन माह का कांट्रेक्ट जारी किया जाता है। यह कांट्रेक्ट इस्यूकर्ता के रूप में शेयर बाजार द्वारा नियुक्त किए गए कुछ दलाल होते हैं, जिसे कांट्रेक्ट राइटर कहा जाता है, जो बाजार में कांट्रेक्ट की मांग के आधार पर कांट्रेक्ट का भाव और प्रीमियम आफर करते हैं। + +2196. आप्शन कांट्रेक्ट किसे कहा जाता है? + +2197. बीएसई में सेंसेक्स प्युचर्स में 50 सेंसेक्स का लाट होता है। यह कांट्रेक्ट एक से तीन महिने का होता है। उसकी टीक साइज 0.01 पाइंट रखी जाती है। सेंसेक्स का भाव सेंसेक्स का ही वैल्यू होता है। कांट्रेक्ट का अंतिम दिन महिने का अंतिम गुरूवार (यदि उस दिन छुट्टी हो तो अगले कामकाज के दिन) होता है एवं इस अंतिम दिन ही निपटान होता है। + +2198. सेंसेक्स आप्शन किसे कहा जाता है? + +2199. स्टाक आप्शन्स में बाजार घटकों द्वारा तय शुद्ध प्रीमियम पर अंडरलाइंग स्टाक पर कॉल या पुट आप्शन्स की खरीदी या बिक्री करने का अधिकार मिलता है। इसमें अंडरलाइंग स्टाक एक्सचेंज द्वारा तय किए शेयर होते हैं। उसका लाट भी एक्सचेंज या मार्केट रेग्युलेटर द्वारा निर्दिष्ट न्यूनतम कांट्रेक्ट अनुसार प्रत्येक शेयर का अलग अलग होता है। यह कांट्रेक्ट एक, दो या तीन महिने का भी हो सकता है। इसमें प्रति शेयर रूपए में ही प्रीमियम बोला जाता है। इसमें भी टीकसाइज 0.01 का ही होता है। सेटलमेंट वैल्यू बीएसई के कैश सेगमेंट से संबंधित शेयरों के बन्द भाव के मुताबिक होती है। इसमें कांट्रेक्ट पूर्ण होने के अंतिम दिन महिने के अंतिम गुरूवार (यदि उस दिन छुट्टी हो तो उसके अगले कामकाज का दिन होता हैं) के ही उसका निपटान होता हैं। इसमें कांट्रेक्ट पूरा होने की तारीख को या उसके अमल की तारीख को उस दिन के कैश मार्केट के बंद भाव और कांट्रेक्ट वैल्यू के बीच के फर्क का निपटान करना होता है। + +2200. टीक साइज क्या है? + +2201. यदि कोई पार्टी डिफाल्टर हो जाए तो ऐसे अवसरों के लिए जोखिम की मात्रा कम करने के लिए मार्जिन मनी ली जाती है। खड़े सौदों का अगले दिन निपटान करने के लिए, भाव में होने वाली घट-बढ़ की जोखिम को मर्यादित करने के लिए मार्जिन राशि का भुगतान, सुरक्षा प्रदान करता है। मार्जिन मनी भविष्य में होने वाली हानि अथवा सिक्युरिटीज डिपाजिट के रूप में बीमा की भूमिका निभाती है। + +2202. सिक्युरिटीज में निवेश करने से पूर्व आप स्वयं से पूछिए. + +2203. म्युच्युअल फंड ऐसा तंत्र है जिसमे म्युच्युअल फंड कंपनियां निवेशकों को यूनिट जारी करके धन जुटाती हैं और फिर उस धन का आफर डाक्युमेंट में उल्लेखित नियमों के अनुसार विभिन सिक्युरिटीज में निवेश किया जाता हैं। विविध उद्योगों की सिक्युरिटीज में निवेश होने से जोखिम घटता है। म्युच्युअल फंड में निवेशकर्ताओं को यूनिट होल्डर कहा जाता है। + +2204. म्युच्युअल फंड योजनाएं कितने प्रकार की होती हैं? + +2205. इन्कम फंड का उद्देश्य निवेशकों को नियमित और स्थिर आय उपलब्ध कराना है। यह स्कीम सामान्यतः बांड्स, कंपनी के डीबेंचर्स और सरकारी प्रतिभूति जैसी स्थिर आय दिलाने वाली सिक्युरिटीज में निवेश करती है। इसमें इक्विटी स्कीम की तुलना में जोखिम कम होती है परन्तु लाभ भी सीमित रहता है। + +2206. गिल्ट फंड. + +2207. टैक्स सेविंग स्कीम में निवेशकों को आयकर अधिनियम 1961 के प्रावधानों के तहत कर लाभ मिलता है। उदाहरणार्थ इक्विटी लिन्क सेविंग स्कीम और म्युच्युअल फंड द्वारा खुली पैंशन स्कीम। इस योजना का उद्देश्य एनएवी बढ़ाना है और मुख्यतः इक्विटी में निवेश करते हैं। + +2208. ऑफर डाक्युमेंट में निवेशकों को क्या देखना चाहिए? + +2209. हां, लेकिन इसके लिए युनिट होल्डर को लिखित जानकारी देनी जरूरी है और यदि युनिट होल्डर को बदलाव पसंद न हो तो उसे एक्जिट लोड चुकाए बिना योजना से हट जाने का अधिकार है। + +2210. यदि एक ही प्रकार की दो फंड योजनाएं हो तो इसमें से कम एनएवी वाली स्कीम में निवेश करना चाहिए? + +2211. ऐसा कतई नहीं है। + +2212. करन्सी प्युचर्स. + +2213. बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज लि. के करन्सी प्यूचर ट्रेडिंग सिस्टम को बीएसई - सीडीएक्स (बीएसई करन्सी डेरिवेटिव एक्सचेंज) कहा जाता है। + +2214. बीएसई- सीडीएक्स पर ट्रेड किये जाने वाले दूसरे करन्सी डेरिवेटिव क्या हैं? + +2215. विदेशी मुद्रा बाजार का नियमन विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) द्वारा किया जाता है। भारतीय विदेशी मुद्रा बाजार की नियामक संस्था रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) है। एक्सचेंज द्वारा ट्रेड किये जाने वाले करन्सी प्यूचर्स मार्केट का नियमन सेबी द्वारा, मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेजों के माध्यम से किया जाता है। + +2216. इसका अर्थ है अब हमें 100 अमेरिकी डॉलर खरीदने के लिए 4300 रू. की जगह 4400 रू. चुकाने होते हैं, इस तरह हमें अधिक भुगतान करना होता है। + +2217. ट्रेडिंग कौन कर सकता है? + +2218. वर्तमान में करन्सी प्यूचर्स की ट्रेडिंग सोमवार से शुक्रवार तक सवेरे 9 बजे से सांय 5 बजे के बीच की जा सकती है। + +2219. बीएसई - सीडीएक्स में यूएडी / आईएनआर के भाव का निर्धारण तथा ट्रेडिंग कैसे होगी? + +2220. बीएसई-सीडीएक्स प्यूचर्स की ट्रेडिंग कैसे की जाती है? + +2221. क्या सभी प्यूचर्स कांट्रेक्टों में डिलीवरी की जाती है? + +2222. करन्सी प्यूचर्स कांट्रेक्ट (शनिवार तथा एफईडीएआई अवकाशों को छोड़कर) हर माह के आखि]री कार्य दिवस को एक्सपायर (समाप्त) होगा। + +2223. करन्सी प्यूचर ट्रेडिंग के पहले दिन इनीशियल मार्जिन की दर 1.75 प्रतिशत होगी, उसके बाद यह 1 प्रतिशत की दर से लगेगी। + +2224. मार्क - टू - मार्केट मार्जिन क्या है? + +2225. ग्राहक - सभी कांट्रेक्टों में ग्राहक की ग्रॉस ओपने पोजीशन कुल ओपेन इंटररेस्ट का 6 प्रतिशत अथवा 5 मिलियन डॉलर (इनमें से जो अधिक हो) से अधिक नहीं होनी चाहिए। ग्राहक के ग्रॉस ओपने पोजीशन के कुल ओपेन इंटरेस्ट के 3 प्रतिशत से अधिक होने पर एक्सचेंज पिछले दिन की ट्रेडिंग के समाप्ति में चेतावनी जारी करेगी। + +2226. डेब्ट मार्केट ऐसा बाजार है कि जिसमें स्थिर आयवाली विभिन प्रकार की सिक्युरिटीज का क्रय-विक्रय होता है। यह सिक्युरिटीज अधिकांशत: केन्द्र और राज्य सरकारें, महानगर पालिकाएं, सरकारी संस्थाएं, व्यापारी संस्थाएं जैसे कि वित्त संस्थाएं, बैंकें, सार्वजनिक इकाईयां पब्लिक लि. कंपनियां जारी करती हैं । + +2227. गवर्नमेंट सिक्युरिटीज (जी-सेक) में निवेश करने का क्या लाभ है? + +2228. केन्द्र सरकार द्वारा जारी की जाने वाली सिक्युरिटीज में जीरो कूपन बांड्स, कूपन वाला बांड्स, ट्रेजरी बिल्स और सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों द्वारा जारी बांड्स, डीबेंचर्स, राज्य सरकारों द्वारा जारी किया जाने वाला कूपन बियरिंग बांड्स, निजी क्षेत्र की कंपनियों द्वारा जारी किया जाने वाला डीबेंचर्स, कमर्शियल पेपर्स, प्लोटिंग रेट बांड्स, जीरो कूपन बांड्स, इंटर कार्पोरेट डिपजिट सर्टिफिकेट्स, डिबेंचर्स, बैंकों द्वारा जारी सर्टिफिकेट्स आफ डिपाजिट, डिबेंचर्स, बांड्स और वित्तीय संस्थाओं द्वारा जारी किया जाने वाला बांड्स और डिबेंचर्स का समावेश है। + +2229. खिलाæडियों के लिए विविधता विकसित होती है । विश्वसनीय यील्ड कर्व का और ब्याज दर के ढांचे का विकास होता है । + +2230. डिपाजिटरी के विषय में निवेशकों को जो सर्वसामान्य प्रश्न है उसकी सूची एवं उत्तर यहां प्रस्तुत है। + +2231. डीमटीरियलाइजेशन यह ऐसी प्रक्रिया है, जिससे फिजिकल शेयर सर्टिफिकेट्स इलेक्ट्रोनिक रूप में रूपान्तर किया जाता है । + +2232. इस्यूअर अर्थात क्या ? + +2233. नहीं, एक ही इस्यूअर द्वारा विभिन प्रकार की सिक्युरिटीज इस्यू की जाती हो तो भी उसका आईएसआईएन अलग अलग होता है । + +2234. 500 शेयरों तक के शेयरों का निपटान फिजिकल रूप में हो सकता है फिर भी हस्ताक्षर नहीं मिलने, गलत हस्ताक्षर करने या जाली सार्र्टिफिकेट आदि कारणों से उत्पन होने वाली बैड डीलिवरी की दहशत से फिजिकल रूप में सौदे का निपटान लगभग नहीं होता । + +2235. विभिन कंपनियों को अलग अलग सूचना देने की अपेक्षा डीपी को सिर्फ एक सूचना देकर पते में हेरफेर, पावर आफ एटार्नी की पंजीकरण और मृतक का नाम रद्द करना आदि हो सकता है । + +2236. डीपी के माध्यम से डीमेट खाता खुलवाना काफी सरल और आसान है । यह प्रक्रिया बौंक एकाउंट खोलने जैसा ही है । इसके अलावा निवेशक को अपनी पहचान और पता का प्रमाण जैसे कि पेन (पर्मानेंट एकान्ट नंबर) कार्ड, पासपोर्ट, राशनकार्ड आदी डीपी के समक्ष पेश करना पड़ता है । + +2237. निवेशक मार्गदर्शन. + +2238. 2. कंपनी की तरफ से कंपनी में होल्डिंग का ट्रांसफर , विभाजन और एकत्रीकरण जैसी जानकारी प्राप्त करना। + +2239. 7. शेयर दलाल के साथ विवाद के मामले में एक्सचेंज की आर्बिट्रेशन सुविधा प्राप्त करना। + +2240. पूर्णरूपेण विश्वास प्राप्त कर और नियमों का पालन करने के बाद सिर्फ सेबी के साथ रजिस्टर्ड दलाल/उपदलाल के साथ काम करें। एक्सचेंज की वेबसाइट पर और एक्सचेंज द्वारा प्रकाशित की गई सदस्यों की सूची में से शेयर दलाल का चयन किया जा सकता है। + +2241. कांट्रैक्ट नोट-फार्म-ए + +2242. जब एक दलाल सब-ब्रोकर के रूप में उसके ग्राहक /इन्स्टिट्îाूट के लिए काम करता हो तब सब-ब्रोकर द्वारा यह कांट्रैक्ट जारी किया जाता है। + +2243. डीमेट खाता खुलवा कर रखें। + +2244. क्या करें - क्या न करें. + +2245. 2. अपने ब्रोकर/एजेंट/डिपॉजीटरी पार्टिसिपेंट को स्पष्ट और सटीक निर्देश दें। + +2246. 7. किसी भी मध्यस्थी का ग्राहक बनने से पूर्व पूरी सावधानी बरतें।इसके अलावा निवेशकों से अनुरोध किया जाता है कि वह 'रिस्क डिस्क्लोजर डाक्यूमेंट' यानी जोखिम का खुलासा करने वाला दस्तावेज ध्यान से पढ़ें, जो शेयर बाजार में ब्रोकर के जरिये कारोबार करने वाले निवेशकों की आधारभूत आवश्यकताओं का एक हिस्सा है। + +2247. 2. `अफवाहों', जिन्हें आम तौर पर 'टिप्स' कहा जाता है, के आधार पर कारोबार न करें। + +2248. 7. कार्पोरेट गतिविधियों पर मीडिया की खबरों पर आंखें मूंदकर विश्वास न करें, क्योंकि वह गुमराह करने वाली भी हो सकती हैं। + +2249. केन्द्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा जारी किए गए दिशानिर्देश के अनुसार बीएसई ने डिफाल्टर सदस्यों के विरूद्ध निवेशकों के दावों का भुगतान करने के लिए इन्वेस्टर्स प्रोटेक्शन फंड का गठन 10 जुलाई, 1987 को किया था। + +2250. निवेशकों के दावों का भुगतान. + +2251. बीएसई के सर्वेलन्स विभाग को अपने कार्य में तत्परता एवं सक्रियता के कारण अंतर्राष्ट्रीय प्रमाणपत्र मिला है। आज बाजार की कार्य पद्धति और सुरक्षा व्यवस्था काफी सुदृढ़ है जो निवेशकों एवं बाजार के सदस्यों में विश्वास प्रगाढ़ करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। + +2252. बीएसई की वेबसाईट शेयर बाजार संबंधी सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध कराती है। बीएसई ने चेनई, राजकोट, जयपुर और बैंग्लोर में प्रादेशिक टेक्नोलॉजी हब्स भी शुरू किये हैं। + +2253. सर्वेलंस विभाग नियमित रूप से सदस्यों की सीमा पर और शेयरों के भाव एवं वाल्यूम पर भी नजर रखता है। बीएसई ने एक सक्षम सर्किट फिल्टर की सीमा की व्यवस्था तैयार की है। जिससे इस बात की निगरानी की जाती हैं कि शेयरों के भाव प्रतिदिन तय सीमा से अधिक न बढ़े अथवा न घटे । शेयरों के भाव में असाधारण घटबढ़ और वाल्यूम पर लगातार नजर रखी जाती है। यदि ऐसी कोई प्रवृत्ति दिखाई दे तो एक्सचेंज द्वारा सर्किट फिल्टर के माध्यम से भाव पर नियंत्रण लगाया जाता है। भाव में कृत्रिम वृद्धि करने की आशंका होने पर वैसे मामले में शेयरों पर एक्सचेंज द्वारा विशेष मार्जिन लादी जाती है, फिर भी ऐसी प्रवृत्ति जारी रही तो स्क्रिप को ट्रेड़-टू-ट्रेड़ सेगमेंट में ट्रांसफर कर दिया जाता है। जिसमें इस शेयर में नेटिंग या स्क्वेयर आफ की सुविधा सुलभ नहीं होती और आवश्यक रूप से उसी दिन डीलिवरी देनी पड़ती है। इसके बाद भी यदि असाधारण घटबढ़ जारी रही तो एक्सचेंज द्वारा उस शेयर को सस्पेंड़ (स्थगित) करने का भी कदम उठाया जाता है। ऐसी प्रवृत्ति करनेवालों के विरूद्ध जांच भी शुरू की जाती है और दोषियों के विरूद्ध अनुशासन भंग करने की कारवाई की जाती है। + +2254. इसमें एक ग्रुप में फिक्स्ड इनकम सिक्युरिटी का समावेश है। टी ग्रुप में सर्वेलंस के कदम के रूप में ट्रेड-टू-ट्रेड के आधार पर जिसका निपटान करना हो उस स्क्रिप्स का समावेश होता है। एस ग्रुप बीएसई-इन्डोनेक्स्ट सेगमेंट का एक हिस्सा है, इसमें भी ट्रेड-टू-ट्रेड के आधार पर ही निपटान होता है। + +2255. एक्सचेंज के साथ लिस्टिंग करार (अनुबंध) करनेवाली और जिनके शेयर बीएसई पर लिस्टेड हों उसे लिस्टेड सिक्युरिटीज कहा जाता है। + +2256. रोलिंग सेटलमेंट + +2257. सदस्य, दोनो डीपाजिटरी में से किसी भी डीपाजिटरी के माध्यम से क्लियरिंग हाउस में डीमेट सिक्युरिटीज का पे-इन कर सकता है। सदस्य डीपाजिटरी के माध्यम से अपने ग्राहक के बेनिफिसियरी खातों में से भी सीधे पे-इन कर सकते हैं। + +2258. नीलाम + +2259. बास्केट ट्रेडिंग सिस्टम + +2260. सर्वेलंस (निगरानी) का मुख्य उद्देश्य बाजार की अखंडिता को बरकरार रखना है। यह कार्य दो तरह से किया जाता है। एक, भाव और कामकाज की मात्रा (वाल्यूम) की घट-बढ़ पर नजर रखकर एवं दूसरा भुगतान संकट को दूर करने के लिए समयानुकूल आवश्यक कदम उठा कर। कैश और डेरिवेटिव्स बाजार में किसी सार्थक जानकारी के अभाव में स्क्रिप/सिरीज का भाव/वाल्यूम की विसंगतियों को प्रारंभिक चरण में ही ढ़ूंढ़ कर बाजार के खिलाडि़यों की भाव पर असर ड़ालने की क्षमता में कमी लाने का कदम उठाया जाता हैं। कैश और प्युचर-आप्शन्स बाजार के इक्विटी संबंधी सभी इंस्ट¦मेंट की ट्रेडि़ंग सर्वेलंस के तहत आती है। + +2261. अनेकों बार शेयरों के भाव को प्रभावित करने वाली अफवाहें जंगल की आग की तरह फैलती रहती हैं। तब सर्वेलंस विभाग संबंधित कंपनी से संपर्क कर उसकी सही हकीकत की जानकारी हासिल करता है और निर्वेशकों को उसकी जानकारी देता है। जो कंपनी तत्काल जवाब नहीं देती उन्हें शो-काज (कारण बताओ) नोटिस भेजी जाती है। + +2262. चालू खाते को छोड़कर अन्य खातों में बैंक ब्याजमुक्त जमाराशियां स्वीकार नहीं कर सकते + +2263. बैंकों को जमाराशिकी विनिर्दिष्ट अवधि समाप्त होने की तारीख तथा अगले कार्य-दिवस में जमाराशियों की आगाम राशियों की अदयगी की तारीख के बीच आने वाले छुट्टी के दिनों/रविवार/गैर-कारोबारी कार्य-दिवसों के लिए जमाराशि पर मूलतः संविदा की गयी दर पर ब्याज अदा करना चाहिए + +2264. अनुबंध में उल्लिखित सरकारी संगठनों/एजेंसियों की जमाराशियों को छोड़कर सरकारी विभागों/सरकारी योजनाओं के नाम में बचत बैंक खाते नहीं खोले जा सकते + +2265. नहीं बैंक विदेशी मुद्रा अनिवासी (बी) योजना के अंतर्गत आवर्ती जमाराशियां स्वीकार नहीं कर सकते + +2266. बैंक, अपने विवेक पर, अतिदेय अनिवासी विदेशी/विदेश मुद्रा अनिवासी (बी) जमाराशि या उसके एक अंश का नवीकरण कर सकता है, बशर्ते परिपक्वता की तारीख से नवकिरण की तारीख तक (दोनों दिन शामिल अतिदेय अवधि 14 दिनों से अधिक न हो और इस प्रकार नवीकृत जमाराशि पर देय ब्याज की दर अवधिपूर्णता की तारीख को अथवा जमाकर्ता द्वारा जब नवीकरण की मांग की जाती हो उस तारीख को, जो भी कम हो, नवीकरण की अवधि के लिए लागू उपयुक्त ब्याज दर होगी यदि अतिदेय जमाराशियों के मामले में अतिदेय अवधि 14 दिनों से अधिक की हो तो जमाराशि का नवीकरण उस दिन लागू ब्याज दर पर किया जा सकता है, जिस दिन नवीकरण की मांग की गयी हो यदि जमाकर्ता समग्र अतिदेय जमाराशि अथवा उसका एक भाग नये अनिवासी विदेशी/विदेशी मुद्रा अनिवासी (बी) जमाराशि के रूप में रखता हो, तो बैंक नयी मीयादी जमाराशि के रूप में इस प्रकार रखी गयी राशि पर अतिदेय अवधि के लिए अपनी ब्याज दरें निर्धारित कर सकते हैं नवीकरण के बाद योजना के अंतर्गत न्यूनतम निर्धारित अवधि पूरी हो के पूर्व जमाराशि निकाले जाने पर बैंक अतिदेय अवधि के लिए इस प्रकार दिये गये ब्याज की वसूली के लिए स्वतंत्र हैं + +2267. नहीं ब्याज अर्जित करने के लिए जमाराशि न्यूनतम निर्धारित अवधि तक रखी जानी चाहिए, जो वर्तमान में विदेशी मुद्रा अनिवासी (बी) के लिए एक वर्ष और अनिवासी विदेशी जमाराशियों के लिए छः माह है + +2268. @ प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के तहत `कमजोर वर्ग' में निम्नलिखित शामिल हैं + +2269. (ग) गैर-प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अन्य व्यक्तिगत ऋण + +2270. "परन्तु यह कि ऋणकर्ता द्वारा देय ब्याज समय-समय पर रिज़र्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में किये गये परिवर्तनों के अधीन होगा" + +2271. जहां तक निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम की गारंटी फीस का संबंध है, बैंकों को यह विवेकाधिकार है कि वे कमजट्रोर वर्गो को दिये गये अग्रिमों का छोड़कर 25,000 रूपये तक के अग्रिमों और कमज़ोर वर्गो को दिये गये सभी अग्रिमों के संदर्भ में निक्षेप बिमा और प्रत्यय गारंटी निगम की गारंटी फीस वहन करनी चाहिए + +2272. नहीं + +2273. गैर बैंकिंग गैर वित्तीय कंपनियों में उनकी सार्वजनिक जमा योजना में अपनी निधियां लगाने पर बैंकों पर कोई पाबंदी नहीं है परंतु सार्वजनिक जमा योजना में किये गये बैंकों द्वारा ऐसे निवेशों को अपने तुलन पत्रों, बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 के अंतर्गत विवरणियों में और अनुसूचित वाणिज्य बैंकों द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के अंतर्गत पाक्षिक विवरणियों में ऋणों/अग्रिमों के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए + +2274. हां, एक वर्ष से अनधिक अवधि के लिए अपेक्षित ईक्विटी प्रवाह/निर्गमों की जमानत पर तथा अपनिवर्तनीय डिबेंचरो की अपेक्षित आगम राशियों, बाह् य वाणिज्यिक उधारों, सार्वभौमिक जमा रसीदों और/या विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के स्वरूप की निधियों की जमानत पर, बशर्ते बैंक इस बात से संतुष्ट हो कि ऋण लेनेवाली कंपनी ने उक्त संसाधन/निधियां जुटाने के लिए ठोस व्यवस्थाएं की हैं ऐसे ऋण पिछले वर्ष की वृध्दिशील जमाराशियों की 5 पेतिशत की उच्चतम सीमा के भीतर रखना अपेक्षित है + +2275. हां, हानि उठानेवाले बैंक किसी वित्तीय वर्ष में कुल 5 लाख रूपये दान दे सकते हैं + +2276. अक्सर पूछे जानेवाले प्रश्नों को निम्नलिखित कोटियों में बाँटा गया है + +2277. बैंकिंग लोकपाल अद्र्ध न्यायिक प्राधिकारी है विचार-विमर्श के माध्यम से शिकायतों के समाधान को सुविधाजनक बनाने के लिए इसे दोनों पक्षों-बैंक और ग्राहक को बुलाने का अधिकार है + +2278. बैंकिंग लोकपाल बैंकिंग सेवाओं में निम्नलिखित कमियों के संबंध में किसी भी शिकायत को प्राप्त कर सकता है और विचार कर सकता है + +2279. नहीं उसी विषय वस्तु पर शिकायत नहीं की जा सकती जिसका निपटान किन्हीं पूर्ववर्ती कार्यवाहियों में बैंकिंग लोकपाल के कार्यालय द्वारा किया गया हो + +2280. शिकायत में शिकायतकर्ता के नाम और पते, उस बैंक की शाखा अथवा कार्यालय का नाम और पता जिसके विरूद्ध शिकायत की गई है, शिकायत के कारण के लिए तथ्य और उसके समर्थन में दस्तावेज़, यदि कोई हो, शिकायतकर्ता को हुई हानि का स्वरूप और सीमा, बैंकिंग लोकपाल से माँगी गई राहत और उन शर्तो के अनुपाल के बारे में एक धोषणा जो शिकायतकर्ता द्वारा अनुपालन के लिए अपेक्षित है + +2281. कोई अधिनिर्णय पारित करने के लिए बैंकिंग लोकपाल पक्षों द्वारा उसके समक्ष प्रस्तुत किए गए दस्तावेज़ी साक्ष्य, बैंकिंग विधि और व्यवहार के सिद्धांत, दिशानिर्देशों, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किए गए अनुदेशों और मार्गदर्शी सिद्धांतों तथा ऐसे अन्य कारकों द्वारा निर्देशित होता है जो उसकी राय में न्याय के हित में आवश्यक है + +2282. यदि बैंकिंग लोकपाल शिकायतकर्ता द्वारा समय-विस्तार (अधिनिर्णय की स्वीकार्यता का अपना पत्र भेजने हेतु) के अपने अनुरोधपत्र में बताए गए कारणों से संतुष्ट है तो वह ऐसे अनुपालन के लिए पंद्रह दिनों तक के और समय-विस्तार की स्वीकृति दे सकता है + +2283. अधिनिर्णय के विरूद्ध अपील. + +2284. अन्य. + +2285. + +2286. भारत में सरकारी प्रतिभूति बाजार में पिछले दशक में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं इलैक्ट्रॉनिक क्रीन आधारित कारोबार प्रणाली लागू करना, अमूर्त धारिता, सीधा प्रसंस्करण, तयशुदा समायोजन के लिए केद्रीय प्रतिरूप (सीसीपी) के रूप में भारतीय समाशोधन निगम लिमि. (सीसीआइएल) की स्थापना, नई लिखतों तथा कानूनी परिवेश में परिवर्तन कुछ ऐसी महत्वपूर्ण गतिविधियाँ हैं जिन्होने इस बाजार को तेजी से विकसित होने में सहयोग दिया है + +2287. 1.1. सरकारी प्रतिभूति एक व्यापारयोग्य लिखत है जो केद्र सरकार अथवा राज्य सरकारों द्वारा जारी किए जाते हैं ये सरकार का ऋण दायित्व दर्शाते हैं यह प्रतिभूतियाँ अल्पावधि (सामान्यतः इन्हें खजाना बिल कहा जाता है, जिनकी मूल परिपक्वता 1 वर्ष से कम होती है) अथवा दीर्धावधि (सामान्यतः इन्हें सरकारी बॉण्ड अथवा दिनांकित प्रतिभूतियाँ कहा जाता है, जिनकी मूल परिपक्वता एक वर्ष अथवा अधिक होती है) होती हैं भारत में केद्र सरकार, खजाना बिल तथा बॉण्ड अथवा दिनांकित प्रतिभूतियाँ जारी करती है जबकि राज्य सरकारें केवल बॉण्ड अथवा दिनांकित प्रतिभूतियाँ जारी करती हैं जिन्हें राज्य विकास ऋण (एसडीएल) कहा जाता है सरकारी प्रतिभूतियों में, व्यावहारिक रूप से, चूक का कोई जोखिम नहीं होता है, तथा इस प्रकार इन्हें जोखिम मुक्त अथवा श्रेष्ठ प्रतिभूतियाँ कहा जाता है भारत सरकार बचत लिखत (बचत बॉण्ड, राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र (एनएससी), इत्यादि) अथवा विशेष प्रतिभूतियाँ (तेल बॉण्ड, भारतीय खाद्य निगम बॉण्ड, उर्वरक बॉण्ड, ऊर्जा बॉण्ड इत्यादि) भी जारी करती है ये पूर्णतया व्यापार योग्य नहीं होते हैं, अतः सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) प्रतिभूतियों के लिए पात्र नहीं होते हैं + +2288. प्रतीकात्मक दिनांकित नियत कूपन सरकारी प्रतिभूतियों की नाम पद्धति में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं - कूपन, जारीकर्ता का नाम, परिपक्वता और अंकित मूल्य उदाहरणार्थ : 7.49% जीएस 2017 का अर्थ होगा :- + +2289. जारी करने की तारीख 16 अप्रैल 2007 + +2290. यदि कूपन भुगतान की तारीख रविवार अथवा छुट्टी के दिन है, तो कूपन भुगतान अगले कार्य दिवस को किया जाता है तथापि, यदि परिपक्वता की तारीख रविवार अथवा छुट्टी के दिन होती है तो शोधन की आय का भुगतान पिछले कार्य दिवस को किया जाता है + +2291. उदाहरण - 8.24 प्रतिशत जीएस 2018 दस वर्ष के अवधि के लिए 22 अप्रैल 2008 को जारी किया गया जिसकी परिपक्वता 22 अप्रैल 2018 को है इस प्रतिभूति पर कूपन प्रत्येक वर्ष छःमाही आधार पर 4.12 प्रतिशत की दर से अंकित मूल्य पर 22 अक्तूबर और 22 अप्रैल को अदा किया जाएगा + +2292. (v) मांग/विक्रय विकल्प वाले बाँण्ड - विकल्प की विशेषताओं वाले बॉण्ड भी जारी किये जा सकते हैं जहाँ जारीकर्ता के पास बाय बैक (मांग/विकल्प) का विकल्प होगा अथवा निवेशक के पास यह विकल्प होगा कि वह बॉण्ड की अवधि के दौरान जारीकर्ता को बॉण्ड बेच (विक्रय विकल्प) सकते हैं 6.72% जीएस 2012, 18 जुलाई 2002 को जारी किए गए थे जिनकी परिपक्वता अवधि दस वर्ष की है तथा परिपक्वता की तारीख 18 जुलाई 2012 है बॉण्ड पर विकल्प का प्रयोग उसके बाद आने वाली किसी कूपन तारीख को जारी करने की तारीख से 5 वर्ष की अवधि पूरा होने के बाद किया जा सकता है सरकार को सममूल्य पर (अंकित मूल्य के बराबर) बॉण्ड बाय बैक (मांग/विकल्प) करने का अधिकार है जब कि निवेशक को 18 जुलाई 2007 से आरंभ होने वाली किसी भी छमाही कूपन तारीखों में सममूल्य पर सरकार को बेचने का अधिकार होगा + +2293. 2.1. बैंक द्वारा अपनी दैनिक आवश्यकताओं से अधिक नकदी रखने से उसे कुछ लाभ नहीं होता सोने में निवेश से बहुत सी समस्याएँ होती हैं जैसे उसकी शुद्धता, मूल्यांकन, सुरक्षित अभिरक्षा इत्यादि सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश के निम्नलिखित लाभ हैं :- + +2294. (ग) गैर अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों को, जिनकी मांग और मीयादी देयताएँ 25 करोड़ रू. से कम हैं, अपनी एसएलआर अपेक्षाओं का 10% सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में धारण करना चाहिए + +2295. 2.6 वर्तमान में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को अपनी एसएलआर प्रतिभूतियों के संबंध में उनके दैनिक बाजार cetu³e से छूट प्रदान की गई है तदनुसार, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को "परिपक्वता तक धारित" के अंतर्गत अपने पूरे निवेश संविभाग को वर्गीकृत करने तथा उन्हें उनके बही मूल्य पर मूल्यांकित करने की छूट दे दी गई है + +2296. नीलामियों के निर्गम जारी करने के तरीके के रूप में लागू करने से पहले सरकार द्वारा ब्याज दरें प्रशासनिक रूप से निर्धारित किए जाते थे नीलामी शुरू करने के साथ ब्याज दरें (कूपन दरें) बाजार आधारित मूल्य निर्धारण प्रक्रिया के माध्यम से निर्धारित किए जाते हैं + +2297. + +2298. नीलामी निपटान की तारीख : 8 सितंबर 2008* + +2299. बोली की राशि (रू.करोड़) + +2300. 300 + +2301. 200 + +2302. 250 + +2303. 150 + +2304. 100 + +2305. 100 + +2306. 150 + +2307. 100 + +2308. वर्तमान प्रतिभूति 8.24% जीएस 2018 की मूल्य आधारित नीलामी + +2309. नीलामी निपटान की तारीख : 8 सितंबर 2008* + +2310. बोली की राशि (रू.करोड़) + +2311. 300 + +2312. 200 + +2313. 250 + +2314. 150 + +2315. 100 + +2316. 100 + +2317. 150 + +2318. 100 + +2319. 4.3. कोई निवेशक नीलामी में निम्नलिखित में से किसी भी श्रेणी में बोली लगा सकता है :- + +2320. 5. खुले बाजार परिचालन (ओएमओ) क्या हैं ? + +2321. (ख) डीमैट रूप में : सरकारी प्रतिभूतियों को डीमैट रूप में अथवा क्रिप रहित रूप में रखना सबसे अधिक सुरक्षित और सुविधाजनक विकल्प है क्योंकि इससे सुरक्षित रूप से रखने की समस्याएँ यथा प्रतिभूति का गुम होना इत्यादि समाप्त हो जाती हैं साथ ही, इलैक्ट्रॉनिक रूप में अंतरण और सर्विसिंग परेशानी रहित होती है धारक अपनी प्रतिभूतियों को डीमैट रूप में दो प्रकार से रख सकता है : + +2322. (i) काउंटर पर (ओटीसी)/टेलीफोन बाजार + +2323. 8.5. गिल्ट खाता धारकों को अपने अभिरक्षक संस्थान के माध्यम से एनडीएस तक अप्रत्यक्ष पहुँच प्रदान की गई है कोई सदस्य (जिसकी सीधी पहुँच है) एनडीएस पर सरकारी प्रतिभूतियों में गिल्ट खाताधारक के लेन-देन रिपोर्ट कर सकता है इसी प्रकार, गिल्ट खाताधारकों को एनडीएस-ओएम तक अप्रत्यक्ष रूप से पहुँच उनके अभिरक्षकों के माध्यम से दी गई है तथापि, एक ही अभिरक्षक के दो गिल्ट खाताधारकों को आपस में रिपो लेन-देन की अनुमति नहीं हैं + +2324. करने योग्य अथवा न करने योग्य महत्वूपर्ण बातें नीचे बाक्स 1 में प्रस्तुत हैं + +2325. 11.2. यदि कोई डील ब्रोकर के माध्यम से होती है, ब्रोकर द्वारा काउंटर पार्टी का स्थानापन्न नहीं होना चाहिए इसी प्रकार, किसी भी स्थिति में किसी डील में बेची/खरीदी गई प्रतिभूति को किसी अन्य प्रतिभूति से बदलना नहीं चाहिए किसी व्यक्ति द्वारा अपराध रोकने के लिए एक "मेकर-चैकर" ढाँचा लागू किया जाना चाहिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि प्रणाली में मेकर (जो डेटा निविष्टियाँ करता है) और चैकर (जो सत्यापित करके आँकड़े प्राधिकृत करता है) का काम एक ही व्यक्ति न करे + +2326. (iii) सही मूल्यन कैसे सुनिश्चित किया जाए - चूंकि शहरी सहकारी बैंक जैसे छोटे निवेशकों की अपेक्षाएँ कम होती हैं, उन्हें वह मूल्य मिल सकता है जो मानक बाजार माँग से खराब हो मूल्य की सुनिश्चितता देखते हुए खरीदने के लिए केवल तरल प्रतिभूतियों का चयन किया जाए कम अपेक्षा वाले निवेशकों के लिए सुरक्षित विकल्प गैर स्पर्धी मार्ग के माध्यम से भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा आयोजित प्राथमिक नीलामी में खरीदना होगा चूंकि बॉण्ड नीलामी प्रत्येक माह में दो बार होती है, खरीद को नीलामी के साथ जोड़ा जा सकता है कृपया सरकारी प्रतिभूतियों के मूल्य सुनिश्चित करने पर ब्योरे के लिए प्रश्न सं.14 देखें + +2327. एनडीएस-ओएम बाजार + +2328. प्राथमिक बाजार + +2329. "कामबंदी अवधि" का तात्पर्य उस अवधि से है जब प्रतिभूतियों की सुपुर्दगी नहीं होती इस अवधि के दौरान उन प्रतिभूतियों के समायोजन/सुपुर्दगी की अनुमति नहीं होगी जो "कामबंदी" में है कामबंदी अवधि का मुख्य प्रयोजन प्रतिभूतियों की सर्विसिंग करना है जैसे कूपन के भुगतान और शोधन आय को अंतिम रूप देना तथा इस प्रक्रिया के दौरान प्रतिभूतियों के स्वामित्व में किसी परिवर्तन को रोकना है वर्तमान में एसजीएल में धारित प्रतिभूतियों के लिए कामबंदी अवधि एक दिन है उदाहरणार्थ प्रतिभूति 6.49% जीएस 2015 के लिए कूपन भुगतान की तारीख प्रत्येक वर्ष 8 जून और 8 दिसंबर है इस प्रतिभूति के संबंध में कामबंदी अवधि 7 जून और 7 दिसंबर होगी तथा इस प्रतिभूति के संबंध में समायोजन के लिए कारोबार की इन दो तारीखों को अनुमति नहीं होगी + +2330. सकल प्रणाली में तरलता अपेक्षा निवल प्रणाली से अधिक होती है क्योंकि निवल प्रणाली में देय और प्राप्य राशि एक दूसरे के साथ समायोजित हो जाती है + +2331. 2. स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक (022) 622303/22652875/22683695 + +2332. 7. केनरा बैंक (022) 22800101-105/22661348 + +2333. (ख) स्वतंत्र पीडी + +2334. 5. एसटीसीआइपीडी लिमि. (022) 66202261/2200 + +2335. प्ूूज्://ैैै.ींi.दीु.iह/म्दस्स्दहस्aह/हिंुत्iेप्/एम्ीiज्ूे/झीiस्aीब्अaतीे.aेज्x पर प्राथमिक व्यापारियें की अद्यतनसूची उपलब्ध है + +2336. कार्य + +2337. रेट - प्रत्येक अवधि की ब्याज दर है + +2338. टाइप का अर्थ + +2339. अवधि के आरंभ में + +2340. इस फंक्शन का प्रयोग दी गई ब्याज दर पर किए गए निवेशों की श्रृंखला के भविष्य में मूल्य की गणना के लिए किया जाता है + +2341. टाइप - 0 अथवा 1 संख्या है और ये निर्दिष्ट करते हैं कि भुगतान कब देय है यदि टाइप हटा दिया जाए तो यह 0 माना जाए + +2342. यह फंक्शन कूपन अवधि के शुरू से अंत तक दिनों की संख्या की गणना के लिए प्रयोग किया जाता है, जिसमें समायोजन तारीख होती है + +2343. आधार + +2344. यूएस (एनएएसडी) 30/360 + +2345. 4 + +2346. परिपपक्वता 2/2/2019; समायोजन-25/5/2009/आवधिकता-2 (छमाही कूपन) और आधार 4 (दिन गिनने की परंपरा 30/360) + +2347. आरंभ - तारीख वह तारीख हे जो आरंभ की तारीख बताती है + +2348. परिणाम 9.68 वर्ष होगा + +2349. परिपक्वता प्रतिभूति की परिपक्वता की तारीख है परिपक्वता तारीख वह तारीख है जब प्रतिभूति की अवधि समाप्त होती है + +2350. आधार प्रयोग के आधार पर दिन गिनने का स्वरूप है + +2351. प्रतिप्ल (समायोजन, परिपक्वता, दर, पीआर, शोधन, आवधिकता, आधार) + +2352. पीआर - प्रति 100 रू. के अंकित मूल्य का प्रतिभूति मूल्य + +2353. 7. अवधि + +2354. कूपन - प्रतिभूति की वार्षिक कूपन दर है + +2355. परिणाम 7.25 वर्ष होगा + +2356. परिपक्वता - प्रतिभूति की परिपक्वता की तारीख है परिपक्वता तारीख वह तारीख है जब प्रतिभूति की अवधि समाप्त होती है + +2357. ऊपर दिए अनुसार वही उदाहरण लेते हुए एक्सेल फंक्शन में उक्त अवधि और मूल्य देते हुए फार्मूले का परिणाम 7.01 होगा + +2358. बोली मूल्य/प्रतिप्ल + +2359. नीलामी में बोलीकर्ता द्वारा लगाए गए मूल्य को स्पर्धी बोली कहा जाता है + +2360. बट्टा + +2361. प्रतिभूति की परिपक्वता की तारीख को किसी निवेशक को अदा किया जाने वाला अंकित मूल्य कहलाता है ऋण प्रतिभूतियाँ अलग-अलग अंकित मूल्य पर जारी की जाती है; तथापि भारत में, इन का अंकित मूल्य विशिष्ट रूप से 100 रू. होता है अंकित मूल्य को चुकौती राशि भी कहा जाता है इस राशि का शोधन मूल्य, मूल मूल्य (अथवा मूलधन), परिपक्वता मूल्य अथवा सम मूल्य भी कहा जाता है + +2362. मार्केट लॉट + +2363. गैर स्पर्धी बोली का अर्थ है कि बोलीकर्ता, मूल्य की बोली लगाए बिन, दिनांकित सरकारी प्रतिभूतियों की बोली में भाग ले सकता है गैर स्पर्धी धटक का आबंटन उस भारित औसत दर पर होगा जो स्पर्धी बोली के आधार पर नीलामी में आएगा यह एक आबंटन सुविधा है जिसमें कुल प्रतिभूतियों का एक भाग सफल स्पर्धी बोली के भारित औसत मूल्य पर बोलीकर्ताओ को आबंटित किया जता है (कृपया प्रश्न सं.4 के अंतर्गत पैराग्राफ 4.3 भी देखें) + +2364. अधिमूल्य (प्रीमियम) + +2365. सरकारी उधार की आवश्यकताओं को यथासंभव सस्ते और सक्षम रूप से पूरा करने के उद्देश्य से विशेषकृत वित्तीय फर्मो/बैंकों के एक समूह को सरकारी प्रतिभूति बाजार और जारीकर्ता के बीच विशेषीकृत मध्यस्थ की भूमिका निभाने के लिए नियुक्त किया जाता है इन संस्थाओं को सामान्यतया प्राथमिक व्यापारी अथवा मार्केट मेकर कहा जाता है लगातार बोली लगाने तथा विपणन योग्य बाजार प्रतिभूतियों में मूल्य लगाने अथवा नीलामी में बोली लगाने जैसे कार्यो के बदले में इन फर्मो को प्राथमिक/द्वितीयक बाजार में कुछ लाभ मिलते हैं + +2366. रिपो/रिवर्स रिपो + +2367. द्वितीयक बाजार + +2368. सरकार की उधार देयताएँ जिनकी अवधि समाप्ति 1 वर्ष अथवा कम होती है सामान्यतया खजाना बिल अथवा टी बिल कहलाते हैं खजाना बिल, खजाने/सरकार की अल्पावधि देयताएँ होती हैं ये अंकित मूल्य पर बट्टे पर जारी लिखत हैं और मुद्रा बाजार का महत्वपूर्ण भाग हैं + +2369. प्रतिप्ल + +2370. विभिन्न परिपक्वता अवधि तथा उसी ऋण गुणवत्ता के बॉण्डों के बीच प्रतिप्ल और परिपक्वता के बीच संबंध दर्शाने वाला ग्राफिक संबंध यह रेखा ब्याज दरों का अवधि ढाँचा दर्शाती है इससे निवेशक ऋण प्रतिभूतियों का विभिन्न परिपक्वता तथा कूपन से तुलना कर सकता है + +2371. मुद्रा का समय मूल्य + +2372. वर्तमान मूल्य (पीवी) फाम्र्यूला के चार परिवर्ती होते हैं जिनमें से एक-एक को निम्नानुसार हल किया जा सकता है + +2373. भावी नकदी प्रवाहों के संचयी वर्तमान मूल्य की गणना एफवी के अंशदान अर्थात् समय पर नकदी प्रवाह का मूल्य `टी' को जोड़कर की जा सकती है + +2374. 2 + +2375. 100 + +2376. राशि + +2377. 0.9091 + +2378. 82.64 + +2379. संचयी वर्तमान मूल्य = 90.91+82.64+75.13=रू.248.69 + +2380. 22. किसी बांड के मूल्य का हिसाब किस प्रकार लगाया जाता है? किसी लेनदेन का कुल प्रतिफल क्या होगा और उपचित ब्याज क्या होता है? + +2381. यहां लगाए गए मूल्य को `क्लीन मूल्य' कहा जाता है, क्योंकि उसमें उपचित ब्याज जुड़ा नहीं होता है + +2382. कुल प्रतिफल राशि = लेनदेन का अंकित मूल्य डर्टी मूल्य + +2383. ● यदि बॉण्ड का बाजार मूल्य अंकित मूल्य से अधिक है अर्थात् बांड प्रीमियम पर बिकता है, तो कूपन आय > चालू आय > वाइटीएम + +2384. ● बॉण्ड बेचे जाने पर मिलनेवाला किसी प्रकार का पूंजीगत लाभ (या पूंजी हानि); और + +2385. कूपन आय = कूपन भुगतान/अंकित मूल्य + +2386. कूपन आय : 8.24/100 = 8.24% + +2387. प्रति रू.100 के सम मूल्य पर रू.103.00 के लिए बेचे जानेवाले 10 वर्षीय 8.24% कूपन बांड के लिए चालू आय का हिसाब नीचे दिया गया है + +2388. बॉक्स III + +2389. एक 8% के कूपनवाली प्रति रू.100 के अंकित मूल्य के रू.102 के मूल्य वाली दो वर्षीय प्रतिभूति ली जाए; नीचे `आर' के लिए हल करते हुए वाइटीएम की गणना की जा सकती है विशिष्टतया, इस में `आर' के लिए एक मूल्य मान लिया गया है तथा इस समीकरण का हल निकालने में परख एवं भूल शामिल है, इसी में यह भी मान लिया गया है कि यदि दायी और की राशि 102 से अधिक हो तो `आर' के लिए एक उच्चस्तर का मूल्य दिया जाए तथा पुनः हल निकाला जाए लीनीयर इंटरपोलेशन तकनीक का भी एक बार `आर' के लिए `दो' मूल्य लेने पर सही `आर' का पता लगाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, ताकि एक के लिए मूल्य कीमत 102 से अधिक और दूसरे मूल्य कीमत के लिए 102 से कम रहे + +2390. जिसमें कि + +2391. प्रतिदेय - प्रति रू.100 के अंकित मूल्य के लिए प्रतिभूति का प्रतिदेय मूल्य है + +2392. उदाहरण के लिए - भारतीय बाजारों में अपनायी जाने वाली परिपाटी निम्नानुसार है : + +2393. उल्लेखनीय है कि खज़ाना बिल की शेष परिपक्वता समयावधि 50 दिन की है (91-41) + +2394. सर्वप्रथम - प्रत्येक समयावधि के लिए भविष्य के प्रत्येक नकद प्रवाह को इसकी तत्संबंधी वर्तमान कीमत से धटाना होगा चूंकि कूपन प्रत्येक छह माह की समयावधि में दिए जाते हैं अतः एक चक्र छह माह के बराबर होगा और दो वर्ष की परिपक्वता वाले बाण्ड में 4 चक्र होंगे + +2395. समय समयावधि (वर्ष में) + +2396. जोड़ + +2397. 105 + +2398. 88.05 + +2399. 13.14 + +2400. औपचारिक रूप में, समयावधि का तात्पर्य है - + +2401. समयावधि, ब्याज दर परिचालनों (अर्थात् प्रतिप्ल) के प्रति बाण्ड की बाजार कीमत की संवेदनशीलता नापने के रूप में प्राथमिक रूप से उपयोगी होती है यह प्रतिप्ल में आए किसी परिवर्तन हेतु कीमत में आए प्रतिशत परिवर्तन के लगभग समतुल्य होती है उदाहरण के लिए ब्याज दरों में हुए छोटे परिवर्तनों के लिए समयावधि लगभग वह प्रतिशत है जिससे बाण्ड की कीमत बाजार ब्याज दर में 1 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि के लिए गिर जाएगी अतः ब्याज दरों में 1% वार्षिक की वृद्धि होने पर 7 वर्ष की समयवावधि वाले 15 वर्षीय बाण्ड की कीमत लगभग 7% गिर जाएगी दूसरे अर्थो में ब्याज दरों के संबंध में समयावधि बाण्ड की कीमत का लचीलापन है + +2402. बॉक्स IV में दिए गए उदाहरण में, संशोधित समयावधि = 1.86/(1+0.09/2)=1.78 + +2403. अतः पीवी 01=1.81/100=0.018 रू. होगी जो 1.8 पैसे है इस प्रकार 1.78 वर्षो की संशोधित समयावधि वाले किसी बाण्ड का प्रतिप्ल 9% से 9.05% (5 आधार बिंदुओं) में परिवर्तित होता है तो बाण्ड की कीमत 102 रू. से 101.91 रू. में परिवर्तित होती है (9 पैसे की गिरावट अर्थात् 5 X 1.8 पैसे) + +2404. 28.3 राज्य सरकार और अन्य प्रतिभूतियों का मूल्यांन केंद्रीय सरकार की प्रतिभूति की तदनुरूपी शेष परिपक्वता समयावधि के प्रतिप्ल पर कीमत-लागत अंतर को जोड़कर करना चाहिए इस समय राज्य सरकार की प्रतिभूतियों का मूल्यांकन करते समय 25 आधार अंकों (0.25%) का कीमत-लागत अंतर जोड़ा जाता है जबकि विशेष प्रतिभूतियों (तेल बाण्ड, उर्वरक बाण्ड, एसबीआई बाण्डों आदि) के कार्पोरेट बाण्डों के लिए प्मिडा द्वारा दिया गया कीमत-लागत अंतर जोड़ा जाता है राज्य सरकार के एक बाण्ड को ध्यान में रखते हुए मूल्यांकन का एक उदाहरण नीचे बॉक्स V में दिया गया है + +2405. जारी करने की तारीख - 10 दिसंबर 2004 + +2406. उक्त बाण्ड के मूल्यांकन में निम्नलिखित स्तर शामिल हैं - + +2407. स्तर - 1 + +2408. यहा हम 0.69 वर्षो के लिए प्रतिप्ल के अंतर का पता लगाकर और उसे 6 वर्षो के लिए लागू प्रतिप्ल में जोडते हैं ताकि 6.69 वर्षो के लिए प्रतिप्ल का पता लगाया जा सकें यह भी नोट करना हैं कि प्रतिप्ल का उपयोग दशमलव रूप में करना है (उदाहरण के लिए 7.73 प्रतिशत, 7.73/100 के बराबर है जिसका अर्थ है 0.0773) + +2409. यदि बैंक अपने पोर्टप्ाटलियों में 10 करोड रूपये की इस प्रकार की प्रतिभूति भारीत करता है तो कुल कीमत 10*(96.47/100)=9.647 करोड रूपये होगी + +2410. सामान्य रूप से सरकारी प्रतिभूतियों को जोखिम रहित लिखतें माना जाता है क्योंकि सरकार से अपने भुगतान में चूक अपेक्षित नहीं हैं तथापि, जैसा कि किसी भी वित्तीय लिखत के मामले में होता है वैसा ही जोखिम सरकारी प्रतिभूतियों के साथ भी होता है अतः इस प्रकार के जोखिमों की पहचान करना और उन्हें समझाना और उनको दूर करने के लिए उचित उपाय करना आवश्यक है सरकारी प्रतिभूतियों की धारिता के साथ निम्नलिखित प्रमुख जोखिम जुड़े होते हैं - + +2411. उन्नत जोखिम प्रबंधन तकनीकों में ब्याज दर स्वॉप (आइआरएस) जैसे व्युत्पन्नियों का प्रयोग शामिल है जहाँ नकदी प्रवाह की प्रकृति में बदलाव किया जा सकता है हालांकि, ये जटिल साधन हैं जिसे समझाने के लिए उच्च स्तर की विशेषज्ञता की आवश्यकता पड़ती है अतः व्युत्पन्नी लेन-देन के वक्त पर्याप्त सावधानी बरतनी चाहिए और ऐसे लेन-देन इससे संबंधित जोखिमों और जटिलताओं की पूरी जानकारी के बाद ही किया जाना चाहिए + +2412. विभिन्न मुद्रा बाज़ार लिखत कौन-कौन से हैं ? + +2413. 30.4. रेपो, निधियों की प्राप्ति के लिए प्रतिभूतियों को इस करार के साथ बेचने के लिए एक प्रकार का लिखत है, जिसमें उक्त प्रतिभूतियों को आपस में सहमत तारीख और मूल्य पर पुनर्खरीद करनी पड़ती है जिसमें उधार ली गई निधियों पर ब्याज शामिल है + +2414. संपाश्र्वीकृत उधार और ऋणदायी बाध्यता (सीबीएलओ) + +2415. 30.12. वाणिज्यिक पत्र (सीपी) एक प्रतिभूति-रहित मुद्रा बाज़ार की लिखत है जिसे प्रामिसरी नोट के रूप में जारी किया जाता है भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित अंब्रेला सीमा के अंतर्गत अल्पावधिक संसाधनों को जुटाने हेतु अनुमति प्राप्त कार्पोरेट, प्राथमिक व्यापार (पीडी) तथा अखिल भारतीय वित्तीय संस्थाएं (एफआई) वाणिज्यिक पत्र जारी करने की पात्रता रखती हैं वाणिज्यिक पत्रों को उसकी निर्गम-तारीख से न्यूनतम 7 दिनों से अधिकतम एक वर्ष तक की अवधि के लिए जारी किया जा सकता है + +2416. 31.2. प्मिडा बाज़ार के सहभागियों का प्रतिनिधित्व करता है तथा बांड, मुद्रा और डेरिवेटिव बाज़ारों के विकासार्थ सहायता प्रदान करता है यह इन बाज़ारों के कार्य-संचालन को प्रभावित करने वाले विभिन्न मुद्दों के संबंध में विनियामकों के साथ विचारों का आदान-प्रदान कराके एक सेतु का कार्य करता है विकास की दिशा में भी यह कई कार्य करता है, जैसे बेंचमार्क दरों और नई डेरिवेटिव लिखतों आदि की पहल करना प्मिडा मूल्यांकन की दृष्टि से बाज़ार के सहभागियों द्वारा प्रयुक्त विभिन्न सरकारी प्रतिभूतियों की दरें जारी करता है प्मिडा अपने सदस्यों के लिए सर्वोत्तम बाज़ार प्रथा के विकास में भी एक सकारात्मक भूमिका अदा करता है ताकि बाज़ार का संचालन पूर्णतः पारदर्शी रूप से हो, साथ ही साथ प्रभावशाली हो + +2417. इस साइट में सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद-फरोख्त का मूल्य और साथ ही निर्दिष्ट मूल्य के संबंध में तात्कालिक जानकारी उपलब्ध कराई जाती है इसके अलावा, यदा जारी (डब्ल्यूआई) (जब भी सौदा होता हो) वाला खंड भी मुहैया कराया जाता है + +2418. 32.4. प्मिडा - http://www.fimmda.org/ + +2419. गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी उस कंपनी को कहते हैं जो ए) कंपनी अधिनियम, 1956 के अंतर्गत पंजीकृत हो, बी) इसका मुख्य कारोबार उधार देना, विभिन्न प्रकार के शेयरों/स्टॉक/ बांड्स/ डिबेंचरों/प्रतिभूतियों, पट्टा कारोबार, किराया-खरीद(हायर-पर्चेज), बीमा कारोबार, चिट संबंधी कारोबार में निवेश करना, तथा सी) इसका मुख्य कारोबार किसी योजना अथवा व्यवस्था के अंतर्गत एकमुश्त रूप से अथवा किस्तों में जमाराशियां प्राप्त करना है। किंतु, किसी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी में ऐसी कोई संस्था शामिल नहीं है जिसका मुख्य कारोबार कृषि, औद्योगिक, व्यापार संबंधी गतिविधियां हैं अथवा अचल संपत्ति का विक्रय/क्रय/निर्माण करना है। ड भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 आइ(सी) ] एक महत्वपूर्ण पहलू जो ध्यान में रखा जाना है, यह है कि धारा 45 आइ(सी) में किए गए उल्लेख के अनुसार ऋण/अग्रिमों से संबंधित गतिविधियां स्वयं की गतिविधि से इतर की गतिविधियां हों। यदि यह प्रावधान न होता तो समस्त कंपनियां गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां होतीं। + +2420. भारतीय रिज़र्व बैंक को भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के अंतर्गत ऐसी कंपनियों के बारे में जो मुख्य कारोबार के 50-50 मानदंडों को पूरा करती हैं, को पंजीकृत करने, नीति-निर्धारण करने, निर्देश देने, निरीक्षण करने, विनियमित करने, पर्यवेक्षण करने तथा उन पर निगरानी रखने की शक्तियां प्रदान की गई हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को रिज़र्व बैंक अधिनियम के प्रावधानों, एवं अधिनियम के अंतर्गत जारी निदेशों अथवा आदेशों का उल्लंघन करने पर दंडित कर सकता है। दंड के रूप में भारतीय रिज़र्व बैंक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी को जारी पंजीकरण प्रमाणपत्र निरस्त कर सकता है, उसे जमाराशियां लेने से मना कर सकता है तथा उनकी आस्तियों के स्वत्वाधिकार का अंतरण कर सकता है अथवा उसे बंद करने के लिए याचिका दायर कर सकता है। + +2421. रिज़र्व बैंक उन कंपनियों का विनियमन व पर्यवेक्षण करता है जो अपने मुख्य व्यवसाय के रूप में वित्तीय गतिविधियों से जुड़ी हैं। अत: वैसी कंपनियाँ जो प्रमुख व्यवसाय के रूप में कृषि प्रचालन, औद्योगिक गतिविधि, माल की खरीद और बिक्री, सेवाएँ प्रदान करने या अचल सम्पत्तियों की बिक्री या निर्माण से जुड़ी हैं और छोटे स्तर पर कोई वित्तीय व्यवसाय कर रही हैं तो वे रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित नहीं की जाएंगी। + +2422. अवशिष्ट गैर-बैंकिंग कंपनी एनबीएफसी की एक श्रेणी है जिसका 'प्रमुख व्यवसाय ' किसी भी योजना, व्यवस्था या किसी अन्य तरीके से जमा राशियाँ प्राप्त करना है। ये कंपनियाँ निवेश , आस्ति वित्तपोषण या ऋण देने का कार्य नहीं करती। जमाराशियों के संग्रहण की पद्धति और जमाकर्ताओं की निधियों के विनियोजन के मामले में इन कंपनियों की कार्य प्रणाली एनबीएफसी से भिन्न है। इन कंपनियों को , हालांकि रिज़र्व बैंक द्वारा अब निर्देश दिया गया है कि कोई जमाराशि स्वीकार न करें और आरएनबीसी के रूप में अपना व्यवसाय बंद कर दें। + +2423. किसी भी तरह से जमा किया गया पैसा जमा राशि होता है सिवाय शेयर पूंजी, भागीदारी कंपनी के शेयरों के लिए भागीदार से लिया गया अंशदान, प्रतिभूति जमा, बयाना जमा, माल की खरीद, सेवाएं या निर्माण हेतु अग्रिम, बैंको, वित्तीय संस्थाओ और साहूकारों से लिया गया ऋण, चिट फंडो के लिए दिया अभिदान। उपर्युक्त तरीकों को छोड़कर किसी तरह से जमा किए गए पैसे को जमाराशि कह सकते है। + +2424. भारतीय रिजर्व बैंक अपनी वेब साइट ैैै.ींi.दीु.iह → साइट मैप → एनबीएफसी की सूची → जमा राशियां स्वीकार करने के लिए प्रधिकृत एनबीएफसी, पर उन एनबीएफसीज़् के नामों की सूची प्रकाशित करता है जिनके पास जमाराशियां स्वीकार करने का वैध पंजीकरण प्रमाणपत्र है। कभी- कभी कुछ कंपनियों को अस्थायी तौर पर जनता से जमाराशियाँ स्वीकार करने हेतु प्रतिबंधित कर दिया जाता है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जमाराशियाँ स्वीकार करने हेतु अस्थायी तौर पर प्रतिबन्धित की गई ऐसी एनबीएफसीज़् की सूची अपनी वेबसाइट पर प्रदर्शित की जाती है। भारतीय रिजर्व बैंक इन दोनों सूचियों को अद्यतन रखता है। आम जनता को सूचित किया जाता है कि वे एनबीएफसीज़् के पास जमाराशियां रखने के पहले वे इन सूचियों की जांच कर लें। + +2425. नहीं। प्रोप्राइटरशिप/भागीदारी कंपनियाँ अनिगमित निकाय हैं। अतएव उन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के तहत जनता से जमाराशियां स्वीकार करने से प्रतिबंधित किया है। + +2426. भारतीय रिज़र्व बैंक से विनियमित होने का झूठा/गलत दावा कर किसी वित्तीय संस्था या अनिगमित निकाय द्वारा जनता को गुमराह करके जमाराशि स्वीकार करना गैर कानूनी है तथा भारतीय दण्ड संहिता के तहत उन पर दण्डात्मक कार्रवाई की जा सकती है। इस संबंध में सूचना भारतीय रिज़र्व बैंक के निकटतम कार्यालय तथा पुलिस को दी जा सकती है। + +2427. अधिक ब्याजदर की पेशकश वाली योजनाओं में निवेश करने के पहले निवेशक यह जाँच लें कि ऐसे रिटर्न की पेशकश करने वाली कंपनी वित्तीय क्षेत्र के किसी नियामक के पास पंजीकृत हो और जमाराशि या अन्य रूप में धन स्वीकार करने के लिए अधिकृत हो। यदि निवेश पर पेश की जाने वाली ब्याजदर/रिटर्न की दर अधिक हो तो निवेशकों को प्राय: इस मामले में चौकस हो जाना चाहिए। जब तक धन ग्रहण करने वाली कंपनी वादा किए गए रिटर्न से अधिक कमा पाने में सक्षम नहीं होगी, वह निवेशक को वादा किया गया रिटर्न नहीं दे सकेगी। अधिक रिटर्न पाने के लिए कंपनी को अपने निवेश पर अधिक जोखिम उठाना होगा। यदि जोखिम अधिक होगा तो निवेश पर प्रत्याशित रिटर्न अटकलों पर आधारित होगा और ऐसे में कंपनी के लिए वादा किया गया रिटर्न चुका पाना संभव नहीं होगा। अतएव, जनता पहले से ही सतर्क रहे कि अधिक ब्याजदर की पेशकश वाली योजनाओं में पैसा डूबने की संभावना अधिक होती है। + +2428. महत्वपूर्ण बात यह है कि रिज़र्व बैंक को मार्केट इंटेलीजेंस रिपोर्ट्स, शिकायतों, कंपनी के सांविधिक लेखापरीक्षकों की अपवादात्मक रिपोर्टों, एसएलसीसी की बैठकों आदि के जरिए जैसे ही यह खबर लगती है कि कंपनी रिज़र्व बैंक के अनुदेशों/मानकों का उल्लंघन कर रही है, तो वह जुर्माना लगाने और कानूनी कार्रवाई जैसे कई त्वरित कदम उठाता है। इसके अतिरिक्त रिज़र्व बैंक राज्य स्तरीय समन्वय समिति की बैठकों में ऐसी जानकारी को वित्तीय क्षेत्र के सभी नियामकों एवं प्रवर्तन एजेंसियों के मध्य बांटता है। + +2429. रिज़र्व बैंक विभिन्न क्षेत्रीय कार्यालयों में अपने मार्केट इंटेलीजेंस व्यवस्था को मजबूत बना रहा है और उन कंपनियों की वित्तीय सूचनाओं की निरंतर जांच कर रहा है जिनके बारे में मार्केट इंटेलीजेंस या शिकायतों के जरिए जानकारी/संदर्भ प्राप्त हुए हैं। इस संदर्भ में, जनता सतर्क रहकर महान योगदान दे सकती और यदि उन्हें य़ह पता चलता है कि कोई वित्तीय संस्था भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम का उल्लंघन कर रही है तो वह तुरंत शिकायत दर्ज कराकर महान योगदान दे सकती है। उदाहरण के लिए, यदि वे अनधिकृत रूप से जमाराशि स्वीकार कर रहे हैं और / भारतीय रिज़र्व बैंक से अनुमति लिए बगैर एनबीएफसी गतिविधियां चला रहे हैं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि जनता बुद्धिमानी से निवेश करे तो ये संस्थाएं चल ही नहीं पाएंगी। जनता को यह भी जानना चाहिए कि निवेश पर ऊँचे रिटर्न में जोखिम भी काफी अधिक रहता है। और अटकल आधारित गतिविधियों में कोई निश्चित रिटर्न नहीं होता। निवेश करने से पहले आम आदमी के लिए यह अनिवार्य है कि वह यह सुनिश्चित करे कि जिस संस्था में वह निवेश कर रहा है वह वित्तीय क्षेत्र के नियामकों में से किसी भी नियामक द्वारा विनियमित संस्था हो। + +2430. चिट फंड कंपनियों को चिट फंड अधिनियम 1982 के तहत विनियमित किया जाता है जो एक केंद्रीय अधिनियम है तथा इसका क्रियान्वयन राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने 2009 में चिट फंड कंपनियों को जनता से जमाराशियाँ ग्रहण करने पर पाबंदी लगा दी है। यदि कोई चिट फंड जनता से जमाराशियाँ ग्रहण करता है तो भारतीय रिज़र्व बैंक ऐसे चिट फंडों पर अभियोग चला सकता है। + +2431. मनी सर्कुलेशन/बहु स्तरीय विपणन/पिरामिड आकार की योजनाएं, प्राइज चिट और मनी सर्कुलेशन(प्रतिबंधित) अधिनियम 1978 के तहत अपराध हैं। यह अधिनियम किसी व्यक्ति या निकाय को किसी प्राइज़ चिट या मनी सर्कुलेशन स्कीम को प्रवर्तित करने अथवा इन योजनाओं में किसी को सदस्य के रूप में नामित करने या ऐसी चिट या योजना के अनुसरण में धन प्राप्ति/प्रेषण के द्वारा किसी को सहभागी बनाने से रोकता है। इस अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन पर निगरानी और आवश्यक कार्रवाई राज्य सरकारों द्वारा की जाती है। + +2432. भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम 1934 की धारा 45एस में अनिगमित निकायों जैसे व्यक्तियों, फर्म और व्यक्तियों के अनिगमित संगठन को, यदि वे वित्तीय गतिविधियाँ करते हैं अथवा उनके मूल कारोबार के लिए जमाराशियां ग्रहण करते है, तो उन्हें सार्वजनिक जमाराशियां स्वीकार करने के लिए विशेष रूप से निषेध किया गया है। + +2433. परिचय. + +2434. आपके माता पिता सही कहते हैं रुपये और पैसे पेड पर नहीं उगते, बल्कि वास्तव में पैसे से पैसा बनता है। पैसे में एक अनोखी क्षमता है और वह है और पैसा बनाने की। अच्छी बात यह है कि इसके लिए बहुत पैसे की जरूरत नहीं होती। + +2435. टालमटोल की कीमत क्या आप जानते हैं कि अधिक पैसा कमाने के लिए अधिक समय निवेश करना होता है। लेकिन इसका दूसरा पहलू भी सही है। निवेश के लिए इंतजार कर आप अवसर लागत का भुगतान कर रहे हैं। यह कहना आसान है कि बचत शुरू करने और अभी निवेश के लिए आपके पास पर्याप्त धन नहीं है। जब तक मेरे पास और पैसा नहीं आ जाता, मैं इंतजार करना पसंद करूंगा। लेकिन यह निर्णय आप पर उससे अधिक भारी पडता है जितना आप सोचते हैं क्योंकि कार्यों को संयोजित करने की ताकत दोनों तरह से काम करती है। यह इसलिए भी आप पर भारी पडती है क्योंकि इंतजार करने का मतलब है महज एक छोटी मात्रा में धन पर चक्रवृद्धि ब्याज कमाने का अवसर गंवाना। + +2436. पहला कदम - अपनी आय की गणना करें : पे-चेक और किसी निवेश से ब्याज सहित इसमें सभी स्रोतों से आय को शामिल किया जाना चाहिए। + +2437. निवेश पर महंगाई का असर. + +2438. जोखिम और रिटर्न. + +2439. चक्रवृद्धि की शक्ति. + +2440. संतोश और सुनील दोस्त हैं सालाना 10 प्रतिशत ब्याज दर पर एक लाख रुपये निवेश करना चाहते हैं। लेकिन संतोश को 10 प्रतिशत की दर से चक्रवृद्धि ब्याज मिलेगा, जबकि सुनील को उसके निवेश पर 10 प्रतिशत की दर से साधारण ब्याज मिलेगा। अब चक्रवृद्धि की ताकत कमाल देखे- + +2441. 72 का नियम + +2442. अब आप देख सकते हैं कि ब्याज दर में एक छोटा अंतर धन में कितनी तेजी के साथ बढोतरी कर सकता है आपको आने वाले समय में अधिक धन दिलाता है। + +2443. तरलता. + +2444. निवेश से हुई आमदनी एक ऐसा कारक है जिस पर विचार किया जाता है। सुरक्षित निवेश स्थिर या नियमित रिटर्न की पेशकश करता है लेकिन यह रिटर्न कम होता है, जबकि जोखिम भरा निवेश अधिक रिटर्न की पेशकश करता है या इस पर बिल्कुल भी रिटर्न नहीं मिलता। बाजार में छोटी अवधि और लंबी अवधि के कई वित्तीय निवेश विकल्प मौजूद हैं जिनमें से कुछ आगे बताए जा रहे हैं। + +2445. हालांकि यह महज एक व्यवहारिक नियम है और एक निवेश अपनी क्षमता के बेहतर ढंग से आंक सकता है। + +2446. संपत्तियों की पहचान करना. + +2447. भावी आय का अनुमान लगाते समय आपको कुछ धारणा बनाने की जरूरत पडती है। कुछ धारणाएं निम्नलिखित हो सकती हैं। + +2448. योजना बनाना. + +2449. दूसरा कदम - आज शिक्षा पर आ रहे खर्च का निर्धारण करें। इसकी गणना में आमतौर पर एक प्रोफेशनल कोर्स के लिए मौजूदा खर्च को मुद्रास्फीति की अनुमानित वार्षिक दर से गुणा कर शामिल कर सकते हैं। + +2450. बैंक. + +2451. आवर्ती जमा खाता + +2452. इनके अलावा, म्यूचुअल फंडों द्वारा पेश इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ईएलएसएस) और वित्तीय संस्थानों एवं बैंकों द्वारा जारी ढांचागत बांड भी कर लाभ की पेशकश करते हैं। + +2453. ढांचागत बांड या इंफ्रास्ट्रक्चर बांड + +2454. कर बचाने वाले बांड + +2455. डिबेंचर. + +2456. म्यूचुअल फंड. + +2457. सभी म्यूचुअल फंड इन तीन संपत्ति वर्गों के रूपांतरण हैं। उदहारण के तौर पर जहां तेजी से बढ रही कंपनियों में निवेश करने वाले इक्विटी फंड ग्रोथ फंड के तौर पर जाने जाते हैं, एक ही क्षेत्र की कंपनियों में निवेश करने वाले इक्विटी फंड स्पेशियलिटी फंड के तौर पर जाने जाते हैं। + +2458. बांड/इनकम फंड + +2459. इनका लक्ष्य अर्थव्यवस्था के विशेष क्षेत्र पर होता है मसलन वित्तीय, प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य आदि। + +2460. वित्तीय नियोजन का पिरामिड. + +2461. पोंजी स्कीम के तहत प्रायः ऐसे रिटर्न की पेशकश की जाती है जिसकी गारंटी अन्य निवेश स्कीमें नहीं दे सकतीं। कम समय में असामान्य रूप से अधिक या लगातार रिटर्न मिलने की गारंटी देकर नए निवेशकों को लुभाया जाता है। अन्य शब्दों में यह इतना अच्छा लगता है कि इस पर विश्वास नहीं होता। + +2462. हालांकि, छोटे निवेशकों (न्यूनतम 500 शेयर रखने वाले, चाहे उनका मूल्य जो भी हो) को भौतिक रूप में शेयरों की ट्रेडिंग की सुविधा के लिए स्टॉक एक्सचेंज एक अतिरिक्त ट्रेडिंग विंडों उपलब्ध कराते हैं। ये ट्रेडिंग विंडों छोटे निवेशकों को भौतिक रूप में शेयर बेचने के लिए एक बार सुविधा देते हैं जिसका डीमैट लिस्ट में होना अनिवार्य है। इन शेयरों को खरीदने वाले व्यक्ति को उन्हें आगे बेचने के लिए ऐसे शेयरों को डीमैट रूप में तब्दील कराना होता है। + +2463. बीमा पालिसियां. + +2464. एंडोमेंट पॉलिसियां + +2465. स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियां विभिन्न बीमारियों से आपको कवर प्रदान करती हैं और जब भी आपको इलाज की जरूरत पडे वित्तीय रूप से सुरक्षित बने रहने की गारंटी देती हैं। ये आपकी मानसिक शांति की रक्षा करती हैं और इलाज खर्च के बारे में आपकी सभी चिंताएं दूर करती हैं जिससे आप अन्य महत्वपूर्ण चीजों पर अपना ध्यान केंद्रित करें। भारत में कई स्वास्थ्य बीमा या मेडिकल बीमा योजनाएं मौजूद हैं जिन्हें जोखिम कवर के आधार पर निम्नलिखित वर्गों में बांटा जा सकता है। + +2466. उधारी से जुडे उत्पाद. + +2467. प्रमुख विशेशताएँ + +2468. रिवर्स मॉर्गेज का संपूर्ण विचार रेगुलर मॉर्गेज प्रक्रिया के बिल्कुल उलट है जहां एक व्यक्ति गिरवी रखी संपत्ति छुडाने के लिए बैंक को ऋण का पुनर्भुगतान करता है। यह अवधारणा खासकर पश्चिमी देशों में लोकप्रिय है। + +2469. कृपया प्रत्येक ऋण के लिए नवीनतम दिशानिर्देश/प्रावधान देखें। + +2470. ऋण की सीमा तय करें + +2471. अपने बिलों के स्वतः भुगतान वाली प्रणाली अपनाएँ + +2472. + +2473. सो हरि की माया करै, सब जग को कल्यान।। + +2474. नेपथ्य में, अरे शैलूषाधम! तू मेरी लीला क्या करैगा। चल भाग जा, नहीं तो तुझे भी खा जायेंगे। + +2475. नेपथ्य में, बढ़े जाइयो! कोटिन लवा बटेर के नाशक, वेद धर्म प्रकाशक, मंत्र से शुद्ध करके बकरा खाने वाले, दूसरे के माँस से अपना माँस बढ़ाने वाले, सहित सकल समाज श्री गृध्रराज महाराजाधिराज! + +2476. राजा : क्या तुम ब्राह्मण होकर ऐसा कहते हो? ऐं तुम साक्षात् ऋषि के वंश में होकर ऐसा कहते हो! + +2477. ”लोके व्यवायामिषमद्यसेवा नित्यास्ति जन्तोर्नहि तत्र चोदना।“ + +2478. ‘न मांस भक्षणे दोषो न मद्ये न च मैथुने’ + +2479. इससे जो खाली मांस भक्षण करते हैं उनको दोष है। महाभारत में लिखा है कि ब्राह्मण गोमाँस खा गये पर पितरों को समर्पित था इससे उन्हें कुछ भी पाप न हुआ। + +2480. पुरोहित : उठकर के नाचने लगा, अहा-हा! बड़ा आनंद भया, कल खूब पेट भरैगा। + +2481. स्वर्ग को वास यह लोक में है तिन्हैं नित्य एहि रीति दिन जे बिताते।। + +2482. जिन न खायो मच्छ जिन नहिं कियो मदिरा पान। + +2483. जानिए निहचै ते पशु हैं तिन कछू नहिं कीन।। + +2484. मांस एव परो योगी मांस एव परं तपः ।।“ + +2485. उभाभ्यां षण्डरण्डाभ्यान्न दोषो मनुरब्रबीत।। + +2486. राजा दण्डवत् करके बैठता है, + +2487. अस्त्री को विधवां, गच्छेन्न दोषो मनुरब्रवीत् ।।“ + +2488. पुरोहित : कितने साधारण धर्म ऐसे हैं कि जिनके न करने से कुछ पाप नहीं होता, जैसा-”मध्याद्दे भोजनं कुर्यात्“ तो इसमें न करने से कुछ पाप नहीं है, वरन व्रत करने से पुण्य होता है। इसी तरह पुनर्विवाह भी है इसके करने से कुछ पाप नहीं होता और जो न करै तो पुण्य होता है। इसमें प्रमाण श्रीपाराशरीय स्मृति में- + +2489. ‘स्त्रियस्समस्ताः सकला जगत्सु’। ‘व्यभिचारादृतौ शुद्धिः’। + +2490. इति प्रथमांक + +2491. विदूषक आया, + +2492. राजा : चल मुझ उद्दंड को कौन दंड देने वाला है। + +2493. विदूषक : क्यों वेदांती जी, आप माँस खाते हैं कि नहीं? + +2494. बंगाली : हम तो बंगालियों में वैष्णव हैं। नित्यानंद महाप्रभु के संप्रदाय में हैं और मांसभक्षण कदापि नहीं करते और मच्छ तो कुछ माँसभक्षण में नहीं। + +2495. बंगाली : हम नित्यानंद महाप्रभु श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के संप्रदाय में हैं और श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु श्रीकृष्ण ही हैं, इसमें प्रमाण श्रीभागवत में- + +2496. राजा : जाने दो, इस कोरी बकवाद का क्या फल है? + +2497. राजा : चोबदार, जा करके अन्दर से ले आओ। ख्चोबदार बाहर गया, वैष्णव और शैव को लेकर फिर आया, + +2498. चंदन भस्म को लेप किए हरि ईश, हरैं सब दुःख तुम्हारे।। + +2499. इस युग का शास्त्र तंत्र है। + +2500. बंगाली : भवव्रतधारा ये च ये च तान्समनुव्रताः। + +2501. विशन्तु शिवदीक्षायां यत्र दैवं सुरासवम् ।।’ + +2502. ख्नेपथ्य में, नारायण + +2503. गंडकीदास : ख्धीरे से पुरोहित से, अजी, इस सभा में हमारी प्रतिष्ठा मत बिगाड़ो। वह तो एकांत की बात है। + +2504. राजा : क्यों? + +2505. शैव, वैष्णव और वेदांती: अब हम लोग आज्ञा लेते हैं। इस सभा में रहने का हमारा धर्म नहीं। + +2506. जवनिका गिरती है, + +2507. अहा! वैसी ही कुमारियों की पूजा- + +2508. जोर किया जोर किया जोर किया रे, आज तो मैंने नशा जोरे किया रे। + +2509. रामरस पीओ रे भाई + +2510. एक पड़ा भुइँया में लोटै दूसर कहै चोखी दे माई।। + +2511. मीन काट जल धोइए खाए अधिक पियास। + +2512. रामरस पीओ रे भाई + +2513. कलिए की जगह पकने लगी रामतरोई रे।। + +2514. अरे एकादशी के मछली खाई। + +2515. रामरस पीओ रे भाई + +2516. घर के जाने मर गए आप नशे के बीच।। + +2517. मंत्री : महाराज, पुरोहित जी आनंद में हैं। ऐसे ही लोगों को मोक्ष मिलता है। + +2518. ‘मकाराः पझ् दुल्र्लभाः।’ + +2519. राजा : यज्ञो वै विष्णुः, यज्ञेन यज्ञमयजंति देवाः, ज्ञाद्भवति पज्र्जन्यः, इत्यादि श्रुतिस्मृति में यज्ञ की कैसी स्तुति की है और ”जीवो जीवस्य जीवन“ जीव इसी के हेतु हैं क्योंकि-”माँस भात को छोड़िकै का नर खैहैं घास?“ + +2520. नैनं छिदंति शस्त्रणि नैनं दहति पावकः।। + +2521. मंत्री : और फिर इस संसार में माँस और मद्य से बढ़कर कोई वस्तु है भी तो नहीं। + +2522. तासों ब्राह्मो धर्म में, यामें दोस न नेक।। + +2523. तिष्ठ तिष्ठ क्षण मद्य हम पियैं न जब लौं नीच। + +2524. शांपिन शिव, गौड़ी गिरिश, ब्रांडी ब्रह्म विचारि।। + +2525. गौतम पियत अनंद सों पियत अग्र के नंद।। + +2526. होटल में मदिरा पियैं, चोट लगे नहिं लाज। + +2527. मंत्री : महाराज, मेरा सिर घूमता है और ऐसी इच्छा होती है कि कुछ नाचूं और गाऊं, + +2528. निनि धध पप मम गग गिरि सासा भरले सुर अपने बस का रे। + +2529. पीले अवधू के.। + +2530. मोहि दिखाव मद की झलक छलक पियालो साथ।। + +2531. कि साकी हाथ में मै का लिए पैमाना आता है।। + +2532. तब फिर कहाँ से- + +2533. जवनिका गिरती है। + +2534. २ दूत : पुरोहित को घसीटकर, चलिए पुरोहित जी, दक्षिणा लीजिये, वहाँ आपने चक्र-पूजन किया था, यहाँ चक्र में आप मे चलिए, देखिए बलिदान का कैसा बदला लिया जाता है। + +2535. वै. और शै. : जो आज्ञा। यमराज के पास बैठ जाते हैं, + +2536. यम. : अच्छा! तो बड़ा ही नीच है, क्या हुआ मैं तो उपस्थित ही हूँ। + +2537. नानारूपधराः कौला विचरन्ति महीतले।। + +2538. चित्र. : महाराज ये गुरु लोग हैं, इनके चरित्र कुछ न पूछिये, केवल दंभार्थ इनका तिलक मुद्रा और केवल ठगने के अर्थ इनकी पूजा, कभी भक्ति से मूर्ति को दंडवत् न किया होगा पर मंदिर में जो स्त्रियाँ आईं उनको सर्वदा तकते रहे; महाराज, इन्होंने अनेकों को कृतार्थ किया है और समय तो मैं श्रीरामचंद्रजी का श्रीकृष्ण का दास हूँ पर जब स्त्री सामने आवे तो उससे कहेंगे मैं राम तुम जानकी, मैं कृष्ण तुम गोपी और स्त्रियाँ भी ऐसी मूर्ख कि फिर इन लोगों के पास जाती हैं, हा! महाराज, ऐसे पापी धर्मवंचकों को आप किस नरक में भेजियेगा। + +2539. १ दूत : जो आज्ञा। ख्बाहर जाकर फिर आता है, + +2540. राजा : हाथ से बचा-बचाकर, हाय-हाय, दुहाई-दुहाई, सुन लीजिए- + +2541. यह वाक्य लोग श्राद्ध के पहिले श्राद्ध शुद्ध होने को पढ़ते हैं फिर मैंने क्या पाप किया। अब देखिए, अंगरेजों के राज्य में इतनी गोहिंसा होती है सब हिंदू बीफ खाते हैं उन्हें आप नहीं दंड देते और हाय हमसे धार्मिक की यह दशा, दुहाई वेदों की दुहाई धर्म शास्त्र की, दुहाई व्यासजी की, हाय रे, मैं इनके भरोसे मारा गया। + +2542. यम. : लगें कोड़े, दुष्ट वेद-पुराण का नाम लेता है। + +2543. यम. : मंत्री से, बोल बे, तू अपने अपराधों का क्या उत्तर देता है? + +2544. चित्र : क्रोध से, अरे दुष्ट, यह भी क्या मृत्युलोक की कचहरी है कि तू हमें घूस देता है और क्या हम लोग वहाँ के न्यायकत्र्ताओं की भांति जंगल से पकड़ कर आए हैं कि तुम दुष्टों के व्यवहार नहीं जानते। जहाँ तू आया है और जो गति तेरी है वही घूस लेने वालों की भी होगी। + +2545. ईश्वरः सर्व भूतानां हृदेशेऽर्जुन तिष्ठति। + +2546. गंडकी : हाय-हाय दुहाई, अरे कंठी-टीका कुछ काम न आया। अरे कोई नहीं है जो इस समय बचावै। + +2547. अरे बाप रे ”सौत्रमण्यां सुरां पिबेत्।“ + +2548. निज स्वारथ को धरम-दूर या जग सों होई। + +2549. यह कवि बानी बुध-बदन में रवि ससि लौं प्रगटित रहै।। + +2550. + +2551. उन्नीसवीं शताब्दी में भारत में भावनात्मक संदर्भ की क्रांति शुरू हुई। उस समय देश की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति अत्यन्त दयनीय हो चुकी थी। देश में होने वाले आन्दोलनों से जन-जीवन प्रभावित हो रहा था। भारत की राष्ट्रीयता और राष्ट्रीय आन्दोलन के लिए एक भाषा की आवश्यकता सामने आई। इस आवश्यकता के संदर्भ में डॉ॰ अम्बा शंकर नागर का मन्तव्य उद्धरणीय है-facebook.com पर अधिक जानकारी जाने Kanchan Ghode is inviting you to a scheduled for the first time in the Hindi subject on facebook.com💝💝 + +2552. लोकमान्य तिलक देवनागरी को ‘राष्ट्रलिपि’ और हिंदी को ‘राष्ट्रभाषा’ मानते थे। उन्होंने नागरी प्रचारिणी सभा, काशी के दिसम्बर, 1905 के अधिवेशन में कहा था- + +2553. लाला लाजपतराय विशेष उग्र और क्रान्तिकारी नेता थे। उनके द्वारा हिन्दी में भाषण देने से जनसामान्य विशेष रूप से आन्दोलित होते थे। वे हिन्दी भाषा के माध्यम से भारत को एक सू़त्र में बाँधना चाहते थे। निश्चय ही लाला लातपतराय महान हिन्दी-प्रेमी और हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के प्रबल समर्थक थे। + +2554. महात्मा गाँधी. + +2555. गाँधी जी हिन्दी और भारतीय भाषाओं के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने हिन्दी प्रचार-प्रसार को गति देने के लिए विभिन्न संस्थाओं का विशेष सहयोग लिया था। गाँधी सेवा संघ, चर्खा संघ, हरिजन सेवक संघर्ष आदि का सारा कामकाज हिन्दी में होता रहा है। निश्चय ही हिन्दी-प्रसार के प्रयत्न में गाँधी जी की भूमिका अग्रगण्य रही है। + +2556. डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद पर महात्मा गाँधी का विशेष प्रभाव पड़ा है। हिन्दी के प्रचार-प्रसार में इनकी भूमिका विशेष उल्लेखनीय रही है। उन्होंने भारतीय भाषाओं को महत्त्व देते हुए कहा है- + +2557. हिंदी के प्रसार के साथ इसे राजभाषा के प्रतिष्ठित पद पर सुशोभित करवाने में सेठ गोविन्ददास की अविस्मरणीय भूमिका रही है। ये उच्चकोटि के साहित्यकार हैं। आपकी नाट्यकृतियों से हिंदी साहित्य मोहक रूप में समृद्ध हुआ है। उन्होंने जबलपुर से शारदा, लोकमत तथा जयहिन्द पत्रों की शुरूआत कर जन-मन में हिंदी के प्रति प्रेम जगाने और साहित्यिक परिवेश बनाने का अनुप्रेरक प्रयास किया है। + +2558. हिंदी-प्रसार आंदोलन में धर्मगुरुओं, महात्माओं, राजनेताओं और हिंदी-प्रेमियों के साथ अनेक संस्थाओं की भी सराहनीय भूमिका रही हैं भारत धर्मप्रधान देश है। इसलिए हिंदी-प्रसार आन्दोलन में साहित्यिक संस्थाओं के साथ धार्मिक-सामाजिक संस्थाओं का विशेष योगदान रहा है। + +2559. देश में राष्ट्रीय, सामाजिक और धार्मिक चेतना जगाने में ब्रह्म समाज की अनूठी भूमिका रही है। ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राममोहन राय ने युगीन संदर्भ में आधुनिक विचार-चिन्तन को स्वीकार किया। उनके व्यक्तित्त्व में पूर्व और पश्चिम का अनुपम समन्वय था। वे अंग्रेजी को एक महत्त्वपूर्ण भाषा के रूप में सम्मान देते थे, किन्तु राष्ट्रीय संदर्भ में हिंदी के सबल समर्थक थे। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि भारतवर्ष में राष्ट्रीयता के भाव से सम्पन्न अखिल भारतीय भाषा बनने की क्षमता मात्र हिंदी में है। उनकी विद्वता और राष्ट्रीयता का स्पष्ट बोध इससे होता है कि उन्होंने ‘बंगदूत’ नामक पत्र कलकत्ता से प्रकाशित किया। इसके पत्र में हिंदी, बंगला, अंग्रेजी और फारसी के पृष्ठ हुआ करते थे। वे स्वयं हिंदी में लिखते तथा हिंदी में लिखने के लिए दूसरों को भी प्रोत्साहित करते रहते थे। अहिंदी भाषा क्षेत्र बंगाल में ‘ब्रह्म समाज’ की भूमिका विशेष सराहनीय रही है। समाज-सुधार और हिंदी-प्रचार में अनेक विद्वान नेता-तन-मन से लग गए थे। इस संदर्भ में महर्षि देवेन्द्र नाथ, केशव चन्द्र सेन, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर और नवीन चन्द्र राय के नाम श्रद्धा से लेते हैं। इस समाज द्वारा अधिकांश पुस्तक हिंदी में प्रकाशित की गई। इस संस्था के सभी सदस्यों से िंहंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाने का आह्नान किया गया। नवीन चन्द्र राय ने पंजाब पहुँचकर 1867 में ‘ज्ञानप्रदायिनी’ पत्रिका निकाल कर हिंदी-आन्दोलन को गति दी। भूदेव मुखर्जी ने बिहार की शिक्षा में हिंदी को प्रतिष्ठित किया और वहाँ के न्यायालयों में हिंदी और नागरी लिपि के प्रयोग का मार्ग खोला। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘आचार-प्रबन्ध’ में हिंदी को सर्व उपयोगी गुणसम्पन्न देश की संपर्क भाषा के रूप में अपनाने का आह्नान किया। + +2560. गुजराती भाषा-भाषा स्वामी जी के हिंदी-प्रेम से उनके अनुयायियों में अनुकरणीय हिंदी प्रेम जगा। श्री राम गोपाल के शब्दों में, ‘‘उनके अनुयायियों के धर्म-प्रचार से जो अधिक उत्तम चीज राष्ट्रीय जीवन को प्राप्त हुई, वह थी राष्ट्रभाषा का प्रचार।’’ आर्य समाज के माध्यम से हिंदी का प्रचार भारत से बाहर मॉरिशस, फिजी, गयाना, सूरीनाम, ट्रिनीडाड-टुबैगो, युगांडा और लंदन में हुआ। + +2561. गोस्वामी गणेश दत्त के साथ हिंदी-प्रसार में योगदान देने वालों में श्रद्धाराम फिल्लौरी का नाम विशेष आदर से लिया जाता है। सनातन धर्म सभा के सतत प्रयास से भारत में मुख्यतः उत्तर भारत में हिंदी जन-मानस की भाषा बनी। + +2562. इस सोसाइटी की स्थापना भारतीय दर्शन और संस्कृति के प्रभाव से ‘विश्व-बन्धुत्व’ भाव जगाने हेतु सन् 1875 में अमेरिका में हुई। इसके संस्थापक मदाम ब्लावत्स्की और कर्नल आलकोट थे। सन् 1897 में इसका मुख्य कार्यालय मुम्बई में स्थापित किया गया। इस संस्था पर आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द का विशेष प्रभाव पड़ा। इस संस्था ने स्वामी जी को अध्यात्म गुरु भी माना है। इसके उद्देश्य ब्रह्म समाज और आर्य समाज से बहुत कुछ मेल खाते हैं। सन् 1893 में श्रीमति एनी बेसेंट ने इस संस्था का नेतृत्व अपने हाथों में लिया। उन्होंने सन् 1898 में काशी में सेंट्रल हिंदू कॉलेज और हिंदू कन्या विद्यालय की स्थापना की। इसके साथ ही देश के विभिन्न प्रांतों में शिक्षण संस्थाएँ खोलीं। इन विद्यालयों और महाविद्यालयों में भारतीय संस्कृति की शिक्षा हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में दी जाती थी। इस सोसाइटी पर अंग्रेजी का भी प्रभाव दिखाई देता है, किन्तु इनकी जो भी प्रचारादि सामग्री छपती, वह अंग्रेजी के साथ हिन्दी में भी होती थी। इस प्रकार हिन्दी-प्रसार को सुअवसर मिला। स्वाधीनता संग्राम के प्रति विशेष लगाव होने के कारण सन् 1918 से सन् 1921 तक इन्होंने दक्षिणी भारत में घूम-घूमकर हिन्दी का प्रचार किया था। उन्होंने हिन्दी का महत्त्व अपनी पुस्तक ‘नेशन बिल्डिंग’ में लिखा है- + +2563. भारतेन्दु मण्डल. + +2564. कामता प्रसाद गुरु रचित ‘हिन्दी व्याकरण’ पं. किशोरी वाजपेयी कृत ‘हिन्दी शब्दानुशासन’ के अतिरिक्त ‘हिन्दी शब्दसागर’, ‘हिन्दी साहित्य का बृहत् इतिहास’ आदि के दुर्लभ और महत्वपूर्ण प्रकाशन से इस संस्था को हिन्दी-विकास में विशेष महत्व मिला है। ‘नागरी प्रचारिणी’ शोध-पत्रिका का लगभग सौ वर्षों का गरिमामय इतिहास इस संस्था की गौरव गाथा का स्वरूप है। + +2565. सम्मेलन द्वारा उक्त उद्देश्यों की पूर्ति हेतु सतत् प्रयत्न किया जाता रहा है। सम्मेलन के चतुर्थ अधिवेशन अर्थात् सन् 1913 से हिन्दी के व्यापक प्रचार हेतु प्रथमा, मध्यमा और उत्तमा आदि परीक्षाओं का आयोजन शुरू हुआ। + +2566. सभा के द्वारा दक्षिण के प्रांतों में हिन्दी का प्रेरक प्रचार किया गया। हिन्दी भाषा के प्रचारार्थ प्रवेशिका विशारद्, पूर्वार्द्ध, विशारद् उत्तरार्द्ध, प्रवीण तथा हिन्दी प्रचारक आदि परीक्षाओं का संचालन किया जाता है। सभा की प्रवेशिका, विशारद् और प्रवणी परीक्षाओं को केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा मान्यता मिली है। यहाँ से मासिक ‘हिन्दी प्रचार समाचार’ और ‘दक्षिणी भारत’ द्विमासिक पत्रिका का प्रकाशन होता है। केन्द्र सरकार ने सभा को श्रेष्ठ हिन्दी प्रचारक मानकर राष्ट्रीय महत्व प्रदान किया है। + +2567. + +2568. राजभाषा का उत्तरदायित्त्व ग्रहण करते ही हिन्दी भाषा साहित्य से इतर, न्याय, विज्ञान, वाणिज्य, प्रशासन, जनसंचार, विज्ञापन, अनुवाद एवं रोजगार की भाषा बन गई। कार्यालयीन, कामकाजी और व्यावहारिक भाषा के रूप में हिन्दी की नयी पहचान बनी। इसे हिन्दी का प्रयोजनीय पक्ष कहा गया। तब से आज तक हिन्दी की प्रयोजनीयता पर कार्य हो रहे हैं। अथक प्रयासों से हिन्दी अपने सभी पक्षों, सभी क्षेत्रों में सफल हो रही है। सबसे पहले तो उसे ऐसी शब्दावली विकसित करनी पडी जो न्याय, जनसंचार, पत्रकारिता, मीडिया, विज्ञान और विज्ञापन की आवश्यकता को पूर्ण कर सके। यही शब्दावली पारिभाषिक शब्दावली कही जाती है। + +2569. पारिभाषिक शब्दावली का निर्माण. + +2570. अरबी, फारसी शब्दों को भी प्रचलन, संप्रेषण और प्रयोग की सुविधा के आधार पर स्वीकार किया गया। फरार, गालीगलौज, हिसाब, हवाई-सर्वेक्षण करारनामा, हमलावर, मकान-किराया, वकालत, गैर जमानती वारंट जैसे शब्द प्रशासनिक शब्दावली में स्वीकृत हुए। पारिभाषिक शब्दावली में निर्माण के साथ-साथ ‘ग्रहण’ की प्रक्रिया को भी पूरा महत्त्व दिया गया। ‘ग्रहण’ करते समय अंग्रेजी का प्रत्येक शब्द स्वीकार नहीं किया गया। कम्प्यूटर शब्द यथावत ले लिया गया। किन्तु कम्प्यूटराइजेशन नहीं। इसके लिए कम्प्यूटरीकरण शब्द गढ़ा गया। इस तरह हिन्दी और भारतीय भाषाओं की पारिभाषिक शब्दावली को दो स्रोतों से शब्द ग्रहण करने पडे़ है। विज्ञान-तकनीकी क्षेत्र में अंग्रेजी से लेकिन कानून, प्रशासन, राजनीति से संबंधित कई शब्द अब हिन्दी के ही बन गए हैं।10 + +2571. शब्द-संग्रह. + +2572. कृत्रिम निर्माण, अनुकूलन, एकरूपता स्पष्ट अर्थवत्ता तथा स्वीकरण के द्वारा ज्ञान-विज्ञान की शाखाओं के लिए लगभग 08 लाख शब्द गढ़े गए हैं। विधि शब्दावली, मीडियाशब्दावली, प्रशासनिक शब्दावली, अन्तरिक्ष शब्दावली, मानविकी एवं समाज विज्ञान की पारिभाषिक, शब्दावली प्रकाशित एवं प्रचलित हो चुकी हैं। आयोग द्वारा कृषि, पशु-चिकित्सा कम्प्यूटर-विज्ञान, धातु-कर्म, नृ-विज्ञान, ऊर्जा, खनन, इंजीनियरी, मुद्रण-इंजीनियरी, रसायन इंजीनियरी, इलेक्ट्रानिकी, वानिकी, लोक-प्रशासन, अर्थ-शास्त्र, डाक-तार, रेलवे, गृह-विज्ञान आदि विषयों के शब्द भी बनाए हैं। निरन्तर प्रयोग से इनकी अर्थवत्ता सिद्ध हो चुकी है। पारिभाषिक शब्दावली हिन्दी के प्रयोजनीय पक्ष के लिए महत्वपूर्ण उपलब्धि है। + +2573. 4. प्रशासन शब्दकोष : म.प्र. का प्रकाशन 1986 पृष्ठ भूमिका से उद्धृत + +2574. 9. हिन्दी शब्द-रचना : माईदयाल जैन पृष्ठ-216 + +2575. + +2576. समाचार-पत्रों एवं पत्रिकाओं का मूल उद्देश्य सदैव जनता की जागृति और जनता तक विचारों का सही संप्रेषण करना रहा है। महात्मा गांधी की पंक्तियाँ हैं : समाचार पत्र का पहला उद्देश्य जनता की इच्छाओं, विचारों को समझना और उन्हें व्यक्त करना है। दूसरा उद्देश्य जनता में वांछनीय भावनाओं को जागृत करना है। तीसरा उद्देश्य सार्वजनिक दोषों को निर्भयतापूर्वक प्रकट करना है। + +2577. भारतेंदु ने अपने युग धर्म को पहचाना और युग को दिशा प्रदान की। भारतेंदु ने पत्र-पत्रिकाओं को पूर्णतया जागरण और स्वाधीनता की चेतना से जोड़ते हुए 1867 में ‘कवि वचन सुधा’ का प्रकाशन किया जिसका मूल वाक्य था : 'अपधर्म छूटै, सत्व निज भारत गहै' भारत द्वारा सत्व ग्रहण करने के उद्देश्य को लेकर भारतेंदु ने हिंदी पत्रकारिता का विकास किया और आने वालेपत्रकारों के लिए दिशा-निर्माण किया। भारतेंदु ने कवि वचन सुधा,हरिश्चंद्र मैगशीन, बाला बोधिनी नामक पत्र निकाले। ‘कवि वचन सुधा’ को 1875 में साप्ताहिक किया गया जबकि अनेकानेक समस्याओं के कारण 1885 ई॰ में इसे बंद कर दिया गया। 1873 में भारतेंदु ने ‘हरिश्चंद्र मैगजीन’ का प्रकाशन किया जिसका नाम 1874 में बदलकर ‘हरिश्चंद्र चन्द्रिका’ कर दिया गया। देश के प्रति सजगता, समाज सुधार, राष्ट्रीय चेतना, मानवीयता, स्वाधीन होने की चाह इनके पत्रों की मूल विषयवस्तु थी। स्त्रियों को गृहस्थ धर्म और जीवन को सुचारु रूप से चलाने के लिए भारतेंदु ने ‘बाला बोधिनी’ पत्रिका निकाली जिसका उद्देश्य महिलाओं के हित की बात करना था। + +2578. 1881 में पं॰ बद्रीनारायण उपाध्याय ने ‘आनन्द कादम्बिनी’ नामक पत्र निकाला और पं॰ प्रतापनारायण मिश्र ने कानपुर से ‘ब्राह्मण’ का प्रकाशन किया। ‘आनन्द- कादम्बिनी’ ने जहाँ साहित्यिक पत्रकारिता में योगदान दिया वहीं ‘ब्राह्मण’ ने अत्यंत धनाभाव में भी सर्वसाधारण तक जानकारी पहुँचाने का कार्य पूर्ण किया। ‘ब्राह्मण’ का योगदान साधारण व सरल गद्य के संदर्भ में भी महत्त्वपूर्ण है। + +2579. इस युग की पत्रकारिता के उद्देश्य बहुआयामी थे। एक ओर राष्ट्रीयता की चेतना के साथ-साथ राजनीति की कलई खोलना तो दूसरी ओरसामाजिक चेतना को जागृत करना, सामाजिक कुरीतियों और दुष्प्रभावों का परिणाम दर्शाना, स्त्रियों की दीन-हीन दशा में सुधार और स्त्री-शिक्षा को बढ़ावा देनाऋ पत्रकारों के प्रमुख उद्देश्य थे। भारतेंदु इस कार्य के लिए युग द्रष्टा और युग स्रष्टा के रूप में आए। उनके योगदान के लिए ही आचार्य रामचंद्र शुक्ल उन्हें विशेष स्थान प्रदान करते हैं। हिंदी साहित्य का दिशा-निर्देश करने वाली पत्रिका ‘सरस्वती’ का प्रकाशन जनवरी 1900 को हुआ जिसके संपादक मण्डल में जगन्नाथदास रत्नाकर, राधाकृष्णदास, श्यामसुंदर दास जैसे सुप्रसिद्ध विद्वज्जन थे। 1903 में महावीर प्रसाद द्विवेदी ने इसका कार्यभार संभाला। एक ओर भाषा के स्तर पर और दूसरी ओर प्रेरक बनकर मार्गदर्शन का कार्य संभालकर द्विवेदी जी ने साहित्यिकऔर राष्ट्रीय चेतना को स्वर प्रदान किया। द्विवेदी जी ने भाषा की समृद्धि करके नवीन साहित्यकारों को राह दिखाई। उनका वक्तव्य है : हमारी भाषा हिंदी है। उसके प्रचार के लिए गवर्नमेंट जो कुछ कर रही है, सो तो कर ही रही है, हमें चाहिए कि हम अपने घरों का अज्ञान तिमिर दूर करने और अपना ज्ञानबल बढ़ाने के लिए इस पुण्यकार्य में लग जाएं। महावीरप्रसाद द्विवेदी ने ‘सरस्वती’ पत्रिका के माध्यम से ज्ञानवर्धन करने के साथ-साथ नए रचनाकारों को भाषा का महत्त्व समझाया व गद्य और पद्य के लिए राह निर्मित की। महावीर प्रसाद द्विवेदी की यह पत्रिका मूलतः साहित्यिक थी और हरिऔध, मैथिलीशरण गुप्त से लेकर कहीं-न-कहीं निराला के निर्माण में इसी पत्रिका का योगदान था परंतु साहित्य के निर्माण के साथ राष्ट्रीयता का प्रसार करना भी इनका उद्देश्य था। भाषा का निर्माण करना साथ ही गद्य-पद्य के लिए खड़ी बोली को ही प्रोत्साहन देना इनका सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य था। + +2580. इन पत्रों का मूल उद्देश्य राष्ट्रीय चेतना एवं भाषा नीति का प्रसार करना था। उग्र एवं क्रांतिकारी विचारधारा के पोषण पत्र स्वाधीनता के प्रसार के लिए प्रयास कर ही रहे थे, साथ ही साथ साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं ने अनेक लेख लिखकर जनता की सुप्त भावनाओं का दिशा-निर्देशन किया। + +2581. पै नव रस साहित्य की यह माधुरी अनन्य। + +2582. पीते हैं जो साधक उनका + +2583. एक ओर इन पत्रिकाओं के माध्यम से स्वच्छंदतावाद की स्थापना हुई वहीं सामाजिक, राजनीतिक घटनाओं को स्वर मिला। अनेक सुंदर कविताओं का प्रकाशन इस युग की पत्रिकाओं में हुआ। ‘जूही की कली’, ‘सरोज स्मृति’ , ‘बादल राग’ जैसी निराला की उत्कृष्ट कविताएँ ‘मतवाला’ में प्रकाशित हुईं। ‘जूही की कली’ को मुक्त छंद के प्रवर्तन का श्रेय दिया जाता है। + +2584. 1. राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार + +2585. देशवासियो आओ, आज हम अपने छोटे-छोटे मतभेदों को भुलाकर वृहतर राष्ट्र की रक्षा के लिए पूर्णरूप से संगठित हो जाएँ और अपनी एकता की दहाड़ से शत्रु का कलेजा दहला दें... + +2586. 2. राजनीतिक सूचनाओं में अभिवृद्धि + +2587. अनेक पत्रिकाएँ तो किसी विशेष विधा को केंद्र में रखकर ही कार्य कर रही हैं। इससे उस विधा विशेष का तो विकास होता ही है साथ ही पाठकों को भी रुचि के अनुरूप चयन की सुविधा मिल जाती है यथा : + +2588. 2. अधिकांश समाचारों के अनुवाद की समस्या का भी हिंदी पत्रों को सामना करना पड़ता है। इसके बावजूद पत्र-पत्रिकाएँ निरंतर प्रगति कर रही हैं और इसे देखते हुए पत्रकारिता के बेहतर भविष्य की उम्मीद की जा सकती है। + +2589. ‘नन्दन’ का प्रकाशन 1964 से हुआ और इसके संपादक थे - राजेन्द्र अवस्थी। ‘तेनालीराम’ की सूझ-बूझ का प्रदर्शन ज्ञान पहेली, वर्ग पहेली इसके मुख्य आकर्षण थे। बालकों के ज्ञान में वृद्धि और स्वस्थ मनोरंजन को प्रोत्साहन देना इसका लक्ष्य रहा। ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’ का प्रकाशन 1950 सेहुआ। इस पत्र ने हिंदी भाषा की स्थापना के लिए चल रहे प्रयासों को अत्यंत उत्कृष्टता से स्वर प्रदान किया साथ ही युद्ध के समय जनता को बलिदान के लिए प्रेरित भी किया। + +2590. ‘वीर अर्जुन’ का प्रकाशन 1954 से आरंभहुआ। राष्ट्रीयता, कर्त्तव्य परायणता व ओजस्विता को आधार बनाकर चलने वाले इसपत्र में गंभीर साहित्यिक पत्रकारिता के भी दर्शन होते हैं। इस पत्र का प्रकाशन नई दिल्ली से किया जाता है। सहारा ग्रुप द्वारा प्रकाशित सप्ताह में एक बार आने वाला पत्र ‘सहारा समय’ विविध विषयों से पूर्ण है। साहित्यिक, राजनीतिक, पिफल्मी मनोरंजन, व्यापार आदि अनेकानेक विषयों पर प्रचुर सामग्री प्रस्तुत करने के साथ-साथ बेहतर स्तर के विषय व शिल्प की विविधता इस पत्र की प्रमुख विशेषता है। यह पत्र सप्ताह में एक बार आकर भी पूरे सप्ताह के लिए सामग्रीप्रस्तुत करने में सक्षम है। + +2591. पहले ज्ञानोदय के नाम से निकलने वाली प्रसिद्ध पत्रिका अब ‘नया ज्ञानोदय’ के नाम से प्रभाकर श्रोत्रिय के संपादन में प्रकाशित होती है। विविध कथाओं के अनुवाद करने और भाषाओं को समानांतर स्तर पर लाने के संदर्भ में इस पत्रिका का विशिष्ट योगदान है। इसके स्थायी स्तंभों में हस्तक्षेप, कहानी, भाषांतर, कविता, साक्षात्कार, यात्रा वृत्तांत, पुस्तक समीक्षा हैं। नई पुस्तकों से परिचित कराने व भाषाओं को जोड़ने में इनका विशेष योगदान है। + +2592. दैनिक भास्कर समूह द्वाराप्रकाशित पत्रिका ‘अहा! जिन्दगी’ साहित्य के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों के विशिष्ट व्यक्तियों के जीवन को जानने का प्रयास करती है। भविष्य की दुनिया के कयास लगाती इस पत्रिका के संपादक यशवंतव्यास हैं। भाषा व विषय के स्तर पर यह पत्रिका अत्यंत सरल पर उत्कृष्ट है। + +2593. राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986: + +2594. साथ ही समय की चुनौतियों का सामना करने के लिए अपनी विशिष्ट शिक्षा प्रणाली विकसित करता + +2595. प्रयास करें। शिक्षा उस लक्ष्य तक पहुंचने का प्रमुख साधनहै। + +2596. 1968 की शिक्षा नीति और उसके बाद. + +2597. मूल्यों को विकसित करने पर तथा शिक्षा और जीवन में गहरा रिश्ता कायम करने पर भी ध्यान दिया + +2598. 1.6 पूरे देश में शिक्षा की समान संरचना और लगभग सभी राज्यों द्वारा 10+2+3 की प्रणाली + +2599. शिक्षा तथा शोध के लिए उच्च अध्ययन के केन्द्र स्थापितकिए गए। हम देश की आवश्यकता के + +2600. हो सकी। नतीजा यह है कि विभिन्न वर्गों तक शिक्षा को पहुँचाने, उसका स्तर सुधारने और विस्तार + +2601. 1.10 भारतीय विचारधारा के अनुसार मनुष्य स्वयं एक बेशकीमती संपदा है, अमूल्य संसाधन + +2602. अमल करने की आवश्यकता है। + +2603. तैयार नहीं हैं। इसलिए गांव और शहर के पफ़र्क को कम करने और ग्रामीण क्षेत्रो में रोजगार के विविध + +2604. 1.14 अगले दशक नए तनावों और समस्याओं के साथ अभूतपूर्व अवसर भी प्रदान करेंगे। उन + +2605. 1.15 अतएव इन नई चुनौतियों और सामाजिक आवश्यकताओं का तकाजा है कि सरकार एक + +2606. की बुनियादी आवश्यकता है। + +2607. 2.3 शिक्षा के द्वारा ही आर्थिक व्यवस्था के विभिन्न स्तरों के लिए जरूरत के अनुसार + +2608. भाग 3. + +2609. बिना किसी जात-पात, धर्म स्थान या लिंग भेद के, लगभगएक जैसी अच्छी शिक्षा उपलब्ध हो। इस + +2610. शैक्षिक संरचना हो। 10+2+3 के ढांचे को पूरे देश में स्वीकार कर लिया गया है। इस ढांचे के पहले + +2611. रहेगा, जिन्हें स्थानीय पर्यावरण तथा परिवेश के अनुसार ढाला जा सकेगा। ‘‘सामान्य केन्द्रिक’’ में + +2612. धर्मनिरपेक्षता, स्त्री-पुरूषों के बीच समानता, पर्यावरणका संरक्षण, सामाजिक समता, सीमित परिवार का + +2613. यह होगा कि नई पीढ़ी में विश्वव्यापी दृष्टिकोण सुदृढ़ हो तथा अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग और शांतिपूर्ण + +2614. करवाई जाएगी। वास्तव में राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था का उद्देश्य है कि सामाजिक माहौल और जन्म के + +2615. और बहुभाषी शब्द-कोशों और शब्दावलियों के प्रकाशन के लिये भी कार्यक्रम चलाये जायेंगे। युवा वर्ग + +2616. अध्ययन करने की सुविधा दी जायेगी। विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा की अन्य संस्थाओं के + +2617. 3.10 शिक्षा के पुनर्निर्माण के लिए, शिक्षा में असमानताओं को कम करने के लिए, प्राथमिक + +2618. सुविधा के अनुसार अपनी शिक्षा जारी रखने के अवसर मुहÕया करवाए जायेंगे। भविष्य में खुली शिक्षा + +2619. एक समेकित योजना के द्वारा जोड़ा जाएगा ताकि इनमें आपस में कार्यात्मक संबंध स्थापित हो तथा + +2620. 3.13 वर्ष 1976 का संविधान संशोधन जिसके द्वारा शिक्षा को समवर्ती सूची में शामिल किया + +2621. राष्ट्रीय तथा समाकलनात्मक ;इंटेग्रेटिवद्ध रूप को बल देना, गुणवत्ता एवं स्तर बनाए रखना ;जिसमें + +2622. निरन्तर प्रयास। समवर्तिता एक ऐसी भागीदारी है जो स्वयं में सार्थक व चुनौतीपूर्ण है, और राष्ट्रीय शिक्षा + +2623. 4.1 नई शिक्षा नीति विषमताओं को दूर करने पर विशेष बल देगी और अब तक वंचित रहे + +2624. शिक्षा-व्यवस्था का स्पष्ट झुकाव महिलाओं के पक्ष में होगा। राष्ट्रीय शिक्षा-व्यवस्था ऐसे प्रभावी दखल + +2625. पुनर्रचना का अभिन्न अंग मानते हुए इसे पूर्णकृत संकल्प होकर किया जायेगा और शिक्षा संस्थाओं को + +2626. निगाह रखी जायेगी। विभिन्न स्तरों पर तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी पर + +2627. प्रौद्योगिकी में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई जायेगी। + +2628. 4.5 इस मकसद के तहत नई नीति में ये उपाय सोचे गए हैं- + +2629. जाएंगे। + +2630. पाठ्यचर्या की व्यवस्था करना। + +2631. तरीकों की खोज जारी रखना। + +2632. ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम, ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारंटी कार्यक्रम, जनजातीय + +2633. आदिवासी भाषाओं का उपयोग किया जाये, तथा ऐसा इन्तजाम किया जाये कि + +2634. शिक्षा प्राप्ति में आने वाली बाधाएं दूर हों। उच्च शिक्षा के लिए दी जाने वाली + +2635. इलाकों में प्राथमिकता के आधार पर खोल जाएंगे। + +2636. पर्याप्त संख्या में शिक्षा संस्थाएं खोली जाएंगी। + +2637. अधिकार दिये गए हैं, वे भी इनमें शामिल हैं। साथ ही पाठ्यपुस्तकें तैयार करने में और सभी स्कूलों + +2638. कि वे समाज के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल सकें, उनकी सामान्य तरीके से प्रगति हो और वे पूरे + +2639. भी नया रूप दिया जायेगा ताकि वे विकलांग बच्चों की कठिनाइयों को ठीक + +2640. और दमन से मुक्ति दिलाती है। शिक्षा की इस परिकल्पना के तहत हर व्यक्ति को लिखना-पढ़ना तो + +2641. विकास के कार्यक्रमों में उन लोगों की भागीदारी बहुतजरूरी है जिनको उनका लाभ मिलना है। प्रौढ़ + +2642. 4.12 समूचे देश को निरक्षरता उन्मूलन के लिए निष्ठापूर्वक प्रतिबद्ध होना है, खासकर 15-35 + +2643. शैक्षिक पहलुओं में सुधार लाने के ठोस प्रयास किए जाएंगे। साक्षरता के अलावा, कार्यात्मक ज्ञान और + +2644. प्रोत्साहन। + +2645. 5.1 बच्चों से संबंधित राष्ट्रीय नीति इस बात पर विशेष बल देती है कि बच्चों के विकास + +2646. विकास को समेकित रूप में ही देखना होगा। इस दृष्टि से शिशुओं की देखभाल और शिक्षा पर विशेष + +2647. 5.3 शिशुओं की देखभाल और शिक्षा के केन्द्र पूरी तरह बाल-केन्द्रित होंगे। उनकी + +2648. से सहायता मिल सके। इसके साथ ही स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम को और सुदृढ़ किया जायेगा। + +2649. बाल-केन्द्रित दृष्टिकोण + +2650. और उनके लिए पूरक और उपचारात्मक शिक्षा की भी व्यवस्था होनी चाहिए। ज्यों-ज्यों बच्चे बड़े होंगे + +2651. हुये किया जायेगा। + +2652. यथासंभव जल्दी ही प्रत्येक कक्षा के लिए एक-एक शिक्षक की व्यवस्था की जाएगी। पूरे देश में + +2653. अनौपचारिक शिक्षा + +2654. टैक्नालाजी के उपकरणों की सहायता ली जाएगी। इन केन्द्रों में अनुदेशक के तौर पर काम करने के + +2655. 5.10 ‘‘राष्ट्रीय केन्द्रिक शिक्षाक्रम’’ की तरह का एक शिक्षाक्रम अनौपचारिक शिक्षा पद्धति + +2656. व्यवस्था की जाएगी। + +2657. प्राथमिकता दी जाएगी। बच्चों को बीच में स्कूल छोड़ने से रोकने के लिए स्थानीय परिस्थितियों के + +2658. अवश्य मिल जाए। इसी प्रकार 1995 तक 14 वर्ष की अवस्था आने वाले सभी बच्चों को निःशुल्क और + +2659. परिप्रेक्ष्य सही ढंग से दिया जा सकता है। साथ ही इस अवस्था पर अपने संवैधानिक दायित्व और + +2660. तक इसे पहुंचाकर अधिक सुलभ बनाया जाएगा। दूसरे क्षेत्रों में दृढ़ीकरण पर बल रहेगा। + +2661. 5.15 इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये देश के विभिन्न भागों में एक निर्धारित ढांचे पर + +2662. रहकर पढ़ेंगे जिससे उनमें राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास होगा। इन विद्यालयों में बच्चों को + +2663. कार्यक्रम को दृढ़ता से क्रियान्वित करना बहुत ही जरूरी है।इससे व्यक्तियों के रोजगार पाने की क्षमता + +2664. के चुने हुए काम-धंधों के लिये विद्यार्थियों को तैयार करना होगा। ये कोर्स आम तौर पर सेकंडरी शिक्षा + +2665. प्रशिक्षण से जोड़ा जाना चाहिए। इसके लिये स्वास्थ्य संबंधी व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की आवश्यकता + +2666. रहेगा जिनसे उद्यमीपन और स्वरोजगार की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिले। + +2667. 5.20 व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के स्नातकों को ऐसे अवसरदिये जायेंगे जिन के पफलस्वरूप वे + +2668. पर आधारित शिक्षा के कार्यक्रम चलाए जायेंगे। इस संबंध में महिलाओं पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। + +2669. कि व्यावसायिक शिक्षा पाकर निकले हुए विद्यार्थियों मेंसे अधिकतर को या तो नौकरी मिले या वे + +2670. 5.24 उच्च शिक्षा से लोगों को इस बात का अवसर मिलता है कि वे मानव जाति की + +2671. 5.25 आजकल ज्ञान का जो अभूतपूर्व विस्पफोट हो रहा हैउसे देखते हुए उच्च शिक्षा को + +2672. 5.27 उच्च शिक्षा-व्यवस्था को गिरावट से बचाने के लिए सभी संभव उपाय किये जाएंगे। + +2673. विश्वविद्यालयों के कुछ चुने हुये विभागों को भी स्वायत्तता देने को प्रोत्साहित किया जाएगा। स्वायत्तता + +2674. 5.30 राज्य स्तर पर उच्च शिक्षा का नियोजन और उच्च शिक्षा संस्थाओं में समन्वय संपन्न + +2675. दृश्य-श्रव्य साधनों और इलेक्ट्रानिक उपकरणों का प्रयोगप्रारम्भ होगा। विज्ञान भी टैक्नॉलाजी के + +2676. 5.32 विश्वविद्यालयों में अनुसंधान के लिये अधिक सहायतादी जाएगी और उसकी उच्च + +2677. के प्रयास किये जाएंगे और इन संस्थाओं में स्वायत्त प्रबंध की समुचित व्यवस्था की जाएगी। + +2678. विकास करना जरूरी होगा। + +2679. 5.35 उच्च शिक्षा के लिये अधिक अवसर देने और शिक्षा को जनतांत्रिक बनाने की दृष्टि से + +2680. 5.38 कुछ चुने हुये क्षेत्रों में डिग्री को नौकरी सेअलग करने के लिये कदम उठाये जाएंगे। + +2681. विश्वविद्यालय की डिग्री आवश्यक नहीं होनी चाहिए। इस योजना को लागू करने से विशेष कार्यों, + +2682. 5.41 नौकरियों को डिग्री से अलग करने के साथ-साथ क्रमिक रूप में एक राष्ट्रीय परीक्षण + +2683. शिक्षा संबंधी क्रांतिकारी विचारों के अनुरूप विकसित किया जाएगा। इसका उद्देश्य होगा कि ग्रामीण क्षेत्र + +2684. 6.1 यद्यपि तकनीकी शिक्षा और प्रबंध शिक्षा अलग Ggjjdjjcgधाराओं के रूप में चल रही है। तथापि + +2685. प्रौद्योगिकी में होने वाली प्रगति को इस संदर्भ में देखना होगा। + +2686. तकनीकी जनशक्ति सूचना प्रणाली को आगे विकसित तथा सुदृढ़ किया जायेगा। + +2687. आयोजित किए जाएंगे। + +2688. विभिन्न स्तरों पर प्रवेश की सुविधा होगी। इसके लियेपर्याप्त मार्गदर्शन और परामर्श सेवा भी उपलब्ध + +2689. भंडार तैयार किया जायेगा। + +2690. होगी। इस मांग को पूरा करने के लिये कार्यक्रम शुरू किए जायेंगे। + +2691. द्वारा नई प्रौद्योगिकियों और विषयों को शुरू करना होगा तथा पुराने और अर्थहीन होते विषयों को + +2692. प्रणाली का मूल्यांकन किया जायेगा और उसे समुचित रूप से मजबूत बनाया जायेगा ताकि इसकी + +2693. कराना, जो शोध और विकास में उपयोगी साबित हो सके। विकास के लिये शोध कार्य, मौजूदा + +2694. प्रणालियों के बीच सहयोग, सहकार्य और आदान-प्रदान के रिश्ते कायम करने के अवसरों का पूरा + +2695. और उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिये निम्नलिखित मुख्य उपाय किये जायंगे- + +2696. रचनात्मक कार्य और सांस्कृतिक गतिविधियों के लिये सुविधाएँ बढ़ाई जायेंगी। + +2697. किये जायेंगे। स्टापफ विकास कार्यक्रम राज्य स्तर पर समेकित, तथा क्षेत्रीय और राष्ट्रीय + +2698. प्रशिक्षण-सुविधाओं और संसाधनों में, अनुसंधान और कन्सलटेन्सी ;सलाहकारीद्ध में, + +2699. दी जायेगी, लेकिन साथ ही जिम्मेदारी के समुचित निर्वाहके लिये जवाबदेही की + +2700. 6.16 प्रबन्ध पद्धतियों में संभावित परिवर्तनों की, और इन परिवर्तनों के साथ कदम मिलाकर + +2701. अनुरक्षण, प्रत्यापन, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्रों के लिये वित्तीय व्यवस्था, अनुश्रवण और मूल्यांकन, प्रमाणन + +2702. तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा के व्यापारीकरण को रोका जायेगा। इसके विकल्प के रूप में स्वीकृत + +2703. 7.1 यह स्पष्ट है कि शिक्षा से संबंधित ये तथा अन्य बहुत से नये कार्य अव्यवस्था की दिशा + +2704. ही करना होगा। + +2705. के मूल्यांकन की पद्धति का सृजन। + +2706. परंपराओं के बीच एक खाई है, जिसे पाटना आवश्यक है। आधुनिक टेक्नॉलाजी की धुन में यह नहीं + +2707. 8.2 शिक्षा की पाठ्यचर्या और प्रक्रियाओं को सांस्कृतिक विषयवस्तु के समावेश द्वारा अधिक + +2708. परंपरा को कायम रखने और आगे बढ़ाने के लिए परम्परागत तरीकों से पढ़ाने वाले गुरुओं और उस्तादों + +2709. की जाएगी ताकि उनके लिए आवश्यक विशेष योग्यता प्राप्तव्यक्तियों की कमी को पूरा किया जाता + +2710. की जरूरत है जिससे सामाजिक और नैतिक मूल्यों के विकास में शिक्षा एक सशक्त साधन बन सके। + +2711. 8.6 इस संघर्षात्मक भूमिका के साथ-साथ मूल्य-शिक्षा का एक गंभीर सकारात्मक पहलू भी + +2712. गया था। उस नीति की मूल सिपफारिशों में सुधार की संभावना शायद ही हो और वे जितनी प्रासंगिक + +2713. के सभी वर्गों को आसानी से पुस्तकें उपलब्ध कराने केप्रयास किए जाएंगे। साथ ही पुस्तकों की + +2714. 8.9 पुस्तकों के विकास के साथ-साथ मौजूदा पुस्तकालयों के सुधार के लिए और नए + +2715. की जिन अवस्थाओं और क्रमों से गुजरना पड़ता था उनमें से अधिकांश को लांघकर आगे बढ़ा जाए। + +2716. पुनःप्रशिक्षण के लिए, शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने के लिए, और कला और संस्कृति के प्रति + +2717. 8.12 शैक्षिक टेक्नॉलोजी के द्वारा मुख्य रूप से ऐसे कार्यक्रमों का निर्माण होगा जो प्रासंगिक + +2718. होते हैं और उनका प्रभाव हानिकारक है। रेडियो और दूरदर्शन के ऐसे कार्यक्रमों को बंद किया जाएगा + +2719. 8.14 कार्यानुभव को, सभी स्तरों पर दी जाने वाली शिक्षा का एक आवश्यक अंग होना + +2720. वृद्धि होती जाएगी। इसके द्वारा प्राप्त किया गया अनुभव आगे चलकर रोजगार पाने मेंं बहुत सहायक + +2721. से लेकर समाज के सभी आयुवर्गों और क्षेत्रों में पफैलनी चाहिए। पर्यावरण के प्रति जागरूकता विद्यालयों + +2722. विषय होने के अतिरिक्त गणित को ऐसे किसी भी विषय का सहवर्ती माना जाना चाहिए जिसमें + +2723. टेक्नॉलाजी के उपकरणों के साथ जुड़ सके। + +2724. 8.19 विज्ञान शिक्षा के कार्यक्रमों को इस प्रकार बनाया जाएगा कि उनसे विद्यार्थियों में + +2725. खेल और शारीरिक शिक्षा + +2726. शारीरिक शिक्षा के अध्यापकों की नियुक्ति होगी। शहरों में उपलब्ध खुले क्षेत्र खेलों के मैदान के लिए + +2727. समेकित विकास के साधन के रूप में योग शिक्षा पर विशेष बल दिया जाएगा। सभी विद्यालयों में योग + +2728. विकास के कार्य में सम्मिलित होने के अवसर दिए जाएंगे।इस समय राष्ट्रीय सेवा योजना, राष्ट्रीय कैडेट + +2729. 8.23 विद्यार्थियों के कार्य का मूल्यांकन सीखने और सिखाने की प्रक्रिया का अभिन्न अंग है। + +2730. में काम कर सके। क्रियात्मक रूप में इसका अर्थ होगा। + +2731. को कम किया जाएगा। + +2732. समाज को ऐसी परिस्थितियाँ बनानी चाहिए जिनसे अध्यापकों को निर्माण और सृजन ओर बढ़ने की + +2733. चयन उनकी योग्यता के आधार पर व्यक्ति-निरपेक्ष रूप से और उनके कार्य की अपेक्षाओं के अनुरूप + +2734. लिए निर्देशक सिद्धान्त बनाए जाएंगे। उनके मूल्यांकन की एक पद्धति तय की जाएगी जो प्रकट होगी, + +2735. 9.3 व्यावसायिक प्रामाणिकता की हिमायत करने, शिक्षक कीप्रतिष्ठा को बढ़ाने और + +2736. 9.4 अध्यापकों की शिक्षा एक सतत् प्रक्रिया है और इसकेसेवापूर्व और सेवाकालीन अंशों + +2737. 9.6 ‘जिला शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थान’ स्थापित किए जाएंगे जिनमें प्राथमिक विद्यालयों के + +2738. को सामर्थ्य और साधन दिए जाएंगे जिससे यह परिषद् अध्यापक-शिक्षा की संस्थाओं को मान्यता देने के + +2739. शिक्षा का प्रबंध + +2740. राष्ट्रीय स्तर + +2741. तथा राज्यों के शिक्षा विभागों को सुदृढ़ बनाने के लिए इनमें व्यावसायिक दक्षता रखने वाले व्यक्तियों + +2742. किया जाये। इस सेवा से सम्बन्धित बुनियादी सिद्धान्तों, कर्त्तव्यो, तथा नियोजन की विधि की बाबत + +2743. लिए कारगर उपाय किए जाने चाहिए। + +2744. स्थापना की जाएगी तथा राज्य सरकारें यथाशीघ्र इस संबंध में कार्रवाई करेंगी। शैक्षिक विकास के + +2745. माध्यम बनें, तथा शिक्षकों की व्यावसायिक दक्षता बढ़ाने और उनके द्वारा कर्त्तव्यनिष्ठा के मानदण्डों के + +2746. 10.8 उपयुक्त निकायों के माध्यम से स्थानीय लोग विद्यालय सुधार कार्यक्रमों में महत्त्वपूर्ण + +2747. व्यवस्था ठीक हो। इसके साथ ही ऐसी संस्थाओं को रोका जाएगा जो शिक्षा को व्यापारिक रूप दे रही + +2748. सभी लोगों ने इस बात पर बल दिया है कि हमारे समतावादी उद्देश्यों और व्यावहारिक तथा + +2749. मदद लेना, उच्च शिक्षा स्तर पर पफीस बढ़ाना तथा उपलब्ध साधनों का बेहतर उपयोग करना। वे संस्थाएँ + +2750. पैदा करने के लिए भी कारगर होंगे। तथापि, साधनों की समूची वित्तीय आवश्यकता के मुकाबले में इन + +2751. ज्ञान तथा वैज्ञानिक क्षेत्रों में स्वयं-स्पफूर्त आर्थिक विकास के लिए प्रौद्योगिकी का विकास, राष्ट्रीय + +2752. हमारे देश की अर्थव्यवस्था को अपरिहार्य क्षति होगी। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रयोग को सुचारू + +2753. लिये पूँजी लगाने का एक अत्यंत आवश्यक क्षेत्र माना जाएगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 में यह + +2754. विभिन्न कार्यक्रमों की प्रगति के जायजे के आधार पर वास्तविक आवश्यकताओं का अनुमान लगाया + +2755. 11.5 नई शिक्षा नीति के विभिन्न पहलुओं के कार्यान्वयन की समीक्षा प्रत्येक पांच वर्षों में + +2756. सबके लिए सुन्दर आवाजें: + +2757. + +2758. भारतेन्दु काल के मौलिक कथा-ग्रन्थों और उपन्यासों में महत्वपूर्ण हैं : ठाकुर जगमोहन सिंह का ‘श्याम स्वप्न’ (काव्यात्मक गद्य-कथा), पं. बालकृष्ण भट्ट रचित ‘नूतन ब्रह्मचारी’ तथा ‘सौ अजान और एक सुजान’ किशोरी लाल गोस्वामी का ‘स्वर्गीय कुसुम’, राधाचरण गोस्वामी का ‘विधवा-विपत्ति’, राधाकृष्ण दास का ‘निस्सहाय हिन्दू’, अयोध्यासिंह उपा + +2759. द्विवेदी युग में भी अधिकतर साधारण जनता के मनोरंजन और मनोविनोद के लिए घटना प्रधान उपन्यास ही लिखे गये। उनमें कथा का रस तो है, किन्तु चरित्र-चित्रण का सौन्दर्य, समाज का सही अंकन और उपन्यास का परिपक्व शिल्प नहीं। इस समय के उपन्यासकारों को न तो मानव-जीवन का और न मानव-स्वभाव का सूक्ष्म एवं व्यापक ज्ञान था और न उपन्यास की कला से ही उनका अच्छा परिचय था। इस काल में अधि कतर प्रेमप्रधान, साहसिक तथा विस्मयकारक (तिलस्मी-जासूसी) उपन्यास ही लिखे गये। ऐतिहासिक, शिक्षात्मक और काव्यात्मक उपन्यास भी लिखे गये, परन्तु कम। पात्र अधिकतर सौंदर्य के प्रति आकर्षित होने वाले विलासी प्रेमी-प्रेमिका और राजकुमार-राजकुमारी हैं या पिफर ऐयार तथा जासूस। इस काल के उपन्यास भारतेन्दु काल के उपन्यासों की अपेक्षा रोचक और मनोरंजक अधिक हैं। शिक्षा देने की प्रवृत्ति भी कम है। प्रतापनारायण मिश्र, गोपालराम गहमरी, ईश्वरीप्रसाद शर्मा, हरिऔध, कार्तिकप्रसाद खत्री, रूपनारायण पाण्डेय, रामकृष्ण वर्मा आदि साहित्यकारों ने बंगला, अंग्रेजी और उर्दू आदि भाषाओं के उपन्यासों का अनुवाद किया। आचार्य शुक्ल का कथन है कि हिन्दी के मौलिक उपन्यास-सृजन पर इन अनुवाद कार्यों का अच्छा प्रभाव पड़ा और इसके कारण हिन्दी उपन्यास का आदर्श काफी ऊँचा हुआ। + +2760. प्रेमचन्द की उपन्यास-कला की मुख्य विशेषताएं हैं : व्यापक सहानुभूति-विशेषकर शोषित किसान, मजदूर और नारी का सहानुभूतिपूर्ण चित्रण, यथार्थवाद अर्थात् उपन्यास में जीवन का यथार्थ चित्रण, मानव-जीवन और मानव-स्वभाव की अच्छी जानकारी होने से सजीव पात्रों और सजीव वातावरण का निर्माणऋ चरित्र-चित्रण में नाट्कीय कथोपकथनात्मक तथा घटनापरक पद्धतियों का उपयोग, समाज के विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधि पात्रों की सृष्टि, अपने व्यक्तित्व को पात्रों से पृथक रखकर उन्हें प्रायः अपनी सहज-स्वच्छन्द गति से चलने देना, अनेकानेक सामाजिक तथा राजनीतिक समस्याओं का चित्रण, समाज के साथ पारिवारिक जीवन की सुन्दर अभिव्यक्ति, मानव-कल्याण की ओर संकेत करने वाले नैतिक आदर्शों की प्रतिष्ठा और सरल व्यावहारिक भाषा का संग्रह। प्रेमचन्द युग के अन्य उल्लेखनीय उपन्यासकार हैं। विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक, प्रसाद, निराला, सुदर्शन, चतुरसेन शास्त्री, वृन्दावन लाल वर्मा, प्रतापनारायण श्रीवास्तव, सियारामशरण गुप्त, पांडेय बेचन शर्मा ‘उर्ग्र’, भगवती प्रसाद वाजपेयी, गोविन्दवल्लभ पंत, राहुल सांकृत्यायन और जैनेन्द्र। कोशिक जी के उपन्यास ‘मां’ और भिखारिणी नारी-हृदय का मनोवैज्ञानिक चित्र प्रस्तुत करते हैं। आचार्य चतुरसेन ने नारी की समस्या पर ‘हृदय की परख’, ‘हृदय की प्यास’, ‘अमर अभिलाषा’ आदि उपन्यास प्रारम्भ में लिखे थे। बाद में उनके बहुत से सामाजिक ऐतिहासिक और वैज्ञानिक उपन्यास प्रकाशित हुए। उनके कुछ उल्लेखनीय उपन्यास हैं : ‘गोली’, ‘वैशाली की नगर वधू’ ‘वयं’ रक्षामः’ ‘सोमनाथ’ ‘महालय’, ‘सोना और खून’ तथा ‘खग्रास’। वृन्दावनलाल वर्मा ने इतिहास के तथ्यों की पूर्णतः रक्षा करते हुए कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक उपन्यासों की रचना की है। उन्होंने ‘विराटा की पद्मिनी’, ‘झाँसी की रानी’, ‘कचनार’, ‘मृगनयनी’, ‘माधवजी सिंधिया’ आदि उच्चकोटि के ऐतिहासिक उपन्यास लिखे। हिन्दी के कुछ अन्य उल्लेखनीय ऐतिहासिक उपन्यास हैं। जयशंकर प्रसाद का ‘इरावती’ (अधूरा), हजारी प्रसाद द्विवेदी के ‘वाणभट्ट की आत्मकथा’ और ‘चारु चन्द्रलेख’, चतुरसेन का ‘वैशाली की नगरवधू’, ‘राजसिंह’, ‘सोमनाथ’, ‘सह्याद्रि की चट्टानें’, सेठ गोविन्ददास का ‘इन्दुमती’, राहुल सांकृत्यायन के ‘सिंह सेनापति’, ‘जय यौधेय’, सत्यकेतु दिद्यालंकार का ‘आचार्य चाणक्य’, रांगेय राघव का ‘अंधा रास्ता’, उमाशंकर का ‘नाना फड़नवीस’ तथा ‘पेशवा की कंचना’। + +2761. इस काल में जो उपन्यास लिखे गए, उन्हें चार वर्गों में विभिक्त किया जा सकता है : यथार्थवादी सामाजिक उपन्यास ऐतिहासिक उपन्यास, स्वच्छन्दतापरकउपन्यास और मनोवैज्ञानिकउपन्यास। उपन्यास-लेखन की बहुत-सी शैलियों (ऐतिहासिक, आत्मकथात्मक, पत्रात्मक आदि) का प्रयोग हुआ है। इस काल में यूरोप की अनेक समृद्ध भाषाओं (रूसी, अंग्रेजी, प्रफांसीसी आदि) से उपन्यासों का अनुवाद भी हुआ। + +2762. रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ यशपाल की परम्परा में आते हैं। चढ़ती धूप, नई इमारत, उल्का और मरुप्रदीप उनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं। पर इनमें द्वन्द्वात्मक चेतना पूरे तौर पर नहीं उभरती। भगवतीचरण वर्मा प्रेमचन्दीय परम्परा के उपन्यासकार हैं। सन् ‘50 तक यह परम्परा चलती रही प्रेम चन्द ने अपने साहित्य में समसामयिक समस्याओं को चित्रित किया और वर्मा जी परिवर्तमान ऐतिहासिक धारा को मध्यमवर्ग के माध्यम से अंकित करते रहे हैं : मुख्यतः ‘40 के बाद लिखे गये उपन्यासों में। इनमें टेढ़े-मेढ़े रास्ते’, ‘आखिरी दाव’ ‘भूले-बिसरे-चित्र’, ‘सामर्थ्य और सीमा’, ‘सबहिं नचावत राम गुसाईं’, मुख्य हैं। उपेन्द्रनाथ अश्कको प्रेमचन्द-परम्परा का उपन्यासकार कहा जाता है। पर वे समग्र रूप से प्रेमचन्दीय परम्परा से नहीं जुड़ पाते। जहाँ तक मध्यवर्गीय परिवारों और व्यक्तियों की परिस्थितियों, समस्याओं और परिवेश का सम्बन्ध है, वहाँ तक वे प्रेमचन्दीय परम्परा के उपन्यासकार हैं प्रेमचन्द की अपेक्षा अधिक यथार्थवादी, इसलिए प्रामाणिक भी। प्रेमचन्द के वैविध्य और जीवन-चेतना का इनमें अभाव है। ‘सितारों के खेल’ के बाद इनके कई उपन्यास प्रकाशित हुए हैं : गिरती दीवारें, ‘गर्म राख’ ‘बड़ी-बड़ी आँखे’, पत्थर अल पत्थर’, ‘शहर में घूमता आइना’ और ‘एक नन्हीं किन्दील’। ‘गिरती दीवारें’ इनका सर्वोत्तम उपन्यास है। गर्म राख, बड़ी-बड़ी आँखे, पत्थर अल पत्थर सुगठित उपन्यासों की श्रेणी में रखे जायेंगे। अन्तिम दोनों उपन्यास ‘गिरती दीवारें’ का विस्तार हैं। + +2763. फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यासों को ही सर्वप्रथम आंचलिक उपन्यास की संज्ञा दी गयी क्योंकि स्वयं रेणु ने ही ‘मैला आंचल’ को आंचलिक उपन्यास कहा। ‘मैला आंचल’ के प्रकाशन के बाद ‘परती परिकथा’ प्रकाशित हुआ। + +2764. ‘प्रेत बोलते हैं’, ‘सारा आकाश’, ‘उखड़े हुए लोग’ और ‘एक इंच मुस्कान’ राजेन्द्र यादव के उपन्यास हैं। ‘एक इंच मुस्कान’ यादव और मन्नू भंडारी का सहयोगी लेखन है। इसमें खंडित व्यक्तित्व वाले आधुनिक व्यक्तियों की प्रेम-त्रासदी (ट्रेजिडी) है। आधुनिक जीवन की इस त्रासदी को अंकित करने के कारण यह उपन्यास यादव के अन्य उपन्यासों की अपेक्षा कहीं अधिक समकालीन और महत्वपूर्ण है। + +2765. हिन्दी निबन्ध का इतिहास: + +2766. इनके निबन्धों की भाषा स्वच्छ और श्लेषपूर्ण है। कहीं-कहीं तो उर्दू की बढ़िया शैली भी आपने उपस्थित की। भाव और विचार की दृष्टि से युग की वे सभी विशेषताएं इनमें भी हैं जो भट्ट जी या प्रतापनारायण मिश्र में हैं। + +2767. द्विवेदी युग. + +2768. अध्यापक पूर्णसिंह इस युग के सबसे प्रमुख, भावुक और विचारक निबन्धकार हैं। इससे अधिक गौरव की बात और क्या होगी कि इन्होंने केवल छः निबन्ध लिखे और पिफर भी अपने समय के श्रेष्ठ लेखक माने गए। उनमें से प्रमुख हैं ‘मजदूरी और प्रेम’, ‘आचरण की सभ्यता’, और ‘सच्ची वीरता’। अध्यापक जी के निबन्धों में प्रेरणा देने वाले नए-नए विचार हैं। इनकी भाषा बड़ी ही शक्तिशाली है। उसमें एक खास बाँकपन है जिससे भाव का प्रकाशन भी निराले ढंग से होता है। विषय भी ऐसे नए कि अब तक किसी को सूझे ही नहीं। साथ, ही इनमें भावुकता का माधुर्य भरा है। वीरता, आचरण, शारीरिक परिश्रम का जो महत्व उन्होंने समझाया, उसको ठीक समझा जाए तो आज धर्म का नया रूप सामने आ जाए। समाज में क्रांति हो जाए, मनुष्य और सारा देश उन्नति के शिखर पर पहुंच जाए। ‘‘जब तक जीवन के अरण्य में पादरी, मौलवी, पंडित और साधु-संन्यासी, हल कुदाल और खुरपा लेकर मजदूरी न करेंगे तब तक उनका आलस्य जाने का नहीं।’’ ‘मजदूरी और प्रेम’ का यह उद्धरण कितना महान् संदेश देता है। भाषा की लाक्षणिकता इनकी विशेषता है। + +2769. गुलाबराय जी के सामने द्विवेदी-युग का सारा साहित्य-भण्डार था। इनके साहित्य का बहुत कुछ रंग द्विवेदी-युग का रहा। यह निबन्धकार पहले हैं, आलोचक बाद में। ‘पिफर निराशा क्यों? ‘मेरी असफलताएं’, ‘अंधेरी कोठरी’ इनके निबन्ध संग्रह हैं। ‘मेरी असफलताएं’ आत्मपरक या वैयक्तिक व्यंग्यात्मक निबन्धों का संग्रह है। शेषदोनों संग्रहों में विचारात्मक निबन्ध हैं। अन्तिम संग्रह मनोवैज्ञानिक निबन्धों का है। आपकी भाषा बड़ी सरल और सुबोध होती है। विचारात्मक और मनोवैज्ञानिक निबन्धों तक में भाषा या भाव की उलझन नहीं मिलेगी। + +2770. डॉ. रघुवीर सिंह, माखनलाल चतुर्वेदी, रायकृष्ण दास, वियोगी हरि आदि ने भावात्मक निबन्ध लिखे। रघुवीर सिंह और माखनलाल जी के निबन्ध काफी बड़े हैं, शेष दोनों के बहुत छोटे-छोटे एक डेढ़ पृष्ठ के। इनके निबन्धों की शैली अन्य निबन्धकारों की शैली से भिन्न हैं : छोटे-छोटे वाक्य, कहीं खण्डित, कहीं अपूर्ण। आश्चर्य, शोक, करुणा, प्रेम का आवेश इसमें उमड़ता सा दिखता है, ऐसी रचनाओं को हिन्दी गद्यकाव्य का नाम दिया गया है। हम इन्हें निबन्ध मानते हैं। गद्य-काव्य के भीतर तो कहानी, नाटक, उपन्यास, शब्दचित्र, निबन्ध, आलोचना, सभी कुछ सम्मिलित हैं। + +2771. प्रसादोत्तर या प्रगतियुग में निबन्ध-साहित्य ने सबसे अधिक विकास किया। विषयों की संख्या और विविधता की दृष्टि से तो इस युग का मुकाबला ही नहीं। यह युग उथल-पुथल का युग है। दूसरा विश्वयुद्ध हुआ, समाजवादी विचारों का आगमन हुआ। भारत स्वतंत्र होकर विभाजित हुआ। प्राचीन साहित्य, संस्कृति और कला की ओर हमारा ध्यान गया। अनेक आर्थिक एवं सामाजिक समस्याएं भी पैदा हुईं। इन सब बातों की छाया निबन्धों में भी मिलती है। इस युगके चार निबन्धकार विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। : आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, जैनेन्द्र कुमार भवन्त आनन्द कौशल्यायन तथा यशपाल। + +2772. राहुल जी जैसी मस्ती और जैनेन्द्र कुमार जैसी शैली की झलक कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ के निबन्धों में मिलती है। इनके निबन्धों के 6 संग्रह हैं : ‘जिन्दगी मुस्कराई’, ‘आकाश के तारे’, ‘धरती के फूल’, ‘दीप जले’ ‘शंख बजे’, ‘माटी हो गयी सोना’, ‘महके आंगन, चहके द्वार’ तथा ‘बूँद-बूँद सागर लहराया’। + +2773. हिन्दी नाटक का इतिहास: + +2774. अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से हिन्दी-नाट्यकला के विकास को चार कालों में बाँटा जा सकता है : + +2775. भारतेन्दु-युग में अंग्रेजों ने बहुत से राजाओं से उनका शासन छीन कर उनका राज्य अपने अधीन कर लिया था। अंग्रेजों की इस नीति की प्रशंसा पर गुलामी के भय के द्वन्द्व की परिकल्पना ‘विषस्य विषमौषध म्’ प्रहसन में साकार हो उठी है। देशोद्धार की भावना का संघर्ष भारतेन्दु जी के ‘भारत जननी’ और ‘भारत दुर्दशा’ में घोर निराशा के भाव के साथ प्रस्तुत होता है। ‘भारत दुर्दशा’ में भारत के प्राचीन उत्कर्ष और वर्तमान अधःपतन का वर्णन निम्नलिखित पंक्तियों में मिलता है : + +2776. नाट्य-शास्त्र के गम्भीर अध्ययन के उपरान्त भारतेन्दु ने ‘नाटक’ निबन्ध लिख कर नाटक का सैद्धान्तिक विवेचन भी किया है। सामाजिक एवं राष्ट्रीय समस्याओं को लेकर-अनेक पौराणिक, ऐतिहासिक एवं मौलिक नाटकों की रचना ही नहीं की, अपितु उन्हें रंगमंच पर खेलकर भी दिखाया है। उनके नाटकों में जीवन और कला, सुन्दर और शिव, मनोरंजन और लोक-सेवा का सुन्दर समन्वय मिलता है। उनकी शैली सरलता, रोचकता एवं स्वभाविकता के गुणों से परिपूर्ण है। भारतेन्दु अद्वितीय प्रतिभा के धनी थे। सबसे बड़ी बात यह है कि वे अद्भुत नेतृत्व-शक्ति से युक्त थे। वे साहित्य के क्षेत्र में प्रेरणा के स्रोत थे। फलतः अपने युग के साहित्यकारों और नाटक तथा रंगमंच की गतिविधियों को प्रभावित करने में सफल रहे। इसके परिणामस्वरूप प्रतापनारायण मिश्र, राधाकृष्ण दास, लाला श्रीनिवास, देवकी नन्दन खत्री आदि बहुसंख्यक नाटककारों ने उनके प्रभाव में नाट्य रचना की। यह भी विचारणीय है कि भारतेन्दु मण्डल के नाटककारों ने पौराणिक, ऐतिहासिक, सामाजिक, चरित्रप्रधान राजनैतिक आदि सभी कोटियों के नाटक लिखे। इस युग में लिखे गये नाटक परिमाण और वैविध्य की दृष्टि से विपुल हैं। यहाँ मुख्य धाराओं का परिचय प्रस्तुत हैः + +2777. भवभूतिः + +2778. भट्टनारायण + +2779. मनमोहन वसुः सती : उदित नारायण लाल (1880)। + +2780. (३) एज यू लाइक इट (मनभावन) : पुरोहित गोपीनाथ (1896)। + +2781. द्विवेदीयुगीन नाटक. + +2782. हृदय की वृत्तियों की सत्त्व की ओर उन्मुख करने का प्रयास भारतेन्दु-युग के नाटकों में बहुत पहले से होता आ रहा था। द्विवेदी-युग से इन वृत्तियों के उत्कर्ष के लिए पौराणिक आख्यानों का निःसंकोच ग्रहण किया गया। आलोच्य युग में पौराणिक नाटकों के तीन वर्ग देखने को मिलते हैं : कृष्णचरित-सम्बन्धी, रामचरित सम्बन्धी तथा अन्य पौराणिक पात्रों एवं घटनाओं से सम्बन्धित। कृष्ण चरित सम्बन्धी नाटकों में राधाचरण गोस्वामी कृत ‘श्रीदामा’ (1904), ब्रज नन्दन सहाय-कृत ‘उद्धव’ (1909), नारायण मिश्र-कृत ‘कंसवध’ (1910), शिव नन्दन सहाय-कृत ‘सुदामा।’ (1907) और बनवारी लाल-कृत ‘कृष्ण तथा कंसवध’ (1910) को विशेष ख्याति प्राप्त है। रामचरित-सम्बन्धी नाटकों में रामनारायण मिश्र-कृत ‘जनक बड़ा’ (1906) गिरधर लाल-कृत ‘रामवन यात्रा’ (1910) और गंगाप्रसाद-कृत ‘रामाभिषेक’ (1910), नारायण सहाय-कृत ‘रामलीला’ (1911), और राम गुलाम लाल-कृत ‘धनुषयज्ञ लीला (1912), उल्लेखनीय हैं। अन्य पौराणिक घटनाओं से सम्बन्धित नाटकों में महावीर सिंह का ‘नल दमयन्ती’ (1905), सुदर्शनाचार्य का ‘अनार्थ नल चरित’ (1906), बांके बिहारी लाल का ‘सावित्री नाटिका’ (1908), बालकृष्ण भट्ट का ‘बेणुसंहार’ (1909), लक्ष्मी प्रसाद का ‘उर्वशी’ (1907) और हनुमंतसिंह का ‘सती चरित’ (1910), शिवनन्दन मिश्र का ‘शकुन्तला’ (1911), जयशंकर प्रसाद का ‘करुणालय (1912) बद्रीनाथ भट्ट का ‘कुरुवन दहन’ (1915), माधव शुक्ल का ‘महाभारत-पूर्वाद्धर्’ (1916), हरिदास माणिक का ‘पाण्डव-प्रताप’ (1917) तथा माखन लाल चतुर्वेदी का ‘कृष्णार्जुन-युद्ध (1918) महत्वपूर्ण हैं। + +2783. द्विवेदी-युग में भारतेन्दु-युग की सामाजिक-राजनीतिक और समस्यापरक नाटकों की प्रवृत्ति का अनुसरण भी होता रहा है। इस धारा के नाटकों में प्रताप नारायण मिश्र-कृत ‘भारत दुर्दशा’ (1903) भगवती प्रसाद-कृत ‘वृद्ध विवाह’ (1905), जीवानन्द शर्मा-कृत ‘भारत विजय’ (1906), रुद्रदत शर्मा-कृत ‘कंठी जनेऊ का विवाह’ (1906), कृष्णानन्द जोशी-कृत ‘उन्नति कहां से होगी’ (1915), मिश्र बन्धुओं का ‘नेत्रोन्मीलन' (1915) आदि + +2784. इस काल में अनेकानेक स्वतंत्र प्रहसन भी लिखे गये। अधिकांश प्रहसन लेखकों पर पारसी रंगमंच का प्रभाव है, इसलिए वे अमर्यादित एवं उच्द्दष्ंखल हैं। प्रहसनकारों में बदरीनाथ भट्ट एवं जी. पी. श्रीवास्तव के नाम सर्वाधिक उल्लेखनीय हैं। भट्ट जी के ‘मिस अमेरिका’, ‘चुंगी की उम्मीदवारी’, ‘विवाह विज्ञापन’, ‘लबड़ध ोंधों’ आदि शिष्ट-हास्यपूर्ण प्रहसन हैं। जी.पी. श्रीवास्तव ने छोटे-बड़े अनेक प्रहसन लिखे हैं। इन प्रहसनों में सौष्ठव और मर्यादा का अभाव है। + +2785. इसी प्रकार भारतेन्दु-युग तथा प्रसाद-युग को जोड़ने वाले बीच के लगभग 25-30 वर्षों में कोई उल्लेखनीय नाटक नहीं मिलता। भले ही प्रसाद-युगीन नाटककारों की आरम्भिक नाट्य कृतियाँ द्विवेदी-युग की सीमा में आती हैं परन्तु आगे चलकर उनकी नाट्य कृतियों में जो वैशिष्ट्य आता है, वह उन्हें द्विवेदी-युग के लेखकों से पृथक्क् कर देता है। द्विवेदी-युग में हिन्दी रंगमंच विशेष सक्रिय नहीं रहा। इस युग में बद्रीनाथ भट्ट ही अपवादस्वरूप एक ऐसे नाटककार थे, जिन्होंने नाटकीय क्षमता का परिचय दिया है किन्तु इनके नाटक भी पारसी कम्पनियों के प्रभाव से अछूते नहीं हैं। उनमें उत्कृष्ट साहित्यिक तत्त्व का अभाव है। + +2786. स्पष्ट है कि प्रसाद जी ने हिन्दी नाटक की प्रवहमान् धारा को एक नए मोड़ पर लाकर खड़ा किया। वे एक सक्षम साहित्यकार थे। उनके हृदय में भारतीय संस्कृति के प्रति अगाध ममता थी। उन्हें विश्वास था कि भारतीय संस्कृति ही मानवता का पथ प्रशस्त कर सकती है। इसी कारण अपने नाटकों द्वारा प्रसाद जी ने भारतीय संस्कृति के भव्य रूप की झांकी दिखाकर राष्ट्रीय आन्दोलन के साथ-साथ अपने देश के अधुनातन निर्माण की पीठिका भी प्रस्तुत की है। भारतेन्दु ने अपने नाटकों में जिस प्राचीन भारतीय संस्कृति की स्मृति को भारत की सोई हुई जनता के हृदय में जगाया था, प्रसाद ने नाटकों में उसी संस्कृति के उदात्त और मानवीय रूप पर अपनी भावी संस्कृति के निर्माण की चेतना प्रदान की। पर यह समझना भी भूल होगी कि उन्होंने केवल भारतीय संस्कृति के गौरव-गान के लिए ही नाटकों की रचना की। वस्तुतः उनका नाट्य साहित्य ऐतिहासिक होते हुए भी सम-सामयिक जीवन के प्रति उदासीन नहीं है, वह प्रत्यक्ष को लेकर मुखर है और उनमें लोक-संग्रह का प्रयत्न है, राष्ट्र के उद्बोधन की आकांक्षा है। + +2787. इस युग में पौराणिक और ऐतिहासिक नाटकों की परम्परा का महत्त्वपूर्ण स्थान तो रहा ही है, इसके अतिरिक्त सामाजिक नाटकोंकी रचना भी बहुतायत से हुई है। सामाजिक नाटकों में विश्वम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ कृत ‘अत्याचार का परिणाम’ (1921) और ‘हिन्द विधवा नाटक’ (1935), ‘प्रेमचन्द-कृत ‘संग्राम’ (1922) ईश्वरी प्रसाद शर्मा-कृत दुर्दशा (1922), सुदर्शन-कृत ‘अंजना’ (1923), ‘आनरेरी मैजिस्ट्रेट’ (1929), और ‘भयानक’ (1937), गोविन्दवल्लभ पन्त-कृत ‘कंजूस की खोपड़ी’ (1923) और ‘अंगूर की बेटी’ (1929), बैजनाथ चावला-कृत ‘भारत का आधुनिक समाज’ (1929), नर्मदेश्वरी प्रसाद ‘राम’-कृत ‘अछूतोद्वार’ (1926), छविनाथ पांडेय-कृत ‘समाज’ (1929), केदारनाथ बजाज-कृत ‘बिलखती ‘विधवा’ (1930), जमनादास मेहरा-कृत ‘हिन्दू कन्या’ (1932), महादेव प्रसाद शर्मा-कृत ‘समय का फेर’, बलदेव प्रसाद मिश्र-कृत ‘विचित्र विवाह’ (1932) और ‘समाज सेवक’ (1933) रघुनाथ चौधरी-कृत ‘अछूत की लड़की या समाज की चिनगारी’ (1934), महावीर बेनुवंश-कृत ‘परदा’ (1936), बेचन शर्मा ‘उग्र’-कृत ‘चुम्बन’ (1937) और डिक्टेटर’ (1937), रघुवीर स्वरूप भटनागर-कृत ‘समाज की पुकार’ (1937), अमर विशारद-कृत ‘त्यागी युवक’ (1937) चन्द्रिका प्रसाद सिंह-कृत ‘कन्या विक्रय या लोभी पिता’ (1937) आदि उल्लेखनीय हैं। इन नाटकों में सामाजिक विकृतियों : बाल विवाह, विधवा-विवाह का विरोध, नारी स्वतंत्रता आदि का चित्रण करते हुए उनके उन्मूलन का प्रयास दृष्टिगोचर होता है। इन नाटकों में समुन्नत समाज की स्थापना का प्रयास किया गया है, भले ही नाट्यकला की दृष्टि से ये नाटक उच्चकोटि के नहीं हैं। + +2788. लक्ष्मीनारायण मिश्र ने अपने नाटक का लेखन प्रसाद-युग में ही प्रारम्भ किया था। उनके अशोक (1927), संन्यासी (1829), ‘मुक्ति का रहस्य’ (1932), राक्षस का मन्दिर (1932), ‘राजयोग’ (1934), सिन्दूर की होली (1934), ‘आधी रात’ (1934) आदि नाटक इसी काल के हैं। किन्तु मिश्र जी के इन नाटकों में भारतेन्दु और प्रसाद की नाट्यधारा से भिन्न प्रवृत्तियां दृष्टिगोचर होती हैं। जैसा कि पहले संकेत किया जा चुका है कि भारतेन्दु और प्रसाद-युग के नाटकों का दृष्टिकोण मूलतः राष्ट्रीय और सांस्कृतिक था। यद्यपि इस युग के नाटकों में आधुनिक यथार्थवादी धारा का प्रादुर्भाव हो चुका था। तथापि प्राचीन सांस्कृतिक आदर्शों के द्वारा राष्ट्रीयता का उद्घोष इस युग के नाटककारों का प्रमुख लक्ष्य था। अतः उसे हम सांस्कृतिक पुनरुत्थान की दृष्टि कह सकते हैं, जिनमें प्राचीन सांस्कृतिक मूल्यों और नयी यथार्थवादी चेतना में समन्वय और सन्तुलन परिलक्षित होता है। मिश्र जी नयी चेतना के प्रयोग के अग्रदूत माने जाते हैं। डॉ. विजय बापट के मतानुसार नयी बौद्धक चेतना का विनियोग सर्वप्रथम उन्हीं के तथाकथित समस्या नाटकों में मिलता है। इस बौद्धक चेतना और वैज्ञानिक दृष्टि का प्रादुर्भाव बीसवीं शताब्दी में पश्चिमी चिन्तकों के प्रभाव से हुआ था। डारविन द्वारा प्रतिपादित विकासवादी सिद्धान्त, प्रफायड के मनोविश्लेषण सिद्धान्त और मार्क्स के द्वन्द्वात्मक भौतिकतावादी सिद्धान्तों ने यूरोप को ही नहीं, भारतीय जीवन पद्धति को भी प्रभावित किया जिसके फलस्वरूप जीवन में आस्था और श्रद्धा की बजाय तर्क को प्रोत्साहन मिला। पश्चिम में इस प्रकार की बौद्धक चेतना ने समस्या नाटक को जन्म दिया। उन्हीं की प्रेरणा से मिश्र जी ने भी हिन्दी नाटकों में भावुकता, रसात्मकता और आनन्द के स्थान पर तर्क और बौद्धकता का समावेश किया। साथ ही द्रष्टव्य है कि बुद्धवादी दृष्टिकोण अपनाते हुए भी वे परम्परा-मोह से मुक्त नहीं हो पाए। युगीन मूल्यगत अन्तर्विरोधी चेतना समान रूप से उनके प्रत्येक नाटकों में देखी जा सकती है। इनके नाटकों का केन्द्रीय विषय स्त्री-पुरुष सम्बन्ध एवं सेक्स है। राष्ट्रोद्धार, विश्व-प्रेम आदि के मूल में भी मिश्र जी ने काम भावना को ही रखा है, जो परितृप्ति के अभाव में अपनी दमित वृत्ति को देश सेवा आदि के रूप में अभिव्यक्त करती है और प्रायः इस प्रकार परितष्प्ति’ के साधन जुटा लेती है। + +2789. युगीन परिवेश के ऐतिहासिक संदर्भों में पाँचवें दशक तक जीवन के समस्या संकुल होने पर भी आम जनता की स्थिति में सुधार और परिवर्तन आने की अभी धुँधली सी आशा दिखाई दे रही थी परन्तु छठे दशक के बाद से मीठे मोहक सपने वालू की भीत की भांति ढह गए, परिवेश का दबाव बढ़ा, मोहासक्ति भंग हुई और आज परिवेशगत यथार्थ अधिक नंगा होकर सामने आ रहा है। यथार्थ बोध का सही अभिप्राय मोहभंग की इस प्रक्रिया से ही जोड़ा जा सकता है। जगदीश चन्द्र माथुर, लक्ष्मी नारायण लाल आदि नाटककारों ने अपनी ऐतिहासिक एवं सामाजिक रचनाओं द्वारा कुछ सीमाओं के साथ यथार्थ दृष्टि का परिचय दिया। ‘जगदीशचन्द्र माथुर’ के चार नाटक प्रकाशित हुए हैं : ‘कोणार्क’ (1954), ‘पहला राजा’ (1969), शारदीया तथा ‘दशरथनन्दन’। इन नाटकों में क्रमशः मार्क्स एवं प्रफायड के प्रभावसूत्रों को आत्मसात करते हुए छायावादी रोमानी कथास्थितियों की सृष्टि करने में माथुर की दृष्टि यथार्थवादी एवं आदर्शवादी, कल्पना तथा स्वच्छन्दतावादी भावुकता को एक साथ ग्रहण करती है। परिणामतः उनके नाटकों में अन्तर्निहित समस्याएं जीवन के यथार्थ को व्याख्यायित करते हुए भी यथार्थवादी कलाशिल्प में प्रस्तुत नहीं हुई हैं। समस्याओं का विश्लेषण एवं विकास बौद्धक एवं तार्किक क्रिया द्वारा प्रेरित नहीं है। कोणार्क में कलाकार एवं सत्ता के संघर्ष की समस्या धर्मपद के तार्किक उपकथनों के माध्यम से विश्लेषित हुई हैं। परन्तु ‘शारदीया’ एवं ‘पहला-राजा’ की समस्याएं प्रगतिशील एवं ”ासशील मूल्यों के संघर्ष की भूमि पर अवतरित होते हुए भी बौद्धक एवं तार्किक प्रक्रिया के अभाव में यथार्थवादी कला की दृष्टि से हमारी चिन्तन शक्ति को उद्बुद्ध नहीं करती क्योंकि माथुर का विशेष बल आन्तरिक अनुभूतियों एवं मानवीय संवेदना को जगाने पर है। फलस्वरूप उन्होंने काव्यात्मकता एवं रसोत्कर्ष के साधनों का सहारा लिया है। अपनी विचारधारा के अनुरूप ही जगदीश चंद्र माथुर ने नाटकीय कला को संस्कृत एवं लोकनाट्य तथा यथार्थवादी मंच की विशेषताओं से अभिमंडित किया है। काव्य-तत्त्व, अलंकरण एवं रस परिपाक से सम्बन्धि त तत्त्व उन्होंने संस्कृत नाटकों से ग्रहण किए हैं। संघर्ष, अन्तर्द्वन्द्व का तत्त्व पाश्चात्य यथार्थवादी नाटक शिल्प का प्रभाव है। संक्षेप में, एक ऐसे मंच की परिकल्पना पर उनका ध्यान केन्द्रित रहा है जो बहुमुखी हो, एक ही शैली में सीमित नहीं हो, भिन्न-भिन्न सामाजिक आवश्यकताओं और चेतनाओं का परिचायक हो। + +2790. व्यवस्था के संदर्भ में समाज एवं व्यक्ति के बाह्य एवं आंतरिक यथार्थ का चित्रण करना नये नाटककारों के नाटकों का केन्द्रीय कथ्य लगता है। ब्रजमोहन शाह के ‘त्रिशंकु’, ज्ञानदेव अग्निहोत्री के ‘शुतुरमुर्ग’, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के ‘बकरी’ आदि नाटकों में सत्ता के छद्म और पाखंडो का ही पर्दाफाश किया है। अधुनातन नाटककार मुद्राराक्षस, लक्ष्मीकांत वर्मा, मणि मधुकर, शंकर शेष और भीष्म साहनी भी क्रमशः अपने नाटकों ‘योअर्स-फेथ-फुल्ली’, ‘तेंदुआ’, ‘मरजीवा’, ‘रोशनी एक नयी है’, ‘रसगन्धर्व’, ‘एक और द्रोणाचार्य’ तथा ‘हानूश’ के माध्यम से इन्हीं प्रश्नों से जूझ रहे हैं। इन्होंने जहाँ एक ओर वर्ग-वैषम्यो की चेतना को जाग्रत करके व्यवस्था के ह्रासशील रूपों का यथार्थ चित्रण किया है वहीं सत्ता के दबाव में पिस रहे आम आदमी की करुण नियति और उससे उत्पन्न संत्रास का भी रुपायन किया है। इस तरह नाटक सीधे जिन्दगी की शर्तों से जुड़े और उनकी विषमताओं के साथ जूझते व्यक्ति की यंत्रणा उसके भीतर यथार्थ को रंग-माध्यम से प्रस्तुत करने का बीड़ा उठाते हैं। बदलाव की चेतना और आकुलता को उजागर करने के सशक्त कथ्य से ही हिन्दी के रचनात्मक नाट्य के लिए शुभारम्भ की स्थिति मानी जा सकती है। नये नाटककार सत्यदेव ‘दूबे, रमेश उपाध्याय, रामेश्वर प्रेम, शरद जोशी, गिरिराज, सुशील कुमार सिंह, बलराज पंडित, मृदुला गर्ग, सुदर्शन चोपड़ा नये नाटक लिखकर आंतरिक यथार्थ बोध की संपुष्टि में योग दे रहे हैं। अभी हाल ही में कुछ नाटक प्रकाशित हुए हैं : + +2791. प्रारम्भिक युग. + +2792. प्रेमचन्द का आधुनिक काल के यथार्थवादी जीवन पर अधिक आग्रह था। वे यथार्थवादी हैं। प्रेमचन्द ने लगभग तीन सौ कहानियाँ लिखी हैं। उनकी कहानियाँ ‘मानसरोवर’ (6 भाग) तथा ‘गुप्त धन’ (2 भाग) में संगृहीत हैं। ‘प्रेम-पचीसी’, ‘प्रेम-प्रसून’, ‘प्रतिमा’, ‘सप्तसुमन’ आदि नामों से भी उनकी कहानियों के संग्रह छपे हैं। प्रेमचन्द की प्रारम्भ की कहानियों में घटना की प्रधानता और वर्णन की प्रवृत्ति है। चरित्र-चित्रण और मनोविज्ञान की ओर उचित ध्यान नहीं दिया गया। भाषा अपरिपक्व तथा व्याकरण : सम्बन्धी दोषों से युक्त है। वस्तुतः प्रेमचन्द प्रारम्भ में उर्दू के लेखक थे और वहाँ से हिन्दी में आए थे। उनकी प्रारम्भिक राष्ट्रीय कहानियाँ ‘सोजे वतन’ संग्रह में प्रकाशित हुई थी। आगे चलकर प्रेमचन्द ने चरित्र-प्रधान, मनोविज्ञान-मूलक, वातावरण-प्रध ान, ऐतिहासिक आदि कई प्रकार की कहानियाँ लिखीं और वास्तविक-जीवन तथा मानव-स्वभाव के मार्मिक चित्र प्र्रस्तुत किए। प्रेमचन्द की भाषा सरल, व्यावहारिक है और उनके संवाद स्वाभाविक तथा सजीव हैं। साधारण घटनाओं और बातों को मार्मिक बनाने में वे कुशल हैं। प्रेमचन्द नवीन जीवन-रुचि रखने वाले मानवतावादी लेखक थे। प्रारम्भ में प्रेमचन्द गांधी और ताल्स्ताय से प्रभावित रहे। बाद में वे मार्क्स और लेनिन की विचारधारा की ओर झुक गए थे। + +2793. वर्तमान समय में हिन्दी में कई पीढ़ियाँ एक साथ कहानी लिखने में लगी रही हैं। प्रेमचन्द काल के उत्तरार्ध में इस क्षेत्र में आने वाले कुछ कहानीकार हैं : जैनेन्द्र (‘फांसी’ ‘स्पर्धा’, ‘वातायन’, ‘पाजेब’, ‘जयसंधि’, ‘एकरात’, ‘दो चिड़ियां’ आदि), यशपाल (‘वो दुनिया’, ‘ज्ञान दान’, ‘अभिशप्त’, ‘पिंजड़े की उड़ान’, ‘तर्क का तूफान’, ‘चित्र का शीर्षक’, ‘यशपाल : श्रेष्ठ कहानी’) इलाचन्द जोशी (‘रोमांटिक छाया’, ‘आहुति’, ‘दिवाली और होली’, ‘कंटीले फूल लजीले कांटे’), अज्ञेय (‘त्रिपथगा’, ‘कोठरी की बात’, ‘परम्परा’, ‘जयदोल’ आदि) भगवतीचरण वर्मा (‘दो बाँके’, ‘इन्स्टालमेंट आदि), चन्द्रगुप्त विद्यालंकार (‘चन्द्रकला’, ‘वापसी’, ‘अमावस’, ‘तीन दिन’)। ये कथाकार जो उस समय नयी पीढ़ी के कहानीकार माने जाते थे अब पुराने हो चुके हैं। इनके बाद कहानीकारों की दो और पीढ़ियां विकसित हो चुकी हैं। इन तीनों पीढ़ियों के कहानीकारों ने हिन्दी कहानी का विषय-वस्तु तथा शिल्प दोनों दृष्टियों से पर्याप्त विकास किया है। + +2794. आज के प्रयोगवादी युग में हिन्दी कहानी सभी रूपों में बढ़ रही है। कुछ कहानीकार कथानक-रहित कहानी लिखने का यत्न कर रहे हैं। कहानी बहुत अमूर्त्त (ऐबस्ट्रैक्ट) होती जा रही है। आज कहानी में प्रायः एक मनःस्थिति, क्षण-विशेष की अनुभूति, व्यंग्यचित्र या चिन्तन की झलक प्रस्तुत की जाती है। कहानी में विषय-वस्तु क्षीण, पात्र बहुत थोड़े (एक दो ही) और अस्पष्ट होते जा रहे हैं और पुराने ढंग की सरलता समाप्त होती जा रही है। नयी कविता की तरह नयी कहानी भी कहानीपन छोड़कर निबन्ध के निकट (कथात्मक निबन्ध के निकट) पहुंच रही है। भारतेन्दुकाल में जो कहानी घटना-प्रधान थी, प्रेमचन्द युग में जो चरित्र-प्रधान तथा मनोवैज्ञानिक हुई, जैनेन्द्र-अज्ञेय के उत्कर्ष-काल में जो कहानी घटना-प्रधान थी, प्रेमचन्द युग में जो चरित्र- प्रधान तथा मनोवैज्ञानिक हुई, जैनेन्द्र-अज्ञेय के उत्कर्ष-काल में जो मनोविश्लेषणमय तथा चिन्तनपरक बनी, वही अब कथानकपरक तो है ही नहीं, चरित्र-चित्रणपरक भी नहीं रही। विषय-वस्तु और शिल्प दोनों में वह काफी आगे बढ़ गई है। काशीनाथ सिंह, ज्ञान रंजन, सुरेश सेठ, गोविन्द मिश्र, मृदुला गर्ग, नरेन्द्र मोहन, मृणाल पाण्डेय, उदय प्रकाश, ओम प्रकाश वाल्मीकि, चित्र प्रभा मुदगल, प्रभा खेतान, नासिरा शर्मा आदि अनेक कथाकार हैं जिन्होंने बदलते मनुष्य, समाज, परिस्थितियों, समस्याओं को अपनी रचनाओं के माध्यम से अभिव्यक्ति प्रदान की है। + +2795. इस प्रकार, समयाभाव के अतिरिक्त एकांकी की लोकप्रियता के अन्य भी कई कारण हैं यथा देश में सिनेमा के बढ़ते हुए प्रभाव के विरुद्ध हिन्दी रंगमंच के उद्धार द्वारा जीवन और साहित्य में सुरुचि का समावेश करना, रेडियो से हिन्दी एकांकियों की मांग, केन्द्रीय सरकार के शिक्षा-विभाग की ओर से आयोजित ‘यूथ फेस्टीवल’ में एकांकी नाटक का भी प्रतियोगिता का एक विषय होना, विश्वविद्यालयों में विशेष अवसरों पर एकांकी नाटकों का अभिनय आदि। इन सब कारणों के परिणामस्वरूप एकांकी नाटक आज एक प्रमुख साहित्यिक विधा बन गया है। + +2796. जिस प्रकार भारतेन्दु हिन्दी में अनेकांकी नाटकों के लिखने वालों में प्रथम नाटककार माने जाते हैं उसी प्रकार हिन्दी में सबसे पहला एकांकी भी उन्होंने ही लिखा। यद्यपि इस सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद अवश्य है। पिफर भी भारतेन्दु-प्रणीत ‘प्रेमयोगिनी’ (1875 ई.) से हिन्दी एकांकी का प्रारम्भ माना जा सकता है। आलोच्य युग में विषयगत दृष्टिकोण को सामने रखकर सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिकएवं सांस्कृतिक प्रवृत्तियाँउभरीं। समाज में प्रचलित प्राचीन परम्पराओं, कुप्रथाओं एवं स्वस्थ सामाजिक विकास में बाधक रीति-रिवाजों को दूर करने का प्रयास उन सामाजिक समस्या-प्रधान रचनाओंके माध्यम से किया गया। इन एकांकीकारों ने जहाँ सामाजिक कुरीतियों पर हास्य एवं व्यंग्यपूर्ण प्रहार किये वहीं सामाजिक नवनिर्माण के लिए भी समाज को प्रेरित एवं जाग्रत किया। इन रचनाओं के पात्र भारतीय जन-जीवन के जीवित एवं सजीव पात्र हैं जिनके संवादों द्वारा भारतीय भद्र जीवन में प्रविष्ट पाखण्ड एवं व्यभिचार का भण्डाफोड़ होता है। इस दृष्टि से भारतेन्दु-रचित ‘भारत-दुर्दशा’, प्रतापनारायण मिश्र रचित ‘कलि कौतुक रूपक’, श्री शरण-रचित ‘बाल-विवाह’, किशोरीलाल गोस्वामी-रचित ‘चौपट चपेट’, राधाचरण गोस्वामी-रचित ‘भारत में यवन लोक’, ‘बूढ़े मुंह मुहासे’ आदि महत्त्वपूर्ण रचनाएँ हैं जिनमें धार्मिक पाखण्ड, सामाजिक रूढ़ियों एवं कुरीतियों पर तीखे व्यंग्य किये गये हैं। देवकीनन्दन रचित ‘कलियुगी उनेऊ’, ‘कलियुग विवाह’, राधाकृष्णदास रचित ‘दुखिनी बाला’, काशीनाथ खत्री रचित ‘बाल विधवा’ आदि रचनाएं भारतीय नारी के त्रस्त विवाहित जीवन का यथार्थ चित्रण हैं। सामाजिक भ्रष्टाचार का चित्रण कातिक प्रसाद खत्री-रचित ‘रेल का विकट खेल’ में मिलता है जिसमें रेलवे विभाग में रिश्वत लेने वालों का भण्डा-फोड़ किया गया है। समाज सुधार की परम्परा के पोषक इन एकांकीकारों के प्रयास के फलस्वरूप भारतीय समाज का यथार्थ चित्रण समाज के समक्ष उपस्थित हुआ तथा इन्हीं के द्वारा जन सामान्य को नवीन एवं प्रगतिशील विचारों को ग्रहण करने की प्रेरणा भी मिली। इन्हीं के प्रयासों का परिणाम था कि भारतीय जनता समाज में प्रचलित रूढ़ियों एवं परम्पराओं के प्रति घृणाभाव से भर उठी तथा उनके उन्मूलन के लिए कृत संकल्प हो गयी। + +2797. प्रसाद-युग. + +2798. तत्कालीन समाज की नग्न विकृतियों का चित्रणकरने वाले अनेक एकांकियों की रचना इस युग में हुई। जीवानन्द शर्मा कृत ‘बाला का विवाह’ सुधारवादी दृष्टिकोण को प्रकट करता है। हरिकृष्ण शर्मा कृत ‘बुढ़ऊ का ब्याह’ वृद्ध अनमेल विवाह एवं दहेज समस्या पर कुठाराघात है। जी. पी. श्रीवास्तव रचित ‘गड़बड़झाला’ में वृद्धों की अनियंत्रित काम वासना एवं समाज के लोगों का भ्रष्टाचार चित्रित किया गया है। रामसिंह वर्मा कृत ‘रेशमी रूमाल’ में पतिव्रत धर्म की प्रतिष्ठा, शैक्षिक वृत्तियों एवं रोमांस की त्रुटियों का चित्रण है। प्रेमचन्द कृत ‘प्रेम की देवी में’ लेखक ने अन्तर्जातीय विवाह का समर्थन प्रबल रूप में किया है। श्री बदरीनाथ भट्ट कृत ‘विवाह विज्ञापन’ में आधुनिक शिक्षित वर्ग की रोमांस वृत्ति पर व्यंग्यात्मक प्रहार है। डॉ. सत्येन्द्र कृत ‘बलिदान’ में दहेज समस्या का चित्रण है। जी. पी. श्रीवास्तव-कृत ‘भूलचूक’ से विधवा विवाह समर्थन, ‘अच्छा उपर्फ अक्ल की मरम्मत’ में शिक्षित पति एवं अशिक्षित पत्नी के मध्य उत्पन्न कटुता, ‘लकड़बग्घा’ में )ण समस्या आदि पर व्यंग्य किया गया है। इनके अतिरिक्त ‘बंटाधार’, ‘दुमदार आदमी’, ‘कुर्सीमैन’, ‘पत्र पत्रिका सम्मेलन’, ‘न घर का न घाट का’, ‘चोर के घर मोर’ आदि रचनाओं में श्रीवास्तव जी का दृष्टिकोण सुध ारवादी रहा है। श्रीवास्तव जी का ‘अछूतोद्वार’ एकांकी अछूत समस्या पर लिखा गया है। श्री चण्डीप्रसाद हृदयेश कृत ‘विनाश लीला’ में भारतीय नारी के जन्म से अन्त तक के सामाजिक कष्टों का चित्रण है। पं. हरिशंकर शर्मा कृत ‘बिरादरी विभ्राट’, ‘पाखण्ड प्रदर्शन’, तथा ‘स्वर्ग की सीधी सड़क’ सामाजिक छुआछूत तथा वर्ग वैषम्य की हानियों को चित्रित करते हैं। श्री सुदर्शन कृत ‘जब आँखें खुलती हैं’ में वेश्या का हृदय-परिवर्तन स्वाध ीनता संग्राम के वातावरण में चित्रित किया गया है। आलोच्य युग में श्री रामनरेश त्रिपाठी कृत ‘समानाधिकार’, ‘सीजन डल है’, ‘स्त्रियों की काउन्सिल’, पांडेय बेचन शर्मा उग्र-कृत ‘चार बेचारे’, बेचारा सम्पादक’, बेचारा सुधारक’, श्री रामदास-कृत ‘नाक में दम’, ‘जोरू का गुलाम’, ‘करेन्सी नोट’, ‘लबड़ धौं धौं’ आदि एकांकियों को भी विशेष ख्याति प्राप्त हुई है। + +2799. भारतेन्दु-युग में जिस हास्य-व्यंग्य-प्रधान धाराको सामाजिक सुधार-हेतु माध्यम के रूप में स्वीकार किया गया था उसका निर्वाह प्रसाद-युग में भी दृष्टिगोचर होता है। इन एकांकीकारों ने समाज में प्रचलित अनेक जीर्ण-शीर्ण रूढ़ियों, कुप्रथाओं एवं परम्पराओं पर व्यंग्य किये हैं। उनका लक्ष्य सामाजिक, धार्मिक एवं राजनीतिक सुधार ही अधिक रहा है। श्री बद्रीनाथ भट्ट रचित ‘चुंगी की उम्मेदवारी’ में चुनाव की प्रणाली पर व्यंग्य किया गया है। श्री जी. पी. श्रीवास्तव रचित ‘दुमदार आदमी’, ‘पत्र-पत्रिका सम्मेलन’, ‘अच्छा उपर्फ अक्ल की मरम्मत’, ‘न घर का न घाट का’, ‘गड़बड़झाला’, ‘लकड़बग्घा’, ‘घर का मनेजर’ आदि हास्य व्यंग्य प्रधान एकांकी हैं जिनमें विभिन्न धार्मिक एवं सामाजिक कुरीतियों व रूढ़ियों पर व्यंग्यात्मक प्रहार किये गये हैं। इन रचनाओं में लेखक ने दहेज समस्या, विवाह समस्या तथा सामाजिक विरूपताओं एवं मिथ्या प्रदर्शन की भावना पर सुन्दर व्यंग्य किया है। इसी सन्दर्भ में द्वारिकाप्रसाद गुप्त रचित ‘बशर्ते कि’ बद्रीनाथ रचित ‘लबड़ धौं-धौं’, ‘पुराने हकीम का नया नौकर’, ‘मिस अमेरिकन’, ‘रेगड़ समाचार के एडीटर की धूल दच्छना’ आदि हास्य व्यंग्य प्रध ान रचनाएं हैं जिनमें मध्यम तथा अल्प शिक्षित वर्ग की समस्याओं का चित्रण किया गया है। भट्ट जी का यह हास्य शिष्ट एवं सुरुचिपूर्ण बन पड़ा है। श्री रामचन्द्र रघुनाथ रचित ‘पाठशाला का एक दृष्य’, ‘सभी हा ः हा :’, ‘मदद मदद’, ‘यमराज का क्रोध’, रूप नारायण पांडेय रचित ‘समालोचना रहस्य’, गरीबदास कृत ‘मियाँ की जूती मियां के सिर’, मुकन्दीलाल श्रीवास्तव कृत ‘घर का सुख कहीं नहीं है’, श्री गोविन्द वल्लभ पंत रचित ‘140 डिग्री.’, ‘काला जादू’, पांडेय बेचन शर्मा उग्र कृत ‘चार बेचारे’, ‘बेचारा अध्यापक’, ‘बेचारा सुध ारक’, सेठ गोविन्ददास कृत ‘हंगर स्ट्राइक’, ‘उठाओ खाओ खाना अथवा बफेडिनर’, ‘वह मेरा क्यों?’ आदि रचनाएं इसी श्रेणी के अन्तर्गत आती हैं। + +2800. प्रसादोत्तर युग में यद्यपि एकांकी की अनेक प्रवृत्तियों को प्रश्रय मिला है तथापि सामाजिक एकांकी की प्रवृत्ति पर लगभग सभी युगीन एकांकीकारों ने अपनी लेखनी चलाई। प्रस्तुत युग के प्रमुख एकांकीकार डा.रामकुमार वर्मा ने तो अनेक सामाजिक समस्या प्रधान एकांकियों की रचना करके हिन्दी एकांकी साहित्य को बहुमूल्य धरोहर प्रदान की है। इन्होंने जीवन की वास्तविकताको अपने एकांकियों का आधार बनाया। इस दृष्टि से इनके ‘एक तोले अफीम की कीमत’, ‘अठारह जुलाई की शाम’, ‘दस मिनट’, ‘स्वर्ग का कमरा’, ‘जवानी की डिब्बी’, ‘आंखों का आकाश’, ‘रंगीन स्वप्न’, आदि एकांकी सामाजिक एकांकी की प्रवृत्ति का प्रतिनिधि त्व करते हैं। वर्मा जी के समान उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’का ध्यान भी विविध वैयक्तिक, पारिवारिक एवं सामाजिक समस्याओं की ओर गया। इनकी एकांकी रचनाओं में : ‘चरवाहे’, ‘चिलमन’, ‘लक्ष्मी का स्वागत’, ‘पहेली’, ‘सूखी डाली’, ‘अन्धी गली’, ‘तूफान से पहले’, आदि सामाजिक दृष्टि से विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इनमें लेखक ने युगीन सामाजिक रूढ़ियों, परम्पराओं, विरूपताओं विकृतियों, एवं अज्ञानताओं का बड़ा ही प्रभावोत्पादक किन्तु व्यंग्यात्मक चित्र उपस्थित किया है। युगीन एकांकीकार भुवनेश्वर-रचित ‘श्यामा एक वैवाहिक विडम्बना’, ‘स्ट्राइक’, ‘एक साम्यहीन साम्यवादी’ तथा ‘प्रतिमा का विवाह’ आदि प्रसिद्ध हैं। इसमें सामाजिक बाह्याडम्बर, स्त्री-पुरुष सम्बन्ध, यौन विषयक समस्याओं एवं प्राचीन अप्रगतिशील मान्यताओं का चित्रण किया गया है जो मानव जीवन के विकास पथ को अवरुद्ध किए हैं। श्री जगदीश चंद्र माथुरका दृष्टिकोण भी सामाजिक जीवन की समस्याओं के प्रति स्वस्थ एवं उदार रहा है। वे उन एकांकियों को सफल नहीं मानते जो समाज से निरपेक्ष होकर मात्र साहित्यिक विधा बनकर रह जाते हैं। उन्होंने ‘ओ मेरे सपने’ के पूर्व निवेदन में लिखा है कि ‘कौन ऐसा लेखक होगा कि जिसकी कलम पर सामाजिक समस्याएँ सवार न होती हों अनजाने ही या डंके की चोट के साथ ?’ इस विचार के अनुसार उनके ‘मेरी बाँसुरी’, ‘खिड़की की राह’, ‘कबूतर खाना’, ‘भोर का तारा’, ‘खंडहर’, आदि एकांकी उल्लेखनीय हैं। इनमें सामाजिक बन्धनों के प्रति तीव्र विद्रोही भावना व्यक्त हुई है। श्री शम्भुदयाल सक्सेनारचित ‘कन्यादान’, ‘नेहरू के बाद’, ‘मुर्दो का व्यापार’, ‘नया समाज’, ‘नया हल नया खेत’, ‘सगाई’, ‘मृत्युदान’ आदि एकांकी सामाजिक समस्याओं को प्रस्तुत करते हैं। सक्सेना जी पर गाँधीवादी जीवन का प्रत्यक्ष प्रभाव परिलक्षित होता है। यही कारण है कि इनकी रचनाओं में सादा जीवन का महत्त्व, मानवतावादी दृष्टिकोण की प्रतिष्ठा, नैतिक उन्नयन के प्रति आग्रह, बाह्याडम्बर के प्रति घृणा एवं कर्त्तव्य के प्रति जागरूकता के दर्शन होते हैं। हरिकृष्ण प्रेमी ने ‘बादलों के पार’, ‘वाणी मन्दिर’, ‘सेवा मन्दिर’, ‘घर या होटल’, ‘निष्ठुर न्याय’ आदि एकांकी रचनाओं में विविध सामाजिक समस्याओं का अंकन किया है जिनमें विधवा समस्या, ‘नारी की आध ुनिकता’, वर्ग वैषम्य, जातीय बन्धन की संकीर्णता, प्राचीन परम्पराओं एवं मान्यताओं की अर्थहीनता, पुरुष की वासना लोलुपता एवं दुश्चरित्रता आदि का चित्रण प्रमुख रूप के किया है। भगवतीचरण वर्माकृत ‘मैं और केवल मैं’, ‘चौपाल में’ तथा ‘बुझता दीपक’, में पीड़ित मानव की अन्तर्वेंदना का करुण स्वर उभर कर सामने आया है। श्री रामवृक्ष बेनीपुरीरचित ‘नया समाज’, ‘अमर ज्योति’, तथा ‘गाँव का देवता’ आदि रचनाएं सामाजिक समस्या प्रधान हैं। श्री सद्गुरुशरण अवस्थी ने भारतीय संस्कृति के आदर्शों को उपयुक्त एवं उचित तर्को की कसौटी पर कसकर उनको समाज के लिए उपयोगी सिद्ध किया जिनमें बुद्ध, तर्क एवं विवेक का प्राधान्य है। इस दृष्टि से ‘हाँ में नहीं का रहस्य’, ‘खद्दर’, ‘वे दोनों’ आदि विशेष महत्वपूर्ण रचनाएं हैं। इनके अतिरिक्त चन्द्रगुप्त विद्यालंकाररचित ‘प्यास’ तथा ‘दीनू’, श्री यज्ञदत्त शर्माकृत ‘छोटी-बात’, ‘साथ’, ‘दुविधा’, एस.सी. खत्री रचित,‘बन्दर की खोपड़ी’, ‘प्यारे सपने’, श्री सज्जाद जहीररचित ‘बीमार’ आदि रचनाओं में सामाजिक जीवन के सत्य को उभारते हुए और उनका सर्वपक्षीय चित्रण किया गया है। + +2801. प्रो. सद्गुरुशरण अवस्थीरचित ‘कैकेयी’, ‘सुदामा’, ‘प्रींद’, ‘शम्बूक’, ‘त्रिशंकु’ आदि एकांकियों में प्राचीन पौराणिक एवं धार्मिक पात्रों को मौलिक ढंग से नवीन तर्क, विचार, आदर्श एवं नैतिक तत्वों सहित प्रस्तुत किया है। तथा इन पात्रों के माध्यम से प्राचीन भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का गौरव गुणगान किया है। अवस्थी जी ने अतीत की व्याख्या आधुनिक तथा नवीन दृष्टिकोण से की है। + +2802. हिन्दी एकांकी के विकास की चौथी अवस्था स्वतंत्रता के पश्चात् प्रारम्भ होती है, जिसे स्वातंत्रयोत्तर युग के नाम से जाना जाता है। इस अवस्था में हिन्दी एकांकियों पर रेडियो का प्रभाव बड़ी गहराई से पड़ा है। रेडियो नाटकों के रूप में नाटकों का नवीन रूप हमारे समक्ष आया। रेडियो माध्यम होने के कारण श्रोतागण इसमें रुचि लेने लगे। इसलिए रेडियो एकांकियों की मांग इस युग में अधिक रही। डॉ. दशरथ ओझाने लिखा है कि ‘हिन्दी के जितने-नाटक आज रेडियो स्टेशनों पर अभिनीत होते हैं उतने सिनेमा की प्रयोगशालाओं में भी नहीं होते होंगे। अतः नाट्यकला का भविष्य रेडियो-रूपक के रचयिताओं के हाथ में है।’ + +2803. स्वातन्त्रयोत्तर युगीन एकांकीकारों ने अपनी रचनाओं में प्राचीन सांस्कृतिक, पौराणिक, धार्मिक तथा नैतिक प्रसंगों की अभिव्यक्ति अपनी एकांकी रचनाओं में नवीन विचारों तथा तर्क की कसौटी पर नवीन ढंग से की है। प्रो. कैलासदेव बृहस्पति ने अतीत भारत की सांस्कृतिक परम्परा का पुनरुत्थान तथा उसके आदर्शमय अतीत गौरव का चित्रांकन अपने पौराणिक तथा ऐतिहासिक रूपकों में किया है। इसके ‘सागर मंथन’, ‘विश्वामित्र’, ‘स्वर्ग में क्रान्ति’, आदि महत्वपूर्ण रेडियो रूपक हैं जिनमें भारतीय सांस्कृतिक गौरव का कलात्मक चित्रण किया गया है। कणाद ऋषि भटनागरने ‘आज का ताजा अखबार’, में भारतीय संस्कृति की महत्ता चित्रित की है। ओंकारनाथ दिनकररचित गणतंत्र की गंगा, अभिसारिका, सीताराम दीक्षित रचित‘रक्षाबन्धन’, देवीलाल सामर रचित ‘आत्मा की खोज’, ‘ईश्वर की खोज’ आदि में पौराणिक एवं धार्मिक कथानकों के आधार पर प्राचीन भारतीय राजनैतिक, सांस्कृतिक मानवतावादी एवं दार्शनिक आदर्शों की प्रतिष्ठा की है। इनमें से कतिपय एकांकियों में गांधीवादी विचारधारा की अभिव्यक्ति हुई है। + +2804. हिन्दी गद्य साहित्य का इतिहास: + +2805. आरंभिक-युग. + +2806. हिंदी के आत्मकथात्मक साहित्य के विकास में ‘हंस’ के आत्मकथांक का विशिष्ट योगदान है। सन् 1932 में प्रकाशित इस अंक में जयशंकर प्रसाद, वैद्य हरिदास, विनोदशंकर व्यास, विश्वंभरनाथ शर्मा कौशिक, दयाराम निगम, मौलवी महेशप्रसाद, गोपालराम गहमरी, सुदर्शन, शिवपूजन सहाय, रायकृष्णदास, श्रीराम शर्मा आदि साहित्यकारों और गैर-साहित्यकारों के जीवन के कुछ अंशों को प्रेमचंद ने स्थान दिया है। + +2807. सन् 1948 में वियोगी हरि की आत्मकथा ‘मेरा जीवन प्रवाह’ प्रकाशित हुई। इस आत्मकथा के समाज सेवा से संबंधित अंश में समाज के निम्न वर्ग का लेखक ने बहुत मार्मिक वर्णन किया है। यशपाल कृत ‘सिंहावलोकन’ का प्रथम भाग सन् 1951 में प्रकाशित हुआ। इसका दूसरा भाग सन् 1952 और तीसरा सन् 1955 में आया। यशपाल की आत्मकथा की विशेषता उसकी रोचक और मर्मस्पर्शी शैली है। सन् 1952 में शांतिप्रिय द्विवेदी की आत्मकथा ‘परिव्राजक की प्रजा’ प्रकाशित हुई। इसमें लेखक ने अपने जीवन के प्रारंभिक इकतालीस वर्षों की करुण कथा का वर्णन किया है। सन् 1953 में यायावर प्रवृत्ति के लेखक देवेंद्र सत्यार्थी की आत्मकथा ’चाँद-सूरज के बीरन’ प्रकाशित हुई। इसमें लेखक ने अपने जीवन की आरंभिक घटनाओं का चित्रण किया है। + +2808. + +2809. बाबू शिवप्रसाद गुप्त द्वारा लिखे गए यात्रा-वृतांत ‘पृथ्वी प्रदक्षिणा’ (सन् 1924) को हम आरंभिक यात्रा-साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान दे सकते हैं। इसकी सबसे बड़ी विशेषता चित्रात्मकता है। इसमें संसार भर के अनेक स्थानों का रोचक वर्णन है। लगभग इसी समय स्वामी सत्यदेव परिव्राजक कृत ‘मेरी कैलाश यात्रा’ (सन् 1915) तथा ‘मेरी जर्मन यात्रा’ (सन् 1926) महत्वपूर्ण हैं। इन्होंने सन् 1936 में ‘यात्रा मित्र’ नामक पुस्तक लिखी, जो यात्रा-साहित्य के महत्व को स्थापित करने का काम करती है। विदेशी यात्रा-विवरणों में कन्हैयालाल मिश्र कृत ‘हमारी जापान यात्रा’ (सन् 1931), रामनारायण मिश्र कृत ‘यूरोप यात्रा के छः मास’ और मौलवी महेशप्रसाद कृत ‘मेरी ईरान यात्रा’ (सन् 1930) यात्रा-साहित्य के अच्छे उदाहरण हैं। + +2810. आज़ादी के बाद हिंदी साहित्य में बहुतायत से यात्रा-साहित्य का सृजन हुआ। अनेक प्रगतिशील लेखकों ने इस विधा को समृिद्ध प्रदान की। रामवृक्ष बेनीपुरी कृत ‘पैरों में पंख बाँधकर’ (सन् 1952) तथा ‘उड़ते चलो उड़ते चलो’, यश्पाल कृत ‘लोहे की दीवार के दोनों ओर’ (सन् 1953), भगवतशरण उपाध्याय कृत ‘कलकत्ता से पेकिंग तक’ (सन् 1953) तथा ‘सागर की लहरों पर’ (सन् 1959), प्रभाकर माचवे कृत ‘गोरी नज़रों में हम’ (सन् 1964) उल्लेखनीय हैं। + +2811. ‘रिपोर्ताज’ का अर्थ एवं उद्देश्य : जीवन की सूचनाओं की कलात्मक अभिव्यक्ति के लिए रिपोर्ताज का जन्म हुआ। रिपोर्ताज पत्रकारिता के क्षेत्र की विधा है। इस शब्द का उद्भव प्रफांसीसी भाषा से माना जाता है। इस विधा को हम गद्य विधाओं में सबसे नया कह सकते हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय यूरोप के रचनाकारों ने युद्ध के मोर्चे से साहित्यिक रिपोर्ट तैयार की। इन रिपोर्टों को ही बाद में रिपोर्ताज कहा गया। वस्तुतः यथार्थ घटनाओं को संवेदनशील साहित्यिक शैली में प्रस्तुत कर देने को ही रिपोर्ताज कहा जाता है। + +2812. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के रिपोर्ताज लेखन का हिंदी में चलन बढ़ा। इस समय के लेखकों ने अभिव्यक्ति की विविध शैलियों को आधार बनाकर नए प्रयोग करने आरंभ कर दिए थे। रामनारायण उपाध्याय कृत ‘अमीर और गरीब’ रिपोर्ताज संग्रह में व्यंग्यात्मक शैली को आधार बनाकर समाज के शाश्वत विभाजन को चित्रित किया गया है। फणीश्वरनाथ रेणु के रिपोर्ताजों ने इस विधा को नई ताजगी दी। ‘)ण जल धन जल’ रिपोर्ताज संग्रह में बिहार के अकाल को अभिव्यक्ति मिली है और ‘नेपाली क्रांतिकथा’ में नेपाल के लोकतांत्रिक आंदोलन को कथ्य बनाया गया है। + +2813. रेखाचित्र का अर्थ : ‘रेखाचित्र’ शब्द अंग्रेजी के 'स्कैच' शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। जैसे ‘स्कैच’ में रेखाओं के माध्यम से किसी व्यक्ति या वस्तु का चित्र प्रस्तुत किया जाता है, ठीक वैसे ही शब्द रेखाओं के माध्यम से किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को उसके समग्र रूप में पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है। ये व्यक्तित्व प्रायः वे होते हैं जिनसे लेखक किसी न किसी रूप में प्रभावित रहा हो या जिनसे लेखक की घनिष्ठता अथवा समीपता हो। + +2814. रामवृक्ष बेनीपुरी निर्विवाद रूप से हिंदी के सर्वश्रेष्ठ रेखाचित्रकार माने जाते हैं। इनके रेखाचित्रों में हम सरल भाषा शैली में सिद्धहस्त कलाकारी को देख सकते हैं। परिमाण की दृष्टि से इन्होंने अनेक रेखाचित्रों की रचना की है। ‘माटी की मूरतें’ (सन् 1946) संग्रह से इन्हें विशेष ख्याति मिली। इस संग्रह में इन्होंने समाज के उपेक्षित पात्रों को गढ़कर नायक का दर्जा दे दिया। उदाहरणस्वरूप ‘रजिया’ नामक रेखाचित्र के माध्यम से निम्नवर्ग की एक बालिका को जीवंत कर दिया गया है। इस संग्रह के अन्य रेखाचित्रों में बलदेव सिंह, मंगर, बालगोबिन भगत, बुधिया, सरजू भैया प्रमुख हैं। इन रेखाचित्रों की श्रेष्ठता का अनुमान मैथिलीशरण गुप्त के इस कथन से लगाया जा सकता है, ‘‘लोग माटी की मूरतें बनाकर सोने के भाव बेचते हैं पर बेनीपुरी सोने की मूरतें बनाकर माटी के मोल बेच रहे हैं।’’ सन् 1950 में रामवृक्ष बेनीपुरी का दूसरा रेखाचित्रसंग्र्रह ‘गेहूँ और गुलाब’ प्रकाशित हुआ। इसमें इनके 25 रेखाचित्र संकलित हैं। कलेवर की दृष्टि से लेखक ने इन्हें अपने पुराने रेखाचित्रों की अपेक्षा छोटा रखा है। रामवृक्ष बेनीपुरी के रेखाचित्रों की भाषा भावना प्रधान है। कुछ आलोचक तो उनकी भाषा को गद्य काव्य की संज्ञा भी दे चुके हैं। बेनीपुरी के रेखाचित्रों के बारे में संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि इन्हें जीवन में जो भी पात्र मिले इन्होंने अपनी कुशल लेखनी से उन्हें जीवंत कर दिया। विषय की विविधता और शैली की सरसता का इनके यहाँ अपूर्व संयोजन मिलता है। + +2815. रेखाचित्र का अर्थ : ‘रेखाचित्र’ शब्द अंग्रेजी के 'स्कैच' शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। जैसे ‘स्कैच’ में रेखाओं के माध्यम से किसी व्यक्ति या वस्तु का चित्र प्रस्तुत किया जाता है, ठीक वैसे ही शब्द रेखाओं के माध्यम से किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को उसके समग्र रूप में पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है। ये व्यक्तित्व प्रायः वे होते हैं जिनसे लेखक किसी न किसी रूप में प्रभावित रहा हो या जिनसे लेखक की घनिष्ठता अथवा समीपता हो। + +2816. आदि अनेक उद्धरण कबीर की व्यंग्य-क्षमता के प्रमाण हैं। लेकिन उत्तर-मध्यकालीन सामंती समाज कबीर आदि संतों के समाज-बोध को समझ पाने में असफल रहा और पूरे रीतिकाल में व्यंग्य रचनाओं की उपस्थिति नगण्य रही। कबीर के बाद भारतेंदु ने सामाजिक विषमताओं के प्रति व्यंग्य को हथियार बनाया। अंग्रेज़ों के खिलाफ लिखते हुए वे कहते हैं, ‘‘होय मनुष्य क्यों भये, हम गुलाम वे भूप।’’ इस पंक्ति में औपनिवेशिक भारत की मूल समस्या हमें दिखाई देती है। पराधीन भारत की समस्याएँ वर्तमान भारत से अलग थीं। ‘अंधेर नगरी’ और ‘मुकरियों’ में गुलाम भारत की विडंबनापूर्ण परिस्थितियों, अंग्रेजी साम्राज्यवाद और उनकी शोषक दृष्टि के प्रति आक्रोश को देखा जा सकता है। भारतेंदु-युग के अन्य महत्वपूर्ण व्यंग्यकार बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ और प्रतापनारायण मिश्र हैं। किंतु प्रेमघन की कृति ‘हास्यबिंदु’ और प्रतापनारायण मिश्र के निबंधों में व्यंग्य सहायक प्रवृत्ति के रूप में मौजूद है। व्यंग्य इनकी रचनाओं में केंद्रीय भूमिका का निर्वहन नहीं करता है। व्यंग्य का पूर्ण उन्मेष इनके बाद के व्यंग्य रचनाकार बालमुकुंद गुप्त की रचनाओं में दिखाई देता है। ‘शिवशंभु के चिट्ठे’ नामक अपनी प्रसिद्ध व्यंग्य लेखमाला में इन्होंने समसामयिक परिस्थितियों पर तीव्र व्यंग्य किए। राजनीति और तत्कालीन शासन-व्यवस्था से टकराव इनकी व्यंग्य रचनाओं की आधार सामग्री का काम करते हैं। + +2817. परसाई की रचनाएं ‘आजाद भारत का सृजनात्मक इतिहास’ कही जा सकती हैं। इन रचनाओं का वर्तमान भारत की यथार्थ स्थितियों के संदर्भ में ही आकलन किया जा सकता है। सामान्य सामाजिक स्थितियों को परसाई ने वैचारिक चिन्तन से पुष्ट करके प्रस्तुत किया है। स्वतंत्र भारत के सकारात्मक-नकारात्मक सभी पहलुओं की परसाई ने बखूबी पड़ताल की है। परसाई की रचनाओं में उस पीड़ित भारत की छटपटाहट को महसूस किया जा सकता है जो शोषकों के तिलिस्म में कैद है। शोषक इस तिलिस्म को बनाए रखने के लिए तरह-तरह के छद्म करते हैं। इन छद्मों का खुलासा परसाई करते हैं। अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता और सतर्क वैज्ञानिक दृष्टि के कारण परसाई छद्म के उन सभी रूपों को आसानी से पहचान लेते हैं जिन तक सामान्यतः रूढ़िवादी दृष्टि नहीं पहुँच पाती। परसाई का रचना संसार बहुत व्यापक है। निजी अनुभूतियों की निर्वैयक्तिक अभिव्यक्ति उनके व्यंग्य लेखन की विशिष्टता है। परसाई की सृजनशील दृष्टि निम्नवर्गीय सामान्य आदमी से प्रारम्भ होकर बहुराष्ट्रीय समस्याओं तक को अपने भीतर समेटती है। परसाई व्यंग्य के माध्यम से सृजन और संहार दोनों एक साथ करते हैं। परसाई का व्यंग्य जब शोषक वर्ग के प्रति होता है तो वह उस वर्ग के प्रति घृणा और आक्रोश उत्पन्न करता है लेकिन जब वही व्यंग्य अभावग्रस्त व्यक्ति पर होता है तो करुणा पैदा करता है। + +2818. सामाजिक मूल्यों के विघटन को केंद्र में रखकर समकालीन साहित्यिक परिदृष्य में व्यंग्य का लगातार सृजन हो रहा है। समकालीन व्यंग्य में सुरेश कांत, ज्ञान चतुर्वेदी,सुशील सिद्धार्थ,नरेन्द्र कोहली,शंकर पुणतांबेकर,जवाहर चौधरी का नाम लिया जा सकता है। सुरेश कांत ने व्यंग्य-जगत को एक दर्जन से अधिक व्यंग्य-संकलनों के साथ-साथ दो अद्भुत व्यंग्य-उपन्यास दिए हैं--'ब से बैंक' और 'जॉब बची सो'। नरेन्द्र कोहली ने अपने व्यंग्यों में नए प्रयोगों पर विशेष ध्यान दिया है।सुशील सिद्धार्थ के पास कमाल की भाषा है जो समृद्ध भी है और बेहद पठनीय भी।’नारद की चिंता’ इनका प्रमुख संग्रह है।अब वे हमारे बीच नहीं रहे पर उनके व्यंग्य समकालीन साहित्य को समृद्ध करते हैं। व्यंग्य को सामाजिक सतर्कता के हथियार के रूप में देखा जाता है।अन्य व्यंग्यकारों में डॉ.रमेश चन्द्र खरे, केपी सक्सैना,माणिक वर्मा,यशवंत व्यास,सुभाष चंदर,अरविंद तिवारी,अनूप मणि त्रिपाठी,पिलकेंद्र अरोरा, डॉ. सुरेश कुमार मिश्र, संतोष त्रिवेदी,सुरजीत सिंह ,निर्मल गुप्त,मलय जैन,शशिकांत सिंह शशि प्रमुख हैं। + +2819. संस्मरण और रेखाचित्र में बहुत सूक्ष्म अंतर है। कुछ विद्वानों ने तो इन दोनों विधाओं को एक-दूसरे की पूरक विधा भी कहा है। संस्मरण का सामान्य अर्थ होता है सम्यक् स्मरण। सामान्यतः इसमें चारित्रिक गुणों से युक्त किसी महान व्यक्ति को याद करते हुए उसके परिवेश के साथ उसका प्रभावशाली वर्णन किया जाता है। इसमें लेखक स्वानुभूत विषय का यथावत अंकन न करके उसका पुनर्सृजन करता है। रेखाचित्र की तरह यह वर्ण्य विषय के प्रति तटस्थ नहीं होता। आत्मकथात्मक विधा होते हुए भी संस्मरण आत्मकथा से पर्याप्त भिन्नता रखता है। + +2820. छायावादोत्तर युग. + +2821. स्वातंत्रयोत्तर युग. + +2822. + +2823. ...स्वभाषा की उपेक्षा का अर्थ है आत्मघात की ओर बढ़ना। जैसे जड़ कटा वृक्ष पुष्पित, फलित होना तो दूर, शीघ्र ही अपनी हरियाली खोकर सूख जाता है, उसी प्रकार अपनी भाषा से कटा राष्ट्र भी शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। इसी कारण प्रत्येक चतुर राष्ट्र सब से पहले विजित देश की भाषा को दबाकर उस पर अपनी भाषा थोपता है। यहाँ विश्वविख्यात भारतीय विद्वान डॉ. रघुबीर के जीवन की युगांतरकारी घटना का उल्लेख, जो उन्होंने स्वयं मुझे सुनाई थी। इस प्रकार है : + +2824. गृह-स्वामिनी ने कहा- ‘‘डॉ. रघुबीर, इस घटना से आप समझ सकते हैं कि मैं किस माँ की बेटी हूँ। हम फ्रैंच लोग संसार में सबसे अधिक गौरव अपनी भाषा को देते हैं, क्योंकि हमारे लिए राष्ट्र-प्रेम और भाषा-प्रेम में कोई अन्तर नहीं।’’ + +2825. + +2826. शब्दकोश + +2827. पढ़ाई की सामग्री + +2828. वास्तुशास्त्र. + +2829. इसकी तीन टीकाएँ प्रसिद्ध हैं- + +2830. + +2831. ADDRESS - SHREE GANESH GAS AGENCY KE PASS NAI BASTI PICHHORE + +2832. सामान्य ज्ञान भास्कर + +2833. सामान्य ज्ञान भास्कर पर चलें + +2834. + +2835. + +2836. विश्व इतिहास की जानकारी + +2837. दाब - किसी सतह के एकांक क्षेत्रफल पर लगने वाले बल को दाब कहते हैं।" दाब का मात्रक एम. के. एस. पद्धति में न्यूटन प्रति वर्ग मीटर होता है। जिस वस्तु का क्षेत्रफल जितना कम होता है, वह किसी सतह पर उतना ही अधिक दाब डालती है। ) + +2838. ओईजकमैन --- बेरी बेरी की चिकित्सा + +2839. कार्ल लैंडस्टीनर --- रुधिर समूह + +2840. युजोक्स होल्कट --- विटामिन ‘सी’ + +2841. हर गोविन्द खुराना --- जेनेटिक कोड + +2842. पॉल एरिक --- सिफिलिस की चिकित्सा + +2843. लुई पाश्चर(१८८२) --- हाईड्रोफोबिया की चिकित्सा + +2844. क्रिश्चियंस बर्नार्ड --- हृदय प्रत्यारोपण + +2845. किस मेवाड शासक ने ठाट और पाट की प्रथा शुरू की थी? + +2846. विश्व की सबसे लम्बी बस कहा है ? + +2847. विश्व मे उस देश का नाम बताइए जहॉ सिर्फ पुरुष है तथा उसकी जनस्ंख्या क्या है ? + +2848. विश्व की सबसे ऊची चोटी ? + +2849. विश्व की सबसे बडा सेना कौन सी है ? + +2850. विश्व मे सोने का सर्वाधिक उत्पादन बाल देश कौन सा है ? + +2851. विश्व का वह कौनसा देश है जो कपडे पर अखबार निकालता है ? + +2852. पिटा चिडिया (आस्ट्रेलिया मे ) + +2853. सामान्य ज्ञान भास्कर पर चलें + +2854. ज्वार - महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्यप्रदेश और आंध्रप्रदेश + +2855. मुंगफली - गुजरात, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश + +2856. कपास - महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, पंजाब, कर्नाटक, हरियाणा, राजस्थान, तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश + +2857. काजू - केरल, महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश + +2858. 2. राजकीय फल संरक्षण एवं डिब्बाबन्दी संस्थान- लखनऊ + +2859. 7. सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय- उत्तराखण्ड के गठन के बाद पन्तनगर स्थित कृषि विश्वविद्यालय उत्तराखण्ड में चला गया है। इसके + +2860. 1. प्रदेश की सबसे बड़ी जनजाति '"थारू + +2861. 6. न्यूनतम अनुसूचित जनजाति जनसंख्या प्रतिशत वाला जिला "'बागपत + +2862. 11. खरवार जनजाति का नृत्य- "'करमा + +2863. 4. राज्य सरकार द्वारा शिक्षा मित्र योजना का शुभारम्भ- वर्ष 2000-2001 + +2864. 5. शिक्षा मित्र योजना '" 2000-2001 में + +2865. 10. विद्या वाहिनी परियोजना "' 2003 में प्रारम्भ, कम्प्यूटर के माध्यम से शिक्षा को बढ़ावा देना + +2866. 5. एमिटी विश्वविद्यालय- गौतम बुद्ध नगर + +2867. 10. उत्तर प्रदेश में उर्दू को द्वितीय राजभाषा घोषित किया गया- वर्ष 1989 + +2868. 5. उत्तर प्रदेश में विद्युत नियामक आयोग का गठन- वर्ष 1998 + +2869. 3. विद्युत उत्पादन की दृष्टि से उत्तर प्रदेश का सम्पूर्ण देश में कौन-सा स्थान है- + +2870. 7. गोविन्द बल्लभ पन्त सागर परियोजना निम्नलिखित में से कहा स्थित है- + +2871. 12. उत्तर प्रदेश में विद्युत नियामक आयोग का गठन कब किया गया- + +2872. 17. वैकल्पिक ऊर्जा से सम्बन्धित एक शोध एवं प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना की गई है- + +2873. दक्षिण पठार से निकलने वाली नदियाँ - चम्बल, बेतवा ,केन, सोन, रिहंद, टोंस ,कन्हार + +2874. गंगा नदी मैदानी भाग में प्रवेश करती है - हरिद्वार में + +2875. यमुना + हिंडन = नोएडा के निकट + +2876. नोट - कन्नौज इत्र के लिए जाना जाता है + +2877. पर्वतीय प्रदेश में यह करनाली नदी के नाम से और मैदानी भाग में यह घाघरा के नाम से जानी जाती है + +2878. धसान नदी बेतवा की सहायक नदी है + +2879. सोन -यह नर्मदा के उद्गम स्थल के समीप शेषकुंड नामक स्थान से निकलती है + +2880. नोट - बिहार जलप्रपात इसी नदी पर है। + +2881. बलहपारा --"'कानपुर + +2882. बडाताल --'"शाहजहांपुर + +2883. ऊपरी गंगा नहर --"'हरिद्वार से + +2884. शारदा नहर --'"यह राज्य कि सर्वाधिक प्राचीन नहर है + +2885. ख़ातिमा शक्ति केंद्र स्थापित है --"'शारदा नहर पे + +2886. मूसा कहद बाँध --'"कर्मनाशा नदी ; वाराणसी + +2887. एक से अधिक बार बोया गया क्षेत्र --"'459.08 लाख हेक्टेयर + +2888. उत्तर प्रदेश का भारत के राज्यों में क्षेत्रफल में स्थान - चौथा + +2889. उत्तर प्रदेश का कुल क्षेत्रफल देश के क्षेत्रफल का है -7.33% + +2890. जनसँख्या के आधार पर उत्तर प्रदेश का स्थान - पहला + +2891. क्वाटरली समूह - तराई व भाभर का निर्माण + +2892. यह दलदली क्षेत्र होता है क्योंकि यही पे भाभर से विलुप्त नदियाँ यही पे निकलती है + +2893. उत्तर से दक्षिण का क्रम + +2894. प्रदेश में वर्षा का प्रारम्भ जून के अंतिम सप्ताह से होता है + +2895. उत्तर प्रदेश की सबसे ऊँची चोटी - सोनाकर + +2896. प्रश्नसमुच्चय--१७: + +2897. श्रुतिसमभिन्नार्थक शब्द. + +2898. + +2899. हिन्दी विश्व की प्रमुख भाषा है,यह 50 करोड़ लोगों की भाषा हैं। हिन्दी भाषा, भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। हिन्दी के अधिकतम शब्द संस्कृत , अरबी और फारसी भाषा के शब्दों से लिए गए हैं। हिन्दी को देवनागरी लिपि में लिखा जाता है। + +2900. हिन्दी/आधारभूत हिन्दी: + +2901. उदाहरण : + +2902. गहरे रंग में दिया गया शब्द संज्ञा है। इसके स्थान पर यदि वह यह वहाँ आदि आने पर उसे संज्ञा नहीं सर्वनाम कहेंगे। + +2903. समूहवाचक संज्ञा. + +2904. हिन्दी व्याकरण/सर्वनाम: + +2905. ध्यान रहे, हिन्दी में पहले वाक्य में संज्ञा होना चाहिए। उसके बाद ही सर्वनाम का उपयोग होता है। + +2906. यदि कोई वाक्य किसी कार्य के बारे में बताता है, तो उसे क्रिया कहते हैं। + +2907. विशेषण, जो संज्ञा व सर्वनाम शब्दों की विशेषता प्रकट करते हैं, उन्हें "विशेष्य" कहते हैं अर्थात संज्ञा व सर्वनाम शब्दों को "विशेष्य" के नाम से जाना जाता है। + +2908. हिन्दी व्याकरण/काल: + +2909. वर्तमान काल. + +2910. + +2911. उदाहरण– + +2912. भौतिकी अध्ययन मार्गदर्शक/उद्देश्य: + +2913. भौतिकी के नियम. + +2914. इसमें किसी भी वस्तु के साथ होने वाले क्रिया को देख कर उसे परखा जाता है। उसमें लगने वाला समय और परिवर्तन को लिखा जाता है। इसके बाद उससे होने वाले प्रभाव को भी लिखा जाता है। + +2915. गतिज ऊर्जा वेग के आधे द्रव्यमान के बराबर होता है। + +2916. प्रत्यय (suffix) उन शब्दों को कहते हैं जो किसी अन्य शब्द के अन्त में लगाये जाते हैं। इनके लगाने से शब्द के अर्थ में भिन्नता या वैशिष्ट्य आ जाता है। + +2917. ई + +2918. हिन्दी व्याकरण/समास: + +2919. सामाजिक जालस्थल: + +2920. हानि. + +2921. जीमेल/परिचय: + +2922. यह एक प्रकार के एचटीएमएल से बना जालस्थल होता है, जिसमें जीमेल का सामान्य रूप होता है। जो किसी धीमी गति से इंटरनेट चलाने वालों के लिए बना होता है। इससे ईमेल जल्दी खुल जाते हैं और अधिक डाटा नष्ट भी नहीं होता है। + +2923. + +2924. हिन्दी व्याकरण/प्रत्यय/अक: + +2925. हिन्दी व्याकरण/प्रत्यय/अन: + +2926. हिन्दी व्याकरण/प्रत्यय/अना: + +2927. माननीय, रमणीय, दर्शनीय, पूजनीय, श्रवणीय + +2928. सूखा, भूला, जागा, पूजा, इच्छा, भिक्षा + +2929. लड़ाई, सिलाई, पढ़ाई, चढ़ाई + +2930. उड़ान, मिलान, दौड़ान + +2931. हरि, गिरि, दाशरथि, माली + +2932. छलिया, जड़िया, बढ़िया, घटिया + +2933. पठित, व्यथित, फलित, पुष्पित + +2934. चरित्र, पवित्र, खनित्र + +2935. अड़, मर, सड़ + +2936. हँस, बोल, त्यज्, रेत + +2937. इच्छ्, भिक्ष् + +2938. कर्तव्य, वक्तव्य + +2939. आता, जाता, बहता, मरता, गाता + +2940. अति, प्रीति, शक्ति, भक्ति + +2941. जाते, खाते + +2942. अन्यत्र, सर्वत्र, अस्त्र + +2943. क्रंदन, वंदन, मंदन, खिन्न, बेलन, लेन + +2944. पढ़ना, लिखना, बेलना, गाना + +2945. दाम, धाम + +2946. गद्य, पद्य, कृत्य, पाण्डित्य, पाश्चात्य, दंत्य, ओष्ठ्य + +2947. मृगया, विद्या + +2948. देनेवाला, आनेवाला, पढ़नेवाला + +2949. होनहार, रखनहार, खेवनहार + +2950. गूगल मेल: + +2951. गूगल जालशिक्षक. + +2952. गूगल छवि: + +2953. गूगल अनुप्रयोग. + +2954. + +2955. कुल मिलाकर आप यदि क्रोम का उपयोग करते हो तो आप गूगल के जालस्थल पर हर दिन आते ही रहेंगे। चाहे आप चाहो या न चाहो। + +2956. गूगल पुस्तक गूगल का पुस्तक खोजने का एक औज़ार है। यह साथ ही अनेक पुस्तकालय के पुस्तक की जानकारी और उसके पाठ्य का अक्षरों के रूप में संचित रखती है। जिससे कोई भी इसके पाठ्य को गूगल खोज के माध्यम से आसानी से खोज सके। इसके अलावा यह उसे ईपुस्तक के रूप में कम्प्युटर में डालने की विशेषता भी देती है। लेकिन यह सुविधा कुछ ही पुस्तकों के लिए होता है। + +2957. कुछ लोग जो पैसे स्वयं कमाना चाहते हैं, उनके लिए गूगल ने विज्ञापन की सुविधा दी है। जिसमें कोई भी अपने जालस्थल में विज्ञापन दिखाता है। गूगल के कमाई से उसे 69% पैसे मिल जाते हैं। इससे गूगल को बिना कुछ कार्य के 31% पैसे मिल जाते हैं। इसका उपयोग वह कुछ भाग अपने कर्मचारी को देने के लिए और कुछ निःशुल्क सेवाएँ प्रदान करने के लिए करता है। बाकी बचे रकम का उपयोग अपने लाभ हेतु या अन्य परियोजना में करता है। + +2958. यह ठीक ठीक रूप से अनुवाद नहीं करता है। कई शब्द जैसे के तैसे ही डाल देता है। इसके अलावा इसमें कोई व्याकरण संबंधी जानकारी अंग्रेज़ी के अलावा अन्य भाषाओं के लिए उपलब्ध नहीं है। अर्थात यदि आप इसका उपयोग करते है तो आपको अंग्रेज़ी का ज्ञान होना चाहिए या आप अर्थ का कोई और अर्थ मान लेंगे। + +2959. यह गूगल का एक सामाजिक जालस्थल है। जिससे कोई भी एक दूसरे से बातचीत कर सकता है। यह मुख्यतः अपने बहुत बड़े आकार के कारण तेज गति वाले इंटरनेट उपयोग करने वालों की पसंद है। यह इसकी प्रचार हेतु अपने अन्य सेवा में गूगल के इस सेवा का अत्यधिक विज्ञापन और प्रचार करता है। + +2960. इससे गूगल का मुख्य उद्देश्य लोगों को गूगल में खोजने हेतु आकर्षित करना ही है। जिससे अधिक लोग गूगल के खोज का उपयोग करें। यह इसके साथ ही ऐसे लोगों को देखता है जो अधिक खोजने वाली जानकारी का उपयोग करना चाहते हैं। इसके द्वारा वह लोग ऐसे परिणाम देखते हैं और उस परिणाम के अनुसार अपने कार्य करते हैं। लेकिन इस के साथ ही वे लोग गूगल के सेवा से भी जुड़ जाते हैं और गूगल को नई प्रयोक्ता भी मिलते रहते हैं। + +2961. गूगल का मुख्य वीडियो खोज प्रणाली में यूट्यूब है। लेकिन इस खोज माध्यम के द्वारा वह अन्य सभी जालस्थल के वीडियो को तो दिखाता है, लेकिन अपने यूट्यूब के वीडियो को भी उसमें दिखाता है। चूंकि यूट्यूब का पूरा अधिकार गूगल के पास ही है तो वह जितना हो सके गूगल के वीडियो खोज में यूट्यूब के ही वीडियो का मुख्य रूप से परिणाम दिखाता है। जिससे कोई भी गूगल से गूगल के ही सेवा में रहे। + +2962. गूगल टंकण औज़ार. + +2963. + +2964. यह मुख्य रूप से सही चित्र नहीं दिखाता है। इसके अलावा इसके चित्र की गुणवत्ता भी काफी कम होती है। इसके उपयोग के साथ ही इसमें कई बुराई भी है। + +2965. जानकारी का उपयोग. + +2966. गूगल आपके द्वारा दी जाने वाली सभी जानकारी को अपने पास रखता है और उसका व्यावसायिक रूप से भी उपयोग करता है। किसी भी कंपनी के पास जितनी अधिक आपके और आपकी कंपनी की जानकारी होगी, वह कंपनी उतनी अच्छी तरह से आपके व्यवसाय को समझ सकेगी और उसके अनुरूप बाद में अपनी कोई सेवा शुरू कर देगी। इसके कई उदाहरण भी हैं, जिसमें गूगल ने बाजार के और उसके मांग को देख कर अपनी कोई नई सेवा को शुरू किया। + +2967. + +2968. वैज्ञानिक विधि. + +2969. इसे मूल रूप से तीन अनुभाग में तैयार किया गया है। जिसमें पहले अनुभाग में इतिहास और उससे जुड़े कुछ जानकारी है और दूसरे अनुभाग में सामान्य प्रश्नो से जुड़े कुछ तथ्य और जानकारी है। वहीं तीसरे अनुभाग में कुछ प्रयोग आदि की जानकारी है। + +2970. विधि का स्तर. + +2971. प्राथमिक चिकित्सा/प्रस्तावना: + +2972. + +2973. विकसित हो गयीं जैसे- राजयोग, अष्टाँग योग, हठ योग, सँयम योग, कर्म योग, ग्यान योग, सहज योग, सहज राज योग, भक्ति योग, उपासना योग, तन्त्र योग, आदि| सभी शाखाओं का उद्देश्य या तो परमात्मा, ईश्वर, भगवान, अल्लाह, खुदा, प्रभु, GOD आदि नामों से जाने-पहचाने जाने वाली उस, अग्यात शक्ति को जानकर, उससे सम्बन्ध बनवाना है या अपने-अपने मानसिक-शारीरिक-सामाजिक स्वास्थ को ठीक करके, निरोगी काया व निरोगी समाज का निर्माण करना है| + +2974. + +2975. तैयारियाँ– + +2976. तरीका. + +2977. सामान्य योग उसे कहते हैं, जिसे कोई भी किसी भी समय कर सकता है। लेकिन किसी भी योग को करने से उसका लाभ उसी समय से दिखना शुरू हो जाता है, लेकिन अच्छी तरह से जब तक उसका अभ्यास न किया जाये तब तक उसका लाभ नहीं मिल पाता है। सामान्य या दैनिक रूप से किसी के भी द्वारा किए जा सकने वाले योग से कोई भी प्रतिदिन योग कर सकता है। कुछ योग को करने हेतु स्वास्थ्य ठीक होना आवश्यक होता है और किसी भी योग को धीरे धीरे ही और करना चाहिए। जिससे शरीर उसके अनुरूप कार्य करने लगे। + +2978. + +2979. पायथन 3 के लिए गैर-प्रोग्रामर जानकारी: + +2980. किसी भी भाषा हो या कोई कार्यक्रम सभी में पहली या कुछ और बार त्रुटि होती ही है। कई बार कुछ समझ में भी नहीं आता है। इस कारण लोग इसे छोड़ कुछ और करने के पीछे पड़ जाते हैं। लेकिन यदि आप शुरू से किसी कार्य को करते हो तो वह बहुत आसानी से आ जाती है। जैसे की हम अपनी हिन्दी भाषा को आसानी से समझ सकते हैं और लिख भी सकते हैं। उसी प्रकार कोई भी इस कार्यक्रम निर्माण की भाषा को भी समझ कर लिख सकता है। लेकिन यदि आपको इसमें और अच्छा बनना है तो आपको और मेहनत करनी होगी। लेकिन इसकी शुरुआती ज्ञान बहुत ही सरल है, जिसे कोई भी सीख सकता है। इस पुस्तक में भी इस तरह से ही सरल उदाहरण द्वारा यह दिखाया गया है। + +2981. यदि आपके पास यह स्थापित नहीं है तो आप इसे http://www.python.org/download से डाउनलोड कर अपने कम्प्यूटर पर स्थापित कर सकते हो। + +2982. यदि आपको कोई लेख या शब्द दिखाना है तो आप यह लिख सकते हैं। + +2983. इसके बाद आपके आदेशानुसार यह कम्प्यूटर दिखा देता है। + +2984. शिक्षा का अधिकार: + +2985. 2002 में, संविधान (अस्सी छठे संशोधन) अधिनियम शिक्षा के अधिकार के माध्यम से एक मौलिक अधिकार के रूप में पहचाना जाने लगा। लेख 21A इसलिए सम्मिलित होना जिसमें कहा गया है आया, "राज्य राज्य के रूप में इस तरीके से, विधि द्वारा, निर्धारित कर सकते में छह से चौदह वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगा। we should punish those teachers who just sitv in the classes not teaching the students यह अंततः उन्नी कृष्णन जेपी वी. राज्य आंध्र प्रदेश की कि शिक्षा को एक मौलिक अधिकार में लाया जा रहा में दिया निर्णय किया गया था। इस के बाद भी, यह शामिल संघर्ष की एक बहुत अनुच्छेद 21A के बारे में लाने के लिए और बाद में, शिक्षा का अधिकार अधिनियम. इसलिए, RTE अधिनियम के लिए एक कच्चा मसौदा विधेयक 2005 में प्रस्ताव किया गया। + +2986. 1 मुख्य प्रावधान + +2987. 6 से 14 साल के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा उपलब्ध कराई जाएगी. + +2988. प्रवेश के समय कई स्कूल केपिटेशन फ़ीस की मांग करते हैं और बच्चों और माता-पिता को इंटरव्यू की प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है। एडमिशन की इस प्रक्रिया को बदलने का वादा भी इस विधेयक में किया गया है। बच्चों की स्क्रीनिंग और अभिभावकों की परीक्षा लेने पर 25 हजार का जुर्माना। दोहराने पर जुर्माना 50 हजार। + +2989. मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के तहत सिर्फ 25 फीसदी सीटों पर ही समाज के कमजोर वर्ग के छात्रों को दाखिला मिलेगा। यानि शिक्षा के जरिये समाज में गैर-बराबरी पाटने का जो महान सपना देखा जाता वह अब भी पूरा नहीं होगा। + +2990. + +2991. + +2992. विंडोज से सामान्य अभिकलन अर्थात उसे स्थापित कर उसका उपयोग करना है। + +2993. यह भाग कठोर होता है इस कारण इसे "हार्ड" कहते हैं और "वेयर" शब्द जोड़ देते हैं। इस भाग के द्वारा ही आप इसे कोई संदेश या कोई जानकारी दे सकते हो। यह आप कुंजीपटल और माउस के द्वारा कर सकते हो। + +2994. सॉफ्टवेयर - एक प्रकार का कार्यक्रम होता है जो हार्डवेयर को किस तरह कार्य करना है। उसके निर्देश देता है। + +2995. व्यवस्था विंडोज में मूल रूप से control panel नियंत्रण स्थल में होती है। जहाँ आप अपने अनुसार किसी भी तरह का बदलाव कर व्यवस्थित रख सकते हो। + +2996. पढ़ना. + +2997. उपयोग. + +2998. सहेजना. + +2999. + +3000. आप इसके द्वारा किसी के द्वारा कोई मेल आने को रोक सकते हो। उदाहरण के लिए यदि आपको कोई अनेक व्यापारिक मेल कर रहा है या किसी अनावश्यक वस्तु का प्रचार कर रहा है तो आप उस मेल पते को भी इससे छन्नी द्वारा हटा सकते हो। या फिर किसी शब्द को भी आप इस इसे छन्नी के द्वारा हर मेल में उस शब्द को देख कर मेल को इनबॉक्स तक नहीं आने देगा। + +3001. मित्र को बुलाएँ या आमंत्रित करें एक विकल्प है, जिससे आप कोई ऐसे व्यक्ति को जीमेल में ला सकते हो जो जीमेल का उपयोग नहीं कर रहा है। इसका लाभ मुख्य रूप से गूगल को मिलता है। क्योंकि उसके सदस्य और भी अधिक हो जाते हैं और उपयोग करने वाले लोग भी और सक्रिय रहेंगे। जिससे लाभ में गूगल को और अधिक बढ़ोतरी मिलेगी। + +3002. अक्षय ऊर्जा: + +3003. अक्षय ऊर्जा उस ऊर्जा को कहते हैं, जिसका एक बार उपयोग करने के बाद भी हम उसे दोबारा भी उपयोग कर सकते हैं। उदाहरण के लिए पवन ऊर्जा ।यह ऊर्जा स्वतः ही पवन के चलने पर हमें मिलती है। जिसे हम पवन चक्की की सहायता से कभी भी उस ऊर्जा का उपयोग कर सकते हैं। यह पवन ऊर्जा धरती में अलग अलग स्थानों में हुए दाब के परिवर्तन के कारण बनते हैं। यह कभी क्षय नहीं हो सकते हैं। इस कारण इस ऊर्जा को अक्षय ऊर्जा कहते हैं। + +3004. इसका उपयोग रसोई गैस के रूप में या विद्युत उत्पन्न करने आदि के लिए किया जा सकता है। + +3005. + +3006. सौर ऊर्जा का उपयोग पानी उबालने में किया जाता है। सामान्यतः पानी को गर्म होने में काफी समय लग जाता है। इसके अलावा ईंधन भी काफी नष्ट हो जाता है। जबकि सौर ऊर्जा निःशुल्क मिलने के कारण दिन में कोई भी आसानी से पानी गर्म कर सकता है। + +3007. हानि. + +3008. इस ऊर्जा का उपयोग हम कुआँ से पानी निकालने या विद्युत ऊर्जा का निर्माण करने के लिए करते हैं। + +3009. अक्षय ऊर्जा/ज्वारीय ऊर्जा: + +3010. इसमें से एक उपकरण में मोटर और पंखा होता है। नीचे और ऊपर वायु के आने जाने के लिए मार्ग भी होता है। जब लहर में हलचल होता है तो वह पंखा वायु के ऊपर नीचे होने के कारण घूमने लगता है और मोटर के विद्युत ऊर्जा उत्पन्न होने लगती है। + +3011. यदि इस ऊर्जा का निर्माण भी करना चाहें तो भी इसके लिए अनेक पेड़-पौधे जीव-जन्तु की आवश्यकता होगी। यदि यह संख्या कम होती है तो इसका कोई लाभ ही नहीं होगा और अधिक भी होने से इस पूरे क्रिया में उससे अधिक पैसे लग जाएँगे। इससे अच्छा और सस्ता मार्ग अक्षय ऊर्जा पर निर्भर होना है और उसके लगातार उपयोग करने के लिए हमें ऊर्जा संग्रहण करना चाहिए। जिससे इस तरह के ऊर्जा का बाद में भी उपयोग कर सकें और क्षय ऊर्जा पर हमारी निर्भरता हट सके। + +3012. आव्यूह: + +3013. प्रदूषण: + +3014. + +3015. ध्वनि प्रदूषण मुख्यतः यातायात में उपयोग किए जाने वाले वाहनों द्वारा उत्पन्न होती है। इसके अलावा कई तरह के मरम्मत के कार्य हेतु कई तरह के औज़ार का उपयोग किया जाता है। इस कार्य को करते समय भी ध्वनि प्रदूषण होता रहता है। यह समस्या मुख्यतः शहरी क्षेत्रों में होता है, जहाँ पहले ही विकास हो चुका होता है और फिर से कोई नया कार्य करने हेतु कोई पुराने कार्यों को हटाना होता है। + +3016. प्रश्नसमुच्चय--१५: + +3017. ग्वालियर किले का निर्माण राजपूत राजा सूरज सेन ने किसकी स्मृति में कराया था ? -- ऋषि गालब की स्मृति में + +3018. मध्यप्रदेश में सर्वाधिक प्रसार वाला अखबार है ? -- नई दुनिया + +3019. कौन सी नदी पर जोवट परियोजना बनाई गई है ? -- हथनी + +3020. मध्य प्रदेश में स्थित राजघाट बांध किस नदी पर बना हुआ है? -- बेतवा + +3021. मध्य प्रदेश का सोमनाथ कहा जाता है? -- भोजपुर को + +3022. कौन सा महीना मालवा पठारी क्षेत्र का सबसे गर्म महीना है ? -- मई + +3023. राज्य में शुष्क बंदरगाह कहाँ स्थापित किया गया है ? -- पीथमपुर + +3024. + +3025. अंग्रेज़ों के समय. + +3026. अंग्रेज़ी को सह-राजभाषा बनाने का विरोध भी हुआ था। लेकिन समय के साथ वह विरोध धीमा हो गया। हिन्दी को अपना स्थान दिलाने के लिए हिन्दी दिवस मनाने की योजना बनाई गई। इसका उद्देश्य हिन्दी भाषा जानने वालों को अपने भाषा के प्रति सचेत होने और उसके विकास के बारे में सोचें आदि है। क्योंकि राजभाषा के नाम पर हिन्दी केवल नाम मात्र के लिए यह स्थान मिला है। जबकि अंग्रेज़ी को पहले वैकल्पिक रूप से सह-राजभाषा के रूप में स्थान दिया गया और बाद में उसे अनिवार्य कर दिया गया व हिन्दी का कोई जिक्र भी नहीं किया गया। तब से अब तक हिन्दी केवल नाम मात्र के लिए भारत की राजभाषा है। + +3027. हिन्दी दिवस/पुरस्कार: + +3028. कोई भी भारतीय लेखक, जिसने हिन्दी भाषा में विज्ञान या तकनीकी के विषय में 100 या उससे अधिक पृष्ठ में कोई पुस्तक लिखा हो वह इस पुरस्कार हेतु अपनी पुस्तक की जानकारी सरकार को भेज सकता है। जिसमें से श्रेष्ठ 13 लोगों के पुस्तक को इस पुरस्कार के लिए चुना जाएगा। + +3029. हिन्दी दिवस का विरोध मुख्यतः इस कारण से किया जाता है, क्योंकि सरकार केवल एक दिन हिन्दी दिवस के रूप में कुछ कार्यक्रम आयोजित कर हिन्दी को भूल जाती है। पूरे साल हिन्दी भाषा के लिए कुछ काम नहीं होता और न ही हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा मिला। सरकारी कार्यालयों में भी केवल हिन्दी नाम मात्र के लिए होता है। सभी सरकारी कार्यक्रम में भी हिन्दी का उपयोग नहीं होता, और हिन्दी दिवस या हिन्दी के किसी कार्यक्रम में भी कई बार हिन्दी भाषा का उपयोग नहीं किया जाता है। + +3030. हिन्दी दिवस/इतिहास: + +3031. मुख्य कारण. + +3032. देवनागरी लिपि मुख्यतः भारत और नेपाल के भाषाओं को लिखने के लिए उपयोग की जाती है। इसमें हिन्दी, नेपाली, मराठी, संस्कृत, पालि, भोजपुरी, नेवाड़ी, कोंकणी, मैथिली, कश्मीरी आदि का समावेश हैं। यह ध्वनि या उच्चारण पर आधारित है, इस कारण इसमें जो भी हम बोल सकते हैं, उसे आसानी से लिखा जा सकता है। महावीर प्रसाद द्विवेदी ने इस लिपि के लिए कहा था कि देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता स्वयंसिद्ध है। अर्थात इसकी वैज्ञानिक विशेषताओं को सिद्ध करने की कोई आवश्यकता नहीं है। इसे देखते साथ कोई भी जान सकता है कि यह अन्य लिपियों से काफी अलग और उपयोगी है। + +3033. देवनागरी/व्यंजन: + +3034. देवनागरी/इतिहास: + +3035. + +3036. 2.वर्ण के प्रकार -- + +3037. ङ.म-मन,म्यान,छद्म,ब्रह्म + +3038. 6.द्विज का उच्चारण दु+वि+ज होता है!लिखने और पढ़ने दोनों में दुविधा होती है! + +3039. ख.निर्देश लिखे वर्ण का क्रम देखें तो नि+दे+र्+श उच्चारण के अनुसार ' दे ' के पहले ' र ' ध्वनि संकेत लिखा होना चाहिए ! लेकिन ऐसा नहीं है-दे के बाद र का संकेत लगता है! + +3040. www.hindikinailipi.com + +3041. साधन के प्रचार की कमी. + +3042. www.hindikinailipi.com रवीन्द्र नाथ सुलंकी www.hindikinailipi.com + +3043. उच्चारण और विभिन्न तरीकों में यह लिपि पहले ही विकसित है। लेकिन "कम्प्युटर" व इंटरनेट के अधिक उपयोग के साथ इसे भी इनमें अपना स्थान बनाना होगा। लेकिन इसके लिए इसके साधन और समर्थन की आवश्यकता है। देवनागरी लिपि की 10 खामियाँ ! + +3044. ग. क-कर , वक्त , क्वाथ , + +3045. 4.शुद्ध में द पूरा अक्षर लिखा है,लेकिन उच्चारण आधा होता है!ध आधा लिखा होता है,लेकिन उच्चारण पूरा होता है !इसी तरह वृद्ध,श्रद्धा आदि! + +3046. ख.शुरू में ओकार नहीं लगा है,लेकिन उच्चारित होता है! जैसे-द्वार दो+वा+ र,द्वंद्व,ज्वर,त्वरित आदि! + +3047. देवनागरी लिपि से विकसित होडो़ सेंणा लिपि में उपर्युक्त सभी कमियों का समाधान है!इस लिपि से मात्र 45 ध्वनि संकेत चिह्नों से शुद्ध वर्तनी लिखी जा सकती है!सिर्फ हिंदी और मुंडा भाषाएँ ही नहीं,अनेक भारतीय भाषाएँ भी शुद्ध वर्तनी के साथ लिखी जा सकती हैं ! + +3048. वैसे तो धारावाहिक में कई बार नाम देवनागरी लिपि में ही होता है। लेकिन कुछ लोग "फॉन्ट" की कमी या अन्य कारण से इस लिपि के स्थान पर अन्य लिपि का उपयोग कर रहे हैं। धारावाहिक देखने वाला व्यक्ति हर दिन इसे देखता है। यदि इसमें देवनागरी लिपि नहीं होने से उससे उसके पढ़ने में भी देवनागरी लिपि कमजोर होती जाएगी। इससे लोगों को धीरे धीरे देवनागरी लिपि पढ़ने में कठिन लगने लगेगा। इस कारण यदि देवनागरी लिपि का विकास करना है तो हर धारावाहिक के नाम को भी देवनागरी में ही होना चाहिए और हर विज्ञापन जो दिखाया जाता है उसे भी देवनागरी लिपि में ही होना चाहिए। + +3049. तेजी. + +3050. यदि आपको शीघ्र लेखन कला आती है तो भी आप समान गुणवत्ता में देवनागरी लिपि में अपनी बात लिख सकते हो। या ये भी बोल सकते हैं कि देवनागरी लिपि को लिखने के लिए आपको शीघ्र लेखन कला आना चाहिए या आप इस लिपि में लिख कर यह कला सीख सकते हो। + +3051. + +3052. + +3053. 15 वर्षो के बाद. + +3054. विषय-सूची. + +3055. + +3056. 2) इसका विस्तार जम्मू और कश्मीर राज्य के सिवाय संपूर्ण भारत पर है और यह भारत के बाहर भारत के सब नागरिकों पर भी लागू है। + +3057. स्पष्टीकरण – इसमें “राज्य” में केन्द्रीय, प्रान्तीय या राज्य के किसी अधिनियम के अधीन निर्मित नियम या कोई प्राधिकरण या कोई निकाय जो सरकार द्वारा स्वामित्वधीन या नियंत्रनाधीन या सहायता प्राप्त है या कोई सरकारी कम्पनी जैसा कि कम्पनी अधिनियम , 1956 ( 1956 का सं 1) की धारा 617 में परिभाषित है। + +3058. चार. कोई न्यायाधीश, या विधि द्वारा प्राधिकृत कोई अन्य व्यक्ति, जिसे स्वयं या किसी समूह के सदस्य के नाते न्याय- निर्णयन का कार्य करता हो, + +3059. नौ. कोई व्यक्ति जो किसी रजिस्टर्ड सहकारी संस्था के लिए कृषि, उद्योग व्यापार या बैकिंग में लगा हुआ है जिसे केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा केन्द्रीय, प्रान्तीय या राज्य सरकार की किसी विधि के अधीन गठित किसी कॉरपोरेशन, प्राधिकरण या निगम द्वारा जो सरकार के स्वामित्वधीन, नियंत्रणाधीन या सहायता प्राप्त है या किसी शासकीय कम्पनी, जैसा कि कम्पनी अधिनियम, 1956 (1956 का सं 1) की धारा 617 में परिभाषित है किसी प्रकार की आर्थिक सहायता प्राप्त है या प्राप्त हो रही है, का अध्यक्ष सचिव या अन्य पदाधिकारी है। + +3060. स्पष्टीकरण 2- जहाँ कहीं “ लोक सेवक” शब्द आए है, वे उस व्यक्ति के संबंध में समझे जाएँगे, जो लोक सेवक के पद को वास्तव में धारण किए हुए है, चाहे उस पद के धारण करने में भी कैस विधिक त्रुटि हो। + +3061. 1) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का सं 2) में या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी धारा 3 की उपधारा 1 में विनिर्दिष्ट प्रकरणों का विचारण विशेष न्यायाधीशों द्वारा ही किया जाएगा। + +3062. 1) विशेष न्यायाधीश किन्हीं अपराधों का संज्ञान उसे विचारण के लिए अभियुक्त की सुपुर्दगी के बिना कर सकता है और विचारण के लिए दंड प्रकिता संहिता 1973(1974 का सं 2) में मजिस्ट्रेट द्वारा वारंट मामलों के विचारण के लिए विनिर्दिष्ट प्रक्रिया अपनाएगा। + +3063. 6) इस अधिनियम के अधीन दंडनीय अपराध का विचारण करने वाला विशेष न्यायाधीश दंड विधि (संशोधन) अध्यादेश, 1944 (1944 का अधयादेश 38) द्वारा जिला न्यायाधीश को प्रदत्त शक्तियों एवं कृत्योँ का प्रयोग कर सकेगा। + +3064. 2) इस अधिनियम दंड प्रकिता संहिता 1973(1974 का सं 2) में किसी बात के होते हुए भी, इस धारा के अधीन संक्षिप्त विचारण, जिसमें विशेष न्यायाधीश द्वारा एक मास से अनधिक की अवधि के कारावास और दो जार रूपए से अनधिक जुर्माने से दंड दिया गया है और उक्त संहिता की धारा 425 के अधीन इसके अतिरिक्त कोई आदेश दिया गया हो अथवा दंड के विरुद्ध कोई अपील नही होगी किन्तु उपरोक्त वर्णित सीमा से अधिक द॔डादेश पर अपील हो सकेगी। + +3065. ख. “परितोषण”- परितोषण शब्द धन संबंधी परितोषण तक, या उन परितोषणों तक ही जो धन में आँ के जाने योग्य है, सीमित नहीं है। + +3066. रिश्वत— माँग—अभियुक्त कोई जावक लिपिक नहीं है जो सम्पत्ति मूल्यांकन प्रमाण-पत्र जारी कर सकता है—वह केवल एक अनुशंसा प्राधिकारी है— यह और कि, अभिकथित रिश्वत की माँग से पूर्व उक्त सम्पत्ति मूल्यांकन प्रमाण-पत्र अग्रेषित और अन्तिम प्राधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित किया जा चुका था— यह रिश्वत की माँग के बारे में संदेह उत्पन्न करता है, अतः दोषमुक्ति उचित थी। राज्य बनाम नरसिम्हाचारी ए. आई. आर. 2006 एस. सी. 628। + +3067. धारा 10. धारा 8 या धारा 9 में परिभाषित अपराधों को लोक सेवक द्वारा उत्प्रेरण के लिए दंड. + +3068. जो कोई धारा 7,या धारा 11 के अधीन दँडनीय किसी अपराध का दुष्प्रेरण करेगा, चाहे भले ही उसे दुष्प्रेरण के परिणामें स्वरूप कोई अपराध घटित हुआ हो या नही ऐसे कारावास से दंडित किया जाएगा जिसकी अवधि पाँच वर्ष तक की हो सकेगी किन्तु जो छह मास से कम नहीं गी और जुर्माने से दंडनीय होगा। + +3069. क. यदि वह अपने लिए या किसी अन्य के लिए वैध पारिश्रमिक से भिन्न कोई पारितोषण हेतु या ईनाम के रूप में जैसा कि धारा 7 में उपबन्धित है किसी व्यक्ति से अभ्यासतः प्रतिग्रीत या अभिप्राप्त करता है, करने को सहमत होता है या करने का प्रयत्न करता है; या + +3070. स्पष्टीकरण- इस धारा के उद्देश्यों के लिए आय के ज्ञात स्त्रोतों पद का तात्पर्य होगा कोई ऐसे वैध स्त्रोत जिससे आय प्राप्त की गई है औरलोक सेवक पर तत्समय प्रवृत्त किसी विधि, नियम या आदेश के अधीन उसकी प्राप्ति की सूचना दे दी गई है। + +3071. जहाँ धारा 13 की उपधारा 2 या धारा 14 के अधीन अर्थदंड अधिरोपित किया जाना है तो दंड आदेश जारी करने वाला न्यायालय, उस सम्पति का मूल्य, यदि कोई है जिसे अभियुक्त व्यक्ति ने अपराध में उपार्जित किया है या जहां धारा 13 की उपधारा 1 के खंड ड़ में वर्णित अपराध के लिए सिध्ददोष होता है तो उस खंड में वर्णित अथवा धन संबंधी स्त्रोत जिसके संबंध में अभियुक्त समाधानप्रद विवरण नहीं दे सका , विचार में ले सकेगा। + +3072. ग. अन्यत्र उप –पुलिस अधीक्षक या इसके समकक्ष पद का अधिकार, + +3073. यदि प्राप्त जानकारी द्वारा या अन्यथा किसी पुलिस अधिकारी के पास किसी ऐसे अपराध के कारित होने के संदेह के कारण है, जिसका अन्वेषण करने के लिए वह धारा 17 के अधीन सशक्त है वह यह जानता है कि ऐसे अपराध का अन्वेषण या जांच करने के प्रयोजनों के लिए किन्ही बैंककार बहियों का निरीक्षण किया जाना समीचीन है तो तत्समय प्रवृत्त किसी विधि में किसी बात के होते हुए भी वह किन्ही बैंककार बहियों का वहां तक निरीक्षक कर सकेगा जहा तक कि वे उस व्यक्ति कॅ, जिसके द्वारा अपराध किए जाने का सन्देह या किसी अन्य व्यक्ति के जिसके द्वारा ऐसे व्यक्ति के लिए धन धारण किए जाने का संदेह है, लेखाओं से संबंधित है, और उसमें से सुसंगत प्रविष्टियों की प्रमाणित प्रतियां ले सकेगा या लेने का निदेश दे सकेगा तथा संबंधित बैंक उस पुलिस अधिकारी की, इस धारा के अधीन उसकी शक्तियों के प्रयोग में सहायता करने के लिए आबध्द होगाः + +3074. 2) जहाँ किसी कारण से इस बाबत शंका उत्पन्न हो जाए, कि उपधारा 1 के अधीन अपेक्षित पूर्व मंजूरी केन्द्रीय या राज्य सरकार या किसी अन्य प्राधिकारी में से कुसके द्वारा दी जानी चाहिए वहां ऐसी मंजूरी उस सरकार या प्राधिकारी द्वारा दी जाएगी जो लोक सेवक को उसके पद से उस समय हटाने के लिए सक्षम था जिस समय अपराध किया जाना अभिकथित। + +3075. ख. “अभियोजन के लिए अपेक्षित मंजूरी” में किस विहीत प्राधिकारी के आवेदन पर किया जाने वाला अभियोजन कि आवश्यकता का सन्दर्भ अथवा किसी विहीत व्यक्ति द्वारा दी गई मंजूरी या इसी प्रकृति की अन्य अपेक्षा सम्मिलित है। + +3076. धारा 20 – जहाँ लोक सेवक वैध पारिश्रमिक के भिन्न पारिश्रमिक ग्रहण करता है वहाँ उपधारणा. + +3077. लागू होना- सुबह सबेरे परिवादी के घर पर दो आरक्षकों की उपस्थिति में रिश्वत दिया जाना अभिकथित किया गया- प्रथम सूचना रिपोर्ट दाखिल करने में चार घंटे का विलम्ब यद्यपि पुलिस थाना बहुत दूर नही था- अभियुक्त फौरन ही गिरफ्तार नही किया गया- उन दो आरक्षकों में से एक की जांच नहीं की गई – रूपयों के पार्सल को सीलबन्द करने के ढंग एवं रीति में विसंगति – अपीलार्थी संदेह का लाभ पाने का हकदार है और इसलिए दोषमुक्त – रिश्वत की माँग सिध्द नही- अभिनिर्धारित , धारा 20 लागू नहिं होगी- वर्तमान प्रकरण वह प्रकरण नहीं है जहाँ सिध्द करने का भार धारा 20 के अनुसार अभियुक्त पर होता है ओम प्रकाश बनाम हरियाणा राज्य ए. आई. आर. 2006 एस. सी. 894= (2006) 2 एस. सी. सी. 250 – 2006 (II) एम. पी. डब्ल्यु. एन. 1 (एस. सी)। + +3078. ख. साक्ष्य देने में उसकी असफलता पर अभियोजन पक्ष कोई टीका टिप्पणी नही करेगा अथवा उससे उसके या उसी विचारण में उसके साथ आरोपित किसी व्यक्ति के विरुद्ध कोई उपधारणा उत्पनन नहीं होगी। + +3079. ख. धारा 309 की उपधारा 2 के तीसरे परन्तुक के पश्चात निम्नलिखित परन्तुक अन्तःस्थापित कर दिया गया हो- यथा- + +3080. धारा 23 – धारा 13 (1) के अधीन किसी अपराध के संबंध में आरोप की विशिष्टियां. + +3081. धारा 25. थलसेना, जलसेना और वायुसेना अथवा अन्य विधि का प्रभावित न होना. + +3082. इस अधिनियम के प्रावधानों के अधीन रहते हुए, द॔ड प्रकिया संहिता 1973 (1974 का 2)द्वारा प्रदत्त अपील एवं पुनरीक्षण के अधिकार, उच्च न्यायालय द्वारा जहाँ तक संभव हो प्रयुक्त किए जाएंगे, और विशेष न्यायाधीश का न्यायालय, उस उच्च न्यायालय की स्थानीय अधिकारिता का सत्र न्यायाधीश समझा जाएगा। + +3083. क. धारा के दंड विधि संशोधन अध्यादेश में- + +3084. हिन्दी भाषा को विलुप्त करने और इसके विकास को रोकने का सबसे अधिक प्रयास अंग्रेज़ो ने ही किया है। वर्तमान में अंग्रेजी भाषा का बहुत लोगों को ज्ञान है, लेकिन बहुत से लोग इसे समझ नहीं पाते हैं, जबकि हिन्दी को जो भी सीखता है, वह आसानी से इसे समझने और बोलने लगता है। इसके अलावा यह जान कर भी सभी को आश्चर्य होगा कि अंग्रेजी भाषा से अधिक लोग हिन्दी भाषा को जानते हैं। + +3085. अपने भाषाओं को तोड़ने के नीति को मजबूत बनाने के लिए इस नीति का भी अंग्रेजों ने सहारा लिया था। इस कारण ही हिन्दी भाषा का कई लोग विरोध करने लगे और अंग्रेजी भाषा को भारत की आधिकारिक भाषा बनाना पड़ा। + +3086. भाषा को कठिन बताने की नीति. + +3087. यह नीति अभी भी सक्रिय है और कई तरह से देवनागरी लिपि को हटाने का प्रयास भी इन लोगों द्वारा जारी है। अतः यदि हमें हिन्दी भाषा को विलुप्त होने से बचाना है तो इन सभी नीतियों को सफल होने से रोकना होगा और देवनागरी लिपि और हिन्दी भाषा जो दिल से निकलती है, उसके लिए प्रचार प्रसार का कार्य करना होगा। + +3088. हिन्दी/विकास में बाधा: + +3089. + +3090. + +3091. मनुष्यों में भाषा का गुण बहुत अधिक विकसित हो चुका है। इससे वह एक दूसरे से बात करने और आसानी से अपने मन की बात एक दूसरे तक भेजने में सक्षम है। इसके साथ ही यह कई अलग अलग भाषाओं में बोल भी सकता है और समझ भी सकता है। किसी भी मनुष्य को उसके सही विकास के लिए सर्वप्रथम उसके मातृ भाषा का ज्ञान उसे मिलना आवश्यक होता है। यदि जन्म के कुछ वर्षों तक उसे पढ़ाई में शुरू से ही उसके मातृ भाषा की शिक्षा नहीं मिलती है तो उसका सही विकास नहीं हो पाता है। ठीक उसी प्रकार यह पशुओं में भी होता है। + +3092. सन्दर्भ जोड़ना. + +3093. यदि आप किसी समाचार वेबसाइट के पते का उपयोग कर रहे हैं तो यह सन्दर्भ इसके लिए ही है। इस तरह के सन्दर्भ का पता करने का बहुत आसान तरीका है। किसी खोज प्रणाली (सर्च इंजन) में आप समाचार खोज सकते हैं। इसमें आपको केवल समाचार वाले ही सन्दर्भ मिलेंगे। लेकिन इस सन्दर्भ में केवल समाचार वाले वेबसाइट का ही उपयोग करें। + +3094. विकिपीडिया/श्रेणी: + +3095. विकिपीडिया में लेख बनाना बहुत आसान है। लेकिन आप यदि सही शीर्षक और आवश्यक जानकारी के बिना कोई लेख बनाते हो तो हो सकता है कि लेख को हटा दिया जाये। लेकिन यदि आप इसमें आप आवश्यक जानकारी जैसे उस लेख का विवरण कि वह किसके बारे में और कुछ आवश्यक सन्दर्भ डाल देते हो तो उसे कोई नहीं हटाएगा। + +3096. आप विकिपीडिया में किसी भी लेख को हटाने हेतु नामांकन कर सकते हैं। यदि उस लेख को रखा नहीं जा सकता है तो उसे हटा दिया जाता है। + +3097. + +3098. + +3099. + +3100. विकिपीडिया/लेख: + +3101. विकिमीडिया एक संस्थान है, जो मीडियाविकि नामक एक सॉफ्टवेयर का निर्माता है। इसी सॉफ्टवेयर के द्वारा ही विकिपीडिया आदि को बनाया गया है। + +3102. सामान्य रसायन: + +3103. सत्या + +3104. हिंदी में विज्ञान साहित्य का विहंगावलोकन: + +3105. 1883 में इलाहाबाद जिले के निवासी काशी नाथ खत्री द्वारा अनुवादित कृषि की पहली पुस्तक ‘खेती की विद्या के मुख्य सिद्धांत’ शाहजहाँपुर के आर्य दर्पण प्रेस में छपी। 1885 में काशी के पंडित सुधाकर द्विवेदी ने गणित की उच्चकोटि की किताबें ‘चलन कलन’ और ‘चल राशि कलन’ प्रकाशित कीं। पंडित सुधाकर द्विवेदी ने वराहमिहिर कृत ‘पंच सिद्धांतिका’ की टीका 1889 में प्रकाशित की और 1902 में ‘गणतरंगिणी’ लिखी। प्रायः इसी समय उदय नारायण सिंह ने ‘सूर्य सिद्धांत’ की टीका प्रस्तुत की ( 1903 ) और बलदेव प्रसाद मिश्र ने 1906 में इसी ग्रंथ की टीका लिखी। उदयनारायण सिंह वर्मा ने प्रख्यात गणितज्ञ आर्यभट ( 5 वीं शती) के ‘आर्यभटीयम्’ नामक ग्रंथ का हिंदी अनुवाद 1906 में प्रकशित किया। पंडित सुधाकर द्विवेदी ने ‘गणित का इतिहास’ ( 1910 ) लिखकर इसका पूर्ण परिपाक कर दिया। डा विभूति भूषण दत्त और अवधेश नारायण सिंह प्रणीत ‘हिस्टीं ऑफ हिंदू मैथेमेटिक्स’ का हिंदी अनुवाद ‘हिंदू गणित शास्त्र का इतिहास’ (भाग 1 , अनु. डॉ. कृपा शंकर शुक्ल, हिंदी समिति, लखनऊ, 1954 ) भी इस विधा का गंभीर और प्रामाणिक अध्ययन है। इसी परंपरा में डॉ. ब्रज मोहन कृत ‘गणित का इतिहास’ (हिंदी समिति, लखनऊ, 1965 ) , डॉ. गोरख प्रसाद कृत ‘भारतीय ज्योतिष का इतिहास’, ‘नीहारिकाएं’, ‘सौर परिवार’ और ‘चंद्र सारिणी’ आदि ज्योतिष और खगोल के अप्रतिम ग्रंथ हैं। डॉ. गोरख प्रसाद ने मेधावी खगोलज्ञ फ्रेड हॉयल की ‘फ्रंटियर्स ऑफ एस्ट्रोनॉमी’ का ‘ज्योतिष की पहुंच’ शीर्षक से उत्कृष्ट हिंदी अनुवाद भी किया। इसी तरह पैटिंक मूर कृत ‘दि प्लेनेट्स’ का ‘ग्रह और उपग्रह’ शीर्षक से (अनु. पवन कुमार जैन, सी.एस.टी.टी., 1968 ) और वी. फेडिंस्की कृत ‘मीटिऑर्स’ का हिंदी अनुवाद ‘उल्काएं (अनु. पवन कुमार जैन, सी.एस.टी.टी., 1964 ) शीर्षक से प्रायः उसी काल में पाठकों की जिज्ञासाओं के शमन के लिए सामने आयीं। इसके पहले ही ‘सूर्य सिद्धांत’ का विज्ञान भाष्य (दो खंडों में, भाष्यकार महावीर प्रसाद श्रीवास्तव) विज्ञान परिषद, प्रयाग ने दिसंबर 1940 में ही प्रकाशित करके ज्योतिष (सिद्धांत) में अभिरुचि रखने वाले पाठकों की उत्कंठाओं का शमन कर दिया था। आगे चलकर पांचवीं सदी के प्रख्यात खगोलज्ञ आर्यभट के अपूर्व ग्रंथ ‘आर्यभटीयम्’ (रचना काल ई. सन् 499 ) का हिंदी अनुवाद ‘इन्सा’ ने भी आर्यभट की पंद्रहवीं जन्मशती के अवसर पर 1976 में प्रस्तुत किया। अनुवाद राम निवास राय ने किया था। + +3106. इन उदाहरणों से आप समझ सकते हैं कि प्रारंभिक शब्दावली में लोकप्रियता के कितने आसार थे। ऐसी जटिल शब्दावली न तो चल सकती थी और न चली ही। + +3107. चिकित्सा विज्ञान में हिंदी की पढ़ाई कराने का प्रयास: + +3108. परन्तु स्वतंत्रता के 68 वर्षो के बाद और संविधान में हिन्दी राजभाषा घोषित होने के बावजूद भी हम चिकित्सा विषयों की शिक्षा हिन्दी में प्रारंभ नहीं कर सके। भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद-एम.सी.आई. ( 1934 ), भारतीय उपचर्या परिषद-आई. एन.सी. ( 1947 ) तथा भारतीय भेषज परिषद-पी.सी.आई. ( 1948 ) जिन पर एलौपेथी चिकित्सा शिक्षा का दायित्व है तथा जो द्वि-भाषी कार्य के लिए अधिकृत है, अभी तक हिन्दी भाषा में चिकित्सा शिक्षा का कार्य प्रारंभ नहीं कर पाये। + +3109. चिकित्सा क्षेत्र में प्रमुख नियामक संस्थायें भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद, भारतीय नर्सिंग परिषद तथा भारतीय भेषज परिषद प्रमुख हैं। इन परिषदों को विश्वविद्यालय के उद्देश्यों को बताते हुए हिन्दी माध्यम से चिकित्सा एवं नर्सिंग के पाठ्यक्रम हिन्दी माध्यम से प्रारंभ करने के संबंध में स्वीकृति देने के लिए आग्रह किया गया था, परन्तु पत्रों के जबाव में भारतीय नर्सिंग परिषद ने 27 अक्टूबर 2013 को सूचित किया कि ‘‘भारतीय उपचर्या परिषद का विश्वविद्यालय स्तर का कोई भी पाठ्यक्रम हिंदी माध्यम के अन्तर्गत नहीं आता है’’। इसी तरह भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद ने विश्वविद्यालय के पत्र के जबाव में दिनांक 17.04.2013 को लिखा, + +3110. माध्यम से चिकित्सा शिक्षा प्रारंभ करने की प्रमुख चुनौती है। हिंदी भाषा में साहित्य की अनुपलब्धता तथा पाठ्यक्रमों का अंग्रेजी भाषा में होना प्रमुख है। विश्वविद्यालय ने इस कठिनाई को दूर करने के लिए पाठ्यक्रमों का निर्माण प्रारंभ करवाया। विश्वविद्यालय ने सर्वप्रथम स्नातक चिकित्सा (एम.बी.बी. एस.) को प्राथमिकता दी और हिंदी माध्यम से निम्न पाठ्यक्रमों को पूर्ण करवा लिया है। प्रथम एम.बी.बी. एस. के प्रथम सेमेस्टर से लेकर अन्तिम सेमेस्टर तक लगभग 18 प्रश्न-पत्र छात्रों को पढ़ने पड़ते हैं। + +3111. विश्वविद्यालय की हिन्दी माध्यम से चिकित्सा शिक्षा प्रारंभ करने की प्रमुख चुनौती है। हिन्दी भाषा में साहित्य की अनुपलब्धता तथा पाठ्यक्रमों का अंग्रेजी भाषा में होना प्रमुख है। विश्वविद्यालय ने इस कठिनाई को दूर करने के लिए पाठ्यक्रमों का निर्माण प्रारंभ करवाया। विश्वविद्यालय ने सर्वप्रथम स्नातक चिकित्सा (एम.बी.बी.एस.) को प्राथमिकता दी और हिन्दी माध्यम से निम्न पाठ्यक्रमों को पूर्ण करवा लिया है। प्रथम एम . बी . बी . एस . के प्रथम सेमेस्टर से लेकर अन्तिम सेमेस्टर तक लगभग 18 प्रश्न-पत्र छात्रों को पढ़ने पड़ते हैं। अतः विश्वविद्यालय ने शरीर रचना विज्ञान, जीवरसायनशास्त्र, शरीरक्रियाविज्ञान, न्याय संबंधी चिकित्साशास्त्र तथा जीवविष विज्ञान, सूक्ष्मजीवविज्ञान, विकृति विज्ञान, भेषजगुण विज्ञान, निश्चेतना विज्ञान, सामुदायिक चिकित्साशास्त्र, चर्मरोग तथा रतिजरोग विज्ञान, काय चिकित्सा, प्रसूति एवं स्त्रीरोग विज्ञान, नेत्र विज्ञान, अस्थि विज्ञान, नाक-कान-गला चिकित्सा विज्ञान, शिशुरोग विज्ञान, मनोरोग विज्ञान एवं शल्यचिकित्सा। इसके अतिरिक्त अस्पताल प्रबंधन, प्रयोगशाला तकनीक, चिकित्सा प्रयोगशाला तकनीशियन, डायलिसिस तकनीशियन, एक्सरे रेडियोग्राफर तकनीशियन तथा आपरेशन थियेटर तकनीशियन जैसे पत्रोपाधि पाठ्यक्रमों की रचना हो गयी है। + +3112. हिंदी माध्यम से प्रकाशित चिकित्सा से संबंधित पुस्तकों का संकलन. + +3113. विश्वविद्यालय ने अध्ययन एवं शोध के 10 विशेष केन्द्र खोलने का निर्णय लिया है जिसमें एक लोक स्वास्थ्य एवं वैकल्पिक चिकित्सा केन्द्र भी है। यह केन्द्र लोक स्वास्थ्य जागरूकता पाठ्यक्रमों का निर्माण करेगा जिसमें प्रत्येक विद्यार्थी को प्रमुख रोगों, औषधियों व रोकथाम की जानकारी दी जायेगी। यह केन्द्र लोक स्वास्थ्य परंपराओं के तार्किक आधार हेतु अध्ययन, अनुसंधान तथा समन्वय का कार्य करेगा। यह लोक उपचारकों को मुख्य धारा से जोड़नें हेतु उनको प्रशिक्षण भी देगा। + +3114. मैं विश्व हिन्दी सम्मेलन की तुलना भारतीय विज्ञान कांग्रेस से करना चाहूंगा। अन्तर इतना ही है कि विज्ञान कांग्रेस प्रतिवर्ष आयोजित होता है जबकि विश्व हिन्दी सम्मेलन काफी अन्तराल के बाद। दूसरा अन्तर यह है कि विज्ञान कांग्रेस भारत देश के ही विभिन्न स्थानों में आयोजित होता है जिसमें न केवल देशभर के अपितु विश्व के विभिन्न देशों के वैज्ञानिक भाग लेते हैं। विश्व हिन्दी सम्मेलन देश के बाहर विश्व के उन देशों में आयोजित होता आ रहा है जहाँ हिन्दी भाषियों की संख्या अधिक है। देश में आयोजित यह तीसरा विश्व हिन्दी सम्मेलन है। पहला सम्मेलन 1975 में नागपुर में आयोजित हुआ था। दूसरा सम्मेलन दिल्ली में और अब तीसरी बार भोपाल में दसवां विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजित हुआ है। विज्ञान कांग्रेस का उद्घाटन प्रधानमंत्री द्वारा होता रहा है और सौभाग्यवश इस विश्व हिन्दी सम्मेलन का उद्घाटन भी माननीय नरेन्द्र मोदी द्वारा हुआ है जो देश के प्रधानमंत्री हैं। + +3115. जब मिशनरियों ने हिन्दी क्षेत्रों में मिशन स्कूल खोले तो सर्वप्रथम उनका ध्यान पाठ्यपुस्तकें तैयार करने की ओर गया। उस समय आगरा, मिर्जापुर तथा मुंगेर मिशन के गढ़े थे। 1822 में टामसन नामक एक यूरोपियन ने ज्योतिष और गोलाध्याय नामक एक ज्योतिष विषयक महत्वपूर्ण पाठ्य पुस्तक लिखी। इसमें खगोल तथा भूगोल का वर्णन था। टामसन लल्लू लाल जी के समकालीन थे। तब लल्लू लाल जी फोर्ट विलियम कॉलेज के हिन्दी विद्वान के रूप में हिन्दी गद्य को परिष्कृत करने में लगे थे। + +3116. तभी भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने दावा किया कि 1873 में हिन्दी नई चाल में ढली। इसमें सन्देह नहीं कि यदि हिन्दी व्योम में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का उदय न हुआ होता तो शायद हिन्दी गद्य का परिष्कार न हुआ होता और जिसे हम खड़ी बोली कहते हैं वह खड़ी न हुई होती। + +3117. सम्प्रति सूचना प्रौद्योगिकी,जैव प्रौद्योगिकी,नैनो प्रौद्योगिकी,जीनोमिकी तथा अन्तरिक्ष विज्ञान जैसे नये नये क्षेत्र हैं जिनमें हिन्दी में प्रामाणिक वैज्ञानिक साहित्य की रचना की जानी है। इसके लिए निस्सन्देह उच्चकोटि की विशेषज्ञता चाहिए जो हमारे सामान्य लेखकों के पास नहीं है। इसके लिए मौलिक लेखन अनिवार्य है और यह कार्य चोटी के वैज्ञानिक ही कर सकते हैं। किन्तु बडे खेद के साथ यह कहना पड़ता है कि इन वैज्ञानिकों के कर्ण कुहरों में इस आवश्यकता की गुहार अभी भी प्रविष्ट नहीं हो पा रही है। उन्हें अंग्रेजी के मोह ने दिग्भ्रमित कर रखा है। शायद उन्हें राष्ट्रीयता या राष्टंभाषा की पुकार नहीं सुन पड़ती। वे दीर्घ निद्रा में हैं किन्तु यह निद्रा टूटेगी-अवश्य टूटेगी। + +3118. हमें कहना यह है कि आधिकारिक लेखन के अभाव में ही द्वितीय कोटि का लेखन,जिसे लोकप्रिय विज्ञान लेखन कहते हैं पल्लवित होता आया है। अनुवाद की कितनी ही बुराई क्यों न की जाय,विज्ञान लेखन में अनुवाद अनिवार्य है-उसे समाप्त नहीं किया जा सकता। वैसे लेखन कार्य एक तपस्या है। लेखकों को उसका अभ्यास करना होगा और राज्याश्रय प्राप्त करने या पुरस्कृत होने की लालसा का परित्याग करना होगा। + +3119. वैसे तो कम्प्यूटर युग का सूत्रपात 1984 में हुआ किन्तु हिन्दी में कम्प्यूटर की पहली पुस्तक 1970 में रमेश वर्मा ने लिख दी थी। जब स्कूलों,कॉलेजों तथा विश्वविद्यालयों में कम्प्यूटर शिक्षा प्रारम्भ हुई तो अनेक पाठ्यपुस्तकें भी लिखी गइंर्। जून 2001 से ‘कम्प्यूटर विविधा’ नामक पत्रिका भी प्रकाशित हो रही है। इससे सूचना प्रौद्योगिकी का पल्लवन हुआ है। भोपाल से ही प्रकाशित ‘इलेक्टांनिकी आपके लिए’ एक महत्वपूर्ण पत्रिका है। + +3120. हिन्दी में विज्ञान के प्रचार-प्रसार का एक पक्ष और है जिसका उल्लेख आवश्यक है। विज्ञान परिषद् प्रयाग ने सन् 1958 से एक त्रैमासिक विज्ञान विषयक शोध पत्रिका-‘विज्ञान परिषद् अनुसंधान पत्रिका’ का प्रकाशन शुरू किया जो विगत 57 वर्षो से निरन्तर प्रकाशित हो रही है। यह राष्टंभाषा हिन्दी में प्रकाशित होने वाली एकमात्र पत्रिका है जिसका देश विदेश में स्वागत हुआ है। इसमें प्रकाशित शोधपत्रों की संक्षिप्तियां गण्यमान्य एजेन्सियों द्वारा प्रकाशित की जाती हैं। देखादेखी सम्प्रति अन्य क्षेत्रों में भी शोध पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं। यह शुभ लक्षण है। भारतीय कृषि अनुसंधान पत्रिका (त्रैमासिक) 1973 से करनाल से प्रकाशित हो रही है। विज्ञान शोध भारती (अर्धवार्षिक) 1960 से ग्वालियर से प्रकाशित है। गणित सुधा (त्रैमासिक) 1994 से लखनऊ से प्रकाशित हो रही है। + +3121. मैं अत्यन्त आशावादी हूँ। मुझे विश्वास है कि मेरे जीवन काल में ही विज्ञान की हिन्दी राष्ट्रभाषा हिन्दी बन सकेगी। निश्चय ही हिन्दी विश्वभाषा बनकर रहेगी। + +3122. हिन्दी विज्ञान साहित्य का सर्वेक्षण : डॉ. शिवगोपाल मिश्र, हिन्दुस्तानी एकेडमी 2004 + +3123. विज्ञान क्षेत्र में हिंदी: + +3124. सत्र के दौरान वक्ताओं के व्याख्यानों और प्रतिभागियों के विचार-विमर्श के बाद माननीय डॉ. हर्षवर्धन द्वारा प्रतिभागियों के साथ तकनीकी सत्रों पर विस्तार पूर्वक चर्चा के उपरांत निम्नांकित अनुसंशाओं का अनुमोदन किया गया : + +3125. + +3126. मनुष्य जंगलों को काट कर उसके द्वारा कई तरह का लाभ उठाता है। इसके द्वारा मिले लकड़ी को इसके सामान बनाने, जला कर खाना बनाने, मकान बनाने आदि के काम में उपयोग करता है। जंगल के साफ हो जाने के बाद वह उस जगह पर कब्जा कर के उसे खेती के लिए उपयोग करने लगता है या उसमें मकान बना लेता है। वायु को शुद्ध रखने के लिए पेड़ पौधे अति आवश्यक है। इसके अलावा भी पेड़ पौधे बहुत काम आते हैं और जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए इन्हें बचाना अनिवार्य है। + +3127. इनमें वे कारण है, जो प्राकृतिक रूप से अपने आप ही हो जाते हैं। जैसे भूकंप, ज्वालामुखी का फटना, आदि। ज्वालामुखी फटने से उसमें से जो लावा निकलता है, उसके किसी जल स्रोत में जाने या कहीं भी जाने से वहाँ प्रदूषण फैल जाता है और जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण भी प्रदूषण ही है। + +3128. सभी पेड़ पौधे हर प्रकार के जलवायु में नहीं रह सकते हैं। सभी के लिए अलग अलग प्रकार के जलवायु की आवश्यकता होती है। इस कारण जलवायु के अधिक परिवर्तन के कारण पेड़ पौधे सुख कर मर जाते हैं। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन के कारण जो तेज तूफान आता है या सूखा पड़ता है या बाढ़ आ जाता है। उसमें भी पेड़ पौधे टूट जाते है या उड़ कर कहीं दूर भी गिर जाते हैं। + +3129. + +3130. कला कई प्रकार के होते हैं। अभिनय करना, नाचना, गाना, भोजन बनाना, आदि सभी कला है। प्राचीन काल से चित्र बनाने को बहुत बड़ी कला माना जाता था। क्योंकि बहुत अच्छा चित्र बनाना काफी कठिन काम है। तब कैमरा आदि नहीं होता था और चित्रकार ही अपने हाथों से लोगों के चित्र बनाता था। + +3131. कला का इतिहास/विवादित: + +3132. + +3133. यूनिकोड/परिचय: + +3134. उपयोग के तरीके. + +3135. मोबाइल में. + +3136. सामान्य भूगोल या आसान भूगोल में भूगोल विषय के सामान्य विशेषता और गुणों के बारे में दिया हुआ है। जहाँ ब्रह्मांड के उत्पति से लेकर आज तक के विभिन्न घटनाओं की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। + +3137. + +3138. यदि आपको गणित के इतिहास के बारे में जानना है, तो उससे पहले आपको इसके अंकों के बारे में जानना होगा। + +3139. गणित के विकास को समझने के लिए गणित का इतिहास जानना आवश्यक है। + +3140. क्रिकेट: + +3141. + +3142. इसके लिए कई चीजों की आवश्यकता पड़ती है। + +3143. + +3144. इसमें कई देश एक दूसरे के साथ मैच खेलते हैं। इनमें केवल एक ही टीम विजेता बनती है। यह चार वर्षों में एक बार ही होता है। जिससे लोगों में इसे देखने के लिए दिलचस्पी भी जागे। इससे इन्हें बहुत लाभ होता है, क्योंकि हर दर्शक यही चाहता है कि उसका टीम ही जीते और जीतने हुए देखना भी काफी अच्छा लगता है। + +3145. इसके अलग अलग कई तरह के नियम होते हैं। कई बार अलग अलग प्रारूप में अलग अलग नियम भी हो सकते हैं। इसके कुछ नियम नीचे दिये गए हैं। + +3146. यह पुस्तक भारतीय खेल कबड्डी से संबंधित है। + +3147. छूना. + +3148. यदि कोई दूसरे दल का खिलाड़ी आपके जगह में आता है तो उसे तब तक पकड़ना होता है, जब तक की वह कबड्डी कबड्डी बोलना न छोड़ दे। यदि वह बोलना छोड़ देता है तो वह खेल से हट जाता है। लेकिन यदि वह बोलते हुए रेखा हो छु लेता है तो उसने जितने लोगों को छुआ है वह सभी खेल से बाहर हो जाते हैं। इस कारण यदि कोई दूसरे दल का खिलाड़ी आपके जगह में आता है तो उससे दूरी बना कर रखनी चाहिए और किसी भी प्रकार से उसे दूर रखना चाहिए और अच्छी तरह पकड़ने हेतु योजना भी बनाना चाहिए। + +3149. 3. पारा, पारदित समिश्रित में अनिवार्य रूप से सम्मलित होता है। + +3150. 8. चीटियां काटती है तो वे फोर्मिक अम्ल अन्तःक्षेपित करती है। + +3151. 13. सोडियम क्लोराइड लवणो का सागरीय जल की लवणता में अधिकतम योगदान होता है। + +3152. 18. भारी जल एक प्रकार का मन्दक है। + +3153. 23. पनीर एक जेल (Gel) का उदाहरण है। + +3154. 28. जर्मन सिल्वर में निकिल , क्रोमियम और तॉबे का मिश्रण होता है। + +3155. 33. प्राकृतिक रबड़ आइसोप्रीन का बहुलक है। प्राकृतिक रबड़ लैटेक्स ( दूध ) के रूप में पेड़ों से निकाली जाती है। + +3156. 38. टैफलॉन तथा डेक्रॅान, प्लास्टिक के वहुलक है + +3157. 43. कैल्शियम सल्फेट उर्वरक नहीं है। + +3158. 48. स्ट्रीट लाइट के बल्ब में सोडियम का प्रयोग होता है। + +3159. 53. फ्यूज में प्रयोग होने वाला तार उच्च प्रतिरोध शक्ति तथा निम्न गलनांक का होता है। + +3160. 58. आयनिक यौगिक एल्कोहल में अविलेय होते है। + +3161. 63. नाइक्रोम एक ऐसा पदार्थ है जो बहुत कठोर तथा बहुत तन्य है। + +3162. 68. कैंसर के उपचार में कोबाल्ट-60 का प्रयोग किया जाता है। + +3163. 73. फ्लोरोसेन्ट ट्यूब (प्रतिदिप्ति बल्ब या ट्यूब लाइट ) में नियॉन गैस भरी जाती है। + +3164. 78. बोरोन कार्बाइड व्यापक रूप से हीरे के पश्चात् सबसे कठोर पदार्थ के रूप में प्रयुक्त होता है। + +3165. 83. एप्सम लवण का प्रयोग सारक (शोधक) के रूप में होता है। + +3166. 88. चूना पत्थर का रासायनिक नाम कैल्सियम कार्बोनेट है। + +3167. 93. पेनिसिलीन की खोज अलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने की थी। + +3168. 98. टाइटेनियम डाईऑक्साइड का प्रयोग सफेद पेंट बनाने के लिए किया जाता है। + +3169. 103. तड़ितचालक लोहे से निर्मित होते हैं। + +3170. 109. प्रथम विश्व युद्व में मस्टर्ड गैस का प्रयोग एक रासायनिक आयुध के रूप में किया गया था। + +3171. 114. सभी गैसें निम्न दाब और उच्च ताप पर आदर्श गैस के रूप में व्यवहार करती है। + +3172. 119. शीतल पेयों , जैसे कोला में , पर्याप्त मात्रा कैफीन की होती है। + +3173. 124. बुलेट प्रूफ पदार्थ बनाने के लिए पॉलिकार्बोनेटस के बहुलक प्रयुक्त होते है। + +3174. 129. कैल्सियम सल्फेट की उपस्थिति जल को कठोर बना देती है और यह पीने योग्य नही होता है। + +3175. 134. पोर्टलैण्ड सीमेंट का अविष्कार जोसफ अस्पडीन ने किया था। + +3176. 139. नियोप्रीन जोकि एक संश्लिष्ट रबड़ है, टू-क्लोरोब्यूटाडीन से बनती है। + +3177. 144. हाइड्रोजन ब्रम्हाण्ड में प्रचुरता से पाया जाने वाला तत्व है , ऑक्सीजन पृथ्वी में प्रचुरता से पाया जाने वाला तत्व है, नाइट्रोजन वायुमण्डल में प्रचुरता से पाया जाने वाला तत्व है। + +3178. 149. ठोस ईंधन का गैसीय ऊर्जा संवाहक में स्थानान्तरण को गैसीकरण कहते हैं। + +3179. 154. कपड़े धोने की प्रक्रिया में साबुन जल की धुलाई क्षमता में वृद्वि करता है (जल का पृष्ट तनाव कम करके)। + +3180. 159. यूरेनियम-235 विखण्डनीय पदार्थ के रूप में प्रयुक्त होता है। + +3181. 164. साधारण नमक एक ऐसा पदार्थ है जो पिघली हुई अवस्था में विद्युत धारा का चालन कर सकता है। अर्थात पिघला हुआ नमक विद्युत का सुचालक होता है। + +3182. 169. प्रयोगशाला में प्रथम संश्लेषित कार्बनिक यौगिक यूरिया है। + +3183. 174. क्रैकिंग, पैट्राेलियम से सम्बन्धित हैं, प्रगलन कॉपर से सम्बन्धित है। हाइड्रोजनीकरण खाद्य वसा से सम्बन्धित है। + +3184. 179. उर्वरकों में क्लोरीन उपस्थित नही होता है। + +3185. 184. सोलर कुकर को गर्म करने वाली सूर्य की किरण को इन्फ्रारेड किरण कहते हैं। + +3186. 189. किसी आदर्श गैस की आन्तरिक ऊर्जा उसके आयतन पर निर्भर करती है। + +3187. 194. आरयन का सबसे शुद्व रूप पिटवाँ आयरन होता है। + +3188. 199. तत्वों के किसी वर्ग में जैसे-जैसे परमाणु भार बढता है इलैक्ट्रान बन्धुता कम होती है। + +3189. 204. अनिश्चितता के सिद्वान्त का प्रतिपादन हाइजेनबर्ग ने किया था। + +3190. 209. 180 ग्राम जल में जल के 10 मोल होते है। + +3191. 214. थैलियम को Tl थोरियम को Th थूलियम को Tm एवं टर्बियम को Tb कहते हैं। + +3192. 219. मक्खन वह कोलाइड है जिसमें जल वसा में प्ररिक्षिप्त होता है। + +3193. 224. द्रव के वाष्पन के प्रक्रण के साथ एन्ट्रॉपी में वृद्वि होती है। विलयन से सुक्रोज का क्रिस्टलन करने पर एन्ट्रॉपी घटती है। + +3194. 229. पिक्रिक अम्ल का रासायनिक नाम 2, 3, 6 ट्राइनाइट्रोफिनोल है। + +3195. 234. सीमेन्ट के उत्पादन में काम आने वाले कच्चे पदार्थ बिना बुझा चूना एवं जिप्सम हैं। सीमेन्ट का जमना (क्योरिंग) एक ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया (एक्सोथर्मिक रिएक्शन) है। + +3196. 239. पौधो में पुष्पन के लिए उपयोगी तत्व फास्फोरस है। + +3197. 244. फिनॉल से प्राप्त विस्फोटक के पिक्रिक अम्ल कहते हैं। + +3198. 249. अम्ल में प्रोटॉन प्रदान करने की प्रवृति होती है। + +3199. 254. उर्ध्वपातन विधि द्वारा अमोनियम क्लोराइड व सोडियम क्लोराइड के मिश्रण के पृथक किया जाता है। + +3200. 259. हीलियम एक ऐसी गैस है जो परमाणु अवस्था में पायी जाती है। + +3201. 264. शुष्क अग्निशामकों में रेत तथा बेकिंग सोडा भरा जाता है। + +3202. 269. जल एक यौगिक है चूंकि यह रासायनिक बन्धनों से जुड़े दो भिन्न तत्व रखता है। जल तत्व (एलिमेण्ट) नहीं है। + +3203. 274. काँच को लाल रंग गोल्डक्लोराइड प्रदान करता है। + +3204. 279. लैड नाइट्रेट को गर्म करने पर रासायनिक परिवर्तन होता है। + +3205. + +3206. + +3207. हीलियम या यानाति आवर्त सारणी का दूसरा तत्व है। यह प्रायः गैसीय अवस्था में रहता है। इसका परमाणु क्रमांक २ है। + +3208. लिथियम आवर्त सारणी का तीसरा तत्व है। साधारण परिस्थितियों में यह प्रकृति की सबसे हल्की धातु और सबसे कम घनत्व-वाला ठोस पदार्थ है। + +3209. गामा किरण: + +3210. वायु प्रदूषण का मुख्य कारण मनुष्य ही है। जो ढेर सारे उद्योगों का निर्माण कर, गाड़ी व अन्य प्रकार के वाहनों का उपयोग आदि कई तरह से प्रदूषण फैला रहा है। इस प्रदूषण को कम करने और वायु को शुद्ध रखने के कई उपाय भी है। लेकिन कई लोग इस उपाय का उपयोग ही नहीं करते हैं। + +3211. ब्रिटिश भारत में प्रशासनिक विकास: + +3212. मैकाले समिति ने अपनी रिपोर्ट 1854 में ही प्रस्तुत कर दी जिसमेँ निम्नलिखित सिफारिश की गई थीं- + +3213. वर्तमान भारत के शहरी स्थानीय शासन से जुड़ी संस्थाएँ ब्रिटिश शासनकाल के दौरान अस्तित्व मेँ आई और विकसित हुईं जो इस प्रकार हैं- + +3214. राजधर्म का विकास. + +3215. इस प्रकार प्राचीन भारतीय साहित्य के वैदिक काल से लेकर लौकिक संस्कृत के महाकाव्य काल तक प्राप्त सामग्री के समक्ष सर्वेक्षण के द्वारा हम सभी निर्णय पर पहुँचते हैं कि प्राचीन भारतीय राजशास्त्र के अध्याय में रुचि रखने वाले के लिये सामग्री का विशाल भण्डार सुरक्षित है। + +3216. शिशुपाल में क्षत्रिय शब्द कई स्थानों पर राजा के पर्याय के रूप में प्रयुक्त हुआ है कहा गया है कि क्षत्रिय की राजनीति प्रभुता के दो आधार है। एक तो उसका परम पुरुष विराट की भुजाओं से रक्षा के लिए ही उत्पन्न होना और दूसरा उसका धर्म की रक्षा के लिए राज्य की दण्ड शक्ति के द्वारा दुर्बलों की रक्षा करना/पितामह भीष्म ने शान्तिपर्व में राज्य संस्था की उत्पत्ति का वर्णन करते हुए कहा है कि उसे सम्पूर्ण प्रजाओं का रंजन करने वाला ‘राजा’ तथा ब्राह्मणों को क्षत्रि से बचाने वाला होने के कारण क्षत्रिय कहा गया है।3 क्षत्रिय शब्द की उत्पत्ति के विषय में इससे पहले शान्तिपर्व से ही अपेक्षाकृत और अधिक अच्छी परिभाषा देते हुए कहा गया है कि महाराज प्रभु ही सर्वप्रथमराजा इसीलिये कहलाये क्योंकि ये क्षत अर्थात् दुःख से सबका ऋण करने वाले थे।4 + +3217. नीतिज्ञों की राज्य के सुव्यवस्थित संचालन के लिए आवश्यक नीतियों को प्रतिपादित करते हुए कवि माघ ने कहा है कि सहायादि समस्त कार्यों में पाँच अंगों के अतिरिक्त राजा का उस प्रकार दूसरा कोई मन्त्र नहीं है, जिस प्रकार उस शरीर में पाँच स्कन्धों के अतिरिक्त बौद्धों के मत से दूसरा कोई आत्मा नहीं है। राजा के पाँच अंग हैं- + +3218. महाकवि माघ ने उदाहरण देते हुए कहा है कि धूलि को बिना कीचड़ बनाये पानी भूमि पर नहीं ठहरता है अपनी धूलि को कीचड़ में बदल कर ही पानी अपनी प्रभुता स्थापित कर लेता है। प्रत्येक मनुष्य को स्वयं स्थापित करने के लिए सदैव अग्रणी बने रहने के लिए अपने विपक्ष और प्रतिस्पर्धियों को पराजित करना ही आवश्यक है। कला, साहित्य, राजनीति का अन्य किसी भी क्षेत्र में मनुष्य की अवनति करके ही अपनी उन्नति प्राप्त कर सकता है। सामान्यतः प्रतिष्ठा सहजता से ही अर्जित नहीं हो पाती है। मनुष्य भले ही कितना ही सार्थक प्रयास कर ले, किन्तु शत्रु उसे हमेशा आगे आने से रोकता है उसकी प्रगति में विघ्न उपस्थित करता है अतः कवि माघ ने राजनीति लाभ के लिये शत्रु को समूल नष्ट करने की आवश्यकता पर बल दिया है। + +3219. किसी भी राज्य की सफलता का आधार मात्र उस राज्य का राजा ही नहीं होता है वरन् मंत्री, सेना और प्रजा आदि सभी राज्य के प्रमुख अंगराज्य को सफलता अथवा असफलता प्रदान करते हैं। राजा के बाद राज्य का दायित्व प्रमुख रूप से मंत्री पर निर्भर होता है मेरूतुंगाचार्य ने कहा है- + +3220. उत्साह ही श्री का कारण है और उत्साह ही परम् सुख है। उत्साह हीन मनुष्य किसी भी क्षेत्र में अग्रसर नहीं हो पाता है, इसीलिये महाकवि माघ ने की कहा है- + +3221. प्रायः कहा जाता है कि वही राजा श्रेष्ठ राजा है जो वीर हो, तेजस्वी हो। किन्तु वीर होते हुए भी जो क्षमाशील हो वही वस्तुतः श्रेष्ठ राजा है इस विजय में महाकवि माघ का मन्तव्य है कि समयज्ञ राजा के लिये केवल तेज या क्षमा धारण करने का नियम नहीं है वरन् समयानुकूल दोनों का ही आश्रय राजा के लिये आवश्यक है। केवल तेज अर्थात् बल और दण्ड प्रयोग से ही राज्य में सुख-शान्ति स्थापित नहीं की जा सकती है, इसीलिये विश्व में सर्वत्र जहाँ भी तानाशाही शासन व्यवस्था है, अनुशासित होते हुए भी प्रजा सुखी नहीं रह पाती है और न ही उस राष्ट्र को विश्व राजनीति में प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। दूरी और क्षमाकरण करने वाले राजा का राज्य कभी शत्रुओं से सुरक्षित रह पाता है, क्योंकि शत्रु राजा क्षमाशील राजा के राज्य को अधिक सुलभता से अधिग्रहीत कर सकता है। कहा गया है- + +3222. यशस्वी, श्रेष्ठ राजा का अन्य राजा गण भी अनुकरण करते हैं। विजयेन्द्र राजा के प्रज्ञा तथा उत्साह से परिपूर्ण होने पर अन्य राजा लोग उस प्रकार परिपारता को पाते हैं और राजाओं की कार्य सिद्धि में सहायक होते हैं, जिस प्रकार अधिक उच्चस्वर तथा मुख्य स्वर होने से दूसरे स्वर अर्थात् वीणा, गानादि के स्थर बांस (बंशीनाम बाध) के परिवारत्व को प्राप्त होते हैं। जैसे मुख्य स्वर के साथ दूसरे गौड़ स्वर भी मिल कर एक स्वर हो जाते हैं, जैसे छोटी-छोटी नदियाँ बड़ी नदी में मिलकर एकाकार हो जाती है। उसी प्रकार प्रज्ञा और उत्साह युक्त विजयार्थी में सहायक बन जाते हैं। वैशिष्ट्य के अभाव में कोई किसी का अनुकरणीय नहीं बन सकता है अतः अन्य को सहायक बनाने के लिये भी राजा में प्रज्ञा और उत्साहवादी विशेष गुण आवश्यक कहे गये हैं। + +3223. राज्य के प्रमुख अंग. + +3224. गुप्तचरों के द्वारा सही जानकारी न मिलने या मिलकर भी राजा द्वारा यथोचित उपाय न किये जाने के परिणाम स्वरूप ही भारत ने अनेक राजनेता खो दिये है। साथ ही गुप्तचरों की कार्य के प्रति उपेक्षा के कारण ही अनेक बार देश को सामरिक, राजनीतिक तथा आर्थिक क्षति भी उठानी पड़ती है। + +3225. सुप्रसिद्ध कहावत है- ‘‘यथा राजा तथा प्रजा’’ वस्तुतः प्रत्येक राष्ट्र की प्रजा अपने राजा की ही क्रियाओं का अनुकरण करती है, क्योंकि राजा सभी दृष्टियों में प्रजा के प्रमुख और अपने सेवकों के स्वामी होते हैं। सेवक तो सदैव अपने स्वामी के चरित्र का ही अनुसरण करते है उन्हीं की चित्तवृत्ति के अनुसार काम करते हैं। + +3226. सामन्त लोक में लोगों का जीवन मनीषियों के दर्शन मात्र से धन्य माना जाता है और ऐसे महात्मा की चरण रज यदि किसी संसारी के घर पहुँच जाती है तो वह घर परम पावन माना जाने लगता है। यद्यपि दर्शनार्थी महात्माओं के दर्शन पाने के लिये स्वयं उनके समीप आ जाते हैं, स्वार्थ न होने के कारण महात्माओं को कभी किसी के निवास पर जाना नहीं पड़ता है। परन्तु भोजनादि के लिये जब भी मनीषिगण कहीं जाते हैं तो वह घर किसी पुण्यात्मा गृहस्वामी का ही होता है क्योंकि अपुण्ययात्माओं अर्थात् द दुराचारी एवं कुमार्ग गांमियों के घर वे प्रेम अथवा स्वेच्छा से कदापि नहीं जाते हैं। ‘अतिथिदेवा भव’ की संस्कृति वाले भारत देशमें सामान्य अतिथि का भी आदर और सम्मान किया जाता है तब फिर महात्मा जैसे विशिष्ट अतिथियों के आदर की तो बात ही कुछ और है। परन्तु स्वभावतः श्रेष्ठ आचरण और अपुण्यात्माओं के घर अपने चरण नहीं रखते हैं क्योंकि वे सदैव सन्संगति में रत रहते है, असज्जनों का समागम उन्हें प्रिय नहीं होता है। + +3227. जिस प्रकार भूख से व्याकुल होने पर भी सिंह दूसरों के पराक्रम से प्रस्तुत मांस नहीं खाते हैं, उसी प्रकार महान दुःख उपस्थित हो जाने पर भी स्वाभिमानी मनुष्य दूसरों के द्वारा लाया गया धन नहीं चाहते हैं। स्वाभिमान ही उनका परम धर्म होता है। मनस्वियों के लिये तो प्राणों की उपेक्षा करके भी स्वाभिमान ग्रह्य होता है- + +3228. विद्वान् मनुष्य को भी अपने कार्य में तब तक सन्देह बना रहता है जब कि अन्य विशिष्ट कार्य न लोग उसके कर्तव्य कार्य को सही प्रमाणित नहीं कर देते हैं। सामान्य व्यवहार में भी प्रत्येक व्यक्ति अपने कार्य के विषय में स्वयं से श्रेष्ठ किसी अन्य की प्रतिक्रिया की सदैव अपेक्षा रखता है। + +3229. कार्यज पुरुष सदैव अपने कार्यों में सफलता प्राप्त करते हैं क्योंकि कार्य को भली भांति जानने वाले और उसका उचित प्रकार से निष्पादन करने वाले व्यक्ति के किसी भी कार्य में कभी भी विघ्न नहीं आते हैं और यदि कभी विघ्न आते भी हैं तो चतुर लोग सावधानी पूर्वक उन विघ्नों का निवारण कर लेते है। ऐसे चतुर कार्याज लोगों के वचन विरोधी वागीशों को भी मूक बना देते हैं। तथा मूकजनों को वृहस्पति तुल्य वाग्मी बना देते हैं। + +3230. अर्थात् मनुष्य के मन में संतोष होना स्वर्ग की प्राप्ति से भी है संतोष ही सबसे बड़ा सुख है। संतोष यदि मन में भली भांति प्रतिष्ठित हो जाये तो उससे बढ़कर संसार में कुछ भी नहीं है। महाकवि माघ ने भी इसलिये कहा है कि जो थोड़ी भी सम्पत्ति से अपने को सुस्थिर मानता है कृतकृतय ब्रह्म (विधि) उसकी उस सम्पत्ति को बढ़ाते नहीं, इसीलिये संतोषी प्राणी सदैव सुखी रहता है। इसके विपरीत शब्द आदि विषयों में आसक्त रहने वाला व्यक्ति कभी संतोष नहीं करता है- + +3231. महात्माओं के चरित्र का वेचित्रय यही है कि वे लक्ष्मी को तिनके के समान लघु मानते हैं परन्तु उसके भार के भार से झुक जाते हैं। + +3232. प्रायः लोग झूठी प्रशंसाओं से सन्तुष्ट होते हैं और वे प्रशंसाएं प्राणियों द्वारा सुलभ भी हो जाती है। किन्तु लोक में महपुरुष सदैव किसी प्रशंसा की अपेक्षा से कोई महान कार्य नहीं करते। शिशुपालवधर्म में श्रीकृष्ण के प्रति कहागया कथन इसी आशय को प्रगट करता है स्तुति योग्य (श्रीकृष्ण)। आपके लिये कहे गये प्रशंसात्मक वचन झूठे नहीं है और आप उन वचनों से संतुष्ट भी नहीं होते हैं, अर्थात् आप उसे सुनने में सर्वथा उदासीन रहते हैं। निस्सन्देह महापुरुष प्रशंसा के अभिलषा नहीं होते हैं। किसी भी अपेक्षा से रहित वे सदैव अपने कार्यों में लीन रहते हैं। + +3233. बुद्धि, कुलीनता, इन्द्रियनिग्रह, शास्वज्ञान, पराक्रम, शक्ति में अनुसार दान और कृतज्ञता आदि गुण मनुष्य की ख्याति बढ़ा देते हैं। इन्हीं गुणों से यह सम्पन्न मनुष्य गुणी कहलाने का अधिकारी होता है। परन्तु यह भी सत्य है कि संसार में लोग अपने गुणहीन ही प्रियजन को गुणवान मानते हैं। सामान्त जो गुणी है ये प्रिय होना चाहिये किन्तु तीव्रता से बदल रहे युग के साथ यह धारणा भी बदलती जा रही है। इसीलिये जो प्रिय है वे गुणी माने जाने लगते हैं इसका मनोवैज्ञानिक कारण यह भी है कि दोषयुक्त होने पर भी अपने प्रिय व्यक्ति में कोई अवगुण दिखाई नहीं देते हैं, वे इसीलिये गुणीजन की श्रेणी में गिने जाते हैं। महाकवि माघ यही कहना चाहते हैं कि कितने आश्चर्य की बात है कि इस संसार में लोग गुणहीन प्रियजनों को ही गुणवान मानते हैं। + +3234. संसार में महान् पुरुष जितने उदार हृदय वाले होते हैं तुच्छ व्यक्तियों का हृदय उतनी ही संकुचित विचारधारा का होता है। यही कारण है कि तुच्छ हृदयी लोग अपने मनःरथ अप्रिय भावों और विचारों को प्रकट नहीं करते हैं उन्हें मन में ही दबाए रखते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि क्षुद्र मन वाले लोगों के पेट में कोई बात टिकती नहीं है और उदारमन वाले हृदयस्थ बुरी से बुरी बातों को भी बड़ी ही सहजता से पचा लेते हैं, औरों के सामने व्यक्त नहीं करते हैं। + +3235. महर्षि वेदव्यास ने कहा है- + +3236. महाकवि माघ ने पूर्व कथन में इस आशय का विपरीत अर्थ प्रतिपादित किया है। उन्होंने कहा है कि दुर्जनों के उद्धत वचनों से सज्जनों का गौरव वैसे ही कम नहीं होता है जैसे पृथ्वी की धूलियों से ढके हुए रत्न की बहुमूल्यता नष्ट नहीं होती है।79 + +3237. हिन्दी-संस्कृत अनुवाद: + +3238. वासवदत्ता कथा के कवि सुबन्धु ने अपने सम्बन्ध में सुजनैकबन्धुः 1 के अलावा कुछ नही कहा है। अतः उनके व्यक्तिगत जीवन और व्यक्तित्त्व के सम्बन्ध में भी देश और काल की तरह अनुमान ही आधार है। उनके ग्रन्थ से इतना अवश्य ही प्रकट होता है कि वे वैदिक धर्मावलम्बी थे। वासवदत्ता के प्रारम्भिक दो श्लोकों में उन्होंने विष्णु और विष्णु के अवतार भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति की है। 2 ग्रन्थ में अन्यत्र भी अन्य देवों की अपेक्षा भगवान् विष्णु या उनके अवतारों का स्मरण कुछ अधिक ही बार हुआ हैं। 3 इस आधार पर कहा जा सकता है कि वे वैष्णव थे। परम भागवत गरुड़ध्वज गुप्त सम्राटों के सम्पर्क में रहने वाले सुबन्धु का विष्णु पदावलम्बी होना स्वाभाविक भी लगता है। लेकिन अन्य वैदिक देवों के प्रति भी उनका सहिष्णु भाव था। यह भी गुप्तों के प्रभाव का द्योतक है। कवि ने भगवान शिव के प्रति भी भक्ति भाव प्रकट किया है। 4 नास्तिक बौद्धमतावलम्बियों के प्रति उनका अनादर भाव भी स्पष्ट है। 5 बहुत सम्भव है कि यह उस युग का प्रभाव हो जब उद्योतकर आदि वैदिक विद्वान् बौद्धमत का सतर्क प्रचण्ड खण्डन करते हुए वैदिक धर्म की पताका फहरा रहे थे। भारतीय ज्ञान-विज्ञान की प्रायः सभी शाखाओं से कवि ने अपना परिचय प्रकट किया है। 6 इससे उनके बहुमुखी पाण्डित्य का आभास प्राप्त होता है। वासवदत्ता के दशवें तथा तेरहवें श्लोक से यह भी ध्वनित होता है कि किसी व्यक्ति की प्रेरणा से ये उसके प्रसाद के लिए नहीं अपितु सरस्वती की कृपा से स्वान्तः सुखाय की गयी थी। + +3239. इस सम्बन्ध में यह भी कहा जा सकता है कि आचार्य दण्डी ने सुबन्धु को ही नाट्यप्रणेता माना है। ऐतिहासिक तथ्यों पर यदि हम दृष्टि डालतें तो ज्ञात होगा कि तक्षशिला में जो विद्रोह हुआ वह विन्दुसार के ही राज्यकाल में हुआ।12 + +3240. अर्थात् श्लेष की रचना उत्तरी भारत में, अर्थ पश्चिम में, उत्प्रेक्षा दक्षिण में तथा अक्षर पूर्वी क्षेत्रों में हुआ है। इस आधार पर सुबन्धु उत्तर भारत के हुए। + +3241. निष्कर्षतः उक्त प्रमाणों द्वारा यह सिद्ध होता है कि सुबन्धु का सम्बन्ध निश्चित रूप से बंगाली परिवार से था ओर इन्होंने शास्त्रों के अध्ययन किसी गुरु के माध्यम से प्राप्त किये होगें। रामायण, महाभारत तथा मीमांसा दर्शन से इनको विशेष लगाव था।19 + +3242. कुमार जीव ने बसुबन्धु का जीवन चरित भी लिखा था जिसका अनुवाद चीनी भाषा में 401-409ई0 में हुआ था।21 अतः यही प्रमाणित होता है कि आचार्य बसुबन्धु पांचवी शताब्दी ई0 के प्रथम दशक के पूर्व ही कम से कम 30-40 वर्ष पूर्व हो चुके थे। बसुबन्धु का चौथी शताब्दी में होना कई विद्वानों ने माना है। 22 वासुदेव उपाध्याय का यह मत अत्यन्त समीचीन लगता है कि बसुबन्धु गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त के समसामयिक तथा आश्रित थे तथा इनका काल 280 से 366ई0 तक माना जाना चाहिए। यदि बसुबन्धु (280-360ई0) के शिष्य दिंगनाग को अपने गुरु से 30 वर्ष भी छोटा माना जाय तो दिंगनाग का स्थिति काल 310ई0 से 375ई0 तक मानना उचित होगा। अब दिंगनाग तथा सुबन्धु का भी प्रत्याख्यान करने वाले उद्योतकर को यदि दिंगनाग से पच्चीस वर्ष भी छोटा माने और उन्हें भी दिंगनाग की तरह लगभग 65 वर्ष की आयु वाला ही माने तो उद्योतकर का स्थितिकाल 335 से 400 ई0 तक आसानी से माना जा सकता है। उद्योतकर का स्मरण करने वाला वासवदत्ता कथाकार सुबन्धु नैयायिक उद्योतकर से कुछ काल बाद उत्पन्न हुए थे। कम से कम इतना पश्चातकालिक अवश्य था कि उनके प्रौढ़ होने तक उद्योतकर न्यायशास्त्र की कुतार्किक बसुबन्धु आदि की आलोचनाओं को ध्वस्त कर, प्रतिष्ठा करने वाले आचार्य के रूप में लोक में विख्यात हो चुके थे। अब यदि सुबन्धु को उद्योतकर से आयु में 40 वर्ष भी छोटा माने और उनकी आयु 60-65 वर्ष भी रही हो तो उनका स्थितिकाल 375 से 435-40ई0 तक मानने में कोई असंगति नहीं हैं। + +3243. इतिहास से हमें अनेक वररूचियों का अस्तित्व ज्ञात होता है। एक वारूचि का उल्लेख भविष्य पुराण तथा कथासरित्सागर में महाराज नन्द के समय मिलता है। 30 किसी वररूचि काव्य का उल्लेख महाभाष्यकार पतञ्जलि ने भी किया है। 31 एक वररूचि को राजशेखर ने कण्ठाभरण का रचयिता बताया है। 32 एक वररूचि को विक्रमादित्य के नवरत्नों में भी बताया गया है। 33 एक वररूचि ‘पत्रकौमुदी’ तथा ‘विद्यासुन्दर’ नामक रचनाओं का कवि हो चुका है जो स्वयं अपने को उज्जयिनी के किसी विक्रमादित्य का सभ्य बताया है।34 + +3244. अब तक के विवेचन से यह कहा जा सकता है कि सुबन्धु पांचवी शताब्दी के पूर्वार्द्ध में विद्यमान थे। + +3245. कविकर्म में परिश्रम को कवि ही जानता है।44 सागर की गहराई को आपाताल निमग्न मन्थाचल ही जानता है।45 ऐसा कोई ज्ञान या शिल्प नही हैं, ऐसी कोई विद्या या कला नहीं है, जो काव्य के अंग न हो।46 लोक का स्थावरजंगमात्मक लोक व्यवहार का, शास्त्रों-छन्दः व्याकरण अभिधान कोष कलाचतुर्वर्गगजतुरगखगादि लक्ष्य ग्रन्थों का, महाकवियों के काव्यों का तथा इतिहास पुराण का विमर्श सफल कवित्व के लिए आवश्यक है। वासवदत्ता के कवि सुबन्धु ज्ञान, विज्ञान की अनेक शाखाओं का यथापेच्छित सम्यक् ज्ञान रखते थे। उनके एतद् सम्बन्धी वर्णनों में अनुभूति की गहराई या सहानुभूति की ईमानदारी प्रकट है। वह लोक वृत्त-स्थावर ओर जंगम बहुरूप प्रकृति का साक्षात् अनुभव रखता था। शास्त्रों में भी लगभग सबमें उनकी गति थी। भट्टि, माघ और हर्ष आदि की तरह उन्होंने काव्येत्तर विधाओं का विस्तार से वर्णन तो नही किया है किन्तु वासवदत्ता में उनका जितना भी उल्लेख मिलता है उससे उनकी बहुज्ञता प्रमाणित हो जाती है। + +3246. शास्त्रज्ञान. + +3247. सुबन्धु के वस्तुविन्यास, गुणों, रसों और अलंकारों की योजना तथा उसके दोषों की भी समीक्षा कर लेने के बाद संस्कृत साहित्य में सुबन्धु या उनकी कृति वासवदत्ता के स्थान का निर्धारण करना कुछ आसान है। रस और वस्तु की योजना की दृष्टि से जिनका किसी काव्य में अनिवार्य महत्त्व होता है सुबन्धु की वासवदत्ता का स्थान नगण्य है किन्तु अलंकारों की विच्छिति कम से कम अनुप्रास और उत्प्रेक्ष की चारुत्तर योजना वासवदत्ता, विन्ध्यगिरि, रेवा, भागीरथी, वसन्तकाल, सूर्यास्त, चन्द्रोदय, श्मशान, सागर और सागर तट आदि के वर्णन के लिए सुबन्धु संस्कृत साहित्य में सदा गौरव के साथ उल्लिखित होते रहेंगे। + +3248. संस्कृत गद्यकारों में सुबन्धु, दण्डी और बाणभट्ट का प्रमुख स्थान है। तीनों ही महाकवि अपने-अपने क्षेत्र में अद्वितीय है। महाकवि दण्डी के गद्य में सरसता, प्रवाह एवं माधुर्य है। कवि को सरस गद्य के संयोजन में विषयानुरूप प्रस्तुतीकरण में पूर्ण सफलता प्राप्त हुई है। कविता कामिनी के पञ्चबाण महाकवि बाणभट्ट को गद्य का सम्राट कहा गया है। महाकवि बाणभट्ट अद्वितीय गद्य के शिल्पी है। कवि को सभी प्रकार के वर्णनों में पूर्ण सफलता प्राप्त हुई है। महाकवि की भाषा शेली, विषयानुरूप प्रौढ़़, सरस एवं सरल है। + +3249. 2. खिन्नोऽसि मुञ्च शैलं बिभृमो वयमिति वदत्सु शिथिलभुजः। भरभुग्नविततबाहुषु गोपेषु हसन् हरिर्जयति॥ कठिनतरदामवेष्टनलेखासन्देहदायिनो यस्य। राजन्ति बलिविभाः स पातु दामोदरो भवतः॥ + +3250. 7. सुबन्धुः किल निष्क्रान्तो बिन्दुसारस्य बन्धनात्। तस्य वै हृदयं भित्वा वत्सराजो...॥ + +3251. 13. वही। + +3252. 18. ‘अवन्ति सुन्दरी कथा’ पद्य संख्या-22 एवं भूमिका, पृ0सं0 24, सम्पादित शूरनाऊकुन्ज पिल्स-1954। + +3253. (ख) जो0ए0सो0बं0 1905, पृ0 227, डॉ0 एस0सी0 विद्याभूषण का लेख + +3254. 25. पीटर्सन द्वारा सम्पादित सुभाषितावली की भूमिका, पृ0 47 + +3255. 30. भविष्य पुराण। + +3256. 35. दृष्टव्य कीथ कृत हिस्ट्री ऑफ संस्कृत लिटरेचर, पृ0 76 + +3257. 40. ऐज द पोयेट सुबन्धु मेन्शन्स द नेम ऑफ द गुड किंग विक्रम, इट इज मोस्ट अनलाइकली दैट ही हैज ओमिटेड टू नेम द - टीरेन्ट ऑफ हिज टाइम इन द स्टेन्जा सो आर्टिस्टिकली कम्पोज्ड ए कम्पोजिशन एवाउण्डिंग इन द अलंकार ऑफ श्लेष काइण्ड वुड वी डिफेक्टिव इफ इन कन्ट्रास्ट टू द नेम ऑफ विक्रमादित्य ऐन अदर नेम वेअर नाट गिवेन, वी नो दैट देयर वेयर रियली कंक किंग्स ऐज द भागवत टेल्स अस... सो मे प्ले अपान द वर्ड कम् एण्ड कः ईफ थाट आउट गिब्स क्वाइट ए फिटिंग डिसक्रिप्सन्स। + +3258. 45. अव्धिर्लङ्धितएव वानरमतैः किन्त्वस्य गम्भीरताम्। आपाताल निमग्न पीवर तनुः जानाति मन्धाचलः॥ + +3259. 50. वही + +3260. + +3261. महाकवि माघ एवं शिशुपालवधम् का वैशिष्ट्य: + +3262. कवि द्वारा लिखे हुए वंश-वर्णन के पाँचवें श्लोक में स्पष्ट लिखा हुआ है कि दत्तक के पुत्र माघ ने सुकवि-कीर्ति को प्राप्त करने की अभिलाषा से ‘शिशुपालवधम्’ नामक काव्य की रचना की है जिसमें श्रीकृष्ण चरित वर्णित है और प्रतिसर्ग की समाप्ति पर ‘श्री’ अथवा उसका पर्यायवाची अन्य कोई शब्द अवश्य दिया गया है। यहाँ ध्यातव्य यह है कि जिस कवि ने 19वें सर्ग के अन्तिम श्लोक (क्र0120) ‘चक्रबन्ध’ में किसी रूप में बड़ी ही निपुणता से ‘माकाव्यमिदम्’ शिशुपालवधम्’’ तक अंकित कर दिया है। कविवर माघ का जन्म राजस्थान की इतिहास प्रसिद्ध नगरी ‘भीनमाल’ में राजा वर्मलात के मन्त्री सुप्रसिद्ध शाक द्वितीय ब्राह्मण सुप्रभदेव के पुत्र कुमुदपण्डित (दत्तक) की धर्म पत्नी ब्राह्मी के गर्भ से माघ की पूर्णिमा को हुआ था। कहा जाता है कि इनके जन्म समय की कुण्डली को देखकर ज्योतिषी ने कहा था कि यह बालक उद्भट विद्वान अत्यन्त विनीत, दयालु, दानी और वैभव सम्पन्न होगा। किन्तु जीवन की अन्तिम अवस्था में यह निर्धन हो जायेगा। यह बालक पूर्ण आयु प्राप्त करके पैरों पर सूजन आते ही दिवंगत हो जायेगा। ज्योतिषी की भविष्यवाणी पर विश्वास करके उनके पिता कुमुद पण्डित-दत्तक ने जो एक ओष्ठी (श्रेष्ठ धनादिकम् अस्ति यस्य, श्रेष्ठ + इनि) (धनी) थे, प्रभूतधनरत्नादि की सम्पत्ति को भूमि को घड़ों में भर कर गाड़ दिया जाता था और शेष बचा हुआ धन माघ को दे दिया था। कहा जाता है कि ‘शिशुपालवधम्’ काव्य के कुछ भाग की रचना इन्होंने परदेश में रहते हुए की थी और शेष भाग की रचना वृद्धावस्था में घर पर रहकर ही की। अन्तिम अवस्था में ये अत्यधिक दरिद्रावस्था में थे। ‘भोज-प्रबन्ध’ में उनकी पत्नी प्रलाप करती हुई कहती हैं कि जिसके द्वार पर एक दिन राजा आश्रय के लिए ठहरा करते थे आज वही व्यक्ति दाने-दाने के तरस रहा है। क्षेमेन्द्रकृत ‘औचित्य विचार-चर्चा’ में पं0 महाकवि माघ का अधोलिखित पद्य माघ की उक्त दशा का निदर्शक है- + +3263. एक शिखालेख से भी माघ के समय-निर्धारण में सहायता मिलती है। राजा वर्मलात का शिखालेख वसन्त गढ़ (सिरोही राज्य में) से प्राप्त हुआ। यह शिखालेख शक संवत् 682 का है शक संवत् 682 में 78 वर्ष जब जोड़ दिए जाते हैं तब ई0 वी0 सन् का ज्ञान होता है इस प्रकार य शिलालेख सन् 760 ई0 का लिखा हुआ होना चाहिए माघ में 20वें सर्ग के अन्त में ‘कविवंशवर्णनम्’ में लिखा है कि उसके पितामाह सुप्रभदेव के आश्रयदाता राजा वर्मल (वर्मलात) थे अतः सुप्रभदेव का समय 760 ई0 के आसपास होना चाहिए। उनके पौत्र कवि माघ का शैशवकाल सन् 780 के आसपास। इतना तो निश्चित है कि माघ आनन्दवर्धन के पश्चात्वर्ती जिस अतीत के इतिहास को अपने काव्य का कथानक बनाता है, उसी अतीत की अन्य स्थितियाँ भी निम्नांकित करने का भरसक प्रयत्न करता है। किन्तु सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाये तो वहाँ भी उसका वर्तमान समाज झाँकता परिलक्षित होता है, क्योंकि उसका अतीत या भविष्य से सम्बद्ध सम्पूर्ण कल्पनाओं का आधार वर्तमान ही रहता है। कवि की कल्पना वर्तमान की नींव पर अतीत तथा भविष्य के प्रसादों का निर्माण किया करती है। इसलिए माघ में अंकित रीतिबद्धता की बढ़ी हुई प्रवृत्ति तथा समाज का शृङ्गारिक वातावरण भी हमें माघ की उक्त तिथि निश्चित करने में सहायक है। संक्षेप में माघ एक ऐसे युग की देन हैं जिसके प्रमुख लक्षण शृङ्गारिकता, साजबाज के कार्यों में अत्यधिक रूचि और चमत्कार एवं विद्वता प्रदर्शन की प्रवृत्ति आदि है। मदिरा एवं प्रमदा का जो साहचर्य माघ काव्य में देखने को मिलता है वह आठवी से दसवीं शताब्दी के उत्तर भारतीय राजपूत जीवन का इतिहास है। + +3264. किन्तु इस धारणा का समर्थन सभी विद्वान् नहीं करते। उनका कथन है कि ‘अनुत्सूत्रपदन्यासा’ आदि पद्य में जो ‘न्यास’ संकेतित हुआ है वह जिनेन्द्रबुद्धिकृत ‘न्यास’ नहीं अपितु उससे भी पहले का कोई एतत्वामक व्याकरण ग्रन्थ होना चाहिए क्योंकि स्वयं जिनेन्द्रबुद्धि ने भी अपने से पूर्व अनेक न्यास ग्रन्थों के नाम दिए हैं और जिनेन्द्रबुद्धि से पूर्ववर्ती बाणभट्ट ने अपने हर्षचरित में भी ‘न्यास’ संज्ञक’ व्याकरण ग्रन्थ का संकेत किया है।अतएव माघ का समय सप्तम शताब्दी के उत्तरार्द्ध में ही स्वीकारना युक्तिसंगत है।’[9 + +3265. माघ जिस शैली के प्रवर्तक थे उनमें प्रायः रस, भाव, अलंकार काव्य वैचित्य बहुलता आदि सभी बातें विद्यमान थी। माघकवि की कविता मेंं हृदय और मस्तिष्क दोनों का अपूर्व मिश्रण था। माघकाव्य में प्राकृतिक वर्णन प्रचुर मात्रा में हुआ है। इनके काव्य में भावगाम्भीर्य भी है। ‘शिशुपालवधम्’ में कतिपय स्थलों पर भावागाम्भीर्य देखकर पाठक अक्सर चकित रह जाते हैं। कठिन पदोन्योस तथा शब्दबन्ध की सुश्लिष्टता जैसी महाकाव्य में देखने को मिलती है वैसी अन्यत्र बहुत कम काव्यों में मिलती है। इनके काव्य को पढ़ते समय मस्तिष्क का पूरा व्यायाम हो जाता है। + +3266. अर्थात् रात्रि की विदाई पर ऊषा उसका अनुगमन करती हुई ऐसी शोभायमान हो रही है जैसे वह रजनी की सद्यः प्रसूता कन्या हो। यहाँ रक्तकमलों की पंक्तियों की तुलना ऊषारूपी नायिका की हथेली से और पंखुड़ियों की तुलना उसकी अंगुली से की गयी है। + +3267. यहाँ केवल ‘व’ और ‘र’ वर्णों का प्रयोग कर कवि ने अपने वर्णनचातुर्य को प्रदर्शित किया है। इसके अतिरिक्त अनेक अनुलोम-प्रतिलोम प्रयोग विशेष प्रसिद्ध हैं। इनके एकक्षरपादःसर्वतोभद्र[17 गामुत्रिकाबन्धःमुरजबन्ध[19 और ×यर्थवाचीतथा चतुरर्थवाची[21 आदि जटिलतम चित्रबन्धों की रचना तत्कालीन कवि समाज की परम्परा की द्योतक है। शिशुपालवधम् के उन्नासवें सर्ग में यही शब्दार्थ कौशल दिखायी पड़ता है। + +3268. माघ व्याकरण के प्रकाण्ड पण्डित थे। शिशुपालवधम् में दिखायी पड़ता है। + +3269. जिस प्रकार आकाश में वृहस्पति और शुक्र के साथ चन्द्रमा सुशोभित होता है उसी प्रकार श्रीकृष्ण भी बलराम और उद्धव के साथ सुशोभित हुए संभावन में पहुँचे। + +3270. माघ के दर्शन विषयक उद्धरणों से प्रतीत होता है कि वे एक बहुत बड़े दार्शनिक भी थे। भारतीय दर्शन के प्रायः सभी अंगों का उन्हें विस्तृत ज्ञान था। आस्तिक तथा नास्तिक दोनों ही दर्शनों का समन्वय उनमें था। शिशुपालवधम् के प्रथम सर्ग में नारद भगवान् श्रीकृष्ण की स्तुति करते हुए कहते हैं- + +3271. यहाँ योगशास्त्र में वर्णित अविद्या अस्मिता, रागद्वेष और अभिनिवेश इत्यादि पचंक्लेशों का उल्लेख माघ की योगशास्त्र में प्रवीणता को प्रदर्शित करता है इसी प्रकार चतुर्थ सर्ग में रैवतक पर्वत के वर्णन में भी माघ के योगशास्त्र प्रवीण होने का पता चलता है। + +3272. मीमांसाशास्त्र के ज्ञाता पुरोहित जिनका उच्चारण अत्यन्त शुद्ध था, उच्च एवं स्पष्ट स्वरों द्वारा श्रुति का उच्चारण करते हुए देवताओं के निमित्त अग्नि में आहुतियां देने लगे। यहाँ मीमांसा की गयी है कि यज्ञ के मन्त्रों के उच्चारण में विशेष निपुणता होनी चाहिए अन्यथा अशुद्धि से अनर्थ की आशंका बनी रहती है इसी प्रकार अन्यत्र भी मीमांसा ज्ञान के उद्धरण प्राप्त होते हैं। + +3273. यहाँ ज्ञात होता है कि माघ का सामरिक ज्ञान अत्यन्त प्रौढ़ था। इसके अतिरिक्त औपम्य विधान द्वारा निषाद ब्राह्मण इत्यादि उपाख्यानों द्वारा और युद्ध सम्बन्धी वर्णनों में उनका सामरिक ज्ञान का पता चलता है। + +3274. दण्ड के द्वारा वश में आने वाले शत्रु के साथ शान्तिपूर्ण व्यवहार करना हानियुक्त होता है क्योंकि पसीना लाने वाला ज्वर को कौन सा चिकित्सक पानी छिड़ककर शान्त करता है ? अर्थात् कोई नहीं। + +3275. महाकाव्य के परिशीलन से यह भी पता चलता है कि माघ पशु विद्या में भी महारथी थे। इन्होंने यथास्थान हाथियों, घोड़ों, ऊँटों, साड़ों इत्यादि का वर्णन कर पशु विद्या से भी अपना सम्बन्ध दर्शाया है। अट्ठारहवें सर्ग में गजशास्त्र का वर्णन करते हुए वे कहते हैं- + +3276. माघ कामशास्त्र के भी ज्ञाता थे। संभवतः इन्होंने वात्सयायन विरचित कामसूत्र का भी अध्ययन किया था क्योंकि शिशुपालवधम् में इसका उल्लेख प्राप्त होता है। दसवें सर्ग में इसका उदाहरण देते हुए वे कहते हैं- + +3277. यहाँ पर ‘घी’ इत्यादि शब्दों के प्रयोग से उनके पाकशास्त्र के ज्ञान का पता चलता है। माघ का ‘शिशुपालवधम्’ सम्पूर्ण लक्षणों से युक्त महाकाव्य है परन्तु इस ग्रन्थ के अध्ययन से यह प्रतीत होता है कि यह महाकाव्य साहित्यशास्त्र का ही ग्रन्थ हो क्योंकि इस महाकाव्य में अनेक ऐसे उद्धरण आए हैं जो साहित्यशास्त्र की अच्छी व्याख्या करते हैं साथ ही छन्द, अलंकार, रस एवं गुणों के सम्यक् प्रयोग विस्तार से हुए हैं। इनका महाकाव्य उस समय की अलंकृत शैली का प्रतिबिम्ब करता है। + +3278. उपर्युक्त उद्धरण में उनके व्यावहारिक ज्ञान के दर्शन होते हैं। + +3279. माघ का कर्तृत्व. + +3280. उपर्युक्त सभी पद्यों के अतिरिक्त महाकवि माघ से सम्बन्ध अन्य पद्य भी है जो भोजप्रबन्ध और ‘प्रबन्धचिन्तामणि’ में माघ के मुख द्वारा मुखरित हुए हैं। यह पद्य माघ विरचित किसी प्रकाशित या अप्रकाशित ग्रन्थ से सम्बन्ध हो अथवा न हो क्योंकि माघ को अमरता प्रदान करने के लिये उनका ‘शिशुपालवधम्’ ही पर्याप्त है। + +3281. इस प्रकार महाकवि माघ का एकमात्र उपलब्ध ग्रन्थ ‘शिशुपालवधम्’ प्राप्त होता है लेकिन महाकवि माघ की कृति सम्पूर्ण संस्कृत साहित्य जगत एवं समीक्षकों के समक्ष अमरकृति बन गयी। एकमात्र रचना से ही महाकवि माघ जीवन के विभिन्न अनुभवों का संदेश पाठकों एवं कवियों के लिए दे गये। + +3282. ‘महाभारत’ में भी ‘महत्’ शब्द के प्रयोग के औचित्य को बताया गया है। + +3283. ‘साहित्यदर्पण’ में महाकाव्य का लक्षण इन्होंने इस प्रकार किया है।’ + +3284. 5. शृंगार वीर और शान्त रसों में से कोई एक रस अंगी रूप में होता है। + +3285. इसके नायक श्रीकृष्ण का चरित एक योद्धा के रूप में है। अन्य पात्रों में भी शौर्य प्रधान गुण अधिक मात्रा में मिलते हैं। इस काव्य के आद्योपरान्त पारायण से ज्ञात होता है कि उसमें श्रीकृष्ण के चरित के साथ ही क्षत्रिय जाति के क्रियाकलाप का भी सुन्दर वर्णन है। कथानक की दृष्टि से यह उच्चकोटि का महाकाव्य प्रतीत होता है। काव्यशास्त्रीय लक्षणकारों के अनुसार महाकाव्य में महाकाव्य के सम्पूर्ण लक्षण प्राप्त होते हैं। काव्य का मुख्य रस वीर है।74 अन्य रसों का भी यथोचित वर्णन हुआ है। इसका कथानक ‘महाभारत’ से लिया गया है। यह कथानक श्रीकृष्ण के जीवन की एक मुख्य घटना है। 120 सर्गों में निबद्ध इस काव्य के प्रत्येक सर्ग में न तो 50 से न्यून और नहीं 150 से अधिक श्लोक हैं। काव्य का प्रारम्भ वस्तुनिर्देशात्मक मंगलाचरण से हुआ है- + +3286. उपर्युक्त विवेचन के आधार पर यह सिद्ध होता है कि शिशुपालवधम् सम्पूर्ण लक्षणों से युक्त एक महाकाव्य है। ऐसा प्रतीत होता है कि लक्षणकारों ने महाकाव्य को आधार बनाकर ही महाकाव्य के लक्षण निर्धारित किये हैं। + +3287. दैहार्धम् क्रकचैश्छित्वा दत्वा मोक्षमवाप ह ।।22।। + +3288. + +3289. बंगाली भाषा हिन्द आर्य भाषा है जो प्राकृत के समान है। यह 11वीं से 13वीं सदी के मध्य संस्कृत भाषा से निकला था। ऐसा माना जाता है कि यह तीन भाषा समूह में अलग हो गया। जिसमें बंगाली, असमी और ओड़िया शामिल है। मुस्लिमों के भारतीय उपमहाद्वीप में आने के बाद से इसमें अरबी और फारसी शब्द प्रवेश करने लगे थे। + +3290. पंजाबी भाषा: + +3291. + +3292. मित्र का कर्त्तव्य इस प्रकार बताया गया है-"उच्च और महान कार्य में इस प्रकार सहायता देना, मन बढ़ाना और साहस दिलाना कि तुम अपनी निज की सामर्थ्य से बाहर का काम कर जाओ।" यह कर्त्तव्य उस से पूरा होगा जो द्रढ़-चित और सत्य-संकल्प का हो। इससे हमें ऎसे ही मित्रों की खोज में रहना चाहिए। जिनमें हमसे अधिक आत्मबल हो। हमें उनका पल्ला उसी तरह पकड़ना चाहिए जिस तरह सुग्रीव ने राम का पल्ला पकड़ा था। मित्र हों तो प्रतिष्ठित और शुद्ध ह्रदय के हो। म्रदुल और पुरूषार्थी हों, शिष्ट और सत्यनिष्ठ हों, जिससे हम अपने को उनके भरोसे पर छोड़ सकें, और यह विश्वास कर सके कि उनसे किसी प्रकार का धोखा न होगा। + +3293. + +3294. मुख्य लाभ. + +3295. पहले यूनिकोड की कमी के कारण कई अलग अलग लोग अपना अलग अलग तरह का फॉन्ट बना लेते थे। कई का लिखने का तरीका अलग होता था और किसी फॉन्ट में लिखा हुआ दूसरे फॉन्ट में कचरे के रूप में दिखाई देता था। लेकिन यूनिकोड के आने के बाद यूनिकोड फॉन्ट कोई भी हो, जानकारी वही मिलती है। इससे अब सभी मिल कर यूनिकोड के लिए फॉन्ट बना सकते हैं। किसी को इस बात कि अब चिंता नहीं होती कि किसके पास कौन सा फॉन्ट होगा। + +3296. भूमिका. + +3297. अनुच्छेद 109 में किए संशोधन का सम्बन्ध उसी अनुच्छेद के पहले पैरा से है। इसके अनुसार घोषणा पत्र का पुनरीक्षण करने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्यों का एक सामान्य सम्मेलन किया जा सकता है जिसकी तारीख और स्थान महासभा दो-तिहाई बहुमत से और सुरक्षा परिषद् अपने किन्ही नौ सदस्योंके (पहले यह संख्या सात थी) मतों से तय करेगी। जहाँ तक सुरक्षा परिषद् में किन्हीं सात सदस्यों के वोटों का संबंध है अनुच्छेद 109 के पैरा 3 को मूल रूप में रख लिया गया है। इसके महासभा के दसवें नियमित अधिवेशन में पुनर्विचार करने के लिए आयोजित किए जा सकने वाले सम्मेलन के विषय में विचार करने का उल्लेख है। 1955 में इस पैरा के अनुसार महासभा अपने दसवें नियमित अधिवेशन में, और सुरक्षा परिषद् भी, कार्यवाही कर चुकी है। + +3298. "कि + +3299. और इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए हम सहनशीलता के आदर्श को अपनायेंगे और आदर्श पड़ोसियों की भाँति शांतिपूर्वक मिलजुल कर रहेंगे, और अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा के लिए अपनी शक्तियों को संगठित करेंगे, और यह सुनिश्चितकरेंगे कि इस सिद्धान्त को स्वीकार किया जाए और ऐसी पद्धति प्रारम्भ की जाए जिससे सामान्य हितों की रक्षा के अतिरिक्त अन्य किसी कार्य के लिए सशस्त्र शक्ति का उपयोग नहीं किया जाएगा, और सभी लोगों की आर्थिक और सामाजिक प्रगति के प्रोत्साहन के लिए अन्तर्राष्ट्रीय तंत्र का उपयोग किया जाएगायअतः हमने इन उद्देश्यों की प्राप्तिके लिए मिलजुलकर प्रयास करने का संकल्प किया है। + +3300. अध्याय 2. + +3301. संयुक्त राष्ट्र अपने मुख्य या सहायक अंगों में स्त्रियों और पुरुषों की किसी भी हैसियत से और समानता के आधार पर भाग लेने की पात्रता पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाएगा। + +3302. (ख) आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक और स्वास्थ्य सम्बन्धी क्षेत्रों में अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना और जाति, लिंग, भाषा याधर्म पर आधारित भेदभाव के बिना सबके लिए मानवाधिकारों और मौलिक स्वतन्त्रताओं की प्राप्ति में सहयोग देना। + +3303. क्रियाविधि : + +3304. कार्य और षक्तियां + +3305. सुरक्षा परिषद् ऐसे सहायक अंगों की स्थापना कर सकती है जिन्हें वह अपने कार्यां के निष्पादन के लिए आवश्यक समझती हो। + +3306. सुरक्षा परिषद् किसी ऐसे विवाद या परिस्थिति की जांच-पड़ताल कर सकती है जिससे अन्तर्राष्ट्रीय वैमनस्य या विवाद उत्पन्न होने की सम्भावना हो। जांच-पड़ताल का उद्देश्य यह पता लगाना होगा कि यदि वह विवाद या परिस्थिति जारी है तो क्या उससे अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा को खतरा पैदा होने की सम्भावना है। + +3307. सुरक्षा परिषद् अपने निर्णयों को कार्यान्वित करने के लिए ऐसे उपायों के सम्बन्ध में निर्णय कर सकती है जिसमें सशस्त्र, शक्ति का प्रयोग सम्मिलित नहीं होगा और इन उपायों को कार्यान्वित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों से अनुरोध कर सकती है। इन उपायों में आर्थिक संबंधों और रेल, समुद्र, वायु, डाक,तार, रेडियो तथा अन्य संचार साधनों का पूर्ण अथवा आंशिक अवरोध तथा राजनयिक सम्बन्धों का विच्छेद आदि भी हो सकता है। + +3308. सुरक्षा परिषद् द्वारा निश्चित उपायों को कार्यान्वित करने के हेतु संयुक्त राष्ट्र के सदस्यगण मिलजुल कर सहायता प्रदान करने में योग देंगे। + +3309. अध्याय नौ. + +3310. सभी सदस्य इस बात के लिए वचन देते हैं किवे अनुच्छेद 55 में निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए संघ के सहयोग से संयुक्त रूपसे अथवा पृथक रूप से कार्यवाही करेंगे। + +3311. गठन : + +3312. आर्थिक और सामाजिक परिषद् और सामाजिक क्षेत्र में मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के लिए आयोग का गठन करेगी। इसके साथ ही वह ऐसे अन्य आयोगों की भी स्थापना करेगी जो उसके कार्यों को सम्पन्न करने के लिए अपेक्षित हों। + +3313. संयुक्त राष्ट्र के वे सदस्य, जो उन भू-भागों के प्रशासन का उत्तरदायित्व रखें या ग्रहण करें जहां के लोगों को उस समय तक पूर्ण स्वशासन प्राप्त न हुआ हो, यह सिद्धान्त स्वीकार करते हैं कि इन क्षेत्रों के निवासियों के हित परमोच्च हैं, और वे, प्रस्तुत घोषणा पत्र के द्वारा स्थापित अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा तन्त्र के अधीन, इन भू-भागों के निवासियों का यथासम्भव अधिक से अधिक कल्याण करना, पवित्र न्याय के रूप में अपना कत्तर्व्य मानते हैं, तथा उपर्युक्त उद्देश्य के लिए वे यह भी अपना दायित्व मानते हैं कि - + +3314. (ङ) जिन भू-भागों पर बारहवें और तेरहवें अध्याय लागू होते हैं उनके अतिरिक्त अन्य भू-भागों की सुरक्षा जिनके लिए वे सदस्य अलग-अलग उत्तरदायी हैं, सुरक्षा और संवैधानिक बातों को ध्यान में रखकर लगाई गई सीमाओं के अधीन आर्थिक सामाजिक और शैक्षिक परिस्थितियों से सम्बन्धित सांख्यिकीय औरतकनीकी सूचनाएँ महासचिव को नियमित रूप से दी जाएँ। + +3315. (क) अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा को बढ़ाना ; + +3316. (ख) वे भूभाग, जो द्वितीय महायुद्ध के परिणामस्वरूप शत्रु देशों से अलग कर दिए गए हैं ; और + +3317. किसी भी न्यासधारिता करार में सामरिक महत्वके भू भाग या भू भागों को निर्दिष्ट किया जा सकता है। इन भू भागों में न्यास का कोई ऐसा भाग या सम्पूर्ण न्यास भू भाग शामिल हो सकता है जिसपर यहकरार लागू होता हो, परन्तुयह अनुच्छेद 43 के अधीन किए गए किसी विशेष करार या करारों के विरुद्ध नहीं होगा। + +3318. (ख) ऐसे सदस्य जिनके नाम अनुच्छेद 23 में निर्दिष्ट किए गए हैं परन्तु जो न्यास क्षेत्रों का प्रशासन नहीं कर रहे हैं; और + +3319. (ख) याचिकाएँ स्वीकार करना और प्रशासक प्राधिकरण के साथ परामर्श करके उनकी जाँच करना ; + +3320. अध्याय चौदह. + +3321. संघ को अपने प्रत्येक सदस्य राष्ट्र के क्षेत्र में अपने कार्यां को करने या अपने प्रयोजनों की पूर्ति के लिए आवश्यक विधिक अधिकार प्राप्त होंगे। + +3322. महासभा के सदस्यों के दो-तिहाई मतों का समर्थन प्राप्त होने पर और संवैधानिक प्रक्रिया के अनुसार संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों के दो तिहाई का, जिसमें सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य सम्मिलित होंगे, अनुसमर्थन प्राप्त हो जाने पर ही प्रस्तुत घोषणापत्र में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्यों के हेतु संशोधन प्रभावी हो सकेंगे। + +3323. अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय/अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय की संविधि: + +3324. महासभा और सुरक्षा परिषद् न्यायालय के सदस्यों को निर्वाचित करने के लिए अपनी-अपनी कार्यवाही अलग-अलग करेंगे। + +3325. न्यायालय के सदस्य जब न्यायालय के कार्यमें लगे होंगे तब वे राजनयिक विशेषाधिकारों और उन्मुक्तियों का उपभोग करेंगे। + +3326. न्यायालय का व्यय संयुक्त राष्ट्र उसी प्रकार वहन करेगा जिस प्रकार महासभा द्वारा इसका निर्णय किया जाएगा। + +3327. (घ) विशिष्ट अन्तरराष्ट्रीय दायित्व के भंगहोने पर दी जाने वाली क्षतिपूर्ति का स्वरूप और उसकी सीमा। + +3328. (घ) अनुच्छेद 59 के उपबन्धों के अधीन, नियमों के निर्धारण के लिए सहायक, माध्यमके रूप में, विधि के न्यायिक निर्णयऔर विभिन्न राष्ट्रों के सर्वाधिक योग्य अन्तरराष्ट्रीय विधिवेत्ताओं की षिक्षायें। + +3329. न्यायालय सुनवाई ष्षुरू होने से पहले ही प्रतिनिधियों को किसी भी प्रकार का प्रलेख प्रस्तुत करने तथा किसी भी प्रकार के स्पष्टीकरण देने केलिए कह सकता है। प्रत्येक अस्वीकृति को औपचारिक रूप से नोट कर लिया जाएगा। + +3330. निर्णय पर अध्यक्ष या रजिस्ट्रार के हस्ताक्षर होंगे। यह खुले न्यायालय में पढ़ा जाएगा और प्रतिनिधियों को यथोचित सूचना पहले से ही दे दी जाएगी। + +3331. न्यायालय अपना परामर्शात्मक मत खुले रूप में देगा, इसकी सूचना महासचिव और सुयक्त राष्ट्र के सदस्यों के प्रतिनिधियों तथा सीधे सम्बद्ध अन्य राज्यों और अन्तरराष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों को पहले से ही दे दी गई होती है। + +3332. + +3333. हर सॉफ्टवेयर में यूनिकोड नहीं होता है। कई लोग अपने सॉफ्टवेयर को बनाते समय जल्दबाजी करते हैं और यूनिकोड के लिए थोड़ा भी समय नहीं देते हैं। इस कारण उन सॉफ्टवेयर में यूनिकोड वाले लिपि काम नहीं करते हैं। इसके लिए भी दूसरे सॉफ्टवेयर को ढूंढना पढ़ता है। + +3334. + +3335. लेकि‍न माध्‍यमि‍क, उच्च और महावि‍द्यालयीन तथा वि‍श्ववि‍द्यालयीन स्‍तर की तकनीकी और विज्ञान की पुस्‍तकें और पढाई हिंदी में उपलब्‍ध है तो फि‍र स्‍कूल और बचपन में ही अंग्रेजी का बोझ लादने की आवश्‍यकता क्या है। बच्चों के बस्‍तें और दि‍माग पर बोझ बढाने से अच्‍छा है उन्‍हें मातृभाषा और हिंदी में लि‍खी गई वि‍ज्ञान की पुस्‍तकें पढवाई जाए, इससे उनकी वि‍ज्ञान संबंधी सोच स्‍पष्‍ट होगी ओर उनके कोमल मन और बुद्धि‍ पर वि‍देशी भाषा का बोझ भी नहीं बढेगा। + +3336. स्‍कूल के वि‍ज्ञान के साथ-साथ माध्‍यमि‍क, उच्‍च माध्‍यमि‍क, महावि‍द्यालयीन, स्‍नातक और स्‍नातकोत्तर के वि‍ज्ञान और तकनीकि‍ संबंधी वि‍षयों की पुस्‍तकें हिंदी में भी उपलब्‍ध है, जि‍सकी जानकारी अधि‍कतर लोगों को नहीं है। जैसे वि‍ज्ञान की सभी शाखाओं, तकनीकी, अभि‍यांत्रि‍की, पॉलि‍टेक्‍नीक, आइटीआइ, सीए, सीएस, सीएमए, कंप्‍यूटर, आयकर(टैक्‍्स), स्‍पर्धा परिक्षाओं की तैयारी से संबंधि‍त पुस्‍तकें, धर्म, वि‍धि‍शास्‍त्र, मेडि‍कल, नर्सिंग, औषध नि‍र्माण (फार्मसी), बी फार्मसी की पुस्‍तकें भी हिंदी में उपलब्‍ध हैं। राजस्‍थान, छत्तीसगढ़, मध्‍य प्रदेश, महाराष्‍ट्र, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बि‍हार, दि‍ल्‍ली, पंजाब, हरि‍याणा आदि‍ राज्‍यों में वि‍ज्ञान वि‍षयों का हिंदी में आसानी से पढाया और समझाया जा सकता है। इससे स्‍पर्धा परीक्षा और अन्‍य परीक्षाओं में भी अव्‍वल स्‍थान प्राप्‍त कि‍या जा सकता है। एमएस सी आयटी जैसे कंप्‍यूटर कोर्सेस में यदि भाषा संबंधी एक अध्‍याय जोड़ दि‍या जाए तो कंप्‍यूटर में प्रशि‍क्षण प्राप्‍त करते समय ही हिंदी और अन्‍य भारतीय भाषाओं में कंप्यूटर पर कार्य करने का प्रशि‍क्षण दि‍या जा सकता है। + +3337. इलेक्ट्रीकल और इलेक्ट्रानि‍क्स इंजि‍नि‍यरिंग की पुस्‍तकें भी हिंदी में उपलब्‍ध हैं - बेसि‍क इलेक्ट्रॉनि‍क्स, बेसि‍क मैकेनि‍कल इंजीनि‍यरिंग, बेसि‍क इलेक्ट्रि‍कल इंजि‍नीयरिंग, इलेक्‍ट्रि‍कल प्रबंधन (मैंनेजमेंट) एण्‍ड इंस्‍टूमेंटेशन, इलेक्ट्रि‍कल सर्कि‍ट थ्‍योरी, इलेक्‍ट्रि‍कल मशीन, पावर सि‍स्‍टम, माइक्रो प्रोसेसर और सी प्रोग्रामिंग, इलेक्‍्ट्रि‍कल वर्कशॉप, इंटर प्रोन्‍यूरशि‍प एण्‍ड मैनेजमेंट, प्रशासनि‍क वि‍धि। इन पुस्‍तकों के माध्‍यम से आसानी से इलेक्‍ट्रि‍कल इंजि‍नि‍यरिंग की पढाई पूरी की जा सकती है। + +3338. ज्ञान-विज्ञान के सभी क्षेत्रों में शिक्षण, प्रशिक्षण एवं शोध को हिन्दी माध्यम से बढ़ाने हेतु 19 दिसंबर 2011 को मध्यप्रदेश शासन ने अटल बि‍हारी वाजपेयी हिंदी वि‍श्‍ववि‍द्यालय, भोपाल की स्थापना की है। इस विश्वविद्यालय का उद्देश्य ऐसी युवा पीढ़ी का निर्माण करना है जो समग्र व्यक्तित्व विकास के साथ रोजगार कौशल हिंदी माध्‍यम से करना है। विश्वविद्यालय ऐसी शैक्षिक व्यवस्था का सृजन करना चाहता है, जो भारतीय ज्ञान तथा आधुनिक ज्ञान में समन्वय करते हुए छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों में ऐसी सोच विकसित कर सके जो भारत केन्द्रित होकर सम्पूर्ण सृष्टि के कल्याण को प्राथमिकता दे। इस विश्वविद्यालय का शिलान्यास 6 जून 2013 को भारत के राष्ट्रपति माननीय श्री प्रणव मुखर्जी के कर कमलों से ग्राम मुगालिया कोट की 50 एकड़ भूमि पर कि‍या गया है। शिक्षा सत्र 2012-13 में 60 विद्यार्थियों से प्रारम्भ होकर इस विश्वविद्यालय में सत्र 2013-14 में 358 विद्यार्थियों ने अध्ययन किया तथा वर्तमान सत्र 2014-15 में 4000 से अधिक छात्र-छात्राओं ने हिन्दी माध्यम से विभिन्न पाठयक्रमों में पंजीयन कराया है। अब तक 18 संकायों में 200 से अधिक पाठयक्रमों का हिन्दी में निर्माण कर लिया गया है। विश्वविद्यालय में प्रत्येक छात्र को हिंदी भाषा के साथ साथ एक विदेशी भाषा, एक प्रांतीय भाषा के साथ साथ संगणक प्रशिक्षण की सुविधा अंशकालीन प्रमाणपत्र कार्यक्रम के माध्यम से उपलब्ध हैं। सभी पाठयक्रमों में आधुनिक ज्ञान के साथ उस विषय में भारतीय योगदान की जानकारी भी दी जाती है तथा संबंधित विषय में मूल्य आधारित व्यावसायिकता के साथ स्वरोजगार की अवधारणा के संवर्धन पर ज़ोर दिया जाता है। अटल बि‍हारी वाजपेयी हिंदी वि‍श्‍ववि‍द्यायल, भोपाल में चिकित्सा, अभियांत्रिकी, विधि, कृषि, प्रबंधन आदि में हिंदी माध्यम से शिक्षण-प्रशिक्षण एवं शोध का कार्य कर रहा हैं। + +3339. http://www.hindivishwa.org + +3340. http://www.nbtindia.gov.in/catalogues__9__download-catalogue.nbt + +3341. + +3342. पी॰ जयरामन ने समाचार जगत को हिन्दी दिवस पर बताया कि हिन्दी के प्रति लोगों में भावनात्मक संवेदना होना बहुत जरूरी है। लोगों के मानसिक स्थिति में परिवर्तन लाये बिना कुछ भी नहीं हो सकता है। बिना भावनात्मक संवेदना के हिन्दी को विलुप्त होने से बचाया नहीं जा सकता है। इसके लिए सारे समाज को इसे स्वीकार करना अति आवश्यक है। + +3343. + +3344. • मॉर्फोलिनो, + +3345. अनुक्रम + +3346. • 3नाभिकीय अम्ल के घटक + +3347. • 5 बाहरी कड़ियाँ + +3348. • नाइट्रोजिनस हीट्रोसाय्क्लिक क्षार, जो प्यूरीन या पायरिमिडीन में से एक होता है। + +3349. नाभिकीय अम्ल में शर्करा और फॉस्फेट, एक-दूसरे से एकांतरित शृंखला में जुड़े रहते हैं, जो साझे ऑक्सीजन परमाणुओं द्वारा जुडे रहते हैं, जिनसे फॉस्फोडिस्टर बन्ध बना रहता है। पारंपरिक नोमेन्क्लेचर में नाभिकीय अम्ल में वे कार्बन परमाणु, जिनमें फॉस्फेट समूह जुड़ता है, वे शर्करा के तीसरे एवं पाँचवें कार्बन होते हैं। इससे नाभिकीय अम्ल को ध्रुवता मिलती है। ये क्षारक, एक ग्लाइकोसिडिक लिंकेज को पैन्टोज़ शर्करा वलय के पहले कार्बन तक जोड़ते हैं। क्षारक पायरिमिडाइन के एन-१ एवं प्यूराइन के एन-९ को राइबोज़ के प्रथम कार्बन से एन-बीटा ग्लाइकोसिल बन्ध द्वारा जोड़ते हैं। + +3350. निरजारराइबोनाभिकीय (डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक) अम्ल + +3351. गणित की परिभाषा तथा महत्व. + +3352. गणितसारसंग्रह के संज्ञाधिकार के अन्त में महावीराचार्य ने गणकों (गणितज्ञों) के ८ गुण गिनाए हैं- + +3353. ग्रहों की स्थिति, काल एवं गति. + +3354. सायणाचार्यः ने प्रकाश का वेग निम्नलिखित श्लोक में प्रतिपादित किया है- + +3355. इसी को मुञ्जलाचार्य या मञ्जुलाचार्य (९३२ ई०) ने भास्कर से भी पहले अपने ग्रन्थ 'लघुमानसम्' में ज्या सारणी (table of sines) में प्रतिपादित किया था। + +3356. पाई. + +3357. अंग्रेजी अनुवाद: + +3358. हलायुध के व्याख्यान से उद्धृत- + +3359. ब्रह्मगुप्त ने श्लोक में कुछ इस प्रकार अभिव्यक्त किया है- + +3360. अर्थात :- + +3361. पाई (π) का मान. + +3362. पूर्णांक को इकाई भिन्नों के रूप में व्यक्त करना. + +3363. + +3364. सीखने के संबंध में इतने शोध हो जाने के बावजूद यह विषय भ्रामक बना हुआ है। हम सीखने से क्या अर्थ निकालते हैं, यह निश्चय ही काफी हद तक इस बात से तय होता है कि इसका अध्ययन किस तरह से करने की सोचते हैं। कॉलेज के विद्यार्थी कैसे निरर्थक शब्दांशों को याद कर लेते हैं, इसका अध्ययन करने की बजाय अगर इस पर शोध किया जाता है कि बच्चे अपनी मूल भाषा पर पकड़ कैसे बनाते हैं; तो आप सीखने के संबंध में एक भिन्न अवधारणा पर पहुंचते हैं। क्या हारमोनियम पर उंगलियां चलाना सीखने में या एक भूल-भुलैया पहेली में उंगली से रास्ता खोजने में एक ही तरह की प्रक्रियाएं शामिल होती हैं? क्या सभी तरह का सीखना एक समान होता है जिसे कुछ गिने-चुने नियमों के एक समुच्चय में व्यक्त किया जा सकता है? + +3365. इन सबसे स्वाभाविक हो जाता है कि वैज्ञानिक किसी भी तरह से इस बात का सरलीकरण करना चाहेंगे कि सीखने का अध्ययन करने से हमारा क्या तात्पर्य है। और निश्चित ही ऐसा करने का आदर्श तरीका है एक दृष्टांत (पैराडाइम) पर सहमति जिससे कि परिणामों की तुलना संभव हो जाएगी। बिल्कुल यही सीखने से संबंधित शोध के शुरुआती दौर में हुआ था। किंतु जैसा कि अक्सर होता है कि प्रतिद्वंद्वी दृष्टांत उभर आए और आह! यह शोध शीघ्र ही भविष्य के युद्ध में तब्दील हो गया। असल में उन्नीसवीं सदी के उतरार्द्ध से लेकर दूसरे विश्वयुद्ध के एक दशक बाद तक मनोवैज्ञानिक शोध के परिदृश्य पर सीखने संबंधी सिद्धांतों के बीच ऐसा युद्ध चलता रहा जिसमें विभिन्न ‘मत’ चतुराई से यह प्रदर्शित करने के लिए प्रयोग कर रहे थे कि उनका दृष्टांत प्रतिद्वंद्वी दृष्टांतों से किस तरह बेहतर था और दूसरे किस तरह कमतर थे। + +3366. मस्तिष्क की व्यापक क्रियाओं को दैनिक जीवन की इस बात के समानान्तर रखकर समझाया जा रहा था कि अनुभव अपने छोटे-छोटे अंशों से ऊपर उठ जाते हैं जैसे कि एक शहरी दृश्य टैक्सी व पैदल चलने वालों का समूह भर नहीं होता। वह तो विभिन्न घटकों की विशेषताओं से आकार लेता है। गिस्टौलट मनोविज्ञान निश्चित ही इस दृष्टिकोण की सबसे प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति थी जिसमें सीखने को लेकर यह मत था कि वह स्थानीय कड़ियों के कारण संभव न होकर व्यापक स्तर की व्यवस्था होती है। + +3367. उसने समरूपता बनाते हुए दृश्य संबंधी बोध का इस्तेमाल किया जो बात को पूरी तरह स्पष्ट कर देता हैः जब पास-पास स्थित प्रकाश के दो स्रोतों से बहुत कम समय के लिए एक के बाद दूसरे से रोशनी डाली जाती है तो आंख शुद्ध रूप से प्रकाश का बोध करती है न कि प्रकाश स्रोतों से हलचल का। इसका मतलब समग्र अपने अंशों के जोड़ से निश्चित ही अलग है। + +3368. बहुत बढ़िया तरीके के रचे गए पशु-प्रयोग ही उनका सबसे बड़ा गुण था। ऐसे प्रयोगों में भूल-भुलैया वाली पहेली में दौड़ना, अंतर करना सीखना आदि शामिल था या स्किनर का बॉक्स तथा इसी तरह के अन्य प्रयोग जो चूहों, कबूतरों या बंदरों पर भी किए गए। स्नातक कर रहे विद्यार्थियों का उपयोग भी किया गया जो मुख्यतः रटंत प्रणाली को लेकर था। हार्वर्ड में मेरे स्नातक के दिनों में इसे ‘डस्टबाउल इंपीरिसिज्म’ कहते थे। + +3369. टोलमैन की उनके समय के महत्त्वपूर्ण एवं मौलिक व्यवहारवादी स्किनर से तुलना करें तो बहुत कुछ सामने आता है। स्किनर निश्चित ही प्रभावी प्रतिक्रिया का जबरदस्त ढंग से बचाव कर रहे थे और उतना ही जोर से टोलमैन संज्ञानात्मक ढांचे के सिद्धांत का। उनकी मूल अवधारणा प्रभावी प्रतिक्रिया की थी- यानी ऐसी क्रिया जो आरंभ में वातावरण के किन्हीं खास लक्षणों के सीधे नियंत्राण में नहीं रहती। प्रभावी प्रतिक्रिया का उदाहरण स्किनर के बॉक्स के पहले कबूतर द्वारा उपलब्ध हुआ जो दीवार पर लगे बटन पर चोंच मारता है तो बीज निकलता है। बीज निकलना या न निकलना पुनर्बलन होता है। कोई भी पुनर्बलन फिर से प्रभावी प्रतिक्रिया की संभावना को बढ़ा देता है। संभावना का स्तर इस पर निर्भर करता है कि क्या पुनर्बलन के बाद हर बार प्रतिक्रिया होती है या कभी-कभी। उदाहरण के लिए, अंशतः नियमित पुनर्बलन उम्मीद से ज्यादा प्रतिक्रिया पैदा करता है। हालांकि स्किनर इस तरह के सातत्य की व्याख्या करने को मरीचिका जगाने वाली योजना कहकर मजाक उड़ाते थे। स्किनर के सीधे-साधे शब्दों में सीखना पूरी तरह पुनर्बलन देने के नियंत्राण में होता है। पुनर्बलन केवल सकारात्मक हो सकता है और दंड सीखने को प्रभावित नहीं करता है। इसके बारे में बस यही है और कुछ नहीं, ऐसी स्किनर की मंशा थी। हालांकि कभी-कभी कुछ व्यंग्यात्मक लहजे में स्किनर कहते थे कि सीखने को शायद ही किसी सिद्धांत की जरूरत है। + +3370. समकालीन भाषाविदों ने सीखने संबंधी संयोजनवादी सिद्धांत की जो आलोचना की उसकी शुरुआत चौम्स्की द्वारा स्किनर की वर्बल बिहेवियर किताब पर लिखी आक्रामक समीक्षा से हुई। किन्तु इसने समस्या समाधान पर जोर देने वाला जो मॉडल खोजा था वह अब भाषा के सरोकार से परे जा चुका था। अब तक लोग पूछने लगे थे कि क्या सांस्कृतिक कोड भी भाषा की तरह ही सीखे जाते हैं। न ही मनो-भाषाविद् और न ही सांस्कृतिक-मनोवैज्ञानिक सीखने के बारे में अब पुराने सिद्धांतों की छाया में सोचते हैं। + +3371. संदर्भ. + +3372. 5. लेव वायगॉत्स्की, थोट एंड लैंग्वेज (कैंब्रिज, मैसाचुसेस्ट विश्वविद्यालय : एम.आई.टी. 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"1. सीसा, 2. सात, 3. राइबोसोम, 4. मलिक याकूब को, 5. गजल गायिकी से, 6. 9.46×10^12 किमी, 7. सूर्य किरण से, 8. 727, 9. फिरोजशाह तुगलक, 10. वन्य जीव पर फिल्म निर्माण से, 11. द्रव्यमान, 12. जे. बी. कृपलानी, 13. असमांग मिश्रण, 14. शाइस्ता खाँ को, 15. वायलिन के, 16. सौर कलंक, 17. हृदय का, 18. कर्नाटक, 19. औरंगजेब ने, 20. पॉप गायिकी से + +3376.
+ +3377. "1. ऑक्सीकरण का, 2. प्रधानमंत्री, 3. ग्रेमिनेसी कुल से, 4. अमाजू, 5. एम्सटर्डम में, 6. तिब्बत का पठार, 7. शेन वार्न, 8.1970-71 में, 9. अनार्यों के लिए, 10. 1979 ई. में, 11. शून्य, 12. प्रधानमंत्री को, 13. दुगुना, 14. अथर्वव दे , 15. 1947 ई. में, 16. इक्वेडोर में, 17. ल्यूव ने हॉक ने, 18. भूमि के प्रयोग के लिए, 19. मिन्हाज-उस-सिराज को, 20. जेनेवा (स्विट्जरलैंड) में + +3378.
+ +3379.
+ +3380. "1. चीड़ से, 2. वित्त आयोग, 3. ख्वाजा कुतुबुद्दीन, 4. बाघ, 5. नई दिल्ली, 6. भारत, 7. मेगास्थनीज, 8. सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं से, 9. शेखो बाबा, 10. केन्द्र सरकार द्वारा, 11. 1370 जूल, 12. 45 , 13. जल के, 14. सलीम, 15. नई दिल्ली में, 16. वेगनर ने, 17. हृदय रोग, 18. + +3381.
+ +3382.
+ +3383. "1.70-100 ml , 2. समवर्ती सूची में, 3. औरंगजेब ने, 4. चौसा का युद्ध, 5. के.के. बिड़ला फाउन्डेशन, 6. दार्जिलिंग, 7. आटविक, 8. लाभांश, 9. शेरशाह, 10. 2.5 लाख, 11. बरनौली के प्रमेय पर, 12. संघ सूची का, 13. ज्उ , 14. लॉर्ड चेम्सफोर्ड, 15. 1.5 लाख, 16. तमिलनाडु में, 17. आंध्र प्रदेश, 18. बम्बई स्टॉक एक्सचेंज (BSE), 19. लॉर्ड चेम्सफोर्ड के, 20. साहित्य क्षेत्र में + +3384. "1. 20Hz से 20000Hz तक, 2. साधारण बहुमत, 3. 1:3 , 4. भड़ौच को, 5. मदर टेरेसा , 6. श्रीलंका, 7. कुकुरबिटेसी से, 8. डब्ल्यू. डब्ल्यू. रोस्टोव ने, 9. मनसबदारी व्यवस्था, 10. रवीन्द्रनाथ टैगोर को, 11. कोलॉयड अवस्था में, 12. 1990 ई. में, 13. हुमायूँ के, 14. जहाँगीर के, 15. टॉनी मॉरीशन (1993) , 16. सिक्किम में, 17. प्लासी के युद्ध में, 18. उत्तर प्रदेश, 19. सितम्बर, 1916 ई. में, 20. 'गीतांजलि' के लिए + +3385. "1. कार्बन का, 2. पृथक निर्वाचन प्रणाली, 3. ग्ल् , 4. दादा भाई नौरोजी ने, 5. गायन से, 6. नेप्च्यून, 7. बाइचुंग भूटिया, 8. 1969 ई. में, 9. कालीबंगा, 10. भरतनाट्यम की, 11. 1/10 सेकंड, 12. माउंटबेटन योजना, 13. कैलिफोर्निया में, 14. समुद्रतटीय नगर, 15. कथकली को, 16. + +3386. "1. एम्फेसेम , 2. अनु. 14 से 18 , 3. अनुनाद का, 4. अब्दुल कादिर बदायूँनी, 5. केरल में, 6. शनि को, 7. मैगलन, 8. योजना आयोग का सचिव, 9. अब्दुस्समद द्वारा, 10. तमिलनाडु में, 11. मिथेन, 12. अनुच्छेद 300 (क) में, 13. कार्बोहाइड्रेट , 14. दादाभाई नौरोजी ने, 15. तमिलनाडु में, 16. चन्द्रमा, 17. अभिनव बिन्द्रा, 18. के. सन्थानम ने, 19. दादाभाई नौरोजी ने, 20. मदुरै में + +3387.
+ +3388. नई दिल्ली में, 16. पामीर का पठार, 17. भारत में, 18. चयनित आधारभूत उद्योग, 19. घनश्याम दास बिड़ला, 20. इलाहाबाद में + +3389.
+ +3390. "1. संवहन का, 2. 47 , 3. पारा एवं ब्रोमीन, 4. 1820 ई. में, 5. 11 नवम्बर को, 6. यूकाधिर, 7. बकरी को, 8. 19 अगस्त, 1994 को, 9. लॉर्ड विलियम बेंटिंक के, 10. पोखरण में, 11. पिट्यूटरी ग्रंथि से, 12. दो बार, 13. खजाइन-उ-फुतूह में, 14. लॉर्ड पैथिक लारेंस ने, 15. जर्मनी की, + +3391. "1. एवोग्राडो संख्या, 2. इलाहाबाद उच्च न्यायालय, 3. फीमर, 4. शाह शुजा से, 5. विवेकानन्द से, 6. हटिया में, 7. विश्वनाथन आनंद, 8. 1 जुलाई, 2010 को, 9. चक्र विसोई, 10. फिक्की ने, 11. चाँदी की, 12. इन्दौर में, 13. 3 , 14. बाबा राम सिंह को, 15. मुहम्मद अली जिन्ना, 16. + +3392. ने, 20.14 मार्च, 1995 को + +3393.
+ +3394. 16. लानोज, 17. वर्णकी लवक, 18. भारत की, 19. ब्राह्मी लिपि में, 20. 1952 ई. में + +3395. "1. साइटोलॉजी (Cytology) , 2. कांग्रेस पार्टी, 3. काली, 4.3 जून, 1947 को, 5. खेल प्रशिक्षण से, 6. पिट्सवर्ग , 7. अमेरिका में, 8. प्राइवेट लिमिटेड , 9. खान अब्दुल गफ्फार खान को, 10. एबेल पुरस्कार, 11. ताँबा, 12. बम्बई से, 13. सेण्ट्रोसोम में, 14. गुप्त काल, 15. एकेडमी अवार्डस्, 16. नीदरलैंड में, 17. नई दिल्ली में, 18. यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, 19. चन्द्रगुप्त द्वितीय के, 20. नरगिस + +3396. के लिए + +3397. नेप्च्यून, 17. चार, 18. प्रो. पीगू ने, 19. जयसिंह ने, 20. ऋषिकेश में + +3398.
+ +3399. सचिन तेंदुलकर, 18. विश्व व्यापार संगठन को, 19. लॉर्ड हार्डिंग ने, 20. 5 जून को + +3400. "1. आँवला को, 2. 90 हजार रुपये, 3. सेलखड़ी से, 4. फिरोजशाह तुगलक ने, 5. नई दिल्ली में, 6. इंडोनेशिया का, 7. कानपुर में, 8. सीमाबंदी (Ceilling) , 9. दशमलव प्रणाली, 10. डॉ. एस. राधाकृष्णन ने, 11. 10^(-10) मी., 12. सर्वोच्च न्यायालय, 13. हेनरी कैवेंडिस ने, 14. एम. एन. जोशी ने, 15. यहूदियों का, 16. छोटे रेशे वाले कपास को, 17. राइन नदी, 18. जोखिम उठाना, 19. मद्रास में, 20. नेपोलियन बोनापार्ट से + +3401. 17. नूरजहाँ ने, 18. सरकारी बॉण्डों का, 19. लॉर्ड इरविन के, 20. क्रीमियन युद्ध से + +3402. "1. हीलियम, 2.2 अक्टूबर, 1959 को, 3. इयोलिस को, 4. मौर्यों के अधीन, 5. फिल्म अभिनय से, 6. आस्ट्रि लया, 7. हॉकी से, 8.1972 ई. में, 9. सवाई जय सिंह ने, 10. मैथिलीशरण गुप्त, 11. लेसर का, 12. 25 अप्रैल, 1993 ई. को, 13. एसीटिलीन से, 14. जॉब चॉरनॉक ने, 15. + +3403.
+ +3404. "1. जार्ज वेस्टिंगहाउस, 2. 1964 ई. को, 3. 118 , 4. नौवां मंडल, 5. राइट लिवलीहुड पुरस्कार, 6. पाकिस्तान में, 7. इन्सैट-2 ए, 8. आई.सी.आई. सी.आई, 9. यजुर्वेद, 10. गोल्डन पांडा पुरस्कार, 11. 72 बार, 12. सुभाषचंद्र बोस ने, 13. गैलिलियो ने, 14. अथर्ववेद, 15. 2005 ई., 16. ग्रीनलैंड, 17. लुई चौदहवाँ, 18. सेबी (SEBI)का, 19. कृषि, 20. गणित के क्षेत्र में + +3405. "1. रेबीज (हाइड्रोफोबिया), 2.15 नवम्बर, 2000 को, 3. कालिदास, 4. सूरत में, 5. असम से, 6. मकरान तट, 7. शेरशाह ने, 8. 1191 से, 9. फ्रैंकोइस कैरो के नेतृत्व में, 10. कर्नाटक का, 11. विराम जड़त्व के कारण, 12. भाग- 2 में, 13. जे. जे. थॉमसन ने, 14. गुरु गोविन्द सिंह, 15. मिजोरम का, 16. आयन मंडल में, 17. 1982 ई. में, 18. चित्रा सुब्रह्मण्यम, 19. 1846 की लाहौर संधि, 20. ओडिशा का + +3406.
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+ +3409. "1. जेनॉन, 2. अनुच्छेद 170 में, 3. र्नेोंन को, 4. नाइटहुड की उपाधि, 5. विजय माल्या ने, 6. पंजाब, 7. स्कोर जीरो है, 8. भूमि विकास बैंक, 9. कृष्ण प्रथम ने, 10. चन्द्रशेखर, 11. इको साउण्डिंग, 12. 500 , 13. सोडियम हाइड्रॉक्साइड के निर्माण में, 14. ध्रुव को, 15. झारखंड का, + +3410. का, 16. पुडुचेरी, 17. लॉन टेनिस से, 18. 2 अक्टूबर, 1993 को, 19. प्राकृत, 20. मुंशी प्रेमचंद + +3411.
+ +3412. "1. रॉबर्ट हुक ने, 2.24 अगस्त, 1947 को, 3.4.18 जूल, 4. स्वराज द्वीप, 5. महाराष्ट्र, 6. परतदार चट्टान में, 7. जोसेफ मेजिनी ने, 8.1986 ई. में, 9. चंद्रगुप्त द्वितीय के, 10. उत्तराखण्ड का, 11. ग्रेफाइट का, 12. 8 फरवरी, 1948 को, 13. वाटसन एविंक्रक ने, 14. वस्त्र उद्योग, 15. + +3413. घ. + +3414.
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+ +3425. "1. तमिलनाडु में, 2. नियॉन का, 3. पी. वी. नरसिंह राव, 4. रिलैक्सिन, 5. 1928 ई. में, 6. हारमोनियम, 7. फुटबॉल, 8. नैगनर नर्क्स ने, 9. 28 अक्टूबर, 1851 को, 10. सरोद से, 11. अंग्रेंज का, 12. श्रीमती इंदिरा गांधी, 13. एलसेन्ड्रो वोल्टा ने, 14. ब्रिस्टल (इंग्लैंड) में, 15. वायलिन, 16. सूर्य, 17. शंकुरूपी, 18. संयुक्त राज्य अमेरिका से, 19. 1784 ई. में, 20. पखावज से + +3426. "1.20 दाँत, 2. मुण्डकोपनिषद् से, 3. इस्पात का, 4. पं. जगन्नाथ को, 5. लॉक का, 6. कोलकाता में, 7. लियो टॉलस्टाय ने, 8. प्रो. अमर्त्य सेन (भारत), 9. शाहजहाँ के, 10. पैराडाइज लॉस्ट में, 11. हाइड्रोजन, 12. प्रथम अनुसूची में, 13. तिल्ली (Spleen) को, 14. सामूगढ़ का युद्ध, 15. जवाहरलाल नेहरू की, 16. मुंबई में, 17. एथलेटिक्स (100 मीटर दौड़) , 18. उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था को, 19. काठी, 20. विवेकानंद ने + +3427.
+ +3428. "1. थायमिन, 2. उच्च न्यायालय, 3. आइन्स्टीन ने, 4. भारत छोड़ों आंदोलन, 5. यूजीब शूमेकर ;अमेरिकाद्ध, 6.1 घंटा, 7. सूती कपड़ा उद्योग से, 8. पूँजी, 9. एम. जी. राणाडे, 10. द हिन्दू का, 11. वैद्युत संयोजक, 12. अनुच्छेद 233 , 13. डार्विन ने, 14. एम. जी. राणाडे को, 15. मिस्र की सभ्यता से, 16. जापान, 17. स्लोवाकिया के, 18. वर्गीज कुरियन, 19. चन्हूदड़ों, 20. बोत्डिगांग को + +3429.
+ +3430. "1. तना काट प्रवर्धन, 2. भारत की संचित निधि से, 3. नियंत्रित विखण्डन द्वारा, 4. लॉर्ड कर्जन के कार्यकाल में, 5. गजल गायिकी में, 6. मेघों की दिशा में गति, 7. रॉबर्ट ओवन को, 8.1995 ई. में, 9. कार्ल मार्क्स ने, 10. पाकिस्तान से, 11. सिल्वर ब्रोमाइड की, 12. 1976 ई. में, 13. डॉ. नोरमान बोरलॉग को, 14. क्लीमेंट एटली, 15. पॉप गयिकी से, 16. टायफून, 17. केरल में, 18. 1 अक्टूबर, 2007 से, 19. लॉर्ड माउंटबेटन योजना, 20. प्रातः काल में + +3431.
+ +3432. एलम का, 14. शाहजहाँ के शासन काल को, 15. 4 फरवरी को, 16. शनि, 17. सिंह को, 18. दो चरणों में, 19. शोरशाह ने, 20.4 फरवरी को + +3433. आयोग, 16. देशांतर रेखा, 17. ग्यासुद्दीन तुगलक, 18. पी. सी. महालनोबिस, 19. चराई कर एवं घरी कर, 20. के. एम. मुंशी ने + +3434.
+ +3435. "1. रवीन्द्रनाथ टैगोर ने, 2. कानून, 3. गति के प्रथम नियम से, 4. रोकैय हुसैन , 5. कत्थक से, 6. प्रकाश का अपवर्तन, 7. यकृत, 8. उत्पाद शुल्क (Excise Duty) , 9. रॉलेट एक्ट 1919 , 10. कत्थक से, 11. ग्रेफाइट का, 12. वी. स्मिथ का, 13. अस्थि-मज्जा ;बोन-मैरोद्ध, 14. स्वामी श्रवानंद ने, 15. सितारा देवी को, 16. दिल्ली का, 17. लुई 14 वाँ, 18. केन्द्र सरकार को, 19. हंसराज ने, 20. भरतनाट्यम से + +3436.
+ +3437.
+ +3438. "1. कुचालक, 2. राष्ट्रपति, 3. विटामिन 'डी' को, 4. लॉर्ड मेयो ने, 5. रमेश सिप्पी ने, 6. रूस एवं जापान, 7. एम. जे. गोपालन, 8. के. सी. नियोगी, 9. अजमेर में, 10. आमिर खान, 11. 1920 ई. में, 12. राष्ट्रपति, 13. घर्षण कम करते हैं।, 14. लॉर्ड मेयो की, 15. आशुतोष गोवारिकर, 16. बार्थोलोम्यू डिजाय ने, 17. 340 दिनों का, 18. वित्त आयोग, 19. जवाहरलाल नेहरू ने, 20. शाहरूख खान + +3439.
+ +3440. "1. अम्लीय लवण, 2. मोर ;पावोक्रस्टेट्सद्ध, 3. फार्मकोफोबिया, 4. चन्द्रगुप्त द्वितीय के, 5. जयपुर में, 6. सवाना, 7. डूरंड कप, 8. विश्व बैंक , 9. हर्षवर्धन ने, 10. माउण्ट आबू ;अराबली पर्वतद्ध राजस्थान, 11. विशाल स्नानागार, 12. संसद को, 13. द्वितीय श्रेणी का उत्तलक, 14. शिव का, 15. जैन धर्म, 16. टॉरस जलसंधि, 17. टीनिया कैपिटिस के कारण, 18. नई दिल्ली में, 19. अन्हिलवाड़, 20. राँची में + +3441.
+ +3442. "1. लोहा, 2. निर्वाचन आयोग, 3. डार्विन ने, 4. सोमनाथ पर, 5. रॉबर्ट वालपोल, 6. 100-200 किमी की गहराई में, 7. 3.6 × 3.6 से 6.10 × 6.10 मी., 8. 68.8% , 9. रजिया सुल्तान, 10. 1 दिसम्बर, 2007 को, 11. बाल गंगाधर तिलक को, 12. परिसीमन आयोग, 13. हाइड्रोफोन से, 14. तुर्कों का, 15. 23 अगस्त, 2008 को, 16. चूना-पत्थर, 17. प्रोटीन, 18. 31.2% , 19. तबकात-ए-नासिरी, 20. 4 नवम्बर, 2008 को + +3443.
+ +3444. द्वीप पर, 17. 1 अक्टूबर, 1949 को, 18. गुन्नार मिर्डल ने, 19. वास्को-डि-गामा ने, 20. मृदंग से + +3445. "1. नायलॉन, 2.26 जनवरी, 1950 को, 3. गुलाब के, 4. राम मनोहर लोहिया ने, 5. मकाओ की, 6. ओडिशा, 7. बदायूँ का, 8.27 जनवरी, 2003 को, 9. रानी झांसी रेजिमेंट, 10. मॉरिशियन रुपया, 11. बरनौली प्रमेय पर, 12. 22 जुलाई, 1947 को, 13. पॉली कार्बोनेट्स का, 14. कैप्टन + +3446.
+ +3447. पंचवर्षीय योजना में, 19. जहाँगीर के, 20.1975 में, मेक्सिको सिटी में + +3448. "1. क्यूरी या रदरफोर्ड, 2. चार स्तरीय, 3. Fractose एवं ग्लूकोज में, 4. चम्पा, 5. काका हाथरसी, 6. श्रीलंका को, 7. तानसेन की, 8. लगभग 7% , 9. ऋषभदेव, 10. केदारनाथ सिंह, 11. लाल रंग का, 12. दो स्तरीय, 13. रेडियम, 14. नागार्जुन, 15. गोदान को, 16. महानदी, 17. डॉग फाइट , 18. नरसिंहपुर ;मध्य प्रदेशद्ध, 19. 1937 ई. में, 20. प्रेमचंद की + +3449.
+ +3450.
+ +3451. 17. वीरेन्द्र सहवाग ने, 18. 2.1 , 19. अक्षय कुमार दत्त, 20. मोनार्की + +3452. बैहम ने, 17. मुसोलिनी, 18. लघु एवं मध्यम उद्योग से, 19. बदरुद्दीन तैय्यबजी, 20. हिन्दू विधि से + +3453. "1. नाइक्रोम के, 2.36 वाँ (1975 ई.) के तहत, 3.1.2ह , 4. नूरजहाँ की माँ, 5. सितारा देवी को, 6. गोरे, 7. कृषि, 8. भारतीय स्टेट बैंक, 9. बाजीराव प्रथम ने, 10. भरतनाट्यम, 11. 11 मई, 1998 को, 12. सरदार वल्लभ भाई पटेल को, 13. गैलियम, 14. नाना साहब, 15. भरतनाट्यम + +3454.
+ +3455. "1. मैग्नीशियम नाइट्राइड का, 2. अनुच्छेद 153 , 3. तंत्रिका कोशिका, 4. हरिहर एवं बुक्का ने, 5. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने, 6. मंगोलिया, 7. 1.5 औंस, 8. हेराल्ड डोमर मॉडल पर, 9. अब्दुर रज्जाक ने, 10. भारत तथा पाकिस्तान के मध्य, 11. हरा, पीला, और लाल, 12. राष्ट्रपति, 13. 746 वाट, 14. विद्यारण्य ने, 15. केपटाउन में, 16. निकेल, 17. हरितलवक, 18. 1966.1969 , 19. लमनालाल बजाज ने, 20. स्पेन में + +3456.
+ +3457.
+ +3458.
+ +3459. एक-तिहाई सदस्य, 18. किताब-उल-रेहला से, 19. चेन्नई में, 20. मिहिर भोज ने + +3460.
+ +3461. "1. प्रभाजी आसवन से, 2. कर्क रेखा, 3. वसा के संग्रह हेतु, 4. पृथ्वीराज रासो, 5. तमिलनाडु का, 6.1 जुलाई, 1989 ई. को, 7. अनुच्छेद 368 , 8. मिनहाज-उस-सिराज, 9. पृथ्वीराज चौहान ने, 10. छत्तीसगढ़ का, 11. पारा, 12. 0 डिग्री देशांतर (ग्रीनविच रेखा), 13. सोडियम नाइट्रेट, 14. 1191 ई. में, 15. पण्डवानी, 16. डी. उदय कुमार ने, 17. रोहिणी, 18. 10 , 19. नगरम, 20. त्यागराज + +3462. "1. कर्नाअक अभियान, 2. समुद्र से अधिक दूरी, 3. विकिरण से, 4. सिरी में, 5. 23 मार्च को, 6. स्पॉट ट्रेडिंग, 7. लैटिन भाषा का, 8. अनु. 39 (क) में, 9. अमीर खुसरो ने, 10. 1 अप्रैल को, 11. क्रिया निरोधक, 12. दामोदर घाटी परियोजना, 13. सिनामोसस कैम्फोरा, 14. इब्नबतूता ने, 15. 5 अप्रैल को, 16. शेयर मार्केट, 17. इरफान हबीब के अनुसार, 18. लोकसभा उपाध्यक्ष को, 19. एलिफिंस्टन ने, 20. 5 अप्रैल को + +3463.
+ +3464. "1. चेर, चोल एवं पाण्ड्य, 2. हाइड्रोजन, 3. वाष्पीकरण, 4. मुण्डा विद्रोह के कारण, 5. ओडिसी से, 6. केरल में, 7. जल में, 8. राष्ट्रपति, 9. दीकू, 10. मणिपुरी से, 11. कैल्सियम कार्बोनेट, 12. यूरेनियम डेटिंग, 13. 70.80 प्रति मिनट, 14. बिरसा मुण्डा ने, 15. चित्रकला से, 16. + +3465.
+ +3466. "1. अग्नाशय के, 2. चुक्कीकामाटा (चिली), 3. काला, 4. लॉर्ड कैनिंग ने, 5. राजा राव की, 6.1881 ई. में, 7. हिरोशिमा पर, 8. लोक लेखा समिति, 9. लॉर्ड कैनिंग के कार्यकाल में, 10. सलमान रुश्दी, 11. यूरिया, 12. चिली, 13. यकृत, 14. लॉर्ड कर्जन ने, 15. सरोजिनी नायडू की, + +3467. खान को + +3468. "1. हाइड्रोफ्लुओरिक अम्ल का, 2. मृत सागर, 3. विटामिन K (नैफ्थोक्विनोन), 4. चतुर्थ सदी में, 5. मैकाइवर ने, 6. मानव पूँजी, 7. लिएंटर पेस ने, 8. डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने, 9. बाम्बे समाचार, 10. आर्कमिडीज ने, 11. गोपाल हरिदेशमुख ने, 12. आर्कटिक महासागर को, 13. दूर दृष्टिदोष से, 14. पेरिस से, 15. ब्यूनस आयर्स, 16. वर्ष 1999-2000 में, 17. मोलस्का, 18. निर्वाचन आयोग, 19. सूरीनाम, 20. लंदन से + +3469. 7 मिनट, 40 सेकंड, 13. टेण्डन, 14. शिवाजी द्वारा, 15. इण्डोनि शया में, 16. एक बार, 17. न्यूजीलैंड, 18. पार्षद, 19. मलिक अम्बर की, 20. + +3470. "1. अनंत, 2.40% , 3. डी. ब्रोग्ली ने, 4. फौजदार, 5. विलियम वर्ड्सवर्थ ने, 6. सूरत में, 7. सिस्मोलॉजी, 8.52 , 9. लाहौर, 10. जयद्रथ ने श्रीकृष्ण से, 11. यूरिऐज, 12. 6 राज्यों से, 13. सिलिकॉन की, 14. गुलाम वंश, 15. मैथिलीशरण गुप्त की, 16. चाय से, 17. विंस्टन चर्चिल, + +3471. "1. प्रकाश द्वारा, 2. सारगैसो सागर को, 3. कोयम्बटूर, 4. अकबर, 5. भारत व बांग्लादेश के बीच, 6. अंतर्राष्ट्रीय विकास संघ को, 7. बदायूनीं ने, 8. पी. के. षन्मुख् चेट्टी, 9.16 वां आक्रमण, 10. हरा, सफेद, केसरिया, 11. एनोड, 12. मरुस्थलीय वन, 13. -2 , 14. अमीर-ए-आखूर, + +3472. "1. लॉर्ड इरविन के, 2. वेनेजुएला को, 3. वोल्ट में, 4. सितम्बर, 1942 को, 5. पं. भीमसेन जोशी को, 6. दिल्ली, कोलकाता और चेन्नई में, 7. यकृत, 8. उमा भारती, 9. दादा कोण्डदेव का, 10. पद्म विभूषण, 11. दाब बढ़ जाता है, 12. पाकिस्तान में, 13. माइटोकॉण्डि्रया में, 14. समर्थ + +3473. "1. सिल्वर आयोडाइड, 2. गेहूँ, 3. इन्डोकार्पन को, 4. गाजी मलिक, 5.1989 ई. में, 6. पंजाब में, 7. USA के, 8. जम्मू व कश्मीर में, 9. ललितादित्य मुक्तापीड, 10. जून, 1997 , 11. 1920 ई. में, बंबई में, 12. गेहूँ, 13. विद्युत अपघटन से, 14. हर्ष को, 15. पाँच देश, 16. बॉम्बे + +3474.
+ +3475.
+ +3476.
+ +3477. "1. ताय्यूनी आंदोलन, 2. प्रतिरोपण विधि से, 3. ह्वीलर, 4. बम्बई में, 5. ध्रुपद गायिकी से, 6. 15 अगस्त, 1997 , 7. विटामिन 'ए', 8. राष्ट्रपति के, 9. मुजफ्फर खाँ तुरबती, 10. मध्य प्रदेश का, 11. हैनिंग ने, 12. एपीकल्चर, 13. कीट वर्ग, 14. सैनिक विभाग की, 15. राजस्थान का, 16. गेहूँ, 17. ज्ञानेश्वरी को, 18. 15 , 19. पैबाकी, 20. हिमाचल प्रदेश से + +3478. 15. सचिन तेंदुलकर, 16. इंजीनियरिंग उत्पाद का, 17. विटामिन B-12 में, 18. डॉ. जाकिर हुसैन , 19. शम्से शिराज असीफ का, 20. इंडोनिशया + +3479.
+ +3480. "1.8 , 2. गैनिमीड, 3. कैडमियम, 4. मोहनजोदड़ो को, 5.1969 ई. से, 6. कोलकाता में, 7. स्क्वैश से, 8.42 वें संविधान संशोधन द्वारा, 9. अन्नागार, 10. अंग्रेजी में, 11. स्वामी श्रवानंद ने, 12. कॉपरनिकस ने, 13. भूकेन्द्र पर, 14. लॉर्ड कर्जन का, 15. 1973 ई. में, 16. मई, 1951 + +3481.
+ +3482.
+ +3483.
+ +3484.
+ +3485. "1. कैल्सियम सायनामाइड को, 2. पृथ्वी, 3. हाइपोग्लाइसीमिया, 4. कनिष्क के, 5. आंध्र प्रदेश से, 6. जनवरी, 1950 ई. में, 7.1980 ई., 8. राष्ट्रपति को, 9. नव पाषाण काल में, 10. मणिपुर से, 11. शाहजहाँ ने, 12. 4 , 13. 60 डिग्री का कोण, 14. अंगुत्तरनिकाय में, 15. 12 वर्ष के + +3486.
+ +3487.
+ +3488. सूवा + +3489. 17. पी. गोपीचंद की, 18. लोकसभाध्यक्ष के, 19. टीपू सुल्तान ने, 20.10 जनवरी को + +3490. में, 16. महाराष्ट्र, 17. पाँच वर्षों के लिए, 18. 40 , 19. सद्र-उस-सुदूर, 20.21 मार्च को + +3491.
+ +3492. "1. किलोवाट घंटा (KWH) , 2. दूसरा, 3. कैल्सियम कार्बोनेट का, 4. राजतंत्रात्मक, 5. असम में, 6. लौह-इस्पात उद्योग, 7. 20 सितम्बर, 2004 को, 8. प्रधानमंत्री, 9. जाबालोपनिषद्, 10. कोमितेत गोसुदरस्तंवेन्नोई बेजोपास्तनोस्ती, 11. हीमोग्लोबीन, 12. क्यूरोशियो जलधारा, 13. 3.6 × 10 6 जूल के, 14. एण्ड्रोकोट्स, 15. आलम आरा, 16. जुलाई-जून, 17. वाशिंगटन डी.सी. में, 18. संसद की, 19. चम्पारण में, 20. बिमल राय ने + +3493. 15 , 15. असम में, 16. ब्रिटेन की, 17. 42 , 18. नहीं, 19. विष्णुवर्धन ने, 20. रूस की + +3494.
+ +3495.
+ +3496.
+ +3497. "1. मिथेन, 2. हुसैन सागर झील, 3. सेरीवेलम, 4. दस शीलों पर, 5. शारदा कबीर, 6. चीनी उद्योग, 7. डिकेथलॉन, 8. अनुच्छेद 338 , 9. ताँबा और सोना के, 10. 1931 ई. में, 11. महाभाष्य, 12. ज्वारीय वन में, 13. एम. एन. राय, 14. तोलकाप्पियम्, 15. फिलीस्तीन में, 16. केरल में, 17. वसा, 18. स्वामी दयानंद सरस्वती ने, 19. इलाहाबाद के दरबार में, 20. पद्म भूषण + +3498. वैसे तो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी भारतीय भाषाओं को वो स्थान नहीं मिला जो उनको मिलना चाहिए था पर पिछले कोई तीस वर्षों से भारतीय भाषाओं की दुगर्ति की गति और भी तीव्र हो गई है और अंग्रेजी भाषा भारतीय भाषाओं को विस्थापित किए जा रही है, विशेष तौर पर शिक्षा के माध्यम के रूप में। इसका मूल कारण तो निहित स्वार्थ हैं, पर इस नीति के पक्ष में जो तर्क दिए जाते हैं वो कुछ निम्न प्रकार के हैं: + +3499. और निम्न पंक्ति तो मुख्यतः अंग्रेजी भाषी देश अमेरिका के बारे में है: + +3500. अमेरिका के बारे में एक और कथन देखिए: ”ऐसे ही अमेरिका में भी धीरे-धीरे यह समझ पैदा हो गई है कि गैर-अंग्रेजी भाषाई नागरिकों को अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली में डालने और उनकी मातृभाषा के विकास पर ध्यान न देने से नतीजे अच्छे नहीं निकलते।“ (Tucker, 1977:3) + +3501. ऊपर हमने देखा है कि दुनिया भर की खोज और विशेषज्ञ इस बात का पक्का प्रमाण पेश करते हैं कि शिक्षा की सफलता केवल मातृभाषा माध्यम से ही संभव है। पर हमारे भारत में शिक्षा और भाषा नीतियों को चलाने वाले आंखों पर अज्ञानता की पट्टी बांधे और कानों में अंग्रेजी रूई के बड़े-बड़े गोले फसाए अंग्रेजी-अंग्रेजी चिल्लाए जा रहे हैं और देश की शिक्षा, भाषाओं और संस्कृति को बर्बादी की पटरी पर सरपट दौड़ाए जा रहे हैं। इस लेख का उद्देश्य इस अज्ञानता को भेदने और इन रूई के गोलों को निकालने का एक विनम्र प्रयत्न है। + +3502. सो, स्पष्ट है कि विदेशी भाषा भी मातृभाषा के माध्यम में पढ़ने पर विदेशी भाषा में पढ़ने से बेहतर आती है। ऐसा क्यों होता है यह निम्न कथन से स्पष्ट हो जाएगा: + +3503. भारत के नीति निर्माताओं की अज्ञानता पर इससे बड़ी क्या टिप्पणी हो सकती है कि मलेशिया तो तमिल भाषियों को तमिल में विज्ञान पढ़ाना ठीक समझता है पर भारत में यह एक अपराध जैसा है। पंजाबी में कहावत है कि अकल के बिना तो कुएं भी खाली हो जाते हैं। कुओं की बात एक तरफ, पर भारतीय देसी अंग्रेजों के भेजे जरूर खाली हो चुके हैं। खैर, कुछ और मिसाले देना कोई बुरी बात नहीं होगी: + +3504. वाक्य संरचना के आधार पर यह बिल्कुल नहीं कहा जा सकता कि कोई भाषा ज्यादा सामर्थ है और कोई कम। हर भाषा की वाक्य संरचना थोड़े बहुत अंतर के साथ एक जैसी ही है। किन्हीं दो भाषाओं का व्याकरण लेकर चंद पन्ने पढ़ने से ही यह स्पष्ट हो जाता है। जिन भाषाओं का कोई व्याकरण न लिखा गया हो उनकी भी वाक्य संरचना वैसी ही समृद्ध होती है जैसी लिखित व्याकरण वाली भाषाओं की। मुसीबत खड़ी करने वाली बात शब्दावली है। अक्सर सुना जाता है कि हमारी भाषाओं के पास विज्ञान और तकनीक जैसे विषयों की शिक्षा के लिए शब्द नहीं हैं। पर यह दृष्टिकोण शत प्रतिशत अज्ञानता पर आधारित है। + +3505. 4. Haemal. Pertaining to the blood. + +3506. 9. Haematemesis. The vomiting of blood. + +3507. 14. Haematocolpos. Retention of the menses due to a congenital obstruction of vagina. + +3508. 19. Haematoma. The blood tumour; H. Auris, the blood tumour of the external.” (Rawat, 1985 ) + +3509. वर्तमान समय में विश्व में दो भाषाई रूझान स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं, एक तो अंग्रेजी भाषा का कम हो रहा वर्चस्व और दूसरा गैर-अंग्रेजी भाषाओं का हर क्षेत्र में बढ़ रहा महत्‍व। + +3510. पूरे विश्व में सभी विकसित देशों के लगभग सभी स्कूलों में मातृभाषा के अलावा और भाषाओं की शिक्षा देने का प्रयत्न किया जा रहा है, और ये दूसरी भाषाएं केवल अंग्रेजी नहीं हैं। + +3511. पूर्व अंग्रेजी उपनिवेशों में कैसे अंग्रेजी संचार-तंत्र से भी बाहर हो रही है इसका एक अच्छा प्रमाण अर्जनटीना के ये आंकड़े हैं: 1983 में अर्जनटीना के संचार-तंत्र (media) का 49 प्रतिशत देश के बाहर से था जो 1996 में घटकर 22 प्रतिशत ही रह गया। + +3512. अंग्रेजी भाषा में शिक्षा से हमें कितना फायदा हुआ है यह हमारी उच्च शिक्षा की दशा से ही स्पष्ट हो जाता है। भारत में पिछले 150 साल से उच्च शिक्षा के स्तर पर विज्ञान की शिक्षा अंग्रेजी भाषा में हो रही है। पर हमारा एक भी विश्वविद्यालय विश्व के पहले 200 विश्वविद्यालयों की गिनती में नहीं आता। जापान, चीन, कोरिया, रूस जैसे देश अपनी सारी शिक्षा अपनी भाषाओं में दे रहे हैं, फलस्वरूप उनके विश्वविद्यालयों का स्तर हमारे विश्वविद्यालयों से कहीं बेहतर है। हमारी शिक्षा के घटिया स्तर का सबसे बड़ा कारण उच्च शिक्षा का अंगेजी भाषा में होना है। + +3513. जब से भारत में स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम का प्रचलन बढ़ा है, उसके बाद की स्थिति का अगर लेखा-जोखा किया जाए तो एक भयावह दृश्य के दर्शन होते हैं। अंग्रेजी माध्यम के प्रचलन से भाषाई अपंगों की एक पीढ़ी खड़ी हो रही है जो किसी भाषा में पारंगत नहीं है। मातृभाषा तो यह पीढ़ी इसलिए अच्छी तरह नहीं सीख पा रही है क्योंकि इसे अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाया जा रहा है। इस पीढ़ी के बच्‍चों की अंग्रेजी का अच्छा विकास इसलिए नहीं हो सकता क्योंकि कोई भी बच्चा जो आरम्भ से ही विदेशी भाषा माध्यम से पढ़ता है उसके भाषागत सामर्थ्य का विकास ही अच्छा नहीं हो पाता। ऐसे में वह कोई भाषा भी अच्छी तरह नहीं सीख पाता। + +3514. 1.Ammon, Ulrich. 2009. Book Review. Medium of Instruction Policies. Which Agenda? Whose Agenda? by J.W. Tollefson and A.B.M. Tsui (eds). Mahwah, NJ and London: Lawrence, Erlbaum, 2004. + +3515. 6.Paulston, C.B. 1977. Research In Bilingual Education: Current Perspectives. Linguistics. pp. 87–151. + +3516. 11.Tucker, G.R. 1977. Bilingual Education: Current Perspectives, Vol. 2. Linguistics. Arlington, VA: Centre for Applied Linguistics. UNDP Report. 2004. + +3517. भारतीय भाषाओं को कितना खतरा: + +3518. सो, ऐसी स्थिति में यह भारतीयों के सामने लाना ज़रूरी हो जाता है कि किसी भाषा की स्थिति के बारे में निर्णय करने के लिए क्या मानदंड हैं और इन मानदंडों के आधार पर भारतीय भाषाओं की क्या स्थिति है। इस दस्तावेज़ में किया गया आंकलन उन सभी भारतीय भाषाओं पर लागू होता है जिनका प्रयोग राज भाषाओं के रूप में हो रहा है। जो भारतीय भाषाएँ राजभाषाएँ नहीं हैं उनकी दुर्दशा के बारे में तो बात न करना ही अच्छा होगा। इनमें से बहुत सी तो आखरी सांस ले रही हैं। + +3519. 4. भाषीय प्रयोग के क्षेत्रों में प्रचलन। + +3520. 9. प्रलेखीकरण (documentation ) की किस्म और गुणवत्ता। + +3521. 4. लोप होने का बहुत गंभीर खतरा है। + +3522. यूनेस्को की रिपोर्ट ( 2003:7-8 ) पीढ़ी-दर-पीढ़ी संचार कारक के आधार पर किसी भाषा की अवस्था को नीचे दी गयी छ: अवस्थाओं में से एक निर्धारित करती है ( यूनेस्को 2003:7-8 ): + +3523. I.1.1 + +3524. लोप होने का खतरा है + +3525. सिर्फ माँ-बाप ही अपनी भाषा बोलते हैं पर ज़रूरी नहीं कि बच्चे अपनी भाषा में ही जवाब दें। + +3526. I.5 + +3527. एक भी व्यक्ति नहीं है जो अपनी भाषा बोल अथवा समझ पाता है। + +3528. सम्बन्धित प्रदेशों में भारतीय भाषाओं का पीढ़ी-दर-पीढ़ी संचार अच्छा ज़रूर है पर आदर्श रूप में यहाँ भी नहीं। बहुत क्षेत्र है जहाँ सम्बन्धित भाषा का प्रयोग नहीं हो रहा अथवा कम हो रहा है। इन में सब से बड़ा क्षेत्र स्कूली शिक्षा का है। प्रभुत्वशाली वर्ग के लगभग सारे बच्चे प्रारंभिक स्तर से ही अंग्रेज़ी माध्यम विद्यालयों में जा रहे हैं। इन विद्यालयों में भारतीय भाषाएँ विषय के रूप में अधूरे से ढंग से ही पढ़ाई जा रही हैं। जैसे कि लेखक पहले ही अपने एक लेख में दर्ज कर चुका है, इन विद्यालयों में से निकल रहे बच्चों को भारतीय भाषी बच्चे कहना भी उचित नहीं है क्योंकि स्कूली शिक्षा खत्म करने के बाद इन बच्चों की भाषीय क्षमता किसी भारतीय भाषा से अंग्रेज़ी भाषा में बेहतर होती है (यह अलग बात है कि वह भी सीमित सी ही है )। + +3529. किसी समूह की कुल आबादी में कितने लोग अपनी भाषा बोलते हैं यह किसी भाषा की प्राणशक्ति का बड़ा संकेत देता है।( यूनेस्को 2003:9 ): + +3530. 5 + +3531. गंभीर खतरा है + +3532. अल्पमत (a minority) अपनी भाषा बोलता है + +3533. 0 + +3534. खतरे का स्तर + +3535. भाषा का प्रयोग सभी क्षेत्रों (domains) और सभी कार्यों (functions) के लिए होता है। + +3536. 3 + +3537. बहुत ही सीमित क्षेत्र + +3538. भाषा का प्रयोग किसी भी क्षेत्र में और किसी भी कार्य के लिए नहीं होता। + +3539. दर्जा + +3540. 4 + +3541. 2 + +3542. 0 + +3543. दर्जा + +3544. लिखित सामग्री हासिल है और बच्चे विद्यालयों में भाषा में साक्षरता हासिल कर रहे हैं। + +3545. लिखित सामग्री की मौजूदगी है पर समूह के कुछ सदस्यों के लिए इसका प्रयोग सक्षम नहीं है। दूसरों के लिए इस का अस्तित्व प्रतीक मात्र है। सम्बन्धित भाषा में साक्षरता शिक्षा विद्यालय का हिस्सा नहीं है। + +3546. दर्जा + +3547. संरक्षण बराबर नहीं + +3548. अल्पसंख्यक भाषाओं के लिए प्रत्यक्ष नीती का अभाव है। औपचारिक क्षेत्रों में प्रभुत्वशाली भाषा का कब्जा। + +3549. 1 + +3550. भारतीय भाषाओं के प्रति सरकारी क्षेत्रों का व्यवहार कोई उत्साहजनक नहीं है। सरकारी कार्यालयों और संस्थाओं में राज भाषाओं के प्रयोग के लिए कानून बन जाने के बावजूद भी इन को ईमानदारी से लागू कराने के कोई प्रयत्न नहीं किये जा रहे। यदि कोई हिलजुल होती भी है तो बस जन दबाव के कारण। पंजाब में घटी एक घृणित घटना (जिसका समाचार पत्रों में विवरण दिया गया था) का ज़िक्र स्थिति को समझने में सहायता करेगा। पिछले दिनों पंजाब विधान सभा में प्रतिद्वंदी पक्ष (कांग्रेस पार्टी) के नेता माननीय सुनील जाखड़ जी ने अंग्रेज़ी में बोलना शुरू किया तो एक माननीय सदस्य ने उन को पंजाबी में बोलने की ताकीद की। श्री सुनील जाखड़ जी का जवाब था कि विधान सभा में बैठे सदस्य अंग्रेज़ी समझ सकते हैं। पंजाब विधान सभा के सारे सदस्यों की अंग्रेज़ी भाषा में क्षमता कितनी ही है, इस सवाल पर जाने की तो हमें आवश्यकता नहीं है, पर श्री सुनील जाखड़ जी को यह पूछना बनता है कि पंजाब विधान सभा की बैठक में बात पंजाबी में बेहतर समझाई जा सकती है अथवा अंग्रेज़ी में (लगता है कि सुनील जाखड़ जी समझ और राष्ट्रीय आत्मसम्मान का क्रिया-कर्म करके पंजाब विधान सभा के उस समागम में दाखिल हुए थे)। खैर ! यह घटना भारत में भारतीय भाषाओं की तरफ़ पूरे राजनैतिक और सरकारी व्यवहार का सबूत है। + +3551. कारक ८ : भाषा समूह का भाषा के प्रति व्यवहार. + +3552. सारे व्यक्ति अपनी भाषा का आदर करते हैं और इस की उन्नति देखना चाहते हैं। + +3553. 2 + +3554. कोई भी अपनी भाषा के खत्म होने की परवाह नहीं करता; सभी प्रभुत्वशाली भाषा के प्रयोग को पहल देते हैं। + +3555. कारक ९ : प्रलेखीकरण की किस्म और गुणवत्ता. + +3556. उत्तम + +3557. एक अच्छा वयाकरण हासिल है; अपेक्षित व्याकरण, कोश, पठन-सामग्री और साहित्य हासिल हैं; दैनिक संचार माध्यम के स्रोत मौजूद हैं, और उच्च दर्जे के और बड़े स्तर पर श्रवणीय और दर्शनीय स्रोत विवरण सहित हासिल है। + +3558. 2 + +3559. कोई प्रलेखीकरण नहीं + +3560. निचोड़. + +3561. प्रदेश से बाहर संभावित अंक + +3562. 2. + +3563. कुल आबादी में बोलने वालों का अनुपात + +3564. 3 + +3565. 2 + +3566. 7. + +3567. प्रलेखीकरण की किस्म और गुणवत्ता + +3568. 3½ + +3569. भारतीय भाषाओं का भविष्य. + +3570. यह भी कई बार सुनने को मिलता है कि जिन भाषाओं में महान ग्रन्थ और रचनाएँ विद्यमान हो, या जिन में ऋषियों-मुनियों का संदेश दर्ज हो वह भाषा कभी नहीं मर सकती। यह आशा अच्छी है और सहारा बड़ा है, पर यह नहीं भूलना चाहिए कि वेद, उपनिशद और पुराण संस्कृत में रचे गए थे। पर फिर भी संस्कृत केवल किताबों में ही पड़ी मिलती है, जिन को पढ़ भी बहुत ही कम व्यक्ति सकते हैं। बौद्ध ग्रन्थ पाली में लिखे गए थे पर पाली कहाँ है? बाईबल हिब्रू में रची गई थी पर हिब्रू को भारी सरकारी प्रयत्नों के बाद ही जिन्दा किया जा सका है। सारे यूरोप की ज्ञान की भाषा लातीनी थी, जिसका ज्यादा लोग तो अब नाम भी नहीं जानते। + +3571. संदर्भ और टिप्पणियाँ. + +3572. ५. इस निबन्ध में यूनेस्को (२००३) से बड़ी सहायता और उक्तियाँ ली गई हैं। सभी सारणी यूनेस्को की इसी रिपोर्ट से हैं। इस सब के लिए मैं यूनेस्को का हार्दिक आभारी हूँ. + +3573. सूय्र्यचन्द्रो मंगलश्च बुधश्चापि बृहस्पति:। + +3574. अर्क: पलाश: खदिरश्चापामार्गोऽथ पिप्पल:। + +3575. + +3576. हरि न बनायो सुरसरी, कीजो इंदव-भाल॥2॥
+ +3577. अनकीन्‍हीं बातैं करै, सोवत जागे जोय।
+ +3578. है र‍हीम रघुनाथ तें, सुजस भरत को बाढ़ि॥7॥
+ +3579. अमर बेलि बिनु मूल की, प्रतिपालत है ताहि।
+ +3580. रिनिया, राजा, माँगता, काम आतुरी नारि॥12॥
+ +3581. आप न काहू काम के, डार पात फल फूल।
+ +3582. रहिमन इन्‍हें सँभारिए, पलटत लगै न बार॥17॥
+ +3583. एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
+ +3584. ज्‍यों रहीम हनुमंत को, गिरधर कहै न कोय॥22॥
+ +3585. कदली, सीप, भुजंग-मुख, स्‍वाति एक गुन तीन।
+ +3586. प्रभु की सो अपनी कहै, क्‍यों न फजीहत होय॥27॥
+ +3587. कहि रहीम इक दीप तें, प्रगट सबै दुति होय।
+ +3588. रहि रहीम नर नीच में, स्‍वारथ स्‍वारथ हेर॥32॥
+ +3589. कहु रहीम कैसे निभै, बेर केर को संग।
+ +3590. रहिमन यह अचरज लखो, सोऊ खैंचत बाय॥37॥
+ +3591. कहा करौं बै‍कुंठ लै, कल्‍प बृच्‍छ की छाँह।
+ +3592. ज्‍यों नैना सैना करें, उरज उमेठे जाहिं॥42॥
+ +3593. कौन बड़ाई जलधि मिलि, गंग नाम भो धीम।
+ +3594. रहिमन करुए मुखन को, चहिअत इहै सजाय॥47॥
+ +3595. गरज आपनी आपसों, रहिमन कही न जाय।
+ +3596. कूपहु ते कहुँ होत है, मन काहू को बा‍ढ़ि॥52॥
+ +3597. चारा प्‍यारा जगत में, छाला हित कर लेय।
+ +3598. जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस॥57॥
+ +3599. छोटेन सो सोहैं बड़े, कहि रहीम यह रेख।
+ +3600. रहिमन अंबुज अंबु बिनु, रवि नाहिंन हित होय॥62॥
+ +3601. जहाँ गाँठ तहँ रस नहीं, यह रहीम जग जोय।
+ +3602. रहिमन मछरी नीर को, तऊ न छाँड़त छोह॥67॥
+ +3603. जे सुलगे ते बुझि गए, बुझे ते सुलगे नाहिं।
+ +3604. तासों दुख सुख कहन की, रही बात अब कौन॥72॥
+ +3605. जैसी तुम हमसों करी, करी करो जो तीर।
+ +3606. तो रहीम तिनतें भले, पथ के अपत करील॥77॥
+ +3607. जो मरजाद चली सदा, सोई तौ ठहराय।
+ +3608. प्‍यादे सों फरजी भयो, टेढ़ों टेढ़ो जाय॥82॥
+ +3609. जो रहीम गति दीप की, सुत सपूत की सोय।
+ +3610. समय परे ते होत है, वाही पट की चोट॥87॥
+ +3611. जो रहीम भावी कतौं, होति आपुने हाथ।
+ +3612. ज्‍यों नर डारत वमन कर, स्‍वान स्‍वाद सों खाय॥92॥
+ +3613. तब ही लौ जीबो भलो, दीबो होय न धीम।
+ +3614. रीते सरवर पर गये, कैसे बुझे पियास॥97॥
+ +3615. थोथे बादर क्वाँर के, ज्‍यों रहीम घहरात।
+ +3616. रहिमन चातक रटनि हूँ, सरवर को कोउ नाहिं॥102॥
+ +3617. दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।
+ +3618. ठाढ़े हूजत घूर पर, जब घर लागत आगि॥107॥
+ +3619. दोनों रहिमन एक से, जौ लौं बोलत नाहिं।
+ +3620. नहिं रहीम कोउ लख्‍यो, गाढ़े दिन को मित्‍त॥112॥
+ +3621. धूर धरत नित सीस पै, कहु रहीम केहि काज।
+ +3622. निकट निरादर होत है, ज्‍यों गड़ही को पानि॥118॥
+ +3623. नैन सलोने अधर मधु, कहि रहीम घटि कौन।
+ +3624. बामन है बलि को छल्‍यो, भलो दियो उपदेस॥123॥
+ +3625. पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन।
+ +3626. कहँ रहीम दोउन बनै, पॅंड़ो बैल को साथ॥128॥
+ +3627. फरजी सह न ह्य सकै, गति टेढ़ी तासीर।
+ +3628. हरि हाथी सो कब हुतो, कहु र‍हीम पहिचानि॥133॥
+ +3629. बड़े बड़ाई ना करैं, बड़ो न बोलैं बोल।
+ +3630. महिमा घटी समुद्र की, रावन बस्‍यो परोस॥138॥
+ +3631. बिपति भए धन ना रहे, रहे जो लाख करोर।
+ +3632. काके काके नवत हम, अपन पेट के हेत॥143॥
+ +3633. भावी या उनमान को, पांडव बनहि रहीम।
+ +3634. रहिमन गिर तें भूमि लौं, लखों तो एकै रूप॥148॥
+ +3635. मन से कहाँ रहिम प्रभु, दृग सो कहाँ दिवान।
+ +3636. याही ते हम जानियत, राम गरीब निवाज॥153॥
+ +3637. माँगे मुकरि न को गयो, केहि न त्‍यागियो साथ।
+ +3638. बिना मान अमृत पिये, राहु कटायो सीस॥158॥
+ +3639. मुकता कर करपूर कर, चातक जीवन जोय।
+ +3640. स्‍याम कचन में सेत ज्‍यों, दूरि कीजिअत देखि॥163॥
+ +3641. यह रहीम मानै नहीं, दिल से नवा जो होय।
+ +3642. ज्‍यों तिय कुच आपुन गहे, आप बड़ाई आपु॥169॥
+ +3643. यों रहीम तन हाट में, मनुआ गयो बिकाय।
+ +3644. जो रच्‍छक जननी जठर, सो हरि गये कि सोय॥174॥
+ +3645. रहिमन अपने पेट सौ, बहुत कह्यो समुझाय।
+ +3646. बधिक बधै मृग बानसों, रुधिरे देत बताय॥179॥
+ +3647. रहिमन रजनी ही भली, पिय सों होय मिलाप।
+ +3648. परसत मन मैलो करे, सो मैदा जरि जाय॥239॥
+ +3649. रहिमन रिस को छाँड़ि कै, करौ गरीबी भेस।
+ +3650. भीति आप पै डारि कै, सबै पियावै तोय॥244॥
+ +3651. रहिमन वित्‍त अधर्म को, जरत न लागै बार।
+ +3652. हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥249॥
+ +3653. रहिमन सुधि सबतें भली, लगै जो बारंबार।
+ +3654. कहि रहीम क्‍यों मानिहैं, जम के किंकर कानि॥254॥
+ +3655. रूप, कथा, पद, चारु, पट, कंचन, दोहा, लाल।
+ +3656. सनै सनै सरदार की, चुगल बिगाड़े चाल॥259॥
+ +3657. लोहे की न लोहार का, रहिमन कही विचार।
+ +3658. घटत घटत रहिमन घटै, ज्‍यों कर लीन्‍हें रेत॥264॥
+ +3659. वे रहीम नर धन्‍य हैं, पर उपकारी अंग।
+ +3660. हित रहीम तब जानिए, जब कछु अटकै काम॥269॥
+ +3661. समय परे ओछे बचन, सब के सहै रहीम।
+ +3662. चतुरन चित रहिमन लगी, समय चूक की हूक॥274॥
+ +3663. स्‍वारथ रचन रहीम सब, औगुनहू जग माँहि।
+ +3664. रहिमन साँचै सूर को, बैरी करै बखान॥279॥
+ +3665. संपति भरम गँवाइ कै, हाथ रहत कछु नाहिं।
+ +3666. बढ़त बढ़त बढ़ि जात हैं, घटत घटत घटि सीम॥284॥
+ +3667. हरी हरी करुना करी, सुनी जो सब ना टेर।
+ +3668. तौ रहीम मरिबो भलो, यह दुख सहो न जाय॥289॥
+ +3669. तातो जारै अंग, सीरो पै करो लगै॥291॥
+ +3670. जाके सिर अस भार, सो कस झोंकत भार अस।
+ +3671. हिन्दी व्याकरण (कामताप्रसाद गुरु): + +3672. भोजपुरी भाषा/इतिहास: + +3673. हिन्दी व्याकरण (कामताप्रसाद गुरु)/संकेतावली: + +3674. ईसाई आतंकवाद: + +3675. मई 2014 में यह बताया गया है कि बंगुइ में मुस्लिम आबादी 138,000 से घट कर सिर्फ 900 हो गई। + +3676. अन्य राज्यों में. + +3677. हिन्दी-कन्नड सीखें: + +3678. ईसाई आतंकवाद/संचार माध्यमों पर कब्जा: + +3679. + +3680. भोजपुरी भाषा में उपयोग होने वाले वाक्य यहाँ दिये गए हैं। जो किसी से सामान्य बातचीत के दौरान आप उपयोग कर सकते हैं। इसके द्वारा आप किसी भोजपुरी बोलने वाले व्यक्ति से उसी के भाषा में बात कर सकते हैं। यह हिन्दी से लगभग समान ही है। इस कारण कुछ शब्दों आदि में ही अंतर है। इसके कारण आप इसे आसानी से समझ सकते हैं। + +3681. इन शब्दों के अर्थ लिखने और नए शब्दों को जोड़ने में आप भी मदद कर सकते हैं। + +3682. A + +3683. 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 + +3684. 1. भारत में बैंकों का राष्ट्रीयकरण कितने चरणों में हुआ था? + +3685. 6. करेंसी नोट जो कि करेंसी चस्ट में जमा होते है किसकी संपत्ति होती है? + +3686. 11. भारत में मौद्रिक नीति को कौन तैयार करता है? + +3687. 16. केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन के मुख्य कार्य क्या है? + +3688. 21. भारत में ट्रेजरी बिल किसके द्वारा बेचे जाते हैं? + +3689. 1. निम्नलिखित भारतीय बैंकों में से कौन–सा एक राष्ट्रीयकृत बैंक नहीं है? + +3690. 6. निम्नलिखित में कौन–सा एक बैंक या वित्तीय कंपनी नहीं है? + +3691. 11. निम्नलिखित में से कौन–सा लिखत पृष्ठांकन द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को अंतरित नहीं किया जा सकता है? + +3692. 16. शाखाओं, इन्टरनेट और साथ ही एटीएम नेटवर्क के साथ ऑनलाइन कनेक्टिविटी सहित हमारे देश के लगभग सभी बैंकों द्वारा अपनाया गया सेन्ट्रलाइज्ड डाटाबेस कहलाता है– + +3693. 1. ‘Core’ बैंकिंग सर्विसेज में CORE का पूर्ण रूप क्या है? + +3694. 6. भारतीय शेयर बाजार किस में व्यापार करता है? + +3695. 11. नामा शब्द किस संगठन से सम्बन्धित है? + +3696. 16. एसबीआई का स्थापना दिवस किस दिन मनाया जाता है? + +3697. 21. बैंकिंग शब्दावली में बुरा ऋण किसको संदर्भित करता है? + +3698. 1. बहरीन की मुद्रा निम्नलिखित में से क्या है? + +3699. 6.’SEBI’ ने अनुमति के मानदंड कड़े किए–ऐसी मुख्य खबर हाल ही में कुछ अखबारों/प​​त्रिकाओं में थी। ‘SEBI’ का पूरा रूप क्या है? + +3700. 11. निम्नलिखित में से कौन-सा सरकारी क्षेत्र का उपक्रम है? + +3701. 16. भारत में विकसित पैटन टैंक का नाम निम्न में से कौन-सा है? + +3702. 20. डॉ. डी. सुब्बाराव ………. के क्षेत्र में एक जाना माना नाम है– + +3703. "विकिपुस्तक योगदानकर्ता वर्तमान:"सी प्रोग्रामिंग + +3704. सी प्रोग्रामिंग/इतिहास: + +3705. गुजराती भाषा के कुछ आम प्रचलित वाक्य नीचे दिये गए हैं, जिससे आप किसी से आसानी से बात कर सकते हैं। + +3706. તમે ઘરે ક્યારે આવશો ? तमे घरे क्यारे आवशो? + +3707. सी सबसे अधिक ऑपरेटिंग सिस्टम के लिए लेखन में इस्तेमाल की जाने वाली प्रोग्रामिंग भाषा है। पहला ऑपरेटिंग सिस्टम यूनिक्स सी में लिखा गया है। बाद में जीएनयू / लिनक्स की तरह के ऑपरेटिंग सिस्टम सभी सी में लिखे गए। सी भाषा केवल ऑपरेटिंग सिस्टम की ही नहीं, बल्कि यह आज उपलब्ध लगभग सभी सबसे लोकप्रिय उच्च स्तरीय भाषाओं के लिए प्रेरणा है। वास्तव में, , , और सभी भाषा सी में लिखी गई हैं। + +3708. उदाहरण के लिए, सी प्रोग्राम द्वारा एचपी 50 ग्राम कैलकुलेटर (एआरएम प्रोसेसर), टीआई-89 कैलकुलेटर (68000 प्रोसेसर), पाम ओएस कोबाल्ट स्मार्टफोन्स (एआरएम प्रोसेसर), मूल आईमैक (पावरपीसी) और इंटेल आईमैक (इंटेल कोर 2 डुओ) कंपाइल और रन किया जा सकता है। इन उपकरणों में से हर एक की अपनी असेम्बली भाषा है लेकिन यह असेम्बली भाषा के साथ पूरी तरह से असंगत(अधूरी) है। + +3709. लगभग हर प्रोग्रामिंग भाषा सीखने की दूसरी किताब में मिलने वाला प्रोग्राम "हेल्लो वर्ल्ड प्रोग्राम" से हम आपका सी भाषा से परिचय करते है। + +3710. सी प्रोग्रामिंग/पूर्वप्रक्रमक: + +3711. सी90 के बाद से जोड़ा हेडर: + +3712. किसी भाषा को जानने, समझने और लिखने में उसके शब्द अति महत्वपूर्ण हैं। जितना अधिक शब्द आप जानेंगे, उतना अधिक आप उस भाषा को जानेंगे और समझ सकेंगे। यहाँ आप गुजराती भाषा के शब्दों को पढ़ सकते हैं। यहाँ कुछ प्रचलित + +3713. समीकरण की रचना. + +3714. E उस तत्व का रासायनिक चिह्न है, x परमाणुओं की संख्या दिखाता है, y आयन में होने वाला परिवर्तन है और (s) उसकी भौतिक स्थिति को दिखाता है। + +3715. भारत का मौसम सबसे उत्तम माना जाता | + +3716. गैस अति सूक्ष्म कण होते हैं, जो बड़ी तीव्रता से इधर उधर जाते हैं। कई बल इसके अणुओं को नियंत्रित करते हैं और अणु व गैस के मध्य तालमेल स्थापित करते हैं। यह गैस के गुणों को भी प्रभावित करते हैं। यहाँ इन्हीं विभिन्न जटिलताओं और अध्ययन के बारे में बताया गया है। + +3717. मैं उन भगवान श्रीराम के चरणों में प्रणाम करता हूं जिन्होंने अपनी पत्नी सीता के संधान में मलय और सहयाद्री की पहाड़ियों से होते हुए लंका जाकर रावण का वध किया तथा अयोध्या वापस लौट दीर्घ काल तक सीता संग वैभव विलास संग वास किया। + +3718. "' पूः आजीत अदेवाद्याविश्वासा अग्र्या सावाशारावा ॥ २॥ + +3719. '" कामभारस्स्थलसारश्रीसौधा असौ घन्वापिका।
+ +3720. मकानों में निर्मित पूजा वेदी के चंहुओर ब्राह्मणों का जमावड़ा इस बड़े कमलों वाले नगर, द्वारका, में है। निर्मल भवनों वाले इस नगर में ऊंचे आम्रवृक्षों के ऊपर सूर्य की छटा निखर रही है। + +3721. "' तां सः मानधरः गोमान् अनेमासमधामराः ॥ ४॥ + +3722. '" तं त्राता हा श्रीमान् आम अभीतं स्फीतं शीतं ख्यातं।
+ +3723. लक्ष्मीपति नारायण के सुन्दर सलोने, तेजस्वी मानव अवतार राम का वरण, रसाजा (भूमिपुत्री) - धरातुल्य धैर्यशील, निज वाणी से असीम आनन्द प्रदाता, सुधि सत्यवादी सीता – ने किया था। + +3724. "' कादिमोदासहाता स्वभासा रसामे सुगः रेणुकागात्रजे भूरुमे ॥ ७॥ + +3725. '" सारसासमधात अक्षिभूम्ना धामसु सीतया।
+ +3726. अपने गले में मोतियों के हार जैसे पारिजात पुष्पों को धारण किए हुए, प्रसन्नता व परोपकार की अधिष्ठात्री, निर्भीक रुक्मिणी, आतशी पुष्पधारी कृष्ण संग निज गृह को प्रस्थान कर गयी। + +3727. "' यात्तमन्युमता भामा भयेता रभसागसा ॥ ९॥ + +3728. '" हह दाहमयी केकैकावासेद्धवृतालया।
+ +3729. विनम्र, आदरणीय, सत्य के त्याग से और वचन पालन ना करने से लज्जित होने वाले, पिता के सम्मान में अद्भुत राम – तेजोमय, मुक्ताहारधारी, वीर, साहसी - वन को प्रस्थान किए। + +3730. "' सा गता हि वियाता ह्रीसतापा न किल ऊनाभा ॥ १२॥ + +3731. '" रागिराधुतिगर्वादारदाहः महसा हह।
+ +3732. सत्यभामा, अदासी पुष्पधारी कृष्ण, के शब्दों पर ना तो ध्यान ही दी ना तो कुछ बोली जब तक कि कृष्ण ने पारिजात वृक्ष को लाने का संकल्प ना लिया। + +3733. "' गन्धगं तरुम् आव द्यां रंभाभादजिरा तु या ॥ १४॥ + +3734. '" न सदातनभोग्याभः नो नेता वनम् आस सः।
+ +3735. वे राम शीघ्र ही महाज्ञानी - जिनकी वाणी वेद है, जिन्हें वेद कंठस्थ है - कुम्भज (मटके में जन्मने के कारण अगस्त्य ऋषि का एक अन्य नाम) के निकट जा पंहुचे। वे निर्मल वृक्ष वल्कल (छाल) परिधानधारी हैं, जो नाना दोष (पाप) वाले विराध के संहारक हैं। + +3736. "' न समानर्द मा अरामा लंकाराजस्वसा रतम् ॥ १७॥ + +3737. '" तां सः गोरमदोश्रीदः विग्राम् असदरः अतत।
+ +3738. उल्लास, जीवनीशक्ति और तेज के ह्रास होने का भान होने पर केशव (कृष्ण) से मित्रवत वाणी में इंद्र – जिसने उन्नत पर्वतों को परास्त कर महत्वहीन किया (उद्दंड उड़नशील पर्वतों के पंखों को इंद्र ने अपने वज्रायुध से काट दिया था), जिसने अमर देवों के नायक के रूप में दुष्ट असुरों को श्रीविहीन किया - ने धरा व नभ के रचयिता (कृष्ण) से कहा। + +3739. "' यानसेरखग श्रीद भूयः म स्वम् अगः द्युगः ॥ १९॥ + +3740. '" घोरम् आह ग्रहं हाहापः अरातेः रविराजिराः।
+ +3741. ताड़कापुत्र मारीच को काट मारने से प्रसिद्द, अपनी वाणी से पाप का नाश करने वाले, जिनका नाम मनभावन है, हाय, असहाय सीता अपने उस स्वामी राम के बिना व्याकुल हो गईं (मारीच द्वारा राम के स्वर में सीता को पुकारने से)। + +3742. "' चारुधीवनपालोक्या वैदेही महिता हृता ॥ २२ ॥ + +3743. '" हारितोयदभः रामावियोगे अनघवायुजः।
+ +3744. तब देवताओं से युद्ध का परित्याग कर चुके, अतुल्य साहसी (प्रद्युम्न), आकाश में संचारित शीतल पवन से पुनर्जीवित हो गुरुजनों का गुणगान अर्जन किया जब उनके द्वारा शत्रुओं को मार विजय प्राप्त किया गया। + +3745. "' तं हरोपदमः दासम् आव आभातनुभानुभाः ॥ २४॥ + +3746. '" यं रमा आर यताघ विरक्षोरणवराजिर।
+ +3747. समुद्र लांघ कर सहयाद्री पर्वत तक जा समुद्र तट तक पहुंचने वाले की प्राप्ति दूत हनुमान के रूप में होने से, इंद्र से भी अधिक प्रतापी, असुरों की समृद्धि को असहनशील, उस रक्षक राम की कीर्ति में वृद्धि हो गई। + +3748. "' तोयधो अरिगोयादसि अयतः नवसेतुना ॥ २७॥ + +3749. '" हारिसाहसलंकेनासुभेदी महितः हि सः।
+ +3750. वे, प्रद्युम्न को युद्ध के कष्टों से उबारने के पश्चात लक्ष्मी को निज वक्षस्थली रखने वाले, कीर्तियों के शरणस्थल जो प्रद्युम्न के हितैषी कृष्ण, ऐरावत वाले स्वर्गलोक को जीत कर पृथ्वी को वापस लौट आए। + +3751. "' का अपि सारसुसौरागा राकाभासुरकेलिना ॥ २९॥ + +3752. '" भा अजराग सुमेरा श्रीसत्याजिरपदे अजनि।
+ +3753. कुछ योगिकों के सामान्य नाम होते हैं, जैसे H2O का पानी, लेकिन इसमें कई हजार योगिक होते हैं। इनमें से कई योगिक आम नहीं होते या कई नाम वाले होते हैं। आम उपयोग में आने वाले नाम भी पूरे दुनिया में समझे नहीं जा सकते। उदाहरण के लिए पानी को एकूआ, वट्टेन आदि भी बोलते हैं। इस तरह से एक भाषा जानने वाला दूसरे से बात करते समय भ्रम में रहेगा और समझने में भी परेशानी होगी। इसका एक हल यह निकाला गया कि सभी के लिए एक नीति बनाई जाए और सभी भाषा में उसका नाम वही रहे। + +3754. केशवचन्द्र का भारतीय ब्रह्म समाज. + +3755. साधारण ब्रह्म समाज. + +3756. आर्य समाज. + +3757. जहाँ राजा राममोहन राय पर पाश्चात्य संस्कृति एवं अंग्रेजी भाषा का प्रभाव था, वहीं स्वामी दयानन्द सरस्वती हिन्दू धर्म एवं भारतीय संस्कृति से बहुत प्रभावित थे। उनका उद्देश्य हिन्दू धर्म में व्याप्त बुराइयों को दूर करते हुए एक बार पुनः उसकी श्रेष्ठता स्थापित करना था। उन्होंने मूर्तिपूजा का डटकर विरोध किया। वेदों में आस्था होनेे के कारण उन्होंने वेदों की तरफ लौटो का नारा दिया। उन्होंने सम्पूर्ण देश का भ्रमण कर हिन्दू धर्म का प्रचार किया तथा विभिन्न विद्वानों को शास्त्रार्थ में पराजित किया। + +3758. 3. स्वामी दयानन्द का तीसरा ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश था, जो बहुत अधिक प्रसिद्ध है। + +3759. स्वामी दयान्नद सरस्वती ने अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में आर्य समाज के 10 सिद्धान्तों का वर्ण किया है, जो इस प्रकार हैं- + +3760. 5. सबसे धर्मानुसार, प्रेमपूर्वक एवं यथायोग्य व्यवहार करना चाहिए। + +3761. 10. व्यक्तिगत हित सम्बन्धी कार्यों में सभी व्यक्तियों को स्वतन्त्रता होनी चाहिए। किन्तु सार्वजनिक हित सम्बन्धी विषयों पर आपसी मतभेद भुलाकर परस्पर सहयोग से कार्य करना चाहिए। + +3762. स्वामी दयानन्द सरस्वती ने स्त्रियों की शिक्षा तथा स्त्रियों को पुरूषों के समान अधिकार दिए जाने पर बल दिया। उनका मानना था कि स्त्रियों को भी वेदों का अध्ययन करने एवं यज्ञोपवीत धारण करने का अधिकार है। उन्होंने स्त्रियों की शिक्षा हेतु अनेक पाठशालाओं की स्थापना करवाई। + +3763. स्वामी दयानन्द की मृत्यु के बाद शिक्षा के प्रश्न को लेकर आर्य समाज दो भागों में विभाजित हो गया। एक के नेता लाल हंसराज तथा दूसरे के नेता महात्मा मुन्शीराम थे। लाला हंसराज पर पाश्चात्य शिक्षा का बहुत प्रभाव था। उनके प्रयत्नों से अनेक स्थानों पर डी.ए.वी. (दयानन्द एंग्लो वैदिक) के नाम से स्कूलों एवं कॉलेजों की स्थापना हुई। महात्मा मुन्शीराम प्राचीन गुरूकुल प्रणाली के समर्थक थे। उनके प्रयत्नों से 1900 ई. में गुरूकुल कांगड़ी नामक संस्था की स्थापना हुई, जो आगे चलकर विख्यात विश्वविद्यालय बन गया। महात्मा मुन्शीराम स्वामी श्रद्धानन्द के नाम से लोकप्रिय हुए। उन्होंने भी शुद्धि आन्दोलन को बहुत लोकप्रिय तथा प्रबल बनाया, अतः एक मुसलमान ने उनकी हत्या कर दी। आर्य समाज ने कई अनाथालयों, गो-शालाओं एवं विधवाश्रमों की स्थापना की, जो आज भी समाज सेवा के कार्य में संलग्न हैं। + +3764. इसके पश्चात क्रान्ति देश के अन्य भागों में फैलती गई। उत्तर भारत के अनेक राज्यों पर क्रान्तिकारियों ने अधिकार कर लिया। इसी समय लार्ड केनिंग ने एक और हिन्दुओं और मुसलमानों में फूट पैदा कर दी तथा दूसरी ओर क्रान्ति को कुचलने के लिए पटियाला, नाभा, जीन्द, नेपाल, हैदराबाद और ग्वालियर के शासकों से सहायता प्राप्त की। सिक्खों और गोरखों ने इस क्रान्ति को दबाने हेतु ब्रिटिश सरकार को पूरी-पूरी सहायता दी। फलस्वरूप 24 सितम्बर, 1857 ई. को ब्रिटिश सेना का दिल्ली पर अधिकार हो गया। मुगल सम्राट बहादुरशाह को बन्दी बना लिया गया और उसके दो पुत्रों को नंगा करके मौत के घाट उतार दिया गया तथा उनके सिर काटकर सम्राट के पास भेटं के रूप में भेजे गए। अंग्रेजी सेना ने एक सप्ताह तक दिल्ली में जी भरकर लूटमार की तथा कत्लेआम किया। उत्तर भारत के गाँव के गाँव मशीनगनों से स्वाहा कर दिए गए। बहादुरशाह पर मुकदमा चलाया गया और उसे उम्र कैद की सजा देकर रंगून भेज दिया गया, जहाँ 1862 में उसकी मृत्यु हो गई। + +3765. स्वामी जी ने पराधीनता के जुए को उतार फैंकने की बात उस समय की कही, जबकि अंग्रेजी सरकार की ज़डें पाताल तक पहुँच चुकी थी। जब स्वतन्त्रता की माँग करना राजद्रोह माना जाता था। डॉ. श्याम प्रसाद मुखर्जी ने स्वामी जी के सम्बन्ध में कहा है कि, महर्षि दयानन्द सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश में एक स्वतन्त्र भारत की कल्पना की थी, जिसमें स्वकीय संस्कृति तथा सभ्यता की अमूल्य परम्पराएँ अक्षुण्ण रहे। तिलक ने स्वामी जी को स्वराज्य का प्रथम सन्देश वाहक कहा था और सावरकर ने उन्हें स्वाधीनता संग्राम का सर्वप्रथम यौद्धा। + +3766. थियोसोफिकल सोसायटी भी एक प्रमुख सुधारवादी आन्दोलन था। थियोसोफी शब्द ग्रीक भाषा के थियो व सोफी शब्दों से मिलकर बना है। थियो का अर्थ ईश्वर एवं सोफी शब्द का अर्थ ज्ञान होता है। इसकी स्थापना सर्व प्रथम रूसी महिला ब्लेवाट्स्की एवं अमेरिकन कर्नल एच.एस. आलकाट ने 7 सितम्बर, 1875 ई. को अमेरिका के न्यूयार्क नगर में की। इसके प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार थे।- + +3767. (5) पूर्वी देशों के धर्मों एवं दर्शनों का अध्ययन तथा प्रसार करना। + +3768. एनीबिसेंट ने हिन्दू धर्म की बड़ी सेवाएँ की। उन्होंने बहुदेववाद, यज्ञ, मूर्तिपूजा, तीर्थ, व्रत, कर्मवाद, पुनर्जन्म तथा धार्मिक अनुष्ठान आदि हिन्दुओं के विश्वासों एवं कर्मकाण्डों का प्रबल समर्थन किया। इससे हिन्दुओ का अपने धर्म में विश्वास पुनः जाग्रत होने लगा। उनका कर्म एवं पुर्नजन्म के सिद्धान्त में भी विस्वास था। उनका मानना था कि मोक्ष प्राप्ति पर आत्मा जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाती है। + +3769. एनीबिसेंट ने विदेशी होते हुए भी भारतीयों की बहुत सेवा की। 20 सितम्बर, 1933 ई. को अडयारप में उनकी मृत्यु हो गई। उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए गाँधी जी ने कहा था कि, जब तक भारतवर्ष जीवित है, एनीबिसेंट की सेवाएँ बी जीवित रहेंगी। उन्होंने भारत को अपनी जन्मभूमि मान लिया था, उनके पास देने योग्य जो कुछ भी था, भारत के चरणों में अर्पित कर दिया था। इसलिए वे भारतवासियों की दृष्टि में इतनी प्यारी और श्रद्धेया हो गईं। + +3770. रामकृष्ण ने किसी नए धर्म का प्रतिपादन नहीं किया। वे स्वयं धर्म के जीते-जागते स्वरूप थे। वे निराकार तथा साकार ईश्वर दोनों की उपासना में विश्वास रखते थे तथा वेद, उपनिषद्, रामायण, महाभारत, पुराण आदि को पवित्र धार्मिक ग्रन्थ मानते थे। उनका मूर्तिपूजा, एकेश्वरवाद तथा बहुदेववाद में भी विश्वास था। श्री दिनकर ने उनके सम्बन्ध में लिखा है कि हिन्दू धर्म में जो गहराई और माधुर्य है, परमहंस रामकृष्ण उनकी प्रतिमा थे।...सिर से पाँव तक वे आत्मी की ज्योति से परिपूर्ण थे। आनन्द, पवित्रता और पुण्य की प्रभा उन्हें घेरे रहती थी। वे दिन-रात परमार्थ चिन्तन में रत रहते थे। सांसारिक सुख, समृद्धि यहाँ तक कि सुयश का भी उनके सामने कोई मुल्य नहीं था। + +3771. (4) शरीर और आत्मा को अलग-अलग बताते हुए रामकृष्ण ने कहा, कामिनी कंचन की आसक्ति यदि पूर्णरूप से नष्ट हो जाए, तो शरीर अलग है व आत्मा अलग है, यह स्पष्ट दिखने लगता है। नारियल का पानी सूख जाने पर जैसे उसके भीतर का खोपरा नरेटी से खुलकर अलग हो जाता है, खोपरा और नरेटी दोनों अलग-अलग दिखने लगते हैं, वैसे ही शरीर और आत्मा के बारे में मानना चाहिए। + +3772. (9) ईश्वर की उपासना का सरल मार्ग बताते हुए रामकृष्ण ने कहा, जब तुम काम करते हो, तो एक हाथ से काम करो औरदूसरे हाथ से भगवान का पाँव पकड़े रहो। जब काम समाप्त हो जाए तो भगवान के चरणों को दोनों हाथों से पकड़ लो। + +3773. आध्यात्मवाद-रामकृष्ण की प्रथम देन आध्यात्मवाद है। वे आध्यात्मवाद के जीते-जागते स्वरूप थे। उन्होंने अपने उपदेशों द्वारा वेदों व उपनिषदों के जटिल ज्ञान को सरल बना दिया एवं हिन्दुओं को उनकी संस्कृति के गौरव से परिचित करवाया। उन्होंने विश्व के सम्मुख आध्यात्मिक सत्य को रखा। उनके विचारों से प्रभावित होकर मैक्समूलर, रोम्यां रोला आदि विद्वानों ने उनकी जीवनी लिखी। + +3774. नरेन्द्रनाथ व्यायाम में रूची रखते थे। वे जॉन स्टुअर्ट मिल, ह्यूम, हर्बर्ट स्पेन्सर एवं रूसो के दार्शनिक विचारों से बहुत प्रभावित हुए। वे ब्रह्म समाज के सम्पर्क में आए, किन्तु उनकी जिज्ञासा शान्त नहीं हुई। उनके सम्बन्धी ने उन्हें रामकृष्ण परमहंस से मिलने को कहा, अतः वे 1881 ई. में उनसे मिलने दक्षिणेश्वर चले गए। + +3775. (3) भारतीयों को उनकी गौरवशाली संस्कृति से परिचित करवाकर उनमें आत्म-सम्मान की भावना उत्पन्न करना। + +3776. (2) वे शिक्षित भारतीयों को यह दिखाना चाहते थे कि पाश्चात्य देशों में भारतीय संस्कृति के प्रति कितनी श्रद्धा है। + +3777. 1899 ई. में विवेकानन्द पुनः अमेरिका गए। उन्होंने न्यूयार्क, लांस एंजिल्स, सैन फ्रांसिसकों तथा केलीफिर्निया आदि स्थानों पर वेदान्त समाज की स्थापना की। उन्होंने पेरिस के धार्मिक सम्मेलन में हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व किया। इस प्रकार स्वामी जी ने हिन्दू धर्म एवं भारतीय संस्कृति की धाक जमाते हुए भारत में ईसाइयो के द्वारा किए जा रहे प्रयासों पर पानी फेर दिया। जब भारतीयों को अपनी संस्कृति की महानता का पता चला, तो उनमें आत्म-गौरव की भावना उत्पन्न हुई। दिनकर ने लिखा है, हिन्दुत्व को जीतने के लिए अंग्रेजी भाषा, ईसाई धर्म और यूरोपीयन बुद्धिवाद के पेट से जो तूफान उठा था, वह विवेकानन्द के हिमालय जैसे विशाल वृक्ष से टकराकर वापस लौट गया। हिन्दू जाति का धर्म है कि वह जब तक जीवित रहे, विवेकानन्द को उसी श्रद्धा से याद करे, जिस से वह व्यास तथा वाल्मिकि को याद करती है। हेन्स कोहने ने लिखा है, स्वामी विवेकानन्द ने देश को आत्मविश्वास, आत्मशक्ति और स्वामभिमान की शिक्षा दी। उन्होंने नवयुवकों को विदेशी सत्ता का विरोध करने के लिए नवीन उत्साह प्रदान किया। जवाहरलाल नेहरू ने विवेकानन्द के विषय में लिखा है, विवेकानन्द का व्यक्तित्व निराश एवं निरूत्साहित हिन्दू जाति के लिए एक स्फूर्तिवर्द्धक औषधि सिद्ध हुआ। उन्होंने हिन्दू जाति को स्वावलम्बन का सबक दिया एवं इतिहास से प्रेम करने का पाठ पढ़ाया। 4 जुलाई, 1902 ई. को 39 वर्ष की अल्पायु में विवेकानन्द की मृत्यु हो गई। + +3778. विवेकानन्द ने राष्ट्रीयता का भी प्रसार किया। उन्होंने यूरोप तथा अमेरिका में भारतीय संस्कृति तथा हिन्दू धर्म की श्रेष्ठता स्थापित कर दी एवं भारतीयों में उनके धर्म व संस्कृति के प्रति गौरव की भावना उत्पन्न कर दी। उन्होंने भारतीयों से कहा, अब हमें दासता से मुक्त होकर खुद अपना मालिक बनना है। इस प्रकार उन्होंने भारतीयों में राजनीतिक स्वाधीनता की प्रेरणा जाग्रत की। स्वामी विवेकानन्द ने यह जयघोष किया, लम्बी से लम्बी रात्रि अब समाप्त हो जान पड़ती है। + +3779. मुस्लिम सुधार आन्दोलन. + +3780. राजा राममोहन राय, स्वामी दयानन्द सरस्वती तथा स्वामी विवेकानन्द आदि सुधारक राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत थे तथा उनका मानना था कि स्वतन्त्रता से श्रेष्ठ कुछ नहीं होता। श्री ए.आर. देसाई ने लिखा है, सामाजिक क्षेत्र में जाति प्रथा के सुधार और उसके उन्मूलन, स्त्रियों के लिए समान अधिकार, बाल विवाह के विरूद्ध आन्दोलन, सामाजिक और वैधानिक असमानताओं के विरूद्ध जेहाद किया गया। धार्मिक क्षेत्र में धार्मिक अन्धविश्वासों, मूर्तिपूजा तथा पाखण्डों का खण्डन किया गया। ये आन्दोलन कम अधिक मात्र में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता और सामाजिक समानता के लिए संघर्ष थे तथा इनका चरम लक्ष्य राष्ट्रवाद था। इन्होंने भारतीयों को देशभक्ति का पाठ पढ़ाया। डॉ. जकारिया ने लिखा है, भारत की पुनर्जाग्रति मुख्यतः आध्यात्मिक थी तथा एक राष्ट्रीय आन्दोलन का रूप धारण करने के पूर्व अनेक धार्मिक तथा सामाजिक आन्दोलनों का सूत्रपात किया। + +3781. 1857 ई. का स्वतन्त्रता संग्राम. + +3782. राजा राममोहनराय ने भारतीयों के लिए राजनीतिक आधिकारों की माँग की। 1823 ई. में प्रेस ऑडिनेन्स के द्वारा समाचार-पत्रों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था। इस पर राजा राममोहन राय ने इस ऑडिनेन्स का प्रबल विरोध किया और इसको रद्द करवाने का हरसम्भव प्रयास किया। इसके पश्चात् उन्होंने ज्यूरी एक्ट के विरूद्ध एक आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया। डॉ. आर.सी. मजूमदार के शब्दों में, राजा राममोहनराय पहले भारतीय थे, जिन्होंने अपने देशवासियों की कठिनाई तथा शिकायतों को ब्रिटिश सरकार के सम्मुख प्रस्तुत किया और भारतीयों को संगठित होकर राजनीतिक आन्दोलन चलाने का मार्ग दिखलाया। उन्हें आधुनिक आन्दोलन का अग्रदूत होने का श्रेय दिया जा सकता है। + +3783. सोसायटी की नेता श्रीमती एनीबेसण्ट ने भी भारतीय राष्ट्रवाद के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। श्रीमती एनीबेसेण्ट एक विदेशी महिला थीं, जब उसके मुँह से भारतीयों ने हिन्दू धर्म की प्रशंसा सुनी, तो वे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके, जब उन्हें अपनी संस्कृति की श्रेष्ठता का ज्ञान हुआ, तो उन्होंने अंग्रेजों के विरूद्ध स्वाधीनता की प्राप्ति हेतु आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया। + +3784. नेहरू के शब्दों में, ब्रिटिश सासन द्वारा स्थापित भारत की राजनीतिक एकता सामान्य अधीनता की एकता थी, लेकिन उसने सामान्य राष्ट्रीयता की एकता को नज्म दिया। + +3785. पश्चिमी शिक्षा का प्रभाव. + +3786. डॉ. ईश्वरी प्रसाद के शब्दों में, पश्चिम के राजनीतिशास्त्र विशेषज्ञ लॉक, स्पेन्सर, मैकाले, मिल औ बर्क के लेखों ने केवल भारतीयों के विचारों को ही प्रभावित नहीं किया, अपितु राष्ट्रीय आन्दोलन की रूपरेखा और संचालन पर गहरा प्रभाव डाला। + +3787. अंग्रेजी भाषा लागू होने से पूर्व भारत के भिन्न-भिन्न प्रान्तों के भिन्न-भिन्न भाषाएँ बोली जाती थी। इसलिए वे एक-दूसरे के विचारों को नहीं समझ सकते थे। सम्पूर्ण भारत के लिए एक सम्पर्क भाषा की आवश्यकता थी, जिसे अंग्रेज सरकार ने अंग्रेजी भाषा को लागू कर पूरा कर दिया। अब विभिन्न प्रान्तों के निवासी आपस में विचार-विनिमय करने लगे और इसने उन्हें राष्ट्र के लिए मिलकर कार्य करने की प्रेरणा दी। परिणामस्वरूप राष्ट्रीय आन्दोलन को बल मिला। सर हेनरी कॉटन के अनुसार, अंग्रेजी माध्यम से और पाश्चात्य सभ्यता के ढंग पर शिक्षा ने ही भारतीय लोगों को विभिन्नताओं के होते हुए भी एकता के सूत्र में आबद्ध करने का कार्य किया। एकता पैदा करने वाला अन्य कोई तत्त्व सम्भव नहीं था, क्योंकि बोली का भ्रम एक अविछिन्न बाधा थी। श्री के.एम. पन्निकर ने लिखते हैं कि, सारे देश की शिक्षा पद्धति और शिक्षा का णआध्य एक होने से भारतीयों की मनोदशा पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि उनके विचारों, भावनाओं और अनुभूतियों से एकरसता होनी कठिन न रही। परिणामस्वरूप भारतीय राष्ट्रीयता की भावना दिन-प्रतिदिन प्रबल होती गई। + +3788. मुनरो ने लिखा है कि, एक स्वतन्त्र प्रेस और विदेशी राज एक-दूसरे के विरूद्ध है और ये दोनों एक साथ नहीं चल सकते। भारतीय समाचार-पत्रों पर यह बात पूरी उतरती है। राष्ट्रीय आन्दोलन की प्रगति तथा विकास में भारतीय साहित्य तथा समाचार पत्रों का भी काफी हाथ था। इनके माध्यम से राष्ट्रवादी तत्त्वों को सतत् प्रेरणा और प्रोत्साहन मिलता रहा। उन दिनों भारत में विभिन्न भाषाओं में समाचार-पत्र प्रकाशित होते थे, जिनमें राजनीतिक अधिकारों की माँग की जाती थी। इसके अतिरिक्त उनमें ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीति की कड़ी आलोचना की जाती थीं। उस समय के प्रसिद्ध समाचार-पत्रो में संवाद कौमुदी, बाम्बे समाचार (1882), बंगदूत (1831), रास्त गुफ्तार (1851), अमृत बाजार पत्रिका (1868), ट्रिब्यून (1877), इण्डियन मिरर, हिन्दू, पैट्रियट, बंग्लौर, सोम प्रकाश, कामरेड, न्यू इण्डियन, केसरी, आर्यदर्शन एवं बन्धवा आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। फिलिप्स के अनुसार, 1877 में देशी भाषाओं में बम्बई प्रेसीडेन्सी और उत्तर भारत में 62 तथा बंगाल और दक्षिण भारत में क्रमशः 28 और 20 समाचार-पत्र प्रकाशित होते थे, जिनके नियमित पाठकों की संख्या एक लाख थी। 1877 ई. तक देश में प्रकाशित होने वाले समाचार-पत्रों की संख्या 644 तक जा पहुँची थी, जिनमें अधिकतर देशीय भाषाओं के थे। इन समाचार-पत्रों में ब्रिटिश सरकार की अन्यायपूर्ण नीति की कड़ी आलोचना की जाती थी। ताकि जनसाधारण में ब्रिटिश शासन के प्रति घृणा एवं असंतोष की भावना उत्पन्न हो। इससे राष्ट्रीय आन्दोलन को बल मिलता था। इन समाचार-पत्रों के बढते हुए प्रभाव को रोकने के लिए ब्रिटिश सरकार ने 1878 ई. में वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट पारित किया, जिसके द्वारा भारतीय समाचार-पत्रों की स्वतन्त्रता को बिल्कुल नष्ट कर दिया गया। इस एक्टने भी राष्ट्रीय आन्दोलन की लहर को तेज कर दिया। + +3789. डॉ. पट्टाभि सीतारमैया ने लिखा है, खद्दर जो ईश्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा निर्यात किया जाता था, लंकाशायर के कपड़े के आयात के साथ समाप्त होने लगा। इस प्रकार ग्रामीण दस्तकारों को मिलने वाला धन बन्द हो गया। लंकाशायर से आयात होने वाले धन का मूल्य 1803 में तीन लाख रूपए था, जो 1919 ई. तक बढ़कर 72 करोड़ रूपए तक जा पहुँचा, जिसके परिणामस्वरूप बीस लाख भारतीय जुलाहे आजीविका से वंचित हो गए तथा तीन करोड़ सूत कातने वाले बर्बाद हो गए। अन्य शिल्पाकरों की भी यही स्थिति हो गई। + +3790. पहले सोपान में शिक्षित मध्य वर्ग, ब्रिटिश शासन को एक दैवी वरदान समझता था। उसकी दृष्टि में अंग्रेजो ने जो अमन-चैन और कानून का राज्य स्थापित किया था, वह ऐसा वरदान था, जो भारत के लिए एक शताब्दी से दुर्लभ था और जान-माल की रक्षा के साथ ही कल्याण और प्रगति के लिए यह अनिवार्य था। इस कारण वह वर्ग ब्रिटिश शासन का प्रशंसक था। शिक्षा और सामाजिक तथा नैतिक सुधार के लिए नई सुविधाएँ पैदा हुई, राष्ट्रीय उत्थान के लिए नया मार्ग खुल था और इस तरह यह समझ जाता था कि भगवान ने अंग्रेजो को, एक प्राचीन जाति को नवजीवन देने के लिए भारत भेजा है। + +3791. इस गरीबी, इस कमरतोड़ कर भारत, इस भारी खर्च और धन के विदेश जाने की जड़ में एक ही तथ्य था कि भारत स्वतन्त्र और स्वशासित राष्ट्र नहीं था। 17वीं कांग्रेस के अध्यक्ष पद के भाषण देते हुए डी.एन. वाचा ने कहा, तथ्य यह है कि भारत अपनी सरकार को चुनने के लिए स्वतन्त्र नहीं है। यदि भारत इसके लिए स्वतन्त्र होता, तो क्या इसमें जरा भी सन्देह है कि पूरा प्रशासनिक तन्त्र देशी होता, जो अपना सारा धन देश में ही खर्च करता और यहीं रहता। + +3792. १८५७ के क्रांतिकारियों की सूची: + +3793. मेरठ विश्वविद्यालय के एक कैम्पस का नाम महान क्रन्तिकारी कोतवाल धन सिंह गुर्जर के नाम पर रखा गया हैं। + +3794. नाना साहब का जन्म 1824 में महाराष्ट्र के वेणु गांव में हुआ था। बचपन में इनका नाम भोगोपंत था। इन्होंने 1857 की क्रांति का कुशलता पूर्वक नेतृत्व किया। नाना साहब सुसंस्कृत, सुन्दर व प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी थे। श्री नाना साहब मराठों में अत्यंत लोकप्रिय थे। इनके पिता का नाम माधव राव व माता का नाम गंगाबाई था। + +3795. अंत में, नाना साहब अपने साथियों के साथ नेपाल की तराइयों में चले गए। नाना साहब की मृत्यु कब कहां व कैसे हुई किसी को भी नहीं पता। परंतु देश की आज़ादी में उनके त्याग व संघर्ष को हम सदैव याद रखेंगे। + +3796. कानपुर में झांसी की रानी लक्ष्मी बाई, तांत्या टोपे, नाना साहब ने क्रांति की लहर फ़ैलाई। इन सबने युद्ध किया। तांत्या टोपे को भी युद्ध विद्या का प्रशिक्षण दिया गया। इस समय लार्ड डलहौजी गवर्नर जनरल था। उसने मराठों से उनकी जमीन छीन ली व उन पर अपना धर्म अपनाने के लिये दबाव ड़ाला, लेकिन नाना साहब कुंवर सिंह, लक्ष्मीबाई, तांत्या टोपे जैसे धर्मनिष्ठ व स्वतंत्रता प्रिय लोगों ने उनका विरोध किया व उनसे युद्ध करने को आमादा हो गए। लेकिन ब्रिटिश सरकार की सेना सशक्त्त थी व उनके पास घातक हथियार व गोला बारुद था जो भारतीयों के पास नहीं था, लेकिन मराठों ने हार नहीं मानी व साहस से उनका सामना किया। फ़लस्वरू प प्रबल सैन्य शक्ति के कारण मराठा उनका सामना अधिक समय तक नहीं कर पाये लेकिन उन्होंने कई ब्रितानियों को मौत के घाट उतार दिया व कई लोग आजादी के लिये वीर गति को प्राप्त हो गये। + +3797. राजा मानसिहं स्वयं अंग्रेजों के शत्रु थे और उनसे बचने के लिए, छिपकर पाडौन के जंगलों में रह-रहे थे। अंग्रेजों ने चालाकी से उनके घर की महिलाओ को बंदी बना दिया और उनको छोड़ने की शर्त जो अंग्रेजों ने रखी थी वह थी मानसिंह द्वारा समर्पण करना तथा तात्या को पकड़ने में मदद करना। यह बात तात्या को पकड़ने वाले प्रभारी अंग्रेज मेजर मीड ने स्वयं अपने पत्र में लिखी है। इस शर्त के बाद तात्या टोपे तथा राजा मानसिंह ने गम्भीर विचार विमर्श कर योजना बनाई, जिसके तहत मानसिंह का समर्पण उनके परिवार की महिलाओं का छुटकारा तथा कथित तात्या की गिरफ्तारी की घटनाएं अस्तित्व में आई। + +3798. इस पत्र की मूल प्रति अभिलेखागार भोपाल में तात्या टोपे की पत्रावली में सुरक्षित है। यह चिट्ठी राजा नृपसिंह द्वारा तात्या को लिखी गई है। तात्या को कथित फाँसी संवत् 1919 (सन् 1859) में लगी थी। + +3799. दूसरे पत्र का अंश- "अपरंच आपको खबर होवे के अब चिंता को कारण नहीं रहियो खत लाने वारा आपला विश्वासू आदमी है कुल खुलासे समाचार देहीगा सरदार की पशुपति यात्रा को खरच ही हीमदाद (इमदाद) खत लाइवे वारे के हाथ भिजवादवे की कृपा कराएवं में आवे मौका मिले में खुसी के समाचार देहोगे।" + +3800. 2.तात्या के वंशज आज भी ब्रह्मावर्त (बिठूर) तथा ग्वालियर में रहते है। इन परिवारों का विश्वास है कि तात्या की मृत्यु फाँसी के तख्ते पर नहीं हुई। ब्रह्मावर्त में रहने वाले तात्या के भतीजे श्री नारायण लक्ष्मण टोपे तथा तात्या की भतीजी गंगूबाई (सन् 1966 में इनकी मृत्यु हो चुकी है) का कथन है कि वे बालपन से अपने कुटुम्बियों से सुनते आये हैं कि तात्या की कथित फाँसी के बाद भी तात्या अक्सर विभिन्न वेशों में, अपने कुटुम्बियों से आकर मिलते रहते थे। तात्या के पिता पांडुरंग तात्या 27 अगस्त 1859 को ग्वालियर के किले से, जहाँ वह अपने परिवार के साथ नजरबंद थे, मुक्त किये गए। मुक्त होने पर टोपे कुटुम्ब पुनः ब्रह्मावर्त वापिस आया। उस समय पांडुरंग (तात्या के पिता) के पास न पैसा था और न कोई मित्र था। इस संकट काल में तात्या वेश बदलकर अपने पिता से आकर मिले थे तथा घन देकर सहायता की थी। + +3801. इस ऐतिहासिक घटना का उल्लेख " सोर्समेटेरियल फॉर द हिस्ट्री ऑफ फ्रीडम मूवनमेन्ट इन इंडिया। (बोम्बे गवर्नमेन्ट रिकॉर्ड्स) वाल्युम 1 पी. पी. 231-237 पर अंकित है।" + +3802. ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार तात्या टोपे के स्थान पर पकड़ गए व्यक्ति को जल्दी से जल्दी फाँसी पर लटकाकर छुट्टी पाना चाहती थी। पाठकों को मालूम हो कि कथित तात्या को 7 अप्रैल, 1859 को पड़ौन के जंगलों से पकड़ा गया। 15 अप्रैल 1859 को सैनिक अदालत में मुकदमा चलाया गया। उसी दिन फैसला सुनाकर 18 अप्रैल 1859 को सायंकाल फाँसी दे दी गई। शिवपुरी जहाँ उन्हें फाँसी दी गई वहाँ के विनायक ने अपनी गवाही में कहां कि में तात्या को नहीं पहचानता। + +3803. 3 जुलाई को दो सौ क्रान्तिकारी शस्त्र सज्जित हो गुलामी का जुआ उतारने के लिये पटना में निकल पड़े, लेकिन अंग्रेजों ने सिख सैनिको की सहायता से उन्हें परास्त कर दिया। पीर अली सहित कई क्रांतिकारी पकड़ गये, और तुरत-फुरत सभी को फाँसी पर लटका दिया गया। पीर अली को मृत्यदण्ड दिए जाने का समाचार दानापुर की सैनिक छावनी में पहुँचा। छावनी के भारतीय सैनिक तो तैयार ही बैठे थे। 25 जुलाई को तीन पलटनों ने स्वराज्य की घोषणा करते हुए अंग्रेजों के खिलाफ शस्त्र उठा लिये। छावनी के अंग्रेजों को यमलोक पहुँचा कर क्रातिकारी भारतीय सैनिक जगदीशपुर की ओर चल पड़े। सैनिक जानते थे कि अंग्रेजों से लड़ने के लिये कोई योग्य नेता होना जरूरी है और जगदीशपुर के 80 साल के नवयुवक यौद्धा कुँवर सिंह ही सक्षम नेतृत्व दे सकते हैं। दानापुर के सैनिकों के पहुँचते ही इस आधुनिक भीष्प ने अपनी मूंछों पर हाथ फेरा और अंग्रेजों को सबक सिखाने के लिए रणभूमि में खड़े हो गये। + +3804. अनुज अमर सिंह को आजमगढ़ की घेरेबन्दी के लिए छोड़कर अब कुँवर सिंह बिजली की गति से काशी की ओर बढ़े। रातों-रात 81 मील की दूरी तय कर क्रांतिकारियों ने वाराणसी पर आक्रमण कर दिया। लखनऊ के क्रांतिकारी भी इस समय कुँवर सिंह के साथ हो गए। लेकिन अँग्रेज़ भी चौकन्ने थे। बनारस के बाहर लार्ड मार्ककर मोर्चेबन्दी किए हुए था, उसके पास तोपें भी थीं। भीषण युद्ध होने लगा। यहाँ कुँवर सिंह ने फिर वृक-युद्ध कला की चतुराई दिखाई। देखते-देखते क्रांतिकारी सैन्य युद्ध भूमि से लुप्त हो गया। वास्तव में कुँवर सिंह ने बड़ी दूरगामी रणनीति बनाई थी। वे शत्रु-सेना को अलग-अलग स्थानों पर उलझा कर जगदीशपुर की ओर बढ़ना चाहते थे। मार्ककर भी इस भुलावे में आ गया और आजमगढ़ की ओर चल पड़ा। उधर जनरल लुगार्ड भी आजमगढ़ को मुक्त कराने के लिए तानू नदी की ओर बढ़ रहा था। अँग्रेज़ इस भ्रम में थे कि कुँवर सिंह आजमगढ़ को जीतने के लिए पूरी ताक़त लगायेंगे। इस भ्रम को पक्का करने के लिए कुँवर सिंह ने तानू नदी के पुल पर अपनी एक टुकड़ी को भी तैनात कर दिया। + +3805. बहादुर शाह के समय भारत पर ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन था। कंपनी अपने निजी हितों को ध्यान में रख कर नये-नये कानुन बनाती थी। जब इस कंपनी ने मुगल सम्राट की उपाधि को खत्म करने का निश्चय किया तो सबमें असंतोष की लहर दौड गई। सरकार ने बहादुर शाह के बडे़ पुत्र मिर्जा खां बख्त को युवराज बनाने से इंकार कर दिया जिससे वह इस सरकार के विरुद्ध हो गये। वहीं दूसरी और उन्होंने उसके छोटे पुत्र कोयाश को युवराज बना दिया। + +3806. 1857 की क्रांति के थमने के बाद ब्रिटिश सरकार ने भारत के अंतिम मुग़ल सम्राट अबू जाफर सिराजुद्दीन मुहम्मद बहादुरशाह द्वितीय यानी बहादुरशाह जफर पर मुकदमा चलाया। झूठे साक्ष्यों और गवाहों के आधार पर उन्हें देश से निर्वासन की सजा सुनाई। उनकी ज़िंदगी के आखरी कष्टप्रद लम्हे रंगून में ही गुजरे। + +3807. (4) उन्होंने 16 मई 1857 को महल में 49 युरोपीय लोगों की हत्या करवाई। + +3808. बड़े होकर वे कलकत्ता के बैऱकपुर की नेटिव इनफ़ेन्ट्री में सिपाही के पद पर नियुक्त हुए। वहां से 1849 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में भर्ती हुए। उस समय इनकी आयु 22 साल की थी। मंगल पांडे शुरू से ही स्वतंत्रता प्रिय व धर्मपरायण व्यक्ति थे। वे इनकी रक्षा के लिये अपनी जान भी देने के लिये तैयार रहते थे। + +3809. मौंलवी अहमद शाह. + +3810. मौलवी साहब ने अब अंग्रेजों के खिलाफ छापामार युद्ध करने का निर्यण लिया। उन्होंने लखनऊ से 45 कि.मी. दूर बारी में पड़ाव डाल दिया। बेगम छह बजार सैनिकों के साथ बोतौली में आ गई। अंग्रेज सेनापति होप ग्रांट उनके पीछे लगा हुआ था। इस समय अंग्रेजों की सेना लगभग 1 लाख सैनिकों की हो गई थी। रूईयागढ में होप ग्रांट को भी नरपतिसिंह ने सद्गति दे दी। अंग्रेजों का घेरा कसते देख अब मौलवी बरेली की ओर चल पड़े। + +3811. अजीमुल्ला खाँ 1857 की क्रांति के आधार स्तंभो में से थे। उन्होंने नाना साहब द्युद्यूपंत के साथ मिलकर क्रांति की योजना तैयार की थी नाना साहब ने इनके साथ भारत के कई तीर्थ स्थलों की यात्रा भी की व क्रांति का संदेश भी फै़ लाया। + +3812. अजीमुल्ला खां की डायरी से पता चलता है कि उन्होंने इलाहाबाद, गया जनकपुर, पारसनाथ, जगन्नाथपुरी, पंचवटी, रामेश्‍वरम, द्वारिका, नासिक, आबू, आदि स्थानों की यात्रा की। 4 जून को कानपुर में क्रांति हो गई जिसका नेतृत्व नाना साहब ने किया। इस युद्ध में अजीमुल्ला खां का महत्वपूर्ण योगदान रहा। 17 जुलाई को क्रांति पुन: कानपुर में फ़ैल गई। अंत में क्रांतिकारी पराजित हो ग़ये क्योंकि उन लोगों के पास साधनों का अभाव था। क्रांति के विफ़ल होने पर अजीमुल्ला खां नेपाल की तराई की ओर चले गये। नेपाल का राजा राणा जंग बहादुर ब्रितानियों के हितैषी थे। ये क्रांतिकारियों को क्षति पहुँचाना चाहते थे। + +3813. 19 जनवरी 1858 को हुकुमचंद और मिर्जा मुनीर बेग को हांसी में लाला हुकुमचंद के मकान के सामने फ़ांसी दे दी गई। 13 वर्षीय फ़कीरचंद इस दृश्य को भारी जनता के साथ ही खडे़-खडे़ देख रहे थे, पर अचानक गोराशाही ने बिना किसी अपराध के, बिना किसी वारंट के उन्हे पकड़ा और वहीं फ़ांसी पर लटका दिया। इस तरह आजादी के दीवाने फ़कीरचंद जी शहीद हो गये। + +3814. हांसी पहुँचते ही इन्होने देशभक्त्त वीरों को एकत्रित किया और जब ब्रितानियों की सेना हांसी होकर दिल्ली पर धावा बोलने जा रही थी, तब उस पर हमला किया और उसे भारी हानि पहुँचाई। हुकुमचंद व इनके साथियो के पास जो युद्ध सामग्री थी वह अत्यंत थोडी थी, हथियार भी साधारण किस्म के थे, दुर्भाग्य से जिस बादशाही सहायता का भरोसा इन्होंने किया था वह भी नही पहुँची, फ़िर भी इनके नेतृत्व में जो वीरतापूर्ण संघर्ष हुआ वह एक मिशाल है। इस घटना से ये हतोत्साहित नहीं हुए, अपितु ब्रितानियों को परास्त करने के उपाय खोजने लगे। + +3815. अमरचंद बांठिया. + +3816. ग्वालियर राज्य में सम्बन्धित 1857 के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज राष्ट्रीय अभिलेखागार, नई दिल्ली, राजकीय अभिलेखागार, भोपाल आदि में उपलब्ध है। डा. जगदीश प्रसाद शर्मा, भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के इन दस्तावेजों और अनेक सरकारी रिकोर्डों के आधार पर विस्तृत विवरण घ्अमर शहीदङ अमरचंद बांठिया पुस्तक में प्रकाशित किया है, जिसके अनुसार- 1857 में क्रांतिकारी सेना जो ब्रितानी सत्ता को देश से उखाड़ फ़ेंकने हेतु कटिबद्ध होकर ग्वालियर पहंुची थी, राशन पानी के अभाव में उसकी स्थिति बडी ही दयनीय हो रही थी। सेनाओं को महीनों से वेतन प्राप्त नहीं हुआ था। 2 जून 1858 को राव साहब ने अमरचंद बांठिया को कहा कि उन्हें सैनिकों का वेतन आदि भुगतान करना है, क्या वे इसमें सहयोग करेगे अथवा नहीं? तत्कालिन परिस्थितियों में राजकीय कोषाग़ार के अध्यक्ष अमरचंद बांठिया का निर्णय एक महत्त्वपूर्ण निर्णय था, उन्होंने वीरांगना लक्ष्मीबाई की क्रांतिकारी सेनाओ के सहायतार्थ एक ऐसा साहसिक निर्णय लिया जिसका सीधा सा अर्थ उनके अपने जीवन की आहुति से था। अमरचंद बांठिया ने राव साहब के साथ स्वेच्छापूर्वक सहयोग किया तथा राव साहब प्रशासनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु ग्वालियर के राजकीय कोषागार से समूची धन राशि प्राप्त करने में सफ़ल हो सके। सेंट्रल इंडिया ऐजेंसी आफ़िस में ग्वालियर रेजीडेस्ंाी की एक फ़ाइल में उपलब्ध विवरण के अनुसार- 5 जून 1858 के दिन राव साहब राजमहल गये तथा अमरचंद बांठिया से गंगाजली कोष की चाबिया लेकर उसका दृश्यावलोकन किया। तत्पश्चात दूसरे दिन जब राव साहब बडे़ सवेरे ही राजमहल पहुंचे तो अमरचंद उनकी अगवानी के लिये मौजूद थे। गंगाजली कोष से धनराशि लेकर क्रांतिकारी सैनिकों को 5-5 माह का वेतन वितरित किया गया। + +3817. लक्ष्मीबाई के इस गौरवमय ऐतिहासिक बलिदान के चार दिन बाद ही 22 जून 1858 को ग्वालियर में ही राजद्रोह के अपराध में न्याय का ढोग्ंा रचकर लश्कर के भीड़ भरे सर्राफ़ा बाजार में ब्रिगेड़ियर नैपियर द्वारा नीम के पेड से लटकाकर अमरचंद बांठिया को फ़ांसी दे दी गई। + +3818. 12. जोधा माणेक + +3819. 17. दीपा माणेक + +3820. ठाकुर सूरजमल. + +3821. 23. बापू गायकवाड़ + +3822. दिल्ली से सोनीपत जाने वाली सड़क के मोड़ पर कुछ नौजवान इस प्रतीक्षा में खड़े थे कि यदि यहाँ से ब्रितानी लोग निकलें तो उनका शिकार किया जाए। वे 1857 की क्रांति के दिन थे और ब्रितानी लोग परिवार के साथ जहाँ सुरक्षित स्थान मिलता, वहाँ शरण लेते थे। सोनीपत में उन लोगों का कैंप लगा हुआ था और बहुधा ही इक्के-दुक्के ब्रितानी परिवार ऊँट-गाड़ियों में सवार होकर दिल्ली से सोनीपत ज़ाया करते थे। + +3823. ठाकुर किशोर सिंह, रघुनाथ राव. + +3824. एक छोटे से जागीरदार के हाथों पराजित होना ब्रितानी सेना के लिए बड़ी शर्मनाक धटना थी। इस पराजय का बदला लेने के लिए बहुत बड़ी सेना खड़ी की गई और 25 जुलाई, 1857 को आक्रमण करने ब्रितानी सेना ने दमोह को वापस अपने अधिकार में लेने में सफलता प्राप्त की। ब्रितानी सेना ने अब ठाकुर किशोर सिंह की जागीर हिंडोरिया पर आक्रमण किया। ठाकुर किशोर सिंह ब्रितानियों के हाथ नहीं लग सके। वे जंगल में निकल गए। वह नरसिंह जीवन-भर जंगल में ही रहे। ब्रितानियों से संधि करने की बात कभी उनके मन में नहीं आई। ठाकुरकिशोर सिंह के सहयोगी और किशनगंज के सरदार रघुनाथ राव ने ब्रितानी सेना के साथ युद्ध जारी रखा। अंततोगत्वा वे गिरफ़्तार कर लिए गए और ब्रितानियों ने उन्हें फाँसी के फंदे पर झुला दिया। + +3825. ब्रितानी सेना जब घटनास्थल पर पहुँची तो उसे अपने अफ़सर का शव ही हाथ लगा। तिलका माँझी छापामार युद्ध का सहारा लेकर ब्रितानी सेना के साथ युद्ध करते हुए मुंगेर, भागलपुर और परगना की चप्पा-चप्पा भूमि को रौंद रहे थे। + +3826. जाट देवी सिंह, सरजू प्रसाद सिंह. + +3827. ब्रितानी सेना के कैप्टन ऊले के नेतृत्व में 30 अकटुबर 1857 को एक सेना ठाकुर सरतबप्रसाद सिंह से मुकाबला करने के लिए भेजी गई। उस सेना की सहायता के लिए 4 नवंबर को मेजर सुलीव्हान के नेतृत्व में भी एक सेना भेजी गई। सरजूप्रसाद सिंह की सेना ने उन दोनों ब्रितानी सेनाओं को छिन्न-भिन्न करके उनके हथियार लूट लिये। इस संयुक्त सेना को तहस-नहस करने के पश्यात् सरजूप्रसाद सिंह की सेना ने 6 नवंबर को मुरवाड़ा के समीप एक ब्रितानी सेना पर आक्रमण कर दिया। घायल होकर सेनापति टोटलहम भाग निकला । + +3828. प्रतीज्ञा सचमुच ही बहुत कड़ी और असम्भव थी। उधर जब वालपोल ने नरपतिसिंह की प्रतीज्ञा सुनी तो वह भी कह बैठा- उस छिछोरे जमींदार की इतनी हिम्मत जो मुझे नीचा दिखाने के लिए प्रतीज्ञा करे। मैं उसे पीसकर ही दम लूँगा । + +3829. वीर नारायण सिंह. + +3830. सोनाखान के लोगों ने करोंद गाँव के एक व्यापारी से खेतों में बोने और खाने के लिए अनाज उधार देने के लिए प्रार्थना की, परन्तु उसने इन्कार कर दिया। तत्पश्चात् वहाँ के लोगों ने इस सम्बन्ध में अपने लोकप्रिय जमींदार वीर नारायण सिंह से प्रार्थना की। वीर नारायण सिंह ने अकाल पीड़ितों की सहायता करने हेतु उस व्यापारी से कहा, परन्तु उसने झूठ बोलकर बहाना बनाते हुए सहायता देने से इन्कार कर दिया। + +3831. लेफ्टिनेन्ट स्मिथ ने अपनी सेना के साथ नवंबर, 1857 ई. को रायपुर के लिए प्रस्थान किया। नारायण सिंह के एक गुप्तचर ने स्मिथ की सेना को भटका दिया, जिससे वह ग़लत स्थान पर पहुँचा। अगले दिन स्मिथ को मालूम हुआ कि नारायण सिंह ने अपने गाँव के रास्ते में एक ऊँची दीवार बनाकर मार्ग को अवरुद्ध किया है और वह अँग्रेज़ों से संघर्ष हेतु पूर्ण रूप से तैयार है। + +3832. प्रथम युद्ध में नारायण सिंह ने स्मिथ को सेना सहित पीछे हटने के लिए विवश कर दिया। अब स्मिथ ने और सेना एकत्रित करके पूरे पहाड़ को चारों ओर से घेर लिया। पहाड़ पर रसद सामग्री नहीं पहुँच सकती थी। देवरी का जमींदार (नारायण सिंह का काका) स्मिथ को सारी गुप्त सूचनाएँ दे रहा था। नारायण सिंह ने निरपराध लोगों की बलि देने स्थान पर स्वयं के प्राण देकर अपने साथियों की प्राण रक्षा करने का निश्चय किया। 5 दिसंबर, 1857 ई. को नारायण सिंह ने रायपुर पहुँच कर वहाँ के डिप्टी कमिश्नर मि. इलियट के समक्ष आत्म समर्पण कर दिया। उस देशभक्त के लिए अँग्रेज़ों के पास एक ही पुरस्कार था और वह था-फाँसी का फँदा। + +3833. जब ब्रितानियों ने देखा कि नाहरसिंह से पार पाना मुश्किल है तो उन्होंने धूर्तता से काम लिया। उन्होंने संधि का सूचक सफेद झंड़ा लहरा दिया। युद्ध बंद हो गया। ब्रितानी फौज के दो प्रतिनिधि किले के अंदर जाकर राजा नाहरसिंह से मिले और उन्हें बताया कि दिल्ली से समाचार आया है कि सम्राट बहादुरशाह से ब्रितानियों की संधि हो रही है और सम्राट के शुभचिंतक एवं विश्वासपात्र के नाते परार्मश के लिए सम्राट ने आपको याद किया है। उन्होंने बताया कि इसी कारण हमने संधि का सफेद झड़ा फहराया है। + +3834. सआदत खाँ शरीर और मन दोनों से ही बलिष्ठ थे। वह देखने में भी निहायत ख़ूबसूरत थे। उनके पूर्वज सारंगपुर के निवासी थे। आजीविका की खोज में सआदत खाँ इंदौर राज्य में जा पहुँचे। उस समय इंदौर में तुकोजीराव होलकर शासक थे। सआदत खाँ की योग्यता से प्रभावित होकर उन्होंने उन्हें अपने तोपख़ाने का प्रमुख तोपची नियुक्त कर दिया। + +3835. 4 जुलाई 1857 की रात को क्रांतिकारियों ने लूट का माल अपने साथ लेकर देवास की ओर बढना प्रारंभ कर दिया। क्रांतिकारियों के पास रेजीडेंसी ख़ज़ाने से लूटे गए नौ लाख रुपये, सभी तोपें, गोला बारूद, हाथी, घोड़े और बैलगाड़ियाँ आदि सामान था। होलकर नरेश की भी नौ तोपें वे अपने साथ ले गए। + +3836. सुरेन्द्र साय. + +3837. सन् 1833 में ब्रितानी शासन ने रानी राजकुमारी को पेन्शन देकर राजगद्दी पर नारायण सिंह को बैठा दिया। रानी राजकुमारी के उत्तराधिकारी सुरेंद्र साँय ने जब गद्दी पर अपना दावा प्रस्तुत किया तो उसे ठुकरा दिया गया। सुरेंद्र साँय ने विवश होकर युद्ध का सहारा लिया और उन्होंने कई स्थानों पर ब्रितानी सेना को हराया। चालाक ब्रितानियों ने छल का सहारा लेकर सुरेंद्र साय को संधि के लिए आमंत्रित कर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया और बिहार की हजारीबाग जेल में बंद कर दिया। सुरेंद्र साय की अनुपस्थिति में उनकी पत्नी ने ब्रितानियों के साथ युद्ध जारी रखा। + +3838. वह आधुनिक भामाशाह थे, जिनके दिल में देश की आज़ादी के लिए तड़प थी और जो न केवल अरबों रुपयों की संपत्ति देश की आज़ादी के लिए व्यय करने को तैयार थे, अपितु उनके मस्तिष्क में गुप्तचर विभाग और सैन्य संगठन की योजनाएँ भी थीं। उनका नाम था जगत् सेठ राम जी दास गुड़वाला। + +3839. ठाकुर रणमतसिंह. + +3840. कई बार जाल डालने पर भी ब्रितानी ठाकुर रणमतसिंह को गिरफ़्तार करने में सफल नहीं हो रहे थे। आख़िर उन्होंने वही नीच चाल चली, जो वे हमेशा चलाते आए थे। ठाकुर रणमतसिंह एक दिन जब अपने एक मित्र विजय शंकर नाग के धर जलपा देवी के मंदिर के तहखाने में विश्राम कर रहे थे, तो धोखे से उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और सन् 1859 में अनंत चतुर्दशी के दिन आगरा जेल में उन्हें फाँसी पर झुला दिया गया। उनका जन्म सन 1825 में हुआ था । + +3841. सन् 1853 में लंदन से लौटने के पश्चात रंगो बापूजी गुप्ते ने कोल्हापुर, बेलगाँव, धारवाड़ और सतारा के संपूर्ण क्षेत्र में बंड़े गोपनीय ढंग से उग्र क्रांति का प्रसार किया। सन् 1858 में उनके एक निकट के मित्र ने विश्वासधात करके उन्हें ब्रितानियों के हाथों गिरफ्तार कराने का प्रयत्न किया, पर इस विश्वाधात की गंध पाकर के फरार हो गए । पता नहीं कब और इन महान क्रांतिकारी का देहावसान हो गया । + +3842. बाबासाहब ने अपमान का बदला तो ले लिया था, पर अभी ब्रितानियों को सबक सिखाना बाकी था। उन्होंने जेम्स मेंशन के कटे हुए सिर को अपने भाले की नोक में खोंसकर उसे नरगुंद नगर में धुमाया और उसी भाले को चौराहे पर गाड़ दिया। जिससे आस-पास के गाँव के लोग भी आकर उन्हें देख सकें। पाचँ दिन तक वह सिर प्रदर्शन के लिए टँगा रहा । + +3843. उस समय पूना में ब्रितानी फौज का दबदबा था। फौज के वित्त विभागीय कार्यालय में एक तेजवंत नवयुवक उस दिन निबटाई जानेवाली फाइलों को उपने ब्रितानी साहब के सामने प्रस्तुत करने के लिए तैयार कर रहा था। यह काम उन्हें नित्य ही करना पड़ता था और नित्य ही घर पहुँचने में उन्हें काफी देर हो जाती थी। आज वह दफ़्तर का समय समाप्त होते ही जल्दी छूट जाना चाहते थे, क्योकि नगर के सार्वजनिक सभास्थल पर आज परम देशभक्त न्यायमूतिर् रानडे का भाषण आयोजित था। वह इस भाषण से वंचित नहीं होना चाहते थे l क्योंकि वह रानडे महोदय के विशेष भक्त थे और उनके उत्तेजक भाषणों से उनके मन को प्रेरणा मिलती थी। इन तेजवंत नवयुवक का नाम वासुदेव बलवंत फड़के था । + +3844. उनका अंतिम वाक्य था- नौजवानो को ब्रितानियों द्धारा दी गई चुनौती को स्वीकार करना चाहिए। वह तारूण्य ही कैसा जो कुछ करके दिखा न सके। अपने देश की स्वाधीनता के लिए आज के नौजवानों को फिर से महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी बनकर दिखाने की जरूरत है। वासुदेव बलवंत फड़के चले गए । उनके मन में वही वाक्य गूँजता रहा- अपने देश की स्वाधीनता के लिए आज के नौजवानों को फिर से महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी बनकर दिखाने की जरूरत है। + +3845. फड़के की सेना का आकार ओर आंतक बढने लगा। आवश्यकता पड़ने पर वह हैदराबाद के निजाम के राज्य में से पठानों और रुहेलो को भी अपनी सेना में भर्ती कर लिया करते थे। ब्रितानियों और शस्त्रागारों को छापे मारकर लूटा जाने लगा। शस्त्रार्जन के लिए पैसे की समस्या हल करने के लिए वह कभी-कभी बडे-बडे रईसों और सेठ साहुकारों के यहाँ डाके डालने से नहीं चूकते थे। अमीरों का धन लूटकर वह गरीबों नें बाँटते थे।समाजवाद का व्यावहारिक रूप वह जीवन में अपना रहे थे। जो कुछ वह लूटते उसका पंचवीमा करते थे। उनका कहना था कि देश के स्वाधिन होने पर लूटा हुआ धन वह ब्याज सहित वापस कर देंगे। पालस्पे के डाके में फड़के को साठ हजार रुपए हाथ लगे । + +3846. फड़के के आतंक से ब्रितानी हुकूमत की नींद हराम हो गई। सन् 1857 में असंख्य वीरों की छातियाँ गोलियों से छलनी करके, फाँसी के फंदो पर लचकाकर जीवित जलाकर, धोड़ों की टापों से कुचलवाकर और संगीनो से छेदकर ब्रितानियों ने सोचा था दमन चक्र में भारतीय फिर सिर उठाने का साहस नहीं करेंगे और न देश की आजादी की बात सोचेंगे किंतु उन्हें क्या पता था कि भारतीय क्रांतिकारी रक्तबीज होते हैं। एक शहीद के खून से सैकड़ों क्रांतिकारी पैदा होकर शहीदो की पंक्तियों में पहुँचने के लिए बेचैन हो उठते हैं। एसा ही एक प्रचड़ क्रांतिकारी थे- बलवंत फड़के। + +3847. वीर फड़के ने वहाँ भी अपना पराक्रम दिखाया। वह जेल तोड़कर भाग निकले। यदि वह भारत की किसी जेल से भागे होते तो ब्रिटिश सरकार उनकी छाया भी नहीं छू सकती थी। वह अंडमान में थे। जेल से निकलकर वह जंगलों में भूखे-प्यासे भटकते रहे। भाषा की कठिनाई के कारण वह अंडमान के लोगों को अपना मंतव्य नहीं समझा सके।दीबापा पकड़कर वह फिर में ठूँस दिया गया। अंडमान की जेल में ही वीर वासुदेव बलवंत फड़के ने 17 फरवरी 1883 को जीवन की अंतिम साँस ली। भारत की भूमि से तो वह वीर विदा हो ही चुके थे l वह दुनिया से भी बिदा हो गए। हम उनको अलविदा भी न कह पाए । + +3848. सन् 1865 में मौलवी अहमदुल्ला को बड़ी चालाकी के साथ गिरफ्तार कर लिया गया और मुकदमा चलाया गया। बहुत लोभ-लालच देकर ही शासन उनके विरुद्ध गवाही देने वालों को तैयार कर सका। इस मुकदमे में सेशन अदालत ने तो मौलवी साहब को प्राणदंड की सजा सुनाई, लेकिन हाईकोर्ट मे अपील करने पर वह आजीवन कालेपानी की सजा में परिवतिर्त हो गई। मौलवी साहब को कालेपानी की काल कोठरियों में डाल दिया गया। + +3849. क्रांति के इस महायज्ञ को धधकाने की योजना अजीमुल्ला खाँ तथा रंगोबापूजी ने लंदन में बनाई थी। योजना बनाकर ये दोनों उत्कट राष्ट्र-भक्त पेशवा के पास आए और उन्हें इस अद्भुत समर का नेतृत्व करने को कहा। सैनिक अभियान के नायक के रूप में तात्या टोपे को तय किया गया। संघर्ष के लिए संगठन खड़ा करने तथा जन-जागरण का काम पूरे दो साल तक किया गया। + +3850. नसीराबाद के स्वतंत्रता संग्राम का समाचार तुरंत-फुरत नीमच पहुँच गया। 3 जून की रात नसीराबाद से तीन सौ कि. मी. की दूरी पर स्थित नीमच सैनिक छावनी में भी भारतीय सैनिको ने शस्त्र उठा लिए। रात 11 बजे 7वीं नेटिव इन्फेण्ट्री के जवानों ने तोप से दो गोले दागे। यह स्वातंत्र्य सैनिकों के लिए संघर्ष शुरू करने का संकेत था। गोलों की आवाज़ आते ही छावनी को घेर लिया गया तथा आग लगा दी गई। नीमच क़िले की रक्षा के लिए तैनात सैनिक टुकड़ी भी स्वातंत्र्य-सैनिकों के साथ हो गई। अँग्रेज़ सैनिक अधिकारियों ने भागने में ही अपनी कुशल समझी। सरकारी ख़ज़ाने पर क्रांतिकारियों का अधिकार हो गया। + +3851. कोटा के उस समय के महाराव की भी ब्रितानियों से संधि थी पर राज्य की जनता फ़िरंगियों को उखाड़ फैंकने पर उतारू थी। कोटा की सेना भी महाराव की संधि के कारण मन ही मन ब्रितानियों के ख़िलाफ़ हो गई थी। भारतीय सैनिकों में आज़ादी की भावना इतनी प्रबल थी कि घ् कोटा कण्टीजेंट ' नाम की वह टुकड़ी भी गोरों के ख़िलाफ़ हो गई, जिसे ब्रितानियों ने ख़ास तौर पर अपनी सुरक्षा के लिए तैयार किया था। कोटा में मौजूद भारतीय सैनिकों तथा जनता में आज़ादी की प्रबल अग्नि प्रज्जवलित करने वाले देश भक्तों के मुख्य थे लाला जयदलाय तथा मेहराब खान। भारत माता के इन दोनों सपूतों के पास क्रांति का प्रतीक घ् रक्त-कमल ' काफ़ी पहले ही पहुँच चुका था तथा छावनियों में घ् रोटी ' के जरिये फ़िरंगियों के ख़िलाफ़ उठ खड़े होने का संदेश भी भेजा जा चुका था। + +3852. विकट परिस्थिति देख कर मेहराब खान तथा उनके सहयोगी दीनदयाल सिंह ने ग्वालियर राज के एक ठिकाने सबलगढ के राजा गोविन्दराव विट्ठल से सहायता माँगी। पर लाला जयदयाल को कोई सहायता मिलने से पहले ही मेजर जनरल राबर्ट्स तथा करौली और गोटेपुर की फ़ौजों ने 25 मार्च 1858 को कोटा को घेर लिया। पाँच दिनों तक भारतीय सैनिकों तथा फ़िरंगियों में घमासान युद्ध हुआ। 30 मार्च को ब्रितानियों को कोटा में घुसने में सफलता मिल गई। लाला जयदयाल के भाई हरदयाल युद्ध में मारे गए तथा मेहराब खान के भाई करीम खाँ को पकड़कर ब्रितानियों ने सरे आम फाँसी पर लटका दिया। + +3853. जिस तरह से वीर कुँवर सिंह ने भारत की आज़ादी के लिए अपना रण-रंग दिखाया उसी तरह राजस्थान में आउवा ठाकुर कुशाल सिंह ने भी अपनी अनुपम वीरता से ब्रितानियों का मान मर्दन करते हुए क्रांति के इस महायज्ञ में अपनी आहुति दी। पाली ज़िले का एक छोटा सा ठिाकाना था घ् आउवा ' , लेकिन ठाकुर कुशाल सिंह की प्रमुख राष्ट्रभक्ति ने सन् सत्तावन में आउवा को स्वातंत्र्य-संघर्ष का एक महत्वपूर्ण केंद्र बना दिया। ठाकुर कुशाल सिंह तथा मारवाड़ का संघर्ष प्रथम स्वतंत्रता का एक स्वर्णिम पृष्ठ है। + +3854. इसीलिए जब जनरल मेहरबान सिंह की कमान में जोधपुर लीजन के जवान पाली के पास आउवा पहुँचे तो ठाकुर कुशाल सिंह ने स्वातंत्र्य-सैनिकों का क़िले में भव्य स्वागत किया। इसी के साथ आसोप के ठाकुर शिवनाथ सिंह, गूलर के ठाकुर बिशन सिंह तथा आलयनियावास के ठाकुर अजीत सिंह भी अपनी सेना सहित आउवा आ गए। लाम्बिया, बन्तावास तथा रूदावास के जागीरदार भी अपने सैनिकों के साथ आउवा आ पहुँचे। सलूम्बर, रूपनगर, लासाणी तथा आसीन्द के स्वातंत्र्य-सैनिक भी वहाँ आकर ब्रितानियों से दो-दो हाथ करने की तैयारी करने लगे। स्वाधीनता सैनिकों की विशाल छावनी ही बन गया आउवा। दिल्ली गए सैनिकों के अतिरिक्त हर स्वातंत्रता-प्रेमी योद्धा के पैर इस शक्ति केंद्र की ओर बढ़ने लगे। अब सभी सैनिकों ने मिलकर ठाकुर कुशाल सिंह को अपना प्रमुख चुन लिया। + +3855. इसी के साथ कर्नल होम्स ने सेना के एक हिस्से को ठाकुर कुशाल सिंह का पीछा करने को भेजा। रास्ते में सिरियाली ठाकुर ने अंग्रेजों को रोका। दो दिन के संघर्ष के बाद अंग्रेज सेना आगे बढ़ी तो बडसू के पास कुशाल सिंह और ठाकुर शिवनाथ सिंह ने अंग्रेजों को चुनौती दी। उनके साथ ठाकुर बिशन सिंह तथा ठाकुर अजीत सिंह भी हो गए। बगड़ी ठाकुर ने भी उसी समय अंग्रेजों पर हमला बोल दिया। चालीस दिनों तक चले इस युद्ध में कभी मुक्ति वाहीनी तो कभी अंग्रेजों का पलड़ा भारी होता रहा। तभी और सेना आ जाने से अंग्रेजों की स्थिति सुधर गई तथा स्वातंत्र्य-सैनिकों की पराजय हुई। कोटा तथा आउवा में हुई हार से राजस्थान में स्वातंत्र्य-सैनिकों का अभियान लगभग समाप्त हो गया। आउवा ठाकुर कुशाल सिंह ने अभी भी हार नहीं मानी थी। अब उन्होंने तात्या टोपे से सम्पर्क करने का प्रयास किया। तात्या से उनका सम्पर्क नहीं हो पाया तो वे मेवाड़ में कोठारिया के राव जोधसिंह के पास चले गए। कोठारिया से ही वे अंग्रेजों से छुट-पुट लड़ाईयाँ करते रहे। + +3856. लाला मटोलचन्द ने बादशाह के शब्द सुने तो राष्ट्रभक्ति से पूर्ण हृदय दुखित हो उठा। वे बोले, "में उस क्षेत्र का निवासी हूँ जहाँ के अधिकांश ग्रामीण महाराणा प्रताप के वंशज हैं। हो सकता है कि जब वे राणावंशी राजपूत मेवाड़ से इस क्षेत्र में आकर बसे हों, तो मेरे पूर्वज भी उनके साथ आकर बस गये हों। हो सकता है कि हम लोग भामाशाह जैसे दानवीर व राष्ट्रभक्त के ही वंशज हों। अतः हमारा यह परम कर्त्तव्य है कि विदेशी ब्रितानियों से अपनी मातृभूमि की मुक्ति के यज्ञ में कुछ न कुछ आहुति अवश्य दें। आप चिन्ता न करें जितना सम्भव हो सकेगा धन आपके पास पहुँचा दिया जायेगा।" + +3857. अस्त व्यस्त नेतृत्व तथा विश्वासघातियों के कारण दिल्ली पर पुनः ब्रितानियों ने कब्जा कर लिया। ब्रिटिश सेठ गुड़वाला से धन ऐंठना चाहते थे, इसके लिए कुछ ब्रिटिश अधिकारी उनके घर पर पहुँचे। ब्रिटिश अधिकारी ने सेठजी से विनम्रतापूर्वक कहा- घ् सेठ आप तो महान् दानी हैं। युद्ध की स्थिति के कारण हम आर्थिक तंगी में हैं, आप हमें आर्थिक सहायत करें तो ठीक रहे, आपका दिया हुआ धन दिल्लीवासियों के ऊपर खर्च किया जायेगा।' + +3858. नेतृत्व की कमी व विश्वासघात के कारण जब दिल्ली का पतन हुआ तो रिचर्ड ने अपनी सूझबूझ से क्रांतिकारियों को नावों के द्वारा उफनती हुई यमुना नदी के पार उतारा। दिल्ली पतन के बाद विलियम्स क्रांतिकारियों का साथ देने अवध जा पहुँचे। रूइया के राजा नरपति सिंह नें उन्हें रूइयागढ़ी के किले की जिम्मेदारी सौंप दी। ब्रिटिश फौज ने किले का घेरा डाल दिया। ब्रिगेडियर एड्रियन होप अपनी सेना को निर्देश दे रहा था तभी किले के अन्दर रिचर्ड विलियम्स एक ऊँचे पेड़ पर बन्दूक लेकर चढ़े और उसे एक ही गोली से मार गिराया। उन्होंने अंग्रेजी सेना के किले के फाटक को बारूद से उड़ा देने के मंसूबों पर पानी फेरते हुए उनके तोपखाने को भी ठण्डा कर दिया। सन् 1858 के उत्तरार्द्ध में अंग्रेजी सेनाएं फिर से हावी होने लगीं। पर रिचर्ड विलियम्स अन्त तक ब्रितानियों के हाथ नहीं आए। माना जाता है कि स्वातन्त्र्य समर के यह गोरे क्रांतिकारी अज्ञातवास में चले गए। उनका क्या हुआ, इस बारे में इतिहास मौन है। + +3859. गया, छपरा, पटना, मोतिहारी तथा मुजफ्फरपुर आदि नगरों में क्रांति ने भीषण रूप धारण कर लिया। ब्रितानियों ने दानापुर में एक छावनी की स्थापना की, ताकि बिहार पर नियंत्रण स्थापित किया जा सके। स्वदेशियों की सातवीं, आठवीं तथा चालीसवीं पैदल सेनाएँ भीं, जिन पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए एक विदेशी कंपनी और तोप सेना रखी गई थी। इसका प्रधान सेनापति मेजर जनरल लायड था। टेलर पटना का कमिश्नर था, जो बहुत दूरदर्शी था। उसमें प्रशासनिक क्षमता अत्यधिक थी। उसका यह मानना था कि पटना के मुसलमान भी इस क्रांति में हिंदुओं के साथ भाग लेंगे। पटना में बहावी मुसलमानों की संख्या बहुत अधिक थी। अतः टेलर ने बहावी मुस्लिम नेताओं पर कड़ी नज़र रखना प्रारंभ कर दिया। पटना के नागरिकों ने कुछ वर्ष से ही क्रांति की तैयार शुरू कर दी थी, इसके लिए संगठन स्थापित किए जा चुके थे, जिसमें शहर के व्यवसायी एवं धनी वर्ग के लोग सम्मिलित थे। पटना के कुछ मौलवियों का लखनऊ के गुप्त संगठनों से पत्र व्यवहार चल रहा था। उनका दानापुर के सैनिकों से भी संपर्क हो चुका था। ऐसा प्रतीत होता है कि पुलिस वाले भी क्रांतिकारियों का सहयोग कर रहे थे। दानापुर के सैनिक भी वृक्षों के नीचे गुप्त बैठकें किया करते और क्रांति की योजना बनाते थे। + +3860. टेलर ने पटना में दमन चक्र चलाना शुरू किया, तो पीर अली ने विद्रोह कर दिया। उनके स्वभाव में अद्भूत तीव्रता तथा उतावलापन था। वे देशवासियों का अपमान सहन नहीं कर सकते थे। अतः उन्होंने जनता को सरकार के विरूद्ध संघर्ष करने की प्रेरणा दी और स्वंय संग्राम में कूद पड़े। + +3861. एक कवि ने ठीक ही लिखा है कि जो व्यक्ति अपने राष्ट्र पर अभिमान नहीं करता, वह मुर्दे के समान है। " जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है, वह नर नहीं निरा पशु है और मृतक समानहै। " अच्छे लोगों ने तो यहाँ तक माना है कि जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से बढ़कर है। प्रत्येक प्राणी की मृत्यु निश्चित है। कुछ लोग अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु अपनी जान की बाजी लगा देते है, तो कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो अपनी मातृ भूमि के लिए मर मिटते है। इतिहास में केवल उन्हीं को याद किया जाता है, जिन्होंने अपने देश की आजादी के लिए हँसते-हँसते अपने प्राणों का बलिदान कर दिया है। त्यागी व्यक्ति को अपने त्याग का फल एक न एक दिन अवश्य प्राप्त होता है। + +3862. मालागढ़ वलीदाद खाँ की क्रांति का प्रमुख केन्द्र था। कुछ आसपास के लोगों का उन्हें समर्थन प्राप्त था। आदमी यदि हिम्मत से काम ले, तो अपने दुश्मन को भी शिकस्त दे ही सकता है। वलीदाद खाँ नेब्रितानियों के विरूद्ध जमकर युद्ध लड़ा और गुलावटी की सैनिक चौकी पर अधिकार कर लिया। वलीदाद खाँ ने आगरा और मेरठ के बीच ब्रितानियों की संचार व्यवस्था तहस-नहस कर दी। 10 सितम्बर को गुलावटी के समीप वलीदाद खाँ ने कम्पनी की सेना के साथ जमकर युद्ध लड़ा, जिसमें ब्रितानियों को वलीदाद खाँ को पराजित करने में सफलता नहीं मिली। + +3863. वारिस अली. + +3864. पटना के कमिश्नर एस. टेलर का यह मानना था कि बिहार में क्रांति का प्रसार निश्चित रूप से होगा। अतः उनके वहाँ पर सी.आई.डी. का जाल बिछा दिया। इसी समय उसे यह सूचना प्राप्त हुई कि तिरहुत ज़िले का पुलिस जमादार वारिस अली ब्रितानियों का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने क्रांतिकारियों से अपना संपर्क स्थापित कर रखा था। एक सरकारी पदाधिकारी का विद्रोहियों का साथ देना सरकार की दृष्टि में राजद्रोह था। सरकारी आदेश से उनके मकान को घेर लिया गया, उस समय वे गया के अली करीम नामक क्रांतिकारी को पत्र लिख रहे थे। इस छापे में उनके घर से बहुत आपत्तिजनक पत्र प्राप्त हुए। इसको आधार बनाकर 23 जून, 1857 ई. को उनको गिरफ़्तार कर मेजर होम्स के पास भेज दिया गया। मेजर होम्स ने उस दानापुर कचहरी के कमिश्नर के पास भेज दिया। वहाँ उन पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें मृत्यु दंड की सजा दी गई। 6 जुलाई, 1857 ई. को वारिस अली को फाँसी पर लटका दिया गया। + +3865. भारत में शासन पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए एक भारतीय सचिव को नियुक्त किया गया। इस समय ब्रिटिश सरकार ने क्रांति की ज्वाला को शांत करने के लिए बड़े-बड़े वायदे किए, परंतु सरकार ने उनको पूरा नहीं किया। वारिस अली 1857 की क्रांति के एक महान योद्धा थे, जिनकी कुर्बानी को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। + +3866. जगदीशपुर छोटी रियासत होते हुए भी उसका प्रभाव बिहियाँ आदि स्थानों पर था। सम्राट शाहजहाँ ने जगदीशपुर के ज़मींदार को 'राजा' की उपाधि प्रदान की थी। जगदीशपुर के अंतिम शासक राजा अमर सिंह ही थे। कुँवर सिंह के गद्दी छोड़ने के बाद बिहार में अमर सिंह ने आठ महीनों तक क्रांति का नेतृत्व किया। उस समय कुँवर सिंह उत्तर-पश्चिमीक्षेत्रोंमेंलड़नेमेंव्यस्तथे। + +3867. अमर सिंह की मुठभेड़ सर ई. लुगार्ड के साथ हुई। लूगार्ड ने आरा से बिहिया की ओर प्रस्थान किया। जहाँ अमर सिंह के कुछ लोगों ने उन्हे बाधा पहुँचाने का प्रयास किया, पर उसने उन लोगों को जंगल में खदेड़ दिया। + +3868. 20 मई को लूगार्ड तथा अमर सिंह के बीट मेटाही में मुठभेड़ हुई। डगलस के साथ भी अमर सिंह का संघर्ष हुआ, जिसमें अँग्रेज़ सेना ने उन्हें पीछे हटने किए विवश किया, पर वह उन पर कब्जा न कर सकी। + +3869. अमर सिंह ने एक सिपाही को सिर्फ़ इसलिए फाँसी पर लटका दिया क्योंकि उसने एक बनिया की हत्या की थी। उन्होंने हरकिशन सिंह को जगदीशपुर के शासन प्रबंध का प्रधान नियुक्त किया। उनका सैनिक संगठन बहुत सशक्त था। तरह-तरह के अधिकारी थे। जगदीशपुर के दो हज़ार सिपाहियों में से 1500 फायरमेन एवं 500 तलवार चलाने में निपुण थे। + +3870. अमर सिंह भारतीय स्वतंत्रता के एक ऐसे देदीप्यमान नक्षत्र थे, जिनकी वीरता आज भी भारतीयों को राष्ट्र के लिए मर मिटने के लिए प्रेरणा देती है। निःसंदेह अमर सिंह कुँवर सिंह के लिए लक्ष्मण जैसे भाई थे। + +3871. बिहार में गुप्त रूप से क्रांति का प्रचार हो रहा था। पीर अली के नेतृत्व में क्रांति की योजना बनती थी एवं इसकी गुप्त बैठकें दानापुर में होती थीं। जगदीशपुर के बाबू कुंवरसिंह की ओर से बिहार के दानापुर छावनी के सिपाहियों में हरेकृष्ण सिंह एवं दल भनज सिंह क्रांति की लहर फैलाते थे। + +3872. प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान बाबूकुंवरसिंह एवं अमर सिंह ने बिहार के क्रांतिकारियों का नेतृत्व किया। उन्हें इस हेतु बंसुरिया बाबा ने प्रेरणा प्रदान दी। ऐसा कहा जाता है कि उन दिनों जगदीशपुर के जंगलों में एक संत रहते थे, जिनकी बंशी की ध्वनि पर समस्त प्राणी मंत्रमुग्ध हो जाते थे। ऐसा प्रतीत होता था कि जैसे स्वयं भगवान कृष्ण उनके रूप में भोजपुर की जनता को अपनी मुरली की धुन सुना रहे हैं। जिस प्रकार कृष्ण ने अत्याचारी कौरवों के विरूद्ध अर्जुन को युद्ध करने हेतु प्रेरित किया, उसी प्रकार बंसुरिया बाबा ने भी कंपनी के अत्याचारी शासन के विरुद्ध भोजपुर की जनता को संघर्ष करने की प्रेरणा प्रदान की। बाबा के आह्वान पर जनता अपना सर्वस्व न्यौछावर करने को तैयार हो गई। बाबा कहते थे " बेटा अपना माथा ठीक रखो। शरीर स्वतः काम करेगा।" इसका अर्थ यह था कि अपने नेता की मदद करो। बाक़ी सब कुछ अपने आप ठीक हो जाएगा। अनुशासन में रहते हुए कँपनी के अत्याचारी शासन का अन्त करो। + +3873. कुंवरसिंह की मृत्यु पश्चात् अमर सिंह ने शासन का कार्य सँभाला और अँग्रेज़ों के विरूद्ध संघर्ष जारी रखा। उस समय भी बाबा अमर सिंह की प्रेरणा देते रहते थे। उनकी कृपा एवं आशीर्वाद से अमर सिंह कई बार दुश्मनों के हाथों से बाल-बाल बचे थे। + +3874. प्रसिद्ध राष्ट्र कवि स्वर्गीय रामधारीसिंह दिनकर का यह मानना था कि इतिहास सभी शहीदों के साथ एक जैसा न्याय नहीं करता। उन्होंने लिखा है- + +3875. शंकर शाह चाहते तो क्रांतिकारियों का विरोध करके अपनी पेन्शन में वृद्धि करवा सकते थे और कुछ भी लाभ उठा सकते थे, परंतु उन्होंने ग़रीबी में ही जीना पसंद किया। उन्होंने यह निर्णय लिया कि चाहे सरकार उनकी पेन्शन बंद कर दे, परंतु वे कंपनी के शासन का विरोध करने में क्रांतिकारियों का साथ देंगे और देश के लिए मर मिटेंगे। + +3876. राजा शंकर शाह 1857 की क्रांति के एक प्रमुख योद्धा थे, जिन्होंने हरसम्भव भारत माता की सेवा का प्रयास किया। भारतवासी उनके बलिदान को कभी नहीं भूलेंगे और उनकी भाँति हमेशा बुराइयों एवं अत्याचारों के ख़िलाफ़ उठाते रहेंगे। + +3877. जौधारा सिंह गया जिले के खमिनी गाँव के रहने वाले थे। उनका गाँव क्रान्ति का केन्द्र बन गया। क्रान्तिकारियों ने नवादा तथा शेरघार्टी की चौकियों पर अधिकार कर लिया। उन्होंने गया जेल के फाटक तोड़कर कैदियों को मुक्त कर दिया। बिहार शरीफ के मुन्सिफ की हत्या कर दी गई। क्रान्तिकारियों के दल ने टेफारी होते हुए सोनू की ओर प्रस्थान किया। + +3878. इस प्रकार बैसवाड़ा के निम्नलिखित लोकगीत राणा बेनी माधोसिंह के शौर्य एवं लोकप्रियता की कहानी पर प्रकाश डालते हैं- + +3879. राणा ने मई-जून, 1858 ई. में बहराइच से अंग्रेजों का मार भगाया। उन्होंने लखनऊ में अग्रेजों के विरूद्ध कई युद्धो में भाग लिया। बेलीगारद के युद्ध में राणा ने अपने एक हजार सैनिक भेजे थे। वे कुंवरसिंह की भाँति गोरिल्ला युद्ध पद्धति में विश्वास करते थे। इस युद्धकौशल में उन्होंने अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिए थे। + +3880. यह सही है कि राणा अपने लक्ष्य की प्राप्ति में असफल रहे। उनके लड़के ने अंग्रेज सैनिक अधिकारी को पत्र लिखा कि वह अपने पिता की मदद नहीं करेगा और आवश्यकता पड़ने पर वह अंग्रेजों की मदद करेगा। राणा ने अंग्रेज सरकार को यह स्पष्ट लिखा कि वह बिरजिसकद के साथ है। राणा बेनी माधोसिंह के पास 40 तोपें, 2,000 घोड़े एवं 4,000 सैनिक थे। + +3881. 1857 ई. के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम में राजस्थान के बहुत से क्रांतिकारी शहीद हो गए थे, जिनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है- + +3882. इनका जन्म 6 मई, 1824 वई. को राजस्थान के जोधपुर ज़िले में आसब नामक स्थान पर हुआ था। वे आसब के जागीदार के छोटे भाई थे. उन्होंने 1857 ई. की क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और जनरल लॉरेन्स के नेतृत्व में लड़ रही ब्रिटिश सेना के विरूद्ध युद्ध में भाग लिया। सन् 1857 ई. में ब्रितानियों ने इन्हें आउवा में युद्ध करते हुए गिरफ़्तार कर लिया। तत्पश्चात् जोधपुर राज्य के अधिकारियों ने उन्हें कारावास की सजा सुनाई। इस कारावास की सजा के दौरन ही उनकी आउवा की हवेली में ही मृत्यु हो गई। + +3883. जोधा का जन्म 1816 ई. में जोधपुर ज़िले के गेराओं नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता का नाम ठाकुर रणजीत सिंह था। भैरोसिंह जोधा गोराओं के जागीरदार थे। 1857 ई. की क्रांति में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1857 ई. में आउवा के युद्ध में लड़ते हुए वे वीरगति को प्राप्त हुए। + +3884. मुनव्वर खान राजस्थान के टोंक ज़िले के निवासी थे। वे टोंक स्टेट आर्मी के सिपाही थे। विद्रोह सेना के एक सदस्य के रूप में उन्होंने 1857 की क्रांति के समय अँग्रेज़ सेना के विरूद्ध युद्ध में भाग लिया। यह विद्रोही सेना टोंक स्टेट से दिल्ली दरबार की सहायता के लिए रवाना हुई थी। मुनव्वर खान दिल्ली में अंग्रेज सेना के विरूद्ध युद्ध लड़ते हुए मारे गए। + +3885. जियालाल का जन्म 1790 ई. में चित्तौड़गढ़ ज़िले में निम्बाहेड़ा नामक स्थान पर हुआ था। इन्होंने निम्बाहेड़ा के कप्तान सी. एल. शावर्स के विद्रोह को दबाने के आदेशों का पालन करने से इन्कार कर दिया। निम्बाहेड़ा की रक्षा के लिए इन्होंने सैनिक टुकड़ियों को संगठित करके उसकी सहायता से अँग्रेज़ी सेना का मुक़ाबला किया। विद्रोहियों की पराजय के पश्चात् इन्हें बंदी बना लिया गया। दिसंबर, 1857 ई. ब्रिटिश टुकड़ियों की सार्वजनिक परेड के समय इन्हें मार दिया गया। + +3886. ये टोंक के नवाब वज़ीर खाँ के मामा थे। इन्होंने सन् 1857 में टोंक की विद्रोही सेना का नेतृत्व सँभाला। बाद में यह नवाब के वफ़ादार सैनिकों द्वारा मार दिए गए। लेकिन दिल्ली के बहादुरशाह की सहायता में इन्होंने 600 सैनिक भेजने में सफलता प्राप्त की। + +3887. आज बड़े-बड़े नेता अपने नाम पर संस्थाएँ बना लेते हैं, ताकि भावी पीढ़ी उनके नाम को याद रख सके। + +3888. उषा चन्द्रा ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि वृन्दावन तिवारी ने सैनिक शिविर में जाकर सैनिकों को जेल में होने वाले अत्याचार के बारे में बताया। उन्होंने ओजस्वी भाषण देते हुए कहा-"सैनिक भाइयों, कल लुशिंगटन एवं एक सेना अधिकारी कारागृह में आए थे। उन्होंने बंदियों को गाय का मांस और सूअर का माँस खाने के लिए बाध्य किया। क्या आप इस अपमान को सहेंगे?" वृन्दावन तिवारी ने सैनिक अधिकारियों को क्रांति में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। + +3889. महाराणा बख्तावर सिंह अमझेरा के विद्रोही नरेश थे। उनको इन्दौर के सियागंज स्थित छावनी के मैदान में फाँसी देने की पूरी तैयार की जा चुकी थी। छावनी के इलाके में फौजी गश्त कायम कर दी गई, ताकि महाराणा को बचाने के लिए उनकी कोई सहायक फौज आक्रमण न कर सके। सरकार को यह जानकारी मिली थी कि भील लोगों की एक टुकड़ी इन्दौर के आसपास मौजूद है। + +3890. इसी समय इन्दौर के महाराज तुकोजीराव होलकर ने रेजीडेन्सी पर आक्रमण कर दिया। अतः वहाँ का लेफ्टिनेन्ट डूंरड भागकर होशंगाबाद की ब्रिटिश छावनी में चला गया। इस अवसर का लाभ उठाकर महाराणा बख्तावरसिंह की सेना ने भी भोपावर के पॉलिटिकल एजेन्ट पर आक्रमण कर दिया, तांकि उनके जाजूसी के अड्डे को समाप्त किया जा सके। महाराणा ने अपनी सेना संदला के भवानी सिंह एवं अपने दीवान गुलाब राव के नेतृत्व में भेजी थी। + +3891. क्रान्तिकारी सेना ने भोपावर के बाद सरदारपुर पर आक्रमण कर दिया, जहाँ ब्रिटिश सेना ने क्रान्तिकारियों पर तोपों से गोले बरसाने शुरू कर दिए, परन्तु महाराणा ने सेना की एक टुकड़ी तो वहीं रखी और दूसरी टुकड़ी ने धार व राजगढ़ के क्रान्तिकारियों के सहयोग से नदी की और से सरदारपुर पर भयंकर आक्रमण कर दिया। दोनों सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ। अन्त में क्रान्तिकारियों की विजय हुई और उन्होंने सरदारपुर पर अधिकार कर लिया। तत्पश्चात् क्रान्तिकारी सेना ने धार की ओर प्रस्थान किया, जहाँ के शासक भीमराव भौंसले ने उनका शानदार स्वागत किया। + +3892. झारखण्ड की राजधानी रांची के शहीद चौक पर हाथ में क्रांति की मशाल थामे दो मजबूत हाथों की आकृति लोगों को आकर्षित करती है। इसी शहीद चौक के निकट एक शासकीय विद्यालय है जिसका नाम झारखण्ड सरकार ने ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के नाम पर रखा है। इसी विद्यालय में स्थित एक पेड पर अमर शहीद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव को 16 अप्रैल, 1858 को फांसी दी गई थी। आज वह पेड तो नहीं है पर उस स्थान पर भव्य शहीद स्तम्भ हमें अमर शहीद विश्वनाथ शाहदेव के बलिदान की याद दिलाता है। + +3893. ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव को पकडने के लिए अंग्रेज सरकार ने ईनाम घोषित किया। देशद्रोही दगाबाजों ने अंग्रेजों का साथ देकर मेजर कोटर और कैप्टन ऑक्स की सेना को मजबूत किया। इन लोगों के आगे भी ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के कदम नहीं रुके। वह अंग्रेजों के घेरों को तोडकर अपनी वीरता दिखाते हुए निकल जाते थे। बाद में जयचंद और मीरजाफर जैसे लोगों ने झारखण्ड के क्रांतिकारियों को अंग्रेजों की जेलों में डलवा दिया। ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव और पाण्डेय गणपत राय को भी अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर फतह हासिल कर ली। शेख भिखारी और डकैत उमराव सिंह नीलाम्बर और पीताम्बर को गिरफ्तार कर लिया गया था। + +3894. Atomic masses in brackets are the most stable isotope. + +3895. वास्तव में शस्त्र किसे कहा जाए, सर्व प्रथम हमें इस प्रश्न का उत्तर जानना जरूरी है। विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न प्रकार के शस्त्रों की उपयोगिता व कार्य क्षमता आदि गुणों को ध्यान में रखकर विभिन्न प्रकार के शस्त्रों की परिभाषा की है :- + +3896. किसी भी शस्त्र की विशेषताएँ उस शस्त्र की सामरिक शक्ति तथा परिधि का बोध कराती है। कहने का तात्पर्य यह है कि किसी शस्त्र की सामरिक शक्ति तथा परिधि उसकी विशेषता प्रकट करती है। शास्त्रों की विशिष्टतायें ही वह मापदण्ड होती है जो उसके कार्य पर प्रकाश डालते हुए यह स्पष्ट करती है कि उसे किस कार्य (आक्रमण या सुरक्षा) के लिए किस प्रकार प्रयोग में लाया जा सकता है। + +3897. यहाँ यह रखने योग्य है कि मार की दूरी भी शस्त्र का एक प्रमुख एवं अभिन्न लक्षण है, जिसे अनदेखा नही किया जा सकता। जनरल फुलर ने तो इसे शस्त्र का प्राभावी लक्षण माना है। जनरल फुलर के अुनसार किसी शस्त्र की उपयोगिता का आकलन उसके निम्नलिखित मुख्य लक्षणों पर निर्भर करता है। + +3898. (4) फायर की मात्रा - प्रत्येक शस्त्र में अपनी अलग-अलग फायर की मात्रा होती है। किसी शस्त्र के प्रभाव का आकलन इस तथ्य पर निर्भर करता है कि वह कितने अधिक गोले अथवा गोली प्रति मिनट फायर करने की क्षमता रखता है। शस्त्र का यह गुण मुख्यतः तीन बातों पर निर्भर करता है (1) फायर का समय, (2) मैगनीज अथवा पेटी में गोला। गोली भरने की विधि (3) ठण्डा करने का साधन। फायर चक्र के समय से यह अभिप्राय है कि फायर चक्र के लिये जितना कम समय प्रयुक्त है। शस्त्र का फायर उतना सफल होगा। मैगनीज अथवा पैटी में गोला। गोली भरने की विधि से यह अभिप्राय है कि शस्त्र में कितने राउड आते है तथा गोला बारूद की पूर्ति का प्रबंध किस ढंग का है। शस्त्र को ठण्डा करने का साधन कैसा है क्योंकि पानी से ठन्डी की गई नाल तैजी से फायर डाल सकती है। अपेक्षाकृत हबा से ठंडी की गई नाल से। + +3899. उदाहरण के लिए हम यह कह सकते है कि शस्त्रों के विकास के विभिन्न चरण में अपनी मारक क्षमता अथवा मार की दूरी आधार पर प्रत्येक शस्त्र की प्रधानता निर्धारित की जाती रही है। वैज्ञानिक युग में प्रवेश के साथ ही टैंको की प्रधानता, वायु यानो की निर्णायक भूमिका और अब अन्तरिक्ष में दादा गिरी करने तथा एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप में शोले वर्षा कर तवाह करने वाले मिशाइलो के करतब को देखते हुये यह स्पष्ट है कि सर्वदा अलग-अलग ढंग से शस्त्रों ने अपनी मारक क्षमता के आधार पर अपना निर्णायक एवं विशिष्ट स्थान बनाये रखा है। जब तक की उसे चुनौती देने वाले किसी नवीन शस्त्र का विकास नही हुआ है। जनरल फुलर की धारणा है कि किसी शस्त्र का प्रबलतम हथियार होना उसकी अचूकता वहनीयता अथवा फायर की गति पर निर्भर न होकर उसकी पसार पर ही निर्भर होता है। क्योकि इस प्रकार का हथियार अन्य हथियार से पहले काम मे लाया जा सकता है और इसके फायर के आड़ में अन्य हथियारों को शत्रु के निकट लें जाकर अपनी-अपनी विशेषताओं के अनुसार उन्हें प्रयोग किया जाता है। यद्यपि विद्यमानों में इस प्रश्न पर मतभेद है की शस्त्रों का कोन सा लक्षण निर्णायक अथवा सर्वश्रेष्ठ है। फिर भी यह मानना उचित प्रतित होता है कि सुरक्षा, मार अथवा गतिशीलता के लक्षणों की भी शस्त्रों को निर्णायक रूप देने में कम महत्वपूर्ण भूमिका नही होती। + +3900. शस्त्रास्त्रों के समुचित अध्ययन के लिये यह आवश्यक है कि उनका वर्गीकरण कर लिया जाये। वैसे शस्त्रास्त्रों का उचित वर्गीकरण आसानी से नही किया जा सकता क्योंकि नित्य ही नवीन शस्त्रों का अविष्कार होता रहता है। इस कारण वर्गीकरण में प्रत्येक नवीन शस्त्र का उचित स्थान निर्धारित करना कठिन हो जाता है। पी. ई. क्लीएटर के द्वारा शस्त्रास्त्रों को मुख्य रूप से दो भागो में विभाजित किया गया है। + +3901. रक्षात्मक शस्त्र. + +3902. जीवाणु शस्त्र में ऐसे कीटाणुओं का प्रयोग किया जाता है जो मनुष्यों, पालतू जानवरो, खड़ी फसलो और अन्य आर्थिक साधनों को गम्भीर हानि पहूँचा सकें। उदाहरण के लियें बैक्टीरिया के एक विशेष समूह "सालमोनेला" को लिजिये। इसकी कल्चर के लगभग आधे किग्रा. को पचास लाख लीटर पानी में मिला दिया जाये तो इस विषाक्त जल के केवल 200 ग्राम पीने से किसी व्यक्ति को गम्भीर रूप से बीमार होने की सम्भावना है। इन बैक्टीरिया समूह से आत्रशोथ, टाइफाइड़ और पेराटाइफाइड़ ज्वर आदि रोग पैदा होते है। पशुओं में यदि कीटाणुओं के द्वारा महामारी फैला दी जाये तो राष्ट्र की आर्थिक व्यवस्था प्रभावित हुए बिना नही रह सकती। इसी प्रकार फसलो का क्षति पहुँचाने वाले कीटाणुओं के द्वारा भी करोडा़े रूपयें मूल्य की फसलों को बरबाद किया जा सकता है। + +3903. समरतान्त्रिक शस्त्रों को तीन वर्गो में विभाजित किया जा सकता है - + +3904. (1) वे जो किसी प्रकार की यांत्रिक शक्ति द्वारा छोडे जाते है जैसे प्राचीन काल मे प्रयोग किये जाने वाले युद्ध यंत्र तथा तीर कमान इत्यादि। + +3905. ध्यान रखना चाहिए कि दहन के माध्यम से उत्पन्न शक्ति प्रयोग करने वाले शस्त्र स्वतन्त्र राकेट या नियन्त्रित प्रक्षेपास्त्र हो सकता है। इसका पुनःविभाजन इसके कार्य, मारक क्षमता, लक्ष्य की स्थिति तथा कार्य क्षेंत्र को ध्यान में रखकर किया जाता है। इसी प्रकार विस्फोटक शक्ति प्रयोग करने वा ले शस्त्रों को अग्नेय शस्त्र की संज्ञा दी जाती है। ऐसे आग्नेय शस्त्र जिनकी नली का व्यास (Caligre) 15 मि.मी. (0.6) से कम होता है तथा जिन्हे सैनिक उठाकर चल सकता है, तथा इनका भार भी कम होता है, साधारण तथा छोटे शस्त्र कहे जाते है। इनका वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है। + +3906. यह छोटा स्वचालित हथियार है जो राइफल की अपेक्षा अधिक शक्ति शाली होता है। इसकी नली का व्यास भी अधिक होता है जैसे अमेरिकी 50 रूसी 12.7 अथवा 14.7 mm की भारी मशीनगनें। इनकी नली पानी में ठन्डी की जाती है जिसके कारण लगातार और तेर फायर डालना सम्भव होता है। + +3907. हाउटजर + +3908. यह एक आग्नेसास्त्र है जो गन की अपेक्षाकृत कम वेग वाले परन्तु गन की तुलना में ऊँचे प्रक्षेप पथ बनाते है। हाउटजर की नली की लम्बाई भी तुलनात्मक रूप से कम होती हाउटजर पहाडी क्षेत्र में काफी उपयोगी सिद्ध होता है, क्योंकि ऊँचे मार्ग से जाने वाला गोला राह में आने वाली ऊँचाइयों को सरलता से पार करता हुआ अपने लक्ष्य तक पहूँचता है। + +3909. (ख) निर्देशित राकेट + +3910. शस्त्र और सामरिकी का परस्पर सम्बन्ध. + +3911. यह निश्चयपूर्वक नही कहा जा सकता कि प्रारम्भ में जिस हथियार का निर्माण किया गया था वह वास्तव में युद्ध के ही उदे्श्य से निर्मित हुआ था या फल इत्यादि तोडने के लिये, जैसे एक चाकू से फल भी काता जा सकता है और जान भी ली जा सकती है। जैसा भी ययर्फोड ने कहा है - " आदि काल में हथियारो व औजारो को एक दूसरे की जगह प्रयोग किया जाता रहा है। एक हथौडी के ऊपरी सिरे को फेककर मारने के हथियार का भी काम किया जा सकता है। कुल्हाडी जिस प्रकार पेड़ काट सकती है उसी प्रकार से यह शत्रु पर मार कर सकती है।" + +3912. अध्ययन की सुविधा हेतु इन प्राचीन शस्त्रास्त्रों को दो प्रमुख भागो में विभाजित किया जा सकता है - + +3913. प्राचीन आयविर्त के आर्यपुरूष अस्त्र-शस्त्र विद्या में निपुण थे। उन्होने अध्यात्म-ज्ञान के साथ-साथ आततियों और दुष्टों के दमन के लिये सभी अस्त्र-शस्त्रों की भी सृस्टि की थी। आर्यो की यह शक्ति धर्म-स्थापना में सहायक होती थी। प्राचीन काल में जिन अस्त्र-शस्त्रों का उपयोग होता था, वे आयुध जो मन्त्रों से चलाये जाते है- ये दैवी है। प्रत्येक शस्त्र पर भिन्न-भिन्न देव या देवी का अधिकार होता है और यन्त्र-तन्त्र के द्वारा उसका संचालन होता है। वस्तु इन्हें दिव्य तथा मान्त्रिक-अस्त्र कहते है। इन बाणों के कुछ रूप इस प्रकार है। + +3914. गरूड़ -इस बाण के चलते ही गरूड उत्पन्न होते है, जो सर्पो को रखा जाते है। + +3915. यह विद्या के प्राचीनतम गन्थ ‘धनुर्वेद’ में समस्त शस्त्रास्त्रों को मुख्यतः 4 वर्गो (मुक्त, अमुक्त, मुक्तामुक्त और मन्त्रयुक्त) में विभाजित किया गया है। वैशम्पायन की ‘नीति प्रकाशिका’ में भी शस्त्रों के इन्ही 4 भेदों का वर्णन किया है। इन दोनो के समन्वित वर्गीकरण को हम निम्न प्रकार स्पष्ट कर सकते है- + +3916. (3) द्रुधन -लगभग 4 फीट लम्बा ‘मुग्दर’ के आकार का शस्त्र। + +3917. (8) चक्र - धातु निर्मित मण्डलाकार तश्तरी की भॉति का आरों से युक्त अस्त्र जिसका मध्य भाग खोखला होता था। + +3918. (2) इसू -तलवार । + +3919. (7) स्थूण - आदमी की ऊचाई का स्तम्भवत् हथियार। + +3920. (12) सीर -लोहे का बना हुआ दानों और से मुड़ा हुआ बाल्टी के आकार का शस्त्र। + +3921. (स) भुक्तामुक्त शस्त्र - + +3922. (2) मंत्रयुक्त शस्त्र -किसी मन्त्रादि की सहायता से प्रक्षेपित शस्त्र, जैसे - क्षेपणि, धनुष आदि। + +3923. आचार्य कोटिल्य ने भी आपने अर्थशास्त्र (2/18) में गति तथा स्वरूप एवं आकार के आधार पर शस्त्रास्त्रों का वर्गीकरण किया है। गति के आधार पर उसने 10 प्रकार के स्थिर अंगो तथा 17 प्रकार के चल-यन्त्रों एवं स्वरूप के आधार पर 11 प्रकार के हलमुख (हल की भॉति नोंक वाले) शस्त्रों का विवरण दिया है जिन्हें संक्षेप मे निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है। + +3924. (4) विश्वासघाती - प्रवेश द्वारों पर तिरछा लगा हुआ एक ऐसा शस्त्र जिसके स्पर्श मात्र से ही शत्रु मर जाऐं। + +3925. (9) ऊध्वबाहु - प्रवेश द्वार पर रखी हुई एक ऐसी बहुत भारी लाट (थम्भ) जिसे शत्रु द्वारा प्रवेश करने के प्रयत्न पर उस पर खींचकर गिरा दि या जाता था। + +3926. (3) सूकरिका - चमड़े की बनी सूकर को समान आक्रति वाली एक ऐसी भरीक जिसे अट्टालक के सुरक्षार्थ प्रयुक्त किया जाता है। + +3927. (8) स्पृतकला - कांटेदार गदा। + +3928. इसमें शक्ति, प्राप्त, कुन्त, भिण्डीपाल, तोमर, शूल (त्रिशूल), हाटक (तीन कांटो से युक्त कुन्त सदृश) कर्पण (तोमर सृदश) वराहकर्ण (सूअर के कान की आकृति वाला दुधारा) तथा कणय (बीच में मूठ लगा दोंनो ओर तीन-तीन कीलों वाला लौंह श़स्त्र) आदि आते हैं। + +3929. 1. शिरस्त्राण-सिर की सुरक्षा करने वाला कवच। + +3930. 6 नागोदारिक- मात्र हाथ की उंगलियों का आरक्षक कवच। + +3931. 11 सूत्र कंकण - सूत द्वारा निर्मित कवच । + +3932. किन्तु प्राचीन ग्रंथों और भारतीय शिल्पकला का गहन अध्ययन करने वाले डॉ. गस्टन ओपर्ट ने कार्तियस के लेखों के आधार पर निष्कर्ष निकाला है कि सिकन्दर को भारत में आग्नेयास्त्रों का भी सामना करना पड़ा था। झेलम युद्ध के कुछ ही समय बाद रचित अपने अर्थशास्त्र में कौटिल्य ने भी अग्निपूर्ण तैयार करने की विधियों का उल्लेख किया है, जिससे अग्निपूर्ण प्रयोग करने वाले यंत्रों के अस्तित्व का भी संकेत मिलता है। सम्भवतः इसलिये कुछ विद्वानों ने ‘शत्ध्नी’ नामक शस्त्र को आग्नेयास्त्र कहकर सम्बोधित किया है। + +3933. चतुर्थोऽध्यायः. + +3934. ये च तैः सह गन्तारस्तध्दर्मात्सुकृतं कुलम्।। २।।
+ +3935. यावत्स्वस्थो ह्ययं देहो यावन्मृत्युश्च दूरतः।
+ +3936. विद्या कामधेनु के समान गुणोंवाली है, बुरे समय में भी फल देनेवाली है, प्रवास काल में माँ के समान है तथा गुप्त धन है। + +3937.
+ +3938. कुग्रामवासः कुलहीनसेवा।
+ +3939. दुष्टों के गावं में रहना, कुलहीन की सेब, कुभोजन, कर्कशा पत्नी, मुर्ख पुत्र तथा विधवा पुत्री ये सब व्यक्ति को बिना आग के जला डालते हैं। + +3940.
+ +3941. सकृज्जल्पन्ति राजानः सकृज्जल्पन्ति पण्डिताः।
+ +3942. तप अकेले में करना उचित होता है, पढ़ने में दो, गाने मे तीन, जाते समय चार, खेत में पांच व्यक्ति तथा युद्ध में अनेक व्यक्ति होना चाहिए। + +3943.
+ +3944. अनभ्यासे विषं शास्त्रमजीर्णे भोजनं विषम्।
+ +3945. त्यजेत्क्रोधमुखीं भार्यान्निः स्नेहानबंधवांस्त्यजेत्।। १६।।
+ +3946. सतत भ्रमण करना व्यक्ति को बूढ़ा बना देता है। यदि घोड़े को हर समय बांध कर रखें तो वह बूढ़ा हो जाता है। यदि स्त्री उसके पति के साथ प्रणय नहीं करती हो तो बूढ़ी हो जाती है। धूप में रखने से कपड़े पुराने हो जाते हैं। + +3947.
+ +3948. परिरक्षण के सिद्धांत और विधियाँ: + +3949. सूक्ष्मजीवी नमी की उपस्थिति में ही वृद्धि करते हैं, अतः इनकी वृद्धि को रोकने के लिए नमी को दूर करना आवश्यक होता है। नमी से फल-सब्जियों को खराब होने से बचाने के लिए उनमें उपलब्ध जल की अधिक मात्रा को निकालकर कम कर देते है। यह कार्य धूप में सुखाकर या कृत्रिम शुष्कीकरण यंत्रों की सहायता से संचालित गर्म हवा के कक्षों द्वारा किया जा सकता है। फल-सब्जियों तथा इनके परिरक्षित पदार्थो को शुष्क वातावरण में भण्डारित करना चाहिए। इनमें गीले हाथ नहीं लगाना चाहिए अन्यथा नमी उपलब्ध होने पर इन निर्जलित उत्पादों में पुनः रासायनिक प्रक्रिया आरम्भ होकर ये खराब होने लगते हैं। + +3950. खाद्य-पदार्थों से निर्मित सूक्ष्म जीव-प्रतिरोधक पदार्थों के उपयोग से परिरक्षण संभव कराना. + +3951. सिरका :-परिरक्षण में चीनी व नमक की अपेक्षा सिरका अधिक लाभदायक रहता है। सिरका सूक्ष्म जीवों की वृद्धि को रोकने का काम करता है। 2 प्रतिशत सिरका (एसिटिक एसिड) इन उत्पादों को स्थाई रूप से संरक्षित रख सकता है। + +3952. प्रशीतन करना तथा शीत-भण्डारों का प्रयोग. + +3953. खाद्य परिरक्षण व्यवसाय में एक भाग अस्थाई परिरक्षण पर आधारित है। चाहे यह नियम असंसाधित माल पर हो या उसके संसाधित उत्पाद पर हो, लेकिन अस्थाई परिरक्षण विधि पर तैयार किये हुए उत्पादों का उतना स्थिर परिरक्षण सम्भव नहीं, जितना कि संसाधित खाद्य-पदार्थो में स्थिर परिरक्षण सम्भव है। अस्थाई परिरक्षण को सात भागों में विभाजित किया जा सकता है। + +3954. यह बात हम अच्छी तरह से जानते हैं। सर्दियों में फल, सब्जियाँ लम्बे समय तक खराब नहीं होती, क्यों कि सर्दी में तापमान कम होने से सूक्ष्म जीवियों का विकास रूक जाता है। उनके विकास के लिए एक निश्चित तापमान तथा आर्द्रता की आवश्यकता होती है। + +3955. गर्मियों में पौधो से अधिक वाष्पीकरण तो होता ही है। इसे रोकने के लिए कुछ पौधों में प्रकृति द्वारा स्वयमवे मोम-लेपन किया जाता है। वनस्पति वैज्ञानिकों ने भी उसे अपनाया। उद्यान-विशेषज्ञों ने फल तथा सब्जियों पर मोम-लेपन करके सिद्ध कर दिया कि इस क्रिया से अस्थाई परिरक्षण किया जा सकता है। इस क्रिया द्वारा कच्चे फल तथा सब्जियों को मोम-लेपित कागजों में लपेटकर रखने से वे और भी सुरक्षित हो जाते है। + +3956. ऐसे रसायन, जिनका प्रयोग न्यून मात्रा में करने से मानव शरीर को हानि नहीं पहुंचती तथा कुछ खाद्य-पदार्थ जो कि मानव शरीर की वृद्धि के लिए अनिवार्य है जैसे- चीनी, तेल, नमक आदि उपयुक्त रसायन तथा खाद्य पदार्थ जो कि सूक्ष्मजीवों की बढ़ोतरी को रोकते हैं या उनका विनाश करते है, मृदु प्रतिरोधी कहलाते है। जिस प्रकार डिटोल नये घावों पर काम करता है उसी प्रकार प्रतिरोधी रसायन खाद्यों में कार्य करते है। इसमें सोडियम बेन्जोयट तथा सल्फर डाई-ऑक्साइड आदि रसायन भी आते हैं। चीनी, नमक, विभिन्न खाद्य तेल सिरका आदि खाद्य पदार्थ इस श्रेणी में आते है। फलों के विभिन्न पेयो चीनी तथा सिरका आदि में से एक या एक से अधक मिलाना उनके परिरक्षण के लिए ही किया जाता है। + +3957. उष्मा परिरक्षण. + +3958. (ii) निर्जलीकरण :-फल व सब्जियों को अंगीठी, स्टोव, बिजली की अंगीठी आदि की सहायता से बन्द वातावरण में एक निश्चित तापमान पर रखकर सुखाने की विधि को निर्जलीकरण कहते है। इस विधि में काम आने वाले यन्त्रों को निर्जलीकरण यंत्र (Dehydrtor) कहते है। इय यन्त्र में सुखाये गये फल तथा सब्जी धूप में सुखाये गये पदार्थो की अपेक्षा अधिक सुन्दर स्वरूप वाले तथा स्वादिष्ट होते है। + +3959. (iii) तेल द्वारा परिरक्षण :- सभी तेल स्नेहाम्लवर्ग (Fatty Acid) में आते है। यह भी सूक्ष्म जीवों का एक प्रतिरोधक है। शरीर के नये घाव पर तुरन्त तेल लगाते हुए आपने देखा ही होगा। तेल घाव पर इसलिए लगाया जाता है कि उस पर आक्रमण करने वाले रोगाणुओं का नाश हो साथ ही उनका पुनःप्रवेश भी सम्भव न हो सके। करीब-करीब सभी तेल फफूंद निरोधक भी होते है। अचार में तो तेल, लवण तथा अन्य मसाले आदि मिलाने से वह और परिरक्षित हो जाता है। + +3960. परिरक्षण के लिये खाद्य पदार्थो के मौलिक स्वरूप में बदलाव करना आवश्यक रहता है। फलों एवं सब्जियों की अधिक से अधिक पैदावार होने पर परिरक्षण कर, इनको दूसरे स्थानों पर भेजना, लम्बे समय तक सुरक्षित रखना एवं प्रतिकूल परिस्थितियों में इनका उपयोग करना मुख्य उद्देश्य रहता है। परिरक्षण करके फल एवं सब्जियों में उसकी नमी को कम करना, ब्राह्म संक्रमण से इनका बचाव करना एवं वायुरोधक बनाना ही मुख्य उद्देश्य रहता है जिससे लम्बे समय तक इनको रख सके। परिरक्षण करने के लिये अस्थाई एवं स्थाई विधियों का उपयोग किया जाता है। स्थाई परिरक्षण में ऊष्मा का उपयोग एवं खाद्य वस्तुओं को उपयोग कर प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जाता है। पेक्टिन युक्त फलों से जैली तैयार की जाती है जिससे उनका उपयोग लम्बे समय तक मनुष्य कर सके। इसी तरह जैम, स्कवैस, आचार, चटनी मुरब्बा आदि का बनाकर फल तथा सब्जियों की गुणवता को बनाये रखा जाता है। + +3961. सन्तुलन स्थापित हो गया था परन्तु द्वितीय विश्व महायुद्ध के बाद अमेरिका के लिए पार्यक्य नीति का अनुसरण करना संभव नहीं था, क्योकि त्रिगुट राष्ट्रों की हार के बाद यूरोप और एशिया के देशों पर साम्यवादी राष्ट्रों का प्रभाव बढ़ता जा रहा था।3 विश्वयुद्ध के बाद साम्यवाद को रोकने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपतियों द्वारा जो नीति अपनायी गयी वह आज भी मार्ग दर्शक बनी हुई है जैसे -ट्रूमैन सिद्धान्त, मार्शल योजना तथा आइजनहावर सिद्धान्त मुख्य है। + +3962. विलियम जे0 बांडर्स, ‘‘साउथ एशिया’’ + +3963. जे0सी0 हयूरविट्ज, ‘‘डिप्लोमेंसी इन दि नियर एण्ड मिडिल ईस्ट’’, वाल्यूम. प्प् एन0जे0ः पी0 नोस्ट्रंड क0 इन्श्योरेंंस, प्रिंसटन,1956, पृ0 229-30. + +3964. के0एम0 पणिक्कर, ‘‘इन टू चाइनाज’’, जार्ज अलेन एण्ड अनिवन लि0, लंदन, 1935, पृ0 171-75. + +3965. गुट-निरपेक्षता एवं अमेरिका. + +3966. नेहरू स्पीसेज, मई, 1955, पृ0 30.17 + +3967. संयुक्त राज्य अमेरिका पश्चिमी शिविर का नेतृत्व करता था। उसका भारत के प्रति दृष्टिकोण शतयुद्ध की समस्याओं के द्वारा निर्मित हुआ।20 विश्व के एक अलग भाग में स्थिति होने के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के हित कभी भी टकराये नहीं थे।21 सोवियत संघ से भूमण्डलीय संघर्ष में संयुक्त राज्य का प्रमुख साथी ब्रिटेन रहा, जो दो सौ वर्षो तक भारत का शसक रहने और भारतीय उपमहाद्वीप की समस्याओं से भलीभाँति परिचित होने के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका की इस उपमहाद्वीप के प्रति नीति निर्मित करने में प्रमुख यंत्र रहा। सन् 1949 के अंत तक संयुक्त राज्य की दक्षिण एशिया के सम्बन्ध में कोई नीति नहीं थी।19 22 + +3968. सीटो. + +3969. है। इसकी तीसरी धारा में आर्थिक उन्नति और सामाजिक कल्याण के लिए सहयोग करने का वचन दिया गया है। लेकिन सन्धि की सर्वाधिक महत्वपूर्ण चौथी धारा है जिसमें कहा गया है कि सन्धि के अन्तर्गत किसी भी देश के विरूद्ध सशस्त्र आक्रमण होने या शंति भंग का भय होने पर सबके लिए समान खतरे की स्थिति होगी। पॉचवी धारा में इस सन्धि से सम्बन्धित सभी मामलों पर विचार करने के लिए या किसी योजना पर सलाह लेने के लिए प्रत्येक सदस्य राष्ट्र के एक प्रतिनिधि से निर्मित होने वाली एक परिषद का वर्णन है। सींटो का प्रधान कार्यालय थाईलैण्ड की राजधानी बैंकाक में है। सन्धि के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका का एक व्याख्या पत्र भी जुड़ा है इसमें यह कहा गया है कि धारा 4 में वर्णित आक्रमण का अभिप्राय साम्यवादी आक्रमण से है। इसका अर्थ यह है कि अमेरिका कम्युनिस्टों द्वारा आक्रमण होने पर इन राज्यों को सहायता देगा।26 एशिया के स्वतंत्रता प्रेमी देशों ने इस संधि को घोर विरोध किया। इण्डोनेशिया और वर्मा ने मनीला समझौते या ‘सीटो’ की स्थापना का तीव्र विरोध किया और सीलोन (श्रीलंका) को सन्धि में सम्मिलित होने से रोका। चीन की इस सन्धि की भर्त्सना करते हुए कहा कि - इन सबका उद्देश्य विश्व में अमेरिकी प्रभुत्व की स्थापना करना है। चीन के प्रधानमंत्री चाऊ-एन-लाई ने इसे सामूहिक सुरक्षा के आवरण से ढका आक्रमण का साधन बताया था।27 वस्तुतः सीटो पुराने उपनिवेशवाद का आधुनिक संरक्षण था। + +3970. ये देश हस्तक्षेप कर सकते हैं जिससे इस क्षेत्र के देशों की अखण्ड़ता, स्वाधीनता और संप्रभुता की कल्पना पर कुप्रभाव पड़ता?28 श्री मेनन ने समझौते के विरूद्ध निम्नलिखित आपत्तियां उठायीः- + +3971. इस प्रकार ‘सीटो’ एक अमेरिकी प्रपंच था जो ‘नाटो’ द्वारा भेड़ो की तरह फैलाया गया था। जिन एशियाई शक्तियों के बल पर यह सन्धि स्थापित होनी थी वे शक्तियाँ तो इसके विरोध में थी। पूरे एशिया के तीन देश इसके पक्ष में थे और उनकी कुल जनसंख्या 11 करोड़ 60 लाख थी जो सर्वथा नगण्य थी। इस प्रकार लगभग सवा अरब जनता और उसके नेता समवेत रूप में सीटों के विपक्ष में थे।29 अमेरिका के अतिरिक्त जो अन्य देश इसमें शमिल हुए उनका अपना-अपना स्वार्थ था। एक तो वे साम्यवाद के विरोधी थे। दूसरे फ्रांस और ब्रिटेन किसी तरह से अपने पुराने उपनिवेशों पर अपना नियंत्रण कायम करना चाहते थे। आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड और फिलीपाइन्स ने जापान के उत्कर्ष को रोकने के लिए इस सन्धि की साथ दिया। इस सन्धि को सबसे रोचक विशेषता यह थी कि इसमें पाकिस्तान भी सम्मिलित था, जो दक्षिण पूर्व एशिया का भाग नहीं 28 + +3972. कश्मीर मुद्दा एवं अमेरिका. + +3973. इन तमाम कारणों ने इन दोनों देशों के बीच अविश्वास और बढ़ा दिया। पाकिस्तान को अमेरिका द्वारा हथियार दिये जाने के पीछे अनेक राजनीतिक कारक थे प्रथम-भारत के गुटनिपरेक्ष होने के कारण अमेरिका ने पाकिस्तान को अपना सहयोगी बनाने के लिए पटाना शरू कर दिया, यूरोप का बटवारा मंजूर करने के बाद अमेरिका ने पाकिस्तान इरान, इराक 32 डेनिस कक्स, ‘एस्ट्रेन्ज्ड डेमोक्रेसीज’, नई दिल्ली, 1993, पृ0 157.33 + +3974. ओर अफगानिस्तान, ईरान, जैसे कट्टरपंथी राज्यों पर अंकुश लगाने के लिए भी इस क्षेत्र का विशेष रणनीतिक महत्व है।35 बुश प्रशासन ने अपने कार्यकाल के अन्तिम वर्षों में कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के प्रति दबाव बनाये रखा उनके द्वारा आतंकवादियों गतिविधियों के संचालन में लायी गयी तेजी की भर्त्स ना की। मई 1990 में जार्ज बुश ने अपने उपराष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रार्व र गैट्स और सहायक विदेश सचिव जान किली को भारतीय उपमहाद्वीप में भेजा। जिन्होंने कश्मीर को सम्भावित परमाणु युद्ध खतरा उत्पन्न करने वाला कारक माना था।36 इसके बावजूद बुश प्रशासन के लिए कश्मीर नीति में कोई खास परिवर्तन नहीं था। लेकिन परमाणु अप्रसार और मानवाधिकारों को लेकर क्लिंटन प्रशासन के लिए कश्मीर एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया। यद्यपि संयुक्त राष्ट्र संघ के जनमत संग्रह वाले प्रस्ताव को इसने अस्वीकारते हुए ‘शिमला समझौते’ के प्रति अपना समर्थन जताया। फिर भी सम्पूर्ण क्षेत्र को विवादग्रस्त मानते हुए उसके विलय की वैधानिकता पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया। और इस मामले को अन्तर्राष्ट्रीयकरण का प्रयास किया। सोवियत संघ की समाप्ति, अफगानिस्तान में निरन्तर गृह युद्ध, इस्लामिक कट्टरतावाद, साम्यवादी चीन की बढ़ती शक्ति तथा भारत-पाक में शस्त्रों की लगी होड़ एवं तनाव के माहौल को अमेरिका की ‘कश्मीरी नीति’ में परिवर्तन के लिए कारक माना गया। क्योंकि यह वैश्विक व क्षेत्रीय हितों की दृष्टि से काफी लाभदायक सिद्ध हो सकता है।37 जार्ज डब्ल्यू बुश के शसन काल में पाकिस्तान सदैव की तरह कश्मीर मुद्दे को अमेरिका के एजेंडें में लाना चाहता था। पाकिस्तान की इच्छा थी कि इस मुद्दे को अमेरिका गंभीरता से लेते हुए मध्यस्थता करे। लेकिन यह पहली बार हुआ कि अमेरिका और पाकिस्तान की ओर से जारी संयुक्त बयान में कहा गया कि भारत को बातचीत का समर्थन द्विपक्षीय विवादों को सुलझाने के लिए तो किया गया है लेकिन इसमें कश्मीर का कोई जिक्र नहीं है।38 दिसम्बर 1959 को अमेरिकी राष्ट्रपति आइजनहावर ने भारत की यात्रा की। वह भारत यात्रा करने वाले प्रथम अमेरिकी राष्ट्रपति थे। 13 दिसम्बर, 1959 को आइजनहावर एवं नेहरू की एक संयुक्त विज्ञप्ति प्रकाशित हुई, जिसमें यह कहा गया कि दोनों देश समान आदर्श एवं 35 36 अजय उपाध्याय, ‘‘भारत अमेरिका सम्बन्ध’’ राधा पब्लिकेशन्स, नई दिल्ली, 2001 पृ0 73 + +3975. पाकिस्तान का समर्थन, भारत की अवहेलना. + +3976. अमेरिका के लिए साम्यवादी, जगत को नियंत्रित करने की योजना में यही व्यवस्था अधिक हितकर थी, किन्तु भारत की एकता और सुरक्षा की दृष्टि से उससे अधिक खतरनाक प्रस्ताव और क्या हो सकता था। कश्मीर पर अमेरिका के एकपक्षीय और स्वार्थपरक रवैये ने भारत-अमेरिकी सम्बन्धों को सामान्य बनाये जाने में बड़ा अहित किया है। कश्मीर के पूर्व हैदराबाद राज्य के प्रसंग को लेकर भी अमेरिका ने काफी कानूनी फसाद किया । उसका कहना था कि हैदराबाद एक राजनीतिक मामला है और शक्ति का प्रयोग उसकी कानूनी हैसियत को समाप्त कर सकता है।41 भारत का प्रत्युत्तर बहुत ही सटीक था, उसका कहना था कि चूकि हैदराबाद सार्वभौमिक राज्य नहीं है, अतः उसे यहाँ शिकायत करने का अधिकार नहीं है। + +3977. डी0एफ0 फ्लेमिंग, ‘‘अमेरिकाज रोल इन एशिया’’, 1961, पृ0 123. + +3978. 4) अंतिम समझौता होने तक भारत युद्ध विराम की सीमाओं के भीतर उतनी ही सेनायें रखे जितनी इस प्रदेश की कानून व्यवस्था के लिए आवश्यक हो। + +3979. प्रोत्साहित करने वाली परिस्थतियों के उत्पन्न होने की सम्भावना थी। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने कहा कि यह सहायता कश्मीर की समस्या को सुलझाने में सहायक होगी, यह इस बात का सूचक है कि उनका मन किस प्रकार सोचता है और वह सैनिक सहायता का किस उद्देश्य हेतु प्रयोग करना चाहते है।45 संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा समर्थित सैन्य संगठनों में पाकिस्तान के शमिल हो जाने से कश्मीर समस्या ‘शीतयुद्ध’ के क्षेत्र में आ गयी। कश्मीर स्थिति गिलगिट में अमेरिका सैन्य अड्डा बनाना चाहता था। गिलगिट सोवियत संघ के बहुत ही निकट पड़ता है, इस हालत में वह इसको कैसे बर्दाश्त कर सकता था। यू तो पहले से सहानुभूति भारत के प्रति रही है पर अब तो सोवियत संघ कश्मीर के मामले पर भारत का खुलेआम समर्थन करने लगा। 26 जनवरी, 1957 को कश्मीर संविधान परिषद के निर्णयनुसार भारत के साथ कश्मीर का अंतिम विलय होने वाला था। अतः इसके विरोध में पाकिस्तान ने सुरक्षा परिषद में पुनः अपील की। इस तरह कश्मीर का प्रश्न एक बार फिर 16 जनवरी, 1957 को सुरक्षा परिषद के सामने आया। यह ऐसा समय था जब स्वेज नहर के प्रश्न पर भारतीय दृष्टिकोण से पश्चिमी जगत के नेता अप्रसन्न थे परिस्थितियां पाकिस्तान के पक्ष में थी, क्योंकि यह पश्चिमी समर्थित गुट का सदस्य बन गया था। + +3980. जनता कर चुकी है और वह भारत का अभिन्न अंग है। मूल प्रस्ताव में उसने संकटकालीन सेना भेजने पर एक संशोधन पेश किया, परन्तु संशोधन साम्राज्यवादी गुट द्वारा जिसका नेतृत्व अमेरिका कर रहा था मान्य नहीं हुआ। इसके बाद मूल प्रस्ताव पर सुरक्षा परिषद में मतदान हुआ और सोवियत ने ‘वीटो’ का प्रयोग करके पूरे प्रस्ताव को रदद् कर दिया। जब यह प्रस्ताव रद्द हो गया तो 21 फरवरी को सुरक्षा परिषद में एक दूसरा प्रस्ताव पेश हुआ। इससे जारिंग को भारत व पाकिस्तान जाने एवं रिपोर्ट देने की बात थी सेना भेजने का कोई उल्लेख नहीं था। जारिगं ने दोनों देशों से वार्ता करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि कुछ वर्षो में कश्मीर की स्थिति में मौलिक परिवर्तन हो गया है। अपनी रिपोर्ट में समस्या सुलझाने में असमर्थता व्यक्त की। इसी तरह दिसम्बर, 1954 को पुनः ग्राहम मिशन प्रस्ताव आया और यह भी असफल हुआ इसके बाद अमेरिका द्वारा जून 1962 को आयरलैण्ड का प्रस्ताव आया जिसमें कहा गया कि भारत और पाकिस्तान कश्मीर की समस्या के समाधान के लिए प्रत्यक्ष वार्ता करे और ऐसी कार्यवाही न करे जिसमें उस क्षेत्र की शंति भंग हो जाने का खतरा उत्पन्न हो जाय। सोवियत संघ ने पुनः वीटो के द्वारा इस प्रस्ताव को रद्द कर दिया इसके बाद सुरक्षा परिषद ने कश्मीर के प्रश्न पर कोई कदम नहीं उठाया। + +3981. सुधीर वेदान, ‘‘भारत की विदेश नीति बदलते सन्दर्भ‘‘, 1978, पृ0 105.48 + +3982. अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली सैनिक सहायता कुछ समय के लिए बन्द कर दी। अमेरिकी सरकार ने यह महसूस किया कि युद्ध केवल भारतीय उप महाद्वीप की शंति के लिए खतरा नहीं है, वरन यह विश्व शंति के लिए भी खतरा है और इस युद्ध से अन्य देश भी प्रभावित होगें। इस युद्ध में अमेरिका ने युद्ध के लिए भारत और पाकिस्तान किसी एक पर दोषारोपण नहीं किया शयद वह पाकिस्तान और भारत के साथ अपनी व्यापक हित देख रहा था।52 सन् 1965 के पतझड़ में सुरक्षा परिषद ने कई प्रस्ताव लाये। इन प्रस्तावों का प्रमुख उद्देश्य दोनों पक्षों को युद्ध विराम तक लाना था, तथा दोनों पक्षों की सेनाओं को 5 अगस्त, 1965 की स्थिति तक लाना था तथा कश्मीर समस्या का राजनीतिक समाधान ढूढंना था । संयुक्त राज्य अमेरिका ने इन प्रस्तावों का समर्थन तथा संयुक्त राष्ट्र महासचिव के शंति प्रयासों के समर्थन की पुष्टि की। अमेरिका ने उन सारे उपायों को भी समर्थन दिया जिसके द्वारा दोनों पक्षों भारत और पाकिस्तान को वार्ता के मेंज तक लाया जाय, तथा उनको युद्ध से दूर किया जाय।53 51 + +3983. इसी बीच भारतीय सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि, वह घुसपैठियों का सामना करने के लिए दृढ है और महासचिव को पाकिस्तान से अनुरोध करना चाहिए कि वे इन व्यक्तियों को वापस बुला ले। 18 अगस्त को यह सुनने में आया कि महासचिव ने कश्मीर की स्थिति पर एक वक्तव्य तैयार किया है जिसमें वर्तमान स्थिति के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया गया है।54 लेकिन पाकिस्तान तथा अमेरिकी गुट के दबाव में आकार महासचिव ने उस वक्तव्य को प्रकाशित नहीं कराया।55 इसके उपरान्त महासचिव ने जनरल निम्मों को न्यूयार्क बुलाया। 16 अगस्त को जनरल न्यूयार्क पहुंचे और महासचिव को उन्होंने कश्मीर की स्थिति के सम्बन्ध में अपनी रिपोर्ट प्रस् तुत की। कश्मीर के प्रश्न पर अपनी मंत्रणा का दौरा पूरा करने के बाद महासचिव समस्या के समाधान के लिए नये सिरे से कदम उठाने पर विचार करने लगे। उन्होंने यह बताया कि, कश्मीर में लड़ाई के बारे में जनरल निम्मों ने जो रिपोर्ट दी है उसको अभी वे प्रकाशित नहीं करेगें। ऐसा उन्होंने अमेरिका के दबाव में आकर किया।56 अमेरिका ने पुनः वही रवैया अपनाया जो कश्मीर के प्रश्न पर अब तक उसका रहा है यह जानकर कि जनरल निम्मों की रिपोर्ट पाकिस्तान के विरूद्ध है; अमेरिकी सूत्रों ने महासचिव 54 56 एम0 वी0कामथ, ‘‘इण्डिया एण्ड यूनाईटेड नेशन‘‘, पृ0 81.55 + +3984. 4 सितम्बर को सुरक्षा परिषद की बैठक हुई। कश्मीर समस्या पर विचार करने के लिए परिषद की यह 125वीं बैठक थी। भारत ने परिषद से यह मांग की कि वह कश्मीर में पाकिस्तान को आक्रमणकारी घोषित करे, और पाकिस्तान से यह मांग करे कि वह कश्मीर के सभी भागों में अपनी सेना ह टा लें। भारतीय प्रतिनिधि पार्थसारथी ने कहा कि पाकिस्तानी ने आक्रमण के द्वारा करांची में 1949 में हुए युद्ध विराम समझौते को टुकड़े-टुकड़े कर दिया है और युद्ध विराम रेखा को कसाई खाने में परिवर्तित कर दिया है। बहस को प्रारम्भ करते हुए पार्थसारथी ने कहा कि, पिछले 18 वर्षो से सुरक्षा परिषद कश्मीर समस्या को सुलझानें में असफल रही है। क्योंकि वह इस समस्या के साथ तथ्य को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण किया है, मानने से हमेशा इंकार कर रही है। उन् होंने कहा कि, ‘‘कश्मीर में आजकल जो हो रहा है वह पुनः भारी आक्रमण है न्यायविहीन पाकिस्तानी दावे से सुरक्षा परिषद पथभ्रष्ट, भ्रम और बहकावे में पड़ गयी है।57 6 सितम्बर सुरक्षा परिषद की दूसरी बैठक हुई यू थाट ने सुरक्षा परिषद को सूचित किया कि भारत और पाकिस्तान दोनो ने युद्ध बन्द करने से इंकार कर दिया है उस रात सुरक्षा परिषद ने सर्वसम्मिति से एक संकटकालीन प्रस्ताव पास किया जिसमें भारत और पाकिस्तान को तत्काल युद्ध बन्द करने के लिए कहा गया। साथ ही यह घोषणा की कि युद्ध बन्द कराने के लिए वह (थाट) भारत और पाकिस्तान जायेगे। + +3985. ---- 2. जनमत संग्रह होने तक शंति व्यवस्था बनाये रखने के लिए कश्मीर में अफ्रीकी एशियायी देशों की सेना रखी जाय। + +3986. डाक्यूमेन्ट आन अमेरिकन फारेन रिलेशन्स, 1965, पृ0 116. + +3987. ---- केन्द्रीय लक्ष्य स्वकेन्द्र भारत से सक्रिय लड़ाई लड़ना है न कि साम्यवाद के विरूद्ध लड़ाई लड़नी है।64 दि पोस्ट इन्टेलिजेन्सर ने लिखा है कि-पाकिस्तान को अत्यधिक मात्रा में दी जाने वाली शस्त्र सहायता ही भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाले युद्ध का प्रमुख कारण है प्रायः सत्य है ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार लैटिन अमेरिका देशों में शस्त्रो से भरे जहाज दिये गये जिसका उद्देश्य वहां प्रति क्रान्तियों को आधार देना था। सच्चाई यह है पाकिस्तान के प्रति जो अमेरिका की नीति है तथा जो सोच है, वह ठीक ढंग से कार्य नहींं कर रही है और अमेरिका का नाम दोनों देशों में गर्त में जा रहा है। + +3988. वंशिगटन पोस्ट, सितम्बर 9, 1965.‘ + +3989. धीरेन मलिक, ‘‘इन्दिरा स्पीक्स आन जीना साइट एण्ड वार विद बंग्लादेश’’, 1976, पृ0 22. + +3990. पाकिस्तान के सम्बन्ध में अमेरिका और चीन की समझ या महत्ता कोई नयी बात नहीं है। पाकिस्तान दोनों ही देशों के लिए भू-राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल रहा है और इसलिए वह समान रूप से दोनों का कृपा पात्र रहा है। श्री तपनदास ने अपनी पुस्तक ‘‘साइनों-पाक काजुन एण्ड यू0 एस0 फारेन पालिसी’ में इस क्षेत्र में अमेरिका और चीन की समान रूप से बढ़ती दिलचस्पी में निहित कारणों का उल्लेख करते हुए लिखा है कि ‘‘दोनों ही देश अपने औपनिवेशक प्रभुत्व के लिए पाकिस्तान को निरन्तर प्रोत्साहित करते है। इसके पीछे मूल लक्ष्य अपने समान दुश्मन, सोवियत रूस और भारत को सबक सिखाना है। बांग्लादेश का उद्भव उनकी राजनीतिक प्रभुता के लिए प्रतिकूल है। चूकि दोनों देशों के बीच सम्बन्ध सुधारने में पाकिस्तान ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। इसलिए उन्होंने आदि माध्यम से एहसास का बदला चुकाया है। लेखक का कहना है कि ‘‘अमेरिका और चीन के बीच प्रतिस्पर्धा, संघर्ष और तनाव के उपरान्त भी अपने दूरगामी हितों की दृष्टि से एक अलिखित समझ विद्यमान थी जिसका बांग्लादेश में कार्यान्वयन किया गया।69 इस बीच भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बढ गया और मुक्ति वाहिनी की गतिविधि में तेजी आने के समय ही भारत और पाकिस्तान की सेनाओं में मामूली झड़पे भी होने लगी। पाकिस्तान के कुछ विमान और टैंक नष्ट कर दिये गये। इस पर अमेरिका ने यह आरोप लगाया कि भारत ने पाकिस्तान के विरूद्ध आक्रमणात्मक कार्यवाईयां शरू कर दी है। भारतीय विदेश सचिव अमेरिकी राजदूत क्रिटिंग को स्पष्ट शब्दों में बतला दिया कि अमेरिकी सरकार का यह आरोप सरासर झूठ है कि भारत ने पाकिस्तान पर हमला कर दिया है। + +3991. टी0वी0के0 कृष्णन, ‘‘दि अन्फ्रेन्डली फ्रेन्डस इण्डिया एण्ड अमेरिका’’, 1974, पृ0 286.72 + +3992. सातवें बेडे़ को टोंकिग की खाड़ी से प्रस्थान की सूचना के साथ यह अनुमान लगाया गया कि राष्ट्रपति निक्सन का यह कदम भारत को अपनी शक्ति से धमका कर एक ऐसी मनोवैज्ञानिक दहशत पैदा करना था जिससे वह बिना शर्त युद्ध विराम की शर्त को स्वीकार कर लें। निक्सन का उद्देश्य अगर पाकिस्तानियों को हटाना ही था तो इसके लिए अमेरिका को भारत से अनुमति लेनी पड़ती और भारत ने स्पष्ट कर दिया था कि ऐसा कुछ तब तक नहीं होगा जब तक युद्ध जारी रहेगा। अमेरिका के युद्धपोत राजनय के क्या कारण हो सकते थे। सम्भवतः युद्ध विराम से पहले बांग्लादेश में किसी रूप में अपना दखल कायम करना चाहता था जिससे युद्ध विराम के बाद पाकिस्तानी सैनिको तथा पाकिस्तान से आकर बांग्लादेश में शषण करने वालों को भारतीय सेना तथा मुक्ति वाहिनी के पंजे से छुड़ाया जा सके। युद्ध में भारतीय + +3993. सुरक्षा परिषद में अमेरिकी प्रस्ताव पर बोलते हुए सोवियत प्रतिनिधि ने कहा कि यह प्रस्ताव बिल्कुल स्वीकार नहीं किया जा सकता है उसने अमेरिका के प्रस्ताव पर ‘वीटो’ कर दिया। सुरक्षा परिषद में तीन बार वीटों से संयुक्त राष्ट्र संघ में गतिरोध पैदा हो गया। इसके बाद इटली और जापान ने भारत पाक युद्ध विराम के लिए एक नया फार्मूला तैयार किया। यह नौ सूत्रीय प्रस्ताव था जिसमें सुरक्षा परिषद के तीन सदस्यों की एक समिति बनायी जाने वाली थी, जिसका काम भारत और पाकिस्तान के महज मध्यस्थता कराकर समझौता कराना था। इस प्रस्ताव पर विचार करने के लिए परिषद की बैठक बुलानी ही थी कि भारत ने एक तरफा युद्ध विराम की घोषणा कर दी। + +3994. दैनिक जागरण, 1 जुलाइ्र्र , 2005.75 + +3995. जी0जी0मीर चन्दानी, ‘‘इण्डियाज न्यूक्लीयर डिलेका’’, पृ0 47.77 + +3996. 21 मई को भारत के विदेशमंत्री श्री स्वर्णिंसंह ने विस्फोट की शंतिपूर्ण प्रकृति पर बल देते हुए शिमला समझौते के प्रति भारत की वचनबद्धता को पुनः दोहराया कि पाकिस्तान के साथ सभी मतभेदों का समाधान द्विपक्षीय वार्ता के आधार पर होगा। और यह आशा व्यक्त करी कि जो भी भ्रम ‘विस्फोट’ के कारण उत्पन्न हुआ है, यथार्थ और उद्देश्यपूर्ण विश्लेषण तथा धैर्य से विचार करने पर दूर हो जायेगें। + +3997. 1965 में ही जनरल भुट्टों ने यह स्पष्ट कर दिया था कि ‘‘यदि भारत परमाणु बम का निर्माण करता है तो हमे घास खानी पड़े या पत्तियॉ हम अपना बम अवश्य प्राप्त करेगें। इसके अतिरिक्त हमारे पास कोई विकल्प नहीं है।81 पाकिस्तान की यह झल्लाहट उस समय और भी बढ़ गयी जब उसे 1971 के भारत-पाक युद्ध में बुरी तरह पराजित होना पड़ा। इस युद्ध के बाद पाकिस्तान के शसक श्री जुल्फिकार अली भुट्टों बने। सत्ता में आने के लगभग तीन सप्ताह बाद ही जनवरी 1972 में उन्होंने पाकिस्तानी वैज्ञानिको की एक बैठक मुल्तान में की। इस बैठक में उन्होंने परमाणु बम तैयार करने के अपने कार्यक्रम को स्पष्ट करते हुए कहा कि ‘‘पाकिस्तान के पास ऐसा परमाणु बम हो कि भारत का उस पर हमला करने की जुर्रत ही न हो। यहूदी, ईसाई और हिन्दू परमाणु बमों से लैस है तो इस्लाम पीछे क्यों। इसी बैठक में भुट्टों ने पाकिस्तान को परमाणु बम से युक्त करने का निर्णय लिया। इसकी घोषणा खालिद हसन जो भुट्टों के प्रेस सचिव थे ने की। लेकिन यह कार्य केवल पाकिस्तान के बस का तो था नहीं, अतः इस काम के लिए उन्होंनें लीबिया, ईरान, अरब आदि देशों की सहायता ली। इस्लाम के नाम पर बनी इस योजना को गुप्त नाम दिया गया प्रोजेक्ट 706 । पाकिस्तान के परमाणु बम योजना में शमिल सभी देशों के अपने स्वार्थ थे। + +3998. अनदेखी करना न केवल ठीक समझा बल्कि अमेरिकी संसद को इसके विपरीत प्रभाव पत्र भेजा ताकि पाकिस्तान को सैन्य साजों समान सहित वित्तीय मदद जारी रहे। एक भूतपूर्व वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी रिचर्ड वर्लो ने वांशिगटन को पाकिस्तान द्वारा चलाये जा रहे नाभिकीय हथियार कार्यक्रम की पूरी जानकारी दे दी थी। लेकिन इस रिपोर्ट को दबा दिया गया। ताकि राष्ट्रपति द्वारा प्रमाण पत्र जारी कर संसद से पाकिस्तान को मदद दिलायी जा सके। पूर्व पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष असल वेग ने भी पुष्टि की कि अमेरिका को अच्छी तरह मालूम था कि पाकिस्तान अपनी हद पार कर चुका था लेकिन उसने अफगानिस्तान तथा उसके बाद खाड़ी युद्ध के कारण सारे सबूतों की अनदेखी की।83 1990 के अन्त तक ये सबूत लगातार इतने पुष्ट होते जा रहे थे कि बुश प्रशासन यह बहाना नहीं बना सकता था कि उसे इसकी पर्याप्त जानकारी नहीं थी इसलिए प्रेसलर संसोधन का प्रतिरोध नहीं कर सका। 1991 तक पाकिस्तान की नाभकीय महत्वाकांक्षा को देखते हुए अमेरिका ने सभी सैनिक तथा आर्थिक सहायता रोक दी। इसके बाद भी पाकिस्तान लगातार मना करता रहा कि यह कार्यक्रम शंतिपूर्ण उद्देश्यों के अलावा कुछ और नहीं है।84 वाशिंगटन भी इसे वर्गीकृत सूचना कह कर ऐसे लीपापोती करता रहा जैसे उसे कुछ भी मालूम नहीं है। रीगन और बुश प्रशासन दोनों जानते थे कि पाकिस्तान परमाणु क्षमता की डयोढ़ी पार कर रहा है तब भी उसे आवश्यक प्रमाण पत्र देते रहे जिससे पाकिस्तान को अमेरिकी मदद जारी रह सके क्योंकि उन्हें अफगानिस्तान सोवियत सेना को बाहर निकलवानें में पाकिस्तान के साथ मित्रता बनाये रखने की जरूरत थी।85 अमेरिका पाकिस्तान को पहले जैसी पूरी तरह दी जाने वाली मदद से अमेरिकी कानून के स्पष्ट तौर पर उल्लंघन के बावजूद हट गया था। सोवियत संघ की सेनाओं की अफगानिस्तान से वापसी तथा उसके बाद सोवियत साम्यवाद के धरासायी होने और उसी तरह पाकिस्तान की सीमावर्ती देश के रूप में स्थिति बदलने से अमेरिका की रणनीतिक स्थिति बदल गयी थी । बुश प्रशासन ने पाकिस्तान को अस्त्र सम्बन्धी क्षमता और कश्मीर की स्थिति में इसकी दखलन्दाजी की ओर अनदेखी न करने का फैसला किया। 29 जनवरी, 1991 में अमेरिकी गृह विभाग के प्रवक्ता मार्गटेर टुरबाइलर ने घोषणा की कि पाकिस्तान की अब कोई 83 + +3999. परमाणु अप्रसार सन्धि और अमेरिका. + +4000. इंण्डिया इन चैन्जिंग वर्ल्ड, एशियन रिकार्डर, जनवरी 1992, पृ0 220. + +4001. पोखरण-2 एवं संयुक्त राज्य अमेरिका. + +4002. वांशिगटन ने पोखरण-2 में नाभिकीय परीक्षणों को पूरी हैरानगी से देखा। उनका दूर-दूर तक फैला हुआ खुफिया जाल जो गुप्तचरों और इलेक्ट्रानिक दोनों रूपों में अजेय एवं अभेद कहलाता था वह इसे सूघनें में असफल रहा। इससे अमेरिका के गुस्से और छटपटाहट में वृद्धि हुई। भारत बार-बार सी0टी0वी0टी0 पर हस्ताक्षर करने की बात नकार कर अमेरिका को पहले ही नाराज कर चुका था। लेकिन इस तरह से अमेरिका के नाभिकीय दर्शन के तत्व की अवहेलना तो उसे किसी भी प्रकार से स्वीकार नहीं थी। हर हाल में अमेरिकी कानून ऐसे बनाये गये थे कि पांच नाभिकीय शक्ति वाले देशों के एकाधिकार के तोड़ने वाले देश पर सभी प्रकार के प्रतिबन्ध स्वयं लागू हो जाते थे। 13 मई को राष्ट्रपति बिलक्लिंटन ने बर्लिन में घोषणा की कि उन्होंने भारत के खिलाफ प्रतिबन्धों को लागू करने का आदेश दे दिया है। + +4003. इसके बारे में अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय खासकर पश्चिम में काफी चिन्ता व्यक्त की जा रही थी क्या पाकिस्तानी बम इस्लामी बम के रूप में उभरेगा। आर्थिक संकट की स्थिति में फसने पर पाकिस्तान इससे कुछ नकदी हासिल करने के लिए ऐसे बम की जानकारी अन्य मुस्लिम देशों को बेच सकता है। नवाज शरीफ ने सऊदी अरब की यात्रा के दौरान इस बात से दृढ़तापूर्वक इन्कार किया कि पाकिस्तान की नाभिकीय अस्त्र क्षमता एक इस्लामिक बम निर्माण की है। फिर भी ईरान के विदेश मंत्री कमाल खर्रानी ने दावा किया कि पाकिस्तान की नाभिकीय क्षमता इजराइल के सम्भावित परमाणु हथियार भंडारों का प्रतिरोध करेगी और मुसलमानों में आत्म विश्वास जगाएगी।94 + +4004. 21वीं सदी में भारत-पाकिस्तान और अमेरिका का प्रभाव. + +4005. भारत-अमेरिका नाभिकीय समझौता और पाकिस्तान. + +4006. अजय उपाध्याय, ‘‘नाभिकीय भारत (भारत करार का यर्थाथ), 2009, पृ0 99-100. + +4007. रूस, चीन आदि की भूमिका को बढ़ाना चाहता है। लेकिन पाकिस्तानी दबाव के चलते अमेरिका भारत को अफगानिस्तान में कोई व्यापक भूमिका प्रदान करने का पक्षधर नहीं है। + +4008. भारत और पाकिस्तान दोनो आंतंरिक सुरक्षा से भी जूझ रहे है। भारत में आतंकवादी गतिविधिया जारी है तो पश्चिमी पाकिस्तान के सिंध और पख्तून में अलगाववादी आंदोलन चल 101 + +4009. सुमित गांगुली, ‘‘द स्टार्ट ऑफ ब्यूटीफुल फ्रेन्डशिप? द यूनाईटेड स्टेट एण्ड इंण्डिया वर्ल्ड पाँलिसी, वाल्यूम. ग्ग्ए नं0 1, स्प्रिंग 2003, न्यूयार्क, 2003. + +4010. 21वीं शताब्दी में पूरे विश्व के साथ-साथ अमेरिका के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। भारत तो अपने स्वतन्त्रता के बाद से ही आतंकवाद से ग्रसित हो गया था। भारत के आतंकवाद 104 + +4011. पाकिस्तान ने भारत के साथ अपने परोक्ष युद्ध को जारी रखते हुए 1989 में कश्मीर में आतंकवाद की शरूआत कर दी। कश्मीर के आम लोगों का नरसंहार, मुम्बई बम कांड, कांधार विमान अपहरण, विभिन्न मंदिरों पर हुए हमले, ससंद पर हमला एवं 26/11 की घट ना आदि भारत में बढ़ रहे आतंकवाद के कुछ उदाहरण है। + +4012. साउथ एशिया एनालसिस ग्रुप.109 + +4013. यू0 एस0 पाक रिलेसन्श स्ट्रेटजिक, रूमस्फील्ड डाट कॉम. न्यू, फरवरी 14, 2002, डब्ल्यू.डब्ल्यू.डब्ल्यू.काम/न्यू/2002/फरवरी/14 यू0एस0 पाक-एच0 टी0एम0एल0. + +4014. आज दक्षिण एशिया आतंकवादियों के आश्रय का स्थान बन चुका हैं इस संदर्भ में भारत-अमेरिका सहयोग नितांत उपयोगी हो जाता है क्योंकि भारत दक्षिण एशिया क्षेत्र का सबसे बड़ा राष्ट्र है तथा शक्ति संतुलन भारत के पक्ष में हैं। अमेरिका को अपने वैश्विक हित संरक्षण के लिए आतंकवाद से लड़ना आवश्यक है। इस परिस्थति में आतंकवाद के विरूद्ध जारी संघर्ष में दोनों देश स्वाभाविक रूप से जुड़े हुए है।115 + +4015. शफर टेरेसिट कांड एक्ट मुंडुई ‘‘राइजिंग इंडिया एण्ड यू0एस0 पॉलिसी आप्शन इन एशिया ‘‘साउथ एशिया मॉनीटर सेंटर फॉर स्ट्रेटजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज, वांशिगटन डी0सी0, दिसंबर 2001 अवीलेवल एट एच0टी0टी0पी0://डब्ल्यू0डब्ल्यू0डब्ल्यू0डॉटसी0एस0आई0एस0डॉटओ0आर0जी0/मीडिया/सी0एस0आई0एस0/पी0डी0एफ. + +4016. अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेने के बाद ओबामा ने इस मामले को गंभीरता से लिया और पाकिस्तान पर दबाव बनाया कि वह आतंकी गतिविधियों को रोकने के लिए सकारात्मक भरोसा दे और उनके ठिकानों पर कार्रवाई करे जैसा कि अमेरिका खुफिया एजेंसियां चाहती है। अमेरिका के कड़े रूख का पता तब भी चला जब राष्ट्रपति ओबामा ने कहा कि अमेरिका से मिलने वाली मदद को पाकिस्तान सिर्फ एक ब्लैंक चेक न समझें। अमेरिका को पाकिस्तान में लोकतांन्त्रिक मूल्यों और इसके नागरिकों के नाम पर दी जाने वाली मदद बढाने से पहले हर सावधानी बरतनी होगी। राष्ट्रपति ओबामा ने ठीक इशारा किया था कि भारत अमेरिका की वैश्यिवक साझेदारी बढाने को भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ उन्हों ने रचनात्मक कूटनीति अपनायी होगी।119 टालवोल्ट स्ट्रोब, ‘‘फ्राम स्ट्राबग्मेंट टू इंगजमेंट, यू0 एस0 इंडिया रिलेशन सिंस मई 1998, टेक्सट ऑफ लेक्चर स्पां र्सड बाई सेंटर फार द एडवांस्ड स्टडी ऑफ इंण्डों यूर्निवसिटी ऑफ पेंसिलवेनिया, अक्टूबर 13, 2004, अवीलेबल एच0टी0टी0पी0// सी0 ओ0एस0आई0.एस0एस0सी0 यू0पी0ई0एन0एम0डॉट इंडू/रिसर्च/पेपर/टालवोट . + +4017. वायुमंडल की सामान्य विशेषताएं. + +4018. वायु के क्षैतिज सञ्चालन होने पर इसकी गतिशीलता की अनुभूति होती है + +4019. नवीनतम जानकारी के अनुसार वायुमंडल की ऊंचाई 8000 km से भी अधिक है। लेकिन 1600 KM के बाद वायुमंडल बहुत विरल हो जाता है। + +4020. इन सभी गैसों में नाइट्रोजन तथा ऑक्सीजन प्रमुख है। + +4021. आद्रता तथा तापमान के अनुसार जलवाष्प की मात्रा में परिवर्तन होता रहता है। + +4022. यह वायुमंडल में घनीभूत आद्रता के विविध रूपों जैसे बादल ,वर्षा ,कुहरा ,पाला ,हिम आदि का प्राप्त श्रोत है। + +4023. इनका सौर विकिरण के परावर्तन प्रकीर्णन तथा अवशोषण करने में विशेष योगदान रहता है। + +4024. क्षोभ मंडल. + +4025. ऊंचाई बढ़ने के साथ इसके तापमान में कमी आती है। तापक्षय दर 6.5 °C / km है। तापक्षय की दर ऋतु परिवर्तन वायुदाब तथा स्थानीय धरातल की प्रकृति से भी प्रभावित होती है। + +4026. समतापमंडल. + +4027. 50 से 80 km तक की ऊंचाई वाला वायुमंडल को मध्य मंडल कहते हैं। + +4028. इस परत में आयनीकृत कणों की प्रधानता होने से इसे आयन मंडल भी कहते हैं। + +4029. यहाँ हाइड्रोजन तथा हीलियम गैसों की प्रधानता होती हैं। + +4030. महासागरों की औसत गहराई 4000 मीटर है। + +4031. सामान्यत% यह 100 पै$दम की गहराई तक होता है। (1 फ़ैदी = 1.8 मीटर)। + +4032. महाद्वीपीय मग्नतट की समाप्ति पर महाद्वीपीय ढाल होता है। + +4033. अवषिष्ट पदार्थों के जमा होने के कारण महाद्वीपीय उत्थान बनते हैं। + +4034. ये रिज अलग-अलग आकारों के होते है; जैसे अटलांटिक रिज (S - आकार का), हिन्द महासागर रिज (उल्टे Y - आकार का)। + +4035. गर्त लम्बा, संकरा व तीव्र पाष्र्व वाला सागरीय तल में हुआ अवनमन है। + +4036. महासागरीय जल के प्रमुख संघटक, लवण की मात्रा के आधार पर हैं - + +4037. KSO4 + +4038. सबसे ज्यादा लवणता% वान झील (टर्की) - 300%, म्रत सागर (इजराइल, जार्डन) - 240% साल्ट लेक (अमेरिका) - 220%। + +4039. नील नदी - यह विश्व की सबसे लम्बी नदी 6650 किमी. है। + +4040. विक्टोरिया झीलः यह तीसरी सबसे बड़ी झील है। + +4041. पनामा नहर - यह अटलाण्टिक और प्रशान्त महासागर को जोड़ती है। यह 58 किमी लम्बी है और इसका निर्माण 1914 ई. में हुआ। + +4042. डेल्टा - किसी नदी के मुहाने पर निर्मित जलोढ़ भूमि का त्रिकोणीय भू-भाग, डेल्टा कहलाता है। इसमें नदी कई धाराओं में बँट जाती है, और इन धाराओं के बीच की भूमि पर झील या वन आदि होते हैं। ये धाराएँ वितरिका कहलाती है और समुद्र या झील में गिर जाती है। + +4043. स्ट्रामबोली ज्वालामुखी को भूमध्यसागर का प्रकाश गृह कहा जाता है। + +4044. + +4045. +C|| + +4046. formula_1के उच्च अवकल के प्रतीक:- + +4047. इंजीनियरिंग गणित 1/अवकल की तालिका: + +4048. कृषि प्रश्नसमुचय-१: + +4049. "एक मुक्त पुस्तक" + +4050. Sum of individual digits is: 14 + +4051. The prime numbers are: 1 3 5 7 9 + +4052. शारदाचरण मित्र ने इसे "राष्ट्र लिपि" बताया और अगस्त 1905 में एक "लिपि विस्तार परिषद" की स्थापना की। उन्होने 1907 में "देवनागर" नाम से एक पत्रिका भी निकाली, जिसमें कन्नड़, तेलुगु, बांग्ला आदि की रचनाएं नागरी लिपि में प्रकाशित की जाती थीं। लोकमान्य तिलक और गांधीजी ने देश की एकता के लिए एक लिपि की आवश्यकता पर बल दिया। गुजरात में जन्मे महर्षि दयानंद सरस्वती, दक्षिण के कृष्णस्वामी अय्यर तथा अनन्तशयनम् अयंगर और मुहम्मद करीम छागला ने भी नागरी लिपि के महत्व पर बल दिया। महात्मा गांधी चाहते थे कि भारत में भाषायी एकता के लिए एक समान लिपि की आवश्यकता है। एक स्थान पर उन्होने लिखा है "लिपि विभिन्नता के कारण प्रांतीय भाषाओं का ज्ञान आज असंभव सा हो गया है। बांग्ला लिपि में लिखी हुई गुरुदेव की गीतांजलि को सिवाय बंगालियों के और कौन पढ़ेगा पर यदि वह देवनागरी में लिखी जाये, तो उसे सभी लोग पढ़ सकते हैं। "आज दक्ख़िनी हिंदी की भी यही स्थिति है, जिसका लगभग 400 वर्षों का अपार साहित्य फारसी लिपि में होने के कारण हिंदी शोधार्थियों की दृष्टि से ओझल है। कहना न होगा कि लिपिभेद के कारण हिंदी साहित्य के इतिहास की इस कड़ी को हम अभी तक जोड़ नहीं पाये हैं। + +4053. तिलकजी ने यह ऐतिहासिक घोषणा भारतीय कांग्रेस के सन्‌ 1905 के बनारस अधिवेशन के अवसर पर की थी। इस घोषणा के महत्व को समझकर देश के नेताओं ने संविधान सभा में हिंदी को राजभाषा के स्थान पर राष्ट्रभाषा और नागरी लिपि को राष्ट्र लिपि स्वीकार किया होता तो वह आज देश की एकता और अखंडता का सक्षम माध्यम होती। + +4054. सत्रह मार्च 1967 को सेठ गोविंददास जी ने एक बहुत बड़े समुदाय के सामने प्रस्ताव रखा कि सारी प्रादेशिक भाषाएं देवनागरी लिपि में ही लिखी जाएं। इस देश की एकता को बनाए रखने के लिए और एक-दूसरे के साथ सम्पर्क बढ़ाने के लिए और इस देश की हर भाषा के साहित्य को समझना है तो हमें एक लिपि की आवश्यकता है। वह लिपि देवनागरी लिपि ही हो सकती है। + +4055. Mc + +4056. جمعرات + +4057. उर्दू भाषा/शब्द/सब्जियों के नाम: + +4058. ( madhyapradesh) + +4059. यह गाय का दूध पीता है I सः गोदुग्धम पिवति I + +4060. सदाचार से विश्वास बढता है I सदाचारेण विश्वासं वर्धते I + +4061. सन्तोष उत्तम सुख है I संतोषः उत्तमं सुख: अस्ति I + +4062. हम सब पढ़ते हैं I वयं पठामः I + +4063. वाराणसी गंगा के पावन तट पर स्थित है | वाराणसी गंगाया: पावनतटे स्थित: अस्ति | + +4064. देशभक्त निर्भीक होते हैं | देशभक्ता: निर्भीका: भवन्ति | + +4065. मैं प्रतिदिन स्नान करता हूँ | अहं प्रतिदिनम् स्नानं कुर्यामि | + +4066. यह नगरी विविध कलाओ के लिए प्रसिद्ध हैं | इयं नगरी विविधानां कलानां कृते प्रसिद्धा अस्ति | + +4067. कुँआ सोचता है कि हैं अत्यन्त नीच हूँ | कूप: चिन्तयति नितरां नीचोsस्मीति | + +4068. अभ्यास से निपुणता बढ़ती है| अभ्यासेन निपुणता वर्धते | + +4069. सभी निरोग रहें और कल्याण प्राप्त करें | सर्वे संतु निरामया: सर्वे भद्राणि पश्यंतु च | + +4070. विदेश में धन मित्र होता है| विदेशेषु धनं मित्रं भवति | + +4071. हमे नित्य भ्रमण करना चाहिये | वयं नित्यं भ्रमेम | + +4072. जन्मदिन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं | + +4073. परमाणु संरचना. + +4074. चिकित्सा विज्ञान: + +4075. कैंसर: + +4076. + +4077. मिश्रित प्रश्नसमुच्चय-०४: + +4078. + +4079. राज्य में तथा किस नदी पर स्थित है ? + +4080. c. अक्षांस 804’ उ. से 3706’ उ. तथा देशांतर 6807’ पूर्व. से 97025’ पूर्व + +4081. 2. क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत विश्वं का …….. देश है : + +4082. उत्तर- d + +4083. 3. भारत की तटरेखा की लंबाई है : + +4084. उत्तर- a + +4085. a. 2933 कि.मी. + +4086. • भारत का उत्तर से दक्षिण तक की कुल लंबाई 3214 कि.मी है । + +4087. c. विषुवत रेखा + +4088. 6. इंडियन स्टेंडर्ड टाइम और ग्रीनविच मीन टाइम में कितने समयका अंतर है : + +4089. उत्तर- d + +4090. a. केप केमोरिन + +4091. • भारतीय भूमि का सर्वाधिक उत्तवरी भाग इंदिरा कॉल (जम्मूो काश्मीहर, सियाचिन ग्लेशियर) कहलाता है । + +4092. a. केप केमोरिन + +4093. • इंदिरा प्वाइंट को पारसन प्वािइंट, ला-हि-चिंग, पिगमेलियन प्वाणइंट के नाम से भी जाना जाता है । + +4094. g. 9 + +4095. • भारत की सबसे छोटी समुद्र तटीय सीमा गोवा राज्यब की है । + +4096. c. भारत एवं बांग्लाादेश + +4097. + +4098. कैंसर क्या है ? + +4099. कैंसर ट्यूमर घातक (मेलिगनेन्ट)होते हैं, जिसका अर्थ है कि वे पास के ऊतकों में फैल सकते है या उनपर आक्रमण कर सकते हैं। इसके अलावा, ये ट्यूमर बढ़ने के साथ-साथ, कुछ कैंसर की कोशिकाओं को रक्त से या लसीका तंत्र के माध्यम से शरीर में दूर के स्थानों की यात्रा कर सकते हैं और मूल ट्यूमर से नए ट्यूमर बना सकते हैं। + +4100. कैंसर कोशिकाएं सामान्य कोशिकाओं, अणुओं और रक्त वाहिकाओं को प्रभावित करने में सक्षम हो सकती हैं जो एक ट्यूमर के चारों ओर फैल जाती हैं-एक ऐसा इलाका जो कि 'माइक्रो एन्वॉयरन्मेंट' के रूप में जाना जाता है। उदाहरण के लिए, कैंसर कोशिकाएं ऑक्सीजन और पोषक तत्वों के साथ ट्यूमर की आपूर्ति करने वाले रक्त वाहिकाओं को बनाने के लिए आसपास के सामान्य कोशिकाओं को प्रेरित कर सकती हैं, जिन्हें उन्हें बढ़ने की जरूरत होती है। ये रक्त वाहिकाओं ट्यूमर से अपशिष्ट उत्पादों को भी हटा देते हैं + +4101. कैंसर का कारण होने वाले आनुवांशिक परिवर्तन हमारे माता-पिता से विरासत में मिल सकते हैं। वे किसी व्यक्ति के जीवनकाल के दौरान उत्पन्न होने वाली त्रुटियों के परिणामस्वरूप उत्पन्न हो सकते हैं, जैसे कि कोशिकाएं विभाजित होती हैं या कुछ पर्यावरणीय जोखिमों के कारण डीएनए को नुकसान पहुंचाते हैं। कैंसर के कारण पर्यावरणीय जोखिम में पदार्थ शामिल हैं, जैसे तंबाकू के धुएं में रसायनों, और विकिरण, जैसे सूरज से पराबैंगनी किरणें। + +4102. प्रोटो-ऑन्कोोजेन सामान्य सेल विकास और विभाजन में शामिल हैं। हालांकि, जब ये जीन किसी कारण से बदल जाते हैं या सामान्य से अधिक सक्रिय होते हैं, तो वे कैंसर पैदा करने वाले जीन (या ऑन्कोजेन) बन सकते हैं, जिससे कोशिकाओं को बढ़ने और जीवित रहने की तब भी अनुमति मिलती है,जबकि उन्हें जीवित नहीं रहना चाहिए। + +4103. एक कैंसर जो उस स्थान से फैल गया है जहां इसे पहली बार शरीर में किसी दूसरे स्थान पर शुरू किया गया है, इसे मेटास्टाटिक कैंसर कहा जाता है। और ये प्रक्रिया जिसके द्वारा शरीर के अन्य भागों में कैंसर की कोशिकाओं को फैलाया जाता है उन्हें मेटास्टैसिस कहा जाता है। + +4104. कार्सिनोमा. + +4105. अस्थि मज्जा के खून से बना ऊतक से शुरू होने वाले कैंसर को ल्यूकेमिया कहा जाता है। + +4106. जर्म सेल ट्यूमर एक प्रकार का ट्यूमर है जो कोशिकाओं में शुरू होता है जो शुक्राणु या अंडे को जन्म देते हैं। ये ट्यूमर शरीर में लगभग कहीं भी हो सकते हैं और या तो सौम्य या घातक हो सकते हैं. + +4107. + +4108. कैंसर/कैंसर के प्रकारों की सूची: + +4109. शारीरिक स्थान द्वारा निर्धारित कैंसर के प्रकार - + +4110. बचपन के कैंसर का इलाज. + +4111. कैंसर वाले बच्चों को अक्सर बच्चों के कैंसर केंद्र में इलाज किया जाता है, जो अस्पताल में एक अस्पताल या इकाई है जो कैंसर से ग्रस्त बच्चों के उपचार में माहिर है। अधिकांश बच्चों के कैंसर केंद्र रोगियों को 20 साल की आयु तक का इलाज करते हैं + +4112. किसी भी प्रकार के कैंसर से बचने कैंसर के इलाज के बाद महीनों या कई वर्षों से स्वास्थ्य समस्याएं विकसित हो सकती हैं, जिसे देर से प्रभाव के रूप में जाना जाता है, लेकिन बचपन के कैंसर के बचे लोगों के लिए देर से प्रभाव विशेष चिंता का विषय है क्योंकि बच्चों के उपचार से गहरा, स्थायी शारीरिक और भावनात्मक प्रभाव हो सकते हैं। कैंसर के प्रकार, बच्चे की उम्र, इलाज के प्रकार, और अन्य कारकों के साथ देर-भिन्न प्रभाव भिन्न होते हैं। दिवसीय प्रभावों के प्रकार और इनका प्रबंधन करने के तरीकों के बारे में जानकारी हमारे केयर फॉर बचयर कैंसर लाइवर पेज पर पाई जा सकती है। + +4113. संबंधित संसाधन + +4114. + +4115. + +4116. श्रीभट्ट. + +4117. युगल शतक के संपादक श्रीब्रजबल्लभ शरण तथा निम्बार्क माधुरी के लेखक ब्रह्मचारी बिहारी शरण के अनुसार युगल शतक की प्राचीन प्रतियों में यही पाठ मिलता है। इसके अनुसार युगल शतक का रचना काल विक्रमी संवत 1352 स्थिर होता है। किन्तु काशी नागरी प्रचारिणी सभा के पास युगल शतक की जो प्रति है उसमें राम के स्थान पर राग पाठ है।इस पाठ भेद के अनुसार युगल शतक का रचना काल वि ० सं ० 1652 निश्चित होता है। प्रायः सभी साहित्यिक विद्वानों ~~ श्री वियोगी हरि (ब्रजमाधुरी सार :पृष्ठ 10 8 ) ,आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (हिन्दी साहित्य का इतिहास :पृष्ठ 188 ) ,आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी (हिन्दी साहित्य :पृष्ठ 201 ) आदि ने पिछले पाठ को ही स्वीकार किया है। अतः इन विद्वानों के आधार पर श्री भट्ट जी का जन्म वि ० सं ० 1595 तथा कविता काल वि ० सं ० 16 52 स्वीकार किया जा सकता है। + +4118. हरिव्यासदेव निम्बार्क सम्प्रदाय के अत्यधिक प्रसिद्ध कवि हैं। इनके समय के विषय में साम्प्रदायिक विद्वानों में दो मत हैं। प्रथम मत वालों के अनुसार हरिव्यासदेव जी समय वि० सं ० १४५० से १५२५ तक है।(युगल शतक :सं ० ब्रजबलल्भ शरण :निम्बार्क समय समीक्षा :पृष्ठ ८ ) + +4119. किन्तु ब्रजभाषा में हरिव्यासदेव जी की केवल एक रचना महावाणी उपलब्ध होती है। + +4120. इस दोहे के आधार पर निम्बार्क सम्प्रदाय के विद्वान रूपरसिक का समय सोलहवीं शताब्दी ठहराते हैं। + +4121. जीवन परिचय. + +4122. रचनाये. + +4123. सूरदास मदनमोहन का वास्तविक नाम सूरध्वज था। किन्तु कविता में इन्होंने अपने इस नाम का कभी प्रयोग नहीं किया। मदनमोहन के भक्त होने के कारण इन्होने सूरदास नाम के साथ मदनमोहन को भी अपने पदों में स्थान दिया। जिस प्रकार ब्रज भाषा के प्रमुख कवि सूर ( बल्लभ सम्प्रदायी ) ने अपने पदों में सूर और श्याम को एक रूप देने की चेष्टा की उसी प्रकार इन्होंने भी सूरदास और मदनमोहन में ऐक्य स्थापित करने का प्रयत्न किया है। दोनों कवियों की छाप में सूरदास शब्द समान रूप से मिलता है किन्तु एक श्याम की बाँह पकड़ कर चला है तो दूसरा मदनमोहन का आश्रय लेकर और यही दोनों के पदों को पहचानने की मात्र विधि है। उन पदों में जहाँ केवल 'सूरदास ' छपा है ~~ पदों के रचयिता का निश्चय कर सकना कठिन है। इस कारण सूरदास नाम के सभी पद महाकवि सूरदास के नाम पर संकलित कर दिए गए है। इसलिए सूरदास मदनमोहन के पदों की उपलब्धि कठिनाई का कारण हो रही है। आचार्य राम चंद्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास में सूरदास मदनमोहन के नाम से जो पद दिया है वही पद नन्द दुलारे बाजपेयी द्वारा सम्पादित सूरसागर में भी मिल जाता है। + +4124. जीवन परिचय. + +4125. बाबा कृष्णदास के अनुसार माधुरीदास ब्रज में माधुरी कुंड पर रहा करते थे। यह स्थान मथुरा-गोबर्धन मार्ग पर अड़ींग नामक ग्राम से ढाई कोस ( ८ किलोमीटर ) दक्षिण दिशा में है। अपने इस मत की पुष्टि के लिए कृष्णदास जी ने श्रीनारायण भट्ट के 'ब्रजभक्ति विलास'का उल्लेख किया है। + +4126. बिहार की अर्थव्यवस्था. + +4127. प्रतिव्यक्ति आय (2012 — 13 चालू मूल्य पर )- Rs 30,930 + +4128. कृषि क्षेत्र में वृद्धि दर — '"5.58 % + +4129. राज्य सकल घरेलू उत्पाद में तृतीयक क्षेत्र का योगदान - "'54% + +4130. कैंसर/ब्लैडर कैंसर: + +4131. मूत्राशय के कैंसर का सबसे आम लक्षण मूत्र में रक्त होता है। मूत्राशय के कैंसर का अक्सर प्रारंभिक चरण में निदान किया जाता है, जब कैंसर का उपचार करना आसान होता है + +4132. + +4133. मिट्टी / क्षेत्र / विशेषताएं + +4134. झारखण्ड , उड़ीसा , पश्चिम बंगाल का संयुक्त परियोजना है इसमें 120 मेगा वाट विद्युत उत्पादन की शक्ति है + +4135. - कूटकू - अपूर्ण - उत्तरी कोयल + +4136. पर्यटन स्थल का नाम - दर्शनीय स्थल + +4137. 2. आर्द्र प्रायद्वीपीय वन -पूर्व एवं पश्चिम सिंहभूम , संथाल परगना प्रमुख वृक्ष - साल , कुसुम , महुआ इत्यादि + +4138. मिश्रित प्रश्नसमुच्चय-०५: + +4139. 5. भारत में सबसे पहले सूर्य किस राज्य में निकलता है ? '"अरुणाचल प्रदेश + +4140. 10. कागज का आविष्कार किस देश में हुआ ? "'चीन + +4141. 15. गिद्धा और भंगड़ा किस राज्य के लोक नृत्य हैं ? '"पंजाब + +4142. 20. जलियांवाला बाग हत्याकांड कब व कहाँ हुआ ? "'1919 ई. अमृतसर + +4143. 25. भारत की पहली महिला राज्यपाल कौन थी ? "'सरोजिनी नायडु + +4144. 30. ‘रामकृष्ण मिशन’ की स्थापना किसने की ? '"स्वामी विवेकानंद + +4145. 35. सिखों का प्रमुख त्यौहार कौन-सा है ? "'बैसाखी + +4146. 40. अर्थशास्त्र नामक पुस्तक किसने लिखी ? '"चाणक्य (कौटिल्य) + +4147. 45. ‘सूर्योदय का देश के नाम से कौनसा देश प्रसिद्ध है? "'जापान + +4148. 50. सबसे चमकीला ग्रह कौनसा है ? '"शुक्र + +4149. 55. भारत का राष्ट्रीय फूल कौनसा है ? "'कमल + +4150. 60. भारत का राष्ट्रगीत कौनसा है ? '"वंदेमातरम् + +4151. 65. रेडियोऐक्टिवता की खोज किसने की थी? "'हेनरी बेकरल ने + +4152. 70. किस धातु का प्रयोग मानव द्वारा सबसे पहले किया गया? '"तांबा + +4153. 75. भारत में पहली बार मेट्रो रेल सेवा किस नगर में आरम्भ की गई? "'कोलकाता + +4154. 80. संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना कब हुई ? "'24 अक्तूबर 1945 + +4155. 85. संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद् के कितने देश स्थाई सदस्य हैं? '"5 + +4156. 90. संयुक्त राष्ट्र संघ का 193वां सदस्य कौनसा देश बना था ? "'दक्षिण सूडान + +4157. 95. ओलंपिक खेलों का आयोजन कितने वर्षों बाद होता है? '"4 वर्ष + +4158. 100. विशाल हरियाणा पार्टी किसने बनाई थी ? "'राव विरेन्द्र सिंह + +4159. 105. भारतीय मरूस्थल का क्या नाम है ? '"थार + +4160. 110. ‘गोबर गैस’ में मुख्य रूप से क्या पाया जाता है ? "'मीथेन + +4161. 116. तुलसीदासकृत रामचरितमानस हिंदी भाषा की किस बोली में लिखी गयी है ? "'अवधी + +4162. 121. ओलंपिक खेलों का आयोजन कितने वर्षों के बाद होता है ? '"4 वर्ष + +4163. 126. सन 2020 में ओलंपिक खेल कहाँ होंगे ? "'टोकियो (जापान) + +4164. 131. प्रसिद्द झंडा गीत “झंडा ऊँचा रहे हमारा” की रचना किसने की थी ? '"श्यामलाल गुप्त पार्षद + +4165. 136. भारत के अन्तिम गवर्नर जनरल कौन थे ? "'सी.राजगोपालाचारी + +4166. 141.”द्रव सभी दिशाओं में समान दाब पारित करता है” यह कथन किस नियम से सम्बंधित है ? '"पास्कल का नियम + +4167. 146 .कौनसा मुग़ल बादशाह अशिक्षित था ? "'अकबर + +4168. 151. किस सुल्तान ने अपनी राजधानी दिल्ली से दौलताबाद स्थानान्तरित की ? '"मोहम्मद बिन तुगलक + +4169. 156. सूर्य के प्रकाश से कौनसा विटामिन प्राप्त होता है ? "'विटामिन D + +4170. 161. प्रकाश वर्ष का सम्बन्ध किससे है ? '"खगोलीय दूरी + +4171. 166. इंडिया गेट कहाँ स्थित है ? "'नयी दिल्ली + +4172. 171. किसके जन्म दिवस को खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है ? '"मेजर ध्यानचंद + +4173. 176. “वेदों की ओर लौटो” का नारा किसने दिया ? "'दयानंद सरस्वती + +4174. 181. “मारो फ़िरंगी को” का नारा किसने दिया ? '"मंगल पांडे + +4175. 186. महात्मा गांधी का जन्म दिवस किस तिथि को मनाया जाता है? '"2 अक्टूबर + +4176. 191. फिल्म के क्षेत्र में दिया जाने वाला सर्वोच्च भारतीय पुरस्कार कौन-सा है? "'दादा साहेब फाल्के पुरस्कार + +4177. 196. चन्द्रमा पर कदम रखने वाले प्रथम व्यक्ति कौन हैं? "'नील आर्मस्ट्रांग + +4178. 201. घेंघा रोग किसकी कमी से होता है ? '"आयोडीन + +4179. 206. चीन की मुद्रा कौनसी है ? "'युआन + +4180. 211. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक कौन थे ? '"मदनमोहन मालवीय + +4181. 216. भारत की तट रेखा की लम्बाई कितनी है ? "'7516 + +4182. 221. दूध में कौनसा विटामिन नहीं होता है ? '"विटामिन ‘C’ + +4183. 226. वसा में घुलनशील विटामिन कौनसे हैं ? "'‘A’ और ‘E’ + +4184. 231. कैल्सीफेराँल किस विटामिन का रासायनिक नाम है ? '"विटामिन ‘D’ + +4185. 236. राष्ट्रीय विज्ञान दिवस कब मनाया जाता है ? "'28 फरवरी + +4186. 241. मुगल सम्राट अकबर का जन्म कहाँ हुआ था ? '"अमरकोट के दुर्ग में + +4187. 246. संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता कौन करता है ? "'लोकसभा अध्यक्ष + +4188. 251. हैदराबाद किस नदी पर बसा है ? '"मूसी + +4189. 256. भारत के संघीय क्षेत्र ‘दादरा और नगर हवेली’ की राजधानी कौनसी है ? "'सिल्वासा + +4190. 261. योजना आयोग का अध्यक्ष कौन होता है ? '"प्रधानमंत्री + +4191. 266. भारत मे सबसे पहली फिल्म कौन सी बनी? "'राजा हरिश्चन्द्र + +4192. 271. जंग लगने से बचाने के लिए लोहे पर जस्ते की परत चढ़ाने की क्रिया को क्या कहते है? '"जस्तीकरण या गल्वेनिकरण (गेल्वेनाइजेशन) + +4193. 277. कांग्रेस द्वारा पूर्ण स्वाधीनता का प्रस्ताव कब और कहाँ पारित किया गया ? "'सन 1929 के लाहौर अधिवेशन में + +4194. 282. भारत पर हमला करने वाला प्रथम मुस्लिम आक्रमणकारी कौन था ? '"मुहम्मद बिन कासिम (712 ई.) + +4195. 287. कांसा किसकी मिश्र धातु होती है ? "'कॉपर तथा टिन + +4196. 292. साइमन कमीशन के बहिष्कार के दौरान लाठी चार्ज से किस नेता की मृत्यु हो गयी थी ? '"लाला लाजपत राय + +4197. 297. मानव द्वारा सबसे पहले किस धातु का प्रयोग किया गया ? "'तांबा + +4198. 302. मनुष्य की आँख में किसी वस्तु का प्रतिबिम्ब कहाँ बनता है ? '"रेटिना + +4199. 307. किसी वेबसाइट के प्रथम पृष्ठ को क्या कहा जाता है ? "'होमपेज + +4200. 312. पृथ्वी से दिखाई देने वाला सबसे चमकीला ग्रह कौनसा है ? '"शुक्र + +4201. 317. भारत ने पहला परमाणु परीक्षण कब और कहाँ किया था ? "'14 मई 1974 को पोखरण (राजस्थान) में + +4202. 322. संसार का विशालतम स्तनधारी कौनसा है ? '"व्हेल मछली + +4203. 327. कंप्यूटर की अस्थायी स्मृति क्या कहलाती है ? "'RAM-Random Excess Memory + +4204. 332. पृथ्वी को 1 डिग्री देशांतर घूमने में कितना समय लगता है ? '"4 मिनट + +4205. 337. रिजर्व बैक आफ इण्डिया का मुख्यालय कहाँ है? "'मुंबई + +4206. 342. कौन-सा विदेशी आक्रमणकारी ‘कोहिनूर हीरा’ एवं ‘मयूर सिंहासन’ लूटकर अपने साथ स्वदेश ले गया? '"नादिरशाह + +4207. 347. किस नदी को ‘बिहार का शोक’ कहा जाता है? "'कोसी + +4208. 352. कंप्यूटर भाषा में WWW का अर्थ क्या है ? '"World Wide Web + +4209. 357. काँमनवील पत्रिका का प्रकाशन किसने किया था ? "'ऐनी बेसेन्ट ने + +4210. 362. भारत की सर्वाधिक बड़ी जनजाति कौनसी है ? '"गोंड + +4211. 367. बंगाल का विभाजन कब और किसके द्वारा किया गया था? '"1905 ई. में गवर्नर लार्ड कर्जन द्वारा + +4212. 372. मोहिनीअट्टम नृत्य शैली मुख्यतः किस राज्य से सम्बन्धित मानी जाती है? "'केरल + +4213. 377. इंडियन नेशनल कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष कौन थे ? '"वोमेशचन्द्र बनर्जी + +4214. 382. बंग्लादेश का राष्ट्रगान कौनसा है और इसे किसने लिखा है ? "'‘आमार सोनार बांग्ला’ जो रवीन्द्रनाथ टैगोर ने लिखा है + +4215. 387. फलों को पकाने में कौन सी गैस उपयोग में लायी जाती है? '"ऐथिलीन + +4216. 392. यक्षगान किस राज्य का लोकनृत्य है ? "'कर्नाटक + +4217. 397. विश्व का सबसे ऊँचा पर्वत शिखर माउंट एवरेस्ट किस देश में स्थित है ? '"नेपाल + +4218. 402. किसे सितार और तबले का जनक माना जाता है ? "'अमीर खुसरो + +4219. 407. एक अश्व शक्ति कितने वाट के बराबर होती है ? '"746 वाट + +4220. 412. किस रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे अधिक होता है ? "'बैंगनी + +4221. 417. टाँका धातु या सोल्डर में किस धातु का मिश्रण होता है? '"टिन व सीसा + +4222. 422. कौन सा यंत्र दूध में पानी की मात्रा मापने के लिए प्रयोग किया जाता है ? "'लैक्टोमीटर + +4223. 427. मनुष्य के शरीर का तापमान कितना होता है ? '"37° C या 98.4 F + +4224. 432. पराश्रव्य तरंगों की आवृत्ति कितनी होती है? "'20,000 हर्ट्ज से अधिक + +4225. 437. पागल कुत्ते के काटने से कौनसा रोग होता है ? '"रैबीज या हाइड्रोफोबिया + +4226. 442. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष कौन थी ? "'सरोजिनी नायडु + +4227. 447. रामायण किसने लिखी ? '"महर्षि बाल्मीकि + +4228. 452. जापान की मुद्रा कौनसी है ? "'येन + +4229. 457. सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायधीश कब तक अपने पद पर रहता है ? '"65 वर्ष की आयु तक + +4230. 462. राष्ट्रीय रक्षा अकादमी कहाँ स्थित है ? "'पूना के पास खडगवासला में + +4231. 467. भारतीय थल सेना के पहले भारतीय सेनाध्यक्ष कौन थे ? '"जनरल के.एम्.करियप्पा + +4232. 472. महात्मा गाँधी द्वारा साबरमती आश्रम कहाँ स्थापित किया गया ? "'अहमदाबाद + +4233. 477. उत्तरी गोलार्द्ध में सबसे छोटा दिन कब होता है ? '"22 दिसंबर + +4234. 482. टेस्ट मैचों की एक पारी में सभी दसों विकेट लेने वाला भारतीय कौन है ? "'अनिल कुंबले + +4235. 487. असहयोग आन्दोलन किस वर्ष शुरु हुआ ? '"1920 + +4236. 492. मेघदूत किसकी रचना है ? "'कालिदास + +4237. 497. ‘पैनल्टी किक’ शब्द किस खेल में प्रयुक्त होता है ? '"फुटबॉल + +4238. 502. भारत की मानक समय रेखा कौनसी है ? "'82.5 डिग्री पूर्वी देशांतर रेखा जो इलाहाबाद से गुजरती है + +4239. 507. कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं इसका फैसला कौन करता है ? '"लोकसभा अध्यक्ष + +4240. 512. राष्ट्रीय मतदाता दिवस कब मनाया जाता है ? "'25 जनवरी + +4241. 517. विजयस्तंभ कहाँ स्थित है ? '"चित्तोड़गढ़ में + +4242. 522. ‘आईने अकबरी’ पुस्तक किसने लिखी ? "'अबुल फज़ल ने + +4243. 527. सबसे प्राचीन वेद कौनसा है ? '"ऋग्वेद + +4244. 532. खालसा पंथ की स्थापना किसने की थी ? "'गुरु गोबिंद सिंह + +4245. 537. ‘चाइनामैन’ शब्द किस खेल में प्रयुक्त होता है ? '"क्रिकेट + +4246. 542. AIDS का पूर्ण विस्तार क्या होगा ? "'अक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशियेंसी सिंड्रोम + +4247. 547. आगा खां कप किस खेल से संबंधित है ? '"हॉकी + +4248. 552. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रथम मुस्लिम अध्यक्ष कौन था? "'बदरुद्दीन तैयब जी + +4249. 557. उगते और डूबते समय सूर्य लाल प्रतीत क्यों होता है ? '"क्योंकि लाल रंग का प्रकीर्णन सबसे कम होता है + +4250. 562. दूध से दही किस जीवाणु के कारण बनता है ? "'लक्टो बैसिलस + +4251. 567. पेनिसिलिन की खोज किसने की ? '"अलेक्जेंडर फ्लेमिंग + +4252. 572. मनुष्य ने सबसे पहले किस जंतु को पालतू बनाया ? "'कुत्ता + +4253. 577. वायुमंडल की कौन सी परत हमें सूर्य से आने वाली अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाती है ? '"ओजोन + +4254. 582. भारत में सबसे लम्बे समय तक मुख्यमंत्री कौन रहा है ? "'ज्योति बसु (पश्चिम बंगाल) + +4255. 587. LPG का पूर्ण विस्तार क्या होगा ? '"Liqified Petroleum Gas + +4256. 592. जयपुर की स्थापना किसने की थी ? "'आमेर के राजा सवाई जयसिंह ने + +4257. 597. भारत के पहले कानून मंत्री कौन थे ? '"डॉ.भीमराव अम्बेडकर + +4258. 602. भारत का क्षेत्रफल कितना है ? "'32,87,263 वर्ग कि.मी. + +4259. 607. महात्मा गाँधी की हत्या कब और किसने की ? '"30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे द्वारा + +4260. 612. दिल्ली स्थित जामा मस्जिद किसने बनवाई ? "'शाहजहाँ + +4261. 617. 1526, 1556 और 1761 के तीन ऐतिहासिक युद्ध किस नगर में हुए ? '"पानीपत (हरियाणा) + +4262. 616. शिक्षा की किंडरगार्टन पद्यति किसकी देन है ? "'फ्रोबेल + +4263. 621. ‘पैनल्टी कार्नर’ का संबंध किस खेल से है ? '"हॉकी + +4264. 626. जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर कौन थे ? "'ऋषभदेव + +4265. 631. बाइनरी भाषा में कितने अक्षर होते हैं ? '"2 + +4266. 636. रेगुलेटिंग एक्ट कब लागु हुआ ? "'1773 में + +4267. 641. भारत की स्थलीय सीमा कितनी है ? '"15200 कि.मी. + +4268. 646. 1784 में कोलकाता में किसने ‘एशियाटिक सोसाइटी’ की स्थापना की थी ? "'विलियम जोन्स + +4269. 651. सशस्त्र सेना झंडा दिवस कब मनाया जाता है ? '"7 दिसंबर + +4270. 656. विश्व विकलांग दिवस कब मनाया जाता है ? "'3 दिसंबर + +4271. 661. किस देश की समुद्री सीमा सबसे बड़ी है ? '"कनाड़ा + +4272. 666. गौतम बुद्ध द्वारा 29 वर्ष की आयु में गृह-त्याग की घटना क्या कहलाती है ? "'महाभिनिष्क्रमण + +4273. 671. महान चिकित्सक चरक किसके दरबार में थे ? '"कनिष्क + +4274. 676. RBI के नए नियमों के अनुसार चेक और बैंक ड्राफ्ट की वैद्यता कितने समय तक होती है ? "'3 मास + +4275. 681. केरल के तट को क्या कहते हैं ? '"मालाबार तट + +4276. 686. समुद्री जल में लवण की औसत मात्रा कितनी होती है ? "'3.5% + +4277. 691. संविधान की किस धारा के अंतर्गत राज्यपाल किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश करता है ? '"धारा 356 + +4278. 696. गौतम बुद्ध द्वारा देह-त्याग की घटना क्या कहलाती है ? "'महापरिनिर्वाण + +4279. 701. राष्ट्रपति यदि इस्तीफा देना चाहे तो किसे सौंपेगा ? '"उपराष्ट्रपति + +4280. 706. वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा कितनी है ? "'21 % + +4281. 711. ‘अष्टाध्यायी’ किसने लिखी ? '"पाणिनि + +4282. 716. गुजरात से गोवा तक समुद्री तट क्या कहलाता है ? "'कोंकण + +4283. 721. ‘ऋतुसंहार’, ‘कुमारसंभव’, ‘रघुवंशम’ किसकी रचनाएँ हैं ? '"कालिदास + +4284. 726. ‘बर्डी’, ‘ईगल’, ’बोगी’, ‘पार’, ‘टी’, ‘होल-इन-वन’, शब्द किस खेल से संबंधित हैं ? "'गोल्फ + +4285. 731. विजयनगर साम्राज्य की स्थापना कब और किसने की थी )? '"1336 में हरिहर और बुक्का ने + +4286. 736. महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर को कब लुटा था ? "'1025 इस्वी में + +4287. 741. शेरशाह सूरी को कहाँ दफनाया गया ? '"सासाराम (बिहार) + +4288. 746. अमजद अली खान कोनसा वाद्य यंत्र बजाते हैं ? "'सरोद + +4289. 751. भारतीय संविधान में कितनी अनुसूचियां हैं ? '"12 अनुसूची + +4290. 756. घाना देश का पुराना नाम क्या है ? '"गोल्ड कोस्ट + +4291. 761. वायुयान की खोज किसने की ? "'ओलिवर और विलिवर राईट बन्धु + +4292. 766. कितनी ऊँचाई पर जाने से तापमान 1 डिग्री C की कमी होती है ? '"165 मी. + +4293. 771. सुन्दरलाल बहुगुणा का संबंध किस आन्दोलन से है ? "'चिपको आन्दोलन + +4294. 776. अमेरिका के पहले राष्ट्रपति कौन थे ? '"जोर्ज वाशिंगटन + +4295. 781. भारत में पुर्तगालियों का प्रथम व्यापार केंद्र कौनसा था ? "'गोवा + +4296. 786. पेंसिल की लीड किसकी बनी होती है ? '"ग्रेफाइट + +4297. 791. मानस अभयारण्य किस राज्य में है ? "'असम + +4298. 796. भारतीय संघ का राष्ट्रपति किसके परामर्श से कार्य करता है ? '"प्रधानमंत्री + +4299. 801. मोतीलाल नेहरु स्पोर्ट्स स्कूल हरियाणा में कहाँ स्थित है ? "'राई (सोनीपत) + +4300. 806. टोडा जनजाति किस राज्य में निवास करती है ? '"तमिलनाडु + +4301. 811. केंद्र-राज्य संबंधों के अध्ययन हेतु कौनसा आयोग गठित किया गया ? "'सरकारिया आयोग + +4302. 816. संसार में सर्वाधिक दूध उत्पादन किस देश में होता है ? '"भारत + +4303. 821. नीली क्रांति का संबंध किस क्षेत्र से है ? "'मत्स्य पालन + +4304. 826. दलदली भूमि में कौनसी गैस निकलती है ? '"मीथेन + +4305. 831. मुस्लिम लीग की स्थापना कब की गयी ? "'1906 में + +4306. 836. पोलियो का टीका किसने खोजा था ? '"जोनास साल्क + +4307. 841. चंडीगढ़ में प्रसिद्ध ‘रॉक गार्डन’ किसने बनाया था ? "'नेकचंद + +4308. 846. स्वतंत्रता के बाद देशी रियासतों के एकीकरण के लिए कौन उत्तरदायी थे? '"सरदार वल्लभभाई पटेल + +4309. 851. गुरू तेग बहादुर की हत्या किसने करवा दी ? "'औरंगजेब ने + +4310. 856. किसने अपनी विजयों के उपलक्ष्य में चित्तोडगढ में विजय स्तम्भ का निर्माण कराया था? '"राणा कुम्भा ने + +4311. 861. सिकंदर किसका शिष्य था ? "'अरस्तू का + +4312. 866. भारत में कितने स्थानों पर कुम्भ का मेला भरता है ? '"4, हरिद्वार (गंगा), इलाहाबाद (गंगा-यमुना के संगम पर), उज्जैन (क्षिप्रा), नासिक (गोदावरी) + +4313. 871. भारत में डाक सूचकांक प्रणाली (पिन कोड प्रणाली) का शुभारम्भ कब हुआ ? "'1972 ई + +4314. 876. भारत की सबसे लंबी रेल सुरंग कौन-सी है ? '"पीर पंजाल सुरंग (जम्मू-कश्मीर) + +4315. 881. भारत का उत्तर से दक्षिण तक विस्तार कितना है ? "'3214 किमी + +4316. 886. भारत में सर्वप्रथम किस स्थान पर राष्ट्रीय उद्यान स्थापित किया गया ? '"जिम कार्बेट नेशनल पार्क नैनीताल (उत्तराखंड) + +4317. 891. ‘ऑपरेशन फ्लड’ कार्यक्रम के सूत्रधार कौन थे ? "'डॉ. वर्गीज कूरियन + +4318. 896. किस भारतीय राज्य को पोलो खेल का उदगम माना जाता है? '"मणिपुर + +4319. 901. भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन (ISRO) का मुख्यालय कहाँ है ? "'बैंगलुरु + +4320. 906. इलिसा (ELISA) परीक्षण किस रोग की पहचान के लिए किया जाता है ? '"एड्स रोग + +4321. 911. वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार पुरुष-स्त्री अनुपात (लिंगानुपात) कितना है ? "'940 + +4322. 916. राष्ट्रीय संग्रहालय कहाँ पर स्थित है? '"कोलकाता + +4323. 921. भारत में औसतन वर्षा कितनी होती है ? "'118 सेमी + +4324. 926. ई-मेल के जन्मदाता कौन हैं? '"रे. टॉमलिंसन + +4325. 931. फ्रांस की क्रांति कब हुई थी? '"1789 ई० + +4326. 936. सी. पी. यू. का पूरा नाम क्या है? "'सेन्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट + +4327. 941. रेडियो तरंगें वायुमंडल की किस सतह से परिवर्तित होती है ? '"आयन मण्डल + +4328. 946. कोलकाता में ‘मिशनरी ऑफ़ चैरिटी’ संगठन की स्थापना किसने की थी ? "'मदर टेरेसा + +4329. 951. सन 1906 में ढाका में मुस्लिम लीग की स्थापना किसने की ? '"आगा खां और सलिमुल्ला खां ने + +4330. 956. अकबर ने फतेहपुर सीकरी में बुलंद दरवाजा किस उपलक्ष्य में बनवाया ? "'गुजरात विजय + +4331. 961. विश्व का सबसे बड़ा प्रायद्वीप कौनसा है ? '"अरब प्रायद्वीप + +4332. 966. मानव शरीर में रुधिर बैंक का कार्य कौनसा अंग करता है ? "'तिल्ली (प्लीहा) Spleen + +4333. 971. चाभी भरी घड़ी में कौनसी ऊर्जा होती है ? '"स्थितिज ऊर्जा + +4334. 976. परमाणु बम का आविष्कार किसने किया ? "'ऑटोहान + +4335. 981. ‘सर्वेन्ट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी’ की स्थापना किसने की थी ? '"गोपालकृष्ण गोखले + +4336. 986. अर्थशास्त्र का जनक कौन कहलाता है ? "'एडम स्मिथ + +4337. 991. ‘समुद्री जल’ से शुद्ध जल किस प्रक्रिया द्वारा प्राप्त किया जा सकता है ? '"आसवन + +4338. 996. लाल मिट्टी का रंग लाल क्यों होता है ? "'लौह ऑक्साइड की उपस्थिति के कारण + +4339. सबसे ज्यादा ज्वालामुखी कंहा आते है ? -- जापान के हो देवीप पर + +4340. + +4341. 3. 'भारतीय शिक्षा आयोग' द्वारा शारीरिक शिक्षा को मान्यता दी गयी? + +4342. (b) पसीना चलने की वजह से शरीर में नमक की मात्रा कम हो जाती है + +4343. (a) लक्ष्मीबाई कॉलेज ऑफ फीजिकल एजुकेशन, ग्वालियर + +4344. 10. मानव शरीर में सबसे लम्बी हड्डी कौन-सी है? + +4345. 12. प्रशिक्षण अवधि में, हमारे शरीर में कौन सा अम्ल बढ़ जाता है? + +4346. 17. मानव शरीर की सबसे छोटी हड्डी को क्या कहते हैं? + +4347. 21. किस विटामिन की कमी से 'रात्रि का अन्धापन' होता है? + +4348. + +4349. कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/हरिदासी सम्प्रदाय के प्रमुख कवि: + +4350. + +4351. + +4352. कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/ध्रुवदास: + +4353. तमिल भाषा/वर्ण माला: + +4354. इस पुस्तक में केवल शुरुआती ज्ञान ही है। अर्थात यह पुस्तक आपको तमिल भाषा को पूरी तरह सीखने में मदद नहीं कर सकता, लेकिन इतनी सहायता अवश्य कर सकता है कि आप सामान्य बोलचाल के लायक तमिल सीख सकें और थोड़ा लिख और पढ़ भी सकें। + +4355. कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/स्वामी हरिदास: + +4356. गदाधर भट्ट का जीवन परिचय. + +4357. गदाधर भट्ट की माधुर्य भक्ति. + +4358. सूरदास मदनमोहन का जीवन परिचय. + +4359. उपमा को घन दामिनी नाहीं कंदरप कोटि वारने करिया। + +4360. सूरदास मदनमोहन की माधुर्य भक्ति. + +4361. दृष्टि नैन स्वास वैन नैन सैन दोऊ लसत। + +4362. बैठे जु स्यामा स्यामवर त्रयीलोक की शोभा सची।। + +4363. तजि लोक लाज कुल की कानि गुरुजन की भीर।। + +4364. वृन्दावन बैठे मग जोवत बनवारी। + +4365. कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/माधुरीदास: + +4366. ये रूपगोस्वामी के शिष्य थे। इस बात की पुष्टि माधुरीदास की वाणी के निम्न दोहे से होती है: + +4367. मुक्ता मधुर विलास के निज कर दिए अनूप।। + +4368. उत्कण्ठा + +4369. मान + +4370. नैंनन में निस दिन रहो ,अहो नैन अभिराम।। + +4371. माधुरी लता में अति मधुर विलासन की + +4372. परी सुरत जिय आय ,रोम रोम भई सरसता। + +4373. + +4374. श्रीभट्ट की निम्बार्क सम्प्रदाय के प्रमुख कवियों में गणना की जाती है। माधुर्य के सच्चे उपासक श्रीभट्ट केशव कश्मीरी के शिष्य थे। श्रीभट्ट जी का जन्म संवत विवादास्पद है। भट्ट जी ने अपने ग्रन्थ "युगल शतक " का रचना काल निम्न दोहे में दिया है: + +4375. श्रीभट्ट जी के उपास्य वृन्दाविपिन विलासी राधा और कृष्ण हैं। ये सदा प्रेम में मत्त हो विविध कुंजों में अपनी लीलाओं का प्रसार करते हैं। भट्ट जी की यह जोड़ी सनातन ,एकरस -विहरण -परायण ,अविचल ,नित्य -किशोर-वयस और सुषमा का आगार है। प्रस्तुत उदाहरण में : + +4376. कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/हरिव्यासदेव: + +4377. हरिव्यासदेव के उपास्य राधा-कृष्ण प्रेम-रंग में रंगे हैं। दोनों वास्तव में एक प्राण हैं ~ किन्तु उन्होंने दो विग्रह धारण किये हुए हैं। वे सदा संयोगावस्था में रहते हैं क्योंकि दूसरे का क्षणिक विछोह भी उन्हें सह्य नहीं है। अल्हादनी शक्ति-स्वरूपा राधा का स्थान श्रीकृष्ण की अपेक्षा विशिष्ट है। + +4378. युगलकिशोर की सभी लीलाएँ ~ विहार ,झूलन,मान,रास आदि भक्त का मंगल करने वाली हैं। अतः इस सलोनी जोड़ी के प्रेम रस में अपने को रमा देना ही रसिक भक्तों की मात्र कामना है अर्थात वः चाहता है कि वह सदा उपास्य-युगल की मधुर- लीलाओं का दर्शन करता रहे। + +4379. श्री हरिव्यास भजो मन भाई। + +4380. रूपरसिक रसिकन की जीवन महिमा अमित पार न पाई।। + +4381. रूपरसिक की रचनाएँ. + +4382. रूपरसिक की माधुर्य भक्ति. + +4383. हमारे राधा माधो धेय। + +4384. पिय लिय लगाय हिय सों प्रवीनि। + +4385. रसपान करे होय रसिक रूप।। + +4386. धरे अंक पीवत अधरामृत सहज सुरत सुख दीन्हें। मंद-मंद सों चलत हिंडोरा प्रेम बिवस भये सुख दीन्हें।।== रूपरसिक की माधुर्य भक्ति == + +4387. + +4388. जीवविज्ञान तथ्यसमुच्चय--२: + +4389. + +4390. 3. ध्वनि + +4391. 8. परमाणु भौतिकी + +4392. यांत्रिकी (Mechanics). + +4393. (3) दूरी मापने की सबसे बड़ी इकाई पारसेक है। 1 पारसेक = 3.26 प्रकाश वर्ष = 3.08 x 10^16 मीटर + +4394. अदिश राशि (scalar quantity ): वैसी भौतिक राशि, जिनमें केवल परिमाण होता है। दिशा नहीं, उसे अदिश राशि कहा जाता है: जैसे - द्रव्यमान, चाल , आयतन, कार्य , समय, ऊर्जा आदि। + +4395. वेग (velocity ): किसी वस्तु के विस्थापन की दर को या एक निश्चित दिशा में प्रति सेकंड वस्तु द्वारा तय की दूरी को वेग कहते हैं। यह एक सदिश राशि है। इसका S.I. मात्रक मी./से. है। + +4396. न्यूटन का गति-नियम (newton 's laws of motion ): भौतिकी के पिता न्यूटन ने सन 1686 ई० में अपनी किताब "प्रिन्सिपिया" में गति के पहले नियम को प्रतिपादित किया था। + +4397. आवेग (impulse): जब कोई बड़ा बल किसी वस्तु पर थोड़े समय के लिए कार्य करता है, तो बल तथा समय अंतराल के गुणनफल को उस बल का आवेग कहते हैं। + +4398. सरल मशीन (simple machines): यह बल आघूर्ण बल के सिद्धांत पर कार्य करती है। सरल मशीन एक ऐसे युक्ति है, जिसमें किसी सुविधाजनक बिंदु पर बल लगाकर, किसी अन्य बिंदु पर रखे हुए भार को उठाया जाता है। जैसे उत्तोलक, घिरनी, आनत तल, स्क्रू-जैक आदि। + +4399. (iii) तृतींय श्रेणी का उत्तोलक: इस वर्ग के उत्तोलक में आलंब F भार W के बीच में आयास E होता है। उदाहरण चिमटा, किसान का हल, मनुष्य का हाथ. + +4400. न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण नियम (newton's law of gravitation): किन्हीं दो पिंडो के बीच कार्य करने वाला आकर्षण बल पिंडो के द्रव्यमानों के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है। + +4401. iii) 'g' का मान न्यूनतम विषुवत रेखा (equator) पर होता है। + +4402. i) जब लिफ्ट ऊपर की ओर जाती है तो लिफ्ट में स्थित पिंड का भार बढ़ा हुआ प्रतीत होता है। + +4403. i) प्रत्येक ग्रह सूर्य के चारों ओर दीर्घवृत्ताकार (eliiptical) कक्षा में परिक्रमा करता है तथा सूर्य ग्रह की कक्षा के एक फोकस बिंदु पर स्थति होता है। + +4404. i) उपग्रह की कक्षीय चाल उसकी पृथ्वी तल से उंचाई पर निर्भर करती है। उपग्रह पृथ्वी तल से जितना दूर होगा, उतनी ही उसकी चल कम होगी। + +4405. ii) उपग्रह का परिक्रमण काल उसके द्रव्यमान पर निर्भर नही करता है। + +4406. ऊष्मा एक प्रकार की ऊर्जा है, जो दो वस्तुओं के बीच उनके तापान्तर के कारण एक वस्तु से दूसरी वस्तु में स्थानान्तरित होती है। स्थानान्तरण के समय ही ऊर्जा ऊष्मा कहलाती है। + +4407. ध्वनि तरंगें अनुदैर्घ्य तरंगें होती हैं। इसकी उत्पति वस्तुओं में कम्पन होने से होती है, लेकिन सब प्रकार का कम्पन ध्वनि उत्पन्न नहीं करता। + +4408. प्रकाश एक प्रकार की ऊर्जा है, जो विद्युत चुम्बकिय तरंगों के रूप में संचरित होती है। + +4409. दर्पण में प्रतिबिम्ब का दिखाई देना। + +4410. हीरे का चमकना। मृग मरीचिका। पानी में डूबी परखनली का चमकीला दिखाई देना। कांच का चटका हुआ भाग चमकीला दिखाई देना। + +4411. तारों का टिमटिमाना। + +4412. R - Red + +4413. I - Indigo + +4414. द्वितीय - बैंगनी - हरा - लाल + +4415. सर्वप्रथम रोमर नामक वैज्ञानिक प्रकाश का वेग ज्ञात किया। + +4416. प्रकाश वर्ष दूरी का मात्रक है। + +4417. लैंस एक अपवर्तक माध्यम है जो दो वक्र अथवा एक वक्र एवं एक समतल सतह से घिरा हो। लेंस मुख्यतः दो प्रकार के होते है। 1. उत्तल लेंस 2. अवतल लेंस + +4418. अवतल लेंस + +4419. अवतल लैंस की फोकस दूरी - ऋणात्मक + +4420. 1. निकट दृष्टि दोष + +4421. दोनों लेंस काम में आते है। + +4422. यदि दो समतल दर्पण θ कोण पर परस्पर रखे है तो उनके मध्य रखी वस्तु के बने प्रतिबिम्बों की संख्या (360/θ)-1 होगी। अतः समकोण पर रखे दर्पणों के मध्य स्थित वस्तु के तीन प्रतिबिम्ब होंगे जबकि समान्तर स्थित दर्पणों के मध्य वस्तु के प्रतिबिम्ब अन्नत होंगे। + +4423. उत्तल दर्पण से बना प्रतिबिम्ब छोटा होता है। इसका प्रयोग वाहनों में पिछे की वस्तुएं देखने के लिए किया जाता है। यह दर्पण विस्तार क्षेत्र अधिक होने से प्रकाश का अपसार करता है। अतः परावर्तक लैम्पों में किया जाता है। + +4424. चुम्बकत्व भौतिक विज्ञान की वह प्रक्रिया है, जिसमें चुम्बक लोहे के टुकड़ों को अपनी ओर आकर्षित करती है। + +4425. चुम्बकीय पदार्थो के प्रकार. + +4426. चुम्बक सभी प्रकार के चुम्बकीय पदार्थ को अपनी ओर आकर्षित करते है जो उसके आस पास रहते हैं और चुम्बक जिस स्थान से इन पदार्थो को अपनी ओर खींचता है अथवा आकर्षित करता है उस स्थान से चुम्बक तक की दूरी को चुम्बकीय क्षेत्र कहा जाता है। ये चुम्बकीय क्षेत्र चुम्बक के चारों ओर बराबर दूरी पर पाए जाता है और इसकी कोई सीमा रेखा नहीं होती है। कहने का अर्थ यह है कि चुम्बक के चुम्बकीय क्षेत्र का सूक्ष्मातिसूक्ष्म विस्तार होता है और चुम्बक से दूर वाले जगह पर बहुत कम तीव्रता पाई जाती है। कुछ चुम्बकों का चुम्बकीय क्षेत्र अधिक सशक्त चुम्बकीय क्षेत्र भी हो सकता है तथा कुछ का चुम्बकीय क्षेत्र हल्का भी हो सकता हैं। चुम्बकीय क्षेत्र को ध्रुवों की शक्ति पर माप सकते है और यह पता करते है कि उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव में एक जैसी शक्ति है या नहीं। चुम्बकीय क्षेत्र की शक्ति या तीव्रता को गौस अथवा ओरेस्टेड में मापा जा सकता हैं। चुम्बक के पास वाले स्थान पर उसकी क्षेत्र की तीव्रता अधिक पाई जाती है तथा चुम्बक से दूर वाले स्थान पर कम पाई जाती है। एक प्रयोगशाली चुम्बक के चारों ओर उसके क्षेत्र की तीव्रता 1000 गौस हो सकता है। इससे मज़बूत चुम्बक की क्षेत्र की तीव्रता 3-4 किलो गौस हो सकती हैं। विद्युत चुम्बकों के मदद से इससे भी अधिक चुम्बकीय क्षेत्र का उत्पादन हो सकता है। + +4427. यानि यदि किसी बिन्दु से 1 सेकण्ड में गुजरने वाले आवेश का मान एक कुलाम हो तो विद्युत धारा 1 एम्पियर होगी। आवेश का मात्रक - कूलाम्ब । विद्युत परिपथ में विद्युत धारा मापने के लिए ऐमीटर का प्रयोग किया जाता है। + +4428. घरों में लगे इन्वर्टर प्रत्यावर्ती धारा को दिष्ट धारा में व दिष्ट धारा को प्रत्यावर्ती धारा में बदलने का कार्य करते हैं। + +4429. विद्युत बल्ब का फिलामेन्ट टंगस्टन धातु का बना होता है। + +4430. किसी चालक तार में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर उसके चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। इसे विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव कहते है। + +4431. पेच को इस प्रकार घुमाया या कसा जाता है कि पेच की नोक विद्युत धारा की दिशा में आगे बढ़े तो पेच घुमाने की दिशा चुम्बकीय क्षेत्र को व्यक्त करेगी। + +4432. 2. अनुचुम्बकीय - आकर्षण समान्तर + +4433. जब कुण्डली व चुम्बक के मध्य सापेक्ष गति करवाई जाती है तो कुण्डली में से गुजरने वाली चुम्बकीय बल रेखाओं की संख्या (चुम्बकीय फलक्स) में परिवर्तन होता है जिसके कारण प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न होती है। + +4434. विद्युत ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में रूपान्तरित करती है। + +4435. विद्युत लेपन में। + +4436. मात्रक : विभव और विभान्तर - वोल्ट + +4437. 1. पदार्थ कि प्रकृति पर + +4438. विशिष्ट प्रतिरोध का मात्रक ओम-मिटर + +4439. विद्युत धारा: किसी चालक में विद्युत आवेश की प्रवाह दर को विद्युत धारा कहते हैं। विद्युत धारा की दिशा घन आवेश की गति की दिशा की ओर मानी जाती है। इसका S.I. मात्रक एम्पेयर है, यह एक अदिश राशि है। + +4440. ओमीय प्रतिरोध (ohmic resistance): जो चालक ओम के नियम का पालन करते है, उनके प्रतिरोध को ओमीय प्रतिरोध हैं। जैसे- मैगनीज का तार. + +4441. प्रतिरोधों का संयोजन (combination of resistance): सामान्यतः प्रतिरोधों का संयोजन दो प्रकार से होता है। + +4442. घरों में लड़ियों के बल्ब, फ्यूज तार श्रेणी क्रम में लगे होते हैं। + +4443. शुष्क सेल + +4444. सीसा संचायक सेल + +4445. विद्युत ऊर्जा (P) + +4446. द्रव्यों में दाब के नियम: + +4447. उत्प्लावक बल (Buoyant force): द्रव का वह गुण जिसके कारण वह वस्तुओं पर ऊपर की ओर एक बल लगाता है, उसे उत्क्षेप या उत्प्लावक बल कहते हैं। यह बल वस्तुओं द्वारा हटाए गए द्रव के गुरुत्व-केंद्र पर कार्य करता है, जिसे उत्प्लावक केंद्र (center of buoyancy) कहते हैं। इसका अध्ययन सर्वप्रथम आर्कमिडीज ने किया था। + +4448. आपेक्षिक घनत्व एक अनुपात है। अतः इसका कोई मात्रक नहीं होता है। आपेक्षिक घनत्व को हाइड्रोमीटर से मापा जाता है। सामान्य जल की अपेक्षा समुद्री जल का घनत्व अधिक होता है, इसलिए उसमें तैरना आसान होता है। जब बर्फ पानी में तैरती है, तो उसके आयतन का 1/10 भाग पानी के ऊपर रहता है। किसी बर्तन में पानी भरा है और उस पर बर्फ तैर रही है; जब बर्फ पूरी तरह पिघल जाएगी तो पात्र में पानी का तल बढ़ता नहीं है, पहले के समान ही रहता है। दूध की शुद्धता दुग्यमापी (lactometer) से मापी जाती है। + +4449. प्रत्यास्थता की सीमा (Elastic limit): विरुपक बल के परिमाण की वह सीमा जिससे कम बल लगाने पर पदार्थ में प्रत्यास्थता का गुण बना रहता है तथा जिससे अधिक बल लगाने पर पदार्थ का प्रत्यास्थता समाप्त हो जाता है, प्रत्यास्थता की सीमा कहलाती है। + +4450. यदि विकृति आयतन में हो तो उसे आयतन प्रत्यास्थता गुणांक (K) कहते हैं। अपरूपण विकृति (shear) के लिए इसे द्रढ़ता गुणांक (η) कहते है। + +4451. (ii) श्रव्य तरंगें (audible waves): 20Hz से 2000Hz के बीच की आवृत्ति वाली तरंगों को श्रव्य तरंगें कहते हैं। इन तरंगों को हमारा कान सुन सकता है। + +4452. 2. दोलन गति (oscillatory motion): किसी पिंड की साम्य स्थिति के इधर-उधर करने को दोलन गति या कम्पनिक गति कहते हैं। + +4453. सरल आवर्त गति की विशेषताएं : + +4454. (v) स्थितिज ऊर्जा शून्य होती है। + +4455. (iv) स्थितिज ऊर्जा अधिकतम होती है। + +4456. (i) T ∝ √l, अथार्त लंबाई बढ़ने पर T बढ़ जाएगा. यही कारण है कि यदि कोई लड़की झूल झूलते -झूलते खड़ी हो जाए तो उसका गुरुत्व केंद्र ऊपर उठ जायेगा और प्रभावी लंबाई घट जाएगी जिससे झूले का आवर्त काल घट जाएगा। अथार्त झूला जल्दी-जल्दी दोलन करेगा. + +4457. 8. चंद्रमा पर लोलक घड़ी ले जाने पर उसका आवर्तकाल बढ़ जाएगा, क्योंकि चंद्रमा पर g का मान पृथ्वी के g के मान का 1/6 गुना है। + +4458. आसंजक बल (adhesive force): दो भिन्न पदार्थों के अणुअों के मध्य लगने वाले आकर्षण-बल को आसंजक बल कहते हैं। आसंजक बल के कारण ही एक वस्तु दूसरी वस्तु से चिपकती है। + +4459. (iii) पेड़-पौधों की शाखाओं, तनों एवं पंक्तियों तक जल और आवश्यक लवण केशिकत्व की क्रिया के द्वारा ही पहुँचते हैं। + +4460. (viii) पानी पर मच्छरों के लार्वा तैरते रहते है, परंतु पानी में मिट्टी का तेल छिड़क देने पर उसका पृष्ठ तनाव कम हो जाता है, जिससे लार्वा पानी में डूब कर मर जाते है। + +4461. (a) यह उदासीन होती है। + +4462. गामा-किरणें + +4463. एक्स किरणें + +4464. विद्युत चुंबकीय तरंगें: पराबैंगनी किरणें + +4465. दृश्य विकिरण + +4466. अवरक्त विकिरण + +4467. लघु रेडियो तरंगें या हर्टज़ियन तरंगें + +4468. दीर्घ रेडियो तरंगें; + +4469. नोट: 10^-3 m से 10^-2m की तरंगें सूक्ष्म तरंगें कहलाती हैं। + +4470. (i) कैथोड किरणें + +4471. (vi) पराश्रव्य तरंगें + +4472. इसके तीन मुख्य पहलू हैं :- + +4473. भारत की पहली प्रथम ट्रेन 1853 में चलाई गई है + +4474. कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/नन्ददास: + +4475. माइकोफिन -- ध्वनि ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में + +4476. विद्युत बल्ब -- विद्युत ऊर्जा को प्रकाश एवं ऊष्मा ऊर्जा में + +4477. सेन्टर फॉर एड्बान्स तकनोलॉजी -- इन्दौर ( मध्य प्रदेश ) + +4478. इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लि. -- हैदराबाद + +4479. साहा इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर फिजिक्स -- कोलकाता + +4480. कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/चतुर्भुजदास: + +4481. + +4482. + +4483. + +4484. कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/सूरदास की रचनाएँ: + +4485. राधा और कृष्ण का प्रेम सहज है ~ क्योंकि उसका विकास धीरे-धीरे बाल्य-काल से ही हुआ है। दोनों का प्रथम परिचय रवि-तनया के तट पर सहज रूप से होता है। एक दूसरे के सौन्दर्य,वाक्चातुरी तथा क्रीड़ा-कला पर मुग्ध वे परस्पर स्नेह-बंधन में बंध जाते हैं। यही उनके प्रेम का प्रारम्भ है : + +4486. + +4487. मीराबाई जोधपुर के संस्थापक सुप्रसिद्ध ,राठौड़ राजा राव जोधा जी के पुत्र राव दूदा जी की पौत्री तथा रत्नसिंह जी की पुत्री थीं। इनका जन्म कुड़की गाँव में वि ० सं ० १५५५ के आस-पास हुआ था। मीराबाई का श्री गिरधरलाल के प्रति बचपन से ही सहज प्रेम था। किसी साधु से गिरधरलाल की एक सुन्दर मूर्ति इन्हें प्राप्त हुई। मीरा उस मूर्ति को सदा अपने पास रखतीं और समयानुसर उसकी स्नान,पूजा,भोजन आदि की स्वयं व्यवस्था करतीं। एक बार माता से परिहास में यह जानकर की मेरे दूल्हा ये गिरधर गोपाल हैं ~~ मीरा का मन इनकी ओर और भी अधिक झुक गया और ये गिरधर लाल को अपना सर्वस्व समझने लगीं। + +4488. कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/मीराबाई की रचनाएँ: + +4489. मीरा ने कृष्ण को अपना पति माना है। इस प्रकार अपने को कृष्ण की पत्नी मानकर उन्होंने कृष्ण की मधुर-लीलाओं का आस्वादन किया। उनमें सन्त मत के प्रभाव के कारण रहस्य की छाप पूर्ण रूप में देखी जा सकती है: + +4490. कवियत्री ने एकाध पद में वृन्दावन का वर्णन भी किया है ~~ + +4491. कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/गंगाबाई की रचनाएँ: + +4492. गोपियों के प्रेम से प्रभावित हो श्रीकृष्ण उनकी मनो-पूर्ति का वचन दे देते है। इनका पहला रूप हमें दानलीला के पदों में लक्षित होता है। गोपियों से जब कृष्ण दान की याचना करते है तो वः तुरन्त सभी कुछ देने के लिए प्रस्तुत हो जाती हैं क्योंकि वे कृष्ण-चरणों में पहले ही आत्म-समर्पण कर चुकी हैं। अतः किसी प्रकार की अमर्यादित प्रसंग यहां लक्षित नहीं होता: + +4493. कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/वल्लभ रसिक का जीवन परिचय: + +4494. + +4495. कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/गोस्वामी हित हरिवंश की रचनाएँ: + +4496. + +4497. भक्तों और साधु -सन्तों की सेवा को ही व्यास जी जीवन की सार्थकता मानते थे। + +4498. राधावल्लभ सम्प्रदाय में ध्रुवदास का भक्त कवियों में प्रमुख स्थान है। इस सम्प्रदाय भक्ति-सिद्धान्तों का जैसा सर्वांगपूर्ण विवेचन इनकी वाणी में उपलब्ध होता है वैसा किसी अन्य भक्तों की वाणी में नहीं। सम्प्रदाय में विशेष महत्वपूर्ण स्थान होते हुए भी आप के जन्म-संवत आदि का कुछ भी निश्चित पता नहीं है। आपने अपने रसानन्द लीला नामक ग्रन्थ में उसका रचना-काल इस प्रकार दिया है : + +4499. कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/ध्रुवदास की रचनाएँ: + +4500. इस प्रकार रस-भक्ति में इनका प्रवेश हुआ। + +4501. कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/स्वामी हरिदास का जीवन परिचय: + +4502. कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/विट्ठलविपुलदेव का जीवन परिचय: + +4503. कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/बिहारिन देव का जीवन परिचय: + +4504. + +4505. कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/नागरीदास की रचनाएँ: + +4506. + +4507. इनके पद ,कवित्त और सवैये स्फुट रूप में उपलब्ध हैं। + +4508. + +4509. कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/नन्ददास की रचनाएँ: + +4510. 'राधा और कृष्ण एकान्त में ही स्वयं दूल्हा-दुलहिन नहीं हैं। नन्ददास ने स्याम सगाई नामक ग्रन्थ में वर-वधू दोनों पक्षों की सम्मति दिखाकर राधा के साथ कृष्ण की सगाई कराई है। सगाई के बाद जो उत्सव की धूम हिन्दू घरों की एक विशेषता है,उसका भी सुन्दर परिचय कवि ने दिया है: + +4511. कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/चतुर्भुजदास की रचनाएँ: + +4512. चतुर्भुजदास के आराध्य नन्दनन्दन श्रीकृष्ण हैं। रूप, गुण और प्रेम सभी दृष्टियों से ये भक्त का मनोरंजन करने वाले हैं। इनकी रमणीयता भी विचित्र है ,नित्यप्रति उसे देखिये तो उसमें नित्य नवीनता दिखाई देगी: + +4513. गोविंदस्वामी की वल्लभ सम्प्रदाय भक्त कवियों में गणना की जाती है। ये गोस्वामी विट्ठलनाथ के शिष्य थे। इनका जन्म सनाढ्य ब्राह्मण कुल में हुआ था तथा अंतरी के रहने वाले थे। (हिंदी साहित्य का इतिहास :आचार्य रामचन्द्र शुक्ल :पृष्ठ १७९ ) यहीं इनका मिलाप गो ० विट्ठलनाथ से हुआ। इनसे दीक्षा लेने के बाद गोवर्द्धन पर्वत पर रहने लगे। आज भी वह स्थान ,जहाँ थे गोविंदस्वामी की कदंब खंडी कहलाता है। डा० दीन दयाल गुप्त ने इनका समय वि० सं० १५६२ के लगभग मृत्यु वि० सं० १६४२ मानी है। (अष्टछाप और वल्लभ सम्प्रदाय ;पृष्ठ २६६-७२ ) + +4514. गोविंदस्वामी ने आराध्य रूप में कृष्ण का स्मरण किया है। श्रीकृष्ण परम रसिक सुन्दरता के मूर्तमान स्वरुप हैं। इनका अंग-प्रत्यंग कान्ति से दीप्त है उनकी छवि को देखकर चन्द्रमा आदि की ज्योति भी तुच्छ प्रतीत होती है: + +4515. छीतस्वामी की वल्लभ सम्प्रदाय के भक्त कवियों में गणना की जाती है। गोस्वामी विट्ठलनाथ के शिष्य होने के पूर्व ये मथुरा के पंडा थे। उस समय उन्हें पैसे का कोई आभाव न था। अतः ये स्वभाव से उद्दंड और अक्खड़ थे किन्तु विट्ठलनाथ से दीक्षा लेने के पश्चात् इनके स्वभाव में अत्यधिक परिवर्तन आ गया और वह नम्र और सरल हो गए। डा० दीनदयाल गुप्त ने इनका जन्म संवत १५६७ वि ० माना है। (अष्टछाप और वल्लभ सम्प्रदाय :पृष्ठ २७८ ).दो सौ बावन वैष्णवों की वार्ता में छीतस्वामी के विषय में जो कुछ लिखा गया है उसके अनुसार ये यदा कदा पद बनाकर विट्ठलनाथ जी को सुनाया करते थे। इन पदों से प्रसन्न होकर एक बार विट्ठलनाथ जी ने इन पर कृपा की,जिससे छीतस्वामी को साक्षात् कोटि कंदर्प लावण्य-मूर्ति पुरुषोत्तम के दर्शन हुए। इन दर्शनों से उनके पदों में मधुर भाव-धारा बह उठी। + +4516. कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/छीतस्वामी की माधुर्य भक्ति: + +4517. कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/वल्लभ रसिक की माधुर्य भक्ति: + +4518. + +4519. श्री हरिवंश की कृपा हो जाने पर जीव सबसे प्रेम करने लगता है,शत्रुऔर मित्र में ,लाभ और हानि में,मान और अपमान में समभाव वाला हो जाता है। हरिवंश कृपा के परिणामस्वरूप वह सतत श्यामा-श्याम के नित्य विहार का प्रत्यक्ष दर्शन करता है और इस लीला दर्शन से उसे जिस आनन्द की की अनुभूति होती है वह प्रेमाश्रुओं तथा पुलक द्वारा स्पष्ट सूचित होता है : + +4520. ध्रुवदास जी ने अपनी आराध्या राधा के स्वाभाव तथा सौन्दर्य का वर्णन कई कवित्त और सवैयों में किआ है। निम्न कवित्त उनकी काव्य-प्रतिभा एवं कल्पना शक्ति का पूर्ण परिचायक है। + +4521. कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/बिहारिन देव की माधुर्य भक्ति: + +4522. विट्ठलविपुल देव के उपास्य श्यामा-श्याम परम रसिक हैं। ये नित्य -किशोर सदा विहार में लीन रहते हैं। इनकी वह निकुंज-क्रीड़ा काम-केलि रस-पागी होने पर प्रेम-परक होने के कारण सदा भक्तों का मंगल विधान करती है। यद्यपि सामान्य से राधा और कृष्ण को विट्ठलविहारी देव ने नित्य विहारी स्वीकार किया है ,किन्तु कुछ लीला परक पदों में उनका स्वकीया सम्बन्ध भी सूचित होता है : + +4523. व्यास जी के उपास्य श्री जुगल किशोर , गुण तथा स्वाभाव सभी दृष्टियों से उत्तम हैं। ये वृन्दावन में विविध प्रकार से रास आदि की लीलाएं करते हैं। इन्हीं लीलाओं का दर्शन करके रसिक भक्त आत्म-विस्मृति की आनन्दपूर्ण दशा को सहज ही प्राप्त कर लेते हैं। यद्यपि व्यास जी माध्व सम्प्रदाय के थे लेकिन राधाबल्लभ में भी आपकी अतिशय प्रीति थी , राधा और कृष्ण को परस्पर किसी प्रकार के स्वकीया या परकीया भाव के बन्धन में नहीं बाँधा गया, किन्तु लीलाओं का वर्णन करते समय कवि ने सूरदास की भाँति यमुना-पुलिन पर अपने उपास्य-श्री युगल किशोर का विवाह करवा दिया है। + +4524. व्यास भरोसे कुँवरि के , + +4525. व्यास जी का प्रेम सदैव अपनी सखी सहेली श्री हरिदास और श्री हरिवंश के प्रति अतिशय उदार रहा . + +4526. गोस्वामी हितहरिवंश के अनुसार आनन्दनिधि श्यामा ने श्रीकृष्ण के लिए ही बृषभानु गोप के यहां जन्म लिया है। वे श्रीकृष्ण के प्रेम में पूर्ण रूपेण रंगी हुई हैं। प्रेममयी होने के साथ-साथ श्रीराधा रूपवती भी हैं। इनकी सुन्दरता का वर्णन दृष्टव्य : + +4527. कहकर स्वामी जी स्पस्ट सूचित किया है कि राधा-कृष्ण का विहार अत्यधिक पवित्र है। उस विहार में प्रेम की लहरें उठती रहती हैं,जिनमें मज्जित होकर जीव आनन्द में विभोर हो जाता है। इस प्रेम की प्राप्ति उपासक विरक्त भाव से वृन्दावन-वास करते हुए भजन करने से हो सकती है। स्वामी हरिदास जी का जीवन इस साधना का मूर्त रूप कहा जा सकता है। + +4528. + +4529. + +4530. परमानन्ददास के उपास्य रसिक नन्दनन्दन हैं। रसिक शिरोमणि तथा रस-रूप होने के साथ-साथ श्रीकृष्ण की रूप माधुरी भी अपूर्व है। इस रूप-माधुरी का एक बार पान करके ह्रदय सदा उसी के लिए लालायित रहता है। इसी कारण कवि ने कहा है कि श्रीकृष्ण को पाकर सुन्दरता की शोभा बढ़ी है क्योंकि सौन्दर्य के वास्तविक आश्रय श्रीकृष्ण ही हैं। + +4531. परमानन्ददास ने अपने पदों में राधा-कृष्ण अथवा गोपी-कृष्ण के विलास का स्पष्ट रूप से कहीं भी वर्णन नहीं किया है। उन्होंने विलास का केवल संकेत मात्र अपने पदों में किया है। यद्यपि गोपियों में भी श्रीकृष्ण को पति रूप में प्राप्त इच्छा लक्षित होती है,किन्तु उसकी स्थिति राधा से भिन्न है। सिद्ध और साधक में जो अन्तर है वही अन्तर हमें राधा और गोपियों में लक्षित होता है। यही कारण है कि कृष्ण राधा के चरण-चाँपते हुए भी हमारे सम्मुख आते हैं,किन्तु गोपियाँ सर्वत्र कृष्ण की पद-वन्दना करते हुए दृष्टिगत होती हैं ,गोपियाँ रति की अभिलाषा करती हैं ,किन्तु रति-सुख केवल राधा को ही प्राप्त होता है : + +4532. + +4533. राधा के लिए कुम्भनदास ने कई स्थलों पर स्वामिनी शब्द का व्यवहार किया है जिससे ज्ञात होता है कि वे राधा को कृष्ण की स्वकीया मानते थे। राधा के अतिरिक्त गोपियाँ भी कृष्ण को पति रूप से चाहती हैं। गोपियों का कृष्ण प्रति प्रेम आदर्श प्रेम है। कृष्ण की रूप माधुरी और मुरली माधुरी से मुग्ध हो वे अपना सभी कुछ कृष्ण-चरणों में न्यौछावर कर देती हैं। तब उनकी यही एक मात्र कामना है कि हमें कृष्ण पति-रूप से प्राप्त हो जाएँ। इसके लिए वे लोगों का उपहास भी सहने को भी प्रस्तुत हैं: + +4534. वाली उक्ति स्वयं चरितार्थ हो उठती है। इतने बुरे स्वभाव के होते हुए भी अपनी शासन-चतुरता के कारण कृष्णदास का अपने सम्प्रदाय में विशेष सम्मान था। सम्प्रदाय की नींव को अधिक से अधिक दृढ़ करने की चेष्टा इन्होंने समस्त जीवन भर की। उसके लिए इन्होंने अच्छे अथवा बुरे सभी साधनो का उपयोग किया। तात्पर्य यह है कि इन्होंने भगवान् की कीर्तन-सेवा से इतर श्रीनाथ जी के मन्दिर की व्यवस्था तथा सम्प्रदाय के प्रसार की ओर विशेष ध्यान दिया। + +4535. कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/कृष्णदास की माधुर्य भक्ति: + +4536. कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/कृष्णदास: + +4537. बृजभाषा के प्रसिद्ध मुसलमान कवि रसखान के जन्म-संवत ,जन्म-स्थान आदि के विषय में तथ्यों के अभाव में निश्चित रूप से कुछ कह सकना सम्भव नहीं है। अनुमान किया गया है कि सोलहवीं शताब्दी ईसवी के मध्य भाग में उनका इनम हुआ होगा। (हिन्दी साहित्य :डा० हजारी प्रसाद द्विवेदी :पृष्ठ २०७ ) रसखान ने अपनी कृति प्रेमवाटिका के रचना काल का उल्लेख निम्न दोहे में किया है : + +4538. + +4539. तथा --- + +4540. वेद मर्यादाएँ तथा जागतिक नियम इस प्रेम की प्राप्ति में विघ्न-रूप सिद्ध होते हैं। अतः जब तक साधक इन नियमों को दृढ़ता से पकड़े रहता है तब तक उसे प्रेम की प्राप्ति नहीं होती और दूसरी ओर यदि साधक के ह्रदय में प्रेम का प्रकाश हो जाता है उस समय ये सभी नियम बंधन स्वतः छूट जाते हैं: + +4541. पंजाबी भाषा/फल: + +4542. + +4543. यहाँ उर्दू भाषा के कुछ छोटे शब्द दिये गए हैं, जिसे आप पढ़ कर लिपि को पढ़ना आसानी से सीख सकते हैं। + +4544. + +4545. यह प्रतियोगिता हर वर्ष महाराष्ट्र कबड्डी एसोसिएसन द्वारा आयोजित कराई जाती है।me ,m + +4546. कई सारे कबड्डी प्रतियोगिताओं का लाइव प्रसारण भी किया जाता है। + +4547. प्रतियोगिता में. + +4548. बराबरी होने पर. + +4549. कबड्डी घर के बाहर खेलने वाला एक खेल है, जिसे भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे ज्यादा खेला जाता है। इसे ज्यादातर उत्तर भारत के लोग बोलते कबड्डी कहते हैं। भारत के साथ साथ नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान के लोगों को भी इस खेल में काफी दिलचस्पी है और वहाँ लोकप्रिय भी है। + +4550. जर्मन भाषा के पहले अध्याय में आपका स्वागत है। इस अध्याय को ऐसे लोगों के लिए बनाया गया है, जो अभी अभी जर्मन भाषा सीखना शुरू किए हैं या थोड़ा सा ही उन्हें इस भाषा का ज्ञान है। इस अध्याय का लक्ष्य केवल इतना सा ही है कि आपका बिना किसी तकलीफ के जर्मन भाषा से परिचय कराया जा सके और आगे के अध्याय में आप रुचि के साथ पढ़ कर इसे सीख सकें। + +4551. अंग्रेजी भाषा: + +4552. इस भाषा का इतिहास भी कुछ अच्छा नहीं है। इंग्लैंड में पहले केल्टिक भाषा ही बोली जाती थी, बाद में केल्टिक के राजा ने दूसरे देशों से युद्ध करने के लिए अन्य साम्राज्यों से मदद मांगी थी, पर उन लोगों ने साथ में युद्ध करने के स्थान पर इंग्लैंड को ही हासिल करने में अपनी रुचि दिखाई और इस तरह उस युद्ध के बाद केल्टिक भाषा और उसके शब्दों तक का कोई निशान नहीं बच पाया। दूसरे राजाओं ने केल्टिक राजा के साथ साथ उसके साम्राज्य के हर व्यक्ति को मार दिया और उसके बाद कोई भी केल्टिक भाषा बोलने वाला नहीं बचा। + +4553. चीनी भाषा/परिचय: + +4554. + +4555. वैसे कई शब्दों का एक ही उच्चारण तो आप देख ही चुके हैं, पर अंग्रेजी में एक ही शब्द का कई अलग अलग उच्चारण भी होता है। जैसे woman का उच्चारण वुमन, विमैन, वुमैन आदि होता है। इसमें "विमैन" वाला उच्चारण अमेरिका में होता है, जबकि वुमैन वाला उच्चारण ब्रिटेन में होता है। इसके अन्य कुछ उच्चारण दूसरे देशों में होते हैं। + +4556. जब हमें उचित और अवलंबनीय निर्णय लेने की आवश्यकता हो. जब हमें जटिल परिस्थितियों में यह जानना हो कि क्या सही है और क्या नहीं ,तब तर्क ही वह एकमात्र साधन है जिस पर हम भरोसा कर सकते हैं कई बार हम अतर्कसंगत माध्यम जैसे आदत झुकाव या पूर्वाभ्यास के आधार पर निर्णय ले लेते है .परन्तु न्याय करना मुश्किल होता है और सफलता के लिए कारण की खोज करनी पड़ती है इसका मुख्य आधार या सही विधि बुद्धिवादी विधि है + +4557. इसी तरह रंग शब्द में भी आपको परेशानी हो सकती है। अमेरिका में रंग को "कलर" (color) लिखते हैं, जबकि ब्रिटेन में "कलर" (colour) लिखते हैं। इस तरह से यदि आप अमेरिका में ब्रिटेन में लिखा जाने वाला शब्द लिखेंगे तो उसे गलत ही मान लिया जायेगा और ब्रिटेन में यदि आप अमेरिका वाला शब्द लिखेंगे तो उसे गलत माना जाएगा। किसी पर्यटक से तो इस तरह की गलती हो ही सकती है, पर यदि आप कोई काम करते हैं, तो इससे आपको मुसीबत का सामना जरूर करना पड़ेगा। इसमें समस्या ये है कि इस तरह के एक दो शब्द नहीं, बल्कि कई सारे ऐसे शब्द हैं, जिससे आपको परेशानी हो सकती है। अभी तक तो आप केवल ब्रिटेन और अमेरिका में लिखे और बोले जाने वाले अंग्रेजी की समस्या ही पढ़ रहे हैं, लेकिन कई अन्य देशों में जहाँ अंग्रेजी को आधिकारिक भाषा के रूप में लिखा और बोला जाता है, वहाँ कुछ ऐसा ही हाल है। + +4558. सी प्रोग्रामिंग/परिचय अभ्यास: + +4559. + +4560. यह एक प्रीप्रोसेसर डिरेक्टिव है। #include का अर्थ है कि इसके आगे लिखे फ़ाइल को प्रोग्राम मे शामिल करना है stdio.h एक स्टंडेर्ड इनपुट आउटपुट हैडर फ़ाइल है अर्थात #include का मतलब यह है कि प्रोग्राम मे stdio.h हैडर फ़ाइल को शामिलित किया जाए। + +4561. यहाँ + +4562. printf("Hello, World!\n"); + +4563. अंत में, हम इस लाइन को देखते हैं। यह लाइन हमारे प्रोग्राम को समाप्त करती है। यह ऑपरेटिंग सिस्टम को यह जानने में मदद करती है कि यह प्रोग्राम सफल हुआ या नहीं। हम ऐसा एक्जिट स्थितियो के साथ करते हैं, जो हमारे मुख्य फ़ंक्शन में रिटर्न स्टेटमेंट के साथ ऑपरेटिंग सिस्टम को भेजा जाता हैं। इस स्थिति में, हम एक्सेक्यूसन को त्रुटि के बिना सफल होने के संकेत के लिए 0 का एक्जिट स्थिति प्रदान करते हैं। जैसा-जैसा हमारे प्रोग्राम मे जटिलता बढ़ती जाती हैं, हम अन्य पूर्णांकों को विभिन्न प्रकार की त्रुटियों के लिए कोड के रूप मे इंगित कर सकते हैं। एक्जिट स्थितियां प्रदान करने की यह शैली एक लंबे समय से परंपरा है। अर्थात return 0; ऑपरेटिंग सिस्टम को बताता है कि हमारा प्रोग्राम सफल हुआ। छोटे छोटे प्रोग्रामो मे यह इतना उपयोगी नहीं होता है परंतु जब हजारो लाइनों के प्रोग्राम लिखे जाते है तो हमे छोटे छोटे कंडिशन और फंकशन मे जानना होता है कि उस कंडिशन या फंकशन ने एक्जिट स्थिति के रूप मे क्या रिटर्न किया। यदि रिटर्न 0 हुआ तो उस कंडिशन या फंकशन अपना सफल कार्य किया। यदि रिटर्न 0 के आलवा और कोई आता है तो अर्थ है कि उसमे त्रुटि है। इसका मुख्य उपयोग यही है कि प्रोग्राम के छोटे छोटे कंडिशन और फंकशन की ट्रैकिंग आसान को जाती है। + +4564. इसके बाद आपको codice_1 स्क्रीन पर प्रदर्शित होगा। + +4565. आप "a.out" के स्थान पर "helloworld" नामक प्रोग्राम बनाने के लिए इन विकल्पों का उपयोग कर सकते हैं: + +4566. + +4567. + +4568. पत्र का महत्व. + +4569. एक पत्र में उसके लेखक की भावनाएँ ही व्यक्त नहीं होती, बल्कि उसका व्यक्तित्व भी उभरता है। इससे लेखक के चरित्र, दृष्टिकोण, संस्कार, मानसिक स्थिति, आचरण इत्यादि सभी एक साथ झलकते हैं। अतः पत्रलेखन एक प्रकार की कलात्मक अभिव्यक्ति है। लेकिन, इस प्रकार की अभिव्यक्ति व्यवसायिक पत्रों की अपेक्षा सामाजिक तथा साहित्यिक पत्रों में अधिक होती है। + +4570. (4) पत्र में बेकार की बातें नहीं लिखनी चाहिए। उसमें केवल मुख्य विषय के बारे में ही लिखना चाहिए। + +4571. (9) पत्र में लिखी वर्तनी-शुद्ध व लेख-स्वच्छ होने चाहिए। + +4572. (1)सरल भाषाशैली + +4573. (1 ) सरल भाषाशैली:- पत्र की भाषा साधारणतः सरल और बोलचाल की होनी चाहिए। शब्दों के प्रयोग में सावधानी रखनी चाहिए। ये उपयुक्त, सटीक, सरल और मधुर हों। सारी बात सीधे-सादे ढंग से स्पष्ट और प्रत्यक्ष लिखनी चाहिए। बातों को घुमा-फिराकर लिखना उचित नहीं। + +4574. (क) उसका कागज सम्भवतः अच्छा-से-अच्छा होना चाहिए; + +4575. (च) विषय-वस्तु के अनुपात से पत्र का कागज लम्बा-चौड़ा होना चाहिए। + +4576. (1) औपचारिक-पत्र + +4577. (1) प्रार्थना-पत्र - जिन पत्रों में निवेदन अथवा प्रार्थना की जाती है, वे 'प्रार्थना-पत्र' कहलाते हैं। + +4578. (i) औपचारिक-पत्र नियमों में बंधे हुए होते हैं। + +4579. (vi) पत्र पृष्ठ के बाई ओर से हाशिए के साथ मिलाकर लिखें। + +4580. (2) विषय- जिसके बारे में पत्र लिखा जा रहा है, उसे केवल एक ही वाक्य में शब्द-संकेतों में लिखें। + +4581. (5) हस्ताक्षर व नाम- भवदीय/भवदीया के नीचे अपने हस्ताक्षर करें तथा उसके नीचे अपना नाम लिखें। + +4582. पउमचरिउ: + +4583. पउमचरिउ + +4584. घत्ता॒ + +4585. विज्जाहरकण्डं. + +4586. कण्ड १, संधि १, कडवक १॒ + +4587. जेण समाणिज्जन्तऍण $ थिर कित्ति विढप्पइ + +4588. घत्ता॒ + +4589. कण्ड १, संधि १, कडवक ६॒ + +4590. "जं झायहि जं संभरहि $ सो जग-गुरु आओ" + +4591. घत्ता॒ + +4592. कण्ड १, संधि १, कडवक ११॒ + +4593. आयइँ चन्द-सूर-फलइँ $ अवसप्पिणि-रुक्खहेॅ" + +4594. घत्ता॒ + +4595. कण्ड १, संधि १, कडवक १६॒ + +4596. जग-गुरु पुण्ण-पवित्तु $ तइलोक्कहेॅ मङ्गलगारउ + +4597. कण्ड १, संधि २, कडवक २॒ + +4598. "एहउ तिहुअण-णाहु $ किं होइ ण होइ व जोयहेॅ" + +4599. घत्ता॒ + +4600. कण्ड १, संधि २, कडवक ७॒ + +4601. चिन्ता मणेॅ उप्पण्ण $ सुरवइ-महरायहेॅ तावेॅहिॅ + +4602. घत्ता॒ + +4603. कण्ड १, संधि २, कडवक १२॒ + +4604. एउ ण जाणह्ũ आसि $ किउ अम्हेॅहिॅ को अवराहो + +4605. घत्ता॒ + +4606. कण्ड १, संधि २, कडवक १७॒ + +4607. तिहुअण-गुरु $ तं गयउरु $ मेल्लेॅवि खीण-कसाइउ + +4608. वण-वणियहेॅ $ सुह-जणियहेॅ $ उप्परि धरिउ व मोरउ + +4609. कण्ड १, संधि ३, कडवक ३॒ + +4610. चउदिसु चउरुज्जाण-वणु $ सुर-णिम्मविउ समोसरणु + +4611. घत्ता॒ + +4612. जें दुल्लहु $ जण-वल्लहु $ इन्दत्तणु पावेसह्ũ" + +4613. कण्ड १, संधि ३, कडवक ८॒ + +4614. पेक्खेॅवि उववणेॅ अवयरिउ $ जाउ महन्तउ अच्छरिउ + +4615. घत्ता॒ + +4616. णउ एक्कु वि $ तिल-मेत्तु वि $ तं जि जिणेण ण दिट्ठउ + +4617. कण्ड १, संधि ३, कडवक १३॒ + +4618. सट्ठिहिं वरिस-सहासहिॅ $ पुण्ण-जयासहिॅ $ भरहु अउज्झ पईसरइ + +4619. कण्ड १, संधि ४, कडवक २॒ + +4620. "एक्क केर वप्पिक्की $ पिहिमि-गुरुक्की $ अवर केर ण पडिच्छिय + +4621. घत्ता॒ + +4622. कण्ड १, संधि ४, कडवक ७॒ + +4623. किं वहिएण वराएं $ भड-संघाएं $ दिट्ठि-जुज्झु वरि मण्डहेॅ + +4624. घत्ता॒ + +4625. कण्ड १, संधि ४, कडवक १२॒ + +4626. एण कसाएं लइयउ $ सो पव्वइयउ $ तेण ण पावइ केवलु" + +4627. अक्खइ गोत्तम-सामि $ तिहुअण-लद्ध-पसंसह्ũ + +4628. कण्ड १, संधि ५, कडवक २॒ + +4629. जीउ व कम्म-वसेण $ णिउ अवहरेॅवि तुरङ्गें + +4630. घत्ता॒ + +4631. कण्ड १, संधि ५, कडवक ७॒ + +4632. रक्खस-वंसहेॅ णाइँ $ पहिलउ कन्दु समुट्ठिउ + +4633. घत्ता॒ + +4634. कण्ड १, संधि ५, कडवक १२॒ + +4635. मेइणि छेञ्छइ जेम $ कवणें णरेॅण ण भुत्ती" + +4636. घत्ता॒ + +4637. ---------- छट्ठो संधि ---------- + +4638. घत्ता॒ + +4639. कण्ड १, संधि ६, कडवक ३॒ + +4640. णिव्वाडेप्पिणु धम्मु जिह $ जं भावइ तं गेण्हहि मित्ता" + +4641. घत्ता॒ + +4642. कण्ड १, संधि ६, कडवक ८॒ + +4643. णिम्मल-कुलहेॅ कलङ्कु जिह $ मउडेॅ चिन्धेॅ धऍ छत्तेॅ लिहाविय + +4644. घत्ता॒ + +4645. कण्ड १, संधि ६, कडवक १३॒ + +4646. धम्म-विहूणहेॅ माणुसहेॅ $ चण्डाल वि पङ्गणऍ ण ठन्ति" + +4647. घत्ता॒ + +4648. कण्ड १, संधि ७, कडवक १॒ + +4649. "किर होसइ सिद्धि" $ आयऍ आसऍ समय जिह + +4650. घत्ता॒ + +4651. कण्ड १, संधि ७, कडवक ६॒ + +4652. णिउ पन्थें तेण $ जें सो विजयमइन्दु गउ + +4653. घत्ता॒ + +4654. कण्ड १, संधि ७, कडवक ११॒ + +4655. तो णियय-जणेरि $ इन्दाणी करयलेॅ धरमि" + +4656. घत्ता॒ + +4657. कण्ड १, संधि ८, कडवक १॒ + +4658. "पेक्खु देव दुणिमित्ताइँ $ सिव कन्दइ वायसु करगरइ + +4659. घत्ता॒ + +4660. कण्ड १, संधि ८, कडवक ६॒ + +4661. वड्ढिय तहेॅ वि चउग्गुणिय $ रवि-कन्तिऍ ससि-कन्ति व हरिय + +4662. घत्ता॒ + +4663. कण्ड १, संधि ८, कडवक ११॒ + +4664. मण्डलु एक्केक्कउ पवरु $ सो सव्वु स इं भु ञ्जावियउ + +4665. घत्ता॒ + +4666. कण्ड १, संधि ९, कडवक ३॒ + +4667. तें दहमुहु दहसिरु जणेॅण किउ $ पञ्चाणणु जेम पसिद्धि गउ + +4668. घत्ता॒ + +4669. कण्ड १, संधि ९, कडवक ८॒ + +4670. गउ णिप्फलु सो उवसग्गु किह $ गिरि-मत्तऍ वासारत्तु जिह + +4671. घत्ता॒ + +4672. कण्ड १, संधि ९, कडवक १३॒ + +4673. रोमञ्चाणन्द-णेह-जुऍहिॅ $ चुम्वेॅवि अवगूढ स इं भु वेॅहिॅ + +4674. घत्ता॒ + +4675. कण्ड १, संधि १०, कडवक ३॒ + +4676. णं उत्तम-रायहंस-मिहुणु $ पप्फुल्लिय-पङ्कय-व(य)णु + +4677. घत्ता॒ + +4678. कण्ड १, संधि १०, कडवक ८॒ + +4679. वइसवण-दसाणण-साहणइँ $ विण्णि वि रणेॅ अब्भिट्टइँ + +4680. घत्ता॒ + +4681. ---------- एगारहमो संधि ---------- + +4682. जिण-भवणइँ छुह-पङ्कियइँ $ एयइँ हरिसेणहेॅ केराइँ + +4683. घत्ता॒ + +4684. कण्ड १, संधि ११, कडवक ५॒ + +4685. चलु लक्खिज्जइ गयण-यलेॅ $ णं विज्जु-पुञ्जु णव-जलहरहेॅ + +4686. घत्ता॒ + +4687. कण्ड १, संधि ११, कडवक १०॒ + +4688. घत्ता॒ + +4689. कण्ड १, संधि ११, कडवक १३॒ + +4690. जिह सुरवइ सुरवर-पुरिहिॅ $ तिह रज्जु स इं भु ञ्जन्तु थिउ + +4691. घत्ता॒ + +4692. कण्ड १, संधि १२, कडवक ३॒ + +4693. वणेॅ णिवसन्तियहेॅ $ वय-वन्तियहेॅ $ सुउ उप्पण्णु विराहिउ + +4694. घत्ता॒ + +4695. कण्ड १, संधि १२, कडवक ८॒ + +4696. उत्त-पडुत्तियऍ $ कुल-उत्तियऍ $ णं पुण्णालि परज्जिय + +4697. घत्ता॒ + +4698. ---------- तेरहमो संधि ---------- + +4699. परिणेॅवि वलइ जाम ता थम्भिउ $ पुप्फविमाणु अम्वरे + +4700. सव्व-दिसावलोयणेण वि $ रत्तुप्पलम् इव णहङ्गणं + +4701. घत्ता॒ + +4702. तं मण्ड हरेवि पडीवउ $ जलु कु-कलत्तु व आणियउ + +4703. कण्ड १, संधि १३, कडवक ६॒ + +4704. दुवई + +4705. घत्ता॒ + +4706. गायइ गन्धव्वु मणोहरु $ रावणु रावणहत्थऍण + +4707. कण्ड १, संधि १३, कडवक ११॒ + +4708. दुवई + +4709. ---------- चउदहमो संधि ---------- + +4710. पल्लव-करयलु $ कुसुम-णहुज्जलु $ पइसरइ वसन्त-णरेसरु + +4711. घत्ता॒ + +4712. कण्ड १, संधि १४, कडवक ५॒ + +4713. वहु-वण्णुज्जलु $ णावइ णहयलु $ सुरधणु-घण-विज्जु-वलायहिॅ + +4714. घत्ता॒ + +4715. कण्ड १, संधि १४, कडवक १०॒ + +4716. एण पयारेॅण $ पिय-वावारेॅण $ थिउ सलिलेॅ पईसेॅवि णावइ" + +4717. घत्ता॒ + +4718. दाण-मयन्धेॅण $ गय-गन्धेॅण $ जेम मइन्दु वियट्टउ + +4719. कण्ड १, संधि १५, कडवक २॒ + +4720. पासु ण ढुक्कइ $ ते उल्लुक्कइ $ तिमिरु जेम दिवसयरहेॅ + +4721. घत्ता॒ + +4722. कण्ड १, संधि १५, कडवक ७॒ + +4723. जागु पणासेॅवि $ रिउ तासेॅवि $ मगहहँ मुक्कु पयाणउ + +4724. घत्ता॒ + +4725. कण्ड १, संधि १५, कडवक १२॒ + +4726. सामि णिसण्णहेॅ $ णउ अण्णहेॅ $ भेयहेॅ अवसरु वट्टइ + +4727. घत्ता॒ + +4728. कण्ड १, संधि १६, कडवक १॒ + +4729. षड्गुणाः के ते संधि-विग्रह-यानासन-संश्रय-द्वैधीभावाः. + +4730. कान्यष्टादश तीर्थानि मन्त्रि-पुरोहित-सेनापति-युवराज-दौवारिकान्तर्वशिक-प्रशस्तृ-समाहर्तृ-संविधातृ-प्रदेष्टृ-नायक-पौरव्यावहारिक-कर्मान्त्रिक-मन्त्रिपरिषड्-दण्डदुर्गान्तपालाटविकाः. + +4731. कण्ड १, संधि १६, कडवक ३॒ + +4732. पच्चेल्लिउ हुअवहु $ सुक्कउ पायउ सुहु डहइ" + +4733. घत्ता॒ + +4734. कण्ड १, संधि १६, कडवक ८॒ + +4735. तं कवणु दुलङ्घउ $ जं ण वि दिट्ठु दिवायरेॅण + +4736. घत्ता॒ + +4737. कण्ड १, संधि १६, कडवक १३॒ + +4738. णं विञ्झहेॅ उप्परि $ सरय-महाघणु पायडिउ + +4739. मन्तणऍ समत्तऍ $ दूऍ णियत्तऍ $ उभय-वलहँ अमरिसु चडइ + +4740. कण्ड १, संधि १७, कडवक २॒ + +4741. वम्मेॅहिॅ विन्धन्तउ $ जीविउ लिन्तउ $ कामिणि-हियउ वियड्ढु जिह + +4742. घत्ता॒ + +4743. कण्ड १, संधि १७, कडवक ७॒ + +4744. "अरेॅ अरिवर-मद्दण $ रावण-णन्दण $ उवरिं वलि चारहडि जइ" + +4745. घत्ता॒ + +4746. कण्ड १, संधि १७, कडवक १२॒ + +4747. वहु-कण्ड-पयारेॅहिॅ $ णं सूआरेॅहिॅ $ रइय रसोइ जमहेॅ तणिय + +4748. घत्ता॒ + +4749. कण्ड १, संधि १७, कडवक १७॒ + +4750. जय-सिरि-वहु मण्डेॅवि $ थिउ अवरुण्डेॅवि $ स इँ भु य-फलिहेॅहिॅ दहवयणु + +4751. आवइ वि पडीवउ जाम पहु $ ताणन्तरेॅ दिट्ठु अणन्तरहु + +4752. घत्ता॒ + +4753. कण्ड १, संधि १८, कडवक ४॒ + +4754. पभणिउ पहसिऍण णिएवि मुहु $ "किं दुव्वलिहुयउ कुमार तुह्ũ" + +4755. घत्ता॒ + +4756. कण्ड १, संधि १८, कडवक ९॒ + +4757. "अच्छन्तें अच्छिउ जीउ महु $ जन्तें जाएसइ पइँ जि सह्ũ" + +4758. घत्ता॒ + +4759. पच्छिम-पहरेॅ पहञ्जणेॅण $ आउच्छिय पिय पवसन्तऍण + +4760. णं तो का वि परिक्ख करेॅ $ परिसुज्झह्ũ जेण मज्झेॅ जणहेॅ" + +4761. घत्ता॒ + +4762. कण्ड १, संधि १९, कडवक ५॒ + +4763. "अण्ण-भवन्तरेॅ काइँ मइँ $ किउ दुक्किउ जें अणुहवमि दुहु" + +4764. घत्ता॒ + +4765. कण्ड १, संधि १९, कडवक १०॒ + +4766. हणुरुह-दीवेॅ पवड्ढियउ $ "हणुवन्तु" णामु तें तासु किउ + +4767. घत्ता॒ + +4768. कण्ड १, संधि १९, कडवक १५॒ + +4769. सिद्धहेॅ सासय-सिद्धि जिह $ तिह पइँ दक्खवमि समीरणहेॅ" + +4770. घत्ता॒ + +4771. कण्ड १, संधि २०, कडवक १॒ + +4772. छण-दिवसेॅ वलन्तउ $ किरण-फुरन्तउ $ तरुण-तरणि णं ससहरेॅण + +4773. घत्ता॒ + +4774. कण्ड १, संधि २०, कडवक ६॒ + +4775. अवियाणिय-काएं $ णं दुव्वाएं $ रवि मेहहँ मेल्लावियउ + +4776. घत्ता॒ + +4777. कण्ड १, संधि २०, कडवक ११॒ + +4778. विज्जाहर-कीलऍ $ णिय-णिय-लीलऍ $ पुरइँ स इं भु ञ्जन्त थिय + +4779. तीए लिहावियम् इणं $ वीसहिॅ आसासएहिॅ पडिवद्धं + +4780. पउमचरिउ/कण्ड २: + +4781. कण्ड २, संधि २१, कडवक १॒ + +4782. णाइँ समुद्द-महासिरिहेॅ $ थिय जलवाहिणि-पवाह समुह + +4783. घत्ता॒ + +4784. कण्ड २, संधि २१, कडवक ६॒ + +4785. जाणइ जणय-णराहिवेॅण $ तहिॅ कालेॅ वि अप्पिय राहवहेॅ + +4786. घत्ता॒ + +4787. कण्ड २, संधि २१, कडवक ११॒ + +4788. अवसें जणहेॅ अणिट्ठाइँ $ कुकलत्तइँ जेम सरासणइँ + +4789. घत्ता॒ + +4790. कण्ड २, संधि २२, कडवक १॒ + +4791. वरि तं कम्मु किउ $ जं पउ अजरामरु लब्भइ + +4792. घत्ता॒ + +4793. कण्ड २, संधि २२, कडवक ६॒ + +4794. केक्कय ताव मणेॅ $ उण्हालऍ धरणि व तप्पइ + +4795. घत्ता॒ + +4796. कण्ड २, संधि २२, कडवक ११॒ + +4797. पट्टु णिवद्धु सिरेॅ $ रहु-सुऍण स यं भु व-दण्डेॅहिॅ + +4798. घत्ता॒ + +4799. कण्ड २, संधि २३, कडवक ३॒ + +4800. लक्खण-राम-विओएं $ धाह मुएवि परुण्णउ + +4801. घत्ता॒ + +4802. कण्ड २, संधि २३, कडवक ८॒ + +4803. णं संसार-भएण $ जिणवर-सरणेॅ पइट्ठा + +4804. घत्ता॒ + +4805. कण्ड २, संधि २३, कडवक १३॒ + +4806. कु-मुणि कु-वुद्धि कु-सील $ णं पव्वज्जहेॅ भग्गा + +4807. गऍ वण-वासहेॅ रामेॅ $ उज्झ ण चित्तहेॅ भावइ + +4808. कण्ड २, संधि २४, कडवक २॒ + +4809. तिह जिउ विसयासत्तु $ रज्जें गउ सय-सक्करु" + +4810. घत्ता॒ + +4811. कण्ड २, संधि २४, कडवक ७॒ + +4812. तिह तुह्ũ भुञ्जहि रज्जु $ परिमिउ वन्धव-लोएं" + +4813. घत्ता॒ + +4814. कण्ड २, संधि २४, कडवक १२॒ + +4815. णावइ तिहि मि जणेहिॅ $ वालत्तणु संभरियउ + +4816. घत्ता॒ + +4817. कण्ड २, संधि २५, कडवक १॒ + +4818. कण्ड २, संधि २५, कडवक २॒ + +4819. कण्ड २, संधि २५, कडवक ३॒ + +4820. कण्ड २, संधि २५, कडवक ४॒ + +4821. कण्ड २, संधि २५, कडवक ५॒ + +4822. कण्ड २, संधि २५, कडवक ६॒ + +4823. जाणइ-करिणि-सहिय गय गिल्ल-गण्ड जेवा + +4824. तिहि मि जणेहिॅ वन्दिओ विविह-वन्दणेहिॅ + +4825. सो पडिहारु दिट्ठु सद्दत्थ-देसि-कुसलो + +4826. पुणु पुणु णेह-णिब्भरो चविउ तक्खणेणं + +4827. घत्ता॒ + +4828. पइठु भयाणणु $ गय-जूहेॅ जेम पञ्चाणणु + +4829. कण्ड २, संधि २५, कडवक १४॒ + +4830. उट्ठिउ धर दलन्तु दुव्वार-वइरि-वारो + +4831. घत्ता॒ + +4832. धरिउ णराहिउ $ गय-मत्थऍ पाउ थवेप्पिणु + +4833. कण्ड २, संधि २५, कडवक १९॒ + +4834. णं भय-भीय काणणे वुण्णुयण्ण हरिणी + +4835. एक्कहिॅ मिलियइँ $ णं गङ्गा-जउणहेॅ णीरइँ + +4836. घत्ता॒ + +4837. कण्ड २, संधि २६, कडवक ४॒ + +4838. अग्गऍ रामहेॅ $ णं थिउ कुसुमञ्जलि-हत्थउ + +4839. घत्ता॒ + +4840. कण्ड २, संधि २६, कडवक ९॒ + +4841. अण्णेक्कु वि पुणु $ पच्छण्ण णारि णर-वेसें + +4842. घत्ता॒ + +4843. कण्ड २, संधि २६, कडवक १४॒ + +4844. पुक्खर-जुज्झु व $ तं जल-कीलणउ स-लक्खणु + +4845. घत्ता॒ + +4846. कण्ड २, संधि २६, कडवक १९॒ + +4847. खणेॅ खणेॅ पहणइ $ सिर-कमलु स इं भु व-डालेॅहिॅ + +4848. घत्ता॒ + +4849. कण्ड २, संधि २७, कडवक ३॒ + +4850. जण-मण-कम्पावणु सर-पवणु $ हेमन्तु पढुक्किउ महुमहणु + +4851. घत्ता॒ + +4852. कण्ड २, संधि २७, कडवक ८॒ + +4853. "मुक्काउहु जो चलणेॅहिॅ पडइ $ तें णिहएं को जसु णिव्वडइ" + +4854. घत्ता॒ + +4855. कण्ड २, संधि २७, कडवक १३॒ + +4856. वरि अच्छिउ गम्पिणु गुहिल-वणेॅ $ णवि णिविसु वि णिवसिउ अवुहयणेॅ" + +4857. सीय स-लक्खणु दासरहि $ तरुवर-मूलेॅ परिट्ठिय जावेॅहिॅ + +4858. कण्ड २, संधि २८, कडवक २॒ + +4859. तरुवर-मूलेॅ स-सीय थिय $ जोगु लएविणु मुणिवर जेम + +4860. घत्ता॒ + +4861. कण्ड २, संधि २८, कडवक ७॒ + +4862. धम्में लइएं कवणु फलु $ एउ देव महु अक्खि पयत्तें" + +4863. घत्ता॒ + +4864. कण्ड २, संधि २८, कडवक १२॒ + +4865. वल-णारायण वे वि जण $ परितुट्ठ-मण $ जीवन्त-णयरु संपाइय + +4866. घत्ता॒ + +4867. कण्ड २, संधि २९, कडवक ४॒ + +4868. किलिकिलन्ति कोड्डावणिय $ भीसावणिय $ पच्चक्ख णाइँ वड-जक्खिणि + +4869. घत्ता॒ + +4870. कण्ड २, संधि २९, कडवक ९॒ + +4871. रहुकुल-णन्दणु लच्छि-हरु $ तउ जीवहरु $ णरवइ महु लक्खणु णामु + +4872. तहिॅ अवसरेॅ आणन्द-भरेॅ $ उच्छाह-करेॅ $ जयकारहेॅ कारणेॅ णिक्किउ + +4873. कण्ड २, संधि ३०, कडवक २॒ + +4874. मइँ मेल्लेॅवि भासुरऍ $ रण-सासुरऍ $ मा कित्ति-वहुअ परिणेसहि + +4875. घत्ता॒ + +4876. कण्ड २, संधि ३०, कडवक ७॒ + +4877. आयउ पासु जियाहवहेॅ $ तहेॅ राहवहेॅ $ "दे दइय-भिक्ख" मग्गन्तउ + +4878. घत्ता॒ + +4879. ---------- एक्कतीसमो संधि ---------- + +4880. ओहुल्लिय-वयणी $ पगलिय-णयणी $ थिय हेट्ठामुह विमण-मण + +4881. घत्ता॒ + +4882. कण्ड २, संधि ३१, कडवक ५॒ + +4883. णं गिलिउ जणद्दणु $ असुर-विमद्दणु $ एन्तउ णयर-णिसायरेॅण + +4884. घत्ता॒ + +4885. कण्ड २, संधि ३१, कडवक १०॒ + +4886. संकेयहेॅ ढुक्की $ थाणहेॅ चुक्की $ णावइ पर-तिय पर-णरेण + +4887. घत्ता॒ + +4888. कण्ड २, संधि ३१, कडवक १५॒ + +4889. णारायणु णारि वि $ थियइँ चयारि वि $ रज्जु स इं भु ञ्ज न्त इँ + +4890. घत्ता॒ + +4891. कण्ड २, संधि ३२, कडवक ३॒ + +4892. जहिॅ परिहूयाइँ $ संभूयाइँ $ णाणइँ सीयल-सेयंसह्ũ + +4893. घत्ता॒ + +4894. कण्ड २, संधि ३२, कडवक ८॒ + +4895. देसविहूसणहँ $ कुलभूसणहँ $ आयइँ उवसग्गु करन्तइँ + +4896. घत्ता॒ + +4897. कण्ड २, संधि ३२, कडवक १३॒ + +4898. स इं भु वणेसरहेॅ $ परमेसरहेॅ $ अत्थक्कऍ सेव कराविउ" + +4899. घत्ता॒ + +4900. कण्ड २, संधि ३३, कडवक ३॒ + +4901. तुम्हार-किलेसु $ सयलु णिरत्थु गउ" + +4902. घत्ता॒ + +4903. कण्ड २, संधि ३३, कडवक ८॒ + +4904. हुउ अवर-भवेण $ अग्गिकेउ अमरु + +4905. घत्ता॒ + +4906. कण्ड २, संधि ३३, कडवक १३॒ + +4907. महि-कण्डइँ तिण्णि $ स इं भु ञ्जेवाइँ" + +4908. घत्ता॒ + +4909. कण्ड २, संधि ३४, कडवक ३॒ + +4910. तो वि ण गरुवत्तणउ पगासिउ $ सच्चु सउत्तरु सव्वह्ũ पासिउ + +4911. घत्ता॒ + +4912. कण्ड २, संधि ३४, कडवक ८॒ + +4913. जाणइ-हरि-हलहरइँ पहिट्ठइँ $ तिण्णि वि दण्डारण्णु पइट्ठइँ + +4914. घत्ता॒ + +4915. कण्ड २, संधि ३४, कडवक १३॒ + +4916. देवेॅहिॅ दाण-रिद्धि खणेॅ दरिसिय वल-मन्दिरेॅ वसुहार पवरिसिय + +4917. घत्ता॒ + +4918. कण्ड २, संधि ३५, कडवक ४॒ + +4919. सुण्णें सुण्ण-वयणु सुण्णासणु $ सव्वु णिरत्थु वउद्धह्ũ सासणु" + +4920. घत्ता॒ + +4921. कण्ड २, संधि ३५, कडवक ९॒ + +4922. घोर-वीर-तवचरणु चरेप्पिणु $ आतावणेॅ तव-तवणु तवेप्पिणु + +4923. घत्ता॒ + +4924. कण्ड २, संधि ३५, कडवक १४॒ + +4925. एत्तिय-मत्तें अब्भुद्धरणउ $ महु मुयहेॅ वि जिणवरु सरणउ" + +4926. रहु कोड्डावणउ मणि-रयण-सहासेॅहिॅ घडियउ + +4927. कण्ड २, संधि ३६, कडवक २॒ + +4928. ताव समुच्छलेॅवि $ सिरु पडिउ स-मउडु स-कुण्डलु + +4929. घत्ता॒ + +4930. कण्ड २, संधि ३६, कडवक ७॒ + +4931. काइँ कियन्त किउ $ हा दइव कवण दिस लङ्घमि + +4932. कण्ड २, संधि ३६, कडवक १०॒ + +4933. जं कालन्तरिउ $ तं दुक्खु णाइँ उक्कोवइ" + +4934. घत्ता॒ + +4935. कण्ड २, संधि ३६, कडवक १५॒ + +4936. णिय-रूवें वड्ढिय रण-रसेॅ अड्ढिय रावण-रामह्ũ णाइँ कलि + +4937. घत्ता॒ + +4938. कण्ड २, संधि ३७, कडवक ४॒ + +4939. कें कज्जें रोवहि $ अप्पउ सोयहि $ भव-संसारहेॅ एह किय" + +4940. घत्ता॒ + +4941. कण्ड २, संधि ३७, कडवक ९॒ + +4942. जिम स-धउ स-साहणु $ स-भडु स-पहरणु $ गउ णिय-पुत्तहेॅ पाहुणउ" + +4943. घत्ता॒ + +4944. कण्ड २, संधि ३७, कडवक १४॒ + +4945. सुरवरेॅहिॅ पचण्डेॅहिॅ $ स इं भु व-दण्डेॅहिॅ $ कुसुम-वासु सिरेॅ पाडियउ + +4946. घत्ता॒ + +4947. कण्ड २, संधि ३८, कडवक ३॒ + +4948. जाव ण लइय मइँ $ कउ अङ्गहेॅ ताव सुहच्छिय" + +4949. घत्ता॒ + +4950. कण्ड २, संधि ३८, कडवक ८॒ + +4951. धाइउ दासरहि $ णहेॅ स-धणु णाइँ णव-जलहरु + +4952. घत्ता॒ + +4953. कण्ड २, संधि ३८, कडवक १३॒ + +4954. राहउ इह-भवहेॅ $ पर-लोयहेॅ जिणवरु सरणउ" + +4955. घत्ता॒ + +4956. कण्ड २, संधि ३८, कडवक १८॒ + +4957. धवलेॅहिॅ मङ्गलेॅहिॅ $ थिउ रज्जु स इं भु ञ्जन्तउ + +4958. घत्ता॒ + +4959. कण्ड २, संधि ३९, कडवक ३॒ + +4960. हम्मइ जिण-वयणोसहेॅण $ जें जम्म-सए वि ण ढुक्कइ" + +4961. घत्ता॒ + +4962. कण्ड २, संधि ३९, कडवक ८॒ + +4963. हड्ड-कलेवर-संचऍण $ गिरि मेरु सो वि अन्तरियउ + +4964. घत्ता॒ + +4965. ---------- चालीसमो संधि ---------- + +4966. चारु-रुचा-णएण $ वंदे देवं संसार-घोर-सासं + +4967. घत्ता॒ + +4968. साहारु ण वन्धइ $ गमणु ण सन्धइ $ णवलउ कामिणि-पेम्मु जिह + +4969. कण्ड २, संधि ४०, कडवक ५॒ + +4970. दुवई + +4971. घत्ता॒ + +4972. कसणङ्गय दीसिय $ विज्जु-विहूसिय $ णं णव-पाउसेॅ अम्वुहर + +4973. कण्ड २, संधि ४०, कडवक १०॒ + +4974. दुवई + +4975. दुवई + +4976. घत्ता॒ + +4977. हिम-वाएं दड्ढउ $ मयरन्दड्ढउ $ णं कोमाणउ कमल-वणु + +4978. कण्ड २, संधि ४०, कडवक १६॒ + +4979. दुवई + +4980. दुवई + +4981. णं खय-काल-छुह रावणहेॅ पडीवी धाइय + +4982. घत्ता॒ + +4983. कण्ड २, संधि ४१, कडवक ४॒ + +4984. एत्तिउ डाहु पर $ जं मइँ वइदेहि ण इच्छइ" + +4985. घत्ता॒ + +4986. कण्ड २, संधि ४१, कडवक ९॒ + +4987. काइँ ण अत्थि तउ $ जहेॅ आणवडिच्छउ रावणु" + +4988. घत्ता॒ + +4989. कण्ड २, संधि ४१, कडवक १४॒ + +4990. ताव णराहिवइ $ पडु राहवचन्दहेॅ पायहिॅ" + +4991. घत्ता॒ + +4992. ---------- बायालीसमो संधि ---------- + +4993. हũ सीयाएवि $ जणयहेॅ सुअ गेहिणि वलहेॅ + +4994. घत्ता॒ + +4995. कण्ड २, संधि ४२, कडवक ५॒ + +4996. चडु गयवर-खन्धेॅ $ लइ महएवि-पसाहणउ" + +4997. घत्ता॒ + +4998. कण्ड २, संधि ४२, कडवक १०॒ + +4999. दूइआउ आवन्ति जन्ति सयवार-वारओ + +5000. घत्ता॒ + +5001. कण्ड २, संधि ४२, कडवक १२॒ + +5002. वीअम् अउज्झा-कण्डं $ सयम्भू-घरिणीऍ लेहवियं + +5003. + +5004. उम्मेट्ठें लक्खण-गयवरेॅण $ णं विद्धंसिउ कमल-वणु + +5005. घत्ता॒ + +5006. कण्ड ३, संधि ४३, कडवक ५॒ + +5007. मुक्कङ्कुस मत्त गइन्द जिह $ ओसारिय कण्णारऍहिॅ + +5008. घत्ता॒ + +5009. कण्ड ३, संधि ४३, कडवक १०॒ + +5010. वेढिज्जइ तं किक्किन्धपुरु $ णं रवि-मण्डलु णव-घणेॅहिॅ + +5011. घत्ता॒ + +5012. कण्ड ३, संधि ४३, कडवक १५॒ + +5013. महु दिट्ठिऍ कुल-वहुआऍ जिह $ खलु पर-पुरिसु ण जाणियउ" + +5014. घत्ता॒ + +5015. ---------- चउयालीसमो संधि ---------- + +5016. थिउ मोक्ख-वारेॅ पडिकूलउ $ जीवहेॅ दुप्परिणामु जिह + +5017. घत्ता॒ + +5018. कण्ड ३, संधि ४४, कडवक ५॒ + +5019. "लहु एहु एहु" हक्कारइ $ णाइँ हत्थु सीयहेॅ तणउ + +5020. घत्ता॒ + +5021. कण्ड ३, संधि ४४, कडवक १०॒ + +5022. "किउ रत्तहेॅ तणउ कहाणउ $ भोयणु मुऍवि छाणु असिउ + +5023. घत्ता॒ + +5024. कण्ड ३, संधि ४४, कडवक १५॒ + +5025. पम्मुक्कु स इं भु व-दण्डेॅहिॅ $ कुसुम-वासु सिरेॅ लक्खणहेॅ + +5026. घत्ता॒ + +5027. कण्ड ३, संधि ४५, कडवक ३॒ + +5028. णाइँ महण्णवेॅ णम्मयऍ $ णिय-जलपवाहु पइसारिउ + +5029. घत्ता॒ + +5030. कण्ड ३, संधि ४५, कडवक ८॒ + +5031. अम्हह्ũ जउ रावणहेॅ खउ $ फुडु लक्खण-रामह्ũ पासिउ" + +5032. घत्ता॒ + +5033. कण्ड ३, संधि ४५, कडवक १३॒ + +5034. "पूरेॅ मणोरह राहवहेॅ $ वइदेहिहेॅ जाहि गवेसउ" + +5035. जं अङ्गुत्थलउ उवलद्धु राम-सन्देसउ + +5036. णाइँ सणिच्छरेॅण $ अवलोइउ णयरु महिन्दहेॅ + +5037. घत्ता॒ + +5038. कण्ड ३, संधि ४६, कडवक ५॒ + +5039. छिण्णु कइद्धऍण $ जिह भव-संसारु जिणिन्दें + +5040. घत्ता॒ + +5041. कण्ड ३, संधि ४६, कडवक १०॒ + +5042. णिय पह परिहरइ $ किं मणि चामियर-णिवद्धउ" + +5043. मारुइ पवर-विमाणारूढउ $ अहिणव-जयसिरि-वहु-अवगूढउ + +5044. कण्ड ३, संधि ४७, कडवक २॒ + +5045. गम्पि पइट्ठउ विउल-वणन्तरेॅ $ णाइँ ति-गुत्तिउ देहब्भन्तरेॅ + +5046. घत्ता॒ + +5047. कण्ड ३, संधि ४७, कडवक ७॒ + +5048. कोडि-सिल वि जो संचालेसइ $ सो वरइत्तहेॅ भाइउ होसइ" + +5049. घत्ता॒ + +5050. कण्ड ३, संधि ४८, कडवक १॒ + +5051. कण्ड ३, संधि ४८, कडवक २॒ + +5052. कण्ड ३, संधि ४८, कडवक ३॒ + +5053. कण्ड ३, संधि ४८, कडवक ४॒ + +5054. कण्ड ३, संधि ४८, कडवक ५॒ + +5055. कण्ड ३, संधि ४८, कडवक ६॒ + +5056. कण्ड ३, संधि ४८, कडवक ७॒ + +5057. कण्ड ३, संधि ४८, कडवक ८॒ + +5058. कण्ड ३, संधि ४८, कडवक ९॒ + +5059. कण्ड ३, संधि ४८, कडवक १०॒ + +5060. कण्ड ३, संधि ४८, कडवक ११॒ + +5061. कण्ड ३, संधि ४८, कडवक १२॒ + +5062. कण्ड ३, संधि ४८, कडवक १३॒ + +5063. कण्ड ३, संधि ४८, कडवक १४॒ + +5064. कण्ड ३, संधि ४८, कडवक १५॒ + +5065. ---------- एक्कूणपण्णासमो संधि ---------- + +5066. पवर-सरीरु पलम्व-भुउ (स-स-स-स-ग-ग-म-म-नि-नि-स-नि-धा) + +5067. "एउ विहीसण थाउ मणेॅ $ दुज्जय हरि-वल होन्ति रणेॅ + +5068. "पइँ होन्तेण वि चल-मणहेॅ $ वुद्धि ण हूअ दसाणणहेॅ + +5069. "अइरावय-कर-करयलेॅहिॅ $ कवण केलि सह्ũ हरि-वलेॅहिॅ + +5070. गम्पि दसाणणु एम भणु $ "विरुआरउ पर-तिय-गमणु + +5071. घत्ता॒ + +5072. णं गयण-मग्गेॅ उम्मिल्लिय $ चन्द-लेह वीयहेॅ तणिय + +5073. कण्ड ३, संधि ४९, कडवक ९॒ + +5074. दिहि परिवद्धिय सहि-जणहेॅ $ तियडऍ कहिउ दसाणणहेॅ + +5075. घत्ता॒ + +5076. णं सरवरेॅ सियहेॅ णिसण्णइँ $ सयवत्तइँ पप्फुल्लियइँ + +5077. कण्ड ३, संधि ४९, कडवक १४॒ + +5078. तो हũ इच्छमि एउ हलेॅ $ पुरि खिप्पन्ती उवहि-जलेॅ + +5079. घत्ता॒ + +5080. णं उत्तर-दाहिण-भूमिहिॅ $ मज्झेॅ परिट्ठिउ विञ्झइरि + +5081. कण्ड ३, संधि ४९, कडवक १९॒ + +5082. तं मन्दोअरि कुइय मणेॅ $ विज्जु पगज्जिय जिह गयणेॅ + +5083. अग्गऍ थिउ अहिसेय-करु णं सुरवर-लच्छिहेॅ मत्त-गउ + +5084. कण्ड ३, संधि ५०, कडवक २॒ + +5085. कञ्चुउ फुट्टेॅवि सय-कण्डु गउ $ णं खलु अलहन्तु विसिट्ठ-मउ + +5086. घत्ता॒ + +5087. काइँ ण पइँ अणुहूआइँ $ अवलोयणि-सीहणाय-फलइँ + +5088. कण्ड ३, संधि ५०, कडवक ७॒ + +5089. तहिॅ तेहऍ कालेॅ पगासियउ $ तियडऍ सिविणउ विण्णासियउ + +5090. घत्ता॒ + +5091. "गम्पिणु अक्खु विहीसणहेॅ $ वुच्चइ सीयहेॅ करि पारणउ + +5092. कण्ड ३, संधि ५०, कडवक १२॒ + +5093. "वल तुज्झु विओएं जणय-सुय $ थिय लीह-विसेस ण कह वि मुअ + +5094. णं सुर-करि कमलिणि-वणहेॅ मारुइ वलिउ समुहु उज्जाणहेॅ + +5095. जोव्वणु जेम विलासिणिहेॅ $ वणु दरमलमि अज्जु जिह सक्कमि" + +5096. कण्ड ३, संधि ५१, कडवक ३॒ + +5097. कण्ड ३, संधि ५१, कडवक ४॒ + +5098. दुवई + +5099. धाइउ एक्कदन्तु गलगज्जेॅवि णं गयवरहेॅ गयवरो + +5100. घत्ता॒ + +5101. लउडि-पहारें घाइयउ $ पडिउ फणिन्दु णाइँ महि-मण्डलेॅ + +5102. कण्ड ३, संधि ५१, कडवक १०॒ + +5103. दुवई + +5104. घत्ता॒ + +5105. हणुवहेॅ वलु सु-कलत्तु जिह $ पिट्टिज्जन्तु वि मग्गु ण मेल्लइ + +5106. कण्ड ३, संधि ५१, कडवक १५॒ + +5107. विणिवाइऍ साहणेॅ $ भग्गऍ उववणेॅ $ णं हरि हरिहेॅ समावडिउ + +5108. कण्ड ३, संधि ५२, कडवक २॒ + +5109. पर एक्कु परिग्गहु $ णाहिॅ अवग्गहु $ पइँ समाणु पहरेवाहेॅ + +5110. घत्ता॒ + +5111. कण्ड ३, संधि ५२, कडवक ७॒ + +5112. जोइज्जइ इन्दें $ सह्ũ सुर-विन्दें $ णावइ छाया-पेक्खणउ + +5113. घत्ता॒ + +5114. कण्ड ३, संधि ५३, कडवक १॒ + +5115. अज्ज वि तं साहणु $ गहिय-पसाहणु $ ते जि गय + +5116. घत्ता॒ + +5117. तो वि धरेप्पिणु $ तुम्हहँ समक्खु वित्थारमि + +5118. धणु-गुण-टङ्कारवेॅ $ कलयल-रउरवेॅ $ कुइय-भडेॅ + +5119. रहेॅ चडिउ तुरन्तउ $ जय-कारन्तउ $ परम-जिणु + +5120. घत्ता॒ + +5121. जेहिॅ धरिज्जइ $ समरङ्गणेॅ इन्दु वि भिडियउ" + +5122. कण्ड ३, संधि ५३, कडवक ७॒ + +5123. विडसुग्गीव-राहवा $ विजय-लाहवा $ णाइँ "हणु" भणन्ता + +5124. घत्ता॒ + +5125. उत्तर-दाहिण $ णं दिस-गइन्द अब्भिडिया + +5126. कण्ड ३, संधि ५३, कडवक १२॒ + +5127. हणुवन्त-कुमारु $ पवर-भुअङ्गोमालियउ + +5128. सीयहेॅ णयणाइँ $ विण्णि मि अंसु-जलोल्लियइँ + +5129. कण्ड ३, संधि ५४, कडवक ३॒ + +5130. आणिय सीय ण एह पइँ $ णिय-कुल-वंसहेॅ मारि" + +5131. घत्ता॒ + +5132. पर रक्खइ एक्कु $ अहिंसा-लक्खणु धम्मु पर + +5133. कण्ड ३, संधि ५४, कडवक ८॒ + +5134. अप्पहि सिय म गाहु करि $ मं पडि णरय-समुद्देॅ + +5135. घत्ता॒ + +5136. सीयहेॅ वरि तो वि $ हूउ विरत्तीभाउ ण वि + +5137. कण्ड ३, संधि ५४, कडवक १३॒ + +5138. तो वरि जाणवि परिहरहि $ किज्जइ तहेॅ अणुकूलु + +5139. घत्ता॒ + +5140. स इँ भु व-जुवलेण $ किउ जयकारु जिणेसरहेॅ + +5141. घत्ता॒ + +5142. कण्ड ३, संधि ५५, कडवक ३॒ + +5143. दहमुह-जीविउ जेम $ वरि एमहिॅ घरु उप्पाडमि" + +5144. घत्ता॒ + +5145. कण्ड ३, संधि ५५, कडवक ८॒ + +5146. अण्णु मि तं अहिणाणु $ कुढेॅ लग्गु देव जं भाइहेॅ" + +5147. घत्ता॒ + +5148. ---------- छप्पण्णासमो संधि ---------- + +5149. सरि-सोत्तेॅहिॅ आवेॅवि आवेॅवि $ सलिलु समुद्दहेॅ जिह मिलइ + +5150. घत्ता॒ + +5151. कण्ड ३, संधि ५६, कडवक ५॒ + +5152. "जं वूढउ मइँ सिरु खन्धेॅण $ तं होसइ पहु अवसरहेॅ" + +5153. घत्ता॒ + +5154. कण्ड ३, संधि ५६, कडवक १०॒ + +5155. गउ गयहेॅ मइन्दु मइन्दहेॅ $ जिह ओरालेॅवि अब्भिडिउ + +5156. घत्ता॒ + +5157. कण्ड ३, संधि ५६, कडवक १५॒ + +5158. + +5159. झत्ति महीहर-सिहरु जिह $ णिवडिउ हियउ दसाणण-रायहेॅ + +5160. घत्ता॒ + +5161. कण्ड ४, संधि ५७, कडवक ४॒ + +5162. जइ तहेॅ अप्पिय जणय-सुय $ तो हũ ण वहमि इन्दइ णामु" + +5163. घत्ता॒ + +5164. कण्ड ४, संधि ५७, कडवक ९॒ + +5165. अम्हह्ũ काइँ महाहवेॅण $ परु जेॅ परेण जाउ सय-सक्करु" + +5166. घत्ता॒ + +5167. कण्ड ४, संधि ५८, कडवक १॒ + +5168. वायरणु सुणन्तह्ũ $ सन्धि करन्तह्ũ $ ऊदन्ताइ-णिवाउ जिह" + +5169. घत्ता॒ + +5170. कण्ड ४, संधि ५८, कडवक ६॒ + +5171. जें पन्थें अक्खउ $ णिउ दुप्पेक्खउ $ तेण पाव पइँ पट्ठवमि"" + +5172. घत्ता॒ + +5173. कण्ड ४, संधि ५८, कडवक ११॒ + +5174. उद्धूसिय-केसरु $ णहर-भयङ्करु $ जिह पञ्चमुहु महग्गयहेॅ + +5175. घत्ता॒ + +5176. ---------- एक्कुणसट्ठिमो संधि ---------- + +5177. घत्ता॒ + +5178. रण-रसियहेॅ रोमञ्चुब्भिण्णहेॅ $ उरेॅ सण्णाहु ण माइउ अण्णहेॅ + +5179. कण्ड ४, संधि ५९, कडवक ४॒ + +5180. घत्ता॒ + +5181. एवमाइ सण्णहेॅवि विणिग्गय $ पञ्चाणण-रह पञ्चाणण-धय + +5182. कण्ड ४, संधि ५९, कडवक ८॒ + +5183. पुक्खर-पुप्फचूड-घण्टाउह-प्पिहङ्गा (हेलादुवई) + +5184. घत्ता॒ + +5185. कण्ड ४, संधि ६०, कडवक १॒ + +5186. तासु विसालह्ũ $ णयणह्ũ तं वलु केत्तिउ + +5187. घत्ता॒ + +5188. कण्ड ४, संधि ६०, कडवक ६॒ + +5189. कन्त-वसन्त-कोन्त-कोलाहल-कोमुइवयण-वासणी + +5190. घत्ता॒ + +5191. कण्ड ४, संधि ६०, कडवक ९॒ + +5192. विजउ ण जाणह्ũ $ किं रावणेॅ किं राहवेॅ" + +5193. घत्ता॒ + +5194. कण्ड ४, संधि ६१, कडवक १॒ + +5195. गुणवन्तहेॅ $ पाहुडु कन्तहेॅ $ को वि लेइ मुत्ताहलइँ + +5196. घत्ता॒ + +5197. कण्ड ४, संधि ६१, कडवक ६॒ + +5198. हलेॅ धावहि काइँ गहिल्लिऍ $ ऍहु भत्तारु महु त्तणउ + +5199. घत्ता॒ + +5200. कण्ड ४, संधि ६१, कडवक ११॒ + +5201. जय-लच्छि देउ आलिङ्गणु $ जिम रामहेॅ जिम रामणहेॅ" + +5202. घत्ता॒ + +5203. कण्ड ४, संधि ६२, कडवक १॒ + +5204. सीयहेॅ मणेॅ परिओसु $ णिसियर-वलहेॅ अमङ्गलु + +5205. घत्ता॒ + +5206. कण्ड ४, संधि ६२, कडवक ६॒ + +5207. जेण ण ढुक्कइ कन्तेॅ $ जम्मेॅवि अयस-कलङ्कउ" + +5208. घत्ता॒ + +5209. वरिसमि सर-धारेहिॅ $ पर-वलेॅ पलउ करन्तउ" + +5210. घत्ता॒ + +5211. कण्ड ४, संधि ६२, कडवक १४॒ + +5212. सण्णद्धइँ $ राम-दसाणण-साहणइँ + +5213. घत्ता॒ + +5214. कण्ड ४, संधि ६३, कडवक ४॒ + +5215. सञ्चूरेॅवि $ हड्डहँ पोट्टलु णवर कउ + +5216. घत्ता॒ + +5217. कण्ड ४, संधि ६३, कडवक ९॒ + +5218. मुसुमूरेॅवि $ जीविउ छुद्धु कयन्त-मुहेॅ + +5219. घत्ता॒ + +5220. कण्ड ४, संधि ६४, कडवक १॒ + +5221. विहिॅ को गरुआरउ किज्जइ $ एक्कु वि जिणइ ण जिज्जइ + +5222. घत्ता॒ + +5223. कण्ड ४, संधि ६४, कडवक ६॒ + +5224. पर-वलेॅ पइसरइ महव्वलु $ विञ्झेॅ जेम दावाणलु + +5225. घत्ता॒ + +5226. कण्ड ४, संधि ६४, कडवक ११॒ + +5227. विन्धेप्पिणु महियलेॅ पाडिउ $ णह-सिरि-हारु व तोडिउ + +5228. घत्ता॒ + +5229. ---------- पंचसट्ठिमो संधि ---------- + +5230. सङ्गाम-महि $ रुण्ड-णिरन्तर तहिॅ जेॅ तहिॅ + +5231. घत्ता॒ + +5232. कण्ड ४, संधि ६५, कडवक ५॒ + +5233. रहु रहवरहेॅ $ गयहेॅ महग्गउ अब्भिडिउ + +5234. घत्ता॒ + +5235. कण्ड ४, संधि ६५, कडवक १०॒ + +5236. किर कवणु जसु $ जुज्झन्तह्ũ सह्ũ पित्तिऍण" + +5237. घत्ता॒ + +5238. कण्ड ४, संधि ६६, कडवक १॒ + +5239. गय-गिरिवरेॅहिॅ $ ताम समुट्ठिय रुहिर-णइ + +5240. घत्ता॒ + +5241. घत्ता॒ + +5242. कण्ड ४, संधि ६६, कडवक ७॒ + +5243. कें सक्कियउ $ गण्ण गणेप्पिणु राणाह्ũ + +5244. घत्ता॒ + +5245. कण्ड ४, संधि ६६, कडवक १२॒ + +5246. दुप्पुत्त जिह $ छ वि रहवर णिप्फल गय (?) + +5247. लक्खणेॅ सत्तिऍ विणिभिण्णऍ $ लङ्क पइट्ठऍ दहवयणेॅ + +5248. कण्ड ४, संधि ६७, कडवक २॒ + +5249. हय-विहि विच्छोउ करेप्पिणु $ कवण मणोरह पुण्ण तउ" + +5250. घत्ता॒ + +5251. कण्ड ४, संधि ६७, कडवक ७॒ + +5252. थिउ एवहिॅ सूडिय-वक्खउ $ जं जाणहि तं देव करेॅ" + +5253. घत्ता॒ + +5254. कण्ड ४, संधि ६७, कडवक १२॒ + +5255. णं हियवउ सीयहेॅ केरउ $ अचलु अभेउ दसाणणहेॅ + +5256. घत्ता॒ + +5257. कण्ड ४, संधि ६८, कडवक १॒ + +5258. जाउ विसल्लु पुणण्णवउ $ णं णेहु विलासिणिकेरउ + +5259. घत्ता॒ + +5260. कण्ड ४, संधि ६८, कडवक ६॒ + +5261. तं माणुसु घुम्मावियउ $ दुक्करु णिय-जीविउ पावइ + +5262. घत्ता॒ + +5263. कण्ड ४, संधि ६८, कडवक ११॒ + +5264. णव-मयलञ्छण-लेह जिह $ सउदासें दीसइ तावेॅहिॅ + +5265. विज्जाहर-वयण-रसायणेॅण $ आसासिउ वलहद्दु किह + +5266. कण्ड ४, संधि ६९, कडवक २॒ + +5267. जो लवलि-वलहेॅ चन्दण-सरहेॅ $ दाहिण-पवणहेॅ थामलउ + +5268. घत्ता॒ + +5269. कण्ड ४, संधि ६९, कडवक ७॒ + +5270. तउ होन्तु ताव जिण-केराइँ $ पुण्ण-पवित्तइँ मङ्गलइँ" + +5271. घत्ता॒ + +5272. कण्ड ४, संधि ६९, कडवक १२॒ + +5273. कारुण्णऍ कव्व-कहाऍ जिह $ को व ण अंसु मुआवियउ" + +5274. घत्ता॒ + +5275. कण्ड ४, संधि ६९, कडवक १७॒ + +5276. अत्थक्कऍ ढुक्क भवित्ति जिह $ लङ्कहेॅ रज्जहेॅ रावणहेॅ + +5277. घत्ता॒ + +5278. कण्ड ४, संधि ६९, कडवक २२॒ + +5279. तूरहँ सद्दु सुणेवि $ सूलेण व भिण्णु दसाणणु + +5280. कण्ड ४, संधि ७०, कडवक २॒ + +5281. दुवई + +5282. घत्ता॒ + +5283. किण्ण पडीवउ आउ $ सरहसु सण्णहेॅवि दसाणणु + +5284. कण्ड ४, संधि ७०, कडवक ७॒ + +5285. दुवई + +5286. घत्ता॒ + +5287. जं जाणहि तं चिन्तेॅ $ आयउ खय-कालु णिरुत्तउ + +5288. कण्ड ४, संधि ७०, कडवक १२॒ + +5289. हरि-हलहर-गुण-गहणेॅहिॅ दूअहेॅ वयणेॅहिॅ पहु पहरेव्वउ परिहरइ + +5290. कण्ड ४, संधि ७१, कडवक २॒ + +5291. अट्ठावय-कम्पावणु $ सरहसु रावणु $ गउ सन्तिहरहेॅ सम्मुहउ + +5292. घत्ता॒ + +5293. कण्ड ४, संधि ७१, कडवक ७॒ + +5294. दिण्णु विहञ्जेॅवि राएं $ णं अणुराएं $ हियउ सव्वु अन्तेउरहेॅ + +5295. घत्ता॒ + +5296. णासग्गाणिय-लोअणु $ अणिमिस-जोअणु थिउ $ मणेॅ अचलु झाणु धरेॅवि + +5297. घत्ता॒ + +5298. कण्ड ४, संधि ७१, कडवक १५॒ + +5299. पुणु वि समुण्णय-खग्गा $ पच्छलेॅ लग्गा $ जाव पत्त रिउ राम-वलु + +5300. पुण वि पडीवऍहिॅ $ जिणु जयकारेॅवि विक्कम-सारेॅहिॅ + +5301. घत्ता॒ + +5302. घत्ता॒ + +5303. घत्ता॒ + +5304. घत्ता॒ + +5305. घत्ता॒ + +5306. घत्ता॒ + +5307. घत्ता॒ + +5308. घत्ता॒ + +5309. घत्ता॒ + +5310. घत्ता॒ + +5311. घत्ता॒ + +5312. घत्ता॒ + +5313. घत्ता॒ + +5314. घत्ता॒ + +5315. पडह टिविला य ढड्ढड्ढरी झल्लरी भम्भ भम्भीस कंसाल-कोलाहला + +5316. मुहल-चल-णेउरुग्घाय-झङ्कार-वाहित्त-मज्झाणुलग्गन्त-हंसेहिॅ चुक्कन्त-हेलागई-णिग्गमं + +5317. घत्ता॒ + +5318. कण्ड ४, संधि ७३, कडवक १॒ + +5319. णावइ सयल-दिसाउ $ उण्णय-मेहाउ महीहरहेॅ + +5320. घत्ता॒ + +5321. कण्ड ४, संधि ७३, कडवक ६॒ + +5322. उण्णय-मेह-णिसण्णु $ लक्खिज्जइ विज्जु-विलासु जिह + +5323. घत्ता॒ + +5324. कण्ड ४, संधि ७३, कडवक ११॒ + +5325. णउ णिग्गुणु वय-हीणु $ माणुसु उप्पण्णु महीहेॅ भरु + +5326. घत्ता॒ + +5327. कण्ड ४, संधि ७४, कडवक १॒ + +5328. घत्ता॒ + +5329. हाहा-रउ उट्ठियउ $ छिण्ण कुहिणि घण-कसण-णाऍण + +5330. तं सुणेप्पिणु भणइ दहवयणु + +5331. सो जइ आरूसमि दहवयणु $ तो हरि-वल सण्ढ कवणु गहणु" + +5332. दिण्ण तार सुग्गीवहेॅ सिल संचालिय + +5333. पर-पक्खेॅ पसंसियऍ $ दस-सिरेहिॅ दससिरु पलित्तउ + +5334. कण्ड ४, संधि ७४, कडवक ६॒ + +5335. घत्ता॒ + +5336. कण्टइएं रावणेॅण $ उरेॅ ण मन्तु सण्णाहु परिहिउ + +5337. दसहिॅ कण्ठेॅहिॅ दस जेॅ कण्ठाइँ + +5338. वहु-कण्ठउ वहु-करु वि वहु-पउ $ णं णट्ट-पुरिसु रस-भाव-गउ + +5339. "देव देव णं णं ऍहु रहेॅ थिउ रावणु" + +5340. थिउ लक्खणु गरुड-रहेॅ $ गारुडत्थु गारुड-महद्धउ + +5341. कण्ड ४, संधि ७४, कडवक ११॒ + +5342. घत्ता॒ + +5343. अहव वि मुच्छावियहेॅ $ अन्धयारु जीउ व्व मेल्लिउ + +5344. सो ण सन्दणु सो ण मायङ्गु + +5345. पज्जलइ वलइ धूमाइ रणु $ णं जुग-खय-कालेॅ काल-वयणु + +5346. पलय-धूमकेउ व धूमन्त-दिसामुहु + +5347. राहव-रावण-वलह्ũ $ करण-वन्ध-सर-पहर-णिउणह्ũ + +5348. कण्ड ४, संधि ७४, कडवक १६॒ + +5349. घत्ता॒ + +5350. कड्ढेॅवि मुत्ताहलइँ $ करेॅवि धूलि धवलेइ णावइ + +5351. तहिॅ महाहवेॅ अमिउ हणुवस्स + +5352. दणु-दारण-पहरण-संजुऍहिॅ $ पहरन्त परोप्परु स इँ भु ऍहिॅ + +5353. दुवई + +5354. दुवई + +5355. दुवई + +5356. दुवई + +5357. दुवई + +5358. दुवई + +5359. दुवई + +5360. दुवई + +5361. दुवई + +5362. दसरह-णन्दणेण ते छिण्ण णहेॅ च्चिय पडिय पडिवहं + +5363. सो वि वलुद्धुरेण रामेण पयङ्ग-सरेण णिज्जिओ + +5364. विण्णि वि दिण्ण-सङ्ख करि-केसरि-जोत्तिय-पवर-सन्दणा + +5365. णिसियर-कुल-कियन्तु हũ अच्छमि रावण वाहेॅ रहवरं + +5366. दह-दाहिण-करेहिॅ दह-वयणें दह कड्ढिय महा-सरा + +5367. माया-महिहरो वि मुसुमूरिउ दारुण-वज्ज-दण्डेॅणं + +5368. तं तं सर-सएहिॅ विणिवारइ अद्ध-वहेॅ ज्जेॅ लक्खणो + +5369. तो लच्छीहरेण सरु मेल्लिउ माया-उवसमावणो + +5370. "मरु मरु" "पहरु पहरु" पभणन्तइँ उब्भड-भिउडि-भीसइं + +5371. "दुक्करु थत्ति एत्थु रणेॅ होसइ" णहेॅ वोल्लन्ति सुरवरा + +5372. माया-रावणेण वोल्लिज्जइ "जइ जीवेण कारणं + +5373. तीरिय-तोमरेहिॅ णाराऍहिॅ तहेॅ वि वला समागयं + +5374. दुन्दुहि दिण्ण मुक्क कुसुमञ्जलि साहुक्कारु घोसिउ + +5375. लोअ-पाल सच्छन्द थिय $ दुन्दुहि पहय पणच्चिउ णारउ + +5376. घत्ता॒ + +5377. कण्ड ४, संधि ७६, कडवक ४॒ + +5378. रत्तउ परिहेॅवि पङ्गुरेॅवि $ थिय रावण-अणुमरणें णावइ + +5379. घत्ता॒ + +5380. कण्ड ४, संधि ७६, कडवक ९॒ + +5381. तो इ महारउ वज्जमउ $ हियउ ण वे-दलु होइ णिरासु" + +5382. घत्ता॒ + +5383. कण्ड ४, संधि ७६, कडवक १४॒ + +5384. सुर वि स इं भु व णह्ũ चलिय $ लङ्क पइट्ठ कइद्धय-णामह्ũ + +5385. ढुक्कु कइद्धय-सत्थउ $ जहिॅ रावणु पल्हत्थउ + +5386. घत्ता॒ + +5387. सय-सय-वारउ $ रोवहि काइँ विहीसण तासु" + +5388. कण्ड ४, संधि ७७, कडवक ५॒ + +5389. भीसणु विविह-पयारउ $ उट्ठिउ हाहाकारउ + +5390. घत्ता॒ + +5391. तो वि डहेव्वउ $ हुयवहेॅ पइँ समाणु अप्पाणु" + +5392. कण्ड ४, संधि ७७, कडवक १०॒ + +5393. किं दहगीवहेॅ गीवउ $ णिज्जीवाउ सजीवउ + +5394. घत्ता॒ + +5395. "अण्णु कहिं महु $ चुक्कइ" एव णाइँ सिहि जम्पइ + +5396. कण्ड ४, संधि ७७, कडवक १५॒ + +5397. जिणेॅवि वला वलवन्तहेॅ $ भग्गु मरट्टु जयन्तहेॅ + +5398. घत्ता॒ + +5399. पीलेॅवि पीलेॅवि $ कलुणु महा-रसु णाइँ लइन्ति + +5400. कण्ड ४, संधि ७७, कडवक २०॒ + +5401. + +5402. अट्ठसत्तरिमो संधि + +5403. गय-दिवसेॅ भडारा होन्तु जइ $ तो मरन्तु किं दहवयणु" + +5404. घत्ता॒ + +5405. कण्ड ५, संधि ७८, कडवक ५॒ + +5406. अहिसेय-समऍ सिरि-देवयहेॅ $ दिग्गय विण्णि णाइँ मिलिय + +5407. घत्ता॒ + +5408. कण्ड ५, संधि ७८, कडवक १०॒ + +5409. स-कलत्तु स-लक्खणु स-वलु वलु $ णिउ णिय-णिलउ विहीसणेॅण + +5410. घत्ता॒ + +5411. कण्ड ५, संधि ७८, कडवक १५॒ + +5412. अच्छइ कन्दन्ति स-वेयणिय $ णन्दिणि जिह विणु तण्णऍण" + +5413. घत्ता॒ + +5414. कण्ड ५, संधि ७८, कडवक २०॒ + +5415. वुद्धिहेॅ ववसायहेॅ विहिहेॅ $ णं पुण्ण-णिवहु सवडम्मुहउ + +5416. घत्ता॒ + +5417. कण्ड ५, संधि ७९, कडवक ४॒ + +5418. णं हिमगिरि-णव-जलहरहँ $ अब्भन्तरेॅ विज्जुल विप्फुरइ + +5419. घत्ता॒ + +5420. कण्ड ५, संधि ७९, कडवक ९॒ + +5421. देवर थोडी वार वरि $ अच्छह्ũ जल-कील करन्ताइँ" + +5422. घत्ता॒ + +5423. कण्ड ५, संधि ७९, कडवक १४॒ + +5424. दिण्ण विहञ्जेॅवि सयल महि $ सामन्तह्ũ जीवणु + +5425. घत्ता॒ + +5426. कण्ड ५, संधि ८०, कडवक ४॒ + +5427. अज्जु भडारा छ-द्दिवस $ उज्जाणु पइट्ठहेॅ + +5428. घत्ता॒ + +5429. कण्ड ५, संधि ८०, कडवक ९॒ + +5430. मलय-महिन्द-महीहरेॅहिॅ $ णं वण-यव लग्गा + +5431. घत्ता॒ + +5432. ---------- एक्कासीइलो संधि ---------- + +5433. पाण-पियल्लिया $ तेॅण तेॅण तेॅण चित्तें + +5434. जम्भेट्टिया + +5435. जम्भेट्टिया + +5436. जम्भेट्टिया + +5437. जम्भेट्टिया + +5438. जम्भेट्टिया + +5439. जम्भेट्टिया + +5440. जम्भेट्टिया + +5441. जम्भेट्टिया + +5442. जम्भेट्टिया + +5443. जम्भेट्टिया + +5444. जम्भेट्टिया + +5445. जम्भेट्टिया + +5446. जम्भेट्टिया + +5447. जम्भेट्टिया + +5448. सुरवर-डामर-डामरेॅहिॅ $ ससहर-चक्कङ्किय-णामह्ũ + +5449. कण्ड ५, संधि ८२, कडवक २॒ + +5450. "स-गिरि स-सायर सयल महि $ भुञ्जेज्जहु महु आसीसऍ" + +5451. घत्ता॒ + +5452. कण्ड ५, संधि ८२, कडवक ७॒ + +5453. "सउ सट्ठुत्तरु जोयणहँ $ साकेय-महापुरि एत्थहेॅ" + +5454. घत्ता॒ + +5455. कण्ड ५, संधि ८२, कडवक १२॒ + +5456. रण-भोयणु भुञ्जन्तऍण $ वे मुहइँ कियइँ णं कालें + +5457. घत्ता॒ + +5458. कण्ड ५, संधि ८२, कडवक १७॒ + +5459. वाहिर-विद्धु कलत्तु जिह $ परिभमेवि पुणु पुणु आवइ + +5460. लवणङ्कुस पुरेॅ पइसारेॅवि $ जिय-रयणियर-महाहवेॅण + +5461. कण्ड ५, संधि ८३, कडवक २॒ + +5462. जो दुज्जसु उप्परेॅ घित्तउ $ एउ ण जाणहेॅ एक्कु पर" + +5463. घत्ता॒ + +5464. कण्ड ५, संधि ८३, कडवक ७॒ + +5465. रयणायरु खारइँ देन्तउ $ तो वि ण थक्कइ णम्मयहेॅ + +5466. घत्ता॒ + +5467. कण्ड ५, संधि ८३, कडवक १२॒ + +5468. "सिहि सङ्कइ डहेॅवि ण सक्कइ $ पेक्खु पहाउ सइत्तणहेॅ" + +5469. घत्ता॒ + +5470. कण्ड ५, संधि ८३, कडवक १७॒ + +5471. तं आसणु जाव णिहालइ $ जणय-तणय तहिॅ ताव ण वि + +5472. घत्ता॒ + +5473. ---------- चउरासीमो संधि ---------- + +5474. जें जम्महेॅ लग्गेॅवि दुस्सहइँ $ पत्त महन्त-दुक्ख-सयइँ" + +5475. घत्ता॒ + +5476. कण्ड ५, संधि ८४, कडवक ५॒ + +5477. इय सव्वरि-समऍ दुसञ्चरेॅ $ किह परिपिज्जइ सलिलु तहिॅ + +5478. घत्ता॒ + +5479. कण्ड ५, संधि ८४, कडवक १०॒ + +5480. तहेॅ फलेॅण णरिन्दहेॅ णन्दणु $ पुणु एत्थु जेॅ पुरेॅ हूउ हũ + +5481. घत्ता॒ + +5482. कण्ड ५, संधि ८४, कडवक १५॒ + +5483. वलिमण्डऍ ण समिच्छन्तिहेॅ $ किउ तहेॅ सीलहेॅ कण्डणउ + +5484. घत्ता॒ + +5485. कण्ड ५, संधि ८४, कडवक २०॒ + +5486. राउल-णिहाउ दुग्घरिणिहिॅ $ पिसुण-सहासें साहु-जणु + +5487. घत्ता॒ + +5488. कण्ड ५, संधि ८४, कडवक २५॒ + +5489. इय रामएव-चरिए $ वन्दइआसिय-सयम्भु-सुअ-रइए + +5490. कण्ड ५, संधि ८५, कडवक १॒ + +5491. हेला + +5492. हेला + +5493. घत्ता॒ + +5494. ताव खणेण वरि $ अजरामर-देसहेॅ गम्मइ + +5495. कण्ड ५, संधि ८५, कडवक ७॒ + +5496. हेला + +5497. घत्ता॒ + +5498. सत्ति-हउ (?) जाऍ रणेॅ $ परिरक्खिउ लक्खण-केसरि" + +5499. कण्ड ५, संधि ८५, कडवक १२॒ + +5500. वन्दइआसिय-महकइ-सयम्भु- $ लहु-अङ्गजाय-विणिवद्धे + +5501. ह्रुवकम् + +5502. घत्ता॒ + +5503. कण्ड ५, संधि ८६, कडवक ४॒ + +5504. णव-कमल-दलच्छिउ $ सरसइ-लच्छिउ $ णाइँ समागयउ + +5505. णं आउह-धारउ $ दिण्ण-पहारउ $ मुच्छावन्तियउ + +5506. धीसोहग्ग-भग्ग-रहिय $ जाह्ũ तेत्थु जहिॅ जणेॅण ण दीसह्ũ" + +5507. घत्ता॒ + +5508. कण्ड ५, संधि ८६, कडवक १०॒ + +5509. पासेॅ महव्वल-मुणिवरहँ $ लइय दिक्ख णीसेसह्ũ तक्खणेॅ + +5510. घत्ता॒ + +5511. कण्ड ५, संधि ८६, कडवक १५॒ + +5512. तं तिल-मित्तु वि किं पि ण वि $ जासु ण दीसइ भुवणेॅ विणासु + +5513. घत्ता॒ + +5514. कइरायस्स विजयसेसियस्स $ वित्थारिउ जसो भुवणे + +5515. सेसम्मि जग-पसिद्धे $ छायासीमो इमो सग्गो + +5516. कण्ड ५, संधि ८७, कडवक १॒ + +5517. तं पणवहेॅ सइँ सव्वायरेॅण $ जइ इच्छहेॅ भव-मरण-खउ + +5518. घत्ता॒ + +5519. कण्ड ५, संधि ८७, कडवक ६॒ + +5520. आढत्तु पणय-कुवियइँ करेॅवि $ सव्वेॅहिॅ सुट्ठु सणेहिणिहिॅ + +5521. घत्ता॒ + +5522. कण्ड ५, संधि ८७, कडवक ११॒ + +5523. पइँ विणु लक्खण खेमञ्जलिहेॅ $ कहेॅ लग्गइ जियपउम करेॅ + +5524. घत्ता॒ + +5525. कण्ड ५, संधि ८७, कडवक १६॒ + +5526. वणसइउ णइउ मह-जलहि गिरि $ रोवाविय वर विसहर वि + +5527. तिहुअण-सयम्भु-रइए $ हरि-मरणं णाम पव्वम् इणं + +5528. ---------- अट्ठासीमो संधि ---------- + +5529. घत्ता॒ + +5530. कण्ड ५, संधि ८८, कडवक ३॒ + +5531. वहहि सरीरु जेण अविसिट्ठउ $ कहेॅ फलु काइँ एत्थु पइँ दिट्ठउ" + +5532. घत्ता॒ + +5533. कण्ड ५, संधि ८८, कडवक ८॒ + +5534. णिय-खन्धहेॅ महियलेॅ ओयारिउ $ सरऊ-सरिहेॅ तीरेॅ संकारिउ + +5535. घत्ता॒ + +5536. कण्ड ५, संधि ८८, कडवक १३॒ + +5537. वन्दइआसिय-कइराय- $ चक्कवइ-लहु-अङ्गजाय-वज्जरिए + +5538. तो अवहिऍ जाणेॅवि तेत्थु $ राहउ मुणि थियउ + +5539. तं कोडि-सिला-यलु पत्तु $ णिविसब्भन्तरेॅण + +5540. घत्ता॒ + +5541. कण्ड ५, संधि ८९, कडवक ५॒ + +5542. थिउ णिच्चलु रामु मुणिन्दु $ णावइ मेरु-गिरि + +5543. घत्ता॒ + +5544. कण्ड ५, संधि ८९, कडवक १०॒ + +5545. जें पुणु वि ण पावह्ũ एह $ भीसण णरय-गइ" + +5546. घत्ता॒ + +5547. रामायणस्स सेसे $ एसो सग्गो णवीसमो + +5548. परमेसर कहेॅ सङ्खेवेॅण $ दसरह-राणउ केत्थु हुउ + +5549. कण्ड ५, संधि ९०, कडवक २॒ + +5550. वज्जय-असोय-तिलएसर $ जोयणाइँ पञ्चास गय + +5551. घत्ता॒ + +5552. कण्ड ५, संधि ९०, कडवक ७॒ + +5553. होसन्ति पडीवा वेण्णि वि $ ताहेॅ जेॅ विजयावइ-पुरिहेॅ + +5554. घत्ता॒ + +5555. कण्ड ५, संधि ९०, कडवक १२॒ + +5556. वन्दइआसिय-तिहुयण- $ सयम्भु-परिविरइयम्मि मह-कव्वे + +5557. प्रशस्तिगाथाः. + +5558. मनोविज्ञान के जनक विलियम जेम्स + +5559. 3 लोक प्रशासन मूलतः मानवीय सहयोग से सम्बंधित है”-यह कथन है- + +5560. भारत में संयुक्त सलाहकार परिषद की स्थापना किसकी सिफारिश पर की गई थी ? + +5561. + +5562. + +5563. "'उत्तर : + +5564. "'उत्तर : + +5565. '"उत्तर : + +5566. '"उत्तर : + +5567. '"उत्तर : + +5568. "'उत्तर : + +5569. '"उत्तर : + +5570. '"उत्तर : + +5571. "'उत्तर : + +5572. '"उत्तर : + +5573. "'उत्तर : + +5574. '"उत्तर : + +5575. '"उत्तर : + +5576. '"उत्तर : + +5577. '"उत्तर : + +5578. "'उत्तर : + +5579. '"उत्तर : + +5580. '"उत्तर : + +5581. '"उत्तर : + +5582. "'उत्तर : + +5583. '"उत्तर : + +5584. "'उत्तर : + +5585. '"उत्तर : + +5586. "'उत्तर : + +5587. '"उत्तर : + +5588. "'उत्तर : + +5589. '"उत्तर : + +5590. "'उत्तर : + +5591. '"उत्तर : + +5592. "'उत्तर : + +5593. '"उत्तर : + +5594. "'उत्तर : + +5595. '"उत्तर : + +5596. वैज्ञानिक हिंदी पत्रिका: + +5597. लेखक द्वारा प्रावरण पत्र/घोषणा पत्र की अनिवार्य प्रस्तुति: + +5598. लेखक के नाम और संबद्धता (कार्यालय का पता): प्रत्येक लेखक के पूर्ण नामों को स्पष्ट रूप से बताएं और जांच लें कि सभी नामों की सही वर्तनी हैं। नाम के नीचे लेखकों के संबद्धता पते (जहां वास्तविक कार्य किया गया था) प्रस्तुत करें। सभी लेखकों के ई-मेल को इंगित करें। + +5599. सामग्री और विधि: काम को पुन: प्रस्तुत करने की अनुमति देने के लिए पर्याप्त विवरण प्रदान करें। पहले से ही प्रकाशित किए गए तरीकों को एक संदर्भ से सूचित किया जाना चाहिए। केवल उपयोग किये गए उपकरण, सॉफ्टवेयर, डेटा संग्रह विधि का उल्लेख किया जाना चाहिए। + +5600. उदाहरण: + +5601. + +5602. भारत में आईटी शिक्षा- उम्मीद बनाम वास्तविकता + +5603. वस्तुपरक: वैज्ञानिक, राष्ट्रीय भाषा हिंदी में विज्ञान विषय पर प्रकाशित लेखों की तिमाही पत्रिका है. जिसका प्रकाशन ‘हिंदी विज्ञान साहित्य परिषद’, मुंबई द्वारा किया जाता है. इसमें पर्यावरण, प्राकृतिक विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, और परमाणु विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के शांतिपूर्ण उपयोग पर आधारित लेख शामिल हैं। इस पत्रिका में विभिन्न अनुभार्गों में लेख जैसे संपादकीय, शोध पत्र, समीक्षा लेख, लघु लेख, विज्ञान समाचार, अन्वेषण नोट, विज्ञान प्रश्नोत्तरी, भेंटवार्ता इत्यादि पर विज्ञान विशेषज्ञों, इंजीनियरों, विज्ञान शिक्षाविदों और छात्रों के लाभार्थ लेख प्रकाशित होते है। + +5604. पांडुलिपियां जमा करना: + +5605. कुंजीश्ब्द (Keywords): भरतीय वर्तनी का उपयोग करके अधिकतम 6 कीवर्ड प्रदान करें, सामान्य और बहुवचन शब्दों और कई अन्य अवधारणाओं से बचें। ('और', 'के' व शब्द-संक्षेप) से बचें। इन कीवर्ड को अनुक्रमण उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाएगा। + +5606. तालिकायें /आंकड़े/चित्रण: तालिकाओं को पूरक-पाठ में दी गई जानकारी को डुप्लिकेट नहीं करना चाहिए। संक्षिप्त शीर्षक के साथ तालिका में स्पष्ट रूप से संख्यात्मक क्रम में टेक्स्ट में निर्दिष्ट किया जाना चाहिए। कॉलम शीर्षकों को संक्षिप्त, बोल्ड और माप की इकाइयां कोष्ठकों में शीर्षकों के नीचे रखा जाना चाहिए। सभी तालिकायें और ग्राफ शीर्षक के साथ उपलब्ध होने चाहिए। सभी आंकड़े (चार्ट, चित्र, रेखा चित्र, और फोटोग्राफिक छवियां) उच्च गुणवत्ता की होनी चाहिए। + +5607. 1. Devasagayam, T.P.A.; Tilak, J.C.; Boloor, K.K.; Sane, K.S.; Ghaskadbi, S.S.; Lele, R.D. (2014) Free radicals and antioxidants in human health: Current status and future prospects; Journal of Association of Physicians of India , Vol. 52 (10) , October 2004, Pages 794-804 + +5608. उर्दू भाषा/बे समूह: + +5609. ب + +5610. टे. + +5611. उर्दू भाषा/बे समूह/बे: + +5612. यदि बे के अंत में अलिफ़ जोड़ें + +5613. इसमें जीम समूह के अक्षरों के बारे में बताया गया है। + +5614. چ + +5615. रे समूह के अक्षर केवल अपने आगे वाले अक्षरों से ही जुडते हैं और बाद वाले अक्षरों से नहीं जुड़ते हैं। + +5616. सामान्य भूगोल/प्रदूषण: + +5617. प्रदूषण की समस्या. + +5618. वायु प्रदूषण के कुछ सामान्य कारण हैं- + +5619. जल प्रदूषण के प्रभाव. + +5620. वर्षा से भूमि की संरचना का बिगड़ना, दिन-प्रतिदिन उर्वरकों का प्रयोग, चूहे मारने की दवा आदि का प्रयोग तथा फसलों को बीमारी से बचाने के लिये दवा का छिड़काव भूमि की उर्वरकता को नष्ट कर देता है तथा ऐसा प्रदूषण मृदा प्रदूषण कहलाता है। + +5621. प्रारम्भिक जीवविज्ञान: + +5622. 5- सिवेसियस ग्रंथियां रोम पुटिकाओं से लगी होती हैं। इनसे तैलीय पदार्थ सीबम श्रावित होता है जो बालों को चिकना एवं जलरोधी बनाये रखता है। + +5623. 10- जठर ग्रंथियां अमाशय में स्थित होती हैं जिनसे जठर रस स्रावित होता है। जठर रस में पेप्सिन (प्रोटीन पाचक), लाइपेज (वसा पाचक) तथा रेनिन एंजाइम पाए जाते हैं। + +5624. 15- प्रोटीन शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम मुल्डर ने किया था। प्रोटीन के निर्माण की इकाई एमिनो अम्ल है। यह 20 प्रकार का होता है। + +5625. 20- विटामिन D की कमी से सुखा (रिकेट्स) तथा आस्टियोमैलेसिया रोग हो जाता है। + +5626. 25- स्वांगीकरण – अवशोषित भोज्य पदार्थ कोशिकाओं में पहुचकर कोशाद्रव्य के ही अंश बनकर उसमे विलीन हो जाते हैं। इस क्रिया को स्वांगीकरण कहते हैं। + +5627. 30- ग्लाइकोलिसिस की क्रिया कोशिकाद्रव्य में होती है तथा इसके अन्त में ग्लूकोज से पाइरुविक अम्ल के दो अणु बनते हैं। + +5628. 35- रुधिर की उत्पत्ति भ्रूण के मिसोडर्म से होती है। + +5629. 40- दायें अलिंद-निलय छिद्र पर स्थित कपाट को त्रिवलन कपाट कहते हैं यह कपाट रक्त को अलिंद से निलय को ओर तो जाने देता है लेकिन वापस अलिंद में नहीं आने देता। + +5630. 45- लाल रुधिर कणिकाओं में हिमोग्लोबिन पाया जाता है जिसके कारण रुधिर का रंग लाल दिखाई देता है। हिमोग्लोबिन का प्रमुख कार्य आक्सीजन का परिवहन करना है। + +5631. 50- प्लाज्मा रुधिर का तरल भाग होता है। यह रुधिर का 55% होता है। प्लाज्मा में लगभग 90% जल होता है। + +5632. 55- ह्रदय चारो ओर से ह्रदयवर्णी (पेरीकार्डियम) झिल्ली से घिरा रहता है, जिसमें ह्रदयवर्णी (पेरीकार्डियल) द्रव भरा रहता है जो ह्रदय को घर्षण से बचाता है। + +5633. 60- वाष्पोत्सर्जन की दर को मापने वाले उपकरण को पोटोमीटर कहते हैं। + +5634. 65- रसारोहण के सम्बन्ध में डिक्सन तथा जौली का सिद्धांत – इसे वाष्पोत्सर्जन- ससंजन तनाव सिद्धांत भी कहते हैं। यह सिद्धांत तीन तथ्यों पर आधारित है – + +5635. 70- '"साइटोकाईनिन के कार्य – + +5636. 75- अग्नाशय ग्रंथि एक मिश्रित ग्रंथि है। इस ग्रंथि की लैंगरहेन्स की द्विपिकाओं की बीटा कोशिकाओं द्वारा इन्सुलिन नामक हार्मोन स्रावित होता है जिसकी कमी से मधुमेह रोग हो जाता है तथा अल्फ़ा कोशिकाओं द्वारा ग्लुकागान हार्मोन स्रावित होता है। इन्सुलिन ग्लूकोज को ग्लाइकोजन में बदलता है। + +5637. 80- '"कायिक जनन – + +5638. 85- "'भारत में जनसँख्या वृद्धि के कारण :- + +5639. 90- चाय के पौधे का वैज्ञानिक नाम थिया साईंनेन्सिस है। चाय में थिन एवं कैफीन नामक एल्केलायड पाया जाता है। + +5640. 95- मेंडल ने अपने प्रयोग मीठी मटर (पाइसम सैटाइवाम) पर किये थे। + +5641. 100- संकर पूर्वज संकरण – जब संकर संतान (F1) एवं किसी शुद्ध जनक के बीच संकरण कराया जाता है, तो उसे परिक्षण संकरण कहते हैं इससे पौधों का जिनोटाईप ज्ञात किया जाता है। + +5642. 105- "'समयुग्मजी तथा विषमयुग्मजी + +5643. 110- सुजननीकी – व्यावहारिक आनुवंशिक वह शाखा जिसके अंतगर्त आनुवंशिक के सिद्धांतों की सहायता से मानव की भावी पीढ़ियों में लक्षणों की वंशागति को नियंत्रित करके मानव जाति को सुधारने का अध्ययन किया जाता है सुजननीकी कहलाती है। सर फ्रांसिस गैल्टन को सुजननीकी का जनक कहा जाता है। + +5644. 115- गुणसूत्र – केन्द्रकद्रव्य में स्थित क्रोमेटिनजाल कोशिका विभाजन के समय सिकुड़कर मोटे हो जाते हैं, जो गुणसूत्र कहलाते हैं। इनकी खोज स्ट्रांसबर्गर ने किया तथा वाल्डेयरने इन्हें क्रोमोसोम नाम दिया। + +5645. 120- गुणसूत्र अनुवांशिक लक्षणों के वाहक होते हैं, इन्हें वंशागति का भौतिक आधार कहते हैं। + +5646. 125- जिनी अभियांत्रिकी – अनुवांशिक पदार्थ डीएनए की संरचना में हेर-फेर करने को जीनी अभियांत्रिकी कहते हैं। इसकी नींव नाथन एवं स्मिथ ने 1970 में डाली। + +5647. 130- कोएसरवेट्स का नाम ओपेरिन ने दिया था। कोएसरवेट्स आदि सागर में बनी जटिल कार्बनिक (प्रोटीन) कोलायडी संरचना थी। सिडनी फाक्स ने इसी प्रकार की रचना को माइक्रोस्फीयर नाम दिया था। + +5648. 134- अवशेषी अंग – जन्तुओ में निष्क्रिय या अनावश्यक अंगो को अवशेषी अंग कहते हैं। मनुष्य में 100 से अधिक अवशेषी अंग हैं। + +5649. जैसे – मनुष्य के हाथ, घोड़े की अगली टांग, चिड़िया के पंख इत्यादि। + +5650. अर्थशास्त्र प्रश्नसमुच्चय-०१: + +5651. विज्ञान के महत्वपूर्ण प्रशन: + +5652. Terms and definitions collated from the following sources: + +5653. अधिवर्ष (adhivarṡa) + +5654. अहोरात्रासु (ahorātrāsu) + +5655. अक्षजीवा (akṣajīvā) + +5656. अनादेश्यग्रहण (anādeśyagrahaṇa) + +5657. अनुलोम (anuloma) + +5658. अपमण्डल (apamaṇḍala) + +5659. असवः (asavaḥ) + +5660. अस्तमय (astamaya) + +5661. अवमशेष (avamaśeṡa) + +5662. अयन (ayana) + +5663. बाहु (bāhu) + +5664. भभ्रम (bhabhrama) + +5665. भपञ्जर (bhapañjara) + +5666. भोग्यकाल (bhogyakāla) + +5667. भूदिवस (bhūdivasa) + +5668. भुजाज्या (bhujājyā) + +5669. भुक्ति (bhukti) + +5670. बीज (bīja) + +5671. चक्रलिप्ता (cakraliptā) + +5672. चलोच (caloca) + +5673. चान्द्रवर्श (cāndravarśa) + +5674. चापक्षेत्र (cāpakṣetra) + +5675. चरज्या (carajyā) + +5676. चतुरस्र (caturasra) + +5677. छायाकर्ण (chāyākarṇa) + +5678. देशन्तरघटी (deśantaraghaṭī) + +5679. धरा (dharā) + +5680. ध्रुवसूत्र (dhruvasūtra) + +5681. दिनगण (dinagaṇa) + +5682. दोर्ज्या (dorjyā) + +5683. दृक्ज्या (dṛkjyā) + +5684. दृक्क्षेपज्या (dṛkkṣepajyā) + +5685. द्यूगण (dyūgaṇa) + +5686. गणित (gaṇita) + +5687. घनभूमध्य (ghanabhūmadhya) + +5688. घटी (ghaṭī) + +5689. ग्रह (graha) + +5690. ग्रहणमध्य (grahaṇamadhya) + +5691. गुणक (guṇaka) + +5692. हऽय (ha'ya) + +5693. हृति (hṛti) + +5694. इष्ठशङ्कु (iṣṭhaśaṅku) + +5695. जात्य (jātya) + +5696. ज्या (jyā) + +5697. कदम्बसूत्र (kadambasūtra) + +5698. कालांश (kālāṃśa) + +5699. करणी (karaṇī) + +5700. खगोल (khagola) + +5701. कोणमण्डल (कोणवृत्त) (koṇamaṇḍala (koṇavṛtta) + +5702. कोटिज्या (koṭijyā) + +5703. क्रान्तिज्या (krāntijyā) + +5704. क्षयमास (अंहस्पतिमास) (kṣayamāsa (aṃhaspatimāsa) + +5705. क्षेत्रफल (kṣetraphala) + +5706. क्षितिजा (kṣitijā (also known as kṣitijyā) + +5707. कुवायु (kuvāyu) + +5708. लक्षज्या (lakṣajyā) + +5709. लम्बन (lambana) + +5710. मध्य (madhya) + +5711. मध्यज्या (madhyajyā) + +5712. मध्यर्क्रान्ति (madhyarkrānti) + +5713. मैत्र (maitra) + +5714. मन्दकर्ण (mandakarṇa) + +5715. मन्दान्त्यफलज्या (mandāntyaphalajyā) + +5716. मन्दस्फुट (mandasphuṭa) + +5717. मन्दोच्चफल (mandoccaphala) + +5718. मीमांसा (mīmāṃsā) + +5719. मुख (mukha) + +5720. नागरी (nāgarī (also called deva-nāgarī) + +5721. नतभाग (natabhāga) + +5722. नतकालज्या (natakālajyā) + +5723. नेमि (nemi) + +5724. निरक्षजाः (असवः) (nirakṣajāḥ (asavaḥ)) + +5725. पल (pala) + +5726. परकर्ण (parakarṇa) + +5727. परमापक्रमजीवा (paramāpakramajīvā) + +5728. परिणाह (pariṇāha) + +5729. पश्चार्ध (paścārdha) + +5730. पौस्ण (pausṇa) + +5731. प्राक्कल्प (prākkalpa) + +5732. प्रतिमण्डल (केन्द्रवृत्त) (pratimaṇḍala (kendravṛtta) + +5733. पृष्ठफल (prṣṭhaphala) + +5734. पूर्वापरासूत्र (pūrvāparāsūtra) + +5735. रवि (ravi) + +5736. ऋजुभुज (ṛjubhuja) + +5737. सकृत (sakṛta) + +5738. समदलकोटि (samadalakoṭi) + +5739. '"समानलम्ब (samānalamba (or samalamba) + +5740. समसूत्र (samasūtra) + +5741. संसर्प (saṃsarpa) + +5742. सपाटसूर्य (sapāṭasūrya) + +5743. सौरमास (sauramāsa) + +5744. सवनह (savanaha) + +5745. शकाब्द (śakābda) + +5746. शङ्कुवेध (śaṅkuvedha) + +5747. शीघ्र (śīghra) + +5748. शीघ्रपरिधि (śīghraparidhi) + +5749. शीघ्रोच्च (śīghrocca) + +5750. शृङ्गोन्नति (śṛṅgonnati) + +5751. शुन्य (śunya) + +5752. सितपक्ष (sitapakṣa) + +5753. स्फुट (sphuṭa) + +5754. स्फुटक्रान्ति (sphuṭakrānti) + +5755. स्फुटयोजनकर्ण (sphuṭayojanakarṇa) + +5756. सूचीक्षेत्र (sūcīkṣetra) + +5757. स्वदेशोदय (svadeśodaya) + +5758. तन्त्र (tantra) + +5759. तिथि (tithi) + +5760. त्र्यस्र (tryasra) + +5761. उच्चनीचपरिवर्त (uccanīcaparivarta) + +5762. उदयजीवा (udayajīvā (also known as udayajyā) + +5763. उन्मण्डल (unmaṇḍala) + +5764. उत्क्रमण (utkramaṇa (also known as utkramajyā) + +5765. वैधृत (vaidhṛta) + +5766. वाक्य (vākya) + +5767. वर्ण (varṇa) + +5768. वेध (vedha) + +5769. विक्षेपज्या (vikṣepajyā) + +5770. विलोम (viloma) + +5771. विन्मण्डल (vinmaṇḍala) + +5772. विषमचतुर्भुज (viṣamacaturbhuja) + +5773. विष्कम्भदल (viṣkambhadala) + +5774. विषुवत् (विषुवत् वृत्त) (viṣuvat (viṣuvat vṛtta) + +5775. वियत् (viyat) + +5776. व्यास (vyāsa) + +5777. व्योम (vyoma) + +5778. योगभाग (yogabhāga) + +5779. युग (yuga) + +5780. भारतीय भाषों के संरक्षण एवं संवर्धन की आवश्यकता: + +5781. + +5782. (4) चरकसंहिता के ‘प्रतिसंस्कर्ता’ कौन हैं? + +5783. (9) निम्नलिखित में से कौन सा स्थान चरक संहिता में हैं? + +5784. (14) चरक संहिता पर लिखित कुल संस्कृत टीकाएं हैं- + +5785. (19) चरक संहिता पर रचित ‘चरकन्यास’ टीकाके टीकाकार कौन है। + +5786. (24) चरकसंहिता की ‘चरक प्रकाश कौस्तुभ’ टीका के टीकाकार का काल है ? + +5787. (29) आत्रेय के शिष्यों की संख्या कितनी हैं। + +5788. (34) आचार्य चरक वर्तमान भारत वर्ष के किस राज्य के निवासीथे। + +5789. (39) चरक संहिता में 'उत्तर तंत्र' शामिल था - ऐसा किसने कहा है। + +5790. (44) ‘उभयाभिप्लुता’चिकित्सा किसका योगदान हैं। + +5791. (49) अथातो दीर्घ×जीवितीयमध्यायं व्याख्यास्यामः। - इस सूत्र में कितने पद है। + +5792. (54) चरक संहिता के अनुसार इन्द्र के पास आयुर्वेद का ज्ञान प्राप्त करने कौन गया था। + +5793. (59) ‘हिताहितं सुखं दुःखमायुस्तस्य हिताहितम्। मानं चतच्च यत्रोक्तमायुर्वेदः स उच्यते।’- यह आयुर्वेद की ... है। + +5794. (64) परादि गुणोंकी संख्या हैं ? + +5795. (69) सात्विक गुणो में शामिल नही हैं। + +5796. (74) द्रव्य के भेद होते है। + +5797. (79) आचार्य चरक ने ‘षटपदार्थ’ क्या कहा हैं। + +5798. (85) मानसिक दोषों की संख्या है। + +5799. (90) आचार्य चरक ने कफ के कितने गुण बतलाए हैं। + +5800. (95) रस के विशेष ज्ञान में कारणहै। + +5801. (100) चरकानुसार औद्भिदद्रव्यों के प्रयोज्यांग होते है। + +5802. (105) सुश्रुतानुसार ‘जिसमें पुष्प और फलदोनों आते है’ - वह स्थावर कहलाता है। + +5803. (110) चरकोक्त 19 फलिनी द्रव्यों में शामिल नहीं है ? + +5804. (115) महास्नेह की संख्याहै। + +5805. (120) अष्टमूत्र के संदर्भ में ‘लाघवं जातिसामान्ये स्त्रीणां, पुंसां च गौरवम्’ - किस आचार्य का कथन है। + +5806. (125) वाग्भट्टानुसार मूत्र होता है। + +5807. (130) किसकामूत्र ‘पथ्य’ होता है। + +5808. (135) पाण्डुरोगेऽम्लपित्ते च शोषे गुल्मे तथोदरे। अतिसारे ज्वरे दाहे च श्वयथौ च विशेषतः। - किसके लिए कहा है। + +5809. (140) चरकानुसार अश्मन्तक का प्रयोग किसमें निर्दिष्टहै। + +5810. (145) यथा विषं यथा शस्त्रं यथाग्निरशर्नियथा। - किसका कथन हैं। + +5811. (150) शिरोविरेचनार्थ ‘अपामार्ग’ का प्रयोज्यांग है ? + +5812. (155) चरक संहिता में सर्वप्रथम ’पंचकर्म’ शब्द कौनसे अध्याय मेंआया है। + +5813. (160) यवानां यमके पिप्पल्यामलकैः श्रृता। - यवागू का कर्महै। + +5814. (165) ताम्रचूडरसे सिद्धा ...। + +5815. (170) चरक संहिता मे बर्हिपरिमार्जन द्रव्यों से सम्बधित अध्याय है। + +5816. (175) शिरीष और सिन्धुवार के लेप होता हैं ? + +5817. (180) चरक ने विरेचन द्रव्यों के कितने आश्रय बतलाए है। + +5818. (185) स्वरसः, कल्कः, श्रृतः, शीतः फाण्टः कषायश्चेति। ...। + +5819. (190) चरकके पंचाशन्महाकषाय में स्थापन महाकषायों की संख्या है। + +5820. (195) चरकोक्त जीवनीय महाकषाय में अष्टवर्ग के कितने द्रव्य शामिल है। + +5821. (200) चरकोक्त ज्वरहर दशेमानि के मध्य में किसको ग्रहण नहीं किया है। + +5822. (205) ’स्तन्यशोधन महाकषाय’ में सम्मिलित नहीं है। + +5823. (210) अशोकका वर्णन चरकोक्त किस दशेमानि वर्ग में है। + +5824. (215) चरक संहिता में वर्णित 'पुरीष संग्रहणीय' महाकषाय के द्रव्य है। + +5825. (220) ’भिषग्वर’का वर्णन चरक संहिता के किस अध्याय में है। + +5826. (225) ’वल्लूर’ शब्द का चक्रपाणिकृत अर्थ हैं ? + +5827. (230) चरक संहिता के किस अघ्याय में ’सद्वृत्त’ का वर्णन किया गया है। + +5828. (235) चरक ने प्रायोगिक धूमवर्ती की लम्बाई बतलायी है। + +5829. (240) 12 वर्ष से पूर्व और 80 वर्ष के बाद धूम्रपान निषेध किसने बतलाया है। + +5830. (245) चरकानुसार ‘अणुतैल’ की निर्माण प्रक्रिया मे तैल का कितनी बार पाक किया जाता हैं ? + +5831. (250) ‘दन्तशोधन चूर्ण’ का वर्णन किस आचार्य ने कियाहैं। + +5832. (255) चक्रपाणि के अनुसार ‘कटुक’ किसका पर्याय हैं ? + +5833. (260) चरक के अनुसार ‘दृष्टिः प्रसादं’ है। + +5834. (265) चरक के मत से ‘आदान काल’में कौनसी ऋतुए शामिल होती है। + +5835. (270) ‘हेमन्त ऋतु’ में कौन से रस की उत्पत्ति होती हैं ? + +5836. (276)‘वर्जयेदन्नपानानि वातलानि लघूनि च’ - सूत्र किस ऋतु के लिये कहा गया है। + +5837. (281)‘प्राग्वात (पूर्वीवायु)’ का निषेध किस ऋतु के लिये कहा गया है। + +5838. (286) ’जांगलान्मृगपक्षिणः मांस’ कानिर्देश किस ऋतु में है। + +5839. (291) चरक के मत से ‘कवलग्रह तथा अंजन’का प्रयोग किस ऋतु मे करना चाहिए। + +5840. (297) चरकानुसार ‘दिवास्वप्न’ किस-किस ऋतु मे वर्जनीयहै। + +5841. (303) वाग्भट्ट निम्न में से कौनसा अधारणीय वेग नहींमाना है। + +5842. (308) चरकानुसार पुरीषवेगनिग्रह किसकी चिकित्सा का क्रमहै। + +5843. (313) ‘रूक्षान्नपान’का निर्देश किसकी चिकित्सा में है। + +5844. (318) ’शिरोरोग’ किसके वेगनिग्रह का लक्षण है। + +5845. (323) ’भ्रम’ किसके वेगनिग्रह का लक्षण है। + +5846. (328) जृम्भा वेगधारण मे कौनसी चिकित्सा की जाती है। + +5847. (333) ‘स्तेय’ किसका धारणीय वेग है। + +5848. (338) व्यायाम करने से मेद का क्षय होता है - यह किस आचार्य ने कहा है। + +5849. (343) 'वातिकाद्याः सदाऽऽतुराः'- किसका कथनहै। + +5850. (348) चरक संहिता में ‘दोष प्रकृति’ का वर्णन किस अध्याय में हैं। + +5851. (353) ‘चक्षु’है। + +5852. (358) मन का अर्थ है। + +5853. (363) इन्द्रियों को अंहकारिककिसने माना है। + +5854. (368) ’श्रृते पर्यवदातत्वं‘ किसका गुण है। + +5855. (373) राजार्ह वैद्य के ज्ञान है ? + +5856. (378) निम्नलिखित में कौनसा वर्ग गुण या दोष उत्पन्न करने के लिए पात्र की अपेक्षा करता हैं। + +5857. (383) नातिपूर्ण चतुष्पदम् - किसका लक्षण है। + +5858. (388) ...द्विदोषजम्। + +5859. (392) चरकानुसार ‘प्रथम एषणा’ है। + +5860. (397) ’‘बुद्धि पश्यति या भावान् बहुकारणयोगजान।'- किसके लिए कहा गया है। + +5861. (402) ‘आहार, स्वप्न तथा ब्रह्मचर्य’ - किस आचार्य के अनुसार त्रय उपस्तम्भ हैं। + +5862. (407) चरकानुसार त्रिविध रोग है। + +5863. (412) 'शोष, राजयक्ष्मा' कौनसे मार्गज व्याधियॉ हैं। + +5864. (417) प्रयोग ज्ञान विज्ञान सिद्धि सिद्धाः सुखप्रदाः। - किस वैद्य के गुण है। + +5865. (422) प्राकृत शरारस्थ वायु का कर्म नहीं है। + +5866. (427) चरकानुसार ज्ञान-अज्ञान में कौनसा दोष उत्तरदायी होता है। + +5867. (432) आचार्य सुश्रुत ने ’भगवान्’ संज्ञा किसे दी है। + +5868. (437) ’तैल का सेवन’ का निर्देश किस ऋतु में है। + +5869. (442) चरकानुसार ’योनिविशोधन’ किसका कार्य है। + +5870. (447) चरकानुसार स्नेह की प्रविचारणायेहोती है। + +5871. (452) अतिसार मेंस्नेह की कौनसी मात्रा प्रयुक्त होती है। + +5872. (457) संशोधन हेतु स्नेह की कौनसी मात्रा प्रयुक्त होती है। + +5873. (462) अस्थि-सन्धि-सिरा-स्नायु-मर्मकोष्ठ महारूजः - में किसका प्रयोग करना चाहिए है। + +5874. (468) चरकानुसार स्नेह व्यापदों की संख्या है ? + +5875. (473) ’प्रस्कन्दन’ किसका पर्याय है। + +5876. (478) स्वेदन के अतियोग में ग्रीष्म ऋतु में वर्णित मधुर, स्निग्ध एंव शीतल आहार विहार चिकित्सा किसने बतलायी है + +5877. (483) चरकानुसार किसमें स्वेदन का निषेध है। + +5878. (488) नाडी स्वेद मे नाडी की आकृति होती है। + +5879. (493) चरकसंहिता के स्वेदाध्याय में कितने स्वेद संग्रह बताए गए है। + +5880. (499) चरकसंहिता के उपकल्पनीय अध्याय में वर्णित संसर्जन क्रम में वमनविरेचन की प्रधानशुद्धि में सर्वप्रथम देय है। + +5881. (504) संशोधन के अतियोग की चिकित्सा हैं। + +5882. (509) जायन्ते हेतु वैषम्याद् विषमा देहधातवः। हेतु साम्यात् समास्तेषां ...सदा।। + +5883. (514) ‘शीतमारूतसंस्पर्शात्’ कौनसे रोग का निदान है ? + +5884. (519) आचार्य सुश्रुत ने कौनसा हृदय रोगनहीं माना है। + +5885. (524) चरक के मत से दोष के विकल्प भेद होते है। + +5886. (529) चरकानुसार ’संधिस्फुटन’ कौनसी धातु केक्षय का लक्षण है। + +5887. (534) विभेति दुर्बलोऽभीक्ष्णं व्यायति व्यधितेन्द्रियः। दुश्छायो दुर्मना रूक्षः क्षामश्चैव - चरकानुसारकिसका लक्षण है। + +5888. (539) मधुमेह के निदान एंव सम्प्राप्ति का वर्णन चरक संहिता के किस स्थान में मिलता है। + +5889. (545) पिडका नातिमहतीक्षिप्रपाका महारूजा।- प्रमेह पिडिका है। + +5890. (550) ’कृच्छ्रसाध्य’ प्रमेहपिडका नहीं है। + +5891. (555) 'तिल, माष, एवं कुलत्थके क्वाथ के समान स्राव निकलना'- कौनसी दोषज विद्रधि का लक्षण है। + +5892. (560) ’सक्थिसाद’ कौनसी अभ्यांतर विद्रधि का लक्षण है। + +5893. (565) चरकानुसार दोषों की त्रिविध गतियों में सम्मिलित नहीं हैं। + +5894. (570) शोथ के उर्ध्वगत, मध्यगत और अधोगत भेद किसने माने है। + +5895. (575) ‘निपीडतो नोन्नमति श्वयथु’- कौनसा शोथ का लक्षणहै। + +5896. (580) गलशुण्डिका में शोथ का स्थान होता है ? + +5897. (585) चरकानुसार ‘आनाह’ किस दोष के प्रकुपित हाने से होता है + +5898. (590) चरक संहिता में शंखक शोथ का वर्णन कहॉ मिलता है। + +5899. (595) त एवापरिसंख्येया ... भवनि हि। + +5900. (599) चरक ने ‘प्रतिश्याय’के भेद बतलाए है। + +5901. (603) चरकानुसार ज्वर के भेद है। + +5902. (608) असात्मेन्द्रियार्थ संयोग, प्रज्ञापराध और परिणाम-चरकानुसार किन रोगों के कारण है। + +5903. (613) चरक मतेन ‘आमाशय’ किसका स्थान है + +5904. (618) ’उरूस्तम्भ’ किसका नानात्मज विकारहै। + +5905. (623) ’उदर्द’ किसका नानात्मज विकारहै। + +5906. (628) ’रक्तकोठकिसका नानात्मज विकारहै। + +5907. (633) निम्न में से कौनसा रोग अतिकृशता के कारण होता है। + +5908. (638) ’काश्यमेव वरं स्थौल्याद् न हि स्थूलस्य भेषजम्’। - किसका कथन है। + +5909. (643) अतिस्थूलता की चिकित्सा में प्रयुक्त औषध नहीं है। + +5910. (648) दिवास्वप्न निषेध नहीं है। + +5911. (653) ...समुत्थे च स्थौल्यकार्श्ये विशेषतः। + +5912. (658) भूधात्री निद्रा हैं - + +5913. (663) 'स्थूल पर्वा' - किसका लक्षण है। + +5914. (668) सुश्रुत निद्रा के भेद माने है। + +5915. (673) ‘सर एवंस्थिर’ दोनों गुण कौनसे द्रव्यों में मिलतेहै। + +5916. (678) शीतं मन्दं मृदु श्लक्षणं रूक्षं सूक्ष्मं द्रवं स्थिरम्। - कौनसे द्रव्योंके गुण है। + +5917. (683) शमन किसका भेद है। + +5918. (688) नित्य स्त्रीमद्यसेवी में बृंहण हेतु उपयुक्त ऋतु है। + +5919. (693) निम्न में से कौनसा द्रव्य रूक्षता कारक है। + +5920. (698) संतर्पणजन्य की रोगों की चिकित्सा में प्रयुक्त रत्न है। + +5921. (703) चरकानुसार 'सक्षौद्रश्चाभयाप्राशः' किसकी चिकित्सा है। + +5922. (708) प्राणियों के प्राण किसका अनुवर्तन करते है। + +5923. (713) रक्तमोक्षण के पश्चात् किसकी रक्षा करनी चाहिए। + +5924. (719) जायते शाम्यति त्वाशु मदो मद्यमदाकृति। - कौनसे मद का लक्षण है। + +5925. (724) ’विधि शोणितीय’ अध्याय चरकोक्त किस सप्त चतुष्क में आता है। + +5926. (729) कौन सी अवस्था के लिए चिकित्सा परम आवश्यक है ? + +5927. (734) पुरूष छः धातुओं के समूह से उत्पन्न हुआ है यह दृष्टिकोण किसका है - + +5928. (739) चरकानुसार मृग मांस वर्ग में अहिततम है ? + +5929. (744) सुश्रुतानुसार कन्द वर्गमें प्रधानतम है। + +5930. (749) ...पथ्यानाम्। + +5931. (754) राजयक्ष्मा ...। + +5932. (759) ...सर्वापथ्यानाम् । + +5933. (764) कुष्ठ ...। + +5934. (769) एककाल भोजन ...। + +5935. (774) आसव का सर्वप्रथम परिभाषा दी है। + +5936. (779) चरकानुसार कितने प्रकार के त्वगासव है - + +5937. (784) आसव नाम आसुत्वाद् आसवसंज्ञा। - किसने कहा है। + +5938. (789) क्षारकी गणना रसों में किसने की है। + +5939. (794) रस की संख्या 8 किसने मानी है ? + +5940. (799) रस की योनि हैं। + +5941. (804) आचार्य चरकानुसार ‘गुरू’ गुण कौनसे महाभूत में होता है। + +5942. (809) 'इत्थं च नानौषधभूतं जगति किं×चद द्रव्यमस्ति विविधार्थप्रयोगवशात्।' - संदर्भ मूलरूप से उद्धत है ? + +5943. (814) रसों के संयोग भेद बतलाए गए है। + +5944. (819) शुष्क द्रव्य का जिहृवा से संयोग होने पर सर्वप्रथम अनुभूत होता है। + +5945. (824) ‘चिकित्सीय गुण’ हैं। + +5946. (829) परादि गुणों की संख्या 7 किसने मानी है। + +5947. (835) ’क्रिमीन् हिनस्ति’ किस रस का कर्म है। + +5948. (840) ’विषघ्न’ रस है। + +5949. (845) ’स्तन्यशोधन’ किस रस का कार्यहै। + +5950. (850) मधुररस का कार्य है। + +5951. (855) दीपन, पाचन कर्म किस रस का कर्म है। + +5952. (860) चरक ने उत्तम लघु किस रस को माना है। + +5953. (865) पित्तवर्धक, शुक्रनाश, सृष्टविडमूत्रल - कौनसे विपाक के गुणधर्म है। + +5954. (870) सुश्रुत ने वीर्य का कौनसा भेद नहीं माना है ? + +5955. (875) ’वैशद्यस्तम्भजाडयैर्यो रसनं’ किस रस का लक्षण है। + +5956. (880) चरक ने वैरोधिक आहार केकितने घटक बताए हैं। + +5957. (885) गुड के साथ मकोय खाना हैं। + +5958. (890) चरकोक्त 'अर्जक, सुमुख और सुरसा' किसके भेद है ? + +5959. (895) शोफं जनयति ? + +5960. (900) चरकने आहार द्रव्यों के कितने वर्ग बताये है। + +5961. (905) 'हरित वर्ग' का वर्णन कौनसे ग्रन्थ में है। + +5962. (910) ‘ज्वर और रक्तपित्त’ में प्रशस्तधान्य है ? + +5963. (914) चरक ने शुक्ति और श्ांखक का वर्णन किस वर्ग में कियाहै। + +5964. (919) शरीरबंहणे नान्यत् खाद्यं मांसाद्विशिष्यते - किस आचार्य का कथन है। + +5965. (925) कच्चा बिल्व होता है। + +5966. (930) क्रिमिकुष्ठकिलासघ्नो वातघ्नो गुल्मनाशनः - किसके संदर्भ में कहा गया है। + +5967. (935) अंतरिक्ष जल के ’पाण्डुर भूमि’ पर गिरने पर किस रस की उत्पत्ति होगी। + +5968. (940) निम्नलिखित त्रिदोषक प्रकोपक नहीं है। + +5969. (946) त्रिदोषक प्रकोपक होता है। + +5970. (951) मधु का रस होता है। + +5971. (956) वाग्भट्टानुसार निम्नलिखित कौनसी अन्न कल्पना ’सबसे लघुतम’ है। + +5972. (961) निम्नलिखित में से कौनसा तैल ‘सर्वदोषप्रकोपण’है। + +5973. (966) कौनसा लवण शीत वीर्य होता है। + +5974. (971) कौनसे शरीरायव का मांस सर्वाधिक गुरू होताहै। + +5975. (976) ’मूर्च्छा’ कौनसा धातु प्रदोषज विकार है। + +5976. (981) रस धातुप्रदोषज विकारों की चिकित्सा है। + +5977. (986) चरक ने दोषों के शाखा से कोष्ठ में गमन का कौनसा कारण नहीं बताया है। + +5978. (991) 'आगारकर्णिका'की तुलना किससे की गयी है। + +5979. (996) आयुर्वेद के नित्य या शाश्वत होने का कारण है। + +5980. + +5981. (4) निम्नलिखित में किसके संयोग को आयु कहते हैं? + +5982. (9) आचार्य चरक ने अष्टांग आयुर्वेद के क्रम में 'भूतविद्या' को किस स्थान पर रखा है। + +5983. (14) दोष धातु मल मूलं हि शरीरम् - किसका कथन है। + +5984. (19) 'वात पित्त श्लेष्माण एव देह सम्भव हेतवः' - किस आचार्य का कथन है ? + +5985. (24) ‘दोषों की उत्पत्ति’ का वर्णन किस आचार्य ने किया है। + +5986. (29) ’अग्निमादित्यं च पित्तं’ किस आचार्य का कथन है। + +5987. (34) भोजन परिपाक काल के मध्य में कौनसे दोष का प्रकोप होता है। + +5988. (39) ‘तत्रास्थानि स्थितो वायुः, असृक्स्वेदयोः पित्तम्, शेषेषु तु श्लेष्मा।’ - किस आचार्य का कथन है। + +5989. (44) पित्तशामक श्रेष्ठ रस होता है। + +5990. (49) वाग्भट्टानुसार ’पित्त’ का मुख्य स्थान है। + +5991. (54) वाग्भट्टानुसार ’क्लोम’ किसका स्थान है। + +5992. (59) आचार्य चरक ने वात के कितने गुण बतलाए हैं। + +5993. (64) आचार्य चरक ने 'भगवान्' संज्ञा किसने दी है। + +5994. (69) शांरर्ग्धर के अनुसार ‘पित्त’ का प्राकृतिक रस होता है। + +5995. (74) 'वेगविधारण' करने से किस दोष का प्रकोप है। + +5996. (79) वाग्भट्टानुसार कफ का संचय किस ऋतु में होता है। + +5997. (84) चरक ने दोषों के शाखा से कोष्ठ में गमन के कितने कारण बताए है। + +5998. (89) चरकानुसार अपान वायु का स्थान नही है। + +5999. (94) रंजक पित्त का स्थान आमाशय किस आचार्य ने माना है। + +6000. (99) तर्पक कफ का स्थान होता है ? + +6001. (104) वायुस्तन्त्रयन्त्रधर - में ‘तंत्र’ का क्या अर्थ है। + +6002. (109) मन का निग्रह किसके द्वारा होता है। + +6003. (114) वैदिक ग्रंथोक्त पांच वायु में से कौनसी वायु सर्वव्यापी है और मरणोपरान्त भी रहती है। + +6004. (119) वाग्भट्टानुसार त्रिउपस्तम्भ है। + +6005. (124) रस धातु के 2 भेद - (1) स्थायी रस और (2) पोषक रस - किस आचार्य ने बतलाए है। + +6006. (129) मेद का अंजलि प्रमाण होता है। + +6007. (134) भावप्रकाष के अनुसार ’रक्त’ धातु की पंचभौतिकता में शामिल है ? + +6008. (139) 'शब्दार्चिजलसंतानवद्' से किस धातु का ग्रहण किया जाता है। + +6009. (143) रक्त की परिभाषा किस आचार्य ने बतलायी है। + +6010. (148) सुश्रुतानुसार धातुओ की क्षीणता और वृद्धि में मूल कारण क्या है। + +6011. (153) 'विलीनघृताकारो' किसके लिए कहा गया है। + +6012. (158) 'रक्तपित्तहरी क्रिया' - किन रोगों में करनी चाहिए ? + +6013. (163) 'केदारीकुल्या न्याय' के प्रवर्तक है। + +6014. (168) आचार्य वाग्भट्ट कौनसे न्याय के समर्थक है। + +6015. (173) सुश्रुतानुसार रस से शुक्र धातु के निर्माण कितना समय लगता है। + +6016. (178) 'दोषधातुवहाः' किसके लिए कहा गया है ? + +6017. (183) ओज को 'जीवशोणित' संज्ञा किस आचार्य ने दी है। + +6018. (188) चरकानुसार हदयस्थ ओज का वर्ण होता है। + +6019. (193) ओज के पर ओज एवं अपर ओज ये 2 भेद किसने बतलाए है। + +6020. (198) चरकोक्त गोदुग्ध के 10 गुणों एवं ओज के 10 गुणों में से कितने गुण समान है। + +6021. (203) सुश्रुतानुसार ’सर्वचेष्टास्वप्रतिघात’ किसका कार्य है। + +6022. (208) ग्लानि, तन्द्रा, निद्रा लक्षण है। + +6023. (213) चरकानुसार पर ओज की मात्रा कितने बिन्दु होती है। + +6024. (218) अक्षिविट् कौनसी धातु का मल है ? + +6025. (223) वाग्भट्ट के अनुसार अस्थि धातु का मल है ? + +6026. (228) मलिनीकरणान्मलाः। - किस आचार्य ने माना है। + +6027. (233) वायु एवं अग्नि का धारण करना किसका कर्म है। + +6028. (238) पुरीष निर्माण की प्रक्रिया का वर्णन सर्वप्रथम किसने किया है ? + +6029. (243) मानुष मूत्र च विषापहम् - किसका कथन है। + +6030. (248) ‘घर्मकाले’ कौनसी ऋतु के लिए कहा गया है। + +6031. (253) ‘अतिनिद्रा’ किसका लक्षण है। + +6032. (258) ‘बलहानि’ किसका लक्षण है। + +6033. (263) चरकानुसार 'संधिस्फुटन' किसका लक्षण है। + +6034. (268) ’दौर्बल्यं मुखशोषश्च पाण्डुत्वं सदनं श्रमः’ - चरकानुसार कौनसी धातु के क्षय का लक्षण है। + +6035. (274) अष्टांग हृदय के अनुसार 'कृतेऽप्यकृतसंज्ञ' किसका लक्षण है ? + +6036. (279) ‘ख वैगुण्य’ का कारण है ? + +6037. (284) कोष्ठ तोद संचरण लक्षण है। + +6038. (289) चरकनुसार मनुष्य शरीर का प्रमाण होता है + +6039. (294) पित्त दोष से अभिभूत अग्नि होती है। + +6040. (299) धातु व धात्वाग्नि एवं जठराग्नि व धात्वाग्नि के सम्बन्धो का वर्णन मिलता है। + +6041. (304) आहार परिणामकर भाव नहीं है ? + +6042. (309) ‘श्लेष्माजीर्ण’ का वर्णन किस आचार्य ने किया है ? + +6043. (314) चरकोक्त ‘अष्टविध आहारविशेषायतन’ में षामिल नहीं है। + +6044. (319) चरकानुसार ‘ओकसात्म्य’ किसके अधीन रहता है। + +6045. (324) मूत्र में तैल बिन्दु डालते ही न फैलकर एक स्थान पर स्थिर रहे तब वह रोग होगा ? + +6046. (329) मूत्र परीक्षा में यदि तैल बिन्दु का आकार छत्र सदृश्य बने तो उसी रोगी किस दोषज विकार से ग्रस्त है ? + +6047. (334) शागंर्धर संहिता के कौनसे खण्ड में नाडी परीक्षा का वर्णन देखने को मिलता हैं। + +6048. (339) लाव, तित्तर, बत्तख सम - नाडी की गति किस दोष के कारण होती है ? + +6049. (344) 'प्रभूताशनापाना' किस प्रकृति के पुरूष का लक्षण है। + +6050. (349) मानस प्रकृति की संख्या 18 किस आचार्य ने बतलायी है। + +6051. (354) ’आहारलुब्धः’ किस तामस प्रकृति के पुरूष का लक्षण है। + +6052. (359) कौनसी प्रकृति श्रेष्ठ होती है। + +6053. (364) आचार्य सुश्रुत मतानुसार ‘उरस्यामाशयद्वारं’ प्रयोग किया गया है। + +6054. (369) सुश्रुतानुसार ‘मलाधार’ किसका पर्याय है। + +6055. (374) प्राचीनतम नाडियों में समाविष्ट हैं ? + +6056. (379) चरकानुसार ग्रीष्म ऋतु को छोड़कर अन्य ऋतु में दिवास्वप्न से किसका प्रकोप होता है। + +6057. (384) ‘अनवबोधिनी’ कौनसी निद्रा को कहा गया है। + +6058. (389) किस संहिता में 'स्रोतसामेव समुदाय पुरूषः’ बताया गया है। + +6059. (394) चरकानुसार कौनसा स्वप्न निष्फल है। + +6060. (399) सुश्रुतानुसार 'कृष्ण’ वर्ण की वर्णोत्पत्ति में कौन से महाभूत सहायक होते है। + +6061. (1) चरक संहिता के आद्य उपदेष्टा हैं- + +6062. (6) आचार्य चरक का काल है- + +6063. (11) चरकसंहिता में कुल कितने श्लोक हैं? + +6064. (16) चरक संहिता पर रचित टीका "निरंतर पदव्याख्या" के लेखक कौन हैं। + +6065. (21) चरक संहिता पर रचित चक्रपाणि की टीकाहैं ? + +6066. (26) चरक संहिता का अरबी अनुवाद कौनसी सदी में हुआ था। + +6067. (31) निम्न में से सभी आत्रेय के शिष्य है एक को छोडकर - + +6068. (36) दृढ़बल ने चरक संहिता के चिकित्सा स्थान में कितने अध्यायों को पूरित कर सम्पूर्ण किया हैं। + +6069. (41) चक्रपाणि का सम्बन्ध कौनसे वंश से था ? + +6070. (46) चरक संहिता मे त्रिशोथीयाध्याय कौनसे चतुष्क से सम्बधित है। + +6071. (51) चरक संहिता के 'दीर्घ×जीवितीयमध्याय' में आयुर्वेदावतरण संबंधी सम्भाषा परिषद में कितने ऋर्षियों ने भाग लिया था। + +6072. (56) "स्कन्धत्रय"है ? + +6073. (59) 'हिताहितं सुखं दुःखमायुस्तस्य हिताहितम्। मानं चतच्च यत्रोक्तमायुर्वेदः स उच्यते।'- यह आयुर्वेद की ... है। + +6074. (63) 'सत्व, आत्मा, शरीर'-ये तीनों कहलातेहै। + +6075. (68) आत्म गुणों की संख्या 7 किसने मानी हैं। + +6076. (घ) उपर्युक्त सभी + +6077. (75) "सेन्द्रिय" का क्या अर्थ होता है ? + +6078. (80) आचार्य चरक कौनसे वाद को मानते हैं। + +6079. (86) मानसिक दोषों में प्रधान होता है। + +6080. (90) आचार्य चरक ने कफ के कितने गुण बतलाए हैं। + +6081. (95) रस के विशेष ज्ञान में कारणहै। + +6082. (99) चरकानुसार जांगमद्रव्यों के प्रयोज्यांग होते है। + +6083. (104) जिनमें सीधे ही फल दृष्टिगोचर हो - वह है ? + +6084. (109) चरकोक्त 19 फलिनी द्रव्यों में शामिल नहीं है। + +6085. (114) स्नेहना जीवना बल्या वर्णापचयवर्धनाः। - किसका गुण है। + +6086. (119) रस तरंगिणी के अनुसार'पंच लवण' में शामिल नहीं है ? + +6087. (124) चरकानुसार मूत्र का गुण है। + +6088. (129) किसकामूत्र 'सर' गुण वाला होता है। + +6089. (134) चरक ने 'श्रेष्ठं क्षीणक्षतेषु च'किसके लिए कहा है। + +6090. (139) 'अर्कक्षीर'का प्रयोग किसमें निर्दिष्टहै। + +6091. (144) पुरूषं पुरूषं वीक्ष्य स ज्ञेयो भिषगुत्तमः। - किसका कथन हैं। + +6092. (148) "पुत्रवेदवैनं पालयेत आतुरं भिषक्।" - किसका कथन हैं। + +6093. (153) चरक ने अपामार्गतण्डुलीय अध्याय में 'वचा' को कौनसे वर्ग में शामिल किया है। + +6094. (157) ...यवाग्वः परिकीर्तिताः। + +6095. (162) दधित्थबिल्वचांगेरीतक्रदाडिमा साधिता।- यवागू है। + +6096. (167) चरकानुसार मुर्गे का पर्याय है। + +6097. (172) चरकोक्त आरग्वधीय अघ्याय में वातविकारनाशककुल कितने 'लेप' बताए गए है। + +6098. (177) चक्रपाणि के अनुसार 'अभय' किस औषध का पर्याय हैं ? + +6099. (182) सप्तला-शंखिनी के विरेचन योगों की संख्या हैं। + +6100. (187) "द्रव्यादापोत्थितात्तोये तत्पुनर्निशि संस्थितात्"- किस कषाय कल्पना के लिये कहा गया है। + +6101. (192) चरकोक्त पचास महाकषायों में सबसें अधिक 11 बार सम्मिलित द्रव्य है। + +6102. (197) चरकने निम्न किस महाकषाय का वर्णन नहीं किया है। + +6103. (202) कमल के भेदों का वर्णन चरकोक्त किस दशेमानि वर्ग में है। + +6104. (207) निम्नलिखित में से किस चरकोक्त दशेमानि में 'मोचरस' शामिल नहीं हैं। + +6105. (212) चरकोक्त कुष्ठघ्न व कण्डूघ्न दोनों महाकषाय में समाविष्टहै। + +6106. (217) कालमेह, नीलमेह एवं हारिद्रमेह कीचिकित्सा मेंचरकोक्त किस दशेमानि वर्ग के द्रव्यों करना चाहिए। + +6107. (222) चरक के मत से गुरू द्रव्यों में किसकी की बहुलता रहती है। + +6108. (227) निरन्तर अभ्यसेत्द्रव्य नहीं है। + +6109. (232) नेत्र से स्राव निकालने के लिए कौनसे अंजन का प्रयोग करना चाहिए। + +6110. (237) चरकमतेन स्नैहिक धूम्रपान दिन में कितनी बार करना चाहिए हैं ? + +6111. (242) नस्य औषधि का प्रभाव कौनसी मर्म पर होता हैं। + +6112. (247) वाग्भट्ट ने दातुन की लम्बाई बतलायी है। + +6113. (ग) तिल्वक, तिन्दुक, बिल्ब, विभीतक, र्निगुण्डी (घ) उर्पयुक्त सभी + +6114. (256) मुखशोष में संग्रहकार के अनुसार हितकर है। + +6115. (261) 'चक्षुष्यम् स्पर्शनहितम्' कहा गया है। + +6116. (266) 'विसर्ग काल' कहलाताहै। + +6117. (272) आचार्य चरक ने ऋतुचर्या का वर्णन कौनसी ऋतु से प्रारम्भ किया है। + +6118. (277)'वातलानि लघूनि च वर्जयेदन्नपानानि' - सूत्र किस ऋतु के लिये कहा गया है। + +6119. (282)'औदक, आनूप, विलेशय एवं प्रसह मांस जाति के पशु-पक्षियों का मांस का सेवन किस ऋतु में करना चाहिए। + +6120. (287) चरकानुसार शिशिर ऋतु में किस ऋतुतुल्य चर्या करनी चाहिए है - + +6121. (292) मद्यमल्पं न वा पेयमथवा सुबहु उदकम्।- किस ऋतु के लिये कहा गया है। + +6122. (298) हंसोदक जल का किस ऋतु में तैयार होता हैं ? + +6123. (304) 'शिरोरूजा' किसके वेगनिग्रह का लक्षण है। + +6124. (308) चरकानुसार पुरीषवेगनिग्रह किसकी चिकित्सा का क्रमहै। + +6125. (313) 'रूक्षान्नपान'का निर्देश किसकी चिकित्सा में है। + +6126. (318) 'शिरोरोग' किसके वेगनिग्रह का लक्षण है। + +6127. (323) 'भ्रम' किसके वेगनिग्रह का लक्षण है। + +6128. (328) जृम्भा वेगधारण मे कौनसी चिकित्सा की जाती है। + +6129. (333) 'स्तेय' किसका धारणीय वेग है। + +6130. (338) व्यायाम करने से मेद का क्षय होता है - यह किस आचार्य ने कहा है। + +6131. (343) "वातिकाद्याः सदाऽऽतुराः"- किसका कथनहै। + +6132. (348) चरक संहिता में 'दोष प्रकृति' का वर्णन किस अध्याय में हैं। + +6133. (353) 'चक्षु'है। + +6134. (358) मन का अर्थ है। + +6135. (363) इन्द्रियों को अंहकारिककिसने माना है। + +6136. (368) 'श्रृते पर्यवदातत्वं' किसका गुण है। + +6137. (373) राजार्ह वैद्य के ज्ञान है ? + +6138. (377) प्रकृति स्थेषु भूतेषु वैद्यवृत्तिः चतुर्विधा। - यहॉ पर प्रकृति स्थेषु का क्या अर्थ है। + +6139. (382) मर्मसन्धिसमाश्रितम- किसका लक्षण है। + +6140. (387) विद्यात् द्विदोषजम् - किसका लक्षण है। + +6141. (391) चरकानुसार 'तिस्त्र एषणा' है। + +6142. (396) "षड्धातु पंचमहाभूत तथा आत्मा के संयोग से गर्भ की उत्पत्ति होती है"- ये किस प्रमाण का उदाहरण हैं। + +6143. (401) त्रिउपस्तम्भ है। + +6144. (406) त्रिविध विकल्पहै। + +6145. (409) देहबल के भेद होतेहै। + +6146. (414) पुनः अहितेभ्योऽर्थेभ्यो मनोनिग्रहः - कौनसी औषध है। + +6147. (419) अष्ट त्रित्व का वर्णन किस आचार्य ने किया है। + +6148. (424) वायुस्तन्त्रयन्त्रधर - में 'तंत्र' का क्या अर्थ है। + +6149. (429) आचार्य चरक के मत से 'प्रजापति' किसका पर्याय है। + +6150. (434) स्नेह कितनेहोते है। + +6151. (439) 'कर्ण शूल' में लाभप्रद है। + +6152. (444) 'यूष' किसका अनुपान है। + +6153. (449) 'अच्छपेय स्नेह' निम्नलिखित में कौन सी कल्पनाहै। + +6154. (454) 'मंदबिभ्रंशा' नाम है। + +6155. (459) 'क्षतक्षीण' में किसका प्रयोग करना चाहिए है। + +6156. (464) 'घस्मरा' व्यक्ति में किसका प्रयोग करना चाहिए है। + +6157. (470) चरकानुसार स्नेहपान के कितने दिन बाद वमन कराते है। + +6158. (475) विचारणा के योग्य रोगी है। + +6159. (480) स्वेदन के अतियोग में विसर्प रोग की चिकित्साकिसने बतलायी है + +6160. (485) चरकानुसार निराग्नि स्वेद की संख्या हैं ? + +6161. (490) हन्सतिका की अग्नि का प्रयोग कौनसे स्वेद में किया जाता है। + +6162. (496) सुश्रुतानुसार वमन विरेचन व्यापदों की संख्या है। + +6163. (501) चरकानुसार 'आध्मानमरूचिश्छर्दिरदौर्बल्यं लाघवम्' - किसका लक्षण हैं। + +6164. (506) चरक संहिता में 'स्वभावोपरमवाद' का वर्णन कहॉ मिलता है। + +6165. (511) चरक के मत से शिरोरोग का सामान्य कारण नहींहै। + +6166. (516) 'आस्यासुखैः स्वप्नसुखैर्गुरूस्निग्धातिभौजनै' - कौनसे रोग का निदानहै ? + +6167. (521) कफज हृद्रोग का निदान है। + +6168. (526) सुश्रुतानुसार क्षय के भेद होते है। + +6169. (531) चरकानुसार 'शीर्यन्त इव चास्थानि दुर्बलानि लघूनि च। प्रततं वातरोगीणि' - लक्षण है। + +6170. (536) चरकानुसार हदयस्थ ओज का वर्ण होता है। + +6171. (542) प्रमेहपिडका की संख्या 9 किसने बतलायी है। + +6172. (547) 'रूजानिस्तोदबहुला'कौनसीप्रमेहपिडका का लक्षण है। + +6173. (552) सुश्रुतानुसार विद्रधि के कितने भेद होते है। + +6174. (557) 'हिक्का' कौनसी अभ्यांतर विद्रधि का लक्षण है। + +6175. (562) क्रियाशरीरे दोषाणां कतिधा गतयः ? + +6176. (567) सर्वा हि चेष्टा वातेन स प्राणः प्राणिनां स्मृतः। - सूत्र किस अध्याय में वर्णित है। + +6177. (572) कौनसा शोथ 'सर्षपकल्कावलिप्त' होता है। + +6178. (577) चरकानुसार निम्नलिखित में कौन सा शोथ का उपद्रव नहीं है। + +6179. (582) यस्य श्लेष्मा प्रकुपितो गलबाह्योऽवतिष्ठते शनैः संजनयेच्छोफं - है। + +6180. (587) चरकानुसार 'उपजिह्न्का शोथ' किस दोष के प्रकुपित हाने से होता है + +6181. (592) त्रिरात्रं परमं तस्य जन्तोः भवति जीवितम्। कुशलेन त्वनुक्रान्तः क्षिप्रं संपद्यते सुखी - किसके लिए कहा गया है। + +6182. (596) चरकानुसार 'ग्रहणीद्रोष'के भेद होते है। + +6183. (600) चरक ने 'उदावर्त'के भेद बतलाए है। + +6184. (605) चरक के मत से वह त्रिदोषज रोग जो मन व शरीर को अधिष्ठान बनाकर उत्पन्न होता है ? + +6185. (610) चरकानुसार कफ का विशेष स्थान है। + +6186. (615) 'निम्नलिखित कौन सी व्याधि सामान्यज, नानात्मज दोनों में उल्लेखित नहीं है। + +6187. (620) 'हिक्का' किसका नानात्मज विकारहै। + +6188. (625) 10 रक्तज नानात्मज विकार किसने मानेहै। + +6189. (630) चरक नेवात को कौनसी संज्ञा दीहै। + +6190. (635) अतिस्थूलता की चिकित्सा सिद्वांन्त है। + +6191. (640) 'स्फिक्, ग्रीवा व उदर शुष्कता'चरकानुसार किसका लक्षण है। + +6192. (645) चरकानुसार 'ज्ञान अज्ञान' किस पर निर्भर है। + +6193. (650) सुश्रुतानुसार ग्रीष्म ऋतु को छोड़कर अन्य ऋतु में दिवास्वप्न से किसका प्रकोप होता है। + +6194. (655) चरक निद्रानाश के कारण बताएॅ है। + +6195. (660) समसंहनन पुरूष का वर्णन किस आचार्य ने कियाहै। + +6196. (665) रस निमित्तमेव स्थौल्यं कार्श्य च। - किस आचार्य का कथनहै। + +6197. (670) स्वाभावात् निद्रा- का वर्णन किस आचार्य ने किया है। + +6198. (675) 'स्थूलपिच्छिलम्'गुण कौनसे द्रव्यों में मिलतेहै। + +6199. (680)चरक ने लंघन के भेद माने है। + +6200. (685) येषां मध्यबला रोगाः कफपित्त समुत्थिताः। - में लंघन का कौनसा प्रकार उपयुक्त है। + +6201. (690) 'अभिष्यन्दी रोगी'में कौनसे उपक्रम का प्रयोग करना चाहिए। + +6202. (695) अपतर्पणजन्य रोग नहीं है। + +6203. (700) मद्यविकार नाशक खर्जूरादि मन्थ किन रोगों की चिकित्सा में प्रयुक्त होती है। + +6204. (705) चिरक्षीणं रोगी का पोषण चरकमतेनहोता है ...। + +6205. (710) रक्तज रोगों का निदान किससे होता है। + +6206. (716) निम्न में से कौनसा एक मनोवह स्रोतस का रोग नहींहै। + +6207. (721) कौनसी मूर्च्छा में अपस्मार के लक्षण देखने को मिलते है। + +6208. (726) 'कौम्भघृत' निर्दिष्ट है। + +6209. (731) चरक संहिता के यज्जःपुरूषीय अध्याय निर्दिष्टसम्भाषा परिषद में प्रश्नकर्ता कौन थे। + +6210. (736) निम्न में से आहार का कौनसा प्रकार चरक ने नहीं माना है। + +6211. (741) चरकानुसार फल वर्गमें अहिततम है। + +6212. (746) जलचर पक्षी वसा में हिततम है। + +6213. (751) एरण्डमूलं ...। + +6214. (756) जलम् ...। + +6215. (761) उदक् ...। + +6216. (766) 'निम्नलिखित में से कौन सी एक औषधि संग्रहणीय, दीपनीय और पाचनीय के रूप में नित्य सर्वाधिक उपयोगी है। + +6217. (771) ...विषघ्ननां। + +6218. (776) चरकानुसार आसव की संख्या है। + +6219. (781) निम्न में से किस द्रव्य का प्रयोग फल व सार दोनों आसवों मे होता है। + +6220. (786) यद पक्वकौषधाम्बुभ्यां सिद्धं मद्यं स आसवः। - किसने कहा है। + +6221. (791) रस संख्या विषयक सम्भाषा परिषद में विदेह राज निमि ने कहा था रस होते है ? + +6222. (796) किस आचार्य ने पंच महाभूतों के आधार पर रस 5 माने है। + +6223. (801) "इह हि द्रव्यं प×चमहाभूतात्मकम्।"- किसनेकहा है। + +6224. (806) 'वायव्यद्रव्यों' 'व्यवायी, विकाशि' गुण अतिरिक्तकिस आचार्य ने बतलाए है। + +6225. (811) यथा कुर्वन्ति स ...। + +6226. (816) दो-दो, तीन-तीन, चार-चार, पॉच-पॉच एंव छः रस आपस में मिलकर क्रमशः द्रव्य बनाते है ? + +6227. (820) रस का विपयर्य है। + +6228. (825) चरकानुसार संयोग, विभागएंव पृथकत्व के क्रमशः भेद है - + +6229. (830) कणाद ने परादि गुणों में किसकी गणना नहीं कीहै। + +6230. (836) 'आहार योगी' रस है। + +6231. (841) 'विषं वर्धयति' किस रस के अतिसेवन के कारणहोता है। + +6232. (846) 'ज्वरघ्न' किस रस का कार्यहै। + +6233. (851) 'लेखन' किस रस का कार्यहै। + +6234. (856) 'ऊर्जयति' किस रस का कर्म है। + +6235. (861) चरक ने उत्तम उष्ण किस रस को माना है। + +6236. (866) कौनसा विपाक 'सृष्टविडमूत्रल' होताहै। + +6237. (871) वीर्य का ज्ञान होता है। + +6238. (876) मरिच की तीक्ष्णता का ज्ञान होता है। + +6239. (881) अम्ल पदार्थों के साथ दूध पीना हैं। + +6240. (886) श्रम, व्यवाय, व्यायाम आदि में आसक्त व्यक्ति द्वारा वातवर्धक आहार का सेवन हैं। + +6241. (891) "तुलसी" शब्द सर्वप्रथममूलरूप से किस ग्रन्थ में उद्धत है ? + +6242. (896) प्रायः सभी कटु द्रव्य वातल और अवृष्य होते है ...को छोडकर। + +6243. (901) सुश्रुतने आहार द्रव्यों के कितने महावर्ग बताये है। + +6244. (906) "औषध वर्ग" का वर्णन कौनसे ग्रन्थ में है। + +6245. (911) चरकमतानुसार कास, हिक्का, श्वास और अर्श के लिए हितकर द्रव्यहै। + +6246. (915) आचार्य चरक ने 'कपोत और पारावत' को कौनसे योनि वाले मांसवर्ग में रखाहै। + +6247. (921) चरक ने फलवर्ग का आरम्भ किससे किया है। + +6248. (926) रसासृङमांसमेदोविकार नाशकहै। + +6249. (931) तीक्ष्ण मद्यहै। + +6250. (936) अंतरिक्ष जल के 'कपिल भूमि' पर गिरने परकिस रस की उत्पत्ति होगी। + +6251. (941) चरकोक्त गोदुग्ध के गुण है। + +6252. (947) चरकमतानुसार 'योनिकर्णशिरःशूल नाशक' घृत है। + +6253. (952) चरक ने किसे योगवाहि नहीं कहा है। + +6254. (957) निम्नलिखित कौनसी अन्न कल्पना 'प्राणधारण' है। + +6255. (962) सभी तैलों का अनुरस होता है। + +6256. (967) रोचनं दीपनं वृष्यं चक्षुष्यं अविदाहि। त्रिदोषघ्न, समधुर। - कौंनसा लवण होता है। + +6257. (972) कौनसे शरीरायव का मांस सर्वाधिक गुरू होताहै। + +6258. (977) 'अलजी' कौनसा धातु प्रदोषज विकार है। + +6259. (982) 'पंचकर्माणि भेषजम्' किस धातुप्रदोषज विकार की चिकित्सा में निर्देशित है। + +6260. (987) श्रुत बुद्धिः स्मृतिः दाक्ष्यं धृतिः हितनिषेवणम्। - किसके गुण है ? + +6261. (992) ... हर्षणानां। + +6262. (997) चरक ने एक वैद्य को दूसरे वैद्य की परीक्षा करने के लिए कितने प्रश्न पूछने का निर्देश दिया है। + +6263. आयुर्वेद प्रश्नोत्तर-०४: + +6264. (4) ‘सत्यवादिन’ कौनसी आयु का लक्षण है। + +6265. (8) ’आग्नेय पित्तम्’ - किस आचार्य का कथन है। + +6266. (13) ‘विपरीत गुणै इच्छाः’ - षडक्रियाकाल के कौनसे काल का लक्षणहै। + +6267. (18) वाग्भट्टानुसार ’पित्त’ का मुख्य स्थान है। + +6268. (23) विदग्धावस्था में कफ का रस होता है। + +6269. (28) भेल के अनुसार बृद्धिवैशेषिक आलोचक पित्त का स्थान होता है ? + +6270. (33) ‘शरीरपुष्टि’ कौनसी धातु का कार्य है। + +6271. (38) वर्णानुसार ओज के 3 भेद - 1.श्वेत वर्ण 2.तैल वर्ण 3.क्षौद्र वर्ण- किस आचार्य ने बतलाए है। + +6272. (43) ‘स्वेद निर्माण प्रक्रिया’ का वर्णन किस आचार्य किया है ? + +6273. (48) दोषों के कोष्ठ से शाखा और शाखा से कोष्ठ में गमनके कारण सर्वप्रथम किस आचार्य ने बतलाए है। + +6274. (53) ‘सन्धिवेदना’ किसका लक्षण है ? + +6275. (58) द्विविधं हि पूर्वरूपं भवति - सामान्य विशिष्टं च। - किस आचार्य का कथन है। + +6276. (63) व्यायाम जनित संमूढ वात में जल में तैरना - उपशय का कौनसा प्रकार है। + +6277. (68) ‘दोषों की अंशांश कल्पना’ किस सम्प्राप्ति के अंतगर्त आती है। + +6278. (73) षडविध परीक्षा किस आचार्य ने बतलायी है ? + +6279. (78) पक्वाशय कोष्टांगके स्थान पर फुफ्फुस सम ‘‘निवाप्नहन’’ कोष्ठांग किसने बताया है। + +6280. (83) ‘अक्षि’है ? + +6281. (88) पाचक पित्त का प्रमाण तिल के समान किसने बतलाया है ? + +6282. (93) Furmula of VITAL CAPACITY is + +6283. (98 ) Islets of Langerhans arepresent in + +6284. विधि विज्ञान अथवा न्यायालिक विज्ञान या फॉरेंसिक साइंस जिसे न्याय वैधक विज्ञान भी कहा जाता है विज्ञान का एक ऐसा विषय है जिसमे सभी प्रकार के वैज्ञानिक विषयों को बल्कि कुछ कला क विषय जैसे भूगोल आदि को भी अध्यन किया जाता है । अगर इस विषय की परिभाषा की बात की जाये तो यह एक ऐसा विषय जिसमे वैज्ञानिक तकनीक का प्रयोग करके अपराध स्थल , अपराध स्थल से मिले साक्ष्यो की जाँच न्यायालय तंत्र की सहायता के लिए की जाती है । ये अपराध प्रयोगशाला आधारित विषय है, जिसमें सबूतों की समीक्षा (Analysis) करना सिखाया जाता है । इस क्षेत्र में काम करने वाले व्यक्ति को फॉरेंसिक साइंटिस्ट या फोरेंसिक वैज्ञानिक कहा जाता है। ये विशेषज्ञ नई तकनीकों का इस्तेमाल कर सबूतों की जांच करते हैं और अपराधियों को पकड़ने में मदद करते हैं । + +6285. संक्षिप्त शिव पुराण. + +6286. किस प्रकार अपने काम क्रोध आदि मानसिक विकारो का निवारण करते है ? इस घोर + +6287. तात ! वह साधन ऐसा हो , जिसके अनुष्ठान से शीघ्र ही अन्तः कारन की विशेष शुद्धि + +6288. सिद्धांत से संपन्न , भक्ति आदि को बढ़ाने वाला , तथा शिव को संतुष्ट करने वाला है | + +6289. पुराण का संक्षेप में ही प्रतिपादन किया है | इस पुराण के प्रणय का + +6290. मनुष्य शीघ्र ही शिव पद को प्राप्त कर लेता है | इसलिए सम्पूर्ण यत्न करके मनुष्यो ने + +6291. यह शिव पुराण नामक ग्रन्थ चौबीस हजार श्लोको से युक्त है | इसकी + +6292. करता है वह पुण्यात्मा है -- इसमें संशय नहीं है | जो उत्तम बुद्धि वाला पुरुष अंतकाल + +6293. शिव पुराण का सत्कार करता है , वह सदा सुखी रहता है । यह शिव पुराण निर्मल तथा + +6294. अध्याय -4. + +6295. ॥ गोपीगीतम् ॥ + +6296. दयित दृश्यतां दिक्षु तावका- + +6297. सुरतनाथ तेऽशुल्कदासिका + +6298. वृषमयात्मजाद्विश्वतोभया- + +6299. विखनसार्थितो विश्वगुप्तये + +6300. करसरोरुहं कान्त कामदं + +6301. भज सखे भवत्किङ्करीः स्म नो + +6302. फणिफणार्पितं ते पदांबुजं + +6303. विधिकरीरिमा वीर मुह्यती- + +6304. श्रवणमङ्गलं श्रीमदाततं + +6305. विहरणं च ते ध्यानमङ्गलम् । + +6306. नलिनसुन्दरं नाथ ते पदम् । + +6307. र्वनरुहाननं बिभ्रदावृतम् । + +6308. धरणिमण्डनं ध्येयमापदि । + +6309. स्वरितवेणुना सुष्ठु चुम्बितम् । + +6310. त्रुटिर्युगायते त्वामपश्यताम् । + +6311. नतिविलङ्घ्य तेऽन्त्यच्युतागताः । + +6312. प्रहसिताननं प्रेमवीक्षणम् । + +6313. वृजिनहन्त्र्यलं विश्वमङ्गलम् । + +6314. भीताः शनैः प्रिय दधीमहि कर्कशेषु । + +6315. दशमस्कन्धे पूर्वार्धे रासक्रीडायां गोपीगीतं नामैकत्रिंशोऽध्यायः!! + +6316. B l dudi bjp dudu + +6317. भारतवाणी पर उपलब्ध शब्दकोश एवं परिभाषाकोश: + +6318. English Apatani-English-Hindi Dictionary
+ +6319. Hindi Kannada–Konkani Ratnakosh
+ +6320. Quick Search + +6321. 1. एक RC दोलक निम्न को प्रयुक्त करता है - + +6322. 6. D.C मोटर, इस सिद्धान्त पर कार्य करती है कि - + +6323. 11. एकल फेज़ विभव ट्रांसफार्मर की नियत की गयी द्वितीयक वोल्टेज - + +6324. 16. बुखोज़ रिले का उपयोग उच्च क्षमता के शक्ति ट्रांसफार्मरों के साथ होता है। बुखोल्ज़ रिले का उद्देश्य + +6325. 21. जब कुण्डली, चुम्बकीय फ्लक्स के समकोण पर गति कर रही होती है तब प्रेरित emf कितना होगा? + +6326. + +6327. 4. प्रथम मुगल कौन थे सम्राट - बाबर + +6328. 9. पहला अंतरिक्ष यात्री कौन था - यूरी गागरिन + +6329. 14. कौन पहला अंतरिक्ष यात्री था चंद्रमा की सतह - नील आर्मस्ट्रांग + +6330. 19. दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति कौन थे - नेल्सन मंडेला + +6331. 24. दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री कौन थे - चौधरी ब्रह्म प्रकाश + +6332. 29. इसरो के पहले अध्यक्ष कौन थे - विक्रम साराभाई + +6333. 34. लोकसभा के पहले उपाध्यक्ष कौन थे - मदाभिषी अनंतशयनम अय्यंगार + +6334. 39. भारत के पहले सम्राट कौन थे - चंद्रगुप्त मौर्य + +6335. 44. पहले गृह मंत्री कौन थे - सरदार वल्लभभाई पटेल + +6336. 49. पहले भारतीय क्रिकेट कप्तान कौन थे - सीके नायडू + +6337. 54. भारत के सर्वोच्च न्यायालय के पहले न्यायाधीश कौन थे - हरिलाल जेकिसुंदास कानिया + +6338. 59. इंग्लैंड का पहला राजा कौन था - एग्बर्ट (इक्गेरहट) + +6339. 64. चंद्रमा पर उतरने वाला पहला आदमी कौन था - नील आर्मस्ट्रांग + +6340. 69. बंगाल का पहला नवाब कौन था - मुर्शिद कुली खान + +6341. 75. हैदराबाद के पहले निजाम कौन थे - आसफ जह + +6342. 80. स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति कौन थे - डॉ. राजेंद्र प्रसाद + +6343. 85. पहला रोमन सम्राट कौन था - ऑगस्टस + +6344. 90. भारत के पहले शिक्षक कौन थे - सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले + +6345. 95. भारत के पहले उपराष्ट्रपति कौन थे - सर्वपल्ली राधाकृष्णन + +6346. 100. हरियाणा में पहली वाई-फाई हॉटस्पॉट गांव कौन था? - Gumthala Garhu + +6347. 2. इसरो का मुख्यालय - बेंगलुरु + +6348. 7. पहला ओलंपिक खेल? - एथेंस, ग्रीस में आयोजित किया गया था । + +6349. 12. शनि पर कौन सी गैसें पाई जा सकती हैं? - हाइड्रोजन और हीलियम + +6350. 17. साहित्य का 2015 का नोबेल पुरस्कार किसे दिया गया था? - स्वेतलाना अलेक्सिविच + +6351. 22. हाल ही में, दिल्ली पुलिस ने संकट में महिलाओं के लिए एक ऐप लॉन्च किया। ऐप का नाम है - हिम्मत + +6352. 27. बीएनपी परिबास ओपन टूर्नामेंट 2016 में महिला युगल खिताब की विजेता? - सानिया मिर्जा और मार्टिना हिंगिस + +6353. 32. INS विक्रांत किस वर्ष में विघटित हुआ था? - 1997 + +6354. 37. स्नूकर में गेंदों की संख्या कितनी होती है? - 22 + +6355. 42. पाकिस्तानी क्रिकेट अंपायर जिसे 5 साल के लिए प्रतिबंधित किया गया है? - असद रऊफ + +6356. 47. आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी द्वारा किस संविधान संशोधन को लागू किया गया था? - 42 वाँ संशोधन + +6357. 52. भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) की स्थापना किसके द्वारा की गई थी? - 1988 + +6358. 57. विश्व में पहली महिला मुस्लिम पीएम कौन थी? - बेनजीर भुट्टो + +6359. 62. सुभाष चंद्रा बोस ने किस पार्टी की स्थापना की - ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक + +6360. 67. पहली आधुनिक ग्रीष्मकालीन ओलंपिक - 1896 + +6361. 72. विश्व का पहला कैशलेस देश- स्वीडन + +6362. 77. निम्नलिखित में से कौन स्वराज पार्टी का संस्थापक था- मोतीलाल नेहरू + +6363. 82. राज्य सभा में विपक्षी नेता कौन होता है? - गुलाम नबी आज़ाद + +6364. 87. मिश्रित डबल विंबलडन चैंपियन 2015 - मार्टिना हिंगिस और लिएंडर पेस + +6365. 92. जिगर का अध्ययन - हेपेटोलॉजी + +6366. 97. 2016 में टी 20 महिला विश्व कप विजेता टीम की कप्तान कौन है? - स्टेफनी टेलर ( वेस्टइंडीज) + +6367. 102. IIM हाल ही में किस राज्य में खोला गया है? - आंध्र प्रदेश + +6368. 107. विश्व का सबसे खुशहाल देश - डेनमार्क + +6369. 112. सीडीएम का अर्थ है - कैश डिपॉजिट मशीन + +6370. 117. पंकज आडवाणी ने 13 वीं विश्व स्नूकर चैम्पियनशिप को हराकर? - चीन के यान बिंगताओ + +6371. 122. मिल्खा सिंह है? - उड़ता हुआ सिख + +6372. 127. सबसे छोटा ग्रह? - पारा + +6373. 132. एक दीवार से रबर की गेंद को उछालकर (न्यूटन के प्रथम कानून, न्यूटन के 2 नियम, न्यूटन के 3 आरडी कानून, उपरोक्त में से कोई नहीं) से संबंधित है? - न्यूटन का तीसरा नियम + +6374. 137. ब्रिक्स बैंक का नाम? - NDB (न्यू डेवलपमेंट बैंक) + +6375. 142. AAP पार्टी की स्थापना कब हुई? - २६ नवंबर २०१२ + +6376. 147. गगन नारंग और अभिनव बिंद्रा - शूटिंग से संबंधित + +6377. 152. नरेन्द्र मोदी नवाज़ शरीफ से मिलने के लिए उनके जन्मदिन पर उन्हें आश्चर्यचकित करते हैं - पाकिस्तान + +6378. 157. समाप्त ग्रह - प्लूटो + +6379. 162. आलू के चिप्स के पैकेट को फ्लश करने के लिए किस गैस का उपयोग किया जाता है? - नाइट्रोजन। + +6380. 167. भीमबेटका रॉक आश्रय स्थल कहा पे स्थित हैं - मध्य प्रदेश + +6381. 172. विश्व में सबसे बड़ा संविधान किस देश का है? - भारत + +6382. 177. ललिता बाबर खेलों से संबंधित हैं? - व्यायाम + +6383. 182. अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय कौन हैं? - राकेश शर्मा + +6384. 187. सीटी स्कैन में सीटी का फुलफॉर्म - कंप्यूटेड टोमोग्राफी + +6385. 192. बारदोली सत्याग्रह का नेतृत्व किसने किया? - सरदार वल्लभाई पटेल + +6386. 197. मैं काम करता हूं @ घर किस बैंक द्वारा है? - आईसीआईसीआई बैंक + +6387. 202. एसबीआई पिछला नाम? - इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया + +6388. 207. भोपाल गैस त्रासदी के परिणाम में कई लोग मारे गए, कौन सी गैस उजागर हुई? - मिथाइल आइसोसाइनेट है + +6389. 212. पहली चीनी महिला अंतरिक्ष में गई? - लियू यांग + +6390. 217. मिस्र का सबसे बड़ा पिरामिड कौन सा है? - गीज़ा के महान पिरामिड + +6391. 222. माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ के रूप में सत्य नडेला के पूर्ववर्ती कौन हैं? - स्टीव बाल्मर + +6392. 227. ध्वनि में मापा जाता है? - डेसिबल + +6393. 232. भारत का पहला रक्षा उपग्रह कौन सा है? - जीसैट -7 + +6394. 237. मैन बुकर पुरस्कार 2015 किसने जीता? - मार्लोन जेम्स + +6395. 242. श्रीलंका की पहली राजधानी? - अनुराधापुरा + +6396. 247. रबींद्रनाथ टैगोर को पहली बार गुरु देव किसने कहा था? - महात्मा गांधी + +6397. 252. प्रारंभिक चोलों में सबसे महान के रूप में किसे पहचाना जाता है? - करिकालन + +6398. 257. भारत में सबसे बड़ा मैंग्रोव वन - सुंदरवन + +6399. 262. RBI के 23 वें गवर्नर? - रघुराम राजन + +6400. 267. MMU? - मेमोरी मैनेजमेंट यूनिट + +6401. 272. SI बल की इकाई क्या है? - न्यूटन + +6402. 277. फाउंटेन पेन का आविष्कार किसने किया था? - पेट्राक पोएनारु + +6403. 282. क्राइस्ट की सबसे ऊंची प्रतिमा- रियो डी जनेरियो में स्थित है + +6404. 287. माउस का आविष्कार किसके द्वारा किया गया? - डगलस एंजेलबार्ट + +6405. 292. भारतीय स्वतंत्रता के दौरान सबसे बड़ी रियासत? - हैदराबाद + +6406. 297. साइना नेहवाल? - बैडमिंटन + +6407. 302. गोइचा ला पास किस राज्य में है? - सिक्किम + +6408. 307. भारत का डिजिटल राज्य कौन सा है? - केरल + +6409. 312. सबसे ऊंचा पुल किस नदी पर है? - भागीरथी + +6410. 317. अधिकतम तिरंगा फहराने वाले पीएम? - जवाहर लाल नेहरू + +6411. 322. 8 विश्व धरोहर दिवस? - 18 अप्रैल + +6412. नौ कार्यवाहक समूहों - भूमिकाएं और ज़िम्मेदारियां, आय के स्रोत, संसाधन आबंटन, विविधता, सहभागिताएं, क्षमता निर्माण, सामुदायिक स्वास्थ्य, उत्पाद व प्रौद्योगिकी और वकालत ने दस्तावेज तैयार किए हैं जिनमें हमारे आंदोलन की संरचनाओं से संबंधित विषयों पर मुख्य प्रश्न हैं। मई के अंत तक, हिंदी समुदाय के प्रत्येक सदस्य के पास इन सवालों के जवाब देने और स्कोपिंग दस्तावेजों पर अपनी राय साझा करने का मौका है। + +6413. इतिहास: + +6414. दक्षो वसिष्ठो धैम्यश्च कुत्स भार्गव सौश्रुवाः| + +6415. दक्षगोत्र परम्परा में स्वनाम धन्य श्री प्रातः स्मरणीय श्री श्रीजी शक्तिपीठाद्यीश्वर श्री १००८ श्री मकरन्द जी महाराज श्रीब्रह्मविद्यानुरागी श्री यन्त्रोपासक का नाम चतुर्वेद समाज को गौरवान्वित करता रहा है| जिनके दर्शन मात्र से जन-जन ने अपना सौभाग्य माना! + +6416. तंत्र सम्राट कामराज दीक्षित जी एक बहुत ही बड़े राजा थे! जिनकी रुचि श्रीविद्या में होने के कारण उन्होने अपना राजधर्म त्याग सन्यास ले लिया था| वह बहुत बड़े सिद्ध पुरुष हुए, और वह श्रीविद्या के बहुत बड़े ज्ञानी थे| श्रीविद्या की सिद्धि होने के कारण उनका प्रताप इतना था की, वह जिसके सामने सर झुका देते थे, उसके सर के दो भाग हो जाते थे| इस कारण से वह सर झुकाने के स्थान पर नारियल सामने रख देते थे| कहा जाता है कि नानाजी पेशवा ही संन्यस्त होने के बाद कामराज दीक्षित नाम से विख्यात हुए थे| उनका पुरश्चरण पूर्ण होने के कारण वह अपनी निधि किसी उत्तम पुरुष को देना चाहते थे| कई स्थानों पर घूमने के बाद उन्हें एक साधु मिले उन्होने उन्हें मथुरा में अम्बिकावन स्थित भगवती राजराजेश्वरी महाविद्या जी के मंदिर जाने की सलाह दी| कामराज दीक्षित जी मथुरा पधारे और अम्बिकावन स्थित भगवती राजराजेश्वरी महाविद्या जी के मंदिर में कुछ दिन रहे| एक दिन श्री श्रीजी शक्तिपीठाद्यीश्वर श्री १००८ श्री शंकरमुनि जी महाराज उनके दर्शनार्थ गए! श्री कामराज दीक्षित जी के साथ सदैव दो सिंह मुक्त रुप से रहते थे और एक बैताल भी रहता था| द्वार पर दो सिंहों को देखकर ही अनेक दर्शनार्थ आय हुए अनेको व्यक्ति लौट कर वापस चले गए| पर आप श्री के पदार्पण करते ही वे दोनो सिंह पाषाणमय हो गये (सिंहों की पाषाणमयी मूर्ति आज भी वहां विद्यमान है) + +6417. श्री श्रीजी शक्तिपीठाद्यीश्वर श्री १००८ श्री आसाराम जी महाराज । + +6418. तत्पुत्र + +6419. श्री श्रीजी शक्तिपीठाद्यीश्वर श्री १००८ श्री पूर्णानन्द जी महाराज । + +6420. कई वर्ष पहले की बात है । राजस्थान में जिला सवाई माधोपुर के समीप गुढाचन्द्र जी नाम का स्थान है । वहाँ एक मन्दिर की प्रतिष्ठा आपके द्वारा ही सम्पन्न हुई। गंगापुर से बैलगाडी़ मे जाना था इसलिए उस दिन निवास करना था। बाबा बजार का भोजन ग्रहण नही करते इसलिए एक मन्दिर में दारबाटी बनाने का कार्यक्रम बना । जेठ का महीना ऊपर सूरज तपता और नीचें गरम धरती । शिष्यो ने कहा बाबा बडी़ गर्मी है, दो रीठ लगेंगी तो क्या हाल होगा । + +6421. श्री श्रीजी शक्तिपीठाद्यीश्वर श्री १०८ श्री शुकानन्द जी महाराज । + +6422. "दोषा वाचे गुरु रपि" + +6423. "रहीमन सिप भुजंग मुख स्वाती एक गुण तिन। + +6424. https://3.bp.blogspot.com/-5uiotG76Cx4/XI3BPj4GM_I/AAAAAAAAEbA/4GbOXTIeHOccUAOrbr1engZeMpiVrXOUACLcBGAs/s1600/FB_IMG_1552401803870.jpgश वेल + +6425. sabse jyada ran banane wala aadami + +6426. 1. लेथ एक ऐसी मशीन है जो जिस पर किसी जॉब को स्पिण्डल अक्ष पर घुमाया जाता है, कटिंग टूल रेखीय गति करते हुए उस अक्ष के समानांतर लंब रूप या किसी कोण पर कटिंग प्रक्रिया करते हैं, इस कटिंग प्रक्रिया को क्या कहते हैं? -- '"होनिग + +6427. 6. स्क्वायर सोल्डर बनाने का क्या उद्देश्य है? -- "'मिलने वाले पाटर्स ठीक से शोल्डर पर मिल सके + +6428. 11. चक स्पिण्डल पर बाधते समय क्या सावधानी ली जाती है? -- '"गाइड वेज पर एक लकड़ी का लटका रहना चाहिए + +6429. 16. ड्राइविंग प्लेट किस कार्य के लिए इस्तेमाल की जाती है? -- "'दो केंद्रको के मध्य लगी शाफ्ट को डॉग द्वारा घुमाने के लिए + +6430. 21. लेथ मशीन पर एक कटिंग टूल के द्वारा प्रक्रिया की जा सकती है? -- '"टर्निग + +6431. 26. टूल द्वारा कार्यखंड के एक चक्कर में चली गई दूरी क्या कहलाती है? -- "'फीड + +6432. 31. क्रॉस स्लाइड कौन सा कार्य करता है? -- '"लॉगीट्यूडिनल फीड देने के काम आता है + +6433. 36. लेथ में चेंज गियर्स किस प्रकार बदलने चाहिए? -- "'रुकी अवस्था में + +6434. हिंदी साहित्य का इतिहास (रीतिकाल तक): + +6435. इतिहास दर्शन. + +6436. आगस्त कॉम्त के विधेयवादी दर्शन का इतिहास लेखन में पहला प्रयोग इप्पोलाइत अडोल्फ तेन ने किया और उनके माध्यम से हिंदी साहित्येतिहास लेखन में यह दृष्टिकोण प्रविष्ट हुआ। इस दृष्टि की मूल मान्यता है कि 'साहित्य समाज का दर्पण' होता है। इसके अनुसार साहित्य का समाज पर प्रभाव पड़ता है। किसी भी साहित्य के इतिहास के लेखन के लिए उससे संबंधित जातीय परंपराओं, राष्ट्रीय और सामाजिक वातावरण और परिस्थितियों का विवेचन और विश्लेषण किया जाता है। विधेयवादी इतिहासकार साहित्य संबंधी तथ्य एकत्र करने के अलावा तत्कालीन सामाजिक जीवन का अध्ययन करता है, साथ ही समाज और साहित्य के बीच कार्य-कारण संबंध स्थापित करता है। वह वैज्ञानिकता के नाम पर प्राकृतिक विज्ञान की प्रणाली को साहित्य के इतिहास लेखन में लागू करता है। रामचंद्र शुक्ल के 'हिंदी साहित्य का इतिहास' में कुछ सीमा तक इसी दृष्टि से इतिहास लेखन हुआ है। हालांकि इस दृष्टिकोण से इतिहास लेखन में साहित्यिक परंपरा का समुचित मूल्यांकन संभव नहीं हो पाता है। साहित्य निर्माण में परंपरा का भी योगदान होता है। इस दृष्टि की दूसरी सीमा यह है कि रचनाकार के निजी व्यक्तित्व और क्रियाशीलता की उपेक्षा होती है। लेखक सामाजिक यथार्थ को रचना में प्रतिबिंबित ही नहीं करता है बल्कि उसकी पुनर्रचना भी करता है। रामचंद्र शुक्ल द्वारा 'कबीर' का मूल्यांकन इसी सीमा के चलते समुचित तौर पर नहीं हो पाया है। इस दृष्टिकोण की तीसरी सीमा यह है कि रचना के शिल्प के विकास का विवेचन नहीं हो पाता है। + +6437. मार्क्सवादी या यथार्थवादी दृष्टिकोण. + +6438. हिंदी साहित्य का इतिहास (रीतिकाल तक)/हिंदी साहित्येतिहास लेखन की परंपरा: + +6439. हिंदी साहित्येतिहास लेखन की परंपरा को रामचंद्र शुक्ल के उपरांत हजारी प्रसाद द्विवेदी ने आगे बढ़ाया। 'हिंदी साहित्य का आदिकाल', 'हिंदी साहित्य की भूमिका' तथा 'हिंदी साहित्य : उद्भव और विकास' आदि रचनाओं में एक नवीन इतिहासबोध प्रस्तुत किया। द्विवेदी जी परंपरावादी दृष्टिकोण के समर्थक हैं, जिसके अंतर्गत किसी भी रचना या रचनाकार का मूल्यांकन इस दृष्टि से होता है कि वह अपनी परंपरा से किस प्रकार प्रभावित हुआ। वे हिंदी साहित्य की भूमिका के तहत उसे "भारतीय चिंता का स्वाभाविक विकास" मानते हैं। इस स्वाभाविक विकास की प्रक्रिया में ही कबीर का रहस्यवाद नाथों के हठयोग का अगला चरण है, जबकि सूर का शृंगार जयदेव और विद्यापति की परंपरा का अगला चरण। द्विवेदी जी ने साहित्य का मूल्यांकन मानवतावादी प्रतिमानों पर किया। वैज्ञानिक विश्लेषण और वर्गीकरण पर संश्लेषण और समग्रता को वरीयता प्रदान की। इनकी सीमा यह रही कि इन्होंने युगीन परिस्थितियों को पर्याप्त महत्व नहीं दिया और कहीं-कहीं रचनाकार का व्यक्तित्व भी पर्याप्त महत्व नहीं पा सका। + +6440. रामविलास शर्मा का इतिहासबोध मार्क्सवादी है। इसके अंतर्गत माना जाता है कि साहित्य किसी समाज की उत्पादन प्रणाली का ऊपरी ढाँचा है जिसकी व्याख्या बुनियादी ढाँचे अर्थात उत्पादन प्रणाली के माध्यम से ही की जा सकती है। इसी दृष्टिकोण के आधार पर वे प्रेमचंद, भारतेंदु और निराला के साथ-साथ महावीर प्रसाद द्विवेदी और रामचंद्र शुक्ल के कृतित्व का मूल्यांकन करते हैं। + +6441. + +6442. काव्य की उत्पत्ति के समय से ही उसके लक्षणों पर विचार होने लगा। पाठक सहृदय के लिए 'काव्य किसे कहेंगे' या 'कविता क्या है' वह मूलभूत प्रश्न है जिसकी विभिन्न आचार्यों ने विभिन्न दृष्टिकोण से व्याख्या की है। कवि के द्वारा जो कार्य संपन्न हो, उसे 'काव्य' कहते हैं - 'कवेरिदं कार्यं भावो वा'। कवि को 'सर्वज्ञ' और द्रष्टा भी माना गया है। + +6443. जनपदसुखबोध्यं युक्तिमन्नृत्ययोज्यं। + +6444. काव्य-लक्षण का वास्तविक विकास भामह से होता है। उनके अनुसार शब्द एवं अर्थ का सहभाव ही काव्य है - "शब्दार्थौ सहितौ काव्यम्"। वे कहते हैं कि जहां शब्द और अर्थ परस्पर सहित भाव या प्रतिस्पर्धा करते हुए सामने आते हैं, वहाँ शब्दार्थ सन्निधि में काव्यत्व होता है। भामह के अनुसार शब्दालंकार और अर्थालंकार, दोनों का सहभाव ही काव्य-सौंदर्य का द्योतक है। वे शब्द और अर्थ को समान महत्व देते हुए दोनों के प्रतिस्पर्धा और सामंजस्य की उपयोगिता सिद्ध करते हैं। शब्द और अर्थ के इसी प्रतिस्पर्धा और सामंजस्य से चारूत्व अर्थात् सौन्दर्य की निष्पत्ति होती है, जिसे बाद में पण्डितराज जगन्नाथ ने रमणीयता कहा है। + +6445. रूद्रट. + +6446. आचार्य मम्मट का लक्षण प्रौढ़ एवं सुदीर्घ चिंतन का परिणाम है। उनके अनुसार दोषरहित, गुणसहित तथा यथासंभव अलंकारयुक्त शब्दार्थ ही काव्य है। उन्होंने काव्य में अलंकार की स्थिति वैकल्पिक मानकर उसे गौण बना दिया है - "तददोषौ शब्दार्थौ सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि" अपने प्रसिद्ध ग्रंथ'काव्य प्रकाश' में मम्मट ने काव्य को परिभाषित करते हुए कहा है कि वहां (काव्य में)शब्द और अर्थ का सहभाव दोष रहित,गुण सहित और कहीं पर बिना अलंकृति के भी होता है। अदोष तात्पर्य है काव्य दोषों जैसे क्लिष्टत्व,श्रुतिकटुत्व,ग्राम्यत्व,अश्लीलत्व आदि दोषों से रहित होना चाहिए। गुण का तात्पर्य है भरत मुनि द्वारा निर्दिष्ट काव्य गुणों जैसे माधुर्य, ओज,समता,समाधि,श्लेष आदि गुणों से युक्त होना चाहिए। ऐसे शब्दार्थ के संयोजन में कहीं कहीं बिना अलंकार के भी काम चल सकता है। + +6447. निष्कर्ष. + +6448. + +6449. आधुनिक चिंतन और साहित्य पुस्तक साहित्य को प्रभावित करने वाले आधुनिक चिंतन से परिचय कराने के उद्देश्य से लिखी गई पुस्तक है। यह प्राथमिक रूप से दिल्ली विश्वविद्यालय के शोध संबंधी पाठ्यक्रम पर आधारित है। + +6450. विकिपुस्तक स्टैक/विभाग: + +6451. भारतीय काव्यशास्त्र/काव्य हेतु: + +6452. काव्यं तु जायते जातुं कस्यचित् प्रतिभावतः॥" (काव्यालंकार-१-१४) + +6453. अमन्दश्चाभियोगोऽस्याः कारणं काव्यसंपदः॥"(काव्यादर्श-१/१०३) + +6454. प्रतिभा को जन्मजात गुण मानते हुए इसे प्रमुख काव्य हेतु स्वीकार किया गया है – "कवित्व बीजं प्रतिभानं कवित्वस्य बीजम्।" प्रतिभा के अतिरिक्त वे लोकव्यवहार, शास्त्रज्ञान, शब्दकोश आदि की जानकारी को भी काव्य हेतुओं में स्थान देते हैं। ध्यातव्य है कि काव्यांग में वामन ने लोक तथा विद्या के पश्चात ही प्रतिभा को महत्व दिया है। + +6455. "न काव्यार्थ विरामोऽस्ति यदि स्यात् प्रतिभा गुणः। + +6456. मम्मट. + +6457. पंडितराज जगन्नाथ. + +6458. लिनक्स मार्गदर्शिका: + +6459. लिनक्स में आपका स्वागत है! जीएनयू/लिनक्स को यूनिक्स ऑपरेटिंग सिस्टम द्वारा विकसित किया गया है, लेकिन यह ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर है। जिसका अर्थ है कि आप इसका सोर्स कोड देख सकते हैं और इसे अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप बदल सकते हैं। बेशक यह पुस्तक उन के लिए है जो लिनक्स की दुनिया में नए है। हम उच्च तकनीकी मुद्दों से दूर रहकर लिनक्स सीखेंगे। यह पुस्तक उस व्यक्ति के लिए उपयोगी साबित होगी जिसने लिनक्स के बारे में सिर्फ सुना है, इसे सीखना चाहता है या शायद वह व्यक्ति जो पहले से ही "डुबकी लगा चुका है" और अधिक जानकारी की तलाश कर रहा है या सोच रहा है कि लिनक्स स्थापित (इंस्टॉल) करने के लिए कहाँ से शुरू करे। लेकिन पहले, थोड़ा इतिहास का ज्ञान आवश्यक है। + +6460. भारतीय काव्यशास्त्र/काव्य प्रयोजन: + +6461. हितोपदेशजननं धृतिक्रीडा सुखादिकृत्॥ + +6462. अर्थात् उत्तम, मध्यम, और अधम मनुष्यों के कर्म को अच्छे ढंग से आश्रय देने (निरूपित करने) के लिए और हितकारी उपदेश देने के लिए, सुख प्रदान करने वाली यह बुद्धि की क्रीड़ा अर्थात् रचना होगी । + +6463. आचार्य भामह के अनुसार धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष और कलाओं में विचक्षणता (अद्भुत निपुणता) पाने के साथ साथ कीर्ति और लोगों का प्यार (लोकप्रियता) पाने के लिए साधु अर्थात् श्रेष्ठ काव्य की रचना (कवि करता है) होती है। यहाँ पर भामह ने चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति को काव्य रचना का कारण बताकर कवि के लिए अन्य सांसारिक जिम्मेदारियों के निर्वाह को उसी में समाहित कर दिया है। कवि जब तक अन्य कर्तव्य और चिन्ताओं में फंसा रहेगा तब तक वह व्यक्तिगत राग द्वेष के अधीन होकर श्रेष्ठ काव्य की रचना नहीं कर सकता क्योंकि रचनाकार को द्रष्टा रूप में ही काव्योचित सत्य की उपलब्धि हो सकती है। ऐसा न रहने पर उसकी रचना में व्यापक लोक सामान्य अनुभव समाहित नहीं हो पाएंगे और वह रचना समाज में क्लेश व विघटन लाने वाली होकर जीवन के संतुलन को भंग करने वाली हो सकती है। धन प्राप्ति के लिए उसे कोई अन्य कर्तव्य करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि कलाओं में निपुणता प्राप्त करने पर वह कहीं पर भी जीविका उपलब्ध कर लेगा। यश और लोकप्रियता हासिल करने पर उसकी भौतिक जरूरतें अपने आप पूरी हो जाएंगी। श्रेष्ठ काव्य की रचना से सारे अभीष्ट पदार्थों की प्राप्ति हो सकती है, ऐसा भामह का मानना है। + +6464. अदृष्ट प्रयोजनं कीर्त्तिहेतुत्वात्।" (काव्यालंकारसूत्रवृत्ति, १/१/५) + +6465. भामह के काव्य-प्रयोजन का विस्तार करते हुए रुद्रट मानते हैं कि काव्य का प्रयोजन चतुर्वर्ग (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) की फल-प्राप्ति के अतिरिक्त अनर्थ का शमन, विपत्ति का निवारण, रोगविमुक्ति तथा अभीष्ट वर की प्राप्ति है। + +6466. नृत्वा यथा हि दुर्गा केचित्तीर्णा दुस्तरां विपदम्। + +6467. "धर्मादिसाधनोपायः सुकुमारक्रमोदितः। + +6468. कायामृतरसेनांतश्चमत्कारो वितन्यते॥ - (वक्रोक्तिजीवितम्, १/३, ४, ५) + +6469. सद्यः परिनिर्वृत्तये कांतसम्मिततयोपदेशयुजे॥" - (काव्यप्रकाश, १/२) + +6470. "चतुर्वर्गफलप्राप्तिः सुखादल्पधियामपि।" - (साहित्यदर्पण, १/२) कहना न होगा कि विश्वनाथ की चतुर्वर्ग की प्राप्ति के उद्देश्य से काव्य सृजन की बात मम्मट के कांता सम्मित उपदेश का ही विस्तार है। + +6471. लिनक्स मार्गदर्शिका/वितरण: + +6472. डेस्कटॉप या सर्वर? यह अंतर शायद सबसे महत्वपूर्ण है। डेस्कटॉप के लिए वितरण में एक ग्राफिकल यूजर इंटरफेस होगा, जबकि सर्वर वितरण अलग होते हैं। + +6473. क्या वितरण में एक अच्छा पैकेज प्रबंधन प्रणाली और उपयुक्त सॉफ़्टवेयर रिपॉजिटरी है? + +6474. रेड हैट लिनक्स का नि: शुल्क संस्करण। + +6475. इंशा अल्ला, चौधरी साहब के कुनबे में बरक्कत हुई । चौधरी फ़ज़ल कुरबान रेलवे में काम करते थे । अल्लाह ने उन्हें चार बेटे और तीन-बेटियां दीं। चौधरी इलाही बख्श डाकखाने में थे । उन्हें भी अल्लाह ने चार बेटे और दो लड़कियाँ बख्शीं । + +6476. चौधरी पीरबख्श का भी ब्याह हो गया मौला के करम से बीबी की गोद भी जल्दी ही भरी । पीरबख्श ने रौजगार के तौर पर खानदान की इज्ज़त के ख्याल से एक तेल की मिल में मुंशीगिरी कर लीं । तालीम ज्यादा नहीं तो क्या, सफेदपोश खानदान की इज्ज़त का पास तो था । मजदूरी और दस्तकारी उनके करने की चीजें न थीं । चौकी पर बैठते । कलम-दवात का काम था । + +6477. जहाँ बाल-बच्चे और घर-बार होता है, सौ किस्म की झंझटें होती ही हैं । कभी बच्चे को तकलीफ़ है, तो कभी ज़च्चा को । ऐसे वक्त में कर्ज़ की जरूरत कैसे न हो ? घर-बार हो, तो कर्ज़ भी होगा ही । + +6478. चोर से ज्यादा फ़िक्र थी आबरू की । किवाड़ न रहने पर पर्दा ही अाबरू का रखवारा था । वह परदा भी तार-तार होते-होते एक रात आँधी में किसी भी हालत में लटकने लायक न रह गया । दूसरे दिन घर की एकमात्र पुश्तैनी चीज़ दरी दरवाज़े पर लटक गयी । मुहल्लेवालों ने देखा और चौधरी को सलाह दी-'अरे चौधरी, इस ज़माने में दरी यों-काहे खराब करोगे? बाज़ार से ला टाट का टुकडा न लटका दो! ' पीरबख्श टाट की कीमत भी आते-जाते कई दफे़ पूछ चुके थे । दो गज़ टाट आठ आने से कम में न मिल सकता था । हँसकर बोले-"होने दो क्या है? हमारे यहाँ पक्की हवेली में भी ड्योढी पर दरी का ही पर्दा रहता था । " + +6479. खान को वे शैतान समझते थे, लेकिन लाचार हो जाने पर उसी की शरण लेनी पड़ी । चार आना रुपया महीने पर चार रुपया कर्ज लिया । शरीफ़ खानदानी, मुसलमान भाई का ख्याल कर बबर अली ने एक रुपया माहवार की किश्त मान ली । आठ महीने में 'कर्ज अदा होना तय हुआ । + +6480. मिल से घर लौटते समय वे मंडी की ओर टहल गये। दो घंटे बाद जब समझा, खान टल गया होगा और अनाज की गठरी ले वे घर पहुंचे । खान के भय से दिल डूब रहा था, लेकिन दूसरी ओर चार भूखे बच्चों, उनकी माँ, दूध न उतर सकने के कारण सूखकर काँटा हो रहे गोद के बच्चे और चलने-फिरने से लाचार अपनी ज़ईफ़ माँ की भूख से बिलबिलाती सूरतें आखों के सामने नाच जातीं । धड़कते हुए हृदय से वे कहते जाते-"मौला सब देखता है, खैर करेगा ।" + +6481. उत्तर मिला-"मियाँ, पैसे कहाँ इस ज़माने में! पैसे का मोल कौड़ी नहीं रह गया । हाथ में आने से पहले ही उधार में उठ गया तमाम !" + +6482. खान की तेजी बढ़ गयी । उसके ऊँचे स्वर से पड़ोस के मोची और मज़दूर चौधरी के दरवाजे़ के सामने इकट्‌ठे हो गये । खान क्रोध में डंडा फटकारकर कह रहा था--"पैसा नहीं देना था, लिया क्यों ? तनख्वाह किदर में जाता ? अरामी अमारा पैसा मारेगा । अम तुमारा खाल खींच लेगा.। पैसा नई है, तो घर पर परदा लटका के शरीफ़ज़ादा कैसे बनता ?.. .तुम अमको बीबी का गैना दो, बर्तन दो, कुछ तो भी दो, अम ऐसे नई जायेगा । " + +6483. भय से चीखकर ओट में हो जाने केलिए भागती हुई औरतों पर दया कर भीड़ छँट गयी । चौधरी बेसुध पड़े थे । जब उन्हें होश आया, ड्योढ़ी का परदा आंगन में सामने पड़ा था; परन्तु उसे उठाकर फिर से लटकादेने का सामर्थ्य उनमें शेष न था । शायद अब इसकी आवश्यकता भी न रही थी । परदा जिस भावना का अवलम्ब था, वह मर चुकी थी । + +6484. भीतर पहुँचकर मैंने पूछा, ‘वे यहाँ नहीं है?’’ + +6485. मालती एक पंखा उठा लायी, और मुझे हवा करने लगी। मैंने आपत्ति करते हुए कहा, ‘‘नहीं, मुझे नहीं चाहिए।’’ पर वह नहीं मानी, बोली,‘‘वाह! चाहिए कैसे नहीं? इतनी धूप में तो आये हो। यहाँ तो...’’ + +6486. मैं आज कोई चार वर्ष बाद उसे देखना आया हूँ। जब मैंने उसे इससे पूर्व देखा था, तब वह लड़की ही थी, अब वह विवाहिता है, एक बच्चे की माँ भी है। इससे कोई परिवर्तन उसमें आया होगा और यदि आया होगा तो क्या, यह मैंने अभी तक सोचा नहीं था, किन्तु अब उसकी पीठ की ओर देखता हुआ मैं सोच रहा था, यह कैसी छाया इस घर पर छायी हुई है... और विशेषतया मालती पर... + +6487. काफ़ी देर मौन रहा। थोड़ी देर तक तो वह मौन आकस्मिक ही था, जिसमें मैं प्रतीक्षा में था कि मालती कुछ पूछे, किन्तु उसके बाद एकाएक मुझे ध्यान हुआ, मालती ने कोई बात ही नहीं की... यह भी नहीं पूछा कि मैं कैसा हूँ, कैसे आया हूँ... चुप बैठी है, क्या विवाह के दो वर्ष में ही वह बीते दिन भूल गयी? या अब मुझे दूर-इस विशेष अन्तर पर-रखना चाहती है? क्योंकि वह निर्बाध स्वच्छन्दता अब तो नहीं हो सकती... पर फिर भी, ऐसा मौन, जैसा अजनबी से भी नहीं होना चाहिए... + +6488. वे, यानी मालती के पति आये। मैंने उन्हें पहली बार देखा था, यद्यपि फ़ोटो से उन्हें पहचानता था। परिचय हुआ। मालती खाना तैयार करने आँगन में चली गयी, और हम दोनों भीतर बैठकर बातचीत करने लगे, उनकी नौकरी के बारे में, उनके जीवन के बारे में, उस स्थान के बारे में और ऐसे अन्य विषयों के बारे में जो पहले परिचय पर उठा करते हैं, एक तरह का स्वरक्षात्मक कवच बनकर... + +6489. मैंने उत्तर दिया, ‘‘वाह! देर से खाने पर तो और अच्छा लगता है, भूख बढ़ी हुई होती है, पर शायद मालती बहिन को कष्ट होगा।’’ + +6490. फिर बच्चे को डाँटकर कहा, ‘‘चुपकर।’’ जिससे वह और भी रोने लगा, मालती ने भूमि पर बैठा दिया। और बोली, ‘‘अच्छा ले, रो ले।’’ और रोटी लेने आँगन की ओर चली गयी! + +6491. ‘‘बहुत था।’’ + +6492. ‘‘बरतन भी तुम्हीं माँजती हो?’’ + +6493. ‘‘रोज़ ही होता है... कभी वक़्त पर तो आता नहीं, आज शाम को सात बजे आएगा, तब बरतन मँजेंगे।’’ + +6494. ‘‘तो दो-एक दिन रहोगे न?’’ + +6495. ‘‘यहाँ!’’ कहकर मालती थोड़ा-सा हँस दी। वह हँसी कह रही थी, ‘यहाँ पढ़ने को है क्या?’ + +6496. ‘‘आख़िर तुमसे मिलने आया हूँ।’’ + +6497. ‘‘रहने भी दो, थके नहीं, भला थके हैं?’’ + +6498. एकाएक वह एक-स्वर टूट गया - मौन हो गया। इससे मेरी तन्द्रा भी टूटी, मैं उस मौन में सुनने लगा... + +6499. ‘‘एक काँटा चुभा था, उसी से हो गया, बड़े लापरवाह लोग होते हैं यहाँ के...’’ + +6500. ‘‘हाँ, पहले तो दुनिया में काँटे ही नहीं होते होंगे? आज तक तो सुना नहीं था कि काँटों के चुभने से मर जाते हैं...’’ + +6501. महेश्वर बोले, ‘‘अब रो-रोकर सो जाएगा, तभी घर में चैन होगी।’’ + +6502. मालती बरतन धो चुकी थी। जब वह उन्हें लेकर आँगन के एक ओर रसोई के छप्पर की ओर चली, तब महेश्वर ने कहा, ‘‘थोड़े-से आम लाया हूँ, वह भी धो लेना।’’ + +6503. मालती कुछ नहीं पढ़ती थी, उसके माता-पिता तंग थे, एक दिन उसके पिता ने उसे एक पुस्तक लाकर दी और कहा कि इसके बीस पेज रोज़ पढ़ा करो, हफ़्ते भर बाद मैं देखूँ कि इसे समाप्त कर चुकी हो, नहीं तो मार-मार कर चमड़ी उधेड़ दूँगा। मालती ने चुपचाप किताब ले ली, पर क्या उसने पढ़ी? वह नित्य ही उसके दस पन्ने, बीस पेज, फाड़ कर फेंक देती, अपने खेल में किसी भाँति फ़र्क न पड़ने देती। जब आठवें दिन उसके पिता ने पूछा, ‘‘किताब समाप्त कर ली?’’ तो उत्तर दिया...‘‘हाँ, कर ली,’’ पिता ने कहा, ‘‘लाओ, मैं प्रश्न पूछूँगा, तो चुप खड़ी रही। पिता ने कहा, तो उद्धत स्वर में बोली, ‘‘किताब मैंने फाड़ कर फेंक दी है, मैं नहीं पढ़ूँगी।’’ + +6504. और हम दोनों चुपचाप रात्रि की, और भोजन की और एक-दूसरे के कुछ कहने की, और न जाने किस-किस न्यूनता की पूर्ति की प्रतीक्षा करने लगे। + +6505. तब लगभग साढ़े दस बजे थे, मालती भोजन कर रही थी। + +6506. मैंने देखा, प्रकाश से धुँधले नीले आकाश के तट पर जो चमगादड़ नीरव उड़ान से चक्कर काट रहे हैं, वे भी सुन्दर दीखते हैं... + +6507. मालती ने रोते हुए शिशु को मुझसे लेने के लिए हाथ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘इसके चोटें लगती ही रहती है, रोज़ ही गिर पड़ता है।’’ + +6508. + +6509. कुहरे में बसें दौड रही हैं। जूँ-जूँ करते भारी टायरों की आवाजें दूर से नजदीक आती हैं और फिर दूर होती जाती हैं। मोटर-रिक्शे बेतहाशा भागे चले जा रहे हैं। टैक्सी का मीटर अभी किसी ने डाउन किया है। पडोस के डॉक्टर के यहाँ फोन की घंटी बज रही है। और पिछवाडे गली से गुजरती हुई कुछ लडकियाँ सुबह की शिफ्ट पर जा रही हैं। + +6510. और इस वक्त सडक पर आती हुई यह अर्थी उन्हीं की होगी। कुछ लोग टोपियाँ लगाए और मफलर बाँधे हुए खामोशी से पीछे-पीछे आ रहे हैं। उनकी चाल बहुत धीमी है। कुछ दिखाई पड रहा है, कुछ नहीं दिखाई पड रहा है, पर मुझे ऐसा लगता है अर्थी के पीछे कुछ आदमी हैं। + +6511. 'सरदारजी के लिए मक्खन लेने, उसने वहीं से जवाब दिया तो लगे हाथों लपककर मैंने भी अपनी सिगरेट मँगवाने के लिए उसे पैसे थमा दिए। + +6512. अतुल मवानी मुझे आयरन लौटाने आता है। मैं आयरन लेकर दरवाजा बंद कर लेना चाहता हूँ, पर वह भीतर आकर खडा हो जाता है और कहता है, 'तुमने सुना, दीवानचंदजी की कल मौत हो गई है। + +6513. 'वक्त तो नौ बजे का था, शायद सर्दी और कुहरे की वजह से कुछ देर हो जाए। वह कह रहा है और मुझे लगता है कि यह बात शवयात्रा के बारे में ही है। + +6514. मैं जवाब दे देता हूँ, 'हाँ, आ रही है। मैं जानता हूँ कि वह इलेक्ट्रिक रॉड से पानी गर्म कर रहा है, इसीलिए उसने यह पूछा है। + +6515. और अर्थी अब कुछ और पास आ गई है। + +6516. दो मिनट बाद ही सरदारजी तैयार होकर नीचे आते हैं कि वासवानी ऊपर से ही मवानी का सूट देखकर पूछता है, 'ये सूट किधर सिलवाया? + +6517. अर्थी अब सडक पर ठीक मेरे कमरे के नीचे है। उसके साथ कुछेक आदमी हैं, एक-दो कारें भी हैं, जो धीरे-धीरे रेंग रही हैं। लोग बातों में मशगूल हैं। + +6518. मैं चुपचाप खडा सब देख रहा हूँ और अब न जाने क्यों मुझे मन में लग रहा है कि दीवानचंद की शवयात्रा में कम से कम मुझे तो शामिल हो ही जाना चाहिए था। उनके लडके से मेरी खासी जान-पहचान है और ऐसे मौके पर तो दुश्मन का साथ भी दिया जाता है। सर्दी की वजह से मेरी हिम्मत छूट रही है... पर मन में कहीं शवयात्रा में शामिल होने की बात भीतर ही भीतर कोंच रही है। + +6519. अर्थी को बाहर बने चबूतरे पर रख दिया गया है। अब खामोशी छा गई है। इधर-उधर बिखरी हुई भीड शव के इर्द-गिर्द जमा हो गई है और कारों के शोफर हाथों में फूलों के गुलदस्ते और मालाएँ लिए अपनी मालकिनों की नजरों का इंतजार कर रहे हैं। + +6520. कुछ आदमियों ने अगरबत्तियाँ जलाकर शव के सिरहाने रख दी हैं। वे निश्चल खडे हैं। + +6521. मातमपुरसी के लिए आए हुए आदमी और औरतें अब बाहर की तरफ लौट रहे हैं। कारों के दरवाजे खुलने और बंद होने की आवाजें आ रही हैं। स्कूटर स्टार्ट हो रहे हैं। और कुछ लोग रीडिंग रोड, बस-स्टॉप की ओर बढ रहे हैं। + +6522. चिता में आग लगा दी गई है और चार-पाँच आदमी पेड के नीचे पडी बैंच पर बैठे हुए हैं। मेरी तरह वे भी यूँ ही चले आए हैं। उन्होंने जरूर छुट्टी ले रखी होगी, नहीं तो वे भी तैयार होकर आते। + +6523. चौक से निकलकर बाईं ओर जो बड़े साइनबोर्ड वाला छोटा कैफे है वहीं जगदीश बाबू ने उसे पहली बार देखा था। गोरा-चिट्टा रंग, नीला श़फ्फ़ाफ़ आँखें, सुनहरे बाल और चाल में एक अनोखी मस्ती-पर शिथिलता नहीं। कमल के पत्ते पर फिसलती हुई पानी की बूँद की-सी फुर्ती। आँखों की चंचलता देखकर उसकी उम्र का अनुमान केवल नौ-दस वर्ष ही लगाया जा सकता था और शायद यही उम्र उसकी रही होगी। + +6524. ”क्या नाम है तुम्हारा?“ + +6525. इस बार शायद उसे पहाड़ और जिले को भेद मालूम हो गया। मुस्कराकर बोला- + +6526. ”डोट्यालगों,“ वह सकुचाता हुआ-सा बोला। + +6527. ‘दाज्यू जैहिन्न...।’ + +6528. ‘लाया दाज्यू’, दूसरी टेबल से मदन की आवाज़ सुनाई देती। मदन ‘दाज्यू’ शब्द को उतनी ही आतुरता और लगन से दुहराता जितनी आतुरता से बहुत दिनों के बाद मिलने पर माँ अपने बेटे को चूमती है। कुछ दिनों बाद जगदीश बाबू का एकाकीपन दूर हो गया। उन्हें अब चैक, कैफे़ ही नहीं सारा शहर अपनेपन के रंग में रँगा हुआ-सा लगने लगा। परन्तु अब उन्हें यह बार-बार ‘दाज्यू’ कहलाना अच्छा नहीं लगता और यह मदन था कि दूसरी टेबल से भी ‘दाज्यू’...। + +6529. घर-गाँव से दूर, ऐसी परिस्थिति में मदन का जगदीश बाबू के प्रति आत्मीयता-प्रदर्शन स्वाभाविक ही था। इसी कारण आज प्रवासी जीवन में पहली बार उसे लगा जैसे किसी ने उसे ईजा की गोदी से, बाबा की बाँहों से, और दीदी के आँचल की छाया से बलपूर्वक खींच लिया हो। परंतु भावुकता स्थायी नहीं होती। रो लेने पर, अंतर की घुमड़ती वेदना को आँखों की राह बाहर निकाल लेने पर मनुष्य जो भी निश्चय करना है वे भावुक क्षणों की अपेक्षा अधिक विवेकपूर्ण होते हैं। + +6530. मदन चाय ले आया था। + +6531. हरी बिंदी
मृदुला गर्ग + +6532. दराज खोली तो नज़र चांदी की बाली पर पड़ गयी। उठा कर कानों में लटका लीं। विवाह के बाद से पहननी छोड़ दी थी। नकली हैं न। और जरूरत से ज्यादा बड़ी, राजन कहता है। एक पुराना बैग हाथ में ले, झपट कर बाहर निकल आयी। बरामदे में मुंडू बैठा आराम से सिगरेट फूक रहा था, राजन की। उसे देखते ही हथेली में छिपा, बड़ी संजीदगी से बोला, “खाना क्या बनाऊं?” + +6533. बाहर आ कर ख़याल आया, हो सकता है, वह कलाकार न हो, उद्योगपति हो। दो किस्म के इंसान ही दाढ़ी रखने का साहस कर सकते हैं, कलाकार और सामंत। सामंत अब रहे नहीं, उनका स्थान उद्योगपतियों ने ले लिया है। तब तो दिन भर यही सोचता रहेगा, उसने सॉरी क्यों कहा। उसमें भी नफे की गुंजाइश ढूंढता रहेगा। वह दूने वेग से हंस दी। + +6534. “जीं नहीं। लाया।” + +6535. “सुहावना?” उसने कुछ अचरज से कहा, “या बेरंग?” + +6536. “हाँ आज खूब बरसेगा,” उसने कहा। फिर अनायास जोड़ा, “कॉफी पियेंगे?” + +6537. वह ठहाका मार कर हंस पड़ा, “इंगलैंड में”, उसने कहा। + +6538. “बतलाना सच सच होगा।” + +6539. वह जोर से हँस पड़ी, दुर्भावना से नहीं, हर्ष के अतिरेक से। + +6540. कुछ देर दोनों चुप रहे। + +6541. “मौका मिले तो देखिएगा।” + +6542. वह हामी में सिर हिला कर मुस्करा दी। उसने देखा, कॉफी खत्म हो चली है और बैरा बिल लिये आ रहा है। बाहर वर्षा थमने लगी है, धुंध भी छंट रही है। नहीं, धुआंधार नहीं बरसेगा। वह संकेत झूठा निकला। अब धुंध हट जायेगी और वही तेज़ प्रकाश वाला सूर्य निकल आयेगा। + +6543. “आज का दिन मेरे लिए काफी कीमती रहा है।” + +6544. राजभाषा कार्यान्वयन में तकनीकी की भूमिका: + +6545. "(राजभाषा अधिकारियों द्वारा दिए गए आंकड़ों पर आधारित)" + +6546. "(इसमें आनलाइन और आफ़लाइन दोनों ही प्रशिक्षण के आंकड़े सम्मिलित हैं।)" + +6547. आज कार्यालयों में राजभाषा हिंदी में अगर कार्य बढ़ता जा रहा है, हिंदी कार्यान्वयन की स्थिति मजबूत हो रही है, हिंदी क्रियान्वयन की रफ्तार बढ़ रही है, तो उसमें तकनीकी का बहुत बड़ा योगदान है। तकनीकी की मदद से आज हिंदी में काम करना बहुत आसान हो गया है। आज केंद्रीय सरकार के लगभग सभी कार्यालयों में प्रस्तुत होने वाले मैनुअल कार्य, संदर्भ व प्रक्रिया साहित्य हिंदी में उपलब्ध हो गए हैं। काफी कुछ पत्राचार हिंदी में हो रहे हैं। सभी कार्यालयों की वेबसाइटें हिंदी में उपलब्ध हो गई है। लोगों में हिंदी में काम करने की ललक अवश्य बढ़ी है। यद्यपि तकनीकी की मदद से काफी कुछ काम हिंदी में किया जाना संभव हो पाया है। तथापि तकनीकी की सभी संभावनाओं का प्रयोग हिंदी भाषा के लिए करने की स्थिति में हम अभी नही आ सके हैं। तमाम सॉफ्टवेयरों की लोकलाइजेशन नहीं हुआ है। अभी भी बहुत से सॉफ्टवेयरों का लोकलाइजेशन अभी करना बाकी है। तमाम सॉफ्टवेयर अंग्रेजी व कुछ अन्य भाषाओं के लिए तो बहुत अच्छा कार्य करते हैं, परंतु हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं में उतनी दक्षता से कार्य नहीं कर पाते हैं। देश भर में प्रायः सभी कार्यालयों में अपने आंतरिक काम-काज के लिए इंट्रानेट व अन्य प्रचालन सॉफ्टवेयर बनवाए जाते हें, परंतु दुःखद यह है कि इनमें से अधिकांश अंग्रेजी को ही समर्थित करते है, जिससे न चाहते हुए भी तमाम लोगों को अंग्रेजी में काम करना पड़ता है। इससे कार्यालयों में कुछ काम मजबूरी के चलते भी अंग्रेजी में करने पड़ रहे हैं। फिर भी इसमें कोई संदेह नहीं है कि राजभाषा हिंदी आज कार्यालयों में जिस स्थिति में खड़ी है, उसमें तकनीकी का बहुत बड़ा योगदान है। + +6548. उत्तर. एन्टोमोलाजी + +6549. 4. सब्जी विज्ञान के अध्ययन को क्या कहते है। + +6550. + +6551. आगे ते सतगुरु मिल्या, दीपक दीया हाथि ॥११॥ + +6552. भगति भजन हरि नाँव है, दूजा दुक्ख अपार। + +6553. बिरह कौ अंग. + +6554. जिह घटि बिरह न संचरै, सो घट सदा मसान॥२१॥ + +6555. कबीर कवल प्रकासिया, ऊग्या निर्मल सूर। + +6556. गूँगे केरी सरकरा, बैठे मुसुकाई॥टेक॥ + +6557. कहै कबीर सकति कछु नाहीं, गुरु भया सहाई॥ + +6558. एकमेक ह्वै सेज न सोवै, तब लग कैसा नेह रे॥ + +6559. + +6560. + +6561. आधुनिककालीन हिंदी साहित्य का इतिहास/स्वाधीनता आंदोलन और नवजागरणकालीन चेतना का उत्कर्ष: + +6562. सबके पहिले जेहि ईश्वर धन बल दीनो। + +6563. हा हा! भारतदुर्दशा न देखी जाई ।। + +6564. छायावादी कवियों ने भी राष्ट्रीय भावना की अनेक कविताएं लिखीं। निराला ने 'वर दे वीणा वादिनी', 'भारती जय विजय करे', 'जागो फिर एक बार', 'शिवाजी का पत्र' आदि लिखीं। प्रसाद के नाटकों में 'अरूण यह मधुमय देश हमारा' चन्द्रगुप्त नाटक में आया 'हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती' आदि कविताओं में देश प्रेम का भाव व्यक्त किया है। + +6565. माखनलाल चतुर्वेदी ने हिमकिरीटनी, हिमतरंगिनी, माता, युगचरण, समर्पण आदि कृतियों में राष्ट्रीय भाव की रचनाएं की। + +6566. हिंदी में देशप्रेम की बहुत सी कविताएं लिखी गई हैं। यहाँ कुछ कवियों की कतिपय प्रमुख कविताओं का संग्रह किया गया है। + +6567. जिनकी निर्मल किर्ति निशाकर। + +6568. साक्षी सत्य-रूप हिमगिरिवर। + +6569. पाओगे तुम इनके तट पर। + +6570. देशप्रेम की कविताएं/विप्लव-गान - बालकृष्ण शर्मा नवीन: + +6571. बरसे आग, जलद जल जाये, भस्मसात् भूधर हो जाये, + +6572. आँखों का पानी सूखे, हाँ, वह खून की घूँट हो जाये, + +6573. कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ जिससे उथल-पुथल मच जाये! + +6574. नाश! नाश!! हाँ, महानाश!! की प्रलयंकारी आँख खुल जायें, + +6575. भारतीय काव्यशास्त्र/शब्द शक्तियाँ: + +6576. अभिधा के भेद. + +6577. योग. + +6578. 'मुख्यार्थ बाधे तद्युक्तो ययान्योsर्थः प्रीयते। + +6579. प्रयोजनवती के दो भेद गौणी और शुद्धा है। गौणी और शुद्धा के दो-दो भेद है उपादान और लक्षण। उपादान और लक्षण के भी दो-दो भेद है सारोपा और साध्यवसाना। + +6580. गौणी. + +6581. जहाँ मुख्यार्थ और लक्ष्यार्थ दोनों रहते हैं वहां उपादान लक्षणा होती है। जैसे:- लालपगड़ी कहने पर मुख्य अर्थ के साथ सिद्धी पूर्ति के लिए लक्ष्यार्थ 'पुलिस वाले' का भी बोध हो रहा है। + +6582. साध्यवसाना. + +6583. व्यंजना के दो भेद है-- शाब्दी व्यंजना और आर्थी व्यंजना। शाब्दी व्यंजना के दो और भेद है अभिधामूलक व्यंजना और लक्षणामूलक व्यंजना। + +6584. अभिधामूलक व्यंजना. + +6585. कार्यालयी हिंदी/टिप्पण: + +6586. टिप्पण दो प्रकार के होते हैं- १. संक्षिप्त और २. विस्तृत। + +6587. उदाहरण- + +6588. विशेषताएं. + +6589. बूढ़े भारत में भी आई फिर से नई जवानी थी, + +6590. लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी, + +6591. देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार, + +6592. ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में, + +6593. किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई, + +6594. राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया, + +6595. व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया, + +6596. कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात, + +6597. उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार, + +6598. वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान, + +6599. यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी, + +6600. खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी। + +6601. खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी। + +6602. खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी। + +6603. खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी। + +6604. खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी। + +6605. खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी। + +6606. बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, + +6607. बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, + +6608. हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती + +6609. सपूत मातृभूमि के- रुको न शूर साहसी! + +6610. मेरे नगपति! मेरे विशाल! + +6611. मेरे नगपति! मेरे विशाल! + +6612. यतिवर! कैसा यह अमर ध्यान? + +6613. पल भर को तो कर दृगुन्मेष! + +6614. रे, आन पड़ा संकट कराल, + +6615. तू तरुण देश से पूछ अरे, + +6616. तू सिंहनाद कर जाग तपी! + +6617. लौटा दे अर्जुन-भीम वीर। + +6618. जहँ भए शाक्य हरिचंद नहुष ययाती। + +6619. भारतेन्दु ने अशिक्षा, धार्मिक भेदभाव, अकर्मण्यता की ओर इशारा करके कहा है कि अंग्रेज़ों के औपनिवेशिक शासन में भारत गरीब होता जा रहा है और इस देश में महंगाई, अकाल और बीमारियों ने पैर पसार लिए हैं। भारत की इस दुर्दशा को भारतीयों के सामने रखकर उनकी यही अपेक्षा है कि सब में राष्ट्रीय चेतना जाग्रत हो और सभी इस दशा को सुधारने में अपना योगदान दें! + +6620. एक देवस कौनिउ तिथि आई। मानसरोदक चली अन्हाई।१। + +6621. कोइ सोनजरद जेउँ केसरि। कोइ सिंगारहार नागेसरि।६। + +6622. खेलत मानसरोवर गई। जाइ पालि पर ठाढ़ी भई।१। + +6623. कित आवन पुनि अपने हाथाँ। कित मिलिकै खेलब एक साथा।६। + +6624. सरवर तीर पदुमिनीं आई। खोंपा छोरि केस मोकराई।१। + +6625. दसन दामिनी कोकिल भाषीं। भौहें धनुक गगन लै राखीं।६। + +6626. धरीं तीर सब छीप क सारीं। सरवर महँ पैठीं सब बारी।१। + +6627. सरवर नहिं समाइ संसारा। चाँद नहाइ पैठ लिए तारा।६। + +6628. आदिकालीन एवं मध्यकालीन हिंदी कविता/अमीर खुसरो: + +6629. खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग। + +6630. व्याख्या. + +6631. पिया–पिया कहती मैं पल भर सुख न चैन॥ + +6632. न लेहु काहे लगाये छतियाँ + +6633. यकायक अज़ दिल ब-सद फ़रेबम + +6634. वरोज़-ए-वसलश चूँ उम्र कोताह + +6635. नाटक हिंदी साहित्य में सबसे पहले विकसित होने वाली साहित्यिक विधा है। रामचंद्र शुक्ल इसे रेखांकित करते हुए लिखते हैं- यह विलक्षण बात है कि आधुनिक हिंदी साहित्य का विकास नाटकों से शुरु हुआ। हिंदी में नाटक विधा को शुरु करने वाले और कुछ ही वर्षों में ऊँचाई पर प्रतिष्ठित करने वाले साहित्यकार थे भारतेंदु हरिश्चंद्र। उन्होंने अपने ‘नाटक’ शीर्षक निबंध में अपने से पूर्व लिखे गए तीन नाटकों का उल्लेख किया है। इनमें रीवां नरेश विश्वनाथ सिंह का ‘आनन्द रघुनन्दन’ नाटक हिन्दी का प्रथम मौलिक नाटक माना जाता है। जो लगभग 1700 ई. में लिखा गया था, किन्तु एक तो उसमें ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है, दूसरे वह रामलीला की पद्धति पर है। अतः वह आधुनिक नाट्यकला से सर्वथा दूर है। + +6636. हिंदी भाषा और उसकी लिपि का इतिहास: + +6637. हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन)/सहायक सामग्री: + +6638. + +6639. चंद्रधर शर्मा गुलेरी + +6640. 'मगरे में; और तेरे?' + +6641. दूसरे-तीसरे दिन सब्जीवाले के यहाँ, दूधवाले के यहाँ अकस्मात दोनों मिल जाते। महीना-भर यही हाल रहा। दो-तीन बार लड़के ने फिर पूछा, तेरी कुड़माई हो गई? और उत्तर में वही 'धत्' मिला। एक दिन जब फिर लड़के ने वैसे ही हँसी में चिढ़ाने के लिए पूछा तो लड़की, लड़के की संभावना के विरुद्ध बोली - 'हाँ हो गई।' + +6642. 'लहना सिंह, और तीन दिन हैं। चार तो खंदक में बिता ही दिए। परसों रिलीफ आजाएगी और फिर सात दिन की छुट्टी। अपने हाथों झटका करेंगे और पेट-भर खा कर सोरहेंगे। उसी फिरंगी मेम के बाग में - मखमल का-सा हरा घास है। फल और दूध कीवर्षा कर देती है। लाख कहते हैं, दाम नहीं लेती। कहती है, तुम राजा हो, मेरेमुल्क को बचाने आए हो।' + +6643. वजीरासिंह पलटन का विदूषक था। बाल्टी में गँदला पानी भर कर खाईं के बाहरफेंकता हुआ बोला - 'मैं पाधा बन गया हूँ। करो जर्मनी के बादशाह का तर्पण !' इसपर सब खिलखिला पड़े और उदासी के बादल फट गए। + +6644. 'देश-देश की चाल है। आज तक मैं उसे समझा न सका कि सिख तंबाखू नहीं पीते। वहसिगरेट देने में हठ करती है, ओठों में लगाना चाहती है,और मैं पीछे हटता हूँ तोसमझती है कि राजा बुरा मान गया, अब मेरे मुल्क के लिए लड़ेग़ा नहीं।' + +6645. वजीरासिंह ने त्योरी चढ़ा कर कहा - 'क्या मरने-मारने की बात लगाई है? मरेंजर्मनी और तुरक! हाँ भाइयों, कैसे - + +6646. कद्दू बणाया वे मजेदार गोरिए, + +6647. 'क्यों बोधा भाई, क्या है?' + +6648. 'मेरे पास सिगड़ी है और मुझे गर्मी लगती है। पसीना आ रहा है।' + +6649. आधा घंटा बीता। इतने में खाईं के मुँह से आवाज आई - 'सूबेदार हजारासिंह।' + +6650. आँख मारते-मारते लहनासिंह सब समझ गया। मुँह का भाव छिपा कर बोला - 'लाओसाहब।' हाथ आगे करते ही उसने सिगड़ी के उजाले में साहब का मुँह देखा। बाल देखे।तब उसका माथा ठनका। लपटन साहब के पट्टियों वाले बाल एक दिन में ही कहाँ उड़ गएऔर उनकी जगह कैदियों से कटे बाल कहाँ से आ गए?' शायद साहब शराब पिए हुए हैं औरउन्हें बाल कटवाने का मौका मिल गया है? लहनासिंह ने जाँचना चाहा। लपटन साहबपाँच वर्ष से उसकी रेजिमेंट में थे। + +6651. 'वहीं जब आप खोते पर सवार थे और और आपका खानसामा अब्दुल्ला रास्ते के एकमंदिर में जल चढ़ाने को रह गया था? बेशक पाजी कहीं का - सामने से वह नील गायनिकली कि ऐसी बड़ी मैंने कभी न देखी थीं। और आपकी एक गोली कंधे में लगी औरपुट्ठे में निकली। ऐसे अफसर के साथ शिकार खेलने में मजा है। क्यों साहब, शिमलेसे तैयार होकर उस नील गाय का सिर आ गया था न? आपने कहा था कि रेजमेंट की मैसमें लगाएँगे।' + +6652. अँधेरे में किसी सोनेवाले से वह टकराया। + +6653. 'क्या?' + +6654. 'हुकुम तो यह है कि यहीं - ' + +6655. इतने में बिजली की तरह दोनों हाथों से उल्टी बंदूक को उठा कर लहनासिंह नेसाहब की कुहनी पर तान कर दे मारा। धमाके के साथ साहब के हाथ से दियासलाई गिरपड़ी। लहनासिंह ने एक कुंदा साहब की गर्दन पर मारा और साहब 'ऑख! मीन गौट्ट' कहतेहुए चित्त हो गए। लहनासिंह ने तीनों गोले बीन कर खंदक के बाहर फेंके और साहब कोघसीट कर सिगड़ी के पास लिटाया। जेबों की तलाशी ली। तीन-चार लिफाफे और एक डायरीनिकाल कर उन्हें अपनी जेब के हवाले किया। + +6656. बोधा चिल्लया - 'क्या है?' + +6657. इस लड़ाई की आवाज तीन मील दाहिनी ओर की खाईंवालों ने सुन ली थी। उन्होंनेपीछे टेलीफोन कर दिया था। वहाँ से झटपट दो डाक्टर और दो बीमार ढोने की गाड़ियाँचलीं, जो कोई डेढ़ घंटे के अंदर-अंदर आ पहुँची। फील्ड अस्पताल नजदीक था। सुबहहोते-होते वहाँ पहुँच जाएँगे, इसलिए मामूली पट्टी बाँध कर एक गाड़ी में घायललिटाए गए और दूसरी में लाशें रक्खी गईं। सूबेदार ने लहनासिंह की जाँघ में पट्टीबँधवानी चाही। पर उसने यह कह कर टाल दिया कि थोड़ा घाव है सबेरे देखा जाएगा।बोधासिंह ज्वर में बर्रा रहा था। वह गाड़ी में लिटाया गया। लहना को छोड़ करसूबेदार जाते नहीं थे। यह देख लहना ने कहा - 'तुम्हें बोधा की कसम है, औरसूबेदारनीजी की सौगंध है जो इस गाड़ी में न चले जाओ।' + +6658. गाड़ियाँ चल पड़ी थीं। सूबेदार ने चढ़ते-चढ़ते लहना का हाथ पकड़ कर कहा - 'तैनेमेरे और बोधा के प्राण बचाए हैं। लिखना कैसा? साथ ही घर चलेंगे। अपनी सूबेदारनीको तू ही कह देना। उसने क्या कहा था?' + +6659. लहनासिंह बारह वर्ष का है। अमृतसर में मामा के यहाँ आया हुआ है। दहीवाले केयहाँ, सब्जीवाले के यहाँ, हर कहीं, उसे एक आठ वर्ष की लड़की मिल जाती है। जब वहपूछता है, तेरी कुड़माई हो गई? तब धत् कह कर वह भाग जाती है। एक दिन उसने वैसेही पूछा, तो उसने कहा - 'हाँ, कल हो गई, देखते नहीं यह रेशम के फूलोंवाला सालू? सुनते ही लहनासिंह को दुःख हुआ। क्रोध हुआ। क्यों हुआ? + +6660. 'नहीं।' + +6661. रोती-रोती सूबेदारनी ओबरी में चली गई। लहना भी आँसू पोंछता हुआ बाहर आया। + +6662. 'हाँ, अब ठीक है। पानी पिला दे। बस, अब के हाड़ में यह आम खूब फलेगा। चचा-भतीजादोनों यहीं बैठ कर आम खाना। जितना बड़ा तेरा भतीजा है, उतना ही यह आम है। जिसमहीने उसका जन्म हुआ था, उसी महीने में मैंने इसे लगाया था।' वजीरासिंह के आँसूटप-टप टपक रहे थे। + +6663. प्रेमचंद + +6664. मुन्नी उसके पास से दूर हट गयी और आँखें तरेरती हुई बोली- कर चुकेदूसरा उपाय ! जरा सुनूँ तो कौन-सा उपाय करोगे ? कोई खैरात दे देगाकम्मल ? न जाने कितनी बाकी है, जों किसी तरह चुकने ही नहीं आती । मैंकहती हूँ, तुम क्यों नहीं खेती छोड़ देते ? मर-मर काम करो, उपज हो तोबाकी दे दो, चलो छुट्टी हुई । बाकी चुकाने के लिए ही तो हमारा जनमहुआ है । पेट के लिए मजूरी करो । ऐसी खेती से बाज आये । मैं रुपये नदूँगी, न दूँगी । + +6665. हल्कू ने रुपये लिये और इस तरह बाहर चला मानो अपना हृदय निकालकर देनेजा रहा हो । उसने मजूरी से एक-एक पैसा काट-कपटकर तीन रुपये कम्मल केलिए जमा किये थे । वह आज निकले जा रहे थे । एक-एक पग के साथ उसकामस्तक अपनी दीनता के भार से दबा जा रहा था । + +6666. हल्कू ने हाथ निकालकर जबरा की ठंडी पीठ सहलाते हुए कहा- कल से मत आनामेरे साथ, नहीं तो ठंडे हो जाओगे । यह राँड पछुआ न जाने कहाँ से बरफलिए आ रही है । उठूँ, फिर एक चिलम भरूँ । किसी तरह रात तो कटे ! आठचिलम तो पी चुका । यह खेती का मजा है ! और एक-एक भगवान ऐसे पड़े हैं, जिनके पास जाड़ा जाय तो गरमी से घबड़ाकर भागे। मोटे-मोटे गद्दे, लिहाफ- कम्मल । मजाल है, जाड़े का गुजर हो जाय । तकदीर की खूबी ! मजूरी हम करें, मजा दूसरे लूटें ! + +6667. जबरा ने अपने पंजे उसकी घुटनियों पर रख दिये और उसके मुँह के पासअपना मुँह ले गया । हल्कू को उसकी गर्म साँस लगी । + +6668. एक घंटा और गुजर गया। रात ने शीत को हवा से धधकाना शुरु किया। हल्कूउठ बैठा और दोनों घुटनों को छाती से मिलाकर सिर को उसमें छिपा लिया, फिर भी ठंड कम न हुई | ऐसा जान पड़ता था, सारा रक्त जम गया है, धमनियों मे रक्त की जगह हिम बह रहा है। उसने झुककर आकाश की ओर देखा, अभी कितनी रात बाकी है ! सप्तर्षि अभी आकाश में आधे भी नहीं चढ़े ।ऊपर आ जायँगे तब कहीं सबेरा होगा । अभी पहर से ऊपर रात है । + +6669. बगीचे में खूब अँधेरा छाया हुआ था और अंधकार में निर्दय पवन पत्तियोंको कुचलता हुआ चला जाता था । वृक्षों से ओस की बूँदे टप-टप नीचे टपकरही थीं । + +6670. थोड़ी देर में अलाव जल उठा । उसकी लौ ऊपर वाले वृक्ष की पत्तियों कोछू-छूकर भागने लगी । उस अस्थिर प्रकाश में बगीचे के विशाल वृक्ष ऐसेमालूम होते थे, मानो उस अथाह अंधकार को अपने सिरों पर सँभाले हुए होंअंधकार के उस अनंत सागर मे यह प्रकाश एक नौका के समान हिलता, मचलताहुआ जान पड़ता था । + +6671. जब्बर ने पूँछ हिलायी । + +6672. यह कहता हुआ वह उछला और उस अलाव के ऊपर से साफ निकल गया । पैरों मेंजरा लपट लगी, पर वह कोई बात न थी । जबरा आग के गिर्द घूमकर उसके पासआ खड़ा हुआ । + +6673. जबरा जोर से भूँककर खेत की ओर भागा । हल्कू को ऐसा मालूम हुआ किजानवरों का एक झुंड खेत में आया है। शायद नीलगायों का झुंड था । उनकेकूदने-दौड़ने की आवाजें साफ कान में आ रही थी । फिर ऐसा मालूम हुआ किखेत में चर रहीं हैं। उनके चबाने की आवाज चर-चर सुनाई देने लगी। + +6674. उसने जोर से आवाज लगायी- लिहो-लिहो !लिहो! ! + +6675. सबेरे जब उसकी नींद खुली, तब चारों तरफ धूप फैल गयी थी और मुन्नी कहरही थी- क्या आज सोते ही रहोगे ? तुम यहाँ आकर रम गए और उधर सारा खेतचौपट हो गया । + +6676. दोनों खेत की दशा देख रहे थे । मुन्नी के मुख पर उदासी छायी थी, परहल्कू प्रसन्न था । + +6677. छोटा जादूगर + +6678. मैंने पूछा, "और उस परदे में क्‍या है? वहाँ तुम गए थे?" + +6679. मनुष्‍यों की भीड़ से जाड़े की संध्‍या भी वहाँ गरम हो रही थी। हम दोनों शरबत पीकर निशाना लगाने चले। राह में ही उससे पूछा, "तुम्‍हारे घर में और कौन हैं?" + +6680. "देश के लिए।" वह गर्व से बोला। + +6681. मैं आश्‍चर्य से उस तेरह-चौदह वर्ष के लड़के को देखने लगा। + +6682. हम दोनों उस जगह पर पहुँचे जहाँ खिलौने को गेंद से गिराया जाता था। मैंने बारह टिकट खरीदकर उस लड़के को दिए। + +6683. "मैं हूँ छोटा जादूगर।" + +6684. "नहीं जी, तुमको..." क्रोध से मैं कुछ और कहने जा रहा था। श्रीमतीजी ने कहा, "दिखलाओ जी, तुम तो अच्‍छे आए। भला, कुछ मन तो बहले।" मैं चुप हो गया, क्‍योंकिश्रीमतीजी की वाणी में वह माँ की-सी मिठास थी, जिसके सामने किसी भी लड़के को रोका नहीं जा सकता। उसने खेल आरंभ किया। + +6685. मैंने कहा, "लड़के!" + +6686. वह नमस्‍कार करके चला गया। हम लोग लता-कुंज देखने के लिए चले। + +6687. मेरी आँखों से आँसू निकल पड़े। + +6688. उसके मुँह पर वहीं परिचित तिरस्‍कार की रेखा फूट पड़ी। + +6689. + +6690. पास-पड़ोस में तो सब नन्हीं-बड़ी के पैरों में आप वही पाजेब देख लीजिए। एक ने पहनी कि फिर दूसरी ने भी पहनी। देखा-देखी में इस तरह उनका न पहनना मुश्किल हो गया है। + +6691. बोली, मैं तो आज ही मंगा लूंगी। + +6692. और हमारे महाशय आशुतोष, जो मुन्नी के बड़े भाई थे, पहले तो मुन्नी को सजी-बजी देखकर बड़े खुश हुए। वह हाथ पकड़कर अपनी बढ़िया मुन्नी को पाजेब-सहित दिखाने के लिए आस-पास ले गए। मुन्नी की पाजेब का गौरव उन्हें अपना भी मालूम होता था। वह खूब हँसे और ताली पीटी, लेकिन थोड़ी देर बाद वह ठुमकने लगे कि मुन्नी को पाजेब दी, सो हम भी बाईसिकिल लेंगे। + +6693. बुआ ने कहा कि हां, यह बात पक्की रही, जन्म-दिन पर तुमको बाईसिकिल मिलेगी। + +6694. मैंने आश्चर्य से कहा कि क्या मतलब? + +6695. जवाब में वह मुझी से पूछने लगी कि फिर कहाँ है? + +6696. मैंने कहा कि संभालकर रखी थीं, तो फिर यहां-वहां क्यों देख रही थी? जहां रखी थीं वहीं से ले लो न। वहां नहीं है तो फिर किसी ने निकाली ही होगी। + +6697. श्रीमती जोर से बोली, तो फिर मैं क्या बताऊं? तुम्हें तो किसी बात की फिकर है नही। डांटकर कहते क्यों नहीं हो, उस बंसी को बुलाकर? जरूर पाजेब उसी ने ली है। + +6698. इस पर श्रीमती ने कहा कि तुम नौकरों को नहीं जानते। वे बड़े छंटे होते हैं। बंसी चोर जरूर है। नहीं तो क्या फरिश्ते लेने आते? + +6699. मैंने कहा कि जो कहीं पाजेब ही पड़ी मिल गई हो तो? + +6700. सवेरे बुलाकर मैंने गंभीरता से उससे पूछा कि क्यों बेटा, एक पाजेब नहीं मिल रही है, तुमने तो नहीं देखी? + +6701. मैंने कहा कि बेटा आशुतोष, तुम घबराओ नहीं। सच कहने में घबराना नहीं चाहिए। ली हो तो खुल कर कह दो, बेटा! हम कोई सच कहने की सजा थोड़े ही दे सकते हैं। बल्कि बोलने पर तो इनाम मिला करता है। + +6702. मैंने कहा, देखो बेटा, डरो नहीं; अच्छा जाओ, ढूंढो; शायद कहीं पड़ी हुई वह पाजेब मिल जाए। मिल जाएगी तो हम तुम्हें इनाम देंगे। + +6703. मैं कुछ बोला नहीं। मेरा मन जाने कैसे गंभीर प्रेम के भाव से आशुतोष के प्रति उमड़ रहा था। मुझे ऐसा मालूम होता था कि ठीक इस समय आशुतोष को हमें अपनी सहानुभूति से वंचित नहीं करना चाहिए। बल्कि कुछ अतिरिक्त स्नेह इस समय बालक को मिलना चाहिए। मुझे यह एक भारी दुर्घटना मालूम होती थी। मालूम होता था कि अगर आशुतोष ने चोरी की है तो उसका इतना दोष नहीं है; बल्कि यह हमारे ऊपर बड़ा भारी इल्जाम है। बच्चे में चोरी की आदत भयावह हो सकती है, लेकिन बच्चे के लिए वैसी लाचारी उपस्थित हो आई, यह और भी कहीं भयावह है। यह हमारी आलोचना है। हम उस चोरी से बरी नहीं हो सकते। + +6704. मैंने बहुत खुश होकर कहा कि दी है न छुन्नू को ? + +6705. सुनकर माँ उसकी बहुत खुश हो आईं। उन्होंने उसे चूमा। बहुत शाबाशी दी ओर उसकी बलैयां लेने लगी ! + +6706. मैंने आग्रह किया तो वह बोला कि छुन्नू के पास नहीं हुई तो वह कहाँ से देगा ? + +6707. "हाँ !" + +6708. "नहीं, पतंग लाएंगे ?" + +6709. वह जाना नहीं चाहता था। उसने फिर कहा कि छुन्नू के पास नहीं हुई तो कहाँ से देगा ! + +6710. मैंने डपटकर कहा कि जाओ, जहाँ हो वही से पाजेब लेकर आओ। + +6711. मैंने कहा कि जितने में उसने बेची होगी वह दाम दे देंगे। समझे न जाओ, तुम कहो तो। + +6712. आशुतोष ने जिद बांधकर कहा कि दी तो थी। कह दो, नहीं दी थी ? + +6713. श्रीमती बुदबुदाती हुई नाराज होकर मेरे सामने से चली गईं । + +6714. "तुम्हें ठीक मालूम है ?" + +6715. माँ ने मेरे सामने छुन्नू को खींचकर तभी धम्म-धम्म पीटना शुरू कर दिया। कहा कि क्यों रे, झूठ बोलता है ? तेरी चमड़ी न उधेड़ी तो मैं नहीं। + +6716. इस पर छुन्नू की माँ ने पास बैठी हुई मेरी पत्नी से कहा, "चलो बहनजी, मैं तुम्हें अपना सारा घर दिखाए देती हूँ। एक-एक चीज देख लो। होगी पाजेब तो जाएगी कहाँ ?" + +6717. मैं सुनकर खुश हुआ। मैंने कहा कि चलो अच्छा है, अब पाँच आने भेजकर पाजेब मँगवा लेंगे। लेकिन यह पतंग वाला भी कितना बदमाश है, बच्चों के हाथ से ऐसी चीज़ें लेता है। उसे पुलिस में दे देना चाहिए । उचक्का कहीं का ! + +6718. "क्या कर रहा है ?" + +6719. मैंने कहा कि आओ चलो । अब क्या बात है। क्यों हज़रत, तुमको पाँच ही आने तो मिले हैं न ? हम से पाँच आने माँग लेते तो क्या हम न देते? सुनो, अब से ऐसा मत करना, बेटे ! + +6720. "अभी तो उसके पास होंगे न !" + +6721. "हाँ" + +6722. मैंने कहा, तो यह क्यों नहीं कहते कि तुम्हें नहीं मालूम है ? + +6723. "हाँ" + +6724. "बाकी पैसे थे ?" + +6725. वह गुम-सुम खड़ा रहा, कुछ नहीं बोला। + +6726. "सुनते नहीं, मैं क्या कह रहा हूँ?" + +6727. दस मिनट बाद फिर उसे पास बुलवाया। उसका मुँह सूजा हुआ था। बिना कुछ बोले उसके ओंठ हिल रहे थे। कोठरी में बंद होकर भी वह रोया नहीं। + +6728. "वह चौराहे वाला ? बोलो---" + +6729. "नहीं जाओगे!" + +6730. उसने फिर सिर हिला दिया कि नहीं जाऊंगा। + +6731. लेकिन देखता क्या हूँ कि कुछ देर में प्रकाश लौट आया है। + +6732. "जाओ, पकड़कर तो लाओ।" + +6733. खैर, मैंने इस बीच प्रकाश को कहा कि तुम दोनों पतंग वाले के पास जाओ। + +6734. प्रकाश मेरा बहुत लिहाज मानता था। वह मुंह डालकर चला गया। कोठरी खुलवाने पर आशुतोष को फर्श पर सोता पाया। उसके चेहरे पर अब भी आँसू नहीं थे। सच पूछो तो मुझे उस समय बालक पर करुणा हुई । लेकिन आदमी में एक ही साथ जाने क्या-क्या विरोधी भाव उठते हैं ! + +6735. आशुतोष पर इसका विशेष प्रभाव पड़ा हो, ऐसा मालूम नहीं हुआ। + +6736. बुआ ने आशुतोष के सिर पर हाथ रखकर पूछा कि कहाँ जा रहे हो, मैं तो तुम्हारे लिए केले और मिठाई लाई हूँ। + +6737. बुआ ने कहा कि बात क्या है? क्या बात है? + +6738. बोली कि उस रोज भूल से यह एक पाजेब मेरे साथ चली गई थी। + +6739. हिरामन गाड़ीवान की पीठ में गुदगुदी लगती है... + +6740. बीसों गाड़ियाँ एक साथ कचकचा कर रुक गईं। हिरामन ने पहले ही कहा था, 'यह बीस विषावेगा!' दारोगा साहब उसकी गाड़ी में दुबके हुए मुनीम जी पर रोशनी डाल कर पिशाची हँसी हँसे - 'हा-हा-हा! मुनीम जी-ई-ई-ई! ही-ही-ही! ऐ-य, साला गाड़ीवान, मुँह क्या देखता है रे-ए-ए! कंबल हटाओ इस बोरे के मुँह पर से!' हाथ की छोटी लाठी से मुनीम जी के पेट में खोंचा मारते हुए कहा था, 'इस बोरे को! स-स्साला!' + +6741. गाड़ियों की आड़ में सड़क के किनारे दूर तक घनी झाड़ी फैली हुई थी। दम साध कर तीनों प्राणियों ने झाड़ी को पार किया - बेखटक, बेआहट! फिर एक ले, दो ले - दुलकी चाल! दोनों बैल सीना तान कर फिर तराई के घने जंगलों में घुस गए। राह सूँघते, नदी-नाला पार करते हुए भागे पूँछ उठा कर। पीछे-पीछे हिरामन। रात-भर भागते रहे थे तीनों जन। + +6742. गाड़ीवानों के दल में तालियाँ पटपटा उठीं थीं एक साथ। सभी की लाज रख ली हिरामन के बैलों ने। हुमक कर आगे बढ़ गए और बाघगाड़ी में जुट गए - एक-एक करके। सिर्फ दाहिने बैल ने जुतने के बाद ढेर-सा पेशाब किया। हिरामन ने दो दिन तक नाक से कपड़े की पट्टी नहीं खोली थी। बड़ी गद्दी के बडे सेठ जी की तरह नकबंधन लगाए बिना बघाइन गंध बरदास्त नहीं कर सकता कोई। + +6743. 'अहा! मारो मत!' + +6744. हिरामन की सवारी ने करवट ली। चाँदनी पूरे मुखड़े पर पड़ी तो हिरामन चीखते-चीखते रूक गया - अरे बाप! ई तो परी है! + +6745. उसकी सवारी मुस्कराती है। ...मुस्कराहट में खुशबू है। + +6746. हिरामन ने अपने बैलों को झिड़की दी - 'कान चुनिया कर गप सुनने से ही तीस कोस मंजिल कटेगी क्या? इस बाएँ नाटे के पेट में शैतानी भरी है।' हिरामन ने बाएँ बैल को दुआली की हल्की झड़प दी। + +6747. हीराबाई ने परख लिया, हिरामन सचमुच हीरा है। + +6748. हिरामन होशियार है। कुहासा छँटते ही अपनी चादर से टप्पर में परदा कर दिया -'बस दो घंटा! उसके बाद रास्ता चलना मुश्किल है। कातिक की सुबह की धूल आप बर्दास्त न कर सकिएगा। कजरी नदी के किनारे तेगछिया के पास गाड़ी लगा देंगे। दुपहरिया काट कर...।' + +6749. हिरामन परदे के छेद से देखता है। हीराबाई एक दियासलाई की डिब्बी के बराबर आईने में अपने दाँत देख रही है। ...मदनपुर मेले में एक बार बैलों को नन्हीं-चित्ती कौड़ियों की माला खरीद दी थी। हिरामन ने, छोटी-छोटी, नन्हीं-नन्हीं कौड़ियों की पाँत। + +6750. 'कौन जमाना?' ठुड्डी पर हाथ रख कर साग्रह बोली। + +6751. हीराबाई ने अपनी ओढ़नी ठीक कर ली। तब हिरामन को लगा कि... लगा कि... + +6752. 'पटपटांग! धन-दौलत, माल-मवेसी सब साफ! देवता इंदरासन चला गया।' + +6753. हमरा पर होखू सहाई हे मैया, हमरा पर होखू सहाई!' + +6754. सूरज दो बाँस ऊपर आ गया था। हिरामन अपने बैलों से बात करने लगा - 'एक कोस जमीन! जरा दम बाँध कर चलो। प्यास की बेला हो गई न! याद है, उस बार तेगछिया के पास सरकस कंपनी के जोकर और बंदर नचानेवाला साहब में झगड़ा हो गया था। जोकरवा ठीक बंदर की तरह दाँत किटकिटा कर किक्रियाने लगा था, न जाने किस-किस देस-मुलुक के आदमी आते हैं!' + +6755. गाड़ी की बल्ली पर उँगलियों से ताल दे कर गीत को काट दिया हिरामन ने। छोकरा-नाच के मनुवाँ नटुवा का मुँह हीराबाई-जैसा ही था। ...क़हाँ चला गया वह जमाना? हर महीने गाँव में नाचनेवाले आते थे। हिरामन ने छोकरा-नाच के चलते अपनी भाभी की न जाने कितनी बोली-ठोली सुनी थी। भाई ने घर से निकल जाने को कहा था। + +6756. साइकिलवाला दुबला-पतला नौजवान मिनमिना कर कुछ बोला और बीड़ी सुलगा कर उठ खड़ा हुआ। हिरामन दुनिया-भर की निगाह से बचा कर रखना चाहता है हीराबाई को। उसने चारों ओर नजर दौड़ा कर देख लिया - कहीं कोई गाड़ी या घोड़ा नहीं। + +6757. हीराबाई लौट कर आई तो उसने हँस कर कहा, 'अब आप गाड़ी का पहरा दीजिए, मैं आता हूँ तुरंत।' + +6758. हीराबाई आँख खोल कर अचरज में पड़ गई। एक हाथ में मिट्टी के नए बरतन में दही, केले के पत्ते। दूसरे हाथ में बालटी-भर पानी। आँखों में आत्मीयतापूर्ण अनुरोध! + +6759. 'पहले-पीछे क्या? तुम भी बैठो।' + +6760. हीराबाई छत्तापुर-पचीरा का नाम भूल गई। गाड़ी जब कुछ दूर आगे बढ़ आई तो उसने हँस कर पूछा, 'पत्तापुर-छपीरा?' + +6761. लाली रे दुलहिनिया + +6762. नहीं हाथी, नहीं घोड़ा, नहीं गाड़ी - + +6763. हिरामन कुछ देर तक बैलों को हाँकता रहा चुपचाप। फिर बोला, 'गीत जरूर ही सुनिएगा? नहीं मानिएगा? इस्स! इतना सौक गाँव का गीत सुनने का है आपको! तब लीक छोड़ानी होगी। चालू रास्ते में कैसे गीत गा सकता है कोई!' + +6764. हीराबाई ने देखा, सचमुच नननपुर की सड़क बड़ी सूनी है। हिरामन उसकी आँखों की बोली समझता है - 'घबराने की बात नहीं। यह सड़क भी फारबिसगंज जाएगी, राह-घाट के लोग बहुत अच्छे हैं। ...एक घड़ी रात तक हम लोग पहुँच जाएँगे।' + +6765. हे अ-अ-अ- सावना-भादवा के - र- उमड़ल नदिया -गे-में-मैं-यो-ओ-ओ, + +6766. हिरामन ने लक्ष्य किया, हीराबाई तकिए पर केहुनी गड़ा कर, गीत में मगन एकटक उसकी ओर देख रही है। ...खोई हुई सूरत कैसी भोली लगती है! + +6767. तेंहु पोसलि कि नेनू-दूध उगटन ..। + +6768. इस बार लगता है महुआ ने अपने को पकड़ा दिया। खुद ही पकड़ में आ गई है। उसने महुआ को छू लिया है, पा लिया है, उसकी थकन दूर हो गई है। पंद्रह-बीस साल तक उमड़ी हुई नदी की उलटी धारा में तैरते हुए उसके मन को किनारा मिल गया है। आनंद के आँसू कोई भी रोक नहीं मानते। + +6769. आसिन-कातिक का सूरज दो बाँस दिन रहते ही कुम्हला जाता है। सूरज डूबने से पहले ही नननपुर पहुँचना है, हिरामन अपने बैलों को समझा रहा है - 'कदम खोल कर और कलेजा बाँध कर चलो ...ए ...छि ...छि! बढ़के भैयन! ले-ले-ले-ए हे -य!' + +6770. 'पीजिए गुरू जी!' हीरा हँसी! + +6771. 'इस्स! सास्तर-पुरान भी जानती हैं! ...मैंने क्या सिखाया? मैं क्या ...?' + +6772. फारबिसगंज तो हिरामन का घर-दुआर है! + +6773. 'कंपनी की -ई-ई-ई!' + +6774. गाड़ी से चार रस्सी दूर जाते-जाते धुन्नीराम ने अपने कुलबुलाते हुए दिल की बात खोल दी - 'इस्स! तुम भी खूब हो हिरामन! उस साल कंपनी का बाघ, इस बार कंपनी की जनानी!' + +6775. यह बात सभी को अच्छी लगी। हिरामन ने कहा, 'बात ठीक है। पलट, तुम लौट जाओ, गाड़ी के पास ही रहना। और देखो, गपशप जरा होशियारी से करना। हाँ!' + +6776. हिरामन बोला, 'नहीं जी! एक रात नौटंकी देख कर जिंदगी-भर बोली-ठोली कौन सुने? ...देसी मुर्गी विलायती चाल!' + +6777. पलटदास आ कर खड़ा हो गया चुपचाप। उसका मुँह भी तमतमाया हुआ था। हिरामन ने पूछा, 'क्या हुआ? बोलते क्यों नहीं?' + +6778. लालमोहर ने कंधा सूँघ कर आँखे मूँद लीं। मुँह से अस्फुट शब्द निकला - ए - ह!' + +6779. 'आ गए हिरामन! अच्छी बात, इधर आओ। ...यह लो अपना भाड़ा और यह लो अपनी दच्छिना! पच्चीस-पच्चीस, पचास।' + +6780. हिरामन ने रूपया लेते हुए कहा, 'क्या बोलेंगे!' उसने हँसने की चेष्टा की। कंपनी की औरत कंपनी में जा रही है। हिरामन का क्या! बक्सा ढोनेवाला रास्ता दिखाता हुआ आगे बढ़ा - 'इधर से।' हीराबाई जाते-जाते रूक गई। हिरामन के बैलों को संबोधित करके बोली, 'अच्छा, मैं चली भैयन।' + +6781. तेरी चाहत को दिलबर बयाँ क्या करूँ! + +6782. लालमोहर दौड़ता-हाँफता बासा पर आया - 'ऐ, ऐ हिरामन, यहाँ क्या बैठे हो, चल कर देखो जै-जैकार हो रहा है! मय बाजा-गाजा, छापी-फाहरम के साथ हीराबाई की जै-जै कर रहा हूँ।' + +6783. दोनों आपस में सलाह करके रौता कंपनी की ओर चले। खेमे के पास पहुँच कर हिरामन ने लालमोहर को इशारा किया, पूछताछ करने का भार लालमोहर के सिर। लालमोहर कचराही बोलना जानता है। लालमोहर ने एक काले कोटवाले से कहा, 'बाबू साहेब, जरा सुनिए तो!' + +6784. नेपाली दरबान हिरामन की ओर देख कर जरा मुस्कराया और चला गया। काले कोटवाले से जा कर कहा, 'हीराबाई का आदमी है। नहीं रोकने बोला!' + +6785. लालमोहर ने उत्तेजित हो कर कहा, 'कौन साला बोलेगा, गाँव में जा कर? पलटा ने अगर बदनामी की तो दूसरी बार से फिर साथ नहीं लाऊँगा।' + +6786. 'रहेगा कौन, यह लहसनवाँ कहाँ जाएगा?' + +6787. 'कौन, पलटदास! कहाँ की लदनी लाद आए?' लालमोहर ने पराए गाँव के आदमी की तरह पूछा। + +6788. लालमोहर ने दूसरी शर्त सामने रखी - 'गाँव में अगर यह बात मालूम हुई किसी तरह...!' + +6789. नेपाली दरबान बोला, 'हीराबाई का आदमी है सब। जाने दो। पास हैं तो फिर काहे को रोकता है?' + +6790. पलटदास ढोलक बजाना जानता है, इसलिए नगाड़े के ताल पर गरदन हिलाता है और दियासलाई पर ताल काटता है। बीड़ी आदान-प्रदान करके हिरामन ने भी एकाध जान-पहचान कर ली। लालमोहर के परिचित आदमी ने चादर से देह ढकते हुए कहा, 'नाच शुरू होने में अभी देर है, तब तक एक नींद ले लें। ...सब दर्जा से अच्छा अठनिया दर्जा। सबसे पीछे सबसे ऊँची जगह पर है। जमीन पर गरम पुआल! हे-हे! कुरसी-बेंच पर बैठ कर इस सरदी के मौसम में तमासा देखनेवाले अभी घुच-घुच कर उठेंगे चाह पीने।' + +6791. हो-हल्ले के बीच, हिरामन की आवाज कपड़घर को फाड़ रही है - 'आओ, एक-एक की गरदन उतार लेंगे।' + +6792. हीराबाई का नाम सुनते ही दारोगा ने तीनों को छोड़ दिया। लेकिन तीनों की दुआली छीन ली गई। मैनेजर ने तीनों को एक रूपएवाले दरजे में कुरसी पर बिठाया -'आप लोग यहीं बैठिए। पान भिजवा देता हूँ।' कपड़घर शांत हुआ और हीराबाई स्टेज पर लौट आई। + +6793. लोगों ने लहसनवाँ की चौड़ी और सपाट छाती देखी। जाड़े के मौसम में भी खाली देह! ...चेले-चाटी के साथ हैं ये लोग! + +6794. दूसरे दिन मेले-भर में यह बात फैल गई - मथुरामोहन कंपनी से भाग कर आई है हीराबाई, इसलिए इस बार मथुरामोहन कंपनी नहीं आई हैं। ...उसके गुंडे आए हैं। हीराबाई भी कम नहीं। बड़ी खेलाड़ औरत है। तेरह-तेरह देहाती लठैत पाल रही है। ...वाह मेरी जान भी कहे तो कोई! मजाल है! + +6795. 'हिरामन, ए हिरामन भाय!' लालमोहर की बोली सुन कर हिरामन ने गरदन मोड़ कर देखा। ...क्या लाद कर लाया है लालमोहर? + +6796. बक्सा ढोनेवाला आदमी आज कोट-पतलून पहन कर बाबूसाहब बन गया है। मालिकों की तरह कुलियों को हुकम दे रहा है - 'जनाना दर्जा में चढ़ाना। अच्छा?' + +6797. हिरामन की बोली फूटी, इतनी देर के बाद - 'इस्स! हरदम रूपैया-पैसा! रखिए रूपैया! क्या करेंगे चादर?' + +6798. गाड़ी ने सीटी दी। हिरामन को लगा, उसके अंदर से कोई आवाज निकल कर सीटी के साथ ऊपर की ओर चली गई - कू-ऊ-ऊ! इ-स्स! + +6799. लालमोहर ने हिरामन को समझाने की कोशिश की। लेकिन हिरामन ने अपनी गाड़ी गाँव की ओर जानेवाली सड़क की ओर मोड़ दी। अब मेले में क्या धरा है! खोखला मेला! + +6800. हिंदी कहानी/चीफ की दावत: + +6801. इस बात की ओर न उनका और न उनकी कुशल गृहिणी का ध्यान गया था। मिस्टर शामनाथ, श्रीमती की ओर घूम कर अंग्रेजी में बोले - 'माँ का क्या होगा?' + +6802. 'और जो सो गई, तो? डिनर का क्या मालूम कब तक चले। ग्यारह-ग्यारह बजे तक तो तुम ड्रिंक ही करते रहते हो।' + +6803. माँ ने धीरे से मुँह पर से दुपट्टा हटाया और बेटे को देखते हुए कहा, आज मुझे खाना नहीं खाना है, बेटा, तुम जो जानते हो, मांस-मछली बने, तो मैं कुछ नहींखाती। + +6804. और माँ आज जल्दी सो नहीं जाना। तुम्हारे खर्राटों की आवाज दूर तक जाती है। + +6805. माँ ने टाँगें नीचे उतार लीं। + +6806. मिस्टर शामनाथ सिगरेट मुँह में रखे, फिर अधखुली आँखों से माँ की ओर देखने लगे, और माँ के कपड़ों की सोचने लगे। शामनाथ हर बात में तरतीब चाहते थे। घर का सबसंचालन उनके अपने हाथ में था। खूँटियाँ कमरों में कहाँ लगाई जाएँ, बिस्तर कहाँ पर बिछे, किस रंग के पर्दे लगाएँ जाएँ, श्रीमती कौन-सी साड़ी पहनें, मेज किससाइज की हो... शामनाथ को चिंता थी कि अगर चीफ का साक्षात माँ से हो गया, तो कहीं लज्जित नहीं होना पडे। माँ को सिर से पाँव तक देखते हुए बोले - तुम सफेदकमीज और सफेद सलवार पहन लो, माँ। पहन के आओ तो, जरा देखूँ। + +6807. चूड़ियाँ कहाँ से लाऊँ, बेटा? तुम तो जानते हो, सब जेवर तुम्हारी पढ़ाई में बिक गए। + +6808. सात बजते-बजते माँ का दिल धक-धक करने लगा। अगर चीफ सामने आ गया और उसने कुछ पूछा, तो वह क्या जवाब देंगी। अंग्रेज को तो दूर से ही देख कर घबरा उठती थीं, यहतो अमरीकी है। न मालूम क्या पूछे। मैं क्या कहूँगी। माँ का जी चाहा कि चुपचाप पिछवाड़े विधवा सहेली के घर चली जाएँ। मगर बेटे के हुक्म को कैसे टाल सकती थीं।चुपचाप कुर्सी पर से टाँगें लटकाए वहीं बैठी रही। + +6809. देखते ही शामनाथ क्रुद्ध हो उठे। जी चाहा कि माँ को धक्का दे कर उठा दें, और उन्हें कोठरी में धकेल दें, मगर ऐसा करना संभव न था, चीफ और बाकी मेहमान पास खड़ेथे। + +6810. माँ ने झिझकते हुए, अपने में सिमटते हुए दोनों हाथ जोड़े, मगर एक हाथ दुपट्टे के अंदर माला को पकड़े हुए था, दूसरा बाहर, ठीक तरह से नमस्ते भी न कर पाई।शामनाथ इस पर भी खिन्न हो उठे। + +6811. मगर तब तक चीफ माँ का बायाँ हाथ ही बार-बार हिला कर कह रहे थे - हाउ डू यू डू? + +6812. एक बार फिर कहकहा उठा। + +6813. माँ, साहब कहते हैं, कोई गाना सुनाओ। कोई पुराना गीत तुम्हें तो कितने ही याद होंगे। + +6814. वाह! कोई बढ़िया टप्पे सुना दो। दो पत्तर अनाराँ दे ... + +6815. हरिया ते भागी भरिया है! + +6816. मगर साहब ने सिर हिला कर अंग्रेजी में फिर पूछा - नहीं, मैं दुकानों की चीज नहीं माँगता। पंजाबियों के घरों में क्या बनता है, औरतें खुद क्या बनाती हैं? + +6817. साहब बड़ी रुचि से फुलकारी देखने लगे। पुरानी फुलकारी थी, जगह-जगह से उसके तागे टूट रहे थे और कपड़ा फटने लगा था। साहब की रुचि को देख कर शामनाथ बोले - यह फटीहुई है, साहब, मैं आपको नई बनवा दूँगा। माँ बना देंगी। क्यों, माँ साहब को फुलकारी बहुत पसंद हैं, इन्हें ऐसी ही एक फुलकारी बना दोगी न? + +6818. मगर कोठरी में बैठने की देर थी कि आँखों में छल-छल आँसू बहने लगे। वह दुपट्टे से बार-बार उन्हें पोंछतीं, पर वह बार-बार उमड़ आते, जैसे बरसों का बाँध तोड़ करउमड़ आए हों। माँ ने बहुतेरा दिल को समझाया, हाथ जोड़े, भगवान का नाम लिया, बेटे के चिरायु होने की प्रार्थना की, बार-बार आँखें बंद कीं, मगर आँसू बरसात केपानी की तरह जैसे थमने में ही न आते थे। + +6819. ओ अम्मी! तुमने तो आज रंग ला दिया! ...साहब तुमसे इतना खुश हुआ कि क्या कहूँ। ओ अम्मी! अम्मी! + +6820. नहीं बेटा, अब तुम अपनी बहू के साथ जैसा मन चाहे रहो। मैंने अपना खा-पहन लिया। अब यहाँ क्या करूँगी। जो थोड़े दिन जिंदगानी के बाकी हैं, भगवान का नाम लूँगी।तुम मुझे हरिद्वार भेज दो! + +6821. कहा नहीं, मगर देखती नहीं, कितना खुश गया है। कहता था, जब तेरी माँ फुलकारी बनाना शुरू करेंगी, तो मैं देखने आऊँगा कि कैसे बनाती हैं। जो साहब खुश हो गया, तो मुझे इससे बड़ी नौकरी भी मिल सकती है, मैं बड़ा अफसर बन सकता हूँ। + +6822. और माँ दिल ही दिल में फिर बेटे के उज्ज्वल भविष्य की कामनाएँ करने लगीं और मिस्टर शामनाथ, अब सो जाओ, माँ, कहते हुए, तनिक लड़खड़ाते हुए अपने कमरे की ओर घूमगए। + +6823. 'कभी-कभी हम लोगों की भी खबर लेते रहिएगा।' गनेशी बिस्‍तर में रस्‍सी बाँधता हुआ बोला। + +6824. टोपी उतार कर गजाधर बाबू ने चारपाई पर रख दी, जूते खोल कर नीचे खिसका दिए, अंदर से रह-रह कर कहकहों की आवाज आ रही थी। इतवार का दिन था और उनके सब बच्‍चे इकठ्ठेहो कर नाश्‍ता कर रहे थे। गजाधर बाबू के सूखे चेहरे पर स्निग्‍ध मुस्‍कान आ गई, उसी तरह मुस्कराते हुए वह बिना खाँसे अंदर चले आए। उन्‍होंने देखा कि नरेंद्र कमरपर हाथ रखे शायद गत रात्रि की फिल्‍म में देखे गए किसी नृत्‍य की नकल कर रहा था और बसंती हँस-हँस कर दुहरी हो रही थी। अमर की बहू को अपने तन-बदन, आँचल या घूँघटका कोई होश न या और वह उन्‍मुक्‍त रूप से हँस रही थी। गजाधर बाबू को देखते ही नरेंद्र धप से बैठ गया और चाय का प्‍याला उठा कर मुँह से लगा लिया। बहू को होश आयाऔर उसने झट से माथा ढक लिया, केवल बसंती का शरीर रह-रह कर हँसी दबाने के प्रयत्‍न में हिलता रहा। + +6825. थोड़ी देर में उनकी पत्‍नी हाथ में अर्ध्‍य का लोटा लिए निकली और अशु्द्ध स्‍तुति कहते हुए तुलसी में डाल दिया। उन्‍हें देखते ही बसंती भी उठ गई। पत्‍नी ने आ करगजाधर बाबू को देखा और कहा, 'अरे, आप अकेले बैठे हैं - ये सब कहाँ गए?' गजाधर बाबू के मन में फाँस-सी करक उठी, 'अपने-अपने काम में लग गए है - आखिर बच्‍चे हीहै।' + +6826. 'पड़ी रहती है। बसंती को तो, फिर कहो कॉलेज जाना होता है।' + +6827. जब कभी उनकी पत्‍नी को काई लंबी शि‍कायत करनी होती, तो अपनी चटाई बैठक में डाल पड़ जाती थीं। वह एक दिन चटाई ले कर आ गईं। गजाधर बाबू ने घर-गृहस्‍थी की बातेंछेड़ीं, वह घर का रवैया देख रहे थे। बहुत हल्‍के से उन्‍होंने कहा कि अब हाथ में पैसा कम रहेगा, कुछ खर्च कम होना चाहिए। + +6828. अंदर कुछ गिरा और उनकी पत्‍नी हड़बड़ा कर उठ बैठीं, 'लो बिल्‍ली ने कुछ गिरा दिया शायद', और वह अंदर भागीं। थोड़ी देर में लौट कर आईं तो उनका मुँह फूला हुआ था,'देखा बहू को, चौका खुला छोड़ आई, बिल्‍ली ने दाल की पतीली गिरा दी। सभी तो खाने को हैं, अब क्‍या खिलाऊँगी?' वह साँस लेने को रुकीं और बोलीं, 'एक तरकारी और चारपराँठे बनाने में सारा डिब्‍बा घी उँड़ेल कर रख दिया। जरा-सा दर्द नहीं है, कमाने वाला हाड़ तोड़े और यहाँ चीजें लुटें। मुझे तो मालूम था कि यह सब काम किसी केबस का नहीं है।' + +6829. 'बाबूजी ने।' + +6830. 'कोई जरूरत नहीं है, अंदर जा कर पढ़ो।' गजाधर बाबू ने कड़े स्‍वर में कहा। कुछ देर अनिश्चित खड़े रह कर बसंती अंदर चली गई। गजाधर बाबू शाम को रोज टहलने चले जातेथे, लौट कर आए तो पत्‍नी ने कहा, 'क्‍या कह दिया बसंती से? शाम से मुँह लपेटे पड़ी है। खाना भी नहीं खाया।' + +6831. अगले दिन वह सुबह घूम कर लौट तो उन्‍होंने पाया कि बैठक में उनकी चारपाई नहीं है। अंदर जा कर पूछने ही वाले थे कि उनकी दृष्टि रसोई के अंदर बैठी पत्‍नी पर पड़ी।उन्‍होंने यह कहने को मुँह खोला कि बहू कहाँ है, पर कुछ याद कर चुप हो गए। पत्‍नी की कोठरी में झाँका तो अचार, रजाइयों और कनस्‍तरों के मध्‍य अपनी चारपाई लगीपाई। गजाधर बाबू ने कोट उतारा और कहीं टाँगने को दीवार पर नजर दौड़ाई। फिर उसे मोड़ कर अलगनी के कुछ कपड़े खिसका कर एक किनारे टाँग दिया। कुछ खाए बिना ही अपनीचारपाई पर लेट गए। कुछ भी हो, तन आखिरकार बूढ़ा ही था। सुबह-शाम कुछ दूर टहलने अवश्‍य चले जाते, पर आते-जाते थक उठते थे। गजाधर बाबू को अपना बड़ा-सा क्‍वार्टरयाद आ गया। निश्चित जीवन, सुबह पैसेंजर ट्रेन आने पर स्‍टेशन की चहल-पहल, चिर-परिचित चेहरे और पटरी पर रेल के पहियों की खट-खट, जो उनके लिए मधुर संगीत की तरहथी। तूफान और डाक गाड़ी के इंजनों की चिंघाड़ उनकी अकेली रातों की साथी थी। सेठ रामजी मल की मिल के कुछ लोग कभी-कभी पास आ बैठते, वही उनका दायरा था, वही उनकेसाथी। वह जीवन अब उन्‍हें एक खोई निधि-सा प्रतीत हुआ। उन्‍हें लगा कि वह जिंदगी द्वारा ठगे गए हैं। उन्‍होंने जो कुछ चाहा, उसमें से उन्‍हें एक बूँद भी न मिली। + +6832. 'कहते हैं खर्च बहुत है।' + +6833. नरेंद्र ने बड़ी तत्‍परता से बिस्‍तर बाँधा और रिक्‍शा बुला लाया। गजाधर बाबू का टीन का बक्‍स और पतला-सा बिस्‍तर उस पर रख दिया गया। नाश्‍ते के लिए लड्डू औरमठरी की डलिया हाथ में लिए गजाधर बाबू रिक्‍शे पर बैठ गए। दृष्टि उन्‍होंने अपने परिवार पर डाली। फिर दूसरी ओर देखने लगे और रिक्शा चल पड़ा। + +6834. सिक्का बदल गया
कृष्णा सोबती + +6835. हसैना आटेवाली कनाली एक ओर रख, जल्दी-जल्दी बाहिर निकल आयी। "ऐ आयीं आं क्यों छावेले (सुबह-सुबह) तड़पना एं?" + +6836. शेरे ने जरा रुककर, घबराकर कहा, "नहीं शाहनी..." शेरे के उत्तर की अनसुनी कर शाहनी जरा चिन्तित स्वर से बोली, "जो कुछ भी हो रहा है, अच्छा नहीं। शेरे, आज शाहजी होते तो शायद कुछ बीच-बचाव करते। पर..." शाहनी कहते-कहते रुक गयी। आज क्या हो रहा है। शाहनी को लगा जैसे जी भर-भर आ रहा है। शाहजी को बिछुड़े कई साल बीत गये, परपर आज कुछ पिघल रहा है शायद पिछली स्मृतियां...आंसुओं को रोकने के प्रयत्न में उसने हसैना की ओर देखा और हल्के-से हंस पड़ी। और शेरा सोच ही रहा है, क्या कह रही है शाहनी आज! आज शाहनी क्या, कोई भी कुछ नहीं कर सकता। यह होके रहेगा क्यों न हो? हमारे ही भाई-बन्दों से सूद ले-लेकर शाहजी सोने की बोरियां तोला करते थे। प्रतिहिंसा की आग शेरे की आंखों में उतर आयी। गंड़ासे की याद हो आयी। शाहनी की ओर देखानहीं-नहीं, शेरा इन पिछले दिनों में तीस-चालीस कत्ल कर चुका है परपर वह ऐसा नीच नहीं...सामने बैठी शाहनी नहीं, शाहनी के हाथ उसकी आंखों में तैर गये। वह सर्दियों की रातें कभी-कभी शाहजी की डांट खाके वह हवेली में पड़ा रहता था। और फिर लालटेन की रोशनी में वह देखता है, शाहनी के ममता भरे हाथ दूध का कटोरा थामे हुए 'शेरे-शेरे, उठ, पी ले।' शेरे ने शाहनी के झुर्रियां पड़े मुंह की ओर देखा तो शाहनी धीरे से मुस्करा रही थी। शेरा विचलित हो गया। 'आंखिर शाहनी ने क्या बिगाड़ा है हमारा? शाहजी की बात शाहजी के साथ गयी, वह शाहनी को जरूर बचाएगा। लेकिन कल रात वाला मशवरा! वह कैसे मान गया था फिरोंज की बात! 'सब कुछ ठीक हो जाएगासामान बांट लिया जाएगा!' + +6837. शेरा चाहता है कि सिर पर आने वाले खतरे की बात कुछ तो शाहनी को बता दे, मगर वह कैसे कहे?" + +6838. "शाहनी-शाहनी, सुनो ट्रकें आती हैं लेने?" + +6839. बेगू पटवारी और मसीत के मुल्ला इस्माइल ने जाने क्या सोचा। शाहनी के निकट आ खड़े हुए। बेगू आज शाहनी की ओर देख नहीं पा रहा। धीरे से जरा गला सांफ करते हुए कहा"शाहनी, रब्ब नू एही मंजूर सी।" + +6840. शाहनी अस्फुट स्वर से बोली"सोना-चांदी!" जरा ठहरकर सादगी से कहा"सोना-चांदी! बच्चा वह सब तुम लोगों के लिए है। मेरा सोना तो एक-एक जमीन में बिछा है।" + +6841. शेरा आन खड़ा गुजरा कि हो ना हो कुछ मार रहा है शाहनी से। "खां साहिब देर हो रही है" + +6842. अन्न-जल उठ गया। वह हवेली, नई बैठक, ऊंचा चौबारा, बड़ा 'पसार' एक-एक करके घूम रहे हैं शाहनी की आंखों में! कुछ पता नहींट्रक चल दिया है या वह स्वयं चल रही है। आंखें बरस रही हैं। दाऊद खां विचलित होकर देख रहा है इस बूढ़ी शाहनी को। कहां जाएगी अब वह? + +6843. शायद राज पलटा भी खा रहा था और सिक्का बदल रहा था.. + +6844. सब जानते हैं कि आदमी का जंगल से आदिम और जन्म का रिश्ता है और वह उसे बेहद प्यार करता है। + +6845. लेकिन एक दिन...एक शाम। + +6846. पेड़ घबराए और दौड़े-दौड़े बूढ़े बरगद के पास पहुँचे। + +6847. "हमने सुना था आर्य कि मनुष्य गुलाम नहीं बनता, उसे क्रय नहीं किया जा सकता, लगामवाले मनुष्य के बारे में कुछ और बोलें आर्य!" + +6848. यह घोड़े पर बैठा घमोच था और उसके आगे दस्ता बनाए कतार में तैनात कुल्हाड़े। घमोच अभी बोल ही रहा था कि जोश में झूमकर कुल्हाड़ा उछला और अट्टहास करते हुए खेमों के निकट खड़े पेड़ों में एक पर-पुराने और सूखे ठूँठ पर पूरी ताकत से झपटा, मगर टकराकर झनझनाता हुआ वह अपने साथियों के बीच गिर पड़ा और देखते-देखते लुढ़कता हुआ बेहोश हो गया। + +6849. घमोच ने घोड़े के पुट्ठे थपथपाए, "हम मानवता के लिए आए हैं पेड़ों! वापस नहीं जाएँगे।" + +6850. "क्षमा करें श्रीमान्। आप घोड़े पर हैं। आपके साथ कौवों सरीखी यह भारी फौज है। मनुष्य जब भी आए हैं, उन्होंने हमसे मदद ही माँगी है, कभी धमकी नहीं दी। ...आप हमारे प्रश्न का उत्तर दें।" + +6851. इस सम्मान पर वह दरख्त श्रद्धावश मनुष्य के आगे झुक आया। + +6852. "हा! हा!! हा!!!" दरख्त को अनसुना करते हुए घमोच ठहाका मारकर हँसा, "क्यों? वह और तुम पेड़ हो और यह पेड़ नहीं? तुम्हारी जात के बाहर का है यह? और तुम्हें जरा भी शर्म नहीं कि खुद खा-पीकर इतने मोटे हो गए हो, भुजाएँ लंबी और तगड़ी बना ली हैं, कान विशाल और लाल कर लिए हैं, धूप और पानी से बचने के लिए इतना विस्तार कर लिया है, जड़ें भी गहरी जमा ली हैं और यह बिचारा हरवंश...।" + +6853. एक साथ पंद्रह-बीस कुल्हाड़े आर्य पर उछले और उनकी दाढ़ी में फँसकर हवा में झूलने लगे। पेड़ों के चेहरे पर हँसी खेल गई लेकिन संकोच के कारण उन्होंने अपनी हँसी पत्तों में छिपा ली। आर्य बरगद गंभीर बने रहे। इन घटनाओं की उन पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। वे हरवंश की ओर मुड़े और उसके कंधे पर प्यार से अपना हाथ रखा, "बेटे वंश! आओ, अपने घर चलें। जब यह पैदाइशी सैलानी मनुष्य तक को अपना पालतू बना सकता है तो हमारी क्या बिसात है?" + +6854. "ऐसा क्यों कह रहे हैं आर्य?" + +6855. "क्यों, कुशल तो है वत्स !" + +6856. यह सुनने के पहले ही आर्य मूर्च्छित होकर गिर पड़े। चारों तरफ हाहाकार मच गया। आसपास के सारे पेड़ दौड़ आए - असहाय। लेकिन आर्य की चेतना जल्दी ही वापस लौट आई। उन्होंने कातर नेत्रों से सबकी ओर देखा और एक-एक को पहचानने की कोशिश की। उनकी आँखों की कोर से पानी की बूँदें टपकने लगीं। बड़ी मुश्किल से उनके मुख से एक गाथा निकली - सौम्य! + +6857. साधारणीकरण. + +6858. अभिनवगुप्त ने अपने ग्रंथ 'अभिनवभारती' में भट्टनायक के सिध्दांत का उल्लेख किया हैं जिसमें यह भी निर्दिष्ट है कि साधारणीकरण किसका होता है तथा रसास्वादन में यह किस स्थिति में रहकर सहायक बनता है? अतः अभिनव गुप्त के कथनानुसार- साधारणीकरण द्वारा कवि निर्मित पात्र व्यक्ति-विशेष न रहकर सामान्य प्राणिमात्र बन जाते हैं, अर्थात् वे किसी देश एवं काल की सीमा में बध्द न रहकर सार्वदेशिक एवं सार्वकालिक बन जाते हैं, और उनके इस स्थिति में उपस्थित हो जाने पर सहदय भी अपने पूर्वग्रहों से विमुक्त हो जाता है। + +6859. जगन्नाथ. + +6860. डां. नगेन्द्र. + +6861. १. भारतीय तथा पाश्चात्य काव्यशास्त्र---डाँ. सत्यदेव चौधरी, डाँ. शन्तिस्वरूप गुप्त। अशोक प्रकाशन, नवीन संस्करण-२०१८, पृष्ठ--६८-७२ + +6862. सिद्धेश्वरी ने खाना बनाने के बाद चूल्हे को बुझा दिया और दोनों घुटनों के बीच सिर रख कर शायद पैर की उँगलियाँ या जमीन पर चलते चीटें-चीटियों को देखने लगी। + +6863. दस-पंद्रह मिनट तक वह उसी तरह खड़ी रही, फिर उसके चेहरे पर व्यग्रता फैल गई और उसने आसमान तथा कड़ी धूप की ओर चिंता से देखा। एक-दो क्षण बाद उसने सिर को किवाड़ से काफी आगे बढ़ा कर गली के छोर की तरफ निहारा, तो उसका बड़ा लड़का रामचंद्र धीरे-धीरे घर की ओर सरकता नजर आया। + +6864. रामचंद्र ने उठते हुए प्रश्न किया, 'बाबू जी खा चुके?' + +6865. रामचंद्र ने रोटी के प्रथम टुकड़े को निगलते हुए पूछा, 'मोहन कहाँ हैं? बड़ी कड़ी धूप हो रही है।' + +6866. रामचंद्र ने अपनी बड़ी-बड़ी भावहीन आँखों से अपनी माँ को देखा, फिर नीचा सिर करके कुछ रुखाई से बोला, 'समय आने पर सब ठीक हो जाएगा।' + +6867. सिद्धेश्वरी फिर झूठ बोल गई, 'आज तो सचमुच नहीं रोया। वह बड़ा ही होशियार हो गया है। कहता था, बड़का भैया के यहाँ जाऊँगा। ऐसा लड़का..' + +6868. सिद्धेश्वरी ने जिद की, 'अच्छा आधी ही सही।' + +6869. सिद्धेश्वरी ने उसके सामने थाली रखते हुए प्रश्न किया, 'कहाँ रह गए थे बेटा? भैया पूछ रहा था।' + +6870. थोड़ी देर बाद उसने मोहन की ओर मुँह फेरा, तो लड़का लगभग खाना समाप्त कर चुका था। + +6871. सिद्धेश्वरी से कुछ कहते न बना और उसने कटोरे को दाल से भर दिया। + +6872. मुंशी जी के चेहरे पर कुछ चमक आई। शरमाते हुए पूछा, 'ऐं, क्या कहता था कि बाबू जी देवता के समान हैं? बड़ा पागल है।' + +6873. सिद्धेश्वरी की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहे। वह चाहती थी कि सभी चीजें ठीक से पूछ ले। सभी चीजें ठीक से जान ले और दुनिया की हर चीज पर पहले की तरह धड़ल्ले से बात करे। पर उसकी हिम्मत नहीं होती थी। उसके दिल में जाने कैसा भय समाया हुआ था। + +6874. मुंशी जी ने चने के दानों की ओर इस दिलचस्पी से दृष्टिपात किया, जैसे उनसे बातचीत करनेवाले हों। फिर सूचना दी, 'गंगाशरण बाबू की लड़की की शादी तय हो गई। लड़का एम.ए. पास है।' + +6875. मुंशी जी ने उत्साह के साथ कहा, 'तो थोडे गुड़ का ठंडा रस बनाओ, पीऊँगा। तुम्हारी कसम भी रह जाएगी, जायका भी बदल जाएगा, साथ-ही-साथ हाजमा भी दुरूस्त होगा। हाँ, रोटी खाते-खाते नाक में दम आ गया है।' यह कह कर वे ठहाका मार कर हँस पड़े। + +6876. घुसपैठिए
ओमप्रकाश बाल्मिकी + +6877. राकेश काठ की तरह जड़ हो गया था। रमेश चौधरी की भर्राई आवाज जैसे हजारों मील दूर से आ रही थी। जिसे वह ठीक से सुन नहीं पा रहा था। सोनकर की मौत का राकेश को विश्वास ही नहीं हो रहा था। राकेश को लग रहा था जैसे रमेश चौधरी किसी गहरी खाई में खड़ा है। जहाँ से प्रतिध्वनित होकर आ रही आवाज धीमी हो गई थी। जिसे सुन पाना राकेश के लिए कठिन महसूस हो रहा था। + +6878. ‘‘कपड़े नहीं बदले...?’’ इन्दू ने शंका जाहिर की। + +6879. इन्दु घुमा-फिराकर यही कहती है : + +6880. रमेश चौधरी ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘‘राकेश साहब, यह है अमरदीप, ये विकास चौधरी, ये नितिन मेश्राम और ये सुभाष सोनकर। सभी मेडिकल कॉलेज के छात्र हैं। अमरदीप और नितिन मेश्राम फाइनल वर्ष में हैं और ये दोनों प्रथम वर्ष में हैं। आपसे मिलना चाहते थे।’’ + +6881. ‘रैगिंग होती तो फर्स्टइयर के सभी छात्रों के साथ यह सुलूक होता। लेकिन वहाँ तो सिर्फ इन दोनों को ही पीटा गया,’’ अमरदीप ने जोर देकर कहा। + +6882. इन्दु का जो नजरिया था, वह सामाजिक प्रताणना का प्रतिफल था। वह एक सहज जीवन जीना चाहती थी। उसे लगता था राकेश को इन झमेलों से बचना चाहिए। वह इसी कोशिश में लगी रहती थी कि आस-पड़ोस के लोग उनके बारे में न जान पाएँ कि वे कौन हैं ? उसे यह सब बहुत सुरक्षित लगता था। लेकिन राकेश उनकी व्यथा-कथा से विचलित हो गया था। उसे महसूस हो रहा था कि वे सब किसी घने बियाबान जंगल में फँस गए हैं जहाँ चारों ओर सिर्फ अँधेरा है या कँटीले झाड़-झंखाड़। + +6883. नितिन मेश्राम अभी तक चुप था। राकेश को गहरी सोच में डूबा देखकर बोला, ‘‘होस्टल नं. एक में कमरा एलॉट हो जाने के बाद किसी दलित छात्र को उसमें घुसने नहीं दिया जाता है। घूम-फिरकर होस्टल नं. दो में ही दलित छात्रों को रखा जाता है। यही स्थिति गर्ल्स होस्टल की भी है। वहाँ की सभी दलित लड़कियाँ एक ही होस्टल में रहती हैं। कॉलेज मैनेजमेंट को ये समस्याएँ गंभीर नहीं लगतीं। उन्हें लगता है दलितों के लिए मेडिकल में आना अतिक्रमण करना है। जब उनसे शिकायत करते हैं तो ध्यान ही नहीं देते।’’ + +6884. ‘‘तुम लोग डीन से मिले ?’’ राकेश ने सवाल किया। + +6885. विचार-विमर्श के बाद राकेश और रमेश चौधरी डीन से मिलकर समस्या का कोई न कोई समाधान तलाश करेंगे। जरूरत पड़ी तो किसी प्रभावशाली व्यक्ति से मिलकर बात करेंगे। + +6886. राकेश और रमेश चौधरी बौखलाकर उठ आए थे। दलित छात्रों का मेडिकल में आना डीन की दृष्टि में घुसपैठ थी। रमेश चौधरी ने स्वयं को बहुत मुश्किल से काबू में रखा था। शायद राकेश के कारण। + +6887. सोनकर को पहली ही परीक्षा में फेल कर दिया गया था। क्योंकि उसने प्रणव मिश्रा के खिलाफ पुलिस में नामजद रपट लिखाने का दुस्साहस किया था, डीन और अन्य प्रोफेसरों तक शिकायत पहुँचाने की हिमाकत की थी, यह भूलकर कि वह इस चक्रव्यूह में अकेला फँस गया है, जहाँ से बाहर आने के लिए उसे कौरवों की कई अक्षौहिणी सेना और अनेक महारथियों से टकराना पड़ेगा। परीक्षाफल का व्यूह भेदकर सोनकर बाहर नहीं आ पाया था। कई महारथियों ने निहत्थे सोनकर की हत्या कर दी थी। जिसे आत्महत्या कहकर प्रचारित किया गया था। + +6888. हिंदी कहानी/परिंदे: + +6889. जूली खिड़की के पास पलँग के सिरहाने बैठी थी। उसने चुपचाप आँखें नीची कर ली। लैम्प का प्रकाश चारों ओर से सिमटकर अब केवल उसके चेहरे पर गिर रहा था। “नाइट रजिस्टर पर दस्तखत कर दिये?” “हाँ, मैडम।” “फिर…?” लतिका का स्वर कड़ा हो आया। जूली सकुचाकर खिड़की से बाहर देखने लगी। जब से लतिका इस स्कूल में आयी है, उसने अनुभव किया है कि होस्टल के इस नियम का पालन डाँट-फटकार के बावजूद नहीं होता। “मैडम, कल से छुट्टियाँ शुरू हो जायेंगी, इसलिए आज रात हम सबने मिलकर…” और सुधा पूरी बात न कहकर हेमन्ती की ओर देखते हुए मुस्कराने लगी। “हेमन्ती के गाने का प्रोग्राम है, आप भी कुछ देर बैठिए न।” + +6890. “यहाँ अकेली क्या कर रही हो मिस लतिका?” – डाक्टर ने होंठों के भीतर से सीटी बजायी। “चेकिंग करके लौट रही थी। आज इस वक्त ऊपर कैसे आना हुआ मिस्टर ह्यूबर्ट?” ह्यूबर्ट ने मुस्कराकर अपनी छड़ी डाक्टर के कन्धों से छुला दी – “इनसे पूछो, यही मुझे जबर्दस्ती घसीट लाये हैं।” + +6891. लतिका कमरे से दो मोमबत्तियाँ ले आयी। मेज के दोनों सिरों पर टिकाकर उन्हें जला दिया गया। छत का अँधेरा मोमबत्ती की फीकी रोशनी के इर्द-गिर्द सिमटने लगा। एक घनी नीरवता चारों ओर घिरने लगी। हवा में चीड़ के वृक्षों की साँय-साँय दूर-दूर तक फैली पहाड़ियों और घाटियों में सीटियों की गूँज-सी छोड़ती जा रही थी। “इस बार शायद बर्फ जल्दी गिरेगी, अभी से हवा में एक सर्द खुश्की-सी महसूस होने लगी है” – डाक्टर का सिगार अँधेरे में लाल बिन्दी-सा चमक रहा था। “पता नहीं, मिस वुड को स्पेशल सर्विस का गोरखधन्धा क्यों पसन्द आता है। छुट्टियों में घर जाने से पहले क्या यह जरूरी है कि लड़कियाँ फादर एल्मण्ड का सर्मन सुनें?” – ह्यूबर्ट ने कहा। + +6892. ह्यूबर्ट ही क्यों, वह क्या किसी को चाह सकेगी, उस अनुभूति के संग, जो अब नहीं रही, जो छाया-सी उस पर मँडराती रहती है, न स्वयं मिटती है, न उसे मुक्ति दे पाती है। उसे लगा, जैसे बादलों का झुरमुट फिर उसके मस्तिष्क पर धीरे-धीरे छाने लगा है, उसकी टाँगे फिर निर्जीव, शिथिल-सी हो गयी हैं। वह झटके से उठ खड़ी हुई- “डाक्टर माफ करना, मुझे बहुत थकान-सी लग रही है…बिना वाक्य पूरा किये ही वह चली गयी। कुछ देर तक टैरेस पर निस्तब्धता छायी रही। मोमबत्तियाँ बूझने लगी थीं। डाक्टर मुकर्जी ने सिगार का नया कश लिया – “सब लड़कियाँ एक-जैसी होती है-बेवकूफ और सेंटीमेंटल।” ह्यूबर्ट की उँगलियों का दबाव पियानो पर ढीला पड़ता गया, अन्तिम सुरों की झिझकी-सी गूँज कुछ क्षणों तक हवा में तिरती रही। + +6893. “कौन गिरीश नेगी?” “कुमाऊँ रेजीमेंट में कैप्टन था।” “डाक्टर, क्या लतिका…” ह्यूबर्ट से आगे कुछ नहीं कहा गया। उसे याद आया वह पत्र, जो उसने लतिका को भेजा था, कितना अर्थहीन और उपहासास्पद, जैसे उसका एक-एक शब्द उसके दिल को कचोट रहा हो। उसने धीरे-से पियानो पर सिर टिका लिया। लतिका ने उसे क्यों नहीं बताया, क्या वह इसके योग्य भी नहीं था? “लतिका… वह तो बच्ची है, पागल! मरनेवाले के संग खुद थोड़े ही मरा जाता है।“ + +6894. “एक दफा तो यहाँ लगातार इतनी बर्फ गिरी थी कि भुवाली से लेकर डाक बँगले तक सारी सड़कें जाम हो गईं। इतनी बर्फ थी मेम साहब कि पेड़ों की टहनियाँ तक सिकुड़कर तनों से लिपट गयी थी – बिलकुल ऐसे,” और करीमुद्दीन नीचे झुककर मुर्गा-सा बन गया। “कब की बात है?” लतिका ने पूछा। + +6895. आईने में लतिका ने अपना चेहरा देखा – वह मुस्कुरा रही थी। पिछले साल अपने कमरे की सीलन और ठण्ड से बचने के लिए कभी-कभी वह मिस वुड के खाली कमरे में चोरी-चुपके सोने चली जाया करती थी। मिस वुड का कमरा बिना आग के भी गर्म रहता था, उनके गदीले सोफे पर लेटते ही आँख लग जाती थी। कमरा छुट्टियों में खाली पड़ा रहता है, किन्तु मिस वुड से इतना नहीं होता कि दो महीनों के लिए उसके हवाले कर जायें। हर साल कमरे में ताला ठोंक जाती हैं वह तो पिछले साल़ गुसलखाने में भीतर की साँकल देना भूल गयी थीं, जिसे लतिका चोर दरवाजे के रूप में इस्तेमाल करती रही थी। + +6896. कण्टोनमेण्ट जानेवाली पक्की सड़क पर चार-चार की पंक्ति में कुमाऊँ रेजीमेंट के सिपाहियों की एक टुकड़ी मार्च कर रही थी। फौजी बूटों की भारी खुरदरी आवाजें स्कूल चैपल की दीवारों से टकराकर भीतर ‘प्रेयर हाल’ में गूँज रही थीं। + +6897. ‘हिम नम्बर ११७’फादर ने प्रार्थना-पुस्तक खोलते हुए कहा। हॉल में प्रत्येक लड़की ने डेस्क पर रखी हुई हिम-बुक खोल ली। पन्नों के उलटने की खड़खड़ाहट फिसलती हुई एक सिरे से दूसरे सिरे तक फैल गयी। आगे की बैंच से उठकर ह्यूबर्ट पियानो के सामने स्टूल पर बैठ गया। संगीत शिक्षक होने के कारण हर साल स्पेशल सर्विस के अवसर पर उसे ‘कॉयर’ के संग पियानो बजाना पड़ता था। ह्यूबर्ट ने अपने रूमाल से नाक साफ की। अपनी घबराहट छिपाने के लिए ह्यूबर्ट हमेशा ऐसा ही किया करता था। कनखियों से हॉल की ओर देखते हुए अपने काँपते हाथों से हिम-बुक खोली। लीड काइण्डली लाइट… + +6898. वह मुड़ी और इससे पहले कि वह कुछ कह पाती, गिरीश ने अपना मिलिटरी का हैट धप से उसके सिर पर रख दिया। वह मन्त्रमुग्ध-सी वैसी ही खड़ी रही। उसके सिर पर गिरीश का हैट है-माथे पर छोटी-सी बिन्दी है। बिन्दी पर उड़ते हुए बाल है। गिरीश ने उस बिन्दी को अपने होंठों से छुआ है, उसने उसके नंगे सिर को अपने दोनों हाथों में समेट लिया है – लतिका + +6899. मिस वुड को लड़कियों का यह गुल-गपाड़ा अखरा, किन्तु फादर एल्मण्ड के सामने वह उन्हें डाँट-फटकार नहीं सकी। अपनी झुँझलाहट दबाकर वह मुस्कराते हुए बोली- “कल सब चली जायेंगी, सारा स्कूल वीरान हो जायेगा।” फादर एल्मण्ड का लम्बा ओजपूर्ण चेहरा चैपल की घुटी हुई गरमाई से लाल हो उठा था। कॉरीडोर के जंगले पर अपनी छड़ी लटकाकर वह बोले – “छुट्टियों में पीछे हॉस्टल में कौन रहेगा?” “पिछले दो-तीन सालों से मिस लतिका ही रह रही हैं।” “और डाक्टर मुकर्जी छुट्टियों में कहीं नहीं जाते?” “डाक्टर तो सर्दी-गर्मी यहीं रहते हैं।” मिस वुड ने विस्मय से फादर की ओर देखा। वह समझ नहीं सकी कि फादर ने डाक्टर का प्रसंग क्यों छेड़ दिया है! + +6900. ह्यूबर्ट जब चैपल से बाहर निकला तो उसकी आँखें चकाचैंध-सी हो गईं। उसे लगा जैसे किसी ने अचानक ढेर-सी चमकीली उबलती हुई रोशनी मुट्ठी में भरकर उसकी आँखों में झोंक दी हो। पियानो के संगीत के सुर रुई के छुई-मुई रेशों की भाँति अब तक उसके मस्तिष्क की थकी-माँदी नसों पर फड़फड़ा रहे थे। वह काफी थक गया था। पियानो बजाने से उसके फेफड़ों पर हमेशा भारी दबाव पड़ता, दिल की धड़कन तेज हो जाती थी। उसे लगता था कि संगीत के एक नोट को दूसरे नोट में उतारने के प्रयत्न में वह एक अँधेरी खाई पार कर रहा है। + +6901. पक्की सड़क पर लड़कियों की भीड़ जमा थी, इसलिए वे दोनों पोलो ग्राउण्ड का चक्कर काटती हुई पगडण्डी से नीचे उतरने लगे। हवा तेज हो चली। चीड़ के पत्ते हर झोंके के संग टूट-टूटकर पगडण्डी पर ढेर लगाते जाते थे। ह्यूबर्ट रास्ता बनाने के लिए अपनी छड़ी से उन्हें बुहारकर दोनों ओर बिखेर देता था। लतिका पीछे खड़ी हुई देखती रहती थी। अल्मोड़ा की ओर से आते हुए छोटे-छोटे बादल रेशमी रूमालों से उड़ते हुए सूरज के मुँह पर लिपटे से जाते थे, फिर हवा में बह निकलते थे। इस खेल में धूप कभी मन्द, फीकी-सी पड़ जाती थी, कभी अपना उजला आँचल खोलकर समूचे शहर को अपने में समेट लेती थी। + +6902. “मि.ह्यूबर्ट…आप दिल्ली जा रहे हैं,” इस बार लतिका ने प्रश्न नहीं दुहराया उसके स्वर में केवल एक असीम दूरी का भाव घिर आया। “बहुत अर्सा पहले मैं भी दिल्ली गयी थी, मि. ह्यूबर्ट! तब मैं बहुत छोटी थी, न जाने कितने बरस बीत गये। हमारी मौसी का ब्याह वहीं हुआ था। बहुत-सी चीजें देखी थीं, लेकिन अब तो सब कुछ धुँधला-सा पड़ गया है। इतना याद है कि हम कुतुब पर चढ़े थे। सबसे ऊँची मंजिल से हमने नीचे झाँका था, न जाने कैसा लगा था। नीचे चलते हुए आदमी चाभी भरे हुए खिलौनों-से लगते थे। हमने ऊपर से उन पर मूँगफलियाँ फेंकी थीं, लेकिन हम बहुत निराश हुए थे क्योंकि उनमें से किसी ने हमारी तरफ नहीं देखा। शायद माँ ने मुझे डाँटा था, और मैं सिर्फ नीचे झाँकते हुए डर गयी थी। सुना है, अब तो दिल्ली इतना बदल गया है कि पहचाना नहीं जाता” + +6903. दोनों चुपचाप कुछ देर तक स्कूल के गेट के बाहर खड़े रहे। मीडोज…पगडण्डियों, पत्तों, छायाओं से घिरा छोटा-सा द्वीप, मानों कोई घोंसला दो हरी घाटियों के बीच आ दबा हो। भीतर घूसते ही पिकनिक के काले आग से झुलसे हुए पत्थर, अधजली टहनियाँ, बैठने के लिए बिछाये गये पुराने अखबारों के टुकड़े इधर-उधर बिखरे हुए दिखायी दे जाते हैं। अक्सर टूरिस्ट पिकनिक के लिए यहाँ आते हैं। मीडोज को बीच में काटता हुआ टेढ़ा-मेढ़ा बरसाती नाला बहता है, जो दूर से धूप में चमकता हुआ सफेद रिबन-सा दिखायी देता है। + +6904. “आपने कहाँ देखा, डाक्टर?” + +6905. “डाक्टर, क्या आप कभी वापिस बर्मा जाने की बात नहीं सोचते?” डाक्टर ने अँगड़ाई ली और करवट बदलकर औंधे मुँह लेट गये। उनकी आँखें मुँद गईं और माथे पर बालों की लटें झूल आयीं। + +6906. “प्रैक्टिस बढ़ाने के लिए कहाँ-कहाँ भटकता फिरूँगा, मिस वुड। जहाँ रहो, वहीं मरीज मिल जाते हैं। यहाँ आया था कुछ दिनों के लिए, फिर मुद्दत हो गयी और टिका रहा। जब कभी जी ऊबेगा, कहीं चला जाऊँगा। जड़ें कहीं नहीं जमतीं, तो पीछे भी कुछ नहीं छूट जाता। मुझे अपने बारे में कोई गलतफहमी नहीं है मिस वुड, मैं सुखी हूँ।” + +6907. उसकी अँगुलियों में दबा हुआ सिगार नीचे झुका हुआ लटक रहा था। “मेरी, मेरी, वाट डू यू वाण्ट, वाट डू यू वाण्ट?” दूसरे स्टैण्डर्ड में पढ़नेवाली मेरी ने अपनी चंचल, चपल आँखें ऊपर उठायीं, लड़कियों का दायरा उसे घेरे हुए कभी पास आता था, कभी दूर खिंचता चला जाता था। + +6908. “तुम आफिसर्स मेस में किसी को जानती हो?” जूली ने अनिश्चित भाव से सिर हिलाया। लतिका कुछ देर तक जूली को अपलक घूरती रही। + +6909. जूली का चेहरा सफेद, फक पड़ गया। लिफाफे पर कुमाऊँ रेजीमेण्टल सेण्टर की मुहर उसकी ओर घूर रही थी। “कौन है यह?” लतिका ने पूछा। उसने पहले भी होस्टल में उड़ती हुई अफवाह सुनी थी कि जूली को क्लब में किसी मिलिटरी अफसर के संग देखा गया था, किन्तु ऐसी अफवाहें अक्सर उड़ती रहती थीं, और उसने उन पर विश्वास नहीं किया था। “जूली, तुम अभी बहुत छोटी हो” जूली के होंठ काँपे-उसकी आँखों में निरीह याचना का भाव घिर आया। + +6910. लतिका को लगा कि जो वह याद करती है, वही भूलना भी चाहती है, लेकिन जब सचमुच भूलने लगती है, तब उसे भय लगता है कि जैसे कोई उसकी किसी चीज को उसके हाथों से छीने लिये जा रहा है, ऐसा कुछ जो सदा के लिए खो जायेगा। बचपन में जब कभी वह अपने किसी खिलौने को खो देती थी, तो वह गुमसुम-सी होकर सोचा करती थी, कहाँ रख दिया मैंने। जब बहुत दौड़-धूप करने पर खि़लौना मिल जाता, तो वह बहाना करती कि अभी उसे खोज ही रही है, कि वह अभी मिला नहीं है। जिस स्थान पर खिलौना रखा होता, जान-बूझकर उसे छोड़कर घर के दूसरे कोने में उसे खोजने का उपक्रम करती। तब खोई हुई चीज याद रहती, इसलिए भूलने का भय नहीं रहता था। + +6911. डाक्टर ने अपने कन्धे पर लटकते हुए थर्मस को उतारकर लतिका के हाथों में देते हुए कहा – “थोड़ी-सी कॉफ़ी बची है, शायद कुछ मदद कर सके।” “पिकनिक में तुम कहाँ रह गये डाक्टर, कहीं दिखायी नहीं दिये?” “दोपहर भर सोता रहा-मिस वुड के संग। मेरा मतलब है, मिस वुड पास बैठी थीं।” “मुझे लगता है, मिस वुड मुझसे मुहब्बत करती हैं।” कोई भी मजाक करते समय डाक्टर अपनी मूँछों के कोनों को चबाने लगता है। “क्या कहती थीं?” लतिका ने थर्मस से कॉफी को मुँह में उँडेल लिया। “शायद कुछ कहतीं, लेकिन बदकिस्मती से बीच में ही मुझे नींद आ गयी। मेरी जिन्दगी के कुछ खूबसूरत प्रेम-प्रसंग कम्बख्त इस नींद के कारण अधूरे रह गये हैं।” + +6912. क्या वे सब भी प्रतीक्षा कर रहे हैं? वह, डाक्टर मुकर्जी, मि. ह्यूबर्ट, लेकिन कहाँ के लिए, हम कहाँ जायेंगे? + +6913. ह्यूबर्ट इतनी रात कहाँ गये? किन्तु लतिका की आँखें फिर झपक गयीं। दिन-भर की थकान ने सब परेशानियों, प्रश्नों पर कुंजी लगा दी थी, मानों दिन-भर आँख-मिचौनी खेलते हुए उसने अपने कमरे में ‘दय्या’ को छू लिया था। अब वह सुरक्षित थी, कमरे की चहारदीवारी के भीतर उसे कोई नहीं पकड़ सकता। दिन के उजाले में वह गवाह थी, मुजरिम थी, हर चीज का उससे तकाजा था, अब इस अकेलेपन में कोई गिला नहीं, उलाहना नहीं, सब खींचातानी खत्म हो गयी है, जो अपना है, वह बिल्कुल अपना-सा हो गया है, जो अपना नहीं है, उसका दुख नहीं, अपनाने की फुरसत नहीं… + +6914. “मिस लतिका, आप लैम्प लेकर आगे चलिए” लतिका ने लैम्प उठाया। दीवार पर उन तीनों की छायाएँ डगमगाने लगीं। + +6915. “आज दिन भर बादल छाये रहे, लेकिन खुलकर बारिश नहीं हुई” “क्रिसमस तक शायद मौसम ऐसा ही रहेगा।” कुछ देर तक दोनों चुपचाप ख़डे रहे। कॉन्वेन्ट स्कूल के बाहर फैले लॉन से झींगुरों का अनवरत स्वर चारों ओर फैली निस्तब्धता को और भी अधिक घना बना रहा था। कभी-कभी ऊप़र मोटर रोड पर किसी कुत्ते की रिरियाहट सुनायी पड़ा जाती थी। “डाक्टर… कल रात आपने मि. ह्यूबर्ट से कुछ कहा था मेरे बारे में?” “वही जो सब लोग जानते हैं और ह्यूबर्ट, जिसे जानना चाहिए था, नहीं जानता था।” डाक्टर ने लतिका की ओर देखा, वह जड़वत अविचलित रेलिंग पर झुकी हुई थी। “वैसे हम सबकी अपनी-अपनी जिद होती है, कोई छोड़ देता है, कोई आखिर तक उससे चिपका रहता है।” डाक्टर मुकर्जी अँधेरे में मुस्कराये। उनकी मुस्कराहट में सूखा-सा विरक्ति का भाव भरा था। “कभी-कभी मैं सोचता हूँ मिस लतिका, किसी चीज को न जानना यदि गलत है, तो जान-बूझकर न भूल पाना, हमेशा जोंक की तरह उससे चिपटे रहना, यह भी गलत है। बर्मा से आते हुए मेरी पत्नी की मृत्यु हुई थी, मुझे अपनी जिन्दगी बेकार-सी लगी थी। आज इस बात को अर्सा गुजर गया और जैसा आप देखती हैं, मैं जी रहा हूँ उम्मीद है कि काफी अर्सा और जिऊँगा। जिन्दगी काफी दिलचस्प लगती है, और यदि उम्र की मजबूरी न होती तो शायद मैं दूसरी शादी करने में भी न हिचकता। इसके बावजूद कौन कह सकता है कि मैं अपनी पत्नी से प्रेम नहीं करता था, आज भी करता हूँ” “लेकिन डाक्टर…” लतिका का गला रुँध आया था। “क्या मि़स लतिका…” + +6916. आधुनिक चिंतन और साहित्य/मार्क्सवाद: + +6917. उत्पादन. + +6918. चूँकि मनुष्य का इतिहास उत्पादन का इतिहास है अतः इसी प्रक्रिया में वर्ग का निर्माण होता है। वर्ग-निर्माण तब होते हैं- + +6919. साहित्य की सापेक्ष स्वायत्तता. + +6920. साहित्य और कला में मार्क्स और एंगेल्स के साहित्य तथा यथार्थ संबंधी विचारों का संग्रह किया गया है- "सारे महान लेखकों का प्रमुख उद्देश्य यथार्थ का कलात्मक पुनरुत्पादन रहा है । यथार्थ से गहरा और विश्वसनीय लगाव, यथार्थ को व्यापक और वास्तविक ढंग से प्रस्तुत करने का सतत प्रयत्न, सारे महान लेखकों (शेक्सपियर, गोएठे, बाल्लाक, ताल्लाय) के लिए साहित्यिक महानता का मानदण्ड रहा है।" मार्क्सवादी सौंदर्यशास्त्र यथार्थ को अपने कला सिद्धान्त का शिखर मानता है। इस यथार्थ के स्वरूप पर विचार करते हुए + +6921. आधुनिक चिंतन और साहित्य/नवजागरण: + +6922. हिंदी नवजागरण के संदर्भ में रामविलास शर्मा अपनी पुस्तक 'महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिंदी नवजागरण' में विस्तार से चर्चा करते हैं। वे मानते हैं कि ‘हिन्दी प्रदेश में नवजागरण १८५७ ई. के स्वाधीनता-संग्राम से शुरू होता है। गदर, सन् ५७ का स्वाधीनता-संग्राम, हिन्दी प्रदेश के नवजागरण की पहली मंज़िल है। दूसरी मंज़िल भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का युग है। ‘हिंदी नवजागरण का तीसरा चरण महावीर प्रसाद द्विवेदी और उनके सहयोगियों का कार्यकाल है।’ हिंदी साहित्य में नवजागरण पहले गद्य तत्पश्चात् पद्य में देखने को मिलता है। जुलाई १८५७ ई. को 'फतहे इस्लाम' नाम से अवध में एक इश्तहार निकाला गया, जिसमें विभिन्न स्थानों के सिपाहियों से एकजुट होकर लड़ने तथा मिलकर अंग्रेज सिपाहियों को देश से बाहर निकालने की बात कही गई। नवंबर १८५८ में अंग्रेजों ने जिस घोषणापत्र का जिक्र किया उसके प्रति भारतीय जनता को सचेत करते हुए अवध की बेगम ने कहा कि- "रानी के कानून वही हैं जो कंपनी के थे।" + +6923. ज़ाहिर बातन में अति तेज + +6924. हिंदी नवजागरण को रामविलास शर्मा अपनी पुस्तक ‘महावीरप्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण’ में तीन चरणों में बाँटते हैं जिसका तीसरा चरण द्विवेदी युगीन है। वे हिंदी नवजागरण की शुरुआत १८५७ के स्वाधीनता संग्राम से मानते हैं। + +6925. आधुनिकतावाद. + +6926. आधुनिकतावादियों ने पुरानी रचनाओं की पुनर्रचना की। यह पुनर्व्याख्या, पुनर्निर्माण या पैरोडी के रूप में भी किया गया। धर्मवीर भारती के अंधा युग को या सूरज का सातवाँ घोड़ा में पंचतंत्र के शिल्प को अपनाने को इसी रूप में देख सकते हैं। अज्ञेय ने 'असाध्यवीणा' में भी एक पुरानी जापानी कथा की पुनर्रचना की। + +6927. सत्य. + +6928. अहिंसा का सामान्य अर्थ है 'हिंसा न करना'। इसका व्यापक अर्थ है - किसी भी प्राणी को तन, मन, कर्म, वचन और वाणी से कोई नुकसान न पहुँचाना। मन में भी किसी का अहित न सोचना, किसी को कटुवाणी आदि के द्वारा भी पीड़ा न देना तथा कर्म से भी किसी भी अवस्था में, किसी भी प्राणी का कोई नुकसान न करना। 'युद्ध और अहिंसा' नामक पुस्तक में गाँधीजी अहिंसा को सक्रिय शक्ति के रूप में स्वीकार करते हैं। वे अहिंसा को सार्वभौम नियम के रूप में देखते थे। इसके संबंध में गाँधीजी लिखते हैं कि- "अगर मैं अपने विरोधी पर प्रहार करता हूँ, तब तो मैं हिंसा करता ही हूँ। पर अगर मैं सच्चा अहिंसक हूँ, तो जब वह मेरे ऊपर प्रहार कर रहा हो तब भी मुझे उसपर प्रेम करना है, और उसका कल्याण चाहना है, उसके लिए ईश्वर से प्रार्थना करनी है।" गाँधी अहिंसा को दुनिया की सबसे बड़ी ताकत मानते थे। इसके संबंध में वे लिखते हैं कि- "अहिंसा सिर्फ व्यक्तिगत गुण नहीं है, बल्कि एक सामाजिक गुण भी है जिसे दूसरे गुणों की तरह विकसित करना चाहिए।" + +6929. + +6930. उत्तर-आधुनिकतावाद अनेक सिद्धांतों का मिलाजुला रूप माना जाता है। इसकी कोई निश्चित परिभाषा नहीं मिलती है। इसका परिचय देते हुए गोपीचंद नारंग 'संरचनावाद उत्तर-संरचनावाद एवं प्राच्य काव्यशास्त्र' पुस्तक के 'उत्तर-आधुनिकता: भारतीय परिप्रेक्ष्य में' नामक अध्याय में लिखते हैं कि- "उत्तर-आधुनिकता एक खुली-डली बौद्धिक अभिवृत्ति है-सर्जनात्मक आजादी की, अपनी सांस्कृतिक अस्मिता पर आग्रह करने की, अर्थ को रूढ़िगत परिभाषाओं से स्वतन्त्र करने की, सर्वस्वीकृत मान्यताओं के बारे में नए सिरे से विचार करने और प्रश्न उठाने की, प्रदत्त साहित्यिक लीक की निरंकुशता को तोड़ने की, संव्यूहन चाहे वह राजनैतिक हो या साहित्यिक उसको निरस्त करने की तथा अर्थ के रूढ़ पहलू के साथ उसके दमित या उपेक्षित पक्ष के देखने-दिखाने की।" उत्तर-आधुनिकतावाद ने समाज में पीड़ित वर्ग का साथ दिया, जिसके फलस्वरूप साहित्य के क्षेत्र में विभिन्न विमर्शों का सूत्रपात हुआ। + +6931. मनोविश्लेषणवाद के प्रवर्त्तक फ्रायड हैं। मानसिक स्नायविक रोगों की चिकित्सा करते वक्त फ्रायड ने पाया कि सम्मोहन क्रिया अथवा वार्तालाप में स्नच्छंद विचार साहचर्य से बहुत से पुराने अनुभव पुनरुज्जीवित हो उठते हैं। उन्होनें यह भी पाया कि इन अनुभव का मूल कारण कामवृत्ति और उसका अचेतन रूप से दमन है। इस कारण वे जिस मनोवैज्ञानिक सिद्धांत पर पहुँचे उसका सार है--शैशविय दमित कामवृत्ति। फ्रायड के अनुसार शैशवीय दमित कामवृत्ति जो कि शिशु के जन्म से ही कार्यशील रहती है, उसका प्रकाशन मनुष्य के समस्त व्यवहार में परोक्ष रूप से विद्यमान रहता है। वे इसे मनुष्य के जीवन की मुख्य प्रेरक शक्ति के रूप में देखते थे। इस शक्ति को वे लिबिडो कहते है।शैशव में मानस में केवल इड ही विकसित रहता, उस वक्त उसमें कामवासना तथा अन्य कई इच्छा रहते हैं और उस वक्त दमन का कोई प्रश्म नहीं उठता। शिशु का अंगूठा चूसना तथा बाद में माता-पिता, संबंधियों के प्रति आकर्षित होना जैसी क्रियाएँ इसका उदाहरण हैं। बाद में उसके चेतन मन से उसे सामाजिक संबंध का ज्ञान होता है और उसके अन्दर सामाजिक और नैतिक दवाबों के कारण अहं और सुपर अहं का विकास होने लगता है और स्वाभाविक कामेच्छाओं का दमन हो जाता है। इन दमित इच्छाओं से अचेतन मानस का निर्माण होता है। जो शिशु के लिए निषिद्ध है या भय का रूप ले लेता है वहीं उसके प्रबल इच्छा है जो वह पूरे नहीं कर पाता। बचपन में शिशु के मन में कई इच्छा रहती है किन्तु सामाजिक और नैतिक दबाव के कारण उसके कई सारे इच्छा अपूर्ण रह जाते है। इन्हीं इच्छाओं की पूर्ति वह अपने मन के लोक में करता है। शिशु की कामवृत्ति अपने माता-पिता, और भाई-बहन की ओर प्रेरित होती है। फ्रायड मानते है कि शिशु में विषमलिंगी के प्रति कामेच्छा और समलिंगी जन के प्रति ईर्ष्या होती है पर इन दोनों का दमन हो कर उसमे नैतिक और सामाजित रूप से स्विकृत प्रेम और आदर का भाव प्रकाशित होता है। फ्रायड की यह मानसिकता इडिपस कुंठा‍‍ से प्रभावित है।इडिपस कुंठा इडिपस नाम के एक व्यक्ति के नाम पर बना है जिसनें अपने पिता की हत्या कर अपनी माँ से विवाह किया था। फ्रायड मानते है कि हमारी किसी भी प्रेरणा के पिछे हमारे अचेतन मन में इक्ट्ठा हमारी इच्छा का ही हाथ होता है। फ्रायड का मानना है कि कला और धर्म दोनों का उद्भव अचेतन मानस की संचित प्रेरणाओं और इच्छाओं में ही होता है। कलाकार जब नैतिक दबाव के कारण इच्छाओं को व्यक्त नहीं कर पाता है तो वह कला के माद्यम से यद कार्य करता है। फ्रायड की मानना है कि मानसिक जीवन में कुछ भी अकारण अथवा निष्प्रयोजन नहीं होता है। प्रयोजन या प्रेरणा प्रमुखतः कोई कामेच्छा होती है जिसे हम मनोविश्लेषण के द्वारा जान सकते हैं। फ्रायड चेतना को तीन भाग में बाँटते है-ः + +6932. अर्द्ध चेतन. + +6933. फ्रायड का चेतन और अचेतन संबंधित उदाहरण. + +6934. फ्रायड ने काम और व्यक्ति की दमित भावनाओं को तथा एडलर ने अहम् को महत्त्व दिया। युंग ने दोनो को एक साथ रखा। किंतु उन्होंने फ्रायड के इस मत का विरोध किया कि- काम जीनव की प्रमुख प्रेरक शक्ति है। उन्होंने लिबिडो को व्यापक अर्थ प्रदान करते हुए माना कि- 'काम जीवन की वह प्रारम्भिक और सामान्य प्रेरक शक्ति है, जो मानव के सभी व्यवहारों में व्यक्त होती है। यह वह शक्ति है जो विकास, क्रिया तथा जनन में स्वयं को अभिव्यक्त करती है। उन्होनें माना कि मानव मुख्य रूप से एषणात्रय ‍‍यानी कि पुत्रएषणा, वित्तएषणा और लोकएषणा की पूर्ति करना चाहता है, यहीं उसका लक्ष्य है। मनुष्य जीना चाहता है और अपनी इच्छाओं की पूर्ति करना चहता है। इस कारण वह सामाजिक कार्य करता है, साथ ही कला का सृजन भी करता है ताकि उसका अस्तित्व अमर रहे।उन्होंने व्यक्त्तित्व के दो प्रकारों का उल्लेख किया है- अंतर्मुखी तथा बहिर्मुखी। + +6935. + +6936. स्त्री-विमर्श के इतिहास के बारे में सुमन राजे ने विस्तार से अध्ययन किया था। जिसके फलस्वरूप उन्होंने हिंदी साहित्य के इतिहास को पुनः किंतु स्त्री के नज़रिए से लिखा। उनके अनुसार मेसाच्युसेट्स में सन् १६११ ई. में महिलाओं को मताधिकार दिया गया था जिसे १७८० ई. में वापस ले लिया गया था। तत्पश्चात् अमेरिका में सन् १८५७ ई. में महिलाओं तथा पुरुषों के समान वेतन के लिए हड़ताल हुई थी, जिसके फलस्वरूप अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। भारत में सन् १८१८ में राजा राममोहन राय नें सती-प्रथा का विरोध किया। इसके परिणामस्वरूप सन् १८२९ में लार्ड विलियम बैंटिक ने सती-प्रथा को गैर-कानूनी घोषित कर दिया। जहाँ राजा राममोहन राय स्त्री-अधिकारों की वकालत कर रहे थे वहीं स्वामी दयानन्द सरस्वती ने स्त्री-शिक्षा पर विशेष बल दिया। उन्होंने बाल-विवाह तथा विधवा-विवाह जैसी कुरीतियों के विरुद्ध जाकर 'शारदा-एक्ट' पास करवाया। विवेकानंद स्त्री द्वारा स्वयं निर्णय लेने के लिए महिलाओं को शिक्षित करने का प्रयास कर रहे थे। सोवियत संघ में पीटर्सबर्ग में सन् १८५९ ई. को महिला-मुक्ति-आंदोलन की शुरुआत हुई थी। प्रसिद्ध फ्रांसीसी लेखक विक्टर ह्यूगो के संरक्षण में महिला अधिकार संगठन की स्थापना की गई थी। इस आंदोलन के क्रम में सन् १९०८ में ब्रिटेन में 'वीमेन्स फ्रीडम लीग' की स्थापना की गई। जापान में सन् १९११ को महिला-मुक्ति-आंदोलन की शुरुआत हुई। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सन् १९५१ में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा द्वारा भारी बहुमत से महिलाओं के राजनीतिक अधिकारों का नियम पारित किए जाने से महिला-आंदोलन की शुरुआत मानी जाती है। परिणामस्वरूप १९७५ में संपूर्ण विश्व में अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया गया। + +6937. आधुनिक चिंतन और साहित्य/प्राच्यवाद: + +6938. आधुनिक चिंतन और साहित्य/अस्तित्ववाद: + +6939. "अस्तित्ववादी चिंतनका सूत्र-वाक्य है-Existence precedes essence"। मानव जीवन की सबसे बड़ी चुनौती 'मृत्यु' ही इस विचारधारा का केंद्रबिंदु है। + +6940. अस्तित्त्ववाद और हिंदी साहित्य. + +6941. अयोध्याकाण्ड. + +6942. राजिवलोचन रामु चले तजि बापको राजु बटाउ कीं नाई॥१॥
+ +6943. सबु परिवारु मेरो याहि लागि, राजा जू, + +6944. बिना पग धोएँ नाथ, नाव ना चढ़ाइहौं॥८॥
+ +6945. मगजोगु न कोमल, क्यों चलिहै, + +6946. अनूप हैं भूपके बालक द्वै॥१८॥
+ +6947. संग लिएँ बिधुबैनी बधू, रतिको जेहि रंचक रूप दियो है। + +6948. तिरछे करि नैन, दै सैन, तिन्हैं समुझाइ कछू, मुसुकाइ चली॥ + +6949. सूरसुषमा. + +6950. रूप-रेख-गुन-जाति-जुगति बिनु निरालंब कित धावै। + +6951. घुटुरनि चलत रेनु-तन-मंडित मुख दधि लेप किए। + +6952. व्याख्या. + +6953. प्रात उठत मेरे लाल लड़ैतेहिं माखन रोटी भावै। + +6954. व्याख्या. + +6955. बृथा बहति जमुना, खग बोलत, + +6956. मदन मारि कीन्ही हम लुंजैं। + +6957. ऊधौ मोहिं ब्रज बिसरत नाहीं। + +6958. जबहिं सुरति आवति वा सुख की जिय उमगत ततु नाहीं॥ + +6959. उपन्यास हिंदी साहित्य की आधुनिक विधा है। इसका आरंभ भारतेंदु युग में हुआ। + +6960. सुधारवादी रवैया इस दौर के प्रेम प्रधान उपन्यासों में भी देखने को मिलता है। इस दृष्टि से ठाकुर जगमोहन सिंह का ‘श्यामा स्वप्न’ उल्लेखनीय है। + +6961. गोपालराम गहमरी ‘जासूस’ नामक पत्रिका प्रकाशित करते थे, जिसमें उनके साठ के लगभग उपन्यास छपे। उन्होंने ‘जासूस की भूल’, ‘घर का भेदी’, ‘अद्भुत खून’, ‘भोजपुर की ठगी’, आदि रहस्यपूर्ण, साहसिक और डकैती तथा ठगी की कथाएं निर्मित कीं। ये कथाएं अंग्रेजी के जासूसी उपन्यासों के ढंग पर लिखी गई हैं। उन्होंने जासूसी उपन्यासों के क्षेत्र में भी आदर्श के निर्वाह और लोकोपकार की भावना के समावेश का यत्न किया और आदर्श जासूसों की सृष्टि की। + +6962. प्रेमचन्द की उपन्यास कला को अनेक उपन्यासकारों ने अपनाया और आदर्शोन्मुख यथार्थवादी उपन्यास लिखा। इनमें विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक तथा सुदर्शन उल्लेखनीय हैं। कौशिक के उपन्यास ‘मां’ और भिखारिणी नारी-हृदय का मनोवैज्ञानिक चित्र प्रस्तुत करते हैं। + +6963. हिंदी साहित्य का इतिहास लगभग हजार वर्ष पुराना है। इस दीर्घ अवधि के साहित्य को पढ़ना, समझना और आत्मसात करना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है। एक मान्यता यह भी रही कि इसी चुनौती को ध्यान में रखकर हिंदी साहित्य के इतिहास को कालखंडों में बाँटा गया। साहित्य के विकास की यह प्रक्रिया सीधी और सरल नहीं रही बल्कि अनेकों उतार-चढ़ाव से गुजरी। हिंदी साहित्य के हजार वर्ष के लंबे इतिहास में अनेक परिवर्तन हुए। यह परिवर्तन इतना बड़ा है कि कई बार सारे साहित्य को एक ही भाषा का साहित्य मानने में भी कठिनाई होती है। इसलिए हिंदी साहित्य के इतिहास में सतत प्रगति ढूंढना वैसे ही है जैसे समूचे साहित्य के इतिहास में समान स्तर के श्रेष्ठ साहित्य की अपेक्षा करना। साहित्येतिहास की इस जटिलता को समझने के लिए भी काल-विभाजन की आवश्यकता पड़ती है। ऐसा करते हुए काल-विभाजन का लक्ष्य अंततः इतिहास की विभिन्न परिस्थितियों के सन्दर्भ में उसकी घटनाओं एवं प्रवृत्तियों के विकास को स्पष्ट करना होता है। + +6964. काल-विभाजन की कठिनाइयाँ. + +6965. इतिहास की प्रवृत्तियों का अध्ययन सुगम और सुबोध बनाने के लिए काल विभाजन की आवश्यकता पड़ती है। यूं तो कोई भी इतिहास निरंतरता की प्रवृत्तियों के कारण समग्र होता है किंतु उसकी समग्रता का अवबोध कराने के लिए उसका वैज्ञानिक वर्गीकरण आवश्यक हो जाता है। इस दृष्टि से काल विभाजन की समस्या साहित्य के इतिहास में महत्वपूर्ण हो जाती है। हिंदी साहित्येतिहास लेखन परंपरा में जो आरंभिक प्रयास थे, चाहे वे 'भक्तमाल' या 'कविमाला' सदृश रचनाएं हों, चाहे 'गार्सां द तासी' या 'शिवसिंह सेंगर' के प्रयास; उनमें काल-विभाजन का प्रयास नहीं किया गया। + +6966. ३. पूर्व माध्यमिक काल - १३८८-१५०३ ई॰
+ +6967. ८. वर्तमान काल - १८६९-अद्यतन + +6968. ३. रीतिकाल - १७००-१९०० संवत्
+ +6969. २. पूर्व मध्यकाल - १४००-१७०० ई॰
+ +6970. ध्यान से देखें तो १९१८ ई॰ के बाद का पूरा विभाजन कविता को केंद्र में रखकर किया गया है, जबकि अब गद्य का महत्व अधिक है। इसलिए गद्य-विधाओं का विभाजन अलग से किया गया, जो कि इस प्रकार है - + +6971. ५. निबंध - (क) शुक्ल पूर्व युग (ख) शुक्ल युग (ग) शुक्लोत्तर युग + +6972. + +6973. व्याख्या. + +6974. हौ घनआनंद जीवनमूल दई कत प्यासन मारत मोही॥२॥ + +6975. एक ही जीव हुतौ सु तौ वारयौ सुजान! सकोच औ सोच सहारियै। + +6976. तहँ साँचे चलैं तजि आपन पौ, झिझकै कपटी जे निसाँक नहीं। + +6977. झलकै अति सुन्दर आनन गौर, छके दृग राजत काननि छ्वै। + +6978. आदिकालीन एवं मध्यकालीन हिंदी कविता/बिहारी: + +6979. व्याख्या. + +6980. + +6981. जप माला छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु। + +6982. सौंह करैं भौंहनु हँसै, दैन कहै नटि जाइ॥९३॥ + +6983. व्याख्या. + +6984. आदिकालीन एवं मध्यकालीन हिंदी कविता/मीराबाई: + +6985. अधर सुधा रस मुरली राजाँ उर बैजन्ती माल। + +6986. णाच णाच म्हां रसिक रिझावां, प्रीत पुरातन जांच्या री। + +6987. + +6988. मीरां रो प्रभु गिरधर नागर, दुरजन जलो जा अंगीठी॥३३॥ + +6989. विख रो प्यालो राणा भेज्यां, पीवां मीरा हांसां री। + +6990. हेरी म्हा दरद दिवाणां म्हारां दरद न जाण्यां कोय॥ + +6991. + +6992. मानववादी चिंतन का समाज पर प्रभाव. + +6993. मानववाद + +6994. देशप्रेम की कविताएं/पुष्प की अभिलाषा - माखनलाल चतुर्वेदी: + +6995. मुझे तोड़ लेना बनमाली, + +6996. देशप्रेम की कविताएं/भारती जय विजय करे - सूर्यकांत त्रिपाठी निराला: + +6997. धोता-शुचि चरण युगल + +6998. + +6999. इस पुस्तक की सामग्री के संकलन तथा निर्माण में सहयोगी लेखक + +7000. + +7001. + +7002. + +7003. आदिवासी विमर्श बीसवीं सदी के अंतिम दशकों में शुरु हुआ अस्मितामूलक विमर्श है। इसके केंद्र में आदिवासियों के जल जंगल जमीन और जीवन की चिंताएं हैं। माना जाता है कि १९९१ के बाद भारत में शुरु हुए उदारीकरण और मुक्त व्यापार की व्यवस्थाओं ने आदिम काल से संचित आदिवासियों की संपदा के लूट का रास्ता भी खोल दिया। विशाल एवं अत्यंत शक्तिशाली बहुराष्ट्रीय एवं देशी कंपनियों ने आदिवासी समाज को उनके जल, जंगल और जमीनों से बेदखल कर दिया। इसने आदिवासी इलाकों में बड़े पैमाने पर विस्थापन को जन्म दिया। बड़ी संख्या में झारखंड, छत्तीसगढ़, दार्जिलिंग आदि इलाकों से लोग बड़े महानगरों जैसे दिल्ली, कोलकाता आदि में आने को विवश हुए। इन आदिवासी लोगों के पास न धन था, न ही आधुनिक शिक्षा थी। शहरों में ये दिहाड़ी मजदूर या घरेलु नौकर बनने को बाध्य हुए। विशालकाय महानगरों ने इनकी संस्कृति, लोकगीतों और साहित्य को भी निगल लिया। नई पीढ़ी के कुछ आदिवासियों ने शिक्षा हासिल की और अवसरों का लाभ उठाकर सामर्थ्य अर्जित किया। उन्होंने सचेत रूप से अपने समाज के सामाजिक, सांस्कृतिक हितों की रक्षा के लिए आवाज उठाना आरंभ किया। उन्होंने संगठन भी बनाए। आदिवासियों ने अपने लिए इतिहास की नए सिरे से तलाश की। उन्होंने अपने नेताओं की पहचान की। अपने लिए नेतृत्व का निर्माण किया। साथ ही समर्थ आदिवासी साहित्य को जन्म दिया। प्रतिरोध अस्मितामूलक साहित्य की मुख्य विशेषता है। आदिवासी विमर्श भी आदिवासी अस्मिता की पहचान, उसके अस्तित्व संबंधी संकटों और उसके खिलाफ जारी प्रतिरोध का साहित्य है। यह देश के मूल निवासियों के वंशजों के प्रति भेदभाव का विरोधी है। यह जल, जंगल, जमीन और जीवन की रक्षा के लिए आदिवासियों के ‘आत्मनिर्णय’ के अधिकार की माँग करता है। + +7004. अंतिम और तीसरी अवधारणा उन आदिवासी लेखकों की है, जो ‘आदिवासियत’ के तत्वों का निर्वाह करने वाले साहित्य को ही आदिवासी साहित्य के रूप में स्वीकार करते हैं। ऐसे लेखकों और साहित्यकारों के भारतीय आदिवासी समूह ने 14-15 जून 2014 को रांची (झारखंड) में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में इस अवधारणा को ठोस रूप में प्रस्तुत किया, जिसे ‘आदिवासी साहित्य का रांची घोषणा-पत्र’ के तौर पर जाना जा रहा है और अब जो आदिवासी साहित्य विमर्श का केन्द्रीय बिंदु बन गया है। + +7005. मुक्त बाजार आधारित अर्थव्यवस्था के दौर में आदिवासी कभी पैसे और कभी सरकारी नियमों के बल पर अपनी जमीन से बेदखल होकर पलायन कर रहे हैं। इसके कारण आदिवासी भाषा एवं संस्कृति संकट में पड़ गई है। परंपरागत खेलों से लेकर आदिवासियों की लोक-कला तक विलुप्त होती जा रही है। यह संकट वामन शेलके के यहाँ इस रूप में है- + +7006. मदन कश्यप की कविता "आदिवासी" बाजार के क्रूर चेहरे को सामने लाती है- + +7007. और हमारी बेचैन आकांक्षाओं में साथ-साथ हमारा आयतन भी + +7008. मगर कोई अपना सगा दिखाई नहीं देता। + +7009. मेरा गाँव भी यहाँ से जाने वाला है।
+ +7010. संबंधित पत्रिकाएं. + +7011. इस पुस्तक की सामग्री के संकलन तथा निर्माण में सहयोगी लेखक + +7012. आदिकालीन एवं मध्यकालीन हिंदी कविता/ग्रंथानुक्रमणिका: + +7013. त्रिलोचन, रांगेय राघव आदि प्रमुख हैं। बाद में गिरिजाकुमार माथुर , भारतभूषण अग्रवाल ,गोपालदास नीरज ,रामविलास शर्मा आदि कवि भी इस धारा से जुड़े। इस काव्यधारा की प्रमुख प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं- + +7014. प्रगतिवादी विचारधारा सौंदर्य को रूमानी कल्पनाओं के बजाय जीवन से जोड़कर देखती है। वह अपने आस-पास के जनजीवन में सौंदर्य खोजती है। सौंदर्य व्यक्ति के हार्दिक आवेगों और मानसिक चेतना दोनों से संबंधित होता है। ये दोनों सामाजिक संबंधों से नियंत्रित होती हैं। + +7015. किसी को आर्य ,अनार्य , + +7016. मनुज को मनुज न कहना आह ! + +7017. स्त्री मुक्ति आकांक्षी. + +7018. प्रगतिवाद का जनआंदोलन से सीधा संबंध था। इसलिए इससे जुड़े साहित्य की भाषा को जनभाषा होना अनिवार्य था। प्रगतिवादि कवियों ने छायावादी भाषा से भी सरल भाषा में कविता की। + +7019. साहित्य और सत्ता: + +7020. आधुनिककालीन हिंदी साहित्य का इतिहास/प्रयोगवाद: + +7021. साधारणतः किसी काल अथवा किसी भी परिवेश में विभिन्न चीजों के समझने के तरीके को बोध कहा जाता है। हिंदी साहित्य के इतिहास में मध्यकालीन बोध से अभिप्राय मोटे तौर पर १४ वीं सदी से १८ वीं सदी के भारत के हिंदी प्रदेशों में मौजूद सामाजिक समझ से है। यह हिंदी साहित्य के दो महत्वपूर्ण कालखंडों भक्तिकाल एवं रीतिकाल से संबंधित है। + +7022. '""रहना नहीं देश विराना है। + +7023. २. सामंती व्यवस्था. + +7024. मध्यकालीन युग धर्म के साथ आस्था, विश्वास और श्रद्धा महत्वपूर्ण था। मध्ययुग में रहस्य-रोमांच और जादू, तंत्र-मंत्र और अति काल्पनिक आख्यानों व गाथाओं को विशेष स्थान प्राप्त था। + +7025. + +7026. बाज़ारवाद का संकट और निर्मला पुतुल की कविताएँ. + +7027. अब नहीं रह गया है संथाल परगना + +7028. ‘एक बार तो पता नहीं कौन + +7029. ‘वैस भी आजकल + +7030. ‘हाट-बाजार का हाल मत पूछो + +7031. जामुन, बेर, खजूर।’ + +7032. ‘बाजार की तरफ भागते + +7033. इस कविता में एक समाज के माध्यम से उन सभी समाजों की जीवन स्थितियों को दिखाने का प्रयास किया गया है जहां अब तक विकास योजनाओं के नाम पर विकास की एक छोटी सी सड़क भी नहीं पहुंच सकी है। जबकि इसकी अवसर लगात के रूप में सबसे ज्यादा कीमत ये आदिवासी ही चुकाते हैं। यह विकास जो आज भंडलीकरण की आड़ में किया जा रहा है वास्तव में सामंतवाद एवं पूंजीवाद का संरक्षक हैं। दरअसल भारत के इस लोकतंत्र में विकास की अनिवार्यता ने भारत की अर्थव्यवस्था(मिश्रित) का पलड़ा पूंजीवाद की तरफ कर दिया है यहां पूंजी का वर्चस्व है और वर्चस्व है उन लोगों का जिनके पास पूँजी है। ‘रोज कुआ खोद पानी पीने वाले लोगों’ से इसका कोई सरोकार नहीं जबकि यही लोग इनके तथाकथित विकास की नींव है पर विकास की यह इमारत अपनी नींव को मजबूती नहीं दे रही है। फलस्वरूप यही लोग सबको भोजन करा खुद भूखे रहते हैं। यह एक ऐसा समाज है जहां वस्तुओं के निर्माता, उसके भोक्ता नहीं हो पाते। + +7034. कैसी विडंबना है + +7035. ‘इस ऊबड़ खाबड़ धरती पर रहते + +7036. यह सर्वग्रासी वैश्विक सभ्यता जिसे मनोरंजन मोहंती पूंजीवाद का विकसित रूप मानते हैं सबसे बुरा असर समाज के उस वर्ग पर डालती है जो पहले से ही पिछड़ा हुआ है। आदिवासी जाति समाज का ऐसा ही वर्ग है। पर यह एक और बात है कि इस पिछड़े समाज में भी एक और पिछड़ा तबका है स्त्री। इसलिए इसका सर्वाधिक दुष्प्रभाव आदिवासी स्त्री झेलती है। किसी समाज में एक स्त्री पर पड़ने वाला प्रभाव पूरे समाज को प्रभावित करता है। क्योंकि उससे पूरा समाज जुड़ा होता है। वह परिवार का आधार होती है। इस वैश्वीकरण को पूंजीवाद का विकसित रूप कहने का मूल कारण है मुनाफा और शोषण। जो इन दोनों के मूल में है बस वैश्वीकरण में इसकी तकनीक बदल गयी है। यही कारण है कि वैश्वीकरण चीजों को समाप्त करने पर नहीं बल्कि अपने लाभ के लिए इसे बदलने पर बल देता है ‘खासतौर से परिवार और उसमें स्त्रियों तथा बच्चों के प्रति किए गए व्यवहार के मामले में।’ मुनाफे की चाहत स्त्रियों बच्चों के शोषण के बिना यानि मनुष्यता के शोषण के बिना पूरी नहीं हो पाती। इन मुनाफाखोरों को अपने मुनाफे से मतलब होता है चाहे इसके लिए आदिवासियों का घर जलाना हो या यहाँ की लड़कियों को शहरो में सप्लाई करना या फिर बाल उत्पीड़न करना। पुतुल की कविता मुनाफे की चाहत के पीछे किए जाने वाले इस शोषण को भी दिखाती है- + +7037. उन्ही की गाड़ियों पर + +7038. उठो अपने पीछे चल रही साजिश के खिलाफ + +7039. ‘तूफान है आज हमारा देश + +7040. मौत बेहतर है आज हमारे लिए + +7041. मुक्त किया था हमने जिस धरती को + +7042. ‘एक बार फिर ऊंची नाकवाली + +7043. उनकी यह कविता (एक बार फिर) ऐसे ही लोगों की कोरी हकीकत बयां करती है और साथ ही दिखाती है स्त्री की उस मनोदशा को जहाँ उसके सपने उसकी इच्छाएँ सब शब्दों में तब्दील होकर भाषण और नारेबाजी का रूप ले लेते हैं। + +7044. ये सपने जो उसे चटाइयाँ बुनते, पत्थर ढोते, गीत गाते, पहाड़ तोड़ते अपना दुख तोड़ने में मदद करते हैं। इन्हें उस किराए की भीड़ के बीच पहुँचा देते हैं जहां ये अधेकटे ब्लाउज पहनी और ऊँची नाकवाली महिलाएँ उनकी अस्मिता की दुहाई देती हैं। ये वे लोग है जो अस्मिता और स्त्री विमर्श के नाम पर उस पर हुए अत्याचार के खिलाफ लड़ने के सिर्फ संकल्प लेते हैं और बहस करते हैं,   + +7045. कई कई संकल्प।’ + +7046. और हमारी तालियॉं बटोरते + +7047. कभी आकर बैठी + +7048. ‘अरे बोलो ना भूखा पेट क्या मॉंगता है + +7049. पुतुल की कविता में ‘भूख’ का यह प्रसंग कई रूपों में दिखता है- + +7050. ‘ये वे लोग हैं + +7051. ‘वे घृणा करते है हमसे + +7052. प्रिय है तो बस + +7053. दिनभर मरती खटती सुगिया + +7054. ‘तुम बहुत मेहनती हो सुगिया + +7055. गाँठे खोलकर कभी पढ़ा है तुमने + +7056. एक मानक पुरुष दृष्टि से देखने + +7057. अपनी जाति से मुक्त होने की आकांक्षा उस स्वप्न को यथार्थ रूप में परिणत करने की चाहत दिखाती है जो वह घर, संतान, प्रेम के रूप में देखती है जो अब तक उसके लिए एक सपने के सिवाये कुछ नहीं है।वह अपनी वास्तविकता में जितना ही घर, प्रेम, जाति में व्यस्त होती जाती है उतना ही यह सब उसके लिए कल्पना और स्वप्न बनता जाता है। + +7058. वह अपने लिए एक ओर जहाँ अपनी जमीन की तलाश करती है दूसरी ओर एक खुला आसमान एक उन्मुक्त आकाश उसे अपनी ओर खींचता है। मुक्त होने की यह इच्छा उसे कोरी नारेबाजी से अलग सहारे की उम्मीद का आभास देती है क्योंकि वह सहारा नहीं केवल उसकी उम्मीद पर जीती है। + +7059. अपनी एक ऐसी जमीन + +7060. पुतुल की कविता ‘आदिवासी स्त्रियाँ’ स्त्री की उस भलमनसाहत एवं अबोधता का चित्रण करती है जो नहीं जानती कि उसके द्वारा निर्मित वस्तु उनके हाथों से निकलकर उनका मुनासिब हक मिले बिना बाजारों तक कैसे पहुंच जाती है। इस स्त्री की स्थिति की छलनी में इतने छिद्र हैं कि उस तक आने वाली सब सुविधाएँ आर-पार निकल जाती हैं। + +7061. वह अपनी इस व्यथा को कर्मशील होकर मिटाने की कोशिश करती है। वह पहाड़ तोड़ती, तोड़ती है अपनी बंदिश, अपनी वर्जनाएँ। किन्तु यह समाज स्त्री की कर्मन्यता पर बंधन लगाता है। मनुष्य की कर्मन्यता पर बंधन लगाना वास्तव में उसकी स्वतंत्रता पर बंधन लगाना है यह वह समाज है जो ढ़ोंग-आडंबर के नाम पर अपनी वासना को तृप्त करने के लिए स्त्री को पीड़ा देता है। + +7062. पुतुल की कविताएँ स्त्री की कर्मशीलता पर बंधन लगाने वालों के खिलाफ स्त्री की आवाज को बुलंद करती हुई आदिम लोक की स्त्रियों की दुर्दशा दिखाती है जो अपने ही समाज में पीड़ित हैं। यह ऐसा समाज है जो आदिवासी स्त्रियों की कर्मठता का विरोध करता है उसे दंडित करता है ताकि वह अपनी बस्ती की नाक बचा सके। + +7063. स्त्री को नंगा घुमाने से, उसे भूसा खिलाने से इस तथाकथित समाज की नाक बच जाती है, समाज का यह खोखलापन उसकी यह क्रूरतम सच्चाई जो स्त्री के शोषण का पर्याय बन चुकी है पुतुल की कविता का ‘संदर्भ बिन्दु’ है। क्योंकि यह कविता आदिमलोक के ‘जातीय टोटम’ के संदर्भ में उन आदिवासी स्त्रियों की व्यथा कथा कहती है जिनके साथ यह समाज हैवानों जैसा बर्ताव करता है - + +7064. तुम्हारा मरद भी करेगा तुमसे जानवराना बलात्कार + +7065. जब छोड़ गए थे तुम पर सारा घर बार + +7066. संदर्भ ग्रंथ. + +7067. 5. (संपा) उपाध्याय, रमेश संज्ञा; ‘श्रम का भूमंडलीकरण’ शब्द संधान प्रकाशन, दिल्ली; प्रथम संस्करण (2004) + +7068. 10. खेतान, प्रभा; ‘स्त्री-उपेक्षिता’ हिन्द पॉकेट बुक्स प्राइवेट लिमिटेड नवीन संस्करण (2002) पहला रिप्रिंट (2004) + +7069. किसी विस्तार से लिखे गये विषय मामले अथवा प्रतिवेदन आदि को संक्षेप में लिखकर प्रस्तुत कर देना सार लेखन या संक्षेपण कहलाता है। सार लेखन में मूल विषय-वस्तु या कथ्य सम्बन्धित मुख्य विचारों या तथ्यों को ही प्रथामिकता एवं महत्ता दी जाती है। इसमें अनावश्यक बातें, संदर्भ, तर्क-वितर्क आदि को हटा दिया जाता है और मूल विचार, तथ्य और भावों को ही रखा जाता है। संक्षेपण अर्थात सार-लेखन भी एक कला है और अध्ययन, अनुशीलन से उसे प्राप्त किया जा सकता है। कार्यालयीन कामकाज ही नहीं अपितु दैनंदिन जीवन में भी संक्षेपण कला का अत्यधिक उपयोग है। संक्षेपण को मानसिक प्रशिक्षण भी कहा गया है जिससे लेखन में स्पष्टता, सरलता तथा प्रभावशीलता पैदा होती है। मंत्रालयों, सरकारी कार्यालयों, विभागों तथा सरकार के अधीन प्रतिष्ठानों आदि में संक्षेपण या सार-लेखन का प्रयोग यथास्थिति समयानुसार किया जाता है। मंत्री महोदय, सचिव या उसके स्तर के उच्चाधिकारी के पास समयाभाव के कारण पूरी फाइल पढ़ पाना कभी-कभार संभव नहीं हो पाता। ऐसी स्थिति में सम्बन्धित अधीनस्थ अधिकारी मामले या प्रतिवेदन अथवा अभ्यावेदन आदि का सार-संक्षेपण टिप्पणी द्दारा लिखते हैं, जिनके अनुसार उच्चाधिकारी, प्रबन्ध निदेशक, अध्यक्ष अथवा मंत्री आदि अपने आदेश देते हैं अथवा कार्रवाई करते हैं। संक्षेपण से अनेक लाभ हो सकते हैं, जैसे- + +7070. (उ) संक्षेपण से मानसिक श्रम आदि की बचत होती है। + +7071. २) मूल अनुच्छेद को पढ़ने के बाद महत्वपूर्ण तथ्यों तथा विचारों को रेखांकित कर लिया जाना चाहिए। रेखांकन करते समय मूल विषय से सम्बन्धित कोई भी महत्वपूर्ण अंश नहीं छूटना चाहिए। + +7072. ७) सामान्यत: संक्षेपण मूल अनुच्छेद का एक-तिहाई होना चाहिए। + +7073. ३) सार-लेखन की तीसरी महत्वपूर्ण विशेषता है उसकी स्पष्टता। मूल विचारों तथा भावों को बिना उलझाये स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया जाना चाहिए, यही संक्षेपण की स्पष्टता की विशेषता है। + +7074. + +7075. + +7076. (अ) ए.एच. स्मिथ के अनुसार- " अर्थ को बनाये रखते हुए अन्य भाषा में अंतरण कहना अनुवाद है।" + +7077. एक भाषा में अभिव्यक्त विषयों, भावनाओं तथा संवेदनाओं को जहाँ तक संभव हो उसी की प्रयुक्त भाषा-शैली में दूसरी भाषा में रूपांतरित करना अनुवाद कहलाता है। मगर यह कार्य जितना सरल दिखाई देता है उतना है नहीं । मराठी के प्रसिध्द नाटककार मामा वरेरकर ने कहा भी है- "लेखक होना आसान है, किन्तु अनुवादक होना अत्यन्त कठिन। तथा स्वतन्त्र भारत के प्रथम राष्ट्र्पति राजेन्द्र प्रसाद जी ने भी कहा है- "एक प्रकार से मौलिक लेख लिखना आसान है, पर किसी दूसरी भाषा से अनुवाद करना बहुत कठिन होता है। मेरा निजी अनुभव है कि मैं अंग्रेजी से हिन्दी में और हिन्दी से उतनी आसानी से अनुवाद नहीं कर सकता, जितनी आसानी से इन दोनों भाषाओं में लिख या बोल सकता हूँ।" क्योंकि दो अलग-अलग भाषाओं की अपनी-अपनी प्रकृति होती है। अपनी शब्द-संपदा होती है। अपनी विशिष्ट भाषिक संरचना, शैली-भंगिमा होती है। + +7078. ४)शैली की समस्या:- हर भाषा की अपनी शैली होती है। परन्तु अगर एक भाषा में उपलब्ध शैली विशेषताएँ दूसरी में न मिले तो अनुवाद करने में परेशानी होती है। जैसे, हिन्दी की तीन शैलियाँ संस्कृत-निष्ठ हिदी, हिन्दुस्तानी और बातचित। + +7079. संदर्भ. + +7080. + +7081. संर्दभ. + +7082. इसे शासकीय पत्र भी कहा जाता है। सरकारी पत्राचार में सबसे अधिक मात्रा में पत्रों का प्रयोग होता है। अत: सरकारी पत्राचार में सरकारी पत्र (Official Letter) का महत्वपूण स्थान है । सरकारी पत्रों का प्रयोग विभिन्न कार्यालयों , संस्थाओं , निकायों , निगमों , सावजनिक उधोगों ,बैंकों तथा कम्पनियों के साथ सम्पर्क तथा दूरसंचार के उपयुक्त माध्यम के रूप में किया जाता है। + +7083. ४) पत्र भेजने का स्थान + +7084. ९) प्रेषक के हस्ताक्षर एवं उसका पदनाम + +7085. + +7086. १. प्रयोजनमूलक हिन्दी: सिध्दान्त और प्रयोग -- --- दंगल झाल्टे, पृष्ठ--२२२,२२३ + +7087. जनतांत्रिक व्यवस्था में जनसंचार तथा उसके माध्यमों का अनन्य साधाण महत्व है। सजग-सचेत जन-मानस जनतन्त्र की सफलता से ही निर्धारक होता है। और जन-मानस को सजग-सचेत बनाने में जन-संचार मध्यमों का महत्वपूर्ण योगदान होता है।डेविड़ ह्यूम ने जनमत को परिभाषित करते हुए लिखा है- '"राजसत्ता या शासन व्यवस्था का ठोस आधार जनमत ही है। सरकार का रूप कैसा भी हो, स्वेच्छाचारी राजा का, या सैनिक अधिकारियों का शासन हो, या स्वतन्त्र ,लोकप्रिय सरकार हो, जनमत के आश्रय के बिना कोई सरकार खडी़ नहीं रह सकती।"' जनसंचार के माध्यमों के अन्तर्गत मुख्यत: समाचार पत्र, रेडियो, दूरदर्शन, फिल्म तथा कम्प्यूटर आदि आते है। जनसंचार के इन सभी माध्यमों ने विश्व में फैली समस्त मानव-जाति के जीवन को प्रभावित किया है। शिक्षा ने विज्ञान को जन्म दिया है और विज्ञान ने जनसंचार के आधुनिक साधनों को। आज जनसंचार के ये साधन मनुष्य की आधुनिक शिक्षा तथा विज्ञान दोनों के प्रचार, प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह रही है। वर्तमान समय में उपग्रह संचार-व्यवस्था के विस्तार के साथ इस माध्यम की व्याप्ति ओर ही बढ़ गयी है।फिल्म और चित्रपट का दृश्य-श्रव्य दोनों माध्यम होने से बच्चों से लेकर वृध्दों तक इसका प्रभाव देखा जा रहा है। इनमें 'समाचार-पत्र' जनसंचार का व्यापक माध्यम रहा है जो सर्वप्रथम समाचार 'उदन्त मार्तण्ड' से लेकर आज तक अधिकांश समाचार-पत्र 'जनमत' निर्माण में सही रूप से योगदान दे रहा है। + +7088. (स) दृष्य संचार माध्यम- टेलीविजन, वीडियो कैसेट, फिल्म। + +7089. भाषा विज्ञान और हिंदी भाषा/संसार की भाषाओं का वर्गीकरण: + +7090. आकृतिमूलक के दो प्रमुख भेद हैं-- १) अयोगात्मक और २) योगात्मक । + +7091. १. अशि्लष्ट योगात्मक :- अशि्लष्ट योगात्मक भाषाओं में अर्थतत्व के साथ रचनातत्व का योग होता है। इस वर्ग की भाषा तुर्की है। + +7092. पारिवारिक वर्गीकरण. + +7093. १) सेमेटिक कुल :--- हजरत नोह के सबसे बडे पुत्र 'सैम' के नाम के अनुसार इस परिवार का नामाभिधान हुआ है। इस कुल की भाषाओं का क्षेत्र फिलिस्तीन , अरब, इराक, मध्य एशिया तथा मिस्त्र, इथोपिया, अल्जीरिया, मोरोक्को तक माना जाता है। यहूदियों की प्राचीन भाषा हिब्रू तथा अरबी इसी परिवार की भाषाएँ हैं। + +7094. ६) आस्टोनेशिया कुल :--- इस परिवार की प्रमुख भाषाओं में इंडोनेशिया की मलय, फिजी की फिजीयन, जावा की जावानीज तथा न्यूजीलैण्ड की मओरी आदि। + +7095. ११) एसि्कमो भाषा कुल :--- ग्रीनलैण्ड तथा एलुशियन द्दीपमाला का प्रदेश आते है। जिसका सम्बन्ध उत्तरी अमेरिका से जुडा है। + +7096. + +7097. भाषा का आरम्भ ध्वनि से होता है। ध्वनि के अभाव में भाषा की कल्पना नहीं की जा सकती है और हमने देखा है, भाषाविज्ञान का विषय ध्वन्यात्मक भाषा ही है। इसलिए सवप्रथम ध्वनि का विवेचन आवश्यक है। + +7098. उच्चारण की दृषि्ट से भाषा की लघुतम इकाई ध्वनि है और सार्थकता की दृषि्ट से शब्द । ध्वनि सार्थक हो ही , यह आवश्यक नहीं है; जैसे -- अ, क, च, ट, त, प आदि ध्वनियाँ तो हैं, किन्तु सार्थक नहीं । किन्तु , अब, कब चल आदि शब्द हैं, क्योकि इनमें सार्थकता है,अर्थात् अर्थ देने की क्षमता है। पदविज्ञान में पदों के रूप और निर्माण का विवेचन होता है। सार्थक हो जाने से ही शब्द में प्रयोग-योग्यता नहीं आ जाती । कोश में हजारों-हजार शब्द रहते हैं, पर उसी रूप में उनका प्रयोग भाषा में नहीं होता । उनमें कुछ परिवतन करना होता है। उदाहरणार्थ कोश में ' पढना ' शब्द मिलता है और वह सार्थक भी है, किन्तु प्रयोग के लिए 'पढना' रूप ही पयाप्त नहीं है, साथ ही उसका अर्थ भी स्पष्ट नहीं होता । 'पढना' के अनेक अर्थ हो सकते है; जैसे पढता है, पढ रहा है, पढ रहा होगा 'पढना' के ये अनेक रूप जिस प्रक्रिया से सिध्द होते हैं, उसी का अध्ययन पदविज्ञान का विषय है। संसकृत के वैयाकरणों ने शब्द के दो भेद किये हैं-- शब्द और पद । शब्द से उनका तात्पर्य विभकि्तहीन शब्द से है जिसे प्रातिपादित भी कहते हैं। पद शब्द का प्रयोग वैसे शब्द के लिए किया जाता है जिसमें विभकि्त लगी हो। + +7099. पदविज्ञान में पदों की रचना का विचार होता है, अर्थात संज्ञा , क्रिया , विशे्षण , कारक, लिंग , वचन , पुरूष , काल , आदि के वाचक शब्द कैसे बनते हैं, किन्तु उन पदों का कहाँ , कैसे प्रयोग होता है, यह वाक्यविज्ञान का विषय हैं। अभिहितान्वयाद के अनुसार पदों के योग से वाक्य बनती है, किन्तु उसके लिए तीन चीजें अपेक्षित हैं-- १. आकांक्षा , २. योग्यता , ३. आसत्ति । + +7100. अर्थबोध या संकेतग्रह के आठ साधन माने गये हैं--- १. व्यवहार ; २. आप्तवाक्य ; ३. उपमान; ४. वाक्यशेष (प्रकरण) ; ५. विवृति (व्याख्या ) ; ६. प्रसिध्द पद का सानि्नध्य ; ७. व्याकरण ; ८. कोश । + +7101. १. भाषाविज्ञान की भूमिका--- आचार्य देवेन्द्रनाथ शर्मा । दीप्ति शर्मा। पृष्ठ-- १८०-१८७ + +7102. २. इतिहास-भाषाविज्ञान + +7103. समाजविज्ञान में समाज का अध्ययन होता है, अर्थात् सामाजिक प्राणी के रूप में मनुष्य के आचार, विचार, व्यवहार आदि का विश्लेषण किया जाता है। व्यक्ति और समाज का सम्बन्ध, व्यक्ति पर समाज का प्रभाव, समाज के निर्माण में व्यक्ति का प्रभाव आदि विषयों की चर्चा समाजविज्ञान करते है। भाषा भी सामाजिक सम्पति है। वह समाज में ही उत्पन्न और समाज में ही विकसित होती है। मनुष्य के आचार-विचार आदि में भाषा का कभी प्रत्यक्ष और कभी अप्रत्यक्ष प्रभाव रहता है। इस तरह भाषाविज्ञान समाजविज्ञान के बहुत समीप आ जाता है। जैसे, ब्राह्मण किसी दिन पंडित हुआ करते थे और क्षत्रिय किसी दिन ठाकुर। आज दोनों ज्ञान और अधिकार से वंचित हो गये हैं, फिर भी पुराने नाम ढोये जा रहे हैं। सामान्यत: शिष्टाचार से लेकर क्रान्तिकारी परिवर्तन तक भाषा के द्दारा ही सम्पन्न होता है। + +7104. सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन: + +7105. मणिपुर में औरतों का फ़नैक पहनना,झारखंड के आदिवासियों का एक दूसरे को ‘जोहार’ कहकर अभिवादन करना। + +7106. लद्दाख के रास्ते ही बौद्ध धर्म तिब्बत पहुँचा।इसे छोटा तिब्बत भी कहते हैं।करीब चार सौ साल पहले यहाँ पर लोगों का इस्लाम धर्म से परिचय हुआ।गानों और कविताओं का प्रसिद्ध संग्रह तिब्बत का "ग्रंथ केसर सागा" लद्दाख में काफी प्रचलित है जिसे मुसलमान और बौद्ध दोनों ही लोग गाते और नाटक खेलते हैं। + +7107. संसार के आठ प्रमुख धर्मों में सभी के अनुयायी भारत में रहते हैं।यहाँ सोलह सौ से ज्यादा भाषाएँ बोली जाती हैं तथा सौ से ज्यादा तरह के नृत्य किए जाते हैं। + +7108. कई जनजाति लोगों ,धार्मिक समूहों और खास क्षेत्र के लोगों को विविधता और असमानता पर आधारित दोनों हीं तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ता है। + +7109. सत्ता-विमर्श के परिप्रेक्ष्य में रामकथा हर काल मे एक रोचक पाठ रही है। वाल्मीकि रामायण, रघुवंशम्, उत्तररामचरितम्, रामचरितमानस से लेकर राधेश्याम कथावाचक रचित रामायण तक में वर्णित रामकथा की परंपरा हमें सत्ता के संदर्भ में कुछ महत्त्वपूर्ण सूत्र प्रदान करती है। पारंपरिक हिंदी आलोचना में राधेश्याम रचित रामायण एक उपेक्षित पाठ रहा है। बीसवीं सदी के पहले दशक में ही रचे जाने के बावजूद यह द्विवेदी युगीन मुख्यधारा के साहित्य और हिंदी विभागों के पाठ्यक्रम में स्थान पाने से वंचित रहा। कामिल बुल्के ने भी हिंदी में रामकथा की परंपरा में इसे स्थान नहीं दिया। रामकथा और राजनीतिक व्यवस्था के आदर्श के तौर पर तुलसी के रामचरितमानस और रामराज्य का उल्लेख किया जाता है। रामकथा के आदि-स्रोत के रूप में वाल्मीकि के रामायण का उल्लेख किया जाता है। हालांकि वाल्मीकि रामायण का कथा विस्तार, रघुवंशम् और उत्तररामचरितम् का नाट्य-विधान और रामचरितमानस का आदर्श कहीं एक साथ देखना हो तो वह राधेश्याम कथावाचक के रामायण में देखा जा सकता है। इस आलेख में सत्ता-विमर्श के परिप्रेक्ष्य में परंपरित पाठों और रामकथा संबंधित आलोचनात्मक शोधों के साथ राधेश्याम रामायण के तुलनात्मक अध्ययन का प्रयास किया गया है। + +7110. सीता की अग्नि-परीक्षा और परित्याग. + +7111. "प्राप्तचारित्रसन्देहा मम प्रतिमुखे स्थिता।
+ +7112. राम के सामने जब चयन की स्थिति आयी, तब कालिदास के शब्दों में राम पर 'दोलाचलचित्तवृत्तिः' हावी हो गई अर्थात् वे संशयग्रस्त हो जाते हैं। लोगों की बात सुनकर सीता का त्याग या सीता का सम्मान करके लोकापवाद की उपेक्षा करें? एक ओर राजधर्म था तो दूसरी ओर प्रेमधर्म। भवभूति ने जिसे 'लोकस्याराधनं' कहा है, यहाँ उस राजधर्म की विजय होती है और प्रेमधर्म को पराजित होना पड़ता है। + +7113. फिर संभले, कहा - छोड़ आए! जो हुआ उचित था उचित हुआ। + +7114. यदहं पुत्रमेकं तु पश्यामि निधनं गतम्।।" + +7115. "स वै विषयपर्यन्ते तव राजन् महातपाः।
+ +7116. विन्ध्याचल के गह्वर बन में ब्राह्मण का कर्म कर रहा है।। + +7117. तुरत चढ़ाया क्रुद्ध हो - निज धन्वा पर तीर।। + +7118. पर मुझे और ही एक बात-अवनति का मूल दीखती है।। + +7119. सामान्य पुरुष की गलतियों को क्षमा किया जा सकता है। सीता ने किया भी। किन्तु सत्ताधीश की गलतियाँ अक्षम्य होती हैं। राम का अश्वमेध करना सत्ता को अक्षुण्ण बनाने का ही अनुष्ठान था। प्रजानुरंजन को वरीयता देकर अपनी गर्भिणी पत्नी का परित्याग करना सत्ता के चरित्र को अनावृत्त करता है तथा कदाचित राम के महानायकत्व के विघटन का कारण भी बनता है। + +7120. तथा बयरू न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई।। (पृ ५३२) + +7121. यह पुस्तक २०१९ में घटने वाली घटनाओं का सार प्रस्तुत करती है।यह पुस्तक मुख्यरूप से संघ एवं राज्य लोकसेवा आयोग के विद्यार्थियों को केंद्र में रख कर लिखी गई है,परंतु इसका उपयोग किसी अन्य प्रतियोगिता परीक्षा के विद्यार्थी या शिक्षक भी कर सकते हैं।यह पुस्तक लोकसेवा के विद्यार्थियों के लिए गागर में सागर के समान है,जिसमें कुछ हीं पन्नों में पुरे वर्ष के समसामयिकी को समेटने का प्रयास किया गया है। + +7122. टास्क फोर्स में केंद्रीय गृह मंत्रालय और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) सहित सामाजिक न्याय और स्वास्थ्य से संबंधित मंत्रालयों के प्रतिनिधि शामिल होंगे और परवर्ती चरण में सिविल सोसाइटी के संगठनों से भी परामर्श किया जाएगा। + +7123. 2017 में संयुक्त राष्ट्र की तीसरी UPR में भारत ने मानवाधिकारों पर 250 सिफारिशों में से 152 को स्वीकार किया। + +7124. गोवा मुक्ति आंदोलन ने पुर्तगाली औपनिवेशिक शासन को समाप्त करने की मांग की यह आंदोलन छोटे पैमाने पर एक विद्रोह के साथ शुरू हुआ लेकिन :वर्ष 1940 से 1960 के बीच यह अपने चरम पर पहुँच गया। भारतीय सेना द्वारा गोवा में ‘ऑपरेशन विजय' चलाकर 19 दिसंबर,1961 को इस राज्य को पुर्तगालियों से मुक्त करा लिया गया। + +7125. कोंकणी (राजभाषा) तथा मराठी यहाँ की मुख्य भाषाएँ हैं। + +7126. व्यय पर्यवेक्षकों का कार्य चुनाव के दौरान सभी गतिविधियों और खुफिया इनपुट्स पर कार्यवाही की निगरानी करना है। + +7127. इसमें केवल उन भारतीयों के नाम को शामिल किया जा रहा है जो कि 25 मार्च, 1971 के पहले से असम में रह रहे हैं। उसके बाद राज्य में पहुँचने वालों को बांग्लादेश वापस भेज दिया जाएगा। + +7128. सदन का सबसे वरिष्ठ सदस्य होता है जो स्पीकर और डिप्टी स्पीकर की नियुक्ति नहीं होने तक सदन की कार्यवाही को संचालित करता है। + +7129. 3.यदि किसी दल को कम से कम चार राज्यों में राज्यस्तरीय दल के रुप में मान्यता प्राप्त हो। + +7130. भाषा विज्ञान और हिंदी भाषा/भाषा की विशेषताएँ और प्रवृत्तियाँ: + +7131. २. /भाषा का प्रवाह अविच्छिन है/ + +7132. हमने पहले देखा है, सम्प्रेषण के सांकेतिक ,आंगिक , लिखित , आदि अनेक रुप हैं, अर्थात् इनमें से किसी के द्दारा व्यकि्त अपना अभिप्राय दूसरों से प्रकट कर सकता है। यधपि उसके लिखित रूप में आरोह-अवरोह आदि का कोई निर्देश नहीं होता । तो भाषा का सर्वप्रमुख माध्यम यही है कि उसे बोलकर पारस्परिक सम्प्रेषण का काम लिया जाये अर्थात् अपना अभिप्राय दूसरों तक पहुँचाया जाये । + +7133. ७. प्रत्येक भाषा का ढाँचा स्वतन्त्र होता है + +7134. १. भाषाविज्ञान की भूमिका --- आचार्य देवेन्द्रनाथ शर्मा । दीपि्त शर्मा । पृष्ठ--३८-४४ + +7135. विकासवाद के अनुसार मनुष्य भी एक दिन अन्य पशुओं की कोटि का ही जीव थ।, अर्थात् उसकी चेष्टाएँ पशुओं-जैसी ही होती थीं । भाषा नाम की वस्तु उसे उपलब्ध नहीं थी और वह आंगिक चेष्टाओं या इंगितों की सहायता से अपनी बात अपनी योनि के दूसरे सदस्यों तक पहुँचता था । मुनुष्य अपनी प्रारमि्भक अवस्था में अन्य पशुओं की अपेक्षा अधिक बुध्दि-सम्पन्न था, इसमें कोई सन्देह नहीं । बन्दर आनन्द के समय किलकारी भरते हैं, क्रोध के समय किटकिटाते हैं, मनुष्य भी ऐसे चेष्टाएँ करता होगा, क्योंकि तब तक उसमें वाणी का विकास नहीं हुआ था। आंगिक चेष्टायें भाव का घोतक रहा है। क्योकि वह जीवन-निवाह के सिमित था। + +7136. /यान्त्रिक भाषा / + +7137. साहित्य और सत्ता/दुष्यंत कुमार का साहित्य और सत्ता: + +7138. दुष्यंत कुमार के साहित्य के केंद्र में आम आदमी का दुःख, पीड़ा और उसकी समस्याएँ हैं और इन समस्यों को जिस व्यवस्था और सत्ता ने जन्म दिया है। उसका तीव्र विरोध दुष्यंत कुमारके साहित्य में देखने को मिलता है। दुष्यंत कुमारसरकारी कर्मचारी होने के बावजूद ‘व्यवस्था’ और ‘सत्ता’ का अपने जीवन और साहित्य में तीव्र और कड़ा विरोध करते रहे। दुष्यंत कुमारने तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी पर शेर कहा- + +7139. ये एहतियात ज़रूरी है इस बहर के लिए”
+ +7140. मैं कौन हूँ?... + +7141. या शायद मैं कुछ भी नहीं हूँ + +7142. जनता की सेवा के भूखे/ सारे दल भेड़ियों से टूटते हैं। + +7143. ज़रूर कुछ सुनहले स्वप्न होंगे-/ जिन्हें मैंने नही देखा।... + +7144. + +7145. "प्रकृति पर मनुष्य की विजय को लेकर ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं, क्योंकि ऐसी हर जीत हमसे अपना बदला लेती है। पहली बार तो हमें वही परिणाम मिलता है जो हमने चाहा था, लेकिन दूसरी और तीसरी दफा इसके अप्रत्याशित प्रभाव दिखाई पड़ते हैं जो पहली बार के प्रत्याशित प्रभाव का प्रायः निषेध कर देते हैं। इस तरह हर कदम पर हमें यह चेतावनी मिलती है कि हम प्रकृति पर शासन नहीं करते, जैसे कोई विजेता विदेशी लोगों पर शासन करता है। हम प्रकृति पर इस तरह शासन नहीं कर सकते जैसे हम उसके बाहर खड़े हों, क्योंकि मांस, रक्त और मस्तिष्क सहित प्रकृति से जुड़े हुए हैं और उसी के बीच हमारा अस्तित्व है।"     + +7146. ताई के मायके में ‘सगेन’ का इन आंदोलनों से परिचय होता है. वहाँ उसे सुनने को मिलता है, “... पिछले कुछ वर्षों से हो रही सरकारी ज़्यादतियों के खिलाफ है हमारा यह जंगल आंदोलन. आप लोग जानते होंगे कि 1973 में केंदु पत्ता व्यवसाय को राष्ट्रीयकृत कर दिया गया है. केंदु पत्ता जिससे आप लोग बीड़ी बनाते थे, जो आप लोगों के रोजगार का एक महत्त्वपूर्ण जरिया था, आप लोगों की पंहुच से दूर हो गया है. सरकार के इस कदम से आप लोगों में से कितनों की ही रोजी-रोटी छिन गयी होगी. छिन गयी है न ?”   जाहिर है भीड़ का जवाब ‘हाँ’ में ही आता. उनकी आजीविका का साधन उनके हाथ से निकल ही चुका था. डॉ॰ वीर भारत तलवार ने अपनी पुस्तक ‘झारखंड के आदिवासियों के बीच: एक एक्टिविस्ट के नोट्स’ में बकायदा उल्लेख किया है कि किस प्रकार इन आदिवासियों के ऊपर तमाम प्रकार के नियम-कानून थोपकर उनके घरेलू पेड़ों, जंगलों को हथिया लिया गया और उन्हें साफ करके व्यावसायिक दृष्टिकोण से ज्यादा लाभदायक सागवान और सफेदा आदि लगाए जाने लगे. सागवान साल की अपेक्षा आधे उम्र में ही बड़ा और तैयार हो जाने वाला वृक्ष है. इन पेड़ों से न तो उनका ( आदिवासी ) कोई सांस्कृतिक जुड़ाव होता है और न ही विशेष आर्थिक लाभ मिल पाता है. और ज्यादा पानी सोखने के कारण जो जमीन अनुर्वर हो जाती है वो अलग. आंदोलनकारी कहते …. “इसीलिए तो हम अपने आप को ठगा सा महसूस करने लगे. हद तो तब हुई जब इसके एक वर्ष बाद साल के बीजों पर सरकार ने अपना अधिकार जमा लिया और फिर तीन साल बीतते न बीतते जंगल की तमाम लघु वनोपजों को भी राष्ट्रीयकृत करके पूरा व्यापार अपने हाथों में ले लिया...”   ऐसे क्रांतिकारी आंदोलनों की एक प्रवृत्ति होती है कि वे एक दिन में ही नहीं उठ खड़े होते. तमाम अत्याचारों को लंबे समय तक बर्दाश्त करने पर भी हल न निकले तो प्रतिरोध ही उसका एक मात्र रास्ता होता है और ऐसे जन आंदोलन उभर कर सामने आते हैं. और फिर भी सुनवाई न होने पर हथियार उठाना स्वाभाविक लगने लगता है. आंदोलनकर्ता दोहराते हैं, “पर अब वक्त आ गया है विरोध जताने का, अपने अधिकारों के लिए लड़ने का. कोल विद्रोह में अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाले वीरों के वंशजों ! आइये, आज आप लोग भी हमारे साथ इस आंदोलन में शामिल होइए... .”   इस प्रकार ये प्रदर्शन लगातार बढ़ते गए. पर इन सबसे कोई आश्वासन मिलता न दिखा तो प्रभावित इलाके के आदिवासियों ने ‘सरकारी लगाए गए सागवानों की कटाई प्रारम्भ कर दी. इसके पीछे इनका तर्क होता था, इन जंगलों पर हमारा पारंपरिक अधिकार रहा है. जब बाहरी लोग आकार जंगल साफ करके अपने लाभ के लिए सागवान उगा सकते हैं, तो पेड़ काटकर हम क्यों नहीं कर सकते खेती ?’   सगेन इन आंदोलनों और प्रदर्शनों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने लगा. उसे इन गतिविधियों में मज़ा भी आता और साथ ही साथ वह बहुत कुछ सीखता भी. पर्यावरणीय विमर्श अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा होने के साथ साथ उपन्यास में स्वास्थ्य तथा चिंता के रूप में भी व्यक्त हुआ है. वृक्ष अथवा पृथ्वी के संरक्षण की चिंता हम कहीं से भी करें, यह उसके और हमारे हित में ही है. हमारे देश के प्रबुद्ध चिंतकों का मत होता है कि जब भारत आगे बढ़ रहा है, विकास कर रहा है, तो राष्ट्र हित में कुछ लोगों का विस्थापन उतना मायने नहीं रखता. इस मुद्दे पर सगेन क्षुब्ध होकर यह स्वीकार करता है कि यह विकास शायद देश के लिए जरूरी हो. सस्ती ऊर्जा, उच्चस्तरीय सुरक्षा तथा चिकित्सा के लिए हम आदिवासियों का बलिदान भी जायज़ है. परंतु एक सवाल जिसका जवाब आदिवासियों को चाहिए कि “यदि परमाणु कचरे को फेंकने के लिए किसी नए टेलिंग डैम की खुदाई आदिवासी इलाके में न करके जागरूक, सभ्य, सत्ताधारी, लोगों की बस्ती में... दिल्ली, कोलकाता, मुंबई या चेन्नई में की जाए तो ? वहाँ के पढे-लिखे, पैसे वाले, सत्ताधारी लोग इसे होने देंगे ? क्या वे देश हित मे हमारी तरह अपना घर-बार, शहर छोड़कर कहीं और चले जाना पसंद करेंगे ? + +7147. + +7148. पहली योजना(1951-56)-इस दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था"खाद्दान के आयात (1951) की समस्या तथा मूल्यों में वृद्धि" के दबाव का सामना कर रही थी। इस कारण कृषि को अधिक प्राथमिकता दी गई,जिसमें सिंचाई तथा विधुत परियोजना शामिल थे। योजना लागत का लगभग 44.6% सार्वजनिक क्षेत्रके उद्यम को आवंटित।इस यो + +7149. जितने व्यकि्त हैं, उतनी भाषाएँ है; कारण किन्हीं दो व्यकि्तयों के बोलने का ढंग एक नहीं होता । वस्तुत: प्रेमचन्द की भाषा प्रसाद से भिन्न है और पन्त की निराला से। हिन्दी का प्रयोग तो यों सभी करते है; फिर यह अन्तर क्यों ? यह इसलिए कि उस भाषा के पिछे उनका व्यकि्तत्व है। व्यकि्तत्व का प्रभाव शिक्षित व्यकि्तयों की ही भाषा में नहीं , बलि्क अशिक्षितों की भाषा में पाया जाता है। अत: वक्ता के भेद से भाषा के अनेक रूप हो जाते हैं। उदाहरणार्थ-- शिक्षा , संस्कृति , व्यवसाय , वातावरण , पर्यावरण आदि। हमने देखा भाषा के तीन रूप होते हैं -- वाणी , भाषा ,अधिभाषा;किन्तु दो व्यवहारिक है उन पर विचार किया जा सकता है। + +7150. उदाहरणार्थ -- खडी बोली -- जाता हूँ । + +7151. भाषा में ही जब सामाजिक दृष्टि से ऐसे प्रयोग आ जाते हैं, जो शिष्ट रूचि को अग्राह्म प्रतीत होतें हैं तो उनको अपभाषा कहतें हैं। अंग्रेजी में स्लैंग कहते हैं। नवीनता , विनोद , उच्छृंखलता ,संस्कारहीनता आदि अनेक अभाषा हैं। समान्यत: अपभाषा शिष्ट भाषा में ग्रहण नहीं होता है,किन्तु कोई प्रयोग बहुत चल पडता है तो वह शिष्ट भाषा बन जाती है।
+ +7152. ६.कृत्रिम भाषा + +7153. १. भाषाविज्ञान की भूमिका --- आचार्य देवेन्द्रनाथ शर्मा ।दीपि्त शर्मा । पृष्ठ - ४५-५२ + +7154. पंजाब का समृद्ध किसान-किसानों को उनकी उपज के लिए ज्यादा समर्थन मूल्य और मेहनती और सस्ते मजदूरों द्वारा उच्च पारिवारिक आय सुनिश्चत करना ताकि वे अपने बच्चों को विदेशों में बसा सकें। + +7155. लोगों के लक्ष्य भिन्न होने के कारण उनकी राष्ट्रीय विकास के बारे में धारणा भी भिन्न होगी।देश के विकास के विषय में विभिन्न लोगों की धारणाएँ भिन्न या परस्पर विरोधी हो सकती है। + +7156. "देश की औसत आय(प्रतिव्यक्ति आय )=देश की कुल आय/कुल जनसंख्या" + +7157. तालिका के आधार पर हम हरियाणा को सबसे अधिक विकसित तथा बिहार को सबसे कम विकसित माना जाएगा। + +7158. शिशु मृत्यु दर-किसी वर्ष में पैदा हुए 1000 जीवित बच्छों में से एक वर्ष की आयु से पहले मर जाने वाले बच्चों का अनुपात। + +7159. + +7160. ईश्वरवादी प्रत्येक कार्य-कलाप ,यहाँ तक सृषि्ट का भी सम्बन्ध दिव्य शकि्त से मानते है। उनका मानना है कि ईश्वर मनुष्य को उत्पन्न कर सकता है तो भाषा क्यों नहीं मनुष्य जब भी उत्पन्न हुआ होगा तो अपनी सम्पूण विशेषताओं के साथ इसलिए वह अन्य प्राणियों की अपेक्षा अधिक शरीरिक सौष्ठव , आंगिक स्वच्छन्दता और विकसित चेतना है। + +7161. ३. रणन (डिड्-डांङ् ) सिध्दान्त + +7162. समीक्षा:- आवेगबोधक ध्वनियों के समान इन ध्वनियों में सार्थकता का अभाव है। छियो-छियो , हो-हो से कोई अर्थ नहीं निकलता । आवेगबोधक ध्वनियों का सम्बन्ध भाव की तीव्रता से और श्रमध्वनियों का शारीरिक क्रिया से, अन्यथा तात्विक दृष्टि से दोनों का अर्थ शून्य है। निरर्थक ध्वनियों से सार्थक भाषा की उत्पति की कल्पना अयुकि्तसंगत है। + +7163. आदिम मानव भावुकता के क्षणों में संगीतात्मक ध्वनियाँ उत्पन्न करता रहा होगा बाद में इन्हीं संगीतात्मक ध्वनियों से अर्थ का योग हुआ होगा और उससे भाषा का विकास ¡ येस्पर्सन ने गाने के खेल ( singing sport ) से उच्चारण के अवयवों के द्दारा उच्चारण के अभ्यास की बात कहकर समर्थन किया है। + +7164. + +7165. बाह्य कारण. + +7166. विज्ञान की विभिन्न शाखाओं ने विगत दो शताबि्दयों से अकल्पनीय प्रगति की है जिसके कारण असंख्य नयी वस्तुओं और नये तत्वों का अविष्कार हुआ है। उन वस्तुओं और तत्वों के नामकरण की आवश्यकता से हजारों-हजार नये शब्द गढने पडे हैं, जिसने भाषा अत्यधिक समृध्द हुई है। यह वैज्ञानिक शब्दावली आधुनिक युग और विज्ञान की, देन है। अत: विज्ञान ने मनुष्य को ही नहीं, भाषा को भी रूपान्तरित कर दिया। + +7167. 'कल।' + +7168. कभी-कभी ऐसा होता है कि शब्द में ऐसे संयुक्ताक्षर आ जाते हैं जिनका उच्चारण आसानी से नहीं हो पाता । अत: किसी स्वर की सहायता लेकर उसका उच्चारण करना अधिक सुविधाजनक मालूम होता है। शब्द में नयी ध्वनि का आ जाना आगम कहलाता है। आगम स्वर और व्यजनों दोनों का हो सकता है। स्थान-भेद से आगम के तीन भेद हैं-- आदि,मध्य,और अन्त। + +7169. ३. विकार:- + +7170. जब दो भिन्न ध्वनियाँ पास रहने से सम हो जाती हैं तो उसे समीकरण कहते हैं। समीकरण के दो भेद हैं- १) पुरोगामी २) पश्चगामी । जैसे-- पुरोगामी समीकरण- वार्ता > बात ; कर्म > काम । पश्चगामी समीकरण- अगि्न > आग ; रात्रि > रात । + +7171. प्रेम, क्रोध, शोक, आदि भावों में अतिरेक से भी शब्दों का रूप बदल जाता है। उदाहरणार्थ-- बाबू का बबुआ, बच्चा का बचवा, बेटी का बिटिया । + +7172. संदर्भ. + +7173. लोकतंत्र में जनभागीदारी के संबंध में 1931 में यंग इंडिया पत्रिका में गाँधीजी लिखते हैं"मैं यह विचार सहन नहीं करक सकता कि जिस आदमी के पास संपत्ति है वह वोट दे सकता है,लेकिन वह आदमी जिसके पास चरित्र है पर संपत्ति या शिक्षा नहीं, वह वोट नहीं दे सकता या जो दिनभर अपना पसीना बहाकर ईमानदारी से काम करता है।वह वोट नहीं दे सकता क्योंकि उसने गरीब आदमी होने का गुनाह किया है..। " + +7174. हिंदी भाषा 'ख': + +7175. अभिधा शब्द-शक्ति. + +7176. इसके भी दो भेद हैं- + +7177. निराला की यह कविता 'बेला' में संकलित है। + +7178. खोलेंगे अँधेरे का ताला, + +7179. धोखे पर धोखा खाते हुए, + +7180. वाद से विवाद यह ठने, + +7181. निराला की यह कविता 'अर्चना' में संकलित है। + +7182. आँखें रह जाती थीं फँसकर, + +7183. देती थी सबके दाँव, बन्धु! + +7184. बहुत दिनों बाद खुला आसमान! + +7185. लड़कियाँ घरों को कर भासमान। + +7186. पनघट में बड़ी भीड़ हो रही, + +7187. + +7188. अर्थ-परिवर्तन के कारण. + +7189. (क)भौगोलिक परिवर्तन :- वेद में 'उष्ट्र' शब्द का प्रयोग 'भैसे' के अर्थ में हुआ है ,किन्तु बाद में 'ऊँट' के लिए होने लगा। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि आर्य जहाँ रहते थे वहाँ ऊँट नहीं थे ,बाद में शीत भू-भाग से उष्ण-भाग की ओर आये और उन्हें एक नया जन्तु मिला जिसका नाम ऊँट रखा जिसका प्रयोग भैसें के लिए हुआ करता था। + +7190. ६. भावनात्मक बल:- बौध्दिक उपयोग के साथ भाषा का भावात्मक उपयोग होता है। भावात्मक बल के कारण अनेक शब्दों के अर्थ में परिवर्तन हो जाता है। जैसे - बंगाल में एक मिठाई का नाम 'प्राणहरा' (प्राण लेने वाला) मिठाई का नाम 'प्राणहारा' उपयुक्त नहीं है लेकिन उनका लक्ष्य था मिठाई का अतिशय बताना। + +7191. अत: उपयुक्त चर्चा से स्पष्ट होता है कि अर्थ -परिवर्तन का कोई एक सुनिशि्चत कारण नहीं आन्तरिक, बाह्म , मानसिक , भौतिक आदि अनेक कारण है। + +7192. २. अर्थ-संकोच + +7193. (ग) विशेषण:- अर्थ-संकोच का एक बहुत बडा़ साधन विशेषण है। गुलाब शब्द से किसी भी रंग के गुलाब का बोध हो सकता है,किन्तु लाल गुलाब कह देने पर उजले, पीले,गुलाबी, हरी आदि का व्यवच्छेद हो जाता है। + +7194. अत: अर्थ-परिवर्तन में उत्कर्ष की अपेक्षा अपकर्ष की प्रवृति अधिक पायी जाती है। + +7195. सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन/स्थानीय सरकार और प्रशासन: + +7196. ग्राम सभा पंचायत को मनमाने ढंग से काम करने से रोक सकती है।साथ हीं पौसों का दुरुपयोग एवं कोई गलत काम न हो,इसकी निगरानी भी करती है। + +7197. पटवारी का मुख्य काम जमीन को नापना और उसका रिकॉर्ड रखना है।इसे लेखपाल,कर्मचारी,ग्रामीण अधिकारी तो कहीं कानूनगो कहते हैं। पटवारी जरीब(लंबी लोहे की जंजीर) का उपयोग खेत मापने के लिए करते है। + +7198. एक नया कानून(हिंदू अधिनियम धारा,2005)-इसके अनुसार बेटों,बेटियों और उनकी माँ को जमीन में बराबर हिस्सा मिलता है।यह कानून सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में भी लागू होगा। + +7199. 1994 में सूरत शहर में भयंकर प्लेग फैला।सूरत भारत के सबसे गंदे शहरों में एक था।लोग घरों और होटलों का कूड़ा-कचरा पास के नाली में या सड़क पर ही फेंक देते थे। + +7200. फेक जिले में चिजामी नामक गांव के चखेसंग समुदाय इसप्रकार की खेती करते हैं।पहाड़ी की ढ़लाऊ जमीन को छोटे-छोटे सपाट टुकड़ों में बाँटकर सीढ़ियों के रूप में बदल दिया जाता है ।प्रत्येक सपाट टुकड़े के किनारों को ऊपर उठा देते हैं जिससे पानी भरा रह पाए ,यह चावल की खेती के लिए सबसे अच्छा है। + +7201. + +7202. ध्वनि अध्ययन के तीन आधार है-- १) औच्चारणिक ध्वनिविज्ञान २) सांवहनिक ध्वनिविज्ञान , ३) श्रावणि ध्वनिविज्ञान। इनमें उच्चारण और ग्रहण का सम्बन्ध शरीर से है और संवहन का वायु-तंरगों से । वक्त के मुख से नि:सृत ध्वनि श्रोता के कान तक पहुँचती है। ध्वनि के उत्पादन के लिए वक्ता जितना आवश्यक है, उतना ही उसके ग्रहण के लिए श्रोता आवश्यक है,किन्तु वक्ता और श्रोता के बीच यदि ध्वनि के संवहन का कोई माध्यम न हो तो उत्पन्न ध्वनि भी निरर्थक हो जायेगी। यह कार्य वायु-तंरगों के द्दारा सिध्द होता है। वागिन्द्रियों की स्थिति और कार्य को ठीक से समझने के लिए शारीरिक रचना एवं क्रिया का थोडा़-बहुत ज्ञान आवश्यक है। शरीरविज्ञान की दृष्टि से मानव-शरीर निम्नलिखित तन्त्रों में विभाजित किया जाता है-- १) अस्थि-तन्त्र २) पेशी-तन्त्र ३) श्वसन-तन्त्र ४) पाचन-तन्त्र ५) परिसंचरण-तन्त्र ६) उत्सर्जन-तन्त्र ७) तन्त्रिका-तन्त्र ८) अन्त:स्त्रावी-तन्त्र ९) जनन-तन्त्र । जिसमें से दो ही श्वसन-तन्त्र और पाचन-तन्त्र से सम्बन्धित है। + +7203. ३. जिहवा:- जिहवा वाक्यंत्र का प्रमुख भाग है। इसके चार भाग होते हैं- पश्च भाग, मध्य भाग, अग्रभाग, दाँत को स्पर्श करने वाला भाग। इनसे विभिन्न ध्वनि उत्पन्न करने में सहायता मिलती है। + +7204. ८. मूर्धा:- कठोर तालु और कोमल तालु की संधि वाला भाग मूर्धा कहलाता है, इससे टवर्ग (ट् , ठ् , ड् , ढ् , ण) ध्वनियों का उच्चारण होता है। + +7205. अत: शरीरविज्ञान की दृष्टि से दो ही तन्त्र आते है-- १) श्वसन-तन्त्र २) पाचन-तन्त्र। वस्तुत: श्वसन-तन्त्र और पाचन तन्त्र बाहर और भीतर के छोरों पर एक-दूसरे से अलग हैं और बीच में ( कंठ के पास) मिले हुए है। नासिका से भीतर गया भोजन कुछ दूर तक एक ही मार्ग से जाते हैं,किन्तु गले से उतरने पर उनके मार्ग भिन्न हो जाते हैं-- श्वास-वायु श्वास-नली की सहायता से फेफडो़ं में पहुँच जाती है और भोजन भोजन-नली की सहायता से आमाशय में। यदि धोखे से भोजन श्वास-नली में पहुँच जाये तो तत्काल मृत्यु हो सकती है। इसलिए प्रकृति ने भोजन-नली के द्दार पर एक आवरण दे रखा है जो भोजन निगलते समय श्वास-नली के मुख को बन्द कर देता है। इससे भोजन श्वास-नली में न जाकर सीधे आमाशय में चला जाता है। जब कभी भूल से कोई कण श्वास-नली के द्दार पर पहुँचता है तो तत्क्षण भीतर से वायु उसे बाहर फेंकने का प्रयास करती है जिसे लोग 'सरकना' कहते है। श्वसन-तन्त्र के अवयव- फेफड़े , स्वर-तन्त्र, नासिका-विवर है। और पाचन-तन्त्र के अवयव- मुखविवर और ग्रसनिका है। ध्वनियों के उत्पादन के लिए किससे क्या सहायता मिलती है इनका स्थूल परिचय आवश्यक है। + +7206. (ग) स्वर-तन्त्रियों की एक अवस्था यह भी है कि वह पास आ जाती हैं,पर सटती नहीं और इस तरह वायु के आने-जाने का मार्ग अत्यन्त संकीर्ण हो जाता है। यह दोनों की मध्यवर्ती अवस्था है-न बिल्कुल खुली,न बिल्कुल सटी। इसी अवस्था में फुसफुसाइट वाली ध्वनियाँ उत्पन्न होती है। + +7207. ५. नासिका-विवर + +7208. इसमें इस बात का अध्ययन होता हैं कि हम कैसें सुनते है। इस बात को स्पष्ट करने के लिए कान की बनावट को देख लेना होगा। हमारा कान तीन भागों में बंटा हैं। जो बाह्य कर्ण, मध्यकर्ण और अभ्यंतर कर्ण। बाह्य कर्ण के दो भाग पहला जो ऊपर टेढ़ा-मेढ़ा दिखाई देता है। यह भाग सुनने की क्रिया में अपना कोई विशेष महत्व नहीं रखता। दूसरा भाग छिद्र या कर्ण-नलिका के बाहरी भाग से आरम्भ होकर भीतर तक जाता है। इस भाग की कर्ण-नलिका की लम्बाई लगभग एक इंच होती है। मध्यवर्ती कर्ण एक छोटी-सी कोठरी है जीसमें तीन छोटी-छोटी अस्थियां होती है। इन अस्थियों का एक सिरा बाह्य कर्ण की झिल्ली से जुड़ा रहता है और दूसरी ओर इसका सम्बन्ध आभ्यन्तर कर्ण से। इस भाग में शंख के आकार का एक अस्थि-समूह होता है। इसके खोखलें भाग में इसी आकार की झिल्लियां होती है। इन दोनों के बीच एक प्रकार का द्रव पदार्थ भरा रहता है। इस भाग के भीतरी सिरे की झिल्ली से श्रावणी शिरा के तन्तु आरम्भ होते है जो मस्तिष्क से सम्बन्ध रहते हैं। ध्वनि की लहरों जब कान में पहुंचती हैं तो बाह्य कर्ण के भीतरी झिल्ली पर कम्पन्न उत्पन्न करती हैं। इस कम्पन्न का प्रभाव मध्यवर्ती कर्ण की अस्थियों द्वारा भीतरी कर्ण के द्रव पदार्थ पर पड़ता है और उसमें लहरे उठती हैं जिसकी सूचना श्रावणी तन्तुओं द्वारा मस्तिष्क में जाती है और हम सुन लेते हैं। + +7209. पृष्ठ-- ५२ + +7210. वाक्य के भेद. + +7211. (क)हिन्दी,अंग्रेजी आदि में सहायक क्रिया के बिना काम नहीं चल सकता। हिन्दी या अंग्रेजी में बिना 'है' या 'इज' का प्रयोग किये वाक्य अधूरा लगता है। जैसे- 'यह मेरी पुस्तक' या 'दिस माइ बुक' खटक जाता है। 'यह मेरी पुस्तक है, या 'दिस इज माइ बुक' कहने पर आकांक्षा पूर्ण निवृति होती है। + +7212. रचना के अनुसार वाक्य के तीन भेद हैं- १) सरल २) संयुक्त ३) मिश्र। + +7213. अर्थ के अनुसार वाक्य के आठ भेद माने जाते हैं- १) विधि वाक्य २) निषेध-वाक्य ३) प्रश्न-वाक्य ४) अनुज्ञा-वाक्य ५) इच्छार्थक-वाक्य ६) सन्देहार्थक-वाक्य ७) संकेतार्थक-वाक्य ८) विस्मयादिबोधक-वाक्य। + +7214. ३.आवर्तक वाक्य:- इसमें चरम सीमा अन्त में आती है। श्रोता या पाठक उत्सुकतापूर्वक प्रतिक्षा करता रहता है और तब उसके सामने वह बात आती है जो वक्ता या लेखक उसे बताना चाहता है, इस शैली के वाक्य वक्ताओं या नेताओं अधिक करते है। जैसे-- 'यदि हम चाहते हैं कि हमारी स्वतन्त्रता सुरक्षित रहे , यदि हम चाहते हैं कि हमारी सीमा की ओर देखने की भी हिम्मत शत्रु को न हो आदि। + +7215. + +7216. महासागर की पर्पटी सिलिका एवं मैग्नीशियम निर्मित।पर्पटी के ठीक नीचे मैंटल 2900 किमी की गहराई तक होता है।क्रोड सबसे आंतरिक परत जिसकी त्रिज्या 3500 किमी है। + +7217. आवसादी शैल में जीवाश्म पाये जाते हैं। + +7218. वायुराशि ने पृथ्वी के तापमान को रहने योग्य बनाया है।इसमें नाइट्रोजन 78 %,ऑक्सीजन 21 %,आर्गन 0.93%, कर्बन डाइऑक्साइड (CO2)0.03% तथा शेष 0.04%में हाइड्रोजन,हीलियम,निऑन, क्रिप्टन, जेनान,ओज़ोन तथा जल वाष्प होती है। + +7219. वायुमण्डल का घनत्व ऊंचाई के साथ-साथ घटता जाता है। वायुमण्डल को 5 विभिन्न परतों में विभाजित किया गया है। + +7220. क्षोभमण्डल के ऊपर लगभग 50 किमी की ऊचाँई तक फैला है।यह परत बादलों एवं मौसम संबंधी घटनाओं से लगभग मुक्त होती है।यहाँ की परिस्थितियाँ हवाई जहाज उड़ाने के लिए आदर्श होती हैं।इसमें ओजोन गैस की परत होती है,जो सूर्य से आनेवाली हानिकारक गैसों से हमारी रक्षा करती है। ओजोनमंडलसमतापमंडल 20 से 50 किलोमीटर तक विस्तृत है।(समतापमंडल में लगभग 30 से 60 किलोमीटर तक ओजोन गैस पाया जाता है जिसे ओजोन परत कहा जाता है।) इस मण्डल में तापमान स्थिर रहता है तथा इसके बाद ऊंचाई के साथ बढ़ता जाता है। समताप मण्डल बादल तथा मौसम संबंधी घटनाओं से मुक्त रहता है। इस मण्डल के निचले भाग में जेट वायुयान के उड़ान भरने के लिए आदर्श दशाएं हैं। इसकी ऊपरी सीमा को 'स्ट्रैटोपाज' कहते हैं। इस मण्डल के निचले भाग में ओज़ोन गैस बहुतायात में पायी जाती है। इस ओज़ोन बहुल मण्डल को ओज़ोन मण्डल कहते हैं। ओज़ोन गैस सौर्यिक विकिरण की हानिकारक पराबैंगनी किरणों को सोख लेती है और उन्हें भूतल तक नहीं पहुंचने देती है तथा पृथ्वी को अधिक गर्म होने से बचाती हैं।यहाँ से ऊपर जाने पर तापमान में बढोतरी होती है ओजोन परत टूटने की इकाई डाब्सन मे मापी जाती है। + +7221. बहिर्मंडल. + +7222. + +7223. मैदानी क्षेत्रों में नदी के मोढ़ + +7224. रेगिस्तान में पवनों के अपरदन एवं निक्षेपण के फलस्वरूप छत्रक शैल का निर्माण होता है।पवन अपने साथ रेत को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाती है।जब पवन का बहाव रुकता है तो यह रेत गिरकर छोटी पहाड़ी बनाती है।इनको बालू टिब्बा कहते हैं।हल्के और महीन बालू कण वायु द्वारा उठाकर अत्यधिक दूर ले जाकर जमा करने के पश्चात लोएस का निर्माण होता है।चीन में विशाल लोएस निक्षेप पाए जाते हैं। + +7225. इजरायल के मृत सागर में 340 ग्राम प्रति लीटर लवणता होती है।तैराक इसमें प्लव कर सकते हैे,क्योंकि नमक की अधिकता इसे सघन बना देती है। + +7226. जल का सर्वाधिक ऊँचाई तक उठकर तट के बड़े हिस्से को डुबोना ज्वार तथा जल का निम्नतम स्तर तक आकर एवं तट से पीछे चला जाना भाटा कहलाता है।सूर्य एवं चंद्रमा के शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण बल के कारण पृथ्वी ज्वार-भाटा आते हैं।जब पृथ्वी का जल चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण बल से अभिकर्षित होता हैं तो उच्च ज्वार आते हैं।पूर्णिमा एवं अमावस्या के दिनों मे सूर्य,चंद्रमा एवं पृथ्वी तीनों एक सीध में होते हैं,और इस समय सबसे ऊँचे ज्वार उठते हैं इसे बृहत् ज्वार कहते हैं। + +7227. छायावाद (1918 से 1937 ई०) + +7228. छायावाद का युग भारत के लिए अस्मिता की खोज का युग है। सदियों की दासता के कारण भारतीय जनता आत्मकेंद्रित होती हुई रूढ़िग्रस्त हो गई थी। पाश्चात्य साम्राज्यवादियों के आगमन ने देश में एक विराट तूफान पैदा कर दिया था, जिसके कारण रूढ़ियों में सुप्त देश की आत्मा पूरी शक्ति और उद्वेलन के साथ जाग उठी। + +7229. उदाहरणार्थ, राष्ट्रीय सांस्कृतिक धारा के कवियों ने विदेशी शासन का विरोध किया और जनता में आत्मविश्वास की भावना उत्पन्न की। यह विद्रोह छायावादी कवियों में भी व्यापक रूप में दिखाई देता है उन्होंने विषय, भाव, भाषा, छंद आदि सभी क्षेत्रों में नए मूल्यों की प्रतिष्ठा का प्रयास किया। + +7230. (ग)रामचंद्र शुक्ल ने छायावादी काव्यभाषा का संबंध फ्रांसीसी प्रतीकवाद से जोड़ा है । जब इसे रोमैटिक अंग्रेजी कविता के साथ संबद्ध नहीं किया गया तब हिन्दी की छायावादी काव्यभाषा से संबद्ध करना दुराग्रह नहीं तो क्या है । फ्रांसीसी प्रतीकवाद का प्रभाव ब्रिटेन के रोमैटिक कवियों पर नहीं है बल्कि इलिएट , एट्स , आडेन , डायलन टामस आदि पर है । उसी प्रकार फ्रांसीसी प्रतीकवादियों का प्रभाव हिन्दी के आधुनिक कवियों - अज्ञेय , शमशेर बहादुर सिंह आदि पर है । + +7231. यह भी उल्लेखनीय है कि 'कानन कुसुम' और 'झरना' के परवर्ती संस्करणों में कवि ने कुछ नई कविताओं का समावेश किया तथा 'आंसू' में चौंसठ छंद और जोड़ दिए। स्पष्ट है कि 'झरना' के पूर्व की सभी रचनाएं दिवेदी युग के अंतर्गत लिखी गई थी। 'आंसू' का आरंभ कवि की विरह-वेदना की अभिव्यक्ति से हुआ है: + +7232. इसके अंत में यह छन्द दिया गया है: + +7233. सुमित्रानंदन पंत. + +7234. कैसे उलझा दू लोचन? + +7235. उनकी छायावादयुगीन रचनाएँ हैं-'अनामिका'(1923),'परिमल'(1930),'गीतिका'(1936),'तुलसीदास'(1938)। कुछ समय तक उन्होंने 'मतवाला' और 'समन्वय' का संपादन भी किया। + +7236. लोहित-लोचन-रावण-मदमोचन-महीयान।" + +7237.   -"पीड़ का साम्राज्य बस गया + +7238.               अलि उस मूक मिलन की + +7239. प्रवृत्तियां/विशेषताएँ. + +7240. को तीव्रता प्रदान की, कल्पना के द्वार मानो वायु + +7241. नवीन अभिव्यंजना पद्धति. + +7242.   संधि में आलोक तम की + +7243. अन्योक्तिपद्धति का अवलंबन. + +7244. छायावादी कवियों ने प्रधान रूप से प्रणय की अनुभूति को व्यक्त किया है। उनकी कविताओं में प्रणय से संबद्ध विविध मानसिक अवस्थाओं का-आशा, आकुलता, आवेग, तल्लीनता, निराशा, पीड़ा, अतृप्ति, स्मृति, विषाद आदि का अभिनव एवं मार्मिक चित्रण मिलता है। रीतिकालीन काव्य में श्रृंगार की अभिव्यक्ति नायक-नायिका आदि के माध्यम से हुई है, किंतु छायावादी कवियों की अनुभूति की अभिव्यक्ति प्रत्यक्ष है। यहां कवि और पाठक की चेतना के बीच अनुभूति के अतिरिक्त किसी अन्य सत्ता की स्थिति नहीं है। स्वानुभूति को इस भांति चित्रित किया गया है कि सामान्य पाठक सहज ही उसमें तल्लीन हो जाता है। स्वानुभूति के संप्रेषण के लिए यह आवश्यक है कि कवि उसे निजी संबंधों और प्रसंगों से मुक्त करके लोकसामान्य अनुभूति के रूप में प्रस्तुत करे। छायावादी कवि की प्रणयानुभूति की अभिव्यक्ति भी इसी लोक-सामान्य स्तर पर हुई है। + +7245. व्यक्तिनिष्ठ एंव कल्पनाप्रधान. + +7246. विजन वल वल्ली पर + +7247. नारी तुम केवल श्रद्धा हो + +7248. छायावाद युगीन अन्य काव्यधाराएँ. + +7249. आलोच्य युग में हास्य - व्यंग्य को प्रमुखता देने वाले अन्य समर्थ कवि हैं - अन्नपूर्णानंद (महाकवि चच्चा ) , कान्तानाथ पांडेय ' चोंच ' और शिवरत्न शुक्ल । अन्नपूर्णानंद ने पश्चिम के अंधानुकरण , सामाजिक रूढियों की दासता , मानव - स्वार्थ आदि विषयों पर उत्कृष्ट व्यंग्य - काव्य स्चना की है । कान्तानाथ पांडेय ' चोंच ' की कृतियों में ' चोंच - चालीसा ' , ' पानी पांडे ' और महकावि सांड़ ' उल्लेखनीय हैं , जिनमें से अंतिम दो में इनकी कुछ हास्य - रसात्मक कहानियां भी समाविष्ट हैं। + +7250. गध-साहित्य. + +7251. हिंदी में एकांकी नाटकों का प्रचलन विशेष रूप से विवेच्यकाल के अंतिम कुछ वर्षों में ही हुआ , यों आरंभ से ही एकांकी लिखने के छटपुट प्रयास होने लगे थे । उदाहरणस्वरूप , महेशचंद्र प्रसाद के ' भारतेश्वर का संदेश ' ( 1918 ) शीर्षक पद्यबद्ध एकांकी , देवीप्रसाद गुप्त के ' उपाधि और व्याधि ' ( 1921 ) तथा रूपनारायण पांडेय द्वारा अमूल्यचरण नाग के बंगला - नाटक ' प्रायश्चित ' के आधार पर लिखित ' प्रायश्चित प्रहसन ' ( 1923 ) का उल्लेख किया जा सकता है । ब्रिजलाल शास्त्री - कृत ' वीरांगना ' ( 1923 ) में ' पद्मिनी ' , ' तीन क्षत्राणियां ' , ' पन्ना ' , ' तारा ' , ' कमल ' ' पद्मा ' , ' कोड़मदेवी' , ' किरणदेव ' प्रभृति एकांकी संगृहित हैं । बदरीनाथ भट्ट के एकांकी - संग्रह ' लबड़ धो धों ' ( 1926 ) में मनोरंजक प्रहसन संकलित हैं । हनुमान शर्मा - कृत ' मान - विजय ' ( 1926 ) , बेचन शर्मा ' उग्र ' के एकांकी - प्रहसनों का संग्रह ' चार बेचारे ' ( 1929 ) और प्रसाद का ' एक घूंट ' ( 1930 ) भी इस काल की उल्लेखनीय रचनाएं हैं । उग्र जी ने समसामयिक परिस्थितियों का व्यंग्यपूर्ण शैली में निर्मम विश्लेषण प्रस्तुत किया है । इस विवरण से यह स्पष्ट है कि एकांकी - रूप में नाटकों की रचना बहुत पहले होने लगी थी । सच पूछे तो यह विधा हमारे लिए बिलकुल नयी नहीं थी । + +7252. हिंदी कहानी का प्रकार और परिमाण दोनों ही दृष्टियों से वास्तविक विकास विवेच्य काल में ही हुआ , यह एक निर्विवाद तथ्य है । जिस प्रकार प्रेमचंद इस काल के उपन्यास - साहित्य के एकच्छत्र सम्राट् बने रहे , उसी प्रकार कहानी के क्षेत्र में भी उनका स्थान अद्वितीय रहा । इस अवधि में उन्होंने लगभग दो सौ कहानियां लिखीं । उनके कहानी - लेखन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि स्वयं उनकी ही कहानियों में हिंदी कहानी के विकास की प्रायः सभी अवस्थाएं दृष्टिगोचर हो जाती हैं । उनकी आरंभिक कहानियों में किस्सागोई , आदर्शवाद और सोद्देश्यता की मात्रा अधिक है । यद्यपि व्यावहारिक मनोविज्ञान का पुट दे कर मानवचरित्र के सूक्ष्म उद्घाटन की क्षमता के फलस्वरूप प्रेमचंद ने अपनी कहानियों को विशिष्ट बना दिया है . पर उनकी आरंभिक कहानियों का कच्चापन और यथार्थ की उनकी कमज़ोर पकड़ अत्यंत स्पष्ट है । इन कहानियों में हम एक अत्यंत प्रबुद्ध कलाकार को कहानी के सही ढांचे या शिल्प की तलाश में संघर्षरत पाते हैं । ' बलिदान ' ( 1918 ) , ' आत्माराम ' ( 1920 ) , ' बूढ़ी काकी ' ( 1921 ) , ' विचित्र होली ' ( 1921 ) , ' गृहदाह ' ( 1922 ) , ' हार की जीत ' ( 1922 ) , ' परीक्षा ' ( 1923 ) , ' आपबीती ' ( 1923 ) , ' उद्धार ' ( 1924 ) , ' सवा सेर गेहूं ' ( 1924 ) , ' शतरंज के खिलाड़ी ' ( 1925 ) , ' माता का हृदय ' ( 1925 ) , ' कजाकी ' ( 1926 ) , ' सुजान भगत ' ( 1927 ) , ' इस्तीफा ' ( 1928 ) , ' अलग्योझा ' ( 1929 ) , ' पूस की रात ' ( 1930 ) , ' तावान ' ( 1931 ) , ' होली का उपहार ' ( 1931 ) , ' ठाकुर का कुआँ'(1932), 'कफन'(1936) आदि कहानियो में इस तलाश की रेखायें स्पष्ट देखी जा सकती हैं। + +7253. ब्रिटिश शासन की दासता से मुक्ति पाने के लिए अखिल भारतीय कांग्रेस महात्मा गाँधी के नेतृत्व में एक देशव्यापी आन्दोलन चला रही थी और उसका प्रमाभ देश की सभी भाषाओं के रचनाकारों पर पड़ रहा था । हिन्दी में भी उस समय ऐसे अनेक कवि उत्पन्न हुए जिन्होंने राजनीति तथा भारतीय संस्कृति को केन्द्र में रखकर अपनी रचनाएँ प्रस्तुत की । राजनीतिक जन जागरण के क्षेत्र में इन कवियों का योगदान सदैव स्मरण किया जायेगा । द्विवेदी युग के कवियों की चर्चा में हमने ऐसे कई कवियों के नाम संकेतित किये है जिन्होंने छायावाद युग में रहते हुए भी युगधर्म के साथ विशिष्ट आन्दोलनों को ध्यान में रखकर , देशभक्तिपूर्ण कविताएँ लिखी । + +7254. -"चाह नहीं,मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं, + +7255. मातृभूमि पर शीश चढ़ाने,जिस पथ जावें वीर + +7256. प्रेम और मस्ती का काव्य. + +7257. भाषाविज्ञान के अध्ययन क्षेत्र. + +7258. आधुनिक भाषा विज्ञान का प्रारम्भ ही तुलनात्मक भाषा विज्ञान से माना जाता है। 'तुलनात्मक ' का अर्थ है दो या दो से अधिक भाषाओं के तुलनात्मक अध्ययन तथा इस पध्दति में अध्ययन एक या कई कालों की भाषाओं का हो सकता है। इसमें ऐतिहासिक भाषाविज्ञान से भी सहायता ली जाती है। एक , दो या अधिक भाषाओं या बोलियों के तुलनात्मक अध्ययन द्दारा उस अज्ञात भाषा का स्वरूप ज्ञात किया जाता है, जिससे वे दोनों निकली है। इसे भाषा का पूनर्निर्माण (Reconstruction) कहते है। + +7259. संरचनात्मक पध्दति वर्णनात्मक भाषाविज्ञान पध्दति की अगली कडी़ है। इसमें भाषा के विभिन्न तत्वों के पारस्परिक सम्बन्धों को लेकर अध्ययन किया जाता है। संरचनात्मक भाषाविज्ञान के विभिन्न तत्वो + +7260. भाषा विज्ञान और हिंदी भाषा/पदबंध की अवधारणा और उसके भेद: + +7261. पहले वाक्य में 'वहाँ ' एक क्रिया-विशेषण पद ( स्थानवाचक) है, दूसरे वाक्य में, 'सौरभ के मकान के चारों ओर ' यहाँ कई पदों की ऐसी इकाई है जो स्थानवाचक क्रिया-विशेषण का कार्य कर रही है, अत: यह क्रिया-विशेषण पद न होकर क्रिया-विशेषण पदबंध है। + +7262. ३) विशेषण-पदबंध---जैसे, शरत पूनों के चाँद सा सुन्दर मुख किसको नहीं मोह लेता। + +7263. ८) विस्मयादिबोधक-पदबंध--- हाय रे किस्मत ! यह प्रयास भी नाकाम रहा। + +7264. कार्यालयी हिंदी/प्रयोजनमूलक हिन्दी के स्वरूप और प्रयोगात्मक क्षेत्र: + +7265. प्रयोजनमूलक हिन्दी के विविध रूपों का आधार उनका प्रयोग क्षेत्र होता है। राजभाषा के पद पर आसीन होने से पूर्व हिन्दी सरकारी कामकाज तथा प्रशासन की भाषा नहीं थी। मुसलमान शासकों के समय उर्दू या अरबी और अंग्रेजों के समय अंग्रेजी थी। स्वतंत्रता के बाद भारत के राजभाषा हिन्दी बनी जिसके फलस्वरुप साहित्य लेखन ही नहीं बल्कि भारत में आधुनिक ज्ञान-विज्ञान और टेक्नोलाजी के प्रस्फुटन और फैलाव के कारण विभिन्न क्षेत्रों के साथ सरकारी कामकाज तथा प्रशासन के नये अनछुए क्षेत्र से गुजरना पडा़ जिसको देखते हुए प्रशासन, विधि, दूरसंचार, व्यवसाय, वाणिज्य, खेलकूद, पत्रकारिता आदि सम्बन्धित पारिभाषिक शब्दावली गठन की ओर संतोषप्रद विकास एंव विस्तार किया गया। अत: प्रयोजनमूलक हिन्दी के प्रमुख प्रयुक्तियाँ देखा जा सकता है-- + +7266. प्रयोजनमूलक हिन्दी की संरचना, संचेतना एवं संकल्पना के विश्लेषण से उसमें अन्तर्निहित कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएँ उद्घाटित होकर सामने आती है, जिनमें प्रमुख हैं-- + +7267. संर्दभ. + +7268. वनों के प्रकार + +7269. शीतोष्ण पर्णपाती वन-उच्च अक्षांश की ओर बढ़ने पर अधिक शीतोष्ण पर्णपाती वन मिलते है।ये उत्तर-पूर्वी अमेरिका,चीन,न्यूजीलैंड,चिली एवं पश्चिमी यूरोप के तटीय प्रदेशों में पाए जाते हैं।शुष्क मौसम ये अपनी पत्तियाँ झाड़ देते हैं।यहां पाए जानेवाले पेड़ हैं-बांज,ऐश,बीच आदि।हिरण ,लोमड़ी, भेड़िये,यहाँ आम जानवर हैं।फीजेंट तथा मोनाल जैसे पक्षी भी यहाँ पाए जाते हैं। + +7270. नरम काष्ठ का उपयोग माचिस एवं पैकिंग के लिए बक्से बनाने के लिए भी किया जाता है।चीड़,देवदार आदि इन वनों के मुख्य पेड़ हैं। यहाँ सामान्यत:रजत लोमड़ी,मिंक,ध्रुवीय भालू जैसे जानवर पाए जाते हैं। + +7271. विभिन्न प्रदेशों में घासस्थलों के विभिन्न नाम + +7272. शीतोष्ण कटिबंधीय घासस्थल + +7273. आस्ट्रेलिया-डान + +7274. हमारा पर्यावरण/मानवीय पर्यावरण: + +7275. अंतर्देशीय जलमार्ग के उदाहरण-गंगा-ब्रह्णपुत्र नदी तंत्र,उतरी अमेरिका में ग्रेट लेक एवं अफ्रीका में नील नदी तंत्र। + +7276. जलवायु + +7277. यहाँ के पुरुष शिकार तथा नदी में मछली पकड़ते हैं।जबकि महिलाएँ फसलों का ध्यान रखती हैं।वे मुख्यत:"टेपियोका,अनन्नास एवं शकरकंद" "कर्तन एवं दहन कृषि पद्धति" से उगाते हैं।क्योंकि मछली या शिकार मिलना अनिश्चित होता है ऐसे में महिलाएँ ही अपनी उगाई शाक-सब्जियों से अपने परिवार का भरण करती हैं। मोनियोक इनका मुख्य आहार है,जिसे कसावा भी कहते हैं। यह आलू की तरह जमीन के अंदर पैदा होता है। ये चींटियों की रानी एवं अंडकोष भी खाते हैं। कॉफी,मक्का एवं कोको जैसी नगदी फसल भी उगाई जाती हैं। + +7278. डेल्टा क्षेत्र में बंगाल टाइगर,मगर एवं घड़ियाल पाए जाते हैं।रोहू,कतला एवं हिलसा मछलियों की सबसे लोकप्रिय प्रजातियाँ हैं। मछली एवं चावल इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों का मुख्य आहार है। + +7279. कार्यालयी हिन्दी के स्वरूप. + +7280. संदर्भ. + +7281. प्रशासनिक(सरकारी) पत्राचार के स्वरूप. + +7282. २) स्पष्टता:- पत्र-लेखन का दूसरा महत्वपूर्ण सिध्दांत है, उसकी स्पष्टता पत्र में स्पष्टता लाने के लिए लेखन का विशेष शैली अपनानी जानी चाहिए। पत्र में लम्बे वाक्य-विन्यास तथा अत्यन्त कठिन शब्दों का कभी भी उपयोग नहीं करना चाहिए, वरना पत्र पढ़ते समय पाठक को शब्दावली या शब्दकोश सामने रखना पड़ सकता है, जो अमान्य, हास्यास्पद होगा। विद्वता प्रर्दशन के लिए जीवन एवं साहित्य में अनेक क्षेत्र खुले पडे़ है। अत: पत्र में प्रचलित शब्दों और छोटे-छोटे वाक्यों संज्योंना चाहिए। + +7283. संदर्भ. + +7284. कबीर + +7285. पुहुप बास ते पातरा, ऐसा तत्त अनूप।। + +7286. दसरथ सुत तिहुँ लोक बखाना, + +7287. कबीर की काव्य-कला (कविताई). + +7288. कबीर अपने अनुभव जगत में 'सार-सार को गहि रहे, थोथा देई उड़ाय' के हिमायती हैं। कबीर की रचना-प्रक्रिया का केंद्रीय तत्व 'प्रेम' है, जो भाव और भाषा का सर्जनात्मक आधार भी है - + +7289. जासूँ हिरदै की कहूँ सो फिरी मारै डंक।।" + +7290. आगैं थैं सतगुर मिल्या, दीपक दीया हाथि।। + +7291. बलिहारी गुरु आपणैं, द्यौहाड़ी कै बार। + +7292. जाके मुख माथा नहीं, नाहीं रूप सरूप। + +7293. तब-तब प्रभु धरि विविध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा।। यहाँ राम शक्ति, शील और सौंदर्य से युक्त हैं। विष्णु के अवतार के रूप में धर्म की स्थापना के निमित्त शरीर धारण किए हैं। तुलसी ने राम के उदार, भक्त वत्सल रूप की प्रशंसा बार-बार की है : + +7294. विज्ञापन की भूमिका. + +7295. २) विज्ञापन आलेखकों के प्रति उपेक्षात्मक दृष्टिकोण:- हमारे यहाँ व्यावसायिक लेखन करनेवाले को उपेक्षात्मक दृष्टिकोण से देखा जाता है। इसलिए प्रतिभाशाली लेखक इससे दूर ही रहते हैं। विज्ञापन-तन्त्र तथा भाषा में समान गति पाने वाले आलेखकों का अभाव पाया जाता है। अत: विज्ञापन की सफलता बहुत कुछ आलेखक पर निर्भर होती है। + +7296. १. प्रयोजनमूलक हिन्दी: सिध्दान्त और प्रयोग--- दंगल झाल्टे। पृष्ठ-- २१३,२१४ + +7297. + +7298. प्रकट सकल सनोढियनि के प्रथम पूजे पाई + +7299. पं० रामचन्द्र शुक्ल संवत १६१२ वि० + +7300. लाला भगवानदी संवत १६१८ वि० + +7301. केशव का जन्म स्थान :-केशव का जन्म वर्तमान मध्यप्रदेश राज्य के अंतर्गत ओरछा नगर में हुआ था। ओरछा के व्यासपुर मोहल्ले में उनके अवशेष मिलते हैं। ओरछा के महत्व और उसकी स्थिति के सम्बन्ध में केशव ने स्वयं अनेक भावनात्मक कथन कहे हैं। जिनसे उनका स्वदेश प्रेम झलकता है।केशव ने विधिवत् ग्राहस्थ जीवन का निर्वाह किया। वंश वृक्ष के अनुसार उनके पाँच पुत्र थे। अन्तः साक्ष्य के अनुसार केशव की पत्नी ‘विज्ञानगीता’ की रचना के समय तक जीवित थीं। ‘विज्ञानगीता’ में इसका उल्लेख इस प्रकार है: + +7302. हिंदी कविता (रीतिकालीन)/रहीम: + +7303. + +7304. परिभाषा और स्वरुप. + +7305. नयी कविता ने जीवन को उपर्युक्त धाराओं की कविताओं की तरह न तो एकांगी रूप में देखा,न केवल महत्व रूप में,बल्कि उसके जीवन को (वह चाहे किसी वर्ग का हो, चाहे व्यक्ति का हो,चाहे समाज का हो) जीवन के रूप में देखा) इसमें कोई सीमा नहीं निर्धारित की, मनुष्य किसी वर्गीय चेतना, सिद्धांत अथवा आदर्श की बैसाखी पर चलता हुआ लइसके पास नहीं आया,वह अपने संपूर्ण दु:ख-सुख, राग-विराग के परिवेश से संयुक्त राम मनुष्य के रूप में आया। + +7306. वास्तविक प्रयोगवादी कवियों ने दो बड़े काम किए- एक तो व्यक्ति के मन की उलझी हुई संवेदनाओं और अचेतन मन के सत्यों को आज के युग सत्य मानकर उन्हें उद्घाटित करने की कोशिश की। दूसरी: उन्होंने उन मानसिक सच्चाईयों को प्रकाशित कर सकने लायक नये शिल्प का अन्वेषण किया। प्रयोगवादी कविता जीवन के जुड़ाव से कटकर रह गयी क्योंकि इसका को जीवन के प्रति बेहद निराश था। + +7307. साहित्यिक वातावरण. + +7308. (1)जीवन-जगत के प्रति अगाध प्रेम एवं आस्था-. + +7309. प्यारी धरती को स्वाधीन करेगा।" + +7310. फल लिए + +7311. कभी ये नयी फसल आए न आए।" + +7312. बाद में यही कवि आशा और विश्वास से भरी कविताएँ लिखने लगे। यही आशावादी दृष्टिकोण आगे चलकर समकालीन प्रश्नों और समस्याओं से जूझता हुआ दिखाई देता है। आशा का बिंब आगे चलकर स्वास्थ्य का प्रतीक बन गया + +7313. परिस्थितियाँ भी पैदा हुई हैं। यह युग-सत्य है। मनुष्य को इन उलझी हुई और संकट में डालने वाली परिस्थितियों पर काबू पाना है। निराशा, पीड़ा और दुख को झेलकर सुखों को बांटना है। + +7314. मुझ को संतोष हुआ + +7315. (4)महानगरीय और ग्रामीण मानवीय सभ्यता का यथार्थ चित्रण-. + +7316. नगर में वसना + +7317. यहाँ तीखा व्यंग्य भाव है जबकि धूमिल अपने गांव खेवली का मार्मिक चित्र प्रस्तुत करते हुए लिखते हैं- + +7318. नई कविता में परिवेश, मनुष्य-जीवन और उसकी सभ्यता में आते बदलावों का यथार्थ अंकन हुआ है। + +7319. एक साधारण घर में + +7320. (6)निराशा-. + +7321. कवि अपने चारों ओर सवाल-दर-सवाल महसूस करता है, किंतु उनका उत्तर उसके पास नहीं है। + +7322. बौद्धिक एवं वैज्ञानिक युग से संबंधित होने के कारण नई कविता मे भावात्मक दृष्टिकोण से विरोध दिखाई पड़ता है। नए कवि का ईश्वर, + +7323. (8)क्षणवाद का महत्त्व-. + +7324. छूकर नहीं + +7325. जो समय है।" + +7326. व्याप्त संपूर्णता।" + +7327. "प्यार है अभिशप्त + +7328. सवालिया निगाह इन मूल्यों के नए मनुष्य के संदर्भ में परखती है। इस पड़ताल में मूल्यगत असंगतियाँ नए कवि के व्यंग्य का निशाना बनती हैं। नये संदों में सिद्ध होने वाले मानवीय मूल्यों के प्रति कवि अपनी आस्था व्यक्त करते हैं। नई कविता बदलते मापदंड और मूल्यों या मूल्यहीनता पर प्रकाश डालती + +7329. या + +7330. किसी मनुष्य ने काट खाया है।" + +7331. बंद करने होंगे।" + +7332. काफी चल लेने के बाद + +7333. नई कविता में कवियों ने अपने समय और समाज में व्याप्त विषमता का + +7334. है। कवियों ने बुद्धि के द्वारा दिमागी कवायद की है। नया कवि हृदय को प्रकट न करके युद्ध का ही अधिक आश्रय लेता है। उन्होंने अपनी बुद्धि से अपन समय और समाज की समस्या पर मजी की समस्या पर गर्भ चितता ददकत की है और ये कवि अपनी समस्याओं का समाधान भी बौद्धिकता के धरातल पर खोजते हैं। + +7335. लहलहाती हवा में कलगी छरहरी बाजरे की?" + +7336. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता का प्रतीकार्थ निराला है। एक उदाहरण देखिए- + +7337. नयी कविता में ऐसी अनूठी बिंब-योजना मिलती है जितनी इस से पूर्ववर्ती हिंदी कविता में नहीं थी। नयी कविता के बिंब अधिकतर प्रतीकात्मक और सांकेतिक होते हैं। कई जगह उसमें जटिलता और दुरुहता भी मिलती है। + +7338. और मुंडेर पर + +7339. चढ़ता हुआ दिन + +7340. बेहद प्रतिभाशाली लेकिन उतने ही अल्पचर्चित अजित कुमार की निम्न पंक्तियाँ नई कविता की सार्थक और कतई नई बिंब-योजना के उदाहरण-रूप में अक्सर प्रस्तुत की जाती हैं- + +7341. चाँदनी उस रुपए सी है जिसमें + +7342. नए कवियों ने आधुनिक खड़ी बोली के अनेक रूपों को प्रयुक्त किया है तथा अनेक नए विशेषणों एवं क्रियापदों का भी निर्माण किया है। इन्होंने भाषा के सौंदर्य में वृद्धि के लिए नवीन प्रतीक-योजना, बिंब-विधान एवं उपमान योजना को भी अपनाया है। प्राकृतिक बिंब का एक नवीन उदाहरण दर्शनीय है- + +7343. गज़लों और सॉनेट पद्धति का भी इस्तेमाल किया है। + +7344. 'मरहरे वाले शौचालय के जंगल में + +7345. शिल्पगत विशेषता. + +7346. त्रिलोचन, केदारनाथ अग्रवाल, धूमिल, सर्वेश्वर आदि में यह देखे जाते है। 'लोक भाषा, लोक धून' और 'लोक संस्कृति' का प्रयोग 'गीति साहित्य' में हुआ है। अज्ञेय की कलगी बाजरे की कविता उत्कृष्ट उदा है। + +7347. जैसे पतियाते हुए स्वर में + +7348. मेरे लिए, हर आदमी एक जोड़ी जुता है + +7349. "और एक चौथा मोटर मैं बैठता हुआ चपरासी से फाइलें उठाएगा एक कोई बीमार बच्चे को सहलाता हुआ आश्वासन देगा-देखो, + +7350. और एक उमंग से गा रहा होगा- 'मोसे गंगा के पार..." + +7351. एक शब्द एक पंक्ति बना है। तो दुसरी ओर विराम, अर्धविराम, पूर्णविराम के चिन्हों को + +7352. की + +7353. प्रतिक. + +7354. सर्वहारा का सहारा" + +7355. "भूमि की सतहों के बहुत नीचे/अंधियारी एकान्त/प्राकृत गुहा एक।" + +7356. प्रक्षेपास्त्र, शेवलेट-डाज, रेडियो एक्टिव रत्न, कैमरा, रेफ्रिजरेटर जैसे बिंब मिलते है जो पूरी तरह आधुनिक जीवन संवेदों को व्यक्त करते है। प्रतीकात्मक बिंबों का तो खज़ाना ही + +7357. मेरे युग का मुहावरा है + +7358. सटी हुई है।" + +7359. ही किया परंतू उसके नये प्रयोग भी हुए है। देवराज ने ठीक कहा है- नयी कविता में छन्द को केवल घोर अस्वीकृति ही मिली हो- यह बात नहीं है, बल्कि वहाँ इस क्षेत्र में विविध प्रयोग भी किए गए है। इस संबंध में पहला प्रयोग हिन्दी के पुराने छंदों को तोड़कर नया मुक्त छंद बनाया गया, जैसे गिरिजाकुमार ने कवित्त व सवैया में तोड़-फोड़ की रामविलास शर्मा ने छनाक्षरी से + +7360. स्वर्ग, आकाश, और मार्क्स की तथाकथित मार्क्स वादियों द्वारा स्वयं की गई अस्वाभाविक + +7361. वर्ण-विषय के साथ भाषा भी उसी प्रकार की रही है। 'खिचड़ी' अथार्त साधारण जन की भाषा है। नयी कविता में भी 'भीड़', 'समुह' अभिव्यक्त हुआ है। उस की स्वतंत्रता की रक्षा का प्रश्न खड़ा किया गया है। उसके अन्त्तबाहय व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति ने उसे कबीर की परंपरा से जोड़ा ऐसा कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी। + +7362. १)पी.टी.आई :- यह अंग्रेज शासन काल से कार्यरत है जो ए.पी.आई. के नाम से जानी जाती थी।स्वतन्त्रता के बाद उसका भारतीकरण करके प्रेस ट्र्स्ट आफ इण्डिया कर दिया गया। यह सरकारी एजेन्सी के रूप में जानी जाती है तथा अंग्रेजी में समाचार प्रसारित करती है। + +7363. (अ) समाचार लेखन की भाषा शैली अत्यंत स्पष्ट, सरल तथा सुबोध होनी चाहिए। + +7364. (ऊ) समाचार लेखन की भाषा में सम्प्रेषणीयता का होना आवश्यक है। अर्थात समाचार में पांडित्य प्रदर्शन अथवा अनावश्यक वैचारिक विश्लेषण नहीं होना चाहिए। + +7365. + +7366. आलेखन की कुछ मूलभूत विशेषताएँ है-- + +7367. ५) उध्दरण:- अगर पत्रोत्तर में किसी नियम अथवा किसी उच्चतर अधिकारी के आदेश को उद्धृत करना आवश्यक हो तो यथासम्भव मूल शब्दों में ही उसका उल्लेख किया जाना चाहिए। + +7368. ९) संलग्न पत्र:- अगर मूल पत्र के साथ कुछ संलग्न पत्र भेजना आवश्यक हो तो पत्र के नीचे बाई ओर उसकी सूची दे देनी चाहिए। + +7369. २. प्रयोजनमूलक हिन्दी---विनोद गोदरे। पृष्ठ--६५-६८ + +7370. वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली का विकास. + +7371. (क) अंतर्राष्टीय पारिभाषिक और वैज्ञानिक शब्दावली को अपना लिया जाए; दूसरी भाषाओं से आए हुए शब्द आत्मसात कर लिया जाए, उन्हें भारतीय भाषाओं की ध्वनि प्रणाली के अनुरूप बना लिया जाए और उनका वर्ग-विन्यास भारतीय लिपियों के ध्वनि-संकेतों के अनुसार निश्चित कर लिया जाए। + +7372. (इ) विभिन्न राज्यों की सहमति से या उनके निर्देश पर राज्यों के विभिन्न अभिकरणों द्दारा वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली के क्षेत्र में किए गए कार्यों का समन्वय तथा प्रयोग-व्यवहार के लिए अनुमोदन हो। + +7373. १) अन्तर्राष्टीय शब्दों को यथासम्भव उनके प्रचलित अंग्रेजी रूपों में ही अपनाना चाहिए और हिन्दी व अन्य भारतीय भाषाओं की प्रकृति के अनुसार ही उनका लिप्यन्तरण करना चाहिए। अन्तर्राष्टीय शब्दावली के अन्तर्गत निम्नलिखित उदाहरण दिए जा सकते है--- + +7374. (ङ) गणित और विज्ञान की अन्य शाखाओं के संख्यांक, प्रतीक, चिन्ह जैसे- साइन, कोसाइन, लांग आदि। + +7375. ६) लिंग: हिन्दी में अपनाए गए अंतर्राष्ट्रीय शब्दों को, अन्यथा कारण न होने पर पुल्लिंग रूप में ही प्रयुक्त करना चाहिए। + +7376. १. प्रयोजनमूलक हिन्दी: सिध्दान्त और प्रयोग--- दंगल झाल्टे । पृष्ठ-- ८१-८६ + +7377. टिप्पण:- प्रशासनिक पत्राचार में टिप्पण तथा आलेखन का विशेष महत्व होता है। कार्यालय में आएँ पत्र पर अथवा कार्यालय की स्वतंत्र आवश्यकताओं की संपूर्ति के लिए टिप्पणी तैयार की जाती है। टिप्पणी का अर्थ है- पत्र अथवा पत्र-संदर्भ के बारे में आवश्यक जानकारी तथा टिप्पणीकार का कार्यालय के विधिविधान के अन्तर्गत उस पर अपना सुझाव देना। इन्हीं सुझावों के आधार पर आलेखनकार पत्रोत्तर का प्रारूप तैयार करता है। अर्थात, सरकारी कार्यप्रणाली में विचाराधीन कागज या मामले के बारे में उनके निपटान हेतु सुझाव या निर्णय देने के परिणामस्वरूप जो अभ्युक्तिया (Remarks) फाइल पर लिखी जाती है, उन्हें टिप्पण या टिप्पणी(Noting) कहते हैं। टिप्पणी में सन्दर्भ के रूप में इससे पहले पत्रों का सार, निर्णय आदि हेतु प्रश्न तथा विवरणादि सब कुछ अंकित किया जाता है। वास्तव में सभी प्रकार की टिप्पणियाँ सम्बन्धित कर्मचारी-अधिकारियों द्दारा विचाराधीन मामले के कागज पर लिखी जाती है। कार्यालयीन आवश्यकता के अनुसार अत्याधिक महत्व प्राप्त मामलों में अनुभाग अधिकारी आदि के स्तर से टिप्पणी आरम्भ होती है अन्यथा मामले के स्वरूप के अनुसार परम्परागत रूप से टिप्पणी लिपिक अथवा सहायक (Assistant) के स्तर में शुरू की जाती है। मंत्री, प्रधानमंत्री अथवा राष्ट्रपति आदि के द्दारा लिखी गई विशेष टिप्पणियाँ 'मिनट' (Minute) कही जाती है। टिप्पण को बनाते समय कुछ उदेश्य को ध्यान में रखना पड़ता है जैसे, सभी तथ्यों को स्पष्ट रूप में तथा संक्षेप में अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करना और अगर किसी मामले में दृष्टांत अथवा विशिष्ट निर्णय उपलब्ध हो तो उनकी ओर संकेत करना। दूसरा- वांछनीय विषय अथवा पत्र-व्यवहार पर अपने विचारों को स्पष्ट करना। तीसरा- यह स्पष्ट करना कि 'आवती' के अंतिम निर्वाण के लिए क्या कार्यवाही की जानी चाहिए। इससे अधिकारी को निर्णय करने में सहायता मिल जाती है। + +7378. ३) अनुभागीय टिप्पण:- इसे विभागीय टिप्पण भी कहा जाता है। कुछ मामलों पर सरकारी आवश्यकता के अनुसार विभिन्न विभागों अथवा अनुभावों से अनुदेश प्राप्त करना जरूरी होता है। ऐसी स्थिति में मामलों के स्वरूप के अनुसार टिप्पण कर्ताओं को प्रत्येक मामले पर स्वतन्त्र टिप्पण लिखना आवश्यक होता है और वे ऐसे स्वतन्त्र टिप्पणों पर अलग से अनुदेश प्राप्त करते हैं। इस प्रकार के टिप्पणों को विभागीय अथवा अनुभागीय टिप्पण कहते हैं। + +7379. १) संक्षिप्तता:- टिप्पण का उद्देश्य ही कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक आशय व्यक्त करना होता है। अत: टिप्पण संक्षिप्त तथा सुस्पष्ट होना चाहिए। अधिकारियों के पास समय की कमी रहती है और इस बात को ध्यान में रखकर आवश्यक हो उन बातों को ही सीधे ढ़ग से प्रस्तुत किया जाना चाहिए ताकि पढ़ने वालों को अपना निर्णय तुरन्त देने में कठिनाई महसूस न हो। + +7380. ६) प्रभावान्विति:- टिप्पण का संक्षिप्त एवं बोधागम्य होना आवश्यक होता है और साथ ही साथ उसे जहाँ आवश्यक हो अनुच्छेदों में विभाजित किया जाना चाहिए। परन्तु ऐसा करते समय इस बात की ओर ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि शब्द, विचार, अनुच्छेद आदि के प्रभाव की अन्विति अस्त-व्यस्त न होकर ठीक ढ़ग से सुगठित रूप में होना चाहिए। पूरे टिप्पण का सकल प्रभाव स्पष्ट होना चाहिए। + +7381. + +7382. यह उत्तरी अमरिका का शीतोष्ण घासस्थल है।ये समतल,मंद ढलान या पहाड़ियों वाले प्रदेश हैं,जहाँ पेड़ कम तथा घास अधिक होती है।अधिकांश भागों में प्रेअरी,वृक्ष रहित हैं,परंतु निचले मैदानों के निकट नदी घाटियों के साथ-साथ वहाँ वन भी पाए जाते हैं।दो मीटर तक ऊँची घास यहाँ के भूदृश्य की प्रधानता है। वास्तव में यह एक घास का सागर है। + +7383. प्रेअरी सामान्यत:पेड़विहीन होते हैं।जहाँ जल उपलब्थ होता है,वहाँ शरपत(विलो),आल्डर,पॉप्लर जैसै पेड़ उगते हैं।50सेंटीमीटर से अधिक वर्षा वाले प्रदेश कृषि के लिए उपयुक्त होते हैं,क्योंकि यहाँ की मिट्टी उपजाऊ होती है।मक्का यहाँ की मुख्य फसल जबकि आलू ,सोयाबीन,कपास एवं अल्फा-अल्फा यहाँ की अन्य प्रमुख फसल है।जिन क्षेत्रों में वर्षा काफी कम एवं अनिश्चित होती है।वहाँ पैदा होने वाली घास छोटी एवं नुकीली होती है।ये स्थान मवेशियों को पालने के लिए उपयुक्त होते हैं।विशाल मवेशी फार्म को रेैंच एवं उसकी देखभाल करने वाले को 'काओबॉय'कहते हैं।बाइसन या अमेरिकी भैंस इस प्रदेश का सबसे महत्वपूर्ण पशु है।निरंतर शिकार के कारण ये पशु लगभग लुप्त हो गए और अब इन्हें सुरक्षित प्रजातियों की श्रेणी में रखा जाता है।खरगोश,काइयोट,गोफर एवं प्रेअरी कुत्ता यहाँ के अन्य जीव हैं। + +7384. दक्षिण अफ़ीका के शीतोष्ण घासस्थल को वेल्ड कहते हैं।यह"600 से 1100 मीटर" तक की विभिन्न ऊचाई वाले उर्मिल पठार होते हैं। यह "ड्रैकेस्बर्ग पर्वतों" से घिरा है। इसके पश्चिम में कालाहारी रेगिस्तान स्धित है। इसके उत्तरपूर्व में उच्च वेल्ड स्थित है,जिसकी ऊँचाई कुछ स्थानों पर 1600 मीटर से भी अधिक है।ऑरेंज एवं लिमपोपो नदी की सहायक नदियाँ इस प्रदेश को सिंचित करती हैं। + +7385. निवासी + +7386. कार्यालयी हिंदी/प्रतिवेदन: + +7387. २) Formal account of the results of an investigation given by a person authorised to make investigation. + +7388. (आ) आयोग या समिति ने सम्बन्धित मामले की किस-किस तथ्य की जाँच या खोजबीन का है। + +7389. प्रतिवेदन की विशेषताएँ. + +7390. ५) प्रतिवेदन विषयानुरूप एवं उद्देश्य की पूर्ति करने वाला एक सारगर्भित प्रलेख (Document) होता है। + +7391. + +7392. जलवायु + +7393. लोग + +7394. '"वनस्पतिजात एवं प्राणिजात + +7395. पर्यटन मुख्य क्रियाकलाप है,जिनमें गोंपा-दर्शन,घास के मैदानों व हिमनदों की सैर एवं उत्सवों तथा अनुष्ठानों को देखना प्रमुख पर्यटक आकर्षण हैं।आधुनिकीकरण के बावजूद यहाँ के लोगों ने शताब्दियों से प्रकृति के साथ समन्वय एवं संतुलन करना सीखा है। जल एवं ईंधन जैसे संसाधनों की कमी के कारण ये आवश्यकतानुसार एवं मितव्ययिता से इनका उपयोग करतै हैं। + +7396. संदर्भ. + +7397. १) परम्परागत शब्द २) देशज(देशी) शब्द ३) विदेशी शब्द। + +7398. ३) संस्कृत के व्याकरिणक नियमों के आधार पर हिन्दी काल में निर्मित तत्सम शब्द; जैसे- जलवायु(आब हवा), वायुयान(ऐरोप्लेन),प्राध्यापक (Lecturer) आदि। + +7399. १) एक वे जो अनार्य भाषाओं(द्रविड़ भाषाओं) से अपनाये गये हैं और दूसरे २) वे जो लोगों ने ध्वनियों की नकल में गढ़ लिये गए हैं। + +7400. (ख) अरबी से:- १००० ई. के बाद मुसलमान शासकों के साथ फारसी भारत में आई और उसका अध्ययन-अध्यापन होने लगा। कचहरियों में भी स्थान मिला। इसी प्रकार उसका हिन्दी पर बहुत गहरा प्रभाव पडा़ । हिन्दी में जो फारसी शब्द आए, उनमें काफी शब्द अरबी के भी थे। अरब से कभी भारत का सीधा सम्बन्ध था, किन्तु जो शब्द आज हमारी भाषाओं के अंग बन चुके हैं, डा. भोलानाथ तिवारी के अनुसार छ: हजार शब्द फारसी के है जिनमें 2500 अरबी के है। जैसे-- अजब, अजीब, अदालत, अक्ल, अल्लाह, आखिर, आदमी, इनाम,एहसान, किताब, ईमान आदि। + +7401. १. हिन्दी भाषा-- डा. हरदेव बाहरी। अभिव्यक्ति प्रकाशन, पुर्नमुद्रण--२०१७, पृष्ठ-- १३५ + +7402. यह पुस्तक भारत के अतित के इतिहास को समझने के लिए प्रस्तुत किया गया है। + +7403. जनजातीय लोग लिखित दस्तावेज नहीं रखते थे।लेकिन समृद्ध रीति-रिवाजों और मौखिक परंपराओं का वे संरक्षण करते थे।ये परंपराएँ हर नयी पीढी को विरासत में मिलती धीं। + +7404. कई पशुचारी जनजातियाँ मवेशी और घोड़ों,जैसे जानवरों को पालने-पोसने और संपन्न लोगों के हाथ उन्हें बेचने का काम करती थीं।कभी-कभी भिक्षुक लोग भी घूमंतू सौदागरों का काम करते थे। + +7405. 11वीं और 12वीं सदी तक आते-आते क्षत्रयों के बीच नए राजपूत गोत्रों की ताकत बढ़ी।वे हूण,चंदेल,चालुक्य से आते थे। + +7406. यह राज्य बेगार पर निर्भर था।राज्य के लिए जिन लोगों से जबरन काम लिया जाता था,वे 'पाइक' कहलाते थे।प्रत्येक गाँव को अपनी बारी आने पर निश्चित संख्या में पाइक भेजने होते थे + +7407. प्रारंभ में ये अपने जनजातीय देवताओं की उपासना करते थै।सिब सिंह (1714-44)के काल में हिंदू धर्म वहाँ का प्रधान धर्म बन गया,परंतु अहोमों ने हिंदू धर्म के बाद भी अपनी पारंपरिक आस्थाओं को बरकरार रखा। + +7408. असमानता के रूप. + +7409. भारतीय संविधान का भाग-३ का अनुच्छेद 14-18 में समानता का अधिकार उल्लेखनीय है | + +7410. सरकार के इन प्रयासों के बावजूद सरकारी और निजी विद्दालयों के बिच बढ़ते खाई को सरकार नहीं पाट पा रही। + +7411. भारत सरकार द्वारा 1995 में स्वीकृत विकलांगता अधिनियम के अनुसार विकलांग व्यक्तियों को भी समान अधिकार प्राप्त हैं।और समाज में उनकी पूरी भागीदारी संभव बनाना सरकार का दायित्व है।सरकार को उन्हें नि:शुल्क शिक्षा देनी है साथ हीं उन्हें स्कूलों की मुख्यधारा में सम्मिलित करना है।कानून यह भी कहता है कि सभी सार्वजनिक स्थल,जैसे-भवन,स्कूल आदि में ढ़लान बनाए जाने चाहिए,जिससे वहाँ विकलांगों के लिए पहुँचना सरल हो । + +7412. परिवेश. + +7413. वाल्मीकि के अनुसार दलितों द्वारा लिखा जाने वाला साहित्य ही दलित साहित्य है। उनकी मान्यतानुसार दलित ही दलित की पीडा़ को बेहतर ढंग से समझ सकता है और वही उस अनुभव की प्रामाणिक अभिव्यक्ति कर सकता है। इस आशय की पुष्टि के तौर पर रचित अपनी आत्मकथा जूठन में उन्होंने वंचित वर्ग की समस्याओं पर ध्यान आकृष्ट किया है। + +7414. डॉ . अंबेडकर ने अनेक स्थलों पर जोर देकर कहा है कि दलितों का उत्थान राष्ट्र का उत्थान है । दलित चिंतन में राष्ट्र पूरे भारतीय परिवार या कौम के रूप में है जबकि ब्राह्मणों के चिंतन में राष्ट्र इस रूप में मौजूद नहीं है । उनके यहाँ एक ऐसे राष्ट्र की परिकल्पना है, जिसमें सिर्फ द्विज हैं । यहाँ न दलित हैं, न पिछड़ी जातियां है और न अल्पसंख्यक वर्ग है । इसलिए हिन्दू राष्ट्र और हिंदू राष्ट्रवाद दोनों खंडित चेतना के रूप में हैं । दूसरे शब्दों में वर्ण व्यवस्था ही हिंदू राष्ट्र का मूलाधार है । इसीलिए कंवल भारती के शब्दों में दलित मुक्ति का प्रश्न राष्ट्रीय मुक्ति का प्रश्न है । करोड़ों लोगों के लिए अलगाववाद का जो समाजशास्त्र और धर्मशास्त्र ब्राह्मणों ने निर्मित किया , उसने राष्ट्रीयता को खंडित किया था और उसी के कारण भारत अपनी स्वाधीनता खो बैठा था । ( इसीलिए दलित विमर्श के केंद्र में वे सारे सवाल हैं , जिनका संबंध भेदभाव से है , चाहे ये भेदभाव जाति के आधार पर हो , रंग के आधार पर हो , नस्ल के आधार पर हों , लिंग के आधार पर हों या फिर धर्म के आधार पर ही क्यों न हो । + +7415. दलित कहानियों में सामाजिक परिवेशगत पीड़ाएं, शोषण के विविध आयाम खुल कर और तर्क संगत रूप से अभिव्यक्त हुए हैं. + +7416. दलित साहित्यकारों में से अनेकों ने दलित पीड़ा को कविता की शैली में प्रस्तुत किया। कुछ विद्वान 1914 में ’सरस्वती’ पत्रिका में हीराडोम द्वारा लिखित ’अछूत की शिकायत’ को पहली दलित कविता मानते हैं। कुछ अन्य विद्वान अछूतानन्द ‘हरिहर’ को पहला दलित कवि कहते हैं, उनकी कविताएँ 1910 से 1927 तक लिखी गई। उसी श्रेणी मे 40 के दशक में बिहारी लाल हरित ने दलितों की पीड़ा को कविता-बद्ध ही नहीं किया, अपितु अपनी भजन मंडली के साथ दलितों को जाग्रत भी किया । दलितों की दुर्दशा पर बिहारी लाल हरित ने लिखा : + +7417. दलित चिंतक. + +7418. विद्या बिना गई मति , + +7419. इन्होंने शिक्षा के महत्व को जन -जन तक पहुचाने के लिए लगभग 18 पाठशालाएं खोली ये पाठशालाएं मुख्य रूप से शुद्रो और महिलाओ के लिए थीं + +7420. आज दलित विमर्श और लेखन की कई धाराएँ हैं । पहली धारा - गैर दलित लेखकों की हैं । दूसरी धारा दलितों को सर्वहारा मानने वाले मार्क्सवादी लेखकों की है । इन दोनों धाराओं को मुख्य दलित साहित्यधारा नहीं मानने वाले दलित लेखकों की मुख्यधारा है । इन दोनों धाराओं को अपर्याप्त मानने वाले लेखकों ने दलित जीवन की यातना सही है । महात्मा फूले की आत्मकथा , काव्य और नाटकों में यह विमर्श पहली बार रचनात्मक अनुभव बना । अंबेडकर युग से पहले हीरा डोम सबसे आदरणीय दलित लेखक माने जाते हैं । अपनी मार्मिक कविता अछूत की शिकायत से उन्होंने पहली बार हिंदी लेखन में दलित सोच को शामिल किया । यह रचना ' सरस्वती ' जैसी पत्रिका के मुख्य पृष्ठ पर छपी थी । हीरो डोम ने भोजपुरी में जो ' अछूत की शिकायत ' लिखी थी , उसमें यह दयनीय सच उजागर किया था कि दलित को 24 घण्टे मेहनत करनी पड़ती है , फिर भी महीने में दो रूपये नहीं मिलते । इसी दौर के दलित लेखकों में हरिहर नाम से रचना करने वाले स्वामी अछूतानंद भी महत्त्वपूर्ण दलित रचनाकार हैं । उन्होंने दलितों को आदि हिंदू माना और अपनी कविता तथा नाटकों के द्वारा यह स्थापित किया कि भारत के मूल या आदि निवासी अछूत हैं , शेष सभी बाहर से आए हैं । कई आलोचकों और साहित्यकारों ने उन्हें पहला लेखक माना है । वैचारिक दृष्टि से वे अधिक सतर्क और सजग लेखक हैं । स्त्री - विमर्श की तरह दलित विमर्श भी रचनात्मक लेखन के माध्यम से आगे बढ़ा है । + +7421. डॉ. भीमराव अम्बेडकर. + +7422. बिहारी लाल हरित. + +7423. ओमप्रकाश वाल्मीकि (30 जून 1950 - 17 नवम्बर 2013) वर्तमान दलित साहित्य के प्रतिनिधि रचनाकारों में से एक हैं। उनकी हिंदी दलित साहित्य के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। + +7424. देहरादून + +7425. ●कहानी संग्रह:- सलाम, घुसपैठिए, अम्‍मा एंड अदर स्‍टोरीज, छतरी + +7426. अनुवाद:- सायरन का शहर (अरुण काले) कविता-संग्रह का मराठी से हिंदी में अनुवाद, मैं हिन्दू क्यों नहीं (कांचा एलैया) लो अंग्रेजी पुस्तक का हिंदी अनुवाद, लोकनाथ यशवंत की मराठी कविताओं का हिंदी अनुवाद + +7427. असंगघोष. + +7428. हम ही हटाएंगे कोहरा + +7429. पुरस्कार संपादित करें + +7430. उर्वशी सम्‍मान 2017 + +7431. + +7432. अन्य राज्यों में अनुच्छेद 356 के द्वारा राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है;j&K में जम्मू और कश्मीर के संविधान की धारा 92 के द्वारा + +7433. राज्यपाल शासन अथवा राष्ट्रपति शासन के दौरान यदि राज्यपाल विधानसभा को भंग करने का निर्णय करता है,तो चुनाव छ:माह की अवधि के भीतर करएं जाएंगे। + +7434. से लोकसभा की कम से कम चार सीटें प्राप्त की हों;अथवा + +7435. यह समझौता कर उद्देश्यों हेतु दो देशों के मध्य बैंकिंग और स्वामित्व जानकारी के साथ-साथ सूचना के आदान-प्रदान को सक्षम बनाता है। + +7436. स्त्री साहित्य की रचना की गई। + +7437. हालाकि जमीनी स्तर पर स्त्रीवादी विमर्श हर देश एवं भौगोलिक सीमाओं में अपने स्तर पर सक्रिय रहती हैं और हर क्षेत्र के स्त्रीवादी विमर्श की अपनी खास समस्याएँ होती हैं। + +7438. हिंदी में नारी-विमर्श ने बीसवीं शताब्दी के लगभग अंत में ज़ोर पकड़ा है और अनेक लेखिकाएं उसमें शामिल हुई हैं। हिंदी में नारी-विमर्श की दृष्टि से कुछ महत्त्वपूर्ण पुस्तकें इस प्रकार हैं: बाधाओं के बावजूद नयी औरत (उषा महाजन, 2001), स्त्री-सरोकार (आशाराना व्होरा, 2002), हम सभ्य औरतें (मनीषा, 2002), स्त्रीत्व-विमर्श : समाज और साहित्य (क्षमा शर्मा, 2002), स्वागत है बेटी (विभा देवसरे; 2002), स्त्री-घोष (कुमुद शर्मा, 2002), औरत के लिए औरत (नासिरा शर्मा, 2003), खुली खिड़कियां (मैत्रेयी पुष्पा, 2003), उपनिवेश में स्त्री (प्रभा खेतान,2003), हिंदी साहित्य का आधा इतिहास (सुमन राजे, 2003) इत्यादि। इनके अतिरिक्त हिंदी की अनेक लेखिकाएं नारीवादी होने का दावा कर रही हैं और नारीवादी साहित्य के सृजन में संलग्न हैं। + +7439. 1848 ई. में कुछ प्रखर महिलाओं ने बाकायदा एक सम्मेलन करके नारी मुक्ति से संबंधित एक वैचारिक घोषणा पत्र जारी किया। इन महिलाओं में ऐलिजाबेथ कैन्डी, स्टैण्टन, लुक्रसिया काफिनमोर प्रमुख हैं। इस सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया कि स्त्री को सम्पूर्ण और बराबर के कानूनी हक दिए जाए। उन्हें पढ़ने के मौके, बराबर मजदूरी और वोट देने का अधिकार इत्यादि क्रान्तिकारी माँगे पारित की गयी। यह आंदोलन तेजी से सारे यूरोप में फैल गया, लेकिन असली सफलता 1920 में जाकर मिली। जब अमेरिका में स्त्रियों को वोट डालने का अधिकार मिला। + +7440. भारत में नारीवादी आंदोलन की शरुआत नवजागरण के साथ हुई। + +7441. आगे चलकर सन् 1855 में ज्योतिराव फुले ने पुणे में रात्रि पाठशाला खोली। इस पाठशाला में दिनभर काम करने वाले मजदूर, किसान और गृहिणियाँ पढ़ने आती थीं। यह भारत की पहली रात्रि पाठशाला थी। ज्योतिराव फुले का मानना था कि- "जब तक महिलाएँ शिक्षित नहीं हो जाती, तब तक सच्चे अर्थों में समाज शिक्षित नहीं हो सकता। एक शिक्षित माता जो सुसंस्कार दे सकती है, उन्हें हजार अध्यापक या गुरु नहीं दे सकते। जब तक देश की आधी जनसंख्या (नारी समाज) शिक्षित नहीं हो जाती, तब तक देश कैसे प्रगति कर सकता है?” वे मानते थे कि स्त्री और पुरुष जन्म से ही स्वतंत्र हैं, इसलिए दोनों को सभी अधिकार समान रूप से भोगने को अवसर मिलना चाहिए। + +7442. १. कीर्ति चौधरी. + +7443. २. कात्यायनी. + +7444. ३. सविता सिंह. + +7445. मैं किसकी औरत हूँ + +7446. १.प्रभा खेतान + +7447. सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन/भारतीय लोकतंत्र में समानता: + +7448. भारतीय लोकतंत्र में समानता स्थापित हेतू उपाय. + +7449. यह योजना सर्वप्रथम "तमिलनाडु" राज्य में, तत्पश्चात 2001 में उच्चतम न्यायालय के आदेशानुसार छ:माह के भीतर सभी राज्यों में प्रारंभ की गई।इसके कई सकारात्मक परिणाम हुए। + +7450. 1दिसंबर 1955 को एक अफ्रीकी-अमेरिकन महिला रोजा पार्क्स ने दिन भर काम करके थक जाने के बाद बस में उन्होंने अपनी सीट गोरे व्यक्ति को देने से मना कर दिया।इसके बाद अफ्रीकी-अमेरिकनों के साथ असमानता को लेकर एक विशाल आंदोलन प्रारंभ हुआ,जिसे "नागरिक अधिकार आंदोलन "(सिविल राइट्स मूवमेंट) कहा गया।जिसके परिणामस्वरूप 1964 में नागरिक अधिकार अधिनियम'बनाया गया।जिसमें यह प्रावधान किया गया कि अफ्रीकी-अमेरिकन बच्चों के लिए सभी स्कूल के दरवाजे खोले जाएँगे,उन्हें उन अलग स्कूलों में नहीं जाना पड़ेगा,जो विशेष रूप से केवल उन्हीं के लिए खोले गए थे।इतना होने के बावजूद अधिकांश अफ्रीकी-अमेरिकन गरीब हैं,और इनके बच्चे केवल ऐसे सरकारी स्कूलों में प्रवेश लेने की ही सामर्थ्य रखते हैं।जहाँ कम सुविधएँ हैं और कम योग्यता वाले शिक्षक हैं;जबकि गोरे विद्यार्थी ऐसे निजी स्कूलोें में जाते हैं या उन क्षेत्रों में रहते हैं ,जहाँ सरकारी स्कूलोंो का स्तर निजी स्कूलों जैसा ही उँचा है। + +7451. भारत में स्वास्थ्य सेवाएँ. + +7452. जिला अस्पताल सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की देखरेख करता है। + +7453. केरल का अनुभव. + +7454. इस मजेदार गतिविधि के माध्यम से रुचि के किसी विषय पर शोध किया जा सकता है।सर्वप्रथम शिक्षिका चुने हुए विषय का पूरी कक्षा को परिचय देती हैं और संक्षिप्त चर्चा के पश्चात कक्षा को कुछ समूहों में बँट देती हैं।समूह उस मुद्दे पर चर्चा करके तय करता है कि वॉलपेपर में क्या-क्या रखना चाहेगा। इसके बाद बच्चे अपने आप या दो-दो की जोड़ी में इकट्ठी की गई सामग्री को पढ़कर अपने अनुभवों एवं विचारों को लिखते हैं।इसके लिए वे कविताओं,कहानियों,साक्षात्कारों,विवरणों आदि की रचना कर सकते है।जो भी सामग्री चुनी,बनाई या लिखी गई,उसे समूह के लोग मिलकर देख लेता हैं।वे एक-दूसरे के लिखे हुए को पढ़कर सुझाव देते हैं।वे मिलकर यह तय करते हैं कि वॉलपेपर में क्या-क्या जाएगा और फिर उसका ले-आउट बनाते हैं। + +7455. पश्चिमी हिन्दी:- इस उपभाषा का क्षेत्र पश्चिम में अम्बला से लेकर पूर्व में कानपुर की पूर्वी सीमा तक, एवं उत्तर में जिला देहरादून से दक्षिण में मराठी की सीमा तक चला गया है। इस क्षेत्र के बाहर दक्षिण में महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल के प्राय: मुसलमानी घरों में पश्चिमी हिन्दी का ही एक रूप दक्खिनी हिन्दी व्याप्त है। इस उपभाषा के बोलने वालों की संख्या छह करोड़ से कुछ ऊपर है। साहित्यिक दृष्टि से यह उपभाषा बहुत संपन्न है। दक्खिन हिन्दी व्रजभाषा और आधुनिक युग में खडी़ बोली हिन्दी का विशाल साहित्य मिलता है। सूरदास, नन्ददास, भूषण, देव, बिहारी, रसखान आदि के नाम सर्वविदित हैं। खडी़ बोली की परम्परा भी लम्बी है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र और उनके युग के साहित्यकारों, महावीर प्रसाद द्दिवेदी, छायावादी और प्रगतिवादी तथा तथा अधतन साहित्यकारों ने खडी़ बोली हिन्दी को विकसित करने में बहुमूल्य योगदान दिया। पश्चिमी हिन्दी में उच्चारणगत खडा़पन है, अर्थात तान में थोडा़ आरोह होता है। पश्चिमी हिन्दी की प्रकृति सामान्य भाषा हिन्दी अर्थात् खडी़ बोली के अनुरूप है। वास्तव में यही पश्चिमी हिन्दी भारत की सामान्य भाषा हो गई हैं। इसकी उपबोलियाँ हैं; १) खडी़ बोली(कौरवी), २) व्रजभाषा, ३) बुंदेली, ४) हरियाणी(बांगरू), ५) कन्नौजी। + +7456. २. इसमें औ का ओ सुनाई देता है; जैसे- होर (और), नो (नौ), ओरत (औरत) आदि। + +7457. ७. हिन्दी में स्त्रीलिंग कारक चिन्हों में विविधता है। इसमें धोबन, चमारन, ठकुरान- स्त्री रूप और घास, नाक-पुल्लिंग रूप है। कारकों में बहुवचन- ओ के बदल-े ऊं का प्रयोग होता है; जैसे- मरदों (मरदूँ), बेट्टियों (बेट्टयूँ) आदि। + +7458. व्रजभाषा की विशेषताएँ:- + +7459. ५. बहुत से शब्दों के व्यंजन संयोग हैं परन्तु प्राय: संयोग को स्वरभक्ति से तोड़ देते हैं; जैसे- बिरज (व्रज), सबद (शब्द), बखत (वक्त) आदि। + +7460. १. उच्चारण की दृष्टि से व्रजभाषा और बुंदेली में बहुत कम अन्तर है। महाप्राण व्यजंनों के अल्पप्राणीकरण की प्रवृति व्रजभाषा से अधिक हैं; जैसे- दई (दही), कंदा (कंधा), सूदो (सूधो), कइ (कही), लाब (लाभ), डाँडी़ (डाढी़)। + +7461. हरयाणी (बांगरू). + +7462. ३. इसमें सहायक क्रिया (हूँ, है, हैं) के स्थान पर सूँ , सै , सैं , का प्रयोग होता है। जैसे- करता है( करता सै), मिलते हैं ( मिलते सैं) । + +7463. १. हिन्दी भाषा--- डा. हरदेव बाहरी । अभिव्यक्ति प्रकाशन , २०१७ ,पृष्ठ--१७२-२०१ + +7464. अवधी. + +7465. बघेली भाषा की विशेषताएँ:- + +7466. १. हिन्दी भाषा-डॉ. हरदेव बाहरी, अभिव्यक्ति प्रकाशन, २०१७, पृ. १७३-२०२ + +7467. हिन्दी प्रदेश. + +7468. दास, हरिदास आदि संत कवियों की वाणियाँ भी भाषा की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। गध साहित्य में बचनिकाओं, ख्यातों की अपनी विशाल परम्परा हैं। अधिकतर साहित्य मारवाडी़ में लिखा गया है।थौडा़-बहुत जयपुरी में भी प्राप्त है। हिन्दी की तुलना में राजस्थानी व्याकरण की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं- पुंल्लिंग एकवचन ओकारांत जैसे- तारो, हुक्को, धारो; बहुवचन और तिर्यक् एकवचन आकारांत होता है जैसे- तारा(कई तारे), हुक्का(अनेक हुक्के), पुंल्लिंग और स्त्रीलिंग के बहुवचन के अंत में आँ होता है, जैसे- ताराँ, बादलाँ । हिन्दी 'को' के स्थान पर नै, से के स्थान पर सूँ और का, के, की के स्थान पर रो, रा, री होता है। + +7469. संदर्भ. + +7470. भाषा के आधार पर यदि संसार की जातियों का वर्गीकरण किया जाए तो कहा जा सकता है कि एक तो आर्य जातियाँ है और दूसरी अनार्य जातियाँ । आर्यों के पुर्वज पूरे यूरोप, ईरान, अफगानिस्तान और भारतीय उपमहाद्दीप (जिसके अन्तर्गत भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका) में फैल गए थे। यूरोप के १७ वी.-१८वी. शताब्दी में , अर्थात् साम्राज्यवादी युग में, लोग कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, आस्टे्लिया, न्यूजी़लैंड और दक्षिणी अफ्रीका में अपने उपनिवेश बनाकर रहने लगे। इन सब देशों के आदिवासियों पर यूरोपीय या आर्य परिवार की भाषाओं का इतना प्रभाव पडा़ है कि वहाँ की मूल भाषाएँ दब-सी गई हैं। अब इन देशों की सामान्य या मुख्य भाषाएँ आर्य परिवार की हैं। विद्दानों ने इस वृहत् परिवार का नाम भारत-यूरोपीय (भारोपीय) रखा है। संसार का सबसे बडा़ भाषा-परिवार यही है।भूमंडल की कुल 350 करोड़ जनसंख्या में इस भारोपीय(आर्य) परिवार की भाषाएँ बोलने वालों की संख्या 150 करोडं हैं। साहित्यिक और सांस्कृतिक दृष्टि से ये भाषाएँ अत्यंत प्रगतिशील, उत्कृष्ट और समृध्द हैं। अत: आर्य भाषा के दो वर्ग हैं--१) यूरोपीय आर्य भाषाएँ २) भारत-ईरानी आर्य भाषाएँ। भारत-ईरानी वर्ग की तीन शाखाएँ हैं--१)ईरानी(ईरान और अफगानिस्तान की भाषाएँ), २) दरद (कश्मीर और पामीर के पूर्व-दक्षिण की भाषाएँ), ३) भारतीय आर्य भाषाएँ । भारतीय आर्य भाषाओं का इतिहास लगभग साढे़ तीन हजार वर्षों का है। अर्थात् इनका इतिहास ईसा से लगभग पन्द्रह सौ वर्ष पूर्व से प्रारम्भ होता है। धर्म, समाज, साहित्य, कला और संस्कृतिक की दृष्टि से तथा प्राचीनता गंभीरता और वैज्ञानिकता के विचार से भारतीय आर्यभाषा बहुत महत्वपूर्ण है। संसार का प्राचीनतम ग्रंथ-ऋग्वेद इसी भाषा में है। विकास क्रम के अनुसार भारतीय आर्यभाषा को तीन कालों में बाँटा जाता है--- + +7471. इसका रूप ऋग्वेद में देखने को मिलता है। पाणिनी ने 500 ई.पू. इस भाषा में व्याकरणिक रूप 'अष्टाध्यायी' की रचना की थी। + +7472. ४) अवहट्ट:- भाषा परिवर्तनशील है। कोई भाषा जब साहित्य का माध्यम होकर एक प्रतिष्ठित रूप ग्रहण करती है और व्याकरण के नियमों में बँध जाती है, तब वह जनभाषा से दूर हो जाती है। अपभ्रंश की भी यही गति हुई। अपभ्रंश के ही परिवर्तित रूप को अवहट्ट कहा गया है। ग्यारहवीं से लेकर चौदहवीं शताब्दी के अपभ्रंश कवियों ने अपनी भाषा को अवहट्ट कहा है। इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग ज्योतिरीश्वर ठाकुर ने अपने 'वर्ण रत्नाकर' में किया। 'प्राकृत पैंगलम' की भाषा को उसके टीकाकार वंशीधर ने अवहट्ट माना है। संदेशरासक के रचियता अब्दुररहमान ने भी अवहट्ट भाषा का उल्लेख किया है। मिथिला के विधापति ने अपनी कृति 'कीर्तिलता' की भाषा को अवहट्ट कहा है। इन सबने जिन भारतीय भाषाओं के नाम गिनाये हैं- सांस्कृत, प्राकृत, मागधी, शौरसेनी, पिशाची उनमें या तो अपभ्रंश नाम लिया या अवहट्ट। दोनों को एक साथ नहीं रखा। इससे लगता है कि अपभ्रंश और अवहट्ट में कोई भेद नहीं समझा गया। आधुनिक भाषाविज्ञानियों ने तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर अवहट्ट को उत्तरकालीन या परवर्ती अपभ्रंश माना है और बताया गया है कि निश्चय रूप से अवहट्ट में ध्वनिगत, रूपगत और शब्दसंबंधी बहुत से तत्व ऐसे हैं जो इसे पूर्ववर्ती अपभ्रंश से अलग करते हैं। संनेहरासय और कीर्तिलता के अतिरिक्त वर्णरत्नाकर और प्राकृतपैंगलम के कुछ अंश, नाथ और सिध्द साहित्य, नेमिनाथ चौपाई, बहुबलि रास, आदि अवहट्ट की प्रसिध्द रचनाएँ हैं। + +7473. १) पश्चिमी हिन्दी--- इसके अन्तर्गत कौरवी(खडी़ बोली), बागरू (हरियाणवी),ब्रज, कन्नौजी एवं बुंदेली। + +7474. संदर्भ. + +7475. भूमिका. + +7476. इलियट ने स्वंय अपने बारे में कहा था, "मैं राजनिति में राजतंत्रवादी, धर्म में एंग्लोकैथोलिक और साहित्य में क्लासिकवादी हूँ।" इलियट ने अपने को क्लासिकवादी कहा है, अत: यह जानना आवश्यक है कि क्लासिकवाद से उनका क्या तात्पर्य है? उनके अनुसार 'क्लासिक' का अर्थ है परिपक्वता या प्रौढ़ता (Maturity) और क्लासिक साहित्य की सृष्टि तभी हो सकती है, जब सभ्यता, भाषा और साहित्य प्रौढ़ हो और स्वयं कृतिकार का मस्तिष्क भी प्रौढ़ हो। मस्तिष्क की प्रौढ़ता के लिए वह इतिहास और ऐतिहासिक चेतना को आवश्यक मानते हैं। इसके लिए कवि को अपने देश और जाति के अध्ययन के अतिरिक्त दूसरी सभ्य जातियों का इतिहास पढ़ना चाहिए; उस सभ्यता का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए जिसने हमारी सभ्यता को प्रभावित किया है। सारांश यह है कि कवि को अतीत की पूरी जानकारी होनी चाहिए। शील की प्रोढ़ता से उनका अभिप्राय आदर्श चरित्र का निर्माण। महान् कवि क्लासिक हो ही इलियट के अनुसार यह आवश्यक नहीं। उनके अनुसार दोनों में अन्तर है। अंग्रेजी में महान् कवि अनेक हो चुके हैं, किन्तु इलियट उन्हें क्लासिक नहीं मानता। महान् कवि केवल एक विधा में पराकाष्ठा तक पहुँचकर सदा के लिए उसकी सम्भावना को समाप्त कर देता है, जबकि क्लासिक कवि एक विधा को ही नहीं, अपने समय की भाषा को भी पराकाष्ठा पर पहुँचाकर उसके विकास को सम्भावना को समाप्त कर देता है। + +7477. वस्तुनिष्ठ समीकरण. + +7478. ३. भारतीय एवं पाश्चात्य काव्यशास्त्र की पहचान---प्रो. हरिमोहन । वाणी प्रकाशन, प्रथम संस्करण-२०१३,पृष्ठ--१४४-१४९ + +7479. (अभिधानप्रकाशविशेषा एव चालंकारा:)। दंडी के लिए अलंकार काव्य के शोभाकर धर्म हैं (काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते)। सौंदर्य, चारुत्व, काव्यशोभाकर धर्म इन तीन रूपों में अलंकार शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थ में हुआ है और शेष में शब्द तथा अर्थ के अनुप्रासोपमादि अलंकारों के संकुचित अर्थ में। एक में अलंकार काव्य के प्राणभूत तत्व के रूप में ग्रहीत हैं और दूसरे में सुसज्जितकर्ता के रूप में। + +7480. सादृश्य आदि को अलंकारों के मूल में पाकर पहले पहले उद्भट ने विषयानुसार, कुल 44 अलंकारों को छह वर्गों में विभाजित किया था, किंतु इनसे अलंकारों के विकास की भिन्न अवस्थाओं पर प्रकाश पड़ने की अपेक्षा भिन्न प्रवृत्तियों का ही पता चलता है। वैज्ञानिक वर्गीकरण की दृष्टि से तो रुद्रट ने ही पहली बार सफलता प्राप्त की है। उन्होंने वास्तव, औपम्य, अतिशय और श्लेष को आधार मानकर उनके चार वर्ग किए हैं। वस्तु के स्वरूप का वर्णन वास्तव है। इसके अंतर्गत 23 अलंकार आते हैं। किसी वस्तु के स्वरूप की किसी अप्रस्तुत से तुलना करके स्पष्टतापूर्वक उसे उपस्थित करने पर औपम्यमूलक 21 अलंकार माने जाते हैं। अर्थ तथा धर्म के नियमों के विपर्यय में अतिशयमूलक 12 अलंकार और अनेक अर्थोंवाले पदों से एक ही अर्थ का बोध करानेवाले श्लेषमूलक 10 अलंकार होते हैं। + +7481. नवंबर समसामयिकी/पर्यावरण: + +7482. यह झील दोनों नदियों के लिये प्राकृतिक बाढ़-संतुलन जलाशय का कार्य करती है। + +7483. यह येर्सिनिया पेस्टिस बैक्टीरियम (Yersinia Pestis Bacterium) के कारण होता है। + +7484. प्लेग एक जीवाणु संक्रमित महामारी है,प्रारंभिक अवस्था में ही प्लेग के लक्षणों को पहचान कर प्रभावी एंटीबायोटिक दवाओं द्वारा इसका उपचार किया जा सकता है। + +7485. व्यापक खुले वुडलैंड्स के साथ-साथ सूखी और छोटी घास पाई जाती है। + +7486. 19 नवंबर,2019 को विश्व शौचालय (World Toilet Day) दिवस के अवसर पर प्रदान किये गए। + +7487. सोवा-रिग्पा भारत में हिमालयी क्षेत्र की एक पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली है। + +7488. यह बाँध आंध्र प्रदेश के कुन्नूर ज़िले में कृष्णा नदी पर अवस्थित है। + +7489. नेथरावती नदी का उद्गम कर्नाटक के चिक्कमगलुरु (Chikkamagaluru) से होता है। + +7490. यह उत्तर प्रदेश के लखीमपुर-खीरी ज़िले में भारत-नेपाल सीमा पर स्थित है तथा यह उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र में प्राकृतिक जंगलों और घास के मैदानों का प्रतिनिधित्व करता है। + +7491. राज्य में रॉयल बंगाल टाइगर के अंतिम व्यवहार्य निवास होने के कारण इन तीनों संरक्षित क्षेत्रों को प्रोजेक्ट टाइगर (Project Tiger) के तहत संयुक्त करके दुधवा टाइगर रिज़र्व के रूप में गठित किया गया है। + +7492. इन उपकरणों ने दिल्ली में वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति के कारण काम करना बंद कर दिया है। + +7493. शहरों से अलग हैं गाँव + +7494. पाश्चात्य काव्यशास्त्र/रिचर्ड्स का संप्रेषण सिद्धांत: + +7495. मूल्य सिध्दांत. + +7496. संदर्भ. + +7497. नवंबर समसामयिकी/अंतरराष्ट्रीय संबंध: + +7498. बोगनविली,Bougainville. + +7499. इसके अलावा हथियारों को चलाने की विशेषज्ञता और आतंकवाद से मुकाबला करने के लिये शूटिंग तथा अनुभव साझा करना इसका उद्देश्य है। + +7500. सामाजिक सशक्तीकरण,संप्रदायवाद,क्षेत्रवाद और धर्मनिरपेक्षता: + +7501. इस रिपोर्ट के अनुसार,अयोध्या में सारा विध्वंस ‘योजनाबद्ध’ तरीके से किया गया था। + +7502. सबका विश्वास योजना + +7503. नदी जोड़ो परियोजनाओं के लाभ: + +7504. इनसे संबंधित मुद्दे: + +7505. भूमिका. + +7506. संस्कृत के सुप्रसिध्द आचार्य कुन्तक ने अपने ग्रंथ 'वको्क्तिजीवित' में वको्क्ति को काव्य की आत्मा माना है। वको्क्ति से उनका अभिप्राय कथन की वक्रता से है।आचार्य शुक्ल ने अभिव्यंजनावाद को वको्क्तिवाद का विलायती उत्थान माना है।परन्तु उनकी यह धारणा भ्रामक है क्योंकि जिसे हम अभिव्यंजना कहते है, क्रोचे उसे अभिव्यंजना नहीं मानता है। दोनों ने अभिव्यंजना को कला का प्राण-तत्व तथा काव्य में कल्पना-तत्व की प्रमुखता मानते है। और दोनों अभिव्यंजना को अखंड मानते है। इन समानताओं के होते हुए भी दोनों में भिन्नता हैं, क्योंकि कुन्तक अलंकारवादी होने के नाते काव्य में अलंकारमयी या चमत्कारपूर्ण उक्ति, कवि कौशल, वको्क्ति आदि वाह्य अंगों पर बल देते है। जबकि क्रोचे सहजानुभूति (अभिव्यंजना) के आन्तरिक तत्व को मानते है। क्रोचे के अनुसार सौन्दर्य का चरम लक्ष्य अभिव्यंजाना जबकि कुन्तक आनन्द को मानता है। + +7507. भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक कला साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू: + +7508. कोलरिज से पूर्व कल्पना (imagination) तथा ललित कल्पना (fancy) को एक माना जाता था। पर कोलरिज ने उन दोनों को भिन्न माना है। + +7509. 'चममचात चंचल नयन बिच घूघंट पट झीन। + +7510. १. पाश्चात्य काव्यशास्त्र---देवेन्द्रनाथ शर्मा। प्रकाशक--मयूर पेपरबैक्स, पंद्रहवां संस्करण: २०१६, पृष्ठ--१३६-१५६ + +7511. यह पुस्तक सिविल सेवा परीक्षा के परीक्षार्थियों के पाठ्यक्रम का विस्तार पूर्वक अध्ययन सामग्री प्रस्तुत करती है। + +7512. 15 जनवरी, 2001 को गृह मंत्रालय के अंतर्गत सीमा सुरक्षा बल घोषित किया गया तथा 15 दिसम्बर, 2003 को इसका नाम बदलकर सशस्त्र सीमा बल कर दिया गया। + +7513. प्रेसिडेंट कलर्स राष्ट्र की सुरक्षा में किसी रेजिमेंट के योगदान की मान्यता में दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है। + +7514. केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल पूरी तरह से गृह मंत्रालय के अधीन आता है और इसका रक्षा मंत्रालय से कोई भी संबंध नहीं है। + +7515. समुद्री शक्ति का जन्म हुआ अथवा सृजन किया गया? (Are Sea Powers Born or Made?)। + +7516. इस सेमिनार को एझीमाला स्थित माउंट दिल्ली में आयोजित किया गया इसलिये इस सेमिनार को 'दिल्ली' श्रृंखला कहा गया, यह इस क्षेत्र के समुद्री इतिहास के विकास का गवाह रहा है। + +7517. इंटरपोल + +7518. इसका मुख्यालय ल्यों, फ्राँस में है। + +7519. एकीकृत युद्ध समूह(Integrated Battle Groups) + +7520. 17 माउंटेन स्ट्राइक कॉर्प्स(17 Mountain Strike Corps) + +7521. इस अभियान का उद्देश्य सर्वोच्च बलिदान देने वाले वीरों को श्रद्धांजलि के अलावा हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किये गए अभियान “फिट इंडिया मूवमेंट” और पैदल यात्रियों की सुरक्षा के प्रति जागरूकता को बढ़ाना है। + +7522. इस अभियान के लिये कारगिल और कोहिमा का चयन इसलिये किया गया है क्योंकि कोहिमा और कारगिल भारत के पूर्वी और उत्तरी छोर के दो सीमावर्ती पोस्ट हैं जहाँ क्रमशः 1944 और 1999 में आधुनिक भारत की दो प्रमुख लड़ाइयाँ लड़ी गईं। + +7523. CTV को 99 करोड़ रुपए की लागत से तैयार किया जा रहा है जो बिग डेटा एनालिटिक्स (Big Data Analytics), डेटा माइनिंग टूल्स (Data Mining Tools) जैसे उपकरणों से लैस डेटा वेयरहाउस तक अपनी पहुँच स्थापित करेगा। + +7524. भारतीय सेना की एक टीम ने विषम मौसम की चुनौतीपूर्ण स्थितियों का सामना करते हुए ‘लियो परगेल’ (Leo Pargyil) पर्वत पर सफलतापूर्वक फतह हासिल की। + +7525. माउंट कुन अभियान + +7526. नून कुन मासिफ + +7527. यह विधेयक गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 में संशोधन करता है। + +7528. यह संशोधन राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) के महानिदेशक को ऐसी संपत्ति को ज़ब्त करने का अधिकार देता है जो उसके द्वारा की जा रही जाँच में आतंकवाद से होने वाली आय से बनी हो। + +7529. संशोधन के क्रियान्वयन में बाधाएँ + +7530. वर्तमान में इस दल में लगभग 3000 सिपाही शामिल हैं जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को सुरक्षा प्रदान करते हैं। + +7531. यह गृह मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है। सामान्यतः इनको ब्लैक कैट (Black Cats) के नाम से जाना जाता है। + +7532. आंतरिक सुरक्षा को स्थिर रखने में NSG की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। + +7533. सियाचिन ग्लेशियर या सियाचिन हिमनद हिमालय की काराकोरम रेंज में भारत-पाक नियंत्रण रेखा के समीप स्थित है। + +7534. पर्यटन के निहितार्थ: + +7535. इसका संचालन 1 अक्तूबर से 4 अक्‍तूबर, 2019 तक किया जाएगा। + +7536. वर्ष 1953 में कोरिया में तैनाती और वर्ष 2005-06 में कांगो में संयुक्‍त राष्‍ट्र के शांति मिशन (UN peacekeeping Mission) में तैनाती भी इन प्रमुख परिचालनों में शामिल है। + +7537. भारत और रूस द्वारा संयुक्त रूप से विकसित ब्रह्मोस को तीनों सेवाओं के साथ भारतीय सशस्त्र बलों में सक्रिय किया गया है। + +7538. क्रूज़ मिसाइल पारंपरिक और परमाणु हथियार दोनों को ले जाने में सक्षम है लेकिन अपने आकार एवं कम लागत के कारण उनका प्रयोग पारंपरिक हथियारों के साथ ज़्यादा होता रहा है। + +7539. यह अत्‍याधुनिक नौवहन, संचार सेंसर और मशीनरी से लैस होने के साथ ही यह प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों को भी ले जाने में सक्षम है। + +7540. इसे DRDO द्वारा विकसित किया गया है। + +7541. भारतीय रेलवे के रेलवे सुरक्षा बल (Railway Protection Force- RPF) ने रेलवे परिसर में स्थित सभी वाहनों की पहचान करने तथा उनका सत्यापन करने के लिये एक विशेष अभियान ‘ऑपरेशन नंबर प्लेट’ लॉन्च किया है। + +7542. यह 9 अगस्त से 11 अगस्त तक भारतीय रेलवे के 466 रेलवे स्टेशनों पर एक विशेष अभियान के रूप में चलाया गया था जिसके दौरान चोरी हुए वाहन, 5 दिन से अधिक अवधि से खड़े वाहन, लावारिस वाहन, संदिग्ध वाहन आदि पाए गए। + +7543. पुलिस स्टेशन सर्वेक्षण + +7544. दूसरे स्थान पर निकोबार ज़िले में कैंपबेल बे है। इसमें बच्चों के अनुकूल कमरे तथा शिकायतकर्त्ताओं एवं आगंतुकों के लिये एक अलग प्रतीक्षालय है। + +7545. इस स्क्वाड में महिला और पुरुष सुरक्षाकर्मी दोनों शामिल हैं जो बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन और मॉल जैसी भीड़भाड़ वाली जगहों पर कड़ी निगरानी रखते हुए महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे। + +7546. यह अधिनियम तब भी लागू होता है जब ऐसी कोई घटना भारत के बाहर घटित हो किंतु विमान भारत में पंजीकृत हो या किसी भारतीय व्यक्ति द्वारा विमान पट्टे पर लिया गया हो या अपराधी अवैध रूप से भारत में रहता हो। + +7547. सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) कानून यानी अफस्पा. + +7548. औपनिवेशिक शासन का यह कानून, राष्ट्र की अखंडता सुनिश्चित करने तथा जासूसी, राजद्रोह और अन्य संभावित खतरों से निपटने हेतु रूपरेखा प्रदान करता है। + +7549. CISF पूरे भारत में स्थित औद्योगिक इकाइयों, सरकारी अवसंरचना परियोजनाओं और सुविधाओं तथा प्रतिष्ठानों को सुरक्षा कवच प्रदान करता है। + +7550. 1986 में गठित यह संस्था देश में अपराध आँकड़ों का संग्रह,रखरखाव एवं विश्लेषण के लिये उत्तरदायी है। + +7551. इसका उद्देश्य भारतीय पुलिस/जाँच अधिकारियों को सूचना एवं प्रौद्योगिकी की सहायता प्रदान कर सशक्त बनाना है। + +7552. 4 जनवरी को FATF ने पाकिस्तान और श्रीलंका सहित 11 ऐसे देशों की पहचान की है,जो धन-शोधन रोधी उपायों तथा आतंकवाद के वित्तपोषण (Combating of Financing of Terrorism-CFT) का मुकाबला करने में रणनीतिक रूप से कमज़ोर हैं।वित्तीय कार्रवाई कार्य-बल(FATF)वर्ष 1989 में जी-7 की पहल पर स्थापित एक अंतः सरकारी संस्था है। इसका उद्देश्य ‘टेरर फंडिंग’, ‘ड्रग्स तस्करी’ और ‘हवाला कारोबार’ पर नज़र रखना है। इसका मुख्यालय फ्राँस के पेरिस में है। + +7553. OIC के पास संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ के स्थायी प्रतिनिधिमंडल हैं। इसका प्रशासनिक केंद्र (मुख्यालय) जेद्दा,सऊदी अरब में स्थित है। + +7554. जनवरी 2019 में क़तर ओपेक से अलग हो गया, अतः वर्तमान में इसके सदस्य देशों की संख्या 14 है। + +7555. ओपेक प्लस देशों की श्रेणी में अज़रबैजान, बहरीन, ब्रुनेई, कज़ाकस्तान, मलेशिया, मैक्सिको, ओमान, रूस, दक्षिण सूडान और सूडान शामिल हैं। + +7556. इस संघ का उद्देश्य प्रासंगिक व्यापक वैज्ञानिक अध्ययनों के माध्यम से पृथ्वी विज्ञान के विकास को बढ़ावा देना है। + +7557. वर्तमान में इस संघ में 121 देश शामिल हैं। + +7558. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (Stockholm International Peace Research Institute-SIPRI) वर्ष 1966 में स्थापित एक स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय संस्थान है। यह प्रतिवर्ष अपनी वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करता है।यह संस्थान युद्ध तथा संघर्ष, युद्धक सामग्री, शस्त्र नियंत्रण और निरस्त्रीकरण के क्षेत्र में शोध कार्य करता है। साथ ही नीति निर्माताओं, शोधकर्त्ताओं, मीडिया द्वारा जानकारी मांगे जाने पर इच्छुक लोगों को आँकड़ों से संबंधित विश्लेषण और सुझाव भी उपलब्ध कराता है। + +7559. इस फोरम में भाग लेकर भारत ने अपना पक्ष स्पष्ट करते हुए कहा कि परंपरागत रक्षा, ऊर्जा और फार्मास्यूटिकल्स क्षेत्रों की जगह स्टार्ट-अप, कृत्रिम बुद्धिमत्ता,विनिर्माण,डिजिटलीकरण,भारत-रूस आर्थिक सहयोग और विकास के कारक बनने चाहिये। + +7560. 15 जून,2001 को शंघाई में स्थापित,एक स्थायी अंतर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन है।यह एक यूरेशियन राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संगठन है,जिसका उद्देश्य संबंधित क्षेत्र में शांति, सुरक्षा व स्थिरता बनाए रखना है।SCO चार्टर पर वर्ष 2002 में हस्ताक्षर किए गए थे और यह वर्ष 2003 में लागू हुआ। यह चार्टर एक संवैधानिक दस्तावेज है जो संगठन के लक्ष्यों व सिद्धांतों आदि के साथ इसकी संरचना तथा प्रमुख गतिविधियों को रेखांकित करता है। + +7561. परमाणु अप्रसार संधि (Non-Proliferation Treaty- NPT)-परमाणु हथियारों का विस्तार रोकने और परमाणु टेक्नोलॉजी के शांतिपूर्ण ढंग से इस्तेमाल को बढ़ावा देने के अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों का एक हिस्सा है। इस संधि की घोषणा 1970 में की गई थी। + +7562. जगजीत पवाड़िया का यह दूसरा कार्यकाल है जो 02 मार्च, 2020 से 01 मार्च, 2025 तक होगा। उनका मौजूदा कार्यकाल वर्ष 2020 में समाप्त होना तय था। + +7563. संयुक्त राष्ट्र संघ के कुछ सदस्य राष्ट्रों का एक समूह है। + +7564. यह आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद के खिलाफ सदस्य देशों के सहयोग को बढ़ावा देने का काम करता है। इसका मुख्यालय ताशकंद (Tashkent) में है।शंघाई सहयोग संगठन (SCO) एक यूरेशियन राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संगठन है, जिसकी स्थापना 2001 में शंघाई (चीन) में की गई थी। वर्तमान में इसमें 8 सदस्य हैं।SCO का मुख्यालय बीजिंग (चीन) में स्थित है। + +7565. परमाणु अप्रसार संधि (Treaty on the Non-Proliferation of Nuclear Weapons-NPT) एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिसका उद्देश्य परमाणु हथियारों और इन हथियारों की तकनीक के प्रसार को रोकना, परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना और निरस्त्रीकरण (Disarmament) के लक्ष्य को आगे बढ़ाना है। + +7566. अंतर्राष्ट्रीय छात्र मूल्यांकन कार्यक्रम (PISA) का आयोजन पहली बार वर्ष 2000 में किया गया था। PISA सामग्री-आधारित मूल्यांकन के विपरीत एक सक्षमता-आधारित मूल्यांकन है, जो यह मापता है कि छात्र प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा द्वारा अर्जित ज्ञान का अनुप्रयोग करने में सक्षम हैं या नहीं जो कि आधुनिक समाज में पूर्ण भागीदारी के लिये आवश्यक है। + +7567. PMI विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में व्यावसायिक गतिविधियों का एक संकेतक है। + +7568. नए सूचकांकों का यह नया सेट उस मौजूदा सेट का स्थान लेगा जिसे कुछ साल पहले थॉमसन रॉयटर्स के साथ मिलकर विकसित किया गया था। + +7569. DRI का गठन 4 दिसंबर,1957 को किया गया था। + +7570. इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से संबंधित वाणिज्यिक धोखाधड़ी और सीमा शुल्क की चोरी से निपटना है। + +7571. राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण (NFRA) की स्थापना कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत वर्ष 2018 में की गई थी। इसकी स्थापना के कारण भारत अब ‘अंतर्राष्ट्रीय फोरम ऑफ इंडिपेंडेंट ऑडिट रेगुलेटर’ की सदस्यता के लिये पात्र है। + +7572. इसे विभिन्न स्रोतों जैसे-शीरा और अनाज से प्राप्त किया जाता है। + +7573. केंद्र सरकार ने निर्यातकों के लिये ऋण लेने की प्रक्रिया को आसान बनाने और ऋण उपलब्धता को बढ़ाने के उद्देश्य से निर्यात ऋण विकास योजना- निर्विक योजना (Niryat Rin Vikas Yojna- Nirvik scheme) की घोषणा की है। + +7574. इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है। + +7575. गूगल पर कुछ विज्ञापनों और ऑनलाइन सर्च के प्रति पक्षपात करते हुए ऑनलाइन सर्च मार्केट के प्रभुत्व का दुरुपयोग करने का आरोप है।वर्ष 2017 में यूरोपीय नियामकों ने भी विज्ञापनों से संबंधित एक मामले में गूगल पर 1.7 बिलियन डॉलर का जुर्माना लगाया था। + +7576. 3 प्रतिस्पर्द्धा विरोधी समझौतों का निषेध + +7577. नियम 17B के अनुसार किसी भी ट्रस्ट अथवा संस्थान के लेखा के अंकेक्षण की रिपोर्ट (Report of Audit) फॉर्म संख्या 10B में होगी। + +7578. इसमें ट्रांसपोर्ट की जाने वाली वस्तुओं का विवरण तथा उस पर लगने वाले जी.एस.टी. की पूरी जानकारी होती है। + +7579. वर्तमान में NISG परियोजना के लिये कार्यक्रम प्रबंधन इकाई की स्थापना के माध्यम से परियोजना के संचालन और रखरखाव में MCA की सहायता कर रहा है। + +7580. इस रिपोर्ट में अमेरिका 8,133.5 टन स्वर्ण भंडार के साथ सबसे ऊपर है, उसके बाद जर्मनी 3,369.7 टन है। + +7581. देश भर के 746 रेलवे स्टेशनों पर रेल वायर वाईफाई दुनिया के सबसे बड़े और सबसे तेज़ सार्वजनिक वाई-फाई नेटवर्कों में से एक के रूप में उभरकर सामने आया है। + +7582. यह एक मुक्त क्षेत्रफल नीति है। + +7583. IMF बेलआउट पैकेज की प्रभावशीलता + +7584. थाईलैंड की मुद्रा थाई बात (Thai Baht) के अवमूल्यन के बाद यह संकट उत्पन्न हुआ। + +7585. वैज्ञानिक के. कस्तूरीरंगन के नेतृत्व वाली समिति द्वारा तैयार की गई है। इसके तहत शिक्षा के अधिकार अधिनियम (Right To Education- RTE Act) के दायरे को विस्तृत करने का प्रयास किया गया है, साथ ही स्नातक पाठ्यक्रमों को भी संशोधित किया गया है। + +7586. नई शिक्षा नीति का मसौदा तैयार करने का एनडीए सरकार का यह दूसरा प्रयास है। + +7587. नयनार और अलवार + +7588. मेरे हार्ड मांस के इस निर्मित पुतले में तुम आए जैसे यह कोई सोने का मंदिर हो मेरे कृपालु प्रभु मेरे विशुद्ध तम + +7589. 10वीं से 12वीं सदियों के बीच चोल और पांड्यन राजाओं ने उन धार्मिक स्थलों पर विशाल मंदिर बनवाए,जहाँ की संत-कवियों ने यात्रा की थी। + +7590. 11वीं शताब्दी में तमिलनाडु में जन्में रामानुज पर अलवार संतों का प्रभाव था।उनके अनुसार मोक्ष प्राप्ति का उपाय विष्णु के प्रति अनन्य भक्ति भाव रखना है।भगवान विष्णु की कृपा दृष्टी से भक्त उनके साथ एकाकार होने का परमानंद प्राप्त कर सकता है। + +7591. सामाजिक व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह संत तुकाराम का एक अभंग मराठी भक्ति गीत जो दीन दुखियों पीड़ितों को अपना समझता है वही संत है क्योंकि ईश्वर उसके साथ है। + +7592. इसके लिए + +7593. मध्य एशिया के महान सूफी संतों में गजाली रूमी और शादी के नाम उल्लेखनीय हैं। + +7594. मालिक (प्रभु)की खोज जलालुद्दीन रूमी 13 मी सदी का महान सूफी शायर था ईरान का रहने वाला + +7595. असम के शंकर देव ने विष्णु की भक्ति पर बल दिया और असमिया भाषा में कविताएं तथा नाटक लिखें उन्होंने नाम घर कविता पाठ और प्रार्थना ग्रह स्थापित करने की पद्धति चलाई जो आज तक चल रही है। + +7596. उनके विचारों की जानकारी उनकी शक्तियों और पदों के विशाल संग्रह से मिलते हैं जिसे घुमंतू भजन गायकों द्वारा गाया जाता था इनमें से कुछ भजन गुरु ग्रंथ साहब पंजवानी और बीजक में संग्रहित एवं सुरक्षित है। + +7597. मृत्यु से पूर्व अपने अनुयायी लहणा को उत्तराधिकारी चुना जो गुरु अंगद के नाम से प्रसिद्ध हुए।ये नानक के ही अंग माने गए। + +7598. जो प्रशासन में स्वायत्त था आधुनिक इतिहासकार इसी युग के सिख समुदाय को राज्य के अंतर्गत राज्य मानते हैं मुगल सम्राट जहांगीर इस समुदाय को संभावित खतरा मानता था उसने 1606 में गुरु अर्जुन को मृत्युदंड देने का आदेश दिया। + +7599. 'हिंदी' शब्द का संबंध संस्कृत के 'सिंधु' शब्द से माना जाता है। 'सिंध' नदी के आसपास की भूमि और वहां रहने वाले लोगों को सिंधु कहा जाता था। कालांतर में धीरे-धीरे ईरानी भारत के अधिकाधिक भागों से परिचित होते गए और इस शब्द के अर्थ में विस्तार होता गया, और उनके द्वारा यह शब्द 'हिंद' उच्चरित होने लगा। इसका परिणाम यह हुआ कि 'हिंद' शब्द धीरे धीरे पूरे भारत का वाचक हो गया। 'हिंदू' शब्द में 'ईक' प्रत्यय लगने से 'हिंदीक' बना, जिसका अर्थ है- 'हिंद का'। + +7600. पारिवारिक वर्गीकरण के अंतर्गत विश्व की भाषाओं को चार खंडों में विभाजित किया गया-
+ +7601. यूरेशिया खंड पुनः दो भागों में विभाजित हो जाता है।-
+ +7602. २. दरद या पिशाच
+ +7603. २. लौकिक संस्कृत- वैदिक संस्कृत से ही लौकिक संस्कृत का जन्म हुआ। लौकिक संस्कृत में पाणिनीय संस्कृत, देवभाषा संस्कृत और क्लासिकल संस्कृत भी है। पांचवी शती ई. पू. में पाणिनि ने अपने व्याकरण द्वारा संस्कृत को एक व्यवस्थित रूप प्रदान किया तब से आज तक उसका वही स्वरूप मान्य है। + +7604. अपभ्रंश से हिंदी का जन्म हुआ। आठवीं शती में सिद्धों की अवहट्ट भाषा से हिंदी अपना आकार ग्रहण करती है। अवहट्ट को पुरानी हिंदी भी कहा गया है। + +7605. + +7606. अभी तक NSDF के कुल खर्च का लगभग 54.40% TOP योजना पर खर्च किया जा चुका है। + +7607. अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेने, भारत में अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों का आयोजन करने, राष्ट्रीय चैंपियनशिप और कोचिंग शिविरों का आयोजन कराने के लिये यह सहायता दी जाती है। + +7608. नेमोटोड्स गोलकृमि होते हैं जिन्हें नग्न आँखों से नहीं देखा जा सकता। + +7609. अल्फांसो आम को फलों का राजा माना जाता है तथा महाराष्ट्र में इसे "‘हापुस’" नाम से भी जाना जाता है। + +7610. मध्यप्रदेश सिविल सेवा प्रारम्भिक परीक्षा प्रश्न संग्रह: + +7611. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए एवं नीचे दिए गए मोहनजोदड़ो हड़प्पा एवं कालीबंगा सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल हैं। + +7612. + +7613. भारत के पोत परिवहन महानिदेशालय (Directorate General of Shipping) ने 1 जनवरी, 2020 से इसके अनुपालन के लिये विभिन्न हितधारकों को अधिसूचित किया। + +7614. 28 नवंबर,2019 दिल्ली में भूस्खलन जोखिम कटौती तथा स्थिरता पर पहले अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन. + +7615. इनका निर्माण पारंपरिक जनजातीय ज्ञान का प्रयोग करके रबर के वृक्षों की जड़ों को जोड़-तोड़ कर किया जाता है। + +7616. उम्शिआंग डबल डेकर ब्रिज (Umshiang Double Decker Bridge)। + +7617. पेरिस शहर ने सर्कस में जंगली जानवरों के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया।. + +7618. प्रोडक्शन गैप रिपोर्ट ने जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC) की निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण भूमिकाओं को रेखांकित किया है- + +7619. सरकार द्वारा संचालित प्रयासों के साथ ही स्थानीय निवासियों द्वारा किये जाने वाले बंजर भूमि रूपांतरण के प्रयास महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकते हैं। + +7620. नवंबर समसामयिकी/सामाजिक,जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे: + +7621. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का यह स्वायत्त निकाय,जनसंख्या नियंत्रण हेतु कुछ योजनाएँ लागू कर रहा है। + +7622. इस योजना के तहत लाभार्थी को मज़दूरी के नुकसान की क्षतिपूर्ति की जाएगी। + +7623. + +7624. हरियाणा की जननायक जनता पार्टी (JJP) को राज्य स्तरीय दल का दर्जा. + +7625. राष्ट्रीय राजनीतिक दल के रूप में मान्यता के लिये शर्तें + +7626. फरवरी 2014 में तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने अविभाजित आंध्र प्रदेश के 18 सांसदों को निलंबित किया था। ये सांसद तेलंगाना राज्य के निर्माण के निर्णय का समर्थन या विरोध कर रहे थे। + +7627. इस निर्णय के माध्यम से राज्य के दिव्यांग वर्गों की न सिर्फ सामाजिक तथा राजनीतिक भागीदारी बढ़ेगी बल्कि वे मानसिक रूप से सशक्त होंगे। + +7628. दिव्यांग अधिकार कानून, 2016 के तहत दिव्यांगों को सरकारी नौकरियों में 4% तथा उच्च शिक्षा के संस्थाओं में 5% के आरक्षण का प्रावधान किया गया है। + +7629. राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों के अंतर्गत संविधान के अनुच्छेद-40 में स्थानीय स्वशासन की बात कही गई है। + +7630. संविधान दिवस की 70वीं वर्षगाँठ के अवसर पर ‘संविधान से समरसता’ कार्यक्रम के तहत मौलिक कर्त्तव्यों के प्रति जागरूकता फैलाने का निश्चय किया है।संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर 1949 को संविधान के प्रारूप को पारित किया गया, इस दिन को भारत में संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। + +7631. These electoral bonds will be available in the denomination of Rs. 1,000, Rs. 10,000, Rs. 1 lac, Rs. 10 lacs and Rs. 1 crore. + +7632. इस तरह के प्रस्ताव को पारित करने के लिये ग्राम सभा की बैठक का कोरम, इसके सदस्यों का 1/10 निर्धारित किया गया है। + +7633. हरियाणा में वर्ष 1996 में शराबबंदी का प्रयोग किया था लेकिन 1998 में इसे हटा दिया गया था। + +7634. हिंदी साहित्य का इतिहास (रीतिकाल तक)/सूफी काव्य: + +7635. "मानुस प्रेम भएउ बैकुण्ठी, नाहिं ते काह छार एक मूँठी"। + +7636. शिल्पगत विशेषताएँ. + +7637. भूमिका. + +7638. उदात्त-तत्व के स्त्रोत. + +7639. 'पेरिहुप्सुस' के विभिन्न प्रसंगों में लोंगिनुस के कथनों से ज्ञात होता है कि उदात्त के लिए वे भाव की तीव्रता या प्रबलता को आवश्यक मानते हैं। भाव की तीव्रता के कारण ही वे होमर के 'इलियट' को 'ओदिसी' से श्रेष्ठ बताते हैं। भाव की भव्यता में भाव की सत्यता भी अंतर्भूत है। इसलिए लोंगिनुस भाव के अतिरेक से बचने की राय देते हैं, जिससे भाव अविश्वसनीय (असत्य) न हो जाये। अविश्वसनीयता आह्लाद में बाधक बनाती है। ध्यान में रखने की दूसरी चीज, भाव का प्रयोग उचित स्थल पर होनी चाहिए। लोंगिनुस अपना अभिप्राय प्रस्तुत करते है- "मैं विश्वासपूर्वक कहना चाहता हूं कि उचित स्थल पर भव्य भाव के समावेश से बढ़कर उदात्त की सिध्दि का और कोई साधन नहीं है। वह (भाव) वक्ता के शब्दों में एक प्रकार का रमणीय उन्माद भर देता है और उसे दिव्य अंत:प्रेरणा से समुच्छ्वासित कर देता है।" + +7640. रचना की गरिमा. + +7641. १. पाश्चात्य काव्यशास्त्र---देवेन्द्रनाथ शर्मा। प्रकाशक--मयूर पेपरबैक्स, पंद्रहवां संस्करण: २०१६, पृष्ठ--८६-१२२ + +7642. संसाधनों का वर्गीकरण उनके विकास एवं प्रयोग के स्तर,उद्गम,भंडार एवं वितरण के अनुसार किया जाता है।विकास और उपयोग के आधार पर संसाधनों को दो वर्गों में रखा जा सकता है- + +7643. हमारी पृथ्वी और इसके निवासी का भविष्य पेड़-पौधों और परितंत्र की सुरक्षा और संरक्षण से जुड़ा है।हमारा कर्तव्य है कि + +7644. चारा,फलों नट या औषधीय बूटियों को एकत्रित करने के लिए सामुदायिक भूमि का उपयोग किया जाता है,जिसे साझा संपत्ति संसाधन भी कहते हैं। + +7645. न्यूनीकरण क्रियाविधि + +7646. केवल एक सेंटीमीटर मृदा को बनने में सैकडों वर्ष,लग जाते हैं। + +7647. जल. + +7648. + +7649. विद्रोह की प्रवृत्ति. + +7650. स्वच्छन्दतावादी कवि कल्पना के मनोरम लोक में विचरण करता है और वह काल्पनिक सौंदर्य सा उपासक है। इस प्रवृति के कारण उन्होंने प्रकृति को सन्देशदात्री और शिक्षिका के रूप में देखा; इसी कल्पना ने उन्हें रहस्यवादी बना दिया। उनका मष्तिष्क सूक्ष्म भावों को अधिक तत्परता के साथ ग्रहण करता है। + +7651. वैयक्तिकता की भावना. + +7652. उन्नीसवीं शताब्दी के इन कवियों ने प्रकृति के मुक्त प्रांगण में स्वच्छंद विहार किया। कण-कण मे इश्वर की प्रतीति होने के कारण ही रूसो ने प्रकृति की ओर लौटने का नारा दिया। प्रकृति को उन्होंने सचेतन सत्ता के रूप में देखा। परंतु स्वच्छन्दतावादी कवियों का प्रकृति-वर्णन वैयक्तिक है; क्योंकि वे प्रकृति के उन्हीं अवयवों को चुनते हैं, जो उनकी आत्मानुभूति को स्पष्ट करनेे में सहायक हुए हों। + +7653. लेखक-डॉ. सत्यदेव चौधरी तथा डॉ. शान्तिस्वरूप गुप्त + +7654. वर्तमान समय में भारत में डेटा सुरक्षा सम्बन्धी उपयुक्त क़ानून और नियमों का अभाव है। + +7655. आधुनिकता को सही अर्थों में परिभाषित कर पाना एक जटिल प्रक्रिया है क्योंकि आधुनिकता की अवधारणा किसी एक तत्व पर आश्रित नहीं है। आधुनिकता जीवन की प्रगतिशील अवधारणा है, एक दृष्टिकोण है, एक बोध प्रक्रिया है, एक संस्कार प्रवाह है। आधुनिकता को रूढ़ि से अनवरत विद्रोह करना पड़ता है, क्योंकि लवह परम्परा का विकास है। + +7656. वैज्ञानिक चेतना. + +7657. बुद्धि के प्रधानता के कारण इस युग में प्रश्नाकुल मानसिकता बनी। जिसके तहत लोगों किसी भी आडम्बर भरी बातों पर विचार और मनन करने की क्षमता दिखाने लगे। हर बंधी-बंधाई व्यवस्था, मर्यादा या धारणा को तोड़ना शुरू हुआ। + +7658. संत्रास एवं अलगाव. + +7659. हिन्दी आलोचना की पारिभाषिक शब्दावली-डॉ अमरनाथ + +7660. अरस्तू ने जिन काव्यशास्त्रीय सिध्दांतो का प्रतिपादन किया, उनमें से तीन सिध्दांत विशेष महत्व रखते हैं- १) अनुकरण सिध्दांत २) त्रासदी-विवेचन ३) विरेचन सिध्दांत।। + +7661. पश्चिम में त्रासदी का सर्वप्रथम विवेचन यूनान में हुआ। यधपि अरस्तू से पूर्व प्लेटो ने भी त्रासदी पर अपने विचार प्रकट किये थे, तथापि अरस्तू ने ही सबसे पहले त्रासदी का गम्भीर एवं विशद विवेचन किया। त्रासदी ग्रीक साहित्य की महत्वपूर्ण विधा रही है। यह मूलत: नृत्य-गीत परम्परा से विकसित नाट्यरूप था। जिसे एस्खिलुस और सोफो़क्लीज जैसे नाट्यकारों ने समृध्द किया। यों तो उस युग में कामदी, महाकाव्य और गीतिकाव्य जैसी साहित्यिक विधाएँ भी यूनान में खूब प्रचलित थीं, किन्तु अरस्तू ने अपनी पुस्तक'पेरिपोइतिकेस' (पोयटिक्स) में सर्वाधिक महत्व त्रासदी को ही दिया। त्रासदी, त्रास अर्थात् कष्ट देने वाली विधा को कह सकते हैं, किन्तु अरस्तू ने त्रासदी की परिभाषा देते हुए कहा है कि - "त्रासदी किसी गम्भीर स्वत:पूर्ण निश्चित आयाम से युक्त कार्य की अनुकृति है।" ' अर्थात् त्रासदी में जीवन के किसी पक्ष का गंभीर चित्रण संवाद तथा अभिनय द्वारा होता है और वह दुखान्त होती है। उपर्युक्त परिभाषा के आधार पर हम त्रासदी की विशेषताओं को निम्न रूप में रेखांकित कर सकते हैं- १) त्रासदी 'कार्य की अनुकृति' है। व्यक्ति की अनुकृति नहीं। २) त्रासदी में वर्णित 'कार्य' गम्भीर तथा स्वत: पूर्ण होता है। इसका क्षेत्र तथा विस्तार निश्चित होता है। ३) इसमें जीवन व्यापार वर्णनात्मक रूप नहीं होता, बल्कि यह प्रदर्शन के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। ४) त्रासदी की शैली अलंकारपूर्ण होती है। ५) इसमें करूणा और त्रास का उद्रेक होता है। अरस्तू ने त्रासदी के छह तत्व माने हैं- १) कथानक (plot) २) चरित्र (character) ३) विचार (Thought) ४) पदविन्यास (Diction) ५) दृश्यविधान (Spectacle) ६) गीत (Song)। अरस्तू ने त्रासदी में सर्वाधिक महत्व कथानक को दिया। चरित्र को इतना महत्व नहीं दिया। यहाँ तक कि वे चरित्र के अभाव में भी त्रासदी की सत्ता स्वीकार करते है। + +7662. २. भारतीय तथा पाश्चात्य काव्यशास्त्र---डाँ. सत्यदेव चौधरी, डाँ. शन्तिस्वरूप गुप्त। अशोक प्रकाशन, नवीन संस्करण-२०१८, पृष्ठ--१९०,१९१,१९५ + +7663. यूनान का महान दार्शनिक प्लेटो का जन्म एथेंस नामक नगर में 427 ई.पू. एक कुलीन वंश में हुआ था। प्लेटो को उनके माता-पिता ने 'अरिस्तोक्लीस' नाम दिया था। अरबी-फ्रासी में यही नाम 'अफलातून' के रूप में प्रचलित है। किन्तु विश्व की अधिकांश भाषाओं में उन्हें 'प्लेटो' नाम से ही जाना जाता है। प्लेटो की परिवारिक पृष्ठभूमि राजनीतिक थी‌। किन्तु उन्होंने स्वयं कभी राजनीति में हिस्सा नहीं लिया। सुकरात प्लेटो के गुरू थे। अतः सुकरात की छत्रछाया में ही प्लेटो की शिक्षा-दीक्षा हुई। प्लेटो ने अनेक वर्षों तक कई देशों का भ्रमण और विभिन्न दार्शनिक मत-मतांतरों का गहन अध्ययन भी किया। प्लेटो का चिंतन उनके लिखे 'संवादों' में मुखरित हुआ है। उनके कुछ संवाद 'पोलितेइया', 'रिपब्लिक' तथा 'ईऑन' में संकलित हैं। सुकरात ने कोई ग्रंथ नहीं लिखा; उनकी दृष्टि में अध्यापन का सबसे अच्छा तरीका था- संवाद अर्थात प्रश्नोत्तर, जिसमें अध्यापक और अध्येता दोनों सहभागी हों। एथेंस पर स्पार्टा का आक्रमण प्लेटो के जन्म से चार वर्ष पहले हुआ था। इस कारण प्लेटो का शैशव, कैशोर एवं यौवन का भी आरंभिक भाग युध्द की काली छाया में बीता। उन्होंने युध्द की विभीषिका ही नहीं, बल्कि अपनी जन्मभूमि की ग्लानिजनक पराजय भी अपनी आंखों से देखी। जब वे रिपब्लिक में कहते हैं कि "गुलामी मृत्यु से भी भयावह है।" तो समझते देर नहीं लगती कि इस आक्रोश की तीव्रता स्वानुभूत है। इसके साथ ही उसने यह भी देखा कि एक ओर तो लोकतंत्र वैचारिक स्वतंत्रता का दम भरता है और दूसरी ओर एक बुद्धिवादी(सुक्रात) को तर्क के प्रचार के लिए मृत्युदंड देता है। प्लेटो दार्शनिक होते हुए भी कवि-हृदय-सम्पन्न था। उसने महान कवियों के काव्य का अध्ययन किया था। जब हम उसे काव्य और कवि की निन्दा करते हुए पाते हैं, तो किंचित् रूप से कवि और कलाप्रेमी प्लेटो की अपने आदर्श राज्य से कवियों के बहिष्कार की बात कुछ निराशा और अटपटी-सी लगती है पर यदि हम उसके युग की परिस्थितियों, उसकी रूचि, प्रवृति और उसकी जीवन-दृष्टि को ध्यान में रखें तो उसका काव्य के प्रति दृष्टिकोण सहज ही समझ में आ जाता है। वह सत्य का उपासक और तर्क का हिमायती था अतः सत्य की रक्षा के लिए उसने एक ओर दर्शन की वेदी पर अपने कवि-हृदय की बलि चढा दी और दूसरी ओर अपने श्रध्दा-पात्र होमर की यह कहकर निन्दा की- 'दुनियाभर के लोगों को झूठ बोलना होमर ने ही सिखाया हैं।' प्लेटो का मत था कि उसके समय कविता मनोरंजन के लिए लिखी जाती थी जो ग्रीक लोगों के अस्वस्थ मनोवेगों को उभारती थी। वे देव तथा महापुरूषों के आख्यानों का तो स्वागत किया है। किन्तु उनका आक्रोश तो उन साहित्य से है जो दु:खातक, रोने-धोने को बढ़ावा देकर समाज को कमजोर बनाते हैं। चूकिं कमजोर समाज अपनी स्वतंत्रता की रक्षा नहीं कर सकता, इसलिए वैसे साहित्य और लेखकों को राज्य में रहने का अधिकारी नहीं, जो बल और पौरूष को जगाने के बदले कमजोर बनाता है‌। बट्रेंड रसल का कहना ठीक ही लगता है कि "प्लेटो के अनुदार विचारों को भी ऐसी सज-धज के साथ प्रस्तुत करने की कला थी कि वे भावी युगों को प्रवंचित करते रहे।" + +7664. २. होमर और हेसिओद के काव्यों में ऐसे स्थल आये है जो पाठकों और श्रोताओं के मन में वीरता के जगह भय का संचार करती है। जबकि काव्य ऐसा हो कि नवयुवकों में शौर्य जगायें और मृत्यु की लालसा जगाये। + +7665. ७. कोई व्यक्ति दुःखांतक में भी अभिनय करे और सुखांतक में भी और दोनों में सफलता प्राप्त करे, यह संभव नहीं; क्योंकि दोनों में सर्वथा भिन्न प्रकार के अभिनय अपेक्षित हैं। किसी व्यक्ति की प्राकृतिक विशेषता किसी एक ही प्रकार के अभिनय के अनुकूल हो सकती है। + +7666. १२.कुछ लोग काव्यगत असत्य का समाधान यह कहकर करते हैं कि वह अन्योक्ति है किन्तु बालक या नवयुवक में इतनी बुद्धि नहीं होती कि वह अन्योक्ति तथा यथार्थ में भेद कर सके। + +7667. + +7668. रोमांस का बहिष्कार. + +7669. यथार्थवाद के अनुसार, यथातथ्य चित्रण करने के लिए रचनाकार को सत्यनिष्ठ होना चाहिए। इसके लिए उसे निष्पक्ष होकर निर्वैयक्तिक भाव से तथ्यों को ग्रहण तथा प्रस्तुत करना चाहिए। कवि को अपने निजि सुख, दुखों का चित्रण ना करके समाज के पीड़ा का चित्रण करना चाहिए। उसकी रचना ऐसी होनी चाहिए कि वह सबका हित करे। उसके काव्यों में स्व से सर्वभावों का चित्रण प्रस्तुत हो। साथ ही उसकी दृष्टि पक्षपात की भी ना हो नहीं तो अनुभूति वस्तुपरक नहीं रह जाएगी। + +7670. लेखन का उद्देश्य. + +7671. पाश्चात्य काव्यशास्त्र/नई समीक्षा: + +7672. करने को ग्रस्त समस्त ब्योम कपि बढा़ अटल। + +7673. + +7674. "परहित सरिस धरम नहीं भाई, परपीड़ा सम नहिं अधमाई।" + +7675. "दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा।। + +7676. काहू की बेटी सो बेटा न ब्याहब, काहू की जाति बिगार न सोऊ + +7677. "खेती न किसान को, भिखारी को न भीख, बलि, + +7678. हिंदी विकि सम्मेलन २०२०: + +7679. स्थानीय बैठक दिन में ११ बजे से १ बजे तक हुई। हैंग आउट बैठक ७ से ८ बजे तक हुई। + +7680. औचित्य-सिद्धांत. + +7681. अनौचित्याद् ॠते नान्यद् रसभंगस्य कारणम्। + +7682. ३. वर्ण-विषयक- देश, काल, व्रत, तत्व, सत्व, स्वभाव, सारसंग्रह, प्रतिभा, अवस्था, विचार और आशीर्वान। + +7683. संदर्भ. + +7684. यह पुस्तक नवंबर 2019 में घटनेवाली घटनाओं का विस्तृत सार प्रस्तुत करती है।इस पुस्तक का अध्ययन संघ या राज्य लोकसेवा में संम्मिलीत होने वाले परिक्षार्थियों के लिए वरदान शाबित होगी। + +7685. बेस्ट एक्ट्रेस फीमेल का सिल्वर पीकॉक अवॉर्ड ऊषा जाधव को फिल्म माई घाट क्राइम नंबर 103/2005 के लिये मिला। भारतीय निर्देशक लिजो जोस पेलिसरी ने अपनी फिल्म जल्लीकट्टू के लिये सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार जीता। प्रसिद्ध संगीतकार इलैया राजा को लीजेंड्स ऑफ इंडिया कैटेगरी में सम्मानित किया गया। + +7686. इसका लक्ष्य ओलंपिक खेलों में पदक जीतने की संभावना रखने वाले एथलीटों की पहचान कर उन्हें ओलंपिक की तैयारी के लिये समर्थन तथा सहायता देना है। + +7687. + +7688. शोध से संबंधित अन्य तथ्य: + +7689. साइंटिफिक रिपोर्ट पत्रिका के अनुसार, मेघालय में उपस्थित लिविंग रूट ब्रिज़ (Living Root Bridges) को शहरी संदर्भ में भविष्य में वानस्पतिक वास्तुकला के संदर्भ के रूप में माना जा सकता है। + +7690. इनमें सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थल हैं- + +7691. इन्हें आसानी से जोड़ा जा सकता है। + +7692. यह जीवाश्म ईंधन अप्रसार (Non-Proliferation) की आवश्यकता को रेखांकित करती है। + +7693. आगे की राह: + +7694. दक्षिणी भारत में इन क्षेत्रों को पोरोम्बोक भूमि(Poromboke)कर्नाटक में इसेगोमल भूमि (Gomal land) कहा जाता है। + +7695. अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के जिन क्षेत्रों में भ्रष्टाचार और मानव अधिकारों का हनन हो रहा है, वहाँ से आने वाला स्वर्ण भारत के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में प्रवेश कर रहा है। + +7696. विनिर्माण क्षेत्र का सबसे खराब प्रदर्शन पिछले दो वर्षों के सबसे निचले स्तर पर आ गया है। Q2 में विनिर्माण क्षेत्र ने (-) 1 प्रतिशत की दर से वृद्धि की है,वहीं पिछले वर्ष (2018-19) की दूसरी तिमाही (Q2) में यह दर 6.9 प्रतिशत थी। + +7697. उच्च NPA की समस्या से त्रस्त अधिकांश सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के समक्ष और अधिक ऋण देने में समस्या उत्पन्न हो रही है।देश के बैंकिंग और नॉन बैंकिंग सेक्टर की स्थिति भी काफी अच्छी नहीं है, हालाँकि सरकार द्वारा इसे सुधारने के काफी प्रयास किये जा रहे हैं और संभवतः इन प्रयासों के परिणाम जल्द ही हमें देखने को मिलेंगे। + +7698. तीसरी तिमाही में हो सकता है सुधार + +7699. यह सम्मेलन प्रत्येक तीन साल में आयोजित किया जाता है,इससे पहले इस सम्मेलन का आयोजन वर्ष 2016 में रोम में किया गया था। + +7700. भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने भविष्य में सभी भारतीय रॉकेटों का मार्गदर्शन और नियंत्रण करने के लिये स्वदेश निर्मित विक्रम प्रोसेसर बनाया है। + +7701. लाभ: + +7702. AOD, जैवभार के जलने से होने वाले कणों और धुएँ का सूचक है जो दृश्यता को प्रभावित करता है तथा वातावरण में PM2.5 व PM10 की सांद्रता के बढ़ने का कारक है। + +7703. सूर्य ग्रहण के बारे में + +7704. इस आम की गंध और स्वाद अफ्रीका से आने के बावजूद भी महाराष्ट्र के "देवगड ज़िले" के अल्फांसो की तरह ही है। + +7705. + +7706. "सोभित कर नवनीत लिए। + +7707. सुनत रहति स्त्रवननि नंद ढोटा करत फिरत माखन दधि चोरी॥ + +7708. लोचन जल कागद मसि मिलि कै, ह्वै गई स्याम स्याम की पाती।" + +7709. "पग घुंघरु बाँध मीरा नाची रे। + +7710. उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में रक्षा औद्योगिक गलियारे स्थापित. + +7711. फरवरी, 2018 के बजट भाषण घोषित। + +7712. ‘पनडुब्बी-रोधी युद्ध पी8 I’नौसेना के लिये,मध्यम दूरी वाले ‘पनडुब्बी-रोधी युद्ध पी8I’ विमान की खरीद को भी मंज़ूरी दे दी है। + +7713. वक्रोक्ति सिध्दांत. + +7714. कुन्तक-सम्मत वक्रोक्ति के छः प्रमुख भेद हैं- १) वर्णविन्यासवक्रता २) पदपूर्वार्धवक्रता ३) पदपरार्धवक्रता ४) वाक्यवक्रता ५) प्रकरणवक्रता ६) प्रबन्धवक्रता। + +7715. हिंदी साहित्य का इतिहास (रीतिकाल तक)/रासो काव्य परम्परा: + +7716. चतुर्थ मत हजारी प्रसाद द्विवेदी का है। उनके अनुसार इस शब्द की व्युत्पत्ति रासक शब्द से हुई है। उन्होंने अपनी परंपरावादी दृष्टि से यह सिद्ध किया कि यह अचानक पैदा हुई परंपरा नहीं है वरन् संस्कृत काव्यधारा से ही चलती आ रही है। प्राकृत के विकास के दौरान जब अन्त्य व्यंजन हटने लगे तो रासक शब्द घिस कर रास हो गया। यही कारण है कि जैन साहित्य में जो रचनाएँ हुईं उनमें 'रास' का प्रयोग हुआ, जैसे - चंदनबाला रास, भरतेश्वरबाहुबली रास, उपदेश रसायन रास आदि। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि ये प्रायः प्राकृताभास अपभ्रंश में ही लिखे गए। + +7717. रासो काव्यधारा में तीन तरह के ग्रंथ लिखे गए - वीरता प्रधान, शृंगार प्रधान तथा उपदेश प्रधान। चारण व भाट कवियों द्वारा रचित वीर काव्यों के अतिरिक्त शृंगार प्रधान व उपदेश प्रधान रचनाएँ भी इस परंपरा में आती हैं। + +7718. शृंगारपरक रासो काव्यों में अंगीरस शृंगार है। इनमें शृंगार के संयोग व वियोग दोनों पक्षों का चित्रण है। अब्दुल रहमान का 'संदेश रासक' व नरपति नाल्ह का 'बीसलदेव रासो' उल्लेखनीय शृंगार प्रधान काव्य है। इन दोनों में ही विरह तत्व प्रबल रूप में उपस्थित है। धार्मिक रासो काव्यों की रचना जैन कवियों द्वारा अपने धर्म व उपदेश का प्रचार करने के लिए की गई है। इसमें जिनदत्त सूरि द्वारा रचित 'उपदेश रसायन रास', शालिभद्र सूरि द्वारा रचित 'भरतेश्वर बाहुबली रास' उल्लेखनीय है। + +7719. बरस अठारह क्षत्रिय जीएँ, आगे जीवन को धिक्कार।।" + +7720. वस्तुतः पिंगल छंदशास्त्र के रचयिता का नाम था। जो रचनाएँ व्यवस्थित किस्म की भाषा शैली में रची गई थीं उन्हें पिंगल कहने की परंपरा थी। श्यामसुंदर दास व डॉ॰ तेसीतरी ने पिंगल को ब्रज के समान तो माना ही किंतु मुख्य बल इस बात पर दिया है कि यह व्याकरण व्यवस्था के अनुकूल भाषा थी। देखा जाय तो डिंगल व पिंगल दो भिन्न भाषाएँ नहीं थीं बल्कि एक ही भाषा की दो शैलियाँ मानी जा सकती हैं। प्रायः शृंगार संबंधी पदों में पिंगल की अधिकता तथा युद्धों के ओजपूर्ण वर्णनों में डिंगल की अधिकता दिखाई पड़ती है। + +7721. संरचनावाद कृतियों के एककालिक अध्ययन पर बल देता है तथा उसी आधार पर उनका ऐतिहासिक पुनर्निर्माण भी करता है। जॉक लकाँ मनोवैज्ञानिक चिंतन को संरचना में ढालने की उल्लेखनीय कोशिश करता है। उनके अनुसार भाषा चूंकि चेतना में निहित होती है, तथा चेतन (conscious), अवचेतन (subconscious) तथा अचेतन (unconscious) में भी एक यादृच्छिक संबंध (arbitrary relation) होता है। इसी को ध्यान में रखकर भाषा के 'विन्यासक्रमी' (syntagmatic) अविन्यासक्रमी (paradigmatic) संबंधों को समझा जा सकता है। सारे तत्वों का महत्व वस्तुतः इसी में है कि ये संरचना में कार्य कैसे करते हैं (how it function)। + +7722. + +7723. भारत के 6 भूआकृतिक खंड + +7724. ट्रिक-कालजाप-जोखफोब + +7725. इन कथनों में से कौन सा कथन सही हैं। + +7726. भूस्खलन. + +7727. अनेक अनुभवों,इसकी बारंबारता और भूस्खलन के प्रभावी कारकों,जैसे - भूविज्ञान, भूआकृतिक कारक, ढ़ाल, भूमि उपयोग, वनस्पति आवरण और मानव क्रियाकलापों के आधार पर भारत को विभिन्न भूस्खलन क्षेत्रों में बाँटा गया है। + +7728. मध्यम और कम सुभेद्यता क्षेत्र + +7729. भारत की पहल. + +7730. + +7731. ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सामाजिक बहिष्कार से लेकर भेदभाव, शिक्षा सुविधाओं की कमी, बेरोज़गारी, चिकित्सा सुविधाओं की कमी, जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। + +7732. यह देश के विकास को बढ़ावा देने के लिये नीतियों, नेतृत्व कौशल, साझेदारी क्षमताओं, संस्थागत क्षमताओं को विकसित करने और लचीलापन बनाने में मदद करता है। + +7733. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का यह स्वायत्त निकाय,जनसंख्या नियंत्रण हेतु कुछ योजनाएँ लागू कर रहा है। + +7734. इस योजना के तहत लाभार्थी को मज़दूरी के नुकसान की क्षतिपूर्ति की जाएगी। + +7735. + +7736. अमेरिका फिलहाल नाटो बजट में 22.1% का योगदान देता है,जबकि जर्मनी की हिस्सेदारी 14.8% है।यह प्रत्येक देश की सकल राष्ट्रीय आय के आधार तय किये गए फार्मूले के तहत होता है। + +7737. उत्तरी सीरिया में कुर्द के खिलाफ यूरोप एवं अमेरिकी और तुर्की के सैन्य अभियान के बीच खराब समन्वय ने नाटो की बिगड़ती स्थिति को बढ़ावा दिया है, इसप्रकार यह नाटो की सक्रियता को पुन: परिभाषित करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। + +7738. विधेयकों की असफलता के कारण: + +7739. राष्ट्रीय राजनीतिक दल के रूप में मान्यता के लिये शर्तें + +7740. फरवरी 2014 में तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने अविभाजित आंध्र प्रदेश के 18 सांसदों को निलंबित किया था। ये सांसद तेलंगाना राज्य के निर्माण के निर्णय का समर्थन या विरोध कर रहे थे। + +7741. इस निर्णय के माध्यम से राज्य के दिव्यांग वर्गों की न सिर्फ सामाजिक तथा राजनीतिक भागीदारी बढ़ेगी बल्कि वे मानसिक रूप से सशक्त होंगे। + +7742. दिव्यांग अधिकार कानून, 2016 के तहत दिव्यांगों को सरकारी नौकरियों में 4% तथा उच्च शिक्षा के संस्थाओं में 5% के आरक्षण का प्रावधान किया गया है। + +7743. राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों के अंतर्गत संविधान के अनुच्छेद-40 में स्थानीय स्वशासन की बात कही गई है। + +7744. संविधान दिवस की 70वीं वर्षगाँठ के अवसर पर ‘संविधान से समरसता’ कार्यक्रम के तहत मौलिक कर्त्तव्यों के प्रति जागरूकता फैलाने का निश्चय किया है।संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर 1949 को संविधान के प्रारूप को पारित किया गया, इस दिन को भारत में संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। + +7745. These electoral bonds will be available in the denomination of Rs. 1,000, Rs. 10,000, Rs. 1 lac, Rs. 10 lacs and Rs. 1 crore. + +7746. इस तरह के प्रस्ताव को पारित करने के लिये ग्राम सभा की बैठक का कोरम, इसके सदस्यों का 1/10 निर्धारित किया गया है। + +7747. हरियाणा में वर्ष 1996 में शराबबंदी का प्रयोग किया था लेकिन 1998 में इसे हटा दिया गया था। + +7748. भारतीय काव्यशास्त्र/ध्वनि सिद्धांत: + +7749. व्यक्त: काव्यविशेष: से ध्वनिरिति सूरभि: कथित:।।" ' + +7750. व्यंजना। इनके अनुसार शब्द और उनके अर्थ भी तीन प्रकार के होते हैं- १) अभिधा शब्द शक्ति-वाचक शब्द + वाच्यार्थ, २) लक्षणा शब्दशक्ति- लक्षक शब्द + लक्ष्यार्थ, ३) व्यंजना शब्दशक्ति- व्यंजक शब्द + व्यंग्यार्थ। व्यंजना व्यापार से प्राप्त अर्थ ( व्यंग्यार्थ) ही ध्वनि है। आनन्दवर्धन ने ध्वनि के तीन भेद किए- १) ध्वनि काव्य २) गुणीभूत व्यंग्य काव्य ३) चित्र काव्य। + +7751. + +7752. 2018. + +7753. हिंदी साहित्य का इतिहास (रीतिकाल तक)/रीतिमुक्त काव्यधारा: + +7754. "डेल सो बनाय आय मेलत सभा के बीच, + +7755. रीतिमुक्त कवियों का प्रेम वासनाजन्य व संयोगपरक नहीं है। इनके प्रेम में शुद्ध शारीरिक आकर्षण के स्थान पर विरह की गरिमा है। इनका प्रेम एकनिष्ठ व सीधा सरल है। सुजान के प्रेम में रत घनआनंद कहते हैं - + +7756. हिंदी साहित्य का इतिहास (रीतिकाल तक)/रीति-इतर साहित्य: + +7757. "भीखा बात अगम की कहन सुनन की नाहिं। + +7758. "अपनी पहुँच बिचारि कै, करतब करिए दौर। + +7759. भूषण कवि राजा शिवाजी के आश्रय में रहते थे। उन्होंने 'शिवराज बावनी' की रचना की - + +7760. भारतीय काव्यशास्त्र/रीति सिद्धांत: + +7761. पांचाली- माधुर्य और ओज गुणों के व्यंजक वर्णों से अतिरिक्त वर्णों से युक्त रचना पांचाली रीति कहाती हैं। इसे मम्मट ने कोमल वृत्ति नाम दिया है। + +7762. संदर्भ. + +7763. अलंकार सिध्दांत. + +7764. निष्कर्ष. + +7765. + +7766. सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/आपदा और आपदा प्रबंधन: + +7767. राज्य जन स्वास्थ्य अधिनियम। + +7768. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM) के पास NDMA द्वारा सृजित व्यापक नीतियों और दिशा-निर्देशों के अधीन आपदा प्रबंधन के लिये मानव संसाधन विकास और क्षमता निर्माण का अधिदेश है। + +7769. योजना का विज़न भारत को आपदा मुक्‍त बनाना, आपदा जोखिमों में पर्याप्‍त रूप से कमी लाना, जन-धन, आजीविका और संपदाओं (आर्थिक, शारीरिक, सामाजिक, सांस्‍कृतिक और पर्यावरणीय) के नुकसान को कम करना है। इसके लिये प्रशासन के सभी स्तरों और साथ ही समुदायों की आपदाओं से निपटने की क्षमता को बढ़ाया गया है। + +7770. अधिदेश: इसका प्राथमिक उद्देश्य प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदाओं के दौरान प्रतिक्रियाओं में समन्वय कायम करना और आपदा-प्रत्यास्थ (आपदाओं में लचीली रणनीति) व संकटकालीन प्रतिक्रिया हेतु क्षमता निर्माण करना है। आपदाओं के प्रति समय पर और प्रभावी प्रतिक्रिया के लिये आपदा प्रबंधन हेतु नीतियाँ, योजनाएँ और दिशा-निर्देश तैयार करने हेतु यह एक शीर्ष निकाय है। + +7771. 23 दिसंबर, 2005 को भारत सरकार ने आपदा प्रबंधन अधिनियम बनाया जिसमें प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), और संबद्ध मुख्यमंत्रियों के नेतृत्व में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों (SDMAs) की स्थापना की परिकल्पना भारत में आपदा प्रबंधन का नेतृत्व करने और उसके प्रति एक समग्र व एकीकृत दृष्टिकोण कार्यान्वित करने हेतु की गई। + +7772. इसका नेतृत्व राज्य का मुख्य सचिव करता है। SEC आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत प्रावधानित राष्ट्रीय नीति, राष्ट्रीय योजना और राज्य योजना के कार्यान्वयन में समन्वय और निगरानी के लिये उत्तरदायी है। + +7773. इसके अलावा उन ज़िलों में जहाँ ज़िला परिषद मौजूद है, में इसका अध्यक्ष DDMA का सह- अध्यक्षहोगा। + +7774. 2-3 दिसंबर, 1984 की रात भोपाल में यूनियन कार्बाइड (Union Carbide) नाम- डाउ केमिकल्स (Dow Chemicals) कंपनी के प्लांट से मिथाइल आइसोसाइनाइट (Methyl Isocyanate) गैस का रिसाव हुआ था। + +7775. प्राकृतिक आपदा को कम करने पर विश्व सम्मेलन, योकोहामा, 1994. + +7776. आसन्न आपदाओं की शीघ्र चेतावनी और उनका प्रभावी प्रचार सफल आपदा निवारण और तैयारी के लिये मुख्य कारक हैं। + +7777. प्रत्येक देश अपने लोगों, अवसंरचना और अन्य राष्ट्रीय परिसंपत्तियों का प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव से संरक्षण के लिये प्राथमिक रूप से उत्तरदायी होता है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को विकासशील देशों, विशेषकर कम विकसित देशों का आवश्यकताओं के ध्यान में रखते हुए प्राकृतिक आपदा की कमी के क्षेत्र में वित्तीय, वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीय साधनों सहित मौजूदा संसधानों के सक्षम प्रयोग के लिये अपेक्षित सुदृढ़ राजनीतिक संकल्प प्रदर्शित करना चाहिये। + +7778. + +7779. साहित्य के संबंध में भी उनकी प्रमुख मान्यताएँ या तो मौलिक हैं या सामाान्य प्रगतिवादियों से अलग हैं। सबसे पहले वे 'सौंदर्य की वस्तुगत सत्ता और सामाजिक विकास' नामक निबंध में सौंदर्य को केवल व्यक्ति या विषय में नियत करने के स्थान पर दोनों की अंतर्क्रिया के रूप में देखते हैं। वे साहित्य को भाषा, संस्कृति, अर्थव्यवस्था, समाज और भौगोलिक परिवेश से बनने वाली जातीयता (Nationality) से जोड़कर देखते हैं। उर्वशी की समीक्षा करते हुए प्रगतिशील आंदोलन के लोकवादी स्वरूप के भीतर रस सिद्धांत को स्वीकार कर लेते हैं। निराला की महानता को स्पष्ट करते हुए उनकी जन्मजात प्रतिभा को स्वीकार करते हैं और प्रगतिशील आंदोलन में प्रेम की संभावना को घोषित रूप से स्वीकृति देते हुए कहते हैं - "प्रेम और प्रगतिशील विचारधारा में कोई आंतरिक विरोध नहीं लेकिन स्वामी विवेकानंद से प्रभावित होेने वाले क्रांतिकारी यह समझते आए थे कि क्रांति और ब्रह्मचर्य का अटूट संबंध है जैसे आजकल के बहुत से कवि और कहानीकार समझते हैं कि आधुनिकता बोध का अटूट संबंध परकीया प्रेम से है।" इसी सृजनात्मक शक्ति का परिणाम है कि वे अपनी प्रगतिशीलता में वाल्मीकि, कालिदास और भवभूति के साहित्य का सूक्ष्म विश्लेषण कर पाते हैं। + +7780. समग्र रूप में रामविलास शर्मा के आलोचना कर्म के संबंध में कहा जा सकता है कि वे विस्तार और गहराई की दृष्टि से अप्रतिम हैं। अपने मौलिक चिंतन तथा लोकबद्ध मान्यताओं के कारण प्रगतिशील समीक्षा की धुरी बन जाते हैं। उनकी आक्रामक शैली कहीं-कहीं औदात्य का अतिक्रमण अवश्य करती है, किंतु जटिल से जटिल बात को सरलतम शब्दों में ओजपूर्ण प्रवाह के साथ कहने की उनकी क्षमता मौलिक है। उनसे विद्वानों की सहमति हो या न हो किंतु उनकी मान्यताओँ से जूझे बिना आलोचना का विकास संभव नहीं है। + +7781. भट्टलोल्लट : उत्पत्तिवाद (आरोपवाद). + +7782. आक्षेप इस सिध्दांत पर भट्टनायक ने अनेक आक्षेप किये है कि 'अनुमान द्वारा राम-सिता आदि हमारे विभाव नहीं बन सकते। उनके प्रति हमारा संस्कारनिष्ठ श्रध्दा-भाव हमारी रसत्व-प्राप्ति में बाधक सिध्द होगा। अनुमान प्रक्रिया द्वारा सीतादि को रामादि के समान हमारे लिए अपनी प्रेयसी के रूप में माना लेना सम्भव नहीं है, और न ही उसे देखकर हमें अपनी प्रेयसी के रूप में मान लेना सम्भव नहीं है। इसी प्रकार हनुमान-सदृश महापुरूषों के समान समुद्रोलंघन जैसे असम्भव कार्यों को कर सकने की कल्पना तक क्षुद्र सामाजिक अपने मन में नहीं ला सकता। अतः ऐसे महापुरूषों के साथ सामाजिकों का साधारणभाव सम्भव नहीं है। + +7783. भरत सूत्र के चौथे व्याख्याता अभिनवगुप्त हैं। अभिनव गुप्त ने अपनी मान्यता स्थायीभाव की स्थिति पर केन्द्रित रख कर प्रस्तुत की। उनका कथन हैं कि राग-द्वेष की भावना को मनुष्य जन्म से ही लेकर पैदा होते हैं। समय-समय पर हम परिस्थिति के अनुकूल भावों का अनुभव करते हैं- ये सभी संस्कार रूप में मनुष्य के हृदय में सोते रहते हैं। इनसे रहित कोई प्राणी नहीं होता, हां इनकी प्रबलता में अंतर हो सकता है, यथा कवि में इनकी अनुभूति अन्य की अपेक्षा अधिक होती है। + +7784. + +7785. 'छायावाद' नामक कृति में नामवर जी ने छायावाद की काव्यगत विशेषताओँ को स्पष्ट करते हुए उसमें निहित सामाजिक यथार्थ का उद्घाटन किया। यह प्रगतिवादी आलोचना के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। १२ अध्यायों में विभक्त इस कृति में विभिन्न अध्यायों के विवेच्य विषयों को सूचित करने के लिए जो शीर्षक दिए गए हैं, उनमें से अधिकांश छायावादी कवियों की काव्य-पंक्तियों के ही टुकड़े हैं। शीर्षकों से ही स्पष्ट है कि विवेचन में छायावादी काव्य वस्तु से सैद्धांतिक निष्कर्ष तक पहुँचा गया है। यहाँ पर गुण से नाम की ओर बढ़ा गया है तथा नामकरण की सार्थकता इस विशिष्ट काव्यधारा की काव्य-संपत्ति के आधार पर निश्चित की गयी है। किसी वाद पर हिंदी में इस वैज्ञानिक और निगमनात्मक ढंग से पहली बार विचार किया गया है। इसे रहस्यवाद, स्वच्छंदतावाद और छायावाद नाम से अभिहित किया गया है। इसमें छायावाद की विभिन्न विशेषताओं, रचनाओं, रचनाकारों का विधिवत विवेचन किया गया है। + +7786. नामवर सिंह की आलोचकीय ख्याति अपेक्षाकृत काव्य-आलोचना के क्षेत्र में अधिक रही। जिन काव्य-मूल्यों का प्रश्न उन्होंने उठाया, उनमें भावबोध से लेकर काव्यभाषा तक के स्तर तक काव्य-सृजन को एक सापेक्ष इकाई के रूप में देखने का प्रयास है जिसमें रचना के निर्माण में एक विशिष्ट सामाजिक-आर्थिक परिवेश के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। उन्हें वाचिक परंपरा का मूर्धन्य आलोचक भी माना जाता है। सभा-गोष्ठियों में दिये गए उनके व्याख्यानों को ही पुस्तक के रूप में प्रकाशित करवा दिया गया। 1959 के एक व्याख्यान में उनकी कही यह बात आज भी प्रासंगिक है, "आधुनिक साहित्य जितना जटिल नहीं है, उससे कहीं अधिक उसकी जटिलता का प्रचार है। जिनके ऊपर इस भ्रम को दूर करने की जिम्मेदारी थी, उन्होंने भी इसे बढ़ाने में योग दिया।" यहां वे 'साधारणीकरण' की चर्चा करते हुए कहते हैं, "नए आचार्यों ने इस शब्द को लेकर जाने कितनी शास्त्रीय बातों की उद्धरणी की, और नतीजा? विद्यार्थियों पर उनके आचार्यत्व की प्रतिष्ठा भले हो गई हो, नई कविता की एक भी जटिलता नहीं सुलझी।" नामवर सिंह ने हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन के संबंध में भी अपना प्रगतिशील दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। उन्होंने 'साहित्यिक इतिहास क्यों और कैसे?' निबंध में हिंदी साहित्य के इतिहास को फिर से लिखे जाने की आवश्यकता बताई है। 'इतिहास और आलोचना' के अंतर्गत उन्होंने 'व्यापकता और गहराई' जैसे महत्वपूर्ण काव्य-मूल्यों को परस्पर सहयोगी बताने का मौलिक साहस दिखाया जबकि इन दोनों को परस्पर विरोधी गुणों के रूप में स्वीकार किया गया था। देखा जाय तो नामवर सिंह प्रगतिशील आलोचना की ऐसी पद्धति विकसित करते हैं जो रामविलास शर्मा की स्थापनाओं से जूझते हुए उसका विस्तार भी करती है। + +7787. 1.माइकल फेल्प्स ने 8 स्वर्ण पदक जीते। + +7788. 2005[1प्रश्न]. + +7789. क्रिकेट-अब्डोमन गार्ड + +7790. रस के अंग(अवयव). + +7791. विभाव. + +7792. स्थायीभावों को प्रकाशित करने वाली आश्रय की बाह्य चेष्टाएं 'अनुभाव' कहलाती हैं। अनु का अर्थ है, पिछे, अर्थात् जो स्थायीभावों के पीछे (बाद में) उत्पन्न होते हैं वे अनुभाव हैं। अथवा अनुभावयन्ति इति अनुभाव अर्थात् जो उत्पन्न स्थायीभावों का अनुभव कराते हैं, वे अनुभाव हैं। स्पष्ट है कि उक्त चेष्टाएं दुष्यन्त अथवा परशुराम में क्रमश: रति तथा क्रोध स्थायिभावों के उद्बुध्द होने के बाद उत्पन्न हुई हैं, अथवा इन्हीं चेष्टाओं से हम अनुभव कर पाते हैं कि उक्त दोनों आश्रयों में क्रमश: रति तथा क्रोध जाग्रत हो गए हैं, अतः ये अनुभाव कहाती हैं। अनुभाव चार माने गये हैं - १) आंगिक - आर्थात् शरीर सम्बन्धी चेष्टाएं। २) वाचिक - अर्थात् वाग्व्यापार। ३) आहार्य - अर्थात् वेश-भूषा, अलंकरण, साजसज्जा आदि। ४) सात्त्विक - अर्थात् सत्व के योग से उत्पन्न कायिक चेष्टाएं।इनका निर्वहण स्वत: ही, बिना यत्न के आश्रय द्वारा हो जाता है। अतः इस वर्ग में आने वाली आश्रय की सभी चेष्टाएं 'अयत्नज' कहलाती हैं। सात्त्विक अनुभाव आठ माने गये हैं- स्तम्भ, स्वेद, रोमांच, स्वरभंग, वेपथु, वैवणर्य, अश्रु और प्रलय। + +7793. १. भारतीय तथा पाश्चात्य काव्यशास्त्र---डाँ. सत्यदेव चौधरी, डाँ. शन्तिस्वरूप गुप्त। अशोक प्रकाशन, नवीन संस्करण-२०१८, पृष्ठ--५०-५३ + +7794. भारतीय काव्यशास्त्र में रस सिध्दांत सर्वाधिक महत्त्व का अधिकारी रहा है। भरतमुनि का विख्यात सूत्र - विभावानुभाव व्यभिचारसंयोगाद् रस-निष्पति: की मान्यताओं को परवर्ती आचार्यों ने अपने-अपने रूप में कि। संस्कृत-काल में दो तरह की धारणाएं थी। १) भट्टनायक तक रस को आस्वाध का विषय माना जाता था २) अभिनवगुप्त और उसके बाद के आचार्यों ने रस को आस्वाध न मानकर 'आस्वाद' माना। इस प्रकार भरतमुनि, भट्टलोल्ट और शंकुक मानते थे कि जगत् की नाना प्रकार की क्रिया-प्रतिक्रियाओं की कलात्मक अभिव्यंजना रस है, अतः संसार की प्रत्येक वस्तु पारस्परिक रूप से आस्वाध होने के कारण रस भी आस्वाध है। अभिनवगुप्त इत्यादि आचार्य मानते हैं कि रस जगत् का प्रतिबिम्ब है, ठीक है किंतु यह सहदय की मनसाचर्वणा में विलोड़ित होता है। सहदय काव्य का अध्ययन करते समय या नाटक देखते समय उनसे गृहीत सम्पूर्ण साम्रगी को अपने मानस के पूर्व संचित संस्कारों से संगति स्थापित करने देता है‌। इसी संगति स्थापना में उस प्रतिबिम्ब का मूल रूप खंडित हो जाता है और दोनों के संयोग से जो नई वृत्ति जन्म लेती है वह है आनंद। यह आनंद ही रस का पर्याय है। अभिनवगुप्त के बाद के आचार्यों मम्मट,विश्वनाथ आदि ने अपनी - अपनी तरह से प्रतिपादित किया। इन सब आचार्यों में विश्वनाथ का यह प्रसंग संग्रह और अवस्था दोनों दृष्टियों से उपादेय हैं। चित्त में सतोगुण के उद्रेक की स्थिति में विशिष्ट संस्कारवान् सहदयजन, अखण्ड, स्वप्रकाशानंद, चिन्मय, अन्य सभी प्रकार के ज्ञान से विनिमुक्त, ब्रह्मानंदसहोदर, लोकोत्तरचमत्कारप्राण रस का निज रूप से आस्वादन करते हैं। अर्थात् सहदय सांसारिक राग-द्वेष से विमुक्त-सा हो जाता है। उसके ऐन्द्रिय विषय सामान्य धरातल से ऊपर उठकर परिष्कृत एवं उदात्त बन जाते हैं। प्रमाता रस का आस्वादन केवल इसी स्थिति में ही कर पाता है। इस प्रकार विश्वनाथ के अनुसार- + +7795. ४) रस चिन्मय है- इसका तात्पर्य यह है कि यह शुध्द चेतन न होकर चेतनता-प्रधान है। मधपान, निद्रया इत्यादि की तरह जड़ आनंद न होकर काव्यानंद (रस) आत्मा के समान प्राणवान् , सचेतन है। + +7796. अत: डां. नगेन्द्र के शब्दों में - विविध भावों और अभिनयों से व्यंजित भाव की कलात्मक अभिव्यंजना का भावमूलक काव्यसौंदर्य रस है। + +7797. + +7798. शब्द अर्थ रस को जु इत देखि परै अपकर्ष। + +7799. शब्द दोष के अन्तर्गत पद, शब्द वाक्य, दोष आते हैं। इसके अन्तर्गत श्रुतिकटुत्व, च्युतसंस्कृति, असलिलितत्व, क्लिष्टता आदि आते हैं। + +7800. १. भारतीय तथा पाश्चात्य काव्यशास्त्र---डाँ. सत्यदेव चौधरी, डाँ. शन्तिस्वरूप गुप्त। अशोक प्रकाशन, नवीन संस्करण-२०१८, पृष्ठ--१२८-१३० + +7801. इन्होंने १० गुण माने है। आचार्य वामन गुणों को काव्य के शोभाकारक धर्म के रूप में स्वीकार किया है इनके अनुसार गुणों की संख्या २० है। उनका मत भेदवादी है। और वे गुण और अलंकार में भेद मानते हैं- काव्य शोभाया: कर्त्रारों धर्मा: गुणा:।भरतमुनि ने गुणों को अभवत्मक तत्व के रूप में स्वीकार किया और दण्डी ने स्पष्टत: उन्हें भावात्मक रूप में ,वामन भी ऐसा ही स्वीकार करते हैं, वे गुणों को काव्य का शोभाकारी धर्म मानते हैं गुण को प्रथमता: प्रतिष्ठा प्रदान करने वाले आचार्य वामन ही है। गुणों की संख्या को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं। आनन्दवर्धन ने गुणों के स्वरूप में नितान्त परिवर्तन कर दिया, तथा गुणों की संख्या भी दस के स्थान पर तीन मानी- १) माधुर्य २) ओज ३) प्रसाद। + +7802. प्रसाद गुण के व्यंजक ऐसे सरल और सुबोध पद होते हैं जिनके सुनते ही इनके अर्थ की प्रतिति हो जाए। अर्थात् वह रचना प्रसाद गुण सम्पन्न कहाती हैं जो सामाजिक के हृदय में ठीक उसी प्रकार तुरन्त व्याप्त हो जाती है जैसे सूखे ईंधन में अग्नि झट व्याप्त हो जाती है, अथवा जैसे जल स्वच्छ वस्त्र में तुरन्त व्याप्त हो जाता हैं। प्रसाद गुण के व्यंजक ऐसे सरल और सुबोध पद होते है। जिनके सुनते ही इनके अर्थ की प्रतीति हो जाए। यह गुण सभी रसों में और सभी प्रकार के रचनाओं में रह सकता है। + +7803. गिध्द लसत कहुं सिध्द हसत सुख वृध्दि रसत मन।। + +7804. 2019. + +7805. उत्तर. – B + +7806. 3.सरपंच प्रत्यक्ष निर्वाचन से निर्वाचित होता है। + +7807. कड़कनाथ-पोल्ट्री(मुर्गी पालन) + +7808. 4.इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च(आई.आई.एस.ई.आर.)-भोपाल। + +7809. चचाई जलप्रपात रीवा जिले में है। + +7810. मध्यप्रदेश में अखिल भारतीय इंदिरा गांधी पुरस्कार की स्थापना 19 नवंबर 1985 में की। + +7811. सांची-स्तूप + +7812. प्रथम पृथ्वी शिखर सम्मेलन-एजेंडा 21 + +7813. + +7814. विश्व एड्स दिवस 1 दिसंबर को मनाया जाता है। + +7815. महेश भूपति-टेनिस। + +7816. + +7817. मध्यप्रदेश सिविल सेवा प्रारम्भिक परीक्षा प्रश्न संग्रह/भारतीय अर्थव्यवस्धा: + +7818. 1.अतिरिक्त 1करोड़ हेक्टेयर सुनिश्चित सिंचाई के अंतर्गत लाना + +7819. प्रकाश वर्ष इकाई है दूरी का। + +7820. भौतिक विज्ञान + +7821. रसायन विज्ञान + +7822. रसायन विज्ञान + +7823. 371 महाराष्ट्र और गुजरात + +7824. आंध्र प्रदेश-11 + +7825. 0 + +7826. उत्तर:-1और3 सही है। + +7827. 2017[7प्रश्न]. + +7828. वीडियो मेल से हम ग्राफिक्स वीडियो क्लिप वीडियो मैसेज भेज सकते हैं ईमेल का फुल फॉर्म है इलेक्ट्रॉनिक मेल ब्लॉक शब्द दो शब्दों का संयोजन है वेब वेब लॉग। + +7829. डॉट नेट फ्रेमवर्क माइक्रोसॉफ्ट द्वारा विकसित किया गया है दूसरा जावा सन माइक्रोसिस्टम द्वारा विकसित ओपन सोर्स टेक्नोलॉजी है दोनों कथन सही है। + +7830. 2005[1प्रश्न]. + +7831. मध्यप्रदेश सिविल सेवा प्रारम्भिक परीक्षा प्रश्न संग्रह/अधिनियम: + +7832. भारतीय संस्कृति तथ्यसमुच्चय-०१: + +7833. रीतिकाव्य के लेखकों को दो वर्गों में रखा जा सकता है। जिन कवियों ने काव्यशास्त्र के सभी संप्रदायों का विवेचन किया, उन्हें सर्वांगविवेचक वर्ग में रखा जाता है जिनमें केशवदास, कुलपति मिश्र, भिखारीदास के नाम उल्लेखनीय हैं। दूसरे वर्ग विशिष्टांगविवेचक में उन कवियों को रखा जाता है जिन्होंने एक-दो काव्यांगों का ही विवेचन किया, जिनमें मतिराम, देव, पद्माकर आदि उल्लेखनीय हैं। इस धारा के कवियों में 'लक्षण ग्रंथ' लिखने की परंपरा थी, अर्थात पहले काव्यांग का लक्षण देकर बाद में उसका उदाहरण देने की परंपरा, जैसे - "जदपि सुजात सुलच्छनी सुबरन सरस सुवृत्त। + +7834. "गुलगुली गिल में गलीचा है, गुनीजन है, चाँदनी है, चिक है, चरागन की माला है। + +7835. भाषा विज्ञान और हिंदी भाषा/रूप-परिवर्तन के कारण और दिशाँए: + +7836. ३) सरलता:- आज का मनुष्य सरलता का आग्रही हो गया है। मनुष्य कम-से-कम प्रयत्न में अधिकाधिक लाभ चाहता है। अतः अपने मुख की सुविधा के लिए वह अपवादों को निकालकर उनके स्थान पर नियम के अनुसार चलने वाले रूपों को याद रखना चाहता है। जिस प्रकार ध्वनियों के उच्चारण में प्रयत्न-लाघव काम करता है, उसी प्रकार रूप प्रयोग में चयन के अवसर पर सरलता का अधिक आग्रह करता है। जैसे- आदित्य, सूर, सूरज, सूर्य, भास्कर इत्यादि शब्दों में से सूर्य और सूरज सरलता के कारण अधिक ग्राह्य है। + +7837. रूप-परिवर्तन की दिशाएं. + +7838. + +7839. 2018[7प्रश्न]. + +7840. कुद्रेमुख पहाड़ियां-कर्नाटक। + +7841. 2018. + +7842. दूध का आपेक्षिक घनत्व लैक्टोमीटर से ज्ञात किया जा सकता है। + +7843. गलघोटू(ग्वाइटर)-आयोडीन की कमी के कारण + +7844. 2008. + +7845. मध्यप्रदेश सिविल सेवा प्रारम्भिक परीक्षा प्रश्न संग्रह/प्राचीन भारत का इतिहास: + +7846. 2008. + +7847. 2003बैकलॉग. + +7848. + +7849. 2008. + +7850. मध्यप्रदेश सिविल सेवा प्रारम्भिक परीक्षा प्रश्न संग्रह/मध्यकालीन भारत का इतिहास: + +7851. 2019. + +7852. उत्तर. – A + +7853. उज्बेकिस्तान-ताशकंद + +7854. हिंदी विकि सम्मेलन २०२०/सम्मेलन कार्यक्रम रूपरेखा: + +7855. + +7856. छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग प्रारंभिक परीक्षा प्रश्ननोत्तर संग्रह/भारतीय राज्यव्यवस्था: + +7857. + +7858. ईसाई धर्म अपनाने वाले आदिवासी चर्च जाने लगते हैं और परंपरागत पूजा स्थलों जैसे मांझी थान एवं जाहेर थान से उनका नाता टूट जाता है।अपने सामाजिक संस्कारों और पर्व त्योहारों से भी उनका दुराव होने लगता है।वे अपने सजातीय सरना परिवार की बेटियों को स्वीकार नहीं करते अथवा इसके लिए उन पर ईसाई धर्म को स्वीकार करने की शर्त रखते हैं इन सब कारकों की वजह से सरना और ईसाई आदिवासियों के बीच दूरी बढ़ रही है। + +7859. सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन: + +7860. यह महिलाओं के लिये आजीविका प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन करने हेतु एक प्रौद्योगिकी मॉडुलेशन और प्रशिक्षण केंद्र के रूप में कार्य करेगा। + +7861. इसके तहत लैंगिक समानता प्राप्त करने हेतु वैश्विक मानकों को निर्धारित करके सरकारों और नागरिक समाज के साथ मिलकर कानूनों, नीतियों, कार्यक्रमों और सेवाओं को विकसित करने के लिये काम किया जाता है, ताकि मानकों को प्रभावी ढंग से लागू किया जा सके और दुनिया भर में महिलाओं और लड़कियों को सही मायने में लाभ प्राप्त हो सके। + +7862. 1.जब तक संसद में ऐसे लोग बैठे होंगे जो आपराधिक मामलों में आरोपी हैं तब तक देश की कानून बनाने की शैली और तौर-तरीके पर भी विश्वास करना बहुत कठिन है। + +7863. सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण: + +7864. शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण से निपटने हेतु किए गए उपाय + +7865. इसके अलावा, वायु एवं ईंधन के बेहतर मिश्रण से इसका पूर्ण दहन हो जाता है, जिससे कोयले की खपत लगभग 20 प्रतिशत कम हो जाती है और इस प्रकार ईंट भट्टों से कार्बन उत्सर्जन कम हो जाता है। + +7866. इसके लिए हरिद्वार और लाल कुआं को ट्रायल के लिए चुना गया है।अब तक वन विभाग हाथियों की आबादी क्षेत्र में घुसने से रोकने के लिए हाथी दीवार,खाई खुदवाकर व फेंसिंग पर करंट छोड़ने के साथ पटाखे फोड़ने के तरीके अपनाता था फेंसिंग करंट पर अब प्रतिबंध लग चुका है। + +7867. 2019 प्रश्न पत्र. + +7868. अथवा + +7869. प्र.4. 'साठोत्तरी कविता अपने परिवेश और प्रवृत्तियों में पिछले साहित्य से जुड़े होने पर भी अपनी अलग पहचान बनाती दिखाई देती है'- इस परिप्रेक्ष्य में साठोत्तरी कविता की मूल प्रवृत्तियों का उद्घाटन कीजिए। + +7870. (ख) आत्मकथा + +7871. अथवा + +7872. प्र.3. उत्तर छायावादी काव्य की प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए। + +7873. दलित विमर्श सांस्कृतिक पराधीनता से मुक्ति के विकल्प की बात करता सोदाहरण विश्लेषण कीजिए। + +7874. (घ) स्त्री विमर्श + +7875. + +7876. राजीव गांधी खेल रत्‍न पुरस्‍कार:. + +7877. द्रोणाचार्य पुरस्कार 2019” | द्रोणाचार्य अवार्ड 2019 (नियमित) प्राप्त खिलाड़ियों का नाम – + +7878. – मरजबान पटेल, हाॅकी + +7879. ध्यानचंद पुरस्कार 2019” प्राप्त खिलाड़ियों का नाम – + +7880. मध्यप्रदेश लोक सेवा सहायक पुस्तिका/भारतीय संविधान: + +7881. राष्ट्रपति. + +7882. संविधान के अनुच्छेद 161 द्वारा राज्य के राज्यपाल को भी क्षमादान करने की शक्ति प्राप्त है। + +7883. भारत के राष्ट्रपति के चुनाव में सभी राज्यों की विधानसभाओं एवं संघराज्य क्षेत्रों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य और लोक सभा तथा राज्य सभा के निर्वाचित सदस्य भाग लेते हैं। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत सदस्य, राष्ट्रपति चुनाव में वोट नहीं डाल सकते हैं। + +7884. राष्ट्रपति की शक्तियाँ + +7885. 3. सशस्त्र सेनाओं के सर्वोच्च कमांडर की हैसियत से की जाने वाली शक्ति का उपयोग विधि के अनुरूप होना चाहिये। + +7886. वहीं अनुच्छेद 360 के तहत भारत या उसके राज्य क्षेत्र के किसी भाग में वित्तीय संकट की दशा में वित्तीय आपात की घोषणा का अधिकार राष्ट्रपति को है। + +7887. आज दलित उम्मीदवार को लेकर दोनों पक्षों से जो राजनीति देखने को मिल रही है, उससे इस पद की गरिमा को ठेस ही पहुँची है। राजनैतिक दलों को यह समझना चाहिये कि दलित शब्द जुड़ने मात्र से इस पद की गरिमा नहीं बढ़ जाएगी और न ही राष्ट्रपति के संवैधानिक अधिकारों में कोई बदलाव आएगा और न ही राष्ट्रपति को असीमित अधिकार मिल जाएंगे। + +7888. भारतीय गणराज्य के संविधान में सभी नागरिकों को समता और समानता का अधिकार है, फिर वह दलित हो या ब्राह्मण, हिंदू, सिख, ईसाई, मुसलमान सभी को यह अधिकार है। हमारा संविधान जाति, धर्म, भाषा के आधार पर कोई भेदभाव की बात नहीं करता है। फिर महामहिम जैसे प्रतिष्ठित पद के लिये दलित शब्द की बात करना, इस पद की गरिमा को खंडित करना ही कहा जाएगा। + +7889. महत्त्वपूर्ण निर्णय जिन्होंने राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों को आकार दिया. + +7890. इस फैसले में न्यायालय ने कहा था कि "किसी भी राज्य सरकार के बहुमत का फैसला राजभवन की जगह विधानमंडल में होना चाहिये। राष्ट्रपति शासन लगाने से पहले राज्य सरकार को शक्ति परीक्षण का मौका देना होगा।" + +7891. मुख्यमंत्री. + +7892. मध्यप्रदेश लोक सेवा सहायक पुस्तिका/मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993: + +7893. धारा 2 अधिनियम में वर्णित शब्दों की परिभाषाएँ + +7894. D-मानव अधिकार + +7895. I-राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग अनुच्छेद 338 + +7896. M-लोक सेवक + +7897. + +7898.
पूर्णांक-१०० (२४+२४+२४+१४+१४) + +7899. हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक)/सिद्धार्थ: + +7900. क्या अन्तर आया है अब तक ? + +7901. किन देवों को रोवें-गावें ? + +7902. मैं अपना ही पल्ला झाड़ूँ । + +7903. देखी मैंने आज जरा ! + +7904. धिक्! जो मेरे रहते, मेरा चेतन जाय चरा! + +7905. रिसता है जो रन्ध्र-पूर्ण घट, + +7906. कोई रस क्या पीता है ? + +7907. भुवन-भावने, आ पहुंचा मैं, + +7908. कपिलभूमि-भागी, क्या तेरा + +7909. यही तुझे क्या योग्य हाय ! + +7910. अपने आप तपे तापों से + +7911. जरा भंग कर अंग-काय ? + +7912. एक बार तो किसी जन्म के + +7913. चल, चुप हार न बैठ हाय ! + +7914. मुक्ति हेतु जाता हूँ यह मैं, मुक्ति, मुक्ति, बस मुक्ति ! + +7915. उठ उठ री लघु लोल लहर
जयशंकर प्रसाद + +7916. शीतल कोमल चिर कम्पन सी, + +7917. नर्तित पद-चिन्ह बना जाती, + +7918. ओ प्यार पुलक हे भरी धुलक! + +7919. मधुप गुनगुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी, + +7920. भूलें अपनी, या प्रवंचना औरों की दिखलाऊं मैं। + +7921. सुनकर क्या तुम भला करोगे-मेरी भोली आत्म-कथा? + +7922. आज्ञा लूँ या दूं मैं अकाम? + +7923. निज राज-पाट, धन, धरणि, धाम । + +7924. थम, थम अपने को आप थाम । + +7925. अटकेगा मेरा कौन काम ? + +7926. बाहर बाहर है टीम-टाम । + +7927. भूले हैं अपना अपरिणाम ! + +7928. पाया क्या तूने घूम-घाम ? + +7929. सड़ने को हैं वे अखिल आम ! + +7930. चिर-निद्रा की सब झूम-झाम ! + +7931. हो जाय और भी प्रबल पाम? + +7932. पर मेरा श्रम है अविश्राम । + +7933. दयनीय, ठहर तू क्षीण-क्षाम । + +7934. दूं क्या मैं तुझको हाड़-चाम? + +7935. आने-जाने की धूमधाम? + +7936. बस, लक्ष्य यही मेरा ललाम । + +7937. तब है मेरा सिद्धार्थ नाम । + +7938. तुम देखो ॠग्, यजु और साम । + +7939. जा दण्ड-भेद, जा साम-दाम । + +7940. तो सत्य कहां? भ्रम और भ्राम ! + +7941. उत्सव हो पुर-पुर, ग्राम-ग्राम । + +7942. तू तो है मेरे ठौर-ठाम । + +7943. क्या अपना विधि है आज वाम? + +7944. हे शुभे, श्वेत के साथ श्याम । + +7945. दुल, मातृ-हृदय के मृदुल दाम ! + +7946. भय, कह, किस पर यह भूरिभाम? + +7947. मेरा प्रभात यह रात्रि-याम । + +7948. क्या वात-वृष्टि, क्या शीत-घाम । + +7949. आशीष उसे दो, लो प्रणाम । + +7950. वह तोड़ती पत्थर; + +7951. श्याम तन, भर बंधा यौवन, + +7952. चढ़ रही थी धूप; + +7953. गर्द चिनगीं जा गयीं, + +7954. देखकर कोई नहीं, + +7955. एक क्षण के बाद वह कांपी सुघर, + +7956. + +7957. देखता हूं, आ रही + +7958. हट रहा मेरा। + +7959. + +7960. वर दे, वीणावादिनी वर दे! + +7961. कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर + +7962. नव पर, नव स्वर दे! + +7963. + +7964. तिमिराच्य में चंचलता का नहीं कहीं आभास, + +7965. हृदय-राज्य की रानी का वह करता है अभिषेक। + +7966. नहीं बजती उसके हाथों में कोई वीणा, + +7967. व्योममण्डल में- जगती-तल में- + +7968. क्षिति में-जल में-नभ में- अनिल-अनल में- + +7969. थके हुए जीवों को वह सस्नेह + +7970. कवि का बढ़ जाता अनुराग, + +7971. हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक)/भिक्षुक: + +7972. पथ पर आता। + +7973. दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता। + +7974. दाता-भाग्य-विधाता से क्या पाते?- + +7975. + +7976. सोती थी सुहाग-भरी-स्नेह--स्वप्न-मग्न- + +7977. किसी दूर देश में था पवन + +7978. फिर क्या ? पवन + +7979. सोती थी, + +7980. चूक-क्षमा मांगी नहीं, + +7981. निपट निठुराई की + +7982. चकित चितवन निज चारों ओर फेर, + +7983. + +7984. राम की शक्ति-पूजा
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला + +7985. शतशेलसम्वरणशील, नीलनभ-गज्जित-स्वर, + +7986. राघव-लाघव - रावण - वारण - गत - युग्म- प्रहर, + +7987. मूच्छित - सुग्रीवाग्डद - भीषण - गवाक्ष - गय - नल-, + +7988. लौटे युग-दल । राक्षस - पतदल पृथ्वी टलमल, + +7989. लक्ष्मण चिन्ता - पल, पीछे वानर-वीर सकल ; + +7990. उतरा ज्यों दुर्गम पर्वत पर नैशान्धकार , + +7991. नल, नील, गवाक्ष, प्रात के रण का समाधान + +7992. वन्दना ईश की करने को, लौटे सत्वर , + +7993. देखते राम का जित-सरोज-मुख-श्याम-देश । + +7994. स्थिर राघवेन्द्र को हिला रहा फिर-फिर संशय, + +7995. असमर्थ मानता मन उधत हो हार-हार ; + +7996.
+ +7997. उनविंश पर जो प्रथम चरण + +7998. वर लिया अमर शाश्वत विराम , + +7999. करती हूं मैं, यह नहीं मरण , + +8000. ज्योतिस्तरणा के चरणों पर । + +8001. यह, अक्षम अति, तब मैं सक्षम, + +8002. शुक्ला प्रथमा, कर गई पार । + +8003. लखकर अनर्थ आर्थिक पथ पर + +8004. मैं लख न सका वे दृग विपन्न: + +8005. यह नहीं हार मेरी, भास्वर + +8006. कुछ वहां, प्राप्ति को समाधान + +8007. हिंदी कथा साहित्य/कफ़न: + +8008. जा ,देख तो आ ‌।" + +8009. अगर दोनों साधु होते, तो उन्हें संतोष और धैर्य के लिए, संयम और नियम की जरूरत न होती। यह तो इनकी प्रकृति थी। विचित्र जीवन था इनका ! घर में मिट्टी के दो-चार बर्तन के सिवा कोई सम्पत्ति नहीं। फटे चीथड़ों से अपनी नग्नता को ढाँके हुए जीये जाते थे। संसार की चिंताओं से मुक्त ! कर्ज से लदे हुए। गालियाँ भी खाते, मार भी खाते, मगर कोई भी गम नहीं। दीन इतने कि वसूली की बिलकुल आशा न रहने पर भी लोग इन्हें कुछ-न-कुछ कर्ज दे देते थे। मटर, आलू की फसल में दूसरों के खेतों से मटर या आलू उखाड़ लाते और भून-भानकर खा लेते या दस-पाँच ऊख उखाड़ लाते और रात को चूसते। घीसू ने इसी आकाश-वृत्ति से साठ-साल की उम्र काट दी और माधव भी सपूत बेटे की तरह बाप ही के पद-चिह्नों पर चल रहा था, बल्कि उसका नाम और भी उजागर कर रहा था। इस वक्त भी दोनों अलाव के सामने बैठ कर आलू भून रहे थे, जो कि किसी के खेत से खोज लाये थे। घीसू की स्त्री का तो बहुत दिन हुए, देहान्त हो गया था। माधव का ब्याह पिछले साल हुआ था। जबसे यह औरत आई थी, उसने इस खानदान में व्यवस्था की नींव डाली थी और इन दोनों बे-गैरतों का दोजख भरती रहती थी। जबसे वह आई, यह दोनों और भी आरामतलब हो गये थे। बल्कि कुछ अकड़ने भी लगे थे। कोई कार्य करने को बुलाता, तो निर्ब्याज भाव से दुगनी मजदूरी माँगते। वही औरत आज प्रसव-वेदना से मर रही थी और यह दोनों शायद इसी इन्तजार में थे कि वह मर जाय, तो आराम से सोयें। + +8010. ‘मेरी औरत जब मर रही थी; तो मैं तीन दिन तक उसके पास से हिला तक नहीं; और मुझसे लजायेगी कि नहीं ? जिसका कभी मुँह नहीं देखा; आज उसका उघड़ा हुआ बदन देखूँ ! उसे तन की सुध भी तो न होगी ? मुझे देख लेगी तो खुलकर हाथ-पाँव भी न पटक सकेगी !’ + +8011. घीसू को उस वक्त ठाकुर की बरत याद आई, जिसमें बीस साल पहले वह गया था। उस दावत में उसे जो तृप्ति मिली थी, वह उसके जीवन में एक याद रखने लायक बात थी, और आज भी उसकी याद ताजा थी। बोला—वह भोज नहीं भूलता। तब से फिर उस तरह का खाना और भरपेट नहीं मिला। लड़कीवालों ने सबको भरपेट पूड़ियाँ खिलाई थीं, सबको ! छोटे-बड़े सबने पूड़ियाँ खाईं और असली घी की ! चटनी, रायता, तीन तरह के सूखे साग, एक रसेदार तरकारी, दही, चटनी, रायता, अब क्या बताऊँ कि उस भोज में क्या स्वाद मिला, कोई रोक-टोक नहीं थी, जो चीज चाहो, माँगो, जितना चाहो, खाओ। लोगों ने ऐसा खाया, ऐसा खाया, कि किसी से पानी न पिया गया। मगर परोसने वाले हैं कि पत्तल में गर्म-गर्म गोल-गोल सुवासित कचौड़ियाँ डाल देते हैं। मना करते हैं कि नहीं चाहिए, पत्तल पर हाथ से रोके हुए हैं, मगर वह हैं कि दिये जाते हैं। और जब सबने मुँह धो लिया, तो पान-इलायची भी मिली। मगर मुझे पान लेने की कहाँ सुध थी ? खड़ा हुआ न जाता था। चटपट जाकर अपने कम्बल पर लेट गया। ऐसा दिल-दरियाव था वह ठाकुर। + +8012. ‘मैं पचास खा जाता !’ + +8013. माधव भागा हुआ घीसू के पास आया। फिर दोनों जोर-जोर से हाय-हाय करने लगे और छाती पीटने लगे। पड़ोसवालों ने यह रोना-धोना सुना, तो दौड़े हुए आये और पुरानी मर्यादाओं के अनुसार इन अभागों को समझाने लगे। + +8014. जब जमींदार साहब ने दो रुपये दिये, तो गाँव के बनिये-महाजनों को इनकार का साहस कैसे होता ? घीसू जमींदार के नाम का ढिंढोरा भी पीटना जानता था। किसी ने दो आने दिये, किसी ने चार आने। एक घंटे में घीसू के पास पाँच रुपये की अच्छी रकम हो गई। कहीं से अनाज मिल गया, कहीं से लकड़ी और दोपहर को घीसू और माधव बाजार से कफ़न लाने चले। इधर लोग बाँस-वाँस काटने लगे। + +8015. ‘हाँ, और क्या ! लाश उठते-उठते रात हो जायेगी। रात को कफ़न कौन देखता है !’ + +8016. उसके बाद कुछ चिखौना आया, तली हुई मछली आई और दोनों बरामदें में बैठकर शान्तिपूर्वक पीने लगे। कई कुज्जियाँ ताबड़तोड़ पीने के बाद सरूर में आ गये। + +8017. घीसू हँसा-अबे, कह देंगे कि रुपये कमर से खिसक गये। बहुत ढूँढा, मिले नहीं। लोगों को विश्वास नहीं आयेगा, लेकिन फिर वही रुपये देंगे। + +8018. माधव ने श्रद्धा से सिर झुकाकर तसदीक़ की-ज़रूर से ज़रूर होगा। भगवान, तुम अन्तर्यामी हो। उसे बैकुण्ठ ले जाना। हम दोनों हृदय से आशीर्वाद दे रहे हैं। आज तो भोजन मिला वह कहीं उम्र भर न मिला था। + +8019. ‘पूछेगी तो ज़रूर !’ + +8020. ज्यों-ज्यों अँधेरा बढ़ता था और सितारों की चमक तेज़ होती थी, मधुशाला की रौनक भी बढ़ती जाती थी। कोई गाता था, कोई डींग मारता था, कोई अपने संगी के गले लिपटा जाता था। कोई अपने दोस्त के मुँह में कुल्हड़ लगाये देता था। + +8021. माधव ने फिर आसमान की तरफ देखकर कहा-वह बैकुण्ठ में जायेगी दादा, बैकुण्ठ की रानी बनेगी। + +8022. घीसू ने समझाया-क्यों रोता है बेटा, खुश हो कि वह माया-जाल से मुक्त हो गई, जंजाल से छूट गई। बड़ी भाग्यवान थी, जो इतनी जल्द माया-मोह के बन्धन तोड़ दिये। + +8023. आदिकालीन एवं मध्यकालीन हिंदी कविता/रैदास: + +8024. प्रभु जी! तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवन चंद चकोरा। + +8025. नरहरि! चंचल मति मोरी, कैसे भगति करौं मैं तोरी। + +8026. मैं तैं तोरि मोरी असमंझसि सों, कैसे करि निस्तारा। + +8027. चरन पतारि सीस असमाना, सो ठाकुर कैसे संपुट समाना। + +8028. 4 + +8029. पढ़ें गुनें कछू समझि न परई, जौ लौं अनभै भाव न दरसै। + +8030. रे चित चेत-अचेत काहें, बाल्मीकहिं देखि ये। + +8031. लोग बाकी कहां जाने, तीनि लोक पेवत रे।। + +8032. हिंदी कविता (छायावाद के बाद): + +8033. + +8034. वह हंसते हुये बोला - + +8035. जो मेरे सामने + +8036. आजकल + +8037. कहीं न कहीं एक आदमी है + +8038. और आदमी की अलग-अलग 'नवैयत' - + +8039. जूता क्या है-चकतियों की थैली है + +8040. कोई पतंग फंसी है + +8041. मैं महसूस करता हूं-भीतर से + +8042. और पेशे में पड़े हुये आदमी को + +8043. न वह अक्लमन्द है + +8044. मगर चेहरे पर + +8045. 'इशे बांध्दों, उशे काट्टो, हियां ठोक्को, वहां पीट्टो + +8046. सड़क पर 'आतियों-जातियों' को + +8047. शरीफों को लूटते हो' वह गुर्राता है + +8048. चोट जब पेशे पर पड़ती है + +8049. कि मुझे कोई ग़लतफ़हमी है + +8050. जो जूते से झांकती हुई अंगुली की चोट + +8051. तो रामनामी बेंचकर या रण्डियों की + +8052. भीड़ का टमकता हुआ हिस्सा बन जाता है + +8053. यह दिन को तांत की तरह जानता है + +8054. मुश्किल हो जाता है + +8055. लगता है कि चमड़े की शराफ़त के पीछे + +8056. जो असलियत और अनुभव के बीच + +8057. शिकार हैं + +8058. सबको जलाती है सच्चाई + +8059. और पेट का आग से डरते है + +8060. अपनी-अपनी जगह एक ही किस्म से + +8061. सांप
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय + +8062. तब कैसे सीखा डसना - विष कहां पाया ? + +8063. + +8064. या शरद के भोर की नीहार-न्याही कुंई, + +8065. देवता इन प्रतीकों के कर गए हैं कूच। + +8066. अगर मैं यह कहूं - + +8067. सृष्टि के विस्तार का - ऐश्वर्य कि - औदार्य का - + +8068. और सचमुच, इन्हें जब-जब देखता हूं + +8069. + +8070. यह दीप अकेला स्नेह भरा + +8071. यह समिधा : ऐसी आग हठीला बिरला सुलगायेगा + +8072. यह मधु है : स्वयं काल की मौना का युगसंचय + +8073. यह दीप अकेला स्नेह भरा + +8074. कुत्सा, अपमान, अवज्ञा के धुँधुआते कड़वे तम में + +8075. यह दीप अकेला स्नेह भरा + +8076. + +8077. दिन का समय घनी बदली थी + +8078. सोचा साथ किसी को ले ले + +8079. दोनों हाथ पेट पर रख कर + +8080. आया उसने नाम पुकारा + +8081. मरा पड़ा है रामदास यह + +8082. + +8083. रीते हाथ: + +8084. जीवन के विह्वल सुख-क्षण का गीत- + +8085. रह: सूत्र अविराम- + +8086. जो फूल जहाँ है, + +8087. अक्षत, अनाघ्रात, अस्पृष्ट, अनाविल, + +8088. अपने सुंदर आनंद-निमिष का, + +8089. मध्यप्रदेश लोक सेवा सहायक पुस्तिका/सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम-1955: + +8090. 13-16-ट्रिक-JCB को चलाने के लिए CDOP का Rule। + +8091. अध्याय 5 प्रकीर्णन (मिसलेनियस)[धारा16से23तक]. + +8092. धारा-3-राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन. + +8093. मध्यप्रदेश लोक सेवा में इस अधिनियम से पूछे गए प्रश्नोत्तर. + +8094. मानव अधिकार सुरक्षा आयोग का गठन + +8095. [M.P.PSC-2013] + +8096. + +8097. सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/शासन व्यवस्था में नैतिक मूल्य: + +8098. ईश्वरीय सत्ता में भी उसका लेश मात्र विश्वास नहीं और इनके अतिरिक्त सौजन्य, सहृदयता सात्विकता सरलता पर उपकारिता आदि सद्गुणों उसमें नहीं है।तब स्वीकार करना होगा अभी उसने मानव धर्म का स्वर व्यंजन भी नहीं सीखा है वास्तव में मानव धर्म के विनाश हेतु मानव ने चारों ओर स्वार्थ वश एक संकीर्ण घेरा बना रखा है जिसके बाहर वह निकल नहीं पाता वही उसे तोड़े बिना उससे बाहर निकले बिना कोई भी मानव मानवतावादी नहीं बन सकता आता अपने हृदय को परम उदार तथा सरल बनाने की नितांत आवश्यकता है इसके लिए प्रेम परिधि में स्नान पर्व अपेक्षित है जो अत्यंत आनंद की अनुभूति भी कराएगा। + +8099. हेनरी फोर्ड के अनुसार असफलता का अर्थ महज किसी कार्य को फिर और और भी अधिक तन्मयता के साथ शुरू करने का एक अवसर है। + +8100. अब तक डाॅ. नगेन्द्र ने रवीन्द्रनाथ टैगोर, आचार्य शुक्ल, मैथलिशरण गुप्त, प्रसाद, पन्त, निराला,राहुल सांकृत्यायन, महादेवी वर्मा, दिनकर, बच्चन, अज्ञेय, गिरिजा कुमार माथुर आदि अनेक कवियों और लेखकों की अनेक कृतियों की व्यावहारिक समीक्षाएं प्रस्तुत कर चुके हैं। इस प्रकार देखते हैं कि उनकी आलोचना कृति छायावाद से लेकर आधुनिक काल तक सम्मलित रही हैं। उनके कुछ निबंधों में फ्रायडीन प्रभाव की झलक मिलती है। इसलिए उन्होंने मनोविश्लेषणात्मक व्याख्या की है। वे पाश्चात्य आलोचक आई. ए. रिर्चड्स और क्रोचे विशेष प्रभाव ग्रहण किए हैं। वे रस सिध्दान्त में फ्रायड दर्शन का साधन मानते हैं बाधक नहीं, क्योंकि दोनों ही आनन्द के सिध्दान्त प्लेजर प्रिंसिपुल' को लेकर चलते हैं। + +8101. + +8102. वड्सवर्थ, शैली और पन्त तो शुक्लजी के भी प्रिय कवि थे। वाजपेयीजी ने वड्सवर्थ, शैली की जिन विशेषताओं का उल्लेख किया है उसे शुक्ल जी स्वाभाविक रहस्यभावना कहते हैं और इसकी अभिव्यक्ति के वे प्रशंसक हैं। जबकि वाजपेयीजी कहते है- हिन्दी के कवियों में यदि कहीं रमणीय और सुन्दर अद्वैती रहस्यावाद है तो जायसी में। अतः 'नवीन कविता' यानी छायावाद के साथ अन्याय करने का प्रश्न आवश्य विचारणीय है। वाजपेजी का विचार था कि छायावाद की काव्य शैली योरोप से बंगाल होती हुई हिन्दी में आई हैं। ...रवीन्द्रनाथ ठाकुर के प्रभाव से हिन्दी की स्वच्छन्दतावादीधारा श्रीधर पाठक से होकर मुकुटधर पाण्डेय आदि की कविताओं के द्वारा आगे बढ़ रही थी कि छायावाद की धूम मची। छायावाद पर रवीन्द्रनाथ के प्रभाव को किसी ने नहीं नकारा है। शिकायत यह है कि शुक्लजी छायावाद को काव्य शैली + +8103. नई कविता की प्रतिष्ठा के बाद वे उसके वैचारिक आधार की तलाश करते हुए वे 'मानववाद' और सैक्लूलरिज्म तक आते हैं। वे कहते हैं- 'नई कविता की कुछ रचनात्मक उपलब्धियां भी है, जो आधुनिक बोध से ग्रहीत हुई है। उनमें से मुख्य वह 'मानववाद' है, जो एक ओर आध्यात्मिक भूमिका से पृथक रहता हैं। दूसरी ओर वर्ग-संघर्ष की कठोरता से भी रहित है। वर्तमान युग में विशेषकर भारतीय भूमिका पर 'सिक्यूलरिज्म' एक व्यापक विचार दृष्टि है। उसी का साहित्य रूपान्तर 'नई कविता' के मानवतावादी स्वरूप में प्रतिबिम्बित है। + +8104. इतिहास (History). + +8105. 7 अक्टूबर, 1944 को संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्तावित ढांचे को प्रकाशित किया गया। इन्हीं प्रस्तावों पर आगे चलकर याल्टा सम्मेलन (फरवरी 1945) में विचार-विमर्श किया गया। जिसमें सोवियत संघ, अमेरिका एवं ब्रिटेन के राष्ट्राध्यक्षों की बैठक हुई थी। 25 अप्रैल, 1945 को सेन फ्रांसिस्को में आयोजित इस सम्मेलन को सभी सम्मेलनों की समाप्ति करने वाला सम्मेलन माना जाता है। 26 जून, 1945 को सभी 50 देशों ने चार्टर पर हस्ताक्षर किये। + +8106. सिद्धांत (Principle). + +8107. भाषा विज्ञान और हिंदी भाषा/भाषा का स्वरूप: + +8108. २) स्वीट के अनुसार:- 'ध्वन्यात्मक शब्दों द्वारा विचारों को प्रकट करना ही भाषा है।' + +8109. (अ) भाषा एक सुव्यवसि्थत योजना या संघटना है। + +8110. (ऊ) भाषा का प्रयोग एक विशिष्ट मनुष्य-वर्ग अथवा मानव समाज में होता है। उसी में वह समझी और बोली जाती है। + +8111. २. प्रयोजनमूलक हिन्दी: सिध्दान्त और प्रयोग -- --- दंगल झाल्टे + +8112. + +8113. रण की समाप्ति के पहले ही + +8114. मन की मन में ही रही¸ स्वयं + +8115. पर कुछ ने ले ली हिम–समाधि + +8116. हो गए पंगु, प्रति–पद जिनके + +8117. कुछ ही दिन बीते हैं¸ फिर भी + +8118. था जन्म–काल में सिंह लग्न + +8119. पर निरवधि बंदी जीवन ने + +8120. प्रतिकूल परिस्थिति ने जिनके + +8121. हिंदी कविता (छायावाद के बाद)/गुलाबी चूड़ियाँ: + +8122. सामने गियर से उपर + +8123. झुककर मैंने पूछ लिया + +8124. टाँगे हुए है कई दिनों से + +8125. किस ज़ुर्म पे हटा दूँ इनको यहाँ से? + +8126. और अब वे निगाहें फिर से हो गईं सड़क की ओर + +8127. नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ! + +8128. + +8129. मखमल टमटम बल्लम तुरही + +8130. नंगे-बूचे नरकंकाल + +8131. अधिनायक वह महाबली + +8132. हिंदी कविता (छायावाद के बाद)/स्वाधीन व्यक्ति: + +8133. चौंध में दिखता है एक और कोई कवि + +8134. मारना या मरना चाहते हैंऔर एक बहुत बड़ी आकाँक्षा से डरना चाहते हैं + +8135. दिखूँगा या तो + +8136. अपने में अलग सिरजता हुआ कुछ अनाथ + +8137. स्वाधीन इस देश में चौंकते हैं लोग + +8138. किन्तु आज पहले से कुछ और अधिक बार + +8139. जिस पर कि मेरा क्रोध बार-बार न्योछावर होता है + +8140. मेरे सो जाने के पहले । + +8141. बदलने लगें और मेरी कविता की नक़लें + +8142. हो सकता है कि उन कवियों में मेरा सम्मान न हो + +8143. वह न मुझे पहचाने, मैं न उसे पहचानूँ । + +8144. + +8145. हिंदी कविता (छायावाद के बाद)/कहाँ तो तय था: + +8146. यहाँ दरख़तों के साये में धूप लगती है + +8147. कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिए  + +8148. जिएँ तो अपने बग़ीचे में गुलमोहर के तले + +8149. हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
दुष्यन्त कुमार + +8150. शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए + +8151. मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही + +8152. वो आदमी नहीं है
दुष्यन्त कुमार + +8153. मैं क्या बताऊँ मेरा कहीं और ध्यान है + +8154. फिसले जो इस जगह तो लुढ़कते चले गए + +8155. ऐसा लगा कि वो भी बहुत बेज़ुबान है + +8156. महासभा (General Assembly) एक लोकतान्त्रिक संस्था है इसमें सभी देशों का समान प्रतिनिधित्व होता है। यह संयुक्त राष्ट्रसंघ का मुख्य विमर्शी व नीति निर्माण अंग है। जो मुक्त एवं उदार बातचीत के जरिये समस्याओं का समाधान ढूँढने का प्रयास करता है। यह विश्व का स्थायी मंच एवं बैठक कक्ष है। इसका गठन कुछ इस प्रकार मान्यता पर आधारित है :– + +8157. महासभा की बैठक प्रतिवर्ष सितम्बर माह में होती है। इसकी बैठक में विभिन्न अध्यक्ष और कई उपाध्यक्षों का निर्वाचन किया जाता हैं। अनुच्छेद 18 के अनुसार महासभा में किसी भी देश के 5 से अधिक प्रतिनिधि नहीं हो सकता हैं। + +8158. माँ मेरे अकेलेपन के बारे में सोच रही है + +8159. यह तय है + +8160. मैं एकदम भूल जाऊँगा  + +8161. तो माँ थोड़ा और झुक जाती है + +8162. पक्षियों के बारे में + +8163. तो उठा लेती है सुई और तागा + +8164. जैसे वह मेरा फ़टा हुआ कुर्ता हो + +8165. जिस पर साठ बरस बुने गये हैं + +8166. + +8167. मैंने बर्लिन में देखे नहीं कौए + +8168. यह एक छोटा-सा होटल है + +8169. हम साथ-साथ खाते हैं + +8170. एक दुर्लभ अनुभव है + +8171. दो महायुद्ध - वहाँ बेंच पर बैठे + +8172. बर्लिन की टूटी हुई दीवार भी + +8173. उसकी आत्मा में ठुंका हुआ + +8174. उधर से इधर + +8175. झूम रहे हैं सब + +8176. लगाए जा रही है चक्कर पर चक्कर... + +8177. एक पागल स्त्री + +8178. न जाने कब से + +8179. भर गया है कमरे में + +8180. कब टूटेगी ?" + +8181. + +8182. रोटी बेलता है + +8183. मैं पूछता हूँ-- + +8184. हिंदी कविता (छायावाद के बाद)/गीत फरोश: + +8185. मैं किसिम-किसिम के गीत बेचता हूँ। + +8186. यह गीत सख्त सर-दर्द भुलाएगा, + +8187. जी, आप न हों सुन कर ज़्यादा हैरान– + +8188. मैं किसिम-किसिम के गीत बेचता हूँ। + +8189. यह गीत पहाड़ी पर चढ़ जाता है, + +8190. यह गीत तपेदिक की है दवा है हुजूर, + +8191. ना, बुरा मानने की इसमें बात, + +8192. गीत बेचता हूँ, + +8193. जी, गीत जीत का लिखूँ, शरण का लिखूँ, + +8194. यह सोच-सोच कर मर जाने का गीत, + +8195. जी, रूठ-रूठ कर मन जाते हैं गीत! + +8196. क्या करूँ मगर लाचार + +8197. + +8198. पहरा बन गया है मानो + +8199. विरस होकर लहरें + +8200. झुर्रियों से भरे मेरे चेहरे का + +8201. नन्हीं नन्हीं इच्छाओं पर तन गया है + +8202. बनेगे वे गौरव के निधान + +8203.
+ +8204. कोहरे से ढँकी सड़क पर बच्‍चे काम पर जा रहे हैं + +8205. लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह + +8206. क्‍या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने + +8207. तो फिर बचा ही क्‍या है इस दुनिया में? + +8208. बच्‍चे, बहुत छोटे छोटे बच्‍चे + +8209. नये इलाके में
अरूण कमल + +8210. धोखा दे जाते हैं पुराने निशान + +8211. फिर दो मकान बाद बिना रंग वाले लोहे के फाटक का + +8212. यहाँ रोज़ कुछ बन रहा है + +8213. जैसे बैशाख का गया भादों को लौटा हूँ + +8214. आ चला पानी ढहा आ रहा अकास + +8215. धार
अरुण कमल + +8216. टहल रहा है तन के कोने-कोने + +8217. सब कर्जे का + +8218. अपनी केवल धार । + +8219. संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र के अनुसार शांति एवं सुरक्षा बहाल करने की प्राथमिक जिम्मेदारी सुरक्षा परिषद् की होती है।इसके फैसले को पालन करना सभी राज्यों के लिए अनिवार्य है। इसमें 15 देश सदस्य के रूप में शामिल होते हैं। जिनमें पाँच देश स्थायी,और दस अस्थाई देशों का चुनाव महासभा में स्थायी सदस्यों द्वारा किया जाता है। चयनित सदस्य देशों का कार्यकाल 2 वर्षों का होता है। + +8220. हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक)/सखी वे मुझसे कहकर जाते: + +8221. फिर भी क्या पूरा पहचाना? + +8222. प्रियतम को, प्राणों के पण में, + +8223. किसपर विफल गर्व अब जागा? + +8224. पर इनसे जो आँसू बहते, + +8225. दुखी न हों इस जन के दुख से, + +8226. कुछ अपूर्व-अनुपम लावेंगे, + +8227. + +8228.        खेलता था जब अल्हड़ खेल, + +8229.          साथ ले सहचर सरस वसन्त, + +8230. तुम्हारी आँखों का बचपन ! + +8231.          उसी रस में तिरता जीवन. + +8232.          आज भी है क्या मेरा धन ! + +8233. अरे कहीं देखा है तुमने
जयशंकर प्रसाद + +8234.       आँसू बन ढरने वालों को? + +8235.       रजनी के लघु-लघु तम कन में + +8236.               रहा देखता सुख के सपने + +8237. हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक)/अरी वरुणा की शांत कछार: + +8238. सतत व्याकुलता के विश्राम, अरे ऋषियों के कानन कुञ्ज! + +8239.           तपस्वी के वीराग की प्यार ! + +8240.           अरी वरुणा की शांत कछार ! + +8241. सुनाने आरण्यक संवाद, तथागत आया तेरे द्वार . + +8242. देव कर से पीड़ित विक्षुब्ध, प्राणियों से कह उठा पुकार – + +8243. दुःख का समुदय उसका नाश, तुम्हारे कर्मो का व्यापार . + +8244. तुम्हारा वह अभिनंदन दिव्य और उस यश का विमल प्रचार . + +8245. + +8246. मेरे नाविक ! धीरे-धीरे । + +8247. जहाँ साँझ-सी जीवन-छाया, + +8248.                         विश्व चित्र-पट चल माया में, + +8249.          अमर जागरण उषा नयन से- + +8250. पेशोला की प्रतिध्ववनि
जयशंकर प्रसाद + +8251. विकल विवर्तनों से + +8252. सतत सहस्त्र कर माला से - + +8253. झोपड़े खड़े हैं बने शिल्प से विषाद के - + +8254. दुन्दुभि-मृदंग-तूर्य शांत स्तब्ध,मौन हैं . + +8255. दुर्बलता इस अस्थिमांस की - + +8256. धूलि सी उड़ेगी किस दृप्त फूत्कार से? + +8257. कहता है कौन ऊँची छाती कर,मैं हूँ - + +8258. आह,इस खेवा की!-  + +8259. काल-धीवर अनंत में, + +8260. वही शब्द घूमता सा- + +8261. किन्तु आज प्रतिध्वनि कहाँ है?" + +8262. + +8263. आँखें रह जाती थीं फँसकर, + +8264. देती थी सबके दाँव, बंधु! + +8265. + +8266. नहीं आते; पंक्ति मैं वह हूँ लिखी + +8267. पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल-- + +8268. बह रही है हृदय पर केवल अमा; + +8269. हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक)/ठुकरा दो या प्यार करो: + +8270. सेवा में बहुमूल्य भेंट वे कई रंग की लाते हैं  + +8271. धूप-दीप-नैवेद्य नहीं है झांकी का श्रृंगार नहीं  + +8272. पूजा की विधि नहीं जानती, फिर भी नाथ चली आयी  + +8273. चरणों पर अर्पित है, इसको चाहो तो स्वीकार करो  + +8274. वीरों का कैसा हो वसंंत
सुभद्रा + +8275. प्राची पश्चिम भू नभ अपार; + +8276. वधु वसुधा पुलकित अंग अंग; + +8277. है रंग और रण का विधान; + +8278. हो रसविलास या दलितत्राण; + +8279. ऐ कुरुक्षेत्र अब जाग जाग; + +8280. राणा ताना का कर घमंड; + +8281. है कलम बंधी स्वच्छंद नहीं; + +8282. हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक)/मुरझाया फूल: + +8283. इसका हृदय दुखाना मत। + +8284. जीवन की अंतिम घड़ियों में + +8285. शीतलता ला देना प्यारे!! + +8286. कुमारी चौहान + +8287. सोच तो लो आगे की बात॥ + +8288. जहाँ पद-पद पर बाधा खड़ी,  + +8289. झुलस जावेगा कोमल गात। + +8290. भूल मत जाओ मेरे पथिक,  + +8291. झाँसी की रानी की समाधि पर
सुभद्रा कुमारी चौहान + +8292. यह समाधि यह लघु समाधि है, + +8293. भग्न-विजय-माला-सी। + +8294. आहुति-सी गिर चढ़ी चिता पर, + +8295. यथा सोने से॥ रानी से भी अध + +8296. हम जग में हैं पाते। + +8297. स्नेह और श्रद्धा से गाती, + +8298. यह समाधि यह चिर समाधि है , + +8299. सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/नीति शास्त्र तथा मानवीय सहसंबंध: + +8300. इंटरनेट से तात्पर्य (स्वरूप). + +8301. संदर्भ. + +8302. आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् में 54 सदस्य होते हैं,जिसमें 18 सदस्य 3 वर्षों के लिए निर्वाचित होते हैं। इसकी बैठक साल में दो बार होती हैं। + +8303. संयुक्त राष्ट्र संघ और वैश्विक संघर्ष/अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय: + +8304. + +8305. कबीर ग्रंथावली; माता प्रसाद गुप्त; लोकभारती प्रकाशन; + +8306. साखी २४: भेष कौ अंग. + +8307. मन कौं काहे न मूंडिए,जामैं बिषै बिकार।।12।।
+ +8308. हिन्दी कविता (मध्यकाल और आधुनिक काल)/सूरदास: + +8309. कबहुँक कुल देवता मनावति, चिरजीवहु मेरौ कुँवर कन्हैया । + +8310. किती बार मोहिं दूध पियत भई, यह अजहूँ है छोटी । + +8311. भावार्थ:- + +8312. कबहुँक बाबा नंद पुकारत, कबहुँक घर मैं आवत । + +8313. मैया मैं नहिं माखन खायौ । + +8314. डारि साँटि मुसुकाइ जसोदा, स्यामहिं कंठ लगायौ । + +8315.
+ +8316. दोहा:- + +8317. नीच गुड़ी ज्यों जानिबो सुनि लखि तुलसीदास। + +8318. इनकेा भलो मनाइबो यह अग्यान अपार।490। + +8319. छंद + +8320. अंग अंग नग जगमगत दीपसिखा-सी देह। + +8321. हूठ्यौ दै इठलाइ दृग करै गँवारि सु मार॥21॥ + +8322. ( अर्थ ) [ यह ] गदराए हुए तन वाली गोरी गँवारी, जिसके ललाट पर घेपन का आड़ा तिलक लगा हुआ है, हूँठा के, इठला कर दृगों से [ कैसी ] सू ( सच्ची, अचूक ) वार करती है । + +8323. ( अर्थ )-[ तू ] इस सुकुमार तन पर भूषण का भार क्योँकर संभालेगी? [ तेरे ] पाँव [ तो ] शोभा ही के भार से धरा ( पृथ्वी ) पर सीधे नहीं पड़ते ॥ + +8324. छंद + +8325. रोकी रहै न,दहै घनआनंद बावरी रीझ के हथनि हारियै।।3।। + +8326. एरे बीर पौन!,तेरो सबै ओर गौन, बीरी + +8327. अब ह्वै अमोही बैठे पीठि पहिचानि दै। + +8328. घनआनँद जीवन दायक हौ कछू मेरियौ पीर हियें परसौ। + +8329. घनआनंद प्यारे सुजान सुनौ यहाँ एक ते दूसरो आँक नहीं। + +8330. आस तिहारियै हौं ‘घनआनन्द कैसे उदास भए दहनो है। + +8331. पद. + +8332. उत्पात उनके साथ ही घर में अनेक खड़े हुए! ॥१२४॥ + +8333. तीतर, लवे, मेंढे़, पतंगे वे लड़ाते हैं कभी, + +8334. बन्दूक़ ले, वन-जन्तुओं पर बल दिखाना है उन्हें। + +8335. सौन्दर्य्य के शशि-लोक में सब ओर उनके चर उड़े, + +8336. उषा ने हँस अभिनंदन किया और पहनाया हीरक-हार + +8337. बचाकर बीज-रूप से सृष्टि, नाव पर झेल प्रलय का शीत + +8338. दे रही अभी दिखाई भग्न मग्न रत्नाकर में वह राह + +8339. यवन को दिया दया का दान, चीन को मिली धर्म्म की दृष्टि + +8340. खड़े देखा, झेला हँसते, प्रलय में पले हुए हम वीर + +8341. वही है रक्त, वही है देश, वही साहस है, वैसा ज्ञान + +8342. + +8343. माना वह बेहद प्यारा था + +8344. जो छूट गए फिर कहाँ मिले + +8345. थे उसपर नित्य निछावर तुम + +8346. जो मुर्झाई फिर कहाँ खिली + +8347. तुमने तन मन दे डाला था + +8348. जो गिरते हैं कब उठतें हैं + +8349. मधु घट फूटा ही करते हैं + +8350. जो मादकता के मारे हैं + +8351. कब रोता है चिल्लाता है + +8352. हिन्दी कविता (मध्यकाल और आधुनिक काल)/नागार्जुन: + +8353. जिनके अभिमंत्रित तीर हुए; + +8354. उतरे करने को उदधि–पार; + +8355. रह–रह नव–नव उत्साह भरे; + +8356. जो भू–परिक्रमा को निकले; + +8357. प्रत्युत फाँसी पर गए झूल + +8358. जीवन नाटक दु:खांत हुआ; + +8359. जो उदाहरण थे मूर्ति–मंत ? + +8360. पर विज्ञापन से रहे दूर + +8361. + +8362. मैं किसिम-किसिम के गीत बेचता हूँ ! + +8363. यह गीत, सख्त सरदर्द भुलाएगा, + +8364. जी, आप न हों सुन कर ज्यादा हैरान - + +8365. मैं किसिम-किसिम के गीत बेचता हूँ ! + +8366. यह गीत पहाड़ी पर चढ़ जाता है, + +8367. यह गीत तपेदिक की है दवा हुजूर, + +8368. ना, बुरा मानने की इसमें क्या बात, + +8369. जी हाँ, हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ, + +8370. यह गीत रेशमी है, यह खादी का, + +8371. यह दुकान से घर जाने का गीत ! + +8372. जी बहुत ढेर लग गया हटाता हूँ, + +8373. क्या करूँ मगर लाचार हार कर + +8374.
+ +8375. सचिवालय को सुविधा की दृष्टि से आठ विभागों में बाँटा गया है। + +8376. यह वर्तमान समय में निष्क्रिय है । + +8377. इस संगठन में 187 सदस्य हैं। + +8378. + +8379. यह हिंदू धर्म एवं संस्कृति को सार रूप में प्रस्तुत करने वाली पुस्तक है। + +8380. चार आश्रम - ब्रह्मचर्य, गृहस्त, वानप्रस्थ, सन्यास + +8381. पंचामृत - दही (दधि) + दूध (दुग्ध) + घी (घृत) + मधु (शहद) + गंगाजल + +8382. नव ग्रह - + +8383. हिंदू धर्म-संस्कृति सार/चौदह रत्न: + +8384. मणि (कौस्तुभ एवं पद्मराग) - विष्णु के लिये + +8385. पाञ्चजन्य शंख, + +8386. अमृत - देवताओं एवं दैत्यों को बांटी गयी + +8387. (२) पुंसवन (दुग्ध) संस्कार - तीसरे माह + +8388. (७) अन्नप्राशन - जब शिशु को सबसे पहले पकाया हुआ भोजन दिया जाता है। + +8389. (१३) विवाह + +8390. हिंदू धर्म-संस्कृति सार/अठारह पुराण: + +8391. + +8392. सत्ताइस नक्षत्र - चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़, सतभिषा, श्रवण, धनिष्ठा, पूर्वभाद्र, उत्तरभाद्र, अश्विन, रेवती, भरणी, कृतिका, रोहणी, मृगशिरा, उत्तरा, पुनवर्सु, पुष्य, मघा, अश्लेशा, पूर्वफाल्गुन, उत्तरफाल्गुन, हस्त + +8393. ॐ शान्तिरन्तरिशँ, शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः + +8394. दाहिने हाथ में जल, पुष्प तथा अक्षत लेकर निम्न संकल्प करे- + +8395. + +8396. विद्या लक्ष्मी + +8397. सम्बन्धित देवी. + +8398. Shashti - विवाह एवं संतान की देवी + +8399. काली - काल (समय) और मृत्यु की देवी हैं। + +8400. भुवनेश्वरी- संपूर्णता रूपिणी देवी + +8401. मातंगी- मुक्तिदात्री देवी + +8402. नौ रूप. + +8403. कहानी. + +8404. ब्रह्मचारिणी. + +8405. कहानी. + +8406. माँ दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है। इस दिन साधक का मन 'मणिपूर' चक्र में प्रविष्ट होता है। + +8407. मंत्र: पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥ + +8408. इस देवी का वास सूर्यमंडल के भीतर लोक में है। सूर्यलोक में रहने की शक्ति क्षमता केवल इन्हीं में है। इसीलिए इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य की भांति ही दैदीप्यमान है। इनके ही तेज से दसों दिशाएं आलोकित हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में इन्हीं का तेज व्याप्त है। + +8409. नवरात्रि का पाँचवाँ दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं। इस देवी की चार भुजाएं हैं। यह दायीं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बायीं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। + +8410. मंत्र: सिंहसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥ + +8411. इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं। + +8412. मंत्र: चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥ + +8413. इस देवी के तीन नेत्र हैं। यह तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं। इनकी सांसों से अग्नि निकलती रहती है। यह गर्दभ की सवारी करती हैं। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा भक्तों को वर देती है। दाहिनी ही तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। यानी भक्तों हमेशा निडर, निर्भय रहो। + +8414. माँ दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। नवरात्रि में आठवें दिन महागौरी शक्ति की पूजा की जाती है। नाम से प्रकट है कि इनका रूप पूर्णतः गौर वर्ण है। इनकी उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। अष्टवर्षा भवेद् गौरी यानी इनकी आयु आठ साल की मानी गई है। इनके सभी आभूषण और वस्त्र सफेद हैं। इसीलिए उन्हें श्वेताम्बरधरा कहा गया है। इनकि चार भुजाएं हैं और वाहन वृषभ है इसीलिए वृषारूढ़ा भी कहा गया है इनको। + +8415. एक और मान्यता के अनुसार एक भूखा सिंह भोजन की तलाश में वहां पहुंचा जहां देवी ऊमा तपस्या कर रही होती है। देवी को देखकर सिंह की भूख बढ़ गई, लेकिन वह देवी के तपस्या से उठने का प्रतीक्षा करते हुए वहीं बैठ गया। इस प्रतीक्षा में वह काफी कमज़ोर हो गया। देवी जब तप से उठी तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर बहुत दया आ गई। उन्होने द्याभाव और प्रसन्न्ता से उसे भी अपना वाहन बना लिया क्‍योंकि वह उनकी तपस्या पूरी होने के प्रतीक्षा में स्वंय भी तप कर बैठा। + +8416. मान्यता. + +8417. विधि-विधान से नौंवे दिन इस देवी की उपासना करने से सिद्धियां प्राप्त होती हैं। इनकी साधना करने से लौकिक और परलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। मां के चरणों में शरणागत होकर हमें निरंतर नियमनिष्ठ रहकर उपासना करनी चाहिए। इस देवी का स्मरण, ध्यान, पूजन हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हैं और अमृत पद की ओर ले जाते हैं। + +8418. (2) ब्रह्मचारिणी (ब्राह्मी) : ब्राह्मी आयु व याददाश्त बढ़ाकर, रक्तविकारों को दूर कर स्वर को मधुर बनाती है। इसलिए इसे सरस्वती भी कहा जाता है। + +8419. (7) कालरात्रि (नागदौन) : यह देवी नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती हैं। यह सभी प्रकार के रोगों में लाभकारी और मन एवं मस्तिष्क के विकारों को दूर करने वाली औषधि है। + +8420. 6.सतपुड़ा मैकल श्रेणी. + +8421. यह पाठ्य-पुस्तक पश्चिम बंग राज्य विश्वविद्यालय से संबद्ध महाविद्यालयों के स्नातक हिंदी (प्रतिष्ठा) के चतुर्थ सत्रार्द्ध के पाठ्यक्रम को ध्यान में रखकर बनाई गई है। अन्य विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय के विद्यार्थी भी सामग्री से लाभान्वित हो सकते हैं तथा संबंधित संकाय अध्यापकों द्वारा इसमें यथोचित विस्तार किया जा सकता है। + +8422. CISF (Central Industrial Security Force) एक केंद्रीय सशस्त्र बल है जिसे ‘केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल अधिनियम, 1968’ के तहत गठित किया गया था। + +8423. सामाजिक नेटवर्किंग साइटों की भूमिका. + +8424. तटीय और समुद्री सुरक्षा के लिये भारतीय नौसेना, भारतीय तटरक्षक और राज्य समुद्री पुलिस के रूप में त्रि-स्तरीय ढाँचा स्थापित किया गया है जो सीमा शुल्क और पोर्ट ट्रस्ट जैसी अन्य एजेंसियों के साथ मिलकर समुद्री मार्गों के माध्यम से घुसपैठ पर नियंत्रण और रोक के लिये भारत के समुद्री क्षेत्रों, द्वीपों और निकटवर्ती समुद्रों की गश्त करती है। + +8425. मौजूदा तंत्रों की प्रभावशीलता का आकलन करने और अंतराल को दूर करने के लिये तटीय सुरक्षा अभ्यास नियमित रूप से आयोजित किये जा रहे हैं। + +8426. समुद्री और तटीय सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिये राष्ट्रीय समिति (National Committee for Strengthening Maritime and Coastal Security-NCSMCS) एक राष्ट्रीय स्तर का मंच और समुद्री तथा तटीय सुरक्षा के लिये एक सर्वोच्च समीक्षा तंत्र है, जिसमें सभी संबंधित मंत्रालयों और सरकारी एजेंसियों के प्रतिनिधि शामिल हैं। + +8427. एपीजे अब्दुल कलाम + +8428. 4 अप्रैल 2006 को विज्ञान भवन नई दिल्ली में दिए अपने भाषण में एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा:-शिक्षा प्रणाली को छात्रों की शक्ति का पता लगाना और उसका निर्माण करना है साथ ही उनकी रचनात्मकता को बाहर लाना है। जिससे धीरे-धीरे एक जिम्मेदार नागरिक का विकास हो सके इसलिए हमारी शिक्षा प्रणाली को यह चाहिए कि वह छात्रों को यह जानने में मदद करने के लिए खुद को फिर से उन्मुख करें कि वह किस ताकत के मालिक हैं क्योंकि इस ग्रह पर पैदा होने वाले हर इंसान को कुछ खास ताकतें प्राप्त हुई हैं। + +8429. सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न विषय: + +8430. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूर्बन मिशन + +8431. इसका उद्देश्य दुनिया भर की प्रमाणित तथा प्रदर्शन योग्य प्रौद्योगिकियों की समेकित पहचान और मूल्यांकन करना तथा और धीरे-धीरे उन्हें भारतीय निर्माण क्षेत्र (जो टिकाऊ एवं हरित होने के साथ ही आपदा प्रतिरोधी हैं) की मुख्यधारा में शामिल करना है । + +8432. विश्व स्वास्थ्य संगठन(World Health organisation) + +8433. संयुक्त राष्ट्र संघ और वैश्विक संघर्ष/संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन: + +8434. इसके साथ ही मानवाधिकार व न्याय के लिए सार्वभौमिक सम्मान को बढ़ाना। + +8435. संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम(UNDP) + +8436. अन्य रिपोर्ट - क्षेत्रीय,राष्ट्रीय और स्थानीय मानव विकास रिपोर्ट(Regional, national and local human development report )। + +8437. संयुक्त राष्ट्र संघ और वैश्विक संघर्ष/कोरियाई युद्ध: + +8438. संयुक्त राष्ट्र संघ और वैश्विक संघर्ष/वियतनाम युद्ध: + +8439. + +8440. महत्त्व + +8441. जम्मू की प्रसिद्ध बसोहली पेंटिंग और कश्मीर की पेपर माछी हस्तकला नजर आएगी नए अवतार में राज्य के प्रसिद्ध कलाकार वीर मुंशी तैयार कर रहे हैं झांकी गणतंत्र दिवस पर राजपथ समारोह के लिए। + +8442. पतंजलि के अनुसार, सार्वभौमिक-स्व को प्रकट करने के लिये आंतरिक शुद्धि के मार्ग में निम्नलिखित आठ आध्यात्मिक अभ्यास शामिल हैं: + +8443. प्रत्याहार (इंद्रिय नियंत्रण) + +8444. भरतनाट्यम एकल स्त्री नृत्य है। + +8445. यह एक मूकाभिनय है जिसमें हाथ के इशारों और चेहरे की भावनाओं के सहारे अभिनेता अपनी प्रस्तुति देता है। + +8446. मोहिनीअट्टम (केरल) + +8447. इसका प्रमुख वाद्य यंत्र ढोल है। + +8448. शंकरदेव ने इसे अंकीया नाट के प्रदर्शन के लिये विकसित किया। + +8449. नदी-जोड़ो: चुनौतियाँ और संभावनाएँ. + +8450. दीर्घकालीन योजनाNPP के तहत सतही जल से 25 मिलियन हेक्टेयर और भूमिगत जल के उपयोग से 10 मिलियन हेक्टेयर सिंचाई का लाभ देने की परिकल्पना की गई है। इससे कुल सिंचाई क्षमता 140 मिलियन हेक्टेयर से बढ़कर 175मिलियन हेक्टेयर हो जाने का अनुमान है। इस प्रकार बाढ़ नियंत्रण,सूखा शमन आदि के साथ-साथ 34 मिलियन किलोवाट विद्युत् उत्पादन भी किया जा सकेगा। + +8451. पाश्चात्य काव्यशास्त्र/उत्तर-आधुनिकता: + +8452. उत्तर आधुनिकतावाद केन्द्र से परिधि की ओर यात्रा करता है। समाज के विभिन्न समूह जो हाशिये पर हैं या जिन्हें हाशियें पर धकेल दिया गया है, जैसेः- स्त्री या दलित अब वें महत्वपूर्ण हो गए हैं। उत्तर आधुनिकतावाद में पुराने एकीकृत केंद्रों के बजाय नए नए समीकरण वजूद में आ रहे हैं। ये समीकरण भी निरंतर बदलते रहते हैं। + +8453. विभिन्नता. + +8454. उत्तर आधुनिकतवाद कर्ता के केन्द्रीय स्थान या महत्व को स्वीकार नहीं करता। अर्थात् अब मानव या मानव संवेदना का कोई अर्थ नहीं रह गया। मिशल फूको के शब्दों में "सागर के किनारे रेत पर बनाए गए चेहरे की भाँति मनुष्य का निशान मिट जाएगा।" उत्तर आधुनिकतावाद की इस विचार से प्रेरणा पा कर रोला बार्थ मानते है कि कृति करने के बाद लेखक की मृत्यु हो जाती है और यहीं पाठक का जन्म होता है। आगे ज्याँ लकाँ यह तक कहते है कि इतिहास की भी मृत्यु हो जाती है। अर्थात् कृति का ही महत्व रह जाता है। + +8455. अंतर्विषयीय. + +8456. उत्तर आधुनिकतावाद किसी प्रकार के पूर्णतावाद में विश्वास नहीं रखता। इसके अनुसार कुछ भी शश्वत, संपूर्ण, अंतिम तथा स्थिर नहीं। सब कुछ अनिश्चित और क्षणिक है। यहाँ तक की शब्दों के कोई स्थायी अथवा निश्चित अर्थ नहीं होते। + +8457. मध्यप्रदेश लोक सेवा सहायक पुस्तिका/कंप्यूटर: + +8458. + +8459. आधुनिक कालीन हिंदी कविता (छायावाद तक): + +8460. "हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती + +8461. सपूत मातृभूमि के- रुको न शूर साहसी! + +8462. अम्बर पनघट में डुबो रही + +8463. मधु मुकुल नवल रस गागरी + +8464. आत्मकथा. + +8465. तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती। + +8466. भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं। + +8467. जिसके अरूण-कपोलों की मतवाली सुन्‍दर छाया में। + +8468. क्‍या यह अच्‍छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ? + +8469. मेरे नाविक ! धीरे-धीरे । + +8470. बढ़ा मन दूना।। + +8471. हुआ बड़ा आनन्द, + +8472. अरे अब जाना। + +8473. लगा खेलने खेल, + +8474. मधुकरियों की भीख लुटाई + +8475. श्रमित स्वप्न की मधुमाया में + +8476. रही बचाए फिरती कब की + +8477. मैंने निज दुर्बल पद-बल पर + +8478. इसने मन की लाज गँवाई।" + +8479. व्योम-तम पुँज हुआ तब नष्ट, अखिल संसृति हो उठी अशोक + +8480. सुना है वह दधीचि का त्याग, हमारी जातीयता विकास + +8481. हमीं ने दिया शांति-संदेश, सुखी होते देकर आनंद + +8482. किसी का हमने छीना नहीं, प्रकृति का रहा पालना यहीं + +8483. हृदय के गौरव में था गर्व, किसी को देख न सके विपन्न + +8484. जियें तो सदा इसी के लिए, यही अभिमान रहे यह हर्ष + +8485. युद्ध कि शुरुआत 2001 में अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए आतंकी हमले के बाद हुयी। + +8486. विरह का जलजात जीवन विरह का जलजात. + +8487. आँसुओं का कोष उर, दृग अश्रु की टकसाल, + +8488. जीवन विरह का जलजात! + +8489. खिल उठे निरुपम तुम्हारी देख स्मित का प्रात; + +8490. उनका जो जीवन है, विरह रूपी मोती के समान है। + +8491. जो समय था मुझे मोती रूपी आंसू का हार पहना कर चला गया है। + +8492. बीन भी हूँ.... + +8493. शाप हूँ जो बन गया वरदान बन्धन में, + +8494. एक हो कर दूर तन से छाँह वह चल हूँ; + +8495. हूँ वही प्रतिबिम्ब जो आधार के उर में; + +8496. पात्र भी मधु भी मधुप भी मधुर विस्मृत भी हूँ; + +8497. जब संसार की जो प्रथम जागृति हुई उस समय मेरे अंदर भी चेतना की अनुभूति हुई। + +8498. मैं उस प्यासे पक्षी के समान हूं जो किसी विशेष नक्षत्र की जल का पान करता है। + +8499. मैं वह आग हूं जो ओस की बूंदों निकलते हैं। + +8500. आज कंजल-अश्रुओं में रिमझिमा ले यह घिरा घन + +8501. अन्य होंगे चरण हारे + +8502. से तिमिर में स्वर्ण बेला + +8503. मोतियों की हाट औ’ + +8504. वेदना-जल, स्वप्न-शतदल + +8505. उस असीम का सुंदर मंदिर मेरा लघुतम जीवन रे! + +8506. मेरे दृग के तारक में नव उत्पल का उन्मीलन रे! + +8507. वह अपने समग्र जीवन को अज्ञात प्रियतम का सुंदर मंदिर माना है + +8508. जाग तुझको दूर जाना. + +8509. आज पी आलोक को डोले तिमिर की घोर छाया + +8510. पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले? + +8511. वज्र का उर एक छोटे अश्रु कण में धो गलाया, + +8512. जाग तुझको दूर जाना! + +8513. है तुझे अंगार-शय्या पर मृदुल कलियां बिछाना! + +8514. लघु परों से नाप सागर; + +8515. प्यास ही जीवन, सकूँगी + +8516. सजलता रहती कहाँ? + +8517. कहाँ से आए बादल काले. + +8518. सागर में क्या सो न सके यह + +8519. दुख-पाथेय सँभाले! + +8520. गर्जन में मधु-लय भर बोले, + +8521. रूपों में भर स्पन्दन अपने + +8522. नभ कहता नयनों में बस + +8523. कृषि-जलवायु क्षेत्रों का वर्गीकरण मुख्यतः क्षेत्रों की विशेषताओं जैसे-तापमान, वर्षा, मृदा कोटि, जलवायु और जल संसाधन उपलब्धता के आधार पर किया गया है। + +8524. बंज़र व व्यर्थ भूमि (Barren add waste lands):-वह भूमि जो प्रचलित प्रौद्योगिकी की मदद से कृषि योग्य नहीं बनाई जा सकती कहलाती है,जैसे-बंज़र, पहाड़ी भू-भाग, मरुस्थल, खड्ड आदि को कृषि अयोग्य व्यर्थ भूमि में वर्गीकृत किया गया है। + +8525. (b) केवल 3 + +8526. बहुफसली पद्धति के माध्यम से रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग को कम किया जा सकता है। + +8527. अन्य क्षेत्र-35.2% + +8528. आर्द्रता के प्रमुख उपलब्ध स्रोत के आधार पर कृषि को सिंचित कृषि तथा वर्षा निर्भर कृषि में वर्गीकृत किया जाता है। सिंचित कृषि में भी सिंचाई के उद्देश्य के आधार पर अंतर पाया जाता है- यह दो प्रकार की है। + +8529. प्रमुख शुष्क भूमि कृषि फसलें- रागी, बाजरा, मूँग, चना तथा ग्वार (चारा फसलें) आदि उगाई जाती हैं। + +8530. 12.3 मिलियन टन गेहूं का उत्पादन + +8531. राजे ने रखवाली की. + +8532. मतलब की लकड़ी पकड़े हुए। + +8533. ऐतिहासिकों ने इतिहास के पन्ने भरे, + +8534. धर्म का बढ़ावा रहा धोखे से भरा हुआ। + +8535. बाँधों न नाव इस ठाँव, बंधु. + +8536. आँखें रह जाती थीं फँसकर, + +8537. देती थी सबके दाँव, बंधु!"
+ +8538. पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक, + +8539. साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाए, + +8540. घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते। + +8541. तुम्हारे दुख मैं अपने हृदय में खींच लूँगा।"
+ +8542. खड़ी खोलती है द्वार - + +8543. पी रही हैं मधु मौन + +8544. शशि-छवि विभावरी में + +8545. घेर रहा चन्द्र को चाव से + +8546. जागो फिर एक बार! + +8547. नयन जल ढल गये, + +8548. शयन-शिथिल बाहें + +8549. फैल जाने दो पीठ पर + +8550. बुद्धि बुद्धि में हो लीन + +8551. जागो फिर एक बार! + +8552. गया दिन, आयी रात, + +8553.
+ +8554. करुणाकर, करुणामय गीत सदा गाते हुए? + +8555. क्या है उद्देश तव? + +8556. निर्निमेष नयनों से + +8557. "आर्त भारत! जनक हूं मैं + +8558. तुमने मुख फेर लिया, + +8559. बरसो आसीस, हे पुरुष-पुराण, + +8560. तपेदिक के इलाज के लिए छोड़ा है। + +8561. एम. ए. और बैरिस्टर, + +8562. राजों के बाजू पकड़, बाप की वकालत से; + +8563. देश के किसानों, मजदूरों के भी अपने सगे + +8564. स्वर पर वही सँवार। + +8565. गङ्गापुत्र, पुरोहित, महाब्राह्मण, चौकीदार; + +8566. बाकी परदेश में कौड़ियों के नौकर हैं + +8567. लोगों में भाषण है। + +8568. लोगों पर चढ़ता है। + +8569. एक-एक आ गये। + +8570. चैन नहीं लेना है जब तक विजयी न हो। + +8571. कम्पू को लादता है लकड़ी, कोयला, चपड़ा। + +8572. गोली जो लगी थी, + +8573. कहते हैं, इनके रुपये से ये चलते हैं, + +8574. हमारे अपने हैं यहाँ बहुत छिपे हुए लोग, + +8575. जब ये कुछ उठेंगे, + +8576. "तो फिर कैसा होगा?" लुकुआ ने प्रश्न किया। + +8577. अपने मन में कहा मैंने, मैं महंगू हूँ, + +8578. सखि वसन्त आया । + +8579. बही पवन बंद मंद मंदतर, + +8580. नये उगे पत्ते रूपी वस्त्रो वाली , नयी आयु अर्थात युवती हो गई लतिका, जो आज तक (पतझड़ के प्रभाव से) प्रोषितपतिका के समान हो गई थी, वह खिलकर आज खिले वृक्ष रूपी पति से मिल रही है। अर्थात वृक्षो के सहारे ऊपर उठकर वन-लताएँ हरी-भरी हो गई हैं।भंवरो की टोलियां उन कलियों का यशोगान बंदौजनो की तरह गया रही हैं।उस पर कोयल ने गूँज-गूँजकर सारे आकाश को सरस् और मुखरित बना दिया है। + +8581. "हाय! मृत्यु का ऐसा अमर, अपार्थिव पूजन? + +8582. आत्मा का अपमान, प्रेत औ’ छाया से रति!! + +8583. गत-युग के बहु धर्म-रूढ़ि के ताज मनोहर + +8584. + +8585. स्वर्ग की सुषमा जब साभार + +8586. नग्न-सुंदरता थी सुकुमार, + +8587. अपरिचित जरा-मरण-भ्रू-पात! + +8588. झुकी थी जो यौवन के भार, + +8589. प्रात का सोने का संसार + +8590. केंचुली, कास; सिवार + +8591. चार दिन सुखद चाँदनी रात, + +8592. अधर जाते अधरों को भूल! + +8593. शून्य साँसों का विधुर वियोग + +8594. आप आँसू रोते निरुपाय; + +8595. चुका लेता दुख कल ही ब्याज, + +8596. चमक, छिप जाती है तत्काल; + +8597. अभी उत्सव औ' हास हुलास + +8598. ओस के आँसू नीलाकाश; + +8599. विश्व का करुण विवर्तन। + +8600. छोड़ रहे हैं जग के विक्षत वक्षःस्थल पर! + +8601. वक्र कुण्डल + +8602. घूमते शत-शत भाग्य अनाथ, + +8603. हर लेते हो विभव, कला, कौशल चिर-संचित! + +8604. पद दलित धरातल! + +8605. विपुल वासना विकच विश्व का मानस शतदल + +8606. नैश गमन सा सकल + +8607. तुम्हारा ही इतिहास! + +8608. अये, एक रोमांच तुम्हारा दिग्भूकम्पन, + +8609. वाताहत हो गगन + +8610. सींचती उर पाषाण! + +8611. हाय री दुर्बल भ्रान्ति! + +8612. एक सौ वर्ष, नगर उपवन, + +8613. रत्न दीपवलि, मन्त्रोच्चार; + +8614. मेघ मारुत का माया जाल! + +8615. प्रात ही तो कहलाई मात + +8616. गड़ी है बिना बाल की नाल! + +8617. हाय! रुक गया यहीं संसार + +8618. रज्जु-सा, छिद्रों का कृश काय! + +8619. न अधरों में स्वर, तन में प्राण, + +8620. नापती जगती का विस्तार; + +8621. भृकुटि के कुंडल वक्र मरोर + +8622. निगल जाता निज बाल! + +8623. छेड़कर शस्त्रों की झनकार + +8624. अखिल मृत देशों के कंकाल; + +8625. शून्य निःश्वासों के आकाश, + +8626. शान्ति सुख है उस पार! + +8627. विश्व का तत्त्वपूर्ण दर्शन! + +8628. बना सैकत के तट अतिवात + +8629. एक विधि के रे नित्य अधीन! + +8630. मूँदती नयन मृत्यु की रात + +8631. फलों में फिरती फिर अम्लान + +8632. तरल जलनिधि में हरित विलास; + +8633. लोल लहरों में लास! + +8634. लोचनों में लावण्य अनूप, + +8635. भावनामय संसार! + +8636. कामनाओं के विविध प्रहार, + +8637. छलकती ज्ञानामृत की धार! + +8638. तरसते हैं हम आठों याम, + +8639. साधना ही जीवन का मोल! + +8640. आज का दुख, कल का आह्लाद, + +8641. मृत्यु, गति-क्रम का ह्रास! + +8642. गँवाने आये हैं अज्ञात + +8643. नवलता ही जग का आह्लाद! + +8644. वही विस्मय का शिशु नादान + +8645. डुबा देता नित तन, मन, प्राण! + +8646. मूँद प्राचीन मरण, + +8647. दिशावधि में पल विविध प्रकार + +8648. करते जगती को अजस्र जीवन से उर्वर; + +8649. घूमते तुम नित चक्र समान + +8650. जहाँ हास के अधर, अश्रु के नयन करुणतर + +8651. हमारे निज सुख, दुख, निःश्वास + +8652. सृष्टि शिराओं में संचारित करता जीवन; + +8653. अटल शास्ति नित करते पालन! + +8654. अहे महांबुधि! लहरों-से शत लोक, चराचर + +8655. जलते, बुझते हैं स्फुलिंग-से तुम में तत्क्षण; + +8656. मौन निमंत्रण. + +8657. न जाने नक्षत्रों से कौन + +8658. प्रखर झरती जब पावस-धार; + +8659. विधुर उर के-से मृदु उद्गार + +8660. सिंधु में मथकर फेनाकार, + +8661. स्वर्ण, सुख, श्री सौरभ में भोर + +8662. खोल देता तब मेरे मौन! + +8663. न जाने, खद्योतों से कौन + +8664. तड़प, बन जाते हैं गुंजार; + +8665. शून्य शय्या में श्रमित अपार + +8666. जान मुझको अबोध, अज्ञान, + +8667. नौका विहार. + +8668. तापस-बाला गंगा, निर्मल, शशि-मुख से दीपित मृदु-करतल, + +8669. सिमटी हैं वर्तुल, मृदुल लहर। + +8670. मृदु मंद-मंद, मंथर-मंथर, लघु तरणि, हंसिनी-सी सुन्दर + +8671. पलकों में वैभव-स्वप्न सघन। + +8672. जिनके लघु दीपों को चंचल, अंचल की ओट किये अविरल + +8673. दिखलाता, मुग्धा-सा रुक-रुक। + +8674. अति दूर, क्षितिज पर विटप-माल, लगती भ्रू-रेखा-सी अराल, + +8675. छाया की कोकी को विलोक? + +8676. चाँदी के साँपों-सी रलमल, नाँचतीं रश्मियाँ जल में चल + +8677. हम बढ़े घाट को सहोत्साह। + +8678. शाश्वत नभ का नीला-विकास, शाश्वत शशि का यह रजत-हास, + +8679. करता मुझको अमरत्व-दान।" + +8680. और, फूल फलकर मै मोटा सेठ बनूगा! + +8681. बाल कल्पना के अपलक पांवड़े बिछाकर। + +8682. ग्रीष्म तपे, वर्षा झूलीं, शरदें मुसकाई + +8683. गीली तह को यों ही उँगली से सहलाकर + +8684. किन्तु एक दिन , जब मैं सन्ध्या को आँगन में + +8685. छाता कहूँ कि विजय पताकाएँ जीवन की; + +8686. निर्निमेष , क्षण भर मै उनको रहा देखता- + +8687. नन्हे नाटे पैर पटक , बढ़ती जाती है। + +8688. और सहारा लेकर बाड़े की टट्टी का + +8689. नहीं समझ पाया था मै उसके महत्व को + +8690. इसमे मानव ममता के दाने बोने है + +8691. कौन, कौन तुम परिहत वसना, + +8692. जर्जरिता, पद दलिता सी, + +8693. हाय! तुम्हें भी त्याग गया क्या + +8694. विरह मलिन, दुख विधुरा सी? + +8695. भू पलकों पर स्वप्न जाल सी, + +8696. कौन छिपी हो अलि! अज्ञात + +8697. अविदित भावाकुल भाषा सी, + +8698. अपराधी सी भय से मौन। + +8699. आशा के नव इंद्रजाल सी, + +8700. नीरवता की सी झंकार, + +8701. करतीं छिप छिप छाया जल में, + +8702. विश्व विदूषक सी अज्ञात! + +8703. निर्जनता के मानस पट पर + +8704. फैला कर अपना अंचल, + +8705. सुला चुकी हो क्या तुम अपनी, + +8706. नीरव शब्दों में निर्भर + +8707. ऐ अवाक् निर्जन की भारति, + +8708. यह छाया तन, छाया लोक, + +8709. श्रांत यात्रियों का स्वागत क्या + +8710. पर सेवा का मार्ग अमर? + +8711. श्रमित, तपित अवलोक पथिक को + +8712. बढ़ कर नित तरुवर के संग, + +8713. पर सेवा रत रहती हो तुम, + +8714. सोने दो सुख से क्षणभर! + +8715. गाओ, गाओ, विहग बालिके, + +8716. लग कर गले, जुड़ा लें प्राण, + +8717. अधफटे, कुचैले, जीर्ण वसन,-- + +8718. टहनी सी टाँगें, बढ़ा पेट, + +8719. लोटते धूल में चिर परिचित! + +8720. कुल मान न करना इन्हें वहन, + +8721. जीवन ऐश्वर्य न इन्हें ज्ञान, + +8722. मानव प्रति मानव की विरक्ति + +8723. 3 सही है। + +8724. ४.भारत की लगभग 21.92%जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे स्तर में है। + +8725. १.लड़कों के लिए इच्छा + +8726. संयुक्त राष्ट्र संघ और वैश्विक संघर्ष/बाल्कन युद्ध: + +8727. 20 वीं शताब्दी की शुरुआत तक, बुल्गारिया, ग्रीस, मोंटेनेग्रो और सर्बिया ने तुर्क साम्राज्य से आजादी हासिल की थी, लेकिन उनकी जातीय आबादी के बड़े तत्व तुर्क शासन के अधीन रहे। 1912 में इन देशों ने बाल्कन लीग का गठन किया। + +8728. सहस्राब्दी विकास लक्ष्य' (Millennium Development Goals (MDGs)) कहा जाता है। संयुक्त राष्त्र के उस समय के 189 सदस्य राष्ट्रों तथा 22 अन्तरराष्ट्रीय संस्थाओं ने 2015 तक निम्नलिखित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये संकल्प लिया:- + +8729. किशोर न्याय अधिनियम + +8730. यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण संबंधी अधिनियम + +8731. रिसाइकल प्लास्टिक से बने खिलौनों में सेहत के लिए बेहद हानिकारक रसायन डायवर्सन काफी मात्रा में पाया जाता है।जो बच्चों को गंभीर बीमारियों का शिकार बना सकती है परंतु सस्ते सुंदर और टिकाऊ के फेर में रिसाइकल प्लास्टिक से बने खिलौने खरीदे जाते हैं अंतरराष्ट्रीय संगठन खिलौनों में जहर पर एक अध्ययन जारी किया था + +8732. पं. हजारीप्रसाद द्विवेदी का साहित्यिक व्यक्तित्व बहुआयामी है। वे  जन-चेतना की दृष्टि से साहित्येतिहास के शोधकर्ता एवं व्याख्याता, मर्मी विचारक, उपन्यासकार, ललित निबन्धकार, सम्पादक तथा एक बहुअधीत एवं बहुश्रुत आचार्य के रूप में मान्य है। + +8733. २) हिन्दी-साहित्य के माध्यम से व्यक्त चिन्ताधारा को भारतीय चिन्ता के स्वाभाविक विकास के रूप में स्वीकार किया जाय। + +8734. शुक्लजी के अनुसार यह जिज्ञासा सच्ची रहस्य भावना का आधार है। कबीरदास ने अपने भाव जिस अज्ञात प्रियतम को निर्वेदित किए हैं, वह मानव-चेतना द्वारा संकेतित हैं। शुक्लजी कबीर में सहृदयता तो कही पाते ही नहीं, प्रशंसा भी करते हैं तो यह कहकर कि कबीर की उक्तियों में कही-कहीं विलक्षण प्रभाव और चमत्कार हैं।पं. रामचन्द्र शुक्ल का विचार था कि कबीर मूर्तिपूजा का खण्डन 'मुसलमानी' जोश के साथ करते थे। द्विवेदीजी का मानना हैं कि - कबीर की जाति, निर्गुण साधकों की परम्परा, इस्लाम का उन पर प्रभाव, उनकी योगपरक उलटवासियों की व्याख्या, बाह्माचार का खण्डन आदि यह सब कबीर ने पूर्ववर्ती साधकों से ग्रहण किया था।जाति-भेद और ऊंच-नीच तथा बाह्म कर्मकाण्ड पर प्रहार करने की इस देश में बहुत पुरानी परम्परा हैं। इसलिए कबीर ने जीवन काशी में बिताया और मृत्यु के समय मगहर में जाकर अपने शरीर का त्याग किया, शायद वे इस प्रवाद और अन्धविश्वास को तोड़ने के लिए ही अन्तकाल में मगहर गए होंगें। + +8735. द्विवेदीजी इसी विकास-यात्रा को मनुष्य की 'जय यात्रा' कहते हैं। यही कारण हैं कि द्विवेदीजी की गणना हिन्दी के प्रगतिशील आलोचकों में की जा सकती हैं। + +8736. धान के लिए आवश्यक तापमान 24 डिग्री सेल्सियस वर्षा 150 सेंटीमीटर। + +8737. सामान्यतः मानसून-पूर्व फसलों की बुवाई का कार्य अप्रैल के प्रथम सप्ताह से प्रारंभ हो जाता है। + +8738. + +8739. समाचार-पत्र में में प्रूफ संशोधन विभाग होता है वह प्रूफ संशोधक एक, दो या अधिक भी हो सकते हैं। सम्पादक या उप-सम्पादक के द्वारा समाचार, लेख तथा अन्य प्रकार की सामग्री को लिखकर और टाइप करवाकर कम्पोजिंग विभाग में भेज दिया जाता है। कम्पोज होने के बाद उसका प्रूफ संशोधक के पास जाता है जिसे वह उसकी काॅपी (पाण्डुलिपि) से मिलाकर गल्तियों को चिंहिंत करके शुध्द करता है और उन्हें ठीक करने के लिये पुन: कम्पोजिंग विभाग मेंंं भेज दिया जाता है। वहां वह ठीक की जाती है तथा उनका मिलान किसी तृतीय व्यक्ति द्वारा कि जाती है। + +8740. हिंदी विकि सम्मेलन २०२०/जमशेदपुर वीमेंस कॉलेज विकि कार्यशाला: + +8741. कार्यक्रम रूपरेखा. + +8742. कार्यालयी हिंदी/रेडियो लेखन: + +8743. भारतवर्ष में रिडियो-प्रसारण का इतिहास सन् १९२६ से शुरू होता है। बम्बई, कलकत्ता तथा मद्रास में व्यक्तिगत रेडियो क्लब स्थापित किए गए थे। इन क्लबों के व्यवसायियो ने एक प्रसारण कम्पनी गठित की थी। और उसके माध्यम से निजी प्रसारण सेवा आरम्भ कर दी। सन् १९२६ में ही तत्कालीन भारत सरकार ने इस प्रसारण कम्पनी को देश प्रसारण केन्द्र स्थापित करने का लाइसेंस प्रदान किया। इस कम्पनी की ओर से पहला प्रसारण २३ जुलाई, १९२७ को बम्बई से हुआ। इसे 'इण्डिया ब्राडकास्टिंग कम्पनी ने किया था। इसी के साथ बम्बई रेडियो स्टेशन का उद्घाटन तत्कालीन वाइसराय लार्ड इर्विन ने किया था। इसके बाद कलकत्ता में उद्घाटन हुआ। यह एक संघर्ष पूर्ण शुरुआत थी। कम शक्ति के माध्यम तंंरंग-प्रेेक्षक लाइसेंस की तुलना मेें कम आय तथा लागत की अधिकता आदि के काारण यह कम्पनी(इण्डिया ब्राडकास्टिंग कम्पनी) बंद होने की स्थिति में आ गई। इसी दौरान १९३० ई. में प्रसारण सेेेवा का प्रबन्ध भारत सरकार ने अपने अधिकार में ले लिया। अब इसका नाम हो गया 'इण्डिया स्टेट ब्राडकास्टिंग सर्विस । यह सरविस विकसित होती चली गई और बाद में चलकर १९३६ ई. में इसका नाम 'आल इण्डिया रेडियो' हो गया। १९३५ में मैसूर रियासत में एक अलग रेडियो स्टेशन की स्थापना हुई जिसका नाम 'आकाशवाणी रखा गया था। देश की स्वतंत्रता के बाद १९५७ मेंं भारत सरकार ने भी 'आल इंडिया रेडियो को 'आकाशवाणी' मेें बदल दिया। + +8744. २. प्रयोजनमूलक हिन्दी (कामकाजी हिन्दी)- डां. रमेश तरूण, अशोक प्रकाशन २६१५, नई सड़क, दिल्ली-६, पृष्ठ- १९२ + +8745. याद आता तुम्हारा सिंदूर तिलकित भाल! + +8746. कौन चाहेगा कि उसका शून्य में टकराय यह उच्छ्वास? + +8747. वेदना ही नहीं उसके पास + +8748. यहां है सुख-दुःख का अवबोध + +8749. याद आते स्वजन + +8750. याद आते मुझे मिथिला के रुचिर भू-भाग + +8751. याद आते वेणुवन वे नीलिमा के निलय, + +8752. अन्न-पानी और भाजी-साग + +8753. हृदय से पर आ रही आवाज- + +8754. मरूंगा तो चिता पर दो फूल देंगे डाल + +8755. लालिमा का जब करुण आख्यान + +8756. उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान संपूर्ण भारत में एक नयी बौद्धिक चेतना और सांस्कृतिक उथल-पुथल दृष्टिगोचर होती है। प्लासी के युद्ध (१७५७ ई॰) में विदेशी सत्ता के हाथों पराजय, उपनिवेशवाद तथा ज्ञान-विज्ञान के प्रसार के साथ-साथ पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से यह जागृति उत्पन्न हुई। इस जागृति के दौरान मानव को केन्द्र में लाया गया, विवेक की केन्द्रीयताा, ज्ञान-विज्ञान का प्रसार, रूढ़ियों का विरोध और सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन का नये सिरे से चिन्तन आरम्भ हुआ। + +8757. नवजागरण या पुनर्जागरण की यह प्रक्रिया यूरोप में ८वीं से १६वीं शताब्दी के बीच घटित होती है। समाज में धार्मिक पाखण्ड, परम्परा, कुप्रथा के बढ़ने से धर्म सत्ता का विरोध आरम्भ हुआ। "मैकियावेली" ने अपनी पुस्तक "प्रिंस" में राजा को पोप से अधिक शक्तिशाली कहकर धार्मिक पाखण्ड का विरोध किया। + +8758. भारत में यह चेतना हर जगह हर समाज में अलग-अलग वक्त पर आयी किन्तु सबका उद्देश्य सुधार ही लाना था। रेल, तार, डाक का जाल बिछाना, प्रेस खोलना, अंग्रेजी शिक्षा का नींव डालना और फोर्ट विलियम कॉलेज बनवाना सब अंग्रेज़ों ने अपने हित के लिए ही किया पर इससे नवजागरण का विकास भी भारत में हुआ। फोर्ट विलियम कॉलेज के लिए अंग्रेजों द्वारा अपने देश से मंगाई पुस्तकों से हमने भी लाभ ग्रहण किया और हमारी अंधविश्वास में फंसी बुद्धि आधुनिकता की और अग्रसर हुई। प्रेस की स्थापना का श्रेय बैपतिस्ट मिशन के प्रचारक कैरे को दिया जाता हैं। सन् १८०० में वार्ड कैरे और मार्शमैन ने कलकत्ता से थोड़ी दूर श्रीरामपुर में डैनिश मिशन की स्थापना की। + +8759. वहीं मीर दीन-ओ-मज़हब की बात पूछने वालों से कहते हैं - + +8760. हिन्दी नवजागरण. + +8761. आगे चल कर जनता में भाईचारे की भावना को भी साहित्य द्वारा सभी में विकसित करने की कोशिश भी की गई। इस भावना को विकसित करने में सबसे महत्वपूर्ण योगदान द्विवेदी युगीन कवियों का था। + +8762. स्त्रियों को इससे पहले केवल भोग की वस्तु समझा जाता था किन्तु अब स्त्रियों की पीड़ा और उसके कष्टों पर लिखा जाने लगाः- + +8763. लगता है विद्रोह मात्र ही अब उसका प्रतिकार है + +8764. मैने मैं शैली अपनाई, देखा दुःखी निज भाई + +8765. निराला ने तो स्त्रियों को उस काली की तरह चित्रित किया है जो ताण्डव कर अपने सारे दुःखो का नाश कर सकती हैं। + +8766. एक बार बस और नाच तू श्यामा! + +8767. + +8768. भारत में टेलीविजन का आगमन १९५९ ई. में हुआ। यूनेस्को को एक परियोजना के अन्तर्गत नए संचार माध्यम के रूप में स्कूलों के बच्चों और आम आदमी को उपयोगी समुदायिक विकास के कार्यक्रम दिखाने के लिए 'टेलीविजन' की स्थापना हुई। १९६५ ई. में शिक्षा तथा सामुदायिक कायक्रमों के साथ सूचना तथा मनोरंजन संबंधी कायक्रमों का भी प्रसारण होने लगा। तथा १९७६ में 'आकाशवाणी' से अलग 'दूरदर्शन' केंद्र की स्थापना हुई और आज देश में टी.वी. चैनलों का जाल बिछा हुआ है। 'उपग्रह' प्रणाली ने टेलीविजन को नया आयाम दिया है, जिसे केबल टी.वी. कहा जाता है। इस तकनिक से 'डिश एंटीना' की सहायता से हम देश-विदेश के सभी चैनल देख सकते हैं। + +8769. केंद्रीय भंडार(Kendriya Bhandar) + +8770. सिविल सेवा मुख्य परीक्षा प्रश्नोत्तर. + +8771. इससे संबंधित कार्टाजेना प्रोटोकॉल पर भारत ने 23 जनवरी 2001 को हस्ताक्षर किए वेटलैंड इंटरनेशनल एक गैर सरकारी एवं गैर-लाभकारी संगठन है इसका मुख्यालय नीदरलैंड में है। + +8772. ओजोन 3से 7% + +8773. प्रमुख दिवस + +8774. हिंदी आलोचना एवं समकालीन विमर्श/रामचंद्र शुक्ल की सैद्धांतिक और व्यावहारिक आलोचना: + +8775. शुक्लजी की समिक्षा का सैध्दांतिक आधार भारतीय 'रसवाद' हैं। उन्होंने 'रसवाद' को आध्यात्मिक भूमि से उतार कर मनोविज्ञान आधार पर प्रतिष्ठित किया। 'रस' को काव्य की आत्मा स्वीकार करके शेष समस्त मान्यताओं को या तो इसी के भीतर समाविष्ट किया या अप्रासंगिक प्रमाणित किया। उन्होंने बताया कि 'शब्द-शक्ति' रस और अलंकार ये विषय-विभाग काव्य समीक्षा के लिए इतने उपयोगी हैं कि इनको अन्तर्भूत करके संसार की नयी-पुरानी सब प्रकार की कविताओं की बहुत ही सूक्ष्म, मार्मिक विचेचन हो सकती हैं। 'रस-सिध्दांत' के अतिरिक्त आचार्य शुक्ल ने रीति, अलंकार, ध्वनि, गुण, वक्रोक्ति और औचित्य सिध्दांतों का अध्ययन भी किया था, किन्तु काव्य में इनकी स्थिति उन्हें वहीं तक मान्य थी जहां तक ये रस के पोषक, उपकारक, आश्रित या रक्षक बनकर उपस्थित हो।रस को परिभाषित करते हैं कि - लोक-हृदय में हृदय को लीन होने की दशा का नाम 'रस दशा' है। जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञानदशा कहलाती है उसी प्रकार हृदय की यह मुक्तावस्था रसदशा कहलाती है। हृदय की इसी मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्दविधान करती आई है उसे कविता कहते हैं। + +8776. कल्पना कवि को अपार शक्ति और क्षेत्र प्रदान करती है। लेकिन कवि को कल्पना का उपयोग अत्यन्त सावधानी से करना पड़ता है। वस्तुत: कल्पना की उड़ान वह नहीं भर सकता। उड़ान उसने भरी नहीं कि लड़खड़ा कर गीरा। कल्पना करने में उसे निरन्तर अपने कदम मजबूती से जमीन पर ही रखने पड़ते हैं। जिसे हम कल्पना कहते हैं वह और कुछ नहीं यथार्थ को ही सजाना-संवारना हैं। + +8777. पद्मावत प्रेम काव्य है। उसमें नायक करूणा का भाव लेकर लोकरक्षार्थ कर्मक्षेत्र में प्रवृत नहीं होता है, लेकिन यह आवश्य है कि प्रेम विघ्न-बाधामय, कंटकाकीर्ण मार्ग पर संघर्ष करता हुआ आगे बढ़ता है। लोकरक्षार्थ न सही लेकिन विस्तृत कर्मक्षेत्र में प्रवृत होने का अवसर नायक को मिला है। + +8778. + +8779. प्राकृतिक गैस के इन विशाल संसाधनों का उपयोग किसके उत्पादन में किया जा सकता है उर्वरक। + +8780. रूर-जर्मनी + +8781. हिंदी आलोचना एवं समकालीन विमर्श/द्विवेदी युगीन हिंदी आलोचना: + +8782. १९०१ ई. की सरस्वती में द्विवेदी ने कवियों का कर्त्तव्य निर्धारित करते हुए लिखा " आजकल हिन्दी संक्रान्ति की अवस्था में है। हिन्दी कवि का कर्त्तव्य यह है कि वह लोगों की रुचि का विचार रखकर अपनी कविता ऐसी सहज और मनोहर रचे कि साधारण पढ़े-लिखे लोगों में भी पुरानी कविता के साथ-साथ नई कविता पढ़ने का अनुराग उत्पन्न हो जाए।" + +8783. + +8784. तापमान 25 से 35 डिग्री सेल्सियस + +8785. उत्तर प्रदेश>महाराष्ट्र> कर्नाटक >तमिलनाडु। + +8786. चाय. + +8787. मृदा: चाय की खेती के लिये सबसे उपयुक्त छिद्रयुक्त अम्लीय मृदा (कैल्शियम के बिना) होती है, जिसमें जल आसानी से प्रवेश कर सके। + +8788. + +8789. हिन्दी आलोचना का इतिहास रीतिकाल के थोड़ा पहले शुरू होता है। सच तो यह है कि रीतिकाल का रीतिबध्द साहित्य रीतिवादी आलोचना से प्रभावित है, और लक्षणों के उदाहरण रूप में रचा गया है। रीतिकालीन लक्षण ग्रन्थों का उपजीव्य संस्कृत का काव्य-शास्त्र है। संस्कृत काव्य-शास्त्र के चार प्रसिद्ध सम्प्रदाय १. भामह, उद्भट का अलंकार संप्रदाय, २. कुन्तक का वक्रोक्ति सम्प्रदाय ३. वामन का रीति सम्प्रदाय ४. आनन्दवर्धन का ध्वनि सम्प्रदाय। रीतिकाल में हिन्दी का जो काव्यशास्त्र रचा गया ,वह इन्हीं सम्प्रदायों की नकल पर। कहा जाता है कि 'हिमतरंगिणी' के लेखक कृपाराम हिन्दी के सर्वप्रथम काव्यशास्त्री थे। उन्होंने १६ वी. शताब्दी में ही थोड़ा बहुत रस-निरूपण किया था, लेकिन हिन्दी में काव्य-रीति का सम्यक् समावेश पहले-पहल आचार्य केशव ने ही किया। पं. रामचन्द्र शुक्ल ने रीतिकालीन काव्य शास्त्र की सिमाओं की ओर संकेत करते हुए लिखा है- इस एकीकरण का प्रभाव अच्छा नहीं पड़ा। आचार्यत्व के लिए जिस सूक्ष्म विवेचन और पर्यालोचन-शक्ति की अपेक्षा होती है उसका विकास नहीं हुआ। कवि लोग दोहे में अपर्याप्त लक्ष्ण देकर अपने कविकर्म में प्रवृत हो जाते थे। इसका कारण यह भी था कि उस समय गध का विकास नहीं हुआ था। जो कुछ लिखा जाता था वह पध में ही अतः पध में किसी बात की सम्यक् मीमांसा या उस पर तर्क-वितर्क नहीं हो सकता। + +8790. + +8791. बौद्ध धर्म &जैन धर्म/: + +8792. 1.हिन्दी आलोचना की पारिभाषिक शब्दावली--डाॅ. अमरनाथ + +8793. मध्यप्रदेश लोक सेवा सहायक पुस्तिका/प्रमुख स्थल: + +8794. हिंदी आत्मकथा कोश/आपहुदरी(एक जिद्दी लड़की की आत्मकथा): + +8795. उनकी मान्यता थी कि किसी से प्यार करने के लिए कोई आकर्षण या कोई समानता तो होनी ही चाहिए। प्रेमी का कोई स्तर भी होना चाहिए,जो प्यार करने वाला हो वह मेरे अनुरूप हो इसे मैं जरूरी मानती थी यानी वह मेरे आकर्षण का केंद्र बनने के लायक या स्तर का जरूर हो।(पृ-257) + +8796. काश मुझे भी भैया जैसा पति मिले जो मुझे मुफ्त हवा में उड़ने दे तो मैं भी अपने सिर से कहीं ऊंची उड़ान भर लूंगी मैं सोचा करती थी।काश हर मर्यादा टूटने पर स्त्री के बदले पुरुष टीका तोड़ने का जिम्मा ले लेता तो स्त्री कभी की मुक्त हो गई होती।-पृ132 + +8797. मोक्ष भारतीय दर्शन का मुख्य विषय रहा है,जिसका अर्थ है जन्म और मृत्यु के चक्र से उद्धार।मोक्ष का सबसे पहले उपदेश महात्मा बुद्ध ने दिया, हालाँकि बाद में अन्य ब्राह्मणपंथी दार्शनिकों ने भी इसे आगे बढ़ाया। + +8798. इसका मूल आधार ज्ञानेन्द्रिय और कर्मेन्द्रियों की एकाग्रता है। + +8799. वेदांत दर्शन. + +8800. शंकराचार्य का अद्वैतवाद सिद्धांत, 9वीं शताब्दी ईस्वी में विकसित वेदांत दर्शन का भाग है।इसके अनुसार, ब्रह्म ही एकमात्र सत्य है और यह जगत मिथ्या (ब्रह्म सत्यं, जगत मिथ्या) है। + +8801. इसमें ब्रह्मा को कुछ विशेषताओं का अधिकारी माना गया है जबकि शंकराचार्य के अद्वैतवाद में ब्रह्मा को सभी गुणों और विशेषताओं से रहित माना गया है। + +8802. + +8803. साधारण शब्दो मे मनोविज्ञान को व्यक्ति के व्यवहार तथा उसकी मानसिक प्रक्रियाओं के अध्ययन का विज्ञान कहा जाता है। परंतु भिन्न भिन्न मनोवैज्ञानिको के द्वारा मनोविज्ञान की परिभाषा भिन्न भिन्न दी गई है। मनोविज्ञान को विज्ञान की श्रेणी मे खड़ा करने का कार्य "विल्हेम वुण्ट" के द्वारा किया गया। + +8804. जबकि निर्धनता देश की सामाजिक-आर्थिक संरचना को प्रदर्शित करता है। + +8805. कहानीकाबुलीवालारवींद्रनाथ टैगोर + +8806. मन ही मन में मैंने कहा - साली और फिर बोला, "मिनी, तू जा, भोला के साथ खेल, मुझे अभी काम है, अच्छा।" + +8807. इधर काबुली ने आकर मुस्कराते हुए मुझे हाथ उठाकर अभिवादन किया और खड़ा हो गया। मैंने सोचा, वास्तव में प्रतापसिंह और कंचनमाला की दशा अत्यन्त संकटापन्न है, फिर भी घर में बुलाकर इससे कुछ न खरीदना अच्छा न होगा। + +8808. कुछ देर बाद, घर लौटकर देखता हूं तो उस अठन्नी ने बड़ा भारी उपद्रव खड़ा कर दिया है। + +8809. मैंने जाकर मिनी की उस अकस्मात मुसीबत से रक्षा की, और उसे बाहर ले आया। + +8810. रहमत काल्पनिक श्वसुर के लिए अपना जबर्दस्त घूँसा तानकर कहता, "हम ससुर को मारेगा।" + +8811. रहमत काबुली की ओर से भी वह पूरी तरह निश्चिंत नहीं थी। उस पर विशेष नजर रखने के लिए मुझसे बार-बार अनुरोध करती रहती। जब मैं उसके शक को परिहास के आवरण से ढकना चाहता तो मुझसे एक साथ कई प्रश्न पूछ बैठती, "क्या कभी किसी का लड़का नहीं चुराया गया? क्या काबुल में गुलाम नहीं बिकते? क्या एक लम्बे-तगड़े काबुली के लिए एक छोटे बच्चे का उठा ले जाना असम्भव है?" इत्यादि। + +8812. देखूँ तो अपने उस रहमत को दो सिपाही बाँधे लिए जा रहे हैं। उनके पीछे बहुत से तमाशाई बच्चों का झुंड चला आ रहा है। रहमत के ढीले-ढाले कुर्ते पर खून के दाग हैं और एक सिपाही के हाथ में खून से लथपथ छुरा। मैंने द्वार से बाहर निकलकर सिपाही को रोक लिया, पूछा, "क्या बात है?" + +8813. रहमत ताड़ गया कि उसका यह जवाब मिनी के चेहरे पर हँसी न ला सकेगा और तब उसने हाथ दिखाकर कहा, "ससुर को मारता, पर क्या करूँ, हाथ बँधे हुए हैं।" + +8814. सवेरे दिवाकर बड़ी सज-धज के साथ निकले। वर्षों के बाद शरद ऋतु की यह नई धवल धूप सोने में सुहागे का काम दे रही है। कलकत्ता की सँकरी गलियों से परस्पर सटे हुए पुराने ईंटझर गन्दे घरों के ऊपर भी इस धूप की आभा ने एक प्रकार का अनोखा सौन्दर्य बिखेर दिया है। + +8815. मैंने पूछा, "क्यों रहमत, कब आए?" + +8816. शायद उसे यही विश्वास था कि मिनी अब तक वैसी ही बच्ची बनी है। उसने सोचा हो कि मिनी अब भी पहले की तरह 'काबुल वाला, ओ काबुल वाला' पुकारती हुई दौड़ी चली आएगी। उन दोनों के पहले हास-परिहास में किसी प्रकार की रुकावट न होगी? यहाँ तक कि पहले की मित्रता की याद करके वह एक पेटी अंगूर और एक कागज के दोने में थोड़ी-सी किसमिस और बादाम, शायद अपने देश के किसी आदमी से माँग-ताँगकर लेता आया था। उसकी पहले की मैली-कुचैली झोली आज उसके पास न थी। + +8817. मैंने उसके हाथ से सामान लेकर पैसे देने चाहे, लेकिन उसने मेरे हाथ को थामते हुए कहा, "आपकी बहुत मेहरबानी है बाबू साहब, हमेशा याद रहेगी, पिसा रहने दीजिए।" तनिक रुककर फिर बोला- "बाबू साहब! आपकी जैसी मेरी भी देश में एक बच्ची है। मैं उसकी याद कर-कर आपकी बच्ची के लिए थोड़ी-सी मेवा हाथ में ले आया करता हूँ। मैं यह सौदा बेचने नहीं आता।" + +8818. मिनी अब सास का अर्थ समझने लगी थी, अत: अब उससे पहले की तरह उत्तर देते न बना। रहमत की बात सुनकर मारे लज्जा के उसके कपोल लाल हो उठे। उसने मुँह को फेर लिया। मुझे उस दिन की याद आई, जब रहमत के साथ मिनी का प्रथम परिचय हुआ था। मन में एक पीड़ा की लहर दौड़ गई। + +8819. भारतीय काव्यशास्त्र/ध्वनि के भेद: + +8820. चल खुसरो घर आपने सांझ भई चहु देस।। + +8821. गहन आनुमानिता + +8822. ब्रह्मराक्षस + +8823. फिर भी मैल + +8824. एक अचम्भा देखा रे भाई + +8825. असंलक्ष्यक्रम. + +8826. जहाँ शुरूआत से ही कविता का अर्थ मिलने लगे वहाँ संलक्ष्यक्रम होता है। इसमें वाच्यार्थ और व्यंग्यार्थ का क्रम निश्चित होता यहाँ वस्तु ध्वनि और अलंकार ध्वनि की प्रतीति होती है। उदाहरण हम देख सकते हैः- + +8827. भारत का भूगोल/जनजातियाँ एवं भाषाएँ: + +8828. भुटिया-सिक्किम,पश्चिम बंगाल एवं त्रिपुरा में पाई जाती है। यह भी ऋतु प्रवास करती हैं। + +8829. विशिष्ट आपेक्षिकता: + +8830. आपेक्षिकता का सिद्धान्त + +8831. प्रकाश से तेज सिग्नल, कारणता और विशिष्ट आपेक्षिकता + +8832. गणितीय दृष्टिकोण + +8833. पर्यावरण भूगोल (अंग्रेजी: Environmental geography) पर्यावरणीय दशाओं, उनकी कार्यशीलता और तकनीकी रूप से सबल "आर्थिक मानव" और पर्यावरण के बीच संबंधों का अध्यययन स्थानिक तथा कालिक (spatio-temporal) सन्दर्भों में करता है। + +8834. प्रो. जे. स्मिथ (J. smith) के अनुसार, भौतिक, रासायनिक तथा जैविक दशाओं का योग, जो एक जीव द्वारा अनुभव किया जाता है। इसमें जलवायु, मृदा, जल, प्रकाश, निकटवर्ती वनस्पति, व्यक्तिगत तथा अन्य प्रजातियां सम्मिलित हैं। + +8835.
+ +8836. पर्यावरण भूगोल का मुख्य विषय यह है कि जैविक प्रक्रियाओं और मानव जिम्मेदारियों, मानव-पर्यावरण संबंधों के माध्यम से विभिन्न स्तरों पर प्राकृतिक पर्यावरण के घटकों एवं उनके संबंध का अलग-अलग और साथ-साथ अध्ययन किया जाए। + +8837. २५ जनवरी, २०२० को होना निश्चित है। इसमें १४० प्रतिभागियों के शामिल होने की उम्मीद है। + +8838. प्रतिभागी हस्ताक्षर. + +8839. हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी, कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले + +8840. बहुत बेआबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले + +8841. हुई इस दौर में मंसूब मुझ से बादा-आशामी + +8842. उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले + +8843. + +8844. ब्रह्मपुत्र नदी. + +8845. ब्रह्मपुत्र का उद्गम कैलाश पर्वत श्रेणी में मानसरोवर झील के निकट चेमायुँगडुंग हिमनद से होता है। यह नामचा बरवा (अरुणाचल प्रदेश) से भारत में प्रवेश करती है। + +8846. 2. कृष्णा नदी - 1400 किलोमीटर + +8847. यह पश्चिमी घाट स्थित नासिक के पास त्रयंबक पहाड़ियों से निकलती है। मुख्य रूप से इस नदी का बहाव दक्षिण-पूर्व की ओर है। + +8848. अपवाह बेसिन: इस नदी बेसिन का विस्तार महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा राज्यों के अलावा मध्य प्रदेश, कर्नाटक और पुद्दुचेरी के कुछ क्षेत्रों में है। इसकी कुल लंबाई लगभग 1465 किमी. है। + +8849. सहायक नदियाँ: तुंगभद्रा, मालप्रभा, कोयना, भीमा, घाटप्रभा, यरला, वर्ना, बिंदी, मूसी और दूधगंगा। + +8850. कावेरी नदी. + +8851. पूर्व की ओर बहने वाली प्रमुख नदियाँ + +8852. + +8853. 31 देश निम्न आय वाले देश हैं, + +8854. आयाम-सूचक + +8855. वाशिंगटन डीसी स्थित अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान की रिपोर्ट वैश्विक खाद्य नीति रिपोर्ट (Global Food Policy Report-GFPR),2019के अनुसार भूख और कुपोषण, गरीबी, सीमित आर्थिक अवसर तथा पर्यावरण क्षरण के कारण दुनिया के कई हिस्सों में ग्रामीण क्षेत्र संकट की स्थिति से गुज़र रहे हैं जो सतत् विकास लक्ष्यों, वैश्विक जलवायु लक्ष्यों और बेहतर खाद्य तथा पोषण सुरक्षा की प्रगति की दिशा में बाधक है। + +8856. ग्रामीण पुनरुत्थान केवल एक दशक में ही भूख और कुपोषण को समाप्त करने के लिये महत्त्वपूर्ण है। + +8857. प्राथमिक शिक्षा के सार्वजनीकरण को बढ़ावा देना। + +8858. स्वास्ध्य. + +8859. इसमें कैंसर और हृदय रोग जैसी गंभीर बीमारियों सहित 1300 बीमारियों को शामिल किया गया है। निजी अस्पताल भी इस योजना का हिस्सा होंगे। + +8860. कारण + +8861. इस सूची में नॉर्वे, स्विट्ज़रलैंड और आयरलैंड शीर्ष पर हैं। + +8862. IUCN प्रजातियों के विलुप्त होने के जोखिम का मूल्यांकन करने के लिये कुछ विशेष मापदंडों का उपयोग करता है। ये मानदंड दुनिया की अधिकांश प्रजातियों के लिये प्रासंगिक हैं। + +8863. इसकी स्थापना 1947 में की गई थी। + +8864. ADB में शेयरों का सबसे बड़ा अनुपात जापान का है। + +8865. इसमें भारत समेत 19 देश तथा यूरोपीय संघ शामिल है। + +8866. NATO वाशिंगटन संधि के अनुच्छेद 5 में निहित सामूहिक सुरक्षा के सिद्धांत पर आधारित है जिसका अर्थ है कि उसके किसी भी एक या एक से अधिक सदस्यों के विरुद्ध हमले को सभी सदस्यों के विरुद्ध हमला माना जाएगा। + +8867. इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC). + +8868. इसमें 57 सदस्य देश तथा संयुक्त राष्ट्र सहित 12 पर्यवेक्षक देश हैं। भारत OIC का सदस्य या पर्यवेक्षक राज्य नहीं है। + +8869. बहुक्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल-बिम्सटेक. + +8870. क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP). + +8871. हाल ही में मत्स्य पालन और जलीय कृषि पर केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (Central Marine Fisheries Research Institute-CMFRI) में 15 दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। + +8872. AARDO एक स्वायत्त अंतर-सरकारी संगठन है जिसका उद्देश्य एशिया और अफ्रीका देशों के बीच कृषि और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में सहयोग कर उस पर कार्य करना है। + +8873. विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (World Intellectual Property Organization -WIPO):-बौद्धिक संपदा सेवाओं,नीति,सूचना और सहयोग के लिये एक वैश्विक मंच है। यह संगठन 191 सदस्य देशों के साथ संयुक्त राष्ट्र की एक स्व-वित्तपोषित एजेंसी है। + +8874. यह परिषद 47 संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों से बनी है जो संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा चुने जाते हैं। + +8875. पश्चिमी यूरोपीय और अन्य: 7 सदस्य देश + +8876. बैठक: + +8877. इसका मुख्यालय न्यूयॉर्क, अमेरिका में है। + +8878. इसका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि वैश्विक व्यापार जितना संभव हो उतना सुगम, अनुमानित और स्वतंत्र रूप से संचालित हो। + +8879. संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है जो अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य से संबंधित है। + +8880. यूनिसेफ का गठन वर्ष 1946 में संयुक्त राष्ट्र के एक अंग के रूप में किया गया था। + +8881. यह संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है जो गरीबी में कमी लाने, समावेशी वैश्वीकरण और पर्यावरणीय स्थिरता के लिये औद्योगिक विकास को बढ़ावा देती है। + +8882. सुधारों को मिली जगह + +8883. इसके प्रशासनिक व्यय का भार संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वहन किया जाता है। + +8884. गठन- 16 नवंबर, 1945 + +8885. UNISDR के स्ट्रैटेजिक फ्रेमवर्क 2016-2021 में, संधारणीय भविष्य हेतु आपदा जोखिम में महत्त्वपूर्ण कमी लाने के साथ ही सेंदाई फ्रेमवर्क के संरक्षक के रूप में कार्य करने का अधिदेश तथा इसके कार्यान्वयन, निगरानी एवं प्रगति की समीक्षा में राष्ट्रों एवं संगठनों का समर्थन एवं सहायता करना शामिल है। सेंदाई फ्रेमवर्क (2015-30) को जापान के सेंदाई (मियागी) में 14-18 मार्च, 2015 तक आयोजित आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर तीसरे संयुक्त राष्ट्र विश्व सम्मेलन में अपनाया गया था। + +8886. CDRI आपदाओं और चरम मौसमी घटनाओं से होने वाले अवसंरचनात्मक और आर्थिक नुकसान में कमी लाने संबंधी उद्देश्य पर आधारित है। इसके अतिरिक्त यह उद्देश्य आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंदाई फ्रेमवर्क और पेरिस जलवायु समझौते के अनुरूप भी है। + +8887. शहरी विकास के मुद्दों को संबोधित करने के लिये वर्ष 1978 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UN General Assembly) द्वारा शासित शहरी विकास प्रक्रियाओं पर यह एक संज्ञानात्मक संस्था (knowledgeable institution) है। + +8888. परिचय. + +8889. एक अधिक पूर्ण सिद्धान्त की खोज में आइंस्टीन ने आपेक्षिकता का सामान्य सिद्धान्त विकसित किया और वर्ष 1915 में प्रकाशित किया। अधिक गणितीय मांग वाले विषय सामान्य आपेक्षिकता, गुरुत्वीय क्षेत्रों की उपस्थिति में भौतिकी का वर्णन करता है। + +8890. यहाँ पर कभी-कभी एक समस्या "समकालिकता की आपेक्षिकता" और "सिग्नल विलम्बता/अतिकाल" को पृथक करना है। इस पुस्तक का पाठ अन्य प्रस्तुतियों में निम्नलिखित प्रकार से अलग है कि इसमें सीधे दिक्-काल ज्यामिति से उल्लिखित किया गया है और प्रकाश के प्रसरण में अतिकाल को नहीं देखा गया है। यह दृष्टिकोण रखने का उद्देश्य उन विद्यार्थियों को ध्यान में रखना है जिन्होंने यूक्लिड ज्यामिति के उपयोग से लम्बाई और कोण के मापन की विधि उपयोग करना और उपकरण के लिए सतत सन्दर्भ का अध्ययन नहीं किया है। मापन प्रक्रिया के लिए सतत सन्दर्भ उसमें अन्तर्निहित ज्यामितिय सिद्धान्त को अस्पष्ट कर देता है कि ज्यामित त्रिविमीय है या चतुर्विमिय। + +8891. लिंग समाज और विद्यालय/लिंग की अवधारणा: + +8892. प्राकृतिक विज्ञान में विशेष प्रणाली से प्राणी विज्ञान स्त्री-पुरुष के जैविक लक्षणों का वैज्ञानिक अध्ययन करते हैं। इनका जैविक और पुनर्जनन कार्यों पर ही ध्यान केंद्रित रहता है। विगत वर्षों में ऐसे अध्ययनों को योनि भेद (सेक्स) से संबंधित किया जाने लगा है। सामाजिक विज्ञानों में विशेष रूप से समाजशास्त्र में स्त्री-पुरुषों का अध्ययन लिंग भेद के आधार पर किया जाता है, जिसका तात्पर्य है कि उन्हें सामाजिक अर्थ प्रदान किया जाता है। “स्त्री” और “पुरुष” का अध्ययन सामाजिक संबंधों को गहराई से समझने के लिए किया जाता है। योनि-भेद जैविक-सामाजिक है, और लिंग-भेद सामाजिक संस्कृतिक है। योनि- भेद शीर्षक के अंतर्गत “स्त्री” “पुरुष” का नर-मादा के बीच विभिन्नताओ का अध्ययन करते हैं, जिसमें जैविक गुण जैसे पुनर्जनन कार्य पद्धति, शुक्राणु-अंडाणु एवं गर्भाधान क्षमता, शारीरिक बल क्षमता, शरीर रचना की भिन्नता आदि पर ध्यान दिया जाता है। लिंग भेद में "स्त्री" और "पुरुष" का अध्ययन पति-पत्नी, माता-पिता, भाई-बहन, पुत्र- पुत्री के रूप में अर्थात सामाजिक सांस्कृतिक दृष्टिकोण से किया जाता है। उनकी समाज में प्रस्थिति और भूमिकाए क्या है? उनके कर्तव्य व अधिकार क्या है? का अध्ययन किया जाता है। लिंग भेद की धारणा का उद्देश्य “स्त्री” और “पुरुष” के बीच सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक आदि विभिन्नताओं, समानताओं और असमानताओं का वर्णन व्याख्या करना है। + +8893. लिंग समाज और विद्यालय/न्यायसंगतता एवं समानता: + +8894. यह पाठ्य पुस्तक पश्चिम बंग राज्य विश्वविद्यालय (ऋषि बंकिम चंद्र कॉलेज, नैहाटी) के बी.ए. हिंदी (सामान्य) चतुर्थ सेमेस्टर के छात्रों को ध्यान में रखकर बनाई गई है। + +8895. आधुनिक हिन्दी गद्य का विकास केवल हिन्दी भाषी क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रहा। पूरे देश में और हर प्रदेश में हिन्दी की लोकप्रियता फैली और अनेक अन्य भाषी लेखकों ने हिन्दी में साहित्य रचना करके इसके विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान किया। हिन्दी गद्य के विकास को विभिन्न सोपानों में विभक्त किया जा सकता है। + +8896. भारतेंदु हरिश्चंद्र (१८५५-१८८५) को हिन्दी-साहित्य के आधुनिक युग का प्रतिनिधि माना जाता है। उन्होंने कविवचन सुधा, हरिश्चन्द्र मैगज़ीन और हरिश्चंद्र पत्रिका निकाली। साथ ही अनेक नाटकों की रचना की। उनके प्रसिद्ध नाटक हैं – चंद्रावली, भारत दुर्दशा, अंधेर नगरी। ये नाटक रंगमंच पर भी बहुत लोकप्रिय हुए। इस काल में निबंध नाटक उपन्यास तथा कहानियों की रचना हुई। इस काल के लेखकों में बालकृष्ण भट्ट, प्रताप नारायण मिश्र, राधा चरण गोस्वामी, उपाध्याय बदरीनाथ चौधरी ‘प्रेमघन’, लाला श्रीनिवास दास, बाबू देवकी नंदन खत्री, और किशोरी लाल गोस्वामी आदि उल्लेखनीय हैं। इनमें से अधिकांश लेखक होने के साथ-साथ पत्रकार भी थे। श्रीनिवासदास के उपन्यास परीक्षागुरू को हिन्दी का पहला उपन्यास कहा जाता है। कुछ विद्वान श्रद्धाराम फुल्लौरी के उपन्यास भाग्यवती को हिन्दी का पहला उपन्यास मानते हैं। बाबू देवकीनंदन खत्री का चंद्रकांता तथा चंद्रकांता संतति आदि इस युग के प्रमुख उपन्यास हैं। ये उपन्यास इतने लोकप्रिय हुए कि इनको पढ़ने के लिये बहुत से अहिंदी भाषियों ने हिंदी सीखी। इस युग की कहानियों में ‘शिवप्रसाद सितारे हिन्द’ की राजा भोज का सपना महत्त्वपूर्ण है। + +8897. इस काल के अन्य निबंधकारों में जैनेन्द्र कुमार जैन, सियारामशरण गुप्त, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी और जयशंकर प्रसाद आदि उल्लेखनीय हैं। कथा साहित्य के क्षेत्र में प्रेमचंद ने क्रांति ही कर डाली। अब कथा साहित्य केवल मनोरंजन, कौतूहल और नीति का विषय ही नहीं रहा बल्कि सीधे जीवन की समस्याओं से जुड़ गया। उन्होंने सेवा सदन, रंगभूमि, निर्मला, गबन एवं गोदान आदि उपन्यासों की रचना की। उनकी तीन सौ से अधिक कहानियां मानसरोवर के आठ भागों में तथा गुप्तधन के दो भागों में संग्रहित हैं। पूस की रात, कफ़न , शतरंज के खिलाड़ी, पंच परमेश्वर, नमक का दरोगा तथा ईदगाह आदि उनकी कहानियां खूब लोकप्रिय हुयीं। इसकाल के अन्य कथाकारों में विश्वंभर शर्मा ‘कौशिक”, वृंदावनलाल वर्मा, राहुल सांकृत्यायन , पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’, उपेन्द्रनाथ अश्क, जयशंकर प्रसाद , भगवतीचरण वर्मा आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। नाटक के क्षेत्र में जयशंकर प्रसाद का विशेष स्थान है। इनके चंद्रगुप्त, स्कंदगुप्त, ध्रुवस्वामिनी जैसे ऐतिहासिक नाटकों में इतिहास और कल्पना तथा भारतीय और पाश्चात्य नाट्य पद्ध तयों का समन्वय हुआ है। लक्ष्मीनारायण मिश्र, हरिकृष्ण प्रेमी, जगदीशचंद्र माथुर आदि इस काल के उल्लेखनीय नाटककार हैं। + +8898. बिबिया
महादेवी वर्मा + +8899. ऐसी आकृति के साथ जिस आलस्य या सुकुमारता की कल्पना की जाती है, उसका बिबिया में सर्वथा अभाव था। वस्तुतः उसके समान परिश्रमी खोजना कठिन होगा। अपना ही नहीं, वह दूसरों का काम करके भी आनन्द का अनुभव करती थी। दादी की मुट्ठी से झाडू खींच कर वह घर-आँगन बुहार आती, भौजाई के हाथ से लोई छीनकर वह रोटी बनाने बैठ जाती और भाई की उंगलियों से भारी स्त्री छुड़ा कर वह स्वयं कपड़ों की तह पर स्त्री करने लगती। कपड़ों में सज्जी लगाना, भट्ठी चढ़ाना, लादी ले जाना, कपड़े धोना-सुखाना आदि कामों में वह सब से आगे रहती। + +8900. उसका विषाद देख कर ग्लानि हुई; पर उसकी दादी से सब इतिवृत्त जानकर मुझे अपने ऊपर क्रोध हो आया। रमई के घर जाकर बिबिया ने गृहस्थी की व्यवस्था के लिए कम प्रयत्न नहीं किया; पर वह था पक्का जुआरी और शराबी। यह अवगुण तो सभी धोबियों में मिलते हैं; पर सीमातीत न होने पर उन्हें स्वाभाविक मान लिया जाता है। + +8901. रमई के जुए के साथी अनेक वर्गों से आये थे। कोई काछी था, तो कोई मोची; कोई जुलाहा था, तो कोई तेली। + +8902. लखना अहीर सिर हिला-हिलाकर गम्भीर भाव से बोला ‘‘मेहररुअन अब मनसेधुअन का मारै बरे घूमती हैं, राम राम। अब जानौ कलजुग परगट दिखाय लागा!’’ महँगू काछी शास्त्राज्ञान का परिचय देने लगा ‘‘ऊ देखौ छीता रानी कस रहीं। उइ निकार दिहिन तऊ न बोलीं। बिचारिउ बेटवन का लै के झारखंड माँ परी रहीं।’’ खिलावन तेली ने समर्थन किया ‘‘उहै तो सत्ती सतवन्ती कही गई हैं! उनके बरे तो धरती माता फाटि जाती रहीं। ई सब का खाय कै सत्ती हुई हैं!’’ + +8903. पर बिबिया ने बड़ा कोलाहल मचाया। कई दिन अनशन किया। कई घंटे रोती रही। ‘दादा अब हम न जाब। चाहे मूड़ फोरि कै मर जाब, मुदा माई-बाबा कर देहरिया न छाँड़ब’ आदि-आदि कहकर उसने कन्हई को निश्चय से विचलित करना चाहा; पर उसके सारे प्रयत्न निष्फल हो गए। भाई के विचार में युवती बहिन को घर में रखना, आपत्ति मोल लेना था। कहीं उसका पैर ऊँचे-नीचे पड़ गया, तो भाई का हुक्का-पानी बन्द हो जाना स्वाभाविक था। उसके पास इतना रुपया भी नहीं कि जिससे पंचदेवताओं की पेट-पूजा करके जात-बिरादरी में मिल सके। + +8904. इसी तर्क-वितर्क के बीच में बिबिया की दादी आ पहुँची और धुँधली आँखों को फटे आँचल के कोने से रगड़-रगड़ कर पोती के दुर्भाग्य की कथा सुना गई। + +8905. पासी शहर में किसी सम्पन्न गृहस्थ का साईस हो गया था; पर उसकी घरवाली के हृदय में सास-ससुर के घर के प्रति अचानक ऐसी ममता उमड़ आई कि वह उस देहरी को छोड़कर जाना अधर्म की पराकाष्ठा मानने लगी। + +8906. पत्नी उसके लिए रोटियाँ रखकर सो जाती थी। भूखा लौटने पर वह खा लेता था, अन्यथा उन्हीं को बाँधकर सवेरे घाट की ओर चल देता था। + +8907. उसे ग्राहक को कपड़े ठीक संख्या में लौटाने होंगे, उजले धोने में पूरा परिश्रम करना पड़ेगा, कलफ-इस्त्री में औचित्य का प्रश्न न भूलना होगा। यदि वह इन सब कामों के लिए आवश्यक समय का अपव्यय करने लगे, तो महीने में चार खेप न दे सकेगा और परिणामतः जीविका की समस्या उग्र हो उठेगी। सम्भवतः इसी से कर्मतत्परता ऐसी सामान्य विशेषता है, जो सब प्रकार के भले-बुरे धोबियों में मिलती है। उसकी मात्रा में अन्तर हो सकता है; पर उसका नितान्त अभाव अपवाद है। + +8908. झनकू ने उसे स्पष्ट शब्दों में बता दिया कि भलेमानस के समान न रहने पर वह उसे तुरन्त निकाल बाहर करेगा। भीखन ने ओठ बिचका, आँख मिचका और अवज्ञा से मुख फेरकर पिता का आदेश सुन लिया; पर भलेमानस बनने के सम्बन्ध में अपनी कोई स्वीकृति नहीं दी। + +8909. विमाता के उपदेश की प्रतिक्रिया ने एक अकारण द्वेष को अंकुरित करके उसे पनपने की सुविधा दे डाली। + +8910. पुत्र ने सारा दोष विमाता पर डालकर अपनी विवशता का रोना रोया और अपने दुष्कृत्य पर लज्जित होने का स्वांग रचा। इस प्रकार भीखन का प्रतिशोध-अनुष्ठान पूरा हुआ। + +8911. झनकू को पति का कर्तव्य सिखाने के लिए कभी एक पंच-देवता भी आविर्भूत नहीं हुए; पर बिबिया को कर्तव्यच्युत होने का दण्ड देने के लिए पंचायत बैठी। + +8912. इसी बीच ज्वर के कारण मुझे पहाड़ जाना पड़ा। जब कुछ स्वस्थ होकर लौटी, तब बिबिया की खोज की। पता चला कि वह न जाने कहाँ चली गई और बहिन की कलंक-कालिमा से लज्जित भाई ने परताबगढ़ जिले में जाकर अपने ससुर के यहाँ आश्रय लिया। बहिन से छुटकारा पाकर कन्हई खिन्न हुआ या नहीं; इसे कोई नहीं बता सका; पर सरपंच ससुर की कृपा से वह बिरादरी में बैठने का सुख पा सका, इसे सब जानते थे। + +8913. त्रिया-चरित्र जानना वैसे ही कठिन है, फिर जो उसमें विशेषज्ञ हो उसकी गतिविधि का रहस्य समझने में कौन पुरुष समर्थ हो सकता है! गाँव के किसी पुरुष से वह कोई सम्पर्क नहीं रखती, इसी एक प्रत्यक्ष ज्ञान के बल पर अनेक अप्रत्यक्ष अनुमानों को कैसे मिथ्या ठहराया जावे! निश्चय ही बिबिया ने किसी के बिना जाने ही अपनी अज्ञात यात्रा का साथी खोज लिया होगा। + +8914. तब मेरे मन में अज्ञातनामा संदेह उमड़ने लगा। यात्रा का प्रबंध करने के लिए तो कोई बेहोश करने वाले पेय को नहीं खरीदता। यदि इसकी आवश्यकता ही थी, तो क्या वह सहयात्री नहीं मँगा सकती थी, जिसके अस्तित्व के सम्बन्ध में गाँव भर को विश्वास है? + +8915. मैं ऐसी ही स्वभाववाली एक सम्भ्रान्त कुल की निःसन्तान, अतः उपेक्षित वधू को जानती हूँ, जो सारी रात द्रौपदीघाट पर घुटने भर पानी में खड़ी रहने पर भी डूब न सकी और ब्रह्म मुहूर्त में किसी स्नानार्थी वृद्ध के द्वारा घर पहुँचाई गई। + +8916. उस एकाकिनी की वह जर्जर तरी किस अज्ञात तट पर जा लगी, वह कौन बता सकता है! + +8917. नाट्यरासक वा लास्य रूपक, संवत 1933 + +8918. स्थान - बीथी + +8919. सबके पहिले जो रूप रंग रस भीनो। + +8920. जहँ राम युधिष्ठिर बासुदेव सर्याती ।। + +8921. लरि बैदिक जैन डुबाई पुस्तक सारी। + +8922. हा हा! भारतदुर्दशा न देखी जाई ।। + +8923. सबके ऊपर टिक्कस की आफत आई। + +8924. कौआ, कुत्ता, स्यार घूमते हुए, अस्थि इधर-उधर पड़ी है। + +8925. बीस कोटि सुत होत फिरत मैं हा हा होय अनाथ ।। + +8926. अब भी तुझको अपने नाथ का भरोसा है! खड़ा तो रह। अभी मैंने तेरी आशा की जड़ न खोद डाली तो मेरा नाम नहीं। + +8927. तीसरा अंक + +8928. उपजा ईश्वर कोप से औ आया भारत बीच। + +8929. काल भी लाऊँ महँगी लाऊँ, और बुलाऊँ रोग। + +8930. दूँ इनको संतोष खुशामद, कायरता भी साथ। मुझे... + +8931. देखो मैं क्या करता हूँ। किधर किधर भागेंगे। + +8932. हलाकू चंगेजो तैमूर। + +8933. सत्या. फौ. : महाराज ‘इंद्रजीत सन जो कछु भाखा, सो सब जनु पहिलहिं करि राखा।’ जिनको आज्ञा हो चुकी है वे तो अपना काम कर ही चुके और जिसको जो हुक्म हो, कर दिया जाय। + +8934. जाति अनेकन करी नीच अरु ऊँच बनायो। + +8935. बिधवा ब्याह निषेध कियो बिभिचार प्रचारîो ।। + +8936. भारतदु. : आहा! हाहा! शाबाश! शाबाश! हाँ, और भी कुछ धम्र्म ने किया? + +8937. सत्या. फौ. : हाँ। + +8938. भारतदु. : अच्छा, और किसने किसने क्या किया? + +8939. सत्या. फौ. : हाँ, सुनिए। फूट, डाह, लोभ, भेय, उपेक्षा, स्वार्थपरता, पक्षपात, हठ, शोक, अश्रुमार्जन और निर्बलता इन एक दरजन दूती और दूतों को शत्राुओं की फौज में हिला मिलाकर ऐसा पंचामृत बनाया कि सारे शत्राु बिना मारे घंटा पर के गरुड़ हो गए। फिर अंत में भिन्नता गई। इसने ऐसा सबको काई की तरह फाड़ा धर्म, चाल, व्यवहार, खाना, पीना सब एक एक योजन पर अलग अलग कर दिया। अब आवें बचा ऐक्य! देखें आ ही के क्या करते हैं! + +8940. ख्जाता है, + +8941. मेरी ही टट्टी रचि खेलत नित सिकार भगवान ।। + +8942. रोग : महाराज! भारत तो अब मेरे प्रवेशमात्रा से मर जायेगा। घेरने को कौन काम है? धन्वंतरि और काशिराज दिवोदास का अब समय नहीं है। और न सुश्रुत, वाग्भट्ट, चरक ही हैं। बैदगी अब केवल जीविका के हेतु बची है। काल के बल से औषधों के गुणों और लोगों की प्रकृति में भी भेद पड़ गया। बस अब हमें कौन जीतेगा और फिर हम ऐसी सेना भेजेंगे जिनका भारतवासियों ने कभी नाम तो सुना ही न होगा; तब भला वे उसका प्रतिकार क्या करेंगे! हम भेजेंगे विस्फोटक, हैजा, डेंगू, अपाप्लेक्सी। भला इनको हिंदू लोग क्या रोकेंगे? ये किधर से चढ़ाई करते हैं और कैसे लड़ते हैं जानेंगे तो हई नहीं, फिर छुट्टी हुई वरंच महाराज, इन्हीं से मारे जायँगे और इन्हीं को देवता करके पूजेंगे, यहाँ तक कि मेरे शत्रु डाक्टर और विद्वान् इसी विस्फोटक के नाश का उपाय टीका लगाना इत्यादि कहेंगे तो भी ये सब उसको शीतला के डर से न मानंगे और उपाय आछत अपने हाथ प्यारे बच्चों की जान लेंगे। + +8943. मर जाना पै उठके कहीं जाना नहीं अच्छा ।। + +8944. उठा करके घर से कौन चले यार के घर तक। + +8945. पर जीभ विचारी को सताना नहीं अच्छा ।। + +8946. मिल जाय हिंद खाक में हम काहिलों को क्या। + +8947. आलस्य : बहुत अच्छा। (आप ही आप) आह रे बप्पा! अब हिंदुस्तान में जाना पड़ा। तब चलो धीरे-धीरे चलें। हुक्म न मानेंगे तो लोग कहेंगे ‘सर सरबसखाई भोग करि नाना समरभूमि भा दुरलभ प्राना।’ अरे करने को दैव आप ही करेगा, हमारा कौन काम है, पर चलें। + +8948. सुधरी आजादी सुरा, जगत् सुरामय होय ।। + +8949. होटल में मदिरा पिएँ, चोट लगे नहिं लाज। + +8950. मद्यहि के परकास सों, लखत धरम को पंथ ।। + +8951. मेरी तो धन बुद्धि बल, कुल लज्जा पति गेह। + +8952. तो सब सों बढ़ि मद्य पै देती कर बैठाय ।। + +8953. हमारी प्रवृत्ति के हेतु कुछ यत्न करने की आवश्यकता नहीं। मनु पुकारते हैं ‘प्रवृत्तिरेषा भूतानां’ और भागवत में कहा है ‘लोके व्यवायामिषमद्यसेवा नित्य यास्ति जंतोः।’ उसपर भी वर्तमान समय की सभ्यता की तो मैं मुख्यमूलसूत्रा हूँ। + +8954. झूमत चल डगमगी चाल से मारि लाज को लात ।। + +8955. मदिरा : हिंदुओं के तो मैं मुद्दत से मुँहलगी हँू, अब आपकी आज्ञा से और भी अपना जाल फैलाऊँगी और छोटे बडे़ सबके गले का हार बन जाऊँगी। (जाती है) + +8956. हमारा सृष्टि संहार कारक भगवान् तमोगुण जी से जन्म है। चोर, उलूक और लंपटों के हम एकमात्रा जीवन हैं। पर्वतों की गुहा, शोकितों के नेत्रा, मूर्खों के मस्तिष्क और खलों के चित्त में हमारा निवास है। हृदय के और प्रत्यक्ष, चारों नेत्रा हमारे प्रताप से बेकाम हो जाते हैं। हमारे दो स्वरूप हैं, एक आध्यात्मिक और एक आधिभौतिक, जो लोक में अज्ञान और अँधेरे के नाम से प्रसिद्ध हैं। सुनते हैं कि भारतवर्ष में भेजने को मुझे मेरे परम पूज्य मित्र दुर्दैव महाराज ने आज बुलाया है। चलें देखें क्या कहते हैं (आगे बढ़कर) महाराज की जय हो, कहिए क्या अनुमति है? + +8957. भारतदु. : हाँ, तो तुम हिंदुस्तान में जाओ और जिसमें हमारा हित हो सो करो। बस ‘बहुत बुझाई तुमहिं का कहऊँ, परम चतुर मैं जानत अहऊँ।’ + +8958. बुधि विद्या धन धान सबै अब तिनको मिलिहैं धूर ।। + +8959. वही उदैपुर जैपुर रीवाँ पन्ना आदिक राज। + +8960. ताहू समय रात इनकी है ऐसे ये बेहाल ।। + +8961. बोझ लादि कै पैर छानि कै निज सुख करहु प्रहार। + +8962. डंका दै निज सैन साजि अब करहु उतै सब गौन ।। + +8963. एक अखबार हाथ में लिए एडिटर, एक कवि और दो देशी महाशय) + +8964. एडिटर : (खडे़ होकर) हम अपने प्राणपण से भारत दुर्दैव को हटाने को तैयार हैं। हमने पहिले भी इस विषय में एक बार अपने पत्रा में लिखा था परंतु यहां तो कोई सुनता ही नहीं। अब जब सिर पर आफत आई सो आप लोग उपाय सोचने लगे। भला अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है जो कुछ सोचना हो जल्द सोचिए। (उपवेशन) + +8965. बंगाली : हाकिम लोग काहे को नाराज होगा। हम लोग शदा चाहता कि अँगरेजों का राज्य उत्पन्न न हो, हम लोग केवल अपना बचाव करता। (उपवेशन) + +8966. एडि. : परंतु अब समय थोड़ा है जल्दी उपाय सोचना चाहिए। + +8967. प. देशी : (आप ही आप) हाय! यह कोई नहीं कहता कि सब लोग मिलकर एक चित हो विद्या की उन्नति करो, कला सीखो जिससे वास्तविक कुछ उन्नति हो। क्रमशः सब कुछ हो जायेगा। + +8968. दू. देशी : (बहुत डरकर) बाबा रे, जब हम कमेटी में चले थे तब पहिले ही छींक हुई थी। अब क्या करें। (टेबुल के नीचे छिपने का उद्योग करता है) + +8969. दू. देशी : (टेबुल के नीचे से रोकर) हम नहीं, हम नहीं, तमाशा देखने आए थे। + +8970. दू. देशी : (रोकर) हाय हाय! भटवा तुम कहता है अब मरे। + +8971. छठा अंक + +8972. निसि की कौन कहै दिन बीत्यो काल राति चलि आई। + +8973. जागो जागो रे भाई ।। + +8974. भारतभय कंपत संसारा ।। + +8975. भारतकिरिन जगत उँजियारा। + +8976. भे पंडित लहि भारत दाना ।। + +8977. कहा करी तकसीर तिहारी। + +8978. बर्बर तोहि नास्यों जय लागी ।। + +8979. कछु न बची तुब भूमि निसानी। + +8980. तिनहीं में निज गेह बनायो ।। + +8981. चंडालहु जेहि निरखि घिनाई। + +8982. अजहुँ खरो भारतहि मंझारी ।। + +8983. सब तजि कै भजि कै दुखभारो। + +8984. अजहुँ बहत अवधतट जाई ।। + +8985. कुस कन्नौज अंग अरु वंगहि। + +8986. तुम तरंगनिधि अतिबल आगर ।। + +8987. घेरि छिपावहु विंध्य हिमालय। + +8988. जेहि छिन बलभारे हे सबै तेग धारे। + +8989. सोइ यह पिय मेरे ह्नै रहे आज चेरे ।। + +8990. जग के सबही जन धारि स्वाद। + +8991. सब काँपत भूमंडल अकास ।। + +8992. सुनि के रनबाजन खेत माहिं। + +8993. रहे भारतहि अंक में कबहि सबै भुवदेव ।। + +8994. याही भारत में भए मनु भृगु आदिक होय। + +8995. ये मेरे भारत भरे सोई गुन रूप समान ।। + +8996. सोई भारत की आज यह भई दुरदसा हाय। + +8997. + +8998. लिंग समाज और विद्यालय/लैंगिक पहचान तथा समाजिकीकरण प्रक्रिया: + +8999. सामाजिक रूप से स्त्रियां पुरुषों की अपेक्षा अधिक सामाजिक सरोकार रखने वाली होती हैं। अपने मातृत्व काल से ही स्त्री का बालक के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित हो जाता हैं जो जीवन पर्यन्त गतिमान रहता हैं। एक स्त्री अपने जन्म से मृत्यु तक विभिन्न सामाजिक नातेदारी संबंधों को सशक्त रूप से मजबूत करती रहती हैं। आधुनिक समय में स्त्रियों की स्थिति में जटिलता भी आई हैं। विशेष रूप से देखा जाए तो इससे कामकाजी महिलाओं को अपने इस स्थिति के निर्वहन के लिए अधिक परिश्रम करना होता है अन्यथा उनके लिए स्थिति अत्यंत जटिल हो जाती हैं। + +9000. लैंगिक विकास के सामाजिक सिद्धांत के क्षेत्र में कुछ विद्वानों ने अध्ययन भी किया है। यहां पर ऐसे ही कुछ महत्वपूर्ण अध्ययन को उदाहरणार्थ दिया जा रहा है:- + +9001. "सामाजिकरण की मुख्य परिभाषाएं -" + +9002. स्टीवर्ट एवं ग्लिन “समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा लोग अपनी संस्कृति के विश्वासों को ग्रहण करते हैं।” + +9003. समाजीकरण की प्रक्रिया- समाजीकरण की प्रक्रिया के महत्वपूर्ण कारक निम्नलिखित हैं:- + +9004. ५.पुरस्कार एवं दंड:- जब बालक समाज के आदर्शों एवं प्रतिमानों के अनुरूप आचरण करता है तो उसकी प्रशंसा होती है अथवा उसे उचित रूप में पुरस्कृत किया जाता है। इसके विपरीत जब वह समाज के आदर्शों के विपरीत आचरण करता है तो उसे दंड दिया जाता है। इससे बालक के सामाजिककृत होने में सहायता मिलती है। + +9005. हिमालय के आँगन में उसे, प्रथम किरणों का दे उपहार + +9006. सप्तस्वर सप्तसिंधु में उठे, छिड़ा तब मधुर साम-संगीत + +9007. सिंधु-सा विस्तृत और अथाह, एक निर्वासित का उत्साह + +9008. भिक्षु होकर रहते सम्राट, दया दिखलाते घर-घर घूम + +9009. जातियों का उत्थान-पतन, आँधियाँ, झड़ी, प्रचंड समीर + +9010. वचन में सत्य, हृदय में तेज, प्रतिज्ञा मे रहती थी टेव + +9011. + +9012. खड़ी खोलती है द्वार- + +9013. पी रही हैं मधु मौन + +9014. शशि-छवि विभावरी में + +9015. घेर रहा चन्द्र को चाव से + +9016. जागो फिर एक बार! + +9017. नयन जल ढल गये, + +9018. शयन-शिथिल बाहें + +9019. फैल जाने दो पीठ पर + +9020. बुद्धि बुद्धि में हो लीन + +9021. जागो फिर एक बार! + +9022. गया दिन, आयी रात, + +9023. + +9024. अपने हिय का संचित प्यार॥ + +9025. संकोचों में डूबी मैं जब + +9026. इतना आदर, इतनी करुणा, सम्मान? + +9027. कैसे भला सँभाल सकूँगी + +9028. उनकी तो करुणा की कोर। + +9029. हार गया जीवन-रण, + +9030. फूटी है मनोरमण, + +9031. जीवन के विपुल व्याल, + +9032. ‘भूरिया समिति’ की सिफारिशों के आधार पर संसद में वर्ष 1996 में ‘पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रोंं का विस्तार) विधेयक’ प्रस्तुत किया गया। दिसंबर 1996 में दोनों सदनों से पारित होने के उपरांत 24 दिसंबर को राष्ट्रपति की सहमति के पश्चात् ‘पेसा अधिनियम’ अस्तित्व में आया। + +9033. अधिकतर ग्राम पंचायतों के पास उनके अपने कार्यभवन नहीं हैं एवं कर्मचारियों का भी अभाव है। + +9034. वर्ष 1993 में 73वें व 74वें संविधान संशोधन के माध्यम से भारत में त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्ज़ा प्राप्त हुआ। + +9035. नगरपालिका परिषद- छोटे शहरों अथवा लघु नगरीय क्षेत्रोंं में गठित किया जाता है। + +9036. आरक्षित सीटों की संख्या एक-तिहाई से कम नहीं होगी। + +9037. स्वतंत्र भारत में स्थानीय शासन. + +9038. गाँव व ज़िला स्तर के शासन को स्थानीय शासन कहते हैं। + +9039. संविधान के 73वें संविधान संशोधन के द्वारा ग्राम पंचायत को बनाना अनिवार्य कर दिया गया है। पंचायती हलके में मतदाता के रूप में पंजीकृत हर वयस्क व्यक्ति ग्राम सभा का सदस्य होता है। + +9040. बालक का समाजीकरण करने का प्रमुख अभिकरण. + +9041. समुदाय या समाज- समुदाय या समाज की बालक के समाजीकरण को विभिन्न रूपों में प्रभावित करता है। समान जिन साधनों के माध्यम से बालक के समाजीकरण को प्रभावित करता है उनमें प्रमुख हैं- + +9042. जाति- समाजीकरण का एक प्रमुख कारण जाति भी है। प्रत्येक जाति के अपने रीति-रिवाज,आदर्श,परंपराएं और संस्कृतिक उपलब्धियां होती है तथा अपनी जाति की विशेषताओं को स्वाभाविक रूप में ग्रहण कर लेता है। यही कारण है कि प्रत्येक जाति के बालक का समाजीकरण भिन्न होता है।उदाहरण- बालक के समाजीकरण का रूप बालक के समाजीकरण से भिन्न होगा। + +9043. दिवालिया और शोधन अक्षमता कोड + +9044. अगर कोई कंपनी कर्ज़ नहीं चुकाती तो IBC के तहत कर्ज़ वसूलने के लिये उस कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया जाता है। + +9045. राष्ट्रीय खनिज नीति 2019. + +9046. को भी तय करता है क्षेत्र सुधार नीतियों का एक प्रमुख उद्देश्य आरबीआई को क्षेत्र के नियंत्रक की भूमिका से हटाकर उसे सहायक की भूमिका तक सीमित करना था बैंकों की पूंजी + +9047. वस्त्र उद्योग कृषि के बाद प्रत्यक्ष रूप से 10 करोड़ से अधिक लोगों को रोज़गार प्रदान करता है। + +9048. SWAYATT, गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस पर ई-हस्तांतरण (e-Transactions) के माध्यम से स्टार्ट-अप, महिला और युवाओं को बढ़ावा देने के लिये शुरू की गई एक पहल है। यह भारतीय उद्यमशीलता पारिस्थितिकी तंत्र के प्रमुख हितधारकों को राष्ट्रीय उद्यम पोर्टल गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस के साथ जोड़ने का काम करेगी + +9049. पॉवर टेक्स इंडिया (Power Tex India): यह पावरलूम क्षेत्र के विकास के लिये एक व्यापक योजना है। + +9050. सूक्ष्‍म,लघु एवं मझोले उद्यम (MSMEs) सेक्‍टर. + +9051. सामाजिक संरचना में पुरुषत्व तथा स्त्रीत्व की अवधारणा एवं प्रक्रिया. + +9052. + +9053. सूखा प्रवण रायलसीमा क्षेत्र (आंध्र प्रदेश) में ZBNF के अनुपालन से काफी आशाजनक बदलाव देखने को मिले हैं, जिसने इस संभावना को और भी प्रबल बना दिया है। + +9054. 2 जनवरी 2018 को भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण द्वारा जारी नोटिफिकेशन के अनुसार, जैविक खाद्य उत्पादों की बिक्री करने वाली कंपनियों को अपने उत्पादों को प्रमाणित करवाना अनिवार्य होगा। + +9055. एपीडा द्वारा जैविक उत्पादों का प्रमाणीकरण विश्व के सभी देशों में मान्य है। + +9056. विषय से संबंधित कुछ सांविधानिक प्रावधान- + +9057. अनुच्छेद 48 (क)- पर्यावरण का संरक्षण और संवर्द्धन तथा वन तथा वन्यजीवों की रक्षा। + +9058. रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से लागत में कमी आती है। + +9059. भूमि से पानी का वाष्पीकरण कम होगा। + +9060. फसल उत्पादन की लागत में कमी एवं आय में वृद्धि । + +9061. इस योजना लक्ष्य ग्रामीण इलाकों में नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना करना है। + +9062. प्रत्येक किसान को नए और बेहतर सौर ऊर्जा संचालित पंपों पर सब्सिडी मिलेगी। सौर पंप प्राप्त करने और उसे लगाने के लिये किसानों को कुल लागत का 10% खर्च करना होगा। केंद्र सरकार 60% लागत प्रदान करेगी, जबकि शेष 30% क्रेडिट के रूप में बैंक द्वारा दिया जाएगा। + +9063. अनुबंध कृषि की चुनौतियाँ: + +9064. बीटी कपास और भारत का कपास उद्योग + +9065. बीटी कपास की शुरुआत ने कपास उत्पादक राज्यों के उत्पादन में काफी वृद्धि की और जल्द ही बीटी कपास ने कपास की खेती के तहत अधिकांश ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया। + +9066. हाइब्रिड्स को उत्पादन के लिये उर्वरक तथा पानी की काफी अधिक आवश्यकता होती है। + +9067. उठाने होंगे कई बड़े कदम + +9068. प्रार्थना: + +9069. आधुनिककालीन हिंदी साहित्य का इतिहास/कहानी: + +9070. प्रेमचंद की सपूंण कहानियो को मानसरोवर नाम से संकलित किया गया है + +9071. 1927-28ई मे जेनेद्रं ने लिखना आरंभ किया + +9072. एक्साइटॉन (Exciton) + +9073. मलेरिया के उपचार हेतु नई खोज. + +9074. अज्ञानता से हमें तारदे माँ + +9075. तेरी शरण हम, हमें प्यार दे माँ + +9076. हम भी तो समझे, हम भी तो जाने + +9077. हाथों में वीणा, मुकुट सर पे साजे + +9078. + +9079. किस मंजु ज्ञान से तू, + +9080. क्यों माँ तू सुन रही है । + +9081. ॥ मां शारदे कहाँ तू, वीणा...॥ + +9082. बालक सभी जगत के, + +9083. ॥ मां शारदे कहाँ तू, वीणा...॥ + +9084. मातेश्वरी तू सुन ले, + +9085. + +9086. ज्ञान का दीप जला दो + +9087. दुःख दरिद्द्रता का नाश करो + +9088. धान के ढेर लगा दो + +9089. करुना निधान भगवान् मेरे + +9090. कोई न रहे भिखारी + +9091.
+ +9092. ऐसे हो हमारे करम + +9093. तेरा इन्सान घबरा रहा + +9094. नेकी पर चले और बदी से टले, + +9095. पर तू जो खड़ा,है दयालू बड़ा, + +9096. ताकी हँसते हुये निकले दम + +9097. नाहीं बदले की हो भावना + +9098. ऐ मालिक तेरे बंदे हम... + +9099. चंद्रयान -1 चंद्रमा पर भारत का पहला मिशन था, जिसे अक्तूबर 2008 में श्रीहरिकोटा से ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान, PSLV-C11 द्वारा लॉन्च किया गया था। चंद्रयान -1 ने चंद्रमा पर जल की उपलब्धता का पता लगाया। + +9100. भारतीय राष्‍ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (Indian National Committee for Space Research : INCOSPAR) को डॉ. विक्रम साराभाई के अधीन 1962 में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम तैयार करने के लिये स्थापित किया गया था । + +9101. GSLV Mk III द्वारा इसे जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (Geosynchronous Transfer Orbit-GTO) में स्थापित किया गया है। तीन ऑर्बिट रेज़िंग मैन्यूवर्स (orbit-raising maneuvers) के बाद इसे जियो स्टेशनरी ऑर्बिट (Geostationary Orbit) में स्थापित किया जाएगा। अतः कथन 1 सही नहीं है। + +9102. स्‍थलीय, हवाई, महासागरीय दिशा-निर्देशन + +9103. मानचित्रण तथा भूगणितीय आँकड़ा अर्जन (Mapping and Geodetic data capture) अतः कथन 1 सही है। + +9104. भारत के पहले सुपरकंप्यूटर PARAM 8000 को 1991 में लॉन्च किया गया था। वर्तमान में भारतीय उष्ण कटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान में सबसे तेज़ सुपरकंप्यूटर लगाया गया है जिसे प्रत्यूष कहा जाता है। इसकी गति 4.0 पेटाफ्लॉप्स है। + +9105. 2) टीसीएस इंजन से पिछले पहिये को मिलने वाली पॉवर डिलीवरी को नियंत्रित करता है। + +9106. वाहन की गति के संबंध में लगाए गए ब्रेक फोर्स को विनियमित करते हुए, जिस पर ब्रेक कार्य कर रहा है, यह “प्रेशर मॉड्यूलेशन” के सिद्धांत पर काम करता है। सेंसर की मदद से यह बहुत तीव्र गति की आवृत्ति से इन दो गतियों पर स्वतंत्र रूप से नज़र रखता है। अतः कथन 1 गलत है। + +9107. 28 फरवरी, 1928 को देश भौतिक विज्ञानी सर चंद्रशेखर वेंकट रमन ने ‘रमन प्रभाव’ की खोज के उपलक्ष्य राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है। + +9108. 28 फरवरी, 1928 को देश के प्रसिद्द भौतिक विज्ञानी सर चंद्रशेखर वेंकट रमन ने ‘रमन प्रभाव’ की खोज की थी जिसके लिये वर्ष 1930 में उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसी के उपलक्ष्य में 28 फरवरी, 1986 से प्रत्येक वर्ष इस दिन को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है। + +9109. यह एक अद्भुत प्रभाव है, इसकी खोज के एक दशक बाद ही 2000 रासायनिक यौगिकों की आंतरिक संरचना का पता लगाया गया। इसके पश्चात् ही क्रिस्टल की आंतरिक रचना का भी पता लगाया गया। + +9110. + +9111. होगी शांति चारों ओर,होगी शांति चारों ओर + +9112. डाल हाथों में हाथ + +9113. नहीं डर किसी का आज, एक दिन + +9114. प्रार्थना/तुम ही हो माता पिता तुम्ही हो: + +9115. कोई न अपना सिवा तुम्हारे + +9116. दया की दृष्टि सदा ही रखना + +9117. + +9118. दूसरों से भूल हो तो, माफ़ कर सकें + +9119. साथ दे तो धर्म का, चलें तो धर्म पर। + +9120. प्रार्थना/हे प्रभो आनंद-दाता ज्ञान हमको दीजिए: + +9121. ब्रह्मचारी धर्म-रक्षक वीर व्रत धारी बनें । + +9122. दिव्या जीवन हो हमारा, यश तेरा गाया करें । + +9123. मोह मद मत्सर रहित होवे हमारी आत्मा । + +9124. ब्रह्म निष्ठा प्राप्त कर के सर्व हितकारी बनें । + +9125. + +9126. दया करना हमारी आत्मा में, + +9127. प्रभु ज्योति जगा देना । + +9128. हमारा धर्म हो सेवा, + +9129. वतन के वास्ते मरना, + +9130. दया करना हमारी आत्मा में, + +9131. + +9132. दूर अज्ञान के हो अँधेरे + +9133. भावना मन में बदले की हो ना + +9134. फूल खुशियों के बांटें सभी को + +9135. हमसे भूलकर भी कोई भूल हो ना... + +9136. बोझ ममता का तू ये उठा ले + +9137. प्रार्थना/सरस्वती वंदना: + +9138. सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥ + +9139. + +9140. कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी॥ + +9141. लाज राखे मेरे घूँघट पट की। + +9142. + +9143. केंद्र सरकार + +9144. यह लोकसेवकों की कुछ श्रेणियों द्वारा भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम (Prevention of Corruption Act), 1988 के तहत किये गए भ्रष्टाचारों की जाँच कराने की शक्ति रखता है। + +9145. उपभोक्ता, उद्योग, सरकार और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्राधिकारों सहित सभी हितधारकों के साथ सक्रिय संलग्नता के माध्यम से। + +9146. वर्ष 2017 में सरकार ने प्रतिस्पर्द्धा अपीलीय न्यायाधिकरण (COMPAT) को राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (National Company Law Appellate Tribunal- NCLAT) से प्रतिस्थापित कर दिया। + +9147. वर्ष 2013 में CCI ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) पर अपनी प्रधान स्थिति के दुरुपयोग के लिये 522 मिलियन रुपये (7.6 मिलियन डॉलर) का जुर्माना लगाया। + +9148. रिलायंस जियो द्वारा अपने प्रतिद्वंद्वियों भारती एयरटेल, वोडाफोन इंडिया और आइडिया सेलुलर के विरुद्ध कार्टेलाइज़ेशन की शिकायत पर CCI ने भारतीय सेलुलर ऑपरेटर संघ (Cellular Operators Association of India- COAI) के कार्यकलाप की जाँच का आदेश दिया था। + +9149. यह भारतीय संविधान द्वारा दिये गए मानवाधिकारों जैसे - जीवन का अधिकार,स्वतंत्रता का अधिकार और समानता का अधिकार आदि की रक्षा करता है और उनके प्रहरी के रूप में कार्य करता है। + +9150. CBDT प्रत्यक्ष करों से संबंधित नीतियों एवं योजनाओं के संबंध में महत्त्वपूर्ण इनपुट प्रदान करने के साथ-साथ आयकर विभाग की सहायता से प्रत्यक्ष करों से संबंधित कानूनों का प्रशासन करता है। + +9151. केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड + +9152. ये दोनों ही संस्थाएँ ‘सांविधिक निकाय’ (Statutory Body) हैं। + +9153. चाय बोर्ड वाणिज्य मंत्रालय (Ministry of Commerce) के अधीन एक सांविधिक निकाय है। + +9154. निर्यात संवर्द्धन करना। + +9155. विनियामक. + +9156. यह पुरावशेष तथा बहुमूल्‍य कलाकृति अधिनियम, 1972 को भी विनियमित करता है। + +9157. यह एक विशिष्ट निकाय है, जो पर्यावरण संबंधी विवादों एवं बहु-अनुशासनिक मामलों को सुविज्ञता से संचालित करने के लिये सभी आवश्यक तंत्रों से सुसज्जित है। + +9158. अधिकरण की प्रमुख पीठ नई दिल्ली में स्थित है, जबकि भोपाल, पुणे, कोलकाता और चेन्नई में इसकी क्षेत्रीय पीठें हैं। इसकी सर्किट स्तरीय पीठें शिमला, शिलॉन्ग, जोधपुर और कोच्चि में स्थित हैं। + +9159. ट्रैफिक-इंडिया के सहयोग से एक ऑनलाइन बाघ अपराध डेटाबेस की शुरुआत की गई है और बाघ आरक्षित क्षेत्रों हेतु सुरक्षा योजना बनाने के लिये दिशा-निर्देश तैयार किये गए हैं। + +9160. राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण. + +9161. शुरुआत में RBI निजी स्वामित्व वाला बैंक था। अगस्त 1947 को देश को आज़ादी मिली और 1949 में आरबीआई का राष्ट्रीयकरण हुआ। राष्ट्रीयकरण के बाद से इस पर भारत सरकार का पूर्ण स्वामित्व है। + +9162. करेंसी जारी करने के साथ उसका विनियमन। + +9163. सरकार का बैंकर अर्थात् यह केंद्र और राज्य सरकारों के लिये व्यापारी बैंक की भूमिका अदा करता है। + +9164. यह अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर काम करता है और भारत की सदस्यता का प्रतिनिधित्व करता है। + +9165. कंपनी अधिनियम 1956 के अंतर्गत पंजीकृत संस्था,जिसका प्रमुख कार्य उधार देना तथा विभिन्न प्रकार के शेयरों,प्रतिभूतियों,बीमा कारोबार तथा चिटफंड से संबंधित कार्यों में निवेश करना होता है। + +9166. NBFC भुगतान और निपटान प्रणाली का अंग नहीं होते हैं तथा स्वयं द्वारा भुगतेय चेक जारी नहीं कर सकते हैं; + +9167. हिंदी भाषा 'ख'/इत्यादि: + +9168. खास लोगों के भाषण सुनने जाते थे + +9169. इस लोकतंत्र में सरकार बनाते हैं + +9170. जो स्कूल में भर्ती समय रखे गए थे + +9171. तो बाकी सब उनसे डरने लगते थे + +9172. इत्यादि हर जगह शामिल थे पर उनके नाम कहीं भी + +9173. + +9174. आया होगा न जाने किस काम से वह + +9175. कैसा लगता है इस तरह किसी का घर से लौट जाना + +9176. कोई न कोई हर वक्त बना ही रहता था घर में + +9177. अब इस घर में रहते हैं ईन मीन तीन जन + +9178. काटने को दौड़ता है घर + +9179. सुख-दुःख में भी पहले की तरह इकट्ठे नहीं होते लोग + +9180. अब सिर्फ एलबम में रहते हैं + +9181. + +9182. जयति पद्मा स्नेह माता + +9183. देख मेरी दुर्दशा ॥ + +9184. + +9185. तू ही राम है तू रहीम है, + +9186. तेरी जात पाक कुरान में, + +9187. अरदास है,कहीं कीर्तन, + +9188. + +9189. तेरे नाम अनेक,तू एक ही है। + +9190. वर्षा से बही, नदिया हो कर, + +9191. कुछ और नहीं, बस तू ही दिखा । + +9192. + +9193. अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥ + +9194. जीवन त्याग-तपोमर कर दे, + +9195. मानवता का त्रास हरें हम, + +9196.
+ +9197. प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव + +9198. कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर + +9199. नव नभ के नव विहग-वृंद को + +9200. भाषा साहित्य और संस्कृति/तू दयालु, दीन हौं: + +9201. ब्रह्म तू ,हौं जीव, तू है ठाकुर, हौं चेरो। + +9202. अभिमतदातार कौन, दुख-दरिद्र दारै।1। + +9203. सेवा बिनु गुनबिहीन दीनता सुनाये। + +9204. भाषा साहित्य और संस्कृति/स्त्री-पुरुष तुलना: + +9205. 1.1. + +9206. हर्जं ही क्या? + +9207. "न जाने इससे कब छुटकारा मिलेगा-दवाएँ पिला-पिला कर हैरान होता जा रहा हूँ" कभी सुना है कब छुटकारा मिलेगा- + +9208. मीर-अरे तो जाकर सुन ही आइए न। औरतें नाजुक-मिजाज होती ही हैं। + +9209. मिर्जा-अरे यार, बाना पड़ेगा हकीम के यहाँ। सिर-दर्द खाक नहीं है; मुझे परेशान करने का बहाना है। + +9210. है ! चाहे कोई मर ही जाय, पर उठने का नाम नहीं लेते! नौज कोई तुम-जैसा आदमी हो! + +9211. मिर्जा-बराबर के आदमी हैं, उम्र में, दर्जे में मुझसे दो अगुल ऊँचे। मुलाहिजा करना ही पड़ता है। + +9212. मिर्जा ने कहा-तुमने ग़ज़न किया। बेगम-अब मीर साहब इधर आये, तो खड़े-खड़े निकलवा दूंगी। इतना लौ खुदा से लमाते, तो क्या गरीब हो जाते! आप तो शतरंज खेलें, और मै यहाँ चूल्हे-चक्की की फ़िक्र में सिर खपाऊँ! ले जाते हो हकीम साहब के यहाँ कि अब भी ताम्मुल है? + +9213. मीर-अजी, बकने भी दीजिएए; दो-चार रोज में आप ही ठीक हो + +9214. राज्य में हाहाकार मचा हुआ था । प्रजा दिन-दहाड़े लूटी जाती थी । कोई फ़रियाद सुननेवाला न था । देहातों की सारी दौलत लखनऊ में खिंची चली आती थी, और वह वेश्याओं में, भाँड़ों में और विला-सिता के अन्य अगों की पूर्ति में उड़ जाती थी। अँगरेज कंपनी का ऋण दिन-दिन बढ़ता जाता था। कमली दिन-दिन भीगकर भारी होती जाती थी। देश में सुव्यवस्था न होने के कारण वार्षिक कर भी न वसूल होता था। रेजीडेंट बार-बार चेतावनी देता था; पर यहाँ तो लोग विलासिता के नशे में चूर थे; किसी के कानों पर जूं न रेंगती थी। + +9215. मिर्जा-बड़ी मुसीबत है। कहीं मेरी भी तलबी न हो । + +9216. इधर मीर साहब की बेगम उस सवार से कह रही थीं-तुमने खूब धता बतायी। उसने जवाब दिया-ऐसे गावदियों को तो चुटकियों पर नचाता हूँ। इनकी सारी 'अक्ल और हिम्मत तो शतरंज ने चर ली। अब भूलकर भी घर पर न रहेंगे। + +9217. . मोर -आप भी अजीब आदमी हैं । यहाँ तो शहर पर आफत आयी हुई है, और आपको किश्त की सूझो है ! कुछ इसकी भी खबर है कि शहर घिर गया, तो घर कैसे चलेंगे ? + +9218. दोनों सज्जन फिर जो खेलने बैठे तो तीन बज गये । अबकी मिर्जाजी की बाबी कमजोर थी। चार का गजर बज ही रहा था कि फौज की वापसी की आहट मिली । नवाब वाजिदअली शाह पकड़ लिये गये थे, और सेना उन्हें किसी अज्ञात स्थान को लिये जा रही थी। शहर में न कोई हलचल थी, न मार-काट । एक बूंद भी खून नहीं गिरा था। आज तक किसी स्वाधीन देश के राजा को पराजय इतनी शांति से, इस तरह खून बहे बिना न हुई होगी। यह वह अहिंसा न थी, जिस पर देवगण प्रसन्न होते हैं । यह वह कायरमन था, जिस पर 'बड़े-से-बड़े कायर भी आँसू बहाते हैं । श्रवत्र के विशाल देश का नाम बंदी बना चला जाता या, और लखनऊ [ १७३ ] ऐश की नींद में मस्त था। यह राजनीतिक अधःपतन की चरम सीमा थी। मिर्जा ने कहा- हुजूर नवाब, साहब को जालिमो ने कैद कर लिया है। + +9219. मीर-हाँ, सो तो है ही यह लो, फिर किश्त ! बस, अबकी किश्त में मात है । बच नहीं सकते। + +9220. मिर्जा-आप चाल चल चुके हैं। मुहरा वहीं रख दीजिए-उसी घर में 1. + +9221. तकरार बढ़ने लगी। दोनों अपनी-अपनी टेक पर अड़े थे। न यह दबता था न वह । अप्रासंगिक बातें होने लगी। मिर्जा बोले---किसी ने खानदान में शतरंज खेली होती, तब तो इसके कायदे जानते । वे तो हमेशा घास छीला किये, आप शतरंज क्या खेलिएगा। रियासत और ही चीज़ है । जागीर मिल जाने ही से कोई रईस नहीं हो जाता। + +9222. मिर्जा---पाप मेरा हौसला देखना चाहते हैं, तो फिर आइए, आज दो-दो हाथ हो जायँ, इधर या उधर । + +9223. भाषा साहित्य और संस्कृति/मेरे तो गिरधर गोपाल: + +9224. तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई॥। + +9225. अँसुवन जल सींचि सींचि प्रेम बेलि बोई। + +9226. दासी "मीरा" लाल गिरिधर तारो अब मोही॥ + +9227. + +9228. समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी, परस्त्री जेने मात रे, + +9229. भणे नरसैयॊ तेनु दरसन करतां, कुल एकोतेर तार्या रे ॥ + +9230. पद. + +9231. तैसे ही हरि बसै निरंतर, घटशरीर ही खोजौ भाई ॥२॥ + +9232. आर्थिक एवं सामाजिक विकास लोकसेवा अध्यायवार हल प्रश्नोत्तर/मुद्रास्फीति: + +9233. CPI के चार प्रकार निम्नलिखित हैं: + +9234. इनमें से प्रथम तीन को श्रम और रोज़गार मंत्रालय में श्रम ब्यूरो (labor Bureau) द्वारा संकलित किया गया है। जबकि चौथे प्रकार की CPI को सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अंतर्गत केंद्रीय सांख्यिकी संगठन(CSO) द्वारा संकलित किया जाता है। + +9235. 4जून2019 केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया है। इसके साथ ही उनकी नियुक्ति एक बार फिर पाँच साल के लिए इस पद पर की गई है। वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1968 बैच के IPS अधिकारी अजीत डोभाल को देश का पाँचवां राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया था। नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के अलावा रणनीतिक नीति समूह (Strategic Policy Group-SPG) का सचिव भी बनाया गया था। अजीत डोभाल 1988 में कीर्ति चक्र प्राप्त करने वाले पहले पुलिस अधिकारी हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद का मुख्य कार्यकारी और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा पर भारत के प्रधानमंत्री का प्रमुख सलाहकार होता है। सर्वप्रथम इस पद को 1998 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी ने सृजित किया था। + +9236. सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/संरक्षण: + +9237. इसका उद्देश्य सूचीबद्ध लुप्तप्राय वनस्पतियों और जीवों तथा पर्यावरण की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण संरक्षित क्षेत्रों को सुरक्षा प्रदान करना है। + +9238. इसके तहत वन्य जानवरों को संरक्षण प्रदान किया जाता है लेकिन इस सूची में आने वाले जानवरों और पक्षियों के शिकार पर दंड बहुत कम है। + +9239. औद्योगिक प्रदूषक- + +9240. राजस्थान में वर्षा जल संग्रहण ढांचे जिन्हें कुंड अथवा टाँका(एक ढका हुआ भूमिगत टंकी)के नाम से जानी जाती है जिनका निर्माण के पास या घर में संग्रहित वर्षा जल को एकत्र करने के लिए किया जाता है। + +9241. आर्द्रभूमि संरक्षण. + +9242. आगे की राह + +9243. ओज़ोन अपक्षय पदार्थों के मूल यौगिकों हैं- क्लोरोफ्लोरोकार्बन्स (CFC) जिनका प्रयोग रेफ्रिज़रेटर और एयरकंडीशन को ठंडा रखने वाले पदार्थ या एरासोल प्रोपेलेन्ट्स में तथा अग्निशामकों में प्रयुक्त किए जाने वाले ब्रोमोफ्लोरोकार्बन्स में होता है। + +9244. मिथाइल क्लोरोफॉर्म + +9245. सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/विकास और रोजगार: + +9246. रोजगार से संबंधित प्रश्न. + +9247. इस योजना को पहले की एक योजना मानक प्रशिक्षण आकलन एवं पारितोषिक (Standard Training Assessment and Reward-STAR) के स्थान पर लाया गया है। + +9248. संसाधन का वर्गीकरण. + +9249. उदाहरण-मनुष्य सहित सभी प्राणि। इसके अंतर्गत मत्स्य जीव, पशुधन, मनुष्य, पक्षी आदि आते हैं। + +9250. नवीकरण योग्य संसाधन- वैसे संसाधन जिन्हें फिर से नवीकृत किया जा सकता है,नवीकरण योग्य संसाधन कहलाते हैं। + +9251. स्वामित्व के आधार पर. + +9252. जैसे- सार्वजनिक पार्क,सार्वजनिक खेल का मैदान, सार्वजनिक चरागाह, श्मशान, सार्वजनिक तालाब, नदी, आदि। + +9253. इस के आधार पर संसाधनों को चार भागों में बाँटा गया है। + +9254. गुणवत्ता और मात्रा निर्धारित की जा चुकी है,विकसित संसाधन कहलाते हैं। + +9255. लिंग समाज और विद्यालय/तीन तलाक अधिनियम: + +9256. ३ मजिस्ट्रेट को पीड़िता का पक्ष सुनने के बाद सुलह कराने और जमानत देने का अधिकार होगा। + +9257. + +9258. पूंजी खाता(FDI, FII आदि के रूप में घरेलू अर्थव्यवस्था और विदेशी अर्थव्यवस्था से पूंजी निवेश का शुद्ध प्रवाह) + +9259. पर्यावरण प्रभाव आकलन मूल्यांकन का लक्ष्‍य सीआईओबी में प्रस्तावित एफजीएम स्थल के चारों ओर तथा इसके आस पास पर्यावरणीय मापदंडों की अंतर ऋतुकालिक के साथ-साथ अंतर वार्षिक परिवर्तनीयता का मूल्‍यांकन करना है। तलछट, भू-तकनीकी, भू-रसायनिक, माइक्रोबियल और जैव रासायनिक मापदंडों के अध्ययन से पता चला है कि पर्यावरणीय स्थितियां एक विस्तृत श्रृंखला पर अलग अलग समय पैमाने (ऋतुकालिक और वार्षिक) पर भिन्न-भिन्‍न है और संभवता यह परिवर्तन अन्‍य गतिविधियों जैसे कि गहरा समुद्र संस्‍तर खनन द्वारा बनाई गई परिस्‍थितियों से आए परिवर्तनों को अच्‍छी तरह से सम्‍मिलित कर सकते है । + +9260. गहरे समुद्र खनिज संसाधनों के खनन के लिए पर्यावरण डेटा को विकसित करना + +9261. बारहवीं योजना के दौरान, अत्याधुनिक तकनीक के माध्यम से नमूना / डेटा संग्रह में संगठित प्रयासों के माध्यम से इन पर हमारी जानकारी में सुधार करने का प्रस्ताव है। + +9262. एफजीएम के लिए ईएमपी + +9263. + +9264. सभी राष्ट्रों ने सर्वसम्मति से वर्ष 2030 तक एकल-उपयोग प्लास्टिक उत्पादों जैसे- कप, कटलरी और बैग आदि में कटौती करने पर भी सहमति व्यक्त की। + +9265. दो प्रमुख फैसले यूरोपीय ग्रीन डील के केंद्र में हैं। + +9266. यूरोपीय संघ द्वारा कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लिये वर्ष 1990 को आधार को बनाने के विपरीत अन्य सभी विकसित देशों ने क्योटो प्रोटोकॉल (Kyoto Protocol) के अनिवार्य लक्ष्य के तहत अपने आधार वर्ष को वर्ष 2005 या पेरिस जलवायु समझौते के तहत स्थानांतरित कर दिया है। + +9267. यूरोपीय संघ उत्सर्जन को कम करने के लिये अन्य विकसित देशों की तुलना में बेहतर कार्य कर रहा है। उत्सर्जन में कमी के संदर्भ में यह संभवतः यूरोपीय संघ के बाहर किसी भी विकसित देश के विपरीत वर्ष 2020 के लक्ष्य को पूरा करने के लिये प्रगति पर है। + +9268. चिली में दो सप्ताह पहले हुई उपनगरीय रेल के किराये में वृद्धि को लेकर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। यह विरोध प्रदर्शन अब एक बड़े जन आंदोलन में बदल गया है। जिसके माध्यम से अब चिली की जनता अधिक से अधिक समानता, बेहतर सार्वजनिक सुविधाओं तथा संविधान में परिवर्तन की मांग कर रही है। + +9269. उक्त रिपोर्ट्स में कहा गया था कि वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का पेरिस समझौते का लक्ष्य अब ‘असंभव होने की कगार पर है’, क्योंकि वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन अभी भी लगातार बढ़ रहा है। + +9270. बैठक के दौरान निजी क्षेत्र की 177 कंपनियों ने 1.5C के लक्ष्य के अनुरूप उत्सर्जन में कटौती करने की शपथ ली। + +9271. कुछ देशों (जैसे-मैक्सिको) ने क्योटो समझौते के क्रेडिट पॉइंट्स को पेरिस समझौते में इस्तेमाल करने की अनुमति मांगी है, जिस पर सभी देश एकमत नहीं हो सके। + +9272. यूनाइटेड किंगडम वर्ष 2020 में पहली बार ग्लासगो में COP-26 की मेज़बानी करेगा। + +9273. कार्य: + +9274. इस वर्ष वास्तविक समय के लिये कंप्यूटर मॉडलिंग को भी अभियान में एकीकृत किया जाएगा। + +9275. वैज्ञानिकों ने उन छह क्षेत्रों को चिंहित किया है जिनमें मानव को जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिये तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है। + +9276. लक्ष्य + +9277. जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप वैश्विक नीतियों के प्रतीकात्मक विरोध हेतु पर्यावरण कार्यकर्त्ताओं ने काले रंग के कपड़े पहने थे। + +9278. महासागरीय तापमान में वृद्धि के कारण 2300 किमी लंबी कोरल रीफ को प्रवाल विरंजन (Coral Bleaching) का सामना करना पड़ रहा है। + +9279. थनबर्ग पर्यावरण के लिये काम करने वाले युवाओं के बीच एक बड़ा प्रतीक बन गई हैं। + +9280. चुनाव के बाद भी हर शुक्रवार को स्कूल नहीं जाने का सिलसिला जारी रखा कुछ समय पश्चात् ही इनके साथ हज़ारों छात्रों ने भी इसे अपना लिया। + +9281. एक अनुमान के अनुसार, अगले 200 वर्षों में दुनिया के सभी ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे। + +9282. यह यूरोप का सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान है जो लगभग 12,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। + +9283. जलवायु और स्वच्छ वायु संघ (Climate & Clean Air Coalition-CCAC) विश्व के 65 देशों (भारत सहित), 17 अंतर सरकारी संगठनों, 55 व्यावसायिक संगठनों, वैज्ञानिक संस्थाओं और कई नागरिक समाज संगठनों की एक स्वैच्छिक साझेदारी है। + +9284. मैग्मा या लावा के शांत होने के बाद यह खनिज चुंबकीय क्षेत्र के साथ संरेखित होकर चट्टानों को संरक्षित करता है। लावा प्रवाह चुंबकीय क्षेत्र के आदर्श परिचायक होते हैं। + +9285. सतत् विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में सतत विकास पर अपनाई गई ‘द फ्यूचर वी वांट’ (The Future We Want) में SIDS की समस्याओं को उजागर किया गया है। + +9286. इस कार्यक्रम का प्राथमिक उद्देश्य लोगों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति जागरूक करना है।पहली बार 2007 में सिडनी (ऑस्ट्रेलिया) में मनाया गया,परंतु इस वर्ष दुनिया भर के 180 से अधिक देशों ने एक साथ अर्थ ऑवर मनाया। + +9287. माइक्रोप्लास्टिक्स पाँच मिलीमीटर से कम लंबे प्लास्टिक के टुकड़े होते हैं। + +9288. अध्ययन में कहा गया कि एशियाई ट्रोपोपॉज एरोसोल लेयर (Asian Tropopause Aerosol Layer) यानी प्रदूषकों की एक अधिक ऊँचाई वाली परत, में समाहित होने वाले प्रदूषकों के कारण भारतीय उपमहाद्वीप क्षेत्र में सौर विकिरण की मात्रा में कमी आई है। + +9289. अतिरिक्त सूचना + +9290. नेपाल सरकार के इस कदम का उद्देश्य वर्ष 2020 तक एवरेस्ट क्षेत्र को प्लास्टिक मुक्त क्षेत्र बनाना है। + +9291. प्लास्टिक के विकल्प के रूप में कैक्टस-एक मैक्सिकन शोधकर्त्ता द्वारा कांटेदार कैक्टस (Cactus) के पौधे से निर्मित पैकेजिंग सामग्री विकसित की गई है।वैज्ञानिकों के अनुसार, मेक्सिको के कांटेदार कैक्टस (Cactus) के पौधे से बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक का उत्पादन किया जा सकता है। + +9292. यह निर्णय वर्ष 2016 में एक अधिकार समूह द्वारा दायर याचिका की सुनवाई के संबंध में सामने आया। + +9293. पत्रिका ‘नेचर केमिस्ट्री’ में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने एक ऐसा प्लास्टिक बनाया है जिसके बार-बार पुनर्चक्रण के पश्चात् भी गुणवत्ता में कोई कमी नहीं आएगी। + +9294. वैज्ञानिकों का मानना है कि यह प्लास्टिक वर्तमान में उपयोग में लाए जा रहे प्लास्टिक का विकल्प बन सकता है। + +9295. वर्ष 2002 में यह अध्ययन शुरू हुआ जो पश्चिमी घाट के अन्नामलाई हिल्स में वर्षावनों के अवशेषों पर केंद्रित था।पारिस्थितिक सुधार के अंतर्गत आक्रामक खरपतवारों के चुने हुए क्षेत्रों को साफ करना तथा देशी प्रजातियों के विविध प्रकारों को शामिल किया गया था। + +9296. यह तीसरी बार था जब इंसान ने समुद्र की सबसे अधिक गहराई तक गोता लगाया है,इस गहराई को चैलेंजर डीप (Challenger Deep) के नाम से जाना जाता है। + +9297. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (United Nations Environment Assembly-UNEA) + +9298. ग्लोबल वार्मिंग कम करने से जुड़े पेरिस समझौते के अनुसार, वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री तक रोकने में सफलता मिलने के बावजूद हिमालय के हिन्दु कुश क्षेत्र के तापमान में 2.1 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ोतरी हो सकती है। इसके चलते इस क्षेत्र में स्थित एक-तिहाई ग्लेशियर पिघल सकते हैं। + +9299. वन्यजीवों और वनस्पतियों की संकटापन्न प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर देशों के बीच एक समझौता है। + +9300. प्रस्तुत प्रस्ताव में Smooth-Coated Otter, छोटे-पंजे वाले ओटर (Small-Clawed Otter), भारतीय स्टार कछुआ, टोके गेको (Tokay Gecko), वेजफिश (Wedgefish) और भारतीय शीशम (Indian Rosewood) की सूची में बदलाव के बारे में बात की गई हैं। + +9301. भाषा विज्ञान और हिंदी भाषा: + +9302. विषय सूची. + +9303. ये सभी भाषाएं राष्ट्रीय, सामाजिक और शैक्षिक स्तर पर अपना भिन्न - भिन्न महत्व रखती है। और प्रत्येक संदर्भ में इसके शिक्षण के स्वरूप को प्रभावित करता है। + +9304. त्रिभाषा सूत्र. + +9305. इन्हीं तीनों श्रेणियों में किन्ही तीन भाषाओं को पढ़ने का प्रस्ताव है। + +9306. भाषा शिक्षण/भाषा शिक्षण का सामाजिक संदर्भ: + +9307. चौथा, क्षेत्रीयता के प्रभाव और शैली में बदलाव के कारण शब्दों के प्रयोग में भी अन्तर देखा जा सका है शब्दों का चुनाव भी व्यक्ति अपने क्षेत्र विशेष में बोली जाने वाली भाषा के अनुसार ही करता है । जैसे- लौकी को कहीं-कहीं घिया भी बोला जाता है और सीताफल पेठा। + +9308. ० भाषा-शिक्षण + +9309. भाषा कौशल
                                                  + +9310. प्रायः देखा जाता है कि शिक्षक द्वारा कक्षा में शैक्षिक वातावरण तैयार किए बिना ही + +9311. श्रवण कौशल विकास हेतु उपाय एवं समस्याओं का समाधान (Measures for hearing skills development and solutions to problems): + +9312. 4. शिक्षक को सामग्री के प्रति करण से पूर्व की सभी समस्याओं का समाधान कर देना चाहिए इससे छात्रों को दो प्रकार से लाभ होता है| प्रथम अवस्था में छात्र शिक्षक के प्रति विश्वास रखने लगता है तथा दूसरी अवस्था में वह उसके तथ्यों को ध्यानपूर्वक सुने लगता है| + +9313. वाचन कौशल के उद्देश्य एवं भाषा शिक्षण में इसके महत्व को निम्नलिखित रुप से स्पष्ट किया जा सकता है- + +9314. 3. भाषण कौशल के माध्यम से छात्रों का व्यक्तित्व विकसित होता है, क्योंकि वे प्रत्येक तथ्य का प्रस्तुतीकरण सारगर्भित एवं प्रभावी रूप से करने में सक्षम होते हैं| + +9315. 2. भाषण कौशल के उद्देश्य छात्रों में क्रमिक रूप से तथा धाराप्रवाह रूप में बोलने की क्षमता विकसित करना है जिससे विभिन्न वासी प्रकरणों पर अपनी दक्षता का प्रदर्शन कर सकें| + +9316. 1. भाषण कौशल की प्रमुख बाधा छात्र में आत्मविश्वास के अभाव को माना जाता है| इसके कारण छात्र अपने कथन में ओजस्विता नहीं ला पाते हैं| + +9317. भाषण कौशल के विकास में भाषा शिक्षक एवं विद्यालय व्यवस्था की महत्वपूर्ण भूमिका होती है| + +9318. 3.वाचन/पठन कौशल (Reading Skill): + +9319. वाचन/पठन संबंधी त्रुटियाँ (Errors Related to Reading): + +9320. लेखन कौशल के गुण (Merits of Writing Skill): + +9321. 2. अक्षरों को सरल से कठिन के क्रम में लिखना सिखाया जाये जैसे-प, व, र, भ आदि अक्षर पहले क्ष, त्र, ज्ञ आदि कठिन अक्षर बाद में। वाक्य भी सरल से कठिन की ओर सूत्र के आधार पर लिखने सिखाये जायें। + +9322. 7. लेखन कार्य पढ़े हुए अंश से सिखाना चाहिए। बालक पढ़ी हुई बात को आसानी से लिख लेते हैं। + +9323. हिंदी विकि सम्मेलन २०२०/ऋषि बंकिम चंद्र कॉलेज विकि कार्यशाला: + +9324. कार्यक्रम रूपरेखा. + +9325. समसामयिकी फरवरी 2020: + +9326. + +9327. 'अरे! हम् दोनों एक ही शरीर के भाग हैं। खाने-पीने की चीजें तो हमें बांटकर खानी चाहिए।' दूसरे सिर ने दलील दी। पहला सिर कहने लगा 'ठीक ! हम एक शरीर के भाग हैं। पेट हमार एक ही हैं। मैं इस फल को खाऊंगा तो वह पेट में ही तो जाएगा और पेट तेरा भी हैं।' + +9328. पहले सिर ने समझाने कि कोशिश की 'तुने यह फल खा लिया तो हम दोनों मर जाएंगे।' + +9329. समसामयिकी 2020: + +9330. 2,967 बाघों की संख्या के साथ भारत ने चार वर्ष पूर्व ही ‘सेंट पीटर्सबर्ग घोषणा' के लक्ष्य को प्राप्त कर लिया है। + +9331. रिपोर्ट में पहली बार बाघों की आबादी पर मानव-जनित प्रभाव के संबंध में विस्तृत वर्णन दिया गया है। + +9332. वैश्विक बाघों की आबादी की लगभग 70 प्रतिशत भारत में है। पश्चिमी घाट, लगभग 724 बाघों की संख्या के साथ दुनिया का सबसे बड़ा सतत् बाघ आबादी वाला क्षेत्र है। इसमें सतत् क्षेत्र नागरहोल-बांदीपुर-वायनाड-मुदुमलाई- सत्यमंगलम-बीआरटी ब्लॉक शामिल हैं। + +9333. इसे वर्ष 1955 में स्थापित स्कूल ऑफ टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से एकीकृत कर दिया गया और वर्ष 1955 में इसका नाम बदलकर स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर कर दिया गया। इसके अंतर्गत मानव आवास और पर्यावरण के विभिन्न पहलुओं में विभिन्न स्तरों पर प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। + +9334. ध्यातव्य है कि भारत में चिड़ियाघरों को वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के अनुसार विनियमित तथा राष्ट्रीय चिड़ियाघर नीति, 1992 द्वारा निर्देशित किया जाता हैं। + +9335. अपर अनाइकट रिज़र्व फॉरेस्ट (Upper Anaicut Reserve Forest) में स्थित है जो तिरुचिरापल्ली में कावेरी और कोल्लीडम (Kollidam) नदियों के बीच स्थित है। + +9336. मुख्य बिंदु: + +9337. चूँकि तितलियाँ प्रकृति में खाद्य वेब (Food Web) का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं इसलिये पारिस्थितिक संतुलन के लिये इन प्रजातियों की रक्षा करना बहुत आवश्यक है। वे परागण की प्रक्रिया के द्वारा वैश्विक खाद्य श्रृंखला में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। + +9338. इस परियोजना का उद्देश्य जल संग्रहण क्षमता में सुधार और आसपास के भूजल स्तर को समृद्ध करना है। + +9339. अंटार्कटिक समुद्री जीव संसाधन के संरक्षण के लिये आयोग (CCAMLR) की स्थापना अंटार्कटिक समुद्री जीवों के संरक्षण के लिये 1982 में की गई। + +9340. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019) + +9341. ‘हालोआर्चिया’ या ‘हालोफिलिक आर्चिया’ एक ऐसा जीवाणु होता है जो गुलाबी रंग पैदा करता है और खारे पानी में पाया जाता है। + +9342. लोनार झील महाराष्ट्र के बुलढाणा ज़िले के लोनार में स्थित एक क्रेटर झील (Crater-Lake) है और इसका निर्माण प्लीस्टोसीन काल (Pleistocene Epoch) में उल्कापिंड के गिरने से हुआ था जो 1.85 किमी. के व्यास एवं 500 फीट की गहराई के साथ बेसाल्टिक चट्टानों से निर्मित है। + +9343. आर्द्रभूमियों को आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम (Wetlands (Conservation and Management) Rules,) , 2017 के तहत विनियमित किया जाता है। सेंट्रल वेटलैंड रेगुलेटरी अथॉरिटी (Central Wetland Regulatory Authority) के लिये प्रदत्त नियमों का 2010 संस्करण; 2017 के नियमों ने इसे राज्य-स्तरीय निकायों के साथ परिवर्तित कर एक राष्ट्रीय आर्द्रभूमि समिति (National Wetland Committee) बनाई, जो एक सलाहकारी निकाय के रूप में कार्य करती है। नए नियमों ने ‘आर्द्रभूमि’ की परिभाषा से कुछ वस्तुओं को हटा दिया, जिनमें बैकवाटर, लैगून, क्रीक और एश्च्युरी शामिल हैं। + +9344. ♦ जल एक ऐसा पदार्थ है जिसकी अवस्था में बदलाव लाना अपेक्षाकृत आसान है। + +9345. सुखना झील: प्रवासी पक्षियों के लिये एक अभयारण्य + +9346. उल्सूर झील के जल में न केवल बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) एवं केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (COD) की जाँच की जाएगी अपितु आर्सेनिक एवं फॉस्फोरस जैसे मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले तत्वों की भी जाँच की जाएगी। + +9347. काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में 96 प्रजातियों तथा 80 परिवारों से संबंधित पक्षियों की कुल संख्या 19,225 दर्ज की गई। + +9348. इस उद्यान में पाए जाने वाले तीन प्रमुख प्रकार के पादप समुदाय हैं- + +9349. गिर को अक्सर ‘मल्धारिस’ (Maldharis) के साथ जोड़ा जाता है जो शेरों के साथ सहजीवी संबंध होने से युगों तक जीवित रहे हैं। + +9350. इस राष्ट्रीय उद्यान का प्रशासन असम सरकार के वन विभाग के अंतर्गत आता है। + +9351. पृष्ठभूमि + +9352. ‘एन्वायरनमेंटल रिसर्च लैटर्स’ नामक जर्नल में छपे एक लेख के अनुसार,हालिया वृक्षारोपण की तुलना में प्राकृतिक वनों में वर्षों से कार्बन अवशोषण की दर अधिक थी। सदाबहार, पर्णपाती वनों और सागौन और यूकेलिप्टस (Eucalyptus) के वृक्षों के संदर्भ में किये गए अध्ययन में अन्य वृक्षों की तुलना में यूकेलिप्टस के वृक्ष द्वारा कम कार्बन भंडारण पाया गया। + +9353. यह टाइगर रिज़र्व चार नदियों रमज़ान, आहू, काली और चंबल से घिरा हुआ है और यह दो समानांतर पहाड़ों मुकुंदरा एवं गगरोला के बीच स्थित है। यह चंबल नदी की सहायक नदियों के अपवाह क्षेत्र के अंतर्गत आता है। + +9354. इसका क्षेत्रफल 321 वर्ग किमी. है। + +9355. 2,800 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में नल्लामाला पहाड़ियों में स्थित है। यह नागार्जुनसागर-श्रीशैलम टाइगर रिज़र्व के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा टाइगर रिज़र्व है। + +9356. बांदीपुर टाइगर रिज़र्व देश के सबसे धनी जैव विविधता वाले क्षेत्रों में से एक है जो ‘5 बी पश्चिमी घाट पर्वत जीव विज्ञान क्षेत्र (5 B Western Ghats Mountains Biogeography Zone)’ का प्रतिनिधित्व करता है। + +9357. किसी प्रजाति के पुनर्स्थापन का मतलब है कि इसे उस क्षेत्र में रखना जहाँ यह जीवित रहने में सक्षम है। + +9358. भारत सरकार ने वर्ष 1951-52 में आधिकारिक रुप से एशियाई चीता को भारत से विलुप्त घोषित कर दिया। + +9359. प्रोजेक्ट चीता के तहत मध्य प्रदेश के कूनों पालपुर वन्यजीव अभयारण्य और नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य के अलावा राजस्थान के जैसलमेर ज़िले में शाहगढ़ का चयन किया गया है। इन अभयारण्यों में नामीबिया से अफ्रीकी प्रजाति के चीते लाए जाएंगे। + +9360. पक्षी अभयारण्य. + +9361. यहाँ देखे जाने वाले कुछ महत्त्वपूर्ण प्रवासी पक्षी हैं:-बार-हेडेड गीज़ (Bar-headed geese),ग्रेटर फ्लेमिंगोस (Greater Flamingos),बगुले (Herons), ब्लैक टेल्ड गाॅडविट्स (Black-tailed Godwits) और ग्रेट नॉट (Great Knot)। ग्रेट नॉट पक्षी को पांच साल बाद देखा गया। + +9362. सालेकी में कोयला खनन कोल इंडिया लिमिटेड (Coal India Limited) की एक इकाई नार्थ-ईस्टर कोल फील्ड (North-Easter Coal Field- NECF) द्वारा किया जायेगा। + +9363. असम में वर्षा वन डिब्रूगढ़, तिनसुकिया और शिवसागर ज़िलों में 575 वर्ग किमी (222 वर्ग मील) से अधिक क्षेत्र में फैले हुए हैं। + +9364. अगस्त्यमाला बायोस्फीयर रिज़र्व भारत के पश्चिमी घाट के सबसे दक्षिणी छोर में स्थित है और इसमें समुद्र तल से 1,868 मीटर ऊँची चोटियाँ शामिल हैं। + +9365. वायनाड वन्यजीव अभयारण्य की भौगोलिक अवस्थिति इसलिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह कर्नाटक के उत्तर-पूर्वी भाग में बांदीपुर टाइगर रिज़र्व और नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान जैसे अन्य संरक्षित क्षेत्रों के साथ दक्षिण-पूर्व में तमिलनाडु के मुदुमलाई टाइगर रिज़र्व को पारिस्थितिक और भौगोलिक निरंतरता (Ecological And Geographic Continuity) प्रदान करता है। + +9366. इस अभयारण्य के उत्तर-पूर्व में कावेरी वन्यजीव अभयारण्य (कर्नाटक), दक्षिण में सत्यमंगलम टाइगर रिज़र्व (तमिलनाडु) और पश्चिम में बिलिगिरिरंगास्वामी मंदिर टाइगर रिज़र्व (कर्नाटक) स्थित है। + +9367. कल्याण रेवु जलप्रपात (जिसे कल्याण ड्राइव जलप्रपात भी कहा जाता है) और कैगल जलप्रपात भी यहाँ स्थित हैं। + +9368. रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान दक्षिण में चंबल नदी और उत्तर में बनास नदी से घिरा हुआ है। + +9369. बनास, चंबल की एक सहायक नदी है। + +9370. यहाँ ढाक (इसके अन्य नाम पलाश, छूल, परसा, टेसू, किंशुक, केसू हैं।) नामक वृक्ष पाया जाता है, जो सूखे की लंबी अवधि के अनुकूल होता है। + +9371. इसमें अभयारण्य शामिल हैं? + +9372. गोवा सरकार ने वर्ष 2017 में तटीय रिज़र्व के कुछ क्षेत्रों को बाघ आरक्षित के रूप में अधिसूचित करने के लिये केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा था। + +9373. यहाँ का मुख्य आकर्षण दूधसागर जलप्रपात मांडवी नदी पर स्थित है। + +9374. इसका उद्गम कर्नाटक में होता है और महादेई वन्यजीव अभयारण्य से होती हुई गोवा की राजधानी पणजी के पास अरब सागर से मिलती है। + +9375. अलग-अलग स्थानों पर सामान्यतः इसे गंगा नदी डॉल्फ़िन, ब्लाइंड डॉल्फ़िन, गंगा ससु, हिहु, साइड-स्विमिंग डॉल्फिन, दक्षिण एशियाई नदी डॉल्फिन, आदि नामों से जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम प्लैटनिस्टा गैंगेटिका (Platanista gangetica) है। + +9376. 1 अप्रैल, 2020 को ‘ऑल इंग्लैंड क्लब; (All England Club) ने COVID-19 महामारी के कारण विंबलडन टूर्नामेंट-2020 (Wimbledon Tournament-2020) को रद्द कर दिया। इसका आयोजन 29 जून से 12 जुलाई 2020 तक लंदन के ऑल इंग्लैंड क्लब में किया जाना था। + +9377. इस संगठन का मुख्यालय संयुक्त राज्य अमेरिका के इंडियानापोलिस (Indianapolis) में है। + +9378. + +9379. मन जैसे-जैसे, आर्द्र होकर विशाल से विशालतर होता जाएगा, वैसे-वैसे ज्ञान की ज्योति और तीव्र होगी। अपने से दीन पर दया करके उन्हें अपने समान सक्षम बनाने के लिए कार्य करना ही अपने को शक्तिशाली बनाने का एकमात्र उपाय है। इसका और कोई चारा नहीं है। + +9380. लिखो कि जिसने स्त्री का अपमान किया है, उसने अपनी आँख को फोड़ लिया है। + +9381. शक्ति, शक्ति, शक्ति कहकर गाओ। + +9382. + +9383. यह रैंकिंग 63 देशों को उनकी डिजिटल तकनीक को अपनाने एवं अन्वेषण क्षमता व तैयारी को मापती है। + +9384. भारत और इसके पड़ोसी देशों की स्थिति:-वर्ष 2019 में भारत 117 देशों में से 102वें स्थान पर रहा, जबकि वर्ष 2018 में भारत 103वें स्थान पर था। + +9385. इस सूचकांक में सबसे निचले स्थान (109वें) पर अफग़ानिस्तान है, जिसके पासपोर्ट धारक 25 देशों में बिना किसी पूर्व वीज़ा के यात्रा कर सकते हैं। + +9386. इस रिपोर्ट को जो एक गैर-लाभकारी संगठन है, यह भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department-IMD) के साथ मिलकर काम करता है। + +9387. वैश्विक खाद्य नीति रिपोर्ट (Global Food Policy Report-GFPR),2019-वाशिंगटन डीसी स्थित अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (International Food Policy Research Institute-IFPRI) + +9388. इसके अंतर्गत वैश्विक स्तर पर देशों के प्रतिभाओं की प्रतिस्पर्द्धा-क्षमता को मापा जाता है। + +9389. देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न की शुरुआत वर्ष 1954 में की गई थी। कोई भी व्यक्ति, जाति, व्यवसाय, पद या लैंगिक भेदभाव के बिना इन पुरस्कारों के लिये पात्र है। + +9390. ‘सहायक एयर ड्रोपेबल कंटेनर'. + +9391. जब सरकार द्वारा किसी तृतीय पक्ष को पेटेंटधारक की सहमति के बिना किसी पेटेंटीकृत उत्पाद या प्रक्रिया का उत्पादन करने की अनुमति दी जाती है तो इसे अनिवार्य लाइसेंसिंग (Compulsory Licensing-CL)कहा जाता है। अनिवार्य लाइसेंस दिये जाने हेतु जिन शर्तों को पूरा करने की आवश्यकता होती हैं, वे इस अधिनियम की धारा 84 और 92 के तहत आती हैं। + +9392. अफ्रीकी-एशियाई ग्रामीण विकास संगठन (AARDO) का आह्वान. + +9393. ♦ ‘विकास, शांति और सामंजस्य हेतु स्वदेशी भाषाएँ मायने रखती हैं।’ + +9394. AsESG एशियाई हाथियों(वैज्ञानिक नाम-एलिफस मैक्सिमस) के अध्ययन,निगरानी,प्रबंधन एवं संरक्षण हेतु वैज्ञानिक और गैर-वैज्ञानिक दोनों प्रकार के विशेषज्ञों का एक वैश्विक नेटवर्क है। यह IUCN के स्पीशीज़ सर्वाइवल कमीशन (SSC) का एक अभिन्न अंग है। इसका उद्देश्य एशियाई हाथियों की आबादी को पर्याप्त स्तर पर बनाए रखने हेतु इनके दीर्घकालिक संरक्षण को बढ़ावा देना है। इसमें 18 देशों के लगभग 110 विशेषज्ञ शामिल हैं और वर्तमान में इस समूह के अध्यक्ष विवेक मेनन (भारत) हैं। + +9395. GTF एकमात्र अंतर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय निकाय (intergovernmental international body) है जो बाघों के संरक्षण के लिये तैयार देशों के सहयोग से स्थापित किया गया है। + +9396. इसे वर्ष 1968 में राष्ट्रीय उद्यान के रूप में अधिसूचित किया गया था तथा प्रोजेक्ट टाइगर नेटवर्क के तहत वर्ष 1993 में इसे एक बाघ आरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया। + +9397. भारत में एशियाई हाथियों की 50% आबादी पाई जाती है और वर्ष 2017 की हाथी जनगणना के अनुसार, देश में कुल 27,312 हाथी हैं जो वर्ष 2012 की जनगणना से लगभग 3,000 कम हैं। + +9398. इस रिज़र्व के मध्य में उत्तर से दक्षिण की ओर केन नदी बहती है। + +9399. यहाँ केन नदी में घड़ियाल और मगर भी पाए जाते हैं। + +9400. NSTR को वर्ष 1978 में अधिसूचित किया गया था तथा वर्ष 1983 में इसे प्रोजेक्ट टाइगर के संरक्षण के तहत शामिल किया गया। + +9401. NSTR विभिन्न प्रकार के जंगली जानवरों का निवास स्थान है, यहाँ बंगाल टाइगर के अलावा, तेंदुआ, चित्तीदार बिल्ली, पेंगोलिन, मगर, इंडियन रॉक पायथन और पक्षियों की असंख्य किस्में पाई जाती हैं। + +9402. 1 मार्च,2017 को उत्तराखंड सरकार ने जैव-विविधता समृद्ध इस क्षेत्र पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों पर विचार किये बिना वाणिज्यिक वाहनों के लिये टाइगर रिज़र्व में लालढांग-चिलरखाल (Laldang-Chillarkhal) मार्ग खोलने का निर्णय लिया। + +9403. विशेषज्ञों का प्रयास पापिकोंडा नेशनल पार्क की मौजूदा जैव विविधता की एक तस्वीर पेश करेगा। + +9404. राज्य में रॉयल बंगाल टाइगर के अंतिम व्यवहार्य निवास होने के कारण इन तीनों संरक्षित क्षेत्रों को प्रोजेक्ट टाइगर (Project Tiger) के तहत संयुक्त करके दुधवा टाइगर रिज़र्व के रूप में गठित किया गया है। + +9405. यह नीलगिरी बायोस्फियर रिज़र्व का एक भाग है। इसमें पर्वतीय घास के मैदान व झाड़ियाँ पाई जाती है। + +9406. बन्नेरघट्टा राष्ट्रीय उद्यान कर्नाटक के बंगलूरू में 1972 में स्थापित और 1974 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया। + +9407. ESZ कमेटी के अनुमान के अनुसार, बन्नेरघट्टा नेशनल पार्क में 150 से 200 के बीच हाथी देखे गए। + +9408. इसे वर्ष 1999 में भारत के वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत एक वन्यजीव अभयारण्य (wildlife sanctuary) के रूप में अधिसूचित किया गया था। यह एक रामसर स्थल है। + +9409. इसका नामकरण कावेरी नदी के नाम पर ही हुआ है। + +9410. माले महादेश्‍वरा पहाडि़यों के जंगलों में चंदन की लकड़ी और बाँस के वृक्ष बहुतायत में पाए जाते हैं। + +9411. यह ज्ञानगंगा नदी के पास स्थित है जो कि ताप्ती की एक सहायक नदी है। + +9412. चिह्नित गई भूमि को कृष्णा वन्यजीव अभयारण्य में शामिल करने की सिफारिश राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (National Board for Wildlife-NBWL) द्वारा की गई थी। + +9413. मछली पकड़ने वाली बिल्लियाँ + +9414. भारत में इन बिल्लियों को भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I में शामिल किया गया है, जिसके कारण भारत में इनके शिकार पर रोक है। + +9415. पिछले वर्ष कृष्णा राजा सागर बांध का अतिरिक्त पानी छोड़ दिये जाने के परिणामस्वरूप इस अभयारण्य में कई ऐसे द्वीप जलमग्न हो गए थे जहाँ पक्षी अपना बसेरा एवं घोंसला बनाते थे। + +9416. रायसेन, सीहोर तथा भोपाल ज़िलों का लगभग 3,500 वर्ग किमी का क्षेत्र बाघों के लिये आरक्षित किया गया है। + +9417. मगरमच्छ सबसे अधिक ताज़े जल के वातावरण जैसे-नदियों,झीलों,पहाड़ी नदियों और गाँव के तालाबों में पाए जाते हैं। ये ताज़े पानी और तटीय खारे पानी के लैगून में भी पाए जा सकते हैं। + +9418. भारत सरकार ने 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर के माध्यम से राष्ट्रीय पशु बाघ के संरक्षण हेतु एक अग्रणी पहल शुरू की थी। + +9419. वर्ष 1974 में वन्यजीव अभयारण्य घोषित इस अभयारण्य के दो अलग-अलग भाग हैं और छोटा भाग,मुख्य भाग के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। + +9420. बॉटुलिज़्म का कोई विशिष्ट इलाज नहीं उपलब्ध है, इससे प्रभावित अधिकांश पक्षियों की मौत हो जाती है। + +9421. मंत्रालय उपरोक्त चिन्ह्र्त आर्द्रभूमियों की देखभाल के लिये समुदाय की भागीदारी को बढ़ाते हुए ‘आर्द्रभूमि मित्र समूह’ (Wetland Mitras) का गठन करेगा। यह समूह स्व-प्रेरित व्यक्तियों का समूह होगा। + +9422. गोगाबील बिहार के कटिहार ज़िलें में स्थित है जिसके उत्तर में महानंदा और कनखर तथा दक्षिण एवं पूर्व में गंगा नदी है। + +9423. इको-सेंसिटिव ज़ोन में होने वाली गतिविधियाँ 1986 के पर्यावरण (संरक्षण अधिनियम) के तहत विनियमित होती हैं। EEZ क्षेत्र का विस्तार किसी संरक्षित क्षेत्र के आस-पास 10 किमी. तक के दायरे में हो सकता है। लेकिन संवेदनशील गलियारे, कनेक्टिविटी और पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण खंडों एवं प्राकृतिक संयोजन के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्र होने की स्थिति में 10 किमी. से भी अधिक क्षेत्र को इको-सेंसिटिव ज़ोन में शामिल किया जा सकता है। + +9424. मुख्यतः मेघालय की खासी ओर जयंतिया पहाड़ियों में सदियों से फैले 15 से 250 फुट के ये ब्रिज़ विश्व प्रसिद्ध पर्यटन का आकर्षण भी बन गए हैं। + +9425. नेथरावती नदी बंतवाल और मैंगलोर में जल का मुख्य स्रोत है। + +9426. कोले वेटलैंड केरल के त्रिसूर ज़िले में स्थित है। + +9427. यह खारे पानी की एक लैगून है, जो भारत के पूर्वी तट पर ओडिशा राज्य के पुरी, खुर्दा और गंजम ज़िलों में विस्तारित है। + +9428. अंसुपा अपनी मीठे पानी की मछली के लिये भी प्रसिद्ध है। + +9429. इसे अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature-IUCN) द्वारा एशिया के महत्त्वपूर्ण वेटलैंड/आर्द्र्भूमि (Wetlands) में से एक के रूप में मान्यता दी गई है। + +9430. यह कदम CMFRI की परियोजना ‘जलवायु अनुकूल कृषि में राष्ट्रीय नवाचार’ (National Innovations in Climate Resilient Agriculture) द्वारा विकसित ‘मत्स्य पालन और आर्द्रभूमि के लिये राष्ट्रीय ढाँचा‘ (National Framework for Fisheries and Wetlands) के अंतर्गत उठाया गया है। इस परियोजना का उद्देश्य समुद्री मत्स्य पालन और तटीय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करना है। + +9431. बायो-फेंसिंग से लाभ + +9432. ट्रेन हादसों में हाथियों की मौत को रोकने तथा उन्हें रेलवे पटरियों से दूर रखने के लिये बनाए गए इस रणनीति के लिए भारतीय रेलवे ने सर्वश्रेष्ठ नवाचार पुरस्कार प्रदान किया है। + +9433. इस ध्वनि यंत्र की आवाज़ को 600-700 मीटर की दूरी पर स्थित हाथियों द्वारा सुना जा सकता है और इस तरह यह उन्हें पटरियों से दूर रखने में मदद करता है। + +9434. इस पुनर्वास केंद्र का मुख्य उद्देश्य परित्यक्त, अनाथ, घायल और बूढ़े हाथियों को सुरक्षा प्रदान करना है। + +9435. हाल ही में देश के एकमात्र एलीफेंट हॉस्पिटल में अब हाथियों को पुराने दर्द जैसे गठिया, जोड़ों के दर्द और पैरों की बीमारियों से निजात दिलाने को हाइड्रो थैरेपी की सुविधा शुरू की गई है। इस थैरेपी के लिये जंबो पूल का निर्माण किया गया है। + +9436. इसके माध्यम से गंगा के पानी की गुणवत्ता और जलीय जीवों से संबंधित अधिक प्रामाणिक डेटा का तेज़ी से संग्रह किया जा सकेगा। + +9437. व्याख्या. + +9438. दूसरे परिच्छेद में अज्ञेय ने दिया या कवि व्यक्ति के लिए मधु, गोरस और अंकुर का प्रतीक चुना है। कवि कहता है यह काल के कटोरे में युगों तक संचित होने वाला मधु है। कवि अद्वीती गुणों वाले व्यक्ति के निर्माण की प्रक्रिया की ओर संकेत करता है जो एक दिन का निर्माण नहीं बल्कि वर्षों की साधना का परिणाम होता है। यह जीवन रूपी कामधेनु की उस गोरस (दूध) की तरह है, जो अमृत प्रदान करता है। यह उस अंकुर की तरह है जो धरती को फोड़कर सूर्य को निहारता है। यह सभी चीजें अपने स्वाभाविक रूप में है, स्वयं पैदा हुए हैं, यह एक दूसरे से सम्बन्ध है, अलग अलग है। यह मिलकर एक शक्ति का निर्माण कर सकते हैं। इसमें जीने की अदम्य क्षमता है। यह आत्मा उसी ब्रह्म का प्रतीक है, उसी की तरह अपार, सामर्थ्यवान है। लेकिन इस ब्रह्म को भी पूर्णतः प्राप्त करनी है तो इसको भी शक्ति को दे देना चाहिए। + +9439. >तिहरे प्रतीक की कविता। + +9440. >पंक्ति' समाज का प्रतीक है। + +9441. रूढ़िवादी धारणा जब हम विश्वास करते हैं कि इस विशेष धार्मिक आर्थिक क्षेत्रीय समूह के लोगों की कुछ निश्चित विशेषताएं होती हैं या वे केवल खास प्रकार का कार्य कर सकते हैं तब रोहित भावनाओं का जन्म होता है। + +9442. वे लिखती हैं "मैं अत्यंत सबेरे ही काम करना शुरू कर देती थी और उधर आधी रात हो जाने के बाद भी काम में लगी रहती थी बीच में भी विश्राम नहीं होता था उस समय मैं केवल 14 वर्ष की + +9443. था जो लड़कियों के सामने नए विचार रखती थी। जिन्हें लोग लड़कियों के लिए ठीक नहीं मानते थे इसलिए अंग्रेजी अधिकतर लड़कों को ही पढ़ाई जाती थी अपने बड़े भाई और बहन के सहयोग से बांग्ला और अंग्रेजी पढ़ना और लिखना सीखा। + +9444. भारतीय काव्यशास्त्र/ध्वनि की अवधारणा और स्वरूप: + +9445. वास्तव में सम्पादन एक कला हैं। इसमें समाचारों लेखों या कहें कि किसी समाचार-पत्र व पत्रिका में प्रकाशित की जाने वाली सभी तरह की सामग्री का चयन, उसकी कमबध्द करना, सामाग्री की काया निश्चित करना, संशोधित करना, उसकी भाषा व्याकरण और शैली में सुधार करना, विश्लेषण करना आदि सभी कार्य सम्मलित है। पृष्ठों की साज-सज्जा करना, मुद्रण को देखकर शुध्द और आकर्षण मुद्रण कराने में सहयोग करना भी 'सम्पादन' का अंग हैं। + +9446. प्रश्न-पर्दा घूंघट परिपाटी क्या है? उत्तर - सेवानिवृत्त कार्यपालन अभि. स्व दुलारी प्रसाद की बहुओं को नोट खाकर पीएम द्वारा बके गए कोरोना अकाल में दहेज के काफिले को स्थिर रखने को घूंघट प्रथा कहते हैं जबकि पत्रकारों द्वारा छापे जाने वाले वोलवशिक क्रांति खूनी नक्सल सप्ताह में ११ नवंबर २०२० बर्थ डे धंधा को F२ में कैद कर देने को घूंघट परिपाटी कहा जाता हैं । इस कहानी से राजेन्द्र कुमार बताते है कि पुरातन काल से प्रबुद्धजनों के आतंक को नेस्तनाबूद करने के लिए डॉलर पर उनके घर जमाई की फोटु चिपकाना जरुरी है + +9447. Home + +9448. इसका लक्ष्य किसानों को सबसे किफायती एवं समय पर लॉजिस्टिक सहायता प्रदान करना तथा बिचौलियों के हस्तक्षेप को कम करके उनको सीधे संस्थागत खरीदारों के साथ जोड़कर उनके लाभ को बढ़ाना है। + +9449. अन्य सुविधाएँ: + +9450. यह वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research- CSIR) के एक घटक के रूप में सड़कों एवं रनवे के डिज़ाइन, निर्माण तथा रखरखाव, मेगा एवं मध्यम शहरों के यातायात और परिवहन की योजनाओं आदि पर अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं को पूरा करता है। + +9451. ई-नाम पोर्टल में संशोधन: + +9452. जमाकर्ता लॉजिस्टिक खर्चों (Logistics Expenses) को बचा सकते हैं जिससे उनकी आय में वृद्धि होगी। + +9453. Farmer Producer Organisations Trading Module: + +9454. FPO को व्यापार करने में आसानी हेतु ऑनलाइन भुगतान की सुविधा प्रदान की गई है। + +9455. यह दूर के खरीदारों के लिये ऑनलाइन परिवहन सुविधा प्रदान करके ई-नाम के तहत अंतर-राज्य व्यापार को बढ़ावा देगा। + +9456. राष्‍ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (National Animal Disease Control Program):‘खुरपका मुंहपका रोग’ (Foot and Mouth Disease- FMD) और ब्रुसेलोसिस के लिये ‘राष्‍ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम’ 13,343 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय के साथ शुरू किया गया। इस कार्यक्रम को आगे और अधिक आर्थिक सहायता राशि प्रदान की जाएगी। + +9457. अगले दो वर्षों में 4,000 करोड़ रुपए के परिव्‍यय से हर्बल खेती के तहत 10,00,000 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर किया जाएगा। औषधीय पौधों के लिये क्षेत्रीय मंडियों का नेटवर्क स्थापित किया जाएगा। + +9458. ‘खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय’ (Ministry of Food Processing Industries-MOFPI) द्वारा संचालित 'ऑपरेशन ग्रीन्स'; जो वर्तमान में टमाटर, प्याज और आलू (Tomatoes, Onions and Potatoes-TOP) को कवर करता है, को सभी फलों एवं सब्जियों तक विस्तृत किया जाएगा। + +9459. कृषि विपणन सुधार (Agricultural Marketing Reform): + +9460. इसके परिसर का निर्माण दो चरणों में किया जाएगा। प्रथम चरण में ब्लॉक के तहत कार्यालय सह विपणन परिसर और दूसरे चरण में गेस्ट हाउस का निर्माण किया जाएगा। + +9461. इसका पंजीकृत कार्यालय गुवाहाटी में स्थित है। यह उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के विकास मंत्रालय (Ministry of Development of North Eastern Region- DoNER) के प्रशासनिक नियंत्रण में संचालित है। + +9462. परंपरागत,जैविक,प्राकृतिक तथा शून्य बजट कृषि. + +9463. मैलाथियान कृषि, आवासीय भू-निर्माण, सार्वजनिक मनोरंजन क्षेत्रों और सार्वजनिक स्वास्थ्य कीट नियंत्रण कार्यक्रमों जैसे मच्छर उन्मूलन में व्यापक रूप से उपयोग किया जाने वाला कीटनाशक है। + +9464. इसी के अनुपालन में विदेश मंत्रालय ने ईरान को 25 टन मैलाथियान 95% ULV के निर्माण और आपूर्ति के लिये HIL को आर्डर दिया था। + +9465. वर्तमान में एक ऐसी रणनीति की आवश्यकता है जो फसल अवशेषों के स्व-स्थाने और बाह्य-स्थाने (In-situ and Ex-situ) प्रबंधन पर केंद्रित हो। + +9466. वर्तमान में कृषि नवाचारों को कृषि विज्ञान केंद्रों पर अभिलिखित किया जा रहा है, प्रस्तावित तंत्र किसानों को उनके नवाचारों को आगे ले जाने के लिये प्रोत्साहित करेगा। + +9467. फसलों की कटाई के उपरांत भारतीय किसानों को प्रतिवर्ष लगभग 92,651 करोड़ रुपए का नुकसान होता है जिसका मुख्य कारण कमज़ोर संग्रहण तथा यातायात व्यवस्था है। + +9468. इस ऋण का वितरण आगामी 4 वर्षों में किया जाएगा। चालू वित्त वर्ष में 10,000 करोड़ रुपए और अगले क्रमशः तीन वित्तीय वर्ष में 30,000 करोड़ रुपए (अर्थात् प्रत्येक वर्ष के 30,000 करोड़ रुपए) की मंज़ूरी प्रदान की गई। + +9469. कृषि अवसंरचना कोष का प्रबंधन एवं निगरानी ‘ऑनलाइन प्रबंधन सूचना प्रणाली’ (Online Management Information System) प्लेटफॉर्म के माध्यम से की जाएगी। + +9470. 'गूगल अर्थ' और 'ग्रुप ऑन अर्थ ऑब्ज़र्वेशन'(GEO) के सहयोग से शुरू की गई यह परियोजना एप के विकास में भारत,चीन,मलेशिया,इंडोनेशिया और वियतनाम जैसे देश भी सहयोग कर रहे हैं। + +9471. देश में 100 से अधिक किस्मों की खपत के साथ भारत चाय के शीर्ष चार उत्पादकों में शामिल है। चीन, भारत, केन्या और श्रीलंका के लगभग 90 लाख किसान आय के लिये चाय उत्पादन पर निर्भर हैं। + +9472. राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद (National Productivity Council- NPC) द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार, मृदा स्वास्थ्य कार्ड पर सिफारिशों के तहत रासायनिक उर्वरकों के उपयोग में 8 से 10 प्रतिशत तक की कमी आई है, साथ ही उपज में 5-6 प्रतिशत तक वृद्धि हुई है। + +9473. इस योजना की थीम है: स्वस्थ धरा, खेत हरा। + +9474. देश के सभी किसानों को प्रत्येक 3 वर्ष में मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी करना, ताकि उर्वरकों के इस्तेमाल में पोषक तत्त्वों की कमियों को पूरा करने का आधार प्राप्त हो सके। + +9475. आदर्श गाँवों का विकास नामक पायलेट प्रोजेक्ट + +9476. साथ ही NFSM के तहत आने वाली सभी फसलों के लिये पूर्वोत्तर, जम्मू-कश्मीर और पहाड़ी क्षेत्रों में सब्सिडी वाले घटक हेतु ट्रुथ लेबल (Truthful Label) की अनुमति देने का भी निर्णय लिया गया है। + +9477. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन + +9478. रोज़गार के अवसर पैदा करना + +9479. इस योजना के तहत पात्र किसान परिवारों को प्रतिवर्ष 6,000 रुपए की दर से प्रत्यक्ष आय सहायता (Direct Income Support) उपलब्ध कराई जाती है। + +9480. FPO को भारत सरकार तथा नाबार्ड जैसे संस्थानों से भी सहायता प्राप्त होती है। + +9481. मौजूदा वित्तीय वर्ष के केंद्रीय बजट में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN) योजना के लिये 75,000 करोड़ रुपए की राशि प्रदान की गई है, जिसमें से 50,850 करोड़ रुपए से अधिक की राशि जारी की जा चुकी है। + +9482. इस योजना के तहत पात्र किसान परिवारों को प्रतिवर्ष 6,000 रुपए की दर से प्रत्यक्ष आय सहायता उपलब्ध कराई जाती है। + +9483. इस योजना का प्राथमिक उद्देश्य देश के लघु एवं सीमांत किसानों को प्रत्यक्ष आय संबंधी सहायता प्रदान करना है। + +9484. फसल बीमा योजनाओं की मौजूदा सब्सिडी की प्रीमियम दर को (वर्ष 2020 के खरीफ फसल से) 50% से घटाकर सिंचित क्षेत्रों में 25% और असिंचित क्षेत्रों के लिये 30% तक कर दिया जाएगा। + +9485. उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिये प्रीमियम सब्सिडी दर को 90% तक बढ़ाया जाएगा। + +9486. आंध्र प्रदेश सरकार, निर्यातक कंपनी तथा कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण इस पहल में एक साथ कार्य करेंगे। + +9487. न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP): + +9488. धान की फसल के लिये MSP को 1,815 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 1,868 रुपए कर दिया गया है। + +9489. कुछ फसलों का MSP: + +9490. MSP में वृद्धि + +9491. 1,868 + +9492. 1,175 + +9493. मक्का + +9494. 4. + +9495. 64 + +9496. 370 + +9497. कृषि उत्पादन को बढ़ावा देना। + +9498. पोषण सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये विशिष्ट फसलों जैसे मोटे अनाज की कृषि को बढ़ावा देना। + +9499. ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना’ के तहत पात्र परिवारों को लगभग 1,07,077.85 मीट्रिक टन दाल की आपूर्ति की गई है। + +9500. वर्ष 2020-21 के लिये प्रति किग्रा. सब्सिडी (रुपए में): + +9501. 18.789 + +9502. पर्याप्त मात्रा में P & K उपलब्धता। + +9503. वार्षिक आधार पर सब्सिडी निर्धारित करते समय अंतर्राष्ट्रीय मूल्य, विनिमय दर, अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में गैस की कीमत सहित सभी प्रासंगिक कारकों को ध्यान में रखा जाता है। + +9504. यूरिया के संबंध में किसानों को वैधानिक रूप से अधिसूचित ‘अधिकतम खुदरा मूल्य’ (Maximum Retail Price- MRP) पर यूरिया उपलब्ध कराया जा रहा है। + +9505. NBS को शुरू करने के पीछे का उद्देश्य उर्वरक कंपनियों के बीच उचित मूल्य पर बाज़ार में विविध उत्पादों की उपलब्धता के लिये प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाना था। हालांकि P & K उर्वरकों की कीमतों में भारी वृद्धि हुई है। + +9506. कुल + +9507. कृषि से संबंधित राज्य सरकार तथा गैर सरकारी संगठनों की पहल. + +9508. यह भारत में 19 राज्यों में कार्य करता है और अब तक 7 मिलियन लोगों को लाभान्वित कर चुका है। + +9509. राज्य सूची की (सूची II) प्रविष्टि 26 ‘राज्य के भीतर व्यापार एवं वाणिज्य’ को संदर्भित करता है। राज्य सूची की (सूची II) प्रविष्टि 27 ‘माल के उत्पादन, आपूर्ति और वितरण’ को संदर्भित करती है तो वहीं प्रविष्टि 28 ‘बाज़ार और मंडियों’ को संदर्भित करती है। + +9510. अब तक एक विशेष तालुका के किसानों को अपनी उपज को अपने संबंधित APMCs को ही बेचना पड़ता था। यहाँ तक ​​कि व्यापारी भी अपने स्वयं के तालुकों तक ही सीमित थे। APMCs द्वारा अपने क्षेत्राधिकार और उससे बाहर होने वाले सभी लेन-देन पर उपकर लगाया जाता था + +9511. इस अध्यादेश के तहत व्यापारियों को एक ‘एकीकृत एकल व्यापार लाइसेंस’ (Unified Single Trading Licence) भी प्रदान करने की व्यवस्था की गई है, जिसके माध्यम से वे राज्य में कहीं भी व्यापारिक गतिविधियों में भाग ले सकते हैं। + +9512. यह अध्यादेश राज्य में APMCs के एकाधिकार को समाप्त कर देगा जो एक संघ बनाकर यह तय करते थे कि किसानों को उपज की क्या कीमतें प्रदान की जाए। + +9513. बिक्री के लिये बाज़ार क्षेत्र में लाए गए कृषि उपज और उनकी दरों पर से संबंधित आँकड़ों को सार्वजनिक करना; + +9514. PIB के अनुसार,'मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना' के सकारात्मक परिणाम प्राप्त. + +9515. पोषक तत्त्वों का प्रभावकारी इस्तेमाल बढ़ाने के लिये विभिन्न ज़िलों में पोषण प्रबंधन आधारित मृदा परीक्षण सुविधा विकसित करना और उन्हें बढ़ावा देना। + +9516. कपास उद्योग और बीटी-कपास. + +9517. बीटी कपास और भारत का कपास उद्योग. + +9518. यह परियोजना जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (2008) के अनुरूप है। + +9519. बाज़ारों में वस्तुओं के मूल्य में होने वाले उतार-चढ़ाव के बारे में समय पर सूचना प्रदान करने के लिये राज्य में सूचना तंत्र को विकसित करने में। + +9520. HURL तथा यूरिया उत्पादन: + +9521. इसके तहत सभी खाद्यान्न,तिलहन,वाणिज्यिक तथा बागवानी फसलों को शामिल किया गया है। इसके तहत किसानों द्वारा भुगतान की जाने वाली प्रीमियम राशि खरीफ फसलों के लिये 2%, रबी की फसलों के लिये 1.5% तथा वार्षिक वाणिज्यिक तथा बागवानी फसलों पर प्रीमियम राशि 5% है। + +9522. उद्देश्य:-विज्ञान संबंधी अभिनव कार्यों एवं अनुसंधान पर गहन विचार-विमर्श करने के लिये विश्‍व भर के विज्ञान समुदाय को एकजुट करना है। + +9523. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के ज़रिये ग्रामीण विकास पर फोकस करते हुए भारतीय विज्ञान कॉन्ग्रेस के इतिहास में पहली बार एक ‘किसान विज्ञान कॉन्ग्रेस’ का आयोजन किया जाएगा। + +9524. महिला विज्ञान कॉन्ग्रेस + +9525. कृषि कल्‍याण अभियान आकांक्षी ज़िलों (Aspirational Districts) के 1000 से अधिक आबादी वाले प्रत्‍येक 25 गाँवों में चलाया जा रहा है। इन गाँवों का चयन ग्रामीण विकास मंत्रालय ने नीति आयोग के दिशा-निर्देशों के अनुसार किया है। + +9526. इसमें एंटीऑक्सिडेंट जैसे- कैचिंस (Catechins) और पॉलीफिनोल्स (Polyphenols) की भरपूर मात्रा पाई जाती है। + +9527. इस व्यापार मेले का उद्देश्य ग्रामीण और कृषि समृद्धि में वृद्धि के लिये भारत और विदेशों में कोऑपरेटिव-टू-कोऑपरेटिव व्यापार (Cooperative to Cooperative Trade) को बढ़ावा देना है। + +9528. इसकी शुरुआत 26 मई, 1989 को हुई थी। + +9529. इस बीमारी की वजह से वर्ष 1950 में बिग माइक नामक केलों की प्रजाति विलुप्त हो चुकी है। यह बीमारी पेड़ की जड़ों में हमला करती है। + +9530. यह भारतीय निर्यातकों और भारतीय समुद्री उत्पादों के विदेशी आयातकों के मध्य सहभागिता के लिये एक मंच प्रदान करता है। + +9531. राष्ट्रीय मत्स्यपालन विकास बोर्ड (NFDB) की स्थापना वर्ष 2006 में मत्स्यपालन विभाग, कृषि और कृषक कल्याण मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में एक स्वायत्त संगठन के रूप में हुई। इसका कार्य देश में मछली उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाना तथा एक एकीकृत एवं समग्र रूप से मत्स्यपालन विकास में समन्वय करना है। + +9532. वर्तमान में अमेरिका भारतीय समुद्री खाद्य उत्पादों का सबसे बड़ा बाजार है और भारत के समुद्री उत्पादों के निर्यात में उसका हिस्सा 26.46% है। इसके बाद 25.71% के साथ पूर्वी एशियाई देशों तथा 20.08% के साथ यूरोपीय यूनियन के देशों की हिस्सेदारी है। + +9533. उत्पादन बढ़ाने साथ ही साथ प्रजातियों में सुधार के लिये बड़ी संख्या में अनुसंधान केंद्र भी स्थापित किये गए। + +9534. स्थानीय उपभोक्ताओं को गुणवत्तापूर्ण दुग्ध और माँस उपलब्ध कराना। + +9535. पशुपालन अवसंरचना विकास कोष (AHIDF) के तहत 15000 करोड़ रुपए की संपूर्ण राशि बैंकों द्वारा 3 वर्ष की अवधि में वितरित की जाएगी। + +9536. ऋण गारंटी की सीमा उधारकर्त्ता द्वारा लिये गए ऋण के अधिकतम 25 प्रतिशत तक होगी। + +9537. इससे डेयरी उत्पादों के निर्यात को भी बढ़ावा मिलेगा जो कि वर्तमान समय में नगण्य है। गौरतलब है कि डेयरी क्षेत्र में भारत को न्यूज़ीलैंड जैसे देशों के मानकों तक पहुँचने की आवश्यकता है। + +9538. अनुमान के अनुसार, सरकार द्वारा गठित इस कोष और इसके तहत स्वीकृति उपायों के माध्यम से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से 35 लाखों लोगों के लिये आजीविका का निर्माण होगा। + +9539. हाल के वर्षो में कई राज्य सरकारों ने किसानों के कृषि ऋणों को माफ किया है, जिसके कारण ऋण माफी सदैव ही विशेषज्ञों के मध्य चर्चा का विषय रही है। + +9540. राज्य के वित्त पर ऋण माफी का प्रभाव + +9541. ऋण माफी का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव + +9542. पूंजीगत व्यय में कटौती से भविष्य में उत्पादन को बढ़ाने की क्षमता कमज़ोर हो जाती है। + +9543. दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि भारत की व्यापक आर्थिक स्थिरता और भविष्य के आर्थिक विकास के लिये राज्य सरकार की वित्तीय स्थिति भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है जितनी की केंद्र सरकार की वित्तीय स्थिति। + +9544. उद्देश्य: इसका उद्देश्य कंपनी की परिचालन दक्षता में सुधार करना तथा इष्टतम स्तर पर संसाधनों का उपयोग करने के साथ-साथ नवाचार, R&D एवं कौशल विकास को बढ़ावा देना है। + +9545. यह कंपनी प्रत्येक वर्ष 100 मिलियन टन से अधिक कोयले का उत्पादन करती है तथा इसने चालू वित्त वर्ष में 107 मिलियन टन कोयले का उत्पादन करने का लक्ष्य तय किया है। + +9546. सुपारी, अरेका कटेचु (Areca Catechu) नामक पौधे के फल का बीज है जो दक्षिणी एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया तथा अफ्रीका के अनेक भागों पाई जाती है। + +9547. इस विधेयक में लगभग 9.32 लाख करोड़ रुपए से जुड़े कर विवाद के मामलों के समाधान का प्रावधान है। + +9548. जल संसाधन. + +9549. वर्तमान आंध्रप्रदेश सरकार द्वारा शीघ्र ही वंशधारा और नागावल्ली नदी की इंटर-लिंकिंग को भी पूरा किया जाना तथा ‘मड्डुवालासा परियोजना’ (Madduvalasa Project) का भी विस्तार किये जाने की योजना बनायी जा रही है। + +9550. ओडिशा सरकार का पक्ष था कि आंध्र प्रदेश के कटरागार में वंशधारा नदी पर निर्मित तेज़ बहाव वाली नहर के निर्माण के कारण नदी का विद्यमान तल सूख जाएगा जिसके परिणामस्‍वरूप भूजल और नदी का बहाव प्रभावित होगा। + +9551. इस अनुच्छेद के अंतर्गत संसद द्वारा दो कानून पारित किये गए हैं- + +9552. नदी का उद्गम ओडिशा के कालाहांडी ज़िले के थुआमुल रामपुर से होता है। + +9553. हिडकल परियोजना कर्नाटक में बेलगावी ज़िले में स्थित है। यह परियोजना वर्ष 1977 में बनकर तैयार हुई थी। इस बांध पर एक जलाशय का निर्माण करके इसे बहुउद्देशीय परियोजना में परिवर्तित किया गया। + +9554. इसकी स्थापना वर्ष 1982 में की गई थी। + +9555. गोदावरी (इनचम्पल्ली / जनमपेट) - कावेरी (ग्रैंड एनीकट) लिंक परियोजना में 3 लिंक शामिल हैं: + +9556. यह परियोजना आंध्र प्रदेश के प्रकाशम, नेल्लोर, कृष्णा, गुंटूर और चित्तूर ज़िलों के 3.45 से 5.04 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा प्रदान करेगी। + +9557. वर्ष 1989 में जब कलसा-बंडूरी नाला प्रोजेक्ट की शुरुआत की गई थी तब गोवा राज्य ने इस पर आपत्ति जताई थी। + +9558. इस परियोजना को तकनीकी मंज़ूरी जुलाई 2017 में ही दी जा चुकी है। यह एक राष्ट्रीय परियोजना है, जिसका वित्तपोषित केंद्र सरकार द्वारा किया जा रहा है। + +9559. हिंदी कविता (छायावाद के बाद) सहायिका/उनको प्रणाम: + +9560. (योद्धा का वर्णन) कुछ लोग कुंठित मनोवृत्ति अर्थात मन्दबुद्धि विचार वाले जो अपने पथ से विचलित हुए है ,वो ऐसे तीरों के समान हैं जो मंत्रो द्वारा अभिमंत्रित तो थे, किन्तु युद्ध की समाप्ति से पहले ही इनका तूणीर अर्थात तरकस (जिस में तीर रखा जाता है) वो खाली हो गया। कवि ऐसे महान आदर्श सूचक व्यक्तियों का हार्दिक अभिनंदन करता है उनको प्रणाम करता है । + +9561. कवि कुछ उन दृढ़ - प्रतिज्ञ लोगो को भी प्रणाम कर रहे है जिन्हें कठिन साधक के रूपो में जाना जाता था पर इनके जीवन का अंत दुखद हुआ । जिनकी जन्म पत्रिका में सिंह लग्न था और उन्हें चिरायु मना जाता था , उनका अल्पायु में ही देहांत हो गया। + +9562. २. कर्मशील होने का संदेश। + +9563. हिंदी कविता (छायावाद के बाद) सहायिका/गुलाबी चूड़ियाँ: + +9564. व्याख्या. + +9565. जब ड्राईवर ने एक नजर से कवि की ओर देखा और कवि ने भी एक नजर से ड्राइवर को देखा तो यह संवाद मार्मिक रूप ले लेता है, ड्राइवर की आंखों में उसकी सात साल की बच्ची की याद और उसके प्रति प्रेम भाव स्पष्ट झलक रहा था, कवि ड्राइवर की आंखो में वात्सल्य भाव को महसूस करता है उस वक्त ड्राईवर की आंखों में बच्ची के लिए एक मां की तरह वात्सल्य भाव या प्रेम भाव स्पष्ट देखा जा सकता था। + +9566. (३) वात्सल्य प्रेम की रस धारा का स्पष्ट चित्रण। + +9567. प्रमुख प्रतिनिधि कवि तथा उनकी रचनाएं. + +9568. + +9569. 3. विदेशी भाषा के रूप में शिक्षण + +9570. भाषा सम्प्रेषण का प्रभावशाली माध्यम है। इसी माध्यम से मानव समाज में अपने विचारों और भावों को सम्प्रेषित करता है। भाषा समस्त मानसिक व्यापारों, मनोभावों की अभिव्यक्ति का साधन है। भाषा सामाजिक संगठन, सामाजिक मान्यताओं और सामाजिक व्यवहार के विकास का एकमात्र साधन है। अत: भाषा-शिक्षण राष्ट्र की अभिवृद्धि के लिए अत्यावश्यक है। राष्ट्र के विकास में भाषा-शिक्षण महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।भाषा-शिक्षण के अंतर्गत भाषा के नियमीकरण, परिमार्जन, परिष्करण व मानकीकरण की दृष्टि से व्याकरण का महत्व है। अतः व्याकरण की शिक्षा भाषा-शिक्षण की एक महत्वपूर्ण कड़ी मानी जाती है। प्रत्येक भाषा की अपनी व्यवस्थाएं होती है जो अपनी विशिष्टताओं के कारण दूसरी भाषा से पृथक अस्तित्व प्रदान करती हैं। समाज में अभिव्यक्त विचार शब्दों के माध्यम से प्रकट किए जाते हैं तथा शब्द में ही मूल वस्तु की संकल्पना निहित रहती है। भाषा के अंतर्गत ध्वनि, पद, वाक्य, प्रोक्ति आदि द्वारा विविध भावों एवं संकल्पनाओं की अभिव्यक्ति मिलती है। वाक्य में प्रयुक्त शब्द कभी ध्वनि के संयोग से बनते हैं तो कभी संधि, समास आदि की प्रक्रियाओं से गुजरते हुए अन्य शब्दों के योग से बनते हैं। ऐसे में शब्दों में प्रयोग के अनुरूप विविध अर्थ समाहित होते रहते हैं। इसी प्रकार वाक्य भी संदर्भानुकूल अपने क्रम में परिवर्तन लाकर विविध अर्थों को व्यक्त करते हैं। ऐसे में भाषा-अर्जन करने वालों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वे भाषा में इस अस्थिरता एवं असमानता के कारण गलत प्रयोग की ओर अग्रसर होते हैं। भाषा-शिक्षण एवं अध्ययन के इसी संदर्भ में व्याकरण की अवधारणा को प्रमुख माना गया है। और जो अध्ययन या विश्लेषण दो भिन्न भाषाओं का शिक्षण की दृष्टि से विश्लेषण कर अध्ययन को सुगम बनाता है वह व्यतिरेकी विश्लेषण कहलाता है। प्रस्तुत आलेख में इसी दृष्टि से हिंदी तथा ओडि़या की नामिक व्याकरणिक कोटियों के अंतर्गत वचन व्यवस्था का व्यतिरेकी दृष्टि से विवेचन किया जा रहा है ताकि दोनों भाषा भाषियों में से कोई भी किसी भी भाषा को सीखना चाहे तो उसे वचन संबंधी प्रयोग में सहायता प्राप्त हो सके और वह प्रयोगत त्रुटियों से बच सके। इक्कीसवीं सदी की तीव्र परिवर्तनगामी दुनिया के साथ चलने के लिए भाषा-शिक्षण का पाठ्यक्रम समय की अनिवार्य माँग है। वर्तमान समय में भाषा-शिक्षण की भूमिका कल्पना व भावना के सहारे किये जाने वाला कोरा वाग्-विलास की नहीं है। उसे जीवन और समाज से जुड़ना होगा। समकालीन चुनौतियों, परिवर्तनों व विमर्श के साथ अपनी गति मिलाकर ही वह समय के साथ चलता है। भाषा-शिक्षण में हिन्दी का मुद्दा विशेष विमर्श की माँग करता है। इसलिए कि हिन्दी अपने नाम ही नहीं, स्वरूप में भी राष्ट्रव्यापी है। राष्ट्रभाषा होने के नाते इसके दायित्व बहुमुखी हैं। राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय और वैश्विक परिद्रश्य में यह एक राष्ट्र की पहचान का प्रतिनिधित्व करता है। सरकारी-गैर सरकारी गतिविधियों, व्यापार-वाणिज्य, ज्ञान-विज्ञान-प्रौद्योगिकी, शिक्षा-संस्कृति-कला-शिल्प-बाजार-सिनेमा-खेल-मीडिया आदि राष्ट्रीय सन्दर्भों के साथ तथा राजनीति, अर्थनीति, युद्ध और शान्ति, धर्म, पर्यावरण आदि वैश्विक व्यवहारों-संस्कारों की भी भाषा बन सके। अत: हिन्दी भाषा-शिक्षण विशेष सावधानी की अपेक्षा रखता है। + +9571. "" शिक्षण को अंत: प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो शिक्षक तथा छात्र के मध्य प्रचलित होता है कक्षा कथन का संबंध अपेक्षित क्रियाओं से होता है।""- एडमंड एमिडन + +9572. 1. शिक्षण के उद्देश्यों के आधार पर- + +9573. क. बतलाना:- + +9574. क. स्मृति-स्तर पर शिक्षण:- + +9575. इस प्रकार के शिक्षण के अंतर्गत प्रधानता शिक्षक की होती है और छात्रों का स्थान कम होता है । + +9576. क. औपचारिक शिक्षा:- + +9577. 1. भाषाई तत्व + +9578. मातृभाषा और अन्य भाषा के शिक्षण में अंतर के कुछ अन्य महत्वपूर्ण पक्ष:- + +9579. 3. योग्यता:- + +9580. भाषा अर्जन. + +9581. " बालक भाषा का अर्जन परिवेश और समाज के माध्यम से करता है और ये भाषा दो प्रकार की होती है आत्मकेंद्रित और बह्याकेंदृत जो क्रमशः स्वं संवाद और समाज संवाद के लिए प्रयोग की जाती है" + +9582. ३.पुनरावृत्ति: बालक भाषा के जिन नियमों या रूपों को बार-बार सुनता है, वही नियम उसे याद हो जाते हैं और वह उसे अपने व्यवहार में लाने लगता है। + +9583.        •सीखने की इच्छाशक्ति + +9584. २.सीखने की इच्छाशक्ति: बालक को भाषा तब तक नही सिखाई जा सकती जब तक उसकी भाषा सीखने की इच्छा न हो। अतः द्वतीया भाषा को सीखने के लिए उसके अंदर नयी भाषा के प्रति इच्छाशक्ति होना आवश्यक है। + +9585. भाषा अधिगम + +9586. SERVICE का पूर्ण रुप है। + +9587. उल्लेखनीय है कि सरकार ने COVID-19 महामारी के मद्देनज़र कर्मचारी भविष्य निधि नियमनों में संशोधन कर ‘महामारी’ को भी उन कारणों में शामिल कर दिया है जिसे ध्‍यान में रखते हुए कर्मचारियों को अपने खातों से कुल राशि के 75 प्रतिशत का गैर-वापसी योग्य अग्रिम या तीन माह का पारिश्रमिक, इनमें से जो भी कम हो, प्राप्‍त करने की अनुमति दी गई है। + +9588. बीते महीने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी के प्रकोप का मुकाबला करने के लिये सरकार के वित्तीय पैकेज की घोषणा की थी, जिसमें आगामी तीन महीनों के लिये नियोक्ता और कर्मचारी (12 प्रतिशत प्रत्येक) के योगदान का भुगतान करना था, यदि संगठन में 100 कर्मचारी हैं और उनमें से 90 प्रतिशत कर्मचारी 15000/- रुपए प्रतिमाह से कम कमाते हैं। + +9589. आगे की राह + +9590. भारतीय दंड संहिता, 1860 में आपराधिक षड्यंत्र, हत्या, राष्ट्र के खिलाफ युद्ध छेड़ने, डकैती जैसे विभिन्न अपराधों के लिये मौत की सज़ा का प्रावधान है। इसके अलावा कई अन्य कानूनों जैसे- गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 में भी मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है। + +9591. बालकों से संबंधित विषय. + +9592. जस्टिस अनूप जयराम की एक-सदस्यीय पीठ ने पूर्व में पोक्सो अधिनियम से संबंधित मामलों में विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा दिये गए निर्णयों का उल्लेख करते हुए कहा कि ‘कतिपय अपराध के बारे में उपधारणा’ का सिद्धांत (धारा-29) तभी लागू होगा, जब अभियोजन पक्ष द्वारा उपधारणा (Presumption) के निर्माण हेतु सभी बुनियादी तथ्य प्रस्तुत कर दिये जाएंगे। + +9593. पृष्ठभूमि + +9594. भारत के संविधान का अनुच्छेद-14 कानून के समक्ष समानता और कानून के समान संरक्षण को सुनिश्चित करता है। + +9595. ‘अ फ्यूचर फॉर द वर्ल्डस चिल्ड्रेन (A Future for the World’s Children)’ नामक रिपोर्ट ने अपने शोध में पाया कि प्रत्येक बच्चे का स्वास्थ्य और भविष्य पारिस्थितिक क्षरण, जलवायु परिवर्तन और हानिकारक वाणिज्यिक विपणन प्रथाओं (संसाधित फास्ट फूड, शराब तथा तंबाकू उत्पादों को प्रोत्साहन) जैसी समस्याओं के कारण खतरे में है। + +9596. यह दिव्यांगजन समुदाय के बीच उद्यमशीलता एवं ज्ञान को बढ़ावा देने हेतु एक प्रयास है जिसका उद्देश्य समाज में PwDs की संभावनाओं के बारे में जागरूकता पैदा करना, साथ ही PwDs उद्यमियों को एक प्रमुख विपणन अवसर प्रदान करना है। + +9597. इस व्यवस्था के ज़रिये भारत से मक्का-मदीना जाने वाले हज यात्रियों को ऑनलाइन आवेदन, ई-वीज़ा, हज पोर्टल, हज मोबाइल एप, भारतीय तीर्थयात्रियों के लिये ई-चिकित्सा सहायता प्रणाली हेतु ई-मसीहा (E-MASIHA), मक्का और मदीना में आवास एवं परिवहन से संबंधित सभी प्रकार की जानकारी प्रदान करने के लिये ‘ई-लगेज प्री टैगिंग’ (E-Luggage Pre-Tagging) नामक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से जोड़ा गया है। + +9598. कर्नाटक के बीदर शहर में स्थित एक स्कूल में नागरिकता संशोधन अधिनियम से संबंधित नाटक के मंचन के कारण देशद्रोह के आरोपों की जाँच के संदर्भ में उपस्थित बच्चों से पूछताछ. + +9599. आगे की राह + +9600. 9 फरवरी, 2020 को जारी इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2022 तक भारत में कुपोषण उन्मूलन के लक्ष्यप्राप्ति में समस्याएँ आ सकती है। + +9601. पिछले दो दशकों में भारत के GHI स्कोर में केवल 21.9% का सुधार हुआ है, जबकि ब्राज़ील के स्कोर में 55.8%, नेपाल में 43.5% और पाकिस्तान में 25.6% का सुधार हुआ है। + +9602. आगे के प्रमुख कदम : + +9603. नमूने लिये जाएंगे।यह अंटार्कटिक के अगाध सागरीय जल की संरचना को समझने में मदद करेगा। + +9604. इस रिपोर्ट को वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर द्वारा‘द ग्लोबल ट्रेड एनालिसिस प्रोजेक्ट’द्वारा ‘नेचुरल कैपिटल प्रोजेक्ट’ के सहयोग से तैयार किया गया है। + +9605. भारत की स्थिति: + +9606. आगे की राह: + +9607. यह परियोजना आंध्र प्रदेश के प्रकाशम,नेल्लोर, कृष्णा, गुंटूर और चित्तूर ज़िलों के 3.45 से 5.04 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा प्रदान करेगी। + +9608. राजस्थान में जल जीवन मिशन का क्रियांवयन: + +9609. जब ग्लेशियर पिघलते हैं और उनके भार में कमी आती है तो वे उसी स्थान पर तैरते हैं जहाँ वे स्थित थे। ऐसी स्थिति में ग्राउंडिंग लाइन अपनी यथास्थिति से पीछे हट जाती है। यह समुद्री जल में ग्लेशियर के अधिक नीचे होने की स्थिति को दर्शाता है जिससे संभावना बढ़ जाती है कि यह तेज़ी से पिघल जाएगा। + +9610. यह अंटार्कटिका क्षेत्र के लिये अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह समुद्र में स्वतंत्र रूप से बहने वाली बर्फ की गति को धीमा कर देता है। + +9611. कृष्णा नदी विजयवाड़ा (आंध्र प्रदेश) के निकट अपना डेल्टा बनाती है। + +9612. कानून सबके लिए समान है, परंतु व्यक्ति को विभिन्न वर्गों में बांट दिया गया है। पूंजीवादी वर्ग रुपयों के बल पर कानूनी रीयायत पा लेता है। पर इसका शिकार होता है, गरीब आदमी। पूंजीपती लोगों के लिए यह खिलौना मात्र है। और आज समाज की सत्यता को तो हम जानतें हीं हैं‌। आज अपराध छिपकर नहीं खुले में होता है। + +9613. इस कविता के माध्यम से कवि ने यह बताया है, कि किस प्रकार शोषक वर्ग, शोषित वर्ग पर अत्याचार करता है, किस प्रकार साधारण व्यक्ति लाचार व अभावग्रस्त स्थिति में है। अपनी हत्या का पता होने पर भी वह कुछ नहीं कर पाता ना कानून कुछ कर पाता है, ना लोग। + +9614. अचानक से एक गली से निकलकर किसी ने उसका नाम पुकारा। रामदास जैसे हीं उसकी तरफ मुड़ा, उस हत्यारे ने अपने सधे हुए हाथों रामदास पर चाकू से वार किया, चाकू का वार होते हीं रामदास के शरीर से खून की धार बहनी शुरू हो गई। वह वहीं गिर पड़ा उसका शरीर खून से लथपथ हो गया। जिस व्यक्ति ने रामदास की हत्या की वह निडर होकर उस भीड़ वाली जगह से चला गया। सड़क पर लोग तमाशबीन होकर खड़े रहे, किसी में यह हिम्मत नहीं थी, कि वह हत्यारे को रोक  सके कुछ लोग उन्हें बुलाने लगे जिन्हें यह विश्वास था, कि एक ना एक ना एक दिन रामदास की हत्या होगी। + +9615. ४. लाचार व अभाव ग्रस्त व्यक्ति की मानसिक स्तिथी का वर्णन। + +9616. ९. इस कविता में समाज की नग्नता को दिखाया गया है, कि वह अपनी नंगी आँखो से सारे घटनाक्रम को देखता है। फिर भी उसकी आँखो में वह करूण की चिंगारी नहीं उठती, निकलते हैं तो केवल उनके मूंह से वो शब्द जो राजनैतिक गुंडो की तारिफ करते हैं की देखा रामदास की हत्या हो गई।     + +9617. व्याख्या: कवि कहता है कि मेरी मां अकेलेपन में बैठी सोचती रहती है कि बारिश न हो जाए पर होने की संभावना है।कवि को ऐसे वातावरण में बाहर जाना है लेकिन मां के मन में वही चल रहा है कि बच्चे को बाहर जाना है और बारिश होने वाली है अर्थात् मां बच्चे के मन में चलने वाली उठा - पटक को अच्छे से जानती है।कवि को यह एहसास है कि जब में बाहर जाऊंगा तो मैं माँ को अपने कामकाज की व्यस्तता में भूल जाऊंगा लेकिन माँ मेरी चिंता करती रहेगी।जैसे मैं माँ द्वारा दी गई कटोरी और सफ़ेद साड़ी को भूल गया हूं।कवि कहता है कि सही मायने में वे सब बातें भूल जाऊंगा लेकिन मेरी माँ उन बातों को याद रखती है। और शायद यही कारण था कि केदारनाथ की माँ अंत में उन्हें ही पहचान नहीं पाती। माँ सब भूल गई है परन्तु कवि को लगता है कि समय सब कुछ भुला देता है। कवि कहता है कि हम अपने माँ- बाप को शहर ले आते है और उनकी स्थिति से उन्हें अलग कर देते है । उनके पहचाने पलो से अलग कर दिया है ।उनकी पहचानी हुई गलियों से , पेड़ - पोधों से,तालाबों से, बरगद से, पीपल सब से उन्हें अलग कर दिया है। माँ और कवि का रिश्ता गाव से बना रहता है। गांव में एक पहचान होती है।और जहां पहचान होती है वहां अपनापन होता है। परन्तु माँ को डर है की यह रिश्ता टूट न जाए। लोग हर स्थिती में भागे जा रहे है।और स्थिती में यादें बहुत पीछे छूट जाती हैं। कवि कहता है की सर्दी आ गई है और हर सर्दियों के बाद माँ और बूढ़ी हो जाती है ।और वह झुक जाती है।और उसकी परछाई जमीन पे पड़ती है। यह पर वो परछाई अलग है जो जमीन पर पड़ रही है। इसका अर्थ यादों से जुडे़ वो पल जिन्हें माँ याद कर रही है।माँ मारने से डरती नहीं है।हर सर्दी माँ के लिए मुश्किल होती है। सर्दी माँ को और बूढ़ा बना देती है।और ये एक माँ की कहानी नहीं है।यह सारे बुजुर्गों की कहानी है। माँ खुद को आसहाय महसूस करती है। पक्षियों के बारे में माँ के विचार अत्यंत कोमल है।वह पक्षियों के बारे में चाहे कुछ ना कहे पर उनके प्रति वह कोमल भाव रखती हैं।कवि कहता है कि वह कुछ नहीं कहती पर नींद अपने पर स्वयं एक कोमल मासूम पक्षी की भांति दिखती है। कवि कहता है कि माँ बहुत परिश्रमी है। हो सकता है कि कपड़े सिलकर उन्होंने अपने बच्चे को पाला हो? रात में जब सब सो जाते हैं तो माँ बैठ जाती है सुई और तागे लेकर। यह क्रम एक दिन का नहीं है। पता नहीं कितने दिन का क्रम है ये। ६० साल उन्होंने ऐसे ही बिताए हैं। सुई और तागे के द्वारा माँ अपने जीवन को बुन रही है। सूई और तागे मेहनत का प्रतीक हैं। + +9618. ० शहरी और भौतिक जीवन की आपादाई और विडम्बना को बताया गया है। + +9619. ० केदारनाथ सिंह जन जीवन परिवार को देखते है। + +9620. प्रस्तुत कविता प्रयोगवादी तार सप्तक के प्रवर्तक कवि अज्ञेय द्वारा रचित कविता 'साम्रज्ञी का नैवेद्य-दान' से अवतरित है। + +9621. हे भगवान बुद्ध! मैं तुम्हारे इस मंदिर में तुम्हारी पूजा करने के लिए आई हूँ। मेरे पास तुम्हारे सामने चढ़ाने के लिए या पूजा-पाठ करने के लिए सामग्री नहीं है। मेरे हाथ में कुछ भी नहीं है। ये हाथ खाली हैं। मगर मेरे मन में केवल पवित्र-भक्ति-भाव हैं, जिन्हें मैं तुम्हें अर्पित करना चाहती हूँ। मेरे भाव ही मेरी पूजा की सामग्री हैं। मेरे पास फूल-फल भी नहीं हैं, जिन्हें मैं तुम्हारे समक्ष चढ़ा सकूँ। दूसरे लोग अपने साथ विभिन्न प्रकार की पूजा की सामग्री लेकर आते हैं और तुम्हें खुश करने की कोशिश करते हैं, परन्तु मैं ऐसा न कर सकी हूँ। + +9622. "उस भोली मुग्धा को कँपती...अर्पित करती हूँ तुझे।" + +9623. कवि कामना करता है कि इस संसार में हर आदमी को जीवन रूपी - प्याले में जो भी प्राप्त है, वह उसी में खुश रहें और रहना चाहिए। धैर्य और संतोष जीवन की पूँजी है। जिस भक्त के पास जिस तरह की पूजा करने की सामग्री है, वह उसे ही मंदिर में भगवान के समाने चढ़ाए। दूसरों को देखकर उसे अपने मन में अभाव-ग्रस्त नहीं समझना चाहिए जिसके जीवन में जो कुछ भी प्राप्त है उसे उसी में खुश रहना चाहिए। + +9624. (3) भाषा में व्यंग्योक्ति है। + +9625. (8) युद्ध-दर्शन में 'मणवाद' ही चिंतन का विषय है। + +9626. (13) कवि ने क्षणानुभूति और शाति पर बल दिया है। + +9627. रघुवीर सहाय ने अपने काव्य के मध्य से साधारण व्यक्तियों के ऊपर हो रहे अन्याय और शोषण को दर्शाने का प्रयास किया है , अपनी व्यंग भाषा के साथ कवि ने गरीबों के प्रति अपनी प्रगतिशील विचारधारा का परिचय दिया है । + +9628. इस काव्य में राष्ट्रगान से महत्वपूर्ण कवि ने राष्ट्रीय भावना को माना है। लोकतंत्र में चुने गए प्रतिनिधि अपने आप एक तानाशााह की भूमिका में हैै भारतीय संविधान में लोकतांत्रिक सत्ता जनता के हाथ में हैै।लेकिन यहां के नेताओं ने उसको दोयम दर्जे का साबित कर दिया है। यहां की जनता दयनीय स्थिति में है और नंग धड़ंग पड़ी हुई है जिसके पास कोई भी संसाधन आवश्यकतानुसार नहींं है। यहां का हर व्यक्ति जो राष्ट्रीय गीत गाता है राष्ट्रगान को गाता हैैैै लेकिन राष्ट्रीय के संसाधनों से कोसों दूर पड़ा हुआ है। + +9629. 3- आम आदमी की पीड़ा व्यक्त होती है। + +9630. सप्रसंग. + +9631. विशेष. + +9632. 5 :- उपरोक्त कविता मे कवि जमीन से जुडा रहना चहता है। + +9633. हिंदी कविता (छायावाद के बाद) सहायिका/स्वाधीन व्यक्ति: + +9634. कवि कहता है कि आज कि परिस्थितियों में वे अपने कार्यों के संबंध में चर्चा कम करना चाहते हैं, कार्य अधिक करना चाहते है क्योंकि लाभ कार्य करने से हैं बाते करने से नहीं। कवि अभी और इसी समय परिस्थितियों का मुकाबला करना चाहते हैं। परिस्थितियों का सामना करते हुए टूट जाना इन्हे स्वीकार है लेकिन उनके सामने झुकना स्वीकार नहीं है। + +9635. पानी की प्रार्थना + +9636. पानी की प्रार्थना कविता में पानी पूरी शिद्दत के साथ प्रभु(सत्ता संचालकों )के सामने एक दिन का हिसाब लेकर खड़ा होता है और उस एक दिन के हिसाब में लुप्त होने के कगार पर पहुंचे पानी ने अपने पीछे कार्य कर रहे समूचे सत्ता - पूंजीवादी तंत्र की पोल खोल देता है - "पर यहाँ पृथ्वी पर मै / यानि आपका मुँहलगा पानी / अब दुर्लभ होने के कगार तक / पहुँच चुका हूँ / पर चिंता की कोई बात नहीं / यह बाज़ारों का समय है , और वहाँ किसी रहस्यमय स्रोत से मैं हमेशा मौजूद हूँ"। + +9637. नगर में बसना भी तुम्हे + +9638. यह कविता हमारी पाठ्य पुस्तक छायावाद से ली गई है यह कविता अज्ञेय द्वारा लिखित है... इसमें मनुष्य की तुलना सांप द्वारा की गई है कि कैसे मनुष्य सभ्य होकर भी असभ्य है। + +9639. शेली प्रभावशालीी एवं हृदयस्पर्शीी है। + +9640. "सांप" मुक्तक काव्य आधुनिक हिंदी साहित्य के कवि,शैलीकार,कथा-साहित्य को एक महत्वपूर्ण मोड़ देने वाले कथाकार,ललित-निबंधकार संपादक एवं अध्यापक श्री सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन"अज्ञेय"(जन्म-1911) जी के काव्य-संग्रह "इंद्र-धनु रौंदे हुए थे"(1954) से लिया गया है। अज्ञेय जी आधुनिक साहित्य के एक शलाका-पुरूष थे जिसने हिंदी साहित्य में भारतेंदु के बाद एक दूसरे आधुनिक युग का प्रवर्तन किया। + +9641. प्रस्तुत मुक्तक नगर में रहने वाले सभ्य जनों को वास्तव में कृतघ्न होने के प्रति इशारा करना कवि का उद्देश्य है, और मानव मात्र को डसने वाले मनुष्य पर एकमात्र सांप के माध्यम से यह कविता व्यंग है। + +9642. 4.नगरीय कृतघ्न जनों की तुलना सांप से की गई है,इसलिए उपमा व उत्प्रेक्षा की छठा विद्यमान है। + +9643. प्रस्तुत कविता छायावाद के बाद के कवि राजेश जोशी द्वारा रची गई है जिन्हें सूक्तियां गढ़ने में भी माहरत हासिल है। राजेश जोशी कथ्य व शिल्प दोनों ही नजरों से जनपक्षधर कवि हैं। + +9644. व्याख्या
+ +9645. व्याख्या
+ +9646. 6 पर...दुनिया ...काम पर जा रहे हैं।
+ +9647. सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन/संचार माध्यम और विज्ञापन: + +9648. समसामयिकी 2020/महिलाओं से संबंधित मुद्दे: + +9649. नार्को परीक्षण में व्यक्ति को सोडियम पेंटोथल (Sodium Pentothal) जैसी दवाओं का इंजेक्शन दिया जाता है, जिससे वह व्यक्ति कृत्रिम निद्रावस्था या बेहोश अवस्था में पहुँच जाता है। इस दौरान जिस व्यक्ति पर यह परीक्षण किया जाता है उसकी कल्पनाशक्ति तटस्थ अथवा बेअसर हो जाती है और उससे सही सूचना प्राप्त करने या जानकारी के सही होने की उम्मीद की जाती है। + +9650. यह किसी अभियुक्त से संबंधित अधिकार है। + +9651. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा वर्ष 2000 में प्रकाशित ‘लाई डिटेक्टर टेस्ट के प्रशासन संबंधी दिशा-निर्देशों’ के अनुसार, + +9652. पॉलीग्राफ और नार्को परीक्षण के हालिया उपयोग + +9653. हाल ही में केरल के तिरुवनंतपुरम की एक महिला नवप्रर्वतक डी वासिनी बाई (D Vasini Bai) ने ‘क्रॉस-पॉलिनेशन’ (Cross-Pollination) के ज़रिये अत्‍यधिक बाज़ार मूल्‍य वाले फूल एंथुरियम (Anthurium) की दस किस्मों को विकसित किया है। + +9654. एंथुरियम घरेलू उपयोग में लाये जाने वाले विश्व के प्रमुख फूलों में से एक है। ये दिखने में सुंदर होने के साथ-साथ आस-पास की हवा को भी शुद्ध करते हैं और फॉर्मेल्डिहाइड, अमोनिया, टाल्यूईन (Toluene), जाइलीन और एलर्जी जैसे हानिकारक वायुजन्य रसायनों को हटाते हैं। + +9655. उन्होंने उगाए गए छोटे पौधों को रोपने के लिये मिट्टी के गमलों के बजाय कंक्रीट के गमलों का उपयोग किया। इस विधि ने उन्‍हें सीमित स्थान पर अधिक पौधे उगाने में मदद की। + +9656. मुख्य बिंदु: + +9657. इसी आंदोलन ने आज़ादी के बाद 1970 के दशक में हुए चिपको आंदोलन को प्रेरित किया, जिसमें चमोली, उत्तराखंड में गौरा देवी सहित कई महिलाओं ने पेड़ों से चिपककर उन्हें कटने से बचाया था। + +9658. जैविक कृषि भूमि मामले में भारत विश्व में 9वें स्थान पर है और यहाँ जैविक उत्पादकों की सबसे बड़ी संख्या है। भारत में सिक्किम राज्य विश्व का पहला जैविक राज्य है। + +9659. महिलाओं एवं बच्चों के खिलाफ अपराधों से संबंधित मामलों से निपटने के लिये प्रत्येक ज़िले में एक विशेष अदालत के अलावा कुल 18 दिशा पुलिस स्टेशन स्थापित किये जाएंगे। + +9660. भारत में (आगरा और अवध के संयुक्त प्रांत) पहली महिला राज्यपाल सरोजनी नायडू के जन्दिवास को राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत में महिलाओं के विकास के लिये सरोजनी नायडू द्वारा किये गए योगदान को मान्यता देने के लिये उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया था। इस दिवस को मनाने का प्रस्ताव भारतीय महिला संघ और अखिल भारतीय महिला सम्मेलन के सदस्यों द्वारा किया गया था। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय महिला दिवस 13 फरवरी को जबकि अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को मनाया जाता है। + +9661. 11 पीठों को कृषि, जैव प्रौद्योगिकी, इम्यूनोलॉजी, फाइटोमेडिसिन, जैव रसायन, चिकित्सा, सामाजिक विज्ञान, पृथ्वी विज्ञान एवं मौसम विज्ञान, इंजीनियरिंग, गणित, भौतिकी सहित अनुसंधान के विभिन्न क्षेत्रों में स्थापित किया गया है। + +9662. प्रसंग: इस कविता मे कवि ने जन जीवन की यथार्थ स्थिति का चित्रण किया है। मज़दूर और किसान किस प्रकार संघर्षों से जीता है उसी का एक बिम्ब प्रस्तुत किया है। + +9663. ० सामाजिक विषयता का चित्रण है। + +9664. + +9665. चर्चित वायरस या जीवाणु. + +9666. इसे यारावायरस नाम ब्राज़ील की देशज जनजाति टूपी-गुआरानी (Tupi-Guarani) की पौराणिक कहानियों में ‘मदर आफ वाटर्स’ (Mother Of Waters) जिसे ‘यारा’ (Yara) कहा जाता है, की याद में दिया गया है। + +9667. महत्त्व: + +9668. इस लैब की क्षमता सीजीएचएस (Central Government Health Scheme) दरों पर प्रतिदिन 25 COVID-19 आरटी-पीसीआर परीक्षण, 300 एलिसा परीक्षण के अतिरिक्त टी.बी. एवं HIV परीक्षण की है। + +9669. ‘सीओबीएएस 6800 परीक्षण मशीन’ 24 घंटों में लगभग 1200 नमूनों का सटीक परीक्षण कर सकेगी। यह परीक्षण प्रक्रिया में कमी लाने के साथ जाँच क्षमता में व्यापक वृद्धि करेगी। इसमें रोबोटिक्स तकनीकी का प्रयोग किया गया है जो संदूषण की संभावना को कम करता है तथा स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं में संक्रमण के जोखिम को न्यूनतम करता है क्योंकि इसे सीमित मानव हस्तक्षेपों के साथ दूर से संचालित किया जा सकता है। + +9670. इस मॉडल में राज्यों द्वारा पहचाने एवं स्थापित किये गए चिकित्‍सा कॉलेज तथा ज़िला अस्पताल ‘हब’ (Hub) के रूप में कार्य करेंगे और वे देश भर के स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों यानी ‘स्पोक’ (Spoke) को टेली-परामर्श सेवाएँ उपलब्ध कराएंगे। + +9671. टेलीमेडिसिन स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की एक उभरती हुई शैली है, जो कि स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर को दूरसंचार प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए कुछ दूरी पर बैठे रोगी की जाँच करने और उसका उपचार करने की अनुमति देता है। + +9672. कुल मिलाकर, लॉकडाउन के 10 सप्ताह के दौरान औसत साप्ताहिक दावा परिणाम (Weekly Claim Volumes) लॉकडाउन से पहले 12 सप्ताह के साप्ताहिक औसत से 51% कम रहा है। + +9673. संपूर्ण देश के कुछ राज्यों में ऑन्कोलॉजी के परिणामों (Oncology Volumes) में 64% की कमी देखी गई है। + +9674. इससे पहले, AIIA और दिल्ली पुलिस के एक संयुक्त उपक्रम के रूप में आयुरक्षा-AYURAKSHA की शुरुआत की गई थी, इसे आयुर्वेदिक प्रतिरक्षा बढ़ाने के उपायों के माध्यम से दिल्ली पुलिस के कर्मियों जैसे फ्रंटलाइन कोविड योद्धाओं के स्वास्थ्य को सही बनाए रखने के लिये शुरू किया गया था। + +9675. यह संस्थान आयुर्वेद के विभिन्न विषयों में स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट पाठ्यक्रम प्रदान करने के साथ-साथ आयुर्वेद, औषधि विकास, मानकीकरण, गुणवत्ता नियंत्रण, सुरक्षा मूल्यांकन और आयुर्वेदिक चिकित्सा के वैज्ञानिक सत्यापन के मौलिक अनुसंधान पर केंद्रित है।यह नई दिल्ली में स्थित है। + +9676. eVIN का लाभ: + +9677. औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम,1940 + +9678. हाथीपाँव रोग के उन्मूलन की प्रतिबद्धता को ध्यान में रखते हुए सरकार ने वर्ष 2018 में ‘हाथीपाँव रोग के तीव्र उन्मूलन की कार्य-योजना’ (Accelerated Plan for Elimination of Lymphatic Filariasis- APELF) नामक पहल की थी। + +9679. Xpert MTB/RIF एक न्यूक्लिक एसिड एम्प्लीफिकेशन टेस्ट (Nucleic Acid Amplification Test- NAAT) है जो मायकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (Mycobacterium Tuberculosis-MTB) और रिफैम्पिसिन (RIF) के प्रतिरोध की पहचान कर लेता है। + +9680. कार्यान्वयन:-इस योजना का कार्यान्वयन संबंधित राज्य सरकारों द्वारा स्थापित राज्य कार्यान्वयन एजेंसियों (State Implementing Agencies- SIA) द्वारा किया जाएगा। + +9681. वर्तमान में ऐसे केंद्रों की संख्या 6200 से अधिक हैं और 700 ज़िलों को इस योजना के दायरे में लाया जा चुका है। + +9682. इस सम्मेलन में आयुर्वेद, यूनानी एवं सिद्ध जैसे पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को भविष्य में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अंतर्राष्ट्रीय वर्गीकरण में शामिल करने का लक्ष्य रखा गया है। + +9683. COVID-19 के प्रसार की निगरानी और चिकित्सा उपकरणों तथा अन्य सहायक ज़रूरतों का अनुमान लगाने के लिये गणितीय मॉडल तैयार करना। + +9684. आवश्यक व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों की आपूर्ति के लिये स्वास्थ्य मंत्रालय सभी राज्यों, कपड़ा मंत्रालय (Ministry of Textiles) और उपकरण निर्माता कंपनियों तथा फैक्टरियों से समन्वय बनाए हुए है। + +9685. इस अभियान के तहत सरकारी स्कूलों, सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों, आँगनवाड़ियों, निजी स्कूलों तथा अन्य शैक्षणिक संस्थानों में 1-19 वर्ष की आयु के बच्चों और किशोर-किशोरियों को कृमि से बचाव हेतु सुरक्षित दवा अलबेंडेज़ौल (Albendazole) दी जाती है। + +9686. ठोस रूप में परिवर्तित होने के बाद इसे भस्मीकरण द्वारा अन्य बायोमेडिकल अपशिष्ट की तरह ही विघटित किया जा सकता है। सक्शन कैनिस्टर्स (Suction Canisters), डिस्पोज़ेबल स्पिट बैग्स (Disposable Spit Bags) की डिज़ाइन ‘एक्रीलोसोर्ब प्रौद्योगिकी’ द्वारा किया गया है। जिनके अंदर एक्रीलोसोर्ब सामग्री भरी हुई है। एक्रीलोसौर्ब सक्शन कनस्तर आईसीयू रोगियों या वार्डों में उपचारित प्रचुर तरल श्वसन स्त्राव पदार्थ का संग्रह करेगा। + +9687. इस प्रणाली की क्रिया विधि: + +9688. कमांड एंड कंट्रोल सेंटर के डेटा एनालिटिक्स सॉफ्टवेयर की मदद से राज्य में COVID-19 के संदिग्ध व्यक्तियों या संक्रमित व्यक्तियों के भू-वितरण का रेखांकन भी किया जा सकेगा। + +9689. COVID-19 महामारी के कारण न केवल लोगों को शारीरिक नुकसान हुआ है बल्कि उनकी भावनात्मक एवं सामाजिक पीड़ा में भी वृद्धि हुई है। + +9690. यह किसी भी रोगी में स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिये एक 'संपूर्ण व्यक्ति' (Whole Person) दृष्टिकोण है। + +9691. टेल्कम के खनन के दौरान एस्बेस्टस भी मिलता है जिसे मेसोथेलियोमा (Mesothelioma) और एस्बेस्टॉसिस (Asbestosis) जैसे स्वास्थ्य जोखिमों से जोड़ा गया है। + +9692. पेरिकार्डियल मेसोथेलियोमा (Pericardial Mesothelioma)- हृदय (Heart) के आसपास के ऊतक को प्रभावित करता है। + +9693. एस्बेस्टोस एक्सपोज़र के बाद मेसोथेलियोमा के विकास में 20-60 वर्ष या उससे अधिक समय लग सकता है। हालाँकि वैज्ञानिक अभी भी इसकी सटीक प्रक्रिया का पता नहीं लगा पाए हैं। + +9694. संयुक्त राज्य ऑर्फन ड्रग अधिनियम, 1983 के अनुसार यदि किसी रोग को ऑर्फन रोग घोषित कर दिया जाता है तो उस रोग के लिये जो कंपनी औषधि बनाती है उसे कई प्रकार के प्रोत्साहन प्रदान किये जाते हैं। जैसे- + +9695. इसके अलावा दुर्लभ रोगों के लिये विकसित की गई दवाओं की कीमत साधारण दवाओं की तुलना में अधिक होती है। + +9696. + +9697. व्याख्या. + +9698. विशेष. + +9699. 5.प्रसाद गुण का प्रयोग है। + +9700. 10. आत्म विश्लेषणात्मक शैली का प्रयोग हैl + +9701.             इसके लिए कॉपी किताब और स्कूली शिक्षा की आवश्यकता पड़ती है। द्वितीय भाषा मे शुद्धता और धारा प्रवाहिता समय के साथ आती है। द्वितीय भाषा को सीखने के लिए सम्प्रेषणपरख मौहाल, बोधगम्य सामग्री की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। + +9702.       पॉवलाव और स्किनर के अनुसार- ‘‘भाषा की क्षमता का विकास कुछ शर्तों के अंतर्गत होता है, जिसमें अभ्यास, नकल, रटने जैसी प्रक्रिया शामिल होती है।’’ + +9703. समसामयिकी 2020/विज्ञान और प्रौद्दोगिकी: + +9704. पहले भी हो चुके हैं ऐसे प्रयोग: + +9705. भारत की यह विरासत भविष्य में अंतरिक्ष के क्षेत्र में आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिये भारत को योग्य बनाती है। + +9706. भारतीय विनिर्माता दुनिया के सबसे बड़े आयातकों में से एक हैं और वे मुख्यतया चीन,जापान और दक्षिण कोरिया से आयात करते है। + +9707. पानी की प्रार्थनाकेदारनाथ सिंह + +9708. आपसे कुछ कहने की अनुमति चाहता हूं + +9709. एक चील आई + +9710. पर जैसे भी हों + +9711. और यह मुझे अच्छा लगता रहा प्रभु + +9712. फिर काफ़ी समय बाद + +9713. क्षमा करें प्रभु + +9714. सब गुजरते रहे मेरे पास से होकर + +9715. वह एक चरवाहा था + +9716. मुझे चुल्लूभर उठाया + +9717. शर्मिंदा हूं प्रभु + +9718. या किसी चेहरे पर + +9719. वहाँ होंगे मेरे भाई बन्धु + +9720. पहुंच चुका है + +9721. पर अपराध क्षमा हो प्रभु + +9722. + +9723. भारत सरकार द्वारा नेतृत्त्व:-भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा प्रारंभ, दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) वीडियो शिखर सम्मेलन के बाद यह दूसरा आभासी नेतृत्त्व शिखर सम्मेलन (Virtual Leadership Summit) होगा। + +9724. शामिल देश:-'"इस फोरम में भारत समेत 19 देश तथा यूरोपीय संघ भी शामिल है। जिनमें अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, यूरोपियन यूनियन, फ्राँस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं। + +9725. वर्ष 2015 में ब्रिटेन, फ्राँस, चीन, रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा जर्मनी (P5+1 ) ने ईरान के साथ परमाणु समझौता किया था। इस समझौते में ईरान द्वारा अपने परमाणु कार्यक्रमों पर नियंत्रण तथा उन्हें अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (International Atomic Energy Agency-IAEA) के नियमों के आधार पर संचालित करने की सहमति देने की बात की गई। + +9726. ईरान द्वारा अपनी प्रतिबद्धताओं से पीछे हटने के कारण तीनों यूरोपीय देशों ने भी इस समझौते के प्रति निष्क्रियता दिखाई है। + +9727. भारत का तर्क है कि यह संधि सिर्फ पाँच शक्तियों (अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्राँस) को परमाणु क्षमता का एकाधिकार प्रदान करती है तथा अन्य देश जो परमाणु शक्ति संपन्न नहीं हैं सिर्फ उन्हीं पर लागू होती है। + +9728. इसके साथ ही अफगानिस्तान तक पहुँचने के लिये भारत ईरान में चाबहार बंदरगाह विकसित कर रहा है। ऐसे में इस क्षेत्र में अशांति का माहौल भारत के हितों को प्रभावित कर सकता है। + +9729. संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR)द्वारा प्रारंभ किये गए ‘स्टेप विद रिफ्यूजी’ (Step with Refugee)अभियान. + +9730. वैश्विक शरणार्थी संकट तथा आगे की राह: + +9731. भारत और मध्य-पूर्व एशिया. + +9732. इसका उद्देश्य हार्मुज जलडमरूमध्य (Strait of Hormuz) से होकर जाने वाले भारतीय जहाज़ों की सुरक्षा सुनिश्चित करना था। आपरेशन संकल्प के तहत भारतीय नौसेना का एक युद्ध पोत अभी भी खाड़ी क्षेत्र में मौजूद है। + +9733. प्रशिक्षण का संबंध किसी विशेष उददेश्य के लिए विशेष दक्षता प्राप्त करना है। शिक्षा एक व्यापक शब्द है। जिसमें व्यक्ति का सामाजिक बौद्धिक और भौतिक रूप से सम्पूर्ण विकास शामिल हैं। इस प्रकार प्रशिक्षण शिक्षा की सकल प्रक्रिया का केवल एक भाग है। + +9734. 2- मानविय संबंध प्रशिक्षण + +9735. 2- प्रशिक्षण के माध्यम से विधार्थी के ज्ञान एवं योग्यता में वृद्धि होती है। + +9736. 7- प्रशिक्षण एक सीमित- सीमा के भीतर प्राप्त किया गया ज्ञान है। + +9737. 3- मुझे दो किलो आलू तौलकर दीजिए। + +9738. 3- वाचन- प्रशिक्षण :वाचन - प्रशिक्षण भाषा शिक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यघपि इसे गौण भाषाई कौशल माना जाता है। तथापि मातृभाषाभाषी के लिए तो यह अनिवार्य कौशल है। वाचन कि अभ्यास विधार्थी औपचारिक शिक्षण में ही प्रारम्भ करता है अंतः इसकी सफलता - असफलता का पुरा दायित्व अध्यापक का है। इस नजरिए से अध्यापक का दायित्व बढ़ जाता है। विधार्थी स्पष्ट, शुध्द, उचित विराम, अनुतान, बलाघात के साथ वाचन करें इसके लिए आवश्यक है कि उसे इसका अधिक से अधिक अवसर मिले तथा अध्यापक उसकी गलतियों से उसे तुरंत अवगत कराए। + +9739. समसामयिकी 2020/राजव्यवस्था एवं संविधान: + +9740. मूल रूप से भारतीय संविधान में कुल 395 अनुच्छेद (22 भागों में विभाजित) और 8 अनुसूचियाँ थी, किंतु विभिन्न संशोधनों के परिणामस्वरूप वर्तमान में इसमें कुल 470 अनुच्छेद (25 भागों में विभाजित) और 12 अनुसूचियां हैं। + +9741. इस सूचकांक में पत्रकारों के लिये उपलब्ध स्वतंत्रता के स्तर के आधार पर 180 देशों की रैंकिंग की जाती है। + +9742. महिला पत्रकार की स्थिति में इस प्रकार के अभियान और अधिक गंभीर हो जाते हैं। + +9743. कई बार ऐसे प्रश्न पूछे जाते हैं कि हम पत्रकारों की स्वतंत्रता सुनिश्चित नहीं की जाएगी तो नागरिकों पर हो रहे अत्याचारों से लड़ना, नागरिकों के मूलभूत अधिकारों की रक्षा करना और पर्यावरण जैसे विभिन्न मुद्दों को संबोधित करना किस प्रकार संभव हो सकेगा। + +9744. इसका मुख्यालय पेरिस में है। + +9745. चिकित्सा आचार संहिता के तहत,भारतीय चिकित्सा परिषद द्वारा निर्धारित नियम के अनुसार,उपचार के दौरान किसी विशेष परिस्थिति में रोगी से संबंधित जानकारी का खुलासा कर सकते हैं। + +9746. याचिकाकर्त्ता ने संविधान द्वारा प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के संदर्भ में विदेशी नागरिकों के लिये विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम, 2010 (Foreign Contribution Regulation Act- FCRA) के तहत धार्मिक और धर्मार्थ संस्थाओं को दान करने की अनुमति लेने से छूट मांगी थी। + +9747. इस संदर्भ में पूर्व के घटनाक्रम + +9748. निर्वाचन आयोग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय समारोह में भारत के राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद मुख्य अतिथि थे। + +9749. शुरुआत + +9750. वर्ष 1956 में व्यापक स्तर पर राज्यों के पुनर्गठन के बावजूद भाषा या सांस्कृतिक एकरूपता एवं अन्य कारणों के आधार पर दूसरे राज्यों से अन्य राज्यों के निर्माण की मांग उठी। + +9751. संयुक्त महाराष्ट्र समिति चाहती थी कि बॉम्बे राज्य को दो राज्यों (एक राज्य गुजराती एवं कच्छी भाषी लोगों के लिये और दूसरा राज्य मराठी एवं कोंकणी भाषी लोगों के लिये) में विभाजित किया जाए। + +9752. अधिकांश राज्यों के शासकों ने ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेसन’ नामक दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किये जिसका मतलब था कि उन राज्यों ने भारतीय संघ का हिस्सा बनने के लिये अपनी सहमति दे दी है। + +9753. भारत में त्रिपुरा का विलय + +9754. भारत में मेघालय का विलय + +9755. वर्ष 1972 में पूर्वोत्तर भारत के राजनीतिक मानचित्र में व्यापक परिवर्तन आया। + +9756. नवीन अधिसूचना के लाभार्थी:-अखिल भारतीय सेवा,सार्वजनिक उपक्रमों,केंद्र सरकार के स्वायत्त निकाय,सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक,वैधानिक निकायों, केंद्रीय विश्वविद्यालयों तथा मान्यता प्राप्त अनुसंधान संस्थानों के ऐसे अधिकारी जिन्होंने जम्मू-कश्मीर में दस वर्ष सेवा प्रदान की है, उनके बच्चों को अधिवास की परिभाषा में शामिल करना हैं। + +9757. यह अध्यादेश COVID-19 महामारी के मद्देनज़र 24 मार्च,2020 को घोषित विभिन्न कर अनुपालन संबंधी उपायों को प्रभावी बनाता है। + +9758. आंध्र प्रदेश मंत्रिमंडल द्वारा अमरावती को विधायी,विशाखापत्तनम कार्यकारी और कर्नूल को न्यायिक राजधानी के रूप में स्थापित करने का निर्णय. + +9759. लाभ + +9760. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि उम्मीदवारों के संपूर्ण आपराधिक इतिहास की जानकारी स्थानीय और राष्ट्रीय समाचार पत्र के साथ-साथ पार्टियों के सोशल मीडिया हैंडल में प्रकाशित होनी चाहिये। यह अनिवार्य रूप से उम्मीदवारों के चयन के 48 घंटे के भीतर या नामांकन दाखिल करने की पहली तारीख के दो सप्ताह से कम समय में (जो भी पहले हो) प्रकाशित किया जाना चाहिये। + +9761. एक राजनीतिक दल को अपनी प्रकाशित सामग्री के माध्यम से जनता को यह भरोसा दिलाना होगा क्योंकि किसी भी अभ्यर्थी की ‘योग्यता या उपलब्धियाँ’ आपराधिक पृष्ठभूमि के कारण प्रभावित होती हैं। + +9762. आगे की राह: + +9763. यह सूचकांक ‘द इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट’ द्वारा तैयार की गई ‘अ ईयर ऑफ डेमोक्रेटिक सेटबैक्स एंड पोपुलर प्रोटेस्ट’ (A year of democratic setbacks and popular protest) नामक रिपोर्ट के आधार पर जारी किया गया है। + +9764. इस सूचकांक में 1-10 अंकों के पैमाने के आधार पर रैंक तय की जाती है। + +9765. इस सूचकांक में नॉर्वे, आइसलैंड तथा स्वीडन क्रमशः 9.87, 9.58, 9.39 अंकों के स्कोर के साथ प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय स्थान पर हैं। + +9766. अगर भारत के रैंक को अलग-अलग पैमानों पर देखें तो भारत को चुनाव प्रक्रिया और बहुलतावाद में 8.67, सरकार की कार्यशैली में 6.79, राजनीतिक भागीदारी में 6.67, राजनीतिक संस्कृति में 5.63 और नागरिक आज़ादी में 6.76 अंक दिये गए हैं। + +9767. कितना सफल है भारत का लोकतंत्र? + +9768. द इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट लंदन स्थित इकोनॉमिस्ट ग्रुप का एक हिस्सा है जिसकी स्थापना 1946 में हुई थी। + +9769. ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्नल जेम्स स्किनर (1778-1841) के अनुसार, खालसा सिखों को दो समूहों में विभाजित किया गया था। पहले वे जो नीले पोशाक पहनते हैं जो गुरु गोबिंद सिंह युद्ध के समय पहनते थे। दूसरे वे जो किसी भी रंग की पोशाक पहनते थे। + +9770. निहंगों ने अमृतसर के अकाल तख्त पर सिखों के धार्मिक मामलों को भी नियंत्रित किया। वे स्वयं को किसी भी सिख प्रमुख के अधीनस्थ नहीं मानते थे और इस तरह उन्होंने अपना स्वतंत्र अस्तित्त्व बनाए रखा। + +9771. ये वरिष्ठ अधिकारी 15वें नोम (प्राचीन मिस्र के 36 प्रांतीय डिविज़न में से एक) से संबंधित थे, यह प्रांतीय डिविज़न एक गवर्नर द्वारा शासित था। + +9772. इन्होने प्रतिकृति या पोट्रेट (Portrait) एवं मानवीय आकृतियों वाले चित्र या लैंडस्केप दोनों चित्रों पर काम किया और इन्हें ऑयल पेंट का उपयोग करने वाले पहले भारतीय कलाकारों में से एक माना जाता है। हिंदू पौराणिक आकृतियों को चित्रित करने के अलावा राजा रवि वर्मा ने कई भारतीयों के साथ-साथ यूरोपीयलोगों को भी चित्रित किया। इन्हें लिथोग्राफिक प्रेस (Lithographic Press) पर अपने काम के पुनरुत्पादन में महारत हासिल करने के लिये भी जाना जाता है जिसके माध्यम से उनके चित्रों को विश्व प्रसिद्धि मिली। उन्हें भारत में चित्रकला के यूरोपियनकृत स्कूल (Europeanised School of Painting) का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रतिनिधि माना जाता है। + +9773. राजा रवि वर्मा के सम्मान में वर्ष 2013 में बुध ग्रह पर एक क्रेटर(गड्ढा) उनके नाम से नामित किया गया था। + +9774. इस शैली में व्यापक रूप से चित्रित विषय एवं डिज़ाइन हिंदू देवताओं के हैं जैसे- कृष्ण, राम, शिव, दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, सूर्य एवं चंद्रमा, तुलसी का पौधा, शादी के दृश्य, सामाजिक घटनाएँ आदि। + +9775. हस्तकला. + +9776. वर्ष 1985 के असम समझौते (Assam Accord) के खंड 6 को लागू करने के लिये खिलोनजिआ कहलाने वाले समुदायों को सूचीबद्ध करते हुए विपक्ष ने एक रिपोर्ट पेश की। + +9777. गुजरात की ट्रेडमार्क साड़ी ‘पटोला’ के निर्माण में प्रयुक्त होने वाला कच्‍चा माल (रेशम के धागे) कर्नाटक अथवा पश्चिम बंगाल से खरीदा जाता है,जहाँ सिल्‍क प्रोसेसिंग इकाइयाँ (यूनिट) अवस्थित हैं। इसी कारण फैब्रिक की लागत कई गुना बढ़ जाती है। अंतत:साड़ी की किमत काफी बढ़ जाती है। + +9778. हाल ही में एस. सौम्या (S.Sowmya) को संगीत कलानिधि पुरस्कार से सम्मानित किया गया । मद्रास संगीत अकादमी द्वारा प्रदान किया जानेवाला यह पुरस्कार कर्नाटक संगीत के क्षेत्र में सर्वोच्च पुरस्कार माना जाता है। + +9779. यह अकादमी कर्नाटक संगीत को बढ़ावा देने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। + +9780. मार्शल आर्ट. + +9781. गतका का अभ्यास खेल (खेला) या अनुष्ठान (रश्मि) के रूप में किया जाता है। यह खेल दो लोगों द्वारा लकड़ी की लाठी से खेला जाता है जिन्हें गतका कहा जाता है। इस खेल में लाठी के साथ ढाल का भी प्रयोग किया जाता है। + +9782. 2. केरल कलारिपयट्टु (Kalaripayattu) + +9783. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में आधिकारिक सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान कत्थक कलाकार मंजरी चतुर्वेदी को कव्वाली (Qawwali) के साथ कत्थक (Kathak) का प्रदर्शन करने से रोक दिया गया। + +9784. भारतीय उपमहाद्वीप में कव्वाली एक लोकप्रिय सूफी भक्ति संगीत है और यहाँ कव्वाली गीत ज़्यादातर पंजाबी और उर्दू भाषा में गाए जाते हैं। + +9785. लखनऊ घराना: + +9786. कला का यह रूप दक्षिण भारत के कर्नाटक तथा केरल के करावली एवं मलनाड क्षेत्रों में प्रचलित है। + +9787. यह संगीत,नृत्य,भाषण और वेशभूषा का एक समृद्ध कलात्मक मिश्रण है,इस कला में संगीत नाटक के साथ-साथ नैतिक शिक्षा और जन मनोरंजन जैसी विशेषताओं को भी महत्त्व दिया जाता है। + +9788. इसके संगीत वाद्य मंडल में एक गायक, एक बाँसुरी वादक, एक मृदंगम वादक, एक वीणा वादक और एक करताल वादक होता है। + +9789. ओडिसी नृत्य में भगवान कृष्ण के बारे में प्रचलित कथाओं के आधार पर नृत्य किया जाता है तथा इस नृत्य में ओडिशा के परिवेश एवं वहाँ के लोकप्रिय देवता भगवान जगन्नाथ की महिमा का गान किया जाता है। + +9790. माना जाता है कि ‘चिंदू’ शब्द यक्षगान कलाकारों की जाति चिंदू मडिगा (Chindu Madiga) से आया है, जो मडिगा (Madiga) अनुसूचित जाति की एक उप-जाति है। + +9791. साधारण परिवार में जन्मा साधारण शिक्षा प्राप्त की और साधारण नौकरी करते हुए अपनी असाधारण प्रतिभा के बल पर अपने आसपास की जिंदगी का जो चित्र उन्होंने खींचा वह वास्तविकताओं को समझने का महत्वपूर्ण दस्तावेज है। वस्तुतः धूमिल की कविता जिस तरह पारस्परिक आलोचना के प्रतिमान और से नहीं पहचानी जा सकती,उसी तरह उनका व्यक्तित्व भी परस्पर के घीसे पिटे शब्दों से नहीं पहचाना जा सकता। प्रारंभ में धूमिल बड़े विनम्र सहनशील उदार दया शील और करना नार्थ थे। धूमिल के लिए बच्चों की हंसी कितनी महत्वपूर्ण थी यह 'कल सुनना मुझे; कविता संग्रह की निम्न पंक्तियों में दृश्य काव्य है- + +9792. इस तरह उदास होना + +9793. शरीक नहीं है।"
+ +9794. सुकावि श्री सुदामा पांडे धूमिल का जन्म वाराणसी जनपद के गांव में 9 नवंबर 1936 को ब्राह्मण परिवार में हुआ था। यह बचपन से ही मेधावी संवेदनशील और प्रखर प्रतिभाशाली थे। ग्राम खेवली उस जमाने में शिक्षा भी मुखी नहीं हो पाया था। इसीलिए ऐसे अपेक्षित शिक्षा संसाधनों और अभावों में भी बालक सुदामा पांडे ने 1953 में उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद से हाई स्कूल परीक्षा पास की और गांव में पहले मैट्रीकुलेट होने का गौरव पाया।12 वर्ष की आयु में ही सुदामा पांडे का विवाह मूर्ति देवी नाम की सुशील कन्या से हो गया। लेकिन अकाश मात पिता मां पिता और चाचा के निधन के कारण सुदामा पांडे का अध्ययन बीच में छूट गया और इन्हें परिवार के भरण-पोषण के लिए नौकरी करनी पड़ी। इसके लिए यह कलकत्ता चले गए। वहां कुछ दिन लोहे की ढुलाई का काम भी किया।इसके बाद उन्होंने एक निजी कंपनियां पासिंग अधिकारी की नौकरी कर ली। आत्मा भी मानी सुदामा पांडे यहां ज्यादा समय नहीं टिक सके और त्यागपत्र देकर बनारस लौट आए। बनारस में आप ने कड़ी मेहनत करके तकनीकी क्षेत्र में अपना भाग्य आजमाया। आईटीआई की और सरकारी नौकरी पाई। लेकिन भाग्य को तो कुछ और ही स्वीकार था इन्होंने यहां भी असुविधा अनुभव की और फिर छुट्टी लेकर वाराणसी आ गए। 1968 से 1974 तक का काल उनकी सेवाओं का महत्वपूर्ण समय था।उन्होंने बिजली विभाग के कर्मचारियों का प्रबल संगठन बनाया भ्रष्टाचार एवं मुद्दों पर अफसरों की कलई खोली। इसके फलस्वरूप उन्हें सीतापुर स्थानांतरित कर दिया गया।जहां उन्होंने जाकर लंबी छुट्टी ले ली और काशी में ही जाकर रहने लगे।अक्टूबर 1974 में सिर दर्द की पीड़ा से परेशान होकर अंत में काशी विश्वविद्यालय के मेडिकल कॉलेज में भर्ती हुए उन्हें ब्रेन ट्यूमर का इलाज चला और अंत में 10 फरवरी 1975 को उन्होंने संघर्षशील मसीह जीबी की अपनी यात्रा समाप्त की।स्वर्गीय धूमिल का व्यक्तित्व अनन्य विशेषताओं का पुंज था। + +9795. + +9796. ब्रूनर के अनुसार शिशु अपनी अनुभूतियों का मानसिक रूप से तीन तरीकों से अभिव्यक्त करते हैं- + +9797. ब्रूनर ने सीखने की प्रक्रिया व कक्षा शिक्षण का बड़ी बारीकी से अध्ययन किया व निम्नलिखित तथ्य पाये- + +9798. ब्रूनर के अनुसार पाठ्यक्रम तैयार करके बच्चों को सीखने की लिए तत्पर करें। + +9799. इस सिद्धान्त के अनुसार विषयवस्तु जो सिखाई जानी है, ऐसे अनुक्रम व बारम्बारता से प्रस्तुत की जाये, जिससे बच्चे तार्किक ढंग से एवं अपनी कठिनाई स्तर के अनुसार सीखते हैं। + +9800. ब्रूनर ने मानसिक अवस्थाओं का वर्णन किया। इन अवस्थाओं के अनुसार शिक्षण विधियों व प्रविधियों का प्रयोग करना चाहिये। + +9801. इस प्रकार ब्रूनर का सिद्धान्त वर्तमान कक्षा शिक्षण के लिए बहुत उपयोगी है। + +9802. बोलना चलना व ओर अन्य गतिविधियां समाज में रहकर बच्चा सीखता ही है साथ में वह शिक्षा भी ग्रहण करना शुरू कर देता है। यह शिक्षा उससे अक्षरों के ज्ञान के साथ साथ उससे उसके व्यक्तित्व का विकास भी करवाती है। बच्चा शैशवास्था से लेकर पूरे जीवन दो प्रकार की भाषा सीखता है। पहली ओपचारिक भाषा ओर दूसरी ऑनोपचारिक भाषा । ओपचारिक भाषा वह भाषा होती हैं जिससे व्यक्ति स्कूल कॉलजों में पड़ता है। जिससे पड़ने से उससे डिग्री मिलता है। ओर ऑनोपचरिक भाषा वे भाषा होती है जिससे व्यक्ति अपनी रोज की जिंदगी में सीखता है। जिससे वह अपने कार्य में या अन्य रोज की अपनी गतिविधियों में प्रयोग करता है। + +9803. लेने के बाद हम उससे व्यवहारिक रूप में उसका प्रयोग कर सके। ऐसा तभी सम्भव है जब भाषा कोशाल के चारो प्रकार + +9804. २)क्रिया द्वारा सिखना यह इसके सिद्धांतो में से एक ओर सिद्धांत है इसमें बालक को खेल के दौरान उससे शिक्षण + +9805. आज का इंसान हिंदी भाषा ओर साहित्य में रुचि नहीं रखता है क्योंकि उससे लगता है कि आज कम्पनियों में जॉब के लिए अंग्रेजी भाषा होती है इसलिए वह हिंदी भाषा साहित्य का अध्ययन नहीं करता जिसके कारण इसकी रुचि कम हो रही है। + +9806. हिंदी कविता (छायावाद के बाद) सहायिका/बर्लिन की टूटी दीवार को देखकर: + +9807. सुप्रसिद्ध साहित्यकार मुरलीलाधर मंडलोई के शब्दों मे, "केदानरनाथ सिंह की कविताओं में परंपरा और आधुनिकता का सुन्दर ताना-बाना है । यथार्थ और फ़ंतासी, छंद और छंदेतर की महीन बुनावट उनके काव्य-शिल्प में एक अलग रंग भरती है ।" + +9808. रिपोर्ट के अनुसार, आर्थिक कठिनाइयों के कारण लोग अपनी आजीविका को बनाए रखने के लिये दवाओं से संबंधित अवैध गतिविधियों का सहारा ले सकते हैं । + +9809. COVID-19 और इसके बाद लागू किया गया लॉकडाउन दुनिया में प्रमुख उत्पादकों के बीच उत्पादन और बिक्री में बाधा के रूप में उभरा है। लॉकडाउन के कारण अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में गिरावट एसिटिक एनहाइड्राइड (Acetic Anhydride) की आपूर्ति में कमी का कारण बन सकती है, जो हेरोइन (Heroin) के निर्माण के लिये उपयोगी होती है। + +9810. हालाँकि सीमापारीय आवागमन बाधित होने से मादक पदार्थ अफीम (Opiam) की तस्करी में गिरावट हुई है परंतु मादक पदार्थ कोकीन की तस्करी समुद्री मार्गों के द्वारा की जा रही है। + +9811. स्वर्णिम अर्द्धचंद्र क्षेत्र भारत के पश्चिम में स्थित है। + +9812. यह लगभग 25 सालों तक ब्रिटिश नौसेना में कार्यरत रहा और फिर अप्रैल 1984 में इसे सेवा से मुक्त कर दिया गया, जिसके पश्चात् मई 1987 में इसका आधुनिकीकरण किया गया और इसे भारतीय नौसेना में शामिल कर लिया गया। + +9813. पूंजीगत व्यय भूमि, भवन, मशीनरी, उपकरण साथ ही शेयरों में निवेश जैसी परिसंपत्तियों के अधिग्रहण पर खर्च किया गया धन है।संचालन एवं रखरखाव तथा रक्षा क्षेत्र के आधारभूत ढाँचे पर खर्च का प्रबंधन बेहतर तरीके से किया गया है। + +9814. 72वें सेना दिवस में क्या खास है? + +9815. इस लड़ाई को इतिहासकारों द्वारा द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे प्रमुख लड़ाई बताया जाता है जिसमें टैंकों का उपयोग किया गया था। + +9816. सीमावर्ती सुरक्षा से संबंधित कानून. + +9817. सूचना के अधिकार अधिनियम के साथ संघर्ष: अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि OSA सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2005 के साथ सीधे विरोध की स्थिति में है। RTI की धारा 22, OSA सहित अन्य कानूनों के संदर्भ में विज़-ए-विज़ प्रावधानों के अंतर्गत प्रधानता प्रदान करती है। इसलिये यदि सूचना प्रस्तुत करने के संबंध में OSA में कोई असंगतता है, तो यह आरटीआई अधिनियम द्वारा दी जाएगी। + +9818. वैश्विक आतंकवाद सूचकांक. + +9819. इस सूचकांक में पहला स्थान अफगानिस्तान को मिला है, जिसका अर्थ है कि अफगानिस्तान विश्व में आतंकवाद से सर्वाधिक प्रभावित देश है। वहीं इस सूचकांक में अंतिम स्थान बेलारूस (Belarus) को मिला है, इस प्रकार बेलारूस आतंकवाद की दृष्टि से काफी सुरक्षित देश है। + +9820. सीमा सड़क संगठन (Border Roads Organisation- BRO). + +9821. रणनीतिक महत्त्व:-यह पुल सुबनसिरी नदी पर बने दो पुलों में से एक है जो अरुणाचल प्रदेश के दापोरीजो (Daporijo) क्षेत्र को शेष राज्य से जोड़ता है। + +9822. प्रत्येक वर्ष यह पंटून पुल मानसून से पहले ही ध्वस्त हो जाता था या रावी नदी की तेज़ धाराओं में बह जाता था। जिसके कारण मानसून के दौरान नदी के पार हजारों एकड़ उपजाऊ भूमि का उपयोग किसान नहीं कर पाते थे। + +9823. इसकी लंबाई लगभग 315 किलोमीटर है। और इसका अधिकांश जल ग्रहण क्षेत्र भारत के हिस्से में आता है। + +9824. इस पोत द्वारा लगभग 7500 किमी. विशाल भारतीय तटरेखा और अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) के लगभग 20 लाख वर्ग किमी. के विशाल क्षेत्र को सुरक्षित करने की कोशिश की जाएगी। + +9825. सेंटर फॉर लैंड वारफेयर स्टडीज़ + +9826. इस कॉन्क्लेव में बदलती सुरक्षा परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए सशस्त्र बलों में व्यापक परिवर्तन की आवश्यकता पर बल दिया गया। भारतीय सेना के लिये चीफ-ऑफ-डिफेंस स्टाफ (Chief of Defence Staff) की नियुक्ति तथा सैन्य मामलों के विभाग (Department of Military Affairs) की स्थापना इस दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम हैं। + +9827. स्वदेश निर्मित हथियार. + +9828. SMART जिसे युद्धपोत या ट्रक-आधारित तटीय बैटरी (Truck-based Coastal Battery) से लॉन्च किया जाता है, एक नियमित सुपरसोनिक मिसाइल की तरह ही कार्य करता है। + +9829. शौर्य मिसाइल लघु श्रेणी एसएलबीएम के-15 सागरिका (Short Range SLBM K-15 Sagarika) का भूमि संस्करण (Land Variant) है जिसकी रेंज कम-से-कम 750 किलोमीटर है। + +9830. इस कार्यक्रम का उद्देश्य भूमि, समुद्र एवं वायु आधारित प्लेटफॉर्म से परमाणु हथियार लॉन्च करने की क्षमता हासिल करना है। + +9831. के-मिसाइल समूह की अधिकांश मिसाइलों को K-5 और K-6 नाम दिया गया है जिनकी रेंज 5000 से 6000 किमी. के मध्य है। + +9832. यह आधुनिक बहु-भूमिका वाले हल्के लड़ाकू विमान के साथ संचालन करने वाला दूसरा भारतीय वायु सेना स्क्वाड्रन होगा। + +9833. ‘माइन प्लाउ’ (Mine Ploughs) एक ऐसा यंत्र है जिससे भूमि की खुदाई की जाती है। इसकी मदद से विस्फोटक या माइंस को सावधानीपूर्वक बाहर निकाला जा सकता है। इससे टैंक बेड़े की गतिशीलता कई गुना बढ़ जाएगी। + +9834. अपग्रेड होने के बाद इस आर्टिलरी गन की रेंज 27 किलोमीटर से बढ़कर 36 किलोमीटर हो गई। + +9835. थीम: इसकी थीम ‘इंडिया: द इमर्जिंग डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग हब’ (India: The Emerging Defence Manufacturing Hub) है। + +9836. एक संपूरक धातु ऑक्साइड सेमीकंडक्टर में द्वितीयक वोल्टेज से जुड़े अर्द्धचालकों का एक समूह होता है,ये अर्द्धचालक विपरीत व्यवहार में काम करते हैं। + +9837. पारंपरिक रडार की तुलना में ‘थ्रू द वाल रडार’ न केवल दीवार के पीछे व्यक्तियों की उपस्थिति का पता लगा सकता है बल्कि उनके कार्यों एवं शारीरिक मुद्राओं की जानकारी भी प्राप्त कर सकता है। + +9838. हालाँकि यह रडार चिप मूल रूप से हवाई अड्डे के सुरक्षा अनुप्रयोगों के लिये विकसित की गई है। + +9839. इसे एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम ट्रैक नहीं कर सकता है। + +9840. यह लक्ष्य पर तेज़ गति से निशाना लगाता है और यह भारतीय एवं उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) के गोला-बारूद मानकों के अनुकूल है। + +9841. एमके1 तेजस के विमान वाहक पोत की 200 मीटर लंबी हवाई पट्टी पर उतरने एवं उड़ान भरने के साथ ही भारत,संयुक्त राज्य अमेरिका,यूनाइटेड किंगडम, रूस और चीन के समूह में शामिल हो गया है जिनके पास पहले से ही ऐसी क्षमता है। एमके1 तेजस ने अप्रैल 2012 में पहली बार उड़ान भरी थी और वर्तमान में इसके दो प्रोटोटाइप कार्य कर रहे हैं। + +9842. भारतीय सेना केंद्र सरकार द्वारा दी गई आपातकालीन वित्तीय शक्तियों के तहत इज़रायल से हेरॉन निगरानी ड्रोन और स्पाइक-एलआर एंटी टैंक गाइडेड मिसाइलों (Spike-LR Anti-Tank Guided Missiles) प्राप्त करने के लिये तैयार है जिससे सेना की निगरानी एवं मारक क्षमताओं में वृद्धि की जा सके। + +9843. इसे भूमि से या सेना के विशेष वाहन एवं हेलीकॉप्टर से लॉन्च किया जा सकता है। + +9844. इस अधिवेशन में राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) और प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) के अधिकारियों ने आतंकी वित्त-पोषण के रोकथाम हेतु एक विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया। + +9845. राष्ट्रपति की मंज़ूरी के साथ गुजरात आतंकवाद और संगठित अपराध नियंत्रण (Gujarat Control of Terrorism and Organised Crime- GCTOC) अधिनियम 1 दिसंबर, 2019 से प्रवर्तित हो गया है।. + +9846. ये दो अंतर GCTOCA को MCOCA की तुलना में अधिक कठोर और व्यापक बनाते हैं। + +9847. “किसी अन्य कानून" को परिभाषित नहीं किया गया है। + +9848. इसके द्वारा पृथ्वी की लगभग 80% भूमि के स्थलाकृतिक आँकड़ें एकत्रित किये गए हैं। इसने पहली बार भूमि उत्थान स्तर के बारे में वैश्विक आँकड़ें एकत्रित किये थे। + +9849. इसके सचिवालय जिनेवा और वाशिंगटन में स्थित हैं। + +9850. डिजिटल इंडिया के तहत विकास के स्तंभ: + +9851. UIDAI की स्थापना भारत के सभी नागरिकों को ‘आधार’ नाम से एक विशिष्ट पहचान संख्या प्रदान करने के लिये की गई थी ताकि दोहरी और फर्जी पहचान समाप्त की जा सके तथा इसे आसानी से एवं किफायती लागत में प्रमाणित किया जा सके। + +9852. नीति ने ड्रोन उड़ाने संबंधी निम्नलिखित ज़ोन निर्धारित किये थे: + +9853. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने वर्ष 2017 में पूर्ण टीकाकरण कवरेज में तेज़ी लाने और निम्न टीकाकरण कवरेज वाले शहरी क्षेत्रों एवं अन्य इलाकों पर अपेक्षाकृत ज़्यादा ध्यान देने हेतु ‘तीव्र मिशन इंद्रधनुष’ लॉन्च किया था। + +9854. इस परियोजना के भागीदार यूरोपियन यूनियन, भारत, जापान, चीन, रूस, दक्षिण कोरिया और अमेरिका हैं। अंतर्राष्ट्रीय ताप-नाभिकीय प्रायोगिक रिएक्टर ऊर्जा की कमी की समस्या से निपटने के लिये भारत सहित विश्व के कई राष्ट्रों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के सहयोग से मिलकर बनाया जा रहा। + +9855. IAEA की सुरक्षा गतिविधियाँ IAEA के अंतर्गत एक अलग विभाग, सुरक्षा विभाग द्वारा प्रबंधित है। + +9856. इसका प्रयोग LIBOR के स्थान पर किया जायेगा तथा यह एक अल्प-आवधिक ऋण है जिसे बैंकों द्वारा ब्रिटिश स्टर्लिंग बाज़ार में असुरक्षित ऋणों के भुगतान के लिये उपयोग में लाया जाता है। + +9857. कैरीकॉम संयुक्त राष्ट्र का आधिकारिक पर्यवेक्षक भी है। + +9858. कवचुआह रोपुई विरासत स्थल मिज़ोरम का पहला भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित स्मारक स्धल. + +9859. इंसटेक्स वस्तु विनिमय तंत्र जनवरी 2019 में स्थापित किया गया था। + +9860. गौरतलब है कि आवर्त सारणी की स्थापना 17 फरवरी 1869 को की गई थी। + +9861. क्या है काउंटर वेलिंग ड्यूटी (CVD)? + +9862. हिंदी कविता (छायावाद के बाद) सहायिका/अकाल और उसके बाद: + +9863. व्याख्या- अकाल पड़ने की वजह से आम आदमी का जीवन बहुत ही कठिन हो गया। अनाज न होने की वजह से कई दिनों तक चूल्हा नहीं जला और न चक्की चली जिससे लोगों की दशा बहुत ही पतली हो गयी। भूख प्यास ओर अकाल की स्थिति वजह से कानी कुतिया मतलब पालतू जानवर जिसकी एक आँख नहीं हो भी खाना न मिलने की उम्मीद में वहीं पड़े रहते थे। यहाँ तक कि दीवारों पर छिपकलियाँ भी कीड़े मकोड़े की उम्मीद पर कई दिनों तक दीवारों पर पहरा दे रहे थे कई दिनों तक वह छिपकली किसी कीड़े की उम्मीद करते हुए दीवारों पे रेंग रही थीऔर उसकी भी हालत बहुत खराब हो गयी थी भूक की वजह से। चूहे भी खाना न मिलने की वजह से बहुत ही परेशान हो गए थे और उनकी हालत खाना न मिलने की वजह से से पस्त होती जा रही थी। + +9864. सन्दर्भ प्रस्तुत काव्य नागार्जुन की प्रसिद्ध कविता अकाल और उसके बाद से उद्धत किया गया है। नागार्जुन मानविय संवेदना की विभिन्न पक्षो का काफी अच्छा चित्रण करते है। + +9865. २- बिम्बतकमक काव्य है। + +9866. प्रतिवर्ष 16 मई को विश्व भर में यूनेस्को (UNESCO) द्वारा अंतर्राष्ट्रीय प्रकाश दिवस (International Day of Light-IDL) मनाया जाता है। + +9867. वहीँ 30 मार्च, 2020 को फेसबुक ने कोरोनावायरस महामारी से वैश्विक स्तर पर संकट से जूझ रहे समाचार संस्थाओं को समर्थन देने के लिये $ 100 मिलियन की घोषणा की थी। + +9868. भारत की डिजिटल कर योजना ऐसे समय में आई है जब गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियाँ भारत में अपने व्यवसाय के विस्तार की योजना बना रही हैं, क्योंकि भारत दुनिया के तेज़ी से बढ़ते क्लाउड कंप्यूटिंग बाज़ारों में से एक है। + +9869. पूर्व में इसे स्थानीय पर्यावरण पहल के लिये अंतर्राष्ट्रीय परिषद (International Council for Local Environmental Initiatives) के रूप में जाना जाता था। + +9870. इस सम्मेलन में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दिल्ली में मौजूदा जलवायु आपातकाल, वायु प्रदूषण संकट, पूसा अपघटक (Pusa Decomposer) जैसे हालिया अभिनव समाधानों और दिल्ली में वायु प्रदूषण से निपटने के लिये इलेक्ट्रिक वाहन नीति (EV Policy) पर प्रतिक्रिया व्यक्त करेंगे। + +9871. भारत का अभिप्रेत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (INDC) की घोषणा। + +9872. सीआईआई-आईटीसी सस्टेनेबिलिटी पुरस्कार-2019: + +9873. म्युनिसिपल बॉण्ड्स डेवलपमेंट कमेटी का कार्य: + +9874. LED बल्ब के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिये सरकार द्वारा नौ वॉट के बल्ब को काफी कम कीमत पर बेचा जा रहा है। + +9875. भारत में LED बल्ब के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिये किये गए अन्य प्रयास + +9876. इसका उद्देश्‍य निर्धारित आकार (2001 की जनगणना के अनुसार, 500+मैदानी क्षेत्र तथा 250+ पूर्वोत्‍तर, पर्वतीय, जनजातीय और रेगिस्‍तानी क्षेत्र) को सभी मौसमों के अनुकूल एकल सड़क कनेक्टिविटी प्रदान करना है ताकि क्षेत्र का समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास हो सके।रिपोर्ट के अनुसार, PMGSY ने अपना 85 प्रतिशत लक्ष्य प्राप्त कर लिया है। अब तक, 668,455 किमी. सड़क की लंबाई स्वीकृत की गई है, जिसमें से 581,417 किमी. पूरी हो चुकी थी। + +9877. पूर्वी भारत में एक एकीकृत इस्पात केंद्र बनाने के लिये इस्पात मंत्रालय (Ministry of Steel) ने की शुरुआत की। + +9878. इस मिशन को पूरा करने के लिये जापान, भारत का सहभागी देश है। जापानी तकनीकी विशेषज्ञता एवं निवेश से ओडिशा में इस्पात क्षेत्र को मज़बूती प्रदान करने में मदद मिलेगी जिससे पूर्वी भारत में सामाजिक-आर्थिक विकास को गति दी जा सकेगी। + +9879. इसके लिये भारत सरकार, ओडिशा सरकार के साथ मिलकर काम कर रही है। भारत सरकार का उद्देश्य कलिंग नगर को वैश्विक इस्पात उद्योग का एक जीवंत केंद्र बनाना है। + +9880. परंपरागत बैटरियों की भाँति ही हाइड्रोजन ईंधन सेल भी रासायनिक उर्जा को विद्युत उर्जा में परिवर्तित करता है परंतु FCEV लंबे समय तक वहनीय है तथा भविष्य की इलेक्ट्रिक कारों के लिये एक आधार है। + +9881. इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या वर्ष 2018 में 65 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 5.1 मिलियन तक पहुँच गई है, वर्ष 2030 तक इसकी संख्या 23 मिलियन तक पहुँचने की संभावना व्यक्त की गई है। + +9882. सीमित आपूर्तिकर्ता: आपूर्ति को सुनिश्चित करना सभी हितधारकों के लिये एक चिंता का विषय है क्योंकि कच्चे माल का उत्पादन कुछ देशों में केंद्रित है। + +9883. लीथियम की मांग में वर्ष 2015 के बाद प्रतिवर्ष 13 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है। + +9884. उद्देश्य: + +9885. सौर ऊर्जा ‘नवीकरणीय ऊर्जा’ उत्पादन का एक अच्छा माध्यम है। किंतु बड़े स्तर पर सौर पैनल स्थापित करने के लिये भूमि की अनुपलब्धता एक सबसे बड़ी बाधा होती है। + +9886. ऑफ-ग्रिड सौर प्रणाली किसी भी ग्रिड से जुड़ा हुआ नहीं होता है। इस प्रणाली के साथ एक बैटरी जुड़ा होता है जो सौर उर्जा से उत्पादित विद्युत को संचित करती है। + +9887. रथ के 24 पहियों को प्रतीकात्मक डिज़ाइनों से सजाया गया है और सात घोड़ों द्वारा इस रथ को खींचते हुए दर्शाया गया है। + +9888. इस समझौते के अनुसार, NTPC और ONGC भारत एवं विदेश में अपतटीय पवन (Offshore Wind) और अन्य अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं की स्थापना से जुड़ी संभावनाओं का पता लगाएंगी। + +9889. इस नए समझौते से अक्षय ऊर्जा व्यापार में ONGC की मौजूदगी बढ़ेगी और वर्ष 2040 तक यह अपने पोर्टफोलियो में 10 गीगावाट अक्षय ऊर्जा जोड़ने के लक्ष्य को हासिल करने में सक्षम होगी। + +9890. गौरतलब है कि भारत सरकार ने वर्ष 2022 तक 175 गीगावाट का नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य तय किया है। + +9891. जल जीवन मिशन विभिन्न प्रकार के जल संरक्षण जैसे- जल संभरण, लघु सिंचाई टैंकों की गाद निकलना, कृषि के लिये ग्रे-वाटर का उपयोग और जल स्रोतों के सतत् विकास) के प्रयासों पर आधारित है। + +9892. राजस्थान में केवल 1.01% सतही जल मौजूद है और यहाँ भौगोलिक रूप से दुर्गम क्षेत्रों में पीने के पानी की आपूर्ति करना कठिन है जिसके कारण जल जीवन मिशन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये केंद्र से अधिक सहायता की उम्मीद की थी। + +9893. ‘सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय’, संयुक्त राष्ट्र संघ की भारतीय शाखा और वैश्विक हरित विकास संस्थान (Global Green Growth Institute-GGGI) के सहयोग से तैयार इस सूचकांक में केरल (70) का प्रदर्शन सबसे बेहतर रहा जबकि बिहार (50) इस सूची में सबसे निचले स्थान पर रहा। + +9894. दूसरे SDG ‘भुखमरी से मुक्ति’ में राज्यों के प्रदर्शन में ह्रास देखने को मिला केरल, गोवा और पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों को छोड़कर 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 50 से कम अंक प्राप्त हुए। + +9895. + +9896. पारंपरिक प्रबंधन प्रथाओं के विघटन, पशुधन चराई से अत्यधिक दबाव और अत्यधिक मृदा लवणता के कारण प्रोसेपिस जूलीफ्लोरा का आक्रमण, जल की कमी, जलवायु परिवर्तन एवं मरुस्थलीकरण आदि इन घास के मैदानों के तेज़ी से क्षरण के प्रमुख कारण हैं। + +9897. नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के वैज्ञानिकों ने पश्चिम अंटार्कटिका में थवैट्स हिमनद (Thwaites Glacier) के तल में लगभग 300 मीटर लंबे एक विशालकाय छिद्र की खोज की है, जो निरंतर बढ़ रहा है। हिमनद के तल पर यह छिद्र बर्फ की चादर के तेज़ी से क्षयित होने और जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक समुद्री स्तर में हो रही वृद्धि का संकेत है। + +9898. राष्ट्रपति प्रणाली की विशेषताएँ + +9899. + +9900. मनुष्य की आदतें मनुष्य पर राज करती है तानाशाह जैसी मनुष्य अपनी आदतों का गुलाम बन जाता है, अर्थात् जो बुरी आदते है वह बड़ी कठिनाइयों से जाती हैं और अच्छी आदते बड़ी ही आसानी से छुट जाती हैं यह लगभग पालतु जानवर की तरह अपनी गिरफ्त मे मनुष्य को किए रखता है,अच्छी आदतों से बुरी आदतें बहुत देर तक आदमी पर डेरा जमा कर रखती है,कुछ इंसान तो ईश्वर से भिन्नः दिखने के लिए विशेष आदतें पाल लेते है,जब लोग कम आयु मे संपन(शिक्षा,धन,यश )होना चाहते है तो समाज मे नई आदतें जन्म लेती है, लोग अचानक कुहनी उठाकर चलना सिख जाते है ,कुहनी से धक्का देकर , लोगों एक , दूसरे को दबाकर आगे बढ़ना चाहते है,आगे निकलने की होङ मे हिंसा बन जाती एक आदत,इस हिंसा के शिकार सिर्फ स्त्रियां और बच्चे ही नहीं (युवा,बुजुर्ग, शिक्षित, अशिक्षित,ग्रामिण,शहरी)सभी वर्ग ह समाज मे दबे लोग कुहनी उठाकर (हत्यार बना)लेते है बिना दबे कोई हत्यारे नहीं बनता,हत्यारे मे जो चीजे सबसे पहले मरती है वह है इंसान की इंसानियत यह है कविता की सबसे जरूरी पंक्ति,अच्छी आदतों को डरपोक कहा गया है,कारण वह जल्दी लुप्त होती है समाज मे काम कराने के लिए जो अच्छी आदतों (सत्य का साथ लेता)का साथ लेता है उन्हें लोग अव्यवहरिक बुद्ध हीन कहते है काम निकालने वाले समाज मे,आदते बहुत आकर्षक होती है और उन आदतों को बनाए रखने के लिए सबसे ताकतवर तर्क कहा जाता है उनके बारे में,आदमी हमेशा सोचता है अपनी आदतो के बारे में जबकि जानकर उन्हें सिर्फ दोहराते हैं। + +9901. ३- अलंकारों का सुंदर उपयोग हैं + +9902. ८- गाता गीत' में अनुप्रास अलंकार है।कविता पर प्रयोगवादी शैली का प्रभाव है इसमें तत्सम शब्दावली का प्रयोग हुआ है। + +9903. व्याख्या. + +9904. जो न रोटी बेलता है + +9905. तो मेरे देश की संसद मौन है। + +9906. कुल जमा कबीर की मुखरता>, भारतेन्दु का जातीय गौरव निराला के विद्रोही आत्मा का औदस्य तथा कविता में मुक्तिबोध के राजनीतिक समझ का आग्रह>, धूमिल का साबूत एकलव्यीय अंगूठा मिलकर एक मजबूत मुट्ठी बनता है>- कविता की दुनिया में इसे हम आप >"कोदण्ड मुष्टि खर रूधिर स्राव>" के रूप में जानते हैं। + +9907. ">रोटी और संसद का तीसरा आदमी>"->निराला साहित्य में >(>राजेने रखवाली की>) >राजा व सामंत हैं जो मुक्तिबोध के यहां अंधेरे में यह तीसरा आदमी गांधी का चश्मा और खोपडी तोडा देता है जो पूरे गणतंत्र को अंधेरे में रखने का हिमायती है। नागार्जुन के यहां यह तीसरा आदमी >">शासन की बंदूक>" >थामे नजर आता है। धूमिल इस तीसरे की पहचान रोटी पंजीया कर संसद में बंदरबांट करते जनप्रतिनिधि के रूप में करता है>, >जो चुनकर आता तो पहले आदमी के द्वारा जो उन्हीं के धर्म का है>, >उन्हीं का हितु है>, >उन्हीं के बीच का आदमी है और राजनीति की सडक़ें फर्लांघकर संसद में आता है। संसद के बीच का आदमी है। संसद में आते ही रोटी का स्वामी बन जाता है। पूंजीपति वर्ग का प्रतिनिधि पुरुष बन जाता है। कल का हितु जनता का शोषक बन जाता है। अन्यथा किसान एकाएक मजदूर नहीं बन जाते। धूमिल अच्छे से जानता है पूंजीपति वर्ग>, >सामंतशाही वर्ग मजदूर के श्रम की रोटी खाता है। वह किसी भी स्थिति में रोटी हथियाने के अलावा कुछ भी नहीं कर सकता। + +9908. संदर्भ. + +9909. इसमें कवि ने शब्द ज्ञान और शब्द अज्ञान पर चर्चा की है । गरीब अपमान सहकर खुद को चुप कर लेता है, मगर यह अन्याय नहीं है। कवि कहता है ऐसे पेट की आग की वजह से होता है । + +9910. 4~भाषा में व्यंगात्मकता हैं। + +9911. 9~इसमें यथार्थ का चित्रण हुआ हैं। + +9912. संदर्भ. + +9913. व्याख्या. + +9914. यह रोज कुछ ना कुछ बन रहा है किसी ना किसी इमारत का निर्माण हो रहा है जिसकी वजह से आप अपने रास्ते को पहचानने के लिए किसी इमारत या पेड़ को स्मृति नहीं बना सकते । यहाँ कल उसी जगह पर कुछ और बन जाए और आप रास्ता भटक जाए कवि ने शीघ्र होते हुए परिवर्तन के बारे में कहते हैं ऐसा नहीं है कि कवि कुछ समय के बाद यहां लौटा है इसीलिए उसे सब बदला हुआ प्रतीत हो रहा है ऐसा नहीं है कि वह बसंत के बाद पतझड़ को लौटा है ऐसा नहीं है कि वह वैशाख को गया और भादो को लौटा है वह तो कुछ ही दिनों में वापस आया लेकिन फिर भी उसे सब बदला हुआ दिख रहा है और वह अपना घर भी नहीं पहचान पा रहा अब तो एक उपाय यही है कि कवि हर घर में खटखटाया और और पूछे कि क्या यही वह घर है + +9915. 4:- समय की कमी की ओर इशारा किया गया है। + +9916. आयोजक दल २० फरवरी से २३ फरवरी तक आपका स्वागत करने एवं सम्मेलन के दौरान आपकी भोजन आवास, सुरक्षा, आदि की व्यवस्था करने तथा सम्मेलन को प्रशिक्षण तथा मुक्त ज्ञान की साझेदारी का बेहतरीन अवसर बनाने के लिए तैयार है। आपकी यात्रा संबंधी सुविधा के लिए हम कुछ निर्देश तथा सूचनाएं इस मेल से साझा कर रहे हैं। + +9917. हिंदी कविता (छायावाद के बाद) सहायिका/नागार्जुन: + +9918. बयान करने वाले कवि थे नागार्जुन + +9919. आधुनिक काल में, छायावाद के बाद अत्यंत सशक्त साहित्यांदोलन प्रगतिवाद है। प्रगतिवाद का मूल आधार सामाजिक यथार्थवाद रहा है। प्रगतिवाद काव्य वह है, जो अतीत की संपूर्ण व्यवस्थाओं के प्रति रोष व्यक्त करता है और उसके बदलाव की आवाज़ को बुलंद करता है। नागार्जुन के काव्य में प्रगति के स्वर सर्वप्रमुख है। सही अर्थों में नागार्जुन जनता के कवि है। वे एक मार्क्सवादी कवि माने गए क्योंकि नागार्जुन ने मार्क्सवाद को नहीं अपनाया बल्कि वे उनकी युगीन और आंतरिक जरूरत थी इस आंतरिक अनिवार्यता की जड़े उनके परिवारिक परिवेश में है इसलिए वह अपनी कविता के माध्यम से उन्होंने मार्क्सवादी, सिद्धांतों का प्रचार भी किया है। उनकी कविता में अमीर-गरीब, मालिक-मजदूर, जमींदार-कृषक, उच्चवर्ग-निम्नवर्ग के बीच दवंद दिखाई देता है। गरीबी, भुखमरी, बीमारी, अकाल, बाढ़ जैसे सामाजिक यथार्थ कासुक्ष्म चित्रण कवि ने किया है। + +9920. वैभव प्रदर्शन और शोषण को अपनी कविता विजयी के वंशधर में इस तरह प्रस्तुत किया है- + +9921. महाकवि नागार्जुन का महान जीवन दर्शन है – विश्वामानववाद, वसुधैव कुटुम्बकम, एक विशाल व्यापक विश्व दृष्टी। नागार्जुन का संपूर्ण कृतित्व प्रगतिशील चेतना का वाहक है। उनकासा मध्यमवर्गीय जीवन तथा मजदूर वर्ग की जिन्दगी का संपूर्ण चित्र यथार्थ रूप में मिलता है। उन्हान जगत की वास्तविकता को सामने लाया। उन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से एक नयी समस्या एक नयी चेतना का अलोक दिखाया। उन्होंने अपनी रचनाओं में श्रमिक, दलित तथा शोषित समाज के दुःख और कष्ट का चित्रण किया है। नागार्जुन की कविता में शोषित और पीड़ितों के प्रति गहरी सहानुभूति है कुली और मजदूर को देखकर कवि को इसका बड़ा करूणिक दृश्य खुरदरे पैर कविता में मिलता है वे जीवन के भयकर यथार्थ का चित्रण करते हैं, उन्होंने पूंजीवाद. सामाज्यवाद, संप्रदायवाद सभी का विरोध किया है, जिससे श्रमिक, शोषित वर्ग और किसानों को उनके श्रम का उचित मान मिल सके। नागार्जन अपनी अकाल और उसके बाद कविता में कहते हैं- + +9922. दाने आये घर के भीतर कई दिनों के बाद, + +9923. राजनैतिक एवं सामाजिक विषमता के प्रति विद्रोह की भावना उनकी जनवादी कविता का स्वर रहा जैसे झूठी राजनीति, सामाजिक पाखण्ड, भ्रष्टाचार, सत्तालोलुपता आदि के प्रति कवि का मन विद्रोह करता है। + +9924. “प्यासी पथराई उदास ऑखें थकी बे-आसरा निराश आँखें + +9925. “तुम्हारी यह दंतुरित मुस्कान + +9926. पिघल कर जल बन गया होगा कठिन पाषण” + +9927. पैदा कर गया है दहशत जनजन के मन + +9928. सील मुहर सूखी की कीचड की ।” + +9929. "सामान्य ज्ञान भास्कर पर चलें + +9930. आईटीआई ट्रेड ज्ञान (आटोमोबाइल): + +9931. 20. IS मानक के अनुसार सबसे कम छलनी आकर है? + +9932. लोकसेवा हिंदी साहित्य अध्यायवार अध्ययन: + +9933. + +9934. कुतुबमीनार का नामकरण गुलाम वंश के शासक कुतुबुद्दीन ऐबक के नाम पर किया गया है। यह सर्वप्रसिद्ध मीनार भारत की राजधानी दिल्ली की शोभा है। + +9935. वायुमार्ग से पहुंचने के लिए इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का प्रयोग किया जा सकता है। + +9936. + +9937. राजघाट भारत के राजधानी शहर दिल्ली में है। + +9938. + +9939. जामा मस्जिद दिल्ली में स्थित एक मस्जिद है। इसका निर्माण सन् 1656 में हुआ था। जामा मस्जिद भारत की सबसे बड़ी मस्जिद है। इस मस्जिद का निर्माण 1650 में शाहजहां ने शुरु करवाया था + +9940. + +9941. विक्टोरिया मेमोरियल कोलकाता का सबसे बड़ा और ऐतिहासिक संगमरमर से बना स्मारक है, जो (१९०६-१९२१) के बीच बनाया गया। + +9942. भारत के ऐतिहासिक स्मारक/जगन्नाथ पुरी: + +9943. रामनगर का किला वाराणसी में गंगा नदी के तट पर स्थित है। इसका नेिर्माण १७५० ईस्वी में काशी के महाराज बलवंत सिंह ने करवाया। यह एक ऐतिहासिक स्मारक स्थल है। देश-विदेश से अनेक पर्यटक यहाँ घूमने आते हैं। रामनगर की लस्सी और रामनगर की रामलीला अत्यंत प्रसिध्द हैं। + +9944. भारत के स्मारक/कमल मंदिर: + +9945. + +9946. शिक्षा मनोविज्ञान - ०१: + +9947. विषयानुसार व्यक्तिगत संकल्प. + +9948. कूट (कोड) की पहचान करना-०१: + +9949. आर्थिक एवं सामाजिक विकास लोकसेवा अध्यायवार हल प्रश्नोत्तर/रोजगार एवं कल्याण योजनाएं: + +9950. यह अंग्रेजी ग्रामर से संबंधित पुस्तक है। जिसका उद्देश्य शिक्षक एवं अन्य प्रतियोगिता की तैयारी करने वाले छात्रों को मदद पहुंचाना है + +9951. 2. He returned India after a long time. + +9952. In - within + +9953. Beside - Besides + +9954. इसका प्रयोग हमेशा दो से अधिक के संदर्भ में होता है। + +9955. Betweenके बाद हमेशा objective case का प्रयोग होता है; + +9956. Among का प्रयोग Consonant Sound से शुरू होने वाले शब्दों के पहले तथा amongst का प्रयोग Vowel Sound से शुरू होने वाले शब्दों के पहले होता है; + +9957. के अलावा या के अतिरिक्त + +9958. दक्खिनी साहित्य: + +9959. 'दखन में जूं दखनी मीठी बात का' + +9960. + +9961. इस पुस्तक में मैंने अपनी कविताएं, पद, शायरी और विचारो को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। उम्मीद करता हूँ आप इनसे जुड़ाव और अपनापन महसूस करेंगे + +9962. उसकी कमी सी लग रही + +9963. आँखें भर आ रही हैं + +9964. और उगते सूर्य का बेताबी इंतज़ार करना + +9965. माँ के हाथों का निवाला + +9966. + +9967. शिक्षा के सन्दर्भ में विभिन्न भारतीय दार्शनिकों के विचार: + +9968. + +9969. कहाँ तो तय था
दुष्यन्त कुमार + +9970. व्याख्या:- + +9971. आखिर में कवि व्यक्ति की विश्वास की बात करता है आम व्यक्ति के दिल पत्थर के होते है उनमें संवेदना नहीं होती। कवि को इसके वितरित इंतजार है कि आम आदमियों के स्वर में असर (क्रांति की चिनगारी) है। इनकी आवाज़ बुलंद हो तथा आम व्यक्ति संगठित होकर विरोध करें। तो दूसरे में भ्रष्ट व्यक्ति समाप्त हो सकते है। दूसरे में कवि शायर वह समाज के ख़िलाफ़ लोगों को जागरूक करता है वह स्वयं को बचाने के लिए शासक जब आना था कविताओं प्रतिबंध लगा सकते है। जैसे गजल के छंद के लिए बंद थी सावधानी ज़रूरी है उसी तरह शासकों को भी अपनी सत्ता कायम रखने के लिए विरोध का दबाना ज़रूरी है। + +9972. + +9973. इस कविता में कवि ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खतरों को व्यक्त किया है। क्योंकि चापलूसों की दुनिया में साफ स्वच्छ अभिव्यक्ति संभव ही नहीं है। यदि अभिव्यक्ति होगी तो अपराध माना जाएगा । इस कविता में वर्तमान में चल रहे दंगे की आग को दिखाने का प्रयास किया गया है| कैसे लोग दंगे की आग में पागल हो जाते हैं इस पागलपन की स्थिति को राजेश जोशी बहुत मार्मिक तरीके से प्रस्तुत किया है| + +9974. + +9975. हिंदी का संबंध भारोपीय परिवार से है। यह परिवार भारत तथा युरोप और उसके आसपास फैला हुआा है। इसलिए इसे भारत-यूरोपीय या भारोपीय कहते हैं। अनेक शास्त्रों , विज्ञानों व भाषा विज्ञान के अनुसार इन भाषाओं के बोलने वाले मूलतः यूराल पर्वत के दक्षिण - पूर्व में स्थित किरगीज के मैदानों में थे । इस परिवार को समय - समय पर कई नामों से अभिहित किया जैसे - इंडो - जर्मनिक , इंडो - केल्टिक , ' आर्य ' आदि । किंतु अब भारोपीय ( इंडो यूरोपियन ) नाम से ही चलता है । मूल भारोपीय भाषा का व्याकरण जटिल था तथा अपवादों की संख्या बहुत अधिक थी । इस भाषा के अपने शब्द तो थे परंतु अन्य भाषाओं से भी अनेक शब्द लिए , जैसे सुमेरी भाषा से ' गुद ' ( गाय ) उरुदु (लोहा) तथा अक्कादी से पिलक्कु ( परशु ) आदि । इस परिवार की भाषाओं को दो वर्गों में जैसे - सतम् एवं केतुम् में रखा है । + +9976. ( ३ ) भारतीय- इसमें भारत की आर्य भाषाएँ ।
+ +9977. ( ३ ) किरात- किरात लोग मूलतः क्यांग नदी के मुहाने के पास आदि मंगोल थे । इनकी एक शाखा चीनी सभ्यता एवं संस्कृति की निर्माता बनते हुए उत्तरी पहाड़ी भागों , पंजाब , उत्तर प्रदेश , राजस्थान , बिहार , आसाम , बंगाल एवं उड़ीसा में फैल गई। इसकी प्रमुख भाषाएँ - मेइथेइ , कचिन , नगा , गारो , बोडो , लोलो, लेप्चा तथा नेवारी आदि थी । खोरवा , हिंदी , पंजाबी का खोरवा , लकड़ी का छोटा घर , फेटा आदि शब्द इन्हीं के हैं । + +9978. सामान्य अध्ययन२०१९/ई-गवर्नेंस: + +9979. यह एप व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों के लिये आवेदकों को फोटोग्राफ अपलोड करने के बाद SBM-U के तहत उनके आवेदन की स्थिति को रियल टाइम यानी उसी समय जानने की सुविधा देगा। + +9980. स्मार्ट-बोर्ड डेटा इंटीग्रेशन के माध्यम से विश्लेषण दक्षता को बढ़ाएगा, इसके लिये API/वेब सेवाओं का उपयोग करके केंद्रीकृत तथा आसान-पहुँच वाले प्लेटफॉर्मों के डेटा का प्रयोग किया जाएगा। + +9981. उपभोक्ताओं की 60 दिनों के बाद भी शिकायत का समाधान नहीं होने की स्थिति में उन्हें उपभोक्ता मंचों के प्रयोग की सलाह दी जाएगी। + +9982. वर्तमान में आपातकालीन स्थितियों में नागरिकों की मदद हेतु 20 से अधिक आपातकालीन सहायता नंबर हैं इसकी वजह से सहायता की आवश्यकता वाले नागरिकों में भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती है। + +9983. शिलांग में आयोजित 22वाँ राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस सम्मेलन इस क्षेत्र में ई-गवर्नेंस पहलों को महत्त्वपूर्ण गति प्रदान करेगा। + +9984. NDQF का उद्देश्य समय-समय पर कार्यशालाओं और सम्मेलनों के माध्यम से वैज्ञानिक एवं साक्ष्य-आधारित पहल तथा मार्गदर्शन कार्यों आदि के माध्यम से लोगों को एकत्रित करना है। + +9985. इंटरनेट साथी कार्यक्रम वर्ष 2015 में शुरू किया गया था। + +9986. पंजाब और ओडिशा जल्द ही इस सूची में जुड़ जाएंगे। + +9987. इस कार्यक्रम के तहत प्रशिक्षित महिलाओं में से कुछ ने अपना स्वयं का सूक्ष्म व्यवसाय भी शुरू किया है जैसे कि सिलाई, मधुमक्खी पालन/शहद उत्पादन और ब्यूटी पार्लर आदि। + +9988. राष्ट्रीय सूचना-विज्ञान केंद्र (NIC), नई दिल्ली के तकनीकी सहयोग से पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने इस प्रणाली को डिज़ाइन और विकसित किया है। + +9989. इस पहल से स्थानीय नागरिकों के पुलिस स्टेशन आने-जाने में लगने वाले समय की बचत होगी। + +9990. कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास + +9991. चमक उठीं घर-भर की आँखें कई दिनों के बाद + +9992. + +9993. २ व्यंजन + +9994. व्याकरण भास्कर/वर्तनी: + +9995. ४ अनुस्वार, चंद्रबिंदु + +9996. + +9997. हिन्दी साहित्य में आधुनिकता के उदय पर बात करने से पूर्व यह सदैव ध्यान रखना चाहिए कि आधुनिकता कोरी साहित्यिक अवधारणा नहीं है, यह अन्य ज्ञानानुशासनों से होती हुई साहित्य में आई है और उसका एक अनिवार्य कालगत सन्दर्भ रहा है। हिन्दी साहित्य में आधुनिकता का उदय भारतेन्दु-युग से माना जाता है। सवाल उठता है, क्योंॽ क्या भारतेन्दु-युग से पहले हिन्दी साहित्य के इतिहास कें आधुनिकता की झलक नहीं दिखती? यदि नहीं तो उसके क्या कारण रहेॽ भारतेन्दु युग में ऐसा क्या होता है, जिससे हिन्दी साहित्य में आधुनिकता का उदय माना जाने लगता हैॽ इसका मुख्य कारण भारतेन्दु युग की रचनाओं की अन्तर्वस्तु पारम्परिकता और भाषा आधुनिकता है। भारतेन्दु-मण्डल के रचनाओं की इस चेतना का गहरा सम्बन्ध उस दौर के हिन्दी पत्रकारिता के पेशे से है।कहना न होगा कि पत्रकारिता के पेशे से जुडे़ रहने के कारण यह अंग्रेजी राज की प्रगतीशीलता के आवरण में छिपे, भारत के स्थिर विकास और आर्थिक दोहन के मध्य अटूट सम्बन्ध को समझने में सफल हो सके थे। + +9998. भारतेन्दु देशोन्नति के लिए जिन पाँच बातों पर बल देते हैं, उनका सम्बन्ध देशोन्नति और स्वत्व के निर्माण से है। वे पाँच बातें है - निज भाषा की उन्नति, कला (शिक्षा) का प्रचार-प्रसार, राष्ट्रीय चिन्तन और समकालीन परिस्थितियों के प्रति आम-जन के यथार्थ-चेतना का उदय तथा जातीय एकता। यदि इन पाँच बातों की उद्देश्यपरकता को ध्यान में रखें तो कहना न होगा कि इन बातों के माध्यम से भारतेन्दु औपनिवेशिक नीतियों के समक्ष भारत की प्रतिरोधक क्षमता विकसित करना चाह रहे थे। आज पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहते है, तो इसमें भारतेन्दु और भारतेन्दुयुगीन पत्रकारिता की ऐतिहासिक भूमिका को नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता है। आधुनिकता की चेतना का प्रखर रूप भारतेन्दु के यहाँ देखने को मिलती है। + +9999. पोस्टल बैलट से निम्नलिखित लोगों को मतदान करने का अधिकार है: + +10000. विधेयक के कुछ अन्य प्रावधान निम्नलिखित हैं- + +10001. अपने अधिकारों की सुरक्षा के लिये साधनों की निगरानी और मूल्यांकन के लिये ट्रांसजेंडर व्यक्तियों हेतु राष्ट्रीय परिषद (NCT) का प्रावधान। + +10002. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (Consumer Protection Act), 1986 की धारा 23 में यह प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति जो NCDRC के आदेश से संतुष्ट नहीं है, 30 दिनों के भीतर भारत के सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकता है। + +10003. भारत ने जिन कोर/मूलभूत कन्वेंशंस की पुष्टि नहीं की है उनमें फ्रीडम ऑफ एसोसिएशन और प्रोटेक्शन ऑफ ऑर्गनाइज कन्वेंशन, 1948 (नंबर 87) और संगठन की स्वतंत्रता और संरक्षण का अधिकार कन्वेंशन, 1948 शामिल हैं। + +10004. शोध-आलेख का सारांश-नागार्जुन को पढ़ना एक जन नायक से भेंट करने जैसा है। उनका जैसा जीवन था, ठीक वैसे ही वे अपनी रचनाओं में भी थे। उनका व्यक्तित्व विषय की विभिन्न भंगिमाओं के साथ उनकी रचनाओं में विन्यस्त होते चला गया है। उनकी कविताएं जहाँ एक ओर पाठकों को अखिल भारतीय परंपरा से जोड़ती हैं, वहीं उनका कथा-साहित्य पाठकों को मिथिलांचल के गांवों की यात्रा भी कराते हैं। इस जुड़ाव और यात्रा में पाठकों को जीवन के वास्तविक संघर्ष के विहंगम दृश्य से साक्षात्कार हो जाता हैं। उनका पूरा रचना-संसार सीसे की तरह साफ और पारदर्शी है, किसी प्रकार का छिपाव या दुराव नहीं है, जो चाहे आर-पार देख ले। यह स्पष्टता विषय और अभिव्यक्ति दोनों के स्तर पर विद्यमान है। उनकी रचनाओं में विषय की विविधता विद्यमान है तो भाषा भी विषय के अनुरूप कभी सौष्ठव एवं प्रांजल रखी गई है तो कभी बिल्कुल सहज एवं अनगढ़। उनकी रचनाओं में आक्रोश का गहन वितान है। वे एक तरफ बेहद गंभीर दिखते हैं तो दूसरी तरफ निष्ठुर व्यंग्यकार भी। नागार्जुन का संपूर्ण लेखन उन्हें जनकवि के रूप में स्थापित करता है। उनकी कविता में मौजूद व्यवस्था के प्रति आक्रोश ‘प्रतिहिंसा’ की हद तक है, जिसका मूल कारण है सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था का सड़ांध।   + +10005. पूंजीपतियों की चाकरी में लगी राजनीति को नागार्जुन कितनी अस्पष्टता से देख रहे थे। बाबा की पंक्तियों के आलोक में आज के अतिवादी सत्ता के चरित्र को और उसके अमानवीय सरोकारों को बड़ी आसानी से समझा जा सकता है। देश पर अधिकांश समय राज करने वाले नेहरू-गांधी परिवार के तीसरे प्रधानमंत्री राजीव गांधी को अस्सी के दशक में जाकर यह रहस्य पता चला कि केंद्र से अगर एक रूपया भेजा जाता है तो आम आदमी तक उसमें से सिर्फ पन्द्रह पैसे ही पहुंचते हैं। आजकल के नेता अगर 1958 ई. में लिखी गई बाबा की कविता को पढ़ लेते तो यह बात स्पष्ट हो जाती कि- + +10006. पूजा पाकर साध गए चुप्पी हाकिम हुक्काम + +10007. ‘जनता मुझसे पूछ रही है क्या बतलाऊँ? + +10008. संकुचित ‘स्व’ की आपाधापी के निषेधार्थ + +10009. उनकी कविताओं में प्रतिगामी मूल्यों के प्रति तिरस्कार भाव है। उनमें स्वभावतः शोषण के विरुद्ध आक्रोश, घृणा, मोहभंग तो है ही, साथ ही जीवट और जुझारूपन से उपजा आशावादी स्वर भी है, जिसके कारण वे दीन-हीन जनता से सहानुभूति रखते हैं और उन्हें सताधारियों एवं शोषकों के विरुद्ध प्रतिरोध के लिए आह्वान करते हैं। शोषक चाहे जिस वर्ग का हो, वे उसे नहीं माफ नहीं करते। इस प्रकार कबीर की तरह वे किसी प्रकार के भी अत्याचार पर करारी चोट करते हैं- + +10010. मिला भ्रांति में शांति विलास + +10011. जय हो जय हो, हिटलर की नानी की जय हो!.. + +10012. लोकतंत्र के मानचित्र को रौंद रही है, कील रही है + +10013. श्रमिकों पर क्यों चलने दूँ, बंदूक तुम्हारी’ + +10014. खिले हैं दांत ज्यों दाने अनार के + +10015. देवी लिबर्टी की प्रतिमा से..।’
+ +10016. राजघाट में बापूजी की समाधि पर.. + +10017. ‘सावधान ओ पंडित नेहरू ! + +10018. जिसमें कानी हो गई शासन की बंदूक, + +10019. जली ठूँठ पर बैठकर गई कोकिला कूक + +10020. ‘दिल ने कहा-अरे यह बालक + +10021. इसके अतिरिक्त इस कविता में पारलौकिक शक्तियों के बल पर किसी दुष्ट आततायी के वध के स्थान पर व्यवस्था परिवर्तन करने वाले सामूहिक प्रयत्न की ओर संकेत किए गये हैं। इस कविता में भी वह राजनीतिक रूपांतरण के लिए पौराणिक चेतना का प्रयोग करते प्रतीत होते हैं पर उसका उद्देश्य धार्मिक वर्ण-व्यवस्था की क्रूरता का उद्घाटन हो जाता है। कविता में वह वर्ण-व्यवस्था की वीभत्स हिंसा को घटित होते इस प्रकार दिखाते हैं:- + +10022. अग्नि की विकराल लपटों में + +10023. अब बाग़ी होंगे अग्निपुत्रा होंगे, + +10024. मज़दूरों के बीच पलेगा + +10025. जन-जन में जो ऊर्जा भर दे, + +10026. ‘यह तो नई-नई दिल्ली है, दिल में इसे उतार लो + +10027. रफ़ू करेंगे फटे-पुराने जाल की! + +10028. वेवे कविता में बतकही की भाषा को भी अपनाते हैं, जिसके लिए वे स्थानीय शब्दों को तो चुनते ही हैं, साथ ही अन्य भाषाओं के प्रचलित शब्दों को भी अपनी रचनाओं में घुला मिलाकर प्रसतुत कर देते हैं। इस कारण भाषा सीधे पाठक से जुड़ जाती है। मैथिली, हिन्दी और संस्कृत के अलावा पालि, प्राकृत, बांग्ला, सिंहली, तिब्बती आदि अनेकानेक भाषाओं का ज्ञान भी उनके लिए इसी उद्देश्य में सहायक रहा है। उनका गतिशील, सक्रिय और प्रतिबद्ध सुदीर्घ जीवन उनके काव्य में जीवंत रूप से प्रतिध्वनित-प्रतिबिंबित है। सही अर्थों में भारतीय मिट्टी से बने वे आधुनिकतम कवि हैं। जन संघर्ष में अडिग आस्था, जनता से गहरा लगाव और एक न्यायपूर्ण समाज का सपना, ये तीन गुण नागार्जुन के व्यक्तित्व में ही नहीं, उनके साहित्य में भी घुले-मिले हैं। इस आस्था, लगाव और सपने को उनकी रचनात्मक भाषा के संदर्भ में भी समझा जा सकता है। राजेश जोशी उनकी कविता के लोक-लय के बारे में लिखते हैं कि ‘नागार्जुन कई बार एक पद या अर्धाली की आवृति से एक लयात्मक वर्तुल बनाते है,जिसमें पहले बाहर की ओर फैलते आवर्त्त बनते हैं और बाद में केन्द्र की ओर लौटते आवर्त्त। कभी-कभी लगता है जैसे कोई ‘जनचक्र’ को घुमा रहा हो।’ + +10029. वहीं कविता के दूसरे पैरा में लय उलट जाती है - + +10030. लगता है जैसे कवि की सारी यात्राएँ कविता में भी प्रकट होकर बार-बार वापस मिथिला की ओर लौट रही हैं। आवृत्ति घटना का अतिक्रमण करके उसमें अंतर्निहित प्रवृति को प्रकट कर देती है। इस प्रकार के शब्द संघात से कई बार नागार्जुन एक विराट ध्वनि बिम्ब भी रचते है। क्योंकि भाषा पर बाबा का गज़ब अधिकार है। देशी बोली के ठेठ शब्दों से लेकर संस्कृतनिष्ठ शास्त्रीय पदावली तक उनकी भाषा के अनेक स्तर हैं। + +10031. ओं साउंड, ओं साउंड, ओं साउंड + +10032. ‘सखि हे मजरल आमक बाग? + +10033. नागार्जुन एक समर्थ रचनाकार हैं, इसलिए उनका भाषा प्रयोग बहुरुपा है। उनके कथा-साहित्य में गीत के साथ-साथ ग्रामीण कहावत-मुहावरों के भाषाई सरसता स्वाभाविक रूप से आ गई है। मुझे लगता है उनके काव्य और कथा के भाषा और शैली को अलग करके देखना सही नहीं होगा। उनकी कई कविताओं में कथा और आख्यान का रुप प्रकट हो गया है, वहीं उनके उपन्यासों की भाषा में काव्यात्मकता सहज ही आ गई है। उनके कथानकों में आत्मकथा, संस्मरण, रपोर्ताज आदि की विशेषताएं भी सम्मिलित हो गई हैं। काव्य,कथा-साहित्य एवं अन्य गद्य रचनाओं की दृष्टि से विचार किया जाए तो नागार्जुन भाषा के सच्चे उन्नायक कहे जा सकते हैं। + +10034. 4. नागार्जुन और उनका रचना संसार, विजय बहादुर सिंह,वाणी प्रकाशन, दिल्ली. 1986 + +10035. 9. नागार्जुन जन्मशती विशेषांक,नयापथ,सं.-मुरली मनोहर प्रसाद सिंह,जनवरी-जून 2011 + +10036. 2. www.anubhuti-hindi.org + +10037. हिंदी गद्य साहित्य: + +10038. प्रेमचंद + +10039. साहित्य की बहुत-सी परिभाषाएँ की गई हैं, पर मेरे विचार से उसकी सर्वोत्तम परिभाषा ‘जीवन की आलोचना’ है। चाहे वह निबंध के रूप में हो, चाहे कहानियों के या काव्य के, उसे हमारे जीवन की आलोचना और व्याख्या करनी चाहिए। + +10040. परंतु हमारी साहित्यिक रूचि बड़ी तेजी से बदल रही है। अब साहित्य केवल मन-बहलाव की चीज नहीं है, मनोरंजन के सिवा उसका और भी कुछ उद्देश्य है। अब वह केवल नायक-नायिका के संयोग-वियोग की कहानी नहीं सुनाता, किन्तु जीवन की समस्याओं पर भी विचार करता है और उन्हें हल करता है। अब वह स्फूर्ति या प्रेरणा के लिए अद्भुत आश्चर्यजनक घटनाएँ नहीं ढूँढ़ता और न अनुप्रास का अन्वेषण करता है, किन्तु उसे उन प्रश्नों से दिलचस्पी है जिनसे समाज या व्यक्ति प्रभावित होते हैं। उसकी उत्कृष्टता की वर्तमान कसौटी अनुभूति की वह तीव्रता है, जिससे वह हमारे भावों और विचारों में गति पैदा करता है। + +10041. आधुनिक साहित्य में वस्तु-स्थिति-चित्रण की प्रवृति इतनी बढ़ रही है कि आज की कहानी यथासम्भव प्रत्यक्ष अनुभवों की सीमा से बाहर नहीं जाती। हमें केवल इतना सोचने से ही संतोष नहीं होता कि मनोविज्ञान की दृष्टि से ये सभी पात्र मनुष्यों से मिले-जुलते हैं, बल्कि हम यह इत्मीनान चाहते हैं कि वे सचमुच मनुष्य हैं और लेखक ने यथासम्भव उनका जीवन-चरित्र ही लिखा है, क्योंकि कल्पना के गढ़े हुए आदमियों में हमारा विश्वास नहीं है, उनके कार्यो और विचारों से हम प्रभावित नहीं होते। हमें इसका निश्चय हो जाना चाहिए कि लेखक ने जो सृष्टि की है, वह प्रत्यक्ष अनुभवों के आधार पर की गई है और अपने पात्रों की ज़बान से वह खुद बोल रहा है। + +10042. प्रश्न यह कि सौंदर्य है क्या वस्तु? प्रकटतः यह प्रश्न निरर्थक-सा मालूम होता है, क्योंकि सौंदर्य के विषय में हमारे मन में कोई शंका-संदेह नहीं। हमने सूरज का उगना और डूबना देखा है, उषा और संध्या की लालिमा देखी है, सुंदर सुंगध भरे फल देखे हैं, मीठी बोलियाँ बोलनेवाली चिड़ियाँ देखी हैं, कल-कल-निनादिनी नदियाँ देखी हैं, नाचते हुए झरने देखे हैं, यही सौंदर्य है। + +10043. रम्ज़े हयात जोई जुज़दर तपिश नयाबी + +10044. मुझे यह कहने में हिचक नहीं कि मैं चीजों की तरह कला को भी उपयोगिता की तुला पर तौलता हूँ। निस्संदेह कला का उद्देश्य सौंदर्यवृत्ति की पुष्टि करना है और वह हमारे अध्यात्मिक आनंद की कुंजी है, पर ऐसा कोई रूचिगत मानसिक तथा आध्यात्मिक आनंद नहीं, जो अपनी उपयोगिता का पहलू न रखता हो। आनंद स्वतः एक उपयोगिता-युक्त वस्तु है और उपयोगिता की दृष्टि से एक वस्तु से हमें सुख भी होता है और दुःख भी। + +10045. हमें सुंदरता की कसौटी बदलनी होगी। अभी तक यह कसौटी अमीरी और विलासिता के ढंग की थी। हमारा कलाकार अमीरों का पल्ला पकड़े रहना चाहता था, उन्हीं की कद्रदानी पर उसका अस्तित्व अवलंबित था और उन्हीं के सुख-दुख, आशा-निराशा, प्रतियोगिता और प्रतिद्वन्द्विता की व्याख्या कला का उद्देश्य था। उसकी निगाह अंतःपुर और बँगलों की ओर उठती थी। झोंपड़े और खँडहर उसके ध्यान के अधिकारी न थे। उन्हें वह मनुष्यता की परिधि के बाहर समझता था। कभी इनकी चर्चा करता भी था तो इनका मजाक उड़ाने के लिए। ग्रामवासी की देहाती वेश-भूषा और तौर-तरीके पर हँसने के लिए, उसका शीन-काफ दुरूस्त न होना या मुहाविरों का ग़लत उपयोग उसके व्यंग्य विद्रुप की स्थायी सामग्री थी। वह भी मनुष्य है, उसके भी हृदय है और उसमें भी आकांक्षाएँ हैं, यह कला की कल्पना के बाहर की बात थी। + +10046. यजदाँ बकमंद आवर ऐ हिम्मते मरदाना। + +10047. हमें अक्सर यह शिकायत होती है कि साहित्यकारों के लिए समाज में कोई स्थान नहीं, अर्थात् भारत के साहित्यकारों के लिए। सभ्य देशों में तो साहित्यकार समाज का सम्मानित सदस्य है और बड़े-बड़े अमीर और मंत्रि-मंडल के सदस्य उससे मिलने में अपना गौरव समझते हैं। परन्तु हिन्दुस्तान तो अभी मध्य-युग की अवस्था में पड़ा हुआ है। यदि साहित्यकार ने अमीरों के याचक बनने को जीवन का सहारा बना लिया हो, और उन आन्दोंलनों, हलचलों और क्रांतियों से बेखबर हो, जो समाज में हो रही हैं, अपनी ही दुनिया बनाकर उसमें रोता और हँसता हो, तो इस दुनिया में उसके लिए जगह न होने में कोई अन्याय नहीं है। जब साहित्यकार बनने के लिए अनुकूल रूचि के सिवा और कोई कै़द नहीं रही, जैसे महात्मा बनने के लिए किसी प्रकार की शिक्षा की आवश्यकता नहीं, आध्यात्मिक उच्चता ही काफी है, तो जैसे महात्मा लोग दर-दर फिरने लगे, उसी तरह साहित्यकार भी लाखों निकल आए। + +10048. हमें अपनी रूचि और प्रवृत्ति के अनुकूल विषय चुन लेने चाहिए और विषय पर पूर्ण अधिकार प्राप्त करना चाहिए। हम जिस आर्थिक अवस्था में जिन्दगी बिता रहे हैं, उसमें यह काम कठिन अवश्य है, पर हमारा आदर्श ऊँचा रहना चाहिए। हम पहाड़ की चोटी तक न पहुँच सकेंगे, तो कमर तक तो पहुँच ही जाएँगे, जो जमीन पर पड़े रहने से कहीं अच्छा है। अगर हमारा अंतर प्रेम की ज्योति से प्रकाशित हो और सेवा का आदर्श हमारे सामने हो, तो ऐसी कोई कठिनाई नहीं, जिस पर हम विजय न प्राप्त कर सकें। + +10049. हम हर एक सूबे में हर एक ज़बान में ऐसी परिषदें स्थापित कराना चाहते हैं जिसमें हर एक भाषा में अपना संदेश पहुँचा सकें। यह समझना भूल होगी कि यह हमारी कोई नई कल्पना है। नहीं, देश के साहित्य-सेवियों के हृदयों में सामुदायिक भावनाएँ विद्यमान हैं। भारत की हर एक भाषा में इस विचार के बीज प्रकृति और परिस्थिति ने पहले से बो रखे हैं, जगह-जगह उसके अँखुए भी निकलने लगे हैं। उसको सोचना, उसके लक्ष्य को पुष्ट करना हमारा उद्देश्य है। + +10050. बूढ़ी काकी
प्रेमचंद + +10051. 2 + +10052. बूढ़ी काकी देर तक इन्ही दुखदायक विचारों में डूबी रहीं। घी और मसालों की सुगंधि रह-रहकर मन को आपे से बाहर किए देती थी। मुँह में पानी भर-भर आता था। पूड़ियों का स्वाद स्मरण करके हृदय में गुदगुदी होने लगती थी। किसे पुकारूँ, आज लाडली बेटी भी नहीं आई। दोनों छोकरे सदा दिक दिया करते हैं। आज उनका भी कहीं पता नहीं। कुछ मालूम तो होता कि क्या बन रहा है। + +10053. भोजन तैयार हो गया है। आंगन में पत्तलें पड़ गईं, मेहमान खाने लगे। स्त्रियों ने जेवनार-गीत गाना आरम्भ कर दिया। मेहमानों के नाई और सेवकगण भी उसी मंडली के साथ, किंतु कुछ हटकर भोजन करने बैठे थे, परन्तु सभ्यतानुसार जब तक सब-के-सब खा न चुकें कोई उठ नहीं सकता था। दो-एक मेहमान जो कुछ पढ़े-लिखे थे, सेवकों के दीर्घाहार पर झुंझला रहे थे। वे इस बंधन को व्यर्थ और बेकार की बात समझते थे। + +10054. मेहमानों ने भोजन किया। घरवालों ने भोजन किया। बाजे वाले, धोबी, चमार भी भोजन कर चुके, परन्तु बूढ़ी काकी को किसी ने न पूछा। बुद्धिराम और रूपा दोनों ही बूढ़ी काकी को उनकी निर्लज्जता के लिए दंड देने क निश्चय कर चुके थे। उनके बुढ़ापे पर, दीनता पर, हत्ज्ञान पर किसी को करुणा न आई थी। अकेली लाडली उनके लिए कुढ़ रही थी। + +10055. बूढ़ी काकी को केवल इतना स्मरण था कि किसी ने मेरे हाथ पकड़कर घसीटे, फिर ऐसा मालूम हुआ कि जैसे कोई पहाड़ पर उड़ाए लिए जाता है। उनके पैर बार-बार पत्थरों से टकराए तब किसी ने उन्हें पहाड़ पर से पटका, वे मूर्छित हो गईं। + +10056. जैसे थोड़ी-सी वर्षा ठंडक के स्थान पर और भी गर्मी पैदा कर देती है उस भाँति इन थोड़ी पूड़ियों ने काकी की क्षुधा और इक्षा को और उत्तेजित कर दिया था। बोलीं-- नहीं बेटी, जाकर अम्मा से और मांग लाओ। + +10057. ठीक उसी समय रूपा की आँख खुली। उसे मालूम हुआ कि लाड़ली मेरे पास नहीं है। वह चौंकी, चारपाई के इधर-उधर ताकने लगी कि कहीं नीचे तो नहीं गिर पड़ी। उसे वहाँ न पाकर वह उठी तो क्या देखती है कि लाड़ली जूठे पत्तलों के पास चुपचाप खड़ी है और बूढ़ी काकी पत्तलों पर से पूड़ियों के टुकड़े उठा-उठाकर खा रही है। रूपा का हृदय सन्न हो गया। किसी गाय की गरदन पर छुरी चलते देखकर जो अवस्था उसकी होती, वही उस समय हुई। एक ब्राह्मणी दूसरों की झूठी पत्तल टटोले, इससे अधिक शोकमय दृश्य असंभव था। पूड़ियों के कुछ ग्रासों के लिए उसकी चचेरी सास ऐसा निष्कृष्ट कर्म कर रही है। यह वह दृश्य था जिसे देखकर देखने वालों के हृदय काँप उठते हैं। ऐसा प्रतीत होता मानो ज़मीन रुक गई, आसमान चक्कर खा रहा है। संसार पर कोई आपत्ति आने वाली है। रूपा को क्रोध न आया। शोक के सम्मुख क्रोध कहाँ? करुणा और भय से उसकी आँखें भर आईं। इस अधर्म का भागी कौन है? उसने सच्चे हृदय से गगन मंडल की ओर हाथ उठाकर कहा-- परमात्मा, मेरे बच्चों पर दया करो। इस अधर्म का दंड मुझे मत दो, नहीं तो मेरा सत्यानाश हो जाएगा। + +10058. + +10059. जीवन की किसी अलभ्य अभिलाषा से वञ्चित होकर जैसे प्राय: लोग विरक्त हो जाते हैं, ठीक उसी तरह किसी मानसिक चोट से घायल होकर, एक प्रतिष्ठित जमींदार का पुत्र होने पर भी, नन्हकूसिंह गुंडा हो गया था। दोनों हाथों से उसने अपनी सम्पत्ति लुटायी। नन्हकूसिंह ने बहुत-सा रुपया खर्च करके जैसा स्वाँग खेला था, उसे काशी वाले बहुत दिनों तक नहीं भूल सके। वसन्त ऋतु में यह प्रहसनपूर्ण अभिनय खेलने के लिए उन दिनों प्रचुर धन, बल, निर्भीकता और उच्छृंखलता की आवश्यकता होती थी। एक बार नन्हकूसिंह ने भी एक पैर में नूपुर, एक हाथ में तोड़ा, एक आँख में काजल, एक कान में हजारों के मोती तथा दूसरे कान में फटे हुए जूते का तल्ला लटकाकर, एक जड़ाऊ मूठ की तलवार, दूसरा हाथ आभूषणों से लदी हुई अभिनय करनेवाली प्रेमिका के कन्धे पर रखकर गाया था- + +10060. "अरे, बुद्धू ही रहे तुम! नन्हकूसिंह जिस दिन किसी से लेकर जूआ खेलने लगे उसी दिन समझना वह मर गये। तुम जानते नहीं कि मैं जूआ खेलने कब जाता हूँ। जब मेरे पास एक पैसा नहीं रहता; उसी दिन नाल पर पहुँचते ही जिधर बड़ी ढेरी रहती है, उसी को बदता हूँ और फिर वही दाँव आता भी है। बाबा कीनाराम का यह बरदान है!" + +10061. "ठाकुर बोधीसिंह के लड़के की।"-मन्नू के इतना कहते ही नन्हकू के ओठ फड़कने लगे। उसने कहा-"मन्नू! यह नहीं हो सकता। आज इधर से बारात न जायगी। बोधीसिंह हमसे निपटकर तब बारात इधर से ले जा सकेंगे।" + +10062. हाथ में हरौती की पतली-सी छड़ी, आँखों में सुरमा, मुँह में पान, मेंहदी लगी हुई लाल दाढ़ी, जिसकी सफेद जड़ दिखलाई पड़ रही थी, कुव्वेदार टोपी; छकलिया अँगरखा और साथ में लैसदार परतवाले दो सिपाही! कोई मौलवी साहब हैं। नन्हकू हँस पड़ा। नन्हकू की ओर बिना देखे ही मौलवी ने एक सिपाही से कहा-"जाओ, दुलारी से कह दो कि आज रेजिडेण्ट साहब की कोठी पर मुजरा करना होगा, अभी चले, देखो तब तक हम जानअली से कुछ इत्र ले रहे हैं।" सिपाही ऊपर चढ़ रहा था और मौलवी दूसरी ओर चले थे कि नन्हकू ने ललकारकर कहा-"दुलारी! हम कब तक यहाँ बैठे रहें! क्या अभी सरंगिया नहीं आया?" + +10063. जानअली ने मौलवी से कहा-"मौलवी साहब! भला आप भी उस गुण्डे के मुँह लगने गये। यह तो कहिए कि उसने गँड़ासा नहीं तौल दिया।" कुबरा के मुँह से बोली नहीं निकल रही थी। उधर दुलारी गा रही थी" ... विलमि विदेस रहे ..." गाना पूरा हुआ, कोई आया-गया नही। तब नन्हकूसिंह धीरे-धीरे टहलता हुआ, दूसरी ओर चला गया। थोड़ी देर में एक डोली रेशमी परदे से ढँकी हुई आयी। साथ में एक चोबदार था। उसने दुलारी को राजमाता पन्ना की आज्ञा सुनायी। + +10064. "बाबू नन्हकूसिंह उधर से आ गये।" मैंने कहा-"सरकार की पूजा पर मुझे भजन गाने को जाना है। और यह जाने नहीं दे रहा है। उन्होंने मौलवी को ऐसा झापड़ लगाया कि उसकी हेकड़ी भूल गयी। और तब जाकर मुझे किसी तरह यहाँ आने की छुट्टी मिली।" + +10065. बड़ी रानी की सापत्न्य ज्वाला बलवन्तसिंह के मर जाने पर भी नहीं बुझी। अन्त:पुर कलह का रंगमंच बना रहता, इसी से प्राय: पन्ना काशी के राजमंदिर में आकर पूजा-पाठ में अपना मन लगाती। रामनगर में उसको चैन नहीं मिलता। नयी रानी होने के कारण बलवन्तसिंह की प्रेयसी होने का गौरव तो उसे था ही, साथ में पुत्र उत्पन्न करने का सौभाग्य भी मिला, फिर भी असवर्णता का सामाजिक दोष उसके हृदय को व्यथित किया करता। उसे अपने ब्याह की आरम्भिक चर्चा का स्मरण हो आया। + +10066. राजमाता न जाने क्यों इस अद्‌भुत व्यक्ति को समझने के लिए चञ्चल हो उठी थीं। तब भी उन्होंने दुलारी को आगे कुछ न कहने के लिए तीखी दृष्टि से देखा। वह चुप हो गयी। पहले पहर की शहनाई बजने लगी। दुलारी छुट्टी माँगकर डोली पर बैठ गयी। तब गेंदा ने कहा-"सरकार! आजकल नगर की दशा बड़ी बुरी है। दिन दहाड़े लोग लूट लिए जाते हैं। सैकड़ों जगह नाला पर जुए में लोग अपना सर्वस्व गँवाते हैं। बच्चे फुसलाये जाते हैं। गलियों में लाठियाँ और छुरा चलने के लिए टेढ़ी भौंहे कारण बन जाती हैं। उधर रेजीडेण्ट साहब से महाराजा की अनबन चल रही है।" राजमाता चुप रहीं। + +10067. "इस जंगल में क्यों?-उसने सशंक हँसकर कुछ अभिप्राय से पूछा। + +10068. छोटे-से दीपक के प्रकाश में वासना-भरी रमणी का मुख देखकर नन्हकू हँस पड़ा। उसने कहा-"क्यों बाईजी! क्या इसी समय जाने की पड़ी है। मौलवी ने फिर बुलाया है क्या?" दुलारी नन्हकू के पास बैठ गयी। नन्हकू ने कहा-"क्या तुमको डर लग रहा है?" + +10069. "मरने के लिए भी कहीं खोजने जाना पड़ता है। आपको काशी का हाल क्या मालूम! न जाने घड़ी भर में क्या हो जाय। उलट-पलट होने वाला है क्या, बनारस की गलियाँ जैसे काटने को दौड़ती हैं।" + +10070. सहसा नन्हकू का मुख भयानक हो उठा! उसने कहा-"चुप रहो, तुम उसको जानकर क्या करोगी?" वह उठ खड़ा हुआ। उद्विग्न की तरह न जाने क्या खोजने लगा। फिर स्थिर होकर उसने कहा-"दुलारी! जीवन में आज यह पहला ही दिन है कि एकान्त रात में एक स्त्री मेरे पलँग पर आकर बैठ गयी है, मैं चिरकुमार! अपनी एक प्रतिज्ञा का निर्वाह करने के लिए सैकड़ों असत्य, अपराध करता फिर रहा हूँ। क्यों? तुम जानती हो? मैं स्त्रियों का घोर विद्रोही हूँ और पन्ना! ... किन्तु उसका क्या अपराध! अत्याचारी बलवन्तसिंह के कलेजे में बिछुआ मैं न उतार सका। किन्तु पन्ना! उसे पकड़कर गोरे कलकत्ते भेज देंगे! वही ...।" + +10071. "बाबू नन्हकूसिंह!" + +10072. तेजस्विनी पन्ना ने कहा-"अब मैं रामनगर कैसे चली जाऊँ?" + +10073. पन्ना के मुँह से हलकी-सी एक साँस निकल रह गयी। उसने पहचान लिया। इतने वर्षों के बाद! वही नन्हकूसिंह। + +10074. दूसरे क्षण पन्ना डोंगी पर थी और नन्हकूसिंह फाटक पर इस्टाकर के साथ। चेतराम ने आकर एक चिठ्ठी मनिहारसिंह को हाथ में दी। लेफ्टिनेण्ट ने कहा-"आप के आदमी गड़बड़ मचा रहे हैं। अब मै अपने सिपाहियों को गोली चलाने से नहीं रोक सकता।" + +10075. नन्हकूसिंह ने कहा-"क्यों, उस दिन के झापड़ ने तुमको समझाया नहीं? पाजी!"-कहकर ऐसा साफ जनेवा मारा कि कुबरा ढेर हो गया। कुछ ही क्षणों में यह भीषण घटना हो गयी, जिसके लिए अभी कोई प्रस्तुत न था। + +10076. परीक्षा देने के पीछे और उसके फल निकलने के पहले दिन किस बुरी तरह बीतते हैं, यह उन्हीं को मालूम है जिन्हें उन्हें गिनने का अनुभव हुआ है। सुबह उठते ही परीक्षा से आज तक कितने दिन गए, यह गिनते हैं और फिर 'कहावती आठ हफ्ते' में कितने दिन घटते हैं, यह गिनते हैं। कभी-कभी उन आठ हफ्तों पर कितने दिन चढ़ गए, यह भी गिनना पड़ता है। खाने बैठे है और डाकिए के पैर की आहट आई - कलेजा मुँह को आया। मुहल्ले में तार का चपरासी आया कि हाथ-पाँव काँपने लगे। न जागते चैन, न सोते-सुपने में भी यह दिखता है कि परीक्षक साहब एक आठ हफ्ते की लंबी छुरी ले कर छाती पर बैठे हुए हैं। + +10077. 2 + +10078. 'इस सूरत से तो आप कालानगर क्या कलकत्ते पहुँच जाएँगे। जरा भीतर चलिए, कुछ जल पीजिए। आपकी जीभ सूख कर तालू से चिपक गई होगी। चाचाजी की बाइसिकिल में पंप है और हमारा नौकर गोबिंद पंक्चर सुधारना भी जानता है।' + +10079. 'आप सितारपुर से आए हैं। आपका नाम क्या है?' + +10080. 'चाचाजी, आज आपके बाबू जयदेवशरण वर्मा बी.ए. को साथ लाई हूँ। इनकी बाइसिकिल बेकाम हो गई है। अपने प्रिय ग्रंथकार से मिलाने के लिए कमला को धन्यवाद मत दीजिए, दीजिए उनके पंप भूल आने को!' + +10081. मुझे कमला की माँ पर दया आई, जिसको वह कूड़ा-करकट रोज सुनना पड़ता होगा। मैंने सोचा कि हिंदी के पत्र-संपादकों में यह बूढ़ा क्यों न हुआ? यदि होता तो आज मेरी तूती बोलने लगती। + +10082. सायंकाल को मैं बगीचे में टहलने निकला। देखता क्या हूँ एक कोने में केले के झाड़ों के नीचे मोतिए और रजनीगंधा की क्यारियाँ हैं और कमला उनमें पानी दे रही है। मैंने सोचा की यही समय है। आज मरना है या जीना है। उसको देखते ही मेरे हृदय में प्रेम की अग्नि जल उठी थी और दिन-भर वहाँ रहने से वह धधकने लग गई थी। दो ही पहर में मैं बालक से युवा हो गया था। अंगरेजी महाकाव्यों में, प्रेममय उपन्यासों में और कोर्स के संस्कृत-नाटकों में जहाँ-जहाँ प्रेमिका-प्रेमिक का वार्तालाप पढ़ा था, वहाँ-वहाँ का दृश्य स्मरण करके वहाँ-वहाँ के वाक्यों को घोख रहा था, पर यह निश्‍चय नहीं कर सका कि इतने थोड़े परिचय पर भी बात कैसी करनी चाहिए। अंत में अंगरेजी पढ़नेवाले की धृष्‍टता ने आर्यकुमार की शालीनता पर विजय पाई और चपलता कहिए, बेसमझी कहिए, ढीठपन कहिए, पागलपन कहिए, मैंने दौड़ कर कमला हाथ पकड़ लिया। उसके चेहरे पर सुर्खी दौड़ गई और डोलची उसके हाथ से गिर पड़ी। मैं उसके कान में कहने लगा - + +10083. अब मेरा वचन-प्रवाह उमड़ चुका था। मैं स्वयं नहीं जानता था कि मैं क्या कर रहा हूँ, पर लगा बकने - 'प्यारी कमला, तुम मुझे प्राणों से बढ़ कर हो; प्यारी कमला, मुझे अपना भ्रमर बनने दो। मेरी जीवन तुम्हारे बिना मरुस्थल है, उसमें मंदाकिनी बन कर बहो। मेरे जलते हुए हृदय में अमृत की पट्टी बन जाओ। जब से तुम्हें देखा है, मेरा मन मेरे अधीन नहीं है। मैं तब तक शांति न पाऊँगा जब तक तुम - ' + +10084. 'तुम सुधार का नाम मत लो। तुम तो पापी हो। 'सुखमय जीवन' के कर्ता हो कर - ' + +10085. इतनी बातें हुई थीं, पर न मालूम क्यों मैंने कमला का हाथ नहीं छोड़ा था। इतनी गर्मी के साथ शास्त्रार्थ हो चुका था, परंतु वह हाथ जो क्रोध के कारण लाल हो गया था, मेरे हाथ में ही पकड़ा हुआ था। अब उसमें सात्विक भाव का पसीना आ गया था और कमला ने लज्जा से आँखें नीची कर ली थीं। विवाह के पीछे कमला कहा करती है कि न मालूम विधाता की किस कला से उस समय मैंने तुम्हें झटक कर अपना हाथ नहीं खेंच लिया। मैंने कमला के दोनों हाथ खैंच कर अपने हाथों के संपुट में ले लिए (और उसने उन्हें हटाया नहीं!) और इस तरह चारों हाथ जोड़ कर वृद्ध से कहा - + +10086. हिंदी गद्य साहित्य (MIL)/ठिठुरता हुआ गणतंत्र: + +10087. परदा + +10088. चौधरी-खानदान अपने मकान को हवेली पुकारता था। नाम बड़ा देने पर जगह तंग ही रही। दारोगा साहब के जमाने में ज़नाना भीतर था और बाहर बैठक में वे मोढ़े पर बैठ नैचा गुड़गुड़ाया करते। जगह की तंगी की वजह से उनके बाद बैठक भी ज़नाने में शामिल हो गयी और घर की ड्योढ़ी पर परदा लटक गया। बैठक न रहने पर भी घर की इज्जत का ख्याल था, इसलिए पर्दा बोरी के टाट का नहीं, बढ़िया किस्म का रहता। + +10089. बारह रुपया महीना अधिक नहीं होता। चौधरी पीरबख्श को मकान सितवा की कच्ची बस्ती में लेना पड़ा। मकान का किराया दो रुपया था। आसपास गरीब और कमीने लोगों की बस्ती थी। कच्ची गली के बीचों-बीच, गली के मुहाने पर लगे कमेटी के नल से टपकते पानी की काली धार बहती रहती, जिसके किनारे घास उग आयी थी। नाली पर मच्छरों और मक्खियों के बादल उमड़ते रहते। सामने रमजानी धोबी की भट्‌ठी थी, जिसमें से धुँआँ और सज्जी मिले उबलते कपड़ों की गंध उड़ती रहती। दायीं ओर बीकानेरी मोचियों के घर थे। बायीं ओर वर्कशाप में काम करने वाले कुली रहते। + +10090. मिल की नौकरी का कायदा पक्का होता है। हर महीने की सात तारीख को गिनकर तनख्वाह मिल जाती है । पेशगी से मालिक को चिढ़ है । कभी बहुत ज़रूरत पर ही मेहरबानी करते । ज़रूरत पड़ने पर चौधरी घर की कोई छोटी-मोटी चीज़ गिरवी रख कर उधार ले आते । गिरवी रखने से रुपये के बारह आने ही मिलते । ब्याज मिलाकर सोलह ऑने हो जाते और फिर चीज़ के घर लौट आने की सम्भावना न रहती । + +10091. कपड़े की महँगाई के इस ज़माने में घर की पाँचों औरतों के शरीर से कपड़े जीर्ण होकर यों गिर रहे थे, जैसे पेड़ अपनी छाल बदलते हैं; पर चौधरी साहब की आमदनी से दिन में एक दफे़ किसी तरह पेट भर सकने के लिए आटा के अलावा कपड़े की गुंजाइश कहाँ? खुद उन्हें नौकरी पर जाना होता । पायजा मे मे जब पैबन्द सँभालने की ताब न रही, मारकीन का एक कुर्ता-पायजामा जरूरी हो गया, पर लाचार थे । + +10092. खान की किश्त न दे सकने की हालत में अपने घर के दरवाजे़ पर फ़ज़ीहत हो जाने की बात का ख्याल कर चौधरी के रोएँ खडे़ हो जाते । सात महीने फ़ाका करके भी वे किसी तरह से किश्त देते चले गये; लेकिन जब सावन में बरसात पिछड़ गयी और बाजरा भी रुपये का तीन सेर मिलने लगा,किश्त देना संभव न रहा । खान सात तारीख की शाम को ही आया। चौधरी परिबख्श ने खान की + +10093. सात तारीख की शाम को असफल हो खान आठ की सुबह तड़के चौधरी के मिल चले जाने से पहले ही अपना डंडा हाथ में लिये दरवाजे पर मौजूद हुआ । + +10094. दोपहर हो गयी । खान आया भी होगा, तो इस वक्त तक बैठा नहीं रहेगा— चौधरी ने सोचा, और घर की तरफ़ चल दिये । घर पहुँचने पर सुना खान आया था और घण्टे-भर तक डचोढी पर लटके दरी के परदे को डंडे से ठेल-ठेलकर गाली देता रहा है ! परदे की आड़ से बड़ी बीबी के बार-बार खुदा की कसम खा यकीन.दिलाने पर कि चौधरी बाहर गये हैं, रुपया लेने गये हैं, खान गाली देकर कहता-”नई, बदजात चोर बीतर में चिपा है! अम चार घंटे में पिर आता है । रुपिया लेकर जायेगा ।रुपिया नई देगा, तो उसका खाल उतारकर बाजार में बेच देगा ।…हमारा रुपिया क्या अराम का है? ” + +10095. बिलकुल बेबस और लाचारी में दोनों हाथ उठा खुदा से खान के लिए दुआ माँग पीरबख्श ने कसम खायी, एक पैसा भी घर में नहीं, बर्तन भी नहीं, कपड़ा भी नहीं; खान चाहे तो बेशक उसकी खाल उतारकर बेच ले । + +10096. + +10097. भाषा शिक्षण/भाषा शिक्षण का शैक्षिक संदर्भ: + +10098. (3) आधुनिक भारतीय अथवा विदेशी वह भाषा जो (1)और (2)के अंतर्गत ना आती हो और शिक्षा की मध्य भाषा के रूप में प्रयुक्त ना होती हो ! + +10099.  इसी प्रकार देखा जा सकता है कि कॉलेजों में भी हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं को विषयों के रूप में बढ़ाया जाता है इसके अतिरिक्त भी आधुनिक भारतीय भाषाओं के रूप में भी भाषा का चुनाव किया जा सकता है! + +10100. हिंदी कविता (छायावाद के बाद) सहायिका/रघुवीर सहाय: + +10101. आज समाज मार रहा है देश सिकुड़ रहा है. कवि इस चिंता में घुले जा रहा है.बुद्धिजीवी निरर्थक बहस डूबे हैं.अफसर रिश्वत के जाम चढ़ा है. राजनीतिज्ञ ने भाई-भतीजा की अपनी खुराक बना कर रख छोड़ा है संसदीय तंत्र खोखला हो रहा है चापलूसी और मसखरों कि चारों और भीड़ दिखाई दे रही है इस भीड़ में मुस्टंडा विचारक, महासंघ का मोटा अध्यक्ष,भीमकाय भाषाविद्व,फर्ज धोता कथाकार, उपकुलपति,विधायक,सांसद,सचिव, डॉक्टर, प्रधानमंत्री न्यायाधीश जिलाधीश,पत्रकार बस हैं- + +10102. ना मैं मिटा सकता हूं शुगर के विषय में तुम्हारा संभ्रम जनतंत्र का आसन विनाश को देखकर सहाय की कविता याद आती है'आपकी हंसी' और खास तौर पर यह पंक्तियां-'लोकतंत्र का अंतिम क्षण, कहकर आप हंसे' इसे आप हंसी नहीं कह सकते, यह तो चिंता है और चिंता की है बेचैनी कवि के भीतर ही भीतर सुलगलगती रहती है. + +10103. अपने पुत्र और छोटे भाइयों के लिए यही कहो.. + +10104. तुमने जो दी है अनाह्ट जिजीविषा + +10105. भिनभिनातें हैं कुड़कुड़ातें हैं + +10106. 'पढ़िए गीता'कविता में जिंदगी के उखेड़पन पर + +10107. 1."मत पूछना हर बार मिलने पर कि "कैसे हैं" + +10108. तो + +10109. 2."एक शोर में अगली सीट पे था + +10110. भारत-भाग्य-विधाता है + +10111. ख़बर वह बताता है + +10112. उससे कहीं बाहर + +10113. नवजागरण की अवधारणा. + +10114. सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा सहायिका/राजनीतिक प्रणाली: + +10115. आंचलिक परिषदों को यह अधिकार दिया गया कि वे आर्थिक और सामाजिक योजना के क्षेत्र में आपसी हित से जुड़े किसी भी मसले पर विचार-विमर्श करें और सिफारिशें दें। + +10116. इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन बनाम केरल राज्य (सबरीमला मंदिर प्रवेश मामला) मामले में केरल के सबरीमाला के अय्यप्पा मंदिर में महिलाओं को पूजा करने का अधिकार है या नहीं, यह निर्धारित करने के लिये अनिवार्य प्रथाओं के सिद्धांत की प्रासंगिकता पर परस्पर विरोधी तर्क देखे गए। + +10117. उपराष्ट्रपति. + +10118. निर्णय लेने के लिये राष्ट्रपति पर कोई राजनीतिक दबाव नहीं होने के कारण सरकार के अचानक गिरने का कोई खतरा नहीं होता है। + +10119. एशियाई जल भैंस का वैज्ञानिक नाम बुबलस अर्नि (Bubalus Arnee) है। + +10120. PVTGs के पर्यावास अधिकारों को राज्यों में ज़िला स्तरीय समिति द्वारा मान्यता प्राप्त है। जनजातीय कार्य मंत्रालय PVTGs के संदर्भ में पर्यावास अधिकारों की परिभाषा के दायरे और सीमा को स्पष्ट करता है। + +10121. TRAFFIC का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वन्य पौधों और पशुओं का व्यापार प्रकृति के संरक्षण के लिये खतरा न हो। TRAFFIC संकटग्रस्त प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संबंधी अभिसमय (CITES) के सचिवालय के साथ मिलकर काम करता है। + +10122. अंटार्कटिका को छोड़कर शेष सभी महाद्वीपों में पाया जाता है। + +10123. पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय अपनी केंद्र प्रायोजित योजना ‘वन्यजीव आवास का एकीकृत विकास’ के माध्यम से गंभीर रूप से संकटग्रस्त 21 प्रजातियों के संरक्षण के लिये ‘लुप्तप्राय प्रजाति संवर्द्धन कार्यक्रम’ के तहत राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को धन प्रदान करता है। + +10124. ओडिशा स्थित नंदनकानन प्राणी उद्यान में पेंगोलिन संरक्षण प्रजनन केंद्र है, जिसे भारत के केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण (Central Zoo authority) के वित्तीय समर्थन से वर्ष 2008 में स्थापित किया गया था। + +10125. भारत में यह उत्तरी पश्चिम बंगाल, असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, नगालैंड, मणिपुर और मिज़ोरम राज्यों में पाई जाती हैं।यह भारत, चीन, थाईलैंड तथा भूटान में कई संरक्षित क्षेत्रों में भी पाई जाती है। + +10126. प्र. अगस्त्यमला बायोस्फीयर रिज़र्व में निम्नलिखित में से कौन स्थित हैं? (2019) + +10127. भारत में कुल 18 जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र हैं, जिनमें से 11 को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर डब्ल्यूएनबीआर हेतु नामित किया गया है + +10128. इस उद्यान में दुनिया की पाँचवीं सबसे ऊँची पर्वत चोटी, मकालू (8463 मीटर) और लगभग निर्जन बरुण घाटी स्थित है। + +10129. बाघों के लिये निगरानी प्रणाली - गहन संरक्षण और पर्यावरणीय स्थिति (Monitoring System for Tigers’ Intensive Protection and Ecological Status-M-STrIPES), राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा वर्ष 2010 में शुरू की गई एक सॉफ्टवेयर निगरानी प्रणाली है, जिससे बाघों को वास्तविक समय में ट्रैक किया जा सके और इस तरह उनके अवैध शिकार को रोका जा सके। + +10130. इसका उद्देश्य हाथियों की आबादी की निगरानी करने, अवैध हत्या के स्तर में बदलाव का पता लगाने की क्षमता को बेहतर बनाने हेतु राज्यों की मदद करना है। + +10131. विपक्ष का नेता. + +10132. ब्रिटिश संसदीय प्रणाली ‘संसदीय संप्रभुता’ के सिद्धांत पर आधारित है, जबकि भारत में संसद सर्वोच्च नहीं है क्योंकि यहाँ लिखित संविधान, संघीय प्रणाली, न्यायिक समीक्षा और मौलिक अधिकार जैसी विशेषताएँ इसकी शक्तियों को सीमित करती हैं। + +10133. संविधान के अनुच्छेद 105 में दो विशेषाधिकारों का उल्लेख किया गया है- संसद में भाषण देने की स्वतंत्रता और इसकी कार्यवाही के प्रकाशन का अधिकार। + +10134. इसमें एक से अधिक मामलों को शामिल नहीं किया जाना चाहिये। + +10135. इसे किसी भी अलग प्रस्ताव के माध्यम से उठाए गए विषयों को पुन: उठाने की अनुमति नहीं होती है। + +10136. संसद के प्रत्येक निर्णय पर दूसरे सदन में पुनर्विचार हो जाता है। एक सदन द्वारा लिया गया प्रत्येक निर्णय दूसरे सदन के निर्णय के लिए भेजा जाता है अर्थात प्रत्येक विधेयक और नीति पर दो बार विचार होता है। + +10137. निम्नलिखित पाँच असाधारण परिस्थितियों में संविधान संसद को राज्य सूची के विषय पर कानून बनाने की शक्ति देता है: + +10138. इससे पूर्व भारत के चेन्नई और वाराणसी को यूनेस्को के संगीत शहरों में शामिल किया गया है, जबकि जयपुर को शिल्प तथा लोककला के शहर के रूप में शामिल किया गया है। + +10139. भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण और कई अन्य संग्रहालयों द्वारा प्राचीन स्मारकों के महत्त्व एवं संरक्षण के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिये विश्व धरोहर सप्ताह मनाया जाता है। + +10140. गठन: 16 नवंबर, 1945 + +10141. यह पुरावशेष तथा बहुमूल्‍य कलाकृति अधिनियम, 1972 को भी विनियमित करता है। + +10142. पिछले कुछ वर्षों से दक्षिण भारत के केरल एवं तमिलनाडु राज्यों में कोलम/रंगोली (Kolam) छोटे उद्यम चलाने वाली गरीब महिलाओं के लिये एक सहायक उपकरण की भूमिका निभा रही है। + +10143. कोलम (रंगोली) + +10144. कभी कभी इस सजावट में फूलों का प्रयोग किया जाता है। + +10145. इस कला के माध्यम से प्रस्तुत कुछ लोकप्रिय विषय हैं- थिया बधिया - जगन्नाथ मंदिर का चित्रण; कृष्ण लीला - भगवान कृष्ण के रूप में जगन्नाथ का एक बच्चे के रूप में अपनी शक्तियों का प्रदर्शन; दासबतारा पट्टी - भगवान विष्णु के दस अवतार; पंचमुखी - भगवान गणेश का पाँच मुख वाले देवता के रूप में चित्रण। + +10146. इससे पेंटिंग जल प्रतिरोधी, टिकाऊ और चमकदार बन जाती है। + +10147. यह जापान की कला जिसमें लोग धान के खेत में चित्रण करने के लिये विभिन्न प्रकार के रंगों और किस्मों का धान बोते हैं। + +10148. चुनौतियाँ + +10149. संगीत कला. + +10150. हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में रुद्र वीणा को बजाया जाता है। + +10151. इस गायन शैली में भक्ति रस, वीर रस, शांत रस तथा शृंगार रस की प्रधानता रहती है। + +10152. इसे गाते समय कंठ और फेफड़ों पर अधिक ज़ोर दिया जाता है और पुरुष ही इसे गा सकते हैं, इसलिये इसे मर्दाना गायकी भी कहा जाता है। + +10153. खोन रामलीला का प्रदर्शन अपने सुंदर पोशाक और सुनहरे मुखौटों के लिये भी प्रसिद्ध है। + +10154. इस नृत्य में पद संचालन एवं हस्तमुद्राओं का विशेष महत्त्व है। + +10155. नाट्यशास्त्र को ‘पंचम वेद’ भी कहा जाता है। + +10156. सत्रिया नृत्य की उत्पत्ति 15वीं शताब्दी में श्रीमंत शंकरदेव द्वारा शुरू किये गए नव-वैष्णव आंदोलन के एक हिस्से के रूप में ‘सत्र’ मठ में हुई थी। + +10157. नृत्य करने वाले पुरुष को ‘पाक’ तथा महिला को ‘प्राकृत पाक’ कहा जाता है। + +10158. इस नृत्य में भी अन्य शास्त्रीय नृत्यों की भाँति नाट्यशास्त्र, संगीत रत्नाकार एवं अभिनय दर्पण के सिद्धांतों का प्रयोग होता है। + +10159. संत-सुधारक शंकरदेव द्वारा भओना की शुरुआत लगभग 500 वर्ष पहले की गई थी। + +10160. केरल राज्य प्रदूषण बोर्ड द्वारा इस अनुष्ठान के दौरान उपयोग किये जाने वाले रसायन युक्त रंगों को पूर्णतः प्रतिबंधित कर दिया गया है। + +10161. ये धातु न सिर्फ त्वचा के लिये हानिकारक हैं बल्कि मृदा और जल स्रोतों को भी प्रदूषित करते हैं। + +10162. शास्त्रीय नृत्य + +10163. इसके अलावा इसका उल्लेख संगम साहित्य में भी मिलता है। प्राचीन समय में 7 वर्ष से कम आयु के बच्चो को इस युद्ध कला का प्रशिक्षण दिया जाता था। + +10164. इसका आयोजन फसल बुवाई के मौसम में या दीपावली के आस-पास किया जाता है। + +10165. पाँच वर्षों के अंतराल के बाद ज़िले में आयोजित होने वाला यह पहला पर्यटन महोत्सव होगा। + +10166. प्राचीन काल में इन गुफाओं पर जैन और बौद्ध भिक्षुओं द्वारा कब्जा कर लिया गया था। बौद्ध-पूर्व युग से संबंधित 4500 वर्ष पुराने पात्र इनकी उपस्थिति को सुनिश्चित करते हैं। + +10167. परधान जनजाति का पारंपरिक व्यवसाय त्योहारों और जीवन के महत्त्वपूर्ण समारोहों में गायन एवं संगीत है। + +10168. मामल्लपुरम के स्मारक और मंदिर,जिनमें शोर मंदिर परिसर शामिल हैं,को सामूहिक रूप से वर्ष 1984 में यूनेस्को की विश्व विरासत स्थल के रूप में नामित किया गया था। + +10169. इसे संभवत: नरसिंहवर्मन द्वितीय के शासनकाल में बनाया गया था, जिसे राजसिम्हा (पल्लव शासक) के रूप में भी जाना जाता है, जिन्होंने 700 से 728 ई तक शासन किया था। + +10170. कीर्ति रिनपोचे (Kirti Rinpoche) द्वारा स्थापित पहला कीर्ति मठ गीलरंग (Gyelrang) में था। इस समय चीन के सिचुआन में दो मुख्य कीर्ति मठ तकत्संग ल्हामो (Taktsang Lhamo) और नगावा प्रांत में स्थित हैं। + +10171. महाबोधि मंदिर परिसर भगवान बुद्ध के जीवन से संबंधित चार पवित्र स्थलों में से एक है। + +10172. बौद्ध भिक्षु एक संगठन के रूप में रहते थे जिन्हें बुद्ध ने संघ का नाम दिया। + +10173. भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण इस बौद्ध मठ को राष्ट्रीय महत्त्व का स्मारक घोषित किये जाने पर विचार कर रहा है। + +10174. नटराज के रूप में नृत्य करते हुए शिव की सुप्रसिद्ध प्रतिमा का विकास चोल काल से हो चुका था और उसके बाद इस जटिल कांस्य प्रतिमा के नाना रूप तैयार किये गए। + +10175. हालाँकि यह तलवार दुर्लभ नहीं है। इससे पहले भी कोझीकोड के कुरुवत्तुर (Kuruvattur) से इसके ही समान रॉक-कट गुफा से एक तलवार पाई गई थी जो मेगालिथिक लोगों की तकनीकी प्रगति के बारे में ऐतिहासिक जानकारी प्रदान करती है। + +10176. एक निश्चित मात्रा में इस पाउडर को मिलाने से नए तैयार होने वाले बर्तन अधिक मज़बूत होते हैं। + +10177. बावली का पुनरुद्धार + +10178. ये बावली पारंपरिक ज्ञान को उजागर करने तथा जल संरक्षण के लिये एक तरह की गाइडबुक है। + +10179. यह वेनगंगा नदी के किनारे मरकंडा गाँव में स्थित है। + +10180. 30 जून से 10 जुलाई तक बाकू (अज़रबैजान) में चल रहे यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति के 43वें सत्र में इसकी घोषणा की गई। + +10181. जयपुर को वर्ष 1727 में सवाई जय सिंह द्वितीय के संरक्षण में स्थापित किया गया था। + +10182. यह सांस्कृतिक केंद्र आंध्र प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में उपेक्षा के शिकार सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिये कार्य करता है। + +10183. भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण टीम ने न्यूयॉर्क में अमेरिकी सुरक्षा विभाग के आव्रजन और सीमा शुल्क प्रवर्तन द्वारा ज़ब्त कलाकृतियों का निरीक्षण किया। + +10184. यह संस्कृति विभाग के अधीन एक संलग्न कार्यालय है। + +10185. उस्‍ताद बिस्मिल्‍लाह खां युवा पुरस्‍कार कला प्रदर्शन के विविध क्षेत्रों में उत्‍कृष्‍ट युवा प्रतिभाओं की पहचान करने, उन्‍हें प्रोत्‍साहन देने और उन्‍हें जीवन में शीघ्र राष्‍ट्रीय मान्‍यता देने के उद्देश्‍य से 40 वर्ष से कम आयु के कलाकारों को प्रदान किया जाता है। + +10186. गोट्टीप्रोलू (13° 56’ 48” उत्तर; 79° 59’ 14” पूरब) में नायडूपेट से लगभग 17 किलोमीटर पूरब और तिरूपति तथा नेल्लोर से 80 किलोमीटर दूर स्वर्णमुखी की सहायक नदी के दाएँ किनारे पर स्थित है। विस्तृत कटिबंधीय अध्ययन और ड्रोन से मिली तस्वीरों से एक किलेबंद प्राचीन बस्ती की पहचान करने में मदद मिली है। बस्ती की पूर्वी और दक्षिणी ओर किलाबंदी काफी स्पष्ट है, जबकि दूसरी ओर आधुनिक बस्तियों के कारण यह अस्पष्ट प्रतीत होती है। खुदाई में मिली कई अन्य प्राचीन वस्तुओं में विष्णु की एक आदमकद मूर्ति और वर्तमान युग की शुरूआती शताब्दियों के दौरान प्रयोग किये जाने वाले विभिन्न प्रकार के बर्तन शामिल हैं। + +10187. नीचे की ओर दाहिनी भुजा श्रेष्ठ वरदान मुद्रा में है और बायाँ हाथ कटिहस्थ मुद्रा (कूल्हे पर आराम की मुद्रा) में है। + +10188. पुरापाषाण और नवपाषाण काल के मिश्रित पत्थर के औजार इस क्षेत्र में प्रागैतिहासिक जीवन की और भी संकेत करते हैं। + +10189. इसके अलावा इस स्थल के पूर्व में समग्र समुद्री तट विभिन्न प्रकार के पुरावशेषों से भरा हुआ है, जो सांस्कृतिक रूप से एक दूसरे से संबंधित हैं। + +10190. रंगदुम/रेंगदुम बौद्ध मठ (Rangdum Buddhist Monastery) + +10191. दुनिया के सबसे पुराने कामकाजी लोकोमोटिव के रूप में प्रमाणित और गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड प्राप्त कर चुका है। + +10192. भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India-ASI) द्वारा निर्मित यह गैलरी पुराना किला के धनुषाकार प्रकोष्ठों (Arched Cells) में स्थित है और सार्वजनिक रूप से ज़ब्त एवं पुनर्प्राप्त प्राचीन वस्तुओं को प्रदर्शित करती है। + +10193. मामल्‍लपुरम Mamallapuram + +10194. हाल ही में मामल्लपुरम में ही केंद्रीय रक्षा मंत्रालय के वार्षिक कार्यक्रम डिफेंस एक्सपो 2018 (Defence Expo 2018) की मेज़बानी की गई थी। + +10195. शहर के स्मारकों में पाँच रथ, एकाश्म मंदिर, सात मंदिरों के अवशेष हैं, इसी कारण इस शहर को सप्त पैगोडा के रूप में जाना जाता था। + +10196. मकबरा (Mausoleum) भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India- ASI) के तहत सूचीबद्ध है तथा आगा खान ट्रस्ट फॉर कल्चर (Aga Khan Trust for Culture- AKTC) द्वारा इसका संरक्षण किया जा रहा है। + +10197. नीला गुम्बद स्मारक के उत्तरी भाग में निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन का निर्माण किया गया था जो इस स्मारक को धीरे-धीरे समाप्त कर रहा था। + +10198. यह सिस्टम ऑनलाइन तरीके से भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित स्मारकों के निषिद्ध और विनियमित क्षेत्रों में निर्माण-संबंधी कार्यों के लिये अनापत्ति प्रमाण-पत्र देने की प्रक्रिया को स्वचालित करता है। + +10199. बहरीन टेम्पल प्रोजेक्ट(Bahrain temple project) + +10200. पारंपरिक हिंदू विवाह समारोहों और अन्य अनुष्ठानों के लिये भी यहाँ सुविधाएँ होंगी, जिसका उद्देश्य बहरीन को शादी के गंतव्य के रूप में बढ़ावा देना तथा पर्यटन को विकसित करना है। + +10201. यह संगमरमर विश्व की सबसे उत्कृष्ट श्रेणियों की चट्टानों में से एक है। + +10202. 9 मार्च को उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में पंडित दीनदयाल उपाध्याय पुरातत्त्व संस्थान का उद्घाटन. + +10203. 2019 के चर्चित साहित्य,भाषा या साहित्यिक सम्मान. + +10204. यह पुरस्कार 40 वर्ष से कम आयु के कलाकारों को प्रदान किया जाता है। + +10205. हिंदी कविता (छायावाद के बाद)/पगडंडी: + +10206. अकुलायी-सी एक बुलाहट + +10207. तरूणाई की भोर में, + +10208. पांतर पार धुंवारी भौहों + +10209. सुध-बुध खो चल पड़ी अकेली, अपने पी के गाँव में। + +10210. पहरू से कुछ पीली-कलगी वाले पेड़ बबूल के + +10211. हिंदी कविता (छायावाद के बाद) सहायिका/दुष्यन्त कुमार: + +10212. गीति-नाट्य-एक कंठ विषपायी। + +10213. ‘एक कंठ विषपायी’ शीर्षक गीतिनाट्य हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण व बहुप्रशंसित कृति है। + +10214. + +10215. एफ्लाटॉक्सिन कुछ कवकों द्वारा उत्पादित वे विषाक्त पदार्थ हैं जो आमतौर पर मक्का, मूँगफली, कपास के बीज जैसी अन्य कृषि फसलों में पाए जाते हैं। इनकी प्रकृति कार्सिनोजेनिक (Carcinogenic) होती हैं। + +10216. इसमें विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले जैविक, रासायनिक, पोषण एवं लेबलिंग, पशुओं से संबंधित भोजन, पौधों से संबंधित भोजन, जल एवं पेय पदार्थ, खाद्य परीक्षण, और सुरक्षित एवं स्थायी पैकेजिंग जैसे संस्थानों के आठ समूह शामिल होंगे। + +10217. यह क्यासानूर फाॅरेस्ट डिज़ीज़ वायरस (Kyasanur Forest Disease Virus-KFDV) के कारण फैलता है। जो फ्लेवीवायरस (Flavivirus) के समुदाय से संबंधित है। इस वायरस की पहचान वर्ष 1957 में एक बीमार बंदर में की गई थी। उसके बाद से प्रत्येक वर्ष लगभग 400-500 मानव संक्रमण के मामले सामने आए हैं। + +10218. भारत में 30-50% ई-सिगरेट्स ऑनलाइन बिकती हैं और चीन इसका सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ता देश है। + +10219. इसके लक्षणों में बुखार, खाँसी, नाक का बहना, लाल आँखें और सामान्यीकृत मेकुलोपापुलर एरीथेमाटस चकते शामिल हैं। + +10220. चीन में अफ्रीकी स्वाइन फीवर (African Swine Fever- ASF) के व्यापक प्रसार के कारण सूअर के मांस की कीमतें उच्च स्तर पर पहुँच गई हैं। + +10221. इस परीक्षण के माध्यम से डॉक्टरों को तपेदिक के रोगी के लिये सटीक दवा चुनने में कम समय लगेगा, जबकि आमतौर पर इस प्रक्रिया में एक महीने का समय लगता है। + +10222. हर साल 2 मिलियन नए एड्स संक्रमण होते हैं और वर्तमान में एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी पर दुनिया की लगभग 66% आबादी भारत में निर्मित दवाओं का सेवन करती है। + +10223. इस थेरेपी से CD-4 कोशिकाओं की रक्षा करने में मदद मिलती है जिससे रोग से लड़ने की प्रतिरक्षा क्षमता मज़बूत होती है। + +10224. FSSAI के नए मानदंडों के अनुसार, ‘ट्रांस फैट फ्री’ लोगो लगाने की अनुमति केवल उन्हीं को दी जा सकती है, जिनके उत्पादों में प्रति 100 ग्राम या भोजन के 100 मिलीलीटर में ट्रांस फैट की मात्रा 0.2 ग्राम से कम है। + +10225. पर्यावरणीय विषाक्तता के कारण होने वाली मौतों में लगभग 92% कम आय और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं, जिसमें भारत भी शामिल है। + +10226. इस कार्यक्रम के प्रमुख कार्यों में काउंसलर द्वारा मदद, सुविधा-आधारित परामर्श, सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन, संचार, देखभाल के स्तरों पर किशोर अनुकूल स्वास्थ्य क्लिनिक (Adolescent Friendly Health Clinics- AFHC) को मजबूत बनाने जैसे समुदाय-आधारित हस्तक्षेप शामिल हैं। + +10227. इस कार्यक्रम का उद्देश्य प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, उप-ज़िले के सभी स्तरों पर नेत्र देखभाल सेवाओं के लिये मानव संसाधन को विकसित करना,स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करना आदि है। + +10228. लगभग 95% कोलिस्टिन का आयात चीन से किया जाता है। + +10229. इस योजना को डिज़िटल इंडिया कार्यक्रम की तर्ज़ पर तैयार किया गया है। + +10230. इस योजना के तहत गर्भवती महिलाओं को सीधे उनके बैंक खाते में नकद लाभ प्रदान किया जाता है ताकि बढ़ी हुई पोषण संबंधी ज़रूरतों को पूरा किया जा सके और वेतन हानि की आंशिक क्षतिपूर्ति की जा सके। + +10231. यह सुनिश्चित करना, कि जीवन संरक्षण में महत्त्वपूर्ण देखभाल की आवश्यकता वाले जटिल गर्भधारण प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार कम-से-कम सभी मेडिकल कॉलेज अस्पतालों और अधिक मामलों के भार वाले ज़िला अस्पतालों में समर्पित प्रसूति एचडीयू (उच्च निर्भरता इकाइयाँ) संचालित की गई हैं। + +10232. अनाधिकृत ब्रांड वाली पानी की कुल 69,294 बोतलें जब्त की गईं। + +10233. इस सूचकांक के अंतर्गत वर्ष 2015-16 को आधार वर्ष एवं वर्ष 2017-18 की अवधि को संदर्भ वर्ष मानते हुए राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के समग्र प्रदर्शन एवं वृद्धिशील सुधार का विश्लेषण किया गया। + +10234. यह ‘समझौता ज्ञापन’ मौजूदा कैंसर उपचार पैकेजों, सेवाओं के मूल्य निर्धारण और आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत शामिल मानक उपचारों के कार्यों की संयुक्त रूप से समीक्षा करेगा और कैंसर देखभाल की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिये उचित कदम उठाएगा। + +10235. ऑन्कोलॉजी (Oncology) में विशेष प्रशिक्षण और शिक्षा प्रदान करना। + +10236. केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन(CDSCO)ने दवा निर्माताओं से सामान्य रूप से उपयोग में आने वाली एंटीबायोटिक दवाओं के प्रतिकूल प्रभावों की जानकारी आम जनता के लिये उपलब्ध कराने को कहा है। + +10237. विज़न: भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा करना और उसे बढ़ावा देना। + +10238. · यह सशस्त्र बलों में एकमात्र ऐसी वाहिनी है जिसमें केवल महिलाएँ हैं। + +10239. मुंँह संबंधी स्‍वास्‍थ्‍य की जानकारी के लिये यह पहला राष्‍ट्रीय डिजिटल प्‍लेटफॉर्म है, साथ ही डिजिटल स्‍वास्‍थ्‍य की दिशा में यह महत्त्वपूर्ण कदम है। + +10240. नेशनल ओरल हेल्थ प्रोग्राम (National Oral Health Programme- NOHP) को वर्ष 2014 मे लाया गया था। + +10241. ब्रेल उपयोगकर्ता कंप्यूटर स्क्रीन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का भी प्रयोग कर सकते हैं, जिसमें रिफ्रेशएबल ब्रेल डिस्प्ले का उपयोग किया जाता है। + +10242. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, साल्मोनेला डायरिया रोग के चार प्रमुख वैश्विक कारणों में से एक है। + +10243. ड्रग इम्यून फंगल इन्फेक्शन (Drug Immune Fungal Infection) + +10244. सी. ऑरिस प्रमुख एंटीफंगल दवाओं के प्रति प्रबल है, जो इसे दुनिया के सबसे दुसाध्य उपचार खतरों में से एक का नया उदाहरण बनाता है। + +10245. अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में लगभग 35% रोगियों में ‘HR+’स्तन कैंसर और ‘HER2-’ बीमारी का निदान किया जाता है जिनकी उम्र 40 वर्ष से भी कम है। + +10246.
बुर्किना फासो (Burkina Faso) में मच्छर मारने की एक दवा ‘आइवरमेक्टिन’ (Ivermectin) का परीक्षण + +10247. WHO की एक रिपोर्ट के अनुसार, ट्रांस फैट के कारण प्रत्येक वर्ष लगभग पाँच लाख लोगों की मौत हो रही है तथा प्रतिदिन खाद्य पदार्थों में ट्रांस फैट के सेवन से लगभग पाँच अरब लोग खतरे में हैं। + +10248. इस वर्ष के स्वास्थ्य दिवस की थीम है- यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज। जिसका तात्पर्य आय की विभिन्नता से परे सभी लोगों की गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा तथा स्वास्थ्य संबंधी अन्य आवश्यकताओं तक पहुँच सुनिश्चित करना है। + +10249. नीति आयोग (NITI Aayog) का राज्य स्वास्थ्य सूचकांक (State Health Index) का दूसरा संस्करण जून 2019 में जारी. + +10250. बिहार में केवल 56% माताएँ ही स्वास्थ्य सुविधाओं से युक्त अस्पतालों में प्रसव कराती हैं, जो राष्ट्रीय औसत के हिसाब से बहुत खराब स्थिति है। यह स्थिति अत्यंत दयनीय इसलिये भी है क्योंकि वर्ष 2015-16 की तुलना में जन्म के समय कम वज़न वाले बच्चों की जन्म दर अधिक होने के कारण बिहार खतरे की स्थिति में है। + +10251. प्रथम रेफरल इकाइयों (First Referral Units- FRU) का सही से संचालन न हो पाना + +10252. वृद्धिशील प्रदर्शन के मामले में हरियाणा, राजस्थान और झारखंड जैसे राज्य सराहना के पात्र रहे है। + +10253. सामान्य अध्ययन२०१९/सामाजिक न्याय: + +10254. इस निर्णय के क्रियान्वयन के लिये छत्तीसगढ़ सरकार को राज्य पंचायती राज अधिनियम, 1993 (State Panchayati Raj Act, 1993) में संशोधन करना होगा। + +10255. दिव्यांगों से संबंधित संवैधानिक तथा कानूनी उपबंध: + +10256. पृष्ठभूमि:-मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (Universal Declaration of Human Rights- UDHR) एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज़ है, जिसे संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 10 दिसंबर, 1948 को पेरिस (फ्राँस) में अपनाया था। + +10257. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, प्रत्येक 4 में से 1 बच्चा आधुनिक गुलामी का शिकार है। + +10258. यह पहल मोची समुदाय के सम्मानजनक तरीके से कार्य करने में सहायक होगी। + +10259. परिणाम + +10260. पृष्ठभूमि + +10261. मानव हत्या संबंधी इन आँकड़ों में सबसे अधिक लगभग 37.4 प्रतिशत, अमेरिका में हुई थी । + +10262. युवा. + +10263. आयोजनकर्त्ता:-इसका आयोजन UNESCO के महात्मा गांधी शांति और विकास शिक्षा संस्थान (Mahatma Gandhi Institute of Education for Peace and Sustainable Development-MGIEP) तथा मानव संसाधन विकास मंत्रालय (Ministry of Human Resource Development) ने किया। + +10264. वित्‍तीय क्षेत्र में अप्रेन्टिसशिप ट्रेंनिंग के लिये भारतीय स्‍टेट बैंक और HDFC बैंक के साथ सहयोग की घोषणा। + +10265. लुप्तप्राय भाषाओं की सुरक्षा और संरक्षण के लिये योजना (SPPEL) इस योजना की निगरानी कर्नाटक के मैसूर में स्थित केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (Central Institute of Indian Languages-CIIL) द्वारा की जाती है। + +10266. वर्ष 1950 में यूनिसेफ की कार्य सीमाओं को विकासशील देशों के बच्चों तथा महिलाओं की दीर्घकालिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिये विस्तारित कर दिया गया। + +10267. 12 जून को दुनियाभर में आयोजित ‘बाल श्रम निषेध दिवस’ की थीम- “Children Shouldn't work in fields, but on dreams” रखी गई है। + +10268. सेव द चिल्ड्रेन (Save the Children) नामक गैर-सरकारी संस्था द्वारा जारी ग्लोबल चाइल्डहुड रिपोर्ट (Global Childhood Report) में वैश्विक स्तर पर बाल अधिकारों की स्थिति का मूल्यांकन करते हुए इस संबंध में उचित कदम उठाने की वकालत की गई है। + +10269. बाल श्रम + +10270. दिव्यांगों से संबंधित विषय. + +10271. भारत में प्रयास:-इस अवसर पर सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (Ministry of Social Justice and Empowerment) का दिव्यांग सशक्तीकरण विभाग प्रत्येक वर्ष दिव्यांगजन सशक्तीकरण की दिशा में अर्जित उत्कृष्ट उपलब्धियों एवं कार्यों के लिये व्यक्तियों, संस्थानों, संगठनों और राज्य/ज़िला आदि को राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान करता है। + +10272. संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस को मनाने के लिये 1 अक्तूबर, 1999 को एक प्रस्ताव अपनाया था। + +10273. इस योजना के तहत न्यूनतम सुनिश्चित पेंशन प्रदान की जाएगी। योजना के अंतर्गत प्रत्येक लाभार्थी को 60 वर्ष की आयु पूरी करने के पश्चात् न्यूनतम 3000 रुपए प्रति माह पेंशन प्रदान की जाएगी। + +10274. उल्लेखनीय है कि लघु और सीमांत किसानों (Small and Marginal Farmers- SMF) की आय में वृद्धि करने के लिये, सरकार ने हाल ही में केंद्रीय क्षेत्र की एक नई योजना ‘प्रधानमंत्री किसान निधि’ Mantri Kisan Samman Nidhi (PM-KISAN) की शुरुआत की है। + +10275. भारतीय जीवन बीमा निगम (Life Insurance Corporation of India-LIC) को पेंशन कोष का फंड प्रबंधक नियुक्‍त किया गया है। निगम पेंशन भुगतान के लिये जवाबदेह होगा। + +10276. इस योजना का पंजीकरण साझा सेवा केंद्रों के ज़रिये किया जा रहा है। पंजीयन नि:शुल्‍क है। सरकार साझा सेवा केंद्रों को प्रति पंजीयन 30 रुपए का भुगतान करेगी। + +10277. सामाजिक प्रभाव बॉण्ड + +10278. केरल सरकार के सामाजिक न्याय विभाग ने फरवरी 2018 में ट्रांसजेंडर सेल की स्थापना की। इसका उद्देश्य ट्रांसजेंडर समुदाय को समाज की मुख्यधारा से जोड़ना और उनके अधिकारों को संरक्षित करना है। + +10279. भारत में सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2018 में भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के कुछ प्रावधानों को खत्म करते हुए समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया था। + +10280. 15 अक्तूबर, 2013 को सूचना आदान-प्रदान करने के संबंध में एक प्रोटोकॉल द्वारा इस समझौते को संशोधित किया गया था। + +10281. इसका उपयोग ब्रिक्स देशों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन और आपदा प्रबंधन सहित विभिन्न अनुप्रयोगों के लिये किया जा सकता है। + +10282. दूसरे सत्र का उद्देश्य- विस्तार आपूर्ति शृंखलाओं और उपलब्ध समाधानों की पृष्ठभूमि में बंदरगाहों तथा टर्मिनलों की उभरती भूमिका पर चर्चा करना था। + +10283. बिम्‍सटेक एक क्षेत्रीय संगठन है, जिसमें बंगाल की खाड़ी क्षेत्र और आसपास के सात देश (भारत, बांग्‍लादेश, म्‍याँमार, श्रीलंका, थाईलैंड, भूटान, नेपाल) शामिल हैं। + +10284. हाल ही में ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने भारत सहित एक दर्जन से अधिक देशों में 'वर्किंग हॉलिडे मेकर' (Working Holiday Maker) वीज़ा कार्यक्रम का विस्तार करने का निर्णय लिया है। + +10285. आवेदकों को अंग्रेजी का न्यूनतम ज्ञान होना चाहिये + +10286. इस समुद्री मार्ग के विकसित हो जाने से रानोंग बंदरगाह भारतीय वस्तुओं के लिये मुख्य प्रवेश बिंदु बनने की क्षमता रखता है। + +10287. रूस के ऑरेनबर्ग के डोंगुज प्रशिक्षण रेंज (Donguz Training Ranges) में 9-23 सितंबर तक यह अभ्यास किया जाएगा। + +10288. श्रीलंका ने भारत और जापान के साथ गहरे समुद्री क्षेत्र कंटेनर टर्मिनल विकसित करने के समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। तीनों देश संयुक्त रूप से कोलंबो बंदरगाह पर ईस्ट कंटेनर टर्मिनल का निर्माण करेंगे। श्रीलंका बंदरगाह प्राधिकरण के अनुसार, कोलंबो बंदरगाह के ट्रांसशिपमेंट कारोबार (बड़े जहाज़ों से छोटे जहाज़ों में माल का परिवहन) का करीब 70 प्रतिशत भारत से संबंधित है, जबकि जापान 1980 से बंदरगाह कंटेनर टर्मिनल के निर्माण में सहयोग कर रहा है। श्रीलंका बंदरगाह प्राधिकरण के पास ईस्ट कंटेनर टर्मिनल का 100 प्रतिशत स्वामित्व है। ईस्ट कंटेनर टर्मिनल से होने वाले सभी परिचालनों का संचालन करने वाली टर्मिनल ऑपरेशंस कंपनी में श्रीलंका सरकार और अन्य की संयुक्त हिस्सेदारी है। ऐसे में हिंद महासागर के केंद्र के रूप में श्रीलंका का विकास और उसके बंदरगाहों का खुलना बहुत महत्त्व रखता है। कोलंबो बंदरगाह इस क्षेत्र का प्रमुख बंदरगाह है। यह संयुक्त परियोजना तीनों देशों के बीच लंबे समय से चले आ रहे सहयोग और बेहतर संबंधों को दर्शाती है। + +10289. भारत और एशियाई देशों के मध्य संबंध. + +10290. यह पूर्वी चीन सागर के साथ ताइवान जलसंधि द्वारा तथा फिलीपींस सागर के साथ लूजॉन जलसंधि द्वारा जुड़ा है। + +10291. दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) की स्थापना 8 दिसंबर,1985 को ढाका में सार्क चार्टर पर हस्ताक्षर के साथ की गई थी। + +10292. बांग्लादेश, भूटान और अफगानिस्तान द्वारा भी इस्लामाबाद की बैठक में भाग लेने से मना करने के बाद यह शिखर सम्मेलन रद्द कर दिया गया था। + +10293. INS चेन्नई और INS सुनयना को समुद्री सुरक्षा अभियान के लिये ओमान की खाड़ी और फारस की खाड़ी में तैनात किया गया है। + +10294. आँसू गैस (Tear Gas) एक रासायनिक संघटक है जिसका इस्तेमाल अक्सर दंगा नियंत्रण के लिये किया जाता है। + +10295. भारत सरकार द्वारा नेपाल के लिये बनाई गई जयनगर-कुर्था ब्रॉडगेज पर रेल सेवा शुरू करने के लिये भारत का कोंकण रेलवे नेपाल को दो DEMU ट्रेन एवं आवश्यक संसाधनों की आपूर्ति करेगा। पाँच कोचों वाले दोनों DEMU ट्रेन सेटों की लागत करीब 50 करोड़ रुपए है और इनका निर्माण तमिलनाडु के चेन्नई स्थित इंटीग्रल कोच फैक्ट्री में किया जाएगा। 1600 हॉर्स पावर वाले प्रत्येक ट्रेन सेट में एक ड्राइविंग पावर कार, एक वातानुकूलित के साथ तीन ट्रेलर कार, मानक सामान के साथ एक ड्राइविंग ट्रेलर कार शामिल होगी। भारत-नेपाल विकास साझेदारी कार्यक्रम के तहत भारतीय वित्तीय अनुदान के साथ IRCON (भारत सरकार का उपक्रम) द्वारा 34 किलोमीटर जयनगर-कुर्था रेलवे लिंक बनाया गया है। + +10296. हालाँकि इसका एक उद्देश्य यह भी है कि इसके द्वारा चीन वैश्विक स्तर पर अपना प्रभुत्व बनाना चाहता है। + +10297. यह युद्धाभ्‍यास दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय सहयोग का हिस्सा है। गरुड़ अभ्यास वैकल्पिक रूप से फ्राँस और भारत में आयोजित किया जाता है। + +10298. इस विमान वाहक के डिज़ाइन पर ब्रिटिश और फ्राँसीसी एयरोस्पेस बीएई और थेल्स (BAE and Thales) का स्वामित्व है। + +10299. इनका निर्माण बीएइ सिस्टम्स लैंड एंड आर्मामेंट्स (BAE Systems Land and Armaments) द्वारा किया जाएगा। + +10300. यह युद्ध अभ्‍यास दोनों देशों के सशस्‍त्र बलों को ब्रिग्रेड स्‍तर पर संयुक्‍त नियोजन के साथ बटालियन स्‍तर पर एकीकृत रूप से प्रशिक्षण का अवसर प्रदान करेगा। + +10301. नाटो सहयोगी का दर्जा मिलने से भारत एवं अमेरिका के बीच अत्याधुनिक अमेरिकी सैन्य तकनीक का आदान-प्रदान भी आसन हो जाएगा। + +10302. भारत और GSP + +10303. इसके साथ द्विपक्षीय सक्षम प्राधिकरण की व्यवस्था भी भारत-अमेरिका के बीच लागू हो जाएगी। यह समझौता 1 जनवरी, 2016 को या उसके बाद संबंधित न्यायालयों में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की अंतिम मूल संस्थाओं द्वारा दायर CbC रिपोर्टों पर लागू होगा।ट्रांसफर प्राइसिंग डॉक्यूमेंटेशन और CbC रिपोर्टिंग, बहुराष्ट्रीय उद्यमों (MNEs) को सालाना रिपोर्ट दायर करने तथा प्रत्येक कर-क्षेत्र के लिये एक रूपरेखा प्रदान करती है। इसमें वे व्यापार की जानकारी साझा करते हैं। + +10304. भारत और ब्राज़ील. + +10305. यह 2012 में प्रारंभ हुआ था तथा इस वर्ष इसका छठा संस्करण आयोजित किया जाएगा। इस अभ्यास का उद्देश्य दोनों देशों की सेनाओं के मध्य घनिष्ठ संबंध स्थापित करना और रणनीतिक समझ बढ़ाना है। + +10306. भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ISRO और फ्राँसीसी अंतरिक्ष एजेंसी CNES द्वारा भारत में एक संयुक्त समुद्री निगरानी प्रणाली स्थापित करने के लिये समझौते पर मुहर लगाई।. + +10307. चाबहार गहरे पानी में स्थित बंदरगाह है और यह ज़मीन के साथ मुख्य भू-भाग से भी जुड़ा हुआ है, जहाँ सामान उतारने-चढ़ाने का कोई शुल्क नहीं लगता। + +10308. LEMOA दोनों देशों को ईंधन भरने और पुनःपूर्ति के लिये एक दूसरे की निर्दिष्ट सैन्य सुविधाओं तक पहुँच प्रदान करने की अनुमति देता है। यह भारत और अमेरिका के बीच बढ़ते सैन्य सहयोग में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। + +10309. भारत का राजकीय चिन्ह अशोक के सारनाथ स्तंभ से लिया गया है।भारत सरकार द्वारा 26 जनवरी, 1950 को इसे अंगीकृत किया गया। + +10310. प्र. निम्नलिखित में से किससे/किनसे भारत में अंग्रेज़ी शिक्षा की नींव पड़ी? + +10311. नागरिकता के संदर्भ में विगत वर्ष में पूछा गया प्रश्न: + +10312. प्रस्तावना/उद्देशिका. + +10313. 42वें संविधान संशोधन 1976 के माध्यम से धर्मनिपेक्षता शब्द को शामिल किया गया। + +10314. नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: + +10315. यह राज्य को उन सभी पिछड़े वर्ग के नागरिकों हेतु नियुक्तियों या पदों के आरक्षण का प्रावधान करने का अधिकार देता है, जो राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। + +10316. उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? - (b) केवल 2 + +10317. टेलीमैटिक्स के विकास के लिये केंद्र (C-DOT) + +10318. वर्तमान में, सी-डॉट सरकार के विभिन्न प्रमुख कार्यक्रमों के उद्देश्य को साकार करने की दिशा में काम कर रहा है। भारत के जिसमें डिजिटल इंडिया, भारतनेट, स्मार्ट सिटी आदि शामिल हैं। + +10319. वर्ष 1976 में केंद्रीय बागान फसल अनुसंधान संस्थान (CPCRI) के एक क्षेत्रीय स्टेशन के रूप में इसकी शुरुआत हुई थी। + +10320. एक सरकारी संगठन है,जो सदस्य कर्मचारियों की भविष्य निधि और पेंशन खातों का प्रबंधन करता है तथा कर्मचारी भविष्य निधि एवं विविध प्रावधान + +10321. इसके सदस्यों में भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर, वित्त सचिव, आर्थिक मामलों के विभाग के सचिव, वित्तीय सेवा विभाग के सचिव, मुख्य आर्थिक सलाहकार, वित्त मंत्रालय, सेबी के अध्यक्ष, इरडा के अध्यक्ष, पी.एफ.आर.डी.ए. के अध्यक्ष को शामिल किया जाता है। + +10322. इस पर उन्हें 2.25% से 2.50% तक ब्याज मिलता है एवं परिपक्वता अवधि के पश्चात् वे इसे सोना अथवा रुपए के रूप में प्राप्त कर सकते हैं। + +10323. फिनटेक स्टार्ट-अप बैंकों के लिये पेमेंट, कैश ट्रांसफर जैसी सेवाओं में काफी मददगार साबित हो रहे हैं। साथ ही ये देश के दूरदराज़ के इलाकों तक बैंकिंग सेवाएँ उपलब्ध करा रहे हैं। + +10324. यह सार्वजनिक लिमिटेड कंपनी (Public Limited Company) है, जिसे कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत 23 अप्रैल, 2003 को स्थापित किया गया था। + +10325. डॉलर बॉन्ड के विपरीत (जहाँ उधारकर्त्ता को मुद्रा जोखिम लेना पड़ता है) मसाला बॉन्ड में निवेशकों को जोखिम उठाना पड़ता है। + +10326. कंपनी अधिनियम,1956 के तहत पंजीकृत। यह सरकार या स्थानीय प्राधिकरण द्वारा जारी किये जाने वाले ऋण/शेयरों/बांड/डिबेंचर/प्रतिभूतियों या अन्य बिक्री योग्य प्रतिभूतियों के अधिग्रहण से संबंधित हैं। + +10327. पी-नोट्स को विदेशी निवेशकों के लिये शेयर बाज़ार में निवेश करने का दस्‍तावेज़ भी कहा जाता है। पी-नोट्स का इस्‍तेमाल ‘हाई नेटवर्क इंडीविजुअल्‍स’ (एचएनआई), हेज फंडों एवं अन्‍य विदेशी संस्‍थानों के ज़रिये किया जाता है। + +10328. इस प्रकार का ऋण भारतीय मुद्रा में भी हो सकता है एवं विदेशी मुद्रा में भी। + +10329. भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI). + +10330. सरकार द्वारा नामित :-विभिन्न क्षेत्रों से दस निदेशक और दो सरकारी अधिकारी + +10331. गिल्ट फंड्स में निवेश करने के बाद निवेशकों को किसी तरह का क्रेडिट रिस्क नहीं होता है, क्योंकि इन प्रतिभूतियों की गारंटी केंद्र सरकार द्वारा दी जाती है। ये फंड्स दीर्घावधिक सरकारी प्रतिभूति पत्रों में निवेश करते हैं। + +10332. सामान्य अध्ययन२०१९/विज्ञान और प्रौद्योगिकी-विश्व: + +10333. इसकी रूपरेखा वर्ष 1994 में तैयार की गई थी और इसे व्यापक रूप से वर्ष 1995 में शुरू किया गया था। + +10334. वर्ष 2010 में, कैसिनी नामक एक अंतरिक्ष यान ने रिया के चारों ओर एक बहुत ही पतले वातावरण का पता लगाया जिसे बहिर्मंडल के रूप में जाना जाता है यह ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड का मिश्रण है।कार्बन डाइऑक्साइड की उत्पत्ति का स्रोत निश्चित नहीं है परंतु माना जाता है कि ऑक्सीजन तब उत्पन्न होती है जब रिया शनि का चुंबकीय क्षेत्र के प्रभाव में आ जाता है। इस उपग्रह की सतह पर ऊर्जावान कणों की उपस्थिति है जो शनि के चुंबकीय क्षेत्र के संपर्क में आने पर रासायनिक अभिक्रियाएँ करते हैं जिससे इसकी सतह विघटित होती है और ऑक्सीजन का निर्माण होता है। + +10335. यह भारतीय उपमहाद्वीप पर 1,500 किलोमीटर के दायरे को कवर करता है। + +10336. इस प्रक्रिया में अंततः हीलियम कार्बन में और कार्बन भारी पदार्थ, जैसे- लोहे में परिवर्तित होने लगता है। + +10337. LB-1 ब्लैक होल का नामकरण चाइनीज विज्ञान अकादमी की राष्ट्रीय खगोलीय वेधशाला के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है। + +10338. जल की यह तरल अवस्था,यूरोपा उपग्रह पर मौजूद बर्फ की परत के नीचे उपस्थित है। + +10339. अल्टिमा थुले प्लूटो से करीब एक बिलियन (1.6 बिलियन किलोमीटर) मील दूर है। + +10340. हेलियोस्फेयर और इंटरस्टेलर + +10341. यह एक वैश्विक प्राधिकरण है जो सौर प्रणाली में ग्रहों की विशेषताओं का नामकरण करता है। IAU के अन्य कार्यों में मौलिक खगोलीय और भौतिक स्थिरांक तथा अस्पष्ट खगोलीय नामकरण को परिभाषित करना शामिल है। इस संघ का उद्देश्य खगोल विज्ञान को बढ़ावा देना है। खगोलीय संघ द्वारा दिये गये नाम ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्य होते हैं। + +10342. यह खोज अटाकामा लार्ज मिलीमीटर ऐरे (Atacama Large Millimeter Array- ALMA) द्वारा की गई है। + +10343. नासा ने लगभग एक दशक से कार्यरत केप्लर अंतरिक्ष दूरबीन को पृथ्वी से दूर अपनी वर्तमान सुरक्षित कक्षा में कार्य-मुक्त करने का निर्णय लिया है। इस टेलीस्कोप में अब आगे के वैज्ञानिक संचालनों के लिये आवश्यक ईंधन नहीं है। TESS को अप्रैल 2018 को स्पेस कैन फाल्कन 9 रॉकेट द्वारा केप कैनावेरल से लॉन्च किया गया था जो केप्लर का स्थान लेगा। + +10344. किसी ब्लैकहोल द्वारा स्वयं प्रकाश का उत्सर्जन नहीं किया जाता है, लेकिन यह प्रकाश को अवशोषित कर सकता है। इस ब्लैकहोल के आसपास के क्षेत्र में अधिक चमक का कारण अंतरिक्ष में स्थित एक तारे S0-2 के प्रकाश को बताया जा रहा है। इस तारे का प्रकाश बड़ी मात्रा में पिछले वर्ष ब्लैकहोल के करीब पहुंँचा था। वैज्ञानिकों द्वारा इस ब्लैकहोल के आकार के बढ़ने की संभावना व्यक्त की जा रही है। + +10345. यह घटना तब घटित होती है जब भारी मात्रा में पदार्थ, जैसे कि एक विशाल आकाशगंगा या आकाशगंगाओं का समूह, एक गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र बनाता है जो अपने पीछे की वस्तुओं के प्रकाश को बढ़ाता और विकृत करता है। + +10346. पारंपरिक परमाणु रिएक्टर ऊर्जा पैदा करने हेतु भारी अणुओं जैसे-प्लूटोनियम को तोड़ने के लिये विखंडन (Fission) का प्रयोग करते हैं। संलयन (Fusion) रिएक्टर जैसे इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (ITER) स्वच्छ हरित ऊर्जा प्राप्त करने के लिये रेडियोएक्टिव पदार्थ के बजाय हल्के तत्त्वों जैसे- हाइड्रोजन और हीलियम का प्रयोग करेंगे। फ्राँस में बनाया जा रहा ITER का वित्तीयन सात देशों द्वारा किया जा रहा है। अतः युग्म 3 सही सुमेलित है। + +10347. प्रत्येक उड़ान के बाद SOFIA भूमि पर वापस आ जाएगा इसलिये इसके उपकरणों का आदान-प्रदान किया जा सकता है, नई तकनीकों का उपयोग करने के लिये इसे अपडेट किया जा सकता है। चूँकि इन नए उपकरणों का परीक्षण और समायोजन किया जा सकता है, इसलिये SOFIA सौर प्रणाली में और उससे आगे के नए मोर्चे का पता लगा सकता है और प्रौद्योगिकी के लिये एक परीक्षण के रूप में काम कर सकता है। + +10348. जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप(James Webb Space Telescope) को JWST या वेब्ब भी कहा जाता है) 6.5 मीटर प्राथमिक प्रतिबिंब के साथ एक बड़ा अवरक्त दूरबीन है जिसे 2021 में फ्रेंच गुयाना से एरियन 5 रॉकेट द्वारा लॉन्च किया जाएगा। + +10349. स्विफ़्ट टटल धूमकेतु एक विकेंद्री (अव्यवस्थित केंद्रक के साथ) अंडाकार कक्षा में परिक्रमा करता है जो लगभग 27 किलोमीटर चौड़ी होती है। + +10350. उल्काओं का जो अंश/भाग वायुमंडल में जलने से बचकर पृथ्वी तक पहुँचता है उसे उल्कापिंड (meteorite) कहते हैं। + +10351. यह के बाहर मिला है। जो हमारी है। + +10352. इस मिशन का उद्देश्य मंगल ग्रह के वायुमंडल की ऊपरी सतह की जानकारी एकत्र करना है। + +10353. आर्टेमिस नाम अपोलो (Apollo) की जुड़वां बहन के नाम पर रखा गया है। + +10354. अपोलो 11 मिशन 16 जुलाई, 1969 को लॉन्च किया गया था। इसकी चंद्रमा पर लैंडिंग 20 जुलाई को ही हुई थी। + +10355. अपोलो मिशन को चंद्रमा पर मनुष्यों को उतारने और उन्हें सुरक्षित पृथ्वी पर लाने के लिये डिज़ाइन किया गया था। + +10356. प्लेनेट + मून = प्लूनेट (Planet + moon = Ploonet) + +10357. Spektr-R जिसे ‘रूसी हबल’ के रूप में जाना जाता है, को प्रतिस्थापित करने के लिये जर्मनी के सहयोग से Spektr-RG को विकसित किया गया है। उल्लेखनीय है कि कुछ समय पूर्व ही Spektr-R ने नियंत्रण खो दिया था। + +10358. नासा द्वारा किया गया यह परीक्षण उसके आर्टेमिस मिशन (Artemis Missions) के लिये एक बड़ी उपलब्धि है। + +10359. शोधकर्त्ताओं ने सुबारू टेलीस्कोप (Subaru Telescope) और 870 मेगापिक्सेल हाइपर सुप्रीम-कैमरा (Hyper Suprime-Cam)/(डिजिटल कैमरा) की सहायता से यह खोज की। + +10360. यह एक नए फ्लैट-पैनल डिज़ाइन पर आधारित होगा,जिसमें क्रिप्टन-ईंधन प्लाज़्मा थ्रस्टर्स, उच्च-शक्ति एंटीना और अंतरिक्ष में अन्य वस्तुओं से स्वतः दूर जाने की क्षमता होगी। + +10361. यह एक ग्रह रक्षा तकनीक है, जिसे 2021 के मध्य में लॉन्च किया जाना है।यह नासा का पहला मिशन है।यह एक ऐसा अंतरिक्ष मिशन है जो काइनेटिक इम्पैक्टर का प्रयोग करते हुए एस्टेरोइड का मार्ग परिवर्तित करने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन करेगा। + +10362. इसमें सफेद रंग के आधार पर एक गुंबद और नौ मॉड्यूल हैं, जिसमें रहने के लिये क्वार्टर, एक नियंत्रण कक्ष, एक ग्रीनहाउस और एक एयरलॉक शामिल हैं। फिलहाल इसका उपयोग शैक्षिक उद्देश्यों के लिये किया जाएगा किंतु भविष्य में इसे एक पर्यटन स्थल के रूप में भी विस्तारित किया जाएगा। + +10363. कैसिनी मिशन ने जनवरी 2005 में शनि के सबसे बड़े चंद्रमा टाइटन पर ह्यूजेंस प्रोब (Huygens Probe) को भी उतारा। + +10364. 31 मार्च को दक्षिण-पश्चिम चीन के सिचुआन प्रांत के शिछांग उपग्रह प्रक्षेपण केंद्र से सफलतापूर्वक लॉन्ग मार्च-3C रॉकेट से प्रक्षेपित किया गया। + +10365. न्यू साउथ वेल्स में प्रशासन ने वर्ष 2021 में होने वाली मौतों को 30% तक कम करने का लक्ष्य रखा है। + +10366. इसका नाम फेडर (Final Experimental Demonstration Object Research) रखा गया है। इसे रूस के बेकनूर से सोयूज MS-14 अंतरिक्षयान द्वारा भेजा गया। + +10367. यह संधि अमेरिका और रूस के बीच एक द्विपक्षीय समझौता था, यह किसी भी अन्य परमाणु संपन्न देशों पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाती है, साथ ही संयुक्त राष्ट्र का इस संधि में कोई हस्तक्षेप नहीं है। + +10368. बैक्टीरिया पर इसके प्रभाव या कार्य के अनुसार एंटीबायोटिक्स को दो समूहों में बाँटा जाता है। + +10369. कंप्यूटर. + +10370. कैसे कार्य करता है? + +10371. मालवेयर (Malware):-मालवेयर सॉफ़्टवेयर को जान बूझकर कंप्यूटर, सर्वर, क्लाइंट या कंप्यूटर नेटवर्क को नुकसान पहुँचाने हेतु डिज़ाइन किया जाता है। + +10372. क्वांटम सुप्रीमेसी’ पर आधारित कंप्यूटर को क्रिप्टोग्राफी (Cryptography), रसायन विज्ञान, कृत्रिम बुद्धिमत्ता ( Artificial Intelligence) और मशीन लर्निंग (Machine Learning) आदि क्षेत्र के लिये लाभकारी होने की उम्मीद है। + +10373. वर्म किसी वायरस, ट्रोजन या अन्य मैलवेयर की तुलना में अधिक खतरनाक होते हैं क्योंकि उन्हें पकड़ पाना कठिन होता है। + +10374. उन्होनें डॉक्यूमेंट्स को लिंक करने के लिये हाइपरटेक्स्ट के उपयोग की कल्पना की थी। इसमें HTML, URL, HTTP जैसे फंडामेंटल शामिल थे। + +10375. विजेता: + +10376. मेयर एवं क्युलेज़ द्वारा खोजा गया प्रथम एक्सोप्लानेट 51 पेगासी (Pegasi) b था जिसे वर्ष 1995 में खोजा गया था। + +10377. एक्सोप्लेनेट संबंधी इतिहास: + +10378. बिग बैंग के लगभग 400,000 वर्ष बाद ब्रह्माण्ड का विस्तार हुआ और यह माना गया कि इसके तापमान में कुछ हज़ार डिग्री सेल्सियस की गिरावट आई। साथ ही ब्रह्माण्ड में पारदर्शिता बढ़ी एवं प्रकाश को गुजरने की अनुमति मिली। बिग बैंग के बचे हुए कणों को कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड (CMB) कहा गया। + +10379. यह बताता है कि ब्रह्मांड बहुत उच्च घनत्व और उच्च तापमान वाली स्थिति से कैसे विस्तारित हुआ और प्रकाश तत्वों की प्रचुरता, ब्रह्मांडीय माइक्रोवेव पृष्ठभूमि (CMB), बड़े पैमाने पर संरचना सहित घटनाओं की एक विस्तृत शृंखला के लिये एक व्यापक विवरण प्रदान करता है। + +10380. आकाशगंगाओं की घूर्णन की गति से खगोलविदों ने यह अंदाज़ा लगाया कि ब्रम्हांड में अधिक मात्रा में द्रव्यमान होना चाहिये था जो कि आकाशगंगाओ को गुरुत्वाकर्षण शक्ति के साथ नियंत्रित करता हो। हालाँकि द्रव्यमान के एक हिस्से को देखा जा सकता था तथापि एक बड़ा हिस्सा अदृश्य था, इसी गायब तत्त्व को डार्क मेटर कहा गया। + +10381. ब्यूबोनिक प्लेग के अलावा प्लेग के दो संस्करण और हैं- + +10382. यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल के शोधकर्त्ताओं ने टेलीकॉम पेरिस टेक (Telecomm ParisTech) और फ्राँस की सोरबोन यूनिवर्सिटी (Sorbonne University) के साथ मिलकर इसको विकसित किया है, जो मानव त्वचा की बनावट एवं उसकी क्षमता (संवेदनशीलता) की नकल करता है। + +10383. जीन एडिटिंग द्वारा जीन को निष्क्रिय कर एचआईवी संक्रमण को पूरे तरीके से खत्म किया जा सकता है। ऐसे किसी कार्य का परीक्षण करने के लिये विश्व भर में क्लिनिकल ट्रायल की कोई सुविधा मौजूद नहीं है। डॉ. हे द्वारा किया गया यह अनुप्रयोग वर्ष 2003 के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करता है जो स्पष्ट रूप से, प्रजनन उद्देश्य को पूरा करने के लिये भ्रूण के जीन से छेड़-छाड़ को प्रतिबंधित करता है। + +10384. मानव मस्तिष्क की गुत्थी सुलझाने के क्रम में चीन के वैज्ञानिकों ने इंसानी दिमाग वाले बंदर तैयार किये हैं। इसके लिये मानव मस्तिष्क के MCPH1 जींस को 11 बंदरों में प्रयारोपित किया गया।अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना के साथ चीन के कनमिंग इंस्टीट्यूट ऑफ जूलॉजी तथा चाइनीज़ एकेडमी ऑफ साइंसेज़ के शोधकर्त्ताओं ने प्रयोग के दौरान पाया कि मानव मस्तिष्क के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला यह जीन जब बंदरों के दिमाग में प्रत्यारोपित किया गया तो उन्हें विकसित होने में अधिक समय लगा। इन बंदरों ने किसी बात पर प्रतिक्रिया देने में भी तेज़ी दिखाई तथा शॉर्ट टर्म मेमोरी में भी बेहतर प्रदर्शन किया। + +10385. यह वायरस संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में 1999 में सामने आया। उस वर्ष न्यूयॉर्क में 62 मनुष्य, 25 घोड़े और अनगिनत पक्षी इस वायरस से ग्रसित पाए गए थे। + +10386. यह वायरस किसी भी उम्र के व्यक्ति को अपनी चपेट में ले सकता है। हालाँकि, 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों और कुछ प्रत्यारोपण के रोगियों के WNV से संक्रमित होने पर गंभीर रूप से बीमार पड़ने का अधिक खतरा होता है। + +10387. आमतौर पर वेस्ट नील वायरस (West Nile Virus-WNV) अफ्रीका, यूरोप, मध्य पूर्व, उत्तरी अमेरिका और पश्चिम एशिया में पाया जाता है, यह विषाणु/वायरस जनित संक्रमण के लिये उत्तरदायी है। + +10388. अभी तक मानव से मानव के संक्रमित होने की घटना देखने को नहीं मिली है। + +10389. इस तरह के एंटीबायोटिक रज़िस्टेंट जीन (ARG) विभिन्न सूक्ष्म जीवों में एक से ज़्यादा दवाओं के प्रति प्रतिरोधकता (Multidrug-resistant-MDR) पैदा करते हैं। + +10390. 'अंगीकार' अभियान + +10391. अंगीकार का लक्ष्य चरणबद्ध तरीके से मिशन के सभी लाभार्थियों तक पहुँचना है। सभी लक्षित शहरों में यह अभियान प्रारंभिक चरण के बाद महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर 2 अक्तूबर, 2019 को शुरू होगा। 10 दिसंबर, 2019 को मानवाधिकार दिवस के अवसर पर इसका समापन किया जाएगा। + +10392. यह विभिन्न खतरों (भूकंप, चक्रवात, भूस्खलन, बाढ़ आदि) को देखते हुए अति संवेदनशीलता वाले क्षेत्रों की पहचान करने में मदद करता है और मौजूदा आवासों के नुकसान के जोखिम को स्पष्ट रूप से (ज़िलेवार) बताता है। + +10393. इस प्रणाली के परिणामस्वरूप संपत्ति आधारित कर राजस्व कई गुना बढ़ जाएगा। + +10394. QR कोड + +10395. QR कोड को 2D बारकोड भी कहा जाता है। + +10396. 30 जून, 2020 तक पूरे देश में ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ (One nation-one ration card) योजना लागू करने की घोषणा की गई है।यह योजना केंद्रीय उपभोक्‍ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के अंतर्गत लाई गई है। + +10397. e-Dharti एप. + +10398. 40% धनराशि का उपयोग अन्य प्राथमिक क्षेत्रों में जैसे - भौतिक अवसंरचना, सिंचाई, ऊर्जा और वाटरशेड विकास के लिये किया जाएगा। + +10399. इस योजना के तहत 15 विषयगत सर्किटों की पहचान की गई है जो इस प्रकार हैं- बौद्ध सर्किट, तटीय सर्किट, रेगिस्तानी सर्किट, इको सर्किट, धरोहर सर्किट, हिमालयन सर्किट, कृष्णा सर्किट, उत्तर-पूर्व सर्किट, रामायण सर्किट, ग्रामीण सर्किट, आध्यात्मिक सर्किट, सूफी सर्किट, तीर्थंकर सर्किट, ट्राइबल सर्किट, वाइल्डलाइफ सर्किट + +10400. अनुसूचित जाति के विकास के लिये समग्र योजना (Umbrella Scheme for Development of Scheduled Castes) + +10401. सामान्य अध्ययन२०१९/कृषि क्षेत्रक: + +10402. यह सम्मेलन प्रत्येक तीन साल में आयोजित किया जाता है, इससे पहले इस सम्मेलन का आयोजन वर्ष 2016 में रोम में किया गया था। इस सम्मेलन के एजेंडे में खाद्य और कृषि सांख्यिकी से संबंधित कार्यप्रणाली, प्रौद्योगिकी तथा प्रक्रियाओं के क्षेत्र शामिल हैं। + +10403. नियमावली 1989 के अनुसार, यह समिति अनुसंधान और औद्योगिक उत्पादन के क्षेत्र में खतरनाक सूक्ष्मजीवों एवं पुनः संयोजकों के बड़े पैमाने पर उपयोग संबंधी गतिविधियों का पर्यावरणीय दृष्टिकोण से मूल्यांकन करती है। + +10404. इसको पहचान दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका श्री सुभाष पालेकर की मानी जाती है। + +10405. ऐसा कोई अध्ययन नहीं है जो यह प्रमाणित करे कि ZBNF में प्रयुक्त भूमि अपेक्षाकृत अधिक उत्पादक होती है। + +10406. अंतर्राष्ट्रीय प्रयास. + +10407. अधिनियम के अनुसार, एक किसान ब्राॅण्ड (Brand) के नाम को छोड़कर PPV&FR अधिनियम, 2001 के तहत संरक्षित किस्म के बीज सहित अपने खेत की उपज को सुरक्षित करने (Save), उपयोग करने, बोने, विनिमय करने, साझा करने या बेचने का हकदार है। + +10408. वे किसी ब्रांड नाम के तहत कोई बीज नहीं बेच सकते हैं। + +10409. अनुमति प्राप्त होने के बाद इस योजना को कृषि सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) को 2018-19 एवं 2019-20 के साथ-साथ 2024-25 तक के दौरान जारी वार्षिक बजट के अनुरूप ब्याज सब्सिडी उपलब्ध कराई जाएगी। योजना के मांग आधारित होने से इसकी प्रगति राज्यों की मांग एवं उनसे प्राप्त होने वाले प्रस्तावों का विषय होगी। + +10410. कृषि में तकनीक. + +10411. इस योजना पर 75 हज़ार करोड़ रुपए का सालाना खर्च आएगा और इससे छोटे किसान परिवारों को एक निश्चित पूरक आय प्राप्त होगी। + +10412. 2018-19 में भारत के कुल दूध उत्पादन में क्रॉस-ब्रीड मवेशियों का योगदान लगभग 28% था। जर्सी या होलेस्टिन जैसे विदेशी दुधारू की क्षमता अधिक है, इसलिये कृषकों द्वारा इन मवेशियों को अधिक पसंद किया जा रहा है। + +10413. पश्मीना उत्पाद :-लद्दाख विश्व में सर्वाधिक (लगभग 50 मीट्रिक टन) और सबसे उन्नत किस्म के पश्मीना का उत्पादन करता है। + +10414. इसका उपयोग दूध उत्पादन के साथ-साथ खेतों की जुताई में भी उपयोग किया जा सकता है। + +10415. वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के सरकार के संकल्प में मत्स्य पालन से किसानों को आर्थिक लाभ प्राप्त हो सकता है। + +10416. विश्व बैंक के अनुसार महासागरों के संसाधनों का उपयोग जब आर्थिक विकास, आजीविका तथा रोज़गार एवं महासागरीय पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर किया जाता है तो वह नीली अर्थव्यवस्था (Blue Economy) के अंतर्गत आता है। + +10417. निष्पक्ष एवं मौलिक इतिहास को बढ़ावा देना। + +10418. इसके बाद आईआईटी दिल्ली 43 वें स्थान पर और आईआईटी मद्रास 50 वें स्थान पर है। + +10419. ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने लगातार चौथे वर्ष शीर्ष स्थान बरकरार रखा। + +10420. हैकथॉन का एनुअल डेवलपर कॉन्फ्रेंस D 3 कोड (Dream, Develop and Disrupt) दिसंबर में आयोजित किया जाएगा। + +10421. यह एक नॉन-स्‍टॉप डिजिटल उत्‍पाद विकास प्रतिस्पर्द्धा है, जहाँ नवोन्‍मेषी समाधानों के लिये टेक्‍नोलॉजी के छात्रों के समक्ष समस्‍याएँ रखी जाती हैं। + +10422. इसकी स्थापना स्टीफन रॉस (Stephen Ross) ने वर्ष 1998 में की थी। + +10423. हालाँकि वैश्विक संस्थानों द्वारा ‘टर्नटिन’ (अमेरिकी साहित्यिक चोरी रोधी सॉफ़्टवेयर) का प्रयोग किया जाता है, परंतु इसे बिना किसी अतिरिक्त सुविधा के भी 10 गुना महँगा पाया गया। + +10424. शोध संस्कृति में सुधार के लिये गठित यूजीसी पैनल: + +10425. इस दौरान सरकार द्वारा नियुक्त उच्चाधिकार प्राप्त विशेषज्ञ समिति (Empowered Expert Committee- EEC) की रिपोर्ट पर विचार किया गया जिसमें 15 सरकारी संस्थानों और 15 निजी संस्थानों को उत्‍कृष्‍ट संस्‍थान का दर्जा दिये जाने की बात कही गई थी। + +10426. उपरोक्त सिद्धांतों के अनुसार, UGC ने QS-2020 की वैश्विक रैंकिंग के आधार पर 15 अनुशंसाओं की सूची को रैंकिंग दी है। जहाँ एक ही स्‍थान पर दो संस्‍थान हैं वहां QS-2019 के आधार पर निर्णय लिया गया है। + +10427. इस परियोजना के माध्यम से स्थानीय स्कूलों में शिक्षकों, अभिभावकों और समुदाय के सदस्यों की मदद से विभिन्न प्रकार के फलों एवं सब्जियों का उत्पादन करके लोगों को स्वावलंबी बनाने और बच्चों के बीच कुपोषण से लड़ने के लिये (मार्च 2020 तक) प्रत्येक स्कूल, आंगनवाड़ी, चाइल्ड केयर संस्थानों और हॉस्टल में अपने स्वयं के फलों एवं सब्जियों को उगाने की अनुमति दी गई है। + +10428. 86वें संविधान संशोधन, 2002 द्वारा 6-14 वर्ष की आयु वाले सभी बच्चों के लिये प्राथमिक शिक्षा को एक मौलिक अधिकार के रूप में निःशुल्क और अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराना आवश्यक बना दिया गया है। + +10429. राष्ट्रीय रक्षा निधि प्रधानमंत्री ने इस निधि के तहत मृत रक्षाकर्मियों के आश्रितों के लिये प्रधानमंत्री छात्रवृत्ति योजना में परिवर्तन को मंज़ूरी दे दी है। + +10430. इस प्रक्रिया के संचालन हेतु एक कमान एवं नियंत्रण केंद्र (Command and Control Centre) की स्थापना की गई है जो गांधीनगर में स्थित है। केवल शिक्षक ही नहीं, शिक्षकों की निगरानी करने वाले कर्मियों को भी निगरानी हेतु जीपीएस-सक्षम टैबलेट (GPS-enabled Tablets) सौंपे जाएंगे और जियोफेंसिंग (Geofencing) के माध्यम से शिक्षकों की ट्रैकिंग की जा सकेगी तथा मोबाइल डिवाइस में एक निर्दिष्ट क्षेत्र में प्रवेश करने या उस क्षेत्र को छोड़ने पर अलर्ट प्राप्त होगा। + +10431. ये संस्थान ग्राम स्तरीय उद्यमियों (Village Level Entrepreneurs- VLE) को प्रशिक्षित करेंगे जो कि ग्राम विकास योजना के हिस्से के रूप में सीएससी चलाते हैं। + +10432. संबंधित मुद्दे: + +10433. इसका विज़न राष्ट्रीय स्तर पर 80 प्रतिशत साक्षरता दर प्राप्त करना है। + +10434. जीवन स्तर तथा आर्थिक स्थिति में सुधार लाने हेतु नवसाक्षरों और निरक्षरों में आवश्यक कौशल विकसित करना। + +10435. MHRD द्वारा पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (Public-Private Partnership-PPP) मॉडल के तहत प्रौद्योगिकी को विकसित करने वाली एडटेक कंपनियों (Educational Technology Companies) के साथ एक राष्ट्रीय सहयोग स्थापित जाएगा। + +10436. केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने प्राथमिक स्तर पर शिक्षा को सशक्त बनाने के लिये एक राष्ट्रीय मिशन 'नेशनल इनीसिएटिव फॉर स्कूल हेड्स एंड टीचर्स होलीस्टिक एडवांसमेंट’ अर्थात् निष्ठा (National Initiative for School Heads and Teachers Holistic Advancement-NISHTHA) पहल शुरू की है। इसके साथ-साथ निष्ठा की वेबसाइट, प्रशिक्षण मॉड्यूल, प्राइमर बुकलेट और एक मोबाइल एप भी लॉन्च की गई है। इसका उद्देश्य छात्रों में महत्त्वपूर्ण सोच को प्रोत्साहित करने और बढ़ावा देने के लिये शिक्षकों को प्रेरित एवं प्रशिक्षित करना है। + +10437. स्नातक (Undergraduate-UG) स्तर पर कुल नामांकन में से 35.9% ने कला/मानविकी/ सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों को प्राथमिकता दी। 16.5% विद्यार्थियों ने विज्ञान संकाय और 14.1% विद्यार्थियों ने वाणिज्य संकाय में नामांकन कराया हैं। अभियांत्रिकी अर्थात् इंजीनियरिंग चौथे स्थान पर है। + +10438. 6 क्षेत्रीय कौशल परिषदों – सूचना प्रौद्योगिकी (IT), रिटेल (Retail), लॉजिस्टिक्स (Logistics), टूरिज़्म (Tourism), BFSI (Banking, Financial Services and Insurance), फूड प्रोसेसिंग (Food Processing) ने कौशल विकास के क्षेत्र में बढ़त बना ली है। + +10439. 10-24 वर्ष की आयु के प्रत्येक युवा की वर्ष 2030 तक स्कूल,शिक्षण,प्रशिक्षण,स्वरोजगार या आयु-उपयुक्त रोज़गार के किसी-न-किसी रूप से संबद्धता सुनिश्चित करना है। + +10440. अंतर्राष्ट्रीय छात्र मूल्यांकन कार्यक्रम (Programme for International Student Assessment- PISA) 73 देशों में शिक्षा प्रणाली का एक अंतर्राष्ट्रीय मूल्यांकन कार्यक्रम है। + +10441. शामिल किए गए कुल 120 शहरों को लंदन को लगातार दूसरे वर्ष दुनिया के सर्वश्रेष्ठ शहर के रूप में नामित किया गया है,जबकि दूसरे नंबर पर जापान का टोक्यो तथा तीसरे नंबर पर ऑस्ट्रेलिया का मेलबर्न है। + +10442. QS टॉप-120 रैंकिंग में एशिया के दो शहरों को टॉप-10 में जगह मिली है- टोक्यो दूसरे और सियोल 10वें स्थान पर है। + +10443. वैज्ञानिक के. कस्तूरीरंगन के नेतृत्व वाली समिति द्वारा तैयार की गई है। इसके तहत शिक्षा के अधिकार अधिनियम (Right To Education- RTE Act) के दायरे को विस्तृत करने का प्रयास किया गया है, साथ ही स्नातक पाठ्यक्रमों को भी संशोधित किया गया है। + +10444. नई शिक्षा नीति का मसौदा तैयार करने का एनडीए सरकार का यह दूसरा प्रयास है। + +10445. इस वर्ष ये अवार्ड मानविकी (Humanities), कला (Arts) और सामाजिक विज्ञान (Social Sciences), भौतिक विज्ञान (Physical Sciences), जीव विज्ञान (Biological Sciences) एवं प्रौद्योगिकी विकास (Technology Development) में अनुसंधान के लिये प्रदान किये जाएंगे। + +10446. केंद्रीय विश्‍वविद्यालयों में स्‍वस्‍थ प्रतियोगिताओं और उन्‍हें पूरे विश्‍व की श्रेष्‍ठ प्रक्रियाओं को अपनाने के लिये प्रेरित करने हेतु वर्ष 2014 में ये अवार्ड स्‍थापित किये गए थे। तब से प्रत्येक वर्ष विभिन्‍न श्रेणियों में ये अवार्ड प्रदान किये जाते हैं। + +10447. वर्तमान में छह भाषाओं यानी तमिल, संस्कृत, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम और ओडिया को शास्त्रीय भाषाओं का दर्जा दिया जा चुका है। + +10448. उस भाषा की साहित्यिक परंपरा स्वयं उसी भाषा की हो, न कि किसी अन्य भाषा से उधार ली गई हो। + +10449. रिपोर्ट की अन्य प्रमुख सिफारिशें + +10450. राजनीतिक मतभेदों के कारण सुभाष बोस ने 1939 में कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और बंगाल में कॉन्ग्रेस के अंतर्गत ऑल इंडिया फ़ॉरवर्ड ब्लॉक (All India Forward Bloc) का गठन किया। + +10451. + +10452. लगभग तानाशाह + +10453. आदमी कुछ लतें तो इसलिए पाल लेता है + +10454. कुहनी से धकियाते हुए वे + +10455. बिना मरे हत्यारा नहीं बनता कोई + +10456. अच्छी आदतें कई बार जिद बन जाती हैं + +10457. उनके बारे में + +10458. हो गयी है पीर + +10459. इस कविता में कवि ने देशवासियों को जागरण का संदेश देते हुए अमूल्य परिवर्तन का आवाहन किया है। "कविता में कवि भारतीय जनता की पीड़ा को पर्वत जैसी विशाल बताते हुए उसे क्रांतिकारी बदलाव के लिए आवाहन करते हैं करते। + +10460. ’’मेरे सीनें में नही तेरे सीनें में सही ’’ + +10461. 1 भाषा खड़ी बोली है। + +10462. 6 आज की सामाजिक स्थिति पर व्यंग किया गया है। + +10463. + +10464. तरुनाई आई सुघर मथुरा बसि ससुराल।। + +10465. बिहारी की कविता का मुख्य विषय श्रृंगार है। उन्होंने श्रृंगार के संयोग और वियोग दोनों ही पक्षों का वर्णन किया है। संयोग पक्ष में बिहारी ने हावभाव और अनुभवों का बड़ा ही सूक्ष्म चित्रण किया हैं। उसमें बड़ी मार्मिकता है। संयोग का एक उदाहरण देखिए - + +10466. चढी हिंडोरे सी रहे, लगी उसासनु साथ॥ + +10467. बिहारी मूलतः श्रृंगारी कवि हैं। उनकी भक्ति-भावना राधा-कृष्ण के प्रति है और वह जहां तहां ही प्रकट हुई है। सतसई के आरंभ में मंगला-चरण का यह दोहा राधा के प्रति उनके भक्ति-भाव का ही परिचायक है - + +10468. भक्ति के हार्दिक भाव बहुत ही कम दोहों में दिखाई पड़ते हैं। समयावस्था विशेष में बिहारी के भावुक हृदय में भक्तिभावना का उदय हुआ और उसकी अभिव्यक्ति भी हुई। बिहारी में दैन्य भाव का प्राधान्य नहीं, वे प्रभु प्रार्थना करते हैं, किंतु अति हीन होकर नहीं। प्रभु की इच्छा को ही मुख्य मानकर विनय करते हैं। + +10469. प्रकृति-चित्रण में बिहारी किसी से पीछे नहीं रहे हैं। षट ॠतुओं का उन्होंने बड़ा ही सुंदर वर्णन किया है। ग्रीष्म ॠतु का चित्र देखिए - + +10470. रे गंधी मतिअंध तू इत्र दिखावत काहि॥ + +10471. शैली + +10472. (साहित्य में स्थान) + +10473. अपने काव्य गुणों के कारण ही बिहारी महाकाव्य की रचना न करने पर भी महाकवियों की श्रेणी में गिने जाते हैं। उनके संबंध में स्वर्गीय राधाकृष्णदास जी की यह संपत्ति बड़ी सार्थक है - + +10474. '"सूर की दृष्टि में बालकृष्ण में भी परमब्रह्म अवतरित रहे हैं, उनकी बाल-लीलाओं में भी ब्रह्मतत्व विद्यामान है जो विशुध्द बाल-वर्णन की अपेक्षा, कृष्ण के अवतारी रूप का परिचायक है। तभी तो, कृष्ण द्वारा पैर का अंगूठा चूसने पर तीनों लोकों में खलबली मच जाती है । + +10475. मेरे लाल को आउ निंदरिया, काहै ना आनि सुवावै। + +10476. जो सुख सूर अमर मुनि दुर्लभ, सो नंदभामिनी पावै।" + +10477. ह्वै हौं पूत नंद बाबा को , तेरौ सुत न कहैहौं॥ + +10478. श्यामसुन्दर कह रहे हैं `मैया! मैं तो यह चंद्रमा-खिलौना लूँगा यदि तू इसे नहीं देगी तो अभी पृथ्वी पर लोट जाऊँगा, तेरी गोद में नहीं आऊँगा । न तो गैया का दूध पीऊँगा, न सिर में चुटिया गुँथवाऊँगा । मैं अपने नन्दबाबा का पुत्र बनूँगा, तेरा बेटा नहीं कहलाऊँगा ।' तब यशोदा हँसती हुई समझाती हैं और कहती हैं-`आगे आओ ! मेरी बात सुनो, यह बात तुम्हारे दाऊ भैया को मैं नहीं बताऊँगी । तुम्हें मैं नयी पत्नी दूँगी ।' यह सुनकर श्याम कहने लगे` तू मेरी मैया है, तेरी शपथ- सुन ! मैं इसी समय ब्याह करने जाऊँगा।' सूरदास जी कहते हैं--प्रभो! मैं आपका कुटिल बाराती बारात में व्यंग करने वाला बनूँगा और आपके विवाह में मंगल के सुन्दर गीत गाऊँगा।इस पद मे नन्हा से बालक के हटी स्वभाव को दिखाया हे कि वह सिर्फ अपने मन की करवाना चाहता है । + +10479. कबहुँक बल कौं टेरि बुलावति , इहिं आँगन खेलौ दोउ भैया । + +10480. तू जो कहति बल की बेनी ज्यौं, ह्वै है लाँबी-मोटी । + +10481. मैया मैं नहिं माखन खायौ । + +10482. डारि साँटि मुसुकाइ जसोदा, स्यामहिं कंठ लगायौ । + +10483. + +10484. इस तरह बैंक या फर्म अपने ग्राहकों के पैसे का उपयोग करने के बजाय अपने स्वयं के खाते से संबंधित स्टॉक (Stock),डेरिवेटिव्स (Derivatives),बॉण्डस (Bonds),कमोडिटीज़ या अन्य वित्तीय साधनों का इस्तेमाल करता है। + +10485. यह बैंकों द्वारा प्रक्रिया शुरू होने यानी प्रोसेसिंग,भुगतान,निगरानी और ब्याज अनुदान के दावों की ट्रैकिंग के लिये मासिक आधार पर शुरू से अंत तक ऑनलाइन समाधान उपलब्ध कराता है। + +10486. बियर मार्केट के दौरान शेयर की कीमतें लगातार गिरती हैं, जिसके परिणामस्वरूप निवेशकों का शेयर मार्केट में निवेश कम कर दिया जाता है। + +10487. भारत की तत्काल भुगतान सेवा (India’s Immediate Payment Service-IMPS) को उन 54 देशों के विश्लेषण में दुनिया की सबसे अच्छी वास्तविक समय भुगतान सेवा का दर्जा दिया गया है, जहाँ इस प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। + +10488. IMPS के लाभ: + +10489. रिज़र्व बैंक ने निर्वाचित निदेशकों के लिये ‘उपयुक्त और योग्य’ (Fit and Proper) मानदंड के आधार पर दिशा-निर्देश जारी किये हैं और साथ ही सभी PSB के लिये नामांकन और पारिश्रमिक समिति के गठन को भी अनिवार्य किया है। + +10490. स्टॉक ब्रोकिंग या किसी अन्य बैंक अथवा वित्तीय संस्थान के बोर्ड का कोई सदस्य किराया क्रय (Hire Purchase), साहूकारी (Money Lending), निवेश, लीजिंग व अन्य सह-बैंकिंग (Para Banking) गतिविधियों से संबंधित व्यक्ति नियुक्ति का पात्र नहीं हो सकता है। + +10491. विनियमन और पर्यवेक्षण तंत्र को मजबूत करने के उद्देश्य से बनाई यह नीति, एक मध्यम अवधि की नीति है। + +10492. इस प्रकार की कंपनियों में समता अंशों पर किया गया निवेश कुल संपत्ति के 60 प्रतिशत से कम नहीं होता है। + +10493. स्तंभ 1: वित्तीय और आर्थिक अस्थिरता से उत्पन्न होने वाले उतार-चढ़ाव को अवशोषित करने की बैंकिंग क्षेत्र की क्षमता में सुधार। + +10494. कर-मुक्त बॉण्ड में अर्जित ब्याज को कर से मुक्त रखा जाता है। ऐसे बॉण्ड की अवधि आमतौर पर 10, 15 या 20 वर्ष की होती है। ये बॉण्ड निवेशकों को एग्जिट रूट की पेशकश करने के लिये स्टॉक एक्सचेंजों में भी सूचीबद्ध किये जाते हैं। ये बॉण्ड प्रकृति में कर-मुक्त, सुरक्षित, प्रतिदेय और अपरिवर्तनीय हैं। इस तरह के बॉण्ड को स्टॉक एक्सचेंजों में भी सूचीबद्ध किया जाता है और केवल डीमैट खातों के माध्यम से इनका कारोबार किया जाता है। प्रकटीकरण और निवेशक सुरक्षा दिशा-निर्देशों के तहत सेबी द्वारा परिभाषित योग्य संस्थागत निवेशक इन बॉण्डों में निवेश कर सकते हैं। ट्रस्ट, सहकारी और क्षेत्रीय बैंक तथा कॉर्पोरेट कंपनियों जैसी संस्थाएँ भी कर-मुक्त बॉण्ड में नियमित रूप से निवेश करती हैं। + +10495. इसे भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और भारतीय बैंक संघ (IBA) द्वारा भारत में भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 (The Payment and Settlement Systems Act, 2007) के प्रावधानों के तहत एक मज़बूत भुगतान और निपटान अधोसंरचना बनाने के लिये स्थापित किया गया है।इसे कंपनी अधिनियम 1956 की धारा 25 के प्रावधानों के तहत "नॉट फॉर प्रॉफिट" कंपनी के रूप में शामिल किया गया है। + +10496. आर्बिट्रेज फंड (Arbitrage Fund) एक प्रकार का म्यूचुअल फंड (Mutual Fund). + +10497. व्यक्तिगत देखभाल संबंधी उत्पादों (Personal Care Products) के मामले में यह अंतर 13% तक बढ़ जाता है। + +10498. नेशनल हाउसिंग बैंक (NHB) ने हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों (HFCs) के लिये CAR को मार्च 2022 तक चरणबद्ध तरीके से बढ़ाकर 15% करने का प्रस्ताव किया है। + +10499. बेसल-III मानदंडों के अंतर्गत बैंकों के लिये न्यूनतम पूंजी पर्याप्तता अनुपात 8% है + +10500. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक. + +10501. LCR का प्रमुख उद्देश्य तरलता जोखिम (Liquidity Risk) की स्थिति से निपटने के लिये बैंकों के पास उच्च गुणवत्ता वाली तरल संपत्तियों का होना सुनिश्चित करना है। + +10502. संपत्ति देयता प्रबंधन के अंतर्गत बैंकों द्वारा तरलता या ब्याज दरों में परिवर्तन के कारण संपत्ति और दायित्वों के बीच अंतर से उत्पन्न जोखिम का पता चलता है। + +10503. इक्विटी शेयरों,वरीयता शेयरों, बाॅण्ड,डिबेंचर, ऋण या ऋण में निवेश के रूप में CIC अपनी शुद्ध संपत्ति का 90% से कम नहीं रख सकती हैं। + +10504. भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (National Payments Corporation of India- NPCI) द्वारा अधिकृत भारत बिल भुगतान, केंद्रीय इकाई के रूप में कार्य करता है, जो सभी प्रतिभागियों के लिये तकनीकी एवं व्यावसायिक आवश्यकताओं, व्यावसायिक मानकों, नियमों तथा प्रक्रियाओं की स्थापना हेतु ​ज़िम्मेदार है। + +10505. ये मानक बैंकिंग क्षेत्र में सुधारों की एक श्रंखला प्रस्तुत करते हैं जिसके द्वारा बैंकों के विनियमों को सुधारने, जोखिम प्रबंधन और बैंकों का पर्यवेक्षण किया जाता है। + +10506. समिति एक पद्धति जिसमें मात्रात्मक संकेतक और गुणात्मक तत्त्व दोनों शामिल होते हैं का उपयोग करते हुए वैश्विक प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण बैंकों (G-sibs) की पहचान करती है । + +10507. इसका उद्देश्य YONO कैश एप के माध्यम से अगले दो वर्षों में पूरे लेनदेन तंत्र को एक मंच के तहत एकीकृत करना है। + +10508. केंद्रीय बैंक, आर्थिक प्रणाली के अंतर्गत तरलता में कमी लाने के लिये सरकारी प्रतिभूतियाँ बेचता है और इस प्रणाली को नियंत्रित रखने के लिये सरकारी प्रतिभूतियाँ खरीदता है। + +10509. 15 फरवरी को समाप्त पखवाड़े के दौरान गैर-खाद्य ऋण या व्यक्तियों और कंपनियों के लिये ऋण 14.3 प्रतिशत प्रति वर्ष बढ़ा, जो पिछले एक पखवाड़े में 14.4 प्रतिशत (पिछले वर्षों की तुलना में) धीमा था। इसने जमा वृद्धि को पार कर 10.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है। + +10510. इसी प्रकार 15 वर्ष पहले उत्तर प्रदेश में गठित एक महिला विकास परिषद नामक स्वयं-सहायता समूह के 49 ज़िलों में लगभग 1.5 मिलियन सदस्य हैं। स्वयं-सहायता समूहों का मुख्य उद्देश्य माइक्रोफाइनेंस,उद्यम प्रशिक्षण,मातृ स्वास्थ्य पर सूचना, पोषण शिक्षा और राजनीतिक भागीदारी को बढ़ावा देना है। स्वयं-सहायता समूह, शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य, सामाजिक संपर्क, मनोरंजन, सुरक्षा, समुदाय और राजनीतिक सशक्तीकरण जैसे कल्याण के विभिन्न आयामों को बढ़ावा देते हैं। + +10511. सूरदास जी कृष्ण काव्य धारा के महान कवि थे वह अपने भागवान की लीलाओं का वर्णन किया करते थे ।उन्होंने अपनी रचना सूरसागर मे कृष्ण की बाल लीला का वर्णन से लेकर किशोरावस्था का वर्णन ऐसे किया है कि जैसे उन्होंने वह सारी घटनाओ को खुद अपनी आँखों से देखा हो। वह चित्रण बहुत ही मनोहर और प्रभावशाली है ।सूरदास जी को वात्सल्य रचना का प्रमुख कवि कहा है । + +10512. ऐसा करते हुए वह जो मन में आता हैं वही गुनगुनाने भी लगती हैं। लेकिन कन्हैया को तब भी नींद नहीं आती हैं। इसलिए यशोदा नींद को उलाहना देती हैं की आरी निंदिया तू आकर मेरे लाल को सुलाती क्यों नहीं? तू शीघ्रता से क्यों नहीं आती? देख, तुझे कान्हा बुलाता हैं। जब + +10513. मुख दधि पोंछी बुध्दि एक किन्हीं दोना पीठी दुरायो। डारी सांटी मुसुकाइ जशोदा स्यामहिं कंठ लगायो।। + +10514. कृष्ण भक्ति का भाव उजागर होते हैं। वहीं उन्होंने अपनी रचनाओं में श्री कृष्ण की बाल लीलाओं और उनके सुंदर रूप  का इस तरह वर्णन किया है कि मानो उन्होंने खुद अपनी आंखों से नटखट कान्हा की लीलाओं को देखा हो। + +10515. सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/पशुपालन: + +10516. FCI का उद्देश्य सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System- PDS) तथा अन्य कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन हेतु अनाजों के स्टॉक की संग्रहण आवश्यकताओं को पूरा करना है। + +10517. FCI तथा राज्य सरकारों द्वारा खाद्यान्नों का निपटारा खुली बाज़ार बिक्री योजना (Open Market Sales Scheme- OMSS) के तहत किया जाता है। इसके अंतर्गत समय-समय पर खाद्यान्नों की बिक्री पूर्व निर्धारित कीमतों पर खुले बाज़ार में की जाती है ताकि अनाजों की कमी के समय इसकी आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके तथा बाज़ार की कीमतों में स्थिरता बनी रहे। + +10518. कवर एंड प्लिंथ (Cover and Plinth- CAP) स्टोरेज: यह अनाजों को संग्रह करने की सामान्य एवं सस्ती विधि है। इसके तहत अनाज को अस्थायी तरीके से खुले में किसी वाटरप्रूफ वस्तु से ढक कर रख दिया जाता है। इसमें तेज़ हवा से नुकसान होने का खतरा होता है। + +10519. विभिन्न राज्यों में उपलब्ध भंडारण क्षमता 75% से भी कम की है जिसकी वजह से उसमें ताज़े अनाजों को रखने के लिये जगह नहीं होती है। + +10520. देश में कोल्ड स्टोरेज का वितरण भी संतुलित नहीं है देश के अधिकांश कोल्ड स्टोरेज उत्तर प्रदेश, गुजरात, पंजाब तथा महाराष्ट्र में स्थित हैं। इसके अलावा देश के कुल कोल्ड स्टोरेज क्षमता के दो-तिहाई भाग में केवल आलू रखा जाता है। + +10521. भंडारगृह तथा eNWR के उपयोग तथा इनकी लोकप्रियता को बढ़ावा देना। + +10522. समाचार पत्र मिंट द्वारा किसान प्रेम सिंह से हुई बातचीत में यही बात सामने आई कि खेती के भरोसे जीवन यापन करना और अपने पूरे परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति कर पाना अब आसान काम नहीं रह गया है। ऐसी स्थिति में यदि प्रेम सिंह जैसे किसान अपनी फसलों को मंडी में न्यूनतम लागत पर बेचने की बजाय किसी कांट्रेक्टर (फूड प्रोसेसिंग संबंधी) को बेचते हैं तो यह उनके लिये अधिक फायदेमंद एवं संतोषजनक होगा। + +10523. खरीद, भंडारण और वितरण के प्रमुख उद्देश्यों में FCI के दोषों को देखते हुए FCI के पुनर्गठन के लिये शांता कुमार की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया। + +10524. यह कविता भवानी प्रसाद मिश्र द्वारा रचित है। वह इस कविता में गीत के चरित्रों को दर्शाना चाहते हैं कि आज की कविता कर्म को लेकर कवि की मनोदशा कैसी है। आज का कवि किस प्रकार से लाचार और विवश हो गया है। आज के कवि की कविता में लाचारगी परिलक्षित होती है और वहां उन लोगों को स्पष्ट कर देना चाहता है कि वह किसी शौक के लिए इस कार्य को नहीं कर रहा है। बल्कि उन्हें मजबूरी में इस कार्य को करना पड़ रहा है इसलिए कवि कहता है कि वह हर तरह के गीत बेचता है। + +10525. इस पंक्ति में कवि ग्राहक को अपने माल का बखान कर रहा है वह ग्राहक को यहां बताने का काम कर रहा है कि इस गीत को गाकर देखें यहां आपके किसी भी समय के लिए हैं। यहां आप इसको चेक कर सकते है। यह सुबह का गीत है शाम का गीत है सुख का है दुख का है वह बढ़ाने वाला गीत है। ऐसे कई और गीत हैं जो पहाड़ी पर चढ़ जाता है हैं पढ़ाऐ से पढ़ जाता हैं। आपको अगर उनमें से कोई सा भी पसंद नहीं आया है तो मैं आपको और भी गीत दिखा सकता हूं। शायद उन गीतों में से कुछ आपको पसंद आ जाए या आपके मन की इच्छा के अनुसार गीत मिल जाए। + +10526. भवानी प्रसाद जी की कविता गीत फरोश की कुछ पंक्तियां- + +10527. बेकाम नहीं है काम बताऊंगा + +10528. जिन लोगों ने तो बेच दिए अपने ईमान + +10529. + +10530. उल्लेखनीय है कि पूरी विधानसभा को सामूहिक रूप से वर्ष 1984 में यूनेस्को की विश्व विरासत स्थल में शामिल किया गया था। + +10531. कुंभकोणम (तमिलनाडु) में सूर्यनार कोविल मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में द्रविड़ शैली में हुआ था। + +10532. सूर्य पहाड़ मंदिर, गोलपारा (असम)। + +10533. वर्ष 1920 के दशक में भारतीय पुरातत्त्व विभाग ने सिंधु घाटी में खुदाई की जिसमें दो पुराने शहरों मोहनजोदाड़ो और हड़प्पा के खंडहर का पता चला। + +10534. सांस्कृतिक धरोहर स्थल + +10535. चंपानेर-पावागढ़ पुरातात्त्विक पार्क (2004) + +10536. फतेहपुर सीकरी (1986) + +10537. राजस्थान में पहाड़ी किला (2013) + +10538. कुतुब मीनार और इसके स्मारक, दिल्ली (1993) + +10539. ताज महल (1983) + +10540. काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान (1985) + +10541. पश्चिमी घाट (2012) + +10542. क्योंकि इसमें मानव जीवन के हर एक उतार-चढ़ाव, रंग, लय और भावना का प्रतिबिम्ब देखने को मिलता है। भावनायें शब्दों के अर्थ के परे होती हैं। भाषा उसे बांध नहीं सकती। साहित्य के अनेक रूप हैं। कहानियों या नाटक में तो फिर भी विभिन्न पात्र अलग-अलग संवेदना व्यक्त करते हैं या फिर उनसे जुड़े होते हैं इस लिए समझना या उनसे जुड़ जाना बहुत कठिन नहीं होता। परन्तु कविता तो उस समुद्र के समान है जिसका कोई ओर-छोर नहीं दिखता है। ऊपर से स्थिर लगता है पर अन्दर ना जाने कितने रहस्य, या संवेदनाओं को छिपाए रहता है। एक ही कविता को जितनी बार पढ़िए, नित्य नए अभिप्राय या सोच से परिचय होता है। + +10543. माँ होने के नाते कितनी बार मैंने प्रयत्न किया पर हर बार सफलता नहीं मिलती अपने बच्चों के साथ। उस समय छोड़ देना बेहतर होता है क्योंकि हर शिशु अपने कर्म का भागी होता है। आप मार्ग दर्शन कर सकते हैं, अपने मान्यताओं का प्रतिरूप हो सकते हैं पर उसके बदले आप उसका कर्म नहीं कर सकते। जीवन में वह था एक कुसुम, थे उसपर नित्य निछावर तुम , वह सूख गया तो सूख गया। इसका ये मतलब नहीं की हमें प्रयास करना छोड़ देना चाहिए अपितु फल हमारे हाथ में नहीं होता इस बात को समझना चाहिए। और आप अकेले नहीं है। + +10544. मारे जायेंगे। + +10545. कमीज पर जिनके दाग नहीं होंगे, मारे जायेंगे। + +10546. सबसे बड़ा अपराध है इस समय + +10547. + +10548. बंगाल में अंग्रेजी शिक्षा और भाषा दोनों के समर्थन के पक्ष में नवजागरण की शरूआत हुई। इसकी शरूआत 1814 ई० से मानी गयी है, जब राजा राममोहन राय ने 'आत्मीय सभा' की स्थापना की। राजा राममोहन राय ने हिन्दू धर्म में सुधार लाने के लिए और ऐकेश्वाद का प्रचार करने के लिए सन् 1828 ई. में 'ब्रह्म समाज' नामक एक सोसाइटी की स्थापना की। राजा राममोहन राय आधुनिक शिक्षा के पक्षपाती थे। भारतीय समाज को एक नई दिशा देने के लिए उन्होंने लेखों, निबंधों एवं पत्रिकाओं के माध्यम के अपने विचारों को जनता तक पहुँचाया। + +10549. बंगाल के नवजारण के आख़िरी दौर पर गिरीश चंद्र घोष जैसे नाटककार, बंकिम की परम्परा में रमेशचन्द्र दत्त जैसे ऐतिहासिक और सामाजिक उपन्यासकार (जिन्हें हम महान आर्थिक इतिहासकार के तौर पर भी जानते हैं), मीर मुशर्रफ़ हुसैन जैसे मुसलमान कवि,की छाप रही।लेकिन, रवींद्रनाथ ठाकुर की प्रतिभा के सामने ये सभी प्रतिभाएँ फीकी पड़ गयीं। रवींद्रनाथ ने अपने रचनात्मक और वैचारिक साहित्य से एक पूरे युग को नयी अस्मिता प्रदान की। उन्होंने अपने युग पर आलोचनात्मक दृष्टि फेंकी। बंगाल के नवजागरण का विस्तार राजा राममोहन राय से आरम्भ होकर रबीन्द्रनाथ ठाकुर तक माना जाता है। + +10550. सैद्धान्तिक आधारभूमि. + +10551. राष्ट्रीय नवजागरण की परंपरा. + +10552. 1857 की राज्य क्रांति. + +10553. भारतेंदु युग का साहित्य व्यापक स्तर पर गदर से प्रभावित है। इसका पहला प्रमाण यह है कि इस साहित्य में किसानों को लक्ष्य करके उन्हें संगठित और आंदोलित करने की दृष्टि से जितना गद्य पद्य में लिखा गया है, उतना दूसरी भारतीय भाषाओं में नहीं लिखा गया है। गदर के केवल 10 साल बाद 1868 में भारतेंदु जी ने कवि-वचन-सुधानाम की पत्रिका निकाली। + +10554. + +10555. दीघ निकाय में उपरोक्त सूची में से केवल बारह महाजनपदों का उल्लेख किया गया है। इसमें अश्मक, अवंती, गांधार और कंबोज का उल्लेख नहीं मिलता है। + +10556. गणतंत्र में राजस्व पाने का अधिकार गण या गोत्र का प्रत्येक प्रधान का होता था जो राजन् कहलाता था। राजतंत्र में एकमात्र राजा राजस्व पाने का अधिकारी होता था। + +10557. गौतम बुद्ध ब्राह्मणों,क्षत्रियों और गृहपतियों की सभा में गए, परंतु शूद्रों की सभा में उनके जाने का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। + +10558. D. भांडागारिक 4. भंडारगृह का अध्यक्ष + +10559. ‘आगम’:-महावीर की शिक्षाओं को संग्रहित करने वाले ग्रंथ। + +10560. यह त्योहार जैन समुदाय द्वारा जैन धर्म के अंतिम आध्यात्मिक शिक्षक की स्मृति में व्यापक रूप से मनाया जाता है। इस उत्सव पर भगवान महावीर की मूर्ति के साथ निकलने वाले जुलूस को ‘रथ यात्रा’ (Rath Yatra) कहा जाता है। स्तवन या जैन प्रार्थनाओं को याद करते हुए भगवान महावीर की प्रतिमाओं को एक औपचारिक स्नान कराया जाता है जिसे अभिषेक (Abhisheka) कहा जाता है। + +10561. जैन धर्म में ईश्वर की मान्यता नहीं है जबकि आत्मा की मान्यता है। महावीर पुनर्जन्म एवं कर्मवाद में विश्वास करते थे। + +10562. हिन्दी कविता (मध्यकाल और आधुनिक काल) सहायिका/कबीर का धार्मिक आडंबर और कर्मकांड का विरोध: + +10563. आन बाट काहे नहीं आया !! ” + +10564. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, + +10565. अर्थ: इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है। जो सार्थक को बचा लेंगे और निरर्थक को उड़ा देंगे। + +10566. मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान। + +10567. धकी हारी लौटी है वो आफिस से अभी + +10568. आँखों को हौले से दबाती है हथेलियों से + +10569. दूसरे ही पल आवाज़ लगाता हूँ + +10570. होंठों को तिरछा करती अजीब ढंग से मुस्कुराती है। + +10571. कि किन बादलों में रखी हैं, बारिशें, किनमें रखा है कपास + +10572. एक काम पूरा नहीं करोगे और फैला दोगे + +10573. सन्दर्भ - प्रस्तुत पंक्तिया कवि राजेश जोशी द्वारा रचित है। यह उनकी कविता 'उसकी गृहस्थी' से उद्धरित है। + +10574. वह बड़े ही गंभीर-भाव से कहती है कि तुम्हें कोई चीज नहीं मिलेगी तुम्हें नहीं पता है कि कौन-सी चीज़ कहाँ रखी है? मैं ही जानती हूँ। उसके होठों की बनावट अजीब-सी हो जाती है। वे तिरछे हो जाते हैं। वह चकित-भाव से मुस्कराने का प्रयास करती है पति का मानना है कि पत्नी के होठों की मुस्कराहट का अर्थ समझना बड़ा ही कठिन हो जाता है उसमें छिपे हुए भावों को समझना कठिन-सा हो जाता है। वह मुस्कराहट अपने में किन-भावों को छिपाए हुए है, इसे जानना जरा कठिन हो जाता है। पति को ऐसा प्रतीत होता है जैसे वह कहना चाह रही है कि तुम्हारा मेरी रसोई के संसार को जानना कठिन है। यह मेरी कार्यशाला का मेरा ही संसार है। इसका ज्ञान मुझे ही है। तुम्हें इस की समझ या जानकारी नहीं है। इसे तुम्हारे लिए जानना बहुत ही कठिन है। तुम्हें नहीं मालूम कि किन बादलों के टुकड़ों में वर्षा की बूंदे छिपी हुई हैं। वे कहाँ हैं ? किन में रखा है कपास। + +10575. (3) वह गृहस्थी का मूल आधार हूँ। + +10576. (8) वह सरल, स्वाभाविक एवं अर्थ-गर्भत्व को आत्मसात किए हुए है। + +10577. सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा सहायिका/जनसांख्यिकी: + +10578. इसका उद्देश्य चार पूर्वोत्तर राज्यों के ग्रामीण इलाकों में महिलाओं, बेरोज़गार युवकों और वंचितों की आजीविका में सुधार लाना है। + +10579. + +10580. ई-औषधि (e-AUSHADHI)पोर्टलआयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी और होम्योपैथी औषधियों की ऑनलाइन लाइसेंस प्रणाली के लियेलॉन्च किया गया है। + +10581. क्षुद्रग्रह ग्रहों के अवशेष होते हैं। बेन्नु जैसे क्षुद्रग्रह में प्राकृतिक संसाधन जैसे- जल, ऑर्गेनिक्स और धातुएँ उपस्थित हैं। भविष्य अंतरिक्ष अन्वेषण और आर्थिक विकास हेतु इन सामग्रियों के लिये क्षुद्रग्रहों पर विश्वास किया जा सकता है। + +10582. Webb के लिये नासा, यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) और कनाडाई स्पेस एजेंसी (CSA) के बीच एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता किया गया है। + +10583. 11 अप्रैल 2018 को इसरो ने नेवीगेशन सैटेलाइट IRNSS लॉन्च किया। यह स्वदेशी तकनीक से निर्मित नेवीगेशन सैटेलाइट है। इसके साथ ही भारत के पास अब अमेरिका के जीपीएस सिस्टम की तरह अपना नेवीगेशन सिस्टम है। + +10584. + +10585. किसान अपनी उपज का छठा भाग कर या राजांश के रूप में देते थे। कर की वसूली सीधे राजा के कर्मचारी करते थे। + +10586. अबुल फज़ल के अनुसार मुगल राज्य के खिलाफ कोई बगावत या किसी भी किस्म की स्वायत्त सत्ता की दावेदारी का असफल होना तय था। दूसरे शब्दों में किसानों के बारे में जो कुछ हमें आइन-ए-अकबरी से पता चलता है वह सत्ता के ऊँचे गलियारों का नज़रिया है। + +10587. आइन-ए-अकबरी में दी गई प्रशासनिक जानकारियों के संदर्भ में + +10588. अकबरनामा की रचना तीन जिल्दों में हुई है,जिनमें पहली दो जिल्दों में ऐतिहासिक दास्तान पेश की गई। तीसरी जिल्द में आइन-ए-अकबरी को शाही नियम-कानून के सारांश और साम्राज्य के एक राजपत्र के रूप में संकलित किया गया है। + +10589. 17वीं सदी में ज़मींदारों को शोषक के रूप में नहीं दिखाया गया। आमतौर पर राज्य के राजस्व अधिकारी किसानों के गुस्से का शिकार होते थे। इस काल में भारी संख्या में कृषि विद्रोह हुए और उनमें राज्य के खिलाफ ज़मींदारों को अक्सर किसानों का समर्थन मिला। + +10590. मुगल काल के भारतीय फारसी स्रोत किसान के लिये आमतौर पर रैयत या मुज़रियान शब्द का इस्तेमाल करते थे।सत्रहवीं सदी के स्रोतों से दो प्रकार के किसानों का वर्णन मिलता है : खुद-काश्त और पाहि-काश्त। + +10591. 1604 ई. के बाद तम्बाकू के प्रयोग में तेज़ी आई जिससे चिंतित होकर जहाँगीर ने तम्बाकू पर पाबंदी लगा दी। + +10592. मुगलों के केंद्रीय इलाकों में कर की गणना और वसूली दोनों नकद में की जाती थी। जो दस्तकार निर्यात के लिये उत्पादन करते थे, उन्हें उनकी मज़दूरी या पूर्व भुगतान भी नगद में ही मिलता था। + +10593. नई ज़मीनों को बसाकर (जंगल-बारी),अधिकारों के हस्तांतरण के ज़रिये, राज्य के आदेश से या फिर खरीदकर। यही वे प्रक्रियाएँ थीं जिनके ज़रिये अपेक्षाकृत "निचली" जातियों के लोग भी ज़मींदारों के दर्जे में दाखिल हो सकते थे क्योंकि ज़मींदारी खरीदी तथा बेची जा सकती थी। + +10594. + +10595. घनानंद स्वछंद धारा के कवि है । रीतिकाल कि अन्य कविताओं की रचना जैसा दरबारी अभिरुचि के अनुरूप अथवा शास्त्रीयता के प्रदर्शन के उद्देश्य से हुई है वैसी रचनाएँ इन्होनें नहीं की है। इन्होंने कविता नहीं की है बल्कि कविता तो इनसे सहज ही होती होती चली गयी है। भावानुभूति का आवेग इनके अंतर से कविता के रूप में प्रस्फुटित होता चला गया। इसीलिए इनकी कविता में सहजता है, सरलता है, किसी प्रकार का अनावश्यक प्रदर्शन नहीं है बल्कि भावों का सहज प्रवाह है। वास्तव में भाव ही काव्य की आत्मा है। भावविहीन कविता निरर्थक है तथा अलंकारादि बाह्य प्रदर्शनों के अत्यधिक प्रयोग से यह और भी दुरूह , बोझिल और प्रभावहीन हो जाती है। इन्होंने अपने काव्य में मुख्य रूप से काव्य के नैसर्गिक तत्वों को को ही स्थान दिया है तथा इनकी कविता भी इनकी आतंरिक अनुभूति का सहज प्रकाशन मात्र है। इसीलिए इनकी कविता के अध्ययन और समीक्षा के मानक भी परंपरागत मानकों से भिन्न है। इनकी कविता को समझने की योग्यता के सम्बन्ध  में इन्हीं के समकालीन कवि ब्रजनाथ जी लिखते हैं कि - + +10596. प्रेम  -   घनानंद को समझने के लिये, इनकी कविता का रसस्वादन करने के लिये सर्वप्रथम यह समझना आवश्यक है कि प्रेम या प्रीति क्या है? + +10597. वास्तव में इन्होंने संयोग के सुख को पूरी सम्पूर्णता के साथ भोग है। संयोग की ये पूर्णता ही इनके वियोग वर्णन को प्रभावशाली बनती है। संयोग में इन्हें जो तीव्र घनीभूत अनुभूति हुई उसी कारण इनका वियोग भी मर्मांतक सिद्ध हुआ। बिना संयोग के वियोग कैसे संभव है? संयोग के बिना वियोग के स्वर या तो काल्पनिक होंगे जो प्रभावहीन हो जाएँगे या फिर रहस्यात्मक। परन्तु घानन्द के साथ ऐसा नहीं है। इनका वियोग इसलिए प्रभावी और प्रसिद्ध है क्योंकि इनकी विरहनुभूति वास्तविक और लौकिक है। इन्होंने सुजान से खुलकर प्रेम किया, पूर्ण रूप से स्वतंत्र एवं स्वछंद होकर इसलिए इनकी  विरहानुभूति भी बहुत ही मार्मिक  हुई। इस तरह के विहानुभूति की वलक्षणता के ये हिंदी के एक मात्र कवि है। अपनी विरह की रचनाओं से ये हिंदी साहित्य के किसी भी काल के अन्य किसी भी कवि से बीस ठहरते है। इस मामले में छायावादी कवि भी इनसे पिछड़ जाते हैं क्योंकि उनका संयोग अपने आप में अपूर्ण होता है।  + +10598. घननंद  कभी भी सुजान की निष्ठुरता को भुला नहीं पाते हैं। इनका हृदय सुजान से फट जाता है, परन्तु ये उससे घृणा भी नहीं करते हैं । ये विरहनुभूति की ताप में तपते रहते हैं। सुजान से मिला अपकार और उसके बाद भी उसके प्रति इनका प्रेम तथा इनके व्यक्तिगत प्रेम का राधा-कृष्ण की प्रेम-मूर्ति में विलय, ये सब मिलकर इनके काव्य को विलक्षणता प्रदान करते हैं।  + +10599.  प्रस्तुत  पद  में कृष्ण या सुजान को अलग करना  दुष्कर है । घनानंद के वियोग सम्बंधित पदों में इनके आत्माकी कतार ध्वनि सुनी जा सकती है। इनके पद ऐसे लगते हैं मानों सुजान के प्रति इनके सन्देश हो। ऐसा ही एक एक पद यहाँ द्रष्टव्य है जिसमें  निवेदन और उपालम्भ के स्वर कितने स्पष्ट हैं-  + +10600. घनानंद  के अतीत की सुन्दर प्रेमानुभूति अब विरहनुभूति का शूल बनकर हृदय में धँस गई है। अतीत के संयोग की मधुर स्मृतियाँ विरहाग्नि में घृत का कार्य कर रहीं हैं। इसी सन्दर्भ का एक पद यहाँ द्रष्टव्य है जिसमें एक रमणी अपने प्रिय को उसके अनीतिपूर्ण आचरण के लिए उपालम्भ देते हुए कहती है- + +10601.  वियोग में हृदय जलता है और आँखें बरसती है। इन आँखों को बरसना भी चाहिए   क्योँकि इन्होंने ही तो प्रिय की सुन्दर छवि को हृदय तक पहुँचाया। हृदय  का इसमें  क्या दोष?  पहले जो आँखें प्रिय की सुन्दर छवि + +10602. न खुली-मुंदी जान परैं  कछु थे दुखदाई जगे पर सोवती हैं॥"  + +10603.  "लै  ही रहे  हो सदा मन  और  को दैबो न जानत राजदुलारे।... + +10604. + +10605. + +10606. कार्यकारी समिति (Executive Committee- EC) के अध्यक्ष भारत के प्रधान मंत्री हैं यह समिति महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में नीतियों पर विचार करने तथा दिशा-निर्देश देने के लिए गठित की गई है। + +10607. राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की शुरुआत वर्ष 1954 में हुई थी इससे पहले इन पुरस्कारों को राजकीय पुरस्कार कहा जाता था। + +10608. सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (साझा)-आयुष्मान खुराना (अंधाधुंध ), विक्की कौशल (उरी) + +10609. इसके अलावा एंटोनियो कोस्टा के साथ-साथ, तुलसी गबार्ड,डेसमंड टूटू, बर्नी मेयर(अमेरिकी गांधी के रूप में जाने जाते हैं),योशीरो मोरी (जापान के पूर्व प्रधानमंत्री),कोफी अन्नान सहित अन्य विदेशी गणमान्य व्यक्ति इस समिति के सदस्य हैं। + +10610. विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation- WHO) ने वर्ष 2020 को नर्स (Nurse) और प्रसाविका (MidWife) वर्ष घोषित किया है। + +10611. इसका मुख्य लक्षण बुखार, खांसी, सिरदर्द, दिमाग में सूजन, उल्टी होना, साँस लेने में तकलीफ होना आदि हैं। + +10612. पुरस्कार की छह श्रेणियाँ और वर्ष 2019 के लिये घोषित नाम: + +10613. भू साहसिक कार्य (Land Adventure) जल साहसिक कार्य (Water Adventure) वायु रोमांच (Air Adventure) जीवन पर्यंत उपलब्धि (Life Time Achievement) + +10614. चेन्नई के स्वतंत्र पुरस्कार जेंसी सैमुअल को लेख ‘Unpredictable seas push fishers away from home’ के लिये। + +10615. पुरस्कारों की दो श्रेणियाँ हैं, जिनमें पहली श्रेणी के अंतर्गत दो पत्रकारों या प्रिंट मीडिया के स्वतंत्र पत्रकारों को 5,00,000 रुपए नकद,एक पदक और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाएगा। + +10616. विवेक मेनन को यह पुरस्कार जेनेवा में चल रही CITES (Convention on International Trade in Endangered Species) की 18वीं बैठक के दौरान दिया गया। + +10617. क्र.सं. श्रेणी विजेता + +10618. यह पुरस्कार प्रतिवर्ष श्रीनिवास रामानुजन के प्रभाव वाले क्षेत्र में कार्य करने वाले 32 वर्ष से कम उम्र के गणितज्ञों को दिया जाता है। + +10619. दादा साहेब फाल्के पुरस्कार(Dadasaheb Phalke Awards) + +10620. वर्ष 1969 में पहली बार देविका रानी को इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया। + +10621. अकादमी पुरस्‍कार वर्ष 1952 से प्रदान किया जा रहा है। + +10622. आम परिषद ने वर्ष 2018 के लिये संगीत, नृत्‍य, थियेटर, परंपरागत/लोक/जनजातीय संगीत/ नृत्‍य/ थियेटर, कठपुतली नचाने और अदाकारी के क्षेत्र में संपूर्ण योगदान/छात्रवृत्ति के लिये 44 कलाकारों का संगीत नाटक अकादमी पुरस्‍कारों (अकादमी पुरस्‍कार) के लिये चयन किया है। + +10623. यह दक्षिण एशिया की संस्कृति,राजनीति,इतिहास या लोगों के बारे में किसी भी जाति या राष्ट्रीयता पर लेखन के लिये लेखकों को प्रतिवर्ष प्रदान किया जाता है। + +10624. यह नार्वे का एक पुरस्कार है जो नार्वे के राजा द्वारा प्रतिवर्ष एक या अधिक उत्कृष्ट गणितज्ञों को प्रदान किया जाता है। इसका नाम नार्वे के गणितज्ञ नील्स हेनरिक एबेल (1802-1829) के नाम पर रखा गया है और इसे नोबेल पुरस्कार की प्रतिकृति बनाया गया है। + +10625. उत्कृष्टता का पुरस्कार-चीन के ताई क्वुन (Tai Kwun)- विरासत और कला केंद्र को + +10626. नोबेल पुरस्कार डायनामाइट के आविष्कारक वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल की स्मृति में दिये जाते हैं। + +10627. पृष्ठभूमि + +10628. अर्थशास्त्र के लिये नोबेल पुरस्कारों की शुरुआत वर्ष 1968 में हुई थी। + +10629. साहित्य: स्वीडिश अकादमी + +10630. भारतीय मूल + +10631. एप्पल का उत्सर्जन में कमी से संबंधित मिशन (Apple’s Emissions Reduction Mission) वैश्विक: स्वच्छ ऊर्जा और अभिनव उत्पाद डिज़ाइन के माध्यम से उनके उत्सर्जन को कम करने के लिये। + +10632. इको वेव पावर (Eco Wave Power)- इज़राइल, जिब्राल्टर: महासागर से स्वच्छ ऊर्जा उत्पन्न करने वाली एक विश्व-अग्रणी परियोजना, एक महिला CEO द्वारा सह-स्थापित। + +10633. चैंपियंस ऑफ द अर्थ अवार्ड, 2019 + +10634. 4. प्रेरणा और कार्यवाही फ्राइडे फॉर फ्यूचर: युवा जलवायु आंदोलन + +10635. यह पुरस्कार सरकार, नागरिक समाज और निजी क्षेत्र के उन उत्कृष्ट नेतृत्व कर्त्ताओं को प्रदान किया जाता है जिनके कार्यों का पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। + +10636. डेवी कोपेनवा ब्राज़ील के यानोमामी समुदाय के नेता हैं, इन्हें अमेज़न के जंगलों और जैव-विविधता एवं यानोमामी समुदाय के संरक्षण के क्षेत्र में कार्य करने के लिये इस पुरस्कार हेतु चुना गया है। + +10637. चारों पुरस्कार विजेताओं को 1 मिलियन स्वीडिश क्राउन ($103,000) की नकद धनराशि प्रदान की जाएगी। + +10638. 48 घंटे और 8 मिनट की डॉक्यूमेंट्री ने 21 घंटे की सऊदी अरब की डॉक्यूमेंट्री ‘वर्ल्ड ऑफ स्नेक्स’ ( World of Snakes) का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। लगभग चार वर्ष में पूरी की गई इस डॉक्यूमेंट्री को देखने में भारत के सेंसर बोर्ड को सात दिन लग गए। + +10639. 2019 के चर्चित भारतीय व्यक्ति. + +10640. नवंबर 2020 में अंटार्कटिका अभियान हेतु STEMM (Science,Technology,Engineering, Mathematics and Medicine) पृष्ठभूमि से संबंधित महिलाओं का चयन करके उन्हें एक वर्ष का प्रशिक्षण दिया जाएगा। भारतीय मूल की प्रियंका दास को भी इसी सत्र में प्रशिक्षित किया जाएगा। + +10641. भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान संस्थान जिसे अब भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी कहा जाता है, की स्थापना 7 जनवरी, 1935 को कलकत्ता में हुई थी। + +10642. मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने राजीव कुमार को नया वित्त सचिव मनोनीत करने को मंज़ूरी दे दी है। + +10643. डॉ. मार्था फैरेल ने लैंगिक समानता, महिला सशक्तीकरण और कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की रोकथाम की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किया। मार्था फैरेल अवार्ड उनकी याद में 2017 में शुरू हुआ था। यह पुरस्कार रिजवान आदातिया फाउंडेशन और Participatory Research in Asia द्वारा सह-प्रायोजित और मार्था फैरेल फाउंडेशन द्वारा समर्थित है। + +10644. हाल ही में इस्लामिक स्टेट के नेता अबू बक्र अल-बगदादी को मारने हेतु चलाए गए स्टील्थ ऑपरेशन का नाम कायला म्यूलर के नाम पर रखा गया था। + +10645. इसने वर्ष 2012 में सीरिया में ज़भात अल-नुसरा आतंकी संगठन की स्थापना की जिसका वर्ष 2013 में नाम परिवर्तित करके ISIS कर दिया गया। + +10646. साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार जीतने वाली यह पहली अफ्रीकी-अमेरिकी महिला थीं। + +10647. जनवरी 2015 और मई 2019 के बीच सुश्री एंडरसन इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) की महानिदेशक थी। + +10648. वह नौसेना प्रमुख सुनील लांबा का स्थान लेंगे, जो 1 जून को सेवानिवृत्त हो गए। + +10649. नाइन डॉट्स प्राइज़ से ऐसे लोगों को पुरस्कृत किया जाता है जो रचनात्मक सोच और विशेष लेखन शैली के ज़रिये आधुनिक मुद्दों पर लेखन कला को प्रोत्साहित करते हैं। + +10650. वर्ष 2005 में स्थापितयह पुरस्कार,वर्ष 2016 से अनुवादित कथा/कार्य की श्रेणी में एक पुरस्कार के रूप में परिणत हो गया। + +10651. जोको विदोदो वर्ष 2014 से इंडोनेशिया के राष्ट्रपति है।भूमध्य रेखा पार स्थित यह द्वीपसमूह देश इंडोनेशिया दक्षिण पूर्व एशिया का सबसे बड़ा देश है। यह बोर्नियो के उत्तरी भाग में मलेशिया के साथ और पापुआ न्यू गिनी में न्यू गिनी (इंडोनेशिया का हिस्सा) के केंद्र में सीमा साझा करता है। + +10652. पहला गोल्डमैन पर्यावरण पुरस्कार पृथ्वी दिवस के अवसर पर 1990 में दिया गया था। सैनफ्रांसिस्को के गोल्डमैन पर्यावरण फाउंडेशन द्वारा हर वर्ष दिया जाने वाला यह पुरस्कार ज़मीनी स्तर पर काम करने वाले पर्यावरण कार्यकर्त्ताओं को दिया जाता है। + +10653. भारत और यूनान के बीच विभिन्न क्षेत्रों में प्रत्यक्ष संपर्क की स्थापना हुई। + +10654. व्हाट्सएप इस हेल्पलाइन के लिये भारत स्थित मीडिया स्किलिंग स्टार्टअप प्रोटो (PROTO) के साथ काम कर रहा है। + +10655. 23 अगस्त, 2019 को नई दिल्ली में दयालुता पर पहले विश्व युवा सम्मेलन का आयोजन किया गया। + +10656. इस सम्मेलन का उद्घाटन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने किया। + +10657. यूट्यूब पर तीन-चौथाई लोग अंतर्राष्ट्रीय सामग्री देखते हैं, वहीं नेटफ्लिक्स और अमेज़न अंतर्राष्ट्रीय सामग्री देखने के दूसरे सबसे पड़े प्लेटफॉर्म हैं। + +10658. यह क्रिप्टोकरेंसी वर्ष 2020 की प्रथम छमाही में लॉन्च की जाएगी। + +10659. यह संस्थान युद्ध तथा संघर्ष, युद्धक सामग्री, शस्त्र नियंत्रण और निरस्त्रीकरण के क्षेत्र में शोध कार्य करता है। साथ ही नीति निर्माताओं, शोधकर्त्ताओं, मीडिया द्वारा जानकारी मांगे जाने पर इच्छुक लोगों को आँकड़ों से संबंधित विश्लेषण और सुझाव भी उपलब्ध कराता है। + +10660. मांकडिंग. + +10661. चार पूर्वोत्तर राज्यों - अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम और मणिपुर में इनर लाइन परमिट प्रणाली लागू है। कोई भी भारतीय नागरिक इन राज्यों में से किसी में भी बिना परमिट के प्रवेश नहीं कर सकता है जब तक कि वह उस राज्य से संबंधित नहीं हो और न ही वह ILP में निर्दिष्ट अवधि से अधिक रह सकता है। + +10662. आदिवासी समूहों में PVTGs अधिक कमज़ोर हैं। वर्ष 1973 में धेबर आयोग ने आदिम जनजाति समूह (Primitive Tribal Groups-PTGs) को एक अलग श्रेणी के रूप में वर्गीकृत किया था । + +10663. शैक्षणिक संस्‍थानों में आरक्षण का प्रावधान अनुच्‍छेद 15(4) में किया गया है। + +10664. उनकी मातृभाषा एक अद्वितीय उच्चारण के साथ तेलुगु है। + +10665. मिज़ो समुदाय से संघर्ष के कारण चकमा समुदाय के बहुत सारे लोग त्रिपुरा के राहत शिविरों में रह रहें हैं। + +10666. दोनों समुदाय आबोतनी (Abotani) तथा पेडोंग नेने (Pedong Nene) को अपना पूर्वज मानते हैं। + +10667. सैद्धांतिक तौर पर किसी महिला के न्यीबो (Nyibo) बनने पर कोई प्रतिबंध नहीं है लेकिन सामान्यतः किसी महिला के पुजारी बनने के कोई उदाहरण नहीं हैं। + +10668. वसंत ऋतु के प्रारंभ में स्वागत के रूप में प्रत्येक वर्ष 1 से 3 अप्रैल के बीच कोनयाक जनजाति द्वारा यह डांस आयोजित किया जाता है। + +10669. यह समुदाय सभी नगा शाखाओं में सबसे बड़ा माना जाता है। + +10670. यह एक विवाह में विश्वास रखते हैं एवं इसके लिये डंडारी-घुसाड़ी नृत्य उत्सव आयोजित करते हैं। + +10671. इस योजना के तहत प्रत्येक राज्य/संघ राज्य-क्षेत्र द्वारा उनकी आवश्यकता के आकलन के आधार पर अपने पीवीटीजी के लिये संरक्षण-सह-विकास (सी.सी.डी.)/वार्षिक योजनाएँ तैयार की जाती हैं। तत्पश्चात् मंत्रालय की परियोजना आकलन समिति द्वारा आकलन तथा अनुमोदन किया जाता है। + +10672. इनकी एक अलग भाषा भी है, जिसे ‘तानी’ या ‘अपतानी’ के नाम से जाना जाता है। यह सीनो-तिब्बती समूह की भाषा है। + +10673. अपनी ‘अत्यंत उच्च उत्पादकता’ और पारिस्थितिकी को संरक्षित करने के ‘अनोखे’ तरीके के लिए ‘अपतानी घाटी’ विश्व धरोहर स्थल के रूप में शामिल करने के लिए प्रस्तावित है। + +10674. स्वातंत्र्योत्तर उपन्यासों में हिन्दी साहित्य में फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास ‘मैला आँचल’ से आंचलिक उपन्यास का सूत्रपात माना जाता है । प्रेमचंद के बाद उपन्यासों और कहानियों से जो ग्राम और अंचल मृतप्राय हो गए थे उन्हें पुनर्जीवित करने का काम फणीश्वरनाथ रेणु ने किया है । आंचलिक उपन्यास में किसी अंचल विशेष अथवा किसी अपरिचित समाज आदि के जनजीवन, वहाँ के रहन-सहन, रीति-रिवाज, लोकव्यवहार, आचार-विचार आदि का पूरी सहृदयता के साथ चित्रण किया जाता है। आंचलिक उपन्यास के सशक्त अभिव्यक्ति के लिए उपन्यासकार को वर्णित अंचल से अछी तरह सामंजस्य स्थापित करना, उनमें अछी तरह घुल-मिल जाना पड़ता है। आंचलिक उपन्यास में अंचल विशेष का कोई भी कोना उपन्यासकार की दृष्टि से अछूता नहीं रहना चाहिए । आंचलिक उपन्यास के क्षेत्र में फणीरनाथ रेणु का ‘मैला आँचल’, ‘परती परकथा’, ‘दीर्घतपा’, ‘जलुसू’, ‘कितने चौराहे’, ‘पलटू बाबू रोड’; नागार्जुन का ‘बलचनमा’, ‘दुःखमोचन’, ‘वरूण के बेटे’, उदयशंकर भट्ट का ‘सागर लहरें और मनुय’; राही मासमू रज़ा का ‘आधा गाँव’; रांगेय राघव का ‘कब तक पुकारूँ ’; रामदरश मिश्र का ‘पानी के प्राचीर’ और ‘जल टूटता हुआ’; शिवप्रसाद सिंह का ‘अलग अलग वैतरणी’; श्रीलाल शुक्ल का ‘राग दरबारी’; विवेक राय का ‘बबूल’, ‘पुरूष पुराण’, ‘लोकऋण’, ‘सोनामाटी’; शैलेश मिटयानी का ‘कबूतरखाना’, ‘दो बूँद जल’, ‘चौथी मुट्ठी ’ आदि आंचलिक उपन्यास भारतवर्ष के भिन्न-भिन्न अंचलों की कथा का आख्यान करते हैं। आंचलिक उपन्यासकारों ने इन उपन्यासों की रचना के समय उस अंचल का सापेक्षिक अध्ययन किया है। अतः इसमें सामाजिक जन-जीवन, राजनैतिक षड्यंत्र, जीवन का यथार्थ, सामान्य मनुष्य-जीवन की समस्याएँ और उनसे उबरने के लिए किए गए संघर्ष के विविध आयाम का यथार्थ उभरकर सामने आता है। आंचलिक उपन्यास आधुनिक सुख-सुविधाओं से परे, शिक्षा और भौतिक सुविधाओं से उपेक्षित परम्परावादी समाज की जीवन-गाथा होते हैं। ये उपन्यास सामाजिक चित्रण के साथ-साथ आधुनिकता का परचम उठाकर चलने वाले वर्तमान राजनैतिक दलों की वास्तविकता का प्रदर्शन करते हए उनके नीतियों और राजनैतिक मंशा की बखिया उधेड़ते हए दिखाई पड़ते हैं। + +10675. परिचय और पानीपत का युद्ध. + +10676. इसके एक साल के बाद राणा सांगा की ३० जनवरी १५२८ में मृत्यु हो गई। इसके बाद बाबर दिल्ली की गद्दी का अविवादित अधिकारी बना। उसके इस‌ विजय ने मुगल वंश को भारत की सत्ता पर ३३१ सालों तक राज करवाया। इस‌ युद्ध के बाद बाबर ने गाजी(दानी) की उपाधि ली थी और जेहाद का नारा भी दिया था। + +10677. बाबर ने ध्यान दिया कि महमूद लोदी बिहार लगातार गया और उसने एक लाख सैनिक एकत्रित कर लिया। बाबर जानता था कि यदि आगरा पर अफ़गानियों का राज हो गया, तो दिल्ली का तख्त पलट करने में उन्हें ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। + +10678. घाघरा का यह‌ युद्ध ज़मीन और पानी पर लड़ा जाने वाला ऐतिहासिक युद्ध के रूप में याद किया जाता है। + +10679. "जयशंकर प्रसाद जी" ने अपनी कहानी ममता में चित्रित किया है कि शरणार्थी हुमायूँ ने रोहतास-दुर्गपति के मंत्री चूड़ा-मणि की अकेली दुहिता ममता के यहाँ शरण ली थी। + +10680. अकबर (१५५६-१६०५). + +10681. पानीपत का द्वितीय युद्ध. + +10682. राज्य विस्तार. + +10683. उसने हिन्दू-मुस्लिम संप्रदायों के बीच की दूरियां कम करने के लिए दीन-ए-इलाही नामक धर्म की स्थापना की। इस धर्म में उसने हिंदू या मुस्लिम जाति को श्रेष्ठ ना बता कर इश्वर धर्म को श्रेष्ठ माना इसी कारण अकबर ने हिन्दुओं पर लगने वाला जज़िया कर समाप्त किया। सभी धर्मो के मूल तत्वों को उसने दीन-ए-इलाही में डाला, इसमे प्रमुखतः हिंदू एवं इस्लाम धर्म के साथ पारसी, जैन एवं ईसाई धर्म के मूल विचारों भी सम्मिलित थें। अकबर के अलावा केवल राजा बीरबल ही मृत्यु तक इसके अनुयायी बने रहे थे। ने सिक्कों के पीछे "अल्लाह-ओ-अकबर" लिखवाया जो केवल मुस्लिम से संबंधित ना होकर अनेकार्थी शब्द था। + +10684. कला रुचि. + +10685. ज्वालामुखी मंदिर के संबंध में एक कथा काफी प्रचलित है। यह १५४२ से १६०५ के मध्य की ही कहानी है जब अकबर दिल्ली का राजा था। "ध्यानुभक्त" माता जोतावाली का परम भक्त था। एक बार जब वह देवी के दर्शन के लिए अपने गांववासियों के साथ ज्वालाजी के दर्शन लिए निकला। उसका काफिला दिल्ली से गुजरा तो मुगल बादशाह अकबर के सिपाहियों ने उसे रोक लिया और राजा अकबर के दरबार में पेश किया। अकबर ने जब ध्यानु से पूछा कि वह अपने गांववासियों के साथ कहाँ जा रहा है तो उत्तर में ध्यानु ने कहा वह जोतावाली के दर्शन के लिए जा रहा है। अकबर ने माँ की शक्ति पर प्रश्न किया? तब ध्यानु ने कहा वह तो पूरे संसार की रक्षक। ऐसा कोई भी कार्य नही है जो वह नहीं कर सकती है। अकबर ने ध्यानु के घोड़े का सर यह कह कर कटवा दिया कि अगर तेरी माँ में शक्ति है तो घोड़े के सर को जोड़कर उसे जीवित कर के दिखायें। यह सुनते ही ध्यानु देवी की स्तुति करने लगा और अपना सिर काट कर माता को भेट के रूप में प्रदान किया। माता की शक्ति से घोड़े का सर जुड़ गया और अकबर को देवी की शक्ति का एहसास हुआ। बादशाह अकबर देवी के मंदिर में सोने का छत्र भी चढ़ाने गया। किन्तु उसके मन मे अभिमान हो गया कि वो सोने का छत्र चढाने लाया है, तो माता ने उसके हाथ से छत्र को गिरवा दिया और उसे एक अजीब (नई) धातु में बदल दिया, जो आज तक एक रहस्य है। यह छत्र आज भी मंदिर में मौजूद है। ज्वालामुखी मंदिर में आज तक एक लौ जल रही है, जिसे बुझाने का प्रयास भी अकबर ने किया पर वह असफल रहा। + +10686. मृत्यु. + +10687. जँहागिर का प्रथम विवाह १५८५ ई. में मानबाई से हुआ जो आमेर के राजा भगवानदास की पुत्री व मान सिंह की बहन थी। उनका दूसरा विवाह मारवाड़ के राजा उदयसिंह की पुत्री जगतगोसाई से हुआ। इसके बाद उसने मेहर-उन-निसा से निकाह किया, जिसे उसने नूरजहां (दुनिया की रोशनी) का खिताब दिया। वह उसे बेताहाशा प्रेम करता था और उसने प्रशासन की पूरी बागडोर नूरजहां को सौंप दी। + +10688. औरंगज़ेब (१६५८-१७०७). + +10689. + +10690. RFID नाम-पत्रों में संलग्नित रीडर आंतरिक बैटरी या रीडर के विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र से ऊर्जा ग्रहण कर नाम-पत्र रेडियो तरंगों को वापस रीडर के पास भेजते हैं। + +10691. पढने एवं लिखने (रीड एंड राइट) नाम-पत्रों में अतिरिक्त डेटा जोड़ने या अधिलेखन की क्षमता होती है। अत: कथन 1 सही है। + +10692. आर्कटिक महासागर के अंतर्गत जो उत्तरी ध्रुव को कवर करता है, समुद्र के कुछ तल पूरी तरह से जमे हुए हैं। स्थायी रूप से जमे हुए समुद्री तल को सब-सी पर्माफ्रॉस्ट (Subsea Permafrost) कहा जाता है। + +10693. प्राय: साबुन को बेहतर पर्यावरण विकल्प माना जाता हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि साबुन और अपमार्जक दोनों पर्यावरण को प्रभावित कर सकते हैं। + +10694. इसे बर्ड फ्लू/एवियन इन्फ्लूएंजा के नाम से जाना जाता है। + +10695. कंप्यूटर. + +10696. जिसका नामकरण वर्ष 1970 के दशक में प्रसिद्ध भारतीय भौतिकशास्त्री और रेडियो विज्ञानी प्रोफेसर शिशिर कुमार मित्रा के नाम पर मित्रा क्रेटर के रूप में किया गया था। + +10697. ट्रोजन जिसे आमतौर पर ट्रोजन क्षुद्रग्रह कहा जाता है, क्षुद्रग्रहों का एक बड़ा समूह है जो सूर्य के चारों ओर बृहस्पति ग्रह की कक्षा को साझा करता है। + +10698. बेंडेबल प्रकाश किरणें सरल रेखीय मार्ग के स्थान पर वक्रीय पथ के अनुसरण में सक्षम होती हैं। ये किरणें गैर-विवर्तनकारी (Non-Diffracting) होती हैं। + +10699. सूर्य और तारों के विपरीत जहाँ हाइड्रोजन नाभिक (प्रोटॉन) संलयन प्रतिक्रिया से गुज़रती है, ITER के ईंधन में हाइड्रोजन के दो समस्थानिक शामिल हैं – ड्यूटेरियम (D) और ट्राइटियम (T)। + +10700. आँख की पुतलियों का बढ़ता आकार। + +10701. ये उपकरण यह बताने में भी सक्षम हैं कि ब्लैक होल के निकट स्थित तारे अन्य प्रकार के तारों से किस प्रकार भिन्न व्यवहार करते हैं। + +10702. उदाहरण:-जल तरंगें और ध्वनि तरंगें। + +10703. 2019 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार + +10704. GMRT, पुणे के पास स्थित है। + +10705. गुरुत्वाकर्षण तरंगों की भविष्यवाणी सर्वप्रथम 1916 में अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपनी थ्योरी ऑफ़ जनरल रिलेटिविटी के आधार पर की थी। + +10706. कैडमियम धातु (Cadmium Metal) का ज़्यादातर उपयोग उद्योगों में पेंट, रंजक मिश्रधातु, कोटिंग एवं बैटरी के साथ-साथ प्लास्टिक के उत्पादन के लिये किया जाता है। लगभग तीन-चौथाई कैडमियम का उपयोग क्षारीय बैटरी के उत्पादन में इलेक्ट्रोड (Electrode) के रूप में किया जाता है। कैडमियम को औद्योगिक प्रक्रियाओं एवं कैडमियम प्रगलकों द्वारा सीवेज कीचड़, उर्वरकों तथा भूजल में उत्सर्जित किया जाता है। यह कई दशकों तक मृदा और तलछट में रह सकता है और इसे पौधों द्वारा ग्रहण किया जा सकता है। + +10707. अनुप्रयोग: + +10708. अमेरिसियम-241 का उपयोग धुआँ संसूचक या स्मोक डिटेक्टरों में किया जाता है तथा कोबाल्ट-60 एवं सीज़ियम-137, गामा (फोटॉन) स्रोत होते हैं जिनका उपयोग खाद्य पदार्थों में रोगजनकों तथा कीटों को मारने के लिये किया जाता है। + +10709. अर्धचालक विनिर्माण + +10710. मेथनॉल का उत्पादन निम्न प्रकार से संभव है:- + +10711. मेथनॉल इथेनॉल का पारंपरिक विकृतिकारक है,उत्पाद को 'विकृत अल्कोहल के रूप में जाना जाता है। + +10712. यह सल्फ्यूरिक एसिड का एक प्राथमिक स्रोत है। + +10713. विभिन्न प्रयोजनों के लिये पीवीसी पाइप (PVC Pipes) का इस्तेमाल किया जाता है, पीवीसी पाइप में लेड का स्रोत टिन हो सकता है जिसे पीवीसी पाइप (PVC Pipes) में स्टेबलाइज़र के रूप में उपयोग किया जाता है। + +10714. प्राइमर्स (primers) छोटे रासायनिक रूप से संश्लेषित (synthesized) ओलिगोन्यूक्लियोटाइड (oligonucleotides) होते हैं जो DNA और एंजाइम DNA पोलीमरेज़ के क्षेत्रों के पूरक होते हैं। + +10715. ♦ रोगी के नमूनों में सूक्ष्मजीवों का प्रत्यक्ष पता लगाना + +10716. ♦ उत्परिवर्तन का पता लगाना (आनुवांशिक बीमारियों की जाँच)। + +10717. ♦ Spirulina की खुराक राइनाइटिस (rhinitis) एलर्जी के संबंध में बहुत प्रभावी होती है। + +10718. रोटावैक को भारत के सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (यूआईपी) में शामिल किया गया है जिसमें निष्क्रिय पोलियो वैक्सीन (आईपीवी), खसरा, रूबेला (एमआर) वैक्सीन, वयस्क जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई) टीका, तपेदिक, डिप्थीरिया, पर्टुसिस, हेपेटाइटिस बी, निमोनिया और हीमोफिलस इन्फ्लुएंजा टाइप b (Hib) जनित मेनिनजाइटिस भी शामिल हैं। + +10719. बीटा-कैरोटीन युक्त चावल के उत्पादन में इसका प्रयोग होता है, जो विटामिन-A की कमी को पूरा करेगा। आमतौर पर गाजर में विटामिन A पाया जाता है। + +10720. रिबोस:-एडेनोसाइन ट्राइफॉस्फेट को कोशिका की ऊर्जा मुद्रा के रूप में जाना जाता है क्योंकि यह निर्धारित करता है कि हम थके हुए रहेंगे या ऊर्जावान। रिबोस एटीपी को मूलभूत आधार प्रदान करता है। कोशिका में रिबोस की उपस्थिति हमारे शरीर को इस महत्त्वपूर्ण यौगिक के निर्माण के लिये उपयोग किये जाने वाले चयापचय मार्ग को संतुलित करती है। यदि कोशिका में पर्याप्त रिबोस नहीं है, तो यह एटीपी का निर्माण नहीं कर सकता है। इसलिये, जब कोशिकाएँ और ऊतक, ऊर्जा के बिना भूखे मर रहे होते हैं, तो ऊर्जा की पुनर्प्राप्ति के लिये रिबोस की उपलब्धता महत्त्वपूर्ण होती है। + +10721. ग्रोथ हार्मोन (GH) एक सूक्ष्म प्रोटीन है,जो पिट्यूटरी ग्रंथि द्वारा निर्मित होता है और रक्त प्रवाह में स्रावित होता है। + +10722. 'क्वांटम सुप्रीमेसी' का तात्पर्य ऐसे क्वांटम कंप्यूटर से है, जो ऐसी गणनाओं को करने में सक्षम है जिसे एक पारंपरिक कंप्यूटर नहीं कर सकता। :संभावित उपयोग + +10723. इस कार्य के लिये कार्बन-14 का प्रयोग किया जाता है। यह तत्त्व सभी सजीवों में पाया जाता है। + +10724. ध्यातव्य है कि फर्डिनेंड मैगलन और चालक दल ने दक्षिणी गोलार्ध में नग्न आँखों से दिखाई देने वाली दो आकाशगंगाओं का अवलोकन किया था। इसलिये तब से इन आकाशगंगाओं को मैगेलैनिक बादल (Magellanic Clouds) के रूप में जाना जाता है। + +10725. इसके अंतर्गत तटीय क्षेत्रों को निम्नलिखित चार भागों में बाँटा गया है- + +10726. क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) के लिये सिल्वर आयोडाइड (Silver Iodide) या ठोस कार्बन डाइऑक्साइड (Dry Ice) को विमानों का उपयोग कर आसमान में हवा की विपरीत दिशा में छिड़का जाता है। + +10727. + +10728. २) कबीर माला काठ की,कहीं समझावे तोही। + +10729. व्याख्या-कबीरदास जी इस दोहे में कहते हैं कि लोग भिन्न भिन्न प्रकार के आडंबर रचते हैं, ढोंग करते हैं, कोई माला पहनता है तो कोई बली चढाता है, तो कोई अपने बालों को मुडवाता है, कबीरदास जी इन व्यक्तियों को समझाते हुए कहते हैं कि उसके केसो(बालों) ने उनका क्या बिगाड़ा है जो वह उसे बार-बार मुंडा देते हैं। यह सब तो दिखावा है दूसरों को दिखाने के लिए। सबसे जरूरी है अपने मन को मोड़ना, मन को मनाना जिसमें सबसे ज्यादा बुराइयां भरी हुई है। हम इतना कुछ करते हैं फिर भी हमारा मन हमें नचाता रहता है, हम खुश नहीं रहते, हैं मन शांत नहीं रहता। इसके लिए जरूरी है कि हम अपने मन को खत्म कर दें, क्योंकि जब तक यह रहेगा तरह-तरह की बुराइयां मन में आएंगी। अतः कबीरदास जी दोहे में कहना चाहते हैं बाल मुंडवाने से अच्छा हम अपने मन को खत्म करें क्योंकि इसे जितना मिलेगा उसे और चाहिए होगा, तो इसका कोई अंत नहीं है। सारे विषै विकार मन में ही होते हैं तो हमें पहले इसको बदलने की जरूरत है ना कि दिखावा करने कि। + +10730. आत्माभिव्यक्ति. + +10731. नारी-सौंदर्य और प्रेम-चित्रण. + +10732. बीती विभावरी जाग री, + +10733. उतर रही + +10734. प्रबुद्ध शुध्द भारती + +10735. रहस्यवाद के अंतर्गत प्रेम के कई स्तर होते हैं। प्रथम स्तर है अलौकिक सत्ता के प्रति आकर्षण। द्वितीय स्तर है- उस अलौकिक सत्ता के प्रति दृढ अनुराग। तृतीय स्तर है विरहानुभूति। चौथा स्तर है- मिलन का मधुर आनंद। महादेवी और निराला में आध्यात्मिक प्रेम का मार्मिक अंकन मिलता है। यद्यपि छायावाद और रहस्यवाद में विषय की दृष्टि से अंतर है। जहाँ रहस्यवाद का विषय - आलंबन अमूर्त, निराकार ब्रह्म है, जो सर्व व्यापक है, वहाँ छायावाद का विषय लौकिक ही होता है। + +10736. कल्पना की प्रधानता. + +10737. तुम विमल ह्रृदय उच्छवास और मैं कान्त कामिनी कविता।" (निराला) + +10738. "तप रे मधुर-मधुर मन, विश्व-वेदना में तप प्रतिपल, + +10739. पर्यावरण अध्ययन: + +10740. इस मिशन की शुरुआत 27 नवंबर, 2018 को दिल्ली में की गई थी। + +10741.
अमेरिका द्वारा जारी अपनी वार्षिक स्पेशल 301 रिपोर्टमें कुल 36 देशों को निगरानी सूची में डाला गया है।इस रिपोर्ट के अंतर्गत,अमेरिका अपने व्यापारिक भागीदारों का बौद्धिक संपदा की रक्षा और प्रवर्तन संबंधी ट्रैक रिकॉर्ड पर आकलन करता है। + +10742. यह एक प्रकार का पान (Betel Leaf) है,जिसे केरल के मलप्पुरम ज़िले के तिरूर और आस-पास के इलाकों में उगाया जाता है। + +10743. केरल के अन्य जीआई उत्पाद: + +10744. कारीगरों द्वारा कच्चे माल का उपयोग करने वाले 50 से अधिक प्रकार के ताले बनाए गए हैं। + +10745. मिज़ोरम की प्रत्‍येक महिला का यह एक अनिवार्य वस्‍त्र है और यह इस राज्य में यह शादी की अत्‍यंत महत्त्वपूर्ण पोशाक है। + +10746. 15वीं शताब्दी के अंत में बलराम दास द्वारा लिखित ओडिया रामायण से भी रसगुल्ले के बारे में जानकारी मिलती है। + +10747. हिमाचल का काला जीरा, छत्तीसगढ़ का जीराफूल और ओडिशा की कंधमाल हल्दी जैसे उत्पाद शामिल हैं। + +10748. ऐसा माना जाता है कि 2000 ईसा पूर्व के संगम युग के दौरान तमिल किसानों द्वारा अपने घरों के सामने हल्दी के पौधे उगाए जाते थे। + +10749. जीआई टैग. + +10750. हिन्दी कविता (मध्यकाल और आधुनिक काल) सहायिका/'उनको प्रणाम' कविता की काव्य संवेदना: + +10751. उन शूरवीरों का अभिनन्दन करता हूं। जो व्यक्ति मन में अपनी छोटी सी नाब लेे कर बीच समुन्दर में अपने जीवन को लेे कर उतरे। किन्तु उन के ये इच्छा मन की मन में ही रह गई और खुद उसी समुन्द्र में समा गए।में उन सभी लोगों को प्रणाम करता हूं। में उन लोगो को भी प्रणाम करता हूं। + +10752. थी उग्र साधना पर जिनका ... उनको प्रणाम। + +10753. नर्मदा बचाओ आंदोलन भारत में चल रहे पर्यावरण आंदोलनों में से एक है। इसने पर्यावरण तथा विकास के संघर्ष को राष्ट्रीय स्तर पर बहस के केंद्र में ला दिया है। इसमें विस्थापित लोगों के साथ ही वैज्ञानिकों, गैर सरकारी संगठनों तथा आम जनता की भी भागीदारी रही। + +10754. नर्मदा बचाओ आंदोलन अनेक समाजसेवियों, पर्यावरणविदों, छात्रों, महिलाओं, आदिवासियों, किसानों तथा मानव अधिकार कार्यकर्ताओं का एक संगठित समूह बना और जनांदोलन के रूप में विकसित हुआ। आंदोलन ने विरोध के कई तरीके अपनाए जैसे- भूख हड़ताल, पदयात्राएं, समाचार पत्रों के माध्यम से, तथा फिल्मी कलाकारों तथा हस्तियों को अपने आंदोलन में शामिल कर अपनी बात आम लोगों तथा सरकार तक पहुँचाने की कोशिश की। इसके मुख्य कार्यकर्ताओं में मेधा पाटकर के अलावा अनिल पटेल, बुकर सम्मान से नवाजी गयी अरुणधती रॉय, बाबा आम्टे आदि शामिल हैं। नर्मदा बचाओं आंदोलन ने 1989 में एक नया मोड़ लिया। सितम्बर, 1989 में मध्य प्रदेश के हारसूद जगह पर एक आम सभा हुई जिसमें 200 से अधिक गैर सरकारी संगठनों के 45000 लोगों ने भाग लिया। भारत में पहली बार ‘नर्मदा’ का प्रश्न अब एक राष्ट्रीय मुद्दा बन गया। यह पर्यावरण के मुद्दे पर अब तक की सबसे बड़ी रैली थी जिसमें देश के सभी बडे गैर-सरकारी संगठनों तथा आम आदमी के अधिकारों की रक्षा में लगे समाजसेवियों ने हिस्सा लिया। हारसूद सम्मेलन ने न केवल बांध का विरोध किया बल्कि इसे ‘विनाशकारी विकास’ का नाम भी दिया। पूरे विश्व ने इस पर्यावरणीय घटना को बड़े ध्यान से देखा। + +10755. अप्रैल 2006 में नर्मदा बचाओ आंदोलन में एक बार फिर से उबाल आया क्योंकि बांध की उँचाई 110 मीटर से बढ़ाकर 122 मीटर तक ले जाने का निर्णय लिया गया। मेघा पाटकर जो पहले से ही विस्थापित हुए लोगों के पुनर्वास की मांग को लेकर संघर्ष कर रहीं थीं, अनशन पर बैठ गयीं। 17 अप्रैल 2006 को नर्मदा बचाओ आंदोलन की याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने संबंधित राज्य सरकारों को चेतावनी दी कि यदि विस्थापितों का उचित पुनर्वास नहीं हुआ तो बांध का और आगे निर्माण कार्य रोक दिया जाएगा। + +10756. दक्षता और रिक्तियाँ भारतीय न्यायिक प्रणाली के प्रदर्शन को प्रभावित करने वाले दो महत्त्वपूर्ण मुद्दे हैं और इसमें सुधार की पर्याप्त गुंजाइश है। इनके अलावा,न्यायपालिका के प्रदर्शन को बेहतर बनाने हेतु कुछ सुझावों पर नीचे चर्चा की गई है। + +10757. राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (NJDG) किशोर न्याय प्रणाली से संबंधित मामलों सहित सभी श्रेणियों के मामलों को कवर करेगा। + +10758. आईसीटीएस कोई अनूठा माॅडल नहीं है। इस प्रकार की न्यायालय प्रबंध सेवाएँ अन्य देशों में भी मौजूद हैं: + +10759. भारतीय न्यायिक प्रणाली में 3.53 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं। जिला और अधीनस्थ अदालतों में लंबित मामलों का 87.54% हिस्सा है, जबकि उच्चतर न्यायपालिका जैसे सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय में लंबित मामलों का सिर्फ 0.16% और 12.3% है। + +10760. संविधान के भाग पाँच में अनुच्छेद 124 से 147 तक सर्वोच्च न्यायालय के संगठन, स्वतंत्रता, अधिकार क्षेत्र, शक्तियों एवं प्रक्रियाओं से संबंधित हैं। + +10761. मूल रूप से सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या आठ (एक मुख्य न्यायाधीश एवं सात अन्य न्यायाधीश) निर्धारित की गई थी। + +10762. अन्य न्यायाधीशों को राष्ट्रपति द्वारा मुख्य न्यायाधीश एवं सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के ऐसे अन्य न्यायाधीशों के साथ परामर्श के बाद नियुक्त किया जाता है, यदि वह आवश्यक समझता है। मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त किसी अन्य न्यायाधीश की नियुक्ति के मामले में मुख्य न्यायाधीश के साथ परामर्श करना अनिवार्य है। + +10763. भारत के मूल संविधान में या संशोधनों में कॉलेजियम का कोई उल्लेख नहीं है। + +10764. उपचारात्मक याचिका का दायरा समीक्षा याचिका से संकीर्ण है। समीक्षा याचिकाएँ अधिकतर संविधान के अनुच्छेद 137 के आधार पर दायर की जाती हैं, जबकि उपचारात्मक याचिका का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 142 तथा उच्चतम न्यायालय के नियम, 1966 के अधीन है। + +10765. किसी मामले में याचिकाकर्त्ता द्वारा पुनर्विचार याचिका पहले दाखिल की जा चुकी हो। + +10766. + +10767. भगवान् कृष्ण के प्रति अनुरक्त होकर वृंदावन में उन्होंने निम्बार्क संप्रदाय में दीक्षा ली और अपने परिवार का मोह भी इन्होंने उस भक्ति के कारण त्याग दिया। मरते दम तक वे राधा-कृष्ण सम्बंधी गीत, कवित्त-सवैये लिखते रहे। कवि घनानंद दिल्ली के बादशाह मुहम्मद शाह के मीर मुंशी थे। कहते हैं कि सुजान नाम की एक स्त्री से उनका अटूट प्रेम था। उसी के प्रेम के कारण घनानंद बादशाह के दरबार में बे-अदबी कर बैठे, जिससे नाराज होकर बादशाह ने उन्हें दरबार से निकाल दिया। साथ ही घनानंद को सुजान की बेवफाई ने भी निराश और दुखी किया। वे वृंदावन चले गए और निंबार्क संप्रदाय में दीक्षित होकर भक्त के रूप में जीवन-निर्वाह करने लगे। परंतु वे सुजान को भूल नहीं पाए और अपनी रचनाओं में सुजान के नाम का प्रतीकात्मक प्रयोग करते हुए काव्य-रचना करते रहे। घनानंद मूलतः प्रेम की पीड़ा के कवि हैं। वियोग वर्णन में उनका मन अधिक रमा है। + +10768. विरोधाभास के अधिक प्रयोग से उनकी कविता भरी पड़ी है। जहाँ इस प्रकार की कृति दिखाई दे, उसे निःसंकोच इनकी कृति घोषित किया जा सकता है। + +10769. अति सूधो सनेह को मारग है, जहाँ नेकु सयानप बांक नहीं।कवि अपनी प्रिया को अत्यधिक चतुराई दिखाने के लिए उलाहना भी देता है। + +10770. हिन्दी कविता (मध्यकाल और आधुनिक काल) सहायिका/नागार्जुन की काव्यगत विशेषताएं: + +10771. + +10772. + +10773. SBPI अंतराल क्षेत्रों (Gap Areas) जो भारत की लाईफ साइंस प्रगति में एक बाधा है की ओर देश की अनुसंधान निधि बढ़ाने के लिये पूरक के रुप में कार्य करेगी। + +10774. इसके अलावा संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद (National Council of Science Museums- NCSM) इस प्रदर्शनी के आयोजन में भागीदार है। + +10775. विज्ञान समागम के अंतिम चरण के बाद इसका आयोजन 21 जनवरी से 20 मार्च, 2020 तक राष्ट्रीय विज्ञान केंद्र में किया जाएगा। + +10776. वित्तपोषण के लिये मंज़ूरी प्राप्त होने पर एक प्रस्ताव को तीन सालों के लिये आर्थिक सहायता प्रदान की जाएगी तथा इस अवधि को 2 वर्ष और बढ़ाया जा सकता है। + +10777. इस अभियान का उद्देश्य आर्कटिक में वायुमंडलीय, भू-भौतिकीय, महासागरीय और अन्य सभी संभावित प्रभावों का अध्ययन करना है जिससे मौसम प्रणालियों में हो रहे बदलावों का अधिक सटीक पूर्वानुमान लगाया जा सके। + +10778. उम्मीदवारों को देशभर में 500 + जिला, राज्य, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं के माध्यम से चुना गया। + +10779. वर्ल्डस्किल्स 2019 के लिये प्रतिभागियों का चुनाव + +10780. पहल में भागीदारी + +10781. इस उद्देश्य के लिये विभाग द्वारा 400 मेगाहर्ट्ज़ स्पेक्ट्रम का आवंटन किया जाएगा। + +10782. राष्ट्रीय पादप जीनोम अनुसंधान संस्थान, भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) का एक स्वायत्त संस्थान है। इस संस्थान की सहायता से भारत पादप आनुवंशिकी (प्लांट जीनोमिक्स) के क्षेत्र में प्रमुख योगदानकर्त्ता बन गया है। + +10783. वर्तमान में GIMS का ओडिशा सहित कुछ राज्यों में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में परीक्षण किया जा रहा है। + +10784. WhatsApp की तरह GIMS में भी एकल संदेश के लिये एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन (End-To-End Encryption) की सेवा उपलब्ध है। + +10785. यह एक सांविधिक निकाय है जिसकी स्थापना संसद के अधिनियम (द साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड एक्ट,2008) द्वारा की गई थी। + +10786. केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री ने IIT दिल्ली में ‘TechEx’ नामक एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। + +10787. जीव विज्ञान तथा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भारत का योगदान. + +10788. सर्जिकल प्लानिंग,मस्तिष्क और खोपड़ी मॉडल विकास (Brain and Skull Model Development) के लिये 3D प्रिंट मॉडल प्रौद्योगिकी, शिराओं की बाईपास सर्जरी तथा लगातार देखभाल के लिये आधुनिक तकनीकी की आवश्यकता होती है। + +10789. सिज़ोफ्रेनिया एक मानसिक विकार है जो रोगी की सोच, भाषा, धारणा तथा स्वयं की भावना को बहुत अधिक प्रभावित करता है। + +10790. भ्रूण कुपोषण + +10791. भ्रम + +10792. सिजोफ्रेनिया एक ऐसी स्थिति है जो सारी जिंदगी रहती है, + +10793. इसके माध्यम से बीमारी के प्रति अधिक संवेदनशील नैदानिक/चिकित्सकीय परीक्षण विकसित करने में सहायता प्राप्त हो सकती है। + +10794. इसके कारण नाखून टूटने लगते हैं, उनका रंग मलिन हो जाता है और नाखूनों के आकार में भी विकृति उत्पन्न हो जाती है। + +10795. बेहतर जैविक अंतर्दृष्टि के लिये शारीरिक और आणविक मानचित्रण। + +10796. दाभोलकर संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) के सहायक महानिदेशक के पद के साथ इंटरनेशनल सेंटर फॉर थियोरेटिकल फिजिक्स (ICTP) के निदेशक का पदभार संभालेंगे। + +10797. इन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। प्रिंसटन विश्वविद्यालय से सैद्धांतिक भौतिकी में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की, इसके बाद रटगर्स विश्वविद्यालय,हार्वर्ड विश्वविद्यालय और कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में पोस्ट-डॉक्टरेट किया तथा विभिन्न क्षेत्रों में अनुसंधान कार्य किया। + +10798. भारत ने 11 मई, 1998 को अपना दूसरा सफल परमाणु परीक्षण किया था। + +10799. इसका उद्देश्य जीनोमिक्स की ‘उपयोगिता’ (‘Usefulness’ of Genomics) के बारे में छात्रों की अगली पीढ़ी को शिक्षित करना है। + +10800. सभी व्यक्तियों,जिनका जीनोम अनुक्रम किया जाता है, को एक रिपोर्ट दी जाएगी। साथ ही उन्हें उनके जीन की संवेदनशीलता की जानकारी प्रदान की जाएगी। + +10801. इसके अंतर्गत डीएनए में मौज़ूद चारों तत्त्वों- एडानीन (A), गुआनीन (G), साइटोसीन (C) और थायामीन (T) के क्रम का पता लगाया जाता है। + +10802. यह पोषक तत्त्वों को बढ़ाकर तथा उपयुक्त रूट स्टॉक्स के साथ मिट्टी जनित रोगों के प्रतिरोधक विकसित करके पौधों की वृद्धि करता है। + +10803. इसका आयोजन नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन (NIF) तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा किया गया है। + +10804. आंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत का योगदान. + +10805. मीथेन-संचालित रॉकेट इंजन + +10806. बेहतर ईंधनों का प्रयोग अंतरिक्ष में अनुसंधान को बढ़ावा देगा। + +10807. PSLV को उपग्रहों को ध्रुवीय तथा पृथ्वी की कक्षाओं में लॉन्च करने के लिये डिज़ाइन किया गया है। हालाँकि लॉन्च के बाद यह सीधे ध्रुवीय या पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश नहीं कर सकता क्योंकि रॉकेट के किसी टुकड़े या अवशेष के गिरने की आशंका के कारण इसके प्रक्षेपवक्र (Trajectory) को श्रीलंका के ऊपर उड़ान से बचना होता है। + +10808. क्योंकि रॉकेट लॉन्च केंद्र पूर्वी तट पर और भूमध्य रेखा के पास होना चाहिये। + +10809. अभी तक के कुल प्रक्षेपणों में PSLV केवल 2 बार ही असफल रहा है। पहली बार सितंबर 1993 में अपनी पहली ही उड़ान PSLV D1 के दौरान और दूसरी बार अगस्त 2017 में PSLV C-39 की उड़ान के दौरान। + +10810. इस प्रक्षेपण में कार्टोसेट-3 के अलावा अमेरिका के 13 वाणिज्यिक नैनोसैटेलाइट भी शामिल थे। + +10811. यह उपग्रह रिमोट सेंसिंग के मामले में विश्व में सर्वश्रेष्ठ होगा, इसलिये इसे शार्पेस्ट आई (Sharpest Eye) कहा जा रहा है। + +10812. इससे पहले DRDO ने आंध्र प्रदेश के कृष्णा ज़िले में कृष्णा वन्यजीव अभ्यारण्य में इस परियोजना को स्थापित करने का प्रस्ताव दिया था। + +10813. ‘P-75I परियोजना के तहत 111’ (Twin-Engine Naval Light Utility Choppers) हेलिकॉप्टरों के निर्माण के लिये 21,000 करोड़ रुपये की परियोजना को मंज़ूरी दी गई है जो SP मॉडल की दूसरी परियोजना है। + +10814. खगोलविदों ने G351.7-1.2 क्षेत्र में बड़ी संख्या में गैस के बादल पाए तथा अधिक आवृति पर जाँच के बाद इसके सुपरनोवा होने की पुष्टि हुई। परमाणु हाइड्रोजन के एक उच्च वेग वाला यह सुपरनोवा स्कोर्पियस (Scorpius) तारामंडल की दिशा में है। + +10815. ‘एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन’ के बाद इसरो की दूसरी व्यावसायिक शाखा न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) का आधिकारिक रूप से बंगलूरु में उद्घाटन. + +10816. लो अर्थ ऑर्बिट के बाद मीडियम अर्थ (इंटरमीडिएट सर्कुलर) ऑर्बिट और उसके बाद पृथ्वी की सतह से 35,786 किलोमीटर पर हाई अर्थ (जिओसिंक्रोनस) ऑर्बिट है। इसरो का SSLV मूल रूप से जुलाई 2019 में अपनी पहली विकास उड़ान भरने वाला था, लेकिन इसे वर्ष 2019 के अंत तक दाल दिया गया है + +10817. सितंबर 2010 में LRO ने अपना प्राथमिक मानचित्रण मिशन पूरा किया और चंद्रमा के चारों ओर एक विस्तारित विज्ञान मिशन (Extended Science Mission) शुरू किया। यह नासा के विज्ञान मिशन निदेशालय के अंतर्गत कार्य करता है। + +10818. चंद्रयान 2 (Chandrayaan 2) के लैंडर 'विक्रम' (Vikram) से संपर्क टूटा. + +10819. ऑर्बिटर का मुख्य कार्य चंद्रमा का नक्शा तैयार करना, सौर विकिरण की तीव्रता का परीक्षण करना और मैग्नीशियम, एल्युमिनियम, सिलिकॉन, कैल्शियम, टाइटेनियम, आयरन एवं सोडियम आदि जैसे प्रमुख तत्त्वों की उपस्थिति की जाँच करना है। + +10820. सूर्य, आवेशित कणों की एक सतत् धारा के रूप में सौर वायु का उत्सर्जन करता है। ये कण सूर्य के विस्तारित चुंबकीय क्षेत्र में अंतर्निहित हैं। + +10821. तरल मीथेन का ईधन के रूप प्रयोग करने के लिये क्रायोजेनिक इंजन की आवश्यकता होगी। किसी भी गैस को तरल रूप में रखने के लिये बेहद कम तापमान की आवश्यकता होती है। + +10822. ताप कवच का व्यास: 5.0 मीटर + +10823. उल्लेखनीय है कि GSLV MK III-D2 ने 14 नवंबर, 2018 को उच्‍च क्षमता वाले संचार उपग्रह GSAT-29 का सफलतापूर्वक प्रमोचन किया था। + +10824. RISAT श्रृंखला इसरो का पहला ऑल-वेदर अर्थ ऑब्जर्वेशन उपग्रह है। + +10825. इस तरह RISAT-2 देश का पहला सिंथेटिक अपर्चर राडार युक्त उपग्रह बना, जिससे दिन या रात, हर मौसम में (24 घंटे) देश की सीमाओं की निगरानी करने की क्षमता बढ़ी। + +10826. भारत अंतरिक्ष युद्ध अभ्यास IndSpaceEx की ओर अग्रसर. + +10827. इसके साथ ही अंतरिक्ष में रणनीतिक चुनौतियों को बेहतर ढंग से समझने में सहायता प्राप्त होगी जिनकी वर्तमान परिवेश में अत्यंत आवश्यकता है। + +10828. भारत अन्य काउंटर-स्पेस क्षमताओं जैसे कि निर्देशित ऊर्जा हथियार (Directed Energy Weapons- DEWs), लेज़र, ईएमपी (Electromagnetic Pulse) और सह-कक्षीय मारकों (Co-orbital Killers) के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक या प्राकृतिक हमलों से स्वयं के उपग्रहों की रक्षा करने की क्षमता को विकसित करने के लिये काम कर रहा है। + +10829. भारत ने वर्ष 2022 में गगनयान मिशन की सफलता के पश्चात् वर्ष 2030 तक एक छोटे आकार का अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की योजना बनाई है। इस स्टेशन का भार 20 टन होगा जो कि ISS और चीनी अंतरिक्ष स्टेशन से आकार में काफी हल्का है (इनका भार क्रमशः 450 टन और 80 टन है)। इस स्टेशन में 4-5 अंतरिक्ष यात्री 15-20 दिनों के लिये रुक सकेंगे। इस स्टेशन को पृथ्वी की निम्न कक्षा (LEO) में लगभग 400 किमी. की ऊँचाई पर स्थापित किया जाएगा। भारत के लिये अंतरिक्ष स्टेशन की आवश्यकता को निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है- + +10830. इन प्रौद्योगिकियों में से कुछ को अंतरिक्ष कैप्सूल रिकवरी प्रयोग (SRE-2007), क्रू मॉड्यूल वायुमंडलीय पुन: प्रवेश प्रयोग (CARE-2014) और पैड एबॉर्ट टेस्ट (2018) के माध्यम से सफलतापूर्वक प्रदर्शित किया गया है। + +10831. भारत में ऐसे कार्यक्रमों को लेकर प्रायः कोष की कमी बनी रहती है ऐसे में अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण करना बहुत कठिन हो सकता है। ज्ञात हो कि ISS निर्माण में 160 बिलियन डॉलर का खर्च आया था। हालाँकि ISS का भार प्रस्तावित भारतीय स्टेशन से 20 गुना अधिक है फिर भी भारत को एक वृहद् कोष की आवश्यकता होगी। + +10832. गोस्वामी तुलसीदास भक्तिकाल की सगुण भक्ति धारा की रामभक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। तुलसी बहुमुखी प्रतिभा के धनी कवि थे। पूर्व मध्यकाल में मुख्य रूप से काव्य रचना की दो शैलियाँ प्रचलित थीं – प्रबंध और मुक्तक। तुलसी ने दोनों काव्य रूपों में रचना की। तुलसी ने मानस की रचना प्रबंध –शैली में की है और विनयपत्रिका ,गीतावली ,कृष्णगीतावली और कवितावली आदि की रचना मुक्तक – शैली में की है। गोस्वामी तुलसीदास के बारह ग्रन्थ प्रसिद्ध माने जाते हैं -रामचरितमानस, दोहावली, कवितावली, गीतावली, बिनय पत्रिका, रामलला नहछू, पार्ववती मंगल, जनकी मंगल, बरवैरामायण, वैराग्य संदीपिनी, कृष्णगीतावली और रामाज्ञा प्रश्नावली आदि। + +10833. जैसे चातक की नजर एक ही जगह पर होती है, ऐसे ही हे प्रभ ! हमारी दृष्टि तुम पर रख दो। भगवान पर भरोसा करोगे तो क्या शरीर बीमार नहीं होगा, बूढा नहीं होगा, मरेगा नहीं ? अरे भाई ! जब शरीर पर, परिस्थितियों पर भरोसा करोगे तो जल्दी बूढ़ा होगा, जल्दी अशांत होगा, अकाल भी मर सकता है। भगवान पर भरोसा करोगे तब भी बूढ़ा होगा, मरेगा लेकिन भरोसा जिसका है देर-सवेर उससे मिलकर मुक्त हो जाओगे और भरोसा नश्वर पर है तो बार-बार नाश होते जाओगे। ईश्वर की आशा है तो उसे पाओगे व और कोई आशा है तो वहाँ भटकोगे। पतंगे का आस-विश्वास-भरोसा दीपज्योति के मजे पर है तो उसे क्या मिलता है ? परिणाम क्या आता है ? जल मरता है । + +10834. जैमिनी(GEMINI)-आपदा संबंधी चेतावनी,आपातकालीन जानकारी और संचार तथा मछुआरों के लिये चेतावनी एवं मछली संभावित क्षेत्रों (Potential Fishing Zones- PFZ) की पहचान के लिये पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने 9 अक्तूबर, 2019 को गगन आधारित समुद्री संचालन और जानकारी- जैमिनी (Gagan Enabled Mariner’s Instrument for Navigation and Information- GEMINI) उपकरण लॉन्च किया। + +10835. इसका मुख्य अधिदेश महासागर का अवलोकन कर इससे संबंधित जानकारियों को जनसामान्य के लिये सुलभ बनाना है।इसका मुख्यालय हैदराबाद में स्थित है। + +10836. यह राष्ट्रीय मिशन IITM, NCEP (USA) और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय जैसे संगठनों के आपसी समन्वय से क्रियान्वित किया जा रहा है। + +10837. अंतरिक्ष एवं प्रमुख आपदाओं पर अंतर्राष्ट्रीय चार्टर के लिये हस्ताक्षरकर्त्ता देश आपदा के समय एक-दूसरे से मानचित्रण और उपग्रह डेटा से संबंधित अनुरोध कर सकते हैं। + +10838. ग्रीष्म लहर असामान्य रूप से उच्च तापमान की वह स्थिति है, जिसमें तापमान सामान्य से अधिक रहता है और यह मुख्यतः देश के उत्तर-पश्चिमी भागों को प्रभावित करता है। + +10839. अप्रैल-जून के दौरान राज्य-स्तर और ज़िला-स्तर के आपदा केंद्रों द्वारा भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department) द्वारा व्यक्त तापमान पूर्वानुमान की लगातार निगरानी की जाती है। इसके बाद स्थानीय स्तर पर ग्रीष्म लहर से निपटने की रणनीति बनाई जाती है। + +10840. वर्ष 2019 के लिये ससकावा पुरस्कार की थीम ‘बिल्डिंग इनक्लूसिव एंड रेजिलिएंट सोसाइटीज़’ (Building Inclusive and Resilient Societies) थी। + +10841. उष्णकटिबंधीय चक्रवात. + +10842. चक्रवातों का नामकरण पहले अक्षांशीय-देशांतर के आधार पर किया जाता था परंतु वर्तमान में चक्रवातों का नामकरण उनके स्थान, विशेषता और विस्तार के आधार पर किया जाता है। + +10843. वायुमंडलीय अस्थिरता + +10844. यह श्रेणी दो का एक उष्णकटिबंधीय चक्रवात है,जो लगभग 10 किमी./घंटा की गति से पूर्व में टोंगा के जल क्षेत्र की ओर बढ़ रहा है। + +10845. सैफिर-सिम्पसन हरिकेन विंड स्केल में 1 से 5 तक रेटिंग होती है जो हरिकेन की गति पर आधारित होती है। यह स्केल संपत्ति के संभावित नुकसान का अनुमान लगाता है। + +10846. 4 (गंभीर) 209-251 किमी/घंटा प्रलयकारी नुकसान + +10847. ऊष्णकटिबंधीय चक्रवातों को चीन सागर क्षेत्र में टाइफून कहते हैं। + +10848. अधिकांश टाइफून जून से नवंबर के बीच आते हैं एवं दिसंबर से मई के बीच भी सीमित टाइफून आते हैं तथा ये जापान,फिलीपींस और चीन को प्रभावित करते हैं। + +10849. कैरिबियाई द्वीपों के एक देश ‘बहामास’ के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में भारी तबाही मचाने के बाद इसे सबसे मज़बूत तूफान की श्रेणी में शामिल किया गया है। + +10850. उष्णकटिबंधीय चक्रवातों में हरिकेन सबसे अधिक शक्तिशाली एवं विनाशकारी तूफान होते हैं। + +10851. इसका कारण यह है कि इनका निर्माण केवल ऐसे उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में होता है जहाँ सतह से नीचे कम-से-कम 50 मीटर (165 फीट) की गहराई पर महासागर का तापमान 80 डिग्री फारेनहाइट (27 डिग्री सेल्सियस) होता है। + +10852. श्रेणी 2 : गति 96-110 मील/घंटा (155-177 किमी./घंटा) + +10853. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, अरब सागर में दो चक्रवाती तूफान सक्रिय हैं। इससे पहले सक्रिय चक्रवात क्यार (Kyarr) अरब प्रायद्वीप की ओर बढ़ गया है। + +10854. 24-37 किमी/ घंटे की गति की ऊर्ध्वाधर पवनें चक्रवात की प्रबलता को बढ़ा सकती हैं। इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र की समुद्री सतह का तापमान 29-30 डिग्री सेल्सियस है जो उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की अनुकूलता में सहायक है। + +10855. टोकियो की खाड़ी से गुजरने के बाद यह टाइफून राजधानी चिबा में जमीन से टकराया। + +10856. जापान ने वर्ष 2018 में अत्यधिक बारिश के बाद बाढ़, गर्मी और गत 25 वर्षों में सबसे विनाशकारी तूफान जेबी का सामना किया। वर्ष का सबसे शक्तिशाली श्रेणी-5 का मैंगहट तूफान सितंबर महीने में उत्तरी फिलीपींस से होकर गुज़रा। इसकी वजह से करीब ढाई लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ा और प्राण घातक भूस्खलन की घटनाएँ हुईं। + +10857. रिपोर्ट के अनुसार इस पूरी अवधि में जलवायु परिवर्तन से प्रभावित देशों की सूची में फिलीपींस, पाकिस्तान और वियतनाम क्रमशः चौथे, पांचवे और छठे स्थान पर है। + +10858. आपदा प्रबंधन, पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण के मामले में जापान को महारत हासिल है, प्राकृतिक रूप से आपदा के प्रति सुभेद्य होने के बावजूद यह विशेषता जापान को विश्व का सबसे सुरक्षित एवं सबसे अधिक आपदा प्रतिरोधी देश बनाती है। + +10859. संयुक्त राष्ट्र महासचिव द्वारा आयोजित यह शिखर सम्मेलन जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और इसके परिणामस्वरूप होने वाली आपदाओं से निपटने की दिशा में प्रतिबद्धता व्यक्त करने के लिये बड़ी संख्या में राष्ट्राध्यक्षों को एक साथ लाएगा तथा CDRI के लिये आवश्यक उच्च स्तर पर ध्यान देने योग्य बनाएगा। + +10860. CDRI एक ऐसे मंच के रूप में सेवाएँ प्रदान करेगा, जहाँ आपदा और जलवायु के अनुकूल अवसंरचना के विविध पहलुओं के बारे में जानकारी जुटाई जाएगी और उसका आदान-प्रदान किया जाएगा। + +10861. भारत का भूगोल/जलवायु: + +10862. यदि तापमान में यह बढ़ोतरी 0.5 डिग्री से 2.5 डिग्री के बीच हो तो यह मानसून को प्रभावित कर सकती है। इससे मध्य एवं पूर्वी प्रशांत महासागर में हवा के दबाव में कमी आने लगती है। इसका असर यह होता कि विषुवत रेखा के इर्द-गिर्द चलने वाली व्यापारिक हवाएँ कमजोर पड़ने लगती हैं। यही हवाएँ मानसूनी हवाएँ होती हैं जो भारत में वर्षा करती हैं। + +10863. यह पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत एक प्रमुख एजेंसी है। + +10864. खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि + +10865. बिजली संकट कम होगा + +10866. अल-नीनो (El-Nino). + +10867. अल-नीनो से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र + +10868. अल-नीनो के प्रभाव से प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह गर्म हो जाती है, इससे हवाओं के रास्ते और रफ्तार में परिवर्तन आ जाता है जिसके चलते मौसम चक्र बुरी तरह से प्रभावित होता है। + +10869. प्रश्न-भारतीय मानसून का पूर्वानुमान करते समय कभी-कभी समाचारों उल्लिखित ‘इंडियन ओशन डाइपोल (IOD)’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017) + +10870. + +10871. वही दूसरा उद्धरण इस प्रकार है- इस दुनिया की सृष्टि एक ऐसी ईश्वर ने की है जिसकी कोई जाति नहीं, जो उच्च-नीच का कायल नहीं, जो ब्राह्मण, अब्राह्मण, चांडाल और कीड़ों-मकोड़ों तक में अपनी सत्ता प्रकट करता है। छुआछूत को मानने वालों को ऐसे ईश्वर के संसार को छोड़ देना चाहिए। यहां सदियों से चले आ रहे सामाजिक रूढ़िवाद को नया युग ही चुनौती दे रहा है।भारतेंदु युग से शुरू हुई यह मांग द्विवेदी युग में अधिक व्यापक हो गई। + +10872. + +10873. महज राजधानी नहीं । + +10874. हम ज़मीं पर लिखे + +10875. न बदले कभी + +10876. ज़िन्दगी वह नई + +10877. अनुकरण कर सके, + +10878. मोड़ सकती मगर + +10879. परा वाक् है + +10880. पास आना मना दूर जाना मना
शंभुनाथ सिंह + +10881. कैदखाना बना! + +10882. बदलने लगे + +10883. सोना और आँसू + +10884. अब दबे पाँव + +10885. सिर उठाना मना + +10886. धूल से, धुंध से + +10887. हुक्मरां वक्त की + +10888. नहाना मना! + +10889. गैस की आँधियाँ + +10890. घर का बनाना मना, + +10891. मन का आकाश उड़ा जा रहा है
शंभुनाथ सिंह + +10892. टेर रहा मन भूली नींद को, + +10893. सूनेपन की बाँहों में फँस कर + +10894. पुरवैया धीरे बहो। + +10895. आँखों का स्वप्न मिटा जा रहा, + +10896. अंधियारी साँझ भी ठहर गयी, + +10897. हिंदी कविता (छायावाद के बाद)/देवभाषा: + +10898. एक तेज़ प्रकाश लगातार मुझ पर + +10899. मांग, क्या मांगता है उल्लू! + +10900. अब क्या मांगना चाहना प्रभु + +10901. के राष्ट्रीय शो रूम के उद्घाटन में दौड़े- + +10902. + +10903. और चूँकि सारे मुसाफ़िर बिना टिकट + +10904. और लूट की जो घटना अभी प्रकाश में आई है + +10905. जो सम्पूर्ण क्षेत्र में आज भी चर्चा का विषय है- + +10906. वो तो पकड़ा ही जाता यदि दबा न ली होती डकार + +10907. + +10908. वह उनके कंठ से आ रही थी + +10909. और एक नदी के सूखने की साँय-साँय + +10910. और चिल्लाने के बीच का + +10911. आत्मा के भीतर + +10912. जो किसी देवता के पास था + +10913. गा रहे थे वे + +10914. वह शायद सबसे बूढ़े आदमी की + +10915. एक युवा आवाज की तड़प थी सुरीली + +10916. इतनी थी तन्मय + +10917. किसी भी आवाज से अलग नहीं थी + +10918. उतनी ही गहरी + +10919. + +10920. गुप्त जी के काव्य की विशेषताएँ इस प्रकार उल्लेखित की जा सकती हैं - + +10921. + +10922. आधुनिक काल की प्रमुख कवितायें + +10923. क्या लाती हो? + +10924. ऊँची काली दीवारों के घेरे में, + +10925. शासन है, या तम का प्रभाव गहरा है? + +10926. अंग्रेजी शासन उनके साथ घोर अन्याय कर रहा है और अंग्रेज़ों के राज में स्वतंत्रता सेनानी को आकाश में भी घोर अंधकार रूपी निराशा दिख रही है, जहाँ न्याय रूपी चंद्रमा का थोड़ा-सा भी प्रकाश नहीं है। इसलिए स्वतंत्रता सेनानी के माध्यम से कवि कोयल से पूछता है – हे कोयल! इतनी रात को तू क्यों जाग रही है और दूसरों को क्यों जगा रही है? क्या तू कोई संदेश लेकर आयी है? + +10927. मृदुल वैभव की + +10928. क्या हुई बावली? + +10929. कोकिल बोलो तो! + +10930. गिट्टी पर अंगुलियों ने लिखे गान! + +10931. कैदी और कोकिला भावार्थ :- कवि को यह लगता है कि कोयल उसे जंजीरों में बंधा हुआ देखकर यूँ चीख पड़ी है। इसलिए कैदी कोयल से कहता है – क्या तुम हमें इस तरह जंजीरों में लिपटे हुए नहीं देख सकती हो? अरे ये तो अंग्रेज़ी सरकार द्वारा हमें दिया गया गहना है। अब तो कोल्हू चलने की आवाज हमारे जीवन का प्रेरणा-गीत बन गया है। दिन-भर पत्थर तोड़ते-तोड़ते हम उन पत्थरों पर अपनी उंगलियों से भारत की स्वतंत्रता के गान लिख रहे हैं। हम अपने पेट पर रस्सी बांध कर कोल्हू का चरसा चला-चला कर, ब्रिटिश सरकार की अकड़ का कुआँ खाली कर रहे हैं। + +10932. चुपचाप, मधुर विद्रोह-बीज + +10933. शासन की करनी भी काली, + +10934. पहरे की हुंकृति की ब्याली, + +10935. मरने की, मदमाती! + +10936. कैदी और कोकिला भावार्थ :- कवि यह नहीं समझ पा रहा है कि कोयल स्वतंत्र होने के बाद भी इस अँधेरी आधी रात में कारागार के ऊपर मंडराकर अपनी मधुर आवाज़ में गीत क्यों गा रही है। क्या वह इस संकट में खुद को इसलिए ले आयी है कि उसने मरने की ठान ली है। इसका कोई लाभ होने वाला नहीं है। इसलिए कैदी कोयल से पूछ रहा है – हे कोयल! बताओ तुम क्यों इस विपरीत परिस्थिति में आज़ादी की भावना जगाने वाले गीत गा रही हो? + +10937. तेरे गीत कहावें वाह, + +10938. कोयल के मधुर गान को सुनकर सब लोग वाह-वाह करते हैं। वहीँ किसी कैदी के रोने को कोई सुनता तक नहीं है। इस प्रकार, कैदी और कोयल की परिस्थिति में ज़मीन-आसमान का फर्क है, मगर, फिर भी कोयल युद्ध का संगीत क्यों बजा रही है? कैदी कोयल से जानना चाहता है कि आखिर कोयल के इस तरह रहस्यमय ढंग से गाने का क्या मतलब है? + +10939. प्राणों का आसव किसमें भर दूँ! + +10940. हिंदी कविता (छायावाद के बाद)/अज्ञेय: + +10941. कार्यक्षेत्र. + +10942. बावरा अहेरी 1954,इन्द्रधनुष रौंदे हुये ये 1957,अरी ओ करुणा प्रभामय 1959,आँगन के पार द्वार 1961, + +10943. दूसरा सप्तक (कविता संग्रह)1951, + +10944. उनका लगभग समग्र काव्य सदानीरा (दो खंड) नाम से संकलित हुआ है तथा अन्यान्य विषयों पर लिखे गए सारे निबंध सर्जना और सन्दर्भ तथा केंद्र और परिधि नामक ग्रंथो में संकलित हुए हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के संपादन के साथ-साथ अज्ञेय ने तारसप्तक, दूसरा सप्तक और तीसरा सप्तक जैसे युगांतरकारी काव्य संकलनों का भी संपादन किया तथा पुष्करिणी और रूपांबरा जैसे काव्य-संकलनों का भी। वे वत्सलनिधि से प्रकाशित आधा दर्जन निबंध- संग्रहों के भी संपादक हैं। प्रख्यात साहित्यकार अज्ञेय ने यद्यपि कहानियां कम ही लिखीं और एक समय के बाद कहानी लिखना बिलकुल बंद कर दिया, परंतु हिन्दी कहानी को आधुनिकता की दिशा में एक नया और स्थायी मोड़ देने का श्रेय भी उन्हीं को प्राप्त है। निस्संदेह वे आधुनिक साहित्य के एक शलाका-पुरूष थे जिसने हिंदी साहित्य में भारतेंदु के बाद एक दूसरे आधुनिक युग का प्रवर्तन किया। + +10945. यह एक मौसम पूर्वानुमान टूल है जो उच्च-रिज़ॉल्यूशन मौसम पूर्वानुमान से संबंधित जानकारी प्रदान करता है। + +10946. राज्य परिवहन विभागों/उपक्रमों आदि द्वारा 5000 इलेक्ट्रिक बसें चलाने के लिये प्रस्ताव आमंत्रित करना। + +10947. इस राज्य में धान का लगातार उत्पादन किये जाने के कारण जल का स्तर प्रतिवर्ष एक मीटर तक गिरता जा रहा है। + +10948. भारतीय सेना हमेशा ही पर्यावरणीय पहल में सबसे आगे रही है। वर्तमान में भारतीय सेना के पास बड़ी संख्या में टेरिटोरियल आर्मी बटालियन (Territorial Army Battalions- ECO) हैं जिन्होंने वन संरक्षण जैसे पर्यावरण संरक्षण की पहल की है। + +10949. सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्यों को वन की पहचान करने और उन्हें सूचित करने को भी कहा था। + +10950. स्वच्छ भारत मिशन. + +10951. टूलकिट में विस्तृत सर्वेक्षण पद्धति एवं स्कोर के साथ घटक संकेतक हैं ताकि इस सर्वेक्षण के लिये शहरों को तैयार करने में मदद की जा सके। त्रैमासिक आधार पर स्वच्छता मूल्यांकन करके इस सर्वेक्षण के "5वें" संस्करण के साथ एकीकृत किया जाएगा। स्वच्छता संबंधी कार्यों में सेवा स्तर के प्रदर्शन की निरंतर निगरानी के साथ शहरों के वास्तविक प्रदर्शन को बनाए रखना + +10952. उद्देश्य:- + +10953. मरूस्थलीकरण. + +10954. संयुक्‍त राष्‍ट्र मरुस्‍थलीकरण रोकथाम कन्वेंशन, कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज़- 14 (UN Convention to Combat Desertification- UNCCCD, COP14) के दौरान अफ्रीकी देशों ने वर्ष 2030 तक महाद्वीप के साहेल क्षेत्र में योजना को लागू करने हेतु वित्त के संदर्भ में वैश्विक समर्थन की मांग की थी। अफ्रीकी देशों के प्रयासों के अतिरिक्त COP14 में शांति वन पहल (Peace Forest Initiative-PFI) की शुरुआत की गई, जिसका उद्देश्य संघर्षग्रस्त सीमावर्ती क्षेत्रों में भूमि क्षरण के मुद्दे को संबोधित करना है। शांति वन पहल पेरू और इक्वाडोर के बीच स्थापित पीस पार्क (Peace Park) पर आधारित है। + +10955. नवगठित गठबंधन के प्रमुख लक्ष्य:-वैश्विक, क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय स्तरों पर प्रभावित देशों एवं संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के बीच भागीदारों को संलग्न करने तथा संवाद और सहयोग को बढ़ावा देने के लिये एक मंच प्रदान करना। + +10956. भारत में भू-क्षरण का दायरा 96.40 मिलियन हेक्टेयर है जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 29.30 प्रतिशत है। + +10957. इस वर्ष इसमें भूमि से संबंधित तीन प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है- सूखा, मानव सुरक्षा और जलवायु। + +10958. इसका आयोजन भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत कार्यरत जैव-प्रौद्योगिकी विभाग ने अपने सार्वजनिक उपक्रम जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद के साथ मिलकर किया। + +10959. जैव-प्रौद्योगिकी तेज़ी से उभरने वाला क्षेत्र है जो वर्ष 2025 तक भारत की अर्थव्‍यवस्‍था को 5 ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य तक पहुँचाने में उल्‍लेखनीय योगदान कर सकता है। + +10960. कहा गया है कि उद्योगों में कोयला / कोक को प्राकृतिक गैस से प्रतिस्थापित किया जाए। + +10961. संतरी रंग का अलर्ट तब जारी किया जाता है जब अधिकतम तापमान लगातार दो दिन तक सामान्य से पांच डिग्री तक अधिक बना रहता है। उस स्थिति में लू चलने की घोषणा की जाती है। + +10962. टारबॉल्स आमतौर पर सिक्के के आकार के होते हैं और समुद्र तटों पर बिखरे हुए पाए जाते हैं। हालाँकि बीते कुछ वर्षों में ये बास्केटबॉल के आकार के हो गए हैं और इनका वजन लगभग 6-7 किलोग्राम तक पहुँच गया है। + +10963. भारत में अभी तक समुद्री टारबॉल्स के कारण समुद्री तट को बंद करने का मामला सामने नहीं आया है। + +10964. इस प्रदर्शनी में विभिन्न सूचनाओं के साथ डिस्प्ले पैनल और ऑडियो-विजुअल उपकरण लगाए गए हैं। + +10965. यह एक जल संरक्षण अभियान है जो देश भर में 256 ज़िलों के 1592 दबावग्रस्त ब्लॉकों (Stressed Blocks) पर केंद्रित है। + +10966. आवश्यकता क्यों? + +10967. इस एप्लीकेशन का प्रयोग किसी क्षेत्र विशेष में कचरा डंपिंग, सड़क की धूल, वाहनों के उत्सर्जन या अन्य प्रदूषण के मुद्दों से संबंधित शिकायतों को दर्ज करने या ट्रैक करने के लिये भी किया जा सकता है। + +10968. यह उपकरण लगभग आधे घंटे में पीएम 10 (PM10) को 600 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर (ug/m3) से घटाकर 100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तथा PM2.5 को 300 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर कर सकता है। + +10969. यह वायु संदूषकों को तंतुओं के एक ज़टिल ज़ाल में फँसा लेता है। + +10970. 'सफर' (SAFAR) के माध्यम से लोगों को वर्तमान हवा की गुणवत्ता, भविष्य में मौसम की स्थिति, खराब मौसम की सूचना और संबद्ध स्वास्थ्य परामर्श के लिये जानकारी तो मिलती ही है, साथ ही पराबैंगनी/अल्ट्रा वायलेट सूचकांक (Ultraviolet Index) के संबंध में हानिकारक सौर विकिरण (Solar Radiation) के तीव्रता की जानकारी भी मिलती है। + +10971. यह मौसम के सभी मापदंडों जैसे- तापमान, वर्षा, आर्द्रता, हवा की गति एवं दिशा, पराबैंगनी किरणों और सौर विकिरण आदि की निगरानी करता है। + +10972. + +10973. + +10974. इसमें कवि ने देश को एकरूप में देखना चाहा है। उसने देश को बिखरते और टूटते नहीं देखना चाहा है। देश आज विभिन्न रूपों एवं नामों में बंट गया है। देश का इतिहास जमीन पर ही लिखा गया आकाश के नीचे बैठकर लिखा है। + +10975. हमारा देश किसी भी दिशा और दृष्टि को मोड़ दे सकता है, परन्तु वह किसी भी तोड़-फोड़ और तोड़ने में योगदान नहीं देता है। वह जोड़ने में विश्वास करता है। वह हरेक को सही रास्ता दिखाता है। कभी किसी को दिग्भ्रमित नहीं करता है। वह हरेक को साथ में लेकर चलता है। चाहे वह बीसवीं सदी हो या इक्कीसवीं सदी हो। वह एक सही राह पर चलता है। वह निर्माण को महत्त्व देता है, तोड़ने को नहीं। वह हमेशा दूसरों की मदद करता है। हमें ये सदियाँ हमेशा सही राह दिखाती हैं। हमें हमारा आध्यात्मिक ज्ञान नई और निर्माणात्मक ज्ञान की दिशा की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा प्रदान करता है। चाहे वह हमारे देश का दूरदर्शन हो या आकाशवाणी। दोनों ही सही सूचना और ज्ञान प्रदान करते हैं। अर्थात् मीडिया में अदभाव है। + +10976. 4. देश मे बदलाव आया है ,परन्तु उसने अपनी परम्पराओं और मूल्यो को नही छोडा। + +10977. महाकवि बिहारीलाल (1595-1664) का जन्म ग्वालियर में हुआ । वे जाति के माथुर चौबे थे । उनके पिता का नाम केशवराय था। उनका बचपन बुंदेल खंड में और युवावस्था ससुराल मथुरा में व्यतीत हुई:- + +10978. अली कली ही सा बिंध्यों, आगे कौन हवाल।। + +10979. तरुनाई आई सुघर मथुरा बसि ससुराल॥ + +10980. बिहारी की कविता का मुख्य विषय श्रृंगार है। उन्होंने श्रृंगार के संयोग और वियोग दोनों ही पक्षों का वर्णन किया है। संयोग पक्ष में बिहारी ने हावभाव और अनुभवों का बड़ा ही सूक्ष्म चित्रण किया हैं। उसमें बड़ी मार्मिकता है। संयोग का एक उदाहरण देखिए - + +10981. चढी हिंडोरे सी रहे, लगी उसासनु साथ॥ + +10982. बिहारी मूलतः श्रृंगारी कवि हैं। उनकी भक्ति-भावना राधा-कृष्ण के प्रति है और वह जहां तहां ही प्रकट हुई है। सतसई के आरंभ में मंगला-चरण का यह दोहा राधा के प्रति उनके भक्ति-भाव का ही परिचायक है - + +10983. खाये खर्चे जो बचे तो जोरिये करोर॥ + +10984. . लिखन बैठि जाकी सबी गहि गहि गरब गरूर। + +10985. + +10986. ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा जारी इस सूचकांक के अनुसार, भारत भ्रष्टाचार के मामले में 180 देशों की सूची में 80वें स्थान पर है, जबकि वर्ष 2018 में भारत इस सूचकांक में 78वें स्‍थान पर था। + +10987. भारत और ऑस्ट्रेलिया जैसे लोकतंत्रों में अनुचित और अपारदर्शी राजनीतिक वित्तपोषण (Unfair and Opaque Political Financing), निर्णय लेने में अनुचित प्रभाव (Undue Influence in Decision-Making) और शक्तिशाली कॉर्पोरेट हित समूहों की पैरवी करने के परिणामस्वरूप भ्रष्टाचार के नियंत्रण में गिरावट आई है। + +10988. जर्मनी और जापान की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है तथा इटली को एक स्थान का लाभ मिला है। + +10989. लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम,2013 को संशोधित करने के लिये यह विधेयक संसद ने जुलाई 2016 में पारित किया। + +10990. लोकपाल एक बहु-सदस्यीय निकाय है जिसका गठन एक चेयरपर्सन और अधिकतम 8 सदस्यों से हुआ है। + +10991. लोकपाल संस्था के चेयरपर्सन और सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष या 70 वर्ष की आयु तक है। + +10992. सामान्य अध्ययन२०१९/औद्योगिक क्षेत्रक: + +10993. राष्‍ट्रीय स्‍तर वाला TRS आधारभूत प्रदर्शन माप को स्‍थापित स्‍थापित करेगा और इसके तहत सभी बंदरगाहों पर मानकीकृत परिचालन एवं प्रक्रियाएँ होंगी। + +10994. ♦ आंतरिक व्यापार को बढ़ावा देना (खुदरा व्यापार सहित) + +10995. यह संशोधन कॉरपोरेट कर्ज़दार (corporate debtor) की बिक्री की प्रक्रियाओं को निर्धारित करता है। इसमें इस बात की भी व्यवस्था की गई है कि जैसे ही एक बार कॉरपोरेट देनदार की बिक्री होती है, वैसे ही ऋण शोधन की प्रक्रिया को कॉरपोरेट देनदार के विलय के बिना बंद कर दिया जाएगा। + +10996. अनुपालन या व्याख्या एक नियामक दृष्टिकोण है जिसमें सूचीबद्ध कंपनियाँ या तो अनुपालन कर सकती हैं या यदि वे ऐसा नहीं करती हैं, तो उन्हें सार्वजनिक रूप से यह स्पष्ट करना होगा की कि वे ऐसा क्यों नहीं करती हैं। + +10997. इस योजना के दौरान 65 हज़ार करोड़ रुपये से अधिक की 250 परियोजनाओं की आधारशिला रखी गई। + +10998. उत्तर प्रदेश में पिछले दो वर्षों के भीतर कानून और व्यवस्था की स्थिति में अभूतपूर्व सुधार हुआ है जो कि निवेश को आकर्षित करने और राज्य में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये महत्त्वपूर्ण है। + +10999. चीनी इंवेन्ट्री में कमी आएगी। + +11000. इस सर्वे के अंतर्गत लोगों से तकनीकी नवाचार क्षेत्र के बारे में जानकारी एकत्रित की गई। + +11001. मत्‍स्‍य पालन एवं मछुआरा समुदाय खेती-बाड़ी से काफी हद तक जुड़े हुए हैं और ये ग्रामीण भारत के लिये अत्‍यंत महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। + +11002. पशु चारे के उत्‍पादन और दूध की खरीद, प्रोसेसिंग एवं विपणन के लिये बुनियादी ढांचागत सुविधाओं को सृजित करके भी सहकारी समितियों के ज़रिये डेयरी को प्रोत्‍साहित किया जाएगा। + +11003. सरकार ने अपने कुछ नियमों में छूट देने का भी प्रस्ताव दिया है जिसमें तथाकथित ‘एंजेल टैक्‍स’ का मुद्दा भी शामिल है। + +11004. एक कंपनी की तरह, SPV एक कृत्रिम व्यक्ति है। इसमें एक कानूनी व्यक्ति के सभी गुण निहित होते हैं। + +11005. इसमें शामिल आठ प्रमुख क्षेत्र (Core Sectors) निम्नलिखित हैं: + +11006. यह देश में सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) की सांख्यिकीय निगरानी के लिये भी उत्तरदायी है। + +11007. सरकार ने इस कार्य के लिये 2500 करोड़ रुपए का आरंभिक कोष बनाया है, जिसे भविष्य में चार चरणों के माध्यम से 10,000 करोड़ करने की योजना है। + +11008. अंतर्राष्ट्रीय ऑटोमोटिव प्रौद्योगिकी केंद्र (International Centre for Automotive Technology- ICAT) द्वारा आयोजित इस शिखर सम्मेलन का आयोजन 27 – 29 नवंबर, 2019 तक NCR स्थित मानेसर में किया गया। + +11009. हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुंबई में देश का पहला ‘मेक इन इंडिया मेट्रो कोच’ लॉन्च किया है। उल्लेखनीय है कि यह मेट्रो कोच BEML लिमिटेड द्वारा निर्मित है। + +11010. खाद्य प्रसंस्करण एवं संबंधित उद्योग. + +11011. भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards- BIS) अच्छे मानक स्थापित कर रहा है जो वैश्विक बेंचमार्क से मेल खाते हैं। अब तक लगभग 4500 प्रयोगशालाओं को इस निर्देशिका के माध्यम से जोड़ा गया है, जो परीक्षण के लिये वन स्टॉप शॉप की व्यवस्था प्रदान करेगा जहाँ उत्पादों को भी देखा जा सकता है। + +11012. SPV ज़्यादातर बाज़ार से फंड जुटाने के लिये बनाई जाती है। तकनीकी रूप से SPV एक कंपनी की तरह ही कार्य करती है। + +11013. यह परियोजना क्लॉथिंग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया (CMAI); यूनाइटेड नेशंस इंडिया, IMG Reliance तथा कपडा मंत्रालय द्वारा शुरू की गई है। + +11014. COTTON YARN EXPORTS DECLINE + +11015. सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम. + +11016. उद्देश्य:- + +11017. तकनीक सक्षमता के माध्यम से MSMEs के विकास में तेज़ी लाने के लिये 'टेक सक्षम' परियोजना शुरू की गई है। इसका लक्ष्य MSMEs के लिये प्रौद्योगिकी अपनाने संबंधी अंतराल को कम करना है ताकि उन्हें वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी होने के लिये प्रोत्साहित किया जा सके, देश के निर्यात में उनके योगदान को बढ़ाया जा सके और लागत क्षमता का लाभ उठाया जा सके। + +11018. इस कदम से इन अनधिकृत समुदायों को पूरे भारतीय बाज़ार तक पहुँच बनाने तथा 150 मिलियन से अधिक ग्राहकों के साथ जुड़ने में मदद मिलेगी। + +11019. वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान इस योजना के तहत निर्माता कंपनी के कार्यक्षेत्र के बारे में कारीगरों को सामूहिक रूप से शिक्षित करने के लिये एक अभियान की पहल की है। + +11020. वर्ष 2001-2002 में कपड़ा मंत्रालय ने अंबेडकर हस्तशिल्प विकास योजना की शुरुआत की थी। + +11021. मानव संसाधन विकास + +11022. अर्बन हाट + +11023. राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर की हथकरघा एजेंसियाँ/निगम/सहकारी समितियाँ/प्राथमिक सहकारी समितियाँ/बुनकर/कारीगर अर्बन हाट पहल के लिये पात्र होंगे। + +11024. कपड़ा मंत्रालय द्वारा उत्तर-पूर्व क्षेत्र में वस्त्र उद्योग को बढ़ावा देने के लिये लागू नॉर्थ ईस्ट रीजन टेक्सटाइल प्रमोशन स्कीम (North East Region Textile Promotion Scheme- NERTPS) के तहत 38 सेरीकल्चर परियोजनाओं को शुरू किया गया है। + +11025. यह योजना अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों में भागीदारी के माध्यम से निर्यात के नए अवसरों की खोज, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नेटवर्क तक पहुँच, प्रौद्योगिकी विकास, आधुनिकीकरण, बेहतर प्रतिस्पर्द्धा, बेहतर विनिर्माण के प्रति जागरूकता आदि से MSME का समर्थन करती है। + +11026. इसके अलावा,इसने नीतियों के अभिसरण और एक समर्थक उद्यम तंत्र के निर्माण के लिये प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में सूक्ष्म,लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) के लिये एक राष्ट्रीय परिषद की स्थापना की सिफारिश की है, जिसमें MSME के मंत्री, वाणिज्य एवं उद्योग, कपड़ा, खाद्य प्रसंस्करण, कृषि, ग्रामीण विकास, रेलवे और सड़क परिवहन मंत्री भी सदस्य के रूप में शामिल होंगे । यह भी कहा गया है कि सभी राज्यों में भी MSME के लिये इसी तरह की परिषदें होनी चाहिये। + +11027. इस मशीन के द्वारा बेकार और टूटे बर्तनों का पाउडर बना कर बर्तन निर्माण में इसका उपयोग पुनः उपयोग किया जा सकेगा। + +11028. 18-40 वर्ष की आयु के सभी छोटे दुकानदार और स्व-नियोजित व्यक्ति तथा 1.5 करोड़ रुपए से कम जीएसटी टर्नओवर वाले खुदरा व्यापारी इस योजना का लाभ प्राप्त करने के लिये अपना नामांकन कर सकते हैं। + +11029. वित्त एवं कॉर्पोरेट मंत्रालय ने भी सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (MSME) क्षेत्रों का समर्थन करने तथा ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों को प्रोत्साहित करने के लिये विभिन्न उपाय किये हैं। + +11030. इस योजना के तहत सरकार ने देशभर में 90 समूहों की पहचान कर उन्हें सामूहिक रूप से शिक्षित करने का निर्णय लिया है। इसके अंतर्गत आकांक्षी ज़िलों, महिला समूहों, कमज़ोर वर्गों तथा संभावित निर्यातक समूहों को भी कवर किया जाएगा। + +11031. इस योजना की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं: + +11032. अवसंरचना एवं तकनीकी सहयोग + +11033. इसका उद्देश्य हथकरघा बुनकरों और कारीगरों के लिये मध्यम एजेंसियों को खत्म करके बड़े शहरों तथा महानगरीय शहरों में एक स्थायी विपणन का बुनियादी ढाँचा स्थापित करना है। + +11034. सिल्क समग्र योजना + +11035. इन परियोजनाओं के माध्यम से रेशम कीट पालन और संबद्ध गतिविधियों के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचे तथा स्थानीय लोगों को कौशल प्रदान किया जाएगा। + +11036. सेबी के पूर्व चेयरमैन यू.के. सिन्हा की अध्यक्षता में MSMEs पर गठित विशेषज्ञ समिति ने सुझाव दिया है कि यह कोष उन सूक्ष्म,लघु और मध्यम उद्योगों के क्लस्टर इकाइयों को सहायता प्रदान करेगा जो बाह्य कारकों जैसे-प्लास्टिक पर प्रतिबंध,निर्यात के माध्यम से सामानों की डंपिंग आदि के कारण गैर निष्पादक होती जा रही हैं। + +11037. हिंदी कविता (छायावाद के बाद) सहायिका/उधर के चोर: + +11038. (2) इनकी कविता में गरीब वर्ग का चित्रण देखने को मिलता है। + +11039. राष्ट्रीय काव्यधारा. + +11040. "एक और कायरता कांपे गतानुगति वीगलीत हो जाए । + +11041. किन्तु छायावाद की सीमा रेखा इस धारा की सीमा रेखा नहीं है। इसने पूर्ववर्ती मैथिलीशरण गुप्त और परवर्ती दौर में भी रामधारी सिंह दिनकर के साथ अपना स्वर प्रखर बनाए रखा। + +11042. "जो कष्टो से घबराऊं तो मुझमें कायर में भेद कहां । + +11043. इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं—'कुंकुम', 'कुवासी', 'उर्मिला' आदि। यह अपनी प्रथम काव्य संग्रह 'कुंकुम' की जाने पर 'प्राणार्पण', 'आत्मोत्सर्ग' तथा 'प्रलयंकर' कविता संग्रह में क्रांति गीतों की ओजस्विता एवं प्रखरता है। + +11044. यह है शोक स्थान, यहां मत शोर मचाना ।। + +11045. बढ़ों–बढ़ों की आग में गुलामियों को झोंक दो ।।" + +11046. उठो राष्ट्र के हे अभिमानी + +11047. दलित शब्द उत्पीडित, शोषित, उपेक्षित, घृणित, वंचित आदि अर्थो में प्रयुक्त होता है। भारतीय समाज में जिसे अस्पृश्य माना जाता रहा है, वह वर्ग दलित है। साहित्य के साथ जुड़कर दलित शब्द एक ऐसी साहित्यिक विधा की ओर संकेत करता है जो मानवीय सरोकारों तथा संवेदना की यथार्थवादी अभिव्यक्ति है। दलित साहित्य में स्वयं दलितों ने अपनी पीड़ा को रूपायित किया है। दलित साहित्य कला का कला के लिए ना होकर जीवन का और जीजिविषा का साहित्य है। वास्तव में दलितों द्वारा लिखा गया साहित्य ही दलित साहित्य की श्रेणी में आता है। यह साहित्य मानवीय मूल्यों की पृष्ठभूमि में सामंती मानसिकता के विरुद्ध आक्रोशजनित स्वर में व्यक्त हुआ है। + +11048. कर देता है छलनी + +11049. न हमें!" + +11050. हमनी के कबले कलेसवा उठाइवि ।।" + +11051. जो आदमी को आदमी से काटती–बांटती है ।।" + +11052. सामाजिक बेज्जती अखड़ती है ।।"
+ +11053. कहानियाँ. + +11054. भारत का भूगोल/मानव जनित आपदा: + +11055. + +11056. भारत में पुद्दुचेरी, कराइकल, माहे और यनम के नाम से विदित पुद्दुचेरी का क्षेत्र फ्रांसीसी नियंत्रण में था। फ्राँस ने वर्ष 1954 में इस क्षेत्र को भारत को सौंप दिया। + +11057. छठी अनुसूची में निहित प्रशासन की कुछ मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं: + +11058. ज़िला और प्रादेशिक परिषदें अपने अधीन क्षेत्रों में जनजातियों से संबंधित मुकदमों और मामलों की सुनवाई के लिये ग्राम परिषदों या न्यायालयों का गठन कर सकती हैं। + +11059. अमरावती कला शैली + +11060. बौद्ध और जैन दोनों (मुख्य रूप से बौद्ध) चित्रों के साथ धर्मनिरपेक्ष चित्र भी इस शैली में उपस्थित हैं। + +11061. दशावतार मंदिर (गुफा संख्या: 15) + +11062. + +11063. परिभाषा-किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान, भाव अथवा प्राणी के नाम को संज्ञा कहते हैं। + +11064. जैसे- राजधानी, लड़का, पहाड़, नदी आदि। + +11065. ५. द्रव्यवाचक संज्ञा- जिन संज्ञा शब्दों से किसी धातु, द्रव या तरल पदार्थ का बोध होता है, वे द्रव्यवाचक संज्ञा कहलाते हैं। + +11066. समास का समान अर्थ है - संक्षेप। इसका मूल उद्देश कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक अर्थ प्रकट करना है। इसमें समस्त पद मिलकर एक हो जाते हैं तथा पदों का विभक्ति प्रत्यय लुप्त हो जाता है। जैसे-कार्यकुशल शब्द कार्य और कुशल दो शब्दों के योग से बना है। इसका अर्थ है-कार्य में कुशल। इन दोनों शब्दों को जोड़ने वाला 'में' शब्द है। समास होने पर उसका लोप हो गया। शब्दों में सम्बन्ध को प्रकट करने वाले लुप्त सब्द को फिर से दिखला देने को विग्रह कहा जाता है। + +11067. यथाशक्ति - शक्ति के अनुसार + +11068. आमरण - मृत्यु होने तक + +11069. यथाक्रम - क्रम के अनुसार + +11070. निसंदेह - बिना संदेह के + +11071. (i) द्वितीय तत्पुरुष- + +11072. स्वर्गप्राप्त - स्वर्ग को प्राप्त + +11073. तुलसीकृत - तुलसी द्वारा कृत + +11074. मनचाही - मन से चाही हुई + +11075. हस्तलिखित - हाथ से लिखा हुआ + +11076. देशभक्ति - देश के लिए भक्ति + +11077. विद्यालय - विद्या के लिए आलय + +11078. गुरुदक्षिणा - गुरु के लिए दक्षिणा + +11079. (iv) पंचमी तत्पुरुष- + +11080. कामचोर - काम से मुंह मोड़ने वाला + +11081. धर्मभ्रष्ट - धर्म से भ्रष्ट + +11082. (v) षष्ठी तत्पुरुष- + +11083. राजदरबार - राजा का दरबार + +11084. गंगाजल - गंगा का जल + +11085. अछूतोंद्वार - अछूतों का उद्धार + +11086. वनवास - वन में बस + +11087. नरोत्तम - नरों में उत्तम + +11088. घुड़सवार - घोड़ों पर सवार + +11089. आत्मविश्वास - स्वयं पर विश्वास + +11090. कर्मधारय समास. + +11091. दहीबड़ा - दही में डूबा बड़ा + +11092. द्विगु समास. + +11093. सतसई - सात सौ छंदों का समाहार + +11094. दोपहर - दो पहरो का समाहार + +11095. नवरत्न - नौ रत्नों का समूह + +11096. माता-पिता - माता और पिता + +11097. राजा-प्रजा- राजा और प्रजा + +11098. खरा- खोटा - खरा या खोटा + +11099. इस समास में कोई भी शब्द प्रधान नही होता है। दोनों सब मिलकर एक नवीन अर्थ प्रकट करते हैं। + +11100. चक्रपानी - चक्र है हाथ में जिसके अर्थात विष्णु + +11101. नीलकंठ- नीला है कंठ जिसका अर्थात शेर + +11102. पीतांबर - पीत (पीले) हैं अंबर (वस्त्र) जिसके अर्थात कृष्ण + +11103. + +11104. अनुभाव-भाव का बोध कराने वाले कारण अनुभाव कहलाते हैं। यह चार प्रकार के होते हैं-कायिक, मानसिक ,आहार्य और सात्विक। + +11105. लेखक परिचय. + +11106. जैसे- मैं, व, तुम, यह, हम, वह,जो, जिस, कौन, किस आदि। + +11107. इसके तीन भेद है + +11108. सर्वनाम के जिस रुप से बोलने या कहने वाले का बोध होता है, वह उत्तम पुरुष कहलाता है। + +11109. जैसे - तुम कहां जा रहे हो। + +11110. जैसे यह किसकी किताब है। + +11111. वह मेरी कलम है। + +11112. जिन सर्वनाम शब्दों का संबंध वाक्य के दूसरे शब्दों से प्रकट हो, वे संबंधवाचक सर्वनाम कहलाते हैं + +11113. निजवाचक सर्वनाम. + +11114. + +11115. हिंदी कविता (छायावाद के बाद)/केदारनाथ सिंह: + +11116. + +11117. मौद्रिक नीति और मुद्रास्फीति/मौद्रिक नीति और मुद्रास्फीति: + +11118. मुद्रा की आपूर्ति और ब्याज दरों पर कठोर नियंत्रण करने के स्थान पर केंद्रीय बैंक ने सरल मौद्रिक नीति अपना कर बैंकिंग प्रणाली में धन लगाने और ब्याज दरों में कमी करने की नीति अपनाई। कुछ विकसित देशों में तो ब्याज दर लगभग शून्य तक पहुंच गई थी। ऐसा इसलिए किया गया ताकि नकारात्मक (ऋणात्मक) विकास की दिशा को पलट कर उसे फिर से सकारात्मक (धनात्मक) मोड़ दिया जा सके। आरबीआई का रूढ़िवादी दृष्टिकोण + +11119. + +11120. मौद्रिक नीति और मुद्रास्फीति/मौद्रिक नीति और मुद्रास्फीति संबंधी चिंताएं: + +11121. अंग्रेजी ग्रामर/आर्टिकल: + +11122. १.आर्टिकल (Article)का प्रयोग संज्ञा के पहले होता है + +11123. यहां excellent क्रियाविशेषण है और boy संज्ञा है। + +11124. २. जिस शब्द के पहले A और An का प्रयोग करना हो और उस वाक्य के उच्चारण की प्रथम ध्वनि स्व स्वर हो हो An का प्रयोग किया जाता है और यह ध्वनि व्यंजन हो तो A का प्रयोग किया जाता है। + +11125. इन्होने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और वर्ष 1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की। + +11126. मालवीय जी ने ब्रिटिश सरकार के साथ मिलकर देवनागरी को ब्रिटिश-भारतीय न्यायालयों में प्रमुख स्थान दिलाया। इसे उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक माना जाता है। + +11127. 12 नवंबर, 1946 को 84 वर्ष की आयु में इनका निधन हो गया। + +11128. वर्ष 1853 में उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया तथा वर्ष 1854 में ब्रिटेन में बस गए। + +11129. भारत की स्वतंत्रता और राष्ट्रवाद संबंधी इनके गीतों ने तमिलनाडु में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिये जन समर्थन जुटाने में मदद की थी। + +11130. इनका जन्म 19 नवंबर, 1828 को वाराणसी के एक मराठी परिवार में हुआ था तथा इनके बचपन का नाम मणिकर्णिका था। + +11131. लार्ड डलहौजी की राज्य हड़प नीति या व्यपगत के सिद्धांत द्वारा अंग्रेज़ों ने राजाओं के दत्तक पुत्र लेने ले अधिकार को समाप्त कर दिया तथा वैध उत्तराधिकारी नहीं होने की स्थिति में राज्यों का विलय अंग्रेज़ी राज्यों में कर दिया गया। + +11132. गुरु नानक देव जी ने विश्व को 'नाम जपो,किरत करो,वंड छको' का संदेश दिया जिसका अर्थ है- ईश्वर के नाम का जप करो,ईमानदारी और मेहनत के साथ अपनी ज़िम्मेदारी निभाओ तथा जो कुछ भी कमाते हो उसे ज़रूरतमंदों के साथ बाँटो। + +11133. 15 नवंबर, 2000 को बिहार के दक्षिणी हिस्से को काटकर झारखंड की स्थापना भारत संघ के 28वें राज्य के रूप में हुई थी। + +11134. मुंडा छोटा नागपुर में रहने वाला एक जनजातीय समूह है। + +11135. इस विद्रोह में महिलाओं की भूमिका भी उल्लेखनीय रही। + +11136. उन्होंने आधुनिक अखिल भारतीय सेवा प्रणाली की स्थापना भी की। जिसके कारण उन्हें ‘भारत के सिविल सेवकों के संरक्षक संत’ (Patron saint of India’s civil servants) के रूप में भी याद किया जाता है। + +11137. वर्ष 1919 में अहमदाबाद में जन्मे डॉ. साराभाई ने कैम्ब्रिज में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। + +11138. ISRO और PRL के अलावा उन्होंने कई संस्थानों जैसे- अहमदाबाद में भारतीय प्रबंधन संस्थान, सामुदायिक विज्ञान केंद्र तथा अपनी पत्नी मृणालिनी के साथ प्रदर्शन कला के लिये डारपॉन अकादमी की स्थापना की। + +11139. Bharat Ratna 2019 + +11140. करीब पाँच दशकों तक देश की राजनीति में सक्रिय रहे प्रणब मुखर्जी भारत के 13वें राष्ट्रपति रहे हैं। हालाँकि पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद दो बार राष्ट्रपति रहे, इसलिये वे इस पद पर आसीन होने वाले 12वें व्यक्ति हैं। + +11141. वर्ष 1999 में उन्हें राज्यसभा का सदस्य बनाया गया और उसी साल समाज सेवा के लिये उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। नानाजी देशमुख का निधन 27 फरवरी, 2010 को 95 वर्ष की उम्र में चित्रकूट में हुआ था। + +11142. हज़ारिका को पद्म विभूषण और दादा साहेब फाल्के जैसे पुरस्कारों से भी नवाज़ा गया था। + +11143. उन्होंने 1905 में सर्वेंट्स ऑफ़ इंडियन सोसाइटी की स्थापना की थी। इस सोसाइटी का मुख्य उद्देश्य भारतीयों को सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज़ उठाने और अपने देश की सेवा के लिये प्रशिक्षित करना था। + +11144. जी-फाइल पुरस्कार के अलावा,स्पंदन को ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट (BPR&D)द्वारा भी नामित किया जा चुका है। + +11145. इसके अलावा 12 अक्तूबर,2015 को गृह मंत्रालय द्वारा सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को एक एडवाइज़री जारी की गई ताकि संबंधित विभागों को अनिवार्य रूप से एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिये जा सकें। + +11146. इस आयोग की रिपोर्ट जून 2009 में तत्कालीन प्रधानमंत्री को सौंपी गई। + +11147. मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India-CJI) रंजन गोगोई के अनुसार, भारत में न्यायाधीशों की कमी के कारण कई महत्त्वपूर्ण मामलों का फैसला करने के लिये उचित संवैधानिक पीठों की संख्या भी पूरी नहीं हो पा रही है। + +11148. इस अधिनियम में भारतीय निवासियों को अपनी अघोषित विदेशी आय और संपत्ति को घोषित करने का एक अवसर देने का प्रावधान किया गया था। + +11149. उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र का मानवाधिकार परिषद भी इंटरनेट के अधिकार को मौलिक स्वतंत्रता और शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करने के उपकरण के रूप में मानता है। + +11150. हाईकोर्ट के कौन से जज पदोन्नत होकर सर्वोच्च न्यायालय जाएंगे यह फैसला भी कॉलेजियम ही करता है। + +11151. महाराष्ट्र के बाद केरल और तमिलनाडु का स्थान है। इसके अलावा न्याय दिलाने के मामले में उत्तर प्रदेश का प्रदर्शन बड़े राज्यों में सबसे खराब रहा है। + +11152. आँकड़ों के अनुसार, भारत में प्रत्येक 100000 नागरिकों पर मात्र 151 पुलिसकर्मी ही मौजूद हैं, विदित हो कि यह अनुपात दुनिया भर के अन्य देशों के मुकाबले काफी खराब है। भारत के ब्रिक्स साझेदारों जैसे- रूस और दक्षिण अफ्रीका में यह अनुपात भारत से 2-3 गुना अधिक है। + +11153. रिपोर्ट के अनुसार, देश भर में न्यायाधीशों के कुल स्वीकृत पदों में से लगभग 23 प्रतिशत पद खाली हैं। + +11154. कारागार या जेल + +11155. नगालैंड (22.8%), सिक्किम (18.8%), कर्नाटक (18.7%), अरुणाचल प्रदेश (18.1%), मेघालय (17%) और दिल्ली (15.1%)। + +11156. कानूनी सहायता + +11157. वर्ष 2018 के केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के संबंधी सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध पुनर्विचार याचिका. + +11158. पृष्ठभूमिसबरीमाला मंदिर में परंपरा के अनुसार, 10 से 50 साल की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध है। + +11159. केरल के ‘यंग लॉयर्स एसोसिएशन’ ने इस प्रतिबंध के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में वर्ष 2006 में जनहित याचिका दायर की थी। + +11160. सर्वोच्च न्यायालय के महासचिव और केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (Secretary General and the Central Public Information Officer- CPIO) ने यह कहते हुए कि CJI का कार्यालय RTI अधिनियम के तहत एक सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं है, सूचना देने से मना कर दिया था। + +11161. न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि RTI के अंतर्गत न्यायाधीशों की संपत्ति आदि की जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती है क्योंकि इससे न्यायाधीशों के निजता का अधिकार प्रभावित होगा। + +11162. सरकार विरोधी गतिविधि और उसका समर्थन। देश के संविधान को नीचा दिखाने का प्रयास। कोई ऐसा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, लिखित या मौखिक कृत्य जिससे सामाजिक स्तर पर देश की व्यवस्था के प्रति असंतोष उत्पन्न हो। + +11163. धारा 124A के अनुसार, यह एक गैर-ज़मानती अपराध है। + +11164. मूल रूप से यह कानून वर्ष 1837 में ब्रिटिश इतिहासकार और राजनीतिज्ञ थॉमस मैकाले द्वारा तैयार किया गया था, लेकिन जब वर्ष 1860 में IPC लागू किया गया, तो इस कानून को उसमें शामिल नहीं किया गया। + +11165. वर्ष 1971 की अपनी 42वीं रिपोर्ट में विधि आयोग चाहता था कि संविधान, विधायिका और न्यायपालिका को कवर करने के लिये इस खंड का दायरा बढ़ाया जाए। + +11166. जैसे -सुंदर, मोटा, काला, आदि। + +11167. जैसे- यह पपीता मीठा है। + +11168. हिंदी कविता (छायावाद के बाद)/भवानी प्रसाद मिश्र: + +11169. + +11170. अरुण कमल की कविताओं की विशेषताएँ. + +11171. आधुनिक काल में, छायावाद के बाद अत्यंत सशक्त साहित्यांदोलन प्रगतिवाद है। प्रगतिवाद का मूल आधार सामाजिक यथार्थवाद रहा है। प्रगतिवाद काव्य वह है, जो अतीत की संपूर्ण व्यवस्थाओं के प्रति रोष व्यक्त करता है और उसके बदलाव की आवाज़ को बुलंद करता है अरुण कमल उन साहित्कारों में से जो परम्परा का विरोध नहीं करते परन्तु अंधश्रद्धा का उसमें सर्वथा अभाव है। वस्तुतः वे उसमें गतिशीलता की खोज करते हैं। परम्परा के गले सड़े अंशों को त्याग कर वे जीवन्त तत्वों को ग्रहण कर उसे धारदार बनाते हैं। वे लिखते हैं + +11172. उनकी दृष्टि में परम्परा ऐसा लोहा है जिसे हमें अपने अनुकूल रूपाकार देना है। समाज, राष्ट्र व विश्व बड़ी तेजी से बनते बिगड़ते चले जा रहे हैं।'अनिश्चित' व भय' शब्द जीवन को कितना सुरक्षित करते चले जा रहे हैं, कवि के इन शब्दों में यह सत्य मार्मिक शब्दों में व्यक्त हुआ है + +11173. अरुण कमल साहित्यकार और श्रमिक को परम्परा और इतिहास का रचयिता मानते है। यही वह वर्ग है जो इतिहास की दिशा बदलने की सामर्थ्य रखता है और सभ्यता-संस्कृति को निर्मित करता है। वर्तमान व्यवस्था में श्रमिकों की सामाजिक आर्थिक स्थितियों को उकेरने वाली अरुण कमल की अनेक कविताएं हैं। उनकी 'महात्मा गांधी सेतु और मजदूर' कविता मजदूरों की अस्तित्वहीन स्थिति का दस्तावेज है + +11174. फिर किसी बात की तलाश में + +11175. वर्तमान व्यवस्था में नारी व मजदूर शोषण के सबसे बड़े शिकार रहे हैं। अरुण कमल जी जहाँ मजदूरों-किसानों की दुर्दशा से आहत होते हैं। वहीं अशिक्षा, अज्ञानता व नैतिकता मर्यादाओं की शिकार नारी पर भी उन्होंने अनेक कविताएँ + +11176. वह कभी बोली क्यों नहीं। + +11177. नए दोस्त बनेंगे + +11178. "हम कुल दो थे + +11179. देव भाषा-अरुण कमल जी आलेच्य कविता में उन पढ़े-लिखे विद्वान गणों पर व्यंग्य करते हैं जो कभी-कभी साभिप्राय हिन्दी भाषा का प्रयोग करते हैं। 'निज भाषा उन्नति' के संदर्भ में उनका यह कृत्रिम प्रयास सराहनीय है। दूसरी ओर ये देव अपनी भीतरी मानसिकता की तृप्ति हेतु 'विदेशी जूते कम्पनी' के राष्ट्रीय उद्घाटन में भाग लेने पहुंच गए। अर्थात राष्ट्र के विषय में भी क्या कहें, वह भी इसी होड़ में है कि किस प्रकार विदेशी प्रभाव का लोहा मनवाया जाए तो विश्व 'ऊँचे लोग बनाम देव' भी तो इसी का हिस्सा है। + +11180. + +11181. सूक्ष्मजीव/परजीवी: + +11182. विषाणु(वायरस) + +11183. ये सूक्ष्म पौधे होते हैं जो सड़े-गले पदार्थों पर पैदा होते है। यें दाद, एथ्लीट्स फुट आदि बीमारियों को पैदा करते हैं। + +11184. २. फफूँदी का प्रयोग हम इडली, केक और ब्रेड बनाने के लिए करते हैं। + +11185. भारतीय काव्यशास्त्र (दिवि): + +11186. अनुप्रास. + +11187. उपर्युक्त उदाहरण में ‘म’ वर्ण की आवृति हो रही है, जब किसी वाक्य में किसी वर्ण या व्यंजन की एक से अधिक बार आवृति होती है तब वहां अनुप्रास अलंकार होता है। अतः यह उदाहरण अनुप्रास अलंकार के अंतर्गत आयेगा। + +11188. यमक अलंकार - यमक शब्द का अर्थ होता है - जोड़ा युगल अथवा जुड़वा । + +11189. इस पद्य में कनक शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है । प्रथम कनक का अर्थ सोना और दुसरे कनक का अर्थ धतूरा है । अतः कनक शब्द का दो बार प्रयोग और भिन्नार्थ के कारण उक्त पक्तियों में यमक अलंकार की छटा दिखती है । + +11190. माला फेरत जग गया,फिरा न मन मनका फेर , मन का डारी दे,मन का मनका फेर । । + +11191. वक्रो इस काव्य - पंक्ति में ' पट ' शब्द का केवल एक बार प्रयोग हुआ है । किन्तु इससे दो अर्थ सूचित हो रहे हैं - ( 1 ) कपाट ( 2 ) वस्त्र । अत : ' पट ' के इस प्रयोग में श्लेष अलंकार है । + +11192. यहाँ कवि भौरों और सहकार ( आम ) का वर्णन कर रहा है । इन दोनों के लिए ' बौरे ' शब्द का प्रयोग किया है । इस शब्द से भौरों के लिए मस्त होना तथा सहकार ( आम ) के पक्ष में ' मंजरी आना ' इन दो अर्थों की प्रतीति हो रही है, शब्द के एक ही रूप से दोनों अर्थों का बोध हो गया है।इसलिए या उत्तर देतो । अभंग श्लेष अलंकार है । + +11193. यहाँ ' सुमन ' शब्द का प्रयोग श्लेष अलंकार को प्रस्तुत कर रहा है । इसका एक अर्थ ' फूल ' दुसरा अर्थ है ' सुन्दर मन ' यह दूसरा अर्थ अर्थात ' सुन्दर मन ' सुमन को तोड़ने से प्राप्त हुआ है । सुमन का खण्ड सु+मन करने पर ' सुन्दर मन ' का अर्थ होने के कारण ' सभंग पद श्लेष ' हैं । + +11194. ( 1 ) श्लेष वक्रोक्ति और ( 2 ) काकु वक्राक्ति । + +11195. यहाँ राधा और कृष्ण का वार्तालाप है । राधा पूछती है , " तुम कौन हो ? कृष्ण अपना नाम धनश्याम बताते हैं । राधा श्लेष की सहायता से धनस्याम शब्द का और ही अर्थ - बादल लेकर उत्तर देती हैं , तो कहीं जाकर बरसो । " कृष्ण अपना दूसरा नाम मनमोहन बताते हैं । राधा उसका भी दूसरे अर्थ - मन को मोहन वाला - कल्पित कर लेती है और कहती है कि अगर तुम मन को मोहने वाले हो तो फिर मेरे पाँव क्यों पकड़ रहे हो ? इस कारण यहाँ वक्ता कृष्ण द्वारा अपने नाम के लिए प्रयुक्त धनश्याम और मनमोहन शब्दों का राधा ने उससे भिन्न अर्थ की कल्पना की है और यह अन्यार्थ कल्पना श्लेष कारण हुई । । अतः यहाँ श्लेषवक्रोक्ति का उदाहरण है । + +11196. जब सीता ने राम के साथ वन जाने का हठ किया , तब राम ने उसे समझाया कि तुम कोमलांगी हो , इसलिए तुम घर पर रहो । इसके उत्तर में सीता की यह उक्ति है । सामान्य रूप से सीता के कथन का यह अर्थ प्रतीत होता है कि मैं कोमल अंगों वाली हूँ ओर आप वन के योग्य हैं , किन्तु वास्तव में सीता ने राम के द्वारा कहे हुए शब्द ' सुकुमारी ' शब्द के अर्थ को बोलने के लहजे ( ढ़ंग ) से बदल दिया है । उसका अभिप्राय यह है कि मैं सुकुमारी हूँ तो आप भी तो उतने ही सुकुमार हो । यदि आप वन जा सकते हैं तो मैं भी आपके साथ वन जा सकती हूँ । इस प्रकार सीता के बोलने के लहजे से शब्दों के अर्थ को परिवर्तित कर दिया है । अतः यहाँ काकु जहाँ बोलने वाले के लहजे ( काकु ) के द्वारा शब्दों के अभिप्राय को बदला जाता है , उसे काकु वक्रोक्ति कहते हैं । + +11197. जहां दो वस्तुओं में समता हो, वहां उपमा अलंकार होता है। इसके चार अंग माने जाते हैं।-- + +11198. उदाहरण :- + +11199. स्पष्टीकरण- इस पद्द में चरण उपमेय है और कमल उपमान। यहां उपमेय और उपमान में समानता दिखाई जा रही हैं इसीलिए यह रूपक अलांकर हैं। + +11200. नहि सखि राधा बदन यह है, पूनो का चाँद।
+ +11201. उदाहरण- + +11202. निम्न तीन भेद है- (१) वस्तुतप्रेक्षा (२) हेतूत्प्रेक्षा और (३) फ्लोतत्प्रेक्षा । + +11203. हल्दीघाटी के युद्ध में शत्रुओं का संहार करते हुए महाराणा प्रताप का वर्णन इस पर हैं । ये चेतक नाम वाले अपने घोड़े पर सवार होकर युद्ध भूमि में विचरण करते हुए अपनी सेना की रक्षा और शत्रुओं का वध कर रहे थे । महाराणा के इस रूप में कवि ने कल्पना की है । मानों महामृत्यु को साथ लेकर भगवान शंकर ही वहाँ स्वयं उपस्थित थे । इस प्रकार उपमेय महाराणा प्रताप में उपमान भगवान शंकर की संभावना होने से यहाँ वस्तुत्प्रेक्ष अलंकार है । + +11204. डालता पातों पर चुपचाप + +11205. उदाहरण + +11206. निदर्शना अलंकार की परिभाषा - जहाँ उपमेय वाक्य और उपमान वाक्य के अर्थ में भेद होते हुए भी फल एक होने से कारण उसमें अभेद ( समानता ) बताया जाता है , उसे निदर्शना अलंकार कहते हैं । + +11207. व्यतिरेक. + +11208. किन्तु सुर - सरित कहाँ , रारयू कहाँ ? + +11209. विरोधाभास अलंकार की परिभाषा - जहाँ पर वास्तविक विरोध न होकर विरोध का आभास मात्र हो , वहाँ विरोधाभास अलंकार होता है। + +11210. भवन में बन का व्रत लिया ।
+ +11211. वास्तव में कारण के अभाव में कार्य का होना असंभव है । यह तो वर्णन करने की एक चमत्कारपूर्ण , शैली है । इसमें प्रत्यक्ष रूप से किसी कार्य के लिए मनुष्य कारण का अभाव बताया जाता है , किन्तु उसके लिए और कारण की कल्पना करने पर बात स्वाभाविक प्रतीत होने लगती है । + +11212. विशेषोक्ति. + +11213. व्यथित बांधव आरत - नाद को। + +11214. अतियुक्ति अलंकार की परिभाषा - जहां किसी वस्तु का लोक - सीमा से इतना बढ़कर वर्णन किया जाए कि वह असंभव की सीमा तक पहुंच जाए , वहां अत्युक्ति अलंकार होता है। + +11215. + +11216. परिभाषा - जिस समवर्णिक छंद के प्रत्येक चरण में चार यगण के क्रम से 12 वर्ण होते हैं , उसे भुजंगप्रयात छंद कहते हैं । + +11217. खिलाऊँ किसे मैं अलोना - सलोना
+ +11218. दिवस का अवसान समीप था, + +11219. यह छंद समवर्णिक छंद है । इसके चार चरण होते है। इसमें वर्णो की गणना की जाती है । इसके प्रत्येक चरण में यगण , मगण , नगण , सगण , भगण , अंत में लघु और गुरु क्रम से 17 वर्ण होते हैं तथा इसके छठे अक्षर पर यति ( विराम ) होता है । + +11220. निराले फूलों की विविध बल बाली अनुपमा । + +11221. उदाहरण + +11222. सवैया छंद - यह छंद का एक स्वतंत्र प्रकार है । इसमें चार चरण होते हैं । इसके प्रत्येक चरण में 22 से लेकर 26 वर्ण तक का गण क्रम से संयोजन होता है । गण क्रम और वर्ण सयोंजन के आधार पर सवैया के कई भेद किए गए हैं । इसके भेद है - मदिरा , चकोर , मतगयंद या मालती , सुमुखि , किरीट , दुर्मिल , सुन्दरी आदि । इन सबमें मतगयंद सवैया का कवियो ने। सर्वाधिक प्रयोग किया है। + +11223. जोवत जोवत बीति गए दिन बोवत लै विष बोयौ । + +11224. उदाहरण + +11225. आ गया कराल रात्रिकाल है अकेले यहाँ , + +11226. भारतीय काव्यशास्त्र (दिवि)/सममात्रिक छंद: + +11227. यों किधर जा रहे हैं बिखर, + +11228. चौपाई छंद - परिभाषा - चौपाई एक सम मात्रिक छंद है । इसमें चार चरण होते हैं । इसके प्रत्येक चरण में सोलह (16) मात्राएँ होती है तथा अंत में जगण ( ।ऽ।) या तगण (ऽऽ। ) न रखने का विधान है । चौपाई के अंत में ( ऽ। ) गुरु लघु नहीं होने चाहिए । इस छंद के दो चरणों को मिलाकर एक अर्धाली बनती है। + +11229. जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी। + +11230. उदाहरण + +11231. हरिगीतिका. + +11232. इस तत्व पर ही कौरवों का पांडवों से रण हुआ।। + +11233. बरवै. + +11234. प्रियतम तुम हो मुझसे , कितनी दूर । + +11235. + +11236. परिभाषा - जिस छंद के सम ( दूसरे - चौथे ) चरणों में 13 मात्राएँ और विषम , पहले - तीसरे चरणों में 11 मात्राएँ हाती हैं । पहले और तीसरे चरण के अंत में तुक मिलती है , उसे सोरठा छंद कहते हैं , + +11237. भारतीय काव्यशास्त्र (दिवि)/विषम सममात्रिक छंद: + +11238. बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताय। + +11239. खटखत है जीय माही कियो जो बिना विचारे + +11240. नीलाम्बर परिधान हरित पट पर सुन्दर है । + +11241. हे मातृभूमि तू सत्य ही सगुण मूर्ति सर्वेश की ।(मैथिलीशरण गुप्त) + +11242. कविता , कहानी , उपन्यास , निबंध आदि इसी के अंतर्गत आते हैं । + +11243. 2-उपरूपक- + +11244. ध्वनिवादियों ने काव्य के उपर्युक्त भेदों को स्वीकार नहीं किया । उन्होंने ध्वनि तत्व को सर्वस्व माना और उसी को आधार बनाकर उन्होंने काव्य - भेद भी किए । + +11245. आचार्य विश्वनाथ ने श्रव्य काव्य की विशेषताओं के आधार पर उसे तीन भेदों में विभाजित किया - ( 1 ) गद्य काव्य ( 2 ) पद्य काव्य ( 3 ) मिश्रकाष्य अथवा चम्पू काव्या गद्य के स्वरूप विश्लेषण के आधार पर चार भेदों में विभाजित किया- ( 1 ) मुक्तक ( 2 ) वृतगान्धि ( 3 ) उत्कालिका प्रायः और ( 4 ) चूर्णक । + +11246. वर्तमान युग में पहुंचकर उपर्युक्त काव्य भेद निरूपण पर दृष्टि डालते हैं तो उसमें किसी प्रकार के तथ्य दिखाई नहीं देते । आज काव्य से सीधा तात्पर्य ' कविता ' से लिया जाता है । आज संस्कृत के काव्य शब्द के स्थान पर साहित्य शब्द का प्रयोग किया जाता है दृश्य - श्रव्य का अंतर भी समाप्त हो चुका है । रेडियो नाटक न पद्य है , न दृश्य है , मूलतः श्रव्य है । इन अनेक परिवर्तनों को देखकर वर्तमान आचार्यों ने नवीन ढ़ंग से भेद निरूपण की आवश्यकता अनुभव की । + +11247. महाकाव्य भारतीय साहित्य की अत्यन्त प्राचीन विधा है । इसीलिए महाकाव्य के स्वरूप निर्धारण की दिशा में विस्तृत चिंतन का परिचय मिलता है । महाकाव्य के स्वरूप निर्धारण के प्रसंग में सर्वप्रथम आचार्य भामह आते हैं । + +11248. 4- महाकाव्य ऋद्धिमत होता है , अर्थात् इसमें राजसीय अतुल वैभव तथा विलासपूर्ण सामग्री का वर्णन किया जाता है । इसमें राजदरबार विषयक , मंत्रणा , दूत - भेजना , सैन्य अभियान , युद्ध आदि का वर्णन रहता है । + +11249. भामह प्रतिपादित उक्त लक्षणों का आधार ग्रहण करते हुए कुछ नए तत्वों के अनुसार काव्य के निम्न लक्षणों का प्रतिपादन किया - + +11250. आचार्य रुद्रट + +11251. महाकाव्य के उपयुक्त लक्षणों का संबंध महाकाव्य के अंतरंग और बहिरंग दोनों से संबंध है । इसी आधार और महाकाव्य के अंतरंग और बहिरंग लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं। + +11252. निष्कर्ष. + +11253. पल्लवों के समय में एरिपत्ति एक प्रकार की भूमि थी, जिससे प्राप्त राजस्व ग्राम जलाशय के रख-रखाव के लिये अलग से रखा जाता था। + +11254. मध्य प्रदेश में स्थित उदयगिरि चट्टानों को काटकर बनाई गई गुप्तकालीन हिंदू और जैन धर्म से संबंधित 20 गुफाओं के लिये प्रसिद्ध है।राजा चन्द्रगुप्त द्वितीय द्वारा गुफा संख्या 5 में विष्णु के वाराह अवतार की मूर्ति का निर्माण करवाया गया। इसमें भगवान वाराह द्वारा पृथ्वी देवी को हिरण्याक्ष राक्षस से बचाए जाने का दृश्य अंकित है। + +11255. बड़े स्मारक ढॉंचों का निर्माण नहीं किया गया था। यहाँ महलों या मंदिरों या राजाओं, सेनाओं या पुजारी वर्ग के भी कोई निर्णायक प्रमाण नहीं मिले हैं। मोहनजोदड़ो, हड़प्पा और लोथल में पाए गए विशाल भवन अन्नागार और भंडारागार माने जाते हैं। + +11256. बेलन घाटी में लोग शिकार, मछली पकड़ने और भोजन संग्रहण पर आश्रित थे। परवर्ती चरण में उन्होंने जानवरों को पालतू बनाया, जिसका अंतर्संबंध नवपाषाण संस्कृति से था। + +11257. जैन धर्म में धर्मोपदेश के लिये आम लोगों के बोलचाल की प्राकृत भाषा को अपनाया गया तथा धार्मिक ग्रन्थों के लिये अर्द्ध-मागधी भाषा को, ये ग्रन्थ ईसा की छठी सदी में गुजरात के वलभी नामक स्थान में जो महान विद्या का केन्द्र था, अंतिम रूप से संकलित किये गए। प्राकृत भाषा से कई क्षेत्रीय भाषाएँ विकसित हुईं। + +11258. जैन धर्म में ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार किया गया है परंतु उनका स्थान जिन (महावीर) से नीचे माना गया है। + +11259. बौद्ध धर्म. + +11260. अंगुत्तर निकाय + +11261. बौद्ध धर्म के विभिन्न संप्रदाय: + +11262. तांत्रिक बौद्ध धर्म अर्थात् वज्रयान को प्राय: आत्मज्ञान प्राप्ति के सरल मार्ग के रूप में भी देखा जाता है। + +11263. उदयगिरि: उदयगिरि को माधवपुरा महाविहार के रूप में जाना जाता है जो 7वीं-12वीं शताब्दी के काल में बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र था। + +11264. प्राचीन भारत में प्रसिद्ध बौद्ध विश्वविद्यालय: + +11265. बौद्ध धर्म की प्रारंभिक परंपराओं में भगवान का होना न होना अप्रासंगिक था। थेरीगाथा,सुत्त पिटक का हिस्सा है। इसमें भिक्षुणियों द्वारा रचित छंदों का संकलन है।इससे महिलाओं के सामाजिक तथा आध्यात्मिक अनुभवों के विषय में अंतर्दृष्टि मिलती है। + +11266. बौद्ध भिक्षु संसार से विरक्त रहते थे और ब्राह्मणों की निंदा करते थे, परंतु दोनों के विचार परिवार का पालन करने, निजी सम्पत्ति की रक्षा करने और राजा का सम्मान करने पर समान थे। + +11267. वैदिक काल में राजा की आय का मुख्य साधन युद्ध में की गई लूट था। वे शत्रुओं से सम्पत्ति छीनते और विरोधी जनजातियों से नज़राना लेते थे। राजा को दिया जाने वाला यह नजराना बलि (चढ़वा) कहलाता था। + +11268. लोगों द्वारा ये व्यवसाय अपनी योग्यता और पसंद के अनुसार अपनाए जाते थे, न कि जन्म या आनुवंशिक आधार पर। एक ही परिवार के लोग अपनी इच्छा और योग्यता के अनुसार अलग-अलग व्यवसाय अपनाते थे और अलग-अलग वर्णों के सदस्य बन जाते थे। समाज में वर्णव्यवस्था का कठोर स्वरूप प्रचलन में नहीं था। + +11269. ऋग्वेद का रचना काल 1500-1000 ई. पू. के आस-पास के पश्चिमोत्तर भारत (पंजाब, हरियाणा) में हुई थी| + +11270. उत्तर वैदिक काल में स्त्रियों की दशा में गिरावट आई। उन्हें पुरुष के अधीनस्थ माना जाने लगा तथा उन्हें शिक्षा से वंचित किया जाने लगा। + +11271. ‘पूषन्’ जो पशुओं की रक्षा करने वाला माना जाता था, शूद्रों का देवता हो गया था। + +11272. इस संस्कार के बाद बालक का उत्तरदायित्व बढ़ जाता था। इसी कारण इस संस्कार का बहुत महत्त्व था। बालक को इस बात की अनुभूति कराई जाती थी कि वह अपने परिवार और समुदाय के प्रति अपने कर्त्तव्य को भली- भाँति समझने के लिये ब्रह्मचर्य आश्रम में रहकर अभीष्ट योग्यता प्राप्त करें। इस संस्कार के पश्चात् बालक भिक्षा माँगता था, ताकि उसमें अहमन्यता (अहंकार का भाव) न रहे। + +11273. मगध पर शिशुनाग वंश के बाद नंद वंश का शासन हुआ। नंद वंश का महापद्म नंद ने कलिंग को जीतकर मगध शक्ति को बढ़ाया और विजय स्मारक के रूप में ‘जिन’ की मूर्ति भी उठा लाए थे। महापद्म नंद ने ‘एकराट’ की उपाधि धारण की थी। + +11274. मौर्य शासन का महत्व + +11275. पत्थर के स्तम्भ वाराणसी के पास चुनार में तैयार किये जाते थे और यहीं से उत्तरी और दक्षिणी भारत में पहुँचाए जाते थे। इस काल में पत्थर की इमारत बनाने का काम भारी पैमाने पर शुरू हुआ। + +11276. राज्य कृषकों की भलाई के लिये सिंचाई और जल वितरण की व्यवस्था करता था। + +11277. उल्लेखनीय है कि मेगास्थनीज ने एक सड़क की चर्चा की है जो पश्चिमोत्तर भारत को पटना से जोड़ती थी। + +11278. प्रायद्वीपीय भारत में राज्य स्थापित करने की प्रेरणा न केवल चेदियों और सातवाहनों को बल्कि चेरों (केरलपुत्रों), चोलों और पाण्ड्यों को भी मौर्यों से ही मिली है। + +11279. किसान अपनी उपज का चौथे हिस्से से लेकर छठे हिस्से तक कर के रूप में देते थे। सिंचाई कर लिया जाता था। + +11280. अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद नितांत शांति की नीति नहीं अपनाई, प्रत्युत वह अपने साम्राज्य को सुदृढ़ करने की व्यावहारिक नीति पर चला। उसने विजय के बाद कलिंग को अपने कब्जे में रखा और न ही अपनी सेना का विघटन किया। + +11281. अशोक कर्मकांडों का विरोधी था, विशेषकर स्त्रियों में प्रचलित अनुष्ठानों का विरोधी था। उसने कई तरह के पशु-पक्षियों की हिंसा पर रोक लगा दी थी। + +11282. अशोक की धम्म नीति का उद्देश्य सामाजिक तनाव और सांप्रदायिक संघर्षों को समाप्त कर विशाल साम्राज्य के विविध तत्त्वों के मध्य सौहार्दपूर्ण संबंध को बढ़ावा देना था। + +11283. पंजाब का सिंधु नदी के पश्चिम वाला हिस्सा साम्राज्य का सबसे अधिक आबाद और उपजाऊ क्षेत्र था | + +11284. सिकंदर ने भारत पर आक्रमण 326 ई. पू. में किया था। वह खैबर दर्रा पार करते हुए भारत आया था। + +11285. मध्य एशिया से संपर्क और उनके परिणाम. + +11286. शक संवत् कुषाण शासक कनिष्क ने 78 ई. में चलाया था।वर्तमान में भारत सरकार द्वारा शक संवत् प्रयोग में लाया जाता है + +11287. उल्लेखनीय है कि कुषाण शासकों ने स्वर्ण एवं ताम्र दोनों ही प्रकार के सिक्कों को व्यापक पैमाने पर प्रचलित किया था। + +11288. मध्य एशिया और भारत के बीच घने संपर्क के परिणामस्वरूप भारत को मध्य एशिया के अल्ताई पहाड़ों से भारी मात्रा में सोना प्राप्त हुआ। इसके अलावा रोमन साम्राज्य के साथ व्यापार के द्वारा भी सोना प्राप्त होता था।कुषाणों ने रेशम के प्रख्यात मार्ग पर नियंत्रण कर लिया था, जो चीन से चलकर कुषाण साम्राज्य में शामिल मध्य एशिया और अफगानिस्तान से गुज़रते हुए चीन जाता था और पूर्वी भूमध्यसागरीय अंचल में रोमन साम्राज्य के अंतर्गत पश्चिम एशिया तक जाता था। + +11289. ‘बुद्धचरित’ की रचना अश्वघोष ने की थी। इसमें बुद्ध के जीवन का वर्णन है। + +11290. भारत पर यूनानी प्रभाव + +11291. सातवाहन युग. + +11292. सातवाहन साम्राज्य में प्रशासनिक इकाइयाँ मौर्यों के समान थी। इनके समय में ज़िले के लिये आहार शब्द, जो अशोक के समय प्रयुक्त होता था तथा उनके अधिकारी मौर्य काल की तरह अमात्य और महामात्य कहलाते थे। + +11293. चैत्य और विहार ठोस चट्टनों को काट बनाए जाते थे। यह विशाल शिला-वास्तुकला का प्रभावोत्पादक उदाहरण है। चैत्य अनेकानेक स्तंभों पर खड़ा हॉल जैसा होता था और विहार में एक केंद्रीय शाला होती थी, जिसमें सामने के बरामदे की ओर एक द्वार रहता था। + +11294. इनके सभी अभिलेख प्राकृत भाषा में और ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं। + +11295. अशोक की उपाधि ‘देवानांपिय पियदसि’ एक तमिल राजा ने अपनाई थी। + +11296. उसकी राजधानी ‘पुहार’थी जिसकी पहचान कावेरीपट्टनम से की गई है। + +11297. पांड्यों का उल्लेख सर्वप्रथम मेगास्थनीज़ ने किया है। और उसने इसे मोतियों का देश कहा है। मेगास्थनीज के अनुसार पांड्य राज्य में शासन स्त्री के हाथों में थी जिससे यह लक्षित होता है कि पांड्य समाज में कुछ मातृसत्तात्मक प्रभाव था। + +11298. चेर या केरल देश पांड्य क्षेत्र के उत्तर-पश्चिम में स्थित था जो आधुनिक केरल राज्य और तमिलनाडु के बीच एक सँकरी पट्टी के रूप में था।चेर राजा सेंगुट्टुवन को लाल या भला चेर भी कहा जाता था। + +11299. पांड्य राज्य में अश्व समुद्र के रास्ते से मंगवाए जाते थे। + +11300. तमिल काव्य में दो प्रसिद्ध महाकाव्य हैं जिनके नाम हैं- सिलप्पदिकारम और मणिमेकलै। इन दोनों की रचना ईसा की छठी सदी के आसपास हुई। + +11301. स्मारक को वीरकल कहा जाता था, चूँकि गाय या अन्य वस्तुओं के लिये लड़कर मरने वाले वीरों के सम्मान में वीरकल अर्थात् स्मारक-स्वरूप प्रस्तर खड़ा किया जाता था। + +11302. दक्षिण भारत के कई नगरों में रंगरेज़ी उन्नत शिल्प थी परंतु उतर भारत में नहीं। तमिलनाडु में तिरुचिरापल्ली नगर के उपान्तवर्ती उरैयूर में ईंटों का बने रंगाई के हौज़ मिले हैं।‘शकों’ कुषाणों और सातवाहनों का प्रथम तमिल राज्यों का युग प्राचीन भारत के शिल्प और वाणिज्य के इतिहास में चरम उत्कर्ष का काल था। + +11303. सातवाहन काल में आर्थिक रूप से सर्वाधिक समृद्ध नगर पश्चिमी और दक्षिणी भारत के पैठन, धान्यकटक, अमरावती, नागार्जुनकोंड, भड़ौच, सोपारा, अरिकमेडु और कावेरीपट्टनम समृद्ध नगर थे। + +11304. रोम के लोगों को भारतीय गोल मिर्च बहुत प्रिय थी, इसलिये रोम पूरब से गोल मिर्च मंगवाने पर अत्यधिक खर्च करता था। जिससे कि संस्कृत में गोल मिर्च का नाम ही यवनप्रिय पड़ गया। + +11305. चंद्रगुप्त प्रथम के पुत्र और उत्तराधिकारी समुद्रगुप्त ने गुप्त राज्य का व्यापक विस्तार किया।उसके द्वारा विजित प्रदेश पाँच समूहों में बाँटा जा सकता है- प्रथम समूह में गंगा-यमुना दोआब, द्वितीय समूह में पूर्वी हिमालय के राज्यों और कुछ सीमावर्ती राज्य, तृतीय समूह में अटाविक राज्य विंध्य क्षेत्र में पड़ते थे, चतुर्थ समूह में पूर्वी दक्कन और दक्षिण भारत के बारह शासक और पाँचवें समूह में शक और कुषाणों के नाम हैं, जिनमें कुछ अफगानिस्तान का क्षेत्र भी आता था। + +11306. उत्तर प्रदेश से प्राप्त आरंभिक गुप्त मुद्राएँ और अभिलेख से ज्ञात होता है कि कुषाण और सातवाहन के खंडहरों पर स्थापित यह काल बिहार की अपेक्षा उत्तर प्रदेश अधिक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र था। + +11307. वे लोग मध्य भारत और दक्षिण बिहार के लौह अयस्क का उपयोग कर अच्छे औजार और उपकरण बनाते थे। + +11308. मौखरि राजवंश के शासकों ने बिहार और उत्तर प्रदेश में राजसत्ता स्थापित की और कन्नौज को अपनी राजधानी बनाई। + +11309. इस काल के सिक्कों पर देवी लक्ष्मी का चित्र अंकित होता था। उनको विष्णु की पत्नी माना जाता था और विष्णु मुख्य देवता हो गए थे। + +11310. गुप्त राजाओं ने प्रांतीय और स्थानीय शासन की पद्धति चलाई। राज्य कई युक्तियों अर्थात् प्रांतों में विभाजित था और हर युक्ति एक-एक उपरिक के प्रभार में रहती थी। युक्तियाँ कई विषयों अर्थात् ज़िलों में विभाजित थी। हर विषय का प्रभारी विषयपति होता था। पूर्वी भारत में प्रत्येक विषय को वीथियों में बाँटा गया था और वीथियाँ ग्रामों में विभाजित थी। + +11311. इस काल में आकर महायान बौद्ध धर्म की तुलना में भागवत या वैष्णव संप्रदाय अधिक प्रभावी हो गया। इसने अवतारवाद का उपदेश दिया और इतिहास को विष्णु के दस अवतारों के चक्र के रूप में प्रतिपादित किया। + +11312. आर्यभटीय गणित के क्षेत्र का महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। + +11313. महानदी के दक्षिण में स्थित कलिंग राज्य का उत्कर्ष अशोक के काल में हुआ था।इसकी राजधानी भुवनेश्वर से 60 किलोमीटर दूरी पर कलिंग नगरी थी। + +11314. वशिष्ठ,नल और मान वंश के राज्य माठर वंश के पड़ोसी और समकालीन थे।वशिष्ठ वंश का राजा दक्षिण कलिंग में आंध्र की सीमाओं पर था। नल वंश का राज्य महाकांतर के वन्य प्रदेश में और मान वंश का राज्य महानदी के पार उत्तर के समुद्र तटवर्ती क्षेत्र में था। + +11315. बंगाल में ब्रह्मपुत्र नदी द्वारा बनाया त्रिभुजाकार भाग समतट कहलाता था। इसमें दक्षिण-पूर्वी बंगाल का क्षेत्र आता था।इस क्षेत्र को चौथी सदी में समुद्रगुप्त ने जीता और इसे अपने राज्य में मिलाया।इस क्षेत्र में ब्राह्मण धर्म का प्रभाव नहीं था। यहाँ संस्कृत भाषा का प्रयोग नहीं मिलता है और न ही वर्ण व्यवस्था का प्रचलन। समतट या वंग राज्य में राजा हरदेव द्वारा छठी सदी के उत्तराद्ध में स्वर्णमुद्राएँ जारी की। इस राज्य के अतिरिक्त सातवीं सदी में ढाका क्षेत्र में खड्ग वंश का राज्य था। यहाँ दो और राज्य भी थे-जिनमें पहला लोकनाथ नामक ब्राह्मण सामंत का और दूसरा राट वंश का दोनों कुमिल्ला क्षेत्र में पड़ते थे। + +11316. कामरूप के राजाओं ने वर्मन की उपाधि धारण की। यह उपाधि उत्तर, मध्य और पश्चिम भारत के साथ बंगाल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश कर्नाटक और तमिलनाडु में भी पाई जाती है। + +11317. हर्ष हरियाणा स्थित थानेसर का शासक था। उसने अन्य सभी सामंतों पर प्रभुता स्थापित की। थानेसर स्थित हर्ष के टीलों की खुदाई में कुछ ईंटों की इमारतों से साक्ष्य मिले हैं। + +11318. हर्ष को भारत का अंतिम हिंदू सम्राट कहा गया है, लेकिन वह न तो कट्टर हिंदू था और न ही पूरे देश का शासक क्योंकि उसका राज्य कश्मीर को छोड़कर उत्तर-भारत तक सीमित था। + +11319. हर्ष की प्रशासन प्रणाली गुप्तों के समान थी। अंतर इतना था कि हर्ष का प्रशासनष अधिक सामंतिक और विकेंद्रित था। + +11320. हर्ष के साम्राज्य में विधि-व्यवस्था अच्छी नहीं थी। ह्वेन-सांग की सुरक्षा प्रबंध राज्य द्वारा करने के बाद भी उसकी सम्पत्ति को डाकुओं ने छीन लिया था। + +11321. दक्षिण के प्रदेशों में द्वितीय ऐतिहासिक चरण (300 ई.-750 ई. तक) में व्यापार, नगर और मुद्रा तीनों का ह्रासतथा कृषि अर्थव्यवस्था में विस्तार हुआ।ब्राह्मणों को कर मुक्त भूमि का अनुदान भारी संख्या में दिखाई देता है। इस काल में (द्वितीय ऐतिहासिक चरण) भूमि अनुदानों से यह सिद्ध होता है कि अनेक नए क्षेत्रों का उपयोग खेती और आवास के लिये किया गया। + +11322. उत्तरी महाराष्ट्र और विदर्भ में सातवाहनों के स्थान पर एक स्थानीय शक्ति वाकाटकों ने प्रमुख शहर बसाया। + +11323. कदंबों ने चौथी सदी में उत्तरी कर्नाटक और कोंकण में अपनी सत्ता कायम की। + +11324. पल्लव राजा नरसिंहवर्मन और चालुक्य राजा पुलकेशिन के संघर्ष के मध्य 642 ई. के आस-पास पल्लव राजा ने पुलकेशिन को पराजित कर वातापी पर अधिकार करते हुए वातापीकोण्ड अर्थात् वातापी-विजेता की उपाधि धारण की।आठवीं सदी के पूर्वार्द्ध में चालुक्य राजा विक्रमादित्य द्वितीय ने कांची को तीन बार पराजित कर लगभग 740 ई. में पल्लवों को पूरी तरह समाप्त किया, परंतु चालुक्यों को 757 ई. में राष्ट्रकूटों ने समाप्त कर दिया था। + +11325. आठवीं सदी में कांची में कैलाशनाथ मंदिर का निर्माण 685-705 ई. में पल्लव वंश के नरसिंहवर्मन ने करवाया। यह मंदिर किसी चट्टान को काटकर नहीं बल्कि स्वतंत्र संरचना के रूप में बनवाया। + +11326. [I.A.S-97] मणिग्रामम-पश्चमी चालुक्य शासकों के समय दक्षिण भारतीय व्यापारियों की एक प्रभावशाली गिल्ड। + +11327. दुनिया की सबसे बड़ी बुद्ध मूर्ति, जो ईसवी सन् के आरंभिक वर्षों में चट्टानों को काटकर बनाई गई थी, बामियान में स्थित है। यहाँ अनेक प्राकृतिक और कृत्रिम गुफाएँ हैं, जिनमें बौद्ध भिक्षु रहते हैं। + +11328. ईसवी सन् की आरंभिक सदियों में पल्लवों ने सुमात्रा में अपनी बस्तियाँ स्थापित कीं + +11329. विज्ञान और सभ्यता की विरासत. + +11330. आर्यभट ने त्रिभुज का क्षेत्रफल जानने का नियम निकाला जिसके फलस्वरूप त्रिकोणमिति का जन्म हुआ। आर्यभट्ट पाँचवीं सदी के महान विद्वान थे। + +11331. मौर्यकालीन पालिशदार सिंह की मूर्ति वाले स्तंभशीर्ष को भारत सरकार ने राष्ट्रीय चिह्न के रूप में स्वीकार किया है। + +11332. नए नियम के तहत सूचना आयुक्तों का कार्यकाल तीन वर्ष निर्धारित किया गया है, जबकि 2005 के नियमों के अनुसार यह पाँच वर्ष था। + +11333. इसके अतिरिक्त व्यय पर्यवेक्षकों का कार्य सीविज़िल (CIVIJIL) और मतदाता हेल्पलाइन 1950 के माध्यम से प्राप्त शिकायतों पर कठोर और प्रभावी कार्यवाही करना है। + +11334. CSIR विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन कार्य करता है। + +11335. 14 अक्तूबर, 2019 को भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा 60वें विश्व मानक दिवस (World Standard Day) का उद्घाटन नई दिल्ली में किया गया। + +11336. भारतीय मानक ब्यूरो का मुख्य कार्य माल के मानकीकरण, अंकन (Marking)और गुणवत्ता प्रमाणीकरण की गतिविधियों को क्रियान्वित करना है। + +11337. इस प्रक्रियाओं में संग्रहीत आँकड़े सटीक होंगे जिनका उपयोग स्वास्थ्य एवं जनसांख्यिकीय आँकड़ों में किया जा सकता है। + +11338. राष्ट्रीय चिकित्सा सांख्यिकी संस्थान (National Institute for Medical Statistics- NIMS) + +11339. 9 नवंबर, 2005 से इसका नाम राष्ट्रीय चिकित्सा सांख्यिकी संस्थान (National Institute for Medical Statistics-NIMS) कर दिया गया। + +11340. NIRDPR एक नई प्रणाली विकसित कर रहा है जो मछलियों के पालन में सहायक होगा।इस प्रणाली का मुख्य उद्देश्य भारतीय किसानों की आय दोगुनी करने में मदद करना है जिसमें किसान खेती के साथ-साथ आय अर्जित करने हेतु अन्य व्यवसायों को अपना सकें। + +11341. ISF द्वारा सभी सदस्य कंपनियों के लिये आचार-संहिता तैयार की गई है जिसका पालन करना सभी के लिये अनिवार्य है। + +11342. विदेशी अधिनियम, 1946 और विदेशी नागरिक (न्‍यायाधिकरण) आदेश, 1964 के प्रावधानों के तहत केवल विदेशी न्यायाधिकरण को ही किसी व्यक्ति को विदेशी घोषित करने का अधिकार है। यह आवश्यक नहीं है कि सिर्फ NRC में किसी व्यक्ति का नाम शामिल न होने से ही वह व्यक्ति विदेशी है। + +11343. संशोधित आदेश ज़िलाधिकारियों को यह अनुमति प्रदान करता है कि ऐसे व्यक्ति जिन्होंने NRC के विरुद्ध ट्रिब्यूनल में कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई है, उनके मामले में वह तय कर सकता है कि व्यक्ति विदेशी है या नहीं। + +11344. IMD में उप महानिदेशकों द्वारा प्रबंधित कुल 6 क्षेत्रीय मौसम विज्ञान केंद्र आते हैं। + +11345. + +11346. हिंदी उपन्यास संबंधी यह पुस्तक दिल्ली विश्वविद्यालय के स्नातक प्रतिष्ठा के पाठ्यक्रम के अनुसार तैयार की गई है। + +11347. हिंदी गद्य साहित्य (MIL)/मेले का ऊँट: + +11348. आज से पचास साल पहले रेल कहीं थी? मैंने मारवाड़ से मिरजापुर तक और मिरजापुर से रानीगंज तक कितने ही फेरे किए हैं । महीनों तुम्हारे पिता के पिता तथा उनके भी पिताओं का घर मेरी पीठ पर रहा । जिन स्त्रियों ने तुम्हारे बाप के भी बाप को जना है, वे सदा मेरी पीठ को ही पालकी समझती थीं । मारवाड़ में मैं सदा तुम्हारे द्वार पर हाजिर रहता था, पर यहाँ वह मौका कहाँ? इसी से इस मेले में मैं तुम्हें देखकर आँखें शीतल करने आया हूँ । तुम्हारी भक्ति घट जाने पर भी मेरा वात्सल्य नहीं घटा है । घटे कैसे? मेरा-तुम्हारा जीवन एक ही रस्सी से बंधा हुआ था । मैं ही हल चलाकर तुम्हारे खेतों में अन्न उपजाता था और मैं ही चारा आदि पीठ पर लादकर तुम्हारे घर पहुँचता था । यहाँ कलकत्ते में जल की कलें हैं, गंगाजी हैं, जल पिलाने को लाखों कहार हैं, पर तुम्हारी जन्मभूमि में मेरी पीठ पर लादकर कोसों से जल लाया जाता था और मैं तुम्हारी प्यास बुझाता था । + +11349. + +11350. + +11351. अंतर्राष्‍ट्रीय समुदाय ने संयुक्‍त राष्‍ट्र के माध्‍यम से 17 सतत् विकास लक्ष्‍यों की ऐतिहासिक योजना शुरू की है जिसका उद्देश्‍य वर्ष 2030 तक अधिक संपन्‍न, अधिक समतावादी और अधिक संरक्षित विश्‍व की रचना करना है। + +11352. स्वच्छंदतावाद को यदि हम परिभाषित करें तो इसके भीतर नवीनता के उन्मेष के लिए आवश्यक उर्वरता, सृजनात्मकता के साथ-साथ प्राचीनता तथा जड़ता से मुक्ति आदि का अर्थ मिलेगा। हिंदी कविता के इतिहास में विशेष देश काल की उपज है तथा इसका संबंध स्वाधीनता की चेतना पराधीनता विरुद्ध‌ तथा रीतिवादी सौंदर्यबोध संवेदना और प्रवृत्ति के विरोध से भी है। इसका संबंध राष्ट्र, मनुष्य और प्रकृति को भी पराधीनता तथा उपभोगमूलक अर्थ से मुक्त करना है। स्वच्छंदतावाद के संदर्भ में पश्चिम के रोमेंटेसिज्म का जिक्र किया जाता है किंतु इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी और इटली आदि देशों में रेनेसां के उभार की परिवर्तनकारी नीतियों के तहत उपजे मध्ययुगीन क्लासिक प्रवृत्तियों से विद्रोह के साथ वहां रोमेंटेसिज्म फलीभूत हुआ था। इन प्रवृत्तियों का मेल उन देशों की जिस स्वातंत्र्य चेतना से था उसमें हमारे देश भारत की तरह औपनिवेशिक गुलामी के अनुभव का योगदान नहीं था। भारत में स्वछंदतावाद का मूल स्वर ब्रिटिश साम्राज्यवाद विरोधी था। यह स्वातंत्र्य चेतना के भीतर देश राष्ट्र और जातीयता के प्रति प्रेम तथा सहज उत्सर्ग का प्रेरक भाव भी शामिल था।यह स्वर भारत देश की व्यापक सांस्कृतिक परंपरा से अपना संबंध जोड़कर विकसित हो रहा था। इसीलिए स्वच्छंदतावादी काव्य धारा के भीतर और सर्वाधिक प्रत्यक्ष और शक्तिशाली स्वर राष्ट्रीयता का था।स्वच्छंदतावादी काव्यधारा ने प्रकृति में स्वातंत्र्य चेतना के नैसर्गिक अर्थ का अनुभव किया। यह प्रकृति एवं इसका विस्तार इनके लिए स्वदेश में स्वाभाविक वैविध्य और विस्तार की तरह था। इसलिए प्रकृति काव्य चेतना का काव्य इसके लिए प्रमुख बनता गया। + +11353. माखनलाल चतुर्वेदी ने भारतीय युवा मन को बखूबी झंकृत किया। उन्होंने स्पष्ट कहा - + +11354. -----X----- + +11355. राजराज द्वारा तंजावुर का राजराजेश्वर मंदिर का निर्मान किया गया।इस दौर में अनेक शिव और विष्णु मंदिर भी बनवाए गए।साथ हीं इन शासकों ने मंदिर की दीवारों पर लंबे-लंबे अभिलेख उत्कीर्ण कराने का चलन आरंभ किया, जिसमें वे अपनी जीतों के ऐतिहासिक विवरण लिखवाते थे। + +11356. व्यापार-वाणिज्य खूब फल-फूल रहे थे और व्यापारियों की कुछ बड़ी-बड़ी श्रेणियाँ थीं, जिन्हें गिल्ड कहते थे। ये श्रेणियाँ मुख्य रूप से जावा एवं सुमात्रा के साथ व्यापार करने के लिये जानी जाती थीं। + +11357. ग्राम प्रशासन की स्वायत्तता सबसे प्रमुख विशेषता थी। इनके मामलों को एक कार्यकारिणी समिति संभालती थी, जिसके सदस्यों का चुनाव पर्चियाँ निकालकर तीन वर्ष के लिये किया जाता था। + +11358. अलवार और नयनार की रचनाओं को ग्यारह जिल्दों में संकलित किया गया है?इन संतों ने तमिल तथा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में गीतों और भजनों की रचना की, जिन्हें जिल्दों में संकलित किया गया है। + +11359. चोल-राजा राजराज-प्रथम ने तंजावुर में बृहदीश्वर मंदिर बनवाया, जो शिव व विष्णु को समर्पित है। यह मंदिर स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। + +11360. नवीं सदी का अंत होते-होते अब्वासी खिलाफत का पतन हो चुका था। खलीफाओं ने एकता को कायम रखने के लिये एक तरीका अपनाया और कहा कि जो सेनापति अपने लिये स्वतंत्र क्षेत्र स्थापित करने में कामयाब हो जाते हैं। उन्हें अमीर-उल-उमरा या सेनापतियों के सेनापति की उपाधि दी जाएगी। अतः अमीर-उल-उमरा स्वतंत्र क्षेत्र स्थापित करने वाले सेनापति थे। + +11361. महमूद गज़नवी ने खुद दावा किया है कि वह ईरान के पौराणिक राजा अफ्रासियाब का वंशज है। उसने यह दावा तब किया जब फारसी भाषा और संस्कृति गज़नवी साम्राज्य की भाषा और संस्कृति बन गई। + +11362. महमूद का भारत पर आक्रमण करने का उद्देश्य उत्तर भारत के धनधान्य से पूर्ण मंदिरों को लूटना था। ताकि लूटे धन से वह मध्य एशियाई शत्रुओं के खिलाफ संघर्ष जारी रख सके। वह भारत पर शासन नहीं करना चाहता था। + +11363. कंदरिया का महादेव मंदिर इस शैली को अलंकृत करता है। + +11364. मोहम्मद-बिन-साम(मोहम्मद गौरी) ने 1173 ई. में भारत पर आक्रमण किया। उसकी सेना में बख्तियार खलजी शामिल था। मोहम्मद गौरी नहीं। खलजी ने बिहार के कुछ प्रसिद्ध विहारों को अपना लक्ष्य बनाया, जिसमें नालंदा और विक्रमशीला विहार भी शामिल थे। साम तुर्क वंश का था। + +11365. दिल्ली सल्तनत(1200-1526 ई.तक). + +11366. 1210 ई. में ऐबक की मृत्यु के बाद इल्तुतमिश दिल्ली की गद्दी पर बैठा। उसके गद्दी पर बैठने के बाद अली मर्दान खान ने स्वयं को "बंगाल और बिहार का राजा" घोषित कर लिया और ऐबक के साथी गुलाम कुबाचा ने स्वयं को मुलतानन का स्वतंत्र शासक होना ऐलान किया। अतः उसने तुर्को की भारत विजय को स्थायित्व प्रदान किया। + +11367. रज़िया ने तीन वर्ष तक दिल्ली में शासन किया। परन्तु उसी के शासनकाल में सत्ता के लिये राजतंत्र और उन तुर्क सरदारों के बीच संघर्ष आरंभ हो गया, जिन्हें चहलगामी कहा जाता था। + +11368. बलबन राजपद की शक्ति और प्रतिष्ठा की वृद्धि हेतु हमेशा प्रयत्नशील रहा। उसने गद्दी पर अपने दावे को मज़बूत करने के लिये खुद को ईरानी शहंशाह अफ्रासियाब का वंशज कहा। + +11369. दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः + +11370. रज़िया जब लाहौर और सरहिंद विजय के बाद लौट रही थी तो उस समय उसी के खेमें में विद्रोह भड़क उठा और तबरहिंद के निकट उसे बंदी बना लिया गया। + +11371. मलिक काफूर ने जब देवगिरी पर दूसरा आक्रमण किया तो राजा राय रामचंद्र ने आत्मसमर्पण कर दिया। खिलजी ने उसके साथ सम्मानजनक व्यवहार किया और उसे राय रायन की उपाधि दी तथा उसे अपने पद पर फिर से प्रतिष्ठित कर दिया। + +11372. तुगलक वंश. + +11373. उसने अपने शासनकाल में चार प्रयोग किये, जो असफल रहे। अतः उसे अभागा आदर्शवादी की संज्ञा दी गई। + +11374. फिरोजशाह तुगलक का शासनकाल शांति और मूक विकास का युग था। उसने हुक्म जारी किया कि अमीर की मृत्यु होने पर इक्ता सहित उसका स्थान पुत्र, दामाद या गुलाम को उत्तराधिकारी मानकर दिया जाए, जो बाद में हानिकारक सिद्ध हुआ। + +11375. उसने आर्थिक के साथ-साथ राजनीतिक महत्त्व का कदम उठाते हुए यह आदेश दिया कि जब भी किसी स्थान पर हमला करें, तो कुलीन परिवारों में उत्पन्न लड़कों को गुलाम बनाकर मेरे पास भेज दें। + +11376. कृषक समुदाय कुछ भिन्न परंपराओं का भी पालन करते थे, इन्हें ‘लघु’ परंपरा कहा जाता था। + +11377. ‘तवरम’ में कविताओं का संगीत के आधार पर वर्गीकरण किया गया है। + +11378. शंकर का दर्शन अद्धैतवाद ने नवीं सदी में जैन व बौद्ध धर्म को चुनौती देते हुए हिन्दू धर्म को नए सिरे से सूत्रबद्ध किया।केरल में जन्में शंकर ने ईश्वर व उसकी सृष्टि को एक माना और मोक्ष का मार्ग ईश्वर की भक्ति को बताया जिसका आधार ज्ञान है। शंकर ने वेदों को प्रतिष्ठित किया। + +11379. जंगम’ शब्द का प्रयोग यायावर भिक्षुओं के लिये किया जाता था।लिंगायत धर्मशास्त्र में बताए गए श्राद्ध संस्कार का पालन न करके मृतकों को विधिपूर्वक दफनाते थे। + +11380. खोजकी- खोजकी लिपि है, जिसका प्रयोग व्यापारी करते थे। इसका उद्भव स्थानीय लंडा अर्थात् व्यापारियों की संक्षिप्त लिपि से हुआ है। पंजाब,सिंध और गुजरात के खोजा लोग लंडा का + +11381. भारत में सुहरावर्दी संतों ने लगभग उसी समय प्रवेश किया था जब चिश्तियों का आगमन हुआ था। + +11382. शरिया के नियमों का पालन न करने वालों को बे-शरिया कहा जाता था तथा शरिया का पालन करने वालों को बा-शरिया कहा जाता था। + +11383. बाबा फरीद की काव्य रचना को गुरुग्रंथ साहिब में संकलित किया गया। कुछ सूफियों ने मनसवी भी लिखी जिसमें ईश्वर के प्रति प्रेम को मानवीय प्रेम के रूपक के रूप में अभिव्यक्त किया गया। + +11384. शेख निजामुद्दीन औलिया को उनके अनुयायी ‘सुल्तान-उल-मशेख’ (शेखों का सुल्तान) कहकर संबोधित करते थे। + +11385. गुरु नानक देव (1469-1539) का जन्म लाहौर के निकट तलवंडी राय भोई नामक एक गाँव में हुआ था (इसका नाम बाद में ननकाना साहिब रखा गया)। + +11386. पंगत: जातिगत भेदभाव त्यागकर सबके साथ बैठकर भोजन करना। + +11387. पंद्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में असम में शंकरदेव वैष्णव धर्म के मुख्य प्रचारक के रूप में उभरे। उनके उपदेशों को ‘भगवती धर्म’ कहकर संबोधित किया जाता है, क्योंकि वे भगवद्गीता और भगवत पुराण पर आधारित थे। + +11388. इनकी अन्य कविताएँ ज़िक्र और इश्क के सूफी सिद्धांतों का इस्तेमाल ‘नाम सिमरन’ की हिन्दू परंपरा की अभिव्यक्ति करने के लिये करती हैं। + +11389. इसके अतिरिक्त अन्य प्रमुख संत और उनसे संबंधित राज्य: + +11390. पहला जेसुइट शिष्टमंडल फ़तेहपुर सीकरी के मुगल दरबार में 1580 में पहुँचा और वहाँ दो वर्ष रहा। लाहौर के दरबार में दो शिष्टमंडल 1591 और 1595 में भेजे गए। + +11391. मुगल नीति का यह निरंतर प्रयास रहा कि सामरिक महत्त्व की चौकियों विशेषकर काबुल तथा कंधार पर नियंत्रण के द्वारा हिंदूकुश की ओर से आ सकने वाले संभावित सभी खतरों से बचा जा सके । कंधार सफावियों और मुगलों के बीच द्वंद्व का कारण था। + +11392. उल्लेखनीय है की रुडयार्ड किपलिंग की जंगल बुक का नायक मोगली का नाम भी मुगल शब्द से प्रेरित है। + +11393. चित्रकार मीर सैय्यद अली और अब्दुस समद का संबंध ईरान से था, इन चित्रकारों को हुमायूँ अपने साथ दिल्ली लाया। + +11394. अबुल फज़्ल ईरान के सूफी शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी के विचारों से प्रभावित था, इसलिये उसने ईश्वर (फर-ए-इज़ादी) से निःसृत प्रकाश को ग्रहण करने वाली चीज़ों के पदानुक्रम में मुगल राजत्व को सबसे ऊँचे स्थान पर रखा। + +11395. राजधानी का लाहौर स्थानांतरण : 1585 + +11396. चार तसलीम : इसमें दाएँ हाथ को ज़मीन पर रखने से शुरू करते थे, तलहथी ऊपर की ओर होती थी। इसके बाद हाथ को धीरे-धीरे उठाते हुए व्यक्ति खड़ा होता था तथा तलहथी को सिर के ऊपर रखता था। ऐसी तसलीम चार बार होती थी। + +11397. शब-ए-बारात का संबंध हिज़री कैलेंडर के आठवें महीने अर्थात चौदहवें सावन को पड़ने वाली पूर्णचन्द्र रात्रि से है। + +11398. उल्लेखनीय है कि मीरबक्शी उच्चतम वेतनदाता था। + +11399. परगना (उप-जिला)स्तर पर स्थानीय प्रशासन की देख-रेख तीन अर्द्ध-वंशानुगत अधिकारियों ,कानूनगो (राजस्व आलेख रखने वाला), चौधरी (राजस्व संग्रह का प्रभारी) और काज़ी द्वारा की जाती थी। + +11400. मणिग्रामन एवं नानादेसी श्रेणियाँ प्रारंभिक काल से हीं सक्रिय थीं। + +11401. छोटे राज्य, गाँवों की अर्थव्यवस्था को प्रश्रय देते थे, जिससे गाँव के समूह या गाँव आत्मनिर्भर होते थे। फ्यूडल सरदारों ने ग्रामीण स्वशासन पर भी अपना प्रभुत्व कायम करके इसे कमज़ोर बना दिया। + +11402. उस काल में स्त्रियों के लिये वेद पढ़ना वर्जित था। + +11403. चतुर्दान एक जैन सिद्धांत है जो नवीं और दसवीं सदी में विद्या, आहार, औषधि और आश्रय दान को लोकप्रिय बनाने में सहायक सिद्ध हुआ। + +11404. क्रिस्टोफर कोलंबस जिसने ‘अमेरिका’ की खोज की थी, जिनेवा का निवासी था। यद्यपि अमेरिका पहुँचने वाला वह प्रथम व्यक्ति नहीं था। उसने अमेरिका की चार बार यात्रा की तथा हिस्पानिओला द्वीप पर बस्ती बनाने की कोशिश की। उसने पुर्तगाल के राजा जॉन द्वितीय के सामने भारत की खोज करने का प्रस्ताव रखा था। + +11405. 1422 ई.-1446 ई. तक देवराय द्वितीय ने विजयनगर पर शासन किया। उसे इस राजवंश का सबसे प्रतापी शासक माना जाता है। सेना को मज़बूत बनाने के लिये उसने मुसलमानों की ज़्यादा भर्ती की थी। फरिश्ता के अनुसार देवराय द्वितीय ने 2000 मुसलमानों की भर्ती की, उन्हें जागीरें दीं और हिन्दू सिपाहियों तथा अफसरों को धनुर्विद्या सीखने का आदेश भी दिया। + +11406. पेस, बारबोसा और नूनिज आदि विदेशी यात्रियों ने कृष्णदेव के प्रशासन की प्रंशसा की थी। + +11407. पालिगार (पलफूगार) नायक सरदार थे, जो राज्य की सेवा के लिये निश्चित संख्या में पैदल सेना, घोड़े और हाथी रखते थे। + +11408. कल्याण मंडप एक खुला मंडप था जिसका प्रयोग मंदिर के देवता के प्रतीकात्मक विवाह समारोहों के आयोजन हेतु प्रयोग किया जाता था। + +11409. देवराय प्रथम ने रचनात्मक और कल्याणकारी कार्यों पर काफी रुचि दिखाई तथा तुंगभद्रा नदी पर बाँध बनवाए। + +11410. तैमूर के आक्रमण के बाद दिल्ली में सैय्यद राजवंश स्थापित हुआ। उस समय पंजाब पर अफगान शासकों ने सत्ता स्थापित कर ली थी। उनमें बहलोल लोदी प्रमुख था, जिसे सरहिंद की इक्तेदारी प्राप्त भी। + +11411. अलबरुनी के अनुसार 15वीं सदी में कश्मीर में हिन्दुओं को प्रवेश नहीं करने दिया जाता था, जो वहाँ के सरदारों से व्यक्तिगत रूप से परिचित नहीं थे। उस समय कश्मीर, शैव धर्म के केंद्र के रूप में विख्यात था। + +11412. 1454 ई. में उसने चंपानेर पर अधिकार कर लिया था और मुहम्मदबाद नामक एक नया शहर बसाया। + +11413. मध्यकालीन भारत में 1525 ई. तक उत्तर भारत में इतनी उथल-पुथल उत्पन्न हो रही थी कि यहाँ की राजनीतिक परिस्थितियाँ तेज़ी से बदल रही थीं और इस प्रदेश में प्रभुत्व स्थापित करने के लिये एक निर्णायक युद्ध अवश्यंभावी प्रतीत हो रहा था। + +11414. रोमांटिक साहित्य की शुरुआत जिस तरह जैसे फ्रांसीसी क्रांति से हुई, उसी तरह रूसी क्रांति की सफलता के गर्भ से प्रगतिशील साहित्य का जन्म हुआ। हालंकि कविता में प्रगतिशीलता तो आरंभ से ही रही है, लेकिन जिस रूढ़ अर्थ में प्रगतिशील शब्द का प्रयोग होता है, उसका जन्म सन् 1917 की रूसी क्रांति के सफलता से ही माना जाता है। रूसी क्रांति की सफलता के बाद समाज और साहित्य दोनों में सर्वहारा वर्ग की मुक्ति की उम्मीद की किरण दिखाई देने लगी। भारत में भी बुद्धिजीवियों का मानना था कि लाल‌ रूस है ढाल साथियों सब मजदूर किसानों की। + +11415. अपनी कविता प्रेत का बयान मेंं नागार्जुन अपने परिवेश के आर्थिक राजनीतिक ढांचे का जर्रा-जर्रा उधेड़ देते हैं। एक प्रेत अपनी मृत्यु का कारण बताता है- + +11416. हमारे समक्ष फिर किसी भूख का।" + +11417. मंदिर, मस्जिद, हाट, सिनेमा + +11418. माओ ने सब कुछ सीखा, एक बात नहीं सीखी + +11419. दक्खिनी हिंदी कविता कौमुदी: + +11420. + +11421. जहाँ तूँ वाँ हूँ मैं प्यारे मुंजे क्या काम है किस सूँ + +11422. किसे ना जानूँ मैं मालुम नईं कोई तुज ब़गैर मुंज कूँ + +11423. क़ुली 'क़ुतुब' शाह संचयन/पिया तुज आश्ना मैं तूँ बे-गाना न कर मुंज कूँ: + +11424. तेरे पग तल रखी हूँ सीस अज़ल दिन थे अबद लक भी + +11425. जिधर तूँ वाँ मेरा जन्नत जिधर नईं वाँ सक़र मुंज कूँ + +11426. क़ुली 'क़ुतुब' शाह संचयन/तेरे क़द थे सर्व ताज़ा है जम: + +11427. तू है चंद तारे हैं लश्कर तेरे + +11428. तेरे हस्त है दरपन होर जाम-जम + +11429. क़ुली 'क़ुतुब' शाह संचयन/पिया मुख थे चूता शराब-ए-मनव्वर: + +11430. मुंजे आ कोईलाँ की करसे ना तासीर + +11431. मानी कहे बाँग अल्लाहु अकबर + +11432. + +11433. नयन इश्वियाँ के शहराँ में करिश्मे तेरे कुतवालाँ + +11434. क़ुतुब शह कूँ बयाँ लिक लिक मना कर सेज लाती की + +11435. + +11436. नयन तेरे दो फूल नरगिस थे ज़ेबा + +11437. + +11438. हुनूज़ यक होक नईं मिलता किसे बोलूँ तू मुश्किल में + +11439. अज़ल थे साईं का दिल होर मेरा दिल के हैं एक + +11440. + +11441. रन्नी अँध्यारी है कठिन तुज बिन कटी जाती नहीं + +11442. कीता अपस कूँ नाज हौर छंद में पवानगी ऐ सकी + +11443. उस बिन यक़ीं पहचान तूँ भी कोई तुज साती नहीं + +11444. + +11445. क्या ग़रज़ तुज कूँ ये बहसाँ सूँ पिला मय साक़ी + +11446. + +11447. जिस प्रकार आभूषण स्त्री के नैसार्गिक सौंदर्य को बढा देते है, ठीक उसी प्रकार अलंकार काव्य की रसत्मकता को बढा देते है। + +11448. १.१.१ छेकानुप्रास + +11449. १.२ यमक अलंकार + +11450. २.२ उपमा अलंकार + +11451. २.७ अतिशयोक्ति अलंकार + +11452. जहाँ विभिन्न शब्दों के प्रयोग से रमणीय, सौंदर्य, और चमत्कार उत्पन्न होते हैं, जो अलंकार किसी विशेष शब्द की स्थिती में हो रहे और उस शब्द के पर्याचावाची शब्द रख देने से उसका अस्तित्व न रहे, वह शब्दालंकार शब्द है। + +11453. (क)अनुप्रास अलंकार + +11454. उपर्युक्त उदाहरण में ‘म’ वर्ण की आवृति हो रही है, जब किसी वाक्य में किसी वर्ण या व्यंजन की एक से अधिक बार आवृति होती है तब वहां अनुप्रास अलंकार होता है। अतः यह उदाहरण अनुप्रास अलंकार के अंतर्गत आयेगा। + +11455. •छेकानुप्रास + +11456. छेकानुप्रास- + +11457. वृत्यानुप्रासर - + +11458. जब एक शब्द या वाक्यखण्ड की आवृत्ति अनेक बार  होती है तो लाटानुप्रास होता है। + +11459. "'मांगी नाव न केवटु आना। + +11460. "'दिनान्त था थे दिननाथ डूबते, + +11461. "'कनक कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाय। + +11462. कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर।'" + +11463. उदाहरण- + +11464. १)पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में है जब इसका मतलब विनम्रता से है। रहीम कह रहे हैं कि मनुष्य में हमेशा विनम्रता (पानी) होना चाहिए। + +11465. उदाहरस्वरूप- + +11466. कृष्ण संवाद है, जिसमें राधा कृष्ण से पूछती है आप को हैं जिसके उत्तर में कृष्ण अपना नाम घनश्याम बताते है परन्तु राधा इसका अर्थ किसी व्यक्ति के नाम से ना ले कर मौसम से लेती है जिसकी वजह से वह बोलती है तो बरस जाओ। + +11467. उदाहरण- + +11468. दो भिन्न पदार्थो में सदृश्य - प्रतिपादन को ही उपमा कहते है। उपमा का अर्थ है, एक वस्तु के निकट दूसरी वस्तु को रखकर दोनों में समानता प्रतिपादन करना। उपमा शब्द का अर्थ ही सदृश्य, समानता तथा तुल्यता इत्यादि। उपमा अलंकार सर्वाधिक प्राचीन अलंकार है, इसका प्रयोग ऋग्वेद में भी मिलता हैं। + +11469. •वाचक शब्द : वाचक शब्द वह शब्द होता है जिसके द्वारा उपमान और उपमेय में समानता दिखाई जाती है। + +11470. (ग) उत्प्रेक्षा अलंकार + +11471. यहाँ इन पंक्तियों में श्रीकृष्ण के सुंदर श्याम शरीर में नीलमणि पर्वत की और शरीर पर शोभायमान पीताम्बर में प्रभात की धूप की मनोरम संभावना की गई है।मनहूँ शब्द का प्रयोग संभावना दर्शाने के लिए किया गया है। अतः यह उदाहरण उत्प्रेक्षा अलंकार के अंतर्गत आएगा। + +11472. स्पष्टीकरण - + +11473. "'या अनुरागी चित्त की गति समुझे नहिं कोय। + +11474. सम्पूर्ण प्रसिध्द कारणों के होने पर भी कार्य के न होने का वर्णन हो, अर्थात् फल की प्राप्ति ना हो। + +11475. यहां निद्रनिवृत्ती, सूर्य का उदय होना तथा सखियों का द्वार पर आना आलिंगन परित्याग करने के कारण उपस्थित है, फिर भी नायिका आलिंगन का त्याग नहीं कर पा रही है। अतः यह विशेशोक्ती अलंकार है। + +11476. कर बिनु कर्म करै विधि नाना। + +11477. (ज)भ्रान्तिमान अलंकार + +11478. सोचता है अन्य शुक यह कौन है?"' + +11479. हिंदी नाटक एवं एकांकी की यह पुस्तक दिल्ली विश्वविद्यालय के स्नातक प्रतिष्ठा के पाठ्यक्रम के अनुसार तैयार की गई है। + +11480. हिंदी पत्रकारिता: + +11481. वर्तमान में हिन्दी पत्रकारिता ने अंग्रेजी पत्रकारिता के दबदबे को खत्म कर दिया है। पहले देश-विदेश में अंग्रेजी पत्रकारिता का दबदबा था लेकिन आज हिन्दी भाषा का झण्डा चहुंदिश लहरा रहा है। ३० मई को 'हिन्दी पत्रकारिता दिवस' के रूप में मनाया जाता है। + +11482. हिंदी पत्रकारिता का पहला चरण. + +11483. उन्नीसवीं शताब्दी के इन 25 वर्षों का आदर्श भारतेन्दु की पत्रकारिता थी। "कविवचनसुधा" (1867), "हरिश्चंद्र मैगजीन" (1874), श्री हरिश्चंद्र चंद्रिका" (1874), बालबोधिनी (स्त्रीजन की पत्रिका, 1874) के रूप में भारतेन्दु ने इस दिशा में पथप्रदर्शन किया था। उनकी टीकाटिप्पणियों से अधिकरी तक घबराते थे और "कविवचनसुधा" के "पंच" पर रुष्ट होकर काशी के मजिस्ट्रेट ने भारतेन्दु के पत्रों को शिक्षा विभाग के लिए लेना भी बंद करा दिया था। इसमें संदेह नहीं कि पत्रकारिता के क्षेत्र भी भारतेन्दु पूर्णतया निर्भीक थे और उन्होंने नए नए पत्रों के लिए प्रोत्साहन दिया। "हिंदी प्रदीप", "भारतजीवन" आदि अनेक पत्रों का नामकरण भी उन्होंने ही किया था। उनके युग के सभी पत्रकार उन्हें अग्रणी मानते थे। + +11484. तीसरा चरण : बीसवीं शताब्दी के प्रथम बीस वर्ष. + +11485. 1921 के बाद साहित्यक्षेत्र में जो पत्र आए उनमें प्रमुख हैं- + +11486. + +11487. + +11488. समझैं बाला बालकहूं, वर्णन पंथ अगाध | + +11489. + +11490. संदर्भ :- यह पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के रीतिबद्ध कवि केशवदास द्वारा रचित कविप्रिया के तीसरा प्रभाव से लिया गया है + +11491. अलंकार कवितान के, सुनि सुनि विविध विचार | + +11492. २. कविता के अलंकारवादि विविध गुणो को विचारपूर्वक सुनने और समझने के बाद 'केशव' ने कविता की शोभा इस कविप्रिया को लिखा है + +11493. प्रसंग :- इस पद के माध्यम से कवि ने तीन अर्थ किए हैं यह तीन अर्थ तीन लोगों (कवि, व्यभिचारी और चोर)के संदर्भ में है + +11494. राचत रंच न दोष युत, कविता, बनिता मित्र । + +11495. २. कवि कहते हैं कि इन तीनों ( स्त्री, कविता और मित्र) दोषों के रहते हुए शोभा नहीं पाते हैं जैसे एक बूंद मदिरा से गंगाजल से भरा हुआ घड़ा अपवित्र हो जाता है| अंतः थोड़े से दोष से ही ये तीनों निंदा के योग्य माने जाते हैं| अलंकारों एवं गुणों के पक्षपाती केशवदास काव्य, में किसी दोष को क्षमा नहीं करते + +11496. प्रसंग : पांचवा प्रभाव के दोहे में केशव काव्य में अलंकारों की महत्वता का वर्णन करते हैं + +11497. दसन, बसन, बसुमति कह्याचार है। + +11498. राजा दशरथसुत सुनौ राजा रामचन्द्र, + +11499. विशेष १. सफेद रंग की स्तुति की है + +11500. संदर्भ : यह पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के रीतिबद्ध कवि केशवदास द्वारा रचित कविप्रिया के छठा प्रभाव के सवैया से संकलित किया गया है + +11501. बालक मृणालनि ज्यों तोरि डारै सब काल, + +11502. राखत है 'केशोदास' दास के वपुष को। + +11503. व्याख्या : कवि कहता है कि जैसे पालक कमल की डाल को किसी भी समय आसानी से तोड़ डालता है उसी प्रकार गणेश असमय में आए विकराल दुख को भी दूर कर देते हैं जैसे कमल के पत्ते पानी में फैले कीचड़ को नीचे भेज देते हैं और स्वयं स्वच्छ होकर ऊपर रहते हैं उसी प्रकार गणेश हर विपत्ति को दूर कर देते हैं जिस प्रकार चंद्रमा को निष्कलंक कर शिव जी ने अपने शीश पर धारण किया उसी प्रकार गणेश जी अपने दास को कलंक रहित कर पवित्र कर देते हैं गणेश जी वंदना से अनेक दास मुक्त कर देते हैं रावण भी गणेश जी के मुख की तरफ देखकर अपनी बाधाओं को दूर करने की आशा रखता था + +11504. बानी जगरानी की उदारता बखानी जाय, + +11505. केशौदास क्यों हूँ न बखानी काहू पैगई। + +11506. व्याख्या : जगत की स्वामिनी श्री सरस्वती जी की उदारता का जो वर्णन कर सके, ऐसी उदार बुद्धि किसकी हुई है ? बडे-बडे प्रसिद्ध देवता, सिद्ध लोग, तथा तपोबद्ध ऋषिराज उनकी उदारता का वर्णन करते करते हार गये, परन्तु कोई भी वर्णन न कर सका । भावी, भूत, वर्तमान जगत सभी ने उनकी उदारता का वर्णन करने की चेष्टा की परन्तु किसी से भी वर्णन करते न बना । उस उदारता का वर्णन उनके पति ब्रह्माजी चार मुख से करते है, पुत्र महादेव जी पाँच मुख से करते है और नाती ( सोमकार्तिकेय ) छ मुख से करते है, परन्तु फिर भी दिन-दिन नई ही बनी रहती है + +11507. के इतिहास में अपने चरम बिन्दु पर पहुंच गई, जब गुलामों ने सुल्तान + +11508. + +11509. छात्रावास का पुस्तकालय देखकर मैं रोमांचित हो उठा था । इसी पुस्तकालय में मैंने पास्तरनाक हेमिंग्वे. विक्टर सूगो पियरे लूई टॉलस्टाय पर्ल एस बक तुर्गनेव दॉस्तोएवस्की स्टीवेंसन ऑस्कर वाइल्ड रोम्यांरोला एमिल जोला को पड़ा था । यहीं रहते हुए रवींद्रनाथ टैगोर कालिदास का संपूर्ण वाइन्मय पड़ा । + +11510. उसने वॉर्डन से शिकायत करने की धमकी दी । मैंने उससे पूछा " क्या शिकायत करोगे? " + +11511. हम दोनों एक-दूसरे का मुँह देख रहे थे । अचानक पाटिल बोल पड़ा " सर सिर में दर्द था । स्टेशन तक जा रहे हैं चाय कॉफी पीकर अभी लौट आएंगे । " " क्यों मैस में चाय-कॉफी नहीं मिलती? " + +11512. अम्मा जी ऊपर से नीचे मुझे घूरते हुए बोली " अच्छा नाटक है? " + +11513. नाटक शुरू हो चुका था । रात एक बजे शो छूटा था । हॉस्टल का ताला खुला छोड्‌कर दरबान सोया हुआ था । सुदामा ने ताला बंद करते हुए कहा " जय अम्मा जी! " उन दिनों हमनें विजय तेंदुलकर के मराठी नाटक ' सखाराम बाइंडर ' ' गिधाड़े ' ' खामोश अदालत जारी है ' देखे थे । बंबई में थिएटर यूनिट के ' हयवदन ' ' आषाढ़ का एक दिन ' आदि में अमरीश पुरी अमोल पालेकर सुनीला प्रधान सुलभा देशपांडे के अभिनय ने इन नाटकों को सजीव बना दिया था । + +11514. " जी मेरा ही है " मैंने स्वीकार किया । + +11515. इन्हीं दिनों मेरा परिचय मराठी के दलित साहित्य से हुआ था । दलित साहित्य की रचनाएं मराठी-साहित्य को एक नई पहचान दे रही थीं । दया पंवार नामदेव ढसाल राजाढाले गंगाधर पानतावणे बाबूराव बागुल केशव मेश्राम नारायण सुर्वे रामन निंबालकर यशवंत मनोहर के शब्द रगों में चिंगारी भर रहे थे । ऐसी अभिव्यक्ति जो रोमांचित कर एक नई ऊर्जा से भर रही थी । + +11516. कई बार विजयशंकर कहता था " यार तुम लोग कभी जवान भी हुए हो या नहीं...? " + +11517. हर रविवार कुलकर्णी के मैस में खाना खाने से सुदामा पाटिल और मेरे मैस बिल बढ़ने लगे थे। प्रशिक्षण के दौरान मिलनेवाले भत्ते से मुझे गांव पिताजी को पैसा भेजना पड़ता था । पाटिल की स्थिति भी वैसी ही थी । मुझसे बेहतर जरूर थी । लेकिन दो छोटे भाई कॉलेज में पढ़ रहे थे उनका खर्चा भेजना पड़ता था । हम दोनों काफी मितव्ययता से चलते थे फिर भी हाथ तंग रहता था । मेरे पास कपडों की भी तंगी थी । बस किसी तरह खिंच रहा था। + +11518. " इन पत्थर की मूर्तियों में मेरी कोई आस्था नहीं है । " मैंने अपने मन की बात कह दी थी । + +11519. " हाँ.. कभी-कभी... " छ आह छ 5 ख + +11520. दीपावली से एक दिन पहले चतुर्दशी की सुबह मिसेज कुलकर्णी ने अपने घर बुलाया था । वह भी सुबह चार बजे । मैंने पाटिल से पूछा तो सुनकर वह हँस पड़ा था । मेरी समझ में नहीं आया था पाटिल के हँसने का कारण । मैंने जोर देकर पूछा तो बोला " मजा करो मिसेज कुलकर्णी तुम्हें तेल और उबटन से नहलाएंगी । " + +11521. मिसेज कुलकर्णी के हाथों के नर्म कोमल वात्सल्यपूर्ण स्पर्श ने मुझे अपनी माँ के खुरदरे स्पर्श की याद दिला दी थी । सिरहाने बैठकर जब माँ मेरे बालों में उंगलियां घुमाती थी मेरी चेतना जैसे नींद की गोद में समा जाती थी । + +11522. इसी बीच मिसेज कुलकर्णी चाय लेकर आई थीं । चाय पीते-पीते मेरा ध्यान कांबले के प्याले पर गया । उनका प्याला हमारे प्यालों से अलग था । मैंने सुदामा पाटिल से पूछा । उसने कुहनी मारकर मुझे चुप करा दिया था । + +11523. " शायद नहीं... वाल्मीकि सरनेम से शायद ब्राह्मण समझते हैं । तभी तो उस रोज दीपावली पर स्नान के लिए बुलाया था । " पाटिल कुछ-कुछ गंभीर होने लगा । + +11524. पाटिल से मेरी बैचेनी छिपी नहीं थी । उसने समझाने की कोशिश की थी । + +11525. " कल शाम को मंदिर चलते हैं... " + +11526. साहस बटोरते हुए मैंने कहा " तुम्हारे घर उस रोज जो प्राध्यापक कांबले आए थे ... " मेरी बात पूरी भी नहीं हुई थी सविता ने बात काट दी । + +11527. " अरे...तुम नाराज क्यों होते हो उन्हें अपने बर्तनों में कैसे खिला सकते हैं? " उसने प्रश्न किया । .ग् ' र क + +11528. " आई बाबा तुम्हारी तारीफ करते है..कहते हैं यूपी. वालों के प्रति जो उनकी धारणा थी उससे अलग हो । तुम्हें अच्छा मानते हैं । " सविता ने चहकते हुए कहा । " मैंने तुम्हारी राय पूछी थी । " + +11529. " तुम तो ब्राह्मण हो । " उसने दृढता से कहा । + +11530. " मैं सच कह रहा हूँ..तुमसे झूठ नहीं बोलूंगा । न मैंने कभी कहा कि मैं ब्राह्मण हूँ । गे मैंने उसे समझाना चाहा । + +11531. + +11532. जा तन की झाँई परे स्याम हरित दुति होय।। + +11533. विशेष १. राधा की आराधना की गई है + +11534. प्रसंग : इस पद के माध्यम से बिहारी जी एक भी वियोगिनी नायिका की दशा को दिखाते हैं + +11535. प्रसंग : बिहारी लाल द्वारा कृष्ण के कानों के कुंडलो की प्रशंसा करते हुए इस पद की रचना की है + +11536. जमुना-तीर तमाल-तरु मिलित मालतो-कुंज।। + +11537. २. श्लेष के बहाने से वर्णन किया गया है + +11538. नैना मिले मन मिल गए, दोउ मिलवत गाइ + +11539. मनौ अली चंपक-कली बसि रसु लेतु निसाँक।। + +11540. २. श्लेष अलंकार है उपेक्षा अलंकार है + +11541. व्याख्या : नायिका के मुख पर चंदन की बिंदी बहुत ही सुंदर लग रही है और वह ऐसी प्रतीत हो रही है जैसे मदिरापान के बाद जो लाली चढ़ती है उससे वह प्रत्यक्ष नजर आने लगती है + +11542. व्याख्या : बिहारी जी कहते हैं की नायिका इतनी सुंदर है सारे चित्रकार नायिका के रूप सौंदर्य को चित्रित करने के लिए अभिमान से बैठे हैं लेकिन उनका अभिमान टूट जाता है क्योंकि नायिका इतनी सुंदर है कि चित्रकारों को बार-बार नायिका की सुंदरता परिवर्तित होती दिखाई देती है चतुर चित्रकार लोग ऐसे कितने ही आए लेकिन कोई भी चित्र चित्रत नहीं कर पाए |विकृत बुद्धि वाले कितने ही चित्रकार अभिमान से भरे हुए थे लेकिन कोई भी नायिका का चित्र नहीं बना सका + +11543. परति गाँठि दुरजन हिये, दई नई यह रीति॥ + +11544. विशेष १. असंगति अलंकार का प्रयोग हुआ है + +11545. प्रसंग : प्रकृति और बसंत ऋतु के आने का सुंदर वर्णन किस पद के द्वारा किया गया है + +11546. ४. अलंकार को साधन के रूप में प्रस्तुत किया है ना कि साध्य रूप में । + +11547. ९. हाथी का मद (दान) सुगंध बसंत ऋतु की हवा के समान है। + +11548. 129 बी, एम.आई.जी. फ्लेट्स, राजौरी गार्डन, नई दिल्ली-110027 + +11549. आकांक्षाओं के अनुरूप होने लगे थे। + +11550. भारत के इतिहास को आधुनिक रूप में अर्थात अपनी इच्छानुसार लिख सकें अथवा लिखवा सकें, इसके लिए कम्पनी सरकार ने अंग्रेज इतिहासकारों के माध्यम से सघन प्रयास कराए जिन्होंने भारत की प्राचीन सामग्री, यथा- ग्रन्थ, शिलालेख आदि, जिसे पराधीन रहने के कारण भारतीय भूल चुके थे, खोज-खोज कर निकाली। साथ ही भारत आने वाले विदेशी यात्रियों के यात्रा विवरणों का अनुवाद अंग्रेजी में करवाया और उनका अध्ययन किया किन्तु भारतीय सामग्री में से ऐसी सामग्री बहुत कम मात्रा में मिली जो उनके काम आ सकी। अतः उन्होंने उसे अनुपयुक्त समझकर अप्रामाणिक करार दे दिया। + +11551. ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने सर विलियम जोन्स के माध्यम से इस देश के इतिहास को नए ढंग से लिखवाने की शुरूआत की। जोन्स ने भारत का इतिहास लिखने की दृष्टि से यूनानी लेखकों की पुस्तकों के आधार पर 3 मानदण्ड स्थापित किए- + +11552. इतिहास-लेखन के कार्य में उस समय कम्पनी में कार्यरत जहाँ हर अंग्रेज ने पूरा-पूरा सहयोग दिया, वहीं कम्पनी ने भी ऐसे लोगों को सहयोग और प्रोत्साहन दिया, जिन्होंने भारतीय इतिहास से सम्बंधित कथ्यों और तथ्यों को अप्रामाणिक, अवास्तविक, अत्युक्तिपूर्ण और सारहीन सिद्ध करने का प्रयास किया। पाश्चात्य विद्वानों के भारतीय इतिहास-लेखन के संदर्भ में उक्त निष्कर्षों और मानदण्डों को आधार बनाकर तत्कालीन सत्ता ने आधुनिक रूप में भारत का इतिहास-लेखन कराया। + +11553. दिल्ली के उप राज्यपाल श्री विजय कपूर द्वारा 31 मार्च, 2003 को मेरी पुस्तक ‘‘भारत का आधुनिक इतिहास लेखन एक प्रवंचना‘‘ का लोकार्पण किया गया था। लोकार्पण के अवसर पर पुस्तक की सामग्री के संदर्भ में दी गई जानकारी के आधार पर समारोह में उपस्थित अनेक लोगों ने मुझे ऐसी पुस्तक लिखने पर साधुवाद दिया। बाद में विषय के ज्ञाता अनेकविद्वानों और पाठकों ने पुस्तक की भूरि-भूरि प्रशंसा की। + +11554. ए सी - 10, टैगोर गार्डन, + +11555. पराधीनता व्यक्ति की हो या राष्ट्र की सदा ही दुःखदायी और कष्टकारी होती है। पराधीन व्यक्ति/राष्ट्र अपना स्वत्त्व और स्वाभिमान ही नहीं अपना गौरव और महत्त्व भी भूल जाता है या भूल जाने को बाध्य कर दिया जाता है। भारतीयों के साथ भी सुदीर्घ परतंत्रता काल में ऐसा ही हुआ है। वे भी अपनी समस्त विशिष्टताओं, श्रेष्ठताओं और महान सांस्कृतिक आदर्शों को विस्मृति के अन्धकार में विलीन कर चुके थे। वे अपने तात्कालिक स्वार्थ की पूर्ति/लाभ के लिए अपने देश के वास्तविक इतिहास और सांस्कृतिक गौरव को भुलाकर परकीय सत्ता की हाँ में हाँ मिलाकर उनकी गुलामी/चापलूसी करने में ही स्वयं को गौरवान्वित समझने लगे थे। जबकि परकीय सत्ताओं ने इसदेश को सदा-सर्वदा के लिए गुलाम बनाए रखने की दृष्टि से अपने-अपने ढंग से भारतीय इतिहास और संस्कृति की गौरवगाथा को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया है। धन-लोभी, पद और प्रतिष्ठा के आकांक्षी अनेक भारतीय लेखक भी ‘हिज मास्टर्स वॉयज‘ के धुन पर नाचते हुए वही कुछ करते रहे तथा करवाते रहे, पढ़ते रहे तथा पढ़ाते रहे, लिखते रहे तथा लिखवाते रहे, जो परकीय सत्ताएँ चाहती थीं। + +11556. अध्यक्ष + +11557. परकीय सत्ताओं का इतिहास-लेखन में दखल. + +11558. जर्मन और अंग्रेज लेखकों में भारत के संदर्भ में लिखने की होड़. + +11559. वालों को सजा दी जाएगी और सजा मौत भी हो सकती थी। जबकि संस्कृत साहित्य सृष्टि के निर्माण को लाखों-लाखों वर्ष पूर्व ले जा रहा था और इससे उनकी बातें झूठी सिद्ध हो रही थीं। इसीलिए संस्कृत साहित्य और भारतीय संस्कृति तथा इतिहास की पुरातनताकी बात उन्हें बहुत खलने लगी। + +11560. अंग्रेजी सत्ता यह भली प्रकार से जान चुकी थी कि जर्मनीअथवा इंग्लैण्ड के लोग चाहे जितनी मात्रा में सत्ता-समर्थक बातें कहते रहें, वे भारतीयोंके गले में तब तक नहीं उतरेंगी, जब तक यहीं के लोग वैसा नहीं कहेंगे। अतः उन्होंने यहीं के अनेक धन-पद लोलुप संस्कृत के विद्वानों को धन, पद और प्रतिष्ठा का लालच दिखाकर पाश्चात्य विद्वानों द्वारा कही गई बातों को ही उनके अपने लेखन में दोहरवाकर अपनी बातों की पुष्टि कराने के लिए तैयार कर लिया और वे प्रसन्नतापूर्वक ऐसा करने लगे। इनमें मिराशी, कपिल देव, सुधाकर द्विवेदी, विश्वबन्धु, शिवशंकर आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। डॉ. पाण्डुरंग वामन काणे, डॉ. लक्ष्मण स्वरूप, डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी भी इस दृष्टि से किसी तरह से पीछे नहीं रहे। + +11561. पाश्चात्य विद्वानों को उनकी राजनीतिक दृष्टि से विजयी जाति के दर्प ने, सामाजिक दृष्टि से श्रेष्ठता की सोच ने, धार्मिक दृष्टि से ईसाइयत के सिद्धान्तों के समर्थन ने और सभ्यता तथा संस्कृति की दृष्टि से उच्चता के गर्व ने एक क्षण को भी अपनी मान्यताओं तथा भावनाओं से हटकर यह सोचने की स्थिति में नहीं आने दिया कि वे जिस देश, समाज औरसभ्यता का इतिहास लिखने जा रहे हैं, वह उनसे एकदम भिन्न है। उसकी मान्यताएँ और भावनाएँ, उसके विचार और दर्शन, उनकी आस्थाएँ और विश्वास तथा उसके तौर-तरीके, उनके अपने देशों से मात्र भिन्न ही नहीं, कोसों-कोसों दूर भी हैं। + +11562. यदि भारत के प्राचीन विद्वान इतिहास-ज्ञान से शून्य होते तो प्राचीन काल से सम्बंधित जो ताम्रपत्र या शिलालेख आज मिलते हैं, वे तैयार ही नहीं कराए जाते। ऐसे अभिलेखों की उपस्थिति में भारत के प्राचीन विद्वानों पर पाश्चात्य विद्वानों का कालगणना-ज्ञानया तिथिक्रम की गणना से अनभिज्ञ होने के कारण उसका व्यवस्थित हिसाब न रख पाने का दोषारोपण बड़ा ही हास्यस्पद लगता है। विशेषकर इसलिए भी कि भारत में तो कालमान का एक शास्त्र ही पृथक सेहैं, जिसमें एक सैकिंड के 30375वें भाग से कालगणना की व्यवस्था है। नक्षत्रों की गतियों के आधार पर निर्धारित भारतीय कालमान में परिवर्तन और अन्तर की बहुत ही कम संभावना रहती है। विभिन्न प्राचीनग्रन्थों यथा- अथर्ववेद, विभिन्न पुराण, श्रीमद्भागवत, महाभारत आदि में काल-विभाजन और उसके गणनाक्रम पर बड़े विस्तार से विचार प्रकट किए गए हैं। कुछ के उदाहरण इस प्रकार हैं - + +11563. उक्त ग्रन्थों के अतिरिक्त सूर्य सिद्धान्त, मुहूर्त चिन्तामणि, शतपथ ब्राह्मण आदि में भी कालगणना पर विस्तार में विचार किया गया है। यही नहीं, पाराशर संहिता, कश्यप संहिता, भृगु संहिता, मय संहिता, पालकाप्य महापाठ, वायुपुराण, दिव्यावदान, समरांगण सूत्रधार, अर्थशास्त्र, (कौटिल्य), सुश्रुत और विष्णु धर्मोत्तरपुराण भी इस दृष्टि से उल्लेखनीय हैं। इन ग्रन्थों के अतिरिक्त भी अनेक ग्रन्थों में कालगणना के संदर्भ में चर्चा की गई है। + +11564. अंग्रेजों ने भारत की प्राचीन ज्ञान-राशि, जिसमें पुराण, रामायण, महाभारत आदि ग्रन्थ सम्मिलित हैं, को ‘मिथ‘ कहा है अर्थात उनकी दृष्टि में इन ग्रन्थोंमें जो कुछ लिखा है, वह सब कुछ कल्पित है, जबकि अनेक भारतीय विद्वानों का मानना है कि वे इन ग्रन्थोंको सही ढंग से समझने में असमर्थ रहे हैं। उनकी सबसे बड़ी कठिनाई यही थी कि उनका संस्कृत ज्ञान सतही था जबकि भारत का सम्पूर्ण प्राचीन वाङ्मय संस्कृत में था और जिसे पढ़ने तथा समझने के लिए संस्कृत भाषा का उच्चस्तरीय ज्ञान अपेक्षित था। अधकचरे ज्ञान पर आधारित अध्ययन कभी भी पूर्णता की ओर नहीं ले जा सकता। वास्तव में तो पाश्चात्य विद्वानों ने ‘मिथ‘ के अन्तर्गत वह सभी भारतीय ज्ञान-राशि सम्मिलित कर दी, जिसे समझने में वे असमर्थ रहे। इसके लिए निम्नलिखित उदाहरण ही पर्याप्त होगा - + +11565. यूनान से समय-समय पर अनेक विद्वान भारत आते रहे हैं और उन्होंने भारत के संदर्भ में अपने-अपने ग्रन्थों में बहुत कुछ लिखा है किन्तु भारत के इतिहास को लिखते समय सर्वाधिक सहयोग मेगस्थनीज के ग्रन्थ से लिया गया है। चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में आए मेगस्थनीज ने भारत और अपने समय के भारतीय समाज के बारे में अपने संस्मरण ‘इण्डिका‘ नामक एक ग्रन्थ में लिखे थे किन्तु उसके दो या तीन शताब्दी बाद ही हुए यूनानी लेखकों, यथा- स्ट्रेबो ;ैजतंइवद्ध और एरियन ;।ततपंदद्धको न तो ‘इण्डिका‘ और न ही भारत के संदर्भ में किन्हीं अन्य प्राचीन लेखकों द्वारा लिखी पुस्तकें ही सुलभ हो सकी थीं। उन्हें यदि कुछ मिला था तो वह विभिन्न लेखकों द्वारा लिखित वृत्तान्तों में उनके वे उद्धरण मात्र थे जो उन्हें भी पूर्व पुस्तकों के बचे हुए अंशों से ही सुलभ हो सके थे। + +11566. डायाइसेकस-कहीं 20 हजार और कहीं 30 हजार स्टेडिया, टालमी 16,800 स्टेडिया आदि और + +11567. (घ) युद्धों के वर्णन - एक ही युद्ध के वर्णन अलग-अलग यूनानी लेखकों द्वारा पृथक-पृथक रूप में किए गए हैं, यथा- + +11568. �* कर्टियस का मत है कि घायल पुरु की वीरता से प्रभावित होकर सिकन्दर ने सन्धि का प्रस्ताव रखा। + +11569. उक्त विश्लेषण से स्पष्ट हो जाता है कि यूनानियों नेअपनी पुस्तकों में विवरण लिखने में अतिशयोक्ति से काम लिया है। हर बात को बढ़ा-चढ़ा करलिखा है। स्ट्रेबो, श्वानबेक आदि विदेशी विद्वानों ने तो कई स्थानों पर इस बात के संकेत दिएहैं कि मेगस्थनीज आदि प्राचीन यूनानी लेखकों के विवरण झूठे हैं, सुनी-सुनाई बातों पर आधारित है और अतिरंजित हैं। ऐसे विवरणों को अपनाने के कारण भी भारत के इतिहास में विकृतियाँ आई हैं। + +11570. वैसे तो भारत-भ्रमण के लिए अनेक देशों से यात्री आते रहे हैं। फिर भी भारत के इतिहास को आधुनिक रूप से लिखते समय मुख्यतः यूनानी और चीनी-यात्रियों के यात्रा-विवरणों को अधिक प्रमुखता दी गई है। उनके सम्बन्ध में स्थिति इस प्रकार है- + +11571. भारत आने वाले चीनी यात्रियों की संख्या वैसे तो 100मानी जाती है किन्तु भारतीय इतिहास-लेखन में तीन, यथा- फाह्यान, ह्वेनसांग औरइत्सिंग का ही सहयोग प्रमुख रूप से लिया गया है। इनके यात्रा विवरणों के अनुवाद हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में सुलभ हैं। इन अनुवादों में ऐसे अनेक वर्णन मिलते हैं जो लेखकों के समय के भारत के इतिहास की दृष्टि से बड़े उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण हैं। आधुनिक रूप में भारत का इतिहास लिखने वालों ने इन तीनों यात्रियों द्वारा वर्णित अधिकांश बातों को सत्य मानकर उनके आधार पर भारत की विभिन्न ऐतिहासिकघटनाओं के विवरण लिखे हैं किन्तु उनके वर्णनों में सभी कुछ सही और सत्य हैं, ऐसा नहीं है। उनके वर्णनों में ऐसी भी बातें मिलती हैं, जो अविश्वसनीय लगती हैं। ऐसा लगता है कि वे सब असावधानीमें लिखी गई हैं। तीनों के विवरणों की स्थिति इस प्रकार है- + +11572. अपने यात्रा-विवरण में उसने भी बहुत सी ऐसी बातें लिखी हैं जो इतिहास की कसौटी पर कसने पर सही नहीं लगतीं। इत्सिंग ने प्रसिद्ध विद्वान भर्तृहरि को अपने भारत पहुँचने से 40 वर्ष पूर्व हुआ माना है। जबकि ‘वाक्यपदीय‘ के लेखक भर्तृहरि काफी समय पहलेहुए हैं। इसी प्रकार उसके द्वारा उल्लिखित कई बौद्ध विद्वानों की तिथियों में भी अन्तर मिलता है। इन अन्तरों के संदर्भ में सबसे महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि इत्सिंग द्वारा 691-92 ई. में चीन भेजी गई सामग्री 280 वर्ष तक तो हस्तलिखित रूप में ही वहाँ पड़ी रही। 972 ई. तक वह मुद्रित नहीं हुई। फिर जो पुस्तक छपी उसमें और मूल सामग्री, जो इत्सिंग ने भेजी थी, में अन्तर रहा। (‘इत्सिंग की भारत यात्रा‘, अनुवादक सन्तराम बी. ए. पृ. ज्ञ-30) ऐसा भी कहा जाता है कि इत्सिंग ने स्वयं अपनी मूल प्रति में चीन पहुँचने पर संशोधन कर दिए थे। जो पुस्तक स्वयं में ही प्रामाणिक नहीं रही उसके विवरण भारत के इतिहास-लेखन के लिए कितने प्रामाणिक हो सकते हैं, यह विचारणीय है। + +11573. चीनी भाषा - चीनी भाषा से अंग्रेजी भाषा में किए गए अनुवादों से जिस-जिस प्रकार की गड़बड़ियाँ हुईं, उसके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं - एस. बील ने ह्वेनसांग की पुस्तक का अनुवाद करते हुए फुटनोट 33 का चीनी भाषा से अंग्रेजी में अनुवाद इस प्रकार से किया है - + +11574. संस्कृत भाषा- यूनानी या चीनी भाषाओं से ही नहीं, संस्कृत से भीअंग्रेजी में अनुवाद करने में भारी भूलें होती रही हैं, यथा- + +11575. विकासवाद के मत को स्वीकार कर लेने पर ही मनुष्य के अन्दर ज्ञान की उत्पत्ति के लिए भी एक क्रम की कल्पना की गई। तदनुसार यह मानने को बाध्य होना पड़ा कि प्रारम्भिक स्थिति में मानव बड़ा जंगली, बर्बर और ज्ञानविहीन था। उसे न रहना आता था और न भोजन करना। वह जंगलों में नदियों के किनारे रहता था और पशुओं को मारकर खाता था। अपनी सुरक्षा के लिए पत्थर के हथियारों का प्रयोग करता था। बाद में धीरे-धीरे धातुओं का प्रयोग करते-करते आगे बढ़कर ही वह आज की स्थिति में आया है। + +11576. उत्खननों से प्राप्त उक्त सामग्री के आधार पर पुरातात्त्विक लोग अपने शास्त्रीय विवेचन से उस स्थान से सम्बन्धित सभ्यता की प्राचीनता का आकलन करते हैं। उसी से पता चलता है कि वह सभ्यता कब पनपी थी, कहाँ-कहाँ फैली थी और किस स्तर की थीतथा उस कालखण्ड विशेष में समाज की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक आदि स्थितियाँ क्या और कैसी थीं ? भारत में 1920 ई. के बाद से निरन्तर होती आ रही पुरातात्त्विक खोजों में प्राप्त हुई सामग्रियों का ही यह परिणाम है कि आज भारत के प्राचीन इतिहास के अनेक ऐसे अज्ञात पृष्ठ, जिनके बारेमें सामान्यतः आज लोगों को कुछ पता ही नहीं था, खुलकर सामने आते जा रहे हैं। + +11577. सिन्धु घाटी सभ्यता सरस्वती नदी की घाटी में पनपी वैदिक सभ्यता का ही अंग है - भारत और पाकिस्तान के विभिन्न भागों में जैसे-जैसे नए उत्खननों में पुरानी सामग्री मिलती जा रही है, उसके आधार पर भारत के आधुनिक इतिहासकारों द्वारानिर्धारित भारतीय सभ्यता की प्राचीनता की सीमा 4500-5000 वर्ष से बढ़ते-बढ़ते 10,000 वर्ष तक पहुँच गई है। अब तो भारतीय इतिहास के आधुनिक लेखकों को भी यह मानना पड़ रहा है कि वह सभ्यता जिसे एक समय सीमित क्षेत्र में केन्द्रित मानकर सिन्धु घाटी सभ्यता का नाम दिया गया था, वास्तव में बिलोचिस्तान, सिन्ध, पूरा पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात अर्थात लगभग पूरे भारत में ही फैली हुई थी। + +11578. पुरातत्त्व संस्थान, लन्दन विश्वविद्यालय के सर मोर्टियर व्हीलर के अनुसार भी इस प्रणाली के आधार पर निकाले गए निष्कर्ष असत्य हो सकते हैं। + +11579. इस प्रकार हम देखते हैं कि कार्बन 14 तिथ्यांकन प्रणालीस्वयं में ही सन्देह के घेरे में बनी हुई है। ऐसी विधि के आधारों पर निकाले गए उक्त निष्कर्षों से सहमत कैसे हुआ जा सकता है ? अतः भारतीय इतिहास के संदर्भ में भी जो तिथियाँ कार्बनतिथ्यांकन प्रणाली से निकाली गई हैं वे और उनके आधार पर निकाले गए ऐतिहासिक निर्णय कहाँ तक माने जाने योग्य हैं, यह एक विचारणीय प्रश्न है। + +11580. कात्यायन कृत ‘ऋक्सर्वानुक्रमणी‘ की वृत्ति की भूमिका में षड्गुरु शिष्य का एक श्लोकार्द्ध इस रूप में मिलता है - + +11581. इनके संस्कृत ज्ञान के बारे में पं. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने ‘राजस्थान‘ के पृष्ठ 26-27 में लिखा है कि - ‘‘राजस्थान में रहने के कारण यहाँ की भाषा से तो वे परिचित हो गए थे परन्तु संस्कृत का ज्ञान अधिक न होने से संस्कृत पुस्तक, लेख और ताम्रपत्रों का सारांश तैयार करने में उनको अपने गुरु यति ज्ञानचन्द्र पर भरोसा रखना पड़ता था। ज्ञानचन्द्र कविता के प्रेमी थे। अतः वे कविता की भाषा के तो ज्ञाता थे परन्तु प्राचीन लेखों को भलीभाँति नहीं पढ़ सकते थे। पं. ज्ञानचन्द्र जी के संस्कृत ज्ञान पर आधारित रहने से टॉड साहब के लेखन में बहुत सी अशुद्धियाँ रह गईं। उन्होंने जहाँ कई शब्दों के मनमाने अर्थ किए हैं, वहीं कई प्राचीन स्थानों के प्राचीन नाम कल्पित धर दिए हैं, जैसे- ‘शील‘ का अर्थ ‘पर्वत‘, ‘कुकुत्थ‘ का अर्थ ‘कुश सम्बंधी‘, ‘बृहस्पति‘ का अर्थ‘बैल का मालिक‘ किया है तथा ‘मंडोर‘ को ‘मंदोदरी‘, ‘जालोर‘ को ‘जालीन्द्र‘, ‘नरवर‘ को ‘निस्सिद्‘ बता दिया है। + +11582. ऐतिहासिक. + +11583. इस संदर्भ में यह उल्लेखनीय है कि आर्यों ने भारतको ही अपनी मातृभूमि, धर्मभूमि और कर्मभूमि मानकर जिस रूप में अपनाया है वैसा किसी भी पराए देश का निवासी उसको नहीं अपना सकता था। यहाँ यह भी बात ध्यान देने योग्य है कि आर्यों ने सप्तसिन्धु के बाहर के निवासियों को बहुत ही घृणापूर्वक ‘म्लेच्छ‘ कहकर पुकारा है - ‘म्लेच्छ देश ततः परः।‘ (मनु.) क्या ऐसा कहने वाले स्वयं म्लेच्छ देश से आने वाले हो सकते हैं, ऐसा नहीं हो सकता। + +11584. आर्यों ने भारत के मूल निवासियों को युद्धों में हराकर दास या दस्यु बनाया. + +11585. दास या दस्यु कौन थे, इस संदर्भ में कुल्लूक नाम के एक विद्वान का यह कथन, जो उसने मनुस्मृति की टीका में लिखा है, उल्लेखनीय है- ‘ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र जाति में, जो क्रियाहीनता के कारण जातिच्युत हुए हैं, वे चाहे म्लेच्छभाषी होंया आर्यभाषी, सभी दस्यु कहलाते हैं। + +11586. भारत के मूल निवासी द्रविड़. + +11587. अंग्रेजों ने इस बात को भी बड़े जोर से उछाला है कि ‘आक्रान्ता आर्यों‘ ने द्रविड़ों के पूर्वजों पर नृशंस अत्याचार किए थे। वाशम, नीलकंठ शास्त्री आदि विद्वान यद्यपि अनेक बार यह लिख चुके हैं कि ‘आर्य‘ और ‘द्रविड़‘ शब्द नस्लवाद नहीं है फिर भी संस्कृत के अपने अधकचरे ज्ञान के आधार पर बने लेखक, साम्राज्यवादी प्रचारक और राजनीतिक स्वार्थ-सिद्धिको सर्वोपरि मानने वाले नेता इस विवाद को आँख मींच कर बढ़ावा देते रहे हैं। पाश्चात्य विद्वानोंने द्रविड़ों की सभ्यता को आर्यों की सभ्यता से अलग बताने के लिए ‘हड़प्पा कालीन सभ्यता‘ को एक बड़े सशक्तहथियार के रूप में लिया था। पहले तो उन्होंने हड़प्पाकालीन सभ्यता को द्रविड़ सभ्यता बताया किन्तु जब विभिन्न विद्वानों की नई खोजों से उनका यह कथन असत्य हो गया तो वे कहने लगे कि हड़प्पा के लोग वर्तमान ‘द्रविड़‘ नहीं, वे तो भूमध्य सागरीय ‘द्रविड़‘ थे - अर्थात वे कुछ भी थे किन्तु आर्य नहीं थे। इस प्रकार की भ्रान्तियाँ जान-बूझकर फैलाई गई थीं। जबकि सत्य तो यह है कि हड़प्पा की सभ्यता भी आर्य सभ्यता का ही अंश थी और आर्य सभ्यता वस्तुतः इससे भी हजारों-हजारों वर्ष पुरानी है। + +11588. इनको अनार्य बनाने के पीछे क्या अभिप्राय रहा? -आर्य वाङ्मय में स्थान-स्थान पर ‘अनार्य‘ शब्द का प्रयोग किया गया है। वाल्मीकि रामायणके 2. 18. 31 में दशरथ की पत्नी कैकेई के लिए ‘अनार्या‘ शब्द का प्रयोग किया गया है। श्रीमद्भगवद्गीता में ‘‘अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन‘‘ के माध्यम से अकीर्तिकर कार्यों के लिए ‘अनार्यजुष्ट‘ जैसे शब्दोंका प्रयोग किया गया है। ऋग्वेद के मंत्र संख्या 7. 6. 3 के अनुसार अव्रतियों, अयाज्ञिकों, दंभिओं, अपूज्यों और दूषित भाषा का प्रयोग करने वालों के लिए ‘मृघ्रवाच‘ शब्द का प्रयोग किया गया है अर्थात किसी भी आर्य ग्रन्थ में ‘अनार्य‘ शब्द जातिवाचक के रूप में प्रयुक्त नहीं हुआ है। स्पष्ट है कि ऋग्वेद आदि में स्थान-स्थान पर आए अनार्य, दस्यु, कृष्णगर्भा, मृघ्रवाच आदि शब्द आर्यों से भिन्न जातियों के लिए न होकर आर्य कर्मों से च्युत व्यक्तियों के लिए प्रयुक्त हुए हैं अर्थात ‘अनार्य‘ शब्द जातिवाचक रूप में कहीं भी प्रयोगमें नहीं लाया गया। + +11589. अतः यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि यह भी अंग्रेजों द्वारा भारतीय समाज को तोड़ने के लिए फैलाई गई एक भ्रान्ति के अतिरिक्त और कुछ नहीं। + +11590. (1) "India has been conquered once but India must be conquered again and the second conquest should be attained by education." .. भारत को एक बार जीता जा चुका है, अवश्य ही इसे पुनः जीतना होगा, किन्तु इस बार शिक्षा के माध्यम से।‘‘ + +11591. किन्तु इस तीसरी स्थिति के बावजूद भी यूरोपीय लेखकयह स्वीकार करने में असमर्थ रहे कि यूरोप वाले आर्यों (भारतीयों) से निचले स्तर पर रहे थे। अतः उन्होंने संस्कृत और लैटिन आदि भाषाओं के शब्दों की समानता को लेकर ‘‘एक ही भाषा के बोलनेवाले एक ही स्थान पर रहे होंगे‘‘ के सिद्धान्त की स्थापना की और इस प्रकार आर्यों से यूरोप वालों का रक्त सम्बन्ध स्थापित कर दिया। मैक्समूलर आदि अनेक पाश्चात्य विद्वानों ने पहले तो आर्यों को एक जाति विशेष बनाया और धीरे-धीरे एक के बाद एक कई ऐसे यूरोपीय विद्वान आए जिन्होंने आर्यों के गुणों से आकृष्ट होकर यूरोपीय लोगों को इस जाति विशेष से ही जोड़ दिया। इस संदर्भ में मैक्समूलर का कहना है कि- + +11592. इस संदर्भ में जार्ज ग्रियर्सन का अपनी रिपोर्ट ‘ऑन दिलिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इण्डिया‘ में उल्लिखित यह कथन दर्शनीय है - ‘‘भारतीय मानव स्कन्ध में उत्पन्न भारत-तूरानी अपने को वास्तविक अर्थ में साधिकार ‘आर्य‘ कह सकते हैं किन्तु हम अंग्रेजों को अपने को ‘आर्य‘ कहने का अधिकार नहीं हैं। + +11593. आदि मानव जंगली और मांसाहारी. + +11594. भारत के प्राचीन वाङ्मय में वेद, ब्राह्मण ग्रन्थ, पुराण, चरकसंहिता आदि का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इनमें इस संदर्भ में आए ब्योरे इस प्रकार हैं - + +11595. चरक संहिता - ‘चरक संहिता‘ के चिकित्सा स्थान 19.4 में लिखा हुआ है कि आदिकाल में यज्ञों में पशुओं का स्पर्श मात्र होता था। वे आलम्भ थे यानि उनका वध नहीं किया जाता था। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि आदिकाल में पशुओं को मार कर खा जाना तो दूर यज्ञों में भी पशुओं का वध नहीं किया जाता था। + +11596. मेगस्थनीज- मेगस्थनीज के अनुसार आदिकाल में मानव पृथ्वी से स्वाभाविक रूप से उत्पन्न आहार पर निर्भर था। (फ्रेग्मेन्ट्स, पृष्ठ 34) + +11597. आज यह सर्वमान्य तथ्य है कि ऋग्वेद भारत का ही नहीं विश्व का सर्वाधिक प्राचीन ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ की रचना के लिए पाश्चात्य विद्वानों, यथा- मैक्समूलर, मैक्डोनल आदि ने 1500-1000 ई. पू. का काल निर्धारित किया है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि पाश्चात्य विद्वानों ने विश्व के सबसे प्राचीन ग्रन्थ की रचना का काल आज से मात्र 3000-3500 वर्ष पूर्वही निर्धारित किया है। यदि ऐसा है तो क्या लाखों वर्ष पूर्व से चलती आई मानव सभ्यता के पास अपना कोई लिखित साहित्य 3500 वर्ष से पूर्व था ही नहीं ? यह बात प्रामाणिक नहीं लगती, विशेषकर उस स्थिति में जबकि भारतीय कालगणना के अनुसार वर्तमान सृष्टि का निर्माण हुए एक अरब 97 करोड़ 29 लाख से अधिक वर्ष हो गए हैं और आज के वैज्ञानिकों द्वारा भी पृथ्वी की आयु 2 अरब वर्ष या इससे अधिक की निश्चित की जा रही है। यदि भारत के सृष्टि सम्वत, वैवस्वत मनु सम्वत आदि की बात छोड़ भी दें तो भी कल्याण के ‘हिन्दू संस्कृति‘ अंक के पृष्ठ 755 पर दी गई विदेशी सम्वतों की जानकारी के अनुसार चीनी सम्वत 9 करोड़ 60 लाख वर्ष से ऊपर का है, खताई सम्वत 8 करोड़ 88 लाख वर्ष से ऊपर का है, पारसी सम्वत एक लाख 89 हजार वर्ष से ऊपर का है, मिस्री सम्वत (इस सभ्यता को आज के विद्वान सर्वाधिक प्राचीन मानते हैं) 27 हजार वर्ष से ऊपर का है, तुर्की और आदम सम्वत 7-7 हजार वर्ष से ऊपर के हैं, ईरानी और यहूदी सम्वत क्रमशः 6 हजार और 5 हजार वर्ष से ऊपर के हैं। इतने दीर्घकाल में क्या किसी भी देश में कुछ भी नहीं लिखा गया? + +11598. इस संदर्भ में यह उल्लेखनीय है कि जैसे-जैसे नए-नए पुरातात्त्विक उत्खनन होते जा रहे हैं, वैसे-वैसे भारतीय सभ्यता प्राचीन से प्राचीनतर सिद्ध होती जा रही है और वैसे-वैसे ही विश्व के सर्वप्रथम लिखित ग्रन्थ वेद की प्राचीनता भी बढ़ती जा रही है क्योंकि यह भारत का सर्वप्रथम ग्रन्थ है। + +11599. �* भारतीय इतिहास अधिक से अधिक 3000-2500 ई. पू. से प्रारम्भ होता है। + +11600. साहित्यिक. + +11601. संस्कृत वाङ्मय. + +11602. अर्थ शास्त्र - कौटिल्य के ‘अर्थ शास्त्र‘ में चार स्थानों पर, यथा- अध्याय 6, 13, 20 और 95 में प्राचीन आर्य राजाओं के संदर्भ में बहुत सी उपयोगी बातें लिखी हैं जिनसे भारत के प्राचीन इतिहास पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। + +11603. ‘राजतरंगिणी‘ में कश्मीर राज्य का इतिहास महाभारत युद्ध (3138 ई.पू.) से 312 वर्ष पूर्व से दिया गया है। इसमें 3450 ई. पू. से 1148 ई. (‘राजतरंगिणी‘ के रचनाकाल) तक का इतिहास सुलभ है। इसमें उल्लिखित विवरणों से भारत के प्राचीन इतिहास की अनेक घटनाओं और व्यक्तियों पर काफी प्रकाश पड़ता है। पं. कोटावेंकटचलम ने ‘क्रोनोलोजी ऑफ कश्मीर हिस्ट्री रिकन्सटक्टेड‘ में बताया है कि इसमें महाभारत से पूर्व हुए मथुरा के श्रीकृष्ण-जरासंघ युद्ध, महाभारत-युद्ध और महाभारत के बाद की कश्मीर की ही नहीं भारत की विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं, यथा- परीक्षितकी कश्मीर विजय, परीक्षित की मृत्यु, गौतम बुद्ध की मृत्यु, कनिष्क का राज्यारोहण आदि का उल्लेख भी मिलता है। ‘राजतरंगिणी‘ में दिए गए अनेक ब्योरों की पुष्टि भारतीय पुराणों में उल्लिखित ब्योरों सेहो जाती है, किन्तु भारत के इतिहास-लेखन में इस पुस्तक का कोई भी सहयोग नहीं लिया गया। उलटे फ्लीट आदि के द्वारा इसमें उल्लिखित तथ्यों को हर प्रकार से अप्रामाणिक सिद्ध करने का प्रयास किया गया। + +11604. बौद्ध साहित्य की तुलना में जैन साहित्य ऐतिहासिक दृष्टि से अधिक सशक्त है। यह सही है कि जैन साहित्य का संकलन काफी समय बाद में शुरू किया गया था। फिर भी अनेक राजाओं से सम्बंधित घटनाएँ, सम्वत तथा विभिन्न ऐतिहासिक घटनाएँ जैन साहित्य में विस्तार से मिलती हैं। इस दृष्टि से ‘उत्तराध्ययन‘ नामक ग्रन्थ उल्लेखनीय हैं। विक्रम की चौथी और पाँचवीं शताब्दियों से लेकर नौवीं-दसवीं शताब्दियों तक जैनाचार्य जिनसेन, हरिभद्रसूरी, हेमचन्द्र आदि विद्वानों ने जैन मत की टूटी हुई प्राचीन परम्परा को पुनः जोड़ा और इतिहास का संग्रह किया। जैन रचनाओं के आधार पर भी प्राचीन भारत के इतिहास के अनेक टूटे हुए सूत्र जोड़े जा सकते हैं। इस दृष्टि से ई. पू. छठी शतादी में आचार्य यतिवृषभ द्वारा लिखित ग्रन्थ ‘तिलोयपण्णत्ति‘ सहित समय-समय पर लिखित अन्य अनेक ग्रन्थ, यथा- ‘उपासमदसाओं‘, ‘राजावलिकथा‘, ‘विविध तीर्थ कल्प‘, ‘जम्बुद्वीप प्रज्ञप्ति‘, ‘बृहत् कल्पसूत्र‘, ‘निर्युक्ति गाथा‘, ‘ज्ञाताधर्म कथा‘, ‘ओमवार्तिक सूत्र‘, ‘निशीथचूर्णि‘ आदि उल्लेखनीय है। + +11605. भारत का प्राचीन साहित्य, यथा- रामायण, महाभारत, पुराण आदि 'मिथ'. + +11606. महाभारत. + +11607. राजाओं और राजवंशों के वर्णन अतिरंजित एवं अवास्तविक. + +11608. एक ही राजा के अलग-अलग पुराणों में नाम अलग-अलग हैं. + +11609. राजाओं की आयु और राजवंशों की राज्यावधि बहुत अधिक दिखाई गई है. + +11610. पाश्चात्य इतिहासकारों की इस कल्पना की पुष्टि न तो पुराणों सहित भारतीय साहित्य या अन्य स्रोतों से ही होती है और न ही यूनानी साहित्य कोछोड़कर भारत से इतर देशों के साहित्य या अन्य स्रोतों से होती है। स्वयं यूनानी साहित्य में भी ऐसे अनेक समसामयिक उल्लेखों का, जो कि होने ही चाहिए थे, अभाव है, जिनसे आक्रमण की पुष्टि हो सकती थी। यूनानी विवरणों के अनुसार ईसा की चौथी शताब्दी में यूनान का राजा सिकन्दर विश्व-विजय की आकांक्षा से एक बड़ी फौज लेकर यूनान से निकला और ईरान आदि को जीतता हुआ वह भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र केपास आ पहुँचा। यहाँ उसने छोटी-छोटी जातियों और राज्यों पर विजय पाई। इन विजयों से प्रोत्साहित होकर वह भारत की ओर बढ़ा, जहाँ उसकी पहली मुठभेड़ झेलम और चिनाव के बीच के छोटे से प्रदेश के शासक पुरु से हुई। उसमें यद्यपि वह जीत गया किन्तु विजय पाने के लिए उसे जो कुछ करना पड़ा, उससे तथा अपने सैनिकों के विद्रोह के कारण उसका साहस टूट गया और उसे विश्व-विजय के अपने स्वप्न को छोड़कर स्वदेश वापस लौट जाना पड़ा। + +11611. साहित्यिक- भारत की तत्कालीन साहित्यिक रचनाएँ, यथा- वररुचि की कविताएँ, ययाति की कथाएँ, यवकृति पियंगु, सुमनोत्तरा, वासवदत्ता आदि, इस विषय पर मौन हैं। अतः इस प्रश्न पर वे भी प्रकाश डालने में असमर्थ हैं। यही नहीं, पुरु नाम के किसी राजा का भारतीय साहित्य की किसी भी प्राचीन रचना में कोई भी उल्लेख कहीं भी नहीं मिलता और मेगस्थनीज का तो दूर-दूर तक पता नहीं है। हाँ, हिन्दी तथा कुछ अन्य भारतीय भाषाओं के कतिपय अर्वाचीन नाटकों में अवश्य ही इस घटना का चित्रण मिलता है। + +11612. यूनानी साहित्य - विभिन्न यूनानी ग्रन्थों में उपलब्ध मेगस्थनीज के कथनों के अंशों में तथा टाल्मी, प्लिनी, प्लूटार्क, एरियन आदि विभिन्न यूनानी लेखकों की रचनाओं में सिकन्दर के आक्रमण के बारे में विविध उल्लेख मिलते हैं। इन्हीं में सेंड्रोकोट्टस का वर्णन भी मिलता है किन्तु वह चन्द्रगुप्त मौर्य है, इस सम्बन्ध में किसी भी ग्रन्थ में कोई उल्लेख नहीं हुआ है। यह तो भारतीय इतिहास के अंग्रेज लेखकों की कल्पना है। यदि वास्तव में ही सेंड्रोकोट्टस चन्द्रगुप्त मौर्य होता और उसके समय में ही यूनानी साहित्य लिखा गया होता तो उसमें अन्य अनेक समसामयिक तथ्य भीहोने चाहिए थे, जो कि उसमें नहीं हैं। इससे चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में आक्रमण हुआ था, इस पर प्रश्नचिन्ह् लग जाता है। इस दृष्टि से निम्नलिखित तथ्य विचारणीय हैं- + +11613. इस प्रश्न पर कि क्या सेंड्रोकोट्टस ही चन्द्रगुप्त मौर्य है, विचार करने के लिए यह जान लेना उचित होगा कि सेंड्रोकोट्टस के सम्बन्ध में प्राचीन यूनानी साहित्य में जो कुछ लिखा मिलता है, क्या वह सब चन्द्रगुप्त मौर्य पर घटता है ? यूनानी साहित्य में सेंड्रोकोट्टस के संदर्भ में मुख्य रूप से निम्नलिखित बातें लिखी हुई मिलती हैं- + +11614. उक्त बातों को भारतीय स्रोतों, यथा- पुराणों आदि में चन्द्रगुप्त मौर्य के संदर्भ में आए उल्लेखों से मिलान करने पर पाते हैं कि उसके सम्बन्ध में ये बातें तथ्यों से परे हैं, क्योंकि- + +11615. दूसरी ओर कुछ नाटकों आदि में चन्द्रगुप्त मौर्य और सेल्युकस की पुत्री हेलन या कार्नेलिया की सिकन्दर के आक्रमण के समय यूनानी शिविर में प्रणय चर्चा का उल्लेख किया गया है किन्तु क्या यहाँ से जाने के 25 वर्ष बाद तक वह चन्द्रगुप्त के लिए प्रेम संजोए अविवाहित बैठी रही होगी ? यह बात असंभव न होते हुए भी जमती नहीं। + +11616. नाम के साथ उपनाम जोड़ने की जहाँ तक बात है तो यहप्रथा भी गुप्त वंश के राजाओं में थी, जैसे- + +11617. 4. कुमारगुप्त प्रथम—महेन्द्रादित्य आदि + +11618. (1) ... परन्तु प्रस्सई शक्ति में बढ़े-चढ़े हैं। ... उनकी राजधानी पालीबोथ्रा ही है। यह बहुत बड़ा और धनी नगर है। इस नगर के कारण अनेक लोग इस प्रदेश के निवासियों को पालीबोथ्री कहते हैं। यही नहीं, गंगा के साथ-साथ का सारा भू-भाग इसी नाम से पुकारा जाता है। + +11619. (6) पालीबोथ्रा गंगा-यमुना के संगम से 425 मील है और समुद्र में गंगा के गिरने के स्थान से 738 मील है। + +11620. (3) यमुना नदी पालीबोथ्रा से होकर बहती थी और उसके एक ओर मथुरा तथा दूसरी ओर करिसोबोरा था किन्तु पाटलिपुत्र के आसपास तो क्या मीलों दूर तक यमुना नदी का न तो पहले ही पता था और न ही अब है। + +11621. उक्त सभी तथ्यों और अन्य बातों को देखते हुए ऐसा लगता है कि मेगस्थनीज या अन्य यूनानी लेखक भारत की सही भौगोलिक स्थिति को समझ पाने में असमर्थ रहे हैं। + +11622. संसार में कालगणना की कई पद्धतियाँ प्रचलित हैं किन्तुउनमें से भारतीय कालगणना की ही एकमात्र पद्धति ऐसी है जिसका सम्बन्ध वास्तविक रूप में काल से जुड़ा है और जो सृष्टि के प्रारम्भ से ही एक ठोस वैज्ञानिक आधार पर निर्मित होकर चलती आ रही है। कारण, वह आकाश में स्थित नक्षत्रों, यथा- सूर्य, चन्द्र, मंगल आदि की गति पर आधारित है। प्राचीनभारतीय साहित्य में भारतीय कालगणना के मुख्य अंग युग, मन्वन्तर, कल्प आदि, की जो वर्ष गणना दी गईहै, वह नक्षत्रों की गति पर आधारित होने से पूर्णतः विज्ञान सम्मत है। + +11623. ज्योतिष शास्त्र' - इतनी लम्बी कालगणना को विभिन्न पाश्चात्य ही नहीं अपितु अनेक आधुनिक भारतीय विद्वान भी मानने को तैयार भले ही न हों किन्तु इसकीपुष्टि ज्योतिष के ग्रन्थ ‘सूर्य सिद्धान्त‘ से हो जाती है। सूर्य सिद्धान्त के अध्याय 1 में कहा गया है कि - एक चतुर्युगी में सूर्य, मंगल, बुध, वृहस्पति, शुक्र और शनि 43,20,000 भगण (राशि चक्र) परिवर्तन करते हैं। यही संख्या प्राचीन भारतीय साहित्य में चतुर्युगी के वर्षों की बताई गई है। + +11624. इस मंत्र में कृत्युग (सत्युग) त्रेता, द्वापर और आस्कन्द (कलियुग) चारों युगों के नामों का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। + +11625. ‘प्रागैतिहासिकता‘ का शाब्दिक अर्थ इतिहास से पूर्व केकाल की स्थिति से है। ‘इतिहास से पूर्व काल की स्थिति से‘ आधुनिक इतिहासकारों का अभिप्रायआदिमानव के भू-अवतरण और उसके बाद के उस प्रारम्भिक काल की स्थिति से है, जिसके सम्बन्ध में जानने, परखने और समझने के लिए आज उनके पास वह सब सामग्री, यथा- सिक्के, मोहरें, अभिलेख, पुरातन अवशेष आदि जो इतिहास जानने के प्रमुख साधन माने जाते हैं, सुलभ नहीं है किन्तु यह सब सामग्री उनको मानव जीवन की केवल भौतिक प्रगति की स्थिति का ही परिचय दे सकती है, उसकी धार्मिक और अध् यात्मिक प्रगति का नहीं। इस प्रगति के परिचय के लिए प्राचीन साहित्य चाहिए, जो भारतवर्ष के अलावा अन्य किसी भी देश में आज सुलभ नहीं है किन्तु उस साहित्य को आज के इतिहासकार ‘मिथ‘ कहते आ रहे हैं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि आदि मानव के भू-अवतरण काल और उसके बाद के जिस काल के साहित्य को ‘मिथ‘ की कोटि में डाला जा रहा है उसको ही प्रागैतिहासिक काल का नाम दिया गया है। जबकि भारत के इतिहास में ऐसा कोई काल रहा ही नहीे क्योंकि यहाँ तो उस समय से इतिहास सुलभहै, जबकि सृष्टि के आरम्भ में भारत के ‘आत्म-भू‘ और ‘यूनानियों के आदम‘ अर्थात आदि मानव अथवा ब्रह्मा का आविर्भाव हुआ था। ‘शतपथ ब्राह्मण‘ तथा ‘पद्म‘ आदि पुराणों में सृष्टि निर्माण की चर्चा के संदर्भ में लिखा है कि पहले पृथ्वी एक द्वीपा थी, बाद में चतुर्द्वीपा हुई और उसके बाद में सप्तद्वीपा हो गई। आज इसी बात को ‘कान्टीनेन्टल ड्रिफ्टिंग थ्यॉरी‘ (महाद्वीपीय विचलन सिद्धान्त) कहा जाता है। पुराणों के अनुसार द्वीपों का विचलन शंकर के ताण्डव से जुड़ा है। शंकर के नृत्य करते समय पैरों की धमक से ही द्वीपों का विचलन होता है। + +11626. भारत के प्रसिद्ध पुरातात्त्विक श्री बी. बी. लाल ने वैज्ञानिक आधार पर भारत के प्राचीन इतिहास का काल-निर्धारण करते हुए महाभारत युद्ध को 836 ई. पू. में हुआ माना है। महाभारत युद्ध के लिए इस काल को निर्धारित करने की प्रक्रिया का ब्योरा प्रस्तुत करते हुए श्री लाल ने कहा है कि भारतीय इतिहास के मुस्लिम काल में दिल्ली में कुतुबुद्दीन ऐबक से लेकर बहादुरशाह जफर तक 47 मुस्लिम बादशाह हुए हैं और उन्होंने कुल 652 वर्ष राज्य किया है। इस हिसाब से प्रति राजा का औसत राज्यकाल 13.9 अर्थात 14 वर्ष बनता है। इसी आधार पर परीक्षित से लेकर उदयनतक हुए 24 राजाओं का राज्यकाल उन्होंने 24 ग 14 त्र 336 वर्ष माना है। उदयन का समय उन्होंने 500 ई. पू. कल्पित किया है क्योंकि बौद्ध ग्रन्थों में उदयन को गौतमबुद्ध का लगभग समकालीन माना गया है। अतः500 ई. पू. में 336 वर्ष जोड़कर 836 ई. पू. वर्ष बनाकर इसे महाभारत का काल माना है। जबकि वास्तव में महाभारत का युद्ध उस समय से बहुत पहले हुआ था। + +11627. विविध. + +11628. 19वीं शताब्दी में पाश्चात्य विद्वानों ने बुद्ध के काल-निर्धारण के संदर्भ में 25वीं शताब्दी ई. पू. से 5वीं शताब्दी ई. पू. तक की अनेक तिथियाँ एकत्रित की थीं, जिनका डॉ. विल्सन ने विश्लेषण किया था। श्रीराम साठे ने ‘डेट्स ऑफ बुद्धा‘ के पृष्ठ 2 से 4 तक डॉ. विल्सन की तिथियों के साथ प्रिन्सेप तथा कुछ अन्य लोगों द्वारा दी गई तिथियाँ भी दी हैं। उनसे ज्ञात होता है कि- + +11629. (ख) आद्य जगद्गुरु शंकराचार्य 788 ई में अवतरित हुए - आचार्य शंकर के जन्मकाल में भी लगभग 1300 वर्ष का ही अन्तर पाश्चात्य और भारतीय आधारों से आता है। पाश्चात्य विद्वानों ने यूँ तो आचार्य शंकर के जन्म के सम्बन्ध में बहुत सारी तिथियाँ दी हैं किन्तु अधिकतर विद्वान 788 ई. पर सहमत हैं। (इस संदर्भमें विस्तृत जानकारी के लिए सूर्य भारती प्रकाशन, नई सड़क, दिल्ली-6 द्वारा प्रकाशित लेखक की पुस्तक ‘भारतीय एकात्मता के अग्रदूत आद्य जगद्गुरु शंकराचार्य‘ देखें) जबकि भारतीय (शंकर मठ)परम्परा के अनुसार उनका जन्मकाल 509 ई. पू. बनता है। द्वारका और कांची कामकोटि पीठ के पीठाधिपतियों की सूचियों में प्रत्येक आचार्य का नाम, गद्दी पर बैठने का वर्ष और कितने वर्ष वे गद्दी पर रहे, इन सबका पूरा वर्णन दिया गया है। आचार्य शंकर की जन्मतिथि की दृष्टि से वे सूचियाँ बहुत महत्वपूर्ण हैं। + +11630. इस स्थिति में यह निष्कर्ष निकाल पाना कि इनमें से बौद्ध धर्म-प्रचारक देवानांप्रिय अशोक कौन सा है, कठिन है। जहाँ तक अशोक के 265 ई. पू. में गद्दी पर बैठने की बात है, इस सम्बन्ध में भी अनेक मत हैं - + +11631. दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि कनिष्क के राज्यारोहण के संदर्भ में दी गई तिथि भी मात्र एक भ्रान्ति ही है। भारतीय इतिहास की महानतम विभूतियों की तिथियों में यह अन्तर पाश्चात्य विद्वानों द्वारा जान-बूझकर डाला गया है ताकि उनके द्वारा पूर्व निर्धारितकालगणना सही सिद्ध हो जाए। + +11632. बाबू वृन्दावनदास ‘प्राचीन भारत में हिन्दू राज्य‘ में लिखते हैं कि उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य ने ही विक्रम सम्वत की स्थापना 57 ई. पू. में की थी। उनका यह भी कहना है कि- + +11633. भारत के पुरातन साहित्य में, यथा- वेदों, पुराणोंआदि में ही नहीं रामायण, महाभारत और श्रीमद्भागवत् सरीखे ग्रन्थों में भी सरस्वती का स्मरण बड़ी गरिमा के साथ किया गया है। भारत भू के न केवल धार्मिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक ही वरन् ऐतिहासिक आदि परिवेशों में भी सरस्वती का बड़ा महत्त्व दर्शाया गया है। इस नदी के साथ भारतवासियों के अनेक सुखद और आधारभूत सम्बन्ध रहे हैं। इसके पावन तट पर भारतीय जीवन पद्धति के विविध आयामों का विकास हुआ है। इसके सान्निध्य में वेदों का संकलन हुआ है। ऋग्वेद के 2.41.16 में इसका उल्लेख मातृशक्तियों में सर्वोत्तम माता, नदियों में श्रेष्ठतम नदी और देवियों में सर्वाधिक महीयशी देवी के रूप में हुआ है- + +11634. यह उल्लेखनीय है कि प्राचीन भारतीय राजनीतिक मानदण्डों के अनुसार केवल वे ही शासक चक्रवर्ती सम्राट की पदवी पाते थे और वे ही अश्वमेध आदि यज्ञ करने के अधिकारी होते थे, जिनका प्रभुत्व उस समय के ज्ञात कुल क्षेत्र पर स्थापित हो जाता था। प्रकारान्तर से यह प्राचीन भारतीय परिवेश और मानदण्डों के अनुसार केन्द्रीय सार्वभौम सत्ता का ही द्योतक है अतः पाश्चात्यों की उपरोक्त मान्यता तत्त्वतः सही नहीं है। + +11635. भारत की इस समग्रता को और यहाँ के रहने वालों की इस समस्त भूमि के प्रति इस भावना को देखते हुए यह विचार कि भारत का शासन अंग्रेजों के आने से पूर्व समग्र रूप में कभी भी एक केन्द्रीय सत्ता के अधीन नहीं रहा और भारत कभी एक राष्ट्र के रूप में नहीं रहा, वह तो राष्ट्र बनने की प्रक्रिया में है, मात्र एक भ्रान्ति ही है जो जान बूझकर फैलाई गई है और आज भी फैलाई जा रही है। + +11636. पराधीन व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र अपना स्वत्त्व और स्वाभिमान ही नहीं अपना गौरव और महत्त्व भी भूल जाते हैं। भारत ने भी परतंत्रता काल में अपनी उन सभी विशिष्टताओं और श्रेष्ठताओं को विस्मृति के अन्धकार में विलीन कर दिया था, जिनके बल पर वह विश्वगुरु कहलाया था। यहाँ पहले मुस्लिम राज्य आया और फिर अंग्रेजी सत्ता, दोनों ने ही अपने-अपने ढंग से देश पर अपना-अपना वर्चस्व स्थापित करने का प्रयास किया। दोनों ने ही भारत के हर कथ्य और तथ्य को अत्यन्त हेय दृष्टि से देखकर भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का अपमूल्यांकन करकेउसे कम से कम करके आंका। + +11637. भारत का आधुनिक रूप में लिखित इतिहास विजित जाति का इतिहास भारत का आधुनिक रूप में लिखित इतिहास विजित जाति का इतिहास भारत का आधुनिक रूप में लिखित इतिहास विजित जाति का इतिहास वर्तमान में सुलभ भारत का इतिहास अंग्रेजों के शासनमें अंग्रेजों के द्वारा या उनके आश्रय में पलने वाले अथवा उनके द्वारा लिखित इतिहासों को पढ़कर इतिहासज्ञ बने लोगों के द्वारा रचा गया है। जब भी विजेता जातियों द्वारा पराधीन जातियों का इतिहास लिखा या लिखवाया गया है तो उसमें विजित जातियों को सदा ही स्वत्त्वहीन, पौरुषविहीन, विखण्डित और पतित रूप में चित्रित करवाने का प्रयास किया गया है क्योंकि ऐसा करवाने में विजयी जातियों का स्वार्थ रहा है। वे विजित जाति की भाषा, इतिहास और मानबिन्दुओं के सम्बन्ध में भ्रम उत्पन्न करवाते रहे हैं अथवा उन्हें गलत ढंग से प्रस्तुत करवाते रहेे हैं क्योंकि भाषा, साहित्य, इतिहास और संस्कृति विहीन जाति का अपना कोई अस्तित्व ही नहीं होता। अतः पराधीनता के काल में अंग्रेजों द्वारा लिखा या लिखवाया गया भारत का इतिहास इस प्रवृत्ति से भिन्न हो ही नहीं सकता था। + +11638. आज भारत स्वतंत्र है। यहाँ के नागरिक ही देश के शासकहैं। अतः यह अत्यन्त आवश्यक है कि देश के हर नागरिक के मन में भारतीयता की शुद्ध भावना जागृत हो। भारतीयता की शुद्ध और सुदृढ़ भावना के अभाव में ही आज देश को विकट परिस्थितियों में से गुजरना पड़ रहा है। कम से कम आज भारत के प्रत्येक वयस्क नागरिक को यह ज्ञान तो हो ही जाना चाहिए कि वह इसी भारत का मूल नागरिक है, उसके पूर्वज घुमन्तु, लुटेरे और आक्रान्ता नहीं थे। वह उन पूर्वजों का वंशज है जिन्होंने मानव के लिए अत्यन्त उपयोगी संस्कृति का निर्माण ही नहीं किया, विश्व को उदात्त ज्ञान और ध्यान भी दिया है और उसके पूर्वजों ने विश्व की सभी सभ्यताओं का नेतृत्व किया है। साथ ही उन्होंने अखिल विश्व को अपने-अपने चारित्र्य सीख लेने की प्रेरणा भी दी है - + +11639. दोहे + +11640. व्याख्या- रहीमदास जी इस नीति के दोहे के माध्यम से हमें यह बताने का प्रयत्न कर रहे हैं कि जब किसी व्यक्ति की जरूरत होती है तो उसकी महत्ता कुछ और होती है परंतु काम के पश्चात चीजें काफी बदल जाती है। यह उसी प्रकार प्रतीत होता है जैसे कि शादी हो जाने के पश्चात हम दुल्हे के सेहरे को नदी में बहा आते हैं। + +11641. प्रसंग- इस दोहे के माध्यम से कवि हमें यह बताने का प्रयत्न कर रहा हैं कि कुछ चीजें ऐसी है जिन्हें भी छुपा लो वे छुप नही सकती है। + +11642. संदर्भ- रीतिकालीन नीतिश्रेष्ठ कवि रहीमदास की दोहावली पुस्तक के नीति के दोहे से अवतरित है। + +11643. ४- पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन। + +11644. विशेष- *कोयल के माध्यम से व्यक्त किया गया है + +11645. व्याख्या- रहिमदास कहते हैं कि प्रेम का मार्ग अत्यंत कठिन है सभी उसका निर्वाह नहीं कर सकते प्रेम के मार्ग पर निर्वाह करना कठिन वैसा ही है जैसे मॉम के घोड़े पर बैठकर अग्नि में चलना क्योंकि प्रेम मार्ग में अनेक कठिनाइयां आती हैं + +11646. प्रसंग- रहीम दास कहते हैं कि कोई व्यक्ति जन्म से ही बुद्धिमान या सर्वश्रेष्ठ पैदा नहीं होता है + +11647. संदर्भ- रीतिकालीन नीतिश्रेष्ठ कवि रहीमदास की दोहावली पुस्तक के नीति के दोहे से अवतरित है। + +11648. सैंजन अति फूलै तऊ, डार पात की हानि॥ + +11649. ९- रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ, + +11650. विशेष-. + +11651. व्याख्या- रहीम दास जी कहते हैं कि छली कपटी व्यक्ति की तरह प्रेम नहीं करना चाहिए जो ऊपर से अच्छे दिखते हैं और अंदर से उनके दिल विभाजित होते हैं अर्थात कुछ और होता है जैसे खीरा ऊपर से सुंदर हरा भरा दिखाई देता है और अंदर से तीन भागों में बटा होता है | प्रेम में कपट नही होना चाहिये।वह बाहर भीतर से एक समान पवित्र और निर्मल होना चाहिये।केवल उपर से दिल मिलने को सच्चा प्रेम नही कहते। + +11652. प्रसंग- रहीम दास जी बताते हैं कि प्रेम की राह कितनी कठिन होती है केवल निश्छल ब्यक्ति हीं प्रेम में सफल हो पाते हैं + +11653. संदर्भ- रीतिकालीन नीतिश्रेष्ठ कवि रहीमदास की दोहावली पुस्तक के नीति के दोहे से अवतरित है। + +11654. हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/घनानंद: + +11655. टारैं टरैं नहीं तारे कहूँ सु लगे मनमोहन-मोह के तारे।। + +11656. २. उपालन है कहीं कड़वाहट नहीं है + +11657. हीन भएँ जल मीन अधीन कहा कछु मो अकुलानि समानै। + +11658. प्रसंग : इस छंद के माध्यम से घनानंद ने प्रेम की उच्च आदर्श को बताने का प्रयास किया है + +11659. डीठि कौ और कहूँ नहिं ठौर फिरी दृग रावरे रूप की दोही। + +11660. व्याख्या : कविवर घनानंद कहते हैं कि हे प्रिय सुजान! मेरे साथ जो तुम अनीति का व्यवहार कर रही हो वह उचित नहीं है तुम मुझसे पीछा छुड़ाने वाली मत बनो मेरे साथ ऐसे निष्ठुरता का व्यवहार कर तुम अनीति क्यों कर रहे हो? मेरे प्राणरूपी रास्तागीर को केवल तुम्हारे विश्वास का सहारा है और उसी की आशा में अब तक जिंदा है तुम तो आनंदरूपी घन हो जो जीवन का प्रदाता है| हे देव! मोही होकर भी तुम मुझे अपने दर्शनों के लिए इस तरह क्यों तड़पा रहे हो अर्थात मुझे शीघ्र ही अपने दर्शन दे दो + +11661. आनंद आसव घूमरे नैंन मनोज के चोजनि ओज प्रचंडित| + +11662. देखि धौं आरती लै बलि नेकू लसी है गुराई मैं कैसी ललाई| + +11663. प्रसंग : इस पद के द्वारा कवि घनानंद ने होली के अवसर पर फाग खेलती नायिका के सौंदर्य का चित्र उपस्थित किया है गुलाल लगाने से उसके गोर मुख की शोभा कैसी हो गई इसका वर्णन किया है + +11664. ‘घनआनन्द’ अपने चातक कों गुन बाँधिकै मोह न छोरियै जू . + +11665. विशेष १. मुहावरा- (धार-मझधार), नेह के तौरियै जु बाहँ डूबोना + +11666. रोकी रहै न दहै, घनआनंद बावरी रीझ के हाथनि हारियै।। + +11667. २. उदात प्रेम है (उच्च कोटि का प्रेम) + +11668. अचिरजमई मोहि घनआनद यौं, + +11669. प्रसंग : इस कविता में कवि ने पतंग का रूपक बांधकर यह बताया है की सुजान ने पहले तो कवि को प्रेम के मार्ग में बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया अपने आचरण से उसके मन में आशा बधाई, पर फिर अचानक उसके प्रति निष्ठुर हो उदासीन हो गई है और उसकी उदासीनता के कारण कवि की दशा अत्यंत दयनीय हो उठी है + +11670. गिरिधर कविराय
कुंडलियाँ + +11671. कह 'गिरिधर कविराय, सुनो रे मेरे मिंता। + +11672. विशेष :- + +11673. कह गिरिधर कविराय, जुगन ते यह चलि आई, + +11674. विशेष :- + +11675. कह 'गिरिधर कविराय जगत यहि लेखा भाई। + +11676. विशेष :- + +11677. कह 'गिरिधर कविराय, दु:ख कछु टरत न टारे। + +11678. विशेष :- + +11679. कह 'गिरिधर कविराय यहै करु मन परतीती। + +11680. विशेष :- सरल रूप में नीतिगत दोहा + +11681. कह 'गिरिधर कविराय, बडेन की याही बानी। + +11682. विशेष :- + +11683. कह गि रिधरक कविराय, पुरुष तूही तूही बाम + +11684. विशेष :- + +11685. ईरान के सुलैमानाबाद शहर का बादशाह शमशाद लालपोश अपने आलीशान दीवानखाने में आराम कर रहा था। वह मनोरंजन के लिए हाथ में पढ़ने के लिए किताब ले कर उसके पन्ने पलट रहा था. तभी उसके बड़े बेटे ने महल में प्रवेश किया. + +11686. पिता के तरफ से शिकार पर जाने के लिए मंजूरी मिलने पर राजपूत बहुत खुश हुवा और थोड़ी ही देर में भरपूर तैयारी के साथ शिकार के लिए रवाना हो गया. + +11687. उसमे बेहद सुन्दर हंस तैर रहे थे, रंगबिरंगी कमल के फूल उगे हुए थे. उस सरोवर के चारो और घने हरे बड़े-बड़े पेड़ और भी सुन्दर लग रहे थे. और उनमे और भी सुन्दर एक महल चमक रहा था. + +11688. बेटा वह एक बढ़ी दुखद कहानी है। वह बुजुर्ग ने दबे स्वर मे कहा मेरा नाम जहांगीर शाह है मै बेबीलोन साम्राज्य का बादशाह हु। मेरा राज्य बहुत ही समृद्ध था, प्रजा भी सुखी थी। मेरा वैवाहिक जीवन भी काफी सुखी था। + +11689. उसने भी उससे विवाह करने का प्रस्ताव रखा तो फिर से उस राजकन्या ने उसी सवाल को पूछा की “गुल ने सनोबर के साथ क्या किया? मुझे मालूम था वह इसका सही जवाब नहीं दे पायेगा हुवा भी वही परिणामस्वरूप अपना सर कलम कर जीवन समाप्त कर बैठा। + +11690. + +11691. अगर तुम कुछ बताओगे नही तो हमे कैसे पता चलेगा क्या हुवा है, अगर पता चला तो कमसे-कम कोई रास्ता तो निकाल सकते है। + +11692. आखिर में 15 दिन बाद बादशाह ने दिल पे पत्थर रख कर राजपुत्र को मेहेरंगेज़ से भेट करने की इजाजत दे दी। उसी दिन राजपुत्र ख़ुशी के साथ घर के सभी बड़ो से मिलकर उनका आशीर्वाद लेकर निकर पढ़ा राजकन्या मेहेरअंगेज की तरफ। + +11693. बादशाह का सबसे छोटा सातवा बेटा शहजादा अल्माशरूह्बख्ष भी बेहद अस्वस्थ हो गया था। मेहेरंगेजने अपने प्राणप्रिय भाइयो को मार दिया यह सोच कर उसके मन में राजकन्या मेहेरंगेज से बदला लेने का जुनून छा गया। मेहेरंगेज़ के बारे में उसके मन में इतनी नफरत भर गई थी की हरदम वह उससे बदला लेने के बारे में ही सोचता था। + +11694. बादशाह ने इस बारे में कुछ नहीं कहा वह कुछ कहे उससे पहले बादशाह का सर घूमने लगा मानो जैसे उसकी सोचने की शक्ति ही ख़त्म हो चुकी हो। फिर से बादशाह के पुत्र ने रूककर कहा अब्बाजान आप ही सोचिये जवानो के मरने के इस सिलसिले को रोकना होगा की नहीं? बादशाह ने कहा बेटे तुम जो कह रहे हो वह सही है लेकिन… बादशाह कहते कहते रुक गए। + +11695. और फिर दूसरे ही दिन पूरी तैयारी के साथ एक तेजधार तलवार को लेकर शहजादा अपने सफर पर निकल पड़ा। माँ-बाप को प्रणाम करते हुए अपने तेज घोड़े पर बैठा और उसे दौड़ने का आदेश दिया। उसके पीठ की तरफ देखते हुए माता-पिता की आँखों से गिरते आंसू बया कर रहे थे की पुत्रो को खोने का गम क्या होता है। थोड़ी ही देर में शाहजादा इतनी दूर चला गया की माँ-बाप की आँखों से ओझल हो गया। + +11696. शिवभूषण तथा प्रकीर्ण रचना
भूषण + +11697. दावा द्रुम दंड पर, चीता मृगझुंड पर, + +11698. प्रसंग : भूषण ने इस पद को शिवाजी महाराज की वीरता का वर्णन करते हुए लिखा है इसमें उन्होंने शिवाजी महाराज की वीरता का वर्णन किया है + +11699. तेरे चतुरंग के तुरंगनि के रँगे-रज साथ ही उड़न रजपुंज है परन के। + +11700. व्याख्या : भूषण कहते हैं कि शिवाजी की सेना के युद्ध की रणभेरीयों की भयंकर आवाज को सुनकर शत्रुओं के बच्चे समुद्र लांग जाते हैं | चतुरंगी सेना में घोड़ों के शरीर से उड़ने वाली धूल से भयभीत होकर शत्रुओं के होस उड़ जाते हैं| हे दक्षिण के स्वामी शिवाजी जब आप अपने हाथ में धनुष उठाते हो तो शत्रु अपने दुर्ग और किले छोड़ कर भाग जाते हैं| भूषण कहते हैं की मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूं कि जब तुम अपने धनुष से बाण खींचते हैं तो उसके साथ तुर्कों के प्राण भी निकल जाते हैं + +11701. नदी-नद मद गैबरन के रलत है + +11702. संदर्भ : यह पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के वीरकाव्य परंपरा के श्रेष्ठ कवि भूषण द्वारा रचित शिवभूषण से संकलित किया गया है। + +11703. राम नाम राख्यो अति रसना सुघर मैं। + +11704. राजन की हद्द राखी तेग-बल सिवराज, + +11705. विशेष:- + +11706. भूषण भनत महाबीर बलकन लाग्यौ, + +11707. प्रसंग : इस कवित्त में मुगलदरबार में आयोजित शिवाजी की औरंगजेब से भेंट का वर्णन है। शिवाजी को छह हजारी मनसबदारों की पंक्ति में खड़ा किया गया था। इस अपमान को शिवाजी सहन न कर सके और भरे दरबार में क्रोधावेश में बड़बड़ाने लगे। उसी दृश्य का चित्रण इस पद में प्रस्तुत किया गया है। + +11708. राजत अखण्ड तेज छाजत सुजस बड़ो, + +11709. भूषन भनत ऐसो दीन प्रतिपाल को ? + +11710. व्याख्या : अखण्ड तेज से विभूषित, जिनकी कीर्ति चारो ओर फैली है, जिनकी सेना और उसके हाथियों की चित्कार से दिशा-दिशा के राजाओं के हृदय में भय भर जाता है। जिसके प्रताप को सुनकर विधर्मियों के चेहरों की रौनक गायब हो जाती है। ऐसा राजा जो ब्राह्मणों अर्थात सज्जनों के ताप यानी कष्ट को हर कर उनकी पूरी चिन्ता करता है। जो सदैव अपनी सुसज्जित सेना, पैदल सिपाहियों के साथ राज्य की रक्षा के लिए सन्नद्ध रहता है। ऐसे छत्रसाल को छोडक़र भला भूषण अपने मन में किस राजा के लिए सम्मान देख सकता है। भूषण कहते हैं, मेरा मन तो कभी-कभी भ्रम में पड़ जाता है कि साहू (शिवाजी के पौत्र) को सराहूँ या छत्रसाल को। दोनों में तुलना नहीं की जा सकती । अर्थात दोनों अपने-अपने क्षेत्र में अप्रतिम हैं। + +11711. दक्खिन के नाथ को कटक रोक्यो महावाहु ज्यों सहसवाहु नै प्रबाह रोक्यो नेवा को॥ + +11712. + +11713. बगीचे के पास एक बहुत ही सुन्दर कन्या सुन्दर आसन पर बैठी हुयी थी। उसका वह अप्रतिम सौन्दर्य किसी को बी जड़ बना देने वाला था। उस कन्या की बहुत सी सखियाँ थी और वह हर तरीके से सुन्दर कन्या के निखार को और ज्यादा सुन्दर बना रही थी। + +11714. उसे देखते ही वह ठिठक गई और देखती रह गयी। कुछ क्षण बाद वह शर्माकर वहाँ से भाग गई। दासी दिलआराम राजकन्या के पास आकर खड़ी हुई और धीरे से बोली, ‘शहजादिसाहिबा, हमारे बाग़ में कोई जवान घुस आया है। + +11715. बीच-बीचमें शहजादा पागलो की तरह हस भी रहा था और कुछ भी बड़बड़ा रहा था। उसके ऐसे हावभाव को देखकर मेहेरंगेज़ को लगा की वह पागल है उसके बारे में सोचकर मेहेरंगेज़ को दया आने लगी। + +11716. शहजादा कुछ भी बात नही करता यह देखकर वह बोली, हे जवान तुम सच के पागल नहीं हो। कुछ तो बात है जिसके लिए तुमने यह रूप लिया है। हमने तुम्हें पहचान लिया है। ऐसा कौनसा पहाड़ तुमपर टूट पड़ा जिसके लिए पागल बनकर घूम रहे हो। + +11717. उस नगर से एक काला इंसान भाग आया है जिसे मेहेरंगेज़ ने अपने तख़्त के निचे छुपा दिया है उसीने राजकन्या मेहेरंगेज़ को पूरी हकीकत बताई थी और उसीके कहने पर उसने यह बड़ा विचित्र खेल शुरू किया है। + +11718. मैं इस सवाल का जवाब लेकर जल्द ही वाफाक शहर से वापिस लौटूँगा। उसने दिलाराम को आते ही शादी करने का वचन दिया। उसने दी हुयी जानकारी के लिए दासी को धन्यवाद दिया। और वाफाक नगरी की तलाश में निकल पड़ा। + +11719. शहजादे ने नमाज पड़ने का पवित्र कपड़ा जमीन पर बिछाया और घुटने टेककर उसने एकमन से नमाज की प्रक्रिया पूरी की। नमाज पढ़ते ही वह मस्जिद के एक कोने में बैठकर चिंताग्रस्त होकर सोचने लगा की यह वाफाक शहर आखिर होगा किधर। + +11720. फ़क़ीर के मार्गदर्शन के लिए शहजादे ने उनका शुक्रिया अदा किया। रात को वही रुकने के बाद सुबह अल्लाह का नाम लेकर वह पश्चिम दिशा की ओर वाफाक शहर के लिए निकल पड़ा। + +11721. उसी उपवन मे सुन्दर, सोनेरी महल था जो सूरज की किरणों में और भी अधिक आकर्षक लग रहा था। पूरा महल जैसे आनंद का घर लग रहा था। शहजादे ने सोचा कि इस महल में थोड़ी देर के लिए विश्राम कर लूं। फिर आगे के रास्ते पर निकलूँ। + +11722. संवैधानिक सरकार व्यक्तियों को स्वतंत्रता प्रदान करती है तथा लोगों के हितों को प्रभावित करने वाली राज्य की अतिरिक्त सत्ता को प्रतिबंधित करने तथा उस पर अंकुश लगाने का प्रयास करती है। + +11723. संगठित लोगों के एक-दूसरे से व्यवहारों में अंतर्राष्ट्रीय विधि और संधि-बाध्यताओं के प्रति आदर बढ़ाने का + +11724. अनुच्छेद 24 यह प्रावधान करता है कि चौदह वर्ष से कम आयु के किसी बालक को किसी कारखाने या खान में काम करने के लिये नियोजित नहीं किया जाएगा या किसी अन्य परिसंकटमय नियोजन में नहीं लगाया जाएगा। + +11725. अनुच्छेद 20 अपराध के लिये दोषी व्यक्तियों को मनमाने और अतिरिक्त दंड से संरक्षण प्रदान करता है। इस संबंध में तीन व्यवस्थाएँ हैं: + +11726. दोहरी क्षति नहीं (No Double Jeopardy): किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिये एक बार से अधिक अभियोजित और दंडित नहीं किया जाएगा। + +11727. याचिका में तमिलनाडु के शीर्ष नेताओं द्वारा वर्ष 2020-21 के लिये ‘राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा’ (National Eligibility Cum Entrance Test- NEET) में राज्य के लिये आरक्षित सीटों में से 50% सीटें ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ (OBC) हेतु आरक्षित करने के लिये केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की गई थी। + +11728. परंतु सर्वोच्च न्यायालय ने इन अनुच्छेदों की प्रकृति के आधार पर इन्हे मौलिक अधिकार नहीं माना है। इसलिये इन्हें लागू करना राज्य के लिये बाध्यकारी नहीं हैं। + +11729. SC/ST और क्रीमी लेयर. + +11730. सरकार द्वारा किये गए इन संशोधनों को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष कई याचिकों के माध्यम से चुनौती दी गई और वर्ष 2006 का एम. नागराज बनाम भारत सरकार मामला इसमें सबसे प्रमुख माना जाता है। इस मामले पर फैसला देते हुए पाँच सदस्यों वाली पीठ ने सरकारी नौकरियाँ में पदोन्नति पर आरक्षण देने के लिये सरकार के समक्ष तीन शर्तें रखीं: + +11731. संविधान के अनुच्छेद 16(4) के अनुसार, राज्य सरकारें अपने नागरिकों के उन सभी पिछड़े वर्ग के पक्ष में नियुक्तियों या पदों के आरक्षण हेतु प्रावधान कर सकती हैं, जिनका राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। + +11732. आरक्षण की मौजूदा प्रणाली को सही मायने में वर्ष 1933 में पेश किया गया था जब तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैमसे मैकडोनाल्ड ने सांप्रदायिक अधिनिर्णय दिया। विदित है कि इस अधिनिर्नयन के तहत मुसलमानों, सिखों, भारतीय ईसाइयों, एंग्लो-इंडियन, यूरोपीय और दलितों के लिये अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों का प्रावधान किया गया। + +11733. संविधान के बारे में निम्नलिखित 4 बिंदुओं को प्रस्तुत करती है: + +11734. केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि: + +11735. प्र्श्न-उद्येश्यिका(प्रस्तावना)में शब्द 'गणराज्य' के साथ जुड़े प्रत्येक विशेषण पर चर्चा कीजिए।क्या वर्तमान परिस्थितियों में वे प्रतिरक्षणीय है?[I.A.S-2016] + +11736. वृहत् प्रभाव तक चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण खिंचाव और निम्न प्रभाव तक सूर्य का गुरुत्वाकर्षण खिंचाव ज्वार-भाटा के प्रमुख कारण हैं। + +11737. मई के अंतिम सप्ताह में ये आर्द्र हवाएँ पहले अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में और जून के पहले सप्ताह में प्रचंड तूफान सहित केरल तट पर आती हैं। ये भारत में आने वाले दक्षिण-पश्चिम मानसूनी मौसम में एक बड़ा परिवर्तन लाते हैं। + +11738. + +11739. उसने सोने, चांदी, मोती के कीमती जेवर पहन रखे थे इसीलिए वह और भी सुन्दर लग रही थी। शहजादे को आता देख वह उठ बैठी। लतीफबानु ने हँसते हुए उसका स्वागत किया और एक आसान पर बिठाया। शहजादे के आसन पर बैठते ही उसने पूछा- ‘हे इंसान,’तुम कौन हो? और इस प्रदेश से जाने का तुम्हारा मकसद क्या है? + +11740. शहजादे के जाने की बात करते ही लतिफबानु जादूगरनी के आख से पानी बहने लगा और दुःख भरे स्वर में बोली, हे सुन्दर शहजादे, मैं आपके हुस्न पर मोहित हो चुकी हूँ, तब आप वाफाक़ शहर की ओर जाने की जिद त्याग दीजिये। हम दोनोही इस सोनेरी महल में रहकर मजे से पूरा जीवन बिताएंगे। हमारे सुख में यहाँ किसी प्रकार की कोई कमी नही होगी। + +11741. उस कपटी लतिफबानु की तरफ हिरन बना शहजादा देखता रह गया। शहजादा हिरन तो बन गया था लेकिन उसकी सोचने की शक्ति नष्ट नहीं हुयी थी। इसलिए हर क्षण उस महल से जाने के बारे में सोचते हुए वह महल के पास बाग़ में घुमने लगा। एक दिन शहजादे ने देखा की एक बड़ा पेड़ कांटो के ऊपर गिरा हुआ था। इसीलिए उस पेड़ का एक बड़ा दादरा बन चूका था। + +11742. इस बाग़ में एक सुन्दर स्त्रीबैठी हुयी थी। सामने के झरने की मछलियों को वह थाली में से दाने डाल रही थी। वह मधुर आवाज में गाना भी गा रही थी। उसकी आवाज उसके रूप के समान ही मधुर थी। + +11743. अपने आपको फिर से इन्सान के रूप में देखकर शहजादे को बेहद ख़ुशी हुयी। जमिलाबानु से शहजादे ने खुश होकर कहा हे सुन्दर स्त्री आपका एहसान मै जीवन भर नही भूलूंगा आपका बेहद-बेहद शुक्रिया जो आपने मुझे फिर से इन्सान का देह दिलवाया। मैंने तो आस ही छोड़ दी थी कि फिर से इंसानी देह मुझे मिलेगा। जमीलाबानु ने कहा- इश्श इसमें शुक्रिया की क्या बात है आपके नसीब में जमीलाबानु से मुलाकात लिखी हुई थी तो वह होनी ही थी। मुझे प्राप्त मन्त्र शक्तियों का इस्तेमाल मै अच्छे कामो के लिए ही करती हूँ। किसी भी इन्सान या जानवर को संकट से बचाना मैं अपना परम दायित्व समझती हूँ। अगर आपको शुक्रिया करना ही है तो आप अल्लाह का कीजिये जिसने आपकी जमीलाबानु से मुलाकात करवाई। + +11744. थोड़ी देर रुकने के बाद फिर से उसने शहजादे से कहा, ‘मेरे मन में यह भावना जागने के बाद आप पहले इन्सान हैं जो मुझे अच्छे लगे। मैं अपनी लाज दूर रखकर आपसे कहती हूँ कि मै आपसे प्यार करने लगी हूँ। पता नही क्यों मै आपपर मोहित हो चुकी हूँ। अगर आपकी मंजूरी हो तभी आपसे शादी करुँगी। + +11745. एक दिन जमिलाबानु के साथ गुजारने के बाद शहजादा जाने के लिए तैयार होने लगा, तभी जमीला ने उसे एक तीर कमान और धनुष दिया। तीरों से भरे तरकसे के अलावा उसने एक तेज तलवार और उससे भी तेज खंजर भी शहजादे को दिया। वह बोली यह सभी जादू के शस्त्र है और इनके विशेष गुण है। + +11746. वह पत्थर का किला तरमताक बादशाह का है। उसके पास दो लाख से भी ज्यादा दानव हैं। लेकिन आपके पास दिए हुए इन शस्त्रों की वजह से वह आपसे मित्रता करेगा। + +11747. + +11748. थोड़ी ही देर में वहाँ पर ८० फीट का एक बहुत मजबूत और डरावना बाघ आया। अचानक आये बाघ को देखकर शहजादा भी भयभीत हो उठा। लेकिन फिर उसने अपने आपको संभालते हुए शिकार किये मांस को उस बाघ के सामने डाल दिया। अपने आगे मांस के टुकड़े देखकर व्याग्रराज को बेहद ख़ुशी हुयी। क्योकि उसका शिकार करने का काम कम हो गया था। देखते ही देखते उसी क्षण वह बाघ पुरे मांस को चट कर गया। उसके खाने के तुरंत बाद शहजादे ने बाघ के पंजे और मुह को साफ़ किया। शहजादे की सेवा देखकर बाघराज बहुत खुश हुआ। उसने पेट भरकर पानी पिया और भयानक जंगल ख़त्म होने तक शहजादे के साथ रहा। साक्षात बाघराज के साथ होने की वजह से शहजादे को किसी हिंसक जानवर ने छूने की हिम्मत नहीं की। शहजादे ने मन ही मन बाघ को धन्यवाद दिया और आगे बढ़ा। + +11749. सब तरफ शांति होने पर शहजादे ने आराम की साँस ली। लेकिन यह सांस उसकी कुछ ही क्षण की थी। दुसरे ही क्षण उन दानवो का मुखिया विशाल दैत्य ‘तरमताक’ पैर पटकते हुए वहाँ पर प्रकट हुआ। वह विशाल दानव बेहद गुस्से में था। उसके शरीर के सारे बाल गुस्से से खड़े हो गए थे। लाल-लाल गुसैल आखो से घूरते हुए, अपने दांतों को पीसते हुए, जोर जोर से चिल्लाकर वह बोला- ‘हे मुर्ख इन्सान तुमने बहुत समय से मेरे क्षेत्र में तूफान मचा कर रखा है, मेरे राज्य में इतना नुकसान करने वाला तुही एक अकेला इन्सान है। लेकिन इसकी सजा तुम्हे अब भुगतनी होगी। + +11750. + +11751. एक विशाल अजगर अपना मुह खोले बैठा था और सिर्फ अपने सांस लेने भर से ही दूर तक खड़े प्राणियों को अपने जबड़े के अन्दर खींच ले रहा था। वे सबी प्राणी उसका भक्ष बनते जा रहे थे। + +11752. वह शहामृग शहजादे से बोला ‘हे शूर योद्धा’ तुमने उस दृष्ट अजगर को ख़त्म करके हमपर बहुत बड़ा एहसान किया है, वह दुष्ट हमेशा हमारे बच्चो को खा जाता था और हमें नुकसान पहुचता रहता था। पहले तो हमें तुम्हे देखकर अविश्वास हुआ था। उसके लिए हम क्षमा माँगते है। + +11753. आसमान में उनका सफ़र काफी दिनों तक चलता रहा। नीचे महासागरो में नीला पानी भरा हुआ था। शहजादे के मन में भी अब थोड़ी घबराहट होने लगी थी की यदि गलती से शहामृग के पैर से वह छूट जाए तो सीधे समंदर के अन्दर समा जाएगा। लेकिन सौभाग्य से एसा कुछ नही हुआ। बहुत दिन के बाद आखिर वह सफलता के साथ महासागरो के पार किनारे पर आ ही गए। + +11754. वाफाक शहर वास्तव में एक बहुत सुंदर और प्रभावशाली शहर था। वहाँ के मस्जिदों की लंबी मिनारें और ऊंचे मेहराब जैसे आसमान को छू रहे थे। शहर कि सडके खुली और साफ थी। उस पर छिड़का हुआ पानी ख़ुशबु से भरा था। बाजार कई मूल्यवान वस्तुओं से भरा लग रहा था।सड़क पर चलने वाले लोगों के चेहरे बहुत खुश और उत्साही थे। कुल मिलाकर, यह एक सुखी, संतुष्ट और समृद्ध शहर था। + +11755. शहजादे का प्यार से बोलने का तरीका बादशाह को बहुत अच्छा लगा। उसका दिया हुआ निंबू के आकार वाला नीला मोती भी खूबसूरत था। उसके तेज से आँखे मूंद रही थी, बादशहाने उस अप्रतीम रत्न को ख़ुशी ख़ुशी स्विकार किया। सनोवर ने उससे कुशल मंगल पूछकर उसे रात को खाने का निमंत्रण दिया। + +11756. उसका वो सवाल सुनते ही बादशाह का ख़ुशी से भरा चेहरा दुखी हो गया। वह व्यथित होकर कहने लगा हे युवा आनन्द के समय में मुझसे ये सवाल पुछ कर तूने मुझे दुःखी क्यू किया? और फिर बादशाह बहुत क्रोधित हो गया। + +11757. पास ही एक खंबे से एक जवान युवती को जंजीर में जखड़ कर रखा गया था। वह लड़की केतकी के जैसी सुंदर थी। उसकी हिरन के जैसी आंखे रो रही थी। उसकी सुंदर काया बहुत ही कृश हो गयी थी। उसका सुंदर नाजुक बदन सूखे हुए गुलाब की तरह हो गया था। बीच-बीच में कुछ सैनिक उसे चाबुक से फटके मारते थे। युवती के शरीर से लहू की धार निकल रही थी और वह विवशता में चिल्लाती थी। + +11758. आखिर में मैं तुझे मृत्यु दंड देने वाला हूँ इसीलिये तुझे यह बताने में कोई हर्ज नहीं है। बादशाह कहने लगा। तो सुन। एकबार मै हमेशा की तरह शिकार के लिए अकेले ही जंगल में गया था। दिन गर्मी के थे, दोपहर को मैं पानी के लिये व्याकुल हो गया और मैं पाणी की खोज में भटकने लगा। + +11759. यह आज्ञा सुनते ही मैंने उसके पिता से कहा, ‘महाराज मुझसे गलती हो गई है इसिलिए आप जो मुझे सजा दे रहे है वो योग्य ही है, बस आप मुझे आग में डालने से पहले तेल लगा दिजीये जिससे मैं पापी तत्काल जल जाऊंगा।! + +11760. + +11761. एक दिन रातको मैं नींद का नाटक करने लगा। आधीरात होते ही गुल मेरे किनारे से उठी। उसने अच्छे कपडे,अलंकार और सुगंधित गंध लगा के श्रुंगार किया और वो महल से बाहर गयी। मैं भी पीछे पीछे बाहर आया। + +11762. मुझे ये दृश्य देखके बहोत गुस्सा आया, जिस नाजुक गुल को मैं भूलसे भी कभी दुखाता नहीं और जिसपे मैंने खुदसे ज्यादा प्यार किया था वही गुल इस हवस के पुजारी के चाबुक के फटके चुपचाप सहन कर रही थी। उसने मेरे प्रेम की प्रतारणा की थी और वो व्यभिचारी स्त्री अपने यारके संग रममाण हो गयी थी। स्त्रिचरित्र बहोत ही अगाध रहता है यही सही है। + +11763. उनके हाथों में और पैरों में घोड़ो को बांध दिया और चारो दिशावो में उनको घुमाया। इस वजह से उन शिद्दो के शरीर फट गये, वह मांस मैंने गिधडो को खिलाया। लेकिन उनमें से एक शिद्दी कहा भाग गया ये पता नहीं चला। + +11764. और फिर थोड़ी ही देर में उसने अपने आँसू पोंछे और कहने लगा, ‘अब तुम्हारे मन का समाधान हुवा ना? अब तुम मरने के लिये तैयार हो जावो! + +11765. + +11766. वहा से वो तरमताक राक्षस की सुंदर राजकन्या के पास गया वहा उसने उसका खुशीसे स्वागत किया। शहजादेने उसे मिली हुई अनेको जवाहिर और चीजा उसके स्वाधीन की औऱ वो उसे लेकर आगे निकला रास्ते में उसने बाघो के राजा की भी भेट ली।उसके लिए उसने रास्ते में अच्छी शिकार की थी। + +11767. तैमूस बादशहा के राजधानी का शहर अब दिखने लगा था। शहजादेके आखो में ख़ुशी के आंसू आ गये उसके ध्येयसिद्धि का क्षण नजदीक आ रहा था। + +11768. ‘बेटे अगर ऐसा हुवा तो अच्छा ही है। तेरा दामाद कहकर स्वीकार करने में मुझे आनंद ही होगा। ‘लेकिन जहापनाह मेरी एक शर्त है। शहजादा कहने लगा। राजकन्या के खास महल में शहर के खास लोगो को बुलाया जाये। उन सब के सामने ही मैं आपके सवाल का जबाब दूंगा। + +11769. तुम्हे इस संबंध में पूरी जानकारी है क्या? + +11770. वह काला शिद्दा बाहर आते ही मेहरंगेज शरमिंदा हो गई उसने अपना मुंह ढक लिया। बादशहा तो अपने बेटी के इस कृत्य से शरमा कर काला हो गया। वहा उपस्थित सभी के तरफ देख शहजादा मेहरंगेज से कहने लगा,’ हे राजकन्या, ठीकसे सुन गुल ने सनोबर के साथ क्या किया’? + +11771. ‘बेटा, अब उसके ऊपर तुम्हारा ही अधिकार है बादशहा निचे के स्वर में केहने लगा।उसके कृत्य की मुझे घिन आ रही है! + +11772. बेटा मुझे मालूम है इसने बेहद बड़ा पाप किया है, लेकिन जो पाप इसने अपनी मर्जी से नहीं किया वह कोई दंड देने लायक नहीं होगा। मुझे लगता है अब तुम्हे इससे विवाह कर लेना चाहिए। + +11773. केंद्र सरकार. + +11774. विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव की जाँच प्रथम स्तर पर लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति द्वारा की जाती है। + +11775. संवैधानिक उपबंध, संसद द्वारा निर्मित अनेक विधियाँ, दोनों सदनों के नियम, संसदीय परंपरा, न्यायिक व्याख्या। + +11776. यह कृत्य सदन द्वारा दंडनीय होता है। + +11777. भारत सरकार (कार्यकरण) नियमावली, 1961 के नियम 12. + +11778. आमतौर पर सरकार द्वारा प्रमुख निर्णयों के लिये नियम 12 का उपयोग नहीं किया जाता है। + +11779. 23 नवंबर, 2019 की सुबह 5 बजकर 47 मिनट पर भारत सरकार के राजपत्र में महाराष्ट्र से राष्ट्रपति शासन को हटाए जाने की अधिसूचना प्रकाशित हुई। इसका अर्थ है कि राष्ट्रपति ने इसके लिये ज़रूरी दस्तावेज़ पर इस समय से पहले ही हस्ताक्षर किये होंगे। + +11780. राजस्थान और असम में विधानपरिषद के गठन के प्रस्ताव संसद में लंबित हैं। + +11781. दिसंबर 2019 में राज्य सरकार ने राज्य की तीन नई राजधानियों, कार्यकारी राजधानी-विशाखापत्तनम, विधायी राजधानी- अमरावती एवं न्यायिक राजधानी- कुरनूल, का प्रस्ताव पारित किया था। इसके पीछे राज्य सरकार का तर्क है कि इससे राज्य के तीनों क्षेत्रों उत्तरी तट, दक्षिणी तट और रॉयल सीमा का समान विकास संभव हो सकेगा। + +11782. जुलाई 2004 में राज्य में पुनः विधानपरिषद के गठन का प्रस्ताव दिया गया और 10 जनवरी, 2007 को संसद की सहमति के पश्चात् 30 मार्च, 2007 को राज्य में पुनः विधानपरिषद का गठन हुआ। + +11783. भारत में न्यूनतम वेतन सबसे कम वेतन प्राप्त करने वाले श्रमिकों की सुरक्षा के लिये एक पारंपरिक फ्लोर वेज (Floor Wage) के रूप में कार्य नहीं करता है। + +11784. रबर और प्लास्टिक उत्पाद> इलेक्ट्रॉनिक और ऑप्टिकल उत्पाद> परिवहन उपकरण> बिजली, गैस और जल आपूर्ति> लकड़ी और लकड़ी के उत्पाद। + +11785. IIP के तहत विनिर्माण क्षेत्र का भारांश 77.63%, खनन क्षेत्र का 14.37% और विद्युत क्षेत्र का भारांश 7.99% है। + +11786. इस बढ़ोतरी के बावजूद, गिनी सूचकांक द्वारा मापी गई मौजूदा वेतन असमानता अंतर्राष्ट्रीय मानकों से बहुत अधिक है और यह देखा गया है कि यह असमानता नियमित श्रमिकों के बीच बढ़ी है, जबकि अनौपचारिक श्रमिकों के बीच घटी है। + +11787. वर्ष 1976 में यह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का एक स्वायत्त संस्थान बन गया। इसे राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो नाम दिया गया। + +11788. बचत एवं विकास सकारात्मक रूप से सहसंबंधित हैं लेकिन यह सकारात्मक सहसंबंध विकास और निवेश के बीच मौजूद सहसंबंध की तुलना में अधिक मज़बूत है। + +11789. दक्षिणी राज्य, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र जनांकिकीय संक्रमण में पहले से इन स्थितियों में आगे है, (1) कुल गर्भधारण दर पहले ही प्रतिस्थापन स्तर से नीचे है, जनसंख्या वृद्धि का मुख्य कारण पूर्व गतिशीलता है, (2) 10 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या 60 वर्षीय या अधिक है, और (3) कुल एक-तिहाई जनसंख्या 20 वर्ष से कम आयु की है। + +11790. डेटा को एकीकृत करने की पहल + +11791. नज़ सिद्धांत' व्यावहारिक विज्ञान,राजनीतिक सिद्धांत तथा व्यावहारिक अर्थशास्त्र की एक अवधारणा है। यह समूहों या व्यक्तियों के व्यवहार और उनके निर्णय लेने के तौर-तरीकों में सकारात्मक परिवर्तन हेतु तरीकों की विवेचना करती है। + +11792. कर अपवंचन मुख्यतः कर संबंधी मनोदशा अर्थात् किसी देश में कर का भुगतान करने वाले करदाताओं की आंतरिक प्रेरणा द्वारा संचालित होता है। कर संबंधी मनोदशा स्वयं मुख्य रूप से दो धाारणात्मक कारकों द्वरा संचालित होती हैः (1) ऊर्ध्वाधार निष्पक्षता, अर्थात् मैं करों का जो भुगतान करता वह सरकार से सेवाओं के रूप में मुझे मिलने वाले लाभ के रूप में वापस प्राप्त हो जाता है और (2) क्षैतिज निष्पक्षता, अर्थात् समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा भुगतान किए गए करों में अंतर। + +11793. मुद्रास्फीति. + +11794. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित हेडलाइन मुद्रास्फीति पिछले पाँच वर्षों से लगातार घट रही है। वर्ष 2018-19 में हेडलाइन CPI मुद्रास्फीति घटकर 3.4 प्रतिशत रही जो वर्ष 2017-18 के दौरान 3.6 प्रतिशत, वर्ष 2016-17 में 4.5 प्रतिशत, वर्ष 2015-16 में 4.9 प्रतिशत तथा वर्ष 2014-15 में 5.9 प्रतिशत थी। + +11795. संस्कृत के प्रख्यात काव्यशास्त्रियों में से भरतमुनि, भामह , रुद्रट , वामन , भोज , कुंतक , मम्मट , हेमचंद्र और विश्वनाथ ने उक्त परिपाटी का परिचालन करते हुए ग्रंथ आरंभ में काव्य प्रयोजन की चर्चा की है। इन मतो को ऐतिहासिक क्रम में विवेचन कर हम काव्य के प्रयोजन को स्पष्ट कर सकते हैं। + +11796. अर्थात नाटक की रचना से केवल रचनाकार को ही श्रेय नहीं मिलेगा बल्कि उसके आश्रय सामाजिक लोगों को भी उसका फल मिलेगा। यह नाटक लोगों को धर्म, आयुष्य, हित और बुद्धि को बढ़ाने वाला तो होगा ही, इसके साथ साथ लोगों को उत्तम, मध्यम और अधम लोगों की पहचान करने में सहायक तथा हितकारी उपदेश देने वाला भी होगा। + +11797. यहाँ पर भामह ने चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति को काव्य रचना का कारण बताकर कवि के लिए अन्य सांसारिक जिम्मेदारियों के निर्वाह को उसी में समाहित कर दिया है। इन परियोजनाओं को गिनाते समय भामह के सामने सम्भवतः भरत का आदर्श रहा हो और शायद यही कारण है कि इन दोनों आचार्यों द्वारा प्रस्तुत काव्य प्रयोजनों में प्रत्यक्ष समानता दृष्टिगत हो जाता है । भरत के धर्म्य और यशस्य विशेषण भामह के यहां क्रमशः धर्म और कृति रूप में देखते हैं । भरत का बुद्धिविवर्धना विशेषण भामह के शब्दों में कलाओं में वेक्षण्य रूप से स्वीकृत किया जा सकता है । + +11798. वामन. + +11799. कुन्तक. + +11800. काव्य धर्मादि का साधन और उपाय है। साधन कवियों के लिए और उपाय पाठकों के लिए। काव्य को पढ़ना भी धर्म माना जाता है। + +11801. अर्थात काव्य का प्रयोजन है यश और धन की प्राप्ति , व्यवहार का ज्ञान , शिवेतर (दु:ख , का नाश , तुरंत परम आनंद अर्थात रस की प्राप्ति तथा कांतासम्मति उपदेश। काव्य रचना का कारण व्यावहारिकता के धरातल पर अधिक व्यापक रूप में (उपयोगिता की नज़र से) पेश करते हुए मम्मट मानते हैं कि काव्य से यश, धन, व्यवहार ज्ञान, अमंगल का नाश, तुरंत आनंद की प्राप्ति और कांता (प्रेमी, प्रेयसी) की तरह उपदेश मिलता है। + +11802. निष्कर्ष. + +11803. मोहम्मद गोरी :- + +11804. इसने ब्लॉकचेन आधारित कॉफी ई-मार्केटप्लेस का आरंभ किया है। किसान इस पायलट प्रोजेक्ट के माध्यम से बाज़ारों के साथ पारदर्शी ढंग से जुड़ सकेंगे, परिणामस्वरूप उन्हें उचित मूल्य की प्राप्ति होगी। ब्लॉकचेन की सहायता से कॉफी उत्पादकों और खरीदारों के बीच की दूरी कम होगी और किसानों को अपनी आमदनी दोगुनी करने में मदद मिलेगी। + +11805. समग्र वेदिका पहल तेलंगाना सरकार ने विभिन्न सरकारी सेवाओं हेतु नागरिक विवरणों को ट्रैक करने के लिये अपना सॉफ्टवेयर विकसित किया है, जिसे के नाम से जाना जाता है। समग्र वेदिका पहल 2017 में बनाई गई तथा यह राज्य को लगभग 25 विभागों से नागरिक डेटा को सत्यापित करने या जाँचने की अनुमति देता है। + +11806. उपर्युक्त दो खंडों के अलावा सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) के एक प्रस्ताव के माध्यम से गठित राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (NSC) तथा एक स्वायत्त भारतीय सांख्यिकी संस्थान भी है, जिसे संसद के एक अधिनियम द्वारा राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान घोषित किया गया है। अतः कथन 2 सही है। + +11807. फेम इंडिया (भारत में हाइब्रिड एवं विद्युत वाहनों को त्वरित ढंग से अपनाना एवं विनिर्माण) योजना देश में इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों को प्रोत्साहन देने की पहल है। + +11808. हिंदी साहित्य का इतिहास (आदिकाल और मध्यकाल)/सिद्ध साहित्य: + +11809. छायावादोत्तर हिंदी कविता: + +11810. बाबू गुलाब राय के अनुसार— "आलोचना का मूल उद्देश्य कवि की कृति का सभी दृष्टि कोणों से आस्वाद कर पाठकों को उस प्रकार के आस्वाद में सहायता देना तथा उनकी रुचि को परिमार्जित करना एवं साहित्य की गति विधि निर्धारित करने में योग देना।" + +11811. उक्ति ओज अनुप्रास वरन, अस्थिति अति भारी॥ + +11812. हिंदी की विभिन्न विधाओं की तरह आलोचना का विकास भी प्रमुख रूप से आधुनिक काल की देन है। साहित्य की अन्य विधाओं की तरह आलोचना का भी संबंध यथार्थ बोध से हुआ और यह प्रतीत होने लगा कि रस किसी छंद में नहीं है बल्कि मानवीय संवेदना के विस्तार में है लेकिन यहाँ यह स्पष्ट आर देना आवश्यक है कि हिन्दी आलोचना के जन्म और विकास में संस्कृत के काव्यशास्त्रों के साथ-साथ पाश्चात्य आलोचना का योगदान रहा किन्तु हिंदी आलोचना की संकल्पना के सन्दर्भ में यह भी उल्लेखनीय है, जिसकी ओर विश्वनाथ त्रिपाठी ने संकेत किया है कि "हिंदी आलोचना पाश्चात्य की नक़ल पर नहीं, बल्कि अपने साहित्य को समझने-बूझने और उसकी उपादेयता पर विचार करने की आवश्यकता के कारण जन्मी और विकसित हुई।" + +11813. (ग) इतिहास ग्रन्थों में कवि-परिचय के साथ उनके महत्त्व का प्रतीपादन करनेवाली आलोचना के अंतर्गत शिवसिंह सेंगर कृत ‘शिवसिंह सरोज’ तथा जार्ज ग्रियर्सन का इतिहास ग्रंथ आदि उल्लेखनीय हैं। + +11814. द्विवेदी युग. + +11815. इस युग के आलोचना के स्वरूप के विषय में आ० शुक्ल का मानना था— “यद्यपि द्विवेदी युग में विस्तृत समालोचना का मार्ग प्रशस्त हो गया था, किन्तु वह आलोचना भाषा के गुण-दोष विवेचन, रस, अलंकार आदि की समीचीनता आदि बहिरंग बातों तक ही सीमित थी।” + +11816. उनके सहवर्ती आलोचकों में विश्वनाथ मिश्र ने 'हिन्दी साहित्य का अतीत' और 'बिहारी की वाग्विभूति', गुलाब राय के 'सिद्धान्त और अध्ययन', 'काव्य के रूप' और 'नवरस' जैसे ग्रन्थों के द्वारा आलोचना को पुष्ट किया। + +11817. हिंदी आलोचना को जो प्रौढ़ता और सुव्यवस्था आचार्य शुक्ल ने प्रदान किया था, उसे आगे ले जाने का चुनौतीपूर्ण कार्य नन्द दुलारे वाजपेयी, हजारी प्रसाद द्विवेदी और डॉ नगेन्द्र की महान त्रयी ने किया। नन्द दुलारे वाजपेयी के 'आधुनिक साहित्य', 'नया साहित्य नए प्रश्न' तथा 'कवि निराला' आदि महत्त्वपूर्ण ग्रंथ हैं। + +11818. प्रगतिवादी आलोचना. + +11819. उपरोक्त पड़ावों के अलावा हिन्दी आलोचना संरचनावादी आलोचना, सर्जनात्मक आलोचना, समाजशास्त्रीय आलोचना तथा समकालीन हिन्दी आलोचना दृष्टियों से भी गुज़रकर जाती है। इस दृष्टि से शिवकुमार मिश्र, कर्णसिंह चौहान, मधुरेश, निर्मला जैन, परमानंद श्रीवास्तव, विश्वनाथ त्रिपाठी, अजय तिवारी एवं रेवती रमण का नाम उल्लेखनीय है। + +11820. सामाजिक यथार्थवादी दृष्टि. + +11821. अनिमेष अवितवन, काल-नयन? + +11822. का यह कथन सत्य है की -- + +11823. उसको सताता है + +11824. "धुन खाए शहतीरों पर की बारहखड़ी विधाता बाँचे + +11825. क्रांति का आह्वान. + +11826. "कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ + +11827. उसकी पोषक श्वासोच्छवास, विश्व के प्रांगण में घहराए, + +11828. पावक जग घर आवे नुतन, + +11829. "कागज की आजादी मिलती। + +11830. सामाजिक कुरीतियों, परंपराओं, विषमताओं को साहित्य में उभारने हेतू प्रगतिवादी कवियों ने व्यंग्य का प्रयोग किया है। इन कवियों के व्यंग्य में सामाजिक सुधार की भावना निहित है। उनके व्यंग्य विषय में पूंजीपति, विलासी, व्यक्तित्व, उनके शोषण की प्रवृत्ति, राजनीति, झूठी लिडरशिप, आर्थिक सामाजिक विषमता को लक्ष्य किया गया है। सर्वहरा के दुःख, दैन्य का वर्णन भी किया है। निराला की 'भिखारी' कविता इसी प्रकार की है। 'कुकुरमुत्ता' के 'अबे ! सुन बे ओ गुलाब' में आया गाली का स्वर विषमता के प्रति आक्रोश भाव को व्यक्त करता है। कवि दिनकर + +11831. मालिक जब तेल-फुलेलो पर, पानी सा द्रव्य बहाते हैं। + +11832. "तनिक भी पीर नहीं + +11833. सृष्टि की निर्मिति नहीं बल्की उत्पत्ती हुई है, विकास हुआ है यह विचार रखकर मार्क्स ने ईश्वर की सत्ता, आत्मा, पुनर्जन्म, भाग्यवाद का कड़ा विरोध किया। ईश्वर के नाम पर होनेवाले शोषण को उजागर किया। धर्म को आफिम कहकर उसका भी नशा उतारा। मनुष्य और मनुष्यता को श्रेष्ठ मानकर उन्होंने सामाजिक वर्ग, वर्ण,जात विषमता को मानवीयता पर कलंक + +11834. खंडित और कुरुपा + +11835. व आधी रात को आ + +11836. पर क्या दोनों इन्सान नहीं + +11837. किसी भी प्रकार की गुलामी में होनेवाला शोषण मानव जाति के लिये घोर अभिशाप है। यह नहीं होना चाहिए ऐसा मार्क्सवादी कवि चाहता है। समाजवादी व्यवस्था की स्थापना के लिये जनता में उसके प्रति सहानुभूति निर्माण करने के लिये उसका करूण गान कविता में आया है। दुसरे अर्थ में वह उन्हें सचेत भी करता है अपनी दयनीय दशा से उन्हें अवगत कराता है। चंद्रकिरण सौनरिक्सा कहती है- + +11838. यदि वह है तो सबके ही साथ है। + +11839. या कल-कारखानों में काम करनेवाले श्रमिक, मालिकों के लिए सभी प्रकार के सुख-सुविधा के साधन जुटाकर देते है और स्वयं उससे दूर रहते है। भुख से बेहाल, फटेहाल किसान-मजदूर का चित्र कविता में आया है-- + +11840. तू चाहे तो पल में कर दे, + +11841. धर्म धीरज प्राण खोकर, हो रही अनरीति बर्बर + +11842. बुझ जाती तो आश्चर्य न था + +11843. फिर विवश उठी वह कंगालिन + +11844. फटती न किसी की छाती है। + +11845. नरपाल पालते कुत्तों को + +11846. धन के नाजायज वितरण से एक लिये श्रम जर्जर काया + +11847. भूल मत जो पाई खुशबू रंगों आब + +11848. प्रगतिवाद ने नारी को भी पुरुषसत्ताक, ईश्वरी, तथा धर्म व्यवस्था के कारण शोषित माना है। वह भी केवल विलास की वस्तु के रुप में प्रयुक्त हुई है। उसकी नैतिकता का मानदंड उसका शरीर रहा है परंतु कवि पंत ने ही उसके स्वतंत्र व्यक्तित्व को महत्व देकर उसे प्रतिष्ठा दिलायी है- + +11849. अमर प्रेम ही बंधन उसका वह पवित्र तन-मन से।" + +11850. उसमें कहीं पर भी उच्छृखलता, स्वेच्छाचार, यौनाचार, कुंठा नहीं है। डॉ० नामवरसिंह ने कहा है- ऐसा नहीं है कि प्रगतिशील कवि को प्रेम संबंधी दुःख-दर्द नहीं सताता, सताता है। वह भी आदमी है और इस व्यवस्था में उसे जहाँ आर्थिक कष्ट है, वहाँ उन आर्थिक कष्टों के कारण अथवा उनके अलावा अन्य प्रकार की भी मानसिक व्याथाएँ होती है। घोर निर्धनता में उसे अपनी प्रिया का 'सिंदूर-तिलकित भाल' याद आता है।... संपूर्ण प्रगतिवादी कविता में इस 'सिंदूर-तिलकित भाल' की शूचिता के दर्शन नहीं हो सकते...परंतू स्वच्छंद प्रेम वर्णन में संयम और + +11851. फूल उपेक्षित कोई फूला + +11852. गूँज किसी उर में उठती है + +11853. छबि के शर से दूर भगा दी! + +11854. नहीं है बल्कि राष्ट्रीय आजादी के क्रांती गीत भी इन कवियों ने गाये है। सन १९४२ की क्रांति, आजाद हिंद फौज, नौसैनिक विद्रोह भी उनकी कविता में स्वर पाये है। जिसमें उल्लेखनिय है, निराला की 'बेला', जगन्नाथप्रसाद 'मिलिंद' की 'अगस्त क्रांति का गीत', १९४२ के क्रांती पर महेंद्र भटनागर की 'जयहिंद', नरेद्र शर्मा की 'आदेश' और एक गीत- जयहिंद, आजाद हिंद फौज पर महेन्द्र भटनागर की 'बदलता युग', सुमन की 'आज देश की मिट्टी बोल उठी है', शमशेर बहादुर सिंह की 'शहीद कहीं हुए है' आदि नौ सैनिक विद्रोह पर लिखी गई है। + +11855. नहीं है वस्त्र + +11856. अभी-अभी लड़कर सोये है + +11857. अंतर्राष्ट्रीयता की भावना भी कवियों ने अभिव्यक्त की है। वह अपने दुःख को + +11858. या नरेंद्र शर्मा कहते है- + +11859. समसामयिक समस्याओं का अंकन. + +11860. बापू मेरे ... + +11861. ... रो-रो करके आँख लाल कर ली धूर्तों ने + +11862. देख लो लंदन मुझे पेरिस मुझे तुम देख लो + +11863. स्वार बनेंगे लुट और हत्या के ये व्यवसायी। + +11864. है जवानी', रांगेय राघव की 'सेतुबंध' जैसी कविताएँ उल्लेखनिय है। समसामयिक समस्या चित्रण में कवियों ने व्यंग्य, हास-परिहास का उपयोग किया है। नागार्जुन की 'कागज की आजादी मिलती ले लो दो-दो आने में' बड़ी प्रसिध्द पंक्तियाँ है। + +11865. वाणी मेरी चाहिये क्या तुम्हें अलंकार॥ + +11866. और लोकगीतों के साथ मुक्तक, अतुकांत का प्रयोग किया है। प्रगतिवादी काव्य में पहले पहल गाँव का खुरदुरापन, खिलंडदपन था बाद में उसमें कोमलता और सरसता का संचार हुआ फिर भी अधिकांशत: वह कठोर, व्यंग्यात्मक, विद्रोही, अनगढ़ रूपों को लेकर ही चली है। इन कवियों ने सर्वजन की सर्वसम्मत भाषा का प्रयोग किया है। + +11867. धूली-धूसर तुम्हारे ये गात... + +11868. बाँस था कि बबूल? + +11869. क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार? + +11870. धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य! + +11871. और होतीं जब कि आँखे चार + +11872. बहुत दिनों के बाद + +11873. अब की मैं जी-भर सुन पाया + +11874. मौलसिरी के ढेर-ढेर से ताजे–टटके फूल + +11875. बहुत दिनों के बाद + +11876. बहुत दिनों के बाद + +11877. + +11878. कैसे मरा तू? + +11879. खड़ खड़ खड़ खड़ हड़ हड़ हड़ हड़ + +11880. "महाराज! + +11881. थाना धमदाहा,बस्ती रुपउली + +11882. ऐसी किसी व्याधि का पता नहीं हमको + +11883. तदनंतर शांत-स्तंभित स्वर में प्रेत बोला- + +11884. सरलतापूर्वक निकले थे प्राण + +11885. रह गए निरूत्तर + +11886. दोलती कलगी छरहरे बाजरे की। + +11887. नहीं कारण कि मेरा हृदय उथला या कि सूना है + +11888. मगर क्या तुम नहीं पहचान पाओगी: + +11889. लहलहाती हवा मे कलगी छरहरे बाजरे की? + +11890. या शरद की सांझ के सूने गगन की पीठिका पर दोलती कलगी + +11891. और मैं एकान्त होता हूं समर्पित + +11892. छायावादोत्तर हिंदी कविता/नदी के द्वीप: + +11893. सब गोलाइयाँ उसकी गढ़ी हैं। + +11894. हम बहेंगे तो रहेंगे ही नहीं। + +11895. द्वीप हैं हम! यह नहीं है शाप। यह अपनी नियती है। + +11896. भूखंड से जो दाय हमको मिला है, मिलता रहा है, + +11897. यह स्रोतस्विनी ही कर्मनाशा कीर्तिनाशा घोर काल, + +11898. मात,उसे फिर संस्कार तुम देना। + +11899. सुख की स्मिति कसक-भरी, निर्धन की नैन-कोरों में काँप गयी, + +11900. पर कुछ और रहा जो कहा नहीं गया। + +11901. अन्धकार में सागर के किनारे ठिठक गया:नत हूँ + +11902. शायद केवल इतना ही:जो दर्द है + +11903. एक आदमी + +11904. वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है + +11905. छायावादोत्तर हिंदी कविता/प्रौढ़ शिक्षा: + +11906. खुल जाता है—‘आऽऽ!’ + +11907. और यह उस आदमी का भविष्य है जिसका + +11908. जो खोए हुए साहस की तलाश में + +11909. टूटते-टूटते, इस तरह तन गया है + +11910. पेड़ में गड़ी हुई कील से + +11911. जिसे मैंने कल कहा था + +11912. उसी दिन उघर गई थी + +11913. गँवार थे + +11914. अपने पुरखों का रंगीन बलगम + +11915. उन्हें तुम्हारी भूख पर भरोसा था + +11916. ‘वह सच्चा पृथ्वीपुत्र है’ + +11917. लहलहाती हुए फ़सलें + +11918. यह जो बुरा हाल है + +11919. जिसे सकारते हुए हर आदमी झिझकता है + +11920. सकता है + +11921. तुम्हारी पसलियों पर + +11922. मिलती है + +11923. अकड़ो + +11924. और यह रात है, सिर्फ़ रात + +11925. + +11926. सुन्दर दीखने लगता है। + +11927. दबे पाँव झाडियों में चलता चीता, + +11928. जब भी + +11929. छायावादोत्तर हिंदी कविता/बढ़ई और चिड़िया: + +11930. उसकी आरी कई बार लकड़ी की नींद + +11931. गिलहरी के पूँछ की हरकत महसूस हो रही थी + +11932. चिड़िया के दाने को + +11933. वह चीर रहा था + +11934. इस लिये लकड़ी के अंदर ज़रूर कहीं होगा + +11935. और चीख रही थी। + +11936. वे पूरे विश्वास से देखते हैं पानी को + +11937. चल देते हैं कहीं और + +11938. थोड़ा-सा आसमान + +11939. अपने साथ ले आते हैं पुआल की गंध + +11940. फिर बह जाते हैं उनके मवेशी + +11941. फूल-पत्ते + +11942. वे हर कीमत पर अपनी चिलम के छेद में + +11943. पानी पर तैरती हुई + +11944. हो जाते हैं बेचैन + +11945. पानी के पार तक पहुंचती रहे + +11946. पानी के सामने + +11947. हर बार कुछ टूटता है + +11948. कोहरे से ढँकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं + +11949. काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे? + +11950. क्या किसी भूकंप में ढह गई हैं + +11951. कितना भयानक होता अगर ऐसा होता + +11952. काम पर जा रहे हैं + +11953. जो विरोध में बोलेंगे + +11954. धकेल दिये जाएंगे कला की दुनिया से बाहर + +11955. सबसे बड़ा अपराध है इस समय निहत्थे और निरपराधी होना + +11956. और शुरू कर देती है अपना काम + +11957. रहने के लायक’ + +11958. उनके पेट में चूहे कूदते हैं + +11959. तन जाता है फूलकर उनके पीछे + +11960. कभी-कभी कहती हैं- + +11961. और वहाँ लग्गी लगाकर + +11962. छोटे-छोटे कई घर + +11963. ले जाते हैं अपने घर! + +11964. नमक दुःख है धरती का और उसका स्वाद भी! + +11965. गड़ जाता है शर्म से + +11966. शाही नमकदान हैं + +11967. कितना भारी पड़ता है उनको + +11968. दुनिया में होने न दीं उन्होंने क्रांतियाँ, + +11969. रहेगा नमक- + +11970. छायावादोत्तर हिंदी कविता/बेजगह: + +11971. हमारे संस्कृत टीचर। + +11972. अपनी पहली कक्षा में ही। + +11973. राम, आ बताशा खा! + +11974. राम, देख यह तेरा कमरा है! + +11975. जिनका कोई घर नहीं होता– + +11976. कंघी में फँस कर बाहर आए केशों-सी + +11977. लेकिन, कभी भी तो नेलकटर या कंघियों में + +11978. छोटी-सी पंक्ति हूँ– + +11979. मुश्किल से उड़ कर पहुँची हूँ + +11980. छायावादोत्तर हिंदी कविता/सौंदर्यबोध: + +11981. शायद पेट भर जाए : + +11982. हाथ-पैर पटको, + +11983. मगर शोख चेहरों के। + +11984. शायद संवेदना मिल जाए : + +11985. आज की दुनिया में + +11986. पहचानी जा सकती है। + +11987. प्रबन्ध नहीं कर लेंगें। + +11988. + +11989. चूल्हा कुछ नहीं बोलता + +11990. फिर एक पोटली खोलती है। + +11991. बच्चे आँगन में + +11992. चौके में खोई हुई औरत के हाथ + +11993. चलता है और चलता रहता है + +11994. और तभी मुँह दुब्बर + +11995. पेटभर + +11996. और अब + +11997. वक़्त घड़ी से निकलकर + +11998. दो बच्चे टा टा कहते हैं + +11999. दफ़्तर जाने लगती है + +12000. + +12001. + +12002. All of the site's content is covered by the [https://creativecommons.org/licenses/by-sa/3.0/ Creative Commons Attribution-ShareAlike 3.0 license]. Some of the first books were completely original and others began as text copied over from other sources of textbooks found on the Internet. Contributions remain the property of their creators, while the copyleft licensing ensures that the content will always remain freely distributable and reproducible. See copyright>Special:MyLanguage/Copyright|copyrights for more information. + +12003. Note: This list includes closed wikis. The following Wikibooks projects are closed: aa, ak, als, as, ast, ay, ba, bi, bm, bo, ch, co, ga, gn, got, gu, kn, ks, lb, ln, lv, mi, mn, my, na, nah, nds, ps, qu, rm, se, simple, su, sw, tk, ug, uz, vo, wa, xh, yo, za, zh-min-nan, zu (44 total). This list also includes locked wikis, such as ang and ie. + +12004. नवीनतम आंकड़ों के लिए पृष्ठ को अद्यतित करना आवश्यक है। यह किसी के भी द्वारा निम्नलिखित प्रक्रिया से अद्यतित किया जा सकता है- + +12005. 23 अक्तूबर-मोल दिवस (Mole Day) + +12006. किसी भी पदार्थ के 1 मोल में मौजूद कणों (परमाणुओं, अणुओं या आयनों) की गणना 6.022 × 1023 के मान से की जाती है। + +12007. 24 जुलाई 1860 को ब्रिटिश शासन द्वारा प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश शासन को हुए नुकसान की भरपाई के लिये सर जेम्स विल्सन द्वारा भारत में पहली बार आयकर पेश किया गया था। + +12008. 17 जून को ‘विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस’ + +12009. वर्ष 2019 के लिये इस दिवस की थीम ‘Gender and oceans’ है।विश्व महासागर दिवस मनाए जाने का प्रस्ताव वर्ष 1992 में रियो डी जेनेरियो में आयोजित 'पृथ्वी ग्रह' नामक फोरम में लाया गया था। + +12010. 7 जून, 2019 को पहली बार विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस (World Food Safety Day) मनाया गया।संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा दिसंबर 2018 में खाद्य और कृषि संगठन के सहयोग से इसे अपनाया गया था। + +12011. यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल लगभग साढ़े 8 लाख लोग मलेरिया की वज़ह से मारे जाते हैं। इनमें से 90% अफ्रीका के सहारा क्षेत्र में मारे जाते हैं। + +12012. इस अवसर पर होम्‍योपैथी के क्षेत्र में असाधारण कार्यों को मान्‍यता देने के उद्देश्‍य से होम्‍योपैथी से संबंधित आयुष पुरस्‍कार, जिसमें लाईफ टाइम अचीवमेंट, बेस्‍ट टीचर, युवा वैज्ञानिक और सर्वश्रेष्‍ठ अनुसंधान शामिल हैं, प्रदान किया जाएगा। + +12013. इस दिवस को मनाने का उद्देश्य लोगों को भारतीय जहाजरानी उद्योग की गतिविधिओं के साथ-साथ भारत की अर्थव्यवस्था में इसकी अहम भूमिका से रूबरू कराना है + +12014. + +12015. छायावादोत्तर हिंदी कविता से संबंधित यह सहायकपुस्तक पश्चिम बंग राज्य विश्वविद्यालय से संबद्ध महाविद्यालयों के स्नातक हिंदी (प्रतिष्ठा) के तृतीय सत्रार्द्ध के पाठ्यक्रम को ध्यान में रखकर बनाई गई है। अन्य विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय के विद्यार्थी भी सामग्री से लाभान्वित हो सकते हैं। इससे संबंधित पाठ्य-पुस्तक के लिए आप छायावादोत्तर हिंदी कविता भी देख सकते हैं। + +12016. भाषा विज्ञान और हिंदी भाषा/लेखक: + +12017. के भीतरी + +12018. समझ में आ न सकता हो + +12019. खड़े हैं मौन औदुंबर। + +12020. जंगली हरी कच्ची गंध में बसकर + +12021. बावड़ी की इन मुँडेरों पर + +12022. लाल फूलों का लहकता झौंर - + +12023. बावड़ी की उन गहराइयों में शून्य + +12024. तन की मलिनता + +12025. घिस रहा है देह + +12026. फिर भी मैल!! + +12027. बुन रहीं + +12028. की भीतरी दीवार पर + +12029. झुककर नमस्ते कर दिया। + +12030. वंदना की चाँदनी ने + +12031. और तब दुगुने भयानक ओज से + +12032. छंदस्, मंत्र, थियोरम, + +12033. नया व्याख्यान करता वह + +12034. गहराइयों से उठ रही ध्वनियाँ, अतः + +12035. है बन रहा + +12036. सुनते हैं करोंदों के सुकोमल फूल + +12037. जो बावड़ी में अड़ गई। + +12038. मोच पैरों में + +12039. गहन किंचित सफलता, + +12040. की दृष्टि के कृत + +12041. लाल चिंता की रुधिर-सरिता + +12042. उद्विग्न भालों पर + +12043. मारा गया, वह काम आया, + +12044. प्रासाद में जीना + +12045. समीकरणों के गणित की सीढ़ियाँ + +12046. भटका!! + +12047. सत्य की झाईं + +12048. महत्ता के चरण में था + +12049. उसकी महत्ता! + +12050. औ' बाहरी दो कठिन पाटों बीच, + +12051. अपना गणित करता रहा + +12052. यह क्यों हुआ! + +12053. उसकी वेदना का स्रोत + +12054. तुम मशाल जलाओ। + +12055. भेडिये के करीब जाओ + +12056. फ़िर उन्हें जंगल के बाहर निकल + +12057. और तुम? + +12058. उसका वंस बढ़ने लगेगा। + +12059. इतिहास के जंगल मे + +12060. और तुम भी + +12061. छाप-तिलक तज दीन्हीं रे, तो से नैना मिला के। + +12062. दोहे
. + +12063. देख मैं अपने हाल को राऊ, ज़ार - ओ - ज़ार। + +12064. पिया पिया कहती मैं पल भर सुख न चैन।। + +12065. हम तो बाबुल तोरे बागो की कोयल + +12066. जो मांगे चली जाऊं, लखि बाबुल मोरे। + +12067. महल तले से डोलिया जो निकली, + +12068. हम तो चले परदेश, लखी बबूल मोरे। + +12069. हम को दी है परदेश, लखि बाबुल मोरे। + +12070. प्यार भरी मैने अम्मा जो छोड़ी + +12071. बहुत कठिन है डगर पनघट की + +12072. दौर झपट मोरी मटकी - पटकी। बहुत कठिन है - + +12073. हिंदी के विविध रूप
+ +12074. २. अनौपचारिक भाषा-- वह भाषा जो सहज रूप से बोली जाती हो, जिसे आम बोलचाल की भाषा भी कहा जा सकता है, इसमें व्याकरण त्रुटियां भी हो सकती हैं। उदाहरण- घरों में बोली जाने वाली भाषा। + +12075. राष्ट्रभाषा. + +12076. १. आदिकाल (संवत 1050-1375) + +12077. मध्यकाल + +12078. राजभाषा से अभिप्राय है सरकारी कामकाज में प्रयोग होने वाली भाषा, राजभाषा के तीन प्रमुख अंग होते हैं- २. अदालतें, और
३. सरकार
इन तीनों अंगों का संबंध पूरे देश से है। सामान्यतः राजभाषा का प्रयोग अंग्रेजी के ऑफिशियल भाषा के प्रतिशत के रूप में किया जाता है। + +12079. १. संघ की राजभाषा हिंदी होगी- संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी और सभी प्रशासनिक कार्यों में उसका प्रयोग होगा। + +12080. संपर्क भाषा से तात्पर्य है वह भाषा जो दो भिन्न भाषा-भाषी अथवा एक भाषा की दो भिन्न उप भाषाओं के मध्य अथवा अनेक बोलियों बोलने वालों के मध्य संपर्क का माध्यम होती है तथा जिसके माध्यम से विचारों का आदान-प्रदान होता है। इस दृष्टि से भिन्न-भिन्न बोली बोलने वाले अनेक वर्गों के बीच हिंदी एक संपर्क भाषा है और अन्य कई भारतीय क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न भाषाएं बोलने वालों के बीच संपर्क भाषा है। + +12081. संचार शब्द अंग्रेजी के 'कम्युनिकेशन' शब्द के पर्याय के रूप में प्रस्तुत है, अर्थात संदेश देना, सूचना देना, संप्रेषित करना तथा अपनी बातें दूसरों तक पहुंचाना। इस प्रकार संप्रेषण की पूर्ण क्रिया संचार है जिसके द्वारा मानव अपने विचारों और मंतव्यों का आदान प्रदान करता है। और इसी संचार माध्यमों में प्रयोग होने वाली भाषा संचार भाषा कहलाती है। + +12082. रेडियो में मुख्यतः आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग होता है। चूंकि इस माध्यम में प्रापक, पुनः खबरों को पढ़ नहीं सकता अथवा देख नहीं सकता इसलिए वक्ता ऐसी भाषा का प्रयोग करता है, जिससे की प्रापक तक उचित संदेश सरलता से पहुंच सके + +12083. + +12084. मै सिर्फ आपको बारे मे कविता करना + +12085. उस आग तक चले + +12086. वह पक रही और पकना + +12087. मुझे विश्वास है + +12088. मेरे हाथ खोजने लगते है + +12089. मुझे हर बार वह पहले से ज्यादा स्वादिष्ट लगी है   + +12090. सिर्फ आग की ओर इशारा कर रहा हूँ + +12091. आप देखेगे दिवारे धीरे-धीरे + +12092. संस्कृत के काव्यशास्त्रीय उपलब्ध ग्रंथों के आधार पर भरतमुनि को काव्यशास्त्र का प्रथम आचार्य माना जाता है । उनका समय लगभग ४०० ईसापूर्व से १०० ई के मध्य किसी समय माना जाता है। + +12093. नाट्यशास्त्र नाट्यविधान का एक अमर विश्वकोश है। नाटक की उत्पत्ति , नाट्यशाला , विभिन्न प्रकार के अभिनय , नाटकीय सन्धियाँ , संगीत शास्त्रीय सिद्धांत आदि इसके प्रमुख विषय है। इनके अतिरिक्त ६ठे, ७वें और १७वें अध्याय में काव्यशास्त्रीय अंगों - रस , गुण , दोष , अलंकार तथा छंद का भी निरूपण हुआ है । नाटक नायिका भेद का भी इस ग्रंथ में निरूपण है। + +12094. (३)दण्डी. + +12095. उद्भट कश्मीरी राजा जयापीड़ के सभा - पण्डित थे । इनका समय नवीं शती का पूर्वाद्ध है । इनके तीन ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं - काव्यालंकारसारसंग्रह , भामहविवरण और कुमारसम्भव । इनमें से केवल प्रथम ग्रन्थ उपलब्ध है , जिसके ६ वर्गों में अलंकारों के लक्षण - उदाहरण प्रस्तुत किये गये हैं । अलंकारों के स्वरूप - निर्देश में प्रायः भामह का आश्रय लिया गया है । कुछ अलंकारों के उदाहरण स्वरचित कुमारसम्भव काव्य से भी लिये गये हैं । उद्भट अलंकारवादी आचार्य थे । + +12096. (७)आनन्दवर्धन. + +12097. राजशेखर विदर्भ ( बरार ) के निवासी थे और कन्नौज के प्रतिहारवंशी महेन्द्रपाल और महीपाल के राजगुरु थे । इनका जीवन - काल दसवीं शती का प्रथमार्द्ध माना गया है । काव्यशास्त्र से सम्बद्ध काव्यमीमांसा नामक इनका एक ग्रन्थ प्रसिद्ध है , जो १८ भागों ( अधिकरणों ) में विभक्त है , पर अभी तक इसका ' कविरहस्य ' नामक एक ही भाग प्राप्त हो सका है , जिसे सर्वप्रथम गायकवाड़ ओरण्टियल सीरीज , बड़ौदा ने , और फिर बिहार - राष्ट्रभाषा - परिषद् ने हिन्दी - अनुवाद - सहित प्रकाशित कराया । + +12098. (१२)भोजराज. + +12099. विश्वनाथ कदाचित् उड़ीसा के निवासी थे । इनका समय १४वीं शती का पूर्वाद्ध है । इनकी ख्याति ' साहित्यदर्पण ' नामक ग्रन्थ के कारण हुई है । विश्वनाथ ने मम्मट , आनन्दवर्धन , कुन्तक , भोजराज आदि के काव्य - लक्षणों का खण्डन प्रस्तुत करने के बाद रस को काव्य की आत्मा घोषित करते हुए काव्य का लक्षण निर्धारित किया है । इन्होंने मम्मट के काव्यलक्षण का घोर खण्डन किया है , किन्तु फिर भी अपने ग्रन्थ की अधिकांश सामग्री के लिए ये मम्मट के ही ऋणी हैं । आश्चर्य तो यह है कि रसको काव्य की आत्मा मानते हुए भी इन्होंने आनन्दवर्धन तथा मम्मट के समान रस को ध्वनि के एक भेद ' असंलक्ष्यक्रमव्यंग्य ' ध्वनि का अपर नाम माना है । + +12100. हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन)/कबीर के दोहे और पद: + +12101. इससे पहले आंध्र प्रदेश और तेलंगाना तथा महाराष्ट्र और गुजरात के राशन-कार्डों की अंतर-राज्यीय पोर्टेबिलिटी शुरू की जा चुकी है। + +12102. ‘सार्वजनिक वितरण प्रणाली का एकीकृत प्रबंधन’(IMPDS)उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय द्वारा लागू एक नई योजना है। + +12103. सामान्य अध्ययन२०१९/भारत में महिला सशक्तिकरण के प्रयास: + +12104. योजना के माध्यम से महिलाओं को उच्च शिक्षा हेतु प्रोत्साहित करने के लिये अभिभावकों की काउंसिलिंग भी की जाएगी। + +12105. महत्त्व:-ग्रामीण महिलाएँ और लड़कियांँ कृषि, खाद्य सुरक्षा, पोषण, भूमि, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन तथा अवैतनिक घरेलू देखभाल जैसे कार्यो में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती हैं। + +12106. उद्देश्य: + +12107. पहली बार अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस का आयोजन वर्ष 2012 में किया गया था। प्रथम अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस की थीम “बाल विवाह की समाप्ति” (Ending Child Marriage) थी। + +12108. उपरोक्त के अलावा राज्य सरकार ने राष्ट्रीय खेल पुरस्कार जीतने वाले 83 खिलाड़ियों को विभिन्न सरकारी विभागों में नियुक्त करने का भी निर्णय भी लिया है। + +12109. इस योजना के अंतर्गत उद्यमशीलता की क्षमता विकसित करने के लिये लगभग 5,000 बुनकरों, कारीगरों और व्यापारियों को शामिल किया गया है। + +12110. वन स्टॉप सेंटर में एक ही छत के नीचे पीडि़त महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक वैधानिक एवं विभिन्न प्रकार की सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं। + +12111. ज़िला स्तर पर OSC के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये मीडिया द्वारा प्रचार अभियान भी चलाए जाते हैं। + +12112. राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण के इस 68वें दौर के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में घरेलू कार्यों में शामिल महिलाओं का अनुपात वर्ष 2004-05 के 35.3 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2011-12 में 42.2 प्रतिशत हो गया। + +12113. ऐसी परियोजनाओं के लिये 60% (उत्तर पूर्वी राज्यों के लिये 90%) की वित्तीय सहायता सरकार द्वारा प्रदान की जाएगी। + +12114. 66 वर्षीय चंद्रिमा शाहा को भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (Indian National Science Academy- INSA) का अध्यक्ष बनाया गया है। इनका कार्यकाल जनवरी 2020 से शुरू होगा। + +12115. कामिनी रॉय(Kamini Roy) + +12116. जीवन के अंतिम वर्षों में वह बिहार के हज़ारीबाग ज़िले में रहने आ गई थीं। वहीं वर्ष 1933 में उनका निधन हुआ। + +12117. राजनीतिक सक्रियता + +12118. तमिलनाडु सरकार ने राज्य के सरकारी अस्पतालों को प्रत्येक वर्ष इनकी जयंती के अवसर पर ‘अस्पताल दिवस’ (Hospital Day) मनाने की घोषणा की है। + +12119. इसके तहत गर्भवती महिलाओं को सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर उनकी गर्भावस्था के दूसरी और तीसरी तिमाही की अवधि (गर्भावस्था के 4 महीने के बाद) के दौरान प्रसव पूर्व देखभाल सेवाओं का न्यूनतम पैकेज प्रदान किया जाता है। + +12120. WhatsApp ने वुमन ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया अवार्ड्स 2019 के लिये नीति आयोग के साथ सहयोग किया है। + +12121. इस मंच को भारत में उद्यमी बनने की इच्छा रखने वाली महिलाओं के साथ-साथ स्थापित महिला उद्यमियों को बढ़ावा एवं सहयोग देने, कार्य को आगे बढ़ाने तथा उनके उपक्रमों को विस्तार देने में मदद करने के लिये चलाया जा रहा है। + +12122. ♦ पहचान (Identification) + +12123. CII फाउंडेशन (CIIF) की स्थापना 2011 में CII द्वारा की गई थी, जिसमें समावेशी विकास के लिए उद्योग को सूक्ष्म करके विकासात्मक और धर्मार्थ गतिविधियों की एक विस्तृत श्रृंखला शुरू की गई थी। CIIF सीमांत समुदायों और दाताओं के बीच एक सार्थक सेतू प्रदान करके समावेशी विकास की दिशा में काम करता है, विशेष रूप से CSR पर रणनीतिक मार्गदर्शन प्रदान करके और उच्च प्रभाव कार्यक्रमों को विकसित और प्रबंधित करके। CIIF के विषयगत क्षेत्रों में शामिल हैं: बचपन शिक्षा; महिला सशक्तिकरण; जलवायु परिवर्तन लचीलापन; आपदा राहत और पुनर्वास। + +12124. हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/कव्वाली: + +12125. इस कव्वाली में खुसरो अपने गुरु की ही वंदना कर रहे हैं, जिनके कारण ही उनका परमात्मा से मिलन हुआ। वे कहते हैं कि + +12126. 1. खड़ी बोली है। + +12127. 6. अमीर निर्गुणोपासक हैं। + +12128. 11. 'प्रेम-बूटी'-रूपक अलंकार है। + +12129. बटी = बूटी। + +12130. मोहे = मुझे। + +12131. + +12132. विद्यापति पदावली
विद्यापति/ + +12133. हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन)/सूरदास के पद: + +12134. प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि अमीर खुसरो द्वारा रचित हैं। यह उनके 'गीत' शीर्षक कविता से अवतरित हैं। + +12135. इतना ही नहीं मैं तो तुम्हारे घर में खूटी से बंधी रहने वाली गाय थी। एक ही जगह पर खड़ी रहती थी। तुम जहां मुझे लाते-ले जाते थे चल देती थी। मैंने लाख की बनी गुड़िया को भी छोड दिया। सहेलियाँ भी छूट गयीं जिनके साथ मैं खेला करती थी। जिस दिन मेरी पालकी घर के नीचे से निकली थी, उस दिन मेरा विछोह देखकर तो मेरे भाई ने भी पछाड़ खाई थी। वह बेहोश हो गया था। वह बहुत रो रहा था। जब आम के पेड़ के नीचे से मेरी पालकी निकली थी तो कोयल ने मुझे पुकारा था। वह भी दुखी थी। अब तू क्यों रोती है ? हमारी कोइलिया? हम तो अब पराए हो गयी हैं। हम विदेश की हो गई हैं। तुम भी तो नंगे पैर मेरे पालकी के पीछे भागते हुए आ रहे थे। मेरा प्रिय! मेरी डोली लेकर जा रहा था। तुम उसे देख रहे थे। + +12136. 4. प्रसाद-गुण है। + +12137. काहे - क्यों । + +12138. तोरे - तेरे। + +12139. सहेलियाँ - संगी-साथी ,दोस्त। + +12140. आवै - आना। + +12141. प्रस्तुत 'दोहा' खड़ी बोली के प्रवर्तक आदिकालीन कवि अमीर खुसरो द्वारा रचित हैं। + +12142. गोरी सोवे सेज पर...रैन भई चहुं देस।। + +12143. 3. गुरु निज़ामुद्दीन औलिया की वंदना की है। + +12144. 8. 'सौवे सेज' अनुप्रास अलंकार है। + +12145. 13. आध्यात्मिकता है। + +12146. रैन - रत + +12147. प्रस्तुत 'दोहा' खड़ी बोली के प्रवर्तक आदिकालीन कवि अमीर खुसरो द्वारा रचित हैं। + +12148. खुसरो रैन सुहाग की...दोउ भए एक रंग॥ + +12149. पी - प्रियतम (ब्रह्म)। + +12150. संग = साथ में। + +12151. प्रसंग. + +12152. अमीर खुसरो कहते हैं कि हम जीवात्माएँ सभी अवगुणों से भरी हैं और आप गुणवान हैं। संसार में अपनी दुर्दशा देखकर मेरा फूट-फूटकर रोने को दिल करता है। अमीर खुसरो कहते हैं कि संसार में आकर ही, अवगुणों से, माया से घिरकर मैं बुरी तरह हार चुका हूँ। अपनी दशा बिगड़कर देख आज मुझे सत्य का आभास हुआ है। + +12153. 4. लाक्षणिकता है। + +12154. 9. आध्यात्मिकता वर्णित है। + +12155. हाल = दशा। + +12156. हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/दोहे/(4)चकवा चकवी दो जने उन मारे न कोय।: + +12157. व्याख्या. + +12158. 2. दोहा छंद है। + +12159. 7. विरह-21भावना है। + +12160. 12. अद्वैत-भावना है। + +12161. करतार = कर्ता अर्थात ईश्वर। + +12162. सन्दर्भ. + +12163. सेज सूनी देख के रोऊ...पल भर सुख न चैन॥ + +12164. इसमें प्रतीकात्मकता है। + +12165. शब्दार्थ. + +12166. रोऊ - रोना। + +12167. प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि अमीर खुसरो द्वारा रचित हैं। यह उनके 'गीत' से उद्धत है। + +12168. विशेष. + +12169. राखे - रखना। + +12170. पनिया = पानी। + +12171. पनघट = जहाँ से पानी भर कर लाना होता है, कुआँ। + +12172. लिंग समाज और विद्यालय/विद्यालयी नामांकन में लैंगिक पक्षपात: + +12173. तुलसी कृत रामचरितमानस का अयोध्याकांड
+ +12174. हिंदी साहित्य का इतिहास (रीतिकाल तक)/हिन्दी का प्रारम्भिक रूप: + +12175. भाषा के लिए हिन्दी शब्द का प्रयोग भी फारस और अरब से ही होता है। 6 वीं शताब्दी के ईसवी के कुछ पूर्व से ही ईरान में “जवान-ए-हिन्दी” प्रयोग भारत के भाषाओं के लिए होता रहा है। भारत के फ़ारसी कवि ऑफी ने सर्वप्रथम सन् 1228 ई० में “हिंदवी” का प्रयोग समस्त भारतीय भाषाओं के लिए न करके भारत की (संभवतः मध्य देश की) देशी भाषाओं के लिए किया। + +12176. रेख़्ता का फ़ारसी में अर्थ ' गिरा हुआ ' या गिरकर बनाया हुआ देर है। रेख़्ता नाम 18 वीं शताब्दी से प्रारंभ होकर 19 वीं शती के मध्य तक उर्दू के लिए चलता रहा। + +12177. आर्थिक भूगोल: + +12178. प्रमुख त्योहार. + +12179. हॉर्नबिल पक्षी के नाम पर इस महोत्सव का नामकरण किया गया है तथा इस महोत्सव की शुरुआत वर्ष 2000 में की गई थी। + +12180. ब्रह्मपुत्र नदी की सौंदर्यता को नमामि ब्रह्मपुत्र उत्सव के रुप में प्रदर्शित किया जाता है। जिसका आयोजन असम सरकार द्वारा किया जाता है। यह पाँच दिवसीय उत्सव है जिसमें असम की कला, विरासत और संस्कृति को प्रदर्शित किया जाता है। + +12181. महोत्सव का मुख्य आकर्षण याक नृत्य और अजी-लामू नृत्य हैं। + +12182. इस त्यौहार में 'गुनुका पूलू' और 'तांगेदु पूलू' जैसे फूलों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त बांटी, केमंती और नंदी-वर्द्धनम जैसे अन्य फूलों का भी प्रयोग किया जाता है। + +12183. एक सप्ताह तक मनाये जानेवाले इस त्योहार में तीरंदाजी, पोलो और मुखौटा नृत्य को शामिल किया जाता है। + +12184. इस नृत्य में सामान्यतः पारंपरिक तिब्बती वाद्ययंत्रों का उपयोग करते हुए भिक्षुओं द्वारा संगीत के साथ नृत्य किया जाता है। + +12185. इस महोत्सव के दौरान (क) जनजातीय कार्य मंत्रालय की वन धन योजना के अंतर्गत मूल्यवर्द्धन और विपणन योग्य खाद्य एवं वन उत्पादों और (ख) ट्राइब्स इंडिया के आपूर्तिकर्ताओं के रूप में पैनल में शामिल कारीगर और शिल्पकार तथा लद्दाख की महिलाओं की पहचान की जाएगी। + +12186. यह हुगली ज़िले के श्रीरामपुर में आयोजित होने वाली महेश रथ यात्रा है, जिसे दुनिया का दूसरा सबसे पुराना रथ उत्सव कहा जाता है। + +12187. तीनों देवताओं के लिये प्रत्येक वर्ष नए रथों का निर्माण किया जाता है।प्रत्येक रथ में लकड़ी के चार घोड़े जुड़े होते हैं। + +12188. ‘वलसा देवरालु’ आंध्र प्रदेश के चित्तूर ज़िले में मनाया जाने वाला सदियों पुराना एक त्योहार है। + +12189. संस्कृति या स्मारक संबंधी सरकारी प्रयास. + +12190. संग्रहालय को अलीपुर जेल में स्थापित किया जाएगा जिसे अब एक विरासत भवन में बदला जा रहा है। + +12191. वर्ष 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध (Bangladesh liberation War) के बाद यह बांग्लादेश के रूप में यह एक स्वतंत्र राष्ट्र बना। + +12192. उत्तराखंड में 1-1 बार आयोजन किया गया है। + +12193. इसमें भारतीय संस्कृति के विभिन्न पहलुओं जैसे- लोक संगीत, नृत्य, हस्तशिल्प एवं पाक-कला के जरिये भारत की सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित किया जाएगा। + +12194. भारतीय विश्व संस्कृति संस्थान(Indian Institute of World Culture- IIWC) + +12195. इस संस्थान की पत्रिका 'बुलेटिन' नि:शुल्क वितरित की जाती है, जिसमें लेख और महत्त्वपूर्ण घटनाओं सूची होती है। + +12196. Kargil Vijay Diwas + +12197. इस युद्ध में भारतीय सेना के बहुत से जवान शहीद और घायल हुए। सेना के अदम्य साहस एवं बलिदान के सम्मान में यह दिवस मनाया जाता है। + +12198. विरासत-ए-खालसा को पंजाब और सिख धर्म के समृद्ध इतिहास तथा संस्कृति के स्मरण के लिये बनाया गया था जिसका उद्घाटन नवंबर 2011 में किया गया था। + +12199. योजना के बारे में + +12200. उद्देश्य: + +12201. स्‍मारकों को दिव्यांगों के अनुकूल बनाना। + +12202. कारगिल विजय दिवस की 20वीं वर्षगाँठ की थीम 'रिमेंबर, रिजॉइस एंड रिन्यू' (‘Remember, Rejoice and Renew’) को जीवंत करती है। + +12203. विजय मशाल + +12204. केंद्रीय लोक निर्माण विभाग ने तीन मूर्ति भवन परिसर में ‘भारत के प्रधानमंत्रियों पर संग्रहालय’ को पूरा करने की समय-सीमा 1 मार्च, 2020 निर्धारित की है। + +12205. हाल ही में चीन ने भारत से तिब्बती गुरु दलाई लामा के उत्तराधिकारी को मान्यता नहीं देने का आग्रह किया। + +12206. दलाई लामा + +12207. + +12208. काव्य लक्षण का अर्थ , असाधारण अर्थ ,किसी काव्य का विशेष धर्म जो बाहरी अन्य प्रकारों से काव्य का भेद दर्शाता है । वास्तव में एक और + +12209. "मृदुललित पदाढ्यं गूढ़ं शब्दार्थहीनं + +12210. भामह. + +12211. कहकर शब्द और अर्थ की काव्यानुकूल अनेक विशेषताओं की व्याख्या की है तथा चारूतापूर्ण शब्द और अर्थ के उपादान पर ही बल दिया है । इन्होंने शब्दार्थ को काव्य का शरीर बताकर ध्वनि को उसकी आत्मा माना है । + +12212. आचार्य मम्मट. + +12213. आचार्य पंडितराज जगन्नाथ. + +12214. + +12215. भामह. + +12216. दंडी के अनुसार काव्यहेतु - + +12217. वामन. + +12218. संस्कृत - साहित्यशास्त्र में हेमचन्द्र ही सम्भवतः प्रथम आचार्य हैं जिन्होंने उक्त तीनों हेतुओं में से केवल प्रतिभा को , जो कि व्युत्पत्ति और अभ्यास के द्वारा परिष्कृत होती है , काव्य का हेतु माना हैं। + +12219. आनन्दवर्द्धन. + +12220. मम्मट. + +12221. मम्मट के उक्त कथन में पूर्वाचार्यों द्वारा प्रस्तुत अधिकतर काव्य - हेतुओं को स्पष्टत : अथवा प्रकारान्तर से स्थान मिल गया है । + +12222. उपर्युक्त जिन आचार्यों ने काव्यहेतु संबंधी मत व्यक्त किए हैं उनमें दो प्रकार के विचार दिखाई पड़ते हैं। एक मत के अनुसार प्रतिभा, व्युत्पत्ति तथा अभ्यास सम्मिलित रूप से काव्य के कारण हैं। इस विचार-वर्ग में रुद्रट तथा मम्मट का स्थान प्रमुख है। दूसरे मत के अनुसार काव्य का कारण केवल प्रतिभा है और व्युत्पत्ति एवं अभ्यास उसके संस्कारक या सहायक तत्व हैं। इस वर्ग के अंतर्गत राजशेखर तथा जगन्नाथ जैसे आचार्य प्रमुख हैं। + +12223. चित्र लिपि. + +12224. जैसे- सूर्य देवता, गर्मी का दिन और प्रकाश। + +12225. वर्णनात्मक लिपि के संबंध में भोलानाथ तिवारी का मानना है कि यह एक ऐसी ध्वन्यात्मक लिपि है जिसमें लिपि चिन्ह ध्वनि की लघुतम इकाई को व्यक्त करते हैं। इस प्रकार यह लिपि का सबसे विकसित रूप है। + +12226. सामान्य अध्ययन२०१९/सेवा क्षेत्रक: + +12227. बकाया कर में माफी के तहत करदाता को बकाया कर देने का अवसर प्रदान किया जाएगा और करदाता कानून के अंतर्गत किसी भी अन्य प्रभाव से मुक्त रहेगा। + +12228. इससे पूर्व जुर्माने की यह राशि मात्र 1 लाख रूपए ही थी। + +12229. संस्थान के अध्यक्ष की भूमिका केंद्रीय रक्षा मंत्री तथा उपाध्यक्ष की भूमिका अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा निभाई जाती है। + +12230. यह विशेष ट्रेन कालका और शिमला स्टेशन के बीच अगले एक साल के लिये 24 दिसंबर,2020 तक चलेगी। + +12231. 137 चोटियों में से 51 उत्तराखंड में, 24 सिक्किम में, 47 हिमाचल प्रदेश में और 15 जम्मू-कश्मीर में हैं। + +12232. लगभग 700 करोड़ रुपए की इस परियोजना पर निर्माण कार्य इस वर्ष के अंत तक शुरू होने की संभावना है जिसके पूरा होने में लगभग 42 महीने लगेंगे। + +12233. रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण एशिया में भारत को इस सबसे प्रतिस्पर्द्धी यात्रा-पर्यटन अर्थव्यवस्था का दर्जा हासिल है। + +12234. विश्व यात्रा एवं पर्यटन प्रतिस्पर्द्धात्मकता सूचकांक में शामिल 140 देशों में स्पेन को शीर्ष स्थान प्राप्त हुआ है, उसके बाद क्रमशः फ्राँस, जर्मनी और जापान तथा संयुक्त राज्य अमेरिका का स्थान है। + +12235. सरकार द्वारा किये गए नए प्रावधान इस प्रकार हैं: + +12236. पाटा (पैसेफिक-एशिया ट्रैवल एसोसिएशन) स्वर्ण पुरस्कार 2019 (Pacific Asia Travel Association) Gold Award 2019 का विजेता भारत के अतुल्य भारत ‘फाइंड द इन्क्रेडेबल यू’ (Incredible India ‘Find the Incredible You’) अभियान को घोषित किया गया है। + +12237. इस अभियान की मुख्य विशेषता संभावित बाज़ार को ध्यान में रखते हुए कंटेंट का निर्माण करना था। + +12238. खान-पानः ‘मसाला मास्टर शेफ’ + +12239. यह 22 क्षेत्रों (जैसे- कंप्यूटर सेवा, हवाई परिवहन, कानूनी सेवा, निर्माण) में सेवा व्यापार को प्रभावित करने वाले नियमों की जानकारी प्रदान करता है। + +12240. आर्थिक भूगोल/कृषि के स्थानीयकरण के सिद्धांत: + +12241. उद्देश को समझाने के लिए दो प्रारूपों को आधार के रूप में प्रयोग किया गया है। + +12242. LR=Y(m-c)-ytd. + +12243.
t=परिवहन मूल्य + +12244.
दूसरा वृत खण्ड में लकड़ी का उत्पादन। + +12245. बाद में थ्यूनेन ने दो और कारकों को अपने सिद्धांत में आत्मसात किया। + +12246. संबंधित प्रश्न. + +12247. अब पर्यटक 79 मीटर लंबाई वाली एक संकीर्ण सुरंग के माध्यम से पिरामिड में प्रवेश कर सकेंगे। + +12248. यह 18 मीटर ऊँचा पिरामिड है जिसकी खुदाई वर्ष 1956 में की गई थी। इस पिरामिड को विकास एवं नवीकरण कार्यों के पूरा होने के बाद पर्यटकों के लिये खोला गया है। + +12249. क्यूबा की क्रांति + +12250. + +12251. उद्योगों के विविध पक्षों के आधार पर इन्हें 4 वर्गों में बांटा जा सकता है। + +12252. वेबर ने अपने सिद्धांत का प्रतिपादन 1929 में अपनी पुस्तक थ्योरी ऑफ लोकेशन ऑफ द इंडस्ट्रीज में प्रतिपादित किया था। यह सिद्धांत एक निश्चयवादी सिद्धांत है। वेबर एक जर्मन अर्थशास्त्री थें। इन्होंने अपने सिद्धांत का प्रतिपादन औद्योगिक स्थानीयकरण के विभिन्न कारकों का पूर्ण अन्वेषण करके उनके आधार पर किया। उनके द्वारा लिया ज्ञात किया गया कि लागत में कुछ मूल तत्व अलग-अलग स्थानों पर सामान नहीं होते हैं जैसे श्रमिकों की मजदूरी, यातायात की लागत, आदि। दूसरी ओर लागत के कुछ ऐसे तत्व होते हैं, जो सभी स्थानों पर लगभग समान होते हैं जैसे पूंजी पर ब्याज तथा मशीनों का ह्रास। प्रथम वर्ग के लागत तत्वों का ही उद्योग के स्थानीयकरण पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार लागत विश्लेषण के आधार पर उन्होंने स्थानीयकरण के कारकों को दो वर्गों में विभक्त किया है। + +12253. (क) शुद्ध पदार्थ , (ख) समग्र पदार्थ + +12254. (ख) श्रम लागत के कारण न्यूनतम परिवहन लागत स्थिति से विचलन। + +12255. वेबर ने दूसरी कल्पना उस दशा से की है जिसमें दो कच्ची सामग्री की आवश्यकता पड़ती है और वह दो स्रोतों से प्राप्त होती है, किंतु इस स्थिति के लिए बाजार बिंदु एक ही है। + +12256. पदार्थ सूचकांक=कच्चे माल का भार /निर्मित माल का भार + +12257. स्थानीयकरण का श्रम आधार. + +12258. उद्योग की अवस्थिति न्यूनतम परिवहन लागत बिंदु से हटकर कहां होगी इसके लिए वेबर ने आइसोडेपेन्स (Isodapens)का विचार प्रस्तुत किया। + +12259. (ख) अनेक उद्योगों को स्थान पर एकत्रित होने से कई विशेषीकृत सेवाएं श्रम का अधिक विभाजन,वृहत बाजार आदि से उत्पादन व्यय कम हो जाता है। + +12260. उद्योग स्थापना के उपर्युक्त विवेचन के बाद वेबर ने निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले हैं- + +12261. + +12262. प्रसंग. + +12263. विशेष. + +12264. (5).'घिरे-घिरे', 'बेरि-बेरि','फिरि-फिरि' और 'जनि-जनि' में भाव-व्यंजक शब्दावृत्ति होने से वीप्सा अलंकार हैं । + +12265. तर = तले। + +12266. पठाव = संकेत अथवा संदेश देना। + +12267. उदवेगल = उद्विवग्न हुआ, व्याकुल। + +12268. जनि-जनि = एक-एक से। + +12269. किछु = कुछ। + +12270. हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/श्रीकृष्ण का प्रेम: + +12271. इस पद में वे श्रीकृष्ण और राधा के प्रेम का वर्णन कर रहे हैं। नायक (कृष्ण) ने नायिका (राधा) को कहीं देख लिया है। वह उसके सौंदर्य पर अत्यधिक मुग्ध हो गया है। इसमें कवि ने राधा की विभिन्न विशेषताओं का वर्णन किया है। राधा श्रीकृष्ण के मन में बसी हुई हैं। उसी की याद में वह डूबे हुए हैं। कवि भी स्वयं मानते हैं कि राधा भी श्रीकृष्ण के गुणों से आकर्षित होकर उनके पास चली आएँगी। वे इसी को रेखांकित करते हुए कहते हैं। इस पद में वे श्रीकृष्ण और राधा के प्रेम का वर्णन कर रहे हैं। नायक (कृष्ण) ने नायिका (राधा) को कहीं देख लिया है। वह उसके सौंदर्य पर अत्यधिक मुग्ध हो गया है। अत: वह अपनी दशा का और नायिका के अपार सौंदर्य का वर्णन अपने सखा से अथवा राधा की अंतरंगिनी सखी से कर रहा है- + +12272. 1. राधा के व्यापक सौंदर्य का यह चित्रण जायसी-कृत पदमावती के अलौकिक सौंदर्य-वर्णन से संबंद्ध इन पंक्तियों की स्मृति करा देता है- + +12273. 7. बिंबात्मकता + +12274. हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/राधा का प्रेम: + +12275. स पद में वे श्रीकृष्ण और राधा के प्रेम का वर्णन कर रहे हैं। राधा ने श्रीकृष्ण को यमुना के तट पर देख लिया था। वह उनके अपार सौंदर्य पर मोहित हो गई। अपनी मुग्धावस्था का और श्रीकृष्ण के अपार सौंदर्य का वर्णन सांकेतिक शैली में वह अपनी सखी से कह रही है। राधा अपनी सहेली से श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य, हाव-भाव तथा उपमान के रूप में वर्णन करती हुई कहती है कि- + +12276. 1. नायिका द्वारा अपने प्रेम के रहस्य को कभी-कभी गूढ़ रीति से कहने की भी परम्परा रही है। बिहारी की नायिका भी अपने प्रेम को गूढ रीति से व्यक्त करती हुई अपनी सखी से कहती है + +12277. 6. बिंबात्मक है। + +12278. पेखलि एक। अपरूप = एक अपूर्व सौंदर्य देखा। मानबि - मानोगी। सपन-सरूप - स्वप्न में देखा हुआ सौंदर्य। कमल-जुगल = दो कमल दो चरण। चाँद के माल - चन्द्रमा की माला, नख-पंक्ति। तरुन-तमाल - श्याम वर्ण शरीर। बीजुरि-लता - पीताम्बर। कालिन्दी = यमुना। साखा-सिखर = हाथ की उँगलियाँ । सुधाकर पाति - नाखूनों की पंक्ति। पल्लब - कर। अरुनक कॉति - लाल-ज्योति। बिम्ब-फल = अधरोष्ठ। कीर - नासिका। थीर = स्थिर। खंजन-जोर - दो नेत्र। साँपिनि - केश-राशि। मोर = मयूर-पुच्छ। निसान - संकेत। हेरइत = देखते ही। हरले गिआन = ज्ञान का हरण कर लिया। एह रस भान = यह सरस अनुमान है। सुपुरुख - तत्पुरुष (श्रीकृष्ण)। भल जान = भली प्रकार जानती हो। + +12279. कुछ विद्वानों ने आर्थिक भूगोल की परिभाषा इस प्रकार बताई है-
+ +12280. इन परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि अपने वातावरण से प्रभावित होकर मनुष्य जो कार्य करता है उसका अध्ययन ही आर्थिक भूगोल का विषय है इस प्रकार आर्थिक भूगोल के अध्धयन में दो बातों का वर्णन होता है- + +12281. + +12282. चतुर्थ क्रियाएं
+ +12283. प्राइमरी प्रक्रियाओं टोपोग्राफी जलवायु (तापमान-वर्षण), जल अपवाह, मृदा, प्राकृतिक वनस्पति, भूमि-उपयोग तथा मृदा प्रबंधन का भारी प्रभाव पडता है । इन भौतिक कारकों के अतिरिक्त सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं संस्कृति संस्थाओं का भी प्रभाव पडता है । + +12284. पशुचारी खानाबदोश (Pastoral Nomadism). + +12285. भारत का एक लंबा कृषि इतिहास है, जो लगभग दस हजार साल पहले की तारीख से शूरु हुआ है। आज, भारत में दुनिया का दूसरा सबसे ज्यादा फसल उत्पादन है और कृषि से संबंधित रोजगार कुल कार्यशील जनता के लगभग 60% हैं।हालांकि, भारत की आबादी लगातार बढ़ती जा रही है, इसलिए देश को गेहूं और चावल जैसे खाद्य उत्पादों की मांग को पूरा करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। भारतीय कृषि को मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित किया गया है:- + +12286. द्वितीयक क्रियाएं. + +12287. 1. प्रसंस्करण :- इसमें खेत से गेहूं लाकर उन्हें पिस कर उसे आटे की रोटी बनाने की प्रक्रिया को प्रसंस्करण कहते है।
+ +12288. परिवार की आय एवं जीव उत्पादन के लिए जो व्यवसाय किया जाता है उसे ही उद्योग कहते है। + +12289. ब. छोटा उद्योग
+ +12290. कच्चे माल पर आधारित उद्योगों का वर्गीकरण पाँच भागों में किया जाता है।
+ +12291. ड़. पशु आधारित
+ +12292. पशु आधारित उद्योग :- चमड़ा व ऊन पशुओ से प्राप्त प्रमुख कच्चा माल है। चमडा उद्योग के लिए चमडा व ऊनी वस्त्र उद्योग के लिए ऊन पशुओ से ही प्राप्त होती है। हाथी दांत उद्योग के लिए दांत भी हाथीं से मिलते हैं। + +12293. सामाजवादी देशों में भी अनेक उद्योग सरकारी स्वामित्व वाले होते हैं। मिश्रित अर्थव्यवस्था में निजी एवं सार्वजनिक दोनों प्रकार के उद्यम पाए जाते हैं।
+ +12294. इस प्रकार व्यापार, परिवहन, संचार और सेवाएं कुछ तृतीयक क्रियाकलाप हैं । + +12295. इसका गठन अनेक बिचौलियों सौदागरों और पूर्तिघरों द्वारा होता है ना की फुटकर भंडारों द्वारा। श्रृंखला भंडारो सहित कुछ बड़े भंडार विनिर्माताओं से सीधी खरीद करते हैं। फिर भी बहुसंख्यक + +12296. परिवहन एक ऐसी सेवा अथवा सुविधा है जिससे व्यक्तियों, विनिर्मित माल तथा संपत्ति को भौतिक रूप से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है। यह मनुष्य की गतिशीलता की मूलभूत आवश्यकता को पूरा करने हेतु निर्मित एक संगठित उद्योग है। आधुनिक समाज वस्तुओं के उत्पादन, वितरण और उपभोग में सहायता देने के लिए तीव्र और सक्षम परिवहन व्यवस्था चाहते हैं। + +12297. दूरसंचार. + +12298. माली, धोबी और नाई मुख्य रूप से शारीरिक श्रम करते हैं। अध्यापक, वकील, चिकित्सक, संगीतकार और अन्य मानसिक श्रम करते हैं। + +12299. पर्यटन को प्रभावित करने वाले कारक
+ +12300. सूचना का संग्रहण, उत्पादन और प्रकीर्णन अथवा सूचना का उत्पादन। चतुर्थ क्रियाकलाप अनुसंधान और विकास पर केंद्रित होते हैं और विशिष्टक्रित ज्ञान प्रौद्योगिक कुशलता और प्रशासकीय सामर्थ्य से संबंधित सेवाओं के उन्नत नमूने के रूप में देखे जाते हैं। + +12301. इस अध्याय से संबंधित प्रश्न कुछ इस प्रकार हैं:- + +12302. हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/साँच कौ अंग/(1)कबीर लेखा देणा सोहरा......: + +12303. व्याख्या. + +12304. शब्दार्थ. + +12305. कृषि मनुष्य की सबसे महत्वपूर्ण व्यवसाय है क्योंकि इससे समस्त संसार के भोजन वस्त्र तथा आवास की आवश्यकता है पूरी होती है।विद्वानों का विचार है कि कृषि का आरंभ दक्षिण पश्चिमी एशिया में लगभग 4000 ईसा पूर्व हुआ। + +12306. इस कृषि में कृषक अपनी तथा अपने परिवार के सदस्यों की जीविकोपार्जन के लिए फसलें उगाता है।कृषक अपने उपभोग के लिए वे सभी फसलें पैदा करता है जिनकी उसे आवश्यकता होती है। अतः इस कृषि में फसलों का विशिष्टीकरण नहीं होता हैं। इनमें धान, दलहन, तिलहन तथा सभी का समावेश होता है। विश्व में जीविकोपार्जन कृषि के दो रूप पाए जाते हैं- + +12307. इस कृषि में आधुनिक ढंग से फसलें उगाई जाती है। कृषि के विभिन्न कार्यों के लिए भिन्न भिन्न मशीनों का प्रयोग किया जाता है। िक उपज लेने के लिए उन्नत बीज,उर्वरक, कीटनाशक दवाइयां तथा सिंचाई की उत्तम सुविधा का प्रयोग किया जाता है।विस्तृत कृषि, वाणिज्य कृषि ,मिश्रित कृषि ,डेयरी फार्मिंग,उद्यान कृषि आदि आधुनिक ढंग से की जाती है। + +12308. वाणिज्य कृषि (Commercial Farming). + +12309. 2. उष्ण कटिबंध में रोपण कृषि- रोपण कृषि का विकास उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उपनिवेश काल में यूरोपीय देशों द्वारा किया गया। इसका मुख्य उद्देश यूरोपीय देशों को वे कृषि उपजें उपलब्ध करवाना था जो केवल उष्णकटिबंधीय जलवायु में ही होती है। + +12310. मिश्रित कृषि अथवा व्यापारिक फसल एवं पशुपालन (Mixed Farming or Commercial Crops & Livestock). + +12311. डेरी फार्मिंग की विशेषताएं- + +12312. उद्यान कृषि(Horticulture)- यह लगभग ट्रक कृषि जैसा ही है,अंतर केवल इतना है कि इसमें सब सब्जी के स्थान पर फलों तथा फूलों कि कृषि की जाती है। फलों तथा फूलों की मांग नगरों में बहुत होती है। + +12313. + +12314. तलीय खनन. + +12315. भूमिगत खनन. + +12316. यदि निक्षेपों की गइराई कम होती है तो प्रवणकों का ही निर्माण कर लिया जाता है। यदि आवश्यकता हुई तो भूमिगत मार्ग तथा गैलरियाँ भी बना ली जाती हैं जिन शिलाओं से होता हुआ कूप जाता है, यदि वे सुदृढ नहीं होती तो इस्पात, सीमेंट आदि के अस्तर की भी आवश्यकता पड़ती है। भूमिगत खनन में कूपों का बड़ा महत्व है, क्योंकि कर्मचारियों का खान में आना जाना, खनित पदार्थों का बाहर आना, वायु का संचालन तथा खान से पानी बाहर फेंकने के लिये पंपों का स्थापन इन्हीं से संचालित होता है। किसी भी खान में कम से कम दो कूप अवश्य होते हैं। + +12317. संबंधित प्रश्न. + +12318. प्रस्तुत दोहा के रचयिता कबीरदास हैं। यह उनके 'साँच कौ अंग' से उद्धृत है, जो 'कबीर' ग्रंथावली में संकलित है। + +12319. जिस-जिस ने भगवान (सृष्टि-कर्ता) को केवल जानने की कोशिश की है वही अपने जीवन में सफ़ल रहा है। वह हमारे सामने सार (पदार्थ) के रूप में मौजूद है। उसे केवल जानने की आवश्यकता है। तब कोई भी प्राणी (जीव) झूठे संसार की ओर क्यों अपने को जोड़ेगा? अर्थात् उसे सच्चे मार्ग पर चलना चाहिए न कि झूठे मार्ग की तरफ़ चलने की सोचे। उसकी दुर्गति होनी निश्चित है। वह फिर कहीं का भी नहीं रहेगा। + +12320. + +12321. सन्दर्भ. + +12322. कबीर पाँहन केश पूतला...ते बूड़े कली धार।। + +12323. पाहण-पत्थर। केरा = के। पूतला = पुतले। करि = करते हैं। पूजै = पूजा भजते हैं। करतार = भगवान्, सृष्टि-कर्ता। इही = इसी। भरोसै = विश्वास। कालीधार = काली धारा। बूढ़े = डूबना। धार = प्रवाह, धारा। + +12324. प्रसंग. + +12325. विशेष. + +12326. हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/भ्रम विघौसण कौ अंग/(२)मन मथुरा दिल द्वारिका......।: + +12327. व्याख्या. + +12328. शब्दार्थ. + +12329. प्रस्तुत दोहा 'कबीरदास' द्वारा रचित है। यह उनके 'कबीर ग्रंथावली' में ' भ्रम विद्यौसण को अंग' से अवतरित है। + +12330. हे मूर्ख मनुष्य ! तू अपने दिमाग से काम क्यों नहीं लेता है ? तू इस पत्थर के भगवान को पूजता है, जो पत्थर का बना हुआ है। यह अपने में निर्जीव है। इससे तुझे क्या मिलेगा? हय तो अपने में पत्थर का केवल पत्थर है। जो लोग इस विश्वास के साथ जी रहे हैं कि इसे पूजने से हमारा भला हो जाएगा वे अपने में मूर्ख हैं। इससे उन्हें कुछ भी मिलने वाला नहीं है। ऐसे लोग ही काली धारा में डूबते हैं। जिससे कोई भी उन्हें निकाल नहीं सकेगा। अर्थात् वे अंधकार-रूपी कुएँ में डूबकर अपने को नष्ट कर रहे हैं। इससे उनका कुछ भी भला नहीं हो सकेगा। + +12331. + +12332. सन्दर्भ. + +12333. कबीर कर पकरै अँगुरी गिनै...सो भया काठ की ठौर॥ + +12334. भाषा में स्पष्टता है। + +12335. दोहा छंद है। + +12336. हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/भेष कौ अंग/(२)कबीर केसों कहा बिगाड़िया......: + +12337. व्याख्या. + +12338. शब्दार्थ. + +12339. + +12340. जो मनुष्य भगवान् के होते हैं। वे दूर ही दीख जाते हैं। वे अपने में वैरागी तथा दीन-दुनिया से उदासीन होते हैं। वे ही अपने को भक्त मानते हैं। कबीर कहते हैं- + +12341. इसमें भक्त की भगवान के प्रति भक्ति-भावना पर चर्चा की गई है। वह आंतरिक कप से संसार से बुखार होता है। वह लोगों के प्रति निर्मोही हो जाता है। भाषा में स्पष्टता है। प्रसाद गुण है। मिश्रित शब्दावली का प्रयोग है। सधुक्कड़ी भाषा है। बिंबात्मकता है। उपदेशात्मक के साथ-साथ वर्णनात्मक शैली भी पाई जाती है। + +12342. सन्दर्भ. + +12343. कबीर हरि का भाँवता...अंगि न चढ़ई मास।। + +12344. हरि = भगवान्। भावता - प्रिय जन। झीणाँ = पंजर, सूखा शरीर। रैणि नींद । आवै = आती है। नींदड़ी - नींद, सोना। मास मास। चढ़ई - चढ़ती है वृद्धि होती है। अंगि- अंग, शरीर के अंग। तास - खून। + +12345. हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/सारग्राही कौ अंग/(१)कबीर औगुँण ना गहैं......: + +12346. व्याख्या. + +12347. शब्दार्थ. + +12348. प्रस्तुत दोहा के कवि कबीर हैं। यह उनकी 'कबीर ग्रंथवली' से उद्धृत है। यह उनके 'सारग्राही कौ अंग' से अवतरित है। + +12349. इस धरती पर तरह-तरह के वन हैं। इस सभी वनों में तरह-तरह के फल-फूल पुष्पित एवं पल्लवित होते हैं। उनकी संख्या को जानना कठिन है। बहुत सारे वन हैं। कबीर कहते हैं कि हमें मीठे और स्वादिष्ट फलों को ही खाना चाहिए, न कि जहर से भरे हुए। हमें इन वनों में पल्लवित होने वाले पेड़ों-फूलों की मीठी सुंगध ही ग्रहण करनी चाहिए, न कि विषैली सुंगध को। हमें इन से बचना चाहिए। अर्थात् अच्छी बातें ग्रहण करनी चाहिए न कि विषैली को। + +12350. + +12351. प्रसंग. + +12352. विशेष. + +12353. हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/पद: + +12354. स्तुत छंद भक्तिकालीन निर्गुण काव्यधारा की संतमार्गी शाखा के प्रवर्तक कबीरदास द्वारा प्रस्तुत अनुभवों एवं विचारों को संकलित 'ग्रंथावली' से अवतरित है। + +12355. कबीर कहते हैं कि हे कमलिनी (जोकि आत्मा का प्रतीक है) तू क्यों कुम्हला रही है, मुरझा रही है। तेरा सीधा संबंध जीव (जोकि परमात्मा का प्रतीक है) से है हे कुमुदनी तेरी नाल जल से जुड़ी है। अर्थात् आत्मा अपने अंशी से पतले तार से जुड़ी हुई है। वे कुमुदिनी को समझते हैं कि तेरी उत्पत्ति अर्थात् जन्म जल में हुआ है, तू जल में ही निवास करती है फिर तू क्यों मुरझा रही है ? अर्थात् जीवात्मा मनुष्य के भीतर जो सूक्ष्म ब्रह्म है, उसी से जुड़ी है फिर भी वह अज्ञानतावश चिंता करती है। हे कुमुदिनी न तेरी तली अर्थात् आधार पाता है न ऊपरी भाग भी तप्त नहीं होता है, क्योंकि तेरे ही भले के लिए काई भी लगी हुई है अर्थात् तुझे तो किसी भी रूप में कष्ट नहीं है, क्योंकि तेरे अन्तर्मन में भी ईश्वर है और बाहर भी जिस प्रकार काई पानी को सूखने नहीं देता ठीक वैसे ही ईश्वर भी कभी भी नहीं मरता और न जीवात्मा मरती है। कबीर कहते हैं जो जल के समान होता है अर्थात् जो परमात्मा का ही बिंब है, वह कभी नहीं मरेगा। + +12356. ५. पदों में गेयता है। + +12357. १०. 'कहु कासनि' 'कहै कबीर'-अनुप्रास अलंकार है। + +12358. नलिनी = कमलिनी। सरोवर - तालाब। उदिक - पानी। नाल- जड़। तोर-तेरा। उतपति = जन्म। आगि = आग। हेतु = करण। मूवी - मृत। + +12359. प्रसंग. + +12360. विशेष. + +12361. पदों में गेयता है। + +12362. 10. कबीर का मानना है कि ईश्वर-प्रेम से ही अहंकार भी विसर्शित हो जाता है। + +12363. हिंदी साहित्य का इतिहास (रीतिकाल तक)/हिन्दी का विकास: + +12364. (२) भक्ति आन्दोलन तथा मुसलमानी शासन का प्रभाव समाज पर भी पड़ा जिसके परिणाम स्वरूप कुछ ऐसे पुराने शब्द जो अपभ्रंश में प्रचलित थे इस काल में अनावश्यक अथवा अल्पावश्यक होने के कारण या तो हिन्दी शब्द भंडार से निकल गए या तो उनका हिन्दी का प्रयोग बहुत कम ही गया। + +12365. मध्यकाल. + +12366. (२) फ़ारसी की शिक्षा की कुछ व्यवस्था तथा नौकरी के कारण उच्च वर्ग के लोगों की हिन्दी में तुर्की, अरबी, फ़ारसी, के शब्द काफ़ी प्रचलित हो गए और उन शब्दों के माध्यम से क़, ख़, ग़, ज़, फ़, -- ये पांच नए व्यंजन हिन्दी में आएं। + +12367. (३) 1900 के बाद द्विवेदी काल तथा छायावादी काल में अनेक कारणों से तत्सम शब्दों का प्रयोग बढ़ना आरम्भ हो गया। प्रसाद - पंत - महादेवी वर्मा का पूरा साहित्य इस दृष्टि से दर्शनीय है। 1947 तक लगभग यही स्थिति रही। + +12368. सामान्य अध्ययन२०१९/मानव संसाधन तथा रोजगार से संबंधित प्रश्न: + +12369. संबंधित विश्वविद्यालयों को अपने कॉलेजों एवं स्वायत्त कॉलेजों के माध्यम से इन पाठ्यक्रमों को चलाने के लिये सशक्त बनाया गया है। + +12370. (i) एथलेटिक्स, (ii) बैडमिंटन, (iii) हॉकी, (iv) शूटिंग, (v) टेनिस, (vi) भारोत्तोलन, (vii) कुश्ती, (viii) तीरंदाजी (ix) मुक्केबाज़ी + +12371. इस सम्मेलन का आयोजन पावन चिंतन धारा चैरिटेबल ट्रस्ट, गाजियाबाद की एक यूथ विंग ‘युवा जागृति मिशन’ ने किया। + +12372. व्यक्तियों के चयन के लिये सचिव (युवा मामले) की अध्‍यक्षता में एक राष्‍ट्रीय चयन समिति का गठन किया गया था। + +12373. युवा मामले एवं खेल मंत्रालय के युवा मामलों के विभाग द्वारा दिये गए पुरस्कारों का प्रमुख उद्देश्य युवा खिलाड़ियों को राष्ट्रीय विकास एवं समाज सेवा के क्षेत्र में उत्कृष्टता अर्जित करने के लिये प्रेरित करना तथा युवाओं में समुदाय के प्रति ज़िम्मेदारी की भावना विकसित करने के लिये उन्हें प्रोत्साहित करना है। + +12374. राष्ट्रीय युवा पुरस्कार 2016-17 प्राप्तकर्त्ता संगठन वर्ग: + +12375. अन्य राज्यों/संघशासित प्रदेशों में क्षेत्र कार्य अगस्त/सितंबर, 2019 में शुरू होगा। + +12376. रोजगार से संबंधित प्रश्न. + +12377. राष्‍ट्रीय अनुसूचित जाति वित्‍त और विकास निगम (National Scheduled Caste Finance & Development Corporation-NSFDC) + +12378. इसके तहत IBM के सहयोग से आईटी नेटवर्किंग और क्‍लाउड कंप्‍यूटिंग के लिये इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्‍टीट॒यूट तथा नेशनल स्किल ट्रेनिंग इंस्‍टिटयूट द्वारा दो वर्ष का एडवांस डिप्लोमा पाठ्यक्रम शुरू किया गया है। + +12379. आयोजनकर्त्ता:-लोक कार्यक्रम और ग्रामीण प्रौद्योगिकी विकास परिषद (Council for Advancement of People’s Action and Rural Technology-CAPART)। + +12380. यह लैब संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास फ्रेमवर्क (United Nations Sustainable Development Framework- UNSDF) के एक हिस्से के रूप में कार्य करेगी। + +12381. UNSDF 2018-22 में सात प्राथमिक क्षेत्र शामिल हैं- + +12382. चमड़ा क्षेत्र कौशल परिषद + +12383. चमड़े के वैश्विक उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी लगभग 13% है। + +12384. नवंबर 2018 में शुरू हुआ PAiSA एक केंद्रीकृत आईटी प्लेटफॉर्म है। इस मिशन के तहत ब्याज अनुदान जारी करने को यह सरल एवं सुव्यवस्थित बनाता है। + +12385. पूर्वोत्तर ग्रामीण आजीविका परियोजनाNorth-East Rural Livelihood Project (NERLP) + +12386. पूर्वोत्तर ग्रामीण आजीविका परियोजना (NERLP) + +12387. आंध्र प्रदेश का उद्योग/कारखाना अधिनियम, 2019 + +12388. कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय ने राष्‍ट्रीय उद्यमिता पुरस्‍कार, 2019 (National Entrepreneurship Awards, 2019) के चौथे संस्‍करण की घोषणा की। + +12389. इसके अंतर्गत कुल 45 पुरस्‍कार प्रदान किये जाएंगे, जिनमें उद्यमों के लिये 39 पुरस्‍कार और उद्यमिता पारिस्थितिकी निर्माताओं के लिये 6 पुरस्‍कार शामिल हैं। + +12390. नामित उद्यमी के पास अनिवार्य रूप से 51 प्रतिशत अथवा उससे अधिक इक्विटी के साथ-साथ व्‍यवसाय का स्‍वामित्‍व होना चाहिये। + +12391. इस दिन को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रूप में इसलिये चुना गया, क्योंकि ब्रिटिश सरकार द्वारा किये जा रहे बंगाल विभाजन का विरोध करने के लिये वर्ष 1905 में इसी दिन कलकत्ता टाऊन हॉल में स्वदेशी आंदोलन आरंभ किया गया था। + +12392. भुवनेश्वर में राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाने का उद्देश्य महिलाओं और बालिकाओं को सशक्त बनाना है। + +12393. क्या होंगे लाभ? + +12394. केश वर्णन
मंझन/ + +12395. व्याख्या. + +12396. इसमें कवि ने मधुमालती के केशों को सुंदरता का वर्णन किया है। उसके मुख की शोभा उन केशों से बढ़ गयी है। कवि ने उपमा, अनुप्रास तथा रूपक अलंकारों का पूरे पद में प्रयोग किया है। कामदेव' की चर्चा की है। अवधी भाषा का प्रयोग किया है। भावों में उत्कर्ष है। विरही की भी स्थिति स्पष्ट की है। भाषा में प्रवाह है। शब्द-चयन उत्तम है। मिश्रित शब्दावली है। भावों में स्पष्टता है। + +12397. नेत्र वर्णन
मंझन/ + +12398. आदि के बारे में कवि ने वर्णन किया है। उसी के विषय में वे कहते हैं- + +12399. विशेष. + +12400. हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/अधर वर्णन: + +12401. इस में मधुमालती के होठों की सुंदरता का वर्णन हुआ है। कवि ने उसके होठों की रसिकता, बनावट और सुंदरता को दिखाने के लिए विभिन्न उपमानों का सहारा किया है। उनका वर्णन करना कवि के लिए कठिन हो गया है। वह लोगों के दिलों को जलाने का काम कर रहे हैं। वे अमृत रस से युक्त हैं कई रूपों में कवि ने उसका वर्णन किया है। कवि कहता है- + +12402. विशेष. + +12403. हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/अतिसरूपग: + +12404. इसमें कवि ने उसके दोनों स्तनों का अत्यंत सुंदर रूप में वर्णन किया है। जो भी उन्हें देखता है वह देखता ही रह जाता है वे अपने में अनमोल हैं। कवि ने उसी के बारे में यहाँ वर्णन किया है। वह कहता है कि - + +12405. विशेष. + +12406. हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/त्रिबली वर्णन: + +12407. प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि मंझन द्वारा रचित हैं यह उनकी कृति 'मधुमालती' से उद्धृत हैं। यह त्रिवली वर्णन' से अवतरित हैं + +12408. मधुमालती की कटि को मैं देखकर आश्चर्य करता हूँ। वह अपने आप में सुंदर है। यह कटि कैसी है, जो उसकी बनावट को दर्शाता है। इसकी कटि में त्रिवली कैसी सुंदर और विचित्र है? मानो विधाता ने उसे बनाते समय उसने अपनी मुट्ठी से इसको इसी जगह से पकड़ा हो। में गुर्जरों की लाज को मन-ही-मन में मानता हूँ। इसी से, मैंने इसके मदन-भंडार अंग-प्रत्यगों का वर्णन नहीं किया है। इसके नितंबों को देखते ही मन जैसे उनसे चिपट का लग जाता है। उस पर दृष्टि पड़ते ही शरीर में काम-भावना जाग्रत हो जाती है। अर्थात मेरा मन उनकी तरफ आकर्षित हो जाता है। कामदेव को ही मानों जैसे माया हो। उसका शरीर काम-भाव को उत्पन्न करने के लिए पर्याप्त है। इसकी युगल जंघाओं को देखकर तो मन चंचल होकर कॉप जाता है। + +12409. करि - कटि। माहै - मैं। कसि अहि- कैसी है। बिध. - विधाता ने। गही पकडी। मदन भंडार - गुहा का भाग। चिहुटि - चिपककर। मनमथ - मन को मथने वाला, कामदेव। जुगुल - दोनों। थहराई - चंचल, कापना। रातें - लाल। कोमल - कोमल। सेत = तलुप। पटतर - खमान। कनक - स्वर्ण। केदली केला वृक्ष। सति श्वेत, सफेद। तरूवन्ह = सत्य। भाउ = भाव। + +12410. प्रसंग. + +12411. उसके दाँत के चारचौके के उपमान के रूप में मौजूद हों। पता नहीं वे कहाँ जाकर अपने को छिपाने के लिए चले गए। वे कहाँ जाकर छिप गए हों। चंद्रमा भी मानो अपनेको छिपा गया हो। जो कोई उसको देखले तो विधि के विधान की बात कहने लगेगा कि विधाता ने उसे कैसे बनाया होगा। ? यह सुनकर मन में अपार खुशी होती है। उसका स्वभाव तो सबको मोहित करने वाला है। विधाता की गप्त रहस्यमयी कारगजारी को किसी ने कहीं भी नहीं देखा होगा। इस संसार में उस जैसी राजकुमारी किसी ने कहीं नहीं देखी होगी। + +12412. + +12413. भारतेन्दु काल के प्रमुख अन्य साहित्यकारों ने भी भारतेन्दु की प्रवृत्तियों को स्वीकारा और साहित्य सृजन किया। जिनमें महत्वपुर्ण है, बदरीनारायण चौधरी प्रेमघन, प्रतापनारायण मिश्र, जगन्मोहन सिंह, राधाकृष्ण दास, जगन्नाथदास रत्नाकर, नवनीत चतुर्वेदी आदि। डॉ. नगेन्द्र ने राष्ट्रीयता, सामाजिक चेतना, भक्तिभावना, श्रृंगारिकता, प्रकृति चित्रण, हास्य-व्यंग, रीति-निरुपण, समस्यापुर्ति, काव्यानुवाद, कलापक्ष के अन्तर्गत आनेवाली प्रवृत्तियों का विश्लेषण अपने इतिहास में किया हैं। + +12414. भीतर भीतर सब रस चूसै, + +12415. अंग्रेज राज सुख साज सजे सब भारी, + +12416. भारतेन्दु युग में अगर अँग्रेजो के शोषण को उभारती कविताएं थी तो ऐसी भी कविताएं थी जिसमें राजभक्ति साफ झलकती है। महाराणी विक्टोरिया की + +12417. पर राजद्रोह या साम्प्रदायिकता का दोष लगाना नहीं चाहिए। सही भी हैं परंतु इस काल के साहित्य ने साम्प्रदायिकता की प्रवृत्ति का बीजारोपन किया इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। नगेन्द्र के अनुसार भले ही 'यह नयी राजनीतिक चेतना की कविता हो' फिर भी यह कहना होगा की स्वतंत्रता के बाद भारत उत्तर नयी राजनीति से रुढ़ होकर सन १९९० के साहित्य, राजनीति में यहीं उभरकर आयी। इसी कारण नवजागरण को ही हिन्दूधर्म पुनरुत्थान के रुप में शंभुनाथ, वीर भारत तलवार जैसे विद्वानों ने देखा जो सही प्रतित होती हैं। + +12418. 'भारत दुर्दशा' जैसे नाटकों में वर्णव्यवस्था की संकीर्णता का विरोध उन्होंने किया हैं बहुत हमने फैलाये धर्म, बढ़ाया छुआछूत का कर्म इनके समकालीन कवि बालमुकुन्द गुप्त ने भी समाजसुधार की दृष्टी अपनायी हैं। धनिकों को संबोधित करते हुए वे कहते हैं - + +12419. वस्तुतः आर्य समाज की सामाजिक एवं धार्मिक सुधार वृत्ती का प्रभाव कुछ लेखकों + +12420. हा हा हा विधि वाम ने सर्वनाश भारत कियो। + +12421. झूठी यह गुलाब की लाली धोवत ही मिटी जाय, + +12422. ब्रिटिशों द्वारा की जानेवाली आर्थिक लूट को देखकर भारतेन्दु का मन भी बड़ा + +12423. में आया हैं। जिसमें वे मलमल और मारकीर का व्यवहार करनेवालों की आलोचना कटु शब्दों में करते हैं - + +12424. राजा करै सो न्याव हैं, पाँसा परे सो दाँव। + +12425. भारत की आर्थिक दुर्गति का ब्रिटीश शासन कारण रहा हैं, इस बात को कवि + +12426. भारतेन्दु स्वदेशी आन्दोलन के ही अग्रदूत न थे, वे समाज सुधारकों में से भी प्रमुख थे। स्त्री-शिक्षा, विधवा विवाह आदि के समर्थक थे। भारतीय महाजनों के पुराने पेशे सूदखोरी की उन्होंने कड़ी आलोचना की थी, सर्वदा से अच्छे लोग ब्याज खाना और चुड़ी पहनना एक-सा समझते हैं पर अब आलसियों को इसी का अवलंब हैं, न हाथ हिलाना पड़े न पैर, बैठे बैठे भुगतान कर लिया। + +12427. जिसका प्रभाव उनके साहित्य पर पड़ा हैं। भारतेन्दु वैष्णव परम्परा के उपासक थे। राधा-कृष्ण के प्रति उनमें अनन्य भक्ति थी। सदैव राजसी ठाँट-बाँट से रहते थे पर विलासिता इनका सबसे बड़ा अवगुण था। एक बार इन्होंने कहा था-- + +12428. प्रेमादर्श में वे घनानंद, रसखान, एवं पद्माकर जैसे रीतिकालीन कवियों का + +12429. सुरत-समर जय पत्रहि लिखायें लेत॥ + +12430. उन्होंने रीतिकालीन कवियों की तरह यौन-विकृति जैसे स्वरति, समरति, चित्ररति, + +12431. देखि लीजों आँखे ये खुली रह जायँगी॥
+ +12432. राधाकृष्ण दास, ठाकुर जगनमोहनसिंह, अंबिका दत्त व्यास में भी श्रृंगार वर्णन पाया जाता हैं। + +12433. मेरे तो साधन एक ही हैं, + +12434. कामना करता हैं। साम्प्रदायिक मत-मतान्तरो पर आधारित धार्मिकता के स्थान पर उन्होंने उदारता का परिचय दिया हैं। 'जैन कुतुहल' में उन्होंने धार्मिक विद्वेष की व्यर्थता को प्रतिपादित किया हैं। प्रतापनारायण मिश्र, राधाकृष्णदास जैसे कवियों में भी देशानुराग भक्ति को देखा जा सकता हैं। + +12435. तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये + +12436. नैसर्गिक सौन्दर्य वर्णन से प्रकृति का सजीव चित्रण उनके काव्य में आया हैं। पर्वत श्रृंखला का सौन्दर्य चित्रण इसी प्रकार का हैं- + +12437. हास्य-व्यंग्य. + +12438. मेरा पाचक है पचलोना, जिसको खाता श्याम सलोना।। + +12439. चूरन ऐसा हट्टा-कट्टा, कीन्हा दाँत सभी का खट्टा।। + +12440. चूरन खाते लाला लोग, जिनको अकिल अजीरन रोग।। + +12441. मुँह जब लागै तब नही छुटे, जाति मान धन सब कुछ लूटे। + +12442. प्रकाश' (१८९६)। महत्वपूर्ण बात यह भी है की रीति-निरुपण की वृत्ती पिछड़ती जा रही थी और काव्य नये साँचे में ढल रहा था। भारतेन्दु के बाद तो यह प्रवृत्ति रही ही नहीं। + +12443. तुम ही मनुहारी कै हारि परे, सखियान की कौन चलाई तहां॥ + +12444. काव्यानुवाद बड़ी मात्रा में हुए है। सर्वप्रथम उल्लेखनिय हैं, राजा लक्ष्मणसिंह का 'रघुवंश' और 'मेघदूत'। भारतेन्दु ने 'नारद-भक्ति-सूत्र' और शांडिल्य के 'भक्तिसूत्र' को 'तदीय सर्वस्व' और 'भक्तिसूत्र वैजयन्ती' नाम से अनुवाद किया हैं। बाबू तोताराम ने वाल्मिकी रामायण का 'राम-रामायण', ठाकुर जगमोहनसिंह ने 'ऋतूसंहार' एवं 'मेघदूत', लाला सीताराम भूप ने 'मेघदूत', 'कुमार संभव', रघुवंश और ऋतूसंहार। अंग्रेजी से श्रीधर पाठक ने गोल्डस्मिथ का 'हरमिट' और 'डेंजर्टेड विलेज' को 'एकांतवासी योग' तथा 'उजड़ ग्राम' नाम से अनुवाद किया हैं। भाषा, लालित्य, शब्दानुभाव सरलता के गुणों से ये सम्पन्न हैं ऐसा डाक्टर नागेन्द्र ने कहा हैं। + +12445. भारतेन्दु युग में काव्य के क्षेत्र में ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ तो गद्य के क्षेत्र में खड़ी + +12446. किया हैं। जिसमें उल्लेखनिय हैं आर्या, कुण्डलियाँ, दोहा, चौपाई, सोरठा, रोला, हरिगीतिका जैसे छंदो तथा कविता, सवैया, मन्दाक्रान्ता, शिखरिणी, वंशस्थ, वसन्ततिलका जैसे वर्णिक छंदों का विविधमुखी प्रयोग, लोकसंगीत का गाँवो में प्रचार-प्रसार करने के लिए भारतेन्दु ने कजली, ठुमरी, खेमटा, कहरबा, गेल, चैती, अद्ध, होली, साँझी, लाबें, लावनी, बिरहा, चनैनी आदि छंदो को उपयोग में लाया हैं। किसी नये छंद का प्रयोग भले ही इन कवियों ने न किया हो परंतु + +12447. ब्रह्मसमाज, आर्यसमाज, थियोसाफिकल सोसायटी के साथ भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस ने सामाजिक जागरण का बड़ा कार्य भारतेन्दु युग से ही शुरु किया था। वेद को तर्क प्रमाण पर कसकर उसकी नयी आलोचना आर्य समाज प्रस्तुत कर रहा था। चाहे वह अध्यात्मिक उन्नत्ति हो, कर्मकांड हो, स्त्री प्रश्न हो इन सबके प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोन एवं नयी शिक्षा से प्राप्त दृष्टि से देखने का प्रयत्न किया गया। परिणामत: पुराने को आँख मूंद कर न स्वीकारते हुए उसके प्रति विद्रोह का भाव प्रकट होने लगा। अनेकेश्वर की जगह एकेश्वर वाद इसका प्रमाण है। बुद्धिवाद के कारण ही देवी-देवताओं की ओर देखने की दृष्टि बदल गयी। कर्मकांड के थोथे पन को उजागर किया गया। रूढ़िवादिता एवं सड़ी-गली प्राचीन परंपराओं पर कुठाराघात किये जा रहे थे। देवता की अवतारवादी संकल्पना को नकारा जा रहा था। अलौकिता की जगह लौकिकता का चित्रण किया जा रहा था। एक तरह से यह बौद्धिकता का युग, तार्किक प्रणाली से सोचने-विचारने का युग प्रारंभ गया था। जातीवाद की आलोचना इसी कारण होती रही। प्रकृति तथा अलौकिक शक्ति के प्रति मानवीय दृष्टिकोण से देखा जाने लगा था। यह आग्रह भाषा के क्षेत्र में भी दिखाई देता है। बौध्दिकता इस युग की प्रधान प्रवृत्ती रही है उसका प्रभाव आनेवाले काल पर भी पड़ा। + +12448. हो जायँ अभय वे जिन्हें कि भय भासित हैं, + +12449. मैं मनुष्यत्व का नाट्य खेलने आया। + +12450. मैं राज्य भोगने नहीं, भुगाने आया, + +12451. अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, + +12452. राष्ट्रीय भावना और राजनीतिक चेतना. + +12453. प्राणों का बलिदान देश की वेदी पर करना होगा। + +12454. खुदगर्जी का नशा खोलकर आंखे देखो॥ + +12455. कोटि कंठ से मिलकर कह दो, हम सब है भाई-भाई॥ + +12456. हा! यह प्यारा बाग़ ख़ून से सना पड़ा है। + +12457. सांस्कृतिक राष्ट्रीयता की भावना. + +12458. सतसेवा व्रत धार जगत के हरो क्लेश तुम। + +12459. राम, तुम मानव हो? ईश्वर नहीं हो क्या? + +12460. नर को ईश्वरता प्राप्त कराने आया। + +12461. विश्वप्रेम के बंधन ही में, मुझ को मिला मुक्ति का द्वार। + +12462. नारी के नये रूपों को वे हमारे सामने लाते है वह जनसेविका, देशभक्त रागीनी, जननी के रूप में लोकसेविका के रुप में चित्रित की गई है। मैथिलीशरण गुप्त जैसे कवियों ने उनके उपेक्षित व्यक्तित्व को उत्कर्षित किया। साकेत की 'उर्मिला हो, या यशोधरा 'यशोधरा' या द्वापर की 'विधृता'। उनपर आधुनिक विचार-संवेदना की गहरी छाप रही है। साकेत की 'उर्मिला' तो सैन्य संगठन कर रावण से युध्द करने के लिए तत्पर है। गुप्त जी ने नारी को प्रतिष्ठा दिलाने के लिए ही उसका कारुणिक उत्कर्ष दिखलाया है-- + +12463. राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाते हुए स्त्री के उस आनन्द और जोश में सुभद्रा जी ने कविताएँ लिखीं जो उस आन्दोलन में एक नयी प्रेरणा भर देती हैं। स्त्रियों को सम्बोधन करती हुई वह कहती हैं-- + +12464. १८५७ के स्वाधीनता संग्राम में वीरता से लड़ने वाली विरांगना रानी लक्ष्मीबाई पर सुभद्रा कुमारी चौहान जी ने "झांसी की रानी" कविता लिखी और समाज के समक्ष सिद्ध कर दिया कि युगों से स्त्रियों ने जिस प्रकार का पराक्रम दिखाया है वह अद्भुत है। चाहें वह पद्मावत हो या रानी लक्ष्मीबाई। सुभद्रा कुमारी चौहान जी की "झांसी की रानी" कविता प्रस्तुत है-- + +12465. हो जाये अच्छी भी फसल, पर लाभ कृषकों को कहाँ + +12466. है चल रहा सन सन पवन, तन से पसीना बह रहा + +12467. तो भी कृषक मैदान में करते निरंतर काम हैं + +12468. यह लाभ कैसा है, न जिसका मोह अब भी त्यागते + +12469. अछुतोध्दार की भावना भी कविता का विषय रही है। इसी कालखंड में वर्णव्यवस्था पर तीखे प्रश्न खड़े हो चुके थे। सामाजिक कुरुपताओं को दूर करने के लिए कवियों ने व्यंग्य कविता का आश्रय लिया। + +12470. वेदने। तू भी भली बनी। + +12471. कविता का यह गद्यात्मक रूप मैथिलीशरण गुप्त, ठाकुर गोपालशरण सिंह, लोचनप्रसाद पाण्डेय, मुकुटधर पण्डेय में आया। बौद्धिकता के कारण वह बोझील हुई + +12472. द्विवेदी युग का प्रकृति चित्रण बड़ा सच्चा और मनोयोग पूर्ण किया गया है। श्रृंगारकाल में जो प्रकृति वर्णन किया गया है वह श्रृंगार भावना उद्दीपन हेतु हुआ है। भारतेन्दु युग में सौंदर्यानुभूति के अभाव में केवल अलंकारिक चित्रण की प्रधानता रही है। परंतु द्विवेदी युग में यह वर्णन संवेदनात्मक और चित्रात्मक रूपों में उपस्थित हुआ है। जिसमे अग्रसर है श्रीधर पाठक, अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध', मैथिलीशरण गुप्त, रामनरेश त्रिपाठी' आदि। श्रीधर पाठक की कविता में तन्मयता और माधुर्य भाव सनिहित है, कश्मीर का वर्णन कुछ इसी प्रकार का है- + +12473. आचार्य शुक्ल द्वारा ग्राम सौंदर्य वर्णन भी चित्रात्मक रूप में हुआ है- + +12474. रामनरेश त्रिपाठी ने उनके काव्य 'पथिक' और 'स्वप्न' में नदी में पर्वत, समुद्र आदि का दृश्य भव्य रूप में चित्रित किया है। उनके प्रकृति चित्रण में कहीं-कहीं रहस्यात्मकता भी पाई जाती है- 'हरिऔध' ने प्रकृति को पाँच रूपों में चित्रित किया है--"आलम्बन रूप, उद्दीपन रूप, बिम्ब-प्रतिबिम्ब रूप, उपदेशात्मक रूप एवं आलंकारिक रूप।" + +12475. काव्य विषय एवं रूपों में विविधता. + +12476. खड़ीबोली काव्य की भाषा. + +12477. विलोक मेरी चित्त-भ्रान्ति क्या बनी + +12478. डॉ. रामचन्द्र शुक्ल भी १८६८ से १८८३ तक के २५ वर्ष को काल की नयी धारा- प्रथम उत्थान के रुप में स्वीकृत करा हैं। मिश्र बंधुओं ने भी १८६८-१८८८ इन १९ वर्षों को भारतेन्दु युग कहा हैं। डॉ. केसरीनारायण शुक्ल ने १८६५ से १९०० तक के ३५ वर्षों को भारतेन्दु काल माना है। डॉ० रामविलास शर्मा भी १८६८ से १९०० तक के काल को भारतेन्दु युग ही मानते हैं किन्तु अधिकांश विद्वानों ने डॉ.नगेन्द्र के कालखन्ड को (भारतेन्दु युग) योग्य एवं तर्कशुध्द रुप में स्वीकार किया हैं। बात चाहे जो भी हो पर यह बात झुठलाया नहीं जा सकता कि नवजागरण को एक नया रूप देने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका भारतेंदु जी ने निभाई हैं। यही कारण है कि नवजागरण की शुरुआत जिस भारतेंदु युग से माना गया है उस भारतेंदु युग के समय का निर्धारण भारतेंदु जी के जन्म और मृत्यु के आधार पर रखने का प्रयास अवश्य दिखता है। + +12479. भारतेन्दु लोकभाषा के समर्थक थे। वे टकसाली भाषा के विरूद्ध थे। टकसाली अर्थात गढ़ी हुई भाषा। भारतेन्दु भाषा का सहज, सरल, प्रवाहमय रूप और विनोदपूर्ण रूप स्वीकार करते थे। भारतेन्दु निज भाषा के उन्नति के पक्षधर थे। वे कहते थे : + +12480. विनय तथा भक्ति
सूरदास / + +12481. व्याख्या. + +12482. (१) यहां कवि की अपने इष्टदेव के प्रति अनन्य भक्ति और श्रद्धा अभिव्यक्त हुई है। जैसे उड़ि जहाज को पच्छी फिर जहाज पर आवै और 'सूरदास प्रभु कामधेनु तजि छेरी कौन दुहावै।' में दृष्टांत अलंकार है। + +12483. एक भरोसो एक बल एक आत्म-विश्वास। + +12484. शब्दार्थ. + +12485. + +12486. श्रीकृष्ण का जन्म हो चुका है। यशोदा श्रीकृष्ण को पालने में सुला रही है। कवि यहां यशोदा की मातृ-सुलभ चेष्टाओं का वर्णन कर रहा है- + +12487. जसोदा - यशोदा। हलरावै - हिला रही है। मल्हावै - स्नेहपूर्वक थपथपाती है। जोई - देखना। सोई - वह। निंदरिया- नींद। आनि- आ कर। बेगहि- जल्दी से। फरकावै - फड़कना। सैन - संकेत। इहि अंतर - इसी बीच। भामिनी = पत्नी। अमर - देवता। + +12488. प्रसंग. + +12489. विशेष. + +12490. + +12491. सन्दर्भ. + +12492. "उधौ मन मानेकी बात...'सूरदास' जाकौ मन जासौं सोई ताहि सुहात।।" + +12493. + +12494. सूर का संयोग-वर्णन जितना विस्तृत व पूर्ण है उनका वियोग-वर्णन भी उतना ही विस्तृत है। वियोग की जितनी भी दशाएं हो सकती हैं, वे सब सूर के वियोग-वर्णन में पाई जाती हैं। राधा कृष्ण के विरह में अत्यंत व्याकुल है। यही स्थिति-जन्य गोपियों की भी है। कोई गोपी राधा और उसके माध्यम से अन्य ब्रज-वनिताओं की विरह स्थिति प्रकट करते हुए कह रही हैं- + +12495. यहां काव्यलिंग, उत्प्रेक्षा और उपमा अलंकार है। विरह के अंतर्गत प्रोषत पतिका नायिका की करुण-दशा का यथार्थ-चित्रण है। इसी से राधा यहां सुरति दुखिया नायिका प्रतीत होती है। + +12496. प्रस्तुत पद भक्तिकालीन सगुण काव्यधारा की कृष्ण-भक्ति शाखा के प्रवर्तक भक्त कवि सूरदास द्वारा रचित 'सूरसागर' के 'शृंगार' खंड से अवतरित है। + +12497. सूरदास कहते हैं कि श्री कृष्ण अपने सखाओं के साथ खेलने के लिए ब्रज की गलियों में निकले। श्रीकृष्ण ने अपनी कमर पर पीले रंग का कमरबंध बाँधा हुआ है। और हाथ में लटट और उसे चलाने वाली डोरी है। उन्होंने मोर पंख का मुकुट पहना हुआ है और कानों में कुंडल पहने हुए हैं. उनके सुदंर-सुदंर दांत बिजली की भांति चमक रहे हैं सूर कहते हैं ऐसी + +12498. 3. पद में बिंबात्मकता है। + +12499. 8. यह पद सरस राग में लिखा गया है। + +12500. 13. सूर के वर्णन में सहजता, मुलाकात है। + +12501. + +12502. हिंदी कविता (रीतिकालीन)/भूषण: + +12503. इस अध्याय में इस पुस्तक से संबंधित दिल्ली विश्वविद्यालय के स्नातक भूगोल प्रतिष्ठा की विभिन्न वर्षों में पूछे गए प्रश्नों का संग्रह किया गया है। + +12504. प्र.2. कृषि गतिविधियों की स्थापना को प्रभावित करने वाले कारकों पर चर्चा करें। + +12505. विश्व में वानिकी के आर्थिक महत्व व वितरण की विवेचना कीजिए। + +12506. (ख)प्रौद्योगिकी पार्क + +12507. प्र.1.आर्थिक भूगोल को परिभाषित कीजिए। आर्थिक भूगोल के उद्भव की विवेचना करें। + +12508. वेबर के औद्योगिक अवस्थिति सिद्धांत को समझाइए। + +12509. अथवा + +12510. अथवा + +12511. प्र.3.व्यापारिक कृषि की विशेषताएं, प्रारूप और वितरण को स्पष्ट कीजिए। + +12512. रेल और समुद्र मार्गो का आर्थिक विकास में महत्व की उपर्युक्त उदाहरण सहित व्याख्या करें।
+ +12513. मार्गरेट एटवुड सर्वाधिक आयु (79वर्ष) की बुकर पुरस्कार विजेता बनी हैं जबकि बर्नाडिन एवारिस्टो बुकर पुरस्कार पाने वाली पहली अश्वेत महिला हैं। + +12514. इसके लिये फ्लिपकार्ट ने गैर-सरकारी संगठनों (NGO) सरकारी निकायों और आजीविका मिशन के साथ भागीदारी की है। + +12515. पर्यावरण से संबंधित गैर-लाभकारी संगठन. + +12516. 1.इसमें न तो घोषणा-पत्र और न ही इसमें संलग्न कार्रवाई फ्रेमवर्क में विशेष रुप से एकल -उपयोगवाले प्लास्टिक अथवा विदेशी अपशिष्ट के आयात पर प्रतिबंध का उल्लेख किया गया है। + +12517. हिंदी का प्रयोग हिंदी क्षेत्र के बाहर भी होता है। यह भारत की राष्ट्रभाषा, रज्यभाषा और संपर्क भाषा भी है। सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं हिंदीतर क्षेत्रों में इसके प्रचार में जुटे हैं। हिंदी के प्रचार में सर्वाधिक योगदान हिंदीतर भाषा भाषियों का रहा है। आंध्रप्रदेश, गुजरात, जम्मू कश्मीर, मणिपुर, पंजाब, बंगाल, अंडमान व निकोबार द्वीपसमूह और मिज़ोरम में हिंदी भाषियों की संख्या दूसरे स्थान पर है। महाराष्ट्र, उड़ीसा आदि में हिंदी भाषी तीसरे स्थान पर हैं। + +12518. ध्वनि और शब्द आदि के स्तर पर भी हिंदी अखिल भारतीय स्तर पर अपनी पहचान रखती है। ध्वनियों के दृष्टि से भी भारत की समस्त आधुनिक भाषाओं में स्वरों की संख्या लगभग समान है। शब्द के स्तर पर भी हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में पर्याप्त समानता देखी जाती है- + +12519. हिंदी गद्य साहित्य/मलबे का मालिक: + +12520. बहुत दिनों के बाद बाज़ारों में तुर्रेदार पगडिय़ाँ और लाल तुरकी टोपियाँ नज़र आ रही थीं। लाहौर से आये मुसलमानों में काफ़ी संख्या ऐसे लोगों की थी जिन्हें विभाजन के समय मज़बूर होकर अमृतसर से जाना पड़ा था। साढ़े सात साल में आये अनिवार्य परिवर्तनों को देखकर कहीं उनकी आँखों में हैरानी भर जाती और कहीं अफ़सोस घिर आता-वल्लाह! कटरा जयमलसिंह इतना चौड़ा कैसे हो गया? क्या इस तरफ़ के सब-के-सब मकान जल गये थे?...यहाँ हक़ीम आसिफ़अली की दुकान थी न? अब यहाँ एक मोची ने कब्ज़ा कर रखा है? + +12521. "सब कुछ बदल गया, मगर बोलियाँ नहीं बदलीं!" बुड्ढे मुसलमान ने धीमे स्वर में अपने से कहा और छड़ी का सहारा लिये खड़ा रहा। उसके घुटने पाजामे से बाहर को निकल रहे थे। घुटनों से थोड़ा ऊपर शेरवानी में तीन-चार पैबन्द लगे थे। गली से एक बच्चा रोता हुआ बाहर आ रहा था। उसने उसे पुचकारा, "इधर आ, बेटे! आ, तुझे चिज्जी देंगे, आ!" और वह अपनी जेब में हाथ डालकर उसे देने के लिए कोई चीज़ ढूँढऩे लगा। बच्चा एक क्षण के लिए चुप कर गया, लेकिन फिर उसी तरह होंठ बिसूरकर रोने लगा। एक सोलह-सत्रह साल की लडक़ी गली के अन्दर से दौड़ती हुई आयी और बच्चे को बाँह से पकडक़र गली में ले चली। बच्चा रोने के साथ-साथ अब अपनी बाँह छुड़ाने के लिए मचलने लगा। लडक़ी ने उसे अपनी बाँहों में उठाकर साथ सटा लिया और उसका मुँह चूमती हुई बोली, चुप कर, ख़सम-खाने! रोएगा, तो वह मुसलमान तुझे पकडक़र ले जाएगा! कह रही हूँ, चुप कर!" + +12522. "साढ़े सात साल पहले तू इतना-सा था," कहकर बुड्ढे ने मुस्कराने की कोशिश की। + +12523. "तुम तो शायद काफ़ी पहले यहाँ से चले गये थे," मनोरी के स्वर में संवेदना भर आयी। + +12524. "यह मलबा?" उसने अविश्वास के साथ पूछ लिया। + +12525. आसपास के घरों की खिड़कियाँ तब बन्द हो गयी थीं। जो लोग इस दृश्य के साक्षी थे, उन्होंने दरवाज़े बन्द करके अपने को इस घटना के उत्तरदायित्व से मुक्त कर लिया था। बन्द किवाड़ों में भी उन्हें देर तक जुबैदा, किश्वर और सुलताना के चीख़ने की आवाज़ें सुनाई देती रहीं। रक्खे पहलवान और उसके साथियों ने उन्हें भी उसी रात पाकिस्तान दे दिया, मगर दूसरे तबील रास्ते से। उनकी लाशें चिराग़ के घर में न मिलकर बाद में नहर के पानी में पायी गयीं। + +12526. "गनी अपने मलबे पर बैठा है," उसके शागिर्द लच्छे पहलावन ने उसके पास आकर बैठते हुए कहा। + +12527. "मनोरी की क्या शामत आयी है?" + +12528. मनोरी गनी की बाँह थामे उससे एक क़दम आगे चल रहा था-जैसे उसकी कोशिश हो कि गनी कुएँ के पास से बिना रक्खे को देखे ही निकल जाए। मगर रक्खा जिस तरह बिखरकर बैठा था, उससे गनी ने उसे दूर से ही देख लिया। कुएँ के पास पहुँचते न पहुँचते उसकी दोनों बाँहें फैल गयीं और उसने कहा, "रक्खे पहलवान!" + +12529. ऊपर खिड़कियों में चेहमेगोइयाँ तेज़ हो गयीं कि अब दोनों आमने-सामने आ गये हैं, तो बात ज़रूर खुलेगी...फिर हो सकता है दोनों में गाली-गलौज़ भी हो।...अब रक्खा गनी को हाथ नहीं लगा सकता। अब वे दिन नहीं रहे।...बड़ा मलबे का मालिक बनता था!...असल में मलबा न इसका है, न गनी का। मलबा तो सरकार की मलकियत है! मरदूद किसी को वहाँ गाय का खूँटा तक नहीं लगाने देता!...मनोरी भी डरपोक है। इसने गनी को बता क्यों नहीं दिया कि रक्खे ने ही चिराग़ और उसके बीवी-बच्चों को मारा है!...रक्खा आदमी नहीं साँड है! दिन-भर साँड की तरह गली में घूमता है!...गनी बेचारा कितना दुबला हो गया है! दाढ़ी के सारे बाल सफ़ेद हो गये हैं!... + +12530. "पाकिस्तान में तुम लोगों के क्या हाल हैं?" उसने पूछा। उसके गले की नसों में एक तनाव आ गया था। उसने अंगोछे से बगलों का पसीना पोंछा और गले का झाग मुँह में खींचकर गली में थूक दिया। + +12531. ऊपर खिड़कियों में थोड़ी देर चेहमेगोइयाँ चलती रहीं-कि मनोरी ने गली से बाहर निकलकर ज़रूर गनी को सब कुछ बता दिया होगा कि गनी के सामने रक्खे का तालू कैसे खुश्क हो गया था!...रक्खा अब किस मुँह से लोगों को...मलबे पर गाय बाँधने से रोकेगा? बेचारी जुबैदा! कितनी अच्छी थी वह! रक्खे मरदूद का घर...न घाट, इसे किसी की माँ-बहन का लिहाज़ था? + +12532. "फिर कुछ नहीं। चला गया।" + +12533. हिंदी गद्य साहित्य/अकेली: + +12534. सोमा बुआ अकेली है। + +12535. ”यों तो मैं कहीं आऊँ-जाऊँ सो ही इन्हें नहीं सुहाता, और फिर कल किशोरी के यहाँ से बुलावा नहीं आया। अरे, मैं तो कहूँ कि घरवालों का कैसा बुलावा! वे लोग तो मुझे अपनी माँ से कम नहीं समझते, नहीं तो कौन भला यों भट्टी और भण्डारघर सौंप दे। पर उन्हें अब कौन समझावे? कहने लगे, तू ज़बरदस्ती दूसरों के घर में टाँग अड़ाती फिरती है।“ और एकाएक उन्हें उस क्रोध-भरी वाणी और कटु वचनों का स्मरण हो आया, जिनकी बौछार कुछ देर पहले ही उन पर होकर चुकी थी। याद आते ही फिर उनके आँसू बह चले। + +12536. कोई सप्ताह-भर बाद बुआ बड़े प्रसन्न मन से आयीं और संन्यासीजी से बोलीं, ”सुनते हो, देवरजी के सुसरालवालों की किसी लड़की का सम्बन्ध भागीरथजी के यहाँ हुआ है। वे सब लोग यहीं आकर ब्याह कर रहे हैं। देवरजी के बाद तो उन लोगों से कोई सम्बन्ध ही नहीं रहा, फिर भी हैं समधी ही। वे तो तुमको भी बुलाये बिना नहीं मानेंगे। समधी को आखिर कैसे छोड़ सकते हैं?“ और बुआ पुलकित होकर हँस पड़ी। संन्यासीजी की मौन उपेक्षा से उनके मन को ठेस तो पहुँची, फिर भी वे प्रसन्न थीं। इधर-उधर जाकर वे इस विवाह की प्रगति की खबरें लातीं! आखिर एक दिन वे यह भी सुन आयीं कि उनके समधी यहाँ आ गये। ज़ोर-शोर से तैयारियाँ हो रही हैं। सारी बिरादरी को दावत दी जायेगी-खूब रौनक होने वाली है। दोनों ही पैसेवाले ठहरे। + +12537. ”तो जाओ ही मत। चलो छुट्टी हुई, इतने लोगों में किसे पता लगेगा कि आयी या नहीं।“ राधा ने सारी समस्या का सीधा-सा हल बताते हुए कहा। + +12538. ”तुमने कलफ़ जो नहीं लगाया अम्माँ, थोड़ा-सा माँड दे देतीं तो अच्छा रहता। अभी दे लो, ठीक हो जायेगी। बुलावा कब का है?“ + +12539. एकाएक चौंकते हुए बुआ ने पूछा, ”कितने बज गये राधा? ... क्या कहा, तीन? सरदी में तो दिन का पता नहीं लगता। बजे तीन ही हैं और धूप सारी छत पर से ऐसे सिमट गयी मानो शाम हो गयी।“ फिर एकाएक जैसे ख्याल आया कि यह तो भाभी के प्रश्न का उत्तर नहीं हुआ, ज़रा ठण्डे स्वर में बोलीं, ”मुहूरत तो पाँच बजे का है, जाऊँगी तो चार तक जाऊँगी, अभी तो तीन ही बजे है।“ बड़ी सावधानी से उन्होंने स्वर में लापरवाही का पुट दिया। बुआ छत पर से गली में नज़र फैलाये खड़ी थीं, उनके पीछे ही रस्सी पर धोती फैली हुई थी, जिसमें कलफ़ लगा था, और अबरक छिड़का हुआ था। अबरक के बिखरे हुए कण रह-रहकर धूप में चमक जाते थे, ठीक वैसे ही जैसे किसी को भी गली में घुसता देख बुआ का चेहरा चमक उठता था। + +12540. कोसी का घटवार + +12541. चक्की के निचले खंड में छिच्छर-छिच्छर की आवाज के साथ पानी को काटती हुई मथानी चल रही थी। कितनी धीमी आवाज! अच्छे खाते-पीते ग्वालों के घर में दही की मथानी इससे ज्यादा शोर करती है। इसी मथानी का वह शोर होता था कि आदमी को अपनी बात नहीं सुनाई देती और अब तो भले नदी पार कोई बोले, तो बात यहां सुनाई दे जाय। + +12542. गुसांईं होंठों-ही-होठों में मुस्कराया, स्साला कैसे चीखता है, जैसे घट की आवाज इतनी हो कि मैं सुन न सकूं! कुछ कम ऊंची आवाज में उसने हाथ हिलाकर उत्तर दे दिया, "यहां जरूरी का भी बाप रखा है, जी! तुम ऊपर चले जाओ!" + +12543. छिच्छर-छिच्छर की आवाज क़े साथ मथानी पानी को काट रही थी। और कहीं कोई आवाज नहीं। कोसी के बहाव में भी कोई ध्वनि नहीं। रेती-पाथरों के बीच में टखने-टखने पत्थर भी अपना सर उठाए आकाश को निहार रहे थे। दोपहरी ढलने पर भी इतनी तेज धूप! कहीं चिरैया भी नहीं बोलती। किसी प्राणी का प्रिय-अप्रिय स्वर नहीं। + +12544. पैंट के साथ और भी कितनी स्मृतियां संबध्द हैं। उस बार की छुट्टियों की बात .. + +12545. पर लछमा को मखमल की कुर्ती किसने पहनाई होगी - पहाडी पार के रमुवां ने, जो तुरी-निसाण लेकर उसे ब्याहने आया था? + +12546. गुसांईं सोचने लगा, उस साल छुट्टियों में घर से बिदा होने से एक दिन पहले वह मौका निकालकर लछमा से मिला था। + +12547. आज इस अकेलेपन में कोई होता, जिसे गुसांईं अपनी जिंदगी की किताब पढक़र सुनाता! शब्द-शब्द, अक्षर-अक्षर कितना देखा, कितना सुना और कितना अनुभव किया है उसने .. + +12548. सर पर पिसान रखे एक स्त्री उससे यह पूछ रही थी। गुसांईं को उसका स्वर परिचित-सा लगा। चौंककर उसने पीछे मुडक़र देखा। कपडे में पिसान ढीला बंधा होने के कारण बोझ का एक सिरा उसके मुख के आगे आ गया था। गुसांईं उसे ठीक से नहीं देख पाया, लेकिन तब भी उसका मन जैसे आशंकित हो उठा। अपनी शंका का समाधान करने के लिए वह बाहर आने को मुडा, लेकिन तभी फिर अंदर जाकर पिसान के थैलों को इधर-उधर रखने लगा। काठ की चिडियां किट-किट बोल रही थीं और उसी गति के साथ गुसांईं को अपने हृदय की धडक़न का आभास हो रहा था। + +12549. गुसांईं झुककर घट से बाहर निकला। मुडते समय स्त्री की एक झलक देखकर उसका संदेह विश्वास में बदल गया था। हताश-सा वह कुछ क्षणों तक उसे जाते हुए देखता रहा और फिर अपने हाथों तथा सिर पर गिरे हुए आटे को झाडक़र एक-दो कदम आगे बढा। उसके अंदर की किसी अज्ञात शक्ति ने जैसे उसे वापस जाती हुई उस स्त्री को बुलाने को बाध्य कर दिया। आवाज देकर उसे बुला लेने को उसने मुंह खोला, परंतु आवाज न दे सका। एक झिझक, एक असमर्थता थी, जो उसका मुंह बंद कर रही थी। वह स्त्री नदी तक पहुंच चुकी थी। गुसांईं के अंतर में तीव्र उथल-पुथल मच गई। इस बार आवेग इतना तीव्र था कि वह स्वयं को नहीं रोक पाया, लडख़डाती आवाज में उसने पुकारा, "लछमा!" + +12550. अचानक साक्षात्कार होने का मौका न देने की इच्छा से गुसांईं व्यस्तता का प्रदर्शन करता हुआ मिहल की छांह में चला गया। + +12551. दाडिम की छाया में पात-पतेल झाडक़र बैठते लछमा ने शंकित दृष्टि से गुसांईं की ओर देखा। कोसी की सूखी धार अचानक जल-प्लावित होकर बहने लगती, तो भी लछमा को इतना आश्चर्य न होता, जितना अपने स्थान से केवल चार कदम की दूरी पर गुसांईं को इस रूप में देखने पर हुआ। विस्मय से आंखें फाडक़र वह उसे देखे जा रही थी, जैसे अब भी उसे विश्वास न हो रहा हो कि जो व्यक्ति उसके सम्मुख बैठा है, वह उसका पूर्व-परिचित गुसांईं ही है। + +12552. अब लछमा के लिए अपने को रोकना असंभव हो गया। टप्-टप्-टप्, वह सर नीचा किए आंसूं गिराने लगी। सिसकियों के साथ-साथ उसके उठते-गिरते कंधों को गुसांईं देखता रहा। उसे यह नहीं सूझ रहा था कि वह किन शब्दों में अपनी सहानुभूति प्रकट करे। + +12553. गुसांईं ने किसी प्रकार की मौखिक संवेदना नहीं प्रकट की। केवल सहानुभूतिपूर्ण दृष्टि से उसे देखता-भर रहा। दाडिम के वृक्ष से पीठ टिकार लछमा घुटने मोडक़र बैठी थी। गुसांईं सोचने लगा, पंद्रह-सोलह साल किसी की जिंदगी में अंतर लाने के लिए कम नहीं होते, समय का यह अंतराल लछमा के चेहरे पर भी एक छाप छोड ग़या था, पर उसे लगा, उस छाप के नीचे वह आज भी पंद्रह वर्ष पहले की लछमा को देख रहा है। + +12554. घट में कुछ देर पहले डाला हुआ पिसान समाप्ति पर था। नंबर पर रखे हुए पिसान की जगह उसने जाकर जल्दी-जल्दी लछमा का अनाज खप्पर में खाली कर दिया। + +12555. बच्चे का परिचय देने की इच्छा से जैसे लछमा ने कहा, "इस छोकरे को घडी-भर के लिए भी चैन नहीं मिलता। जाने कैसे पूछता-खोजता मेरी जान खाने को यहां भी पहुंच गया है।" + +12556. किसी काम से वह बंजर घट की ओर गया और बडी देर तक खाली बर्तन-डिब्बों को उठाता-रखता रहा। + +12557. "अैंऽऽ, यों ही कहती है। कहां रखी थीं रोटियां घर में?" बच्चे ने रूआंसी आवाज में वास्तविक व्यक्ति की बतें सुन रहा था और रोटियों को देखकर उसका संयम ढीला पड ग़या था। + +12558. इस छोटे-से प्रसंग के कारण वातावरण में एक तनाव-सा आ गया था, जिसे गुसांईं और लछमा दोनों ही अनुभव कर रहे थे। + +12559. हाथ से अपनी जेब टटोलते हुए गुसांईं ने संकोचपूर्ण स्वर में कहा, "लछमा!" + +12560. गुसांईं ने गौर से लछमा के मुख की ओर देखा। वर्षों पहले उठे हुए ज्वार और तूफान का वहां कोई चिह्न शेष नहीं था। अब वह सागर जैसे सीमाओं में बंधकर शांत हो चुका था। + +12561. घट के अंदर काठ की चिडियां अब भी किट-किट आवाज कर रही थीं, चक्की का पाट खिस्सर-खिस्सर चल रहा था और मथानी की पानी काटने की आवाज आ रही थी, और कहीं कोई स्वर नहीं, सब सुनसान, निस्तब्ध! + +12562. शब्द में अर्थ सूचित करने की क्षमता को ही शब्द - शक्ति कहा जाता है । शब्दशक्ति में शब्द के ऐसे व्यापार पर विचार किया जाता है , जो शब्दार्थ बोध में सहायक होता है । इस प्रकार जिस शक्ति के द्वारा शब्द में अन्तनिहित अर्थ को स्पष्ट करने अथवा ग्रहण करने में सहायता मिलती है उस माध्यम को शब्द शक्ति कहते हैं। + +12563. शब्द- शक्ति का भेद. + +12564. अभिधा शब्द शक्ति से संकेतित अर्थ किन आधारों से ग्रहण किया जाता है , इस पर आचार्यों ने विस्तार से विचार किया है । यह आधार निम्नलिखित है- + +12565. 5. व्यवहार - व्यवहार ही वस्तुओं और उनके वाचक का संबंध जानने के लिए प्रमुख तथा व्यापक कारण है । जैसे - यदि किसी मनुष्य को गाय लाने के लिए कहा जाये और यह गाय ले आये तो उसे देखकर बालक को भी यह ज्ञान हो जाता है कि इस प्रकार के प्राणी को गाय कहते हैं । + +12566. मुख्यार्थ का बोध होने पर रूढि प्रयोजन के द्वारा मुख्य अर्थ से संबंध रखने वाला अन्य अर्थ जिस शब्द शक्ति से लक्षित होता है , उसे लक्षणा शब्द शक्ति कहते हैं। लक्षणा शब्द शक्ति के इस लक्षण का विश्लेषण करने पर लक्षणा के तीन अंग मिलते हैं। + +12567. डिगत पानि डिगुलात गिरि , लखि सब ब्रज बेहाल। कॉपि किसोरी दरस ते , खरे लजाने लाल
+ +12568. इस दोहे में समय का वर्णन किया गया है , जब जनकपुरी में धनुष यज्ञ के अवसर पर राम धनुष को भंग करने के लिए अपने स्थान से उठे । अर्थ है - उदयाचल रूपी मंच पर से सूर्य रूपी राम उदित हुए, जिन्हें देखकर कमल रूपी संत खिल उठे और भौरं रूपी नेत्र हर्षित हो गए। यहा भगवान राम को बाल पतंग (प्रातः कालीन सूर्य) कहने में मुख्यार्थ का बोध है । अंतः इसका लक्ष्यार्थ है- भगवान राम की प्रभा (प्रातः कालीन सूर्य) की प्रभा के समान प्रेरणा देने वाली और चमकने वाली है। यहाँ प्रयोजनवती लक्षणा हैं। + +12569. व्यंग्यार्थ को ध्वन्यार्थ , सूच्यार्थ , आक्षेपार्थ और प्रतीयमानार्थ भी कहते हैं , क्योंकि यह वाच्यार्थ की भांति न तो कथित होता है और न लक्ष्यार्थ की भाँति लक्षित होता है , यह व्यंजित , ध्वनित , सूचित , आक्षिप्त या प्रतीत होता है । + +12570. + +12571. भारतीय काव्यशास्त्र (दिवि)/छंद: + +12572. लघु - गुरु विचार - छंदों में मात्राओं अथवा अक्षरों की गणना की जाती है । गणना के लिए लघु - गुरु का विचार आवश्यक है । लघु स्वर अथवा लघु अक्षर की एक मात्रा मानी जाती है और उसका चिह्न ( 1 ) है । दीर्घ अथवा गुरु में दो भात्राएँ होती है और उसकी अभिव्यंजना का चिन्ह (ऽ) है । मात्रा को दो वर्गों में विभक्त किया गया है - लघु और गुरु । लघु मात्रा को एक मात्रा तथा गुरु को दो मात्रा मानकर छंद की गणना की जाती है । जैसे क ' में लघु गप्पा अर्थात एक मात्रा है और ' का में गुरु मात्रा अर्थात् दो मात्राएं हैं । इसी प्रकार की स्थिति अन्य वर्णो में भी है । ' राम ' में तीन मात्राएँ हैं क्योंकि रा गुरु है और म लघु है । गणना करते समय कुछ नयमों का विशेष ध्यान रखना होता है । + +12573. हिंदी भाषा और उसकी लिपि का इतिहास/हिंदी का अंतरराष्ट्रीय सन्दर्भ: + +12574. सूरीनाम में भारत वासियों की ओर से देशभर में हिंदी शिक्षण केंद्र स्थापित किए गए हैं। फिजी में पहली भारतीय पाठशाला की स्थापना सन 1916 में हुई। उसके बाद सनातन धर्म सभा, आर्य सभा, आर्य समाज, गुरुद्वारा कमेटी आदि ने अनेक पाठशालाएं खोलें और उनमें हिंदी शिक्षण का कार्य नियमित रूप से प्रारंभ हो गया। + +12575. हिंदी को अंतरराष्ट्रीय स्वरूप प्रदान करने में सिनेमा का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आज हिंदी सिनेमा ने विदेशों में भी अपनी पहुंच बनाई है, और हिंदी के वैश्विक परिदृश्य को पूरा किया है। + +12576. दोपहर में उस सूने आँगन में पैर रखते ही मुझे ऐसा जान पड़ा, मानो उस पर किसी शाप की छाया मँडरा रही हो, उसके वातावरण में कुछ ऐसा अकथ्य, अस्पृश्य, किन्तु फिर भी बोझिल और प्रकम्पमय और घना-सा फैल रहा था... + +12577. “सवेरे उठते ही चले जाते हैं।” + +12578. मैं उसके जाते हुए, दुबले शरीर को देखकर सोचता रहा। यह क्या है... यह कैसी छाया-सी इस घर पर छायी हुई है... + +12579. मैंने उसे बुलाया, “टिटी, टीटी, आ जा” पर वह अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से मेरी ओर देखता हुआ अपनी माँ से चिपट गया, और रुआँसा-सा होकर कहने लगा, “उहुँ-उहुँ-उहुँ-ऊँ...” + +12580. यह ‘हूँ’ प्रश्न-सूचक था, किन्तु इसलिए नहीं कि मालती ने मेरी बात सुनी नहीं थी, केवल विस्मय के कारण। इसलिए मैंने अपनी बात दुहरायी नहीं, चुप बैठा रहा। मालती कुछ बोली ही नहीं, थोड़ी देर बाद मैंने उसकी ओर देखा। वह एकटक मेरी ओर देख रही थी, किन्तु मेरे उधर उन्मुख होते ही उसने आँखें नीची कर लीं। फिर भी मैंने देख, उन आँखों में कुछ विचित्र-सा भाव था, मानो मालती के भीतर कहीं कुछ चेष्टा कर रहा हो, किसी बीती हुई बात को याद करने की, किसी बिखरे हुए वायुमंडल को पुन: जगाकर गतिमान करने कभी, किसी टूटे हुए व्यवहार-तन्तु को पुनरुज्जीवित करने की, और चेष्टा में सफल न हो रहा हो... वैसे जैसे बहुत देर से प्रयोग में न लाये हुए अंग को व्यक्ति एकाएक उठाने लगे और पाए कि वह उठता ही नहीं है, चिरविस्मृति में मानो मर गया है, उतने क्षीण बल से (यद्यपि वह सारा प्राप्य बल है) उठ नहीं सकता... मुझे ऐसा जान पड़ा मानो किसी जीवित प्राणी के गले में किसी मृत जन्तु का तौक डाल दिया गया हो, वह उसे उतारकर फेंकना चाहे, पर उतार न पाए... + +12581. महेश्वर बोले, कुछ हँसकर, “वह पीछे खाया करती है...” + +12582. मालती बच्चे को गोद में लिये हुए थी। बच्चा रो रहा था, पर उसकी ओर कोई भी ध्यान नहीं दे रहा था। + +12583. दूर... शायद अस्पताल में ही, तीन खडक़े। एकाएक मैं चौंका, मैंने सुना, मालती वहीं आँगन में बैठी अपने-आप ही एक लम्बी-सी थकी हुई साँस के साथ कह रही है, “तीन बज गये...” मानो बड़ी तपस्या के बाद कोई कार्य सम्पन्न हो गया हो... + +12584. मैंने पूछा, “नौकर कोई नहीं है?” + +12585. “क्यों, पानी को क्या हुआ?” + +12586. मैंने कहा ही तो, “अच्छा, अब याद आया? तुमसे मिलने आया था, और क्या करने?” + +12587. मैंने पूछा, “तुम कुछ पढ़ती-लिखती नहीं?” मैं चारों ओर देखने लगा कि कहीं किताबें दीख पड़ें। + +12588. “इतनी दूर? बड़ी हिम्मत की।” + +12589. “नहीं बिलकुल नहीं थका।” + +12590. एकाएक वह एक-स्वर टूट गया-मौन हो गया। इससे मेरी तन्द्रा भी टूटी, मैं उस मौन में सुनने लगा... + +12591. मैंने पूछा, “गैंग्रीन कैसे हो गया?” + +12592. महेश्वर हँसे, बोले, “न काटें तो उसकी जान गँवाएँ?” + +12593. टिटी महेश्वर की टाँगों के सहारे खड़ा मेरी ओर देख रहा था, अब एकाएक उन्हें छोड़ मालती की ओर खिसकता हुआ चला। महेश्वर ने कहा, “उधर मत जा!” और उसे गोद में उठा लिया, वह मचलने और चिल्ला-चिल्लाकर रोने लगा। + +12594. अब हम तीनों... महेश्वर, टिटी और मैं पलंग पर बैठ गये और वार्तालाप के लिए उपयुक्त विषय न पाकर उस कमी को छुपाने के लिए टिटी से खेलने लगे, बाहर आकर वह कुछ चुप हो गया था, किन्तु बीचबीच में जैसे एकाएक कोई भूला हुआ कर्र्तव्य याद करके रो उठता था, और फिर एकदम चुप हो जाता था... और कभी-कभी हम हँस पड़ते थे, या महेश्वर उसके बारे में कुछ बात कह देते थे... + +12595. मुझे एकाएक याद आया... बहुत दिनों की बात थी... जब हम अभी स्कूल में भरती हुए ही थे। जब हमारा सबसे बड़ा सुख, सबसे बड़ी विजय थी हाजिरी हो चुकने के बाद चोरी के क्लास से निकल भागना और स्कूल से कुछ दूरी पर आम के बगीचे में पेड़ों में चढक़र कच्ची आमियाँ तोड़-तोड़ खाना। मुझे याद आया... कभी जब मैं भाग आता और मालती नहीं आ पाती थी तब मैं भी खिन्न-मन लौट आया करता था। + +12596. पर अबकी बार जब मालती रसोई की ओर चली, तब टिटी की कर्तव्यभावना बहुत विस्तीर्ण हो गयी,वह मालती की, ओर हाथ बढ़ाकर रोने लगा और नहीं माना, मालती उसे भी गोद में लेकर चली गयी, रसोई में बैठकर एक हाथ से उसे थपकने और दूसरे से कई एक छोटे-छोटे डिब्बे उठाकर अपने सामने रखने लगी... + +12597. मैं चुप रहा, थोड़ी देर में किसी अपर संज्ञा ने मुझे बताया, वह ऊँघ रहे हैं। + +12598. मैंने देखा, पवन में चीड़ के वृक्ष... गरमी से सूखकर मटमैले हुए चीड़ के वृक्ष... धीरे-धीरे गा रहे हों... कोई राग जो कोमल है, किन्तु करुण नहीं, अशान्तिमय है, किन्तु उद्वेगमय नहीं... + +12599. यह सब मानो एक ही क्षण में, एक ही क्रिया की गति में हो गया। + +12600. तभी ग्यारह का घंटा बजा, मैंने अपनी भारी हो रही पलकें उठाकर अकस्मात् किसी अस्पष्ट प्रतीक्षा से मालती की ओर देखा। ग्यारह के पहले घंटे की खडक़न के साथ ही मालती की छाती एकाएक फफोले की भाँति उठी और धीरे-धीरे बैठने लगी, और घंटा-ध्वनि के कम्पन के साथ ही मूक हो जानेवाली आवाज में उसने कहा, “ग्यारह बज गये...” + +12601. भोलानाथ तिवारी के अनुसार- "मनुष्य ने अपनी आवश्यकता अनुसार लिपि को स्वयं जन्म दिया है। आरंभ में मनुष्य ने इस दिशा में जो कुछ भी किया था वह इस दृष्टि से नहीं किया कि उससे लिपि विकसित हो। बल्कि जादू टोने के लिए कुछ रेखाएं खींची होंगी, धार्मिक दृष्टि से किसी देवता का चित्र या अन्य चिन्ह बनाएं, सुंदरता के लिए गुफाओं की दीवारों पर जीव जंतु एवं वनस्पति के चित्र या स्मरण के लिए रस्सी में गांठे आदि लगाई और बाद में इन्हीं साधनों का प्रयोग विचारों की अभिव्यक्ति के लिए किया गया और वह धीरे-धीरे विकसित होकर नीति बन गई।" + +12602. १. वैदिक ग्रंथों के प्रमाण- ऋग्वेद में ज्योतिष संबंधी अनेक सूक्त हैं जो अंको के अविष्कार की सूचना देते हैं ऐतरेय ब्राह्मण (३३/४/१/५) में छंदों के अक्षरों का विश्लेषण है, जिससे वर्णमाला के विकास की सूचना मिलती है। + +12603. हिंदी साहित्य का सरल इतिहास: + +12604. आदिकाल विविध और परस्परविरोधी प्रवृत्तियों का काल है| हर्षवर्धन के बाद किसी ने केंद्रीय सत्ता स्थापित नहीं की| युद्ध या बाहरी हमलों का कोई प्रभाव जनता पर नहीं पड़ता था|भूमि और नारी का हरण राजाओं पर लिखे गए काव्यों में सामान्य विषय है| सामंतवादी व्यवस्था में भूमि संपत्ति का स्रोत होती है| रक्त या वंश की शुद्धता और उच्चता में नारी की भूमिका निर्णायक होती है| अर्थव्यवस्था की बात छोड़ दे तो कहा जा सकता है कि सामान्य जनता के दैनंदिन जीवन पर राज्य की अपेक्षा धार्मिक मतों का अधिक प्रभाव था| इस काल में संस्कृत, प्राकृत, और अपभ्रंश में भी रचनाएं हो रही थी| और साथ ही साथ अपभ्रंश के केंचुल को छोड़ती हुई हिंदी भी अपना रूप ग्रहण कर रही थी| + +12605. नाथों का समय थोड़ा बाद का है। 84 सिद्धों की जो सूची मिलती है, उसमें कई नाम नाथों के भी है। वज्रयानी सिद्धों के साथ नाथों का संबंध था। नाथपंथ में 'गोरखनाथ' शिव के रूप माने जाते हैं। अंतः इसका शैव होना स्पष्ट है। गोरखनाथ ने पतंजलि के योग को लेकर हठयोग का प्रवर्तन किया और ब्रह्मचर्य, वाक्संयम, शारीरिक-मानसिक शुचिता तथा मघ-मांस के त्याग का आग्रह किया। ब्राह्मणों के कर्मकांड एवं वर्णाश्रम व्यवस्था पर उन्होंने भी तीव्र प्रहार किया। उनका सिद्धांत था-'जोई-जोई पिंडे सोई ब्रह्मांडे' अर्थात जो शरीर में है, वही ब्रह्मांड में है। इड़ा-पिंगला, नाद-बिंदु की साधना, षट्चक्रभेदन, शून्य चक्र में कुंडलिनी का प्रयोग आदि नाथों की अंतस्साधना के मुख्य अंग हैं। संधा भाषा या उलटबाँसी की शैली का प्रयोग उन्होंने ही किया है। + +12606. इस काल का लिखा गया वैष्णव साहित्य बहुत ही कम मात्रा में उपलब्ध है। लेकिन लक्ष्मीधर द्वारा चौदहवीं शताब्दी में संकलित प्राकृत पैंगलम् के अनेक छंदों में विष्णु के विभिन्न अवतारों से संबंधित पंक्तियाँ मिलती हैं। इसी प्रकार हेमचंद्र (12वीं शती) के प्राकृत व्याकरण में संकलित अपभ्रंश दोहों में भी कृष्ण, राधा, दशमुख आदि की चर्चा आती है। इससे अनुमान किया जा सकता है कि इस काल के साहित्य में विष्णु के विभिन्न अवतारों को लेकर प्रचुर मात्रा में रचनाएँ हुई थीं, जो अब उपलब्ध नहीं हैं। + +12607. अखइ निरामइ परम-पइ अज्जवि लउ न लहंति + +12608. के संगम में नींद कहाँ! प्रिय के परोक्ष में (सामने न रहने पर)। नींद कहाँ! मैं दोनों प्रकार से नष्ट हुई, नींद न यों न त्यों। + +12609. पं. रामचंद्र शुक्ल ने आदिकाल के तृतीय प्रकरण को 'वीरगाथा काल' कहा है। उनके अनुसार इस नामकरण का आधार यह है, कि इस काल की प्रधान साहित्यिक प्रवृत्ति वीरगाथात्मक है। शक्ल जी ने इस काल की प्रधान साहित्यिक प्रवृत्ति की पहचान जिन 12 ग्रंथों के आधार पर की है, वे इस प्रकार हैं- विजयपाल रासो, हम्मीर रासो, कीर्तिलता, कीर्तिपताका, खुमान रासो, बीसलदेव रासो, पृथ्वीराज रासो, जयचंद प्रकाश, जयमयंक-जस-चंद्रिका, परमाल रासो, खुसरो की पहेलियाँ और विद्यापति पदावली। + +12610. महामहोपाध्याय गौरीशंकर ओझा के अनुसार, पृथ्वीराज रासो 1600 वि. सं. के आसपास लिखा गया। इसकी ऐतिहासिकता की खोज अब बंद कर दी गई है। इधर हाल में मुनि जिन विजय ने पुरातन प्रबंध संग्रह के एक अंश जयचंद प्रबंध के चार छप्पयों की ओर ध्यान आकृष्ट कराया, जो वर्तमान रासो में भी मिलते हैं। पुरातन प्रबंध संग्रह का संकलन काल संभवत: पंद्रहवीं शती है। इससे यह तो प्रकट हो गया कि पंद्रहवी शती के पूर्व 'चंद्र' नामक कवि ने पृथ्वीराज पर कोई काव्य लिखा था, जिसके कुछ अंश वर्तमान रासो में हैं, किंतु रासो का मूल रूप क्या रहा होगा यह समस्या अभी भी बनी हुई है। पं. हजारीप्रसाद द्विवेदी ने अनुमान किया है कि चंद्र ने रासो का रचना शुक-शुकी संवाद के रूप में की थी। मध्यकालीन प्रबंध-काव्य का यह बहुप्रयुक्त रूढ़ि है। रासो के जो अंशक-शकी संवाद के रूप में मिलते है, व ही मूलरूप हैं। डॉ. माताप्रसाद गुप्त ने रासो के चार पाठों-वृहत्तम, वृहत, लघु तथा लघुतम में से लघुतम पाठ को रासो का मूलरूप बताया है। रासो में मध्यकालीन साहित्य में प्रयुक्त अनेक कथानक-रूढ़ियों और काव्य-रूढ़ियों का प्रयोग किया गया है। इसमें अनेक छंदों का प्रयोग मिलता है। पृथ्वीराज रासो रासो काव्य-परंपरा का काव्य तो है ही, इसमें चरितकाव्य, आख्यायिका आदि के भी लक्षण मिलते हैं। + +12611. + +12612. मानक हिंदी कोश के अनुसार- " लिपि किसी भाषा के ऐसे लघुत्तम ध्वनि अक्षरों का समूह है जो लिखने में प्रयुक्त होते हैं।" + +12613. २. पत्थरों को जोड़कर या इकट्ठा करके। + +12614. "आवश्यकता आविष्कार की जननी है", कहावत को लिपि के उद्भव और विकास का सूत्र मानना अधिक उचित है। लिपि की आवश्यकता के मूल मैं मनुष्य की अभिरुचि और जिज्ञासा हीं है। लिपि भाषा को स्थायित्व प्रदान करती है। लिपि का महत्व इस तथ्य से ज्ञात होता है कि प्राचीन काल में यदि लिपि होती तो अपेक्षाकृत अधिक लोक साहित्य भी जीवित होते। + +12615. इस प्रकार कहा जा सकता है कि आधुनिक समाज के लिए भाषा भाषित रूप में ही नहीं अपितु अंकित रूप में भी अनिवार्य हो गई है। और अंकित के लिए लिपि का माध्यम अनिवार्य है। + +12616. किसी भी साधारण लिपि में आदर्श लिपि बनने के लिए निम्नलिखित गुण होने चाहिए।- + +12617. ३. आदर्श लिपि लेखन की दृष्टि से सरल होनी चाहिए प्रत्येक मौलिक उच्चारण के लिए विशिष्ट अक्षर अथवा लिपि चिन्ह होना चाहिए। + +12618. ८. एक आदर्श लिपि में सभी अक्षर समान ऊंचाई के होने चाहिए। इसके साथ साथ उसमें शीघ्र लेखन की भी विशेषता होनी चाहिए इस दृष्टि से नागरी लिपि में शिरोरेखा सबसे बड़ी बाधा है। + +12619. १. यह लिपि भाषा के अंतर्गत आने वाले अधिक से अधिक चिन्हों से संपन्न है। जिसमें परंपरागत रूप से 11 स्वर और 33 व्यंजन हैं। इसके अतिरिक्त ड़, ढ़, क़, ख़, ग़, ज़, फ़ इन ध्वनियों के लिए भी चिन्ह बने हैं। क्ष, त्र, ज्ञ, श्र संयुक्त व्यंजनों के लिए अलग चिन्ह है। + +12620. ६. रोमन लिपि में कई बार वर्ण मूक रहते हैं, उनका उच्चारण नहीं किया जाता लेकिन उन्हें लिखा जाता है। जैसे- Know, Knife, Tsunami आदि लेकिन देवनागरी लिपि में यह दोष नहीं है। नागरी लिपि में प्रत्येक वर्ण का उच्चारण किया जाता है। + +12621. ११. उत्तर भारत की सभी लिपियां नागरी के ही रूप भेद है, यह संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिंदी, मराठी, नेपाली आदि अनेक भाषाओं की लिपि तो है ही साथ ही अन्य भाषा की लिपि होने का सामर्थ्य भी इसमें विद्यमान है। + +12622. १६. इसका वर्तमान रूप नेत्रों के लिए अत्यंत आकर्षक है। इसके साथ साथ यह लिपि वैज्ञानिक और कंप्यूटर की दृष्टि से भी उपयुक्त है। + +12623. हिंदी साहित्य का सरल इतिहास/आदिकाल/विद्यापति(14वीं शती): + +12624. अमीर खुसरो इस युग के अत्यंत महत्त्वपूर्ण एवं बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति हैं। उनके काव्योत्कर्ष का प्रमाण उनकी फ़ारसी रचनाएँ हैं। वे संगीतज्ञ, इतिहासकार, कोशकार, बहुभाषाविद्, सूफ़ी औलिया, कवि-बहुत कुछ थे। उनकी हिंदी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय रही हैं। उनकी पहेलियाँ, मुकरियाँ, दो सुखने अभी तक लोगों की ज़बान पर हैं। उनके नाम से निम्नलिखित दोहा बहुत प्रसिद्ध है (कहते हैं कि यह दोहा खुसरो ने ख्वाजा निज़ामुद्दीन चिश्ती के देहांत पर कहा था)- + +12625. + +12626. इस सबके बावजूद भारतीय माहौल में सीएसआर को बहुत कम तरजीह दी जाती है। अगर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम की नवरत्‍न एवं मिनीरत्‍न कंपनियों और प्रसिद्ध बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों तथा मुठ्ठी भर भारतीय कंपनियों को छोड़ दिया जाये तो अन्‍य कंपनियों में सीएसआर को लेकर एक भ्रम बना हुआ है। सामान्‍य रूप से इसे धर्मदान ही कहा जाता है। सामान्‍य रूप से कहें तो सीएसआर को कंपनियां खुद के लिए बोझ समझती हैं न कि उनके व्‍यापार का हिस्‍सा, इसलिए ही उनका रवैया संरक्षण परक और महज चेक बुक तक ही सिमटा हुआ है। + +12627. + +12628. व्‍यापारिक घरानों की सामाजिक जिम्‍मेदारी/भारत में इसकी स्थिति: + +12629. + +12630. यह तर्क कि व्‍यापार का प्राथमिक काम लाभ कमाना और कर चुकाना है तथा यह केंद्र, राज्‍य स्‍थानीय निकायों की जिम्‍मेदारी है कि वह आवश्‍यक सामाजिक ढांचा बनाये, अभी तक प्रचलन में हैं। लेकिन एक उद्योग को स्‍वस्‍थ एवं शिक्ष्‍िात कामगार चाहिये जिससे काम को दक्षता से अंजाम दिया जा सके । किसी भी समाज को उन्नति करने के लिए लाभप्रद और प्रतिस्‍पर्धी व्‍यापार को अवश्‍य ही बढ़ावा देना चाहिये और आय एवं अवसरों को मजबूत बनाना चाहिए । इसे सृजनात्‍मक साझा मूल्‍य कहा गया है और यह कंपनियों और समाज के व्‍यापक हित में है । इससे ही सीएसआर का आधार विस्‍तृत होगा और कंपनियों की यह समझ बढ़ेगी कि उनके कामगारों के लिए क्या अच्‍छा है और उसके कर्मचारियों का स्‍वास्‍थ्‍य और पर्यावरण भी उनके व्‍यापर के लिए लाभदायक है । + +12631. उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम उपयोग और खनन के कारण पर्यावरण की हानि को न्यूनतम करने पर विशेष ध्यान दिया जायेगा। + +12632. IGC को भू-वैज्ञानिकों का ओलम्पिक के नाम से भी जाना जाता है। + +12633. भारत एकमात्र एशियाई देश है जो दूसरी बार इस सम्‍मेलन का आयोजन कर रहा है। भारत ने पहली बार वर्ष 1964 में 22वें IGC (एशिया में पहला) का आयोजन किया था। + +12634. भारत का स्वर्ण भंडार दो दशकों में 357.8 टन से बढ़कर वर्तमान में 618.2 टन हो गया है। + +12635. राष्ट्रीय खनिज विकास निगम(National Mineral Development Corporation- NMDC) + +12636. इस पोर्टल के माध्यम से कोयला कंपनियों को प्रभावी उत्पादन योजना हेतु पावर स्टेशनों पर स्टॉक और आवश्यकता को ट्रैक करने में सहायता मिलेगी क्योंकि एक निश्चित मात्रा से अधिक कोयला भंडारित करने पर आग लगने की संभावना बनी रहती है। + +12637. इस प्रणाली के तहत विशेष इस्पात उत्पादों के आयातकों को सिम्स के वेबपोर्टल पर आवश्यक सूचना देते हुए अग्रिम रूप से पंजीकरण कराना होगा। यह पंजीकरण ऑनलाइन किया जाएगा। + +12638. यह पश्चिम बंगाल की सबसे नई कोयला खदान है। + +12639. सिलेरू नदी,सबरी नदी की एक सहायक नदी है। इसका उद्गम आंध्र प्रदेश में होता है और यह सबरी नदी में विलय से पहले ओडिशा से होकर बहती है। सिलेरू को ऊपरी भाग में मचकुंड के नाम से जाना जाता है। यह आंध्र प्रदेश,छत्तीसगढ़ और ओडिशा के त्रि-जंक्शन सीमा क्षेत्र में सबरी नदी से मिलती है। गोदावरी नदी के साथ विलय करने के लिये सबरी नदी आंध्र प्रदेश की सीमा को पार करती है। + +12640. यह योजना जल उपयोगकर्त्ता संघों, जल बजट, ग्राम-पंचायत स्तर पर जल सुरक्षा योजनाओं की तैयारी और कार्यान्वयन आदि के माध्यम से लोगों की भागीदारी की परिकल्पना करती है। + +12641. 1960 के बाद से इस मुद्दे को लेकर दोनों राज्यों के बीच तनाव बना हुआ है। + +12642. इस बांध का उद्देश्य पश्चिम की ओर बहने वाली पेरियार नदी के पानी को तमिलनाडु में वृष्टि छाया क्षेत्रों में पूर्व की ओर मोड़ना है। + +12643. वर्ष 2014 में सरकार ने पोलावरम परियोजना को एक राष्ट्रीय परियोजना घोषित कर दिया तथा मंत्रालय ने निर्माण कार्यों की अनुमति देकर ‘काम रोकने के आदेश’ (Stop Work Order) को ठंडे बस्ते में डाल दिया।आंध्र प्रदेश के पश्चिमी गोदावरी ज़िले के पोलावरम मंडल के रम्मय्यापेट (Ramayampet) के निकट गोदावरी नदी पर स्थित है। + +12644. हरित इस्पात, इस्पात निर्माण की ऐसी प्रक्रिया को संदर्भित करता है जो हरितगृह गैसों के उत्सर्जन को कम करने और कम लागत के साथ-साथ इस्पात की गुणवत्ता में सुधार करता है। + +12645. Kimberley Process Certification Scheme + +12646. किम्‍बर्ले प्रक्रिया प्रमाणन योजना की अध्यक्षता की ज़िम्मेदारी सदस्‍य देशों को बारी-बारी से सौंपी जाती है। + +12647. इस बाँध का निर्माण समुद्र तल से लगभग 300 मीटर की ऊँचाई पर नल्लामलाई पहाड़ियों की एक गहरी खाई में किया गया है। + +12648. इस बांध का उद्देश्य मराठवाडा जैसे क्षेत्र में वर्षाकाल के दौरान आई बाढ़ तथा बाकी समय में पड़ने वाले सूखे जैसी समस्याओं से निपटना है। + +12649. चूँकि गोवा की अन्य नदियाँ लवणीय जल युक्त हैं, वहीं मंडोवी जो एक मीठे जल का स्रोत होने के साथ -साथ जल सुरक्षा, पारिस्थिकी और मछली पालन का भी एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। + +12650. प्रमुख विशेषताएँ: + +12651. खनन कंपनियों के विलय और अधिग्रहण को प्रोत्साहित करना। + +12652. नीति में निजी क्षेत्र की सहायता करने के लिये वैश्विक मानदंड के साथ कर, लेवी और रॉयल्टी को युक्तिसंगत बनाने के प्रयासों का भी उल्लेख किया गया है। + +12653. अनुच्छेद 370 भारत के संविधान में 17 अक्तूबर, 1949 को शाम‍िल किया गया था। + +12654. संसद ने नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 पारित किया. + +12655. OCI के पंजीकरण को रद्द करना:- अधिनियम में यह प्रावधान है कि केंद्र सरकार कुछ आधारों पर OCI के पंजीकरण को रद्द कर सकती है।(i) यदि OCI ने धोखाधड़ी द्वारा पंजीकरण कराया हो या (ii) यदि पंजीकरण कराने कि तिथि से पाँच वर्ष की अवधि के भीतर OCI कार्डधारक को दो साल या उससे अधिक समय के लिये कारावास की सज़ा सुनाई गई हो या (iii)यदि ऐसा करना भारत की संप्रभुता और सुरक्षा के हित में आवश्यक हो। + +12656. असम में इस विधेयक को लेकर विरोध की एक बड़ी वजह यही है कि हालिया नागरिक संशोधन विधेयक असम समझौते का उल्लंघन करता है, क्योंकि इसके तहत उन लोगों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी जो 1971 एवं 2014 से पहले भारत आए हैं।] + +12657. लेकिन यह विधेयक अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू,सिख,बौद्ध,जैन,पारसी तथा ईसाई प्रवासियों के लिये 11 वर्ष की शर्त को 6 वर्ष करने का प्रावधान करता है। + +12658. मानवाधिकार संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2019. + +12659. ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019. + +12660. ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों की सुरक्षा) विधेयक, 2019 एक प्रगतिशील विधेयक है क्योंकि यह ट्रांसजेंडर समुदाय को सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से सशक्त बनाएगा। + +12661. ट्रांसजेंडर समुदाय की विभिन्न सामाजिक समस्याएँ जैसे- बहिष्कार, बेरोज़गारी, शैक्षिक तथा चिकित्सा सुविधाओं की कमी, शादी व बच्चा गोद लेने की समस्या,आदि। + +12662. राज्यसभा में कंपनी (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित कर दिया।. + +12663. सभी कंपनियों को एक साल में CSR को खर्च करने से संबंधित प्रस्ताव तैयार करना होगा और अगले तीन सालों में उस प्रस्ताव पर धनराशि खर्च करनी होगी। + +12664. कंपनी अधिनियम के तहत राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण की स्थापना हुई है। + +12665. इसके द्वारा NIA को भारत से बाहर अपराध के संबंध में मामले को दर्ज कर जाँच करने का प्रावधान किया गया है। इस विधेयक से NIA की जाँच का दायरा बढ़ाया जा सकेगा और यह विदेशों में भी भारतीय तथा भारतीय परिसंपत्तियों से जुड़े मामलों की जाँच कर सकेगी, साथ ही NIA को मानव तस्करी और साइबर अपराध से जुड़े विषयों की जाँच का अधिकार देने का प्रावधान भी विधेयक में किया गया है। + +12666. इसके अलावा राज्य सरकारें भी सूचीबद्ध अपराधों की सुनवाई हेतु विशेष न्यायालयों के रूप में सत्र न्यायालयों को नामित कर सकती हैं। + +12667. वर्तमान में उपभोक्‍ता संबंधी मामलों में न्याय पाने के लिये उपभोक्‍ताओं के पास मात्र उपभोक्ता आयोग ही एक विकल्‍प है, जिसके कारण न्याय मिलने में काफी समय लगता है। CCPA के गठन से उपभोक्ताओं को त्वरित न्याय प्राप्त करने में मदद मिलेगी। + +12668. राजस्थान विधानसभा द्वारा मॉब लिंचिंग (Mob Lynching) और ऑनर किलिंग के विरुद्ध विधेयक पारित कर. + +12669. IPC की धारा 223A में भी इस तरह के अपराध के लिये उपयुक्त क़ानून के इस्तेमाल की बात कही गई है, सीआरपीसी में भी स्पष्ट रूप से इसके बारे में कुछ नहीं कहा गया है। + +12670. प्रश्न यह है कि भक्ति आंदोलन का सामाजिक-ऐतिहासिक आधार क्या था? पं. रामचंद्र शुक्ल के अनुसार, भक्ति-भावना का कारण भारत में आक्रमण-कारी मुसलमानों का विजेता होना है। वे यह तो मानते थे कि भक्ति आंदोलन का सूत्रपात दक्षिण भारत में हुआ, लेकिन उनका विचार था कि अपने पौरुष से हताश हिंदू जाति के लिए भगवान की भक्ति और करुणा की ओर ध्यान ले जाने के अतिरिक्त दूसरा मार्ग ही क्या था? संभवतः आचार्य शुक्ल उत्तर भारत की हिंदू जनता की पराजित मानसिकता को रेखांकित करना चाहते हों, जो भक्ति के प्रचार-प्रसार के लिए अनुकूल भूमि बनी। + +12671. इस देश में जुलाहों की आर्थिक स्थिति प्राचीनतर काल से अच्छी रही है। उनमें अपनी सामाजिक मर्यादा के प्रति असंतोष का भाव भी पहले से रहा है। तेरहवीं-चौदहवीं शताब्दी में उनके साथ-साथ अन्य अवर्ण शिल्पियों की स्थिति भी बेहतर हुई होगी। खेतों की सिंचाई के नए तरीकों के उपयोग के कारण (इरफ़ान हबीब के अनुसार) जाटों-किसानों की स्थिति भी बेहतर हुई होगी। और ठीक इसी समय दक्षिण भारत से प्रवाहित दर्शन और विचारधारा ने भक्ति आंदोलन को तेजी से प्रचारित-प्रसारित किया। + +12672. हम जानते हैं कि हिंदी के भक्ति काव्य में अवर्णों और नारियों का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण योगदान है। भक्तिकाल के बाद फिर आधुनिक काल में ऊपर की बातें उस सामाजिक-आर्थिक स्थिति को प्रकट करती हैं जिसने शिल्पियों, अवर्णों को सामाजिक मर्यादा की दृष्टि से ऊपर उठने की प्रेरणा दी। लेकिन यह बिना किसी पुष्ट विचारधारा के संभव नहीं था रामानुजाचार्य (11वीं शती) का विशिष्टाद्वैत दर्शन भक्ति का दार्शनिक या विचारधारात्मक आधार प्रस्तुत करता है। विशिष्टाद्वैत शांकर अद्वैत की तरह जगत को मिथ्या नहीं मानता। रामानुज का ब्रह्म विशेषण से युक्त अर्थात् विशिष्ट है। उनके अनुसार जगत मिथ्या नहीं, वास्तविक है। ब्रह्म जीव और जगत को धारण करता हुआ उसका नियमन करता है। जगत को वास्तविक मानकर उसको महत्त्व देने में ही भक्ति की लोकोन्मुखता निहित है। यदि लोक सत्य हैं, तो लोक-पीड़ा उपेक्षणीय नहीं। भक्तों ने लोक-पीड़ा को इतना महत्त्व नहीं दिया है। इसलिए वे करुणा के अन्यतम रचनाकार हैं। + +12673. भक्ति की दो धाराएँ प्रवाहित हुईं-निर्गुण धारा और सगुण धारा। निर्गुण और सगुण धारा में अंतर इस बात का नहीं है कि निर्गुणियों के राम गुणहीन हैं और सगुण मतवादियों के राम या कृष्ण गुण सहित। निर्गुण का अर्थ संतों के यहाँ गुणरहित नहीं, गुणातीत है। निर्गुण और सगुण मतवाद का अंतर अवतार एवं लीला की दो अवधारणाओं को लेकर है। निर्गुण मत के इष्ट भी कृपालु, सहृदय, दयावान, करुणाकर हैं, वे भी मानवीय भावनाओं से युक्त हैं, किंतु वे न अवतार ग्रहण करते हैं न लीला। वे निराकार हैं। सगुण मत के इष्ट अवतार लेते हैं, दुष्टों का दमन करते हैं, साधुओं की रक्षा करते हैं और अपनी लीला से भक्तों के चित्त का रंजन करते हैं। अत: सगुण मतवाद में विष्णु के 24 अवतारों में से अनेक की उपासना होती है, यद्यपि सर्वाधिक लोकप्रिय और लोक-पूजित अवतार राम एवं कृष्ण ही हैं। + +12674. 3. रुद्र संप्रदाय- इसके प्रवर्तक विष्णुस्वामी थे। वस्तुतः यह महाप्रभु वल्लभाचार्य के पुष्टि संप्रदाय के रूप में हिंदी में जीवित है। जिस प्रकार रामानंद ने 'राम' की उपासना पर बल दिया था, उसी प्रकार वल्लभाचार्य ने 'कृष्ण' की उपासना पर बल दिया। उन्होंने प्रेमलक्षणा भक्ति ग्रहण की। भगवान के अनुग्रह के भरोसे नित्यलीला में प्रवेश करना जीव का लक्ष्य माना। सूरदास एवं अष्टछाप के कवियों पर इसी संप्रदाय का प्रभाव है। + +12675. 1. नफ्स (इंद्रिय), + +12676. अन्य मत. + +12677. भक्तिकालीन हिंदी काव्य की प्रमुख भाषा ब्रजभाषा है। इसके अनेक कारण हैं। परंपरा से पछाँही बोली शौरसेनी मध्यदेश की काव्य-भाषा रही है। ब्रजभाषा आधुनिक आर्यभाषा काल में उसी शौरसेनी का रूप थी। इसमें सूरदास जैसे महान लोकप्रिय कवि ने रचना की और वह कृष्ण-भक्ति के केंद्र ब्रज की बोली थी जिससे यह कृष्ण-भक्ति की भाषा बन गई। भक्ति काव्य की ब्रजभाषा प्रवाह के कारण ब्रजभूमि के बाहर भी काव्य-भाषा के रूप में स्वीकृत हुई। इसीलिए बाद में कहा गया कि “ब्रजभाषा हेतु ब्रजवास ही न अनुमानौं"। पूर्व-मध्यकालीन साहित्य में ब्रजभाषा एक प्रकार से भक्ति काव्य का पर्याय बन गई है। । यहाँ तक + +12678. दोहा-चौपाइयों की परंपरा भी सरहपा से मिलने लगती है, किंतु सरहपा ने कोई प्रबंध-काव्य नहीं लिखा। लगता है, दोहा-चौपाइयों में प्रबंध काव्य लिखने के लिए अवधी की प्रकृति अधिक अनुकूल है। जायसी-पूर्व अवधी कवियों के भी अनेक काव्य चौपाई- दोहे में कड़वकबद्ध मिले हैं- जैसे भीम कवि का दंगवै पुराण, सूरजदास की एकादशी कथा, पुरुषोत्तम का जैमिनि पुराण, ईश्वरदास की सत्यवती कथा आदि। किंतु यह रचना-रूप सूफ़ी कवियों, विशेषत: जायसी के हाथों अत्यंत परिष्कृत हुआ। तुलसीदास ने इसे चरमोत्कर्ष पर पहुँचा दिया। + +12679. अब हम भक्ति की निर्गुण और सगुण, दोनों काव्य-धाराओं तथा उनकी उपधाराओं के कवियों और उनकी रचनाओं पर विचार करेंगे। + +12680. बात करते हैं। प्रेम एवं भक्ति पर जोर होने के बावजूद उन्हें ज्ञानाश्रयी धारा का संत कहा जाता है। इस धारा के कवि अधिकांशत: अवर्ण हैं। उन्होंने वर्ण- व्यवस्था की पीड़ा सही थी। अत: उनमें वर्ण-व्यवस्था पर तीव्र आक्रमण करने का भाव है। इस धारा के कवियों पर नाथ-संतों की अंतस्साधना के साथ उनका दुरूह प्रतीक-शैली उलटबाँसी का भी प्रभाव है। इन्होंने गेयपद, दोहा, चौपाई के अतिरिक्त कुछ लोक-प्रचलित छंदों का भी उपयोग किया है। ज्ञानाश्रयी धारा किसी कवि द्वारा रचित कोई प्रबंध-काव्य प्रसिद्ध नहीं है। + +12681. भक्ति के लिए रामानंद ने वर्णाश्रम व्यवस्था को ब्यर्थ बताया। उन्होंने भक्ति को सभी प्रकार की संकीर्णवादिता से दर करके इतना व्यापक बनाया कि उसमें गरीब-अमीर, स्त्री-पुरुष, निर्गुण-सगुण, सवर्ण-अवर्ण, हिंदू-मुसलमान सभी आ सकें। रामानंद का दूसरा महत्त्व यह है कि उन्होंने लोकभाषा को अभृतपूर्व महत्त्व प्रदान किया। रामानंद के शिष्यों की सूची भक्तमाल में इस प्रकार दी हुई है- + +12682. कृष्ण भक्ति धारा. + +12683. अन्य कृष्ण भक्त कवि. + +12684. भक्ति का शास्त्र यद्यपि दक्षिण में बना, तथापि उसका पूर्ण उत्कर्ष उत्तर में हुआ। भक्ति आंदोलन अखिल भारतीय था। भारत की सभी भाषाओं और साहित्य पर भक्ति आंदोलन का प्रभाव है। लोक-साहित्य पर भी इसका प्रभाव कम नहीं। फलत: यह 'शास्त्र की उपेक्षा' करनेवाला लोकोन्सुख आंदोलन था इसीलिए यह लोक जीवन में इतना रस संचित कर सका। हिंदी भक्त कवियों ने आध्यात्मिक साधना की ही बात नहीं की, उन्होंने सामंतवादी युग में सामंतवादी व्यवस्था की अमानवीयता की आलोचना भी की तथा यथासंभव हर प्रकार की पीड़ा और हिंसा का विरोध भी किया। सांसारिक अन्यायी शक्ति को परम सत्ता या + +12685. हिन्दी साहित्य का इतिहास (आधुनिक काल )/जनवादी साहित्य: + +12686. जनवादी साहित्य की तीसरी प्रवृत्ति है - उसका वर्गीय दृष्टिकोण।जनवादी रचनाकार वैज्ञानिक चेतना से लैस होता है। वह जानता है कि वर्ग विभाजित समाज में हर चीज की भांति साहित्य का भी वर्गीय स्वरुप होता है और शोषक तथा शोषित वर्गों में से किसी एक के प्रति सबको अपनी पक्षधरता और प्रतिबद्धता घोषित करनी पड़ती है। बीच की अर्थात् तटस्था की कोई स्थिति नहीं होती।अपने आप को तटस्थ बताने वाले लोग कहीं न कहीं शोषकों के साथ होते हैं,उनकी सेवा कर रहे होते हैं और यथास्थिति को बनाए रखना चाहते हैं। जनवादी रचनाकार अपने को पक्षधरता घोषित करता है और करोड़ों मेहनतकश जनता के संघर्ष में सहभागी होता है। + +12687. मानक हिंदी का क्षेत्रीय बोलियों से कोई विरोध नहीं है, उलटे ये बोलियाँ हिंदी के क्रमिक विकास में सहयोग ही करती आई हैं। इतने बड़े भाषा क्षेत्र में कभी-कभी विवाद उठना स्वाभाविक भी है। + +12688. साहित्य का इतिहास भी ऐसे ही पुनर्निर्मित किया जाता है। समस्त प्राचीन साहित्य जैसे चौरासी वैष्णवन की वार्ता, दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता, कबीर,सूर, तुलसी, जायसी, मीरा, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि की रचनाएँ हिंदी साहित्य के इतिहास-लेखन की आधारभूत सामग्री हैं। + +12689. संस्कृत, प्राकृत में परसर्ग नहीं होते, होते भी होंगे तो वे नगण्य हैं। वहाँ परसों का काम विभक्तियों से चलाया जाता था। अपभ्रंश में कहीं-कहीं परसर्ग मिलते हैं लेकिन हिंदी में परसर्गों का प्रयोग अधिक होने लगा। यह दूसरी प्रवृत्ति है जिसके कारण हिंदी अपभ्रंश से अलग हुई। ऐसों में- ससि के मुख से अहि से निकसैं (चंद्रमा के मुख से मानो सर्प निकल रहे हों) जैसी पंक्ति आती है। पाली, प्राकृत तथा अपभ्रंश में तत्सम शब्द ढूँढने पर भी मुश्किल से मिलते हैं। पाली में तो 'राजा' भी 'लाजा' होता है। पुरानी हिंदी में तत्सम शब्दों का पुनर्प्रचलन होता था। पं. चंद्रधर शर्मा 'गुलेरी' का अनुमान है कि ऐसा अर्थ-बोध + +12690. इस प्रकार हिंदी साहित्य के इतिहास का काल-विभाजन, नामकरण और विभिन्न काल-खंडों की कालावधियाँ इस प्रकार हैं- + +12691. सामान्य अध्ययन२०१९/चर्चित देश,शहर या कोई स्थान: + +12692. नए लद्दाख संघ राज्य क्षेत्र में कारगिल तथा लेह दो ज़िले हैं तथा जम्मू-कश्मीर राज्य संघ क्षेत्र में भूतपूर्व जम्मू-कश्मीर राज्य का शेष हिस्सा है। + +12693. यह सूर्य ग्रहण कतर,संयुक्त अरब अमीरात तथा ओमान में शुरू होगा परंतु चेरुवथुर की विशेष भू-वैज्ञानिक स्थिति होने के कारण यह भारत में सर्वप्रथम दिखाई देगा। + +12694. यह पाइपलाइन चीन और रूस को कोयले को प्राकृतिक गैस से प्रतिस्थापित करने में मदद मिलेगी तथा ताप के अलावा इस पाइपलाइन से विद्युत् उत्पादन भी किया जा सकेगा। + +12695. अवस्थिति: + +12696. राज्य की लगभग 70% जनसंख्या कृषि पर निर्भर है तथा यहाँ की मुख्य खाद्य फसल धान है इसके अलावा कुल कृषि के 70% भाग पर धान की खेती की जाती है। + +12697. वर्ष 2014 में तेलंगाना के निर्माण के पश्चात् आंध्र प्रदेश ने दूसरे कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण KWDT 2 द्वारा दिये गए फैसले और वर्ष 2013 में उसके (KWDT 2) द्वारा जारी एक अन्य रिपोर्ट को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी। आंध्र प्रदेश चाहता है कि तेलंगाना को न्यायाधिकरण में एक पक्ष के रूप में शामिल किया जाए, परंतु अभी तक यह संभव नहीं हो पाया है। + +12698. किसी सुरक्षा खतरे से बचाने के लिये सुरंग में उन्नत स्कैनर (Scanner) भी लगया गया है। + +12699. आगे की राह: + +12700. इस आयोजन का उद्देश्य कविता के माध्यम से विश्व बंधुत्व और शांति को बढ़ावा देना है। + +12701. जर्नल हिस्टोरिकल बायोलॉजी (Journal Historical Biology) की एक रिपोर्ट के अनुसार, पलासवा से मिले जीवाश्म से पता चलता है कि मध्य मिओसीन (लगभग 14 म्या) के दौरान उष्ण, आर्द्र / नम तथा उष्ण कटिबंधीय से लेकर उपोष्ण कटिबंधीय जैसी पर्यावरणीय परिस्थितियों में जीवों और वनस्पतियों की एक समृद्ध विविधता बरकरार थी। + +12702. विधाननगर नगर निगम वर्ष 2015 में बना था और इसके पहले महापौर सब्यसाची दत्त बने थे लेकिन पार्टी में अविश्वास के चलते इन्होंने 18 जुलाई को महापौर पद से इस्तीफा दे दिया था। इस नगर में आवासीय संपत्तियों की मांग पिछले एक दशक में बहुत अधिक बढ़ी है, साथ ही निवेश में भी बहुत तीव्र वृद्धि हुई है। + +12703. “एक देश, दो प्रणालियाँ" एक संवैधानिक सिद्धांत है जो क्रमशः वर्ष 1997 और 1999 में चीन का क्षेत्र बनने के बाद हांगकांग और मकाउ के शासन का वर्णन करता है। + +12704. मकाउ की अर्थव्यवस्था जुआ उद्योग और कैसिनो पर निर्भर है जिसका सरकारी आय में लगभग 80% योगदान है। + +12705. कालापानी क्षेत्र भारतीयों के एक तीर्थस्थल के रूप में जाना जाता है। यह काली नदी का उद्गम स्थल भी है। + +12706. दनाकिल में प्रवेश करने वाला सारा जल वाष्पित हो जाता है और यहाँ से जल की कोई धारा प्रवाहित नहीं होती है। + +12707. मौना लोआ ज्वालामुखी संयुक्त राज्य के हवाई में अवस्थित दुनिया का सबसे बड़ा ज्वालामुखी है, जबकि माउंट फूजी जापान में अवस्थित है। + +12708. लगभग 500 साल पहले वह दुनिया की खोज के साहसिक कार्य पर रवाना हुआ था जो दुनिया भर में पहली बार अन्वेषण के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुआ। + +12709. ब्रह्मांड के बारे में यूरोपियों के ज्ञान में यात्रा इस ने भी अहम योगदान दिया है। + +12710. सीरिया के अल्लेपो शहर के सदियों पुराने बाज़ार जो वर्षों के निरंतर संघर्ष के कारण तबाह हो गए थे धीरे-धीरे फिर से स्थापित किये जा रहे हैं। + +12711. यहाँ के योजनाकारों को उम्मीद है कि बाज़ार के खंडों के पुनर्निर्माण और कुछ दुकानों को पुनः खोलने से अंततः बाज़ार पुनर्जीवित किया जा सकता है। + +12712. सीरिया में बीते आठ सालों से गृहयुद्ध जारी है। + +12713. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ जियोफिजिक्स एंड वलकैनोलॉजी के अनुसार, जून के प्रारंभ में भी यह सक्रिय हुआ था। + +12714. संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल की सूची में भी शामिल किया है। + +12715. दक्षिण कोरियाई राष्ट्रगान में भी माउंट पाएकटु/पाइकटु का संदर्भ दिया गया है। + +12716. व्हाइट आइलैंड एक सक्रिय ऐंडेसाइट स्ट्रेटो ज्वालामुखी (Andesite Strato Volcano) है, जो न्यूज़ीलैंड के उत्तरी द्वीप के पूर्वी तट से 30 मील की दूरी पर प्लेंटी की खाड़ी (Bay of Plenty) में स्थित है। + +12717. 1920 के दशक में खनन के दौरान इमारतों के अवशेष मिलने से यह आइलैंड एक पर्यटक आकर्षण केंद्र बन गया जो हर साल 17,000 से अधिक पर्यटकों को आकर्षित करता है। + +12718. विशेषताएँ:-इस क्षेत्र की सबसे प्रमुख विशेषता ‘गुलब एर रिचाट’ (Guelb er Richat) है, जिसे ‘सहारा की आँख’ (Eye Of Sahara) के नाम से भी जाना जाता है। + +12719. अल्बानिया ने वर्ष 2009 में नाटो (NATO) की सदस्यता प्राप्त की। + +12720. इंड़ोनेशिया में सर्वाधिक लगभग 130 सक्रिय ज्वालामुखी है। + +12721. यह तेल एवं प्राकृतिक गैस उत्पादन की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है। + +12722. हाल ही में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति द्वारा इसकी घोषणा की गई।वर्तमान में जकार्ता इंडोनेशिया की राजधानी है। + +12723. इसके अलावा यातायात की गंभीर समस्या भी दिन-ब-दिन और विकराल रूप धारण करती जा रही हैं। + +12724. Site of Relocation + +12725. ‘ज़ायद मेडल’ UAE का सर्वोच्च सम्मान है जो बादशाहों, राष्ट्रपति और राष्ट्र प्रमुखों को दिया जाता है। + +12726. चीन के वित्त 40 फोरम द्वारा सप्ताहांत में आयोजित एक कार्यक्रम में दी गई जानकारी के अनुसार, चीन बैंक के शोधकर्त्ता पिछले साल से इस पर गहनता से काम कर रहे हैं। + +12727. वर्ष 2009 में किसी समूह या व्यक्ति ने सतोशी नाकामोतो के छद्म नाम से ‘बिटकॉइन’ के नाम से पहली क्रिप्टोकरेंसी बनाई। + +12728. यह क्षेत्र (Area 51) आधिकारिक तौर पर नेवादा टेस्ट एवं प्रशिक्षण रेंज के रूप में जाना जाता है, जो नेलिस वायु सेना बेस न(Nellis Air Force Base) का हिस्सा है और इसका उपयोग अमेरिकी वायु सेना के प्रशिक्षण केंद्र के रूप में किया जाता है। + +12729. इस महोत्सव में स्थानीय समुदायों के सहयोग से स्थानीय फिल्म निर्माताओं द्वारा बनाई गई फिल्मों को दिखाया गया है, जिसमें एक बड़ी तथा विभिन्न प्रकार की स्थानीय जनजातियों एवं उनकी संस्कृतियों, मुद्दों, समस्याओं आदि को रेखांकित किया गया है। + +12730. MGIT-BP परियोजना मुख्यतः दो भागों में विभाजित है, पहले भाग में FTZ बनाने के लिये उसके आर्किटेक्चर और डिज़ाइन को शामिल किया गया है, वहीं दूसरे भाग में आईटी उद्यमों के लिये मुख्य भवन निर्माण को शामिल किया गया है। + +12731. रीयूनियन द्वीप फ्रॉंसीसी क्षेत्र है, जो मेडागास्कर के पास हिंद महासागर में स्थित है। + +12732. मरुस्थल में रहने वाले मांसाहारी डायनासोर संभवतः 90 मिलियन वर्ष पहले पाए जाते थे।छोटे शिकार को पकड़ने के लिये ये डायनासोर पंजे का इस्तेमाल करते थे। + +12733. वर्ष 1965 में अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी की याद में उनकी दूसरी पुण्यतिथि पर टाउन के बीच में बनाया गया था।ए.के. वेंकट रमना, उर्फ थम्बा नायडू द्वारा निर्मित यह टॉवर नागरी नगरपालिका का प्रमुख स्मारक बन गया है। + +12734. वर्ष 1994 में इस युद्ध की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर जापानी युद्ध स्मारक (Japanese War Memorial) बनाया गया था। + +12735. अमेरिका ने हथियार कारोबार पर अंतर्राष्ट्रीय संधि से हटने का फैसला किया है। संयुक्त राष्ट्र शस्त्र व्यापार संधि पर पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 2013 में हस्ताक्षर किये थे। चीन, रूस और अमेरिका ने इस संधि का अनुमोदन नहीं किया हैं। इस संधि के लागू होने के लिये इस पर हस्ताक्षर करने वाले 50 देशों द्वारा इसका समर्थन किया जाना आवश्यक है। + +12736. ऐसा माना जा रहा है कि जनरल को रूस और फ्राँस के अलावा मिस्र, सऊदी अरब तथा कुछ पश्चिम एशियाई देशों का समर्थन प्राप्त है।लीबिया में सरकार विरोधी प्रदर्शनों की शुरुआत 15 फरवरी, 2011 को ही हो गई थी + +12737. उत्तर प्रदेश में झांसी के निकट बबीना कैंट में 8 से 11 अप्रैल तक भारत और सिंगापुर के सैन्य बलों ने बोल्ड कुरुक्षेत्र-2019 नामक द्विपक्षीय सैन्याभ्यास में हिस्सा लिया।इस प्रकार के 12वें अभ्यास का उद्देश्य दोनों देशों के बीच सैन्य प्रौद्योगिकी विकसित करने,समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा देने और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को बढ़ावा देना है। + +12738. ये तीनों देश ट्रिफिनियों (Trifinio) बायोस्फीयर रिज़र्व में अपनी सीमा साझा करने के साथ ही संस्कृति, इतिहास, समाज और राजनीति के विभिन्न पहलू भी साझा करते हैं। + +12739. स्त्री लेखन का विकास और स्त्री साहित्य. + +12740. आठवें दशक के महिला लेखिकाओं की रचनाएँ जो उल्लेखनीय है- कृष्णा सोबती की ‘मित्रो मरजानी’, उषा प्रियंवदा की ‘रूकेगी नहीं राधिका’, ‘शेष यात्रा’, मन्नू भण्डारी का उपन्यास ‘आपका बंटी’, मृदुला गर्ग का ‘कठगुलाब’, प्रभा खेतान की ‘पीली आँधी’, ‘छिन्नमस्ता’, मैत्रीय पुष्पा के उपन्यास ‘चाक’, ‘इदन्नमम’ क्षमा शर्मा की ‘स्त्री समय’ तथा अरविंद जैन का ‘औरत होने की सजा’ में परम्परा और रूढियों में फंसी एक आधुनिक स्त्री की अपनी अस्मिता को ढूँढने की तलाश है। + +12741. कबीर का जन्म 1398 में माना जाता है। उनके जन्म और माता-पिता को लेकर बहुत विवाद है। लेकिन यह स्पष्ट है कि कबीर जुलाहा थे, क्योंकि उन्होंने अपने को कविता में अनेक बार जुलाहा कहा है। कहा जाता है कि वे विधवा ब्राह्मणी के पुत्र थे, जिसे लोकापवाद के भय से जनमते ही काशी के लहरतारा ताल के पास फेंक दिया गया था। अली या नीरू नामक जुलाहा बच्चे को अपने यहाँ उठा लाया। इस प्रकार कबीर ब्राह्मणी के पेट से पैदा हुए थे, लेकिन उनका पालन-पोषण जुलाहे के यहाँ हुआ। बाद में वे जुलाहा ही प्रसिद्ध हुए। कबीर की मृत्यु के बारे में भी कहा जाता है कि हिंदू उनके शव को जलाना चाहते थे और मुसलमान दफ़नाना। इस पर विवाद हुआ, कितु पाया गया कि कबीर का शव अंतर्धान हो गया है। वहाँ कुछ फूल पड़े मिले। उनमें से कुछ फूलों को हिंदुओं ने अग्नि के हवाले किया और कुछ फूलों को मुसलमानों ने ज़मीन में दफ़ना दिया। कबीर की मृत्यु मगहर ज़िला बस्ती में सन् 1518 में हुई। + +12742. अंतस्साधनात्मक पारिभाषिक शब्दावली का प्रयोग उन्होंने खूब किया हैं. साथ ही अहिंसा की भावना और वैष्णव प्रतिवाद भी। कबीर की वाणी का संग्रह 'बीजक' कहलाता है। इसके तीन भाग हैं-1. रमैनी, 2. सबद और 3. साखी। रमैनी और सबद में गेय पद हैं, साखी दोहों में है। रमैनी और सबद ब्रजभाषा में हैं, जो तत्कालीन मध्यदेश की काव्य-भाषा थी। + +12743. कबीर भक्ति के बिना सारी साधनाओं को व्यर्थ और अनर्थक मानते हैं। इसी प्रेम एवं भक्ति के बल पर वे अपने युग के सारे मिथ्याचार, कर्मकांड, अमानवीयता, हिंसा, पर-पीड़ा को चुनौती देते हैं। उनके काव्य, उनके व्यक्तित्व और उनकी साधना में जो अक्खड़पन, निभीकता और दोटूकपन है वह भी इसी भक्ति या महाराग के कारण। व पूर्व-साधनाओं की पारिभाषिक शब्दावली को अपनाकर भी उसमें जो नई अर्थवत्ता भरत हैं, वह भी वस्तुत: प्रेम भक्ति की ही अर्थवत्ता है। + +12744. कबीर में जीवन के द्वंद्वात्मक पक्ष को समझ लेने की अद्भुत क्षमता थी। इस परस्पर-विरोधिता को न समझने पर कबीर का मर्म नहीं खुलता। जिसे जीना कहा जाता है, वह वस्तुत: जीवित रहने और मृत्यु की ओर निरंतर बढ़ते रहने की प्रक्रिया है। फिर भी लोग कुशल पूछते हैं और कुशल बताते हैं। लोग जीने का केवल एक पक्ष देखते हैं, दूसरा नहीं। कबीर इसपर व्यंग्य करते हैं, हँसते हैं और करुणा करते हैं- + +12745. रैदास भी रामानंद के शिष्य कहे जाते हैं। उन्होंने अपने एक पद में कबीर और सेन का उल्लेख किया है, जिससे स्पष्ट हो जाता है कि वे कबीर से छोटे थे। अनुमानत: पंद्रहवीं शती उनका समय रहा होगा। धन्ना और मीराबाई ने रैदास का उल्लेख आदरपूर्वक किया है। यह भी कहा जाता है कि मीराबाई रैदास की शिष्या थीं। रैदास ने अपने को एकाधिक स्थानों पर चमार जाति का कहा है- कह रैदास खलास चमारा या ऐसी मेरी जाति विख्यात चमारा| + +12746. गुरु नानक का जन्म 1469 में तलवंडी ग्राम, जिला लाहौर में हुआ था। इनकी मृत्यु 1538 में हुई। इनके पिता का नाम कालूचंद खत्री तथा माँ का नाम तृप्ता था। इनकी पत्नी का नाम सुलक्षणी था। कहते हैं कि इनके पिता ने इन्हें व्यवसाय में लगाने का बहुत उद्यम किया, किंतु इनका मन भक्ति की ओर अधिकाधिक झुकता गया। इन्होंने हिंदू-मुसलमान, दोनों की समान धार्मिक उपासना पर बल दिया तथा वर्णाश्रम व्यवस्था और कर्मकांड का विरोध करके निर्गुण ब्रह्म की भक्ति का प्रचार किया। गुरु नानक ने व्यापक देशाटन किया और मक्का-मदीना तक की यात्रा की। कहते हैं कि मुगल सम्राट बाबर से भी इनकी भेंट हुई थी। यात्रा के दौरान साथ में इनके साथी और शिष्य रागी नामक मुस्लिम रहते थे, जो इनके द्वारा रचित पदों को गाते थे। गुरु नानक ने सिख धर्म का प्रवर्तन किया। गुरु नानक ने पंजाबी के साथ हिंदी में भी कविताएँ लिखीं। इनकी हिंदी में ब्रजभाषा और खड़ी बोली, दोनों का मेल है। इनके भक्ति और विनय के पद बहुत मामिक हैं। शामकता इनके व्यक्तित्व और रचना की विशेषता है। गुरु नानक ने उलटबाँसी शैली नहीं अपनाई है। इनके दोहों में जीवन के अनुभव उसी प्रकार गुँथे हैं, जैसे कबीर की रचनाओं में। आदि गुरुग्रंथ साहब के अंतर्गत 'महला' नामक प्रकरण में इनकी बानी संकलित है। उसमें सबद, सलोक मिलते हैं। गुरु नानक की रचनाएँ हैं- जपुजी, आसादीवार, रहिरास और सोहिला। गुरु नानक की ही परंपरा में उनके उत्तराधिकारी गुरु कवि हुए। इनमें गुरु अंगद (जन्म 1504), गुरु अमरदास (जन्म 1479), गुरु रामदास (जन्म 1514), गुरु अर्जुन (जन्म 1563), गुरु तेगबहादुर (जन्म 1622) और दसवें गुरु गोविंदसिंह (जन्म 1664) हैं। गुरु गोविंदसिंह ने अनेक ग्रंथों की रचना की। + +12747. सुंदरदास 6 वर्ष की आयु में दाद के शिष्य हो गए थे। उनका जन्म 1596 में जयपुर के निकट द्यौसा नामक स्थान पर हुआ था। दादू की मृत्यु क बाद एक संत जगजीवन राम के साथ वे 10 वर्ष की आयु में काशी चले गए। वहाँ 30 वर्ष को आयु तक उन्होंने जमकर अध्ययन किया। काशी लौटकर वे राजस्थान में शेखावटी के निकट फतहपुर नामक स्थान पर गए। वे फ़ारसी भी बहुत अच्छी जानते थे। उनका देहांत सांगामेर में 1689 में हुआ। + +12748. + +12749. कुतुबन ( 1567-1689). + +12750. उपर्युक्त पंक्तियों में जायसी वस्तुओं का परस्पर-विरोध देख-दिखा रहे हैं। उनकी दृष्टि सामाजिक विषमता की ओर भी जाती है- + +12751. कवि ने कौशल से यह मार्मिक व्यंजना की है कि जो पद्मिनी रतनसेन के । लिए 'पारस रूप' है, वही अलाउद्दीन जैसों के लिए मुट्ठी भर धूल । मध्यकालीन रोमांचक आख्यानों का कथानक प्रायः बिखर जाता है, कितु पद्मावत का कथानक सुगठित है। + +12752. पद्मिनी परम सत्ता का प्रतीक है, रतनसेन साधक का तथा राघवसेन शैतान का। कथा लौकिक धरातल पर चलने के साथ-साथ लोकोत्तर अर्थ की भूमि पर भी चलती है। इसीलिए पद्मावत को प्रतीकात्मक काव्य कहा जाता है, कितु यह प्रतीकात्मकता सर्वत्र नहीं है और इससे लौकिक कथा-रस में व्याघात नहीं पड़ता । + +12753. मंझन ने 1545 में मधुमालती की रचना की थी। ये जायसी के परवर्ती थे। मधुमालती में नायक को अप्सराएँ उड़ाकर मधुमालती की चित्रसारी में पहुँचा देती हैं और वहीं नायक नायिका को देखता है। इसमें मनोहर और मधुमालती की प्रेम-कथा के समानांतर प्रेमा और ताराचंद की भी प्रेम-कथा चलती है। इसमें प्रेम का बहुत उच्च आदर्श सामने रखा गया है सृफ़ी काव्यों में नायक की प्राय: दो पत्नियाँ होती हैं, किंतु इसमें मनोहर अपने द्वारा उपकृत प्रेमा से बहन का संबंध स्थापित करता है। इसमें जन्म-जन्मांतर के बीच प्रेम की अखंडता प्रकट की गई है। इस दृष्टि से इसमें भारतीय पुनर्जन्मवाद की बात कही गई है। इस्लाम पुनर्जन्म नहीं मानता। लोक के वर्णन द्वारा अलौकिक सत्ता का संकेत सभी सूफ़ी काव्यों के समान इसमें भी पाया जाता है। + +12754. परिचय. + +12755. भाषा और लिपि में घनिष्ठता. + +12756. ५. दोनों ही सांस्कृतिक उन्नति के प्रतीक हैं। + +12757. २. भाषा की उत्पत्ति पहले हुई लिपि बाद में विकसित हुई। + +12758. ७. भाषा समय स्थान की सीमाओं में बंधी होती है जब की लिपि समय और स्थान के बंधनों से मुक्त होती है। + +12759. परंतु लिपि में ऐसा संभव नहीं है। + +12760. '" संदर्भ - + +12761. '"व्याख्या- + +12762. 1) कवि ने किसान की दयनीय दशा का सजीव चित्रण किया है। + +12763. 6) संबोधन शैली का भी प्रयोग है। + +12764. देवनागरी लिपि और कंप्यूटर
+ +12765. वर्तमान युग में कंप्यूटर में महत्व इंटरनेट का है, वर्तमान में नेट पर देवनागरी में प्रकाशित होने वाले अनेक समाचार पत्र और पत्रिकाएं उपलब्ध हैं। जैसे-हंस, आजकल, नया ज्ञान उदय, सहृदय, सहचल आदि इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। + +12766. यूनिकोड से कार्य में एकरूपता आती है तथा अलग-अलग प्रकार के फ़ॉन्ट से मुक्ति मिलती है। आज कार्यालयों के सभी कार्य देवनागरी में सरलता से संभव है। हिंदी की फाइलों का आदान-प्रदान सहज रूप से हो रहा है। यूनिकोड का प्रचलित फ़ॉन्ट मंगल है। यूनिकोड आधारित हिंदी, देवनागरी, IME TOOL आदि जैसे उपकरणों की सहायता से टंकित की जा सकती है। + +12767. ३. फोनेटिक इंग्लिश- इसे रोमानिल्ड लेआउट कहते हैं।
+ +12768. तुलसीदास (1532-1623 ) + +12769. हनुमानबाहुक से भी स्पष्ट है कि अंतिम समय में व भयंकर बाहु-पीडा से ग्रस्त थे-पाँव, पेट, सकल शरीर में पीड़ा होती थी, पूरी देह में फोड़े हो गए थे। यह मान्य है कि तुलसी की मृत्यु सं. 1680 अर्थात् 1623 में हुई। उनकी मृत्यु के विषय में यह दोहा प्रसिद्ध है- + +12770. तुलसीदास ने अपने जीवन और अपने युग के विषय में हिंदी के किसी भी मध्यकालीन कवि से अधिक लिखा है। तुलसी राम के सगुण भक्त थे, लेकिन उनकी भक्ति में लोकोन्मुखता थी। वे राम के अनन्य भक्त थे। राम ही उनकी कविता के विषय हैं। नाना काव्य-रूपों में उन्होंने राम का ही गुणगान किया है, किंतु उनके राम परमब्रह्म होते हुए भी मनुज हैं और अपने देशकाल के आदर्शों से निर्मित हैं। तुलसी के राम ब्रह्म भी हैं और मानव भी। रामचरितमानस में अनेक मार्मिक अवसरों पर तुलसी पाठक को टोककर सावधान कर देते हैं कि राम लीला कर रहे। हैं, इन्हें सचमुच मनुष्य न समझ लेना। कारण यह है कि राम ब्रह्म होते हुए भी अवतार ग्रहण करके मानवी लीला में प्रवृत्त हैं । वस्तुत: रामचरितमानस के प्रारंभ में ही तुलसी ने कौशलपूर्वक राम के ब्रह्मत्व और मनुजत्व की सह-स्थिति के विषय में पार्वती द्वारा शंकर से प्रश्न करा दिया है और रामचरितमानस की पुरी कथा शंकर ने पार्वती को इस शंका के निवारणार्थ सुनाई है । + +12771. कैकेयी-मंथरा संवाद और शूर्पनखा प्रसंग यह प्रकट करते हैं कि वे इस देश की नारियों को अनेक रूपों में जानते थे। + +12772. किसी स्थिति में पड़ा हुआ पात्र केसी चेष्टा करेगा -इसे जानने और चित्रित करने में तुलसी अद्वितीय हैं। वे मानव-मन के परम कुशल चितेरे हैं। चित्रकूट के राम और भरत-मिलन के अवसर पर जो सभा जुड़ती है उसमें राम, भरत, विश्वामित्र आदि के बक्तव्य मध्यकालीन शालीनता एवं वचन-रचना का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। + +12773. हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/तनक हरि चितवाँ: + +12774. कृष्ण-भक्त मीरा ने इस पद में अपने आराध्य श्री कृष्ण से बार-बार लगातार दर्शन देने के लिए विनय करती है वे कहती हैं- + +12775. उभ्याँ ठाढ़ी अरज करूँ छूँ करताँ करताँ भोर। + +12776. 2. विनय का भाव-प्रधान है। + +12777. 7. राग कान्हरा है। + +12778. आली री म्हारे
मीराबाई/ + +12779. व्याख्या. + +12780. मीरा गिरधर हाथ विकाणी, लोग कहाँ बिगड़ी। + +12781. 3. माधुर्य भाव की भक्ति है। + +12782. 8. 'म्हारे माधुरी मूरत'-अनुप्रास अलंकार है। + +12783. हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/माई साँवरे रंग राँची: + +12784. इसमें मीरा ने अपने आराध्य-देव कृष्ण के प्रति आत्म-निवेदन तथा भक्ति-मार्ग में आने वाली कठिनाइयों का वर्णन किया है। वह कृष्ण के अतिरिक्त किसी और को अपनी मन में स्थान नहीं दे पायी है। वे उन्हीं के रंग, भक्ति-गान तथा भजन-कीर्तन में निमग्न हो गयी है। वह हर समय उनकी भक्ति में खोई रहती है। वह इसी संबंध में कहती है- + +12785. गाया गाया हरि गुण निसदिन, काल ब्याल री बांची। + +12786. इसमें मीरा ने कृष्ण की भक्ति, नाम, भजन, कीर्तन तथा पूजा-पाठ में जीवन व्यतीत करने का निश्चय किया है। राजस्थानी भाषा है। माधुर्य गुण है। पद में गेयात्मकता है। पद में लयात्मकता है। श्रीकृष्ण ही उसके सब कुछ हैं। इसमें कृष्ण के प्रति मीरा की अनन्य भक्ति के दर्शन होते हैं। + +12787. माई री म्हा नियाँ
मीराबाई/ + +12788. व्याख्या. + +12789. मीराँ कूँ प्रभु दरसण दीज्याँ, पूरब जणम को कोल।।" + +12790. ३. राजस्थानी भाषा है। + +12791. माई री = हे सखी। छाणे = छिपकर। चोड्डे - सबके सामने। मुँह = बेशकीमती। कौन = वचन। पूरब = पूर्व। सुस्ती = रास्ता। थें कहां - तुम कहती हो। मुँहोघो = महँगा। + +12792. प्रस्तुत पद मीराबाई की पदावली से अवतरित है + +12793. लोग कह्याँ मीरा बावरी, सासु कह्याँ कुलनासा री। + +12794. विशेष. + +12795. 5. मीरा की बेबाकी देखी जा सकती है। + +12796. शब्दार्थ. + +12797. सन्दर्भ. + +12798. "हेरी म्हा दरद दिवाणा म्हारा दरद ना जाण्याँ कोय। + +12799. अरी, मैं तो पीड़ा से चीड़ित हूँ। मैं श्रीकृष्ण के प्रेम एवं भक्ति में डूब गयी हूँ। मैंने उनसे प्रेम किया है। जब वह मुझ से नहीं मिलते या मैं उन्हें देख पाती हूँ तो मैं दूखी हो जाती हूँ और मेरे मन में दर्द होने लगता है। आज तक मेरे मन की इस पीड़ा के दर्द को कोई भी नहीं जान पाया है। मैं प्रेम दीवानी हो गई हूँ। मेरा दर्द तो अब दीवाना हो गया है। जो अपने मन में घायल होता है। वही घायल की पीड़ा को जानता है। अर्थात् वही जान पाता है। दूसरे के दर्द को जिसने कभी अपने मन में आग पैदा की हो अर्थात् प्रेम की आग को वही जान सकता है जो प्रेम की आग से गुजरा हो। सोने की परख वही कर सकता है जो वास्तव में सुनार है। वही पहचान पाता है कि सोना खरा या खेटा है, क्योंकि यह उसी का काम है पहचानना। जब किसी को दर्द होता है तो वह दर्द की पीड़ा की वजह से इधर-उधर भगता-फिरता है, क्योंकि वह दर्द की पीडा से परेशान होता है। मगर जब उसे कोई वैद्य (दवाई देने वाला) नहीं मिलता है तब उसे कितनी पीड़ा होती है? जब तक वह नहीं मिलता है तो वह दर्द में बिलखता रहता है। भले ही वह द्वार-द्वार भटका मगर उसे कोई भी वैद्य नहीं मिला। मीरा कहती है कि मेरे तो प्रभु कृष्ण ही हैं जो मन की पीड़ा को दूर करेंगे। मेरे दर्द का इलाज उन्हीं के पावस है। वे ही मेरे कृष्ण मेरी पीडा को हरेंगे, क्योंकि इस दर्द की दवा उन्हीं के पास है। किसी और के पास नहीं है। + +12800. जौहरी - सुनार । मारया- मारी हुई। डोल्यां - डोलती हूँ । वेद - वैद्य। मिटाँगा = मिटेगा, मिटना। वेद = दवा देने वाला, चिकित्सक। साँवरो = श्रीकृष्ण। + +12801. आर्थिक भूगोल/परिचय: + +12802. किसी भी देश की उन्नति वहां के वैज्ञानिक, राजनीतिक, अर्थशास्त्री, भूगोलवेत्ता एवं नीति निर्धारक के सहयोग से होती है और इनका सहयोग आर्थिक भूगोल से होता है + +12803. स) संसाधन भूगोल
+ +12804. (मनुष्य के आर्थिक क्रियाओं पर प्राकृतिक वातावरण का प्रभाव पड़ता है उसके अध्ययन को आर्थिक भूगोल का विषय माना गया है।) Nefarlane
+ +12805. इसके अंतर्गत हम यह भी जान सकते हैं कि मनुष्य पृथ्वी पर अनेक प्रकार के क्रियाओं में संलग्न है। हम आगे के अध्याय में इस क्रियाओं के बारे में विस्तृत रूप से जानकारी प्राप्त करेंगे लेकिन उसका छोटा सा रूप इस अध्याय में भी अध्ययन कर लेते हैं । + +12806. आर्थिक भूगोल का विषय इतना विस्तृत है कि इसका संबंध न केवल भूगोल के भिन्न-भिन्न अगों से है परंतु अन्य विषय भी इससे संबंधित है। उदाहरण के लिए लोहे के कारखाने का वर्णन करते समय यह बताया जाता है कि लोहा और कोयला कहां मिलता है यह भूगर्भ विद्या का विषय है। कृषि की उपज पढ़ते समय यह ज्ञात किया जाता है कि गेहूं और चावल भिन्न-भिन्न जलवायु में पैदा होते हैं अतः यह जलवायु विज्ञान का विषय है। विश्वत रेखा के निकट है घने वन क्यों है वहीं दूसरी ओर सहारा यूं वृक्ष क्यों नहीं है यह वनस्पति विज्ञान का विषय है।आर्थिक भूगोल में इन सभी विषयों की सहायता लेनी पड़ती है इसलिए आर्थिक भूगोल अनेक विषयों से संबंधित है। + +12807. संबंधित प्रश्न. + +12808. मछली एक महत्वपूर्ण आहार है। मत्स्य एक प्रोटीन समृद्ध खाद्य है। विश्व में मछली के कुल 30,000 प्रजातियां पाई जाती है , जिसमें ह्वेल, सील, मोती, लोबस्टर, क्रेब, झींगा, श्रिम्प, मोलस्का, कस्तूरा, मस्ल, घोंघे तथा बड़ी सीपी जैसी मछलियां सम्मिलित हैं। अनुकूलतम की क्षमता के कारण विषुवतीय प्रदेश से लेकर ध्रुवों तक एवं नदियों तथा हिमानीयों से निकलने वाले ठंडे पानी तक में रह सकते हैं। मत्स्य पालन में विश्व के अधिकतर देश लगे हुए हैं। अंतर्राष्ट्रीय जल में कोई भी मत्स्य पालन कर सकता हैं। तटवर्ती प्रदेशों में यह एक महत्वपूर्ण उद्योग है, जिसमें प्राचीन उपायों से लेकर नवीनतम तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है। विश्व के सागरों एवं महासागरों में मछली इत्यादि का वितरण असमान है। यह समुद्री तटवर्ती क्षेत्रों की अर्थव्यवस्थाओं में बहुत अधिक महत्व रखता है। प्रतिध्वनि गंभीरता यंत्र (सोनार) का उपयोग जल के नीचे मछलियों के स्रोतों का पता लगाने में किया जा रहा है। ड्रिफ्टर की सहायता से सागर के अपेक्षाकृत गहरे एवं ट्रावॅलर की सहायता से गंज सागरीय भाग से मछलियों का दोहन किया जाता है। संसार में पकड़े जाने वाली मछलियों में अधिकांश भाग हेरिंग,एंट्री,सारडीन,काॅड,टूना,मैकेरल,हेक,पिल्चर्ड की होती है। जल की प्रकृति के आधार पर मछलियां दो प्रकार की होती है। + +12809. (iii) सागर के जल का तापमान तथा लवणता
+ +12810. शीतोष्ण तथा ऊच्च अक्षांशों में प्लवक की बहुतायत होती है। प्लैंक्टन (प्लवक) ही मछली का मुख्य आहार है। ऊष्ण कटिबंध के गर्म जल में प्लवक की मात्रा कम होती है।
+ +12811. मत्स्य ग्रहण के प्रमुख क्षेत्र 40° और 60° अक्षांश के मध्य पाए जाते हैं।
+ +12812. अटलांटिक महासागर का उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र :- इस क्षेत्र का विस्तार न्यू इंग्लैंड और न्यूफाउंडलैंड से उत्तर में लेब्रोडोर तक है जिसमें बहुत सारे छोटे बड़े बैंक है। जैसे-ग्रैंड बैंक, जार्जैज बैंक, सेंट पियरी बैंक, वैंकवरूम बैंक,सेबिल द्विप बैंक आदि। + +12813. दक्षिणी प्रशांत का पेरू तट:- दक्षिण गोलार्ध में मत्स्य उद्योग का एकमात्र क्षेत्र दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी भाग में है। + +12814. हिंदी भाषा और साहित्य का इतिहास (आधुनिक काल)/प्रयोगवाद: + +12815. सप्तक के सभी कवि अपनी-अपनी दृष्टी से अलग थे जैसे स्वंय अज्ञेय ने कहा है- + +12816. मध्यवर्गीय परिवेश के प्रति मध्यवर्गीय कवि का वैयक्तिक असंतोष और दूसरा सीमान्त है, जन-जागरण से डरे हुए कवि की आत्मरक्षा की भावना। कुल मिलाकर यह चरम व्यक्तिवाद ही प्रयोगवाद का केन्द्र-बिंदू है और विभिन्न राजनैतिक, नैतिक, सामाजिक मान्यताओं के रुप में यह संकीर्ण व्यक्तिवाद अपने को व्यक्त करता है। + +12817. हारो मत, साहस मत छोड़ो + +12818. हम नदी के द्वीप + +12819. करना चाहते है। पलायनवादी प्रवृत्तियों का विरोध करके आरम्भिक व्यक्तिवादी प्रयोगवाद ने "प्रतिरोध' और "युयुत्सु-भाव" का नारा दिया। संभव है यह प्रगतिवाद की अति सामाजिकता के विरोध में अति व्यक्तिवादी हो गये। छायावाद का व्यक्तिवाद अलौकिता तथा रहस्यवादी भावना में बदलता है किन्तु प्रयोगवादी व्यक्ति संकीर्णता के कारण अपने में ही सिमटकर रह जाता हैं। फिर अपने दुःख, पीड़ा बोध को माँजना शुरु करता है जैसे अज्ञेय कहते हैं-- "दु:ख सबको माँजता है" फिर कहा की वह, "सबको मुक्त होने की सीख देता है, उन्हे यह सीख देता है कि सबको मुक्त रखें।" दुःख आत्मा की शुद्धि करता है की भावना से भी उसका विश्वास उठता गया और 'स्थिर समर्पण' करता चला गया परंतु उसमे भी व्यक्तिगत अहं ही अधिक रहा। यह 'अहं' ही उसे सामाजिक होने से रोकता है। किन्तु उसका मन मात्र उसका आकांक्षी रहा है। अज्ञेय प्रारंभ से मध्यवर्ग के विरुद्ध वैयक्तिक असंतोष + +12820. अहं! अन्तर्गुहावासी! स्वरति! क्या में चिन्हता + +12821. मुझपर व्यंग्य करती है + +12822. द्वीप हैं हम! यह नहीं है शाप। यह अपनी नियती है। + +12823. भूखंड से जो दाय हमको मिला है, मिलता रहा है, + +12824. यह स्रोतस्विनी ही कर्मनाशा कीर्तिनाशा घोर काल, + +12825. मात:, उसे फिर संस्कार तुम देना। + +12826. अब तक हम थे बंधु + +12827. वह हम भी हो भी + +12828. अब नहीं कहता, + +12829. लघुता के प्रति दृष्टिपात. + +12830. और उसके पेट में कुछ और नयी जिन्दगी है, + +12831. शिशिर की राका-निशा की शान्ति है निस्सर + +12832. सिहरते से, पंगु, टुण्डे, + +12833. मूत्र- संचित मृत्तिका के वृत्त + +12834. मुहब्बत एक गिरे हुए गर्भ के बच्चे सी होती है + +12835. छायावादी कवियों ने अपनी नग्न भावनाओं को प्रकृति सौंदर्य के भीतर व्यक्त किया है। शायद कवि सामाजिक बंधनों को स्वीकार्य समझता हो परंतू प्रयोगवादी कवियों ने सामाजिक दृष्टि से प्रतिबंधित या अव्यक्त काम वासना के नग्न यथार्थ को अपनी कविता में लाया है। अपनी कुंठाओं, दमित वासनाओं अतृप्त इच्छाओं का खुलकर वर्णन प्रयोगवाद की विशेषत है। काम जीवन का उत्स है, परंतू प्रयोगवादी कविता में वह विकृत भौंडे रुप में प्रस्तुत किया है। वस्तुत: अज्ञेय आदि पर फ्रायड, लारेन्स का प्रभाव अत्याधिक रहा है। अनंतकुमार पाषाण की कविता में भी यह देखने के लिए मिलता है-- + +12836. या शकुंतला माथुर की कविता 'सुहाग बेला'-- + +12837. संभोग वृत्ति का चित्रण यहाँ किया गया है। सुहागिन को 'बाण विद्ध हरणी' बनाया है, बाण को पुरुषेन्द्रिय की उपमा दी गई है। यौन भावनाओं का चित्रण खुलकर प्रयोगवादी कविताओं में हुआ है। + +12838. विशद, श्वासहत, चिरातूर + +12839. प्यार है अभिशप्त + +12840. अगर मैंने किसी की मदभरी अंगडाइयाँ चूमी, + +12841. कौन कहता है कि ऐंद्रिक सुख + +12842. कि हर भोग के शेष में + +12843. सौंदर्य-लोक का द्वार औचक ही खुल पड़ता है। + +12844. स्मरण में भी गंध देती है। + +12845. क्षण भाव को जीवन की शाश्वतता के रुप में और साहित्य सृजन के रूप में प्रयोगवादी कवियों ने देखा है। व्यक्ति जीवन में क्षणभर का सुख संपूर्ण जीवन को परीतृप्ति देता है। क्षणभर का अनुभव कविता सर्जन करने की क्षमता देता है। फिर 'तत्क्षण', 'जागरण के क्षण', देशकाल मुक्ति के क्षण को लेकर अनेक कविता अज्ञेय ने लिखी है। जैसे 'सर्जना के क्षण', 'मैंने देखा एक बूंद' 'होते है क्षण' कविताएँ महत्वपूर्ण है--सर्जना के क्षण कवि के अनुसार लम्बे नही होते-- + +12846. वज जिससे फोडता चट्टान को + +12847. मैने देखा + +12848. या जागरण के क्षण की खोज को देखा जा सकता है-- + +12849. वह क्षण जिसमें जागा हूँ। + +12850. "(--हम इसीलिए तो गाते है।)" + +12851. सत्य के साक्षात का + +12852. अच्छा मेरे महान कनु + +12853. सुकोमल कल्पनाएँ थी + +12854. प्रयोगवादीयों का विद्रोह काव्य के कला एवं भाव पक्ष दोनों के प्रति है। मध्यवर्ग ने मध्यवर्गीय कवि की ओर ध्यान ही उस काल में नहीं दिया तो मध्यवर्ग का यह कवि विद्रोह के तीव्र उद्गार व्यक्त करता है। वस्तुत: छायावाद की कल्पना और सौंदर्य से मुक्त कमनीय भाव-भाषा और प्रगतिवाद की अत्याधिक सामाजिकता के प्रती प्रयोगवाद का विद्रोह व्यक्त हुआ है। + +12855. क्षण-भर स्थिर खड़ा रह ले-मेरे दृढ़ पौरुष की एक चोट सह ले! + +12856. 'मैं' से 'हम' हो गया + +12857. और मेरे आगे है अनन्त आदिहीन शेषहीन पथ वह + +12858. भावी नवयुग के ज्वलन्त प्राण-दाह से + +12859. और तेरे भूत काले पापों में प्रवहमान लाल आग + +12860. हम क्यों लिखें ? + +12861. कि जिसमें + +12862. अज्ञेय की 'कलगी बाजरे की' में भी विद्रोह भाव स्पष्ट हुआ है। + +12863. मेरा रवत ताजा है + +12864. मुझसे क्या डरना? + +12865. साँप! + +12866. तब कैसे सीखाङसना- + +12867. जो उस को अपने भारी बूटों से रौंद-रौंद चलने वाले + +12868. टप्-थब्, टप्-थब्, टप्-थब् + +12869. 'दया कीजिए, जैंटिलमैन...' + +12870. कौतुक-नाटक का फटियल-सा इश्तहार हो, + +12871. चला जा रहा होगा धीरे-धीरे- + +12872. क्या? ये खेल-तमाशे, ये सिनेमाघर और थियेटर? + +12873. असन्दिग्ध ये सभी सभ्यता के लक्षण हैं + +12874. 'हाँ, पर मानव + +12875. भाषा. + +12876. खामोश + +12877. तूही। + +12878. वह भी है + +12879. अगर कहीं मैं तोता होता। + +12880. होता होता होता। + +12881. मूत्र संचित मृत्तिका के वृत्त में + +12882. खड़ा बंद बिलार- + +12883. काली उमड़ती परछाइयाँ + +12884. पश्चिम के श्याम निरावृत्त शिखरों पर + +12885. इस कामातूर मेघधूम के + +12886. मैं कनफटा हूँ, हेटा हूँ + +12887. अज्ञेय, शमशेर आदि कवि प्रतीकवाद से प्रभावित है। प्रतीक अनुभूति का वह संक्षिप्त रुप होता है जो कथ्य को नया एवं व्यापक संदर्भ प्रदान करने में सक्षम होता है। छायावादी लाक्षणिक वक्रता से आगे बढ़कर अत्याधिक सांकेतिक प्रतीकों का प्रयोग उन्होंने किया है। यथार्थ की कटुता, नग्नता और भयंकरता से बचने के लिए प्राय: से संकेत गर्भी प्रतीकों का प्रयोग करते है। अज्ञेय के प्रतीक उन्हीं के शब्दों में यौन प्रतीक थे-- + +12888. वज सा, यदि तडित से झुलसा हुआ सा। + +12889. यह संपूर्ण कविता प्रतीकवादी है। 'नदी के द्वीप' भी अस्तित्व-संकट का प्रतीक है। अन्य प्रयोगवादी कवियों के संबंध में नामवरजी ने कहा है की वे प्रतीकवादी न होते हुए भी भावों और वस्तुओं के सुक्ष्म चित्रण के लिए अनेक सुन्दर अप्रस्तुतों का विधान किया है---धीरे-धीरे झुकता जाता है शरमाए नयनों-सा दिन, सिनेमा की रीलों-सा कसके लिपटा है सभी कुछ मेरे अन्दर, दिल की धड़कन भी इतनी बेमानी जितनी यह टिक-टिक करती हुई यही निकल रही छिपकली-सी लड़की दरवाजे से, हल्की मीठी चा-सा दिन, चाँदनी की उँगलियाँ चंचल क्रोशिए से बुन रही थी चपल फेन-झालर बेल मानों, मौन आहों में बुझी तलवार तैरती है बादलों के पार, खोखली बन्दूक से दंडे पड़े दो हाथ! + +12890. इसलिए नहीं कि + +12891. भाले हमारे ये + +12892. लेकिन रक्षणीय कुछ भी नहीं था यहाँ। + +12893. धूप + +12894. परंपरागत उपमानों को न स्वीकारते हुए प्रयोगवादियों ने नये और वैज्ञानिक साधनों उपकरणों का प्रयोग बड़े पैमाने पर किया है। मध्यवर्गीय गृहिणी का चित्रण करते हुए सर्वेश्वर कहते है- + +12895. जिसकी जिंदगी है... + +12896. अतर्मनुष्य + +12897. अथवा अति नवीन उपमानों का वे प्रयोग करते है- + +12898. भारतीय काव्यशास्त्र (दिवि)/प्रश्नावली: + +12899. अथवा + +12900. प्रश्न-3 ' काव्य लक्षण सम्बन्धी अवधारणाओं पर प्रकाश डालिए । + +12901. ( ख ) काव्य हेतु + +12902. नाभादास( 16 वीं शती) + +12903. में ने 1613 भाषा हनुमन्नाटक लिखा। रामचंद्रिका को ध्यान में रखें तो केशवदास रामभक्ति शाखा के कवि ठहरते हैं, यद्यपि केशवदास का साहित्य के इतिहास की दृष्टि से अधिक महत्त्व उनके आचार्यत्व में है। रामचंद्रिका के संवाद बहुत नाटकीय हैं और उसमें विविध छंदों का प्रयोग किया गया है। केशवदास ने रामचंद्रिका की रचना 1601 में की थी। + +12904. दसवीं अनुसूची. + +12905. आज़ादी के कुछ ही वर्षों के भीतर यह महसूस किया जाने लगा कि राजनीतिक दलों द्वारा अपने सामूहिक जनादेश की अनदेखी की जाने लगी है। विधायकों और सांसदों के जोड़-तोड़ से सरकारें बनने और गिरने लगीं। + +12906. वर्ष 1999 में विधि आयोग ने अपनी 170वीं रिपोर्ट में कहा था कि चुनाव से पूर्व दो या दो से अधिक पार्टियाँ यदि गठबंधन कर चुनाव लड़ती हैं तो दल-बदल विरोधी प्रावधानों में उस गठबंधन को ही एक पार्टी के तौर पर माना जाए। + +12907. वर्ष 1993 के किहोतो होलोहन बनाम ज़ाचिल्हू वाद में उच्चतम न्यायालय ने फैसला देते हुए कहा था कि विधानसभा अध्यक्ष का निर्णय अंतिम नहीं होगा। विधानसभा अध्यक्ष का न्यायिक पुनरावलोकन किया जा सकता है। न्यायालय ने माना कि दसवीं अनुसूची के प्रावधान संसद और राज्य विधानसभाओं में निर्वाचित सदस्यों के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन नहीं करते हैं। साथ ही ये संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 के तहत किसी तरह से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन भी नहीं करते। + +12908. 9वीं अनुसूची प्रकृति में पूर्वव्यापी (Retrospective) है,अर्थात न्यायालय द्वारा असंवैधानिक घोषित होने के बाद भी यदि किसी कानून को नौवीं अनुसूची में शामिल किया जाता है तो वह उस तारीख से संवैधानिक रूप से वैध माना जाएगा। + +12909. चयन समिति की रिपोर्ट के बाद 18 जून, 1951 को राष्ट्रपति की मंज़ूरी के साथ ही यह विधेयक अधिनियम बन गया। + +12910. हालाँकि न्यायिक समीक्षा तभी संभव है जब कोई कानून मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करेगा या फिर संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता हो। + +12911. ‘तदर्थ बाध्यकारी दिशा-निर्देशों’ (Ad Hoc Binding Guidelines) जारी कर रही है। + +12912. वहीं पेट्रोल और डीज़ल की शून्य बिक्री के कारण भी राज्यों को राजस्व की कमी का सामना करना पड़ रहा है। + +12913. यह राष्ट्रीय नीतियों के निर्माण और कार्यान्वयन में राज्यों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है। + +12914. उल्लेखनीय है कि प्रतिस्पर्द्धी संघवाद भारतीय संविधान की मूल संरचना का हिस्सा नहीं है। + +12915. वस्तु और सेवा कर के क्रियान्वयन के पश्चात् राज्यों ने अप्रत्यक्ष करों को लगाने की अपनी शक्तियाँ खो दीं है। इसके अतिरिक्त भारत में राज्य सरकार के पास आयकर और बिक्री कर लगाने की कोई शक्ति नहीं है। + +12916. राजकोषीय विकेंद्रीकरण के उद्देश्य से राज्यों के खर्च पर केंद्र का नियंत्रण कम करना। + +12917. सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/सरकारी बजट: + +12918. हिंदी निबंध एवं अन्य गद्य विधाओं के चयनित पाठों का यह संग्रह दिल्ली विश्वविद्यालय के स्नातक प्रतिष्ठा के पाठ्यक्रम के अनुसार तैयार किया गया है। इस पुस्तक के सामग्री से संबंधित अधिक अध्ययन के लिए हिंदी निबंध और अन्य गद्य विधाएँ सहायिका भी देखी जा सकती है। + +12919. सम्मेलन के दौरान ऊर्जा दक्ष भवन निर्माण सामग्री आपूर्तिकर्त्ताओं, प्रौद्योगिकी आपूर्तिकर्त्ताओं, अनुसंधान संस्‍थानों तथा विश्‍वविद्यालयों पर आधारित एक प्रदर्शनी का आयोजन भी किया जाएगा। + +12920. नवीकरणीय ऊर्जा. + +12921. ‘प्राप्ति’ एप तथा वेब पोर्टल बिजली खरीद में बिजली उत्पादकों और बिजली वितरण कंपनियों के बीच पारदर्शिता लाने के लिये विकसित किया गया। यह बिजली उत्पादकों से विभिन्न दीर्घकालिक बिजली खरीद समझौतों के लिये चालान और भुगतान डाटा कैप्चर करता है। इससे हितधारकों को बिजली खरीद के मामले में वितरण कंपनियों की बकाया राशि का मासिक और पारंपरिक आँकड़ा प्राप्त करने में मदद मिलती है। + +12922. मौजूदा नीति के तहत पेट्रोकेमिकल के अलावा मोलासिस और नॉन फीड स्टॉक उत्पादों जैसे सेल्यूलोज़ और लिग्नोसेल्यूलोज़ जैसे पदार्थों से इथेनॉल प्राप्त करने की अनुमति दी गई है। + +12923. FAME इंडिया स्कीम के पहले चरण को चार फोकस क्षेत्रों के माध्यम से लागू किया गया था- + +12924. संश्लेषण गैस (Synthesis Gas) को संक्षिप्त रूप में सिनगैस कहा जाता है। यह हाइड्रोजन,कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) और कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का मिश्रण है। + +12925. यह घटना पौधों की पावर कैमरा ट्रैप (Power Camera Traps) और सेंसरों के प्रति संवेदनशीलता से हुई। + +12926. इस प्रकार के नवाचार से नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा मिलेगा। + +12927. इस अध्याय में हम लोहा एवं इस्पात उद्योग के बारे में अध्ययन करेंगे। + +12928. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में भारतीय दंड संहिता का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था। राज्य में केवल रणबीर दंड संहिता का प्रयोग होता था, जो ब्रिटिश काल से इस राज्य में लागू थी। + +12929. अनुच्छेद 35A + +12930. आर्थिक भूगोल/सूती वस्त्र उद्योग: + +12931. फाइबर की मुख्य लंबाई के आधार पर, कपास के तीन मुख्य प्रकार हैं:- + +12932. आधुनिक ढंग की सूती वस्त्र की पहली मिल की स्थापना 1818 में कोलकता के समीप फोर्ट ग्लास्टर में की गयी थी,परन्तु यह असफल रही थी। + +12933. यद्यपि कुटीर उद्योग के रूप में सूती धागा तथा सूती वस्त्रों का निर्माण लगभग सभी उष्ण एवं उपोष्ण कटिबंधीय देशों में किया जाता है तथा मशीनों द्वारा बड़े उद्योग के रूप में यह उद्योग 40-50 देशों में ही प्रचलित है। इस समय यह चीन, भारत, रूस, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका आदि प्रमुख उत्पादक देश है। + +12934. देश में सूती वस्त्रो उद्योग में महाराष्ट्र और गुजरात अग्रणी राज्य हैं। अकेले महाराष्ट्र में भारत का 38% कपड़ा तथा 30% सूत तैयार किया जाता है। ाँ कुल 119 मिलें हैं जिनमें लगभग 3 लाख श्रमिक कार्य करते हैं। इस राज्य का सबसे बड़ा केंद्र ‘मुंबई’ है जिसे ‘कपास का विराट नगर’ कहा जाता है। गुजरात इस क्षेत्र में दूसरा प्रमुख राज्य है जहाँ इस उद्योग की 118 मिलें स्थापित हैं, अकेले अहमदाबाद में 67 मिलें सूती वस्त्रों का उत्पादन करती हैं जो कि अहमदाबाद को गुजरात का सबसे बड़ा और मुंबई के बाद भारत का दूसरा प्रमुख सूती वस्त्र उत्पादक केंद्र बनाती हैं। इसके अतिरिक्त पश्चिम बंगाल के कोलकाता, तमिलनाडु के कोयम्बटूर, आंध्र प्रदेश के हैदराबाद, केरल तथा कर्नाटक राज्यों में भी इस उद्योग का विकास हुआ है। देश के अन्य तटीय राज्यों की अपेक्षा महाराष्ट्र और गुजरात में इस उद्योग का अधिक विकास हुआ है। जिसके प्रमुख कारणों है:- + +12935. मास्को-इवानोवो प्रदेश. + +12936. यह मास्को क्षेत्र के पश्चिम में स्थित है। इसके मुख्य केंद्र कालिनिन,वोलिचेक,विशनीय, आदि हैं। + +12937. साइबेरिया. + +12938. संयुक्त राज्य अमेरिका का वर्तमान वस्त्र उद्योग 3 छात्रों में वितरित है जिनका विवरण इस प्रकार है:- + +12939. यह क्षेत्र पेंसिल्वेनिया के पूर्वी भाग, न्यूयॉर्क, न्यू जर्सी, फिलाडेल्फिया, तथा मैरीलैंड राज्यों में फैला हुआ है। यहां पर प्रचूर-श्रम, जल-विद्युत, रेल परिवहन, मशीनों तथा निकटवर्ती बाजार की सुविधाएं उपलब्ध है। यहां पर फिलाडेल्फिया सबसे बड़ा केंद्र है। अन्य महत्वपूर्ण केंद्र विलमिंगटन, जर्मन टाउन,जर्सी सीटी,हेरिसबर्ग,पेटरसन,स्क्रेंटन, ट्रेंटन,विल्कीजबारे तथा बाल्टीमोर है। न्यूयॉर्क सिले-सिलाये हुए वस्त्रों का सबसे बड़ा केंद्र है। + +12940. सन् 1900 तक श्रमिक संख्या की दृष्टि से यह जापान का प्रथम उद्योग हो गया। प्रथम विश्व युद्ध काल (1914-18) मैं इस उद्योग ने बड़ी तीव्र गति से उन्नति की और जापानी वस्त्र, चीन, भारत, तथा अफ्रीका के बाजारों तक पहुंच गए। सन् 1938 तक जापान विश्व में सूती वस्त्रों का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया। द्वितीय विश्व युद्ध(1939-45) में जापान पर अमेरिका द्वारा बम गिराए जाने से जापान को भारी क्षति पहुंची और इसके 80% सूत काटने वाले कारखाने नष्ट हो गए। सन् 1946 में जापान के पास केवल 22 लाख तकुए रह गए थे। परंतु युद्ध के बाद जापान ने बड़ी तीव्र गति से इस उद्योग को नव-निर्माण किया और तकुओं की संख्या बढ़कर सन् 1952 में 69 लाख तथा 1967 में 126 लाख हो गई। बहुत से कारखानों में नई मशीनें लगाई गई। सन् 1950 में जापान फिर विश्व का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया और यह देश आज तक अपनी उस स्थिति को बनाए हुए हैं। आज जापान अपने कुल सूती वस्त्र उत्पादन का 35% भाग निर्यात कर देता है। इस समय जापान विश्व का लगभग 3.5% कपड़ा तथा 3.7% सूत पैदा करके विश्व में पांचवें स्थान पर है।
+ +12941. इसमें ओसाका सबसे महत्वपूर्ण केंद्र है और जापान का मैनचेस्टर भी कहलाता है। ओसाका के आसपास विस्तृत मैदानी भाग है जो उद्योग के विकास के अनुकूल है। ओसाका का एक प्रमुख बंदरगाह भी हैं जिससे आयात-निर्यात में सुविधा होती है। + +12942. यूरोप. + +12943. फ्रांस. + +12944. फ्रांस में सर्वप्रथम सूती वस्त्र उद्योग इसी क्षेत्र के टोंवा नामक जिले में शुरू हुआ था। रोएं नगर इस क्षेत्र का प्रधान केंद्र है। + +12945. सेक्सोनी क्षेत्र. + +12946. इटली. + +12947. सूरदास के विषय में कहा जाता है कि वे जन्मांध थे। उन्होंने अपने को 'जनम को आंधर' कहा भी है। किंतु इसके शब्दार्थ पर नहीं जाना चाहिए। सूर के काव्य में प्रकृति और जीवन का जो सूक्ष्म सौंदर्य चित्रित है उससे यह नहीं लगता कि वे जन्मांध थे। उनके विषय में ऐसी कहानी भी मिलती है कि तीव्र अंतर्द्रद्ध के किसी क्षण में उन्होंने अपनी आँखें फोड ली थीं। उचित यही मालूम पड़ता है कि वे जन्मांध नहीं थे। कालांतर में अपनी आँखों की ज्योति खो बैठे थे। सूरदास अब अंधों को कहा जाता है। यह परंपरा सर के अंध हो जाने के बाद से चली है। सूर का आशय 'शूर' से है। शूर और सती‌ मध्यकालीन भक्तों के आदर्श थे + +12948. कृष्ण की बाल-लीला को प्रकृति और कर्म के विशद् क्षेत्र का संदर्भ प्रदान कर दिया है। लोक-साहित्य में यह संदर्भ सहज तौर पर जुड़ा दिखलाई पड़ता है। सर ने अपनी रचना में प्रकृति और जीवन के कर्म के क्षेत्रों को अचूक कौशल से उतार लिया है। लोक-साहित्य की सहज जीवंतता जितनी सूर के साहित्य में मिलती है, उतनी हिंदी के किसी कवि में नहीं मिलती। + +12949. मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो- यह पांक्ति मार्मिक क्यों है? समूचे जीवन-चित्र के संदर्भ में ही रखकर इसे समझा जा सकता है। बालक हति तनिरीह हैं लेकिन वे अपने को बहुत चालाक समझते हैं। यह सब वयस्क खूब समझते हैं। कच्ची चालाकी से मिलकर बच्चों की निरीहता वयस्कों के लिए पहले से अधिक निरीह, अत: प्रिय हो उठती है। कृष्ण के मुख पर माखन लगा + +12950. मुक्तकों में ऐसी स्वाभाविक संवाद-योजना भी कम मिलेगी । सूरदास द्वारा चित्रित राधा-कृष्ण की प्रेम-लीला में मध्यकालीन पराधीन नारी के सहज एवं स्वाधीन जीवन का स्वप्न जैसे साकार हो उठा है। यह स्वप्न सर्वाधिक साक्षात रास-लीला वर्णन में होता है। सूरदास के समय अर्थात् सोलहवीं शती में ब्रज में नारियों को वह स्वाधीनता नहीं थी, जिसका वर्णन सूरसागर में मिलता है। यह सच है कि रास-लीला का साधनात्मक अर्थ भी है, जहाँ गोपियाँ साधकों की प्रतीक हैं, किंतु काव्य का प्रतीकार्थ ही ठीक नहीं होता, उसका साधारण या वाच्यार्थ भी संगत होता है। गोपियाँ लोक-लाज तजकर घर की चहारदीवारी ही नहीं तोड़तीं, वे कृष्ण की बाँसुरी सुनकर उस सामाजिक व्यवस्था को भी तोड़ती + +12951. सूरदास के गेयपद मुक्तक हैं, किंतु उनमें प्रबंधात्मकता का रस है। इसलिए उन्हें गेयपद के साथ-साथ 'लीला-पद' भी कहा जाता है। वे ब्रजभाषा के प्रथन प्रतिष्ठित कवि हैं। उनकी भाषा में साहित्यिकता के साथ चलतापन एवं प्रवाह भी है। कहीं-कहीं वे गीत-गोविंद के वर्णानुप्रास की शैली भी अपना लेते हैं। सुरदास भी यथास्थान विविध शैलियों को अपनाते हैं। उनकी कविता में + +12952. नंददास सोलहवीं शती के अंतिम चरण में विद्यमान थे इनके विषय में भक्तमाल में लिखा है- चंद्रहास-अग्रज सुहृद परम प्रेम- पथ में पगे। दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता के अनुसार ये तुलसीदास के भाई थे, किंतु अब यह बात प्रामाणिक नहीं मानी जाती। इनके काव्य के विषय में यह उक्ति प्रसिद्ध हैं- 'और कवि गढ़िया, नंददास जड़िया।' इससे प्रकट होता है कि इनके काव्य का कला-पक्ष महत्त्वपूर्ण है। इनकी प्रमुख कृतियों के नाम इस प्रकार हैं- + +12953. + +12954. मीराबाई (1498-1546): + +12955. प्राय: भक्त कवियों में यह बात पाई जाती है कि वे अपने इष्ट के पास अपने जीवन के अभावों को लेकर उनकी पृूर्ति के लिए जाते हैं। मीरा भक्त थीं। भक्त होना कोई बुरी बात नहीं, फिर राणा मीरा से क्यों रुष्ट थे? मीरा सवर्ण समाज की थीं और फिर राणा कुल की पुत्रवधू। इसलिए उनका सामान्य लोगों के बीच उठना-बैठना उस सामाजिक व्यवस्था को असह्य था जिसमें नारी पति के मरने पर या तो सती हो सकती थी या घर की चारदीवारी के भीतर वैधव्य झेलने के लिए अभिशप्त थी। मीरा को भक्त होने के लिए लोक-लाज छोड़नी पड़ी और यही बात राणा को खलती थी लोक-लाज तजने की बात मीरा की कविताओं में बार-बार आती है। मीरा ने अपने इष्ट देव गिरधर का जो रूप निर्मित किया है, वह अत्यंत मोहक है। मीरा के रूप-चित्रण की यह भी विशेषता है कि वह प्राय: गत्वर होता है। गिरधर नागर को प्रायः सचेष्ट अंकित किया जाता है, तो वे मुरली बजाते हैं या मंद-मंद मुस्काते हैं या मीरा की गली में प्रवेश करते हैं। मीरा नारी सुलभ लज्जा के कारण उनसे सीधे मुँह बात बहुत कम करती हैं। उनके सामने न रहने पर यानी वियोगावस्था में वे उनसे वार्तालाप करती हैं, अनुनय-विनय करती हैं। विरह मीरा के जीवन का भी सबसे बड़ा यथार्थ है और उनके काव्य का भी। मीरा के विरह की सचाई का लक्षण यह है कि वे विरह की पीड़ा के ताप से मुक्त होना चाहती हैं वेदना की सचाई का एक लक्षण यह है कि व्यक्ति उससे मुक्ति के लिए छटपटाए। मुक्ति संभव न हो तो भी मनुष्य मुक्तावस्था का स्वप्न देखता है। मीरा के यहाँ विरह-वेदना उनका यथार्थ है. तो कृष्ण से मिलन उनका स्वप्न। मीरा के जीवन के यथार्थ की प्रतिनिधि पंक्ति है- + +12956. मीरा के काव्य पर निर्गुण-सगुण, दोनों साधनाओं का प्रभाव है। उन पर नाथ मत का भी प्रभाव दिखाई पड़ता है। उनके इष्ट देव तो कृष्ण ही हैं, किंतु रामकथा से संबंधित गेयपद भी उन्होंने लिखे हैं। मीरा की कविताएँ शिष्ट समाज के साथ-साथ राजस्थान के भीलों में भी बहुत लोकप्रिय हैं। + +12957. अर्थात् सब स्वाँग किया जा सकता है, किंतु कृष्ण के अधरों पर रखा ईै मुरली को अपने अधरों पर रखने का स्वॉँग नहीं किया जाएगा। कृष्णभक्त कवियों की सुदीर्घ परंपरा है। स्वामी हरिदास (16वीं शती), हरीराम व्यास (16वीं शती), सुखदास (17वीं शती), लालचदास (16वीं शती), नरोत्तमदास (16वीं शती) आदि अन्य कृष्णभक्त कवि हैं। इनमें नरोत्तमदास का सुदामा-चरित अपनी मार्मिकता और सहज प्रवाह के कारण बहुत लोकप्रिय है। + +12958. + +12959. विश्व में प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र निम्नलिखित हैं:- + +12960. संयुक्त राज्य अमेरिका में औद्योगिक इकाइयाँ निम्नलिखित क्षेत्रों में विभाजित हैं:- + +12961. इस औद्योगिक क्षेत्र में विशाल पूंजी, अच्छे संचार, निर्यात सुविधाएं, सस्ते और कुशल श्रम एवं विशाल बाजार के फायदे उपलब्ध हैं। संपूर्ण औद्योगिक क्षेत्र मोटे तौर पर पूर्वी और पश्चिमी भाग में विभाजित है।पूर्वी भाग में, प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र प्रोविडेंस, ब्रुकस्टन, न्यू बेडफोर्ड और मेरिमैक घाटी हैं। पश्चिमी भाग में, प्रमुख केंद्र हार्टफोर्ड, न्यू हेवेन और स्प्रिंगफील्ड हैं। + +12962. यह लौह उद्योगों की सबसे बड़ी सघनता वाला क्षेत्र है। इस क्षेत्र में देश के लौह और फेरो-मिश्र धातु उत्पादों का लगभग 1/4 वां हिस्सा उत्पादक करता है। प्रसिद्ध लोहा एवं इस्पात त्रिकोण यंगटाउन-पिट्सबर्ग-जॉन्सटाउन इसी क्षेत्र में स्थित है। + +12963. दक्षिणी औद्योगिक क्षेत्र देश के दक्षिण मध्य क्षेत्र में पूर्व में उत्तरी कैरोलिना से लेकर टेक्सास तक फैला हुआ है। इस क्षेत्र में प्रमुख औद्योगिक राज्य टेक्सास और उत्तरी कैरोलिना हैं। अन्य राज्यों में भी औद्योगिक क्षेत्र हैं जैसे- मिसिसिपी, टेनेसी, जॉर्जिया, फ्लोरिडा, अलबामा, ओक्लाहोमा और टेक्सास इत्यादि। + +12964. प्रशांत क्षेत्र. + +12965. ओंटारियो और सेंट लॉरेंस घाटी. + +12966. इस क्षेत्र में प्रमुख औद्योगिक केंद्र वैंकूवर और प्रिंस रूपर्ट हैं। इस क्षेत्र के प्रमुख उद्योग कागज और लुगदी, फर्नीचर, कृषि मशीनरी और हाइडल पावर स्टेशन हैं। + +12967. ब्रिटेन के विनिर्माण क्षेत्र को निम्नलिखित समूहों में उप-विभाजित किया जा सकता है:- + +12968. उत्तर-पूर्वी तट. + +12969. लंकाशायर. + +12970. संयुक्त जर्मनी यूरोप में सबसे प्रमुख औद्योगिक शक्तियों में से एक है। एकीकरण से पहले भी, पश्चिम जर्मनी को एक महान औद्योगिक शक्ति माना जाता था। 1996 में, उद्योग ने कुल जीडीपी में 38.2 प्रतिशत का योगदान दिया। यहां के लगभग 38% लोग विनिर्माण गतिविधियों में लगे हुए हैं। + +12971. कई अन्य औद्योगिक क्षेत्र विभिन्न अन्य यूरोपीय देशों में बिखरे हुए हैं। इन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण हैं स्विट्जरलैंड में स्विस पठार, स्वीडन में स्टॉकहोम क्षेत्र, हॉलैंड में रॉटरडैम-एम्स्टर्डम क्षेत्र, बेल्जियम में ब्रुसेल्स-एंटवर्प औद्योगिक क्षेत्र। + +12972. एशियाई क्षेत्र. + +12973. वर्तमान में, जापान में 35 प्रतिशत कामकाजी लोग विनिर्माण गतिविधियों में लगे हुए हैं।1995 में, जापान में विनिर्माण ने देश के जीएनपी में 38 प्रतिशत का योगदान दिया था। + +12974. चीनी औद्योगिक प्रणाली पिछले 50 वर्षों के कम्युनिस्ट नियमों के माध्यम से चलाई जा रही थी। परंतु अब पुरानी औद्योगिक नीतियों को त्याग दिया गया और नई नीतियों को अपनाया गया।राज्य शक्ति योजनाबद्ध तरीके से देश के औद्योगिक विकास की देखरेख कर रही है। क्षेत्रीय असंतुलन और उद्योगों के फैलाव के उन्मूलन को प्रोत्साहित किया गया।लोहा, इस्पात, रसायन, वस्त्र जैसे बुनियादी उद्योगों को प्राथमिकता दी गई।
+ +12975. स्थानिक रूप से, भारतीय विनिर्माण प्रतिष्ठान वितरित हैं। कुछ राज्यों में बहुत अधिक सांद्रता हो रही है, जबकि अन्य क्षेत्र उद्योगों से रहित हैं। यह देखा गया है कि मैदानी, उपजाऊ भूमि और औपनिवेशिक विरासत में स्थित क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से ध्वनि औद्योगिक आधार हैं। + +12976. इन प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों के अलावा, भारत में कई अलग-थलग औद्योगिक केंद्र विकसित हुए हैं। इनमें कानपुर, लखनऊ, मेरठ, इलाहाबाद, वाराणसी, जालंधर, पटियाला, जयपुर, बिलासपुर, कटक, भुवनेश्वर, हैदराबाद, त्रिवेंद्रम, एलेप्पी, क्विलोन आदि प्रमुख क्षेत्र हैं। + +12977. + +12978. भारत में इसका सबसे पहला बड़े पैमाने का कारख़ाना 1907 में झारखण्ड राज्य में सुवर्णरेखा नदी की घाटी में साकची नामक स्थान पर जमशेदजी टाटा द्वारा स्थापित किया गया गया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् पंचवर्षीय योजनाओं के अन्तर्गत इस पर काफ़ी ध्यान दिया गया और वर्तमान में 7 कारखानों द्वारा लौह इस्पात का उत्पादन किया जा रहा है। + +12979. उद्योगों को प्रभावित करने वाले कारकों को दो भागों में बाँटा जा सकता है।
+ +12980. उद्योगों में मशीन चलाने के लिये शक्ति की आवश्यकता होती है। शक्ति के प्रमुख स्रोत- कोयला, पेट्रोलियम, जल-विद्युत, प्राकृतिक गैस तथा परमाणु ऊर्जा है। लौह-इस्पात उद्योग कोयले पर निर्भर करता है, इसलिये यह उद्योग खानों के आस-पास स्थापित किया जाता है। छत्तीसगढ़ का कोरबा तथा उत्तर प्रदेश का रेनूकूट एल्युमीनियम उद्योग विद्युत शक्ति की उपलब्धता के कारण ही स्थापित हुए हैं। + +12981. कच्चे माल को उद्योग केंद्र तक लाने तथा निर्मित माल की खपत के क्षेत्रों तक ले जाने के लिये सस्ते एवं कुशल यातायात की प्रचुर मात्रा में होना अनिवार्य है। मुम्बई, चेन्नई, दिल्ली जैसे महानगरों में औद्योगिक विकास मुख्यतः यातायात के साधनों के कारण ही हुआ है। + +12982. उपर्युक्त भौगोलिक कारकों के अतिरिक्त पूंजी, सरकार की औद्योगिक नीति, औद्योगिक जड़त्व, बैंकिग तथा बीमा आदि की सुविधा ऐसे गैर-भौगोलिक कारक हैं जो किसी स्थान विशेष में उद्योगों की स्थापना को प्रभावित करते हैं। + +12983. संयुक्त राज्य अमेरिका उत्पादन में पहले प्रथम स्थान पर था परन्तु अब अमेरिका रूस के बाद दुनिया में तीसरे स्थान पर है। भारत की स्थिति लौह और इस्पात उत्पादन में 9 वें स्थान पर है।क्रमशः 3.9 और 3.6% कच्चा लोहा और कच्चे इस्पात का उत्पादन होता है। + +12984. जापान. + +12985. नागोया क्षेत्र. + +12986. यह क्यूशू के भीतर जापान के चरम दक्षिण में और होन्शू के पश्चिमी छोर पर स्थित है। पहला सरकारी स्टील प्लांट 1901 में यवाता में स्थापित किया गया था। किता-क्यूशू इस क्षेत्र का एक और उल्लेखनीय लोहा और इस्पात केंद्र है। + +12987. अपलाशियन या पिट्सबर्ग क्षेत्र. + +12988. अटलांटिक सीबोर्ड क्षेत्र. + +12989. पश्चिमी क्षेत्र. + +12990. अधिकांश बड़े उत्पादन केंद्र या तो नष्ट हो गए या क्षतिग्रस्त हो गए। परन्तु सोवियत देश बहुत जल्द ही ठीक हो गया और 1975 तक दुनिया में लोहे और इस्पात का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया। इस क्षेत्र के चार महत्वपूर्ण लोहा एवं इस्पात उत्पादक के क्षेत्र निम्नलिखित है। + +12991. मॉस्को क्षेत्र. + +12992. यूक्रेन एक स्वतंत्र देश है और विश्व में लौह एवं इस्पात के उत्पादन में 8 वां स्थान है। इस क्षेत्र में सभी कच्चे माल जैसे- लौह अयस्क, कोयला, चूना पत्थर, मैंगनीज आदि इस्पात उत्पादन के लिए उपलब्ध हैं।रेलवे और सस्ते जल परिवहन का एक सघन नेटवर्क लौह एवं इस्पात उद्योग के विकास को सुविधाजनक बनाता है। लोहा एंव इस्पात उद्योग के मुख्य केंद्र क्रिवोएरोग, केर्च, ज़्डानोव, टैगररोग, ज़ापोरोज़े, पिट्सबर्ग, डेन्प्रोपेत्रोव्स्क आदि क्षेत्र हैं। + +12993. दक्षिणी कोरिया. + +12994. भारत. + +12995. 1973 तक, फ्रांस दुनिया में स्टील का 6 वां सबसे बड़ा उत्पादक था लेकिन अब इसकी स्थिति 10 वीं है। फ्रांस पश्चिम यूरोप का सबसे बड़ा लौह अयस्क उत्पादक देश है, लेकिन यहां कोयले की कमी है। फ्रांस में, लोहा और इस्पात उत्पादन के लिए दो क्षेत्र उल्लेखनीय हैं। + +12996. साठोत्तरी हिन्दी साहित्य में जीवन और जगत से जुड़ी प्रत्येक स्थिति-परिस्थिति को अत्यंत यथार्थ पूर्ण ढंग से चित्रित किया गया है। भरसक प्रयासों के बाद भी जब स्वराज्य को रामराज्य में परिणत ना किया जा सका तो जनमानस में मोहभंग की स्थिति पैदा हो गई। जीवन के इस कटु यथार्थ का सामना करने में उसे जिन दबाव तथा तनावों को झेलना पड़ा है, जिन-जिन आरोहों-अवरोहों से गुजरना पड़ा है,उसकी स्पष्ट छाप हमें साठोत्तरी साहित्य में दिखाई पड़ती है। पारंपरिक मूल्यों, मान्यताओं का विरोध करने वाली इस समय की कविता और कहानी में प्रतिक्रियात्मक स्वर ही अधिक प्रबल है। यथास्थिति को नकार कर आमूल-चूल परिवर्तन लाने की आकांक्षा तथा समकालीन परिवेश एवं यथार्थ को स्पष्ट‌ बेलाग शब्दों में व्यंजित करना ही इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। साठोत्तरी साहित्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का अनुशीलन इस प्रकार किया जा सकता है- + +12997. मोहभंग की स्थिति. + +12998. जनवादी चेतना की विस्तृत व्यंजना. + +12999. मेरे लिये,हर आदमी एक जोड़ी जूता है।
+ +13000.
+ +13001. कवि कहते हैं दिन के ढलने का समय था रात्रि का आगमन हो रहा था कवि संध्या को सुन्दरी के रूप में प्रस्तुत करते हुए कहते है,संध्या धीरे धीरे आसमान से उतर रही है आस पास चारो ओर शांति है अचंचलता के साथ वो धीरे धीरे उतर रही है अर्थात् संध्या ढल रही है। आसमान में एक तारा दिखना आरम्भ हो गया है, बादलों को सुन्दरी के बाल के समान मन कर कवि कहते है कि गुंघराले बालों के बीच में से एक तारा दिख था है। ऐसा प्रतीत होता है कि वह तारा हृदय की रानी का अभिषेक कर रहा है। दिन भर काम कर के थकने के बाद आलस्य हावी हो रहा है परन्तु कोमलता की कली शान्ति के साथ ढल रही है। ना ही वह वीणा बजा रही है ना ही कोई राह गा रही है। बस एक आवाज़  ' चुप' है। जगत में शांति छाई हुई है। रात्रि के समय सब सो रहे हैं सरोवर से रहा है, जंगल सो रहा है सब सो रहे हैं। हर जगह शांति है और इस शांति में कवि के मन से से उनका प्रलय गीत निकल जाता है। + +13002. 5) चित्रत्मक शैली का प्रयोग है। + +13003. तरवर से इक तिरिया उतरी, उनने बहुत रिझाया। + +13004. "'(1) + +13005. तन मेरो मन पियो को, दोउ भए एक रंग॥ + +13006. चकवा चकवी दो जने उन मारे न कोय। + +13007. चमत्कार और कौतूहल की प्रवृत्तियां भी खुसरो की प्रेरणा से हिन्दी काव्य में विशेष स्थान पाने लगीं। फलतः रीतिकाल में कुतूहल - काव्यों की एक लम्बी परम्परा चली थी। + +13008. आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार:- आध्यात्मिक रंग के चश्मे आजकल बहुत सस्ते हो गए है। उन्हें चढ़ाकर जैसे कुछ लोगों ने " ‘ गीतगोविंद ’ " के पदों को आध्यात्मिक संकेत बताया है, वैसे ही विद्यापति के इन पदों को भी। + +13009. कीर्तिलता पुस्तक में तिरहुत के राजा कीर्तिसिंह की वीरता, उदारता गुणग्राहकता आदि का वर्णन बीच में कुछ देश भाषा के पद्य रखते हुए, अपभ्रंश भाषा के दोहे, चौपाई, छप्पय, छंद गाथा आदि छंदों में किया जाता है। इस अपभ्रंश की विशेषता यह है कि यह पूर्वी अपभ्रंश है। + +13010. " जलदानेन हु जलसो, न हु जलसों पुंजिओ धूमो॥ + +13011. आज के दौर में पत्रकारिता का स्वरूप बदल गया है। पत्रकारिता के मूल सिद्धान्तो को ताक पर रखकर की जाने वाली पत्रकारिता ही पीत पत्रकारिता है। ज्यादतर समाचार संगठन आगे निकलने की होड़ में पत्रकारिता धीरे-धीरे अपना दायरा बढ़ता जा रहा है। बाजारवादी ताकतों ने पत्रकारिता को व्यवसाय की जगह व्यापार का स्वरूप प्रदान कर दिया। इसे ध्यान में रखते हुए कई बड़े राजनीतिक और व्यावसायिक घरानों का पत्रकारिता के क्षेत्र में आगमन हुआ, जिनका मुख्य उद्देश्य जनसेवा न होकर समाज और सत्ता पर नियंत्रण बनाये रखना है। उन्हें यह भली भाँति मालूम है कि पत्रकारिता एक ऐसा जरिया है, जिससे जनसमूह में पैठ बनाई जा सकती है।बदलते हुए परिदृश्य में जनसमूह को आर्कषित करने के लिए समाचारों को सनसनीखेज बनाना, तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करना तथा चटपटी कहानियाँ प्रकाशित एवं प्रसारित करना सम्पादकीय नीति का बना दिया गया है। इसके दायरे में निम्न गतिविधियाँ आती है – + +13012. बौद्ध धर्म + +13013. फलस्वरूप 1969-70 से लधु-पत्रिका आन्दोलन ने जोर पकड़ा। इसके बाद 1995 तक या यों कहें कि 2000 तक साहित्यिक पत्रकारिता में मार्क्सवादी विचारधारा तथा व्यापक तथा प्रगतिशील और वामपंथी दृष्टिकोण से प्रतिबद्ध लेखकों, सम्पादकों तथा पत्र-पत्रिकाओं का वर्चस्व कायम रहा। वहीं ‘आलोचना’(नामवर सिंह एवं नन्दकिशोर नवल) के आलावा ‘पहल’ (ज्ञानरंजन), ‘लहर’ (प्रकाश जैन और मनमोहिनी), ‘कथा’ (मार्कण्डेय), ‘कलम’ (चन्द्रबली सिंह), ‘धरातल’, ‘कसौटी’(नन्दकिशोर नवल) और ‘समारम्भ’ (भैरवप्रसाद गुप्त) - जैसी श्रेष्ठ साहित्यिक पत्रिकाएँ अपने दौर की साहित्यिक पत्रकारिता का प्रतिनिधित्व करती है। + +13014. वह तोड़ती पत्थर' प्रसिद्ध छायावादी कवि सूर्य कान्त त्रिपाठी ' निराला ' द्वारा रचित है। निराला जी अपनी रचनाओं में जीवन के मार्मिक दृश्य को उजागर करते है। + +13015. 1) सरल भाषा का प्रयोग है। + +13016. हिन्दी साहित्य के संदर्भ में भक्तिकाल से तात्पर्य उस काल से है जिसमें मुख्यतः भागवत धर्म के प्रचार तथा प्रसार के परिणाम स्वरूप भक्ति आंदोलन का सूत्रपात हुआ था और उसकी लोकोन्मुखी प्रवृति के कारण धीरे - धीरे लोक प्रचलित भाषाएं भक्ति - भावना की अभिव्यक्ति का माध्यम बनती गई। + +13017. साहित्य मानव समाज के विविध भावों एवं सतत परिवर्तनशील रहने वाली चेतना की अभिव्यक्ति है। साहित्यिक रचनाओं के पीछे ऐतिहासिक शक्तियों और सामाजिक संस्थाओं का योगदान रहता है। किसी काल विशेष की साहित्यिक जानकारी से तद्‌युगीन मानव समाज को समग्रता में जाना जा सकता है। हमे चाहे किसी भी युग के साहित्य की चर्चा करें, उसके साहित्यिक मूल्य उसके अपने समाज की वास्तविकता से ही प्रमाणित होते हैं। इसीलिए साहित्य के सामाजिक मूल्य और उसकी कलात्मक व्याख्या के लिए समाज की जानकारी अनिवार्य हो जाती है। + +13018. धार्मिक परिस्थितियाँ. + +13019. साहित्यिक परिस्थितियां. + +13020. जैन , सिद्धों का साहित्य इसका प्रमाण है। + +13021. हर्षवर्धन के समय तक भारतीय संस्कृति अपने चरमोत्कर्ष पर थी , उस समय तक स्वाधीनता तथा देश भक्ति के भाव दृढ़ थे। + +13022. कला के क्षेत्र में भी भारतीय परंपरा लुप्त हो गई। + +13023. हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका/ठुकरा दो या प्यार करो: + +13024. "' प्रसंग + +13025. 1)सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग किया है। + +13026. 6) शैली में व्यंग्य है। + +13027. स्नेह निर्झर' कवि सूर्य कान्त त्रिपाठी ' निराला ' द्वारा रचित है। निराला जी अपनी रचनाओं में जीवन के मार्मिक दृश्य को उजागर करते है। + +13028. कवि कहते है, वह अलक्षित हो गए है। अर्थात् अदृश्य के समान हो गए है उनके होने ओर ना होने से अब किसी को फर्क नहीं पड़ता। + +13029. 4) तत्सम शब्दों का प्रयोग है। ओर संगीतत्मक भी है। + +13030. बोधित किया जाता था। उनकी कृति भारत-भारती (1912) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के समय में काफी प्रभावशाली सिद्ध हुई थी और और इसी कारण महात्मा गांधी ने उन्हें राष्ट्रकवि की पदवी भी दी थी। उनकी जयन्ती ३ अगस्त को हर वर्ष कवि दिवस के रूप में मनाया जाता है। सन १९५४ में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया। + +13031. इसी वर्ष प्रयाग में "सरस्वती" की स्वर्ण जयन्ती समारोह का आयोजन हुआ जिसकी अध्यक्षता गुप्त जी ने की। सन् १९६३ ई० में अनुज सियाराम शरण गुप्त के निधन ने अपूर्णनीय आघात पहुंचाया। १२ दिसम्बर १९६४ ई. को दिल का दौरा पड़ा और साहित्य का जगमगाता तारा अस्त हो गया। ७८ वर्ष की आयु में दो महाकाव्य, १९ खण्डकाव्य, काव्यगीत, नाटिकायें आदि लिखी। उनके काव्य में राष्ट्रीय चेतना, धार्मिक भावना और मानवीय उत्थान प्रतिबिम्बित है। 'भारत भारती' के तीन खण्ड में देश का अतीत, वर्तमान और भविष्य चित्रित है। वे मानववादी, नैतिक और सांस्कृतिक काव्यधारा के विशिष्ट कवि थे। हिन्दी में लेखन आरम्भ करने से पूर्व उन्होंने रसिकेन्द्र नाम से ब्रजभाषा में कविताएँ, दोहा, चौपाई, छप्पय आदि छंद लिखे। ये रचनाएँ 1904-05 के बीच वैश्योपकारक (कलकत्ता), वेंकटेश्वर (बम्बई) और मोहिनी (कन्नौज) जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं। उनकी हिन्दी में लिखी कृतियाँ इंदु, प्रताप, प्रभा जैसी पत्रिकाओं में छपती रहीं। प्रताप में विदग्ध हृदय नाम से उनकी अनेक रचनाएँ प्रकाशित हुईं। + +13032. नाटक - रंग में भंग , राजा-प्रजा, वन वैभव , विकट भट , विरहिणी , वैतालिक, शक्ति, सैरन्ध्री , स्वदेश संगीत, हिड़िम्बा , हिन्दू, चंद्रहास + +13033. बंगाली- मेघनाद वध, विहरिणी ब्रजांगना(माइकल मधुसूदन दत्त), पलासी का युद्ध (नवीन चंद्र सेन) + +13034. उपरोक्त नाटकों के अतिरिक्त गुप्त जी ने चार नाटक और लिखे जो भास के नाटकों पर आधारित थे। निम्नलिखित तालिका में भास के अनूदित नाटक और उन पर आधारित गुप्त जी के मौलिक नाटक दिए हुए हैं :- + +13035. भूलोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला-स्थल कहाँ? + +13036. उनके द्वारा लिखित खंडकाव्य पंचवटी आज भी कविता प्रेमियों के मानस पटल पर सजीव है। + +13037. जीवन परिचय + +13038. "' काव्य रचनाएँ + +13039. छाया, प्रतिध्वनि, आकाशदीप, आंधी और इन्द्रजाल । + +13040. प्रसाद ने आठ ऐतिहासिक, तीन पौराणिक और दो भावात्मक, कुल 13 नाटकों की सर्जना की। 'कामना' और 'एक घूँट' को छोड़कर ये नाटक मूलत: इतिहास पर आधृत हैं। इनमें महाभारत से लेकर हर्ष के समय तक के इतिहास से सामग्री ली गई है। वे हिंदी के सर्वश्रेष्ठ नाटककार हैं। उनके नाटकों में सांस्कृतिक और राष्ट्रीय चेतना इतिहास की भित्ति पर संस्थित है। उनके नाटक हैं: + +13041. जयशंकर प्रसाद को 'कामायनी' पर मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था। + +13042. भाव पक्ष + +13043. किसलय का अंचल डोल रहा + +13044. तू अब तक सो‌ई है आली + +13045. दुर्दिन में आँसू बनकर, वह आज बरसने आयी।। + +13046. प्रसादजी भावों के तीव्रता और मूर्तता प्रदान करने के लिए प्रतीकों का सटीक प्रयोग करते हैं। प्रसाद का काव्य मानव जीवन को पुरुषार्थ और आशा का संदेश देता है। प्रसाद का काव्य मानवता के समग्र उत्थान और चेतना का प्रतिनिधि है। उसमें मानव कल्याण के स्वर हैं। कवि 'प्रसाद' ने अपनी रचनाओं में नारी के विविध, गौरवमय स्वरूपों के अभिनव चित्र उपस्थित किए हैं। + +13047. खग कुल कुल कुल-सा बोल रहा, + +13048. '" अलंकरण + +13049. जयशंकर प्रसाद ने हिंदी काव्य में छायावाद की स्थापना की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई और वह काव्य की सिद्ध भाषा बन गई। वे छायावाद के प्रतिष्ठापक ही नहीं अपितु छायावादी पद्धति पर सरस संगीतमय गीतों के लिखनेवाले श्रेष्ठ कवि भी बने। काव्यक्षेत्र में प्रसाद की कीर्ति का मूलाधार 'कामायनी' है। खड़ी बोली का यह अद्वितीय महाकाव्य मनु और श्रद्धा को आधार बनाकर रचित मानवता को विजयिनी बनाने का संदेश देता है। यह रूपक कथाकाव्य भी है जिसमें मन, श्रद्धा और इड़ा (बुद्धि) के योग से अखंड आनंद की उपलब्धि का रूपक प्रत्यभिज्ञा दर्शन के आधार पर संयोजित किया गया है। उनकी यह कृति छायावाद ओर खड़ी बोली की काव्यगरिमा का ज्वलंत उदाहरण है। सुमित्रानन्दन पंत इसे 'हिंदी में ताजमहल के समान' मानते हैं। शिल्पविधि, भाषासौष्ठव एवं भावाभिव्यक्ति की दृष्टि से इसकी तुलना खड़ी बोली के किसी भी काव्य से नहीं की जा सकती है। जयशंकर प्रसाद ने अपने दौर के पारसी रंगमंच की परंपरा को अस्वीकारते हुए भारत के गौरवमय अतीत के अनमोल चरित्रों को सामने लाते हुए अविस्मरनीय नाटकों की रचना की। उनके नाटक स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त आदि में स्वर्णिम अतीत को सामने रखकर मानों एक सोये हुए देश को जागने की प्रेरणा दी जा रही थी। उनके नाटकों में देशप्रेम का स्वर अत्यंत दर्शनीय है और इन नाटकों में कई अत्यंत सुंदर और प्रसिद्ध गीत मिलते हैं। 'हिमाद्रि तुंग शृंग से', 'अरुण यह मधुमय देश हमारा' जैसे उनके नाटकों के गीत सुप्रसिद्ध रहे हैं। + +13050. परिचय. + +13051. विसर्ग - अ:
+ +13052. दन्त्य - त, थ, द, ध, न
+ +13053. गृहीत - ज़, फ़, ऑ
+ +13054. • प्राचीन काल में काशी को देवनगर कहते थे। काशी को विद्या का गौरवपूर्ण स्थान माना गया है। देवनगर काशी में इस लिपि के प्रचार के कारण इसे देवनागरी कहा गया। + +13055. उत्तर भारत में प्राचीन नागरी का सबसे प्राचीन रूप कन्नौज के राजा महेंद्र पाल के दान पत्र में मिलता है। इसलिए 12वीं शताब्दी तक प्राचीन नागरी वर्तमान नागरी बन पाई। गौरीशंकर हीराचंद ओझा का कथन है 10 वीं शताब्दी की उत्तरी भारत वर्ष की नागरी लिपि में और कुटिल लिपि में समानता मिलती है। और उस समय भारत में अनेक राजाओं ने अपने राज्यकारों के संपादन के लिए नागरी को हीं अपना आधार बनाया। + +13056. हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका/सूर्यकांत त्रिपाठी निराला: + +13057. निराला की शिक्षा हाई स्कूल तक हुई। बाद में हिन्दी संस्कृत और बांग्ला का स्वतंत्र अध्ययन किया। पिता की छोटी-सी नौकरी की असुविधाओं और मान-अपमान का परिचय निराला को आरम्भ में ही प्राप्त हुआ। उन्होंने दलित-शोषित किसान के साथ हमदर्दी का संस्कार अपने अबोध मन से ही अर्जित किया। तीन वर्ष की अवस्था में माता का और बीस वर्ष का होते-होते पिता का देहांत हो गया। अपने बच्चों के अलावा संयुक्त परिवार का भी बोझ निराला पर पड़ा। पहले महायुद्ध के बाद जो महामारी फैली उसमें न सिर्फ पत्नी मनोहरा देवी का, बल्कि चाचा, भाई और भाभी का भी देहांत हो गया। शेष कुनबे का बोझ उठाने में महिषादल की नौकरी अपर्याप्त थी। इसके बाद का उनका सारा जीवन आर्थिक-संघर्ष में बीता। निराला जी ने 1918 से 1922 तक महिषादल राज्य की सेवा की। उसके बाद संपादन स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य किया। इन्होंने 1922 से 23 के दौरान कोलकाता से प्रकाशित 'समन्वय' का संपादन किया। 1923के अगस्त से 'मतवाला' के संपादक मंडल में काम किया। इनके इसके बाद लखनऊ में गंगा पुस्तक माला कार्यालय और वहाँ से निकलने वाली मासिक पत्रिका 'सुधा' से 1935 के मध्य तक संबद्ध रहे। इन्होंने 1942 से मृत्यु पर्यन्त इलाहाबाद में रह कर स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य भी किया। + +13058. '"उपन्यास + +13059. '"पुराण कथा + +13060. 15 अक्टूबर, 1961 को अपनी यादें छोड़कर निराला इस लोक को अलविदा कह गये पर मिथक और यथार्थ के बीच अन्तर्विरोधों के बावजूद अपनी रचनात्मकता को यथार्थ की भावभूमि पर टिकाये रखने वाले निराला आज भी हमारे बीच जीवन्त हैं। इनकी मृत्यु प्रयाग में हुई थी। + +13061. रामधारी सिंह 'दिनकर' सन् 1908- 1974 ई. + +13062. '"कृतियॉं- + +13063. आलोचना-ग्रन्‍थ रेणुका, हँकार, सामधेनी, रूपवन्‍ती, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, उर्वशी, परशुराम की प्रतीक्षा + +13064. शैली- + +13065. इन शैलियों के अतिरिक्‍त दिनकर जी की रचनाओं में आत्‍मकथात्‍मक शैली (आत्‍मपरक निबन्‍धों में) , वार्तालाप शैली, उद्धरण शेैली, उद्बोधन शैली आदि शेैलियों के दर्शन भी यत्र-तत्र हो जाते है। + +13066.
+ +13067. न होने दूँगी अत्याचार, चलो मैं हो जाऊँ बलिदान। + +13068. दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी। + +13069. कौशल्या के मातृगोद को, अपने ही मन में लेखो। + +13070. परिमलहीन पराग दाग-सा बना पड़ा है + +13071. कलियाँ उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर। + +13072. दोनों पति-पत्नी मन-प्राण से कांग्रेस का काम करने लगे। सुभद्रा महिलाओं के बीच जाकर स्वाधीनता संग्राम का संदेश पहुँचाने लगीं। वे उन्हें स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने, पर्दा छोड़ने, छुआछूत और ऊँच-नीच की संकीर्ण भावनाओं से ऊपर उठने की सलाह देती थी। स्त्रियाँ सुभद्रा की बातें बड़े ध्यान से सुनती थीं। 1920-21 में मध्यवर्ग की बहुओं में प्रगतिशील मूल्यों का संचार करने में सुभद्रा ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई। + +13073. सुभद्रा जी की जीवन-दृष्टि जीवन को नकारने की नहीं, बल्कि स्वीकारने की थी। उनकी कविताएँ दस-ग्यारह वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं में छपती रही थीं। कविता उनके मन की तरंग थी। उनकी कविताएँ मन के भीतर छटपटाते भावों को, सहज-सरल रूप में अभिव्यक्ति देने वाली हैं। उनमें शिल्प का वैसा सौष्ठव नहीं है और न पच्चीकारी का वैसा कोई चमत्कार ही है। अपनी सादगी और सहजता में सुभद्रा जी की कविताएँ लोककाव्य के बहुत निकट की जान पड़ती हैं। उनमें एक देशाभिमानी के साहस, त्याग और बलिदान की भावना है। + +13074. मैं गांधी जी, छोटे नेहरू, तुम सरोजिनी बन जाओ। + +13075. इस कविता में बच्चों के खेल, गांधी जी का संदेश, नेहरू जी के मन में गांधी जी के प्रति भक्ति, सरोजिनी नायडू की सांप्रदायिक एकता संबंधी विचारधारा को बड़ी खूबी से व्यक्त किया गया है। असहयोग आंदोलन के वातावरण में पले-बढ़े बच्चों के लिए ऐसे खेल स्वाभाविक थे। + +13076. सुभद्रा जी का जीवन सक्रिय राजनीति में बीता था। वे शहर की सबसे पुरानी कार्यकर्ता थीं। 1930-31 और 1941-42 में होने वाली जबलपुर की आम सभाओं में स्त्रियाँ बहुत बड़ी संख्या में जमा होती थीं जो हिंदी भाषी क्षेत्रों के लिए एक नया ही अनुभव था। स्त्रियों की इस संख्या के पीछे, स्त्रियों की इस जागृति के पीछे निश्चय ही सुभद्रा जी का हाथ था और उनकी तैयार की हुई टोली के अनवरत उद्योग का भी। सन्‌ 1920 से ही वे स्त्रियों की सभाओं में पर्दे के विरोध में, अंधी रूढ़ियों के विरोध में, छुआछूत हटाने के पक्ष में और स्त्री-शिक्षा के प्रचार के लिए बराबर बोलती जा रही थीं। अपनी उन बहनों से बहुत-सी बातों को अलग होते हुए भी वे उन्हीं में से एक थीं। उनके भीतर भारतीय नारी का जो सहज शील और मर्यादा थी, उसके कारण उन्हें वृहत्तर नारी समाज का विश्वास प्राप्त था। विचारों की दृढ़ता के साथ-साथ उनके स्वभाव में और व्यवहार में एक अजीब लचीलापन था, जिसके कारण अपने से भिन्‍न विचारों और रहन-सहन वालों के दिल में भी उन्होंने घर बना लिया था। + +13077. “सुभद्रा जी की कहानियों में अधिकांश बहुओं, विशेषकर शिक्षित बहुओं के दुःखपूर्ण जीवन को लेकर लिखी गई हैं। निस्‍संदेह वे इसकी अधिकारिणी हैं। किंतु उन्होंने किताबी ज्ञान के आधार पर या सुनी-सुनाई बातों को आश्रय करके कहानियाँ नहीं लिखीं वरन्‌ अपने अनुभवों को ही कहानियों में रूपांतरित किया है। निस्संदेह उनके स्त्री-चरित्रों का चित्रण अत्यंत मार्मिक और स्वाभाविक हुआ है। फिर भी जो बात अत्यंत स्पष्ट है वह यह है कि उनकी कहानियों में समाज व्यवस्था के प्रति एक नकारात्मक घृणा ही व्यक्त होती है। पाठक यह तो सोचता है कि समाज युवतियों के प्रति कितना निर्दय और कठोर है पर उनके चरित्र में ऐसी भीतरी शक्ति या विद्रोह की भावना नहीं पाई जाती जो समाज की इस निर्दयतापूर्ण व्यवस्था को अस्वीकार कर सके। उनके पाठक-पाठिकाएँ इस कुचक्र के छूटने का कोई रास्ता नहीं पातीं। इन कहानियों में शायद ही कहीं वह मानसिक दृढ़ता चरित्र को मिलती है जो स्वेच्छापूर्वक समाज की बलि-वेदी पर बलि होने का प्रतिवाद करें। इसके विरुद्ध उनके चरित्र अत्यंत निरुपाय-से होकर समाज की वहिशिखा में अपने को होम करके चुपके से दुनिया की आँखों से ओझल हो जाते हैं।...मनोविज्ञान के पंडित इसको निगेटिव कैरेक्टर या नकारात्मक चरित्र के लक्षण बताते हैं। जहाँ स्त्री शिक्षा का अभाव है, पुरुष और स्त्री की दुनिया अलग-अलग है, वहाँ तो निश्चित रूप से स्त्री में नकारात्मक चरित्र की प्रधानता होती है । और समाज स्त्री के लिए जिन भूषण रूप आदर्शों का विधान करता है उनमें एकांतनिष्ठा, क्रीड़ा, आत्मगोपन और विनयशीलता आदि नकारात्मक गुणों की प्रधानता होती है। इस दृष्टि से सुभद्रा जी की कहानियों में भारतीय स्त्री का सच्चा चित्रण हुआ है। वे भारतीय स्त्रीत्व की सच्ची प्रतिनिधि बन सकी हैं।' + +13078. सुभद्रा जी के पास सहज मानवीय संवेदना से पाए गए आसपास, पास-पड़ोस और रोजमर्रा की पारिवारिक जिंदगी के विविधता भरे ब्यौरों की पूँजी है। अपनी इस पूँजी का इस्तेमाल उन्होंने कविताओं में तो किया ही, कहानियों में भी किया। उनकी कहानियाँ सच्चाई को उसकी पूरी विविधता, तीव्रता और सहजता में समेटती और उजागर करती हैं। अपने अनुभूत वास्तव के प्रति उनमें कोई दुराव, कोई संकोच नहीं है, बल्कि एक साहसपूर्ण आदरभाव और स्वीकृति है। + +13079. 15 अगस्त, 1947 को जब देश आजाद हुआ तो सबने खुशियाँ मनाईं। सुभद्रा जी ने भेड़ाघाट जाकर वहाँ के खान मजदूरों को कपड़े और मिठाई बाँटी। उस दिन वे अपना सिरदर्द भूल गई थीं, धकावट भूल गई थीं, आराम करना भूल गई थीं। + +13080. 16 अगस्त, 1904 को जन्मी सुभद्राकुमारी चौहान का देहांत 15 फरवरी, 1948 को 44 वर्ष की आयु में ही हो गया। एक संभावनापूर्ण जीवन का अंत हो गया। + +13081. वीरों का कैसा हो वसंत + +13082. "'व्याख्या + +13083. 4) दिग्ग- दिगंत में अनुप्रास अलंकार है। + +13084. हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका/मुरझाया फूल: + +13085. मुरझाया फूल कविता में कवियित्री कहती है फूल के माध्यम से मनुष्य के अंतिम समय की स्तिथि को बताते हुए उसकी पीड़ा को दर्शाती है। + +13086. 2) प्रतीकात्मकता का प्रयोग है। + +13087. मेरे पथिक
+ +13088. '" व्याख्या + +13089. 2)जीवन में आने वाली मुश्किलों का वर्णन किया है। + +13090. + +13091. सन्दर्भ. + +13092. देह बिसाल परम हरुआई। मंदिर तें मंदिर चढ़ धाई॥ + +13093. जारा नगरु निमिष एक माहीं। एक बिभीषन कर गृह नाहीं ॥ + +13094. हनुमान ने लंका में प्रवेश करके अपने शरीर को विशाल रूप में धारण कर लिया वे उस समय अपने को बहुत ही बड़ा कर चुके थे इतना ही नहीं वे उसी रूप में ही मंदिर से मंदिर पर चढ़ते जा रहे थे। उनकी पूँछ में आग लगी हुई थी' एक के बाद एक करके वे ऊंची-ऊंची चोटी वाले मंदिरों पर चढ़ते जा रहे थे। नगर के वासी लोग अपने में बेहाल हो रहे थे, क्योंकि आग की लपटें चारों ओर फैलती जा रही थीं। आग ने भयंकर रूप धारण कर लिया था लोग उसमें जलते जा रहे थे। हाहाकार मच गया था। सभी अपने पिता-माता तथा सगे-संबंधियों को पुकार रहे थे। यही अब अवसर जब हमें आकर कोई बचा सकेगा हमारे प्राणों की रक्षा करने वाले की जरूरत है। जो हमें बचा सके। + +13095. शब्दार्थ. + +13096. सन्दर्भ. + +13097. मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा जैसे रघुनायक मोहि दीन्हा।। + +13098. मास दिवस महुँ नाथु न आवा तौ पुनि मोहि जिअत नहिं पावा॥ + +13099. हे माता! मुझे कोई अपनी निशानी दीजिए, जिस तरह से भगवान् राम ने मुझे दी थी। वह मैंने आप को दी। उसी प्रकार आप भी कोई निशानी मुझे दे दो। तब सीता जी ने अपनी कलाई से चूडामणि उतार कर हनुमान को दे दी। बड़ी ही खुशी के साथ हनुमान ने वह निशानी स्वीकार की। अर्थात् खुशी से ली। सीताजी ने हनुमान से कहा कि तुम स्वामी जी को मेरी और से प्रणाम कहना। सब प्रकार से भगवान् कार्य पूर्ण करेंगे। दीनों पर दया करने वाले भगवान् बिगडे काम बनाएँगे। वे ही कष्ट दूर करेंगे मेरे स्वामी ही मेरे सारे दुख दूर करेंगे। वे ही मेरी रक्षा करेंगे। ऐसी मुझे पूर्ण आशा है। बेटे तुम जाकर उन्हें सारी स्थिति-परिस्थिति की कहानी जाकर सनाना तथा उन्हें अपनी वाणी से सब कुछ समझाने का प्रयास करना। + +13100. मोहि - मुझे। कछु -कुछ। चीन्हा - निशाना। दीन्हा - दिया। हरष - हर्ष, खुशी। लयऊ - लिया। पवनसुत - पवन के पुत्र। तात-बेटा। कहेहु - कहकर। मोर -मेरा। पूरनकामा - सब प्रकार से काम पूर्ण किया। बिरिदु - विगड़े काम। हरहु - हरेंगे, दूर करेंगे। यम = मेरे। बान प्रताप- शक्ति का वर्णन। समझाए हू - यह कह कर समझाया। महुँ - मुझे। नाथ - स्वामी। तौ - तब। मोहि- मुझे। जिअत - जिन्दा। पावा पाएँगे। विधि- उपाय से। तुम्हहू - तुम्ही । सीतलि - शाँति, ठंडक। मो- मैं। कीन्ह किया। गवनु - जाने के लिए। पहिं - मुड़ना। + +13101. झांसी की रानी की समाधि कविता प्रसिद्ध कवियित्री सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित हैं। वह एक स्वच्छंद व्यक्तित्व वाली है। + +13102. "' विशेष + +13103. 5)तत्सम शब्दों का प्रयोग है। + +13104. '" प्रसंग + +13105. वह मुझ पर पूर्ण विश्वास करता है। में दुर्योधन को धाखा नहीं दे सकता उससे यश पाया है सम्मान पाया है। अब जब उसे मेरी जरूरत है तो उसे अकेला केसे छोड़ दू। लोग मुझे धिधकारेगे कहेगी कर्ण पापी है। मै पापी नहीं बनूंगा। अर्जुन को भी यह कलंक सहना होगा। वरना लोग कहेंगे विजय की प्राप्ति के लिए अर्जुन ने षट्यंत्र रचा। पूरा संसार मुझे लालची कहेगा। क्यों हो रहे हैं युद्ध के लिए तैयार। अगर दुर्योधन से कर्ण मिला ना होता तो पांडव वन नहीं जाते। वह कहते है मेरी जीवन की नैया नदी में बहना आरम्भ कर दिया है जो पता नहीं किस ओर जा रही है। अब ने मै लौटना नहीं चाहता। में पांडवो का ज्येष्ठ बनूं ओर भारत में सर्वश्रेष्ठ बनूं। में यह नहीं के सकता क्युकी में धोखा देकर यश नहीं पाना चाहता। मेरे सर पर कुलीन वर्ग का टीका था। पर अपना परिचय नहीं दे सकता था। + +13106. अनोखा दान कविता प्रसिद्ध कवियित्री सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित हैं। वह स्वच्छंद व्यक्तित्व की नारी है। + +13107. "' विशेष + +13108. हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका/राम की शक्ति-पूजा: + +13109. '" व्याख्या + +13110. 1)तत्सम प्रधान भाषा और नाद सौंदर्य + +13111. प्रसार भारती देश में सार्वजनिक प्रसारण सेवा है। आकाशवाणी और दूरदर्शन इसके दो घटक है। लोगों को सूचना, शिक्षा तथा मनोरंजन प्रदान करने और रेडियो पर प्रसारण का संतुलित विकास सुनिश्चित करने के लिए 23 नवम्बर 1997 को प्रसार भारती का गठन किया गया।प्रसार भारती बिल 1989 ई. में संसद में पेश किया गया। इसे प्रस्तुत करते हुए तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री ने कहा कि इसके माध्यम से इलेक्ट्रानिक मीडिया सरकारी नियंत्रण से मुक्त हो जाएगा तथा सही अर्थों में यह भारत के लोगो का प्रतिनिधित्व स्वर बनेगी।1989 में लाया गया प्रसार भारती बिल मुख्यतः 1978 के वर्गीज कमिटी पर ही आधारित था। वर्गीज कमिटी की रिर्पोट में जोर इस बात पर था कि एक ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे भविष्य में संचार माध्यमों का दुरूपयोग न हो सके तथा प्रसारण की स्वायत्ता के लिए वैधानिक प्रावधान की बात करता है। प्रसार भारती बिल 1990 में पारित किया गया लेकिन इसे लागू करने से पूर्व ही सरकार गिर गई। जिसके कारण एक लम्बें अन्तराल के बाद 1997 में प्रसार भारती कानून लागू हुआ। प्रसार भारती अधिनियम 1990 में वर्णित प्रसार भारती निगम के प्रमुख लक्ष्य इस प्रकार है--- + +13112. भिक्षुक ' कविता छायावादी कवि सूर्य कांत त्रिपाठी ' निराला ' द्वारा उद्धृत है। निराला जी अपनी कविता जीवन से जुड़ी वस्तुओं का समावेशन करते हैं। + +13113. कवि कहते है, जब बिखारी भीख मांगते है तो उन्हें देख कर बहुत  बुरा लगता है। मानो कलेजे के टुकड़े टुकड़े हो गए हो। वह लाठी के सहारे चलते है। भुखमरी के कारण उनका पीठ और पेट एक हो गया है। भोजन के लिए वह दर दर भटकते है। उनके पास एक फटी पुराना थैला है। जिसे सामने रख कर वह भीख मांगते है। उनकी यह स्तिथि देख कर कवि का हृदय बहुत दुखी हो जाता है। कवि कहते है सड़क पर चलते चलते उसके दो  बच्चे भी उसके साथ चलते है। वह अपने बाएं हाथ से अपने पेट को पकड़े हुए है और दाएं हाथ से भीख मांग रहे है। भूख से उनके होंठ सुख गए है और वह अपने आंसू पीआईआई रहे है। ऐसा लगता है मानो उन्हें देख के किसी को उन पर दया नहीं आ रही। कवि उनकी स्तिथि देख कर द्रवित हो जाए है। आगे कवि बताते है भूख से व्याकुल वह भिखारी ओर उसके बच्चे जब सड़क किनारे झूठी पलेट को देखते है तो वह खुद को रोक नहीं पाते और कुत्तों से छीन कर वह उस झूठे भोजन को ग्रहण कर लेते है। दरितो को यह दयनीय दशा देख कर कवि के में में उनके लिए सहानुभूति जागृत हो जाती है। + +13114. हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका/जुही की कली: + +13115. जूही की कली’ कविता ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ द्वारा रचित कविता है, जिससें जूही की कली और पवन का मानवीकरण किया गया है। नायिका जूही की कली नायक पवन के वियोग में है। नायक पवन उसे छोड़ कर दूर मलयगिरि को पर्वत पर चला गया है। + +13116. 3)नायक नायिका वियोग का वर्णन है। + +13117. बांधो न नाव कविता छायावादी कवि सूर्य कांत त्रिपाठी ' निराला ' द्वारा उद्धृत है। निराला जी अपनी कविता जीवन से जुड़ी वस्तुओं का समावेशन करते हैं। + +13118. 1) भाषा सरल है। + +13119. वर दे + +13120. वर दे कविता में निराला जी ने सरस्वती जी की वंदना की है। + +13121. 2)प्रसाद गुण विद्यमान है। + +13122.
+ +13123. कवि कहते है मै अपने जीवन की संध्या को पास आते देख रहा हूं। अर्थात् जीवन के अंतिम समय अब वह महसूस कर रहे है। वह बताते है उनके बाल का रंग सफेद हो रहा है। मेरे चेहरे का चमक ख़तम हो गई है। किसी भी काम को करने की कार्यक्षमता में गिरावट आ गई है। अर्थात् उनकी गति धीमी हो गई है। अन्तिम पक्तियो में कवि कहते है जो कार्य मुझे करने थे वह में के चुका हूं। परंतु हंसी आ रही है कि मेरे जीवन के अंतिम समय में मेरे साथ कोई भी नहीं है। में अपनी जीवन के अंतिम समय में अकेला हूं। + +13124. हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका/पेशोला की प्रतिध्वनि: + +13125. "' प्रसंग + +13126. "' विशेष + +13127. हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका/बालिका: + +13128. बालिका कविता में कवियित्री  एक बालिका का परिचय देते हुए बताती है कि किस प्रकार संतान प्राप्ति के बाद व्यक्ति के जीवन में सुविधा आ जाती है। + +13129. 2) माधुर्य गुण है। + +13130. 7)पुत्री के मिलने की अपार खुशी दिखाई गई है। + +13131. सरोज स्मृति कविता छायावादी कवि सूर्य कांत त्रिपाठी ' निराला ' द्वारा उद्धृत है। निराला जी अपनी कविता जीवन से जुड़ी वस्तुओं का समावेशन करते हैं। + +13132. सरोज स्मृति' में कवि निराला को वे दिन याद आते हैं जब वे दूर स्थित प्रवास से करीब दो वर्ष बाद अपनी पुत्री सरोज को देखने अपनी ससुराल गये। वहाँ वे फाटक के बाहर मोढ़े पर बैठे थे और हाथ में अपनी जन्म कुंडली पकड़े हुए थे। उनकी जन्म कुंडली में दो विवाह लिखे हुए थे। वे अपना दूसरा विवाह करके बच्चों की सौतेली माँ लाकर उन्हें परेशानी में नहीं डालना चाहते थे। वे अपनी कुंडली में लिखे भाग्य अंक को खंडित करना चाहते थे। उनके विवाह के तमाम प्रस्ताव आये किंतु वे अपने को मांगलिक कहकर टालते रहे। उन्होंने अपनी जन्म कुंडली को सरोज को खेलने को दे दिया। सरोज ने फाड़-फाड़ कर कुंडली के टुकड़े कर दिये। अपनी पत्नी मनोहरा देवी की मृत्यु के बाद निराला ने सरोज के माता और पिता दोनों के कर्तव्य का निर्वहन किया। बाल्यावस्था को छोड़कर जब सरोज ने यौवनावस्था में प्रवेश किया तो वह सुंदरता की प्रतिमूर्ति बन गयी। सरोज जब शादी योग्य हो गई तब निराला जी की सास ने निराला जी से सरोज की शादी करने को कहा। कविवर सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' ने अपनी कन्या सरोज का विवाह बहुत ही सीधे-साधे ढंग से किया था। वे कन्नौजी बाह्मणों की विवाह पद्धति का समर्थन भी नहीं करते थे। वे दहेज तथा बारात पर किया गया खर्च व्यर्थ समझते थे। कान्य कुब्ज ब्राह्मणों के पैर पूजने में भी उन्हें संकोच था। + +13133. 3) स्मृतियों का समावेशन है। + +13134. श्री संप्रदाय. + +13135. इसके प्रवर्तक विष्णुस्वामी थे। वस्तुतः यह महाप्रभु वल्लभाचार्य के के पुष्टि संप्रदाय के रुप में ही हिन्दी में जीवित है। जिस प्रकार रामानन्द ने राम की उपासना पर बल दिया था। उसी प्रकार वल्लभाचार्य ने कृष्ण की उपासना को आगे बढ़ाया। इन्होंने प्रेमलक्षणा भक्ति ग्रहण की। भगवान के अनुग्रह के भरोसे नित्य लीला में प्रवेश करना जीव का लक्ष्य माना। सूरदास एवम् अष्टछाप के कवियों पर इसी संप्रदाय का प्रभाव है। इसका दार्शनिक आधार द्वैतमत था। + +13136. सन्दर्भ. + +13137. चलत महाधुनि गर्जेसि भारी। गर्भ स्रवहिं सुनि निसिचर नारी॥ + +13138. चले हरषि रघुनायक पासा। पूँछत कहत नवल इतिहासा॥ + +13139. हनुमान राम के पास जाने की धुन में खो गए। वे अपने में खोये हुए थे कि उन्होंने राम के काम को पूर्ण कर दिया। राक्षसों की गर्भवती स्त्रियों ने हनुमान को सुना और देखा तो वे खुश हो उठीं। उन्होंने ने सागर को पार करते हुए आकाश उन्हें उड़ते हुए देखा। उनके मुख से निकलने वाले शब्दों को भी सुनना शुरू कर दिया। वे वानर की आवाज में किलकारियाँ मार रहीं थीं। वे भी अपनी वाणी में उन्हें कुछ सुनाना चाहती थीं वे सभी स्त्रियाँ हनुमान को अपनी आँखों से देखकर मन-ही-मन हर्ष का अनुभव कर रही थीं। उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि वानर को देखने से उन्हें नया जन्म मिल गया हो। अर्थात् वे हनुमान को देखकर नये जीवन को पाने का आनंद ले रहीं थी। उनका जन्म धन्य हो गया है। उनके मुख पर प्रसन्नता थी और शरीर में आज उत्पन्न हो गया हो। अर्थात् शरीर में तेजी पैदा हो गई थी। हनुमान ने भी ऐसा ही अनुभव उस समय किया था। वे इस बात से प्रश्न है कि उन्होंने राम के आवश्यक कार्य को पूर्ण कर दिया है। + +13140. शब्दार्थ. + +13141. जौं न होति सीता सुधि पाई। मधुबन के फल सकहिं कि खाई॥ + +13142. सुनि सुग्रीव बहुरि तेहि मिलेऊ। कपिन्ह सहित रघुपति पहिं चलेउ॥ + +13143. प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि तुलसीदास द्वारा रचित हैं। यह उनके महाकाव्य 'रामचरित मानस' से अवतरित है। + +13144. वे मन में प्रसन्न थे। वे हनुमान की प्रशंसा कर रहे थे। सभी ने माता सीता तथा वहाँ के हाल-चाल पूछे। सभी ने कुशलता पूछी। राम की दया से यह विशेष कार्य पूर्ण हुआ। यह उनकी विशेष कृपा को दर्शाता है। हनुमान ने भगवान राम का कार्य को पूर्ण करके महान् कार्य किया। सभी ने यह भी जाना कि उन्होंने यह कार्य किस प्रकार से सम्पन्न किया। हनुमान ने सभी के प्राणों की रक्षा की है। सुग्रीव तो यह जानकर बड़े ही प्रसन्न हुए और उन्होंने हनुमान को तरह-तरह से बार-बार गले लगाया। उसके बाद पूरा वानर-समाज भगवान राम के पास चलने को तैयार हो गया। राम ने हनुमान तथा सारे वानरों को अपनी और आते हुए देखा तो उनके मन में एक विशेष प्रकार की खुशी अनुभव हुई। दोनों भाई पत्थर की शिला पर बैठे थे और पूरा वानर समाज उनके चरणों के नीचे बैठ गया। + +13145. जौंन = यदि। सुधि - पता लगना। सकहिं - सकता। सहि = यही। बिधि = उपाय,विचार। कपि - बंदर। सहित = साथ में। सबन्हि = सभी ने। नावा = नवाया, झूकाया सिर। कपीसा - बंदर। मिलेउ = मिले आपस में। कुशल - सही सलामती. हालचाल। बिसेकी- विशेष रूप से। भा - भी। काजु- कार्य। नाथ - स्वामी। कीन्हेनु - किया। सकल- सभी। प्राना - प्राण-रक्षा। बहुरि - बहुत बार। तेहि- तरह से। पहि- की ओर। रघुपति - राम के लिए। आवत-आते हुये। हरष - खुशी। फटिक = पत्थर की शिला पर तुरंत। दावौ -दोनों। चरनिन्ह - चरनो में। जाई - जाकर बैठ गए। प्रीति - प्रेम करना। पुंज = दया के सागर। + +13146. प्रसंग. + +13147. सोइ बिजई बिनई गुन सागर। तासु सुजसु लोक उजागर॥ + +13148. कहतु तात केहि भांति जानकी। रहति करति रच्छा स्वप्रान की॥ + +13149. तब हनुमान ने राम को बताया कि माता सीता रात-दिन आपका ही नाम स्मरण करती हैं। वे अपने हृदय में आपका ही ध्यान करती हैं। तुम्हारा हर समय इंतज़ार करती हैं। उनकी आँखों में आपकी ही छवि बसी रहती है। आपका ही नाम-जाप करती रहती हैं। वे अपने प्राणों की रक्षा करती हैं। आपकी उन्हें आने की प्रतीक्षा है। + +13150. भषा में चित्रात्मकता है। + +13151. रघुराया - राम। करहु = करते हो। दाया - दया। ताहि - तब। सुभ -शुभ। सुर देवता। विजई - बजती है। बेनई - बीना। त्रिलोक - तीनों लोकों में। उजागर प्रकट होना। कीन्हि - किया। बरनी = वर्णन। सहसहुँ - हज़ारों। सुफल = अच्छा परिणाम। सफल। पवनतनय- पवन पुत्र। सुनत - सुनकर। कृपानिधि - दया के भंडारा। भाए प्रसन्न हुए। पुन-पुनः - दुबारा। हरषि = खुश हो कर। हियँ = हृदय में। कपाट - द्वार, क्षण। लोचन = आँखें। बाट = प्रतीक्षा। स्वप्नन - अपने प्राणों। रच्छा - रक्षा। जंत्रित = नाम-जाप। पद = चरणों में। निसि = दिवस रात-दिन। पाहरू = हर पल, क्षण। न जाह - जो कही न जाई। + +13152. प्रसंग. + +13153. अनुज समेत गहेहु प्रभु चरना। दान बंधु प्रनतारति हरना॥ + +13154. नयन स्ववहि जलु निज हित लागी। करै न पाव देह बिरहागी॥ + +13155. मेरे मन में वे ही वसे हुए हैं। अगर मुझसे कोई गलती हो गई हो और उन्होंने मुझे त्यागा हो तो वे मुझे क्षमा करें। अपने से दूर न करें में अपनी एक गलती मानती हूँ। मगर मुझे अपने प्राणों से दूर न करें। अर्थात् मुझे अपने नजदीक ही रखें। वे मुझे अपने नयनों से दूर न करें। मेरी आँखों में वे ही है। उनकी निगाह में मेरा अपराध हुआ है तो वे मुझे क्षमा करें। मेरे प्राण निकलने वाले हैं मैंने अपने प्राणों को जबरदस्ती रोक रखा है। ये कभी-भी निकल जाएँगें। मेरा शरीर उनके विरह की आग में जल रहा है। शरीर क्षीण हो गया है। ये प्राण कभी निकल सकते हैं। इन साँसों ने मेरे शरीर को जलाने में कमी नहीं छोड़ रखी है। अर्थात् साँसें मेरे प्राणों को जला रही है। मेरी आँखों से आँसू निकलते रहते हैं। आँखों का पानी रोते-रोते ख़त्म हो रहा है। मैं सिर से पाँव तक विरह में जल रही हूँ। सीता की विपत्ति को जल्दी खत्म कर दो। स्वामी के बिना यह जीवन जीना नहीं कहा जा सकता है। पति के बिना इस शरीर का कोई अर्थ नहीं है। दीनों पर दया करने वाले मुझे यहाँ से ले जाओ। मेरे प्राणों की रक्षा करो। + +13156. हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/कवितावली/(१)बालकांड: + +13157. व्याख्या. + +13158. हे सखि ! आज मै प्रात: काल अयोध्यापति राजा दशरथ के दरवाज़े पर गई थी, उस समय राजा अपनी गोंद में श्रीराम को लिए हुए बाहर निकले। कहने का अभिप्राय यह है कि सखी के हृदय में श्रीराम की बाल-छवि दर्शन की उत्कट अभिलाषा थी। जैसे ही वह वहाँ पहुँची उसे भगवान् श्रीराम के दर्शन हो गए। उसके दर्शन करने की लालसा पूर्ण हो गई। भगवान् श्रीराम की अद्भुत छवि के दर्शन कर मैं ठगी-सी रह गई और अपनी सुध-बुध भी खो बैठी। उस समय श्रीराम की छवि अत्यंत अनुपम थी, जो उस छवि के दर्शन न कर सका, वास्तव में उसके जीवन को धिक्कार है। + +13159. 3. सवैया छंद है। + +13160. देखरी हरि के चंचल नैन। + +13161. अवधेस - अयोध्या के स्वामी; राजा दशरथ। सकारे - प्रात: काल। सुत = पुत्र। भूपति = राजा। निकसे - निकले। अवलोकि - देखकर। हौं - मैं सोच-बिमोचन - शोक से विमुक्त करने वाले। ठगि-सी = आश्चर्यचकित। धिक - धिक्कार योग्य। मन-रंजन = मन को आनंदित करने वाले। खंजन = पक्षी विशेष जो अपने नेत्रों की सुंदरता के लिए विख्यात है। जात = बच्च। ससि = चन्द्रमा। उभै = दोनों। सरोरुह = कमल। बिकसे - विकसित होना;खिलना। + +13162. प्रसंग. + +13163. तुलसी' तेहि औसर सोहैं सबै, अवलोकति लोचन लाहू अली। + +13164. 2. अवधी भाषा है। + +13165. + +13166. औपनिवेशिक शासन के दौरान निम्न-स्तरीय आर्थिक विकास. + +13167. दादा भाई नौरोजी,विलियम डिग्बी,फिंडले शिराज,डॉ वी.के. आर .वी.राव तथा आर.सी. देसाई ने किया।इनमें डॉ राव द्वारा लगाए गए अनुमान बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इनके अनुसार बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में भारत की राष्ट्रीय आय की वार्षिक वृद्धि दर 2% से कम तथा प्रति व्यक्ति उत्पाद वृद्धि दर मात्र आधा प्रतिशत ही रही है। + +13168. कृषि क्षेत्र की गतिहीनता का मुख्य कारण औपनिवेशिक शासन द्वारा लागू की गई भूव्यवस्था प्रणाली थी।1757 के प्लासी के युद्ध के पश्चात् बंगाल की दीवानी प्राप्त करने के बाद कंपनी के गवर्नर-जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने 1772 में बंगाल में द्वैध शासन व्यवस्था को समाप्त कर फार्मिंग सिस्टम (इजारेदारी प्रथा) की शुरुआत भू-राजस्व की वसूली के लिए की।फार्मिंग सिस्टम के अंतर्गत कंपनी किसी क्षेत्र या जिले के भू-क्षेत्र से राजस्व वसूली की जिम्मेदारी उसे सौंपती थी, जो सबसे अधिक बोली लगाता था। + +13169. औपनिवेशिक शासन के दौरान देश की विश्व प्रतिष्ठित शिल्प कलाओं का पतन हो रहा था और उसका स्थान इंग्लैंड के तैयार वस्त्र ले रहे थे। वास्तव में भारत के औद्योगिकरण के पीछे विदेशी शासकों का दौरा उद्देश्य था। + +13170. 18609 में अहमदाबाद में पहला सूती वस्त्र मिल स्थापित पटसन उद्योग की स्थापना का श्रेय विदेशियों को दिया जा सकता है यह उद्योग केवल बंगाल प्रांत तक ही सीमित रहा टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी की स्थापना 1960 में हुई दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात(1939-45) चीनी सीमेंट कागज आदि के कारखाने स्थापित हुए। + +13171. आयात सूती रेशमी ऊनी वस्त्रों और इंग्लैंड के कारखानों में बनी हल्की मशीनों का आयातक + +13172. हिंदी उपन्यास/प्रेमचंद: + +13173. प्रेमचंद के उदय के साथ ही हिन्दी उपन्यास के क्षेत्र में एक नया मोड़ आता है । उनसे पहले हिन्दी उपन्यास में कौतुहल , तिलिस्म तथा ऐयारी की प्रधानता थी । सुधारवादी भावनाओं को चित्रित किया जाता रहा था । इस प्रकार के उपन्यासों का लक्ष्य केवल मनोरंजन था । प्रेमचंद ने सामाजिक , राजनैतिक समस्याओं के प्रति उन्मुख होकर उपन्यास लिखे । जिससे एक नई विचारधारा का सूत्रपात हुआ । उन्होंने स्वयं अपने जीवन में अनेक समस्याओं का सामना किया था । + +13174. परिचय- जैनेन्द्र हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक कथाकार उपन्यासकार तथा निबंधकार थे । ये हिंदी उपन्यास के इतिहास में मनोविश्लेषणात्मक परम्परा के प्रवर्तक के रूप में मान्य है । जैनेन्द्र अपने पात्रों की सामान्यगति में सूक्ष्म संकेतों की निहिति की खोज करके बड़े कौशल में प्रस्तुत करते हैं । उनके पात्रों की चारित्रिक विशेषताएं इसी कारण से संयुक्त होकर उभरती हैं । जैनेन्द्र कुमार का जन्म 2 फरवरी 1905 ई. को कौडियागंज , जिला अलीगढ़ उत्तरप्रदेश में हुआ। + +13175. 1. भारत सरकार शिक्षा मंत्रालय ( प्रेम में भगवान , 1952 ) + +13176. 6. हिंदुस्तानी अकादमी पुरस्कार , इलाहाबाद ( परख , 1929 ) + +13177. 11. हिंदी प्रादेशिक हिंदी साहित्य सम्मेलन का सभापति + +13178. हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/कवितावली/(३)उत्तरकांड/(१)किसबी, किसान-कुल: + +13179. व्याख्या. + +13180. ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम, करि, + +13181. श्रमिक, कृषक-वर्ग, व्यापारी बनिए, भिखारी, भाट, नौकर-चाकर, चंचल नट, चोर, हमारे-दूत तथा जादुई-तमाशा दिखलाने वाले सभी लोग अपने पेट को भरने के लिए पढ़ते हैं. अनेक गुणों को गढ़ते हैं, पर्वतों पर चढ़ते हैं और शिकारी के रूप में दिन-दिन भर घने जंगलों में इधर-उधर भटकते-भटकते घूमते हैं। यह पेट ऐसा ही बनाया गया है जिसको भरने के लिए मनुष्य नाना प्रकार के साहसिक एवं दुस्साहसिक कार्य करते रहते हैं-यहाँ तक कि अपने बेटे-बेटियों तक को भी बेच देते हैं। पेट की यह अग्नि ऐसी है कि जो कुटकराले-यही छोड़ा है। + +13182. 3. अलंकार-परिकर। + +13183. कहैं एक एकन सों 'कहाँ जाई.' का करी?" + +13184. 5. अवधी भाषा है। + +13185. हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/कवितावली/(३)उत्तरकांड/(२)धूत कहौ, अवधूत कहौ: + +13186. व्याख्या. + +13187. गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि लोगों का क्या है, चाहे वे मेरी धूर्त कहकर निंदा करें अथवा मुझे बौद्ध या नाश-पंथ का अनुयायी साधु बताएँ, चाहे वे मुझे ब्राह्मण के स्थान पर राजपूत (क्षत्रिय) अथवा क्षत्रिय-जाति का बताएँ इन बातों से मेरा कुछ नहीं बिगड़ने वाला है। कारण यह है कि मुझे किसी की पुत्री से अपने पुत्र का विवाह थोड़े ही करना है (और न अपनी पुत्री का ही किसी के पुत्र से विवाह करना है) जिससे उसकी जाति भ्रष्ट हो जाने का भय रहेगा। भाव यह है कि जब मेरे कोई बेटा-बेटी ही नहीं तो उनका अपनी ही जाति अर्थात् ब्राह्मणों में विवाह करने की समस्या भी नहीं है ऐसी दशा में यदि लोग मुझे किसी राजपूत की अथवा जुलाहे की संतान बताते हैं तो बताते रहे मुझ पर उसका कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ने वाला है। इसी क्रम में तुलसीदास आगे कहते हैं कि मैं तो अपने स्वामी प्रभु राम का प्रसिद्ध भक्त हूँ, + +13188. 3. तुलसी की भाषा प्रसाद-गुण-संपन्न, मुहावरेदार तथा बड़ी प्रभावपूर्ण है। + +13189. भारी है भरोसो 'तुलसी' के एक नाम को। + +13190. शब्दार्थ. + +13191. + +13192. इस पद में तुलसी अपने आराध्य के समक्ष अपने पूर्व-जन्म का पश्चात्ताप कर रहे हैं। + +13193. स्याम रूप सुचि रुचिर कसौटी, चित कंचनहि कसैहौं ।।2।। + +13194. विशेष. + +13195. 5. तुलसी का यहाँ विनय भाव मुख्य है। + +13196. + +13197. कोउ' के स्थान पर आचार्य शुक्ल और पं. रामेश्वर भट्ट ने 'करि' पाठ माना है। + +13198. धोये मिटे न मरै भीति, दुख पाइय इति तनु हेरे। + +13199. गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि हे केशव! क्या कहें, कुछ कहा नहीं जाता? तुम्हारी इस विचित्र रचना को देखकर मन में ही सभझ कर र जाता हूँ-कुछ कह नहीं पाता हूँ। + +13200. (अ) पूर्व मीमांसा वाले अर्थात् द्वैतवादी और विशिष्ट-द्वैतवादी- विश्व को कर्म प्रधान मानने के कारण सत्य मानते हैं। + +13201. 3. 'शून्य...चित्र' में व्यतिरेक और विभावना तथा 'धोये...मिटै न' में विरोधाभास की छटा दर्शनीय है। + +13202. तनु = शरीर। चितेरे = चित्रकार। रविकर नीर = सूर्य किरणों का जल अर्थात् मृग-तृष्ण का जल, यहां भ्रम से तात्पर्य है। मकर = मगर। चराचर = चैतन्य और जड़। जुगल = दोनों अर्थात् सत्य और मिथ्या। आपन = आत्मा। + +13203. भारत की पंचवर्षीय योजनाएँ सोवियत संघ में केंद्रीय योजना के समान थीं। 1950 के दशक के मध्य में इस्पात, खनन, मशीन टूल्स, दूरसंचार, बीमा, और अन्य उद्योगों के बीच बिजली संयंत्रों का प्रभावी ढंग से राष्ट्रीयकरण किया गया था। + +13204. + +13205. इस पद में तुलसी श्री राम की उदारता और कृपा का गुणगान कर रहे हैं। + +13206. सो गति देत गीध सबरी कहँ प्रभु न बहुत जिय जानी ॥2।। + +13207. तुलसी अपने आराध्य का गुणगान करते हुए कह रहे हैं कि हे ईश्वर! इस संसार में आपसे ज्यादा कौन उदार है ? जो किसी दीन-दुखी पर व्यर्थ ही, बिना किसी कारण के द्रवीभूत हो जाए, वह हे राम आपके समान कोई दूसरा नहीं है। बड़े-बड़े मुनि और ज्ञानी भी बड़े योग और यल से जो गति नहीं प्राप्त कर पाते हैं अर्थात् मोक्ष उसे प्रभु श्रीराम, जटायु, शबरी जैसे अपने भक्तों को सहज में ही दे देते हैं। देते ही नहीं अपितु देते हुए भी संकोच करते हैं। जो धन-सम्पदा रावण ने बडे तप से शिव द्वारा प्राप्त की थी, वही सम्पदा विभीषण को देते हए श्रीराम संकोच करते हैं। तुलसीदास अपने मन को इसलिए समझाते हुए कह रहे हैं कि मेरे मन तुझे जो सारे सुख चाहिए तो राम का भजन कर। वे कृपा-निधि श्रीराम सारे काम पूरे कर देंगे अर्थात मनोकामना पूरी कर देंगे। + +13208. 4. एकनिष्ठ भावना है। + +13209. + +13210. अमीर खुसरो की कव्वालियाँ और दोहे
खुसरो/ + +13211. हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/मंझन-कृत 'मधुमालती': + +13212. + +13213. तुलसी कृत रामचरितमानस का अयोध्याकांड
तुलसी/ + +13214. "' प्रसंग + +13215. कवि कहते है कि गौतम कहते है मैने आज यशोधरा को देखा और सोचा यशोधरा कैसी हो जाएगी। अन्तिम में वह क्या मिट्ठी में मिल जाएगी। क्या बगीचे रूपी शरीर जो आज हरा भरा है वह सुख जाएगा। शरीर में बहुत सारे रोग हो जायेगे। धिधकर है मेरे रहते हुए यशोधर कि यह स्तिथि हो जाए। क्या सब कुछ रिक्त है। + +13216. तुम क्या खोज रहे थे काहतो को अपने में लेकर बताओ। + +13217. 2) भाषा खड़ी बोली है + +13218. सखि वे मुझसे कहकर जाते कविता युग प्रवर्तक छायावादी कवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित हैं। मैथिलीशरण गुप्त अकेले ऐसे कवि हैं जिन्होंने द्विवेदी युग से आधुनिक काल तक अनेक व्यक्तियों को आत्मसात करते हुए हिंदी कविता को अनेकार्थक में समृद्ध किया। + +13219. "' विशेष + +13220. प्रियतम तुम श्रुति पथ से आए कविता में यशोधरा का विरह दिखाई देता है। यशोधरा अपने प्रियतम को संबोधित करते है कहते हैं आप मेरे हृदय में आ गए मेरे कानों के माध्यम से आप मेरे हृदय में आ गए और इसीलिए मैंने अपने होंठो को बंद कर लिया अर्थात किसी से आपके बारे में नहीं कहा। मेरे हास विलास  अर्थात् सांसारिक सुख आपको अपने भाग्य में रख पाए? आप + +13221. 3)विरह की भावना है। + +13222. लघुमानव के बहाने उसकी प्रतिष्ठा, महत्ता जरुरी लगी। कलाकारों, कवियों की नैतिक जिम्मेदारी ने उनमे बैचैनी, छटपटाहट, नैराश्य, तनाव और इन सबके विरुद्ध प्रतिबध्द संघर्ष की अभिव्यक्ति नयी कविता में हुई। मानवीय संबंधों के साथ अनुभूति व्यक्ति के लिए नयी भाषा का निर्माण हुआ जो जन-जन की भावना, क्रांती, संघर्ष, आस्था को लेकर सपाटबयानी, गद्यात्मकता, मुक्तछंद का प्रयोग किया जाने लगा। युगीन परिस्थिति और व्यक्ति के पारस्पारिक संघर्ष और समन्वय को काव्य विषय के रुप में नयी कविता ने स्वीकार किया। डॉ० रघुवंश ने लिखा है--"नयी कविता अपनी अभिव्यक्ति, प्रेषणीयता तथा उपलब्धि की दृष्टि से प्रयोगशील कविता के आगे की स्थिति है। प्रयोगशील कविता ने परम्परा से विद्रोह के रुप में प्रयोग तथा अन्वेषण का मार्ग स्वीकार किया था, पर नयी कविता के संदर्भ में वे उसकी प्रवृत्ति के सूचक है। प्रयोग युग का कवि अपने संघर्ष के प्रति निश्चित नहीं था, आज का कवि अपनी सारी शंकाओं के बीच अपने व्यक्तित्व के प्रति आस्थावान है। " + +13223. इसमें लघु मानव की ऐसी छवि उभरकर आती है, जो अपने लघु परिवेश, स्वतंत्रता, विवेक और जीवन पद्धति के प्रति पूर्णतः सजग है। उन्होने घोषणा की मानव इकाई को पूर्ण सम्मान दिया जाए अर्थात नयी कविता जीवन के प्रती स्वाभिमान, सदवृत्ति अस्था रखता है और ऐसे ही मनुष्य को सजग-लघु मानव कहा गया। जगदीश गुप्त के शब्दों में कहे तो "नया मनुष्य रुढिग्रस्त चेतना से मुक्त, मानव मूल्यों के रुप में स्वातंत्र्य के प्रति सजग, अपने भीतर अनारोपित सामाजिक दायित्व का स्वंय अनुभव करनेवाला, समाज को समस्त मानवता के हित में परिवर्तित करके नया रुप देने के लिए कृत-संकल्प, कुटिल स्वार्थ भावना से विरत, मानवमात्र के प्रति क्षोभ का अनुभव करने वाला, हर मनुष्य को जन्मत: समान माननेवाला मानव व्यक्तित्व को उपेक्षित निरर्थक और नगण्य सिद्ध करनेवाली किसी भी दैविक शक्ति या राजनैतिक सत्ता के आगे अनवरत, मनुष्य की अंतरंग-सदवृत्ति के प्रति आस्थावान, प्रत्येक व्यक्ति के स्वाभिमान के प्रति सजग, दृढ एवं संगठित अन्त:करण संयुक्त, सक्रिय किन्तु अपीड़क, सत्यनिष्ठ तथा विवेकसंपन्न होगा।" + +13224. डॉ. देवराज के अनुसार उसकी विशेषताएँ-- + +13225. 'झूठ + +13226. अपरिचित बिछुडते है- + +13227. जीवन यथार्थ की अभिव्यक्ति करते हुए केवल आस्था ही उनमे है पर साथ ही डर-भय, अनास्था, शंका, निराशा, अविश्वास भी उनमें है। जैसे मुक्तिबोध की 'अंधेरे में' का नायक उन सभी स्थितियों से गुजरकर अपने 'गुरु' का 'शिष्य' होता है। + +13228. क्षणवाद की नयी स्थापना ही नयी कविता का विषय है। उसके संबंध में उनका विचार है, "क्षण कालहीन होता है, उसमें सत्य और यथार्थ के साक्षात्कार की सर्वाधिक गहन स्थिति होती है, उसमें अगले क्षण की प्रेरणा छिपी होती है, यह सत्य की उपलब्धि कराता है, इसमें आत्माभिव्यक्ति का सूक्ष्म रुप विद्यमान होता है आदि।" + +13229. नियति नहीं है पूर्वनिर्धारित- + +13230. एक दुःख लेकर वह एक गान देता था + +13231. कितना अकेला हूँ में इस समाज में + +13232. कुछ और लोग + +13233. अब अभिव्यक्ति के सारे खतरे + +13234. यथार्थवादी दृष्टि. + +13235. जीवन का दर्द सभी ने जाना + +13236. फेरता हूँ हाथ कि + +13237. वाक्यों में औरॉग... उटाँग के + +13238. यहाँ हर एक का दम फूल + +13239. उपेक्षित जनसाधारण का काव्य. + +13240. सह रहे है धूप सर्दी और नमी + +13241. व्यंग्य सुधार की भावना से प्रेरित होता है। नयी कविता में व्यक्ति, समाज और युग तीनों की विषम-दयनीय स्थितियों पर व्यंग्य किए गए है। अज्ञेय की 'साँप' और भवानीप्रसाद मिश्र की 'गीत फरोश' जैसी कविताओं में मानवीय असामंजस्यों की चिन्तनीय स्थिति का चित्रण किया गया है। जगदीश गुप्त ने कहा है, नवलेखन में एक प्रधान स्वर व्यंग्य और विद्रूप का है, जिसका संबंध देश की विषय परिस्थितियों तथा मूल्यहीनता की दयनीय दशाओं से है, छोटी-मोटी इधर की रचनाओं ने अत्यन्त साहस के साथ इन पर गहरी चोट की है। व्यंग्य के जरिए वह समाज को बदलना चाहता है, नैतिकता में सुधार लाना चाहता है। व्यंग के साथ जुड़ा एक और मूल्य नयी कविता में है और वह है "अनुकूल अभिव्यक्ति का स्वरुप" उसके प्रति इमानदारी। नयी कविता ने परंपरागत मानदंडों, रुढ़ मान्यताओं एवं सड़े-गले मूल्यों को अस्वीकार किया है। उसने संपूर्ण शासनतंत्र एवं व्यवस्था के विरुद्ध विद्रोह किया है, अपने ढोंगी परिवेश का पर्दाफाश किया है। ऐसे समय भी कवियों ने व्यंग्य का बड़ा सुंदर प्रयोग किया है- + +13242. आप बड़े चिंतित है मेरे पिछड़ेपन के मारे + +13243. '...या भीतर जाकर पूछ आइए आप, + +13244. मानवतावादी स्वर. + +13245. हट्टे-कट्टे हाडों वाले + +13246. तम्बाकु खा पीक उगलते + +13247. फुहड बातों की चर्चा के + +13248. सो जाते है मुर्दा जैसे। + +13249. शिल्पगत विशेषता. + +13250. लौटकर जब आऊँगा + +13251. बड़ी होती बहनों के लिए + +13252. क्षणभर टटोला + +13253. नकोई छोटा है + +13254. और एक चौथा मोटर मैं बैठता हुआ चपरासी से फाइलें उठवाएगा- + +13255. इससे क्या कि एक की कमर झुकी होगी + +13256. एक के निकर मे बटनों का स्थान एक आलपीन ने लिया होगा। + +13257. की + +13258. प्रतिक. + +13259. मेरी इस अद्वितीय + +13260. नयी कविता में तीन प्रतीक रुपों का प्रयोग हुआ है। एक जिनका संबंध भारतीय काव्यशास्त्र की परंपरा से है। इनमें प्राकृतिक, पैराणिक, ऐतिहासिक, अन्योक्ति मूलक, रुपक मूलक और बिम्ब मूलक आदि आते है। दुसरे वे प्रतीक है जिन्हें नये कवियों ने गढ़ा है और तीसरे वे प्रतीक है जो भारतीय साहित्य में किसी एक भावबोध के प्रतिनिधि है तथा दूसरे देशों के साहित्य में किसी दूसरे भाव-बोध के किन्तु नये कवियों ने दूसरे देश की मान्यता के आधार पर ही उन्हें अपने काव्य में प्रयुक्त किया है- + +13261. बिम्ब. + +13262. + +13263. यशपाल का साहित्यिक जीवन वेदना व कष्ट की अग्नि से तप कर बना है। क्रांतिकारी जीवन से प्राप्त साहस और निर्भीकता की नींव पर उनके साहित्य की इमारत खड़ी हुई है। + +13264. इनका साहित्य कर्म की सूची निम्न प्रकार से है - उपन्यास साहित्य + +13265. कहानी साहित्य - पिंजरे की उड़ान ( 1939 ) , वो दुनिया ( 1942 ) , ज्ञान दान ( 1943 ) , अभिशप्त ( 1944 ) , तर्क का तूफान ( 1944 ) , भस्मावृत चिंगारी ( 1946 ) , फूलों का कुर्ता ( 1949 ) , धर्म युद्ध ( 1950 ) , उत्तराधिकारी ( 1951 ) , चित्र का शीर्षक ( 1951 ) , तुमने क्यों कहा था में सुन्दर हूँ ? ( 1954 ) , उत्तमी की माँ ( 1955 ) , ओ भैरवी ( 1958 ) , सच बोलने की भूल ( 1962 ) , खच्चर और आदमी ( 1965 ) , भूख के तीन दिन ( 1968 ) । + +13266. परिचय - कथाकार मन्नू भण्डारी का जन्म 3 अप्रैल 1931 ई . में मध्यप्रदेश के भानपुरा में हुआ । अपने माता - पिता की पाँचवी संतान है । दो बड़े भाई और दो बहनों का स्नेह इन्हें मिलता रहा । इनका मूल नाम ' महेन्द्र कुमारी ' है । घर में सबसे छोटी होने के कारण सब लोग इन्हें प्यार से ' मन्नू ' पुकारते थे । विवाह के बाद भी और आज तक ' मन्नू ' के नाम से प्रसिद्ध हैं । इनके पिता श्री सुखसम्पतराय हिन्दी पारिभाषिक कोश के आदि निर्माता है । पिता की कीर्ति और गौरव - पूर्ण कृतित्व की छाया में मन्नू जी का बचपन बीता । मन्नू जी की प्रारम्भिक शिक्षा अजमेर में सावित्री गर्ल्स हाई स्कूल में हुई और वहीं उन्होंने सन् 1945 ई . में मैट्रिक की । फिर अजमेर के ही कॉलेज से इंटर की परीक्षा सन् 1947 ई . में उत्तीर्ण की । यही यह समय था जब उनके व्यक्तित्व का कुछ नये पहलुओं से साक्षात्कार हुआ जैसे- उनका राष्ट्र प्रेम , त्याग , साहस , निर्भिकता , वक्तृत्व कला आदि । + +13267. बाल साहित्य - आँखों देखा झूठ ( कहानी संग्रह ) , कलवा ( उपन्यास ) । आत्मकथा - एक कहानी यह भी । + +13268. आवश्यकता जैसे रोटी, कपड़ा, मकान भी उपलब्ध नहीं हो पाता| दूसरे शब्दों में कहें तो समाज का वह व्यक्ति जो अपनी बुनियादी आवश्यकताआों जैसे – भोजन, वस्त्र, आवास को पूरा करने में असमर्थ होता है गरीब कहा जाता है| + +13269. 31 देश निम्न आय वाले देश हैं, + +13270. निर्धनता रेखा किसी विशेष देश में आय का न्यूनतम स्तर पर्याप्त माना जाता है + +13271. + +13272. मतवारी कर दीन्हीं रे, मो से नैना मिला के। + +13273. गीत
+ +13274. कुहकत घर घर जाऊं, लखि बाबुल मोरे। + +13275. हम तो बाबुल तोरे खूंटे की गइया, + +13276. भाई ने खाई पछाड़, लखि बाबुल मोरे। + +13277. नंगे पांव बाबुल भागत आवै, + +13278. में तो बाबुल तोरे पिंजड़े की चिड़िया + +13279. छोड़ी दादी जी की गोद, लखि बाबुल मोरे। + +13280. कैसे मैं भर लाऊ मधवा से मटकी। + +13281. खुसरो निज़ाम के बलि बलि जाईये + +13282. गोरी सोवे सेज पर, मुख पर डारे केस। + +13283. वै गुनवन्ता बहुत है, हम है औेगुन हार।। + +13284. + +13285. अपुरूष के बिहि आनि मिलाओल + +13286. से हेरी मही मधी गीर।। + +13287. + +13288. जहाँ - जहाँ झलकत अंग। तही तही बिजुरीजूज तरंग।। + +13289. हेरइत से धनि थोर। अब तीन भुवन अगोर।। + +13290. राधा का प्रेम
+ +13291. तापर उपजत तरुन तमाला।। + +13292. बिमल बिंफल जुगल विकास। + +13293. सपुरुख मरम तोहे भल जान।। + +13294. उस `चंगे' दीवान मैं, पला न पकड़े कोई।। + +13295. भ्रम विघौसण कौ अंग
+ +13296. + +13297. कबीर केसों कहा बिगाड़िया, जो मुँडै सौ बार। + +13298. कबीर हरि का भाँवता, दूरैं थैं दीसंत। + +13299. हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन)/सारग्राही कौ अंग: + +13300. मिष्ट सुबास कबीर गहि, विषमं कहै किहि साध।। + +13301. जिसहि चलावे पंथ तू, तिसही भुलावे कौन।। + +13302. जल में उतपति जल में बास, जल में नलिनी तोर निवास। + +13303. आगम निगम एक करी जाना , ते मनवा मन माहीं सामना। + +13304. केश वर्णन
+ +13305. भूली दसौ दसा निजु ताहि। चिहुर चिन्हारी भई जग जाही। + +13306. अधर वर्णन
+ +13307. वह सो घरीबिधी कब दरसाईहि। जब यह जीउ मोर घट आइहि। + +13308. त्रिबली वर्णन
+ +13309. राते केवल सेत सोहाए। तरुवन्ह कंवल पततर जिमी लाए। + +13310. कीर ठोर औे खरग कै धारा। तिलक फूल मै बरनी न पारा। + +13311. जा कस ससि सुरुज निसि बासर ओसारी बाऊ। + +13312. बिरहत अधर दसन चमकाने। त्रिभुवन मुनि गन चौंधी भुलाने + +13313. + +13314. कमल-नैन को छाँड़ि महातम, और देव को ध्यावै। + +13315. हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन)/गोकुल लीला: + +13316. कबहुँ पलक हरि मूँदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै। + +13317. हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन)/राधा कृष्ण: + +13318. औचक ही देखो तहँ राधा, नैन बिसाल भाल दिए रोरी। + +13319. उधौ मन मानेकी बात। + +13320. 'सूरदास' जाकौ मन जासौं सोई ताहि सुहात॥ + +13321. हरि संदेश सुनि सहज मृतक भइ, इक बिरहिनि, दूजे अलि जारी। + +13322. "तनक हरि चितवाँ म्हारी ओर ।। टेक। + +13323. + +13324. कब री ठाड़ी पंथ निहारो, अपने भवण खड़ी। + +13325. माई साँवरे रंग राँची
+ +13326. स्याम वीणा जग खारा लागा,जगरी बाता कांची। + +13327. माई री म्हा लियाँ गोविन्दाँ मोल।।टेक।। + +13328. + +13329. विख रो प्यालो राणा भेज्याँ, पीवाँ मीराँ हाँसाँ री। + +13330. हेरी म्हा तो दरद दिवाणाँ
+ +13331. मीरा री प्रभु पीर मिटाँगाजब वैद साँवरो होय।।" + +13332. जरई नगर भा लोग बिहाला। झापट लपट बहु कोटि कराला॥ + +13333. ता करा दूत अनल जेहिं सिरिजा। जरा न सो तेहि कारन गिरिजा॥ + +13334. चूड़ामनि उतारि तब दयऊ। हरष समेत पवनसुत लयऊ।। + +13335. कह कपि केहि बिधि राखे प्राना। तुम्हहू तात कहत अब जाना।। + +13336. नदी सिंधु एहि पारहि आवा। सबद किलकिला कपिन्ह सुनावा॥ + +13337. तब मधुबन भीतर सब आए। अंगद संमत मधु फल खाए।। + +13338. एहि बिधि पन बिचार कर राजा। आइ गए कपि सहित समाजा।। + +13339. राम कपिन्ह जब आवत देखा। कि काजल मन हरष बिसेषा।। + +13340. ताहि सदा सुभ कुसल निरंतर। सुर नर मुनि प्रसन्न ता ऊपर॥ + +13341. सुनत कृपानिधि मन अति भाए। पुनि हनुमान हरि हियँ लाए॥ + +13342. नाथ जुगल लोचन भरि बारी। बचन कहे कछु जनक कुमारी॥ + +13343. बिरह अगिनि तनु तूल समीरा। स्वास जरइ छन माहिं सरीरा॥ + +13344. + +13345. पायो नाम चारु चिंतामनि, उर कर ते न खसैहौं । + +13346. देखत तव रचना विचित्र अति ,समुझि मनहिमन रहिये । + +13347. कोउ कह सत्य ,झूठ कहे कोउ जुगल प्रबल कोउ मानै । + +13348. सो गति देत गीध सबरी कहँ प्रभु न बहुत जिय जानी ॥2।। + +13349. + +13350. अवलोकि हौं सोच बिमोचन को ठगि-सी रही,जे न ठगे धिक-से। + +13351. तिरछै करि नैन, दे सैन, तिन्हैं, समुझाइ कछु मुसुकाइ चली। + +13352. चाकर, चपल नट, चोर, चार, चेटकी।। + +13353. ‘तुलसी’ बुझाइ ऐक राम घनस्याम ही तें, + +13354. तुलसी सरनाम गुलामु है राम को, जाको रुचै सो कहै कछु ओऊ + +13355. सूते स्याम सेत औ राते। लागत हिएँ निफारे ही जाते। + +13356. अचिजु एक का बरनौं, बरनत न जाइ। + +13357. अति सरूप दुइ सिहुन अमोले। जिन्ह देखत त्रिभुवन मन डोलै। + +13358. दुनउं कठोरे कलिसिरे गरब न काहू नवाहिं। + +13359. भारतीय अर्थव्यवस्था/उदारीकरण,निजीकरण और वैश्वीकरण: + +13360. वैसे तो औद्योगिक लाइसेंस प्रणाली,आयात-निर्यात नीति,तकनीकी उन्नयन,राजकोषीय और विदेशी निवेश नीतियों में उदारीकरण 1980 के दशक में ही आरंभ की हो गए थे।परंतु 1991 में प्रारंभ की गई सुधारवादी नीतियाँ कहीं अधिक व्यापक थीं।जिसके तहत निम्नलिखित क्षेत्रों में उदारीकरण की प्रक्रिया अपनाई गई। + +13361. निजीकरण. + +13362. योजनाएँ बनाने के सरकारी थिंक टैंक नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार के अनुसार, विनिवेश क़ानून के अंतर्गत होता है। + +13363. भारत में वैश्वीकरण का प्रभाव. + +13364. भूमिका
sonu mathur/ + +13365. शिक्षा के द्वारा मानव संसाधन को विकसित करने के संबंध में अल्फ्रेड मार्शल का विचार काफी सराहनीय है।उनके अनुसार- + +13366. मानव विकास रिपोर्ट 2019(Human Development Report 2019). + +13367. इस रिपोर्ट में प्रकाशित मानव विकास सूचकांक (Human Development INdex) के अनुसार भारत ने एक स्थान की छलांग लगाई है।भारत की HDI रैंकिंग 189 देशों के बीच + +13368. शिक्षा और स्वास्थ्य आर्थिक समृद्धि के महत्वपूर्ण कारक हैं। मानव पूँजी की वृद्धि के कारण आर्थिक समृद्धि होती है।विकासशील देशों में मानव पूंजी की समृद्धि तो बहुत तेजी से हो रही है किंतु उनकी प्रति व्यक्ति वास्तविक आय की वृद्धि उतनी तीव्र नहीं है। + +13369. मानव पूंजी निर्माण शिक्षा,स्वास्थ्य,कार्यस्थल प्रशिक्षण प्रवासन और सूचना निवेश का परिणाम है।इनमें शिक्षा और स्वास्थ्य मानव पूंजी निर्माण के दो सबसे महत्वपूर्ण स्रोत हैं। + +13370. 1964-66 में नियुक्त शिक्षा आयोग ने सिफारिश की थी कि शैक्षिक उपलब्धियों की समृद्धि दर में उल्लेखनीय सुधार लाने के लिए जीडीपी का कम से कम 6% शिक्षा पर खर्च किया जाना चाहिए।दिसंबर 2002 में भारत सरकार ने 86 में संविधान संशोधन द्वारा छह से 14 आयु वर्ग के बच्चों के लिए निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा को मौलिक अधिकार घोषित किया है । + +13371. भारतीय अर्थव्यवस्था/ग्रामीण विकास: + +13372. कृषि क्षेत्रों का विकास तथा कृषि बाजार व्यवस्था. + +13373. कृषि विपणन व्यवस्था(agricultural market system). + +13374. इसका उद्देश्य किसानों को उपज का उचित मूल्य दिलाना तथा गरीबों को सहायिकी युक्त(subsidised)कीमत पर वस्तु उपलब्ध कराना है। + +13375. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (MGNREGA) + +13376. इसके तहत 19 जुलाई 1969 को 14 वाणिज्यिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया।इसका मुख्य उद्येश्य समाज के वंचित वर्गों तक पूंजी की पहुँच सुनिश्चित कर सामाजिक कल्याण में वृद्धि करना तथा बैंकों पर निजी व्यापारियों और कार्पोरेट घरानों के एकाधिकार को समाप्त करना था। 1982 में राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक(नाबार्ड)की स्थापना की गई। आज ग्रामीण बैंक की संस्थागत संरचना में अनेक बहु-एजेंसी संस्थान जैसे,व्यावसायिक बैंक,क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक,(R.B.I) सहकारी तथा भूमि विकास बैंक सम्मिलित हैैं।ये सस्ती ब्याज दरों पर पर्याप्त ॠण की पूर्ति करना चाहती हैं। + +13377. गतिशील उप घटकों में कृषि प्रसंस्करण उद्योग,खाद्य प्रसंस्करण उद्योग,चर्म उद्योग तथा पर्यटन आदि सम्मिलित हैं। + +13378. मत्स्य पालन. + +13379. बागवानी को बढ़ावा देने के लिए बिजली,शीतगृह व्यवस्था,विपणन माध्यमों के विकास,लघु स्तरीय प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना और प्रौद्योगिकी के उन्नयन और प्रसार के लिए आधारिक संरचनाओं में निवेश की आवश्यकता है । + +13380. विकिपुस्तक सहायिका: + +13381. यह क्षेत्र देश की सीमा के भीतर विशेष आर्थिक नियम कायदों को ध्यान में रखकर व्यावसायिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए विकसित किए जाते हैं। विशेष आर्थिक क्षेत्र को आर्थिक विकास का पैमाना बनाने के लिए इसे उच्च गुणवत्ता तथा अवसंरचना से युक्त किया जाता है तथा इसके लिए सरकार ने वर्ष 2000 में विशेष आर्थिक जोन नीति भी बनाई, जिससे अधिक से अधिक विदेशी निवेशक भारत में आएं।सरकार ने विशेष आर्थिक जोन अधिनियम,2005 भी पारित किया, इसका उद्देश्य अधिक-से-अधिक विदेशी निवेशकों को आकर्षित कर व्यापार को बढ़ावा देना था। इसके अलावा विशेष आर्थिक क्षेत्र को और विशिष्ट बनाकर व्यापार को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2005 में विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम पारित किया गया,जिसका उद्देश्य निर्यात के लिए आधिकारिक तौर पर अनुकूल मच प्रदान करना था। + +13382. विशेष आर्थिक क्षेत्र के प्रकार. + +13383. एसईजेड के कई लाभ है इससे आयात-निर्यात को बढ़ावा मिलता है, इससे विदेशी निवेश में वृद्धि होती है आयात-निर्यात को बढ़ावा मिलने एवं विदेशी निवेश में वृद्धि होने के कारण अत्यधिक संख्या में लोगों को रोजगार मिलता है, जिससे बेरोजगारी जैसी समस्याओं के समाधान में सहायता मिलती है ।एसईजेड विदेशी मुद्रा के अर्जन में भी सहायक होता है । इस तरह, यह देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करता है । एसईजेड में हर प्रकार की सुविधा एवं छूट के कारण वस्तुओं की निर्माण लार है । इस तरह औद्योगिक प्रगति के दृष्टिकोण से भी एसईजेड अत्यन्त लाभप्रद है । + +13384. एक स्थान से दूसरे स्थान तक वहन करने की सेवा या सुविधा को कहते हैं जिसमें मनुष्यों (मानवीय), पशुओं तथा विभिन्न प्रकार के वाहनों का प्रयोग किया जाता है। ऐसा गमनागमन स्थल, जल एवं वायु मार्गों द्वारा होता है। विश्व के विभन्न भागों में परिवहन के विविध साधनों का प्रयोग किया जाता है जिनकी अपनी पृथक तकनीकी विशेषताएँ तथा क्षेत्रीय विस्तार प्रतिरूप होते हैं।
+ +13385. स्थलीय परिवहन. + +13386. के आविष्कार के बाद गाड़ियों और माल डिब्बों का प्रयोग महत्वपूर्ण हो गया। परिवहन में क्रान्ति अठारहवीं शताब्दी में भाप इंजन के आविष्कार के बाद आई। स्थल परिवहन के अन्तर्गत + +13387. कच्ची सड़कें :- यह विकासशील देशों के ग्रामीण क्षेत्रों में पायी जाती है। कच्ची सड़कें, यद्यपि निर्माण की दृष्टि से सरल होती है, सभी ऋतुओं में प्रभावी व प्रयोग योग्य नहीं होती है। वर्षा ऋतु में इन पर मोटर वाहन नहीं चलाए जा सकते हैं।
+ +13388. हुए होते हैं।
+ +13389. पाया जाता है। परन्तु महामार्गों को रेलमार्गों एवं जलमार्गों के साथ कड़ी प्रतिद्वंद्विता का सामना करना पड़ता है।
+ +13390. भारत में भी अनेक महामार्ग है। पक्की सड़कों की लम्बाई की दृष्टि से भारत का विश्व में तीसरा स्थान है। यहाँ लगभग 14.6 लाख किमी लम्बी सड़कें है। कच्ची व पक्की सभी प्रकार की सड़कों की लम्बाई 33 लाख किमी.है। + +13391. (द) लिफ्टगेज (0.610 मीटर)
+ +13392. रूस, यूराल पर्वत के पश्चिम में अत्यनत सघन जाल से युक्त रूस में रेलमार्गों के द्वारा कुल परिवहन का 90 प्रतिशत भाग प्रभावित होता है। रेलमार्ग की लम्बाई (87 हजार किमी.) के अनुसार विश्व में रूस का तीसरा स्थान है।
+ +13393. हेलीफ्रॉक्स से आरम्भ होकर मांट्रियल, विनिपेग होता हुआ बैंकुवर तक जाता है।
+ +13394. दक्षिण अमेरिका में रेलमार्ग दो क्षेत्रों अर्जेंटीना के पम्पास तथा ब्राजील के कॉफी उत्पादक प्रदेश में सघन है। इन दोनों प्रदेशों में दक्षिणी अमेरिका के कुल रेलमार्गों का 40 प्रतिशत भाग पाया जाता है। दक्षिण अमेरिका के शेष देशों में केवल चीली एक मात्र ऐसा देश है जहाँ बड़ी लम्बाई के रेल मार्ग है जो तटीय केन्द्रों को आन्तरिक क्षेत्रों में स्थित खनन स्थलों से जोड़ते हैं। पेरू, बोलीविया, इक्वेडोर, कोलम्बिया और वेनेजुएला में छोटे एकल मार्ग वाली रेल लाईने पाई जाती है।यहाँ केवल एक महाद्वीप पार रेलमार्ग है जो एंडीज पर्वतों के पार 3900 मीटर की ऊँचाई पर अवस्थित उसप्लाटा दर्रें से गुजरता हुआ ब्यूनस आयर्स (अर्जेटीना) को वालपैराइजों से मिलाता है।
+ +13395. पारमहाद्वीपीय रेलमार्ग :- पारमहाद्वीपीय रेलमार्ग पूरे महाद्वीप से गुजरते हुए इसके दोनों छोरों को जोड़ती है। इनका निर्माण आर्थिक और राजनीतिक कारणों से विभिन्न दिशाओं में लम्बी यात्राओं की सुविधा प्रदान करने के लिए किया गया है।
+ +13396. (3) संयुक्त राज्य अमेरिका के अन्तर्महाद्वीपीय रेलमार्गः- संयुक्त राज्य अमेरिका में तीन प्रमुख अन्तर्महाद्वीपीय रेलमार्ग है जो अटलांटिक तट पर स्थित न्यूर्याक बन्दरगाह एवं प्रधान नगर को प्रशान्त तटीय बन्दरगाहों सिएटल, सैनफ्रान्सिकों और लाँस एंजिल्स से मिलाते हैं। स्थिति के अनुसार इन्हें क्रमशः उत्तरी मध्य और दक्षिणी अन्तर्महाद्वीपीय रेलमार्ग के नाम से जाना जाता है।
+ +13397. (#) दक्षिण अन्तर्महाद्वीपीय रेलमार्ग :- यह रेलमार्ग न्यूयार्क से न्यूआर्लियन्स होते हुए प्रशान्त महासागर के तट पर स्थित लासएंजिल्स नगर तक जाता है। यह मार्ग संयुक्त राज्य की प्रमुख औद्योगिक पेटी के मध्य से होकर जाता है जिससे इसका विशिष्ट महत्व है। लॉस एंजिल्स नगर फिल्म उद्योग के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
+ +13398. के नगर बुलवाथों से होते हुए यह रेलमार्ग दक्षिण अफ्रिका की राजधानी प्रिटोरिया एवं प्रसिद्ध खनन नगर जोहान्सवर्ग और किम्बरले (स्वर्ण खदान) होते हुए केपटाउन तक जायेगी।प्रस्तावित केप-काहिरा रेलमार्ग का उत्तरी (मिस्त्र और सूडान) और दक्षिणी (जिम्बाब्बे और दक्षिण अफ्रिका) भाग ही निर्मित है जबकि मध्यवर्ती भाग रेलमार्ग रहित है। घने वन तथा ऊँचे-नीचे पहाड़ी क्षेत्र होने और अत्यन्त पिछड़े क्षेत्र होने के कारण इस भाग में यातायात के स्थलीय साधन पूर्णतया अविकसित है। प्रस्तावित केपकाहिरा के पूर्ण रूप से तैयार होने पर उत्तर से दक्षिण के अफ्रिकी भू-भाग परस्पर सम्बद्ध हो जायेंगे और उनके आर्थिक विकास में सहायता मिलेगी। + +13399. यह महाद्वीपीय या स्थलीय भागों में स्थित नदियों तथा झीलों से होकर जाता है। इसके लिए वे नदियाँ और झीलें उपयुक्त होती है जिनमें पर्याप्त जल और गहराई के साथ ही ढाल कम पाया जाता है। नदियों में रेत आदि के निक्षेप भी जल परिवहन में बाधा उत्पन्न करते हैं जो नदियाँ या झीलें शुष्क ऋतु में सूख जाती है अथवा शीत ऋतु में जम जाती है, उनमें केवल मौसमी परिवहन ही सम्भव हो पाता है। विश्व में जिन भागों में पर्याप्त जल प्रवाह वाली बड़ी-बड़ी नदियाँ पायी जाती है, उनका उपयोग जल परिवहन के लिए किया जाता है। विश्व के प्रमुख आन्तरिक जलमार्गों का विवरण इस प्रकार है।
+ +13400. (v) अफ्रीका के आन्तरिक जलमार्ग :- अफ्रीका में नील, काँगो, नाइजर आदि कई बड़ी नदियाँ है। यद्यपि नील नदी केवल मुहाना प्रदेश में ही नौगम्य की सुविधा प्रदान करती है किन्तु नाइजर और काँगो नदियों के मुहाने से लेकर लगभग 1100 किमी भीतरी भाग तक जल परिवहन की सुविधा है।
+ +13401. (i) उत्तरी अटलांटिक समुद्री मार्ग :- यह विश्व का सबसे व्यस्ततम समुद्री जलमार्ग है। सर्वाधिक प्रयोग में आने वाला यह जलमार्ग पश्चिम यूरोपीय देशों और उत्तरी अमेरिका (संयुक्त राज्य अमेरिका व कनाडा) को जोड़ता है। विश्व के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का लगभग एक चौथाई भाग इस मार्ग द्वारा परिवहित होता है। इस समुद्री मार्ग पर विश्व के 25 प्रतिशत समुद्री जहाज चलते हैं। विश्व के 50 वृहत् समुद्री पत्नों में से 30 इसी मार्ग है।
+ +13402. (iv) दक्षिणी अटलांटिक मार्ग :- रियो-डी-जेनेरो से जलयान केपटाउन होते हुए पूर्वी अफ्रीका, एशिया और आस्ट्रेलिया जाते हैं। दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी तट पर रियो-डी-जेनेरो, सैन्टोस, मान्टीविडियो, ब्यूनस-आयर्स, वाहिया ब्लाँका, आदि प्रमुख बन्दरगाहों से गेहूं, मक्का, ऊन, चमड़ा, माँस, कहवा, कपास, तम्बाकू, चीनी, मशीनें, लौह इस्पात खनिजों आदि + +13403. (viii) पनामा नहर :- यह नहर पूर्व में अटलांटिक महासागर को पश्चिम में प्रशान्त महासागर से जोड़ती है। + +13404. वर्तमान युग को हवाई युग भी कहा जाता है। आजकल अत्यन्त तीव्र गति से चलने वाले वायुयान आकाशी यातायात के लिए प्रयुक्त होने लगे हैं। परिवहन की दृष्टि से यह सबसे तीव्र किन्तु सबसे महँगा साधन है। यही कारण है कि वायुयानों द्वारा सामान्यतः हल्की, कीमती तथा शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुओं को ही आवागमन किया जाता है। वायु यातायात सस्ती तथा भारी वस्तुओं के परिवहन के लिए उपयुक्त नहीं है। इससे पहाड़ी क्षेत्रों या अन्य दुर्गम क्षेत्रों में जहाँ जल परिवहन अथवा थल परिवहन संभव नहीं होता है, वहाँ भी छोटे वायुयानों या हैलीकॉप्टरों द्वारा यात्रियों तथा सामानों को पहुँचाया जा सकता है। प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, भूकम्प, युद्ध आदि में राहत कार्य के लिए वायु परिवहन सर्वाधिक उपयोगी सिद्ध होता है। पर्वतों, हिमक्षेत्रों अथवा विषम मरूस्थलीय भू-भागों हिमालय में भू-स्खलन अथवा भारी हिमपात के कारण प्रायः मार्ग अवरूद्ध हो जाते हैं, ऐसी स्थिति में वायुयान ही एक मात्र विकल्प होता है। वायुयानों के निर्माण तथा उनकी कार्य प्रणाली के लिए अत्यन्त विकसित अवस्थापनात्मक सुविधाओं जैसे- विमान शाला, हवाई अड्डे, हवाई पट्टी, भूमि पर उतरने, ईंधन तथा रख-रखाव की सुविधाओं की आवश्यकता होती है। ाई अड्डों का निर्माण अत्यधिक खर्चीला है। विश्व के अनेक भागों में नित्यवायु सेवाएँ उपलब्ध है। संयुक्त राज्य अमेरिका ने मुख्य रूप से युद्धोत्तर अन्तर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन का विकास किया है। आज 250 से अधिक वाणिज्यिक एयरलाइनों द्वारा विश्व के विभिन्न भागों में नियमित सेवाएँ प्रदान की जा रही है। सुपरसोनिक वायुयान लन्दन और न्यूयार्क के बीच की दूरी का साढ़े तीन घंटों में तय कर लेता है। + +13405. (1) अन्तर्महाद्वीपीय ग्लोबीय वायुमार्ग :- यह सबसे लम्बी यात्राओं के मार्ग है जैसे :-
+ +13406. (4) प्रादेशिक वायुमार्ग :- किसी प्रदेश के अन्दर छोटी-छोटी यात्राओं को भी समय की बचत के लिए वायुयान द्वारा किया जाता है। धनी देशों में जैसे सयुक्त राज्य अमेरिका, पूर्व सोवियत संघ, जर्मनी,ब्रिटेन, जापान, कनाडा, आस्ट्रेलिया, आदि ने ऐसे प्रादेशिक वायुमार्गों का विकास हुआ है जो अधिकाधिक वृद्धि पर है।
+ +13407. पाइप लाइनें परिवहन का आधुनिकतम साधन है। इनके द्वारा अशुद्ध तेल (कच्चा) को परिष्करण शालाओं तक एंव शोधित पेट्रोलियम उत्पादों को उपभोक्ता केन्द्रों तक पहुँचाया जाता है। + +13408. (2) टैप लाइन :- यह पाइप लाइन फारस की खाड़ी के पास के कुँओं को सिडान नामक नगर से जोड़ती है। इसकी लम्बाई 1600 किमी. से भी अधिक है।
+ +13409. + +13410. लोकतांत्रिक व्यवस्था में पत्रकारिता का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना और उनकी रक्षा करना है। एक ओर पत्रकारिता शासकों के निजी एवं सार्वजनिक आचरण पर नियंत्रण रखता है और उन्हें साफ-सुथरी शासन की प्रक्रिया को स्थापित करने के लिए बाध्य करता है। लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानमंडलों में होने वाली नीतिगत गंभीर बहस तथा अन्य अनेक ज्वलंत मुद्दों पर होने वाली चर्चा से पत्रकारिता लोगों को परिचित कराता है और लोगों को उनके जनतांत्रिक अधिकारों और कर्तव्यों से भी अवगत कराता है। वही पत्रकारिता अपने कर्तव्य द्वारा कार्यपालिका को निरंकुश तथा भ्रष्ट होने से रोकता है, और अन्य जरूरी सूचनाओं को जन-जन तक‌ पहुंचाता है। न्यायपालिका के महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक फैसलों की जानकारी भी सरल एवं स्पष्ट रूप में उपलब्ध कराता है। इन सब कर्तव्य का निर्वाह करने के लिए पत्रकारिता का स्वतंत्र एवं निष्पक्ष होना अत्यंत आवश्यक है नहीं तो वह खुलकर सरकार की आलोचना नहीं कर पाएगी तथा हाशिए पर खड़े विषयों, लोगों को केंद्र में नहीं ला पाएगी। + +13411. ' मानक ' शब्द अंग्रेजी के Standard के प्रतिशब्द के रूप में प्रयोग में लाया जाता है । ‘मानक' शब्द संस्कृत ' मान ' में स्वार्थ प्रत्यय ' क ' के लगने से बना है । ' मानक ' के लिए शुद्ध परिनिष्ठित टकसाली और आदर्श आदि शब्द भी प्रचलित हैं । किंतु ' मानक ' शब्द का प्रचलन अधिक है । ' मानक ' शब्द का मूल अर्थ है जो सबको मान्य हों - अर्थात् यदि भाषा के संदर्भ में देखा जाए तो भाषा की मानकता का आधार भाषा - वैज्ञानिक या व्याकरणिक नहीं होता अपितु भाषा का वह रूप जो सर्वमान्य हो वही भाषा का मानक रूप होता है । + +13412. + +13413. '" प्रसंग + +13414. 2) किसान परिवार का वर्णन किया गया है + +13415. दूरित दूर करो नाथ कविता छायावादी कवि सूर्य कांत त्रिपाठी ' निराला ' द्वारा उद्धृत है। निराला जी अपनी कविता जीवन से जुड़ी वस्तुओं का समावेशन है। + +13416. 1) भाषा सरल एवं सहज है + +13417. सामान्य अध्ययन२०१९/भारत का अन्य देशों के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास: + +13418. भारतीय नौसेना के जहाज सह्याद्रि ने काकाडू अभ्यास, 2018 में भाग लिया। भारतीय नौसेना की इस भागीदारी से देश को क्षेत्रीय भागीदारों के साथ जुड़ने और बहुराष्ट्रीय समुद्री गतिविधियों को नियंत्रित करने का एक शानदार अवसर मिलता है। + +13419. वर्ष 2018 तक इसका आयोजन अंडमान एवं निकोबार कमान में किया जाता था। + +13420. अभ्यास में शामिल देश: + +13421. यह अभ्यास तीन दिन बंदरगाह पर और दो दिन समुद्र में किया जाएगा। बंदरगाह पर होने वाले अभ्यास में विचार-गोष्ठी, पेशेवराना बातचीत, खेल, सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम शामिल हैं,जबकि समुद्र में किये जाने वाले अभ्यास में सतह पर की जाने वाली कार्रवाई,वायु सुरक्षा एवं समुद्री निगरानी,आतंकवाद विरोधी कार्रवाई,आदि शामिल हैं। + +13422. भारत की ओर से SCOJtEx-2019 के नवीनतम संस्करण की मेज़बानी राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन बल द्वारा की गई। + +13423. इससे पहले भारत ने रूस के साथ त्रि-सेवा युद्ध अभ्यास ‘इंद्र’ में हिस्सा लिया था। + +13424. उद्देश्य + +13425. 17-26 अक्तूबर 2019 तक के बीच द्विपक्षीय संयुक्त वायुसेना सैन्य-अभ्यास का आयोजन किया गया। भारतीय वायु सेना रॉयल एयर फोर्स ओमान (Royal Air Force Oman- RAFO) के बीच यह सैन्य-अभ्यास ओमान के वायुसेना बेस मसिराह में हो रहा है। + +13426. भारतीय सेना और जापान ग्राउंड सेल्‍फ डिफेंस फोर्सेज़ (Japanese Ground Self Defence Forces- JGSDF) के 25-25 सैनिक, आतंकी गतिविधियों से निपटने हेतु अभ्यास करेंगे। + +13427. भारत एवं जापान के बीच द्विपक्षीय संबंधों को और मज़बूती प्रदान करना। + +13428. उद्देश्य: + +13429. यहाँ पर 99% जनसंख्या इस्लाम धर्म की अनुयायी है। + +13430. इस अभ्यास का मुख्य उद्देश्य आतंकवाद विरोधी और काउंटर टेररिज़्म ऑपरेशन में सैनिकों को प्रशिक्षित करना है, साथ ही इससे दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग तथा सैन्य संबंधों में भी प्रगाढ़ता आएगी। + +13431. मालाबार युद्ध अभ्यास- 2019 + +13432. महत्त्वपूर्ण द्विपक्षीय और बहुपक्षीय रक्षा अभ्यास + +13433. कोंकण (Konkan) भारत और ब्रिटेन नौसेना अभ्यास + +13434. पहला त्रिपक्षीय अभ्यास 16 सितंबर, 2019 से पोर्टब्लेयर में शुरु हो गया है। पाँच दिवसीय इस अभ्यास का लक्ष्य सिंगापुर,थाईलैंड और भारत के बीच समुद्री अंतर-संबंध को मज़बूती प्रदान करना तथा क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा को बेहतर बनाना है। इस अभ्यास से तीनों देशों की नौसेनाओं के बीच आपसी विश्वास मज़बूत होगा। + +13435. बंदरगाह चरण में पेशेवर बातचीत, आधिकारिक वार्ता, सामाजिक कार्यक्रम और विभिन्‍न खेल गतिविधियाँ आयोजित करने जैसे कार्यक्रम शामिल होंगे। + +13436. 12 से 15 सितंबर,2019 के बीच भारतीय नौसेना और मलेशिया की शाही नौसेनाके मध्य इस अभ्यास का आयोजन दो चरणों- बंदरगाह चरण और समुद्री चरण में किया गया। + +13437. संयुक्त सैन्य अभ्यास से भारतीय सेना और रॉयल थाइलैंड आर्मी के बीच रक्षा सहयोग बढ़ेगा। इससे दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग बढ़ाने के साथ ही द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने में मदद मिलेगी। + +13438. इसका उद्देश्य भारत और श्रीलंका की सेनाओं के बीच सकारात्मक संबंधों का निर्माण और संवर्द्धन करना है। + +13439. यह अभ्यास ऐसे समय में हुआ है जब भारत उत्तरी हिंद महासागर में बढ़ती चीनी गतिविधियों पर नज़र रख रहा है जहाँ चीनी जहाज़ों और पनडुब्बियों की उपस्थिति बढ़ रही है। + +13440. '" संर्दभ + +13441. कवि ईश्वर को नाविक के रूप में बताते हुए कहते हैं कवि ईश्वर से कहते हैं हे ईश्वर मेरे जीवन की नैया को धीरे धीरे इस सागर की लहरों से दूर ले चल मुझे एक ऐसी जगह ले चल जहां सत्य प्रेम का आवास हो जहां दूर-दूर तक कोई आवाज ना हो कानों में एक मधुर आवाज गूंजती रहे मुझे एक ऐसी जगह ले जा। जहां जीवन छाया के समान होकर कोमलता का भाव ले ले। और नेत्र आसमान के नीले रंग के समान शांत हो जाए। आगे कवि कहते हैं हे ईश्वर मुझे एक ऐसी दुनिया में ले चले जहां माधुर्य का वातावरण हो। जहां सुख दुख का सत्य वातावरण हो। जहां श्रम में भी आनंद की प्राप्ति हो जहां जागरुकता की ज्योति दिखाती हो। कवि संसार की संसरिकता से उब चुका है। उसे संसार में कहीं भी कोई तालमेल नहीं दिखाई दे रहा है। कभी अपनी जीवन रूपी नहीं आ ईश्वर के हाथ में देकर उन्हें कैसे जाने के लिए कह रहे हैं जहां इस सांसरिकता से मुक्ति मिल जाए। + +13442. + +13443. "' विशेष + +13444. 1) खड़ी बोली का प्रयोग है। + +13445. भारतीय अर्थव्यवस्था/रोजगार से संबंधित विषय: + +13446. किसी देश में एक वर्ष में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं का कुल मौद्रिक मूल्य इसका सकल घरेलू उत्पाद कहलाता है। सकल घरेलू उत्पाद में योगदान देने वाले सभी क्रियाकलापों को हम आर्थिक क्रियाएं तथा आर्थिक क्रियाओं में संलग्न व्यक्ति श्रमिक कहलाते हैं। स्व-नियोजित व्यक्ति भी श्रमिक ही होते हैं। वर्ष 2011-12 में भारत की कुल श्रमशक्ति का आकार 473 मिलियन आँका गया था। चूकि देश की अधिकांश जनसंख्या गाँवों में रहती है। इसलिए ग्रामीण श्रमबल का अनुपात शहरी श्रमबल से अधिक है। + +13447. इनमें से 94 प्रतिशत से अधिक अनिगमित,असंगठित उद्यमों में काम करते हैं,जिनमें ठेला चलानेवाले फल और सब्जी विक्रेताओं से लेकर घर-घर हीरे और मणि चमकाने वाले कार्य शामिल हैं। + +13448. रोजगार में यंत्रों(मशीनों) के प्रयोग के संबंध में महात्मा गांधी ने कहा था कि "मेरी आपत्ति मशीन से नहीं मशीन के प्रति सनक को लेकर है। इसी सनक का नाम श्रम का बचत करने वाली मशीनें हैं। हम उस सीमा तक श्रम की बचत करते जाएँगे। जब तक कि हजारों लोग बेरोजगार होकर भूखों मरने के लिए सड़कों पर नहीं फेंक दिए जाते।" + +13449. प्रच्छन्न बेरोजगारी प्राथमिक क्षेत्र (विशेषकर कृषि क्षेत्र)में बहुतायत में पाई जाती है। + +13450. '" संदर्भ + +13451. कविता में कवि अलौकिक प्रिय को खोजते हुए पूछ रहा है किक्या किसी ने उससे प्रेम करने वाले प्रियतम को कहीं देखा है यह वही है जो मेरी आंखों में प्रेम पत्र समा गया था और अब आंसू बनकर प्रभावित हो रहा है मेरे सुख भरे जीवन में आग के भांति दुख देकर। मेरा कोमल सा हृदय दुख कर संध्या रूपी जीवन को पानी से भर देने के बाद उसे खाली करने वाले व्यक्ति को कहीं देखा है अर्थात कभी कहते हैं कि जीवन में कुछ पल की खुशी देखकर फिर मुझे धोखा देकर चले जाने वाले व्यक्ति को किसी ने देखा है? रात्रि में हल्की-हल्की किरणों के सामान शरीर जल उठता है जैसे मानो जंगल में कोई आग लग गई हो और उस पर उसकी रूपी आंसुओं का शंभू बिखर गया हूं ऐसे मुझसे डरने वाले व्यक्ति को किसी ने देखा है। अंतिम पंक्तियों में कवि कहते हैं अपने बेकार से खेलों को खेलते हुए अपने सुख को को देखने वाले व्यक्ति आज क्यों कांपने लगा है अर्थात वह क्यों डर रहा है वह मौन क्यों है। अलौकिक रहस्य में प्रिय की प्रेम में अबाद्ध विरही कि व्याकुल व्यथा को व्यक्त करते हुए कभी कहते हैं आखिर आज यह प्रियतम इतने मौन क्यों हैंअलौकिक रहस्य में प्रिय की प्रेम में अबाद्ध विरही कि व्याकुल व्यथा को व्यक्त करते हुए कभी कहते हैं आखिर आज यह प्रियतम इतने मौन क्यों हैंअलौकिक रहस्य में प्रिय की प्रेम में अबाद्ध विरही कि व्याकुल व्यथा को व्यक्त करते हुए कभी कहते हैं आखिर आज यह प्रियतम इतने मौन क्यों हैं + +13452. 4) प्रियतम छोड़ जाने के बाद की स्थिति का वर्णन किया गया है + +13453. आधुनिकता की मान्यताओं को प्रश्नांकित करते हुए हाशिए की आवाज से उत्तर-आधुनिकता की शुरुआत होती है। उत्तर-आधुनिकता बहुकेंद्रीयता की संकल्पना को लेकर चलती है और यह बहुकेंद्रीयता व्यक्ति की अपेक्षा समूहों की केंद्रीयता है। भारत में विविधतापूर्ण समाज विद्यमान है जहाँ पर किसी एक विमर्श को संबोधित करना संभव ही नहीं है। इन सबके बावजूद भी हमारा समाज अभी भी स्त्री, दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों की अभिव्यक्तियों और उनकी सामूहिक अस्मिता के प्रति अत्यंत अनुदार और असहिष्णु है जबकि उत्तर-आधुनिक समाज में इन समूहों की आवाज को सहज भाव से स्वीकार किया जाना अपेक्षित है। इसीलिए उत्तर-आधुनिकता पर सोचने की जरूरत है। समाज में शुरू हुए इन विमर्शों ने साहित्य, राजनीति, कला, फिल्म आदि कई चीजों को प्रभावित किया। + +13454. + +13455. ओडीम के अनुसार:- ”किसी भी समुदाय के जीवित जीव तथा उनके अजीवित पर्यावरण (अजैविक पर्यावरण) परस्पर एक-दूसरे से अविभाज्य रूप से सम्बन्धित हैं, तथा यह दोनों एक-दूसरे के साथ प्रतिक्रिया करते हैं । इस प्रक्रिया में ऊर्जा प्रवाह और खनिज पदार्थ चक्र को पूरा करने के लिए निरन्तर रचनात्मक और कार्यात्मक पारस्परिक अनुक्रियायें होती रहती है इन्हीं अनुक्रियाओं के सम्पूर्ण तन्त्र को पारिस्थितिकी तन्त्र कहते।” फ्यूरले एवं न्यूए ने (1983) में बताया है कि पारिस्थितिकी तन्त्र आपस में एक-दूसरे से अपने पर्यावरण से सम्बद्ध जीवों की समाकलित एकता या सम्मेल होते हैं । + +13456. परिस्थितिकी तन्त्र के प्रकार. + +13457. वह पारिस्थितिकी तंत्र जो थल अथवा स्थल में पाये जाते है वे स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र कहलाते है जैसे वन पारिस्थितिकी तंत्र, मरूस्थलीय एवं घास के मैदान का पारिस्थितिकी तंत्र। + +13458. इन क्षेत्रों में अपघटक क्रिया अपेक्षाकृत कम होती है। इन प्रदेशों में पशु पालन के साथ जहाँ जल उपलब्ध हो जाता है मोटे अनाज की खेती भी की जाती है। ऐसा अनुमान है कि मरूस्थलीय क्षेत्र में जल उपलब्ध हो जाए तो वहाँ भी उत्तम कृषि हो सकती है जैसा कि नील नदी की घाटी में थार के इन्दिरा गाँधी नगर क्षेत्र में आदि। इन क्षेत्रों के पारिस्थितिकी तंत्र में फिर परिवर्तन आ जाता है और खेती भी आसानी से की जा सकती है। + +13459. उत्पादक. + +13460. यह वास्तव में परपोषी जीव हैं, इनको निम्न तीन वर्गों में बांटा गया है:-
+ +13461. प्राथमिक एवं द्वितीयक उत्पादक जीवों के मरने पर मृत शरीर अनेक प्रकार के बड़े जीवाणु, कवक इत्यादि द्वारा अपघटित (Decompose) किए जाते है, जिससे मृत कार्बनिक पदार्थ पुन: सरल अकार्बनिक पदार्थों में बदल जाता है और इस प्रक्रम में जीवाणु ऊर्जा प्राप्त करते है। अपघटन करने वाले जीवों को अपघटक (Decomposer) कहते हैं । अपघटकों को स्कैवेन्वर्स के नाम से पुकारा जाता है ।कैंचुँआ (Earthworm) कवक (Fungi) बैक्टिरिया आदि अपघटक के महत्त्वपूर्ण उदाहरण हैं, जो वनस्पति एवं जीव जगत् के अवशिष्ट व मृत शरीर पर जीवित रहते हैं व उसे जैविक अवशिष्ट को पुन: अजैविक पदार्थ जैसे मृदा में बदल देते हैं । इस प्रकार जैविक पदार्थ परिस्थितिकी संतुलन बनाये रखने में अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं । + +13462. अकार्बनिक घटक. + +13463. इसके अन्तर्गत वायु, जल आदि शामिल हैं। इसमें सूर्य-ऊर्जा एक अत्यन्त महत्वपूर्ण कारक है । + +13464. भूगोल में पर्यावरण के अध्ययन के अनुसार इसे दो भागों में विभाजित किया जा सकता है- + +13465. भौतिक पर्यावरण से तात्पर्य उन सम्पूर्ण भौतिक प्रक्रियाओं और तत्वों से लिया जाता है जिनका प्रत्यक्ष प्रभाव मानव पर पड़ता है।
+ +13466. मानव प्रर्यावरण सम्बन्ध. + +13467. इस प्रकार का अनुकूलन समाज द्वारा कार्यप्रतिमानों के रूप में किया जाता है। मनुष्य कौन-सा कार्य करना चाहता है यह उसकी इच्छाओं, विचारों और उसकी कुशलता पर निर्भर करता हैं। भौतिक पर्यावरण में मिलने वाली सम्पदा द्वारा प्रभावित होती है। आर्थिक सामंजस्य मुख्यतः चार श्रेणियों में बाँटे जा सकते हैं:-
+ +13468. सामाजिक एवं सांस्कृतिक सामंजस्य. + +13469. पर्यावरण में होने वाले परिवर्तन से या दूसरे पर्यावरण में उसके अनुसार बदल लेना उपयोजन या अनुकूलन कहलाता है। दूसरे शब्दों में पर्यावरण के परिवर्तनों का सामना करने के लिए शरीर में जो प्राकृतिक संशोधन होता है उसे ही समायोजन कहा जाता है। उदाहरण के लिए, अधिक गर्मी का सामना करने के लिए शरीर से पसीना छूटता है उससे शरीर ताप सहन करने की स्थिति में हो जाता है। मानव बाह्य पर्यावरण की उन परिस्थितियों से,जो उसके कार्यों में बाधा डालती हैं, उपयोजन करने का प्रयास करता है। और यदि इस कार्य में उसे आशातीत सफलता नहीं मिलती तो वह उसके परिवर्तन करने में लग जाता है। यदि किसी क्षेत्र विशेष में कुछ समय के लिए कृषि कार्य न किया जाए तो अनुकूल परिस्थितियों में वहाँ घास या वनों की उत्पत्ति होना स्वाभाविक होगा। इसलिए मानव को अपने पर्यावरण से उपयोजन करने के लिए निरन्तर क्रियाशील रहना पड़ता है। + +13470. जब मानव अपने अन्य साथियों की सहायता से पर्यावरण की प्रतिकूल अवस्थाओं को परिवर्तित करने का प्रयास करता है तो उसे साम्प्रदायिक (मानव समाज द्वारा) अनुकूलन कहा जाता है। इस अनुकूलन के फलस्वरूप प्रत्येक जीवधारी अपने निवासस्थान पर रह सकता है और उससे सम्बन्ध स्थापित कर लेता है। + +13471. + +13472. ये संगठन सरकारी हों या सरकार के बाहर के राष्ट्रीय तथा वैश्विक स्तर पर पर्यावरण के संरक्षण तथा विकास के लिये कार्य करते हैं। + +13473. UNEP ने अन्तरराष्ट्रीय पर्यावरणीय परंपराओं को विकसित करने में एक अहम भूमिका निभाई है। इसके अलावा UNEP ने पर्यावरणीय गैर सरकारी संगठनों (NGO) के साथ कार्य करने में, राष्ट्रीय सरकार तथा क्षेत्रीय संस्थानों के साथ नीतियों को विकसित करने तथा उन्हें क्रियान्वित करने में एवं पर्यावरणीय विज्ञान तथा सूचना को बढ़ावा देने के साथ उन्हें यह भी बताया कि वे नीतियों के अनुसार किस प्रकार कार्य करेंगे, आदि कार्यों में भी अहम भूमिका निभाई है। UNEP पर्यावरण के विकास के लिये, उचित पर्यावरणीय प्रयासों द्वारा, पर्यावरण से संबंधित योजनाओं के विकास एवं क्रियान्वयन तथा आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने में भी सक्रिय रहा है। + +13474. इसकी स्थापना दिसंबर, 1992 में जनरल एसेंबली रिजॉल्यूशन A/RES/47/191 द्वारा की गई थी। इसे संयुक्त राष्ट्र संघ ने आर्थिक एवं सामाजिक बैठक के कार्यकारी आयोग (ECOSOC) के रूप में स्थापित किया गया था। यह जून, 1992 में रियो डी जेनेरियो में हुए पृथ्वी सम्मेलन अथवा पर्यावरण तथा विकास पर संयुक्त राष्ट्र संघ की सम्मेलन में एक ऐतिहासिक वैश्विक समझौता किया था जो एजेंडा 21 के चैप्टर 38 में दी एक संस्तुति को क्रियान्वित करता था। + +13475. यह एक अन्तरराष्ट्रीय तथा कानूनी रूप से बाध्य करने वाला समझौता है जिसके द्वारा विश्वभर में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम किया जा सकता है। यह 16 फरवरी 2005 से लागू किया गया है। + +13476. झीलों तथा नमी भूमि के संरक्षण के लिए सर्वप्रथम 1985 में इस प्रकार का पहला सम्मेलन आयोजित किया गया था तथा इसके बाद दो वर्षों के अंतराल में विश्व के विभिन्न भागों में इसके सम्मेलन निरन्तर हो रहे हैं जो वैज्ञानिक सोच के साथ विकासशील देशों को झीलों तथा नमी भूमि के रखरखाव के उपाय सुझाते हैं। + +13477. प्रकृति संरक्षण हेतु विश्वव्यापी कोष के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं:- + +13478. इस अध्याय में इस पुस्तक से संबंधित दिल्ली विश्वविद्यालय के स्नातक भूगोल प्रतिष्ठा की विभिन्न वर्षों में पूछे गए प्रश्नों का संग्रह किया गया है। + +13479. प्र.2. मानव अनुकूलन की संकल्पना का विस्तार से वर्णन कीजिए। + +13480. पारितंत्र सेवाओं और पारिस्थितिकीय पदचिन्हों की विवेचना कीजिए। + +13481. (अ) पर्यावरणीय असंतुलन
+ +13482. 2018 प्रश्न पत्र. + +13483. अथवा + +13484. प्र.4.जलवायु परिवर्तन से संबंधित पर्यावरणीय नीतियों का विश्लेषण कीजिए। + +13485. पर्यावरणीय भूगोल/उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में पर्यावरणीय समस्याएं: + +13486. 1. व्यापकता: समाचार का विषय जितनी व्यापकता लिये होगा, उतने ही अधिक लोग उस समाचार में रुचि लेंगे। जैसे- देशहित से जुड़ा कोई भी विषय। + +13487. 6. प्रभावशीलता: समाचार दिलचस्प ही नही प्रभावशील भी होने चाहिये। हर सूचना व्यक्तियों के किसी न किसी बड़े समूह, बड़े वर्ग से सीधे या अप्रत्यक्ष रुप से जुड़ी होती है। अगर किसी घटना की सूचना समाज के किसी समूह या वर्ग को प्रभावित नही करती तो उस घटना की सूचना का उनके लिये कोई मतलब नही होगा। + +13488. कोई भी व्यक्ति स्वाभाविक रूप से पूछ सकता है कि समाचार पत्र के लिए खबरें कहाँ से एकत्र हो जाती है? उसके संवाददाता खबरों को कहांँ से और किस तरह प्राप्त कर लेते हैं? इसका बड़ा सीधा और सटीक ‌उत्तर यह है- यदि समाचार विवेक हो तथा उन्हें संकलित करने की योग्यता या क्षमता तो समाचारों के अनगिनत स्त्रोत है। + +13489. समाचार स्त्रोत वास्तव में भी स्थानीय केंद्र है जहाँ से समाचार प्राप्त होते हैं अथवा हो सकते हैं। विशिष्ट व्यक्ति, संस्था, अदालत, पुलिस स्टेशन, विधानसभा, सम्मेलन, समारोह, सार्वजनिक स्थल जैसे- मण्डी, रेलवे स्टेशन इत्यादि कुछ भी समाचार स्रोत हो सकते हैं। + +13490. + +13491. तीसरा कथन असत्य है। किसी विशेष क्षेत्र में जीव-जंतुओं के प्रजातियों की विविधता को प्रजातीय जैव-विविधता कहते हैं,जबकि एक समुदाय के जीव-जंतुओं और वनस्पतियों एवं दूसरे समुदाय के जीव-जंतुओं व वनस्पतियों के बीच पाई जाने वाली विविधता पारितंत्रीय जैव-विविधता कहलाती है। + +13492. सुभेद्य प्रजातियों में वे प्रजातियाँ सम्मिलित हैं, जिन्हें यदि संरक्षित नहीं किया गया या उनके विलुप्त होने में सहयोगी कारक जारी रहे तो निकट भविष्य में उनके विलुप्त होने का खतरा है। + +13493. विश्व संसाधन संस्थान एक वैश्विक अनुसंधान संस्थान है जिसकी स्थापना वर्ष 1982 में हुई थी। इसका मुख्यालय वाशिंगटन, अमेरिका में है। + +13494. पारिस्थितिकीय विविधता : यह विविधता पारितंत्र स्तर पर होती है, जैसे भारत में स्थित रेगिस्तान, वर्षा वन, मैंग्रोव, प्रवाल भित्ति तथा एल्पाइन वन आदि। + +13495. हालाँकि देश में हर जगह लाइकेन पाए जाते हैं लेकिन पूर्वी हिमालय, पूर्वोत्तर भारत, पश्चिमी घाट, पश्चिमी हिमालय तथा अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह में इनकी अधिक विविधता पाई जाती है। + +13496. पेंगुइन गर्म-रक्त वाले (warm-blooded) होते हैं क्योंकि उनकी त्वचा के नीचे वसा (Fat) का एक मोटा आवरण होता है जिसे ब्लबर (Blubber) कहा जाता है, यह पेंगुइन को गर्म रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। + +13497. प्रवालों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची-1 में सूचीबद्ध किया गया है। + +13498. हमबोशिया डेकरेंस बेड- दक्षिणी पश्चिमी घाट में पौधे की एक दुर्लभ प्रजाति है। + +13499. यह दुनिया की पहली ऐसी सौर-संचालित रिमोट सर्वेक्षण डिवाइस है जो मेंढकों की आवाज़ को पहचान सकती है और 3G एवं 4G सेलफोन के ज़रिये उनका सर्वेक्षण कर सकती है इसके लिये न तो प्री-रिकार्डिंग की ज़रूरत है और न ही किसी तरीके की आवाज़ अपलोड करना ज़रूरी है। + +13500. इसका वैज्ञानिक नाम-एरिक्स जॉनी (Eryx Johnii) है। + +13501. यह प्रजाति CITES परिशिष्ट II में सूचीबद्ध है। + +13502. इसे Anser Indicus के नाम से भी जाना जाता है। इसे दुनिया में सबसे ऊँची उड़ान भरने वाले पक्षियों में से एक माना जाता है। + +13503. सर्दियों के मौसम के दौरान एशियाई बस्टर्ड दक्षिण में पाकिस्तान और अरब प्रायद्वीप के क्षेत्रों में प्रवास करते हैं। + +13504. क्लाउनफ़िश आमतौर पर आश्रित भित्तियों या उथले लैगून में समुद्र के तल पर रहती हैं। + +13505. इस पर विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक प्रतीकों को दर्शाया जाता है। + +13506. इसे यह नाम बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (Bombay Natural History Society- BNHS) के प्रसिद्ध समुद्री जीवविज्ञानी और निदेशक दीपक आप्टे के सम्मान में दिया गया है। + +13507. पृष्ठभूमि: + +13508. वर्तमान में इदरीस वर्ग में 300 से अधिक प्रजातियाँ शामिल हैं जिनमें सबसे नई खोजी गई प्रजाति को एल्बा नाम दिया गया है। + +13509. इन पक्षियों की मौत कीटनाशक युक्त खाद्यान्न के सेवन से हुई है। + +13510. जिनमे से कुछ पक्षी यूरेशिया के क्रेन वर्किंग ग्रुप (Crane working Group Of Eurashia) द्वारा चलाये गए ‘1000 क्रेन प्रोजेक्ट’ के तहत चिह्नित किये गए हैं। + +13511. ऐसा माना जाता है कि ज़ुरैसिक काल में स्वेतोक्रिज़्स्की पर्वत एक द्वीपसमूह था इसके आसपास गर्म लैगून और छिछला समुद्री क्षेत्र था। यह समुद्री क्षेत्र जीवाश्म वैज्ञानिकों द्वारा खोजे गए समुद्री सरीसृप का निवास स्थान था। + +13512. भारत में ये असम, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल राज्यों में पाई जाती है। + +13513. भारत के मिज़ोरम में स्थित डंपा बाघ अभयारण्य (Dampa Tiger Reserve) को क्लाउडेड लेपर्ड के अध्ययन स्थल के रूप में चुना गया है। + +13514. 1960 के दशक में पहली बार केन्या में पाए गए, जिन्हें वर्ष 1978 में लंदन के नेचुरल हिस्ट्री म्यूज़ियम में भेज दिया गया। + +13515. यह हाड्रोस्यूरिड डायनोसॉर (Hadrosaurid dinosaur) प्रजाति से संबंधित है। + +13516. डायनासोर का नाम कम्यूसोरस जपोनिकस (Kamuysaurus japonicus) रखा है, जिसका अर्थ है जापानी ड्रैगन गॉड (Japanese Dragon God)। + +13517. इस दौरान शोधकर्त्ताओं को चूहे, चमगादड़ और अन्य कई जानवरों के जीवाश्म भी प्राप्त हुए। + +13518. महाराष्ट्र वन विभाग द्वारा गढ़चिरौली, नासिक और रायगढ़ में गिद्धों को सुरक्षित एवं पर्याप्त मात्रा में भोजन उपलब्ध कराने के लिये वल्चर रेस्तराँ की स्थापना की गई है। + +13519. शारीरिक विशेषताएँ: + +13520. सहारा मरुस्थल में चाड झील (Lake Chad) एकमात्र मीठे पानी की झील है। + +13521. शाहीन फाल्कन (IUCN) की सूची के अनुसार सुभेद्य (Vulnerable) श्रेणी में है। + +13522. जापान और कोरिया में पारंपरिक चिकित्सा में इस्तेमाल होने वाले खाद्य मशरूम और इस लाल कवक के बीच संदेह की स्थिति में लाल कवक के प्रयोग से कई लोगों की मृत्यु हो चुकी है। + +13523. यह वृक्षों पर रहने वाले हुमायूँ नाइट फ्रॉग (Humayun’s Night Frog) और उसके अण्डों का भोजन करता है। + +13524. Microhyla Eos को इसके आकार, आकृति , रंग, त्वचा चिह्नों और अन्य विशेषताओं के कारण अन्य संकीर्ण-मुंह वाले कोरस मेंढकों से भिन्न पाया गया है। + +13525. इनकी संख्या में गिरावट का कारण पर्यावासों की क्षति तथा निवास स्थानों के विखंडन को माना जा रहा है। + +13526. जल के बड़े निकायों को पार कर सकने की क्षमता के बावजूद, इसके अवशेषों की प्राप्ति का स्थान और अन्य विशेषताएँ इसके अंतर्देशीय निवास (Inland Habitat) का संकेत देती हैं। + +13527. भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) ने एक रिपोर्ट में यह कहा था कि थार क्षेत्र में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और अन्य वन्यजीवों के अवैध शिकार को कम करने के लिये उचित कदम उठाए जाने चाहिये। + +13528. वर्ष 2016 से इनकी संख्या में 132 की वृद्धि हुई थी। + +13529. अफ्रीकी बफेलो के बड़े झुंड दक्षिण अफ्रीका के क्रूगर नेशनल पार्क (Kruger National Park) में देखे जाते हैं। + +13530. ऊदबिलाव एक अर्धजलीय स्तनधारी, मांसाहारी जानवर है। इसकी 13 ज्ञात जातियाँ हैं। ऑस्ट्रेलिया और अंटार्अकटिका के अलावा ऊदबिलाव शेष सभी महाद्वीपों पर पाए जाते हैं। + +13531. उदाहरण के लिये, यदि मल में हड्डी के टुकड़े पाए जाते हैं, तो इससे यह स्पष्ट होता है कि जानवर मांसाहारी रहा होगा। + +13532. पैरों के नीचे के हिस्से पर बैंडिंग पैटर्न के आधार पर इस जीन की प्रजातियों की पहचान की जा सकती है। + +13533. यह कवचधारी और शाकाहारी था जो प्राचीन गोंडवाना सुपरकॉन्टिनेंट पर रहता था। गोंडवाना सुपरकॉन्टिनेंट बाद में अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका में विभाजित हो गया। + +13534. इन कीड़ों के पंखों का रंग चांदी के सामान सफेद होता है तथा यह हरे और पीले रंग के होते हैं। नई खोजों के बीच, मेसोवेलिया अंडमाना (Mesovelia andamana) अंडमान द्वीप समूह से हैं, एम. बिस्पिनोसा और एम. इसियासी (M. bispinosaand M. isiasi) मेघालय से हैं, एम. एक्वुलेटा और एम. तेनुया (M. occulta and M. tenuia) तमिलनाडु से और एम. ब्रेविया और एम. दिलाताता (M. brevia and M. dilatata) दोनों मेघालय और तमिलनाडु के हैं। + +13535. अधिकांश प्रजातियों में पश्च पंख होते हैं जिनमें एक कांटा दिखाई देता है। लाइम एक अपवाद है। इसके पंखों पर सफेद, काले, पीले, हरे और दो नारंगी-लाल के अनियमित धब्बे पाए जाते हैं। + +13536. इस तितली की व्यापक उपलब्धता विभिन्न परिस्थितियों के लिये इसकी सहिष्णुता और अनुकूलता को इंगित करती है जैसा कि हम उन्हें बगीचों, खेतों और कभी-कभी जंगलों में देख सकते हैं। सितंबर को बटरफ्लाई मंथ के रूप में मनाया जाता है। + +13537. इनको बारिश का सटीक पूर्वानुमान लगा लेती है। बारिश का मौसम आने से पहले यह चिड़िया घोंसला बनाती है। + +13538. जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के वैज्ञानिकों ने की है।देश के उत्तर-पूर्वी और उत्तरी हिस्सों में पाई गई। + +13539. 18 अगस्त, 2019 से वर्ल्ड वाइड फंड (WWF) और बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री (BNHS) के सहयोग से दिल्ली तथा उसके पड़ोसी क्षेत्रों में एक महीने तक आयोजित किया गाय। + +13540. इस उत्सव में प्रतिभागियों को कई समूहों में विभाजित किया जाएगा और सर्वेक्षण के लिये दिल्ली-NCR में विभिन्न स्थानों का दौरा किया जाएगा। BNHS और WWF के विशेषज्ञ इस कार्य में उनका साथ देंगे और उन्हें कीड़ों और उनके आवास के बारे में प्रशिक्षित करेंगे। + +13541. उदंती वन्यजीव अभयारण्य में पाँच राज्यों से गुजरते हुए असम के मानस नेशनल पार्क से लाई जाने वाली ये जंगली भैंसें लगभग 1,500 किमी. की दूरी तय करेंगी। + +13542. पूर्वोत्तर में जंगली भैंसों (Bubalus arnee) की अनुमानित आबादी लगभग 3,000-4,000 है, जो देश में सबसे ज़्यादा है, यह दुनिया भर के भैंसों की आबादी का 92% है। + +13543. यह अभयारण्य जंगली भैंसों की बहुतायत के लिये प्रसिद्ध था ये भैंसें वर्तमान में विलुप्ति के कगार पर हैं। + +13544. हाथियों का अवैध शिकार, आवास की हानि, मानव-हाथी संघर्ष तथा कैद में रखकर उनके साथ दुर्व्यवहार अफ्रीकी और एशियाई दोनों देशों में हाथियों के लिये सामान्य खतरों के तहत आते हैं। + +13545. भारत सरकार ने हाथियों के संरक्षण के लिये कई पहलें शुरू की हैं। + +13546. ये जीवाणु अत्यधिक विकिरण, गर्मी तथा ब्रह्मांड के सबसे कम तापमान को भी झेल सकते हैं और भोजन के बिना भी दशकों तक जीवित रह सकते हैं। + +13547. हालाँकि इसकी हड्डियों के अवशेष वर्ष 2008 में प्राप्त हुए थे लेकिन उस समय इसके बारे में कुछ भी निश्चित नहीं किया जा सका था। + +13548. इसे IUCN द्वारा 18 जुलाई, 2019 को लुप्तप्राय प्रजाति की अद्यतन रेड लिस्ट में शामिल किया गया था, जो गहरे समुद्र में खनन के कारण आधिकारिक रूप से संकटग्रस्त घोषित होने वाली पहली प्रजाति बन गया है। + +13549. यह कछुआ मबूल द्वीप (Mabul Island) पर, ग्रीन टर्टल्स (Green Turtles) के एक घोंसले में पाया गया था। + +13550. हाल ही में हुए एक अध्ययन के अनुसार, केप वर्डे (Cape Verde) के एक प्रमुख प्रजनन क्षेत्र में पैदा होने वाले लॉगरहेड कछुओं (Loggerhead turtles) की नई पीढ़ी जलवायु परिवर्तन के कारण संभवतः मादा ही होगी। + +13551. द इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर ने लॉगरहेड कछुओं को अतिसंवेदनशील श्रेणी में रखा है। + +13552. सारस क्रेन- + +13553. एक कृषि क्षेत्र में सिर्फ एक जोड़ी सारस देखे जाते हैं जो अनुसंधान का एक महत्त्वपूर्ण विषय है। + +13554. Green Sea Turtle (Chelonia mydas) + +13555. वर्ष 2018 में दिल्ली विश्वविद्यालय के शोधकर्त्ताओं द्वारा तितली की दो दुर्लभ प्रजातियों कॉमन लाइनब्लू (Common Lineblue) एवं डार्क सेरुलियन (Dark Cerulean) को लगभग आधी शताब्दी के अंतराल के बाद देखा गया। + +13556. ‘जमील’डुगोंग के अनाथ बच्चे (Baby Dugong)। दक्षिणी थाई समुद्र तट पर फँसे इस जीव का नामकरण थाईलैंड के राजकुमारी सिरिवनवरी द्वारा किया गया।यवी भाषा के इस शब्द का अर्थ है ‘समुद्र का सुंदर राजकुमार’ (Handsome Sea Prince)।डुगोंग को समुद्री गाय के नाम से भी जाना जाता है। + +13557. अलग-अलग स्थानों पर सामान्यतः इसे गंगा नदी डॉल्फ़िन, ब्लाइंड डॉल्फ़िन, गंगा ससु, हिहु, साइड-स्विमिंग डॉल्फिन, दक्षिण एशियाई नदी डॉल्फिन आदि नामों से जाना जाता है। + +13558. इसे IUCN रेड लिस्ट में कम चिंतनीय (Least Concerned) का दर्जा प्राप्त है। + +13559. तमिल योमनतमिलनाडु ने योमन (Yeamon) तितली को राजकीय तितली (State Butterfly) घोषित किया है। + +13560. ये तितलियाँ पर्यावरण के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि ये परागण और खाद्य श्रृंखला में मुख्य भूमिका निभाती हैं। + +13561. इसका वैज्ञानिक नाम मनौरिया इम्प्रेस्सा है तथा इसकी वंश/जीनस (Genus) ‘मनौरिया’ है। + +13562. पारंपरिक चिकित्सा एवं व्यापार हेतु अवैध शिकार किये जाने के कारण कछुए की यह प्रजाति खतरे में है। + +13563. इससे पहले वर्ष 1928 में चंबा ज़िले में यह लंगूर देखा गया था वर्ष 1928- 2012 तक इससे संबंधित कोई जानकारी नही मिली थी। + +13564. ‘सभी जानवर इच्छा से पलायन नहीं करते’ जागरूकता अभियान,संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण भारत और भारत के वन्य जीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (Wildlife Crime Control Bureau- WCCB) द्वारा शुरू किया गया। यह अभियान देश भर के प्रमुख हवाई अड्डों पर संचालित किया जाएगा।यह अभियान संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण के एक वैश्विक अभियान,‘जीवन के लिये जंगल’के ज़रिये वन्य जीवों के गैर-कानूनी व्यापार पर रोक लगाने हेतु विश्वव्यापी कार्रवाई का पूरक है।अभियान के पहले चरण के अंतर्गत बाघ, पैंगोलिन, स्टार कछुआ और टाउकेई छिपकली को चुना गया है, अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में अवैध व्यापार के कारण इनका अस्तित्व खतरे में है। + +13565. अलेक्जेंड्रिन पैराकेट्स-(IUCN) की रेड लिस्ट में ‘निकट संकटग्रस्त’ (Near Threatened) की श्रेणी में + +13566. हाल ही में पंजाब के तीन व्यक्तियों को जामा मस्जिद, शास्त्री पार्क और राजधानी के अन्य क्षेत्रों में 150 से अधिक अलेक्जेंड्रिन पैराकेट्स को बेचने की कोशिश करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। + +13567. मकड़ियों के पहले दोनों पैरों के नीचे एक लंबी रीढ़ होती है और इसलिये इसका वैज्ञानिक नाम ‘हैब्रोसेस्टेम लॉन्गिस्पिनम’ (Habrocestum longispinum ) रखा गया है। + +13568. ये भूमि स्वामी समुदाय हैं और उनके स्लैम और बर्न (शिफ्टिंग) की खेती को पुनम खेती (Punam Cultivation)कहा जाता है। + +13569. इसे IUCN रेड लिस्ट के तहत लुप्तप्राय श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है और इसके अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रतिबंधित करने के लिये ‘लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन’ (Convention on International Trade in Endangered Species-CITES) के परिशिष्ट I के तहत सूचीबद्ध किया गया है। + +13570. तीसरे समीक्षा सम्मेलन में बाघ रेंज के 13 देशों द्वारा वैश्विक बाघ पुनः प्राप्ति कार्यक्रम (Global Tiger Recovery Program-GTRP) की स्थिति और वन्य जीव तस्करी से निपटने जैसे विषयों पर चर्चा की गई। + +13571. सेंट पीटर्सबर्ग चर्चा के समय भारत में 1411 बाघ होने का अनुमान था जो कि अखिल भारतीय बाघ अनुमान 2014 के तीसरे चक्र के बाद दोगुना होकर 2226 हो गया है। + +13572. लैटिन भाषा से लिया गया नाम एजिपियस मोनाशस का तात्पर्य ‘हूड वाला’ होता है। + +13573. महाराष्ट्र के मुंबई के गोराई में एस्सेल वर्ल्ड ने एक इंटरेक्टिव बर्ड पार्क लॉन्च किया। 1.4 एकड़ क्षेत्र में फैला अपनी तरह का पहला वर्षावन-थीम वाला पार्क 60 से अधिक प्रजातियों के 500 से अधिक विदेशी पक्षियों का घर है। इसका मुख्य उद्देश्य एक ऐसा बर्ड पार्क स्थापित करना है, जो अंतर्राष्ट्रीय मानकों को पूरा करता हो। पक्षियों के लिये उपयुक्त रहने की स्थिति सुनिश्चित करने के लिये पार्क को बेहद सावधानीपूर्वक बनाया गया है, ताकि इससे विभिन्न प्रकार के पक्षियों के बारे में लोगों को जागरूक किया जा सके। इस पार्क में जलीय पक्षियों के लिये छोटे तालाब बनाए गए हैं तथा उनके प्रजनन की विशेष व्यवस्था की गई है। पक्षियों के लिये पीने के पानी की व्यवस्था के साथ इसमें एक विशेष पक्षी-रसोई और स्वास्थ्य सेवा केंद्र भी है। + +13574. सोचीपारा जलप्रपात और कुरुवा द्वीपों में पर्यटकों के प्रवेश को हाल ही में बंद किया गया, जबकि चेम्बरा शिखर और मीनमुट्टी जलप्रपात को जनवरी 2019 के मध्य से ही जंगल की आग के जोखिम के कारण बंद किया गया था। + +13575. अरबिडॉप्सिस थालियाना सरसों (Brassicaceae) परिवार का एक अवयव है, जिसमें गोभी और मूली जैसी प्रजातियाँ शामिल हैं। + +13576. यह प्रजाति बहुत तेज़ी से बढ़ती है और इसमें अपनी मूल सीमा के बाहर की प्रकृति में भी आसानी से घुलने-मिलने की क्षमता है, इसलिये इसे दुनिया के कुछ हिस्सों में आक्रामक प्रजाति के रूप में जाना जाता है + +13577. यह ग्राउंड लिली (Ground Lily) की एक प्रजाति है जो केवल मणिपुर की शिरुई पहाड़ी (Shirui Hills) के आसपास पाई जाती है। इस क्षेत्र में तांगखुल नागा जनजाति निवास करती है। + +13578. शिरुई लिली को प्रभावित करने वाले कारक: + +13579. इससे पहले IARI ने HD-2967 और HD-3086 किस्म तैयार की थी। जो देश के कुल गेहूँ उत्पादन क्षेत्र के लगभग 40% हिस्से पर उगाई जा रही है। + +13580. इस किस्म की परिपक्वता की अवधि 150 दिनों की है जो अन्य गेहूँ की किस्मों से 10-15 दिन कम है और यह किस्म मार्च के अंत/अप्रैल की शुरुआत तक कटाई के लिये तैयार हो जाएगी। + +13581. टाइलोफोरा बालकृष्णनी की खोज वायनाड के थोलायिरम शोला (Thollayiram shola) में की गई है जो कि नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व के अंतर्गत एक जैव विविधता हॉटस्पॉट है। + +13582. इसकी प्रजाति के फूल एक-साथ बैंगनी और सफेद रंग के होते हैं। इसकी पत्तियाँ मोटी और काँटेदार होती हैं। + +13583. दवा क्षेत्र में पान के पत्ते के अर्क के उपयोग की संभावना है। पान का पत्ता पारंपरिक रूप से विभिन्न रोगों के उपचार के लिये उपयोगी माना जाता है। वेटिला 'थमपुलडी थाइलम' का एक घटक है और इसका उपयोग खांसी के इलाज के लिये तथा स्वदेशी दवाओं के निर्माण में भी किया जाता है। भोजन के बाद पान के पत्ते का सेवन पाचन को बढ़ाता है। भारत में पान के पत्ते को सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक अवसरों के दौरान नियमित रूप से उपयोग में लाया जाता है। + +13584. केरल के अन्य प्रमुख GI टैग प्राप्त उत्पाद निम्नलिखित हैं: + +13585. एक पौधा लगभग 2 मीटर लंबा हो गया तथा वर्ष 2015 से इसमें फूल आने शुरू हुए अंततः वर्ष 2019 में इसमें फल विकसित हुआ। + +13586. यह पौधा ‘आरोग्यपाचा’ (Arogyapacha) एक चमत्कारिक पौधा है, जिसका वानस्पतिक नाम ट्राइकोपस ज़ेलेनियस (Trichopus zeylanicus) है। + +13587. वर्ष 2010 से 2019 के बीच वनस्पतिविदों और वर्गिकी वैज्ञानिकों ने पूर्वी हिमालयी क्षेत्र में इम्पेतिंस (Impatiens) जो पौधों का एक समूह है, की लगभग 23 नई प्रजातियों की खोज की। + +13588. इस पौधे से चमकदार लाल रंग का लेटेक्स स्रावित होता है जिसका उपयोग प्राचीन काल से दवा, वार्निश और कपड़ों की रंगाई आदि कार्यों में किया जाता है। चीन में एक पारंपरिक चिकित्सा पद्धति में इसका उपयोग किया जाता है। + +13589. काप्पाफाइकस अल्वारेज़ी(Kappaphycus Alvarezii)-आक्रामक लाल समुद्री शैवाल + +13590. जलकुंभी (Water Hyacinth)/(Eichhornia crassipes) एक अत्यधिक आक्रामक खरपतवार है जिसे कई जलीय पारिस्थितिक तंत्रों के लिये खतरा पैदा करने वाला माना जाता है। + +13591. इससे पहले जापान, ताइवान और लाओस में खोजे गए इस ऑर्किड की अधिकतम ऊँचाई 40 सेमी. और खिलने की अवधि पाँच-छह दिनों की होती थी। + +13592. इन्हें परजीवी भी कहा जाता है, क्योंकि ये दोनों पौधे अपने पोषक तत्त्व दूसरे पौधों से प्राप्त करते हैं। + +13593. तुम्हारी आंखों का बचपन कविता छायावादी काव्याधारा के प्रमुख आधार स्तम्भ जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित है। साहित्यिक जगत में प्रसाद जी एक सफल व श्रेष्ठ कवि, नाटककार कथाकार व निंबंध लेखक के रूप में विख्यात रहे है। + +13594. कवि का मन अपने प्रिय की बाल्यावस्था के क्रीडा में आनंद विभोर हो जाता है। और अपने प्रिय को खेलता देखकर उसका मन बार-बार हार मानता था। विगत स्मृतियां कवि के मन को बेचैन कर देती है और वह जानना चाहता है कि क्या आज भी प्रिय की आंखों में नित्य किशोर विद्यमान है। कवि पूछता है आज भी क्या प्रिय की आंखों में वही अपनत्व ठहरा हुआ है, जिसे वह अपना सर्वस्व मानता था। कवि ने बचपन की कुकेल भरी क्रीड़ा किलकारीयों की गूंज, संकेतों पर फिसलना, बढ़ना, रूठना, मनाना आदि का सरस वर्णन करते हुए शैशव कालीन सुकुमारता सरलता सरसता आज भी प्रिय के आंखो में है। + +13595. 4) बचपन की क्रीड़ाओं का वर्णन किया गया है। + +13596. '" संदर्भ + +13597. कवि कहते हैं कि मन रूपी भंवरा गुनगुना कर कह रहा है कि जीवन का आधार कैसे कहूं। कवि के जीवन की इच्छाएं एक-एक करके पतियों की तरह मिलाकर गिर गई। उन्होंने एक-एक करके अपने जीवन के सपनों को मरते देखा है। दुख झेला है। इस विशाल नीले आकाश में रहने वाली कितने महापुरुषों ने अपने जीवन का इतिहास लिखा है। उन्हें पढ़कर ऐसा लगता है कि मानो वो अपना ही उपहास कर रहे हैं। कवि का जीवन अभावों और कठिनाइयों से भरा पड़ा है। उनके मित्र कहते हैं कि वह अपने जीवन की कथा लिखे। कवि कहते हैं कि उनके कहानी जानकार लोगों को क्या सुख मिलेगा वह खाली गागर के समान है उसके जीवन के खालीपन को देखकर किसी को कोई सुख नहीं मिलेगा। आगे कवि कहते हैं कि मैं अपने सरालमन की हंसी नहीं करूंगा। मैं मन की कमजोरियों को सबके सामने प्रकट क्यों करूं। मेरे जीवन में जो भी मधुर चांदनी रातें आई थी वह सभी चली गई। वह सब मेरे जीवन की निजी अनुभूतियां है। अपनी प्रियतमा के साथ निजी क्षणों को सबके सामने क्यों प्रकट करू। कवि कहते हैं कि वह स्वप्न देखकर जो जागे थे वह प्रियतम कहां मिलेगा जिसे प्रियतमा को आलिंगन करने के लिए उसने बाहे आगे बढ़ाई थी वह प्रियतम दूर भाग गया। प्रियतम कवि को कवि नहीं मिला। कवि अपनी प्रियतमा के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं की उनकी प्रेमिका के लाल कपोल उषाकालीन लालिका से भी अधिक मनोरम है। कवि उसकी यादों का सहारा लेकर जीवन के थकान को दूर करते हैं। कवि के जीवन में सूखे पल कभी नहीं आए जिन्हें वह आम जनता को बता सके। लोग मेरी आत्मकथा क्यों जानना चाहेंगे हैं। कवि कहते हैं इसीलिए यही अच्छा होगा कि वह दूसरा महान लोगों की आत्म कथाएं सुनाएं और अपनी व्यथा को लेकर शांत बने रहे। मेरी भोली आत्मकथा को सुनकर कोई प्रेरणा प्राप्त नहीं कर सकेगा। कवि का मन शांत है उसके जीवन में ऐसी को महानता अर्जित नहीं की है। जिसके बारे ममें बताया जाए। अंत कवि आत्मकथा नहीं लिखना चाहते हैं। + +13598. + +13599. भारतीय दण्ड संहिता (1860) की धारा 399 के अनुसार राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक के अपना ईमानदारी, यश, प्रसिद्धि,प्रतिष्ठा, मान-सम्मान आदि के सुरक्षित रखने का पूरा खधिकार प्राप्त है। इस कानून के अनुसार जो कोई या तो बोले गए या पढ़े जाने के आशय से शब्दों या संकेतो द्वारा किसी व्यक्ति के बारे में इस हादसे से लांछन लगता है तथा ऐसे लांछन से व्यक्ति की ख्याति की हानि होगी तो वह मानहानि का दावा कर सकता है। दावा साबित होने पर दोषी को 2 वर्ष की साधारण कैद या जुर्माना या दोनों सजा दी जा सकती है। + +13600. सन् 1971 में न्यायालय की अवमानना का नया कानून पारित किया गया। यह कानून अत्यंत व्यापक है तथा थोड़ी भी असावधानी संपादकों और पत्रकारों को को मुसीबत में डाल सकती है। न्याय प्रणाली की पवित्रता और विश्वसनीयताको बनाए रखने के लिए यह कानून बनाया गया है। अवमानना की परिस्थितियाँ निम्नलिखित है- + +13601. इसके अलावा भी कई प्रेस संबंधित कानून है। जिन्हें ध्यान में रखकर पत्रकारिता करनी पड़ती है। + +13602. उठ उठ री लघु कविता छायावादी काव्याधारा के प्रमुख आधार स्तम्भ जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित है। साहित्यिक जगत में प्रसाद जी एक सफल व श्रेष्ठ कवि, नाटककार कथाकार व निंबंध लेखक के रूप में विख्यात रहे है। + +13603. "' विशेष + +13604. भारतीय अर्थव्यवस्था/धारणीय विकास और पर्यावरण: + +13605. + +13606. वन बायोम. + +13607. इन वनों में मिलने वाले जीवों में हाथी, गैंडा, जंगली सुअर, शेर, घड़ियाल तथा बंदर व सांपों की अनेक प्रजातियां होती हैं । आमेजन बेसिन, कांगो बेसिन, अफ्रीका का गिनी तट, जावा-सुमात्रा आदि इन वनों के प्रमुख क्षेत्र हैं । ब्राजील में इन वनों को सेलवास कहा जाता है । + +13608. मध्य अक्षांशों में महाद्वीपों के पश्चिमी सीमांतों पर शीतकालीन वर्षा प्रदेशों में ये वन पाए जाते हैं। यहाँ के प्रमुख वृक्ष कार्क, ओक, जैतून, चेस्टनट, पाइन इत्यादि हैं। इस बायोम में अग्नि से नष्ट न होने वाले पौधे और सूखे में रहने योग्य जंतु पाए जाते हैं। यहाँ रंग-बिरंगी चिड़ियों की अधिकता है । + +13609. पर्णपाती वन. + +13610. सवाना बायोम. + +13611. अर्द्धशुष्क महाद्वीपीय घास भूमि. + +13612. यहाँ वनस्पतियों का अभाव पाया जाता है। ां केवल छोटी झाड़ियाँ, नागफनी, बबूल, खजूर, खेजड़ी आदि वनस्पतियाँ ही मिलती हैं।यह सभी लक्षण रेगिस्तानी ौधे में एक-समान होने से जीव-वैज्ञानिक इस परितंत्र को एक 'बायोम' का ख़िताब देते हैं। + +13613. संगोष्ठी की थीम:-मेक इन इंडिया – युद्ध श्रेणी : अवसर और आवश्यकताएँ (Make in India - Fight Category: Opportunities and Imperatives) + +13614. इसकी अध्यक्षता थलसेना प्रमुख द्वारा की गई। + +13615. यह पिछले कुछ वर्षों में भारतीय सशस्त्र बलों, शिक्षा, अनुसंधान और विकास, संगठनों तथा उद्योगों के बीच सहयोग के लिये सूचना और संचार प्रौद्योगिकी से संबंधित पहलुओं पर एक ऐतिहासिक संगोष्ठी के रूप में विकसित हुई है। + +13616. इस पुल की लंबाई 200 मीटर है जो जोनाई-पासीघाट-राणाघाट-रोइंग (Jonai-Pasighat-Ranaghat-Roing) सड़क के बीच बना है। + +13617. वर्तमान में अरुणाचल प्रदेश में BRO की चार परियोजनाएं चल रही हैं, जिनमें वर्तक, अरूणांक, ब्रह्मांक और उद्यांक शामिल हैं। + +13618. रणनीतिक महत्त्व:-अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह हिंद महासागर के समुद्री क्षेत्र की निगरानी करने हेतु आवश्यक क्षमता प्रदान करता है। + +13619. प्रशिक्षण बेड़े में शामिल पोत:- तीर (Tir),सुजाता और शार्दुल पोत- भारतीय नौसेना। तथा सारथी पोत- भारतीय तटरक्षक बल। + +13620. यह भारतीय जल में महासागर अनुसंधान प्रयोगों का संचालन करता है और NOPL की समुद्र-संबंधी आँकड़े एकत्रित करके देता है। इसका संचालन भारतीय नौसेना करती है। + +13621. ब्रह्मोस मिसाइल के अन्य संस्करण:- + +13622. यह 16 एंटीटैंक AGM- 114 हेलफायर और स्ट्रिंगर मिसाइल से लैस है तथा लगभग 1 मिनट में एक साथ 128 टारगेट पर हमला करने में सक्षम है। + +13623. यह एक ईंजन वाला टर्बोशैफ्ट FAC हेलिकॉप्टर है। + +13624. पिनाका के उन्नत संस्करण में नौसंचालन,नियंत्रण और दिशा-प्रणाली जोड़ी गई हैं,ताकि उसकी सटीकता और रेंज में वृद्धि हो सके। + +13625. एंटी टैंक गाइडेड मिसाइलों, हवा-से-हवा में मार करने वाली मिसाइलों तथा रॉकेटों पर निशाना साधने के अतिरिक्त अपाचे हेलीकॉप्टर में आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर (Electronic Warfare- EW) क्षमताएँ विद्यमान हैं। + +13626. इस हेलीकॉप्टर का रख-रखाव करना भी आसान है और यह उष्णकटिबंधीय तथा रेगिस्तानी क्षेत्रों में संचालन हेतु सक्षम है। + +13627. मिसाइल को एक मैन पोर्टेबल ट्राइपॉड लॉन्चर से दागा गया। परीक्षण के दौरान मिशन के सभी उद्देश्य हासिल किये गए। + +13628. नाग मिसाइल को भारतीय रक्षा मंत्रालय के एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (Integrated Guided Missile Development Programme-IGMDP) के तहत स्वदेशी रूप से विकसित की गई पाँच मिसाइलों में से एक है। + +13629. इन गतिविधियों के मद्देनज़र भारत द्वारा इस अंतरिक्ष युद्धाभ्यास को करने का प्रमुख लक्ष्य अंतरिक्ष में अपनी स्थिति को और मज़बूत बनाना है।इसके साथ ही अंतरिक्ष में रणनीतिक चुनौतियों को बेहतर ढंग से समझने में सहायता प्राप्त होगी जिनकी वर्तमान परिवेश में अत्यंत आवश्यकता है। + +13630. सूचना समेकन केंद्र- हिंद महासागर क्षेत्र (The Information Fusion Centre - Indian Ocean Region) जिसे भारतीय नौसेना द्वारा गुरुग्राम में दिसंबर 2018 में लॉन्च किया गया था, खाड़ी क्षेत्र में जहाज़ों की आवाजाही पर कड़ी नज़र रख रहा है। + +13631. SHARAD ऐसी रडार तरंगों का उत्सर्जन करता है जो मंगल की सतह के 1.5 मील नीचे तक प्रवेश कर सकती हैं। + +13632. रात्रि के समय किये जाने वाले अभियानों के प्रशिक्षण के पश्चात् भावना को रात में भी फाइटर जेट में युद्धक मिशन पर जाने की अनुमति मिल जाएगी। + +13633. विमान में इस प्रकार के हथियार को जोड़ना एक जटिल प्रक्रिया थी, क्योंकि इसके लिये विमान में मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल और सॉफ्टवेयर सुधार किये जाने की आवश्यकता थी। + +13634. वर्ष 1972 में वेलुपिल्लई प्रभाकरन ने तमिल न्यू टाइगर नाम का एक संगठन शुरू किया जिसमें युवा स्कूली बच्चे शामिल किये गए थे। + +13635. इसके लिये सरकार ने LTTE पर प्रतिबंध को लेकर अपनी 2015 की अधिसूचना को नवीनीकृत किया है। + +13636. अंतर्राष्ट्रीय फ्लीट रिव्यू (International Fleet Review:IFR) नौसेना के जहाज़ों, विमानों एवं पनडुब्बियों की एक परेड है और इसका आयोजन राष्ट्रों द्वारा सद्भावना को बढ़ावा देने, सहयोग को मज़बूत बनाने और उनकी संगठनात्मक क्षमताओं को प्रदर्शित करने के लिये किया जाता है। + +13637. मिसाइल ने काफी कम ऊँचाई पर क्रूज़ की जहाज़-रोधी मिसाइल तकनीक का प्रदर्शन किया। + +13638. सोफोस (एक आईटी सुरक्षा कंपनी) ‘एक्सपोज्ड: साइबर अटैक ऑन क्लाउड हनीपोट्स’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, हनीपॉट्स के वैश्विक नेटवर्क पर पाँच मिलियन से अधिक बार हमले के प्रयास किये गए। + +13639. हमले के दौरान हनी पॉट ऐसा व्यूह रचता है जिससे हमलावर को ऐसा प्रतीत हो कि उसने नेटवर्क में प्रवेश कर लिया है। + +13640. धनुष:-155 मिमी,45-कैलिबर वाली तोप है जिसकी रेंज 36 किमी. है और इसमें विशेष गोला बारूद के साथ 38 किमी. की रेंज प्रदर्शित की गई है।यह मौजूदा 155 मीटर, 39 कैलिबर बोफोर्स FH 77 तोप का उन्नत संस्करण है। + +13641. हाल में ही आयोजित ब्रिक्स आतंकवाद-विरोधी संयुक्त कार्य समूह (BRICS Counter-Terrorism Joint Working Group) की चौथी बैठक में सदस्य देशों ने निम्नलिखित पाँच विषयों पर पाँच उप-कार्य समूहों (sub-working groups) के गठन का भी निर्णय लिया है: + +13642. क्षमता निर्माण + +13643. संस्मरण हिन्दी गद्य की एक नवीन किन्तु महत्त्वपूर्ण विधा है। संस्मरण का मूल अर्थ है, 'सम्यक स्मृति' एक ऐसी स्मृति जो वर्तमान को अधिक सार्थक, समृद्ध और संवेदनशील बनाती है। हिन्दी साहित्य कोश में संस्मरण को परिभाषित करते हुए लिखा गया है कि स्मृति के आधार पर किसी विषय या व्यक्ति के संबंध में लिखित लेख या ग्रंथ को संस्मरण कह सकते हैं। व्यापक रूप से संस्मरण आत्मचरित के अंतर्गत आ जाता है, परंतु इन दोनों में मूलभूत अंतर है। आत्मचरित के लेखक का मुख्य उद्देश्य अपनी जीवन-कथा का वर्णन करना रहता है और इसका प्रमुख पात्र स्वयं लेखक होता है एवं अन्य इतिहास की घटनाओं तथा परिस्थितियों का केवल वही रूप उसमें आता है जो उसके जीवन चक्र को प्रभावित और संचालित करता है, अथवा जो उससे प्रभावित होता है। इसके विपरीत संस्मरण का दृष्टिकोण अलग है। इसमें लेखक अपने समय के इतिहास को लिखना चाहता है वह जो स्वयं देखता है, जिसका वह स्वयं अनुभव करता है, उसी का वर्णन करता है, उसके वर्णन में उसकी अनुभूतियाँ एवं संवेदनाएं भी रहती है। अतः लेखक स्मृतियों से प्रसंग को उभारने का काम करता है, तो वह स्मृतियाँ संस्मरण कहलएगी। संस्मरण से हमारा बोध जुड़ा होता है। डॉक्टर रामचन्द्र तिवारी के शब्दों में, “संस्मरण किसी स्मर्यमाण की स्मृति का शब्दांकन है। स्मर्यमाण के जीवन के वे पहलू, वे संदर्भ और वे चारित्रिक वैशिष्ट्य जो स्मरणकरता को स्मृत रह जाते हैं, उन्हें वह शब्दांकित करता है। संस्मरण वही रह जाता जो महत्, विशिष्ट, विचित्र और प्रिय हो। स्मर्यमाण को अंकित कराते हुए लेखक स्वयं भी अंकित होता चलता है।" + +13644. रेखाचित्र किसी व्यक्ति, वस्तु, घटना या भाव का कम से कम शब्दों में मर्मस्पर्शी, भावपूर्ण और सजीव चित्रण है। इसमें शब्द-चित्रों के माध्यम से लेखक किसी घटना, व्यक्ति आदि को प्रतिबिंबित करता है। रेखाचित्र पूर्ण चित्र नहीं होता, उसमें विवरण कम किंतु संवेदना अधिक होती है। रेखाचित्र में संकेत कर सकने की क्षमता बहुत आवश्यक है। इसमें लेखक शब्दों, वाक्यों से परे भी बहुत कुछ कहने की क्षमता रखता है। यही कारण है कि प्रायः जिन लेखकों ने संस्मरण लिखे हैं उन्होंने रेखाचित्र भी लिखे। रेखाचित्र लिखते समय लेखक तटस्थ रहने का प्रयास करता है। हालाँकि रेखाचित्र और संस्मरण में सामान्यतः भेद करना मुश्किल है फिर भी दोनों में कुछ बिंदुओं पर भेद किया जा सकता है। + +13645. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र और हिन्दी नवजागरण की समस्याएँ - रामविलास शर्मा + +13646. + +13647. समाचार लेखन की प्रक्रिया तीन चरणों में पूर्ण होती है – आमुख (Introduction),समाचार की शेष रचना (Body of the Story), शीर्षक (Headline). + +13648. इंट्रो के बाद समाचार की शेष रचना लिखी जाती है। इसे प्रायः (Body of the story) कहा जाता है। यह हिस्सा क्रमबद्ध ढंग से घटना तथ्यों को संजोये हुए रहता है। एक आकर्षक तथा रूचिपूर्ण इंट्रो पाठक को पूरा समाचार पढ़ने के लिए प्रेरित करता है, इसलिए समाचार लेखन द्वितीय चरण भी उतने सजगतापूर्वक लिखा जाना चाहिए। समाचार लेखन‌ के इस द्वितीय चरण में आमुख में उल्लेखित तथ्यों की व्याख्या और विश्लेषण होता है। + +13649. + +13650. आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20/बाजार की अनदेखी और अत्यधिक सरकारी हस्तक्षेप: + +13651. आर्थिक स्वतंत्रता के संकेतक वस्तुतः प्रति व्यक्ति जीडीपी,नए व्यवसायों के पंजीकरण, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस, किसी देश में पेटेंट के लिए आवेदन तथा अनुदत्त पेटेंट्स की संख्या और नवाचार के संकेतकों के साथ सकारात्मक रूप से सह-संबंधित हैं।इससे स्पष्ट होता है कि आर्थिक स्वतंत्रता धन सृजन के कई पहलुओं को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है। + +13652. भारत में खाद्यान्न खरीद प्रणाली की वर्तमान स्थिति: + +13653. रोजगार-सृजन,धन सृजन और भारत की संवृद्धि के लिए एक पूर्व शर्त है,इसलिए इस अध्याय में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार हेतु वर्तमान परिवेश भारत को चीन जैसे देशों के श्रम प्रधान निर्यात पथ का अनुसरण करने का एक अभूतपूर्व अवसर प्रदान करता है और देश में असीमित रोज़गार सृजित करने का अनन्य अवसर प्रदान करता है। + +13654. विभिन्न क्षेत्रों में विधिक जटिलता और सांविधिक अनुपालन की आवश्यकता (DENSITY OF LEGISLATION AND STATUTORY COMPLIANCE REQUIREMENTS IN DIFFERENT SECTORS). + +13655. आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20/बैंकों के राष्ट्रीयकरण की स्वर्ण जयंती: + +13656. वहीं वर्ष 2010-19 के बीच नए निजी बैंकों (New Private Banks) ने प्रति वर्ष 15-29% के बीच साख वृद्धि दर्ज की किंतु वर्ष 2014 के बाद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की साख वृद्धि वर्ष 2019 में एकल अंकों (4.03%) तक पहुँच गई जबकि वर्ष 2010-13 में यह 15-28% थी। + +13657. इसका साम्राज्य बंगाल से लेकर सिंधु नदी तक फैला हुआ था, परन्तु उसमें कश्मीर शामिल नहीं था। पश्चिम में वह मालवा और राजस्थान को भी जीत चुका था। + +13658. वह नकद रूप में वेतन देता था, जबकि किसानों को छूट थी कि वह चाहें तो नकद या अनाज में भू-राजस्व दे सकते थे। + +13659. अकबर. + +13660. राणा के भीलों के साथ मैत्री संबंध थे तथा उन्होंने छापामार पद्धति द्वारा राणा की मदद की थी। + +13661. सिख और मुगल शासकों के बीच संघर्ष का कारण धार्मिक न होकर व्यक्तिगत और राजनीतिक था। + +13662. अकबर ने शेरशाह द्वारा अपनाई गई ‘चेहरा पद्धति’ और अलाउद्दीन खिलजी द्वारा अपनाई गई ‘दाग पद्धति’ का उपयोग अपनी सैन्य व्यवस्था को मज़बूत बनाने हेतु किया था। + +13663. अकबर के अधीन राजस्व निर्धारण की कई इकाइयाँ प्रचलित थीं। इनमें सबसे पुरानी प्रणाली बॉटाई या गल्ला-बख्शीं थी। इसमें ‘उपज’ निर्धारित अनुपात में किसानों व राज्य में बाँट दी जाती थी। + +13664. दहसाला प्रणाली किसी भी प्रकार का दहसाला बंदोबस्त नहीं था और न ही यह स्थायी बंदोबस्त था। राज्य को उसमें परिवर्तन करने का अधिकार प्राप्त था। + +13665. शाही खजाना : खालिसा + +13666. 3. एक बीघा ज़मीन की:मन + +13667. मदद-ए-मआश       :   मुगल सम्राट, छोटे शासक, ज़मींदार सरदारों द्वारा विद्धानों व उलेमाओं को दान दी गई भूमि को कहा जाता था। + +13668. जोत का औसत : रकबा + +13669. साल्टपीटर से यूरोप के बारूद की कमी पूरी हुई तथा इसका प्रयोग जहाज़ों के भार को स्थिर करने के लिये भी किया जाता था। + +13670. औरंगज़ेब. + +13671. औरंगज़ेब ने अबवाव नामक ‘कर’ न लगाकर आमदनी के एक बड़े ज़रिये को इसलिये तिलाजंलि दी क्योंकि इसका प्रावधान शरा में नहीं था। उसने हिंदुओं पर जज़िया कर लगाया था। + +13672. 1665 ई. में मराठा शासक शिवाजी और औरंगज़ेब का विश्वासपात्र सलाहकार जयसिंह के बीच ‘पुरंदर की संधि’ की गई थी। + +13673. शिवाजी ने ‘देशमुखी’ या ‘ज़मींदारी’ प्रथा को समाप्त कर दिया था। + +13674. महाभारत का फारसी अनुवाद फैजी की देखरेख में किया गया था। + +13675. इस दरवाज़े में प्रयुक्त अर्द्धगुंबदीय शैली को मुगलों ने ईरान से ग्रहण किया था,जो बाद में मुगल इमारतों की खास विशेषता बन गई। + +13676. इसने लाल बलुआ पत्थर से दिल्ली में जामा मस्जिद का निर्माण कराया था जिसमें गुंबद मुख्य आकर्षण का केंद्र है। + +13677. दारा ने वेदों का संकलन भी कराया और वेदों को दिव्य ग्रंथ की संज्ञा दी थी और उन्हें पाक कुरान से मेल खाता हुआ बताया। वह हिन्दू व इस्लाम धर्म में मूलभूत अंतर नहीं मानता था। + +13678. औरंगज़ेब को संगीत में रुचि नहीं थी। उसने अपने दरबार से गायन को खत्म कर दिया था, लेकिन वाद्ययंत्रों को रहने दिया था, क्योंकि वह कुशल वीणावादक था। + +13679. राजस्थानी शैली की चित्रकारी में पश्चिम भारतीय या जैन शैली की पूर्ववर्ती परम्पराओं का मिश्रण मुगल शैली की चित्रकारी में किया गया। + +13680. भीमसेन द्वारा नुश्खा-ए-दिलकुशा लिखा गया था। + +13681. अमर-नायकों के कार्य निम्नलिखित थे: + +13682. हालाँकि सत्रहवीं शताब्दी के दौरान इनमें से कई नायकों ने स्वतंत्र राज्य स्थापित किये। इसने साम्राज्य के केंद्रीय ढाँचे के पतन को तेज़ कर दिया। + +13683. उन्होंने रामानुज के विशिष्टाद्वैत के दर्शन का अनुसरण किया। + +13684. परमतभंग और रहस्यत्रयसार श्री वेदांत देशिक द्वारा तमिल भाषा में रचित मुख्य दार्शनिक ग्रंथ है। पांचरात्ररक्षा नामक कृति में श्री वेदांत देशिक ने पांचरात्र धर्म के सिद्धांतों की विवेचना की है तथा उन्होंने गीताभाष्य पर टीकाएँ भी लिखीं। + +13685. सिलपार्थसारम्: मूर्तिकला पर एक ग्रंथ। + +13686. ‘विक्रमार्जुन विजय’ महाभारत की पुनर्रचना है जिसके नायक अर्जुन की पहचान कवि के संरक्षक चालुक्य अरिकेसरी के रूप में की जाती है। + +13687. इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंसिंग सर्विसेज (IL&FS)की सहायक कंपनियों और दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड(DHFL) द्वारा भुगतान चूक(डिफॉल्ट) के आलोक में,इस अध्याय का उद्येश्य आवास वित्त कंपनियों(housing Finace Companies:HFC) और रिटेल-NBFCs में विभेद करते हुए NBFCs(गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां) सेक्टर के समकक्ष उत्तपन्न जोखिमों को समाप्त करना है। इस अध्याय में एक हेल्थ स्कोर के सृजन के बारे में भी उल्लेख किया गया है जो NBFCs के बेहतर वित्तीय विनियमन के लिए एक नीतिगत उपकरण के रूप में कार्य कर सकता है। + +13688. इस प्रकार के आघात एनबीएफसी की समस्याओं को तब और बढ़ा देते है जब इसकी देयता संरचना वाणिज्यिक पत्र जिसके लिये बार-बार पुनः वित्तपोषण आवश्यक होता है जैसे- अल्पावधिक थोक बिक्री वित्तपोषण पर अतिनिर्भर होती है। + +13689. परिचय(Introduction) + +13690. निम्न प्राथमिकता वाले PSUs का ‘रणनीतिक विनिवेश किया जाता है। + +13691. आगे की राह. + +13692. + +13693. कि सकल घरेलू उत्पाद जैसे स्तरीय साथियों के साथ इसके निष्कर्षों को युवा ही तरीके से समझा जाना चाहिए जैसा की समीक्षा के खंड 1 के अध्याय 2 में रेखांकित किया गया है उदाहरण के लिए + +13694. 2019 में विश्व की अधिकांश प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में गिरावट देखने को मिली है विशेष रूप से ऑटोमोबाइल उद्योग के वैश्विक उत्पादन में। + +13695. चालू कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद में कुल उपभोग एवं + +13696. जीडीपी एवं भोग में हुई हालिया मंदी को समझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। + +13697. निजी उपभोग में विलंब गिरावट वर्ष 2916 तक जीडीपी के अनुपात के संदर्भ में निजी उपभोग में वृद्धि हुई थी इसके बाद वर्ष 2017 अट्ठारह में गिरावट दर्ज की गई और वर्ष 2019 विश्व की प्रथम छमाही में तेजी से कमी आने से पहले दो हजार अट्ठारह उन्नीस में पुनः इसमें वृद्धि हुई थी एक-दो वर्ष की अवधि में गिरावट के बाद से उपभोग पर सकल घरेलू उत्पाद का प्रभाव कई गुना हो गया इसलिए वर्ष दो हजार सत्रह अट्ठारह से उपभोग में गिरते हुए रुझान पर जीडीपी वृद्धि में आंशिक गिरावट का प्रभाव प्रतिबिंबित होता है + +13698. ऐसे में यदि निजी क्षेत्र निवेश के लिए बाहर फंडिंग पर निर्भर होगा तो इससे चालू खाता घाटा में वृद्धि होगी और रुपए का अवमूल्यन होगा तथा इसके कारण उपभोग निवेश और समृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा उत्पादकता लाभ और सकल घरेलू बचत दरों में वृद्धि ना होना एक चुनौती बनी हुई है + +13699. खगोलिकी: + +13700. प्रबंधन विभाग (Management Department) :- समाचार पत्र के सभी विभागों में सुसूत्रता बनाए रखना, उनमें समन्वय निर्माण करना, प्रबंधन तथा प्रशासनिक व्यवस्था को निखारना, विज्ञापनदाताओं तथा एजंटों से संपर्क करना, समाचार पत्र का आर्थिक स्तर ऊँचा करने के लिए नित्य नई कल्पनाओं द्वारा पाठकों तथा विज्ञापनदाताओं को आकर्षित करना तथा मनुष्य बल का अधिकाधिक लाभ उठाना प्रबंधन विभाग का प्रमुख लक्ष्य होता है। इस विभाग में लेखा परीक्षण, विज्ञापन, वितरण, संस्करण वृद्धि आदि कार्य चलते रहते हैं। पाठकों का संपर्क सीधे संपादक से होता है। लेकिन विज्ञापन संस्था तथा वितरण व्यवस्था का संबंध सीधे प्रशासनिक व्यवस्था से रहता है। + +13701. वर्ष 2019-20 में केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा 3.3% था,जो वर्ष 2018-19 के 3.4% से कम है। वर्ष के पूर्वार्ध में संवृद्धि दर में गिरावट के कारण वर्ष 2019-20 भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चुनौतीपूर्ण रहा है। + +13702. वर्ष 2019-20 के दौरान प्रत्यक्ष करों के लिए किए गए प्रमुख उपाय + +13703. हिंदी उपन्यास/फणीश्वरनाथ रेणु: + +13704. उपन्यास:-'मैला आंचल' (१९५४), 'परती : परिकथा'(१९५७), + +13705. भाषा और शिल्प के स्तर पर मैला आंचल ग्राम समाज के छोटे-छोटे चित्रात्मक और लोक तत्व का आबाध उपयोग किया गया है। इसके अलावा शब्दों को तोड़ मरोड़ कर उन्हें एक खास स्थानीय रंग में ढालने का आग्रह आदि इसको एक विभिन्न प्रकार के रचना के रूप में प्रस्तुत करते है। + +13706. + +13707. मार्च 2019 के अंत में विदेशी मुद्रा भंडार 412.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर था जो सितंबर 2019 में बढ़कर 433.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर तथा 10 जनवरी, 2020 को 461.2 बिलियन अमेरिकी डालर हो गया। + +13708. चालू खाता घाटा-विदेशी मुद्रा भंड़ार अनुपात वर्ष 2013-14 के 10.6% से बढ़कर वर्ष 2018-19 में 13.9% हो गया,जिसके कारण भारतीय रुपये का मूल्यह्रास(DEPRECIATE) हुआ। + +13709. निम्नलिखित टेबल के विश्लेषण से स्पष्ट है कि औसत भार के पण्य व्यापार शेष में वर्ष 2019-20 के दौरान भारत के सबसे बड़े 10 व्यापारिक भागीदार देशों के साथ भारत के कुल पण्य व्यापार में 50% से अधिक का योगदान है। + +13710. 2019-20 (अप्रैल-नवंबर) में मूल्य के संदर्भ में पेट्रोलियम संबंधित उत्पाद सबसे अधिक निर्यात होने वाले कमोडिटी बने रहे। + +13711. वर्ष 2019-20 (अप्रैल-नवंबर) के आयात बास्केट में कच्चे पेट्रोलियम का सबसे बड़ा अंश रहा है इसके बाद सोना एवं पेट्रोलियम उत्पादों का हिस्सा रहा है। + +13712. वर्ष 2018-19 से वर्ष 2019-20 में भारतीय सेवा निर्यात सतत् रूप से जीडीपी 7.4 से 7.7% के बीच रहा जो भुगतान संतुलन के स्थायित्व में योगदान देने वाले इस स्रोत की निरंतरता को प्रदर्शित करता है। + +13713. प्रमुख निर्यात संवर्द्धन योजनाएँ: + +13714. सीमा शुल्क मुक्त आयात स्वीकृति (डीएफआईए) + +13715. विदेशी प्रत्यक्ष निवेश: + +13716. भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में वर्ष 2019-20 की पहली छमाही में 27.5 बिलियन अमेरिकी डाॅलर की अभिवृद्धि दर्ज करते हुए 461.2 बिलियन अमेरिकी डाॅलर की बढ़ोतरी देखने को मिली। + +13717. के भीतरी + +13718. समझ में आ न सकता हो + +13719. खड़े हैं मौन औदुंबर। + +13720. जंगली हरी कच्ची गंध में बसकर + +13721. बावड़ी की इन मुँडेरों पर + +13722. लाल फूलों का लहकता झौंर - + +13723. बावड़ी की उन गहराइयों में शून्य + +13724. तन की मलिनता + +13725. घिस रहा है देह + +13726. फिर भी मैल!! + +13727. बुन रहीं + +13728. की भीतरी दीवार पर + +13729. झुककर नमस्ते कर दिया। + +13730. वंदना की चाँदनी ने + +13731. और तब दुगुने भयानक ओज से + +13732. छंदस्, मंत्र, थियोरम, + +13733. नया व्याख्यान करता वह + +13734. गहराइयों से उठ रही ध्वनियाँ, अतः + +13735. है बन रहा + +13736. सुनते हैं करोंदों के सुकोमल फूल + +13737. जो बावड़ी में अड़ गई। + +13738. मोच पैरों में + +13739. गहन किंचित सफलता, + +13740. की दृष्टि के कृत + +13741. लाल चिंता की रुधिर-सरिता + +13742. उद्विग्न भालों पर + +13743. मारा गया, वह काम आया, + +13744. प्रासाद में जीना + +13745. समीकरणों के गणित की सीढ़ियाँ + +13746. भटका!! + +13747. सत्य की झाईं + +13748. महत्ता के चरण में था + +13749. उसकी महत्ता! + +13750. औ' बाहरी दो कठिन पाटों बीच, + +13751. अपना गणित करता रहा + +13752. यह क्यों हुआ! + +13753. उसकी वेदना का स्रोत + +13754. इसका उद्देश्य वित्तीय स्थिरता को बनाए रखने वाली क्रियाविधि को मज़बूत एवं संस्थागत करना और अंतर-विनियामक समन्वय को बढ़ाना तथा वित्तीय क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देना है। + +13755. वित्तीय साक्षरता + +13756. परिषद नियामकों यानी भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), वित्त मंत्रालय या भारत को कैशलेस सोसाइटी बनाने वाले विभागों, निकायों या संस्थाओं के साथ मिलकर काम करती है। + +13757. भारतीय रिज़र्व बैंक(RBI)की पहल. + +13758. सहकारी बैंकों में अनियमितता की बढती घटनाओं को देखते हुए RBI हाल के वर्षों में नए UCBs को लाइसेंस जारी करने से बचता रहा है। + +13759. अप्रैल और मई की कुछ आर्थिक गतिविधियों को लॉकडाउन के बाद पुन: प्रारंभ किया गया है जिससे ‘उच्च-आवृत्ति वाले आर्थिक संकेतकों’ में कुछ सुधार देखने को मिला। लेकिन महामारी के संक्रमण के फिर से बढ़ने से अनेक क्षेत्रों में पुन: लॉकडाउन लगाया गया जिससे आर्थिक संकेतकों में देखा गया सुधार समाप्त हो गया। + +13760. इस कार्य समूह द्वारा भारतीय निजी क्षेत्र के बैंकों के लिये स्वामित्त्व तथा कॉर्पोरेट ढाँचे पर मौजूदा दिशा निर्देशों की समीक्षा की जाएगी। + +13761. मार्च 2020 में अनुसूचित वाणिज्य बैंकों (SCBs) का पूँजी पर्याप्तता अनुपात (CAR) घटकर 14.8 प्रतिशत हो गया है, जो कि सितंबर 2019 में 15 प्रतिशत था। मौजूदा परिस्थितियों में मार्च 2021 तक यह अनुपात 13.3 प्रतिशत पर पहुँच सकता है, और यदि आर्थिक परिस्थितियाँ और बिगड़ती हैं तो यह अनुपात 11.8 प्रतिशत तक पहुँच सकता है। + +13762. RBI द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री या खरीद के माध्यम से मुद्रा आपूर्ति की स्थिति को समायोजित करने के लिये खुले बाज़ार का संचालन किया जाता है। + +13763. ब्लॉकचेन एक ऐसी तकनीक है जिससे बिटकॉइन तथा अन्य क्रिप्टो-करेंसियों का संचालन होता है। यदि सरल शब्दों में कहा जाए तो यह एक डिजिटल ‘सार्वजनिक बही-खाता’ (Public Ledger) है, जिसमें प्रत्येक लेन-देन का रिकॉर्ड दर्ज़ होता है। + +13764. क्रिप्टोकरेंसी की संपूर्ण व्यवस्था ऑनलाइन होने के कारण इसकी सुरक्षा कमज़ोर हो जाती है और इसके हैक होने का खतरा बना रहता है। + +13765. उल्लेखनीय है कि ऐसे निकायों को परिचालन आरंभ होने के अगले 5 वर्षों में अपने निवल मूल्य को बढाकर 200 करोड़ रुपए करना होगा। + +13766. बैंकिंग तथा वित्त क्षेत्र में वरिष्ठ स्तर पर कम-से-कम 10 साल का अनुभव रखने वाले नागरिकों/पेशेवरों को भी लघु वित्त बैंक खोलने की पात्रता दे दी गई है। + +13767. हालाँकि CTS, नेशनल ऑटोमेटेड क्लियरिंग हाउस (NACH) और NEFT के सहयोग से भूटान के साथ एक क्रॉस कंट्री को-ऑपरेशन पर कार्य किया जा रहा है। NEFT की सुविधा भारत से नेपाल में होने वाले एकतरफा अंतरण के लिये भी उपलब्ध है + +13768. पॉइंट ऑफ सेल (PoS) टर्मिनल 35% की उच्च गति से बढ़ें हैं जबकि इसके विपरीत नए ATMs लगाने की गति कम (4%) हुई है। + +13769. आगे से केंद्रीय बोर्ड की अगली बैठक की पुष्टि की तारीख से दो सप्ताह के भीतर विवरणों को भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर डाला जाएगा। + +13770. PAN का विवरण इसे जारी करने वाले प्राधिकरण के डेटाबेस से सत्यापित किया जाना चाहिये। + +13771. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थिति में सुधार के लिये 1,340 करोड़ रुपए की पुनर्पूंजीकरण योजना को मंज़ूरी दी है। + +13772. (Capital-to-risk Weighted Assets Ratio- CRAR): + +13773. COVID-19 के कारण देशव्यापी बंदी (Lockdown) के बीच ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय तरलता सुनिश्चित करने के लिये ग्रामीण बैंकों का आर्थिक रूप से मज़बूत होना बहुत ही आवश्यक है। + +13774. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के पुनर्पूंजीकरण की योजना को वित्तीय वर्ष 2010-11 में शुरू किया गया था। + +13775. इसे बाद में वित्तीय वर्ष 2012-13, 2015-16 और पुनः वर्ष 2017 में वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिये बढ़ा दिया गया था। + +13776. इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि, व्यापार, वाणिज्य, उद्योग और अन्य उत्पादन गतिविधियों को आर्थिक तंत्र से जोड़कर उनका विकास करना तथा ग्रामीण क्षेत्रों में लघु और सीमांत कृषकों, कृषि श्रमिकों, कलाकारों और छोटे उद्यमियों को उनकी आवश्यकता के अनुरूप सहयोग प्रदान करना था। + +13777. निष्कर्ष: आज भी भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा देश के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में रहता है। इनमें से अधिकांश लोग कृषि, लघु और कुटीर उद्योग या ग्रामीण आवश्यकताओं से जुड़े छोटे व्यवसायों से जुड़े हैं। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक ग्रामीण क्षेत्र की ज़रूरतों के अनुरूप ऋण एवं अन्य बैंकिग सेवाएँ उपलब्ध करा कर तथा सरकार की योजनाओं के माध्यम से इस आबादी को देश के आर्थिक तंत्र से जोड़ने का काम करते हैं। सरकार द्वारा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के पुनर्पूंजीकरण की घोषणा से हाल के वर्षों में देश के विभिन्न व्यावसायिक क्षेत्रों में फैले आर्थिक दबाव और COVID-19 से उत्पन्न अनिश्चितता के बीच ग्रामीण क्षेत्रों की आर्थिक चुनौतियों को दूर करने में सहायता प्राप्त होगी। + +13778. के. वी. कामथ 'न्यू डेवलपमेंट बैंक' (New Development Bank- NDB) के प्रथम अध्यक्ष रह चुके हैं। वर्तमान में 'न्यू डेवलपमेंट बैंक' के अध्यक्ष ब्राज़ील के मार्कोस ट्रायजो (Marcos Troyjo) हैं। + +13779. NPA की समस्या समाधान के अन्य विकल्प? + +13780. किसी भी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक का मालिकाना हक सरकार के पास होता है और इसके प्रबंधन में भी सरकार की भूमिका बहुत अहम् होती है। आम तौर पर, बैंक बोर्ड की मीटिंग्स में सरकार का प्रतिनिधित्व वित्त मंत्रालय के नौकरशाहों द्वारा किया जाता है। यह कोई अनिवार्य घटक नहीं है कि इन अधिकारियों के पास बैंकिंग व्यवस्था से संबंधित अनुभव या ज्ञान होना आवश्यक हो। ऐसे में इनके द्वारा लिये जाने वाले निर्णय और की जाने वाली कार्यवाही की जवाबदेहिता का प्रश्न बहुत अहम् हो जाता है। + +13781. नियुक्ति के प्रभाव:-विशेषज्ञों के अनुसार, OIC के CMD की नियुक्ति इस बात का संकेत है कि केंद्र सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की तीन सामान्य बीमा कंपनियों {नेशनल इंश्योरेंस कंपनी (National Insurance Company- NIC) और यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस और OIC) के विलय की योजना में कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहती है। केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने लगभग दो वर्षों से सार्वजनिक क्षेत्र की चार बीमा कंपनियों के निदेशकों की नियुक्ति रोक दी थी। इसके कारण इन चार सार्वजनिक कंपनियों में अधिकांश निदेशकों के पद खाली हैं। + +13782. बड़े निगम और मध्यम उद्यम, जो मानक श्रेणी में हैं, वे इस ऋण के लिये पात्र होंगे। + +13783. इस ऋण का उद्देश्य वेतनभोगी लोगों की चिकित्सा एवं अन्य आवश्यकताओं को पूरा करना है। यह ऋण रियायती दर पर प्रदान किया जाएगा और इसके तहत किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाएगा। + +13784. WHO के अनुसार, COVID-19 में CO का तात्पर्य कोरोना से है, जबकि VI विषाणु को, D बीमारी को तथा संख्या 19 वर्ष 2019 (बीमारी के पता चलने का वर्ष ) को चिह्नित करता है। + +13785. निजी क्षेत्रक बैंक. + +13786. वर्ष 2018 के मध्य में भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपनी जाँच रिपोर्ट में पाया कि यस बैंक ने निर्धारित विनियमन दिशा-निर्देशों तथा गोपनीयता के सिद्धांत का उल्लंघन किया है। + +13787. पिछले कुछ वर्षों में बैंकों द्वारा दिये जा रहे लोन गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (Non-performing assets-NPAs) में बदल गए हैं। यस बैंक द्वारा भी रिलायंस ग्रुप, IL&FS, DHFL, जेट एयरवेज़, एस्सार शिपिंग, कैफे कॉफी डे जैसी कंपनियों को लोन दिया गया, जो बाद में NPA में बदल गया। + +13788. सामान्य रूप से वह संपत्ति जिस पर ब्याज/मूलधन 90 दिनों तक बकाया हो, उसे गैर-निष्पादनकारी संपत्ति कहा जाता है। समयावधि के आधार पर इसे तीन वर्गों में बाँटा गया है- + +13789. इसके लिये आंशिक रूप से वर्ष 2004-05 से 2008-09 के क्रेडिट बूम को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है, जब विशेषकर देश के सरकारी बैंकों ने मुक्तहस्त से बिना कोई अधिक ना-नुकुर किये बड़ी मात्रा में लोगों को भारी भरकम कर्ज़ दिये। + +13790. वित्तीय वर्ष 2007-08 में वैश्विक वित्तीय संकट की शुरुआत हुई और 2011-12 के बाद अर्थव्यवस्था में मंदी आ गई, जिसकी वज़ह से राजस्व की प्राप्ति अपेक्षा से कम हुई। + +13791. बैंकों में NPA की वृद्धि से नए लोगों को ऋण मिलने में कठिनाई होती है, जिससे अर्थव्यवस्था का आकर सिकुड़ता है। + +13792. COVID-19 से संबंधित उपकरण एवं जाँच. + +13793. NIPER, फार्मास्युटिकल साइंसेज़ में पहला राष्ट्रीय स्तर का संस्थान है, जिसका उद्देश्य फार्मास्युटिकल साइंस में उन्नत अध्ययन एवं अनुसंधान के लिये उत्कृष्टता का केंद्र बनना है। + +13794. प्लाज़्मा दनकर्त्ताओं को 1031 या व्हाट्सएप 8800007722 पर कॉल करना होगा जिसके बाद सरकार दानकर्त्ताओं से संपर्क करके यह सुनिश्चित करेगी कि क्या वे प्लाज़्मा दान करने के लिये पात्र हैं अथवा नहीं। इसके अलावा वे महिलाएँ जो अपने संपूर्ण जीवनकाल में कभी भी गर्भवती हुई हो वो भी अपना प्लाज़्मा दान नहीं कर सकती है। + +13795. भारत में मौजूदा पीसीआर किट से स्क्रीनिंग के लिये ई-जीन और पुष्टि के लिये आरडीआरपी-जीन (Rdrp-Gene) का पता लगाते हैं। चित्रा जीनलैम्प-एन किट से जीन टेस्टिंग के खर्च में काफी कमी आएगी और स्क्रीनिंग टेस्ट के बिना ही पुष्टि हो सकेगी। + +13796. नाड़ी (NAADI) का पूर्ण रूप National Analytical Platform for Dealing with Intelligent Tracing, Tracking and Containment है। + +13797. SAMHAR परियोजना: + +13798. वर्ष 2003 में नेशनल सेंटर फॉर सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी, ER&DCI इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (तिरुवनंतपुरम) तथा भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स डिज़ाइन एवं प्रौद्योगिकी केंद्र (Centre for Electronics Design and Technology of India- CEDTI) का सी-डैक (C-DAC) में विलय कर दिया गया था। + +13799. कोविड-19 पॉज़िटिव मामलों और संदिग्धों के कारण जो स्थान संक्रमित हो गए हैं उन्हें यह कीटाणुरहित कर सकता है और वायु को प्रदूषण रहित कर सकता है। + +13800. PRAYAS कार्यक्रम के अंतर्गत स्थापित टेक्नोलॉजी बिज़नेस इनक्यूबेटर्स (Technology Business Incubators-TBI) नवप्रवर्तनकर्त्ताओं एवं उद्यमियों को ‘प्रूफ ऑफ कॉन्सेप्ट’ और विकासशील प्रोटोटाइप के लिये अनुदान के साथ-साथ अन्य सहायता भी प्रदान करते हैं। + +13801. चार सामान्य कोरोनावायरस के अतिरिक्त अन्य दो विशिष्ट निम्नलिखित कोरोनावायरस होते हैं- + +13802. SARS CoV से प्रभावित अधिकतर रोगियों में इन्फ्लूएंजा,बुखार,घबराहट,वात-रोग, सिरदर्द, दस्त, कंपन जैसी समस्याएँ पाई जाती हैं। + +13803. भारत में कोरोना वायरस के टीके के उन्नत चरणों के परीक्षण तथा मानवता के एक बड़े हिस्से को टीके की आपूर्ति करने की क्षमता है। + +13804. विज्ञान ज्योति (Vigyan Jyoti)नामक पहल की शुरुआत वर्ष 2019 में भारत सरकार ने छात्राओं को स्टेम (STEM- Science, Technology, Engineering and Mathematics) शिक्षा हेतु प्रोत्साहित करने के लिये की थी। इस पहल के माध्यम से वर्ष 2020-2025 तक 550 ज़िलों की 100 छात्राओं को प्रशिक्षित किया जाएगा। इन छात्राओं का चयन उनके अंकों के प्रतिशत के आधार पर किया जाएगा। इस पहल में कक्षा 9 से 12 तक की छात्राओं को शामिल किया जाएगा। + +13805. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के 50वें स्‍थापना दिवस के अवसर पर COVID-19 पर एक मल्टीमीडिया गाइड 'COVID कथा' भी लॉन्च की गई। + +13806. ‘बल्क अल्ट्रासोनिक’ निरीक्षण: + +13807. इसका उद्देश्य देश भर में अटल टिंकरिंग लैब (Atal Tinkering Lab-ATL) के छात्रों को रचनात्मकता एवं कल्पना के मुक्त प्रवाह के साथ 3D डिज़ाइन बनाने और संशोधित करने के लिये एक मंच प्रदान करना है। + +13808. स्कूल स्तर पर अटल इनोवेशन मिशन (AIM) भारत के सभी ज़िलों में अटल टिंकरिंग लैब (ATL) की स्थापना कर रही है। + +13809. फ्लो डायवर्टरों को जब एन्यूरिज़्म से ग्रस्‍त मस्तिष्‍क की धमनी में तैनात किया जाता है तब यह एन्‍यूरिजम से रक्‍त के प्रवाह को मोड़ देता है इससे रक्त प्रवाह के दबाव से इसके टूटने की संभावना कम हो जाती है। + +13810. डार्क फाइबर (Dark Fibre) के बारे में + +13811. यह भारत सरकार द्वारा कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत 1000 करोड़ रुपए की अधिकृत पूंजी के साथ स्थापित एक स्पेशल पर्पज़ व्हीकल (SPV) है। + +13812. इस वेधशाला का संचालन दूरस्थ रूप से भारतीय तारा भौतिकी संस्थान (IIA) द्वारा मैकडॉनल्ड्स वेधशाला, अमेरिका और यूरोपीय दक्षिणी वेधशाला (European Southern Observatory-ESO) के डेटा के साथ किया जाता है। + +13813. पृष्ठभूमि + +13814. तारों द्वारा बड़े पैमाने पर उत्क्षेपण और तारकीय विस्फोट भारी तत्त्वों की इस महत्त्वपूर्ण वृद्धि में प्राथमिक योगदानकर्त्ता हैं। हालाँकि लिथियम को एक अपवाद माना जाता है। + +13815. तथ्य के रूप में, सूर्य और पृथ्वी में सभी तत्त्वों की संरचना समान है। लेकिन, सूर्य में लिथियम की मात्रा पृथ्वी की तुलना में 100 गुनी कम है, हालाँकि दोनों का निर्माण एक साथ हुआ था। + +13816. भारतीय खगोल-भौतिकी संस्थान’के शोधकर्त्ताओं ने लीथियम से समृद्ध सैकड़ों विशाल तारों की खोज की. + +13817. मेजबान तारा ‘सफेद बौना’ (White Dwarf) तारा बनने की प्रक्रिया में भाग नहीं लेता है अत: अपनी स्थिरता के कारण मेजबान तारा ‘इंटरस्टेलर स्पेस’ में मौजूद तारों के वायुमंडल की रासायनिक संरचना में बदलाव ला सकता है। + +13818. सिद्धांत के अनुसार, ब्रह्मांड का लगभग 25% द्रव्यमान हीलियम से बना है जबकि 0.01% ड्यूटेरियम से तथा इससे भी कम लीथियम से निर्मित है। + +13819. यह पोर्टल पंचायत सदस्यों एवं अन्य लोगों के लाभ के लिये डेटाबेस विज़ुलाइज़ेशन एवं सेवाएँ प्रदान करेगा। यह परियोजना पंचायती राज मंत्रालय की ग्राम पंचायत विकास योजना प्रक्रिया में सहायता करने के लिये भू-स्थानिक सेवाएँ प्रदान करेगी। + +13820. GSAT-30 को यूरोपीय प्रक्षेपण यान एरियन- 5 VA-251 से भू-तुल्यकालिक कक्षा में स्थापित किया गया है। एरियन- 5 के माध्यम से GSAT- 30 के अतिरिक्त यूरोपीय संचार उपग्रह यूटेलसैट कनेक्ट (EUTELSAT KONNECT) को भी अंतरिक्ष में स्थापित किया गया है । + +13821. नाविक के अलावा यह चिपसेट व्यापक रूप से इस्तेमाल किये जाने वाले ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) के भी अनुकूल होगा। + +13822. यह बहुत छोटे लक्ष्यों और कम उड़ान वाले लक्ष्यों का पता लगाने में भी सक्षम है। + +13823. इस प्रणाली द्वारा पृथ्वी की निकटतम कक्षा (Lower Earth Orbit-LEO) के कार्यक्रमों जैसे-स्पेस डाॅकिंग (Space Docking), स्पेस स्टेशन तथा अन्य बड़े अभियानों जैसे- चंद्रयान, मंगल मिशन आदि में सहायता प्राप्त होगी। मानव मिशन के दौरान जब अंतरिक्षयान पृथ्वी की कक्षा में 400 किमी. की दूरी पर चक्कर लगाता है तो इस दौरान अंतरिक्षयान के लिये हर समय पृथ्वी पर किसी नियंत्रण केंद्र के संपर्क में रहना अनिवार्य होता है। ऐसे में IDRSS के अभाव में हमें कई अंतरिक्ष केंद्र बनाने पड़ेंगे या महत्त्वपूर्ण सूचनाओं के लिये अन्य देशों पर निर्भर रहना पड़ेगा। + +13824. चैलकेरे कर्नाटक के चित्रदुर्ग ज़िले में स्थित है। इसको तेल शहर (Oil City) कहा जाता है क्योंकि इसके आसपास कई खाद्य तेल मिलें हैं। चैलकेरे स्थानीय कुरुबा लोगों द्वारा बनाए गए कंबलों (बुने हुए कंबल) के लिये प्रसिद्ध है। इसे भारत के ‘दूसरे मुंबई’ के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि यह मुंबई के बाद खाद्य तेल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक/आपूर्तिकर्त्ता है। + +13825. चालू वित्त वर्ष 2019-20 में 17 मिशनों को शुरू करने की योजना बनाई गई है और इनमें से 6 मिशनों को 31 मार्च 2020 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। इसरो को हाल ही में अगले वित्त वर्ष के लिये लगभग 13,480 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया गया है। + +13826. ISRO ने आदित्य L-1 को 400 किलो-वर्ग के उपग्रह के रूप में वर्गीकृत किया है जिसे ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान- XL (PSLV- XL) से लॉन्च किया जाएगा। + +13827. सोलर सिस्टम पर पड़ने वाले प्रभाव उपग्रह की कक्षाओं को बदल सकते हैं या उनके जीवन को बाधित कर सकते हैं या पृथ्वी पर इलेक्ट्रॉनिक संचार को बाधित कर सकते हैं या अन्य गड़बड़ी पैदा कर सकते हैं। इसलिये अंतरिक्ष के मौसम को समझने के लिये सौर घटनाओं का ज्ञान होना महत्त्वपूर्ण है। + +13828. 22 अक्टूबर 2008 को इसरो ने देश का पहला चंद्र मिशन चंद्रयान-1 सफलतापूर्वक लॉन्च किया था। + +13829. राज्य सरकार की पहल. + +13830. इसने ई-गवर्नेंस के क्षेत्र में श्रीलंका,दक्षिण अफ्रीका और वियतनाम सरकार के साथ भी काम किया है। + +13831. ‘SKOCH गोल्ड अवॉर्ड’ (SKOCH Gold Award): + +13832. ‘मिसिंग पर्सन सर्च’ और ‘जनरेट व्हीकल NOC’ दोनों ही सेवाओं को लोगों द्वारा नागरिक ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से प्राप्त किया जा सकेगा। + +13833. वाहन के स्वामित्व के हस्तांतरण से पहले RTO के लिये आवश्यक प्रासंगिक NOC को कोई भी जनरेट और डाउनलोड कर सकता है। + +13834. पुनुरुत्पादक संख्या (Reproduction number- R0) जिसका उच्चारण ‘आर नाॅट’ (R naught) के रूप में किया जाता है, उन लोगों की संख्या को बताता है जिनमें संक्रमण से संबंधित बीमारी किसी एक संक्रमित व्यक्ति से फैलती है। उदाहरण के लिये यदि एक COVID-19 रोगी दो व्यक्तियों को संक्रमित करता है तो R0 मान दो होता है। + +13835. कर अधिकारियों के पास कर चोरी की जाँच करने के लिये पारगमन के दौरान किसी भी समय ई-वे बिल की जाँच करने का अधिकार होता है। + +13836. इसका उद्देश्य नागरिकों को COVID-19 से संबंधित सूचनाओं का समय-समय पर अपडेट प्रदान करना एवं इससे संबंधित नागरिकों के प्रश्नों का जवाब देना है। + +13837. यह वेब पोर्टल COVID-19 से संबंधित सूचनाएँ प्रदान करने के लिये लोगों के ईमेल संदेशों को प्राप्त करेगा एवं उनकी सटीकता से जाँच करने के बाद प्रतिक्रिया भेजेगा। + +13838. पहला बुलेटिन 1 अप्रैल, 2020 को शाम 6:30 बजे जारी किया गया था। + +13839. हालाँकि राज्य की राजनीतिक कार्यकारिणी को शामिल किये बिना राज्य सचिवों के साथ प्रधानमंत्री की सीधी बातचीत राज्य की राजनीतिक कार्यकारिणी को कमज़ोर कर रही है। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि यह पीएमओ जैसे संविधानेत्तर कार्यालय में शक्ति के संकेद्रण का कारण बन रहा है। यह मंच रियल टाइम उपस्थिति और प्रमुख हितधारकों के बीच विनिमय के साथ ई-पारदर्शिता एवं ई-जवाबदेही हेतु एक मज़बूत प्रणाली है। यह ई-शासन और सुशासन हेतु एक अभिनव परियोजना है। + +13840. 6 अगस्त, 2020 को भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास परिसंघ (Tribal Cooperative Marketing Development Federation of India-TRIFED) द्वारा 33 वाँ स्थापना दिवस मनाया गया तथा अपने स्वयं का आभासी कार्यालय का भी उदघाटन किया गया। आभासी कार्यालय में 81 ऑनलाइन वर्क स्टेशन एवं 100 अतिरिक्त कन्वर्जिंग स्टेट एजेंसी वर्क स्टेशन शामिल हैं जो आदिवासी लोगों को मुख्यधारा के विकास के करीब लाने की दिशा में देश भर में अपने भागीदारों के साथ मिलकर TRIFED की टीम के सदस्यों की मदद करेंगे। + +13841. उद्देश्य: जनजातीय लोगों का सामाजिक-आर्थिक विकास, आर्थिक कल्याण को बढ़ावा देना, ज्ञान, उपकरण और सूचना के साथ जनजातीय लोगों का सशक्तीकरण एवं क्षमता निर्माण करना। + +13842. इस बैठक का सामान्य विषय भारत में ‘ऑनलाइन विवाद समाधान’ को आगे बढ़ाने के प्रयास सुनिश्चित करने के लिये सहयोगपूर्ण रूप से कार्य करने की दिशा में बहु-हितधारक सह‍मति कायम करना था। + +13843. भारत एयर फाइबर सेवाएँ भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL) द्वारा भारत सरकार की डिजिटल इंडिया पहलों के एक हिस्से के रूप में प्रस्तुत की गई हैं और इनका लक्ष्य BSNL की मौजूदगी वाले स्थान से 20 किमी. के दायरे में वायरलेस इंटरनेट कनेक्टिविटी उपलब्ध कराना है। BSNL स्थानीय ‘टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर पाटनर्स’ (TIP) की सहायता से सस्ती इंटरनेट सेवाएँ उपलब्ध कराती है। + +13844. पूर्व में इसका नाम केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड था। + +13845. 'ओवर द टॉप' (Over The Top- OTT) एक ऐसा ऑनलाइन कंटेंट प्रदाता मीडिया सेवा है जो एक स्टैंडअलोन उत्पाद के रूप में स्ट्रीमिंग मीडिया की पेशकश करती है। इस शब्द का प्रयोग आमतौर पर वीडियो-ऑन-डिमांड प्लेटफॉर्म के संबंध में किया जाता है, लेकिन ऑडियो स्ट्रीमिंग, मैसेज सर्विस या इंटरनेट-आधारित वॉयस कॉलिंग सोल्यूशन के संदर्भ में भी इसका प्रयोग होता है। इसे इंटरनेट और स्मार्टफोन, टैबलेट, लैपटॉप/कंप्यूटर तक अभिगम्यता/पहुँच की आवश्यकता होती है। + +13846. सरकार ने सी-डॉट (C-Dot) के 36वें स्थापना दिवस (2019) के अवसर पर ग्रामनेट के ज़रिये सभी गाँवों में वाई-फाई उपलब्ध कराने की प्रतिबद्धता को दोहराया, जिसकी कनेक्टिविटी स्पीड 10 Mbps से 100 Mbps के बीच होगी। + +13847. भारतीय राष्ट्रीय भुगतान प्रणाली(National Payment Corporation of India- NPCI). + +13848. भाषा की उत्पत्ति चाहे जब भी जिस प्रक्रिया से भी हुई हो, व्यावहारिक तौर पर वह जिन दो प्रतीकात्मक रूपों में प्रकट होती है उन्हें हम ध्वनि प्रतीक या लिपि प्रतीक कह सकते हैं। इनमें ध्वनि प्रतीकों की उत्पत्ति और उनके प्रत्यक्ष होने में मानव-वागीन्द्रिय द्वारा उत्पत्ति, वायु के भौतिक गुण-धर्म द्वारा संवहन तथा कान के द्वारा ग्रहण की प्रक्रिया संपन्न होती है। ध्वनि प्रतीकों पर ही आश्रित लिपि प्रतीकों का किसी आधार (फलक, काग़ज़ आदि) पर अंकित विशेष चिह्नों के साथ हमारी आँखों के संयोग से प्रत्यक्षीकरण होता है।कुछ प्रमुख भाषाविज्ञानियों की परिभाषाओं को निम्नलिखित रूप मे देखा जा सकता है - + +13849. इस बॉण्ड में निवेश द्वारा प्राप्त ब्याज पर ‘आयकर अधिनियम, 1961’ (Income Tax Act, 1961) के तहत कर लागू होता है। + +13850. यदि इस बॉण्ड की तुलना वर्तमान में बाज़ार में उपलब्ध निवेश के अन्य विकल्पों से करें तो निवेशकों के लिये यह योजना अधिक लाभदायक एवं सुरक्षित थी। + +13851. कर से संबंधित विषय. + +13852. अलग-अलग मामलों में भारतीय एजेंसियों द्वारा जाँच किये जा रहे व्यक्तियों और कंपनियों को FinCEN के SARs के अंतर्गत लाया गया है । + +13853. शेल कंपनियाँ आमतौर पर कॉरपोरेट इकाइयाँ होती हैं जिनके पास कोई सक्रिय व्यवसाय संचालन या महत्त्वपूर्ण संपत्ति नहीं होती है। सरकार उन्हें संदेह के साथ देखती है क्योंकि उनमें से कुछ का उपयोग मनी लॉन्ड्रिंग, कर चोरी और अन्य अवैध गतिविधियों के लिये किया जा सकता है। + +13854. ये रिपोर्ट हर महीने निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से प्राप्त की जाती हैं। + +13855. प्रक्रिया: + +13856. SAR ने भारतीय संस्थाओं और व्यक्तियों के कई मामलों में, कथित अनियमितताओं के अपने वित्तीय इतिहास का उल्लेख किया है। + +13857. जीएसटी क्षतिपूर्ति उपकर (Cess) के 40,000 करोड़ रुपए संबंधित रिज़र्व फंड में जमा नहीं किये गए। + +13858. इसके अलावा वर्ष 2010-20 के बीच एकत्रित कच्चे तेल पर उपकर का प्रतिनिधित्व करते हुए 1,24,399 करोड़ रुपए, तेल उद्योग विकास बोर्ड (नामित रिज़र्व फंड) को हस्तांतरित नहीं किये गए थे और इसे संचित निधि में रखा गया था। + +13859. भारत की संचित निधि + +13860. इस निधि से सभी सरकारी व्यय होते हैं (असाधारण मदों को छोड़कर, जो आकस्मिकता निधि या सार्वजनिक खाते से मिलते हैं) और संसद से प्राधिकरण के बिना निधि से कोई राशि नहीं निकाली जा सकती। + +13861. इसे अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष दोनों करों पर लगाया जा सकता है। + +13862. यह अतिरिक्त सेवाओं या कमोडिटी मूल्य वृद्धि की लागत को कम करने के लिये लगाया जाता है। + +13863. इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार राज्यों को GST का मुआवजा देने के लिये बाज़ार ऋण लेने पर भी विचार कर रही है। साथ ही मुआवज़े की समय सीमा के विस्तार पर भी विचार कर रही है। + +13864. कंपनियों के लिये कॉरपोरेट कर की आधार दर 30% से घटाकर 22% कर दी गई है। इससे कॉरपोरेट कर की प्रभावी दर 34.94% से कम होकर 25.17% पर आ जाएगी, जिसमें अधिभार और उपकर शामिल हैं। इसके अतिरिक्त इन कंपनियों को न्यूनतम वैकल्पिक कर (Minimum Alternative Tax- MAT) देने की भी आवश्यकता नहीं है। + +13865. जीएसटी अधिनियम के तहत यदि राज्यों का वास्तविक राजस्व अनुमानित राजस्व से कम संग्रहित होता है, तो इस अंतर की भरपाई की जाएगी। + +13866. इस बैठक में राज्यों द्वारा बाज़ार से उधार लेने तथा अतिरिक्त संसाधन जुटाने के तरीकों को जीएसटी परिषद द्वारा निश्चित किया जाना तय किया गया। जिसकी वापसी छठे वर्ष या उसके बाद के वर्षों में उपकर के संग्रह द्वारा की जा सकती है। + +13867. छोटे करदाताओं द्वारा फरवरी, मार्च तथा अप्रैल माह में जीएसटी रिटर्न दाखिल करने में हुई देरी के बावज़ूद 9 प्रतिशत तक कम दर पर किया गया है, बशर्ते रिटर्न सितंबर 2020 तक दाखिल किया जाना चाहिये। + +13868. सभी करदाता (विशिष्ट अधिसूचित वस्तुओं को निर्यात करने वालों को और GST कंपोजीशन स्कीम का विकल्प चुनने वालों को छोड़कर) GST क्षतिपूर्ति उपकर के संग्रहण और केंद्र सरकार को इसके प्रेषण के लिये उत्तरदायी हैं। + +13869. हालाँकि लॉकडाउन के दौरान भी लगभग 40 प्रतिशत ‘अतिआवश्यक’ श्रेणी की व्यावसायिक गतिविधियों को चालू रखने की अनुमति दी गई थी, परंतु मज़दूरों के पलायन, आपूर्ति श्रृंखला (Supply Chain) और परिवहन के प्रभावित होने आदि कारणों से अपेक्षित राजस्व की प्राप्ति नहीं की जा सकी। + +13870. GST एक अप्रत्यक्ष कर है जिसे भारत को एकीकृत साझा बाज़ार बनाने के उद्देश्य से लागू किया गया है। यह निर्माता से लेकर उपभोक्ताओं तक वस्तुओं एवं सेवाओं की आपूर्ति पर लगने वाला एकल कर है। + +13871. न्यूनतम वैकल्पिक कर की दर में कटौती + +13872. उपरोक्त सुधारों का राजस्व प्रभाव निगम कर के लिये 1.45 लाख करोड़ रुपए और व्यक्तिगत आयकर के 23,200 करोड़ रुपए आंका गया है। + +13873. डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देना + +13874. Dust Bowl : धूल भरी तेज़ आँधियों की एक अवधि को यह संज्ञा दी गई है जिसने 1930 के दशक में अमेरिका और कनाडा के प्रेयरी घास मैदानों की पारिस्थितिकी और कृषि को तबाह कर दिया था। + +13875. यह दूसरे देशों के साथ किसी एक देश के आर्थिक व्यवहार का विश्लेषण करने और उसे समझने हेतु महत्त्वपूर्ण सूचना प्रदान करता है। भुगतान शेष के मुख्य घटक + +13876. भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार को ‘भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934’ और विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा), 1999 के तहत विनियमित किया जाता है। + +13877. कई बार एक देश का केंद्रीय बैंक विनिमय दर में अत्यधिक उतार-चढ़ाव को कम करने के लिये हस्तक्षेप करता है। किंतु आर्थिक जगत में केंद्रीय बैंक अथवा सरकार के अत्यधिक हस्तक्षेप को उचित नहीं माना जाता है। + +13878. NEER विदेशी मुद्राओं के संदर्भ में घरेलू मुद्रा के द्विपक्षीय विनिमय दरों का भारित औसत होता है। जबकि REER मुद्रास्फीति के प्रभावों के लिये समायोजित अन्य प्रमुख मुद्राओं के सापेक्ष घरेलू मुद्रा का भारित औसत है। + +13879. मुद्रा का मूल्यह्रास (Depreciation) और अभिमूल्यन (Appreciation) + +13880. GDP केवल उन वस्तुओं और सेवाओं को प्रतिबिंबित करता है जो विपणन योग्य हैं और जिनके बाज़ार हैं। जिसका बाज़ार नहीं होता, उसे GDP में शामिल नहीं किया जाता। + +13881. GDP और GVA में मुख्य अंतर + +13882. राजकोषीय घाटे में वृद्धि के कारण: + +13883. राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति अनिवार्य रूप से राजस्व, व्यय और घाटा आदि जैसे राजकोषीय मापदंडों के सरकार के पूर्वानुमान की सटीकता को संदर्भित करता है। दूसरे शब्दों में यदि सरकार के बजट में अनुमानित कर राजस्व और वास्तविक कर राजस्व में बड़ा अंतर आता है तो उसे खराब राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति कहा जाएगा। + +13884. चूँकि बजट की गणना नॉमिनल GDP के आधार पर की जाती है, इसलिये नॉमिनल GDP में व्यापक परिवर्तन का असर संपूर्ण आगामी बजट पर प्रदर्शित होगा। उदाहरण के लिये वर्तमान में सरकार के अनुमान के अनुसार, प्राप्ति के कोई आसार नही दिख रहे हैं नतीज़तन या तो राजकोषीय घाटा बजट आँकड़ों से अधिक हो जाएगा या व्यय आँकड़ा बजट की तुलना में बहुत कम होगा। + +13885. डेरीवेटिव (Derivative) एक वित्तीय साधन है जो अंतर्निहित परिसंपत्तियों से इसका मूल्य प्राप्त करता है। + +13886. हालांकि, अप्रैल में CPI आँकड़ों को मार्च महीने के आँकड़ों के आधार पर संशोधित कर 5.84% कर दिया गया था। + +13887. FPI में हुई यह वृद्धि रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड (Reliance Industries Limited- RIL) द्वारा जारी राइट्स इश्यू (Rights Issue से 53,124.20 करोड़), कोटक महिंद्रा बैंक (Kotak Mahindra Bank) में हिस्सेदारी की बिक्री और वर्तमान महामारी के बीच भी बाज़ार के प्रति लोगों की सकारात्मक सोच में वृद्धि को भी माना जा सकता है। + +13888. सामान्यतः राइट्स इश्यू एक शेयर धारक को कंपनी में उसके मौजूदा शेयर के अनुपात में और बाज़ार की तुलना में कम मूल्य पर जारी किये जाते हैं। + +13889. केंद्र सरकार द्वारा यह निर्णय COVID-19 के कारण उत्पन्न हुए आर्थिक दबाव के बीच भारतीय कंपनियों के ‘अवसरवादी अधिग्रहण’ (Opportunistic Takeovers/Acquisitions) को रोकने के लिये लिया गया है। + +13890. हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2014 तक भारतीय कंपनियों में कुछ चीनी निवेश मात्र 1.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था, जिसमें से अधिकांश चीन की सरकारी कंपनियों द्वारा इंफ्रास्ट्रक्चर (Infrastructure) क्षेत्र में किया गया निवेश था। + +13891. फरवरी 2020 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन की कई बड़ी कंपनियों जैसे-अलीबाबा (Alibaba) और टेंसेंट (Tencent) ने कम-से-कम 92 भारतीय स्टार्टअप में निवेश कर रखा है। + +13892. हानि और चुनौतियाँ: + +13893. उद्योग संवर्द्धन और आतंरिक व्यापार विभाग द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, ऐसे सभी विदेशी निवेश के लिये सरकार की अनुमति की आवश्यकता होगी जिनमें निवेश करने वाली संस्थाएँ या निवेश से लाभ प्राप्त करने वाला व्यक्ति भारत के साथ थल सीमा साझा करने वाले देशों से हो। + +13894. केंद्र सरकार द्वारा यह निर्णय COVID-19 के कारण उत्पन्न हुए आर्थिक दबाव के बीच भारतीय कंपनियों के ‘अवसरवादी अधिग्रहण’ (Opportunistic Takeovers/Acquisitions) को रोकने के लिये लिया गया है। + +13895. हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2014 तक भारतीय कंपनियों में कुछ चीनी निवेश मात्र 1.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था, जिसमें से अधिकांश चीन की सरकारी कंपनियों द्वारा इंफ्रास्ट्रक्चर (Infrastructure) क्षेत्र में किया गया निवेश था। + +13896. फरवरी 2020 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन की कई बड़ी कंपनियों जैसे-अलीबाबा (Alibaba) और टेंसेंट (Tencent) ने कम-से-कम 92 भारतीय स्टार्टअप में निवेश कर रखा है। + +13897. हानि और चुनौतियाँ: + +13898. अन्य राजकोषीय तथ्य. + +13899. इसके कारण विश्व के अधिकतर देशों में लोगों के सामने रोज़गार का संकट तथा अपस्फीति (Deflation) एवं उत्पादन का संकुचन हुआ। + +13900. देश के कई हिस्सों में ‘नो रेंट’ (No Rent) अभियान शुरू किये गए और बिहार एवं पूर्वी यूपी में किसान सभाएँ शुरू हुईं। + +13901. पार्टिसिपेटरी नोट्स (P- Notes):-पी-नोट्स या ऑफशोर डेरिवेटिव इंस्ट्रूमेंट्स (ODIs) पंजीकृत एफ.पी.आई. (FPIs) द्वारा विदेशी निवेशकों, हेज फंड और विदेशी संस्थानों को जारी किये जाते हैं,जो सेबी में पंजीकृत हुए बिना भारतीय शेयर बाज़ार में निवेश करना चाहते हैं। + +13902. उदाहरण के लिये वियतनाम में हो ची मिन्ह सिटी मानसून व तूफान के कारण बाढ़ से प्रभावित है जहाँ अनुकूलन के बिना 100 वर्षों की बाढ़ से बुनियादी ढाँचे को होने वाला प्रत्यक्ष नुकसान 2050 तक 1 बिलियन डॉलर तक बढ़ सकता है। + +13903. भारतीय अर्थव्यवस्था को मिज़री इंडेक्स (Misery Index) के आधार पर मापने की मांग. + +13904. रवींद्रनाथ टैगोर (रोबिंद्रोनाथ ठाकुर) का जन्म ब्रिटिश भारत में बंगाल प्रेसिडेंसी के कलकत्ता (अब कोलकाता) में 07 मई, 1861 को हुआ था। ब्रह्म समाज के एक प्रमुख नेता देवेंद्रनाथ टैगोर के पुत्र थे। ब्रह्म समाज 19वीं शताब्दी के बंगाल में एक नया धार्मिक संप्रदाय था जिसने हिंदू धर्म के अंतिम अद्वैतवादी दर्शन को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया था। यह हिंदू धर्म का पहला सुधार आंदोलन था। + +13905. रवींद्रनाथ टैगोर की अन्य कृतियों में काबुलीवाला, मास्टर साहब और पोस्ट मास्टर आज भी लोकप्रिय कहानियाँ हैं। उन्होंने भारत (जन गण मन) और बांग्लादेश (आमार सोनार बांग्ला) का राष्ट्रगान लिखा है। वह ऐसा करने वाले एकमात्र कवि हैं। + +13906. भारतीय प्रधानमंत्री ने डॉ. बी. आर. अंबेडकर (Dr. B. R. Ambedkar) को उनकी 129वीं जयंती (14 अप्रैल) पर श्रद्धांजलि दी। + +13907. भारत सरकार अधिनियम, 1919 का प्रस्ताव तैयार कर रही साउथबोरो समिति (Southborough Committee) के समक्ष अंबेडकर ने अछूतों एवं अन्य धार्मिक समुदायों के लिये अलग निर्वाचक मंडल एवं उनको आरक्षण देने का तर्क दिया था। + +13908. रुपए की समस्या: इसका मूल और इसका समाधान (The Problem of the Rupee: Its Origin and Its Solution) + +13909. वर्ष 1932 में ब्रिटिश सरकार ने सांप्रदायिक पंचाट (Communal Award) में ‘शोषित वर्ग’ के लिये एक अलग निर्वाचक मंडल के गठन की घोषणा की। जिसका महात्मा गांधी ने विरोध किया। परिणामस्वरूप 24 सितंबर 1932 को अंबेडकर (हिंदुओं में शोषित वर्गों की ओर से) और मदन मोहन मालवीय (शेष हिंदुओं की ओर से) के बीच पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर किये गए। + +13910. वर्ष 1990 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। + +13911. वर्ष 1931 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से बी.एस.सी की डिग्री हासिल की जहाँ उन्होंने अपने साथ होने वाले भेदभाव के मुद्दों की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिये सम्मेलनों का आयोजन किया तथा महात्मा गांधी द्वारा शुरू किये गए अस्पृश्यता विरोधी आंदोलन में भी भाग लिया। + +13912. वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान वे भारत के रक्षा मंत्री थे जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ था। + +13913. विरासत: + +13914. भक्ति आंदोलन का विकास तमिलनाडु में सातवीं एवं नौवीं शताब्दी के बीच हुआ। + +13915. माना जाता है कि उनका जन्म वाराणसी में एक मोची परिवार में हुआ था। एक ईश्वर के प्रति उनकी आस्था और निष्पक्ष धार्मिक कविताओं के कारण उन्हें प्रमुखता मिली। + +13916. वर्ष 1920 में मूक नायक के प्रकाशन ने भारत में जाति एवं अस्पृश्यता पर सामाजिक-राजनीतिक विमर्श में विशिष्ट बदलाव को प्रेरित किया। + +13917. डोगरा वंश के महाराजा गुलाब सिंह ने वर्ष 1846 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ 'अमृतसर की संधि' पर हस्ताक्षर किये। इस संधि के तहत वर्ष 1846 में उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी को कश्मीर और कुछ अन्य क्षेत्रों के बदले 75 लाख रुपए दिये। + +13918. शेख मुजीबुर रहमान बांग्लादेश के संस्थापक नेता एवं प्रथम राष्ट्रपति थे। उन्हें बांग्लादेश में राष्ट्रपिता कहा जाता है। वह बांग्लादेश के लोगों के बीच ‘बंगबंधु’ के रूप में लोकप्रिय थे। वह अवामी लीग के नेता थे जिसकी स्थापना वर्ष 1949 में पूर्वी पाकिस्तान की एक प्रमुख राजनीतिक पार्टी के रूप में हुई थी। शेख मुजीबुर रहमान ने पूर्वी पाकिस्तान को राजनीतिक स्वायत्तता दिलाने और बाद में बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन तथा वर्ष 1971 में बांग्लादेश लिबरेशन युद्ध में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। + +13919. 1970-71 के संसदीय चुनावों में पूर्वी पाकिस्तान के अलगाववादी दल अवामी लीग ने उस क्षेत्र को आवंटित सभी सीटें जीत लीं। + +13920. + +13921. सांगठनिक ढाँचा:-22वें विधि आयोग का गठन, आधिकारिक गजट में सरकारी आदेश के प्रकाशन की तिथि से 3 वर्ष की अवधि के लिये किया जाएगा। इसमें निम्मलिखित शामिल होंगे‑ + +13922. हालांकि वर्ष 2004 में हिंद महासागर में आयी सुनामी के समय भारत सरकार ने प्रधानमंत्री राष्ट्रीय आपदा कोष के तहत किसी भी प्रकार की विदेशी सहायता को लेने से इनकार कर दिया था। हालाँकि इस दौरान सहायता के इच्छुक राष्ट्र, विदेशी नागरिक आदि स्वयंसेवी संस्थाओं जैसे अन्य माध्यमों से सहायता भेज सकते थे। + +13923. ICMR जैव चिकित्सा अनुसंधान के समन्वय और प्रचार के लिये दुनिया के सबसे पुराने चिकित्सा अनुसंधान निकायों में से एक है जिसका मुख्यालय नई दिल्ली में है। + +13924. राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण(NPPA) भारत सरकार के रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है। जिसका अध्यक्ष भारतीय प्रशासनिक सेवा के सचिव स्तर का अधिकारी होता है। + +13925. ‘द्वीपों का समग्र विकास’ कार्यक्रम + +13926. विनियामक प्राधिकरण. + +13927. साथ ही अध्यादेश में उल्लेख किया गया है कि SEC को उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के आधार एवं प्रक्रिया के अलावा किसी अन्य आधार पर नहीं हटाया जा सकेगा। + +13928. केंद्रीय दत्तक संसाधन प्राधिकरण को किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम,2015 के प्रावधानों के तहत 15 जनवरी, 2016 को एक सांविधिक निकाय के रूप में नामित किया गया था। + +13929. मुख्य बिंदु: + +13930. अधिकरण किसी भी मामले को तय करने के संदर्भ में ‘प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों’ का पालन करता है। + +13931. देश का सबसे पुराना अधिकरण होने के कारण इसे 'मदर ट्रिब्यूनल' भी कहा जाता है। + +13932. इनके अलावा अन्य 4 सदस्यों में शक्तिकांत दास (भारत सरकार के पूर्व सचिव) और डॉ. अनूप सिंह (सहायक प्रोफेसर, जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय, वाशिंगटन डी.सी., अमेरिका) पूर्णकालिक सदस्य तथा डॉ. अशोक लाहिड़ी (अध्यक्ष, बंधन बैंक) और डॉ. रमेश चंद्र (सदस्य, नीति आयोग) इसके अंशकालिक सदस्य मनोनीत किये गए हैं। + +13933. इसकी 17 नियमित पीठें (Benches) हैं, जिनमें से 15 उच्च न्यायालयों की मुख्य पीठों से और शेष दो जयपुर और लखनऊ से संचालित होती हैं। + +13934. अनुच्छेद 323B राज्य विधानमंडलों को किसी कर के उद्ग्रहण, निर्धारण, संग्रहण एवं प्रवर्तन तथा अनुच्छेद 31A के दायरे में शामिल भूमि सुधारों से संबंधित विषयों में अधिकरण स्थापित करने का अधिकार देता है। + +13935. यह भारत का एक सैन्य अधिकरण है। इसकी स्थापना सशस्त्र बल अधिकरण अधिनियम, 2007 के तहत की गई थी। + +13936. जज एडवोकेट जनरल (JAG), जो सेना का विधिक व न्यायिक प्रमुख होता है, भी प्रशासनिक सदस्य के रूप में नियुक्त किया जा सकता है। + +13937. पर्यावरण संरक्षण और वनों एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी और शीघ्र निपटान के लिये राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना वर्ष 2010 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 के तहत एक सांविधिक निकाय के रूप में की गई थी। + +13938. आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 252 में यह प्रावधान किया गया है कि केंद्र सरकार अधिनियम में प्रदत्त शक्‍तियों का प्रयोग करने और कृत्‍यों का निर्वहन करने के लिये उतने न्‍यायिक सदस्‍यों और लेखा सदस्‍यों से, जितना वह ठीक समझे, एक अपीलीय अधिकरण का गठन करेगी। + +13939. इसका उद्देश्य अन्य पिछड़े वर्ग की सूची में नागरिकों को सम्मिलित करने और हटाने संबंधी शिकायतों को निपटाने तथा उनकी जाँच के बारे में सरकार को सलाह देना है। + +13940. कार्यकालतीन वर्ष + +13941. राजनीतिक दलों को सरकारी खर्च पर चुनाव लड़ने का समर्थन करने की बात कही गई। + +13942. + +13943. चीन- 42वाँ स्थान + +13944. इस सूचकांक में अंतिम स्थान यमन (Yemen) को प्राप्त हुआ है + +13945. विकासशील देशों की आधी से अधिक जनसंख्या अभी भी कृत्रिम बुद्धिमत्ता संबंधी आधारभूत डिजिटल कौशल से वंचित है तथा विभिन्न देशों के बीच डिजिटल कौशल संबंधी योग्यता के अंतर में वृद्धि हुई है। + +13946. वर्ष 2022 तक चीन एक स्थायी अंतरिक्ष स्टेशन का संचालन करने तथा चंद्रमा पर 6 सदस्यों के एक दल को भेजने की योजना बना रहा है। + +13947. अपोलो 11 मिशन के अंतरिक्ष यात्रियों ने एक संकेत के साथ चंद्रमा पर एक अमेरिकी ध्वज छोड़ा था। + +13948. फिर 1990 के दशक में अमेरिका ने रोबोट मिशन क्लेमेंटाइन (Robotic Missions Clementine) और लूनर प्रॉस्पेक्टर (Lunar Prospector) के साथ चंद्रमा पर अन्वेषण फिर से शुरू किया। वर्ष 2009 में, इसने लूनर रिकॉनाइसेंस ऑर्बिटर (Lunar Reconnaissance Orbiter- LRO) और लूनर क्रेटर ऑब्ज़र्वेशन एंड सेंसिंग सैटेलाइट (Lunar Crater Observation and Sensing Satellite- LCROSS) के प्रक्षेपण के साथ रोबोट लूनर मिशन की एक नई शृंखला की शुरूआत की। + +13949. शनि मिशन. + +13950. मंगल मिशन कार्यक्रम. + +13951. वर्ष 2014 में क्यूरियोसिटी रोवर यान ने जीवन के आधारभूत तत्त्व जटिल कार्बनिक अणुओं की खोज की। + +13952. PUNCH का पूरा नाम ‘Polarimeter to Unify the Corona and Heliosphere’ है। यह सूर्य के बाहरी कोरोना से सौर हवा में कणों के संक्रमण के अध्ययन पर केंद्रित है। + +13953. सनराइज़ (SunRISE) का पूर्ण रूप ‘सन रेडियो इंटरफेरोमीटर स्पेस एक्सपेरिमेंट’ (Sun Radio Interferometer Space Experiment) है। + +13954. जहाँ विशाल सौर कण उत्पन्न होते हैं उनके पिनपॉइंट के आधार पर छह क्यूबसैट एक साथ मिलकर 3D मैप विकसित करेंगे जिससे यह पता लगाया जा सके कि वे अंतरिक्ष में बाहर की ओर विस्तार करते हुए कैसे विकसित होते हैं। + +13955. SpaceX द्वारा दुनिया में ‘वाणिज्यिक अंतरिक्ष यात्रा’ की शुरुआत. + +13956. ISS पहुँचने के साथ ही यात्रा का प्रथम चरण पूरा हो गया है परंतु मिशन को तभी सफल घोषित किया जाएगा जब अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी पर सुरक्षित लौट आएंगे। + +13957. नासा ने अपने 'वाणिज्यिक क्रू कार्यक्रम' (Commercial Crew Programme- CCP) के तहत निजी क्षेत्र की कंपनियों SpaceX और बोइंग (Boeing) के साथ अंतरिक्ष यान निर्माण के लिये समझौते किया था। अमेरिका द्वारा भविष्य में अंतरिक्ष यान का उपयोग करने के लिये लगभग 7 बिलियन डॉलर का अनुबंध किया गया था। + +13958. बेहनकेन (Behnken) और हर्ले (Hurley) जिन्हें ‘डेमो -2’ मिशन के लिये प्रशिक्षित किया जा रहा है, अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station) पर पहुँचकर एक से चार महीने तक वहाँ रहेंगे। + +13959. वाणिज्यिक क्रू कार्यक्रम’ + +13960. स्पेसएक्स ने पहली बार फरवरी 2018 में 230-फुट लंबे (70-मीटर) फॉल्‍कन हैवी को अंतरिक्ष में भेजा था। इसके पश्चात वर्ष 2019 के अप्रैल माह में, उसने अपने पहले ग्राहक, सऊदी अरब के वाणिज्यिक उपग्रह ऑपरेटर अरबसैट (Arabsat) के लिये फॉल्‍कन हैवी लॉन्च किया। + +13961. स्टारशिप स्पेसएक्स के फाल्कन प्रक्षेपण वाहन की तुलना में कम लागत में तथा अधिक दूरी तक प्रक्षेपित कर सकता है तथा यह चालक दलों एवं आवश्यक वस्तुओं दोनों को, अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) तक पहुँचा सकता है। + +13962. चीनी वैज्ञानिकों के एक अध्ययन दल ने ‘मिसियस’ (Micius) क्वांटम उपग्रह का प्रयोग कर विश्व में पहली बार ‘क्वांटम इंटेंगलमेंट’ (Quantum Entanglement) पर आधारित लंबी दूरी के बीच ‘क्वांटम क्रिप्टोग्राफी’ (Quantum Cryptography) को सफलतापूर्वक स्थापित किया गया है, जो क्वांटम दूरसंचार के व्यावहारिक इस्तेमाल में एक महत्त्वपूर्ण प्रगति माना जा रहा है। + +13963. विभिन्न QKD प्रोटोकॉल को यह सुनिश्चित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है कि संचार में काम आने वाले फोटॉनों में किसी प्रकार की हेराफेरी संपूर्ण संचार प्रणाली को रोक दे। + +13964. ऑप्टिकल आधारित QKD का उपयोग कर केवल कुछ किलोमीटर की दूरी तक संचार स्थापित किया जा सकता है, अत: इस समस्या का समाधान करने के लिये उपग्रह आधारित क्वांटम संचार प्रणाली पर कार्य किया जा रहा है। + +13965. सुरक्षा का मुद्दा: + +13966. वर्ष 2013 में एडवर्ड स्नोडेन द्वारा पश्चिमी सरकारों द्वारा की जाने वाली इंटरनेट निगरानी के खुलासे के बाद संचार को अधिक सुरक्षित बनाने के लिये चीन जैसे देशों ने क्वांटम क्रिप्टोग्राफी में अनुसंधान बढ़ाने को प्रोत्साहित किया है। + +13967. चीन के अन्य महत्त्वपूर्ण मिशन: + +13968. यद्यपि यह प्रक्षेपण विफल रहा किंतु यह चीन में तेज़ी से बढ़ते वाणिज्यिक अंतरिक्ष उद्योग (Commercial Space Industry) को दर्शाता है। + +13969. वर्ष 2017 में चीनी मुख्य पत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, चीन का वाणिज्यिक अंतरिक्ष उद्योग भारत से पीछे है। + +13970. अंतरिक्ष पर्यटन एवं भारत: + +13971. आर्थिक तौर पर कुशल लॉन्च वाहनों के अलावा भारत को निजी क्षेत्र की भागीदारी के माध्यम से अंतरिक्ष पर्यटन के क्षेत्र में भी संभावनाओं की तलाश करनी चाहिये। + +13972. सिंगापुर: यह पूर्वी एशियाई देश अपने वैध वातावरणीय क्षेत्र, कुशल जनशक्ति की उपलब्धता एवं भूमध्यरेखीय स्थान की अनुकूलता के आधार पर अंतरिक्ष उद्यमिता के एक केंद्र के रूप में खुद को पेश कर रहा है। + +13973. यह ‘एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन’ के बाद इसरो की दूसरी व्यावसायिक शाखा है। एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन को मुख्य रूप से वर्ष 1992 में इसरो के विदेशी उपग्रहों के वाणिज्यिक प्रक्षेपण की सुविधा हेतु स्थापित किया गया था। + +13974. संभावित खतरनाक क्षुद्रग्रह + +13975. नियर-अर्थ ऑब्जेक्ट (NEO): + +13976. मिशन को मिल्की वे गैलेक्सी में विशाल सितारों की अनसुलझी पहेलियों और उनके निर्माण के बारे में जवाब मिलेंगे। पहली बार मिशन दो विशिष्ट प्रकार के नाइट्रोजन आयनों की उपस्थिति का पता लगाएगा और मैप करेगा। ये आयन उन स्थानों को प्रकट करने में मदद करेंगे जहां सुपरनोवा विस्फोटों से बड़े पैमाने पर तारों ने गैस के बादलों को फिर से जमाने में मदद की। + +13977. आयो वॉल्केनो ऑब्ज़र्वर (Io Volcano Observer-IVO): + +13978. इसका उद्देश्य वरुण ग्रह के बर्फीले उपग्रह ट्राइटन (Triton) का अवलोकन करना है ताकि वैज्ञानिक सौरमंडल में रहने योग्य ग्रहों के विकास को समझ सकें। + +13979. इन अभियानों से सौरमंडल के कुछ सबसे सक्रिय और जटिल तथ्यों के बारे में मानव समझ को बढ़ाने में सहायता मिलेगी। + +13980. नासा द्वारा इस दूरबीन को वर्ष 2008 में लाॅन्च किया गया थाI + +13981. एक तारे और पृथ्वी के बीच एक ग्रह के गुजरने को पारगमन (Transit) कहा जाता है। + +13982. खोजे गए ग्रहों में KIC-7340288b एक अत्यंत दुर्लभ ग्रह हैI + +13983. सौर मंडल में इस ग्रह की कक्षा (Orbit) बुध ग्रह की कक्षा से बड़ी है। + +13984. सेरेस से संबंधित इस शोध को ‘नेचर एस्ट्रोनॉमी’ (Nature Astronomy), ‘नेचर जियोसाइंस’ (Nature Geoscience) और ‘नेचर कम्युनिकेशंस’ (Nature Communications) नामक पत्रिकाओं में प्रकाशित किया गया है। + +13985. WASP-76b जुपिटर के समान एक विशालकाय गैसीय ग्रह है किंतु अपने तारे के चारों ओर बहुत छोटी कक्षा (दो दिनों से भी कम) में चक्कर लगाता है। + +13986. सबसे प्रसिद्ध लघु-अवधि वाले धूमकेतुओं में से एक धूमकेतु हैली (Halley) है जो 76 वर्षों के अंतराल में एक बार दिखाई देता है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2062 में हैली पुनः दिखाई देगा। + +13987. नासा की ‘जेट प्रोपल्शन लैबोरेटरी’के अनुसार इस क्षुद्रग्रह का व्यास 250-570 मीटर के बीच हो सकता है। इसके घूर्णन का अवलोकन किया गया है। यह प्रत्येक 14.50 दिनों में अपनी धुरी पर एक चक्कर पूरा करता है। + +13988. ANITA किसी भी प्रकार के न्यूट्रिनो का पता लगाने के लिये नासा की पहली वेधशाला है। + +13989. न्यूट्रीनो उच्च-ऊर्जा वाले कण हैं जो मानव शरीर के लिये अधिक खतरनाक नहीं होते हैं और बिना किसी को पता चले ये अधिक ठोस वस्तुओं से भी गुजरते हैं। + +13990. यही प्रभाव प्रकाश स्रोत और प्रेक्षक के बीच आपेक्षिक गति के कारण भी होता है, जिसमे प्रेक्षक को प्रकाश की आवृत्ति में परिवर्तन का अनुभव नही होता है क्योंकि प्रकाश की गति की तुलना में उन दोनों की आपेक्षिक गति बहुत ही कम होती है। + +13991. जैव प्रौद्योगिकी: + +13992. इस मिशन का उद्देश्य सूर्य की सतह पर लगातार उड़ने वाले आवेशित कणों, सौर हवा, सूर्य के अंदर के चुंबकीय क्षेत्र का अध्ययन करना है। + +13993. इन कणों की खोज से आकाशगंगा में तारों के निर्माण की घटना के बारे में पता लगाया जा सकता है। साथ ही उल्कापिंड में सिलिकन कार्बाइड की उपस्थिति से स्टारडस्ट (Stardust) का भी पता चला है। + +13994. सिलिकन कार्बाइड एक अर्द्धचालक पदार्थ है,इसका उपयोग अर्द्धचालक उपकरणों के निर्माण में किया जाता है। + +13995. इस वर्ष का पहला सुपरमून 9 मार्च को हुआ था और अंतिम 7 मई, 2020 को होगा। + +13996. आकाशगंगा XMM-2599 ने ब्रह्माण्ड की आयु 1 अरब वर्ष होने से पूर्व ही 300 बिलियन तारों (सोलर मास) का विकास कर लिया था और ब्रह्माण्ड की आयु 1.8 अरब वर्ष होने तक यह निष्क्रिय भी हो गई। खगोलविदों ने कुछ वर्ष पूर्व ZF-COSMOS-20115 नामक एक अन्य विशालकाय आकाशगंगा की भी खोज की थी जिसकी उत्पत्ति ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के 1.7 अरब वर्ष बाद हुई थी किंतु अचानक इसमें तारों का निर्माण बंद हो गया। हालाँकि ZF-COSMOS-20115 में XMM-2599 के सोलर मास की तुलना में केवल 170 अरब सोलर मास मौजूद थे। + +13997. यह वह क्षेत्र है जिसके माध्यम से रेडियो संचार और GPS तरंगें संचार करती हैं। + +13998. WHO का अनुमान है कि दुनिया भर में 70 मिलियन से अधिक लोग हेपेटाइटिस से प्रभावित हैं और प्रत्येक वर्ष इससे 400,000 मौतें होती हैं। यह एक पुरानी बीमारी है जो यकृत की सूजन एवं कैंसर का एक प्रमुख कारण है। + +13999. 14वीं शताब्दी में बूबोनिक प्लेग के कारण केवल यूरोप में लगभग 50 मिलियन मौतें हुई थीं। + +14000. सामान्य लक्षण: + +14001. साइटोकिन स्टॉर्म के पूर्व उदाहरण:-इसे वर्ष 1918-20 में ‘स्पैनिश फ्लू’ महामारी के दौरान रोगी की मृत्यु होने के संभावित प्रमुख कारणों में एक माना जाता है। इस महामारी से विश्व भर में 50 मिलियन से अधिक लोगों की मृत्यु हुई थी। और हाल के वर्षों में H1N1 ‘स्वाइन फ्लू’ व H5N1 ‘बर्ड फ्लू’ के मामलों में भी इसके लक्षण देखने को मिले थे। + +14002. सेल इमेजिंग तकनीक (Cell Imaging Technique) का उपयोग करके वैज्ञानिकों ने पाया कि एंटीबायोटिक्स बैक्टीरियल सेल वाल (Bacterial Cell Wall) पर हमला करने के बाद कार्य करते हैं। + +14003. 26 जुलाई, 2019 को AMR का प्रबंधन करने हेतु एक कार्ययोजना विकसित करने में केरल के बाद मध्य प्रदेश भारत का दूसरा राज्य बन गया। + +14004. रेम्डेसिविर और क्लोरोक्वीन (Chloroquine) में हाल ही में उभरे नॉवेल कोरोनावायरस (nCoV-2019) को प्रभावी ढंग से रोकने की क्षमता है। + +14005. ऐतिहासिक रूप से ऐसी कई घटनाएँ प्रकाश में आई हैं जिनसे यह सिद्ध होता है कि जूनोटिक रोगाणुओं की वजह से वैश्विक महामारी की स्थिति कोई नई समस्या नहीं है। + +14006. चार सामान्य कोरोनावायरस के अतिरिक्त निम्नलिखित दो विशिष्ट कोरोनावायरस होते हैं- + +14007. पहली बार MERS Cov का संक्रमण वर्ष 2012 में सऊदी अरब में देखा गया था। इस कारण इस वायरस को मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम कोरोनावायरस (MERS CoV) कहा जाता है। + +14008. SARS CoV से प्रभावित अधिकतर रोगियों में इन्फ्लूएंज़ा, बुखार, घबराहट, वात-रोग, सिरदर्द, दस्त, कंपन जैसी समस्याएँ पाई जाती हैं। + +14009. वहनीय सुपरकैपेसिटर उपकरण बनाने हेतु एक लागत प्रभावी सामग्री के लिये ARCI के वैज्ञानिकों ने ‘औद्योगिक अपशिष्ट कपास’ (कचरे) को ‘अत्यधिक महीन कार्बन फाइबर’ में बदलकर ‘सुपरकैपेसिटर इलेक्ट्रोड’ का निर्माण किया है। + +14010. इसे फैराडिक दक्षता (Faradaic Efficiency) या धारा दक्षता (Current Efficiency) भी कहा जाता है। + +14011. इससे कई और चीजों का पता लगाना संभव हो जाएगा। जैसे- + +14012. गुरुत्त्वाकर्षण तरंगों का प्रमुख उत्सर्जन समान द्रव्यमान के द्विआधारी (Binary) ब्लैकहोल की कक्षीय आवृत्ति से दोगुना होता है और यह नगण्य है। + +14013. लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्ज़र्वेटरी (LIGO): + +14014. ब्लैक होल शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले अमेरिकी भौतिकविद् जॉन व्हीलर ने 1960 के दशक के मध्य में किया था। + +14015. + +14016. निवारक निरोध उपायों के रूप में केंद्र तथा राज्य दोनों सरकारें, NSA का उपयोग कर सकती है। + +14017. स्वैच्छिक सेवा देने के इच्छुक ऐसे कैडेटों की नियुक्ति के लिये राज्य सरकारों, ज़िला प्रशासन को राज्य एनसीसी निदेशालयों के माध्यम से अपनी आवश्यकताएँ प्रेषित करनी होंगी। इसका विवरण एनसीसी निदेशालय, समूह मुख्यालय, इकाई स्तर पर राज्य सरकार, स्थानीय नागरिक प्राधिकरण के साथ समन्वित किया जाएगा। कैडेटों को ड्यूटी पर तैनात करने से पहले ज़मीनी हालात एवं निर्धारित आवश्यकताओं को सुनिश्चित किया जाना ज़रूरी है। + +14018. देश में इसकी कुल 788 टुकड़ियाँ हैं, इनमें से 667 सेना की, 60 नौसेना और 61 वायु सेना की हैं। + +14019. COVID-19 क्वारंटाइन चेतावनी प्रणाली (CQAS): + +14020. जियोफेंसिंग किसी भौगोलिक क्षेत्र के लिये एक आभासी परिधि होती है। यह एक स्थान-आधारित सेवा है जिसमें किसी एप या अन्य सॉफ़्टवेयर जैसे- GPS, RFID, वाई-फाई या सेलुलर डेटा का उपयोग किया जाता है। + +14021. जियोफेंसिंग तभी काम करेगी जब क्वारंटाइन व्यक्ति के पास एयरटेल, वोडाफोन-आइडिया या रिलायंस जियो के नेटवर्क का उपयोग करने वाला मोबाइल फोन हो। + +14022. इसका गठन राष्ट्रीय जाँच एजेंसी अधिनियम, 2008 के तहत किया गया था। इसका उद्देश्य भारत में आतंकवादी गतिविधियों की जाँच करना है। यह केंद्रीय आतंकवाद विरोधी कानून प्रवर्तन एजेंसी (Central Counter Terrorism Law Enforcement Agency) के रूप में कार्य करती है। + +14023. यह अंतर्राष्ट्रीय संधियों, समझौतों, अभिसमयों और संयुक्त राष्ट्र एवं इसकी एजेंसियों ​​तथा अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रस्तावों का कार्यान्वयन करती है। + +14024. चिपसेट जारी करने से स्मार्टफोन ओरिजिनल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरर्स (OEM) द्वारा नाविक के उपयोग में वृद्धि होगी। + +14025. अप्रैल 2019 में भारत सरकार द्वारा निर्भया मामले में दिए गए फैसले के अनुसार, देश के सभी वाणिज्यिक वाहनों के लिये नाविक आधारित वाहन ट्रैकर्स को अनिवार्य कर दिया गया है। + +14026. भारत-नेपाल के मध्य जोगबनी-बिराटनगर सीमा पर स्थित एकीकृत चेक पोस्ट से दोनों देशों के बीच व्यापार और लोगों की आवाजाही को सुविधा होगी। + +14027. + +14028. उपरोक्त रणनीति के तहत लगभग 130 किलोमीटर लंबी हिंडनबर्ग लाइन (जिसे जर्मनों द्वारा सिगफ्रीड (Siegfried Line) लाइन कहा जाता है।) के निर्माण की योजना सितंबर 1916 में शुरू हुई और इसे चार महीनों में पूरा कर लिया गया। इससे फ्राँस-जर्मनी की सीमा पर जर्मनी की किलेबंदी हो गई। इसे युद्ध के दौरान की सबसे बड़ी सैन्य निर्माण परियोजना माना जाता है। + +14029. विश्व के चर्चित स्थान. + +14030. न्यू कैलेडोनिया (New Caledonia): + +14031. प्रशासन: ‘न्यू कैलेडोनिया’, संयुक्त राष्ट्र संघ के 17 'गैर-स्वशासित क्षेत्रों' (Non-Self Governing Territories) में से एक है, जहाँ अभी तक वि-उपनिवेशीकरण की प्रक्रिया पूरी नहीं की जा सकी है। + +14032. ‘न्यू कैलेडोनिया’ को अधिकांश मामलों में स्वायत्तता प्राप्त है परंतु रक्षा जैसे मामलों के लिये यह आज भी फ्राँस पर बहुत अधिक निर्भर करता है। + +14033. ‘नौमिया समझौता’ (Noumea Accord): वर्ष 1998 के ‘नौमिया समझौते' के तहत ‘न्यू कैलेडोनिया’ में एक चरणबद्ध तरीके से स्थानीय स्वशासन की स्थापना और सत्ता के हस्तांतरण हेतु रूपरेखा तैयार की गई। इसके साथ ही स्वतंत्रता के लिये वर्ष 1998 में प्रस्तावित जनमत संग्रह को विलंबित कर दिया गया। + +14034. इदलिब प्रांत एकमात्र ऐसा सीरियाई क्षेत्र था जो सीरियाई सरकार के नियंत्रण से बाहर था। वर्ष 2019 के बाद से सीरियाई एवं रूसी सेनाओं ने इदलिब प्रांत पर कब्जा करने का प्रयास किया। + +14035. यह मुख्य रूप से दक्षिणी बेरूत, दक्षिणी लेबनान और बेका घाटी (Bekaa Valley) के शिया बहुल क्षेत्रों में विस्तृत है। + +14036. वेरिली (Verily) की देखरेख में कोविड-19 महामारी से निपटने के लिये एक वेबसाइट विकसित की जा रही है जो किसी संक्रमित व्यक्ति को उसके आसपास के सुविधाजनक स्थान पर परीक्षण की सुविधा से संबंधित जानकारी प्रदान करेगी। + +14037. यानोमामी जिसे योनामोमो या यानोमामा भी कहा जाता है, दक्षिण अमेरिका के वेनेज़ुएला एवं ब्राज़ील की सीमा पर अमेज़न वर्षावन में निवास करते हैं। ये अपने परिवारों के साथ गाँवों में निवास करते हैं। इनके गाँवों का आकार भिन्न-भिन्न होता है किंतु आमतौर पर इन गाँवों में 50 से 400 लोग होते हैं। इस बड़े पैमाने पर सामूहिक व्यवस्था में पूरा गाँव एक ही छत के नीचे निवास करता है जिसे शाबोनोस कहा जाता है। जो एक विशिष्ट अंडाकार आकृति होती है। शाबोनोस गाँव की परिधि का निर्माण करता है। अमेज़न वर्षावन आधारित संसाधनों पर निर्भर है, इन्हें बागवानी करने वाले समूहों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। बहुपतित्त्व प्रथा प्रचलित है हालाँकि यहाँ की अन्य जनजातियों में बहुपत्नी प्रथा भी देखने को मिलती है। + +14038. भाषण चार द्वीप को ‘थेंगार चार द्वीप’ (Thengar Char Island) या चार पिया (Char Piya) के रूप में भी जाना जाता है। इसका निर्माण दो दशक पहले बंगाल की खाड़ी में मेघना (Meghna) नदी के मुहाने पर हिमालयन गाद से हुआ था। यह द्वीप 40 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। यह निर्जन द्वीप दक्षिण-पूर्व बांग्लादेश में हटिया द्वीप (Hatiya Island) से लगभग 30 किलोमीटर पूर्व में स्थित है। भाषण चार द्वीप बाढ़, कटाव एवं चक्रवात के कारण पारिस्थितिक रूप से अतिसंवेदनशील क्षेत्र के अंतर्गत आता है। हालाँकि बांग्लादेश सरकार ने चक्रवातों एवं ज्वार-भाटा से बचने के लिये इस द्वीप के चारों ओर तीन मीटर ऊँचा तटबंध बनाया है। जून, 2015 में बांग्लादेशी सरकार ने इस द्वीप पर रोहिंग्या शरणार्थियों के लिये निवास-स्थान का प्रस्ताव दिया था। इस प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी द्वारा ‘तार्किक रूप से चुनौतीपूर्ण’ के रूप में चित्रित किया गया था। + +14039. संकट: नील नदी अत्यधिक प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और मिस्र की बढ़ती आबादी के कारण गंभीर खतरे का सामना कर रही है। + +14040. माउंट एकांकागुआ की ऊँचाई 6962 मीटर है जबकि 8,850 मीटर की ऊँचाई के साथ माउंट एवरेस्ट विश्व की सबसे ऊँची पर्वत चोटी है। + +14041. पूर्वी अफ्रीका में जंजीबार और मोम्बासा जैसे अन्य नगरों से पूर्व यह सबसे महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केंद्रों में एक था। + +14042. ललित कला अकादमी ने सम्मानित होने वाले कलाकारों की सूची को अंतिम रूप देने के लिये देश भर के प्रतिष्ठित कला प्रशिक्षक, कलाकारों एवं आलोचकों की सात सदस्यीय चयन ज़ूरी को नामित किया। + +14043. 9 नवंबर, 2000 को उत्तराखंड भारत का 27वाँ राज्य बना जिसे उत्तर प्रदेश से अलग करके बनाया गया था। + +14044. इसके पश्चिम में मध्य प्रदेश, दक्षिण में छत्तीसगढ़,दक्षिण-पूर्व में झारखंड और पूर्व में बिहार राज्य है। + +14045. लखानिया गुफाएँ कैमूर पर्वतमाला में स्थित हैं और अपने सुंदर चिरनूतन शैल चित्रों के लिये जानी जाती हैं। ये ऐतिहासिक पेंटिंग लगभग 4000 वर्ष पुरानी हैं। + +14046. चर्चित शब्द. + +14047. COVID-19 Community Mobility Report + +14048. इस रिपोर्ट को कंपनी के गोपनीय प्रोटोकॉल एवं नियमों के अनुसार तैयार किया गया है। + +14049. कोरोना बॉन्ड (Corona Bond):- इटली के प्रधानमंत्री ने COVID-19 के कारण उत्पन्न आर्थिक स्थिति से निपटने के लिये यूरोपीय संघ (European Union- EU) द्वारा जारी किये जाने वाले इस बॉन्ड का समर्थन किया। + +14050. अभी तक वैज्ञानिक मानते थे कि प्रारंभिक मानव के पूर्वज लगभग 4 लाख वर्ष पहले पृथ्वी से विलुप्त हो गए थे किंतु नए निष्कर्षों से पता चलता है कि लगभग 117,000 से 108,000 वर्ष पहले भी नगांडोंग में ये प्रजातियाँ मौजूद थीं। + +14051. इसके मस्तिष्क का आकार लगभग 550-1250 क्यूबिक सेंटीमीटर, ऊँचाई 1.4-1.8 मीटर तथा वजन 45-61 किलोग्राम होने का अनुमान लगाया जाता है। + +14052. जबकि वर्ष 2019 में जीवाश्म विज्ञानियों (Paleontologists) ने फिलीपींस में पाई जाने वाली एक और प्रजाति को होमो लूजोनेंसिस (Homo Luzonensis) नामक एक छोटे आकार की मानव प्रजाति के रूप में वर्गीकृत किया था। + +14053. इसमें वैसे तो कोई सख्त नियम-कायदे नहीं है लेकिन तीन मुख्य सामग्री से सम्बन्धित नीतियाँ हैं:- सत्यापनीयता, मूल शोध नहीं और तटस्थ दृष्टिकोण। इनका पालन करना आवश्यक माना गया है। चूँकि इसमें दूसरों के सहयोग से निर्माण किया जाता है इसलिए कुछ सदस्यों के व्यवहार ऊपर भी दिशानिर्देश और नीतियाँ बनाई गईं हैं। यह सब 'समुदाय' यानी कि सदस्यों द्वारा ही निर्मित हैं। आगे इस पुस्तक में यहाँ वर्णित चीज़ों के अलावा और बातों को बताया गया हैं। यह पुस्तक विकिपीडिया को सीखने के बारे में उपयोगी रहेगी ऐसा उद्देश्य रहा है। + +14054. यह एप उन अपशिष्ट संचालकों के लिये भी मददगार है जिनकी कमाई आमतौर पर कम होती है और अपशिष्ट के अनुचित रखरखाव के कारण स्वास्थ्य संबंधी कठिनाइयाँ भी उत्पन्न होती हैं। + +14055. यह पुरस्कार राजकुमारी डायना के दो बेटों ‘प्रिंस विलियम’ और ‘प्रिंस हैरी’ द्वारा समर्थित डायना अवार्ड चैरिटी (Diana Award Charity) द्वारा दिया जाता है। + +14056. महत्वपूर्ण वैश्विक व्यक्ति. + +14057. इस दिवस के अवसर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा ‘स्टेट ऑफ द वर्ल्ड नर्सिंग रिपोर्ट 2020’ (State of the World’s Nursing Report 2020) भी जारी की गई। + +14058. विश्व के कई देशों में स्वास्थ्य कर्मचारियों का 50% नर्स और मिडवाइफ हैं। + +14059. इनके लेखन से विश्व भर में स्वास्थ्य देखभाल में सुधार को प्रोत्साहन मिला। + +14060. विश्व वन्यजीव दिवस 2019 की थीम ‘लाइफ बिलो वाटर: फॉर पीपल एंड प्लैनेट’ (Life below Water: for People and Planet) है। यह थीम :सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals) के लक्ष्य संख्या 14 (सतत् विकास के लिये महासागरों, समुद्रों और समुद्री संसाधनों का संरक्षण और निरंतर उपयोग करना) के उद्देश्यों की पूर्ति करता है। + +14061. पद्म पुरस्कार 2020 + +14062. पद्म भूषण (Padma Bhushan): यह पुरस्कार उच्च स्तर की विशिष्ट सेवा के लिये प्रदान किया जाता है। + +14063. पद्म पुरस्कार सूची में 34 महिलाएँ हैं और इस सूची में 18 व्यक्ति विदेशी/एनआरआई/पीआईओ / ओसीआई श्रेणी के हैं और 12 व्यक्ति मरणोपरांत पुरस्कार पाने वालों की श्रेणी में हैं। + +14064. 3. श्री अनिरुद्ध जगन्नाथ जीसीएसके राजनीति मॉरीशस + +14065. पद्म भूषण (Padma Bhushan): + +14066. 4. श्री अजॉय चक्रवर्ती कला पश्चिम बंगाल + +14067. 9. श्री अनिल प्रकाश जोशी सामाजिक कार्य उत्तराखंड + +14068. 14. सुश्री पी. वी. सिंधू खेल तेलंगाना + +14069. खेल और शिक्षा. + +14070. पंजाब विश्वविद्यालय (चंडीगढ़) और गुरु नानक देव विश्वविद्यालय (अमृतसर) क्रमशः 191 और 183 एथलीटों के साथ इस प्रतियोगिता में सबसे बड़े प्रतियोगी संस्थान होंगे। + +14071. वर्ष 2018-19 में स्कूली शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर GPI की स्थिति निम्नानुसार है: + +14072. 1.03 + +14073. आठवीं कक्षा तक की लड़कियों को मुफ्त में पाठ्य-पुस्तकें वितरित करने का प्रावधान। + +14074. विशेष आवश्यकता वाली कक्षा 1 से 12 वीं तक की लड़कियों को वज़ीफा देना। + +14075. इनमें से 4881 KGBV का परिचालन हो रहा है जिसमें 6.18 लाख लड़कियों का नामांकन किया गया। + +14076. SEP 1.0 की सफलता के बाद SEP 2.0 की शुरुआत की गई है। SEP 2.0 से विद्यार्थी अन्वेषकों को डेल टेक्नोलॉजिज़ के स्वयंसेवकों के साथ मिलकर कार्य करने का मौका मिलेगा। + +14077. ‘एक्सीलेरेट विज्ञान’ (Accelerate Vigyan) योजना का मुख्य उद्देश्य वैज्ञानिक अनुसंधान को प्रोत्साहित करना और वैज्ञानिक श्रमशक्ति तैयार करना है, ताकि अनुसंधान-आधारित करियर और ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था का निर्माण हो सके। + +14078. योजना के प्रमुख घटक: + +14079. ‘कार्यशाला’ (KARYASHALA): + +14080. 'सम्मोहन' घटक कार्यक्रम के 2 उप-घटक संयोजिका (SAONJIKA) और संगोष्ठी (SANGOSHTI) हैं। + +14081. मिशन मोड के तहत कार्यान्वयन: + +14082. इसके अतिरिक्त स्कूली शिक्षकों में एप विकसित करने की क्षमता एवं कौशल निर्माण के लिये अटल इनोवेशन मिशन एप विकास पाठ्यक्रम पर आवधिक शिक्षक प्रशिक्षण सत्र आयोजित करेगा। + +14083. सूचकांक में DST के तीन स्वायत संस्थान 'विज्ञान आधारित कृषि के लिये भारतीय संघ', कोलकाता 7वें स्थान पर, ‘जवाहरलाल नेहरू उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र’(JNCASR), बंगलौर 14 वें स्थान पर और ‘एस. एन. बोस बुनियादी विज्ञान के लिये राष्ट्रीय केंद्र’ (S. N. Bose National Centre for Basic Sciences), कोलकाता 30 वें स्थान पर हैं। + +14084. विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने पहले ही देश में तीन ऐसे केंद्र स्थापित किये हैं जो IIT खड़गपुर, IIT दिल्ली और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में स्थित हैं। + +14085. एसटीईएम (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित): यह 4 विशिष्ट विषयों (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) में छात्रों को शिक्षित करने पर आधारित पाठ्यक्रम है। + +14086. भारत में उच्च गुणवत्ता वाली प्रतिभा होने के बावजूद परीक्षा-केंद्रित शिक्षा मॉडल के कारण कुछ ही छात्रों में नवाचार, समस्या का समाधान करना और रचनात्मकता का विकास हो पाया है। + +14087. ‘रिसर्च एंड इनोवेशन डिवीज़न’ (Research And Innovation Division) नामक एक विभाग तैयार किया जा रहा है। इस विभाग के अध्यक्ष द्वारा MHRD के तहत आने वाले विभिन्न संस्थानों के अनुसंधान कार्य का समन्वय किया जाएगा। + +14088. PMRF के तहत आने वाले संस्थानों द्वारा उम्मीदवारों की सिफारिश की गई हो। + +14089. ‘समर्थ’ सभी विश्वविद्यालयों एवं उच्च शैक्षिक संस्थानों को एक ‘ओपन स्टैंडर्ड ओपन सोर्स आर्किटेक्चर, सुरक्षित, मापनीय एवं विकासवादी प्रक्रिया स्वचालन यंत्र है। + +14090. वर्ष 2019 में निष्ठा (NISHTHA) को फेस-टू-फेस मोड में लॉन्च किया गया था। इसके बाद 33 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने इस कार्यक्रम को अपने-अपने क्षेत्रों में समग्र शिक्षा (Samagra Shiksha) के तहत शुरू किया है। NCERT द्वारा राज्य स्तर पर 29 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में निष्ठा (NISHTHA) प्रशिक्षण कार्यक्रम पूरा किया गया है। 4 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों (मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, जम्मू-कश्मीर एवं बिहार) में राज्य स्तर पर प्रशिक्षण अभी भी जारी है। + +14091. ऑनलाइन/डिजिटल शिक्षा के 8 चरण: + +14092. ऑनलाइन एवं डिजिटल शिक्षा की योजना बनाते समय कक्षा की क्षमता के अनुसार सत्र की अवधि, स्क्रीन समय, समावेशिता, संतुलित ऑनलाइन एवं ऑफलाइन गतिविधियों आदि से संबंधित पहलुओं में। + +14093. अनुशंसित स्क्रीन समय: + +14094. कक्षा 1 से 12 तक + +14095. राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा तय किये गए दिनों में प्रत्येक दिन 30-45 मिनट के चार सत्रों से अधिक ऑनलाइन पढ़ाई नहीं कराई जा सकती है। + +14096. यह कार्यक्रम का पहला चरण है जिसका धीरे-धीरे अन्य क्षेत्रों जैसे- रचनात्मक लेखन आदि में विस्तार किया जाएगा। + +14097. देश भर के लाखों बच्चों को कभी-भी और कहीं-भी सीखने में मदद करने के लिये इस शिक्षण सामग्री का उपयोग दीक्षा एप (DIKSHA App) के माध्यम से किया जायेगा। + +14098. सभी संस्थानों के प्रमुखों ने बताया है कि NMMS योजना ने सीनियर एवं सीनियर सेकेंड्री कक्षाओं में ड्रॉप-आउट दर को कम कर दिया है। + +14099. मुख्य बिंदु:-इस अभियान में छात्र-छात्राओं एवं शिक्षकों पर मुख्य रूप से ध्यान केंद्रित किया गया है। + +14100. अक्टूबर 2019 में नीति आयोग द्वारा जारी इस रैंकिंग के अनुसार 20 बड़े राज्यों में केरल 76.6% के स्कोर के साथ सबसे अच्छा प्रदर्शन कर प्रथम स्थान पर रहा जबकि उत्तर प्रदेश 36.4% के स्कोर के साथ अंतिम स्थान पर रहा। + +14101. कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (Corporate Social Responsibility) की तरह वैज्ञानिक सामाजिक उत्तरदायित्व के अंतर्गत संचार और आउटरीच कार्यक्रमों की एक सूची तैयार की जाएगी। + +14102. विश्व बैंक के मुताबिक, इस परियोजना से भारत के स्कूलों में मूल्यांकन प्रणाली को बेहतर बनाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, इस परियोजना से स्कूलों के शासन और विकेन्द्रीकृत प्रबंधन को मजबूत बनाने में मदद मिलेगी। केन्द्र सरकार की योजना ‘समग्र शिक्षा अभियान’ के माध्यम से लागू किया जायेगा। इसके द्वारा उपर्युक्त 6 राज्यों के लगभग 15 लाख स्कूलों के 6 से 17 वर्ष की आयु के लगभग 25 करोड़ छात्रों और एक करोड़ शिक्षकों को फायदा पहुँचेगा। + +14103. स्टार्स परियोजना विद्यार्थियों के लर्निंग आऊटकम की चुनौतियों पर विशेष बल देगी। + +14104. शैक्षणिक वातावरण + +14105. तेज़ी से बदलते परिदृश्य में कार्य और बेहतर जीवनयापन के लिये छात्रों को तैयार करने में शिक्षा प्रणालियों की प्रभावशीलता का आकलन करने हेतु इसे विकसित किया गया था। + +14106. IBC के अनुसार, किसी ऋणी के दिवालिया होने पर एक निश्चित प्रक्रिया पूरी करने के बाद उसकी परिसंपत्तियों को अधिकार में लिया जा सकता है। + +14107. दिवालिया और शोधन अक्षमता कोड ने व्यापार करने के लिये अनुकूल माहौल का सृजन किया है, निवेशकों का विश्वास बढ़ाया है और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम को सहायता प्रदान करते हुए उद्यमिता को प्रोत्साहित करने में सहायता प्रदान की है। + +14108. IBC के बाद यह देखा गया कि कई व्यापारिक संस्थाएँ दिवालिया होने की घोषणा करने से पहले भुगतान कर रही हैं। अधिनियम की सफलता इस तथ्य में निहित है कि नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल को भेजे जाने से पहले ही कई मामलों को सुलझा लिया गया है। + +14109. जागरूकता को बढ़ावा देने के लिये उपयुक्त तरीकों पर सलाह देना शामिल है। जिनमें निम्नलिखित को शामिल किया गया है। + +14110. NFRA के प्रमुख कार्य: + +14111. सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम ‘गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड’ (GAIL) भी इस परियोजना में एक निवेशक के तौर पर शामिल है। OVL ने 31 मार्च, 2019 तक इस परियोजना में 722 मिलियन डॉलर का निवेश किया है। श्वे तेल एवं गैस परियोजना से पहली बार गैस की प्राप्ति जुलाई 2013 में हुई थी। यह परियोजना वित्त वर्ष 2014-15 से ही सकारात्मक नकदी प्रवाह सृजित कर रही है। + +14112. इस योजना के तहत घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और मोबाइल फोन के विनिर्माण तथा एसेम्‍बली (Assembly), परीक्षण (Testing), मार्किंग (Marking) एवं पैकेजिंग (Packaging) इकाइयों सहित विशिष्‍ट इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स कलपुर्जों के क्षेत्र में व्‍यापक निवेश आकर्षित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। + +14113. इस योजना की कुल लागत लगभग 40,995 करोड़ रुपए है जिसमें लगभग 40,951 करोड़ रुपए का प्रोत्‍साहन परिव्‍यय और 44 करोड़ रुपए का प्रशासनिक व्‍यय शामिल हैं। + +14114. सर्वप्रथम केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बड़े पैमाने पर इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स विनिर्माण के लिये ‘उत्‍पादन से संबद्ध प्रोत्‍साहन (production-linked incentive-PLI)’ योजना को स्‍वीकृति दी है। + +14115. दूसरी योजना- + +14116. इस योजना का कुल परिव्‍यय 8 वर्ष की अवधि के दौरान 3762.25 करोड़ रुपए है। + +14117. अब तक पीएमजी पोर्टल ने 809 परियोजनाओं की 3500 से अधिक समस्याओं का समाधान किया है और 32 लाख करोड़ रुपए से अधिक के प्रत्याशित वित्तीय निवेश का मार्ग प्रशस्त किया है। + +14118. एसपीआईसीई+ कंपनी के निगमन से संबंधित कई सेवाएँ जैसे- पैन की अनिवार्यता, बैंक खाता खोलना, जीएसटीआईएन (GSTIN) का आवंटन आदि प्रदान करने वाला एक एकीकृत वेब फॉर्म है। + +14119. यह पोर्टल कच्चे माल यथा- कृषि,बागवानी,खनिजों एवं प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्‍धता, महत्त्वपूर्ण लॉजिस्‍टिक्स केंद्रों से दूरी, भू-भाग की परतों और शहरी बुनियादी अवसंरचना सहित समस्‍त औद्योगिक सूचनाओं की नि:शुल्‍क एवं आसान पहुँच प्रदान करने वाला एकल स्‍थल केंद्र है। + +14120. विदेशी आक्रमणकारी समुद्री प्रजातियों में सबसे अधिक संख्या जीनस एसाइडिया (Ascidia) (31) की है। + +14121. पहली बार ‘विश्व प्रवासी पक्षी दिवस’ को वर्ष 2006 में मनाया गया था। यह दिवस वर्ष में दो बार (मई एवं अक्तूबर महीने के दूसरे शनिवार को) मनाया जाता है। + +14122. विनियामक दिशा-निर्देशों के साथ ‘इको-टूरिज़्म’ (Ecotourism) को लागू करना पर्यावरण संरक्षण को सुधारने और बढ़ावा देने का एक सकारात्मक तरीका है। + +14123. पिनंगा अंडमानेंसिस (Pinanga andamanensis) जिसे एक समय विलुप्त प्रजाति के रूप में दर्ज किया गया था। यह एरेका ताड़ (Areca Palm) से संबंधित है। दक्षिण अंडमान के 'माउंट हैरियट नेशनल पार्क' के एक छोटे क्षेत्र में 600 पौधे पाए जाते है। + +14124. वर्ष 1992 में इसे विलुप्त मान लिया गया था। + +14125. 12 अगस्त, 2012 को पहला विश्व हाथी दिवस मनाया गया था तब से यह वार्षिक रूप से मनाया जाता है। वर्ष 2011 में ‘एलीफैंट रिइंट्रोडक्शन फाउंडेशन’ (Elephant Reintroduction Foundation) और कनाडाई फिल्म निर्माता पेट्रीसिया सिम्स (Patricia Sims) एवं माइकल क्लार्क (Michael Clark) द्वारा विश्व हाथी दिवस की कल्पना की गई थी। इसे आधिकारिक तौर पर 12 अगस्त, 2012 को शुरू किया गया था। + +14126. विश्व स्तर पर 650 से अधिक प्रजातियों को CMS के परिशिष्ट में सूचीबद्ध किया गया है और 450 से अधिक प्रजातियों के साथ भारत, उनके संरक्षण में अति महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। + +14127. चर्चित वैश्विक जंतु. + +14128. ये पक्षी न्यूज़ीलैंड के मैकेंज़ी बेसिन (Mackenzie Basin) और दक्षिण द्वीप (South Island) में बड़े पैमाने पर प्रजनन करते हैं। + +14129. IUCN की रेड लिस्ट में इसे ‘गंभीर संकटग्रस्त’ (Critically Endangered) की श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है। + +14130. (Elephants Without Borders): + +14131. यहाँ के वन्यजीव हॉट-स्पॉट EWB के लिये आदर्श स्थान है जो शोधकर्त्ताओं को हाथियों के आवास, प्रवास पैटर्न, व्यवहार एवं उनका पारिस्थितिकी अध्ययन करने की सुविधा प्रदान करते हैं। + +14132. इस डेल्टा को अफ्रीका महाद्वीप के सात प्राकृतिक आश्चर्यों में से एक के रूप में नामित किया गया था जिसकी आधिकारिक घोषणा पर वर्ष 2013 में तंज़ानिया में की गई थी। + +14133. ट्राईकैंथोनस ब्लैंका (Triacanthoneus Blanca) + +14134. वर्ष 2005 में यूनेस्को (UNESCO) द्वारा विश्व विरासत स्थल का दर्जा पाने वाला कोइबा नेशनल पार्क समृद्ध एवं संरक्षित प्राकृतिक संसाधन का क्षेत्र है। + +14135. राजस्थान का बिश्नोई समुदाय विश्व भर में ‘काले हिरण’ एवं चिंकारा के संरक्षण के लिये किये गए प्रयासों के लिये जाना जाता है। + +14136. इस परजीवी की खोज ने जीव जगत के बारे में विज्ञान की धारणाओं को चुनौती दी है क्योंकि सभी जीव वायवीय श्वसन करते हैं और श्वसन में ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं। + +14137. टायरानोसोर के जीवाश्म से क्रिटेशियस युग (Cretaceous Period) को समझने में आसानी होगी क्योंकि इसी काल में टायरानोसोरस पृथ्वी पर घूमते थे। + +14138. यह एक अल्फावायरस है। अल्फावायरस, पाज़िटिव-सेंस सिंगल-स्ट्रेंडेड आरएनए वायरस (Positive-sense Single-Stranded RNA Virus or (+)ssRNA virus) के एक जीनोम के साथ छोटे, गोलाकार,आवरण युक्त विषाणु होते हैं। + +14139. सफेद राइनो (White Rhino) हाथी के बाद दूसरा सबसे बड़ा स्थलीय स्तनपायी है। + +14140. काला राइनो को IUCN-अतिसंकटग्रस्त (Critically Endangered) + +14141. डिएगो की उम्र 100 वर्ष है और इसे वर्ष 1976 में प्रजनन कार्यक्रम में शामिल किया गया था तब से कछुओं की आबादी 15 से बढ़कर 2,000 हो गई है। + +14142. यह उत्तरी भारत के एक छोटे से हिस्से को छोड़कर अधिकांश भारत पाया जाता है। यह पूर्व में म्यांमार से लेकर पश्चिम में ईरान के मध्य पाया जाता है। + +14143. एक मौजूद प्रजाति अमेरिकी पैडलफिश (पॉलयोडोन स्पथुला-Polyodon spathula) का मूल निवास संयुक्त राज्य अमेरिका की मिसिसिपी नदी (Mississippi River) में है, जबकि चीनी पैडलफिश को वर्ष 2019 में विलुप्त घोषित कर दिया गया। + +14144. भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान (I IRS), भारत सरकार के अंतरिक्ष विभाग के राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र के अंतर्गत एक प्रमुख प्रशिक्षण एवं शिक्षण संस्थान है। + +14145. चितकबरा कोयल उत्तर भारतीय लोक कथाओं में 'चातक' (Chatak) पक्षी के रूप में प्रसिद्ध है जो केवल बारिश की बूंदों से अपनी प्यास बुझाता है। + +14146. परियोजना: + +14147. IBIN परियोजना में विभिन्न जैव विविधता एवं पर्यावरणीय पैरामीटर शामिल किये गए हैं जो परिवर्तित जलवायु परिदृश्यों में चितकबरे कोयले के संभावित वितरण पर अनुमानित जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का आकलन करने में मदद करेंगे। + +14148. डॉल्फिन की शारीरिक विशेषताएँ:-इसकी आँखें अल्पविकसित (Rudimentary) होती हैं। ‘शिकार करने’ से लेकर ‘सर्फिंग’ (नदी या समुद्र की लहरों के साथ तैरना) तक की सभी प्रक्रियाओं में डॉल्फिन अल्ट्रासोनिक ध्वनि (20,000 हर्ट्ज से अधिक वाली सभी ध्वनियाँ) का प्रयोग करती है। डॉल्फिन तेज़ी से बढ़ते शिकार को पकड़ने के लिये शंक्वाकार दाँतों का उपयोग करती है। इनके पास अच्छी तरह से विकसित श्रवण क्षमता होती है जो हवा एवं पानी दोनों के लिये अनुकूलित है। + +14149. वर्ष 2006 में, उच्चतम न्यायालय की ‘सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी’ (CEC) ने चंबल नदी की वनस्पतियों एवं जीवों को बचाने के लिये अभयारण्य क्षेत्र में खनन पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था किंतु अवैध रेत खनन एवं जल की अनुचित खपत चंबल नदी के पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को खतरे में डाल रही है। + +14150. इससे पहले सबसे बड़ी भारतीय तितली जो वर्ष 1932 में दर्ज की गई थी वह ‘दक्षिणी बर्डविंग’ (Southern Birdwing) प्रजाति से ही संबंधित थी। जिसे तब ‘कॉमन बर्डविंग’ (Common Birdwing) नाम- ट्रॉइडेस हेलेना (Troides Helena) की उप-प्रजाति के रूप में माना जाता था। + +14151. इसमें तितलियों को ‘उनके पंखों के आधार’ से ‘ऊपरी छोर’ तक मापा जाता है। + +14152. भीतरकनिका क्षेत्र में झींगा माफियाओं ने आर्द्र भूमि एवं मैंग्रोव वनों को झींगा क्षेत्र में परिवर्तित करके जलीय पारिस्थितिकी को नष्ट कर दिया है। जिससे फिशिंग कैट्स के निवास स्थान के लिये भी संकट उत्पन्न हो रहा है। + +14153. अगस्त में 125 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद वैज्ञानिकों ने मुंबई (महाराष्ट्र) के पास माथेरान हिल स्टेशन (Matheran Hill Station) में 77 नई प्रजातियों सहित तितलियों की 140 दुर्लभ प्रजातियों की खोज की है। + +14154. केरल विश्व विद्यालय द्वारा कराये गए एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई कि वर्ष 2018 में आई बाढ़ के चलते केरल की आर्द्र्भूमियों में कुछ हानिकारक मत्सय प्रजातियों [जैसे- आरापैमा (Arapaima) और एलिगेटर गार (Alligator Gar) ने प्रवेश किया। ये अवैध रूप से आयातित मत्सय प्रजातियाँ हैं जिन्हें देश भर में सजावटी और वाणिज्यिक मत्सय व्यापारियों द्वारा पाला जाता है। + +14155. आर्मीवॉर्म धान के पौधे के आधार (जड़ के पास) पर पत्तियों एवं नई रोपी गई फसल को काटकर खाता है। + +14156. यह पक्षी मुख्य रूप से अकशेरुकी कीटों एवं जामुन जैसे छोटे फलों को भोजन के रूप में ग्रहण करता है। + +14157. फ्लेम-थ्रोटेड बुलबुल गोवा का राजकीय पक्षी है। यह प्रायद्वीपीय भारत में दक्षिणी आंध्र प्रदेश,पूर्वी कर्नाटक,गोवा,ओडिशा,पूर्वी केरल और उत्तरी तमिलनाडु में पाई जाती है। + +14158. यह एक सुंदर स्तनपायी जलीय जीव है। इसकी दो प्रजातियाँ पाई जाती हैं:-इरावदी डॉल्फिन एवं स्नब-फिन-डॉल्फिन। + +14159. इसका वैज्ञानिक नाम एक्विला निपलेंसिस (Aquila Nipalensis) है, यह ईगल के एसीपीट्रिडी (Accipitridae) परिवार से संबंधित है। + +14160. स्टेपी ईगल को कज़ाखस्तान के राष्ट्रीय ध्वज में स्थान दिया गया है। + +14161. विश्व के वैज्ञानिक आर्किया के वर्गीकरण पर काम कर रहे हैं किंतु आर्किया पर किये गए अध्ययनों से इस संबंध में बहुत कम जानकारी प्राप्त हुई है कि ये मानव शरीर में कैसे काम करते हैं। + +14162. नेशनल सेंटर फॉर माइक्रोबियल रिसोर्स + +14163. यह सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय (महाराष्ट्र) में स्थित एक राष्ट्रीय स्तर का जैव प्रौद्योगिकी, ऊतक इंजीनियरिंग और ऊतक बैंकिंग अनुसंधान केंद्र है। + +14164. इसके दो उप-परिवार हैं- + +14165. व्हाइटफ्लाइ (इसे ग्लासहाउस व्हाइटफ्लाइ या ग्रीनहाउस व्हाइटफ्लाइ भी कहा जाता है।) एक कीट है जो विश्व के समशीतोष्ण क्षेत्रों में निवास करता है। इसका वैज्ञानिक नाम ट्रायलेरोड्स वेपरारिओरम (Trialeurodes vaporariorum) है। + +14166. व्हेल शार्क हानिरहित, धीमी गति से चलने वाले स्तनधारी होते हैं। उनके दाँतों की कई पंक्तियाँ होती हैं किंतु इनकी भोजन ग्रहण करने में कोई भूमिका नहीं होती है। + +14167. IUCN-संवेदनशील (Vulnerable) श्रेणी में,CITES के परिशिष्ट II में,जबकि भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत अनुसूची II में रखा गया है। + +14168. इस सम्मेलन में एशियाई हाथी (Asian Elephant)और ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (Great Indian Bustard)को वैश्विक संरक्षण सूची में शामिल किया जाएगा। + +14169. रेडियो-टैगिंग में एक ट्रांसमीटर द्वारा किसी वन्यजीव की गतिविधियों पर नज़र रखी जाती है। इससे पहले कई वन्यजीवों जैसे- बाघ, तेंदुआ और प्रवासी पक्षियों को भी टैग किया जा चुका है। + +14170. पृथ्वी पर भूमिगत मछली (Subterranean Fish) की लगभग 250 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। कम भोजन की उपलब्धता होने के कारण ये बहुत छोटी(औसतन 8.5 सेमी.)होती हैं। + +14171. यह चिल्का झील (ओडिशा) के बाद देश की दूसरी सबसे बड़ी खारे पानी की झील है। + +14172. ग्रे पेलिकन (Grey Pelican) और चित्रित सारस (Painted Stork) दोनों को IUCN की लाल सूची में ‘निकट संकटग्रस्त’ (Near Threatened) श्रेणी में रखा गया है। + +14173. इन्हें स्वस्थ जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के संकेतक के रूप में भी वर्णित किया जाता है। + +14174. भारत में पाइपवर्टों की लगभग 111 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इनमें से अधिकांश प्रजातियाँ पश्चिमी घाट एवं पूर्वी हिमालय में पाई जाती हैं और उनमें से लगभग 70% देश के लिये स्थानिक हैं। + +14175. एरिकोकौलोन से संबंधित प्रजातियों की पहचान: + +14176. औषधीय जड़ी-बूटियों में पिकरोर्रिज़ा कुर्रोआ (Picrorhiza Kurroa), एकोनिटम हेटेरोफाइलम (Aconitum Heterophyllum), रहयूम इमोडी (Rheum Emodi), बेर्गेनिया स्ट्राचेई (Bergenia Stracheyi), अचिलिया मिल्लीफोलियम (Achillea Millefolium), रोडोडेंड्रोन एंथोपोगोन (Rhododendron Anthopogon) और एनीमोन ओब्टुसिलोबा (Anemone Obtusiloba) आदि शामिल हैं। + +14177. अल्पाइन पौधे वे पौधे हैं जो अल्पाइन जलवायु में बढ़ते हैं और अधिक ऊँचाई पर एवं ट्री लाइन (Tree Line) से ऊपर उगते हैं। + +14178. यह न्यू गिनी, इंडोनेशिया, मलेशिया और फिलीपींस की मूल प्रजाति है। + +14179. पंजाब में गेहूँ की फसल की स्थिति: + +14180. राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (National Botanical Research Institute-NBRI) के वैज्ञानिकों ने 'शेखर' (Shekhar) विकसित की है। + +14181. कुंदन, जयंती, हिमांशु और पुखराज सामान्य मौसम के गुलदाउदी की किस्में हैं। इनमें आमतौर पर नवंबर व दिसंबर के बीच फूल आते हैं। + +14182. वोल्लेमी पाइन जिसे वर्ष 1994 से पहले विलुप्त माना जाता था किंतु पर्यावरण संरक्षण मिशन के तहत संदूषण को रोकने के लिये इसे मानव पहुँच से दूर रखा गया था। + +14183. वोल्लेमी नेशनल पार्क, ग्रेटर ब्लू माउंटेंस एरिया (Greater Blue Mountains Area) का एक हिस्सा है जिसे यूनेस्को ने विश्व विरासत स्थल घोषित किया है। + +14184. उपज प्रति हेक्टेअर: + +14185. समसामयिकी 2020/पर्यावरण और विश्व: + +14186. आर्कटिक क्षेत्र में देशज लोगों के विशिष्ट संबंध की मान्यता में वृद्धि के परिणामस्वरूप, आर्कटिक देशों ने तीन देशज लोगों के संगठन को स्थायी भागीदारों का विशेष स्तर प्रदान किया, इस प्रकार अन्य AEPS पर्यवेक्षकों की तुलना में इन्हें विशेषाधिकार स्तर प्रदान किया। + +14187. इस वर्ष के 'वैश्विक अवलोकन कार्यक्रम' को कोरिया वन सेवा द्वारा वर्चुअल माध्यम में आयोजित किया गया। + +14188. पर्यावरण प्रभाव आकलन. + +14189. इस दिवस की शुरुआत वर्ष 2005 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में संकल्प पारित करके की गई थी। + +14190. परियोजना की वैश्विक पहल जापान के निप्पॉन फाउंडेशन तथा ‘जनरल बेथमीट्रिक चार्ट ऑफ द ओसियनस’ (GEBCO) के माध्यम से वर्ष 2017 में की गई। + +14191. स्की सीज़न (Ski Season): + +14192. प्रेसेना ग्लेशियर (Presena Glacier): + +14193. यह COVID-19 से प्रेरित लॉकडाउन अवधि के लिये अधिक सटीक शब्द है जिसे 'ग्रेट पॉज़' (Great Pause) के रूप में भी संदर्भित किया जा रहा है। + +14194. वहीँ दूसरी ओर विभिन्न शहरी आवास वाले जीव-जंतुओं जैसे चूहे और बंदरों के लिये लॉकडाउन अवधि अधिक कठिन एवं चुनौतीपूर्ण हो गया है जो मनुष्यों द्वारा प्रदान किये गए भोजन पर निर्भर हैं। + +14195. पर्यावरण संरक्षण. + +14196. जबकि अन्य देश जिनमें वर्ष 2007 से वर्ष 2017 की अवधि में कार्बन मूल्य का निर्धारण नहीं हुआ उनमें प्रति वर्ष कार्बन उत्सर्जन में 3% की वृद्धि देखी गई है। + +14197. कार्बन मूल्य/ कार्बन क्रेडिट का निर्धारण: + +14198. वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में 5% की गिरावट का वैश्विक तापन पर केवल 0.001°C तापमान कमी के बराबर प्रभाव रहता है। + +14199. भारत द्वारा उठाए गए कदम:- + +14200. यह प्रथम वर्चुअल जलवायु संवाद, पीटरबर्ग जलवायु संवाद का 11 वाँ सत्र था, जिसकी मेजबानी वर्ष 2010 से जर्मनी द्वारा की जा रही है। इस संवाद की प्रमुख विशेषता यह है कि UNFCCC के आगामी सम्मेलन की अध्यक्षता करने वाला देश PCD की सह-मेजबानी करता है। + +14201. संवाद का मुख्य एजेंडा: + +14202. संवाद में भारत द्वारा रखे गए पक्ष: + +14203. 2020 से पहले के शमन प्रयास (Mitigation efforts prior to pre-2020): + +14204. वर्ष 2020 के बाद की व्यवस्था जो कि ‘दीर्घकालिक जलवायु वित्त व्यवस्था’ का निर्माण करती है। + +14205. द्विवार्षिक इन-सत्र कार्यशालाएँ + +14206. जलवायु परिवर्तन. + +14207. हिमावरण कार्बनडाई ऑक्साइड (CO2) एवं मीथेन (CH4) के सिंक के रूप में कार्य करता है। वस्तुतः वर्तमान में वायुमंडल में जितना कार्बन मौजूद है उसका लगभग दोगुना हिमावरण में उपस्थित है। + +14208. यह दुर्घटना रूस के इतिहास की दूसरी बड़ी तेल रिसाव की घटना है। इससे पूर्व ऐसी दुर्घटना वर्ष 1994 में कच्चे तेल के रिसाव के कारण हुई थी। + +14209. ग्रेट बैरियर रीफ में प्रवाल विरंजन की क्षति फरवरी महीने में सबसे अधिक हुई जब मासिक समुद्री तापमान उच्चतम स्तर पर होता है। + +14210. तपती गर्मी ने न केवल पूरे गोलार्द्ध के मौसम में परिवर्तन किया,बल्कि ऑस्ट्रेलिया में अभी तक के सबसे गर्म एवं शुष्क वर्ष के रूप में दर्ज किये गए सितंबर 2019 से जारी खतरनाक ने वनाग्नि जैसी स्थिति को भी जन्म दिया जिसकी व्यापकता एवं भयावता ने संपूर्ण विश्व को झकझोर कर रख दिया। + +14211. सरकार, कंपनियाँ, उद्योग और जी20 देशों की जनता,जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 78 प्रतिशत के लिये ज़िम्मेदार हैं, के डीकार्बोनाइज़ेशन (अर्थात् किसी पदार्थ से कार्बन या कार्बनिक अम्‍ल को अलग करना) के लिये सटीक लक्ष्य और समयसीमा तय की जानी चाहिये ताकि इस दिशा में प्रभावी कार्यवाही संभव हो सके। + +14212. पश्चिमी यूरोप या अटलांटिक क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के कारण + +14213. अध्ययन में पाया गया है कि पिछले 30 वर्षों में इसकी बर्फ पिघलने की दर लगभग दोगुनी हो गई है। प्रतिवर्ष बर्फ के पिघलने से समुद्र स्तर के बढ़ने में इसका 4% का योगदान है। यदि इसके पिघलने की दर इसी तरह रही तो यह 200-900 वर्षों में समुद्र में समा जाएगा। + +14214. आद्रभूमि. + +14215. विश्व आर्द्रभूमि दिवस पहली बार 2 फरवरी, 1997 को रामसर सम्मेलन के 16 वर्ष पूरे होने पर मनाया गया था। + +14216. यूनेस्को (UNESCO) के अनुसार विश्व के 40% पौधों एवं जीवों की प्रजातियाँ आर्द्रभूमि में रहती हैं। + +14217. सतनामी संप्रदाय की स्थापना "बीरभान" नामक एक संत ने नारनौल में 1657 में की थी। + +14218. भारत में अपने अधिकारी नियुक्त करने का कंपनी का बहुमूल्य अधिकार उसी के हाथ में बना रहा। + +14219. लॉर्ड डलहौजी के समय ही डाक-टिकटों एवं तार लाइनों का आरंभ किया गया। + +14220. रेल-भाड़े को इस प्रकार तय किया गया था कि आयात-निर्यात को बढ़ावा मिले तथा वस्तुओं के आवागमन को हतोत्साहित किया जा सके। + +14221. भारतीय साम्राज्य को उसकी प्राकृतिक भौगोलिक सीमा तक फैलाने की अंग्रेज़ों की धुन के साथ पहले उनका उत्तर में स्थित नेपाल से टकराव हुआ। 1814 में दोनों के बीच युद्ध आरंभ हो गया। अंग्रेज़, नेपालियों से हर मामले में श्रेष्ठ थे। अंत में नेपाल की सरकार को ब्रिटेन की शर्तों पर बातचीत करनी पड़ी। नेपाल को गढ़वाल तथा कुमाऊँ के जिले छोड़ने पड़े तथा तराई के क्षेत्रों पर भी अपना दावा त्यागना पड़ा। उसे सिक्किम से भी हट जाना पड़ा। इस समझौते से भारतीय साम्रज्य हिमालय तक फैल गया। ब्रिटिशों को हिल स्टेशन बनाने के लिये शिमला, मसूरी और नैनीताल जैसे महत्त्वपूर्ण स्थान भी मिल गए। + +14222. ब्रिटिश सरकार ने कृषि के सुधार और आधुनिकीकरण की कोई भी ज़िम्मेदारी अपने ऊपर लेने से इनकार कर दिया। ब्रिटिश सरकार का सारा ध्यान केवल भू-राजस्व प्राप्त करने में था। + +14223. 2. बैंक से मिलने वाली पूंजी की विभेदकारी दर। + +14224. हिंदी विकि सम्मेलन २०२०/अंतिम रपट: + +14225. + +14226. भारतीय काव्यशास्त्र/वक्रोक्ति की अवधारणा: + +14227. + +14228. WIGH संस्थान ‘विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग’ (Department of Science & Technology- DST) के तहत एक स्वायत्त संस्थान है। + +14229. एक व्यक्ति पुरस्कार के लिये स्वयं आवेदन कर सकता है या अन्य व्यक्ति या संस्थान को नामित कर सकता है। + +14230. यह क्षेत्रीय पैमाने पर आम सहमति वाली एक मौसमी जलवायु संबंधी सूचना तैयार करता है जो राष्ट्रीय स्तर के आर्थिक दृष्टिकोण तैयार करने के लिये आधार प्रदान करते हैं। + +14231. SDRF को अगले वित्त वर्ष के लिये पहले से ही लगभग 29,000 करोड़ का आवंटन किया जा चुका है। + +14232. यह आपदा प्रबंधन के लिये नीतियों, योजनाओं एवं दिशा-निर्देशों का निर्माण करने के लिये ज़िम्मेदार संस्था है, जो आपदाओं के वक्त समय पर एवं प्रभावी प्रतिक्रिया सुनिश्चित करता है। + +14233. COVID- 19 महामारी पर कार्य कर स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा से संबंधित उपकरणों का आयात करने में भारतीय फार्मास्युटिकल कंपनियों की मदद करने के लिये भी भारत सरकार ने कदम उठाए हैं। इसके लिये भारत सरकार ने एयर इंडिया की शंघाई तथा हांगकांग कार्गो उड़ान संचालित करने के लिये चीन से मंज़ूरी प्राप्त कर ली है। + +14234. भारतीय नागरिकों की निकासी के लिये विदेश मंत्रालय, भारतीय वायुसेना, भारतीय नौसेना और एयर इंडिया की संयुक्त टीम ने ऑपरेशन को पूरा करने पर कार्य किया। + +14235. कोष आपदा प्रबंधन क्षमताओं को मज़बूत एवं नागरिकों की सुरक्षा हेतु अनुसंधान को प्रोत्साहित करेगा। + +14236. प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की धनराशि का इस्तेमाल अब प्रमुखतया बाढ़, चक्रवात और भूकंप आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं में मारे गए लोगों के परिजनों तथा बड़ी दुर्घटनाओं एवं दंगों के पीड़ितों को तत्काल राहत पहुँचाने के लिये किया जाता है। + +14237. प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष के अध्यक्ष होते हैं और अधिकारी/कर्मचारी अवैतनिक आधार पर इसके संचालन में उनकी सहायता करते हैं। + +14238. टिड्डी दल + +14239. भारत में टिड्डियों की प्रजाति + +14240. एक अकेली रेगिस्तानी मादा टिड्डी 90-80 दिन के जीवन चक्र के दौरान 60-80 अंडे देती है। + +14241. पश्चिमी हिंद महासागर में सकारात्मक हिंद महासागर द्विध्रुव या अपेक्षाकृत अधिक तापमान पाया गया परिणामस्वरूप भारत समेत पूर्वी अफ्रीका में घनघोर वर्षा हुई। + +14242. रेगिस्तानी टिड्डी झुंडों को नियंत्रित करने के लिये ऑर्गोफॉस्फेट रसायनों (organophosphate chemicals) का छिड़काव किया जा सकता है। यह छिड़काव उन क्षेत्रों में करना चाहिये जहाँ कृषि कार्य नहीं किये जा रहे हैं क्योंकि यह एक विषाक्त रसायन है। + +14243. टिड्डी चेतावनी संगठन + +14244. जोधपुर- यह संगठन के तकनीकी कार्यों की देखरेख करता है। + +14245. पिछले कुछ समय से ‘नाऊ कास्ट’ के माध्यम से मौसम विभाग ने अब कुछ घंटे पहले के मौसम की भविष्यवाणी करना आरंभ कर दिया है। + +14246. दोनों देशों के शीर्ष नेताओं ने सहमति जताई कि जलवायु परिवर्तन जैसी अन्य वैश्विक समस्याएँ समग्र मानवता को प्रभावित करती है, अत: इनमें अधिक मानवीय दृष्टिकोण की आवश्यकता है। + +14247. नतीजतन, महामारी की शुरुआत में सभी आधे से अधिक मरीज़ इस धर्मिक आंदोलन से संबंधित थे, जो कि कोरियाई आबादी का 1% से भी कम है। सामाजिक दूरी ने इस धार्मिक समुदाय को जो पहले से कोरियाई समाज के हाशिये पर है और अधिक खराब स्थिति में ला दिया है। + +14248. ईरान में इस महामारी के प्रत्येक मामले में वैश्वीकरण तथा अंतर्राष्ट्रीय पहलुओं से जोड़ा गया तथा राजनीतिक व धार्मिक प्रक्रियाओं ने इन मामलों को ओर तेज़ करने का कार्य किया। + +14249. हमें एक सैन्य शैली लॉकडाउन तथा सामाजिक दूरी से परे सोचने तथा दक्षिण विश्व में महामारी से निपटने में वैश्वीकरण से उत्पन्न समस्याओं के समाधान की आवश्यकता है। + +14250. राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (National Disaster Response Force- NDRF) बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक को-ऑपरेशन आपदा प्रबंधन अभ्यास के दूसरे संस्करण की मेजबानी ओडिशा में करेगा। + +14251. उष्ण कटिबंधीय चक्रवात निर्माण की अनुकूल स्थितियाँ: + +14252. चक्रवातों के स्थल पर पहुँचने पर आर्द्रता की आपूर्ति रुक जाती है जिससे ये क्षीण होकर समाप्त हो जाते हैं। + +14253. ‘डैम्पियर हॉजज़ लाइन’ (Dampier-Hodges line) एक काल्पनिक रेखा है जो 24 परगना दक्षिण और उत्तरी ज़िलों से होकर गुजरती है और ज्वार-भाटा से प्रभावित एश्चुअरी ज़ोन की उत्तरी सीमा को इंगित करती है। बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण के बाद भी क्षतिग्रस्त मैंग्रोव वन की पुनर्स्थापना में वर्षों लग सकते हैं। मैंग्रोव न केवल हवा की गति को कम करते हैं बल्कि चक्रवात के दौरान समुद्री लहरों की गति को भी कम करते हैं। + +14254. राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद मार्च 2018 में मेडागास्कर द्वीप का दौरा करने वाले पहले भारतीय राष्ट्रपति है। + +14255. इस परियोजना का उद्देश्य मानसून प्रणाली पर बंगाल की खाड़ी में समुद्री प्रक्रियाओं के प्रभाव की जाँच करना है। + +14256. इस परियोजना के तहत बंगाल की खाड़ी में होने वाले बदलावों का अवलोकन करने के लिये दो जहाज़, छह महासागरीय ग्लाइडर्स एवं आठ नावों को तैनात किया जाएगा। + +14257. चार रंग के कोड: वेबसाइट पर चेतावनी की विभिन्न श्रेणियों को इंगित करने के लिये चार रंग के कोड जारी किये जाते हैं। ये कोड निम्नलिखित हैं- + +14258. मौसम के खराब होने की संभावना के लिये तैयार रहने की चेतावनी जारी की जाती है। + +14259. अगले कुछ दिनों में मौसम के गंभीर रूप से खराब होने की संभावना है। यात्रा में देरी हो सकती है और लोगों को दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों में बाधा आने की संभावना को लेकर आगे की योजना बनाने के लिये एडवाइज़री जारी की जाती है। + +14260. + +14261. सिविल सेवा दिवस के रूप में 21 अप्रैल की तारीख इसलिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि 21 अप्रैल, 1947 को स्वतंत्र भारत के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने दिल्ली के मेटकाॅफ हाउस में प्रशासनिक सेवा के प्रोबेशनरी अधिकारियों को संबोधित करते हुए सिविल सेवकों को 'भारत का स्टील फ्रेम '(Steel Frame of India) कहा था। + +14262. सिविल सेवा दिवस के इस अवसर पर ‘लोक प्रशासन में विशिष्टता के लिये प्रधानमंत्री पुरस्कार’ (Prime Minister's Awards for Excellence in Public Administration) प्रदान किये जाते हैं। + +14263. तीसरे समूह में 7 संघ शासित प्रदेश शामिल किये गए हैं। + +14264. मुख्य बिंदु: + +14265. इस G- 20 सम्मेलन में सदस्य राष्ट्रों के अलावा आमंत्रित देश-स्पेन, जॉर्डन, सिंगापुर एवं स्विट्जरलैंड, के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय संगठन- संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations), विश्व बैंक समूह (World Bank Group), विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation), विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation), खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organisation), अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund) और आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (Organisation for Economic Cooperation and Development) के नेता शामिल होंगे। + +14266. G- 20 आभासी शिखर सम्मेलन का आयोजन COVID-19 का सामना करने के लिये विस्तृत योजना बनाने के उद्देश्य से आयोजित किया जा रहा है। + +14267. G-20 का उद्देश्य वैश्विक वित्त को प्रबंधित करना है। + +14268. इस सम्मेलन के बाद पेरिस समझौते (वर्ष 2015) के व्यापक कार्यान्वयन के लिये एक बयान जारी किया गया। + +14269. बैठक का आयोजन समान लेकिन विभेदित जिम्मेदारियाँ और संबंधित क्षमताएँ (Common but Differentiated Responsibilities and Respective Capabilities: CBDR-RC) के सिद्धांतों के आधार पर किया गया। बैठक में UNFCCC, क्योटो प्रोटोकॉल (वर्ष 1997-2012) और पेरिस समझौते के पूर्ण, प्रभावी एवं निरंतर कार्यान्वयन के महत्त्व को भी रेखांकित किया गया + +14270. भारत पहले ही 20 देशों के साथ व्हाइट शिपिंग समझौतों पर हस्ताक्षर कर चुका है, यह समुद्री सुरक्षा के दृष्टिकोण से बहुत महत्त्वपूर्ण है। + +14271. रूस, भारत तथा चीन के मध्य LAC पर उत्पन्न तनाव को कम करने में 'रचनात्मक संवाद’ (Constructive Dialogue) स्थापित करने में प्रमुख भूमिका निभा सकता है। 15 जून को गलवान घाटी (Galwan Valley) में चीनी सैनिकों के साथ मुठभेड़ में कम-से-कम 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे। तब से भारत के इस बैठक में भाग लेने को लेकर अनिश्चितता की स्थति बनी हुई थी। + +14272. भारत और चीन दोनों देशों के रूस के साथ बेहतर संबंध है ऐसे में रूस इन दोनों देशों के बीच सेतु का कार्य कर सकता है। + +14273. 25 और 26 अक्तूबर, 2019 को अज़रबैजान के बाकू में 18वें गुटनिरपेक्ष आंदोलन का शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया। भारत का प्रतिनिधित्व भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बजाय उपराष्ट्रपति एम. वेकैया नायडू ने किया। इस सम्मेलन से पहले वर्ष 2016 में भी भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बजाय तात्कालीन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने हिस्सा लिया था। + +14274. वैश्विक महामारी COVID-19 पर चर्चा करते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री ने ब्रिक्स देशों को लगभग 5 अरब डॉलर की वित्तीय सहायता उपलब्‍ध कराने के लिये ‘न्यू डेवलपमेंट बैंक’ द्वारा किये गए प्रयासों की सराहना की, जिसमें COVID-19 महामारी से निपटने के लिये भारत को 1 अरब डॉलर की आपातकालीन सहायता देना भी शामिल है। + +14275. FATF की स्थापना वर्ष 1989 में एक अंतर-सरकारी निकाय के रूप में हुई थी। FATF का उद्देश्य मनी लॉड्रिंग, आतंकवादी वित्तपोषण जैसे खतरों से निपटना और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली की अखंडता के लिये अन्य कानूनी, विनियामक और परिचालन उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन को बढ़ावा देना है। + +14276. जिन लिक्यून को पाँच वर्षों के दूसरे कार्यकाल के लिये चीन स्थित ‘एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक’(Asian Infrastructure Investment Bank- AIIB) के अध्यक्ष पद हेतु पुनः निर्वाचित किया गया. + +14277. भारत, AIIB में चीन (26.06%) के बाद दूसरा सबसे बड़ा शेयरधारक (7.62% वोटिंग शेयर के साथ) है। + +14278. 46वें G-7 शिखर सम्मेलन की मेज़बानी संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से. + +14279. अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (International Criminal Court-ICC). + +14280. इज़राइल को छोड़कर, कई अन्य देशों ने हेग स्थित न्यायाधिकरण का समर्थन किया है। संयुक्त राष्ट्र ने भी अमेरिका द्वारा दिये गए आदेशों की रिपोर्ट पर ध्यान दिया है। + +14281. अमेरिका ने मुकदमों के लिये संदिग्धों को अफ्रीका से ICC तक स्थानांतरित करने में भी महत्त्वपूर्ण सहायता प्रदान की। + +14282. 3. युद्ध अपराध (War Crimes) + +14283. 17 जुलाई, 2020 को भारतीय प्रधानमंत्री न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ की आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (Economic and Social Council- ECOSOC) के वार्षिक उच्च-स्तरीय खंड को आभासी रूप से संबोधित करेंगे। + +14284. यह आयोजन विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह पहला अवसर होगा जब भारतीय प्रधानमंत्री 17 जून, 2020 को सुरक्षा परिषद के गैर-स्थायी सदस्य (2021-22 के कार्यकाल के लिये) के रूप में भारत को निर्विरोध चुने जाने के बाद संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक एवं सामाजिक परिषद को संबोधित करेंगे। + +14285. भारत ने 28 अक्तूबर, 2019 को प्रधानमंत्री की सऊदी अरब यात्रा के लिये पाकिस्तान से ओवरफ्लाइट क्लीयरेंस की मांग की थी। + +14286. संयुक्त राष्ट्र आर्थिक तथा सामाजिक परिषद(United Nations Economic and Social Council-ECOSOC). + +14287. उपर्युक्त में से कौन-से कथन सही हैं?-(c) केवल 2 और 4 + +14288. संधि के तहत सदस्य देशों पर भ्रष्टाचार की रोकथाम करने और भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों को आपराधिक क़रार देने, अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने, चुराई गई संपत्तियों की वापसी सुनिश्चित करने और तकनीकी सहयोग और सूचना के आदान-प्रदान को संभव बनाना है. + +14289. बीते वर्ष 31 अक्तूबर, 2019 को विश्व व्यापार संगठन के विवाद निपटान पैनल ने निर्णय दिया था कि भारत की निर्यात संबंधी योजनाएँ (Export-Related Schemes) “सब्सिडी एवं प्रतिकारी उपाय समझौते” के तहत निषिद्ध सब्सिडी (Prohibited Subsidies) की प्रकृति में आती हैं और विश्व व्यापार संगठन के मानदंडों के साथ असंगत हैं। + +14290. USTR ने इस संदर्भ में भारत की 5 निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं (निर्यात उन्मुख इकाइयों की योजनाएँ व क्षेत्र-विशिष्ट योजनाएँ) का उल्लेख किया है, जोकि निम्नलिखित हैं- + +14291. संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (United Nations Convention on the Law of the Sea-UNCLOS). + +14292. आंतरिक जल (Internal Waters-IW): यह बेसलाइन की भूमि के किनारे पर होता है तथा इसमें खाड़ी और छोटे खंड शामिल हैं। + +14293. सल्फर ऑक्साइड के संबंध में यह नई सीमा जहाज़ों से होने वाले प्रदूषण की रोकथाम हेतु अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (MARPOL) का हिस्सा है। ज्ञात हो कि MARPOL अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन के तत्त्वावधान में की गई एक प्रमुख पर्यावरण संधि है। + +14294. UNSC चुनावों से पूर्व भारत का 'प्राथमिकता पत्र' अभियान. + +14295. UNSC के स्थायी तथा गैर-स्थायी सदस्य:-UNSC 15 सदस्यों से मिलकर बनी होती है, जिसमे पाँच स्थायी सदस्य; चीन, फ्रांँस, रूसी संघ, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं। दस गैर-स्थायी सदस्य महासभा द्वारा दो वर्ष के लिये चुने जाते हैं। गैर-स्थायी सदस्यों बेल्जियम, डोमिनिकन गणराज्य, एस्टोनिया, जर्मनी, इंडोनेशिया, नाइजर, सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस, दक्षिण अफ्रीका, ट्यूनीशिया, वियतनाम। + +14296. विश्व आर्थिक फोरम. + +14297. ILO ने विश्व रोज़गार और सामाजिक दृष्टिकोण रुझान रिपोर्ट (World Employment and Social Outlook Trends Report- WESO Trends Report), 2020 को प्रकाशित किया है। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में वैश्विक बेरोज़गारी में लगभग 2.5 मिलियन की वृद्धि का अनुमान है। ILO की इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020-2030 में विकासशील देशों में मध्यम या चरम कार्यशील गरीबी बढ़ने की उम्मीद है, जिससे वर्ष 2030 तक गरीबी उन्मूलन पर सतत् विकास लक्ष्य 1 (SDG- 1) को प्राप्त करने में बाधा आएगी। श्रम की कमी और खराब गुणवत्ता वाली नौकरियों का आशय है कि हमारी अर्थव्यवस्था और समाज मानव प्रतिभा के विशाल पूल के संभावित लाभों को गँवा रहे हैं। + +14298. इस संगठन की स्थापना प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् ‘लीग ऑफ नेशन्स’ (League of Nations) की एक एजेंसी के रूप में सन् 1919 में की गई थी। भारत इस संगठन का संस्थापक सदस्य रहा है। इस संगठन का मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा में स्थित है। वर्तमान में 187 देश इस संगठन के सदस्य हैं, जिनमें से 186 देश संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से हैं तथा एक अन्य दक्षिणी प्रशांत महासागर में अवस्थित ‘कुक्स द्वीप’ (Cook's Island) है। वर्ष 1969 में इसे प्रतिष्ठित ‘नोबेल शांति पुरस्कार’ प्रदान किया गया था। + +14299. गौरतलब है कि भारत ने वर्ष 2018 की तुलना में FDI प्राप्ति में 16% वृद्धि की है, जो दक्षिण एशिया के FDI प्राप्ति में वृद्धि का मुख्य कारण है। + +14300. अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ (Mike Pompeo) ने संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों से आग्रह किया है कि वे संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (Human Rights Council) में शामिल होने के लिये क्यूबा (Cuba) के दावे का समर्थन न करें। माइक पोम्पिओ ने क्यूबा द्वारा अन्य देशों को भेजे जाने वाले चिकित्सकों की प्रक्रिया को एक प्रकार की मानव तस्करी के रूप में परिभाषित किया। अन्य देशों में चिकित्सक भेजना क्यूबा के लिये विदेशी मुद्रा का एक मुख्य स्रोत है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिकी प्रशासन ने क्यूबा के साथ अपने राजनयिक रिश्तों को लगभग समाप्त कर दिया है। + +14301. गौरतलब है कि क्यूबा में लंबे समय तक आम लोगों की विदेश यात्रा पर प्रतिबंध लगा था और यह अधिकार केवल कुछ विशिष्ट लोगों के पास तक ही सीमित था। + +14302. क्यूबा की इस नीति ने और अधिक वाणिज्यिक रूप तब ले लिया, जब क्यूबा ने वेनेज़ुएला के साथ वर्ष 2000 और वर्ष 2005 में हस्ताक्षित दो व्यापार समझौतों के हिस्से के रूप में चिकित्सा सहयोग कार्यक्रम (Medical Cooperation Program) स्थापित किया। + +14303. इसलिये कई अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ क्यूबा की इस स्थिति को चिकित्सकों की मानव तस्करी के रूप में परिभाषित करते हैं। + +14304. संयुक्त राष्ट्र ने मौजूदा वित्तपोषण में कमी को देखते हुए सदस्य देशों से सहायता राशि बढ़ाने का आह्वान किया है। + +14305. UNRWA जॉर्डन, लेबनान, सीरिया, वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी में आपातकालीन मानवीय सहायता प्रदान कर रहा है। UNRWA स्वास्थ्य, शिक्षा, राहत कार्य और सामाजिक सेवाओं के माध्यम से इस क्षेत्र के लोगों को मौलिक सुविधाएँ प्रदान करके उनका जीवन स्तर सुधारने का प्रयास कर रहा है। + +14306. इज़राइल-फिलिस्तीन विवाद के वर्तमान कारण: + +14307. वर्ष 1947 में फिलिस्तीन-इज़राइल संघर्ष पर स्थायी समिति बनाई गई। + +14308. उपरोक्त प्रयासों के बावजूद भी आज तक इस समस्या का समाधान नही किया जा सका है। + +14309. 5जी हैकथॉन की शुरुआत केंद्रीय संचार मंत्रालय के दूरसंचार विभाग ने शिक्षाविदों और औद्योगिक हितधारकों के साथ मिलकर' किया है। + +14310. 5G हैकथॉन भारत और विदेशी तकनीकी डेवलपर्स,छात्रों,स्टार्ट-अप संचालकों,एसएमई,शैक्षणिक संस्थानों तथा पंजीकृत कंपनियों के लिये एक अवसर प्रदान करता है। + +14311. कारवाँ का नेतृत्त्व: + +14312. रोजगार से संबंधित सरकारी प्रयास. + +14313. डैशबोर्ड- रिपोर्ट, रुझान, विश्लेषण एवं अंतर को प्रमुखता से दिखाना। + +14314. विशेष रूप से व्यावसायिक दक्षता एवं आर्थिक विकास को बढ़ावा देने वाले एक कुशल कार्यबल की भर्ती के अलावा इस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस-आधारित प्लेटफॉर्म को उद्योग-संबंधित कुशल कार्यबल प्राप्त करने और COVID-19 के बाद की स्थितियों में उभरते नौकरी के अवसरों का पता लगाने में कार्यबल की मदद करने के लिये तैयार किया गया है। + +14315. CMIE की अक्तूबर 2019 रिपोर्ट के अनुसार, भारत में शहरी बेरोज़गारी दर 8.9% और ग्रामीण बेरोज़गारी दर 8.3% अनुमानित है। + +14316. यह ‘संयुक्त राष्ट्र’ की एक विशिष्ट एजेंसी है, जो श्रम संबंधी समस्याओं/मामलों, मुख्य रूप से अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानक, सामाजिक संरक्षा तथा सभी के लिये कार्य अवसर जैसे मामलों को देखती है। + +14317. वर्तमान में 187 देश इस संगठन के सदस्य हैं, जिनमें से 186 देश संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से हैं तथा एक अन्य दक्षिणी प्रशांत महासागर में अवस्थित ‘कुक्स द्वीप’ (Cook's Island) है। + +14318. जीवन कौशल पाठ्यक्रम, किसी व्यक्ति को कक्षा में अनुभव के माध्यम से सीखने हेतु प्रेरित करता है जिससे मानव जीवन की दिन-प्रतिदिन की समस्याओं से निपटा जा सके। + +14319. यू.के., जर्मनी तथा फ्राँस के बाद स्किल बिल्ड प्लेटफॉर्म लागू करने वाला भारत चौथा देश होगा। + +14320. ‘सहकार मित्र: इंटर्नशिप कार्यक्रम पर योजना’ (Sahakar Mitra: Scheme on Internship Programme). + +14321. NCDC ने स्टार्ट-अप सहकारी उपक्रमों को बढ़ावा देने के लिये एक पूरक योजना की भी शुरुआत की है। + +14322. NCDC और सहकारी समितियों के कामकाज से युवाओं को व्यावहारिक अनुभव प्राप्‍त करने एवं सीखने का अवसर मिलेगा। + +14323. यूनिवर्सल बेसिक इनकम. + +14324. UBI एक न्यूनतम आधारभूत आय की गारंटी है जो प्रत्येक नागरिक को बिना किसी न्यूनतम अर्हता के आजीविका के लिये हर माह सरकार द्वारा दी जाएगी। + +14325. इसका उद्देश्य तंबाकू के हानिकारक उपयोग एवं प्रभाव के विषय में जागरूकता फैलाना तथा किसी भी रूप में तंबाकू के उपयोग को हतोत्साहित करना है। + +14326. प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा सप्ताह पूरे देश में मनाया जाता है ताकि सड़कों को सुरक्षित बनाये जाने पर ज़ोर दिया जा सके। + +14327. अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस 12 अगस्त को मनाया जाता है। + +14328. प्रत्येक प्रयोगशाला भविष्य की रक्षा प्रणालियों जैसे- कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence), क्वांटम प्रौद्योगिकी (Quantum Technology), संज्ञानात्मक प्रौद्योगिकी (Cognitive Technology), असममित प्रौद्योगिकी (Asymmetric Technology) और स्मार्ट सामग्री (Smart Materials) के विकास के लिये उन्नत प्रौद्योगिकी पर काम करेगी। + +14329. हैदराबाद स्थित प्रयोगशाला में स्मार्ट सामग्री एवं उसके अनुप्रयोग से संबंधित महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में अनुसंधान किया जाएगा। + +14330. 1991 में पेरिस में हुई संयुक्त राष्ट्र की बैठक ने सिद्धांतों का एक समूह (जिन्हें पेरिस सिद्धांतों के नाम से जाना जाता है) तैयार किया जो आगे चलकर राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं की स्थापना और संचालन की नींव साबित हुए। + +14331. इन्हें केवल तभी हटाया जा सकता है जब सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की जाँच में उन पर दुराचार या असमर्थता के आरोप सिद्ध हो जाएं। + +14332. ‘पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक’ येल विश्वविद्यालय के 'सेंटर फॉर एनवायरनमेंटल लॉ एंड पॉलिसी' तथा कोलंबिया विश्वविद्यालय के 'सेंटर फॉर इंटरनेशनल अर्थ साइंस इंफॉर्मेशन नेटवर्क' की संयुक्त पहल है। EPI को ‘विश्व आर्थिक मंच’ (World Economic Forum- WEF) के सहयोग से तैयार किया जाता है। + +14333. जर्नल ऑफ जियोफिजिकल रिसर्च में प्रकाशित इस नए अध्ययन से पता चलता है कि सामान्य कारणों के अलावा भू-जल में मौसमी बदलाव से भी इस प्रकार की कमी या स्थिति परिवर्तन देखने को मिलता है। + +14334. ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम (GPS) जो कि उपग्रह आधारित नौवहन प्रणाली है, मुख्यत: तीन प्रकार की सेवाएँ प्रदान करती है- अवस्थिति, नेविगेशन एवं समय संबंधी सेवाएँ। ये सेवाएँ पृथ्वी की कक्षा में परिभ्रमण करते उपग्रहों की सहायता से प्राप्त की जाती हैं। + +14335. भारतीय भू-चुंबकत्व संस्थान + +14336. इस एप के संशोधित संस्करण में निम्नलिखित नौ अतिरिक्त श्रेणियों को शामिल किया गया है। + +14337. इस अभियान की शुरुआत आंध्रप्रदेश के रामावारप्पडू (Ramavarappadu) पंचायत से की गई। + +14338. यह गोदावरी की एक प्रमुख सहायक नदी है। महादेव पहाड़ियों से निकलने के बाद यह नदी दक्षिण की ओर बहती है और वर्धा नदी (Wardha River) से मिलने के बाद इन दोनों नदियों की संयुक्त धारा प्राणहिता नदी (Pranahita River) कहलाती है और आगे चलकर यह नदी तेलंगाना के कालेश्वरम में गोदावरी नदी से मिल जाती है। + +14339. इस नदी बेसिन का विस्तार मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र में है। इसकी कुल लंबाई लगभग 569 किमी + +14340. इस पद्धति में शहरी और अर्द्ध-शहरी क्षेत्र की खाली पड़ी सरकारी भूमि, सरकारी कार्यालय परिसर, आवासीय परिसर, स्कूल परिसर के बैकयार्ड को छोटे बागानों में बदल कर शहरी वनीकरण को बढ़ावा दिया जाता है। + +14341. पर्यावरण संरक्षण + +14342. भारत से संबंधित रिपोर्ट के महत्त्वपूर्ण तथ्य + +14343. ध्यातव्य है कि वर्ष 2019 में वैश्विक रूप से चरम मौसमी घटनाओं के कारण मारे गए लोगों में से 18 प्रतिशत से अधिक व्यक्ति एशिया और अफ्रीका से संबंधित थे। + +14344. अध्ययन: + +14345. किन्नौर ज़िले में कुल परिवर्तित वन भूमि में 11598 पेड़ खड़े थे जो 21 पादप प्रजातियों से संबंधित थे। + +14346. हिमाचल प्रदेश में देश की 10,000 मेगावाट की जल विद्युत परियोजनाओं की उच्चतम स्थापित क्षमता है और सतलज बेसिन में अवस्थित किन्नौर 53 जलविद्युत परियोजनाओं के साथ इस राज्य का जल विद्युत परियोजना केंद्र है। + +14347. प्रत्येक बार वन भूमि को गैर-वन उद्देश्यों जैसे- खनन या उद्योग के लिये परिवर्तित किया जाता है तो उपयोगकर्त्ता एजेंसी गैर-वन भूमि (या गैर-वन भूमि उपलब्ध नहीं है तो निम्नीकृत वन भूमि के दो गुना क्षेत्र) में वन लगाने के लिये भुगतान करती है। + +14348. किन्नौर ज़िले का एक बड़ा हिस्सा चट्टानी एवं ठंडा रेगिस्तान है जहाँ कुछ भी नहीं उगता है। + +14349. 15-22 फरवरी, 2020 तक गुजरात की राजधानी गांधीनगर में ‘वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण (Conservation of Migratory Species of Wild Animals-CMS) की शीर्ष निर्णय निर्मात्री निकाय कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP) के 13वें सत्र का आयोजन किया गया। + +14350. यह सम्मेलन इसलिये भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि मई 2019 में ‘जैव-विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिये अंतर-सरकारी विज्ञान नीति मंच (IPBES)’ द्वारा जैव-विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र पर जारी एक समीक्षा रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्तमान में वन्यजीवों और वनस्पतियों की लगभग 10 लाख प्रजातियाँ लुप्तप्राय की स्थिति में हैं। + +14351. इस सूची के परिशिष्ट-I में 7 प्रजातियों ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, एशियाई हाथी, बंगाल फ्लोरिकन, जगुआर, वाइट-टिप शार्क, लिटिल बस्टर्ड और एंटीपोडियन अल्बाट्राॅस को शामिल किया है। ध्यातव्य है कि CMS के परिशिष्ट-I में वन्यजीवों की लुप्तप्राय (Endangered) प्रजातियों को रखा जाता है। + +14352. COP-13 सम्मेलन के दौरान “गांधीनगर डिक्लेरेशन” नामक एक घोषणा-पत्र जारी किया गया, इस घोषणा-पत्र में प्रवासी पक्षियों और उनके वास स्थान के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में CMS की भूमिका की सराहना की गई। + +14353. आगामी दशकों में जैव-विविधता में सकारात्मक सुधार के लिये नीति-निर्धारण में ‘Post 2020 ग्लोबल फ्रेमवर्क’ के महत्त्व को स्वीकार किया गया है। + +14354. COP-13 सम्मेलन में पूर्वी अफ्रीका के देश इथिओपिया (Ethiopia) ने CMS द्वारा प्रवासी पक्षियों के संरक्षण के लिये स्थापित ‘CMS एमओयू ऑन कंजर्वेशन ऑफ माइग्रेटरी बर्ड्स ऑफ प्रे इन अफ्रीका एंड यूरेशिया’ नामक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए, इस समझौते को ‘रैप्टर समझौता-ज्ञापन (Raptor MOU)’ के नाम से भी जाना जाता है। यह समझौता अफ्रीका और यूरेशिया क्षेत्र में प्रवासी पक्षियों के शिकार पर प्रतिबंध और उनके संरक्षण को बढ़ावा देता है। भारत ने मार्च 2016 में इस समझौते पर हस्ताक्षर किये थे। + +14355. पर्यावरण प्रभाव आकलन. + +14356. NGT ने याचिकाकर्त्ताओं के इस तर्क पर ध्यान दिया कि OIL द्वारा 'पर्यावरणीय प्रभाव आकलन' (Environmenउt Impact Assessment- EIA)-2006, अधिसूचना के तहत सभी चरणों यथा; सार्वजनिक सुनवाई' (Public Hearing) तथा 'जैव विविधता मूल्यांकन' (Biodiversity Assessment) अध्ययन, का पालन नहीं किया गया है। + +14357. राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र’ (National Centre for Polar and Ocean Research- NCPOR) भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत एक स्वायत्तशासी अनुसंधान एवं विकास संस्थान है। यह ध्रुवीय एवं दक्षिणी महासागरीय क्षेत्र में देश की अनुसंधान गतिविधियों के लिये ज़िम्मेदार संस्थान है। यह केंद्र गोवा में स्थित है। + +14358. अमोनिया के उच्च स्तर का प्रभाव:- + +14359. वर्ष 1917 में बिहार में हुआ चंपारण सत्याग्रह, भारत में गाँधीजी का प्रथम सत्याग्रह था। यह सत्याग्रह ‘तिनकठिया पद्धति’ से संबंधित था। राजकुमार शुक्ल के आग्रह पर गाँधीजी ने चंपारण आने और कृषकों की समस्याओं की जाँच की थी। + +14360. यह एक प्रकार की कृत्रिम वर्षा होती है जिससे छोटे धूलकणों (मुख्य प्रदूषक पीएम 2.5) को नीचे भूमि पर लाने में मदद मिलती है। + +14361. इस अध्ययन के आधार पर, शोधकर्त्ताओं का एक समूह प्रेटिलाक्लोर की ऑन-साइट पहचान करने के लिये एक पेपर स्ट्रिप-आधारित सेंसर विकसित करने पर कार्य कर रहा है। + +14362. हर्बिसाइड प्रदूषण (Herbicide Pollution): + +14363. जलवायु परिवर्तन. + +14364. इस अध्ययन में जल असुरक्षा के निम्नलिखित कारणों की पहचान की गई है: + +14365. हिंदू-कुश हिमालय क्षेत्र के 12 नगरों में जल प्रबंधन संबंधी समस्या देखी गई है, ये इस प्रकार हैं: + +14366. भारतीय मौसम विज्ञान संस्थान'पुणे,द्वारा एक जलवायु पूर्वानुमान मॉडल विकसित. + +14367. वर्ष 2040 तक, वर्ष 1976-2005 की अवधि की तुलना में तापमान में 2.7 °C और इस सदी के अंत तक तापमान में 4.4 °C वृद्धि होने का अनुमान है। + +14368. रिपोर्ट के अनुसार, ‘एरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ’ Aerosol Optical Depth- AOD) में मौसम के साथ परिवर्तनशीलता देखने को मिलती है। दिसंबर-मार्च के शुष्क महीनों के दौरान AOD में वृद्धि की दर बहुत अधिक होती है। + +14369. ग्रेट निकोबार द्वीप के पांच समुद्र तटों का अस्तित्व प्लास्टिक के कारण ख़तरे में. + +14370. 23.9% कचरा इंडोनेशियाई मूल का तथा + +14371. इसके अलावा मलक्का जलडमरूमध्य जो एक प्रमुख जल मार्ग है, के माध्यम से जल धाराओं के कारण प्लास्टिक ने द्वीप पर अपना रास्ता बना लिया है। + +14372. इस बायोस्फीयर रिज़र्व में गैलाथिया नेशनल पार्क और कैम्पबेल बे नेशनल पार्क शामिल हैं। + +14373. समसामयिकी 2020/बौद्धिक संपदा अधिकार से संबंधित मुद्दे: + +14374. कम वर्षा होने के कारण इस क्षेत्र में लाल-टिब्बा रेत (Red-Dune Sand) में नमी कम होती है इसलिये पाल्मीरा वृक्षों (Palmyra Trees) का रस अधिक चिपचिपा होता है। + +14375. तमिलनाडु का यह क्षेत्र कभी वेट्रिलाई (Vetrilai-सुपारी) और करुप्पत्ति (Karuppatti-ताड़ गुड़) के सर्वाधिक उत्पादन के लिये जाना जाता था। + +14376. सूचकांक में शामिल दो नए देशों, ग्रीस और डोमिनिकन गणराज्य का स्कोर भारत से अच्छा है। गौरतलब है कि फिलीपीन्स और उक्रेन जैसे देश भी भारत से आगे हैं। + +14377. बौद्धिक संपदा अधिकारों के सृजन को बढ़ावा देना। + +14378. मानव संसाधनों संस्थानों की शिक्षण, प्रशिक्षण, अनुसंधान क्षमताओं को मजबूत बनाना और बौद्धिक संपदा अधिकारों में कौशल निर्माण करना। + +14379. वैश्विक मुद्दे. + +14380. ‘नेबरिंग राइट्स लॉ’ 24 जुलाई, 2019 को लागू हुआ था जिसका उद्देश्य प्रेस प्रकाशकों एवं समाचार एजेंसियों के पक्ष में पुनर्भुगतान हेतु मूल्य के बँटवारे को फिर से परिभाषित करने के लिये प्रकाशकों, समाचार एजेंसियों एवं डिजिटल प्लेटफार्मों के बीच संतुलित वार्ता हेतु शर्तों को निर्धारित करना है। + +14381. पेटेंट सहयोग संधि का उपयोग: + +14382. + +14383. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम(Micro,Small and Medium Enterprise- MSME)की स्थापना ‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम 2006’ के तहत की गई है,जिसे दो श्रेणियों में बाँटा गया है:- + +14384. इसके विपरीत युवा बड़ी फर्में (जिनमें 100 से अधिक कर्मचारी हैं और 10 वर्ष से कम पुरानी हैं) संख्या के हिसाब से केवल 5.5% हैं और रोज़़गार में 21.2% का योगदान देती हैं तथा NVA में इनका योगदान 37.2% है। + +14385. उदाहरण के लिये औद्योगिक विवाद अधिनियम (IDA), 1947 कंपनियों को कर्मचारियों की नियुक्ति से पहले सरकार से अनुमति प्राप्त करने के लिये बाध्य करता है। हालाँकि यह प्रतिबंध केवल 100 से अधिक कर्मचारियों वाली फर्मों पर ही लागू होता है। + +14386. असम, झारखंड, केरल, बिहार, गोवा, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल गैर लचीले राज्य हैं जबकि उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, गुजरात और हरियाणा को लचीले राज्यों के रूप में वर्गीकृत किया गया है। + +14387. इस चित्र में भारत में अल्ट्रासाउंड-आधारित प्रसव पूर्व देखभाल और सेक्स स्क्रीनिंग प्रौद्योगिकियों के आगमन से पहले और बाद में उच्च सेक्स अनुपात के अस्तित्व का सुझाव देता है। + +14388. n(n+2)(2n+1)/8,n=number of base triangle + +14389. पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु के बाद प्रथम शताब्दी में दक्षिण एशिया के अंदर इस्लाम का आरंभिक प्रवेश हुआ। उमायद खलीफा ने डमस्कस में बलूचिस्तान और सिंध पर ७११ में मुहम्मद बिन कासिन के नेतृत्व में चढ़ाई की। उन्होंने सिंध और मुलतान पर कब्जा कर लिया। उनकी मौत के ३०० साल बाद सुल्तान महमूद ग़ज़नवी, जो एक खूख्वार नेता थे, उन्होंने राजपूत राजशाहियों के विरुद्ध तथा धनवान हिन्दू मंदिरों पर छापामारी की एक श्रृंखला आरंभ की तथा भावी चढ़ाइयों के लिए पंजाब में अपना एक आधार स्थापित किया। वर्ष १०२४ में सुल्तान ने अरब सागर के साथ काठियावाड़ के दक्षिणी तट पर अपना अंतिम प्रसिद्ध खोज का दौर शुरु किया, जहां उसने सोमनाथ शहर पर हमला किया और साथ ही अनेक प्रतिष्ठित हिंदू मंदिरों पर आक्रमण किया। + +14390. दक्षिणी राज्य,हिमाचल प्रदेश, पंजाब, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र जनांकिकीय संक्रमण में पहले से इन स्थितियों में आगे है, + +14391. राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर विषम लिंगानुपात के कारण प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन दर सामान्य मानदंड 2.1 से अधिक है अर्थात् एक महिला को जनसंख्या का प्रतिस्थापन स्तर बनाए रखने के लिये 2.1 से अधिक की प्रजनन दर से बच्चों को जन्म देना होगा। + +14392. राष्ट्रीय स्तर पर: जनांकिकीय प्रक्षेपण दर्शाते हैं कि भारत की जनसंख्या वृद्धि अगले दो दशकों में लगातार धीमी रहेगी, यह 2021-31 के बीच 1 प्रतिशत से कम और 2031-41 के बीच 0.5 प्रतिशत से कम गिरेगी। वास्तव में कुल गर्भधारण दर के 2021 तक प्रतिस्थापन स्तर से काफी नीचे गिरने के अनुमान सहित। + +14393. हिंदी पत्रकारिता/डिजिटल युग में पत्रकारिता: + +14394. ऑन-लाइन पत्रकारिता, हिन्दी ब्लॉग, हिन्दी ई-पत्र-पत्रिकाएँ, हिन्दी ई-पोर्टल, हिन्दी वेबसाइट्स, हिन्दी विकिपीडिया आदि के रूप में नव-जनमाध्यम आधारित हिन्दी पत्रकारिता के विविध स्वरूपों को समझा जा सकता है। + +14395. सर सुरेन्द्रनाथ बनर्जी का जन्म 10 नवंबर 1848 को कलकत्ता में हुआ था। उन्होंने 26 जुलाई 1876 को इंडियन एसोसिएशन की स्थापना की जिसका उद्देश्य अखिल भारतीय राजनीतिक आंदोलन का केंद्र था। नेशनल कॉन्फ्रेंस का पहला सत्र 28-30 दिसंबर वर्ष 1883 को कलकत्ता में आयोजित किया गया था, और इसमें भारत के विभिन्न हिस्सों से सौ से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। + +14396. इंडियन लीग: यह वर्ष 1875 में शिशिर कुमार घोष द्वारा "लोगों में राष्ट्रवाद की भावना जागृत करने" और राजनीतिक शिक्षा को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। अत: युग्म 2 सुमेलित नहीं है। + +14397. विश्वविद्यालयों, नगर पालिकाओं, ज़मींदारों और चैंबर ऑफ कॉमर्स द्वारा सदस्यों की सिफारिश की जा सकती थी। इसलिये इस अधिनियम द्वारा पहली बार प्रतिनिधित्व के सिद्धांत को स्वीकार किया गया था। + +14398. राष्ट्रवादी आंदोलन (1905-1918) उग्र राष्ट्रवाद का विकास. + +14399. 1906 में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की स्थापना एक ब्रिटिश वफादार, सांप्रदायिक और रूढ़िवादी राजनीतिक संगठन के रूप में हुई और उसने उपनिवेशवाद की कोई आलोचना नहीं की। मुस्लिम लीग ने बंगाल विभाजन का समर्थन किया। इस तरह जब राष्ट्रीय कांग्रेस साम्राज्यवाद-विरोधी आर्थिक और राजनीतिक प्रश्न उठा रही थी, तब मुस्लिम लीग और प्रतिक्रियावादी नेता यह विचार कर रहे थे कि मुसलमानों के हित हिन्दुओं के हितों से अलग हैं। मुस्लिम लीग की राजनीतिक गतिविधियाँ विदेशी शासन के खिलाफ नहीं बल्कि हिन्दुओं और राष्ट्रीय कांग्रेस के खिलाफ थी। + +14400. 4. अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव (1896 में इथियोपिया के हाथों इटली की सेना का तथा 1905 में जापान के हाथों रूस की हार ने यूरोपीय अपराजेयता का भ्रम तोड़ दिया।) + +14401. समसामयिकी 2020/डिजिटल प्रौद्योगिकी तथा संबंधित अवधारणाएँ: + +14402. लॉकडाउन के दौरान अधिकतर कंपनियों ने इंटरनेट के माध्यम से घर पर रहकर काम करने का विकल्प अपनाया। साथ ही स्कूलों और कॉलेजों द्वारा ई-लर्निंग जैसी पहल की शुरुआत के कारण दूरसंचार क्षेत्र पर दबाव बढ़ा है। + +14403. इन नियमों के तहत मोबाइल टावर लगाने, ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाने का लाइसेंस और अनुमति देने तथा समयबद्ध तरीके से विवादों को निपटाने की रूपरेखा प्रस्तुत की गई है। + +14404. TAIPA के अनुसार, देश के दूरसंचार नेटवर्क क्षमता को बढ़ाने के लिये वर्तमान अवसंरचना के उन्नयन के साथ ही नए उपकरणों की मात्रा में भी वृद्धि करनी होगी। + +14405. NavIC के उपग्रह दो माइक्रोवेव फ्रीक्वेंसी बैंड पर सिग्नल देते हैं, जो L5 और S के नाम से जाने जाते हैं। + +14406. नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज कंपनीज(National Association of Software and Services Companies- NASSCOM) एक गैर-लाभकारी औद्योगिक संघ है जो भारत में IT उद्योग के लिये सर्वोच्च निकाय है। वर्ष 1988 में स्थापित NASSCOM के महत्त्वपूर्ण प्रयासों के कारण भारत के IT (Information Technology) और BPO (Business Process Outsourcing) उद्योग में काफी सहयोग मिल रहा है। + +14407. एज कंप्यूटिंग का सर्वाधिक लाभ यह है कि यह डेटा की प्रोसेससिंग तथा संग्रह तीव्रता से कर सकता है जिससे यूज़र के लिये आवश्यक रियल-टाइम एप्लीकेशन की दक्षता को बढ़ाया जा सके। + +14408. क्वांटम सिद्धांत आधुनिक भौतिकी का सिद्धांत है जिसके अंतर्गत किसी पदार्थ की प्रकृति तथा व्यवहार का अध्ययन उसके परमाण्विक स्तर पर किया जाता है। + +14409. इस डिजिटल मुद्रा या डिजिटल युआन को आधिकारिक तौर पर डिजिटल मुद्रा/इलेक्ट्रॉनिक भुगतान (Digital Currency/Electronic Payment-DC/EP) परियोजना के रूप में जाना जा रहा है। + +14410. + +14411. + +14412. २)एक भाषा के विभिन्न बोलियां बोलने वाले परस्पर एक दूसरे को समझ लेते हैं किंतु विभिन्न भाषाएं बोलने वाले दूसरे को समझ नहीं सकते अर्थात भाषाओं की विभिन्न बोलियों में बोधगम्यता होती है। जैसे खड़ी बोली में 'जाता हूं' बोलने वाला ब्रजभाषा का 'जात हौ' आसानी से समझ लेगा। लेकिन अंग्रेजी का 'आई गो' नहीं समझ सकेगा। + +14413. १) प्राकृतिक कारण- + +14414. + +14415. छायावाद और हिंदी की स्वच्छंदतावादी कविता के प्रमुख आधार स्तंभ निराला का काव्य-संसार बहुत व्यापक है। उनमें भारतीय इतिहास, दर्शन और परंपरा का व्यापक बोध है और समकालीन जीवन के यथार्थ के विभिन्न पक्षों का चित्रण भी । भावों और विचारों की जैसी विविधता, व्यापकता और गहराई निराला की कविताओं में मिलती है वैसी बहुत कम कवियों में है। उन्होंने भारतीय प्रकृति और संस्कृति के विभिन्न रूपों का गंभीर चित्रण अपने काव्य में किया है। भारतीय किसान जीवन से उनका लगाव उनकी अनेक कविताओं में व्यक्त हुआ है। + +14416. हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक)/खेत जोत कर घर आए हँ: + +14417. ओ क्षणभंगुर भव, राम राम ! + +14418. ओ क्षणभंगुर भव, राम राम ! + +14419. ओ क्षणभंगुर भव, राम राम ! + +14420. ओ क्षणभंगुर भव, राम राम ! + +14421. ओ क्षणभंगुर भव, राम राम ! + +14422. ओ क्षणभंगुर भव, राम राम ! + +14423. ओ क्षणभंगुर भव, राम राम ! + +14424. ओ क्षणभंगुर भव, राम राम ! + +14425. ओ क्षणभंगुर भव, राम राम ! + +14426. ओ क्षणभंगुर भव, राम राम ! + +14427. ओ क्षणभंगुर भव, राम राम ! + +14428. ओ क्षणभंगुर भव, राम राम ! + +14429. ओ क्षणभंगुर भव, राम राम ! + +14430. ओ क्षणभंगुर भव, राम राम ! + +14431. ओ क्षणभंगुर भव, राम राम ! + +14432. ओ क्षणभंगुर भव, राम राम ! + +14433. ओ क्षणभंगुर भव, राम राम ! + +14434. ओ क्षणभंगुर भव, राम राम ! + +14435. ओ क्षणभंगुर भव, राम राम ! + +14436. ओ क्षणभंगुर भव, राम राम ! + +14437. ओ क्षणभंगुर भव, राम राम ! + +14438. ओ क्षणभंगुर भव, राम राम ! + +14439. ओ क्षणभंगुर भव, राम राम ! + +14440. ओ क्षणभंगुर भव, राम राम ! + +14441. ओ क्षणभंगुर भव, राम राम ! + +14442. ओ क्षणभंगुर भव, राम राम ! + +14443. ओ क्षणभंगुर भव, राम राम ! + +14444. ओ क्षणभंगुर भव, राम राम !
+ +14445. दीप-शिखा है अँधेरे की, घनी घटा की उजियाली + +14446. वही मचलना, वही किलकना, हँसती हुई नाटिका है। + +14447. प्रभु ईसा की क्षमाशीलता, नबी मुहम्मद का विश्वास + +14448. हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक)/मैथिलीशरण गुप्त: + +14449. मैथिलीशरण गुप्त का जन्म पिता सेठ रामचरण कनकने और माता काशी बाई की तीसरी संतान के रूप में उत्तर प्रदेश में झांसी के पास चिरगांव में हुआ। माता और पिता दोनों ही वैष्णव थे। विद्यालय में खेलकूद में अधिक ध्यान देने के कारण पढ़ाई अधूरी ही रह गयी। रामस्वरूप शास्त्री, दुर्गादत्त पंत, आदि ने उन्हें विद्यालय में पढ़ाया। घर में ही हिन्दी, बंगला, संस्कृत साहित्य का अध्ययन किया। मुंशी अजमेरी जी ने उनका मार्गदर्शन किया। पिता रामचरण गुप्त 'कनकलता' उपनाम से भक्तिपूर्ण कविताएँ लिखते थे। बालक मैथिलीशरण पर इस साहित्यिक परिवेश का प्रभाव पड़ा और वह १२ वर्ष की अवस्था से ही ब्रजभाषा में कविता करने लगे। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के सम्पर्क में भी आये। उनकी कवितायें खड़ी बोली में मासिक "सरस्वती" में प्रकाशित होना प्रारम्भ हो गई। + +14450. महाकाव्य- साकेत, जयभारत + +14451. अनूदित (मधुप के नाम से)- + +14452. पत्रों का संग्रह - पत्रावली + +14453. गुप्त जी के काव्य में राष्ट्रीयता और गांधीवाद की प्रधानता है। इसमें भारत के गौरवमय अतीत के इतिहास और भारतीय संस्कृति की महत्ता का ओजपूर्ण प्रतिपादन है। आपने अपने काव्य में पारिवारिक जीवन को भी यथोचित महत्ता प्रदान की है और नारी मात्र को विशेष महत्व प्रदान किया है। गुप्त जी ने प्रबंध काव्य तथा मुक्तक काव्य दोनों की रचना की। शब्द शक्तियों तथा अलंकारों के सक्षम प्रयोग के साथ मुहावरों का भी प्रयोग किया है। + +14454. उसका कि जो ऋषि भूमि है, वह कौन, भारतवर्ष है। + +14455. जयशंकर प्रसाद
+ +14456. '" रचनाएँ + +14457. कहानी संग्रह + +14458. प्रसाद ने तीन उपन्यास लिखे हैं। 'कंकाल', में नागरिक सभ्यता का अंतर यथार्थ उद्घाटित किया गया है। 'तितली' में ग्रामीण जीवन के सुधार के संकेत हैं। प्रथम यथार्थवादी उन्यास हैं ; दूसरे में आदर्शोन्मुख यथार्थ है। इन उपन्यासों के द्वारा प्रसाद जी हिंदी में यथार्थवादी उपन्यास लेखन के क्षेत्र में अपनी गरिमा स्थापित करते हैं। 'इरावती' ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर लिखा गया इनका अधूरा उपन्यास है जो रोमांस के कारण ऐतिहासिक रोमांस के उपन्यासों में विशेष आदर का पात्र है। इन्होंने अपने उपन्यासों में ग्राम, नगर, प्रकृति और जीवन का मार्मिक चित्रण किया है जो भावुकता और कवित्व से पूर्ण होते हुए भी प्रौढ़ लोगों की शैल्पिक जिज्ञासा का समाधान करता है। + +14459. इनके नाटकों पर अभिनेय न होने का आरोप है। आक्षेप लगता रहा है कि वे रंगमंच के हिसाब से नहीं लिखे गए है जिसका कारण यह बताया जाता है कि इनमें काव्यतत्व की प्रधानता, स्वगत कथनों का विस्तार, गायन का बीच बीच में प्रयोग तथा दृश्यों का त्रुटिपूर्ण संयोजन है। किंतु उनके अनेक नाटक सफलतापूर्वक अभिनीत हो चुके हैं। उनके नाटकों में प्राचीन वस्तुविन्यास और रसवादी भारतीय परंपरा तो है ही, साथ ही पारसी नाटक कंपनियों, बँगला तथा भारतेंदुयुगीन नाटकों एवं शेक्सपियर की नाटकीय शिल्पविधि के योग से उन्होंने नवीन मार्ग ग्रहण किया है। उनके नाटकों के आरंभ और अंत में उनका अपना मौलिक शिल्प है जो अत्यंत कलात्मक है। उनके नायक और प्रतिनायक दोनों चारित्रिक दृष्टि के गठन से अपनी विशेषता से मंडित हैं। इनकी नायिकाएँ भी नारीसुलभ गुणों से, प्रेम, त्याग, उत्सर्ग, भावुक उदारता से पूर्ण हैं। उन्होंने अपने नाटकों में जहाँ राजा, आचार्य, सैनिक, वीर और कूटनीतिज्ञ का चित्रण किया है वहीं ओजस्वी, महिमाशाली स्त्रियों और विलासिनी, वासनामयी तथा उग्र नायिकाओं का भी चित्रण किया है। चरित्रचित्रण उनके अत्यंत सफल हैं। चरित्रचित्रण की दृष्टि से उन्होंने नाटकों में राजश्री एवं चाणक्य को अमर कर दिया है। नाटकों में इतिहास के आधार पर वर्तमान समस्याओं के समाधान का मार्ग प्रस्तुत करते हुए वे मिलते हैं। किंतु गंभीर चिंतन के साथ स्वच्छंद काव्यात्मक दृष्टि उनके समाधान के मूल में है। कथोपकथन स्वाभाविक है किंतु उनकी भाषा संस्कृतगर्भित है। नाटकों में दार्शनिक गंभीतरता का बाहुल्य है पर वह गद्यात्मक न होकर सरस है। उन्होंने कुछ नाटकों में स्वगत का भी प्रयोग किया है किंतु ऐसे नाटक केवल चार हैं। भारतीय नाट्य परंपरा में विश्वास करने के कारण उन्होंने नाट्यरूपक 'कामना' के रूप में प्रस्तुत किया। ये नाटक प्रभाव की एकता लाने में पूर्ण सफल हैं। अपनी कुछ त्रुटियों के बावजूद प्रसाद जी नाटककार के रूप में हिंदी में अप्रतिम हैं। + +14460. पक्ष + +14461. तारा घट ऊषा नागरी। + +14462. अधरों में राग अमंद पिये + +14463. इसके अतिरिक्त प्रकृति का आलंकारिक, मानवीकृत, उद्दीपक और उपदेशिका स्वरूप भी प्रसादजी के काव्य में प्राप्त होता है। 'प्रसाद' प्रेम और आनन्द के कवि हैं। प्रेम-मनोभाव का बड़ा सूक्ष्म और बहुविध निरूपण आपकी रचनाओं में हुआ है। प्रेम का वियोग-पक्ष और संयोग-पक्ष, दोनों ही पूर्ण छवि के साथ विद्यमान हैं। 'आँसू' आपका प्रसिद्ध वियोग काव्य है। उसके एक-एक छन्द में विरह की सच्ची पीड़ा का चित्र विद्यमान है; यथा- + +14464. खिला हो ज्यों बिजली का फूल, मेघ-वन बीच गुलाबी रंग।। + +14465. '"भाषा + +14466. "'शैली + +14467. प्रसाद जी ने विविध छन्दों के माध्यम से काव्य को सफल अभिव्यक्ति प्रदान की है। भावानुसार छन्द-परिवर्तन 'कामायनी' में दर्शनीय है। 'आँसू' के छन्द उसके विषय में सर्वधा अनुकूल हैं। गीतों का भी सफल प्रयोग प्रसादजी ने किया है। भाषा की तत्समता, छन्द की गेयता और लय को प्रभावित नहीं करती है। 'कामायनी' के शिल्पी के रूप में प्रसादजी न केवल हिन्दी साहित्य की अपितु विश्व साहित्य की विभूति हैं। आपने भारतीय संस्कृति के विश्वजनीन सन्दर्भों को प्रस्तुत किया है तथा इतिहास के गौरवमय पृष्ठों को समक्ष लाकर हर भारतीय हृदय को आत्म-गौरव का सुख प्रदान किया है। हिन्दी साहित्य के लिए प्रसाद जी माँ सरस्वती का प्रसाद हैं। + +14468. हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक)/रामधारी सिंह दिनकर: + +14469. बी.ए. (आनर्स) करने के बाद दिनकर जी एक तर्ष तक मोकामा-घट के हाईस्‍कूल में प्रधानाचार्य रहे। सन् 1934 ई. में वे सरकारी नौकरी में आए तथा सन् 1934 ई. में ही बिटिश सरकार के युद्ध-प्रचार विभाग में उपनिदेशक नियुक्‍त किए गए। कुद समय बाद वे 'मुजफ्फरपुर कॉलेज में हिन्‍दी-विभागाध्‍यक्ष हुए। सन् 1952 ई. में भारत के राष्‍ट्रपति ने इन्‍हें राज्‍यसभा का सदस्‍य मनोनीत किया। जहां वे सन् 1962 ई. तक रहें। सन् 1963 ई. में वे 'भागलपुर विश्‍वविद्यालय' के कुलपति नियुक्‍त किए गए। दिनकर जी ने भारत सरकार की हिन्‍दी-समिति के सलाहकार ओर आकाशवाणी के निदेशक के रूप में भी कार्य किया। + +14470. "'निबन्‍ध + +14471. भाषा- दिनकर जी की भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ीबोली है, + +14472. समीक्षात्‍मक शैली + +14473. + +14474. सुभद्रा कुमारी चौहान की 'खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी' कविता की चार पंक्तियों से पूरा देश आजादी की लड़ाई के लिए उद्वेलित हो गया था। ऐसे कई रचनाकार हुए हैं जिनकी एक ही रचना इतनी ज़्यादा लोकप्रिय हुई कि उसकी आगे की दूसरी रचनाएँ गौण हो गईं, जिनमें सुभद्राकुमारी भी एक हैं। उन्होंने ज्यादा कुछ नहीं लिखा है। उनकी एक ही कविता 'झाँसी की रानी' लोगों के कंठ का हार बन गई है। एक इसी कविता के बल पर वे हिंदी साहित्य में अमर हो गई हैं। + +14475. सिंहावन हिल उठे, राजवंशों ने भ्रकुटी तानी थी + +14476. मेरा मंदिर, मेरी मस्जिद, काबा-काशी यह मेरी + +14477. जीव दया जिन पर गौतम की, आओ देखो इसके पास । + +14478. आओ प्रिय ऋतुराज? किंतु धीरे से आना + +14479. सुभद्रा की शादी अपने समय को देखते हुए क्रांतिकारी शादी थी। न लेन-देन की बात हुई, न बहू ने पर्दा किया और न कड़ाई से छुआछूत का पालन हुआ। दूल्हा-दुलहन एक-दूसरे को पहले से जानते थे, शादी में जैसे लड़के की सहमति थी, वैसे ही लड़की की भी सहमति थी। बड़ी अनोखी शादी थी-हर तरह लीक से हटकर। ऐसी शादी पहले कभी नहीं हुई थी। + +14480. कुछ न कुछ जादू सुभद्रा जी में अवश्य था और यह जादू ऐसा था जिसका प्रभाव अकेले उनके पति लक्ष्मण सिंह पर नहीं, बल्कि अन्य सब लोगों पर भी पड़ा जो कभी भी उनके संपर्क में आया और वह जादू था सुभद्रा जी के सहज स्नेही मन और निश्छल स्वभाव का। उनका जीवन प्रेम से भरा था और निरंतर निर्मल प्यार लुटाकर भी खाली नहीं होता था। + +14481. उस समय हिंदी में आज की तुलना में लेखक कम थे और लेखिकाएँ तो और भी कम थीं। पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर ही सुभद्रा जी की कविताओं ने पाठकों का ध्यान अपनी ओर बहुत आकर्षित कर लिया था। विशेषतः 'झाँसी की रानी' तो बहुत ही लोकप्रिय हुई थी। अब मुकुल के रूप में उनका संग्रह प्रकाशित होने पर सब ओर से बहुत-बहुत बधाइयाँ मिलीं। + +14482. छोटे भी खद्दर का कुर्ता पेटी से ले आएगा। + +14483. एक बार मुक्तिबोध के घर अज्ञेग जी आए और बीमार पड़ गए। मुक्तिबोध और अज्ञेय के सोकर उठने से पहले ही उनके घर पर सुभद्रा जी का चक्कर लग जाता। दोपहर को भी घर पर उपस्थित रहतीं। शाम को भी देखो तो वे वहीं हैं। घर का सारा कार्य खुद करती थीं। पता नहीं, कैसे इतना समय निकालकर दो-दो घर सँभालती थीं ! समय तो और भी बहुत से कामों के लिए निकाल लेती थीं। मुक्तिबोध जिस स्कूल में पढ़ाते थे उसकी प्रबंधकारिणी समिति शिक्षकों को समय पर और पूरा वेतन देने में विश्वास नहीं करती थी। मुक्तिबोध को कई महीनों तक वेतन नहीं मिला। सुभद्रा जी को मालूम हुआ तो उन्होंने स्कूल के अधिकारियों पर जोर डालकर उनका वेतन दिलवाया। + +14484. कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान की समकालीन कवयित्रियों में महादेवी वर्मा तो थीं ही, किशोरी देवी, राजकुमारी, विद्यावती 'कोकिल', राजकुमारी की बहन, रामेश्वरी देवी 'चकोरी', विष्णु कुमारी 'मंजु” तथा तोरणदेवी 'लली' भी थीं। इनमें से महादेवी वर्मा और विद्यावती 'कोकिल' को छोड़कर किसी ने इतना विपुल गद्य नहीं लिखा-जितना महादेवी और सुभद्रा जी ने। सुभद्रा जी को जीवन भी छोटा मिला-केवल 44 वसंत उन्होंने देखे-फिर भी इस दौरान उन्होंने विपुल साहित्य सृजन किया। + +14485. सुभद्राकुमारी चौहान ने स्त्री की निजी स्वाधीनता और उससे जुड़े यथार्थ को अभिव्यक्ति देने के लिए अपनी कविताओं और कहानियों में छायावादी भाषा से विद्रोह किया। छायावादी काव्य की मूलभूत प्रवृत्तियों के साथ समान रूप से उनके जुड़ाव के साथ ही यह तथ्य है कि उनका गद्य-और गद्य ही नहीं, उनकी जीवन प्रक्रिया भी जिंदगी के सहज और जरूरी सरोकारों से जुड़ी हुई थी। सुभद्रा जी के साहित्य में इसीलिए जमीन का वह स्पर्श हमें दिखाई देता है जो हिंदी के पहले बड़े कथाकार प्रेमचंद में है। + +14486. सामाजिक रूढ़ियों और विसंगतियों को लेकर एक गहरा क्षोभ उनकी सारी कहानियों में व्याप्त है। पारिवारिक त्रासदियों, आदमी और औरत के रिश्तों के संकटों और यातनाओं के प्रति उनमें गहरा मानवीय सरोकार है। 'तीन बच्चे” पुरुष अत्याचार से मुक्ति की कहानी है तो 'कल्याणी', 'मछुए की बेटी' तथा “कैलासी नानी' नारी केंद्रित हैं। + +14487. 12 फरवरी, 1948 को गांधी जी की अस्थियाँ नर्मदा में विसर्जन करने के लिए लाई गईं। सुभद्रा जी सदलबल गांधी जी का अस्थियाँ लेने मदनमहल स्टेशन गईं और पुलिस का घेरा तोड़ा। + +14488. जबलपुर के निवासियों ने चंदा इकट्ठा करके नगरपालिका प्रांगण में सुभद्रा जी की आदमकद प्रतिमा लगवाई जिसका अनावरण 27 नवंबर, 1949 को एक और कवयित्री तथा उनकी बचपन की सहेली महादेवी वर्मा ने किया प्रतिमा-अनावरण के समय भदंत आनंद कौसल्यायन, बच्चन जी, डॉ० रामकुमार वर्मा और इलाचंद्र जोशी भी उपस्थित थे। महादेवी जी ने इस अवसर पर कहा-“नदियों का कोई स्मारक नहीं होता। दीपक की लौ को सोने से मढ़ दीजिए पर इससे क्या होगा? हम सुभद्रा के संदेश को दूर-दूर तक फैलाएँ और आचरण में उसके महत्त्व को मानें-यही असल स्मारक है।” + +14489. समसामयिकी 2020/विकास और रोजगार: + +14490. उल्लेखनीय है कि भारत में कुल 2.63 लाख ग्राम पंचायतें हैं। + +14491. नेताजी सुभाष चंद्र बोस. + +14492. दिसंबर 1941 के अंत में कैप्टन मोहन सिंह इसके लिए सहमत हो गए। फरवरी/मार्च 1942 में मोहन सिंह के नेतृत्व में इंडियन नेशनल आर्मी का गठन किया गया जिसमें जापान के मलय अभियान के तहत पराजित ब्रिटिश सेना के भारतीय सैनिकों को शामिल किया गया था।स्पष्ट है कि INA का विचार सूत्र ज्ञानी प्रीतम सिंह एवं फूजीवारा(इसलिए इन्हें INA का मानसिक पुत्र कहा जाता है।) ने दिया,जिसे कैप्टन मोहन सिंह ने उसे प्रथम नेतृत्व प्रदान करने का साहसिक कार्य किया।इसकी पहली डिविज़न का औपचारिक गठन 1 सितंबर 1942 को हुआ और कैप्टन मोहन सिंह इसके प्रथम सेनापति बने। 4 जुलाई 1943 को रास बिहारी बोस ने आजाद हिंद फौज की कमान सुभाष चंद्र बोस को सौंप दी। + +14493. सिंगापुर(तत्कालीन मलय) में अपने नाविकों को आवाहन करते हुए सुभाष चंद्र बोस ने कहा था-बहुत त्याग किया है, किंतु अभी प्राणों की आहुति देना शेष है,आजादी को आज हमें अपने शीश फल चढ़ा देने वाले पागल पुजारी की आवश्यकता है, जो अपना सिर काटकर स्वाधीनता की देवी को भेंट चढ़ा सके, "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।" बोस द्वारा दिया गया जय हिंद का नारा आजाद हिंद फौज में नमस्कार का एक ढंग था तथा आज हमारे सारे देश का नारा हो गया है। + +14494. वास्तव में सम्पादन एक कला है। इसमें समाचारों, लेखों, या कहें कि किसी समाचार पत्र-पत्रिका में प्रकाशित की जाने वाली सभी तरह की सामग्री का चयन किया जाता है। सम्पादन आसान काम नहीं है। इसमें मेधा, निपुणता और अभिप्रेरणा की आवश्यकता होती है। जे. एडवर्ड मर्रे ने ठीक ही कहा है – “Because copy editing is an art, the most important ingredient after training and talent is strong motivation. Not only he should know his job but also he must love it………” + +14495. गांधी-इरविन समझौता(5मार्च 1931/दिल्ली समझौता). + +14496. इन चर्चाओं के परिणामस्वरूप 14 फरवरी, 1931 को दिल्ली में ब्रिटिश भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वायसराय और भारतीय लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले गांधी के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए। + +14497. सरकारी सेवाओं से त्यागपत्र दे चुके भारतीयों के मुद्दे पर सहानुभूति पूर्वक विचार विमर्श किया जायेगा। + +14498. पुलिस द्वारा किये गए अत्याचारों की सार्वजनिक जाँच। अतः कथन 2 सही नहीं है। + +14499. 27 मई 1930 को साइमन कमीशन की रिपोर्ट प्रकाशित हुई। राजनीतिक संगठनों ने कमीशन की सिफारिशों को अस्वीकार कर दिया। ब्रिटिश सरकार द्वारा लंदन में भारतीय नेताओं और सरकारी प्रवक्ताओं का पहला गोलमेज़ सम्मेलन आयोजित किया। इसका उद्देश्य साइमन कमीशन की रिपोर्ट पर विचार करना था। कांग्रेस के प्रमुख नेता जेल में थे ब्रिटिश सरकार ने निराशा एवं असंतोष के वातावरण में नवंबर 1930 में लंदन में प्रथम गोलमेज सम्मेलन बुलाया इस सम्मेलन में 89 भारतीय प्रतिनिधियों ने भाग लिया किंतु कांग्रेस ने भाग नहीं लिया। इस सम्मेलन में भाग लेने वालों में प्रमुख थे तेज बहादुर सप्रू,श्रीनिवास शास्त्री,मोहम्मद अली मोहम्मद शफी,आगा खां, फजलुल हक,मोहम्मद अली जिन्ना,होमी मोदी,एम.आर जयकर.मुंजे,भीमराव अंबेडकर तथा सुंदर सिंह मजीठिया आदि। इस सम्मेलन में ईसाइयों का प्रतिनिधित्व के.टी.पाल ने किया था। इस सम्मेलन का उद्घाटन ब्रिटिश सम्राट ने किया तथा इसकी अध्यक्षता ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनॉल्ड ने की थी। + +14500. उपरोक्त कथनों में से कौन से सही हैं? उतर-(D)-1,2,और 3 + +14501. इस समझौते के बाद महात्मा गांधी की रुचि सविनय अवज्ञा आंदोलन में नहीं रही,अब वह पूरी तरह अस्पृश्यता विरोधी आंदोलन में रुचि लेने लगे तथा इस प्रकार अखिल भारतीय अस्पृश्यता विरोधी लीग(ऑल इंडिया एंटी अनटचेबिलिटी लीग) की स्थापना हुई, जिसका नाम परिवर्तित कर हरिजन सेवक संघ कर दिया गया। घनश्याम दास बिड़ला इसके प्रथम अध्यक्ष थे। 1920 में डॉ बी आर अंबेडकर द्वारा दि ऑल इंडिया डिप्रेस्ड क्लास फेडरेशन(दलित वर्गों का संघ) की स्थापना की गई थी। + +14502. समाजवादियों को राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के भीतर रहकर काम करना चाहिये क्योंकि यह राष्ट्रीय संघर्ष का नेतृत्व करने वाला प्राथमिक निकाय था। + +14503. कॉन्ग्रेस सोशलिस्ट पार्टी विकेन्द्रीकृत समाजवाद की समर्थक थी जिसमें सहकारी समितियों, ट्रेड यूनियनों, स्वतंत्र किसानों और स्थानीय अधिकारियों के पास आर्थिक शक्ति का पर्याप्त हिस्सा हो। + +14504. कांग्रेसका त्रिपुरी संकट(1939). + +14505. बोस ने नियोजन आधारित आर्थिक विकास की भी बात की और बाद में एक राष्ट्रीय योजना समिति की स्थापना में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। अतः कथन 2 सही है। + +14506. कॉन्ग्रेस ने अपनी ओर से चीन में एक मेडिकल मिशन भेजने को अपनी स्वीकृति दी और यह विश्वास दिलाया कि इस मिशन को पूर्ण समर्थन प्राप्त होता रहेगा, ताकि वह प्रभावी ढंग से अपने काम को आगे बढ़ा सके और चीन के साथ भारतीय एकजुटता का एक सफल प्रतीक बन सके। + +14507. इसने दलित वर्गों, महिलाओं और श्रमिकों तक सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व के सिद्धांत का विस्तार किया। + +14508. 23 मार्च 1940 को मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन की अध्यक्षता मोहम्मद अली जिन्ना ने की जिसमें भारत से अलग एक मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की मांग की गई। जिन्ना ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा था कि वे एक अलग मुस्लिम राष्ट्र के अतिरिक्त और कुछ स्वीकार नहीं करेंगे। सरोजनी नायडू ने मोहम्मद अली जिन्ना को हिंदू मुस्लिम एकता का दूत कहा था। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पुस्तक डिस्कवरी ऑफ इंडिया के पृष्ठ 352 पर उल्लेख किया है कि मुहम्मद इकबाल ने उनसे मुलाकात के दौरान कहा था कि "आप(नेहरू) एक राष्ट्रभक्त हैं,जबकि जिन्ना एक राजनीतिज्ञ हैं।" मार्च में लाहौर में आयोजित मुस्लिम लीग के वार्षिक अधिवेशन में जिन्ना के द्विराष्ट्र सिद्धांत को मान्यता दी गई थी। इससे संबंधित प्रस्ताव का प्रारूप सिकंदर हयात खान ने तैयार किया था और उसे फजलुल हक ने 23 मार्च 1940 को प्रस्तुत किया था। इसी तिथि की स्मृति में 23 मार्च,1943 को मुस्लिम लीग द्वारा 'पाकिस्तान दिवस' मनाया गया। + +14509. लेकिन रक्षा मंत्रालय ब्रिटिश नेतृत्व के पास होगा। महात्मा गांधी ने इसे उत्तर तिथीय चेक(Post-Dated cheque) की संज्ञा दी। क्रिप्स मिशन के साथ कांग्रेस के आधिकारिक वार्ताकार पंडित जवाहरलाल नेहरू एवं मौलाना आजाद थे। + +14510. गांधीजी ने 7 अगस्त,1942 को बंबई के ऐतिहासिक ग्वालियर टैंक में संपन्न अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की वार्षिक बैठक में वर्धा प्रस्ताव(भारत छोड़ो) की पुष्टि हुई। थोड़े बहुत संशोधन के बाद 8 अगस्त 1942 को प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया और भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के तहत अंग्रेजों के विरुद्ध भारत छोड़ो आंदोलन प्रारंभ करने की घोषणा की गई। + +14511. आंदोलन के पूर्व हीं अधिकांश शीर्ष नेताओं की गिरफ्तारी के कारण यह आंदोलन एक प्रकार का स्वत:स्फूर्त आंदोलन बन गया। इस दौरान भारत का प्रधान सेनापति(commander-in-chief) लॉर्ड वेवल थे जो कि बाद में वर्ष 1943 से 1947 तक भारत के वायसराय और गवर्नर जनरल भी रहे। इस आंदोलन के समय इंग्लैंड के प्रधानमंत्री चर्चिल थे। कांग्रेस द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित करते समय कांग्रेस अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आजाद थे। उल्लेखनीय है कि वे वर्ष 1940 के कांग्रेस के रामगढ़ अधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्ष बने थे।तथा वर्ष 1941-45 के मध्य 5 वर्षों तक कांग्रेस का कोई वार्षिक अधिवेशन ना हो सका,इन 6 वर्षों में अबुल कलाम आजाद कांग्रेस के अध्यक्ष बने रहे। + +14512. अरूणा आसफ अली प्रसिद्ध भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थीं। उन्हें वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बंबई के ग्वालियर टैंक मैदान में कांग्रेस का झंडा फहराने के लिए हमेशा याद किया जाता है।अरुणा आसफ अली,उषा मेहता,जयप्रकाश नारायण,राम मनोहर लोहिया आदि ने कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं की गिरफ्तारी के बाद भूमिगत रहकर 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व किया था। इस आंदोलन की एक महत्वपूर्ण विशेषता थी- देश के कई स्थानों(तीन प्रमुख) पर समानांतर सरकार की स्थापना। + +14513. सितंबर 1920 में कलकत्ता में संपन्न भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में महात्मा गांधी ने असहयोग के प्रसताव को प्रस्तावित किया था जिसका सी.आर.दास ने विरोध किया था। दिसंबर 1920 में नागपुर में संपन्न कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में असहयोग प्रस्ताव पर व्यापक चर्चा हुई तथा इसका अनुसमर्थन किया गया। नागपुर अधिवेशन में असहयोग प्रस्ताव सी.आर.दास ने ही प्रस्तावित किया था। गांधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन 1 अगस्त 1920 को प्रारंभ किया गया। + +14514. इस घटना से क्षुब्ध होकर महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया। 12 फरवरी 1922 को कांग्रेस की बारदोली बैठक में आंदोलन स्थगित करने का निर्णय लिया गया। इस घटना के समय गांधीजी गुजरात के बारदोली में सामूहिक सत्याग्रह द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने की तैयारी कर रहे थे। 24 फरवरी 1922 को आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की दिल्ली बैठक में ऐसी सभी गतिविधियों पर रोक लगा दी गई जिससे कानून का उल्लंघन होता है। इस अधिवेशन में असहयोग आंदोलन वापस लेने के कारण डॉ.मुंजे के द्वारा गांधीजी के खिलाफ निंदा प्रस्ताव लाया गया। + +14515. 1919 के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा स्थापित केंद्रीय तथा प्रांतीय विधान मंडलों का कांग्रेस ने गांधी जी के निर्देशानुसार बहिष्कार किया था और 1920 के चुनावों में भाग नहीं लिया असहयोग आंदोलन की समाप्ति और गांधीजी की गिरफ्तारी के बाद देश के वातावरण में एक अजीब निराशा का माहौल बन गया था।ऐसी स्थिति में मोतीलाल नेहरू तथा सी आर दास ने एक नई विचारधारा को जन्म दिया मोतीलाल नेहरू तथा कांग्रेस को विधान मंडलों के भीतर प्रवेश कर अंदर से लड़ाई लड़ने का विचार प्रस्तुत किया तथा 1923 के चुनावों के माध्यम से विधानमंडल में पहुंचने की योजना बनाई। + +14516. देश में उचित ढंग से क्रांतिकारी आंदोलन का संचालन करने के उद्देश्य से अक्टूबर 1924 में युवा क्रांतिकारियों ने कानपुर में सम्मेलन बुलाया था। + +14517. भारत में 1925 में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना हुई। इसके अलावा देश के अनेक भागों में मज़दूर-किसान पार्टियाँ बनीं। इन पार्टियों और समूहों ने मार्क्सवादी और कम्युनिस्ट विचारों का प्रचार किया। + +14518. साइमन कमीशन के अध्यक्ष उदारवादी दल के सदस्य थे जबकि भारत की स्वतंत्रता के समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री कमीशन श्रमिक दल के सदस्य के रूप में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस + +14519. दिल्ली घोषणा-पत्र(2 नवंबर1929). + +14520. कांग्रेस के कलकता अधिवेशन (1928) में ब्रिटिश सरकार को यह अल्टीमेटम दिया गया कि वह एक वर्ष में नेहरू रिपोर्ट स्वीकार कर ले या कांग्रेस द्वारा प्रारंभ किए जान वाले जनांदोलन का सामना करे। + +14521. सविनय अवज्ञा आंदोलन(12 मार्च 1930). + +14522. सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्य भारत में लोगों ने जंगल कानून तोड़कर अपना विरोध प्रदर्शित किया। + +14523. आपराधिक गुप्तचर विभाग पर सार्वजनिक नियंत्रण हो या उसे समाप्त कर दिया जाए। + +14524. भारतीयों के लिये तटीय यातायात का आरक्षण। + +14525. इन मांगों के संबंध में सरकार से कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया न मिलने के कारण कॉन्ग्रेस कार्यसमिति की बैठक में यह निर्णय गांधीजी पर छोड़ दिया गया कि सविनय अवज्ञा आंदोलन किस मुद्दे को लेकर, कब और कहाँ से शुरू किया जाए। + +14526. 1946 को दिल्ली आया इसके अध्यक्ष भारत मंत्री लॉर्ड पैथिक लोरेंस थे तथा अन्य 2 सदस्य स्टेफोर्ड अध्यक्ष बोर्ड ऑफ ट्रेड तथा एबी एलेग्जेंडर नौसेना मंत्री कैबिनेट मिशन ने प्रिय सर यह शासन व्यवस्था को समझाया प्रांतों के छोटे अथवा बड़े बनाने के अधिकार की पुष्टि की तथा प्रांतों को आवा और तीन श्रेणियों में विभक्त किया। + +14527. कैबिनेट मिशन ने दो स्तरों वाली एक संघीय योजना का प्रस्ताव किया, जिससे आशा की गई कि बड़ी मात्रा में क्षेत्रीय स्वायत्तता देकर भी राष्ट्रीय एकता को बनाए रखा जा सकेगा। + +14528. अल्पसंख्यकों पर दिल्ली समझौते या लियाकत-नेहरू पैक्ट के रूप में विख्यात इस समझौते के तहत, पाकिस्तान और भारत में केंद्रीय और प्रांतीय दोनों स्तरों पर अल्पसंख्यक समुदायों से संबंधित मंत्रियों की नियुक्ति के प्रावधान थे। संधि के तहत, अल्पसंख्यक आयोगों की स्थापना के साथ ही सीमा के दोनों ओर (बंगाल में) सांप्रदायिक दंगों के पीछे के संभावित कारणों की जाँच करने और ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने संबंधी उपायों की सिफारिश करने के लिये एक जाँच आयोग की स्थापना का भी प्रावधान था। + +14529. सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/भारतीय स्वतंत्रता संग्राम 1909 से 1919 तक: + +14530. सुधारों ने पृथक निर्वाचक मंडल प्रणाली शुरू की जिसके तहत मुसलमान केवल मुस्लिम उम्मीदवारों को वोट दे सकते थे, विशेष रूप से उनके लिये आरक्षित क्षेत्रों में। + +14531. गांधीजी द्वारा दक्षिण अफ्रीका से लौटने के पश्चात भारत में आरंभ किया गया प्रथम सफल सत्याग्रह चंपारन सत्याग्रह था। + +14532. होमरूल आंदोलन. + +14533. लीग के अभियान का उद्देश्य जनता को स्वशासन अर्थात् होमरूल के बारे में जागरूक करना था। इसकी प्रमुख गतिविधियों में सार्वजनिक बैठकों के माध्यम से राजनीतिक शिक्षा और चर्चा को बढ़ावा देना, राष्ट्रीय राजनीति पर पुस्तकों और पुस्तकालयों का आयोजन करना, सम्मेलन आयोजित करना, छात्रों के लिये राजनीति पर कक्षाएँ आयोजित करना, समाचार पत्रों, पंफलेट, पोस्टरों, पोस्टकार्ड, नाटक, धार्मिक गीत आदि के माध्यम से प्रचार प्रसार आदि शामिल था। + +14534. ब्रिटिश शासन के अत्याचारों ने समूची भारतीय जनता को एकसमान रूप से प्रभावित किया था और हिन्दू-मुसलमान दोनों को राजनीतिक आंदोलन में ले आया। उदाहरण के लिये राजनीतिक गतिविधियों के क्षेत्र में हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल दुनिया के सामने रखने के लिये मुसलमानों ने कट्टर आर्य समाजी नेता श्रद्धानंद को आमंत्रित किया कि वे दिल्ली की जामा मस्जिद में अपना उपदेश दें। इसी तरह अमृतसर में सिखों ने अपने पवित्र स्थान स्वर्ण मंदिर की चाभियाँ एक मुसलमान नेता डॉ. किचलू को सौंप दी थी। यह राजनीतिक एकता सरकार के दमन के कारण थी। इस वातावरण में मुसलमानों के बीच राष्ट्रवादी प्रवृत्ति ने ख़िलाफ़त आंदोलन की शक्ल ले ली। + +14535. द्वैध शासन या दोहरा शासन अर्थात् कार्यकारी पार्षदों और निर्वाचित मंत्रियों द्वारा शासन शुरू किया गया था। गवर्नर प्रान्त में कार्यकारी प्रमुख था। + +14536. केंद्र से प्रांतों को विधायी शक्ति के अंतरण का प्रावधान था। प्रांतीय विधान परिषदें विधि बना सकती थी, लेकिन गवर्नर की सहमति आवश्यक थी। गवर्नर विधेयक को वीटो कर सकता था और अध्यादेश जारी कर सकता था। + +14537. + +14538. उद्घोषणा में अंग्रेज़ी ईस्ट कंपनी के शासन को समाप्त करने और ब्रिटिश क्राउन (यानी, ब्रिटिश संसद) का प्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित करने की बात कही गई थी। इसमें भारत के साथ कंपनी के व्यापार के नियमन की बात शामिल नहीं थी। + +14539. उन्होंने विश्लेषण किया कि ब्रिटिश वायसराय द्वारा कॉन्ग्रेस का गठन प्रचलित असंतोष के विरुद्ध सुरक्षा वॉल्व के रूप में किया गया था। + +14540. वी डी सावरकर द्वारा 5899 में स्थापित मित्र मेला ही वर्ष में सरकार ने एक गुप्त सभा अभिनव भारत में परिवर्तित हो अभिनव भारत की शाखाएं महाराष्ट्र के अलावा कर्नाटक और मध्य प्रदेश में भी स्थापित की गई तथा सितंबर 1925 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी नागपुर महाराष्ट्र में स्थित है। + +14541. कैद की सजा दी गई जिसका देश भर में भारी विरोध हुआ इस कारण तिलक अखिल भारतीय नेता के रूप में लोकप्रिय हो गए और जनता ने उन्हें लोकमान्य की उपाधि दी नासिक के जिला मजिस्ट्रेट जैक्सन को गुटके अनंत लक्ष्मण कन्हारे ने गोली मार दी जैक्सन हत्याकांड में कन्हा रे कृष्ण गोपाल करें और विनायक देशपांडे को गिरफ्तार कर + +14542. सर विलियम वेडरबर्न वर्ष 1860 से 1880 के बीच भारत में एक सिविल सेवक थे। भारत में अपनी सेवा के दौरान वेडरबर्न ने अकाल, भारतीय किसानों की गरीबी, कृषि ऋणग्रस्तता और प्राचीन गाँवों की व्यवस्था को पुनर्जीवित करने के सवाल पर ध्यान केंद्रित किया। इन समस्याओं के साथ उनकी चिंता ने उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के संपर्क में ला दिया। + +14543. सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/किसान,जनजाति और श्रमिक संघों का आंदोलन: + +14544. पिछड़ी जाति के मदारी पासी ने किया था इस आंदोलन में जिसकी गतिविधि के मुख्य केंद्र हरदोई बाराबंकी बहराइच तथा सीतापुर थे किसानों की मुख्य शिकायतें लगान में बढ़ोतरी और उपज के रूप में वसूल करने की प्रथा को लेकर थी किसानों से 50% से अधिक लगान वसूल किया जा रहा था इस आंदोलन में सरकार को लगा देना बंद नहीं दिया गया बल्कि आंदोलनकारियों की प्रमुख मांग थी कि महंगाई के कारण + +14545. श्रमिक संघों का आंदोलन. + +14546. योग और हमारा स्वास्थ्य: + +14547. A Noun is a word used as a name of a person, place, or things. + +14548. Common Noun + +14549. जब किसी संज्ञा शब्द से किसी द्रव्य का बोध हो तो उसे Material Noun कहते हैं।EXAMPLE-SILVER, IRON, WOOD etc + +14550. RULE 1 + +14551. RULE 2 + +14552. RULE4 + +14553. इस आसन का प्रयोग शरीर की लम्बाई बढ़ाने और मांसपेशियों को लचीला बनाने के लिए करते है। यह ताड़ + आसन शब्दों से बना होता है। यहाँ ताड़ का अर्थ ताड़ के पेड़ से है और आसन का अर्थ योग आसन से है। अत: जो आसन शरीर को ताड़ के पेड़ की तरह लम्बा करने में मदद करे या जिसे अपनाने से ताड़ के पेड़ की आकृति बनती हो उसे ताड़ासन कहा जाता है। वैसे संस्कृत में ताड़ को पर्वत का पर्यायवाची भी कहा जाता है,जो लम्बाई का प्रतिक होता है। + +14554. २अर्धचक्रासन + +14555. इस आसन का प्रयोग शरीर की लम्बाई बढ़ाने और मांसपेशियों को लचीला बनाने के लिए करते है। यह ताड़ + आसन शब्दों से बना होता है। यहाँ ताड़ का अर्थ ताड़ के पेड़ से है और आसन का अर्थ योग आसन से है। अत: जो आसन शरीर को ताड़ के पेड़ की तरह लम्बा करने में मदद करे या जिसे अपनाने से ताड़ के पेड़ की आकृति बनती हो उसे ताड़ासन कहा जाता है। वैसे संस्कृत में ताड़ को पर्वत का पर्यायवाची भी कहा जाता है,जो लम्बाई का प्रतिक होता है। + +14556. + +14557. सावधानी + +14558. त्रिकोणासन करने के फायदे + +14559. + +14560. इस आसन का प्रयोग शरीर की लम्बाई बढ़ाने और मांसपेशियों को लचीला बनाने के लिए करते है। यह ताड़ + आसन शब्दों से बना होता है। यहाँ ताड़ का अर्थ ताड़ के पेड़ से है और आसन का अर्थ योग आसन से है। अत: जो आसन शरीर को ताड़ के पेड़ की तरह लम्बा करने में मदद करे या जिसे अपनाने से ताड़ के पेड़ की आकृति बनती हो उसे ताड़ासन कहा जाता है। वैसे संस्कृत में ताड़ को पर्वत का पर्यायवाची भी कहा जाता है,जो लम्बाई का प्रतिक होता है। + +14561. + +14562. सावधानी + +14563. त्रिकोणासन करने के फायदे + +14564. + +14565. सावधानी + +14566. अलन अर्थात भूषण ,कर अर्थात सुसज्जित करने वाला। अतः काव्यों को शब्दों व दूसरे तत्वों की मदद से सुसज्जित करने वाला ही अलंकार कहलाता है। + +14567. यमक अलंकार + +14568. जब किसी काव्य को सुंदर बनाने के लिए किसी वर्ण की बार-बार आवृति हो तो वह अनुप्रास अलंकार कहलाता है। किसी विशेष वर्ण की आवृति से वाक्य सुनने में सुंदर लगता है। जैसे - + +14569. काली घटा का घमंड घटा। + +14570. यानी जब किसी शब्द का प्रयोग एक बार ही किया जाता है लेकिन उससे अर्थ कई निकलते हैं तो वह श्लेष अलंकार कहलाता है। जैसे: + +14571. अर्थालंकार के भेद + +14572. जैसे: + +14573. जब उपमान और उपमेय में अभिन्नता या अभेद दिखाया जाए तब यह रूपक अलंकार कहलाता है। जब गुण की अत्यंत समानता के कारण उपमेय को ही उपमान बता दिया जाए यानी उपमेय ओर उपमान में अभिन्नता दर्शायी जाए तब वह रूपक अलंकार कहलाता है। रूपक अलंकार अर्थालंकारों में से एक है। + +14574. जैसे: + +14575. आगे नदियाँ पड़ी अपार, घोडा कैसे उतरे पार। राणा ने सोचा इस पार , तब तक चेतक था उस पार। ( चेतक की शक्तियों व स्फूर्ति का बहुत बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया गया है।) + +14576. + +14577. नीचे दिये गए कूट के आधार पर सही उत्तर चुनिये:-(c) केवल 1, और 3 + +14578. भारत में गवर्नर-जनरल की परिषद के सदस्यों की संख्या तीन (कमांडर-इन-चीफ सहित) कर दी गई तथा बॉम्बे और मद्रास प्रेसीड़ेंसी को पूर्णरूपेण गवर्नर-जनरल के अधीन कर दिया गया। आक्रामक युद्धों और संधियों को सामान्य रूप से प्रतिबंधित किया गया लेकिन कभी-कभार इसका पालन नहीं भी किया जाता था। + +14579. 2- एन.पी.ओ.पी. के क्रियान्वयन के लिये ‘कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण’ (APEDA) सचिवालय के रूप में कार्य करता है। + +14580. इस प्रमाणीकरण व्यवस्था के तहत NPOP द्वारा सफल प्रसंस्करण इकाइयों, भंडारों और खेतों को ‘इंडिया ऑर्गेनिक’ का लोगो प्रदान कराया जाता है। + +14581. इसे कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के कृषि एवं सहकारिता विभाग द्वारा क्रियान्वित किया जा रहा है। + +14582. यह प्राधिकरण, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है। + +14583. विश्व स्तरीय महत्त्वपूर्ण कृषि विरासत प्रणाली (GIAHS) ऐसे उत्कृष्ट भू-परिदृश्य हैं जो कृषि जैव-विविधता, सुदृढ़ पारिस्थितिकी तंत्र और मूल्यवान सांस्कृतिक विरासत को जोड़ते हैं। दुनिया भर में स्थित ये विशिष्ट स्थल लाखों छोटे किसानों को कई वस्तुओं और सेवाओं, खाद्य एवं आजीविका की सुरक्षा प्रदान करते हैं। + +14584. मूगा सिल्क वार्म, एक हॉलोमेतबोलौस (holometalbolous) कीट है यानी यह संपूर्ण रूप भेदन प्रक्रिया (metamorphosis) से गुजरता है। इस प्रकार इसके जीवन चक्र में निम्नलिखित चरण शामिल हैं: अंडा-लार्वा-प्यूपा-कोकून-वयस्क पतंग। + +14585. मिशन के उद्देश्य: + +14586. योग और हमारा स्वास्थ्य/चक्रासन: + +14587. कटिचक्रासन. + +14588. मार्जरासन एक आगे की ओर झुकने और पीछे मुड़ने वाला योग आसन हैं। इसे कुछ लोग मार्जरी आसन और कैट पोज़ के नाम से भी जानते हैं। यह आसन हमारे शरीर के लिए अनके प्रकार से लाभदायक हैं। यह आसन रीढ़ की हड्डी को एक अच्छा खिंचाव देता हैं। इसके साथ यह पीठ दर्द और गर्दन दर्द में राहत दिलाता है। + +14589. उत्तानासन. + +14590. वृक्षासन का अर्थ है वृक्ष के समान मुद्रा. इस आसन को खड़े होकर किया जाता है. नटराज आसन के समान यह आसन भी शारीरिक संतुलन के लिए बहुत ही लाभप्रद है + +14591. सावधानियां. + +14592. वीरभद्रासन जिसको वॉरईयर पोज़ (Warrior Pose) के नाम से भी जाना जाता है। इस आसन का नाम भगवान शिव के अवतार, वीरभद्र, एक अभय योद्धा के नाम पर रखा गया। यह आसन हाथों, कंधो ,जांघो एवं कमर की मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करता है। + +14593. + +14594. सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/रोबोटिक्स और नैनो टेक्नोलॉजी: + +14595. वस्तुओं में एम्बेडेड तकनीक (embedded technology) जोकि हार्डवेयर और सॉफ़्टवेयर का संयोजन होती है,आंतरिक अथवा बाह्य स्थितियों में मदद करती है, जो लिये गए निर्णयों को प्रभावित करती है। + +14596. शहरी नियोजन: IOT प्रौद्योगिकी, बुनियादी ढाँचे वाले भवनों को ऊर्जा संरक्षण और उनकी स्थायित्व में सुधार के कार्य को आसान बना सकती है। + +14597. + +14598. अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन. + +14599. कॉन्फ्रेंस ऑफ़ पार्टीज़ (COP) UNCCD का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है। COP की बैठकें वर्ष 2001 से प्रत्येक 2 वर्ष में आयोजित की जाती हैं। + +14600. इस प्रक्रिया में संलग्न व्यक्तियों अथवा संस्थानों द्वारा इन जैविक संसाधनों और देशज ज्ञान पर विशेष एकाधिकार नियंत्रण (पेटेंट या बौद्धिक संपदा अधिकार) स्थापित करना तथा स्वदेशी समुदायों के ज्ञान एवं आनुवंशिक संसाधनों तथा उत्पन्न लाभों को देशज समुदायों के साथ साझा किये बिना अथवा क्षतिपूर्ति दिये बिना इनका उपयोग करना बायोपाइरेसी कहलाता है। + +14601. स्टॉकहोम अभिसमय का उद्देश्य औद्योगिक रसायनों और कीटनाशकों में पाए जाने वाले सभी प्रकार के POPs के उत्पादन एवं उपयोग को खत्म करना या प्रतिबंधित करना है। + +14602. वन्यजीव (सुरक्षा) अधिनियम, 1972 के तहत यह संगठित वन्यजीव अपराध गतिविधियों से संबंधित खुफिया जानकारी एकत्रित और समानुक्रमित करने तथा राज्य एवं अन्य प्रवर्तन एजेंसियों को तत्काल कार्रवाई के लिये सूचित करने हेतु अधिदेशित है। + +14603. जैव-विविधता अधिनियम (2002) को क्रियान्वित करने के लिये केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2003 में की गई थी। + +14604. यह केंद्र प्रायोजित योजना (Central Sponsored Scheme) है जो वर्तमान में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित की जा रही है। + +14605. अंतर्राष्ट्रीय संगठन. + +14606. इस परिशिष्ट में अधिकांश CITES प्रजातियाँ सूचीबद्ध हैं, जिनमें अमेरिकी जिनसेंग (American Ginseng), पैडलफिश (Paddlefish), शेर, अमेरिकी घड़ियाल (American Alligators), महोगनी (Mahogany) और कई प्रवाल शामिल हैं। इसमें वर्तमान में 34,419 प्रजातियाँ सूचीबद्ध हैं। + +14607. TRAFFIC यह सुनिश्चित करने का काम करता है कि जंगली वनस्पतियों और जानवरों का व्यापार प्रकृति के संरक्षण के लिये खतरा नहीं है। TRAFFIC ने लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) का समर्थन करने के लिये सर्वश्रेष्ठ प्रतिष्ठा हासिल की है। + +14608. यह सभी स्तरों-पारिस्थितिक तंत्र,प्रजातियाँ तथा आनुवंशिक संसाधन पर जैव विविधता को शामिल करता है। + +14609. रैनसमवेयर द्वेषपूर्ण सॉफ़्टवेयर (Malware) का एक रूप है। एक बार किसी कंप्यूटर पर इस वायरस के आ जाने के बाद यह उसे नुकसान पहुँचाता है तथा आमतौर पर उपयोगकर्त्ता को डेटा तक पहुँचने से वंचित कर देता है। + +14610. शीर्षासन. + +14611. मृत शरीर जैसे निष्क्रिय होता है, उसी प्रकार इस आसन में शरीर निष्क्रिय मुद्रा में होता है, अत: इसे शवासन कहा जाता है। इस आसन का अभ्यास कोई भी कर सकता है। यह शरीर को आराम प्रदान करने वाला योग है। + +14612. नौकासन. + +14613. इस आसन में आकृति हल के समान बनती है इसलिए इसे हलासन कहते हैं। + +14614. दृश्य जैसा प्रभाव ही दिखाई देने लगता है। वस्तु या उत्पादन के संबंध में तो प्रभावशाली भाषा-भंगिमा का सहारा लिया ही जाता है, बीच में चुटकुलों, फिल्मी गीतों, छोटी-छोटी कहानियों, श्रव्य-झांकियों का सहारा लेकर भी विज्ञापित वस्तु के महत्व की छाप बिठा दी जाती है। वास्तव में ऐसा करने में ही इस कला की सफलता और महत्व है। पाठयरूप में समाचार-पत्रों, पोस्टरों, साइनबोर्डों, बड़े-बड़े बैनरों और नियोन साइन आदि का सहारा लिया जाता है। नियोन साइन तथा बड़े-बड़े प्ले बोर्ड तो पाठयता के साथ-साथ दृश्यमयता का प्रभाव भी डालकर प्रदर्शित या विज्ञापित वस्तु तक अवश्य पहुंचने + +14615. + +14616. इन उपर्युक्त उद्देश्यों को लेकर चलने वाली प्रक्रिया ‘विज्ञापन’ उपभोक्ता व निर्माता के मध्य की प्रक्रिया है। विज्ञापन का उद्देश्य हर स्थिति में अपने ‘संदेश’ को उपभोक्ता के मानस पटल पर अंकित करना ही होता है + +14617. समराथल फाउंडेशन: + +14618. 2.महिला शिक्षा : महिला शिक्षा के लिए विकास को प्रेरित करने, पठन सामग्री, छात्रावास निर्माण, शिक्षा में वित्तीय सहायता, छात्रवृत्ति आदि प्रदान करने के लिए प्राथमिक शिक्षा की सहायता से महिलाओं की शिक्षा के लिए विशेष प्रयास। + +14619. संस्था के संघठन के बारे में : समथरथ फाउंडेशन का गठन समाज के जरूरतमंद बच्चों के लिए रोजगारोन्मुखी उच्च शिक्षा में कुल सहयोग के लिए किया गया था, जो पंजीकरण अधिनियम, 1958, पंजीकरण संख्या 150 / जोधपुर / 2017-18 दिनांक 10-08 के तहत पंजीकृत संस्था है। -2017। फाउंडेशन वर्तमान में जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, जालौर, नागौर, सिरोही और पाली में काम कर रहा है। संस्था के तात्कालिक शैक्षिक उद्देश्य के साथ, दूरगामी सिद्धांत भी निर्धारित किए गए हैं जो संस्था के संविधान में निहित है। संस्था उच्च शिक्षा के साथ-साथ भविष्य के छात्रावास निर्माण, पुस्तकालय निर्माण, शैक्षिक जागरूकता और कैरियर मार्गदर्शन, महिला विकास, पर्यावरण विकास के लिए भी काम करेगी। संस्था का वर्तमान उद्देश्य समाज के सबसे जरूरी छात्रों - छात्रों और सभी सुविधाओं का चयन करना है, इंजीनियरिंग भर्ती परीक्षा (IIT केवल), मेडिकल भर्ती परीक्षा (PMT-NEET), सिविल सेवा में अंतिम चयन उपलब्ध कराना परीक्षा (IAS / RAS), न्यायिक सेवा भर्ती परीक्षा (RJS) आदि। + +14620. 4) सदस्य के पास संगठन के उद्देश्यों के अनुसार राज्य सेवा, कानूनी सेवा, व्यक्तिगत सेवा, सामाजिक सेवा, पत्रकारिता और व्यक्ति में सक्षम स्थिति या योग्यता होगी। + +14621. (ii) संस्था का पैन कार्ड: - AA****40B + +14622. 3) पंजीकरण: - पंजीकरण संख्या: 150 / जोधपुर / 2017- 18 दिनांक 10-08-2017, राजस्थान संस्थान पंजीकरण अधिनियम, 1958 4 के तहत) + +14623. हाइड्रोजेल का कम pH मान जीवाणुरोधी गतिविधियों को बढ़ाने में सहायता करता है तथा साथ ही इसके pH मान में परिवर्तन कर इसे दवा के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। + +14624. ई-कोलाई की साधारणतः बहुत सी प्रजातियाँ पाई जाती हैं जिनमें से कुछ बहुत ज़्यादा हानिकारक होती हैं। + +14625. प्लाज़्मा उपचार:-जीवाणु जनित रोगों के निदान, तपेदिक और HIV के निदान,चिकित्सा पैकेजिंग एवं घाव की मरहम-पट्टी/ड्रेसिंग के लिये। + +14626. भूरे रंग के वसा ऊतक विशेष रूप से नवजात शिशुओं और सुप्तावस्था वाले (Hibernating) स्तनधारियों में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। ये वयस्क मनुष्यों में भी मौजूद होते हैं और उपापचय क्रिया में सक्रिय रहते हैं परंतु मनुष्य की आयु में वृद्धि के साथ इनकी व्यापकता कम हो जाती है। + +14627. ग्रीष्म निष्क्रियता (Aestivation) हाइबरनेशन की भाँती ही पशुओं में निष्क्रियता की एक अवस्था है, हालाँकि यह सर्दियों की बजाय गर्मियों में होती है। + +14628. हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक)/अब कठोरहो वज्रादपि: + +14629. मेरे लिए पिता ने सबसे + +14630. वृथा ही उन्हें उन्होंने थाहा, + +14631. आर्यपुत्र दे चुके परीक्षा + +14632. नागदत्त जिस हय से, + +14633. निकला वहाँ कौन उन जैसा + +14634. मुझे उन्होंने माना, + +14635. भेद चुने जाने का अपने + +14636. अब है मेरी बारी। + +14637. तू परिवर्तनशील उन्होंने + +14638. क्या विकृत-विकारी? + +14639. मैं इन्द्रियासक्त! पर + +14640. ये अंगार बिखेरे? + +14641. सिद्धि-मार्ग की बाधा नारी! + +14642. मेरी भी कुछ मति है, + +14643. आर्यपुत्र दे चुके परीक्षा + +14644. अच्छी भोली-भाली! + +14645. बस जातीय सहानुभूति ही + +14646. मुझमें मेरा पानी, + +14647. कहाँ तुम्हारी गुण-गाथा में + +14648. अब है मेरी बारी।
+ +14649. कैसे करूँ मैं तेरी आरती? + +14650. हुआ जब से ओझल राम हमारा. + +14651. तुम्हे पूजती दुनिया सारी, + +14652. इस गौरव हेतु आभारी हूँ. + +14653. यह नर जब तक रहेगा धरा पर + +14654. जीवन भी उसकी इसी शक्ति से. + +14655. जब भिक्षु रूप में आये हो, + +14656. हे नाथ! हमारा तुच्छ दान. + +14657. तेरा पथ है - 'विश्व कल्याण'. + +14658. एक क्षत्राणी का किया सम्मान. + +14659. अब कह लो चाहे 'निर्वाण' इसे, + +14660. निर्वाण के संग, कोई जंग नहीं. + +14661. अट्ठारह सौ सत्तावन (१८५७) से पहले की बात है। गोरी हुकूमत और छोटे रजवाड़ों के जुल्म चरम पर थे। मध्य भारत का चंबल इलाका भी इसका शिकार था। कारोबार करना जोखिम भरा था डाकुओं और ठगो की तरह पिंडारी भी लुटेरे थे। गांव गांव में इन पंडारियों का आतंक था। अमीर और संपन्न घराने पिंडारीयों के निशाने पर रहते थे। ग्वालियर के पास भाड़े रियासत का धनवान कनकने परिवार इन पिंडलियों से दुखी होकर झांसी के पास चिरगांव जा बसा। + +14662. द्विवेदी जी:- बहुत से लोग चाहते हैं कि उनकी रचनाएं सरस्वती में छपे। लेकिन सबको मौका नहीं मिलता... और फिर आप तो ब्रज भाषा में लिखते हैं। सरस्वती खड़ी बोली की पत्रिका है। मैं भला कैसे छाप सकता हूं? + +14663. उनके आदेश का पालन हुआ और रसिकेंद्र बन गए मैथिलीशरण गुप्त इसके बाद मैथिलीशरण गुप्त ने खड़ी बोली में हेमंत शीर्षक से कविता लिखी और सरस्वती में भेजी। द्विवेदी जी ने कुछ संशोधन करके उसे प्रकाशित किया। गुरु ने कविता लिखने के लिए कुछ टिप्स दिए। गुप्त जी की कविताएं अब लगातार सरस्वती में छप रही थी। + +14664. सरस्वती एक सचित्र मासिक थी और उसमें रंगीन चित्र की छपते थे। मैथिलीशरण की अनेक रचनाएं इन चित्रों के भाव को उजागर करती थी। 16 साल के दौरान उन्होंने करीब 300 कविताएं सरस्वती मे लिखी। इसी बीच 1921 में महावीर प्रसाद द्विवेदी ने संपादक पद से इस्तीफा दे दिया और इधर मैथिलीशरण ने भी गोरी सरकार हुकूमत के खिलाफ खुलकर लिखना शुरु कर दिया। 1910 में आई रंग में भंग ने लोगों को जोश से भर दिया + +14665. फिर पूर्वजों के शील की शिक्षा तरंगों में बहो। + +14666. जयद्रथ वध के बाद मैथिलीशरण गुप्त लोकप्रियता के शिखर पर थे लेकिन 1914 में भारत भारती ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहली जमात में बैठा दिया। भारत भारती गुप्त जी ने 1912 में ही पूरी कर ली थी लेकिन वो प्रकाशित हुई थी 1914 में। इस कविता में वो हिंदुस्तान के कठिन हालात के प्रति लोगों को कुछ इस तरह सावधान करते हैं। + +14667. संपूर्ण देशों से अधिक, किस देश का उत्कर्ष है + +14668. हो भद्रभावोद्भाविनी वह भारती हे भवगते। + +14669. जग जायें तेरी नोंक से सोये हुए हों भाव जो + +14670. राष्ट्रीय आंदोलनों, शिक्षा संस्थानों और प्रातः कालीन प्रार्थनाओं में भारत भारती गाई जाती थी। गांव गांव में अनपढ़ लोग भी सुन सुनकर याद कर चुके थे। महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के बाद जब नागपुर में झंडा सत्याग्रह हुआ तो सभी सत्याग्रही जुलूस में भारत भारती के गीत गाते हुए सत्याग्रह करते। गोरी सरकार ने भारत भारती पर पाबंदी लगा दी। सारी प्रतियां जब कर ली गई। जिस समय भारत भारती को हिंदुस्तान का बच्चा बच्चा गुनगुना रहा था उन्हीं दिनों गुप्त जी की जाति जिंदगी में तूफान आया दूसरी पत्नी भी चलबसी। गुप्त जी सदमे में थे। दो पत्नियां जिंदगी से जा चुकी थी कोई बच्चा भी नहीं था और माता-पिता तो पहले ही विदा ले चुके थे। मन उचाट था और शुभचिंतकों ने एक बार फिर मनाया और 1917 में सरजू देवी के साथ तीसरा विवाह हुआ। इस शादी से भी कई संताने हुई परंतु वो जिंदा नहीं रही। ढलती उम्र में एक बेटा हुआ नाम रखा गया उर्मिलशरण। + +14671. खाते, खवाई, बीज ऋण से हैं रंगे रक्खे जहाँ + +14672. चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में, + +14673. जिसके सम्मुख स्वच्छ शिला पर, धीर-वीर निर्भीकमना, + +14674. और विरामदायिनी अपनी, संध्या को दे जाता है, + +14675. भव में नव वैभव व्याप्त कराने आया। + +14676. औरों के हाथों यहाँ नहीं पलती हूँ, + +14677. मेरी कुटिया में राज-भवन मन भाया॥ + +14678. फिर भी क्या पूरा पहचाना? + +14679. प्रियतम को, प्राणों के पण में, + +14680. अबला जीवन हाय! तुम्हारी यही कहानी + +14681. अंग्रेजी ग्रामर/सर्वनाम (PRONOUN): + +14682. 1) Rahul is absent because Rahul is ill. (राहुल अनुपस्थित है क्योंकि राहुल बीमार है। ) + +14683. Words like I, me, he, she, it, they etc that directly represent the person or thing are called as personal pronoun. + +14684. Second Person (मध्यम पुस्र्ष). + +14685. For Example: + +14686. Reflexive Pronoun. (निजवाचक सर्वनाम). + +14687. For Example: + +14688. Indefinite Pronoun (अनिश्चयवाचक सर्वनाम). + +14689. For Example:Who (कौन), Which (कौन सा ), Where (कहॉ ), What (क्या) etc (आदि ). + +14690. अंग्रेजी ग्रामर/क्रिया (VERB): + +14691. Verb that points to an previous time-frame. It means that time have already passed. + +14692. Sahib will run fast. (साहिब तेजी से दौङेगा।) + +14693. For Example: + +14694. सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा सहायिका/पर्यावरण संबंधित मुद्दे: + +14695. जब वायुमंडल में CFC के अणु टूट जाते हैं, तो वे क्लोरीन परमाणुओं को छोड़ते हैं जो ओज़ोन परत (जो हमें पराबैंगनी किरणों से बचाती है) को तेजी से नष्ट करने में सक्षम होते हैं। + +14696. चिल्का झील + +14697. सजीवों के डीएनए और प्रोटीन खासकर पराबैंगनी (यूवी-बी) किरणों को अवशोषित करते हैं और इसकी उच्च ऊर्जा इन अणुओं के रासायनिक आबंध (केमिकल बॉण्डस) को भंग कर देती हैं जिसके कारण उत्परिवर्तन भी हो सकता है। इसके कारण त्वचा में बुढ़ापे के लक्षण दिखते हैं, इसकी कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त हो जाती है और विविध प्रकार के त्वचा कैंसर हो सकते हैं। + +14698. महासागरीय अम्लीकरण में समुद्री पारिस्थितिक तंत्र को बदलने और समुद्र के संरक्षण से संबंधित कई लाभों जैसे- तटीय संरक्षण या भोजन और आय की उपलब्धता को प्रभावित करने की क्षमता है। + +14699. वायु प्रदूषण. + +14700. इसका मुख्य संघटक मीथेन होती है। इसके अलावा इसमें ईथेन और प्रोपेन गैस भी होती हैं। + +14701. अतः सतही ओजोन में वृद्धि व धूल के मध्य महत्त्वपूर्ण संबंध है और यह धूल से संबंधित अन्य घटनाओं में भी देखा गया है। + +14702. 'सफर' (SAFAR) के माध्यम से लोगों को वर्तमान हवा की गुणवत्ता, भविष्य में मौसम की स्थिति, खराब मौसम की सूचना और संबद्ध स्वास्थ्य परामर्श के लिये जानकारी तो मिलती ही है, साथ ही पराबैंगनी/अल्ट्रा वायलेट सूचकांक (Ultraviolet Index) के संबंध में हानिकारक सौर विकिरण (Solar Radiation) की तीव्रता की जानकारी भी मिलती है + +14703. पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने संपीडित बायोगैस को एक वैकल्पिक हरित परिवहन ईंधन के रूप में बढ़ावा देने के लिये किफायती परिवहन हेतु सतत् विकल्प (Sustainable Alternative Towards Affordable Transportation-SATAT) नामक पहल शुरू की है। + +14704. Adjectives are those words which describe the nouns.(किसी भी संज्ञा अथवा उसके शब्द की विशेषता बतलाता है उसे विशेषण कहते है।) + +14705. The words that describe the quality of noun are known as Qualitative adjectives. + +14706. Example: Red (लाल ), Yellow (पीला ), Black (काला ), Blue (नीला). + +14707. Again Quantative adjective is divided into two parts:(इसे दो भाग में विभाजित किया गया हैं।) + +14708. + +14709. + +14710. योग और हमारा स्वास्थ्य/सुप्त बद्धकोणासन: + +14711. + +14712. इस आसन को करने से कान में पीड़ा होती है इसीलिए इसे कर्णपीड़ासन कहते है। + +14713. विपरीत करनी करने की लाभ + +14714. + +14715. COP-23 में जिन मुद्दों पर महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है वे हैं:- + +14716. जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) ने अपने 5वें आकलन रिपोर्ट में एक कार्बन-डाइऑक्साइड उत्सर्जन बजट प्रकाशित किया था। जो बताता है कि + +14717. ‘प्री-2020 एक्शन्स’. + +14718. सुविधा प्रदान करने वाले तालानोआ संवाद-2018 (2018 Facilitative Talanoa Dialogue) का समापन। + +14719. यह समझौता जून, 1992 के पृथ्वी सम्मेलन के दौरान किया गया था। विभिन्न देशों द्वारा इस समझौते पर हस्ताक्षर के बाद 21 मार्च, 1994 को इसे लागू किया गया। + +14720. जलवायु एवं स्वच्छ वायु गठबंधन(Climate and Clean Air Coalition-CCAC). + +14721. विश्व के शीर्ष चार उत्सर्जक देशों (C,US,EU,I) ने पिछले दशक में कुल उत्सर्जन में 55% से अधिक का योगदान दिया है जबकि इस उत्सर्जन में भूमि-उपयोग परिवर्तन जनित जैसे वनोन्मूलन उत्सर्जन शामिल नहीं है। + +14722. इसके तहत महासागरों की धाराएंँ उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से गर्म और लवणीय जल को उत्तर दिशा जैसे कि पश्चिमी यूरोप की ओर ले जाती हैं तथा दक्षिण की ओर ठंडा जल भेजती हैं। + +14723. मध्यकालीन भारत/तुगलक वंश: + +14724. 1. Psychology शब्द का सबसे पहले प्रयोग किया – रुडोल्फ गॉलकाय द्वारा 1590 में + +14725. 6. आधुनिक मनोविज्ञान का जनक – विलियम जेम्स + +14726. 11. संज्ञानात्मक आन्दोलन के जनक – अल्बर्ट बांडूरा + +14727. + +14728. जब मांग और आपूर्ति में असंतुलन पैदा होता है तो वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ जाती हैं। कीमतों में इस वृद्धि को मुद्रास्फीति कहते हैं। + +14729. इंफोसिस के सह-संस्थापक क्रिस गोपालकृष्णन की अध्यक्षता में गठित समिति ने सुझाव दिया है कि देश की विभिन्न घरेलू कंपनियों और संस्थाओं को भारत में उत्पन्न होने वाले गैर-व्यक्तिगत डेटा (Non-Personal Data) के दोहन की अनुमति दी जानी चाहिये। + +14730. यह सक्रिय रूप से साइबर अपराधों से निपटने के लिये साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में उच्च तकनीक युक्त सार्वजनिक-निजी साझेदारी केंद्र है। + +14731. आरोग्य सेतु एप में सुधार का सुझाव देने के लिये अतिरिक्त 1 लाख रुपए का इनाम दिया जाएगा। + +14732. सूचना तकनीक अधिनियम, 2000 के 13 अध्यायों में कुल 94 अनुच्छेद हैं। इस अधिनियम में डेटा सुरक्षा और संरक्षण संबंधी प्रावधान हैं। इस अधिनियम द्वारा ई-वाणिज्य, दस्तावेज़ों के इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड और डिजिटल हस्ताक्षर को मान्यता प्रदान की गई। + +14733. वर्ष 2018 में भारत सरकार ने बी.एन. श्रीकृष्णा समिति की अनुशंसा के आधार पर पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (ड्राफ्ट) बिल पेश किया। + +14734. यह पासवर्ड द्वारा रक्षित उपकरणों को भी निशाना बना सकता है और यह मोबाइल के रोमिंग में होने पर डेटा नहीं भेजता। + +14735. स्वयं के नेटवर्क डोमेन में डोमेन आधारित संदेश प्रमाणीकरण, रिपोर्टिंग एवं अनुरूपता (Domain-Based Message Authentication, Reporting and Conformance-DMARC) को लागू करना एवं ग्राहकों को भी अपने डोमेन में इसे लागू करने में सहयोग करना। + +14736. अमेरिका और टिकटॉक. + +14737. अनुमान के अनुसार, अमेरिका में टिकटॉक उपयोगकर्त्ता औसतन एक दिन में 8 बार और लगभग 40 मिनट तक इस एप का प्रयोग करते हैं। + +14738. गणना किये गए जोखिम स्कोर प्रासंगिक संस्थाओं को भेजे जाते हैं, जो इन्हें अधिकतम दो वर्षों के लिये सरकारी डेटाबेस पर संग्रहीत करता है। + +14739. डच सामाजिक मामलों के मंत्रालय ने एक बयान जारी किया है कि वह संपूर्ण निर्णय का अध्ययन करेगा तथा उनके सिस्टम को पूरी तरह से हटाया नहीं जाएगा। + +14740. उक्त निर्णय यह भी प्रदर्शित करता है कि विधायी नियमों को सामाजिक सुरक्षा प्रणाली में प्रौद्योगिकी के उपयोग और नागरिकों के अधिकारों के संरक्षण हेतु संतुलन बनाने की आवश्यकता है। + +14741. भारत का भूगोल/भौतिक भूगोल: + +14742. संक्षेप में, कॉरिऑलिस बल अक्षांशों के सीधे आनुपातिक है। इसलिये यह ध्रुवों पर अधिकतम है और विषुवत रेखा पर लगभग अनुपस्थित होता है। + +14743. लोकगीत जनपदिय साहित्य का सबसे अधिक लोकप्रिय रूप है। इनका प्रभाव सबसे अधिक व्यापक है। इनकी मात्रा भी अन्य साहित्य रूपों की तुलना में अधिक है। + +14744. लोक कथाएं दिनों की भी होती हैं औ्र महिनों की भी। ये पर्वों, त्योहारों और व्रतों से भी बंधी हैं। स्वरूप के अनुरूप इन्हें निम्न वर्गों में बाँटा जा सकता है- + +14745. + +14746. मच्छी खेलय फाग।" + +14747. लोकोक्तियाँ और मुहावरे. + +14748. + +14749. विवाह गीत. + +14750. लगन या सिक्का + +14751. + +14752. जयमाला + +14753. रोल नंबर :- 18/३२५ + +14754. + +14755. जल और स्वच्छता + +14756. लिंग समानता और युवा विकास + +14757. प्र. भारत के संविधान में नौवीं अनुसूची किस प्रधान मंत्री के कार्यकाल में पुरःस्थापित की गई थी: (2019) + +14758. उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?:-(a) केवल 1 + +14759. साहित्य सिद्धान्त - 1/रस का स्वरूप, रस के अंग: + +14760. सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा सहायिका/भारत तथा विश्व का भौतिक,सामाजिक एवं आर्थिक भूगोल: + +14761. हिंद महासागर में अतिरिक्त वर्षा होने के कारण अटलांटिक महासागर में कम वर्षा होने की प्रवृति देखी जा रही है जिससे वहाँ के जल में लवणता का स्तर बढ़ रहा है। + +14762. भारत में वर्षा काफी हद तक मानसूनी वर्षा पर निर्भर करती है और यह पाया गया है कि इस क्षेत्र में वर्षा की कमी PDO से अंतर्संबंधित है। + +14763. + +14764. एक राष्ट्र के रूप में भारत का उदय आधुनिक युग की घटना है लेकिन भौगोलिक दृष्टि से भारत एक इकाई के रूप में बहुत पहले से मौजूद रहा है। इस भौगोलिक क्षेत्र में बाहर से विभिन्न जातियों का आवागमन निरंतर होता रहता है। इतिहास में बहुत पीछे ना भी जाए तो इतिहासकार यह मानते हैं कि ईशा के तीन हजार से डेढ़ हजार साल पहले के दौर में मध्य एशिया से जो लोग आए और जिन्हें आर्य कहकर जाना गया वे सबसे पुराने ज्ञात समुह थे जो इस धरती पर बसे। हालांकि यहां इससे पहले भी कई जातियां रह रही थी। इन्हीं में वे लोग भी थे जिनके अवशेष हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई में मिले थे। आर्यों के आगमन के बाद भी कई जातियां समूह इस धरती पर आते रहे। इनमें शक, हूण, यवन, मंगोल आदि प्रमुख है। इनमें से अधिकांश जातियां यही बस गई और यहां की संस्कृति में घुलमिल गई। आज उनकी अलग से पहचान करना बहुत मुश्किल है। लेकिन इस बात को स्वीकार करना होगा कि पहले से रह रही जातियों के साथ खुलने मिलने की प्रक्रिया में उन्होंने एक-दूसरे से काफी कुछ लिया दिया होगा। हीरो से आने वाली जातियों से पहले मध्य एशिया से आने वाले इस्लाम धर्मलंबी समूहों में से बहुत से यही बस गए और यहां की सभ्यता और संस्कृति के साथ घुलमिल गए। लेकिन यूरोप से आने वाली जातियों के साथ ऐसा नहीं हुआ। वे यहां व्यापार करने आए थे। यहां का परिणाम कपड़ा और दूसरी वस्तुएँ वे यूरोप में बेचते थे। बाद में यूरोप में हुई औद्योगिक क्रांति ने स्थितियों को बदल दिया और वे यहाँ से कच्चा गाल निर्यात करने लगे और वहाँ के कारखानों में बना माल यहाँ बेचने लगे। भारत में व्यापार के इरादे से आने वाले सिर्फ अंग्रेज नहीं थे वरन् फ्रांसीसी, पुर्तगाली और डच लोग भी थे । लेकिन अंग्रेजों की तुलना में वे भारत के बहुत छोटे से हिस्से पर ही अधिकार जमाने में कामयाब हो सके। अंग्रेजों ने लगभग पूरे भारत पर अधिकार कर लिया और भारत को अपना उपनिवेश बनाने में कामयाब रहे। 1857 से पहले तक भारत पर ब्रिटेन का शासन ईस्ट इंडिया कंपनी के मार्फत था जो एक व्यापारिक कंपनी थी इस कंपनी की अपनी सेना थी और इसने भारत की विभिन्न रियासतों के साथ संघर्ष और समझौते की नीति पर चलते हुए अपने पाँव जमाने शुरू किए। 1857 तक इस कंपनी का शासन लगभग पूरे भारत पर हो गया था। जो रियारातें सीधे अंग्रेजों के अधीन नहीं थीं, उनके साथ भी अंग्रेजों ने कई तरह के समझौते कर रखे थे जिसके तहत वे इन राज्यों का इस्तेनाल युद्ध के दौरान अपने पक्ष में करने में कामयाब होते थे। कहने को दिल्ली पर अब भी मुगल बादशाह का शासन लेकिन उनके पास वास्ताविक सत्ता नहीं थी। 1857 में अंग्रेजों से युद्ध करने वाले सिपाहियों ने तत्कालीन मुगल बादशाह बहादुरशाह जफ़र को भारत का सम्राट घोषित + +14765. ईसाई मिशनरियों ने भारतीयों के बीच हीन भावना पैदा करने की कोशिश की। भारतीयों के बीच इसकी प्रतिक्रिया स्वाभाविक होना स्वाभाविक था । कुछ भारतीयों ने इस बात को स्वीकार किया कि हमारे जीवन में बहुत कुछ ऐसा है जो प्रतिगामी है और जिसे छोड़ने की जरूरत है, तो दूसरी ओर, कुछ लोगों ने उनकी आलोचना को स्वीकार नहीं किया और वे इस बात को प्रमाणित करने में जुट गए कि आज भले ही हम गुलाम हों लेकिन हमारा अतीत ऐसा नहीं था। हमारा भी एक स्वर्णिम युग था। धर्म और अध्यात्म का क्षेत्र ऐसा है जिसमें हम दूसरों की तुलना में सदैव श्रेष्ठतर रहे हैं। इन दो प्रवृत्तियों ने उस आंदोलन की शुरूआत की जिसे हम आज नवजागरण के रूप में जानते हैं। नवजागरण के आंदोलन में दो प्रवृत्तियाँ थीं . एक, जो यह मानते थे कि भारत सदैव से महान रहा है और भारत के अतीत में बह सब कुछ है जिसका दावा आज का यूरोप करता है। इस प्रवृत्ति को पुनरुत्थानवाद के नाम से जाना जाता है। दो, जो यह मानते थे कि भारत में बहुत सी गलत बातें हैं जिनको छोड़ने से ही हम प्रगति भी कर सकते हैं और गुलामी की जंजीरों से मुक्त भी हो सकते हैं, इसको पुनर्जागरण के नाम से जाना गया इस दूसरी प्रवृत्ति ने ही आधुनिकता को एक मूल्य के रूप में जरूरी समझा । इसी ने लोकतंत्र, समानता और बंधुत्व के दर्शन से भारतीयों को परिचित कराया। यही नहीं उन्होंने प्राचीनभारतीय साहित्य और इतिहास में से इस दर्शन के अनुकूल बातें भी खोज निकाली। यही वह पृष्ठभूमि है जिसने भारत में नवजागरण और स्वाधीनता के आंदोलन को संभव बनाया। + +14766. बभनियाव गाँव में पुरातात्त्विक स्थल के प्रारंभिक सर्वेक्षण में 8वीं शताब्दी ईस्वी से 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व के बीच एक मंदिर का पता चला है। यहाँ से प्राप्त मिट्टी के बर्तन लगभग 4000 वर्ष पुराने हैं, जबकि मंदिर की दीवारें 2000 वर्ष पुरानी हैं। + +14767. वाराणसी: + +14768. वर्ष 1194 में जब इस उपमहाद्वीप पर मुस्लिम आक्रमण हुए तब से वाराणसी के शहरीकरण में गिरावट आनी शुरू हुई। + +14769. प्रमुख बिंदु: + +14770. एक वक्फ का निर्माण एक विलेख या उपकरण के माध्यम से किया जा सकता है या एक संपत्ति को वक्फ माना जा सकता है यदि इसका उपयोग लंबे समय तक धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिये किया गया हो। + +14771. यह भारतीय ट्रस्ट अधिनियम, 1882 के तहत स्थापित एक ट्रस्ट के समान है, किंतु इसे धार्मिक एवं धर्मार्थ उपयोग की तुलना में व्यापक उद्देश्य के लिये स्थापित किया जाता है। + +14772. वक्फ बोर्ड की संरचना (Composition): + +14773. राज्य बार काउंसिल के मुस्लिम सदस्य + +14774. क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों द्वारा प्रारंभ की गईं योजनाएँ: + +14775. यह योजना आने वाली पीढ़ियों के लिये हमारी मूल्यवान परंपराओं को प्रसारित करने की परिकल्पना करती है। + +14776. इस कार्यक्रम के अंतर्गत स्टेज शो और प्रोडक्शन आधारित वर्कशॉप सहित थिएटर गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिये TA और DA को छोड़कर प्रति शो 30,000 रुपए का भुगतान किया जाता है। + +14777. (National Cultural Exchange Programme-NCEP): + +14778. ये त्योहार हमारे देश की विभिन्न संस्कृतियों को समझने का अवसर प्रदान करते हैं। + +14779. वर्तमान में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद विश्व भर में 36 सांस्कृतिक केंद्रों का संचालन कर रही है। + +14780. आषाढ़ पूर्णिमा का यह पावन दिवस भारतीय सूर्य कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ महीने की पहली पूर्णिमा को होता है जो श्रीलंका में ‘एसाला पोया’ (Esala Poya) तथा थाईलैंड में ‘असान्हा बुचा’ (Asanha Bucha) के नाम से विख्यात है। + +14781. सन्यासियों (महिला एवं पुरुष दोनों) के लिये वर्षा ऋतु निवर्तन भी इसी दिन से आरंभ होता है जो जुलाई से अक्तूबर तक के तीन चंद्र महीनों तक चलता है। इस समय को सन्यासी एकल स्थान पर गहन साधना करते हुए व्यतीत करते हैं। + +14782. अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ दिल्ली स्थित सबसे बड़ा धार्मिक बौद्ध संघ है। + +14783. पंद्रह हाथियों का एक भव्य प्रदर्शन इस त्योहार के सबसे प्रमुख पहलुओं में से एक है। इन पंद्रह हाथियों को स्वर्ण धागों से सजाया जाता है। आतिशबाजी केरल के मंदिर समारोहों का एक अभिन्न हिस्सा है किंतु त्रिशूर पूरम को केरल में ‘सभी उत्सवों की माँ’ (Mother of All Festivals) के रूप में संदर्भित किया जाता है जो आतिशबाजी एवं मंदिर के उत्सवों की जननी है। + +14784. इसलिये इस पर्व पर पृथ्वी को नुकसान पहुँचाने वाली कोई भी गतिविधि जैसे- खेत की जुताई, टाइलिंग, निर्माण या कोई अन्य कार्य नहीं किया जाता है। पृथ्वी के मासिक धर्म चक्र के तीन दिवसीय रज-पर्व के पहले दिन को पहिली रज, दूसरे दिन को मिथुन संक्रांति और तीसरे दिन को बासी-रज कहा जाता है। + +14785. इसके अतिरिक्त यह पर्व स्त्री मुक्ति, मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता और लैंगिक न्याय के सतत् विकास लक्ष्य के अनुरूप है। + +14786. रोंगाली बिहू या हाट बिहू (Haat Bihu) असमिया नव वर्ष (Assamese New Year) को चिह्नित करता है। + +14787. असम में बिहू के तीन प्रकार बोहाग बिहू (Bohag Bihu) या रोंगाली बिहू, कटि बिहू (Kati Bihu) या कोंगाली बिहू (Kongali Bihu) और माघ बिहू (Magh Bihu) या भोगाली बिहू (Bhogali Bihu) हैं। प्रत्येक त्योहार ऐतिहासिक रूप से धान की फसलों के एक अलग कृषि चक्र को दर्शाता है। + +14788. वर्ष 2014 में पशु कल्याण संगठनों द्वारा दायर मुकदमों के आधार पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कंबाला और जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया। + +14789. रथ सप्तमी क्या है? + +14790. देश के सभी हिस्सों के पारंपरिक शिल्पकार (कलाकार, चित्रकार, बुनकर और मूर्तिकार) इस वार्षिक उत्सव में भाग लेते हैं जिसे ‘सूरजकुंड शिल्प मेला’ या ‘सूरजकुंड डिज़ाइनरों का गाँव’ नाम दिया गया है। + +14791. इस त्योहार पर मेश्राम कुल से संबंधित महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, ओडिशा और मध्य प्रदेश के आदिवासी लोग पूजा करते हैं। + +14792. इस अवसर पर गोंड जनजाति के लोगों द्वारा गुसाड़ी नृत्य (Gusadi Dance) का आयोजन किया जाता है। + +14793. जल्लीकट्टू का आयोजन प्रत्येक वर्ष जनवरी में पोंगल (फसलों की कटाई के त्योहार) के अवसर पर किया जाता है। + +14794. त्योहार राज्य/क्षेत्र + +14795. पोंगल में दूसरा दिन सबसे महत्वपूर्ण होता है जिसे थाई पोंगल (Thai Pongal)/सूर्य पोंगल (Surya Pongal) कहा जाता है और यह उत्तर भारत में मनाये जाने वाले मकर संक्रांति (Makar Sankranti) उत्सव की तरह होता है। थाई पोंगल तमिल सौर कैलेंडर के अनुसार थाई महीने (Thai month) का पहला दिन है। + +14796. यह दिन मध्य-पूर्व की जॉर्डन नदी में यीशु के बपतिस्मा के लिये भी याद किया जाता है। + +14797. इसे ओडिशा के बारगढ़ शहर और उसके आसपास के क्षेत्रों में मनाया जाता है। + +14798. इस महोत्सव का आयोजन पहली बार वर्ष 2015 में किया गया था। + +14799. वारली चित्रकारी (Warli Painting): वारली चित्रकारी मनुष्य और प्रकृति के बीच घनिष्ठ संबंध को दर्शाती है। + +14800. प्रकाश जिसे ब्रह्मांडीय उत्पत्ति का कारक माना जाता है, पंबा मंदिर (सबरीमाला मंदिर का बेस स्टेशन) के मुख्य पुजारी द्वारा तीन बार दिखाया जाता है। यह अनुष्ठान आकाश में व्याध तारा (Sirius Star) दिखाई देने के बाद किया जाता है। + +14801. भगवान सभा को छोड़ चले, + +14802. ले चढ़े उसे अपने रथ पर + +14803. हो विवश हमें धनु धरना है, + +14804. कुछ नहीं समझने वाला है + +14805. वह भी कौरव को भारी है, + +14806. रण में जब काल प्रकट होगा? + +14807. “चिंता है, मैं क्या और करूं? + +14808. समराग्नि अभी तल सकती है + +14809. तू संग न उसका छोडेगा, + +14810. कौरव के दल में रहता है, + +14811. किस्मत के फेरे में पड़ कर, + +14812. अब कहा मान इतना मेरा + +14813. “कुन्ती का तू ही तनय ज्येष्ठ, + +14814. सब मिलकर पाँव पखारेंगे + +14815. भोजन उत्तरा बनायेगी, + +14816. असली स्वरूप में जानेंगे + +14817. संसार बड़े सुख में होगा, + +14818. साम्राज्य समर्पण करता हूँ + +14819. सुन-सुन कर कर्ण अधीर हुआ, + +14820. मैं भोग चुका हूँ ग्लानि व्यथा + +14821. धाराओं में धर आती है, + +14822. अन्तर का रुधिर पिलाती है + +14823. सुनना न चाहते तनिक श्रवण, + +14824. सुत से समाज बढ़ कर प्रिय था + +14825. “माँ का पय भी न पीया मैंने, + +14826. जो कुछ बीता, मुझ पर बीता + +14827. पत्थर की छाती फटी नही, + +14828. माँ की ममता पर हुई वृथा + +14829. कुन्ती गौरव में चूर रही, + +14830. सुत के धन धाम गंवाने पर + +14831. “कुन्ती जिस भय से भरी रही, + +14832. कुन्ती को काट न खायेगा? + +14833. यह अभिनन्दन नूतन क्या है? + +14834. जब यह समाज निष्ठुर निर्दय + +14835. चुम्बन से कौन मुझे भर कर, + +14836. सच है की झूठ मन में गुनिये + +14837. “अपना विकास अवरुद्ध देख, + +14838. मेरा समस्त सौभाग्य लिए + +14839. वह नहीं भिन्न माता से है + +14840. सामने जगत के ला करके + +14841. तन मन धन दुर्योधन का है, + +14842. मुझ पर अटूट विश्वास उसे + +14843. “रह साथ सदा खेला खाया, + +14844. कायर, कृतघ्न कहलाऊँगा + +14845. फिर गया तुरत जब राज्य मिला, + +14846. अर्जुन ने अद्भुत नीति गही + +14847. तप त्याग शील, जप योग दान, + +14848. कुन्ती के मुख से कृपाचार्य + +14849. “लेकिन नौका तट छोड़ चली, + +14850. लौटना नहीं स्वीकार मुझे + +14851. इस झूठ-मूठ में रस क्या है? + +14852. परिचय न तेज से दे सकते + +14853. अपना बल-तेज जगाता है, + +14854. पुरुषार्थ एक बस धन मेरा. + +14855. “लेकिन मैं लौट चलूँगा क्या? + +14856. तीसरी नही गति मेरी है. + +14857. हो अलग खड़ा कटवाता है + +14858. कैसे कुठार चलने दूँगा, + +14859. धरती की तो है क्या बिसात? + +14860. उस दिन के लिए मचलता हूँ, + +14861. “सम्राट बनेंगे धर्मराज, + +14862. केवल ऋण मात्र चुकाना है. + +14863. जीवन का मूल्य समझता हूँ, + +14864. अगणित समृद्धियों का सन्चय, + +14865. बस यही चाहता हूँ केवल, + +14866. पाता क्या नर कर प्राप्त विभव? + +14867. “मुझसे मनुष्य जो होते हैं, + +14868. दान ही हृदय का देते हैं. + +14869. रहता वह कहीं पहाड़ों में, + +14870. करते मनुष्य का तेज हरण. + +14871. पर अमृत क्लेश का पिए बिना, + +14872. पीते सो वारी प्रपातो में, + +14873. “मैं गरुड़ कृष्ण मै पक्षिराज, + +14874. अहिपाश काटना है मुझको. + +14875. चाहता तुरत मैं कूद पडू, + +14876. संग्राम तुरत ठन जाने दें, + +14877. मत कभी युधिष्ठिर से कहिए, + +14878. सारी संपत्ति मुझे देंगे. + +14879. “अच्छा अब चला प्रमाण आर्य, + +14880. भूतल मे दिव्य प्रकाश भरें.” + +14881. तू कुरूपति का ही नही प्राण, + +14882. राजनीतिक कामयाबी से ही अंग्रेज भारत में अपने शासन को सुदृढ़ और स्थायित्व प्रदान नहीं कर सकते थे। अंग्रेज जानते थे कि भारत में वे शासन तभी कर सकते हैं जब भारतीयों का समर्थन भी उन्हें प्राप्त हो। ईसाई मिशनरियों ने यह काम कुछ हद तक किया लेकिन मिशनरियों के काम की नकारात्मक प्रतिक्रिया भी हुई । भारतीयों के एक बड़े हिस्से में अपने धर्म और अपनी परंपरा के प्रति आस्था और अधिक सुदृढ़ हुई । इसलिए यह जरूरी था कि भारतीयों को किसी ऐसी चीज से बाँधा जाए जो अधिक सूक्ष्म और प्रभावी हो। शिक्षा एक ऐसा ही हथियार था जिसे अंग्रेजों ने भारतीयों को अपना अधीनस्थ बनाने के लिए इस्तेमाल किया। इस संबंध में चिंतक के. दामोदरन की टिप्पणी रेखांकित प्रभावी हो। शिक्षा एक ऐसा ही हथियार था जिसे अंग्रेजों ने भारतीयों को अपना अधीनस्थ बनाने के लिए इस्तेमाल किया। इस संबंध में चिंतक के. दामोदरन की टिप्पणी रेखांकित संबंध में पश्चिमी विचारों और पद्धतियों को प्रचारित करने की एक व्यवस्था थी । अंग्रेजों ने सोचा था कि अंग्रेजी शिक्षा की नई प्रणाली, जिसके अंतर्गत साहित्य, इतिहास तथा विज्ञान की शिक्षा देने की व्यवस्था थी, भारतवासियों में अपने ओछेपन की भावना को जाग्रत करेगी और स्वयं अपनी संस्कृति तथा परंपराओं के प्रति घृणा पैदा करेगी, जो ब्रिटिश शासन के गौरव से जनता के मस्तिष्क को प्रभावित करने के लिए जरूरी है ।" लार्ड मैकाले इस विचार को प्रचारित करने वालों में अग्रणी था । उसका विचार था कि भारत और अरब का संपूर्ण ज्ञान यूरोप की एक अच्छी लाइब्रेरी की एक अलमारी में समा सकता है। उनका मूल्य यूरोप के प्राइमरी स्कूलों में इस्तेमाल की जाने वाली पुस्तकों से ज्यादा नहीं है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि सभी अंग्रेज मैकाले की तरह सोचते थे । इसके विपरीत विलियम जोन्स जैसे लोग भी थे जो भारत की प्राचीन परंपरा का मूल्यांकन काफी उच्च रूप में करते थे। लेकिन मैकाले का मकसद भारत में औपनिवेशिक शासन को सुदृढ़ करना था। इसके लिए वह भारतीयों का एक ऐसा वर्ग तैयार करना चाहता था 'जो हमारे और उन लाखों लोगों के बीच जिन पर हम शासन करते हैं दुभाषिये का काम कर सके, ऐसे लोगों का एक वर्ग जिनका रक्त और रंग भारतीय हो, किंतु जो रुचि, विचारों, नैतिकता और बुद्धि की दृष्टि से अंग्रेज हों।' मैकाले और उनके साथी अंग्रेजी शिक्षा के द्वारा भारतीयों में जिस रूपांतरण की आशा कर रहे थे, वैसा कुछ घटित नहीं हुआ। इस पर टिप्पणी करते हुए के. दामोदरन ने सही लिखा कि 'ब्रिटिश नीति में अनिवार्यतः कुछ ऐसे अंतर्विरोध थे जिन्हें सुलझाया नहीं जा सकता था। उसका उद्देश्य था। विनाश, किंतु परिणाम हुआ पुनरुज्जीवन। शिक्षा की नई प्रणाली ने प्रयत्न तो किया भारत की आत्मा को कुचल देने का, किंतु वास्तव में वह एक ऐसे आंदोलन के बीज बो रही थी, जिसने अंततः स्वयं ब्रिटिश शासन को ही उखाड़ फेंका। + +14883. समसामयिकी 2020/चर्चित जनजातियाँ: + +14884. इस वर्ष विश्व आदिवासी दिवस पर मनाये जाने वाले समारोह आदिवासी भाषाओं के संरक्षण एवं प्रलेखन पर केंद्रित थे। + +14885. वर्तमान में चकमा एवं हाजोंग नागरिकता अधिनियम की धारा 3(1) के अनुसार जन्म से नागरिक हैं और इनके पास भारत के नागरिक के रूप में वोट देने का अधिकार है। इन्हें वर्ष 2004 में मतदान का अधिकार दिया गया था। + +14886. हालाँकि 75% से अधिक जनजातीय आबादी वाले मध्य एवं पूर्वी भारत में स्प्रिंग्स का कम उपयोग किया जाता है। + +14887. (Online portal on GIS-based Spring Atlas): + +14888. यह क्षमता निर्माण कार्यक्रम संवैधानिक एवं कानूनी प्रावधानों पर ध्यान केंद्रित करेगा जो जनजातीय लोगों के कल्याण एवं उनके अधिकारों के संरक्षण को बढ़ावा देता है। + +14889. सिद्दी लोग भारत के पश्चिमी तट पर स्थित गुजरात, महाराष्ट्र एवं कर्नाटक राज्यों में निवास करते हैं। ये मूल रूप से गुजरात के जूनागढ़ ज़िले में निवास करते हैं + +14890. गिन्नोर को एक अभेद्य किला माना जाता था जो लगभग 2000 फुट ऊँची चट्टान के शिखर पर स्थित था और घने जंगलों से घिरा हुआ था। + +14891. 1990 के दशक की शुरुआत में नगा और कुकी जनजातियों के बीच जातीय संघर्ष के बाद नगा अधिपत्य और उनके दावों से निपटने के लिए कई कुकी संगठनों का गठन हुआ। + +14892. भारतीय संविधान में चिन-कुकी समूह की लगभग 50 जनजातियों को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में रखा गया है। + +14893. मुख्य नगा जनजातियाँ: + +14894. व्यवसाय एवं आहार: + +14895. नगा लोग मुख्यत: तीन देवताओं (स्वर्ग का स्वामी- लुगं किनाजिंगबा, पृथ्वी का स्वामी- लिजबा, मृतक की देखभाल करने वाला- मोजूंग) को मानते हैं। + +14896. बैगा जनजाति की महिलाएँ अपने शरीर पर विभिन्न प्रकार के टैटू गुदवाने के लिये प्रसिद्ध हैं। + +14897. गोंड जनजाति का प्रधान व्यवसाय कृषि है किंतु ये कृषि के साथ-साथ पशु पालन भी करते हैं। इनका मुख्य भोजन बाजरा है जिसे ये लोग दो प्रकार (कोदो और कुटकी) से ग्रहण करते हैं। + +14898. इनका कद छोटा व मध्यम,आँखे लाल, बाल रूखे व जबड़ा कुछ बाहर निकला हुआ होता है। + +14899. ब्रू और बहुसंख्यक मिज़ो समुदाय के लोगों के बीच वर्ष 1996 में हुआ सांप्रदायिक दंगा इनके पलायन का कारण बना। + +14900. यह जनजाति प्रमुख रूप से बिहार,ओडिशा,पश्चिम बंगाल और असम में पाई जाती है। + +14901. यह मिशन प्रधानमंत्री की ‘सागर’ (Security and Growth for All in the Region -SAGAR) पहल के अनुरूप है जो भारत द्वारा उसके पड़ोसी देशों के साथ संबंधों के महत्त्व को रेखांकित करता है एवं मौजूदा संबंधों को और मज़बूत करता है + +14902. इस फोरम का लक्ष्य सार्क के निर्वाचन निकायों के सामान्य हितों के संबंध में आपसी सहयोग को बढ़ाना है। + +14903. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव संचालन के लिये चुनाव प्रबंधन निकायों की क्षमता को बढ़ाने में एक- दूसरे का सहयोग करना। + +14904. इसके लिए भारत उनकी क्षमताओं को मजबूत करने, बुनियादी ढाँचा को बेहतर बनाने, तटीय सर्विलांस सूचनाओं को साझा करने पर सहयोग करेगा। + +14905. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 8 मई को लिपुलेख दर्रे (Lipulekh Pass) से होकर कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिये 80 किलोमीटर लंबी सड़क का उद्घाटन किया था, जिसका विरोध करते हुए नेपाल ने 20 मई को अपने नए नक्शे का अनावरण किया था। + +14906. एक वर्ष बाद (वर्ष 1816) में सुगौली संधि पर हस्ताक्षर के साथ युद्ध समाप्त हो गया। इस संधि के तहत नेपाल की सीमाओं का निर्धारण किया गया, जो कि आज भी मौजूद है। + +14907. कुछ समय पूर्व ही भारत ने सेना के 14-सदस्यीय मेडिकल दल को एक वायरल परीक्षण प्रयोगशाला स्थापित करने के लिये मालदीव भेजा था। इसके अलावा भारत सरकार द्वारा मालदीव को 5.5 टन आवश्यक दवाएँ उपहार के रूप में भेंट की गईं। + +14908. इस ऑपरेशन ने भारतीय वायुसेना की सामरिक एयरलिफ्ट क्षमता को प्रदर्शित किया। + +14909. परिशिष्ट, 2020 पर भारत की तरफ से भारतीय उच्चायुक्त एवं बांग्लादेश की तरफ से सचिव (जहाज़रानी) द्वारा 20 मई, 2020 को हस्ताक्षर किये गए। + +14910. दोनों देशों के बीच ‘अंतर्देशीय जल पारगमन और व्यापार प्रोटोकॉल’ पर ‘ भारत-बांग्लादेश व्यापार समझौते’ (Trade Agreement between Bangladesh & India Protocol) प्रोटोकॉल के अनुच्छेद (viii) के अनुसार, हस्ताक्षर किये गए थे। + +14911. पारगमन मार्गों का महत्त्व:-भारत में जोगीगोफा और बांग्लादेश में बहादुराबाद को नए ‘पोर्टस ऑफ काल’ के रूप में सम्मिलित किया गया है। यह मेघालय, असम एवं भूटान को कनेक्टिविटी की सुविधा प्रदान करेगा। जोगीगोफा में एक ‘मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक पार्क’ बनाए जाने का प्रस्ताव है। + +14912. राष्ट्र प्रमुखों की बैठक और उसके मुख्य बिंदु: + +14913. 100वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2015 + +14914. भारत-बांग्लादेश सीमा पर कई बार निर्दोष बांग्लादेशी भारतीय सुरक्षा बलों के हाथों मारे जाते हैं, क्योंकि सुरक्षा बलों के लिये सीमापार से घुसपैठ करने की कोशिश कर रहे निर्दोष बांग्लादेशी और एक आतंकवादी में भेद करना मुश्किल हो जाता है| यही कारण है कि एलबीए के बाद भी एक आम बांग्लादेशी के मन में भारत विरुद्ध छवि बनती जा रही है। + +14915. पूर्व में लागू इस समझौते की अवधि 10 मार्च, 2016 को समाप्त हो गई थी अतः इसके पूर्व के समझौता ज्ञापनों के लाभों को ध्यान में रखते हुए दोनों देशों द्वारा पर्यावरण के क्षेत्र में सहयोग और समन्वय को जारी रखने का निर्णय लिया गया है। + +14916. तुर्की और पाकिस्तान के ऐतिहासिक संबंधों के बावजूद भारत सदैव सकारात्मक व्यापारिक संबंधों और अन्य क्षेत्रों में भी आपसी सहयोग का पक्षधर रहा है। तुर्की और पाकिस्तान, सेंटो (The Central Treaty Organization-CENTO) के सदस्य रहे हैं, इसके अतिरिक्त दोनों देश संयुक्त सैन्य और नौसैनिक अभ्यास जैसी कई अन्य गतिविधियों का हिस्सा हैं। + +14917. भारत और तुर्की के बीच तनाव: + +14918. भारत में मलेशिया से आयातित उत्पादों की कीमत लगभग 10.8 बिलियन डालर है, मलेशिया से आयातित उत्पादों में एक बड़ा हिस्सा ताड़ (Palm) के तेल का है। + +14919. सितंबर 2019 में भारत सरकार ने स्थानीय उद्योगों के हितों को ध्यान में रखते हुए मलेशिया से आयातित पाम तेल पर 5% सेफगार्ड ड्यूटी लगाई थी। + +14920. भारत सरकार ने अपनी प्रतिक्रिया के तहत सीमा शुल्क विभाग (Customs Department) को मलेशिया से आयात होने वाले माइक्रोप्रोसेसर की गहन जाँच करने के निर्देश दिये हैं। + +14921. भारतीय आयात में कटौती के बाद मलेशिया के पाम तेल बाज़ार में 10% की गिरावट देखी गई थी। + +14922. संयुक्त राज्य अमेरिका के आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि चाबहार बंदरगाह को विकसित करने के लिये भारत को प्रदान की गई "आंशिक छूट" (Narrow Exemption) जारी रहेगी। चाबहार बंदरगाह के माध्यम से भारत अफगानिस्तान को किये जाने वाले अपने निर्यात में विविधता लाना चाहता है। + +14923. नवंबर 2019 को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत-सऊदी अरब के मध्य रणनीतिक साझेदारी परषिद की स्थापना तथा नशीली दवाइयों, मादक पदार्थों और प्रतिबंधित रसायनों की अवैध बिक्री एवं तस्करी को रोकने के लिये हस्‍ताक्षरित अनुबंध को कार्योत्तर स्वीकृति प्रदान की। + +14924. भारत एवं सऊदी अरब दोनों इस बात के पक्षधर हैं कि व्यापार में न सिर्फ विविधता होनी चाहिये बल्कि यह संतुलित भी होना चाहिये, जिससे यह दीर्घकाल तक सतत् बना रहे। संबंधों में उतर-चढ़ाव के कारण भारत में सऊदी अरब का विदेशी प्रत्यक्ष निवेश कुल विदेशी निवेश का 0.05 प्रतिशत है, इसे भी स्वाभाविक रूप से बढ़ाने की आवश्यकता है। + +14925. COVID-19 महामारी के बढ़ते प्रसार ने मानवीय गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया है तो वहीँ दूसरी ओर कच्चे तेल के मूल्य में गिरावट से खाड़ी देशों पर दोहरी मार पड़ रही है। + +14926. खाड़ी सहयोग परिषद के कार्य संचालन की भाषा ‘अरबी’ है। + +14927. गैबन ने जनवरी 1995 में अपनी सदस्यता त्याग दी थी। हालाँकि, जुलाई 2016 में वह फिर से संगठन में शामिल हो गया। + +14928. अमेरिका की मध्य पूर्व शांति योजना + +14929. अरब और यहूदियों के बीच संघर्ष को समाप्त करने में असफल रहे ब्रिटेन ने वर्ष 1948 में फिलिस्तीन से अपने सुरक्षा बलों को हटा लिया और अरब तथा यहूदियों के दावों का समाधान करने के लिये इस मुद्दे को नवनिर्मित संगठन संयुक्त राष्ट्र (UN) के विचारार्थ प्रस्तुत किया। + +14930. समय के साथ वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी के अधिगृहीत क्षेत्रों में तनाव व्याप्त हो गया जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1987 में प्रथम इंतिफादा (Intifida) अथवा फिलिस्तीन विद्रोह हुआ, जो कि फिलिस्तीनी सैनिकों और इज़राइली सेना के मध्य एक छोटे युद्ध में परिवर्तित हो गया। + +14931. संस्कृति मंत्रालय (Ministry of Culture) के प्रशासनिक नियंत्रण में निम्नलिखित छह सार्वजनिक पुस्तकालय हैं - + +14932. भाषा संबंधित सरकारी प्रयास. + +14933. कालकेय वैश्वानर (दानू का पुत्र) की पुत्री ‘कालका’ के वंशज थे। दानू एक आदिम देवी थी जिसका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है,जो कि असुरों की माँ थी। + +14934. संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपने सदस्य राष्ट्रों से विश्व भर के लोगों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली सभी भाषाओं के संरक्षण को बढ़ावा देने का आह्वान किया। + +14935. विश्व में लगभग 43 करोड़ लोगों द्वारा हिंदी बोली जाती है। + +14936. गौरतलब है कि 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस, जबकि 14 सितंबर को राष्ट्रीय हिंदी दिवस (National Hindi Day) मनाया जाता है। + +14937. यूनेस्को ने 42 भारतीय भाषाओं को अति संकटग्रस्त (Critically Endangered) माना है। + +14938. इस सूचकांक में भारत का मोबिलिटी स्कोर 58 है। भारत के पासपोर्ट से आप विश्व के 58 देशों में बिना किसी पूर्व वीज़ा के यात्रा कर सकते हैं। + +14939. सर्बिया एकमात्र यूरोपीय देश है जहाँ भारतीय पासपोर्ट धारक बिना किसी पूर्व वीज़ा के यात्रा कर सकते हैं किंतु कोई भी ऐसा प्रमुख या विकसित देश नहीं है जहाँ भारतीय पासपोर्ट धारकों के पास वीज़ा मुक्त पहुँच हो। + +14940. मार्च 2020 में ‘द आईएचएस मार्किट इंडिया सर्विसेज़ बिज़नेस एक्टिविटी इंडेक्स’ (The IHS Markit India Services Business Activity Index) अर्थात भारतीय सेवा क्षेत्र के लिये क्रय प्रबंधक सूचकांक 49.3 रहा, जो फरवरी 2020 में 57.5 (लगभग 7 वर्षों में सबसे अधिक) था। + +14941. वर्ष 2017 के आँकड़ों के अनुसार, अमेरिका के 185-190 बिलियन अमेरिकी डॉलर के ग्लोबल सोर्सिंग मार्केट (Global Sourcing Market) में भारत की सॉफ्टवेयर कंपनियों की भागीदारी 55% थी। + +14942. कुछ व्यावसायिक संस्थाओं के अनुसार, व्यावसायिक गतिविधियों में कमी का एक कारण बाज़ार में तरलता की कमी भी है। + +14943. इस श्रृंखला का पहला वेबिनार ‘सिटी ऑफ सिटीज़- दिल्ली की पर्सनल डायरी’ पर केंद्रित था। जिसमें दिल्ली के लंबे इतिहास से अवगत कराया गया था क्योंकि इसमें दिल्ली के 8 शहरों के बारे में विस्तार से बताया गया था। + +14944. इसकी दूसरी धारा का निर्माण कर्ग्याग नदी (Kargyag River) और त्सराप नदी (Tsarap River) से होता है। + +14945. ग़ौरतलब है कि चादर ट्रैक को वैश्विक मान्यता मिलने के कारण प्रत्येक वर्ष कई अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक चादर ट्रैक पर ट्रैकिंग करने के लिये ज़ास्कर घाटी का दौरा करते हैं। + +14946. हालाँकि इस बात की भी उम्मीद है कि हाल के दिनों में ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा' (Line of Actual Control- LAC) पर चीन और भारत के बीच तनाव बढ़ने से यह निर्णय बदल भी सकता है। + +14947. यह समझौता दोनों देशों के लिये सैन्य आपूर्ति को आसान बनाने के साथ परिचालन सुधार में सहायक होगा। + +14948. मुख्य बिंदु: + +14949. यह युद्धाभ्यास दोनों देशों को अपने-अपने देश के प्रतिष्ठानों को आतंकी खतरों से निपटने हेतु मान्य रणनीतियों और युक्तियों को साझा करने के लिये एक मंच प्रदान करता है। + +14950. उद्देश्य: इसका उद्देश्य भारत और बांग्लादेश की सेनाओं के बीच व्यापक स्तर पर अंतर-संचालन और सहयोग को बढ़ाना है। + +14951. यह कॉन्क्लेव लखनऊ में आयोजित डेफएक्सपो-2020 (DefExpo-2020) का ही एक भाग था। + +14952. भारत-अफ्रीकी विकास साझेदारी: भारत ने अपनी मज़बूत भारत-अफ्रीकी विकास साझेदारी (India-Africa Development Partnership) के माध्यम से अफ्रीकी देशों को रक्षा उपकरण, अनुदान और लाइन आफ क्रेडिट उपलब्ध कराए हैं। + +14953. नवजागरण के अग्रदूतों ने दूसरा महत्वपूर्ण काम यह किया कि उन्होंने शिक्षा, विशेष रुप से आधुनिक शिक्षा का प्रचार किया कि उन्होंने शिक्षा, विशेष रूप से आधुनिक शिक्षा का प्रचार किया। इसके लिए नए तरह के संस्थान स्थापित किए गए । कई कॉलेज और स्कूल खोले गए। उन्होंने इस बात को भी महसूस किया कि स्त्रियों को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए उन्हें शिक्षित करना बहुत जरूरी है । इसी बात को ध्यान में रखते हुए स्त्री शिक्षा प्रदान करने के लिए लड़कियों के लिए स्कूल खोले गए। इस क्षेत्र में ईश्वरचंद्र विद्यासागर और महाराष्ट्र के ज्योतिबा फुले का योगदान सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। महात्मा फुले का संबंध जिस जाति से था, उसे हिंदू समाज में पिछड़ी जाति माना जाता था। उन्होंने सबसे पहले अपनी पत्नी सावित्री बाई फुले को शिक्षा प्रदान की और फिर अपनी पत्नी की मदद से दलित वर्ग की लड़कियों को शिक्षित करने का कार्य किया। महात्मा फुले ने जातिप्रथा, बाल विवाह और अनमेल विवाह जैसी कई बुराइयों को खत्म करने के लिए प्रयास किए। फुले ने सत्यशोधक मंडल नामक सामाजिक संस्था भी स्थापित की शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने में स्वामी दयानंद सरस्वती और उनके आर्य समाज ने भी योगदान दिया। पंजाब और उसके आसपास के प्रांतों में आर्यसमाज द्वारा स्थापित दयानंद वर्नाक्युलर शिक्षा संस्थानों ने स्कूली और महाविद्यालयी स्तर की आधुनिक शिक्षा उपलब्ध कराने का काम किया। + +14954. सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा सहायिका/भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रक: + +14955. साधारण विनिवेश के विपरीत रणनीतिक बिक्री एक प्रकार से निजीकरण है। + +14956. प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 19-सितम्बर, 2014 को श्री आदिल जैनुलभाई को क्यूसीआई का नया चेयरमैन मनोनीत किया. + +14957. क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) एक प्रस्तावित मेगा मुक्त व्यापार समझौता (Free Trade Agreement- FTA) है, जो आसियान के दस सदस्य देशों तथा छह अन्य देशों (ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूज़ीलैंड) जिनके साथ आसियान का मुक्त व्यापार समझौता है, के बीच होना है। + +14958. इके प्रमुख लक्ष्य: + +14959. देश को विनिर्माण क्षेत्र का अंतर्राष्‍ट्रीय हब बनाना + +14960. मई 2016 में राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम, 2003 की समीक्षा के लिये गठितएन.के. सिंह समितिने सरकार के ऋण के लिये GDP के 60 फीसदी की सीमा तय की है यानी केंद्र सरकार का कर्ज़ GDP का 40 फीसदी और राज्य सरकारों का सामूहिक कर्ज़ 20 फीसदी होगा। + +14961. औद्योगिक क्षेत्रक. + +14962. NIMZ की स्थापना राष्ट्रीय विनिर्माण नीति 2011 के तहत की जाती है, जबकि SEZ की स्थापना SEZ अधिनियम, 2005 के तहत की जाती है। + +14963. कृषि क्षेत्रक. + +14964. जिस मौसम में किसी अनाज या फल बड़े पैमाने पर पैदा होते हैं तो उनके दाम तेजी से गिरने लगते हैं और किसान हड़बड़ा कर उनको कम दामों पर बेचने लगता है. किसान को इस स्थिति से उबारना ही इस योजना का ध्येय है. + +14965. जिन सामग्रियों के लिए MIPS का प्रावधान है, वे हैं – सेब, कीनू/माल्टा, लहसुन, नारंगी, गलगल, अंगूर, कुकुरमुत्ता, लौंग, काली मिर्च, अनानास, अदरक, लाल मिर्च, धनिया आदि. + +14966. आर्थिक सीमा:-संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार आर्थिक सीमा एक देश की सरकार द्वारा प्रशासित वह भौगोलिक सीमा है जिसमें व्यक्तियों,वस्तुओं और पूंजी का निर्बाध संचालन होता है। इस परिभाषा का आधार व्यक्तियों,वस्तुओं और पूंजी के संचालन की स्वतंत्रता है। + +14967. किसी देश की आर्थिक सीमा में किया गया कुल उत्पादन घरेलू उत्पाद होता है। किसी देश के निवासियों द्वारा किया गया कुल उत्पादन राष्ट्रीय उत्पाद होता है। + +14968. उत्पादन इकाइयों का अलग-अलग औद्योगिक समूहों या क्षेत्रकों में समूहीकरण औद्योगिक वर्गीकरण कहलाता है। + +14969. राष्ट्रीय आय के आकलन की विधियां. + +14970. उपभोग व्यय और बचत के लिए उपलब्ध को प्रयोज्य आय कहते हैं। इसमें कारक आय और हस्तांतरण (गैर कारक आय )दोनों शामिल होती हैं। राष्ट्रीय आय में केवल कारक आए शामिल की जाती है। यदि राष्ट्रीय आय ज्ञात हो,तो प्रयोज्य आय ज्ञात की जा सकती है। + +14971. किसी राष्ट्र के नागरिकों द्वारा एक वर्ष की अवधि में उत्पादित समस्त अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का कुल मौद्रिक मूल्य राष्ट्रीय आय कहलाता है। राष्ट्रीय आय की गणना तीन विधियों से की जाती है- + +14972. राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं. + +14973. साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद को ही राष्ट्रीय आय कहा जाता है।[I.A.S-1997] + +14974. संधि की प्रमुख विशेषताएँ: + +14975. यदि अपराध की प्रकृति राजनीतिक है तो प्रत्यर्पण के प्रस्ताव को अस्वीकार किया जा सकता है। हालाँकि संधि में कुछ ऐसे अपराधों को भी शामिल किया गया है जिन्हें राजनीतिक अपराध नहीं माना जाएगा। + +14976. राष्ट्रीयता का निर्धारण उस समय के अनुसार किया जाएगा जब अपराध किया गया है। + +14977. उचित संधि के अभाव में प्रत्यर्पण भारत और उस देश के संबंधों पर भी निर्भर करेगा। + +14978. अनुमानित आँकड़ों के अनुसार, भारत में बेल्जियम की लगभग 160 कंपनियाँ कार्यरत हैं। + +14979. भारत और यूरोपीय संघ दोनों ने वर्ष 2001 में हुए विज्ञान और प्रौद्योगिकी समझौते के अनुरूप आपसी लाभ और पारस्परिक सिद्धांतों के आधार पर अनुसंधान और नवाचार के क्षेत्र में भविष्य में सहयोग करने पर सहमति व्यक्त की है। वर्ष 2001 में हुआ यह समझौता 17 मई 2020 को समाप्त हो गया था। दोनों पक्ष समयबद्ध तरीके से नवीनीकृत प्रक्रिया शुरू करने और अनुसंधान एवं नवाचार में 20 वर्षों के मज़बूत सहयोग को अंगीकृत करने के लिये वचनबद्ध हैं। + +14980. कॉपरनिकस यूरोपीय संघ का पृथ्वी अवलोकन कार्यक्रम (Earth Observation Programme) है। + +14981. लिस्बन संधि का अनुच्छेद 50 यूरोपीय संघ के मौजूदा सदस्यों को संघ छोड़ने का अधिकार देता है। + +14982. दोनों पक्षों ने अपने देशों में निवेश अनुकूल वातावरण बनाने के लिये सरकारों द्वारा दी जा रहीं सुविधाओं से संबंधित जानकारियों का आदान-प्रदान किया। + +14983. इसके उत्तर में बारेंट्स सागर (Barents Sea) एवं नॉर्वेजियन सागर (Norwegian Sea) तथा पश्चिम में उत्तरी सागर (North Sea) एवं दक्षिण में स्कागेर जल संधि (Skager Strait) के साथ इसकी सीमा पूर्व में स्वीडन और उत्तर में फिनलैंड एवं रूस से लगती है। + +14984.
वर्तमान स्थिति
+ +14985. फरवरी 2018 में जल संरक्षण और कचरा प्रबंधन के विषय पर विमर्श करने के लिये गोवा सरकार का उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल पुर्तगाल की यात्रा पर गया था। + +14986. मार्क ज़ुकरबर्ग के यूरोप के अधिकारियों से मिलने के बाद फेसबुक ने भी कंटेंट रेगुलेशन के लिये अपना प्रस्ताव जारी किया था जिसे यूरोपीय नियामकों ने खारिज कर दिया। + +14987. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वर्ष 2012 में नेशनल डेटा शेयरिंग एंड एक्सेसिबिलिटी पॉलिसी (National Data Sharing and Accessibility Policy- NDSAP) को मंज़ूरी दी थी। इस पहल के तहत सरकार ने अमेरिकी सरकार के साथ सार्वजनिक उपयोग के लिये सरकारी डेटा की साइट data.gov.in को जारी किया था। + +14988. समसामयिकी 2020/वास्तुकला: + +14989. महत्त्व:-मामल्लपुरम से प्राप्त प्राचीन चीनी, फारसी और रोमन सिक्कों से पता चलता है कि यह एक बंदरगाह था। + +14990. प्रतिहार शैली:-गुर्जर-प्रतिहार एक विशाल साम्राज्य था जिसके अंतर्गत गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश का क्षेत्र आता था। राजस्थान में जिस क्षेत्रीय शैली का विकास हुआ उसमें उसे गुर्जर-प्रतिहार अथवा महामारु कहा गया। इस शैली के अंतर्गत प्रारंभिक निर्माण मंडौर के प्रतिहारों, सांभर के चौहानों तथा चित्तौड़ के मौर्यों ने किया। + +14991. इस प्रदर्शनी की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं- + +14992. बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर भगवान सूर्य के रथ का एक विशाल प्रतिरूप है। यह मंदिर ओडिशा के पुरी ज़िले में चंद्रभागा नदी के तट पर स्थित है। रथ के 24 पहियों को प्रतीकात्मक डिज़ाइनों से सजाया गया है और सात घोड़ों द्वारा इस रथ को खींचते हुए दर्शाया गया है। अंग्रेज़ी भाषा में इसे ‘ब्लैक पैगोडा’ कहते हैं। + +14993. इसके गुंबद की परछाई पृथ्वी पर नहीं पड़ती। इसके शिखर पर एक स्वर्णकलश स्थित है और जिस पत्थर पर यह कलश स्थित है,उसका वज़न अनुमानत: 80 टन है। + +14994. थंजै पेरिया कोइल उरीमाई मीतपु कुझु (Thanjai Periya Koil Urimai Meetpu Kuzhu) नामक संगठन जिसका उद्देश्य श्री बृहदेश्वर मंदिर में तमिल परंपराओं को बहाल करना है, ने मांग की थी कि कुम्भाभिषेगम समारोह केवल तमिल भाषा में आयोजित किया जाए। + +14995. स्टैच्यू ऑफ यूनिटी गुजरात के वडोदरा के पास नर्मदा ज़िले में स्थित राजपीपला के निकट साधुबेट नामक नदी द्वीप पर 182 मीटर ऊँची सरदार वल्लभभाई पटेल की विश्व की सबसे ऊँची मूर्ति है। + +14996. यह मकबरा वर्ष 1660 में औरंगजेब की बेगम दिलरास बानो बेगम या रबिया-उद्-दौरानी की याद में बनवाया गया था। + +14997. इस क्षेत्र पर काकतीय,चालुक्य,कुतुबशाह और निज़ाम का शासन था जिन्होंने सांस्कृतिक विरासत के विकास में अहम योगदान दिया है फ्राँसीसियों द्वारा बनवाया गया यह नगर हैदराबाद से लगभग 280 किलोमीटर उत्तर में है। यह शहर लकड़ी के खिलौनों पर आधारित उद्योग और निर्मल तश्तरी के लिये प्रसिद्ध है, इन निर्मल तश्तरियों को लघु चित्रकारी और पुष्प कलाकृतियों से सजाया जाता है। + +14998. किसी-किसी संप्रदाय में इन सातों देवियों को ‘महालक्ष्मी’ के साथ मिलाकर ‘अष्ट मातृ’ कहा जाता है। + +14999. इस शिलालेख में संस्कृत और ब्राह्मी वर्ण हैं, इसे सातवाहन वंश के राजा विजय द्वारा 207 ईसवी में जारी किया गया था। + +15000. अन्य शिलालेख: + +15001. इसके अतिरिक्‍त प्राचीन स्‍मारक तथा पुरातत्त्वीय स्‍थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के प्रावधानों के अनुसार, यह देश में सभी पुरातत्त्वीय गतिविधियों को विनियमित करता है। + +15002. इस वंश की स्थापना सिमुक ने की थी तथा इसकी राजधानी महाराष्ट्र के प्रतिष्ठान/पैठन में थी। + +15003. इक्ष्वाकु वंश: + +15004. बोज्जनकोंडा तथा लिंगलामेत्ता(Bojjannakonda and Lingalametta) ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में स्थापित जुड़वां बौद्ध मठ हैं। ये बौद्ध स्थल बौद्ध धर्म की तीन शाखाओं (थेरवाद, महायान, वज्रयान) से संबंधित हैं- + +15005. इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज(Indian National Trust for Art and Cultural Heritage) की स्थापना भारत में संस्कृतिक विरासत के बारे में जानकारी के प्रसार और संरक्षण के उद्देश्य से वर्ष 1984 में नई दिल्ली में की गई थी। वर्तमान में INTACH को विश्व के सबसे बड़े विरासत संगठनों में से एक के रूप में मान्यता प्राप्त है। + +15006. द्रविड़ शैली में निर्मित इस मंदिर परिसर में स्थित पत्थर के रथ को विजयनगर साम्राज्य का सबसे आश्चर्यजनक वास्तुकला माना जाता है। पत्थर का रथ वास्तव में एक मंदिर है जिसे एक सजावटी रथ के आकार में डिज़ाइन किया गया है। यह मंदिर गरुड़ पक्षी को समर्पित है और गरुड़ की एक आकृति इस मंदिर के गर्भगृह में है। + +15007. + +15008. साथ हीं हरियाणा राज्य के सभी आधिकारिक उद्देश्यों के लिये हिंदी का उपयोग किया जाएगा केवल उन अपवादित कार्यों को छोड़कर, जिन्हें हरियाणा सरकार अधिसूचना के माध्यम से निर्दिष्ट करती है। + +15009. हरियाणा में अनेक औद्योगिक केंद्र है तथा औद्योगिक विवाद के मामलों में हिंदी में बहस करना अनेक वकीलों के लिये आसान नहीं होगा। इससे वकीलों के व्यवसाय पर संकट मंडरा सकता है। + +15010. वर्ष 2005 में उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित एक ‘ई-कमेटी’ (e-Committee)के निर्देशों के आधार पर न्यायालयों में ई-फाइलिंग और इंटरनेट से जुड़ी अन्य सुविधाओं की शुरुआत की गई। + +15011. चूँकि ‘न्यायालय की खुली सुनवाई’ के संबंध में संविधान में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, ऐसे में दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure- CrPC), 1973 की धारा 327 और सिविल प्रक्रिया संहिता (Code of Civil Procedure- CPC), 1908 की धारा 153 (ख) के प्रावधानों का अनुसरण किया जा सकता है। + +15012. इस चरण के तहत बचे हुए न्यायालयों को जेलों से जोड़ा जाएगा और डेक्सटॉप आधारित वीडियोकॉन्फ्रेंसिंग सुविधा को रिमांड और विचाराधीन कैदियों को प्रस्तुत करने के अलावा अन्य मामलों के लिये आगे भी बढ़ाया जाएगा। + +15013. उपरोक्त घटनाक्रम को देखें तो कार्यपालिका और न्यायपालिका आपस में मेल-जोल प्रतीत होता है जबकि भारतीय संविधान में दोनों की स्वतंत्रता की बात कही गई है। + +15014. वर्ष 1993 के ‘सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन’ (SCARA) बनाम भारत संघ मामले में नौ न्यायाधीशों की एक संविधान पीठ ने वर्ष 1981 के एसपी गुप्ता मामले के निर्णय को खारिज़ कर दिया और उच्चतम/उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं स्थानांतरण के लिये 'कॉलेजियम सिस्टम' नामक एक विशिष्ट प्रक्रिया तैयार करने की बात कही। + +15015. फ्रांसिस बेकन ने न्यायाधीशों के बारे में कहा है कि “न्यायाधीशों को मज़ाकिया से अधिक प्रबुद्ध, प्रशंसनीय से अधिक श्रद्धेय और आत्मविश्वास से अधिक विचारपूर्ण होना चाहिये। सभी चीजों के ऊपर सत्यनिष्ठा उनकी औषधि एवं मुख्य गुण है। मूल्यों में संतुलन, बार कौंसिल और न्यायिक खंडपीठ के बीच श्रद्धा, स्वतंत्र न्यायिक प्रणाली की बुनियाद है।” + +15016. + +15017. सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/महापुरुषों के विचार: + +15018. गांधी जी का विचार था कि “हमारे अधिकारों का सही स्रोत हमारे कर्तव्य होते हैं और यदि हम अपने कर्तव्यों का सही ढंग से निर्वाह करेंगे तो हमें अधिकार मांगने की आवश्यकता नहीं होगी।” + +15019. भारतीय अर्थव्यवस्था/भुगतान संतुलन: + +15020. पूंजी खाता + +15021. अस्मितामूलक विमर्श और हिंदी साहित्य: + +15022. दलित कहाँ तक पड़े रहेंगे + +15023. नहीं उचित है, निर्बल को अब तो सताना, दुःसह दुखों का देना। + +15024. तुम्हारी खातिर गरीब मानव कहाँ लौं, कब लौं सड़े रहेंगे? + +15025. खुदी में आकर तुम्हीं ने इनको शहर बदर भी करा दिए हैं। + +15026. मनुस्मृति के अमानुषी ये विधान तब क्या धरे रहेंगे? + +15027. जो काटते खुद हैं जड़ को अपनी, फल के चाखने की आस करते। + +15028. कितनी व्यथा + +15029. मत ठोकर खाकर पथिक पथ शेष है, + +15030. रोक सका पर कौन प्रचण्ड प्रकाश को? + +15031. कितने सावन आए, आकर लौट गए, + +15032. चढ़ना होगा तुम्हें हर एक सौपान को! + +15033. नाम मुसहरवा है, कवनउ हरवा ना, + +15034. आधे दाम माँगे दुतकार॥1॥ + +15035. मेघा और मगर गोह, साँप मूस खाई हम, + +15036. ओढ़ना के नाहीं दरकार। + +15037. दुलटा दुलहिनी के डोली लै धावत रहे, + +15038. केउ नहिं सुनत गोहार॥6॥ + +15039. + +15040. हिंदी नवजागरण की शुरूआत भारतेंदु युग से मानी जाती है। भारतेंदु (1850- 1885 ) का संबंध बनारस के एक अत्यंत प्रतिष्ठित व्यावसायिक परिवार से था । साहित्य से लगाव उनको अपने परिवार से विरासत में मिला था। उन्होंने 18 वर्ष की आयु में हिंदी में 'कविवचन सुधा' नामक साहित्यिक पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया । बाद में उन्होंने 'हरिश्चंद्र मैगज़ीन' नामक पत्रिका निकाली जिसका नाम बाद में बदलकर 'हरिश्चंद्र चंद्रिका' कर दिया गया। स्त्री शिक्षा और जागृति के लिए उन्होंने 'बालाबोधिनी' नामक पत्रिका का भी प्रकाशन किया। भारतेंदु ने हिंदी भाषा और साहित्य को नया स्वरूप प्रदान करने का प्रयास किया। वह स्वयं तो साहित्यकार थे ही, साथ ही उन्होंने बहुत से युवाओं को साहित्य की ओर प्रेरित किया। भारतेंदु से प्रेरणा लेकर साहित्य रचना करने वाले और साहित्यिक गतिविधियों में सक्रिय रहने वाले लेखकों को भारतेंदु मंडल के नाम से जाना जाने लगा। उनके समकालीन कई लेखकों ने भी विभिन्न पत्रिकाओं का प्रकाशन किया। भारतेंदु युग के साहित्य के बारे में आप विस्तार से भारतेंदु युग वाले अध्याय में पढ़ेंगे। यहाँ हम सिर्फ इस बात पर प्रकाश डालेंगे कि भारतेंदु युग ने नवजागरण में किस तरह का योगदान किया। + +15041. ये 12 क्षेत्र हैं- कृषि, शिक्षा, उद्यम प्रौद्योगिकी, ऊर्जा, वित्त, खाद्य, स्वास्थ्य, उद्योग 4.0, अंतरिक्ष, सुरक्षा, पर्यटन एवं शहरी सेवाएँ। + +15042. केंद्र सरकार के कार्यक्रम. + +15043. ये ऋण वाणिज्यिक बैंक,क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक,लघु वित्त बैंक,सूक्ष्म वित्त संस्थाओं तथा गैर-बैंकिंग‍ वित्तीय कंपनियों द्वारा प्रदान किये जाते हैं। + +15044. MSME क्षेत्र को दिये जाने वाले इस ऋण पर ‘गारंटी युक्त आपातकालीन क्रेडिट लाइन’ (Guaranteed Emergency Credit Line- GECL) के रूप में ‘राष्ट्रीय ऋण गारंटी ट्रस्टी कंपनी लिमिटेड (National Credit Guarantee Trustee Company Limited-NCGTC) द्वारा 100% गारंटी दी जाएगी। + +15045. इस योजना के तहत बैंकों द्वारा जारी किये गए ऋण पर 9.25% ब्याज और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) द्वारा जारी ऋण पर 14% ब्याज लागू होगा। + +15046. पिछले सप्ताह सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के प्रमुख अधिकारियों की एक बैठक में केंद्रीय वित्त मंत्री ने बैंकों को बिना तीन ‘C’ {केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation-CBI), केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission- CVC) और भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General of India- CAG) के भय के पात्र लोगों को योजना के तहत ऋण उपलब्ध कराने को कहा है। + +15047. भुगतान में बिलंब होना MSMEs के लिये दूसरी बड़ी चुनौती है चाहे वह खरीदारों से हो (जिसमें सरकारी संस्थान भी शामिल हैं) या GST रिफंड आदि के तहत मिलने वाली राशि। + +15048. इनमें उत्तर प्रदेश (14%), पश्चिम बंगाल (14%), तमिलनाडु (8%), महाराष्ट्र (8%), कर्नाटक (6%), बिहार (5%) और आंध्र प्रदेश (5%) हैं। + +15049. ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ योजना का विस्तार + +15050. क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना (Credit Linked Subsidy Scheme) का विस्तार + +15051. इस कार्यक्रम से MSMEs की 98,000 इकाइयों को लाभ होने की उम्मीद जताई गई है जो 10 लाख से अधिक लोगों को रोज़गार प्रदान करती हैं। + +15052. यह पाठ्य-पुस्तक पश्चिम बंग राज्य विश्वविद्यालय से संबद्ध महाविद्यालयों के स्नातक हिंदी (प्रतिष्ठा) के पंचम सत्रार्द्ध के पाठ्यक्रम को ध्यान में रखकर बनाई गई है। अन्य विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय के विद्यार्थी भी सामग्री से लाभान्वित हो सकते हैं तथा संबंधित संकाय अध्यापकों द्वारा इसमें यथोचित विस्तार किया जा सकता है। + +15053. सहकारी बैंकों में अनियमितता की बढती घटनाओं को देखते हुए RBI हाल के वर्षों में नए UCBs को लाइसेंस जारी करने से बचता रहा है। + +15054. राज्य स्तर पर यह योजना राज्य KVIC निदेशालय,राज्य खादी और ग्रामोद्योग बोर्ड(KVIBs),ज़िला उद्योग केंद्रों और बैंकों के माध्यम से लागू की जाती है। + +15055. रोज़गार और उद्यमिता की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार द्वारा 2015 में ‘नवाचार,कृषि-उद्योग और उद्यमिता के संवर्द्धन के लिये योजना’ (A Scheme for promotion of Innovation, Entrepreneurship and Agro-Industry) शुरू की गई थी। + +15056. संवैधानिक प्रावधान. + +15057. रिपोर्ट में मैदानी इलाकों के लोगों द्वारा इन जनजातीय क्षेत्रों के शोषण से सुरक्षा एवं इनके विशिष्ट सामाजिक रीति-रिवाजों को संरक्षित करने के लिये भी कहा गया है। + +15058. संविधान की छठी अनुसूची (भाग 10 और अनुच्छेद 244) में असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के जनजातीय क्षेत्रों के लिये विशेष प्रावधानों का वर्णन किया गया है। प्रत्येक स्वशासी ज़िले के लिये एक 30 सदस्यीय ज़िला परिषद होगी जिसके 4 सदस्य राज्यपाल द्वारा नामित किये जाएंगे जबकि 26 सदस्यों का चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर होगा। निर्वाचित सदस्य पाँच साल के कार्यकाल के लिये पद धारण करते हैं (यदि परिषद को इससे पूर्व भंग नहीं किया जाता है) और मनोनीत सदस्य राज्यपाल के इच्छानुसार समय तक पद पर बने रहते हैं। प्रत्येक स्वायत्त क्षेत्र में भी एक अलग क्षेत्रीय परिषद होती है। + +15059. संसद या राज्य विधायिका के अधिनियम स्वायत्त ज़िलों और स्वायत्त क्षेत्रों पर लागू नहीं होते हैं या निर्दिष्ट संशोधनों और अपवादों के साथ लागू होते हैं। + +15060. PESA ने इसके उद्देश्य को साकार करने हेतु ग्राम सभाओं को सशक्त बनाया है ,जिसमें 18 वर्ष से ऊपर के प्रत्येक व्यक्ति (मतदाता सूची में शामिल) को शामिल किया गया है। + +15061. राजनीतिक और प्रशासनिक इतिहास + +15062. इन क्षेत्रों (छठी अनुसूची) को संविधान के भाग XXI के तहत भी विशेष प्रावधान दिए गए हैं। + +15063. एलविन कमेटी (1959) का गठन सभी जनजातीय विकास कार्यक्रमों के लिये बुनियादी प्रशासनिक इकाई ‘बहु-उद्देश्यीय विकास खंड’ (मल्टी-पर्पज डेवलपमेंट ब्लॉक) के कार्यकरण की जाँच के लिये किया गया था। + +15064. पाँच महत्त्वपूर्ण मुद्दों: (1) आजीविका व रोज़गार, (2) शिक्षा, (3) स्वास्थ्य, (4) अनैच्छिक विस्थापन और प्रवासन, और (5) विधिक एवं संवैधानिक मामलों का अध्ययन शाशा समिति द्वारा किया गया है। + +15065. ऐसे समूह की प्रमुख विशेषताओं में एक आदिम-कृषि प्रणाली का प्रचलन, शिकार और खाद्य संग्रहण का अभ्यास, शून्य या नकारात्मक जनसंख्या वृद्धि, अन्य जनजातीय समूहों की तुलना में साक्षरता का अत्यंत निम्न स्तर आदि शामिल है। + +15066. पंद्रहवीं-सोलहवीं सदी से भारत में यूरोपीय कंपनियाँ व्यापार के लिए आने लगी थीं जिनमें पुर्तगाली, डच, फ्रांसीसी और ब्रिटिश कंपनियाँ शामिल थीं । इन सभी कंपनियों को उनके देशों की सरकारों का समर्थन हासिल था। इन देशों की सरकारों ने उन्हें सेना रखने और शासन चलाने तक का अधिकार दे रखा था। भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी, जो एक ब्रिटिश कंपनी थी, का आगमन सत्रहवीं सदी में हो गया था | व्यापार के साथ-साथ ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपना राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिश भी की। इसके लिए उन्होंने कूटनीति और युद्धों का सहारा लिया। जैसाकि पहले कहा जा चुका है कि अंग्रेजों के + +15067. इन क्रांतिकारियों में ही रामप्रसाद बिस्मिल, असफाकुल्लाह, चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव आदि भी थे। रामप्रसाद बिस्मिल और असफाकुल्लाह को उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए फाँसी दे दी गई। कई क्रांतिकारियों को अंडमान-निकोबार द्वीप पर भेज दिया जाता था जहाँ अंग्रेजों ने भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को कैद रखने के लिए जेल का निर्माण किया था । इस जेल को सेलुलर जेल के नाम से जाना जाता था। पंजाब के स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय जब प्रदर्शन के दौरान पुलिस की लाठी से घायल हो गए और थोड़े दिनों बाद उनकी मौत हो गई तो इस घटना से विचलित होकर भगत सिंह और उनके साथियों ने पुलिस के अधिकारी सांडर्स को मार गिराया। इसके कुछ दिन बाद सारी दुनिया को भारत की आजादी के संघर्ष के प्रति जागरूक करने के लिए भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने केंद्रीय असेंबली में बम का धमाका किया। इन क्रांतिकारियों का इरादा किसी को मारना नहीं था। यही वजह है कि उन्होंने ऐसा ही बम फोड़ा जिससे किसी को मामूली सी चोट भी नहीं आई । भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त बम फोड़कर भागे नहीं बल्कि वहीं खड़े रहकर उन्होंने इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए और पर्चे बाँटे । उन दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया | थोड़े दिनों बाद अन्य क्रांतिकारी भी एक-एक कर पकड़े गए । भगतसिंह और दूसरे क्रांतिकारियों पर मुकदमा चलाया गया। भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा हो गई, अन्य क्रांतिकारियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई । चंद्रशेखर आजाद पकड़े + +15068. सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/क्षेत्रवाद: + +15069. भारतीय परिप्रेक्ष्य में क्षेत्रवाद कोई नवीन विचारधारा नहीं है। प्राचीन समय से लेकर वर्तमान परिदृश्य तक समय-समय पर ऐसे अनेक कारण रहे हैं, जिन्हें क्षेत्रवाद के उदय के लिये महत्त्वपूर्ण माना जाता रहा है, इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं- + +15070. भाषायी आधार पर राज्यों की मांग को पूरा करने के लिये वर्ष 1956 में ‘राज्य पुनर्गठन आयोग’ की स्थापना की गई। + +15071. लोकसभा ने सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक,2019 पारित किया. + +15072. इस कानून की धारा-12 में केंद्रीय सूचना आयोग के गठन, धारा-13 में सूचना आयुक्तों की पदावधि एवं सेवा शर्ते तथा धारा-14 में उन्हें पद से हटाने संबंधी प्रावधान किये गए हैं। + +15073. यह निर्णय आरटीआई कार्यकर्त्ता सुभाष अग्रवाल के वर्ष 2009 में सूचना के अनुरोध से संबंधित है। आरटीआई कार्यकर्त्ता ने पूछा था कि “क्या सुप्रीम कोर्ट के सभी न्यायाधीशों ने 1997 में पारित एक प्रस्ताव के बाद CJI के समक्ष अपनी संपत्ति और देनदारियों की घोषणा की थी?” + +15074. स्वतंत्र न्यायपालिका v/s पारदर्शिता + +15075. जून 2020 में प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) ने पीएम-केयर्स फंड (PM-CARES Fund) के संबंध में RTI अधिनियम के तहत दायर आवेदन में मांगी गई सूचना को देने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत पीएम-केयर्स फंड एक 'सार्वजनिक प्राधिकरण' (Public Authority) नहीं है। + +15076. प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की धनराशि का इस्तेमाल अब प्रमुखतया बाढ़, चक्रवात और भूकंप आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं में मारे गए लोगों के परिजनों तथा बड़ी दुर्घटनाओं एवं दंगों के पीड़ितों को तत्काल राहत पहुँचाने के लिये किया जाता है। + +15077. RTI की उपलब्धियाँ + +15078. औपनिवेशिक हितों के अनुरूप निर्मित वर्ष 1923 का सरकारी गोपनीयता अधिनियम (Official Secrets Act) RTI की राह में प्रमुख बाधा है, द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (Second Administrative Reform Commission) ने इस अधिनियम को खत्म करने की सिफारिश की है जिस पर पारदर्शिता के लिहाज से अमल करना आवश्यक है। + +15079. इस पोर्टल पर राजस्थान सरकार के 13 विभागों की 23-24 प्रकार की जानकारियाँ एक ही स्थान पर उपलब्ध हैं। + +15080. नीति आयोग के दो प्रमुख हब + +15081. सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/सेवा क्षेत्रक: + +15082. स्पष्ट रूप से भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा सतर्कता विभाग को सुदृढ़ किये जाने की दिशा में कार्य किया जाना चाहिये, ताकि प्रबंधन के स्तर पर होने वाली चूक को समय रहते सुधारा जा सके और किसी बड़ी परेशानी से बचा जा सके। + +15083. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिये सरकार ने 2015 में इंद्रधनुष 2.0 योजना शुरू की थी। यह योजना सरकारी क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पूंजीकरण हेतु एक समग्र कार्यक्रम है, जिससे बैंकों को बासेल-III नियमों के तहत अपनी पूंजीगत स्थिति बनाए रखने में मदद मिलती है। + +15084. हिंदी नाटक और एकांकी/ध्रुवस्वामिनी: + +15085. चंद्रगुप्त अंतर्मन से ध्रुवस्वामिनी के प्रति अनुरक्त है लेकिन राजमर्यादा के कारण वह अपना यह मनोभाव प्रकट नहीं होने देता। ध्रुवस्वामिनी भी इस सत्य से अवगत है। वह राजाज्ञा से ध्रुवस्वामिनी के साथ शकराज के पास जाने के लिए तैयार हो जाता है। सहसा नील वोहित रंग के धूमकेतु को दुर्ग की ओर भयानक संकेत करता हुआ देखकर शकराज किसी अनिष्ट की आशंका से कांप उठता है। आचार्य मिहिरदेव शकराज को चेताते भी हैं कि- + +15086. इस नाटक में कोमा द्वारा प्रेम को परिभाषित किया गया है। कोमा ध्रुवस्वामिनी से कहती है- + +15087. अर्थात् समाज में ऐसे अधिकतर पुरुष हैं जो स्त्री को मात्र वस्तु समझते हैं। *रामगुप्त के जैसे ही शकराज को भी स्त्री केवल उपभोग व मनोरंजन की वस्तु लगती है।* कोमा पूछती है- + +15088. ध्रुवस्‍वामि‍नी और चंद्रगुप्‍त का पुनर्लग्‍न प्रसाद की प्रगति‍शीलता है क्‍योंकि‍ पौरूष के बल पर स्त्री को दासी माननेवाले रामगुप्‍त की मृत्यु के बाद वह अपनी इच्‍छा से चंद्रगुप्‍त का वरण करती है। + +15089. प्रसाद ने इस नाटक में स्त्री की विभिन्न समस्याओं को उठाया है किंतु इन समस्याओं को भारतीय चिंतन और परंपरा के आधार पर ही ढूँढने का प्रयास किया है। + +15090. लगभग दो सौ साल की गुलामी के बाद 15 अगस्त 1947 को भारत औपनिवेशिक दासता से मुक्त हो गया। इसके साथ ही एक नया देश पाकिस्तान अस्तित्व में आ गया। भारत आजाद तो हो गया लेकिन इस आजादी की भारी कीमत चुकानी पड़ी। विभाजन ने लाखों लोगों को विस्थापित होने के लिए मजबूर कर दिया। इस दौरान हुए दंगों में हजारों-हजार लोग मारे गये। विभाजन के बावजूद भारत ने धर्मनिरपेक्षता का रास्ता नहीं छोड़ा। भारत का जो नया संविधान बना उसने सभी भारतीय नागरिकों को यह वचन दिया कि उनके साथ धर्म, जाति, नस्ल, लिंग, भाषा आदि के आधार पर किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जाएगा। राज्य का कोई धर्म नहीं होगा और सभी धरमों के प्रति समान भाव रखा जाएगा। आजाद भारत ने एक ऐसी व्यवस्था अपनाई जिसमें दलितों, आदिवासियों और अन्य पिछड़े समूहों के विकास के लिए विशेष कदम उठाए गए । इस तरह भारत एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में उभरकर विश्व के सामने उपस्थित हुआ। भारत की आजादी की लड़ाई ने औपनिवेशिक दासता से जकड़े देशों को संघर्ष की प्रेरणा दी और उनकी आजादी का मार्ग भी प्रशस्त हुआ। + +15091. इस नई चेतना ने ही भारतीयों को इस बात का एहसास कराया कि हम एक राष्ट्र है, स्वतंत्रता और संप्रभुता हमारा लक्ष्य है और इसे हम हर हाल में हासिल करके रहेंगे। 1885 में कांग्रेस की स्थापना ने भारतीयों की आजादी की महत्वाकांक्षा को पूरा करने का एक मंच प्रदान किया। आजादी की लड़ाई में कांग्रेस ने सदैव अग्रणी भूमिका निभाई । इसने दादा भाई नौरोजी, गोपालकृष्ण गोखले, बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सुभाषचंद्र बोस, मौलाना अबुलकलाम आजाद , रोजिनी नायडू जैसे महान नेता दिए। आजादी की लड़ाई में क्रांतिकारियों का भी योगदान अविस्मरणीय है। + +15092. आदिकाल विविध और परस्परविरोधी प्रवृत्तियों का काल है| हर्षवर्धन के बाद किसी ने केंद्रीय सत्ता स्थापित नहीं की| युद्ध या बाहरी हमलों का कोई प्रभाव जनता पर नहीं पड़ता था|भूमि और नारी का हरण राजाओं पर लिखे गए काव्यों में सामान्य विषय है| सामंतवादी व्यवस्था में भूमि संपत्ति का स्रोत होती है| रक्त या वंश की शुद्धता और उच्चता में नारी की भूमिका निर्णायक होती है| अर्थव्यवस्था की बात छोड़ दे तो कहा जा सकता है कि सामान्य जनता के दैनंदिन जीवन पर राज्य की अपेक्षा धार्मिक मतों का अधिक प्रभाव था| इस काल में संस्कृत, प्राकृत, और अपभ्रंश में भी रचनाएं हो रही थी| और साथ ही साथ अपभ्रंश के केंचुल को छोड़ती हुई हिंदी भी अपना रूप ग्रहण कर रही थी| + +15093. + +15094. हिंदी साहित्य का सरल इतिहास/जैन मतावलंबी कवि: + +15095. प्राकृत पैंगलम् के छंदों को देखने से पता चलता है कि आश्रयदाता राजाओं को आधार बनाकर काव्य रचने की परंपरा भी इस काल में विद्यमान थी। प्राकृत पैंगलम् में विद्याधर द्वारा रचित किसी राजा संभवतः 'जयचंद' की. एवं अनुमानतः शाङ्गधर द्वारा रचित हम्मीर की प्रशंसा में लिखे पद्य मिलते हैं। + +15096. तोवि कटारइ हत्थडउ बलि किज्जउँ कंतस्स। + +15097. तसु हउँ कलजुगि दुल्लहहो बलि किज्जउँ सुअणस्सु।। + +15098. इनमें से विद्यापति की रचनाएँ (14वीं, 15वीं शताब्दी) अर्थात् कीर्तिलता, कीर्तिपताका, पदावली और नरपति नाल्ह द्वारा रचित बीसलदेव रासो प्रामाणिक रूप में उपलब्ध हैं। कीर्तिपताका अभी तक संपादित होकर प्रकाशित नहीं हई है। बीसलदेव रासो का पाठ डॉ. माताप्रसाद गुप्त द्वारा संपादित प्रकाशित है। कुछ लोग इसे तेरहवीं शती की रचना मानते हैं, तो कुछ लोग सोलहवीं-सत्रहवीं शती की। जगनिक कृत परमाल रासो 'आल्हा' के रूप में ही पहचाना जाता है। आल्हा लोकगान है, अत: यह विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न रूपों में गाया जाता है। जगनिक संभवतः परमाल और पृथ्वीराज के समकालीन (12वीं शती के) थे। विजयपाल रासो के रचयिता का नाम नल्लसिंह है। इसमें जो लड़ाई विजयपाल न पंग राजासे की थी, उसका वर्णन है। मिश्र बंधुओं ने इसका रचनाकाल चौदहवीं शती ही + +15099. रासो में पृथ्वीराज के विभिन्न युद्धों और विवाहों का वर्णन है। वीर और शृंगार रासो के प्रमुख रस हैं, यद्यपि इसका अंगीरस वीर ही माना जाएगा। रासो में नायिका का नख-शिख वर्णन, सेना के प्रयाण, युद्ध, षड्ऋतुओं आदि का सुंदर वर्णन है। चंदबरदाई अनेक मन:स्थितियों का संश्लिष्ट चित्र खींचने में सिद्ध हैं। यद्यपि वे विभिन्न छंदों के प्रयोग में कुशल हैं, किंतु छप्पय उनका अपना छंद है। + +15100. हिंदी साहित्य का सरल इतिहास/वीरगाथाकाल के अन्य कवि/विद्यापति(14वीं शती): + +15101. अमीर खुसरो इस युग के अत्यंत महत्त्वपूर्ण एवं बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति हैं। उनके काव्योत्कर्ष का प्रमाण उनकी फ़ारसी रचनाएँ हैं। वे संगीतज्ञ, इतिहासकार, कोशकार, बहुभाषाविद्, सूफ़ी औलिया, कवि-बहुत कुछ थे। उनकी हिंदी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय रही हैं। उनकी पहेलियाँ, मुकरियाँ, दो सुखने अभी तक लोगों की ज़बान पर हैं। उनके नाम से निम्नलिखित दोहा बहुत प्रसिद्ध है (कहते हैं कि यह दोहा खुसरो ने ख्वाजा निज़ामुद्दीन चिश्ती के देहांत पर कहा था)- + +15102. + +15103. इस बीच मध्यकाल पर काम करने वाले इतिहासकारों, विशेषत: इरफ़ान हबीब और रामशरण शर्मा ने अपने कार्यों से इस क्षेत्र पर ऐसा प्रकाश डाला है कि हिंदी के भक्ति काव्य के विषय में हमें नई बातों का पता चलता है। इरफ़ान हबीब के अनुसार उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन की निर्गुण धारा के उत्थान में शिल्पियों और जाटों-किसानों की प्रमुख भूमिका रही है। वे निर्गुण धारा को + +15104. दक्षिण भारत में पहली शताब्दी के बाद अनेक शताब्दियों तक सत्ता पराक्रमी शासकों के हाथों में रही। परवर्ती चोल साम्राज्य के शासकों के पहले ही करिकाल (चोलवंशी शासक) ने कावेरी के जल को नियंत्रित करके सिंचाई की बेहतर व्यवस्था की। श्रीलंका के युद्धबंदियों से कावेरी के मुहाने पर पुहार का बंदरगाह तैयार करवाया। उसके राज्य में व्यापार-उद्योग की अभूतपूर्व उन्नति हुई। + +15105. नाथ-सिद्धों की साधना में अंतस्साधना पर बहुत बल था। सरहपा सहज साधना के विश्वासी साधक थे। वे माया को भी त्याज्य नहीं मानते थे। उनके यहाँ चित्त की निर्मलता और करुणा को महत्त्व दिया गया है। नाथ बाह्याचार का विरोध करते थे। उनकी साधना भक्ति-भावना में घुल-मिल गई। फलतः उत्तर भारत में आकर भक्ति-साधना उतनी निरीह नहीं रह गई। वह वर्ण-व्यवस्था और + +15106. 1. नफ्स (इंद्रिय), + +15107. + +15108. हिंदी साहित्य का सरल इतिहास/भक्ति साहित्य के रूपात्मक स्रोत: + +15109. खड़ी बोली में उस समय रचना अवश्य होती रही होगी जैसा कि अमीर खुसरो की कविताओं से प्रकट है, किंतु उसको कोई परंपरा नहीं मिलती। भक्तिकाल में किसी महान कवि ने शुद्ध खड़ी बोली में कोई रचना नहीं की। उसका मिश्रित रूप सधुक्कड़ी अवश्य मिलता है, जो वस्तुत: पंजाबी, राजस्थानी, खड़ी बोली, ब्रज और कहीं-कहीं अवधी का भी पंचमेल है। + +15110. आदिकाल में विविध छंदों में प्रबंध काव्य रचने की प्रवृत्ति थी। उदाहरण के लिए, पृथ्वीराज रासो में छंद बहुत जल्दी-जल्दी बदलते हैं। सूरदास और तुलसीदास भी छंद परिवर्तन करते हैं, किंतु जल्दी-जल्दी नहीं। केशव की रामचंद्रिका में बहुत जल्दी-जल्दी छंद परिवर्तित हुए हैं। + +15111. इनके अतिरिक्त सूफ़ी काव्य परंपरा के अन्य उल्लेखनीय कवि और काव्य। इस प्रकार हैं- उस्मान ने 1613 में चित्रावली की रचना की। शेख नवी ने 1619। में ज्ञानद्वीप नामक काव्य लिखा। कासिम शाह ने 1731 में हंस जवाहिर रखा। नूर मुहम्मद ने 1744 में इंद्रावती और 1764 में अनुराग बॉसुरी लिखा। अनरा बाँसुरी में शरीर, जीवात्मा और मनोवृत्तियों को लेकर रूपक बाँधा गया है। इन्दोंसे चौपाइयों के बीच दोहे न रखकर बरवै रखे हैं। निर्गुण काव्य की सामान्य विशेषताएँ निर्गुण काव्य की दोनों शाखाएँ निर्गुण मत पर आधारित हैं। ये दोनों परम सत्ता को मानवीय भावना का आलंबन तो मानती हैं, किंतु लीलावाद एवं अवतारवाद पर विश्वास नहीं करतीं। कबीर और सूफ़ी कवि भगवत्प्रेम को मानव-जीवन की सार्थकता मानते हैं। वे निर्गुण को गुणरहित नहीं, गुणातीत मानते हैं और उससे अनेक प्रकार के संबंध जैसे माता, पिता, प्रिय, गुरु आदि का संबंध स्थापित करते हैं। कबीर के यहाँ प्रेम की उत्कटता कम तीव्र नहीं, कितु वे ज्ञान एव अंतस्साधना की उपेक्षा नहीं करते। कबीर के काव्य में निर्गुण मतवाद का विश्वबोध प्रकट है। वे सृष्टि की उत्पत्ति, नाश, जन्म, मृत्यु, मनुष्य की नाड़ियों, चक्रों आदि की बात काफ़ी करते हैं। वे ज्ञान को व्याकुल करने वाला या दाहक मानते हैं। उनके यहाँ ज्ञान की आँधी सब कुछ को अस्त-व्यस्त कर देती है। इसीलिए वे अपने घर को और अपने साथ चलने बालों के घरों को जलाने के बात करते हैं। प्रेम एवं भक्ति पर जोर होने के बावजूद उन्हें ज्ञानाश्रयी धारा का संत कहा जाता है। इस धारा के कवि अधिकांशत: अवर्ण हैं। उन्होंने वर्ण- व्यवस्था की पीड़ा सही थी। अत: उनमें वर्ण-व्यवस्था पर तीव्र आक्रमण करने का भाव है। इस धारा के कवियों पर नाथ-संतों की अंतस्साधना के साथ उनका दुरूह प्रतीक-शैली उलटबाँसी का भी प्रभाव है। इन्होंने गेयपद, दोहा, चौपाई के अतिरिक्त कुछ लोक-प्रचलित छंदों का भी उपयोग किया है। ज्ञानाश्रयी धारा किसी कवि द्वारा रचित कोई प्रबंध-काव्य प्रसिद्ध नहीं है। + +15112. रामानंद पंद्रहवीं शताब्दी में विद्यमान रहे होंगे। उनके नाम से अनेक रचनाएँ प्रचलित हैं। उनका एक पद हनुमान जी पर मिलता है। उनका कोई काव्य ग्रंथ नहीं मिलता। योग चिंतामणि भी उनकी रचना के रूप में प्रसिद्ध है, जिसमें बिंदु हठयोग की बातें हैं। इसी तरह उनके नाम से प्रसिद्ध एक रचना रामरक्षा-स्तोत्र है। उनके नाम के दो पद गुरुग्रंथ साहब में भी संकलित हैं। किंतु उनकी प्रामाणिक रचनाएँ दो ही मानी जाती हैं- वैष्णव मताब्ज भास्कर और श्रीरामार्चन पद्धति । दोनों ग्रंथ संस्कृत में हैं। + +15113. तुलसीदास के पूर्व सत्यवती कथा जैसी लोक-प्रचलित कथाएँ चौपाई-दोहे में ही रचित हैं। कुछ पौराणिक एवं रामकथा पर आधारित रचनाएँ भी जायसी के पूर्व रचित मिलती हैं। यह बात भी महत्त्वपूर्ण समझी जानी चाहिए कि ये कथाएँ अवधी में हैं। + +15114. तुलसीदास (1532-1623 ) + +15115. हनुमानबाहुक से भी स्पष्ट है कि अंतिम समय में व भयंकर बाहु-पीडा से ग्रस्त थे-पाँव, पेट, सकल शरीर में पीड़ा होती थी, पूरी देह में फोड़े हो गए थे। यह मान्य है कि तुलसी की मृत्यु सं. 1680 अर्थात् 1623 में हुई। उनकी मृत्यु के विषय में यह दोहा प्रसिद्ध है- + +15116. तुलसीदास ने अपने जीवन और अपने युग के विषय में हिंदी के किसी भी मध्यकालीन कवि से अधिक लिखा है। तुलसी राम के सगुण भक्त थे, लेकिन उनकी भक्ति में लोकोन्मुखता थी। वे राम के अनन्य भक्त थे। राम ही उनकी कविता के विषय हैं। नाना काव्य-रूपों में उन्होंने राम का ही गुणगान किया है, किंतु उनके राम परमब्रह्म होते हुए भी मनुज हैं और अपने देशकाल के आदर्शों से निर्मित हैं। तुलसी के राम ब्रह्म भी हैं और मानव भी। रामचरितमानस में अनेक मार्मिक अवसरों पर तुलसी पाठक को टोककर सावधान कर देते हैं कि राम लीला कर रहे। हैं, इन्हें सचमुच मनुष्य न समझ लेना। कारण यह है कि राम ब्रह्म होते हुए भी अवतार ग्रहण करके मानवी लीला में प्रवृत्त हैं । वस्तुत: रामचरितमानस के प्रारंभ में ही तुलसी ने कौशलपूर्वक राम के ब्रह्मत्व और मनुजत्व की सह-स्थिति के विषय में पार्वती द्वारा शंकर से प्रश्न करा दिया है और रामचरितमानस की पुरी कथा शंकर ने पार्वती को इस शंका के निवारणार्थ सुनाई है । + +15117. कैकेयी-मंथरा संवाद और शूर्पनखा प्रसंग यह प्रकट करते हैं कि वे इस देश की नारियों को अनेक रूपों में जानते थे। + +15118. किसी स्थिति में पड़ा हुआ पात्र केसी चेष्टा करेगा -इसे जानने और चित्रित करने में तुलसी अद्वितीय हैं। वे मानव-मन के परम कुशल चितेरे हैं। चित्रकूट के राम और भरत-मिलन के अवसर पर जो सभा जुड़ती है उसमें राम, भरत, विश्वामित्र आदि के बक्तव्य मध्यकालीन शालीनता एवं वचन-रचना का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। + +15119. हिंदी साहित्य का सरल इतिहास/राम भक्त कवि/नाभादास( 16 वीं शती): + +15120. राम-भक्ति शाखा के कुछ अन्य उल्लेखनीय कवि प्राणचंद चौहान (17 वीं शती) एवं हृदय राम (17वीं शती) हैं। प्राणचंद चौहान ने सन् 1610 में रामायण महानाटक लिखा. जो संवाद के रूप में है। हृदय राम + +15121. हिंदी साहित्य का सरल इतिहास/कृष्ण भक्ति धारा: + +15122. + +15123. को एक ओर जयदेव, चंडीदास और विद्यापति की परंपरा से है, तो दूसरी ओर लोक-गोतों की परंपरा से भी उन्हें जोड़ा है विद्यापति और सूरदास में जो निरीहता, तन्मयता मिलती है, अनुभूतियों को जिस प्रकार बाह्य प्रकृति के ताने बाने में बुना गया है, वह लोकगीतों की विशेषता है । लोकगीतों में अभिव्यक्ति इतनी निश्छल होती है कि वह शास्त्रीयता और सामाजिक विधि-निषेध की मर्यादा का निर्वाह नहीं कर सकती। लगता है कि लोकजीवन और साहित्य में राधा-कृष्ण की जो परंपरा पहले से चली आ रही थी, वह भक्तिकाल में प्रकट हुई। जयदेव का गीत-गोविंद, विद्यापति की पदावली, चंडीदास का काव्य और सूरदास का सूरसागर उसी परंपरा से जुड़े हैं। + +15124. यशोदा दही मथ रही थीं। कृष्ण हठ करने लगे। आँचल पकड़ लिया। दही भूमि पर लुढ़क गया। + +15125. जैसे श्रृंगार का संयोग और वियोग होता है, वैसे ही वात्सल्य का भी हाता है। सूरदास के श्रृंगारी काव्य वर्णन को वियोग-वर्णन की अपेक्षा अधिक उत्कृष्ट माना जाता है, किंतु उनके वात्सल्य के विषय में यह बात नहीं कही जा सकती। कृष्ण के चले जाने पर नंद-यशोदा की व्याकुलता का जो वर्णन है वह बहुत ही मार्मिक है। नंद-यशोदा दोनों कृष्ण की पिछली बातों का स्मरण करते हैं, + +15126. करते थे, उसकी पीड़ा का चित्रण कर सकते थे, किंतु सामाजिक + +15127. वर्लभाचार्य के पुत्र विद्ठलनाथ ने पुष्टिमार्गी कवियों में से आठ कवियों को चनकर उन्हें 'अष्टछाप' की संज्ञा दी। ये कवि हैं- सूरदास, कुंभनदास, परमानंद दास, कृष्णदास, छीतस्वामी, गोविंद स्वामी, चतुर्भुजदास और नंददास। इनमें से प्रथम चार वल्लभाचार्य के शिष्य थे और शेष स्वयं विद्ठलनाथ के। सूरदास और उनकी कविता के विषय में हम जान चुके हैं। शेष कवियों में नंददास प्रमुख हैं। + +15128. भँवरगीत में उन्होंने रोला छंद के साथ ध्रुवक जोड़कर उसे और अधिक संगीतात्मक बना दिया है। सिद्धांत पंचाध्यायी भक्ति सिद्धांत का परिचायक ग्रंथ है और रसमंजरी नायिका भेद का। रूपमंजरी में इसी नाम की एक भक्त महिला का चरित्र वर्णित है। नंददास ने अनेक काव्य-रूपों में रचना की है। वे काव्य शास्त्र से सुपरिचित कवि ज्ञात होते हैं। + +15129. कृष्णदास जन्मना शुद्र होते हुए भी वर्लभाचार्य के कृपा-पात्र थे और मंदिर के प्रधान हो गए थे। इनका रचा हुआ जगमान चरित नामक ग्रंथ मिलता है। परमानं दास (16वीं शती) के 835 पद परमानंद सागर में संकलित हैं। इनकी कविताएँ सरसता के कारण प्रसिद्ध हैं। कुंभनदास परमानंद दास के समकालीन थे। अत्यंत स्वाभिमानी भक्त थे इन्होंने फतेहपुर सीकरी के राजसम्मान से खिन्न होकर कहा था- + +15130. + +15131. और उनके स्वप्न की प्रतिनिधि पंक्ति है। + +15132. हिंदी साहित्य का सरल इतिहास/अन्य कृष्ण भक्त कवि/रसखान (1548-1628 ): + +15133. हिंदी साहित्य का सरल इतिहास/अन्य कृष्ण भक्त कवि/रहीम (1556-1627): + +15134. कृष्ण-भक्ति साहित्य प्रधानत: भगवान के लोकरंजक रूप को उजागर करता है। यह ऐकांतिक भाव का साहित्य है। यह ध्यान देने की बात है कि यद्यपि कृष्ण के चरित्र में सामाजिकता और लोकमंगल की भावना के समावेश का पूरा अवकाश है, किंतु हिंदी के कृष्ण-भक्त कवियों का ध्यान उधर नहीं गया। सूरदास की कविता में लोक की रक्षा का पक्ष न सही, किंतु रंजन पक्ष विद्यमान है। परवर्ती कवियों की विषयवस्तु सीमित होती गई इसी कारण इस धारा के कवियों ने अधिकांशत: मुक्तकों में ही रचना की अष्टछाप के कवियों में तत्कालीन पर्व, उत्सव, रीति-रिवाज, आभूषण, वस्त्रादि का वर्णन मिलता है। कृष्ण-भक्ति काव्य की मधुरता ने मुसलमान कवियों को भी पर्याप्त संख्या में अपनी ओर आकृष्ट किया। कृष्ण-भक्ति काव्य की भाषा ब्रजभाषा ही रही। भक्ति प्रचार के साथ-साथ ब्रजभाषा का इतना व्यापक प्रचार हुआ कि वह शताब्दियों तक हिंदी क्षेत्र की तो प्रमुख काव्य-भाषा बनी ही रही, हिंदी क्षेत्र के बाहर सुदूरवर्ती क्षेत्रों में भी काव्य-रचना के लिए व्यवहृत हुई। कृष्ण-भक्ति काव्य में रामचरितमानस जैसा कोई विशद महाकाव्य तो नहीं रचा गया, लेकिन इसने सामान्य गृहस्थों के दैनंदिन जीवन को कृष्णचरित के उल्लास और व्यथा से भर दिया। श्रृंगार के क्षेत्र में तो कृष्ण-भक्त काव्य का ही वर्चस्व रहा, राम-काव्य का नहीं + +15135. इसीलिए हिंदी के साहित्य में एक व्यापक मानवीय संवेदना के साथ-साथ व्यवस्थाओं को चुनौती देने का एक स्वर भी है। + +15136. मृग तो नहीं था कहीं + +15137. संभव है आओ तुम + +15138. पर + +15139. अब रेखा लाँघो + +15140. कर खंडित कलंकित + +15141. यह अनिमेष लगन + +15142. कात्यायनी. + +15143. बाप की छाती पर साँप-सी लोटती + +15144. ओखल में धान के साथ + +15145. झरबेरी के सात कँटीले झाड़ो के बीच + +15146. लटकती पाई गई। + +15147. चंपा फिर घर आ गई, + +15148. पूरे गाँव में। + +15149. निर्भय-निस्संग चंपा + +15150. कौन है मेरा परमेश्वर + +15151. बैठी थी जो मेरे सामने वाली सीट पर रेलगाड़ी में + +15152. चेहरे पर थे दुःख के पठार + +15153. अपना खाती हूँ + +15154. आह! कैसे कटेगा इस औरत का जीवन! + +15155. मेरी यात्रा तुम्हारी ही यात्रा + +15156. अपने-आप में लथपथ––अपने होने के हक़ से लक़दक़" + +15157. जब आख़िर आएगी वह औरत + +15158. लेकिन वह हँसेगी मेरी ही तरह + +15159. हवा यह + +15160. अस्मितामूलक विमर्श और हिंदी साहित्य/आदिवासी कविता: + +15161. तालाबों को भोथकर राजमार्ग + +15162. शामिल होने के लिए + +15163. समझना पड़ेगा न समझ में आने वाली बात + +15164. या मेरे गाँव को मुख्यमार्ग से जोड़ने के लिए + +15165. या दिख गई है किसी नयी खदान की संभावना + +15166. या फिर अपने और अपने उन पालतू लोगों का + +15167. नाम तुम्हारे विरोधियों की सूची में + +15168. जंगली असभ्य और पिछड़े ही बने रहना चाहते हैं हम + +15169. पर अफसोस + +15170. जानती हूँ तुम यह भी छिपाओगे कि + +15171. हमारे संसाधनों को हमसे छीनकर + +15172. जो पटना, रांची, दिल्ली से बनाकर लाए हो तुम हमारे लिए। + +15173. मेरे शशि! आकर देखो! + +15174. अर्चन था होता जिसका॥ + +15175. क्यों छिन्न हुए हैं सारे, + +15176. वे कनक किरन-दल आकर। + +15177. आवेगा मिलने धीरे, + +15178. हमारी सैकड़ों पुश्तों की विरासत + +15179. और इस तरह + +15180. हम लड़े + +15181. पुरखों के नाम पत्थर गाड़ कर + +15182. एक पेड़ की कहानी है + +15183. जो वसंत के आने से पहले झुलस गया + +15184. जो हमें मरने नहीं देते। + +15185. यह मिज़ोरम राज्य में संचालित होने वाला पहला मेगा फूड पार्क है। पूर्वोत्तर क्षेत्र में केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय से सहायता प्राप्‍त कुल 88 परियोजनाओं को मंज़ूरी दी गई है जिनमें 41 परियोजनाएँ कार्यान्वित की जा चुकी हैं। + +15186. वर्तमान में विभिन्न राज्यों में 18 मेगा फूड पार्क परियोजनाएँ कार्यान्वित की जा रही हैं और विभिन्न राज्यों में 19 मेगा फूड पार्कों में पहले ही परिचालन शुरू हो चुका है। इनमें से 6 पूर्वोत्‍तर क्षेत्र में स्थित हैं। पूर्वोत्‍तर क्षेत्र में 2 मेगा फूड पार्क असम एवं मिज़ोरम में शुरू किये गए हैं। + +15187. MIEWS पोर्टल के कार्य + +15188. MIEWS पोर्टल की विशेषताएँ + +15189. इस पोर्टल में सार्वजनिक और निजी दो वर्ग होंगे जिनके मध्य उपरोक्त विशेषता को विभाजित किया जाएगा। मूल्य एवं आगमन, उपज और उत्पादन, फसल कृषि वैज्ञानिक तथा व्यापार संबंधी रूपरेखा जैसे वर्ग तक लोगों की आसान पहुँच होगी किंतु नियमित एवं विशेष बाज़ार बुद्धिमत्ता रिपोर्ट और मूल्यों की भविष्यवाणी तक केवल नीति निर्धारकों की पहुँच होगी। + +15190. TOP (Tomato,Onion,Poteto) उत्पादन समूहों और उनके FPO को मज़बूत कर तथा उन्हें बाजार से जोड़कर TOP किसानों की आय को बढ़ाना। + +15191. पोर्टल से संभावित लाभ + +15192. असंगठित खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की लगभग 25 लाख इकाइयों में लगभग 74% खाद्य प्रसंस्करण श्रमिक कार्यरत हैं। + +15193. कृषक उत्पादक संगठनों (FPOs)/स्वयं सहायता समूहों (SHGs)/सहकारी समितियों या राज्य के स्वामित्व वाली एजेंसियों या निजी उद्यमों को सामान्य प्रसंस्करण सुविधा, प्रयोगशाला, गोदाम सहित बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये 35% की दर से क्रेडिट-लिंक्ड अनुदान के माध्यम से सहायता प्रदान की जाएगी। + +15194. PMKSY का मुख्य उद्देश्य खाद्य प्रसंस्करण एवं संरक्षण क्षमताओं का निर्माण,मूल्य संवर्द्धन,खाद्यान अपव्यय में कमी के लिये प्रसंस्करण के स्तर को बढ़ाना तथा मौजूदा खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों का आधुनिकीकरण एवं विस्तार करना है। + +15195. इसके तहत पूरे देश में ‘क्लस्टर’ आधारित दृष्टिकोण पर 42 मेगा फूड पार्क स्थापित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। एक मेगा फूड पार्क में कलेक्शन सेंटर,प्राइमरी प्रोसेसिंग सेंटर,और केंद्रीय प्रसंस्करण केंद्र (Central Processing Centre-CPC) शामिल होते हैं। प्राइमरी प्रोसेसिंग सेंटर का कार्य "उत्पादकों एवं प्रसंस्करणकर्त्ताओं के बीच संपर्क" स्थापित करना होता है ताकि केंद्रीय प्रसंस्करण केंद्र को कच्चे माल की आपूर्ति निर्बाध रूप से होती रहे। + +15196. मेगा फ़ूड पार्क के समक्ष चुनौतियाँ/मुद्दे: + +15197. अनुबंध कृषि. + +15198. कृषि मंत्रालय ने मॉडल कृषि विपणन समिति अधिनियम, 2003 का मसौदा तैयार किया था जिसमें प्रायोजकों के पंजीकरण, समझौते की रिकॉर्डिंग, विवाद निपटान तंत्र आदि के प्रावधान हैं। + +15199. क्षेत्रीय असमानता को बढ़ावा: वर्तमान में यह कृषि विकसित राज्यों (पंजाब, तमिलनाडु आदि) में प्रचलित है, जबकि लघु एवं सीमांत किसानों की उच्चतम सघनता वाले राज्य इसका लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। + +15200. कृषि के लिये पूंजी गहन एवं कम संधारणीय पैटर्न: यह उर्वरकों एवं पीड़कनाशियों के बढ़ते उपयोग को बढ़ावा देता है जो प्राकृतिक संसाधनों, पर्यावरण, मनुष्यों व जानवरों पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं। + +15201. + +15202. भारत की संसदीय व्यवस्था में राष्ट्रपति नाममात्र की कार्यपालिका है तथा प्रधानमंत्री तथा उसका मंत्रिमंडल वास्तविक कार्यपालिका है। + +15203. संसदीय प्रणाली की विशेषताएँ + +15204. दोहरी सदस्यता: मंत्रिपरिषद के सदस्य विधायिका व कार्यपालिका दोनों के सदस्य होते हैं। + +15205. अस्थायित्व: संसदीय शासन व्यवस्था में सरकार का कार्यकाल तो 5 वर्ष निर्धारित है, परंतु वह कार्य तभी तक कर सकती है जब तक उसे लोकसभा में विश्वास प्राप्त है, अर्थात यदि मंत्रिपरिषद लोकसभा में विश्वास खो देती है तो उसे सामूहिक रूप से त्यागपत्र देना पड़ता है। + +15206. राजनीति का अपराधीकरण: संसदीय शासन प्रणाली में अपराधी प्रवृत्ति के लोग धनबल व बाहुबल का प्रयोग कर कार्यपालिका का हिस्सा बन रहे हैं। + +15207. अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में कार्यपालिका और विधायिका एक-दूसरे से संबंधित नहीं होते हैं। इस प्रणाली में राज्य का मुखिया तथा सरकार का मुखिया एक ही व्यक्ति होते हैं। + +15208. विशेषज्ञों द्वारा शासन: अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में राष्ट्रपति के द्वारा अपनी कार्यपालिका के सदस्यों को नियुक्त किया जाता है। राष्ट्रपति कार्यपालिका के सदस्यों की नियुक्ति करते समय उनकी विशेषज्ञता को अत्यधिक महत्त्व देता है। + +15209. निरंकुशता की संभावना: अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में राष्ट्रपति ही कार्यपालिका के सदस्यों का चुनाव करता है तथा कार्यपालिका किसी भी प्रकार से व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी भे नहीं होती है, जिससे राष्ट्रपति के निरंकुश होने की संभावना रहती है। + +15210. उत्तरदायित्वपूर्ण व्यवस्था: प्रसिद्द संविधान विशेषज्ञ के.एम. मुंशी के अनुसार, भारत ने संसदीय व्यवस्था में उत्तरदायित्व व जवाबदेहिता के सिद्धांत का समावेश किया है, जिससे यह व्यवस्था भारतीय जन मानस के अनुकूल हो चुकी थी। + +15211. ब्रिटिश संसदीय व्यवस्था में ब्रिटिश राजशाही के स्थान पर भारत में गणतंत्रीय पद्धति को अपनाया गया अर्थात भारत में राज्य का प्रमुख (राष्ट्रपति) निर्वाचित होता है,जबकि ब्रिटेन में राज्य का प्रमुख (राजा या रानी) आनुवंशिक होते हैं। + +15212. दिसंबर 2019में अमेरिकी संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा (House of Representative) में बुधवार को इस प्रस्ताव पर मतदान हुआ। + +15213. निचले सदन के बाद अब राष्ट्रपति को सत्ता से हटाने के लिये उच्च सदन यानी सीनेट में महाभियोग की प्रक्रिया चलेगी। अमेरिका के इतिहास में ऐसा तीसरी बार हैं जब किसी राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग प्रस्ताव लाया गया है। + +15214. इस प्रकार जहाँ भारत में शक्ति के पृथक्करण का सिद्धांत पूर्णतः लागू नहीं होता है, वहीं अमेरिका में यह पूर्णतः लागू होता है। + +15215. 16वीं सदी के विचारक जीन बोंदा ने स्पष्ट कहा है कि राजा को कानून निर्माता तथा न्यायाधीश दोनों रूपों में एक साथ कार्य नहीं करना चाहिये। लाॅक द्वारा भी इसी प्रकार का विचार व्यक्त किया गया है। + +15216. शक्ति के पृथक्करण सिद्धांत का तत्कालीन राजनीति पर बहुत प्रभाव पड़ा। अमेरिकी संविधान निर्माता इस सिद्धांत से बहुत प्रभावित थे और इसी कारण उन्होंने अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था को अपनाया था। + +15217. कार्य विभाजन से बेहतर निष्पादन। + +15218. अमेरिकी संघीय व्यवस्थापिका अर्थात् काॅन्ग्रेस कानूनों का निर्माण करने के साथ-साथ राष्ट्रपति द्वारा की गई नियुक्तियों और संधियों पर नियंत्रण रखती है तथा महाभियोग लगाने का न्यायिक कार्य भी कर सकती है। इसी प्रकार कार्यपालिका के प्रधान, राष्ट्रपति को कानूनों के संबंध में निषेध का अधिकार और न्याय क्षेत्र में न्यायाधीशों की नियुक्ति करने एवं क्षमादान का अधिकार प्राप्त है। + +15219. भारत में संविधान के अनुच्छेद 61 के तहत राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग की प्रक्रिया संविधान के उल्लंघन के आधार पर प्रारंभ की जा सकती है वहीं अमेरिका में देशद्रोह, रिश्वत और दुराचार जैसे मामलों के आधार पर संसद के प्रतिनिधि सदन द्वारा राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया प्रारंभ की जाती है। + +15220. समसामयिकी 2020/केंद्र एवं राज्य सरकार: + +15221. वर्ष 1988 में तमिलनाडु विधानसभा अध्यक्ष पी.एच. पांडियन ने अपनी ही पार्टी- अन्नाद्रमुक (AIADMK) के छह वरिष्ठ मंत्रियों को अयोग्य ठहराया था। + +15222. अध्यक्ष को बहस के लिये अवधि आवंटित करने और सदन के सदस्यों को अनुशासित करने का अधिकार है। साथ ही वह सदन की विभिन्न समितियों द्वारा लिये गए निर्णयों को भी रद्द कर सकता है। + +15223. न्यायालय ने हालिया केशिम मेघचंद्र सिंह बनाम मणिपुर विधानसभा अध्यक्ष वाद में एक स्वतंत्र न्यायाधिकरण के गठन का सुझाव दिया है जो दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता से संबंधित मामलों को निपटने के लिये लोकसभा और विधानसभाओं के अध्यक्ष का स्थान लेगा। + +15224. निश्चित ही ऐसी परिस्थतियों में ‘एक देश-एक चुनाव’ विचार पहली नज़र में अच्छा प्रतीत होता है, पर यह व्यावहारिक है या नहीं, इस पर विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है। बेशक बार-बार होने वाले चुनावों के बजाय एक स्थायित्व वाली सरकार बेहतर होती है, लेकिन इसके लिये सबसे ज़रूरी है आम सहमति का होना और यह कार्य बेहद मुश्किल है। राजनीतिक सर्वसम्मति के अभाव में संविधान में आवश्यक संशोधन करना संभव नहीं होगा, क्योंकि इसके लिये दो-तिहाई बहुमत की ज़रूरत पड़ेगी, जो कि बिना आम सहमति के नहीं किया जा सकता। + +15225. आज EVM में नोटा (NOTA) का जो विकल्प है, उसकी सिफारिश भी विधि आयोग ने अपनी इस रिपोर्ट में नकारात्मक मतदान की व्यवस्था लागू करने की बात कहकर की थी। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर यह विकल्प मतदाताओं को दिया गया। + +15226. अनुच्छेद 85: यह राष्ट्रपति को लोकसभा भंग करने का अधिकार देता है। + +15227. ‘एक देश-एक चुनाव’ के लिये सभी राजनीतिक दलों को राज़ी करना आसान काम नहीं है। कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों का यह मानना है कि ‘एक देश-एक चुनाव’ की आवधारणा देश के संघात्मक ढाँचे के विपरीत सिद्ध हो सकती है। + +15228. नियम 374 (क) (1) के अनुसार, नियम 373 और 374 में अंतर्विष्ट किसी प्रावधान के बावजूद यदि कोई सदस्य लोकसभा अध्यक्ष के आसन के निकट आकर अथवा सभा में नारे लगाकर या अन्य प्रकार से लोकसभा की कार्यवाही में बाधा डालकर जान बूझकर सभा के नियमों का उल्लंघन करते हुए घोर अव्यवस्था उत्पन्न करता है तो लोकसभा अध्यक्ष द्वारा उसका नाम लिये जाने पर वह लोकसभा की पाँच बैठकों या सत्र की शेष अवधि के लिये (जो भी कम हो) स्वतः निलंबित हो जाएगा। + +15229. हालाँकि आमतौर पर देखा गया है कि सत्ताधारी दल हमेशा सदन में अनुशासन और व्यवस्था बनाए रखने पर जोर देता है तथा विपक्षी दल विरोध करने के अपने अधिकार पर बल देते हैं लेकिन उनकी भूमिकाएँ बदलने के साथ ही उनकी स्थितियाँ भी बदल जाती हैं। + +15230. + +15231. यह अध्ययन वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक पर आधारित था, जो प्रत्येक वर्ष व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से गरीब लोगों के जीवन की जटिलताओं की माप करता है। + +15232. सब-सहारा अफ्रीका (558 मिलियन) और दक्षिण एशिया (530 मिलियन) में लगभग 84.3 प्रतिशत बहुआयामी गरीब लोग रहते हैं। + +15233. आँकड़ों के अनुसार, 65 देश ऐसे हैं जिनके ‘बहुआयामी गरीबी सूचकांक’ के स्तर में कमी आई है। + +15234. यह सूचकांक वर्ष 2030 से 10 वर्ष पहले ही वैश्विक गरीबी की एक व्यापक और गहन तस्वीर प्रदान करता है , जो कि सतत विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goal-SDG) को प्राप्त करने की नियत वर्ष है, जिसका पहला लक्ष्य हर जगह अपने सभी रूपों में गरीबी को समाप्त करना है। + +15235. बहुआयामी गरीबी से बाहर निकलने वाले लोगों की सर्वाधिक संख्या भारत में देखी गई है। + +15236. वर्ष 2016 तक, भारत में 21.2 प्रतिशत लोग पोषण से वंचित थे। + +15237. ‘ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डवलपमेंट इनीशिएटिव’ (OPHI). + +15238. अध्ययन में बहुआयामी गरीबी और टीकाकरण के बीच संबंधों पर भी प्रकाश डाला गया है। + +15239. बहुआयामी गरीबी: + +15240. गरीबी: + +15241. सापेक्ष गरीबी यह स्पष्ट करती है कि विभिन्न आय वर्गों के बीच कितनी असमानता विद्यमान है। + +15242. Lawrence-curve + +15243. निरपेक्ष गरीबी न्यूनतम आय अथवा उपभभोक्ता स्तर पर आधारित होती है। + +15244. गरीबी उन्मूलन हेतु भारत सरकार के प्रयास: + +15245. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम के अंतर्गत प्रत्येक ग्रामीण परिवार के एक वयस्क सदस्य को स्वेच्छा से मांगने पर 100 दिनों का अकुशल रोज़गार प्रदान करने की गारंटी दी गई है। + +15246. विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum-WEF) द्वारा पहला सामाजिक गतिशीलता सूचकांक जारी किया गया है। इसमें शामिल 82 देशों में भारत 76वें स्थान (42.7 के स्कोर के साथ) पर है। 85.2 के सामाजिक गतिशीलता स्कोर के साथ डेनमार्क जारी सूचकांक में शीर्ष स्थान पर है, इसके बाद क्रमशः फिनलैंड (83.6), नॉर्वे (83.6), स्वीडन (83.5) और आइसलैंड (82.7) है। + +15247. सामाजिक गतिशीलता को किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत परिस्थितियों में परिवर्तन (की अपने माता-पिता की तुलना में) के रूप में समझा जा सकता है अर्थात् व्यक्ति की परिस्थितियाँ उसके माता-पिता की परिस्थितियों की तुलना में ‘उच्च स्तर’ (Upward) की हैं या उससे ‘निम्न स्तर’ (Downward) की हैं। कुल मिलाकर यह एक बच्चे के लिये अपने माता-पिता की तुलना में बेहतर जीवन का अनुभव करने की क्षमता है। जबकि सापेक्ष सामाजिक गतिशीलता किसी व्यक्ति के जीवन में मिलने वाले परिणामों पर सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के प्रभाव का आकलन है। + +15248. पूर्ण आय गतिशीलता (Absolute Income Mobility)- किसी व्यक्ति की अपने जीवन के दौरान अपने माता-पिता की तुलना में अधिक या वास्तविक आय अर्जित करने की क्षमता। + +15249. तेज़ी से वैश्विक विकास के बावजूद दुनिया भर में असमानताएँ बढ़ रही हैं। + +15250. देश एक गरीब परिवार के सदस्य के लिये आवश्यक आय स्तर को प्राप्त करने हेतु आवश्यक पीढ़ियों की संख्या + +15251. ब्राज़ील/दक्षिण अफ्रीका 9 + +15252. सामाजिक गतिशीलता के लिये एक नया वित्तपोषण मॉडल विकसित करना जो व्यक्तिगत आय पर कर प्रगति में सुधार, धन के संचयन को संबोधित करने वाली नीतियाँ और कराधान के स्रोतों को व्यापक रूप से संतुलित करे। + +15253. COVID-19 के कारण प्रभावित हो रही भारतीय अर्थव्यवस्था को फिर से सुचारु रूप से गति देने के लिये ‘हेलिकाॅप्टर मनी’ (Helicopter Money) जैसी अवधारणा चर्चा के केंद्र बिंदु में है। यह (हेलिकाॅप्टर मनी) एक अपरंपरागत मौद्रिक नीति उपकरण है जिसका उद्देश्य किसी संघर्षरत अर्थव्यवस्था को फिर से गति देना होता है। + +15254. गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने एक ‘आत्मनिर्भर गुजरात सहाय योजना’ (Aatmanirbhar Gujarat Sahay Yojana) की घोषणा की है जो छोटे उद्यमियों और स्वरोज़गारों जैसे इलेक्ट्रीशियन, प्लंबर एवं बढ़ई को तीन वर्ष की अवधि के लिये 1 लाख रुपए तक का ऋण प्रदान करती है। इस योजना का लक्ष्य COVID-19 के कारण राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन में दैनिक/मासिक आमदनी से प्रभावित सब्जी विक्रेता, निर्माण श्रमिक आदि को भी शामिल करना है। इस योजना के आवेदकों को क्रेडिट सोसाइटियों और शहरी एवं ज़िला सहकारी बैंकों जो 5,000 करोड़ रुपए के संपार्श्विक-मुक्त ऋण सौंपेंगे, के साथ अपने मामले को आगे बढ़ाने में मदद करने के लिये गारंटरों की आवश्यकता होगी। + +15255. आत्मनिर्भर भारत के लिये आर्थिक प्रोत्साहन:-प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर भारत निर्माण की दिशा में विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा की है। यह पैकेज COVID-19 महामारी की दिशा में सरकार द्वारा की गई + +15256. हाल ही में केंद्र सरकार ने मनरेगा के तहत औसत दैनिक मज़दूरी को 182 बढ़ाकर 202 रुपए कर दिया था। + +15257. इस संशोधित सीमा के तहत GSDP पर मिलने वाले 1% ऋण को कुछ शर्तों के आधार पर 0.25% की चार किश्तों में जारी किया जाएगा। + +15258. प्रस्तावित योजना के तहत सामान्यतः रणनीतिक क्षेत्रों में PSUs की अधिकतम संख्या चार ही होगी बाकी अन्य कंपनियों के लिये निजीकरण, विलय आदि के विकल्प खुले होंगे। + +15259. इस योजना के तहत छात्रों को विभिन्न माध्यमों के जरिये शैक्षिक सामग्री उपलब्ध कराई जाएगी, साथ ही कक्षा 1 से 12 के लिये अलग-अलग टीवी चैनलों की शुरुआत भी की जाएगी। इससे पहले केंद्र सरकार ने इस माह के अंत तक देश में शीर्ष के 100 विश्वविद्यालयों के द्वारा ऑनलाइन कक्षाओं को चालू किये जाने की योजना की घोषणा की थी। + +15260. दिसंबर 2008 की तिमाही में कारों की बिक्री में गिरावट आई, लेकिन बाद में इसमें तीव्र गति से सुधार भी हो गया। मार्च 2020 में यात्री कारों की बिक्री वार्षिक आधार पर 51%और मासिक आधार पर 47% कम रही। यह अब तक की सबसे तीव्र गिरावट है। + +15261. प्रमुख देशों के स्टॉक एक्सचेंजों में उनके मूल्य के एक-चौथाई भाग तक शुरुआती गिरावट दोनों संकटों के बीच समानता है। + +15262. भारत ने आर्कटिक महासागर के लिये अपना प्रथम वैज्ञानिक अभियान वर्ष 2007 में शुरू किया और अंतर्राष्ट्रीय आर्कटिक अनुसंधान आधार नी-अलेसुंड, स्वालबार्ड, नार्वे में जुलाई 2008 में अपना एक अनुसंधान बेस ‘हिमाद्रि’ हिमनद विज्ञान, वायुमंडलीय विज्ञान और जैविक विज्ञान विषयों में अध्ययन कार्य के लिये खोला। + +15263. आर्कटिक की वनस्पति और जीव-जंतुओं और मानव केन्द्रित गतिविधियों पर उनकी प्रतिक्रिया का एक व्यापक आकलन करना। इसके अतिरिक्त, दोनों ध्रुवीय क्षेत्रों में जीवन के रूपों का तुलनात्मक अध्ययन करना प्रस्तावित है। + +15264. भारत ने नार्वे के नार्वेयाई ध्रुवीय अनुसंधान संस्थान के साथ विज्ञान में सहयोग के लिये एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किये हैं और साथ ही नी-अलेसुंद में किंग्स बे (नार्वे सरकार के स्वामित्व की एक कंपनी) के साथ संभरण और अवसंरचना सुविधाओं के लिये भी हस्ताक्षर किये हैं, ताकि आर्कटिक अनुसंधान का कार्य किया जा सके और आर्कटिक क्षेत्र में भारतीय अनुसंधान आधार केंद्र की देखरेख की जा सके। + +15265. क्षेत्र में मौजूद प्राकृतिक संसाधनों के व्यावसायिक दोहन में दावा करने की उम्मीद से देशों की आर्कटिक होप परियोजना में गतिविधियाँ जारी हैं। + +15266. संस्थान-संस्थापक + +15267. केशव चन्द्र सेन का संबंध उपर्युक्त में से किसकी किनकी स्थापना से है?:-(b) केवल 2 और 3 + +15268. उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?:-(a) केवल 1 + +15269. क्लेड (Clade): SARS-CoV-2 का क्लैड/प्रकार वायरस का एक समूह है जिन्हें जीनोम के कुछ हिस्सों में विशेष उत्परिवर्तन या समानता के आधार पर एक साथ समूहीकृत किया गया है। + +15270. विश्वभर में 11 प्रकार के SARS-CoV-2 की पहचान की गई है जिनमें से भारत में 6 प्रकार के वायरस चिह्नित किये गए हैं। + +15271. इस तरह के वर्गीकरण से यह जानने में आसानी होती हैं कि वायरस कितने खतरनाक हैं और उनके प्रसार की गति क्या है। + +15272. CCMB की शुरुआत 1 अप्रैल, 1977 को एक अर्द्ध-स्वायत्त संस्थान के रूप में की गई थी। + +15273. कोरोना वायरस (COVID -19) का प्रकोप तब सामने आया जब 31 दिसंबर, 2019 को चीन के हुबेई प्रांत के वुहान शहर में अज्ञात कारण से निमोनिया के मामलों में हुई अत्यधिक वृद्धि के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन को सूचित किया गया। + +15274. WHO(मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा शहर में) के अनुसार, COVID-19 में CO का तात्पर्य कोरोना से है, जबकि VI विषाणु को, D बीमारी को तथा संख्या 19 वर्ष 2019 (बीमारी के पता चलने का वर्ष ) को चिन्हित करता है। + +15275. COVID एक्शन प्लेटफॉर्म + +15276. 1 से अधिक R0 होने का मतलब है कि एक व्यक्ति कई अन्य व्यक्तियों को संक्रमित कर सकता है। + +15277. दलित आंदोलन: + +15278. आश्चर्य की बात है कि मराठी लेखकों ने 1960 के दशक में ही अछूत या हरिजन के बदले दलित शब्द का प्रस्ताव दिया था, जिसका मराठी में मतलब होता है टूटा हुआ/बिखरा हुआ। + +15279. हालाँकि चीन स्वयं नातुना सागर क्षेत्र पर इंडोनेशिया के अधिकार को स्वीकार करता है परंतु चीनी विदेश मंत्रालय इसे ‘ट्रेडिशनल फिशिंग ग्राउंड (Traditional Fishing Ground) बताता है। + +15280. मलक्का जलसंधि (Malacca Strait) से होते हुए यह क्षेत्र हिंद महासागर और प्रशांत महासागर को जोड़ने वाला सबसे संक्षिप्त मार्ग प्रदान करता है। + +15281. न्यायालय के अनुसार,फिलीपींस के समुद्री क्षेत्र में चीन का हस्तक्षेप फिलीपींस के संप्रभु अधिकारों का उल्लंघन है,साथ ही ऐसी गतिविधियाँ ‘संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि’ (UNCLOS) के भी खिलाफ हैं। + +15282. उदाहरण के लिये वियतनाम ने दक्षिण चीन सागर के अपने अधिकार क्षेत्र में भारत को 7 तेल ब्लॉक (Oil Block) देने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया था। + +15283. 16वाँ भारत-आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान समुद्री सुरक्षा (Maritime Security) और नीली अर्थव्यवस्था (Blue Economy), व्यापार एवं निवेश, कनेक्टिविटी, विज्ञान व प्रौद्योगिकी तथा नवाचार के क्षेत्र में सहयोग के साथ-साथ भारत-आसियान रणनीतिक साझेदारी को बढ़ावा देने पर चर्चा हुई। + +15284. इस घोषणा के अनुसार- यह पूर्वी एशिया में शांति,आर्थिक समृद्धि और क्षेत्रीय एकीकरण को बढ़ावा देने के लिये रणनीतिक, राजनीतिक एवं आर्थिक मुद्दों पर बातचीत के लिये एक खुला मंच है। + +15285. इस वर्ष इसकी अध्यक्षता थाईलैंड कर रहा है, इसके पहले वर्ष 2018 में इसकी अध्यक्षता सिंगापुर द्वारा की गई थी। + +15286. 2019 में भारत और इंडोनेशिया बीच वर्ष राजनीतिक संबंधों की स्थापना की 70वीं वर्षगाँठ मनाई गई। + +15287. समसामयिकी 2020/भारत-अमेरिका: + +15288. विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार में सहयोग पर दोनों देशों ने संतोष व्यक्त किया है। दुनिया के पहले दोहरे-आवृत्ति वाले ‘नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार उपग्रह’ (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar-NISAR) उपग्रह को वर्ष 2022 तक विकसित कर उसे लॉन्च किया जाएगा। + +15289. रक्षा और विदेश मंत्रियों की 2+2 की वार्ताओं और भारत-अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया-जापान (QUAD) आदि के माध्यम से सहयोग और परामर्श को बढ़ने पर जोर दिया गया। + +15290. ओपन स्काई संधि को वैश्विक सुरक्षा के एक महत्त्वपूर्ण स्तम्भ के रूप में देखा जाता है। + +15291. आलोचकों के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रपति के इस निर्णय को रक्षा क्षेत्र पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। + +15292. अमेरिकी पक्ष के अनुसार, यदि दूसरा पक्ष (अमेरिका के अलावा) संधि में हुए समझौतों को पूरी तरह नहीं लागू करता है, तो यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वैश्विक शांति के लिये बनी संपूर्ण बहु-पक्षीय संरचना (संयुक्त राष्ट्र) के अस्तित्त्व को निरर्थक बनाता है। + +15293. COVID-19 महामारी की शुरुआत के बाद से यह किसी भारतीय आधिकारिक प्रतिनिधि मंडल की पहली विदेश यात्रा थी। + +15294. 5G के मामले में भी रूस में ‘हुआवेई' (Huawei) के साथ स्वीडिश कंपनी एरिक्सन (Ericsson) की उपस्थिति भी बनी हुई है। + +15295. उल्लेखनीय है कि एस-400 दुनिया की सबसे उन्नत वायु रक्षा प्रणालियों में से एक है जो एक साथ कई विमानों, मिसाइलों और यूएवी को कुछ सौ किलोमीटर के दायरे में ट्रैक कर सकती है तथा उन्हें बेअसर कर सकती है। + +15296. रूस में आयोजित ईस्टर्न इकोनाॅमिक फोरम (Eastern Economic Forum- EEF) में प्रधानमंत्री मोदी ने रूस के सुदूर पूर्वी क्षेत्र (Russia’s Far East Region) में विकास कार्यों को गति देने एवं रूस से रिश्तों को और अधिक मज़बूत करने के लिये ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ (Act East policy) की ही तरह ‘एक्ट फार ईस्ट पॉलिसी’ (Act Far East policy) की शुरुआत की है। + +15297. क्या है लाइन ऑफ क्रेडिट? + +15298. भारत और जापान की नौ-सेनाओं द्वारा हिंद महासागर में संयुक्त युद्धाभ्यास का आयोजन किया गया। जापान समुद्री आत्मरक्षा बल (Japan Maritime Self Defense Force) द्वारा इस युद्धाभ्यास का उद्देश्य दोनों देशों की नौ-सेनाओं के बीच परस्पर समन्वय बढ़ाना था। + +15299. परंतु पिछले 22 वर्षों में भारत-जापान संबंधों में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है और विशेष रूप से रक्षा क्षेत्र में द्विपक्षीय सहयोग में भी वृद्धि हुई है। + +15300. 19 वर्षों के अंतराल के बाद किसी भारतीय राष्ट्रपति ने जापान की यात्रा. + +15301. उन्होंने जापान के काकेगावा स्थित सेई नो सेटो (Sai no Sato) में श्री सत्य साईं सनातन संस्कृति परियोजना की आधारशिला भी रखी। + +15302. + +15303. पूर्वोत्तर भारत के अरुणाचल प्रदेश के 90,000 वर्ग किमी. क्षेत्र पर चीन इस रणनीति का प्रयोग करता है भारत के इस भाग को वह ‘दक्षिण तिब्बत’ कहता है। + +15304. क्यों लिया था अमेरिका ने यह निर्णय? + +15305. 24 दिसंबर, 2014 को शस्त्र व्यापार संधि (Arms Trade Treaty-ATT) के लागू होने से पूर्व विश्व में हथियारों के व्यापार को विनियमित करने के लिये कोई भी अंतर्राष्ट्रीय कानून नहीं था, इस कमी को महसूस करते हुए कई वर्षों तक विभिन्न नागरिक संगठनों ने वैश्विक कार्रवाई का आह्वान किया। + +15306. ध्यातव्य है कि अब तक कुल 130 देशों ने इस संधि पर हस्ताक्षर किये हैं, जिसमें से 103 देशों ने अपने क्षेत्राधिकार में इसे लागू भी कर दिया है। + +15307. इस संधि के तहत सदस्य देशों पर प्रतिबंध है कि वह ऐसे देशों को हथियार न दें जो नरसंहार, मानवता के प्रति अपराध या आतंकवाद में शामिल होते हैं। + +15308. उल्लेखनीय है कि संधि में शामिल होने की घोषणा से पूर्व भी चीन का मानना था कि पारंपरिक हथियारों के कारोबार को नियंत्रित करने की दिशा में इस संधि की सकारात्मक भूमिका है। + +15309. इसके अतिरिक्त भारत का मानना था कि संधि के मसौदे में आतंकवादियों और नॉन-स्टेट एक्टर्स पर नियंत्रण हेतु कोई सख्त नियम नहीं है। साथ ही ऐसे लोगों के हाथ में घातक हथियार न पहुँचे इसके लिये कोई विशेष प्रतिबंध नहीं किया गया है। + +15310. चीन के इस रवैये के पश्चात् भारत ने लद्दाख, उत्तर सिक्किम, उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश में अपनी उपस्थिति बढ़ा दी है। + +15311. G-7 समूह के विस्तारीकरण और उसमें भारत की सदस्यता के कारण भी चीन नाखुश नज़र आ रहा है। + +15312. इसके अतिरिक्त, विगत वर्ष हॉन्गकॉन्ग में लोकतंत्र के समर्थकों के प्रति एकजुटता दिखाते हुए अमेरिका ने हॉन्गकॉन्ग मानवाधिकार और लोकतंत्र अधिनियम पारित किया था, जिसके तहत अमेरिकी प्रशासन को इस बात का आकलन करने की शक्ति दी गई है कि हॉन्गकॉन्ग में अशांति की वजह से इसे विशेष क्षेत्र का दर्जा दिया जाना उचित है या नहीं। चीन की सरकार ने हॉन्गकॉन्ग को उसका आंतरिक विषय बताते हुए अमेरिका के इस अधिनियम को चीन की संप्रभुता पर खतरा माना था। + +15313. MFN (Most-Favoured Nation) क्या है? + +15314. हज़ारों वर्षों तक तिब्बत ने एक ऐसे क्षेत्र के रूप में काम किया जिसने भारत और चीन को भौगोलिक रूप से अलग और शांत रखा, परंतु जब वर्ष 1950 में चीन ने तिब्बत पर आक्रमण कर वहाँ कब्ज़ा कर लिया तब भारत और चीन आपस में सीमा साझा करने लगे और पड़ोसी देश बन गए। + +15315. चीन में विद्रोह की शुरुआत वर्ष 1911 में हो गई थी और 12 फरवरी, 1912 को चीन में साम्राज्यवाद समाप्त कर दिया गया। इस तरह चीन में राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी की सरकार बनी और जितने क्षेत्र चिंग राजवंश के अधीन थे वे सभी चीन की नई सरकार के क्षेत्राधिकार में आ गए। इस दौरान चीन का आधिकारिक नाम रिपब्लिक ऑफ चाइना कर दिया गया। + +15316. भारत और ताइवान के बीच संबंधों की शुरुआत वर्ष 1995 में तब हुई जब भारत और ताइवान द्वारा मिलकर संयुक्त तौर पर गैर-सरकारी सहभागिता को बढ़ाने हेतु इंडिया-ताइपे एसोसिएशन (ITA) की स्थापना की गई। इसलिये भारत-ताइवान के संबंधों की औपचारिक शुरुआत 1990 के दशक में मानी जाती है। + +15317. जलवायु विज्ञान. + +15318. मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन (MJO) एक समुद्री-वायुमंडलीय घटना है जो दुनिया भर में मौसम की गतिविधियों को प्रभावित करती है।यह साप्ताहिक से लेकर मासिक समयावधि तक उष्णकटिबंधीय मौसम में बड़े उतार-चढ़ाव लाने के लिये ज़िम्मेदार मानी जाती है। MJO को भूमध्य रेखा के पास पूर्व की ओर सक्रिय बादलों और वर्षा के प्रमुख घटक या निर्धारक (जैसे मानव शरीर में नाड़ी (Pulse) एक प्रमुख निर्धारक होती है) के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो आमतौर पर हर 30 से 60 दिनों में स्वयं की पुनरावृत्ति करती है। IOD केवल हिंद महासागर से संबंधित है, लेकिन अन्य दो वैश्विक स्तर पर मौसम को मध्य अक्षांश तक प्रभावित करती हैं। + +15319. जब यह मानसून के दौरान हिंद महासागर के ऊपर होता है, तो संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में अच्छी बारिश होती है। दूसरी ओर, जब यह एक लंबे चक्र की समयावधि के रूप में होता है और प्रशांत महासागर के ऊपर रहता है तब भारतीय मानसूनी मौसम में कम वर्षा होती है। + +15320. वर्ष 1970 के बाद से चुंबकीय विसंगति के आकार में लगातार वृद्धि देखी गई है तथा यह 20 किमी. प्रतिवर्ष की गति से पश्चिम की ओर बढ़ रही है। + +15321. इन बेल्टों की खोज वर्ष 1958 में डॉ. जेम्स वान एलन तथा उनकी टीम द्वारा की गई थी। डॉ. जेम्स वान एलन के नाम पर ही पृथ्वी के रेडिएशन बेल्ट को ‘वान एलन रेडिएशन बेल्ट’ कहा जाता है। + +15322. लोहित घाटी के उच्च भागों में अत्यधिक उच्च पॉइसन अनुपात (High Poisson’s Ratio) दर्ज किया गया है, जो अधिक गहराई पर भू-पर्पटी की आंशिक पिघलित अवस्था को दर्शाता है। + +15323. टेलिसिस्मिक ऐसे भूकंपों के विषय में जानकारी देता है जो माप स्थल से 1000 किमी. से अधिक दूरी पर उत्पन्न होते हैं। + +15324. ट्यूटिंग-टिडिंग सेचर ज़ोन (TTSZ) पूर्वी हिमालय का एक प्रमुख हिस्सा है जहाँ हिमालय अक्षसंघीय मोड़ (Syntaxial Bend) अर्थात् हेयरपिन मोड़ बनाता हुआ दक्षिण की तरफ इंडो-बर्मा श्रेणी से जुड़ जाता है। + +15325. घर्षण शक्ति (Frictional Strength) को एक प्लेट के विरुद्ध दूसरी प्लेट को धकेलने के लिये आवश्यक बल के रूप में परिभाषित किया जाता है। + +15326. अध्ययन के अनुसार, ‘ग्रेट ऑक्सीडेशन इवेंट’ (Great Oxidation Event) से पहले वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा मौजूद थी किंतु यह वायुमंडल में संकेंद्रित नहीं हो सकी। वायुमंडल में ऑक्सीजन के संकेंद्रित न होने का मुख्य कारण ज्वालामुखी द्वारा उत्सर्जित गैसों की बड़ी मात्रा के साथ ऑक्सीजन की प्रतिक्रिया थी। जब ज्वालामुखी सक्रिय होते हैं तो उनसे बड़ी मात्रा में गैसों का वायुमंडल में उद्गार होता हैं। इन गैसों की प्रकृति पृथ्वी के मेंटल में सामग्रियों की प्रकृति पर निर्भर करती है। + +15327. गौरतलब है कि पृथ्वी के चुंबकीय ध्रुव में परिवर्तन होता रहता है। वस्तुत: विश्व चुंबकीय मॉडल को प्रत्येक 5 वर्ष बाद संशोधित किया जाता है, जिसे 2020 में संशोधित किया जाना था। + +15328. पृथ्वी से सूर्य की दूरी लगभग 148 मिलियन किमी. होने के कारण यह शांत और स्थिर प्रतीत होता है लेकिन वास्तविकता में सूर्य की सतह से विशाल सौर फ्लेयर्स एवं कोरोनल मास इजेक्शन्स (Coronal Mass Ejections- CMEs) का बाहरी अंतरिक्ष में उत्सर्जन होता है। + +15329. माउंडर मिनिमम (Maunder Minimum) + +15330. डाल्टन मिनिमम (Dalton Minimum) + +15331. 25वाँ सौर चक्र + +15332. ग्लेशियर सर्ज अर्थात ग्लेशियरों के आगे बढ़ने की क्रिया एक स्थिर गति से न होकर चक्रीय प्रवाह के रूप में होती है। + +15333. हिंदू-कुश श्रेणी जो काराकोरम श्रेणी का ही विस्तार माना जाता है अफगानिस्तान में स्थित है। ध्रुवीय क्षेत्रों के बाद काराकोरम में सबसे अधिक ग्लेशियर हैं। सियाचिन ग्लेशियर और बिआफो(Biafo) ग्लेशियर; जो दुनिया के क्रमश: दूसरे और तीसरे बड़े ग्लेशियर हैं, इस सीमा में स्थित हैं। + +15334. ग्रामीण क्षेत्रों से नगरों की ओर प्रवासन से हिंदू-कुश हिमालय क्षेत्र में नगरीकरण लगातार बढ़ रहा है। यद्यपि वर्तमान में यहाँ के बड़े नगरों की आबादी केवल 3% तथा छोटे शहरों की आबादी केवल 8% है, लेकिन अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2050 तक नगरीय आबादी 50% से अधिक हो जाएगी, इससे जल तनाव बहुत बढ़ जाएगा। + +15335. भारतीय भू-चुंबकत्व संस्थान के शोधकर्त्ताओं ने भू-जल में मौसमी बदलावों के आधार पर हिमालय को घटते और अपनी स्थिति परिवर्तित करते हुए पाया है।. + +15336. IIG का उद्देश्य भू-चुंबकत्व के क्षेत्र में गुणवत्तापूर्ण अनुसंधान करना और वैश्विक स्तर पर भारत को एक मानक ज्ञान संसाधन केंद्र के रूप में स्थापित करना है। + +15337. ‘क्लाइमेट, डिज़ास्टर एंड डेवलपमेंट’ (Climate, Disaster and Development) नामक जर्नल में प्रकशित इस अध्ययन के अनुसार, भारत में कार्बन डाइऑक्साइड की बढ़ती सांद्रता के कारण वातावरण में अतिशय बाढ़ या तूफान का जोखिम प्रत्येक 13 वर्षों के अंतराल पर दोगुना हो सकता है। इससे भारत में तबाही की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। + +15338. वर्ष 2010-2019 के दशक का औसत तापमान पिछले 30 वर्षों (1981-2010) के औसत तापमान से 0.36 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। वर्ष 2019 भारत में सातवाँ सबसे गर्म वर्ष रहा। यह घोषणा यूरोपियन मौसम एजेंसी के कॉपरनिकस जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम के तहत की गई थी। + +15339. यह प्रवृत्ति 2010 के दशक में भी जारी रही और इस दशक के दूसरे भाग के पाँच वर्ष सर्वाधिक गर्म रहे। + +15340. यह औसत वर्षा के संदर्भ में भी सबसे सूखा वर्ष था। वर्ष 2017 के बाद से अधिकांश देश भयंकर सूखे की चपेट में हैं और न्यू साउथ वेल्स वर्तमान में 20 वर्षों की सबसे विनाशकारी वनाग्नि से प्रभावित है। + +15341. वैज्ञानिकों के अनुसार, स्विटज़रलैंड के प्रसिद्ध ग्रोसर एलेत्स ग्लेशियर (Grosser Aletsch Glacier) और ग्रीनलैंड के जकॉब्सवैन आइसबारे (Jakobshavn Isbrae) ग्लेशियरों को भी खतरे के दायरे में शामिल किया गया है। + +15342. + +15343. सेटकॉम तकनीक. + +15344. पहले चरण के दौरान इस तकनीक का उपयोग विभिन्न विभागों, जैसे शिक्षा, उच्च शिक्षा, समाज कल्याण, अल्पसंख्यक कल्याण, महिला एवं बाल विकास और आदिवासी क्षेत्र के विकास के तहत आने वाले लगभग 2,000 संस्थानों में किया जाएगा। + +15345. विशेष रूप से शिक्षकों की कमी से जूझ रहे संस्थानों के छात्रों को सेटकॉम तकनीक के माध्यम से सहायता मिलेगी। + +15346. पृथ्वी पर विभिन्न स्थानों के बीच संचार लिंक प्रदान करने के लिये कृत्रिम उपग्रहों का उपयोग करना ही ‘उपग्रह संचार तकनीक’ कहलाता है। उपग्रह संचार वैश्विक दूरसंचार प्रणाली में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। + +15347. कृत्रिम बुद्धिमत्ता एल्गोरिदम का उपयोग कर किसी व्यक्ति के बोलने के तरीके, सिर तथा चेहरे की गतिविधियों को किसी अन्य व्यक्ति के साथ अध्यारोपित कर देने से यह बताना मुश्किल हो जाता है कि यह वीडियो/तस्वीरें सही हैं या गलत। कंप्यूटर द्वारा तैयार की गईं इन वीडियो/तस्वीरों की सत्यता की जाँच गहन विश्लेषण से ही की जा सकती है। + +15348. वित्तीय सहयोग: इसके अंतर्गत बहुत से Venture Capitalists के साथ साझेदारी की है ताकि वित्त-संचयन (Fund Raising) में स्टार्टअप कंपनियों को मदद मिल सके। इसके अतिरिक्त AICRA और कंपनियों के बीच विभिन्न स्तरों पर तालमेल बनाया जा सकता है, जैसे- AICRA किसी कंपनी का शेयरधारक हो सकता है या उसे ऋण दे सकता है और इस प्रकार विभिन्न विकल्पों के मार्ग खुलते हैं। + +15349. इस इवेंट में भारत के विज़न और ज़िम्मेदार एआई के माध्यम से सामाजिक सशक्तीकरण, समावेश और परिवर्तन हेतु आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर रोड मैप बनाने के लिये एक वैश्विक बैठक का आयोजन किया जाएगा। + +15350. व्योममित्र के कैमरा, स्पीकर और माइक्रोफोन रोबोट में लगे सेंसर से नियंत्रित होते हैं। एक्चुएटर एक तरह की मोटर होती है, जो रोबोट को झुकने, हाथ व उँगलियों को चलाने में मदद करती है। + +15351. इसके अतिरिक्त यह रोबोट वायुमंडलीय दबाव, ऑक्सीजन की जाँच करना और कार्बन डाईऑक्साइड (CO2) सिलेंडर बदलने से लेकर विषम परिस्थितियों में आपातकालीन प्रक्रियाओं का पालन कर अभियान को सुरक्षित रोकने में भी सक्षम है। + +15352. गगनयान अभियान के लिये अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने महत्त्वपूर्ण प्रोद्योगिकी विकसित कर ली है। + +15353. इस योजना के तहत एक नियोजित अंतरिक्षयान को अपग्रेड किये गए संस्करण की डाॅकिंग क्षमता से लैस किया जाएगा। + +15354. इसरो के अनुसार, गगनयान रूस, चीन और नासा के ओरियन यान और अपोलो कैप्सूल से छोटा परंतु अमेरिका के जैमिनी यान से थोड़ा बड़ा होगा। + +15355. गगनयान से जुड़े शुरुआती अध्ययन और तकनीकी के विकास का काम वर्ष 2006 में ही ऑर्बिटल विकल (Orbital Vikal) नाम से शुरू हो गया था। + +15356. अगस्त 2019 में रूस ने मानवरहित राकेट के माध्यम से रोबोट फेडोर को अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर भेजा था। + +15357. रोबोटिक्स के क्षेेत्र में वैश्विक पहल. + +15358. सुपरकैम में एक माइक्रोफोन भी शामिल है जिसकी सहायता से वैज्ञानिक हर बार लेज़र बीम के चट्टान से टकराने की ध्वनि सुन सकेंगे। लेज़र बीम के लक्ष्य से टकराने से निकलने वाला पॉपिंग साउंड चट्टान के भौतिक गुणों के आधार पर आसानी से परिवर्तित हो जाता है। + +15359. अर्थव्यवस्था: यहाँ की अर्थव्यवस्था पर्यटन और वित्तीय सेवाओं पर आधारित है, जबकि कृषि का महत्त्व बहुत कम है। + +15360. ज़ेनोपस की दो प्रजातियाँ (ज़ेनोपस लाविस और ज़ेनोपस ट्रॉपिकलिस) जीव विज्ञानियों द्वारा उपयोग की जाती हैं। ये दोनों प्रजातियाँ पूरी तरह से जलीय हैं और इनको कैद में रखना आसान है। + +15361. इनका भ्रूण कशेरुकी विकास के लिये एक अच्छा मॉडल है। + +15362. अनुप्रयोग: + +15363. + +15364. ड्यूटेरियम (Deuterium–D) एवं ट्राइटियम (Tritium–T) की संलयन अभिक्रिया में ‘सबसे कम’ तापमान पर सर्वाधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है। + +15365. परमाणु विस्फोट की घटना + +15366. ‘काली बारिश’ से बचे लोगों ने इसे बारिश की बड़ी-बड़ी बूंदों के रूप में वर्णित किया जो सामान्य बारिश की बूंदों की तुलना में बहुत भारी थी। + +15367. PHWR प्राकृतिक यूरेनियम को ईंधन और भारी जल (D2O) को शीतलक के रूप में प्रयोग किया जाता है। अब तक भारत में स्वदेशी तकनीक से विकसित PHWR की सबसे बड़ी इकाई मात्र 540 मेगावाट की थी, इस प्रकार की दो इकाइयाँ महाराष्ट्र के तारापुर संयत्र में स्थापित की गई हैं। + +15368. KAPP-3 और KAPP-4 का निर्माण ‘न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड’ द्वारा किया गया है। + +15369. रामनाथपुरम ज़िले की ‘कडलूर’ (Kadalur) ग्राम पंचायत के ग्रामीणों ने 2x800 मेगावाट की ‘उप्पुर सुपरक्रिटिकल थर्मल पावर प्लांट’ (Uppur Supercritical Thermal Power Plant) परियोजना के क्रियान्वयन के विरोध में एक प्रस्ताव पारित किया। + +15370. ग्रामीणों के अनुसार, इस संयंत्र के क्रियान्वयन से किसानों को लगभग 300 एकड़ कृषि योग्य भूमि से वंचित कर दिया जाएगा। + +15371. INO की योजना न्यूट्रिनो भौतिकी के क्षेत्र में प्रयोगों के लिये छात्रों को विश्व स्तरीय अनुसंधान सुविधा प्रदान करने की है। + +15372. डेटा विश्लेषण + +15373. सैटेलाइट तस्वीरों के अनुसार, ईरान की एक भूमिगत परमाणु सुविधा; जो यूरेनियम को समृद्ध करने के लिये कार्य करती है, में आग लगने की दुर्घटना हुई है।. + +15374. स्टक्सनेट कंप्यूटर वायरस (Stuxnet Computer Virus):-इसे वर्ष 2010 में ईरान के परमाणु कार्यक्रम के दौरान पश्चिमी देशों अमेरिका तथा इज़राइल द्वारा निर्मित वायरस माना जाता है, जिसका उद्देश्य ईरान के नैटान्ज़ परमाणु कार्यक्रम को बाधित और नष्ट करना था। + +15375. हालाँकि एक अंतर्राष्ट्रीय संधि (International Treaty) के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र द्वारा इसकी स्थापना की गई थी लेकिन यह संगठन संयुक्त राष्ट्र के प्रत्यक्ष नियंत्रण में नहीं आता है। + +15376. चीन के अलावा रूस ने भी ‘कम-प्रभाव उत्पन्न करने वाले परमाणु परीक्षण’ (Low-Yield Nuclear Testing) किये हैं, अत: इस प्रकार का परमाणु परीक्षण CTBT में अंतर्निहित 'शून्य प्रभाव (Zero Yield) की अवधारणा से असंगत हैं। + +15377. भारत पूर्ण परमाणु निशस्त्री:करण ढाँचे को अपनाने पर बल देता है, परंतु भारत के प्रस्तावों को स्वीकृति नहीं मिलने पर जून 1996 में भारत ने वार्ता से हटने के अपने निर्णय की घोषणा कर दी। + +15378. यह 700 रणनीतिक लॉन्चर और 1,550 ऑपरेशनल वारहेड्स की मात्रा को दोनों पक्षों के लिये सीमित कर, अमेरिकी और रूसी रणनीतिक परमाणु शस्त्रागार को कम करने की द्विपक्षीय प्रक्रिया को जारी रखती है। यदि इस संधि को पाँच वर्ष की अवधि के लिये विस्तारित नहीं किया जाता है तो यह संधि फरवरी 2021 में व्यपगत हो जाएगी। + +15379. भारत की परमाणु नीति. + +15380. + +15381. इस योजना के तहत प्राप्त हुई पूंजी को चुकाने के लिये एक वर्ष का समय दिया जाएगा, विक्रेता इस अवधि के दौरान मासिक किश्तों के माध्यम से ऋण का भुगतान कर सकेंगे। + +15382. इस योजना के प्रभावी वितरण और इसके क्रियान्वयन में पारदर्शिता लाने के लिये वेब पोर्टल और मोबाइल एप युक्त एक डिजिटल प्लेटफॉर्म का विकास किया जा रहा है। + +15383. इस अभियान में 12 विभिन्न मंत्रालयों को समनवित किया जाएगा, जिसमें पंचायती राज, ग्रामीण विकास, सड़क परिवहन और राजमार्ग, खान, पेयजल और स्वच्छता, पर्यावरण, रेलवे, नवीकरणीय ऊर्जा, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, सीमा सड़कें, दूरसंचार तथा कृषि मंत्रालय शामिल हैं। + +15384. वर्ष 2011-2017 के बीच जी-7 देशों में औसत मज़दूरी 3% बढ़ी, जबकि अमीर शेयरधारकों के लाभांश में 31% की वृद्धि देखी गई है। + +15385. दीनदयाल उपाध्याय अंत्योदय योजना ग्रामीण के तहत प्रदान किए जाने वाले कौशल अब अंतरराष्ट्रीय मानकों के समतुल्य होंगे और मेक इन इंडिया अभियान के पूरक बनेंगे| + +15386. ‘प्रधानमंत्री का नवीन 15 सूत्रीय कार्यक्रम’ (PM’s New 15 PP). + +15387. b. गरीब नवाज़ रोज़गार कार्यक्रम + +15388. b. उस्ताद (USTAAD):-इस योजना का उद्देश्य अल्पसंख्यकों की परंपरागत कला के संरक्षण के लिये प्रशिक्षण एवं कौशल में सुधार करना है। + +15389. अवसंरचना सहायता (Infrastructure Support): + +15390. थर्ड पार्टी स्टडी/मॉनिटरिंग + +15391. सांस्‍कृतिक एवं सामाजिक सद्भाव सुनिश्चित किये बगैर देश में विकास सुनिश्चित नहीं किया जा सकता, अत: समाज में सामाजिक सौहार्द का माहौल बनाना होगा तभी ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। + +15392. गौरतलब है कि आयु एवं अंतर्निहित स्वास्थ्य की स्थिति, लोगों को COVID-19 के मद्देनज़र अधिक संवेदनशील बनाती है। ऐसा इसलिये है क्योंकि उनमें प्रतिक्रिया करने वाले माइक्रोआरएनए नंबर कम होते हैं। + +15393. किसी भी संक्रमण के बाद, मेज़बान (Host) को न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी का उत्पादन करने में कुछ समय लगता है। + +15394. प्रोटीन पीएलप्रो (PLpro) और SARS-CoV-2 वायरस. + +15395. वैज्ञानिकों ने अध्ययन में पाया कि यदि PLpro प्रोटीन निर्माण को औषधीय तरीकों से रोक (ब्लॉक) दिया जाता है तो वायरस की प्रतिकृति निर्माण प्रक्रिया भी रुक जाती है और हमारी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया प्रणाली भी मज़बूत होती है। + +15396. ‘T सेल’ संक्रमित कोशिका को नष्ट करने के लिये साइटोटोक्सिक कारक (Cytotoxic Factors) नामक प्रोटीन मुक्त करता है जो वायरस को नष्ट कर देता है। + +15397. वायरस से संक्रमित होने पर कोशिकाओं द्वारा इंटरफेरॉन नामक प्रोटीन का उत्पादन किया जाता है जो वायरस के खिलाफ प्रतिरक्षा सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। + +15398. नई प्रणाली के तहत रोग नियंत्रण रणनीतियों का विकास किया जा रहा है जिनका उपयोग एक टीके के रूप में किया जा सकता है जो चावल की प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय करते हैं और रोगजनकों द्वारा बाद के संक्रमण से चावल के पौधों को प्रतिरक्षा प्रदान करते हैं। + +15399. सेल्यूलेज़ मुख्य रूप से कवक, बैक्टीरिया एवं प्रोटोज़ोआंस (Protozoans) द्वारा उत्पादित कई एंज़ाइमों में से एक है जो सेल्युलोसिस (Cellulolysis) को उत्प्रेरित करता है। + +15400. रेज़िस्टेंस जीन (R-Genes) पादप जीनोम में वे जीन होते हैं जो आर प्रोटीन का निर्माण करके रोगजनकों के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता को व्यक्त करते हैं। + +15401. इस बीमारी को पहली बार वर्ष 1884-85 में क्यूशू, जापान में देखा गया था किंतु क्संथोमोनास ओर्यज़ेपीवी ओर्यज़े (Xanthomonas Oryzae Pv. Oryzae) के रूप में इसकी आधिकारिक पहचान वर्ष 1911 में हुई थी। + +15402. विभिन्न समूह HSCs से प्रयोगशाला में RBCs का उत्पादन करने में सक्षम हैं, हालाँकि इस प्रक्रिया में लगभग 21 दिन लगते हैं। + +15403. प्रयोगशाला में हेमटोपोइएटिक स्टेम सेल से RBCs निर्माण प्रक्रिया को `ट्रांसफॉर्मिंग ग्रोथ फैक्टर’ β1 (TGF- β1) नामक एक छोटे प्रोटीन अणु की बहुत कम सांद्रता तथा एरिथ्रोपोइटिन (Erythropoietin- EPO) प्रोटीन को मिलाकर तेज़ किया जा सकता है एवं इस प्रक्रिया से RBCs निर्माण में 18 दिन लगते हैं। + +15404. यह एक तरल संयोजी ऊतक होता है जिसमें प्लाज़्मा, रक्त कणिकाएँ तथा प्लेटलेट्स होते हैं। + +15405. सफेद रक्त कणिकाएँ (WBCs): + +15406. इस मिशन का कार्यान्वयन जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (Biotechnology Industry Research Assistance Council-BIRAC) द्वारा किया जाता है। + +15407. किफायती उत्पादों का विकास: + +15408. साझा बुनियादी ढाँचे की स्थापना और उसे मज़बूती प्रदान करना: + +15409. बायोफार्मास्यूटिकल विकास- 7 + +15410. उत्पाद विकास, बौद्धिक संपदा पंजीकरण, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और नियामक मानकों जैसे क्षेत्रों में उत्पाद के विकास हेतु नई जैव प्रौद्योगिकी कंपनियों को महत्त्वपूर्ण कौशल के लिये विशिष्ट प्रशिक्षण प्रदान करना भी इस मिशन का प्रमुख उद्देश्य है। + +15411. शैक्षणिक क्षेत्र संबंधी उद्योगों को बढ़ाने में मदद करना एवं टेक्नोलॉजी के माध्यम से उत्पादों के विकास हेतु शिक्षाविदों, नवप्रवर्तकों और उद्यमियों को अवसर प्रदान करना। + +15412. व्हाइटफ्लाइज़ नामक कीट कपास की फसल को नुकसान पहुँचाने वाले विनाशकारी कीटों में से एक है। व्हाइटफ्लाइज़ 2000 से अधिक पौधों की प्रजातियों को नुकसान पहुँचाते हैं एवं पौधों से संबंधित 200 विषाणुओं के प्रति रोग वाहक के रूप में भी कार्य करते हैं। NBRI लखनऊ द्वारा विकसित कपास की इस किस्म का परीक्षण अप्रैल-अक्तूबर 2020 तक पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना के फरीदकोट केंद्र में किया जाएगा। ये कीट सबसे अधिक कपास की फसल को नुकसान पहुँचता है तथा वर्ष 2015 में पंजाब में कपास की दो-तिहाई फसल इसी कीट की वजह से नष्ट हो गई थी। + +15413. कीटरोधी किस्म विकसित करने हेतु शोधकर्त्ताओं ने 250 छोटे पौधों को चुना ताकि यह चिह्नित किया जा सके कि कौन-सा प्रोटीन अणु व्हाइटफ्लाइज़ को रोकने में सक्षम है। + +15414. टेक्टोरियामैक्रोडोंटा (Tectariamacrodonta): + +15415. यह मोबाइल वायरोलॉजी रिसर्च लैब COVID-19 के निदान और वायरस संवर्द्धन में ड्रग स्क्रीनिंग हेतु, प्लाज्मा थेरेपी, टीके के प्रति रोगियों की व्यापक प्रतिरक्षा प्रोफाइलिंग आदि में सहायक होगी। + +15416. अगले चरण में, ऊतक सेल लाइनों पर इस पॉलीपेप्टाइड का परीक्षण किया जाएगा। यह केवल पहला चरण है किंतु अध्ययन से पता चला है कि यह वैक्सीन 70% तक सही है। किंतु इसको अंतिम चरण तक पहुँचने में अभी कम-से- कम एक वर्ष लगेगा। + +15417. COVID-19 हेतु निदान और टीके के विकास के लिये जैव प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology-DBT), जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (Biotechnology Industry Research Assistance Council-BIRAC) और विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology-DST) आदि से आने वाली फंडिंग के लिये प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करना। + +15418. चुने गए प्रस्तावों में टीके के 10 , रोग-निदान उत्पाद के 34, चिकित्सीय विकल्प के 10, दवाओं के नए उपयोग के 02 प्रस्ताव और निवारक हस्तक्षेप के रूप में वर्गीकृत 14 परियोजनाएँ शामिल हैं। + +15419. दुनियाभर के कई शोधकर्त्ता पार्किंसंस रोग से संबंधित यह अध्ययन कर रहे हैं कि प्रोटीन कैसे एकत्रित होती है और किस प्रकार यह एकत्रीकरण न्यूरोनल कोशिकाओं को खत्म कर देता है। अल्फा सिन्यूक्लिन नामक प्रोटीन (एकत्रीकरण) के अंतिम बिंदु पर छोटे पतले फाइबर या ‘फाइब्रिल्स’ (Fibrils) का निर्माण होता है इस ‘फाइब्रिल्स’ में प्रोटीन की एक संरचना होती है जिसे क्रॉस बीटा फोल्ड (Cross Beta Fold) कहा जाता है। फाइब्रिल्स का विस्तृत अध्ययन एक डाई थियोफ्लेविन टी (Dye Thioflavin T) की मदद से किया गया है। यह डाई क्रॉस-बीटा संरचना को जोड़ती है और प्रकाश उत्सर्जित करती है। + +15420. लगभग 24 घंटों की देरी से बनाने वाले ऑलिगोमर्स जो विषमता में बदलाव के संकेत देते हैं। अल्फा सिन्यूक्लिन में सबसे खतरनाक देर से बनने वाले ऑलिगोमर्स को माना जाता है। अतः इस तकनीक की मदद से इस प्रोटीन पर आसानी से नज़र रखा जा सकता है जो दवा विकसित करने में कारगर साबित हो सकती है। + +15421. इसके संक्रमण से व्यक्ति की आँत में सूजन हो जाती है, जो दस्त, उल्टी, बुखार और पेट में ऐंठन आदि का कारण बनती है। + +15422. इसके पश्चात् इस पर बाहरी मैग्नेटिक फील्ड सक्रिय कर पेप्टाइड्स से जुड़े बैक्टीरिया को अलग और स्थिर कर लिया गया। + +15423. इसके अतिरिक्त पारंपरिक तकनीक के प्रयोग में अधिक समय और श्रम लगता है, जबकि ARI शोधकर्त्ताओं द्वारा निर्मित उपकरण के माध्यम से 1 मिमी. के नमूने पर मात्र 10 कोशिकाओं के होने पर भी इनकी पहचान केवल 30 मिनट में की जा सकती है। + +15424. ARI भारत सरकार के ‘विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग’ (Department of Science and Technology- DST) के तहत एक स्वायत्त संस्थान है। + +15425. जैव प्रौद्योगिकी पार्क एवं इक्यूबेशन केंद्र को भारत सरकार की सरकारी कंपनी, बायोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्री रिसर्च अंसिस्टेंस कांउसिल (Biotechnology Industry Research Assistance Council- BIRAC) के सहयोग से स्थापित किया जाएगा। + +15426. शाकनाशी सहिष्णु कपास ( Herbicide Tolerant Cotton) में खरपतवार के प्रति अधिक प्रतिरोधक क्षमता होती है। + +15427. तेल विपणन कंपनियाँ (OMCs), सरकार द्वारा तय की गई पारिश्रमिक कीमतों पर घरेलू स्रोतों से इथेनॉल की खरीद करती हैं। + +15428. जैव ईंधन नीति. + +15429. NBCC में 'केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री'; जो समिति की अध्यक्षता करता है, के अलावा 14 अन्य मंत्रालयों एवं विभागों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं। + +15430. वर्ष 2018 में सरकार ने वर्ष 2009 की जैव ईंधन नीति को संशोधित किया। ‘जैव ईंधन पर नई राष्ट्रीय नीति’ में वर्ष 2030 तक पेट्रोल में इथेनॉल का 20% तथा डीज़ल में 5% के सम्मिश्रण का लक्ष्य रखा गया। + +15431. + +15432. नीलांबर परिधान हरित तट पर सुन्दर है। + +15433. हे मातृभूमि! तू सत्य ही, सगुण मूर्ति सर्वेश की॥ + +15434. हम खेले-कूदे हर्षयुत, जिसकी प्यारी गोद में। + +15435. बस तेरे ही सुरस-सार से सनी हुई है॥ + +15436. षट्ऋतुओं का विविध दृश्ययुत अद्भुत क्रम है। + +15437. भाँति-भाँति के सरस, सुधोपम फल मिलते है॥ + +15438. क्षमामयी, तू दयामयी है, क्षेममयी है। + +15439. हे मातृभूमि! सन्तान हम, तू जननी, तू प्राण है॥ + +15440. उस मातृभूमि की धूल में, जब पूरे सन जायेंगे। + +15441. मरो परन्तु यों मरो कि याद जो करे सभी। + +15442. उसी उदार की कथा सरस्वती बखानती¸ + +15443. वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिये मरे।। + +15444. अनित्य देह के लिए अनादि जीव क्या डरे? + +15445. विनीत लोक वर्ग क्या न सामने झुका रहा? + +15446. अनाथ कौन हैं यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं, + +15447. समक्ष ही स्वबाहु जो बढ़ा रहे बड़े–बड़े। + +15448. “मनुष्य मात्र बन्धु है” यही बड़ा विवेक है¸ + +15449. वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।। + +15450. तभी समर्थ भाव है कि तारता हुआ तरे¸ + +15451. हेमन्त में बहुदा घनों से पूर्ण रहता व्योम है + +15452. अधपेट खाकर फिर उन्हें है काँपना हेमंत में + +15453. घनघोर वर्षा हो रही, है गगन गर्जन कर रहा + +15454. है शीत कैसा पड़ रहा, औ’ थरथराता गात है + +15455. मानो भुवन से भिन्न उनका, दूसरा ही लोक है + +15456. रोटी और स्वाधीनता--रामधारी सिंह “दिनकर” + +15457. पर कहीं भूख बेताब हुई तो आजादी की खैर नहीं। + +15458. झेलेगा यह बलिदान ? भूख की घनी चोट सह पाएगा ? + +15459. राष्ट्रीय काव्यधारा/नई आवाज़ (धूप और धुआँ): + +15460. कहे क्या चाँद? उसके पास कोई बात भी हो। + +15461. मजे मालूम ही जिसको नहीं बेताबियों के, + +15462. किरण को ढूँढता लेकिन, नहीं पहचानता है। + +15463. नया स्वर खोजनेवाले! तलातल तोड़ता जा, + +15464. जरा-सी नम हुई मिट्टी कि अंकुर फूटते हैं? + +15465. सरोवर छोड़ कर तू बूँद पीने की खुशी में, + +15466. '"जनतंत्र का जन्म – रामधारी सिंह दिनकर + +15467. जनता? हां, मिट्टी की अबोध मूरतें वही, + +15468. “जनता, सचमुच ही, बडी वेदना सहती है।” + +15469. अथवा कोई दूधमुंही जिसे बहलाने के + +15470. सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। + +15471. अब्दों, शताब्दियों, सहस्त्राब्द का अंधकार + +15472. तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तय करो + +15473. देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे, + +15474. सिंहासन खाली करो कि जनता आती हैं + +15475. साकार, दिव्य, गौरव विराट्, + +15476. युग-युग अजेय, निर्बन्ध, मुक्त, + +15477. यतिवर! कैसा यह अमर ध्यान? + +15478. ओ, मौन, तपस्या-लीन यती! + +15479. गंगा, यमुना की अमिय-धार + +15480. ‘पद-दलित इसे करना पीछे + +15481. डस रहे चतुर्दिक विविध व्याल। + +15482. वीरान हुआ प्यारा स्वदेश। + +15483. तू तरुण देश से पूछ अरे, + +15484. जल रहा स्वर्ण-युग-अग्निज्वाल, + +15485. पर, फिर हमें गाण्डीव-गदा, + +15486. ‘हर-हर-बम’ का फिर महोच्चार। + +15487. तू मौन त्याग, कर सिंहनाद + +15488. + +15489. उधर बुढ़ापा तक बच्चा है, इधर जवानी छन-छन ढलती, + +15490. दो सूजी से आँखें देना + +15491. + +15492. गहनों में गूँथा जाऊँ, + +15493. चाह नहीं देवों के सिर पर + +15494. जिस पथ पर जावें वीर अनेक! + +15495. प्राण अन्तर में लिये, पागल जवानी ! + +15496. चल रहीं नदियाँ, + +15497. तेरी लहर जाये? + +15498. द्वार बलि का खोल + +15499. इरादों-सी, उठा कर, + +15500. वह कली के गर्भ से, फल- + +15501. दिये फल, देख आली ! + +15502. श्वान के सिर हो- + +15503. साहस खा चुका है, + +15504. ये न मग हैं, तव + +15505. कृति लेख हैं ये, + +15506. टूटता-जुड़ता समय + +15507. हिम के प्राण पाये! + +15508. चढ़ा दे स्वातन्त्रय-प्रभू पर अमर पानी। + +15509. अरे, कंकाल किसके? + +15510. वेद की वाणी कि हो आकाश-वाणी, + +15511. काया-कल्प का है; + +15512. खून हो जाये न तेरा देख, पानी, + +15513. क्या कहा कि यह घर मेरा है? + +15514. है नील चंदोवा तना कि झूमर + +15515. सूरज रोशनी पिन्हाता है, + +15516. ये हवा के झोंके झूम उठे, + +15517. आ गई रात, सौगात लिए, + +15518. सिसकें बन आयीं जब मलार; + +15519. सब कुछ ले, लौटाया न कभी, + +15520. मस्जिद, गुस्र्द्वारा मेरा है। + +15521. सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी, + +15522. बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, + +15523. बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी। + +15524. देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार, + +15525. खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ + +15526. चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी, + +15527. तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई, + +15528. बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया, + +15529. बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, + +15530. राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया। + +15531. कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात, + +15532. खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ + +15533. यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी, + +15534. नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान, + +15535. महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी, + +15536. बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, + +15537. भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम। + +15538. जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में, + +15539. खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ + +15540. अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी, + +15541. काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी, + +15542. तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार, + +15543. बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, + +15544. हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी, + +15545. यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी, + +15546. खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ + +15547. काले काले कीट, भ्रमर का भ्रम उपजाते। + +15548. ओ, प्रिय ऋतुराज! किन्तु धीरे से आना, + +15549. भ्रमर करें गुंजार कष्ट की कथा सुनावें। + +15550. कोमल बालक मरे यहाँ गोली खा कर, + +15551. कर के उनकी याद अश्रु के ओस बहाना। + +15552. + +15553. कई बार जिसको भेजा है + +15554. एक बार फिर दिखलाओ।। + +15555. मैंने पढ़ा, शत्रुओं को भी + +15556. राखी क्या दिखलाती है । + +15557. साखी राजस्थान बनाकर + +15558. जलियाँ का वह गोलन्दाज़।। + +15559. बहिनें कई सिसकती हैं हा ! + +15560. फिर से पड़ जावे घेरा। + +15561. भीर पडेगी, क्या तुम रक्षा + +15562. के कष्टों का भार हरो।। + +15563. है उदधि गरजता बार बार + +15564. मधु लेकर आ पहुंचा अनंग + +15565. मारू बाजे पर उधर गान + +15566. चलचितवन हो या धनुषबाण + +15567. लंके तुझमें क्यों लगी आग + +15568. ऐ दुर्ग सिंहगढ़ के प्रचंड + +15569. बिजली भर दे वह छन्द नहीं + +15570. राष्ट्रीय काव्यधारा/भारत-भारती (अतीत खंड)-हमारी सभ्यता: + +15571. आचार की, व्यवहार की, व्यापार की, विज्ञान की॥४५॥ + +15572. जब मांस-भक्षण पर वनों में अन्य जन थे जी रहे, + +15573. थे धर्म्म-भीरु परन्तु हम सब काल सच्चे शूर थे । + +15574. भव-सिन्धु तरने के लिए आत्मावलम्बी धीर ज्यों, + +15575. 'आत्मा अमर है, देह नश्वर,' यह अटल सिद्धान्त था॥५०॥ + +15576. बिकते गुलाम न थे यहाँ हममें न ऐसी रीति थो, + +15577. पर दूसरों के ही लिए जीते जहाँ थे हम जहाँ; + +15578. पीछे रहे को घूमकर आगे बढ़ाते थे हमीं ॥५४॥ + +15579. थे जो हजारों वर्ष पहले जिस तरह हमने कहे, + +15580. देखो कि उलटे स्रोत सीधे किस तरह बहने लगे ! ॥५७॥ + +15581. था कौन ईश्वर के सिवा जिसको हमारा सिर झुके ? + +15582. बस मग्न थे अन्तर्जगत के अमृत-पारावार में। + +15583. कप्तान ‘कोलम्बस' कहाँ था उस समय, कोई कहे? + +15584. अब खोजने जाकर जिसे कितने विदेशी मर चुके ! ॥६२॥ + +15585. यह ठीक है, पश्चिम बहुत ही कर रहा उत्कर्ष है, + +15586. सांसारिकी स्वाधीनता की सीढ़ियों पर चढ़ रही। + +15587. हमसे अलौकिक ज्ञान का आलोक यदि पाता नहीं, + +15588. है शिष्य वह जापान भी इस वृद्ध भारतवर्ष का ॥६७॥ + +15589. संसार में जो कुछ जहाँ फैला प्रकाश-विकास है, + +15590. निज नीति, शिक्षा, सभ्यता की सिद्धि का दम भर चुके, + +15591. इस बात की साक्षी प्रकृति भी है अभी तक सब कहीं, + +15592. कब की हमारी सभ्यता है, कौन सकता है बता ॥७२॥ + +15593. हैं वायुमण्डल में हमारे गीत अब भी गुँजते, + +15594. सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/सामाजिक सशक्तीकरण और क्षेत्रवाद: + +15595. भारत का संविधान किसी धर्म विशेष से जुड़ा हुआ नहीं है। + +15596. इसमें किसी भी समुदाय का अन्य समुदायों पर वर्चस्व स्थापित नहीं होता है। + +15597. धर्मनिरपेक्षता पर धर्म विरोधी होने का आक्षेप भी लगाया जाता है जो लोगों की धार्मिक पहचान के लिये खतरा उत्पन्न करती है। + +15598. समाधान: + +15599. + +15600. भारतीय पक्ष ने मई 2020 में म्याँमार द्वारा भारतीय विद्रोही समूहों के 22 कैडरों को भारत को सौंपने के लिए म्याँमार की सराहना की। + +15601. केंद्रीय विदेश सचिव ने बांग्लादेश से रखाइन प्रांत के विस्थापितों की सुरक्षित, स्थायी और शीघ्र वापसी सुनिश्चित करने के लिये भारत के समर्थन को दोहराया। + +15602. भारत-म्याँमार द्विपक्षी संबंध: + +15603. वर्ष 2018 के एक आँकड़े के अनुसार, म्याँमार में भारतीय मूल के लगभग 15-20 लाख लोग रहते और कार्य करते हैं। + +15604. कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) द्वारा अक्टूबर 2020 में वित्तीय वर्ष 2020-21 के खरीफ विपणन सत्र के लिये जारि रिपोर्ट के अनुसार, 2 अप्रैल, 2020 तक केंद्र सरकार के भंडारों में कुल 73.85 मिलियन टन अनाज भंडारित था। + +15605. इसी प्रकार केंद्रीय पूल में उपलब्ध गेहूँ का स्टॉक आवश्यक रणनीतिक बफर से तीन गुना और चावल का स्टॉक चार गुना अधिक है। + +15606. अन्य चुनौतियाँ: + +15607. CACP प्रति वर्ष मूल्य नीति रिपोर्ट के रूप में सरकार को अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करता है, इसके तहत CACP द्वारा पांच समूहों (खरीफ की फसलें, रबी फसल, गन्ना, कच्चा जूट और कोपरा) के लिये अलग-अलग रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है। + +15608. यह पुस्तक बिहार में आयोजित लोक सेवा आयोग,बिहार दरोगा एवं परिक्षाओं के लिए उपयोगी पुस्तक है। + +15609. जनपदीय साहित्य सहायिका/विवाह गीत: + +15610. आल्हा एक लोकगाथा है जो कि मध्य भारत के बुंदेलखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों के बीच काफी प्रचलित है। + +15611. आल्हा ऊदल के पिता दासराज जोकि चंदेल राजा परमाल के यंहा सेनापति थे। तथा आल्हा उदल की माता का नाम दिबला था + +15612. मछला को नौलखा बाग में छोड़कर फिर उधर चला गया शिकार खेलने उसी समय वहां पर ज्वालासिंह आ पहुंचा जो कि उस जगह का राजा था। पत्थरगढ़ का तथा मछला का हरण करके वहां से लेकर चला गया पत्थरगढ़ इतना सुनने के बाद आल्हा उदल बहुत खुश होते हैं और युद्ध करने के लिए पत्थर गढ़ पहुंच जाते हैं लेकिन पत्थर गढ़ का राजा ज्वाला सिंह जो कि वह भी देवी का भक्त था देवी मां ने आल्हा उदल की सेना को पत्थर का बना दिया इसके बाद आल्हा का पुत्र इंदल जो कि एक 16 साल का युवक था देवी मां के चरणों में उसकी बलि दी गई जिससे देगा प्रसन्न होकर आला उदल की सेना को पुनर्जीवित कर दिया इसके बाद इंदल को भी जीवित कर दिया इसके बाद आल्हा ऊदल पत्थर गढ़ की लाई जीत गए और मछला को वापस महोबा लेके चले आए। + +15613. वह दिन रात अपने पति की यादों को याद कर करके रोती रहती है वह अपने पति के वियोग में तरह तरह के विलाप करती रहती है। वह कभी अपने पति की यादों को याद कर उदास हो जाती है तथा कभी यह सोच कर परेशान होती है कि उसका पति कलकत्ता में कैसे रह रहा होगा। + +15614. घुठी८ प ले धोती कोर, नि‍कया९ सुगा के ठोर, + +15615. बरखा१२ में पिया घरे रहितन बटोहिया। + +15616. आसिन महीनवाँ के, कड़ा घाम१६ दिनवाँ के, + +15617. बनवाँ सरिस बा भवनवाँ बटोहिया। + +15618. अबीर के घोरि-घोरि, सब लोग खेली होरी + +15619. जेठवा दबाई हमें हेठवा२० बटोहिया। + +15620. वो कहती है कि उसके पति भी कलकत्ता धन कमाने गए हैं परंतु अभी तक कोई खोज खबर नहीं आई। + +15621. जनपदीय साहित्य की विशेषताएं. + +15622. लोकगाथा + +15623. लोक नाट्य को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है- (क) नृत्यप्रधान और (ख) कथा प्रधान। + +15624. हिंदी आलोचना एवं समकालीन विमर्श/हिंदी आलोचना का उद्भव: + +15625. सारंगा सदाबृज की कहानी एक प्रेम कथा है जो जन्म जन्मांतर की प्रेम कहानी है + +15626. कार्यालयी हिंदी/सामान्य हिंदी तथा कार्यालयी हिंदी में संबंध और अंतर: + +15627. 3. सामान्य हिंदी का प्रयोग कोई भी सामाजिक कर सकता है वह अपने दैनिक कार्यों के अतिरिक्त पत्र व्यवहार में भी इसका प्रयोग कर सकता है वह सामान्य हिंदी को सुव्यवस्थित बनाते हुए उसमें साहित्य रचना भी कर सकता है ध्यातव्य है कि प्रत्येक सामान्य भाषा या बोली ही धीरे-धीरे साहित्य की भाषा बन जाती है साहित्य की भाषा भी सामान्य हिंदी की तरह निरंतर परिवर्तनशील होती है लेकिन कार्यालय हिंदी अपरिवर्तनीय होती है उसमें किसी एक शब्द के स्थान पर उस का पर्यायवाची शब्द नहीं रखा जा सकता। + +15628. 8. सामान्य हिंदी में राष्ट्र के लोगों की सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक चेतना विद्यमान रहती है वह भारत राष्ट्र की आत्मा की प्रतिध्वनि है लोक के समस्त व्यापार, जिनका संबंध उसकी सामाजिक सांस्कृतिक चेतना से है, उसे क्रियान्वित करने के लिए सामान्य हिंदी का प्रयोग किया जाता है किंतु कार्यालय हिंदी में प्रशासन, विधि और संवैधानिक विधाओं का विवेचन किया जाता है उसका प्रयोग भले ही समाज के सामाजिक द्वारा किया जा रहा हो लेकिन उसमें सामाजिक की सोच, उसकी आस्था और विश्वास का प्रभाव नहीं होता वह पूर्णत निर्व्यक्तिक होती है। + +15629. हिंदी साहित्य का विधागत इतिहास: + +15630. हिंदी की अनेक बोलियाँ (उपभाषाएं) है जिसमे अवधी,कन्नौज,बुंदेली,भोजपुरी,हरियाणवी,राजस्थानी,छत्तीसगढ़ी,मालवी,झारखंडी,ब्रजभाषा,खड़ी बोली,मारवाड़ी,गढ़वाली,मैथिली, आदि भाषाएं है + +15631. हरियाणवी या हरियानी हिंदी के पश्चिमी वर्ग की बोली है! हिन्दी भाषाई क्षेत्र मे जो बोलियाँ पश्चिमी ओर मे प्रचलित होती है उन्हे "पश्चिमी बोलीं "कहते है! पश्चिम हिन्दी का क्षेत्र करनाल से होते हुए जबलपुर तक जाता है अर्थात करनाल से जबलपुर तक के गाँव,कस्बों,मौहल्लो मे इस बोलीं का प्रचलन है ! इसी कारण से हरियाणवी भाषा बोलने वालों की संख्या तकरीबन 35 लाख है ! यह भाषा बहुत ही सरल है जिसको कोई छोटा बच्चा भी आसानी से बोल सकता है , भाषा प्रणाली भी बहुत सुशोभित और सरल ज्ञात होती है ! हरियाणवी भाषा का अपने भीतर ही एक इतिहास है प्राचीन काल में एक जनपद था उसी जनपद के आधार पर इस भाषा का नामकरण हुआ है ! इस बोलीं को बोलने वाले लोग बहुत ही रोचक है जो हरियाणा को 'हरियाना' कहते है !  + +15632. 2. ब्रजभाषा  + +15633. यह बोलीं बिहार मे ज्यादातर प्रचलित हैं जिस कारण इसे भोजपुरी कहते है! यह सम्पूर्ण बिहार एवं बिहार के उत्तर-पूर्वी इलाको में बोली जाने वाली भाषा है! बिहार की बोलीं मे एक अत्यंत महत्वपूर्ण साहित्य की रचना की गई है जो 'मैथिली 'भोजपुरी साहित्य कहा जाता है! वैसे तो भोजपुरी बोली बोलने की कोई संख्या नही है फिर भी यह देवरिया ,गाजीपुर,सहारनपुर,कानपुर,बनारस,वाराणसी,गोरखपुर,रांची तक बोलीं जाती है! भोजपुरी भाषा मे कई विशाल नाटक,फिल्मे इत्यादि बन चुके है ! फिल्मो की मूल भाषा भोजपुरी ही होती है कलाकार भी भोजपुरी मे ही डायलाग देते है एवं फिल्म के गीत संगीत भी भोजपुरी मे ही होते हैं! भोजपुरी का साहित्य बहुत समृद्ध एवं विशाल है + +15634. + +15635. 1. खड़ीबोली मे 'ल' शब्द का प्रयोग अधिक किया जाता है जिसका मानक आभाव है जैसे-"बाल,जंगल + +15636. पाश्चात्य काव्यशास्त्र/मार्क्सवादी समीक्षा: + +15637. पदार्थ -परस्पर संबंधित एवं निर्भर + +15638. मुख्य लेख: आधार और अधिरचना + +15639. मुख्य लेख: वर्ग संघर्ष + +15640. यह पृष्ठ 'गढ़वाली लोकगीत' (गोविंद चातक द्वारा) के संदर्भ में लिखा गया है। + +15641. कहते है कि प्राचीनकाल में एक भाई अपनी बहन से मिलने उसके ससुराल गया था। जब वह बहन के घर पँहुचा तब बहन गहन निंद्रा में थी। उसकी + +15642. ले टक लगान्दी घुगुती ..के रेंदी बिगांदी घुगुती .. + +15643. तू कब बसदी घुगुती..तू कन बसानी घुगुती ... + +15644. प्रस्तुत गीत यश और जय की कामना को प्रकट करता है। + +15645. अर्थ: + +15646. इनका राज रखना देवता, + +15647. लामण प्रेम गीत है। वैसे बाजूबन्द, छोपती, आदि गीतों का विषय प्रेम ही है। किंतु बाजूबन्द और छोपती में सम्वाद होते है। लामण विशेष अवसरो पर नृत्य के साथ गाया जाता है। लामण का विषय यद्यपि छोपती और बाजूबन्द की भाति प्रेम ही है किंतु उसकी शैली, छंद और लय सर्वथा अपनी है जिसके कारण लोक बुद्धि ने उसका एक पृथक आस्तित्व माना है। + +15648. हिन्दी कविता (मध्यकाल और आधुनिक काल) सहायिका/कबीर और तुलसी के दोहों की विशेषताएं: + +15649. 2) पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, + +15650. व्याख्या : इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है। जो सार्थक को बचा लेंगे और निरर्थक को उड़ा देंगे। + +15651. माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय। + +15652. व्याख्या:‘‘दूसरों की निंदा कर स्वयं प्रतिष्ठा पाने का विचार ही मूर्खतापूर्ण है। दूसरे को बदनाम कर अपनी तारीफ गाने वालों के मुंह पर ऐसी कालिख लगेगी जिसे  कितना भी धोई जाये मिट नहीं सकती।’’ + +15653. रघुबर भुजबल देख उछाह बरातिन्ह। + +15654. व्याख्या: यह दोहा सुनते ही उन्होंने उसी समय पत्नी को वहीं उसके पिता के घर छोड़ दिया और वापस अपने गाँव राजापुर लौट गये। राजापुर में अपने घर जाकर जब उन्हें यह पता चला कि उनकी अनुपस्थिति में उनके पिता भी नहीं रहे और पूरा घर नष्ट हो चुका है तो उन्हें और भी अधिक कष्ट हुआ। उन्होंने विधि-विधान पूर्वक अपने पिता जी का श्राद्ध किया और गाँव में ही रहकर लोगों को भगवान राम की कथा सुनाने लगे। + +15655. व्याख्या: पार्वती-मंगल -यह तुलसी की प्रामाणिक रचना प्रतीत होती है। इसकी काव्यात्मक प्रौढ़ता तुलसी सिद्धांत के अनुकूल है। कविता सरल, सुबोध रोचक और सरस है। ""जगत मातु पितु संभु भवानी"" की श्रृंगारिक चेष्टाओं का तनिक भी पुट नहीं है। लोक रीति इतनी यथास्थिति से चित्रित हुई है कि यह संस्कृत के शिव काव्य से कम प्रभावित है और तुलसी की मति की भक्त्यात्मक भूमिका पर विरचित कथा काव्य है। व्यवहारों की सुष्ठुता, प्रेम की अनन्यता और वैवाहिक कार्यक्रम की सरसता को बड़ी सावधानी से कवि ने अंकित किया है। तुलसीदास अपनी इस रचना से अत्यन्त संतुष्ट थे, इसीलिए इस अनासक्त भक्त ने केवल एक बार अपनी मति की सराहना की है + +15656. जनपदीय साहित्य सहायिका/कठपुतली/: + +15657. जैसलमेर के बाज़ार में कठपुतलियाँ + +15658. राजस्थान, ओडिशा, कर्नाटक और तमिलनाडु में धागा पुतली कला पल्लवित हुई। + +15659. छाया पुतली की यह परंपरा ओडिशा, केरल, आंध्र, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में प्रचलित है। + +15660. बंगाल का पुत्तल नाच, बिहार का यमपुरी आदि छड़ पुतली के उदाहरण हैं। + +15661. इसके संचालन हेतु पहली उँगली मस्तक पर रखी जाती है तथा मध्यमा और अंगूठा पुतली की दोनों भुजाओं में; इस प्रकार अंगूठे और दो उँगलियों की सहायता से दस्ताना पुतली सजीव हो उठती है। + +15662. केरल के ये पुतली-नाटक रामायण तथा महाभारत की कथाओं पर आधारित हैं। + +15663. 2. असम + +15664. गोम्बा अट्टा (धागा कठपुतली) और तोगालु (छाया कठपुतली) + +15665. कंडी नाच (दस्‍ताना कठपुतली), रबाना छाया (छाया कठपुतली), काठी कुण्डी (छड़ कठपुतली), और गोपलीला कमधेरी (धागा कठपुतली) + +15666. 11. पश्चिम बंगाल + +15667. + +15668. बिहार का परिचय/मौर्य साम्राज्य: + +15669. 150 ईसवी के रुद्रदामन के जूनागढ़ शिलालेख में आना और सौराष्ट्र गुजरात प्रदेश में चंद्रगुप्त मौर्य के प्रांतीय राज्यपाल उस ग्रुप द्वारा सिंचाई के बांध के निर्माण का उल्लेख मिलता है जिससे यह सिद्ध होता है कि पश्चिम भारत का यह भाग मौर्य साम्राज्य में शामिल था चंद्रगुप्त मौर्य साम्राज्य के पूर्वी भाग के शासक से लेकर की आक्रमण कारी सेना को 305 पूर्व परास्त किया था। + +15670. पीली अनुसूचियां दीपवंश तथा महावंश के अनुसार अशोक के राज्य काल में पाटलिपुत्र में बौद्ध धर्म की तृतीय संगति हुई इसकी अध्यक्षता मुंगावली पुत्र नामक प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु ने की थी दीपावली एवं महा वंश के अनुसार अशोक को उसके शासन के चौथे व विरोध नामक भी छूने बौद्ध मत में दीक्षित किया तत्पश्चात मोगली पुत्र के प्रभाव में वह पूर्णरूपेण बंद हो गया दिव्या विधान के अनुसार अशोक को उपयुक्त नामक बौद्ध भिक्षु ने बौद्ध धर्म में दीक्षित किया। + +15671. अशोक का इतिहास लिखने का प्रशंसनीय प्रयास किया है प्राप्त अशोक ब्राह्मी लिपि का पता श्रीलंका स्थित अनुराधा पुर से चला कुछ और स्थानों के अभिलेखों से इस प्रकार की लिपि का साथ मिला है इसके नाम इस प्रकार हैं पुत्र हवा गौरा और वह स्थान प्राचीन भारत के खरोष्ठी लिपि दाएं से बाएं लिखी जाती थी इसे पढ़ने का श्रेय मैं सन प्रिंसेप टूरिस्ट प्लेस इन कनिंघम आदि विद्वानों को है यह मुख्यतः उत्तर पश्चिम भारत की लिपि जी अशोक का नाम उल्लेख करने वाला लघु शिलालेख मध्य प्रदेश के दतिया जिले में स्थित है मस्ती में चूर एवं उड़ेगोलम के लेखों में भी अशोक का व्यक्तिगत नाम मिलता है। + +15672. मग मग माफिया मेगा रसायन का शासक अलिफ सुंदर या एल्लूरी सेंट्रो सिलेंडर पायरिया एमपी रस का राजा गोरखपुर जिले से प्राप्त सोहगौरा ताम्रपत्र अभिलेख और मोगरा जिले बांग्लादेश से प्राप्त महास्थान अभिलेख की रचना अशोक काले प्राकृत भाषा में हूं और उन्हें ईसा पूर्व तीसरी सदी की ब्राह्मी लिपि में लिखा गया यह अभिलेख अकाल के समय किए जाने वाले राहत कार्य के संबंध में है इसकी पुष्टि जैन स्रोतों से होती है मौर्य काल में न्यायालय मुख्यतः दो प्रकार के थे धर्म स्थानीय तथा कंटक शोधन धर्म स्थानीय दीवानी तथा कंडक्शन फौजदारी न्यायालय को अर्थशास्त्र में पुरुष कहा गया है अर्थशास्त्र में दो प्रकार के गुर्जरों का उल्लेख मिलता है संस्था अर्थात एक ही स्थान पर रहने वाले तथा संतरा अर्थात प्रत्येक स्थान पर भ्रमण करने वाले मेगास्थनीज की इंडिका में पाटलिपुत्र के नगर प्रशासन का वर्णन मिलता है इसके अनुसार पाटलिपुत्र का प्रशासन की विभिन्न समितियों द्वारा होता था इसकी कुल 6 समितियां होती थी। + +15673. उपर्युक्त पदाधिकारियों के अतिरिक्त अन्य पदाधिकारी हैं पढ़ने अध्यक्ष वाणिज्य का अध्यक्ष अध्यक्ष अध्यक्ष बूचड़खाने का अध्यक्ष गणिका अध्यक्ष वेश्याओं का निरीक्षक सीता अध्यक्ष राज्य कृषि विभाग का अध्यक्ष अध्यक्ष खानों का अध्यक्ष मध्य छापेखाने का अध्यक्ष लोहा अध्यक्ष भादू विभाग का अध्यक्ष नवादा जहाजरानी विभाग का अध्यक्ष तथा अध्यक्ष बंदरगाहों का अध्यक्ष गांव के शासन को स्वायत्तशासी पंचायतों के माध्यम से संचालित करने की व्यवस्था का सूत्रपात मौर्य ने किया इस काल में ग्रामसभा गांव से संबंधित किसी भी मुद्दे पर निर्णय लेने के लिए थे अर्थशास्त्र में पति द्वारा परित्यक्त पत्नी के विवाह विच्छेद की अनुमति दी गई है। + +15674. शुंग वंश का अंतिम राजा देव होती अत्यंत विनती था वह आपने अमित वासुदेव केंद्रों द्वारा मार डाला गया भाई पुराण के अनुसार अंतिम शासक सुषमा अपने आंध्र जातीय रितिक सिंधु द्वारा मार डाला गया था इस पूर्व की कुछ शताब्दियों में चंद्रगुप्त मौर्य एवं अशोक ने गिरनार क्षेत्र में जल संसाधन व्यवस्था की ओर ध्यान दिया उस क्षेत्र में चंद्रगुप्त मौर्य ने सुदर्शन झील + +15675. + +15676. लोकगीत लोक के गीत है। जिन्हें कोई एक व्यक्ति नहीं बल्कि पूरा लोक समाज अपनाता हैं। लोक में प्रचलित लोक द्वारा रचित एवं लोक के लिए मौखिक लिखित गाए गीतों को लोकगीत कहा जा सकता हैं। लोकगीतों के रचनाकार अपने व्यक्तित्व को लोक समर्पित कर देता हैं। + +15677. क) जन्म संस्कार :- जन्म संस्कार मानव जीवन का प्रारंभिक संस्कार है। जब से बच्चा गर्भ में आता है उससे कुछ ही महीनों पश्चात से ही कोई न कोई अनुष्ठान प्रांरभ हो जाता हैं। गर्भाधान के नौ महीने तक की संपूर्ण अवधि जन्म संस्कार के अंतर्गत आते हैं। + +15678. छ) मृत्यु संस्कार :- इससे हमारा मतलब यहां केवल उसी गीत से हैं जो वृध्द की मृत्यु के बाद स्त्रीयों द्वारा गाये जाते हैं ये शोकगान हैं। + +15679. इस प्रकार की भावना अन्य गीतों में भी मिलती हैं :- + +15680. सपने मैं जौ का आते हरी हरी दूब लहरे लेय रे सासू सपने का अरथ बताओं सपने में हरी हरी दूब जौ का खेत लहरे ले रहया बहू होगें तुम्हारे नन्दलाल जौ का हरा हरा खेत जो देखिये सासू किस विधि होगें नन्दलाल इसकू बी हमें बताइयें कोठे में सिर बहू, चुल्ह ही में टांग आँखों में पट्टी बांधियें। + +15681. 5) मेंहदी, रोली, चूड़ी, आस- आटे की लम्बी मठड़ी, सिन्दूर आदि शुभ अवसर पर गाया जाता है :- + +15682. रोल नंबर :- 18/102 + +15683. + +15684. राम जिन्होंने सीता के साथ सात फेरे लिए। + +15685. जनपदीय साहित्य/बारहमासा, होली, चैती, कजरी: + +15686. वर्ष भर के बारह मास में नायक-नायिका की शृंगारिक विरह एवं मिलन की क्रियाओं के चित्रण को बारहमासा नाम से सम्बोधित किया जाता है। श्रावण मास में हरे-भरे वातावरण में नायक-नायिका के काम-भावों को वर्षा के भींगते हुए रुपों में, ग्रीष्म के वैशाख एवं जयेष्ठ मास की गर्मी में पंखों से नायिका को हवा करते हुए नायक-नायिकाओं के स्वरुप आदि उल्लेखनीय है। + +15687. काँपै हिया जनावै सीऊ। तो पै जाइ होइ सँग पीऊ॥ + +15688. पिउ सों कहेहु संदेसडा हे भौरा! हे काग! + +15689. कजरी:- + +15690. + +15691. बिहार का परिचय/महाजनपदों का उदय: + +15692. गुप्त शासकों ने परमभट्टारक और महाराजाधिराज जैसे गर्वित उपाधियों को अपनाया। + +15693. बिहार का परिचय/मध्यकालिन भारत और बिहार: + +15694. + +15695. श्रम गीत की परिभाषा :- + +15696. ना इस घर में चक्की री ना चूल्हा ना चक्की में चूण बैहण मेरी बुरा है ससुर का देस + +15697. इसी प्रकार अन्य गीत :- + +15698. कोल्हू चलाने का काम प्रायः रात भर होता हैं। कोल्हूओं पर चारों ओर जागरण रखने के लिए कोल्हू गीत गाने का प्रचलन है जिनको पल्हावे या मल्हौर कहते है। इस काम में थकान का अनुभव नहीं होने देते हैं और जीवन में सरसता बनाए रखते हैं। + +15699. धर्म - + +15700. लकड़ी इकली ना जलै, नाय उजाला होय लक्षमन सा बीरा मारकै, राम अकेला होय । + +15701. पल्हावे - + +15702. ¶ कुएं चलाने की क्रिया में दो व्यक्ति साथ काम करते हैं। कुएं के गीतों का विषय प्रायः भक्ति, मनोरंजन एंव विनोद होता हैं पर कभी-कभी इनमें व्यंग्य और उपांलभ भी स्थान पाते हैं। + +15703. ¶ कष्ट निवारण के लिए यह लोग ये गीत गाते है - + +15704. 4) जोड़ कै चला जा और जोड़ी को दियौ न ढाल। + +15705. 2) book of Janpadiya sahitya + +15706. college - pgdav eve college + +15707. • फागु + +15708. 2- बारहमासों का दूसरा प्रकार वह है, जिसमें वियोगिनी अत्यंत कृशकाय हो गयी है और अपनी सखी से अपने मन की दशा का वर्णन करती है। + +15709. Name:- Vishu Mani Tripathi Roll no:- 269 बारहमासा:- बारहमासा (पंजाबी में बारहमाहा) मूलतः विरह प्रधान लोकसंगीत है। वह पद्य या गीत जिसमें बारह महीनों की प्राकृतिक विशेषताओं का वर्णन किसी विरही या विरहनी के मुँह से कराया गया हो। मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित पद्मावत में वर्णित बारहमासा हिन्दी का सम्भवतः प्रथम बारहमासा है। + +15710. प्राचीन काल से ही उत्तर प्रदेश का मिर्जापुर जनपद माँ विंध्यवासिनी के शक्तिपीठ के रूप में आस्था का केन्द्र रहा है। अधिसंख्य प्राचीन कजरियों में शक्तिस्वरूपा देवी का ही गुणगान मिलता है। आज कजरी के वर्ण्य-विषय काफ़ी विस्तृत हैं, परन्तु कजरी गायन का प्रारम्भ देवी गीत से ही होता है। कुछ लोगों का मानना है कि कान्तित के राजा की लड़की का नाम कजरी था। वो अपने पति से बेहद प्यार करती थी। जिसे उस समय उससे अलग कर दिया गया था। उनकी याद में जो वो प्यार के गीत गाती थी। उसे मिर्जापुर के लोग कजरी के नाम से याद करते हैं। वे उन्हीं की याद में कजरी महोत्सव मनाते हैं। हिन्दू धर्मग्रंथों में श्रावण मास का विशेष महत्त्व है। + +15711. इसके अतिरिक्त मध्य प्रदेश की बुंदेली और छत्तीसगढ़ी की अवधि विभाग को उप गोलिया कहीं कहीं गई है। इसके इस प्रकार पूर्व में मिर्जापुर से लेकर पश्चिमी में सीतापुर और लखमीपुर की तक उत्तर में नेपाल की तराई से दक्षिण में बांधा था का अधिकार क्षेत्र है। विद्वानों ने अभी की 5 बोलियां कहीं है। जो पूर्वी पश्चिमी पैसों वाली गांजे और भांग खाई जाती है। कटी पर विद्वानों ने मध्य प्रति अवधि की कल्पना की है। पर भूल अवधि के दो ही भेज दिए जा सकते हैं। एक पूर्वी और दूसरा पश्चिमी। + +15712. रोचक और कुशलता लब्धि की महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं। जोश और उत्साह का संचार करते हुए तथा को आगे बढ़ाते हैं। अवध क्षेत्र में सर्वेक्षण द्वारा लोक कथा शैली में गण मन मुझे लगभग 270 लोग गधे प्राप्त हुई है इनमें प्रकाशित लोक कथाओं का विवरण इस प्रकार है। + +15713. एक भाई की दुलारी बहन थी विवाह हुआ पहला करवा चौथ का पर्व पड़ा। आज बहन उपवास रखी थी। मां ने कहा बिटिया निर्जला व्रत रखना तुम्हारा पहला करवाया रात जूनियर गने पर ही पूजा कर खाना पीना सारा दिन दुलारी बहन निर्जला व्रत रखी घर आने पर भाई दुखी हो जाए आज हमारी बहन की ने कुछ खाया पिया नहीं दिन व्यतीत हुआ गोधूलि की बेला आई भाई घर आया कहने लगा बहन जल्दी पूजा की तैयारी करो चंद्रमा उदय होने वाला है। मैंने सब तैयारी कर ली है। पन से करवा करवाई रंगा नए चावल कुटिया पिन्नी से करवा बाराबाती चौमुखी संजोया आंगन में चौक डाला सोलह सिंगार की एंकर वाले आंगन में रात्रि का प्रथम पर लगा था। कि भाई द्वारा पीपल के वृक्ष पर पीढ़ी लगा दिया और चीनी लेकर चडगया चलने लगा कर दिया दिखाने लगा और बुखार लगाई बैंजो धनिया पूजा करो बहन ने सोच-समझकर पूजा का आरंभ की चंद्रमा को अर्ध्य दिया और सुन लिया जैसे ही मौजूदा करने के लिए अपना कुछ से पानी लेकर चका एक हो गई मां का मंचन का में पड़ गया क्या बात है। आज हमारी बिटिया ने पहला करवा पूजा ठीक हो गई यह गणेश जी करवा माता सब भला करना। + +15714. मीरा के मनभावन माधव, रूक्मा राज किए संग कान्हा, + +15715. जिनकी सजनी रूठ गई है, होली उन बिछुड़ों की संगी। + +15716. कष्ट मिटाएं मानवता का, आओ गीत फाग के गाएं + +15717. होली रंग रंगा बरसाना, पग-पग राधा पग-पग कान्हा। + +15718. गली-गली कान्हा मिल जाते + +15719. अनेकता में एकता, हिंद की विशेषता, + +15720. जिसने की है जग की रचना, सारे रंग भरे यहीं पर, + +15721. कठपुतली नृत्य को लोकनाट्य की ही एक शैली माना गया है। कठपुतली अत्यंत प्राचीन नाटकीय खेल है जिसमें लकड़ी, धागे, प्लास्टिक या प्लास्टर ऑफ पेरिस की गुड़ियों द्वारा जीवन के प्रसंगों की अभिव्यक्ति तथा मंचन किया जाता है। + +15722. पुतली कला कई कलाओं का मिश्रण है, यथा-लेखन, नाट्य कला, चित्रकला, वेशभूषा, मूर्तिकला, काष्ठकला, वस्त्र-निर्माण कला, रूप-सज्जा, संगीत, नृत्य आदि। + +15723. धागा पुतली + +15724. छाया पुतलियाँ चपटी होती हैं और चमड़े से बनाई जाती हैं। + +15725. छड़ पुतली वैसे तो दस्ताना पुतली का ही अगला चरण है, लेकिन यह उससे काफी बड़ी होती है तथा नीचे स्थित छड़ों (डंडे) पर आधारित रहती है और उन्हीं से संचालित होती है। + +15726. दस्ताना पुतली + +15727. केरल में पारंपरिक पुतली नाटकों को पावाकूथू कहा जाता है। + +15728. जनपदीय साहित्य सहायिका/कजरी: + +15729. कजरी के चार अखाड़े प.शिवदास मालिविय अखाड़ा, जहाँगीर अखाड़ा, बैरागी अखाड़ा व अक्खड़ अखाड़ा हैं। यह मुख्यतः बनारस, बलिया, चंदौली और जौनपुर जिले के क्षेत्रों में गाया जाता है। + +15730. जिनमे लिखित भाषा नही है। सक्सर समजो मे इनका उपयोग विशेष रूप से परम्परा और लोककहाथाओ की सैलियाओ के पृसारण मै किया जाता है। किसी भी मामले मे यह पुरे पीढ़ियों मे मंहु के दवारा प्रेषित होता है. + +15731. १ उत्पत्ति और इतिहास + +15732. . निष्पादन के दोरान परिवर्तन + +15733. साहित्य का समाज पर परभाव + +15734. + +15735. एक सोहर + +15736. नाहीं मोर चरहा झुरान ना पानी बिनु मुरझींले हो + +15737. रानी ! हिरी-फिरी देखबि खलरिया जनुक हरिना जियतहिं हो + +15738. नीचे छत्तीसगढ़ का एक सधौरी गीत में पति-पत्नी से कह रहा है कि पत्नी दूध, मधु, और पीपर पी ले। पत्नी पीना नहीं चाहती है क्योंकि पीपर कड़वा है। पति पत्नी से कहता है सोने का कटोरे में दूध, मधु और पीपर पी लो- इसके बाद पति कहता है नहीं तो वह दूसरा विवाह कर लेगा - + +15739. कइसे के पियऊँ करुरायवर + +15740. त कर लेहूं दूसर बिहाव + +15741. कंचन कटोरा उठावब + +15742. गढ़वाली गीत + +15743. मंगल + +15744. छुरा + +15745. चौनफूला एवं झुमेला मौसमी रूप है जिन्हे बसंन्त पंचमी से संक्रान्ती या बैसाखी के मध्य निष्पादित किया जाता है। झुमेला को सामान्यतः महिलाओं द्वारा निष्पादित किया जाता है। परन्तु कभी-2 यह मिश्रित रूप में भी निष्पादित किया जाता है। चौनफूला नृत्य को स्त्री एवं पुरुषों द्वारा रात्रि में समाज के सभी वर्गों द्वारा समूहों में किया जाता है। चौनफूला लोक गीतों का सृजन विभिन्न अवसरों पर प्रकृति के गुणगान के लिए किया जाता है। चौनफूला, झुमेला एवं दारयोला लोकगीतों का नामकरण समान नाम वाले लोकनृत्यों के नाम पर हुआ है। + +15746. पूजा लोक गीतः- + +15747. ये लोकगीत चरवाहों के मध्य प्रेम एवं बलिदान के प्रतीक हैं। ये गीत पुरुष एवं स्त्री या बालक एवं बालिका के मध्य प्रेम को प्रदर्शित करने के रूप में गाये जाते हैं। + +15748. गढ़वाली गीत + +15749. धरती  हमरा  गढ़वाल  की ...धरती  हमरा  गढ़वाल  की ... + +15750. कथगा रोतेली स्वाणी  चा  , + +15751. भाग  हमरा  धन  धन् + +15752. ताल   सहस्त्र   घाटी , + +15753. कथगा रोतेली स्वाणी  चा   + +15754. लैंजा  लग्यान + +15755. देव्तों   की  धरती  मा , मनखी  बस्यान + +15756. भेद  देव -देवता   मनखी  को + +15757. बंदा  कीसान   छीन + +15758. नरसिंह  ,नागराजा   , पंडों  का  देखा  रण + +15759. कथगा रोतेली स्वाणी  चा  .हो हो   + +15760. बुलूमै त्वे तु ऐ जा ,  ऊ धूप को आँचल , + +15761. फुलिग्यांन औ फूल ,  औ ऐ गै छ बहार , + +15762. सुनी छ त्यरू बिना ,  यो होली दिवाली , + +15763. तैं डाली मा घुघुती होली कफुआ हिलांश हो , तों सारयों मा फ्योंली फुली बणु मा बुराँश हो। + +15764. ह्युं जमयू चा सिलड़ा पाखों छानियों मा लंपु बालिगे + +15765. खैरी विपदा युं डाँड़यों की अपणौं तै बिराणु कैगे + +15766. है नगेला घंडियाल तुमारी भूमि महान। + +15767. अरे घपरोल मचैलू तभ औली यन रस्याण.. हां... अरे हाँ... + +15768. तेरा हाथ नी औण्या , ना औ तू पिछाडी।। + +15769. घुंड्या रांशू लगैक  , डोल, दमाऊ तचैक , + +15770. आवा म्यारा पहाड , कनी तांदी लगीं छ।। + +15771. अब लगलू मंडाण अब लगलू मंडाण , आज लगलू मंडाण  राती लगलू मंडाण । + +15772. भग्यानी कन होली भाग्यवान कैसी होगी) + +15773. (अरे जो अंगुलियों में मुलाक़ात के दिन गिनती है) + +15774. शर्म्यली, नखर्याली, सुभौ की होली प्यारी मेरी भग्यानी हाँ + +15775. जनपदीय साहित्य सहायिका/रोपनी गीत: + +15776. सेवा भाया करे लाम मौर , सेवा भाया बेटी डागले.मा और धाव रे भाया तार देवकैम , सेवा सेवा कर लागभीर । गौर समाजेर ढोर चरव इमलेम खामु - बावु करे लाग गौर + +15777. ROLL NO- 233 + +15778. 3-. आपक दीई जावा अबसरमेन + +15779. सैर पसी लाबुच , फैरन बाबुच् । + +15780. ROLL NO -233 + +15781. काच्चे ही बांस के बहंगिया , + +15782. बहंगी लचकत जाए, + +15783. वह रे जे बाड़ी छठी मैया , + +15784. बहंगी घाटे पहुंचाई , + +15785. तू तो आन्हर होय रे बटोहिया + +15786. केलवा के पात पर उगे लन सुरुजमल झांके – झुके। + +15787. हमरो जे बेटवा तोहन अइसन बेटावा से उनके लागी। + +15788. यह दिल्ली विश्वविद्यालय के लिए बी.ए. प्रोग्राम प्रथम वर्ष 'आधुनिक भारतीय भाषा संप्रेषण'(एम.आई.एल. कम्युनिकेशन) के संशोधित पाठ्यक्रमानुसार बनाई गई सामग्री है। + +15789. लिंग के प्रादुर्भाव के संबंध में शिवमहापुराण की विदेश्श्ववर-संहिता के आरंभिक अध्ययायों में एक बड़ी विचित्र कथा पाई जाती है जिसके अनुसार एक बार ब्रह्मा और विष्णु के मध्य श्रेष्ठता के प्रश्नों को लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ धीरे-धीरे विवाद ने जब युद्ध का रूप ले लिया तब समस्त देवताओं और ऋषि यों ने मनसे। + +15790. कई बार ऐसा देखा गया ही कि अंग्रेजी में प्राप्त पत्रों को हिन्दी में अनूदित करवाने की आवश्यकता पड़ जाती है । अनुवाद करते समय अधिकांशतः लोग शब्दानुवाद का प्रयास करते हैं । शब्दानुवाद कुछ हद तक तो ठीक है पर जब हम यह अनुवाद आसानी से भाषा के कथ्य को समझने के लिए करते हैं तो कहीं कहीं शब्दानुवाद के कारण उस विषय का मूल अर्थ भारी और उबाऊ होने के साथ समझ से परे हो जाता है । ऐसे में यह सलाह दी जाती है कि भावानुवाद किया जाए तथा दिये गए अंग्रेजी पाठ के मूल कथ्य को प्रदर्शित किया जाए ताकि उसे समझने में आसानी हो तथा उसके अनुरूप पत्राचार किया जा सके । सरकारी कामकाज में पहले देखा गया है कि अंग्रेजी के कुछ ऐसे वाक्य होते हैं जिनका हिन्दी अनुवाद बड़ा ही कठिन लगता है या हिन्दी में उन शब्दों या वाक्यों का प्रयोग करना बड़ा ही अटपटा लगता है जैसे I am directed to say /I am directed to forward… ऐसा माना जाता है कि पत्र जारी करने वाला अधिकारी अपने से कुछ नहीं कर रहा है । वह सरकार के अनुदेश पर समस्त कार्य करता है इसी लिए हमेशा पत्राचार में यह वाक्य प्रयोग किया जाता है । इनका हिन्दी में अनुवाद मुझे यह कहने का निदेश हुआ है/मुझे... अग्रेषित करने का निदेश हुआ है । अंग्रेजी के पत्र में सम्बोधन के लिए Dear Sir का प्रयोग होता है पर हिन्दी में महोदय लिखा जाता है । अंग्रेजी पत्राचार में Yours faithfully, लिखा जाता है पर इसके हिन्दी रूपमें आपका विश्वासी लिखना कतई उपयुक्त नहीं होगा । इसके स्थान पर हम भवदीय लिखते हैं । + +15791. यह एक सरल प्राणायाम है।अनुलोम का अर्थ है 'सीधा'और विलोम का अर्थ है'उल्टा'।श्वास लेने के लिए दो नासिका द्वार हैं--दायाँ और बाँया।दाँयी नासिका को सूर्य नाङी और बाँयी नासिका को चंद्र नाङी कहा गया है।इस प्राणायाम से हम इन दोनो नाङियों को प्रभावित करते है। + +15792. कपालभाति प्राणायाम के बाद अनुलोम विलोम अवश्य करें। + +15793. अशोक का इतिहास उसके अभिलेखों पर आधारित है; जीवन,आंतरिक और परराष्ट्रीय नीति तथा राज्य के विस्तार की जानकारी मिलती हैं। + +15794. कौशाम्बी तथा प्रयाग के स्तम्भ लेख में अशोक की रानी कारुवाकी के दान का उल्लेख है। इसलिए इसे रानी का लेख ही कहते है (कारुवाकी तीवर की माँ थी)। अभिलेखों में केवल इसी रानी का उल्लेख है। + +15795. 1. दीर्घ शिलालेख + +15796. अन्य सभी अभिलेखो पर केवल “ देवानांपीय पियदसि ” (देवों का प्यारा) उसकी उपाधि के रूप में मिलता है और अशोक नाम छोड़ दिया गया है + +15797. मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और 'भाषा' समाज के सदस्यों के बीच संपर्क एवं संवाद का माध्यम बनती है। बिना संपर्क और संवाद के कोई भी समाज जीवंत नहीं माना जा सकता अर्थात् बिना भाषा के किसी भी समाज का अस्तित्व संभव ही नहीं है। जिस प्रकार मनुष्य को खाने के लिए अन्न, पीने के लिए पानी, पहनने के लिए कपड़े की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार आपस में सम्पर्क और संबंध बनाए रखने के लिए भाषा की आवश्यकता होती है। भाषा से ही मनुष्य अपना जीवन सुगम बनाता है। + +15798. 3. व्यावसायिक हिन्दी + +15799. वैसे तो कार्यालयी हिन्दी अपने आप में एक व्यापक अर्थ की अभिव्यक्ति रखता है। चूँकि साहित्यिक क्षेत्र हो अथवा व्यावसायिक, पत्रकारिता का क्षेत्र हो ज विज्ञान और तकनीकी का क्षेत्... सभी क्षेत्रों से सम्बद्ध कार्यालयों में काम करने वाले व्यक्ति एक तरह से कार्यालयी हिन्दी का ही प्रयोग करते हैं। इसलिए कार्यालयी हिन्दी अपने-आप में व्यापक अर्थ की अभिव्यंजना रखती है। + +15800. इनु दोनों परिभाषाओं में देखा जाए तो एक. परिभाषा कार्यालय के कार्यक्षेत्र को अत्यन्त विस्तृत दिखाता है वहीं दूसरी परिभाषा में बह केवल सरकारी कार्यालयों में प्रयोग में ली जाने वाली भाषा ही है। समाज के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यालयों की उपस्थित के कारण कार्यालय को किसी भी परिभाषा के वृत्त में समेटना बहुत कठिन कार्य है किन्तु प्रचलन की दृष्टि से कार्यालयी हिन्दी को सरकारी कार्यालयों में प्रयोग में ली जाने वाली भाषा के रूप में ही जाना है । इन सरकारी कार्यालयों में केन्द्र अथवा राज्य सरकारों के अपने अथवा उनके अधीनस्थ आने वाले विभिन्न मंत्रालय तथा उनके अधीन आने वाले संस्थान, विभाग अथवा उपविभाग एवं सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों आदि को शामिल किया जाता है। सरकार का कोई भी कार्यालय, चाहे वह उसकी अधीनस्थ हो अथवा सम्बद्ध हो, वह सरकारी कार्यालय ही कहा जाएगा। इसलिए इन कार्यालयों के कामकाज में प्रयोग की जाने वाली हिन्दी को कार्यालयी हिन्दी का जाता है। + +15801. योग और हमारा स्वास्थ्य/वज्रासन: + +15802. लाभ + +15803. यह स्पष्ट है कि जहां किसी भी संस्था के अधिकारियों द्वारा उस संस्था का कार्य सहज रूप से क्रियान्वित किया जाता है वह कार्यालय होता है| + +15804. इन क्षेत्रों में 'क' वर्ग में आने वाले राज्यों में सरकारी कामकाज की भाषा पूर्णतः हिंदी होगी| लेकिन यदि वे किसी अन्य वर्ग के राज्य या संघ शासित प्रदेश से पत्र व्यवहार करते हैं तो उनके अंग्रेजी पत्रों के साथ हिंदी अनुवाद भी अनिवार्य रूप से भेजा जाएगा| केंद्र सरकार के सभी कार्यालय 'ख' क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले कार्यालयो को आंशिक रूप से हिंदी में तथा आवश्यकतानुसार अंग्रेजी में भेजे गए पत्रों के अनुवाद हिंदी में भेजना अनिवार्य होगा| + +15805. कार्यालयी हिंदी/कार्यालयी हिंदी का उद्देश्य: + +15806. + +15807. + +15808. हिन्दी कहानी: + +15809. बड़े-बड़े शहरों के इक्के-गाड़ीवालों की जबान के कोड़ों से जिनकी पीठ छिल गई है, और कान पक गए हैं, उनसे हमारी प्रार्थना है कि अमृतसर के बंबूकार्टवालों की बोली का मरहम लगावें। जब बड़े-बड़े शहरों की चौड़ी सड़कों पर घोड़े की पीठ चाबुक से धुनते हुए, इक्केवाले कभी घोड़े की नानी से अपना निकट-संबंध स्थिर करते हैं, कभी राह चलते पैदलों की आँखों के न होने पर तरस खाते हैं, कभी उनके पैरों की अँगुलियों के पोरों को चींथ कर अपने-ही को सताया हुआ बताते हैं, और संसार-भर की ग्लानि, निराशा और क्षोभ के अवतार बने, नाक की सीध चले जाते हैं, तब अमृतसर में उनकी बिरादरीवाले तंग चक्करदार गलियों में, हर-एक लड्ढी वाले के लिए ठहर कर सब्र का समुद्र उमड़ा कर बचो खालसा जी। हटो भाईजी। ठहरना भाई। आने दो लाला जी। हटो बाछा, कहते हुए सफेद फेंटों, खच्चरों और बत्तकों, गन्नें और खोमचे और भारेवालों के जंगल में से राह खेते हैं। क्या मजाल है कि जी और साहब बिना सुने किसी को हटना पड़े। यह बात नहीं कि उनकी जीभ चलती नहीं; पर मीठी छुरी की तरह महीन मार करती हुई। यदि कोई बुढ़िया बार-बार चितौनी देने पर भी लीक से नहीं हटती, तो उनकी बचनावली के ये नमूने हैं - हट जा जीणे जोगिए; हट जा करमाँवालिए; हट जा पुत्तां प्यारिए; बच जा लंबी वालिए। समष्टि में इनके अर्थ हैं, कि तू जीने योग्य है, तू भाग्योंवाली है, पुत्रों को प्यारी है, लंबी उमर तेरे सामने है, तू क्यों मेरे पहिए के नीचे आना चाहती है? बच जा। + +15810. 'अतरसिंह की बैठक में; वे मेरे मामा होते हैं।' + +15811. 'कल, देखते नहीं, यह रेशम से कढ़ा हुआ सालू।' लड़की भाग गई। लड़के ने घर की राह ली। रास्ते में एक लड़के को मोरी में ढकेल दिया, एक छावड़ीवाले की दिन-भर की कमाई खोई, एक कुत्ते पर पत्थर मारा और एक गोभीवाले के ठेले में दूध उँड़ेल दिया। सामने नहा कर आती हुई किसी वैष्णवी से टकरा कर अंधे की उपाधि पाई। तब कहीं घर पहुँचा। + +15812. 'सूबेदार जी, सच है,' लहनसिंह बोला - 'पर करें क्या? हड्डियों-हड्डियों मेंतो जाड़ा धँस गया है। सूर्य निकलता नहीं, और खाईं में दोनों तरफ से चंबे कीबावलियों के से सोते झर रहे हैं। एक धावा हो जाय, तो गरमी आ जाय।' + +15813. 'लाड़ी होराँ को भी यहाँ बुला लोगे? या वही दूध पिलानेवाली फरंगी मेम - ' + +15814. 'जैसे मैं जानता ही न होऊँ ! रात-भर तुम अपने कंबल उसे उढ़ाते हो और आप सिगड़ीके सहारे गुजर करते हो। उसके पहरे पर आप पहरा दे आते हो। अपने सूखे लकड़ी केतख्तों पर उसे सुलाते हो, आप कीचड़ में पड़े रहते हो। कहीं तुम न माँदे पड़ जाना।जाड़ा क्या है, मौत है, और निमोनिया से मरनेवालों को मुरब्बे नहीं मिला करते।' + +15815. कर लेणा नाड़ेदा सौदा अड़िए - + +15816. दोपहर रात गई है। अँधेरा है। सन्नाटा छाया हुआ है। बोधासिंह खाली बिसकुटोंके तीन टिनों पर अपने दोनों कंबल बिछा कर और लहनासिंह के दो कंबल और एक बरानकोटओढ़ कर सो रहा है। लहनासिंह पहरे पर खड़ा हुआ है। एक आँख खाईं के मुँह पर है औरएक बोधासिंह के दुबले शरीर पर। बोधासिंह कराहा। + +15817. 'और तुम?' + +15818. 'और नहीं झूठ?' यों कह कर नाँहीं करते बोधा को उसने जबरदस्ती जरसी पहना दी औरआप खाकी कोट और जीन का कुरता भर पहन-कर पहरे पर आ खड़ा हुआ। मेम की जरसी की कथाकेवल कथा थी। + +15819. चुपचाप सब तैयार हो गए। बोधा भी कंबल उतार कर चलने लगा। तब लहनासिंह ने उसेरोका। लहनासिंह आगे हुआ तो बोधा के बाप सूबेदार ने उँगली से बोधा की ओर इशाराकिया। लहनासिंह समझ कर चुप हो गया। पीछे दस आदमी कौन रहें, इस पर बड़ी हुज्जतहुई। कोई रहना न चाहता था। समझा-बुझा कर सूबेदार ने मार्च किया। लपटन साहब लहनाकी सिगड़ी के पास मुँह फेर कर खड़े हो गए और जेब से सिगरेट निकाल कर सुलगाने लगे।दस मिनट बाद उन्होंने लहना की ओर हाथ बढा कर कहा - 'लो तुम भी पियो।' + +15820. 'हाँ, हाँ - ' + +15821. 'पीता हूँ साहब, दियासलाई ले आता हूँ' - कह कर लहनासिंह खंदक में घुसा। अबउसे संदेह नहीं रहा था। उसने झटपट निश्चय कर लिया कि क्या करना चाहिए। + +15822. 'क्या?' + +15823. 'हुकुम तो यह है कि यहीं - ' + +15824. इतने में बिजली की तरह दोनों हाथों से उल्टी बंदूक को उठा कर लहनासिंह नेसाहब की कुहनी पर तान कर दे मारा। धमाके के साथ साहब के हाथ से दियासलाई गिरपड़ी। लहनासिंह ने एक कुंदा साहब की गर्दन पर मारा और साहब 'ऑख! मीन गौट्ट' कहतेहुए चित्त हो गए। लहनासिंह ने तीनों गोले बीन कर खंदक के बाहर फेंके और साहब कोघसीट कर सिगड़ी के पास लिटाया। जेबों की तलाशी ली। तीन-चार लिफाफे और एक डायरीनिकाल कर उन्हें अपनी जेब के हवाले किया। + +15825. बोधा चिल्लया - 'क्या है?' + +15826. इस लड़ाई की आवाज तीन मील दाहिनी ओर की खाईंवालों ने सुन ली थी। उन्होंनेपीछे टेलीफोन कर दिया था। वहाँ से झटपट दो डाक्टर और दो बीमार ढोने की गाड़ियाँचलीं, जो कोई डेढ़ घंटे के अंदर-अंदर आ पहुँची। फील्ड अस्पताल नजदीक था। सुबहहोते-होते वहाँ पहुँच जाएँगे, इसलिए मामूली पट्टी बाँध कर एक गाड़ी में घायललिटाए गए और दूसरी में लाशें रक्खी गईं। सूबेदार ने लहनासिंह की जाँघ में पट्टीबँधवानी चाही। पर उसने यह कह कर टाल दिया कि थोड़ा घाव है सबेरे देखा जाएगा।बोधासिंह ज्वर में बर्रा रहा था। वह गाड़ी में लिटाया गया। लहना को छोड़ करसूबेदार जाते नहीं थे। यह देख लहना ने कहा - 'तुम्हें बोधा की कसम है, औरसूबेदारनीजी की सौगंध है जो इस गाड़ी में न चले जाओ।' + +15827. गाड़ियाँ चल पड़ी थीं। सूबेदार ने चढ़ते-चढ़ते लहना का हाथ पकड़ कर कहा - 'तैनेमेरे और बोधा के प्राण बचाए हैं। लिखना कैसा? साथ ही घर चलेंगे। अपनी सूबेदारनीको तू ही कह देना। उसने क्या कहा था?' + +15828. 'वजीरासिंह, पानी पिला दे।' + +15829. 'तेरी कुड़माई हो गई - धत् - कल हो गई - देखते नहीं, रेशमी बूटोंवाला सालू -अमृतसर में - + +15830. 'वजीरासिंह, पानी पिला' -'उसने कहा था।' + +15831. कुछ दिन पीछे लोगों ने अखबारों में पढा - + +15832. हिन्दी कहानी/सद्गति: + +15833. दुखी –‘ तू तो कभी-कभी ऐसी बात कह देती है कि देह जल जाती है। ठकुरानेवाले मुझे खटिया देंगे ! आग तक तो घर से निकलती नहीं, खटिया देंगे ! कैथाने में जाकर एक लोटा पानी माँगूँ तो न मिले। भला खटिया कौन देगा ! हमारे उपले, सेंठे, भूसा, लकड़ी थोड़े ही हैं कि जो चाहे उठा ले जायँ। ले अपनी खटोली धोकर रख दे। गरमी के तो दिन हैं। उनके आते-आते सूख जायगी।‘ + +15834. तक टूटा हाथ लिये फिरता है। पत्तल में सीधा भी देना, हाँ। मुदा तू छूना मत।‘ + +15835. गोल-गोल मुद्रिकाएं बनाते। फिर ठाकुरजी की मूर्ति निकालकर उसे नहलाते, चन्दन लगाते, फूल चढ़ाते, आरती करते, घंटी बजाते। दस बजते-बजते वह पूजन से उठते और भंग छानकर बाहर आते। तब तक दो-चार जजमान द्वार पर आ जाते ! ईशोपासन का तत्काल फल मिल जाता। वही उनकी खेती थी। आज वह पूजन-गृह से निकले, तो देखा दुखी चमार घास का एक गट्ठा लिये बैठा है। दुखी उन्हें देखते ही उठ खड़ा हुआ और उन्हें साष्टांग दंडवत् करके हाथ बाँधकर खड़ा हो गया। यह तेजस्वी मूर्ति देखकर उसका ह्रदय + +15836. घासी –‘इस गाय के सामने डाल दे और जरा झाडू लेकर द्वार तो साफ कर दे। यह बैठक भी कई दिन से लीपी नहीं गई। उसे भी गोबर से लीप दे। तब तक मैं भोजन कर लूँ। फिर जरा आराम करके चलूँगा। हाँ, यह लकड़ी भी चीर देना। खलिहान में चार खाँची भूसा पड़ा है। उसे भी उठा लाना और भुसौली में रख देना।‘ + +15837. पंडित –‘अरे वही ससुरा दुखिया चमार है। कहा, है थोड़ी-सी लकड़ी चीर दे। आग तो है, दे दो।‘ + +15838. पंडित ने हारकर कहा, ‘ससुरे का अभाग था और क्या !’ + +15839. पंडितजी ने इस प्रस्ताव को व्यावहारिक क्षेत्र से दूर समझकर पूछा, ‘रोटियाँ हैं ?’ + +15840. पंडिताइन ने कहा, ‘अब जाने भी दो, धूप में कौन मरे।' + +15841. गोंड़ –‘पचने को पच जायगी, पहले मिले तो। मूँछों पर ताव देकर भोजन किया और आराम से सोये, तुम्हें लकड़ी फाड़ने का हुक्म लगा दिया। जमींदार भी कुछ खाने को देता है। हाकिम भी बेगार लेता है, तो थोड़ी बहुत मजूरी देता है। यह उनसे भी बढ़ गये, उस पर धर्मात्मा बनते हैं।‘ + +15842. दुखी ने फिर कुल्हाड़ी उठाई। जो बातें पहले से सोच रखी थीं, वह सब भूल गईं। पेट पीठ में धॉसा जाता था, आज सबेरे जलपान तक न किया था। अवकाश ही न मिला। उठना ही पहाड़ मालूम होता था। जी डूबा जाता था, पर दिल को समझाकर उठा। पंडित हैं, कहीं साइत ठीक न विचारें, तो फिर सत्यानाश ही हो जाय। जभी तो संसार में इतना मान है। साइत ही का तो सब खेल है। जिसे चाहे बिगाड़ दें। पंडितजी गाँठ के पास आकर + +15843. पंडित –‘हाँ लकड़ी चीरते-चीरते मर गया। अब क्या होगा ?’ + +15844. पंडित –‘हाँ, बहुत मनहूस।‘ + +15845. रात तो किसी तरह कटी; मगर सबेरे भी कोई चमार न आया। चमारिनें भी रो-पीटकर चली गईं। दुर्गन्ध कुछ-कुछ फैलने लगी। पंडितजी ने एक रस्सी निकाली। उसका फन्दा बनाकर मुरदे के पैर में डाला और फन्दे को खींचकर कस दिया। अभी कुछ-कुछ धुँधलका था। पंडितजी ने रस्सी पकड़कर लाश को घसीटना शुरू किया और गाँव के बाहर घसीट ले गये। वहाँ से आकर तुरन्त स्नान किया, दुर्गापाठ पढ़ा और घर में गंगाजल छिड़का। + +15846. हिन्दी कहानी/पुरस्कार: + +15847. महाराज के मुख पर मधुर मुस्कान थी। पुरोहित वर्ग ने स्वस्त्ययन किया । स्वर्ण रंजीत हल की मूठ पकड़कर महाराज ने जूते हुए सुंदर पुष्ट बैलों को चलने का संकेत किया। बाजे बजने लगे। किशोरी कुमारीयों ने खीलों और फूलों की वर्षा की। + +15848. सब लोग महाराज का हल चलाना देख रहे थे-विस्मय से, कुतूहल से। और अरुण देख रहा था कृषक कुमारी मधुलिका को। आह !कितना भोला सौंदर्य ! कितनी सरल चितवन ! + +15849. "राजकीय रक्षण की अधिकारिणी तो सारी प्रजा है मंत्रिवर ! महाराज को भूमि समर्पण करने में तो मेरा कोई विरोध न था और न है ; किंतु मूल्य स्वीकार करना असंभव है" - मधुलिका उत्तेजित हो उठती है उठी थी। + +15850. महाराज को विचार संघर्ष से विश्राम की अत्यंत आवश्यकता थी। महाराज चुप रहे। जयघोष के साथ सभा विसर्जित हुई। सब अपने-अपने शिविरों में चले गए, किंतु मधुलिका को उत्सव में फिर किसी ने न देखा। वह अपने खेत की सीमा पर विशाल मधुक-वृक्ष के चिकने हरे पत्तों की छाया में अनमनी चुपचाप बैठी रही। + +15851. "उत्सव ! हाँ , उत्सव ही तो था। " + +15852. "सरलता की देवी ! मैं मगध का राजकुमार तुम्हारे अनुग्रह का प्रार्थी हूं, मेरे हृदय की भावना अवगुंठन में रहना नहीं जानती। उसे अपनी .. " + +15853. "यह रहस्य मानव हृदय का है, मेरा नहीं। राजकुमार, नियमों से यदि मानव ह्रदय बाध्य होता, तो आज मगध के राजकुमार का ह्रदय किसी राजकुमारी की ओर न खींचकर एक कृषक बालिका का अपमान करने न आता। " मधुलिका उठ खड़ी हुई। + +15854. शीतकाल की रजनी, मेघों से भरा आकाश, जिसमें बिजली की दौड़-धूप। मधुलिका का छाजन टपक रहा था। ओढ़ने की कमी थी। वह ठिठुर कर एक कोने में बैठी थी। मधुलिका अपने अभाव को आज बढाकर सोच रही थी। + +15855. सहसा बाहर कुछ शब्द हुआ- + +15856. अरुण ने कहा- "कितना समझाया मैंने- परंतु ..." + +15857. "मधुलिका ने पूछा- "जब तुम इतनी विपन्न अवस्था में हो तो फिर इतने सैनिकों को साथ रखने की आवश्यकता है?" + +15858. कल्पना का आनंद नहीं मधुलिका मैं तुम्हें राजरानी के समान सिंहासन पर बिठाऊँगा ! तुम अपने छीने हुए खेत की चिंता करके वह भयभीत हो। " + +15859. "सत्य मधुलिका, कोशल नरेश तभी से तुम्हारे लिए चिंतित हैं। यह मैं जानता हूँ। तुम्हारी साधारण -सी प्रार्थना वे अस्वीकार न करेंगे। और मुझे यह भी विदित है कि कोशल के सेनापति अधिकांश सैनिकों के साथ पहाड़ी दस्युओं का दमन करने के लिए बहुत दूर चले गए हैं। " + +15860. आंखें खोलते हुए महाराज ने कहा- " स्त्री ! प्रार्थना करने आई है ? आने दो। " + +15861. " मूर्ख ! फिर क्या चाहिए ? " + +15862. " देव ! जैसी आज्ञा हो ! " + +15863. एक घने कुंज में अरुण और मधुलिका एक-दूसरे को हर्षित नेत्रों से देख रहे थे। संध्या हो चली थी। उसने निविड़ वन में उन नवागत मनुष्यों को देखकर पक्षीगण अपने नीड़ को लौटते हुए अधिक कोलाहल कल कर रहे थे। + +15864. " अवश्य ! तुम अपनी झोपड़ी में यह रात बिताओ, प्रभात से तो राज मंदिर ही तुम्हारा लीला निकेतन बनेगा। " + +15865. श्रावस्ती दुर्ग एक विदेशी के अधिकार में क्यों चला जाए ? मगध कोशल का चीर शत्रु ! ओह उसकी विजय ! कोशल नरेश ने क्या कहा था- ' सिंहमित्र की कन्या। ' सिंहमित्र, कौशल का रक्षक वीर, उसी की कन्या आज क्या करने जा रही है ? नहीं-नहीं। ' मधुलिका ! मधुलिका ! ' जैसे उसके पिता उस अंधकार में पुकार रहे थे। वह पगली की तरह चिल्ला उठी रास्ता भूल गई। + +15866. " पगली नहीं, यदि पगली होती, तो इतनी विचार वेदना क्यों होती सेनापति मुझे बांध लो राजा के पास लो राजा के पास ले चलो। " + +15867. श्रावस्ती का दुर्ग, कोशल राष्ट्र का केंद्र, इस रात्रि में अपने विगत वैभव का स्वप्न देख रहा था। भिन्न राजवंशों ने उसके प्रांतों पर अधिकार जमा लिया है। अब वह केवल कई गाँवों का अधिपति है फिर भी उसके साथ कोशल के अतीत की स्वर्ण गाथाएँ लिपटी हैं। वही लोगों की ईर्ष्या का कारण है। + +15868. महाराज ने स्थिर नेत्रों से देखकर कहा - " सिंहमित्र की कन्या , फिर यहाँ क्यों ? - क्या तुम्हारा क्षेत्र नहीं बन रहा है ? कोई बाधा ? सेनापति ! मैंने दुर्ग के दक्षिण नाले के समीप की भूमि इसे दी है। क्या उसी संबंध में तुम कहना चाहते हो ? " + +15869. अपने साहसिक अभियान में अरुण बन्दी हुआ और दुर्ग उल्का के आलोक से अतिरंजित हो गया। भीड़ ने जयघोष किया। सबके मन में उल्लास था। श्रावस्ती दुर्ग आज एक दस्यु के हाथ में जाने से बचा। आबाल वृद्ध नारी आनंद से उन्मत्त हो उठे। + +15870. हिन्दी कहानी/पाजेब: + +15871. हमारी मुन्नी ने भी कहा कि बाबूजी, हम पाजेब पहनेंगे। बोलिए भला कठिनाई से चार बरस की उम्र और पाजेब पहनेगी। + +15872. मैंने कहा, अच्छा भाई आज सही। + +15873. बुआ ने कहा कि अच्छा बेटा अबके जन्म-दिन को तुझे बाईसिकिल दिलवाएंगे। + +15874. इस तरह वह इतवार का दिन हंसी-खुशी पूरा हुआ। शाम होने पर बच्चों की बुआ चली गई। पाजेब का शौक घड़ीभर का था। वह फिर उतारकर रख-रखा दी गई; जिससे कहीं खो न जाए। पाजेब वह बारीक और सुबुक काम की थी और खासे दाम लग गए थे। + +15875. बोली कि देखो, यहाँ मेज-वेज पर तो नहीं है? एक तो है पर दूसरे पैर की मिलती नहीं है। जाने कहां गई? + +15876. मैंने कहा तुम्हीं ने तो रखी थी। कहाँ रखी थी? + +15877. श्रीमती बोलीं कि मेरा भी यही ख्याल हो रहा है। हो न हो, बंसी नौकर ने निकाली हो। मैंने रखी, तब वह वहां मौजूद था। + +15878. मैंने कहा कि अच्छा, तो उसे क्या कहना होगा? यह कहूं कि ला भाई पाजेब दे दे! + +15879. मैंने कहा कि तुमने आशुतोष से भी पूछा? + +15880. बोलीं, नहीं, नहीं! मिलती तो वह बता न देता? + +15881. वह गुम हो गया। जैसे नाराज हो। उसने सिर हिलाया कि उसने नहीं ली। पर मुंह नहीं खोला। + +15882. आशुतोष तब बैठा सुनता रहा। उसका मुंह सूजा था। वह सामने मेरी आँखों में नहीं देख रहा था। रह-रहकर उसके माथे पर बल पड़ते थे। + +15883. वह चला गया और दूसरे कमरे में जाकर पहले तो एक कोने में खड़ा हो गया। कुछ देर चुपचाप खड़े रहकर वह फिर यहां-वहां पाजेब की तलाश में लग गया। + +15884. मैंने बुलाकर कहा, "अच्छा सुनो। देखो, मेरी तरफ देखो, यह बताओ कि पाजेब तुमने छुन्नू को दी है न?" + +15885. उसने सिर हिला दिया। + +15886. आशुतोष भी मुस्करा आया, अगरचे एक उदासी भी उसके चेहरे से दूर नहीं हुई थी। + +15887. मैंने कहा कि तो जिसको उसने दी होगी उसका नाम बता देगा। सुनकर वह चुप हो गया। मेरे बार-बार कहने पर वह यही कहता रहा कि पाजेब छुन्नू के पास न हुई तो वह देगा कहाँ से ? + +15888. "फिर उसी ने कहा कि इसे बेचेंगे !" + +15889. "हाँ!" + +15890. मुझे उसकी जिद बुरी मालूम हुई। मैंने कहा कि तो कहीं तुमने उसे गाड़ दिया है? क्या किया है? बोलते क्यों नहीं? + +15891. जब वह अपनी जगह से नहीं उठा और नहीं गया तो मैंने उसे कान पकड़कर उठाया। कहा कि सुनते हो ? जाओ, पाजेब लेकर आओ। नहीं तो घर में तुम्हारा काम नहीं है। + +15892. छुन्नू की माँ तो कह रही है कि उसका लड़का ऐसा काम नहीं कर सकता। उसने पाजेब नहीं देखी। + +15893. नतीजा यह हुआ कि छुन्नू की माँ ने छुन्नू को खूब पीटा और खुद भी रोने लगी। कहती जाती कि हाय रे, अब हम चोर हो गए। कुलच्छनी औलाद जाने कब मिटेगी ? + +15894. थोड़ी देर बाद छुन्नू की माँ हमारे घर आई । श्रीमती उन्हें लाई थी। अब उनके बीच गर्मी नहीं थी, उन्होंने मेरे सामने आकर कहा कि छुन्नू तो पाजेब के लिए इनकार करता है। वह पाजेब कितने की थी, मैं उसके दाम भर सकती हूँ। + +15895. "हाँ, वह मुझसे कह रहा था कि तू भी चल। पतंग लाएंगे।" + +15896. मैंने बीच-बचाव करके छुन्नू को बचाया। वह शहीद की भांति पिटता रहा था। रोया बिल्कुल नहीं और एक कोने में खड़े आशुतोष को जाने किस भाव से देख रहा था। + +15897. मैंने कहा, "छोड़िए भी। बेबात को बात बढ़ाने से क्या फायदा ।" सो ज्यों-त्यों मैंने उन्हें दिलासा दिया। नहीं तो वह छुन्नू को पीट-पाट हाल-बेहाल कर डालने का प्रण ही उठाए ले रही थी। कुलच्छनी, आज उसी धरती में नहीं गाड़ दिया तो, मेरा नाम नहीं । + +15898. फिर मैंने पूछा कि आशुतोष कहाँ है? + +15899. "छुन्नू के साथ गिल्ली डंडा खेल रहे हैं ।" + +15900. कमरे में जाकर मैंने उससे फिर पूछताछ की, "क्यों बेटा, पतंग वाले ने पाँच आने तुम्हें दिए न ?" + +15901. "नहीं" + +15902. "खर्च किए, कि नहीं खर्च किए ?" + +15903. "हाँ।" + +15904. "तुमने क्यों नहीं लिए ?" + +15905. "हाँ" + +15906. "बोलते क्यों नहीं ?" + +15907. इस बार भी वह नहीं बोला तो मैंने कान पकड़कर उसके कान खींच लिए। वह बिना आँसू लाए गुम-सुम खड़ा रहा। + +15908. मैंने कहा, "क्यों रे, अब तो अकल आई ?" + +15909. "हाँ।" + +15910. उसने सिर हिला दिया कि नहीं जाऊंगा। + +15911. मैंने प्रकाश, अपने छोटे भाई को बुलाया। कहा, "प्रकाश, इसे पकड़कर ले जाओ।" + +15912. मैंने पूछा, "क्यों?" + +15913. वह पकड़ा हुआ आया। मैंने कहा, "क्यों रे, तू शरारत से बाज नहीं आएगा? बोल, जाएगा कि नहीं?" + +15914. मालूम करना कि किसने पाजेब ली है। होशियारी से मालूम करना। मालूम होने पर सख्ती करना। मुरव्वत की जरूरत नहीं। समझे। + +15915. मैंने उसे जगाया। वह हड़बड़ाकर उठा। मैंने कहा, "कहो, क्या हालत है?" + +15916. खैर, उसे पकड़कर लाया और समझाने लगा। मैंने निकालकर उसे एक रुपया दिया और कहा, "बेटा, इसे पतंग वाले को दे देना और पाजेब माँग लेना कोई घबराने की बात नहीं। तुम समझदार लड़के हो।" + +15917. आशुतोष का चेहरा रूठा ही रहा। मैंने बुआ से कहा कि उसे रोको मत, जाने दो। + +15918. मैंने पुकारा, "बंसी, तू भी साथ जा। बीच से लौटने न पाए।" सो मेरे आदेश पर दोनों आशुतोष को जबरदस्ती उठाकर सामने से ले गए। बुआ ने कहा, "क्यों उसे सता रहे हो?" + +15919. + +15920. हिरामन गाड़ीवान की पीठ में गुदगुदी लगती है... + +15921. बीसों गाड़ियाँ एक साथ कचकचा कर रुक गईं। हिरामन ने पहले ही कहा था, 'यह बीस विषावेगा!' दारोगा साहब उसकी गाड़ी में दुबके हुए मुनीम जी पर रोशनी डाल कर पिशाची हँसी हँसे - 'हा-हा-हा! मुनीम जी-ई-ई-ई! ही-ही-ही! ऐ-य, साला गाड़ीवान, मुँह क्या देखता है रे-ए-ए! कंबल हटाओ इस बोरे के मुँह पर से!' हाथ की छोटी लाठी से मुनीम जी के पेट में खोंचा मारते हुए कहा था, 'इस बोरे को! स-स्साला!' + +15922. गाड़ियों की आड़ में सड़क के किनारे दूर तक घनी झाड़ी फैली हुई थी। दम साध कर तीनों प्राणियों ने झाड़ी को पार किया - बेखटक, बेआहट! फिर एक ले, दो ले - दुलकी चाल! दोनों बैल सीना तान कर फिर तराई के घने जंगलों में घुस गए। राह सूँघते, नदी-नाला पार करते हुए भागे पूँछ उठा कर। पीछे-पीछे हिरामन। रात-भर भागते रहे थे तीनों जन। + +15923. गाड़ीवानों के दल में तालियाँ पटपटा उठीं थीं एक साथ। सभी की लाज रख ली हिरामन के बैलों ने। हुमक कर आगे बढ़ गए और बाघगाड़ी में जुट गए - एक-एक करके। सिर्फ दाहिने बैल ने जुतने के बाद ढेर-सा पेशाब किया। हिरामन ने दो दिन तक नाक से कपड़े की पट्टी नहीं खोली थी। बड़ी गद्दी के बडे सेठ जी की तरह नकबंधन लगाए बिना बघाइन गंध बरदास्त नहीं कर सकता कोई। + +15924. 'अहा! मारो मत!' + +15925. हिरामन की सवारी ने करवट ली। चाँदनी पूरे मुखड़े पर पड़ी तो हिरामन चीखते-चीखते रूक गया - अरे बाप! ई तो परी है! + +15926. उसकी सवारी मुस्कराती है। ...मुस्कराहट में खुशबू है। + +15927. हिरामन ने अपने बैलों को झिड़की दी - 'कान चुनिया कर गप सुनने से ही तीस कोस मंजिल कटेगी क्या? इस बाएँ नाटे के पेट में शैतानी भरी है।' हिरामन ने बाएँ बैल को दुआली की हल्की झड़प दी। + +15928. हीराबाई ने परख लिया, हिरामन सचमुच हीरा है। + +15929. हिरामन होशियार है। कुहासा छँटते ही अपनी चादर से टप्पर में परदा कर दिया -'बस दो घंटा! उसके बाद रास्ता चलना मुश्किल है। कातिक की सुबह की धूल आप बर्दास्त न कर सकिएगा। कजरी नदी के किनारे तेगछिया के पास गाड़ी लगा देंगे। दुपहरिया काट कर...।' + +15930. हिरामन परदे के छेद से देखता है। हीराबाई एक दियासलाई की डिब्बी के बराबर आईने में अपने दाँत देख रही है। ...मदनपुर मेले में एक बार बैलों को नन्हीं-चित्ती कौड़ियों की माला खरीद दी थी। हिरामन ने, छोटी-छोटी, नन्हीं-नन्हीं कौड़ियों की पाँत। + +15931. 'कौन जमाना?' ठुड्डी पर हाथ रख कर साग्रह बोली। + +15932. हीराबाई ने अपनी ओढ़नी ठीक कर ली। तब हिरामन को लगा कि... लगा कि... + +15933. 'पटपटांग! धन-दौलत, माल-मवेसी सब साफ! देवता इंदरासन चला गया।' + +15934. हमरा पर होखू सहाई हे मैया, हमरा पर होखू सहाई!' + +15935. सूरज दो बाँस ऊपर आ गया था। हिरामन अपने बैलों से बात करने लगा - 'एक कोस जमीन! जरा दम बाँध कर चलो। प्यास की बेला हो गई न! याद है, उस बार तेगछिया के पास सरकस कंपनी के जोकर और बंदर नचानेवाला साहब में झगड़ा हो गया था। जोकरवा ठीक बंदर की तरह दाँत किटकिटा कर किक्रियाने लगा था, न जाने किस-किस देस-मुलुक के आदमी आते हैं!' + +15936. गाड़ी की बल्ली पर उँगलियों से ताल दे कर गीत को काट दिया हिरामन ने। छोकरा-नाच के मनुवाँ नटुवा का मुँह हीराबाई-जैसा ही था। ...क़हाँ चला गया वह जमाना? हर महीने गाँव में नाचनेवाले आते थे। हिरामन ने छोकरा-नाच के चलते अपनी भाभी की न जाने कितनी बोली-ठोली सुनी थी। भाई ने घर से निकल जाने को कहा था। + +15937. साइकिलवाला दुबला-पतला नौजवान मिनमिना कर कुछ बोला और बीड़ी सुलगा कर उठ खड़ा हुआ। हिरामन दुनिया-भर की निगाह से बचा कर रखना चाहता है हीराबाई को। उसने चारों ओर नजर दौड़ा कर देख लिया - कहीं कोई गाड़ी या घोड़ा नहीं। + +15938. हीराबाई लौट कर आई तो उसने हँस कर कहा, 'अब आप गाड़ी का पहरा दीजिए, मैं आता हूँ तुरंत।' + +15939. हीराबाई आँख खोल कर अचरज में पड़ गई। एक हाथ में मिट्टी के नए बरतन में दही, केले के पत्ते। दूसरे हाथ में बालटी-भर पानी। आँखों में आत्मीयतापूर्ण अनुरोध! + +15940. 'पहले-पीछे क्या? तुम भी बैठो।' + +15941. हीराबाई छत्तापुर-पचीरा का नाम भूल गई। गाड़ी जब कुछ दूर आगे बढ़ आई तो उसने हँस कर पूछा, 'पत्तापुर-छपीरा?' + +15942. लाली रे दुलहिनिया + +15943. नहीं हाथी, नहीं घोड़ा, नहीं गाड़ी - + +15944. हिरामन कुछ देर तक बैलों को हाँकता रहा चुपचाप। फिर बोला, 'गीत जरूर ही सुनिएगा? नहीं मानिएगा? इस्स! इतना सौक गाँव का गीत सुनने का है आपको! तब लीक छोड़ानी होगी। चालू रास्ते में कैसे गीत गा सकता है कोई!' + +15945. हीराबाई ने देखा, सचमुच नननपुर की सड़क बड़ी सूनी है। हिरामन उसकी आँखों की बोली समझता है - 'घबराने की बात नहीं। यह सड़क भी फारबिसगंज जाएगी, राह-घाट के लोग बहुत अच्छे हैं। ...एक घड़ी रात तक हम लोग पहुँच जाएँगे।' + +15946. हे अ-अ-अ- सावना-भादवा के - र- उमड़ल नदिया -गे-में-मैं-यो-ओ-ओ, + +15947. हिरामन ने लक्ष्य किया, हीराबाई तकिए पर केहुनी गड़ा कर, गीत में मगन एकटक उसकी ओर देख रही है। ...खोई हुई सूरत कैसी भोली लगती है! + +15948. तेंहु पोसलि कि नेनू-दूध उगटन ..। + +15949. इस बार लगता है महुआ ने अपने को पकड़ा दिया। खुद ही पकड़ में आ गई है। उसने महुआ को छू लिया है, पा लिया है, उसकी थकन दूर हो गई है। पंद्रह-बीस साल तक उमड़ी हुई नदी की उलटी धारा में तैरते हुए उसके मन को किनारा मिल गया है। आनंद के आँसू कोई भी रोक नहीं मानते। + +15950. आसिन-कातिक का सूरज दो बाँस दिन रहते ही कुम्हला जाता है। सूरज डूबने से पहले ही नननपुर पहुँचना है, हिरामन अपने बैलों को समझा रहा है - 'कदम खोल कर और कलेजा बाँध कर चलो ...ए ...छि ...छि! बढ़के भैयन! ले-ले-ले-ए हे -य!' + +15951. 'पीजिए गुरू जी!' हीरा हँसी! + +15952. 'इस्स! सास्तर-पुरान भी जानती हैं! ...मैंने क्या सिखाया? मैं क्या ...?' + +15953. फारबिसगंज तो हिरामन का घर-दुआर है! + +15954. 'कंपनी की -ई-ई-ई!' + +15955. गाड़ी से चार रस्सी दूर जाते-जाते धुन्नीराम ने अपने कुलबुलाते हुए दिल की बात खोल दी - 'इस्स! तुम भी खूब हो हिरामन! उस साल कंपनी का बाघ, इस बार कंपनी की जनानी!' + +15956. यह बात सभी को अच्छी लगी। हिरामन ने कहा, 'बात ठीक है। पलट, तुम लौट जाओ, गाड़ी के पास ही रहना। और देखो, गपशप जरा होशियारी से करना। हाँ!' + +15957. हिरामन बोला, 'नहीं जी! एक रात नौटंकी देख कर जिंदगी-भर बोली-ठोली कौन सुने? ...देसी मुर्गी विलायती चाल!' + +15958. पलटदास आ कर खड़ा हो गया चुपचाप। उसका मुँह भी तमतमाया हुआ था। हिरामन ने पूछा, 'क्या हुआ? बोलते क्यों नहीं?' + +15959. लालमोहर ने कंधा सूँघ कर आँखे मूँद लीं। मुँह से अस्फुट शब्द निकला - ए - ह!' + +15960. 'आ गए हिरामन! अच्छी बात, इधर आओ। ...यह लो अपना भाड़ा और यह लो अपनी दच्छिना! पच्चीस-पच्चीस, पचास।' + +15961. हिरामन ने रूपया लेते हुए कहा, 'क्या बोलेंगे!' उसने हँसने की चेष्टा की। कंपनी की औरत कंपनी में जा रही है। हिरामन का क्या! बक्सा ढोनेवाला रास्ता दिखाता हुआ आगे बढ़ा - 'इधर से।' हीराबाई जाते-जाते रूक गई। हिरामन के बैलों को संबोधित करके बोली, 'अच्छा, मैं चली भैयन।' + +15962. तेरी चाहत को दिलबर बयाँ क्या करूँ! + +15963. लालमोहर दौड़ता-हाँफता बासा पर आया - 'ऐ, ऐ हिरामन, यहाँ क्या बैठे हो, चल कर देखो जै-जैकार हो रहा है! मय बाजा-गाजा, छापी-फाहरम के साथ हीराबाई की जै-जै कर रहा हूँ।' + +15964. दोनों आपस में सलाह करके रौता कंपनी की ओर चले। खेमे के पास पहुँच कर हिरामन ने लालमोहर को इशारा किया, पूछताछ करने का भार लालमोहर के सिर। लालमोहर कचराही बोलना जानता है। लालमोहर ने एक काले कोटवाले से कहा, 'बाबू साहेब, जरा सुनिए तो!' + +15965. नेपाली दरबान हिरामन की ओर देख कर जरा मुस्कराया और चला गया। काले कोटवाले से जा कर कहा, 'हीराबाई का आदमी है। नहीं रोकने बोला!' + +15966. लालमोहर ने उत्तेजित हो कर कहा, 'कौन साला बोलेगा, गाँव में जा कर? पलटा ने अगर बदनामी की तो दूसरी बार से फिर साथ नहीं लाऊँगा।' + +15967. 'रहेगा कौन, यह लहसनवाँ कहाँ जाएगा?' + +15968. 'कौन, पलटदास! कहाँ की लदनी लाद आए?' लालमोहर ने पराए गाँव के आदमी की तरह पूछा। + +15969. लालमोहर ने दूसरी शर्त सामने रखी - 'गाँव में अगर यह बात मालूम हुई किसी तरह...!' + +15970. नेपाली दरबान बोला, 'हीराबाई का आदमी है सब। जाने दो। पास हैं तो फिर काहे को रोकता है?' + +15971. पलटदास ढोलक बजाना जानता है, इसलिए नगाड़े के ताल पर गरदन हिलाता है और दियासलाई पर ताल काटता है। बीड़ी आदान-प्रदान करके हिरामन ने भी एकाध जान-पहचान कर ली। लालमोहर के परिचित आदमी ने चादर से देह ढकते हुए कहा, 'नाच शुरू होने में अभी देर है, तब तक एक नींद ले लें। ...सब दर्जा से अच्छा अठनिया दर्जा। सबसे पीछे सबसे ऊँची जगह पर है। जमीन पर गरम पुआल! हे-हे! कुरसी-बेंच पर बैठ कर इस सरदी के मौसम में तमासा देखनेवाले अभी घुच-घुच कर उठेंगे चाह पीने।' + +15972. हो-हल्ले के बीच, हिरामन की आवाज कपड़घर को फाड़ रही है - 'आओ, एक-एक की गरदन उतार लेंगे।' + +15973. हीराबाई का नाम सुनते ही दारोगा ने तीनों को छोड़ दिया। लेकिन तीनों की दुआली छीन ली गई। मैनेजर ने तीनों को एक रूपएवाले दरजे में कुरसी पर बिठाया -'आप लोग यहीं बैठिए। पान भिजवा देता हूँ।' कपड़घर शांत हुआ और हीराबाई स्टेज पर लौट आई। + +15974. लोगों ने लहसनवाँ की चौड़ी और सपाट छाती देखी। जाड़े के मौसम में भी खाली देह! ...चेले-चाटी के साथ हैं ये लोग! + +15975. दूसरे दिन मेले-भर में यह बात फैल गई - मथुरामोहन कंपनी से भाग कर आई है हीराबाई, इसलिए इस बार मथुरामोहन कंपनी नहीं आई हैं। ...उसके गुंडे आए हैं। हीराबाई भी कम नहीं। बड़ी खेलाड़ औरत है। तेरह-तेरह देहाती लठैत पाल रही है। ...वाह मेरी जान भी कहे तो कोई! मजाल है! + +15976. 'हिरामन, ए हिरामन भाय!' लालमोहर की बोली सुन कर हिरामन ने गरदन मोड़ कर देखा। ...क्या लाद कर लाया है लालमोहर? + +15977. बक्सा ढोनेवाला आदमी आज कोट-पतलून पहन कर बाबूसाहब बन गया है। मालिकों की तरह कुलियों को हुकम दे रहा है - 'जनाना दर्जा में चढ़ाना। अच्छा?' + +15978. हिरामन की बोली फूटी, इतनी देर के बाद - 'इस्स! हरदम रूपैया-पैसा! रखिए रूपैया! क्या करेंगे चादर?' + +15979. गाड़ी ने सीटी दी। हिरामन को लगा, उसके अंदर से कोई आवाज निकल कर सीटी के साथ ऊपर की ओर चली गई - कू-ऊ-ऊ! इ-स्स! + +15980. लालमोहर ने हिरामन को समझाने की कोशिश की। लेकिन हिरामन ने अपनी गाड़ी गाँव की ओर जानेवाली सड़क की ओर मोड़ दी। अब मेले में क्या धरा है! खोखला मेला! + +15981. अंतरराष्ट्रीय व्यापार/: + +15982. हिंदी साहित्य का इतिहास (आदिकाल और मध्यकाल)/हिंदी साहित्य के इतिहास-लेखन की परंपरा: + +15983. आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य का प्रथम व्यवस्थित इतिहास लिखकर एक नये युग का समारंभ किया। उन्होंने लोकमंगल व लोक-धर्म की कसौटी पर कवियों और कवि-कर्म की परख की और लोक चेतना की दृष्टि से उनके साहित्यिक अवदान की समीक्षा की। यहीं से काल विभाजन और साहित्य इतिहास के नामकरण की सुदृढ़ परंपरा का आरंभ हुआ। इस युग में डॉ॰ श्याम सुन्दर दास, रमाशंकर शुक्ल 'रसाल', सूर्यकांत शास्त्री, अयोध्या सिंह उपाध्याय, डॉ॰ रामकुमार वर्मा, राजनाथ शर्मा प्रभृति विद्वानों ने हिन्दी साहित्य के इतिहास विषयक ग्रन्थों का प्रणयन कर स्तुत्य योगदान दिया। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने शुक्ल युग के इतिहास लेखन के अभावों का गहराई से अध्ययन किया और हिन्दी साहित्य की भूमिका (1940 ई.), हिन्दी साहित्य का आदिकाल (1952 ई.) और हिन्दी साहित्य; उद्भव और विकास (1955 ई.) आदि ग्रन्थ लिखकर उस अभाव की पूर्ति की। काल विभाजन में उन्होंने कोई विशेष परिवर्तन नहीं किया। शैली की समग्रता उनकी अलग विशेषता है। + +15984. 1. गार्सा द तासी : इस्तवार द ला लितेरात्यूर ऐंदुई ऐंदुस्तानी (फ्रेंच भाषा में; फ्रेंच विद्वान, हिन्दी साहित्य के पहले इतिहासकार) + +15985. 6. हजारी प्रसाद द्विवेदी : हिन्दी साहित्य की भूमिका; हिन्दी साहित्य का आदिकाल; + +15986. 11. बच्चन सिंह : हिन्दी साहित्य का दूसरा इतिहास, राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली। + +15987. शामनाथ और उनकी धर्मपत्नी को पसीना पोंछने की फुर्सत न थी। पत्नी ड्रेसिंग गाउन पहने, उलझे हुए बालों का जूड़ा बनाए मुँह पर फैली हुई सुर्खी और पाउड़र को मलेऔर मिस्टर शामनाथ सिगरेट पर सिगरेट फूँकते हुए चीजों की फेहरिस्त हाथ में थामे, एक कमरे से दूसरे कमरे में आ-जा रहे थे। + +15988. सुझाव ठीक था। दोनों को पसंद आया। मगर फिर सहसा श्रीमती बोल उठीं - 'जो वह सो गईं और नींद में खर्राटे लेने लगीं, तो? साथ ही तो बरामदा है, जहाँ लोग खानाखाएँगे।' + +15989. मिस्टर शामनाथ चुप रहे। यह मौका बहस का न था, समस्या का हल ढूँढ़ने का था। उन्होंने घूम कर माँ की कोठरी की ओर देखा। कोठरी का दरवाजा बरामदे में खुलता था।बरामदे की ओर देखते हुए झट से बोले - मैंने सोच लिया है, - और उन्हीं कदमों माँ की कोठरी के बाहर जा खड़े हुए। माँ दीवार के साथ एक चौकी पर बैठी, दुपट्टे मेंमुँह-सिर लपेटे, माला जप रही थीं। सुबह से तैयारी होती देखते हुए माँ का भी दिल धड़क रहा था। बेटे के दफ्तर का बड़ा साहब घर पर आ रहा है, सारा काम सुभीते सेचल जाय। + +15990. और माँ, हम लोग पहले बैठक में बैठेंगे। उतनी देर तुम यहाँ बरामदे में बैठना। फिर जब हम यहाँ आ जाएँ, तो तुम गुसलखाने के रास्ते बैठक में चली जाना। + +15991. माँ माला सँभालतीं, पल्ला ठीक करती उठीं, और धीरे से कुर्सी पर आ कर बैठ गई। + +15992. कपड़े कौन से पहनोगी, माँ? + +15993. माँ सफेद कमीज और सफेद सलवार पहन कर बाहर निकलीं। छोटा-सा कद, सफेद कपड़ों में लिपटा, छोटा-सा सूखा हुआ शरीर, धुँधली आँखें, केवल सिर के आधे झड़े हुए बालपल्ले की ओट में छिप पाए थे। पहले से कुछ ही कम कुरूप नजर आ रही थीं। + +15994. साढ़े पाँच बज चुके थे। अभी मिस्टर शामनाथ को खुद भी नहा-धो कर तैयार होना था। श्रीमती कब की अपने कमरे में जा चुकी थीं। शामनाथ जाते हुए एक बार फिर माँ कोहिदायत करते गए - माँ, रोज की तरह गुमसुम बन के नहीं बैठी रहना। अगर साहब इधर आ निकलें और कोई बात पूछें, तो ठीक तरह से बात का जवाब देना। + +15995. आखिर सब लोग अपने-अपने गिलासों में से आखिरी घूँट पी कर खाना खाने के लिए उठे और बैठक से बाहर निकले। आगे-आगे शामनाथ रास्ता दिखाते हुए, पीछे चीफ और दूसरेमेहमान। + +15996. माँ, तुम जाके सो जाओ, तुम क्यों इतनी देर तक जाग रही थीं? - और खिसियाई हुई नजरों से शामनाथ चीफ के मुँह की ओर देखने लगे। + +15997. पर हाथ कैसे मिलातीं? दाएँ हाथ में तो माला थी। घबराहट में माँ ने बायाँ हाथ ही साहब के दाएँ हाथ में रख दिया। शामनाथ दिल ही दिल में जल उठे। देसी अफसरों कीस्त्रियाँ खिलखिला कर हँस पडीं। + +15998. माँ कहती हैं, मैं ठीक हूँ। कहो माँ, हाउ डू यू डू। + +15999. शामनाथ अंग्रेजी में बोले - मेरी माँ गाँव की रहने वाली हैं। उमर भर गाँव में रही हैं। इसलिए आपसे लजाती है। + +16000. साहब ने इतना रीझ से कहा है, नहीं गाओगी, तो साहब बुरा मानेंगे। + +16001. इसके बाद हाँ या ना सवाल ही न उठता था। माँ बैठ गईं और क्षीण, दुर्बल, लरजती आवाज में एक पुराना विवाह का गीत गाने लगीं - + +16002. तालियाँ थमने पर साहब बोले - पंजाब के गाँवों की दस्तकारी क्या है? + +16003. शामनाथ फुलकारी का मतलब समझाने की असफल चेष्टा करने के बाद माँ को बोले - क्यों, माँ, कोई पुरानी फुलकारी घर में हैं? + +16004. साहब ने सिर हिलाया, धन्यवाद किया और हल्के-हल्के झूमते हुए खाने की मेज की ओर बढ़ गए। बाकी मेहमान भी उनके पीछे-पीछे हो लिए। + +16005. माँ का दिल बैठ गया। हड़बड़ा कर उठ बैठीं। क्या मुझसे फिर कोई भूल हो गई? माँ कितनी देर से अपने आपको कोस रही थीं कि क्यों उन्हें नींद आ गई, क्यों वह ऊँघनेलगीं। क्या बेटे ने अभी तक क्षमा नहीं किया? माँ उठीं और काँपते हाथों से दरवाजा खोल दिया। + +16006. क्या कहा, माँ? यह कौन-सा राग तुमने फिर छेड़ दिया? + +16007. माँ, तुम मुझे धोखा देके यूँ चली जाओगी? मेरा बनता काम बिगाड़ोगी? जानती नही, साहब खुश होगा, तो मुझे तरक्की मिलेगी! + +16008. तरक्की यूँ ही हो जाएगी? साहब को खुश रखूँगा, तो कुछ करेगा, वरना उसकी खिदमत करनेवाले और थोड़े हैं? + +16009. अँधेरे गलियारे में चलते हुए लतिका ठिठक गयी। दीवार का सहारा लेकर उसने लैम्प की बत्ती बढ़ा दी। सीढ़ियों पर उसकी छाया एक बैडौल कटी-फटी आकृति खींचने लगी। सात नम्बर कमरे में लड़कियों की बातचीत और हँसी-ठहाकों का स्वर अभी तक आ रहा था। लतिका ने दरवाजा खटखटाया। शोर अचानक बंद हो गया। “कौन है?” + +16010. लतिका को लगा कि यही बात उसने पिछले साल भी कही थी और शायद पिछले से पिछले साल भी। उसे लगा मानों लड़कियाँ उसे सन्देह की दृष्टि से देख रही है, मानों उन्होंने उसकी बात पर विश्वास नहीं किया। उसका सिर चकराने लगा, मानों बादलों का स्याह झुरमुट किसी अनजाने कोने से उठकर उसे अपने में डुबा लेगा। वह थोड़ा-सा हँसी, फिर धीरे-से उसने सर को झटक दिया। “जूली, तुमसे कुछ काम है, अपने ब्लॉक में जाने से पहले मुझे मिल लेना- वेल गुड नाइट!” लतिका ने अपने पीछे दरवाज़ा बंद कर दिया। + +16011. “चलिए, यह ठीक रहा। फिर तो आप वैसे भी मेरे पास आतीं।” डाक्टर ने धीरे-से लतिका के कंधों को पकड़कर अपने कमरे की तरफ मोड़ दिया। डाक्टर मुकर्जी का कमरा ब्लॉक के दूसरे सिरे पर छत से जुड़ा हुआ था। वह आधे बर्मी थे, जिसके चिह्न उनकी थोड़ी दबी हुई नाक और छोटी-छोटी चंचल आँखों से स्पष्ट थे। बर्मा पर जापानियों का आक्रमण होने के बाद वह इस छोटे से पहाड़ी शहर में आ बसे थे। प्राइवेट प्रैक्टिस के अलावा वह कान्वेन्ट स्कूल में हाईजीन-फिजियालोजी भी पढ़ाया करते थे और इसलिए उनको स्कूल के होस्टल में ही एक कमरा रहने के लिए दे दिया गया था। कुछ लोगों का कहना था कि बर्मा से आते हुए रास्ते में उनकी पत्नी की मृत्यु हो गयी, लेकिन इस सम्बन्ध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता क्योंकि डाक्टर स्वयं कभी अपनी पत्नी की चर्चा नहीं करते। + +16012. उस क्षण न जाने क्यों लतिका का हाथ काँप गया और कॉफी की कुछ गर्म बूँदें उसकी साड़ी पर छलक आयी। अँधेरे में किसी ने नहीं देखा कि लतिका के चेहरे पर एक उनींदा रीतापन घिर आया है। हवा के झोंके से मोमबत्तियों की लौ फड़कने लगी। छत से भी ऊँची काठगोदाम जानेवाली सड़क पर यू.पी. रोडवेज की आखिरी बस डाक लेकर जा रही थी। बस की हैड लाइट्स में आस-पास फैली हुई झाड़ियों की छायाएँ घर की दीवार पर सरकती हुई गायब होने लगीं। + +16013. “मैं कभी-कभी सोचता हूँ, इन्सान जिन्दा किसलिए रहता है-क्या उसे कोई और बेहतर काम करने को नहीं मिला? हजारों मील अपने मुल्क से दूर मैं यहाँ पड़ा हूँ – यहाँ कौन मुझे जानता है, यहीं शायद मर भी जाऊँगा। ह्यूबर्ट, क्या तुमने कभी महसूस किया है कि एक अजनबी की हैसियत से परायी जमीन पर मर जाना काफ़ी खौफनाक बात है…!” + +16014. “गुड नाइट ह्यूबर्ट…मुझे माफ करना, मैं सिगार खत्म करके उठूँगा…” सुबह बदली छायी थी। लतिका के खिड़की खोलते ही धुन्ध का गुब्बारा-सा भीतर घुस आया, जैसे रात-भर दीवार के सहारे सरदी में ठिठुरता हुआ वह भीतर आने की प्रतीक्षा कर रहा हो। स्कूल से ऊपर चैपल जानेवाली सड़क बादलों में छिप गयी थी, केवल चैपल का ‘क्रास’ धुन्ध के परदे पर एक-दूसरे को काटती हुई पेंसिल की रेखाओं-सा दिखायी दे जाता था। + +16015. “तुम जरा मिस्त्री से कह देना कि इस कमरे की छत की मरम्मत कर जाये। पिछले साल बर्फ का पानी दरारों से टपकता रहता था।“ लतिका को याद आया कि पिछली सर्दियों में जब कभी बर्फ गिरती थी, तो उसे पानी से बचने के लिए रात-भर कमरे के कोने में सिमटकर सोना पड़ता था। + +16016. लतिका के कंधे से बालों का गुच्छा निकाला और उसे बाहर फेंकने के लिए वह खिड़की के पास आ खड़ी हुई। बाहर छत की ढलान से बारिश के जल की मोटी-सी धार बराबर लॉन पर गिर रही थी। मेघाच्छन्न आकाश में सरकते हुए बादलों के पीछे पहाड़ियों के झुण्ड कभी उभर आते थे, कभी छिप जाते थे, मानो चलती हुई ट्रेन से कोई उन्हें देख रहा हो। लतिका ने खिड़की से सिर बाहर निकाल लिया – हवा के झोंके से उसकी आँखें झिप गयी। उसे जितने काम याद आते हैं, उतना ही आलस घना होता जाता है। बस की सीटें रिजर्व करवाने के लिए चपरासी को रुपये देने हैं जो सामान होस्टल की लड़कियाँ पीछे छोड़े जा रही हैं, उन्हें गोदाम में रखवाना होगा। कभी-कभी तो छोटी क्लास की लड़कियों के साथ पैकिंग करवाने के काम में भी उसे हाथ बँटाना पड़ता था। + +16017. ‘आमीन।’ फादर एल्मण्ड ने बाइबल मेज पर रख दी और ‘प्रेयर बुक’ उठा ली। हॉल की खामोशी क्षण भर के लिए टूट गयी। लड़कियों ने खड़े होते हुए जान-बूझकर बैंचों को पीछे धकेला – बैंचे फर्श पर रगड़ खाकर सीटी बजाती हुई पीछे खिसक गयीं – हॉल के कोने से हँसी फूट पड़ी। मिस वुड का चेहरा तन गया, माथे पर भृकुटियाँ चढ़ गयीं। फिर अचानक निस्तब्धता छा गयी। हॉल के उस घुटे हुए घुँधलके में फादर का तीखा फटा हुआ स्वर सुनायी देने लगा -“जीजस सेड, आई एम द लाइट ऑफ द वर्ल्ड, ही दैट फालोएथ मी शैल नॉट वाक इन डार्कनेस, बट शैल हैव द लाइट ऑफ लाइफ।” + +16018. लतिका को करीमुद्दीन की बात याद हो गयी। रात-भर ह्यूबर्ट को खाँसी का दौरा पड़ा था, कल जाने के लिए कह रहे थे। लतिका ने सिर टेढ़ा करके ह्यूबर्ट के चेहरे की एक झलक पाने की विफल चेष्टा की। इतने पीछे से कुछ भी देख पाना असंभव था, पियानो पर झुका हुआ केवल ह्यूबर्ट का सिर दिखायी देता था। + +16019. लड़कियों का स्वर पियानो के सुरों में डूबा हुआ गिर रहा है, उठ रहा है. .ह्यूबर्ट ने सिर मोड़कर लतिका को निमिष भर देखा, आँखें मूँदे ध्यानमग्ना प्रस्तर मूर्ति-सी वह स्थिर निश्चल खड़ी थी। क्या यह भाव उसके लिए है? क्या लतिका ने ऐसे क्षणों में उसे अपना साथी बनाया है? ह्यूबर्ट ने एक गहरी साँस ली और उस साँस में ढेर-सी थकान उमड़ आयी। “देखो… मिस वुड कुर्सी पर बैठे-बैठे सो रही है” डाक्टर होंठों में ही फुसफुसाया। यह डाक्टर का पुराना मजाक था कि मिस वुड प्रार्थना करने के बहाने आँखे मूँदे हुए नींद की झपकियाँ लेती है। + +16020. “मिस वुड, पता नहीं आप क्या सोचती हैं। मुझे तो मिस लतिका का होस्टल में अकेले रहना कुछ समझ में नहीं आता।” “लेकिन फादर,” मिस वुड ने कहा, “यह तो कान्वेन्ट स्कूल का नियम है कि कोई भी टीचर छुट्टियों में अपने खर्चे पर होस्टल में रह सकते हैं।” “मैं फिलहाल स्कूल के नियमों की बात नहीं कर रहा। मिस लतिका डाक्टर के संग यहाँ अकेली ही रह जायेंगी और सच पूछिए मिस वुड, डाक्टर के बारे में मेरी राय कुछ बहुत अच्छी नहीं है।” “फादर, आप कैसी बात कर रहे हैं? मिस लतिका बच्चा थोड़े ही है।” मिस वुड को ऐसी आशा नहीं थी कि फादर एल्मण्ड अपने दिल में ऐसी दकियानूसी भावना को स्थान देंगे। + +16021. “डाक्टर, क्या मृत्यु ऐसे ही आती है?” अगर मैं डाक्टर से पूछूँ तो वह हँसकर टाल देगा। मुझे लगता है, वह पिछले कुछ दिनों से कोई बात छिपा रहा है- उसकी हँसी में जो सहानुभूति का भाव होता है, वह मुझे अच्छा नहीं लगता। आज उसने मुझे स्पेशल सर्विस में आने से रोका था – कारण पूछने पर वह चुप रहा था। कौन-सी ऐसी बात है, जिसे मुझसे कहने में डाक्टर कतराता है। शायद मैं शक्की मिजाज होता जा रहा हूँ, और बात कुछ भी नहीं है। + +16022. ह्यूबर्ट के स्वर में व्यथा की छाया लतिका से छिपी न रह सकी। बात को टालते हुए उसने कहा – “आप तो नाहक चिन्ता करते हैं, मि. ह्यूबर्ट! आजकल मौसम बदल रहा है, अच्छे भले आदमी तक बीमार हो जाते हैं।” ह्यूबर्ट का चेहरा प्रसन्नता से दमकने लगा। उसने लतिका को ध्यान से देखा। वह अपने दिल का संशय मिटाने के लिए निश्चिन्त हो जाना चाहता था कि कहीं लतिका उसे केवल दिलासा देने के लिए ही तो झूठ नहीं बोल रही। “यही तो मैं सोच रहा था, मिस लतिका! डाक्टर की सलाह सुनकर मैं डर ही गया। भला छह महीने की छुट्टी लेकर मैं अकेला क्या करूँगा। स्कूल में तो बच्चों के संग मन लगा रहता है। सच पूछो तो दिल्ली में ये दो महीनों की छुट्टियाँ काटना भी दूभर हो जाता है।” + +16023. लतिका ने देखा कि ह्यूबर्ट उसकी ओर आतंकित भयाकुल दृष्टि से देख रहा है। वह सिटपिटाकर चुप हो गयी। उसे लगा, मानों वह इतनी देर से पागल-सी अनर्गल प्रलाप कर रही हो। “मुझे माफ करना मि. ह्यूबर्ट, कभी-कभी मैं बच्चों की तरह बातों में बहक जाती हूँ।” “मिस लतिका…” ह्यूबर्ट ने धीरे-से कहा। वह चलते-चलते रुक गया था। लतिका ह्यूबर्ट के भारी स्वर से चौंक-सी गयी। “क्या बात है मि. ह्यूबर्ट?” “वह पत्र उसके लिए मैं लज्जित हूँ। उसे आप वापिस लौटा दें, समझ लें कि मैंने उसे कभी नहीं लिखा था।” + +16024. “आपने कभी देखी है डाक्टर?” मिस वुड ने पूछा, “मुझे तो बड़ा डर लगता है।” + +16025. डाक्टर कुछ देर तक चुपचाप लेटा रहा। + +16026. डाक्टर ने सिगार के धुएँ को धीरे-धीरे हवा में छोड़ दिया- “दरअसल अजनबी तो मैं वहाँ भी समझा जाऊँगा, मिस वुड। इतने वर्षों बाद मुझे कौन पहचानेगा! इस उम्र में नये सिरे से रिश्ते जोड़ना काफी सिरदर्द का काम है, कम-से-कम मेरे बस की बात नहीं है।” + +16027. मिस वुड ने अपने बैग से ऊन का गोला और सलाइयाँ निकालीं, फिर उसके नीचे से अखबार में लिपटा हुआ चौड़ा कॉफी का डिब्बा उठाया, जिसमें अण्डों की सैण्डविचें और हैम्बर्गर दबे हुए थे। थर्मस से प्यालों में कॉफी उंडेलते हुए मिस वुड ने कहा – “डाक्टर, कॉफी ठण्डी हो रही है” + +16028. किन्तु जंगल की खामोशी शायद कभी चुप नहीं रहती। गहरी नींद में डूबी सपनों-सी कुछ आवाजें नीरवता के हल्के झीने परदे पर सलवटें बिछा जाती हैं, मूक लहरों-सी हवा में तिरती हैं, मानों कोई दबे पाँव झाँककर अदृश्य संकेत कर जाता है- “देखो मैं यहाँ हूँ” लतिका ने जूली के ‘बाब हेयर’ को सहलाते हुए कहा, “तुम्हें कल रात बुलाया था।” + +16029. “थैंक यू मैडम, मेरे भाई का पत्र है, वह झाँसी में रहते हैं।” जूली ने घबराहट में लिफाफे को अपने स्कर्ट की तहों में छिपा लिया। “जूली, ज़रा मुझे लिफाफा दिखलाओ।” लतिका का स्वर तीखा, कर्कश-सा हो आया। + +16030. शायद, कौन जाने… शायद जूली का यह प्रथम परिचय हो, उस अनुभूति से, जिसे कोई भी लड़की बड़े चाव से सँजोकर, सँभालकर अपने में छिपाये रहती है, एक अनिर्वचनीय सुख, जो पीड़ा लिये है, पीड़ा और सुख को डुबोती हुई उमड़ते ज्वर की खुमारी, जो दोनों को अपने में समो लेती है एक दर्द, जो आनन्द से उपजा है और पीड़ा देता है। + +16031. पिकनिक कुछ देर तक और चलती, किन्तु बादलों की तहें एक-दूसरे पर चढ़ती जा रही थीं। पिकनिक का सामान बटोरा जाने लगा। मीडोज के चारों ओर बिखरी हुई लड़कियाँ मिस वुड के इर्द-गिर्द जमा होने लगीं। अपने संग वे अजीबोगरीब चीजें बटोर लायी थीं। कोई किसी पक्षी के टूटे पंख को बालों में लगाये हुए थी, किसी ने पेड़ की टहनी को चाकू से छीलकर छोटी-सी बेंत बना ली थी। ऊँची क्लास की कुछ लड़कियों ने अपने-अपने रूमालों में नाले से पकड़ी हुई छोटी-छोटी बालिश्त भर की मछलियों को दबा रखा था जिन्हें मिस वुड से छिपकर वे एक-दूसरे को दिखा रही थीं। + +16032. डाक्टर ने प्रतीक्षा की, शायद लतिका कुछ कहेगी। किन्तु लतिका चुपचाप उसके पीछे चल रही थी। “यह मेरा महज शक है, शायद मैं बिल्कुल गलत होऊँ, किन्तु यह बेहतर होगा कि वह अपने एक फेफड़े का एक्सरे करा लें, इससे कम-से-कम कोई भ्रम तो नहीं रहेगा।” “आपने मि. ह्यूबर्ट से इसके बारे में कुछ कहा है?” “अभी तक कुछ नहीं कहा। ह्यूबर्ट जरा-सी बात पर चिन्तित हो उठता है, इसलिए कभी साहस नहीं हो पाता” डॉक्टर को लगा, उसके पीछे आते हुए लतिका के पैरों का स्वर सहसा बन्द हो गया है। उन्होंने पीछे मुड़कर देखा, लतिका बीच सड़क पर अँधेरे में छाया-सी चुपचाप निश्चल खड़ी है। “डाक्टर…” लतिका का स्वर भर्राया हुआ था। “क्या बात है मिस लतिका, आप रुक क्यों गयी?” “डाक्टर-क्या मि. ह्यूबर्ट…? + +16033. जब लतिका अपने कमरे में गयी, तो उस समय कुमाऊँ रेजीमेण्ट सेण्टर का बिगुल बज रहा था। उसके कमरे में करीमुद्दीन कोई पहाड़ी धुन गुनगुनाता हुआ लैम्प में गैस पम्प कर रहा था। लतिका उन्हीं कपड़ों में, तकिये को दुहरा करके लेट गयी। करीमुद्दीन ने उड़ती हुई निगाह से लतिका को देखा, फिर अपने काम में जुट गया। “पिकनिक कैसी रही मेम साहब?” “तुम क्यों नहीं आये, सब लड़कियाँ तुम्हें पूछ रही थीं?” लतिका को लगा, दिन-भर की थकान धीरे-धीरे उसके शरीर की पसलियों पर चिपटती जा रही है। अनायास उसकी आँखें नींद के बोझ से झपकने लगीं। “मैं चला आता तो ह्यूबर्ट साहब की तीमारदारी कौन करता। दिनभर उनके बिस्तर से सटा हुआ बैठा रहा और अब वह गायब हो गये हैं।” करीमुद्दीन ने कन्धे पर लटकते हुए मैचे-कुचैले तौलिये को उतारा और लैम्प के शीशों की गर्द पोंछने लगा। + +16034. “इन ए बैक लेन ऑफ द सिटी, देयर इज ए गर्ल हू लव्ज मी…” ह्यूबर्ट हिचकियों के बीच गुनगुना उठता था। + +16035. “ह्यूबर्ट…” डाक्टर को एकदम ह्यूबर्ट पर गुस्सा आ गया, फिर अपने गुस्से पर ही उसे खीझ-सी हो आयी और वह ह्यूबर्ट की पीठ थपथपाने लगा। “कुछ बात नहीं है ह्यूबर्ट डियर, तुम सिर्फ थक गये हो।“ ह्यूबर्ट ने अपनी आँखें डाक्टर पर गड़ा दीं, उनमें एक भयभीत बच्चे की-सी कातरता झलक रही थी, मानो डाक्टर के चेहरे से वह किसी प्रश्न का उत्तर पा लेना चाहता हो। ह्यूबर्ट के कमरे में पहुँचकर डाक्टर ने उसे बिस्तरे पर लिटा दिया। ह्यूबर्ट ने बिना किसी विरोध के चुपचाप जूते-मोजे उतरवा दिये। जब डाक्टर ह्यूबर्ट की टाई उतारने लगा, तो ह्यूबर्ट, अपनी कुहनी के सहारे उठा, कुछ देर तक डाक्टर को आँखें फाड़ते हुए घूरता रहा, फिर धीरे-से उसका हाथ पकड़ लिया। “डाक्टर, क्या मैं मर जाऊँगा?” “कैसी बात करते हो ह्यूबर्ट!” डाक्टर ने हाथ छुड़ाकर धीरे-से ह्यूबर्ट का सिर तकिये पर टिका दिया। “गुड नाइट ह्यूबर्ट” “गुड नाइट डाक्टर,” ह्यूबर्ट ने करवट बदल ली। “गुड नाइट मि. ह्यूबर्ट…” लतिका का स्वर सिहर गया। किन्तु ह्यूबर्ट ने कोई उत्तर नहीं दिया। करवट बदलते ही उसे नींद आ गयी थी। + +16036. लतिका ने लैम्प उठाया और अपने कमरे की ओर जाने लगी। कॉरीडोर में चलते हुए उसने देखा, जूली के कमरे में प्रकाश की एक पतली रेखा दरवाजे के बाहर खिंच आयी है। लतिका को कुछ याद आया। वह कुछ क्षणों तक साँस रोके जूली के कमरे के बाहर खड़ी रही। कुछ देर बाद उसने दरवाजा खटखटाया। भीतर से कोई आवाज नहीं आयी। लतिका ने दबे हाथों से हलका-सा धक्का दिया, दरवाजा खुल गया। जूली लैम्प बुझाना भूल गयी थी। लतिका धीरे-धीरे दबे पाँव जूली के पलँग के पास चली आयी। जूली का सोता हुआ चेहरा लैम्प के फीके आलोक में पीला-सा दीख रहा था। लतिका ने अपनी जेब से वही नीला लिफाफा निकाला और उसे धीरे-से जूली के तकिये के नीचे दबाकर रख दिया। + +16037. 'कभी-कभी हम लोगों की भी खबर लेते रहिएगा।' गनेशी बिस्‍तर में रस्‍सी बाँधता हुआ बोला। + +16038. टोपी उतार कर गजाधर बाबू ने चारपाई पर रख दी, जूते खोल कर नीचे खिसका दिए, अंदर से रह-रह कर कहकहों की आवाज आ रही थी। इतवार का दिन था और उनके सब बच्‍चे इकठ्ठेहो कर नाश्‍ता कर रहे थे। गजाधर बाबू के सूखे चेहरे पर स्निग्‍ध मुस्‍कान आ गई, उसी तरह मुस्कराते हुए वह बिना खाँसे अंदर चले आए। उन्‍होंने देखा कि नरेंद्र कमरपर हाथ रखे शायद गत रात्रि की फिल्‍म में देखे गए किसी नृत्‍य की नकल कर रहा था और बसंती हँस-हँस कर दुहरी हो रही थी। अमर की बहू को अपने तन-बदन, आँचल या घूँघटका कोई होश न या और वह उन्‍मुक्‍त रूप से हँस रही थी। गजाधर बाबू को देखते ही नरेंद्र धप से बैठ गया और चाय का प्‍याला उठा कर मुँह से लगा लिया। बहू को होश आयाऔर उसने झट से माथा ढक लिया, केवल बसंती का शरीर रह-रह कर हँसी दबाने के प्रयत्‍न में हिलता रहा। + +16039. थोड़ी देर में उनकी पत्‍नी हाथ में अर्ध्‍य का लोटा लिए निकली और अशु्द्ध स्‍तुति कहते हुए तुलसी में डाल दिया। उन्‍हें देखते ही बसंती भी उठ गई। पत्‍नी ने आ करगजाधर बाबू को देखा और कहा, 'अरे, आप अकेले बैठे हैं - ये सब कहाँ गए?' गजाधर बाबू के मन में फाँस-सी करक उठी, 'अपने-अपने काम में लग गए है - आखिर बच्‍चे हीहै।' + +16040. 'पड़ी रहती है। बसंती को तो, फिर कहो कॉलेज जाना होता है।' + +16041. जब कभी उनकी पत्‍नी को काई लंबी शि‍कायत करनी होती, तो अपनी चटाई बैठक में डाल पड़ जाती थीं। वह एक दिन चटाई ले कर आ गईं। गजाधर बाबू ने घर-गृहस्‍थी की बातेंछेड़ीं, वह घर का रवैया देख रहे थे। बहुत हल्‍के से उन्‍होंने कहा कि अब हाथ में पैसा कम रहेगा, कुछ खर्च कम होना चाहिए। + +16042. अंदर कुछ गिरा और उनकी पत्‍नी हड़बड़ा कर उठ बैठीं, 'लो बिल्‍ली ने कुछ गिरा दिया शायद', और वह अंदर भागीं। थोड़ी देर में लौट कर आईं तो उनका मुँह फूला हुआ था,'देखा बहू को, चौका खुला छोड़ आई, बिल्‍ली ने दाल की पतीली गिरा दी। सभी तो खाने को हैं, अब क्‍या खिलाऊँगी?' वह साँस लेने को रुकीं और बोलीं, 'एक तरकारी और चारपराँठे बनाने में सारा डिब्‍बा घी उँड़ेल कर रख दिया। जरा-सा दर्द नहीं है, कमाने वाला हाड़ तोड़े और यहाँ चीजें लुटें। मुझे तो मालूम था कि यह सब काम किसी केबस का नहीं है।' + +16043. 'बाबूजी ने।' + +16044. 'कोई जरूरत नहीं है, अंदर जा कर पढ़ो।' गजाधर बाबू ने कड़े स्‍वर में कहा। कुछ देर अनिश्चित खड़े रह कर बसंती अंदर चली गई। गजाधर बाबू शाम को रोज टहलने चले जातेथे, लौट कर आए तो पत्‍नी ने कहा, 'क्‍या कह दिया बसंती से? शाम से मुँह लपेटे पड़ी है। खाना भी नहीं खाया।' + +16045. अगले दिन वह सुबह घूम कर लौट तो उन्‍होंने पाया कि बैठक में उनकी चारपाई नहीं है। अंदर जा कर पूछने ही वाले थे कि उनकी दृष्टि रसोई के अंदर बैठी पत्‍नी पर पड़ी।उन्‍होंने यह कहने को मुँह खोला कि बहू कहाँ है, पर कुछ याद कर चुप हो गए। पत्‍नी की कोठरी में झाँका तो अचार, रजाइयों और कनस्‍तरों के मध्‍य अपनी चारपाई लगीपाई। गजाधर बाबू ने कोट उतारा और कहीं टाँगने को दीवार पर नजर दौड़ाई। फिर उसे मोड़ कर अलगनी के कुछ कपड़े खिसका कर एक किनारे टाँग दिया। कुछ खाए बिना ही अपनीचारपाई पर लेट गए। कुछ भी हो, तन आखिरकार बूढ़ा ही था। सुबह-शाम कुछ दूर टहलने अवश्‍य चले जाते, पर आते-जाते थक उठते थे। गजाधर बाबू को अपना बड़ा-सा क्‍वार्टरयाद आ गया। निश्चित जीवन, सुबह पैसेंजर ट्रेन आने पर स्‍टेशन की चहल-पहल, चिर-परिचित चेहरे और पटरी पर रेल के पहियों की खट-खट, जो उनके लिए मधुर संगीत की तरहथी। तूफान और डाक गाड़ी के इंजनों की चिंघाड़ उनकी अकेली रातों की साथी थी। सेठ रामजी मल की मिल के कुछ लोग कभी-कभी पास आ बैठते, वही उनका दायरा था, वही उनकेसाथी। वह जीवन अब उन्‍हें एक खोई निधि-सा प्रतीत हुआ। उन्‍हें लगा कि वह जिंदगी द्वारा ठगे गए हैं। उन्‍होंने जो कुछ चाहा, उसमें से उन्‍हें एक बूँद भी न मिली। + +16046. 'कहते हैं खर्च बहुत है।' + +16047. नरेंद्र ने बड़ी तत्‍परता से बिस्‍तर बाँधा और रिक्‍शा बुला लाया। गजाधर बाबू का टीन का बक्‍स और पतला-सा बिस्‍तर उस पर रख दिया गया। नाश्‍ते के लिए लड्डू औरमठरी की डलिया हाथ में लिए गजाधर बाबू रिक्‍शे पर बैठ गए। दृष्टि उन्‍होंने अपने परिवार पर डाली। फिर दूसरी ओर देखने लगे और रिक्शा चल पड़ा। +